Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:21 AM,
#81
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
भानु वाकई सीरियस थी। मुझे शुरू शुरू में लगा की वो शायद मजाक कर रही थी। लेकिन जब उसने मेरे पास आकर मेरे होंठों पर अपने होंठ सटाए तो मुझे वाकई एक करंट सा लगा। कुछ देर ऊपर से ही छोटे छोटे चुम्बन लेने के बाद वो उन्हे चूसने लगी। मैंने भी अपनी तरफ से जैसा हो सका, सहयोग किया। कुछ देर चूमने के बाद भानु का मेरे स्तनों पर आ गया और वो उनको टी-शर्ट के ऊपर से ही सहलाने लगी। मैं रोमांचित हो उठी.. दिमाग में पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। सच में, मेरे शरीर में एक अनोखी सी आग आग सुलग गई। भानु मुझे अपनी बाहों में लिए रह रह कर मेरे गाल, होंठ, आंखें, नाक, गर्दन और स्तनों पर चुम्बन देने लगी। एक बारगी कामुक उन्माद में मेरा मुँह खुल गया, तो उसने मौका पाते ही अपने होंठों से वहाँ हमला कर दिया, और अपनी जीभ मेरे मुंह के अन्दर डाल कर मेरी जीभ से खिलवाड़ करने लगी! मैं उचक कर अलग हो गई।

मैं : “ओए! छी! कैसा कैसा तो लगा! गीला गीला!”

भानु : “तुझे अच्छा नहीं लगा?”

मैं : “न रे! कैसा अजीब सा लग रहा था। अब बस कर..।“

भानु : “बस कैसे करूँ मेरी जान? अब तो मुझसे भी रहा नहीं जा रहा है..”

मैं : “हम्म.. तो क्या किया जाय?”

भानु : “तेरा तो नहीं मालूम.. लेकिन मेरा तो अब इन कपड़ों के अन्दर रहना मुश्किल है..”

मैं (हँसते हुए) : “तो बाहर आ जा.. मेरे अलावा कौन है यहाँ तुझे देखने वाला?”

भानु : “अरे ऐसे नहीं! तू उतार! मैं तेरा उतार दूँगी!”

कहते हुए वो फिर से मुझसे लिपट कर मेरे होंठ चूसने लगी और टी-शर्ट के निचले हिस्से को पकड़ कर मेरे शरीर से हटाने लगी। मैं भी उसके कुर्ते के बटन खोल कर उसके कुरते को उतारने लगी। जैसा की मैंने पहले भी बताया है, मैंने टी-शर्ट के नीचे कुछ भी नहीं पहना हुआ था, लिहाजा, उसके उतरते ही मैं अर्धनग्न भानु के सामने सम्मुख हो गयी। भानु का कुर्ता भी उतरा – लेकिन उसने अभी भी ब्रा पहनी हुई थी।

भानु : “अरे भगवान्! नीलू.. तेरी चून्चियां क्या मस्त हैं! कितनी प्यारी प्यारी! देख न! कैसे लाइट मार रही हैं!”

मैं : “हट्ट बेशरम! कैसे बोल रही है!”

भानु : “अरे मैं सच कह रही हूँ..” कहते हुए उसने मेरे हाथ अपने स्तनों पर जमाए, और खुद मेरे दोनों स्तनों को दबाने लगी। मेरी तो जान ही निकल गयी। 

मैं : “आऊऊ.. आह्ह नहीं.. धीरे अआह्ह्ह.. धीरे!”

भानु (अनसुना करते हुए) : “नीलू, तू भी उतार इसको और खेलो..”

मैंने जैसे तैसे उसके प्रहार झेलते हुए उसकी ब्रा उतारी। तुरंत ही उसके उन्नत वक्ष मेरे सामने उपस्थित थे। मैं सचमुच में उसके स्तन देखती रह गई। कितने प्यारे स्तन! बिलकुल खिलौनों के समान! बड़े-बड़े, शरीर के बाकी हिस्सों जैसा ही साँवला सलोना रंग, उत्तेजना से ओत-प्रोत लम्बे तने हुए गहरे सांवले चूचक, और उसी से मिलता जुलता गोल घेरा। मुझसे रहा नहीं गया.. और मैंने भी अपने हाथ उन पर जमा दिए।

मैं : “हाय रे मेरी भानु रानी! तेरे संतरे कितने मस्त हैं! ठोस.. मुलायम.. और रसीले... दोनों के दोनों! मैं खा लूँ?” 

भानु : “नेकी और पूछ पूछ?”

मैंने उसकी इस बात पर उसको सोफे पर ही लिटा दिया, और खुद भी उसके बराबर लेट गई। एक तरीके का आलिंगन – करवट में मेरा दाहिना स्तन उसके बाएं स्तन से टकरा रहा था। मैंने उसकी पीठ और नितम्ब सहलाते हुए उसके एक निप्पल पर अपनी जीभ फिराई। दीदी की याद पुनः हो आई। मैंने पूरा निप्पल अपने मुंह में भरा, और चूसना शुरू किया। मज़ा आ गया। भानु की सिसकी छूट गयी। लेकिन फिर भी उसने मेरे सर को पकड़ कर अपने स्तन में भींच सा लिया। 

भानु : “आह्ह्ह्ह! इस्स्स्स... नील्लू.. आह्ह्ह! धीरे... ऊफ़.. मज़ा आ गया! आह्ह! बहुत अच्छा लग रहा है। कस कर चूसो न... उफ्फ्फ़! आआऊऊ ... काटो मत प्लीज। आराम से मेरी जान। अआह्ह्ह.. अरुण सुनेगा, तो जल मरेगा! ऊऊह्ह्ह.. मजे से चूसो! ओह्ह्ह!”

मैंने कोई चार-पांच मिनट तक उसके दोनों स्तनों को बारी बारी से चूसा। एक पल मुझे लगा की भानु का शरीर थरथरा रहा है.. मुझे समझ में आ गया की उसने अपना कामोत्कर्ष प्राप्त कर लिया है, इसलिए जब तक वो शांत न हो जाए, तब तक मैं चूसती रही। निवृत्त होने के बाद भानु भी अब मेरे स्तन दबाने और चूसने लगी। 

मैं : “भानु, तेरा मन नहीं हुआ की और कुछ भी किया जाय..?”

भानु : “मन क्यों नहीं हुआ! मैंने बताया न.. बड़ी मुश्किल से भागी वहाँ से.. कोई और जगह होती, तो आज तो अरुण ने मेरा काम तमाम कर दिया होता! खैर, मेरी छोड़.. तू बता, तेरा दिल भी तो तेरे जीजू से लगा हुआ है.. तेरा दिल नहीं चाहता?”

मैं : “दिल तो बहुत चाहता है! मैंने उनका और दीदी का खेल देखा है.. और मुझे मालूम है सब कुछ। लेकिन डर लगता है।“

भानु : “डर? किस बात का?”

मैं : “इस बात का की कहीं मैं उनको चोट न पहुंचा दूं! वो अभी तक दीदी के जाने का गम नहीं मिटा पाए हैं.. कहीं उनको ऐसा न लगे की मैं दीदी की याद मिटाना चाहती हूँ.. उनकी जगह लेना चाहती हूँ..”

भानु : “लेकिन ऐसा तो नहीं है न! तू तो उनसे प्यार करती है!”

मैं : “हाँ! प्यार तो मैं बहुत करती हूँ.. जब से उनको देखा है तब से! बस, प्यार के रूप बदलते गए!”

भानु : “तुम्हारी जैसी लड़की भी तो बड़े नसीब से मिलती है। ये एहसास करा दो अपने जीजू को! प्यार करती हो, तो बता भी दो! क्या बिगड़ेगा भला!”

फिर कुछ देर बाद अचानक ही बोलती है, “एक काम कर.. एक रात को चांस ले। तू पूरी नंगी हो कर उनके रूम में चली जा.. खुद बा खुद लाइन पर आ जायेंगे वो.. जब खुद विश्वामित्र मेनका के सामने मेमना बन गए, तो वो क्या चीज़ हैं?”

मैं : “बस कर.. अपने आइडियाज अपने पास ही रख.. अब तेरा हो गया हो तो छोड़ मेरे दुद्धू..”

भानु : “छोड़ने का मन ही नहीं करता। नीलू मेरी जान.. सच सच बताना, कहाँ छुपा रखी थी यह प्यारी प्यारी चून्चियां?”

उसकी इतनी बेशर्मी भरी बात सुन कर मैं पुनः शरमा गयी। 

वो फिर मेरे स्तन जोर जोर से चूसने लगी और उसके कारण उठने वाले आनंद के उन्माद में मैं पागल होने लगी। इसी बीच उसने मेरा पजामा भी नीचे सरकाना शुरू कर दिया। मैं चौंक गई, “अआह्ह्ह.. ओए.. ये क्या कर रही है?”

“नीलू.. तेरे यार से पहले मैं देख लूंगी, तो क्या हो जाएगा?” 

अब वो पूरी तरह निर्लज्ज हो कर मुझे निर्वस्त्र करने पर उतारू हो गई थी। हलके फुल्के कपड़े उतारने में कितनी ही देर लगती है.. कुछ ही क्षणों में मैं पूर्ण नग्न उसके सामने थी। शर्म के कारण मैंने अपनी दोनों टांगें और पैर एकदम सटा लिए, जिससे भानु मेरी योनि ठीक से न देख सके। कैसी मूर्खता.. निर्वस्त्र हो जाने पर भी क्या छुपना है भला! भानु न जाने कहाँ कहाँ से सीख कर आई है (और कहाँ से सीखी होगी?) लेकिन वो अपनी उँगलियों से मेरी योनि पर मालिश जैसी करने लगी, और साथ ही मेरे स्तन भी पी रही थी। ऐसे में भला कितनी देर रहा जाए? मैं वैसे ही उत्तेजित थी, अब अतिउत्तेजित हो गयी और बिना सोचे मैंने अपने दोनों पैर खोल दिए। भानु अब मेरी योनि एकदम साफ़ साफ़ देख सकती थी।

भानु मेरी योनि की दरार पर अपनी उंगली फिराते हुए बोली, “सच नीलू.. जिसे तू ये खज़ाना देगी न, वो धन्य हो जाएगा! कैसी पतली पतली फांकें हैं.. और गोरी भी! बस... ये बाल साफ़ करवा ले.. एकदम मस्त लगेगी!”

वो हल्के हलके हाथों से मेरी योनि को सहलाते हुए, मेरे उसके भगांकुर को रगड़ने लगी, मैं न चाहते हुए भी जोर जोर से आहें भरने लगी! उन्माद की बेचैनी के मारे मैं अपना सिर इधर-उधर करने लगी। लगा की साँसे रुक रुक कर चल रही हैं.. वाकई, कोई और छूता है, तो बहुत ही अलग एहसास होता है। भानु न जाने कब तक मेरी योनि को इस प्रकार रगडती रही, फिर अचानक ही उसने मेरे छिद्र में अपनी उंगली डाल कर अन्दर बाहर करने लगी। इस प्रहार को मैं नहीं सह पाई, और देखते ही देखते वह दबी घुटी आहें भरते हुए स्खलित हो गई। उसी उन्माद में मैं उठ कर जोर से भानु से लिपट गई। जब वासना का ज्वार थमा, तो मैंने देखा की सोफे के गद्दी पर मेरी योनि के नीचे की जगह गीली हो गई थी। न जाने क्यों मेरी आँखों में आँसू आ गए। भानु बिना कुछ कहे मुझसे लिपटी रही।

जब हम दोनों सहेलियां संयत हो कर एक दूसरे से अलग हुईं, तो भानु ने कहा, “नीलू रानी.. चल, तेरी चूत से बाल निकलवाते हैं.. ऐसा चिकना व्यंजन देख कर तेरे जीजू की भूख बढ़ जायेगी!”

मैंने काफी देर न नुकुर की, और नाराज़ होने का नाटक किया, लेकिन कौन लड़की सुन्दर नहीं दिखना चाहती? और कौन लड़की अपने प्रियतम को रिझाना नहीं चाहती? हम दोनों ने अपनी साफ़ सफाई करी, कपड़े पहने और बाहर चल दिए।

भानु मुझे एक वैक्सिंग सैलून लेकर गयी। मैं कभी कभार ब्यूटी पार्लर जाती हूँ, और शरीर की वैक्सिंग भी करवाती हूँ। वैक्सिंग करने में दर्द अधिक हो सकता है, बनिस्बत शेविंग जैसे उपायों के! लेकिन अनगिनत स्त्रियाँ आज कल वैक्सिंग ज्यादा करवाती हैं, क्योंकि उसके परिणाम कई कई सप्ताह तक रह सकते हैं। खास तौर पर गर्मी के मौसम में, जब शेविंग करने के एक-दो दिनों के अन्दर ही छोटे-छोटे बाल आना शुरू हो जाते हैं। वो अटपटा भी लगता है, और मेहनत भी बेकार जाती है। ऐसे में वैक्सिंग लंबे समय तक अनचाहे बालों से निजात दिलाता है। तो कहने का मतलब, मुझे भी अच्छा खासा अनुभव हो गया था अब तक! लेकिन आज कुछ अनोखा होना था। जब योनि और गुदा जैसे अति-संवेदनशील हिस्सों के बाल वैक्सिंग के द्वारा निकलवाए जाते हैं, तो इसको बिकिनी अथवा ब्राज़ीलियन वैक्सिंग करवाना कहते हैं। यह सैलून थोड़ा अप-मार्केट था.. बहुत ही साफ सुथरा और शांत! मुझे यहाँ आने से पहले डर लग रहा था की योनि पर से बाल नोचे जाने पर तो बहुत दर्द होगा, लेकिन यहाँ आ कर उम्मीद बंधी की सब ठीक हो जाएगा। भानु ने बताया की वो अक्सर बिकिनी वैक्सिंग करवाती है, और इसमें डरने जैसी कोई बात नहीं है। मुझे इंतज़ार नहीं करना पड़ा – वैक्सर मुझे एक रोशनी-युक्त छोटे कमरे में ले गई – इसमें कोई खिड़की नहीं थी, और मधुर संगीत भी बज रहा था। उसने मुझे एक टेबल पर लेटने को कहा – वो टेबल भी काफी साफ़ थी, और उस पर एक कागज़ की परत चढ़ी हुई थी.. जैसे कोई अस्पताल हो।

“आप अपनी पैन्ट्स उतार कर इधर लेट जाइए.. सर उधर रख कर..” उसने कहा।

“... और अंडरवियर?”

“आप बिकिनी वैक्सिंग करवाने आई हैं न?”

“हाँ.. पहली बार! इसलिए डर लग रहा है..”

“ओके! डरने जैसी कोई बात नहीं है.. और हाँ, अंडरवियर भी..”

मैंने अनिश्चित होकर अपनी चड्ढी उतार दी, और डरते हुए उस टेबल पर लेट गयी। वैक्सर मुझे बहलाने के लिए मुझसे बात करने लगी (आप यहाँ की लगती नहीं.. कहाँ से हैं? क्या कर रही हैं? कहाँ रहती हैं.. इत्यादि)। 

खैर, बिकिनी वैक्सिंग के लिए वैक्सर को अपने गुप्तांगों में ज्यादा से ज्यादा पैठ देने के लिए अपनी जांघ को ऊपर की तरफ मोड़ कर और फैला कर रखना होता है... ठीक वैसे ही जैसे सम्भोग के समय लड़की लेटती है.. या लगभग वैसा ही! अब ऐसी दशा में कोई कैसे आराम से लेट सकता है? खुली हुई, पूर्णतः प्रदर्शित योनि, खूब सारी रौशनी, और एक अजनबी... न जाने भानु कैसे कह रही है की इतना खराब नहीं होता! झूठ कह रही है! मुझे तो लग रहा है की यह सब बहुत देर तक चलने वाला है.. अपने पैर हवा में उठाना, और अपने शरीर के उस भाग में किसी अजनबी की उंगलियाँ महसूस करना जहाँ अपने कभी सोचा भी ना हो, की कोई छुएगा... 

खैर! अब तो भगवान् ही बचाए!

यहाँ इस्तेमाल होने वाला वैक्स कुछ अलग था। यह जल्दी सूख जाता है.. मेरा मतलब बहुत जल्दी। वैक्सर इसको लगाती हैं, और लगभग तुरंत ही यह सूख जाता है। यहाँ तक तो ठीक है, लेकिन जान निकलती है जब वो इसको एक झटके के साथ शरीर से अलग करती है। गनीमत यह थी की वो वैक्स की हुई जगह पर अपने हथेली से थोड़ा दबाव डालती है.. इससे चुभन और दर्द कुछ कम हो जाता है। यदि वो ऐसे न करती तो शायद मैं बेहोश ही हो जाती! कोई अतिशयोक्ति नहीं है।

अब मुझे यह तो नहीं पता की ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली सारी महिलाएं बातूनी होती हैं या वो मुझको कुछ ख़ास ही स्वान्त्वाना दे रही थी, लेकिन अगले एक घंटे तक, जब मैं सिर्फ चीख, चिल्ला और दर्द बर्दाश्त कर रही थी, वो वैक्सर लगातार अपनी ही बातें करने में लगी हुई थी। 

“आप पहली बार करवा रही हैं न, इसलिए दर्द तो ज़रूर होगा।“

‘कमीनी.. अभी तो कह रही थी की डरने वाली कोई बात नहीं है..!’

“बाल कुछ छोटे काट कर आती तो कम दर्द होता..”

‘माफ़ कर दो मालकिन..’

“आपको पता है.. अभी कल ही हमारे यहाँ एक दुल्हन आई थी यह वैक्सिंग कराने। कह रही थी की उसके होने वाले पति को सब चिकना चिकना चाहिए था.. हे हे हे!” 

“आअह्ह्ह्ह... ह्म्म्म..”

“आपकी भी शादी होने वाली है क्या?”

“इह.. आह.. नहीं.. ऐसे ही..”

“ओह!” 

न जाने क्या समझी वो! वैसे ज्यादातर लड़कियाँ तो इसीलिए बिकिनी वैक्सिंग करवाती हैं जब उनको यौन क्रिया करनी होती है.. बिलकुल वह भी यही समझी होगी। वैसे, मन में मेरे भी तो यही था!

“आप तो उससे ज्यादा हिम्मती हैं... उसकी तो चीख चिल्लाहट के साथ साथ कुछ पेशाब भी निकल गयी...”

‘भानु की बच्ची! ठहर.. तेरी खैर नहीं!’

उसने जांघों के ऊपरी हिस्से से शुरू होते हुए योनि तक ऐसे ही वैक्स किया। दर्द भी इसी प्रकार से बढ़ता रहा। योनि तक आते आते दर्द असहनीय हो गया! देखने में तो यहाँ के बाल तो पूरी तरह से बेकार लगते हैं। लेकिन जो दर्द मुझे महसूस हुआ, उससे तो यही लगता है की जघन क्षेत्र के बाल निकालने नहीं चाहिए! उनका कोई तो उपयोग होगा.. पता नहीं! खैर! अच्छी बात यह थी की यह महिला लगातार मुझसे बात कर रही थी.. इससे मेरा ध्यान अपने दर्द से काफी हट सा गया था। 

लेकिन इतना होने के बावजूद, परेशानी तो होती ही है। वातानुकूलन चल रहा था, लेकिन फिर भी मुझे पसीने छूट रहे थे। ऐसे की जैसे अभी दौड़ कर आई हूँ! हाथ, चेहरा, छातियाँ.. सब जगह पसीना! और फिर यह नोचना खसोटना बहुत ही अन्तरंग स्थान पर होने लगा – योनिमुख के बेहद समीप! एक बारगी मन में आया की यह कमीनी अपनी एक उंगली भी अन्दर घुसेड़ देती.. कम से कम ध्यान हट जाता। वो तो जल्दी ही कर रही होगी, लेकिन मुझे लग रहा था की न जाने कितनी देर से यह नोच खसोट चल रही है।

अंततः योनि के ठीक बीच पर वैक्स लगा, और इससे पहले की मैं खुद को तैयार कर पाती, उसने उसे तेजी से उखाड़ दिया। दर्द के अतिरेक से मेरी आँखों में आंसू भर गए। मन हुआ की फूट फूट कर रो दूं। लेकिन जैसे तैसे खुद को ज़ब्त किया। 

“वैरी गुड हनी! यू आर सो ब्रेव!! अब पीछे भी कर लें?”

भानु ने कहा था की पीछे वैक्सिंग करने में दर्द नहीं होता। एक तरह से सच ही था – जब पहले ही किसी लड़की की योनि और भगनासे को नोच लिया गया हो, उसको और क्या दर्द महसूस होगा? दर्द क्या.. पहले की तकलीफ़ के आगे यह तो जैसे बगीचे की सैर जैसा लगा! खैर, जैसे तैसे मेरी वैक्सिंग ख़तम हो ही गयी। उस वैक्सर ने वैक्सिंग ख़तम होते ही किसी तरह का लोशन लगा दिया और अपने दराज से एक दर्द निवारक गोली भी दी। 

फिर वो मुझे एक आदमकद आईने के पास ले गयी और मुस्कुराते हुए बोली, “देख लीजिये... अपनी चूत को ध्यान से...”

मैंने देखा और अपनी योनि को ऐसे नंगा देख कर खुद ही शर्म से पानी पानी हो गई... मुय्झे समझ नहीं आया की क्या करूँ, बस उस वैक्सर के गले लग गई, और उसको दोनों गालो पर चूम कर बोली, “यू आर ग्रेट... यू हैव डन अ वंडरफुल जॉब...!”

कुछ देर वहाँ बैठने के बाद मैं भानु के साथ बेढंगी चाल चलती हुई घर तक पहुंची। घर तक आते आते दर्द काफी कम हो गया, और मैं ठीक महसूस करने लगी। बाहर किसी होटल जाने के बजाय घर पर ही खाना मंगाने का निश्चय किया था, यह सोच कर की ऐसे बेढंग चाल चलता हुआ देख कर न जाने लोग क्या सोचेंगे! खैर, इतने दर्द झेलने के बावजूद मुझे साफ़ और चिकना होने का एहसास बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे बहुत ख़ुशी मिल रही थी, और एक तरह से वो मेरा प्रतिष्ठा वाला पल भी था।
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12-17-2018, 02:21 AM,
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RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
घर पर आने के बाद भानु ने बड़ी बेशर्मी से मुझे एक बार फिर से नंगा कर दिया और मेरी योनि को ध्यान से देखते हुए बोली, “सच में नीलू, तू कितनी सुन्दर है! और.. तेरे जैसी सुंदर और मस्त चूत शायद ही किसी लड़की की हो! तेरा प्रेमी या पति, जो भी होगा.. वो बहुत भाग्यवान होगा! जो तेरी जैसी सुन्दर लड़की, इतनी सुन्दर चूत भोगेगा!” 

और कहते हुए उसने मेरी योनि पर बहुत ज़ोर का चुम्बन लिया। 

“सच में.. बेहोश हो जाएगा वो!” कह कर उसने प्यार से मेरी चिकनी सी योनि पर उंगली फिराई।

मैं तो शर्म से पानी पानी हो गई। मैं मन ही मन सोच रही थी, ‘क्या वो भी मेरी चूत को ऐसे ही चूमेंगे... ऐसे ही प्यार करेंगे...?”

भानु ने मुझसे कहा भी, “जानेमन, अब तो तुम चुद ही जाओ!”

मैंने भी मस्ती करी, “भानु यार.. मैं तो कब से तैयार हूँ.. लेकिन मेरे बुद्धू सजन को कैसे समझाऊँ?”

“मैं तुझे रास्ता बताऊंगी.. लेकिन मुझे भी कुछ मिलना चाहिए.. है न?”

“क्या चाहिए तुझे?” मैंने ना-समझी में पूछा।

“तेरी चूत!” और हम दोनों खिलखिला कर हंस दीं।

डिनर के बाद हम दोनों मेरे कमरे में चली गईं। भानु ने इस पूरे समय सिर्फ टी-शर्ट और चड्ढी पहनी हुई थी, तो मेरी भी हिचकिचाहट चली गयी। मैंने भी उसी प्रकार के वस्त्रों में उसके साथ बिस्तर में घुस गई और हम दोनों बातें करने लगी। बातों बातों में वंशिका मुझसे लड़कों के साथ सम्भोग की बातें करने लगी। हम दोनों कॉलेज के लड़कों, उसके मंगेतर और रूद्र के बारे में बातें करते रहे। मैंने उसे रूद्र के लिए अपने दिल की चाहत के बारे में उसको पहले से ही बता रखा था, और भानु भी मुझे बताने लगी की कैसे एक बार अरुण ने उसके साथ सम्भोग किया था। यह मेरे लिए एक नई खबर थी। मैंने उससे सारे वृत्तान्त को बताने को बोला, तो वो रस ले लेकर मुझे सब बताने लगी। इतना तो समझ आया की दोनों ने एक झट-पट क्विकी करी है, लेकिन उसके बताने का तरीका इतना मजेदार था, की मुझे अपनी योनि के आस पास फिर एक जाना-माना पिघला सा एकसास होने लगा। 

वो कमीनी यह सब बोलते हुए मुझे लगातार छेड़ती भी जा रही थी, और मेरी जाँघ सहला रही थी। मैं जल्दी ही उत्तेजित होने लगी और उसके बताने जैसे ही सम्भोग के बारे में सोचने लगी। मेरी साँसें भारी होने लगीं और मेरी योनि भी गीली होने लगी। और यह सिर्फ मेरी ही हालत नहीं थी। यह सब कहते करते भानु भी गहरी साँसें ले रही थी, और उसकी छातियाँ साँस लेने के साथ साथ ऊपर नीचे हो रही थीं। मेरे मन में आया की उनको दबा दूँ, और मैंने ऐसा ही किया। 

“अआह्ह्ह... मार डालेगी क्या? अरे आराम से दबा.. तेरी सहेली के ही हैं..”

“ओके!” मैंने कहा, और उसके दोनों गालों को बारी बारी से चूम लिया। और जैसी मुझे उम्मीद थी, भानु भी मेरा सर पकड़ कर अपने और पास लाने की कोशिश करने लगी, और मुझे होंठों पर चूमने लगी। भानु ने पिछली बार भी पहल करी थी, तो इस बार वो कैसे पीछे रह जाती? वो कुछ ही देर में मेरे होठों को चूसने लगी। जाहिर सी बात थी, भानु भी उत्तेजित थी। 

“ओह मेरी रानी! तू बहुत सैक्सी है! मैं आदमी होती तो तुझे यही पटक कर चोद डालती! हाय!” 

मैं क्या बोलती? बस उसके चुम्बन में साथ देती रही। कुछ देर बाद उसने अपनी बाहें मेरी कांख के नीचे डाल कर मुझे अपने ऊपर की तरफ आने को कहा। मैं इशारा समझ कर उसके ऊपर आ गई और अपनी योनि को उसकी योनि पर दबाने रगड़ने लगी। भानु मेरे होठों को हल्के हल्के काटती हुई, अपने होंठों में दबा कर चूस रही थी। 

मैंने कहा, “हाय भानु! तू ही आज आदमी बन जा.. अब तो रहा नहीं जा रहा है...” 

भानु मुस्कुराई। उसने कुछ जगह सी बना कर पहले मेरी, और फिर अपनी टी-शर्ट उतार दी। उसके सांवले सलोने और प्यारे खिलौने मेरे सामने थे। मैं उनके रूप का स्वाद ले रही थी, और उसी बीच उसने मेरे नितम्बों पर हाथ फेरते हुए मेरी चड्ढी भी नीचे कर दी। मैंने स्वयं ही उनको उतार दिया और भानु के होठों को चूसने लगी। 

भानु मुझको पलट कर नीचे लिटा कर मेरे ऊपर चढ़ गयी, और अपनी चड्ढी उतार कर अपनी योनि से मेरी योनि को रगड़ने लगी। बीच में मैंने एक बार उसके एक निप्पल को अपनी उँगलियों के बीच मसल दिया। वो जोर से चिंहुकी तो मैं हंसने लगी। 

“भानु, तुझे ऐसे मज़ा आता है?” 

उसने हाँ में सिर हिलाया तो मैं पुनः उनको मसलने कुचलने लग गयी। 

“मेरी बन्नो! तेरी चूत तो बहुत गरम हो गई है! देख न! और मेरी भी देख! कैसे उससे पानी निकल रहा है! बोल.. चुदने का मन हो रहा है न?” 

कहते हुए भानु मेरे ऊपर झुक कर मुझे पुनः चूमने लगी। हम दोनों लड़कियाँ साथ ही साथ अपने दोंनों हाथों से एक दूसरे के स्तनों का मर्दन कर रही थीं। मेरी योनि वाकई बहुत गीली हो गयी थी, और मुझे वाकई एक तगड़े सम्भोग का मन होने लगा था। मैंने भानु के स्तनों को पकड़ कर अपने मुंह की तरफ खींचा और उसके चूचक चूसने लगी। 

“भानु, तेरे बूब्स कितने बढ़िया हैं! इनको दबाने और चूसने में कितना मज़ा आता है!”

“मेरी रानी! तुझे इतना मज़ा आता है, तो सोच, लड़कों को कितना आता होगा?”

“अरुण के रहते तुझे और लड़के चाहिए क्या?”

“ही ही ही.. जानती है, वो एक दिन कह रहा था की वो मेरे बूब्स के बीच अपना लंड रगड़ना चाहता है!”

“क्या? होओओओओ!”

“हाँ.. मिस्टर मेरी चूत ही नहीं, मेरे बूब्स भी चोदना चाहते हैं!”

मैं उत्तेजना में आ कर उसके स्तन खुद जोर से दबा दिए। 

“आह्ह्ह्ह नीलू! मसल दे! हाय! चूस, और जोर से चूस! काट ले इनको!”
उसके उत्साहवर्धन पर मैं उसके स्तनों को और जोर से दबाना, चूसना और काटना शुरू कर दिया। उधर, वो अपने हाथों से मेरे नितम्बों को मसलने लगी। मैंने इशारा पा कर अपनी एक उंगली उसकी योनि पर रखी, और उसको सहलाने लगी। वाकई, उसकी योनि भी बहुत गीली थी। मैं ज़रा सी हरकत से अपनी उंगली उसकी योनि में डाल दी। भानु सिसक उठी। वो भी मेरे ऊपर से उतर कर मेरे बगल लेट गई और उसने भी मेरी योनि में अपनी एक उंगली डाल दी। 

मैं थोड़ा उत्सुक थी। सुना था की सम्भोग करने से लड़की की योनि का आकार बढ़ जाता है (दरअसल ऐसा होता तो है, लेकिन योनि बहुत लचीली और इलास्टिक होती है.. इसलिए उसके आकार में आया परिवर्तन जल्दी ही वापस हो जाता है। यदि लड़की कुछ दिन सम्भोग न करे, तो उसकी योनि का आकार पहले जैसा हो जाता है।)। तो, अगर भानु ने सम्भोग किया है, तो ज़रूर उसकी योनि का आकार बढ़ गया होगा। मैंने चुपके से अपनी दूसरी उंगली भी भानु की योनि में प्रविष्ट करा दी। यह उंगली आसानी से अन्दर नहीं गयी। लेकिन भानु ने हिल डुल कर, जैसे तैसे उसकी अपने अन्दर डालने में मेरी मदद करी। जैसे ही उंगलियाँ उसकी योनि में गईं, मैंने उनको उसकी योनि के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। उधर भानु ने अपनी उंगली मेरी योनि से निकाल कर मेरे होंठों को जोर जोर से चूसना शुरू कर दिया। मैंने अपनी उँगलियों को उसकी योनि के अंदर-बाहर करने की गति और तेज़ कर दी। जैसे जैसे मेरे हाथ की गति बढ़ती, भानु की सिसकारियों की आवाज़ भी उतनी जोर से आती। कुछ ही देर में उसने अपना चरम सुख प्राप्त कर लिया और वो अपना सिर इधर उधर हिलाते डुलाते हुए आहआह की आवाजें निकालने लगी। 

मैं रुक गयी। भानु को ऐसे सुख के आसमान में गोते लगाते देखना बहुत सुखद था। कुछ देर बाद उसने अपनी आँखें खोली, और मुझे चूमते हुए बोली, “हाय रानी! तुमने बहुत मज़ा दिलाया! अब देख, मैं तुझे कैसे मज़ा दिलाती हूँ!” 

और वो अपनी साँसें संयत कर के मुझे फिर से चूमने चाटने लगी। और धीरे धीरे मेरे चेहरे से मेरे शरीर के नीचे की ओर जाने लगी। 

“तेरी चूत के लिए एक लंड चाहिए, रानी!” उसने फरमाया!

“ह्म्म्म?” मैंने मस्ती में कहा।

“खीरा है क्या?”

“हं?”

“तू लेटी रह.. मैं आती हूँ!”

मैं पीठ के बल लेटी हुई अपनी साँसे संयत करने लगी। कुछ ही देर में भानु वापस आई.. उसके हाथ में एक खीरा था। 

“हैं? इसका क्या करेगी?”

“अरे रानी, तेरी चूत का इलाज है इसमें! आज इसी लंड से काम चला ले?”

कहते हुए वो बिस्तर पर मेरे पास आई, और उसने खीरे को मेरी योनि पर फिराया। फ्रिज़ में रखा होने के कारण खीरा बहुत ठंडा हो गया था। मैं चिहुंक गयी। और उसी के साथ मेरे होश भी ठिकाने आ गए।

“नहीं.. भानु.. प्लीज! ये मत घुसाना!”

“क्यों डा?”

“नहीं यार! प्लीज! मैं ‘उनके’ अलावा और कुछ अपने अन्दर नहीं लेना चाहती..”

“ओओह्ह्ह्ह! तो आग इतनी भड़की है! मेरी रानी अपने जीजू को अपनी कुंवारी चूत का उपहार देना चाहती है! हाय! ऐसी किस्मत सभी आशिको की हो! कसम से.. हा हा हा!”

भानु की नंगेपन से भरी इतनी बेशर्म बात सुन कर मैं शर्म से पानी पानी हो गयी। 

“चुप कर..”

“ही ही ही.. आज खीरे से चुद जा.. कल अपने जीजू का डलवा लेना!”

“भानु की बच्ची.. तू मरने वाली है अब..!”

“अरे! अभी थोड़ी देर पहले ही तो मैंने अपनी उंगली डाली थी?”

“ये खीरा इसकी शकल बिगाड़ देगा! उंगली तो पतली सी होती है..”

“अरे मेरी मेनका! अपने विश्वामित्र को भी तो पटा पहले.. नहीं तो तेरी चूत सूखी रह जायेगी!”

“सच में भानु! किस्मत ही खराब है मेरी!”

“किस्मत नहीं.. तू गधी है.. पूरी गधी!”

“तो मैं क्या करूँ?”

“स्त्री को करना ही क्या है? भगवान् ने स्त्री को ऐसा ही बनाया है की उसको कुछ न करना पड़े! जो करना है बस मर्द को ही..” कहते हुए उसने आँख मारी!

“लेकिन वो तो मेरी तरफ देखते ही नहीं..”

“जानेमन..” भानु ने मेरे एक नितम्ब को अपने हाथ से दबाते, और मेरे एक निप्पल को चूसते हुए कहा, “.. या तो तेरा जीजू अँधा है.. या फिर नामर्द!”

“क्या कह रही है?” मुझे उनकी बुराई बिलकुल अच्छी नहीं लगी। और ऊपर से यह भी की उसने इसी समय मेरे चूचक काटने शुरू कर दिए।

“हट तू.. छोड़ इसको!” कहत एहुए मैंने झिड़की लगाई।

“गुस्सा मत हो यार! मैंने बस तुझे छेड़ा! लेकिन तू ही बता.. तुझ जैसी लड़की एक ही छत के नीचे है.. उनको उसकी चाहत, उसका प्यार नहीं दिखता? क्यों?”

वो मेरे पेट को चाटती हुई मेरी योनि तक पहुँच गई और मेरी जांघों को चाटने लगी। मैं स्वप्रेरणा से अपने नितम्ब को आगे पीछे करते हुए अपनी योनि को उसके मुँह पर फिराने लगी। अंततः भानु ने अपनी दो उँगलियाँ मेरी योनि में डाल दीं और उन्हें अंदर-बाहर करने लगी। साथ ही साथ वो मेरे भगनासे को अपनी जीभ से धीरे धीरे चाटने लगी।

“अब कैसा लग रहा है?”

“बहुत अच्छा! और... स्स्स्सस..... आअह्ह्ह्ह.... चाटो और चाटो!”

भानु ने बिलकुल वैसे ही किया। 

“आह! भानु..” मैं आनंद से मरी जा रही थी, “तू यह क्या जादू कर रही है?” मैं जैसे तैसे अपनी सांस सम्हालने की कोशिश कर रही थी। 

“भानु... हाय... कैसा कैसा तो हो रहा है!” मैंने कहा।

“मजे ले मेरी जान! बस मजे ले...” भानु ने कहा।

मेरी आँखें उन्माद के मद में बंद हो गयी थीं और मैं अपने नितम्ब जोर से चला रही थी। मन में बस यही हो रहा था की रूद्र इसी समय आ जाएँ, और मुझे प्यार करें! 

“अआह्हह.. ओह्ह्ह!” मैंने अपना मुँह तकिये में दबा लिया। भानु किसी अनुभवी खिलाड़ी की तरह तेजी से मुझे अपनी उँगलियों से चोदती रही और मैं जल्दी ही रति-निष्पत्ति को प्राप्त हो गयी। मेरी योनि से निकल कर रस की बौछार भानु के हाथ, और साथ ही साथ बिस्तर को भिगोने लगी। जैसे ही भानु ने अपनी उंगलियाँ बाहर निकाली, मैं बिस्तर पर गिर गई और जोर जोर से हांफने लगी। 

भानु ने मुझे चूमते हुए कहा, “नीलू मेरी जान, मेरे दिमाग में एक आईडिया है... तेरे जीजू को पटाने का!” 

कह कर उसने मेरी योनि का रस चाट चाट कर वहाँ सफाई कर दी, और मुझे बाहों में लेकर मुझे अपना प्लान समझाने लगी।
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12-17-2018, 02:21 AM,
#83
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
सोमवार सवेरे ही रूद्र की कार दुर्घटना की खबर आई। मुझ पर तो मानो वज्रपात हुआ। खबर सुनते ही मुझे चक्कर आ गया, और मैं जहाँ खड़ी थी, वही गिर गई।

“रूद्र प्रताप सिंह को जानती हैं?” फ़ोन के उस तरफ से दो टूक सवाल किया गया।

“...जी हाँ!”

“आप?”

“जी मैं उनकी.. रिलेटिव हूँ” मैंने हिचकिचाते ही कहा, “... क्यों?”

“ओके.. उनका एक्सीडेंट हुआ है मैडम...” उधर से उत्तर सुन कर मेरा मन जोर जोर से धड़कने लगा। सोचने लगी की कहीं रूद्र को कुछ हो तो नहीं गया...। 

“आप प्लीज ठीक ठीक बताइए...”

"... आप जल्दी से अपोलो हॉस्पिटल आ जाइए..” उधर फिर से दो टूक आवाज़ आई। 

“आप बताएँगे तो?”

“कहा न...” 

“हाँ... वो मेरे रिलेटिव हैं..। सब ठीक तो है।“ मैंने घबराते हुए पूछा।

“खबर ठीक नहीं है।“

“...क्या मतलब...?”

“वैसे हम उनका ऑपरेशन कर रहे हैं.. लेकिन...”

“लेकिन क्या...?” 

“बचने की कोई उम्मीद नहीं है। खून बहुत निकल चुका है.. और.. और देर भी काफी हो गयी है..।“

इतना सुनना था की मैं बेहोश होकर वही फ़र्श पर ढेर हो गई। सहेलियों ने मेरे चेहरे पर पानी के छींटे दे देकर मुझे होश में लाया। और, थोड़ा होश आने पर मेरे साथ हॉस्पिटल पहुंचे। करने को वहाँ क्या था? बस, अनगिनत कागजों पर दस्तखत करने थे। वैसे भी इंश्योरेंस रूद्र के इलाज का पूरा खर्चा उठा ही रहा था। उनके ऑफिस से कई सारे लोग आ कर मिल चुके हैं.. कोई आश्वासन देता, कोई हिम्मत बढ़ाता, कोई सलाह देता, तो कोई मदद! 

लेकिन मुझे कुछ समझ नहीं आता, कुछ सुनाई नहीं देता, कुछ दिखाई नहीं देता। बार बार आँखों के सामने कुछ ही दिनों पहले हुए आतंक के चित्र खिंच जाते। मैं वापस वैसे परिस्थितियां झेलने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी। इतने बड़े संसार में ऐसे नितांत अकेली रहना...!! बस मन में एक ख़याल रहता की भगवान्, इनको ठीक कर दो.. जल्दी! न अन्न का दाना खाया जाता, न ही जल की एक बूँद पी जाती! लेकिन जीने के लिए करना पड़ता है.. जैसे तैसे अन्न जल को अपने उदर के अन्दर धकेल कर वापस ICU के सामने बैठ जाती, की न जाने कब इनको होश आ जाए! 

‘बचना मुश्किल है..’

‘खून बहुत बह चुका..’

‘बहुत देर से हॉस्पिटल लाये जा पाए..’

‘दुआ करो की बच जाएँ..’

‘अगले बहत्तर घंटे में कुछ सुधार हो तो कुछ गुंजाईश है..’

‘कमाल है.. बस होश आ जाय..’

‘जैसा सोचा था, उतना बुरा नहीं है..’

‘बच जायेंगे अब..’

‘बस, जल्दी से होश आ जाय..’

एक.. दो.. तीन.. ऐसे कर के पूरे अट्ठारह दिन बीत गए! न जाने इस प्रकार के कितने बयान सुने! डॉक्टर भी क्या करे! वो कोई भगवान् या अन्तर्यामी थोड़े ही होते हैं.. और फिर अंततः..

“.. यहाँ नर्सें कह रही हैं की वो आपको वापस ले आईं.. जैसे सावित्री ले आईं थीं सत्यवान को! हो सकता हो की यह सच भी हो!”

सुन कर मेरी आँखों से आंसू ढलक गए! ऐसे क्यों कह रहे हैं डॉक्टर? मैं इनकी पत्नी हूँ नहीं.. लेकिन... लेकिन... ओह!

“आप भले मेरी बात को मज़ाक मानिए, लेकिन मैंने यह सब कहना अपना फ़र्ज़ समझा.. आगे इनका खूब ख़याल रखिएगा.. यू शुडन्ट भी अलाइव!”

“डॉक्टर.. एक मिनट..” मैंने कहा, “मैं इनकी पत्नी नहीं.. साली हूँ....”

“ओह! आई ऍम सॉरी! मुझे लगा की आप इनकी बीवी हैं.. ऐसी चिंता, ऐसी सेवा तो आज कल बीवियां भी नहीं करतीं।”

“इट इस ओके!”

“नीलू?” उन्होंने पुकारा! उनकी आँखों में आंसू थे।

“जी?” मेरे दिल ने राहत की सांस ली.. मैंने उनका हाथ पकड़ लिया।

“थैंक यू!”

दिल के सारे बाँध टूट गए.. मैं उनके हाथ को अपने दोनों हाथों में थाम कर अपने आंसुओं से भिगोने लगी। 
‘हे भगवान्! आपका लाख लाख शुक्र है!’

अगले सप्ताह मुझे अस्पताल से छुट्टी मिल गयी। हादसे की गंभीरता के विपरीत, मेरे शरीर में टूटी हुई हड्डियों की संख्या काफी कम थी – बस हाथ, पैर और पसलियों में कुछ टूट फूट हुई थी। इस दुर्घटना ने मानसिक और भावनात्मक तौर पर कितनी चोट पहुंचाई थी, वो तो समय के सतह ही मालूम होना था। लेकिन, हाल फिलहाल, सभी का (और मेरा भी) उद्देश्य मुझे वापस अपनी पहले वाली शारीरिक दशा तक लाना था। अस्पताल में पड़े रहने से कोई लाभ नहीं था – वहाँ जितना स्वास्थ्य लाभ उठाना था, वो तो हो गया था। इसलिए अब घर में ही रहने का आदेश हुआ था। एक बड़ी समस्या यह थी की मेरी देखभाल कौन करेगा – ऐसी ऐसी जगहों पर हड्डियाँ टूटी थीं, की मैं खुद से तो अपनी देखभाल तो क्या, ठीक से उठ या चल फिर नहीं सकता था। सुमन ने तुरंत ही मेरी देखभाल करने के लिए आग्रह किया, लेकिन मैंने ही मना कर दिया। उसकी पढाई लिखाई का हर्जा कर के मुझे कोई ख़ुशी नहीं मिलने वाली थी। और वैसे भी मुझे एक ऐसी नर्स चाहिए थी तो मेरे साथ अगर सारे चौबीस घंटे नहीं तो उसके ज्यादातर समय तक तो रहे ही।

खैर, मेरे डिस्चार्ज के ठीक एक दिन पहले एक ऐसी नर्स मिल गई, और जैसे ही वो मिली, मुझे डिस्चार्ज होने का सुख भी मिल गया (अस्पताल की गंध से मुझे उबकाई आती है... तो मात्र वहाँ से छुटकारा पाने के ख़याल से ही सुख होने लगता)। घर पहुँचने के लगभग साथ साथ ही एक नर्स ने दरवाजे पर दस्तखत दी। उसके साथ कुछ देर सुमन ने वार्तालाप किया, और फिर वो मेरे कमरे में अन्दर आई। मैंने देखा की वो बिलकुल साफ़-सुथरी बेदाग़ सफ़ेद पोशाक पहने एक लड़की थी – उसकी आँखों में हल्का सा काजल लगा हुआ था, और उसने अपने बाल पोनीटेल जैसे बाँधा हुआ था। नर्स शब्द सोच कर लगता है की कोई प्रौढ़ उम्र की एक कन्टाली महिला होगी.. लेकिन यह सबसे पहले तो एक लड़की थी.. बस कोई चौबीस-पच्चीस साल की.. और.. और उसका चेहरा एकदम खिला खिला सा था। मुस्कुराता हुआ। उतनी ही मुस्कुराती हुई और चमकदार आँखें! 

“हेल्लो मिस्टर सिंह!” उसने प्रफुल्ल आवाज़ में कहा, “हाउ आर यू फीलिंग टुडे?” 

और मेरे उत्तर देने से पहले, “ओह.. बाई दि वे.. आई ऍम योर नर्स, फरहत!”

“हेल्लो फरहत! थैंक यू फॉर अक्सेप्टिंग टू टेक केयर ऑफ़ मी!”

अगले कुछ देर तक उसने मुझे और सुमन को अपना अपॉइंटमेंट लैटर पढाया, मेरी दवाइयों और उनको लेने की समय सारिणी, व्यायाम और अन्य आवश्यकताओं के बारे में विस्तार से बताया। ज्यादातर बातें तो ठीक थी, लेकिन जब उसने यह भी बताया की उसकी ड्यूटी में रोज़ मेरे कपड़े बदलना, नहलाना और बाथरूम में मदद करना भी शामिल रहेगा तो मुझे कुछ घबराहट और कोफ़्त सी महसूस हुई। 

एक तो वो एक लड़की थी, और ऊपर से मुसलमान। अब यह बताने की कोई आवश्यकता नहीं की मुस्लिम समुदाय कितना दकियानूसी होता है, ख़ासतौर पर अपनी महिलाओं को लेकर। उन पर इतनी सारी बंदिशें होती हैं की गिनना मुश्किल है। 

“फरहत, टेल मी अबाउट योर फॅमिली!” मैंने कहा। इतनी देर तक अंग्रेजी में ही बातें हो रही थीं.. मुझे लगा की औपचारिक रहना ठीक है..

“मैं, और मेरे अब्बू.. बस, हम दो ही जने हैं!”

“अरे वाह! आपको तो हिन्दी बोलनी भी आती है? और.. आपके बोलने से लग रहा है की आप उत्तर भारत की हैं..?”

“आपको कैसे पता? दरअसल, मेरे अब्बू लखनऊ से हैं! वो यहाँ बैंगलोर में कोई पैंतीस साल पहले आये थे.. काम के लिए। वो रिटायर हो गए हैं.. शॉप-फ्लोर पर एक एक्सीडेंट में उनका हाथ कट गया था। तब से वो रिटायर हो गए हैं। घर चलाने और उनकी दवाइयों के खर्च के लिए पेंशन पूरा नहीं पड़ता न.. इसलिए मैं भी काम करती हूँ।“ 

बिना कहे ही उसको जैसे मेरी मन की बात समझ में आ गयी। इतना तो मुझे समझ में आ गया की इस लड़की से आराम से बात चीत की जा सकती है। यह एहसास अपने आप में बहुत सुखद था.. इतने दिन गहरे मानसिक अवसाद में गुजारने, और फिर एक प्राणघातक दुर्घटना झेलने के बाद मुझमें वापस जीवन जीने की इच्छा प्रबल हो गयी थी। 

खैर, फरहत को कुछ और कुरेदने पर उसने बताया की वैसे तो नर्स बनने, या फिर किसी तरह का करियर बनाने की उसने कभी सोची ही नहीं थी। निम्न-मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार से सम्बद्ध होने के कारण उसकी नियति उसको मालूम थी। जैसे तैसे तो उसने इंटरमीडिएट की परीक्षा बायोलॉजी साइंस से पास करी। बायोलॉजी लेने पर भी घर में बहुत हाय-तौबा मची। 

‘आर्ट्स या होम साइंस क्यों नहीं लेती?’ कह कह कर नाक में दम कर दिया। लेकिन आज पीछे देख कर लगता है की अच्छा किया! अपने अब्बू के एक्सीडेंट के बाद उसने जनरल नर्सिंग और मिडवाइफरी का कोर्स किया। जब तक कोर्स ख़तम हुआ तब तक उसकी अम्मी चल बसी, और घर की माली हालत बहुत खराब हो गयी। अच्छी बात यह रही की उसकी इस हॉस्पिटल में नर्सिंग का कार्य मिल गया, जिससे कुछ सहारा हो सका। यदि सब कुछ ठीक रहता तो पढाई लिखाई नहीं, वो किसी के बच्चे जन कर उनको पाल रही होती।

मैंने पूछा की वो और आगे नहीं पढना चाहती, तो उसने बताया की बिलकुल पढना चाहती है.. लेकिन बीएससी नर्सिंग का कोर्स दो साल का है.. और इस समय वो अपने काम से मुक्त नहीं हो सकती। 

उसने यह भी बताया की घर ही नहीं, जान पहचान में भी सभी ने कितना बवाल मचाया। उसका नर्सिंग की पढाई करना जैसे सभी का ठेका हो गया। ‘गैर मर्दों को छुएगी!’ यह सभी के जीवन का मानो सबसे बड़ा मुद्दा बन गया। लेकिन वो कहते हैं न.. जब ज़रुरत होती है, तो हर बात छोटी हो जाती है। कुछ दिनों बाद सभी लोग चुप हो गए.. भारत की नर्स आज कल गल्फ और यूरोप में काफी डिमांड में हैं.. इसलिए पहले हाय तौबा मचाने वाले, अब उसके करियर में सिक्कों की खनक सुन कर रिश्तेदारी जोड़ने के लालच में चुप हो गए। 

“और यह इतनी अच्छी इंग्लिश कैसे बोलती हो?” मैंने पूछा।

“जब इतनी कठिन ट्रेनिंग होती है, तो लगता है की क्यों न फिर इस मौके का पूरा फायदा उठाया जाय। लैब ट्रेनिंग, लाइब्रेरी, और हेल्थ सेंटर्स.. वहाँ अनगिनत घंटे बिताने के बाद बचे हुए समय में मैं डिस्कवरी और न्यूज़ चैनल देखती, और अंग्रेजी पढ़ती। बिना अंग्रेजी के आगे कैसे बढ़ा जा सकता है?” उसने एक बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर दिया। इसी बीच सुमन भी कमरे में आ गयी।

“दैट इस ग्रेट, फ़रहत! आपसे बात करके मुझे लग रहा है की अब मेरा केयर ठीक से होगा, एंड दैट आई ऍम इन सेफ हैंड्स!”

मेरी इस बात पर वो ख़ुशी से मुस्कुराई। हम तीनों कुछ देर तक इधर उधर की बातें करते रहे। फरहत ने मुझे आराम करने को कहा, लेकिन मैंने यह कह कर मना कर दिया की पिछले न जाने कितने महीनो से किसी से ढंग से बात नहीं किया – न घर के बाहर, और न ही घर के अन्दर! इसलिए, आज रोको मत.. अगर थक गया, तो मैंने खुद ही चुप हो कर सो जाऊँगा। मेरी इस दलील पर दोनों ही लड़कियाँ चुप हो गयी, और हमने कुछ और देर तक बात चीत जारी रखी। 

मुझे इस बात का अनुमान था की मेरे एक्सीडेंट के कारण सुमन की पढाई का काफी नुक्सान हो गया था, इसलिए मैंने उससे आग्रह किया की वो अब बेफिक्र हो कर अपने कोर्स को जल्दी जल्दी पूरा करने पर ध्यान लगाए। वैसे भी घर में खाना पकाने के लिए हमारी काम-वाली ने स्वीकार कर लिया था। मजे की बात यह है की अभी मेरा जीवन पूरी तरह से स्त्रियों के भरोसे पर टिका हुआ था।

“अच्छा.. मैं आप से एक बात पूछूं?” मैंने फरहत से कहा।

“हाँ, पूछिए न?”

“आपके नाम का मतलब क्या है?”

“ओह! हा हा.. फरहत शायद अरबी या फ़ारसी शब्द है.. और इसका मतलब है.. उम्म्म.. सुशील, सभ्य, हैप्पीनेस, आनंद, मेजेस्टी.. एक्चुअली बहुत सारे मीनिंग्स हैं.. लेकिन लड़कियों के लिए यूज़ होने से इसका मतलब हैप्पीनेस होना चाहिए..”

“वैरी नाईस!” कह कर मैं कुछ और देर तक चुप हो गया।

और फिर बिस्तर से उठने की कोशिश करने लगा।

“आपको उठना है?”

“हाँ.. एक्चुअली, टॉयलेट जाना है..”

“ओके” कह कर फरहत मेरी उठने में मदद करने लगी।

कोई दो तीन मिनट कोशिश करने के बाद, जिससे मुझे कम से कम तकलीफ़ हो, फरहीन मुझे सहारा दे कर टॉयलेट तक पहुँचाया। इतना तो तय था की बिना उसके सहारे के मैं यह सब मामूली काम भी नहीं कर सकता था, लेकिन ऐसे ही किसी अनजान लड़की (जो की उम्र में मुझसे काफी छोटी हो) के सामने निर्वस्त्र कैसे हुआ जा सकता है? एक वयस्क पुरुष के लिए इससे ज्यादा लाचारी और लज्जा का विषय और क्या हो सकता था?

“फरहत.. आप.. अब मैं देख लूँगा..” मैंने हिचकिचाते हुए कहा।

“नाउ वेट अ मिनट! आई थिंक वी नीड टू टॉक एंड सॉर्ट आउट समथिंग। मैं आपकी नर्स हूँ, तो सबसे पहला रूल यह है की आपको मेरे सामने शर्माने की कोई ज़रुरत नहीं है। आपके हाथ और पैर पर प्लास्टर चढ़ा हुआ है, और रिब्स पर भी चोटें हैं.. अगर आप पूरी तरह से ठीक होते तो मेरी ज़रुरत ही नहीं थी.. है न?”

“हाँ.. वो सब तो ठीक है लेकिन..”

“लेकिन वेकिन कुछ नहीं। आप अगर इस बात से शर्मा रहे हैं तो यह सोचिये की मैं आपको स्पंज बाथ, टॉयलेट, ड्रेसिंग भी करूंगी.. तो प्लीज.. ओफेन्देड मत फील कीजिए! ओके? 

“ओह गॉड! कहना आसान है..”

“आई नो! बट वी विल ट्राई.. ओके? नाउ, लेट में हेल्प यू विद योर पजामा..”

कह कर उसने मुझे सहारा दिए हुए ही मेरे पजामे का नाड़ा ढीला कर दिया और मेरे पजामे को धीरे से नीचे सरका दिया। कोई और समय होता (मतलब अगर रश्मि होती) तो अब तक मेरा लिंग अपने पूर्ण उत्थान पर पहुँच कर छलांगे लगाने लगता, लेकिन इस समय शर्म, संकोच और नर्वसनेस होने के कारण मेरा लिंग एक छोटे से छुहारे के आकार का ही रहा। मैंने फरहत की तरफ देखने की हिम्मत नहीं की, लेकिन मुझे पूरी तरह से यकीन था की वो अवश्य ही उसी तरफ देख रही होगी, और उसके आकार पर मन ही मन हंस रही होगी..

खैर, जब मेरा पजामा यथोचित दूरी तक सरक गया, तो उसने मुझे सहारा दे कर कमोड पर बैठाया। मैंने कुछ देर तक कोशिश करी, लेकिन फरहत की उपस्थिति में मेरे लिए मूत्र करना संभव ही नहीं हो रहा था।

“कर लीजिये न..”

“थोड़ी प्राइवेसी मिल जाय... मुझसे हो नहीं पा रहा है ...”

“ओह सॉरी..!” कह कर वो बाथरूम से बाहर निकल गयी।

उसके जाते ही मन में कुछ शांति हुई - मैंने अपने जघन क्षेत्र की मांस-पेशियों को ढीला करने की कोशिश की और तत्क्षण ही मैंने मूत्र को बाहर निकलता महसूस किया। जब मैंने मूत्र कर लिया तो मैंने कुछ देर रुक कर आवाज़ लगाई,

“..फरहत?”

“जी.. आई..”

अन्दर आकर उसने सबसे पहले बाथरूम में नज़र दौड़ाई। एक तरफ उसको वेट-टिश्यु मिल गए। उसने उसमें से एक टिश्यु निकाल कर आधा फाड़ा, और मेरी तरफ मुखातिब हुई। उसने मुझे सहारा दे कर उठाया, और फिर मेरे लिंग को पकड़ कर उसके शिश्नाग्रच्छ्द को धीरे से पीछे की तरफ सरकाया उसको तीन-चार बार झटका दिया, जिससे मूत्र की बची हुई कुछ बूँदें निकल गई। फिर उसने वेट-टिश्यु की मदद से लिंग के सुपाड़े को ठीक से पोंछ दिया। इसके बाद हम दोनों वापस अपने कमरे में आ गए।

कमरे में आकर लेटने के कुछ देर तक हमने कोई बात नहीं करी। इसी बीच कामवाली आ गयी। फरहत ने उसको विशेष निर्देश दिए की घर और खासतौर पर मेरे कमरे की सफाई कैसे करी जाय, और यह भी की खाना कैसे बनाया जाय। यह निर्देश देते समय उसका अंदाज़ धौंस देने वाला नहीं था.. बल्कि यह साफ़ दिख रहा था की वो मेरी और कामवाली की मदद ही करना चाहती थी। सच में.. पहले ही दिन में फरहत का व्यक्तित्व, उसके बात करने का अंदाज़ और उसकी मुस्कान मेरे दिल-ओ-दिमाग पर छा गई।
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12-17-2018, 02:21 AM,
#84
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रात में खाने के बाद तक फरहत घर पर ही थी, और संभव है की देर रात अपने घर गयी हो। रात में मेरे आँख एक बार खुली थी, लेकिन मैंने उसको वहाँ नहीं देखा। सवेरे जब आँख खुली तो उसको अपने बगल बैठा पाया। 

“गुड मोर्निंग!”

मैंने उसकी आँखों में देखा। वही मुस्कुराती हुई आँखें, खिला हुआ चेहरा! मैं भी मुस्कुरा उठा। बगल में सुमन भी खड़ी हुई थी.. मैंने साइड टेबल पर रखी घडी पर नज़र डाली तो देखा की सवेरे के छः बजे थे!

“गुड मोर्निंग! आप रात में घर चली गईं थीं?”

“जी..”

“अरे! इतने रात में क्यों? सेफ नहीं रहता!”

“आई नो.. लेकिन अब्बू को बताया नहीं था..”

“उनकी देखभाल कौन करता है?”

“वो कर लेते हैं.. और खाना पीना हमारे पड़ोसी पका देते हैं.. इसलिए दिक्कत नहीं होती।“

“फरहत.. ऐसे तो अगर आप रात में घर जायेंगे तो ठीक नहीं रहेगा.. आप दिन में जाइए.. लेकिन सेफ रहना ज़रूरी है..”

“हम्म..”

“इससे मुझे एक आईडिया आ रहा है.. आप अपना सामान ले कर यही क्यों नहीं आ जातीं? हमारा स्टोर-रूम एक हाफ रूम जैसा है, और खाली पड़ा हुआ है। खाने पीने की सारी व्यवस्था यहीं हो जायेगी! और सुमन भी पढाई लिखाई कर रही है.. वो कम से कम फ्री हो जायेगी।”

“आप ऐसे क्यों कहते हैं जैसे मुझे आपकी इस हालत से कोई मुश्किल है? मैं भी आपकी सेवा करना चाहती हूँ..”

“अरे नीलू.. तुम नाराज़ मत हो! तुम्हारे कारण ही तो मैं बच सका हूँ.. लेकिन तुम जानती हो न की मुझे ज्यादा ख़ुशी तब मिलेगी, जब तुम अपनी पढाई पर ज्यादा ध्यान लगाओगी! है न? और मेरा क्या? मैं तो यहाँ चौबीसों घंटे पड़ा रहूँगा! हा हा!”

“आप जल्दी से ठीक हो जाओ.. फरहत और मैं, दोनों ही आपको जल्दी से ठीक कर देंगे.. है न फरहत?”

“बिलकुल.. चलिए, मैं आपको मोर्निंग एक्टिविटीज के लिए रेडी करती हूँ..”

“मैं भी आपकी मदद करती हूँ..” सुमन ने कहा।

“नहीं नीलू.. प्लीज.. मैंने तुम्हारे सामने वो सब नहीं कर पाऊँगा.. प्लीज ट्राई टू अंडरस्टैंड!”

“जी.. ठीक है..” सुमन ने अनमने ढंग से कहा, और कमरे से बाहर निकल गयी।

फिर फरहत ने मुझे सहारा दे कर बाथरूम पहुँचाया। कल इतनी बार उसके सामने नंगा होना पड़ा था, की आज मुझे बहुत कम शर्म आ रही थी। खैर, इस स्थिति को मन ही मन ज़ब्त कर के मैंने अपनी नित्य क्रिया करी, और वापस बिस्तर पर आ लेटा। फरहत ने मेरी साफ़ सफाई कर के मुझे बिस्तर पर लिटाया। तब तक सुमन चाय और सैंडविच बना कर ले आई, जिसको हम तीनों ने साथ मिल कर खाया। उसका कॉलेज सवेरे जल्दी शुरू हो जाता था, इसलिए उसने जल्दी ही हमसे विदा ली।

इस बीच में हमारी कामवाली आ गयी, और खाना पकाने के कार्य में जुट गयी। 

“रूद्र, चलिए, आपको स्पंज बाथ दे देती हूँ?”

“स्पंज बाथ?”

“हाँ.. नहायेंगे नहीं तो एक तो आपको बेड-सोर हो जाएगा, और ऊपर से बदबू आने लगेगी..” कह कर उसने अपने नाक सिकोड़ी..

“अरे.. मैं तो बस ये कह रहा था की मैं खुद ही..”

“ओह गॉड! नॉट अगेन! हमने कल ही तो इस बारे में बात करी है.. आप बिलकुल सब कुछ करियेगा, लेकिन पूरी तरह से ठीक होने के बाद.. ओके?” 

फिर इधर उधर देख कर, “मैं अभी आती हूँ..”

कह कर फरहत कमरे से बाहर निकल गई.. ज़रूर रसोई में गयी होगी। क्योंकि जब वो वापस आई तो उसके हाथ में एक मुलायम तौलिया, एक साफ़ चद्दर और गुनगुने पानी से भरी एक बाल्टी थी। कामवाली एक और बाल्टी में में ठंडा पानी ले आई थी। उसके जाने के बाद फरहत ने कमरे का दरवाज़ा थोड़ा बंद कर दिया और फिर मेरे कपड़े उतारने की प्रक्रिया करने लगी। मैं बुरी तरह से नर्वस था, लेकिन मैंने देखा की मेरी शर्ट उतारते समय फरहत के होंठों पर एक बहुत ही मंद मुस्कान थी, और उसकी आँखों में एक प्रसंशा भरी चमक। अगले पांच मिनट बाद, जब मैं पूरी तरह से निर्वस्त्र हो गया, तब उसकी बेहद मंद मुस्कान अब कुछ ज्यादा ही दिख रही थी। 

“फरहत.. यू आर नॉट हेल्पिंग! आई ऍम नर्वस आलरेडी!!”

“ओह आई ऍम सॉरी! लेकिन आप नर्वस क्यों हैं?”

“अरे.. इस हालत में आपके सामने..”

“यू हैव अ नाईस मस्कुलर बॉडी! नर्वस तो.. मुझे होना चाहिए!” कह कर फरहत जोर से मुस्कुराई।

खैर, मैंने बात को आगे न खींचने का निर्णय लिया, और फरहत को उसका काम करने की छूट दे दी। वो तौलिये को भिगो कर मेरे पूरे शरीर को रगड़-रगड़ कर साफ करने लगी। गर्दन, सीना, पेट और बाहें साफ़ होने के बाद उसने मुझे धीरे से करवट बदलवाई, और पीठ, कमर, पुट्ठों और जांघों को उतने ही सावधानी से स्पंज बाथ देने लगी। मैं अचानक ही उछल गया – वो मेरी रीढ़ पर बारी-बारी से गर्म और ठंडा स्पंज करने लगी थी। उसने मुझे बताया की ऐसा करने से दिल और साँस के केन्द्र उत्तेजित हो जाते हैं, यह कई तरह के रोगों के निवारण करने में मदद करता है। एक बार फिर से उसने मेरी करवट बदल कर मुझे पीठ के बल लिटाया, और एक अलग छोटे तौलिये से मेरा चेहरा और सर पोंछकर सुखाने लगी। 

साधारणतः, मेरा मेरी उत्तेजना पर अच्छा नियंत्रण रहता है। लेकिन एक अरसे से किसी भी तरह की यौन क्रिया न करने के कारण, मेरा लिंग बेकाबू सा हो गया। जैसे उसमें खुद ही सोचने समझने की की शक्ति आ गयी हो। ऐसा हो ही नहीं सकता की उसको मेरा उत्तेजित लिंग न दिख रहा हो, लेकिन वो बिलकुल प्रोफेशनल तरीके से मेरी सफाई कर रही थी। फरहत मगन हो कर जब मेरी सफाई कर रही थी, तब मैं उसके ही शरीर का जायजा ले रहा था – उसका कद कोई साढ़े पांच फ़ीट रहा होगा। चेहरा मोहरा तो साधारण ही था, लेकिन उसकी मुस्कान और जीवंत आँखें उसको सुन्दर बना देती थीं। उसकी यूनिफार्म तो आरामदायक थी, लेकिन फिर भी उसके स्तन और उनका आकार समझ में आ रहा था। उसने निप्पल भी खड़े हो कर यूनिफार्म के कपड़े को सामने से कुछ कुछ उभार रहे थे। उसने ज़रूर ही एक हल्का सा मेक-अप किया हुआ था.. कुल मिला कर वो सुन्दर लग रही थी।

इतने अरसे के बाद एक स्त्री का इस तरह का अन्तरंग सान्निध्य पा कर अब मेरा लिंग अपने पूरे तनाव पर पहुँच गया। 

“अच्छा है ‘ये’ इस तरह से खड़ा हुआ है... सफाई करने में आसानी रहेगी!” 

वो मुझे सुना रही थी, या खुद से बात कर रही थी?

उसने मेरा लिंग अपने हाथ में पकड़ा और उसकी सफाई करने लगी। उसके छूते ही मुझे एक झटका सा लगा.. वैसे यह झटका मुझे ही नहीं, उसको भी लगा। जब मेरा लिंग पूरी तरह से जीवंत होता है, तो उसका आकार, उसका घनत्व और उसकी दृढ़ता कभी कभी मुझे भी आश्चर्यचकित कर देती है। मुझे यह तो नहीं मालूम, की फरहत ने ऐसा लिंग... या फिर कोई भी लिंग कभी भी अपने हाथ में पकड़ा है या नहीं, लेकिन इतना तो तय है की उस पर असर बखूबी हो रहा था।

अभी तक इतने आत्म-विश्वास के साथ मेरी सफाई करने के बाद, उसकी भी घबराहट दिखाई देने लगी। उसने धीरे धीरे, मानो डरते हुए, मेरे लिंग को गीले तौलिये से साफ़ करना शुरू किया। मानो न मानो, मुझे उसका यह बदला हुआ रूप अब बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे अपने लिंग, और उसके बल में बहुत भरोसा था, और मुझे लगता था की उसमें एक जादुई शक्ति है। जो भी लड़कियाँ मेरे जीवन में आईं, वो उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं। फरहत के हाथों का स्पर्श बड़ा ही आनंददायक साबित हो रहा था। लेकिन कुछ होता, उससे पहले ही मेरे लिंग और अण्डकोषों की सफाई हो गई, और फरहत जल्दी से तौलिया और बाल्टी उठा कर कमरे से बाहर हो गई।

आने से पहले उसने मुझे खुद को संयत करने का समुचित समय दिया। कुछ देर की निष्क्रियता के बाद ताना हुआ लिंग वापस शिथिल हो गया। फरहत कुछ देर बाद वापस कमरे में आई.. वो हमेशा की तरह मुस्कुरा नहीं रही थी.. लग रहा था की जैसे कुछ तनाव में हो। लेकिन मुझसे जैसे ही उसकी आँखें मिलीं, उसकी मुस्कान वापस आ गयी। 

उसने मुझे सहारा दे कर उठाया, और एक आरामदायक कुर्सी पर बैठाया और चद्दर बदला। फिर मुझे वापस लिटा कर, एक नए चद्दर से ढक कर, मेरे और अपने लिए नाश्ता ले आई, और हम दोनों नाश्ता करते हुए वापस बातें करने लगे।

उसने मुझे उस दिन के बारे में बताया, जब उसको बतौर नर्स पहली नौकरी मिली थी। बंधी हुई तनख्वाह और अब्बू की मदद करने के ख़याल से ही रोमांच हो गया था उसको। कितनी खुश थी वह नौकरी पा कर! पहली बार नौकरी के लिए वो सफ़ेद यूनिफार्म पहनना, और फिर आइने के सामने खड़े होकर खुद को निहारना.. उसको आज भी याद है! 

जहाँ उसको काम मिला था, वो एक नर्सिंग होम था। वहाँ पहले से काम करने वाली नर्स ने उसे धीरे-धीरे काम समझाना और सिखाना शुरू कर दिया। शुरू शुरू में वो मरीजों को इंजेक्शन देती थी, उनके चार्ट देख कर दवाई देती, आपरेशन के समय रोगियों को सम्हालती थी। वो ऑपरेशन होने पर शरीर से निकला कचरा और लोथड़े उठा कर फेंकने का भी काम करती। कई बार उस कचरे में साबूत बच्चा भी होता। सोचिए.. एक पूरा सबूत बच्चा! शुरू शुरू में इस काम में उबकाई आती, जी मचलाता और वापस काम पर आने का मन नहीं करता। लेकिन, धीरे धीरे वह इसकी आदी हो गई। अब वो सब बर्दाश्त कर लेती थी। 

लेकिन उससे यह बात छुपी नहीं की यह और ऐसे कई नर्सिंग होम इस शहर का गटर थीं.. किस धड़ल्ले से यहाँ अवैध गर्भपात किया जाता है। जानते सभी हैं, लेकिन कोई कुछ कहता नहीं। नर्सिंग होम में काम करने वाले सारे कर्मचारी गूंगे और अंधे बन कर रहते हैं। फरहत ने भी ऐसे ही कुछ ही महीनों में कम बोलना सीख लिया... चुप रहना सीख लिया... और चेहरे को सपाट बनाना सीख लिया था। जल्दी ही उसका मन उकता गया और उसने वह नौकरी छोड़ दी, और रोगियों के साथ रह कर उनकी देखभाल करने का काम करने लगी। 

यह सब बताने के बाद उसने मेरे बारे में पूछा। मैंने उत्तर में अपने काम के बारे में उसको बताया।

उसने फिर कुछ व्यक्तिगत सवाल पूछे..

“आपकी और मैडम की लव मैरिज हुई थी न?” उसने दीवार पर टंगी रश्मि की तस्वीर सीखते हुए कहा।

“हाँ.. मैंने उसको उत्तराँचल में देखा था पहली बार... लव ऐट फर्स्ट साईट!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा..

“आप उनसे बहुत प्यार करते हैं..”

रश्मि के बारे में याद आते ही उदासी छाने लगी। 

“आप उदास हैं...” उसने कहा। 

जब मैंने काफी देर तक कुछ नहीं कहा तो,

“आई ऍम सॉरी..”

“नहीं फरहत! डोंट से सॉरी! लेकिन.. रश्मि के जाने के बाद बहुत अकेला हो गया। न कुछ करने का मन होता, न ही जीने का.. जब एक्सीडेंट हो रहा था, तो लगा की अब इस दुःख से छुट्टी मिल जायेगी.. लेकिन.. लगता है की और जीना लिखा है किस्मत में!”

“अरे! आप ऐसे कैसे बोल रहे हैं? ज़रा सोचिये, जन्नत से मैडम आपको इस हालत में देखेंगी, तो क्या उनको अच्छा लगेगा? वो तो आपके लिए बस ख़ुशियाँ ही चाहती रही होंगी.. आपको ऐसे दुःख में देख कर उनको भी तो बहुत दुःख होगा न?”

“लेकिन फिर भी.. उसकी बहुत याद आती है..”

“याद तो आनी ही चाहिए! लेकिन उनको याद करके उदास मत होइए.. बल्कि खुश होइए.. साथ बिताये हुए ख़ुशी के मौके याद करिए.. और.. आप ऐसे ही उदास मत होइए। मैं हूँ न? मैं आपकी अच्छी दोस्त बन सकती हूँ! आप मुझसे दोस्ती करेंगे?”

“फरहत! आप पहले ही मेरी दोस्त बन चुकी हैं!” मैं मुस्कुराया।

बस.. ऐसे ही मेरे सुधार की गाडी आगे चल निकली। अस्पताल में तो समय बीतता ही नहीं था.. लेकिन यहाँ पर फरहत मेरे साथ मेरी छाया की तरह बनी रहती। लगता ही नहीं था की वो नर्स है.. बल्कि लगता की वो.. की वो.. मेरी पत्नी है! मेरी हर ज़रूरत को मुझसे भी पहले महसूस कर पूरा करने की कोशिश करती, हर लिहाज से मेरा पूरा ख़याल रखती।
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12-17-2018, 02:22 AM,
#85
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
दोपहर बाद सुमन कॉलेज से आती, और वो भी मेरे साथ ही रहती। मेरा जीवन वापस प्रेम से लबालब होने लगा। दोपहर बाद ही लगभग हर दिन कोई न कोई आ ही जाता - कभी नीचे मेडिकल स्टोर से कोई आ जाता, कभी कोई परिचित, कभी कोई ऑफिस से... तो कभी कोई पड़ोसी! अब तो जैसे आदत हो गयी.. दोपहर बाद आने वालों की प्रतीक्षा करना! लेकिन यह तो है की अब तक मुझे संसार और यहाँ के लोगों के बारे में जितनी भी गलतफहमियां थीं, वो सब ख़तम हो गईं। मैं समझ गया की दुनिया कठोर नहीं, बल्कि संवेदनशील है। मेरे एक्सीडेंट के बारे में जिसने भी सुना, वो सुनकर परेशान हो गया। भागा भागा चला आया देखने!

ऐसा कोई दिन नहीं गया जब रश्मि की याद न आई हो... उसकी याद आती तो मैं आँखें मूँद कर अतीत के संसार की यात्रा कर आता, उसके बारे में सोच कर आँसू भी ढुलका लेता, और भविष्य की चिंता में भी डूब जाता। कभी दर्द, तो कभी पीड़ा-भरी याद में जब मैं अचानक ही चिल्ला उठता, तो फरहत एक झटके से किसी फ़रिश्ते की तरह मुझे सम्हाल लेती।

कभी कभी उसकी बाते मुझे बोर भी करतीं। लेकिन उससे बात करना दिन का सबसे सुखद अनुभव होता था। वो रोज़ मुझसे बात करती, मुझे दवा देती, नहलाती, साफ़-सफाई करती, कभी कभार मुझे उपन्यास पढ़ कर सुनाती, तो कभी अखबार! वो मेरी फिजियोथेरेपी भी करती। ये सिलसिला चलता रहा। और उसी के साथ मेरी सेहत भी वापस आने लगी। हाथों और पैरों की हड्डियाँ जुड़ गईं, और उनमें ताकत वापस आने लगी। मैं अब खुद से चल फिर सकता था, और कई सारे छोटे मोटे काम कर सकता था.. लेकिन फरहत की आदत मुझे कुछ ऐसी लग गयी थी की मैं उसको मना नहीं कर पाता था। मेरी हालत में सुधार के बारे में उसको भी मालूम था, लेकिन वो भी कभी ऐसे नहीं दिखाती थी की उसको मुझे नहलाने इत्यादि में कोई झिझक नहीं महसूस होती थी।

एक दिन सवेरे वो मुझको स्पंज बाथ दे रही थी। वो हाँलाकि मेरे घर में ही रहती थी, लेकिन फिर भी पूरी इमानदारी से वो अपनी यूनिफार्म पहन कर ही मेरी देखभाल करती थी। लेकिन, आज जब वो नहा कर बाथरूम से बाहर आई, तो उसने आरामदायक, कैसुअल कपड़े पहने हुए थे। उसको टी-शर्ट और होसरी पजामा पहने देख कर मुझे अचम्भा हुआ, और अच्छा भी लगा। 

“फरहत, तुम कितनी अच्छी लग रही हो आज!”

वो मुस्कुराई। 

“जी.. वो.. मैं.. दो जोड़ी यूनिफार्म है.. और दोनों ही धोने में डाली हुई है..”

“आई ऍम नॉट कम्प्लैनिंग.. मैं तो कहता हूँ की तुम ऐसे ही रहा करो..”

हाँलाकि ये कोई सेक्सी कपड़े नहीं थी, लेकिन फिर भी बिना किसी बंधन के (उसने ब्रा नहीं पहनी हुई थी) उसके स्तन उसकी हर हरकत पर जिस प्रकार से हिल रहे थे, और जिस तरह से उसके पजामे ने उसके नितम्बो को उभार रखा था, उससे मेरे लिंग का स्तम्भन जल्दी कम नहीं होने वाला था। हर रोज़ की तरह जब वो कमरे से बाहर जाने को हुई, तो मैंने लपक कर उसका हाथ पकड़ लिया।

“मेरे पास रहो..” न जाने कैसे मेरे मुँह से यह तीन शब्द निकल गए। निश्चित है, मेरी आँखों में वासना के डोरे फरहत को साफ़ दिख रहे होंगे!

फरहत कुछ नर्वस दिख रही थी। उसके होंठ कांप से रहे थे, और होंठों के ऊपर पसीने की एक पतली सी परत साफ़ दिख रही थी। मैं भी नर्वस था.. स्पंज-बाथ के बाद नग्नावस्था में लेटा हुआ था। न जाने क्या होने वाला था आज..! 

“रूद्र..?” 

मैंने कुछ नहीं कहा, बस उसका हाथ पकड़े हुए ही उसको पहले तो बिस्तर पर बैठाया.. और उसका हाथ तब तक अपनी तरह खींचता रहा जब तक वो मेरे बराबर ही बिस्तर पर लेट नहीं गयी। जिस तरह से वो निर्विरोध यह सब कर रही थी, उससे तो तय था की आज हम दोनों का मिलन होना ही था।

“हम दोनों दोस्त हैं न?” वो पूछ रही थी, की बता रही थी? कुछ समझ नहीं आया.. लेकिन यह तो तय था की वो नर्वस बहुत थी।

“यस.. सो ट्रस्ट मी! ओके?” मैंने कहा।

उसके लेटते ही मैंने उसके होंठों पर एक चुम्बन रसीद कर दिया। उसके होंठ बहुत ही नरम थे। बहुत दिनों बाद किसी लड़की के होंठ चूमने को मिला! इसलिए मैंने चुम्बन जारी रखा और कुछ देर में मैंने उसके होंठ चूसने शुरू कर दिए। मैं उसके एक एक होंठ को अपने होंठों के बीच में दबा कर उनको जीभ से दुलारता। फरहत चुम्बन करने में अनाड़ी थी। मुझे समझ में आ गया की यह सब उसके साथ पहली बार हो रहा है (मतलब, हर बात में अनाड़ी थी)। मैंने जब अपनी जीभ उसके मुंह में डालने की कोशिश करी, तो कुछ हिचक के बाद उसने अपना मुंह खोल दिया। अब हमारी जीभें एक दूसरे के मुँह में थीं। इतने दिनों बाद ऐसा चुम्बन करने में मुझे बहुत आनंद आ रहा था। 

चूमते हुए ही मेरा हाथ उसके सर और उसके बालों में फिरने लगा.. एकदम कोमल, मुलायम बाल!

“तुम्हारे बाल बहुत सुन्दर हैं.. एकदम सेक्सी!” इस शब्द का प्रयोग उसके सामने मैंने एक तो पहली बार किया और दूसरा, जान-बूझ कर किया। मैं चाहता था की हमारी आपस में हिचक दूर हो जाय। लेकिन फरहत नर्वस ही रही..

“हाँ.. सिर्फ बाल ही हैं..” शायद वो आगे ‘सेक्सी’ कहना चाहती थी, लेकिन हिचक रही थी। 

उसको चूमते हुए मेरा हाथ उसके एक स्तन पर आ गया। जैसा मैंने बताया था, उसने ब्रा नहीं पहनी थी और उत्तेजना के मारे उसके निप्पल खड़े हुए थे। उसने झट से अपने हाथ से मेरे हाथ को पकड़ लिया। लेकिन उसके पकड़ने से मैं रुक नहीं सकता था, लिहाजा, मैंने उसका स्तन दबाना शुरू किया। कुछ ही देर में उसकी पकड़ कमज़ोर हो गयी और वो आहें भरने लगी। मैंने चुम्बन लेना जारी रखा, और साथ ही साथ उसकी टी-शर्ट को ऊपर उठाने लगा। 

“नहीं.. प्लीज.. मुझे नंगी मत करिए!”

“देखते हैं न.. की तुम्हारा और क्या क्या सेक्सी है!”

“और कुछ भी सेक्सी नहीं है.. मैंने आपको बताया न!” फरहत विरोध नहीं कर रही थी.. मुझे ऐसा लग रहा था की यह एक सामान्य सा वार्तालाप है।

“फरहत.. आज हम दोनों रुक नहीं पाएँगे.. न तुम, और न ही मैं! ... लेकिन अगर तुम वाकई नहीं चाहती हो, तो हम ये नहीं करेंगे..”

कह कर मैं कुछ देर के लिए रुक गया, और उसकी किसी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगा। जब उसने कुछ विरोध नहीं किया और बिस्तर से उठने की कोई कोशिश नहीं करी, तो मैंने उसकी टी-शर्ट उसके शरीर से अलग कर दी। सामने का दृश्य देख कर आनंद आ गया – छत्तीस इंच के भरे पूरे गोल स्तन! लाल-भूरे रंग के छोटे छोटे निप्पल, और उसी रंग की areola! 

कहने की आवश्यकता नहीं की मैंने उसके स्तनों को दबाते हुए चूसना आरम्भ कर दिया। फरहत भी अभी खुल कर आनंद लेने लगी। आदमी की अजीब हालत होती है – किसी भी उम्र का हो, अगर उसके सामने किसी लड़की या स्त्री का स्तन हो, तो उनको बिना पिए रह नहीं सकता। 

‘ओह भगवान्! कितने दिन हो गए!’

‘ओह भगवान्! कितने दिन हो गए!’

मैं किसी भूखे बच्चे की तरह फरहत से लिपट कर उसका स्तन पी रहा था, और उनसे खेल रहा था। फरहत आँखें बंद किये हुए इस अनोखे अनुभव का मज़ा ले रही थी। उसकी भी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी – जो की उसकी भारी होती सांसों से परिलक्षित हो रहा था। वो खुद भी मेरे सर को अपने स्तन से सटा कर रखे हुए थी। उसने मेरे शरीर को सहलाना आरम्भ किया, और ऐसे सहलाते हुए उसका हाथ मेरे लिंग पर पहुंचा! साफ़ सफाई करते समय वो बिलकुल भी संकोच नहीं करती थी, लेकिन इस समय उसने अपना हाथ तुरंत हटा लिया। 

“क्या हुआ?”

“य्य्य्ये बहुत बड़ा है।“ 

एक बार मैंने एक चुटकुला सुना था, जिसमे दुनिया के सबसे बड़े झूठों में एक यह बताया गया था की जब औरत किसी मर्द को कहे की तुम्हारा पुरुषांग बहुत बड़ा है।

अक्सर यह दलील दी जाती है की जब योनि में से पूरा बच्चा निकल आता है, तो फिर लिंग का साइज़ क्या चीज़ है? उसका उत्तर यह है की जब स्त्री प्रजनन करने वाली होती है, तो होर्मोन्स के प्रभाव से उसके शरीर में (ख़ास तौर पर जघन क्षेत्रों में) अभूतपूर्व लचीलापन आ जाता है.. यह क्रिया सामान्य अवस्था में नहीं होती है.. इसलिए अगर लिंग बड़ा है, और स्त्री ऐसा कहे, तो यह बात सुननी चाहिए, और आराम से काम करना चाहिए।

“आर यू ओके, फरहत?”

“पता नहीं..” फिर कुछ देर रुक कर, “.. मुझे डर लग रहा है, रूद्र! अभी जो हो रहा है, मैं उसके लिए बिलकुल भी रेडी नहीं थी... समझ नहीं आ रहा है की मैं क्या करूँ..!”

“तुमको कुछ भी करने से डर लग रहा है?” मैंने पूछा। फरहत वाकई डरी हुई लग रही थी। 

“व्व्व्वो.. मैं.. आई.. आई ऍम स्टिल अ वर्जिन!”

“व्ही डोंट नीड टू डू एनीथिंग, इफ़ यू डोंट वांट टू, स्वीटी!” मैंने फरहत को स्वान्त्वाना देते हुए कहा, “व्ही कैन जस्ट बी विद ईच अदर!”

मेरी बात से फरहत कुछ तो शांत हुई.. लेकिन फिर उसकी आँखें मेरे पूरी तरह से सूजे हुए लिंग पर पड़ी।

“लेकिन... लेकिन.. आप क्या ‘करना’ नहीं चाहते?”

मैंने फरहत को अपनी बाहों में लेते हुए शांत स्वर में कहा, “बिलकुल करना चाहता हूँ.. लेकिन सिर्फ तभी, जब तुम भी चाहती हो। तुमने कभी सेक्स नहीं किया.. इसलिए अब यह तो मेरी जिम्मेदारी है की तुमको उसका पूरा आनंद मिले.. और उसके लिए सबसे पहले तुम्हारी रज़ामंदी चाहिए.. है न?”

मेरी इस बात पर फरहत मुझसे और चिपक सी गई, और उसने मेरे सीने पर अपना हाथ रख दिया। मैं इस समय उसके दिल की धड़कन सुन सकता था। फिर उसने एक गहरी सी सांस भरी और सर हिला कर हामी भरी।

“क्या हुआ फरहत?”

“रज़ामंदी है..”

“हंय?”

“आपने कहा न, की रज़ामंदी चाहिए? तो.. रज़ामंदी है!”

“पक्का फरहत? क्योंकि एक समय के बाद मैं भी खुद को रोक नहीं पाऊँगा!”

“पक्का.. बस, थोड़ा सम्हाल कर करिएगा.. सुना है की बहुत दर्द होता है!”

“फरहत, डरो मत! मैं तुमको दर्द नहीं होने दूंगा... बस, कोशिश कर के मजे करो! चलो, अभी जूनियर से कुछ जान पहचान बढ़ाओ..” मैंने मुस्कुराते हुए उसको हौसला दिया।

उसने हिचकते हुए मेरे लिंग को अपनी हथेली में पकड़ा और ऊपर नीचे करने लगी, उधर मैंने भी उसके पजामे के ऊपर से ही उसकी योनि को धीरे धीरे सहलाना शुरू किया। ऐसा अनुभव उसको पहली बार हो रहा था, इसलिए कुछ ही देर में फरहत बेकाबू हो गयी। लेकिन मैंने उसकी योनि का मर्दन जारी रखा। उसका रस निकलने लग गया था, क्योंकि पजामे के सामने का हिस्सा गीला और चिपचिपा हो गया था। फिर कोई दस मिनट बाद मैंने अपना हाथ उसके पजामे के अन्दर डाल कर उसकी योनि की टोह लेनी आरम्भ करी। फरहत कामुक आनंद के शिखर पर पहुँच गयी थी। 

कुछ ही क्षणों में मैंने अपनी उंगली ज़ोर-ज़ोर से उसकी योनि पर रगड़ना शुरू किया, और वहाँ का गीलापन, और गर्मी अपनी उंगली पर महसूस किया। वो इस समय अपनी पीठ के बल बिस्तर पर निढाल लेट गयी थी और साथ ही साथ अपनी टाँगें भी कुछ खोल दी थीं, जिससे मेरे हाथ को अधिक जगह मिल सके। मैंने अपनी तर्जनी उंगली को उसकी योनि में घुसाने लगा। एक पल तो फरहत ने अपनी साँसें रोक ली, लेकिन उंगली पूरी अन्दर घुस जाने के बाद उसने राहत में सांस छोड़ी। उसकी योनि रश्मि की योनि के जैसे की कसी हुई थी! उतनी ही तंग! लेकिन आश्चर्य की बात है की वो कोमल भी बहुत थी! और, वहाँ पर काफी बाल भी थे.. आनंद आने वाला है!

कुछ देर तक उंगली को उसकी योनि के अन्दर बाहर करने के बाद फरहत दोबारा अपने चरम पर पहुँच गयी। उसकी कामुक आहें निकलने लगीं। जब तक उसने आहें भरीं, तब तक मैंने उंगली से मैथुन जारी रखा, लेकिन जब वो अंततः शांत हुई, तो मैंने उंगली निकाल ली और सुस्ताने लगा। 

“आप रुक क्यों गये?” उसने पूछा।

“अब तो मेन एक्ट का टाइम है.. तुम रेडी हो?”

“बाप रे! अभी ख़तम नहीं हुआ? मैं तो थक गयी.. ओह्ह...”

“अभी कहाँ ख़तम? अभी तो हमें ‘कनेक्ट’ होना है.. तभी तो पूरा होगा..” 

कह कर मैंने अपने लिंग की ओर इशारा किया, और उसका पजामा नीचे सरका कर उसके शरीर से मुक्त कर दिया। अब हम दोनों ही पूरी तरह नग्न मेरे बिस्तर पर थे। मैंने वापस उसके दोनों स्तनों को अपने हाथों में लेकर उसको मसलने लगा। वो पुनः वासना के सागर में गोते लगाने लगी। मैंने उसके कन्धों को चूमना शुरू कर दिया और वहाँ से होते हुए उसके कान को चूमा और उसकी लोलकी को चूसने लगा। 

“फरहत, क्या तुम्हे अच्छा नही लग रहा?”

उसने सिर्फ सर हिला कर हामी भरी।
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12-17-2018, 02:22 AM,
#86
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने उसके हाथ में अपना लिंग दिया। कमाल की बात है फरहत के मज़बूत, नर्स वाले हाथ इस समय मेरे लिंग पर काफी मुलायम और नाज़ुक महसूस हो रहे थे। उधर मैंने उसके शरीर को चूमना और चाटना जारी रखा। मैं चूमते हुए उसकी गर्दन से होते हुए उसके पेट, और फिर वहाँ से उसकी योनि को चूमने और चाटने लगा। मैं जीभ की नोक से उसकी योनि के भीतर भी चूम रहा था। अभी कुछ ही समय पहले रिसा हुआ योनि-रस काफी स्वादिष्ट था। अब मैं भी रुकने की हालत में नहीं था, लेकिन फिर भी मैंने जैसे तैसे खुद पर काबू रखते हुए उसकी योनि चाटता रहा। कुछ देर बाद वो तीसरी बार स्खलित हो गयी। उसकी योनि का रंग उत्तेजना से गुलाबी हो गया था।

खैर, अंततः मैंने अपना लिंग उसकी टाँगों के बीच योनि के द्वार पर टिकाया, और धीरे धीरे अंदर डालने लगा। उसकी योनि काफी कसी हुई थी। फरहत गहरी गहरी साँसे भरते हुए मेरे लिंग को ग्रहण करना आरम्भ किया। खैर मैंने धीरे धीरे लिंग की पूरी लम्बाई उसकी योनि में डाल दी, और धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। न तो मेरे पैरों में इतनी ताकत ही, और न ही हाथों में, की वो मेरे शरीर का बोझ ठीक से उठा सके और धक्के भी लगाने में मदद कर सके.. लेकिन जब इच्छाएं बलवती हो जाती हैं तो फिर किस बात का बस चलता है मानुस पर? वैसे भी, कामोत्तेजना इतनी देर से थी की गिने चुने धक्को में ही मेरा काम हो जाना था। दिमाग में बस यही बात चल रही थी की कितनी जल्दी और कैसे अपना वीर्य फरहत के अन्दर स्खलित कर दूं। यह एक निहायत ही मतलबी सोच थी, लेकिन क्या करता? उस समय शरीर पर मेरा अपना बस लगभग नहीं के बराबर ही था। फरहत अगर मदद न करती, तो कुछ भी नहीं कर पाता.. उसी ने खुद-ब-खुद अपनी टाँगे इतनी खोल दी थीं जिससे मेरी गतिविधि आसान इसे हो जाय। मुझे नहीं मालूम की उसको अपने जीवन के पहले सम्भोग से क्या आशाएं थीं, लेकिन जब मैंने उसको देखा तो उसकी आँखें बंद थीं और उसके चेहरे के भाव ने लग रहा था की उसको भी सम्भोग का आनंद आ रहा था। 

मन में तो यह इच्छा हुई की बहुत देर तक किया जाय, लेकिन अपने शरीर से मैं खुद ही लाचार हो गया। कुछ ही धक्कों बाद मुझे महसूस हुआ की मैं स्खलित होने वाला हूँ। इसलिए मैंने तुरंत ही अपने लिंग को बाहर निकाल लिया। फरहत चौंकी।

“क्या हुआ?”

“नहीं.. कहीं तुम्हारे अन्दर ही एजाकुलेट (वीर्यपात) न कर दूं इसलिए बाहर निकाल लिया.. कहीं तुम प्रेग्नेंट हो गयी तो?”

मेरी इस बात पर फरहत मुस्कुराई, और मुझे चूमते हुए बोली,

“आपको पता है, की आपकी इसी बात पर तो मैं आपसे ‘करने’ के लिए तैयार हुई। मुझे हमेशा से मालूम था की आप मेरा किसी भी तरीके से नुकसान नहीं होने देंगे.. लेकिन मुझे इस बात की कोई चिंता नहीं है। मैं एक नर्स हूँ... एंड, आई नो हाऊ टू कीप सेफ! नाउ प्लीज, गो बैक इन..”

“आर यू श्योर, स्वीटी?”

“यस हनी! आई वांट योर सीमन इनसाइड मी! प्लीज डू इट!”

मैं उसकी बात से थोड़ा भावुक हो गया, उसको कुछ देर प्यार से देखा, और वापस उसकी योनि की फाँकों को अपनी उँगलियों की सहायता से अलग कर के अपना लिंग अन्दर डाल दिया। इस घर्षण से फरहत की पुनः आहें निकल गईं। अब बस चंद धक्कों की ही बात थी.. मेरे भीतर का महीनो से संचित (वैसे ऐसा होता नहीं.. समय समय पर शरीर खुद ही वीर्य को बाहर निकाल देता है, और इस क्रिया को नाईट फाल भी कहते हैं) वीर्य बह निकला और फरहत की कोख में समां गया। 

मैं वीर्य छोड़ने, और फरहत वीर्य को ग्रहण करने के एहसास से आंदोलित हो गए.. हम दोनों ही आनंद में आहें भरने लगे। उत्तेजना के शिखर पर पहुँचने का मुझ पर एक और भी असर हुआ.. स्खलित होते ही मेरे हाथ पांव कांप गए.. और मेरा भार सम्हाल नहीं पाए। ऐसे और क्या होना था? मैंने भदभदा कर फरहत के ऊपर ही गिर पड़ा, जैसे तैसे सम्हालते हुए भी मेरा लगभग आधा भार उस बेचारी पर गिर गया! संभव है की उत्तेजना के उन क्षणों में रक्त संचार और रक्त दाब इतना होता हो की उसको कुछ पता न चला हो, लेकिन मेरी बेइज्जती हो गयी! 

“गाट यू.. गाट यू...” उसने मुझे सम्हालते हुए कहा। वाकई उसने मुझे सम्हाल लिया था.. उसकी बाहें मेरे पीठ पर लिपटी हुई थीं, और उसकी टाँगे मेरे नितम्बों पर। 

“सॉरी” मैं बस इतना की कह पाया!

“सॉरी? किस बात का? आपने आज मुझे वो ख़ुशी दी है जिसके बारे में मैं ठीक से सोच भी नहीं सकती थी! सो, थैंक यू! आज आपने मुझे कम्पलीट कर दिया! आई ऍम सो हैप्पी!”

“तुमको दर्द तो नहीं हुआ!”

“हुआ.. लेकिन.. हम्म.. शुरू शुरू में मैं यह नहीं करना चाहती थी.. लेकिन फिर अचानक ही मुझे ऐसा लगा की मुझे यह करना ही है! और यह एकसास आते ही दर्द गायब हो गया!”

मैंने उसके माथे पर एक दो बार चूमा और कहा, “आर यू श्योर.. आई मीन, आर यू ओके विद आवर न्यू रिलेशनशिप?”

फरहत मुस्कुराई, “आई ऍम! आपको जब मन करे, मुझे बताइयेगा! और मुझे लगता है की मुझे भी इसकी (मेरे लिंग की तरफ इशारा करते हुए) बहुत ज़रुरत पड़ने वाली है! ही ही ही!”

सुमन का परिप्रेक्ष्य

फरहत के अथक प्रयासों का फल अब दिखने लग गया था। समय समय पर दवाइयाँ वगैरह देना, रूद्र की पूरी देखभाल करना, उनको व्यायाम करवाना और उनकी फिजियोथेरेपी करना। इन सब के कारण रूद्र की अवस्था अब काफी अच्छी हो गयी थी। मैंने एक और बात देखी - बहुत दिनों से देख रही हूँ की रूद्र और फरहत की नजदीकियां बढ़ती जा रही हैं। रूद्र स्पष्ट रूप से पहले से काफी खुश दिखाई देते हैं। उत्तराखंड त्रासदी के बाद से पहली बार उनको इतना खुश देखा है। मुझे ख़ुशी है की उनके स्वास्थ्य में काफी सुधार है, और यह भी लग रहा है की वो भावनात्मक और मानसिक अवसाद से अब काफी उबर चुके हैं।

उनके स्वास्थ्य में कई सारे सकारात्मक सुधार भी हैं.. रुद्र चल फिर पाते हैं... आज कल घर से ही अपने ऑफीस का काम भी कर लेते हैं... वैसे डॉक्टर ने उनको कुछ भी करने से माना किया है, लेकिन वो जिस तरह के व्यक्ति हैं... खाली नही बैठ सकते इसलिए एक तरह से अच्छी बात है की वो अपने काम में मशगूल रहते हैं. सवेरे उठने के बाद वो कुछ देर टहलते भी हैं।

लेकिन दुःख इस बात का है की मैं उनके इस सुधार का कारण नहीं बन पाई हूँ। यह सब कुछ फरहत के कारण है – उसके आने से वाकई घर की स्थिति में बहुत सारे सकारात्मक सुधार आये हैं। वो आई तो रूद्र की नर्स बन कर थी, लेकिन कुछ ही दिनों में उनकी देखभाल के साथ ही साथ मेरी भी देखभाल करती थी – मेरे खाने पीने, सोने, स्वास्थ्य, और पढाई लिखाई में रूद्र के बराबर ही रूचि लेती थी और यह भी सुनिश्चित करती थी की सब कुछ सुचारू रूप से हो। घर के संचालन में फरहत को अपार दक्षता प्राप्त थी। फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जैसे ही घर में घूम घूम कर, ढूंढ ढूंढ कर काम करती! मुझे भी कभी कभी लगता था की जैसे मेरी दीदी या माँ ही फरहत के रूप में वापस आ गए हैं! सच में! बहुत बार तो फरहत को दीदी या मम्मी कह कर बुलाने का मन होता! मेरे मन से यह बात कि वो नर्स है, कब की चली गई!

ये सब अच्छी बातें थीं.. लेकिन मुझे एक बात ज़रूर खटकती थी। और वो यह, की मेरा पत्ता साफ़ हो रहा था.. जवानी में मैंने सिर्फ एक ही पुरुष की चाह करी थी, और वो है रूद्र! लेकिन अब वो ही मेरी पहुँच से दूर होते जा रहे थे। मुझे शक ही नहीं, यकीन भी था की फरहत और रूद्र में एक प्रेम-सम्बन्ध बन गया है। वो अलग बात है की मेरे घर में रहने पर ऐसा कुछ होता नहीं दिखता था... संभवतः वो दोनों सतर्क रहते थे। फरहत हमारे घर पर ही रहती थी (अभी वो सप्ताह में एक दिन अपने घर जाने लग गयी थी), और अब इतने दिनों के बाद हमारे परिवार का ही अभिन्न हिस्सा बन गयी थी।

एक रोज़, सप्ताहांत में, मैं सवेरे सवेरे उठी – उस रोज़ कुछ जल्दी ही उठ गयी थी। आज के दिन फरहत अपने घर जाती थी। मैंने सोचा की क्यों न आज काम-वाली बाई के बजाय मैं ही नाश्ता और चाय बना दूं और सब लोग साथ मिल कर आलस्य भरे सप्ताहांत का आरम्भ करें। मैं अपने कमरे से बाहर निकल कर दालान में आई ही थी, की मुझे रूद्र के कमरे से दबी दबी, फुसफुसाती हुई आवाजें सुनाई दी। हल्की हलकी सिसकियों, दबी दबी हंसी और खिलखिलाहट, और चुम्बन लेने की आवाजें। 



प्रत्यक्ष को भला कैसा प्रमाण? मैं समझ गयी की इस समय अन्दर क्या चल रहा है। लेकिन फिर भी मन मान नहीं रहा था – हृदय में एक कचोट सी हुई।जो काम मैं खुद रूद्र के साथ करना चाह रही थी, वही काम कोई और उनके साथ कर रही थी।दुःख भी हुआ, और उत्सुकता भी! उत्सुकता यह जानने और देखने की की ये दोनों क्या कर रहे हैं! 

मैं दबे पांव चलते हुए रूद्र के कमरे तक पहुंची, और दरवाज़े पर अपने कान सटा दिए।

“उम्म्म्मम्म.. ये गलत है..” ये फरहत थी।

“कुछ भी गलत नहीं..”

“गलत तो है.. आह... शादीशुदा न होते हुए भी यह सब.. ओह्ह्ह्ह.. धीरेएएए..!” फरहत ठुनकते हुए कह रही थी।

“जानेमन... मेरे लंड का तुम्हारी चूत से मिलन हो गया...शादी में इससे और ज्यादा क्या होता है?”

“छिः! कैसे कैसे बोल रहे हो! गन्दी गन्दी बातें! आअऊऊऊ! आप न, बड़े ‘वो’ हो.. अभी, जब आपके हाथ पांव ठीक से नहीं चल रहे हैं, तब मेरी ऐसी हालत करते हैं.. जब सब ठीक हो जाएगा तो...”

“अच्छाआआआ... तो ये नर्स मेरे ठीक होने के बाद भी मुझे नर्स करना चाहती है?” 

फरहत को शायद रूद्र के शरारत भरे प्रश्नोत्तर का भान नहीं था।

“हाँ... क्यों? ठीक होने के बाद मुझसे कन्नी काट लोगे क्या?” फरहत ने शिकायत भरे लहजे में कहा।

“अरे! बिलकुल नहीं!”

“आऊऊऊऊऊ..” यह फरहत थी।

“कम.. लेट मी नर्स यू.. उम्म्म!” 

“आऊऊऊऊऊ... आराम से! ही ही ही!!”

दोनों की बातचीत की मैं सिर्फ कल्पना ही कर सकती थी... मेरे दिमाग में एक चित्र खिंच गया की रूद्र ने फरहत के एक निप्पल को अपने मुंह में भर लिया होगा। अद्भुत और आनंददायक होता होगा न, ऐसे सम्भोग करना? अपनी प्रेयसी की स्तनों को चूसते हुए अपने लिंग को उसकी योनि में लगातार ठोंकते रहना। है न? लेकिन मुझे पता नहीं कैसा लगा – अजीब सा, रोमांच, गुस्सा, उत्सुकता... ऐसे न जाने कितने मिले जुले भाव! 

मुझसे रहा नहीं जा रहा था... मैं वाकई देखना चाहती थी की अन्दर क्या चल रहा है – सिर्फ सुन कर उत्सुकता कम नहीं, बल्कि बढ़ने लगती है। मैंने की-होल से अन्दर देखने की कोशिश करी – छेद था तो, लेकिन कुछ ऐसा था की अन्दर बिस्तर का कोई हिस्सा नहीं दिख रहा था। तभी मुझे ख़याल आया की ड्राई बालकनी से मास्टर बाथरूम के रास्ते अन्दर का नज़ारा देखा जा सकता है। मैं भागी भागी उसी तरफ गयी... उम्मीद के विपरीत मुझे सीधा तो कुछ नहीं दिखाई दिया, लेकिन बाथरूम के अन्दर लगे आदमकद आईने से बेडरूम के खुले दरवाज़े के अन्दर का दृश्य साफ़ नज़र आ रहा था।

फरहत रूद्र की सवारी करते हुए सम्भोग कर रही थी। उसके नितम्ब के बार बार ऊपर नीचे आने जाने पर रूद्र का लिंग दिखाई देता था – फरहत की योनि रस से सराबोर वह लिंग कमरे की लाइट और बाहर की रौशनी से बढ़िया चमक रहा था। फरहत रूद्र के ऊपर झुकी हुई थी, जिससे रूद्र उसके स्तन पी सकें। हो भी वही रहा था – रूद्र के मुंह में उसका एक निप्पल था, और दूसरे स्तन पर उनका हाथ! मैं वही खड़े खड़े रूद्र और फरहत के संगम का अनोखा दृश्य देख रही थी।

“जानू.. जानू.. बस.. ब्ब्ब्बस्स्स.. आह! दर्द होने लगा अब... अब छोड़ अआह्ह्ह.. दो!”

‘जानू? वाह! तो बात यहाँ तक पहुँच गयी है? नीलू... तू क्या कर रही है??’

“क्या छोड़ दूं?” रूद्र ने फरहत का निप्पल छोड़ कर कहा (बेचारी का निप्पल वाकई लाल हो गया था), “चूसना, मसलना या फिर चोदना?”।

रूद्र को ऐसी भाषा में बात करते हुए सुन कर मुझे बुरा सा लगा – उनके मुंह से ऐसी भाषा वाकई शोभा नहीं देती है।

“चूसना और मसलना.. तीसरा वाला तो मैं ही कर रही हूँ.. आप तो आराम से लेटे हो!”

“ठीक है फिर.. चलो, यह शुभ काम अब मै ही करता हूँ.. अब खुश?”

कह कर रूद्र बिस्तर से उठने लगे, और साथ ही साथ फरहत को लिटाने लगे।उसके लेट जाने के बाद, रूद्र अब फरहत के होंठो को बड़े अन्तरंग तरीके से चूमने लगे। फरहत भी बढ़ चढ़ कर उनका साथ देने लगी। ऐसे ही चूमते हुए रूद्र ने अपनी एक उंगली फरहत की योनि में डाली, और उसे अन्दर बाहर करने लगे। फरहत की सिसकारियाँ मुझे साफ़ सुनाई दे रही थीं। वह आह ओह करते हुए, रूद्र के बालों को नोंच रही थी। रूद्र ने अब अपनी उंगली उसकी योनि से निकाल के उसके मुंह में डाल दी। वो मज़े ले कर अपनी ही योनि का रस चाटने लगी।
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12-17-2018, 02:22 AM,
#87
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रूद्र और फरहत, दोनों ही समागम के लिए तड़प रहे थे। रूद्र ने फरहत की टांगो को खोला और अपना शिश्नाग्र उसकी योनि के खुले हुए मुख पर रख दिया। उनका लिंग कितना मोटा था! सच में! यह लिंग अगर मेरी योनि में जाएगा, तो अपार कष्ट तो होना ही है! लेकिन फरहत की योनि की अब तक इतनी कुटाई हो चुकी थी की रूद्र के एक ही झटके में उनके लिंग का आधा हिस्सा उसके अन्दर चला गया। फरहत के चेहरे पर मात्र हल्का सा कष्ट का भाव आया, और उसने रूद्र का लिंग अपनी योनि में सही तरह से ले लिया। रूद्र नीचे झुक कर उसके स्तनों पर भोग लगाने लगे और साथ ही साथ नीचे की तारफ अपनी कमर को एक झटका और दे कर के अपने लिंग को उसके अन्दर पूरी तरह प्रविष्ट कर दिया। फरहत ने अपने हाथ उनकी कमर के गिर्द लपेट कर अपनी तरफ और खींचने लगी। रूद्र पूरे जोशो खरोश के साथ सम्भोग करने लगे... उधर फरहत भी नीचे से अपनी कमर को उछाल कर उनका साथ दे रही थी।

मैं और अधिक नही देख सकती थी... भले ही सम्मुख दृश्य इतना रोचक और कामुक हो.. यह उन दोनो के बीच का अपना और बहुत ही अंतरंग संसर्ग संबंध था, और मैं ऐसे चोरी छिपे देख कर इस बात का अनादर नही कर सकती थी.. मैं जल्दी से अपने कमरे में वापस चली आई और बिस्तर पर लेट गयी और सोने का नाटक करने लगी। जब फरहत और रुद्र फ़ुर्सत पाकर कमरे से बाहर निकलेंगे, तब उनको किसी प्रकार की लज्जाजनक स्थिति का सामना नही करना पड़ेगा।

कुछ देर के बाद (कोई पंद्रह मिनट के बाद) मुझे उनके कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। मैं दम साध कर लेटी रही – जैसे अभी भी सो रही हूँ। मुझे वाकई बुखार सा हो गया था। ऐसे ही नाटक करते करते न जाने कब आँख लग गयी, मुझे कुछ याद नहीं है। लेकिन मेरी नींद तब खुली जब मैंने अपने गाल और माथे पर किसी के छूने का एहसास हुआ।

मैने आँखें खोलीं... सामने फरहत बैठी हुई थी...! वो मेरे गाल को प्यार से सहला रही थी।

"फरहत! आप?"

"श्श्ह्हह्ह्ह... अभी तबियत कैसी है?"

“तबियत?”

“हाँ.. बुखार से तप रहा था तुम्हारा शरीर! मैंने कोई दवाई नहीं दी, लेकिन सोचा कि पहले तुमको जगा लूं। कैसा लग रहा है अभी?”

“तप रहा था? मेरा शरीर?” फिर अचानक याद आया कि वो तो मेरे शरीर की कामाग्नि की तपन थी। मैंने सोचा की आज फरहत से इस बारे में बात कर ही ली जाय।

“ओह!” मैने कहा, “वो कुछ भी नहीं है... रूद्र कहाँ हैं?”

“वो तो बाथरूम में हैं! क्यों?”

“वो इसलिए, कि मुझे आपसे एक बात करनी थी!”

“क्या बात है? बताओ?”

मैं हिचकी, “फरहत, क्या आप और रूद्र... मतलब, क्या आप दोनों शादी करना चाहते हैं?”

“ऐसे क्यों पूछ रही हो, सुमन?” फरहत ने सतर्क होते हुए पूछा।

“मैंने आज आप दोनों को... सेक्स करते हुए...”

“हाय अल्लाह!” कहते हुए फरहत ने अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढँक लिया।

“बताइए न?”

“करना तो चाहती हूँ... लेकिन तुम भी तो..”

“मैं भी तो क्या?”

“तुम भी तो उनसे शादी करना चाहती हो.. है न?”

“ये आप कैसे कह रही हैं?” मैंने प्रतिरोध किया।

“सुमन, मैं भी औरत हूँ, और तुम भी! और औरत ही दूसरे औरत के मन की बात समझ सकती है! हमको कुछ कहने सुनने की ज़रुरत होती है क्या?”

मैं चुप ही रही। फरहत भी कुछ देर चुप रही, और फिर आगे बोली,

“रूद्र हैं ही ऐसे मर्द! क्यों न कोई लड़की उनको चाहने लगे? मर्द नहीं, सोना हैं सोना! मैं तो उनकी लौंडी (गुलाम) बन गयी हूँ!”

मैंने कुछ हिम्मत करी।

“आप मेरी इस बात का बुरा मत मानना, लेकिन पूछना ज़रूरी है। आप उनसे उनकी दौलत के लिए शादी करना चाहती हैं?”

फरहत मुस्कुराई, “हा हा! नहीं.. मैंने तुम्हारी बात का कोई बुरा नहीं माना। मुझे मालूम है कि रूद्र ने अपनी सब जायदाद आपके नाम कर दी है। नहीं... दौलत के लिए नहीं! मेरी नर्स की नौकरी में ज्यादा तो नहीं, लेकिन कम कमाई भी नहीं होती। आराम से चल जाता है। नहीं... उन्होंने जिस तरह से मुझे औरत होने का एहसास दिलाया है, मुझे जिस तरह से मान सम्मान दिया है, उसके लिए! ... कौन सी औरत नहीं करेगी उनके जैसे मर्द से मोहब्बत? रूद्र न केवल जिस्म से ही एक भरपूर मर्द हैं, बल्कि दिल से भी हैं।"

“लेकिन.. आप तो मुसलमान हैं?”

“हाँ! लेकिन, मुसलमान होने से पहले एक इंसान भी तो हूँ!”

“नहीं नहीं! मेरा वो मतलब नहीं था।“

“हा हा! हाँ भाई... मालूम है तुम्हारा वो मतलब नहीं था! हाँ.. मुसलमान हूँ.. अब्बू कुछ न कुछ नाटक कर सकते हैं!” 

फिर कुछ रुक कर, “तुम्हे तो कोई दिक्कत नहीं? ... मेरा मतलब...” 


मेरी उदासी मेरे चेहरे पर साफ़ दिखने लगी। 

“नीलू, अगर तुम उनसे प्यार करती हो, तो तुमको उन्हें बताना चाहिए!”

“अगर का कोई सवाल ही नहीं है फरहत...”

“इसीलिए तो ये समझा रही हूँ तुमको! ऐसे मन में रखने से तो उनको मालूम नहीं होगा न? किसी को ख्वाब थोड़े न आ रहे हैं! और सच कहती हूँ.. अगर वो भी तुमको पसंद करते हैं, तो मुझे बहुत ख़ुशी मिलेगी.. और भी ख़ुशी मिलेगी अगर तुम दोनों मिल जाओ। दुःख तो बहुत होगा.. झूठ नहीं कह सकती... ऐसा शानदार मर्द हाथ से चला जायेगा, तो किसी को भी अफ़सोस होगा! लेकिन, मुझे ख़ुशी भी मिलेगी। सच कहती हूँ!“

“फरहत.. आप इतनी अच्छी हैं, मुझे भी लगता है कि उनको आपसे शादी करनी चाहिए!”

“सुमन, ऐसे मत कहो! मैं तो बहुत बाद में आई... लेकिन मुझे मालूम है कि तुमने उनकी सेवा में दिन रात एक कर दिया था। इस लिहाज़ से तुम्हे पहला हक़ है, उनसे प्यार जताने का। लेकिन रूद्र को नहीं मालूम कि तुम उनसे प्यार करती हो! मुझे भी काफी कुछ हो जाने के बाद मालूम पड़ा.. नहीं तो मैं कैसे भी उनसे इतना न घुल-मिल जाती।“

फरहत कुछ देर के लिए चुप हो गयी – कमरे की निस्तब्धता में दोनों लडकियाँ जैसे अभी अभी हुई बातों की वज़न का माप कर रही थीं। चुप्पी वापस फरहत ने ही तोड़ी –

“नीलू प्यारी, मेरी तो बस यही सलाह है कि तुम उनको बताओ। उनको बताओ की तुम उन्हें प्यार करती हो! बाकी तो सब अल्लाह का रहम!”

फरहत की ऐसी बात सुन कर मुझे बहुत राहत हुई – एक अरसे के बाद किसी से इस तरह बात करी। इस कारण मन का दुःख आँखों के रास्ते, आंसूं बन कर बाहर निकल आये। फरहत ने मुझे अपने गले से लगा लिया। और मुझे दिलासा देने लगी। कुछ देर के बाद वो ही बोली,

“क्यों न हम एक काम करें?”

मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि डाली,

“आज घर जाना कैंसिल कर देती हूँ! और... तुमको फुल-बॉडी मसाज देती हूँ! एक तो तुमको खूब अच्छा महसूस होगा, और दूसरा, कभी न कभी रूद्र तुम्हारे कमरे के सामने से गुजरेंगे! तुम्हारा नंगा बदन देख कर कुछ तो समझ आएगा न उस बुद्धू को?”

“धत्त फरहत! आप भी न!”

“अरे! इतना कमसिन जिस्म है! कभी दिखाओ तो उन्हें!”

“क्या! आप भी न !” 

“अरे! आप भी न का क्या मतलब है? पता है, जब उन्होंने जब मेरी छातियाँ पहली बार नंगी करीं, तो कैसी आहें भरी थीं! मर्द के सामने अपनी छातियाँ परोस दो, बस! उसकी तो तुरंत लार टपकने लगेगी! और इस बेचारे को तो कितना दिन भी हो गया था!”

“छिः! कितनी गन्दी हो तुम!” मेरी आँखों के सामने सवेरे के दृश्य घूम गए।

“गन्दी नहीं! खैर, मर्द की ही क्या बात करें! हम औरतों की भी तो ऐसी ही हालत हो जाती है! इन चूचों पर मर्द की जीभ पड़ जाय बस! हा हा!”

“धत्त...”

“अरे! धत्त क्या! बेटा, अगर रूद्र मान गए, तो तेरा ऐसा बाजा बजेगा न, कि तुझे ऐसा लगेगा की सात जन्नतों की सैर करके आई हो! बाप रे! थका देते हैं वो तो! ... और, उनका औज़ार भी तो कितना तगड़ा...”

मैंने आगे कुछ भी सुनने से पहले अपने कान हाथों से बंद कर लिए, और अपनी आँखें भी मींच लीं! 
फरहत बातों में तो माहिर थी। उससे भी अधिक उसमें स्नेह था। जो सारी बातें अभी फरहत ने कही थी, वो सारी बातें मेरे लिए भी उतनी ही सच थीं। अगर रूद्र फरहत को पसंद कर लें, तो मुझे भी बहुत ख़ुशी मिलेगी – दुःख होगा, लेकिन वाकई, ख़ुशी भी बहुत मिलेगी। एक बार तो मन हुआ कि क्यों न फरहत भी हमारे साथ ही रहे। शादी किसी की भी हो, लेकिन साथ तो हम तीनों ही रह सकते हैं! लेकिन इस प्लान में एक अड़चन यह थी की फरहत की शादी में दिक्कत आएगी... 

हैं! कमाल है! मैं पहले से ही सोच रही हूँ कि रूद्र मुझे ही पसंद करेंगे, और मुझ ही से शादी करना चाहेंगे! मज़े की बात है, की मैंने अभी तक उनको अपने मन की बात भी नहीं बताई!

फरहत के उकसाने पर मैंने मालिश के लिए हामी भर दी। मुझे बहुत शर्म आ रही थी और मन में एक उलझन सी भी बन रही थी। कुछ दिनों पहले ही भानु के सामने मैं नंगी हो गयी थी, और उसके साथ न जाने क्या क्या कर डाला था, और आज फरहत है! क्या मैं ठीक हूँ? कहीं मैं लेस्बियन तो नहीं? सुना तो है कि स्त्रियाँ आसानी से समलैंगिक सम्बन्ध बना लेती हैं। लेकिन जो मैं रूद्र की तरफ आकर्षित होती हूँ, वो क्या है? और.. और... आज भी मैं फरहत को सिर्फ इसी कारण से यह सब करने दे रही हूँ, क्योंकि उसने मुझे रूद्र के सामने प्रदर्शन का लालच दिया है। शायद मैं ठीक हूँ!
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12-17-2018, 02:22 AM,
#88
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
फरहत कुछ देर के लिए कमरे से बाहर गयी हुई थी – मालिश के लिए तेल लाने। रूद्र दीदी की अक्सर ही मालिश करते थे – ख़ास तौर पर सप्ताहांत में। मालिश के साथ साथ दीदी के साथ जम कर सम्भोग भी करते थे। दीदी भले ही थक कर चूर हो जाती थी, लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव, रहस्य भरी मंद मंद मुस्कान मुझसे छिपी नहीं रहती थी। वाकई, रूद्र इस कार्य में बहुत कुशल थे। मुझे बगल के कमरे से रूद्र और फरहत की दबी हुई आवाजें सुनाई दे रही थीं। न जाने क्या कह रही होगी ये उनसे! खैर, कोई पांच मिनट के बाद फरहत वापस कमरे में आई। जब उसने मुझे अपने पूरे कपड़ों में देखा तो उसने मुझे कपडे उतारने को कहा। मैं शरम के कारण दोहरी हो रही थी और मेरा चेहरा लाल सा हो गया था।

फरहत मुझे ऐसे देख कर मेरे पास आई, और मेरे दोनों हाथों को पकड़ कर बहुत ही धीमे स्वर में बोली, “नीलू, मुझसे शरमाओ मत! मैं तुम्हारी दोस्त हूँ! और, तुमने मुझे आज नंगा देखा है... और वो सब करते देखा है, जो नहीं देखना चाहिए! इसलिए, अब इतना तो बनता है न?”

फरहत की बात तो सही थी। मैंने अपने सूखे गले को थूक की एक घूँट से तर किया, और अपने कपडे उतार दिए। अन्दर कुछ पहना हुआ था नहीं, इसलिए मैं तुरंत ही पूर्ण नग्न हो गयी। मुझे इस हालत में देख कर फरहत भी एक बार हतप्रभ हो गयी। 

“क्या बात है नीलू! सचमुच तुम बहुत सुन्दर हो – न केवल तुम्हारी सूरत, बल्कि ये (मेरे स्तनों की तरफ इशारा करते हुए) तेरी छातियाँ भी! और ये (फिर मेरी योनि की तरफ), तेरी चूत भी! जब चूत की फांके ऐसे दिखती हैं, तो क्या सुन्दर लगती हैं!” 

बिकिनी वैक्स द्वारा बाल निकालने के बाद मेरी योनि पर बालों के हलके हल्के रोयें ही उगे हुए थे। ऐसे में मेरे योनि के दोनों होंठ स्पष्ट दिख रहे थे।

“मन करता है की इनको चूम लूं!”

कह कर उसने वाकई मेरी योनि के होंठों को चूम लिया।

“ईईश्श्श्ष! फरहत, मैंने इसे धोया नहीं था!” उसके इस काम से मुझे हलकी सी घिन आ गयी।

“धोया नहीं था? ह्म्म्म.. इसीलिए इतनी नमकीन थी!”

उसकी ऐसी बातों से मेरी शर्म और हिचकिचाहट कम तो नहीं होने वाली थी। इसलिए मैं बिस्तर पर मुँह छुपा कर लेट गयी। और फरहत ने हँसते हुए मेरी पीठ पर तेल डाल कर मालिश करना शुरू किया। हलके हाथों से धीरे धीरे मालिश होना – मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। कुछ ही देर में मेरे मुँह से सुख भरी आवाजें निकलने लगीं। कोई दस मिनट के बाद उसने मेरे पैरों मालिश शुरू करी। मालिश करते हुए उसके हाथ धीरे धीरे ऊपर की तरफ आ रहे थे – यह मुझे मालूम हो रहा था। ऐसा नहीं है की वो मुझसे छुपा कर कुछ भी कर रही हो।

खैर, जाँघों की मालिश करते हुए जब तब उसके हाथ मेरे नितम्बों के बीच में छू जाते थे। वैसे भी कुछ देर पहली की घटनाओं के कारण मैं वैसे ही गर्म हो गयी थी – अब तक मेरी योनि से रस भी रिसने लगा था। मेरी सिसकारियाँ अभी भी निकल रही थीं, लेकिन अब मुझे ही नहीं मालूम था की वो मालिश की संतुष्टि के कारण थी, या फिर कामुक! 

अचानक ही फरहत ने मेरे हाथों की मालिश शुरू कर दी। एक तरह से मुझे राहत ही हुई। लेकिन जब दो मिनट बाद वो वापस मेरे पुट्ठों को मसलने लगी, तो मैं समझ गयी की बाहों की मालिश तो महज़ एक खाना पूरी थी। मेरे नितम्बों की मालिश वो ऐसे कर रही थी, जैसे आटा गूंथ रही हो। बीच बीच में रह रह कर वो दोनों पुट्ठों पर अपनी मुट्ठी से प्रहार भी करती। इस कारण से मीठा मीठा दर्द उभर कर निकल रहा था। मैं मीठी पीड़ा, आनंद, सुख और काम – इन न जाने कितने मिले जुले भावों के सागर में गोते लगाने लगी। अचानक ही फरहत की आवाज़ सुन कर मेरिन तन्द्रा भंग हुई,

“गुड़िया रानी, अब सामने की बारी!” कह कर उसने मुझे पीठ के बल लेटने को कहा।

मुझे सिहरन सी होने लगी। फरहत ने मेरे सामने की तरफ मालिश शुरू कर दी थी। पहले तो उसने मेरी गर्दन और कंधे की मालिश करी, और फिर दोनों स्तनों पर काफी तेल लगा कर कुछ ज्यादा ही जोर शोर से मालिश करने लगी। कहने की आवश्यकता नहीं कि मेरी उत्तेजना अब काफी बढ़ गयी थी। फरहत के हाथों की हरकतों के साथ साथ मेरी सिसकारियाँ भी बढती जा रही थीं। 

लेकिन, फरहत का मन भरा नहीं था – उसका खेल जारी रहा। कुछ देर तबियत से मेरे स्तनों की मालिश करने के बाद वो मेरे चूचकों के साथ भी खिलवाड़ करने लगी। वो कभी उनको अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच पकड़ कर मसलती, तो कभी उनको बाहर की तरफ हल्के से खींचती । उसने ऐसा न जाने कितनी बार किया – लेकिन मेरी हालत खराब हो गयी। मेरी आहें और भी भारी और तेज हो गई। हार कर मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसको रोक दिया। तब कहीं जा कर उसके मेरे स्तनों का पीछा छोड़ा।

अगली बारी पेट की थी। मैंने राहत की सांस ली। कोई पांच मिनट के बाद उसने आखिरकार मेरी योनि की मालिश आरम्भ कर दी। डर के मारे मैंने अपने दोनों पैर एकदम सटा लिए थे, जिससे वो योनि से खिलवाड़ न कर सके। लेकिन उसकी उंगली रह रह कर जाँघों की बीच की दरार में लुका छिपी खेल रही थी। रूद्र के साथ रह रह कर फरहत को कुछ तरीके तो आ ही गए थे। उसकी इन हरकतों से मैं फिर से उत्तेजित हो गई, और मेरे पैर खुद ब खुद खुलते चले गए। फरहत को मेरी योनि साफ़ साफ़ दिखने लगी।

“कितने पतले पतले होंठ हैं...” फरहत अपनी ही दुनिया में थी और इस समय मेरे योनि के होंठों को हलके से मसलते हुए कहा, “गुलाबी गुलाबी! सच में! गुलाब की कली जैसी!”
मुझे योनि से काम-रस बहता हुआ महसूस हुआ! उस स्थान पर गीला गीला और ठंडा ठंडा लग रहा था।

“मज़ा आ रहा है न नीलू?” उसने धीरे धीरे से मेरे भगनासे सहलाते हुए पूछा। 

मैं क्या ही कहती? मेरी फिर से आहें निकलने लगीं, और मैं अपना सिर इधर-उधर कर के छटपटाने लगी। फरहत को मेरी हालत तो साफ़ पता चल ही रही होगी! उसने अगले कोई दो मिनट तक अनवरत उस हिस्से को कुछ तेज़ गति से रगड़ा। देखते ही देखते मैं मस्त आहें भरते हुए चरमोत्कर्ष पर पहुँचते हुए स्खलित हो गई।

जब मैंने वासना की मस्ती में चूर आँखें खोलीं, तो फरहत ने कहा,

“मज़ा आया?”

मैं मुस्कुरा दी। 

“तुम जन्नत की हूर हो, नीलू!”

उसने कुछ देर मेरे एक स्तन को सहलाया और फिर कहा, “तुम हिम्मत कर के उनको अपने दिल की बात बता दो! तुमको भी खुश रहने का पूरा हक़ है!”

फिर उसने मेरे माथे को चूमते हुए कहा, “हमेशा खुश रहो!”

फरहत की हरकतों से मेरे शरीर में आग लग गयी। वो मुझे उकसाने का प्रयास कर रही थी, जिसमे वो शत प्रतिशत सफल रही। उसके कहने के बाद मैंने मन में ठान लिया कि मैं रूद्र से अपने प्रेम का इज़हार करूंगी।

मैंने इंतज़ार किया जब रूद्र नहा धो कर बाहर निकलेंगे, तब मैं उनसे बात करूंगी। कमरे की आहात से पता चल गया कि वो कुछ ही देर में बाहर आ जायेंगे... उसके पहले मैं ही कमरे में चली गयी।


“आप कैसे हैं?”

“एकदम बढ़िया, नीलू!”

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा किया, जो तुम मुझसे बात करने चली आयीं। मुद्दत हो गयी, तुमसे आराम से बात किया हुए।“

“हाँ! मैं भी चाहती थी की हम फॉर्मल जैसी बाते न करें!”

मेरी इस बात ने ज़रूर उनके दिल को कहीं न कहीं कचोट दिया होगा। फॉर्मल बाते ही तो होती हैं हमारे बीच! उनका सुन्दर चेहरा उतर गया.. वो कुछ कह न पाए! मैंने बात सम्हालने की कोशिश करी,

“म्म्मेरा वो मतलब नहीं था..”

“नहीं नीलू! तुम सही ही तो कह रही हो! मेरी हरकतों के लिए मेरे पास कोई बहाना नहीं है.. हो सके तो माफ़ कर दो!”

“नहीं नहीं.. आप माफ़ी क्यों कह रहे हैं! मैंने आपको उलाहने देने के लिए यह नहीं कहा!”

“मुझे मालूम है नीलू! तुम्ही तो हो, जो मेरा इतना ख़याल रखती है!” उन्होंने मुस्कुराने की कोशिश करी! मुस्कुराते हुए ये कितने सुन्दर लगते हैं!!

“और भी रखूंगी.. अगर आप ऐसे ही हँसते मुस्कुराते रहें!”

“हा हा! हाँ! .. अच्छा चलो, बताओ.. कॉलेज कैसा चल रहा है?”

“बढ़िया!”

“दोस्त बनाए वहां?”

“हाँ! बहुत से हैं!”

“मुझे तो बस भानु का ही पता है!”

“उसके अलावा भी कई हैं...”

“लड़के भी?”

“हाँ!”

“ह्म्म्म... गुड! कोई ख़ास?”

“नहीं! उनमें कौन ख़ास हो सकता है!”

“अरे क्यों?”

“अच्छा.. आप मेरी नहीं अपनी बताइए! आपकी कोई गर्ल फ्रेंड है?”

“मेरी गर्ल फ्रेंड? हा हा!”

“सच सच बताइयेगा?”

“हम्म.. नीलू, कोई और होता तो झूठ बोल देता.. लेकिन तुमसे झूठ नहीं कह सकता! फरहत अच्छी लगती है मुझे!”

“हाँ! फरहत तो है भी अच्छी!”

“तुमको अच्छी लगती है?”

“हाँ! उसके आने से आप कितना खुश रहने लगे हैं!”

“अरे! ऐसे क्यों कह रही हो? तुम्हारे साथ क्या मैं गुस्सा था?”

मैं चुप रही। रूद्र भी कुछ देर सोच में पड़ गए,

“या शायद था! तुमने मेरी लाइफ, और पर्सनालिटी का सबसे खराब भाग झेला है!”

“नहीं! मैं कोई शिकायत नहीं कर रही हूँ! मैं तो बस इसी बात से खुश हूँ की वो पुराने वाले रूद्र वापस आ रहे हैं!”

“हः! पुराना वाला रूद्र तो तुम्हारी दीदी के साथ ही चला गया, नीलू।“ रूद्र की आँखों से खामोश आंसूं निकलने लगे, ”वो तो मेरी आत्मा थी। अब तो बस मेरा ढाँचा ही बच रहा है!”

“हाँ! दीदी तो सबसे अच्छी थी!” मेरा दिल बैठ गया ‘थी’ कहते हुए!

“सच में... उसके बिना सब फीका फीका लगता है..”

“फरहत के रहते हुए भी?”

“नीलू, फरहत मुझे अच्छी ज़रूर लगती है, लेकिन वो मेरी गर्ल फ्रेंड नहीं है! हम लोग सेक्स करते हैं, लेकिन अभी तक दिल के सम्बन्ध नहीं बन पाए हैं! और... मुझे लगता भी नहीं की ऐसा कुछ होगा!”

“ऐसा क्या हुआ फरहत के साथ?”

“नहीं.. बात सिर्फ फरहत की नहीं है... मुझे नहीं लगता कि किसी भी लड़की के साथ मुझे अब रश्मि जैसा लग सकेगा!”

यही समय था!

“रश्मि की परछाईं के साथ भी नहीं?” मेरी आवाज़ में एक तरह की ठंडक सी आ गयी थी..

रूद्र एकदम से ठिठक गए,

“मतलब?”

मेरा गला सूख गया,

“आप.. मुझसे शादी करेंगे?” बहुत धीमी आवाज़ निकली।


“नीलू! ये तुम क्या कह रही हो?”

“रूद्र! मैं आपसे प्यार करती हूँ! और आपसे शादी करना चाहती हूँ! मैं चाहती हूँ की मैं आपके सारे दुःख बाँट सकूं, और आपको सब प्रकार के सुख दे सकूं!”

“नीलू!.. नीलू.. लेकिन तुम मुझसे .. मुझसे कितनी तो छोटी हो!”

“चौदह साल! तो क्या हुआ?”

रूद्र वाकई हक्के बक्के हो गए थे।

“लल्ल.. लेकिन.. मेरी.. ओह भगवान्!”

“रूद्र! मेरी तरफ देखिए... मुझे मालूम है, कि आपने मुझे उस नज़र से कभी नहीं देखा, लेकिन मैंने पहली ही नज़र से आपसे हमेशा प्रेम ही किया है.. हाँ – यह सच है की उस प्रेम के रूप बदलते चले गए। अगर दीदी न होती, तो मैं आपसे ही शादी करती। उनके बाद, मैंने इतने दिनों तक अपने मन में यह बात रखी हुई है.. लेकिन, अब और नहीं होगा। मैंने मन ही मन आपको अपना पति माना हुआ है! बाकी सब आपके हाथ में है!”

कह कर मैं कमरे से बाहर निकल गयी। ह्रदय का बोझ काफी हल्का हो गया।
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12-17-2018, 02:22 AM,
#89
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मेरा मन अत्यंत अशांत था – कहने सुनने में तो आज का दिन भी पहले के दिनों के ही समान था, लेकिन मन में न जाने कितने विचार आ और जा रहे थे। सुमन की विवाह प्रस्तावना मेरे लिए अत्यंत अप्रत्याशित थी। अचानक ही जीवन ने एक नया ही मोड़ ले लिया। एक तो ये ‘अचानक’ जैसे की मेरे पीछे ही पड़ गया है – कभी तो इससे मुझे लाभ हुआ, और कभी भारी हानि भी उठानी पड़ी – रश्मि से मिलना एक अचानक और अप्रत्याशित घटना थी... जीवन के उन कुछ सालों में मैं इतना खुश था, जितना कभी नहीं। फिर वो अचानक ही चल दी! फिर अचानक ही मेरा एक्सीडेंट हो गया... अचानक ही फरहत के साथ सम्बन्ध बने.. और आज, अचानक ही सुमन ने यह प्रश्न दाग दिया!


कैसी कमाल की बात है न? हम दोनों इतने सालों से साथ में हैं, लेकिन मुझे कभी इस बात का भान भी नहीं हुआ की सुमन मुझको ले कर ऐसे सोचती है। खैर, भान भी कैसे होता? मैं तो अपने ही ग़म में इतना घुला हुआ था की आस पास का ध्यान भी कहाँ था? लेकिन अब जब यह बात खुल कर सामने आ ही गयी है तो इस पर विचार करना ही पड़ रहा है – क्या सुमन के साथ मेरा होना ठीक रहेगा? मैं उससे चौदह साल बड़ा हूँ... चौदह साल! उसने बोला था की “तो क्या हुआ?” एक तरह से देखो तो वाकई, तो क्या हुआ? रश्मि मुझसे बारह साल छोटी थी....। लेकिन इन दो बातों में क्या समानता है? रश्मि से मुझे प्रेम हुआ था। जब प्रेम होता है, तो उम्र, जाति, बिरादरी, धर्म इत्यादि का कोई स्थान नहीं होता – बस पुरुष और नारी का! (और कुछ लोगों में पुरुष पुरुष और नारी नारी का!) इस लिहाज से देखा जाय तो या कोई बड़ी अनहोनी नहीं थी। सुमन को भी मुझसे प्रेम हुआ था। अब मेरे सामने एक ही प्रश्न है, और वो यह कि क्या मुझे भी उससे प्रेम है? मतलब, प्रेम तो है.. लेकिन वो प्रेम, जिसकी परिणति विवाह हो?

लेकिन सुमन मेरे लिए विवाह प्रस्ताव लाई थी। इस नाते यह सब तो सोचना ही पड़ता है न! अभी तो वह नयी नयी जवान हुई है। जवान शरीर की अपनी मांगे होती हैं। मेरी हालत तो अभी पूरी तरह से ठीक तो है नहीं। फिर मन में विचार आता है की यह सब एक बहाना है। फरहत को मैंने इसी हालत में इस प्रकार संतुष्ट किया है की वो मेरी मुरीद बन गयी है! फरहत को क्या कहूं? उसको कैसा लगेगा? वो भी कितनी अच्छी लड़की है! उसका दिल टूट जाएगा! सच कहूं तो मेरे पास कुछ ख़ास विकल्प नहीं हैं... जो हैं वो वास्तव में सबसे अच्छे हैं। या तो सुमन से विवाह करूँ, या फिर फरहत से! किसी भी एक विकल्प को चुनने से दूसरे का दिल तो अवश्य टूटेगा। यह सोचना मेरे लिए कष्टप्रद है। जो भी होगा, इन दोनों को ही सुनने का पूरा हक़ है।

कहीं किसी को कहते हुए सुना है – प्रेम कहीं से भी, किसी से भी और किसी भी रूप में आये या मिले, तो उसको लपक कर ले लेना चाहिए। और मुझे तो बैठे बैठे जैसे झोली में डाल कर या थाली में परोस कर प्रेम मिल रहा था। कुछ तो अच्छा किया होगा मैंने अपने जीवन में – पहले रश्मि, फिर फरहत और अब सुमन! नहीं नहीं – क्रम में कुछ गड़बड़ है – सुमन फरहत के पहले से है। खैर, क्रम का क्या है? वृत्त में भला क्या कोई आदि या अंत होता है? ठीक वैसे ही, प्रेम में भी क्या आदि या अंत?

मेरे लिए यह भी सोचने वाली बात थी कि मैं प्रेम के खातिर विवाह करना चाहता था, या इसलिए कि मेरा बिस्तर गरम रहे? फरहत से मुझे शारीरिक संतुष्टि तो बहुत मिल रही है... यह उसी की देन है कि आज मैं अपने हाथ पांव का ठीक से इस्तेमाल कर पा रहा हूँ। उसका बहुत उपकार है मुझ पर। लेकिन, क्या मैं उससे शादी कर सकता हूँ? उसके धर्म से मुझे कोई लेना देना नहीं है.. लेकिन, मन में यह बात तो अटकी हुई है की मैं उससे प्यार तो नहीं करता। वो मुझे अच्छी लगती है, मेरी सबसे ख़ास दोस्त भी है, लेकिन मुझे उससे प्रेम नहीं है! मेरा मतलब, ‘उस’ प्रकार का।

दूसरी तरफ सुमन है, जो मुझे चाहती है – आज अगर जीवित हूँ, तो सब उसी की दुआओं, प्रार्थनाओं और प्रेम के कारण ही है। लोगो ने मुझे कहा था की कैसे उसने देवी सावित्री के समान ही मेरे प्राण, मानो यमराज से वापस मांग लिए! कभी कभी सोचता हूँ कि उसके मन और ह्रदय पर क्या बीत रही होगी उस समय? क्या उसने भी देवी सावित्री के ही समान यमराज से सौ पुत्रों का वरदान माँगा था? क्या क्या सोच रहा हूँ मैं? मैं दिन में अपने कमरे में ही रहा। बाहर जाने जैसी हिम्मत नहीं हुई – अगर सुमन से आँखें मिल गईं तो? क्या कहूँगा मैं उससे? 

सुमन से आँखें मिलाने के लिए मुझे कमरे से बाहर जाने की आवश्यकता नहीं थी। वो खुद ही आ गई – एक मंद मुस्कान लिए!

‘ओह भगवान! कितनी प्यारी है ये लड़की!’

“आपको यूँ कमरे के अन्दर बैठे रहने की कोई ज़रुरत नहीं! आइए, लंच कर लेते हैं?” 

कह कर उसने बिना मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किये, मेरे हाथ पकड़ कर मुझे बिस्तर से उठाने लगी। मैं भी एक अच्छे बच्चे की तरह उठ गया, और न जाने कितने दिनों के बाद डाइनिंग टेबल पर उसके साथ बैठ कर खाना खाया। कभी कभी छोटी छोटी बातें भी कितनी सुन्दर लगती हैं! दिमाग में रश्मि के साथ वाले सुख भरे दिनों का दृश्य घूम गया। होनी कितनी प्रबल है! उसको कौन टाल सकता है?

अगली सुबह जब फरहत घर आई, तो सुमन को वहां उपस्थित देख कर थोड़ा अचरज में आ गई .. फिर उसको तुरंत समझ में आ गया। 



“फरहत! आओ! आज हम सभी साथ में नाश्ता करेंगे?” उसको बताने से ज्यादा, मैं पूछ रहा था।

उसको लग गया की अब फैसले की घड़ी है, तो उसने भी कोई न नुकुर न करते हुए हमारे साथ होने में भलाई समझी। लेकिन, मैं कुछ कहता, उससे पहले ही फरहत ने सुमन से पूछा,

“नीलू, तुमने इनको बता दिया?”

सुमन शरमाते हुए मुस्कुराई, और साथ ही उसने हाँ में सर हिलाया।

“ओह नीलू!” कहते हुए उसने सुमन को अपने गले से लगा लिया! 

“आई ऍम सो हैप्पी फॉर यू!” 

“थैंक यू, फरहत!” सुमन बस इतना ही कह सकी।

“रूद्र,” फरहत ने मेरी तरफ मुखातिब होते हुए कहा, “आपको कुछ कहने की ज़रुरत नहीं है.. बस इतना बता दीजिए, कि आप सुमन से शादी करेंगे?”

अचानक ही मेरा लम्बा चौड़ा भाषण देने का प्लान चौपट हो गया! मेरी बोलती कुछ क्षणों के लिए बंद हो गयी।

“अरे कुछ बोलिए भी!”

“फरहत...”

“हाँ, या ना?”

“ह्ह्हान!” मेरे मुँह से बेसाख्ता निकल गया।

फरहत मुस्कुरा दी.. उसकी आँखों से आंसू भी निकल आये! भरे हुए गले से उसने मुझे बधाई दी ...

“वैरी गुड चॉइस! सच में! अगर तुम नीलू से शादी न करते, तो मुझसे बुरा कोई न होता! हूहूहू..” वो रोने लगी, “कम, गिव मी अ हग!” 

सुमन तुरंत ही फरहत से लिपट कर रोने लगी! मैं भी संकोच करते हुए उससे लिपट गया।

“मेरे सामने नंगा होने में शर्म नहीं आती, लेकिन मुझे हग करने में शर्म आती है? कम... हग मी प्रोपरली..” फरहत ने रोते हुए हिचकियों के बीच में मुझे झाड़ लगाई।

अब तक मेरे भी आँसू निकलने लगे। हम तीनो न जाने कितनी देर तक यूँ ही आपस में लिपट कर रोते रहे, फिर अलग हो कर हमने साथ में नाश्ता किया।

नाश्ते के बाद सुमन ने फरहत का हाथ थाम कर उससे कहा,

“फरहत, चाहे कुछ भी हो, ये घर आपका भी है!” 

फरहत ने बीच में कुछ कहना चाह तो सुमन ने कहा, “मुझे बोल लेने दीजिए, प्लीज! मेरे लिए आपका दर्जा मेरी दीदी के जैसा है! इस घर में आपकी इज्ज़त उन्ही के जैसे होगी। मेरी एक विनती है आपसे – आप यहीं पर रहिए!”

फरहत फिर से रोने लगी, “न बाबा! तुम दोनों जब साथ में आहें भरोगे, तो मेरा क्या होगा?” बेचारी, इस बुरी हालत में भी वो मज़ाक करने से नहीं चूक रही थी।

सुमन ने कहा, “तो फिर ठीक है! हम दोनों तब तक शादी नहीं करेंगे, जब तक आपके आहें भरने का परमानेंट इंतजाम न कर दें! क्यों ठीक है न?” ये आखिरी वाला मेरे लिए था!

“क्या मतलब?” मुझे वाकई नहीं समझ आया।

“आप दीदी के लिए कोई अच्छा सा लड़का ढूंढिए न! जब तक इनकी शादी नहीं होगी, मैं भी नहीं करूंगी!” सुमन ने फैसला सुनाया।



ऐसा नाटकीय दिन शायद ही किसी के जीवन में हुआ हो!

अब अच्छा सा लड़का यूँ ही तो नही मिलता है! देखना पड़ता है, लड़के की पृष्ठभूमि की जांच करनी होती है, फिर दोनों एक दूसरे को पसंद भी करने चाहिए! अगर प्रेम के अंकुर निकल पड़ें, तो और भी अच्छा! इसको एक अद्भुत संयोग ही मानिए कि कोई दो महीने बाद, मेरी मुलाकात मेरे अभियांत्रिकी की पढाई के दिनों के एक मित्र से हुई। उसका नाम अमर है। वो मुझसे मिलने मेरे घर आया था – मैं अभी भी ऑफिस नहीं जा रहा था, और घर से ही काम करता था। वो एक महीने के लिए भारत आया हुआ था – वैसे अभी लक्समबर्ग में रहता था, और वहीं पर उसने अपना बिजनेस जमा लिया था। उसको मेरी दुर्घटनाओं के बारे में मालूम पड़ा तो मिलने चला आया – वैसे उसका घर दिल्ली में था। उसने अभी तक विवाह नहीं किया था।


मिलने आया तो उसकी हम सभी से मुलाक़ात हुई। मुझे तुरंत ही समझ आ गया की उसको फरहत में दिलचस्पी है। मैंने उसको पूछा की वो कहाँ ठहरा हुआ है, तो उसने होटल का नाम बताया। मैंने जिद से वहां की बुकिंग कैंसिल कर दी, और हज़ारों कसमें दे कर उसको यहीं मेरे घर पर रहने को कहा। इससे एक लाभ यह था की मेरे पुराने मित्र से मैं देर तक बातें कर पाऊँगा, और दूसरा यह की फरहत और अमर को एक दूसरे से बातें करने का भी अवसर मिलेगा। 

हमारी बातों में मैंने जान बूझ कर फरहत का कई बार ज़िक्र किया, जिससे वो उसके बारे में और प्रश्न पूछे, और उसके बारे में ठीक से जान जाय। बाकी सब तो प्रभु की इच्छा! एक और बात थी – वो मैंने किसी को नहीं बताई थी, और वो यह, की अमर का लिंग मेरे लिंग से बड़ा था। लम्बाई में भी, और मोटाई में भी। मुझे कैसे मालूम? अरे दोस्तों, बी टेक का हाल अब न ही पूछिए! भाई को एक बार दारू पीना का शौक चर्राया था। न जाने कितनी ही बार मद में लड़खड़ाते हुए अमर को मैंने टॉयलेट में ले जा कर मुताया था। पैन्ट्स में से उसका लंड बाहर निकालने पर कई बार खड़ा हुआ भी रहता था। ऐसे में मुताने के लिए.... अब छोडिये भी! 
अगर इन दोनों की शादी हो जाय, तो वाकई, फरहत की आहें भरने का परमानेंट इंतजाम हो जाए! और सबसे बड़ी बात यह, की अमर एक बहुत अच्छा लड़का, मेरा मतलब आदमी, भी है। वो इस समय अपने करियर और जीवन के उस मुकाम पर है, जहाँ पर उसको एक साथी की आवश्यकता थी। उसके वापस दिल्ली जाने के दो दिनों बाद जब फरहत के लिए उसका फोन आया, तो मुझे जैसे मन मांगी मुराद मिल गयी! उसके एक सप्ताह के बाद, फरहत ने शादी के लिए उससे हाँ कर दी! भले ही उन दोनों को एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ न मालूम हो, लेकिन मुझे यकीन था की लड़की वाकई, बहुत खुश रहेगी! और अमर भी! 

अमर और फरहत की शादी जैसे आंधी तूफ़ान की तरह हुई! दोनों ने कोर्ट में जा कर शादी करी थी – फरहत के अब्बू ने फ़िज़ूल की न नुकुर तो करी, लेकिन अमर के लायक न होने का कोई कारण न ढूंढ सके। अब बस हिन्दू मुसलमान के फर्क के कारण ऐसी शादी तो कोई नहीं छोड़ सकता है न? लिहाजा, दोनों की शादी आराम से हो गयी। वैसे भी अमर दिखावे के सख्त खिलाफ है – इसलिए शादी में सुमन, मैं, फरहत के अब्बू, और पांच और मित्रों के अतिरिक्त और कोई नहीं आमंत्रित था। शादी दिल्ली में हुई, और वहीँ पर रजिस्टर भी। वैसे तो काफी सारा प्रपंच करना पड़ता है कोर्ट की शादी में, लेकिन उसने कुछ दे दिला कर हफ्ते भर में ही दिन निकलवा लिया। किसी को उनकी शादी पर भला क्या आपत्ति हो सकती थी।

हम सभी ने बहुत मज़े किये। शादी के बाद, एक पांच सितारा होटल में खाना पीना हुआ, नृत्य भी – हम चारों ने एक दूसरे के साथ डांस भी किया। सुमन भी पूरा समय अमर को जीजू जीजू कह कर छेड़ती रही। फिर हम सबने विदा ली, और उनको अकेला छोड़ दिया। वापसी की फ्लाइट में सुमन ने पूछा,
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12-17-2018, 02:22 AM,
#90
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
सुमन का परिप्रेक्ष्य


मैं कमरे में रखे हुए आईने में अपने प्रतिबिम्ब को निहार रही थी। जो दिखा बहुत ही आश्चर्यचकित करने वाला था। वैसे भी जब कोई लड़की दुल्हन का परिधान धारण करती है, तो वो बिलकुल अलग सी ही लगने लगती है। और, मेरी सबसे प्रिय सहेली भानु ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी मुझको सजाने में... भानु की ही जिद थी कि मैं लहँगा-चोली पहनूँ। रंग भी उसी ने पसंद किया। वैसे तो मैं सब कुछ रूद्र की ही पसंद का पहनना चाहती थी, लेकिन रूद्र चाहते थे कि मैं अपनी ही पसंद का पहनूँ! अब ऐसे में कोई रास्ता कैसे निकलता? इस मतभेद के कारण न तो मेरी, और न ही रूद्र की चली... और मैं अब भानु की पसंद का ही पहन रही थी, और यह हम दोनों को ही आसान लगा।

मैंने रस्ट (जंग लगे लाल) रंग का लहंगा चोली पहना हुआ था – भानु के कहने पर चोली इस प्रकार सिली गयी थी जिसमे से पीठ का लगभग सारा हिस्सा एक गोल से दिखता था। ऐसे में मैं उसके अन्दर कुछ नहीं पहन सकती थी। इसलिए आगे की तरफ स्तनों को संबल देने के लिए पैडिंग लगाई गयी थी।चोली को पीछे की तरफ से बाँधने के लिए ऊपर नीचे डोरी की जोड़ी थी। नंगी पीठ को ढंकने के लिए सर पर उसी रंग की चुनरी थी। लहंगा कुछ कुछ अनारकली टाइप का था। पूरे परिधान पर कुंदन की कारीगरी की गई थी.. इस समय मैं वाकई किसी राजकुमारी जैसी लग रही थी।


ओह! एक मिनट! कहानी एकदम बीच से शुरू हो गयी! शुरू से बताती हूँ... अमर और फरहत की देखा देखी, हमने भी कोर्ट में शादी करने का फैसला किया। रूद्र चाहते थे की कुछ तो धूम धाम होनी चाहिए – दरअसल उनको मन में था की मेरे भी अपनी शादी को लेकर कई सारे अरमान होंगे। लेकिन उस उल्लू को यह नहीं समझ आया की जिस लड़की का अपने अरमानो के रजा के साथ विवाह हो, उसको किसी दिखावे की क्या आवश्यकता? हमने किसी को कुछ घूस इत्यादि नहीं दी – और एक महीने के बाद हमारी भी शादी हो गयी। शादी में मेरे प्रिंसिपल, सारे टीचर, मेरे कई दोस्त, भानु (वो तो मेरी सबसे ख़ास है), रूद्र के ऑफिस के कुछ मित्र, और श्रीमति देवरामनी आमंत्रित और उपस्थित थे। हमने एक दूसरे को वरमाला पहनाई! कोर्ट कचहरी की मारा मारी थी, इसलिए मैंने शलवार कुरता, और रूद्र ने टी-शर्ट और जीन्स पहनी हुई थी। यहाँ से वापस घर जा कर अपने राग रंग वाले परिधाना पहनने का प्लान था।

पिताजी धर्म परायण व संस्कारी व्यक्ति थे। जात, बिरादरी, गाँव, घर, धर्म-कर्म में उनकी गहरी रुचि थी। हमेशा से ही उनके लिए धर्म और रीति-रिवाजों की पालना करना परम कर्तव्य था। यदि वो आज जीवित होते तो क्या सोचते? क्या वो मुझे रूद्र के साथ शादी करने देते? शायद! या शायद नहीं! कुछ कहा नहीं जा सकता! एक ही आदमी को अपनी दोनों बेटियां क्या कोई सौंप सकता है? संभव भी हो सकता है – यदि पिता को मालूम हो की वो आदमी हर तरह से अच्छा है, और उनकी पुत्रियों को प्रेम कर सकता है! मुझे आज उनकी, माँ की, और दीदी की – सबकी रह रह कर याद आती रही। बस, दिल में यह सोच कर दिलासा कर लिया की वो सभी मुझे वहीँ ऊपर, स्वर्ग से आशीर्वाद दे रहे होंगे!

हम सबने एक पांच सितारा होटल में साथ में लंच किया। काफी देर तक गप्पे लड़ाई, और फिर घर आ गए।

सुहागरात आ ही गई। मेरी दूसरी सुहागरात! अपनी बीवी की छोटी बहन के साथ! मन में अजीब सा लग रहा था – एक अजीब सी बेचैनी! एक होता है प्रेम करना – बिना किसी तर्क के, बिना किसी वाद प्रतिवाद के, बिना किसी लाभ हानि के हिसाब के! रश्मि के साथ मैंने प्रेम किया था। सुमन से भी मुझे प्रेम था, लेकिन एक प्रेमी के जैसा नहीं! अभी तक नहीं। वो अभी भी मुझे रश्मि की छोटी बहन ही लगती – वो ही छोटी सी लड़की जो मुझे ‘दाजू’ कह कर बुलाती थी, और फिर जीजू कह कर! अब वही लड़की मुझे पति कह कर बुलाएगी? पति बना हूँ, तो पति धर्म भी निभाना पड़ेगा। रश्मि के साथ मुझे बहुत आत्म-विश्वास था, लेकिन सुमन के बारे में सोच सोच कर ही नर्वस होता जा रहा हूँ!

मुझे नहीं मालूम था की सुमन को सेक्स के बारे में कितना मालूम था। मैंने और रश्मि ने एक बार उसको कर के दिखाया था : उस दिन तो वो बहुत अधिक डर गई थी। उसने हमको कहा भी था, कि वो किसी के साथ भी ऐसे नहीं कर सकेगी! न करे तो ही ठीक है! अपनी से चौदह साल छोटी लड़की के साथ कोई कैसे सेक्स करे भला? लेकिन कुछ भी हो – एक लड़की का संग मिलने का सोच कर एक प्रकार का आनंद तो आ ही रहा था। साथ ही साथ मेरे मन में कई प्रका के सवाल भी उठ रहे थे – अगर सेक्स करने तक बात पहुंची, तो क्या सुमन मेरा लंड ले सकेगी? उसकी योनि कैसी होगी? उसे कितना दर्द होगा? इत्यादि! खैर, इन सब प्रश्नों का उत्तर तो रात के अंक (आलिंगन / आगोश) में समाहित थे – जैसे जैसे रात आगे बढ़ेगी, उत्तर आते जायेंगे!


खैर, अंततः मैं ‘हमारे’ कमरे में दाखिल हुआ। हमारा कमरा भानु, सुमन की दो अन्य सहेलियों – अनन्या और ऋतु, और श्रीमति देवरामनी के निर्देशन में सजाया गया था। कमरा क्या, एक तरह का पुष्प कुटीर लग रहा था! हर तरफ बस फूल ही फूल! दरवाज़ा खुलते ही पुष्पों की प्राकृतिक महक से मन हल्का हो गया। मन में जो सब अपराध बोध सा हो रहा था, अब जाता रहा। फर्श पर फूल, दीवारों पर फूल, बिस्तर पर फूल, खिडकियों पर फूल! पुष्पों की ऐसी बर्बादी देख कर मुझे थोड़ा निराशा तो हुई, लेकिन अच्छा भी लगा। गुलाब, गेंदे, रजनीगंधा, रात रानी और चंपा के पुष्प! मादक सुगंध! बिस्तर के बगल रखी नाईट टेबल पर पानी की बोतल और मिठाई का डब्बा रखा हुआ था। बिस्तर पर सुमन बैठी हुई थी, और अपनी सहेलियों के साथ गुप चुप बातें कर रही थीं! 

मुझे देखते ही भानु चहकते हुए बोली, “जीजू मेरे, आइये आइये! आपका खज़ाना आपके इंतज़ार में कब से व्याकुल है!” फिर मेरे एकदम पास आ कर मेरे कान में फुसफुसाते हुए बोली, “ज़रा सम्हाल के चोदियेगा! बेचारी की चूत एकदम कोरी है!”

भानु को ऐसे नंगेपन औए बेशर्मी से बात करते देख कर मुझे हल्का सा गुस्सा आया। कैसी कैसी लड़कियों से दोस्ती है सुमन की? 

“तुझे इतनी फिकर है तो आ, पहले तुझे ही निबटा दूं?”

लेकिन मुझे उसकी बेशर्मी का ज्ञान नहीं था। मेरी बात सुनते ही वो तपाक से बोली, “आय हाय जीजा जी, आपकी बीवी बिस्तर पर बैठी है, और आप उसकी सहेली की मारना चाहते हैं! वैरी बैड!! पहले उसकी सील तो खोल दीजिए... जब आप बाहर निकलेंगे, तो मैं भी ‘खोल’ कर रखूंगी! ही ही ही!”

भानु की गन्दी बातों से मूड ऑफ हो गया! 

“कैसी बेहया लड़की है तू?”

“जीजू! आपकी साली हूँ! हमारे रिश्ते में छेड़खानी करने का बनता है न?” मेरी डांट के डर से उसका चहकना कुछ कम तो हुआ। मुझे भी लगा की आज के दिन किसी को डांटना नहीं चाहिए। 



“सॉरी!” मैं बस इतना ही कह पाया।

“सॉरी से काम नहीं चलेगा! सुमन की हम सब रखवाली हैं.. रोकड़ा निकालिए, रोकड़ा... तब अन्दर जाने को मिलेगा! ऐसा थोड़े ही है की कोर्ट में शादी कर लोगे, तो हमको हमारी नेग नहीं मिलेगी! क्यों लड़कियों?”

अन्दर से सभी लड़कियों ने एक स्वर में भानु की इस बात का समर्थन किया। मैंने कुछ देर तक उन सबको छेड़ा और विरोध किया – लेकिन फिर उन तीनो को हज़ार हज़ार रुपए पकड़ाए और,

“चल .. दफा हो!” कह कर मैंने उनको कमरे से बाहर निकाल दिया।

"हाँ हाँ! जाइए जाइए.. अपने कबाब को खाइए.. हमारी क्या वैल्यू!!" कह कर वो ठुनकते हुए बाहर चली गयी। बाकी दोनों भी उसके पीछे पीछे मुस्कुराते हुए हो ली। मैं कुछ करता, उसके पहले ही मेरे पीछे उन दोनों में से किसी ने दरवाज़ा बंद कर लिया। मैं धीरे धीरे चलते हुआ जब बिस्तर के निकट, सुमन के पास पहुंचा, तो उसने बिस्तर से उठ कर मेरे पैर छूने की कोशिश करी। मैंने उसको कंधे से पकड़ कर रोक लिया,


“नीलू, हम दोनों पति पत्नी हैं – मतलब दोनों बराबर हैं!”

“लेकिन आप तो मुझसे बड़े हैं न...”

“शादी में दोनों बराबर होते हैं!”

“लेकिन आप तो..”

“अगर तुम मुझसे बड़ी होती, तो क्या मुझे भी तुम्हारे पैर छूने पड़ते?”

उसने तुरंत न में सर हिलाया।

“इसी लिए कह रहा हूँ, कि हम दोनों बराबर हैं! तुम्हारी जगह मेरे दिल में है! आओ इधर..” 

कह कर मैंने उसको अपने गले से लगा लिया। उसको इस तरह से गले से लगाने से मुझे पहली बार उसके स्तनों का आभास हुआ – कैसे ठोस गोलार्द्ध! अचानक ही मन की इच्छाएँ जागृत हो गईं!

मैंने उसको वापस बिस्तर पर बैठाया, और उसके पास ही बैठ गया।

“देखने दो मेरी छोटी सी दुल्हनिया को!” 

मेरी बात पर सुमन मुस्कुराई। सचमुच सुमन बेहद सुन्दर लग रही थी। साधारण सा मेकअप किया गया था – लेकिन उसका परिणाम जबरदस्त था! उसकी सुन्दर लाल रंग की, बूते लगी लहंगा चोली, माथे पर बेंदी, नाक में नथ, कानो में मैचिंग बालियाँ, और गले में स्वर्ण-माला! माथे पर छोटी सी लाल रंग की बिंदी, और होंठों पर उसी रंग की लाली! कुल मिला कर एक बहुत की सुन्दर कन्या! उसके कजरारे बड़े बड़े नयन! और मुस्कुराता हुआ चेहरा.. जैसा मैंने पहले भी कहा है, भारतीय दुल्हनें, साक्षात रति का रूप होती हैं! न जाने कैसे मुझे ऐसी दो दो रतियों का साथ मिला! ऐसी लड़की पर तो स्वयं कामदेव का भी दिल आ जाय!!

उसका एक हाथ देख कर मैंने कहा,

“अरे वाह! ये मेहंदी तो बहुत सुन्दर रची है...”

“आपको अच्छी लगी?”

“बहुत!” कह कर मैंने कुछ देर ध्यान से उसकी मेहंदी की डिज़ाइन देखी... जैसे की अक्सर होता है, दुल्हनो की मेहंदी में पति का नाम भी लिखते हैं.. कुछ देर की मशक्कत के बाद मुझे अपना नाम लिखा हुआ दिख गया!

“अरे वाह! यहाँ तो मेरा नाम भी लिखा हुआ है!”

सुमन हौले से मुस्कुराई।

“और भी कहीं लगवाई है मेहंदी?”

“हाँ! पांव पर भी..” कह कर उसने अपना पांव आगे बढ़ाया। पांव और आधी टांग पर मेहंदी सजी हुई थी। कुछ देर वहां की डिज़ाइन का निरीक्षण करने के बाद मुझे लगा कि अब चांस लेना चाहिए।

“यहाँ नहीं लगवाया?” मैंने उसके स्तनों की तरफ इशारा किया। पति पत्नी के बीच तो ऐसे न जाने कितने ही अनगिनत छेड़खानियाँ होती हैं, लेकिन मुझे ऐसे बोलते हुए कुछ अप्राकृतिक सा लगा।

मेरी बात पर सुमन बुरी तरह शर्मा गयी, और न में सर हिलाया।

“ऐसे कैसे मान लूं? आओ.. देखूं तो ज़रा..” कह कर मैंने उसके सर से चुनरी अलग कर दी। चोली के कोमल कपडे से ढके उसके युवा स्तनों का आकार दिखने लगा।

“यह ब्लाउज का कपड़ा बहुत कोमल है.. लेकिन, यहाँ (उसके स्तनों की तरफ इशारा करते हुए) से अधिक यह यहाँ (बिस्तर के किनारे की तरफ इशारा करते हुए) ज्यादा अच्छा लगेगा!”

वो शर्म से मुस्कुराई।

“आपको एक बात मालूम है?” उसने अचानक ही कहा।


“क्या?”

“ब्लाउज उतारने से पहले, बीवी को कुछ पहनाना भी होता है?”

अरे हाँ! वो मुँह-दिखाई की रस्में! कैसे भूल गया! मुझे तो एक्सपीरियंस भी है!

“ओह हाँ! याद आया.. एक मिनट!” 

कह कर मैं उठा, और अलमारी की तरफ जा कर, सेफ के अन्दर से एक जड़ाऊ हीरों का हार निकाला। यह हार ऐसा बना हुआ था जैसे की दो मोर पक्षी अपनी गर्दनों से आपस में छू रहे थे, और उनके पंख विपरीत दिशा में दूर तक फैले हुए थे। मोर के ही रंग की मीनाकारी की गई थी। यह मैंने स्पेशल आर्डर दे कर सुमन के लिए बनवाया था। मेरे हिसाब से एक नायाब उपहार था। उम्मीद थी, की उसको यह ज़रूर पसंद आएगा।

मैं मुस्कुराते हुए सुमन के पास आया, और उसके सामने एकदम नाटकीय तरीके से वो हार प्रस्तुत किया,

“टेन टेना!”

उसको देख कर सुमन की आँखें विस्मय से फ़ैल गईं। 

“ये क्या है?? बाप रे!”

“ये है.. आपको पहनाने के लिए.. पहना दूं?”

“ल्ल्लेकिन.. मेरा ये मतलब नहीं था...”

“मतलब? मैं समझा नहीं..”

“आपने अभी तक सिन्दूर नहीं डाला! और मंगलसूत्र...” उसकी आँखें कुछ नम सी हो गईं।

हे देव! ये तो गुनाहे अज़ीम हो गया मुझसे! एकदम से मेरी भी बोलती बंद हो गई। मैंने जल्दी से इधर उधर देखा – सिन्दूर दान तो बगल टेबल पर दिख गया। मैंने उसको उठाया। वो सौ ग्राम का डब्बा कितना भारी प्रतीत हो रहा था उस समय, मैं यह बयां नहीं कर सकता। कोर्ट में एक दूसरे को वरमाला पहनाना, और यहाँ पर उसकी मांग में सिन्दूर डालना – दो बिलकुल भिन्न बातें थीं। सुमन की मांग को भरते समय मुझे अचानक ही नई जिम्मेदारी का भान होने लगा। ऐसा नहीं की कोर्ट की शादी का कोई कम मायने है.. लेकिन सिन्दूर जैसी परम्पराएँ बहुत गंभीर होती हैं। मैंने देखा की सुमन के होंठ भावनाओं के आवेश में कांप रहे थे। 

“मंगल...” उसने इशारा कर के टेबल की दराज खोलने को कहा। बात पूरी नहीं निकली। लेकिन मैं समझ गया।

मैंने दराज खिसकाई तो उसमें छोटे छोटे काले मोतियों से सजा सोने का मंगलसूत्र दिखा। सच कहूं, यह मेरे लाये गए हार से कहीं अधिक सुन्दर था। सरल, सादी चीज़ों का अपना अलग ही आकर्षण होता है। मेरे खुद के हाथ अब तक हलके से कांपने लग गए थे। मैंने सुमन को मंगलसूत्र भी पहना दिया – हाँ, अब हो गयी वो पूरी तरह से मेरी पत्नी!

“अब आपको जो मन करे, उतार लीजिए!” उसने आँखें नीची किये हुआ कहा।

मुझे यकीन नहीं हुआ जब उसने ऐसा कहा।

“सच में?”

अब वो बेचारी क्या कहती? मैं भी क्या ही करता? ऐसी सुन्दर, अप्सरा जैसी पत्नी अगर मिल जाय, तो कोई कैसे खुद पर काबू रखे? इतना तो समझ आ रहा था कि उसकी चोली पीछे से खुलेगी। लेकिन मैं अपना नाटक कुछ देर और करना चाहता था। और मैंने बटन ढूँढने के बहाने उसकी चोली के सामने की तरफ कुछ देर तक पकड़म पकड़ाई करी। वैसे, सुमन को इस प्रकार से छेड़ने में मुझे अभी भी सहजता नहीं आई!! फरहत के साथ तो आराम से हो गया था.... फिर अभी क्यों..?


उधर, सुमन की हालत देख कर लग रहा था की उसका इतने में ही दम निकल जाएगा। उसने न जाने कैसे कहा,

“प प प्प्पीछे से...”

हाँ! पीछे से ही डोरी खुलनी थी। चोली की डोर पीछे से चोलने के दो तरीके हैं – या तो लड़की की पीठ को अपने सामने कर दो, या फिर लड़की के सामने से चिपका कर! मैंने दूसरा रास्ता ठीक समझा, और सुमन से चिपक कर उसकी चोली की डोर खोलने का उपक्रम शुरू किया। दो गांठें खोलने में कितना ही समय लगता है? झट-पट सुमन की पीठ नंगी हो गई। लेकिन मैंने आगे जो किया, उससे सुमन भी आश्चर्यचकित हो गई होगी – मैं पहले ही उससे चिपका हुआ था, और फिर उसी अवस्था में मैंने सुमन को जोर से अपने सीने से लगाया। ऐसा करते ही अचानक ही मेरे अन्दर प्रेम की भावना बलवती हो गई – मैंने कहा प्रेम की, न की भोग की! मैंने सुमन को दिल से धन्यवाद किया – हर काम के लिए, जो उसने मेरे लिए किया था।
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