Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:15 AM,
#51
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मेरे बस इतना ही बोलने की देर थी की रश्मि ने अपनी बाहें मेरी गर्दन पर कस लीं और मेरे होंठों को मुँह में भर कर जोर से चूमने चूसने लगी। उसके ऐसा करते ही एक विस्फोट के साथ वीर्य का पहला खेप स्खलित हो गया और फिर उसके बाद ही ताबड़ तोड़ चार पांच बड़ी गोलिकाएं और निकलीं। रश्मि ने इस क्रिया के दौरान अपने कूल्हे चलाने जारी रखा। और मेरे स्खलन के कुछ ही देर बाद रश्मि का शरीर भी कुछ अकड़ा और एक बार फिर झटके खाते हुए वो भी शांत पड़ने लगी और मुझ पर निढाल होकर गिर गई। मेरा शरीर अभी भी उत्तेजना में कांप रहा था.. मैंने रश्मि को अपने में जोर से भींच लिया – कभी उसके होंठ चूमता, तो कभी गाल, तो कभी माथा! मेरी हरकतों पर मीठी मीठी सिसकियाँ निकल जातीं। इस अनोखे सम्भोग की संतुष्टि उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी। 

जब हमारी उत्तेजना का ज्वार कुछ थमा, तो मैंने कहा, “देखो न.. मैंने कहा था न की साँवली लड़कियाँ सेक्स में बहुत तेज़ होती हैं... और... गोरी लड़कियों को सिखाना पड़ता है! याद है?”

 रश्मि को पहले कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर मेरा इशारा समझ कर मुस्कुरा दी। उसके गाल सेब के जैसे लाल हो गए।

प्रिय पाठकों, अगर आप मेरी माने, तो वैवाहिक जीवन का सुख तो यही है – हर पल बढ़ता पारस्परिक प्रेम और सामंजस्य, अपने जीवन की अंतरंगता को किसी और से ता-उम्र बांटना, सुखमय जीवन के सपने साथ में संजोना.. और संतुष्टि प्रदान करने वाली यौन क्रीड़ा! भला विवाह में इससे अधिक किसी को और क्या चाहिए? लोग-बाग़ दहेज़ मांगते हैं, खानदान मांगते हैं, होने वाले रिश्तेदारों में रुतबा मांगते हैं.. भला यह कोई शादी है? यह तो, आज कल वो कहते हैं न, सिर्फ और सिर्फ एक ‘अलायन्स’ है। अलायन्स... अरे हम लोग कोई राजे-रजवाड़े हैं क्या, जो राजनीतिक दृष्टि से सम्बन्ध बनाएँ? अलायन्स तो यही हुआ न? खैर... मेरी तो बस यही समझ है की शादी तो बस स्वयं के लिए करनी चाहिए! 

लेकिन लोग बाग़ तो अपने माँ बाप का हवाला देते हैं.. मानों उनके लिए शादी कर रहे हैं। वह भाई! शादी के लड्डू खुद खाओ, और नाम माँ बाप का लगाओ! एक बार मैंने किसी लड़के के मुंह से सुना... वो लड़की वालो को कह रहा था, “जी मैं तो शादी अपनी माँ के लिए कर रहा हूँ... कोई ऐसी मिले जो उनका ख़याल रख सके! बहुत बीमार रहती हैं! कोई उनको अपना मान कर उनकी सेवा कर सके! बस! मेरी तो बस यही उम्मीद है लड़की से!”

मेरा उस लड़के से बस इतना ही कहना है की भाई, अगर अपनी माँ की सेवा करनी है तो तेरे खुद के हाथ-पैर टूट गए हैं क्या? कर भाई सेवा! बहुत पुण्य कमाएगा। माँ बाप की सेवा तो सबसे भला काम है जीवन का! लेकिन तू उस काम को करने के लिए किसी और की मदद क्यों चाहता है? खुद क्यों नहीं कर लेता? एक आया रख ले, किसी जानी मानी अच्छी एजेंसी से.. या फिर एक नर्स! फुल-टाइम के लिए! या फिर दोनों! यह उम्मीद करना की बीवी आकर तेरी अम्मा की सेवा करने लगेगी, न केवल गलत है, बल्कि मैं तो कहता हूँ की एक तरह का अत्याचार है! जो काम तू खुद नहीं कर पा रहा है, वो तू दूसरे से क्यों उम्मीद करता है?

पति पत्नी का साथ उम्र भर का होता है.. लेकिन वह उम्र भर तभी चलता है जब उन दोनों में एक दूसरे के लिए सम्मान, और प्रेम हो। सामंजस्य बैठाया जा सकता है.. लेकिन अगर यह दोनों सामग्री विवाह में न हो तो चाहे कितने भी मन्त्र फूंक लो, चाहे कितनी ही कुंडली का मिलान कर लो, और चाहे कितने ही ग्रह शांत करा लो, प्रलय तो निश्चित ही है! 

ओह मैं भावनाओं की रौ में बह गया! माफ़ करना!!

सम्भोग की निवृत्ति के बाद हम दोनों ने जल्दी जल्दी अपनी सफाई करी और फिर कपड़े बदल कर अपनी साइकिल उठा कर द्वीप के पश्चिम दिशा की तरफ चल दिए.. जिससे सूर्यास्त के दर्शन हो सकें। रश्मि ने मुझे बताया था की सूर्यास्त ऐसा सुन्दर हो सकता है, उसको मालूम ही नहीं था। पहाड़ों पर क्या सूर्योदय और क्या सूर्यास्त! सब एक जैसा ही दिखता है। हम दोनों जल्दी ही एक साफ़ सुथरे निर्जन बीच पर पहुँच गए.. ऐसा कोई निर्जन भी नहीं था.. कोई पांच छः जोड़े वही बैठे हुए थे, सूर्यास्त के इंतज़ार में।

रश्मि और मैं बाहों में बाहें डाल कर सुनहरी रेत वाले इस बीच के एक तरफ बैठ गए।

“जानू, मैं आपसे एक बात कहूं?”

“हाँ.. पूछो मत, बस कह डालो” मैंने रोमांटिक अंदाज़ में कहा।

“मैं आपके साथ ही रहना चाहती हूँ.... हनीमून के बाद भी।“ 

“हयं! तो और कहाँ रहने वाली थी? अरे भई, हम लोग हस्बैंड-वाइफ हैं.. साथ ही तो रहेंगे?”

“नहीं वो बात नहीं... बोर्ड एक्साम्स के लिए पढना भी तो है। इतने दिनों से कॉलेज नहीं गई हूँ.. और जो भी कुछ पढ़ा लिखा था, वो सब गायब है! हा हा!”

“हा हा! अच्छा, कब हैं एक्साम्स?”

“मार्च – अप्रैल के महीने में ही होंगे.. लेकिन आप कुछ न कुछ कर के मुझे अपने साथ रखिए न, प्लीज!”

“अरे! यह भी कोई कहने वाली बात है? एग्जाम तो वही जा कर देने होंगे... लेकिन उसके पहले के लिए एक काम तो कर ही सकते हैं.. आपके प्रिंसिपल से पूछ के ‘होम-स्कूल’ की अनुमति ले सकते हैं.. वो अलाऊ कर दें, तो फिर बस एग्जाम देने के लिए आपको मार्च में वापस जाना होगा... उतना तो ठीक है न? उसके बाद फिर से यहाँ? ओके?”

“हाँ... ठीक तो है... लेकिन हो जाएगा न?”

“अरे क्यों नहीं? मुझसे ज्यादा पढ़े लिखे लोग हैं क्या वहां? मैं कन्विंस कर लूँगा आपके प्रिंसिपल को! और जहाँ तक पढाई की बात है, हमारे पड़ोसी बहुत ही क्वालिफाइड हैं.. उनसे कह कर दिन में आपकी पढाई का इंतज़ाम कर दूंगा... कुछ कोर्स तो मैं ही पढ़ा सकता हूँ.. मुझे नहीं लगता कोई प्रॉब्लम होगी। क्या पता आप टापर हो जाएँ! हा हा!”

रश्मि मुस्कुराई।

“वैसे आप आगे क्या करना चाहती हैं? मेरा मतलब कैरियर के बारे में कुछ सोचा है? आप कह रही थी न.. हमारी सुहागरात को, की आप कुछ करना चाहती हैं.. कुछ बनना चाहती हैं?”

“करना तो चाहती हू, लेकिन क्या करूंगी.. कुछ मालूम नहीं..!”

“अच्छा, मैं आपसे कुछ सवाल पूछूंगा... आप सोच कर उसमें जो पसंद है बताइयेगा.. ओके?”

“ओके..”

“खूब पैसे चाहिए, की रुतबा?”

“उम्म्म्म...” रश्मि ने कुछ देर तक सोचा और फिर कहा, “..आप!”

मैं मुस्कुराया, “खूब मेहनत या फिर आराम?”

“मेहनत.. लेकिन आपका साथ चाहिए।“

“ओके! नौकर, या अपना खुद का बॉस?”

“अपना खुद का..”

“नौकरी या बिजनेस...”
Reply
12-17-2018, 02:15 AM,
#52
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
“नौकरी या बिजनेस...”

“पता नहीं...”

“हम्म.. मेरे मन में यह बकवास करते करते एक ख्याल आया। क्यूँ न आप अपना खुद का बिजनेस शुरू करो? साथ में ग्रेजुएशन की पढाई करते रहना? अगर दिमाग में बढ़िया आईडिया हो, तो बिजनेस ज़रूर करना चाहिए। पैसे की जो ज़रुरत होगी, वो मैं करूंगा... मेरे बहुत से दोस्त भी है, अगर वो आपके बिजनेस आईडिया से सहमत हों, तो वो भी पैसे लगा सकते हैं। बैंगलोर वैसे भी उद्यमियों का शहर है! प्रोफेशनल हेल्प मिल जाएगी। सोचना... कोई जल्दी नहीं है! ओके?”

“बाप रे! आप मुझ पर इतना भरोसा करते हैं?”

“देखो, जानू, भरोसा तो मुझे आप पर है.. लेकिन जब तक आईडिया सॉलिड नहीं होगा, मैं पैसे नहीं लगाऊँगा!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

“लेकिन... मुझे तो अभी तक कुछ मालूम ही नहीं! क्या करना है, क्या नहीं..”

“तो क्या हुआ.. अभी कोई जल्दी नहीं है.. अपना टाइम लीजिये.. जब समझ आयें तभी कुछ करेंगे! ओके?” 

मैंने रश्मि के बालों में अपने हाथ से सहलाया.. और फिर आगे कहा, “देखो, यह बात सच है की कम उम्र में शादी करने से बहुत सी समस्याएँ खड़ी हो जाती है। लेकिन मैं आपसे आज कुछ वायदे करता हूँ। पहला तो यह की आपको अपने व्यक्तितत्व के विकास के लिए पूरा समय, और सहयोग दूंगा। आपको जो भी कुछ करना है, जो भी कुछ बनना है, उसमें मैं पूरी मदद करूंगा। आप पर किसी भी तरह की पारिवारिक जिम्मे*दारी तब तक नहीं आने दूंगा, जब तक आप उसके लिए पूरी तरह से तैयार न हों – मतलब पढाई लिखाई पूरी करनी होगी, और उसके बाद आपका अगर मन हो तो आप अपना पूरा ध्यान कैरियर पर लगाइए। और बच्चा तभी जब आप तैयार हों।“

अब तक आसमान में जीवंत और चटक गुलाबी, लाल, नारंगी और पीले रंगों की छटा छा गई। सूरज का लाल गोला धीरे धीरे बादलों के पीछे से नीचे आ रहा था। 

रश्मि ने मेरी तरफ उचक कर मेरे होंठों को चूम लिया।

“थैंक यू!” उसने कहा।

मैंने उसकी आँखों में देखा और फिर मुस्कुराते हुए कहा, “नो! थैंक यू!”

मैंने उसकी आँखों में ध्यान से देखा – आंसू से रश्मि की आँखें डबडबा गईं थीं। रश्मि कोशिश कर रही थी की आंसू न निकालें, लेकिन फिर भी एक-एक बूँद आँखों से निकल कर उसके गालों पर ढलक ही गई। मैंने बिना कुछ कहे रश्मि का हाथ थाम लिया... निशब्द भाषा में बस यह कहने के लिए की मैं उसके साथ हूँ... जीवन की कड़वी सच्चाईयाँ अभी दूर थीं... जो इस समय हमारे पास था वह था हम दोनों का साथ और यह सुन्दर सूर्यास्त!

“आई लव यू!” कहते हुए रश्मि का गला भर आया। उसने बड़े प्रयत्न से अपना गला साफ़ किया और स्वयं पर नियंत्रण किया। 

“पता है आप मेरे कौन है?” भावुक माहौल था.. नहीं तो किसी न किसी तरह की चुहलबाजी ज़रूर करता।

“आप मेरे कृष्ण है! मेरे सम्पूर्ण पुरुष! जब ज़रुरत हुई तब प्रेमी, जब ज़रुरत हुई तब सारथी, और जब ज़रुरत हुई तब सखा! मैंने सच में कोई बहुत पुण्य के काम किए होंगे, जिसके कारण मुझे आप मिले।“

“बाप रे!”

“सच में!”

“आई लव यू!”

“आई लव यू टू!!” 

मैंने रश्मि को अपनी बाहों के घेरे में कस कर दुबका लिया – जैसे मेरा आलिंगन उसके लिए सबसे सुरक्षित स्थान बन जाय.. हम दोनों वैसे ही काफी देर तक सूर्यास्त का अद्भुत् नज़ारा देखते रहे। सूरज ढलने के साथ साथ ही धीरे धीरे सांझ का धुंधलका बढ़ने लगा, और उसके साथ ही आसमान में गहरे लाल, काले नीले इत्यादि रंग उभरने लगे। कई लोग अब जाने की तैयारी कर रहे थे और जो लोग रुके हुए थे, उनकी भी बस पार्श्व आकृति ही दिख रही थी।

“अभी कैसी हो जानू?” मैंने पूछा।

“मैं ठीक हूँ!”

“घर बात करना है?”

“मेरा घर तो आप हैं!”

“ओहो! मेरा मतलब माँ से? या सुमन से? ... बात करनी है वहाँ? वहां कॉल किए दो दिन हो गए शायद?”

“हाँ! मुझे तो ध्यान ही नहीं रहा! आपके संग तो मैं सब कुछ भूल गई हूँ!”

“अच्छी बात है... ये लो फ़ोन.. बात कर लो!”

“आप नहीं करेंगे?”

“अरे.. कॉल मैं ही लगा कर आपको दे दूंगा.. ओके?”

मैंने उत्तराँचल कॉल लगाया। चूँकि फ़ोन तो भंवर सिंह जी के ही पास रहता है, इसलिए उनको ही उठाना था।

“हल्लो!” मैंने कहा..

“हल्लो रूद्र.. कैसे हैं आप बेटा?”

‘बेटा!’ रिश्ते में तो हम बाप-बेटा ही तो हैं! वो अलग बात है की उम्र में कोई खास अंतर नहीं है।

“जी.. पापा..” मैंने हिचकिचाते हुए कहा, “हम दोनों ठीक हैं..”

“स्वास्थ्य ठीक है आप दोनों का? मौसम कैसा है वहाँ?”

“स्वास्थ्य एकदम ठीक है... मुझे लगा था की ठन्डे गरम के कारण कहीं जुकाम न हो जाय, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यहाँ का मौसम तो गरम ही है.. चारों ओर समुद्र से घिरा है, इसलिए बारहों मास ऐसे ही रहता है यहाँ। .. और आप कैसे हैं? माता जी कैसी हैं?”

“हम सब ठीक हैं बेटा.. आप लोगो की बहुत याद आती है। बस और क्या!”

मैं इसके उत्तर में क्या ही बोलता! “लीजिये, रश्मि से बात कर लीजिए..” कह कर मैंने रश्मि को फ़ोन थमा दिया।

लाडली बेटी का फ़ोन आते ही वहां पर सब लोग आह्लादित हो गए होंगे – मैंने सोचा।
Reply
12-17-2018, 02:15 AM,
#53
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि का परिप्रेक्ष्य

कैसे सब कुछ इतनी जल्दी बदल जाता है! हफ्ता भर पहले ही मैं माँ पापा को छोड़ कर कहीं जाने की सोच भी नहीं सकती थी.. और आज का दिन यह है की उनकी याद भी नहीं आई! क्या जादू है! सहेलियों की बातों, कहानियों और फिल्मों में देखा सुना तो था की प्यार ऐसा होता है, प्यार वैसा होता है.. लेकिन, अब समझ में आया की प्यार कैसा होता है! प्यार का एहसास तो हमेशा ही नया रहता है - हमेशा ताज़ा! 

पापा से कुछ देर बात करने के बाद माँ फ़ोन पर आई.. उनसे बात करनी शुरू ही की थी की ‘इनका’ हाथ मेरे स्तनों पर आ टिका! ‘हाय’ मेरे मुंह से अनायास ही निकल पड़ा। उधर से माँ ने पूछा की क्या हुआ.. अब उनको क्या बताती? मैं जैसे तैसे उनसे बात करने की कोशिश कर रही थी, और उधर मेरे पतिदेव मेरे स्तनों से खेल रहे थे – वो बड़े इत्मीनान से मेरे स्तन दबा और धीरे धीरे सहला रहे थे। चाहे कुछ भी हो, ऐसा करने से स्त्रियों के चूचक कड़े होने ही लगते हैं। मेरे भी होने लगे। शरीर में जानी पहचानी गुदगुदी होने लगी। मैं अन्यमनस्क सी होकर बाते कर रही थी, लेकिन सारा ध्यान उनके इस खेल पर ही लगा हुआ था। वे कभी मुझे चूमते, तो कभी मेरे बालों को सहलाते, तो मेरे स्तनों से खेलते! अंततः उनका हाथ मेरी पैंट के अन्दर और उनकी उंगली मेरी योनि की दरार पहुँच गई। उनके टटोलने से मैं बेबस होने लग गई.. माँ क्या कह रही थी और फिर कब सुमन फ़ोन पर आ गई, मुझे कुछ याद नहीं! मदहोशी छाने लगी। सच में मैं रूद्र की दासी हूँ.. अगर वो उस समय मुझे नग्न होने को कहते तो मैं तुरंत हो जाती... बिना यह सोचे की वहां पर और लोग भी उपस्थित थे। इतना तो तय है की मैं उनकी किसी बात का विरोध कर ही नहीं सकती!

खैर, ऐसा कुछ नहीं हुआ.. सुमन ने अपने जीजू से बात करने को कहा तो मैंने फ़ोन इनको दे दिया। 

“मेरी एंजेल कैसी है?” इन्होने प्रेम और वात्सल्य भरी बात कही.. एक बात तो है, ये जो कहते हैं, उनकी आँखे भी वही कहती हैं। न कोई लाग लपेट, और न कोई फरेब! सच्चा इन्सान!

उधर से सुमन ने कुछ बात कही होगी, तो ये मुस्कुरा रहे थे.. बहुत देर तक मुस्कुरा कर सुनने के बाद इन्होने कहा, “अरे तो फिर हमारे पास आ जाओ! दो से भले तीन! है न?”

फिर उधर से सुमन ने कुछ कहा होगा, जिसके उत्तर में इन्होने ‘आई लव यू टू’ कहा, और बाय कर के फ़ोन काट दिया।

“क्या बाते हो रही थीं जीजा साली में? रोमांटिक रोमांटिक... ईलू ईलू वाली!” मैंने ठिठोली करी। 

“हा हा हा! अरे जो भी हो रही हो... आपको इससे क्या? हमारी आपस की बात है! हा हा!” फिर कुछ देर रुक कर, “.. जानू, क्यों न एग्जाम के बाद वहां से सभी लोग यहीं बैंगलोर में रहें? सुमन की पढाई भी अच्छी जगह हो जायेगी.. और माँ पापा भी आराम से रह लेंगे! क्या कहती हो?”

“आप को लगता है की माँ पापा आयेंगे यहाँ?”

“क्यों! क्या प्रॉब्लम है?”

“वो लोग बहुत पुराने खयालो वाले हैं, जानू! बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते!”

“हंय! इसका मतलब वो लोग यहाँ आयेंगे तो कहीं और से पानी लाना पड़ेगा?”

“आप भी हमेशा मजाक करते रहते हैं! आप ट्राई कर लीजिए.. आ जाते हैं तो इससे अच्छा क्या?” मैंने कहा, और आगे जोड़ा, “... और अभी आप क्या कर रहे थे, बदमाश! माँ और सुमन ने क्या कहा, कुछ याद नहीं!”

***************

बीच से मैंने सीधा मेडिकल शॉप का रुख लिया। रश्मि के पूछने पर उसको बताया की उसके लिए सेनेटरी नैपकिन लेने जा रहे हैं। मुझे यह जान कर घोर आश्चर्य हुआ की उसको नैपकिन के बारे में हाँलाकि मालूम तो था, लेकिन उसका प्रयोग रश्मि ने कभी नहीं किया था। कुछ देर तक उससे प्रश्नोत्तर करने के बाद सब कुछ समझ में आ गया। एक तो छोटा सा क़स्बा, और उसमें निम्न मध्यम वर्गीय और रूढ़िवादी परिवार! पुराने रूढ़िवादी विचार, रीति-रिवाज और अंध-विश्वासों को मानने के कारण उसकी माँ ने भी रश्मि को वही सब सिखाया था। 

बाद में और पढने पर मुझे समझ आया की यह हालत खली एक रश्मि की ही नहीं है... देश की कम से कम सत्तर प्रतिशत लड़कियाँ, और महिलाएं सेनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करती हैं – या तो खर्च वहन नहीं कर सकने के कारण, और या तो अपने रूढ़िवादी विचारों के कारण! हालत यह है की भारत की अनगिनत महिलाएं और लड़कियाँ आज भी पीरियड के दौरान गंदे कप़ड़े का उपयोग करती हैं, जिसके कारण वे संक्रमण की चपेट में आ जाती हैं। ग्रामीण इलाकों में महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर की एक बहुत ब़ड़ी वजह यौनांग की साफ-सफाई न होना है।

जहाँ तक रश्मि का प्रश्न है, पीरियड्स के दौरान उसके और सुमन के साथ अछूतों जैसा व्यवहार किया जाता है। दोनों लडकियां पूजाघर और रसोई से दूर रहती हैं। रक्त-स्त्राव रोकने के लिए रद्दी कप़ड़ों का इस्तेमाल करती हैं, जिससे संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। इस कारण से हर महीने तीन चार दिन पढने भी नहीं जा पाती। ऐसा नहीं है की रश्मि के परिवार वाले उसके लिए सेनेटरी पैड खरीद नहीं सकते थे – सस्ते उत्पाद तो मौजूद ही हैं। लेकिन पुरानी परम्पराओं को जैसे का तैसा निभाना, और यह सोचना की दूकान पर जाकर पैड खरीदने से परिवार की प्रतिष्ठा को धक्का लगेगा.. यह दोनों सबसे बड़े कारण बने – न खरीदने के।

खैर, यहाँ पर जब हम मेडिकल शॉप पहुंचे, तो दुकानदार ने नैपकिन के पैकेट को अखबार में लपेटकर, काली पोलीथिन बैग में डाल कर दिया.. जैसे वह मुझे दारू बेच रहा हो! सच में! देश की महिलाओं को क्या कुछ सहना पड़ता है! दुकानदार से क्या बहस करता? बस, सामान लेकर वापस रिसोर्ट आ गए।

वापस आकर देखा तो रिसेप्शन पर मौरीन और आना खड़े थे... वहां पर उनसे कुछ देर बात चीत की। मौरीन ने मुझे आँख के इशारे से कुछ न कहने को कहा था, इसलिए मैंने किसी भी तरह से आना को यह अहसास नहीं होने दिया की मौरीन और हमारे बीच में कुछ भी हुआ था। वैसे भी यह कोई ऐसी बात नहीं थी जिसको मैं याद रखना चाहता। 

रात में ऐसा कुछ उल्लेखनीय नहीं घटा। बस खाया पिया, और आराम से सो गए।

सवेरे उठा, तो अपने ऊपर एक अतिरिक्त भार महसूस हुआ। आँखें खुलीं तो देखा की रश्मि मुझसे पूरी तरह चिपकी सो रही थी – करवट के कारण उसका बायाँ पाँव मेरे जांघों के ऊपर आराम कर रहा था। मैंने उस पर प्यार से हाथ फिराया तो समझ आया की वह पूर्ण-रूप से निर्वस्त्र है। 

मैं मुस्कुराया, ‘बढ़िया!’

और उसको अपने आलिंगन में समेट कर उसके माथे पर जोरदार चुम्बन दिया। मेरी इस हरकत से उसकी नींद भी खुल गई। मैंने अपनी घड़ी में देखा.. सवेरे के सात बज रहे थे।

“उठो जानू! आज का प्रोग्राम क्या है?” मैंने रश्मि के दोनों नितम्बों के बीच में अपना हाथ फिराते हुए पूछा। पांव मेरे ऊपर इस प्रकार रखने के कारण उसका योनि द्वार थोड़ा खुल गया था, इसलिए मेरी तर्जनी उंगली अनायास ही उसके योनि के अन्दर दो-तीन मिलीमीटर चली गई।

“उई अम्मा!” रश्मि चिहुंक गई, “धत्त! आप भी न.. जब देखो तब इसी में घुसना चाहते हैं..” अपनी उनींदी आवाज़ में रश्मि ने कहा।

“जानेमन, जब इसके जैसी नरमी, इसके जैसी गरमी और इसके जैसा स्वाद मिले, तो मैं कहीं और क्यों घुसूँ? यहीं न घुसूँ?” (मैंने ‘आपकी पारखी नज़र और निरमा सुपर’ वाले प्रचार की तर्ज पर अपना जुमला ठोंक दिया।)

“धत्त...!” वह शर्मा कर मेरे सीने में छुप गई।

“मेरी जान, मेरी ऐसी हरकतों में मेरी कोई गलती नहीं। तुम्हारी चूत वाकई बहुत खूबसूरत है!” मैंने सफाई पेश करी। उसने कोई उत्तर नहीं दिया... बस मेरे सीने में सर छुपा कर हंसने लगी। 

“अच्छा, एक बात बताइए... आपको शेविंग करनी आती है?” मैंने पूछा।

“शेविंग करना? नहीं.... क्यों? मुझे क्या ज़रुरत है, शेविंग करने की? मुझे दाढ़ी थोड़े न आती है!”

“दाढ़ी नहीं... ये तो आती है न?” कह कर मैंने उसके योनि पर उगे बालों को उंगली से पकड़ कर खींचा – ऐसे नहीं की रश्मि को दर्द हो, बस इतना जिससे रश्मि को उनका एहसास हो जाय।

“हाय राम! इसकी शेविंग?”

“हाँ! और क्या? आपको अच्छे लगते है क्या ये बाल?”

“नहीं, ऐसे कोई अच्छे तो नहीं लगते!”

“तो फिर इनको साफ़ क्यों नहीं करती?”

“मैं कैसे साफ़ करूँ?”

“अरे! रेज़र से.. या फिर कैंची से!”

“बाप रे!”

“बाप रे?”

“और क्या? कहीं कट गया तो?”

“हम्म... तो ठीक है... चलो, मैं ही काट देता हूँ। क्या कहती हो?” मैं हंसने लगा।

“नहीं जी, रहने दीजिये! जैसा है, उसी से काम चलाइए!” रश्मि ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा।
Reply
12-17-2018, 02:16 AM,
#54
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
“जानू, प्लीज! मैं इनको साफ़ कर देता हूँ। मैं शेविंग करने में एक्सपर्ट हूँ। साफ़ हो जायेगी तो फिर आप ही बोलोगी, की कितनी ख़ूबसूरत चूत है मेरी!”

“धत्त! न बाबा! मुझे शर्म आती है!”

“अरे भाड़ में गई शर्म! तो फिर तय रहा... नाश्ते के बाद आज मैं तुमको नहलाता हूँ... ओके? ठीक से! चलो उठो... जल्दी से नाश्ता करने चलते हैं...” कह कर मैं बिस्तर से उठा, और रश्मि को भी उठाया। मैंने उठ कर कमरे की खिड़कियाँ खोल दीं और वातानुकूलन बंद कर दिया। आज भी मौसम अच्छा था – बढ़िया हवा चल रही थी। परदे खींच दिए, जिससे कोई कमरे के अन्दर यूँ ही आनायास न देख सके... 

फ्रेश हो कर और ब्रश करने के बाद नाश्ता समाप्त किया और जल्दी से अपने कमरे में चले आए। 

मैंने अपने बैग से शेविंग किट निकाली – रिसेप्शन वाले दिन से मैंने अब तक शेविंग नहीं बनाई थी, इसलिए चेहरे पर कड़े बाल की ठूंठ निकल आई थी। मैंने जल्दी से अपनी शेविंग ख़तम करी – वैसे भी मुझे अपनी दाढ़ी बनाना बहुत ही ऊबाऊ काम लगता है। समय की बर्बादी! फिर रेजर में नए ब्लेड-कार्टरिज लगा कर रश्मि को पुकारा, 

“आओ.. मैंने तुमको नहलाता हूँ।“

रश्मि ने सर हामी में हिलाया, और पहनने के लिए कपड़े तह कर के बाथरूम के अन्दर आई।

“ये क्या? नहाने के बाद कपड़े पहनने का इरादा है क्या?”

“क्यूँ जी? नहलाने के बाद बच्ची को नंगी रखने का इरादा है क्या आपका?”

“जानेमन शेविंग और नहाने के बाद ऐसी चिकनी हो जाओगी, तो खुद ब खुद नंगी होने का मन करेगा।“ मेरी बात सुन कर रश्मि का चेहरा शर्म से सुर्ख लाल हो गया।

रश्मि का परिप्रेक्ष्य

जघन क्षेत्र की शेविंग जैसा तो मैंने अपने पूरे जीवन में कभी नहीं सुना। ये भी न जाने क्या क्या आईडिया लाते हैं... नित नए प्रयोग, नित नए अनुभव! बाप रे! क्या दिमाग है इनके पास! 

बाथरूम में वैसे कोई स्टूल या कुर्सी तो थी नहीं, इसलिए मैं खुद ही टॉयलेट के कमोड की सीट पर कवर रख कर के उसी पर बैठ गई। कपड़े उतारने का काम मेरे श्रीमान ने ही कर दिया। इस समय मैं नितांत नग्न थी, और मन ही मन सोच रही थी की कैसा अनुभव होगा! न जाने कैसे दिल में हमारे प्रथम मिलन के पहले होने वाला अनजान भय घर कर गया। फिर मैंने सोचा की ये हैं, तो फिर क्या डर? मैंने अपने पांव यथा-संभव खोल दिए, जिससे इनको मेरी योनि के सारे हिस्से में अभिगमन करने में आसानी हो। उन्होंने मुझको ऐसे ही बैठे रहने को कहा, और फिर अपनी शेविंग क्रीम और ब्रश की सहायता से मेरी योनि पर देर तक ढेर सारा झाग बनाया। उन्होंने समझाया की वह इसलिए ऐसा कर रहे हैं जिससे मेरे बाल पूरी तरह से मुलायम हो जाएँ। वो सब तो ठीक है, लेकिन समस्या यह थी की इनके शेविंग ब्रश की मेरी योनि पर मीठी मीठी रगड़ाई और ठन्डे ठन्डे पानी के स्पर्श से मेरा मन बेबस हुआ जा रहा था। ‘बैजर हेयर’ हाँ... शायद यही बताया था... किसी जानवर के बाल से बना हुआ था ब्रश! मुलायम! अनजाने ही मेरी टाँगे और खुलती चली गईं...

“वेल,” उन्होंने मेरी उत्तेजना ज़रूर कह्सूस करी होगी.. लेकिन फिर भी बिना किसी भाव के कहा, “थैंक यू! इससे शेव करने में ज्यादा आसानी होगी!”

फिर उन्होंने रेजर की मदद से सावधानीपूर्वक धीरे धीरे मेरी योनि पर से बाल की परत हटाने का उपक्रम आरम्भ किया। कभी वे त्वचा को इधर खींचते तो कभी उधर, कभी फैलाते, तो कभी दबाते, तो कभी योनि के दोनों होंठों को उँगलियों से फैलाते। उनके लिए यह शायद सिर्फ शेविंग करना हो, लेकिन उत्तेजना के मारे मेरी हालत खराब हुई जा रही थी। बहुत ज्यादा बाल नहीं थे, इसलिए कोई पांच मिनट के बाद उन्होंने अपना काम समाप्त कर दिया... कमरे की हवा का स्पर्श मेरी योनि ठंडा ठंडा महसूस हो रहा था, इसलिए मुझे समझ आया की मेरी योनि पूरी तरह बाल-विहीन हो गई है। लेकिन उन्होंने मुझे इसको देखने से मना कर दिया – कहने लगे की जब मैं कहूं, तभी देखना। ठीक है! इंतज़ार और सही!

उन्होंने काम होने के बाद एक छोटे तौलिये से मेरी योनि पोंछी और कहा, “अरे वाह जानेमन! हाय! मैं मर जावां!” 

इनकी इस निर्लज्ज उद्घोषणा से मैं बहुत शर्मा गई... लेकिन फिर भी उत्सुकतावश मैंने नीचे देखने की कोशिश करी। लेकिन उन्होंने फिर से मना कर दिया और कहा की अब मैं तुमको नहलाऊँगा। उन्होंने मेरी कलाई पकड़ कर मुझे कमोड से उठाया और फिर बाथरूम के नहाने वाले स्थान पर ले गए। उन्होंने पानी का फौव्वरा चलाया और खुद भी निर्वस्त्र होकर मेरे साथ शामिल हो गए। हम नहाने के लिए रिसोर्ट के साबुन का प्रयोग नहीं कर रहे थे – ये ही न जाने कौन सा बेहद सुगन्धित साबुन लाये थे। 

खैर, रूद्र ने बड़े इत्मीनान से मेरे पूरे शरीर पर साबुन रगड़ा – ख़ास तौर पर मेरे बगल में, मेरे स्तनों पर और मेरी योनि और नितम्बों के बीच के हिस्से पर! 

“ज़रा अपने पैर खोल कर सीधी खड़ी हो जाना तो.. तुम्हारी चूत और गांड की सफाई कर देता हूँ।“ मुझे उनकी गन्दी भाषा सुन के बुरा तो लगता है, लेकिन एक तरह की उत्तेजना भी आती है। अब इस विरोधाभास की व्याख्या कैसे करूँ, समझ नहीं आता।खैर, उनके आदेश का पालन करते हुए मैं अपनी टाँगे खोल कर सीधी खड़ी हो गई.. और उनकी उंगलियाँ निर्बाध रूप से मेरी योनि, उसके भीतर और मेरी गुदा के भीतर सफाई के बहाने सेंध लगाने लगीं।

“आह! क्या कर रहे हैं..!?” 

“चुप!” उन्होंने मीठी झिड़की लगाई।

इस क्रिया के दौरान उनका खुद का लिंग खड़ा हो गया.. मैंने हाथ बढ़ा कर उसको पकड़ने की कोशिश करी।

“नहीं.. अभी नहीं..” कह कर उन्होंने मुझे रोक दिया।

उन्होंने खुद पर भी साबुन लगाया और फिर हम दोनों साथ में फौव्वारे के नीचे नहाने लगे। उसमे ज्यादा समय नहीं लगा। उन्होंने एक बड़ी तौलिया उठाई और पहले मेरा और फिर अपना शरीर पोंछ कर मुझे वापस बेडरूम में ले आये, और मुझे बड़े शीशे के सामने खड़ा कर बोले,

“अब देखो..!”

शीशे के सामने खड़े हुए मैं अपने को निहारती हूँ - मेरा स्वयं का अनावृत्त शरीर! एक पल को मैं खुद को पहचान ही नहीं पाती हूँ... कब देखा है मैंने खुद को इस तरह? इतने इत्मीनान से? न तो एकांत मिलता है और न ही इस प्रकार के संसाधन! ऐसा लगा की आईने में दिखने वाली लड़की मैं नहीं हूँ। यह एक कमसिन और बाल-रहित योनि वाली लड़की थी - जैसे कोई छोटी बच्ची!

हे भगवान्! मेरी योनि के होंठों के सिलवटें साफ़ साफ़ दिख रही थीं। ऐसे तो मैंने इनको कभी नहीं देखा था। ऐसे लग रहा था की जैसे उनकी नुमाइश लगा दी गई हो। बाप रे! अपने आपको इतनी नंगी मैंने कभी नहीं महसूस किया। मैंने शर्मा कर अपनी योनि को अपने हाथों से छुपा लिया और कहा, “मुझे बहुत शरम आ रही है।“

युवा वक्ष, छोटे कंधे, गोलाकार नितंब, और केशों से टपकती पानी की बूंदें...! मैं खुद पर मुग्ध हुई जाती हूँ... खुद के शरीर पर! इतनी खूबसूरत हूँ क्या मैं... सचमुच? क्या सचमुच रूद्र रोज़ निर्बाध इसी सौन्दर्य का पान करते हैं? मैंने कनखियों से उनकी तरफ देखा... उनकी आंखों में मेरे लिए कामना थी - उद्दीप्त कामना! एक चाहत थी - उद्दाम चाहत...!

“मज़ा आया, जानेमन?”

उत्तर में मैं सिर्फ मुस्कुराई...

“अब बताओ... इस बच्ची को नंगा नहीं, तो फिर कैसे रखा जाए?” उनकी आवाज़ एक परिचित रूप से कर्कश हो गई थी... इस कर्कशता की मैं पहचानती हूँ.. वो खुद भी उत्तेजित थे – मुझमें आसक्त!

“आओ इधर और बिस्तर पर लेट जाओ।“ उन्होंने अगला आदेश दिया।

मैं बिस्तर की तरफ जाते हुए देखती हूँ की रूद्र अपने बैग से किसी प्रकार की बोतल निकाल रहे थे। मैं लेट जाती हूँ और वे मेरे पास आकर कहते हैं, “तुम्हारी स्किन ड्राई हो गई होगी। मैं क्रीम लगा देता हूँ.. अच्छा लगेगा!”

मैं मूर्खों के जैसे पूछती हूँ, “आप मेरे पूरे बदन पर क्रीम लगायेंगे?”

“बस देखती जाओ...”

रूद्र मेरे सर के नीचे दूसरी सूखी तौलिया रख देते हैं, जिससे बिस्तर गीला न हो और फिर अपनी हथेली में ढेर सारी क्रीम लेकर मेरे स्तनों, हाथों और पेट पर धीरे धीरे रगड़ देते हैं। अगला राउंड मेरी जांघों और पैरों का था। फिर उन्होंने मेरी योनि को निशाना बनाया – क्रीम लगते ही हलकी सी चुनचुनाहट हुई। शायद शेविंग करने में कहीं कुछ कट गया होगा। मेरी सिसकियाँ निकल गई, लेकिन मैं उनको रोका नहीं।

उन्होंने तीन चार मिनट तक अपनी उँगलियों से मेरी योनि पर अच्छी तरह से क्रीम लगाया.. इतनी अच्छी तरह की मैं उसी बीच एक बार परम सुख भी पा गई। उन्होंने मुझे कुछ देर सुस्ताने दिया और फिर कहा,

“अभी पेट के बल लेट जाओ..”

मैं उनकी आज्ञापालन करते हुए पलट गई। उन्होंने पहले पीठ पर क्रीम लगाई और फिर पैर और जाँघों के पिछले हिस्से पर लगाई। माँ के बाद मुझे इतने अन्तरंग तरह से शायद ही किसी ने मालिश की हो... और मुझे वो तो याद भी नहीं! शरीर भर में सिहरन दौड़ गई। उसके बाद उन्होंने एक तकिया उठाकर मेरे जघन क्षेत्र के नीचे लगा दी। इससे यह हुआ की मेरे नितंब काफी उठ से गए। 

‘क्या करने वाले हैं ये?’ मैंने सोचा।

“जानू, मेंढ़क के जैसे हो जाओ..”

मुझे समझ नहीं आया..., “मतलब? कैसे?”

रूद्र ने पीछे से ही मेरे पैर ऊपर की तरफ उठा दिए, इस प्रकार जैसे मेरे घुटने मेरे पेट के बराबर हो जाएँ, और हाथ को मेरे सर (मस्तक) के नीचे रख दिया। बहुत बेढब सी अवस्था थी... घुटने पेट के बराबर, पैर फैले हुए – मेरी योनि और ... गुदा दोनों ने खुल कर निर्लज्ज प्रदर्शनी लगा रखी थी इस समय।

“आप क्या करने वाले हो?” मैं बच्चे जैसे रिरियाई।

“श्श्श्हह्ह... कुछ देर शांत रहो.. अगर मज़ा न आए, तब कहना। ओके?”
Reply
12-17-2018, 02:16 AM,
#55
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मज़ा क्या आएगा? मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा है। एक तो जिस तरह से रूद्र ने रोज़ रोज़ मेरे अंग-प्रत्यंग की जाँच करी है, और जिस तरह का परिचय उनका मेरे गुप्तांगों से है, वैसा तो मुझे भी नहीं है। उन पर विश्वास करने के अतिरिक्त मेरे पास कोई चारा नहीं था। उनके ही निर्देशों पर मैंने अपनी टाँगे और चौड़ी खोल दीं...

‘क्या देखना चाहते हैं ये? भला ‘वो’ भी कोई देखने की चीज़ है?!’

रूद्र इस समय मेरे नितम्बों पर क्रीम लगा रहे थे.. कभी हथेली से, तो कभी उंगली से। मुझे कुछ कुछ संशय हो रहा था, उनके इरादों पर। लेकिन फिर भी मैंने सोचा की साथ देती हूँ, जब तक हो पाता है तब तक! जल्दी ही उनकी क्रीम से भरी उंगली मेरी गुदा-द्वार पर फिरने लगी और फिर अन्दर जाने लगी। हर बार जैसे ही उंगली अन्दर आती, स्वप्रतिक्रिया में मेरी गुदा का द्वार बंद हो जाता।

‘मेरी गुदा को भी भंग करना चाहते हैं क्या?’ मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा।

“क्या करना चाहते हो?” मैंने याचना भरी आवाज़ में कहा, और साथ ही साथ पीछे की तरफ मुड़ी। उनका तना हुआ प्रबल लिंग इस तरह से उठा हुआ था की मानो मेरी गुदा को ही देख रहा हो। 

“जानू, थोड़ा वेट तो करो!”

उन्होंने कुछ और क्रीम उंगली पर लेकर मेरी गुदा में प्रविष्ट कराया और देर तक भीतर ही चलाते रहे। कुछ देर में मुझे गुदा पर अभूतपूर्व फैलाव महसूस हुआ... तुरंत समझ में आ गया की इस बार उंगली नहीं, उनका लिंग अन्दर जाने की कोशिश कर रहा है!

“न न नहीं..! प्लीज! वहां पर नहीं! प्लीज! मैं मर जाऊंगी!”

“जानू! एक बार ट्राई तो करते हैं?”

“नहीं! आगे से आपका मन भर गया क्या, जो आप पीछे डालना चाहते हैं? प्लीज प्लीज! मैं आपकी हर बात मानूंगी, लेकिन ये नहीं! मैं मर जाऊंगी सच में! आप उंगली ही डाल रहे हैं और उसी में मेरी जान निकल रही है।“ मैं बुरी तरह गिड़गिड़ा रही थी। इनका जो भी प्लान था, मैं उसमे भाग नहीं लेना चाहती थी।

“अच्छा ठीक है... ठीक है! मैं कुछ नहीं करूंगा! भरोसा रखो। सॉरी! तुमको दर्द देकर मुझे कोई मज़ा थोड़े ही मिलेगा!” उन्होंने मेरे नितंब सहलाते हुए भरोसा दिलाया। लेकिन मन में डर बैठ गया... 

इतना सब होते हुए भी मैंने जो मेंढकी वाला आसन लगाया था, वह अभी तक लगा हुआ था। रूद्र मेरे पीछे आकर मुझ्ह्से चिपक गए और पीछे से ही मेरे स्तनों को पकड़ कर भींचने लगे। साथ ही साथ वह अपने कमर को कुछ इस तरह से चक्कर में घुमा रहे थे जिससे उनके लिंग का अग्रिम भाग मेरी योनि और कभी कभी गुदा पर छू जाता। जैसे ही मेरी योनि को उनका लिंग छूता, मेरा मन होता की एक झटके से उनके लिंग को अन्दर ले लूं.. लेकिन स्त्रियोचित संकोच और लज्जा मुझे रोक लेती। इसी पूर्वानुमान में मेरी योनि से रस निकलने लगा।
उन्होंने बहुत देर तक मुझे ऐसे ही सताया... और इस पूरे घटनाक्रम में मैं सोच रही थी और उम्मीद लगाए बैठी थी की कभी तो इनका धैर्य छूटेगा, और कभी तो वो मेरे अन्दर प्रविष्ट होंगे। यही सब सोचते हुए मैंने इतने में ही एक बार और चरमोत्कर्ष प्राप्त कर लिया। 

‘क्या स्टैमिना है इनमें! लगता है एक जबरदस्त सम्भोग होने वाला है! एक तगड़ी चुदाई..!’ मन में कैसे कामुक विचार! अजीब सी मस्ती छाने लगी... इस समय मेरा अंग-अंग थरथरा रहा था, घुटनों में सम्हलने की ताकत ही नहीं बची थी.. इन्होने पीछे से मुझको थाम रखा था, इसलिए मैं अभी भी उसी अवस्था में टिकी थी.. नहीं तो अब तक गिर चुकी होती।

उनको मेरे चरमोत्कर्ष का पता अवश्य चला होगा, क्योंकि अब वो मेरी योनी को चाट रहे थे। उत्तेजना के वशीभूत होकर मैं अपने नितम्ब जोर जोर से हिलाने लगी। मेरी हालत बहुत बुरी थी। एकदम छंछा जैसी हरकतें! इस समय रूद्र मेरी योनि के भगोष्ठों को खोलकर जीभ से अन्दर तक कुरेद और चाट रहे थे। न चाहते हुए भी मेरे गले से कामुक सिस्कारियां छूट गईं। उधर उन्होंने चूसना जारी रखा। कुछ ही देर में मैं दूसरी बार चरम आनंद को प्राप्त कर कांपने, और आहें भरने लगी। मेरे होशो-हवास सब गायब हो गए - उनका इस तरह चाटना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। इस बार रूद्र ने मुझे छोड़ दिया, तो मैं निढाल होकर बिस्तर पर गिर गई – इतनी भी ताकत नहीं बची की ठीक से लेट जाऊं.. बस उसी अवस्था में लेटी रही। 

मैंने देखा की रूद्र बैग में से कुछ और भी निकाल रहे थे... कोई शीशी! वापस आकर उन्होंने मुझे बिस्तर पर चित्त लेटा दिया और मेरी जांघे थोड़ा और फैला दीं। मैं तो निढाल पड़ी थी, उन्ही के रहमो करम पर! ऐसे नीचे से देखने पर रूद्र का तना हुआ लिंग दिख पड़ रहा था। ऐसा भयावह वह पहले दीं भी नहीं दिखा। निःसंदेह उसकी लम्बाई और मोटाई कुछ ज्यादा ही लग रही थी। उसकी नसें भी फूल कर मोटी हो रही थी, और उसका आगे का चमकदार गुलाबी भाग भी दिख रहा था। अपनी ताकत बटोर कर मैंने उस माँसल अस्त्र को पकड़ लिया। इतना गर्म! बहुत अद्भुत सी बात थी – नहाने के बाद संभवतः कमरे के वातानुकूलन के कारण उनके वृषण सिकुड़ कर उनके जघन क्षेत्र के काफी अन्दर छुप गए से मालूम हो रहे थे, लेकिन लिंग की अलग ही बात थी! इतना गर्म, और सामान्य उत्तेजना से भी अधिक उत्तेजित!

उन्होंने मुझे कुछ देर अपना लिंग पकड़ने दिया और फिर अलग होकर अपने काम के अगले हिस्से को अंजाम देने लगे। शीशी खोलकर उन्होंने मेरी योनी पर उड़ेल दिया।

“क्या ... है.. यह?” मैंने टूटी फूटी कामुक आवाज़ में पूछा!

“हनी... यह हनी है!”

एक और प्रयोग! योनि एक स्वादिष्ट भोज्य भी बनायीं जा सकती है! उन्होंने उंगली से शहद को मेरी पूरी योनी पर फैलाया और फिर जीभ की नोक से धीरे धीरे चाटने लगे। 

“आहह…!” अभी अगर मैं इस समय मर भी जाऊं, तो कोई दुःख न होगा! ऐसा सुखद एहसास! “हम्*म्*म्*म*” उनका मेरी योनि का यूँ भोग लगाना मुझे पागल किए जा रहा था। मन में इच्छा जागी की वो लगातार ऐसे ही चाटते रहें। अनायास ही मैं अपनी बची खुची ताकत लगा कर अपने नितम्बो को उठा उठा कर योनि को उनके मुंह में और पहुँचाने की कोशिश कर रही थी। इसी बीच मैंने देखा की वो अपने लिंग पर भी शहद लगा रहे थे। शहद लगाने के बाद वह मेरे ऊपर उल्टा होकर लेट गए.. लेट नहीं गए... लेकिन कुछ ऐसे की उनका लिंग मेरे मुँह की तरफ रहे, और उनका मुँह मेरी योनि के ऊपर! मैंने भी बिना किसी पूर्वाग्रह के उनका लिंग अपने मुँह में भर लिया। 

‘स्वादिष्ट!’ मैं उनके शहद से चिपुड़े लिंग पर जीभ फेर फेर कर स्वाद ले रही थी, और रूद्र मेरी योनि का! 

इतना मजा जीवन में कभी नहीं आया – मानों मैं स्वर्ग की सैर कर रही हूँ! मुझे तो किसी भी चीज़ का आभास नहीं था – बस यह की योनि के रास्ते से आनंद का उन्माद मेरे पूरे शरीर में फ़ैल रहा था। तीसरी बार मेरी योनि में जबरदस्त चिंगारी पनपी – इस बार मुझे वहां से द्रव छलकता महसूस हुआ... मेरा पूरा शरीर अकड़ने लगा। मैंने दोनों हाथों को बिस्तर पर पटक रही थी, और हांफ रही थी! बेबस... लाचार! लेकिन संतुष्ट!

रूद्र खुद भी न जाने कब से मुझे भोगने को तैयार थे, लेकिन सिर्फ मेरी ख़ुशी के लिए अभी तक खुद को जब्त किए हुए थे। लेकिन अब बस! वो मेरे ऊपर से उतरकर, मेरी दोनो टांगों को चौड़ा करके, और एक तकिये को उठाकर मेरे नितम्बों के नीचे लगा कर उनके बीच में बैठ गए। अपने लिंग को उन्होंने मेरी योनि पर सटाया, और दोनों हाथों से मेरी कमर थाम कर अपने लिंग को अनादर की तरफ धकेला। 

“आहहह...” अन्दर इतनी चिकनाई हो गई थी की पहले ही वार में उनका ज्यादातर लिंग मेरी योनि में समां गया। उन्होंने फिर मेरे होंठों को चूमते हुए, पहले तो धीरे धीरे, और बाद में तेज़ गति से मुझे भोगना आरम्भ कर दिया। एक के बाद एक तीव्र रति-निष्पत्ति के बाद मेरी दशा निर्जीव जैसी हो गई थी। लेकिन उनके सम्भोग के तरीके में कुछ ख़ास बात थी, की कुछ ही देर में मैं भी अब कुछ होश में आकर अपने नितम्बों को उन्ही की गति से, धीरे धीरे ही सही, गति मिलाने लगी। कोई तीन मिनट के बाद अचानक ही उन्होंने सम्भोग की गति बढ़ा दी। मुझे भी अपने अन्दर एक और लावा बनता हुआ महसूस होने लगा! घोर आश्चर्य! ये चौथा होगा.. और इनका पहला! 

मुझे एक और बार चरम सुख मिल गया। लेकिन ये नहीं रुके। निष्पत्ति के सुख के बाद मेरी सांसे अभी तक सम्भल भी नहीं पाई थी कि इन्होने मुझे अपने आलिंगन में भर लिया और बहुत तेज गति से धक्के चलाने लगे। ऐसे तो उन्होंने कभी नहीं किया। तीन चार बार तो मुझे चोट भी लग गई! फिर अचानक ही ये भी स्खलित हो गए – मुझे मेरे अन्दर बेहद गरम द्रव गिरता हुआ महसूस हुआ! गहरी साँसे भरते हुए रूद्र निढाल हो कर मेरे ही ऊपर गिर गए। हम दोनों देर तक अपनी साँसे नियंत्रित करते रहे। मुझे मूत्र की तीव्र इच्छा हो रही थी, लेकिन थकावट इतनी ज्यादा थी की हिलने का भी मन नहीं कर रहा था।

लेकिन रूकती भी तो कितनी देर! कुछ तो बात है – यौन संसर्ग के बाद न जाने क्यों मुझे मूत्र की तीव्र इच्छा होने लगती है। मैं कुनमुनाई। इनको जैसे तुरंत समझ आ गया।

“टॉयलेट जाना है?” इन्होने पूछा।

“हाँ.. जल्दी!” कहते हुए मैं मुस्कुराई। कितना कुछ बदल गया इतने ही दिनों में! अब कोई संकोच नहीं लगता!

“आओ मेरे साथ..” कह कर ये उठे और मुझे भी हाथ पकड़ कर बिस्तर से उठा लिया। 

‘फिर कोई नया खेल क्या? बाप रे!’

मैं ठीक से चल नहीं पा रही थी – एक तो मेरे पाँव अभी तक कांप रहे थे, और ऊपर से बहुत ज्यादा थकावट! इसलिए रूद्र ने मुझे सहारा देकर बाथरूम तक पहुँचाया। बाथरूम तक, लेकिन कमोड तक नहीं। वो मुझे नहाने वाले स्थान पर लेकर गए... मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैंने उनकी तरफ देखा, लेकिन जब उन्होंने कुछ नहीं कहा तो मैं बैठने लगी।

“रुको..” इनकी आँखों में एक बार फिर से एक शैतानी चमक जाग गई। मैं समझ गई की अब मैं फिर से मरने वाली हूँ!

रूद्र वहीँ बाथरूम की फ़र्श पर लेट गए, और मुझे इशारे से अपने ऊपर बैठने को कहने लगे। 

“छी! आप भी न! न जाने क्या क्या करवाते हैं मुझसे!”

"अरे यार! क्या छी? एक बार मेरा कहा मानो.. मज़ा न आये तो फिर शिकायत करना!" उनकी बात सुन कर मुझे हंसी आ गए! बच्चों जैसी जिज्ञासा, उन्ही के जैसी शैतानी, उन्ही के जैसी मासूमियत! उन्होंने मुझे हाथ से पकड़ कर अपने जघन क्षेत्र पर बैठाने में मेरी मदद करी। मैं क्या ही करती? मैं भी जैसे तैसे उनपर उकडूं बैठ गई – बहुत ही बेढब तरीका था.. लेकिन अब समझ आया की रूद्र क्या चाहते थे। एक तो मेरे उनके ऊपर इस तरह बैठने से मेरी योनि पूरी तरह से प्रदर्शित होती, और मूत्र उन्ही के ऊपर ही गिरता!

"जानू! आप श्योर हैं? मुझे बहुत जोर से आ रही है।" 

उन्होंने सर हिला कर हामी भरी, “बिलकुल श्योर! शुरू करो।"

उन्होंने दोनों हाथ से मैंरे दोनों टखने पकड़ लिए और मैंने अपने दोनों हाथ उनके सीने पर टिका दिए – सहारे के लिए। दिक्कत यह है की कुछ देर अगर मूत्र को रोक लिया जाए, तो फिर तुरंत ही नहीं हो पाता – कुछ देर इंतज़ार करना पड़ता है। मैंने कुछ देर तक अपनी साँसे नियंत्रित करीं, और अपनी मांस-पेशियाँ कुछ शिथिल करीं।

मैं अपनी आँखें मूँद लीं, और मूत्र करने पर ध्यान लगाया।
Reply
12-17-2018, 02:16 AM,
#56
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मेरा परिप्रेक्ष्य

जैसा पहले भी किया था (याद है न? बुग्याल पर? झील के बगल?), आज पुनः कुछ नया करने की इच्छा जाग गई थी। ठीक हैं, गंदे हो जायेंगे, लेकिन तो क्या? बाथरूम में ही हैं न? फिर से नहा लेंगे! 

मैंने देखा की रश्मि की योनि के पटल खुल गए - वहां की माँस पेशियाँ रह रह कर खुल और बंद हो रही थीं (मूत्राशय को मुक्त करने का प्रयास)। सम्मोहक दृश्य!

कुछ ही पलों में मूत्र की धार छूट पड़ी। अनवरत धार! रश्मि अभी राहत की साँसे ले रही थी। उसकी आँखें बंद थीं। गरम गरम द्रव मेरे शरीर पर पड़ा – अनोखा अनुभव! काफी गरम! मूत्र गिर कर मेरे सीने पर से होकर फ़र्श पर रिसने लगा। और उसकी गंध! कोई तीक्ष्ण गंध नहीं। लेकिन ऐसी भी नहीं जिसको मन-भावन गंध कहा जाय। खैर, कुछ देर के बाद रश्मि का मूत्र त्यागना बंद हुआ। वह अभी भी आँखें बंद किये हुई थी - उसकी योनि की पेशियाँ सिकुड़ और खुल रही थीं और उसमें से मूत्र निकलना अब बंद हो चला था। इस अनुभव का एक असर मुझ पर हुआ – मेरा लिंग फिर से कड़ा होने लगा, और साथ ही साथ मुझे भी मूत्र की इच्छा होने लगी।

मैंने रश्मि के कंधे पकड़े, और उसी के सहारे उठ कर पहले तो उसको गले से लगा लिया। रश्मि खुद के ही मूत्र में सन गई। नहाने के अतिरिक्त अब कोई चारा नहीं था हम दोनों के ही पास। मैंने अपनी उंगली से उसकी योनि को कुछ देर टटोला, और फिर खड़ा हो गया। 

रश्मि ने प्रश्नवाचक दृष्टि पहले मेरे चेहरे पर डाली और फिर मेरे लिंग पर, जो की उचक उचक कर जैसे सन्देश दे रहा हो। इसके पहले की वह कुछ कहती, या कोई प्रतिरोध करती, मैंने भी अपनी मूत्र की धार छोड़ दी। पहला छपाका उसके चेहरे पर ही पड़ा – स्वप्रतिक्रिया स्वरुप उसने आँखें और मुँह को कस कर भींच लिया। और अपने एक हाथ के सहारे से फ़र्श पर ही थोड़ा पीछे झुक गई। लेकिन इससे वो बचने वाली तो थी नहीं। मुझे भी अपना ब्लैडर खाली करना ही था। और साथ ही साथ मैं खिलवाड़ के भी मूड में था। मैंने लिंग को पकड़ कर उसके पूरे शरीर को अपने मूत्र से नहला दिया। और कुछ देर बाद मैं भी खाली हो गया।

रश्मि ने एक आँख खोल कर मुझे देखा, “छी गंदे! ये क्या है? बता तो देते!”

मैंने उत्तर में कुछ कहा नहीं। बस आगे बढ़ कर उसको फ़र्श पर लिटाया, और उसकी योनि को अपने मुंह में भर कर चूस चूस कर सुखा दिया। अब वह क्या ही शिकायत कर पाती भला? बस भावुक हो कर उसने मुझे जोर से अपने आलिंगन में जकड़ लिया और कहा, “आई लव यू!”

इस समय तक मैं एक बार पुनः सम्भोग के लिए तैयार हो गया था। इस बार मैंने न कोई औपचारिकता दिखाई, और न ही कोई फोरप्ले किया। बस इस समय रश्मि को एक और बार ‘चोदने’ का मन था। एकदम पाशविक इच्छा! वासना की नग्न अभिलाषा!

रश्मि का परिप्रेक्ष्य

यह मूत्र स्नान सुनने या सुनाने में भले ही बहुत ही गन्दा सा लगता हो, और संभव है की ज्यादातर युगल इसको नहीं आजमाते, लेकिन यह एक नए प्रकार का ही अनुभव होता है। मैं रूद्र की आँखों में वासना के डोरे साफ़ देख रही थी। अपने ऊदेश्य में स्पष्ट! इसमें प्रेमी जैसा भाव नहीं था – बस वही प्राचीन नर-मादा वाला भाव दिख रहा था। मतलब, आज तो मेरी जान निकल कर ही रहेगी!

उन्होंने मेरी बाईं टांग को अपने कंधे के ऊपर रखा और अपने लिंग को मेरी योनि के बीच रखा। मैंने उनके लिंग को पकड़ लिया, जिससे वह अपने मार्ग पर ही रहे। उन्होंने ऐसे जोर के धक्के के साथ मुझमें कभी प्रवेश नहीं किया! मेरी चीख निकल गई। मैं सम्हलती, उससे पहले ही उन्होंने दूसरा धक्का लगाया – मैंने देखा उनका लिंग और मेरी योनि दोनों आपस में चिपके हुए थे। मुझे दर्द हुआ! लेकिन मैं उसको पी गई – यह अनुभव भी सही।

मैंने महसूस किया की मेरी योनि उनके लिंग को मसल रही है। मेरी सांसे तेज़ हो गईं। रूद्र समझ तो रहे थे की मुझे दर्द हुआ है, लेकिन वो बस चार पांच सेकंड ही रुके। और फिर उन्होंने अपनी कमर हिलानी शुरु कर दी। उनका लिंग तेजी से मेरी योनि के अंदर-बाहर होने लगा। देखते ही देखते उनकी गति तेज़ होती चली गई। तेज़ गति के कारण लिंग का विस्थापन कम ही हो रहा था, लिहाज़ा, पूरे समय, मेरी योनि में उनका लिंग लगभग पूरा ही समाया रहा। मूत्र ने संभवतः अन्दर से काफी चिकनाई निकाल दी थी, इसलिए कुछ कुछ टीस सी उठ रही थी। लेकिन मैं क्या करती – रूद्र मुझे वाकई ‘चोद’ रहे थे। 

चूंकि वो कुछ ही मिनटों पहले स्खलित हुए थे, इसलिए मुझे लगा की उनका दुबारा स्खलित होने अभी दूर था। लेकिन गति इतनी तेज थी की दस मिनट के अन्दर ही वो अपनी मंजिल पर पहुँच गए। आश्चर्य मुझे इस बात का हुआ की स्खलित होने के बाद भी उनका कडापन कम नहीं हुआ और उन्होंने मुझे दो और मिनट तक भोगा। और मुझे एक और घोर आश्चर्य तब हुआ जब मैं आज पांचवीं बार रति के उच्चतम शिखर पर पहुंची। पाशविक सम्भोग का ऐसा नंगा नाच! और इनकी कुशलता तो देखिए! न जाने कैसी भूख! लेकिन इतना तो तय है की मैं पूरी तरह अघा गई थी। 

हम दोनों बहुत देर तक यूँ ही विभिन्न शारीरिक तरलों से सने हुए, आलिंगनबद्ध फ़र्श पर पड़े रहे। अंततः रूद्र ने उठा कर फ़व्वारा चलाया, और हम दोनों ने फ़र्श पर बैठे बैठे ही एक बार और नहाया। और फिर अपने अपने शरीर पोंछ कर बिस्तर पर लुढ़क कर गहरी नींद सो गए।

अगले चार दिनों तक रश्मि के पीरियड्स थे। यह समय हमने बीच पर टहलने घूमने, नौका-विहार करने, लैपटॉप और टीवी पर फिल्म्स इत्यादि देखने में बिताये। मौरीन और आना हमारे बहुत अच्छे दोस्त बन गए – हमारे, मतलब मेरे और रश्मि दोनों के। रश्मि उन दोनों की ही आत्मनिर्भरता और बिंदास अंदाज़ से बहुत प्रभावित हुई, और उनसे उनके काम, जीवन इत्यादि के बारे में कई बार बातें करीं। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैंने उनके साथ दो बार स्कूबा डाइविंग करी। 

स्कूबा डाइविंग बहुत ही अधिक रोमांचल खेल है। मौरीन और आना, दोनों ने ही मुझे बताया की उनकी हर डाइविंग में नयापन होता है – एकदम नए अनुभव, नयी चुनौतियाँ! अंडमान में चहुओर फैले जल क्षेत्र में प्रवाल भित्ति (कोरल रीफ) जल-पर्यावरण प्रणाली का घर हैं! एक और बात है, अंडमान में बहुत कुछ जो बना है, वह ज्वालामुखी की गतिविधियों के कारण बना है। उनके कारण डाइविंग के दौरान अभूतपूर्व अनुभव होता है। हम समुद्र में करीब करीब साथ फीट तक अंदर गए। इस दौरान मैंने प्रवाल और उनमे रहने वाली अनेकानेक मछलियाँ और उनकी अनोखी दुनिया को बहुत नजदीक से देखा। वाकई, यह एक अलग ही दुनिया थी। खैर, मैं तो बस रंग बिरंगी मछलियों के झुण्ड, नीले पानी, और अपने कानों में पानी की गुलगुलाहट सुन कर रोमांचित हो गया! छोटे बड़े, हर आकार की मछलियाँ प्रचुर मात्रा में बिना रोक टोक तैर रही थी। पानी के भीतर फोटोग्राफी भी करी। मुझे बताया गया था की शार्क की भी कई सारी प्रजातियाँ यहाँ होती हैं, लेकिन दिखी एक भी नहीं! 

रश्मि और मैंने पहले स्नोर्केलिंग की थी – यूँ तो दोनों ही वॉटर स्पोर्ट हैं, लेकिन दोनों में काफी अंतर है। स्कूबा शब्द अंग्रेजी में सेल्फ कंटेंड अंडरवॉटर ब्रीदिंग अपरेटस (SCUBA) का शॉर्ट फॉर्म है। स्कूबा डाइविंग में ऑक्सीजन टैंक, तैराकी पोशाक और मास्क इत्यादि पहनकर पानी की काफी गहराई में उतरना होता है, जबकि स्नोर्केलिंग में छोटा मास्क पहना जाता है। सांस लेने के लिए इस मास्क का एक हिस्सा पानी की सतह से बाहर निकला रहता है, और तैराकी के दौरान तैराक सतह पर तैरता है, और मुँह की सहायता से सांस लेता है। स्कूबा डाइविंग एक बार में कम से कम आधे घंटे तक तो चलती ही है। स्नोर्केइलिंग में पानी के दो-तीन फीट अंदर ही जाते हैं, जबकि स्कूबा डाइविंग में तो लोग सौ फीट से भी अन्दर तक चले जाते हैं, और पानी की गहराई में उतरकर अन्दर के तमाम नजारों को करीब से देख सकते हैं। मैंने मन ही मन सोचा की स्कूबा डाइविंग की ट्रेनिंग ज़रूर लूँगा।

इतने में हमारे हनीमून का समय भी लगभग समाप्त हो गया और वापस आने का दिन भी पास आने लगा। 
इस बीच मैंने रश्मि के कॉलेज में कॉल कर के उसके प्रिंसिपल से बात करी। उन्होंने मेरी उम्मीद और सारी दलीलों के विपरीत रश्मि को होम-स्कूल करने से मना कर दिया, और यह याद भी दिलाया की उसकी उपस्थिति कम हो जाएगी, और एग्जाम लिखने में दिक्कत होगी। फिर उन्होंने मुझे बताया की यदि वो अगले हफ्ते तक वापस आ जाय, तो उसको शीतकालीन अवकाश के पहले करीब चार हफ्ते मिल जायेंगे, जिसमें काफी कोर्स निबटाया जा सकता है। फिर वो छुट्टी में बंगलौर जा सकती है, और कोर्स रीवाइज कर सकती है। मैंने छुट्टी के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया की दिसम्बर के आखिरी सप्ताह में होगी, और जनवरी के मध्य तक चलेगी।

कोई बुराई नहीं थी.. मैंने मन में सोचा। वैसे भी रश्मि बंगलौर में रुक कर क्या ही करती, इसलिए मैंने सोचा की वापस जा कर एक दो दिन में ही रश्मि को उत्तराँचल भेज दूंगा। वो अपना अब तक का कोर्स भी कर लेगी, और घर वालो से मिल भी लेगी। उसके बाद तीन हफ्ते मेरे पास.. और फिर बोर्ड एग्जाम के बाद परमानेंट मेरे पास!! मैंने रश्मि को बताया तो उसका मुँह उतर गया। रोने धोने की ही कमी थी बस.. लेकिन जैसे तैसे उसको समझाया बुझाया और राजी कर लिया। 

खैर, रिसोर्ट में रहने के आखिरी दिन मैंने जो भी बिल था, वो भरा और फिर हेवलॉक द्वीप से विदा ली। क्रूज़ बोट से वापस पोर्ट ब्लेयर आ गए। शाम की फ्लाइट थी, सो विमानपत्तन पर ही खाना पीना किया, और यादगार के लिए कुछ सामान खरीदा। वीर सावरकर विमानपत्तन काफी छोटा है, और उसके लिहाज से वहां बहुत भीड़ होती है। उस दिन तो वहां ठीक से खड़े होने की भी जगह नहीं थी। खैर, वहां से उड़ान भरने के कोई छः घंटे के अन्दर, रश्मि और मैं बंगलौर पहुँच गए।
Reply
12-17-2018, 02:16 AM,
#57
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
घर पहुँचने के बाद हमने श्री और श्रीमती देवरामनी जी से मुलाकात करी। उन्होंने हमारा कुशलक्षेम पूछा, कुछ इधर उधर की बात करी.. और फिर अंत में यह टिप्पणी करी की हम दोनों ही कौव्वे जैसे काले हो गए हैं! मैं और श्री देवरामनी, दोनों इस बात पर खूब हँसे.. लेकिन श्रीमती देवरामनी ने अपने पति को मीठी झिडकी लगायी। खैर, मैं उनको बताया की दो दिन बाद रश्मि को वापस उत्तराँचल भेज आऊँगा.. नहीं तो पढाई का बहुत नुकसान हो जाएगा। बेचारों को इस बात से बहुत दुःख हुआ, लेकिन इस बात से बहुत खुश हुए की एक महीने में ही रश्मि वापस भी आ जाएगी।

घर में आकर मैंने पास के ही एक होटल से खाना माँगा लिया। रश्मि चाहती थी की वह कुछ बनाए, लेकिन घर में कोई राशन पानी तो था ही नहीं... मैंने उसको कहा की कल हम दोनों मियां बीवी मिल कर लंच बनायेंगे, और पड़ोसियों को भी बुलाएँगे! मेरे इस सुझाव पर रश्मि बहुत खुश हुई।

जब तक खाना आता, रश्मि नहाने चली गई, और मैं हमारी देहरादून फ्लाइट के लिए टिकट बुक करने लगा। मजेदार बात यह दिखी की दो दिन बाद का टिकट, एक महीने के बाद वाले टिकट से सस्ता था! उसके बाद मैंने बॉस को फ़ोन करके कल के लंच के लिए आमंत्रित किया। उसके बाद मैंने अपने दोस्तों को बुलाया जो शादी में सम्मिलित हुए थे, और उनको साथ में खींची हुई तस्वीरें भी लाने को बोला। फिर अपने फोटोग्राफर को रिसेप्शन की तस्वीरें लाने को बोला। यह सब काम करने के बाद मैंने भी नहाया और इतने में ही खाना भी आ गया। दिन भर बहुत यात्रा हुई थी, इसलिए हम दोनों थक कर सो गए।

सवेरे मैं काफी जल्दी उठा। घर के पास ही सब्जी-हाट लगता है.. कभी कभी मैं वहां से सब्जियां लेता था। अच्छी बात यह है की वहां ताज़ी सब्जियां मिलती हैं। न जाने कितने ही दिनों बाद आज खरीददारी कर रहा था। वापस आते आते साढ़े सात बज गए थे – अभी भी सवेरा ही था। लेकिन वहां खरीदने वालो की भीड़ अच्छी खासी थी। वापस आते आते मैंने श्री देवरामनी को लंच पर आमंत्रित किया। घर आया तो देखा रश्मि अभी उठने के कगार पर ही थी। उठते ही उसने पूछा, आज खाने में क्या पकाएँगे? 

एक बात आपको बता दूं, जब से उत्तराँचल – या यह कहिये की गढ़वाल से नाता जुड़ने वाली बात चली है, तब से मैंने वहां की ज्यादा से ज्यादा बाते जानने का ध्येय बना लिया है। खासतौर पर वहां के खाने का। जब मैंने रश्मि को बताया, की क्या बनने वाला है, तो वह बड़ी खुश हुई। आखिर, मैंने आज के लंच के लिए गढ़वाली और अवधी खानों का कोर्स तैयार किया था। लंच की तैयारी शुरू करने से पहले, मैंने रश्मि के तैयार होते होते हम दोनों के लिए आलू सैंडविच, और चाय तैयार कर दी।

“बाप रे! आपको तो कुकिंग भी आती है!”

“बिलकुल आती है.. आपको क्या लगा? इतने दिन ऐसे ही सर्वाइव कर लिया मैंने?”

“मुझे तो मालूम ही नहीं था!”

“प्रिये, पति के गुण धीरे धीरे मालूम होने चाहिए। इससे प्रेम में प्रगाढ़ता आती है।“ मैंने फ़िल्मी डायलॉग बोल कर ठिठोली करी।

“ओके, प्राणप्रिय! तो फिर तैयारी करें?” रश्मि ने भी मेरी ठिठोली में अपना जुमला भी जोड़ा। 

रसोई शुरू करने से पहले कपडे इत्यादि वाशिंग मशीन में धोने में डाल दिए, जिससे कल की यात्रा से पहले कोई दिक्कत न हो।

हमेशा से कहा जाता है की पति के दिल का रास्ता पेट से होकर गुजरता है। मेरे ख़याल से यह बहुत ही गैर-जिम्मेदाराना सोच है, और खाने की तैयारी का सारा ठीकरा स्त्रियों के सर पर पटकने जैसा है। मेरा मानना यह है की यदि खाने का शौक हो, तो बनाने में भी पतियों को कुछ तो सहयोग करना ही चाहिए। जरा सोच कर देखिए, यदि रसोई में बढ़िया, स्वादिष्ट पकवान पति पत्नी साथ में बनाएँ, तो उनके बीच की नजदीकियां बढऩे लगती हैं। जब पति-पत्नी साथ साथ रसोई में पहुंच जाएं तो वो पल अभूतपूर्व अपनत्व में बदल जाते हैं। हमारे यहाँ कुकिंग को काम बना दिया गया है... लेकिन अगर ध्यान से देखें तो दरअसल कुकिंग तो एक कला है। नहीं तो कैसे संजीव कपूर जैसे लोग ‘मेस्ट्रो’ कहलाते? अगर पति-पत्नी साथ मिलकर इस कला में सहयोग करें, तो कुछ भी संभव है।

गढ़वाली व्यंजन बहुत अलंकृत और जटिल नहीं होते। लेकिन मोटे अनाजों के इस्तेमाल से उनका स्वाद अनोखा, और बहुत पौष्टिक होता है। अब चूंकि मेरा और रश्मि का मेल भी अनोखा था, इसलिए आज का कोर्स भी बहुत अनोखा था – रेशमी पनीर (पनीर, प्याज, रंग-बिरंगी शिमला मिर्चों पर आधारित सूखी सब्जी), फ़ानू (एक प्रकार की गढ़वाली पंचमेल दाल), लेसु (गेहूँ और रागी की रोटी), केसर हलवा, पुलाव और सलाद।
खाना बनाने में समय लगा, लेकिन मेहमानों के आने से पहले खाना तैयार हो गया, और हम लोग भी। भोज पर कुल मिला कर आठ लोग आये थे। मेरे दो दोस्त, उनमे से एक की पत्नी, बॉस, उनकी पत्नी और पुत्र, श्री और श्रीमती देवरामनी! ये सभी इतने अच्छे लोग थे, की अपने साथ कुछ न कुछ खाने पीने का सामान लाये थे – यह जानते हुए भी की भोज हमने आयोजित किया था। कुंवारा दोस्त तो अपने साथ वाइन की बोतल लाया था, लेकिन बॉस अपने साथ मिठाइयाँ, और पड़ोसी पुलियोगरे चावल (कर्नाटक का एक डिश) लाये थे। या फिर अपने घर से रश्मि ने कहा की वह सबको खिलने के बाद खा लेगी – लेकिन मैंने इस बात से साफ़ इनकार कर दिया। खायेंगे तो हम सब परिवार और मित्र एक साथ... नहीं तो खाने की कोई ज़रुरत नहीं। सप्ताहांत भोज अगर हित-मित्रो के साथ करने को मिले, तो इससे अच्छा क्या हो सकता है? कुछ ही देर में हम सभी गप्प लड़ाते हुए, घर में बने स्वादिष्ट भोजन का आनंद उठा रहे थे। मेरी खूब खिंचाई हुई जब बॉस और पड़ोसियों ने रश्मि के परिवार वालो के द्वारा मेरी जांच पड़ताल की बाते उसको सुनायीं। बहुत मज़ा आया – देर तक (कोई तीन घंटे) चले इस भोज से मुझे पहली बार अपने पड़ोसियों, और बॉस को इतने करीब से जानने का मौका मिला।

जैसी की मुझे उम्मीद थी, सभी ने शादी, रिसेप्शन और हनीमून की तस्वीरें देखने की मांग की। मैंने पहले ही हम दोनों की अन्तरंग तस्वीरें अलग कर ली थीं, और दोस्तों की खींची हुई तस्वीरें अपने लैपटॉप में कॉपी कर के मैंने सबको सिलसिलेवार तरीके से तस्वीरें दिखा दीं। सभी ने एक बार तो ज़रूर कहा, की हम दोनों ही अंडमान की धूप में साँवले हो गए। खैर, इन सब बातो के बाद, मैंने सबको आने के लिए धन्यवाद दिया और फिर विदा किया।

हम दोनों टहलते घूमते पास के एक दूकान पर जा कर रश्मि के लिए दो जोड़ी शलवार कुर्ता खरीद लाये। हनीमून पर जो कुछ पहना था, अगर अपने घर पर पहनती तो वहां लोग विस्मित और नाराज़ दोनों हो जाते। सुमन के लिए कई प्रकार के कपड़े जिनमें स्कर्ट-टॉप, जीन्स-टी-शर्ट, और एक बहुत खूबसूरत सूट शामिल थे - आखिर मेरी एकलौती साली है। एक कलर-लैब से मैंने दो-तीन छोटे-बड़े एल्बम, और प्रिंट करने के लिए ग्लॉसी फोटोग्राफी पेपर, और कुछ कलर कार्ट्रिज खरीद लिए। मेरे घर में लेज़र प्रिंटर पहले से ही है, जिसका इस्तेमाल मैं विभिन्न कार्यों में करता रहता था। एक मेडिकल की दूकान से मैंने दो पैकेट सेनेटरी नैपकिन, और अपने लिए कंडोम खरीदा – रश्मि के जाते जाते एक बार और आनंद लेने की तो बनती थी। यह एक रिब्ड कंडोम था – उसके बाहर की तरफ उभरी हुई धारियां बनी हुई थीं... इसका फायदा यह था की घर्षण के समय आनंद और बढ़ सकता है।

डिनर में कुछ बनाने का काम नहीं था, क्योंकि दोपहर का खाना बचा ही हुआ था। घर आकर मैंने सबसे पहले लैपटॉप पर ख़ास ख़ास तस्वीरें चुन कर प्रिंट करने पर लगा दीं। कई सारी तस्वीरें थीं, इसलिए समय लगता। इसलिए मैंने एक बैग में रश्मि का सामान पैक किया और अपने लिए एक अलग छोटे बैग में। इस बीच में रश्मि नहाने चली गई – दीं भर प्रदूषण, और गर्मी! 

‘हा हा,’ मैंने सोचा, ‘वापस जा कर पानी छूने की भी हिम्मत नहीं पड़ेगी!’ उत्तराँचल में ठंडक तो अब अपने पूरे शबाब पर होगी! पैक करते समय मेरा मन बहुत ख़राब हो रहा था – यह सोच कर की ‘मेरी जान’ कल जाने वाली है... लेकिन क्या ही करता? मेरे पास दो फोन थे – एक ऑफिस के लिए, और एक मेरा पर्सनल। रश्मि जब वापस आई, तो मैंने पर्सनल वाला रश्मि को दे दिया, जिससे वह मुझसे जब भी मन करे, बात कर सके। यह सुन कर हाँलाकि रश्मि का गला भर आया, लेकिन उसके रोने से पहले ही मैंने उसको मना लिया और संयत कर दिया। कुछ देर तक हमने बालकनी में जाकर बात चीत करी, और फिर मैं भी नहाने चला गया। वापस आकर देखा, की सारी तस्वीरें प्रिंट हो गई हैं। एक बड़े एल्बम में हम दोनों मिल कर अपने शादी, रिसेप्शन, और अंडमान की तस्वीरें लगाने लगे, जिसको रश्मि घर पर दिखा सके। एक छोटे एल्बम में मैंने हमारी बेहद अन्तरंग और नग्न तस्वीरें लगाईं – सिर्फ रश्मि के लिए... जब उसको हमारी ‘वैसी’ वाली याद आये तो उन तस्वीरों को देख कर धैर्य धर सके।

मैंने कहा, “जानू, तुम्हारा मन तो अपनी किताबो के साथ बहल जाएगा... हो सकता है की पढाई, घर और सहेलियों के साथ मेरी याद भी न आए... लेकिन मैंन तुम्हारे बिना एक दिन भी न रह पाऊँगा!”
रश्मि मेरी बात पर भावुक हो गई और मुझसे आकर लिपट गई... मैंने भी अपनी बांहें उसके चारों ओर कस दीं। 

“आपको ऐसा लगता है की मुझे आपकी याद नहीं आएगी? मुझे आपकी बहुत याद आएगी!!” रश्मि भावुक हो कर बोली। “... लेकिन मैं बहुत जल्दी ही आपकी बाहों में फिर से आ जाऊंगी!”

मैं बेबसी में मुस्कुराया, “अच्छा, मुझे प्रोमिस करो की अपना खूब अच्छे से ख्याल रखोगी!”

“प्रोमिस! आप भी रखना..”

“आई लव यू!” बिछोह के गहरे दर्द का अहसास करते हुए मैंने कहा। फिर आगे सोच कर कहा, “अच्छा, जाते जाते ‘गुडबाय किस’ तो दो!”

“अरे मैं अभी कहाँ जा रही हूँ? कल सवेरे जाना है न?”

“अरे तो मुझे भी कौन सा आपके होंठों पर किस करना है?” मैंने इतने ग़मगीन माहौल में भी शैतानी नहीं छोड़ी। लेकिन आगे जो रश्मि ने किया, वो मेरी उम्मीद के विपरीत था। 

रश्मि ने एक टेडी नाइटी पहनी हुई थी। मेरे कहते ही उसने अपनी टेडी का निचला घेरा ऊपर उठा लिया – और उसकी चड्ढी से ढकी योनि मेरे सामने परोस गई। ऐसा आमंत्रण हो तो भला कौन मना कर पाए? मैंने रश्मि को चूमने के लिए उसकी कमर को पकड़ कर अपनी तरफ खीचा, और मेरी बाहों में आते ही उसके स्तन मेरे सीने से टकराए। उसने प्यार से मेरे गले में बाहें डाल दी, और मुँह में मुँह डाल कर मुझे चूमने लगी। कुछ देर चूमने के बाद मैंने रश्मि की टेडी के ऊपर से ही उसके स्तनों का पान आरम्भ कर दिया। उनको बारी बारी से देर तक चूसा, चुभलाया और चूमा। टेडी का कपडा रेशमी और नायलॉन मिला हुआ था (मतलब मुलायम नहीं था), इसलिए मेरी मुँह की हरकतों का प्रभाव उसके निप्पलों और स्तनों पर कई गुणा अधिक हो रहा था। टेडी के ऊपर से ही मैंने जीभ की नोक से उसके निप्पलों को छेड़ा.. मेरे हर वार से उसकी सिसकारी निकल जाती। इसी बीच मैंने अपने खाली हाथ को उसकी चड्ढी के अन्दर डाला और योनि को टटोला - वह पहले ही गीली हो चली थी। कुछ देर वहां सहलाने के बाद मैंने अपनी उंगली रश्मि की योनि में डाल कर अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया।
Reply
12-17-2018, 02:16 AM,
#58
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
इस पूरे कार्यक्रम के दौरान मैंने रश्मि को निर्वस्त्र नहीं किया, और न ही अपने ही कपडे उतारे। रश्मि आँखें बंद किए आनंद लेती रही, फिर कुछ देर बाद उसने आगे बढ़ कर मेरे लिंग को पकड़ने की कोशिश करी। मैं पूरी तरह उत्तेजित था। 

“आआह्ह्ह्ह...! आज खूब देर तक कीजियेगा...” रश्मि ने उखड़ी हुई आवाज़ में मुझे निर्देश दिया। 

मैंने रश्मि को अपनी गोद से उतारा और उसका हाथ पकड़ कर बेडरूम में ले आया। वह अपने कपडे उतारने लगी तो मैंने मना कर दिया। 

“नहीं... पहने रहो। आज ऐसे ही करेंगे..”

मैंने भाग कर आज खरीदा हुआ कंडोम का पैकेट निकाला, और एक कंडोम निकाल कर अपने लिंग पर चढाने लगा। पजामा मैंने अभी भी पूरा नहीं उतारा। तो हम लोग पूरे कपडे भी पहने हुए थे, और यथोचित नग्न भी! 

“ये... क्या कर रहे हैं आप?”

“कंडोम!” फिर कुछ रुक कर, “प्रोटेक्शन...” कंडोम चढ़ाने के बाद मैंने रश्मि को बिस्तर से उठाया और अपनी गोदी में लेकर उसके नितम्बों को पकड़े हुए, उसकी पीठ को दीवार से लगा दिया। नया आसन! मैंने रश्मि को कहा की वह अपनी टांगो से मेरी कमर को जकड़ ले। रश्मि को कुछ कुछ समझ में आया की मैं क्या करना चाहता हूँ, और उसने निर्देशानुसार सहयोग किया। मैं बलिष्ठ हूँ, नहीं तो बहुत दिक्कत हो जाती। 
मैंने उसकी चड्ढी को योनि से थोड़ा अलग हटाया, और बड़ी मुश्किल से अपने लिंग को उसकी योनि में प्रविष्ट कराया। दो तीन बार धक्का लगाने से मुझे समझ आ गया की नीचे से ऊपर धक्के लगाना मुश्किल है.. एक तो उसका भार सम्हालना, और ऊपर से यह सुनिश्चित करना की लिंग योनि के भीतर ही रहे! मैंने रश्मि को धक्*का लगाने को कहा। रश्मि ने उत्साहपूर्वक धक्के लगाने आरम्भ किए.. 

यह वाकई एक आनंददायक आसन था – मुश्किल, लेकिन आनंददायक! एक तो मेरा लिंग पूरी तरह से रश्मि के भीतर जा पा रहा था, और इससे एक नए तरह के घर्षण का अहसास हो रहा था। हर धक्के में रश्मि की पूरी चूत मेरे लिंग पर घर्षण रही थी... बहुत ही आनंददायक!

और इसका सबूत रश्मि की कामुक आहों में था, "आअह्ह्ह्ह.... मस्त लग रहा है...." उसकी साँसे उन्माद के कारण उखड रही थीं। हमने पूरे उत्साह के साथ मैथुन करना प्रारंभ कर दिया। रश्मि वैसे भी मुझे कामोत्तेजना के शिखर पर यूँ ही ले जा सकती है। लिहाजा, मेरा लिंग एकदम कड़क हो गया था और इस नए आसन की चुनौती से और भी दमदार हो गया था। रह रह कर मैं रश्मि के होंठ चूम लेता, या अपने सीने के रश्मि के स्तन कुचल देता।

चाह कर भी तीव्र गति में मैथुन संभव नहीं हो पा रहा था, इसलिए हम लोग बहुत देर तक एक दूसरे में गुत्थम-गुत्था होते रहे! समय का कोई ध्यान नहीं.. लेकिन जब मैं स्खलित हुआ, तब तक रश्मि दो बार अपने चरम पर पहुँच चुकी थी, और उसका शरीर चरमोत्कर्ष पर आकर थरथरा रहा था, और वह रह रह कर कामुकता से चीख रही थी। स्खलन के बाद भी मेरा लिंग उन्माद में था, इसलिए मैंने रश्मि के शिथिल हो जाने पर धक्के लगाने शुरू कर दिए। कुछ और समय बीत जाने के बाद अंततः मेरे लिंग का कड़ापन समाप्त हुआ और मैंने अपना लिंग बाहर निकाला और रश्मि को प्रेम से वापस बिस्तर पर लिटा दिया। जब मैंने कंडोम को कचरा पेटी में, और अपने लिंग को साफ़ कर वापस बिस्तर पर आया, तो देखा की रश्मि थक कर सो गई थी।

अगले दिन सवेरे सवेरे ही हमने वापस उत्तराँचल की यात्रा आरम्भ कर दी। घर वापस जाने के कारण रश्मि ने साड़ी पहनी हुई थी। देहरादून में किराए पर SUV लेकर हमने रश्मि के घर की यात्रा आरम्भ करी। बीच में एक जगह रुक कर हमने लंच किया, और पुनः आगे चल पड़े। हवाओं में ठंडक काफी बढ़ गई थी। इसलिए मैंने SUV में हीटर चला दिया था, जिससे गर्मी रहे। 

RSS पर मेरे कुछ साथियों ने मुझसे पूछा की पहाड़ों पर ड्राइव करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। तो मैंने सोचा की क्यों न इसको कहानी का हिस्सा ही बना दिया जाय! 

वैसे तो यातायात के सारे नियमों का पालन करे, लेकिन कुछ और बातें भी ध्यान में रखनी चाहिए: 

सबसे पहले गाडी के ब्रेक और टायर जांच ज़रूर कर लें। एक तो चढ़ाव-उतार पर चलाना होता है, इसलिए ब्रेक और टायर सबसे महत्वपूर्ण हैं। कोई अँधा मोड़ आये, तो हार्न ज़रूर बजा दें और मोड़ों पर कभी भी ओवरटेक न करें। गाड़ी को ओवरलोड न करें। वर्षा, हिमपात या भू-स्खलन की स्थिति में रुक जाना ही ठीक है, और रात में ड्राइव करना अवॉयड ही करें। गाड़ी पार्क कर के हैंड-ब्रेक ज़रूर लगायें। बर्फ और बारिश के समय कम गति से चलायें। सभी लोग सीट-बेल्ट ज़रूर पहनें। बाएं मोड़ की अपेक्षा दाएं मोड़ में ज्यादा सावधानी रखने की जरूरत होती है। 

उम्मीद है की यह बाते आप ध्यान में रखेंगे।

रश्मि के घर हम लोग कोई चार बजे पहुँचे! एक बात तो कहना भूल ही गया, रश्मि के घर हमने किसी को भी इत्तला नहीं दी थी की हम आने वाले हैं! वो सभी लोग हमारे इस सरप्राइज से दंग रह गए और बहुत खुश भी हुए। मैंने ससुर जी को बताया की रश्मि की पढाई का हर्जा हो रहा था, इसलिए जब तक शीतकालीन अवकाश नहीं शुरू हो जाते, तब तक रश्मि यहीं रहेगी, और अब तक का कोर्स पूरा कर लेगी। और उसके बाद छुट्टियों में वापस बैंगलोर आ जाएगी, और फिर वापस आ कर एग्जाम इत्यादि लिख कर वापस बैंगलोर आ जायेगी। उनको सुन कर काफी तसल्ली हुई। उसका वापस आने का टिकट मैंने पहले ही बुक कर दिया था। इतनी सारी फ्लाइट लेने, और हवाई यात्रा करने के बाद मुझे उम्मीद थी की रश्मि खुद हवाई यात्रा करने में अब सक्षम थी।

मैं वापस निकलना चाहता था, लेकिन सभी ने रोक लिया। वैसे भी मेरी फ्लाइट कल दोपहर बाद की थी, इसलिए अभी शुरू कर के मुझे कोई खास फायदा नहीं होना था। इसलिए मैं रुक गया। मौसम काफी ठंडा हो गया था – और रात में ठंडक और बढ़नी ही थी। खैर, सासु माँ तुरंत ही हमारे सत्कार में लग गईं – चाय पकोड़े इत्यादि! और उसके बाद रात का खाना। इसी बीच में हमने सभी को शादी इत्यादि के एल्बम दिखाए। रश्मि ने पहले से ही बड़ी चतुराई से अपना ‘छोटा वाला’ एल्बम छुपा लिया था।

हमारे आने की खबर हमारे कसबे में आने के साथ ही सभी को हो गई थी। तो मुझे बहुत आश्चर्य नहीं हुआ जब रश्मि की कई सारी सहेलियाँ मुझसे मिलने घर आईं। वो सभी रश्मि को चिढाने के लिए मुझसे बहुत देर तक हंसी मज़ाक करती रहीं, 

‘जीजू, हमारी बहना को आपने ज्यादा सताया तो नहीं?’ 
‘हाय राम, आपने तो इसका मुँह काला कर दिया!’ 
‘जिज्जू, इस बार अपने साथ आचार लेते जाइएगा!’

इत्यादि! 

जब रश्मि की माँ ने उनको डांट लगाई, तो फिर जाते जाते मुझसे काफी सट कर तस्वीरें भी खिंचायीं, और एक गुस्ताख ने मेरा मुँह प्यार से नोंच कर चुम्बन दिया। बदमाश लड़कियाँ!

जाड़ों में, खासतौर पर पहाड़ों पर बहुत ही जल्दी सूर्यास्त और अँधेरा हो जाता है। इसलिए सासू माँ खाने की जल्दी कर रही थीं। खैर, डिनर करीब सवा सात बजे ही परोस दिया गया, और करीब आठ बजे तक अपने सास-ससुर से बात करने के बाद, रश्मि और मैं, रश्मि के (हमारे सुहागरात वाले) कमरे में आ गए। मैंने सुमन को भी कमरे में बुला लिया। 

“क्या हुआ जीजू?”

“अरे, पहले अन्दर तो आओ... फिर बताएँगे!”

मैंने एक एक कर के सुमन के उपहार उसके सामने सजा कर रख दिए! सुमन नए नए कपड़ों को देख कर बहुत खुश हुई, “ये सब कुछ मेरे लिये हैं?”

“हाँ!”

“दीदी के लिए क्या लिया, आपने?”

“अरे! तुम अपना देखो न!” रश्मि बोली...

“नहीं.. बस ऐसे ही पूछा! ... थैंक यू, जीजू!” कहते हुए उसने मेरे दोनों गालो पर चुम्बन भी लिया। मेरे बगल में रश्मि मुस्कुराती हुई अपनी बहन को देख रही थी। सुमन ने फिर रश्मि को भी चूमा।

“इनको पहन कर देखो तो! ठीक फिट आते भी हैं, या नहीं?”

“ठीक है!” कह कर सुमन ने एक जोड़ी कपडा उठाया और दूसरे कमरे में चली गई। मैंने ध्यान नहीं दिया की कौन सा उठाया था.. रश्मि और मैं किसी बात में मशगूल हो गए और कुछ ही देर में सुमन कमरे में आई। मैंने देखा की वह सकुचाते हुए चल रही थी – ह्म्म्म उसने स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था। सकुचाने की वजह भी थी। यह स्कर्ट किसी और जगह के लिए मॉडेस्ट कहलाती, लेकिन यहाँ, इस छोटी जगह के लिए हो सकता है उचित न हो! स्कर्ट की लम्बाई उसके घुटने के ठीक नीचे तक ही आई। मैंने और रश्मि दोनों ने ही उसकी ड्रेस का जायजा लिया और फिर मैंने सुमन को मुड़ने का इशारा किया। पीछे मुड़ कर हमको पूरा जायज़ा करने देने के बाद सुमन ने पूछा, “ठीक है?”

मेरे बोलने से पहले रश्मि ने की कहा, “अरे बहुत बढ़िया! मैंने नहीं सोचा था की इतना अच्छा लगेगा, है न?”

“बिलकुल! यह तो बहुत ही अच्छा फिट हुआ है..” मैंने कहा, “अब ये जीन्स पहन कर दिखाओ।“

सुमन पूरे उत्साह से अपना अगला कपड़ा ले कर कमरे से बाहर निकल गई, लेकिन बहुत जल्दी ही वापस आ गई। उसने अभी भी स्कर्ट और टॉप ही पहना हुआ था।

“क्या हुआ?” मैंने पूछा।

“वहाँ जगह नही है.. मम्मी पापा आ गए हैं। कल पहन कर दिखा दूं?”

“अरे! कल तो मैं सवेरे सवेरे ही चला जाऊँगा। कैसे देखूँगा?“ मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

“नीलू, यही बदल ले न?” रश्मि ने सुझाया!

“यहीं? तुम दोनों के सामने?”

“हाँ! क्यों क्या हुआ?”

“धत्त! मुझे शर्म आएगी!”

“अरे, इसमें शरम वाली क्या बात है? हम दोनों को तुम पहले ही ‘वैसे’ देख चुकी हो... और ‘ये’ तो तुम्हारे जीजू ही हैं।”

सुमन ने कुछ देर तक रश्मि की बात को तौला – संभवतः वह यह बात माप रही हो की अपने जीजा के सामने कपड़े बदलना, या निर्वस्त्र होना – क्या यह एक सहज क्रिया है? दीदी तो ऐसे ही कहती हुई मालूम हो रही है... अगर उसको कोई दिक्कत नहीं है, और मुझे नहीं है, तो फिर बिलकुल किया जा सकता है। लेकिन ये लोग कहीं शरारत में किसी को इसके बारे में कुछ बता न दें!

“पक्का? आप दोनों किसी को बताओगे तो नहीं? पापा को मालूम पड़ गया तो मेरी टाँगें तोड़ देंगे।“ ये सुमन ने मुझसे कहा था... बहुत विश्वास चाहिए, ऐसे कामों के लिए! मुझे अच्छा लगा की सुमन हम दोनों पर इतना विश्वास करती है। ठंडक में इतनी देर तक ऐसे कम कपड़े पहने रहने के कारण वह थोड़ा कांपने भी लग गई थी। 

“अरे, हम लोग क्यों बताएँगे? बस जल्दी जल्दी चेंज कर के दिखा दो। ठीक है?” मैंने कहा।

“ठीक है!”

कह कर सुमन ने जा कर कमरे का दरवाज़ा बंद दिया, और वापस आ कर कपड़े बदलने का उपक्रम करने लगी। अब यदि कोई ऐसा काम करे तो कोई कैसे न देखे। रश्मि और मैं दोनों की सुमन को कपड़े बदलते हुए उत्सुकता से निहारने लगे। किसी के सामने निर्वस्त्र होना उतना आसान नहीं है, जितना कहने सुनने में लगता है। पति पत्नी भी पहली बार बार जब एक दूसरे के सामने निर्वस्त्र होते हैं तो अपनी नग्नावस्था के बोध से कई बार सेक्स नहीं कर पाते।

“जीजू, आप उधर देखिए न? मैं कपड़े बदल लूँ!” सुमन ने स्कर्ट का हुक खोलते हुए मुझसे कहा।

“रहने दे न! अगर मैं देख सकती हूँ, तो तेरे जीजू के देखने में क्या बुराई है?” रश्मि ने प्रतिरोध किया।

“एक मिनट! नीलू, अगर तुमको मेरे देखने में शर्म आती है तो एक बार फिर से कहो। मैं आँखें बंद कर लूँगा। बोलो बंद कर लूं?” 

सुमन ने मुझे एक बार देखा, दो पल यूँ ही चुप रही, और फिर उसने शर्माते हुए नजरे नीचे कर ली और सर हिला कर ‘न’ कहा। और अपनी स्कर्ट को नीचे सरका दिया। सुमन ने एक साधारण सी चड्ढी पहनी हुई थी। मैं और रश्मि दोनों की सुमन को ऐसे देख रहे थे। मुझे मज़ा आने लगा। सुमन ने धीरे से अपना टॉप भी उतार दिया। उसने नीचे कुछ भी नहीं पहना हुआ था – लिहाजा, सुमन हमारे सामने सिर्फ चड्ढी पहने खड़ी हुई थी... 
पहला विचार जो मुझे सुमन के स्तनों (?) को देख कर आया, वह यह था की कुछ समय बाद ये बड़े हो जायेंगे, और फिर किसी दिन ये स्तन किसी बच्चे को दूध पिलायेंगे। उम्र के हिसाब से उसके स्तन भी अभी छोटे ही थे – और उसके निप्पल, रश्मि के निप्पलों से एकदम अलग थे। वह गहरे भूरे रंग के थे, मानो चॉकलेट रंग के... और निप्पल के बगल का परिवेश (जिसको अंग्रेजी में areola कहते हैं), न के बराबर था। एक पचास पैसे का सिक्का उसके निप्पल को ढक सकता था। उसी में से छोटे छोटे सख्त निप्पल बाहर की ओर निकले हुए थे। सुमन मेरी नज़र में एक बच्ची ही है, अतः मुझे उसके छोटे स्तनों, और उसके शरीर से किसी भी प्रकार का आकर्षण नहीं हुआ...
Reply
12-17-2018, 02:16 AM,
#59
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
खैर, आगे जो सुमन ने किया वह हमारे लिए पूरी तरह से अप्रत्याशित था। उसने नीचे झुक कर अपनी चड्ढी भी उतार दी। क्यों किया उसने ऐसे? वह थोड़ा सा घबराई हुई अवश्य थी, लेकिन उसके चेहरे को देख कर लग रहा था की संभवतः उसको यह अपेक्षित था। न चाहते हुए भी उसकी छोटी सी योनि पर मेरी नज़र चली गई। मन में ग्लानि भर गई। मैंने इशारे से सुमन को अपने पास बुलाया। वो थोड़ा झिझकते हुए मेरे पास आई तो मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर अपने पास खींच लिया, और अपनी गोद में बैठा लिया। अब सुमन के शरीर की कंपकंपाहट काफी बढ़ गई थी – ठंडक शर्तिया उस पर प्रभाव डाल रही थी। उसकी नग्नता को मैंने अपने आलिंगन से छुपा लिया।

मुझे और कुछ समझ नहीं आया और मैंने उसको अपनी बाँहों में ही भरे हुए उसकी गर्दन पर एक चुम्बन दे दिया।

“यह क्यों जीजू?”

“आई ऍम सॉरी बेटा! हमें तुमसे यह सब करने को नहीं बोलना चाहिए था।“

“सॉरी मत कहिये जीजू! मैंने जो भी कुछ किया, अपनी मर्ज़ी से किया। मुझे मालूम है, आप दोनों मुझसे खूब प्यार करते हैं... इसलिए मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगा... उल्टा, मुझे बहुत अच्छा लगा की आपने मुझे ऐसे देखा...”

“बिलकुल... वी लव यू वैरी मच! और तुम बहुत खूबसूरत हो, नीलू!” कह कर मैंने सुमन के दोनों गाल बारी बारी चूमे, और एक बार फिर से उसको जोर से अपने गले से लगा लिया। मेरी देखा देखी रश्मि ने भी सुमन को बहुत प्यार से कई बार चूमा और ‘आई लव यू’ बोला। सुमन शरमाते हुए ऐसे ही नग्न हम दोनों से काफी देर लिपटी रही, और फिर उसने बारी बारी से अपने बचे हुए कपड़े भी पहन कर दिखाए। सारे के सारे परिधान बढ़िया फिटिंग के थे, और उस पर बहुत फब रहे थे।

सुमन आखिरी कपड़े उतार कर अपने पहले वाले कपड़े पहनने का उपक्रम कर ही रही थी की बिजली चली गई। कमरे में घुप्प अँधेरा! रश्मि ने कहा की वह बाहर जा कर मोमबत्ती का इंतजाम करती है। इस बीच सुमन उसी अवस्था (अर्धनग्न) में कमरे में खड़ी रही। मैंने ही उसको अपने पास बुला कर बिस्तर पर बैठा लिया। तीन चार मिनट बाद रश्मि मोमबत्ती ले कर कमरे में आई। उतने में सुमन ने अपना वापस शलवार कुर्ता पहन लिया। जाहिर सी बात है अब सोने का उपक्रम होना था, और सुमन के बाहर जाने की बात थी। लेकिन सुमन जाने का नाम ही नहीं ले रही थी – बिस्तर पर ही बैठे बैठे संकोच भरी मुस्कान भर रही थी। 

“क्या हुआ नीलू?” 

“जीजू - दीदी!”, सुमन ने सकुचाते हुए हम दोनों से कहा, “आज मैं आप लोगो के साथ सो जाऊं?” वो बेचारी लड़की बड़ी उम्मीद और निरीहता से हम दोनों को बारी बारी से देख रही थी। मैंने रश्मि की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि डाली, और रश्मि ने मुझे अत्यंत विनोदी उत्सुकता से देखा। 

“मैं पहले हमेशा ही दीदी के साथ सोती थी...” सुमन ने कहना जारी रखा, “उसके जाने के बाद मैंने उसको बहुत मिस किया... और कल आप भी चले जायेंगे। और मैं आपको भी बहुत मिस करूंगी। प्लीज़!” 

चूंकि रश्मि ने कुछ नहीं कहा, तो मुझे ही इस स्थिति के लिए निर्णय लेना था। ‘क्या फर्क पड़ता है?’ मैंने सोचा।

“हा हा... बस इतनी सी बात? बिलकुल सो जाओ!” मैंने माहौल को थोडा विनोदी बनाते हुए आगे जोड़ा, “मेरी किस्मत तो देखो – एक साथ दो-दो सुन्दर लड़कियों के साथ सोने का मौका मिल रहा है आज!”

मेरी इस बात पर सुमन शरमा गयी। हम दोनों को ही दिन भर कपड़े बदलने का समय ही नहीं मिल पाया था, इसलिए सोने से पहले कुछ आराम-दायक पहनना आवश्यक था। रश्मि ने कहा की वह बड़े कम्बल लेकर आती है, और एक बार फिर से बाहर चली गई, और कुछ ही देर में रश्मि दो बड़े कम्बल और चद्दर लेकर वापस कमरे में आ गई। कपड़े चेंज करने से पहले मैंने सुमन को मुँह फेरने को कहने की सोची, लेकिन फिर लगा की यह सही नहीं होगा। उसी के सामने मैंने सब कपड़े उतार कर पजामा कुरता पहन लिया – कमरे में वैसे भी अँधेरा सा ही था, इसलिए बहुत हिचकिचाहट नहीं हुई। मेरी देखा देखी रश्मि ने भी अपनी साड़ी उतार दी... सिर्फ साड़ी। 

“अब मुझे यह बताओ की किस तरफ लेटोगी? मेरी तरफ या दीदी की तरफ?” मैंने बिस्तर पर बैठते हुए सुमन से पूछा।

“दीदी की तरफ!” सुमन ने जब शर्म से दोहरा होते हुए कहा तो मैं और रश्मि दोनों ही हँस पड़े। 

जैसा मैंने पहले भी बताया है की हमारा पलंग कोई ख़ास बड़ा नहीं था, लिहाज़ा, तीन लोगो के लेटने का केवल एक ही तरीका हो सकता था, और वह यह की रश्मि बीच में चित हो कर लेटे, और मैं और सुमन दोनों करवट लेकर। ऊपर से दोहरे कम्बल और चद्दर की परतें ओढ़ी हुई थीं, और साथ में तीन लोग चिपक कर लेटे थे, इसलिए गर्मी अच्छी हो गई थी। लेटने से पहले मोमबत्ती बुझा दी गई थी। मैंने करवट लेकर रश्मि को अपनी दाहिनी बाँह के घेरे में ले लिया। सुमन मुझसे काफी देर तक मेरे, बैंगलोर और अंडमान के बारे में सवाल कर रही थी। उसकी बातों में, और दिन की यात्रा की थकावट के कारण नींद कब आ गई, कुछ याद ही नहीं!

अगली सुबह काफी जल्दी उठ गया, और उठ कर बिस्तर से बाहर निकलते ही कड़ाके की ठंडक का एहसास हुआ। सवेरे का कोई चार साढ़े-चार का समय हुआ था - सूर्योदय अभी भी कोसों दूर था। दरअसल इस बार पूरा प्रदेश भीषण ठंड की चपेट में जल्दी ही आ गया था। गढ़वाल हिमालय में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री जैसे स्थानों पर बर्फबारी भी आरम्भ हो गई थी। हमारे जाने के बाद, और आने के पहले देहरादून और अन्य निचले इलाकों में रुक-रुक कर बारिश होती रही, जिससे ठिठुरन बढ़ गई थी। खैर, उम्मीद थी की इस कारण से सड़क पर यातायात कुछ कम रहेगा। और हुआ भी वैसा ही। मैंने सवेरे फ्रेश हो कर चाय नाश्ता किया, उस बीच रश्मि को जरूरी निर्देश दिए (यही की अपना ठीक से ख़याल रखे, पढाई में मन लगाए..), उसको कुछ रुपए थमाये - जिससे वह अपना, सुमन और घर का, और यात्रा के अन्य खर्चों का वहां कर सके। उसके पास कोई बैंक अकाउंट अभी तक नहीं था, इसलिए यही एकमात्र साधन था। खैर, नाश्ते के बाद सभी से विदा ली – सुमन को प्यार से गले लगाया, और रश्मि को चूमा (सबके सामने ऐसे खुलेपन से प्रेम प्रदर्शित करने से वहां सभी लोग शरमा गए), और माँ-पापा से आशीर्वाद लिया, और वापसी की यात्रा शुरू की।

मैंने देखा की सड़क पर लोगों की आवाजाही काफी कम थी, ठंडक का प्रकोप साफ़ दिख रहा था। एक तो सवेरा था, और ठंडक भी ... इसके कारण ज्यादातर लोग अपने घरों में ही दुबके हुए थे। खैर, मैंने कुछ देर तक गाडी चलाई – नींद का और ठंडक का असर अभी भी था – इसलिए बहुत आलस्य लग रहा था। कोई चालीस मिनट ड्राइव करने के बाद मैंने गाड़ी रोक दी - रास्ते में ही एक ढाबे टाइप रेस्त्राँ था, अतः वहीँ पर रुक कर गरमागरम चाय और बिस्किट का सेवन करने का सोचा। शरीर में गर्मी आई – कुछ भी हो... ठंड में गर्म चाय का आनंद ही कुछ और होता है! 

यह ढाबा किसी ने अपने खेत के ज़मीन पर ही बनाया हुआ था – इसके पीछे खुला हुआ खेत था, जिसमें सारस का एक जोड़ा एक अंत्यंत आकर्षक प्रणय नृत्य में मग्न था। सारस पक्षियों का प्रणय नृत्य अत्यंत मनोहारी और सुपरिष्कृत होता है। कभी इनको ध्यान से देखना – कई सारे सारस पक्षी किसी जलाशय में उतरकर अलग अलग जोड़ों में बंट जाते हैं और अपने मनमोहक नृत्यों से अपनी प्रेमिकाओं का मन जीत लेते हैं। देखा गया है की सारस नर और मादा, एक दूसरे के प्रति पूरी तरह से समर्पित होते हैं - एक बार जोड़ा बनाने के बाद ये जीवन भर साथ रहते हैं, और यदि उनमे से एक साथी की मृत्यु हो जाए, तो दूसरा अकेले ही रहता है। इसी कारण से सारस पक्षी को देखना बहुत शुभ माना जाता है, ख़ास तौर से विवाहित जोड़ो के लिए। 

पक्षियों का नृत्य जैसे मेरे देखने के लिए ही हो रहा था – कोई एक मिनट के बाद वे वापस खेत में खाने पीने में लग गए। इस नृत्य ने जहाँ मेरे मन को मोह लिया, वही मेरे ह्रदय में एक अजीब सा खालीपन भी छोड़ गया... मेरा तो सब कुछ पीछे ही छूट गया था न! इतनी उम्र हो आई, लेकिन रश्मि से पहले किसी भी व्यक्ति के संग की आवश्यकता मैंने कभी महसूस नहीं करी। मैंने फ़ोन उठाया और एक sms लिखा :

“Missing you already. Your voice, your touch, your smell, your warmth! How will I spend these days without you?”

और रश्मि को भेज दिया। चाय ख़तम किया और गाड़ी स्टार्ट ही करने वाला था की मेरे फ़ोन पर एक sms आया :

“Dear husband.. my handsome husband! I also can’t wait to see you again.”

मैं मुस्कुराया – आगे की यात्रा के लिए मुझे भावनात्मक ऊर्जा मिल गई थी। गाड़ी यात्रा का पहला पड़ाव देहरादून था – वहां मैंने गाडी वापस सौंपी, और एक जगह खाने के लिए रुका। वही जगह, जहाँ रश्मि और मैंने साथ में पहले भी लंच किया था। खाना खाते खाते मुझे रश्मि का एक और sms आया :

“Can’t wait to kiss you when we see each other. Love you.”

‘किस नहीं, इतने दिनों के इंतज़ार के बाद मैं सिर्फ एक काम ही करूंगा!’ मैंने निराश होते हुए सोचा। 

देहरादून एअरपोर्ट से बैंगलोर तक का सफ़र... समय मानों हवा में उड़ गया। कुछ याद नहीं। हाँ, जैसे ही बैंगलोर पहुंचा, मैंने तुरंत ही रश्मि को फ़ोन लगाया और देर तक प्यार मोहब्बत की बातें करीं। जब घर पहुंचा तो सन्नाटा बिखरा हुआ था – यही सन्नाटा पहले मेरा साथी था, लेकिन आज एकदम अजनबी जैसा लग रहा था। कायाकल्प! पुनर्जीवन, जो मुझे रश्मि के मेरे जीवन में आने से मिला है, वह एक अनुपम धरोहर है। और, रश्मि भगवन के द्वारा भेजा हुआ उपहार है मेरे लिए। बिलकुल!! 

मैंने कंप्यूटर ऑन किया, और रश्मि की सबसे बेहतरीन नग्न तस्वीर ढूंढ कर उसका A4 साइज़ का प्रिंट लिया और हमारे बेडरूम की दीवार पर (ऐसे की लेटे हुए, या सो कर जागने पर बस सामने उसी तस्वीर पर नज़र पड़े) लगा दिया। रात में खाना खा कर रश्मि को फ़ोन पर मैंने बहुत देर तक प्यार किया और फिर सोने से पहले एक और sms किया :

“I can almost feel you here. Kissing me. Touching me. Come in my dreams tonight.. naked!”

सवेरे देर तक सोया और जब उठा तो देखा की एक और संदेशा आया है :

“Honey! Getting ready for school. In my dream last night, we were sleeping together. We were naked and your skin was hot. I never wanted to wake up.”

बस, हमारे बिछोह भरे दिन और रातें ऐसे ही बीतने लगे – फ़ोन पर बातें (ज्यादातर रोमांटिक और सेक्सी बातें), कभी sms, तो कभी कभार पत्र-लेखन भी! मेरे वो पाठकगण जिनको इस प्रकार के बिछोह का अनुभव होगा वो मेरी इस बात से सहमत होंगे की जब एक बार साथी की आदत लग जाय, तो अकेले रहना अत्यंत मुश्किल हो जाता है! वो कहते हैं न, दिन तो कट जाता है... लेकिन रात कभी ढलती ही नहीं! दिन कैसे न कट जाय? सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ दौड़ भाग! लेकिन रश्मि ने रोज़ रोज़ सम्भोग की आदत लगवा दी... अब ऐसे में रातें गुजरें तो कैसे गुजरें?

ज्यादातर पुरुष जब विरह के कष्ट में विलाप करते हैं तो उस विलाप में सिर्फ प्रेम वाली भावना होती है। प्रेम शारीरिक हो या आत्मिक – उसकी चर्चा नहीं है यहाँ। बस यह की प्रेम के कारण ही दुःख हो रहा होगा। पुरुष सिर्फ अपनी पत्नी या प्रेमिका के विरह में व्याकुल होता है। मैं भी व्याकुल था। रश्मि की बातें, उसका हँसना, उसका स्पर्श, उसका शरीर, उसके शरीर की गर्माहट, उसके शरीर के कोने कोने की बनावट–नमी–और–गर्मी! यह सब बातें बस रह रह कर याद आतीं और बहुत सतातीं। और फिर दीवार पर लगा उसका चित्र! उसे देखकर हमारे पहले संसर्ग की यादें ताज़ा हो जातीं! मेरा अपने ही लिंग पर कोई काबू न रह पाता! ऐसे में हस्तमैथुन के सिवा कोई और चारा ही न बचता! 

दोस्तों, हस्तमैथुन के बारे में न जाने कैसी कैसी भ्रांतियाँ फैली हुई हैं! सच तो यह है की यह एक अत्यंत प्राकृतिक क्रिया है। जब यौनपरक इच्छाएँ किसी व्यक्ति में उत्तेजना जगाती हैं, तो उनसे निवृत्त होने के लिए किए गए स्वकृत्य को ही हस्तमैथुन कहा जाता है। अर्थात कोई स्त्री या पुरूष, जब कामोन्माद की चरमसीमा का तीव्र आनन्द पाने के लिए खुद ही अपनी जननेन्द्रियों से छेड़छाड़ करता है तो उसे हस्त-मैथुन कहते हैं। हस्तमैथुन बेहद प्राकृतिक और स्वभाविक प्रक्रिया है। कुछ लोग इसको बीमारी बताते हैं, और कहते है की कमजोरी आ गई! कैसे मूर्ख लोग हैं! सच तो यह है की यह बहुत सुरक्षित, और सम्मानजनक तरीका है यौन-संतुष्टि पाने का। खुद ही सोचिये! अगर हर कोई (जिसमे अविवाहित लोग भी शामिल हैं), यौन निवृत्ति के लिए वेश्यागमन करे, या अतिशय साधन के रूप में किसी लड़की से बलात्कार करे, तो क्या यह सही बात होगी? जरा सोचिये, अपने घर के सुरक्षित एकांत में बैठ कर, किसी भी प्रकार के उन्मादक विचारों और फंतासी के साथ जब आप संतुष्ट हो सकते हैं, तो उसमें भला क्या बुराई हो सकती है?

खैर, मैं तो भई जब देखो तब, अनायास ही, मैं अपना लिंग बाहर निकाल लेता, और मन ही मन रश्मि के रूप को याद करते करते हस्तमैथुन करने लगता। हमारे पुनः मिलन की बेला बहुत दूर तो नहीं थी, लेकिन इस बीच कम से कम दो सप्ताह तक मैंने हस्तमैथुन कर के ही काम चलाया। लेकिन जिस पुरुष को रश्मि जैसी साक्षात् रति की प्रतिरूप पत्नी मिली हो, उसका मन हस्तमैथुन से कैसे भरे? तो अब मेरे पास क्या चारा था – सिवाय रश्मि के वापस आने के?
Reply
12-17-2018, 02:16 AM,
#60
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि का परिप्रेक्ष्य

आज के दिन का मैं पिछले एक महीने से इंतज़ार कर रही थी। आज मेरे कृष्ण.. मेरे रूद्र से मिलने मुझे बैंगलोर की यात्रा जो करनी थी। जबसे मैं अपने मायके आई (देखिए न... कैसे ‘अपना पुराना घर’ मायका बन जाता है... यदि पति का ऐसा स्नेह मिले तो कुछ भी संभव है).. तभी से मुझे बस अपने पिया से मिलने की धुन सवार है। मैंने अनगिनत लड़कियाँ देखी हैं, जो शादी के बाद वापस अपने मायके आने के लिए मरती रहती हैं... और एक मैं हूँ जो वापस अपने पति के घर जाने के लिए मरी जा रही हूँ। ऐसा नहीं है की मुझे माँ पापा से कोई कम प्यार मिला – वो दोनों तो जान छिड़कते हैं। माँ तो मुझे घेर कर बैठ गई – ‘मेरे घर’ की हर बात के बारे में पूछा – क्या है, कैसा है, वहां के लोग कैसे हैं, रूद्र कैसे हैं, घर कैसा है, समुद्र कैसा होता है, अंडमान कहाँ है, हवाई जहाज में कैसा लगता है इत्यादि इत्यादि। एक दो दिन बाद माँ ने दबा-छुपा कर रूद्र और मेरे अन्तरंग संबंधो के बारे में भी पूछ लिया। मेरी शर्म भरी संतुष्ट मुस्कान और संकोच भरी वैवाहिक बातों से वे अवश्य ही संतुष्ट और प्रसन्न हुई होंगी।

वापस मायके आना तो मानो एक मिशन समान था। ढंग की उच्च माध्यमिक शिक्षा और अंक प्राप्त करने का मेरा उद्देश्य और बढ़ गया। ज्यादातर लड़कियाँ शादी के बाद अपनी शिक्षा की इतिश्री कर लेती हैं, लेकिन रुद्र के प्रोत्साहन, मेरी शिक्षा में उनकी रूचि और शिक्षा के लिहाज से उनके ‘लायक’ बनने की मेरी स्वेच्छा के कारण मैं इस एक महीने और आगे आने वाले समय में ठीक से पढाई करना चाहती थी। परीक्षा के लिए फार्म इत्यादि भरने का कार्य सम्पन्न हो गया था, और मैं अपने शिक्षकों और शिक्षिकाओं के साथ ज्यादातर समय पढ़ने में लगा रही थी। कुछ ही दिनों में छूटा हुस कोर्स मैंने पूरा कर लिया और वर्तमान कोर्स के बराबर आ गयी। मेरी देखा देखी सुमन भी पढाई में ही मन लगा रही थी, और यह सब कुछ हमारे माँ पापा को बहुत संतुष्ट कर रहा था। वो दोनों हमेशा की ही तरह हमारी सभी सुविधाओं का ध्यान रख रहे थे, जिससे हमारी पढाई लिखाई में व्यवधान न हो। इसका यह मतलब कतई नहीं की मैंने एक महीना सिर्फ पढाई ही करी – किसी पारिवारिक मित्र के यहाँ कोई प्रयोजन हो तो हम लोग वहाँ ज़रूर गए। सर्दियों में वैसे भी खाने पीने की प्रचुरता हो जाती है, तो मैंने खाने पीने में भी कोई कोताही नहीं बरती। रोज़ रूद्र से फोन पर बात हो ही जाती थी, इसलिए हर रोज़ मुझे अवलंब (सहारा) मिलता। 

मजे की बात हो और सखी सहेलियों का जिक्र न हो, ऐसा नहीं हो सकता। उनकी हंसी-चुहल, और मेरी टांग खिंचाई पूरे महीने भर चली। अंततः बात मेरे यौन अनुभवों पर आ कर रुकी। माँ ने यौन संबंधों के बारे में जब मेरे साथ पहली बार (शादी के कुछ हफ़्तों पहले) चर्चा करी थी तो मुझे इतनी शर्म और हिचक महसूस हुई की मैं आपको बता नहीं सकती। ऐसे कैसे मन से ‘इन’ विषयों पर बात की जाय? अद्भुत है न? हमारे देश में इतने सारे विवाह, और इतने सारे बच्चे होते हैं... फिर भी इन विषयों पर माँ-बाप से बच्चे शायद ही कभी बात करते हैं। संभव है इसीलिए माँ ने पड़ोस की भाभियों को मुझे कुछ ज्ञान देने को कहा होगा। झिझक तो उनके साथ भी हुई, लेकिन कम... लेकिन सहेलियों के साथ इस विषय पर खुल्लम-खुल्ला बात हो जाती है। पिछले चौदह पन्द्रह साल से एक दूसरे के दोस्त होने के कारण हम लोग हम एक-दूसरे की कई सारी निजी बातें भी जानते हैं, और ज़रुरत पड़ने पर सलाह मशविरा भी लेते-देते हैं। हमारे बीच छेड़-छाड़ और हंसी-मज़ाक उम्र के साथ साथ बढ़ती चली गयी। तो आज जब सेक्स के बारे में उनको जानने बूझने का मौका मिला, तो मेरी तीन ख़ास सहेलियों ने तो मुझे घेर कर सब कुछ जानने और पूछने की ठान ली।

“शादी के बाद क्या-क्या धमाल किया मेरी बन्नो ने?” एक सहेली ने पूरी बेशर्मी से पूछा।

“अरी, शरमा मत मेरी लाडो! उस दिन हमने तुम्हारी आहें सुनी थीं... जीजू तुमको सवेरे सवेरे ही निबटाये डाल रहे थे! हाय! बता री! क्या क्या किया तुम दोनों ने?” दूसरी सखी ने पूछा – नमक मिर्च लगा कर।

“अरे बता दे! ऐसे क्यों नखरे कर रही है? अरे, हमें भी तो कुछ सीखने को मिले!” तीसरी ने और कुरेदा।

“क्यों री! तुम लोगो को कुछ ज्यादा ही हवा लग गई है जवानी की!” मैंने चुटकी ली। 

“अरे वाह! तू तो ब्याह कर के इतने मजे ले रही है.. अपने राजा के साथ महल में रह रही है... और हमको जवानी की हवा भी नहीं लगे! वाह भाई वाह!” तर्क वितर्क जारी था।

मुझे यह नहीं मालूम की पुरुष अपने यौन संबंधो की बाते अपने मित्रों से करते हैं या नहीं, लेकिन स्त्रियों के बीच ऐसी बातें करना बहुत स्वाभाविक सा लगता है। ज्*यादातर महिलाएं जब अपनी सहेलियों से मिलती हैं, तो अक्सर यौन संबंधों की बातें करती हैं। मेरी सारी सहेलियाँ मेरी हम-उम्र थीं, और एक दो की तो शादी की बातें भी चल रही थीं (यह कोई अनहोनी बात नहीं है... पिछड़े इलाकों में सत्रह अठारह की उम्र में शादी तो बहुत ही आम बात है)। उस उम्र में वैसे भी यौन इच्छाएँ अपने पूरे शबाब पर होती हैं – सभी लड़कियाँ अपने अपने (काल्पनिक) साथी के साथ अन्तरंग संबंधो की कल्पना कर रही होती हैं। वैसे, अब उन लड़कियों में मुझे ऊँचा दर्जा मिल गया था – मैं अनुभवी जो हो गई थी। बहुत देर तक न नुकुर करने के बाद मैंने उनको धीरे धीरे सुहागरात और हनीमून से लेकर, यहाँ वापस आने तक की सारी बातें सिलसिलेवार तरीके से बता दीं। इसमें क्या ही बुराई हो सकती है... वो कहते हैं न, ज्ञान बांटने से बढ़ता है। मैंने तो मानो साक्षात् कामदेव से यौन शिक्षा प्राप्त करी थी। इसलिए मैंने उनको सब कुछ विस्तार से बताया की कैसे मेरे पति ने मुझे हर दिन, दोनों हाथों से लूटा। उनको मैंने जब अंडमान के बीच पर सिर्फ अधोवस्त्रों में खुली धूप सेंकने के बारे में बताया तो, किसी ने यकीन ही नहीं किया। 

“हाय! शर्म नहीं आती? ऐसे ही... सबके सामने?”

“अरे हम कैसे मान लें? कुछ भी बढ़ा चढ़ा कर बोल देगी, और हम मान लेंगे?”

“नहीं मानना है तो मत मान! हमने जो किया, वो मैंने बता दिया!” कह कर मैंने हाथ झाड़ा, और उठने लगी।

“अरे! तू तो नाराज़ हो गई...” सहेली ने मुझे हाथ पकड़ कर वापस बैठाया, “मान लिया भई! ये तो बता, जीजू तेरे दुद्धू पीते हैं क्या? कामिनी कह रही थी की उसके भैया उसकी भाभी के पीते हैं... उसने उन दोनों को ऐसे करते हुए देखा था। अब तू ही बता भला! दूध पीने का काम तो बच्चों का है, बड़े लोगो का थोड़े ही!”

अन्तरंग सवालों का सिलसिला थमने वाला नहीं था।

“बोल न, रश्मि! जीजू पीते हैं क्या तेरे दूध?”

उत्तर में मैं सिर्फ मुस्कुरा दी।

“पीते हैं? क्या सच में! हाय राम!” उन सबको विश्वास नहीं हुआ।

“बाप रे! बोल री रश्मि! कैसा लगा था तुझे?”

“अरे! मुझे कैसा लगा, तुझे कैसे बताऊँ? सभी के अनुभव अलग अलग होंगे!” मैंने समझदारी दिखाई, और टालने का प्रयास भी किया।

“नखरे करने लगी फिर से! बोल दे न, जब जीजू ने तेरा दूध पिया तो तुझे कैसा लगा?”

“नखरे कैसे? तेरे पिए जायेंगे तो तुझे भी मालूम पड़ेगा!”

“अरे वो तो जब होगा, तब होगा! लेकिन तू भी तो कुछ बता न?”

मुझे शर्म आने लगी, “हाय! कैसे बताऊँ?”

“बन्नो रानी, तुझे करते और करवाते हुए तो शर्म नहीं आई.. लेकिन हमें बताते हुए आ रही है! अब बता भी दे... नहीं तो तेरे पाँव पड़ जाएँगी हम!”

“उम्म्म... ठीक है.. नहाते-धोते समय हम सबने अपने स्तन छुवे ही हैं... लेकिन जब ‘उनके’ गर्म होठों का स्पर्श... उस जैसा अनुभव कभी नहीं हो सकता! एकदम नया एहसास! मेरे पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई.. अभी भी वैसे ही होता है। मेरे चुचक तो उनके मुँह में जाकर मानों पत्थर जैसे कड़े हो जाते हैं। और वो बदमाश, उनको किसी बच्चे की ही तरह चूसते हैं.... मैं तो अपने होश ही खो देती हूँ। उनका हमला अक्सर यहीं से शुरू होता है... शायद उनको मेरे स्तन स्वादिष्ट लगते हों! सच बताऊँ, जब वो इनको पीते हैं तो मेरा भी मन नहीं भरता... बस यही लगता है की वे मेरे दोनों चुचक लगातार पीते रहें। दर्द की भी कोई परवाह नहीं होती... इतना आनन्द जो आता है! उसके सामने यह दर्द कुछ भी नहीं। आनंद आता है, लेकिन मेरा हाल भी बुरा हो जाता है... शरीर बुरी तरह कांपने लगता है और हर अंग से गर्मी छूटने लगती है और साँसे भारी हो जाती हैं। मुझे नहीं लगता की बच्चों को दूध पिलाने पर ऐसा लगेगा!”

मेरी सहेलियाँ मेरी बातों से पूरी तरह मंत्रमुग्ध हो गईं।

“तू है ही इतनी सुन्दर! जीजू ही क्या.. अगर मैं होती तो मैं ही तेरे दुद्धू पीती रहूँ!”

“हट्ट बेशरम! इसीलिए ये सब बातें नहीं करनी चाहिए... कैसे कैसे ख़याल आने लगते हैं!” मैंने फिर से समझदारी से कहा।

मेरी सहेली मेरी बात से हतोत्साहित नहीं हुई.. और मेरे सीने को देखते हुए बोली, “सच रश्मि! एक बार इन्हें छू लूँ क्या... बुरा तो नहीं मानोगी न?”

“नहीं रे! पागल हो गई है क्या? अब ये तेरे जीजू की अमानत हैं!”

लेकिन वो लगता है सुन ही नहीं रही थी। उसने संकोच करते हुए मेरे स्तन पर हाथ लगाया, और फिर कुछ देर हाथ फ़ेर कर सहलाया। 

“हाय रे! कितने कड़े हैं तेरे दुद्धू!” उसने कहा। उसकी बात सुन कर जैसे सभी को मेरे स्तन छूने का लाइसेंस मिल गया हो – सभी ने बारी बारी से छुआ और सहलाया।

“अब बस! दूर रहो मुझसे तुम सब!” मैंने उनको प्यारी झिड़की दी।

सहेलियां मान गईं... और फिर एक सहेली दबी आवाज़ में बोली, “अच्छा, एक बात तो बताना, पहली बार में बहुत दर्द होता है क्या?”

अब मैं इस बात का क्या जवाब दूँ! जवाब दूँ भी की न दूँ? मैंने अनजान बनने की सोची,

“पहली बार? बताया तो! जब वो पीते हैं तो दर्द तो होता है... इतनी देर तक जो पीते हैं, इसलिए।“

“अरे यार! जब दूध पीने की बात नहीं कह रही हूँ, जब वो ‘डालते’ हैं, तब दर्द होता है – ये पूछ रही हूँ?” उसने पूरी नंगई से अपनी बात स्पष्ट करी।

“देख... जब उनके जैसा पति तुझे मिलेगा, तब तू समझेगी!” मैंने समझदारी से बात को टालते हुए कहा।

“उनके जैसा मतलब? जीजू का... बहुत बड़ा है क्या?” दूसरी सहेली ने अटखेली करी।

“हट्ट बेशरम!”

“अरी बोल न!! देख, जीजू हैं भी तो कितने हट्टे कट्टे! बहुत बड़ा होगा उनका तो! कैसे सहती है? बोल दे! कौन सा हम उनको नंगा देखे ले रहे हैं?” लड़कियाँ तो ज़िद पर अड़ गईं थीं।

“अच्छा, तो सुन! मुझे देख.. मैं तो हूँ इतनी दुबली पतली सी.. और जैसा तूने कहा, तेरे जीजू हैं एकदम हट्टे कट्टे! तो उनका अंग बहुत बड़ा है मेरे लिए... लेकिन वो इतने प्यार से करते हैं की दर्द का ज्यादा पता नहीं चलता। उनकी कोशिश हमेशा मुझे खुश करने की होती है.. इसलिए बहुत देर तक मुझे प्यार करते हैं। अगर वो ऐसे ही अपने अंग को मेरे में घुसेड़ दें तो मैं तो मर ही जाऊं! इसलिए ऐसे न सोचना की बड़ा और मोटा लिंग होगा तभी तुमको बहुत मज़ा आएगा... तुम्हारे पति को ढंग से करना आना चाहिए, तभी मज़ा आएगा!”
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,513,325 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 545,747 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,237,119 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 935,306 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,660,912 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,087,139 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,961,337 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,089,433 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,045,607 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 286,077 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 3 Guest(s)