Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:14 AM,
#41
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
“जानू... अररर ... आपको देख कर ऐसा लग रहा था की आप भी एन्जॉय कर रही हैं.. इसलिए मैंने नहीं रोका।“ इससे बे-सर-पैर वाला बहाना या सफाई मैंने कभी नहीं दी!

“तो आपका यह कहना है की कोई भी मेरे साथ सेक्स कर लेगा.... क्योंकि मैं.... सेक्सी हूँ?”

“ऐसे कैसे कर लेगा, कोई भी! मेरे कहने का मतलब था की कोई भी आपके साथ सेक्स करना चाहेगा! आप सुन्दर हैं, जवान हैं...! कोई क्यों नहीं चाहेगा? हाँ – कुछ एक अपवाद हो सकते हैं।”

“इसका मतलब आप भी किसी सुन्दर और जवान लड़की को देख कर उसके साथ सेक्स करना चाहेंगे?”

“मैंने कहा न, कुछ एक अपवाद हो सकते हैं?”

“मतलब आप एक अपवाद हैं?”

“हाँ!”

“कैसे?”

“क्योंकि मैं आपसे प्यार करता हूँ!”

“अच्छा! और कोई कारण?”

“और हम दोनों मैरिड हैं!”

“हम्म... और?”

“और क्योंकि मैं आपसे झूठ नहीं बोलूँगा, और आपको किसी भी तरह की तकलीफ नहीं होने दूंगा!”

“अच्छा – तो आप किसी और लड़की को ‘मेरे लिहाज’ के कारण नहीं .... करेंगे! नहीं तो कर लेते?”

“जानू... मैं आपका गुस्सा समझ सकता हूँ.. लेकिन यह सब क्या है?”

“आप मुझे सीधा सीधा जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं? अच्छा, सच सच बताइए, जब आप किसी सुन्दर दिखने वाली लड़की को देखते हैं, तो उसके साथ सेक्स करने का मन नहीं होता?”

“जानू, मैंने कभी आपसे मेरे पिछले अफेयर्स के बारे में छुपाया? चाहता तो छुपा लेता! आपको कैसे मालूम होता? बताइए?”

“आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?”

“क्या जवाब चाहिए आपको?”

“सच..”

“सच जानना है आपको? तो सुनो – हाँ बिलकुल मन में आता है की ऐसी लड़की दिखे तो पटक कर चोद दूं! लेकिन मुझमें और किसी रेपिस्ट या जानवर में कोई अंतर है... और वह अंतर है की मैं मानवता के बताये रास्ते पर चलता हूँ। मेरे अपने संस्कार हैं... और किसी की मर्ज़ी के खिलाफ जोर-जबरदस्ती करना गलत है।“

“.... और अगर लड़की चाहे, तो?”

“ज्यादातर लड़कियाँ ऐसे नहीं चाहती!”

“अच्छा! तो अब आपको ज्यादातर लड़कियों के मन की बातें भी पता हैं! वह! और आप ऐसा कह सकते हैं क्योंकि?”

“क्योंकि, मेरे ख़याल से, आदमी और औरतों की प्रोग्रामिंग बिलकुल अलग होती है!”

“अच्छा जी! आदमी चाहे तो कितनी ही लड़कियों की कोख में अपना बीज डालता रहे .. लेकिन औरतें बस एक ही आदमी की बन कर रहें, और उनके बच्चे पालें?”

“नहीं ... यह तो बहुत ही रूढ़िवादी सोच है! इस तरह से नहीं, लेकिन मेरे ख़याल से लड़कियाँ पहले प्रेम चाहती हैं, और फिर सेक्स!”

“अच्छा, एक बात बताइए.... अगर मॉरीन की जगह कोई आदमी होता तो?” रश्मि लड़ाई का मैदान छोड़ ही नहीं रही थी।

“तो उसकी टाँगे तोड़ कर उसके हाथ में दे देता। मैं आपसे सबसे ज्यादा प्रेम करता हूँ... और आपके प्यार को किसी के साथ नहीं बाँट सकता।“ मैंने पूरी दृढ़ता और इमानदारी से कहा।

“मतलब जो मॉरीन ने किया वह गलत था.. है न?”

“नाउ दैत यू पुट इट लाइक दैत (अब जब आप ऐसे कह रही हैं तो)... यस! हाँ .. वह गलत था।“ मैंने अपना दोष मान लिया।

“आपके लिए इतना काफी नहीं था की अपनी बीवी की नुमाइश लगा रखी थी...?” लेकिन रश्मि का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था, “.... शी वायलेटेड मी!” रश्मि चीख उठी! दिल का गुबार उस एक चीख के साथ निकल गया... रश्मि अब शांत होकर रो रही थी। मैंने उसको रोने दिया – मेरी गलती थी ... लेकिन मेरी माफ़ी के लिए उसको संयत होना आवश्यक था।

मैंने आगे बढ़ कर रश्मि को अपने आलिंगन में बाँध लिया और कहा,

"श्ह्ह्ह्ह .... प्लीज मत रोइये। मेरा आपको ठेस पहुचाने का कोई इरादा नहीं था। आई ऍम सो सॉरी! ऑनेस्ट! आपको याद है न, मैंने आपको प्रोमिस किया था की मैं आपको किसी भी ऐसी चीज़ को करने को नहीं कहूँगा, जिसके लिए आप राज़ी न हों? मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ, और आपको कभी दुखी नहीं देख सकता।" 

ऐसी बाते करते हुए मैं रश्मि को चूमते, सहलाते और दुलारते जा रहा था, जिससे उसका मन बहल जाए और वह अपने आपको सुरक्षित महसूस करे। जिस लड़की को मैं प्रेम करता हूँ, वह मेरे मूर्खता भरी हरकतों से दुखी हो गयी थी। 

"रश्मि ... मेरी बात सुनिए, प्लीज!"

“जानू, आई ऍम सॉरी! आई ऍम वेरी सॉरी! प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिये। मैंने कभी भी यह सोच कर कुछ भी नहीं किया जिससे की आपकी बेइज्जती हो। मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ – अपनी जान से भी ज्यादा! और आपकी बहुत रेस्पेक्ट भी करता हूँ। प्लीज मेरी बात पर विश्वास करिए।“

“एंड, आई ऍम रियली वेरी सॉरी! अपने मज़े की धुन में मैंने यह नहीं सोचा की आपको और आपकी भावनाओं को ठेस लग सकती है। काम के वशीभूत होकर मैंने न जाने क्या क्या गुनाह किए हैं। मैं सच कहता हूँ मेरे मन में बस एक ही धुन सवार रहती है की किसी तरह आपके साथ सेक्स किया जाय..” 

मैंने कहते हुए उसके माथे को चूमा और उसके बालों को सहलाया, “... पर अब मुझे लगने लगा है की मैं अपनी परी के साथ ठीक नहीं कर रहा हूँ। मैं सच कहता हूँ की मैं आपको प्यार करता हूँ – और इसका मतलब है की सिर्फ आपके शरीर को नहीं .. आपके मन, दिल और पूरी पर्सनालिटी को! लेकिन आप मेरे पास रहती हैं तो अपने को रोक नहीं पाता – और सेक्स को स्पाइसी बनाने के लिए न जाने क्या क्या करता हूँ।“

रश्मि का रोना, सुबकना अब तक ख़तम हो गया था। वह अब तक संयत हो गयी थी और मेरी बातें ध्यान से सुन रही थी। उसने कुछ देर तक मेरी आँखों में देखा – जैसे, मेरे मन की सच्चाई मापना चाहती हो।

“जानू.. मैं भी आपके साथ प्यार की दुनिया बनाना चाहती हूँ। मेरा मन है की जैसे आपने मुझे अभी पकड़ा हुआ है, वैसे ही हम एक दूसरे को बाहों में जकड़े सारी जिन्दगी बिता दें। और आप मेरे साथ जितना मन करे, सेक्स करिए – जैसे मन करे, वैसे करिए। मुझे अपनी प्यार की बारिश से मेरे तन मन को इतना भर दीजिये कि मैं मर भी जाऊं तो मुझे कोई गम ना हो। ... बस, मुझे किसी और के साथ शेयर मत करिए!”

"हाँ मेरी जान! अब मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा! आई ऍम सॉरी!"

मैं रश्मि को आलिंगनबद्ध किये हुए ही बिस्तर पर बैठने लगा, और रश्मि भी मेरी गोद में आकर बैठ गई और अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी। वो इतनी प्यारी लग रही थी की मैंने उसके होंठों को चूम लिया। 

“आई लव यू! एंड, आई ऍम सॉरी! अब ऐसी गलती कभी नहीं होगी।”

“आई लव यू टू! और आपको सॉरी कहने की ज़रुरत नहीं।”

रश्मि को चूमने के साथ साथ मुझे समुद्री नमकीन स्वाद महसूस हुआ – मतलब, नहाने का उपक्रम करना चाहिए था। लेकिन उसको चूमने – उसके होंठो का रस पीने – से मेरा मन अभी भरा नहीं था। रश्मि मेरी गोद में बैठी थी और हमारे होंठ आपस में चिपके हुए थे। हम दोनों ही इस समय अपनी जीभें एक दूसरे के मुंह में डाल कर इस समय कुल्फी की तरह चूस रहे थे। मैं कभी उसके गालों को चूमता, तो कभी होंठो को, तो कभी नाक को, तो कभी उसके कानो को, या फिर उसकी पलकों को। इसी बीच मैंने कब उसकी बीच मैक्सी उतार दी, उसको शायद पता भी नहीं चला (ढीला ढाला हल्का कपड़ा शरीर पर पता ही नहीं चलता)। कोई 5 मिनट के चुम्बन के आदान प्रदान के बाद जब हमारी पकड़ कुछ ढीली हुई तो रश्मि को अपने बदन पर मैक्सी न होने का आभास हुआ। 

“जानू, आँखें खोलो।”

“नहीं पहले आप मेरी मैक्सी दीजिये.... मुझे शर्म आ रही है।”

“अरे शरम! मेरी रानी .... कैसी शरम? तुम इस कास्ट्यूम में कितनी खूबसूरत लग रही हो! मेरी आँखों से देखो तो समझ में आएगा!”

“धत्त!”

“और वैसे भी यह भी उतरने ही वाला है... नहाना नहीं है?”

उसने मुझे चिढ़ाते हुए कहा, “अच्छा जी... और आपको नहीं नहाना है? आपके कपडे तो ज्यों के त्यों हैं।”
Reply
12-17-2018, 02:14 AM,
#42
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मुझे क्या आपत्ति हो सकती थी? मैं तो इसी ताक में था। रश्मि को अलग कर मैंने लगभग तुरंत ही कपडे उतार दिए और बेड पर सिरहाने की ओर आकर बैठ गया। मेरा लिंग इस समय अपने पूरे आकार में आकर निकला हुआ था। रश्मि ने पहले तो अपनी उँगलियों से उसे प्यार से छुआ और फिर सहलाया और फिर अप्रत्याशित रूप से उस पर एक चुम्बन रसीद कर दिया। मेरे लिंग ने उसकी इस क्रिया के अनुकूल उत्तर दिया और पत्थर की तरह कठोर हो गया। अब रश्मि मेरे ऊपर लगभग औंधी लेट कर मेरे लिंग के साथ खेल रही थी, और मैं उसके चिकने नितम्बों के साथ - मैंने उन पर कपड़े के ऊपर से ही प्यार से हाथ फिराना शुरू कर दिया। मैंने उसकी स्विमसूट को थोडा सा खिसका कर अपनी उँगलियों से उसकी नितम्बों के बीच की दरार पर सहलाना शुरू कर दिया। और उधर, रश्मि मेरे लिंग को मुँह में रख कर चूस रही थी।

उसकी नरम मुलायम जीभ का गुनगुना अहसास मेरे लिंग पर महसूस कर के मुझे फिर से मदहोशी छाने लगी। दोस्तों, कुछ भी हो – अपने जीवन में कम से कम एक बार अपनी प्रेमिका/पत्नी को अपने लिंग का चूषण करने को अवश्य कहिये। यह एक ऐसा अनुभव होता है, जिससे आगे और कुछ भी नहीं। उसने कोई 5-6 मिनट उसने मेरा लिंग चूसा होगा, फिर वो अपने होंठो पर जीभ फेरती हुई उठ खड़ी हुई। उसकी आँखों में एक शैतानी चमक थी।

मैंने रश्मि को पुनः अपनी बाहों में भर लिया, और फिर से उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए। उसके मुंह से मुझे मेरे ही रस की खुशबू और स्वाद महसूस हुई।
मैंने उसके स्विमसूट के ऊपर से उसके स्तन को छूते हुए कहा, “मेरी जान, अब इसका क्या काम है? ज़रा अपने मीठे मीठे, रसीले संतरों को आज़ाद करो ना... प्लीज!”

“आप ही आज़ाद कर दो...” रश्मि ने कहा।

मैंने झटपट उसकी कास्ट्यूम की डोरी खोल दी और उसके तन से उतार कर अलग कर दी। रश्मि के दोनों स्तन तन कर ऐसे खड़े हो गए, मानो उन्हें बरसों के बाद आजादी मिली हो। मैंने आगे बढ़ कर उन पर तड़ातड़ उनपर चुम्बनों की बरसात कर दी। रश्मि के पूरे शरीर में सिहरन को लहर दौड़ गयी। मैंने उसके निप्पल पर धीरे से जीभ फिराई और उसको पूरे का पूरा अपने मुंह में भर कर चूसने लगा। रश्मि सिसकारियां गूंज उठीं। वह मेरी गोद में बैठी थी - मेरा एक हाथ उसके नग्न नितम्बों पर घूम रहा था, तो दूसरा हाथ उसका दूसरा स्तन दबा-कुचल रहा था।

मेरे चूसने के कारण उसके निप्पल तन कर पेन की तरह एकदम तीखे हो गए। मैंने उसे बेड पर लिटा दिया और उसके एक हाथ को थोडा ऊपर उठा कर उसकी कांख पर चूमने और चाटने लगा। समुद्री पानी की महक, और नमकीन स्वाद से मेरे मन में मादकता और भर गयी। मेरे चाटने और चूमने से रश्मि उतेजना और गुदगुदी से रोमांचित हो चली। उसको वहां पर चूमने के बाद, मैंने पुनः उसका चेहरा अपनी हथेलियों में थाम कर उसके होंठ, माथे, आँखों, गालों, नाक और कानों को चूमता चला गया। रश्मि पलकें बंद किये एक अलग ही दुनिया की सैर कर रही थी - उसकी साँसे तेज चल रही थी होंठ कंपकपा रहे थे। मैंने उसके गले और फिर उसके स्तनों को चूमा, और फिर दोनों स्तनों के बीच के हिस्से को जीभ लगा कर चाटा। रश्मि बस सिसकारियां भर रही थी।

मैंने धीरे से उससे कहा, “जानू, आँखें खोलो!” 

लेकिन उससे हो नहीं पाया। खैर, मैंने उसे एक बार फिर बाहों में भर कर पुनः उसकी पलकों पर एक चुम्बन दिया। काम और प्रेम का मिश्रित प्रभाव रश्मि पर अब साफ़ देखा जा सकता था। सचमुच, ऐसी अवस्था में लिप्सा रस में डूबी, नवयौवना, नवविवाहिता भारतीय नारी सचमुच रति का ही अवतार लगती है। मैंने उसके गालों को चूमते हुए उसके होंठों पर फिर से होंठ लगा दिए। उसने भी मुझे चूम लिया और अपनी बाहों में मुझे जोर से कस लिया। उसका शरीर कांप रहा था। मैंने धीरे धीरे उसके गले को चूमा और फिर से नीचे की तरफ उतरते हुए उसके स्तनों को चूमता हुआ उसकी नाभि के छेद को चूमने और अपनी जीभ की नोक से सहलाने लगा – रश्मि बस मीठी सीत्कार किये जा रही थी।

“आह! ओह..! जानू! ये आप क्या कर रहे हो? प्लीज बस करो! मैं मर जाउंगी।”

मैं बिना कुछ बोले उसकी नाभि में अपनी जीभ की नोक लगा कर झटके दे रहा था। रश्मि ने कस कर अपनी जांघें भींच ली और मेरे सिर के बाल पकड़ लिए। फिर नीचे आते हुए मैंने जैसे ही उसके पेडू पर जीभ लगाई, उसने एक जोर की किलकारी मरी – उसमे हंसी, पीड़ा, आनंद और वासना की मिश्रित ध्वनि निकली। उसका शरीर बेकाबू होकर कांपने लगा और कांपता ही गया। मुझे समझ आ गया की रश्मि अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गयी है। मैंने इतनी देर में पहली बार उसकी योनि पर चुम्बन लिया – वह हिस्सा कामरस से पूरी तरह से भीग गया था। जैसे ही मैंने वहां पर अपने होंठ रखे, उसकी जांघें चौडी होती चली गई।

मैने अपनी दोनों हाथों की उँगलियों से उसकी योनि की पंखुडियों को थोडा फैलाया – उत्तेजना के मारे रक्तिम हो चली उसकी क्लिटोरिस और वाकई रश्मि की छोटी उंगली की परिधि वाली योनि छेद मेरे सामने उपस्थित हो गयी। मैं अब भला कैसे रुक सकता था? मैने अपने होंठ उन फंको पर रख दिए – इस छुवन से रश्मि का पूरा शरीर काँप गया, और मुंह मीठी सिसकारियां निक़ल रही थी। मैने उसके भगनासे को जैसे ही अपनी जीभ से टटोला, उसकी योनि से कामरस की आपूर्ति होने लगी। रश्मि का ओर्गास्म अभी भी जारी था – कमाल है! मैंने दो तीन मिनट तक उसका योनि-रस-पान किया और फिर उठ कर अपने लिंग को उसके द्वार पर स्थापित किया।

इस लम्बे फोरप्ले के दौरान मेरा खुद की उत्तेजना अपने शिखर पर थी, लिहाजा, मेरा स्वयं पर काबू रखना बहुत ही मुश्किल था। कोई तीन-चार मिनट तक जोरदार ताबड़-तोड़ धक्के लगाने के बाद मैं उसके अन्दर ही स्खलित होकर शांत हो गया। आज यह तीसरी बार था – इसलिए वीर्य की मात्रा अत्यल्प थी। ऊपर से थकावट बहुत अधिक हो गयी थी, इसलिए मैं रश्मि के ऊपर ही गिर गया।

“हटो गंदे बच्चे!” रश्मि ने मुझे अपने ऊपर से हटाया, और आगे कहना जारी रखा, “आपने तो मुझे मार ही डाला।“ रश्मि अपनी योनि को सहलाते हुए बोली, “कोई इतनी जोर से करता है क्या? आःहह..!”

“हा हा हा!”

दूसरे हाथ की उँगलियों से उसने मेरे सिकुड़ते हुए लिंग को पकड़ कर मुझे चिढाते हुए कहा, “हाँ हाँ ... हँस लीजिये! मुसीबत तो मेरी है न! ये आपका जो केला है न, उसको काट कर छोटा कर देना चाहिए... और कटर से छील कर पतला भी कर देना चाहिए! मेरी तकलीफ़ कम हो जाएगी!”

“ये केला कट गया तो आपकी तकलीफ़ के साथ साथ आपका मज़ा भी कम हो जायेगा!” फिर थोड़ा रुक कर,

“क्या वाकई आपको बहुत तकलीफ होती है?”

“नहीं जानू... मजाक कर रही थी मैं। ऐसी कोई तकलीफ तो नहीं होती – मुझे अभी ठीक से आदत नहीं है न.. इसलिए, लगता है की थोड़ा .... कैसे कहूँ... उम्म्म... जैसे घिस गया हो, ऐसा लगता है। वो भी काफी बाद में!”

कुछ देर हम लोग बिस्तर पर पड़े हुए अपनी साँसे ठीक करते रहे, और फिर रश्मि ने बोला,

“जानू, हमको थोड़ा सावधान रहना होगा।“ वह थोड़ा शरमाई, “... पिछले एक हफ्ते से हम दोनों बिना किसी प्रोटेक्शन के सेक्स कर रहे हैं।“ मेरे कान सावधानी में खड़े हो गए। “अगर आप चाहते हैं तो ठीक है... लेकिन मैं.... प्रेग्नेंट... हो जाऊंगी!”

बात तो सही है – मैं भी इतना भोंपा हूँ की बिना किसी जिम्मेदारी के बस पेलम-पेल मचाये डाल रहा हूँ और एक बार भी नहीं सोचा की इतनी छोटी लड़की के कुछ अरमान होंगे जिंदगी जीने के! अगर इतनी छोटी सी उम्र में वह माँ बन गयी तो सब चौपट! 

“आप माँ बनना चाहती हैं?”

“अगर आप कहेंगे तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी।“

“लेकिन अभी नहीं... है न?”

“कम से कम.. पढाई पूरी हो जाए?” रश्मि ने शर्माते हुए कहा।

“आपके पीरियड्स कब हैं?”

“तीन चार दिन बाद...!” यह इतना व्यक्तिगत सवाल था की रश्मि को और नग्नता का एहसास होने लगा – उसके चेहरे पर शर्म की लालिमा साफ़ दिख रही थी।

“आई ऍम सॉरी जानू! आई ऍम वेरी सॉरी! मैं बहुत ही गैर-जिम्मेदार आदमी हूँ!”

“आप ऐसा न कहिए.. प्लीज! मैं भी आपसे बहुत प्यार करती हूँ। आप जैसे कह रहे थे... लड़कियाँ वैसे नहीं होतीं... कम से कम मैं नहीं हूँ... जैसे आप नहीं रह पाते हैं, वैसे ही मैं भी नहीं रह पाती हूँ... तो क्या हुआ की आप मुझे इस तरह से झकझोर देते हैं...”

“दिस इस द सेक्सिएस्ट थिंग आई एवर हर्ड इन माई होल लाइफ! (यह मेरे जीवन की सबसे कामुक बात है, जो मैंने सुनी है)।“ कह कर मैंने उसको अपनी बाहों में समेट लिया।

“बस... हमें सतर्क रहना चाहिए।“ रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहा।
Reply
12-17-2018, 02:14 AM,
#43
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
हमने साथ में ही नहाया – कोई और समय होता तो संभव है की सम्भोग का एक और दौर चलता... लेकिन शरीर में खुद की एक सुरक्षा प्रणाली होती है, जिसके कारण आप लगातार सम्भोग नहीं कर सकते। वैसे भी आज जो भी कुछ हुआ वह अत्यंत अप्रत्याशित था, इसलिए मैं खुद भी जल्दी जल्दी उत्तेजित होकर तैयार भी हो गया। यदि किसी बहुत भूखे इंसान को अचानक ही छप्पन भोग परोस दिया जाय तो वह पागल कुत्ते के समान उसको निबटा लेगा... लेकिन वही छप्पन भोग यदि उसको रोज़ परोसा जाय, तो उसकी भूख नियंत्रण में आ जाती है।

नहा धोकर मैंने सिर्फ अपना अंडरवियर पहना और फोन कर के हल्का फुल्का खाना मंगाया – खाकर आराम करने की इच्छा हो रही थी। रश्मि ने कफ्तान स्टाइल वाला बीच वियर पहना हुआ था – यह पॉलिएस्टर का बना एक पारदर्शी पहनावा था, जो समुद्री नीले-हरे रंग का था और जिस पर फूलों के प्रिंट बने हुए थे। गले के नीचे एक लूप जैसा था जहाँ पर डोर से इसको बाँधा जा सकता था। काफी ढीला ढाला परिधान था - उसकी लम्बाई जाँघों के आधे हिस्से तक आती थी और हाथ का ऊपर वाला हिस्सा ही ढकता था। उसके अन्दर रश्मि ने काले रंग की विस्कोस और एलास्टेन की पैडेड पुश-अप ब्रा और काले ही रंग की पैंटीज पहनी हुई थी। उसने अपने बाल शैम्पू किये थे, जिसके कारण वह अभी भी गीले थे और उनसे रह रह कर पानी टपक रहा था। बाला की ख़ूबसूरत!

इस समय वह अपने बालों को तौलिये से रगड़ कर सुखाने की कोशिश कर रही थी। मेरे मुँह से अनायास ही यह गाना निकल गया,

“ना झटको ज़ुल्फ़ से पानी, ये मोती फूट जायेंगे।
तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा, मगर दिल टूट जायेंगे।“

“हा हा! आपको हर सिचुएशन के लिए कोई न कोई गाना याद है!”

“आप हैं ही ऐसी – हर सिचुएशन को एकदम से सेक्सी बना देती है, तो गाना ख़ुद-ब-ख़ुद निकल पड़ता है! आपकी इस हालत में कुछ फोटो निकालने का तो बनता है! इजाज़त है?”

रश्मि ने सर हिला कर अनुमति दे दी।

मैंने उसकी कई सारी तस्वीरें निकाली, की इतने में ही परिचायक खाना लेकर आ गया। मैंने उसको कैमरा देकर हम-दोनों की कुछ तस्वीरें लेने को बोला। मुझे पक्का यकीन है की साले ने कैमरे के व्यू-फाइंडर से रश्मि के जिस्म से अपनी खूब नैन-तृप्ति करी होगी... 

‘खैर, कर ले बेटा, अपनी नैन-तृप्ति! तुझे यह लड़की बहुत दूर से सिर्फ देखने को नसीब होगी। ऐसे ही तरसते रहियो!’

कोई सात-आठ तस्वीरें क्लिक करने के बाद उसने बेमन से विदा ली। उसको ज़रूर कल रात वाले परिचायक ने बताया होगा, लेकिन हर-एक की किस्मत सामान थोड़े न होती है।

हमने अपना खाना पीना समाप्त किया और फिर मैंने रश्मि को कहा की वो चाहे तो आराम कर ले, क्योंकि मैं भी कैमरे से तस्वीरें अपने कंप्यूटर में कॉपी कर के आराम करने के मूड में हूँ! 

“कंप्यूटर? किधर है कंप्यूटर?”

“मेरा मतलब मेरा लैपटॉप!”

“वो क्या होता है?” अच्छा, अब समझा – रश्मि ने अभी तक वो बड़े वाले डेस्कटॉप के बारे में ही जाना होगा। खैर, मैंने लैपटॉप बाहर निकाल कर उसको दिखाया। वो उसको देख कर प्रत्यक्ष रूप से काफी उत्साहित हो गयी।

“आप मुझे इसके बारे में सिखायेंगे?”

“अरे! क्यों नहीं... बिलकुल सिखाऊँगा!”

मैंने अपना लैपटॉप ऑन कर के उसे इसके बारे में बताना शुरू किया। रश्मि को थोड़ा-बहुत ज्ञान था, लेकिन वह सब पुराना और किताबी ज्ञान था। मैंने उसे कंप्यूटर चालू करने, ऑपरेट करने, और फिर बंद करने के बारे में विस्तार से बताया। फिर मैंने उसे विन्डोज़, इन्टरनेट और ईमेल के बारे में भी बताया – दरअसल आम आदमी के काम की चीज़ें तो यही होती हैं! फाइल्स कैसे खोली जाएँ, प्रोग्राम्स कौन कौन से होते हैं, गाने सुनना, फिल्म देखना, विडियो-चैट इत्यादि! उसको सबसे ज्यादा उत्साह ईमेल और इन्टरनेट के बारे में जान कर हुआ। 

खैर, फिर मैंने कैमरे को लैपटॉप से जोड़ कर तस्वीरें कॉपी करनी शुरू करी। कोई पंद्रह मिनट बाद सारी तस्वीरें जब कॉपी हो गईं तो वह जिद करने लगी की चलो तस्वीरें देखते हैं। मेरा मन था की कोई आधे घंटे की नींद ले ली जाय, लेकिन उसके उत्साह को देखकर उसको मना करने का मन नहीं हुआ। कैमरे में हमारी शादी की तस्वीरें (जो मेरे दोस्तों ने खींची थीं), कुछ तस्वीरें उसके कसबे की, कुछ हमारे रिसेप्शन की (जो मेरे दोस्तों और पड़ोसियों ने खींची थीं), और फिर ढेर सारी तस्वीरें हमारे हनीमून की! हमारी जो तस्वीरें मॉरीन ने खींची थी, उनको देख कर रश्मि के मुँह से ‘बाप रे’ निकल गया.... वाकई, सारी की सारी बहुत ही कलात्मक और कामोद्दीपक तस्वीरें थीं। वाकई यादगार तस्वीरें! खैर, कॉपी कर के मैंने चुपके से उन तस्वीरों का एक बैक-अप भी बना लिया की कहीं ऐसा न हो की रश्मि शरम के मारे उनको डिलीट कर दे। इसके बाद हम दोनों लैपटॉप पर ही गाने सुनते हुए कुछ देर के लिए सो गए।

डिनर के लिए हमने सोचा की नीचे सबके साथ करेंगे - लाइव म्यूजिक के कार्यक्रम, और अन्य युगलों और अतिथियों के साथ बैठ कर मदिरा, संगीत और भोजन का आनंद उठाएंगे। रश्मि ने आज मदिरा पीने से साफ़ मना कर दिया – तो मैंने मोकटेल और मसालेदार खाना मंगाया।

“सीईईई हाआआ!”

“क्या हुआ? कुछ तीखा था?”

“उई माँ!.... सीईई! मिर्ची खा ली... बहुत तीखी है...!”

“अरे! देख कर खाना था न! जल्दी से पानी पी लो! नहीं... एक मिनट.. जब मिर्ची लगे, तो दूध पीना चाहिए।”

मैंने जल्दी से वेटर को बुलाया और थोड़ा दूध लाने को बोला।

पानी पीने से रश्मि के मुँह की जलन कुछ कम हो गई। लेकिन मेरे दिमाग में एक कीड़ा कुलबुलाया, “वैसे, मिर्ची की जलन का एक बहुत अचूक इलाज है मेरे पास!”

“क्या? सीईईई!” उसकी जलन कम तो हो गई थी पर फिर भी वो सी... सी.... कर रही थी।

“आपके होंठों और जीभ को अपने मुँह में लेकर चूस देता हूँ, जलन ख़त्म हो जायेगी... क्या कहती हो?” मैंने हंसते हुए कहा। मैं जानता था की सबके सामने ऐसा करने से वह मना कर देगी, लेकिन जब उसने अपनी आँखें बंद करके अपने होंठ मेरी ओर बढ़ा दिए, तो मेरी हैरानी की कोई सीमा न रही। मैंने देखा उसकी साँसें भी तेज़ हो गई थी और उसके स्तन साँसों के साथ साथ ही ऊपर-नीचे हो रहे थे। मैंने आगे बढ़ कर उसके नर्म होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

रश्मि को चूमना तो खैर हमेशा ही आनंददायक अनुभव रहता है, लेकिन ऐसे सबके सामने उसको चूमना – मानो नशे के समान था। उसके नर्म, गुलाब की पत्तियों जैसे नाज़ुक होंठो की छुअन से मेरा तन मन पूरी तरह तक तरंगित हो गया। रश्मि ने भी अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और मेरे होंठों को चूसने लगी। मैंने भी दोनों हाथों से उसके गाल थाम कर पता नहीं कब तक चूमता रहा, मुझे ध्यान नहीं। लेकिन जब हमारा चुम्बन टूटा तो हमारे चारों तरफ लोगो ने ताली बजा कर हमारा हौसला बढाया। मैंने भी हाथ हिला कर सभी का अभिवादन किया। 

खाने के बाद हम दोनों ने कोई एक घंटे तक संगीत का आनंद उठाया और फिर उठ कर समुद्र के किनारे नारियल के पेड़ों पर बंधे हमक (जालीदार झूलों) पर लेट कर रात्रि-आकाश का अवलोकन करने लगे। हम दोनों के झूले सामानांतर बंधे हुए थे, कुछ ऐसे जैसे प्रेमी युगल आपस में हाथ पकड़ कर आराम कर सकें। नवचन्द्र (क्रेसेंट मून) निकला हुआ था, इसलिए आकाश में चमकते, टिमटिमाते तारे और नक्षत्र साफ़ दिख रहे थे। मुझे खगोलशास्त्र में खासी रूचि भी है और ज्ञान भी। लिहाजा, मैंने तुरंत ही बीवी पर इम्प्रैशन झाड़ने के लिए अपना ज्ञान बघारना शुरू कर दिया।

“वह देखिये.. वो जो लाल सा सितारा दिख रहा है, वो मंगल ग्रह है... और वहां पर वृहस्पति या जुपिटर! वही जहाँ से साबू आया है...”

“साबू?”

“अरे.. वो चाचा चौधरी वाला? आप कॉमिक्स नहीं पढ़तीं?” मुझे निराशा हुई... चाचा चौधरी तो मेरे बचपन में लगभग हर बच्चे को मालूम था।

“नहीं... लेकिन चाचा चौधरी नाम सुना तो ज़रूर है..”

“ओके.. अच्छा उधर देखिये.. वहां है उम्म्म्म... कृत्तिका नक्षत्र... दिखने में जैसे हीरे के चमकते गुच्छे हों! और वो देखो... उधर है तुला नक्षत्र..”

“हाँ.. कहते हैं की तुला राशि धरती पर हो रहे पाप-पुण्य का पूरा लेखा जोखा उधर स्थित ध्रुव तारे को देती 
जाती है.. ध्रुव तारा अपना स्थान नहीं बदलता..”

“अरे वाह! आपको मालूम है!?”

“हाँ... कुछ कुछ मालूम है!” रश्मि ने उत्साह से कहा।

“गुड! तो मुझे भी बताइए...?”

“ह्म्म्म.. अच्छा... वह जगमग रेखा.. वहाँ ... उधर... वह आकाश-गंगा है। इसके जल में स्नान कर के देवी-देवता और अप्सराएं हमेशा युवा बने रहते हैं...”

‘क्या बात है!’ मैंने सोचा, ‘ऐसा काव्यात्मक दृष्टिकोण?’ 

रश्मि ने कहना जारी रखा, “इसी के जल से घड़ा भर कर रोहिणी, आषाढ़ मास में धरती पर उड़ेल देती है.. जिससे धरती पर जीवन हरा-भरा हो जाता है.. पेड़ पौधे खेत सब हरे भरे हो जाते हैं...” 

“अरे वाह! क्या बात है!!”

रश्मि अपनी प्रशंसा सुन कर उत्साह से बोली, “वहाँ उस ध्रुव तारे को आधार बना कर चलने वाले सप्तर्षि तारा-मंडल हैं... आप की भाषा में शायद उनको ‘बिग डिपर’ कहते हैं... उसमें वो हैं वशिष्ठ और उनके बगल हैं अरुंधती... कहते हैं की विवाहित जोड़े को इनके दर्शन करने चाहिए! शुभ होता है!”
Reply
12-17-2018, 02:14 AM,
#44
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने विस्मय से देखा.. जिन तारों को मैं मिज़ार और अल्कोर के नाम से जानता हूँ, उनको रश्मि एकदम सही पहचान कर एक भिन्न दृष्टिकोण रख रही है। मैंने उसको आगे उकसाया,

“ऐसा क्यों?”

“एक कहानी है.. आप सुनेंगे?”

“हाँ हाँ.. बिलकुल!”

“ये जो सातों ऋषि हैं, दरअसल उन्ही सूर्य का उदय-अस्त नियंत्रित करते हैं। इन सभी का विवाह सात बहनों से हुआ था जिनको कृत्तिका कहते हैं। ये सभी साथ साथ रहते थे। लेकिन एक दिन एक हवं के दौरान अग्नि देवता प्रकट हुए और उन सातों कृत्तिकाओं के रूप से मुग्ध हो गए और उसी पागलपन में इधर उधर भटकने लगे। ऐसे में एक दिन उनकी मुलाकात स्वाहा से हुई। स्वाहा को अग्नि से प्रेम हो गया और उनका प्रेम पाने के लिए स्वाहा एक एक कर उन सातो बहनों के रूप में अग्नि से मिलन करने लगी। उसने छः बहनों का रूप तो धर लिया, लेकिन अरुंधती का रूप नहीं ले पाई। और वह इसलिए क्योंकि अरुंधती इतनी पतिव्रता थीं, की उनका रूप लेना असंभव हो गया। इस संयोग से स्वाहा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम स्कंद पड़ा... बात फ़ैल गई की उन छः बहनों में से कोई उसकी माता है। सिर्फ अरुंधती और वशिष्ठ ही साथ रह गए।“ 

“क्या बात है! यह सच है की इस प्रकार के तारों में एक तारा स्थिर और दूसरा उसके चक्कर लगाता है... लेकिन ये दोनों साथ में चक्कर लगाते हैं..।“

“हाँ.. इसीलिए अरुंधती को देखना शुभ है.. पति और पत्नी – उन दोनों को हर काम साथ में करना चाहिए। यही तो विवाह की नींव है!” रश्मि कुछ देर तक रहस्यमयी ढंग से रुकी और फिर आगे बोली, “आपको एक बात पता है?”

“क्या?” जाहिर सी बात है की मुझे नहीं पता!

“शिव-पुराण में अरुंधती को... रश्मि कहा गया है... और, वे ब्रह्मा की पुत्री थीं। वशिष्ठ के कहने पर उन्होंने तप करके शिवजी को प्रसन्न कर लिया और स्वयं को काम से मुक्त करने का आग्रह किया। शिव जी ने उनको मेधातिथि ऋषि के हवन-कुण्ड में बैठने को कहा। ऐसा करने से रश्मि उनकी पुत्री के रूप में पैदा हुई और फिर उन्होंने वशिष्ठ से विवाह किया।“

“बाई गॉड! तो मेरी जानू स्वयं ब्रह्मा की पुत्री हैं?”

रश्मि मुस्कुराई, “नहीं.. मैं तो बस अपने पापा की पुत्री हूँ.. और अब आपकी पत्नी!” फिर कुछ रुक कर, “और मैं हमेशा आपकी निष्ठावान रहूंगी – ठीक अरुंधती की तरह!”

उसने यह बात इतनी ईमानदारी और भोलेपन से कही, की दिल में एक टीस सी उठा गई.. मन भावुक हो गया। सच में, रश्मि जैसी जीवनसाथी पाकर मैं धन्य हो गया था, और मुझे यकीन हो चला था की मेरे अच्छे दिनों का आरम्भ उसके आने के साथ ही हो गया। 

“मैं भी...” कह कर मैंने उसके हाथ को अपने हाथ में ले लिया, और उसके साथ ही देर तक जगमगाते आकाश को यूँ ही देखते रहा।

रात का समय

रश्मि का परिप्रेक्ष्य

पिछले कुछ दिनों से मिल रहे अनवरत सुख के कारण मुझमें अपार स्फूर्ति और ताज़गी आ गई जान पड़ती है। नींद ही नहीं आ रही है। कमरे में बाहर से हल्का हल्का उजाला आ रहा है – ‘कितना बजा होगा?’ मैंने घड़ी में देखा : रात के साढ़े बारह ही बजे थे अभी तक। ‘ये’ तो सो गए जान पड़ते हैं! हमको सोए हुए कोई एक घंटा ही तो हुआ है अभी तक! और मुझे लग रहा है की जैसे न जाने कितनी देर तक सो गई! ‘एकदम फ्रेश लग रहा है.. क्या करूँ?’

‘क्यों न खिड़की खोल दी जाए!? समुद्र का शोर बहुत सुहाना होता है।‘ ऐसा सोच कर मैं उठी और समुद्र के सामने खुलने वाली खिड़की के पल्ले खोल दिए और पर्दे हटा दिए, और वापस आकर बिस्तर पर सिरहाने की टेक लेकर बैठ गई। समुद्र की लहरों की गर्जना, रात्रिकाल की चुप्पी और रिसोर्ट की लाइटों से उठने वाले मृदुल उजासे से माहौल और भी शांतिमय हो चला था। नींद तो बिलकुल ही गायब थी, इसलिए मैं बैठे बैठे बस पिछले कुछ दिनों की बातें सोचने लग गई...

वास्तव में, यह सबकुछ एक परिकथा जैसा ही तो था! परिकथा! सपनों का राजकुमार!!

एक सजीला, सुन्दर, और नौजवान राजकुमार घोड़े पर सवार होकर आया और एक गरीब लड़की को अपनी रानी बना कर अपने महल में ले गया! शायद ही कोई ऐसा हो जिसने अपने बचपन में ऐसी, या इससे मिलती-जुलती कहानी न सुनी हो! और इन कहानियों को सुनते सुनते बचपन में ही लड़कियों के मन के किसी कोने में एक लालसा जागृत हो ही जाती है की एक दिन उनके भी सपनो का राजकुमार आएगा और उन्हें अपने साथ अपने महल ले जाएगा।

पर यथार्थ में क्या ऐसा कहीं होता है? मुझे तो मालूम भी नहीं की मेरे सपनो का राजकुमार कैसा होता! इसके बारे में मैंने वाकई कुछ भी नहीं सोचा था। अभी तक मैंने देखा ही क्या था? पिछले साल की ही तो बात है जब मैंने माँ और पापा को खुसुर-पुसुर करते हुए चुपके से सुना था – चर्चा का विषय था ‘मेरी शादी’! पापा मेरे लिए आये किसी विवाह प्रस्ताव की बात माँ को बता रहे थे... उस दिन मुझे पहली बार महसूस हुआ की लड़कियां अपने माँ-पापा के लिए चिंता का विषय भी हो सकती हैं। उस दिन मैंने निर्णय किया की अपने बूते पर कुछ कर दिखाऊंगी और अपनी ही पसंद के लड़के से शादी करूंगी... माँ बाप की चिंता ही ख़तम! लेकिन अगर सोचो तो कैसी बचकानी बात है? एक पिछड़े इलाके के छोटे कस्बे रहने वाले औसत परिवार की लड़की भला क्या ढूंढेगी अपने लिए पति! हमको क्या अधिकार है? अपनी हैसियत के हिसाब से जैसे तैसे कोई मिल जाय, वही बहुत है। लेकिन सोचने में क्या कोई दाम लगता है? मैं भी अपने लड़कपन में कुछ भी सोचती, ओर सोच सोच कर खुश होती की यह कर दूँगी, वह कर दूँगी।

लेकिन रूद्र ने अचानक ही हमारे जीवन में आकर यह सारे समीकरण ही बदल डाले। सच कहूं तो रूद्र कोई मेरे सपनो के राजकुमार नहीं हैं... वे उससे कई गुणा ज्यादा बढ़-चढ़ कर हैं... मैं सपने में भी उनके जैसा सुन्दर वर सोच नहीं सकती थी। इसके साथ साथ ही वह एक योग्य और लायक हमसफर भी हैं। उन्होंने अपना सब कुछ अपने ही हाथों से बनाया है... उनमें इंसानियत हैं... उनमें सभी के लिए उचित सम्मान भाव है और आत्म-सम्मान भी। और सबसे बड़ी बात, जो उनके सभी प्रकार के योग्यता और धन- दौलत से अधिक है – और वह है उनका चरित्र! उन्होंने ही बताया था की उन्होंने मुझे विद्यालय जाते हुए देखा था... अगले दिन मैंने कई बार पीछे मुड़ कर देखा, की शायद वो कहीं से मुझे देख रहे हों, लेकिन वो दिखे ही नहीं। खैर, फिर उनके बारे में पता लगाने के लिए पापा ने कई लोग भेजे, और जैसे जैसे उनके बारे में और पता चला, मेरे मन में उनके लिए प्रेम और आदर दोनों बढ़ते चले गए।
Reply
12-17-2018, 02:14 AM,
#45
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
पापा सभी को कहते फिर रहे थे की रश्मि के लिए रूद्र के जैसा वर वो ढूंढ ही नहीं सकते थे.. मजे की एक बात यह है की रूद्र और मेरे पापा की उम्र में कोई खास अंतर नहीं है... मुश्किल से सात-आठ साल का! लेकिन वो देखने में एकदम नौजवान लगते हैं, और पापा बूढ़े! और तो और, मेरी और इनकी उम्र में तो कोई बारह तेरह साल का अंतर है! लेकिन फिर भी कभी कभी ऐसा लगता है की ये एक बच्चे ही हैं। 

पापा को शुरू शुरू में उन पर बहुत शक हुआ – न जाने कहाँ से आया है? क्या पता कोई लम्पट, शोहदा या उचक्का हो – हमें ठगने आया हो? बेचारी रश्मि को ब्याह कर ले जाय, और कहीं बेच दे – अखबार तो ऐसे अनगिनत किस्सों से आते पड़े हैं! मेरी फूल सी बच्ची! अगर उसको कुछ भी हो गया तो उसकी माँ को क्या जवाब देंगे! ऐसे न जाने कैसे बुरे बुरे ख्याल पिताजी को दिन-रात आते.... लोगो ने उनको समझाया की सब के बारे में सिर्फ बुरा नहीं सोचा जाता.. सतर्क रहना अच्छी बात है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं की सभी को बुरी और शक की निगाह से जांचा जाय। और फिर, बंगलौर में तो हमारे कस्बे और जान-पहचान के कितने सारे लोग हैं.. पता लगा लेंगे। सब कुछ। रश्मि तो पूरे कस्बे की बिटिया है.. ऐसे ही उसका बुरा थोड़े न होने देंगे!

फिर आई हमारी शादी..... 

हमारी शादी जैसे एक किंवदंती बन गई... पूरा गाँव शामिल हुआ – सिर्फ दिखाने के लिए नहीं, बल्कि सभी ने अपनी अपनी तरफ से कुछ न कुछ मदद भी करी। पापा ने तो सब की सब रीतियाँ निभा डालीं – कहीं भी कोई कोर कसर नहीं! सब के सब देवताओं की पूरी दया बनी रहे बिटिया और दामाद पर! ऐसी शादी होती है कहीं भला? देखने वाले हम दोनों को राम-सीता जैसी जोड़ी बताते। सभी ने मन से ढेरों आशीर्वाद दिए – सच में, भाग्य हो तो ऐसा! और सभी ने हमको बोला की शादी ऐसी होनी चाहिए!

हमारे मिलन की रात!

वैसे तो लड़की शादी के बाद ससुराल चली जाती है, लेकिन ये तो इतनी दूर रहते हैं! इसीलिए हमारे लिए घर में ही सारी व्यवस्था कर दी गई थी.. कहा जाता है की पति-पत्नी की यह पहली अन्तरंग रात उनके वैवाहित जीवन के भविष्य का निर्णय कर देता है। सुहागरात में पति-पत्नी का यह पहला मिलन शारीरिक कम, बल्कि मानसिक और आत्मिक अधिक होता है। इस अवसर पर दो अनजान व्यक्तियों के शरीरों का ही नहीं बल्कि आत्माओं भी मिलन होता है। जो दो आत्माएँ अब तक अलग थीं, इस रात को पहली बार एक हो जाती हैं। 

एक बार टीवी पर मैंने वो गाना देखा था... “आज फिर तुम पे प्यार आया है...” उसमें माधुरी दीक्षित और विनोद खन्ना के बीच प्रथम प्रणय का संछिप्त दृश्य दिखाया गया था। उस दृश्य को देख कर मेरे मन में भी एक अनजान तपन, एक बेबस इच्छा और न जाने कितने कोमल सपने अंकुर लेने लगे। रूद्र से विवाह की बात पक्की हो जाने पर वह सारे सपने परवान चढ़ गए ... लेकिन, भाभियों के बताये यौन ज्ञान ने सब पर पानी फेर दिया। ज्यादातर स्त्रियों के यौन जीवन, या कह लीजिये वैवाहिक जीवन की सच्चाई तो वैसी ही है... मुझे उनकी बातों से जो एक बात समझ में आई थी वह यह थी की स्त्रियों के लिए सेक्स का आनंद उठाने जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। पतिदेव आयेंगे, और कुछ कुछ करके सो जायेंगे! स्त्री के लिए तो बस पूरे दिनभर चौका-चूल्हा, सेवा-टहल, बस यही सब चलता रहता है। हमारी (स्त्रियों की) तो बस नींद ही पूरी हो जाय, यही बहुत है। 

‘क्या रूद्र भी ऐसे ही होंगे?’ यह विचार मेरे मन में अनगिनत बार आता... लेकिन मुझे इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिल पाता.. मिलता भी कैसे? आखिर उनके बारे में मुझे मालूम ही क्या था? मन में बस डर सा लगा रहता। मेरा भविष्य तो तय हो गया था। ठीक है, रूद्र अच्छे इंसान हैं, और मैं संभवतः बहुत भाग्यशाली हूँ की मुझे उनसे विवाह कर उनकी संगिनी बनने का अवसर मिला था। परन्तु फिर भी, समाज में स्त्रियों की स्थिति और अन्य भाभियों के अनुभव – इन सबने मेरे मन में एक अनजान सा डर भर दिया था। 

माँ ने हमारी सुहागरात से पहले मुझे इनकी हर बात मानने की हिदायद दे दी और फिर सभी मुझे कमरे में अकेला छोड़ कर चले गए। मैं अकेली ही डरी, सहमी सी उनका इंतजार करने लगी। समय के एक एक पल के बढ़ते हुए मेरे दिल की धड़कन भी बढती जा रही थी और इंतजार का एक-एक पल मानो एक-एक घंटे जैसा बीत रहा था। खैर, अंततः रूद्र कमरे में आये और मेरे पास आकर बैठ गए। उनकी उपस्थिति मात्र से ही मेरे शरीर का रोम रोम रोमांचित हो गया।

"मैं आपका घूंघट हटा सकता हूँ?" उन्होंने पूछा... 

‘आप को जो करना है, करेंगे ही!’ ऐसा सोचते हुए मेरे दिमाग में भाभियों की बताई हुई शिक्षा, सहेलियों की नटखट चुहल और छेड़खानी और मेरी खुद की न जाने कितनी ही कोमल इच्छाएँ कौंध गईं ... मैंने सिर्फ धीरे से हाँ में सर हिलाया।

‘क्या मैं इनको पसंद आऊंगी? इन्होने तो मुझे दूर से ही देख कर पसंद कर लिया! आज इतने पास से मुझे पहली बार देखेंगे..’ वो मुझे आँखें खोलने को बोल रहे थे – लेकिन रोमांच के मारे मेरी आँखें ही नहीं खुल रही थीं। जब मेरी आँखें खुली तब इनका मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखाई दिया। राम-सीता का नहीं मालूम, लेकिन ये सचमुच मेरे लिए कृष्ण का रूप थे... मेरी आँखें तुरंत ही नीचे हो गयीं। फिर उन्होंने मुझे चुम्बन के लिए पूछा! कहाँ दूँ चुम्बन? गाल पर, या होंठ पर? फिल्मों में देखा है की हीरो-हेरोइन होंठों पर चूमते हैं.. लेकिन, क्या इनको यह पसंद आएगा? खैर, मैंने इनके होंठो पर जल्दी से एक चुम्बन दिया, और पीछे हट गयी। शरम आ गई...। 

लेकिन इनका मन नहीं भरा शायद... इन्होने मेरी ठुड्डी पकड़ कर मुझे कुछ देर निहारा और फिर मेरे होंठो को चूमना शुरू कर दिया। मैं तो सिहर ही गई, मेरे शरीर पर किसी मर्द का यह पहला चुम्बन था। मेरा उनके होंठों के स्पर्श से ही कांप गया, गाल लाल हो गये, और रौंगटे खड़े हो गए। उनके गर्म होठों का स्पर्श – एकदम नया अनुभव! मेरे पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई। समय का सारा एकसास न जाने कहीं खो गया। कुछ याद नहीं की यह चुम्बन कब तक चला। लेकिन, उतनी देर में मेरा हाल बहुत बुरा हो चला था – मैं बुरी तरह कांप रही थी, उसके गालों से गर्मी छूट रही थी और साँसे भारी हो गयी थी। 

न जाने क्या सोच कर उन्होंने मेरी नथ उतार दी। पारंपरिक विवाहों में सुहागरात में पति सम्भोग से पहले अपनी पत्नी की नथ उतारता है। सम्भोग! सहसा ही मुझे ऐसा एहसास हुआ जैसे मुझे किसी ने नग्न कर दिया हो। डर और लज्जा की मिली-जुली भावाना के कारण सेक्स क्रिया तो दूर की बात है, उनका आलिंगन, चुम्बन और स्पर्श में भी मेरे दिल को दहला दे रही थी। मन में बस यही भावना आ रही थी की उनके सामने पूरी नंगी न होना पड़े। लेकिन जिस निर्लज्जता से उन्होंने मेरा ब्लाउज उतारा था, मैं तो समझ गई की मेरी भी दशा मेरी भाभियों जैसी ही होने वाली है। उन्होंने धीरे-धीरे एक-एक करके मेरे सारे कपड़े मेरे शरीर से उतार दिए और मुझे उसी डर की खाईं में धकेल दिया। सब कुछ बहुत ही अस्वाभाविक प्रतीत हुआ। जिस आकर (खज़ाना) को मैं अब तक सुरक्षित रखे हुए थी, वह उसी पर सीधी सेंधमारी कर रहे थे। लेकिन जब उन्होंने मुझे प्रेम से आलिंगनबद्ध कर दुलराया, तो मन में कुछ साहस आया।

और फिर वह हुआ जिसकी कल्पना मैंने अपने सबसे सुखद स्वप्न में भी नहीं करी थी... उनके होंठ, जीभ, हाथ, उँगलियों और लिंग ने एक समायोजित ढंग से मेरे सर्वस्व पर कुछ इस प्रकार आक्रमण किया की मैं सब कुछ भूल गई। मेरे यौवन के खजाने को पहली बार कोई मर्द ऐसे लूट रहा था, और उस समय होने वाले सुखद अहसास को मेरे लिए शब्*दों में बयान करना नामुमकिन है। मेरे चुचक पहले भी कभी-कभी कड़े हो जाते थे – जब अधिक ठंडक होती, या फिर तब जब मैं नहाते समय अपने स्तनों पर कुछ ज्यादा ही साबुन रगड़ लेती.. लेकिन उस समय तो कुछ और ही बात थी। मेरे चुचक उनके मुँह में जाकर पत्थर के सामान कड़े हो गए थे। वह उनको किसी बच्चे की तरह चूसते हैं.... मैं तो जैसे होश ही खो देती हूँ। पता नहीं उनको मेरे स्तन इतने स्वादिष्ट क्यों लगते हैं! उनको पिए जाने पर मेरा मन भी नहीं भरता... मन में बस यही आता है की रूद्र मेरे दोनों चुचक लगातार पीते रहें। हालांकि उनके चूसने और पीने से मेरी दोनों निप्पलों में दर्द होने लगता है, लेकिन उनके ऐसा करने से जो मुझे जो असीम आनन्द का अनुभव होता है, उसके लिए यह दर्द कुछ भी नहीं।

मैंने सोते हुए रूद्र को देखा – वो एकदम से बेख़बर, एक भोले बच्चे के समान सो रहे थे। नींद में भी वो कितने मासूम और प्यारे लग रहे थे... चेहरे पर संतोष के भाव एकदम स्पष्ट। मैं मुस्कुराई... इतने दिनों में यह एक अनोखी रात थी, जब मेरे शरीर पर कपड़े थे! 

‘मेरे कपड़ो के दुश्मन...!’
Reply
12-17-2018, 02:14 AM,
#46
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने प्यार से सोचा और उनके गाल पर धीरे से अपनी उंगलियाँ फिराईं। मेरे स्पर्श से वे थोड़ा कुनमुनाए और फिर अपने गाल को स्वतः ही मेरी उँगलियों से सटा कर सो गए। 

‘अरे मेरे मासूम साजन!’ मैंने मन ही मन सोचा और मुस्कुराई, ‘....कैसे बच्चों के सामान सो रहे हो! यही बच्चा रोज़ मेरे क्रोड़ में उथल पुथल मचा देता है! ’

‘और इनका लिंग! बाप रे! पहली बार उनके लम्बे तगड़े अंग को देखते ही मुझे दहशत सी हो गई! इतना मोटा! मेरे कलाई से भी अधिक मोटा! उसकी त्वचा पर नसें फूल कर मोटी हो रही थी और आगे का गुलाबी हिस्सा भी कुछ कुछ दिख रहा था... आखिर यह मुझमें समाएगा कैसे?’ उस समय मुझे पक्का यकीन हो गया की आज तो दर्द के मारे मैं तो मर ही जाऊंगी! यह सब सोचते हुए मेरी दृष्टि रूद्र के जघन भाग पर चली गई, जहाँ चद्दर के नीचे से उनका अंग सर उठा रहा था। 

मेरे होंठों से एक हलकी सी हंसी छूट पड़ी, ‘हे भगवान्! क्या ये कभी भी शांत नहीं रहता?!’ 

मुझे याद है जब मैंने इसको पहली बार छुआ था... मैंने छुआ क्या था, दरअसल उन्होंने ही मेरे हाथ को पकड़ कर अपने आग्नेयास्त्र पर रख दिया। 

आग्नेयास्त्र! हा हा! सचमुच! मानो अग्नि की तपन निकल रही थी उसमें से!! मेरी हथेली उनके लिंग के गिर्द लिपट तो गई, लेकिन घेरा पूरा बंद ही नहीं हुआ। इतना मोटा! बाप रे! और तो और, उनके लिंग की लम्बाई का कम से कम आधा हिस्सा मेरी पकड़ से बाहर निकला हुआ था। शरीर और मन की इच्छाएँ जब अपने मूर्त-रूप में जब इस प्रकार उपस्थित हो जाती हैं, और उनसे दो-चार होना पड़ता है तो डर और लज्जा – बस यही दो भाव मन में आते हैं। मैं भी डर गई...!

लेकिन उनके अंतहीन मौखिक प्रेम प्रलाप ने मेरा सारा डर खींच कर बाहर निकाल दिया! ऐसा तो कुछ भी भाभियों ने नहीं बताया था। न जाने कितनी देर बाद अंततः वह समय आ ही गया जब हम दोनों संयुक्त होने वाले थे। मन में अनजान सा डर था की उनका लिंग मेरी क्या दुर्दशा करेगा, लेकिन एक विश्वास भी था की वे मुझे कोई परेशानी नहीं होने देंगे। एक आशंका थी की अगर भाभियों की बात सच हो गई तो..? और साथ ही साथ एक चिंता थी की यदि उनकी बात सच न हुई तो..?? इस प्रकार के विरोधी भाव आते जाते गए, और फिर मैंने स्वयं को उनकी निपुणता के हवाले कर दिया।

जब उन्होंने मेरी जांघें फैला दीं तो मुझे लगा की जैसे मेरी योनि तरल हो गई है... पूरी तरह से भिन्न आभास! जब उन्होंने अपनी उँगलियों से उसको फैलाया, तब जा कर मुझे वापस आभास हुआ की मेरी योनि स्नायु, ऊतकों और पेशियों से बनी है। वो कुछ कहते, लेकिन मुझे कुछ भी सुनाई न देता! मानो, सब इन्द्रियों की संवेदनशीलता सिमट कर मेरी योनि और चुचक में ही रह गई हो।

उनका लिंग!

पहली बार उसको अपनी योनि में महसूस करना अद्भुत था! उनके जोर लगाने से वह धीरे-धीरे मेरे अन्दर आने लगा। मुझे लगा की जैसे एक नया जीव मेरे अन्दर घर बना रहा हो। भराव का ऐसा अनुभव मेरी कल्पना से परे था। मैंने नीचे देखा – अभी तो लिंग के आगे के हिस्से का सिर्फ आधा भाग ही अन्दर घुसा था! उन्होंने एक क्षण रुक कर एक जोरदार धक्का लगाया और उनके विकराल अंग का आधा हिस्सा मेरी योनि के भीतर समा गया।

"आआह्ह्ह..." ऐसी क्रूरता! मेरी चीख निकल गयी – जो की मुझे भी सुनाई दी। वो एक दो पल ठहर कर मुझे देखने लगे.. उनकी आँखों में चिंता थी – किस बात की यह तो नहीं मालूम, लेकिन इतना कह सकती हूँ की मेरे लिए नहीं। क्योंकि एक दो पल रुकने के बाद ही उन्होंने अपना लिंग मेरी योनि से थोड़ा बाहर निकाला और फिर पुनः और अन्दर डाल दिया। ऐसे ही उन्होंने कई बार अन्दर बाहर किया। ह्म्म्म.. दर्द कुछ कम तो हुआ! लेकिन उनके हर धक्के से मेरी कराह ज़रूर निकल रही थी। फिर अचानक ही उन्होंने पूरे का पूरा लिंग मेरे भीतर ठेल दिया और मेरा विधिवत भोग करना आरम्भ कर दिया। वासना और आनंद के सम्मिश्रण से मेरी आँखें बंद हो गईं – सांस और कराह का आवागमन मुंह से ही हो रहा था। उत्तेजना के मारे मैंने उनके कन्धों को जोर से जकड रखा था। अजीब अजीब सी आवाजें – कुछ हमारी कामुक आहों की, तो कुछ पलंग के पाए के भूमि पर घिसने की, तो कुछ हमारे जननांगों के घर्षण की! मुझे अचानक ही मेरे अन्दर गर्म तरल की बूँदें गिरती महसूस हुईं – और ठीक उसी समय मुझे एक बार पुनः कामुक आनंद के अनोखे स्वाद का आभास हुआ। मेरी पीठ एक चाप में मुड़ गयी.. और मेरे भोले साजन मेरे चुचक को एक बार फिर से पीने लग गए और मुझ पर ही गिर कर सुस्ताने लगे! मुझे नहीं मालूम था की मर्दों को स्त्रियों के स्तनों का स्वाद लेने की ऐसी इच्छा हो सकती है। मैंने उनके लिंग को अपने अन्दर मुलायम होते महसूस किया; ऊपर से उनका दुलार, चुम्बन और चूषण जारी रहा। 

रति निवृत्ति जहाँ अति आनंददायक हो सकती है, वहीँ पहली बार करने पर एक प्रकार की लज्जा भी होती है। उनको तो खैर नहीं हो रही थी, लेकिन मैं शरम से दोहरी हुई जा रही थी और उनसे आँखे ही नहीं मिला पा रही थी। पता नहीं क्यों! आखिर इस खेल में हम दोनों ही बराबर के भागीदार थे, लेकिन फिर भी शरम मुझे ही आ रही थी। एक वो दिन था, और एक आज का दिन है! मैं भी किसी छंछा (निर्लज्ज स्त्री) की तरह निर्बाध यौन आनंद उठा रही हूँ। 

सपनों के ब्रह्माण्ड में विचरण करते हुए अगला पड़ाव मेरी विदाई का आया... 

अप्रत्याशित रूप से मुझे एक दिन पहले ही अपने पिया के घर को निकलना पड़ा। एक पल के लिये भी मुझे अपने पिता के घर को छोड़ने का मलाल नहीं हुआ। रूद्र के साथ जीवन के हसीन सपने संजोंते हुए मैंने सबसे खुशी-खुशी विदा ली। मन में कई प्रकार की खुशियाँ घर करने लगी। मुझे मालूम था की रूद्र जैसे पति को पाकर मैं धन्*य हो गई थी। बंगलौर पहुँच कर मेरा ऐसा स्वागत हुआ कि मैं खुद को किसी राजकुमारी से कम नहीं मान रही थी। लेकिन इस घर का अहसास कुछ ही घंटों में मुझे अपना सा लगने लगा। मैं तो एक दिन में ही पापा का घर भूल गई। यह मेरा घर था... अद्वितीय वास्*तु शिल्*प से निर्मित घर! मैं दंग रह गई थी। सब कुछ जैसे मीठा स्वप्न हो! मुझे ऐसा लगा जैसे मैं एक ऐसे स्थान में हूँ, जहां रिश्*तों की तपिश का संसार बसाया जा सकता है। प्रेम के इन्*द्रधनुषी रंगों की वितान (शामियाना) के नीचे हम दोनों की देहों के मिलन से सृष्*टि सृजन को गति दी जा सकती है।

सच है.... एक वो दिन था, और एक आज का दिन है! निर्बाध यौन आनंद! जब मैं उनकी बांहों में जाती हूँ तो पूर्णतः तनाव मुक्*त हो जाती हूँ। साहचर्य की कायापलट करने वाली ऊर्जा की कांति मानो मेरी त्*वचा से फूट फूट कर निकलने लगी है। सचमुच, यौन क्रिया, संसर्ग के अतिरिक्त भी ऐसी प्राप्*य है जो चेतना को सुकून और शरीर को पौष्*टिकता देती है। कुछ लोग कहते हैं की जब स्*त्री शरीर, पुरुष रसायन प्राप्त करता है, तो देह गदरा जाती है।
Reply
12-17-2018, 02:15 AM,
#47
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैं इस सोच पर मुस्कुराई... एक हाथ अनायास ही मेरे स्तन पर चला गया। ‘ये दोनों जल्दी ही बड़े हो जाएँ!’ मन में एक विचार कौंधा। कैसा हास्यास्पद विचार है यह... कुछ दिनों पहले तक ही मैं सोचती थी की बड़े स्तन कितने तकलीफदेय हो सकते हैं... लेकिन जिस प्रकार से रूद्र मेरे दोनों स्तनों का भोग प्रयोग करते हैं.. यदि, ये थोड़े बड़े होते तो उनको और आनंद आता। और यदि ये दोनों मीठे मीठे दूध से भर जाएँ, और रूद्र जीवन भर उनका पान कर सकें! आह!

मेरे मन में एक शरारत उठी। मैंने रूद्र से सट कर, चद्दर के अंदर हाथ बढ़ा कर उनके लिंग पर धीरे से हाथ फिराया। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसको मेरी छुवन का ही इंतज़ार था – मेरा हाथ लगते ही तुरत-फुरत उसका आकार अपने पूर्ण रूप में बढ़ गया।

‘ऐसा पुष्ट अंग! हाथ में ठीक से आता ही नहीं..! कितना सख्त हो गया है!’

मैंने पूरे हाथ को उनके लिंग पर कई बार फिराया और फिर उसको पकड़ कर हिलाने लगी। कुछ ही देर में उनका लिंग मेरी योनि में जाने के लायक एकदम खड़ा और सख्त हो गया।

दुर्भाग्य से मेरी योनि इस समय थकी हुई थी, और हमने सावधानी बरतने का प्रण भी किया था, इसलिए मैंने सोचा की क्यूँ न हाथ से ही इनको निवृत्त कर दिया जाय! मैंने रूद्र के लिंग को थोड़ा मजबूती से पकड़ कर अपनी मुट्ठी को उसकी पूरी लम्बाई पर आगे-पीछे चलाना आरम्भ कर दिया। सोते हुए भी रूद्र के गले से कामुक आहें निकलने लगीं! फिर मुझे याद आया की उनका वीर्य निकलेगा तो बिस्तर को ही खराब करेगा, अतः मैं घुटनों और कोहनी के बल इस प्रकार बैठ गई जिससे उनका लिंग मेरे मुंह के सामने रहे। कुछ देर और उनके लिंग को पकड़ कर आगे पीछे करने के बाद मैंने उसके सामने वाले हिस्से को अपने मुंह में भर लिया। अब हाथ की ही ले में मेरा मुंह भी उनके लिंग पर आगे पीछे हो रहा था। मैंने अपनी जीभ से उनके लिंग के आगे वाले चिकने हिस्से पर कई बार फिराया। 

रूद्र ‘आऊ आऊ’ करते हुये मेरे सिर को अपने हाथ से सहला रहे थे। ‘हो गया सोना!’

"यस बेबी! यस!!" उन्होंने बुदबुदाते हुए मेरा हौसला बढाया। 

मैंने उत्साह में आकर उनके लिंग को अपने मुंह के और भीतर जाने दिया – एक बार तो उबकी सी आ गई, लेकिन मैंने गहरी सांस भर कर उसको चूसना जारी रखा। उधर रूद्र भी उत्तेजना में आकर लेटे हुए नीचे से धक्के लगाने लगे – वो तो अच्छा हुआ की मैं अभी भी उसकी गति और भेदन नियंत्रित कर रही थी, नहीं तो मेरा दम घुट जाता। खैर, कुछ ही देर में मैं अपने मुंह में उनके लिंग की उपस्थिति और चाल की अभ्यस्त हो गई और अब मुझे इस प्रकार मैथुन करना अच्छा लगने लगा। मुझको यह क्रिया आरम्भ किये कोई चार-पांच मिनट तो हो ही गए थे.... अतः कुछ और झटके मारने के बाद वो स्खलित हो गये और मेरा मुख उनके गरम गरम वीर्य से भर गया, जिसको मैंने तुरंत ही पी लिया। कुछ ज्यादा नहीं निकला... संभवतः आज कुछ ज्यादा ही खर्च हो गया। एक अजीब स्वाद! हो सकता है की कुछ और बार ऐसे करने के बाद मैं उसकी भी अभ्यस्त हो जाऊं! रूद्र भी स्खलित होने के बाद निढाल से लेटे रहे। 

‘पता नहीं उनको क्या लगा होगा! सपना या हकीकत! हा हा!’ 

मैं कुछ देर तक उनका सिकुड़ता हुआ लिंग मुंह में लिए ऐसे ही लेटी रही, और फिर अलग हट कर सिरहाने की छोटी मेज पर रखी बोतल से पानी पीने लगी। और फिर उनके चेहरे पर नज़र डाली... वो मुस्कुरा रहे थे। क्या ये जाग गए हैं और उनको मेरी इस हरकत का पता चल गया? या वो इसको एक सपना ही सोच कर मगन हो रहे हैं! क्या पता!

'आज की रात क्यों अनोखी हो भला?' यह सोचते हुए मैंने अपने सारे कपड़े उतारे, और अपने पिया से चिपक कर लेट गई.. रात में कब नींद आई, कुछ भी याद नहीं।

आज सुबह से ही बदली वाला मौसम था – सूरज बादलो के साथ लुका-छिपी खेल रहा था। हल्की बयार और ढले हुए तापमान से मौसम अत्यंत सुहाना हो गया। मन में आया की क्यों न अगर ऐसे ही मौसम रहे, तो आज दिन भर बीच पर ही आराम किया जाय? आखिर आये तो आराम करने ही है! मैंने रश्मि को यह बात बताई तो उसको बहुत पसंद आई – वैसे भी हिमालय की हाड़ कंपाने वाली ठंडक से छुटकारा मिलने से वह वैसे भी बहुत खुश थी। रश्मि ने भी कहा की आज बस आराम ही करने का मन है... खायेंगे, सोयेंगे और हो सका तो रात में फिल्म देखेंगे, इत्यादि... मेरे लिए आज का यह प्लान एकदम ओके था।

हमने जल्दी जल्दी फ्रेश होने, और ब्रश करने का उपक्रम किया। ब्रेकफास्ट के लिए आज मैंने रिसोर्ट के सार्वजानिक क्षेत्र में जाने का निर्णय लिया – कम से कम कुछ और लोगों से बातचीत करने को मिलेगा। नाश्ते पर हमारे साथ एक तमिल जोड़ा बैठा। हमारी ही तरह उनकी भी अभी अभी ही शादी हुई थी और वे हनीमून के लिए आये थे। उनसे बात करते हुए पता चला की दोनों ही बंगलौर में काम करते हैं! लड़का लड़की दोनों की उम्र पच्चीस से सत्ताईस साल रही होगी। खैर, हमने अपने फ़ोन नंबर का आदान प्रदान किया और मैंने शिष्टाचार दिखाते हुए उन दोनों को अपने घर आने का न्योता दिया। नाश्ता कर के हम होटल के रिसेप्शन पर चले गए और उनसे प्लान के बारे में पूछा। 

वहां पर रिसेप्शनिस्ट ने बताया की बहुत से लोग आज यही प्लान कर रहे हैं.. उसने हमको काला-पत्थर बीच जाने को कहा.. एक तो वहां बहुत भीड़ भी नहीं रहेगी और दूसरा वह रिसोर्ट से आरामदायक दूरी पर था। आईडिया अच्छा था। फिर मेरे मन में एक ख़याल आया – मैंने रिसेप्शनिस्ट से पूछा की दो साइकिल का इन्तेजाम हो सकता है? क्यों न कुछ साइकिलिंग की जाय – वैसे भी इतने दिनों से किसी भी तरह का व्यायाम नहीं हुआ था.. बस आराम! खाओ, पियो, सोवो, और सेक्स करो! ऐसे तो कुछ ही दिन में तोन्दूमल हो जायेंगे हम दोनों।

रिसेप्शनिस्ट ने कहा की है और कुछ ही देर में हमारे सामने दो साइकिल (एक लेडीज और एक जेंट्स) मौजूद थीं। बहुत बढ़िया! रश्मि को पूछा की उसको साइकिल चलाना आता है? उसने बताया की आता है.. उसने छुप छुपा कर सीखी है। भला ऐसा क्यों? पूछने पर रश्मि ने कहा की पहले तो माँ, और फिर पापा दोनों ही उसको मना करते थे। माँ कहती थीं की लड़कियों की साइकिल नहीं चलानी चाहिए... उससे ‘वहाँ’ पर चोट लग जाती है। कैसी कैसी सोच! न जाने क्यों हम लोग अपनी ही बच्चियों को जाने-अनजाने ही, दकियानूसी पाबंदियों में बाँध देते हैं! 

खैर, साइकिल चलाने और चलाना सीखने का मेरा खुद का भी ढेर सारा आनंददायक अनुभव रहा है। जब मैं छोटा था, उस समय मेरठ में वैसे भी साइकिल से स्कूल जाने का रिवाज था। स्कूल ही क्या, लोग तो काम पर भी साइकिल चलाते हुए जाते थे उस समय तक! लड़का हो या लड़की... ज्यादातर बच्चे साइकिल से ही स्कूल जाते थे। पांचवीं में था, और उस समय मैंने साइकिल चलाना सीखी।

शुरू शुरू में मोहल्ले के कई सारे मुंहबोले भइया और दीदी मुझे साइकिल चलाना सिखाने लगे - कैसे पैडल पर पैर रखकर कैंची चलते है... कैसे सीट पर बैठते है... कैसे साइकिल का हैंडल सीधा रखते हैं... इत्यादि इत्यादि! शुरू शुरू में कोई न कोई पीछे से कैरियर पकड़ कर गाइड करता रहता... साईकिल चलाते समय यह विश्वास रहता की अगर बैलेंस बिगड़ेगा तो कोई न कोई मुझे गिरने से बचा ही लेगा। ऐसे में न जाने कब बड़े आराम से अपने मोहल्ले मे साइकिल चलाना सीख लिया... पता ही नहीं चला।

एक वह दिन था और एक आज! न जाने कितने बरसों के बाद आज साइकिल चलाने का मौका मिलेगा! कभी कभी कितनी छोटी छोटी बातें भी कितने मज़ेदार हो जाती हैं! मैंने हाफ-पैन्ट्स और टी-शर्ट पहनी, चप्पलें पहनी और एक बैग रखा.. जिसमें फ़ोन, सन-स्क्रीन लोशन, कैमरा, किताब, मेरा आई-पोड, पानी की बोतलें, चादर और खाने का सामान था। रश्मि ने हलके आसमानी रंग का घुटने तक लम्बा काफ्तान जैसा पहना हुआ था और उसके अन्दर नारंगी रंग की ब्रा और चड्ढी पहनी हुई थी.. क्या बला की खूबसूरत लग रही थी! बालों को उसने पोनीटेल में बंद लिया था – उसकी मुखाकृति और रूप लावण्य अपने पूरे शबाब पर था। 

कोई पंद्रह बीस मिनट की साइकिलिंग थी.. तो मैंने सोचा की रस्ते में इसको चुटकुले सुनाते चलूँ...

हरयाणवी जाट का बच्चा साइकिल चलाते-चलाते एक लड़की से टकरा गया। लड़की बोली: क्यों बे! घंटी नहीं मार सकता क्या? जाट का बच्चा कहता है: री छोरी, बावली है के? पूरी साइकिल मार दी इब घंटी के अलग ते मारुं के?

रश्मि: “हा हा! ये तो बहुत मज़ेदार जोक था! .... आप तो सुधर गए!”

मैं: “सुधर गया मतलब? अरे मैं बिगड़ा ही कब था?”

रश्मि: “आपके ‘वो’ वाले जोक्स की केटेगरी में तो नहीं आता यह!”

मैं: “अच्छा! तो आपको ‘वो’ जोक सुनना है? तो ये लो... 

रश्मि: “नहीं नहीं बाबा! आप रहने ही दीजिये!”

मैं: “अरे आपकी फरमाइश है..! अब तो सुनना ही पड़ेगा.. शादी के फेरे लेने के बाद लड़की ने झुक कर पंडित जी के पैर छुए और कहा "पंडित जी कोई ज्ञान की बात बता दीजिए।" पंडित जी ने उत्तर दिया "बेटी, ब्रा अवश्य पहना करो.. क्योंकि जब तुम झुकती हो तो ज्ञान और ध्यान, दोनों ही भंग हो जाते हैं।“”

“हा हा हा!”

“हा हा हा हा हा!”

ऐसे ही हंसी मज़ाक करते हुए कुछ देर बाद हम दोनों काला पत्थर बीच पर पहुँच जाते हैं। वहाँ पर हमारे अलावा कोई चार पांच जोड़े और मौजूद थे.. लेकिन सभी अपने अपने आनंद में लिप्त थे।
Reply
12-17-2018, 02:15 AM,
#48
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
एक साफ़ सुथरा (वैसे तो सारे का सारा बीच ही साफ़ सुथरा था) स्थान देख कर अपना चद्दर बिछाया और बैग रख कर मैं कैमरा सेट करने लगा। उसके बाद रश्मि की ढेर सारी तस्वीरे उतारीं.. मैं उसको सिर्फ ब्रा-पैंटीज में कुछ पोज़ बनाने को बोला, तो वह लगभग तुरंत ही मान गई। किसी मॉडल की भांति सुनहरी रेत और फिरोज़ी पानी की पृष्ठभूमि में मैंने उसकी कई सुन्दर तस्वीरे उतारी। उसके बाद मैंने भी सिर्फ अपनी अंडरवियर में रश्मि के साथ कुछ युगल तस्वीरे एक और पर्यटक से कह कर उतरवाई।

यह सब करते करते कोई एक घंटा हो गया हमको बीच पर रहते हुए.. बादल कुछ कुछ हटने लगे थे, इसलिए मैंने रश्मि को कहा की मैं उसके शरीर पर सनस्क्रीन लोशन लगा देता हूँ.. नहीं तो वो झुलस कर काली हो जायेगी। मैंने रश्मि को पानी की एक बोतल पकड़ाई और वह चद्दर पर आ कर लेट गई। सूरज इस समय तक ऊर्ध्व हो गया था। उसमें तपिश तो थी, लेकिन फिर भी, समुद्री हवा, और लहरों का गर्जन बहुत ही सुखकारी प्रतीत हो रहे थे। हम दोनों चुप-चाप इस अनुभव का आनंद लेते रहे, और कुछ ही देर में मैंने रश्मि और अपने के पूरे शरीर पर सनस्क्रीन लगा लिया।

कुछ देर ऐसे ही लेटे लेटे रश्मि बोली, “आप ग़ज़ल पसंद करते हैं?”

“ग़ज़ल!? हा हा! हाँ... जब भी कभी बहुत डिप्रेस्ड होता हूँ तब!”

“डिप्रेस्ड? ऐसी सुन्दर चीज़ आप डिप्रेस्ड होने पर पसंद करते हैं?”

“सुन्दर? अरे, वो कैसे?”

“अच्छा, आप बताइए, ग़ज़ल का मतलब क्या है?”

“ग़ज़ल का मतलब? ह्म्म्म... हाँ! वो जो ग़मगीन आवाज़ में धीरे धीरे गाया जाय?” 

“ह्म्म्म अच्छा! तो आप जगजीत सिंह वाली ग़ज़ल की बात कर रहे हैं? फिर तो भई शाल भी ओढ़ ही ली जाय!”

हम दोनों इस बात पर खूब देर तक हँसे... और फिर रश्मि ने आगे कहना शुरू किया,

“एक बहुत बड़े आदमी हुए थे कभी... रघुपति सहाय साहब! जिनको फिराक गोरखपुरी भी कहा जाता है! खैर, उन्होंने ग़ज़ल को ऐसे समझाया है – मानो कोई शिकारी जंगल में कुत्तों के साथ हिरन का पीछा करे, और हिरन भागते-भागते किसी झाडी में फंस जाए और वहां से निकल नहीं पाए, तो वह डर के मारे एक दर्द भरी आवाज़ निकालता है। तो उसी करूण कातर आवाज़ को ग़ज़ल कहते हैं। समझिये की विवशता और करुणा ही ग़ज़ल का आदर्श हैं।“

“हम्म... इंटरेस्टिंग! कौन थे ये बड़े मियां फ़िराक?”

“उनकी क्वालिफिकेशन ससुनना चाहते हैं आप? मेरिटोक्रेटिक लोगो में यही कमी है! अपने सामने किसी को भी नहीं मानते! अच्छा.. तो रघुपति सहाय जी अंग्रेजों के ज़माने में आई सी एस (इंडियन सिविल सर्विसेज) थे, लेकिन स्वतंत्रता की लड़ाई में महात्मा गाँधी के साथ हो लिए। उनको बाद में पद्म भूषण का सम्मान भी मिला है। समझे मेरे नासमझ साजन?”

“सॉरी बाबा! लेकिन वाकई जो आप बता रही हैं बहुत ही रोचक है! आपको बहुत मालूम है इसके बारे में! और बताइए!”

“ओके! ग़ज़ल का असल मायने है ‘औरतों से बातें’! अब औरतों से आदमी लोग क्या ही बातें करते हैं? बस उनकी बढाई में कसीदे गढ़ते हैं! शुरू शुरू में ग़ज़लें ऐसी ही लिखते थे... 

‘नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिये, पंखडी एक गुलाब की सी हैं।‘”

“किस गधे ने लिखी है यह! आपकी तो दो-दो गुलाब की पंखुड़ियाँ हैं!”

“हा हा हा! वेरी फनी! इसीलिए पुराने सीरियस शायर ग़ज़ल लिखना पसंद नहीं करते थे। इसको अश्लील या बेहूदी शायरी कहते थे। लेकिन जैसे जैसे वक्त आगे बढ़ा, और इस पर और काम हुआ, जीवन के हर पहलू पर ग़ज़लें लिखी गयी।“

“अच्छा – क्या आपको मालूम है की उर्दू दरअसल भारतीय भाषा है?”

आज तो मेरा ज्ञान वर्धन होने का दिन था! मैं इस ज़रा सी लड़की के ज्ञान को देख कर विस्मित हो रहा था! क्या क्या मालूम है इसको?

“न.. हीं..! उसके बारे में भी बताइए?” 

“बिलकुल! जब मुस्लिम लोग भारत आये, तब यहाँ – ख़ास कर उत्तर भारत में खड़ी-बोली या प्राकृत भाषा बोलते थे.. और वो लोग फ़ारसी या अरबी! साथ में मिलने से एक नई ही भाषा बनने लगी, जिसको हिन्दवी या फिर देहलवी कहने लगे। और धीरे धीरे उसी को आम भाषा में प्रयोग करने लगे। उस समय तक यह भाषा फ़ारसी में ही लिखी जाती थी – दायें से बाएँ! लेकिन जब इसको देवनागरी में लिखा जाने लगा, तो इसको हिंदी कहने लगे। लेकिन इसमें भी खूब सारी पॉलिटिक्स हुई – उस शुरु की हिंदी से संस्कृत बहुल शब्द हटाए गए तो वह भाषा उर्दू बनती चली गयी, और जब फारसी और अरबी शब्द हटाए गए तो आज की हिंदी भाषा बनती चली गयी। लेकिन देखें तो कोई लम्बा चौड़ा अंतर नहीं है।“

“क्या बात है! लेकिन आप ग़ज़ल की बात कर रही थी?”

“हाँ! तो उर्दू की बात मैंने इसलिए छेड़ी क्योंकि ग़ज़ल सुनने सुनाने का असली मज़ा तो बस उर्दू में ही हैं!”

“आप लिखती है?”

“नहीं! पापा लिखते हैं!”

“क्या सच? वाह! क्या बात है!! तो अब समझ आया आपका शौक कहाँ से आया!” रश्मि मुस्कुराई!

“आप क्या करती हैं? बस पापा से सुनती हैं?”

“हाँ!”

“लेकिन आपको गाना भी तो इतना अच्छा आता है! कुछ सुनाइये न?”

“फिर कभी?”

“नहीं! आपने इतना इंटरेस्ट जगा दिया, अब तो आपको कुछ सुनाना ही पड़ेगा!”

“ह्म्म्म! ओके.. यह मेरी एक पसंदीदा ग़ज़ल है ... मीर तकी मीर ने लिखी थी – कोई दो-ढाई सौ साल पहले! आप तो तब पैदा भी नहीं हुए होंगे! हा हा हा हा!”

रश्मि को ऐसे खुल कर बातें करते और हँसते देख कर, और सुन कर मुझे बहुत मज़ा आ रहा था! 

“हा हा! न बाबा! उस समय नहीं पैदा हुआ था! बूढ़ा हूँ, लेकिन उतना भी नहीं...”

“आई लव यू! एक फिल्म आई थी – बाज़ार? याद है? आप तब शायद पैदा हो चुके होंगे? उस फिल्म में इस ग़ज़ल को लता जी ने बहुत प्यार से गाया है!”

“बाज़ार? हाँ सुना तो है! एक मिनट – आप भी कुछ देर पहले कह रही थीं की ग़ज़ल औरतों की बढाई के लिए होती है.. और अभी कह रही हैं की लता जी ने गाया?”

“अरे बाबा! लेकिन लिखी तो मीर ने थी न?”

“हाँ! ओह! याद आया! ओके ओके ... प्लीज कंटिन्यू!”

“तो जनाब! पेशे-ख़िदमत है, यह ग़ज़ल...” कह कर रश्मि ने गला खंखार कर साफ़ किया और फिर अपनी मधुर आवाज़ में गाना शुरू किया,

“दिखाई दिए यूं, के बेखुद किया... दिखाई दिए यूं, के बेखुद किया,
हमे आप से भी जुदा कर चले... दिखाई दिए यूं....”

रश्मि के गाने का तो मैं उस रात से ही दीवाना हूँ! लेकिन इस ग़ज़ल में एक ख़ास बात थी – वाकई, करुणा और प्रेम से भीगी आवाज़, और साथ में उसकी मुस्कुराती आँखें! मैं इस रसीली कविता ओह! माफ़ करिए, ग़ज़ल में डूबने लगा!

“जबीं सजदा करते ही करते गई... जबीं सजदा करते ही करते गई,
हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले... दिखाई दिए यूं....
परस्तिश कि या तक के ऐ बुत तुझे... परस्तिश कि या तक के ऐ बुत तुझे,
नजर में सबो की खुदा कर चले... दिखाई दिए यूं....”

रश्मि गाते गाते खुद भी इतनी भाव-विभोर हो गयी, की उसकी आँखों से आंसू बहने लगे ... उसकी आवाज़ शनैः शनैः भर्राने लगी, लेकिन फिर भी मिठास में कोई कमी नहीं आई... मैंने उसके कंधे पर हाथ रख अपनी तरफ समेट लिया।

“बहोत आरजू थी गली की तेरी... बहोत आरजू थी गली की तेरी...
सो या से लहू में नहा कर चले... दिखाई दिए यूं....
दिखाई दिए यूं, के बेखुद किया... दिखाई दिए यूं, के बेखुद किया,
हमे आप से भी जुदा कर चले... दिखाई दिए यूं....”

ग़ज़ल समाप्त हो गयी थी, लेकिन मेरे दिल में एक खालीपन सा छोड़ कर चली गयी। 

“आई लव यू!” रश्मि बोली – लेकिन इतनी शिद्दत के साथ की यह तीन शब्द, तीन तीर के जैसे मेरे दिल में घुस गए... “आई लव यू सो मच!” उसकी आवाज़ में रोने का आभास हो रहा था, “मुझे आपके साथ रहना है... हमेशा! आपके बिना तो मैं मर ही जाऊंगी!”

रश्मि ने मेरे मुँह की बात छीन ली। उसकी बात सुन कर मेरी खुद की आँख से आंसू की बूँद टपक पड़ी। हाँ! मर्द को दर्द भी होता है, और मर्द रोते भी हैं.. प्यार कुछ भी कर सकता है। मैं कुछ बोल नहीं पाया – कुछ बोलता तो बस रो पड़ता। मैंने रश्मि को जोर से अपने में भींच लिया। जो उसका डर था, वही मेरा भी डर था। इतनी उम्र निकल जाने के बाद, मेरे साथ पहली बार कुछ ठीक हो रहा था। 

आप कहेंगे की ‘अरे भई, अच्छी पढाई लिखाई हुई, अच्छी नौकरी है, अच्छा कमा रहे हो – घर है, गाड़ी है, बैंक बैलेंस है! फिर भी कैसे गधे जैसी बात कर रहे हो! यह सब अच्छी बाते नहीं हुई?’

तो मैं कहूँगा की ‘बिलकुल! यह सब अच्छी बाते हैं! लेकिन यह सब मैं इसलिए कर पाया की मेरे मन में एक प्रतिशोध की भावना थी! जिनके कारण मेरा बाल्यकाल उजड़ गया, उनको नीचा दिखाना मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्य बन गया। भोगवादी परिमाणों और मापदंडो पर ही मेरा जीवन टिका हुआ था! एक अजीब तरह का चक्रव्यूह या कहिये भंवर! जिसमें मैं खुद ही घुस गया, और न जाने कितने अन्दर तक चला गया था। लेकिन रश्मि ने आते ही मुझे ऐसा अनोखा एहसास कराया की मानो पल भर में उस भंवर से बाहर निकल आया।‘
Reply
12-17-2018, 02:15 AM,
#49
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
‘अब समझ आया इस खालीपन का रहस्य! मैं अब तक बिना वजह का बोझ, जो अपने सर पर लिए फिर रहा था, वह न जाने कहाँ मेरे सर से उतर गया था। मुझे रश्मि और उसके परिवार के रूप में एक अपना परिवार मिल गया था, जिसको मैं किसी भी कीमत पर सहेज कर रखना चाहता था।‘

“आई ऍम सॉरी जानू! मैं आपको रुलाना नहीं चाहती थी। ... मैं भी कितनी गधी हूँ .. इतने अच्छे मूड का सत्यानाश कर दिया।“

“नहीं जानू! सॉरी मत बोलो! और ऐसा कुछ भी नहीं है। बस, आपके आने से यह समझ आ गया की मैं क्या मिस कर रहा था मेरी लाइफ में! यू आर वेरी प्रेशियस फॉर मी! और मुझे भी आपके ही साथ रहना है।“

कह कर मैंने रश्मि को और जोर से अपने में दुबका लिया। मुझे मेरे जीवन में साफ़ उजाला दिख रहा था।

हम दोनों काला पत्थर बीच पर कम से कम छः घंटे तो रहे ही होंगे.. उस समय तो पता नहीं चला, लेकिन वापस रिसोर्ट आने पर जब आँखें थोड़ी अभ्यस्त हुईं, तो साफ़ दिख रहा था की रश्मि और मैं, सूरज की तपन से पूरी तरह से गहरे रंग के हो गए। वैसे भी भारतीय लोगों की त्वचा धूप को बढ़िया सोखती है, लिहाजा हम दोनों काले कलूटे बन गए थे। लेकिन एक अपवाद था... रश्मि ने टू-पीस बिकिनी पहनी हुई थी, इसलिए जो हिस्सा (दोनों स्तन, जघन क्षेत्र और नितम्बो का ऊपरी हिस्सा) ढका हुआ था, वह अभी भी अपने मूल, हलके रंग का था। इसको बिकिनी टेन कहते हैं। रश्मि ने कपड़े उतारे तो यह बात समझ आ गई। लेकिन शायद रश्मि ने देखा न हो, इसलिए उसने किसी भी तरह का विस्मय नहीं दिखाया। खैर नहा-धोकर हमने पकौड़े और चाय मंगाया, और खा-पीकर दोपहर में एक छोटी सी नींद सो गए।

जब मैं उठा तो देखा की सामने रश्मि कमर पर अपने हाथ टिका कर, और कूल्हा एक तरफ निकाल कर बड़ी अदा से खड़ी हुई थी। उसने कोका-कोला रंग का काफी पारदर्शक नाइटी (जिसको टेडी भी कहते हैं) पहना हुआ था। कमर से बस कुछ अंगुल ही नीचे तक पहुंचेगा लम्बाई में। स्तनों के ऊपर से जाने वाले स्ट्रैप बहुत पतले थे। स्तन पर बस यही कपड़ा था, इसलिए उसके अन्दर से चमकदार निप्पल साफ़ दिख रहे थे... और नाभि भी। उसने टेडी के नीचे चड्ढी पहनी हुई थी... एक बहुत ही सेक्सी ड्रेस! 

“ओहो! हू इस अ बिग गर्ल नाउ? कम हियर!”

रश्मि मुस्कुराते हुए मेरे पास आई।

“न्यू ड्रेस?” मैंने रश्मि की ड्रेस को छूते हुए कहा।

“यस! प्रीटी न्यू! ओनली फॉर यू!”

“ह्म्म्म... आई लाइक दिस वन!” और फिर हँसते हुए मैंने कहा, “... एंड आई सी दैट यू आर वेअरिंग सम प्रीटी पैंटीज अंडरनीथ इट!”

“यस! वांट टू सी इट?” 

मैंने सर हिला कर हामी भरी।

रश्मि ने हँसते हुए टेडी का निचला किनारा पकड़ कर ऊपर उठा दिया। उसकी गहरे कोका कोला रंग की चड्ढी साफ़ दिखने लगी। उसकी चमक और बनावट देख कर मुझे लगा की शायद सिल्क की बनी होगी। सिल्क! एक अत्यंत अन्तरंग कपड़ा! पुरुष, सिल्क पहनी हुई स्त्रियों को छूने की परिकल्पना करते रहते हैं। एक तरीके का सेक्स-सिंबल! प्लेबॉय जैसी मगज़ीनों में सिल्क पहनी हुई लड़कियों को देख कर अनगिनत लडको और आदमियों में हस्त-मैथुन किया होगा! वही सिल्क! वही परिकल्पना!

“ओह! दे आर रियली प्रीटी पैंटीज!” मेरी आँखों में एक इच्छा जाग गई, “विल यू माइंड, अगर मैं इसको छू कर देख लूं?”

“ओके!” कह कर रश्मि ने अपनी ड्रेस को कुछ और ऊपर उठा दिया.. चड्ढी का पूरा हिस्सा दिखने लगा। मैंने उंगली से चड्ढी के ऊपर से ही रश्मि की योनि का आगे वाला हिस्सा छुआ, और दूसरे हाथ से उसके नितम्बो के ऊपर से।

“फील्स गुड?” रश्मि ने पूछा।

“ओह! दे फील अमेजिंग! सो नाइस! सो स्मूद.. सो सेक्सी!” मैंने हँसते हुए पूछा, “डू दे मेक यू फील सेक्सी, हनी?”

“सेक्सी? ओह यस! दे डू!”

“आई ऍम श्योर! इट इस सो स्मूद! हम्म्म्म!” अपनी उंगली को रश्मि के पैरों के बीच में दबाते हुए मैंने कहा, “ज़रा अपने पैर फैलाइये.. देखूं तो ‘वहां’ पर छूने पर यह कैसी लगती हैं!”

“ओके!” कहते हुए रश्मि ने अपने पैर थोड़ा और खोले। और मैं बढाई करते हुए उंगली से योनि के ऊपर से उसकी चड्ढी का मखमली एहसास महसूस करने लगा। 

“डोंट दे फील सो नाइस?” रश्मि ने अपनी आवाज़ थोड़ी कामुक बना कर पूछा।

“दे श्योर डू! नॉट ओन्ली नाइस, बट आल्सो अमेजिंग!” कहते हुए मैंने रश्मि की योनि की झिर्री के ऊपर से अपनी उंगली रगड़ कर फिरानी शुरू की। “आई रियली लाइक हाउ योर पैंटीज फील हियर, डार्लिंग!” 

रश्मि खिलखिला कर हंसने लगी.. और साथ ही साथ मेरी उंगली की हरकतों को भी देखती रही। मैंने कुछ देर आहिस्ता आहिस्ता सहलाने के बाद अपनी उंगली की लम्बाई को उसकी योनि की पूरी दरार के अन्दर फिरानी शुरू कर दी। 

“आह्ह्ह! आई रियली लाइक हाउ इट फील्स व्हेन आई रब योर पैंटीज हियर, हनी! दिस इस वेयर दे फील बेस्ट टू मी। तुझे अच्छा लगता है?“

“हा हा... हाँ! उम्म्म्म!!” कहते हुए उसने अपने नितंब मटकाए, जिससे मेरी उंगली ठीक से उसकी दरार में फिट हो जाय।

“आई कैन नॉट स्टॉप फीलिंग यू! इस दैट ओके?” 

रश्मि हंसी। 

“यू कैन फील अस मच अस यू वांट!” 

“थैंक्स डिअर!” कह कर मैंने कुछ और दृढ़ता से योनि के ऊपर से दबाना और सहलाना आरम्भ कर दिया। 

और फिर, “विल यू लेट मी सी हाउ दिस थिंग अंडर योर पैंटीज फील?” कह कर बिना किसी उत्तर का इंतज़ार किए, मैंने रश्मि की चड्ढी के अन्दर हाथ डाल कर, उसकी योनि की दरार की पूरी लम्बाई पर अपनी उंगली सटा कर थोड़ा बल लगाया। योनि के दोनों होंठ खुल गए और उनके बीच मेरी उंगली स्थापित हो गई।

“आह! दिस फील्स सो वार्म... एंड नाइस! डस इट फील गुड टू यू टू?” मैंने पूछा।

रश्मि खिलखिला कर हंस पड़ी, “यू आर अ नॉटी बॉय!”

“आई ऍम श्योर दैट इट फील्स गुड एंड सेक्सी बोथ..! आई बेट इट डस!”

“सेक्सी? हाउ?” रश्मि भी इस खेल में शामिल हो गई थी।

“हियर! लेट मी चेक..!” कह कर मैंने अपनी उंगली उसकी योनि के अन्दर प्रविष्ट कर दी।
Reply
12-17-2018, 02:15 AM,
#50
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
इतनी देर तक सहलाने रगड़ने के बाद अंततः उसकी योनि से रस निकलने ही लग गया था। मैंने अपनी गीली उंगली उसकी योनि से बाहर निकाल कर उसको दिखाया, “सी! हाउ वेट दिस इस? डू यू नो व्हाट इट मीन्स?”
“व्हाट?” रश्मि ने अनभिज्ञता दर्शाते हुए पूरे भोलेपन से पूछा।

“इट मीन्स दैट यू फील सेक्सी इनसाइड, यू नॉटी गर्ल!” कह कर मैंने रश्मि को नितंब से पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और उसकी कमर के गिर्द अपनी बाहें लपेट लीं। रश्मि ने भी खड़े खड़े मेरे गर्दन के गिर्द अपनी बाहें लपेट लीं। 

“आर यू हविंग फन?” मैंने अपना हाथ वापस रश्मि की नम और गर्म गहराई में डालते हुए पूछा।

“यस! हा हा! यू आर फनी!” मेरी किसी हरकत से उसको गुदगुदी हुई होगी.. 

मैंने कुछ देर सहलाने के बाद उसकी चड्ढी को दोनों तरफ से पकड़ कर धीरे धीरे नीचे की तरफ खींचना शुरू किया, “आई विल टेक दीस क्यूट पैंटीज... अदरवाइज, दे विल गेट वेट! ... इस दैट ओके?”

“ओके” रश्मि के ओके कहते कहते उसकी चड्ढी उतर चुकी थी। 

मैंने रश्मि को अपनी जांघो के आखिरी सिरे पर बैठाया जिससे उसका योनि निरिक्षण किया जा सके। उस तरह बैठने से वैसे ही उसकी जांघे फ़ैल गई थीं, लिहाजा उसका योनि मुख कुछ खुल सा गया और उससे रिसते रस के कारण चमक भी रहा था। 

“नाउ लुक अट दैट!” मैंने प्रशंसा करते हुए कहा, “सच अ क्यूट पुसी यू हैव!”

“पुसी? आप इसको बिल्ली कह रहे हैं?” रश्मि इस शब्द के नए प्रयोग को समझ नहीं सकी।

“पुसी मीन्स चूत, जानेमन! तेरी चूत बहुत क्यूट है!” मैंने बहुत ही नंगई से यह बात फिर से दोहराई। एक बात तो है, अंग्रेजी में ‘डर्टी-टॉक’ करना बहुत मज़ेदार होता है... न जाने क्यों हिंदी में वही बातें बोलने पर अभद्र सा लगता है! खैर!

“देखो न! कैसे हाईलाइट हो रही है...” दिन भर धुप सेंकने के कारण चड्ढी से ढंका हुआ हिस्सा अभी भी गोरा था, और ऊपर नीचे का बाकी हिस्सा साँवला हो गया था.. इसलिए ऐसा लग रहा था की जैसे अलग से उसकी योनि पर लाइट डाली जा रही हो! मैंने अपने दोनों अंगूठे से उसके होंठों को कुछ और फैलाया और अपनी उंगली को अन्दर के भाग पर फिराया.. और फिर अपनी उंगली को चाट लिया।

“ह्म्म्म... सो वैरी टेस्टी!” 

“स्टॉप टीसिंग मी!” रश्मि कुनमुनाई।

“यू डोंट बिलीव मी? हियर यू आल्सो टेस्ट योर ओन जूसेस...” कह कर मैंने उसके रिश्ते हुए रस का एक और अंश अपनी उंगली पर लगाया और उसके होंठों के सामने रख दिया, “डोंट बी शाई! लिक इट!”

बहुत पहले मैंने एक फिल्म देखी थी... “अ फ्यू गुड मेन”... उसमें जैक निकोल्सन का किरदार एक डायलॉग बोलता है... “There is nothing on this earth sexier, believe me, gentlemen, than a woman you have to salute in the morning. Promote 'em all, I say, 'cause this is true: if you haven't gotten a blowjob from a superior officer, well, you're just letting the best in life pass you by.”

वैसे तो यह एक लैंगिकवादी सोच है, लेकिन पुरुष वर्ग इस बात की सच्चाई से इनकार नहीं कर सकता। जब स्त्री रति संभोग क्रिया में पहल करती है, तो पुरुष अत्यधिक उत्तेजना प्राप्त करने में समय नहीं लगाता। यही हाल मेरा भी इस समय था.. रश्मि ने इस खेल की पहल करी थी। यह उसका एक नया ही रूप था... मुझे पहले लगता था की उस पर मेरा किसी प्रकार का दबाव हो सकता है, और इसीलिए वह मेरी बातें मान रही हो। लेकिन, जब वह अपनी स्वेच्छा से ऐसी कामुक ड्रेस पहन कर मुझे सम्भोग के लिए ऐसे लुभा रही है, तो इसका मतलब कुछ तो बदला है! और उसका यह बदला हुआ रूप मुझे बहुत लुभा रहा था। 

रश्मि ने मुंह नहीं खोला तो मैंने ही उसके दोनों गालो को दबा कर उसके होंठ खोल दिए और अपनी उंगली उसके मुंह में डाल दी। मरता क्या न करता! रश्मि ने पहले तो बेमन से, और फिर उत्सुक स्वेच्छा से मेरी उंगली चाट कर साफ़ कर दी। 

“क्यों? मज़ा आया? है न स्वादिष्ट तुम्हारा ‘चूत-रस’?” मेरे इस तरह कहने से रश्मि के गाल शर्म से सुर्ख हो गए।

“तुम बोलो या नहीं.. है तो स्वादिष्ट!” कह कर मैंने वही उंगली अपने मुंह में डाल कर कुछ देर चूसा। 

इंटिमेसी / अंतरंगता / निजता.. इन सबके मायने हमारे लिए बहुत बदल गए थे, इन कुछ ही दिनों में!

मैं बिना कुछ पहने ही सो गया था। और इस समय मेरे लिंग का बुरा हाल था, और स्पष्ट दिख भी रहा था। वह इस समय एकदम सख्त स्तम्भन की स्थिति में था। रश्मि ने अब तक मेरी उत्तेजना महसूस कर ली होगी, इसलिए उसका हाथ मेरे लिंग की पूरी लम्बाई पर चल-फिर और दौड़ रहा था। कभी वह यह करती, तो कभी मेरे वृषणों के साथ खेलती। 

“यू हैव अ वैरी नाइस पुसी डिअर!” मैंने वापस अपनी उंगली को उसकी योनि पर फिराया, “... इट इस सो हॉट... एंड वेट! यू आर सो रेडी टू फ़क!” 

कह कर मैंने अपनी मध्यमा उंगली को उसकी योनि के अन्दर तक ठेल दिया और एक पम्पिंग एक्शन से उसको अन्दर बाहर करने लगा... इसमें एक ख़ास बात यह थी की एक तरफ तो मेरी मध्यमा उसकी योनि के अन्दर बाहर हो रही थी, वहीँ दूसरी तरफ बाकी उंगलियाँ रह रह कर उसके भगनासे को सहला रही थीं। 

दोहरी मार! रश्मि की साँसे इसके कारण भारी हो गई, और रुक रुक कर चलने लगीं। उसका चेहरा उत्तेजना से तमतमा गया। कभी वह मुंह खोल कर सांस भारती, तो कभी अपने सूखे होंठों को जीभ से चाटती.. उसका सीना भारी भारी साँसों के कारण ऊपर नीचे हो रहा था।

“कैसा लग रहा है, जानू?” मैंने पूछा।

“आह! सोओओ गुड! उम्म्म्मम...!” वह बस इतना ही कह पाई।

“ह्म्म्म... सो द लिटिल गर्ल इस ग्रोन नाउ! लुक अट हर पुसी... आल जूसी एंड हॉट!” मैं रह रह कर अपनी उंगली की गति कभी धीमी, तो कभी तेज़ कर देता। रश्मि कभी सिसियती तो कभी रिरियाती। कुछ ही देर में रति-निष्पत्ति के चरम पर पहुँच कर उसका शरीर कांपने लगा। उसकी बाहें मेरी गर्दन पर कस गईं और उसका माथा मेरे माथे पर आकर टिक गया। इस पूरे प्रकरण में पहली बार मैंने रश्मि के होंठ चूमे! 

“मज़ा आया हनी?”

रश्मि उन्माद के आकाश में तैरते हुए मुस्कुराई।

“देखो न.. तुमने मेरी क्या हालत कर दी है! कितना कड़ा हो गया है मेरा लंड!” कह कर मैंने रश्मि का एक हाथ अपने लिंग पर लाकर रख दिया। रश्मि की उंगलियाँ स्वतः ही उस पर लिपट गईं। उधर मैं रश्मि के टेडी के ऊपर से ही उसके निप्पल को बारी बारी से चूमने और चूसने लगा। फिर दिमाग में एक आईडिया आया। 

रश्मि को पकड़े पकड़े ही मैं बिस्तर पर लेट गया और रश्मि को अपने लिंग पर कुछ इस तरह से स्थापित किया की उसकी योनि मेरे लिंग की पूरी लम्बाई पर सिर्फ चले, लेकिन उसको अन्दर न ले। रश्मि भी इस इशारे को समझ गई, उसने अपनी ड्रेस काफी ऊपर उठा दी – अब उसके स्तन भी दिख रहे थे, और पूरे उत्साह के साथ मेरे लिंग को अपनी योनि-रस से भिगाते हुए सम्भोग करने लगी। बहुत ही अलग अनुभव था यह.. लिंग को योनि की कोमलता और गरमी तो मिल ही रही थी, साथ ही साथ कमरे की ठंडी हवा भी। योनि का कसाव और पकड़ नदारद थी, लेकिन दो शरीरों के बीच में पिसने का आनंद भी मौजूद था। 

रश्मि के लिए भी उन्मादक अनुभव था – इस प्रकार के मैथुन से उसके जननांगों के सभी कोमल, संवेदनशील और उत्तेजक भाग एक साथ प्रेरित हो रहे थे। साथ ही साथ, मेरे ऊपर आकर मैथुन क्रिया को नियंत्रित करना उसके लिए भी एक अलग अनुभव रहा होगा... पिछली बार तो वह शर्मा रही थी, लेकिन इस बार वह एक अभिलाषा, एक प्रयोजन के साथ मैथुन कर रही थी। यह क्रिया अगले कोई पांच-छः मिनट तो चली ही होगी.. मेरे अन्दर का लावा बस निकलने को व्याकुल हो गया। मेरा शरीर अब कांपने लग गया था। 

“जानू.. निकलने वाला है!”
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,474,635 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 541,514 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,221,535 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 923,524 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,638,821 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,068,249 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,929,964 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,987,731 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,005,390 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 282,400 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)