Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:09 AM,
#21
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मेरा परिपेक्ष्य: 

"दीदी?" यह आवाज़ सुन कर हम दोनों ही चौंक गए - हमारा चुम्बन और आलिंगन टूट गया और उस आवाज़ की दिशा में हड़बड़ा कर देखने लगे। मैंने देखा की वहां तो सुमन खड़ी है। 

"अरे! सुमन?" रश्मि हड़बड़ा गयी - एक हाथ से उसने अपने स्तन और दूसरे से अपनी योनि छुपाने का प्रयास किया। "…. तू कब आई?" यह प्रश्न उसने अपनी शर्मिंदगी छुपाने के लिए किया था। रश्मि को समझ आ गया था की उन दोनों की गरमागरम रति-क्रिया सुमन बहुत देर से देख रही है। 

मैंने सुमन को देखकर अपनी नितांत नग्नता को महसूस किया और मैं भी हड़बड़ी में अपने शरीर को ढकने का असफल प्रयास करने लगा। हमारे कपडे उस चट्टान पर थोड़ा दूर रखे हुए थे, अतः चाह कर भी हम लोग जल्दी से कपडे नहीं पहन सकते थे। 

"दीदी मैं अभी आई हूँ …. माँ ने आप दोनों के पीछे भेजा था मुझे, आप लोगो को वापस लिवाने के लिए। वो कह रही थी की मौसम खराब हो जाएगा और आप लोगो की तबियत न ख़राब हो जाए!" 

कहते हुए उसने एक भरपूर नज़र मेरे शरीर पर डाली। मुझे मालूम था की सुमन ने मुझे और रश्मि को पूरा नग्न तो देख ही लिया है, तो अब छुपाने को क्या ही है? अतः मैंने भी अपने शरीर को छुपाने की कोई कोशिश नहीं की - उसने हमको काफी देर तक देखा होगा - संभव है की सम्भोग करते हुए भी। संभव नहीं, निश्चित है। लिहाज़ा, अब उससे छुपाने को अब कुछ रह नहीं गया था। 

सुमन के हाव भाव देख कर मुझे लगा की वह हमारी नग्नता से काफी नर्वस है। हो सकता है की हमारे सम्भोग को देख कर वह लज्जित या जेहनी तौर पर उलझ गयी हो। उधर रश्मि बड़े जतन से अपने स्तनों को अपने हाथों से ढँके हुए थी। 

"अच्छा …" रश्मि ने शर्माते हुए कहा। वो बेचारी जितना सिमटी जा रही थी, उसके अंग उतने अधिक अनावृत होते जा रहे थे। "…. वो हमारे कपड़े यहाँ ले आ …. प्लीज!" रश्मि ने विनती करी। सुमन बात मान कर हमारे कपड़े लाने लगी। 

"आप लोग ऐसे नंग्युल …. मेरा मतलब ऐसे नंगे क्यों हैं? ठंडक लग जायेगी न! कर क्या रहे थे आप लोग?" उसने एक ही सांस में पूछ डाला। 

"हम लोग एक दूसरे को प्यार कर रहे थे, बच्चे!" मैंने माहौल को हल्का बनाने के लिए कहा। 

"प्यार कर रहे थे, या मेरी दीदी को मार रहे थे। मैंने देखा … दीदी दर्द के मारे कराह रही थी, लेकिन आप थे की उसको मारते ही जा रहे थे।" 

‘ओके! तो उसने हम दोनों को सम्भोग करते देख लिया है।‘ मुझे लगा की सुमन हम दोनों को ऐसे देख कर संभवतः चकित हो गयी है - वैसे जब बच्चे इस तरह की घटना घटते देखते हैं, तो समझ नहीं पाते की क्या हो रहा है। कई बार वे डर भी जाते हैं, और उस डर की घुटन से अजीब तरह से बर्ताव करने लगते हैं। सुमन सतही तौर पर उतनी बुरी हालत में नहीं लग रही थी, लेकिन कुछ कह नहीं सकते थे। मुझे लग रहा था की उसमें इस घटना को समझने की दक्षता तो थी, लेकिन अभी उचित और पर्याप्त ज्ञान नहीं था। 

उसने पहले रश्मि को, और फिर मुझको हमारे कपड़े दिए, मैंने कपडे लेते हुए उसका हाथ पकड़ लिया और अपने ओर खींच कर उसकी कमर को पकड़ लिया और उसकी आँख में आँख डाल कर, मुस्कुराते हुए, बहुत ही नरमी से कहा,

"तुम्हारी दीदी को मारने की मैं सपने में भी नहीं सोच सकता - वो जान है मेरी! उसकी ख़ुशी मेरे लिए सब कुछ है और मैं उसकी ख़ुशी के लिए कुछ भी करूंगा। हम लोग वाकई एक दूसरे को प्यार कर रहे थे - वैसे जैसे की शादीशुदा लोग करते हैं। लेकिन, तुम अभी यह बात नहीं समझोगी। जब तुम्हारी शादी हो जायेगी न, तब तुमको मालूम होगा की दाजू सही कह रहे थे। तब तक मेरी कही हुई बात पर भरोसा करो …. ओके? तुम्हारी दीदी और मैं, हम दोनों एक हैं!"

सुमन ने अत्यंत मिले जुले भाव से मुझे देखा (मुझे स्पष्ट नहीं समझ आया की वह क्या सोच रही थी) और फिर सर हिला कर हामी भरी। मैंने उसके माथे पर एक छोटा सा चुम्बन दिया। मैंने देखा की उधर रश्मि कपड़े पहनते हुए हमको ध्यान से देख रही है, और जब मैंने सुमन को चूमा, तो रश्मि मुस्कुरा उठी। उस मुस्कान में मेरे लिए प्रशंसा और प्यार भरा हुआ था। सुमन मेरे द्वारा इस तरह खुले आम चूमे जाने से शरमा गयी - उसके गाल सेब जैसे लाल हो गए, अतः मैंने उसको जोर से गले से लगा लिया, जिससे उसको और शर्मिंदगी न हो। 

जब वो अलग हुई तो बोली, "दाजू, आप बहुत अच्छे हो! … और एक बात कहूं? आप और दीदी साथ में बहुत सुन्दर लगते हैं!" इसके जवाब में सुमन को मेरी तरफ से एक और चुम्बन मिला, और कुछ ही देर में रश्मि की तरफ से भी, जो अब तक अपने कपडे पहन चुकी थी। 

कोई दो मिनट में हम दोनों ही शालीनता पूर्वक तरीके से कपड़े पहन कर, सुमन के साथ वापस घर को रवाना हो रहे थे।

वापस आते समय हम बिलकुल अलग रास्ते से आये और तब मुझे समझ आया की रश्मि मुझे लम्बे और एकांत रास्ते से लायी थी - यह सोच कर मेरे होंठों पर शरारत भरी मुस्कान आ गयी। खैर, इस नए रास्ते के अपने फायदे थे। यह रास्ता अपेक्षाकृत छोटा था और इस रास्ते पर घर और दुकाने भी थीं। वैसे अगर मन में मौसम खराब होने की आशंका हो तो अच्छा ही है की आप आबादी वाली जगह पर हों - इससे सहायता मिलने में आसानी रहती है। 

इस छोटी जगह में मैं एक मुख़्तलिफ़ इंसान था। ऐसा सोचिये जैसे की स्वदेस फिल्म का 'मोहन भार्गव'। मैं स्थानीय नहीं था, बल्कि बाहर से आया था; मेरे हाव भाव और ढंग बहुत भिन्न थे; मुझे इनकी भाषा नहीं आती थी, इन्ही लोगो को दया कर के मुझसे हिंदी में बात करनी पड़ती थी - मुझसे ये लोग कई सारे मजेदार प्रश्न पूछते जिनसे इनका भोलापन ही उजागर होता; और तो और बहुत सारे लोग मुझे बहुत ही जिज्ञासु निगाहों से देखते थे - मुझसे बात करने के बजाय मुझे देख कर आपस में ही खुसुर पुसुर करने लगते। लेकिन, अब सबसे बड़ी बात यह थी की मैं यहाँ का दामाद था। इसलिए लोग ऐसे ही काफी मित्रवत व्यवहार कर रहे थे। यहाँ जितने भी लोगों ने हमको देखा, सभी ने हमसे मुलाक़ात की, अपने घर में बुलाया और आशीर्वाद दिया। नाश्ते इत्यादि के आग्रह करने पर हमने कई लोगो को टाला, लेकिन एक परिवार ने हमको जबरदस्ती घर में बुला ही लिया और हमारे लिए चाय और हलके नाश्ते का बंदोबस्त भी किया। वहां करीब आधे घंटे बैठे और जब तक हम लोग वापस आये तब शाम होने लगी थी। 

इस समय तक मुझे वाकई ठंडक लगने लगी थी - और लम्बे समय तक अनावृत अवस्था में रहने से ठण्ड कुछ अधिक ही लग रही थी। 

घर आकर देखा की आस पास की पाँच-छः स्त्रियाँ आकर रसोई घर में कार्यरत थी। पता चला की आज भी कुछ पकवान बनेंगे! मैंने सवेरे जो मैती आन्दोलन के लिए जिस प्रकार का सहयोग दिया था, उससे प्रभावित होकर स्त्रियाँ कर-सेवा करने आई थी और साझे में खाना बना रही थी। वो सारे परिवार आ कर एक साथ खाना खायेंगे। मैंने रश्मि से गुजारिश करी की कुछ स्थानीय और रोज़मर्रा का खाना बनाए। वो तो तुरंत ही शुरू ही किया गया था, इसलिए मेरी यह विनती मान ली गयी।

खाने के पहले करीबी लोग साथ बैठ कर हंसी मजाक कर रहे थे। एक भाई साहब अपने घर से म्यूजिक सिस्टम ले आये थे और उस पर 'गोल्डन ओल्डीस' वाले गीत बजा रहे थे। उन्होंने ने ही बताया की रश्मि गाती भी है, और बहुत अच्छा गाती है। उसकी यह कला तो खैर मुझे मालूम नहीं थी। वैसे भी, हमको एक दूसरे के बारे में मालूम ही क्या था? मुझे उसके बारे में बस यह मालूम था की उसको देखते ही मेरे दिल ने आवाज़ दी की यही वह लड़की है जिसके साथ तुम्हे पूरी उम्र गुजारनी है।
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12-17-2018, 02:09 AM,
#22
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मेरे अनुरोध करने पर रश्मि ने गाना आरम्भ किया ---

'तेरा मेरा प्यार अमर, फिर क्यो मुझ को लगता हैं डर ,
मेरे जीवन साथी बता, क्यो दिल धड़के रह रह कर'

उसकी आवाज़ का भोलापन और सच्चाई मेरे दिल को सीधा छू गया। उसकी आवाज़ लता जी जैसी तो नहीं थी, लेकिन उसकी मिठास उनकी आवाज़ से सौ गुना अधिक थी। मेरा मन उस आवाज़ के सागर में गोते लगाने लगा। 

'कह रहा हैं मेरा दिल अब ये रात ना ढले,
खुशियों का ये सिलसिला, ऐसे ही चला चले''

मेरे मन में हमारे साथ बिताये हुए इन दो दिनों की घटनाएं और दृश्य चलचित्र की भाँति चलने लगे। मन में एक हूक सी हो गयी। रश्मि के बगैर एक भी पल नहीं चाहिए मुझे मेरे जीवन में! 

'चलती हू मैं तारों पर, फिर क्यो मुझ को लगता हैं डर'

वही डर जो मुझे भी लगता है। प्यार में होना, जहाँ अत्यधिक संतोषप्रद और परिपूरक होता है, वहीँ अपने प्रेम को खोने का डर भी लगता है। गाना ख़तम हो गया था, और मैं रश्मि की आँखों में देख रहा था - और वो मुझे! उसकी आँखों में यकीन दिलाने वाली चमक थी - इस बात का यकीन की मैं तुम्हारे साथ हूँ, हमेशा! मेरे ह्रदय में एक धमक सी हो गयी। ऐसा कभी नहीं हुआ। हमारा प्रेम बढ़ता ही जा रहा था, और हमारे साथ के प्रत्येक पल के साथ और प्रगाढ़ होता जा रहा था।

जब थाली परोसी गयी तो मैं घबरा गया - ये रोज़मर्रा की थाली है?! मुझको जो परोसा गया वह था - पुलाव, राजमा दाल, स्वांटे के पकौड़े, स्वाले (एक तरह के परांठे), और खीर - जो रश्मि ने बनायी। सबसे अच्छी बात मुझको यह लगी की सभी लोग टाट-पट्टी पर साथ में बैठ कर साथ में खाना खा रहे थे। यहाँ लगता है की स्त्रियाँ अपने पतियों के साथ बैठ कर खाना नहीं खाती, लेकिन मेरे दबाव में रश्मि मेरे साथ ही खाने बैठ गयी। वह सलज्ज, लेकिन संयत लग रही थी। पहले तो शादी होने के बाद भी शलवार-कुर्ता पहनना, फिर खुलेआम एक रोमांटिक गाना, और अब साथ में बैठ कर खाना - इस छोटी सी जगह के लिए बहुत बड़ा अपवाद था।

पहाड़ पर चढ़ने, और ठंडक में इतनी देर तक अनावृत रहने से मेरी भूख काफी बढ़ गयी थी, इसलिए मैंने छक कर खाया, और रश्मि को भी आग्रह कर के खिलाया। खाने के बाद कस्बे के बड़े-बूढ़े लोग भी साथ आ गए - हम लोग अलाव जला कर उसके इर्द-गिर्द बैठे और कुछ देर यूँ ही इधर उधर की बात की। यहाँ पर कल और रहना था और परसों वापस अपने शहर - कंक्रीट जंगल - को! मेरे पास वैसे तो छुट्टियाँ काफी थीं, लेकिन अभी तक हनीमून का कोई प्लान नहीं बनाया था। 

मैंने रश्मि से शादी के पहले पूछा था की वो कहाँ जाना पसंद करेगी, लेकिन यह प्रतीत होता था की उसको हनीमून जैसी चीज़ के बारे में कुछ भी नहीं मालूम था। और उस समय हम दोनों इतनी कम बाते करते थे की यह संभव नहीं था की इसके बारे में रश्मि को तफसील से बता पाऊँ! मुझे यह अचानक ही याद आया की हनीमून का तो कोई प्लान ही नहीं बनाया है।

'ठीक है …. अभी रश्मि से इस विषय में चर्चा करूँगा।' मैंने सोचा। 

वैसे भी विदेश में जा कर हनीमून करना संभव नहीं था, क्योंकि एक तो रश्मि के पास पासपोर्ट नहीं था, और दूसरा उसके लिए काफी योजना करनी होती है। खैर उसी से यह बात करने पर कोई हल निकलेगा। मैंने अपने शादी-शुदा दोस्तों को एस एम एस भेजे की मुझे हनीमून आईडिया भेजें - जो भारत में हों - वो भी तुरंत। मैंने वैसे भी कहीं मनोरंजन के इरादे से यात्रा नहीं करी थी - बस एक बार की, तो उसी में मुझको अपनी जीवन संगिनी भी मिल गयी। 

अगले पन्द्रह मिनट में शादी की बधाई के साथ मुझे कम से कम बीस अलग अलग जगहों के बारे में मालूम हो गया - पहाड़ो से लेकर रेगिस्तान तक, धर्म स्थानों (आखिर हनीमून के लिए कौन गधा धर्म-स्थान जाता है?) से लेकर नग्न-बीचों तक। पहाड़, धर्म-स्थान, रेगिस्तान, और जंगल वाले आईडिया मैंने नकार दिए (हाँलाकि जंगल वाला आईडिया मुझे बहुत अच्छा लगा - लेकिन मैंने सोचा की उसको बाद में देखा जाएगा। 

नग्न बीच तो भारत में तो होते नहीं - लेकिन बीच का आईडिया मस्त है, मैंने सोचा। रश्मि के लिए एकदम नया होगा। उसने अभी तक सिर्फ पहाड़ ही देखे हैं - इस जगह से आगे कभी गयी ही नहीं। उसने बस किताबों में ही पढ़ा होगा। मैंने अपने दोस्तों को पुनः एस एम एस भेजे की मुझे बीच के विभिन्न आईडिया बताएं। 

अगले आधे घंटे में मुझको गोवा, केरल, अंडमान और लक्षद्वीप के बारे में मालूम हो गया। लगभग सभी ने गोवा के बारे में बोला अवश्य। इसी से मुझे स्पष्ट हो गया की वहां नहीं जाना है - निश्चित रूप से बहुत ही भीड़-भाड़ वाली जगह होगी। कोई ऐसी जगह चाहिए जो साफ़ सुथरी हो, सुरक्षित हो, और जहाँ पर्याप्त एकांत भी मिले। 

फिर मैंने अपने बॉस को फ़ोन किया और अपना प्लान बताया। आप लोगो सोचेंगे की ऐसा बॉस सभी को मिले - लेकिन उसने पहले तो मुझे विवाह की बधाइयाँ दीं और फिर बहुत ही ख़ुशी से मुझको वापस आने के लिए 'अपना समय लेने' को कहा (इतने दिनों के काम में मैंने शायद ही कभी छुट्टी ली हो - उसको कभी कभी यह डर लगता था की कहीं मुझे काम के कारण बर्न-आउट न हो जाए। वो मेरे जैसे लाभकर कर्मचारी का क्षय नहीं करना चाहता था। उसने मुझे अंडमान जाने को कहा, और यह भी बताया की उसका एक मित्र है जो वहां एक उम्दा होटल का मालिक है। और यह की वह होटल एकदम फर्स्ट क्लास है (वह खुद भी वहां रह चुका है), और वह अपने दोस्त को मुझे डिस्काउंट देने के लिए भी बोलेगा। मुझे तो उसका सुझाव बहुत अच्छा लगा, लेकिन रश्मि की रजामंदी भी उतनी ही अवश्यक थी। अतः मैंने उसको कहा की मैं सवेरे फोन कर के बताऊँगा।

"यहाँ तो बहुत ठंडक हो जाती है! बाप रे! आप लोग रहते कैसे हैं?" मैंने कमरे के अन्दर आते हुए रश्मि से पूछा। मैं अपने हाथों को रगड़ कर गरम करने का प्रयास कर रहा था। रश्मि इस समय कुछ कपडे तह करके एक तरफ रख रही थी। 

"आपको आदत नहीं है न! इसीलिए आपको इतनी ठंडक लग रही है। और आप सिर्फ एक स्वेटर क्यों लाये? पहाडों पर आए और वो भी इस मौसम में! कुछ और गर्म कपडे रखने चाहिए थे न?" रश्मि ने हँसते हुए जवाब दिया। 

"आपको कैसे मालूम की मेरे पास सिर्फ एक स्वेटर है? मेरे पीछे पीछे मेरा सामान चेक कर रही थीं क्या?" मैंने मजाक करते हुए कहा। 

"हाँ! आपके कुछ कपड़े आपके बैग में रखने थे, इसलिए।" रश्मि ने पत्नी-सुलभ अधिकार और मान वाली आवाज़ में कहा। मैं मुस्कुराया - अब 'मेरा सामान' जैसा कुछ नहीं है! 

"आपने कभी बताया ही नहीं, की आप इतना बढ़िया गाती हैं? मैं अब तो रोज़ सुनूँगा गाने!" रश्मि ने कुछ नहीं कहा, बस लज्जा से मुस्कुराई। मेरे चेहरे पर उसके लिए प्रेम, प्रशंसा, और गर्व के कितने ही सारे मिले जुले भाव आये। मेरी आवाज़ आर्द्र हो चली, लेकिन फिर भी मैंने उसको कहा, 

"सच कहूं? यू चेंज्ड माय लाइफ! थैंक यू!" मेरी यह बात सुनते सुनते रश्मि की आँखें भर आईं, और वो तेज़ी से मेरे पास आकर मुझसे लिपट गयी। अब 'आई लव यू' कहने की ज़रुरत नहीं थी। हम दोनों इन मामूली औपचारिकताओं से ऊपर उठ गए थे। मैंने उसको अपने से चिपटाए हुए ही कहा, "आपको मालूम है न, की परसों एकदम सवेरे ही हम लोगो को यहाँ से वापस जाना है?"

यह सुन कर रश्मि जाहिर तौर पर उदास हो गयी और उसने बहुत धीरे से सर हिलाया। 

"जानू, प्लीज! उदास मत होइए! हम लोग यहाँ हमेशा तो नहीं रह सकते हैं न? जाना तो होगा?" उसने फिर से सर हिलाया। 

"माँ बाबा को छोड़ कर जाने से दुःख तो होगा, लेकिन मैं आपका पूरा ख़याल रखूंगा। आपको मुझ पर भरोसा है न?" रश्मि ने मेरी आँखों में एक गहन दृष्टि डाली और कहा,

"आप पर जितना भरोसा है, मुझे वो खुद पर नहीं है! आपके साथ मैं कहीं भी जाऊंगी। और मुझे मालूम है की आप मुझे हमेशा खुश रखेंगे। इसका उल्टा तो मैं सोच भी नहीं सकती।"

मैंने संतोषप्रद सांस भरी, "चलिए, बिस्तर पर चलते हैं …"
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12-17-2018, 02:09 AM,
#23
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि ने बिस्तर को थोडा व्यवस्थित किया और मेरे पहले बैठने का इंतज़ार करने लगी। मैं उसका आशय समझ कर जल्दी से बिस्तर के कगार पर बैठ गया, और उसको इशारे से अपनी तरफ बुलाया। रश्मि मुस्कुराते हुए मेरे पास आकर खड़ी हो गयी। मानव शरीर और मष्तिष्क अपने परिवेश से कितनी जल्दी अनुबन्ध स्थापित कर लेता है! पिछले दो दिवस से चल रही अनवरत यौन क्रिया ने रश्मि के दिमाग का कुछ ऐसा ही अनुकूलन कर दिया था - जैसे ही हमको एकांत मिलता, रश्मि को लगता कि सम्भोग होने वाला है। वैसे मेरे भी हालत उसके सामान ही थी - रश्मि मेरे आस पास रहती तो मेरे मन में और लिंग में हलचल सी होने लगती। 

"कम .... गिव मी अ किस!" मैंने उसकी कमर को थामते हुए कहा। मेरी इस बात से रश्मि के गाल एकदम से सुर्ख हो गए। मैंने बड़ी मृदुलता से उसके सर को मेरी तरफ झुकाया और उसकी आँखों में देखा। वहाँ लज्जा, प्रेम, रोमांच और प्रसन्नता के मिले-जुले भाव थे। मैंने अपने होंठों को उसके होंठो से सटाया और अपनी जीभ को उसके होंठो के बीच धीरे से धकेल दिया। रश्मि के होंठ सहजता से खुल गए, और मेरी जीभ उसके मुख में चली गयी। मैंने अपनी जीभ से उसके मुख के भीतर टटोलना शुरू कर दिया और कुछ ही पलों में उसकी जीभ को महसूस किया। रश्मि ने भी मेरा अनुसरण करते हुए अपनी जीभ चलानी शुरू कर दी। 

इस सुंदरी को इस प्रकार चूमने का संवेदन अतुल्य था - मुझे लगा कि मैं पुनः अपने किशोरावस्था में आ गया। मुझे चूमते हुए रश्मि अब और झुक गयी - उसकी बाहें मेरे गले का घेरा डाले थीं। उसके कोमल बालों का मेरे चेहरे पर स्पर्श बहुत ही आनंददायक था। मैंने उसके कपोलों पर अपनी हथेलियों से थोडा और दबाव डाला और उसको फ्रेंच किस करना जारी रखा। कुछ देर बाद मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुए अपने चुम्बन को एक भिन्न दिशा देना आरम्भ किया, और अंततः उसके नितम्ब को थाम लिया और उसको अपनी गोदी में बिठा लिया, कुछ इस तरह की उसके दोनों पैर मेरे दोनों तरफ रहें और उसकी योनि वाला हिस्सा मेरे लिंग वाले हिस्से के ठीक सामने रहे।

अद्भुत बात है, मैंने सोचा, कि मैंने पिछले दो दिनों में सेक्स का मैराथन किया था और आज की पदयात्रा के कारण थक भी गया था। स्वाभाविक रूप से मुझमें अभी उत्तेजना नहीं आनी चाहिए थी। लेकिन, मेरे लिंग कि अवस्था कुछ और ही कह रही थी। किसी ज्ञानी ने सही ही कहा है कि लिंगों का अपना ही दिमाग होता है - भले ही विज्ञान कुछ और ही कहे। रश्मि का पेडू मेरे लिंग से एकदम सटा हुआ था, लिहाज़ा, उसको निश्चित तौर पर मेरे लिंग का कड़ापन महसूस हो रहा था। मैं निश्चित रूप से बहुत उत्तेजित हो चला था।

मैंने उसके आकर्षक नितम्बो को अपने हथेलियों से सौंदना शुरू किया। रश्मि मत्त होकर मेरे सीने को सहला रही थी - सम्भव है कि उसको भी अब मेरे सामान ही उत्तेजना प्राप्त हो गयी हो। क्रिया को आगे बढ़ाने के लिए मैंने उसके शलवार का नाडा ढीला कर दिया और अपनी तर्जनी से उसके पुट्ठों के बीच की घाटी को सहलाया। वह सम्भवतः मुझे चूमने में अत्यधिक व्यस्त थी, अतः मेरी इस क्रिया कि उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखायी। मैंने अपना हाथ ऊपर सरका कर उसके पेट और पसलियों को सहलाते हुए उसके स्तनों के आधार को छुआ। रश्मि ने थोडा सा हट कर मेरे हाथों समुचित स्थान दिया। मैंने अपने हथेलियों को अपने सीने और उसके स्तन के बीच के स्थान में आगे बढ़ा कर, उसके स्तनो को पुनः महसूस करना शुरू किया। ठोस स्तनो से उसके दोनों निप्पल तन कर खड़े हुए थे, और कुर्ते और स्वेटर के ऊपर से भी अच्छी तरह से टटोले जा सकते थे। 

मेरा लिंग पूरी तरह से अब खड़ा हो गया था, और निश्चित तौर पर रश्मि उसको महसूस कर सकती थी। सम्भवतः वह लिंग के कड़ेपन का आनंद भी उठा रही थी, क्योंकि इस समय अपने नितम्ब वह बहुत थोड़ा भी मेरी गोद पर घिस रही थी। यह अविश्वसनीय रूप से कामुक था। इसी उत्तेजना में मैंने उसके कूल्हों पर अपने हाथ चलाना शुरू कर दिया। लेकिन शलवार के ऊपर से यह काम करने में कोई ख़ास मज़ा नहीं आ रहा था, अतः मैंने कुछ इस तरह कि रश्मि को न मालूम पड़े, उसकी शलवार को नीचे कि ओर सरका दिया। रश्मि ने चड्ढी पहनी हुई थी - लेकिन इस समय उसके इस खूबसूरत हिस्से का अधिक अभिगम मिल गया था। मैंने अपनी हथेलियों से उसके नंगे चूतड़ों का आनंद उठाना आरम्भ कर दिया। अचानक ही मैंने धीरे से मेरी उंगलियों से उसके नितंबों के बीच की दरार को छुआ। मेरे ऐसा करते ही रश्मि का चुम्बन रुक गया, और उसके साँसे अब और गहरी, और तेज हो गयीं। हमारी आँखें आपस में मिलीं। उसका चेहरा संतोष की एक सुंदर नरम अभिव्यक्ति लिए था, और मैं इस दृश्य को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। मैं मुस्कुराया और रश्मि भी। मैंने उसकी सुंदर नाक को चूमा और उसको बताया कि मैं उसको बहुत प्यार करता हूँ।

रश्मि मेरी गोद से उठ खड़ी हुई और मैंने बिना कोई समय खोए उसका शलवार और चड्ढी पूरी तरह से उतार दिया। मैंने देखा की रश्मि की योनि अभी होने वाली रति क्रिया के पूर्वानुमान से गीली हो गयी थी। मैंने उसको वापस अपनी गोद में बैठा लिया और चूमना आरम्भ किया। मैंने अभी तक अपने कपडे नहीं उतारे थे, लिहाज़ा उसकी योनि का गीलापन, अब मेरे कपड़ो को भिगो रहा था। मेरे हाथ इस समय उसके कुर्ते के अंदर था, और मैं उसकी पीठ को सहला रहा था। उसकी पीठ को सहलाते हुए मैं उसकी पीठ के निचले हिस्से को, जहाँ डिंपल होते हैं, अपनी उंगलियों से सहलाने लगा। रश्मि का शरीर स्वयं ही मेरे स्पर्श से ताल मिलाने लगा। मैंने धीरे धीरे अपने हाथों को उसके शरीर के ऊपर की तरफ ले जाने लगा। मेरा परम लक्ष्य उसके छोटे और ठोस स्तनों की सुंदर जोड़ी थी। लेकिन मैं इस काम में कोई जल्दी नहीं करना चाहता था। मैं चाहता था कि रश्मि अपने शरीर को सहलाये और दुलराये जाने की अनुभूति का पूरा आनंद उठाये। 

मैंने उसकी पसलियों को सहलाया और सहलाते हुए अपने अंगूठों से उसके स्तनों के बाहरी गोलाइयों को छुआ। उसका शरीर इस संवेदन के जवाब में पीछे को तरफ झुक गया, लेकिन यह कुछ इतनी जल्दी से हुआ कि उसको सम्हालने के चक्कर में मेरे हाथ फिसल कर उसके स्तनो पर जा टिके। रश्मि ने मुझे चूमना जारी रखा, और मेरे हाथों को अपने स्तनों पर महसूस करके पूरी तरह से खुश लग रही थी। मैंने उसके शानदार स्तनों को सहलाया। मेरे हाथों ने उसके स्तनों को पूरी तरह से ढक रखा था और उनको इस तरह से पूरी तरह से प्रवरण करने में सक्षम होने की अनुभूति अद्भुत थी। मैंने कोमलता से उसके स्तनाग्रों को सहलाया - जवाब में रश्मि एक गहरी सांस भरती हुई पीछे कि तरफ मुड़ गयी। उसने चूमना बंद कर दिया था और मुँह से भारी साँसे भर रही थी। उसके शरीर की मेरे स्पर्श की इस तरह से प्रतिक्रिया करते देखना अद्भुत था। 

अब समय आ गया था कि रश्मि को पूर्णतया नग्न कर दिया जाए। मैंने उसके कुर्ते का निचला हिस्सा पकड़ कर उसको निकालने लगा। रश्मि ने भी अपने हाथ उठा कर कुर्ते को उतारने में सहयोग किया। इस प्रकार नग्न होने के बाद, रश्मि पीठ के बल लेट गयी - इसके दोनों हाथ उसके दोनों तरफ थे। मैं भी एक करवट में उसके बगल आकर लेट गया और दृष्टि भर कर उसके रूप का रसास्वादन करने लगा। उसके स्तन इतने सुन्दर थे कि मैं उनको अपनी पूरी उम्र देख सकता था - खूबसूरती से तराशे हुए! मैंने अपने सामने चल रहे इस अद्भुत दृश्य की प्रशंसा में दीर्घश्वास छोड़ा। रश्मि ने वह आवाज़ सुन कर मेरी तरफ गर्व और लज्जा के मिले-जुले भाव से देखा।

मैंने लेटे लेटे ही उसके रूप का दृष्टि निरिक्षण करना जारी रखा - और उसके स्तनों, पसलियों और पेट से होते हुए उसके आकर्षक कूल्हे का अवलोकन किया। लेते हुए उसका पेट थोड़ा अवतल लग रहा था (बैठे हुए वह सपाट लगता है) और उसकी कूल्हे की हड्डियां पेट से अधिक ऊपर उठी हुई थीं और स्पष्ट रूप से परिभाषित दिख रही थीं। मेरे लिए इस प्रकार का नारी शरीर अत्यधिक आकर्षक है। दृष्टि थोड़ी और आगे बढ़ी तो उसके जघन क्षेत्र के बाल दिखने लगे। और नीचे देखा तो उसका सूजा हुआ भगोष्ठ और उन दोनों के बीच में स्थित लगभग बाल-विहीन, उसके अन्तर्भाग का द्वार, बहुत ही लुभावना दिख रहा था। मेरे इस निरिक्षण क्रिया के बीच में रश्मि ने कुछ भी नहीं कहा - इस समय उसकी साँसे भी आश्चर्यजनक रूप से शांत थीं। मुझे अचानक ही अपने कार्यस्थल से एक मज़ेदार बात याद आ गयी - कि अगर मैं रश्मि पर कोई रिपोर्ट लिख रहा होता, तो उसको मैं 'A1' मूल्यांकन देता।

उसी समय मुझे ध्यान आया कि मैं तो अभी भी पूरी तरह से कपड़े पहने हुए था। मैंने जल्दी से अपने सारे कपडे उतार दिए, जिससे मुख्य कार्य में कोई विलम्ब न हो। मेरा इरादा रश्मि के शरीर के एक एक इंच का आस्वादन अपने हाथ और मुंह से करने का था। मैंने उसके इस काम के लिए चेहरे से आरम्भ करने कि सोची। मैंने रश्मि को होंठों पर चूमा तो वह भी मुझे चूमने लगी, लेकिन मेरा प्लान अलग था। मैंने उसके पूरे चेहरे को चूमा और फिर उसके कान के निकट गया। मैंने उसके कान को चूमते हुए उसकी लोलकी को धीरे से काटन और चबाना शुरू किया। उसके दूसरे कान के साथ भी यही हुआ। मैंने साथ ही साथ अपने खाली हाथों से उसके शरीर को सहलाना भी शुरू किया। इस सम्मिलित प्रहार का असर यह हुआ कि रश्मि कि साँसे फिर से बढ़ने लगीं। ऐसे ही सहलाते सहलाते मैंने उसके एक स्तन को अपने हाथ से ढक लिया और कुछ देर उनको यूँ ही दबाया। मैंने देखा कि रश्मि कि आँखें अब बमुश्किल ही खुल पा रही थीं। 

मैं उसकी गर्दन से होते हुए नीचे कि तरफ जाकर उसके सीने के ऊपरी हिस्से चूमने लगा। नीचे बढ़ते हुए मैंने उसके स्तनों के बीच के हिस्से, उनके नीचे और आसपास चूमा और जीभ से छेड़ा। रश्मि की सांस अब काफी बढ़ गयीं थीं और उसकी आँखें कास कर बंद हो गयी थीं। उसके दोनों हाथ अभी भी उसके बगल में ही थे, लेकिन उन्माद में उसकी मुट्ठियां बंध गयीं थीं। मैंने एक और बात देखी, और वह यह कि उसने अपनी कामुक अवचेतना में अपनी टाँगे थोड़ी खोल दी थीं जिससे मैंन उसके योनि-क्षेत्र का अन्वेषण कर सकूं, मैंने अभी तक उसके स्तनों पर अपना कार्य समाप्त नहीं किया गया था।

मैंने उसके एक निपल पर अपनी जीभ फिराई - रश्मि ने कांपते हुए तेज़ सांस भरी। उसकी छाती एकदम से ऊपर उठ गयी, जिससे उसका स्तन मेरे मुंह में अनायास ही भर गया। मैंने उसके चेहरे को देखा, उसकी आँखें अभी भी कस कर बंद थीं, लेकिन सांस भरने के कारण उसके होंठ थोड़ा जुदा थे। मैंने पुनः उसके निपल को चाटा तो एक बार फिर से उसकी छाती मेरे उठ कर मेरे छेड़ते हुए मुंह में भर गयी। मैंने उस निपल को मुंह में भरा और धीरे से चूसने, चबाने और काटने लगा। उसकी साँसे अब और अधिक तेजी से चलने लगीं साँस ले रहा था और बेचैनी में अपने सर को इधर उधर चलाने लगी। ऐसा करने से उसके बाल बिस्तर पर फ़ैल गए। वाह! क्या गज़ब की सेक्सी लग रही थी वह! कुछ देर उसके स्तन को इसी प्रकार छेड़ने के बाद मैंने दूसरे स्तन पर भी यही क्रिया आरम्भ कर दी, लेकिन पहले वाले स्तन को छोड़ा नहीं - उसको अपने हाथ से लगातार मसलता, दुलारता रहा। रश्मि की कामोत्तेजना देखने लायक थी - उसका पूरा शरीर कसमसाने लगा, और उसने अपने दोनों पैर और ऊपर खींच लिए थे। मैंने समय देख कर उसके स्तन को छोड़ा और ऊपर पहुँच कर होंठ पर उसे चूमा। रश्मि ने पहले की तुलना में कहीं अधिक शक्ति के साथ मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल कर मुझे वापस चूमा। उसने उन्माद में आ कर मुझे पकड़ लिया था।
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12-17-2018, 02:09 AM,
#24
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
कुछ देर ऐसे ही चूमने के बाद मैंने पुनः उसके स्तनो का भोग लगाना आरम्भ कर दिया। उसके शरीर पर वह दोनों स्वादिष्ट स्तन जिस तरह से परोसे हुए थे, मैं ही क्या, कोई भी होता तो अपने आपको रोक न पाता। मुझे लगा कि रश्मि कुछ कुछ कह रही थी, लेकिन उसकी आवाज़ मेरे एक तो स्तनपान कि क्रिया के कारण धीरे-धीरे आ रही थी और ऊपर से मेरे स्वयं के उन्माद के कारण मुझे लग रहा था कि बहुत दूर से आ रही है।

"हँ?" मैंने बड़े प्रयास के बाद उसके स्तन से मुंह हटा कर पूछा। 

"काश .......... इनमें ..... दूध होता …" रश्मि ने दबी हुई आवाज़ में कहा। 

'वाकई! काश इनमे दूध होता!' मैंने सोचा, तो मुंह में और स्वाद आ गया। मैंने और जोश में आकर उनको चूमना, चूसना और दबाना जारी रखा। मैंने कब तक ऐसा किया मुझे ध्यान नहीं, लेकिन एक समय ऐसा भी आया की रश्मि दर्द भरी सिसकी भरने लगी। मुझे समझ आ गया की अब दूसरे स्तन की बारी है, और यही क्रिया उस पर भी आरम्भ कर दी। निश्चित तौर पर अब तक रश्मि का संकोच समाप्त हो चला था, और वह कामुक आनंद से पूर्णतया अभिभूत हो गयी थी।

अब आगे बढ़ने का समय हो चला था। मैं उसके पेट को लगातार चूमते हुए उसके गुप्तांग तक पहुँचने लगा। मेरे हर चुम्बन के जवाब में रश्मि कसमसाने लगती। इस समय उसके दोनों हाथ मेरे बालों में घुस कर मेरे सर को कभी पकड़ते तो कभी सहलाते। मैं चूमते हुए जल्दी ही उसकी योनि तक पहुँच गया। मैंने उसके जघन क्षेत्र को चूमा तो रश्मि ने अपने कूल्हों को मेरे मुंह में ठेल दिया। मैंने अपनी जीभ से कुछ देर चाटा। उसकी योनि के इतने करीब होने के कारण मैं उसकी मंद स्त्रैण-गंध सूंघ सकता था। मेरा लिंग अविश्वसनीय ढंग से कड़ा हो गया था, और मैं चाहता था कि रश्मि उसको महसूस कर सके।

ऐसे ही समय के लिए महान ऋषि वात्स्यायन जी ने "कोकिला योग" कि खोज की थी। कोकिला - जिसको आज कल कि भाषा में 69 कहा जाता है। "69" सम्भोग क्रीड़ा के पूर्व का वह कामुक विन्यास है जो आप और आपके साथी को, एक दूसरे को, एक साथ मौखिक सेक्स देने के लिए अनुमति देता है। इस योग में आप और आपका साथी अपने मुंह से एक दूसरे के जननांगों को एक अभूतपूर्व निजता के साथ काम-सुख प्रदान कर सकते हैं। अतः, मैं उठ कर पूरी तरह से रश्मि के ऊपर औंधा हो गया - जिससे मेरे दोनों पाँव उसके दोनों तरफ रहे और मेरा मुंह उसकी योनि पर और मेरा लिंग रश्मि के मुंह के सामने रहे। 

"अ … अ … आप क … क … क्या कर रहे ह … हैं?" रश्मि के मुख से अस्फुट से स्वर निकले। पता नहीं उसको कैसा लगेगा, जब वह अपने चेहरे के सामने मेरा चूतड़ देखेगी! मेरी एकमात्र उम्मीद यह थी कि रश्मि मेरे लिंग पर अपना ध्यान केंद्रित करे, न कि किसी अन्य हिस्से पर। 

"जो मैं कर रहा हूँ, आप भी वही करो।" मैंने भी हाँफते हुए कहा, और अपने नितम्ब को नीचे कि तरफ दबाया जिससे मेरा लिंग उसके मुख के पास पहुँच जाए। रश्मि पहले भी मेरा लिंग अपने मुंह में ले चुकी थी, अतः उसको दोबारा यह करने में कोई समस्या नहीं हुई। अगले ही छण मुझे अपने लिंग पर एक गर्म, नम और मखमली एहसास हुआ। 

रश्मि की योनि पहले से ही रसीली हो गयी थी। मैंने अपने अंगूठों से उसकी योनि द्वार को सरकाया और अपनी जीभ को उसकी स्वादिष्ट योनि द्वार में सरका दिया। स्त्रियों के गुप्तांग (मूलाधार, भगशेफ और योनि) बहुत संवेदनशील होते हैं और मामूली उत्तेजन से भी कामुक प्रतिक्रिया दिखाने लगते हैं। अतः मैंने अपनी जीभ को सौम्य और धीमी गति से चलना शुरू किया - ठीक इस प्रकार जैसे कि आइसक्रीम को चाटा जाता है। मैंने धीरे धीरे शुरुआत करके, चाटने की गति बढ़ा दी - और साथ ही साथ चाटने का तरीका और चाटने का दबाव भी बदलता रहा। मैंने धीरे-धीरे, अपनी उँगलियों से उसके भगोष्ठ को फैला कर उसकी स्वादिष्ट योनि के अंदर अपनी जीभ से अन्वेषण किया और ऐसा करने से मैंने उसके समस्त कामुक क्रोड़ के तार झनझना दिए।

हांलाकि रश्मि के मुख में मेरा लिंग था लेकिन फिर भी मुझे उसके गले से निकलती संतुष्टि की सिसकारी सुनायी दी। उसने कुछ देर तक तो शिश्नाग्र को चाटा और चूसा, लेकिन जैसे जैसे वह चरम सुख तक पहुँचने लगी, उसकी क्रिया धीमी पड़ गयी। कुछ देर में उसका सर पीछे की तरफ लुढ़क गया। रश्मि अपनी कामेन्द्रियों पर होने वाले इस इस भारी भरकम हमले से अभिभूत हो गयी। वह इस समय मुंह से साँसे भर रही थी। उसके लिए यह निश्चित रूप से स्वर्ग की सैर करने जैसा था।

मुझे वैसे भी अपना वीर्य रश्मि की योनि के अंदर डालना था - याद है न, उसकी माँ का आदेश था! अपने स्खलन के तुरंत बाद ही रश्मि ने मेरा लिंग अपनी कोमल उँगलियों से पकड़ लिया था। मेरे उन्माद की भी यह सीमा ही थी। अगर वह आठ-दस बार मेरे लिंग को दबा ही देती तो मैं स्खलित हो जाता। अतः मैं जल्दी से अपनी अवस्था से हट गया और वापस पहले जैसे ही उसके सामने बैठ गया। मैंने कुछ एक क्षण गहरी साँसे भरी, जिससे की अपने लिंग पर मुझे और व्यापक नियंत्रण मिल सके। 

इसी विराम वेला में मैंने रश्मि को देखा - एक तरुण, विवाहित, और सम्भोग-तृप्त हिन्दू नारी का सौंदर्य अतुलनीय होता है। रश्मि का दोषरहित, सुन्दर और नितांत नग्न शरीर - उसकी छाती पर सजे हुए प्यारे स्तनों का जोड़ा, एकहरा शरीर, सुडौल नितम्ब, और स्वस्थ, नरम जांघें (जो इस समय मेरे दोनों तरफ फैली हुई थीं); हाथों में रची मेहंदी और चूड़ियाँ, गले में मंगलसूत्र, कानो में कर्णफूल, नाक में एक छोटी सी चमकती हुई कील, मांग में नारंगी सिन्दूर और फैले हुए बाल - वह इस समय स्वयं रति देवी का ही रूप लग रही थी। 

मैंने उसका चेहरा अपने दोनों हथेलियों में लेकर उसके होंठों पर एक भरपूर चुम्बन दिया और कहा, "वाह! तुम एक बहुत खूबसूरत लड़की हो!" अब तक मेरी साँसे मेरे नियंत्रण में आ गयी थीं और मेरा लिंग भी। उसकी उत्तेजना बरकरार थी लेकिन बेकाबू नहीं। फिर मैंने रश्मि कि टाँगे सावधानी से अलग करीं और जगह बनायी और अपने लिंग को हाथ में लेकर उसकी योनि में धीरे धीरे सरका दिया। लिंग का सर अपने गंतव्य में प्रवेश कर चुका था। 

"आर यू रेडी?" मैंने रश्मि से पूछा। उसने तेजी से सर हिला कर हामी भरी।

योनि बुरी तरह से चिकनी थी, अतः लिंग को कोई भी प्रतिरोध नहीं मिलना था। वैसे भी रश्मि अभी अभी संपन्न हुए सम्भोग कि पृष्ठभूमि में लस्त पड़ी हुई थी। उसको जागृत करने के लिए इससे अच्छा तरीका और नहीं हो सकता था। मैंने अपने लिंग को एक तेज़ धक्का दिया - दो बातें एक साथ हुईं - एक तो रश्मि के मुख से एक लम्बी सीत्कार निकल गयी और दूसरा, चूंकि मेरा लिंग अभूतपूर्व तरीके से स्तंभित था, इसलिए रश्मि के योनि मार्ग ने अत्यंत शानदार तरीके से मेरे लिंग कि पूरी लम्बाई को जकड लिया। मैंने बिना रुके धक्के लगाना आरम्भ कर दिया और नीचे से रश्मि ने अपने धक्को से उनका मिलान करना। मैंने रश्मि के चेहरे को देखा। उसकी आँखें बंद थीं और उसके होठ कामुकता से पृथक थे। हम दोनों ही इस रति-क्रिया का बराबर आनंद ले रहे थे। 

रश्मि अपने नितम्बो को इस समय न केवल ऊपर नीचे, वरन, एक गोल गति में भी घुमा रही थी - इससे मेरे लिंग का दो-आयामी दोहन होने लगा था। इससे उसके भगनासे का भी बराबर उत्तेजन हो रहा था। उसकी गति भी बढ़ने लगी थी - सम्भवतः वह दूसरी बार स्खलित होने वाली थी। यह तो एकदम अद्भुत घटना थी। लेकिन मैंने सपने हाथों से उसके नितम्बो को पकड़ कर उसकी गति को थोडा नियंत्रण में लाया। मैं चाहता था कि हमारा यह सम्भोग थोडा और देर तक चले। उसकी गति पर तो मैं बस कुछ ही पल ठहर पाता। कुछ देर तक हम नियंत्रित रहे लेकिन पुनः रश्मि कि गति तेज हो गयी - इस बार मैंने उसको रोका नहीं, बल्कि मैंने खुद भी अपनी गति बढ़ा दी। 

"कम ऑन स्वीटी! कम विद मी!" मुझे मालूम पड़ गया था कि अब हम दोनों ही स्खलन के बेहद करीब हैं। अतः मेरी इच्छा यह थी कि हम दोनों साथ साथ आयें। 

"कम ऑन गर्ल! कम फॉर मी!"

मैंने यह बहुत ऊंची आवाज़ में बोला था। भगवान् ही जाने कि बगल के कमरे में बैठे मेरे ससुराल वाले क्या सोच रहे होंगे। मेरी हर 'कम ऑन' पर रश्मि के धक्के और तीव्र हो जा रहे थे - वह मेरा मंतव्य समझ रही थी। उसके उसके नाखून मेरी पीठ में गड़ने लगे थे - लेकिन मुझे यह पीड़ा भी इस समय मनोहर लग रही थी।
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12-17-2018, 02:10 AM,
#25
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
अचानक ही मैंने उसकी योनि में एक बदलाव महसूस किया - उसकी दीवारें तेजी से संकुचित / कम्पित होने लगीं और योनि रस की एक धारा मेरे लिंग को भिगोने लगी। पहले रश्मि ने हलकी हलकी सिसकारी भरी और फिर एक बड़ी सांस भरी। उसके बाद एक लम्बी "आँह" जैसी आवाज़ आयी। मुझे अच्छा लगा कि रश्मि अब अपने रति-निष्पत्ति के आनंद का निर्लज्ज्ता से आस्वादन करने लगी है। उसके बाद कोई चार पांच धक्कों में मेरे स्खलित वीर्य का पहला माल बड़ी प्रचंडता से मेरे लिंग से निकल कर रश्मि की गहराई में चला गया। रश्मि ने भी इसको महसूस किया होगा, क्योंकि उसी के साथ उसने भी उच्च स्वर में सांस भरी। रश्मि कि रति निष्पत्ति का उन्माद अभी बस शुरू ही हुआ था - उसने अपने दोनों पैर मेरे इर्द-गिर्द कस कर जकड लिए और पूरे जोश से धक्के लगाने लगी। उसके हर धक्के के साथ मैंने वीर्य का कुछ कुछ माल उसकी योनि में छोड़ा। उसकी योनि मेरे लिंग पर कुछ इस तरह संकुचित को रही थी जैसे उसको पूर्णतयः दुह लेगी - और उसने किया भी वही। कुछ देर ऐसे ही करने के बाद हम दोनों पूरी तरह से निढाल पड़ गए। 

मैं रश्मि के बगल ही गिर गया - उसके शरीर कि तपन को मैं महसूस कर पा रहा था। इस ठंडक में भी हम दोनों का शरीर पसीने से ढक गया था। हम दोनों ही जम कर हांफ रहे थे। मैंने उसको अपनी बाँह के घेरे में लेकर कस के पकड़ लिया। हम न जाने कब तक ऐसे ही पड़े रहे, और जब चेतना लौटी तो हम लोग पुनः एक दूसरे को चूमने लगे - लेकिन इस बार कोमलता से।

अंततः मैंने उसके कोमल होंठो को चूमना छोड़ कर उससे पूछा, "सो गर्ल, डू यू लाइक मेकिंग लव?"

रश्मि ने थोड़ी देर सोचकर कहा, "यस, ओह यस!" उसकी आँखें चमक रही थीं। रश्मि को इस तरह से खुश देखना बहुत ही सुखदाई था।

आज का पूरा दिन हमारी विदाई की तैयारियों में ही बीत गया। 

सुबह सवेरे ही सबसे पहला कार्य हमारी शादी का पंजीकरण करवाने का किया। मैंने नहा-धो कर पैन्ट-शर्ट और शाल पहनी, और रश्मि ने साड़ी ब्लाउज और स्वेटर! पंजीकरण का कार्य पड़ोस के बड़े कसबे में होना था, इसलिए दफ़्तर खुलने से पहले ही हम सब वहां पहुँच गए। इतने मामूली काम के लिए भी पूरी मंडली साथ आई – कहने का मतलब यह काम सिर्फ 2 गवाह और मियां-बीवी के रहने मात्र से ही हो जाता है। खैर, हमने दफ़्तर के बगल ही एक ढाबे में नाश्ता किया और सबसे पहले अपना नंबर लगवा दिया। विवाह के अभिलेखी (रजिस्ट्रार) बहुत ही मज़ेदार व्यक्ति थे – उन्होंने हम सबको चाय पिलाई, समोसे खिलाए और अपने अनुभव की कई सारी मज़ेदार बातें बतायीं। उनके साथ बहुत देर तक बात चीत करने के बाद हमने उनकी अनुमति मांगी, जिसके उत्तर में उन्होंने हमको दफ़्तर के दरवाजे तक छोड़ा और एक बार फिर से हम दोनों को हमारी शादी की बहुत बहुत बधाइयाँ दी। करीब दोपहर तक वापस आते हुए हमने रश्मि के स्कूल में जा कर उसका पहचान पत्र बनवाया और घर वापस आ गए। 

हमको अगले दिन बड़े सवेरे ही निकलना था, इसलिए विदाई देने के लिए मिलने वाले लोग दोपहर बाद से ही आने लगे। मेरे दोस्त लोग तो खैर कब के वापस चले गए थे, अतः ड्राइविंग करने का सारा दारोमदार मुझ पर ही था। दोपहर का भोजन समाप्त करने तक हमारे लिए ससुराल वालों ने न जाने क्या-क्या पैक कर दिया था, जिसका पता मुझे दो-ढाई बजे हुआ। इसलिए बैठ कर मैंने बड़ी मेहनत से पैक किया हुआ सारा फालतू का सामान बाहर निकाला और सिर्फ बहुत ही आवश्यक वस्तुएँ ही रखी। रश्मि का शादी का जोड़ा, दो जोड़ी शलवार कुरता और एक स्वेटर रखा। मुझे उसकी सारी साड़ियाँ बाहर निकालते देख कर मेरी सासू माँ विस्मित हो गयी। 

‘ससुराल (?) में क्या पहनेगी?... शादी के बाद कोई शलवार-कुरता पहनता है क्या!!... विवाहिता को साड़ी पहननी चाहिए... संस्कार भी कोई चीज़ होते हैं!... विधर्मी लड़की!...’ इत्यादि इत्यादि प्रकार की उन्होंने हाय तौबा मचाई! उनको मनाने में कुछ समय और चला गया। मैंने समझाया की रश्मि के ससुराल में सिर्फ पति है – ससुर नहीं! तो ससुराल नहीं, पाताल बोलिए! यह भी समझाया की साड़ी अत्यंत अव्यावहारिक परिधान है... मानिए किसी स्त्री को कोई सड़क-छाप कुत्ता दौड़ा ले, तो साड़ी में वह तो भाग ही न पाएगी! और तो और शरीर भी पूरा नहीं ढकता है, और छः-सात मीटर कपड़ा यूँ ही वेस्ट हो जाता है!! मेरी दलीलों से मरी सासू माँ चुप तो हो गईं, लेकिन मन ही मन उन्होंने मुझे खूब कोसा होगा, क्योंकि सब मेरी बात पर हँस-हँस कर लोट-पोट हो गए! 

खैर, आवश्यकता की समस्त वस्तुएँ जैसे विवाह प्रमाणपत्र, रश्मि का हाई-स्कूल प्रमाणपत्र और स्कूल पहचान-पत्र, मेरा पासपोर्ट, हवाई टिकट इत्यादि सबसे पहले ही रख ली; उसके बाद में कपड़े, आवश्यकतानुसार अन्य सामग्री, और तत्पश्चात कुछ वैवाहिक भेंट! कुल मिलकर दो बैग बने! मेरे बैग मिलाकर चार! सासू माँ इसी बात से दुखी थी की हम लोगो ने कुछ रखा ही नहीं और यह की लोग क्या कहेंगे की ससुराल वालों ने कुछ भेंट ही नहीं दी। उनको और समझाना मेरे लिए न केवल बेकार था, बल्कि मेरी खुद की क्षमता से बाहर भी था।

शाम को कोई चार - साढ़े चार बजे किसी ने बताया की भारी बारिश का अंदेशा है – केदार घाटी और बद्रीनाथ में हिमपात हो रहा था और उसके नीचे बारिश। ऐसे में भूस्खलन की संभावना हो सकती है। कुछ देर के विचार विमर्श के पश्चात सबने यह निर्णय लिया की मैं और रश्मि तुरंत ही नीचे की तरफ निकल लेते हैं, जिससे आगे ड्राइव करने में आसानी रहे। सासू माँ को यह ख़याल अच्छा नहीं लगा, लेकिन ससुर जी व्यवहारिक व्यक्ति थे, अतः मान गए। वैसे भी आठ-दस घंटो में ऐसा क्या ही अलग होने वाला था। इस अप्रत्याशित व्यवस्था के लिए कोई भी तैयार नहीं था – एक तरह से यह अच्छी बात साबित हुई। क्योंकि विदाई के नाम पर अनावश्यक रोने-धोने का कार्यक्रम करने के लिए किसी को मौका ही नहीं मिला। एक दो महिलाओं ने कोशिश तो ज़रूर करी की मगरमच्छी आंसू बहाए जायँ, लेकिन ससुर जी ने उनको डांट-डपट कर चुप करा दिया। हम दोनों ने सारे बुजुर्गों के पांव छुए और उनसे आशीर्वाद लिया। मैंने सुमन को छेड़ने के लिए (आखिर जीजा हूँ उसका!) दोनों गालों पर ज़ोर से पप्पी ली, और उसको एक लिफ़ाफ़ा दिया, जो मैं सिर्फ उसके लिए पहले से लाया था। सुमन को बाद में मालूम पड़ेगा की उसमें क्या है, लेकिन उसके पहले ही आपको बता दूं की उसमें बीस हज़ार एक रुपए का चेक था। इसी बहाने सुमन के नाम में एक बैंक अकाउंट खुल जाएगा और उसके पढाई, और ज़रुरत के कुछ सामान आ जायेंगे। 

एक संछिप्त विदाई के साथ ही रश्मि और मैंने वापस देहरादून के लिए प्रस्थान आरम्भ किया। वैसे भी आज देहरादून पहुँचना संभव नहीं था – इसलिए कोई दो तीन घंटे के ड्राइव के बाद कहीं ठहरने, और फिर सुबह देहरादून को निकलने का प्रोग्राम था। मेरी किराए की कार एक SUV थी – न जाने क्या सोच कर लिया था। लेकिन, मौसम की ऐसी संभावनाओं में SUV बहुत ही कारगर सिद्ध होती है। वैसे भी पहाड़ों पर ड्राइव करने में मुझे कोई ख़ास अनुभव तो था नहीं, इसलिए धीरे ही चलना था। यात्रा आरम्भ करने के पंद्रह मिनट में ही मुझे अपनी कार के फायदे दिखने लगे – एक तो काफी बड़ी गाड़ी है, तो सामान रखने और आराम से बैठने में आसानी थी। बड़े पहिये होने के कारण खराब सड़क पर आसानी से चल रही थी। शाम होते होते ठंडक काफी बढ़ गई थी, तो कार का वातानुकूलक अन्दर गर्मी भी दे रहा था। मैंने रश्मि से कुछ कुछ बातें करनी चाही, लेकिन वो अभी अपने परिवार वालो के बिछोह के दुःख से बात नहीं कर रही थी – ऐसे में गाड़ी का संगीत तंत्र मेरा साथ दे रहा था।

बारिश अचानक ही आई, और वह भी बहुत ही भारी – सांझ और बादलों का रंग मिल कर बहुत ही अशुभ प्रतीत हो रहा था। एक मद्धम बूंदा-बांदी न जाने कब भारी बारिश में तब्दील हो गयी। न जाने किस मूर्खता में मैं गाड़ी चालाये ही जा रहा था – जबकि सड़क से यातायात लगभग गायब ही हो गया था। भगवान् की दया से वर्षा का यह अत्याचार कोई दस मिनट ही चला होगा – उसके बाद से सिर्फ हलकी बूंदा-बांदी ही होती रही। घर से निकलने के कोई एक घंटे बाद बारिश काफी रुक गई। रश्मि का मन बहलाने के लिए मैंने उसको अपने घर फोन करने के लिए कहा। उसने ख़ुश हो कर घर पे कॉल लगाया और सबसे बात करी – हम लोग कहाँ है, उसकी भी जानकारी दी और देर तक बारिश के बारे में बताया। और इतनी ही देर में घुप अँधेरा हो गया था, और अब मेरे हिसाब से गाड़ी चलाना बहुत सुरक्षित नहीं था।

“आगे कोई धर्मशाला आये, तो रोक लीजियेगा”, रश्मि ने कहा, “काफी अँधेरा है, और बारिश भी! अगर कहीं फंस गए तो बहुत परेशान हो जायेंगे।“

“बिलकुल! वैसे भी आज रात में ड्राइव करते रहने का कोई इरादा नहीं है मेरा। कोई ढंग का होटल आएगा तो रोक लूँगा। आज दिन की भाग-दौड़ से वैसे भी थक गया हूँ।“

ऐसे ही बात करते करते मुझे एक बंगला, जिसको होटल बना दिया गया था, दिखाई दिया। बाहर से देखने पर साफ़ सुथरा और सुरक्षित लग रहा था। इस समय रात के लगभग आठ बज रहे थे, और इतनी रात गए और आगे जाने में काफी अनिश्चितता थी – की न जाने कब होटल मिले? देखने भालने में ठीक लगा, तो वहीँ रुकने का सोचा। यह एक विक्टोरियन शैली में बनाया गया बंगला था, जिसमें चार कमरे थे – कमरे क्या, कहिये हाल थे। ऊंची-ऊंची छतें, उनको सम्हालती मोटे-मोटे लकड़ी की शहतीरें, दो कमरों में अलाव भी लगे हुए थे। साफ़ सुथरे बिस्तर। रात भर चैन से सोने के लिए और भला क्या चाहिए? होटल में हमसे पहले सिर्फ एक ही गेस्ट ठहरे हुए थे – इसलिए वहां का माहौल बहुत शांत, या यूँ कह लीजिये की निर्जन लग रहा था। गाड़ी पार्क कर के रश्मि और मैं कमरे के अन्दर आ गए। पता चला की वहां पर खाना नहीं बनाते (मतलब कोई रेस्त्राँ नहीं है, और खाना बाहर से मंगाना पड़ेगा)। मैंने परिचारक को कुछ रुपये दिए और गरमा-गरम खाना बाहर से लाने को कह भेजा। मेनेजर को यह कहला दिया की सवेरे नहाने के लिए गरम पानी का बंदोबस्त कर दें! 

एक परिचारक गया, तो दूसरा अन्दर आ गया। उसने कमरे के अलाव में लकड़ियाँ सुलगा दी, जिससे कुछ ही देर में थोड़ी थोड़ी ऊष्मा होने लगी और कमरे के अन्दर का तापमान शनैः-शनैः सुहाना होने लगा। इस पूरी यात्रा के दौरान न तो मैं रश्मि से ठीक से बात कर पाया, और न ही उसकी ठीक से देख-भाल ही कर पाया। उसकी शकल देख कर साफ़ लग रहा था की वह बहुत ही उद्विग्न थी। सम्भंतः बिछोह का दुःख और बीच की भीषण वर्षा का सम्मिलित प्रभाव हो! 

“हनी! थक गई?” मैंने पूछा। रश्मि ने ‘न’ में सर हिलाया। 

“तो फिर? तबियत तो ठीक है?”

रश्मि ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। 

“अरे तो कुछ बात तो करो! या फिर साइन लैंग्वेज में बात करेंगे हम दोनों?” 

अपना वाक्य ख़तम करते करते मुझे एक तुकबंदी गाना याद आ गया, तो मैंने उसको भी जोड़ दिया, 

“साइन लैंग्वेज में बात करेंगे हम दोनों! 
इस दुनिया से नहीं डरेंगे हम दोनों! 
खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों!”

रश्मि मुस्कुराई, “सबकी बहुत याद आ रही है – और शायद थोड़ा थक गयी हूँ और...... डर भी गई! ऐसी बारिश में हमको रुक जाना चाहिए था!” उसने बोला।

“अरे! बस इतनी सी बात? लाओ, मैं तुम्हारे पांव दबा देता हूँ।“

“नहीं नहीं! क्यों मुझे पाप लगवाएंगे मेरे पैर छू कर?”

“अरे यार! तुम थोड़ा कम बकवास करो!” मैंने मजाकिए लहजे में रश्मि को झिड़की लगाई। “शादी करते ही तुम अब मेरी हो – मतलब तन, और मन दोनों से! मतलब तुम्हारा तन अब मेरा है – और इसका मतलब तुम्हारा पांव भी मेरा है। और मेरे पांव में दर्द हो रहा है! समझ में आई बात?” 

“आप माँ वाली दलीलें मुझे भी दे रहे हैं! आपने आज उनको बहुत सताया!”

“आपको भी सताऊँ?”

और कोई चार-पांच मिनट तक मनुहार करने के बाद वो राज़ी हो गई।

मैंने रश्मि को कुर्सी पर बैठाया और सबसे पहले उसकी सैंडल उतार दी – यह कोई कामुक क्रिया नहीं थी (हांलाकि मैंने पढ़ा है की कुछ लोग इस प्रकार की जड़ासक्ति रखते हैं और इसको foot-fetish भी कहा जाता है), लेकिन फिर भी मुझे, और रश्मि को भी ऐसा लगा की जैसे उसको एक प्रकार से निर्वस्त्र किया जा रहा हो। रश्मि की उद्विग्नता इतने में ही शांत होती दिखी। चाहे कैसी भी तकलीफ हो, पांव की मालिश उसको दूर कर ही देती है। मैंने रश्मि के दाहिने पांव के तलवे के नीचे के मांसल हिस्से को अपने अंगूठे से घुमावदार तरीके से मालिश करना आरम्भ किया। कुछ देर में उसके पांव की उँगलियों के बीच के हिस्से, तलवे और एड़ी को क्रमबद्ध तरीके से मसलना और दबाना जारी रखा। पांच मिनट के बाद, ऐसा ही बाएँ पांव को भी यही उपचार दिया। इस क्रिया के दौरान मैंने रश्मि को देखा भी नहीं था, लेकिन मैंने जब दूसरे पांव की मालिश समाप्त की, तो मैंने देखा की रश्मि की आँखें बंद हैं, और उसकी साँसे तेज़ हो चली थीं।
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12-17-2018, 02:10 AM,
#26
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि की अवस्था तनाव-मुक्ति से आगे की ओर जा रही थी – वह उत्तेजित हो रही थी। रश्मि के दोनों निप्पल कड़े हो गए थे और उनका उठान उसके कुरते के वस्त्र से साफ़ दिखाई दे रहा था। उसके होंठों पर एक बहुत ही हल्की मुस्कान भी दिख रही थी – मैं जो भी कुछ कर रहा था, बिलकुल सही कर रहा था। मैंने अब उसके दोनों टखनों को एक साथ अपनी उंगली और अंगूठे से पकड़ कर दबाना जारी रखा, और कुछ देर मसलने के बाद वापस उसके अंगूठों और तलवों की मालिश करी। अब तक मालिश के करीब पंद्रह मिनट हो गए थे। मैंने मालिश रोक दी, और बारी बारी से रश्मि के दोनों अंगूठों को चूमा। रश्मि की साँसे अब तक काफी उथली हो चली थीं। संभवतः यह मेरा भ्रम हो, लेकिन मुझे ऐसा लगा की मानो हवा में रश्मि की ‘महक’ घुल गई हो।

रश्मि की आँखें अभी भी बंद थी। इस परिस्थिति का लाभ उठाया मेरी उँगलियों ने, जिन्होंने उसकी शलवार के नाड़े को ढूंढ कर ढीला कर दिया। अगले पांच सेकंड में उसकी शलवार उसके घुटनों से नीचे उतर चुकी थी, और मेरी उंगलियाँ उसकी योनि रस से गीली हो चली चड्ढी के ऊपर से उसकी योनि का मर्दन कर रही थीं। मेरी इस हरकत से रश्मि की योनि से और ज्यादा रस निकलने लगा।

मैं और भी कुछ आगे करता की दरवाजे पर दस्तक हुई। रश्मि मानो मूर्छा से जागी हो। उसने झटपट अपनी शलवार सम्हाली और पुनः बाँध ली, और कुर्सी में और सिमट कर बैठ गयी। दरवाजे पर परिचारक था, जो हमारे लिए खाना लाया था। उसने टेबल पर खाना और प्लेटें व्यवस्थित कर के सजा दिया – मैंने देखा की उसने दो प्लेट रसगुल्ले, और पानी की बोतल भी लाई थी। इस बात से ख़ुश हो कर मैंने उसको अच्छी टिप दी और उससे विदा ली। जाते-जाते उसने मुझको खाने के बाद ट्रे को दरवाज़े के बाहर रख देने को कह दिया।

“आप मुझको कितनी आसानी से बहका देते हैं!” मेरे वापस आने पर रश्मि ने लजाते, सकुचाते कहा।

“बहका देता हूँ?” मैंने बनावटी आश्चर्य में कहा, “जानेमन, इसको बहकाना नहीं कहते – यह तो मेरा प्यार है। और आप अभी नई-नई जवान हुई हैं, इतनी सेक्सी और हॉट हैं, इसलिए आपकी सेक्स-ड्राइव, मेरा मतलब सेक्स में दिलचस्पी, थोड़ी अधिक है। अच्छा है न? सीखने की उम्र है – जो मन करे, जितना मन करे, सब सीख लो।“ मैंने आँख मारते हुए कहा।

“आप हैं न मुझे सिखाने के लिए!” रश्मि की लज्जा अभी भी कम नहीं हुई थी। “आप के जैसे ओपन माइंडेड तो नहीं हूँ, लेकिन जितना भी हो सकेगा, आपको ख़ुश रखूंगी।”

“जानू, सिर्फ मुझे ही नहीं, हम दोनों को ही ख़ुश रहना है। ओके? अरे भाई – हमारे शास्त्रों में भी यही बताया गया है!”

“शास्त्रों में यह सब बाते होती है?”

“बिलकुल! यह सुनो... यह मनु ने कहा है –

संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्ता भार्या तथैव च:। यस्मिन्नैव कुले नित्यं कल्याण तत्रेव ध्रुवम्।।

जिस कुल - मतलब घर या परिवार - में, पुरुष स्त्री से प्रसन्न रहता है, और पुरुष से स्त्री, उस परिवार का अवश्य ही कल्याण होता है! कहने का मतलब बस यह, की एक दूसरे को पूरी तरह से ख़ुश करने की हम दोनों की ही बराबर की जिम्मेदारी है। न किसी एक की ज्यादा, न कम! समझ गयी?” 

मेरी बात सुन कर रश्मि ने ‘हां’ में सर हिलाया और फिर हमने खाना आरम्भ किया। गरमागरम खाना और रसगुल्ले खा कर पेट अच्छे से भर गया। दिन भर की थकावट के कारण खाना ख़तम करते करते नींद आने लग गयी। मैंने ट्रे बाहर रखी और वापस आ आकर बिस्तर पर ढेर हो गया।
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12-17-2018, 02:10 AM,
#27
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि का सपना

रूद्र ने तेल से चुपड़ी अपनी दोनों हथेलियाँ मेरे स्तनों पर रख दी। उनके हाथों की छुवन मात्र से ही मेरे दोनों चूचक तन कर खड़े हो गए। रूद्र जितनी भी बार मेरे स्तनों को छूते हैं, लगता है की पहली बार ही छू रहे हों। उनके छूते ही मेरे पूरे शरीर में झुरझुरी दौड़ जाती है। मेरी साँसें तुरंत तेज़ हो गई – लाज के मारे मैंने अपनी आँखें बंद कर ली, और आगे होने वाले आक्रमण के लिए अपने मन को मज़बूत कर लिया। 

उन्होंने पहले मेरे स्तनों पर अच्छे से हाथ फिराया, जिससे वे तेल से पूरी तरह से सन जाएं, और फिर धीरे धीरे स्तनों को अपनी मुट्ठी में भर कर दबाना आरम्भ कर दिया। मुझे ऐसा लगा की सिर्फ चूचक ही नहीं, पूरे स्तन ही अपनी नाज़ुकता खोकर कड़े होते जा रहे हैं! रूद्र तो जैसे इन सब बातों से बेखबर थे – उनकी मेरे स्तनों पर हाथ फिराने, उनको सहलाने और मसलने की गतिविधि बढती ही जा रही थी। न चाहते हुए भी मेरी सिसकियाँ छूट गईं! मैं कितनी कोशिश करती हूँ की रूद्र के सामने मैं बेबस न होऊँ, लेकिन उनकी उपस्थिति, उनकी छुवन, उनकी बातें – मानो उनकी हर एक गतिविधि प्रेम भरा दंश हो। उनके प्रेमालाप आरम्भ करने मात्र से मेरे पूरे शरीर में काम का मीठा ज़हर फैलने लगता है। मैं अब तक अपना आपा खो चुकी थी और काम के सागर में आनन्द भरे गोते लगा रही थी। मुझे लूटने के तो उनके पास जैसे हज़ार बहाने हों – आज मालिश का है! 

‘सीईई! आह! यह क्या!’ ऐसी निर्दयता से मत मसलो मेरे साजन! ये कोमल कलियाँ है, ज़रा बचा कर!

रूद्र पिछले कोई 10 मिनट से मेरे स्तनों की मालिश किये ही जा रहे हैं, और इस बीच उन्होंने उनको न जाने कितनी ही बार मसला, दबाया और रगड़ा होगा! सिर्फ इतना ही नहीं, बीच बीच में वो मेरे स्तनों को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर अपने दूसरे हाथ की हथेली से मेरे चुचकों पर फिराते तो मेरी सिस्कारियां ही निकल जाती। रूद्र कुछ कुछ कह भी रहे हैं! क्या कह रहे हैं, कुछ भी समझ नहीं आ रहा है! मुझे तो लगता है की मेरे होश ही उड़ गए हैं! लेकिन उनकी बातो पर कुछ तो प्रतिक्रिया करनी ही पड़ेगी न! इसलिए मैं बेसुध सी आँखें बंद किये, हाँ... हूँ... और सिस्कारियां ले रही थी। मेरी साँसों की गति बहुत बढ़ गई है और मेरे स्तन भी उन्ही के ताल पर तेजी से ऊपर-नीचे हो रहे है! 

रूद्र ने मेरे होंठों पर अपने होंठ लगा दिए हैं! उनके चुम्बन लेने का तरीका कितना अनोखा है! उनके होंठ और जीभ मेरे पूरे मुख की टोह ले डालते है! मुझे बहुत आनंद आता है और मैं भी उनके चुम्बनों का मज़ा लेने से नहीं चूकती... उन्होंने इस समय मेरे स्तन छोड़ रखे थे और एक हाथ से मेरी नंगी पीठ सहला रहे थे और दूसरे हाथ से मेरे बाल सहला रहे थे। आंखें बंद किये मैं उनके होंठों को चूमती और चूसती रही, और उनको जैसा जी चाहे करने देती रही। इस प्रकार के प्रेम-प्रसंग में जब भी मेरी आँखें खुलती हैं, तो मुझे बहुत लज्जा आती है। उनकी आँखों के वासना के लाल डोरे साफ़ दिख रहे हैं और चेहरे पर शरारती भाव स्पष्ट थे। उस अन्तरंग चुम्बन के बाद उन्होंने मेरी गर्दन पर हमला किया – यह संभवतः पहली बार था! एक दो मधुर चुम्बनों के बाद उन्होंने मेरी गर्दन पर अपने दांत ही गड़ा दिए – लेकिन ऐसे नहीं की मुझे कोई नुकसान हो... बल्कि ऐसे जिससे मेरे शरीर की आग और भी बढ़ जाय! 

मेरी साँसें इस समय बहुत तेज़ चल रही थी और आँखों में खुमार सा आने लग गया। रूद्र ने मुझे अपनी बांहों में भर कर बिस्तर से उठा लिया, तो मैं भी अपनी बाहें उनके गले में डाल कर उनके आलिंगन में झूल सी गई। अनजाने ही सही, ऐसा करके मैंने उनके सामने अपने स्तन परोस दिए और उनको भोज का निमंत्रण भी दे दिया। और रुद ऐसे तो नहीं है की इस प्रकार के भोज निमंत्रण तो ठुकरा दें। उन्होंने मुझे एक हाथ (बाएँ) से पकड़ कर सम्हाला, और दूसरे (दाहिने) से मेरे बाएँ स्तन को पकड़ कर थोड़ा दबाया। ऐसा करने से मेरा निप्पल एकदम से बाहर निकल आया। उन्होंने उसको कुछ देर ऐसे निहारा जैसे की उसका मूल्यांकन कर रहे हों और फिर धीरे से अपने होंठ उस पर लगा दिए।

अपने शरीर के किसी अंग को किसी और के मुख में ऐसे कामुक ढंग से लीले जाते हुए देखना अत्यंत रोमांचक होता है। मेरे चूचक से एक काम की एक मीठी धारा निकली और वहां से होते हुए पूरे शरीर में बहने लगी। लज्जा और रोमांच के कारण मेरी आँखें मुंद गईं! रूद्र मेरे स्तन की धीरे-धीरे चुस्की लगा रहे थे और साथ ही साथ स्तन को मुँह में भरते भी जा रहे थे। कुछ ही देर में मेरे स्तन का ज्यादातर हिस्सा उनके मुँह में समां गया। कामोन्माद ने मुझे पूरी तरह से बेबस कर दिया था... मैं अब क्या कर रही थी, उस पर मेरा कोई भी नियंत्रण नहीं था।

मैं उनका सर अपने हाथों से पकड़ कर अपनी छाती की तरफ दबाने लगी। रूद्र ने भी ठीक उसी अनुरूप अपना आभार प्रकट किया। वे अब बारी बारी से मेरे दोनों स्तनों को चूम और चूस रहे थे - कभी वो उनको अपने मुँह में पूरा भर लेते तो कभी चूसते हुए मेरे चूचक अपने दांतों से हल्के से काट लेते! उनकी इन हरकतों से मेरी कराह, सिसकियाँ, किलकारी – या जो भी कुछ है – निकल जाती! 

आश्चर्य की बात है की प्रहार मेरे स्तनों पर हो रहा था और प्रभाव मेरी योनि पर पड़ रहा था। कामरस की बारिश से बिस्तर पर बिछा चद्दर गीला हो चला था। रूद्र मेरे दोनों स्तनों पर प्रयोग पर प्रयोग किये जा रहे थे – वो कभी उनको चूमते, कभी मेरे चूचकों पर जीभ फिराते, कभी चाटते, कभी मसलते तो कभी दबाते। और तो और वो बीच-बीच में स्तनों को छोड़ कर मेरे होंठों पर जोरदार और अन्तरंग चुम्बन लेटे और फिर वापस अपने काम पर लग जाते। रूद्र को स्तनपान कराने की मेरे अन्दर ऐसी तीव्र इच्छा थी की मन में बस यही आया की मेरे दोनों स्तन मीठे मीठे दूध से भर जाएँ, और रूद्र जीवन भर उनका पान कर सकें! रूद्र के स्पर्श में वह जादू था की वो मुझे कुछ ही पलों में मतवाला बना देते। मैं इस कदर रोमांचित हो चली थी कि मैं उनकी गोद में ही उछलने लगी।


रश्मि की आँखें एक झटके से खुली। 

‘कैसा सपना देखा! कितना कामुक! और कितना वास्तविक!’

इतना वास्तविक सपना की उसको अपने निप्पलों पर अभी भी मीठी मीठी पीड़ा महसूस हो रही थी। उसका हाथ उनको सहलाने के लिए अपनी छाती पर गया।

‘अरे! ये तो खुले हुए हैं!! और ये बाएँ तरफ?’ सोचते हुए रश्मि का ध्यान अपने बाएँ स्तन पर गया। इस निप्पल को चूसते हुए मैं सो गया था।

‘अच्छा, तो यह सब इन जनाब की कारस्तानी है! कोई सपना वपना नहीं था – सब हकीकत थी। लेकिन वह तेल...?’ सोचते हुए रश्मि ने अपने स्तनों की त्वचा पर उंगली फिराई, ‘नहीं.. यहाँ कोई तेल-वेल नहीं लगा है! सपने में क्या क्या सोच लिया मैंने!’ सोचते हुए रश्मि ने अपने शरीर का और जायजा लिया, लेकिन इतने ध्यान से की मेरी नींद न टूटे।

‘बस कुरता ही उतारा है – शलवार तो ज्यों की त्यों बंधी हुई है! लेकिन यह कुरता इन्होने उतारा कैसे की मुझे पता ही नहीं चला?! और... वहां तो जम कर गीलापन है! बदमाश...!!’ सोचते हुए रश्मि लजा गई, और प्यार से मेरे बालों में उँगलियों से सहलाने लगी। उसके इस संकेत पर मैं सोते हुए ही कुनमुनाया और पुनः उसके निप्पल का चूषण करने लगा। पांच छः बार चूसने के बाद पुनः मैं गहन निद्रा में लीन हो गया। मुझको ऐसे अबोधपन से ऐसी बदमाशी भरा काम करते देख कर रश्मि हौले से हँस दी और मुझे प्यार से अपने स्तन पर भींच कर पुनः सो गयी।
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12-17-2018, 02:10 AM,
#28
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मेरे निर्देशों के अनुसार, मेनेजर ने सवेरे 6 बजे मुझको जगा लिया और साथ ही साथ नहाने का पानी भी पेश किया। कोई साढ़े सात बजते बजते रश्मि और मैं नहा धो कर और हल्का नाश्ता कर के आगे की यात्रा पर निकल गए। अगर सब ठीक रहा तो ग्यारह बजे से पहले हम लोग देहरादून में होंगे।

इतने सवेरे यात्रा करने का यह लाभ होता है की सड़क खाली मिल जाती हैं, इस कारण से हमारी रफ़्तार भी काफी तेज़ रही। आज रश्मि मुझसे कुछ ज्यादा खुलकर बाते हर रही थी। रास्ते में उसने बताया की वो पहले भी दो बार देहरादून आ चुकी है। यह भी पता चला की उनका परिवार हरिद्वार से आगे कभी नहीं गया। मैंने भी उसको अपने बारे में इधर उधर की काफी बाते बतायी – ऐसे तो मुझे घूमने का कोई ख़ास अनुभव नहीं था, लेकिन काम को लेकर देश-विदेश में काफी घूम चुका हूँ। रश्मि विदेश के बारे में सुनकर काफी आश्चर्यचकित हुई। संछेप में कहा जाय तो आज की यात्रा बहुत अच्छे से हो रही थी। बिना रुके हम लोग साढ़े दस पर ही देहरादून पहुँच गए। वहां पहुँच कर मैंने अपनी SUV को उसके असली मालिक को सौंप दिया और हिसाब-किताब बराबर कर के एक रेस्त्राँ में खाने पहुंचे।

“आप क्या लेंगी?” मैंने मेन्यू देखते हुए पूछा।

“आप क्या लेंगे?”

“आज तो हम वही लेंगे जो आप लेंगी।“

इस प्रकार की पहले आप – पहले आप होटल/रेस्त्राँ के बैरा लोगो के लिए रोज़ की ही बात होती है, लिहाज़ा वो बेचारा पूरी धीरता के साथ हमारे आर्डर का इंतज़ार करता रहा। खैर, हमने रोटी-सब्ज़ी और मीठा मंगाया। कोई पौने एक बजे हम दोनों एक किराए की गाड़ी में बैठ कर हवाई-अड्डे पहुँच गए। रश्मि के लिए आज एक नया ही अनुभव होने वाला था। न तो उसने कभी इस प्रकार से सड़क यात्रा करी थी, और न ही कभी हवाई यात्रा। मुझे संदेह था की हवाई अड्डे पर रश्मि को लेकर कुछ ज्यादा पूछ-ताछ हो सकती है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। खैर, मैं यहाँ पर ‘मेरी पहली हवाई यात्रा’ पर कोई निबंध तो लिखने बैठा नहीं हूँ, और न ही आप उसको पढने! कोई चार घंटे की यात्रा के बाद, हम लोग बैंगलोर पहुँच गए और वहां से कोई डेढ़ घंटे बाद (करीब आठ बजे रात को) अपने घर पहुँच गए। लेकिन रश्मि ने ऐसी बदहवासी अपने पूरे जीवन में कभी नहीं देखी – इतनी भीड़, इतने सारे वाहन, इतना प्रदूषण, इतना शोर, इतनी गंदगी, और इतनी अराजकता – उसके लिए एकदम नया भी था, और थोड़ा डरावना भी। अच्छी बात यह रही की गाड़ी की खिड़कियाँ बंद थीं, और वातानुकूलन चल रहा था... नहीं तो मुझे पूरा शक था की उसको खाँसी हो जाती। उसको तभी राहत मिली जब हम अपनी हाउसिंग सोसाइटी के दायरे में आ गए।

अरे! मैंने आपको मेरी हाउसिंग सोसाइटी के सेक्रेटरी के बारे में कुछ बताया ही नहीं! 

श्री देवरामनी और उनकी पत्नी अत्यंत सज्जन लोग थे, और बुजुर्ग भी। वो सेना के सेवानिवृत अधिकारी थे, और बहुत ही जिंदादिल और मजाकिया किस्म के इंसान थे। उनकी एकमात्र संतान, उनका पुत्र था, जो विवाह कर के सपत्नीक अमेरिका में ही बस गए थे। वो दोनों मेरे फ्लैट के बगल वाले 3 कमरे वाले फ्लैट में रहते थे। इसलिए उनसे अच्छी जान-पहचान थी, और इसीलिए मैंने उनको अपने घर की चाबी भी सौंपी थी। उनको मालूम था की हम लोग इस समय पर उपस्थित हो जायेंगे, इसलिए उन्होंने और उनकी धर्मपत्नी ने पहले ही सारे इंतजाम कर रखे थे। मैंने देखा की वो दोनों मेरे घर ही विराजमान हैं, और अन्दर से काफी सारे फूलों की महक आ रही है, तो तुरंत ही समझ में आ गया की माजरा क्या है। उनकी पत्नी ने हम दोनों को तिलक लगाया; हम दोनों ने उनका आशीर्वाद लिया। उसके बाद उन्होंने रश्मि को अन्दर आने को कहा। दरवाज़े पर एक चावल भरा कलश रखा था। रश्मि को मानो इसका सहज ज्ञान हो – उसने अपने दाहिने पांव से उस कलश को आगे की तरफ धकेल दिया। उसके साथ ही एक परात में गुलाबी-लाल रंग का घोल करके रखा हुआ था। रश्मि ने उसमे दोनों पांव रख कर घर की फर्श पर निशान बनाए, और वहीँ बैठक में खड़ी हो गई।

श्रीमती देवरामनी ने ही उसको पकड़ कर सोफे पर बैठाया और स्वयं भी सभी बैठ गए। इस समय मेरा महत्व लगभग नगण्य था, क्योंकि वो दोनों ही मेरी पत्नी से बात करने में मगन थे। अब चूंकि श्री और श्रीमती देवरामनी को हिंदी का ज्ञान बहुत ही कम था और वो लोग सहज नहीं थे, इसलिए आगे की बातें सब अंग्रेजी में हुईं!

श्रीमती देवरामनी ने श्री देवरामनी से कहा, “Is she not a thing of beauty! (कितनी सुन्दर हैं यह, है न?)” 

श्री देवरामनी: “Oh she is! Such a lovely child! What is your good name, my child? (ओह बिलकुल! बहुत प्यारी बच्ची है! तुम्हारा शुभ नाम क्या है बेटे?)”

“जी, रश्मि!”

श्री देवरामनी: “Such a beautiful name - as precious as you are! (कितना सुन्दर नाम! ठीक तुम्हारे जैसा!)” फिर मेरी तरफ मुखातिब हो कर, “You married a child, you old goat! (तुमने एक बच्चे से शादी कर ली!?)” इस बात पर मेरे चेहरे पर उठने वाले भावों को देख कर उनको खूब हंसी आई। उन्होंने मेरी और खिंचाई करते हुए आगे कहा, “Are you sure that she is of legal age to wed? (पक्का, यह बालिग़ ही है न?)”

“Shut up old man! (तुम चुप करो)” ये श्रीमती देवरामनी की मीठी झिड़की थी, “Stop teasing him! (बहुत हो गयी इसकी खिचाई)” फिर उन्होंने रश्मि को देख कर कहा, “But yes, she is so beautiful, and I am so happy for you both. (लेकिन हाँ, बहु बहुत सुन्दर है, और मैं तुम दोनों के लिए बहुत ख़ुश हूँ)”

खैर, मैंने ही उनको बताया की रश्मि अभी बारहवीं में पढ़ रही है, और जैसे ही वो शादी लायक हुई, मैंने उसको लपक लिया। फिर मैंने उन दोनों को मेरी ससुराल के बारे में बताया। मैं उन सबसे कैसे मिला, यह भी बताया। मेरी बातें सुनने के बाद श्री देवरामनी ने मुझसे कहा, 

“You are a lucky fellow, my boy! And oh yes we are very happy for both of you! And I must tell you young man that you are going to take good care of this little doll. (तुम बहुत ही भाग्यशाली हो बेटा! और हाँ, हम दोनों ही तुम्हारे लिए बहुत ख़ुश हैं... और एक बात, इस गुड़िया जैसी लड़की का ठीक से ख़याल रखना!)” 

श्री देवरामनी ने मुझे हिदायद दी, “... for us you are like a son, but she is now our daughter too. (तुम हमारे बेटे जैसे ही हो, लेकिन यह अब हमारी बेटी है)” 

फिर रश्मि की तरफ मुखातिब होकर, “My dear child, you heard what I just said. Treat us as your own parents. We will not let you feel alone, when this nocturnal, workaholic husband of yours is away slogging. If you need anything at all, you come to us. Okay? (बच्चे, तुमने सुना की मैंने अभी क्या कहा? हमको अपने माता-पिता जैसा ही समझना। जब भी ये तुम्हारा पति ऑफिस में मेहनत कर रहा हो, हमारे पास आ जाना - हम तुमको कभी भी अकेला नहीं महसूस होने देंगे! कुछ भी ज़रुरत हो, तो तुरंत आ जाना। ओके?”

रश्मि को न जाने कितना समझ आया, लेकिन उसने सर हिला कर हामी भरी।

“Very well then, both of you on your feet. Clean up and get ready... Tonight's dinner is with us. So, if you have any other plans for dinner, scrap them. (बहुत अच्छा! अब चलो, जल्दी से फ्रेश होकर तैयार हो जाओ – आज का खाना हमारे साथ हैं। अगर बाहर जाकर खाने का कोई प्लान था, तो भूल जाओ।)”

और यह कह कर दोनों उठ कर अपने घर को चल दिए। मैंने सबसे पहले रश्मि को अपना घर दिखाया – यह 2 कमरे का फ्लैट था, जिसमें बैठक कक्ष, रसोई घर, भोजन करने के लिए जगह, 2 स्वच्छता घर और एक बालकनी भी थी। मुझे यह देखकर बहुत अच्छा लगा की श्री और श्रीमती देवरामनी ने घर की अच्छी तरह से साफ़ सफाई करवा दी थी और बड़े शयनकक्ष को फूलों की वेणियों से सजा दिया था – आज एक और सुहागरात होने वाली है, ऐसा सोच कर मैं मन ही मन मुस्कुरा दिया। खैर, घर दिखाने के बाद, मैंने रश्मि के घर फोन लगाया और सबसे बात करके रश्मि को फोन पकड़ाया, और हाथ मुँह धोने गुसलखाने में चला गया।

अगले आधे घंटे में हम दोनों श्री और श्रीमती देवरामनी के घर प्रीतिभोज करने पहुँच गए। आज तक किसी के घर इतना विस्तृत भोज मैंने कभी नहीं देखा था। विभिन्न प्रकार के सुस्वाद भोज्य थाली में परोसे गए, और हमारे मेजबानों ने इतने प्रेम और आग्रह से खिलाया की हम दोनों ने आवश्यकता से अधिक खा लिया। चलने से पहले श्रीमती देवरामनी ने रश्मि को सोने की चेन भेंट में दी। कुछ देर और बात-चीत करने के बाद, हम अपने घर वापस आ गए।

दरवाजे बंद कर मैंने रश्मि का हाथ पकड़ कर उसको हमारे कमरे के अन्दर ले आया। देर भी हो गयी थी, और एक लम्बी यात्रा के कारण थकावट भी थी, इसलिए आज कोई ख़ास प्रोग्राम (मेरा मतलब समागम) नहीं सोचा। लेकिन रश्मि से बात करने का मन तो था ही, इसलिए मैंने उससे पूछा,

“आपको घर अच्छा लगा?”

“बहुत अच्छा है” (उसने बहुत पर थोडा जोर देकर कहा), “और आपने बहुत अच्छे तरीके से रखा भी है।“

“थैंक यू! अच्छा, एक बात – कल मैंने एक रिसेप्शन रखा है। मेरे जान पहचान के लोग आयेंगे – ज्यादातर ऑफिस से। आपके पास कल पहनने के लिए कुछ है न?”

इतना तो मुझे मालूम था की रश्मि इतने दिनों से सिर्फ साड़ियाँ ही पहन रही है, और वो भी नई। संभव है की उसके पास कुछ न हो। मेरे प्रश्न पर उसका चेहरा उतर गया, और मेरा शक यकीन में बदल गया। उसने उत्तर में सिर्फ न में सर हिलाया।

“कोई बात नहीं, कल हम दोनों शौपिंग करने चलेंगे। ओके? इसी बहाने आपको अपना शहर भी दिखा दूंगा!”

“जी ठीक है!” कोई खास उत्साह नहीं। 

“अरे यार! आप भी न! हम लोग आपके लिए नई ड्रेस लेंगे – मिनी मिडी टाइप! अंग-प्रदर्शन करने वाली। लोगो को भी मालूम पड़े, की मेरी बीवी कितनी हॉट है!”

“छी!” उसका मूड अब अच्छा हो गया।

मैं बिस्तर पर बैठ गया और रश्मि को भी अपने बगल बैठा कर आलिंगनबद्ध कर लिया।

“आई लव यू!” कह कर मैंने उसकी साड़ी का पल्लू उसके सीने से नीचे ढलका दिया, और एक गहरी, प्रशंसक दृष्टि डाली। मेरी इस हरकत से रश्मि की नजर नीचे झुक गयी। मैं कुछ मज़े लेने के लिए अनायास ही उसकी ब्लाउज का सबसे ऊपरी बटन खोलने लगा। ऐसे सेक्स करने का कोई मूड नहीं था – शायद पिछले कुछ दिनों की मसल-मेमोरी (muscle-memory) हो। रश्मि के पूरे चेहरे पर शर्म का रंग गहरा गया।

“आपको और आपकी शर्म को देख कर मुझे एक कहानी याद आ जाती है।“

रश्मि के होंठो पर एक मद्धिम सी मुस्कान आ जाती है, “कौन सी?”

“आप सुनेंगी?” रश्मि ने हामी भरी।

मैंने कहानी शुरू करी:

“बहुत पहले एक राजकुमार हुआ। वह ऐसे तो बहुत ही अच्छा था और प्रजा उसको बहुत चाहती भी थी, लेकिन उसकी एक बात के लिए लोग उससे बहुत ही डरते थे, ख़ासतौर पर लड़कियाँ और औरतें। और वह इसलिए क्योंकि उसकी यौन-शक्ति में बहुत ही बल था। उसको संतुष्ट करने के लिए उसके पास कम से कम 100 रखैलें थीं। फिर भी उसको चैन नहीं आता था। एक रात उसकी एक रखैल उसको संतुष्ट नहीं कर सकी, तो राजकुमार ने उसको भगा दिया। अगले दिन उसने अपने नौकरों को आदेश दिया की पूरा देश ढूंढ कर सबसे सुन्दर स्त्री को लाओ। 

इस काम में बहुत महीने लग गए, लेकिन अंततः एक बहुत ही सुन्दर, जवान, लेकिन श्यामवर्ण लड़की मिली। राजकुमार ने उसको देखा तो कहा, ‘यह लड़की वाकई बहुत सुन्दर है। लेकिन इसका रंग इतना श्याम वर्ण क्यों है?’”
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12-17-2018, 02:10 AM,
#29
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
कहानी सुनाते-सुनाते मैंने रश्मि की ब्लाउज के सारे बटन खोल दिया, और उसके पट अलग कर उसके सुन्दर स्तनों को मुक्त भी कर दिया। रश्मि के झुके हुए चेहरे पर शरम वाली मुस्कान आ गयी थी और उसके उसके स्तनों और निप्पल के इर्द-गिर्द लालिमा भी आ चली थी। मैंने कहानी आगे जारी रखी,

“इस बात पर एक चतुर नौकर बोला, ‘राजकुमार, वह इसलिए क्योंकि यह लड़की काम-देवी है। इसके अन्दर कामाग्नि इतनी धधकती है की उसकी तपन से इसका रंग इतना गहरा हो गया है।‘ राजकुमार इस बात से दंग रह गया। उसने पूछा, ‘अगर यह बात सच है तो मुझे इन रखैलों की ज़रुरत ही नहीं! है न?’ नौकर ने सहमती दिखाई।

इस बात पर राजकुमार ने तुरंत ही उस लड़की से ब्याह कर लिया और बाकी सभी औरतों की छुट्टी कर दी। और अब दोनों सुहाग-सेज पर आ कर बैठ गए। राजकुमार बिना देरी किये अपनी पत्नी से सम्भोग करना चाहता था। उसने शीघ्र ही राजकुमारी के कपड़े उतार दिए।“

इतना कहते हुए मैंने भी रश्मि की ब्लाउज उतार कर अलग कर दी, और उसको खड़ा कर के साथ ही साथ साड़ी भी उतार दी। 

“राजकुमारी ने नंगा होते ही राजकुमार को अपने आकर्षण और यौन-दक्षता से मस्त कर दिया। अगले तीस दिन और तीस रात तक पूरे राजमहल में उन दोनों की कामुक और आनंद भरी आहें सुनाई देती रहीं। राजकुमारी ने राजकुमार को पूरी तरह से तृप्त कर दिया। और जब दोनों राजकुमार के महल से बाहर निकले, तो दोनों पूरी तरह से निर्वस्त्र, राजकुमार अपने हाथ-पैर पर घोडा बना हुआ था और राजकुमारी उसकी सवारी कर रही थी। राजकुमार ऐसे ही घोडा बने हुए उसको अपने सिंहासन तक ले गया। राजकुमारी वहां जा कर खुद तो सिंहासन पर विराजमान हो गयी, लेकिन राजकुमार उसके पैरों के पास ही बैठा रहा।“

इस समय तक रश्मि पूर्ण निर्वस्त्र हो गयी थी और मैं उसकी योनि को अपनी उंगली से सहला रहा था। रश्मि ने सहज प्रतिक्रिया दिखा कर अपनी दोनों टांगों को सिमटा लिया था और मेरी उंगली उसकी टांगो के शिकंजे में फंसे हुए ही उसकी योनि को सहला रही थी। मैंने उसके होंठों को गहराई से कुछ देर चूमा, तब जा कर उसकी पकड़ थोड़ी ढीली पड़ी। मैंने फिर उसकी पूरी योनि को अपनी मध्यमा उंगली से सहलाया। रश्मि अब भारी साँसे भर रही थी और उसकी टाँगे भी कांप रही थीं। फिर भी मैंने उसको बैठने नहीं दिया और उसकी योनि को सहलाता रहा। उसकी योनि से अब काम-रस की भारी वर्षा होने लग गई।

मैंने कहा, “तो डार्लिंग, इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?”

“हंह?”

“इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है?”

“आआअह्ह्ह्ह.... आप... आह्हह.. आप बहुत बदमाश हैं! आह!”

“ये शिक्षा मिलती है?” कहते हुए मैंने अपनी उंगली जोर से उसकी योनि के अन्दर घुसा दी।

“आआह्ह्ह!” रश्मि चिहुँक गयी। 

“आआह्ह्ह!” वह अपने उन्माद के चरम पर पहुँच रही थी। यह बात मुझे भी समझ आ रही थी इसलिए मैंने अब उसके भगनासे को भी अपने अंगूठे से छेड़ना शुरू कर दिया। रश्मि के दोनों हाथ मेरे दोनों कन्धों को पकडे हुए थे, उसकी आँखें बंद थीं और मुँह से कामुक आवाजें निकल रही थीं। मेरी उंगली के अन्दर बाहर आने जाने से वह उचक भी रही थी। कामाग्नि के कारण रश्मि के चेहरे पर पसीने की बूंदे चमकने लगी – उसकी साँसे छोटी, गहरी और धौंकनी जैसी चलने लगी। 

“आह्ह्ह!” मैंने उसको कमर से पकड़ कर अपनी गोद में बैठा लिया, लेकिन उसकी योनि का मर्दन जारी रखा। रश्मि का पूरा शरीर कामोत्तेजना में कांप रहा था। 

“उई माँ!” कह कर रश्मि का शरीर ऐंठ सा गया, और कराह की आवाज़ के साथ वह स्खलित हो गयी। रश्मि का पूरा शरीर ढीला पड़ गया – सर पीछे के तरफ ढलक गया और बाहें मेरे कन्धों से सरक कर निढाल गिर गयीं। योनि रस से मेरे जांघ पर पजामे का कपड़ा पूरी तरह से गीला हो गया। रश्मि अपने होंठ काट रही थी और अपनी साँसों को संयत करने, और अभी-अभी संपन्न हुए कन्मोनामाद सुख से वापस बहाल होने का प्रयास कर रही थी। जैसे-जैसे उसकी साँसे वापस आई, वैसे-वैसे वह शांत होने लगी – उसने अपनी भाषा में बहुत धीरे-धीरे कुछ कहा, जो मुझे समझ नहीं आया।

“ओ माँ! मैं तो मर गई!”

“आप हमारी बातों में माँ को क्यों लाती हैं - हमारे बीच का मामला है, हम ही सुलझा लेंगे? और..... अगर उन्होंने आपको ऐसे लुटते हुए देखा तो डर जाएँगी!” मैंने आँख मारते हुए चुटकी ली।

“धत्त!” रश्मि ने तुरंत प्रतिकार किया, लेकिन उसको लगा की शायद कोई गलती हो गयी, “सॉरी!” फिर उसको अपनी नग्नावस्था का आभास हुआ – मेरी बांहों में ढलक कर लेटने के कारण उसके स्तन आगे की ओर उठ गए। उसने झट से अपने हाथ से अपने स्तनों को ढक लिया – इस तथ्य के बावजूद की मैं अब तक उसके हर अंग-प्रत्यंग को देख, छू, चूम और प्यार कर चुका हूँ। फिर उसको अपने नितम्बों पर गीलेपन का आभास हुआ।

“अरे! आपका पजामा तो गीला हो गया। आई ऍम सॉरी!” कह कर वह मेरी गोद से उठने लगी।

“सॉरी? लेकिन मैं तो बहुत ख़ुश हूँ!” मेरा अर्थ समझ कर रश्मि पुनः शर्मा गई। उठने के बाद उसने देखा की मेरे लिंग ने मेरे पजामे में बड़ा सा तम्बू बनाया हुआ है। 

“मैं इसको उतार दूं?” उसने पूछा, और मेरे हाँ कहने से पहले ही मेरे पजामे का नाड़ा ढीला करने लगी। मैंने भी अपने नितम्ब को थोडा सा उठा कर पजामा उतारने में उसकी मदद करी। पजामा उतारने के बाद उसने एक बार मेरी तरफ देखा, और फिर मेरा अंडरवियर भी उतारने लगी। मंद मंद मुस्कुराते हुए उसने फिर मेरे कुरते को भी उतार दिया। मुझे पूर्णतया निर्वस्त्र करने का उसका यह पहला अनुभव था।

“इसका.... क्या करें?” रश्मि ने आँख से मेरे पूरी तरह से तने हुए लिंग की तरफ इशारा किया।

“अभी नहीं... अभी सो जाते हैं। कल करते हैं?”

“ठीक है!”

हम दोनों ने बाथरूम में जा कर मूत्र त्याग किया और अपने गुप्तांगो को पानी से साफ़ किया और वापस बिस्तर पर आ कर नग्न ही लेट गए। रश्मि ने अपने आप को मुझसे लिपटा लिया – उसका सर मेरे कंधे पर, एक जांघ मेरी जांघ पर, एक स्तन मेरे सीने से सटा हुआ और एक बाँह मेरे सीने के ऊपर। मैंने रश्मि को सहलाते और पुचकारते हुए देर तक प्यार की बातें करता रहा और फिर पूरी तरफ अघा कर सो गया।
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12-17-2018, 02:10 AM,
#30
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रात को सोते-सोते हमको काफी देर हो गई, इसलिए सवेरे उठने में भी समय लगा। शॉपिंग मॉल सवेरे 10 बजे तक पूरी तरह से चलने लगते हैं, और चूंकि हमारे पास समय का काफी अभाव था, इसलिए मेरा लक्ष्य यह था की जल्दी से जल्दी सब सामान खरीद लिया जाय। वैसे भी हनीमून के लिए कल सवेरे ही निकलना था (अरे! उसकी टिकट भी बुक करनी है!)। अंडमान द्वीप-समूह चूंकि बीच वाली जगह हैं, इसलिए उसी के मुताबिक़ कपड़े-लत्ते भी लेने होंगे। 

खैर, जल्दी से उठ कर और तैयार हो कर हम लोग ठीक 10 बजे ही पास के एक बड़े मॉल पहुँच गए। पूरे माल में हम लोग ही पहले ग्राहक थे। हम लोग सबसे पहले एक पारंपरिक परिधानों वाले शो-रूम में पहुंचे। वहां के मालिक को मैंने अपनी ज़रुरत के बारे में आगाह किया, तो उन्होंने वायदा किया की वो एक घंटे के अन्दर ही कपड़ों को पूरी तरह से नाप के अनुसार नियोज्य करके दे देंगे। अपना काम तो हो गया – रश्मि के लिए कोरल-पिंक रंग का और नीले बार्डर वाला शिफॉन का लेहेंगा-चोली खरीदा। शो-रूम के मालिक (जो खुद भी एक ड्रेस-डिज़ाइनर हैं, और महिला भी) ने खुद ही रश्मि की नाप ली और अधोवस्त्रों के लिए उसको सुझाव दिया। चोली एक बैक-लेस प्रकार की थी, अतः अन्दर कुछ पहन नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने सिलिकॉन ब्रैस्ट पैड्स दिए, जो त्वचा के रंग के ही होते हैं। उन्होंने ही रश्मि के स्तनों की माप भी ली और बताया की हम 32B साइज़ की ब्रा खरीद सकते हैं। 

वहां से हम रश्मि के लिए अंतर्वस्त्र, बीच-वियर, और नाइटी लेने दूसरे शो-रूम को गए। वहां भी हम लोग पहले ही ग्राहक थे। वहां पर एक ब्रा-फिटर हमारे साथ हो ली – मैंने उनको बताया की रश्मि ने पहले कभी भी ब्रा नहीं पहनी है और जाहिर है की उसको उनकी आदत नहीं है, इसलिए ऐसी ब्रा दिखाए, जो आरामदायक हों, और साथ ही सेक्सी भी, क्योंकि यह हमारा हनीमून भी है। साथ ही मैचिंग पैंटीज भी दिखाएँ। वो ब्रा-फिटर पक्की पेशेवर थीं। वो अपना मापक-टेप लेकर आयीं, और रश्मि के साथ चेंज-रूम में चली गयी, और मुझे भी साथ आने को बोला। फिटिंग रूम में पहुँच कर उन्होंने रश्मि को निर्वस्त्र होने को कहा। रश्मि पहले ही इस पूरे अनुभव से अभिप्लुत थी – यह सब कुछ उसने पहली बार ही देखा था, और शॉपिंग इस तरह से भी होती है उसको मालूम ही नहीं था। और अब, उसको एक अज्ञात महिला निर्वस्त्र होने को कह रही थी – मैंने रश्मि को माथे पर चूमा, और कपड़े उतारने को कहा। मेरे कहने पर रश्मि को थोड़ी स्वान्त्वना मिली और उसने कुछ और हिचकिचाहट के बाद अपना कुर्ता और शलवार उतार दिया।

“शी इस सो ब्यूटीफुल, सर!” रश्मि के रूप का अवलोकन और आंकलन करते हुए उसने कहा।

“थैंक यू सो मच! शी इस इन्डीड! एंड, आई ऍम इन लव विद हर!” मुझे समझ नहीं आया की और क्या कहा जाए।

“श्योर! नाउ सर, प्लीज़ सिट एंड वेट! लेट अस सरप्राइज यू!” उसने मुस्कुराते हुए कहा। उन दोनों को कुछ देर लगने वाली थी, इसलिए मैंने ब्रा-फिटर को बीच-वियर, और स्विम-वियर भी चुनने को कह दिया और अपने लिए भी कुछ सामान लेने चला गया। कोई डेढ़-दो घंटे के बाद हमारे पास तीन बैग भर कर सामान हो गया। 

ब्रा-फिटर ने बिल का भुगतान लेटे हुए मुझसे फुसफुसा कर कहा, “सर, यू आर अ वेरी लकी मैन टू हैव अ गर्ल लाइक योर वाइफ! एंड, यू आर गोइंग टू बी अ वेरी वेरी हैप्पी मैन ऑन योर हनीमून!”

‘ऐसा क्या खरीद लिया!?’ मैने सोचा।

अगली दुकान में मैंने रश्मि के लिए कुछ जीन्स, स्कर्ट, हाफ-पैन्ट्स, और टी-शर्ट खरीदीं। उसने मुझे ऐसी फ़िज़ूल-खर्ची के लिए बहुत मना किया, लेकिन मेरे लिए यह पहला मौका था जब मैं किसी अपने को किसी भी तरह का उपहार दे पाया, इसलिए मैं रुकना नहीं चाहता था। अगला पड़ाव जूते खरीदने के लिए था – रश्मि के लिए एक जोड़ी सैंडल, स्पोर्ट-शूज, और स्लिपर्स खरीदीं। हमने खाना खाया, रश्मि की लहँगा-चोली ली, और वापस घर आ गए।

घर आते ही सबसे पहले पोर्ट-ब्लेयर जाने का टिकट लिया। सामान पैक करने के लिए कुछ तैयारी नहीं करनी थी – ज्यादातर सामान नया था और तुरंत ही पैक किया जा सकता है। मैंने अपना डिजिटल कैमरा और पर्सनल लैपटॉप भी बाहर ही रख लिया, और फिर अपने रिसेप्शन के इवेंट आर्गेनाइजर से बात की। उसने बताया की सब पूरी तरह नियत रूप से चल रहा है और शाम को बहुत अच्छा रिसेप्शन होगा।

हमारा रिसेप्शन बिलकुल मॉडर्न समारोह था। बहुत ज्यादा लोग नहीं बुलाये गए थे – बस मेरे सोसाइटी के कुछ परिवार, देवरामनी दंपत्ति, मेरे ऑफिस के ज्यादातर सहकर्मी, मेरे बॉस और उसका परिवार आये थे। रश्मि के लिए यह रिसेप्शन वाली संकल्पना ही पूरी तरह से नई थी – वह हाँलाकि नर्वस थी, लेकिन सारे लोग उससे इतने प्यार, अदब और प्रशंसा से मिल रहे थे की धीरे-धीरे वह समारोह का आनंद उठाने लगी। हमेशा की तरह वह आज भी बेहद सुन्दर लग रही थी। एक अप्रत्याशित बात हुई - मेरी दो भूतपूर्व प्रेमिकाएँ भी बिना बुलाए आ गईं, लेकिन अच्छी बात यह, की उन्होंने कोई बखेड़ा नहीं खड़ा किया। उलटे, वो दोनों मेरे लिए बहुत ख़ुश थीं – दोनों ने ही रश्मि को गाल पर चूमा, शादी की बधाइयाँ और उपहार भी दिए! मुझे भी बधाइयाँ मिली और दोनों ने ही मुझको बताया की मेरी बीवी बहुत सुन्दर है! अब यह दिखावा था, या सचमुच की ख़ुशी, कह नहीं सकता। 

रिसेप्शन में होता ही क्या है? खाना-पीना, नाच-गाना, और मदिरा। कोई तीन घंटे तक सबने खूब मस्ती करी। मेरे मित्र-गण मुझे और रश्मि को पकड़ कर डांस-फ्लोर पर ले गए जहाँ हमने दो-तीन धुनों पर नृत्य किया। नाचने में मैं तो खैर काफी बेढंगा हूँ, लेकिन रश्मि को सुर-ताल-और-लय पर नाचना आता है। बड़ा मज़ा आया। समारोह के बाद सबने विदा ली। मैंने अपने बॉस को बोला की वो अपने मित्र को कह दें की हम कल सवेरे पोर्ट ब्लेयर पहुँच जायेंगे, और हमारे लिए इंतजाम कर दे। बॉस ने कहा की उन्होंने पहले ही अपने मित्र को कह दिया है, और अभी वो फिर से बात कर लेंगे। फिर उन्होंने अपने मित्र का भी नंबर दिया और मुझसे बात करायी। उन्होंने फ़ोन पर मुझे बताया की उन्होंने एक कमरा बुक कर रखा है और हमारे आनंद की पूरी व्यवस्था कर दी गयी है। उन्होंने मुझे आगे का प्लान बताया और कहा की हम लोग पोर्ट ब्लेयर से सीधा हेवलॉक द्वीप पहुँच जाएँ। हमारे लिए फेरी का टिकट भी प्लान कर लिया गया है। ये होती है निर्बाध व्यवस्था!
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