Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:16 AM,
#61
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने न जाने किस भावना में आकर यह सब कह दिया!

“आय हाय! मेरी बन्नो! तू तो पूरी वात्स्यायन बन गई है!”

“हा हा हा!” सभी ने अठखेलियाँ भरीं।

“रोज़ रोज़ कामसूत्र की नयी नयी कहानियाँ जो लिखती है...!”

“अच्छा, ये बता.. और क्या क्या करती है तू?”

“और क्या?”

“अब हमें क्या मालूम होगा? देख री, तेरी इस क्लास की हम सब स्टूडेंट्स हैं... जो भी कुछ मालूम है, और जो भी कुछ किया है, वो हमको बता दे प्लीज़! हमारा भी उद्धार हो जाएगा!!”

“अच्छा, एक बात बता तो! तुम दोनों पूरी तरह से नंगे हो जाते हो क्या?”

मैं फिर से शरमा गई, “तेरे जीजू का बस चले तो मुझे हमेशा नंगी ही रखें! बहुत बदमाश हैं वो!” 

“सच में? लेकिन तू तो इतनी बड़ी लड़की है, नंगी होने पर शरम नहीं आती?”

“आती तो है... लेकिन मैं क्या करूँ? वैसे भी.. अपने ही पति से क्या शरमाऊँ? वो अपने हाथों से मेरे कपड़े उतारते हैं, और मुझे पूरी नंगी कर देते हैं। लाज तो आती है, लेकिन रोमान्च भी भर जाता है।“

“हाँ! वो भी ठीक है! अच्छा, एक अन्दर की बात तो बता... तूने जीजू का .... लिंग ... छू कर देखा?”

“हा हा हा! अरे पगली, अगर छुवूंगी नहीं, तो सब कुछ कैसे होगा? हा हा!” इस नासमझ बात पर मुझे हंसी आ गयी। “शादी की रात को ही उन्होंने मुझे अपना लिंग पकड़ा दिया था... मेरी तो जान निकल गयी थी उसको देख कर...”

“कैसा होता है पुरुषों का लिंग?”

“बाकी लोगों का नहीं मालूम, लेकिन इनका तो बहुत पुष्ट है। इतना (मैंने हवा में ही उँगलियों को करीब सात इंच दूर रखते हुए बनाया) लम्बा, और मेरी कलाई से भी मोटा है!”

“क्या बात कर रही है? ऐसा भी कहीं होता है?”

“वो मुझे नहीं मालूम... लेकिन इनका तो ऐसा ही है। और तुझे कैसे मालूम की कैसे होता है? किस किस का लिंग देखा है तूने?“

“बाप रे! और वो तेरे अन्दर चला जाता है?” उसने मेरे सवाल की अनदेखी करते हुए पूछा।

“मैंने भी यही सोचा! उनका मोटा तगड़ा लिंग देख कर मैंने यही सोचा की यह मुझमे समाएगा कैसे! उस समय मुझे पक्का यकीन हो गया की आज तो दर्द के मारे मैं तो मर ही जाऊंगी! सोच ले, शादी करने के बाद लड़कियों को बहुत सी तकलीफ़ झेलनी पड़ती हैं। और मेरी किस्मत तो देखो.... उनका लिंग तो हमेशा खड़ा रहता है... कभी भी शांत नहीं रहता! जानती है, मेरी हथेली उनके लिंग के गिर्द लिपट तो जाती है, लेकिन घेरा पूरा बंद नहीं होता। इतना मोटा! बाप रे! और तो और, उनके लिंग की लम्बाई का कम से कम आधा हिस्सा मेरी पकड़ से बाहर निकला हुआ रहता है।” अब मैं भी पूरी निर्लज्जता और तन्मयता के साथ सहेलियों के ज्ञान वर्धन में रत हो गयी।

“अरे तो फिर ऐसे लिंग को तू अन्दर लेती कैसे है?”

“मैंने बताया न... वो यह सब इतने प्यार से करते हैं की दर्द का पता ही नहीं चलता। वो बहुत देर तक मुझे प्यार करते हैं – चूमते हैं, सहलाते हैं, इधर उधर चाटते हैं। जब वो आखिर में अपना लिंग डालते हैं तो दर्द तो होता है, लेकिन उनके प्यार और इस काम के आनंद के कारण उसका पता नहीं चलता।“

ऐसे ही बात ही बात में न जाने कैसे मेरे मुंह से हमारी नग्न तस्वीरों वाली बात निकल पड़ी। कहना ज़रूरी नहीं है की ये सारी लड़कियां हाथ धो कर मेरे पीछे पड़ गईं की मैं उनको ये तस्वीरे दिखाऊँ। किसी तरह से अगले दिन कॉलेज के बाद दिखाने का वायदा कर के मैंने जान छुड़ाई।

अगले दिन कॉलेज के बाद हम चारों लडकियां हमारे बुग्याल/झील वाले झोपड़े की ओर चल दीं। मैं तो आराम से थी, लेकिन बाकी तीनों जल्दी जल्दी चल रही थीं, और मुझे तो मानों घसीट रही थीं। खैर, हम लोग वहां जल्दी ही पहुँच गए। 

“जानती हो तुम लोग... हम दोनों ने यहाँ पर भी.... हा हा!” मैंने डींग हांकी।

“क्या!!!? बेशरम कहीं की! और तुम ही क्या? तुम दोनों ही बेशरम हो! अब तो हमको यकीन हो गया है की तुम दोनों ने ऐसी वैसी तस्वीरें खिंचाई हैं। खैर, अब जल्दी से दिखा दे... देर न कर!“ तीनों उन तस्वीरों को देखने के लिए मरी जा रही थीं।

मैं भी उनको न सताते हुए ‘उन’ तस्वीरों को सिलसिलेवार ढंग से दिखाने लगी। शुरुवात हमारी उन तस्वीरों से हुई जब हम बीच पर नग्न लेटे सो रहे थे, और मौरीन ने चुपके से हमारी कई तस्वीरें खींच ली। उन तस्वीरों में हम पूर्णतः नग्न और आलिंगनबद्ध होकर सो रहे थे। रूद्र मेरी तरफ करवट करके लेटे हुए थे – उनका बायाँ पाँव मेरे ऊपर था, और उनका अर्ध-स्तंभित लिंग और वृषण स्पष्ट दिख रहे थे। मैं पीठ के बल लेटी हुई थी और मेरा नग्न शरीर पूरी तरह प्रदर्शित हो रहा था। सच मानिए, तो कुछ ज्यादा ही प्रदर्शित हो रहा था।

“रश्मि! मेरी जान!” एक सहेली ने कहा, “तुझको मालूम है की तू कितनी सुन्दर है? तुझे देख कर मन हो रहा ही काश मैं मर्द होती तो मैं तुझसे शादी करती! सच में!” कहते हुए उसने मुझे चूम लिया।

“अरे ऐसा क्या है! तुम तीनों भी तो कितनी सुन्दर हो!”

“अगर ये सच होता, मेरी बन्नो, तो जीजू तुझे नहीं, हम में से किसी को चुनते! क्या पैनी नज़र है उनकी!” कह कर एक ने मेरे स्तन पर चिकोटी काट ली।

“चल, अब और सब दिखा..”

आगे की तस्वीरों में मैंने जम कर पोज़ लगाये थे... कभी मुस्कुराती हुई, कभी मादक अदाएं दिखाती हुई! कुछ तस्वीरों में मैं एक पेड़ के तने पर पीठ टिका कर अपने दाहिने हाथ से ऊपर की एक डाली को और बाएँ हाथ से अपने बाएँ पैर को घुटने से मोड़ कर ऊपर की तरफ खींच रही थी। यह तस्वीरें सबसे कामुक थीं – उनमें मेरा पूरा शरीर और पूरी सुन्दरता अपने पूरे शबाब पर प्रदर्शित हो रही थी। कुछ तस्वीरों में मैं अपने चूचक उँगलियों से पकड़ कर आगे की ओर खींच रही थी – शर्म, झिझक, उत्तेजना और गर्व का ऐसा मिला जुला भाव मेरे चेहरे पर मैंने पहले कभी नहीं देखा था। आगे की तस्वीरों में रूद्र अपने आग्नेयास्त्र पर प्रेम से हाथ फिरा रहे थे; फिर उनके लिंग की कुछ अनन्य तस्वीरें आईं, जिसमें पूरे लिंग का अंग विन्यास साफ़ प्रदर्शित हो रहा था।

और फिर आईं वह तस्वीरें जिनको देख कर मेरी सहेलिय दहल गईं। वे तस्वीरें थीं जिनमें मैं रूद्र का लिंग अपने मुंह में लेकर उसको चूम, चूस और चाट रही थी। मुख मैथुन का ऐसा उन्मुक्त प्रदर्शन तो मैंने भी नहीं देखा था पहले... सहेलियों की तो बात ही क्या? वो सभी मत्रमुग्ध हो कर वो सारे चित्र देख रही थीं... उनके लिंग के ऊपर से शिश्नग्रच्छद पीछे हट गया था, जिससे हलके गुलाबी रंग का लिंगमुंड साफ़ दिखाई दे रहा था। आगे की कुछ तस्वीरों में उनका लिंग मेरे मुख की और गहराइयों में समाया हुआ था।

“हाय रश्मि! तुझे गन्दा नहीं लगा?” 

“पहली बार तो कुछ उबकाई आई... लेकिन जब इनको गन्दा नहीं लगता (मेरा मतलब रूद्र द्वारा मुझे मुख-मैथुन करने से था) तो मुझे क्यों लगेगा?”

“अरे जीजू को तो मज़ा आ ही रहा होगा!” फिर उसका दिमाग चला, “एक मिनट... उनको क्यों गन्दा लगेगा?” उसने पूछा।

“नहीं.. मेरा मतलब वो नहीं था.. तेरे जीजू भी तो मुझे वहाँ चू...” कहते कहते मैं शर्मा कर रुक गयी।

“क्या? सच में? हाय! रश्मि! तू सचमुच बहुत लकी है!”

आगे की तस्वीरों में रूद्र मुझे भोगने में पूरी तरह से रत थे - वे कभी मेरे होंठो को चूमते, तो कभी मेरे स्तनों को। और फिर आया आखिरी पड़ाव – उनका लिंग मेरी योनि के भीतर! 

“बाप रे! ऐसे होता है सम्भोग?!” सहेलियां बस इतना ही कह सकीं।

जब तस्वीरें ख़तम हो गईं, तब मेरी सभी सखियाँ भी शांत हो गईं। आज उनको ऐसा ज्ञान मिला था, जो वो अपने उम्र भर नहीं भूल सकेंगी। 

मैंने उनको प्यार से समझाया की सेक्स विवाह का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा है। अगर सिर्फ उसी पर ध्यान लगेगा तो दिल टूटने की पूरी जुन्जाइश है! विवाह तो बहुत ही विस्तीर्ण विषय है... उनका प्यार... वो जिस तरह से मुझे सम्मान देते हैं और मेरी हर इच्छा की पूर्ती करते हैं, वह ज्यादा बड़ी बात है। इसी कारण से उनकी हर इच्छा पूरी करने का मेरा भी मन होता है। जीवन भर के इस नाते को निभाने के लिए पति-पत्नी का एक-दूसरे के प्रति वफादार होना बहुत आवश्यक है। सुख तो तभी होता है। अगर विवाह की नींव बस काम वासना की तृप्ति ही है, तो बस, फिर हो गया कल्याण! ये तो मुझे और पढ़ने, आगे बढ़ने और यहाँ तक की अपना खुद का काम करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। और मुझे मेरे खुद के व्यक्तित्व को निखारने के लिए बढ़ावा दे रहे हैं। ...वो मुझे कैसे न कैसे हंसाने की कोशिश करते रहते हैं.. ऐसा नहीं है की उनकी हर बात, या हर जोक पर मुझे हंसी आती है... लेकिन वो कोशिश करते हैं की मैं खुश रहूँ.. यह बात तो मुझे समझ में आती है! अपने माँ बाप का घर छोड़ कर, उस अनजान जगह पर, अनजान परिवेश में, एक अनजान आदमी के साथ मैं रह सकी, और रहना चाह रही हूँ, अपने को सुरक्षित मान सकी, और उनको मन से अपना मान सकी तो उसके बस यही सब कारण हैं... यह सब कुछ सिर्फ मन्त्र पढ़ने, और रीति रिवाज़ निभा लेने से तो नहीं हो जाता न! 

मेरी सहेलियों ने मेरी इस बात को बहुत ध्यान से सुना। उनके मन में क्या था, यह मुझे नहीं मालूम... लेकिन जब मेरी बात ख़तम हुई, तो सभी ने मुझे कहा की वो मेरे लिए बहुत खुश हैं! और चाहती हैं, और भगवान् से यही प्रार्थना करती हैं की हमारी जोड़ी ऐसे ही बनी रहे, और हम हमेशा खुश रहें।

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12-17-2018, 02:16 AM,
#62
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
एक महीना ज्यादा भी होता है और कम भी! उसका अंतराल इस बात पर निर्भर करता है की हमारी मनःस्थिति कैसी है? मजे की बात यह है की हम दोनों की मनःस्थिति प्रसन्न भी थी, और बेकल भी। प्रसन्न इस बात से की एक एक कर के महीने के सारे दिन बीत रहे हैं, और बेकल इस बात से की कैसे जल्दी से ये दिन बीत जाएँ। विचित्र बात है न की प्रकृति अपने निर्धारित वेग पर चलती रहती है, लेकिन हम मानव अपने मन में कुछ भी सोच सोच कर उसके विचित्र परिमाण बनाते रहते हैं – ‘यह हफ्ता कितनी जल्दी बीत गया’, ‘इस बार यह साल बहुत लम्बा था’ इत्यादि! 

मैंने इस माह सिर्फ तीन काम ही किए – अपना ऑफिस का काम (भगवान् की दया से यह बहुत ही लाभकर महीना साबित हुआ), सेहत बनाना (शादी के बाद इस दिशा में कुछ लापरवाही हो गयी थी.. लेकिन अब वापस पटरी पर आ गयी) और रश्मि की बाट जोहना! 

शनिवार

सवेरे के करीब साढ़े दस बज रहे होंगे – आज वैसे भी बहुत ही आलस्य लग रहा था। सवेरे न तो जॉगिंग करने गया, और न ही कसरत! बस पैंतालीस मिनट पहले ही जबरदस्ती बिस्तर से उठ कर, काफ़ी बना कर, अखबार के साथ पीने ही बैठा था की डोरबेल बजी! 

‘इतने सवेरे सवेरे कौन है!’ सोचते हुए मैंने जब दरवाज़ा खोला तो देखा की सामने हिमानी खड़ी थी। हिमानी याद है न? मेरी भूतपूर्व प्रेमिका!

“हाआआय!” हिमानी का मुस्कुराता हुआ चेहरा जैसे सौ वाट के बल्ब जैसे चमक रहा था। 

मैं भौंचक्क! ‘ये यहाँ क्या कर रही है?’ दिमाग में अविश्वास और संदेह ऐसे कूट कूट कर भरा हुआ है की सहजता समाप्त ही हो चली है मेरे अन्दर। मेरे मुंह से बोल नहीं निकली।

“आज बाहर से ही दफ़ा करने का इरादा है क्या?” हिमानी ने बुरा नहीं माना। अच्छे मूड में लग रही है।

“हे! हेल्लो! आई ऍम सॉरी! प्लीज... कम इन! यू सरप्राइज्ड मी!” मैंने खुद को संयत कर के जल्दी से उसको अन्दर आने का इशारा किया।

“सरप्राइज होता तो ठीक था... तुम तो शाक्ड लग रहे हो! हा हा!” हिमानी हमारे ब्रेकअप से पहले अक्सर घर आती थी, और हम दोनों कई सारे अन्तरंग क्षण साथ में बिता चुके थे... लेकिन वो पुरानी बात है। 

“कॉफ़ी पियोगी?” मैंने पूछा।

“अरे कुछ पीना पिलाना नहीं है! आज तो मस्ती करने का मूड है! रश्मि कहाँ है? उसको शौपिंग करवाने लेने आई हूँ..”

“शौपिंग?” हिमानी को शौपिंग करना बहुत अच्छा लगता था (वैसे किस लड़की/स्त्री को अच्छा नहीं लगता?)।

“रश्मि तो नहीं है..”

“नहीं है? कहाँ गयी?”

“वो अपने मायके गई है..”

“मायके? अरे, अभी तो तुम दोनों वापस आये हो हनीमून से! अभी से दूरियाँ? या फिर तुमने कुछ कर दिया, यू नॉटी बॉय? यू क्नो! हा हा हा!” हिमानी मेरी टांग खींचने से बाज़ नहीं आती कभी भी।

कमाल की बात है! इस लड़की का दिल वाकई बहुत बड़ा है। मैंने ब्रेकअप के बाद, जिस बेरुख़ी से हिमानी से किनारा किया था, मुझे कभी नहीं लगता था की वो मुझसे फिर कभी बात भी करना चाहेगी। लेकिन उसको इस तरह से हँसते बोलते देख कर मुझे यकीन हो गया की उसने मुझे माफ़ कर दिया था। लेकिन फिर भी, मैं अपने नए जीवन में कोई भी या किसी भी प्रकार का उलझाव नहीं आने देना चाहता था। 

‘इसको जल्दी टरकाओ यार!’ मैंने सोचा।

“ऐसा कुछ नहीं है... उसकी क्लासेज हैं न! इसलिए गयी है।“

“क्लासेज? कौन सी? किस क्लास में है वो अभी?” 

“इंटरमीडिएट! आएगी वो दस दिन बाद! तब ले जाना उसको शौपिंग!” मुझे लगा की वो यह सुन कर चली जायेगी।

“व्हाट? इंटरमीडिएट? तुमने ‘बाल विवाह’ किया है क्या? हा हा हा! ओ माय गॉड! बालिका वधू.. हा हा हा!” हिमानी पागलो के तरह सोफे पर हँसते हुए लोट पोट हुई जा रही थी।

“सॉरी सॉरी... हा हा! मेरा वो मतलब नहीं था। मैं बस तुमसे मजे ले रही हूँ.. ओके? डोंट माइंड!” हिमानी अंततः चुप हुई.. और कुछ देर रुकने के बाद बोली, 

“... रश्मि वाकई बहुत प्यारी है। यू आर अ लकी मैन! उस दिन तुम्हारी रिसेप्शन क्रैश करने के लिए मुझे माफ़ कर देना... लेकिन मैं देखना चाहती थी की तुमने किससे शादी की है.. रहा नहीं गया! पुरानी आदत! सॉरी!” उसकी आवाज़ में निष्कपटता थी। 

“लेकिन... उस दिन उसको देखा तो मैं अपना सारा गुस्सा भूल गई! यू डिसर्व्ड हर। वो बहुत प्यारी है... तुम बुरे आदमी नहीं हो... बस थोड़ा बच्चे जैसे हो। वो छोटी है, लेकिन तुमको प्यार करती है – उसकी आँखों में दिखता है। शी विल टेक केयर ऑफ़ यू! और यह मत सोचना की मैं रश्मि से मिल कर तुम्हारी कोई बुराई करूंगी... आई जस्ट वांट टू बी हर फ्रेंड! डू यू माइंड?” हिमानी की यह स्पीच बहुत संजीदा थी। कोई बनावट नहीं।

“आई ऍम सॉरी हिमानी। आई रियली ऍम! शायद तुम सही हो – और मैं वाकई एकदम बचकाना हूँ..”

हिमानी ने मेरी बात बीच में काट दी, “... नहीं बचकाने नहीं.. मेरा मतलब था, तुम मेरे छोटे भाई होने चाहिए थे.. लवर नहीं।“

“तुमने शादी की?”

“तुमको क्या लगता है?”

“ह्म्म्म....” (मतलब नहीं की।)

“प्यार वार के मामले में अपनी किस्मत थोड़ी खोटी है.. खैर, मेरी बात फिर कभी.. तुम बताओ.. नया और एक्साइटिंग तो तुम्हारी लाइफ में चल रहा है.. सबसे पहले ये बताओ की तुमको इतनी प्यारी लड़की मिली कहाँ? ... और हाँ, एक कप कॉफ़ी मेरे लिए भी बना दो!” 

हिमानी से बात करके ऐसा लगा ही नहीं की उससे आखिरी बार तीन साल पहले मिला। ये लड़की बहुत बिंदास थी – पूरी तरह स्वनिर्भर, बेख़ौफ़, और अपने मन की बात कहने और करने वाली। बहुत कुछ सीखा मैंने इससे... लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था! मैंने अपनी उत्तराँचल रोड-ट्रिप और फिर रश्मि और उसके परिवार वालों से मिलने, और फिर हमारी शादी की बात सिलसिलेवार तरीके से सुना दी। हिमानी को यह सुन कर अच्छा लगा की मैंने कम से कम छुट्टियाँ तो लीं..

“ये तो पूरी तरह से फेयरी-टेल है! आई ऍम सो हैप्पी फॉर यू..” फिर घड़ी देखते हुए, “अरे यार! ये तो एक बज रहा है! पूरा प्लान बेकार हो गया... बोलना अपनी बीवी को, की ऐसे इधर उधर रहेगी तो हमारी दोस्ती कैसे होगी?” 

जवाब में मैं सिर्फ मुस्कुरा दिया।

“अच्छा... तो हम चलते हैं..” गाते हुए हिमानी उठने लगी।

मैं मुस्कुराया, “ओके! बाय! यू टेक केयर!”
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12-17-2018, 02:16 AM,
#63
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
“अरे.. दोस्तों को ऐसे विदा करते हैं?” कहते हुए हिमानी ने गले मिलने के लिए अपनी बाहें फैला दीं। अब शिष्टाचार के नाते गले तो मिलना ही चाहिए न? मैं झूठ नहीं बोल सकता – हिमानी को इतने समय बाद वापस गले लगाना अच्छा लगा... बहुत अच्छा! वही पुराना, परिचित और सुरक्षित अनुभव! मैंने उसके बालों में हाथ फिराया – प्रतिउत्तर में उसके गले से हलकी ‘हम्म्म्म’ जैसी आवाज़ निकली। उसको आलिंगन में ही बांधे, मैंने उसके बाल पर एक चुम्बन लिया।

“अरे.. ये तो गलत बात है! अगर किस करना है, तो लिप्स पर करो! बालों पर क्यों वेस्ट करना?” कहते हुए उसने मुझे होंठों पर चूम लिया। और हँसते हुए मेरे बालों में कई बार हाथ फिराया। मैं वहीँ दरवाज़े पर हक्का बक्का खड़ा यह सोचता रह गया की यह क्या हुआ? 

“ओके! टाटा! रश्मि आ जाय तो बताना... आई विल कम!” कहते हुए वह बाहर निकल गयी। और मैं सोचता रह गया की यह सब हुआ क्या?

और जल्दी ही रश्मि के वापस आने दिन आ गया। 

रश्मि ट्राली पर अपना सामान लेकर बाहर निकली। बहुत प्यारी लग रही थी – उसने एक श्वेताभ (ऑफ व्हाइट) कुरता और नीले रंग का शलवार पहना हुआ था। दुपट्टा भी श्वेताभ ही था। नहीं भई – यह कोई यूनिफार्म नहीं था, लेकिन उससे प्रेरित ज़रूर लग रहा था। मेरे साथ तो मैंने कभी भी रश्मि को सिन्दूर, मंगलसूत्र इत्यादि के लिए जबरदस्ती नहीं की – उसके कारण पूछने पर मैं उसको कहता की उसका पति तो उसके साथ है, फिर ऐसी औपचारिकताओं की क्या आवश्यकता? लेकिन उत्तराँचल में वह पूरी तरह से अपने माता पिता की रूढ़िवादी चौकसी के अधीन रही होगी, लिहाजा उसने इस समय सिंदूर, मंगलसूत्र, चूड़ियाँ और बिछिया सब पहन रखी थी। शलवार कुरता पहनने को मिल गया, यही बहुत है। रश्मि कुछ सहमी सी और उद्विग्न लग रही थी। उसकी आँखें निश्चित तौर पर मुझे ही ढूंढ रही थी। 

‘बेचारी! पहला लम्बा सफ़र और वो भी अकेले!’ लेकिन, हर बार तो मैं उसके साथ नहीं जा सकता न! उसको देखते ही मेरे चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ गयी, एक बड़ी सी मुस्कान खुद ब खुद पैदा हो गई। 

“जानू! यहाँ!” मैंने पागलों के जैसे हाथ हिलाते हुए उसका ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट करने का प्रयास किया।
रश्मि ने आवाज़ का पीछा करते हुए जैसे ही मुझे देखा, उसकी बाछें खिल गईं। सामान छोड़ कर वो मेरी तरफ भागने लगी। राहत, ख़ुशी और जोश – यह मिले जुले भाव.. जैसे किसी बिछड़े हुए को कोई अपना मिल गया हो! 

“जानू... जानू!!” न जाने कितनी ही बार वह यही एक शब्द भावुक हो कर दोहराते हुए मेरी बाहों में समां गयी। बहुत भावुक! कितना प्रेम! ओह! मैं इस लड़की को कितना प्यार करता हूँ! मैंने जोश में आकर उसको अपने आलिंगन में ही भरे हुए उठा लिया। न जाने किस स्वप्रेरणा से, रश्मि ने भी अपनी टांगें मेरे इर्द गिर्द लपेट लीं। 

मैंने तुरंत ही अपने होंठ उसके होंठ पर रख दिए – मेरे लिए इससे अधिक स्वाभाविक बात और कुछ नहीं हो सकती थी। कुछ देर तक हमने यूँ ही फ्रेंच किस किया और फिर मैंने रश्मि को वापस ज़मीन पर टिकाया। आस पास खड़े लोग हमारा मेल देख कर ज़रूर लज्जित हो गए होंगे! 

“मेरी जान..?”

“ह्म्म्म म्म्म?” वह मेरी आँखों में देख रही थी – कितनी सुन्दर! वाकई! मैंने नोटिस किया की उसका शरीर कुछ और भर गया था, उसके कोमल मुख पर यौवन के रसायनों का प्रभाव और बढ़ गया था, आँखों की बरौनियाँ और लम्बी हो गईं थीं, होंठों में कुछ और लालिमा आ गयी थी... कुल मिला कर रश्मि का रूप और लावण्य बस और बढ़ गया था। पहाड़ों की हवा में कुछ बात तो है!

“तुम बहुत सुन्दर लग रही हो! .. मैं बहुत बहुत हैप्पी हूँ की तुम वापस आ गयी!”

उसके चेहरे पर तसल्ली, खुशी, थकान और मिलन की भाव, एक साथ थे। हम दोनों बहुत दिनों बाद मिले थे... मिले क्या थे, बस यह समझिये की जैसे अन्धे को आखें और प्यासे को पानी मिल गया हो! इतने दिनों बाद उससे मिल कर दिल भर आया! पुरानी प्यास फिर जग गयी!

“मैं भी...!”

घर आते आते देर हो गई – बहुत ट्रैफिक था। रास्ते में मैंने घर पर सभी का हाल चाल लिया और रश्मि की पढाई लिखाई, सेहत और मेरे काम काज, और मौसम इत्यादि की चर्चा करी। घर आते ही सबसे पहले मैंने खाना लगाया (जो की मैंने एअरपोर्ट जाते समय पहले ही पैक करवा लिया था) और हमने साथ में खाया, और फिर टेबल साफ़ कर के बेडरूम का रूख़ किया। रश्मि अभी तक बेडरूम में नहीं आई थी – आकर वह जैसे ही बिस्तर पर बैठी, उसकी नज़र सामने की दीवार पर अपने नग्न चित्र पर पड़ी।

“अरे ये क्या लगा रखा है आपने? कोई अन्दर आकर देख ले तो?”

“क्या? अच्छा यह? यह तो मेरी जानेमन के भरपूर यौवन का चित्र है। आपके वियोग में इसी को देख कर मेरा काम चल रहा था।“

“आआ.. मेरा बच्चा!” रश्मि ने बनावटी दुलार जताते हुए कहा, “... इतनी याद आ रही थी मम्मी की..” और फिर ये कहने के बाद खिलखिला कर हंस दी। फिर अचानक ही, जैसे कुछ याद करते हुए, “पता है.... माँ ने आपके लिए शुद्ध... पहाड़ी फूलों के रस से बना हुआ शहद भेजा है...” कह कर उसने अटैची से एक बड़ी शीशी निकाली, 

“रोज़ दो चम्मच शहद पीने को बोला है... दूध के साथ! आपको पता है? शहद से विवाहित जीवन और बेहतर बनता है।“ 

“अच्छा जी? ऐसा क्या? तो अब ये भी बता दीजिए की कब खाना है?” मैंने भी मज़े में अपना मज़ा मिलाया।

“रात में...” रश्मि ने आवाज़ दबा कर बोला.. जैसे कोई बहुत रहस्यमय बात करने वाली हो, “प्रेम संबंध बनाने से पहले... हा हा हा..!” 

“हा हा! अरे मेरा शहद तो तुम हो! इसीलिए तो रोज़ तुमको खाता हूँ...” मैं अब मूड में आ रहा था, “ऊपर से नीचे तक रस में डूबी हुई... प्रेम सम्बन्ध बनाने से पहले मैं तो तुम्हारे अधर (होंठ) रस पियूँगा, फिर स्तन रस.. और आखिर में योनि रस...” कह कर मैंने रश्मि को पकड़ने की कोशिश करी। लेकिन वो छिटक कर मुझसे दूर चली गयी।

“छिः गन्दा बच्चा! अकेले रहते रहते बिगड़ गया है.. मम्मी से ऐची ऐची बातें करते हैं? .. ही ही!”

इस खेल में रश्मि के लिए प्रतिकूल परिस्थिति थी, और वह यह की उसके हाथ में भारी सा शहद का जार था। उसने बहुत सहेज कर उसको हमारे बेड के सिरहाने की टेबल पर रख दिया। मैंने तो इसी ताक में था – इससे पहले रश्मि कुलांचे भरती हुई कहीं और भाग पाती, मैंने उसको धर दबोचा। उसको पीछे से पकड़ने के कारण उसके स्तन मेरे दबोच में आ गए। महीने भर की प्यास पुनः जाग गयी : मैंने उनको बेदर्दी से दबाते और मसलते हुए, उसके खुले गले पर होंठों और दांतों की सहायता से एक प्रगाढ़ चुम्बन लिया। रश्मि सिसकने लगी। 

“आह... क्यों इतने बेसब्र हो रहे हो?” चुम्बन जारी है, “...अआह्ह्ह.... आराम से करो न! कहीं भागी थोड़े ही न जा रही हूँ...” मैंने उसके बोलते बोलते ही जोर से चूसा, “...सीईईई! आह!”

“एक महीना तुमने तड़पाया है... आज तो बदला लेने का भी दिन है, और पूरा मज़ा लेने का भी...” और वापस चूमने में व्यस्त हो गया।

रश्मि अभी तक यात्रा वाले कपड़ो में ही थी.. उनसे मुक्त होने का समय आ गया था। 

“बच्चे को मम्मी का दुद्धू पीना है...” मेरी आवाज़ उत्तेजनावश कर्कश हो गयी, “... अपनी चूचियां तो खोलो...” गन्दी बात शुरू! और मेरे हाथों की गतिविधियाँ भी! 

मैं कभी उसके स्तन दबाता, तो कभी उसके खुले हुए अंगों पर ‘लव बाईट’ बनाता। रश्मि की हल्की हल्की सिसकारियाँ निकलने लगी थी। उसने मुझे इशारे से बताया की लाइट भी जल रही है और खिड़की पर पर्दा भी नहीं खींचा है, कोई देख सकता है। 

मुझे इस बात की परवाह नहीं थी... वैसे भी इतनी रात में भला कौन जागेगा? और अगर कोई इतनी रात में जागे, तो उसको कुछ पारितोषिक (ईनाम) तो मिलना चाहिए! मैंने रश्मि को पलट कर अपनी तरफ मुखातिब किया। उसकी आँखें बंद थीं। मैंने अपनी उंगली को उसके नरम होंठों पर फिराया, और फिर उसके होंठों को चूमने लगा। ‘उम्म्म! परिचित स्वाद!’ रश्मि भी चुम्बन में मेरा पूरा साथ देने लगी। एक दूसरे के होठों को प्रगाढ़ता से चूमने चूसने के दौरान मैंने उसकी कमर पर हाथ रख दिया और कुरते के अंदर हाथ डाल कर उसकी कमर को सहलाने लगा। बीच बीच में उसकी नाभि में उंगली से गुदगुदाने लगा। 

कपड़े तो खैर मैंने भी अभी तक चेंज नहीं किये थे। रश्मि भी अपनी तरफ से पहल कर रही थी – उसने मेरी पैंट की जिप खोली, और मेरी चड्ढी की फाँक में अपना हाथ प्रविष्ट कर के मेरे लिंग को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर बाहर निकाल लिया। ऊपर चुम्बन, नीचे रश्मि की कमर को सहलाना, और मेरे लिंग का सौम्य मर्दन! इन सब में मुझे बड़ा मजा आ रहा था। मैंने एक हाथ को उसके कुरते के अन्दर ही ऊपर की तरफ एक स्तन की तरफ बढाया, और दूसरे हाथ को उसके शलवार और चड्ढी के अन्दर डालते हुए उसकी योनि को छुआ।

‘वैरी गुड! उत्तेजना से फूली हुई... गर्म.... नम... योनि रस निकल रहा था।‘ मैंने कुछ देर अपनी उंगली को योनि की दरार पर फिराया, और फिर उसको निर्वस्त्र करने का उपक्रम शुरू किया। कुरता उतारते ही एक अद्भुत नज़ारा दिखाई दिया। उसके गोरे गोरे शरीर पर, स्तनों को कैद किये हुए काले रंग की ब्रा थी! गले में पड़ा मंगलसूत्र दोनों स्तनों के बीच में पड़ा हुआ था। सचमुच रश्मि का शरीर कुछ भर गया था - कमर और स्तनों में और वक्रता आ गयी थी! इस समय रश्मि किसी परी को भी मात दे सकती थी! मैंने हाथ बढा कर उसके स्तनों को हल्के से दबाया।

“ये दोनों.. थोड़े बड़े हो गए हैं क्या?”

रश्मि खिलखिला कर हंस दी, “और क्या! आप नहीं थे, इसलिए आपके हाथों में समाने के लिए व्याकुल हो रहे थे ये दोनों!” उसकी इस बात पर हम दोनों हँसने लगे। मैं पागलों के जैसे ब्रा के ऊपर से ही उनको दबाने और चूमने लगा।

“अरे रे रे..! ऐसे ही करने का इरादा है क्या?” रश्मि ने कामुक अंगड़ाई लेते हुए कहा, “ब्रा को भी तो उतारिए न!”

“आज तो तुम ही उतारो मेरी जान! हम तो देखेंगे!”

रश्मि मुस्कुराई और फिर बड़े ही नजाकत के साथ हाथ पीछे कर कर के अपनी ब्रा के हुक़ खोले और जैसे ही उसने वह काला कपड़ा हटाया, दोनों स्तन आज़ाद हो गए। मानों रस से भरे दो सिन्दूरी आम उसकी छाती पर परोस दिए गए हों! दोनों निप्पल इरेक्ट! और मेरा लिंग भी!

मैंने इशारे से उसको शलवार भी उतारने को कहा। रश्मि ने नाड़ा खोल कर जैसे ही उसको ढीला किया, शलवार उसकी टांगो से होकर फर्श पर गिर गयी। चड्ढी के सामने वाला हिस्सा कुछ गीला हो रहा था। वही हिस्सा उसकी योनि की दरार में कुछ फंसा हुआ था। अब मुझसे रहा नहीं गया; मैंने तुरंत रश्मि को अपनी गॉड में उठाया और बिस्तर पर पटक दिया और अपने दोनों हाथों से रश्मि की चड्ढी नीचे सरका दी।
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12-17-2018, 02:17 AM,
#64
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने रश्मि को बिस्तर पर चित लेटा कर अपने आलिंगन में भरा, और उसके पूरे शरीर को सहलाना और चूमना आरम्भ कर दिया। रश्मि भी कुछ ऐसे लेटी थी, जैसे उसकी दोनों टाँगे मेरी कमर के गिर्द लिपटी हुई थीं। मैं उसके होंठो को चूमते हुए, उसके पूरे शरीर पर हाथ फिराने और सहलाने लगा।

कुछ देर ऐसे ही प्यार करने के बाद, मैं बिस्तर पर रश्मि के एक तरफ लेट गया और उसकी जांघें यथासंभव खोल दीं, और फिर बारी बारी उसके होंठ और निप्पल चूमते हुए उसकी जाँघों को सहलाने लगा। उत्तेजना के मारे रश्मि की जाघें और खुल गईं। रश्मि के होंठ चूमते हुए मैंने उँगलियों से उसकी योनि का मर्दन आरम्भ कर दिया। योनि मर्दन करते हुए मैं रह रह कर उसके निप्पल भी चूमता और चूसता। रश्मि भी एक महीने से अतृप्त बैठी हुई थी ... इसलिए फोरप्ले के बहुत मूड में नहीं लग रही थी। फिर भी ऐसी क्रियाओं में सिर्फ आनंद ही आता है।

मैंने कुछ देर उसकी योनि से छेड़खानी करने के बाद वापस उसके स्तनों पर हमला किया। मैंने उसके दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों में कुछ इस प्रकार दबाया , जिससे उसके निप्पल पूरी तरह से बाहर निकल आयें, और फिर उनको बारी बारी से देर तक जी भर के पिया। रश्मि उत्तेजक बेबसी में रह रह कर सिर्फ मेरे बाल, पीठ और गाल सहला रही थी। मैं भी दया कर के बीच बीच में निप्पल छोड़ कर उसके होंठों को चूमने लगता। फिर भी स्तनों पर मेरी पकड़ नहीं छूटी।

शीघ्र ही रश्मि अपनी उत्तेजना के चरम पर थी, और उसकी योनि से शहद की बारिश होने लगी। मैंने उसको बिस्तर पर ऐसे ही छोड़ा, जिससे वह अपनी साँसे संयत कर सके। जब वापस आया तो मेरे हाथ में माँ का दिया हुआ शहद का जार और एक चम्मच था।

मैंने दो चम्मच शहद अपने मुंह में डाला (लेकिन निगला नहीं), और वापस बिस्तर पर आ बैठा। बैठने से पहले जार को बिस्तर के साइड में नीचे की तरफ रख दिया था, जिससे आवश्यकतानुसार शहद का सेवन किया जा सके। वापस आकर मैंने संतृप्त रश्मि को अपनी गोद मैं बैठाया और आलिंगन में भर के उसके होंठों को चूमने लगा। इस चुम्बन से माध्यम से मैं रश्मि को अति सुगन्धित पहाड़ी फूलों के रस से बने शहद को पिलाने लगा। सच कहता हूँ, बाजारू उत्पाद इस शहद का क्या मुकाबला करेंगे? ऐसा स्वाद, ऐसी सुगंधि और ऐसी संरचना! थोड़ी देर में मैंने रश्मि को लगभग पूरा शहद पिला दिया (मैंने थोड़ा ही पिया)। उसके बार पुनः बारी बारी से होंठों, और दोनो निप्पलों पर चुम्बन जड़ने लगा। कहने की आवश्यकता नहीं की रश्मि के स्तन मीठे हो गए थे। 

आज तो बीवी को तबियत से भोगने का इरादा था! मैंने वापस रश्मि को बिस्तर पर लेटाया और उसकी दोनों जांघे फैला कर रश्मि को रिलैक्स करने को कहा। शहद के जार से एक चम्मच शहद निकाल कर मैंने एक हाथ की उँगलियों की मदद से उसकी योनि के पटल खोले और मीठा गाढ़ा शहद रश्मि की योनि में उड़ेल दिया।

"क्क्क्क्या कर रहे हैं आप..?" रश्मि मादक स्वर में बोली।

"आपके योनि रस को और हेल्दी बना रहा हूँ... जस्ट वेट एंड वाच!"

कह कर मैंने जैसे ही अपनी जीभ उसकी योनि में प्रविष्ट करी, तो उसकी एक तेज़ सिसकारी निकल गई। मैंने जीभ को रश्मि की योनि के भीतर घुसेड़ दिया – योनि के प्राकृतिक सुगंध की जगह पर अब फूलों की भीनी भीनी और मीठी सुगंध आ रही थी... और स्वाद भी.. बिलकुल मीठा! रश्मि इस एकदम नए अनुभव के कारण कामुक किलकारियाँ मारने लगी थी। उसने अपने नितम्ब उठाते हुए अपनी योनि मेरे मुँह में ठेल दी, और मेरे सिर को दोनों हाथों से ज़ोर से पकड़ कर अपनी योनि की तरफ भींच लिया। सिर्फ इतना ही नहीं, उत्तेजना के आवेश में रश्मि ने अपने पाँव उठा कर मेरे गले के गिर्द लपेट लिया। ऐसा करने से मुझे उसकी पूरी की पूरी योनि को अपने मुँह में भरने में आसानी होने लगी। अगले कोई पांच मिनट तक मैंने इस अद्भुत योनि रस को जी भर के पिया – दो चम्मच शहद, जो मैंने डाला था, और दो चम्मच खुद रश्मि का! रश्मि तड़प रही थी, और काम की अंतिम क्रीड़ा करने के लिए अनुनय विनय कर रही थी। लेकिन, उसको और भोगा जाना अभी बाकी था। रश्मि इसी बीच में एक बार और चरम सुख को प्राप्त कर लिया।

खैर, अंत में वह समय भी आया जब हम आखिरी क्रिया के लिए एक दूसरे में गुत्थम-गुत्था हो गये और एक दूसरे को कसकर पकड़ कर होंठों से होंठ मिला कर एक दूसरे का स्वाद लेने लगे। एक महीने की प्यास अब पूरी हो रही थी। मीठे होंठों और मुँह से! चूसते और चूमते हुए हम लोग जीभ से जीभ लड़ा रहे थे, रह रह के मैं उसके स्तनों को चूम, चूस और दबा रहा था, तो कभी उसकी गर्दन को चूम और चाट रहा था। मैंने जल्दी से अपने बचे खुचे कपड़े उतारे, और रश्मि की योनि में मैंने अपने लिंग की करीब तीन इंच लम्बाई एक झटके में अन्दर घुसा दी। रश्मि दर्द से ऐंठ गई, और उसकी चीख निकल गई। 

‘यह क्या हुआ?’ संभव है, की एक महीने तक यौन सम्बन्ध न बनाने के कारण, योनि की आदत और पुराना कुमारी रूप वापस लौट आया हो! मतलब, एक और बार एकदम नई योनि को भोगने का मौका! मैंने उसकी कमर पकड़ ली जिससे वो दर्द से डर कर मना न कर दे। मैंने और धक्के लगाने रोक लिए, और लिंग को रश्मि की योनि में ही कुछ देर तक डाले रखा – एक दो मिनट के विश्राम के बाद जब रश्मि को कुछ राहत आई, तब मैंने धीरे-धीरे नपे-तुले धक्के लगाने शुरु किए, और लिंग को पूरा नहीं घुसाया। 

मैंने रश्मि को और आराम देने के लिए उसके नितम्बों के नीचे एक तकिया लगा दिया, और पहले उसके होंठों को हलके हलके चूमा और फिर दोनों होंठ अपने मुँह में भर कर चूसने लगा। रश्मि अब पूरी तरह से तैयार हो गयी थी - उसने भी नीचे से हल्के-हल्के धक्के लगाने शुरु कर दिए। मैंने अंततः अपने लिंग को एक ज़ोरदार धक्का लगा कर पूरे का पूरा उसकी योनि में घुसा दिया। रश्मि ने घुटी-घुटी आवाज़ में चीख़ भरी। 

मैंने कहा, “जानू, वाकई क्या बहुत दर्द हो रहा है?” 

“बाप रे! पहली बार जैसा फील हुआ! आप करिए ... मैं ठीक हूँ!”

“पक्का?”

“हाँ पक्का! आप करिए न... आगे तो बस आनन्द ही आनन्द है।“

फिर क्या? चिरंतन काल से चली आ रही क्रिया पुनः आरम्भ हो गयी। रश्मि बस मज़े लेते हुए मेरे बाल सहला रही थी। उसके अन्दर कुछ करने की शक्ति नहीं बची थी। वो भले ही कुछ न कर रही हो, लेकिन उसकी योनि भारी मात्रा में रस छोड़ रही थी। इस कारण से लिंग के हर बार अन्दर-बाहर जाने से अजीब अजीब प्रकार की पनीली ध्वनि निकल रही थी। खैर, मेरा भी यह प्रोग्राम देर तक चलाने का कोई इरादा नहीं था। इतना संयम तो नहीं ही है मुझमें! कोई चार मिनट बाद ही मेरे लिंग से वीर्य की पिचकारियाँ निकलने लगीं। रश्मि ने जैसे ही वीर्य को अपने अन्दर महसूस किया, उसने मुझे कस कर पकड़ लिया और मेरे होंठों, आँखों और गालों को कई बार चूमने लगी। थक गया! एक महीने का सैलाब थम गया! मैं उसकी बाँहों में लिपटा हुआ अगले लगभग दस मिनट तक उसके ऊपर ही पड़ा रहा। 

जब रश्मि नीचे कसमसाई, तो मैं मानो नींद से जागा! रश्मि ने मेरे होंठों पर दो-तीन चुम्बन और जड़े और कहा, “गन्दे बच्चे! मन भरा? ... अब जल्दी से हटो, नहीं तो मेरी सू सू निकल जायेगी!” कहते हुए उसने उँगलियों से मेरी नाक पकड़ कर प्यार से दबा दी।

“चलो, मैं तुमको ले चलता हूँ..” मैंने रश्मि को गोद में उठाया और बाथरूम की ओर ले जाने लगा। रश्मि तृप्त, अपनी आँखें बंद किये हुए और मुस्कुराती हुई, अपनी बाँहें मेरे गले में डाले हुए थी। उसको बाथरूम में कमोड पर मैंने ही बैठाया। जैसे उसको किसी असीम दर्द से छुट्टी मिली हो! रश्मि आँखें बंद किये, और गहरी आँहें भरते हुए मूत्र करने लगी। मैं मंत्र मुग्ध सा होकर उस नज़ारे को देखने लगा – उसके योनि से मूत्र की पतली, लेकिन तेज़ धार निकल रही थी, और अभी-अभी कूटी जाने के कारण योनि के होंठ सूज गए थे – बढ़े हुए रक्त चाप के कारण उसकी रंगत अधिक लाल हो गयी थी। 

रश्मि को इस प्रकार मूतते देख कर मुझे भी इच्छा जाग गई। मैंने उसके सामने खड़ा होकर अपने लिंग को निशाने पर साधा, उसके शिश्नाग्रच्छद (फोरस्किन) को पीछे की तरफ सरकाया और मैंने भी अपने मूत्र की धार छोड़ दी। निशाना सच्चा था – मेरी मूत्र की धार रश्मि की योनि की फाँकों के बीच पड़ने लगी। इस अचानक हमले से रश्मि की आँखें खुल गईं।

“गन्दा बच्चा! ... क्या कर रहा है! उफ्फ्फ़!” संभव है की मेरे मूत्र में ज्यादा गर्मी हो!

“तुमको मार्क कर रहा हूँ, मेरी जान...! शेर अपने इलाके को ऐसे ही मार्क करता है न! हा हा!”

रश्मि ने कुछ नहीं कहा। हाँलाकि उसका पेशाब मुझसे पहले ही बन्द हो गया था, फिर भी वो उसी अवस्था में बैठी रही जब तक मैं मूत्र करना न बंद कर दूं! रश्मि मेरे मूत्र को भी ठीक उसी प्रकार ग्रहण और स्वीकार कर रही थी, जैसे मेरे वीर्य को! जब मैंने मूत्र करना बंद किया तो वह सीट से उठी, और फिर पांव की उँगलियों के बल उचक कर उसने मेरे होंठ चूम लिए। अब ऐसे मार्किंग (चिन्हित) करने के बाद तो हम लोग बिस्तर पर नहीं लेट सकते थे.. इसलिए हमने साथ ही हल्का शॉवर लिया और बदन पोंछ कर बिस्तर पर आ गए। मैंने लेटने से पहले कमरे की लाइट बंद कर दी थी – खिड़की के बाहर से आती हुई चाँदनी से कमरे में हल्का उजास था। रश्मि मेरे हाथ के ऊपर सर रखे हुए थी, और मेरे गले में बाहें भी डाले हुए थी। हमने उस रात कुछ और नहीं कहा – बस एक दूसरे के होंठों को चूमते, चूसते सो गए!

मुझसे मेरे दोस्त अक्सर पूछते हैं की मैं और रूद्र कब मिले, कैसे मिले.. शादी के बाद का प्यार कैसा होता है, कैसे होता है... आदि आदि! उनको इसके बारे में बताते हुए मुझे अक्सर लगता की कभी मैं और रूद्र एक साथ बैठ कर इसके बारे में बात करेंगे और पुरानी यादें ताज़ा करेंगे! अभी दो दिन पहले मैं रेडियो (ऍफ़ एम) पर एक बहुत पुराना गीत सुन रही थी – हो सकता है की आप लोगों में भी कई लोगों ने सुना हो!

और आज घर वापस आकर मैंने जैसे ही रेडियो चलाया, फिर वही गाना आने लगा:

“चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाएँ हम दोनों!”

मेरे ख़याल से यह दुनिया के सबसे रोमांटिक दस बारह गानों में से एक होगा...! 

मुझे पता है की अब आप मुझसे पूछेंगे की रश्मि, आज क्या ख़ास है जो रोमांटिक गानों की चर्चा हो रही है? तो भई, आज ख़ास बात यह है की आज रूद्र और मेरी शादी की दूसरी सालगिरह है! जी हाँ – दो साल हो गए हैं! इस बीच में मैंने इंटरमीडिएट की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की, और कुछ इस कारण से और कुछ रूद्र की जान-पहचान के कारण से मुझे बैंगलोर के काफी पुराने और जाने माने कॉलेज में दाखिला मिल गया। आज मैं बी. ए. द्वितीय वर्ष की छात्रा हूँ, और समाज विज्ञान की पढाई कर रही हूँ। शुरू शुरू में यह सब बहुत ही मुश्किल था – लगता था की कहाँ आ फंसी! इतने सारे बदलाव! अनवरत अंग्रेज़ी में ही बोल चाल, नहीं तो कन्नड़ में! मेरी ही हम उम्र लड़कियाँ मेरी सहपाठी थीं... लेकिन उनमे और मुझमे कितना सारा अंतर था! कॉलेज के गेट के अन्दर कदम रखते ही नर्वस हो जाती। दिल धाड़ धाड़ कर के धड़कने लगता। लेकिन रूद्र ने हर पल मुझे हौसला दिया – मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक! हर प्रकार का! वो अपने काम में अत्यधिक व्यस्त होने के बावजूद मुझसे मेरे विषयों के बारे में चर्चा करते, जब बन पड़ता तो पढ़ाते (वैसे हमारे पड़ोसियों ने मुझे पढ़ाने में बहुत सहयोग दिया है.. आज भी मैं श्रीमति देवरामनी की शरण में ही जाती हूँ, जब भी कहीं फंसती हूँ)। और तो और, सहेलियां भी बहुत उदार और दयालु किस्म की थीं – वो मेरी हर संभव मदद करतीं, मुझे अपने गुटों में शामिल करतीं, अपने घर बुलातीं और यथासंभव इन नई परिथितियों में मुझे ढलने के लिए प्रोत्साहन देतीं। इसका यह लाभ हुआ की मेरी क्लास के लगभग सभी सहपाठी मेरे मित्र बन गए थे। शिक्षक और शिक्षिकाएँ भी मेरी प्रगति में विशेष रूचि लेते। वो सभी मुझे ‘स्पेशल स्टूडेंट’ कह कर बुलाते थे। मैंने भी अपनी तरफ से कोई कोर कसार नहीं छोड़ी हुई थी – मैं मन लगा कर पढ़ती थी, और मेरी मेहनत का नतीजा भी अच्छा आ रहा था। कहने की कोई ज़रुरत नहीं की मुझे अपना नया कॉलेज बहुत पसंद आया...। सुमन के लिए भी रूद्र और मैंने अपने प्रिंसिपल से बात करी थी। उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया था की अगर सुमन में प्रतिभा है, तो वो उसे अवश्य दाखिला देंगे। सुमन इस बार इंटरमीडिएट का एक्साम् लिखेगी, और उसके बाद रूद्र उसको भी बैंगलोर ही लाना चाहते हैं, जिससे उसकी पढाई अच्छी जगह हो सके। 

आप लोग अब इस बात की शिकायत न करिए की कहानी से दो साल यूँ ही निकाल दिए, बिना कुछ कहे सुने! इसका उत्तर यह है की अगर लोग खुश हों तो समय तो यूँ ही हरहराते हुए निकल जाता है। और रोज़मर्रा की बातें लिख के आपको क्या बोर करें? अब यह तो लिखना बेवकूफी होगा की ‘जानू, आज क्या खाना बना है?’ या फिर, ‘आओ सेक्स करें!’ ‘आओ कहीं घूम आते हैं.. शौपिंग करने!’ इत्यादि! यह सब जानने में आपको क्या रूचि हो सकती है भला?

इतना कहना क्या उचित नहीं की यह दो साल तो न जाने कैसे गुजर गए! व्यस्तता इतनी है की अब उत्तराँचल जाना ही नहीं हो पाता! इंटरमीडिएट की परीक्षा देने के बाद सिर्फ दो बार ही जा पाई, और रूद्र तो बस एक बार ही जा पाए! उनको इस बीच में दोहरी पदोन्नति मिली है। जाहिर सी बात है, उनके पास समय की बहुत ही कमी हो गयी है... लेकिन यह उन्ही का अनुशासन है, जिसके कारण न केवल मैं ढंग से पढाई कर पा रही हूँ, बल्कि सेहत का भी ढंग से ख़याल रख पा रही हूँ। सुबह पांच बजे उठकर, नित्यक्रिया निबटा कर, हम दोनों दौड़ने और व्यायाम करने जाते हैं। वहाँ से आने के बाद नहा धोकर, पौष्टिक भोजन कर के वो मुझे कॉलेज छोड़ कर अपने ऑफिस चले जाते हैं। मेरे वापस आते आते काम वाली बाई आ जाती है, जो घर का धोना पोंछना और खाना बनाने का काम कर के चली जाती है। मैं और कभी कभी रूद्र, सप्ताहांत में ही खाना बनाते हैं.. व्यस्त तो हैं, लेकिन एक दूसरे के लिए कभी नहीं!

उधर पापा ने बताया की खेती में इस बार काफी लाभ हुआ है – उन्होंने पिछली बार नगदी फसलें बोई थीं, और कुछ वर्ष पहले फलों की खेती भी शुरू करी थी। इसका सम्मिलित लाभ दिखने लग गया था। रूद्र ने अपने जान-पहचान से तैयार फसल को सीधा बेचने का इंतजाम किया था.. सिर्फ पापा के लिए नहीं, बल्कि पूरे कसबे में रहने वाले किसानो के लिए! बिचौलियों के कट जाने से किसानो को ज्यादा लाभ मिलना स्वाभाविक ही था। अगले साल के लिए भी पूर्वानुमान बढ़िया था।
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12-17-2018, 02:17 AM,
#65
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
खैर, तो मैं यह कह रही थी, की इस गाने में कुछ ख़ास बात है जो मुझे रूद्र से पहली बार मिलने, और हमारे मिलन की पहली रात की याद दिलाती है। सब खूबसूरत यादें! रूद्र ने वायदा किया था की वो आज जल्दी आ जायेंगे – अगले दो दिन तो शनिवार और रविवार हैं... इसलिए कहीं बाहर जाने का भी प्रोग्राम बन सकता है! उन्होंने मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया। लेकिन उनका जल्दी भी तो कम से कम पांच साढ़े-पांच तो बजा ही देता है! 

मैं कुर्सी पर आँखें बंद किए, सर को कुर्सी के सिरहाने पर टिकाये रेडियो पर बजने वाले गानों को सुनती रही। और साथ ही साथ रूद्र के बारे में भी सोचती रही। इन दो सालों में उनके कलम के कुछ बाल सफ़ेद हो (पक) गए हैं.. बाकी सब वैसे का वैसा ही! वैसा ही दृढ़ और हृष्ट-पुष्ट शरीर! जीवन जीने की वैसी ही चाहत! वैसी ही मृदुभाषिता! कायाकल्प की बात करते हैं.. इससे बड़ी क्या बात हो सकती है की उन्होंने अपने चाचा-चाची को माफ़ कर दिया। उनके अत्याचारों का दंड तो उनको तभी मिल गया जब उनके एकलौते पुत्र की एक सड़क हादसे में मृत्यु हो गयी। जब रूद्र को यह मालूम पड़ा, तो वो मुझे लेकर अपने पैत्रिक स्थान गए और वहाँ उन दोनों से मुलाकात करी। 

अभी कोई आठ महीने पहले की ही तो बात है, जब रूद्र को किसी से मालूम हुआ की उनके चचेरे भाई की एक सड़क हादसे में मृत्यु हो गयी। रूद्र ने यह सुनते ही बिना एक मिनट देर किये भी उन्होंने मेरठ का रुख किया। हम दोनों ही लोग गए थे – उस दिन मैंने पहली बार इनके परिवार(?) के किसी अन्य सदस्य को देखा था। इनके चाचा की उम्र लगभग साठ वर्ष, औसत शरीर, सामान्य कद, गेहुंआ रंग... देखने में एक साधारण से वृद्ध पुरुष लग रहे थे। चाची की उम्र भी कमोवेश उतनी ही रही होगी.. दोनों की उम्र कोई ऐसी ख़ास ज्यादा नहीं थी.. लेकिन एकलौते पुत्र और एकलौती संतान की असामयिक मृत्यु ने मानो उनका जीवन रस निचोड़ लिया था। दुःख और अवसाद से घिरे वो दोनों अपनी उम्र से कम से कम दस साल और वृद्ध लग रहे थे। 

उन्होंने रूद्र को देखा तो वो दोनों ही उनसे लिपट कर बहुत देर तक रोते रहे... मुझे यह नहीं समझ आया की वो अपने दुःख के कारण रो रहे थे, या अपने अत्याचारों के प्रायश्चित में या फिर इस बात के संतोष में की कम से कम एक तो है, जिसको अपनी संतान कहा जा सकता है। कई बार मन में आता है की लोग अपनी उम्र भर न जाने कितने दंद फंद करते हैं, लेकिन असल में सब कुछ छोड़ कर ही जाना है। यह सच्चाई हम सभी को मालूम है, लेकिन फिर भी यूँ ही भागते रहते हैं, और दूसरों को तकलीफ़ देने में ज़रा भी हिचकिचाते नहीं।

रूद्र को इतना शांत मैंने इन दो सालों में कभी नहीं देखा था! उनके मन में अपने चाचा चाची के लिए किसी भी प्रकार का द्वेष नहीं था, और न ही इस बात की ख़ुशी की उनको सही दंड मिला (एकलौते जवान पुत्र की असमय मृत्यु किसी भी अपराध का दंड नहीं हो सकती)! बस एक सच्चा दुःख और सच्ची चिंता! रूद्र ने एक बार मुझे बताया था की उनका चचेरा भाई अपने माता पिता जैसा नहीं है... उसका व्यवहार हमेशा से ही इनके लिए अच्छा रहा। रूद्र इन लोगो की सारी खोज खबर रखते रहे हैं (भले ही वो इस बात को स्वीकार न करें! उनको शुरू शुरू में शायद इस बात पर मज़ा और संतोष होता था की रूद्र ने उनके मुकाबले कहीं ऊंचाई और सफलता प्राप्त करी थी। लेकिन आज इन बातो के कोई मायने नहीं थे)। रूद्र ने उनकी आर्थिक सहायता करने की भी पेशकश करी (जीवन जैसे एक वृत्त में चलता है.. अत्याचार की कमाई और धन कभी नहीं रुकते.. इनके चाचा चाची की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी), लेकिन उन्होंने यह कह कर मना कर दिया की जब ईश्वर उन दोनों को उनके अत्याचारों और गलतियों का दंड दे रहे हैं, तो वो उसमे किसी भी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न नहीं करेंगे। उनके लिए बस इतना ही उचित है की रूद्र ने उनको माफ़ कर दिया। मुझसे वो दोनों बहुत सौहार्द से मिले... बल्कि यह कहिये की बहुत लाड़ से मिले। जैसे की मैं उनकी ही पुत्र-वधू हूँ... फिर उन्होंने मुझे सोने के कंगन और एक मंगलसूत्र भेंट में दिया। बाद में मुझे मालूम हुआ की वो माँ जी (मेरी स्वर्गवासी सास) के आखिरी गहने थे। उस दिन यह जान कर कुछ सुकून हुआ की हमारे परिवार में कुछ और लोग भी हैं।

रूद्र में बदलाव तो थे ही, मुझमें खुद भी बहुत से बदलाव हो रहे थे। मैं तो बढ़ती युवती तो हूँ ही – खान पान की गुणवत्ता, दैनिक व्यायाम और पुरुष हार्मोन की नियमित खुराक से (रूद्र कभी कभी कंडोम का प्रयोग करना ‘भूल?’ जाते हैं...) मेरी देह अभी भी भर रही है। मेरे स्तन अब 34C के माप के हैं, कमर में कटाव, और नितम्बों में उभार साफ़ दिखता है। जब कभी नहाने के बाद मुझे फुर्सत होती है, तो मैं स्वयं का अनावृत्त शरीर देख कर प्रसन्न हो जाती हूँ! कभी कभी लगता है की किसी और को देख रही हूँ - कसे-भरे स्तन, छोटे कंधे, उन्नत नितंब, सपाट पेट, और करीने से कटे केशों से टपकती पानी की बूंदें! मैं कभी कभी खुद के शरीर पर मुग्ध हो जाती हूँ! किसकी कामना नहीं हो सकती ऐसी देह! मुझे गर्व है, की रूद्र मेरा भोग पाते हैं! 

स्त्रियों को अक्सर ही छुईमुई जैसा शरमाया, सकुचाया सा दर्शाया जाता है, और उनसे इसी प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा भी करी जाती है। इतने बदलावों के बाद भी मैं अभी तक वैसी ही हूँ.. लेकिन अचरज तब होता है जब मैं रूद्र के साथ प्रणय करते समय बिल्कुल भी नहीं सकुचाती हूँ, बल्कि मैं तो उनकी सहयोगिनी ही बन जाती हूँ! कैसे होता है यह सब? कभी कभी सोचती हूँ तो लगता है की एक स्त्री किसी पुरुष के साथ ऐसा व्यवहार तभी कर सकती है जब वो पुरुष उस स्त्री का प्रिय हो। जिसकी वो हमेशा कामना करे! जो न केवल उसके सपनों का अधिष्ठाता हो, बल्कि उसका सच्चा साथी बन कर स्त्री के जीवन के हर सुख दुःख को बाँट कर सही अर्थों में सहचर बने!

रूद्र ने एक दिन मुझे कहा था, “तुमने कभी खजुराहो की मूर्तियां देखी है? यू हैव अ बॉडी लाइक खजुराहो आइडोल्स!” 

खजुराहो आइडोल्स? मैंने पहले कभी खजुराहो के चित्र नहीं देखे थे.. हम लोग कभी वहाँ नहीं गए... लेकिन रूद्र ने जब ऐसा कहा तो मेरा मन नहीं माना! इन्टरनेट पर खजुराहो के बारे में ढूँढा और वहाँ के मंदिरों और उन पर उकेरी गयी मूर्तियों की तस्वीरों को देखा! स्त्री जीवन के न जाने कितने रूप, न जाने कितने रंग उन शिल्पियों ने पत्थरों में गढ़ डाले थे! और तो और, सभी एकदम जीवंत से लगते! स्त्रियां ही स्त्रियां! उनके हर प्रकार के हाव-भाव, उनके शरीर की हर बनावट, अंगों के लोच, भाव-भंगिमाओं का प्रदर्शन – यह सब कुछ हैं वहाँ! स्त्री चित्त के हर रंग को साकार कर दिया था शिल्पियों ने इस प्राचीन स्वप्नलोक में! इन चित्रों को देखा, तो रूद्र की बात और समझ में आई! मैं पुलक उठी! यह उपमा तो उन्होंने निश्चित रूप से अपनी चाहत दर्शाने के लिए मुझे दी थी।

मैं आँखें बंद किए पुराने गीतों का आनंद ले रही थी, और उस दिन की याद कर रही थी जब रूद्र पहली बार मेरे घर आये थे। एक मजेदार बात है (आप लोगो ने भी कभी न कभी नोटिस किया ही होगा), किसी घटना के हो जाने के बाद (ख़ास तौर पर जब वो महत्वपूर्ण घटना हो) जैसे जैसे समय बीतता जाता है, उस घटना के कई सारे पहलू, या यह कह लीजिये की हमारे देखने का दृष्टिकोण बदल जाता है। मधुर संगीत के प्रभाव में अभी मुझे ऐसे जान पड़ रहा था की उस दिन रेडियो पर कोई रोमांटिक गाना बज रहा था। संभव है की ऐसा न हो! लेकिन इससे क्या ही बदल जाएगा? बस, वो यादें और मधुर बन जाएँगी। 

ऐसा नहीं है की हम दोनों सिर्फ एक दूसरे को हमेशा इलू इलू ही बोलते रहते हैं.. अन्य विवाहित जोड़ों के समान ही हम में भी झगड़े होते हैं। लेकिन ऐसे झगड़े नहीं जिनमें मन मुटाव होता हो.. ज्यादातर बनावटी झगड़े! अरे भई, कहते हैं न.. इस तरह के झगड़े विवाहित जीवन में स्वाद भरते हैं! या फिर कभी कभी ‘आज फिर से टिंडे बने हैं?’ वाले। मारा-पीटी भी होती है (अक्सर रूद्र ही मारते हैं मुझे..) – ओह लगता है आप गलत समझ गए। ये वो वाली बनावटी मार है, जिसमे मुक्का मेरे शरीर के पास आता तो तेज़ से है, लेकिन मुझको छूता ऐसे है जैसे मेरी मालिश की जा रही हो... मारने से पहले रूद्र मुझे अपने आलिंगन में कस कर बाँध लेते हैं और ऐसे मारते हुए वो अपने मुंह से वो ‘ए भिश्श.. ए भिश्श..” जैसी बनावटी आवाजें भी निकालते हैं। मतलब ऐसी मार जो, चोट तो बिलकुल नहीं देती, उल्टा गुदगुदी लगाती है। मैं हँसते हँसते लोट पोट हो जाती हूँ! कोई वयस्क हमको यह सब करते देखे तो अपना सर पीट ले! इतना प्यार! इतना दुलार! यह सब सोच सोच कर मेरी आँखें भर गईं!

यह दो साल कितनी जल्दी बीत गये! कुछ पता ही नहीं चला!! हम दोनों ने अपने दाम्पत्य जीवन के हर पहलू का आनंद उठाया था! आज भी, अगर रूद्र अपनी पर आ जाए (जो की अक्सर सप्ताहांत में होता ही है), तो मुझे पूरी रात सोने ही नहीं देते – मानो पूरे हफ्ते की कसर निकालते हैं। उनकी प्रयोगात्मक सोच के कारण, घर का कोई ऐसा कोना नहीं बचा जहाँ पर हमने सेक्स नहीं किया हो! बिस्तर पर तो होता ही है, इसके अलावा बाथरूम में, दीवारों पर, बालकनी में, फर्श पर, और रसोईघर में भी हमने सम्भोग किया था। कभी कभी लगता की अति हो रही है.. इस वर्ष मैंने यूँ ही मज़ाक मज़ाक में यह गिनना शुरू किया की हम कितनी बार सेक्स करते हैं... तीन सौ का आंकड़ा पार करते करते मैंने गिनती करनी बंद कर दी। ठीक है.. समझ आ गया की मेरे पति मेरे यौवन को दोनों हाथों से लूट रहे हैं! हा हा!

लेकिन ऐसा हो भी क्यों न? उनके छूने से मुझे सुख मिलता है। मन की व्यग्रता, शंकाएँ और कष्ट – सब तुरंत दूर हो जाते हैं। जिस तरह से वो मुझे देखते हैं... एक मादा के जैसे नहीं, बल्कि एक प्रेमिका के जैसे... जैसे मैं किसी स्पर्धा में प्राप्त पुरस्कार हूँ! बेहद इच्छित! उनकी छुवन में एक सकारात्मक ऊर्जा होती है – ऐसा नहीं है की उनकी छुवन लोलुपता विहीन होती है (ऐसा कभी नहीं महसूस हुआ), लेकिन वो लोलुपता निष्छल और ताज़ी होती है। सड़क चलते पुरुषों वाली नहीं... उनमे मैंने वो ज़हरीली लोलुपता देखी है.. कैसे वो अपनी आँखों से ही सामने दिखती महिलाओं और लड़कियों को निर्वस्त्र करते रहते हैं। उनको मेरे शरीर में लिप्सा है, लेकिन ऐसा नहीं है की वो मेरी इज्ज़त नहीं करते!

रूद्र के लिए मेरे दोनों स्तन दिलचस्प रचना के सामान हैं.. जैसे एक जोड़ी खिलौने! जब कभी भी हम दोनों अगल बगल बैठते हैं (कहने का मतलब हर रोज़, कम से कम पांच से दस बार), वे उनको उँगलियों की सहायता से छेड़ते हैं और सहलाते हैं। और मेरे शरीर की प्रतिक्रिया भी देखिए – उनके छूते ही मेरे दोनों निप्पल सूजने लगते हैं। सेक्स हो या न हो, सप्ताह के हर दिन (मेरा मतलब रात), रूद्र मेरे स्तनों को चूसते हुए ही सो जाते है – कहते हैं की बिना स्तनपान किये उनको नींद ही नहीं आती। हो सकता हो की उनके यह कहने में अतिशयोक्ति हो, लेकिन मेरा भी हाल कुछ कुछ ऐसा ही है – उनके लिंग को पकडे हुए ही मैं सोती हूँ.. रात में जब भी कभी किसी भी कारणवश उनका लिंग जब मेरे हाथ से छूट जाता है, तो मेरी नींद खुल जाती है। इसलिए मैं बिना हील हुज्जत के उनको अपनी मनमानी करने देती हूँ।

उनका लिंग! बाप रे! शायद ही कभी शांत रहता हो! मैंने पढ़ा है की रक्त प्रवाह बढ़ने से लिंग में स्तम्भन होता है.. अरे भई, कितना रक्त प्रवाह होता है? इनका तो लगभग सदा ही स्तंभित रहता है। मैं सोचते हुए मुस्कुरा दी। इससे मेरा एक अजीब सा नाता है – उसको इस प्रकार अपने भीमकाय रूप में देख कर भय भी लगता है, और प्रसन्नता भी होती है। जी हाँ – शादी के दो साल बाद भी। लगभग रोज़ ही इसको ग्रहण करने के बावजूद जिस प्रकार से उनका लिंग मेरी योनि का मर्दन करता है, वो अनुभव अनोखा ही है! मेरे लिए उनका लिंग ठीक वैसा ही खिलौना है, जैसे की मेरे स्तन उनके लिए। उनके गठे हुए शरीर से निकलती यह मोटी नलिका... जोशपूर्ण और वीर्यवान! वो खुलेआम निर्वस्त्र होकर घर में घूमते हैं... और उनके हर कदम पर उनका स्तंभित लिंग हलके हलके हिचकोले खाता है। हम्म्म्म...! 

अचानक ही मेरे फ़ोन की घंटी बजी – रूद्र! 

“हाउ आर यू, डार्लिंग?” और मेरा उत्तर सुने बिना ही, “जानू, जल्दी से तैयार हो जाओ – सरप्राइज है! मैं तुमको घंटे भर में पिकअप कर लूँगा.. ओके.. बाय!” कह कर उन्होंने फ़ोन काट दिया!
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12-17-2018, 02:17 AM,
#66
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
सरप्राइज! हा हा! रूद्र के साथ तो हर पल ही सरप्राइज है! एक घंटा? हम्म.. बस इतना समय है की नहा कर, कपड़े बदले जा सकें। नहा कर मैं अपने कमरे में आई, और सोचने लगी की क्या पहना जाय! मेरे जन्मदिन पर रूद्र ने एक लाल रंग की ड्रेस मुझे गिफ्ट करी थी, वो घुटने से बस ठीक नीचे तक जाती थी.. अभी तक पहनने का मौका नहीं मिला था, तो सोचा की आज तो एकदम सही समय है। मैं ड्रेस पहनी, अपने बालों को एक पोनीटेल में बाँधा, गले में एक छोटे छोटे मोतियों की माला पहनी और तैयार हो गयी।

मैं कभी यह नहीं सोचती की मैं कैसी दिखती हूँ – मेरे पति मुझे आकर्षक पाते हैं, मेरे लिए इतना ही काफी है। लेकिन ख़ास मौकों पर सजने सँवरने में क्या बुराई है.. ख़ास तौर पर उसके लिए जिसको मैं बेहद प्यार करती हूँ? हम लोग अक्सर बाहर का खाना नहीं खाते (स्वास्थय के लिए ठीक नहीं होता न!), कभी कभी ही खाते हैं (या फिर तब जब हम यात्रा कर रहे होते हैं).. बाहर जाने से याद आया, की मुझे आज उनके प्लान के बारे में कुछ भी नहीं मालूम था। सरप्राइज का तो मज़ा ही इसी में है! मैं लिफ्ट से नीचे की तरफ उतर कर भवन के प्रांगन में अभी आई ही थी, की गेट से मुझे रूद्र कार में आते हुए दिखे। 

ऐसा नहीं है की हम लोग घूमने फिरने कहीं जाते नहीं – रूद्र और मैं कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के जंगल गए। कान्हा शब्द कनहार से बना है जिसका स्थानीय भाषा में अर्थ चिकनी मिट्टी है। यहां पाई जाने वाली मिट्टी के नाम से ही इस स्थान का नाम कान्हा पड़ा। रूडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध पुस्तक “जंगल बुक” की प्रेरणा इसी स्थान से ली गई थी। यहाँ हमने भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ, बारहसिंघा, हिरण, मोर, भेड़िये इत्यादि जीव देखे। इसके अलावा हमने राजस्थान राज्य की भी यात्रा करी, जहाँ हमने जयपुर, जोधपुर (दोनों जगहें अपनी स्थापत्य और शिल्पकला के लिए और साथ ही साथ हत्कला के लिए प्रसिद्द हैं), जैसलमेर (थार रेगिस्तान) और रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान (फिर से, बाघ, हिरण, सांभर हिरण!) की सैर करी। मेरे लिए यह दोनों जगहें बुल्कुल अद्भुत थीं! एक तरफ तो अंत्यंत घना जंगल, तो दूसरी तरफ कठिन रेगिस्तान! लेकिन अपने देश के इन अद्भुत स्थानों को देख कर न केवल मेरा दृष्टिकोण ही विकसित हुआ, बल्कि भारतवासी होने पर गौरव भी महसूस हुआ। बंगलोर के आस पास भी हम लोग यूँ ही लम्बी ड्राइव पर जाते हैं... मुझे यहाँ का खाना बहुत पसंद है (कभी सोचा नहीं था की दक्षिण भारतीय खाना मुझे इतना पसंद आएगा!)।

रूद्र ने मुस्कुराते हुए मेरे पास गाडी रोकी; मैंने उनके बगल वाली सीट वाला दरवाज़ा खोला और कार में बैठ गयी। उनको मुस्कुराता देख कर मैं भी मुस्कुराने लगी (कुछ तो चल रहा है इनके दिमाग में)! उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरे होंठों पर एक चुम्बन जड़ा और फिर कार वापस सड़क पर घुमा दी। ह्म्म्म.. अभी तक तो सभी कुछ पूर्वानुमेय है – हम एक रेस्त्राँ जा कर रुके, जहाँ हमने मुगलई भोजन किया। आज रूद्र ने कॉकटेल नहीं ली (वो अक्सर लेते हैं, लेकिन आज कह रहे थे की ड्राइव करना है, इसलिए नहीं लेंगे..), लेकिन उन्होंने मुझे दो गिलास पिला ही दी। बाहर आते आते मुझ पर नशा छाने लगा। लेकिन इतना तो होश था ही की समझ आ सके की हम लोग वापस घर की तरफ नहीं जा रहे थे। मैंने जब पूछा की कहाँ जा रहे हैं, तो उन्होंने कहा की यही तो सरप्राइज है..! हम्म्म्म... लॉन्ग ड्राइव! रात के अंधियारे में, जगमगाती सड़कों और उन पर सरपट दौड़ती गाड़ियों को देखते देखते कब मेरी आँख लग गयी, कुछ याद नहीं।

जब आँख खुली तो मैंने देखा की गाडी रुकी हुई है (शायद इसी कारण से आँख खुली), सुबह का मद्धिम, लालिमामय उजाला फैला हुआ है, हवा में ताज़ी ताज़ी सुगंध और मेरे चहुँओर छोटी छोटी हरी भरी पहाड़ियाँ थीं। मुझे रूद्र की आवाज़ सुनाई दे रही थी – वो आस पास ही कहीं थे, और किसी से बातें कर रहे थे। मैंने चार पांच गहरी गहरी सांसें लीं – मन और शरीर दोनों में ताजगी आ गयी। नशा काफूर हो गया। मैंने सीट पर बैठे बैठे अंगड़ाई ली और फिर से गहरी सांसें लीं, और फिर कार से बाहर निकल आई और आवाज़ की दिशा में बढ़ दी।

“जानू.. जाग गई?” रूद्र ने मुझे देखा, और मेरे पास आते आते मुझे आंशिक आलिंगन में भरा। उन्होंने फिर हमारे मेज़बान से मुझे मिलवाया। 

“हम लोग कहाँ हैं?” मैंने पूछा।

“डार्लिंग, हम लोग कूर्ग में हैं..”

‘कूर्ग?’

उनसे मिलते मिलते सूर्योदय हो गया – सूर्य की किरणें पहाडियों के असंख्य श्रृंखलाओं पर लगे वृक्षों से छन छन कर आती हुई दिखाई पड़ रही थी। जादुई समां! 

ओह! आपको कूर्ग के बारे में बताना ही भूल गई... कूर्ग कर्णाटक राज्य के पश्चिमी घाट पर है। सब्ज़ घाटियों, भव्य पहाड़ों और सागौन की लकड़ी जंगलों के बीच स्थित देश के सबसे खूबसूरत हिल स्टेशनों में से एक है। इन पहाड़ियों से होती हुई कावेरी नदी बहती है। यह जगह पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती है – शहरों में रहने वाले, खास तौर पर बैंगलोर और मैसूर से अनेक पर्यटक यहाँ आते हैं। शुद्ध ताज़ा हवा और चहुँओर बिखरी हरियाली लोगों के चित्त को प्रसन्न कर देती है। इसके अतिरिक्त, यह स्थान कॉफी, चाय, और इलायची के बागानों के लिए भी जाना जाता है। यह भारत का ‘स्कॉटलैंड’ भी कहा जाता है... अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण! लगभग 100 साल पहले ब्रिटिश लोगों ने इस स्थान पर भी रिहाइशी बंदोबस्त किए थे।

जिस जगह पर हम रुके थे, वह एक होम-स्टे था। रूद्र का प्लान था की किसी होटल में नहीं, बल्कि प्रकृति के बीच एक शांत जगह पर रहेंगे। यह एक अच्छी बात थी – पहला इसलिए क्योंकि यहाँ कोई भीड़ भड़क्का नहीं था। हमारे मेजबान का घर और होम-स्टे उनके कॉफ़ी और केले के बगान में ही थे। यह एक बहुत ही वृहद् (करीब सौ एकड़) बगान था – इसमें इनके अलावा इलाइची भी पैदा की जाती है। और तो और, हमारे खाने पीने का इंतजाम भी हमारे मेजबानो ने कर दिया था – सवेरे का नाश्ता तैयार था, तो हमने फ्रेश होकर उनके साथ ही बैठ कर स्थानीय नाश्ता किया और कॉफ़ी की चुस्कियों के साथ देर तक बात चीत करी। 

मैंने रूद्र से शिकायत करी की अगर वो पहले बताते तो कम से कम कुछ पहनने को पैक कर लेती। कितनी देर तक इसी कपड़े में रहूंगी? इसके उत्तर में उन्होंने गाड़ी की पिछली सीट पर बहुत ही तरीके से छुपाया हुआ एक पैक निकाला – उसमे मेरे पहनने के लिए जीन्स और टी-शर्ट था। रूद्र के लिए शॉर्ट्स और टी-शर्ट था। क्या बात है!

इस जगह की सैर पर जब हम निकले, तब समझ आया की यह वाकई एक अलग ही प्रकार का हिल स्टेशन है। उतना व्यवसायीकरण नहीं हुआ है अभी तक! साथ ही साथ इस जगह पर अपनी एक मज़बूत संस्कृति, और इतिहास है। सबसे अच्छी बात यहाँ की साफ-सुथरी हवा, लगातार आती पंछियों की चहचहाहट और गुनगुनी धूप! एकदम ताजगी का एहसास! दिन भर में हमने वहाँ के खास खास पर्यटन स्थल (ओमकारेश्वर मंदिर, राजा की सीट, एब्बे झरना) देख डाले। झरने के बगल वाले एस्टेट में कॉफी के साथ साथ काली-मिर्च, और इलायची और अन्य पेड़-पौधे देखने को मिले। 

एक बात मैंने वहाँ घूमते फिरते और देखी – यहाँ के लोग बहुत ही ख़ुशमिजाज़ किस्म के हैं। देखने भालने में आकर्षक और बढ़िया क़द-काठी के हैं। ख़ासतौर पर कूर्ग की महिलाएं बहुत सुन्दर हैं। हमने अपने लिए कॉफी, और शुद्ध शहद ख़रीदा (याद है?)। एक और ख़ास बात है यहाँ की, और वह यह की भारतीय सेनाओं में बहुत से जवान और अधिकारी कूर्ग से हैं। यहाँ के लोगो की वीरता के कारण इनको आग्नेयास्त्र (रूद्र वाला नहीं, बंदूक वाला) रखने के लिए लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है।

शाम होते होते हम दोनों घूम फिर कर वापस होमस्टे आ गए, और अपने मेजबानो के साथ देर तक गप्पें लड़ाई, खाना खाया और बॉन-फायर का मज़ा लिया। आज रात यही रुक कर कल सवेरे वापस निकलने का प्रोग्राम था। लेकिन मन हो रहा था की यही पर रुक जाया जाय! घर की याद हो आई – वहाँ भी सब कुछ ऐसा ही था। मिलनसार लोग, शुद्ध वातावरण, पहाड़ी और शांत इलाका! मैं बालकनी में आकर बैठ गयी – एकांत था, दूर दूर तक शांति, न कोई लोग और न कोई आवाज़! रात में पहनने को कुछ नहीं था, इसलिए कमरे की बत्ती बुझा कर, बिना कपड़ों के ही कुर्सी पर बैठी कहे आकाश को देर तक देख रही थी। कम प्रदूषण वातावरण में होने के नाते, रात्रि आकाश असंख्य सितारों जगमगाते हुए दिख रहे थे! शानदार था! 

यहाँ प्राकृतिक दृश्यों की भरमार थी... मिटटी से मानो एक जादुई खुशबू निकल रही थी। पेड़ पौधों का अपना निराला अंदाज़, चारों ओर जैसे बस सुगंध ही सुगंध! ऐसे मनभावन वातावरण में किसी भी प्रकार का क्लेश कैसे हो सकता है? लेकिन फिर भी मन आशान्त था! घर की याद हो आई.. एक एक बात! माँ बाप का साथ कितना सुकून देता है! उनकी याद आते ही मन हुआ की जैसे पंख लगाकर पल भर में ही उनके पास पहुँच जाऊँ। पापा तो कितना दुलारते हैं! घर जाने पर मैं आराम से उनके ऊपर पैर पसारकर देर तक बैठी रहती हूँ। माँ कभी एक कप चाय का पकड़ा देती हैं, तो कभी रक प्लेट गरम पकोड़े!

“क्या सोच रही हो?” रूद्र ने मेरे कंधे पर मालिश करते हुए पूछा। न जाने कैसे, अगर मेरे मन में कुछ भी उल्टा पुल्टा होता है तो उनको ज़रूर मालूम पड़ जाता है। एक बार उन्होंने मुझे कहा था की मैं बिलकुल पारदर्शी हूँ... 

“कुछ भी नहीं, बस यूं ही मन उदास है।” मैंने सहज होते हुए कहा। 

“अरे! ऐसा क्यों? मेरा सरप्राइज पसंद नहीं आया क्या, जो ऐसे जाने कहां खोई हो?”

मैंने संभलते हुए कहा, “कुछ भी तो नहीं हुआ?” 

“नहीं... कुछ तो गड़बड़ है... वरना तुम इस तरह उदास और बुझी हुई कभी नहीं रहती।” इनकी पारखी आंखों ने ताड़ ही लिया... और ताड़े भी क्यों न? हम अब तक एक-दूसरे की रग-रग से वाकिफ हो गए थे, और एक-दूसरे की परेशानी की चिंता-रेखाओं को पकड़ लेते हैं। दो साल का अन्तरंग साथ है। चेहरा देख कर तो क्या, अब तो बिना देखे हुए ही मन के भाव समझ जाते हैं। उन्होंने मुझे पीछे से आलिंगन में भरते हुए पूछा, “ए जानू! बोलो न क्या हुआ? कुछ तो बताओ!” 

मैंने सहज होने की कोशिश करते हुए कहा, “यूं ही आज रह-रहकर घर की याद आ रही हैं।“

“अरे! बस इतनी सी बात.. अरे भई, कॉल कर लो!”

“ह्म्म्म.. देखा.. लेकिन सिग्नल नहीं हैं..”

“कोई बात नहीं, कल सवेरे कर लेना, जैसे ही नेटवर्क आता है.. ओके?”

मैंने कुछ नहीं कहा... बस डबडबाई हुई आंखों को चुपके से पोंछ लिया। चाहे मैंने कितनी ही चोरी छुपे यह किया हो, वो देख ही लेते हैं। 

“ओये, तुम चॉकलेट खाओगी?” मुझे चॉकलेट बहुत पसंद हैं... इसीलिए वो अक्सर अपने साथ दो तीन पैक ज़रूर रखते हैं। मैं मुस्कुराई! मेरी हर परेशानी का इलाज रहता है इनके पास।

“हाँ! बिलकुल! चॉकलेट के लिए मैंने कब मना किया?”

“हा हा! चलो यार! कम से कम तुम कुछ मुस्कुराई तो!” उन्होंने मुझे चॉकलेट पकड़ाते हुए कहा, “... यू नो! तुम्हारे चेहरे के लिए मुस्कुराहट ही ठीक है.. उदास होना, या गुस्सा होना... तुम्हारे लिए नहीं डिज़ाइन किया गया है..।“ 

“अच्छा जी, तो फिर किसके लिए?” 

“मेरे लिए! मुझे देखो न.. अगर इस चेहरे पर एक बार गुस्सा आ जाय, तो सामने वाले की...” 

मैंने बीच में ही काटते हुए कहा, “जी हाँ.. समझ आ गया!” फिर कुछ देर रुक कर, “जानू, आप भी कभी गुस्सा या उदास मत होइएगा। आप पर भी सूट नहीं करता!”

“मैं भला क्यों होऊंगा? मेरे साथ तो तुम हो! मेरे पास गुस्सा या उदास होने का कोई रीज़न ही नहीं है!” इन्होने मुझे दुलारते हुए कहा। मैं मुस्करा उठी। इनके स्नेह भरे साथ ने मुझे कितना बदल दिया है! 

“यू किस मी...”, मैंने एक बिंदास लड़की के जैसे वर्तमान अन्तरंग क्षणों का भरपूर लुत्*फ उठाने के लिए रूद्र का चेहरा अपने चेहरे पर खींच लिया। पिछले एक हफ्ते से हम लोग बहुत ही व्यस्त हो गए थे, और जाहिर सी बात है की इस कारण से सबसे पहले हमारे यौन समागम की बलि चढ़ी। मुझे तो लगता है की जब किसी को सेक्स की नियमित खुराक की आदत पड़ जाती है तो किसी भी प्रकार का व्यवधान शरीर और मन पर असर करने लगता है। ठीक वैसे ही जैसे किसी की नींद गड़बड़ होने से पूरे मानसिक और शारीरिक व्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है। मेरा शरीर किसी कसे हुये वीणा की तरह हुआ जा रहा था। मन बेचैन होने लगा था। 

हमारे आलिंगन बद्ध शरीरों में जैव रसायनों और संवेदनाओं के समरस प्रभाव से अब तीव्र उत्तेजना प्रवाहित होने लगी थी। ऐसे खुले प्राकृतिक वातावरण में यह यौनजन्*य प्रक्रिया अब अपना असर दिखाने लगी थी – मेरी योनि से वही जाना पहचाना स्राव होने लगा था, और रूद्र का लिंगोत्थान होने लगा। कुछ देर ढंग से चूमने के बाद, रूद्र मुझे अपनी गोद में उठाकर हमारे सुसज्*जित शयनकक्ष में आए। मैं बिस्तर पर बैठ कर चादर की सिलवटें ठीक करने लगी, लेकिन अब तक रूद्र कामासक्त होकर शरारत के मूड में आ गए थे। हमने इन दो सालों में कितनी ही बार अनवरत सेक्स किया था, लेकिन आज भी जब भी वो मुझे अपनी बाहों में लेटे हैं तो उनके मनोभाव समझते ही शर्म की लाली मेरे गालों और आँखों में उभर जाती है। मुझे बिस्तर पर लिटा कर जब रूद्र मुझमे प्रविष्ट हुए तब तक मेरा सारा तनाव और उदासी समाप्त हो गयी थी। ताज़ी हवा, चहुँओर फैली शांति और प्रबल साहचर्य की ऊर्जा ने हमारे शरीरों में हार्मोंस की गति इतनी बढ़ा दी कि उत्तेजना की कांति त्*वचा से रिसने लगी। यौन संसर्ग सचमुच मानसिक चेतना को सुकून और शरीर को पौष्*टिकता देती है। देखो न, कैसे उनके पौरुष रसायनों की आपूर्ति से मेरी देह गदरा गयी है! साहचर्य में मैं मदमस्*त होकर रूद्र को अपनी छातियों में समेटे ले रही थी – और देर तक हमारी कामजनित इच्छाओं को मूर्त रूप देते रहे।

सवेरे हम लोग देर से उठे, और जब तक तैयार होकर बाहर आये, तब तक हमारे मेजबानों ने एक बेहतरीन ब्रेकफास्ट बना दिया था। हमने खाना खाया, कॉफ़ी पी, और फिर भुगतान वगैरह करके वापस की यात्रा आरम्भ करी। रास्ते में रूद्र ने कहा की चलो, तुम्हे तिब्बत की सैर कराता हूँ!

तिब्बत! यहाँ कहाँ तिब्बत! फिर कोई एक घंटे में उनका मतलब समझ आया। हम लोग ब्यलाकुप्पे तिब्बती मठ पहुंचे। यह एक बेहद सुन्दर जगह है... अचानक ही इतने सारे तिब्बती चेहरों को देख कर लगता है की भारत में नहीं, बल्कि वाकई तिब्बत पहुँच गए हैं! प्राचीन परम्पराओं को लिए, और आधुनिक सुविधाओं के साथ यह जगह एक बहुत सुन्दर गाँव जैसे है। वैसे भी यह जगह देखने के लिए आज एकदम सही दिन था – गुनगुनी धुप बिखरी हुई थी। परिसर के अन्दर बगीचों का रख रखाव अच्छे से किया गया था। हर भवन के ऊपर रंग-बिरंगी झंडे फहरते दिख रहे थे। आते जाते भगवा वस्त्रों में बौद्ध भिक्षु दिख रहे थे। एक तरफ तिब्बती बच्चे आइसक्रीम का आनंद ले रहे थे। हम लोग वाकई यह भूल गए की हम लोग कर्नाटक में हैं। मठ इतनी अच्छी तरह से सुव्यवस्थित और शांतिपूर्ण ढंग से सजाया गया था की यहाँ आ कर मेरे मन में अनंत शांति और ऊर्जा का संचार होने लगा। 

मठ के अन्दर एक मंदिर है, जिसको स्वर्ण मंदिर कहते हैं। उसमें बहुत सुन्दर तीन मूर्तियाँ हैं - भगवान बुद्ध (केंद्र पर), गुरु पद्मसंभव, और बुद्ध अमितायुस। ये मूर्तियाँ तांबे की बनी हैं, और उन पर सोना चढ़ा हुआ है। मंदिर के अंदरूनी और वाह्य दीवारों पर बारीक डिजाइन और भित्ति-चित्र बनाए गए थे। दीवारों पर बने रंगीन भित्ति चित्र अनेक प्रकार की कहानियां सुना रहे थे। एक तरफ भिक्षु लोग प्रार्थना कर रहे थे और उनकी प्रार्थना से उत्पादित गहरी गुंजार... मानो हम खो गए थे। यहाँ पर बहुत देर रहा जा सकता है, लेकिन काम को कैसे दरकिनार किया जा सकता है? शाम से पहले बैंगलोर पहुंचने के लिए हमको अभी ही शुरू करना चाहिए था, तो इसलिए हमने भगवान बुद्ध को विदाई दी और बाहर आ गए। दोपहर का भोजन हमने वहीँ किया – तिब्बती भोजन! वहाँ ज्यादातर घरों को कैफे और रेस्तरां भोजनालय में बदल दिया गया है। खाने के बाद हमने कुछ हस्तशिल्प सामान खरीदा और वापसी का रुख किया।


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रूद्र की खजुराहो वाली उपमा मेरे दिमाग में हमेशा बनी रही। इन्टरनेट और अन्य जगहों से उसके बारे में मैंने बहुत सी जानकारी इकट्ठी कर ली थी.. इसिये जैसे ही रूद्र ने दिसम्बर की छुट्टियाँ मनाने के लिए जगह चुनने की पेशकश करी, मैंने तुरंत ही खजुराहो का नाम ले लिया। रूद्र ने आँख मारते हुए पूछा भी था की ‘जानेमन, क्या चाहती हो? अब क्या सीखना बाकी है?’ उनका इशारा सेक्स की तरफ था, यह मुझे मालूम है.. लेकिन मैंने उनकी सारे तर्क वितर्क को क्षीण कर के अंततः खजुराहो जाने के लिए मना ही लिया। लेकिन रूद्र भी कम चालाक नहीं हैं, उन्होंने चुपके से पन्ना राष्ट्रीय उद्यान को भी हमारी यात्रा में शामिल कर लिया।

खजुराहो के मंदिर भारतीय स्थापत्य कला का सुन्दर और उत्कृष्ट मिसाल हैं! मंदिरों की दीवारों पर उकेरी विभिन्न मुद्राओं को दिखाती मनोहारी प्रतिमाएँ दुलर्भ शिल्पकारी का उदाहरण हैं। खजुराहो मध्यप्रदेश राज्य में स्थित एक छोटा सा गाँव है। मध्यकाल में उत्तरी भारत के सीमांत प्रदेश पर मुसलमानी आक्रांताओं के अनवरत आक्रमण के कारण बड़गुज्जर राजपूतों ने पूर्व दिशा का रुख किया, और मध्यभारत अपना राज्य स्थापित किया। ये राजपूत महादेव शिव के उपासक थे। उन्हीं शासकों द्वारा नवीं से ग्यारहवीं शताब्दी के बीच खजुराहो के मंदिरों का निर्माण कराया गया। कहते हैं इन मंदिरों की कुल संख्या पच्चासी थी, जिन्हें आठ द्वारों का एक विशाल परकोटा घेरता था और हर द्वार खजूर के विशाल वृक्ष लगे हुए थे। इसी कारण इस जगह को खजुराहो कहते थे। आज उतनी संख्या में मंदिर नहीं बचे हैं। मुस्लिम आक्रमणकारियों की धर्मान्धता और समय का शिकार हो कर अधिकांश मंदिर नष्ट हो गए हैं। आज केवल बीस-पच्चीस मंदिर ही बचे हैं। हर साल लाखों की संख्या में देशी व विदेशी पर्यटक खजुराहों आते हैं व यहाँ की खूबसूरती को अपनी स्मृति में कैद कर ले जाते हैं।
खजुराहो के मंदिरों को ‘प्रेम के मंदिर’ भी कहते हैं। कहिये तो इन मंदिरों का इतना प्रचार यहाँ की काम-मुद्रा में मग्न देवी-देवताओं प्रतिमाओं के कारण हुआ है। ध्यान से देखें तो इन मूर्तियों में अश्लीलता नहीं, बल्कि प्रेम, सौंदर्य और सामंजस्य का प्रदर्शन है। खजुराहो के मंदिरों को आम तौर पर कामसूत्र मंदिरों की संज्ञा दी जाती है, लेकिन केवल दस प्रतिशत शिल्पाकृतियाँ ही रतिक्रीड़ा से संबंधित हैं। प्रतिवर्ष कई नव विवाहित जोड़े परिणय सूत्र में बँधकर अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत यही से करते हैं। लेकिन सच तो यह है की न ही कामसूत्र में वर्णित आसनों अथवा वात्स्यायन की काम-संबंधी मान्यताओं और उनके कामदर्शन से इनका कोई संबंध है।

खजुराहो मंदिर तीन दिशाओं में बने हुए हैं - पश्चिम, पूर्व और दक्षिण दिशा में। ज्यादातर मंदिर बलुहा पत्थर के बने हैं। इन पर आकृतियाँ उकेरना कठिन कार्य है, क्योंकि अगर सावधानी से छेनी हथोडी न चलाई जाय, तो यह पत्थर टूट जाते हैं। खजुराहो का प्रमुख एवं सबसे आकर्षक मंदिर है कंदारिया महादेव मंदिर। आकार में तो यह सबसे विशाल है ही, स्थापत्य एवं शिल्प की दृष्टि से भी सबसे भव्य है। समृद्ध हिन्दू निर्माण-कला एवं बारीक शिल्पकारी का अद्भुत नमूना प्रस्तुत करता है यह भव्य मंदिर। बाहरी दीवारों की सतह का एक-एक इंच हिस्सा शिल्पाकृतियों से ढंका पड़ा है। कंदरिया’ - कंदर्प का अपभ्रंश! कंदर्प यानी कामदेव! सचमुच इन मूर्तियों में काम और ईश्वर दोनों की तन्मयता की चरम सीमा देखी जा सकती है... भावाभिभूत करने वाली कलात्मकता! सुचित्रित तोरण-द्वार पर नाना प्रकार के देवी-देवताओं, संगीत-वादकों, आलिंगन-बद्ध युग्म आकृतियों, युद्ध एवं नृत्य, राग-विराग की विविध मुद्राओं का अंकन हुआ है। अन्दर की तरफ मंडपों की सुंदरता मन मोह लेती है। बालाओं की कमनीय देह की हर भंगिमा, और हर भाव का मनोरम अंकन हुआ है। उनके शरीर पर सजे एक-एक आभूषण की स्पष्ट आकृति शिल्पकला के कौशल को दर्शाती है। स्पंदन, गति, स्फूर्ति सब जैसे गतिमान और जीवंत से लगते हैं! मैं एकटक उन मूर्तियों को देखती रही! 

मंदिर के गर्भगृह में संगमरमर का शिवलिंग स्थापित है, और उसकी दीवारों पर परिक्रमा करने वाले पथ पर मनोरम शिल्पाकृतियाँ बनी हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों पर चारों दिशाओं में देवी-देवताओं, देवदूतों, यक्ष-गंधर्वों, अप्सराओं, किन्नरों आदि का चित्रण किया गया है। सीढ़ी सादी भाषा में कहें तो खजुराहो मंदिर, ख़ास तौर पर कंदरिया महादेव मंदिर हिन्दू शिल्प और स्थापत्य कला का संग्रहालय है। शिल्प की दृष्टि से देश के अन्य सारे निर्माण बौने हैं! मैं इन मंदिर को देखते हुए मैं बार-बार अभिभूत हो रही थी। मंत्रमुग्ध सी निहार रही थी! 

विशालता और शिल्प-वैभव में कंदरिया महादेव का मुकाबला करते लक्ष्मण मंदिर है। इसके प्रांगन में चारों कोनों पर बने उपमंदिर आज भी हैं। इस मंदिर के प्रवेश-द्वार के शीर्ष पर भगवती महालक्ष्मी की प्रतिमा है। उसके बाएँ स्तम्भ पर ब्रह्मा एवं दाहिने पर शिव की मूर्तियाँ हैं। गर्भगृह में भगवान विष्णु की लगभग चार फुट ऊँची प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में आप नरसिंह और वाराह अवतारों का रूप देख सकते हैं। मंदिर की दीवारों पर विष्णु के दशावतारों, अप्सराओं, आदि की आकृतियों के साथ-साथ प्रेमालाप, आखेट, नृत्य, मल्लयुद्ध एवं अन्य क्रीड़ाओं का अंकन किया गया है।

दिन भर इन मंदिरों का भ्रमण करने, थोड़ी बहुत खरीददारी करने और रात का साउंड एंड लाइट शो देखने के बाद जब हम वापस आये तो बहुत थक गए थे! सच कहूं, तो यहाँ आने को लेकर रूद्र मेरी अपेक्षा कम उत्साहित थे। हमने कमरे में ही माँगा लिया और खाना खा पीकर जब हम बिस्तर पर लेटे तो दिमाग में इस जगह के शासकों – चंदेल राजपूतों की उत्पत्ति की कहानी याद आने लगी। चंदेल राजा स्वयं को चन्द्रमा की संतान कहते थे। कहानी कुछ ऐसी है - बनारस के राजपुरोहित की विधवा बेटी हेमवती बहुत सुंदर थी.... अनुपम रूपवती! एक रात जब वह एक झील में नहा रही थी तो उसकी सुंदरता से मुग्ध होकर चन्द्रमा धरती पर उतर आया और हेमवती के साथ संसर्ग किया। हेमवती और चंद्रमा के इस अद्भुत मिलन से जो संतान उत्पन्न हुई उसका नाम चन्द्रवर्मन रखा गया, जो चंदेलों के प्रथम राजा थे।

कहानी अच्छी है, और प्रेरणादायी भी! प्रेरणा किस बात की? अरे, क्या अब यह भी बताना पड़ेगा? 

“जानू?”

“ह्म्म्म?”

“हेमवती और चन्द्रमा वाला खेल खेलें?”

“नेकी और पूछ पूछ! लेकिन सेटअप सही होना चाहिए!”

“अच्छा जी! मैंने तो मजाक किया था, लेकिन आप तो सीरियस हो गए!” मैंने ठिठोली करी।

रूद्र ने खिड़की खोल दी। चांदनी रात तो खैर नहीं थी, लेकिन चांदनी की कमी भी नहीं थी। उसके साथ साथ ठंडी हवा भी अन्दर आ रही थी। लेकिन, अगर शरीर में गर्मी हो, तो इससे क्या फर्क पड़ता है? सोते समय मैंने शिफॉन की नाइटी पहनी हुई थी – इसका सामने (मेरे स्तनों पर) वाला हिस्सा जालीदार था। उसकी छुवन और ठंडी हवा से मेरे निप्पल लगभग तुरंत ही तीखे नोकों में परिवर्तित हो गए। रूद्र के कहने पर मैं खिड़की के पास जा कर खड़ी हो गई - क्षण भर को मुझे जाने क्यों लगा की मैं वाकई हेमवती हूँ, वाराणसी के उसी ब्राह्मण पंडित की पुत्री! खुली खिड़कियों से आती हुई चांदनी हमारे कमरे को मानो सरोवर में तब्दील किये जा रही थी और मैं चंद्रमा की किरणों में नहा रही थी, अंग-अंग डूबी हुई। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं! 

‘न जाने कितनी स्त्रियों को यह अनुभव हुआ हो!’

मैंने मुड़ कर रूद्र को देखा – वो भी तल्लीन होकर चांदनी में नहाए मेरे रूप का अनवरत अवलोकन कर रहे थे। 

‘बॉडी लाइक खजुराहो इडोल्स!’

मैं धीरे धीरे खजुराहो की सपनीली दुनिया की नायिका बनती जा रही थी। राग-रंग से भरी हुई... आत्मलीन नायिका! मुझे लगा जैसे की मेरा शरीर किसी कसे हुये वीणा की तरह हो गया हो – उंगली से छेड़ते ही न जाने कितने राग निकल पड़ेंगे! मन अनुरागी होने लगा। क्या यह बेचैनी खजुराहो की थी? लगता तो नहीं! रूद्र तो हमेशा साथ ही रहते हैं, लेकिन आज वाली प्यास तो बहुत भिन्न है! न जाने कैसे, रूद्र के लिये मानो मेरी आत्मा तड़पती है, शरीर कम्पन करता है... अब यह सब सिवाय प्यार के और क्या है? 

“कब तक यूँ ही देखेंगे?”

“पता नहीं कब तक! तुम वाकई खजुराहो की देवी लग रही हो! ये गोल, कसे और उभरे हुए स्तन, पतली कमर, उन्नत नितंब! ...बिलकुल सपने में आने वाली एक परी जैसी!”

“अच्छा... आपके सपने में परियां आती हैं?” तब तक रूद्र ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया।

वो मुझे बहुत प्यार से देख रहे थे – आँखों में वासना तो थी, लेकिन प्यार से कम! उनकी आँखों में मेरा अक्स! उनकी आँखों के प्रेम में नहाया हुआ मेरा शरीर! सचमुच, मैं हेमवती ही तो थी! 

रूद्र ने क्या कहा मुझे सुनाई नहीं दिया – बस उनके होंठ जब मेरे होंठों से मिले, तो जैसे शरीर में बिजली सी दौड़ गई! मैं चुपचाप देखती हूँ की वो कैसे मेरे हर अंग को अनावृत करते जाते हैं, और चूमते जाते हैं। बस कुछ ही पलों में मैं अपने सपनों के अधिष्ठाता के साथ एक होने वाली थी।

‘बस कुछ ही पलों में....’

रूद्र मेरे निप्पलों को बारी बारी मुंह में भर कर चूस, चबा, मसल और काट रहे थे। मेरी साँसे तेजी से चलने लगीं। मेरा पूरा शरीर कसमसाने लगा। आज रूद्र कुछ अधिक ही बल से मेरे स्तन दबा रहे थे – ऐसा कोई असह्य नहीं, लेकिन हल्का हल्का दर्द होने लगा।

“अआह्ह्ह! आराम से...”

"हँ?" रूद्र जैसे किसी तन्द्रा से जागे!

“आराम से जानू... आह!”

“आराम से? तू इतनी सेक्सी लग रही है... आज तो इनमें से दूध निचोड़ लूँगा!” कह कर उन्होंने बेरहमी से एक बार फिर मसला।

"आऊ! अगर... इनमें... दूध होता... तो आपको... मज़ा... आआह्ह्ह्ह! आता?" मैंने जैसे तैसे कराहते हुए अपनी बात पूरी करी। मैं अन्यमनस्क हो कर उनके बालों में अपनी उँगलियाँ फिरा रही थी।

उन्होंने एक निप्पल को मुंह में भर कर चूसते हुए हामी में सर हिलाया। कुछ देर और स्तन मर्दन के बाद मेरी दर्द और कामुकता भरी सिसकियाँ निकलने लगी। लोहा गरम हो चला था... लेकिन रूद्र फोरप्ले में बिजी हैं! 

“अब... बस...! आह! अब अपना ... ओह! लंड.. डाल दो! प्लीज़! आऊ! अब न... अआह्ह्ह! सताओ...!”
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12-17-2018, 02:17 AM,
#67
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रूद्र जैसे बहरे हो गए थे। अब वो धीरे-धीरे चूमता हुए मेरे पेट की तरफ आ कर मेरी नाभि को चूमने, चूसने और जीभ की नोक से छेड़ने लगे, दूसरे हाथ से वो मेरी योनि का जायजा लेने लगे। और फिर अचानक ही, उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठाया और लाकर बिस्तर पर पटक दिया। कपड़े मेरे तो न जाने कब उतर चुके थे... रूद्र के कहने पर मैंने अपनी योनि पर से बाल हटवा लिए थे – स्थाई रूप से! रूद्र अभी पूरी तन्मयता के साथ बेतहाशा मेरी योनि को पागलों की तरह चूस रहे थे। अपनी जीभ यथासंभव अन्दर घुसा घुसा कर मेरा रस पी रहे थे। मैं बेचारी क्या करती? मैं आनन्द के मारे आँखें बंद करके मजा ले रही थी, और इस बात पर कुढ़ भी रही थी की अभी तक उन्होंने लिंग क्यों नहीं घुसाया। अब मुझसे सहन नहीं हो पा रहा था। 

जैसे रूद्र ने मेरे मन की बात सुन ली हो – उन्होंने योनि चूसना छोड़ कर एक बार मेरे होंठों पर एक चुम्बन लिया और फिर खुद भी निर्वस्त्र हो कर मुख्य कार्य के लिए तैयार हो गए। रूद्र ने एक झटके के साथ ही पूरा का पूरा मूसल मेरे अन्दर ठेल दिया – मेरी उत्तेजना चरम पर थी, इसलिए आसानी से सरकते हुए अन्दर चला गया। उत्तेजना जैसे मेरे वश में ही नहीं थी - मैंने नीचे देखा – मेरी योनि की मांसपेशियों ने लिंग-स्तम्भ को बहुत जोर से जकड़ रखा था। रूद्र ने हल्के-हल्के धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। और मैं मुँह भींचे, उनके लिंग की चोटों को झेल रही थी।

मैंने कहा, “आप तेज-तेज करो... जितनी तेज कर पाओ.. आह!”

रूद्र ने अपनी गति बढ़ा दी और तेज़-तेज़ झटके मारने लगे। जाहिर सी बात है, इतनी तेज गति से सेक्स करने पर हमेशा जैसा मैराथन संभव नहीं था। उनकी गति और भी तेज हो गयी थी, क्योंकि मैं भी अपनी कमर हिला-हिला कर उनका साथ दे रही थी। आख़िरकार एक झटके के साथ रूद्र का ढेर सारा वीर्य मेरे अन्दर भर गया। जब वो पूरी तरह से निवृत्त हो गए तो हम दोनों लिपट गए। 

मैंने उनको चूमते हुए कहा, “बाहर मत निकलना!”

रूद्र उसी तरह मुझे अपने से लपेटे लेटे रहे और बातें करते रहे। अंततः, उनका लिंग पूरी तरह से सिकुड़ कर बाहर निकल गया। मैं उठा कर बाथरूम गयी, और साफ़ सफाई कर के रूद्र के साथ रजाई के अन्दर घुस गयी।

“मैं आपसे एक बात कहूं? ... उम्म्म एक नहीं, दो बातें?”

“अरे, अब आपको अपनी बात कहने से पहले पूछना पड़ेगा?”

“नहीं.. वो बात नहीं है.. लेकिन बात ही कुछ ऐसी है!”

“ऐसा क्या? बताओ!”

“आपने एक बार मुझे कहा था न.. की अगर मेरे पास कोई बिज़नस आईडिया होगा, तो आप मेरी हेल्प करेंगे?”

“हाँ.. और यह भी कहा था की आईडिया दमदार होना चाहिए... कुछ है क्या दिमाग में?”

“है तो... आप सुन कर बताइए की बढ़िया है या नहीं?”

“मैं सुन रहा हूँ...”

“एक फैशन हाउस, जिसमे ट्रेडिशनल से इंस्पायर हो कर कंटेम्पररी जेवेलरी मिलें? खजुराहो ओर्नामेंट्स! कैसा लगा नाम? पुरानी मूर्तियों, और चित्रों से प्रेरणा लेकर नए प्रकार के गहने? मेटल, वुड, स्टोन, और बोंस – इन सबसे बना हुआ? क्या कहते हैं? कॉम्प्लिमेंटरी एक्सेसोरीस, जैसे स्टोल, बेल्ट्स, और बैग्स भी रख सकते हैं!”

“ह्म्म्म... इंटरेस्टिंग!” रूद्र ने रूचि लेटे हुए कहा... “अच्छा आईडिया तो लग रहा है.. इस पर कुछ रिसर्च करते हैं। एक स्टोर के साथ साथ इन्टरनेट पर भी बेच सकते हैं... ठीक है... मुझे और पता करने दो, और इस बीच में अपने इस आईडिया को और आगे बढाओ... ओके? हाँ, अब दूसरी बात?”

“दूसरी बात... उम्म्म.. कैसे कहूं आपसे..!”

“अरे! मुझसे नहीं, तो फिर किससे कहोगी?” रूद्र ने प्यार से चूमते हुए कहा।

मैं मुस्कुराई, “मुझे इनमें,” कहते हुए मैंने रूद्र का हाथ अपने एक स्तन पर रखा, “दूध चाहिए...”

“हैं? वो कैसे होगा?”

“अरे बुद्धू... मैं माँ बनना चाहती हूँ...”

“माँ बनना चाहती हो? वाकई? ...आई मीन, इस इट फॉर रियल?” मुझे उसकी बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था। रश्मि अभी तक अपनी पढाई लिखाई में इतनी मशगूल थी, की इस बात को पचाना ही मुश्किल हो रहा था।

“हाँ! क्यों? आप ऐसे क्यों कह रहे हैं?” रश्मि का स्वर अभी भी उतना ही संयत और शांत था, जितना की यह बात करने से पहले... सम्भोग की संतृप्ति की उत्तरदीप्ति का असर होगा? ... नहीं.. ये तो सीरियस लग रही है!

“नहीं.. मेरा मतलब.. तुम अभी कितनी छोटी हो!”

“आपका मतलब, आपसे शादी करने के टाइम से भी छोटी?”

“नहीं... ओह गॉड! एक मिनट... जरा ठन्डे दिमाग से सोचते हैं.. माँ बनना एक बात है, लेकिन बच्चे की परवरिश, उसकी देखभाल करना एक बिलकुल अलग बात है। मैं यह नहीं कह रहा हूँ की तुम हमारे बच्चे का ख्याल नहीं रख पाओगी.. लेकिन उसकी फुल टाइम ज़िम्मेदारी? मुझे नहीं लगता की तुम.. और मैं भी अभी तैयार हैं। अभी तुम्हारी उम्र इन चक्करों में पड़ने की नहीं है... हम ज़रूर बच्चे करेंगे! लेकिन, अभी नहीं। यह समझदारी नहीं है... अभी अपने करियर के बारे में सोचो – बच्चे तो कभी भी कर सकते हैं!”

“जानू.. माना की मैं अभी पढ़ रही हूँ... लेकिन, वो मेरे लिए बहुत आवश्यक नहीं है! पढाई मैं जारी भी रख सकती हूँ.. है की नहीं? वैसे भी मैंने अभी आपको अपना करियर प्लान बताया न? हम लोग एक अच्छी गवर्नेस रख सकते हैं.. मेरी हेल्प के लिए!” 

उसने रुक कर मुझे कुछ देर देखा... मैंने कुछ नहीं कहा। तो उसी ने आगे कहना जारी रखा,

“जानू.. पिछले कई दिनों से मुझे माँ बनने की बहुत तीव्र इच्छा हो रही है। और इसमें परेशानी ही क्या है? 

यहाँ, हमारी कॉलोनी में ही देख लीजिये.. कितनी सारी महिलाएं माँ बनी, और फिर उसके बाद अपने करियर पर भी काम कर रही हैं.. मेरा सेकंड इयर ख़तम होने ही वाला है.. अगर हेल्थ ठीक रहे और कोई कॉम्प्लिकेशन न हो, तो थर्ड इयर की क्लासेज तो आराम से की जा सकती हैं! ...वैसे... अगर आप पापा बनने को अभी रेडी नहीं है, तो कोई बात नहीं! हम वेट कर लेंगे!”

पापा! और मैं? ऐसे तो मैंने कभी सोचा ही नहीं!

“वेट कर लेंगे? अरे यार! अभी तुम्हारी उम्र ही कितनी है?”

“आपको नहीं मालूम?”

“मालूम है.. बस बीस की हुई हो पिछले महीने! एकदम कच्ची कली हो तुम! अभी ही बच्चा जनना ज़रूरी है?”

“कच्ची कली.. ही ही ही...! इस कली को आपने महकता हुआ फूल बना दिया है, मेरे जानू!” हँसते हुए रश्मि ने मेरे गले में गलबहियाँ डाल दीं और मेरे चेहरे को अपने स्तनों की तरफ झुकाते हुए बिस्तर पर लेट गयी। 

इशारा साफ़ था – सच में, मेरा भी कितना मन होता था की अगर इसके स्तनों में दूध उतर आये तो कितना मज़ा आये! लेकिन इतनी सी बात के लिए उसको माँ बनाना! ये तो वही बात हुई, खाया पिया कुछ नहीं और गिलास तोड़े बारह आने!

मुझे नहीं मालूम था की रश्मि इस बात का ठीकरा मेरे सर पर, और वो भी इस तरह फोड़ेगी। रात में नींद नहीं आई, और पूरी रात सोचता रहा – क्या बच्चा लाने की बात से मैं डर गया हूँ? रश्मि तो तैयार लग रही है, लेकिन क्या मैं तैयार हूँ? आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक दृष्टि से तो अभी तो उत्तम स्थिति है.. लेकिन भावनात्मक रूप से? क्या मैं एक नन्ही सी जान इस संसार में लाने और उसको लाड़-प्यार देने और पाल-पोस कर बड़ा करने के लिए तैयार हूँ? अभी तक तो जब जो जी में आया वो किया वाली हालत है.. लेकिन बच्चा आने पर वो सब कुछ बदल जाएगा! अपनी स्वतंत्रता छोड़ सकता हूँ क्या? उम्र का बहाना तो बना ही नहीं सकता.. मेरी उम्र के कई सहकर्मी बाप बन चुके हैं.. एक नहीं बल्कि दो दो बच्चों के! क्या यह डर मेरा रश्मि पर अपने एकाधिकार के कारण है? बच्चा आने पर वो तो उसी में लगी रहेगी.. फिर... मेरा क्या होगा? अब यह चाहे मेरा डर हो, या फिर रश्मि पर मेरा एकाधिकार, और या फिर उसके लिए मेरी चिंता... मैं उसको सीधे-सीधे मना नहीं करना चाह रहा था, पर इशारों में समझाया कि अभी बच्चे के चक्कर में मत पड़ो! पहले पढ़ाई ख़तम करो, और फिर बच्चे। 

माँ बाप बनना कोई मुश्किल काम तो है नहीं... बस निर्बाध रूप से सम्भोग करते रहें, और क्या? मैं और रश्मि कभी भी इस मामले में पीछे नहीं रहते हैं, और जल्दी ही रश्मि के आग्रह पर क्रिया के दौरान हमने किसी भी प्रकार की सुरक्षा रखना बंद कर दिया। बच्चे के विषय में और ज्यादा बात करने से मैं भी कुछ दिनों में मन ही मन पिता बनने को तैयार हो गया। मार्च का महीना था, और आख़िरी हफ्ता चल रहा था। रश्मि उस रात अपने एक्साम की तैयारी कर रही थी, और हमेशा की तरह मैं उसके साथ उसके विषय पर चर्चा कर रहा था। मैंने एक बात ज़रूर देखी – रश्मि आज रोज़ से ज्यादा मुस्कुरा रही थी... रह रह कर वो हंस भी रही थी! ये सब मेरा भ्रम था क्या? उसके गाल थोड़ा और गुलाबी लग रहे थे! ये लड़की तो परी है परी! हर रोज़ और ज्यादा सुन्दर होती जा रही है!! दस बजते बजते उसने कहा की तैयारी हो गयी है। साल भर पढ़ने का लाभ यही है की आखिरी रात ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। किताबों को बगल की टेबल पर रख कर रश्मि मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मुस्कुराते हुए देखने लगी।

“क्या बात है जानू? बहुत खुश लग रही हो आज!”

“हाँ.. आज खुश तो बहुत हूँ मैं!”

“अरे वाह! भई, हमें भी तो मालूम पड़े आपकी ख़ुशी का राज़!”

उत्तर में रश्मि ने मेरे हाथ को अपने एक स्तन पर रख कर कहा, “इनमें... दूध... आने वाला है!”

मेरा मुंह खुला का खुला रह गया। 

रश्मि ने मुझे समझाते हुए कहा, “जानू.. आप पापा बनने वाले हैं!”

“व्हाट! क्या ये सच है जानू?”

रश्मि खिलखिला कर हंस पड़ी, और देर तक हंसने के बाद उसने सर हिला कर हामी भरी। 

“ओओ माय गॉड! वाव! आर यू श्योर?”

“मुझे आज सवेरे मालूम पड़ा.. मिस्ड माय पीरियड्स फॉर सेकंड मंथ.. इसलिए आज होम प्रेगनेंसी किट ला कर टेस्ट किया। रिजल्ट पॉजिटिव है!”

मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था, “वाव!” मैंने धीरे से कहा.. और फिर तेज़ से, “वाव्व्व! ओह गॉड! हनी, आई ऍम सो हैप्पी! अमेजिंग!!” कहते हुए मैंने रश्मि के होंठों पर अपने होंठ रख दिए और अपने दोनों हाथों से उसके गालों को पकड़ कर देर तक चूमता रहा। मेरी बीवी गर्भवती है! अद्भुत! मुझे उसका शरीर देखने की तीव्र इच्छा होने लगी (मेरी मूर्खता देखिए, अभी दो दिनों पहले ही तो हमने सेक्स किया था), और मैंने उसकी टी-शर्ट उठा दी... और उसके पेट पर प्यार से हाथ फिराया। 

‘इसमें मेरा बच्चा है!’ मैं इस ख़याल से हैरान था। मेरा मन उत्साह से भर गया। मैंने बिना कोई देर किए उसके पेट पर एक चुम्बन दिया – रश्मि मेरी इस हरकत से सिहर उठी और हलके से हंसने लगी।

“आई लव यू सो मच हनी! आज तुमने मुझे कितनी सारी ख़ुशी दी है, तुमको मालूम नहीं!”

“आई लव यू टू.. सबसे ज्यादा! आप मेरे हीरो हैं.. हमारा बच्चा बहुत लकी है की उसको आपके जैसा पापा मिलेगा!”

“नहीं जानू.. मैं लकी हूँ.. की मुझे तुम मिली.. पहले तुमने मुझे पूरा किया, और अब मेरे पूरे जीवन को! थैंक यू!”

पूरी रात मुझे नींद नहीं आई... मुझे क्या, रश्मि को भी रह रह कर नींद आई। मुझे डर लग रहा था की कहीं नींद की कमी से उसका अगले दिन का एक्साम न गड़बड़ हो जाय.. लेकिन रश्मि ने मुझे दिलासा दिया की वो भी ख़ुशी के कारण नहीं सो पा रही है। और इससे एक्साम पर असर नहीं पड़ेगा। मैंने अगले दिन से ही रश्मि का और ज्यादा ख़याल रखना शुरू कर दिया – बढ़िया डॉक्टर से सलाह-मशविरा, खाना पीना, व्यायाम, और ज्यादा आराम इत्यादि! डॉक्टर रश्मि की शारीरिक हालत देख कर बहुत खुश थी, और उसने रश्मि को अपनी दिनचर्या बरकरार रखने को कहा – बस इस बात की हिदायद दी की वो कोई ऐसा श्रमसाध्य काम या व्यायाम न करे, जिसमे बहुत थकावट हो जाय। उन्होंने मुझे कहा की मैं रश्मि को ज्यादा से ज्यादा खुश रखूँ। उन्होंने यह भी बताया की क्योंकि रश्मि की सेहत बढ़िया है, इसलिए सेक्स करना ठीक है, लेकिन सावधानी रखें जिससे गर्भ पर अनचाहा चोट न लगे। उन्होंने यह भी कहा की इस दौरान रश्मि बहुत ‘मूडी’ हो सकती है, इसलिए उसको हर तरह से खुश रखना ज़रूरी है। मुझे यह डॉक्टर बहुत अच्छी लगी, क्योंकि उन्होंने हमको बिना वजह डराया नहीं और न कोई दवाई इत्यादि लिखी। गर्भधारण एक सहज प्राकृतिक क्रिया है, कोई रोग नहीं। बस उन्होंने समय समय पर जांच करने और कुछ सावधानियां लेने की सलाह दी।
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12-17-2018, 02:17 AM,
#68
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
हमने जब उसके घर में यह इत्तला दी, तो वहाँ भी सभी बहुत प्रसन्न हुए। उसकी माँ रश्मि को मायके बुलाना चाहती थीं, लेकिन रश्मि ने उनको कहा की मैं उसका खूब ख़याल रखता हूँ, और बैंगलोर में देखभाल अच्छी है। इसलिए वो यहीं रहेगी, लेकिन हाँ, वो बीच में एक बार मेरे साथ उत्तराँचल आएगी। सुमन यह खबर सुन कर बहुत ही अधिक उत्साहित थी। इसलिए रश्मि ने उसको अपनी गर्मी की छुट्टियाँ बैंगलोर में मनाने को कहा। सुमन का अप्रैल के अंत में बैंगलोर आना तय हो गया। मुझे इसी बीच तीन हफ़्तों के लिए यूरोप जाना पड़ा – मन तो बिलकुल नहीं था, लेकिन बॉस ने कहा की अभी जाना ठीक है, बाद में कोई ट्रेवल नहीं होगा। यह बात एक तरह से ठीक थी, लेकिन मन मान नहीं रहा था। खैर, मैंने जाने से पहले रश्मि की देखभाल के सारे इंतजाम कर दिए थे और देवरामनी दंपत्ति से विनती करी थी की वो ज़रुरत होने पर रश्मि की मदद कर दें। इसके उत्तर में मुझे लम्बा चौड़ा भाषण सुनना पड़ा की रश्मि उनकी भी बेटी है, और मैंने यह कैसे सोच लिया की मुझे उनको उसकी देखभाल करने के लिए कहना पड़ेगा। रश्मि के एक्साम अप्रैल के मध्य में ख़तम हो गए, और अप्रैल ख़तम होते होते मैं भी बैंगलोर वापस आ गया।

जब घर का दरवाज़ा खुला तो मुझे लगा की जैसे मेरे सामने कोई अप्सरा खड़ी हुई है! मैं एक पल को उसे पहचान ही नहीं पाया।

"रश्मि! आज तुम कितनी सुन्दर लग रही हो।"

"आप भी ना..." रश्मि ने शर्माते हुए कहा।

रश्मि तो हमेशा से ही सुन्दर थी, लेकिन गर्भावस्था के इन महीनों में उसका शरीर कुछ ऐसे बदल गया जैसे किसी सिद्धहस्थ मूर्तिकार ने फुर्सत से उसे तराशा हो। बिलकुल जैसे कोई अति सुन्दर खजुराहो की मूरत! सुन्दर, लावण्य से परिपूरित मुखड़ा, गुलाबी रसीले होंठ, मादक स्तन (स्पष्ट रूप से उनका आकार बढ़ गया था), सुडौल-गोल नितंब, और पेट के सामने सौम्य उभार! हमारा बच्चा! और इन सबके ऊपर, एक प्यारी-भोली सी सूरत। आज वह वाकई रति का अवतार लग रही थी। और हलके गुलाबी साड़ी-ब्लाउज में वह एकदम क़यामत ढा रही थी। मैंने भाग कर बिना कोई देर किये अपना कैमरा निकला और रश्मि की ना-नुकुर के बावजूद उसकी कई सारी तस्वीरें उतार लीं। मैंने मन ही मन निर्णय लिया की अब से गर्भावस्था के हर महीने की नग्न तस्वीरें लूँगा... बुढापे में साथ में याद करेंगे!

तीन हफ्ते हाथ से काम चलाने के बाद मैं भी रश्मि के साथ के लिए व्याकुल था। मैंने रश्मि के मुख को अपने हाथों में ले कर उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए। रश्मि तुरंत ही मेरा साथ देने लगती है : मैं मस्त होकर उसके मीठे होंठ और रस-भरे मुख को चूसने लगता हूँ। ऐसे ही चूमते हुए मैं उसकी साड़ी उठाने लगता हूँ। रश्मि भी उत्तेजित हो गयी थी - उसकी सांसे अब काफी तेज चल रही थीं। उन्माद में आकर उसने मुझे अपनी बाहों में जकड लिया। चूमते हुए उसकी सांसो की कामुक सिसकियां मुझे अपने चेहरे पर महसूस होने लगीं। मै इस समय अपने एक हाथ से उसकी नंगी जांघ सहला रहा था। इस पर रश्मि ने चुम्बन तोड़ कर कहा,

“जानू, बेड पर चलते हैं?”

मैंने इस बात पर उसको अपनी दोनों बाहों में उठा लिया और उसको चूमते हुए बेडरूम तक ले जाकर, पूरी सावधानी से बिस्तर पर लिटा दिया। अब मैं आराम से उसके बगल लेट कर उसको चूम रहा था – अत्यधिक घर्षण, चुम्बन और चूषण से उसके होंठ सुर्ख लाल रंग के हो गए थे। हम दोनों के मुँह अब तक काफी गरम हो गए थे, और मुँह ही क्या, हमारे शरीर भी!

मैंने रश्मि की साड़ी पूरी उठा दी – आश्चर्य, उसने नीचे चड्ढी नहीं पहनी हुई थी। मैंने उसको छेड़ने के लिए उसकी योनि के आस-पास की जगह को देर तक सहलाता रहा – कुछ ही देर में वो अपनी कमर को तड़प कर हिलाने लगी। वह कह तो कुछ भी नहीं रही थी, लेकिन उसके भाव पूरी तरह से स्पष्ट थे – “मेरी योनि को कब छेड़ोगे?”

पर मैं उसकी योनि के आस पास ही सहला रहा था, साथ ही साथ उसको चूम रहा था। रश्मि की योनि में अंतर दिख रहा था – रक्त से अतिपूरित हो चले उसके योनि के दोनों होंठ कुछ बड़े लग रहे थे। संभव है की वो बहुत संवेदनशील भी हों! उसका योनि द्वार बंद था, लेकिन आकार बड़ा लग रहा था। अंततः मैंने अपनी जीभ को उसकी योनि से सटाया और जैसे ही अपनी जीभ से उसे कुरेदा, तो उसकी योनि के पट तुरंत खुल गए। अंदर का सामान्यतः गुलाबी हिस्सा कुछ और गुलाबी हो गया था। यह ऐसे तो कोई नई क्रिया नहीं थी – मुख मैथुन हमारे लिए एक तरह से सेक्स के दौरान होने वाला ज़रूरी दस्तूर हो गया था.. लेकिन गर्भवती योनि पर मौखिक क्रिया काफी रोचक लग रही थी। कुछ देर रश्मि की योनि को चूमने चाटने के बाद,

“जानू, तेरी चूत तो क्या मस्त लग रही है... देखो, फूल कर कैसी कुप्पा हो गयी है!”

“आह्ह्ह! छी! कैसे गन्दी बात बोल रहे हैं! बच्चा सुनेगा तो क्या सीखेगा? जो करना है चुपचाप करिए!” मीठी झिड़की!

“गन्दी बात क्या है? चूत का मतलब है आम! ये भी तो आम जैसी रसीली हो गयी है..”

“हाँ जी हाँ! सब मालूम है मुझे आपका.. आप अपनी शब्दावली अपने पास रखिए.. ऊह्ह्ह!” मैंने जोर से उसके भगनासे को छेड़ा।

साड़ी का कपड़ा हस्तक्षेप कर रहा था, इसलिए मैंने उठ कर रश्मि का निचला हिस्सा निर्वस्त्र करना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में उसकी साड़ी और पेटीकोट दोनों ही उसके शरीर से अलग हो गए।

“इतनी देर तक, इतनी मेहनत करने के बाद मैंने साड़ी पहनी थी... एक घंटा भी शरीर पर नहीं रही..” रश्मि ने झूठा गुस्सा दिखाया। 

“अच्छा जी, मुझे लगा की तुमको नंगी रहना अच्छा लगता है!”

“मुझे नहीं... वो आपको अच्छा लगता है!”

“हाँ... वो बात तो है!” कह कर मैंने उसकी ब्लाउज के बटन खोलने का उपक्रम किया। कुछ ही पलों में ब्लाउज रश्मि की छाती से अलग हो गयी। रश्मि ने नीचे ब्रा नहीं पहनी थी। मैंने एक पल रुक कर उसके बदले हुए स्तनों को देखा – रश्मि की नज़र मेरे चेहरे पर थी, मानो वो मेरे हाव भाव देखना चाहती हो। गर्भाधान के पहले रश्मि के स्तनाग्र गहरे भूरे रंग के थे, और बेहद प्यारे लगते थे। इस समय उनमें हल्का सा कालापन आ गया था – आबनूस जैसा रंग! और areola का आकार भी कुछ बढ़ गया था। सच कहता हूँ, किसी और समय ऐसा होता तो निराशा लगती, लेकिन इस समय उसके स्तन मुझे अत्यंत आकर्षक लग रहे थे। प्यारे प्यारे स्तन! 

“ब्यूटीफुल!” कह कर मैंने अपने मुँह से लपक कर उसके एक निप्पल को दबोच लिया और उत्साह से उसको पीने लगा। रश्मि आह-आह कर के तड़पने लगी और मेरे बालों को कस के पकड़ने लगी। 

“आह.. जानू जानू.. इस्स्स्स! दर्द होता है.. धीरे आह्ह... धीरे!” वो बड़बड़ा रही थी।

“स्स्स्स धीरे धीरे कैसे करूँ? कितनी सुन्दर चून्चियां हैं तेरी..” कह कर मैंने उसके स्तनाग्र बारी बारी से दाँतों के बीच लेकर काटने लगा। 

“मैं तो इनमें से दूध की एक एक बूँद चूस लूँगा!”

“जानू! सच में.. आह! दर्द होता है.. कुछ रहम करो.. उफ़!”

रश्मि ने ऐसी प्रतिक्रिया कभी नहीं दी.. सचमुच उसको दर्द हो रहा होगा। मैंने उसके स्तनों को इस हमले से राहत दी। रश्मि दोनों हाथों से अपने एक एक स्तन थाम कर राहत की सांसे भरने लगी, और कुछ देर बाद बोली, 

“अब आप इन पर सेंधमारी करना बंद कीजिए.. हमारे होने वाले बच्चे की डेयरी है यहाँ!”

“हैं? क्या मतलब? मेरा पत्ता साफ़? इतना बड़ा धोखा!!”

“ही ही ही...” रश्मि खिलखिला कर हंस पड़ी, “अरे बाबा! नहीं.. ऐसा मैंने कब कहा? सब कुछ आप का ही तो है... लेकिन एक साल तक आप दूसरे नंबर पर हैं... आप भी दूध पीना.. लेकिन हमारे बच्चे के बाद! समझे मेरे साजन?” कह कर उसने दुलार से मेरे बालों में हाथ फिराया।

“बस.. एक ही साल तक पिलाओगी?”

“हाँ.. उसको बस एक साल... लेकिन उसके पापा को, पूरी उम्र!”

“हम्म... तो अब मुझे जूनियर की जूठन खानी पड़ेगी..”

“न बाबा... खाना नहीं.. बस पीना...” 

रश्मि की बात पर हम दोनों खुल कर हंसने लगे। 

“ठीक है... मम्मी की चून्चियां नहीं तो चूत ही सही..” कह कर मैंने रश्मि की योनि पर हमला किया।

“जानू...!” रश्मि चिहुंक उठी, “लैंग्वेज! ... बिलकुल बेशरम हो!”

मैंने नए अंदाज़ में रश्मि की योनि चाटनी शुरू की – जैसे बाघ पानी पीता है न? लपलपा कर! ठीक उसी प्रकार मेरी जीभ भी रश्मि की योनि से खेल रही थी... रश्मि की सांसें प्रतिक्रिया स्वरुप तेजी से चलने लगी.. उत्तेजना में वो कसमसा मुझे प्रोत्साहन देने लगी.. वह उत्तेजना के चरम पर जल्दी जल्दी पहुँच रही थी, और इस कारण उसका शरीर पीछे की ओर तन गया था – धनुष समान! उसके हाथ मेरे सर पर दबाव डाल रहे थे। मैने उसके हाथों को अपने सर से हटा कर, उसकी उँगलियों को बारी बारी से अपने मुंह में ले कर चूसने चाटने लगा। रश्मि उन्माद में कराह उठी – उसकी कमर हिलाने लगी... ठीक वैसे ही जैसे सम्भोग के दौरान करती है। उसके हाथों को छोड़ कर मैंने जैसे ही उसकी योनि पर वापस जीभ लगाई उसकी योनि से सिरप जैसा द्रव बहने लगा, और उसके बदन में कंपकंपी आने लगी। मै धीरे धीरे, स्वाद ले लेकर उस द्रव को चाट रहा था। बढ़िया स्वाद! नमकीन, खट्टा, और कुछ अनजाने स्वाद – सबका मिला-जुला।

रश्मि मुँह से अंग्रेजी का ओ बनाए हुए तेजी से साँसे ले रही थी – इस कारण हलकी सीटी सी बजती सुनाई दी। मैंने सर उठा कर उसकी तरफ देखा – रश्मि ने आंखे कस कर मूंदी हुई थी, और कांप रही थी। मैने वापस उसकी योनि का मांस अपने होठों के बीच लिया और होंठों की मदद से दबाने, और चाटने लगा। इस नए आक्रमण से वो पूरी तरह से तड़प उठी। मैंने विभिन्न गतियों और तरीकों से उसकी योनि के दोनों होंठों और भगनासे को चाट रहा था। उसी लय में लय मिलाते हुए रश्मि भी अपनी कमर को आगे-पीछे हिला रही थी। रश्मि दोबारा अपने चरम के निकट पहुँच गई। लेकिन उसको प्राप्त करवाने के लिए मुझे एक आखिरी हमला करना था – मैंने उसकी योनि मुख को अपनी तर्जनी और अंगूठे की सहायता से फैलाया, और अपने मुँह को अन्दर दे मारा। जितना संभव था, मैंने अपनी जीभ को उसकी योनि के भीतर तक ठेल दिया – उसकी योनि की अंदरूनी दीवारें मानो भूचाल उत्पन्न कर रही थीं – तेजी से संकुचन और फैलाव हो रहा था। शीघ्र ही उसकी योनि के भीतर का ज्वालामुखी फट पड़ा। मुझे पुनः नवपरिचित नमकीन-खट्टा स्वाद एक गरम द्रव के साथ अपनी जीभ पर महसूस हुआ। मै अपनी जीभ को यथासंभव उसकी योनि के अंदर तक डाल देता हूँ। 

“आआह्ह्ह्ह!” रश्मि चीख उठती है। उत्तेजनावश वो अपने पैरों से मेरी गरदन को जकड़ लेती है और कमर को मेरे मुंह ठेलने की कोशिश कर रही थी। मैं अपनी जीभ को अंदर-बाहर अंदर-बाहर करना बंद नहीं करता। उसका रिसता हुआ योनि-रस मैं पूरी तरह से पी लेता हूँ। रश्मि का शरीर एकदम अकड़ जाता है; रति-निष्पत्ति के बाद भी उसका शरीर रह रह कर झटके खा रहा होता है। जब उत्तेजना कुछ कम हुई तो रश्मि की सिसकारी छूट गई, “स्स्स्स...सीईइइ हम्म्म्म” 

अंततः मैं उसको छोड़ता हूँ, और मुस्कुराते हुए देखता हूँ। रश्मि संतुष्टि और प्रसन्नता भरी निगाहों मुझे देखती है। मैंने ऊपर जा कर उसको एक बार फिर से चूमा, और उसके सर पर हाथ फिराते हुए बोला, 

“जानू.. लंड ले सकोगी?”

रश्मि ने सर हिला कर हामी भरी और फिर कुछ रुक कर कहा, “जानू... बच्चा सुनता है!”
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12-17-2018, 02:18 AM,
#69
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैं सिर्फ मुस्कुराया। इतनी देर तक यह सब क्रियाएँ करने के कारण, मेरा लिंग अपने अधिकतम फैलाव और उत्थान पर था। मुझे मालूम था की बस दो तीन मिनट की ही बात है.. मैं बिस्तर से उठा और रश्मि को उसके नितम्ब पकड़ कर बिस्तर के सिरे की ओर खिसकाया। कुछ इस तरह जिससे उसके पैर घुटने के नीचे से लटक रहे हों, और योनि बिस्तर के किनारे के ऊपर रहे, और ऊपर का पूरा शरीर बिस्तर पर चित लेटा रहे। मैं रश्मि को घुटने के बल खड़ा हो कर भोगने वाला था। यह एक सुरक्षित आसन था – रश्मि के पेट पर मेरा रत्ती भर भार भी नहीं पड़ता। 

सामने घुटने के बल बैठ कर, मैंने रश्मि की टांगों को मेरी कमर के गिर्द घेर लिया और एक जांघ को कस कर पकड़ लिया। दूसरे हाथ से मैंने अपने लिंग को रश्मि की योनि-द्वार पर टिकाया और धीरे धीरे अन्दर तक घुसा दिया। लिंग इतना उत्तेजित था की वो रश्मि की योनि में ऐसे घुस गया जैसे की मक्खन में गरम छुरी! इस समय हम दोनों के जघन क्षेत्र आपस में चिपक गए थे – मतलब मेरे लिंग की पूरी लम्बाई इस समय रश्मि के अन्दर थी। जैसे तलवार के लिए सबसे सुरक्षित स्थान उसका म्यान होती है, ठीक उसी तरह एक उत्तेजित लिंग के लिए सबसे सुरक्षित स्थान एक उतनी ही उत्तेजित योनि होती है – उतनी ही उत्तेजित... गरम गीलापन और फिसलन लिए! काफी देर से उत्तेजित मेरे लिंग को जब रश्मि की योनि ने प्यार से जकड़ा तो मुझे, और मेरे लिंग को को बहुत सकून मिला। हम दोनों प्रेमालिंगन में बांध गए। 

इस अवस्था में मुझे बदमाशी सूझी।

मैंने रश्मि के पेट पर हाथ फिराते हुए कहा, “मेरे बच्चे, मैं आपका पापा बोल रहा हूँ! आपकी मम्मी और मैं, आपको खूब प्यार करते हैं... मैं आपकी मम्मी को भी खूब प्यार करता हूँ... उसी प्यार के कारण आप बन रहे हो!”

रश्मि मेरी बातों पर मुस्कुरा रही थी.. मैंने कहना जारी रखा, “जब आप मम्मी के अन्दर से बाहर आ जाओगे, तो हम ठीक से शेक-हैण्ड करेंगे... फिलहाल मैं आपको अपने लिंग से छू रहा हूँ.. इसे पहचान लो.. जब तक आप बाहर नहीं आओगे तब तक आपका अपने पापा का यही परिचय है..”

रश्मि ने प्यार से मेरे हाथ पर एक चपत लगाई, “बोला न, आप चुप-चाप अपना काम करिए!”

“देखा बच्चे.. आपकी माँ मेरा लंड लेने के लिए कितना ललायित रहती है?”

“चुप बेशरम..”

मैंने ज्यादा छेड़ छाड़ न करते हुए सीधा मुद्दे पर आने की सोची – मैं सम्हाल कर धीरे धीरे रश्मि को भोग रहा था। हलके झटके, नया आसन, और रश्मि की नई अवस्था! रह रह कर चूमते हुए मैं रश्मि के साथ सम्भोग कर रहा था। रश्मि ने इससे कहीं अधिक प्रबल सम्भोग किया है, लेकिन इस मृदुल और सौम्य सम्भोग पर भी वो सुख भरी सिस्कारियां ले रही थी... कमाल है! वो हर झटके पर सिस्कारियां या आहें भर रही थी! 

‘अच्छा है! मुझे बहुत कुछ नया नहीं सोचना पड़ेगा!’

मैंने नीचे से लिंग की क्रिया के साथ साथ, रश्मि के मुख, गालों, और गर्दन पर चुम्बन, चूषण और कतरन जारी रखी। और हाथों से उसके मांसल स्तनों का मर्दन भी! चौतरफा हमला! अभी केवल तीन चार मिनट ही हुए थे, और जैसे मैंने सोचा था, मैं रश्मि के अन्दर ही स्खलित हो गया। कोई उल्लेखनीय तरीके से मैंने आज सम्भोग नहीं किया था, लेकिन आज मुझे बहुत ही सुखद अहसास हुआ! रश्मि ने मुझे अपने आलिंगन में कैद कर लिया... और मैंने उसे अपनी बाँहों में कस कर भींच लिया।

“जानू हमरे...” कुछ देर सुस्ताने के बाद रश्मि ने कहा, “... आज वाला.. द बेस्ट था..” और कह कर उसने मुझे होंठों पर चूम लिया।

मैंने उसको छेड़ा, “आज वाला क्या?”

“यही..”

“यही क्या?”

“से...क्स...”

“नहीं.. हिन्दी में कहो?”

“चलो हटो जी.. आपको तो हमेशा मजाक सूझता है..” रश्मि शरमाई।

“मज़ाक! अरे वाह! ये तो वही बात हुई.. गुड़ खाए, और गुलगुले से परहेज़! चलो बताओ.. हमने अभी क्या किया?”

“प्लीज़ जानू...”

“अरे बोल न..”

“आप नहीं मानोगे?”

“बिलकुल नहीं...”

“ठीक है बाबा... चुदाई.. बस! अब खुश?”

“हाँ..! लेकिन... अब पूरा बोलो...”

“जानू मेरे, आज की चुदाई ‘द बेस्ट’ थी!”

“वैरी गुड! आई ऍम सो हैप्पी!”

“मालूम था.. हमारा बच्चा अगर बिगड़ा न.. तो आपकी जिम्मेदारी है। ... और अगर इससे आपका पेट भर गया हो तो खाना खा लें?“

सुमन इस घटना के एक सप्ताह बाद बैंगलोर आई। अकेले नहीं आई थी, साथ में मेरे सास और ससुर भी थे। एक बड़ी ही लम्बी चौड़ी रेल यात्रा करी थी उन लोगों ने! सुमन के लिए तो एकदम अनोखा अनुभव था! खैर, गनीमत यह थी की उनकी ट्रेन सवेरे ही आ गई, और छुट्टी के दिन आई, इसलिए उनको वहाँ से आगे कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा! रेलवे स्टेशन पर मैं ही गया था सभी को रिसीव करने... रश्मि घर पर ही रह कर नाश्ता बनाने का काम कर रही थी। 

घर आने पर हम लोग ठीक से मिले। अब चूंकि वो दोनों पहली बार अपनी बेटी के ससुराल (या की घर कह लीजिए) आये थे, इसलिए उन्होंने अपने साथ कोई न कोई भेंट लाना ज़रूरी समझा। न जाने कैसी परम्परा या पद्धति निभा रहे थे... भई, जो परम्पराएँ धन का अपव्यय करें, उनको न ही निभाया जाए, उसी में हमारी भलाई है। वो रश्मि के लिए कुछ जेवर और मेरे लिए रुपए और कपड़ों की भेंट लाये थे। घर की माली हालत तो मुझे मालूम ही थी, इसलिए मैं खूब बिगड़ा, और उनसे आइन्दा फिजूलखर्ची न करने की कसमें दिलवायीं। इतने दिनों बाद मिले, और बिना वजह की बात पर बहस हो गयी। खैर! ससुर जी ने कहा की इस बार फसल अच्छी हुई है, और कमाई भी.. इसलिए देन व्यवहार तो करने का बनता है.. और वैसे भी उनका जो कुछ भी है, वो दोनों बेटियों के लिए ही तो है! अपने साथ थोड़े न ले जायेंगे! रुढ़िवादी लोग और उनकी सोच! 
सुमन अब एक अत्यंत खूबसूरत तरुणी के रूप में विकसित हो गयी थी.. इतने दिनों के बाद देख भी तो रहा हूँ उसको! वो मुझे मुस्कुराते हुए देख रही थी। 

मैंने आगे बढ़कर उसकी एक हथेली को अपने हाथ में ले लिया, “अरे वाह! कितनी सुन्दर लग रही है मेरी गुड़िया... तुम तो खूब प्यारी हो गई हो..!” कह कर मैंने उसको अपने गले से लगा लिया। सुमन शरमाते हुए मेरे सीने में अपना मुँह छुपाए दुबक गई। लेकिन मैंने उसको छेड़ना बंद नहीं किया,

“मैं तुम्हारे गालों का सेब खा लूँ?”

“नहीईई.. ही ही ही..” कह कर हँसते हुए वो मेरे आलिंगन से बाहर निकलने के लिए कसमसाने लगी.. 

“अरे! क्यों भई, मुझे पप्पी नहीं दोगी?”

सुमन शर्म से लाल हो गई, और बोली, “जीजू, अब मैं बड़ी हो गयी हूँ।“

“हंय? बड़ी हो गयी हो? कब? और कहाँ से? मुझे तो नहीं दिखा!” साफ़ झूठ! दिख तो सब रहा था, लेकिन फिर भी, मैंने उसको छेड़ा! लेकिन मेरे लिए सुमन अभी भी बच्ची ही थी।

“उम्म्म... मुझे नहीं पता। लेकिन मम्मी मुझे अब फ्रॉक पहनने नहीं देती... कहती है की तू बड़ी हो गयी है...”

“मम्मी ऐसा कहती है? चलो, उनके साथ झगड़ा करते हैं! ... लेकिन उससे पहले...” कहते हुए मैंने उसकी ठुड्डी को ऊपर उठाते हुए उसके दोनों गालों पर एक-एक पप्पी ले ही ली। शर्म से उसके गाल और लाल हो गए और वो मुझसे छूट कर भाग खड़ी हुई।

रश्मि इस समय सबके आकर्षण का केंद्र थी, इसलिए मैंने कुछ काम के बहाने वहाँ से छुट्टी ली, और बाहर निकल गया। सारे काम निबटाते और वापस आते आते दोपहर हो गई.. और कोई डेढ़ बज गए! सासु माँ के आने का एक लाभ होता है (मेरे सभी विवाहित मित्र इस बात से सहमत होंगे) – और वह है समय पर स्वादिष्ट भोजन! वापस आया तो देखा की सभी मेरा ही इंतज़ार कर रहे हैं। खैर, मैंने जल्दी जल्दी नहाया, और फिर स्वादिष्ट गढ़वाली व्यंजनों का भोग लगाया। और फिर सुखभरी नींद सो गए।

शाम को चाय पर मैंने सुमन से उसके संभावित रिजल्ट के बारे में पूछा। उसको पूरी उम्मीद थी की अच्छा रिजल्ट आएगा। मैंने ससुर जी और सुमन से विधिवत सुमन की आगे की पढाई के बारे में चर्चा करी। स्कूल और एक्साम की बातें करते करते मुझे अपना बचपन और उससे जुडी बातें याद आने लगीं। पढाई वाला समय तो जैसे तैसे ही बीतता था, लेकिन परीक्षा के दिनों में अलग ही प्रकार की मस्ती होती थी। दिन भर क्लास में बैठने के झंझट से पूरी तरह मुक्ति और एक्साम के बाद पूरा दिन मस्ती और खेल कूद! मजे की बात यह की न तो टीचर की फटकार पड़ती और न ही माँ की डांट! बेटा एक्साम दे कर जो आया है! पूरा दिन स्कूल में रहना भी नहीं पड़ता। और बच्चे तो एक्साम से बहुत डरते, लेकिन मैं साल भर परीक्षा के समय का ही इंतज़ार करता था – सोचिये न, पूरे साल में यही वो समय होता था जब भारी-भरकम बस्ते के बोझ से छुटकारा मिलता था। एक्साम के लिए मैं एक पोलीबैग में writing pad, पेंसिल, कलम, रबर, इत्यादि लेकर लेकर पहुँच जाता। उसके पहले नाश्ते में माँ मुझे सब्जी-परांठे और फिर दही-चीनी खिलाती ताकि मेरे साल भर के पाप धुल जायें, और मुझ पर माँ सरस्वती की कृपा हो! पुरानी यादें ताज़ा हो गईं!

खैर, जैसा की मैंने पहले लिखा है, मैंने सुमन और ससुर जी को यहाँ की पढाई की गुणवत्ता, और इस कारण, सीखने और करियर बनाने के अनेक अवसरों के बारे में समझाया। उनको यह भी समझाया की आज कल तो अनगिनत राहें हैं, जिन पर चल कर बढ़िया करियर बनाया जा सकता है। बातें तो उनको समझ आईं, लेकिन वो काफी देर तक परम्परा और लोग क्या कहेंगे (अगर लड़की अपनी दीदी जीजा के यहाँ रहेगी तो..) का राग आलापते रहे। 

मैंने और रश्मि ने समझाया की लोगों के कहने से क्या फर्क पड़ता है? अच्छा पढ़ लिख लेगी, तो अपने पैरों पर खाड़ी हो सकेगी.. और फिर, शादी ढूँढने में भी तो कितनी आसानी हो जायेगी! हमारे इस तर्क से वो अंततः चुप हो गए। सुमन को भी मैंने काफी सारा ज्ञान दिया, जो यहाँ सब कुछ लिखना ज़रूरी नहीं है.. लेकिन अंततः यह तय हो गया की सुमन अपनी आगे की पढाई यहीं हमारे साथ रह कर करेगी। सासु माँ ने बीच में एक टिप्पणी दी की दोनों बच्चे उनसे दूर हो जाएँगे.. जिस पर मैंने कहा की आपकी तो दोनों ही बेटियाँ है.. कभी न कभी तो उन्हें आपसे दूर जाना ही है.. और यह तो सुमन के भले के लिए हैं.. और अगर उनको इतना ही दुःख है, तो क्यों न वो दोनों भी हमारे साथ ही रहें? (मेरी नज़र में इस बात में कोई बुराई नहीं थी) लेकिन उन्होंने मेरी इस बात बार तौबा कर ली और बात वहीँ ख़तम हो गयी।

शाम को हमने पड़ोसियों से भी मुलाकात करी – देवरामनी दम्पत्ति सुमन को देख कर इतने खुश हुए की बस उसको गोद लेने की ही कसर रह गयी थी! सुमन वाकई गुड़िया जैसी थी! 

मेरे सास ससुर बस तीन दिन ही यहाँ रहने वाले थे, इसलिए मैंने रात को बाहर जा कर खाने का प्रोग्राम बनाया – जिससे किसी को काम न करना पड़े और ज्यादा समय बात चीत करने में व्यतीत हो। सुमन ख़ास तौर पर उत्साहित थी – उसको देख कर मुझे रश्मि की याद हो आती, जब वो पहली बार बैंगलोर आई थी। सब कुछ नया नया, सम्मोहक! जो लोग यहाँ रहते हैं उनको समझ आता है की बिना वजह का नाटक है शहर में रहना! अगर रोजगार और व्यवसाय के साधन हों, तो छोटी जगह ही ठीक है.. कम प्रदूषण, कम लोग, और ज्यादा संसाधन! जीवन जीने की गुणवत्ता तो ऐसे ही माहौल में होती है। एक और बात मालूम हुई की अगले दिन सुमन का जन्मदिन भी था! बहुत बढ़िया! (मुझे बिना बताये हुए रश्मि ने सुमन के जन्मदिन के लिए प्लानिंग पहले ही कर रखी थी)।

खैर, खा पीकर हम लोग देर रात घर वापस आये। मेरे सास ससुर यात्रा से काफी थक भी गए थे, और उनको इतनी देर तक जागने का ख़ास अनुभव भी नहीं था। इसलिए हमने उनको दूसरा वाला कमरा सोने के लिए दे दिया और सुमन को हमारे साथ ही सोने को कह दिया। उन्होंने ज्यादा हील हुज्जत नहीं करी (क्योंकि हम तीनों पहले भी एक साथ सो चुके हैं) और सो गए।

“भई, आज तो मैं बीच में सोऊँगा!” मैंने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करते हुए कहा।

“वह क्यूँ भला??” रश्मि ने पूछा!

“अरे यार! इतनी सुन्दर दो-दो लड़कियों के साथ सोने का मौका बार बार थोड़े न मिलता है!”

“अच्छा जी! साली आई, तो साहब का दिल डोल गया?”

“अरे मैं क्या चीज़ हूँ! ऐसी सुंदरियों को देख कर तो ऋषियों का मन भी डोल जाएगा! हा हा!”

“नहीं बाबा! दीदी, तुम ही बीच में लेटो! नहीं तो जीजू मेरे सेब खायेंगे!” सुमन ने भोलेपन से कहा। मैं
और रश्मि दो पल एकदम से चुप हो गए, और फिर एक दूसरे की तरफ देख कर ठहाके मार कर हंसने लगे (सुमन का मतलब गालों के सेब से था.. और हमने कुछ और ही सोच लिया)।

“मेरी प्यारी बहना! तू निरी बुद्धू है!” 

कहते हुए रश्मि ने सुमन के दोनों गालों को अपने हाथों में लिया और उसके होंठों पर एक चुम्बन दे दिया। 

“आई लव यू!” 

“आई लव यू टू, दीदी!” कह कर सुमन रश्मि से लिपट गयी।

“हम्म.. भारत मिलाप संपन्न हो गया हो तो अब सोने का उपक्रम करें?”

“कोई चिढ़ गया है लगता है...” रश्मि ने मेरी खिंचाई करी।

“हाँ दीदी! जलने की गंध भी आ रही है... ही ही!”

“और नहीं तो क्या! अच्छा खासा बीच में सोने वाला था! मेरा पत्ता साफ़ कर दिया!”

“हा हा!”

“हा हा!”

“अच्छा... चल नीलू, सोने की तैयारी करते हैं। तू चेंज करने के कपड़े लाई है?”

“हैं? नहीं!”

“कोई बात नहीं.. मैं तुमको नाईटी देती हूँ.. वो पहन कर सो जाना। ओके?” कह कर रश्मि ने अलमारी से ढूंढ कर एक नाईटी निकाली – मैंने पहचानी, वो हमारे हनीमून के दौरान की थी! अभी तक सम्हाल कर रखी है इसने!

सुमन ने उसको देखा – उसकी आँखें शर्म से चौड़ी हो गईं, “दीदी, मैं इसको कैसे पहनूंगी? इसमें तो सब दिखता है!”

“अरे रात में तुमको कौन देख रहा है.. अभी पहन लो, कल हम तुमको शौपिंग करने ले चलेंगे! ठीक है?”

“ठीक है..” सुमन ने अनिश्चय से कहा, और नाईटी लेकर बाथरूम में घुस गयी। इसी बीच रश्मि ने अपने कपड़े उतार कर एक कीमोनो स्टाइल की नाईटी पहन ली (यह सामने से खुलती है, और उसमें गिन कर सिर्फ दो बटन थे। और सपोर्ट के लिए बीच में एक फीता लगा हुआ था, जिसको सामने बाँधा जा सकता था – ठीक नहाने वाले रोब जैसा), और मैंने भी रश्मि से ही मिलता जुलता रोब पहना हुआ था (बस, सुमन के कारण अंडरवियर अभी भी पहना हुआ था, जिसको मैं रात में बत्तियां बुझने पर उतार देने के मूड में था)। खैर, कोई पांच मिनट बाद सुमन वापस कमरे के अन्दर आई।

सुमन का परिप्रेक्ष्य


जीजू बिस्तर के सिरहाने पर एक तकिया के सहारे पीठ टिकाये हुए एक किताब पढ़ रहे थे। दूसरी तरफ दीदी अपने ड्रेसिंग टेबल के सामने एक स्टूल पर बैठ कर अपने बालों में कंघी कर रही थी। 

‘दीदी के स्तन कितने बड़े हो गए हैं पिछली बार से!’ मैंने सोचा। बालों में कंघी करते समय कभी कभी वो बालों के सिरे पर उलझ जाती, और उसको सुलझाने के चक्कर में दीदी को ज्यादा झटके लगाने पड़ते.. और हर झटके पर उसके स्तन कैसे झूल जाते! हाँ! उसके स्तनों को निश्चित रूप से पिछली बार से कहीं ज्यादा बड़े लग रहे थे। उसके पेट पर उभार होने के कारण थोड़ा मोटा लग रहा था, और उसके कूल्हे कुछ और व्यापक हो गए थे। कुल-मिला कर दीदी अभी और भी खूबसूरत लग रही थी। मैं मन्त्र मुग्ध हो कर उसे देख रही थी : अचानक मैंने देखा की दीदी ने आईने से मुझे देखते हुए देख लिया... प्रतिक्रिया में उसके होंठों पर वही परिचित मीठी मुस्कान आ गई।

“आ गई? चल.. अभी सो जाते हैं.. जानू.. बस.. अब पढ़ने का बहाना करना बंद करो! हे हे हे!” दीदी ने जीजू को छेड़ा।

यह बिस्तर हमारे घर में सभी पलंगों से बड़ा था। इस पर तीन लोग तो बहुत ही आराम से लेट सकते थे। जीजू ने कुछ तो कहा, अभी याद नहीं है, और बिस्तर के एक किनारे पर लेट गए, बीच में दीदी चित हो कर लेटी, और मैं दूसरे किनारे पर! मैं दीदी से कुछ दूरी पर लेटी हुई थी, लेकिन दीदी ने मुझे खींच कर अपने बिलकुल बगल में लिटा लिया। कमरे में बढ़िया आरामदायक ठंडक थी (वातानुकूलन चल रहा था), इसलिए हमने ऊपर से चद्दर ओढ़ी हुई थी। कमरे की बत्तियों की स्विच जीजू की तरफ थी, जो उन्होंने हमारे लेटते ही बुझा दी।
Reply
12-17-2018, 02:18 AM,
#70
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मेरा परिप्रेक्ष्य

मैंने अपने बाईं तरफ करवट लेकर रश्मि को अपनी बाँह के घेरे में ले कर चुम्बन लिया और ‘गुड नाईट’ कहा – लेकिन मैंने अपना हाथ उसके स्तन ही रहने दिया। रश्मि को मेरी किसी हरकत से अब आश्चर्य नहीं होता था, और वो मुझे अपनी मनमानी करने देती थी। उसको मालूम था की उसके हर विरोध का कोई न कोई काट मेरे पास अवश्य होगा। लेकिन सुमन की अनवरत चलने वाली बातें हमें सोने नहीं दे रही थीं। 

बैंगलोर कैसा है? लोग कैसे हैं? यहाँ ये कैसे करते हो, वो कैसे करते हो..? कॉलेज कैसा होता है? बाद में पता चला की वह पूरी यात्रा के दौरान सोती रही थी.. इसीलिए इतनी ऊर्जा थी! अब चूंकि मेरे दिमाग में शैतान का वास है, इसलिए मैंने सोचा की क्यों न कुछ मज़ा किया जाय।

सुमन के प्रश्नों का उत्तर देते हुए मैंने रश्मि के दाएँ स्तन को धीरे धीरे दबाना शुरू कर दिया (मैं रश्मि के दाहिनी तरफ था)। मेरी इस हरकत से रश्मि हतप्रभ हो गयी और मूक विरोध दर्शाते हुए उसने अपने दाहिने हाथ से मेरे हाथ को जोर से पकड़ लिया। लेकिन मुझे रोकने के लिए उतना बल अपर्याप्त था, इसलिए कुछ देर कोशिश करने के बाद, उसने हथियार डाल दिए। सुमन ने करवट ले कर रश्मि के बाएँ हाथ पर अपना हाथ रखा हुआ था, इसलिए रश्मि वह हाथ नहीं हटाना चाहती थी। अब मेरा हाथ निर्विघ्न हो कर अपनी मनमानी कर सकता था। कुछ देर कपड़े के ऊपर से ही उसका स्तन-मर्दन करने के बाद मैंने उसकी कीमोनो का सबसे ऊपर वाला बटन खोल दिया। रश्मि को लज्जा तो आ रही थी, लेकिन इस परिस्थिति में रोमांच भी भरा हुआ था। इसलिए उसने इस क्रिया की धारा के साथ बहना उचित समझा।

जब उसने कोई हील हुज्जत नहीं दिखाई, मैंने नीचे वाला बटन भी खोल कर सामने बंधा फीता भी ढीला कर दिया। कीमोनो वैसे भी साटन के कपड़े का था – बिना किसी बंधन के, उसके कीमोनो के दोनों पट अपने आप खुल गए। सुमन को वैसे तो देर सबेर मालूम पड़ ही जाता की उसकी दीदी के शरीर का ऊपरी हिस्सा निर्वस्त्र हो चला है, लेकिन जब उसने अपने हाथ पर रश्मि की नाईटी का कपड़ा महसूस किया तो उसको उत्सुकता हुई। उसने बिना किसी प्रकार की विशेष प्रतिक्रिया दिखाते हुए अपनी बाईं हथेली से रश्मि के बाएँ स्तन को ढक लिया। 

रश्मि इस अलग सी छुवन को महसूस कर चिहुँक गयी, 'अरे! सुमन का हाथ मेरे स्तन पर!'

रश्मि आश्चर्यचकित थी, लेकिन वह यह भी समझ रही थी की सुमन उसके स्तन को सिर्फ ढके हुए थी, और कुछ भी नहीं। साथ ही साथ वह अपने जीजू से बातें भी कर रही थी – और उधर उसके जीजू का हाथ रश्मि के दाहिने स्तन का मर्दन कर रहा था। लेकिन चाहे कुछ भी हो – अगर किसी स्त्री को इतने अन्तरंग तरीके से छुआ जाय, तो उसकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक ही है। रश्मि ने अनायास अपने स्तन को आगे की ओर ठेल दिया, जिसके कारण उसके स्तन का पर्याप्त हिस्सा मेरे और सुमन दोनों के ही हाथ में आ गया। संभव है की रश्मि की इस हरकत से सुमन को किसी प्रकार की स्वतः-प्रेरणा मिली हो – उसने भी रश्मि के स्तन को धीरे-धीरे दबाना और मसलना शुरू कर दिया। रश्मि के चूचक शीघ्र ही उत्तेजित हो कर उर्ध्व हो गए। 

इस समय हम तीनों का मन कहीं और था। हम तीनों ही कुछ देर के लिए चुप हो गए। यह चुप्पी सुमन ने तोड़ी –

“जीजू – दीदी! मैं आपसे कुछ माँगूं तो देंगे?”

“हाँ हाँ! बोलो न?” मैंने कहा।

“उस दिन आप दोनों लोग बुग्यल पर जो कर रहे थे, मेरे सामने करेंगे?”

‘बुग्याल पर? .. ओह गॉड! ये तो सेक्स की बात कर रही है!’

रश्मि: “क्या? पागल हो गयी है?”

मैं: “एक मिनट! सुमन, हम लोग बुग्यल पर सेक्स कर रहे थे। सेक्स किसी को दिखाने के लिए नहीं किया जाता। बल्कि इसलिए किया जाता है, क्योंकि दो लोग - जो प्यार करते हैं – उनको एक दूसरे से और इंटिमेसी, मेरा मतलब है की ऐसा कुछ मिले जो वो और किसी के साथ शेयर नहीं करते। जब तुम्हारी शादी हो जायेगी, तो तुम भी अपने हस्बैंड के साथ खूब सेक्स करना।“

सुमन: “तो फिर आपने मेरे यहाँ रहने के बावजूद दीदी का ब्लाउज क्यों खोला?”

मेरा हाथ उसकी यह बात सुन कर झट से रश्मि के बाएँ स्तन पर चला गया, जिस पर सुमन का हाथ पहले से ही उपस्थित था।

मैं: “व्व्वो.. मैं... तुम्हारी दीदी का दूध पीता हूँ न, इसलिए!”

रश्मि: “धत्त बेशर्म! कुछ भी कहते रहते हो!”

सुमन: “क्या जीजू.. आप तो इतने बड़े हो गए हैं.. फिर भी दूध पीते हैं?”

मैं: “अरे! तो क्या हो गया? तेरी दीदी के दूध देखे हैं न तुमने? कितने मुलायम हैं! हैं न?”

सुमन: “हाँ.. हैं तो!”

मैं: “तो.. बिना इनको पिए मन मानता ही नहीं.. और फिर दूध तो पौष्टिक होता है!”

सुमन: “लेकिन दीदी को तो अभी दूध तो आता ही नहीं..”

मैं: “अरे भई! नहीं आता तो आ जायेगा! पहले से ही प्रैक्टिस कर लेनी चाहिए न!”

रश्मि: “तुम कितने बेशर्म हो! देख न नीलू, तुम ही बताओ अब मैं क्या करूँ? अगर न पिलाऊँ, तो तुम्हारे जीजू ऐसे ही उधम मचाने लगते हैं। वैसे तुझे पता है की वो ऐसे क्यों करते हैं?

सुमन: “बताओ..”

रश्मि: “अरे तुम्हारे जीजू अपनी माँ जी का दूध भी काफी बड़े होने तक पीते रहे। उन्होंने बहुत प्रयास किया, लेकिन ये जनाब! मजाल है जो ये अपनी मां की छाती छोड़ दें!”

सुमन: “तब?”

रश्मि: “तब क्या? माँ ने थक कर ने अपने निप्पल्स पर मिर्ची या नीम वगैरह रगड़ लिया। और जब भी ये जनाब दूध पीने की जिद करते तो तीखा लगने के कारण धीरे धीरे खुद ही माँ का दूध पीना छोड़ते गए।“

सुमन: “लेकिन अभी क्यों करते हैं?”

रश्मि: “आदतें ऐसे थोड़े ही जाती हैं!”

मैं: “अरे यार! कम से कम तुम तो मिर्ची का लेप मत लगाने लगना।“

मेरी इस बात पर रश्मि और सुमन खिलखिला कर हंस पड़ीं!

रश्मि: “नहीं मेरे जानू.. मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी! आप मन भर कर पीजिये! मेरा सब कुछ आपका ही है..”

मैं: “सुना नीलू..” कहते हुए मैंने रश्मि के एक निप्पल को थोड़ा जोर से दबाया, जिससे उसकी सिसकी निकल गयी। सुमन को वैसे तो मालूम ही है की उसके दीदी जीजू कहीं भी अपने प्यार का इजहार करने में शर्म महसूस नहीं करते... फिर जगह चाहे कोई भी हो!

सुमन (हमारी छेड़खानी को अनसुना और अनदेखा करते हुए): “जीजू दीदी.. मैं आप दोनों को खूब प्यार करती हूँ। उस दिन जब मैंने आप दोनों को.... सेक्स... (यह शब्द बोलते हुए वह थोडा सा हिचकिचा गयी) करते हुए दूर से देखा था। मैं बस इतना कह रही हूँ की आज मुझे आप पास से कर के दिखा दो! यह मेरे लिए सबसे बड़ा गिफ्ट होगा।”

रश्मि: “लेकिन नीलू, तेरे सामने करते हुए मुझे शरम आएगी।“ हम सभी जानते थे की यह पूरी तरह सच नहीं है।

सुमन: “प्लीज!”

रश्मि: “लेकिन तू अभी बहुत छोटी है, इन सब बातों को समझने के लिए!”

सुमन: “मैं कोई छोटी वोटी नहीं हूँ! और तुम भी मुझसे बहुत बड़ी नहीं हो। मैं अभी उतनी बड़ी हूँ, जिस उम्र में तुमने जीजू से शादी कर ली थी! और जीजू, अगर आप दीदी के बजाय मुझे पसंद करते तो?”

मैं (मन में): ‘हे भगवान्! छोटी उम्र का विमोह!’

मैं (प्रक्तक्ष्य): “अगर मैं तुमको पसंद करता तो मैं इंतज़ार करता – तुम्हारे बड़े होने का!”

सुमन: “जीजू! मैं बड़ी हूँ... और... और... मैं सिर्फ देखना चाहती हूँ – करना नहीं। आप दोनों लोग उस दिन बहुत सुन्दर लग रहे थे। प्लीज़, एक बार फिर से कर लो!”

मैं: “जानती हो, अगर किसी को मालूम पड़ा, तो मैं और तुम्हारी दीदी, हम दोनों ही जेल के अन्दर होंगे!”

सुमन: “जेल के अन्दर क्यों होंगे? मैं अब बड़ी हो गयी हूँ... वैसे भी, मैं किसी को क्यों कहूँगी? अगर आप लोग यह करेंगे तो मेरे लिए। किसी और के लिए थोड़े ही!“

मैं: “अब कैसे समझाऊँ तुझे!” 

मैं (रश्मि से): “आप क्या कहती हैं जानू?”

रश्मि (शर्माते हुए): “आप मुझसे क्यों पूछ रहे हैं? बिना कपड़ो के तो मैं पड़ी हूँ!” 

ऐसे खुलेपन से सेक्स की दावत! मेरा मन तो बन गया! वैसे भी, नींद तो कोसों दूर है.. मैं रजामंदी से मुस्कुराया।

सुमन (रश्मि से): “दीदी, तुम मुझे एक बात करने दोगी?”

रश्मि: “क्या?”

सुमन ने रश्मि के ऊपर से चद्दर हटाते हुए उसके निप्पल को अपने मुँह में भर कर चूसना आरम्भ कर दिया। सुमन के मुँह की छुवन और कमरे की ठंडक ने रश्मि के शरीर में एक बिलकुल अनूठा एहसास उभार दिया। उसके दोनों निप्पल लगभग तुरंत ही इस प्रकार कड़े हो गए मानो की वो रक्त संचार की प्रबलता से चटक जायेंगे! उसकी योनि में नमी भी एक भयावह अनुपात में बढ़ गयी। अपने ही पति के सामने उसके शरीर का इस प्रकार से अन्तरंग अतिक्रमण होना, रश्मि के इस एहसास का एक कारण हो सकता है। रश्मि वाकई यह यकीन ही नहीं कर पा रही थी की वह अपनी ही बहन के कारण इस कदर कामोत्तेजित हो रही थी। उसकी आँखें बंद थी। कामोद्दीपन से अभिभूत रश्मि, सुमन को रोकने में असमर्थ थी – इसलिए वह उसको स्तनपान करने से रोक नहीं पाई।

लेकिन जिस तरह से अप्रत्याशित रूप से सुमन ने यह हरकत आरम्भ करी थी, उसी अप्रत्याशित तरीके से उसने रोक भी दी। सुमन ने रश्मि को देखते हुए कहा,

“आई ऍम सॉरी, दीदी! पता नहीं मेरे सर में न जाने क्या घुस गया! सॉरी? माफ़ कर दो मुझे!”

रश्मि की चेतना कुछ कुछ वापस आई, और वह उठ कर बैठ गयी। इस नए अनुभव से वह अभी भी अभिप्लुत थी। रश्मि और सुमन दोनों ही काफी करीब थीं – लेकिन इस प्रकार की अंतरंगता तो उनके बीच कभी नहीं आई। रश्मि को यह अनुभव अच्छा लगा – अपने स्तानाग्रों का चूषण, और इस क्रिया के दौरान दोनों बहनों के बीच की निकटता। रश्मि ने आगे बढ़ कर सुमन को अपने गले लगा लिया – उसने भी सुमन के कठोर हो चले निप्पल को अपने सीने पर महसूस किया ... ‘ये लड़की कब बड़ी हो गई!’

रश्मि: “नीलू!”

सुमन (झिझकते हुए): “हाँ?”

रश्मि: “प्लीज़, सॉरी मत कहो!” 

सुमन: “नहीं दीदी! तुम मुझे इतना प्यार करती हो न... एक दम माँ जैसी! इसलिए इन्हें पीने का मन हुआ..। सॉरी दीदी!“

“तू माँ का दुद्धू अभी भी पीती है? उनको भी मिर्ची वाला आईडिया दूं क्या?” रश्मि ने सुमन को छेड़ा।

सुमन (शरमाते हुए): “नहीं पागल... धत्त! ...लेकिन जीजू भी तो तुम्हारा दूध पीते हैं, और तुम माँ बनने वाली हो न, इसलिए मेरा मन किया। ... लेकिन इनमे तो दूध नहीं है.. प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो!”

रश्मि: “हम्म.. नीलू... अब बस! सॉरी शब्द दोबारा मत बोलना मुझसे! ठीक है?”

सुमन ने सर हिला के हामी भरी।

रश्मि: “गुड! अब ले... जी भर के पी ले..”

सुमन: “क्या... मतलब?”

रश्मि: “अरे पागल! ये बता, क्या तुमको इसे पीना अच्छा लगा?”

सुमन ने नज़र उठा कर रश्मि की तरफ देखा और कहा, “हाँ दीदी, बहुत अच्छा लगा!”

रश्मि: “फिर तो! लो, अब आराम से इसे दबा कर देखो और बेफिक्र होकर पियो! मुझे भी अच्छा लगेगा!” रश्मि ने अपने निप्पल की तरफ इशारा किया।

“क्या सचमुच? मुझे लगा की तुमको अच्छा नहीं लगा! ..और... मुझे लगा की तुम मुझसे गुस्सा हो!”

“पगली, मैं तुमसे कभी भी गुस्सा नहीं हो सकती!” कहते हुए रश्मि ने अपना कीमोनो पूरी तरह से उतार दिया, और मेरी तरह मुखातिब हो कर बोली, “ये दूसरा वाला आपके लिए है...”

पता नहीं क्यों, सुमन इस बार कुछ हिचकिचा गई। जब कुछ देर तक उसने कुछ नहीं किया, तो रश्मि ने खुद ही उसका हाथ पकड़ कर खुद ही अपने स्तन पर रख दिया। स्वतः प्रेरणा से उसने धीरे धीरे से चार पांच बार उसके स्तन को दबाया, और फिर अपना मुँह आगे बढ़ा कर उसका एक निप्पल मुंह में लेकर चूसने लगी। मैंने भी रश्मि का दूसरा स्तन भोगना आरम्भ कर दिया। उधर रश्मि का हाथ मेरे पाजामे के ऊपर से मेरे लिंग पर फिरने लगा – वो तो पहले से ही पूरी तरह से उन्नत था।
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