Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:18 AM,
#71
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
कमरे में अभी भी कुछ संभ्रम था - इतना तो तय है की मुझे यह सब कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन अब मुझे और हमको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। इतना तो तय था की रश्मि को सुमन के साथ अपनी निजता को बांटना बहुत अच्छा लग रहा था। रश्मि के स्तन इस तरह से अनावृत हो जाने से सुमन के मन में एक और चाहत जाग गयी – वह बिस्तर से उठी और जा कर एक बत्ती जला आई। पूरी रौशनी से नहाये हुए रश्मि के नग्न स्तनों को आज वह खूब करीब से देखना चाहती थी।

“दीदी, तुम कितनी सुन्दर हो!”

रश्मि को अपने पेट में एक मीठी सी गुदगुदी जैसी महसूस हुई – यहाँ दो लोग, जिनको वो बहुत प्रेम करती है, और जो उसको बहुत प्रेम करते हैं, एक साथ बैठ कर उसके रूप का इस अन्तरंग तरह से आस्वादन कर रहे हैं। उसने बड़े प्रेम से एक एक हाथ से सुमन और मेरे गले में गलबाहें डालीं, और हमको अपने स्तनों की तरफ खींचा। सुमन उसके निप्पल को मुँह में भर कर चूसने लग गई; मैंने पहले उसके निप्पल के चहुँओर पहले तो मन भर कर चाटा, और फिर इत्मीनान से उसको चूसना आरम्भ किया। कुछ ही मिनटों के स्तनपान के बाद, रश्मि का शरीर अचानक ही एक कमानी के जैसे हो गया और वह बिस्तर पर निढाल हो कर गिर गई और हांफने लगी..

“दीदी, क्या हुआ?” सुमन ने चिंता और सहानुभूति से पूछा। 

रश्मि कुछ बोली नहीं, बस हाँफते हाँफते मुस्कुराई। मुझे मालूम था की क्या हुआ.. इसलिए मैंने मैदान नहीं छोड़ा। मेरा हाथ उसकी कमर को टटोल रहा था। अगले पांच सेकंड में मेरी उंगलियाँ उसकी योनि रस से गीली हो चली चड्ढी के ऊपर से उसकी योनि का मर्दन कर रही थीं। मेरी इस हरकत से उसकी योनि से और ज्यादा रस निकलने लगा।

सुमन को सेक्स का कोई बहुत ज्ञान तो था नहीं – उसको बस उतना ही पता था जितना की उसने हमको करते हुए देखा था। और कोई कितनी देर तक सिर्फ स्तनपान कर सकता है? कुछ देर में सुमन थक गयी (या बोर हो गई) और रश्मि से अलग हो गयी। इतनी देर में मेरा लिंग भी अपने निर्धारित कार्य के लिए तैयार हो चला था – सुमन से यह बात छुपी नहीं। 

“जीजू, अब आप दीदी के साथ ‘सेक्स’ करिए न?”

किसी के सामने निर्वस्त्र वैसे भी आसान नहीं होता। और यहाँ पर स्थिति थोड़ा भिन्न थी – यहाँ पर एक जिज्ञासु लड़की मुझे अपनी पत्नी के साथ उसके सामने सेक्स करने को कह रही थी। खैर, रश्मि को लगभग नग्न देख कर मेरी खुद की अभिज्ञता कुछ कम हो गई थी – लिहाज़ा, मैंने भी अपने कपड़े उतारे, और साथ ही साथ यह आलोकन भी किया की हम तीनों में सिर्फ सुमन ही है जिसने सारे कपड़े पहन रखे हैं।

“नीलू, यह तो बहुत बेढंगा लगता है की हम दोनों के कपड़े उतर रहे हैं, और तुमने सब कुछ पहना हुआ है। तुम भी तो उतारो!”

“जीजू... ये भी क्या पहना है मैंने! सब कुछ तो दिख रहा है!” मैंने आगे कोई जिद नहीं करी। लेकिन जो कुछ सुमन ने आगे किया, उसको देख कर हम दोनों ही मुस्कुरा उठे। उसने जल्दी से अपनी नाईटी उतार फेंकी और अपने जन्मदिन वाले सूट (अर्थात पूर्णतः नग्न) में हमारे सामने बिस्तर पर बैठ गयी। आज पहली बार सुमन का वयस्क रूप मैंने और रश्मि ने देखा था। सुमन की छाती पर अब संतरे के आकार के दो स्तन बिलकुल तन कर खड़े हो गए थे, और उसके शरीर पर बहुत ही शोभन लग रहे थे। उसके निप्पल गहरे भूरे रंग के थे, और उनके बगल हलके भूरे रंग का कोई डेढ़ इंच व्यास का areola विकसित हो गया था।

“अब करिए..?” सुमन कितनी उतावली हो रही थी हमको सेक्स करते देखने के लिए! 

मेरे मन में द्वंद्व छिड़ गया - क्या यह ठीक होगा? कहीं इसके दिमाग पर बुरा असर न पड़े! बुरा असर क्यों होगा? आखिर यह शिक्षा तो सभी को चाहिए ही न! ऐसी कोई छोटी भी तो नहीं है! जल्दी ही इसकी शादी भी इसके परिवार वाले ढूँढने लग जायेंगे! उसके पहले इसको सेक्स के बारे में मालूम हो जाय तो अच्छा है। 
अब कहानी आगे बढ़ने से पहले एक सवाल का जवाब आप ही लोग दीजिए : अगर कोई सुन्दर सी लड़की अगर इस तरह अन्तरंग तरीके से आपके सामने निर्वस्त्र हो जाय, तो उसका कुछ तो आदर होना चाहिए की नहीं? मैंने आगे बढ़ कर उसके दोनों चूचुकों पर एक एक चुम्बन ले लिया। सुमन सिहर उठी। मुझे मालूम था की रश्मि नीचे लेटी हुई है.. लेकिन सुमन को कुछ तो यादगार व्यक्तिगत अनुभव होना ही चाहिए! मैंने सुमन की कमर पकड़ कर अपनी तरफ खींचा, और फिर इत्मीनान से उसके स्तनों को बारी बारी से अपने मुंह में भर कर चूसने लगा। कमरे में सुमन की हाय तौबा गूंजने लगी। उसको नज़रंदाज़ कर के मैं साथ ही साथ उसके दोनों नितम्बों को मसल भी रहा था। 

“जीजू... बस्स्स्स! आह! म्म्मेरे साथ.. न्न्न्हीं.. दी..दी.. के साथ..” वो उन्माद में न जाने क्या क्या बड़बड़ा रही थी। लेकिन मैंने बिना रुके तबियत से उसके स्तनों को कोई दस मिनट तक चूमा और चूसा। उत्तेजनावश उसके स्तन इस समय साइज़ में कोई बड़े लग रहे थे, और और दोनों चूचक वैसे तन कर खड़े हो गए जैसे रबर-वाली पेंसिल के रबर! एकदम सावधान! खैर अंततः मैंने सुमन को छोड़ा – वो बुरी तरह से हांफ रही थी। दोनों निप्पल इस कदर चूसे जाने से लाल हो गए थे, और उसके शरीर पर, ख़ास तौर पर स्तनों, पेट और नितम्बों पर लाल निशान पड़ गए थे।

“हैप्पी बर्थडे!” मैंने मुस्कुराते हुए बस इतना ही कहा। सुमन उत्तर में शर्मा गयी।

“ह्म्म्म... तो जीजा और साली आपस में ही बर्थडे बर्थडे खेले ले रहे हैं? अपनी दीदी को ट्रीट नहीं दोगी?” रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहा।

“ट्रीट?”

रश्मि भी लगता है अपने स्तन पिए जाने का हिसाब बराबर करना चाहती थी। वह उठ कर अपना हाथ सुमन के स्तनों पर रख कर उनको धीरे धीरे सहलाने लगी। सुमन के स्तन छोटे छोटे तो थे, लेकिन रश्मि के स्तनों जैसे प्यारे से थे। सुमन की सिसकियाँ निकल पड़ीं। रश्मि को अभी ठीक से आईडिया नहीं था – उसने सुमन के एक निप्पल को जोश में आकर कुछ ज्यादा ही जोर से मसल दिया। 

सुमन: “सीईईई... क्या कर रही हो दीदी! आराम से करो न! जीजू ने वैसे ही मेरी जान निकाल दी है।”

रश्मि यह इशारा पा कर अब खुल कर सुमन के स्तनों से खेलने लग गई। कुछ तो मेरे सिखाई विद्या, और कुछ उसकी खुद की जिज्ञासा... कभी सुमन के प्रोत्साहन से रश्मि भी स्तन-रस-पान करने लगी। सुमन के चूचुक को प्यार से रगड़ने के बाद उसके स्तनों को चूसना शुरू कर दिया, तो वो एकदम गरम हो गई थी। मैं क्या करता? मैंने रश्मि के पेट और नाभि के आस पास चूमना और चाटना शुरू कर दिया। कमरे में नग्न पड़े तीन जिस्म अब सुलग उठे थे। कुछ ही पलों के बाद सुमन अपने जीवन की प्रथम रति-निष्पत्ति का अनुभव कर के गहरी गहरी साँसे भरने लगी। उसकी योनि के स्राव से निकलती नमकीन सी खुशबू हम दोनों ने महसूस करी। सुमन इन सबसे बेखबर, अपनी आँखें बंद किये मानो जैसे सपनो की दुनिया में खोई हुई थी - उसकी साँसे तेजी से चल रही थीं, और होंठ कांप रहे थे। वो अभी अभी अनुभव किये नए आनंद के सागर के तल तक गोते लगा रही थी।

“वैरी हैप्पी बर्थडे नीलू!” कहते हुए रश्मि ने सुमन को होंठों पर चूम लिया, और आगे कहा, “... कैसा लगा?”

“आअह्ह्ह्ह दीदी! एकदम अनोखा!” सुमन ने गहरी सांस भरी। “... अब आप लोग करो न प्लीज!”

हम लोग तो तैयार थे – बस दर्शक (सुमन) के रेडी होने की बात जोह रहे थे। रश्मि के हरी झंडी दिखाते ही मैंने उसको छेड़ना शुरू कर दिया। गर्भधारण करने से स्त्रियों के शरीर में कई सारे परिवर्तन होने लगते हैं। उनमें से एक है - एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन रसायनों के स्तर में वृद्धि! ये दोनों रसायन स्त्रियों के शरीर को कुछ इस तरह से बदल देते हैं की उनमें गर्भावस्था के दौरान कामेच्छा काफी बढ़ जाती है। इनके कारण गर्भाशय में रक्त का प्रवाह और प्राकृतिक चिकनाई बढ़ जाती है, और स्तनों और निपल्स में संवेदनशीलता भी बढ़ जाती है। कहना गलत न होगा, की बहुत सी स्त्रियाँ (जिनका स्वास्थ्य इत्यादि ठीक हो) गर्भधारण के उपरान्त यौन संसर्ग का और अधिक आनंद उठाती हैं! लिहाजा, रश्मि जो पहले से ही रति का अवतार है, अब और भी कामुक हो गयी थी।

रश्मि : “उफ़.. आप क्या कर रहे हैं?” 

मैं : “अरे भई! मौके का सही फायदा उठा रहा हूँ। तुम्हारी बहन के लिए अच्छा सा गिफ्ट ला रहा हूँ...” कहते हुए मैंने रश्मि को टांगों से खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया, और उसके स्तन दबाने लगा। रश्मि ने अपनी आंखें बंद कर रखी थी। वैसे भी उसके स्तन उत्तेजनावश पहले ही सख्त हो चुके थे। 

रश्मि बोली, “हाय! क्या करते हो? आराम से! आपका हाथ बहुत कड़क पड़ता है! ‘ये’ बहुत सेंसिटिव हो गए हैं अब! पहले ही तुम दोनों ने चूस चूस कर इनका हाल बुरा कर दिया है.. अब बस...”

मैंने कहा, “अरे! लेकिन ये सब नहीं करूंगा तो सुमन क्या सीखेगी?” कह कर मैं फिर उसके स्तनों का मर्दन करने लगा। 

रश्मि बोली, “प्लीज़ जानू ! दर्द होता है! अब आप सीधा मेन काम करिए.. मैं पूरी तरह से तैयार हूँ..”

तैयार तो थी! मैंने रश्मि को अपनी बाँहो में भर लिया, और उसके नरम-नरम होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा। कुछ देर तक ऐसे ही उसके पूरे शरीर को चूमा। अब रश्मि पूरी तरह से तैयार थी। उसके लिए ये फोरप्ले कुछ ज्यादा ही हो गया था।

मैं उसके पेट पर हाथ फिराते हुए उसकी चड्ढी के अन्दर ले गया। उसकी योनि उत्तेजनावश जैसे पाव रोटी की तरह सूजी हुई थी। मैंने चड्ढी के अन्दर से उसकी योनि को सहलाने लगा। रश्मि ने अपनी आंखें बंद कर लीं। कुछ देर ऐसे ही छेड़खानी करने के बाद मैंने उसकी चड्ढी भी उतार दी और अपनी तर्जनी और अंगूठे की मदद से उसकी योनि के होंठों को खोलने और बन्द करने लगा, और साथ ही साथ उसके भगशिश्न को भी छेड़ने लगा। रश्मि के मुँह से कामुक कराहें निकलने लगी, और वो मस्त होकर मेरे लिंग को अपने हाथ में पकड़ कर दबाने और सहलाने लगी। 

“बोलो रश्मि रानी! चुदने का मन हो रहा है या नहीं?”

“छी! जानू.. आप बहुत गंदे हो!”

“अरे बोल न! ऐसे क्यों शर्मा रही है? बोल न... चुदने का मन हो रहा है?” रश्मि समझ गयी की बिना ‘डर्टी-टॉक’ किये मैं कुछ नहीं करूंगा.. इसलिए उसने पीछा छुडाने के लिए कहा,

“हाँ जानू.. बहुत मन हो रहा है।“ 

अब आप लोग ही सोचिए – एक लड़की पूरी तरह से नंगी दो लोगों के सामने भोगे जाने हेतु पड़ी हुई है, लेकिन फिर भी माकूल या मुनासिब व्यवहार नहीं छोड़ रही है! भारतीय लड़कियाँ वाकई कमाल होती हैं। मुझे मालूम था की इससे अधिक वो और कुछ नहीं कहेगी। मैंने रश्मि को सावधानी पूर्वक बिस्तर पर वापस लिटाया और अपने लिंग को उसकी योनि की दरार पर कई बार फिरा कर गीला कर लिया। उसकी योनि से कामरस मानों बह रहा था। जब वो अच्छी तरह से गीला हो गया, तब मैंने अपने लिंग को पकड़ कर उसकी योनि के भीतर धीरे से ठेल दिया। मेरे लिंग का सुपाड़ा उसकी योनि में भीतर तक घुस गया – इतनी चिकनाई थी अन्दर। रश्मि के मुँह से आह निकल पड़ी। 

आगे हम एक दूसरे को चूमते हुए वही पुरानी आदि-कालीन क्रिया करने लगे। पहले धीरे धीरे और फिर बाद में तेजी से मैं अपने लिंग को रश्मि की योनि के अन्दर-बाहर करने लगा। कुछ देर बाद रश्मि ने अपनी टांगें ऊपर की तरफ मोड़ ली और मेरी कमर के दोनों तरफ लपेट ली। अब मेरा लिंग रश्मि की योनि में तेजी से अन्दर-बाहर हो रहा था – इस गति में आयाम कम, लेकिन आवृत्ति बहुत ही अधिक थी। मैं अब तेज-तेज धक्के मार रहा था। काम का नशा अब हमारे सर चढ़ गया था। रश्मि भी आनंद लेते हुए मेरे हर धक्के का स्वाद ले रही थी।

रश्मि ने मेरे नितम्बों को अपने हाथों में थाम रखा था और उनको पकड़े हुए ही वो भी नीचे से मेरे धक्कों के साथ-साथ अपने नितम्ब की ताल दे रही थी। योनि सुरंग में पहले से ही काम-रस की बाढ़ आई हुई थी, और इतने मर्दन के बाद अब मेरा लिंग बिना रुके हुए आराम से अन्दर बाहर फिसल रहा था। इस सम्भोग का आनंद रश्मि महसूस करके, और सुमन अवलोकन करके ले रहे थे। इस नए परिवेश में मैंने भी रश्मि को किसी पागल की भांति भोग रहा था। 

मैंने पूछा, “जानेमन, अच्छा लग रहा है?” 

रश्मि बोली, “हमेशा ही लगता है! आपका लंड इतना तगड़ा है, और आपके चुदाई का तरीका इतना शानदार! बहुत अच्छा लग रहा है। बस आप तेज-तेज करते रहो।”

गन्दी बात! वाह! उसके मुंह से यह बात सुन कर मैंने अपनी रफ्तार और बढ़ा दी। मैं वाकई उसको ‘चोदने’ लग गया। मेरा लिंग सटासट उसकी योनि में तेजी से अन्दर बाहर हो रहा था। रश्मि मस्ती में ‘आअह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह’ करती रही। कोई पांच मिनट चले इस घमासान के बीच अचानक ही रश्मि ने मुझे कस कर अपनी बाँहो में भर लिया। मैं समझ गया की इसका काम तो हो गया। और अगले ही पल उसने एक जोर से आह भरी और आखिरी बार अपने नितम्ब को मेरे लिंग पर ठेला, और फिर बिस्तर पर अपने पैर पसार कर ढेर हो गयी। मैंने भी जल्दी जल्दी धक्के लगाए और आखिरी क्षण में लिंग को उसकी योनि से बाहर निकाल कर उसके पेट पर अपनी वीर्य की कई सारी धाराएँ छोड़ दीं।
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12-17-2018, 02:18 AM,
#72
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फिर मैं गहरी साँसे भरता हुआ रश्मि के बगल लेट गया और कुछ देर तक सांसों को संयत करता रहा। रश्मि भी मेरे बगल अपनी आँखें बंद करके लेटी हुई थी। इस पूरे वाकए को सुमन खामोशी से (और विस्मय के साथ भी) देखती रही। मैंने उसकी तरफ मुखातिब हो कर कहा,

“नीलू, ज़रा क्लोसेट से मेरी एक रूमाल निकाल कर देना तो!”

वो तो जैसे किसी सम्मोहन से जागी। फिर मेरी अलमारी से उसने एक रूमाल निकाल कर मुझे सौंप दिया। मैंने रूमाल से रश्मि के पेट पर गिरा वीर्य और अपना लिंग साफ़ किया और उठ कर बाथरूम के अन्दर फेंक दिया। वापस आकर मैं फिर से उसकी बगल में लेट गया, और उसके स्तनों पर हाथ फेरने लगा। 

रश्मि : “हो गई तुम्हारे मन की?” यह प्रश्न सुमन के लिए था।

सुमन ने कुछ नहीं कहा।

“बोल न? गिफ्ट कैसा लगा?”

“दीदी! मैं नहीं करूंगी यह सब कभी भी..” सुमन ने रुआंसी आवाज़ में कहा, “... बाप रे! मैं तो मर जाऊंगी!”

“नीलू बेटा!” मैंने कहा, “जब तुम्हारे हस्बैंड का लंड तुम्हारे अन्दर जाएगा न, तब तुम यह कहना भूल जाओगी!”

कह कर मैंने रश्मि को अपनी बाँहो में भर लिया, और कुछ देर तक ऐसे ही सुमन को समझाते रहे। फिर रश्मि ने कहा, “मैं तो थक गयी हूँ... चलो अब सो जाते हैं!” और कह कर अगले कुछ ही पलों में वो सो गयी। सुमन भी रश्मि के बगल चुपचाप पड़ी रही। मैं कब सोया कुछ याद नहीं।

अगली सुबह नाश्ते पर ससुर जी ने मुझसे कहा की उनके परिवार की भगवान केदारनाथ धाम में बड़ी अगाध श्रद्धा है। और हर शुभ-कार्य अथवा पर्व-प्रयोजन में वो सभी वहाँ जाते रहते हैं। उनका पूरा परिवार कई पीढ़ियों से शुभ प्रयोजनों में यह यात्रा करता रहा है। उनके अनुसार, अब चूंकि रश्मि गर्भवती है, तो यदि संभव हो, तो हम सभी एक बार केदारनाथ जी के दर्शन कर आएँ? इस बात पर सबसे पहले तो मुझे राहत की सांस आई – कल रात की धमाचौकड़ी इन लोगो ने कैसे नहीं सुनी, वही एक अचरज की बात है। अच्छा है.. सवेरे सवेरे धर्म कर्म की बाते हो रही थीं। 

“जी पिताजी, एक बार हम रश्मि की डॉक्टर से बात कर लेते हैं। अगर उनकी सलाह हुई, तो ज़रूर चलेंगे। अभी जाना है क्या? मेरा मतलब, कोई मुहूर्त जैसा कुछ है?”

“नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है बेटा। जब आप लोगों को सही लगे, आ जाइए। भगवान् के दर्शनों के लिए कैसा मुहूर्त! बस हम सभी एक बार सपरिवार केदारनाथ जी के दर्शन कर लें.. हमारी बहुत दिनों से बड़ी इच्छा है।“

“जी, बिलकुल! मैं अभी कुछ ही देर में डॉक्टर को पूछता हूँ..”

खाने पीने के बाद कोई दस बजे मैंने डॉक्टर को फ़ोन लगाया। उन्होंने कहा की अगले महीने रश्मि यात्रा कर सकती है। तब तक उसका पाँचवाँ महीना शुरू हो जाएगा, और वह सुरक्षित समय है। बस समुचित सावधानी रखी जाय। मैं उन रास्तों पर गया हुआ हूँ पहले भी, और मुझे मालूम है की कुछ स्थानों को छोड़ दिया जाय, तो वहाँ की सड़कें अच्छी हालत में हैं। इसलिए कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। वहाँ ऊपर जा कर पालकी इत्यादि की व्यवस्था तो हो ही जाती है... अतः डरने या घबराने वाली कोई बात नहीं थी।

दो दिन और बैंगलोर में रहने के बाद मेरे सास ससुर दोनों वापस उत्तराँचल को लौट गए। मैंने बहुत कहा की यही रुक जाएँ, लेकिन उनको वहाँ कई कार्य निबटाने थे, इसलिए हमारी बहुत मनुहार के बाद भी उनको जाना पड़ा। खैर, उनके जाते ही मैंने सबसे पहले देहरादून का हवाई टिकट हम तीनों के लिए बुक कर लिया। इस एक महीने में हमने बहुत सारे काम यहाँ पर भी निबटाए – सबसे पहले सुमन के दाखिले के लिए उसके संभावित कॉलेज के प्रिंसिपल से मिले, और उन्होंने भरोसा दिलाया की उसको दाखिला मिल जाएगा अगर बारहवीं में अंक अच्छे आयेंगे! उन्होंने काफी समय निकाल कर उसकी काउंसलिंग भी करी – वो क्या करना चाहती है, क्या पढना चाहती है, कौन से कोर्स वहाँ पढाए जा रहे हैं इत्यादि! मुझे भी काम के सिलसिले में दो हफ्ते घर से बाहर जाना पड़ा, और इस बीच दोनों लड़कियों ने ढेर सारी खरीददारी भी कर ली.. जैसे जैसे रश्मि के शरीर में वृद्धि हो रही थी, उसको नए कपड़ो की आवश्यकता हो रही थी; सुमन को भी नए परिवेश के हिसाब से परिधान खरीदने की ज़रुरत थी। खैर, अच्छा ही है.. इसी बहाने उसको नई जगह को देखने और समझने का मौका मिल रहा था।

दोनों ही लड़कियों से रोज़ बात होती थी.. एक बार रश्मि ने कहा की जिस तरह से उसका शरीर बढ़ रहा है, उसको लगता है की नए कपड़े लेने से बेहतर है की वो नंगी ही रहे। इस पर मैंने सहमति जताई, और कहा की यह ख़याल बहुत उम्दा है। रश्मि ने कहा की ख़याल तो उम्दा है, लेकिन आज कल उसकी बहन रोज़ ही उससे चिपकी सी रहती है.. ऐसा नहीं है की रश्मि को सुमन का संग बुरा लगता है। बस यह की एक वयस्क लड़की के लिए ऐसा व्यवहार थोड़ा अजीब है। मेरे पूछने पर उसने बताया की सुमन अक्सर उसके स्तनों और शरीर के अन्य हिस्सों को छूती टटोलती रहती है। कहती है की उसको रश्मि बहुत सुन्दर लगती है, और उससे रहा नहीं जाता बिना उसको छुए। रश्मि ने ही बताया की,

एक दिन सुमन ने रश्मि को कहा, “दीदी, तुम्हारा बच्चा कितना लकी है न! हमें तो बस गिलास से ही...”

“क्या मतलब?” रश्मि समझ तो रही थी.. फिर भी पूछा।

“मेरा मतलब दीदी, हर किसी को तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की का ... पीने .. को.. नहीं मिलता है न!”

गर्भावस्था के दौरान लड़कियाँ स्वयं को फूली हुई महसूस करती हैं, इसलिए उनकी तारीफ़ इत्यादि करने से उनको ख़ुशी मिलती है। रश्मि भी अपनी तारीफ़ सुन कर मुस्कुराई। 

“दीदी, मैं तुमको चूम लूँ?”

“क्या नीलू! तू भी! तू अपने लिए एक लड़का ढूंढ ले.. तेरे भाव स्पष्ट नहीं लग रहे हैं मुझे.. हा हा हा!”

“तो ढूंढ दो न तुम ही.. जीजू जैसा कोई! तब तक यही भाव रहेंगे मेरे..”

कहते हुए सुमन ने अपना चेहरा रश्मि के चेहरे के पास लाया। रश्मि की आँखें सुमन के होंठो पर लगी हुई थीं। रश्मि ने कभी नहीं सोचा था की उसके साथ ऐसा भी कुछ होगा। क्या उसकी ही अपनी, छोटी बहन उसकी तरफ यौन आकर्षण रखती है! ऐसा नहीं है की उसको बुरा लग रहा हो... शादी के बाद के कई अनुभवों के बाद उसकी खुद की अनगिनत वर्जनाएँ समाप्त हो गयी थीं, लेकिन फिर भी, यह सब कुछ बहुत ही अलग था.. अनोखा! अनोखा, और बहुत ही रोचक। सुमन ने झुक कर अपने होंठ रश्मि के होंठो से सटा दिए... 

“ओह! कितने सॉफ्ट हैं!” एक छोटा सा चुम्बन ले कर उसने कहा।

सुमन रश्मि के होंठों पर बहुत ही हलके हलके कई सारे चुम्बन दे रही थी। दे रही थी, या ले रही थी? जो भी है! जब उसने देखा की रश्मि उसकी इस हरकत का कोई बुरा नहीं मान रही है, और साथ ही साथ उसकी इस हरकत के प्रतिउत्तर में वो खुद भी वापस चुम्बन दे रही है, तो उसने कुछ नया करने का सोचा। उसने चुम्बन में कुछ तेज़ी और जोश लाई, और साथ ही रश्मि को अपने आलिंगन में बांध लिया। कुछ तो हुआ दोनों के बीच – दोनों लड़कियाँ अब पूरी तन्मयता के साथ एक दूसरे का चुम्बन ले रही थीं। रश्मि ने भी अपने अनुभव का प्रयोग करते हुए सुमन के दोनों गाल अपने हाथों से थोड़ा दबा दिए, जिसके कारण सुमन का मुँह खुल गया। और इसी क्षण रश्मि ने अपनी जीभ सुमन के मुँह के अन्दर डाल कर चूसना शुरू कर दिया। 

उधर, सुमन रश्मि की शर्ट के ऊपर से उसके स्तनों को बारी बारी छूने लगी। रश्मि के लिए यह कोई नई बात तो नहीं थी, लेकिन फिर भी सुने आँख खोल कर देखा - सुमन तो अपनी आँखें बंद किये इस काम में पूरी तरह मगन थी। एक सहज प्रतिक्रिया में रश्मि ने पुनः अपने स्तन को आगे की ओर ठेल दिया, जिसके कारण उसके स्तन सुमन के हाथ में आ गए। सुमन ने तुरंत ही खुश होकर उसके स्तन को मसलना चालू कर दिया। 

चुम्बन की प्रबलता अब तीव्र हो चली थी और दोनों लड़कियों की साँसे भी। सुमन के दोनों हाथ अब रश्मि के शर्ट के अन्दर जा कर उसके स्तनों का मर्दन कर रहे थे। रश्मि के निप्पल गर्भावस्था की संवेदनशीलता के कारण उसके मर्दन से असहज महसूस कर रहे थे। लेकिन वो सुमन का मन रखना चाहती थी।

रश्मि ने सुमन को अपने से कुछ दूर किया, और फिर अपनी शर्ट के बटन खोल कर उसके पट खोल दिए। वो शर्ट को उतार पाती, उससे पहले ही सुमन वापस उससे जा चिपकी और उसको पुनः चूमने लग गई। रश्मि के स्वतंत्र स्तनों को वो बारी बारी से अपने मुंह में भर कर चूसना आरम्भ कर दिया। पहले के मर्दन के कारण उसके निप्पल पहले ही कड़े हो गए थे, और अब इस चूषण के बाद वो और भी कड़े हो गए। 

“मैं भी लकी हूँ! ... उह्म्म्म उह्म्म्म (चूसते हुए) ओह दीदी..! आप प्लीज मुझको भी इनसे दूध पिलाना! आह! इतने सुन्दर हैं!” इतना कह कर वह पुनः चूसने में लग गयी। 

“हा हा! ये लो... अब एक और दावेदार आ गई! गाँव बसा नहीं, और लुटेरे आ गए!”

सुमन ने उसकी बात को जैसे अनसुना कर दिया। उसके हाथ रश्मि के सारे शरीर पर चलने फिरने लगे। कभी वो उसके स्तन दबाती, तो कभी उसके नितम्ब, तो कभी उसकी पीठ! आगे वो उसकी स्कर्ट को नीचे की तरफ सरकाने लगी।

“अरे! ये क्या कर रही है? मुझे पूरा नंगा करने का मूड है क्या?” रश्मि ने मुस्कुराते हुए पूछा।

"हाँ! मैं तुमको पूरा नंगा भी देखूँगी, और आपके साथ वह सब करूंगी जो जीजू करते हैं।“ कहते हुए सुमन रश्मि की स्कर्ट और चड्ढी दोनों एक साथ ही नीचे सरकाने लगी। 

“नहीं नीलू.. ऐसे मत कर.. बस, इनको पीने की इजाज़त है.. ये तेरे जीजू के लिए है!”

रश्मि सुमन के सामने नग्न पड़ी हुई थी, और अपने शरीर का कोई हिस्सा छुपाने का यत्न नहीं कर रही थी। कदाचित, वह यह चाहती थी की सुमन उसकी सुन्दरता के रसभरे दृश्य से सराबोर हो जाए। लेकिन, सुमन को बस इतनी ही अनुमति थी। उसने एकदम आसक्त हो कर अपनी तर्जनी को रश्मि की सूजी हुई योनि की दरार पर फिराया और फिर बहुत ही अनिच्छा से अपना हाथ वापस खींच लिया। रश्मि मुस्कुराई।

सुमन ने वापस आकर रश्मि के स्तनों पर अपना मोर्चा सम्हाला, और पुनः उनको चूसना शुरू कर दिया। कुछ देर चूसने के बाद,

“अरे दीदी! ये क्या..?”

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12-17-2018, 02:18 AM,
#73
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि की बात सुन कर मुझे बहुत रोचक लगा! और मैं खुद भी काफी उत्तेजित हो गया!! बात तो सही है.. रश्मि है ही इतनी सुन्दर! और अब जब वो माँ बनने वाली है, तो उसकी सुन्दरता और भी निखर आई है! ज्यादातर स्त्रियाँ गर्भ-धारण करने के बाद अतिपक्व दिखने लगती है, और उनके शरीर पर गर्भ का बोझ दिखने लगता है। कहने का मतलब, वे स्थूल, थकी हुई और निस्तेज हो जाती है। लेकिन, कुछ स्त्रियाँ ऐसी होती है, जो पुष्प की तरह खिल जाती हैं.. उनके चेहरे पर उनके अन्दर पनप रहे जीवन का तेज दिखने लगता है। रश्मि इस दूसरी श्रेणी में थी। उसका चेहरा जीवन की आशा से दीप्तिमान होता जा रहा था, और उसका छरहरा शरीर स्थूल तो हो रहा था, परंतु साथ ही साथ अत्यंत आकर्षक भी होता जा रहा था। पहले ही वो रति का स्वरुप लगती थी, अब तो ऐसा लगता है की उसमें कम से कम सौ रतियों का वास हो! कोई भी ऐसी स्त्री को आकर्षक पायेगा ही! इसके लिए सुमन से मुझे कोई भी गिला-शिकवा नहीं था।

वापस आने के एक दिन पहले रश्मि ने मुझे फ़ोन पर कहा की वापस आने पर मेरे लिए एक सरप्राइज है! मेरे लाख पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया की क्या! खैर, बता देती तो कैसा सरप्राइज! घर आने पर मेरा स्वागत एक बेहद झीने नाईटी पहने हुए रश्मि ने एक गर्म कामुक फ्रेंच चुम्बन के साथ किया। दरवाज़े को भी ठीक से बंद नहीं पर पाया मैं। स्पष्ट था की इतने दिनों में रश्मि की यौनरुचि कई गुना बढ़ गयी थी। मुझे भी इस तराशी हुई सुंदरी को नंगा देखने की तीव्र इच्छा हो रही थी, इसलिए तुरत-फुरत मैंने उसकी नाईटी उतार फेंकी। मेरी नज़रों के सामने भरे हुए स्तन और उनके सामने सुशोभित स्थूल चूचक, जैसे किसी पूर्वज्ञान के कारण खड़े हुए, उपस्थित थे। मैंने आँख उठाई, तो मेरी आँखें रश्मि की आँखों से मिलीं। उसकी आँखों में एक संतुष्ट चमक थी – उसको मालूम है की मैं उसके स्तनों की सुन्दरता का दीवाना हूँ। फिर भी वो एक शिकायत भरे लहजे में कहती है,

“बहुत बड़े हो गए न?” और कहते हुए अपने स्तनों के नीचे हथेलियाँ लगा कर उठाती है। उसके इस हरकत में किसी भी प्रकार की लज्जा नहीं है.. वस्तुतः, मुझे ऐसा लगा जैसे वो मुझे अपने स्तनों का चढ़ावा दे रही हो। ऐसे चढ़ावे का भोग तो मैं कभी भी, और कहीं भी लगा सकता हूँ। 

मैंने ‘न’ में सर हिलाया, “आई लव देम... आई लव यू!”

“तुम पागल हो..” कह कर रश्मि खिलखिलाते हुए हंसी.. और फिर उसने आगे जो किया उसने मेरे दिमाग और शरीर के सारे तार झनझना दिए। उसने अपने स्तनों को हलके से दबा दिया, और ऐसा करने से दोनों चूचकों में हलके पीले से रंग के दूध की बूँदें निकल आईं। ज़रा सोचिये, उसके प्यारे प्यारे रसभरे स्तनों में से अमृत उतर रहा था, और मैं उसको पीने जा रहा था! यह मेरा दावा है की धरती के प्रत्येक पुरुष के मन की फंतासी होगी की वो अपनी प्रेमिका या पत्नी के स्तनों से दूध पिए! कम से कम मेरी तो थी! और आज यह स्वप्न पूरा होने वाला था। इस दृश्य को देखते ही मेरा लिंग अपने पूरे तनाव पर खड़ा हो गया। 

“मेला बच्चा भूखा है?” रश्मि ने मुझे प्यार से छेड़ा।

मैं मंत्रमुग्ध सा इस दृश्य को देख रहा था.. लिहाजा, मैं सिर्फ सर हिला कर हामी भर पाया।

“अले मेला बेटू... इत्ती देर शे उसे कुछ खाने को नहीं मिला... है न? मेला दूधू पिएगा..?”

रश्मि ने दुलराते हुए मुझसे पूछा। मेरे फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाने पर रश्मि वहीँ सोफे पर बैठ गई, और उसने मुझे अपनी गोदी में आने का इशारा किया। मैंने उसकी गोदी में सावधानीपूर्वक व्यवस्थित हो जाने के बाद उसके होंठों को कोमलता से चूम लिया और उसके होंठों के अन्दर से होते हुए अपनी जीभ से उसकी जीभ चाट ली।

रश्मि फिर से खिलखिलाई, और बोली, “नीचे और भी टेस्टी चीज़ है...” 

और यह कहते हुए उसने मेरे सर को अपने स्तनों की तरफ निर्देशित किया। मैंने उसके निप्पल और areola का पूरा हिस्सा मुँह में भर लिया और जोर से चूसा। कोई पांच छः बार कोशिश करने के बाद मुझे अपने मुंह में एक स्वादरहित द्रव रिसता हुआ महसूस हुआ। और इसी के साथ ही मुझे रश्मि के मुंह से संतुष्टि भरी आह भी सुनाई दी। 

“आह्ह्ह मेरे राजा! ऐसे ही चूसते रहो.. आह.. बहुत अच्छा लग रहा है..।“

रश्मि मेरे चूषण से प्रसन्न तो थी – उसकी विभिन्न प्रकार की आहें और उम्म्म आह्ह्ह.. इत्यादि इसका सबसे बड़ा प्रमाण थीं। कुछ देर में द्रव/दूध निकलना बंद हो गय, लेकिन फिर भी मैंने उसके बाद भी एक दो मिनट तक उसके उस स्तन को चूसा। उसके बाद आई दूसरे स्तन की बारी.. मुझे अनुभव तो हो ही गया था.. या यह कह लीजिये की शेर को खून... (ओह! माफ करियेगा), दूध का स्वाद पता चल गया था।

इधर मैं उसका दूध पी रहा था, और उधर रश्मि मेरी पैंट की ज़िप के अन्दर से मेरे तने हुए लिंग के साथ खिलवाड़ कर रही थी। मैंने यह महसूस किया की जब वो मेरे लिंग को दबाती है, तो मेरा चूषण और बढ़ जाता है। खैर, यह खेल कब तक चलता.. अंततः उसके दोनों स्तनों में दूध समाप्त हो गया, तो मैं उसके पेट पर चुम्बन लेकर सोफे से ज़मीन पर उतर आया।

“कैसा लगा सरप्राइज?”

“बहुत ही बड़ा सरप्राइज था! मज़ा आ गया..”

“कब से बचा के रखा था.. आपका मन भरा?”

“मन कैसे भरेगा इससे मेरी जान! इतना न्यूट्रीशियश, इतना मजेदार! मैंने तो रोज़ पियूँगा!”

ऐसी बातें करते हुए शरीर पर जो प्रभाव होना होता है, वो होने लगा।

“अले ले ले! ये क्या.. मेले बेटू का छुन्नू तो ल्ल्ल्लंड बन गया है.. कितना बड़ा वाला ल्ल्ल्लंड..” उसने मुझे चिढ़ाया।

“मम्मी है ही इतनी सेक्सी!”

“ह्म्म्म? मम्मी इसको जल्दी से वापस छुन्नू बना दे? ठीक है न?”

“ख़याल बहुत ही उम्दा है!”

“मेला बेटू अपनी मम्मी की चुदाई करना चाहता है?” आज रश्मि को क्या हो गया है! अगर ऐसे ही होता रहा तो उसकी बातें सुन कर ही मैं स्खलित हो जाऊंगा!

“हां.. मम्मी की ज़ोरदार चुदाई करनी है..”

“स्स्स्सीईई! गन्दा बच्चा! अपनी मम्मी को चोदेगा!”

मैं ज़मीन पर लेट गया और जल्दी से अपने लिंग को ज़िप के अन्दर से आज़ाद कर दिया।

“मेरे लंड को अन्दर ले लो और अपनी दोनों टाँगें मेरी दोनों ओर करके बैठ जाओ! आज मम्मी मेरी घुड़सवारी करेगी!”

“इस तरह?” 

वह मेरी गोद पर चढ़ते ही पूछती है। वह अपनी दोनों टाँगें मेरी दोनों ओर करके बैठ गयी है, लेकिन अभी भी ज़मीन पर अपने घुटनों के बल टिकी हुई है। उसके चूतड़ मेरी जांघों पर टिके हुए थे, और मेरा लिंग अभी भी बाहर था। मैंने अपने दोनों हाथों से उसके नितम्ब थाम लिए।

“इतना बड़ा लंड!”

रश्मि पर मानो आज किसी भूत का साया पड़ गया था। ऐसे खुलेपन से उसने गन्दी-बातें कभी नहीं करीं थी। उसने मेरे लिंग को पकड़ कर अपने योनि के चीरे पर से ऊपर-नीचे कई बार फिराया। उसकी योनि में से तेजी से स्राव हो रहा था। फिर उसने धीरे से मेरे लिंग के सुपाड़े को अपने चीरे में लगाया और धीरे धीरे उस पर बैठने लगी। उसका योनि द्वार तुरंत खुल गया, और मेरा लिंग अपनी नियत जगह में आराम से जाने लगा – जैसे गरम चाकू, मक्खन के अन्दर जाता है। आधा लिंग अन्दर जाने तक वह नीचे की तरफ बैठती है, और साथ में हाँफते हुए यह भी कहती जाती है की “यह बहुत बड़ा है”। कहने के लिए शिकायत है, लेकिन उसकी मुस्कान से पता चलता है की वह खुद अपने झूठ से आनंदित है। फिर वह मेरे लिंग पर ऊपर और नीचे होना शुरू कर देती है।

एक मिनट भी नहीं हुआ होता है की मैं अपना वीर्य छोड़ देता हूँ। हैं! यह क्या!! एक मिनट भी नही! मुझे थोड़ी लज्जा आई.. इतने वर्षों के सम्भोग क्रीड़ा में मैंने कभी भी इतनी जल्दी मैदान नहीं छोड़ा! आज क्या हुआ! फिर मैंने अपने लिंग पर रश्मि के खुद के सम्भोग निष्पत्ति का स्पंदन महसूस किया। 

‘अरे! ये भी आ गई क्या!’

हम दोनों ने कुछ देर तक अपनी साँसे संयत करीं, और फिर रश्मि ने ही कहा, “बेटू मेरा... अपनी माँ को ऐसे आसानी से छोड़ देगा, क्या?” न जाने क्यों उसके इस तरह चिढ़ाने से या फिर यह कह लीजिये की इस स्वांग से मैं जल्दी ही फिर से उत्तेजित हो गया।

“ऐसे सस्ते में जाने देगा? हम्म्म? ऐसे चोदो न, जैसे अपनी बीवी को चोदते हो... हर रोज़..” मेरा लिंग वापस अपने पूर्ण तनाव पर आ गया। और पूर्ण तनाव आते ही,

“जानू...” 

‘हैं! इसकी तो भाषा ही बदल गई..!’ 

“आज एक नया आसान ट्राई करते हैं? कुछ ही दिनों में मेरा पेट फूल कर बहुत बड़ा हो जाएगा। लेकिन, मुझे आपना लिंग अपने अन्दर हमेशा चाहिए... मगर, आपको ठीक लगे तो ही!”

“जानू मेरी! मैं तो बस जो तुम चाहती हो, मुझे बताओ, और मैं वैसे ही कोशिश करूंगा। अगर तुमको अच्छा लगता है तो मैं किसी भी आसन में तुमको चोदने को तैयार हूँ।“

तब रश्मि ने मुझे श्वान-सम्भोग आसन (दरअसल इसको कामसूत्र में ‘धेनुका’ कहा जाता है, लेकिन सामान्य भाषा में डॉगी स्टाइल कहते हैं) लगाने का निर्देश दिया। वो स्वयं अपने हाथों और सर को सोफे पर टिका कर और अपने नितम्बों को बाहर की तरफ निकाल कर घुटने के बल लेट/बैठ गई। जब मैं उसके पीछे जा कर अपना स्थान व्यवस्थित कर रहा था तो उसने बस इतना ही कहा, “जानू, आप सही छेद में ही करना..” 

कहने सुनने में हास्यास्पद बात लगती है, लेकिन यह एक गंभीर चेतावनी थी। भगवान् के दिए दोनों छेद इतने करीब होते हैं, की इस आसन में अगर ध्यान नहीं दिया तो एक दर्दनाक और शर्मनाक गलती होने के पूरे आसार होते हैं। वैसे भी रश्मि को मैं आज तक गुदा-मैथुन के लिए मना नहीं पाया था।

मैंने अपने लिंग को रश्मि की योनि से रिसते रस (जो रश्मि के और मेरे रसों का मिश्रण था) से अच्छी तरह भिगोया और उसके पीछे से योनि द्वार पर टिकाया। रश्मि ने अपनी उँगलियों से अपनी योनि की दरार को कुछ फैलाया, जिससे मुझे उचित छेद खोजने में कोई कोई परेशानी न हो। अन्दर इतनी ज्यादा चिकनाई थी की ज़रा सी हरकत से मैं अन्दर तक समां गया।
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12-17-2018, 02:18 AM,
#74
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि ने एक कामुक किलकारी भरी, “उईई माँ! आप तो पूरा अन्दर तक घुस गए! आह्ह्ह!” 

इस कथन में किसी भी तरह की शिकायत, या दर्द जैसा कुछ नहीं था, इसलिए मैंने इसको सम्भोग आरम्भ करने की अनुमति के रूप में लिया, और उसकी सूजी हुई योनि की कुटाई आरंभ कर दी। रश्मि ने मेरे लिंग के घर्षण के साथ ही अपना आनंद भरा विलाप करना आरम्भ कर दिया। उधर मैंने पीछे से ही उसके स्तनों को दबाना, मसलना चालू कर दिया, और आराम से धक्के लगाने लगा। पीछे से सम्भोग करने से नितम्बों की पूरी संरचना स्पष्ट दिखाई देती है.. कमाल की बात यह है की इतने सारे आसन और पोजीशन ट्राई करने के बाद भी यह वाला बचा रह गया! रश्मि के नितम्ब! मैंने उंगली से उसकी गुदा को छुआ और फिर उसके छेद पर अपनी अंगुली फिराने लगा। कुछ प्रतिक्रिया न देखने पर मैंने धीरे से अपनी उंगली अंदर डाली। रश्मि चिहुंक गई, “ओउईई! म्म्मत क्क़करो..” 

मैं रुक गया और कुछ और जोर से धक्के लगाने लगा। पहले स्खलन के बाद मेरा स्टैमिना काफी बढ़ गया था। इस नए काम युद्ध को करते हुए कोई दस-बारह मिनट के ऊपर तो हो ही गए होंगे। और अब मुझे भी लग रहा था की मंजिल निकट ही है। इस बीच में रश्मि एक बार निवृत्त हो चुकी थी। मैं अब ज़ोर का धक्का लगाने लगा – रश्मि भी अपनी तरफ से अपने नितम्ब आगे पीछे कर रही थी। कुछ ही देर में मेरे अन्दर का लावा फ़ूट पड़ा। स्खलन के उन्माद में मैंने अपनी कमर को कस कर रश्मि के नितम्बो से पूरी तरह चिपका लिया। 
सम्भोग का नशा उतरा तो याद आया की सुमन भी घर पर होगी! लेकिन रश्मि ने बताया की वो अभी बाहर गयी हुई है किसी काम से। मैंने राहत की साँस ली – कमाल है! सोचा भी नहीं की घर में हमारे अलावा एक और प्राणी रहता है। आगे से सजग रहना होगा।

यात्रा वाले दिन: 

रश्मि : “जानू, आप भी साथ आते तो मज़ा आता।“ 

सुमन : “हाँ जीजू! आप भी न.. मौके पर धोखा देते हैं!”

मैं : “मौके पर धोखा! हा हा हा!”

सुमन : “और क्या! अब बताइए.. ये सारा लगेज हम दो बेचारी लड़कियों को खुद ही ढोना पड़ेगा..”

मैं : “अच्छा जी.. तो मैं तुम दोनों का कुली हूँ?”

सुमन : “नहीं नहीं.. आप तो मेरी दीदी के ‘जाआआनू’ हैं.. (सुमन ने मुझे चिढ़ाया) और मेरे प्याआआरे जीजू! लेकिन.. सामान उठाने वाला भी तो कोई चाहिए! ही ही ही!!!”

मैं : “देख रही हो जानेमन.. इस लड़की को सामान उठाने वाला चाहिए.. लगता है की इसके लिए लड़का ढूंढना शुरू कर देना चाहिए..”

सुमन : “धत्त जीजू! आपके होते हुए मुझे कोई और क्यों चाहिए?” उफ्फ्फ़! इस लड़की से जीतना मुश्किल है!

मैं (सुमन की बात को नज़रंदाज़ करते हुए): “क्या बताऊँ जानू.. मेरा भी तो कितना मन है आपके साथ आने का! लेकिन यह मीटिंग्स! ये तो अच्छा है की मेरा काम दिल्ली में है.. बस, काम जल्दी से निबटा कर तुरंत आ जाऊँगा। बस यही तीन चार दिन की ही तो बात है... आप लोग एक दो दिन एक्स्ट्रा रह लेना वहाँ.. या एक दो दिन बाद चली जाना। मैं वहीँ सबको मिलूंगा! ओके?“

रश्मि मुस्कुराई, और फिर मेरे पास आ कर दबी आवाज़ में बोली, “वो तो ठीक है.. लेकिन, ये दूध कौन पिएगा?”

सुमन : “हाँ हाँ.. सुनाई दे रहा है मुझे!” सुमन अँधेरे में तीर मार रही थी।

मैं : “क्या सुन रही है तू?”

सुमन : “आप दोनों मेरे खिलाफ कोई साजिश कर रहे हैं..” 

रश्मि : “तेरे कॉलेज में कहूँगी की रोज़ तेरे कान उमेठें जाएँ.. सारी चबड़ चबड़ निकल जायेगी!”

सुमन : “ठीक है! ठीक है! कर लो आप दोनों पर्सनल बातें! मैं क्यूँ कबाब में हड्डी बनूँ?” कहते हुए सुमन कमरे से बाहर निकल गयी।

मैं (मुस्कुराते हुए) : “इसको सम्हाल कर रखिएगा... मैं इत्मीनान से पियूँगा, जब आपसे मिलूंगा!”

रश्मि (खिलवाड़ करते हुए), “गन्दा बच्चा...!” और फिर अचानक गंभीर हो कर, “... जानू.. आपके बिना मेरा मन कहीं नहीं लगता! आप रहते हैं तो ज़िन्दगी में मज़ा रहता है!”

मैं : “क्या जानू.. बस तीन चार ही दिनों की तो बात है! मैं आ जाऊँगा! .. और फिर, मुझे ये डेयरी भी तो खाली करनी है! न्यूट्रीशन!! हेह हेह!”

रश्मि : “मेरा तो बस यही मन रहता है की इनमें लबालब दूध भरा रहे.. जिससे मैं आपको जब मन करे, दूध पिला सकूं!”

केदारनाथ की चढ़ाई काफी कठिन है। करीब सात हज़ार फुट की चढ़ाई चढ़ कर केदारनाथ मन्दिर तक पहुंचते हैं। केदारनाथ जाने की प्रबल इच्छा क्यों थी इसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मुझे वैसे तो किसी तीर्थ पर जाने में कोई ख़ास रुचि नहीं है। लेकिन, इन लोगो की आस्था, और उनके परिवार की एक प्रकार की परम्परा के कारण मैंने कोई विरोध नहीं किया। वैसे भी रश्मि की डॉक्टर ने बताया था की इस यात्रा में कोई दिक्कत नहीं है, अगर बस कुछ ख़ास सावधानियाँ बरती जाएँ! मैंने यह सख्त निर्देश दिए थे, की रश्मि को चढ़ाई चढ़ने न दिया जाय – पालकी कर ली जाय, जिससे आसानी रहेगी। यह भी निर्देश दिया की रश्मि लगातार मुझसे बात करती रहे, जिससे मुझे वहाँ की परिस्थिति का मालूम होता रहे। इस पर रश्मि ने कहा की वो दिन में पांच छः बार मुझसे फ़ोन पर बात ज़रूर करेगी। 

दोनों लड़कियों को मैंने बैंगलोर विमानपत्तन तक छोड़ा, और वापस काम पर चला गया। दो दिन बाद मुझे दिल्ली के लिए निकलना था, और वहाँ चार ज़रूरी मीटिंग्स कर के देहरादून, और वहाँ से केदारनाथ की यात्रा करनी थी। रश्मि, सुमन के जाने के बाद घर खाली खाली सा लगने लगा तो मेरा ज्यादातर समय ऑफिस में ही बीत रहा था। रश्मि मुझे हर समय फ़ोन या एस ऍम एस पर अपनी जानकारी देती रहती। दिल्ली में मीटिंग्स वगैरह करते हुए मुझे रश्मि ने बताया की केदार घाटी में काफी बारिश हो रही है। मैंने उसको सावधानी बरतने को कहा, और जल्दी मिलने का वायदा करके फोन काट दिया। देहरादून के लिए अगले दिन सवेरे की फ्लाइट थी।

रात में सोने से पहले मैंने रश्मि का नंबर लगाने की कोशिश करी – कई बार कोशिश किया, लेकिन नम्बर नहीं मिला। फिर उसके पापा और होटल का भी नंबर लगाया.. कहीं भी फ़ोन नहीं लग रहा था। निराश हो कर मैं सोने चला गया – रात भर ठीक से नींद नहीं आई। अजीब अजीब सपने आते रहे, और सवेरे उठने के बाद बुरे बुरे ख़याल आते रहे। उठते ही मैंने फिर से फ़ोन लगाने की कोशिश करी, लेकिन अभी भी फ़ोन नहीं लग रहा था। ऐसे ही बुरे मूड में मैं दिल्ली विमानपत्तन पहुंचा और वहाँ जा कर मालूम हुआ की केदारनाथ में भीषण बाढ़ आई हुई है। मेरे पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन ही खिसक गई – पेट में जैसे गाँठ पड़ गयी! मन अज्ञात आशंकाओं से घिर गया। 

मन में अनजाने डर, और ह्रदय में ढेर सारी प्रार्थनाएँ लिए पूरी यात्रा बीती। लेकिन देहरादून विमानपत्तन पर पहुँचते ही सारे के सारे डर हकीकत में बदल गए। वहाँ मैंने टैक्सी करने की कोशिश करी, तो लोगों ने बताया की केदारनाथ में किसी भी ड्राईवर से उनका संपर्क नहीं हो पा रहा है। पूछने पर उसने आगे जाने से मना कर दिया, यह कह कर की ले तो जा सकता है, लेकिन सड़क की क्या हाल है, और बारिश में न जाने क्या क्या हो सकता है कुछ नहीं मालूम! आज का दिन यूँ ही निकल गया – एक एक मिनट.. एक एक पल ऐसा लग रहा है जैसे की एक एक सदी बीत रही हो! बॉस का भी दिन में कई बार कॉल आ चूका – वो रश्मि के बारे में पूछते हैं! मैं क्या जवाब दूं! एक बार तो मेरी आंखों में आंसू छलक पड़े! मेरी चुप्पी और खामोश रुदन उन्होंने शायद सुन लिया हो! फ़ोन पर मुझे धाड़स बंधाते हुए उन्होंने कहा की उम्मीद मत छोड़ना, और मेरी हर तरह से मदद करने का आश्वासन किया। मुझे इतना तो मालूम पड़ गया की उन्होंने उत्तराखंड आपदा कंट्रोल रूम और अधिकारियों से संपर्क करने की हर संभव कोशिश की है। 

एक दिन।

दो दिन।

तीन दिन।

चार दिन।

हर एक दिन गुजरने के बाद मुझे मेरे परिवार के लौटने की आशा भी धूमिल होती नजर आ रही थी। एक एक पल इंतजार की करना मुश्किल होता जा रहा था। न तो भोजन का कोई कौर गले के अन्दर जा पाता, और न ही हलक से पानी की एक बूँद! न जाने उन लोगों ने कुछ खाया पिया होगा या नहीं, बस यही सोच कर कुछ खाने पीने की हिम्मत भी नहीं पड़ रही थी। 

ज्यादातर टैक्सी वाले अब मुझे पहचानने लग गए। मुझे देखते ही वह कहते हैं, “साहब, ऊपर के इलाकों में सड़कें ख़त्म हो चुकी हैं... और गाँव के गाँव साफ़ हो गए हैं। हमारे किसी भी साथी की कोई खोज खबर नहीं है। अब तो बस भगवान्, और सेना का ही सहारा है। आप बस प्रार्थना करिए की आपका परिवार सही सलामत आपको मिल जाय।“

रात में होटल वाले ने जबरदस्ती एक रोटी मुझे खिला दी। दिन भर आपदा कार्यालय के चक्कर लगाता, फ़ोन की घंटी बजने का इत्नाजार करता, और समाचार में मृतकों की बढ़ती हुई संख्या देख कर मन ही मन मनाता की मेरा कोई अपना न हो! इतनी बेबसी मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं महसूस करी। इतनी बेबसी, और इतनी खुदगर्जी! 

इस आपदा में हुई और हो रही जान-माल की क्षति का आंकड़ा विकराल रूप से बढ़ता ही जा रहा है! मन में बस अब एक ही ख़याल आता है की अब बस! अब ये गिनती ख़त्म करो भगवान्! इतने दिन हो गए, और किसी से कोई संपर्क ही नहीं हो पाया है!

'काश! ये लोग ठीक हों! ओह रश्मि! प्लीज प्लीज! काश! तुम ज़िंदा हो..!'

छठा दिन:

राहत और बचाव कार्य बाधित हो रहा है, क्योंकि घाटी में फिर से तेज बारिश हो रही है, और धुंध छाई हुई है। सेना के हेलिकॉप्टर उड़ान ही नहीं भर पा रहे हैं! खबर आई थी की एक हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया! बचने गए वीर युवक, खुद ही पहाड़ों की भेंट चढ़ गए! एक अफसर से बात हुई, उन्होंने मुझे साफगोई से कह दिया, 

“साहब, यह तो एक तरह से 'रेस अगेन्स्ट टाइम' है... मौसम खराब है, हर तरह के जोखिम हैं और अब तो महामारी का खतरा भी पैदा हो गया है... लोग अब बीमारी और भूख–प्यास से मर रहे हैं! कितनी मौतें हुईं, कितने लापता हुए और कितने लोग सुरक्षित निकाले गए - इस पर अब कोई भी बात बेमानी लग रही है, क्योंकि यहाँ कोई समन्वय नज़र नहीं आ रहा है, और न ही कोई एक सूची है। सच्चाई यह भी है कि खुद प्रशासन का कितना नुकसान हुआ है, इसका अंदाजा ठीक-ठीक अभी उन्हें भी नहीं है। इसके शिकार हुए लोगों का पता लगाना ही अपने आप में एक बड़ी चुनौती बन गयी है। हज़ारों की तादाद में लोग मदद की आस लगाए बैठे हैं। आप भी उम्मीद न छोडिए.. कुछ भी हो सकता है!” 

सातवाँ दिन: 

अब तो कोई उम्मीद ही नहीं बची है.. बस यंत्रवत रोज़ रोज़ राहत शिविर के दफ्तर पहुँच जाता हूँ। वहाँ लोगों से कई बार प्रार्थना भी करी है की मुझे भी सेवा का अवसर दें.. लेकिन वहाँ किसी के पास समय नहीं है। कई सारे लोग बचाए भी जा चुके हैं, लेकिन इन लोगों का कोई नामोनिशान ही नहीं है! 

‘अरे! फ़ोन बज रहा है..’

कोई अनजाना नंबर था। स्थानीय! दिल धाड़ धाड़ कर के धड़कने लगा।

“हेल्लो?” मैंने बहुत उम्मीद से बोला।

“जीजू..?” यह तो सुमन की आवाज़ थी।

“सुमन?” 

“जीजू... हू हू हू..” वो बेचारी रोने लगी! 

‘हे भगवान्!’

“नीलू.. तुम ठीक तो हो न?”

“जीजू.. प्लीज आप मुझे ले चलो.. हू हू हू..” रोते हुए उसकी हिचकियाँ बांध गईं।

“हाँ नीलू.. बताओ कहाँ हो? बाकी लोग कैसे हैं?”

उत्तर में सुमन सिर्फ रोती रही। 

“साहब, आप फलां फलां जगह पहुँच जाइए.. एक्सट्रैक्शन वही हो रहा है..”

“जी हाँ.. जी.. ठीक है.. मैं आ रहा हूँ..” 

“ओह भगवान्! तेरा लाख लाख शुक्र है!” 

कह कर मैं बिलख बिलख कर रोने लगा। कोई देखे या नहीं.. मुझे कोई परवाह नहीं! जब सब उम्मीदें छूट गईं, तब देखिए! कैसे खुशखबरी आई! कोई तीन घंटे की मशक्कत के बाद मैं राहत शिविर / एक्सट्रैक्शन कैंप में पहुंचा। वहाँ की हालत तो और भी दयनीय थी। बचाए गए सभी लोगों की आँखों में राहत और आस की नमी थी। साफ़ दिख रहा था की वो सभी बेहद भूखे और बेबस थे, और अब उनके अन्दर किसी भी तरह की शक्ति नहीं बची हुई थी। वाजिब भी है - इन लोगों को एक हफ्ता हो गया, कुछ भी खाने को नहीं मिला था.. और पीने के लिए भी सिर्फ गन्दा पानी ही नसीब हुआ होगा। ज़मीन पर एक व्यक्ति लेटा हुआ था... उसकी हालत देखकर मुझे नहीं लगा की उसके बचने की कोई उम्मीद होगी। सभी के कपड़े फटे हुए और मैले-कुचैले हो गए थे... या तो वो खड़े थे, या फिर लेटे हुए थे। 

एक वृद्ध मुझे देखते ही बोला, “हे बबुआ, हम हाथ जोड़ित है.. हमका हियाँ से ले चला।” 

बेचारे को लगा होगा की मैं उसका पुत्र या कोई सगा सम्बन्धी हूँगा! एक तरफ कुछ लोग उल्टियाँ कर रहे थे। 

‘ये लोग दिख क्यूँ नहीं रहे हैं?’ अचानक मेरी नज़र एक तरफ ज़मीन पर लेटी हुई लड़की पर पड़ी.. ‘सुमन!’

“सुमन?” ‘हे भगवान्! क्या हालत हो गयी है इसकी! इतनी प्यारी बच्ची.. और ये दशा?’ उसके कपड़े बुरी तरह से फटे हुए थे। बुरी तरह से मैली कुचैली, ज़ख़्मी, बेदम!

“जीजू? ओह जीजू!” कहते हुए वो मुझसे लिपट गयी। 

“तुम ठीक तो हो नीलू?”

उसने सर हिला कर हामी भरी। 

“बाकी लोग कहाँ हैं?”
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12-17-2018, 02:18 AM,
#75
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मेरे प्रश्न पर उसकी आँखें भर आईं.. उसने बस ‘न’ में सर हिलाया। मुझे समझ आ गया की वो बात करने की दशा में नहीं है। मैंने वहाँ उपस्थित अधिकारी से बात करी, तो उन्होंने बताया की मेरे परिवार का कोई और सदस्य उनको नहीं मिला.. सुमन अकेली ही थी। वही बता सकती है की बाकी लोग किधर हैं! मैंने वहाँ पर सारी ज़रूरी औपचारिकताएं पूरी करीं, और सुमन को होटल ले आया। रास्ते में आते आते वो या तो गहरी नींद सो गयी, या फिर बेहोश हो गयी। बेचारी की क्या दशा हो गयी थी!! कोई और समय होता तो ऐसी हालत में किसी लड़की को लाने पर होटल के सभी लोग शक करते, लेकिन आज सभी सहयोग कर रहे थे। सामूहिक विपत्ति में समाज में मित्रों की संख्या बढ़ जाती है।

उन्ही की मदद से मैंने सुमन को बिस्तर पर लिटाया, और फिर दरवाज़ा बंद कर के उसके सारे कपड़े उतारे। उसके पूरे शरीर पर चोट, और कटने के निशान दिख रहे थे। शरीर में सूजन तो थी, लेकिन उसके तलवे काफी सूजे हुए थे, और साथ ही साथ उन पर फ़फोले पड़े हुए थे। उनमे से कुछ फूट भी गए थे, और वो घाव खुले भी हुए थे। मैं उसको बिस्तर में लिटा कर उसके लिए ज़रूरी वस्त्र, और डॉक्टर का इंतजाम करने चला गया। डॉक्टर के साथ वापस आया तो देखा की सुमन अभी भी सो रही थी, और उसका शरीर तप रहा था। 
उन्होंने सुमन की पूरी तरह से जांच करी, और उसको इंजेक्शन दिया, और कुछ दवाएं लिख कर दीं। बताया की कोई डरने की बात नहीं लगती, बस सुमन को कुछ हल्का खिलाता रहूँ.. जैसे की जूस, सैंडविच इत्यादि, जब तक उसकी ताकत वापस न आ जाय! एक बार ताकत आने पर बुखार खुद ही उतर जाएगा। उनको बस इसी बात का डर है की कहीं उसको डि-हाइड्रेशन न हो जाय! 

सुमन देर शाम को ही उठ पाई। तब तक मैं उसके लिए जूस, और सैंडविच इत्यादि का इंतजाम कर लाया था। मैं उसको बिस्तर से उठा कर बाथरूम ले गया, जहाँ अन्य ज़रूरी कामों के साथ मैंने उसको नहलाया भी। वापस आ कर मैंने उसको कपड़े पहनाये – वो इतनी कमज़ोर हो गयी थी की खुद के बल पर बैठ भी नहीं पा रही थी। खाना भी मैंने उसको अपने हाथों से ही खिलाया। और सबसे अंत में दवा पिलाई। फिर उसको वापस बिस्तर में लिटाया।

मैंने प्यार से उसके बालों को सहलाते हुए पूछा, “नीलू, अब ठीक लग रहा है?”

सुमन की आँखों से आंसू टपक पड़े।

“कोई नहीं बचा, जीजू! कोई नहीं..”
मेरे ऊपर मानो बिजली गिरी! ‘कोई नहीं..! मतलब!’

जब तक कोई निश्चित बुरी खबर नहीं मिलती, तब तक आशा बंधी रहती है। मेरी भी आशा बंधी हुई थी की शायद रश्मि और बाकी सभी जीवित होंगे... लेकिन सुमन के इस एक वाक्य ने वह आशा भी छीन ली। मैं बुरी तरह से फूट पड़ा – मानो, थमा हुआ बाँध अचानक ही टूट गया हो। मेरे पैर... जैसे उनमें से सारी जान निकल गयी हो। मेरा सर चकराने लगा, और मैं अचेत हो कर गिर गया।


रजनीगंधा की मस्त कर देने वाली खुशबू मेरे नथुनों के रास्ते से आ कर मुझे आंदोलित कर देती है। मेरी चेतना वापस आती है। आँख खुलती है, तो मुझे लगता है की मानो मैं स्वर्ग के नंदन वन में हूँ। चारो तरह चांदनी फैली हुई है, और हरी भरी घास पर ढेर सारे पुष्प खिले हुए हैं! वैसे ही जैसे फूलों की घाटी में देखे थे! 

‘क्या बात है! लेकिन.. लेकिन, वो रजनीगंधा की खुशबू?’

मैं उठ कर देखता हूँ तो एक तरफ छोटा सा तालाब, जिसमें कई सारी कुमुदनियाँ अभी सुप्त अवस्था में थीं। दूसरी तरफ नज़र दौड़ाई तो देखा की एक बहुत ही सुन्दर सा घर था – उस घर के प्रथम तल पर स्थित एक बड़ी खिड़की से रौशनी छन कर बाहर आ रही थी। दिमाग की एक झटका सा लगा – यह तो वही घर है जैसा मैंने और रश्मि ने साथ में सोचा था! एक बार और मैंने नज़र दौड़ाई, तो देखा की तालाब के समीप ही एक स्त्री, एक छोटी सी लड़की के साथ खेल रही है। 

‘ओह! रजनीगंधा की सुगंध उसी तरफ से आ रही है।‘

अचानक उस स्त्री की दृष्टि भी मेरे ऊपर पड़ती है; वो खेलना बंद कर मेरे पास आती है.. रश्मि को देख कर मैंने मुस्कुरा उठता हूँ। वो खजुराहो की मूर्तियों जैसी सर्वांग सुंदर दिख रही है - अत्यन्त कमनीय! दरअसल, उसने खजुराहो की मूर्तियों के समान ही वस्त्र पहने हुए हैं – कमर के नीचे धोती है, और स्तनों को ढके हुए कंचुकी! इन वस्त्रों में रश्मि के रूप सौंदर्य और अंग-प्रत्यंग की रचना देखते ही बन रही है। उसके वक्ष गोलाकार थे, और शरीर चांदनी में चमक रहा था। आँखों में वही परिचित चंचलता और मादकता!

वो प्रेम से मेरे सर को अपनी गोद में रखकर मुझसे कहती है, “जानू.. उठ गए!”

मैंने एक गहरी सांस भरी – रजनीगंधा की मादक खुशबू मेरे पूरे वजूद में समां गई। समझ नहीं आ रहा की सो जाऊं या जागूँ? 

“आई लव यू!” मैंने आँख बंद किये किये कहा।

उत्तर में रश्मि खिलखिलाई! फिर रुक कर बोली, “अच्छा.. एक बात बताओ.. सुन्दर है न?”

“बहोत!” मैंने रश्मि की कंचुकी में उंगली डाल कर उसको नीचे की तरफ खींचा। उसका बायाँ स्तन कंचुकी के बंधन से मुक्त हो गया। मेरी हरकत पर रश्मि ने मेरे हाथ पर एक हलकी सी चपत लगाई।

“गंदे! मैं नहीं...”, 

कहते हुए उसने एक तरफ अपनी उंगली से इशारा किया, 

“... हमारी बेटी!”

रश्मि की इस बात पर मेरा सर एक झटके से दूसरी तरफ उस छोटी लड़की को देखने के लिए मुड़ता है। मेरी आँख एक झटके से खुलती है। मेरे चेहरे पर सुमन झुकी हुई है और बदहवासी में मेरे दोनों गालों को पीट रही है। 

“जीजू.. उठिए.. प्लीज.. उठिए! ओह थैंक गॉड!”

मेरा सर सुमन की गोद में था – उसने जब मेरी आँख खुली हुई देखी तो उसके चेहरे पर कुछ राहत के भाव आये। 

“जीजू... आप ठीक तो हैं न?”

“ह्ह्ह..हाँ.. मैं ठीक हूँ..” कहते हुए मैं उसकी गोद से उठ कर बैठ जाता हूँ। लेकिन सदमे का असर अभी भी था – मेरा सर फिर से चकरा गया, तो मैं सर थाम कर बैठ गया। सुमन मुझे पकड़ कर पुनः रोने लगी।

“सब ख़तम हो गया.. सब..” कहते हुए उसकी एक बार फिर से हिचकियाँ बंध गईं। मैं तो मानो काठ का हो गया! क्या कहूँ? सुमन कुछ देर रोने के बाद खुद ही कहने लगी,

“बाढ़ से बचने के लिए हम लोग होटल बाहर निकले। होटल का अहाता बुरी तरह से टूट गया था, और वहाँ से पानी बह रहा था – वहीँ से बाहर निकलते हुए माँ का पैर फिसल गया। पानी इतना तेज़ और मैला था की गिरने के बाद वो फिर कभी नहीं दिखाई दीं। पापा उनको बचने के लिए अहाते में कुछ देर तक गए, और जब वापस आये तो लंगड़ा कर चल रहे थे – शायद उनके पैर में मोच आ गयी थी। 

हमने देखा की आस पास के कुछ लोग पहाड़ की ढलान के ऊपर की तरफ जा रहे थे, इसलिए हम लोग भी उधर ही चलने लगे। जैसे-तैसे हम लोग ऊपर पहुंच गए, लेकिन उस चढ़ाई को करने में बहुत समय लगा – न दिन का पता चलता और न रात का! दीदी तो प्रेगनेंसी के कारण पहले ही कुछ कमज़ोर थीं, और भूखी प्यासी रहने के कारण उसकी हिम्मत जवाब दे गई। और वो वहीँ बेहोश होकर गिर गयी। पापा ने कहा की वो कुछ खाने के लिए लाते हैं, लेकिन पूरा दिन भर तलाशने के बाद भी उनको कुछ भी नहीं मिला। 

हमारे साथ जो लोग ऊपर जा रहे थे उनमे से उस समय तक कोई नहीं दिख रहा था – शायद वो किसी और तरफ निकल गए, या फिर .. बह गए! मदद देने के लिए अब कोई नहीं था। खैर, पहाड़ पर घास भी उगी हुई थी, और उसको देख कर पापा ने सोचा की शायद उसको खाया जा सकता है। लेकिन उनको कुछ शक था की वो घास खाने लायक है भी, या नहीं! लेकिन, उनका शक सही था... वो वाली घास ज़हरीली थी। उसको खाने पर उनको अच्छा तो नहीं लगा तो उन्होंने उसको थूक दिया – लेकिन जगता है की कुछ ज़हर अन्दर चला गया। दिन भर उल्टियाँ करने के बाद उनकी भी मौत हो गयी। 

दीदी अब और चल नहीं सकती थीं.. इसलिए मैंने उसको वहीँ लिटा कर मैं आस पास खाने को ढूँढने गयी। शायद किसी पक्षी ने कुछ मांस गिरा दिया था। वो मैंने और दीदी ने मिल कर खाया। रात में डर लगता - लगातार बारिश, ठंड और जंगली जानवरों का डर बना रहता था। मरने वालों के शवों को कुत्ते और अन्य जानवर खा रहे थे। अगले दिन दीदी की हालत काफी खराब हो गयी। भूख, कच्चा मांस, डिहाइड्रेशन, कमजोरी, संक्रमण... रात में जब वो सोई तो उसका शरीर कांप रहा था। बाहर ठंडक भी बहुत हो रही थी। मैं जब सवेरे उठी तो देखा की दीदी नहीं बची..! रोने के लिए अब तो आंसू भी नहीं बचे थे! दो दिन तक जैसे तैसे जंगली जानवरों से बचते हुए मैं रही... फिर कल मैंने हेलिकॉप्टर की आवाज़ सुनी तो उसको इशारा किया... न जाने कैसे उन्होंने मुझे देखा और वहाँ से निकला। अब यह नहीं समझ आता की मैं लकी हूँ, या एकदम मनहूस!“

जीवन भी अजब है। क्या क्या रंग दिखलाता है। सब कुछ... इसी जन्म में हो जाता है, सब यहीं मिल जाता है! तीन साल भी हम साथ नहीं रह पाए! तीन साल भी नहीं! 

‘हे देव! इतनी क्रूरता! ऐसे लेना था, तो दिया ही क्यों? रश्मि ने ऐसा क्या किया था की उसकी इस तरह से मृत्यु हो? वह बेचारी सभी की हंसी ख़ुशी के लिए ही सब कुछ करती थी। किसी के प्रति उसके मन में कोई भी विद्वेष नहीं था। फिर क्यों? कहाँ है भगवान? कैसा भगवान?’

और मेरी हालत?

मैं तो एकदम अकेला हूँ! एकदम अकेला.. मेरे हर तरफ एक भीड़ जैसी है.. घर में रहो, सड़क पर निकालो, या फिर ऑफिस जाओ... हर तरफ लोगों की कोई कमी नहीं है.. लेकिन, मैं नितांत अकेला हूँ! सोसाइटी में लोग जब मुझे देखते हैं तो मानो उनको लकवा हो जाता है.. बात करते करते चुप हो जाते हैं, मुझे देख रहे होते हैं तो किसी और तरफ देखने लगते हैं.. कन्नी काट लेते हैं.. जैसे की मुझे कोई रोग हो! 

मुझे भी मुक्ति चाहिए! लेकिन आत्महत्या कर नहीं सकता। ऐसे संस्कार नहीं हैं! लेकिन... मुक्ति तो मुझे अब चाहिए! वसीयत में मैंने अपना सब सब कुछ सुमन के नाम लिख दिया है, और अपनी आखिरी इच्छा के लिए निर्देश दिया है की मृत्यु के बाद मुझे विद्युत् शव-दाह गृह में जलाया जाय। क्यों बेकार में लकड़ियाँ जलाना?
रश्मि की मृत्यु के बाद बीमा राशि और सरकारी सहायता से मिली हुई रकम मिला कर मैंने एक ट्रस्ट-फण्ड बनाया, जिसका एक ही उद्देश्य था – गरीब परिवार की चुनी हुई मेधावी क्षात्राओं को उनकी उच्च शिक्षा (कम से कम स्नातक स्तर तक) तक पूरी सहायता देना। मेरे ऑफिस, और रश्मि के कॉलेज के लोगों ने इस फण्ड में भरपूर योगदान दिया था, जिससे अब यह एक स्थाई क्षात्रवृत्ति बन चुका था। बाकी का सारा निबटारा होने वाली सारी राशि (सुमन के माता पिता की बीमा राशि और सरकारी सहायता), और उत्तराँचल की सारी ज़मीन इत्यादि मैंने कानूनी सहायता से सुमन के नाम लिखवा दी। कम से कम उसका जीवन तो अब स्थिर हो गया था।

मुझे लग रहा था की अब मेरे जीवन का मकसद पूरा हो गया है.. ‘रश्मि! मुझे भी अपने पास बुला लो!’ बस मैं यही एक बात रोज़ मन ही मन दोहराता। एक साल हो गया था मेरा परिवार नष्ट हुए! परिवार क्या, पूरा संसार नष्ट हुए! संसार की सबसे निराली लड़की को मुझसे आज से एक साल पहले काल ने छीन लिया। उसके साथ साथ छीन लिया उसने मेरी संतान को – मेरी बेटी! साथ ही चले गए मेरे माता और पिता भी! दोनों माता पिता!

‘कैसा क्रूर मजाक!’

कहते हैं की जीवन किसी के लिए नहीं रुकता! चलता ही रहता है.. लेकिन किस ओर? मैं तो अब हर क्षण बस मृत्यु का ही इंतज़ार कर रहा हूँ। हाँ – खाता हूँ, पीता हूँ, सोता हूँ.. टीवी भी देख लेता हूँ.. क्या करूँ? जीना पड़ रहा है! लेकिन क्या जीना! मैं सब कुछ अकेले ही करता हूँ। हाँ – घर में सुमन भी रहती है। लेकिन, उससे तो बस नाममात्र की बातें होती हैं। कभी कभी दुःख होता है की इस सब में उसकी क्या गलती! मैं क्यों उसके साथ ऐसे बर्ताव करूँ? आखिर मेरे साथ साथ उसने भी तो अपना परिवार खोया है! लेकिन, फिर भी.. एक अजीब तरह की बेबसी होती है.. अजीब तरह की कसक.. अक अजीब तरह का आक्रोश!! कुल मिला कर, उससे अधिक बात नहीं हो पाती! अब तो लगता है की किसी से भी मैं ठीक से बात नहीं कर पाऊँगा! 

उस दुर्घटना के कुछ ही दिन बाद की बात है... मैं कमरे की खिड़की से बाहर किसी अनंत शून्य में देख रहा था।

सुमन मेरे पीछे आ कर कहती है, “आप क्या देख रहे हो?”

मैंने कई दिनों से खुद को जब्त किया हुआ था.. उस एक वाक्य ने न जाने कैसे मेरे सब्र के बाँध को ढहा दिया। मैंने चिड़चिड़े ढंग से उसको जवाब दिया, “अपने काम से काम रखो! मुझसे चिपकने की कोई ज़रुरत नहीं!”

वो उसी पल मेरे कमरे से बाहर भाग गई। कुछ समय बाद मैंने उसके रोने सुबकने की आवाज़ सुनी, लेकिन मैंने उसको मनाने की कोई कोशिश नहीं करी। वो मेरी जिम्मेदारी नहीं है। अगर उसको भी इस संसार में गुजारा करना है, तो बिना किसी मोह के ही करना होगा। संसार बहुत क्रूर है! और भगवान उससे भी बड़ा क्रूर! किसी भी प्रकार का मोह न ही हो तो अच्छा! न कोई बंधन होगा, और न कोई बोझ! आराम से चले जाओ.. किसी को पता भी नहीं चलेगा की कब निकल लिए! 

सबसे अच्छी बात यह की रश्मि के ही कॉलेज में सुमन का दाखिला हो गया था – वहाँ के प्रिंसिपल मुझे अक्सर उसकी उन्नति के बारे में बताते.. कहते की बहुत मेधावी है! मैंने उनको अपनी स्थिति के बारे में बताया, और उनको कहा की वो उसको उचित मार्गदर्शन देते रहें। क्योंकि मुझसे नहीं हो पायेगा।

अच्छे लोगो न भारी अभाव हो रहा है मेरे जीवन में.. अभी कोई सात महीने पहले श्री देवरामानी का देहांत हो गया – दिल का दौरा पड़ने से। उनकी श्रीमति को उनकी संताने अपने साथ ले गईं। लिहाजा, अब पड़ोस भी खाली लगता है। घर आने का मन नहीं होता। इसलिए मैं अक्सर अपने टूर बनता रहता हूँ.. पिछले एक साल में चार महीने मैं बाहर रहा। वो मकान तो बस रश्मि के कारण घर था, अब तो बस एक बेरंग ढांचा सा लगता है! ऐसे यंत्रवत जीवन होने के कारण कार्यस्थल पर तरक्की बहुत तेजी से हो रही है! अब मैं खुद भी मेरे भूतपूर्व बॉस के स्तर पर हूँ। लेकिन उनका मित्रवत व्यवहार अभी भी बरकरार है।

वो अभी भी मुझसे संपर्क में हैं। दुर्घटना के बाद उन्होंने मुझसे रश्मि के बारे में पूछा। क्या बताता! बस फूट फूट कर रोने लगा। उनको मैंने सारा वाकया सुनाया। उसके बाद से उन्होंने कभी भी रश्मि का नाम भी मेरे सामने नहीं लिया, जिससे मुझे दुःख न हो! शुरू शुरू में मैंने दोस्तों के साथ मुलाकात की, और वो लोग भी मुझसे मिलने आये – जैसे की पारंपरिक सामाजिक प्रणाली होती है..। हिमानी भी मिलने आई थी... उसने मुझसे दबे छुपे शब्दों में दोबारा शादी करने को भी कहा। मैंने उससे क्या कहा, मुझे कुछ याद नहीं आता अभी! हाँ, लेकिन कोई चार महीने पहले मैंने उसकी शादी का कार्ड देखा – कार्ड मिलने के एक महीना पहले उसकी शादी हो गयी थी। अच्छी बात थी.. मुझे अपने जीवन में किसी भी तरह का उलझाव नहीं चाहिए था। 

अकेलेपन के साथ साथ, मैं पिछले छह महीनों में न जाने किस गढ्ढे के अन्दर चला जा रहा हूँ.. वहाँ पर सूर्य का प्रकाश संभवतः कभी नहीं गया है। काश! आत्महत्या करना पाप न होता!

मृत्यु :

बहुत भयावह होता है जब आप देखते हैं की एक निश्चित मृत्यु आपकी तरफ आ रही है, और आपके पास उससे बचने का कोई उपाय नहीं है। तीव्र गति पर अचानक ही लगाम लगाये जाने पर टायरों से उठने वाली चीख, ब्रेक्स के जलने पर उठने वाली कसैली गंध.. और इन सब का उस भयावह सच की तरफ इशारा!! मेरे अंतिम क्षण में मेरे दिमाग में बस एक ही बात आई,

‘आ ही गई मौत!’

वैसे, मृत्यु से मुझे कोई डर वर नहीं लगता.. हाँ, उससे मुझे एक तरह की खीझ सी होती है। लेकिन, रश्मि के बाद मैं जी ही कहाँ रहा था – बस जीवित था। अपने आखिरी क्षण में मुझे बस यही ख़याल आया... और चैन भी। टक्कर बेहद भीषण थी। उस झटके से मेरा हृदय रुक गया, और दिमाग में अनगिनत रुधिर वाहिकाएँ फट गई। चेतना जाते हुए आखिरी बात जो मुझे याद है वह यह है की कार की चेसी कुचलती जा रही थी, और कार की फ़र्श पर मेरा लहू! मेरे सर में एक असहनीय दर्द हुआ, और चेतना लुप्त हो गई।

अगला ख़याल जो मुझे याद है वह यह है की मैं मर गया हूँ। सचमुच मृत! ...लेकिन, फिर दिमाग पर जोर लगाया तो समझ आया की अगर मैं मर गया हूँ, तो फिर सोच कैसे सकता हूँ? सोच तो दिमाग से होती है, और दिमाग जीवित शरीर में! मतलब अभी भी जीवित हूँ!

ग्रेट!

“रूद्र... रूऊऊऊद्र..!” मैंने आवाज तो सुनी, लेकिन पहचान नहीं पाया। 

कैसी आवाज़ है? अच्छी आवाज है, लेकिन जानता नहीं..। मेरे सिर में भयंकर दर्द हो रहा था। सिर में ही क्या, पूरे शरीर में! तो क्या मैं उस अतिभारित ट्रक से हुई दुर्घटना से बच गया?

“रूद्र.. बेबी.. मरना नहीं। प्लीज़..? जागते रहो। तुम मुझे सुन रहे हो? मेरे साथ रहो। चिंता मत करो। मैं हूँ यहाँ तुम्हारे साथ। मुझे सुन रहे हो? मुझसे बात करो.. प्लीज़..?”

अरे भई.. कौन हो आप? कौन है मेरे साथ? मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। मेरे सर में जैसे जैसे वो भयंकर दर्द बढ़ रहा था, वैसे वैसे मुझे यह समझ नहीं आ रहा था की ये रूद्र कौन है, और ये औरत (हाँ.. औरत की ही आवाज़ थी) कौन है! मैंने उठने की कोशिश करी.. एक अजीब सा अनुभव हुआ – जैसे चक्कर, उलटी, और एक और भयंकर दर्द की लहर.. ये सब एक साथ! मैं फिर से अचेत हो गया।

रह रह कर रश्मि की बातें याद आतीं.. एक बार मैंने सैंडविच बनाया। और खाते हुए उसको पूछा, “तुम्हारा बनाया हुआ इतना बढ़िया लगता है! ये कैसे हो सकता है!! एक जैसी चीज़ें ही तो डालते हैं – जो तुमने यूज़ करी, वही मैंने भी.. फिर ऐसा क्यों?”

रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहा, “जानू.. मैं सैंडविच में प्यार भी डालती हूँ..” 

रश्मि बिलकुल ऐसी ही थी। हर चीज़ में प्यार डालती थी। उसका किया हर काम बेहतर होता था! .. यह प्यार नहीं तो और क्या है...?

यू-ट्यूब पर मैं “आगे भी जाने न तू.. पीछे भी जाने न तू..” वाला गाना सुन रहा था। रश्मि को यह गाना बहुत पसंद था। मैं भी साथ में गाने लगा.. रश्मि की याद हो आई.. गला भर गया। और आँखों से आंसू आ गए। मैं रोने लगा – इस तरह मैं कभी नहीं रोया। कम से कम एक घंटा रोने के बाद सारी ऊर्जा क्षीण हो गयी। कब सोया कुछ भी याद नहीं!

‘ब्लिप... ब्लिप... ब्लिप...’

‘ये क्या चिढ़ाने वाला शोर हो रहा है! और.. रश्मि कहाँ है? अभी तो यहीं थी...’

मैंने आँख खोलने की कोशिश करी। लेकिन बहुत ही असह्य दर्द हुआ। मृत्यु? अह्ह्ह्हहाँ! मतलब मरा तो नहीं हूँ। जैसे जैसे चेतना लौट रही थी, और मैं जाग रहा था, तो मुझे समझ आने लगा की मैं शायद अचेत था। 

अचानक ही मेरा संसार निशब्दता से गुंजायमान की तरफ चल दिया। मुझे सुनाई भी दे रहा था, और सुंघाई भी दे रहा था.. लेकिन, दिखाई क्यों नहीं दे रहा है?

मैंने आँख खोलने की कोशिश करी। इस कोशिश में मेरी हर चीज़ दर्द करने लगी – सर, आँख! मेरी कराह निकल गई। 

“इनको होश आ गया..” कोई चिल्लाया।

मेरी आँखें उनको खोलने में मेरा साथ ही नहीं दे रही थीं। जैसे तैसे जब वो खुलीं, तो रोशनी की एक तीखी लकीर प्रविष्ट हो गयी। मैंने तुरंत ही आँखें बंद कर लीं.. यह सोच कर, की अभी तो नहीं खोलूँगा। सोचने की कोशिश करने पर दिमाग में सब गड्ड-मड्ड हो गया.. कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। मैंने महसूस किया की आँखें बंद होने के बावजूद मुझे मेरे इर्द गिर्द का सारा संसार धुंधला होता महसूस हो रहा था। और मैं एक बार फिर से सस्ते टंगस्टन के बल्ब के समान बेहोश हो गया।
Reply
12-17-2018, 02:19 AM,
#76
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि की बात सुन कर मुझे बहुत रोचक लगा! और मैं खुद भी काफी उत्तेजित हो गया!! बात तो सही है.. रश्मि है ही इतनी सुन्दर! और अब जब वो माँ बनने वाली है, तो उसकी सुन्दरता और भी निखर आई है! ज्यादातर स्त्रियाँ गर्भ-धारण करने के बाद अतिपक्व दिखने लगती है, और उनके शरीर पर गर्भ का बोझ दिखने लगता है। कहने का मतलब, वे स्थूल, थकी हुई और निस्तेज हो जाती है। लेकिन, कुछ स्त्रियाँ ऐसी होती है, जो पुष्प की तरह खिल जाती हैं.. उनके चेहरे पर उनके अन्दर पनप रहे जीवन का तेज दिखने लगता है। रश्मि इस दूसरी श्रेणी में थी। उसका चेहरा जीवन की आशा से दीप्तिमान होता जा रहा था, और उसका छरहरा शरीर स्थूल तो हो रहा था, परंतु साथ ही साथ अत्यंत आकर्षक भी होता जा रहा था। पहले ही वो रति का स्वरुप लगती थी, अब तो ऐसा लगता है की उसमें कम से कम सौ रतियों का वास हो! कोई भी ऐसी स्त्री को आकर्षक पायेगा ही! इसके लिए सुमन से मुझे कोई भी गिला-शिकवा नहीं था।

वापस आने के एक दिन पहले रश्मि ने मुझे फ़ोन पर कहा की वापस आने पर मेरे लिए एक सरप्राइज है! मेरे लाख पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया की क्या! खैर, बता देती तो कैसा सरप्राइज! घर आने पर मेरा स्वागत एक बेहद झीने नाईटी पहने हुए रश्मि ने एक गर्म कामुक फ्रेंच चुम्बन के साथ किया। दरवाज़े को भी ठीक से बंद नहीं पर पाया मैं। स्पष्ट था की इतने दिनों में रश्मि की यौनरुचि कई गुना बढ़ गयी थी। मुझे भी इस तराशी हुई सुंदरी को नंगा देखने की तीव्र इच्छा हो रही थी, इसलिए तुरत-फुरत मैंने उसकी नाईटी उतार फेंकी। मेरी नज़रों के सामने भरे हुए स्तन और उनके सामने सुशोभित स्थूल चूचक, जैसे किसी पूर्वज्ञान के कारण खड़े हुए, उपस्थित थे। मैंने आँख उठाई, तो मेरी आँखें रश्मि की आँखों से मिलीं। उसकी आँखों में एक संतुष्ट चमक थी – उसको मालूम है की मैं उसके स्तनों की सुन्दरता का दीवाना हूँ। फिर भी वो एक शिकायत भरे लहजे में कहती है,

“बहुत बड़े हो गए न?” और कहते हुए अपने स्तनों के नीचे हथेलियाँ लगा कर उठाती है। उसके इस हरकत में किसी भी प्रकार की लज्जा नहीं है.. वस्तुतः, मुझे ऐसा लगा जैसे वो मुझे अपने स्तनों का चढ़ावा दे रही हो। ऐसे चढ़ावे का भोग तो मैं कभी भी, और कहीं भी लगा सकता हूँ। 

मैंने ‘न’ में सर हिलाया, “आई लव देम... आई लव यू!”

“तुम पागल हो..” कह कर रश्मि खिलखिलाते हुए हंसी.. और फिर उसने आगे जो किया उसने मेरे दिमाग और शरीर के सारे तार झनझना दिए। उसने अपने स्तनों को हलके से दबा दिया, और ऐसा करने से दोनों चूचकों में हलके पीले से रंग के दूध की बूँदें निकल आईं। ज़रा सोचिये, उसके प्यारे प्यारे रसभरे स्तनों में से अमृत उतर रहा था, और मैं उसको पीने जा रहा था! यह मेरा दावा है की धरती के प्रत्येक पुरुष के मन की फंतासी होगी की वो अपनी प्रेमिका या पत्नी के स्तनों से दूध पिए! कम से कम मेरी तो थी! और आज यह स्वप्न पूरा होने वाला था। इस दृश्य को देखते ही मेरा लिंग अपने पूरे तनाव पर खड़ा हो गया। 

“मेला बच्चा भूखा है?” रश्मि ने मुझे प्यार से छेड़ा।

मैं मंत्रमुग्ध सा इस दृश्य को देख रहा था.. लिहाजा, मैं सिर्फ सर हिला कर हामी भर पाया।

“अले मेला बेटू... इत्ती देर शे उसे कुछ खाने को नहीं मिला... है न? मेला दूधू पिएगा..?”

रश्मि ने दुलराते हुए मुझसे पूछा। मेरे फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाने पर रश्मि वहीँ सोफे पर बैठ गई, और उसने मुझे अपनी गोदी में आने का इशारा किया। मैंने उसकी गोदी में सावधानीपूर्वक व्यवस्थित हो जाने के बाद उसके होंठों को कोमलता से चूम लिया और उसके होंठों के अन्दर से होते हुए अपनी जीभ से उसकी जीभ चाट ली।

रश्मि फिर से खिलखिलाई, और बोली, “नीचे और भी टेस्टी चीज़ है...” 

और यह कहते हुए उसने मेरे सर को अपने स्तनों की तरफ निर्देशित किया। मैंने उसके निप्पल और areola का पूरा हिस्सा मुँह में भर लिया और जोर से चूसा। कोई पांच छः बार कोशिश करने के बाद मुझे अपने मुंह में एक स्वादरहित द्रव रिसता हुआ महसूस हुआ। और इसी के साथ ही मुझे रश्मि के मुंह से संतुष्टि भरी आह भी सुनाई दी। 

“आह्ह्ह मेरे राजा! ऐसे ही चूसते रहो.. आह.. बहुत अच्छा लग रहा है..।“

रश्मि मेरे चूषण से प्रसन्न तो थी – उसकी विभिन्न प्रकार की आहें और उम्म्म आह्ह्ह.. इत्यादि इसका सबसे बड़ा प्रमाण थीं। कुछ देर में द्रव/दूध निकलना बंद हो गय, लेकिन फिर भी मैंने उसके बाद भी एक दो मिनट तक उसके उस स्तन को चूसा। उसके बाद आई दूसरे स्तन की बारी.. मुझे अनुभव तो हो ही गया था.. या यह कह लीजिये की शेर को खून... (ओह! माफ करियेगा), दूध का स्वाद पता चल गया था।

इधर मैं उसका दूध पी रहा था, और उधर रश्मि मेरी पैंट की ज़िप के अन्दर से मेरे तने हुए लिंग के साथ खिलवाड़ कर रही थी। मैंने यह महसूस किया की जब वो मेरे लिंग को दबाती है, तो मेरा चूषण और बढ़ जाता है। खैर, यह खेल कब तक चलता.. अंततः उसके दोनों स्तनों में दूध समाप्त हो गया, तो मैं उसके पेट पर चुम्बन लेकर सोफे से ज़मीन पर उतर आया।

“कैसा लगा सरप्राइज?”

“बहुत ही बड़ा सरप्राइज था! मज़ा आ गया..”

“कब से बचा के रखा था.. आपका मन भरा?”

“मन कैसे भरेगा इससे मेरी जान! इतना न्यूट्रीशियश, इतना मजेदार! मैंने तो रोज़ पियूँगा!”

ऐसी बातें करते हुए शरीर पर जो प्रभाव होना होता है, वो होने लगा।

“अले ले ले! ये क्या.. मेले बेटू का छुन्नू तो ल्ल्ल्लंड बन गया है.. कितना बड़ा वाला ल्ल्ल्लंड..” उसने मुझे चिढ़ाया।

“मम्मी है ही इतनी सेक्सी!”

“ह्म्म्म? मम्मी इसको जल्दी से वापस छुन्नू बना दे? ठीक है न?”

“ख़याल बहुत ही उम्दा है!”

“मेला बेटू अपनी मम्मी की चुदाई करना चाहता है?” आज रश्मि को क्या हो गया है! अगर ऐसे ही होता रहा तो उसकी बातें सुन कर ही मैं स्खलित हो जाऊंगा!

“हां.. मम्मी की ज़ोरदार चुदाई करनी है..”

“स्स्स्सीईई! गन्दा बच्चा! अपनी मम्मी को चोदेगा!”

मैं ज़मीन पर लेट गया और जल्दी से अपने लिंग को ज़िप के अन्दर से आज़ाद कर दिया।

“मेरे लंड को अन्दर ले लो और अपनी दोनों टाँगें मेरी दोनों ओर करके बैठ जाओ! आज मम्मी मेरी घुड़सवारी करेगी!”

“इस तरह?” 

वह मेरी गोद पर चढ़ते ही पूछती है। वह अपनी दोनों टाँगें मेरी दोनों ओर करके बैठ गयी है, लेकिन अभी भी ज़मीन पर अपने घुटनों के बल टिकी हुई है। उसके चूतड़ मेरी जांघों पर टिके हुए थे, और मेरा लिंग अभी भी बाहर था। मैंने अपने दोनों हाथों से उसके नितम्ब थाम लिए।

“इतना बड़ा लंड!”

रश्मि पर मानो आज किसी भूत का साया पड़ गया था। ऐसे खुलेपन से उसने गन्दी-बातें कभी नहीं करीं थी। उसने मेरे लिंग को पकड़ कर अपने योनि के चीरे पर से ऊपर-नीचे कई बार फिराया। उसकी योनि में से तेजी से स्राव हो रहा था। फिर उसने धीरे से मेरे लिंग के सुपाड़े को अपने चीरे में लगाया और धीरे धीरे उस पर बैठने लगी। उसका योनि द्वार तुरंत खुल गया, और मेरा लिंग अपनी नियत जगह में आराम से जाने लगा – जैसे गरम चाकू, मक्खन के अन्दर जाता है। आधा लिंग अन्दर जाने तक वह नीचे की तरफ बैठती है, और साथ में हाँफते हुए यह भी कहती जाती है की “यह बहुत बड़ा है”। कहने के लिए शिकायत है, लेकिन उसकी मुस्कान से पता चलता है की वह खुद अपने झूठ से आनंदित है। फिर वह मेरे लिंग पर ऊपर और नीचे होना शुरू कर देती है।

एक मिनट भी नहीं हुआ होता है की मैं अपना वीर्य छोड़ देता हूँ। हैं! यह क्या!! एक मिनट भी नही! मुझे थोड़ी लज्जा आई.. इतने वर्षों के सम्भोग क्रीड़ा में मैंने कभी भी इतनी जल्दी मैदान नहीं छोड़ा! आज क्या हुआ! फिर मैंने अपने लिंग पर रश्मि के खुद के सम्भोग निष्पत्ति का स्पंदन महसूस किया। 

‘अरे! ये भी आ गई क्या!’

हम दोनों ने कुछ देर तक अपनी साँसे संयत करीं, और फिर रश्मि ने ही कहा, “बेटू मेरा... अपनी माँ को ऐसे आसानी से छोड़ देगा, क्या?” न जाने क्यों उसके इस तरह चिढ़ाने से या फिर यह कह लीजिये की इस स्वांग से मैं जल्दी ही फिर से उत्तेजित हो गया।

“ऐसे सस्ते में जाने देगा? हम्म्म? ऐसे चोदो न, जैसे अपनी बीवी को चोदते हो... हर रोज़..” मेरा लिंग वापस अपने पूर्ण तनाव पर आ गया। और पूर्ण तनाव आते ही,

“जानू...” 

‘हैं! इसकी तो भाषा ही बदल गई..!’ 

“आज एक नया आसान ट्राई करते हैं? कुछ ही दिनों में मेरा पेट फूल कर बहुत बड़ा हो जाएगा। लेकिन, मुझे आपना लिंग अपने अन्दर हमेशा चाहिए... मगर, आपको ठीक लगे तो ही!”

“जानू मेरी! मैं तो बस जो तुम चाहती हो, मुझे बताओ, और मैं वैसे ही कोशिश करूंगा। अगर तुमको अच्छा लगता है तो मैं किसी भी आसन में तुमको चोदने को तैयार हूँ।“

तब रश्मि ने मुझे श्वान-सम्भोग आसन (दरअसल इसको कामसूत्र में ‘धेनुका’ कहा जाता है, लेकिन सामान्य भाषा में डॉगी स्टाइल कहते हैं) लगाने का निर्देश दिया। वो स्वयं अपने हाथों और सर को सोफे पर टिका कर और अपने नितम्बों को बाहर की तरफ निकाल कर घुटने के बल लेट/बैठ गई। जब मैं उसके पीछे जा कर अपना स्थान व्यवस्थित कर रहा था तो उसने बस इतना ही कहा, “जानू, आप सही छेद में ही करना..” 

कहने सुनने में हास्यास्पद बात लगती है, लेकिन यह एक गंभीर चेतावनी थी। भगवान् के दिए दोनों छेद इतने करीब होते हैं, की इस आसन में अगर ध्यान नहीं दिया तो एक दर्दनाक और शर्मनाक गलती होने के पूरे आसार होते हैं। वैसे भी रश्मि को मैं आज तक गुदा-मैथुन के लिए मना नहीं पाया था।

मैंने अपने लिंग को रश्मि की योनि से रिसते रस (जो रश्मि के और मेरे रसों का मिश्रण था) से अच्छी तरह भिगोया और उसके पीछे से योनि द्वार पर टिकाया। रश्मि ने अपनी उँगलियों से अपनी योनि की दरार को कुछ फैलाया, जिससे मुझे उचित छेद खोजने में कोई कोई परेशानी न हो। अन्दर इतनी ज्यादा चिकनाई थी की ज़रा सी हरकत से मैं अन्दर तक समां गया।

रश्मि ने एक कामुक किलकारी भरी, “उईई माँ! आप तो पूरा अन्दर तक घुस गए! आह्ह्ह!” 

इस कथन में किसी भी तरह की शिकायत, या दर्द जैसा कुछ नहीं था, इसलिए मैंने इसको सम्भोग आरम्भ करने की अनुमति के रूप में लिया, और उसकी सूजी हुई योनि की कुटाई आरंभ कर दी। रश्मि ने मेरे लिंग के घर्षण के साथ ही अपना आनंद भरा विलाप करना आरम्भ कर दिया। उधर मैंने पीछे से ही उसके स्तनों को दबाना, मसलना चालू कर दिया, और आराम से धक्के लगाने लगा। पीछे से सम्भोग करने से नितम्बों की पूरी संरचना स्पष्ट दिखाई देती है.. कमाल की बात यह है की इतने सारे आसन और पोजीशन ट्राई करने के बाद भी यह वाला बचा रह गया! रश्मि के नितम्ब! मैंने उंगली से उसकी गुदा को छुआ और फिर उसके छेद पर अपनी अंगुली फिराने लगा। कुछ प्रतिक्रिया न देखने पर मैंने धीरे से अपनी उंगली अंदर डाली। रश्मि चिहुंक गई, “ओउईई! म्म्मत क्क़करो..” 

मैं रुक गया और कुछ और जोर से धक्के लगाने लगा। पहले स्खलन के बाद मेरा स्टैमिना काफी बढ़ गया था। इस नए काम युद्ध को करते हुए कोई दस-बारह मिनट के ऊपर तो हो ही गए होंगे। और अब मुझे भी लग रहा था की मंजिल निकट ही है। इस बीच में रश्मि एक बार निवृत्त हो चुकी थी। मैं अब ज़ोर का धक्का लगाने लगा – रश्मि भी अपनी तरफ से अपने नितम्ब आगे पीछे कर रही थी। कुछ ही देर में मेरे अन्दर का लावा फ़ूट पड़ा। स्खलन के उन्माद में मैंने अपनी कमर को कस कर रश्मि के नितम्बो से पूरी तरह चिपका लिया। 
सम्भोग का नशा उतरा तो याद आया की सुमन भी घर पर होगी! लेकिन रश्मि ने बताया की वो अभी बाहर गयी हुई है किसी काम से। मैंने राहत की साँस ली – कमाल है! सोचा भी नहीं की घर में हमारे अलावा एक और प्राणी रहता है। आगे से सजग रहना होगा।
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12-17-2018, 02:19 AM,
#77
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
यात्रा वाले दिन: 

रश्मि : “जानू, आप भी साथ आते तो मज़ा आता।“ 

सुमन : “हाँ जीजू! आप भी न.. मौके पर धोखा देते हैं!”

मैं : “मौके पर धोखा! हा हा हा!”

सुमन : “और क्या! अब बताइए.. ये सारा लगेज हम दो बेचारी लड़कियों को खुद ही ढोना पड़ेगा..”

मैं : “अच्छा जी.. तो मैं तुम दोनों का कुली हूँ?”

सुमन : “नहीं नहीं.. आप तो मेरी दीदी के ‘जाआआनू’ हैं.. (सुमन ने मुझे चिढ़ाया) और मेरे प्याआआरे जीजू! लेकिन.. सामान उठाने वाला भी तो कोई चाहिए! ही ही ही!!!”

मैं : “देख रही हो जानेमन.. इस लड़की को सामान उठाने वाला चाहिए.. लगता है की इसके लिए लड़का ढूंढना शुरू कर देना चाहिए..”

सुमन : “धत्त जीजू! आपके होते हुए मुझे कोई और क्यों चाहिए?” उफ्फ्फ़! इस लड़की से जीतना मुश्किल है!

मैं (सुमन की बात को नज़रंदाज़ करते हुए): “क्या बताऊँ जानू.. मेरा भी तो कितना मन है आपके साथ आने का! लेकिन यह मीटिंग्स! ये तो अच्छा है की मेरा काम दिल्ली में है.. बस, काम जल्दी से निबटा कर तुरंत आ जाऊँगा। बस यही तीन चार दिन की ही तो बात है... आप लोग एक दो दिन एक्स्ट्रा रह लेना वहाँ.. या एक दो दिन बाद चली जाना। मैं वहीँ सबको मिलूंगा! ओके?“

रश्मि मुस्कुराई, और फिर मेरे पास आ कर दबी आवाज़ में बोली, “वो तो ठीक है.. लेकिन, ये दूध कौन पिएगा?”

सुमन : “हाँ हाँ.. सुनाई दे रहा है मुझे!” सुमन अँधेरे में तीर मार रही थी।

मैं : “क्या सुन रही है तू?”

सुमन : “आप दोनों मेरे खिलाफ कोई साजिश कर रहे हैं..” 

रश्मि : “तेरे कॉलेज में कहूँगी की रोज़ तेरे कान उमेठें जाएँ.. सारी चबड़ चबड़ निकल जायेगी!”

सुमन : “ठीक है! ठीक है! कर लो आप दोनों पर्सनल बातें! मैं क्यूँ कबाब में हड्डी बनूँ?” कहते हुए सुमन कमरे से बाहर निकल गयी।

मैं (मुस्कुराते हुए) : “इसको सम्हाल कर रखिएगा... मैं इत्मीनान से पियूँगा, जब आपसे मिलूंगा!”

रश्मि (खिलवाड़ करते हुए), “गन्दा बच्चा...!” और फिर अचानक गंभीर हो कर, “... जानू.. आपके बिना मेरा मन कहीं नहीं लगता! आप रहते हैं तो ज़िन्दगी में मज़ा रहता है!”

मैं : “क्या जानू.. बस तीन चार ही दिनों की तो बात है! मैं आ जाऊँगा! .. और फिर, मुझे ये डेयरी भी तो खाली करनी है! न्यूट्रीशन!! हेह हेह!”

रश्मि : “मेरा तो बस यही मन रहता है की इनमें लबालब दूध भरा रहे.. जिससे मैं आपको जब मन करे, दूध पिला सकूं!”

केदारनाथ की चढ़ाई काफी कठिन है। करीब सात हज़ार फुट की चढ़ाई चढ़ कर केदारनाथ मन्दिर तक पहुंचते हैं। केदारनाथ जाने की प्रबल इच्छा क्यों थी इसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मुझे वैसे तो किसी तीर्थ पर जाने में कोई ख़ास रुचि नहीं है। लेकिन, इन लोगो की आस्था, और उनके परिवार की एक प्रकार की परम्परा के कारण मैंने कोई विरोध नहीं किया। वैसे भी रश्मि की डॉक्टर ने बताया था की इस यात्रा में कोई दिक्कत नहीं है, अगर बस कुछ ख़ास सावधानियाँ बरती जाएँ! मैंने यह सख्त निर्देश दिए थे, की रश्मि को चढ़ाई चढ़ने न दिया जाय – पालकी कर ली जाय, जिससे आसानी रहेगी। यह भी निर्देश दिया की रश्मि लगातार मुझसे बात करती रहे, जिससे मुझे वहाँ की परिस्थिति का मालूम होता रहे। इस पर रश्मि ने कहा की वो दिन में पांच छः बार मुझसे फ़ोन पर बात ज़रूर करेगी। 

दोनों लड़कियों को मैंने बैंगलोर विमानपत्तन तक छोड़ा, और वापस काम पर चला गया। दो दिन बाद मुझे दिल्ली के लिए निकलना था, और वहाँ चार ज़रूरी मीटिंग्स कर के देहरादून, और वहाँ से केदारनाथ की यात्रा करनी थी। रश्मि, सुमन के जाने के बाद घर खाली खाली सा लगने लगा तो मेरा ज्यादातर समय ऑफिस में ही बीत रहा था। रश्मि मुझे हर समय फ़ोन या एस ऍम एस पर अपनी जानकारी देती रहती। दिल्ली में मीटिंग्स वगैरह करते हुए मुझे रश्मि ने बताया की केदार घाटी में काफी बारिश हो रही है। मैंने उसको सावधानी बरतने को कहा, और जल्दी मिलने का वायदा करके फोन काट दिया। देहरादून के लिए अगले दिन सवेरे की फ्लाइट थी।

रात में सोने से पहले मैंने रश्मि का नंबर लगाने की कोशिश करी – कई बार कोशिश किया, लेकिन नम्बर नहीं मिला। फिर उसके पापा और होटल का भी नंबर लगाया.. कहीं भी फ़ोन नहीं लग रहा था। निराश हो कर मैं सोने चला गया – रात भर ठीक से नींद नहीं आई। अजीब अजीब सपने आते रहे, और सवेरे उठने के बाद बुरे बुरे ख़याल आते रहे। उठते ही मैंने फिर से फ़ोन लगाने की कोशिश करी, लेकिन अभी भी फ़ोन नहीं लग रहा था। ऐसे ही बुरे मूड में मैं दिल्ली विमानपत्तन पहुंचा और वहाँ जा कर मालूम हुआ की केदारनाथ में भीषण बाढ़ आई हुई है। मेरे पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन ही खिसक गई – पेट में जैसे गाँठ पड़ गयी! मन अज्ञात आशंकाओं से घिर गया। 

मन में अनजाने डर, और ह्रदय में ढेर सारी प्रार्थनाएँ लिए पूरी यात्रा बीती। लेकिन देहरादून विमानपत्तन पर पहुँचते ही सारे के सारे डर हकीकत में बदल गए। वहाँ मैंने टैक्सी करने की कोशिश करी, तो लोगों ने बताया की केदारनाथ में किसी भी ड्राईवर से उनका संपर्क नहीं हो पा रहा है। पूछने पर उसने आगे जाने से मना कर दिया, यह कह कर की ले तो जा सकता है, लेकिन सड़क की क्या हाल है, और बारिश में न जाने क्या क्या हो सकता है कुछ नहीं मालूम! आज का दिन यूँ ही निकल गया – एक एक मिनट.. एक एक पल ऐसा लग रहा है जैसे की एक एक सदी बीत रही हो! बॉस का भी दिन में कई बार कॉल आ चूका – वो रश्मि के बारे में पूछते हैं! मैं क्या जवाब दूं! एक बार तो मेरी आंखों में आंसू छलक पड़े! मेरी चुप्पी और खामोश रुदन उन्होंने शायद सुन लिया हो! फ़ोन पर मुझे धाड़स बंधाते हुए उन्होंने कहा की उम्मीद मत छोड़ना, और मेरी हर तरह से मदद करने का आश्वासन किया। मुझे इतना तो मालूम पड़ गया की उन्होंने उत्तराखंड आपदा कंट्रोल रूम और अधिकारियों से संपर्क करने की हर संभव कोशिश की है। 

एक दिन।

दो दिन।

तीन दिन।

चार दिन।

हर एक दिन गुजरने के बाद मुझे मेरे परिवार के लौटने की आशा भी धूमिल होती नजर आ रही थी। एक एक पल इंतजार की करना मुश्किल होता जा रहा था। न तो भोजन का कोई कौर गले के अन्दर जा पाता, और न ही हलक से पानी की एक बूँद! न जाने उन लोगों ने कुछ खाया पिया होगा या नहीं, बस यही सोच कर कुछ खाने पीने की हिम्मत भी नहीं पड़ रही थी। 

ज्यादातर टैक्सी वाले अब मुझे पहचानने लग गए। मुझे देखते ही वह कहते हैं, “साहब, ऊपर के इलाकों में सड़कें ख़त्म हो चुकी हैं... और गाँव के गाँव साफ़ हो गए हैं। हमारे किसी भी साथी की कोई खोज खबर नहीं है। अब तो बस भगवान्, और सेना का ही सहारा है। आप बस प्रार्थना करिए की आपका परिवार सही सलामत आपको मिल जाय।“

रात में होटल वाले ने जबरदस्ती एक रोटी मुझे खिला दी। दिन भर आपदा कार्यालय के चक्कर लगाता, फ़ोन की घंटी बजने का इत्नाजार करता, और समाचार में मृतकों की बढ़ती हुई संख्या देख कर मन ही मन मनाता की मेरा कोई अपना न हो! इतनी बेबसी मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं महसूस करी। इतनी बेबसी, और इतनी खुदगर्जी! 

इस आपदा में हुई और हो रही जान-माल की क्षति का आंकड़ा विकराल रूप से बढ़ता ही जा रहा है! मन में बस अब एक ही ख़याल आता है की अब बस! अब ये गिनती ख़त्म करो भगवान्! इतने दिन हो गए, और किसी से कोई संपर्क ही नहीं हो पाया है!

'काश! ये लोग ठीक हों! ओह रश्मि! प्लीज प्लीज! काश! तुम ज़िंदा हो..!'

छठा दिन:

राहत और बचाव कार्य बाधित हो रहा है, क्योंकि घाटी में फिर से तेज बारिश हो रही है, और धुंध छाई हुई है। सेना के हेलिकॉप्टर उड़ान ही नहीं भर पा रहे हैं! खबर आई थी की एक हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया! बचने गए वीर युवक, खुद ही पहाड़ों की भेंट चढ़ गए! एक अफसर से बात हुई, उन्होंने मुझे साफगोई से कह दिया, 

“साहब, यह तो एक तरह से 'रेस अगेन्स्ट टाइम' है... मौसम खराब है, हर तरह के जोखिम हैं और अब तो महामारी का खतरा भी पैदा हो गया है... लोग अब बीमारी और भूख–प्यास से मर रहे हैं! कितनी मौतें हुईं, कितने लापता हुए और कितने लोग सुरक्षित निकाले गए - इस पर अब कोई भी बात बेमानी लग रही है, क्योंकि यहाँ कोई समन्वय नज़र नहीं आ रहा है, और न ही कोई एक सूची है। सच्चाई यह भी है कि खुद प्रशासन का कितना नुकसान हुआ है, इसका अंदाजा ठीक-ठीक अभी उन्हें भी नहीं है। इसके शिकार हुए लोगों का पता लगाना ही अपने आप में एक बड़ी चुनौती बन गयी है। हज़ारों की तादाद में लोग मदद की आस लगाए बैठे हैं। आप भी उम्मीद न छोडिए.. कुछ भी हो सकता है!” 

सातवाँ दिन: 

अब तो कोई उम्मीद ही नहीं बची है.. बस यंत्रवत रोज़ रोज़ राहत शिविर के दफ्तर पहुँच जाता हूँ। वहाँ लोगों से कई बार प्रार्थना भी करी है की मुझे भी सेवा का अवसर दें.. लेकिन वहाँ किसी के पास समय नहीं है। कई सारे लोग बचाए भी जा चुके हैं, लेकिन इन लोगों का कोई नामोनिशान ही नहीं है! 

‘अरे! फ़ोन बज रहा है..’

कोई अनजाना नंबर था। स्थानीय! दिल धाड़ धाड़ कर के धड़कने लगा।

“हेल्लो?” मैंने बहुत उम्मीद से बोला।

“जीजू..?” यह तो सुमन की आवाज़ थी।

“सुमन?” 

“जीजू... हू हू हू..” वो बेचारी रोने लगी! 

‘हे भगवान्!’

“नीलू.. तुम ठीक तो हो न?”

“जीजू.. प्लीज आप मुझे ले चलो.. हू हू हू..” रोते हुए उसकी हिचकियाँ बांध गईं।

“हाँ नीलू.. बताओ कहाँ हो? बाकी लोग कैसे हैं?”

उत्तर में सुमन सिर्फ रोती रही। 

“साहब, आप फलां फलां जगह पहुँच जाइए.. एक्सट्रैक्शन वही हो रहा है..”

“जी हाँ.. जी.. ठीक है.. मैं आ रहा हूँ..” 

“ओह भगवान्! तेरा लाख लाख शुक्र है!” 

कह कर मैं बिलख बिलख कर रोने लगा। कोई देखे या नहीं.. मुझे कोई परवाह नहीं! जब सब उम्मीदें छूट गईं, तब देखिए! कैसे खुशखबरी आई! कोई तीन घंटे की मशक्कत के बाद मैं राहत शिविर / एक्सट्रैक्शन कैंप में पहुंचा। वहाँ की हालत तो और भी दयनीय थी। बचाए गए सभी लोगों की आँखों में राहत और आस की नमी थी। साफ़ दिख रहा था की वो सभी बेहद भूखे और बेबस थे, और अब उनके अन्दर किसी भी तरह की शक्ति नहीं बची हुई थी। वाजिब भी है - इन लोगों को एक हफ्ता हो गया, कुछ भी खाने को नहीं मिला था.. और पीने के लिए भी सिर्फ गन्दा पानी ही नसीब हुआ होगा। ज़मीन पर एक व्यक्ति लेटा हुआ था... उसकी हालत देखकर मुझे नहीं लगा की उसके बचने की कोई उम्मीद होगी। सभी के कपड़े फटे हुए और मैले-कुचैले हो गए थे... या तो वो खड़े थे, या फिर लेटे हुए थे। 

एक वृद्ध मुझे देखते ही बोला, “हे बबुआ, हम हाथ जोड़ित है.. हमका हियाँ से ले चला।” 

बेचारे को लगा होगा की मैं उसका पुत्र या कोई सगा सम्बन्धी हूँगा! एक तरफ कुछ लोग उल्टियाँ कर रहे थे। 

‘ये लोग दिख क्यूँ नहीं रहे हैं?’ अचानक मेरी नज़र एक तरफ ज़मीन पर लेटी हुई लड़की पर पड़ी.. ‘सुमन!’

“सुमन?” ‘हे भगवान्! क्या हालत हो गयी है इसकी! इतनी प्यारी बच्ची.. और ये दशा?’ उसके कपड़े बुरी तरह से फटे हुए थे। बुरी तरह से मैली कुचैली, ज़ख़्मी, बेदम!

“जीजू? ओह जीजू!” कहते हुए वो मुझसे लिपट गयी। 

“तुम ठीक तो हो नीलू?”

उसने सर हिला कर हामी भरी। 

“बाकी लोग कहाँ हैं?”

मेरे प्रश्न पर उसकी आँखें भर आईं.. उसने बस ‘न’ में सर हिलाया। मुझे समझ आ गया की वो बात करने की दशा में नहीं है। मैंने वहाँ उपस्थित अधिकारी से बात करी, तो उन्होंने बताया की मेरे परिवार का कोई और सदस्य उनको नहीं मिला.. सुमन अकेली ही थी। वही बता सकती है की बाकी लोग किधर हैं! मैंने वहाँ पर सारी ज़रूरी औपचारिकताएं पूरी करीं, और सुमन को होटल ले आया। रास्ते में आते आते वो या तो गहरी नींद सो गयी, या फिर बेहोश हो गयी। बेचारी की क्या दशा हो गयी थी!! कोई और समय होता तो ऐसी हालत में किसी लड़की को लाने पर होटल के सभी लोग शक करते, लेकिन आज सभी सहयोग कर रहे थे। सामूहिक विपत्ति में समाज में मित्रों की संख्या बढ़ जाती है।

उन्ही की मदद से मैंने सुमन को बिस्तर पर लिटाया, और फिर दरवाज़ा बंद कर के उसके सारे कपड़े उतारे। उसके पूरे शरीर पर चोट, और कटने के निशान दिख रहे थे। शरीर में सूजन तो थी, लेकिन उसके तलवे काफी सूजे हुए थे, और साथ ही साथ उन पर फ़फोले पड़े हुए थे। उनमे से कुछ फूट भी गए थे, और वो घाव खुले भी हुए थे। मैं उसको बिस्तर में लिटा कर उसके लिए ज़रूरी वस्त्र, और डॉक्टर का इंतजाम करने चला गया। डॉक्टर के साथ वापस आया तो देखा की सुमन अभी भी सो रही थी, और उसका शरीर तप रहा था। 
उन्होंने सुमन की पूरी तरह से जांच करी, और उसको इंजेक्शन दिया, और कुछ दवाएं लिख कर दीं। बताया की कोई डरने की बात नहीं लगती, बस सुमन को कुछ हल्का खिलाता रहूँ.. जैसे की जूस, सैंडविच इत्यादि, जब तक उसकी ताकत वापस न आ जाय! एक बार ताकत आने पर बुखार खुद ही उतर जाएगा। उनको बस इसी बात का डर है की कहीं उसको डि-हाइड्रेशन न हो जाय!
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12-17-2018, 02:19 AM,
#78
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
सुमन देर शाम को ही उठ पाई। तब तक मैं उसके लिए जूस, और सैंडविच इत्यादि का इंतजाम कर लाया था। मैं उसको बिस्तर से उठा कर बाथरूम ले गया, जहाँ अन्य ज़रूरी कामों के साथ मैंने उसको नहलाया भी। वापस आ कर मैंने उसको कपड़े पहनाये – वो इतनी कमज़ोर हो गयी थी की खुद के बल पर बैठ भी नहीं पा रही थी। खाना भी मैंने उसको अपने हाथों से ही खिलाया। और सबसे अंत में दवा पिलाई। फिर उसको वापस बिस्तर में लिटाया।

मैंने प्यार से उसके बालों को सहलाते हुए पूछा, “नीलू, अब ठीक लग रहा है?”

सुमन की आँखों से आंसू टपक पड़े।

“कोई नहीं बचा, जीजू! कोई नहीं..”
मेरे ऊपर मानो बिजली गिरी! ‘कोई नहीं..! मतलब!’

जब तक कोई निश्चित बुरी खबर नहीं मिलती, तब तक आशा बंधी रहती है। मेरी भी आशा बंधी हुई थी की शायद रश्मि और बाकी सभी जीवित होंगे... लेकिन सुमन के इस एक वाक्य ने वह आशा भी छीन ली। मैं बुरी तरह से फूट पड़ा – मानो, थमा हुआ बाँध अचानक ही टूट गया हो। मेरे पैर... जैसे उनमें से सारी जान निकल गयी हो। मेरा सर चकराने लगा, और मैं अचेत हो कर गिर गया।


रजनीगंधा की मस्त कर देने वाली खुशबू मेरे नथुनों के रास्ते से आ कर मुझे आंदोलित कर देती है। मेरी चेतना वापस आती है। आँख खुलती है, तो मुझे लगता है की मानो मैं स्वर्ग के नंदन वन में हूँ। चारो तरह चांदनी फैली हुई है, और हरी भरी घास पर ढेर सारे पुष्प खिले हुए हैं! वैसे ही जैसे फूलों की घाटी में देखे थे! 

‘क्या बात है! लेकिन.. लेकिन, वो रजनीगंधा की खुशबू?’

मैं उठ कर देखता हूँ तो एक तरफ छोटा सा तालाब, जिसमें कई सारी कुमुदनियाँ अभी सुप्त अवस्था में थीं। दूसरी तरफ नज़र दौड़ाई तो देखा की एक बहुत ही सुन्दर सा घर था – उस घर के प्रथम तल पर स्थित एक बड़ी खिड़की से रौशनी छन कर बाहर आ रही थी। दिमाग की एक झटका सा लगा – यह तो वही घर है जैसा मैंने और रश्मि ने साथ में सोचा था! एक बार और मैंने नज़र दौड़ाई, तो देखा की तालाब के समीप ही एक स्त्री, एक छोटी सी लड़की के साथ खेल रही है। 

‘ओह! रजनीगंधा की सुगंध उसी तरफ से आ रही है।‘

अचानक उस स्त्री की दृष्टि भी मेरे ऊपर पड़ती है; वो खेलना बंद कर मेरे पास आती है.. रश्मि को देख कर मैंने मुस्कुरा उठता हूँ। वो खजुराहो की मूर्तियों जैसी सर्वांग सुंदर दिख रही है - अत्यन्त कमनीय! दरअसल, उसने खजुराहो की मूर्तियों के समान ही वस्त्र पहने हुए हैं – कमर के नीचे धोती है, और स्तनों को ढके हुए कंचुकी! इन वस्त्रों में रश्मि के रूप सौंदर्य और अंग-प्रत्यंग की रचना देखते ही बन रही है। उसके वक्ष गोलाकार थे, और शरीर चांदनी में चमक रहा था। आँखों में वही परिचित चंचलता और मादकता!

वो प्रेम से मेरे सर को अपनी गोद में रखकर मुझसे कहती है, “जानू.. उठ गए!”

मैंने एक गहरी सांस भरी – रजनीगंधा की मादक खुशबू मेरे पूरे वजूद में समां गई। समझ नहीं आ रहा की सो जाऊं या जागूँ? 

“आई लव यू!” मैंने आँख बंद किये किये कहा।

उत्तर में रश्मि खिलखिलाई! फिर रुक कर बोली, “अच्छा.. एक बात बताओ.. सुन्दर है न?”

“बहोत!” मैंने रश्मि की कंचुकी में उंगली डाल कर उसको नीचे की तरफ खींचा। उसका बायाँ स्तन कंचुकी के बंधन से मुक्त हो गया। मेरी हरकत पर रश्मि ने मेरे हाथ पर एक हलकी सी चपत लगाई।

“गंदे! मैं नहीं...”, 

कहते हुए उसने एक तरफ अपनी उंगली से इशारा किया, 

“... हमारी बेटी!”

रश्मि की इस बात पर मेरा सर एक झटके से दूसरी तरफ उस छोटी लड़की को देखने के लिए मुड़ता है। मेरी आँख एक झटके से खुलती है। मेरे चेहरे पर सुमन झुकी हुई है और बदहवासी में मेरे दोनों गालों को पीट रही है। 

“जीजू.. उठिए.. प्लीज.. उठिए! ओह थैंक गॉड!”

मेरा सर सुमन की गोद में था – उसने जब मेरी आँख खुली हुई देखी तो उसके चेहरे पर कुछ राहत के भाव आये। 

“जीजू... आप ठीक तो हैं न?”

“ह्ह्ह..हाँ.. मैं ठीक हूँ..” कहते हुए मैं उसकी गोद से उठ कर बैठ जाता हूँ। लेकिन सदमे का असर अभी भी था – मेरा सर फिर से चकरा गया, तो मैं सर थाम कर बैठ गया। सुमन मुझे पकड़ कर पुनः रोने लगी।

“सब ख़तम हो गया.. सब..” कहते हुए उसकी एक बार फिर से हिचकियाँ बंध गईं। मैं तो मानो काठ का हो गया! क्या कहूँ? सुमन कुछ देर रोने के बाद खुद ही कहने लगी,

“बाढ़ से बचने के लिए हम लोग होटल बाहर निकले। होटल का अहाता बुरी तरह से टूट गया था, और वहाँ से पानी बह रहा था – वहीँ से बाहर निकलते हुए माँ का पैर फिसल गया। पानी इतना तेज़ और मैला था की गिरने के बाद वो फिर कभी नहीं दिखाई दीं। पापा उनको बचने के लिए अहाते में कुछ देर तक गए, और जब वापस आये तो लंगड़ा कर चल रहे थे – शायद उनके पैर में मोच आ गयी थी। 

हमने देखा की आस पास के कुछ लोग पहाड़ की ढलान के ऊपर की तरफ जा रहे थे, इसलिए हम लोग भी उधर ही चलने लगे। जैसे-तैसे हम लोग ऊपर पहुंच गए, लेकिन उस चढ़ाई को करने में बहुत समय लगा – न दिन का पता चलता और न रात का! दीदी तो प्रेगनेंसी के कारण पहले ही कुछ कमज़ोर थीं, और भूखी प्यासी रहने के कारण उसकी हिम्मत जवाब दे गई। और वो वहीँ बेहोश होकर गिर गयी। पापा ने कहा की वो कुछ खाने के लिए लाते हैं, लेकिन पूरा दिन भर तलाशने के बाद भी उनको कुछ भी नहीं मिला। 

हमारे साथ जो लोग ऊपर जा रहे थे उनमे से उस समय तक कोई नहीं दिख रहा था – शायद वो किसी और तरफ निकल गए, या फिर .. बह गए! मदद देने के लिए अब कोई नहीं था। खैर, पहाड़ पर घास भी उगी हुई थी, और उसको देख कर पापा ने सोचा की शायद उसको खाया जा सकता है। लेकिन उनको कुछ शक था की वो घास खाने लायक है भी, या नहीं! लेकिन, उनका शक सही था... वो वाली घास ज़हरीली थी। उसको खाने पर उनको अच्छा तो नहीं लगा तो उन्होंने उसको थूक दिया – लेकिन जगता है की कुछ ज़हर अन्दर चला गया। दिन भर उल्टियाँ करने के बाद उनकी भी मौत हो गयी। 

दीदी अब और चल नहीं सकती थीं.. इसलिए मैंने उसको वहीँ लिटा कर मैं आस पास खाने को ढूँढने गयी। शायद किसी पक्षी ने कुछ मांस गिरा दिया था। वो मैंने और दीदी ने मिल कर खाया। रात में डर लगता - लगातार बारिश, ठंड और जंगली जानवरों का डर बना रहता था। मरने वालों के शवों को कुत्ते और अन्य जानवर खा रहे थे। अगले दिन दीदी की हालत काफी खराब हो गयी। भूख, कच्चा मांस, डिहाइड्रेशन, कमजोरी, संक्रमण... रात में जब वो सोई तो उसका शरीर कांप रहा था। बाहर ठंडक भी बहुत हो रही थी। मैं जब सवेरे उठी तो देखा की दीदी नहीं बची..! रोने के लिए अब तो आंसू भी नहीं बचे थे! दो दिन तक जैसे तैसे जंगली जानवरों से बचते हुए मैं रही... फिर कल मैंने हेलिकॉप्टर की आवाज़ सुनी तो उसको इशारा किया... न जाने कैसे उन्होंने मुझे देखा और वहाँ से निकला। अब यह नहीं समझ आता की मैं लकी हूँ, या एकदम मनहूस!“

जीवन भी अजब है। क्या क्या रंग दिखलाता है। सब कुछ... इसी जन्म में हो जाता है, सब यहीं मिल जाता है! तीन साल भी हम साथ नहीं रह पाए! तीन साल भी नहीं! 

‘हे देव! इतनी क्रूरता! ऐसे लेना था, तो दिया ही क्यों? रश्मि ने ऐसा क्या किया था की उसकी इस तरह से मृत्यु हो? वह बेचारी सभी की हंसी ख़ुशी के लिए ही सब कुछ करती थी। किसी के प्रति उसके मन में कोई भी विद्वेष नहीं था। फिर क्यों? कहाँ है भगवान? कैसा भगवान?’

और मेरी हालत?

मैं तो एकदम अकेला हूँ! एकदम अकेला.. मेरे हर तरफ एक भीड़ जैसी है.. घर में रहो, सड़क पर निकालो, या फिर ऑफिस जाओ... हर तरफ लोगों की कोई कमी नहीं है.. लेकिन, मैं नितांत अकेला हूँ! सोसाइटी में लोग जब मुझे देखते हैं तो मानो उनको लकवा हो जाता है.. बात करते करते चुप हो जाते हैं, मुझे देख रहे होते हैं तो किसी और तरफ देखने लगते हैं.. कन्नी काट लेते हैं.. जैसे की मुझे कोई रोग हो! 

मुझे भी मुक्ति चाहिए! लेकिन आत्महत्या कर नहीं सकता। ऐसे संस्कार नहीं हैं! लेकिन... मुक्ति तो मुझे अब चाहिए! वसीयत में मैंने अपना सब सब कुछ सुमन के नाम लिख दिया है, और अपनी आखिरी इच्छा के लिए निर्देश दिया है की मृत्यु के बाद मुझे विद्युत् शव-दाह गृह में जलाया जाय। क्यों बेकार में लकड़ियाँ जलाना?
रश्मि की मृत्यु के बाद बीमा राशि और सरकारी सहायता से मिली हुई रकम मिला कर मैंने एक ट्रस्ट-फण्ड बनाया, जिसका एक ही उद्देश्य था – गरीब परिवार की चुनी हुई मेधावी क्षात्राओं को उनकी उच्च शिक्षा (कम से कम स्नातक स्तर तक) तक पूरी सहायता देना। मेरे ऑफिस, और रश्मि के कॉलेज के लोगों ने इस फण्ड में भरपूर योगदान दिया था, जिससे अब यह एक स्थाई क्षात्रवृत्ति बन चुका था। बाकी का सारा निबटारा होने वाली सारी राशि (सुमन के माता पिता की बीमा राशि और सरकारी सहायता), और उत्तराँचल की सारी ज़मीन इत्यादि मैंने कानूनी सहायता से सुमन के नाम लिखवा दी। कम से कम उसका जीवन तो अब स्थिर हो गया था।

मुझे लग रहा था की अब मेरे जीवन का मकसद पूरा हो गया है.. ‘रश्मि! मुझे भी अपने पास बुला लो!’ बस मैं यही एक बात रोज़ मन ही मन दोहराता। एक साल हो गया था मेरा परिवार नष्ट हुए! परिवार क्या, पूरा संसार नष्ट हुए! संसार की सबसे निराली लड़की को मुझसे आज से एक साल पहले काल ने छीन लिया। उसके साथ साथ छीन लिया उसने मेरी संतान को – मेरी बेटी! साथ ही चले गए मेरे माता और पिता भी! दोनों माता पिता!

‘कैसा क्रूर मजाक!’

कहते हैं की जीवन किसी के लिए नहीं रुकता! चलता ही रहता है.. लेकिन किस ओर? मैं तो अब हर क्षण बस मृत्यु का ही इंतज़ार कर रहा हूँ। हाँ – खाता हूँ, पीता हूँ, सोता हूँ.. टीवी भी देख लेता हूँ.. क्या करूँ? जीना पड़ रहा है! लेकिन क्या जीना! मैं सब कुछ अकेले ही करता हूँ। हाँ – घर में सुमन भी रहती है। लेकिन, उससे तो बस नाममात्र की बातें होती हैं। कभी कभी दुःख होता है की इस सब में उसकी क्या गलती! मैं क्यों उसके साथ ऐसे बर्ताव करूँ? आखिर मेरे साथ साथ उसने भी तो अपना परिवार खोया है! लेकिन, फिर भी.. एक अजीब तरह की बेबसी होती है.. अजीब तरह की कसक.. अक अजीब तरह का आक्रोश!! कुल मिला कर, उससे अधिक बात नहीं हो पाती! अब तो लगता है की किसी से भी मैं ठीक से बात नहीं कर पाऊँगा! 

उस दुर्घटना के कुछ ही दिन बाद की बात है... मैं कमरे की खिड़की से बाहर किसी अनंत शून्य में देख रहा था।

सुमन मेरे पीछे आ कर कहती है, “आप क्या देख रहे हो?”

मैंने कई दिनों से खुद को जब्त किया हुआ था.. उस एक वाक्य ने न जाने कैसे मेरे सब्र के बाँध को ढहा दिया। मैंने चिड़चिड़े ढंग से उसको जवाब दिया, “अपने काम से काम रखो! मुझसे चिपकने की कोई ज़रुरत नहीं!”

वो उसी पल मेरे कमरे से बाहर भाग गई। कुछ समय बाद मैंने उसके रोने सुबकने की आवाज़ सुनी, लेकिन मैंने उसको मनाने की कोई कोशिश नहीं करी। वो मेरी जिम्मेदारी नहीं है। अगर उसको भी इस संसार में गुजारा करना है, तो बिना किसी मोह के ही करना होगा। संसार बहुत क्रूर है! और भगवान उससे भी बड़ा क्रूर! किसी भी प्रकार का मोह न ही हो तो अच्छा! न कोई बंधन होगा, और न कोई बोझ! आराम से चले जाओ.. किसी को पता भी नहीं चलेगा की कब निकल लिए! 

सबसे अच्छी बात यह की रश्मि के ही कॉलेज में सुमन का दाखिला हो गया था – वहाँ के प्रिंसिपल मुझे अक्सर उसकी उन्नति के बारे में बताते.. कहते की बहुत मेधावी है! मैंने उनको अपनी स्थिति के बारे में बताया, और उनको कहा की वो उसको उचित मार्गदर्शन देते रहें। क्योंकि मुझसे नहीं हो पायेगा।

अच्छे लोगो न भारी अभाव हो रहा है मेरे जीवन में.. अभी कोई सात महीने पहले श्री देवरामानी का देहांत हो गया – दिल का दौरा पड़ने से। उनकी श्रीमति को उनकी संताने अपने साथ ले गईं। लिहाजा, अब पड़ोस भी खाली लगता है। घर आने का मन नहीं होता। इसलिए मैं अक्सर अपने टूर बनता रहता हूँ.. पिछले एक साल में चार महीने मैं बाहर रहा। वो मकान तो बस रश्मि के कारण घर था, अब तो बस एक बेरंग ढांचा सा लगता है! ऐसे यंत्रवत जीवन होने के कारण कार्यस्थल पर तरक्की बहुत तेजी से हो रही है! अब मैं खुद भी मेरे भूतपूर्व बॉस के स्तर पर हूँ। लेकिन उनका मित्रवत व्यवहार अभी भी बरकरार है।

वो अभी भी मुझसे संपर्क में हैं। दुर्घटना के बाद उन्होंने मुझसे रश्मि के बारे में पूछा। क्या बताता! बस फूट फूट कर रोने लगा। उनको मैंने सारा वाकया सुनाया। उसके बाद से उन्होंने कभी भी रश्मि का नाम भी मेरे सामने नहीं लिया, जिससे मुझे दुःख न हो! शुरू शुरू में मैंने दोस्तों के साथ मुलाकात की, और वो लोग भी मुझसे मिलने आये – जैसे की पारंपरिक सामाजिक प्रणाली होती है..। हिमानी भी मिलने आई थी... उसने मुझसे दबे छुपे शब्दों में दोबारा शादी करने को भी कहा। मैंने उससे क्या कहा, मुझे कुछ याद नहीं आता अभी! हाँ, लेकिन कोई चार महीने पहले मैंने उसकी शादी का कार्ड देखा – कार्ड मिलने के एक महीना पहले उसकी शादी हो गयी थी। अच्छी बात थी.. मुझे अपने जीवन में किसी भी तरह का उलझाव नहीं चाहिए था। 

अकेलेपन के साथ साथ, मैं पिछले छह महीनों में न जाने किस गढ्ढे के अन्दर चला जा रहा हूँ.. वहाँ पर सूर्य का प्रकाश संभवतः कभी नहीं गया है। काश! आत्महत्या करना पाप न होता!
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12-17-2018, 02:19 AM,
#79
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मृत्यु :

बहुत भयावह होता है जब आप देखते हैं की एक निश्चित मृत्यु आपकी तरफ आ रही है, और आपके पास उससे बचने का कोई उपाय नहीं है। तीव्र गति पर अचानक ही लगाम लगाये जाने पर टायरों से उठने वाली चीख, ब्रेक्स के जलने पर उठने वाली कसैली गंध.. और इन सब का उस भयावह सच की तरफ इशारा!! मेरे अंतिम क्षण में मेरे दिमाग में बस एक ही बात आई,

‘आ ही गई मौत!’

वैसे, मृत्यु से मुझे कोई डर वर नहीं लगता.. हाँ, उससे मुझे एक तरह की खीझ सी होती है। लेकिन, रश्मि के बाद मैं जी ही कहाँ रहा था – बस जीवित था। अपने आखिरी क्षण में मुझे बस यही ख़याल आया... और चैन भी। टक्कर बेहद भीषण थी। उस झटके से मेरा हृदय रुक गया, और दिमाग में अनगिनत रुधिर वाहिकाएँ फट गई। चेतना जाते हुए आखिरी बात जो मुझे याद है वह यह है की कार की चेसी कुचलती जा रही थी, और कार की फ़र्श पर मेरा लहू! मेरे सर में एक असहनीय दर्द हुआ, और चेतना लुप्त हो गई।

अगला ख़याल जो मुझे याद है वह यह है की मैं मर गया हूँ। सचमुच मृत! ...लेकिन, फिर दिमाग पर जोर लगाया तो समझ आया की अगर मैं मर गया हूँ, तो फिर सोच कैसे सकता हूँ? सोच तो दिमाग से होती है, और दिमाग जीवित शरीर में! मतलब अभी भी जीवित हूँ!

ग्रेट!

“रूद्र... रूऊऊऊद्र..!” मैंने आवाज तो सुनी, लेकिन पहचान नहीं पाया। 

कैसी आवाज़ है? अच्छी आवाज है, लेकिन जानता नहीं..। मेरे सिर में भयंकर दर्द हो रहा था। सिर में ही क्या, पूरे शरीर में! तो क्या मैं उस अतिभारित ट्रक से हुई दुर्घटना से बच गया?

“रूद्र.. बेबी.. मरना नहीं। प्लीज़..? जागते रहो। तुम मुझे सुन रहे हो? मेरे साथ रहो। चिंता मत करो। मैं हूँ यहाँ तुम्हारे साथ। मुझे सुन रहे हो? मुझसे बात करो.. प्लीज़..?”

अरे भई.. कौन हो आप? कौन है मेरे साथ? मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। मेरे सर में जैसे जैसे वो भयंकर दर्द बढ़ रहा था, वैसे वैसे मुझे यह समझ नहीं आ रहा था की ये रूद्र कौन है, और ये औरत (हाँ.. औरत की ही आवाज़ थी) कौन है! मैंने उठने की कोशिश करी.. एक अजीब सा अनुभव हुआ – जैसे चक्कर, उलटी, और एक और भयंकर दर्द की लहर.. ये सब एक साथ! मैं फिर से अचेत हो गया।

रह रह कर रश्मि की बातें याद आतीं.. एक बार मैंने सैंडविच बनाया। और खाते हुए उसको पूछा, “तुम्हारा बनाया हुआ इतना बढ़िया लगता है! ये कैसे हो सकता है!! एक जैसी चीज़ें ही तो डालते हैं – जो तुमने यूज़ करी, वही मैंने भी.. फिर ऐसा क्यों?”

रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहा, “जानू.. मैं सैंडविच में प्यार भी डालती हूँ..” 

रश्मि बिलकुल ऐसी ही थी। हर चीज़ में प्यार डालती थी। उसका किया हर काम बेहतर होता था! .. यह प्यार नहीं तो और क्या है...?

यू-ट्यूब पर मैं “आगे भी जाने न तू.. पीछे भी जाने न तू..” वाला गाना सुन रहा था। रश्मि को यह गाना बहुत पसंद था। मैं भी साथ में गाने लगा.. रश्मि की याद हो आई.. गला भर गया। और आँखों से आंसू आ गए। मैं रोने लगा – इस तरह मैं कभी नहीं रोया। कम से कम एक घंटा रोने के बाद सारी ऊर्जा क्षीण हो गयी। कब सोया कुछ भी याद नहीं!

‘ब्लिप... ब्लिप... ब्लिप...’

‘ये क्या चिढ़ाने वाला शोर हो रहा है! और.. रश्मि कहाँ है? अभी तो यहीं थी...’

मैंने आँख खोलने की कोशिश करी। लेकिन बहुत ही असह्य दर्द हुआ। मृत्यु? अह्ह्ह्हहाँ! मतलब मरा तो नहीं हूँ। जैसे जैसे चेतना लौट रही थी, और मैं जाग रहा था, तो मुझे समझ आने लगा की मैं शायद अचेत था। 

अचानक ही मेरा संसार निशब्दता से गुंजायमान की तरफ चल दिया। मुझे सुनाई भी दे रहा था, और सुंघाई भी दे रहा था.. लेकिन, दिखाई क्यों नहीं दे रहा है?

मैंने आँख खोलने की कोशिश करी। इस कोशिश में मेरी हर चीज़ दर्द करने लगी – सर, आँख! मेरी कराह निकल गई। 

“इनको होश आ गया..” कोई चिल्लाया।

मेरी आँखें उनको खोलने में मेरा साथ ही नहीं दे रही थीं। जैसे तैसे जब वो खुलीं, तो रोशनी की एक तीखी लकीर प्रविष्ट हो गयी। मैंने तुरंत ही आँखें बंद कर लीं.. यह सोच कर, की अभी तो नहीं खोलूँगा। सोचने की कोशिश करने पर दिमाग में सब गड्ड-मड्ड हो गया.. कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। मैंने महसूस किया की आँखें बंद होने के बावजूद मुझे मेरे इर्द गिर्द का सारा संसार धुंधला होता महसूस हो रहा था। और मैं एक बार फिर से सस्ते टंगस्टन के बल्ब के समान बेहोश हो गया।

जब मैं जागा तो काफी रौशनी हो रही थी। आँख बंद होने के बावजूद मैं रौशनी महसूस कर सकता था। मैंने काफी प्रयत्न करने के बाद अपनी आँखें खोलीं, और अपने बिना सर हिलाए, सिर्फ आँखें घुमा कर जायजा लिया। मुझे समझ आया की मैं एक कमरे में हूँ... संभवतः.. नहीं संभवतः नहीं.. निश्चित तौर पर एक अस्पताल के कमरे में। कमरे में सूर्य की रौशनी से ही उजाला हो रहा था। जीवित होने, और उसके एहसास से मुझे अच्छा लगा! कुछ क्षण के लिए मुझे अपने शरीर की विभिन्न हिस्सों से उठने वाले दर्द पर से ध्यान हट गया। 

फिर अचानक ही सब याद आ गया। मेरे शरीर ने झटके खाए होंगे.. 

“श्श्शशह्ह्ह” 

‘हँ..? कौन?’ मैंने महसूस किया की किसी ने मेरा हाथ थाम रखा है। मैंने उसी तरफ अपना सर घुमाया और कहा,

“हाय!” मेरे इतना कहने मात्र से ही वो बहुत खुश हो गई। कौन है ये? धुंधला सा दिख रहा है.. लेकिन लगता है की जान पहचान की है.. पता नहीं..! थोड़ा अपनी आँखें फोकस करीं तो उस स्त्री का चेहरा दिखा.. स्त्री नहीं.. लड़की। मेरे ज़हन में जो पहली बात आई, वो यह थी की यह लड़की बहुत थकी हुई लग रही थी.. और.. बहुत.. सुन्दर भी! सुन्दर... रश्मि जैसी!

‘रश्मि जैसी?’ ये ख़याल ज़हन में कैसे आया? जो भी हो, ख़याल तो सच था। यह लड़की वाकई सुन्दर थी.. सौम्य सुन्दर! आकर्षक! वो मुस्कुराई,

“ओह! हेल्लो!” मानों मेरी आवाज़ सुन कर उसकी जान में जान आई हो.. “आपको नहीं मालूम आपको ठीक होता देख कर मैं कितनी खुश हूँ! जब मुझे खबर मिली आपके एक्सीडेंट की तो मेरी तो जान ही निकल गयी थी.. सब को तो खो चुकी हूँ.. और आपको भी नहीं खोना चाहती.. भगवान का लाख लाख शुक्र है!”

‘आपको भी? मतलब? मतलब.. ये लड़की मुझे जानती है? लेकिन मुझे क्यों नहीं समझ आ रही है? क्यों नहीं याद आ रही है? मेरा नाम क्या है?’ 

“मैं... कहाँ हूँ? (इसका उत्तर तो खैर मुझे मालूम है) मेरा.. एक्सीडेंट.. कितना बुरा है? (हाँ.. यह ठीक है..) घर.. कब तक?”

“सब बताऊंगी.. लेकिन पहले डॉक्टर को बुला कर लाती हूँ...” कह कर वो लड़की लगभग भागते हुए कमरे से बाहर चली गयी।

जिस गति से वो लड़की बाहर गई थी, उसी गति से भागते हुए डॉक्टर ने भी कमरे में प्रवेश किया। आते ही उसने मेरी कलाई थाम ली (नब्ज़ लेने के लिए), और मेरे चार्ट का मुआयना किया।

“आपको कैसा लग रहा है?” उसने पूछा।

‘मुझे कैसा लग रहा है? हा! कैसा लग रहा है!! मेरी पिछली याद मरने की है साहब! मरने की.. सुना? मृत्यु! निर्जीव! शव! यह है मेरी पिछली याद.. और आप पूछ रहे हो की कैसा लग रहा है! मर के वापस लौट आया हूँ.. कितनी शिद्दत से मरने की इच्छा थी.. लेकिन अभी लग रहा है की अच्छा हुआ की वापस लौट आया! लेकिन अभी कुझे डर भी लग रहा था.. एक बार मरना कैंसिल हो जाय, तो जीने की चाह बहुत बढ़ जाती है!’ 
न जाने कैसे कैसे ख़याल आ रहे थे दिमाग में! मुझे खुद को नियंत्रण में रखना चाहिए.. यह सब कोई सुनना नहीं चाहता! कम से कम इतनी तो कोशिश करनी ही चाहिए की सामान्य प्रश्नों का सामान्य उत्तर तो दिया ही जाय! वैसे लगता तो है की कुछ कुछ याददाश्त चली गयी है.. खैर...!

प्रत्यक्ष में मैंने कहा, “सब दुःख रहा है! सर में दर्द है.. एक्चुअली, पूरे शरीर में ही दर्द है.. लेकिन फिर भी चलने फिरने का मन करता है। लेकिन सब कुछ स्टिफ भी लग रहा है.. ऐसे लग रहा है की सब कुछ टूट जाएगा!” 

फिर कुछ रुक कर, “कुछ खाने को है? बहुत भूख लग रही है.. और पानी भी चाहिए.. मैं तो कम से कम एक लीटर पानी पी सकता हूँ अभी!”

मेरी बात पर डॉक्टर हंसने लगा, और वो लड़की (कौन है भई?) राहत की सांस भरती है, “... अब मुझे पक्का यकीन है की आप बिलकुल ठीक हो जायेंगे!” उसकी हंसी में खिलखिलाहट और संतोष का मिला-जुला भाव आ रहा था.. और यह भाव बेहद मनमोहक था। 

डॉक्टर ने मुझसे एक दो सवाल पूछे जैसे की मैं किस शहर में हूँ, क्या समय है.. बेहद सामान्य प्रश्न यह जानने के लिए की मेरा दिमाग तो ठीक ठाक चल रहा है.. दिन के सवाल पर मैं उत्तर नहीं दे सका.. उसने पूछा की अंतिम कौन सा दिन याद है.. तो मैंने दुर्घटना वाला दिन बता दिया। उसने संतोषप्रद तरीके से सर हिलाया। फिर काफी देर तक वो मुझे बताता रहा की मैं कितना भाग्यशाली हूँ, और यह कितना अविश्वसनीय है की ऐसी दुर्घटना हो जाने पर, जब मुझे ऐसी भयंकर चोटें आने पर भी मैं बहुत जल्दी रिकवर कर रहा हूँ। 

“सच कहता हूँ..” उसने कहा, “आप ऑपरेशन टेबल पर.. यू वोंट बिलीव मी, .. मर गए थे!”

‘क्या सच में! इंटरेस्टिंग!’

उसने कहना जारी रखा, “लेकिन एक मिनट बाद जब आपकी धड़कन वापस चलने लगी तो वो तो मुझे बिलकुल करिश्मा ही लगा! मैंने और मेरे साथियों ने ऐसा कमाल होते कभी नहीं देखा!”

मैं मुस्कुराया।

“नहीं.. आप मजाक मत समझना इसको! यह वाकई अनयूसुअल है! आपके सर पर सबसे ज्यादा चोटें आईं थीं.. हमने उम्मीद छोड़ दी। फिर जब आपके दिल ने धड़कना बंद कर दिया तो हम समझ गए की आब क्या कर सकते हैं.. लेकिन फिर.. करिश्मा नहीं तो और क्या है! लेकिन आपकी पत्नी ने आपका साथ नहीं छोड़ा..”

‘मेरी पत्नी? ... रश्मि! कहाँ हो तुम?’

“.. यहाँ नर्सें कह रही हैं की वो आपको वापस ले आईं.. जैसे सावित्री ले आईं थीं सत्यवान को! हो सकता हो की यह सच भी हो!”

‘सावित्री? रश्मि!!’

“आप भले मेरी बात को मज़ाक मानिए, लेकिन मैंने यह सब कहना अपना फ़र्ज़ समझा.. आगे इनका खूब ख़याल रखिएगा.. यू शुडन्ट भी अलाइव!”

“डॉक्टर.. एक मिनट..” ये लड़की कह रही थी, “मैं इनकी पत्नी नहीं.. साली हूँ....” उसने धीरे से कहा।

‘साली? मेरी साली?’ मेरे दिमाग में घूर्णन शुरू हो गया, ‘मतलब... नी...ल..म?’

“ओह! आई ऍम सॉरी! मुझे लगा की आप इनकी बीवी हैं.. ऐसी चिंता, ऐसी सेवा तो आज कल बीवियां भी नहीं करतीं।”

“इट इस ओके!” सुमन ने धीरे से कहा।

“नीलू?” मैंने कमज़ोर आवाज़ में उसको पुकारा। दिल के सारे ज़ख्म हरे हो गए। मेरी प्यारी बीवी नहीं है.. वो तो कब की मुझे छोड़ कर चल दी है.. आँखों से आंसू ढलक गए।

“जी?” उसने मेरा हाथ पकड़ कर पूछा।

“थैंक यू!”

सुमन मेरे हाथ को अपने दोनों हाथों में थाम कर अपने आंसुओं से भिगोने लगी।
सुमन का परिप्रेक्ष्य

मेरी आँखों के सामने एक एक कर मेरी माँ, मेरे पिता, और फिर मेरी प्यारी बहन – जिसका दर्जा बहन से भी ऊपर था – और उसकी संतान कष्टप्रद मृत्यु को प्राप्त हो गए। बहुत से ज्ञानियों को अक्सर यह कहते सुना है की यदि किसी के साथ कुछ बुरा होता है तो उसके द्वारा किये गए पापों के कारण होता है। मैंने बहुत बार सोचा की इन लोगों ने किसका और क्या बुरा किया था, जो इनको इस प्रकार की मृत्यु मिली! माँ ने अपनी तरफ से पूजा पाठ, धार्मिक और सामाजिक कार्यों में कभी भी किसी भी प्रकार की कोर कसर नहीं रखी। पिता जी ने भी सदा ही अपनी मेहनत और इमानदारी का ही खाया, न कभी किसी के साथ बुरा किया और न कभी किसी का बुरा सोचा। और तो और, जितना उनका बस चला औरों की मदद ही की। और माँ उनके सभी कामों में बराबर की संगिनी बन कर चलीं। तो उनको इस प्रकार मृत्यु? यह किस तरह ठीक है? और दीदी! उसने तो अभी अपने जीवन में देखा ही क्या था? उसकी तो हंसती खेलती ज़िन्दगी तो बस शुरू ही हुई थी। उसके जैसी दयावान लड़की मैंने कभी नहीं देखी.. लोग क्या, वो तो पंछियों और जानवरों के लिए भी अच्छा और भला सोचती थी। और उस अजन्मे बच्चे का क्या, जो अपनी माँ के साथ ही तड़पता चल बसा?

और सोचती हूँ, तो लगता है की दरअसल यह उन तीनों को सजा नहीं, हम दोनों को सजा थी। मेरे पापों के बदले मेरे हृदय में त्रिशूल भोंक दिया गया और रूद्र के हृदय में एक दो-धारी तलवार! हाँ! यही तर्क उचित है.. हमने ज़रूर कुछ ऐसा किया है जिसके कारण भगवान ने हमसे हमारे सबसे प्रिय लोग छीन लिए। और दंड स्वरुप हम दोनों को उनका चिर-वियोग सहन करना लिख दिया। खैर, इस दुर्घटना को चाहे किसी भी दृष्टि से देखा जाय, सच तो यह है की मेरे हृदय में एक बड़ा सा हिस्सा अब खाली हो गया है, और लगता है की जैसे मेरे सीने पर एक भारी सिल रख दिया गया हो। यह भी सच है की उम्र भर, इन तीनों के वियोग की पीड़ा नहीं जाने वाली!

कभी कभी मन में एक ग्रंथि सी बनती लगती है.. सोचती हूँ की हो न हो, रूद्र यह यह बात तो ज़रूर सोचते होंगे की अगर उनकी रश्मि की जगह अगर मैं होती तो? अगर मैं मर जाती, तो आज उनके पास कम से कम उनका परिवार तो होता। मुझे पक्का यकीन है की जब भी वो मुझे देखते होंगे, तो उनको यह विचार तो ज़रूर आता होगा। उस दिन जिस तरह से वो उस मामूली बात से मुझ पर गुस्सा हुए थे, उससे मुझे सौ प्रतिशत यकीन हो गया है की वो मुझसे नफरत करते हैं। लेकिन उनका दिल अच्छा है, इसलिए मुझे बेघर होने, और दर-दर की ठोंकरें खाने से बचाने के लिए अपने घर में पनाह दी। और पनाह ही क्या, मेरी पढाई, लिखाई, खाने, पीने, रहने और हर खर्चे का इंतज़ाम भी किया। बस, कभी मुझसे खुल कर बात नहीं कर सके।

नई जगह, नया कॉलेज.. इन सबके कारण इस झंझावात को सहने की हिम्मत मिली। सहारा – मेरा मतलब, भावनात्मक सहारे से है – तो कोई था नहीं। तो कभी अनवरत अश्रु-धाराओं, तो कभी प्रिंसिपल महोदय के परामर्श और उत्साहवर्धन, तो कभी बस रूद्र के आभासी सान्निध्य को ही अपना अवलंब (सहारा) बना लिया। पड़ोसी श्रीमति देवरामनी ने भी कोशिश करी, लेकिन उनकी बात ही समझ नहीं आती.. और अब तो पड़ोस भी खाली है!

वैसे भी मुझे पड़ोसियों से किसी प्रकार के सहारे, और मदद की कोई उम्मीद नहीं है। शुरू शुरू में सभी ने (ख़ास तौर पर पड़ोस की महिलाओं ने) हमारे दुःख में मगरमच्छी आंसू बहाए, लेकिन तीन चार महीने के बाद ही मुझे ऐसे देखने लगे जैसे किसी तरह से मैं इस दुर्घटना के लिए उत्तरदाई हूँ! जैसे मैंने रूद्र का घर उजाड़ा हो! जैसे, रश्मि के जाने के बाद उनमे से किसी का चांस था, लेकिन मैं उस चांस का सूपड़ा साफ़ कर रही हूँ रूद्र पर डोरे डाल कर! यह सब सोच सोच कर दिल और गला भर आता है.. लेकिन यह सब बातें किससे कहूँ? सहेलियों को कितनी बातें बताई जा सकती हैं? हम दो जने एक छत के नीचे रहते हैं, लेकिन मानो बस दो अजनबी हों! 

धीरे धीरे अपने गम का इलाज मैं स्वयं ही होती गई। बात तो सच है, की अगर मन में दृढ़ता न बढ़े, तो जीवन मुश्किल हो जाए.. इसलिए मैंने इस अनुभव को जीवन की लम्बी पाठशाला का एक और पाठ समझ कर खुद में समाविष्ट कर लिया। समय के साथ धीरे धीरे मेरा दुःख कम होता गया, और मैं भविष्य के लिए आशान्वित होने लगी। उधर रूद्र अभी तक अपनी इस हानि से उबर नहीं सके हैं.. मैंने अक्सर उनको रात में रोते हुए सुना है। लेकिन उनके कमरे में जाने की मेरी हिम्मत नहीं होती..! कैसे इस शानदार, आकर्षक पुरुष कान्तिविहीन हो जाता है, उसका उदाहरण था रूद्र का क्षय! उनका चेहरा दुःख से खुरदुरा हो गया था; बाल पकने लग गए थे; नींद, आराम और मनःशांति की कमी के कारण वो महज एक वर्ष में ही बूढ़े से लगने लग गए थे। वैसे भी रूद्र ने अपने गम से निबटने का रास्ता ढूंढ लिया है। वो काम के सिलसिले में अक्सर बाहर रहते हैं। हर व्यक्ति का अपने अपने दुखों से निबटने का अपना अपना तरीका है.. और मुझे नहीं लगता की वो अपनी से बहुत कम उम्र की लड़की से इस विषय में कोई चर्चा करना चाहते हैं। तो अगर, वो ठीक हैं, तो मैं कुछ भी नहीं कहूँगी। मेरे लिए बस इतना ही काफी है!

इसी बीच मुझे एक तरह का आत्म उद्भेद (self discovery) हुआ।

पिछले कुछ महीनों के तनाव, अवसाद और व्यस्त ता के कारण शरीर में बहुत थकावट सी हो गयी थी। उस दिन जब मैं कॉलेज से बाहर निकली तो आसमान में काले घने बादल छाए हुए थे। काफी अँधेरा हो गया था। रूद्र बैंगलोर से बाहर गए हुए थे, और मैं घर में बिलकुल अकेली थी। बारिश का अंदेशा तो था ही.. मंद मंद ठंडी हवा बह रही थी। सप्ताहांत होने के कारण वैसे भी कुछ राहत सी लग रही थी। बिल्डिंग पहुँच कर मैं लिफ्ट के बजाय सीढ़ी चढ़ कर घर पहुंची। रूद्र तो आज आने ही वाले नहीं हैं... दो दिन खुद से! हम्म्म... दीदी होती तो हम दोनों शौपिंग करने जाते। यह सोच कर कुछ दुःख तो हुआ, लेकिन मैंने जल्दी ही उस पर काबू कर लिया।
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12-17-2018, 02:21 AM,
#80
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
घर पर अकेले मन नहीं हुआ, इसलिए सोचा की अपनी किसी सहेली को बुला लेती हूँ अगले दो दिनों के लिए! कम से कम यह घर मुझे काट खाने को नहीं दौड़ेगा! मैंने इसलिए रूद्र को फ़ोन लगाया, जिससे उनकी अनुमति मिल सके। उन्होंने संछिप्त सा उत्तर दिया की मेरा जैसा मन हो, मैं वैसा कर सकती हूँ.. यह घर मेरा भी है, और मुझे किसी काम के लिए उनकी अनुमति की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने यह भी कहा की तीन दिन बाद आयेंगे। अच्छी बात है... मैंने अगला फ़ोन अपनी सबसे करीबी सहेली भानुश्री (भानु) को लगाया, और घर आने को कहा। वो वैसे तो चार पांच बार यहाँ आ चुकी थी, लेकिन रहने के लिए कभी नहीं। 

भानु अपने परिवार के साथ बैंगलोर में रहती थी। वो लोग कन्नडिगा ब्राह्मण थे, और हमारे घर से कोई पन्द्रह किलोमीटर दूर रहते थे। मैंने उसकी माँ से भी बात करी, तो उन्होंने मुझे ही घर रहने को बुला लिया। लेकिन फिर मेरे ही अनुनय विनय से उन्होंने उसको अनुमति दे दी। उनके परिवार वाले मुझे पसंद करते थे, और रूद्र से भी मिले थे.. इसलिए परेशानी वाली बात नहीं थी। भानु ने मुझसे कहा की वो करीब एक-डेढ़ घंटे में आ जाएगी। अच्छा है.. इतनी देर में मैं नहा लेती हूँ! 

मैं घर पर छोटे गुसलखाने का प्रयोग करती हूँ.. लेकिन उस दिन मेरा मन था की मैं मास्टर र बाथरूम में नहाऊँ। वहाँ पर एक बाथटब था, जिसको दुर्घटना के बाद कभी भी प्रयोग में नहीं लाया गया था (घर की कामवाली ने बताया.. पहले काफी गन्दा हो जाता था, लेकिन आज कल साफ़ ही रहता है, और महीने में बस एक-आध बार सफाई से ही काम चल जाता है)। आज मेरा उसी में घुस कर नहाने का मन था। मैंने उसमें पानी भरने के लिए नल खोल दिया, और अपनी पसंद का खुशबूदार साबुन डाल दिया। और अपने कमरे में निर्वस्त्र होने चली गयी। 

आज मैं वो करने वाली थी जो मैंने कभी नहीं किया था। ऐसा नहीं है की रूद्र मुझ पर मास्टर बाथरूम प्रयोग करने से नाराज़ होते.. बस, मैंने ही कभी उधर नहाने का नहीं सोचा। दरअसल, मैं घर में उस तरफ जाती ही नहीं – मेरे हिसाब से आप सोचें, तो वो एक तरह का पुण्यस्थान था, जहाँ मेरी दीदी की यादें बसी हुई थीं.. और रूद्र की प्यारी पत्नी की! मैं वहाँ जा कर किसी तरह की सेंधमारी नहीं करना चाहती थी। लेकिन, आज यूँ अकेलेपन के कारण मन हुआ की क्यूँ न वहाँ नहाया जाए.. और यही सोच सोच कर मुझे रोमांच हो रहा था। मैं कुछ गुनगुना रही थी.. मैंने अपनी ब्रा उतारी.. आह्ह! स्तनों के उस बंधन से मुक्त होते ही आनंद आ गया। मैंने अपने शरीर का निरिक्षण किया – ब्रा की कसाव के कारण मेरे स्तनों पर लाल निशान पड़ गए थे। उन निशानों, उन रेखाओं को हाथ से मसलने पर काफी आराम मिला। कितना मज़ा आएगा, अगर मैं दो दिन बिना कपड़ों के रहूँ? इस ख़याल से मेरा रोमांच और बढ़ गया!!

मेरे बचपन में घर पर सेक्स के बारे में किसी तरह की बातें ही नहीं होती थीं। बड़े बुजुर्गों में सम्भोग को लेकर इतनी वर्जनाये थी की इसको सिर्फ संतानोत्पत्ति हेतु एक आवश्यक कार्य ही समझा जाता रहा। मुझे जो भी कुछ मालूम हुआ, वो दीदी और रूद्र के कारण! उनको सेक्स का आनंद उठाते देख कर समझ आया की सेक्स "मजे" के लिए भी किया जाता है, और प्रेम प्रदर्शन के लिए भी.. और अगर कायदे से किया जाय तो सिर्फ शारीरिक ही नहीं, मानसिक और आत्मिक सतह पर जुड़ने के लिए भी। यही सब सोचते हुए मैं मास्टर बाथरूम में लगे लगभग आदमकद दर्पण के सामने आ कर निर्वस्त्र खड़ी हो गई। और जीवन में पहली बार खुद को पूर्ण-नग्न देखा। बीस की उम्र! और वैसा ही तरुण ताज़ा शरीर! मैंने अपने स्तनों को धीरे से दबाया – एकदम पुष्ट! कहना तो नहीं चाहिए, लेकिन दीदी के स्तनों से भी निखरे और बड़े! अपने सुन्दर नग्न शरीर को आईने में देख कर मैं वाकई खुद ही उत्तेजित सी हो गई। 

दीदी की याद आते ही उनके स्तनों का चूषण करना याद आ गया, और साथ ही यह विचार भी की किसी दिन मेरे स्तनों को भी कोई चूसेगा, और उनमें दूध आएगा! प्रकृति की कैसी अद्भुद रचना! सच ही कहते हैं की नारी शरीर एक तिलिस्म होता है। मैंने स्तनों को कुछ देर दबाया, फिर निप्पलों को हल्का सा मसला! प्रतिक्रिया स्वरुप वो तुरंत ही खड़े हो गए। मैं मुस्कुराई। मेरा ध्यान अब अपने सपाट पेट से होते हुए योनि पर चला गया। वहाँ उँगलियों से टटोलने पर गीलापन महसूस हुआ! ह्म्म्म.. योनि वो पहले ही परिपक्व हो चली थी – उत्तेजना के कारण उसके दोनों पटल फूले हुए थे (कहीं पढ़ा था की लड़के इनकी तुलना पाव-रोटी से करते हैं)। आज से पहले भी मन बहुत बार हो चुका है की अपनी योनि में उंगली डाल कर खुद को संतुष्ट कर लिया जाय, लेकिन बालपन में सिखाई गई वर्जनाएँ ऐसे ही नहीं चली जातीं। 

टब में समुचित पानी भर गया था। मैं जा कर उस सुगन्धित झाग-वाले पानी में लेट गई, और इस नए अनुभव का आनंद लेने लगी। यहाँ पर भी दीदी और रूद्र साथ में नहाते रहे होंगे.. मेरे दिमाग में उन दोनों की काम-रत तस्वीर खिंच गई। मेरा हाथ पुनः मेरी योनि पर जा पंहुचा। ऐसा कुछ करने का मैंने कभी सोचा ही नहीं.. लेकिन आज सब कुछ नया है! अपनी आँखें बंद कर मैंने अनायास ही अपने भगनासे को सहलाना प्रारंभ कर दिया। पानी के अन्दर ऐसा करना एकदम अनोखा अनुभव साबित हो रहा था... अनोखा, और कामुक और आनंददायक! कामाग्नि से मेरा शरीर दहकने लग गया - ठीक वैसे ही जैसे की 102 डिग्री बुखार आने पर तपने लगता है। 

‘यह कैसी तपन!’

कॉलेज में मेरी सहेलियाँ अक्सर हस्तमैथुन की बातें करतीं। ऐसा नहीं है की मुझे काम/यौन सम्बन्धी ज्ञान नहीं था – भरपूर था। रूद्र और दीदी की काम-क्रीड़ा मैंने देखी थी और मुझे अच्छी तरह से मालूम था की लड़की और लड़के के अंगों का प्रयोग किस प्रकार और किस हेतु होता है। कॉलेज में मेरे सिर्फ लड़कियाँ ही नहीं, बल्कि लड़के भी मित्र थे और उनमें से कई मुझसे प्रणय सम्बन्ध बनाना भी चाहते थे.. लेकिन मेरी दृष्टि में वो सारे सिर्फ अनाड़ी ही नहीं, मूढ़ भी थे। लेकिन रूद्र... हाँ, उनकी बात कुछ और ही थी। धीर और शांत स्वभाव के रूद्र, और उसमें निहित तीव्रता! उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व और उनकी गहन आँखें.. जैसे सामने वाले की आत्मा को ही देख रही हों! और हाँ! वो कसरती देह.. जैसे व्याघ्र! कुछ बात तो थी इस आदमी में!

शारीरिक प्रौढ़ता मैंने दीदी की शादी के आस-पास ही प्राप्त कर ली थी। लेकिन उसके साथ साथ मुझे हार्मोनों का प्रभाव भी झेलना पड़ा। सपने आते। और सपनों में लड़के आते.. उनका कोई चेहरा नहीं होता था। बिना चेहरे वाले नर! उन सपनों में वो मुझे छूते, छेड़ते.. और मेरे साथ अजीब अजीब सी हरकतें करते। आँखें खुली होने पर भी सपने आते - मैं खुद को जवान होते देखने की चाह में अक्सर आईने में अपने आप को निहारती रहती, अपने नवांकुर वक्षों को देखकर बड़ा अच्छा लगता। माँ देखती, तो डांटती, और किसी अन्य कार्य में लगा देती। खैर, मुझे सबसे अधिक रोमांचित मेरे योनि क्षेत्र में उग आये रोयेंदार बालों ने किया था। रात के अँधेरे में अक्सर उन्हें छूने का आनन्द लेती, और उनके साथ साथ योनि भी सहलाने में आनन्द का अहसास होता। लेकिन डर लगता की कहीं चोट न लग जाय (घर में ऐसे ही तो सिखाते हैं)। नहाते समय जब अपने स्तनों को सहलाती तो ऐसा महसूस होता की छूने पर वो आकार में बढ़ते जा रहे हैं।

बचपन में मैंने देखा था की एक घोड़ा, घोड़ों के झुण्ड में से एक के पीछे पीछे दौड़ रहा था.. दौड़ रहा था, या उसको दौड़ा रहा था। स्पष्टतः वह एक नर था – क्योंकि दौड़ते हुए उसके लिंग का आकार विकराल से विकरालतर होता जा रहा था। भयावह दृश्य था। आगे वाला घोड़ा (दरअसल घोड़ी) अचानक रुक गया, और नर उसके पीछे से उस पर सवार हो गया। उस समय मुझे इस विषय में कोई समझ नहीं थी, लेकिन फिर भी ऐसा लगा की यह दृश्य नहीं देखना चाहिए। मैंने चुपके से अपने चारों तरफ देखा की कोई है तो नहीं! उस नर का विकराल लिंग, मादा के भीतर पूरी गहराई तक घुसा हुआ था, और वह शायद चार पांच धक्के लगाने के साथ ही कांपने लगा, और नथुने की राह से घुरघुराते हुए मादा पर से उतर गया। उसके लम्बे लिंग के आगे से, और मादा के पीछे से सफ़ेद रंग का गाढ़ा द्रव ज़मीन पर गिरने लगा।

और फिर वो वाला दिन.. बुग्याल पर! मुझे अच्छे से दीदी की कराह और सिसकियाँ आज भी याद हैं। याद है की कैसे रूद्र उसकी जाँघों को फैलाए उसकी योनि को चूम, चाट और सहला रहे थे। दीदी भी उनका लिंग अपने मुंह में ले कर कैसे देर तक बदला चुका रही थी। और फिर रूद्र ने भी उसी घोड़े के समान दीदी की चढ़ाई करनी शुरू कर दी थी! कितनी समान, लेकिन कितनी अलग थी दोनों की सम्भोग क्रिया! वो घोड़ा तो लगभग तुरंत ही ढेर हो गया था, लेकिन रूद्र तो मानो रुकने का नाम ही नहीं जानते! ओह! दीदी वाकई तृप्त रहती होगी।

'हे भगवान्!' उन्ही यादों से मंत्रमुग्ध होकर मेरे बिना सोचे हुए ही योनि को छेड़ने की मेरी गति बढ़ती जा रही थी। हाथ की उंगलियाँ अनियंत्रित होती जा रही थीं, और मेरे गले से दबी घुटी सिस्कारियां निकल रही थी। यह कहने की आवश्यकता नहीं की मेरा पूरा शरीर उत्तेजना के मारे कांपने लग गया था। 

हाँ... कॉलेज में मेरी सहेलियाँ अक्सर हस्तमैथुन की बातें करतीं। यह बातें भी होती की यह क्रिया कितनी लाभदायक है! आनंद तो आता ही है, साथ ही साथ अनवरत यौनेच्छा, जो हम युवाओं में होती रहती है, उससे निजात भी मिल जाती है – बिना किसी पुरुष की आवश्यकता के! मतलब बिलकुल सुरक्षित, और संतोषजनक! शीघ्र ही मेरा कामोन्माद समाप्त हो गया। अनुभव में वह कुछ कुछ वैसा था जब दीदी और रूद्र ने मेरे स्तनों से खिलवाड़ किया था.. लेकिन इसकी तीव्रता कहीं अधिक थी।

"ऐसा आनंद तो पहले कभी नहीं आया", मैंने सोचा और संतोषप्रद गहरी सांस भरी। 

अब नहा भी लिया जाय!

भानु मेरी एक बहुत ही करीबी, और प्यारी सहेली है। जाहिर सी बात है की उसकी उम्र भी मेरे ही बराबर थी। वैसे उम्र ही क्या, हम दोनों का डील डौल भी लगभग एक जैसा ही था। लेकिन जहाँ मैं एक पहाड़ी लड़की हूँ, भानु एक दक्षिण भारतीय सुंदरी है। एक बात तो है – दक्षिण भारत की लड़कियों की गढ़न बहुत अच्छी होती है। भानु भी ऐसी ही है... सांवली सलोनी.. सामान्य कद की। लेकिन उसके स्तन 32B साइज़ के हैं, और उस पर खूब फबते हैं। बड़ी बड़ी आँखें और उन्नत नितम्ब! सचमुच, बहुत ही प्यारी लड़की है वो। वो कॉलेज में सबसे पहले मेरी दोस्त बनी, और धीरे धीरे हम दोनों इतने करीब आ गए हैं की हमारी कोई भी बात एक दूसरे से नहीं छुपी है। 

एक और बात है, बैंगलोर जैसे शहर में रहने के बावजूद उसका परिवार कुछ रूढ़िवादी किस्म का है। रस्मों, और कर्म-कांडों को निभाने की जैसे सनक सी हैं उनमें! उनके परिवार की सोच यह भी रही है की लड़कियों का ब्याह जल्दी कर देना चाहिए.. लिहाजा, दो साल पहले ही भानु का रिश्ता एक सॉफ्टवेर इंजिनियर (बैंगलोर में और कौन मिलता है?) के साथ तय कर दिया गया है। इसने तो शुरू शुरू में बहुत नखरे किए, बहुत सी मिन्नतें करीं, लेकिन कुछ हो नहीं सका। माता-पिता के सामने बेबस थी। बस, इतनी ही गनीमत थी की उसको कम से कम स्नातक की पढ़ाई पूरी कर लेने तक की मोहलत दी गई थी। शायद उसकी कुंडली में कुछ गोत्र, मांगलिक वाला चक्कर था, और इस कारण से बस कुछ ही रिश्ते मिल रहे थे। उसके माता-पिता ने सबसे कमाऊ वाले रिश्ते को पकड़ लिया। मजे की बात यह, की उसकी यह बात पूरे कॉलेज में सिर्फ मुझे ही मालूम थी। वैसे उसका मंगेतर अरुण कोई बुरा नहीं था। देखने बोलने में अच्छा था। उन दोनों को अपने अपने परिवार की तरफ से दिन में मिलने की इजाज़त मिली हुई थी। आज भी कॉलेज के बाद वो दोनों किसी कॉफ़ी शॉप पर ही मिल रहे थे।

खैर, नहाने के बाद मैंने हल्का फुल्का कपड़ा पहना (मतलब, सिर्फ पजामा और टी-शर्ट, और अन्दर कुछ भी नहीं) और टीवी देखते हुए भानु के आने का इंतज़ार करने लगी। कुछ ही देर में वो आ गई – उसके हाथ में एक बैग था, जिसमें दो दिनों के लिए ज़रूरी सामान और कपड़े थे। उसके आने के बाद हम दोनों साथ में चाय बनाने लगे, और साथ ही साथ मज़े से बातें भी करने लगे। मैंने उसको पूछा की आज दोनों ने मिल कर क्या किया! उत्तर में वो बस शरमा रही थी। दोनों को अनोखे में ही मिलने का अवसर मिलता था, इसलिए कुछ तो किया होगा न! मेरे खूब जिद करने से उसने बताया की आज अरुण में न जाने कहाँ से इतनी हिम्मत आ गई, की उसने इसे चूम लिया। यह बताते बताते ही उसके सांवले गालों पर लाली आ गयी। मैंने उसे छेड़ते हुए कहा, की बदमाश, इतनी ज़रूरी बात इतनी देर में बता रही है! तो वो शरमा कर हंस दी। (हमारी बात चीत अंग्रेजी, हिंदी और कन्नड़ – इन मिली जुली भाषाओँ में हुई.. लेकिन यहाँ सुविधा के लिए सिर्फ हिंदी में ही बता रही हूँ)..

मैं : “हाय! हमारी किस्मत कहाँ, की कोई हमको चूमे!”

भानु : “अरे है न! तुम्हारे जीजू?”

मैं : “ऐसे मत छेड़ यार! मैं तो उनको दिखती ही नहीं.. उनकी नज़र मुझ पर पड़े, ऐसी किस्मत ही नहीं!”

भानु : “तू किस्मत की बात करती है? तू तो आइटम है.. आइटम! और आइटम ही क्या, पूरी पटाखा है! एक बार इशारा कर दे, बस, आशिकों की लाइन लग जायेगी तेरे सामने!”

मैं : “अच्छा जी! तू जैसे कोई कम है..?”

भानु (गहरी सांस भरते हुए): “मेरा क्या! मेरा डब्बा तो पैक हो गया है!” 

मैं : “हा हा हा! वाह भई... यह डब्बा खुलने को इतना बेकरार है क्या? कुछ दिन रुक जा.. फुर्सत से खुलेगी! हा हा हा! अबे बता न.. क्या किया था तुम दोनो ने।“

भानु : “अरे बताया तो! सिर्फ़ किस किया था उसने...”

मैं : “हाँ जी! तुमने कहा, और मैंने मान लिया! आप लोग इतने शरीफ हो!”

भानु : “कुछ बातें परदे के अन्दर रखनी चाहिए!”

मैं (चाय पीते हुए): “मुझसे भी?”

भानु : “हाँ.. तुझसे भी..!”

मैं : “ह्म्म्म... ये सुनो! मैं तो तुमको कुछ बताने वाली थी.. लेकिन.. अब...”

भानु : “हैं? क्या बताने वाली थी?”

मैं (उसको छेड़ते हुए): “रहने दे.. कुछ बातें परदे के अन्दर ही रहनी चाहिए!”

भानु : “नीलू.. ऐसे मत छेड़! ठीक है बाबा.. मैं बताऊंगी.. लेकिन पहले तू बता! ओके?”

मैं : “लेकिन पहले तो मैंने पूछा!”

भानु : “तू बहस बहुत करती है.. अब नखरे मत कर, और बता भी दे..”

मैं : “अच्छा.. ठीक है! तो सुन.. मैंने आज अपनी.. इसको (अपनी योनि की तरफ इशारा करते हुए) देर तक सहलाया.. पहली बार...”

भानु : “धत्त तेरे की! खोदा पहाड़, निकली चुहिया! यह बोल न की तूने आज पहली बार मास्चरबेट किया!”

मैं : “हाँ.. वही..”

भानु : “मेरी बुद्धूराम! तूने यह आज किया? अपनी जिंदगी के कितने बरस तूने यूँ ही वेस्ट कर दिए!”

मैं : “मतलब? तूने क्या बहुत पहले ही...?”

भानु : “हाँ जी.. पांच साल पहले..!”

मैं : “पांच साल पहले? बाप रे!”

भानु : “हाँ! और नहीं तो क्या? हम लड़कियाँ तो जल्दी ही जवान हो जाती हैं! लेकिन तू बिना यह सब किए इतना दिन कैसे रही?”

मैं : “पता नहीं..”

भानु : “अपने जीजू को एक इशारा तो देती.. फिर देखती, तू कैसे बचती?”

मैं : “भानु प्लीज! इस बात से मुझे मत छेड़! ठीक है की वो मुझे पसंद हैं.. लेकिन इसका यह मतलब नहीं की वो भी मुझे पसंद करें!” फिर कुछ देर की चुप्पी के बाद, “अरे! मेरी छोड़.. तू बता! क्या क्या किया तुम दोनों ने?”

भानु : “ठीक है बाबा.. सुन! आज मिस्टर मूड में थे! पहले भी उसने मुझे दो तीन बार चूमा था.. लेकिन आज वाला! उसने मेरे दोनों गालों को पकड़ कर चूमा.. नॉट किस.. स्मूच! मेरी जान ही निकल गई जब मैंने उसकी जीभ अपने मुँह में महसूस करी! फिर उसने मेरे बूब्स भी छुए! इतना मना करने पर भी देर तक दबाता मसलता रहा! बड़ी मुश्किल से उससे पीछा छुड़ाया। शॉप में ज्यादातर लोग हमें ही देख रहे थे। मैं तो शर्म के मारे बाहर भाग आई।“

मैं : “बाप रे! तुझे कैसा लगा यार?”

भानु : “कैसा लगा? अरे, मेरी हालत खराब हो गयी! मेरी योनि में चींटियाँ काटने लग गईं। कोई और जगह होती तो आज मेरा केक भी कट जाता!” 

मैं : “क्या वैसा लगता है जैसे मास्चरबेट करते समय लगता है?

भानु : “अरे! वो तो कुछ भी नहीं है.. उससे भी पावरफुल! मास्चरबेशन का क्या है? उसमें तो बस अपना ही हाथ है.. लेकिन जब दूसरे का हाथ लगता है न.. पूरा शरीर झनझना जाता है।”

मैं : “बाप रे!”

भानु : “तू जानना चाहती है की कैसा लगता है?”

मैं : “न बाबा! वैसे भी मेरा कोई बॉयफ्रेंड थोड़े ही है!”

भानु : “बॉयफ्रेंड नहीं तो क्या, गर्लफ्रेंड तो है! मैं ही सिखा देती हूँ...”

मैं उसकी बात सुन कर चुप हो गयी।

भानु : “ए नीलू.. तू बुरा तो नहीं मान गयी?”

मैं : “नहीं यार!”

भानु : “तो बोल.. तुझे प्यार करूँ?”

मैं हंस पड़ी।

भानु : “तेरे होने वाले बॉयफ्रेंड से बढ़िया करूंगी!”

मैं : “ऐसी बात है? तो आ जा..”
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