Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:23 AM,
#91
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने उससे यह भी कहा कि यह सब मेरे लिए बहुत नया था। न केवल वो मुझसे काफी छोटी थी, बल्कि मेरे मन में उसकी जो तस्वीर थी, वो अभी भी एक छोटी लड़की के जैसे ही थी। सुमन संभवतः कुछ प्रतिवाद करना चाहती थी, लेकिन जब मैंने कहा कि अगर वो मुझे कुछ समय दे, और कुछ धैर्य से काम ले तो वो संयत हो गयी – कुछ निराश सी, लेकिन संयत। मुझे साफ़ लग रहा था की वो कुछ निराश तो है। इसलिए मैंने उससे कहा,

“नीलू, प्लीज तुम बुरा मत मानो! न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है जैसे रश्मि अभी यहाँ दरवाज़े पर आ खड़ी होगी। न जाने क्यों ऐसा लग रहा है जैसे हम दोनों उसकी पीठ पीछे चोरी कर रहे हैं..”

सुमन को मेरी बात और मेरी चिंता का सबब समझ में आ गया। उसने कहा,

“आपको ऐसा क्यों लग रहा है? ... मेरी तरफ देखिए... मुझे भी आज दिन में कोर्ट में ऐसे ही लग रहा था .. जैसे माँ, पापा और दीदी हमको वहां ऊपर से देख रहे हों! लेकिन, मुझे ऐसे नहीं लगा की वो हमारी शादी पर बुरा मानेंगे! हम दोनों ने एक दूसरे से शादी करी है। चोरी नहीं! दीदी के जाने के बाद आपने जो दुःख झेले हैं, वो मुझसे छुपे हैं क्या? मुझे यकीन है, की दीदी का, और माँ पापा का आशीर्वाद हमको ज़रूर मिलेगा!”

कह कर उसने मुझे जोर से अपने गले से लगा लिया। कुछ देर मुझसे ऐसे ही चिपके रहने के बाद, मुझे पकडे हुए ही उसने कहा,

“आप मुझे किस नहीं करेंगे?”

ओह भगवान! क्यों नहीं! मैंने सुमन की नथ उतारी, और फिर उसके होंठों पर अपने होंठ रखे - सुमन के होंठ बहुत ही नरम थे, और सच मानिए, गुलाब के फूल की तरह ही महक रहे थे। मैंने उसके होंठों पर एक एक एक एक कर के कई सारे चुम्बन जड़ दिए, और फिर उनको चूसना भी शुरू किया। कुछ ही देर में उसके होंठों की लाली, मेरे होंठों पर भी लग गयी। सुमन तो बिलकुल अनाड़ी थी, लेकिन अपनी तरफ से कोशिश कर रही थी। उसके चुम्बन पर मुझे बहुत आनंद आ रहा था। कुछ ही देर में हमारा चुम्बन, एक आत्म-चुम्बन (या फ्रेंच किस कह लीजिए) में तब्दील हो गया – हमारी जिह्वाएं आपस में मल्ल-युद्ध लड़ने लगीं। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था – और मूड भी बनने लगा था। 



मैंने चोली के ऊपर से ही अपने हाथ को उसके सीने पर फिराया, और फिर उसके एक स्तन को पकड़ कर दबाने लगा। उसका चूचक पहले से ही मुस्तैद खड़ा हुआ था। याद रहे, मैंने सुमन की चोली उतारी नहीं थी, बस, उसकी पीछे की दोनों डोरियाँ खोल दी थीं – इससे चोली के सामने के कप ढीले हो गए थे। एक तरह से सुमन के स्तन अब स्वतंत्र हो गए थे।

मैंने कुछ देर के लिए सुमन को चूमना छोड़ा, और कहा,


“बिल्वस्तनी, कोमलिता, सुशीला, सुगंध युक्ता ललिता च गौरी... ना श्लेषिता येन च कण्ठदेशे, वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम्।“

कुछ क्षणों तक सुमन ने मुझे कौतूहल भरी दृष्टि से देखा – उसको कुछ समझ नहीं आया। 


उसने कहा, “अब इसका मतलब भी बता दीजिए?”

“हा हा! देवलोक की अप्सरा रम्भा के बारे में तो सुना ही होगा?”

सुमन ने मुस्कुराते हुए हर हिलाया।

“तो रम्भा, और शुकदेव, महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे.. एक बार की बात है... दोनों के बीच एक लम्भी चौड़ी बहस होने लगी की किसके जीवन का तरीका श्रेष्ठ है। दोनों ही अपने तरीके को श्रेष्ठ, और दूसरे के जीवन को व्यर्थ बता रहे थे! रम्भा, क्योंकि अप्सरा है, इसलिए कहती है की भोग के बगैर जीवन व्यर्थ है! शुकदेव कहते हैं कि योग और वैराग्य बिना जीवन व्यर्थ है! एक वैरागी क्या जाने नारी के सान्निध्य का बल? वो काफी देर तक कुतर्क तो करते हैं, लेकिन रम्भा के तर्क कहीं भारी पड़ते हैं। वो कहती है, की नारी के सहयोग के बिना कुछ भी संभव नहीं है! समस्त तपों का आधार स्वयं नारी ही है। विवाद का हल तो कुछ निकला नहीं, लेकिन अंत में शुकदेव नारी को पत्नी के रूप में रखने की अनुमति दे देते हैं!”

“इंटरेस्टिंग! .. लेकिन उसका – जो आपने कहा – का मतलब क्या था?”

“हां! वो तो बताना ही भूल गया – रम्भा कहती है की बेल के फलों के समान कठोर स्तनों वाली, लेकिन अत्यंत कोमल शरीर वाली, सुशील स्वभाव वाली, महकते केशों वाली, और जिसको देखने से लालच आ जाय – ऐसी सुन्दर स्त्री का जिसने आलिंगन नहीं किया, उसका जीवन तो बिलकुल बेकार है!”


सुमन शर्माते हुए मुस्कुराई,

“तो..? आपका जीवन बेकार है, या...”

“ये तो इन बेलों की कठोरता पर डिपेंड करता है.. है न?” 

मैंने आँख मारते हुए कहा, “जाँचा जाए?”

उसने कोई उत्तर नहीं दिया, तो मैंने चोली के ऊपर से ही उसके दोनों स्तनों को थाम लिया। सुमन की स्वतः प्रतिक्रिया पीछे हटने की थी, लेकिन उसने स्वयं को रोका। लेकिन, आज पहली बार मेरे हाथों के स्पर्श को अपने स्तनों पर महसूस करके उसको भी अच्छा लग रहा था। मैंने मन ही मन उसके और रश्मि के स्तनों की तुलना करी – सुमन के स्तन रश्मि के स्तनों से बस कुछ ही बड़े थे। छूने से समझ आया कि वाकई दोनों एकदम गोल और ठोस थे! मन तो उसके स्तनों की बनावट, तापमान और छुवन को अपने हाथों में महसूस करने का था, इसलिए कपड़े के ऊपर से मज़ा कम आ रहा था।

“नीलू, ये तो बढ़िया साइज़ के हो गए हैं!”

“आपको पसंद आये?” उसने धीमे से, शर्माते हुए पूछा।

“बहुत ज्यादा! अब खोल के दिखा दो न?”

“मैंने आपको कब रोका? मेरा सब कुछ आपका है..”

उसका इशारा पा कर मैंने उसकी चोली के सिरे को दोनों कंधे से पकड़ कर सामने की तरफ खींचा – स्तन तुरंत स्वतंत्र हो गए! जैसा सोचा था, ये दोनों वो उससे भी कई कई गुना सुन्दर निकले! बिलकुल युवा, गोल और ठोस स्तन – गुरुत्व के प्रभाव से पूरी तरह अछूते! गोरे गोरे चिकने गोलार्द्ध। 

आपने कभी लाल गुड़हल की कली देखी है? खिले से कोई दो घंटा पहले वो कली एक इंच के आस पास लम्बी होती है, और बेलनाकार होती है। इसी समय कली के बीच में से योनि-छत्र (पुष्प का मादा भाग) निकल रहा होता है। ठीक इसी प्रकार के चूचक थे मेरी नीलू के! 


उत्तेजनावश कोई पौना इंच तक लम्बे हो गए थे। उनका रंग लाल-भूरा था – रश्मि के समान ही! अरेओला और चूचक के रंग में कोई ख़ास फर्क नहीं था। अरेओला पर छोटे छोटे दाने जैसे उठे हुए थे – ठीक वैसे ही जैसे गुड़हल के फूल का योनि-छत्र!

“ओह गॉड!” मेरे मुँह से बेसाख्ता निकल गया, “कहाँ छुपा कर रखा था तुमने इनको अभी तक?”

मेरी बात पर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं! उसके होंठो पर एक मद्धिम मुस्कान थी। मुझसे रहा नहीं गया। मैंने दोनों ही स्तनों पर बारी बारी से (बिना हाथ लगाए) कई सारे चुम्बन जड़ने शुरू कर दिए। कोई दो तीन मिनट तक उसको ऐसे ही छेड़ता रहा। लेकिन मैं कब तक यह करता? मजबूर हो कर मैंने एक निप्पल को अपने मुँह में भर लिया, और तन्मय हो कर चूसने लगा। उसको मन भर कर चूसा, चुभलाया, काटा, और चबाया! मेरी हरकतों पर सुमन उह और सी सी जैसी आवाजें निकालने लगी। फिर मैंने दूसरे के साथ भी यही किया।

इसी समय मेरे साथ वो हुआ, जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं करी थी – मेरे लिंग से वीर्य निकल पड़ा! मुझे घोर आश्चर्य हुआ! ऐसा कैसे हो गया? मैं तो खुद को लम्बी रेस का घोड़ा मानता था, जो कभी रुकता ही नहीं था! खैर, वीर्य निकलने पर भी लिंग का कड़ापन कम नहीं हुआ – यह अच्छी बात थी। न जाने सुमन का क्या हाल होगा?


स्तनों को छोड़ कर मैंने कुछ देर तक उसके पेट और नाभि को चूमा और जीभ की नोक से चाटा। साथ ही साथ मैंने उसके लहँगे का नाड़ा भी चुपके से खोल दिया।

“नीलू रानी!” मैंने कामुक और फटी हुई आवाज़ में कहा, “अब अपने पति को अपना दिव्य रूप दिखाने का समय हो गया है!”

मेरी इस बात पर वो अचानक ही गंभीर हो गई – यह वह समय था, जिसकी वो अभी तक बस कल्पना ही कर रही थी। उसने अपने होंठों पर बेचैनी से जीभ फिराई और फिर अपने लहँगे को कमर पर पकड़े हुए बिस्तर से नीचे उतर गई। कैसी नासमझ है ये लड़की? ‘दिव्य रूप’ दिखाने को बोला था न! फिर भी लहँगा पकडे हुए है! लगता है ये चीर हरण भी मुझे ही करना पड़ेगा!

कुछ भी हो, मैंने जल्दबाज़ी बिलकुल भी नहीं करी। उससे भला क्या लाभ? बीवी तो अपनी ही है – कहीं भागी थोड़े ही जा रही है!! मैंने उसकी कमर को पकड़ कर अपने नजदीक बुलाया, और उसके अर्धनग्न शरीर का अपनी आँखों से आस्वादन करने लगा। सुमन ने देख की मैं क्या कर रहा हूँ – इस पर वो शरमा कर नीचे की तरह देखने लगी। मैंने कुछ देर खेलने और छेड़ने की सोची। उसका जूड़ा बंधा हुआ था – सामान्य सा था – कोई बहुत जटिल बंदोबस्त नहीं था। मैंने उसमे से गजरा निकाला, और उसके बालों को खोल कर बिखेर दिया। अब उसकी मूरत देखते बन रही थी – एक अत्यंत सुन्दर, अप्सरा जैसी कमसिन लड़की, अपना लहँगा पकडे मेरे सामने अर्धनग्न खड़ी हुई थी – उसकी साँसे तेजी से चल रही थीं, और उनके साथ ही उसके उन्नत स्तन ऊपर नीचे हो रहे थे, बाल खुल कर आवारा हो रहे थे... शरीर का रंग ऐसा जैसे किसी ने संगमरमर में मूंगे का रंग मिला दिया हो! जैसे दूध में केसर मिल गया हो!

वह एक अतिसुन्दर प्रतिमा जैसी लग रही थी। और मुझे ऐसे लुभा रही थी, की जैसे मुझे बुला रही हो!

अब मुझे खुद पर वाकई संयम नहीं रहा। मैं उसको कमर से पकड़ कर धीरे धीरे अपनी तरफ खींचा, और उसके दोनों हाथों को उसके लहँगे से हटाने का प्रयास करने लगा। उसके हाथ ठन्डे हो गए थे। यह सब होना तो आज की रात अवश्यम्भावी था – यह उसको भी मालूम था, और मुझे भी! लेकिन इस संज्ञान में भी सब कुछ नया था। मैं तो खेला खाया दुरुस्त हूँ, फिर भी सब कुछ नया सा लग रहा था। एकदम से उसका हाथ अपने लहँगे के सिरे से हट गया। मुझे उम्मीद थी कि गुरुत्वाकर्षण स्वयं ही उसको नीचे सरका देगा – लेकिन हो सकता है की उसका नाड़ा पूरी तरह से ढीला नहीं हुआ था, या यह की लहंगा उसकी कमर के बल पर अटक गया हो! 

मैंने खुद ही लहँगे को नीचे खिसकाना शुरू किया – लेकिन ऐसे नहीं की सुमन तुरंत नंगी हो जाए। मैं उसको अभी कुछ देर और छेड़ना चाहता था। मैंने लहँगे को थामे हुए ही सुमन को घुमा कर उसकी पीठ को अपने सामने कर दिया। उसकी पीठ भी उसके शरीर के बाकी हिस्से के समान ही सुन्दर, और निर्दोष थी! नितम्बों के ऊपर मेरु के दोनों तरफ छोटे छोटे डिंपल थे, जिनको अंग्रेजी में डिंपल ऑफ़ वीनस कहते हैं। और नीचे की तरफ उसके गोरे, चिकने नितम्बों का ऊपरी हिस्सा और उनके बीच की अँधेरी दरार दिख रही थी।
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12-17-2018, 02:23 AM,
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मैंने धीरे से उसके नितम्बों पर चूम लिया, और अपनी जीभ को उसकी दरार पर फिराया। मजा आया और रोमांच भी! सुमन सच में एक जवान कली थी, और उस पर अभी जवानी का पूरा रंग चढ़ना बाकी था। लेकिन फिर भी उसके शरीर में रस भरा हुआ था – जैसे फूलों में सार भरा हुआ होता है! वैसा ही! उस रस का मद मुझ पर चढ़ गया था – मेरे हाथ से उसका लहँगा छूट गया।

सुमन ने नीचे भी कुछ नहीं पहना हुआ था – कोई अधोवस्त्र नहीं! सच में! क्यों झंझट करना? एकदम से उसके सुडौल, विकसित, गोर गोर गोल नितम्ब मेरी आँखों के सामने प्रस्तुत हो गए। सच में मुझसे रहा नहीं गया! मैंने अपने पूरे मुँह और चेहरे का प्रयोग करते हुए उसके नितम्बों का भोग लगाना आरम्भ कर दिया! उनका चुम्बन, चूषण और लेहन करते समय कब वो घूम कर मेरी तरफ हो गई, उसका ध्यान नहीं रहा। लेकिन जब मांसल गुम्बजों के बजाय मेरे सामने दो मीठे मालपुए आ गए तब समझ आया की सुमन अब मेरी तरफ मुखातिब है। 
सुमन की योनि के दोनों होंठ फूले हुए थे – जैसा मैंने पहले भी कहा, मीठे मीठे मालपुओं के समान (जो ऊपर नीचे रखे हुए थे)! उन होंठों पर कोई बाल नहीं था – एकदम चिकनी। और उनमें से रस तो जैसे बाँध छोड़ कर निकल रहा था। सच में, अब तो बस एक ही काम बाकी था। मैं भी उस काम में अब देर नहीं लगाना चाहता था।

मैंने सुमन की योनि के दोनों फूले हुए पटों के बीच एक जोरदार चुम्बन जड़ा, और उसको चूमने लग गया। कुछ देर चूमने के बाद मैंने उसके पटों को उँगलियों की मदद से कुछ फैलाया, और जीभ डाल कर चूसने लगा। मीठा रस! सच में! जैसे किसी ने उसकी योनि रस में हल्का सा शहद मिला दिया हो!

“कठोर पीनस्तन भारनम्रा सुमध्यमा चंचल खंजनाक्षी, हेमन्तकाले रमिता न येन, वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम्..”


सुमन अभी मुझसे इस श्लोक का अर्थ पूछने की हालत में नहीं थी, इसलिए मैंने खुद ही बताना शुरू कर दिया, “हेमंत ऋतु में, ठोस और भरे हुए स्तनों के भार से झुकी हुई, पतली कमर वाली, चंचल और धारदार चाकू जैसी नैनों वाली स्त्री से जिस किसी पुरुष ने संभोग नहीं किया, उसका जीवन व्यर्थ ही चला गया..”

“त..तो करिए न...”

मैं मुस्कुराया। मैंने सुमन को बिस्तर पर लिटाया। सिर्फ आभूषण, चूड़ियाँ, पायल इत्यादि पहने हुए वो बहुत प्यारी लग रही थी। कोई भी स्त्री लगेगी! सच में। मेरी बात का यकीन न हो, तो अपनी पत्नियों या प्रेमिकाओं को पूर्णतया नग्न होने को कहिए, लेकिन वो अपने गहने इत्यादि पहने रहें! फिर बताइयेगा!

जब वो लेट गई, तब मैंने अपने कपड़े भी उतारने शुरू किए – एक मिनट के अंदर ही मैं भी तैयार था। सुमन एक टक मेरे लिंग को ताक रही थी। 

“नीलू रानी, सिर्फ देखो ही नहीं, इसको छू भी सकती हो! इसके साथ खेल भी सकती हो! अब से यह तुम्हारा है.. और सिर्फ तुम्हारी ही सेवा करेगा!” मैंने उसको छेड़ा, “.. लाओ अपना हाथ.. इसे महसूस करो..”

कह कर मैंने उसके हाथ में अपना लिंग पकड़ा दिया। रक्तचाप के कारण लिंग पूरी तरह से तना हुआ था, और तप रहा था। वो तो जैस जड़ हो गई – बस लिंग को हाथ में पकडे हुए हतप्रभ सी देख रही थी। मैंने उसके हाथ को अपने लिंग पर पीछे की तरफ सरकाया। ऐसा करने से उसकी चमड़ी पीछे की तरफ खिंच गयी, और लाल गुलाबी सुपाड़ा भी उसको दिखने लगा। जो वीर्य निकला हुआ था, उसका कुछ शेष अभी भी बूंदों के रूप में बाहर निकल रहा था। 

“कुछ बोलो भी...”

“अभी.. तो... बस...”

“हाँ हाँ.. बोलो न?”

“बस.. सेवा कीजिए..” उसने शरमाते हुए कहा।

“जो आज्ञा देवी!” कह कर मैंने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए। सुमन मुस्कुरा दी। पति-पत्नी में सबसे पहला महत्वपूर्ण कार्य है उन दोनों का संयोग! दोनों का मिलन! अब हम दोनों के मन की यही इच्छा थी। 

मैंने उसको बिस्तर से उठाया, आयर अपनी गोद में ले कर बिस्तर पर बैठ गया। सुमन मेरी गोद में ही अपनी टाँगे दोनों तरफ लिए बैठी हुई थी। रक्त-चाप के कारण मेरा लिंग बार बार झटके लेता, और उसकी योनि का चुम्बन लेता! मैंने उसको अपनी बाहों में ले कर एक गहरा सा चुम्बन लिया। सुमन कामुकता की सीमा पर खड़ी हुई थी। उसके रस भरे, और महकते हुए होंठों का स्वाद स्वयं को भुला देने वाला था। सुमन भी मुझसे पूरी तरह से लिपट गयी थी – उसके दहकते स्तन मेरे सीने पर चुभ रहे थे। 

अब हम दोनों ही अपने काबू में नहीं थे। ऐसे आलिंगन में बंधे हुए हम दोनों को एक दूसरे के शरीर का पूरी तरह से संज्ञान हो रहा था। हम दोनों ही अब तैयार थे। मैंने सुमन की गर्दन पर चुम्बन लिया – जैसे ही मैंने उसकी गर्दन पर जीभ फिराई, वो तड़पने लगी। स्त्री का शरीर पूरी तरह से काम से भरा हुआ होता है। कहीं भी छू लो, कहीं भी चूम लो.. लगभग एक जैसा ही परिणाम आता है। कुछ देर उसकी ग्रीवा चूमने के बाद मैंने जैसे ही उसकी कानों की लोलकी को अपने मुँह में लिया, वह अपने काबू में नहीं रही। उसका हाथ अनायास ही मेरे लिंग पर आ गया, और उसे सहलाने लगा।

इतना इशारा काफी था। हम दोनों ही कुछ देर में पागलों की तरह एक दूसरे के शरीर के अंगों को सहला, छू और मसल रहे थे। मैंने पुनः अपनी जीभ उसके एक स्तन के चूचक पर फिराया – सुमन अब निर्लज्ज हो कर जोरों से सीत्कार करने लगी। अगर बाहर कोई जाग रहा होगा, तो उसको सुमन की कामोत्तेजक आवाजें सुनाई दे रही होंगी! वैसे इससे क्या फर्क पड़ता है? अगर यह सब आज नहीं, तो कब होगा? उसने मेरा लिंग पकड़ लिया, और उसको सहलाने लगी।

मैं भी एक चंचल बच्चे की भांति कभी तो उसका बाएँ स्तन का भोग लगाता, तो कभी दाएँ स्तन का! हम सब पुरुष, और काफी सारी स्त्रियाँ भी, इस बात से सहमत होंगे की एक युवा स्त्री के स्तन, इस पूरे संसार के सबसे स्वादिष्ट, सबसे मीठे फल होते हैं! भले ही आम को फलों का राजा माने, लेकिन एक स्त्री के उन्नत आमों के सामने उनका स्वाद फीका ही है! मैं पुनः सुमन के स्तन रुपी आमों का रसास्वादन करने लगा। इतने में सुमन पुनः स्खलित हो गयी।
मुझे समझ आया की उसके साथ क्या हो रहा है – ऐसे में मैं उसको अपनी गोद में ही लिए चूमता रहा, जब तक वो अपने काम के ज्वार से नीचे नहीं उतर गयी। कुछ देर सुस्ताने के बाद मैंने उसको वापस नीचे, बिस्तर पर लिटाया। सुमन की साँसे अभी भी गहरी गहरी चल रही थीं। मैं उसको लिटा कर नीचे की तरफ खिसक आया।


मैंने उसकी टाँगे कुछ फैलाईं जिससे उसकी योनि का अभिगम कुछ आसान हो सके। उसकी योनि तो अब तक न जाने कितना सारा रस निकाल चुकी थी – वहां का गीलापन साफ़ दिख रहा था। इसके बाद मैं उसकी मालपुए के सामान मीठी, रसीली और मुलायम योनि का रसास्वादन करने लगा। मैंने अपनी जीभ उसकी नर्म गर्म योनि में प्रवेश कराया – सुमन किसी जानवर की तरह भर्राती गुर्राती हुई कराह निकालने लगी। मैंने अपनी जीभ को उसमें जल्दी जल्दी अंदर बाहर कर के उसके आगे आने वाले प्रोग्राम के बारे में अवगत कराया। सुमन तो आज जैसे वासना रुपी परमाणु बम के भण्डार पर बैठी हुई थी – एक के बाद एक चरमोत्कर्ष प्राप्त कर रही थी। कुछ ही देर में अनवरत जिह्वा-मैथुन के बाद, सुमन पुनः कांपते, कराहते आहें भरने लगी। मुझे अपने मुँह में पुनः गर्म द्रव का अनुभव हुआ। मैं समझ गया कि सुमन फिर से स्खलित हो गई है। 
उसको मैंने कुछ देर आराम करने दिया। मुझे खुद पर भी नियंत्रण नहीं था। इतना देर भला कब तक चलता? मेरे अन्दर का लावा भी ब्नाहर निकलने को उद्धत था। मैं अंततः उसके ऊपर आ गया। मैंने लिंग को उसकी योनि मुझ पर टिकाया और एक धक्के से उसकी योनि में प्रवेश करा दिया। सुमन की कोरी, कुँवारी योनि बहुत छोटी भी थी। धक्के के कारण मेरा करीब दो इंच लिंग उसकी योनि में प्रवेश कर गया – लेकिन उधर उसकी चीख निकल पड़ी। गलती यह हुई की मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ नहीं रखे। अब तक तो सभी को मालूम हो गया होगा, की सुमन अब लड़की नहीं रही!

मैंने उसको दो तीन चुम्बन दिए, और उसके गालों को सहलाते हुए बोला, “शाबाश नीलू! बस.. अब हो गया! वेलकम टू वुमनहुड! बस.. कुछ ही देर में सब ठीक हो जाएगा! ओके हनी? अभी मज़ा आने लगेगा! बाकी अन्दर जाने दो! डोंट रेसिस्ट! अब और तकलीफ़ नहीं होगी। ठीक है?”

सुमन ने सर हिला कर जवाब दिया। 

मैंने आगे कहा, “अगर दर्द हो, तो बता देना! ओके हनी?” 

उसने फिर से सर हिलाया। मैंने हल्का सा बाहर निकाल कर पुनः अन्दर की तरफ धक्का लगाया – उसको पुनः दर्द हुआ, लेकिन उसने किसी तरह से दर्द को ज़ब्त कर लिया। इस धक्के का परिणाम यह हुआ की अब बस एक डेढ़ इंच ही बाहर निकला हुआ था। मैंने नीचे की तरफ देखा, और फिर वापस सुमन को बोला,

“देख नीलू... सब अन्दर हो गया.. देख न?”

सुमन ने बड़ी कठिनाई से नीचे भौंचक्क रह गई। 

“ब्ब्ब्बाप रे! अआआपने इसकी शकल बिगाड़ दी! उफ़...” मैंने लिंग को बाहर खींचा।
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बात तो सही थी – उसकी छोटी सी योनि में मेरा मोटा सा लिंग ऐसे ही लग रहा था! उसकी योनि का वाह्य हिस्सा इतना खिंच गया था, की वो अभी एक पतले छल्ले के समान लग रहा था। इसमें भला क्या आनंद आएगा किसी को? बेचारी को कितना दर्द हो रहा होगा!!

“दर्द होता है? निकाल दूं बाहर?” मैंने पूछा। 

मैंने पूछ तो लिया, लेकिन मन ही मन सोच रहा था की बाहर निकालने को न बोले।

“न..नहीं! दर्द नहीं है.. पहले आप कर...” बोलते बोलते वो रुक गयी – अब यह शर्म थी, या उसकी वासना, या फिर थकान! अभी कहना मुश्किल है। वो अपने होंठ भींच कर, मुँह मोड़ कर होने वाले हमले के लिए तैयार थी। 

“पहले आप “क्या” कर...? बोलो न?”

“अहह.. प्लीज छेडिये नहीं..”

“अरे! मुझसे क्या शरमाना? बोलो न?”

सुमन ने सर हिला के ‘न’ कहा।

“बोल दोगी, तो जोश आएगा मुझे! और फिर हम दोनों को ही मज़ा आएगा.. बोल न!”

“बोल न क्या करूँ?”

“ओह्हो!” फिर धीरे से, “सेक्स..”

“अबे हिन्दी वाला बोलो!” मैंने आगे छेड़ा।

“चुदा..ई”

“वैरी नाईस.. ये लो” कह कर मैंने धीरे धीरे धक्के लगाना शुरू किया। सुमन भी रश्मि के ही समान छोटे काठी की लड़की थी – जब मेरा लिंग पूरी तरह से उसके अन्दर घुस गया, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने उसके पूरे योनि मार्ग का नाप ले लिया हो! एक बात और थी –सुमन, रश्मि के मुकाबले कुछ अधिक साहसी और अभिव्यंजक थी। मैं जब धक्के लगा रहा था, तब वो स्वयं भी नीचे से धक्के लगा रही थी। सेक्स का मज़ा तो तभी है, जब दोनों साथी उसका आनंद एक साथ उठाएँ, नहीं तो बस वह इवाली बात है की एक का मज़ा और दूसरे की सज़ा!

मैं उसकी मखमली योनि का आनंद उठाने के साथ साथ उसके स्तनों को कस कर दबा और निचोड़ भी रहा था। कोई और समय होता, तो उसकी चीख पुकार और रोना धोना मच जाता.. लेकिन सम्भोग के समय शरीर का रक्त चाप और दाब इतना बढ़ जाता है की इस प्रकार की हरकतें दर्द देने के बजाय दरअसल उत्प्रेरक का कार्य करती हैं। सुमन भी इस प्रकार के मर्दन से उन्माद में तड़पने लगी और मस्त होकर अपने नितम्बों को और जोर शोर से ऊपर की तरफ ठेलने लगी। उसे अपनी पहले ही सम्भोग में पूर्ण आनंद मिल रहा था। और अचानक ही वो एक बार पुनः स्खलित हो गई। कमाल है! इतनी बार! मेरा अब भी नहीं हुआ था। जबकि मैं खुद भी अपने दूसरे स्खलन के कगार पर खड़ा हुआ था। संभवतः, सुमन ही बहुत जल्दी जल्दी स्खलित हो रही थी। खैर, मैंने धक्के लगाना जारी रखा। सुमन के आखिरी स्खलन के कोई दो तीन मिनट के बाद अंत में मेरा भी स्खलन हो गया। 

पहले तो मैंने सोचा की बाहर निकाल देता हूँ... फिर लगा, की पहला वाला तो सुमन के अन्दर ही जाना चाहिए। ऐसा सोचते ही वीर्य एक विस्फोट के समान मेरे लिंग से बाहर निकल गया। पिछले कुछ दिनों से संचय हुआ सारा रस सुमन के गर्भ में समां गया। बहुत ही थका देने वाला सम्भोग किया था हमने! क्रिया समाप्त होते ही हम दोनों ही एक दूसरे की बाहों में थक कर यूँ ही पड़े रहे (दरअसल मैं उसके ऊपर ही पड़ा हुआ था, और मेरा लिंग अभी भी उसी के अन्दर था)। हाँलाकि मैं कुछ देर तक सुमन के शरीर के विभिन्न हिस्सों को सहलाता रहा, और चूमता रहा। हम दोनों की ही वासना अब धीरे धीरे शांत होने लगी थी। मेरा लिंग भी सिकुड़ कर स्वयं ही उसकी योनि से बाहर आ गया।

हम दोनों ही अब बिस्तर पर अगल बगल सट कर लेट गए। सुमन को भी अब शान्ति मिली होगी। उसने एक अंगड़ाई ली – अंगडाई में उसके रूप रंग की रौनक देखते बनती थी! उसने मुझे स्वयं को ऐसे आसक्त हो कर देखते हुए देखा तो मुस्कुरा दी। करवट लेकर मेरी पीठ सहलाने लगी। मैंने भी मुस्कुरा कर उसके होंठों पर एक चुम्बन लिया और कहा, 

“नीलू, मज़ा आया?”

उसने उत्तर में मुस्कुरा दिया।

“तुमको दर्द तो नहीं हुआ न?”

पहले तो उसने ‘न’ में सर हिलाया और फिर कहा, “हुआ.. लेकिन आपने सब भुला दिया। अभी हल्का हल्का मीठा मीठा दर्द है!” 

उसने जिस अदा से यह बात कही, उससे मेरा लिंग पुनः कड़क हो गया। 

“एक और राउंड हो जाए?” कह कर मैंने उसके एक स्तन को हल्का सा दबाया।

“बाप रे! आप फिर से रेडी?”

“और क्या? तुमको भली भांति चुदी हुई महिला जो बनाना है..”

“उफ्फ्फ़! ऐसी बात है तो फिर मैं भी चुदने को तैयार हूँ... आप शुरू कीजिए...”

कहते हुए उसने शरमा के अपने चेहरे को अपनी हथेली से ढँक लिया। अब बार बार क्या वर्णन किया जाय? हमारी सुहागरात की दूसरी चुदाई कोई आधा घंटा और चली। सुमन इतनी देर में तीन बार और स्खलित हुई। अगर वो हर बार ऐसे ही द्रव निकालती रही, तो उसको तो डी-हाइड्रेशन का खतरा हो जाएगा! खैर, जब हम दोनों भली भांति थक गए, तो निकट रखी बोतल से पानी पिया। उसके बाद एक दूसरे से लिपट कर सो गये।

नव विवाहित होना अपने आप में ही एक मादकता भरा अनुभव होता है। शरीर में एक भिन्न प्रकार की थकावट, ऊर्जा और इच्छा का अद्भुत सम्मिश्रण होता है। और इस भावना का सबसे अधिक जोर नव विवाहित युगल की पहली रात को होता है। ऐसा नहीं है की बाद में नहीं होता, लेकिन एक दूसरे के शरीर को देखने, महसूस करने और जानने की तीव्र इच्छा, एक दूसरे के स्पर्श का मादक अनुभव, और पहले पहले संसर्ग का अनुभव – विवाह के बाद की पहली रात को सचमुच अनोखा बना देती हैं।


मेरी आँख खुली तो देखा की सुबह की पांच बज रहे हैं। सुमन मेरे बाएँ बाजू पर सर रखे, और मुझसे लिपटी हुई सो रही थी – ठीक वैसे ही जैसे सोने से जाने से पूर्व – मतलब पूर्णतः नग्न। मैंने प्रेम भरी मुस्कान से सोती हुई सुमन को देखा। ईश्वर के खेल निराले होते हैं। पहले तो मेरे और सुमन के सारे सहारे छीन लिए, और फिर ऐसी परिस्थितियाँ बना दीं की आज हम दोनों एक दूसरे के ही सहारे बन गए हैं! कहते हैं न की सुबह सुबह अगर मन से प्रार्थना करी जाय, तो वह ज़रूर सार्थक होती है – तो मेरी ईश्वर से बस यही प्रार्थना है की मैं सुमन को हमेशा खुश रख सकूँ! उसको कभी भी उसके परिवार की कोई कमी न महसूस होने दूं! उसकी हर छोटी बड़ी ज़रुरत को पूरा कर सकूं, और... उसके शरीर को हमेशा यौन रस से सिंचित रख सकूँ! 



ये आखिरी वाली प्रार्थना पर मेरा लंड तुरंत तैयार हो गया। मैं मुस्कुराया – अगर प्रार्थनाएँ इसी तरह से तुरंत स्वीकार हो जाएँ, तो क्या बात है! मन के कहीं किसी कोने में एक बार यह आवाज़ भी निकली की काश रश्मि भी आ जाय! लेकिन क्या कभी आशाओं पर ही निर्भर कोई कामना पूरी होती है भला? मैंने एक गहरी साँस छोड़ी – रश्मि के साथ साथ ही हमारे अनगिनत मधु-मिलन की कई सारी छवियाँ मेरे आँखों के सामने एक चलचित्र के समान चलने लगीं! सुमन को भोगने के लिए मैं एक बार पुनः तैयार था।

मैंने अपने दाहिने हाथ को नीचे की तरफ बढ़ाया, और उसकी उँगलियों की सहायता से सुमन की योनि के दोनों पटों को थोड़ा फैलाया। मुझे तो लगता है की योनि का स्त्री के मस्तिष्क में एक कोई ख़ास संयोजन होता है। इतनी बार मैंने देखा है की जैसे ही किसी स्त्री की योनि को छुओ, वो चिहुंक उठती है। सुमन भी चिहुंक गई – सोते सोते ही! 

“उम्म्म्म!” उसने सोते हुए ही जैसे शिकायत करी हो!

मैं मुस्कुराया और बहुत सम्हाल कर उसके सर के नीचे से अपना हाथ निकाला, और उसके सर के नीचे तकिया रख दिया। मैं जल्दी से नीचे की तरफ लपका। सुमन अभी भी अल्हड़ता से सोती थी। मतलब – उसके पैर हमेशा इतने खुले हुए रहते थे जिससे उसकी योनि तक आसानी से पहुंचा जा सके। मतलब मुझे कुछ ख़ास करने की ज़रुरत नहीं थी – मैंने बस अपने होंठ उसके योनि के होंठों पर लगा दिए और जीभ को धीरे से अन्दर प्रवेश करने लगा।

“अह्ह्ह्ह... जानू!” सुमन सोते सोते ही बोली!

‘कमाल है! नींद में भी मालूम है की कौन है!’ 

मैंने मुस्कुराते हुए सोचा। खैर, काफी देर तक तबियत भर कर मैंने उसकी योनि को तब तक छेड़ा, जब तक उसमें से मीठा मीठा रस नहीं निकल आया। इस पूरे कार्यक्रम के दौरान सुमन विभिन्न प्रकार की मादक आवाजें निकालती रही। जब मैंने उसकी चूत छोड़ी, तो वो मुस्कुराते हुए मुझसे बोली,

“सुबह सुबह उठते ही आपको इसकी याद आ गई?”
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12-17-2018, 02:23 AM,
#94
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
“सुबह सुबह उठते ही आपको इसकी याद आ गई?”

“और नहीं तो क्या? नई नवेली और जवान बीवी की चूत की याद नहीं आएगी तो और किस चीज़ की याद आएगी?”

“छी! आप कैसे बोलते हैं!”

“पहले बता, और किसकी याद आएगी?”

“अरे! भगवान की.. और किसकी?” वो मुस्कुराई।

“तुमको याद आती है?”

उसने हामी में सर हिलाया।

“किस भगवान् की?”

“अरे...! सबकी!”

“अरे... सबकी का क्या मतलब? मेरा मतलब.. कोई ख़ास भगवान?”

“भगवान शंकर..”

“हम्म... मतलब तुमको शिव-लिंग की याद आ रही है! अब उतना मोटा तो नहीं, लेकिन, इस समय मेरे ही लिंग की पूजा कर लो...” मैंने उसको छेड़ा!

मुझे लगा की वो शरमा जायेगी, या कुछ विरोध करेगी.. लेकिन मेरी इस बात पर सुमन एकदम से गंभीर हो गई।

“मैं आपसे एक बात कहूँ?”

‘ओह्हो! जब लड़कियाँ सीरियस होती है तो कुछ न कुछ गड़बड़ होता है..’ मैंने सोचा।

“हाँ!”

“आप प्रॉमिस करिए की मैं जो कुछ कहूँगी, और करूंगी, आप करने देंगे?”

“ऐसे बिना सुने, जाने कैसे प्रॉमिस कर दूं?”

“आपको अपनी बीवी पर भरोसा नहीं?”

“अरे! ऐसी बात नहीं है..”

“तो फिर प्रॉमिस करिए!”

“अच्छा बाबा! प्रॉमिस! मैं तुमको नहीं रोकूंगा!”

मेरे ऐसा बोलते ही सुमन एकदम से खुश हो गई। उसने मुझे बिस्तर पर एक तरफ बैठने को कहा। बाद में मैंने ध्यान दिया की उसने मुझे पूर्व की दिशा के सम्मुख बैठाया था। उसने कमरे की खिड़की और परदे भी खोल दिए। उस समय कोई साढ़े पांच हो रहे होंगे। बाहर अभी भी अँधेरा था – इसलिए सुमन ने कमरे की लाइट भी जला दी।

“बैठे रहिएगा... बस दो मिनट..” कह कर वो ऐसे नंगी ही, दबे पांव कमरे से बाहर निकल गई। घर में और लोग भी थे... लेकिन, अभी तो सभी सो रहे होंगे! मैं सोच रहा था की क्या करने वाली है! खैर, मेरे सोचते सोचते, जैसा की उसने कहा था, सिर्फ दो मिनट में वापस आ गयी। उसके हाथ में एक छोटी थाली थी – उसमे आरती का सामान था – दिया, चन्दन, फूल इत्यादि! मैं भौंचक्क था!


उसने आरती का दिया जलाया, फिर मेरे माथे पर चन्दन का एक लम्बा तिलक लगाया और फिर दिया जला कर मेरी आरती उतारी। 

“आप ही मेरे भगवान् हैं.. मेरे सब कुछ!” कह कर वो मेरे सामने घुटनों के बल बैठ गई और झुक कर मेरे पैरों पर अपना सर टिका दिया! मुझे तो जैसे काटो खून नहीं! ये क्या कर रही है! मैं इस लायक नहीं हूँ! लेकिन मैं कुछ भी कहने और करने की अवस्था में नहीं था। सुमन एक अलग ही दुनिया में थी – ऐसा लग रहा था! 

“आप ही मेरे शिव हैं.. और ये मेरा शिव-लिंग!” कह कर उसने मेरे खड़े हुए लिंग पर भी टीका लगें और उसकी भी आरती उतारी, और उसको भी शीश नवाया। फिर उसने मेरे लिंग के सिरे को एक हल्का सा चुम्बन दिया। सुमन इतनी प्रसन्न लग रही थी, जैसे किसी बच्चे की मन मांगी मुराद पूरी हो जाती है! 

“अब मैं आपसे एक विनती करूँगी – याद रहे, आपने प्रॉमिस किया था की आप मेरी बात मानेंगे! है न?”

मेरी तो जैसे तन्द्रा भंग हुई.. “बोलो!” 

सुमन की मेरे लिए इतनी श्रद्धा देख कर मुझे डर सा लग गया।

“आपको मालूम है न, की सिर्फ शिव-लिंग की पूजा नहीं होती? जब तक वो एक योनि के साथ लिप्त न हो?”

मैंने हामी भरी।

“तो अगर आप शिव हैं, तो मैं हूँ पार्वती – और मेरी योनि सिर्फ आपके लिए है – आपके लिंग के लिए। आपको जब भी मन करे, ... आप जब भी चाहें, ... जब भी आप तैयार हैं, मैं तैयार हूँ!” 

“नीलू... इधर आओ! मेरे पास... प्लीज!”

मैंने सुमन को अपने पास बुला कर अपनी जांघ पर बैठाया, और प्यार से उसके गाल को सहलाते हुए कहा,

“नीलू... तुमने बहुत बड़ी बात कर दी आज! बहुत सम्मान और बहुत प्यार दिया है! इसलिए मैं भी एक बात कहना चाहता हूँ... पत्नी सम्भोग का यन्त्र नहीं होती। कम से कम मेरे लिए तो बिलकुल नहीं! ऐसा नहीं है की मुझे सेक्स करना अच्छा नहीं लगता – बल्कि मुझे तो बहुत अच्छा लगता है.. लेकिन, ऐसा नहीं है की तुम्हारा उपयोग बस इसी एक काम के लिए है! मुझे भी तुमसे प्रेम है! और मैं भी तुम्हारा बहुत सम्मान करता हूँ.. हम दोनों खूब सेक्स करेंगे! खूब! लेकिन, तभी जब हम दोनों ही मन से तैयार हों!”

सुमन मेरी बात सुन कर मुस्कुरा दी।

“और एक बात.. अगर तुम मुझे अपना भगवान मानती हो, तो मैं भी तुमको अपना भगवान मानता हूँ!” कह कर मैंने उसके माथे को चूम लिया, और नीचे झुक कर उसके पैरों को छू कर अपने माथे पर लगा लिया। सुमन मेरी इस हरकत पर सिसक उठी,

“आह.. आप मुझे पाप लगवाओगे!”

“कोई पाप वाप नहीं लगेगा!”

सुमन कुछ देर तक चुप हो कर मुझे देखती रही। मुझे लगा कि वो कुछ कहना चाहती है।

“क्या हुआ? कुछ कहना चाहती हो?”

उसने हामी में सर हिलाते हुए कहा, “हाँ.. मैं ‘इसको’ एक बार ठीक से देख लूं?” उसने मेरे लिंग की तरफ इशारा किया।

मैं मुस्कुराया, “तुम्हारा ही तो है.. अच्छे से देखो.. एक बार ही नहीं, बार बार..”

वो मुस्कुराती हुई, लगभग उछल कर मेरी गोद से नीचे उतरी, और उत्साह के साथ मेरे लिंग को अपने हाथ में लेकर उसका निकटता से निरीक्षण करने लगी। इस तरह से छूने-टटोलने से वो कुछ ही देर में पुनः स्तंभित हो गया।

“बाप रे! कितना बड़ा है आपका!”

“आपने किसी और का भी देखा है?”

“नहीं.. किसका देखूँगी भला?”

“देखना है?”

“न बाबा.. जिसके हाथ में ऐसा वाला हो, उसको किसी और ‘के’ की क्या ज़रुरत?”

“हा हा! आपको पसंद है?”

“हाँ! बहुत! लेकिन सचमुच.. बहुत बड़ा है!”

“बड़ा है, तो बेहतर है..”

“हाँ हाँ.. कहना आसान है.. अन्दर लेना पड़े, तो समझ आये!”

“एक बार तो हो गया.. आगे अब आसान रहेगा!”

“भगवान करे कि ऐसा ही हो!” फिर कुछ रुक कर, “मुझे तो लगता है.. जब आपने ‘ये’ पूरा अन्दर डाल दिया था, तो मेरा वज़न कम से कम एक किलो तो बढ़ ही गया होगा!”

“चल... ये गधे का थोड़े ही है..”

“ही ही! आप भी न..” कह कर वो पुनः निरीक्षण में लग गई।

“आपके यहाँ (उसने शिश्नाग्र के नीचे इशारा किया) और यहाँ (मेरे दाहिने वृषण की तरफ इशारा किया) पर तिल है...”

“हम्म म्म्म! तो? उससे क्या?”

“कहते हैं यदि पुरुष के गुप्तांग पर तिल हो तो वह पुरूष अत्यधिक कामुक होता है.. और एक से अधिक स्त्रियों के संसर्ग का सुख पाता है।“

“अच्छा जी! ऐसा है क्या? ह्म्म्म.. और इसका क्या मतलब है?” कहते हुए मैंने सुमन के दाहिने स्तन के बाहरी तरफ के दो तीन तिलों की तरफ इशारा किया।

वो शरमाती हुई बोली, “इसका यह मतलब है की जिसके सीने के दाहिनी तरफ तिल होता है, उसको सुन्दर जीवनसाथी मिलता है...”

“ओह्हो... फिर तो गड़बड़ हो गई! तुमको तो मैं मिल गया!!” मैंने सुमन को छेड़ा।

“अरे क्या गड़बड़? आप तो कितने सुन्दर..” कहते कहते सुमन रुक गई और उसका चेहरा शरम से लाल हो गया।

“अच्छा जी! ऐसा है?”


“जी हाँ.. मैंने तो जब पहली ही बार आपको देखा था, तभी आप मुझे बहुत पसंद आ गए थे!”

“अच्छा! ऐसी बात है? तो फिर आपने कुछ कहा क्यों नहीं?”

“क्या कहती? मैं तो छोटी थी, और आपको दीदी पसंद थी! तो मैंने सोचा की आपके जैसा ही कोई चाहिए मुझको! लेकिन फिर दीदी के जाने के बाद...”
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12-17-2018, 02:23 AM,
#95
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि की बात सुन कर दिल भर आया। पहले रश्मि, और अब उसकी बहन – यह बात सोच कर ह्रदय में ग्लानि सी हो गई... फिर लगा, कि हमने तो बाकायदा शादी करी है.. तो उसमे क्यों ग्लानि हो? सुमन जैसे मेरे चेहरे पर से ही मेरे मन में उठने वाले भाव पढ़ रही हो!

“आपसे एक बात कहूँ?”

मैंने हामी में सर हिलाया।

“आपकी कोई भी इच्छा हो – जो पूरी नहीं हुई हो, दीदी या फरहत किसी ने भी.... या जो भी आप करना चाहते हैं.. मुझसे कहिएगा। मैं कभी आपको मना नहीं करूँगी। आप जो भी कहेंगे, मैं करूँगी।“

“प्यारी नीलू.. हम किसी कम्पटीशन में हैं क्या?”

“नहीं नहीं.. मेरा वो मतलब नहीं है... मैं तो बस..”

“मुझे मालूम है की तुम क्या कहना चाह रही हो! और मुझे ख़ुशी है की तुम मुझसे यह सब कह रही हो! मुझे भी तुमसे प्रेम है... और मैं तुम्हारी बहुत इज्ज़त करता हूँ। इसलिए ही नहीं की तुम मेरी पत्नी हो.. बल्कि इसलिए भी की तुम एक बहुत अच्छी इंसान हो, और मैं तुम्हारी सेवा कर उम्र भर कर्ज़दार रहूँगा।“

मेरी बात सुन कर सुमन की आँखें भर आईं।

“चलिए जी! ये भी क्या बात है? मेरी सुहागरात के दिन ही आप मुझे रुला रहे हैं!” कहते हुए उसने अपने आँसूं पोंन्छे।

“ओओओ.. मेरी प्यारी बीवी नाराज़ हो गई? इसको कैसे मनाऊँ? कैसे मनाऊँ... ह्म्म्म.. सुहागरात में तो बीवी को मनाने का बस एक ही तरीका है..”

“वो क्या?”

“उसकी चूत चाट कर..”

“छीह्ह! आप ऐसे ऐसे शब्द मत बोला करिए.. आपके मुँह से अच्छा नहीं लगता!”

“अच्छा! लेकिन मेरा मुँह अपनी चूत पर महसूस करना अच्छा लगता है?”

मेरी बात पर सुमन बुरी तरह शरमा गयी!

“आप करते जाइए... धीरे धीरे सब अच्छा लगने लगेगा!”

“दैट्स लाइक माय गर्ल!” कह कर मैंने सुमन को बिस्तर पर लिटाया, उसकी टाँगे फैलाईं, और उसकी मालपुए जैसी मीठी मीठी चूत को फिर से भोगने लगा।

“जानेमन! तुमको मालूम है की तुम्हारी चूत का स्वाद कितना मीठा मीठा है? इसमें शहद डाल दिया था क्या?”

“ओह्ह्ह्ह.. नहीं.. ल्लेकिन यह सोच कर.. कि अअअआआज्ज से आपके सामने मुझे नंगी रहना पड़ेगा, मेरी चूत से बस रस बहता ही जा रहा है! आःह्ह्ह! ऊऊह्ह्ह!”

“सच में?”

“क्या सच में?” सुमन जैसे किसी तन्द्रा से जागी। उसका एक और स्खलन समाप्त हो गया था।

“तुम आज से नंगी रहोगी?”

"मैं नंगी रहूंगी, तो आपको ख़ुशी मिलेगी?”

“हाँ!”

"मुझे नंगी देखकर आपको क्या कोई एक्स्ट्रा खुशी मिलेगी?” सुमन ने मुझे छेड़ा, “आपने पहले तो दीदी, और फिर फरहत - उनको तो लगभग हर रोज़ ही नंगी देखा होगा!"

"हाँ! और तुम भी तो मेरी पत्नी हो! वो कोई बौड़म ही होगा, जो तुम जैसी पत्नी को नंगा न रखना चाहे! खुशी तो मिलेगी ही, और शारीरिक संतुष्टि भी मिलेगी मुझे! रश्मि से भी मिलती थी, और फरहत से भी! और अब, तुमको देख कर तुमसे भी वही खुशी पाना चाहता हूँ।" 

कहते हुये मैंने सुमन की योनि की दरार पर उंगली फिराई – मेरी उंगली गीली हो गयी। मैंने उसको दिखाते हुए उसके रस से भीगी उंगली को अपने मुँह में रख कर चूस लिया। 

"अच्छा जी! तो आप मुझे न सिर्फ नंगी रखना चाहते हैं, बल्कि शारीरिक सुख भी चाहते हैं!” उसने मुझे छेड़ा!

"हाँ"

“इतना सब कुछ... और इतने सस्ते में!”

“अरे! सस्ता क्या? हर बार तुम्हारा वज़न एक किलो बढाऊँगा न!” मैंने भी उसको छेड़ा।

“हा हा! और जब बाकी लोग मुझे ऐसे देखेंगे तो?”

“तो क्या? मैं उनके सामने ही यह सब करूँगा।"

"अच्छा! तो बीवी की नुमाइश लगने वाली है! और अगर देखने वालो में से किसी ने ऐसा ही कुछ करने की सोची तो?”

"तो क्या? अगर देखने वाला आदमी हुआ, तो मैं तुम्हारी चूत में डालूँगा, और उसको तुम्हारी गांड में डालने को कहूँगा!” 

“धत्त! गंदे!”

“अरे सुन तो ले पूरा... और अगर औरत हुई, तो उसको तुम्हारी गांड चाटने को कहूँगा, और मैं तुम्हारी चूत में डालूँगा!

“आप इतनी गन्दी बाते क्यों कर रहे हो?” सुमन ने मेरे चेहरे हो अपनी हथेलियों में भरते हुये कहा।

“सॉरी जानू.. ऐसे ही!”

“आप मुझे किसी के साथ भी शेयर मत करिएगा प्लीज!”

“आई ऍम सॉरी जानू! अब ऐसे कुछ नहीं कहूँगा तुमको!”

“मैं आपको बहुत प्यार करती हूँ! किसी भी चीज से कहीं ज्यादा...." कहते हुये सुमन ने अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिये और उत्साह और जोश से चुम्बन देने लगी। जब वह चुम्बन करके पीछे को हुयी तो उसने कहा,


“मैं सच में नंगी रह लूंगी.. आप देखना.. लेकिन मुझे अपने सिवाय किसी और को न देना!”

मैंने उसका चेहरा अपने हाथों में भरकर कहा, “नीलू, तुम बहुत अच्छी हो!”

“हाँ... मुझे पता है कि मैं क्यों अच्छी हूँ! मैंने नंगी रहने का वायदा किया है, इसीलिए न?”

“हाँ...वो भी है।“

“आपको मेरे बूब्स अच्छे लगते हैं?” सुमन ने मेरी आँखों को देखा – वो काफी देर से उसके स्तनों पर ही जमी हुई थीं।

“हाँ! मुझे तुम्हारे बूब्स बहुत अच्छे लगते हैं..” 

और मैंने उसके स्तनों को अपने हाथों से लेकर दबाना, मसलना शुरू कर दिया।

"आआह्हह्हह! आराम से! उफ़!” सुमन थोडा इठलाई, “अच्छा एक बात बताइए – दीदी और फरहत के मुकाबले आपको मेरे कैसे लगते हैं?”

"सेक्सी! और टेस्टी!”

"तो फिर! अब क्या करने का इरादा है?" उसने कहा।

“इनको पीने का प्लान है अब!”, मैंने कहा, और उसके एक चूचक को अपने मुँह में ले लिया! 

“आह! हाँ! आह्ह.. आराम से जानू!!” सुमन अपने सीने को आगे की तरफ ठेलते हुए बोली।

मैंने जी भर कर और जोश में उसके चूचक चूसना शुरू कर दिया। सुमन आहें भरने लगी।

“काश, इनमें दूध भरा होता!”, मैंने चूसते हुए बीच में कहा।

"हा हा! अच्छा जी... आपके इरादे बड़े नेक हैं! लेकिन इसके लिए तो आपको मुझे प्रेग्नेंट करना पड़ेगा।" सुमन हँसते हुए बोली।

“तो फिर ठीक है, चलो.. तैयार हो जाओ..”, मैंने कहा।

“क्या?”

"अरे! तुमको प्रेग्नेंट करने का यही तो एक तरीका है!” 

सुमन ने मेरे तने हुए लिंग को देखा, और कहा, “आपका ‘वो’ बहुत आतुर है अपनी सहेली से मिलने के लिए!”

“हाँ! इसकी सहेली भी इससे मिलने के लिए लार टपका रही है न!”

सुमन ने अपने दोनों हाथों से मेरे लिंग को पकड़ा और सहलाने लगी। उसी समय मैंने भी उसको पुनः चूमना शुरू कर दिया और बिस्तर पर लिटा दिया।

“रेडी हो जाओ, जानू...”

“क्यों? किसलिए?” वो भली भांति जानती थी की किसलिए।

"तुमको चोदना है न.. जिससे तुम जल्दी से जल्दी माँ बन सको!” 

मेरी बात सुन कर सुमन ने अपनी दोनों टाँगे फैला दीं।

"ज़रा और फैलाओ जानेमन.. अपनी मालपुए जैस चूत थोड़ा ढंग से दिखाओ मुझे!” मैंने उसकी योनि पर अपनी निगाहें जमाये हुये कहा।

"अभी ठीक से दिख रही है?“ सुमन ने टांगों को और फैलाते हुए पूछा।

“थोड़ा और..” मैंने मिन्नत करी।

“अब बताइए? अब दिखी ठीक से? क्योंकि अब और नहीं फैला पाऊंगी...” सुमन ने अपनी जांघे और फैलाते हुये कहा।

“हाँ, अब दिखी! तुम्हारी प्यारी प्यारी.. मीठे रस से सराबोर चूत!”

“अब और कितनी देर तक इसे देखते रहेंगे? मुझे माँ बनाने का इंतजाम कब करेंगे?” सुमन ने हँसते हुये पूछा।

"ये तो इतनी सुन्दर है की मैं चाहता हूँ की इसे तब तक देखूं, जब तक ये मेरे दिमाग में पूरी तरह न बस जाय!” मैंने कहा।

"अरे! आपकी ही तो मिलकियत है ये! जब चाहे आप देख लीजिए, या भोग लीजिए!” उसने अपनी दोनों टाँगे मेरे कंधों पर रखते हुये कहा।

मैंने सुमन की योनि पर अपना लिंग स्थापित किया और कहा, “चुदने को तैयार?”

“हाँ जानू! आप बुरी तरह चोदिये मुझे!”

मैंने अपने लिंग को अंदर की तरफ धकेलते हुये उसको चूमा। जैसे ही सुमन ने मेरे लिंग को अपनी योनि की गहराइयों में जाते हुये महसूस किया, वो बोली, “अब आप जल्दी से कर दीजिए सब कुछ! मैं कैसे भी रोऊँ, आप रुकियेगा नहीं!“

उसकी इस बात पर मैं भी तुरंत शुरू हो गया और बल पूर्वक धक्के लगाने लग गया। सुमन भी मेरे धक्को के साथ नीचे की तरफ से टाल मिलाने लगी। कुछ ही क्षणों में मैंने सुमन की योनि में लिंग को अंदर बाहर करने की गति बढ़ा दी और तब तक करता रहा जब तक मैंने उसकी योनि के अंदर अपना पूरा वीर्य उड़ेल न दिया। इसी बीच में सुमन को एक बार फिर से चरमसुख मिल गया। जब उसने अपनी कोख में मेरे वीर्य की पिचकारी महसूस करी, तो वो मुस्कुरा दी। 

कुछ देर के बाद हम दोनों ही संयत हो गए। मैं कुछ देर उसके ऊपर यूँ ही लेटा रहा। जब उठा तो मैंने कहा, “नीलू, मुझे बहुत मज़ा आया! तुमको?”

“मुझे भी!” उसने कहा, और मुझे होंठो पर चूमा। “आप थक गए होंगे! सो जायेंगे?

“नहीं! इतनी मस्त चुदाई करने के बाद कोई सोता है क्या?”

“हा हा! तो क्या करता है?”

“रुको.. बताता हूँ!”

कह कर मैंने अलमारी से जो रश्मि के लिए खास मेड-टू-आर्डर करधनी बनवाई थी, वो बाहर निकाली। यह एक 18 कैरट सोने की करधनी थी। इसमें लाल-भूरे, नीले और हरे रंग के मध्यम मूल्यवान जड़ाऊ पत्थर लगे हुए थे। सुमन उत्सुकतावश मुझे देख रही थी की मैं क्या कर रहा हूँ। मैं वापस आकर बिस्तर पर बैठ गया और सुमन को बिस्तर से नीचे उतरने को कहा। जब वो ज़मीन पर खड़ी हुई, तो मैंने उसकी कमर में यह करधनी बाँध दी। प्रथम सम्भोग के समय उसका हीरों का मयूर जड़ाऊ हार उतार दिया था – उसको भी वापस पहनाया। और थोड़ा सा पीछे हट कर उसके सौन्दर्य का अवलोकन करने लगा।
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12-17-2018, 02:23 AM,
#96
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
सुमन पूरी तरह नग्न थी – और उसके शरीर पर यह हार, मंगलसूत्र, वो करधन, कलाइयों में चूड़ियाँ और कंगन, माथे में सिन्दूर, कानो में कर्णफूल, पैरों में पायल, और बिछिया! मतलब सिर्फ आभूषण बचे थे! उसकी बिंदी हमारे सम्भोग क्रिया के समय न जाने कब खो गयी, और सिन्दूर और काजल अपने अपने स्थान पर फ़ैल गए थे, और लिपस्टिक का रंग मिट गया था। किन्तु फिर भी, सुमन, अपनी ही बहन की भान्ति बिलकुल रति का ही अवतार लग रही थी। 

“आपकी एक तस्वीर निकाल लूं?”

सुमन शर्म से मुस्कुराई, और हामी में सर हिलाया।

मैंने झटपट अपना कैमरा निकला, और दनादन कई सारी तस्वीरें उतार लीं। उसके बाद मैंने सुमन की कमर को आलिंगन में लेकर उसकी नाभि, और फिर उसकी कमर को करधनी के ऊपर से चूमा। फिर खड़े हो कर उसके दोनों चूचकों को चूमा, और अंत में उसके होंठों पर एक चुम्बन दिया।

“जानू.. आज दिन में बस यही पहन कर रहना!”

सुमन उत्तर में सिर्फ मुस्कुरा दी!!

मेरी हर कही हुई बात सुमन के लिए जैसे वेद-वाक्य, या फिर कोई दैवीय आदेश था। हमारे वैवाहिक जीवन के पहले दिन सचमुच सुमन ने अपने शरीर पर कुछ भी नहीं पहना – उसके शरीर पर बस वही कुछ आभूषण - करधनी, कंठहार, मंगलसूत्र, चूड़ियाँ और कंगन, पायल और अंगूठी ही रही। ऐसा करने के लिए उसकी दलील यह थी कि मैंने पहली बार – मेरे जीवन में भी, और हम दोनों के वैवाहिक जीवन में भी – उससे कुछ माँगा था। इसलिए वो किसी भी कीमत पर मुझे उस बात के लिए मना नहीं कर सकती थी – चाहे मैं ही उसको वैसा करने से मना करूँ! खैर, मुझे क्या आपत्ति हो सकती थी भला? इतनी सुन्दर सी लड़की अगर नग्न हो कर घर में इधर उधर घूमे तो आनंद ही आएगा! खैर, मैंने कमरे से बाहर निकलने से पहले एक निक्कर और टी-शर्ट पहन लिया था। उसकी सहेली भानू जब सुबह उठी, तो उसका यह रूप देख कर दंग रह गई।

“हाआआआआ! क्या जीजू! मेरी इतनी शर्मीली सी सहेली.. आपके साथ बस एक रात क्या रह ली, उसकी तो ऐसी हालत हो गई! क्या किया आखिर आपने?”

मैंने आँख मारते हुए उसको उसी के अंदाज़ में छेड़ा, “आजा तू भी.. देखते हैं, मेरे संग का क्या असर होता है तुझ पर!”

“न बाबा! मैं तो सोच रही हूँ की जब पति मिलेगा तो उससे नए नए कपड़ों की फरमाइश करूंगी.. अगर आपके साथ हो ली, तो ऐसे नंगी रहना पड़ेगा!”

“ओये होए! सहेली के पति को अपना पति बनाना चाहती है?” मैंने फिर छेड़ा।

“अरे मेरा ही क्या? आपके जैसे शानदार मर्द को देख कर किसी भी लड़की का जी होने लगेगा!”

“अरे तो रुक कर कुछ देर देख ही ले की हमने ऐसा क्या किया जिससे तेरी सहेली की ऐसी हालत हो गई..”

“न बाबा... ये ऑप्शन भी गड़बड़ है! आप दोनों को चुदाई करते देख कर अगर मेरा भी मन डोल गया तो?” भानु फिर से बेशर्मी पर उतर गई।

“तो क्या? तू भी बहती गंगा में हाथ धो लेना.. लगे हाथ तेरी चूत की भी कुटाई हो जाएगी!”

“ओये होए! नई नई बीवी, वो भी नंगी नंगी, आपके पहलू में बैठी हुई है, और आपकी गन्दी नज़र उसकी सहेली पर है!”

“ठहर तो.. बताता हूँ तुझे!” इस लड़की से कोई नहीं जीत सकता।

“नहीं! मुझे कुछ मत बताओ...” वो भागी, “आप दोनों चुदो-चुदाओ.. इसमें मेरा क्या काम? मैं क्यों कबाब में हड्डी बनूँ?” यह कहते हुए वो खिलखिलाती हुई कमरे से भाग खड़ी हुई। इस पूरे वार्तालाप के दौरान सुमन पहले तो सिर्फ मुस्कुराती रही, लेकिन बाद में हँसते हँसते दोहरी हो गई।

“हंसी आ रही है?”

वो और हंसी.. दरअसल अब तक वो खिलखिला रही थी।

“जानू.. जाने दीजिए.. वो ऐसी ही है..”

“हंसी निकालूँ और?” मैंने अपनी आवाज़ में नकली क्रूरता मिलाते हुआ कहा। सुमन कुछ सहम गई।

“हम्म? हंसी निकालूँ तेरी?” मैंने नाटक जारी रखा। 

सुमन के चेहरे से मुस्कान अब तक ख़तम हो चुकी थी – शायद मेरे ऐसे अचानक बदले हुए रूप को देख कर डर गई थी वो! मैंने उसके करीब जा कर उसकी जाँघों के बीच में अपनी उंगली फिराई। उसकी योनि की फाँकों की गुलाब जैसी कोमल पंखुडियां खुली, और मेरी उंगली के गिर्द चिपक गईं।

“ये होंठ हँसेंगे तेरे... ऊपर वालों में तो सिर्फ कराहें और आहें निकलेंगी!” दूसरे हाथ से मैं अपनी निक्कर उतार रहा था।

मेरी इस बात पर सुमन के होंठों पर एक लज्जालु मुस्कान तैर गयी। वो बोली,

“ये भी कैसे मुस्कुराएंगे? आपका अंग लेने में तो ये पूरी तरह से खुल जाते हैं!”

“अच्छा जी?”

“हाँ जी! .. ऊओह्ह्ह्ह! (मैंने उसकी योनि के ऊपर भगशेफ़ को छेड़ा) ये बेचारे तो बस लार टपकाते रह जाते हैं!” वो अदा से मुस्कुराई।

अब तक मेरी निक्कर उतर चुकी थी। यानि अब हम दोनो ही नंगे हो चुके थे। मैंने अपनी पत्नी को जी भर कर देखा – वो भी कभी मुझे, तो कभी मेरे लिंग को देख रही थी। वो सोचे बिना न रह सकी कि दीदी को कैसा लगता रहा होगा जब वो इस लिंग को अपने अंदर लेती थीं! इस बार शुरुआत सुमन ने करी। उसने मेरे लिंग को अपनी हथेलियों में लेकर सहलाने का उपक्रम शुरू किया। उसकी नरम गरम हथेलियों का स्पर्श पा कर मेरा लिंग भी तुरंत ही पूर्ण स्तम्भन की स्थिति में आ गया। मैंने भी उसके स्तनों को सहलाना और मसलना शुरू कर दिया।

जल्दी ही हम दोनों ही एक दूसरे को अपनी बाहों में भर कर लेट गये। मैंने एक हाथ से सुमन के एक चूचक को मसलते हुए कहा,

“ओह नीलू! तुम नहीं जानती कि मैं कितना खुश हूँ! तुमको पाकर मुझे अपने मन की खोई हुई खुशी मिल गई है! और.. जीने का सहारा भी!”

“ऊह्ह्ह! अरे! आप ऐसा न कहिए! सहारा तो आप हैं मेरे! आपकी वजह से मुझे वो सुख मिला है जिसके बिना मैं खुद को अधूरा महसूस कर रही थी।“

सुमन ने मेरे लिंग को सहलाते हुए कहा। मैंने महसूस किया कि सुमन की योनि गीली हो गई थी। पर अभी उसमे लिंग डालने का सही समय नहीं आया था। यह बात उसको भी समझ आ रही थी। वो अपनी जगह से उठ खड़ी हुई, और अपने शरीर को कमानी की तरह कुछ पीछे करते हुए इस तरह हुई, जिससे उसका योनि क्षेत्र मेरे सामने कुछ बाहर आ जाय, और कुछ अधिक प्रदर्शित होने लगे।

“एक बार इन होंठो को भी चूम लीजिए..”

ऐसे सुन्दर, मादक, गोरे, चिकने शरीर, और उससे भी अधिक चिकनी और रसीली योनि को अपने मुँह के करीब होता देख कर मैं और भी अधिक उत्तेजित होने लगा। मैंने आगे बढ़ कर उसके दोनों नितम्बों को पकड़ लिया, और अपनी तरफ धीरे से खींचा – ऐसा करने से सुमन का योनि मुख मेरे होंठों से मात्र कुछ इंचों की ही दूरी पर रह गए! 

मैंने कहा, “नीलू, थोड़ा जगह बनाओ..”

सुमन ने अपनी टाँगे कुछ खोल दीं, और मुझे उसकी योनि का आस्वादन करने के लिए जगह मिल गई। सुमन ने अपना योनि क्षेत्र कुछ इस तरह से व्यवस्थित किया जिससे अब मैं आराम से अपनी जीभ से उसकी योनि का भोग कर सकता था – मैंने वही किया। मैं उसकी योनि को अपनी जीभ से सहलाने लगा। इस प्रकार की छेड़खानी का असर सुमन पर काफी सकारात्मक हुआ – वो भी कामुकता में मत्त सी हो गई। मैंने सोचा की सुमन को अपने इस कार्य का कुछ पारितोषिक तो मिलना ही चाहिए – इसलिए मैंने भी आराम से रह रह कर उसके भगशिश्न को चाटना शुरू कर दिया। मैं क्रमशः उसकी योनि की पूरी लम्बाई को चाटता, और रह रह कर उसके भगशिश्न को अपने होंठों से दबा कर उसको पागल बना देता। लगभग तीन मिनट के बाद ही सुमन उन्माद में पीछे की तरफ कुछ झुकी और अपनी योनि का रस मेरे मुँह पर ही छोड़ने लगी। मेरे चाटने की गति बढ़ने लगी और उसी के साथ साथ सुमन भी उन्माद के अंतराल तक पहुँच गई। उस समय मैं अपनी दो उंगलियाँ उसकी योनि में डाल कर अंदर बाहर करने लगा। सुमन इस नए प्रहार को बिलकुल भी सहन नहीं कर सकी।एक जोरदार सिसकारी के साथ वो अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँच गई। उस उन्माद में उसका पैर कांप गया, और इससे पहले की मैं उसको सम्हाल सकता, वो भहरा कर फर्श पर गिर गई। मैं घबराया की कहीं उसको चोट न लग गयी हो – लेकिन सुमन लंबी लंबी साँसे भरते हुए फर्श पर लेट गयी।

यह सुनिश्चित करने के बाद, की वह पूरी तरह से ठीक है, मैं वापस मूड में आ गया। मैं पुनः उसके स्तनों को मसलने में लग गया। मेरा लिंग भी अब अपने गंतव्य में जाने को आतुर हो रहा था। मैंने सुमन का हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया – मैं एक तरह से उसको बताना चाहता था कि मैं अब तैयार हूँ! सुमन भी समझ गई कि अब वक्त आ चुका है। उसने मुझको उसके ऊपर आने को कहा, और मेरा लिंग अपने हाथों से पकड़ कर अपनी योनि से सटा दिया। मैंने धीरे धीरे लिंग को उसकी योनि में डालना आरम्भ कर दिया। 

लडकियाँ अक्सर ही सम्भोग के बाद एक प्रकार का दर्द अनुभव करती हैं। अगर वो दर्द सम्भोग करते समय आघात के कारण उठता है, तो मर्द को चाहिए कि वो सावधानीपूर्वक, और प्रेम से करे। जल्दबाज़ी न दिखाए। लेकिन यदि यह बात नहीं है, तो एक और कारण है – और वो यह की सम्भोग, और उसके बाद चरमोत्कर्ष की प्राप्ति के बाद लड़कियों की योनि अति संवेदनशील हो जाती है। अब इस संवेदनशीलता की अवधि कुछ भी हो सकती है – कुछ सेकंडों से लेकर कई मिनटों तक भी! इस अवधि में लडकियाँ यह नहीं चाहती की उनकी योनि को और अधिक छेड़ा जाय। यह संवेदनशीलता इस बात पर भी निर्भर करती है की उनके भगनासे को भी छेड़ा गया है या नहीं। खैर, सुहागरात के सम्भोग, और अभी अभी प्राप्त यौन चरमोत्कर्ष के बाद सुमन की भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी – उसकी योनि के दोनों होंठ सूजे हुए से लग रहे थे।

किन्तु इस पर भी उसने मेरे लिंग का पूरी तरह स्वागत किया। उसका छोटा सा योनि मुख जैसे अपनी सीमा तक खिंच गया था। मेरे लिंग पर वो एक रबड़ के छल्ले के समान कस गया था, और मेरा लिंग इस समय पूरी तरह से उसके अन्दर समाहित हो गया था। मैंने जैसे यह देखा, मैंने उसको लगभग पूरा बाहर निकाला, और वापस अंदर धकेल दिया। पाठक समझ सकते है की ऐसा करने में गति तो कम हो जाती है, लेकिन घर्षण अभूतपूर्व होता है। मैं ऐसा बार बार दोहराने लगा। इस प्रकरण के दौरान, मैंने सुमन के कंधे पकड़ रखे थे। इसलिए अब इस उन्मादक प्रहार को झेलने के अतिरिक्त सुमन के पास अब कोई चारा नहीं बचा था।

सुमन भी सम्भोग के मामले में रश्मि के समान ही थी – वो भी तुरंत ही बहकने लगती थी, और लगभग तुरंत ही तैयार हो जाती थी। मेरे कठोर और गरम लिंग के घर्षण का अनुभव सुमन को उन्मत्त करने लग गया था। वो शीघ्र ही अपने अंदर चरमोत्कर्ष की लहर उठती सी महसूस करने लगी। मैं भी जैसे किसी मतवाले पशु के समान, आँखें बंद किये, पूरे मनोयोग से उसके अन्दर बाहर हो रहा था। जब आँख खुली, तो सामने सुमन के प्यारे से स्तन नज़र आ गए। मैं रह न सका – मैंने जैसे ही उसके एक चूचक स्तन को मुँह में लेकर चूसना शुरू किया, सुमन पुनः चरमोत्कर्ष पर पहुँच गयी। उसके शरीर की थरथराहट मैंने महसूस की और सुमन को भोगने के लिए अपनी गति और बढ़ा दी।

ड्राइंग रूम में हमारी रतिक्रिया की मादक ध्वनियाँ गूँज रही थीं। अरे, हमको तो यह भी नहीं मालूम पड़ा की कब भानु वह आ खड़ी हुई, और मज़े लेकर हमारे इस अन्तरंग समय की विडियो रिकॉर्डिंग कर रही थी। मैं अब पूरे वेग से धक्के मार रहा था – मेरा भी अंत आ गया था – मेरा पहला स्खलन बहुत ही तीव्र था। पहली पिचकारी में ही मेरा कम से कम अस्सी प्रतिशत वीर्य सुमन की कोख में समां गया। बाकी का बचा हुआ अगले चार पांच पिचकारियों में निकल गया। इस सम्भोग में ऐसा अभूतपूर्व भावावेश था, की हम दोनों एक दूसरे से बुरी तरह से लिपट गए। हमारी साँसे धौंकनी की तरह चल रही थीं, और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे की एक मैराथन दौड़ कर आया हूँ। हम एक दूसरे को अपनी बाहों में भरकर लेटे रहे। वृषणों में अब कुछ भी नहीं बचा हुआ था, लेकिन फिर भी लिंग रह रह कर व्यर्थ ही पिचकारियाँ छोड़ने का प्रयास कर रहा था। सुमन की योनि में भी स्पंदन हो रहे थे – मानों मेरे लिंग के उठने वाले स्पंदनों से ताल मिला रही थी। खैर, कुछ देर तक ऐसे ही शांत लेटे रहने के बाद हमने एक दूसरे को होंठों में चुम्बन दिया और पुनः आलिंगनबद्ध हो गए।

“क्या बात है जीजू और नीलू!” हमारी तन्द्रा तब टूटी जब हमने हलकी हलकी तालियों की आवाज़ सुनी। “ये तो गुड मोर्निंग हो गया है जी!”

मैंने और सुमन – हम दोनों ने ही आवाज़ की दिशा में देखा। भानु मुस्कुराती हुई अपने मोबाइल फ़ोन लिए हमारा विडियो बना रही थी। 

“ठहर जा तू..” मैंने धमकी दी और उठने का उपक्रम किया, लेकिन सुमन ने मुझे गलबैयां डाल कर रोक लिया।

“जाने दीजिए न.. ले दे कर वही तो एक आपकी साली है..”

“हाँ जीजू.. आपकी आधी घरवाली!” कह कर उसने मुझे जीभ दिखा कर चिढाया।
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12-17-2018, 02:23 AM,
#97
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
“डेढ़ घरवालियाँ हैं आपकी... डेढ़!! वैसे आप चिंता न करिए – ये विडियो मैं इन्टरनेट पर नहीं डालूँगी। बल्कि आप दोनों को मेरी तरफ से गिफ्ट दूँगी। .. और अपने पास भी रखूंगी। जब भी मेरे सेक्सी से जीजू की याद आएगी, इसको देख कर खुश हो लिया करूंगी..।“ उसने निहायत ही नाटकीय अंदाज में यह बात कही। मुझे भी हंसी आये बिना न रही। 

“अच्छा, तो तू मेरी आधी घरवाली है.. कम से कम घरवाली का आधा प्यार तो दे!” मैंने उसको छेड़ा। मुझे लगा की इस एक वाक्य से मैंने पहली बार भानु को कुछ समय के लिए निरुत्तर कर दिया। वो कुछ देर अचकचा गयी, लेकिन फिर सम्हाल कर बोली, “क्या जीजू.. इतनी सुन्दर सी बीवी है, और नंगी पड़ी है.. और आप मुझ पर डोरे डाल रहे हैं?”

“क्या करूँ साली साहिबा! इतनी सेक्सी साली का कोई तो फायदा होना चाहिए न!”

“क्या सच में? आपको मैं सेक्सी लगती हूँ?”

“हाँ! सुन्दर, और सेक्सी!” फिर सुमन की तरफ देख कर, “क्यों जानू?”

“हाँ .. बिलकुल! तू तो बहुत सुन्दर है!” सुमन फिर मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोली,

“आपको अगर चांस मिले, तो इसके बूब्स देखिएगा! बहुत सेक्सी हैं!”

“क्या कह रही है तू कमीनी?”

“तू कमीनी है.. यहाँ हम दोनों नंगे पड़े हैं, और तू पूरे कपड़ों में खड़ी है..”

सहेलियों की मीठी तकरार...

“आप ही कुछ कहिए न...”

“हाँ भानु.. वो बात तो है..”

“हाँ.. आप तो कहेंगे ही न.. मेरे कपडे उतर गए तो दो दो नंगी लडकियाँ मिल जाएँगी आपको.. यानी पाँचो उंगलियाँ घी में..”

“नहीं रे.. पाँचों नहीं,” मैंने भानु के वाक्य को सुधारा, “दसों उंगलियाँ.. और घी में नहीं.. या तो मीठे मीठे बन (छोटे, मीठे पाव – मेरा इशारा स्तनों की तरफ था) में.. या फिर शहद में!”

हमारी छेड़खानी सुन कर भानु की जो भी मोरचाबंदी थी, वो जल्दी ही ढह गई।

“क्या सचमुच इसके बूब्स बहुत सेक्सी हैं?” मैंने सुमन से पुछा।

सुमन के कुछ कहने से पहले ही भानु बोली, “कोई सेक्सी वेक्सी नहीं हैं.. जैसा सभी का होता है, वैसा ही है!”

मैंने कहा, “तुम्हारा भी ऐसा ही है क्या?” मैंने सुमन के स्तनों की तरफ इशारा किया।

“आपकी बीवी के बहुत सुन्दर हैं..”

“नहीं.. सच में.. इसके बहुत सुन्दर हैं.. आप खुद ही देख लो..” दोनों लडकियाँ एकदम बच्चों वाली बातें कर रही थीं।

“सच में जीजू.. ये बिलकुल बेशर्म हो गयी है..”

“इधर आओ भानु...” मैंने थोड़ा सीरियस हो कर कहा। न जाने क्या असर हुआ उस पर, वो बिना किसी हील हुज्जत के हमारे पास चली आई।

“बैठो..” वो बैठ गयी।

“मैं तेरे बूब्स छूकर देख लूँ क्या?”

उसने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन हलके से सर हिला कर हामी भर दी।

“पक्का?” वो शर्म से मुस्कुरा दी। बल्कि शरमाना मुझे चाहिए था – नंगा तो आखिर मैं था उसके सामने!

सुमन: “हाँ... छू कर देखिए न!”

मैंने अपना दायाँ हाथ बढ़ा कर उसका बायाँ स्तन बहुत हलके से छुआ – ठीक से छुआ भी नहीं था, फिर भी भानु चिहुंक सी गई।

“भानु, डरो मत! मैं कुछ नहीं करूंगा.. नीलू भी तो यही हैं न..!” मैंने उसको स्वन्त्वाना दी।

लेकिन जिस बात को मैं भानु की शर्म सोच रहा था, दरअसल वो उसकी बदमाशी थी। उसका घबराया हुआ, भोला सा चेहरा देखते देखते बदल गया – उसके होंठों पर एक पतली सी मुस्कान आ गयी, और उसने अचानक ही जीभ निकाल कर मुझे चिढाया,

“न न न जी-जा-जी..” उसने एक एक अक्षर रुक रुक कर बोला, “आज के लिए बस इतना ही.. अपनी इस साली को खुश कर के रखिएगा.. क्या पता, आगे और क्या क्या मिल जाए आपको!! ही ही ही!”

कह कर वो आगे बढ़ी और मुझको होंठों पर चूम लिया, फिर मेरे बाद उसके सुमन को भी होंठों पर चूम लिया। 

“अब आप लोग थोड़ा नहा-धो लीजिए... मैं आपके लिए नाश्ता बनाती हूँ... ऊओह्ह्ह! देखिए न.. आपकी ये एकलौती साली पहले ही आपसे खुश हो गयी है.. आपको नाश्ता मिल रहा है उससे! हा हा!”

नित्यक्रिया से निवृत्त होने के बाद, सुमन और मैं हम दोनों साथ ही नहाने के लिए गए। नहाते वक्त ऐसी कोई ख़ास बात नहीं हुई – लेकिन जाहिर सी बात है, सुमन भी यह सुनिश्चित कर देना चाहती थी की मैं उसके शरीर के हर कोने से अच्छी तरह से जानकारी कर लूं – उसके शरीर में किस जगह पर कैसे लोच हैं, कैसी गोलाईयां हैं और कैसे मोड़ हैं – उन सबका ज्ञान उसको नहलाते समय साबुन लगाते और फिर पानी से धोते समय मुझे हो गया। उसके शरीर पर कहाँ कहाँ और कैसे कैसे तिल हैं, और कैसा जन्म-चिन्ह है, उसकी गुदा की बनावट और रंग, साथ ही साथ उसकी योनि का विस्तृत विवरण – मतलब सुमन के बारे में वो सभी जानकारियां जिनके बारे में संभवतः सुमन को खुद भी न मालूम हो, उस एक ही स्नान में मुझे हो गई। 

हम तीनों ने साथ में बैठ कर नाश्ता किया। वायदे के मुताबिक, सुमन अभी भी नग्न थी – सिवाय एक नव-विवाहिता के समस्त आभूषणों के। मैंने भी उसका साथ देने के लिए कोई कपड़े नहीं पहने थे। भानु ने ‘हाउ क्यूट’, ‘हाउ स्वीट’, और ‘हाउ सेक्सी’ जैसे कई विशेषण हमारी प्रसंशा में जड़ दिए, और हमको बारी बारी से चूमा। नाश्ता करते समय भानु ने हमसे पूछा की हम दोनों अपने हनीमून के लिए कहाँ जा रहे हैं? वाकई! इस बात के बारे में तो मैंने बिलकुल भी नहीं सोचा था। मैंने दिमाग दौड़ाया लेकिन कुछ समझ नहीं आया – इसलिए मैंने सुमन से ही पूछना ठीक समझा। उसने कहा,

“अच्छा... आप ये बताइए कि हम लोग हनीमून में क्या करेंगे?”

“अरे! हनीमून में क्या करना होता है?”

“फिर भी.. बताइए न?”

“भई, मेरे हिसाब से तो हनीमून एक नए युगल के लिए ब्रेफिक्री, आनंद और पारस्परिक अंतर्ज्ञान का एक अवसर होता है! नए नए बने पति पत्नी को एकांत में मिलने का सुख मिलता है, एक दूसरे को समझने का अवसर मिलता है, और सब कुछ अच्छा रहा तो एक नए स्थान में पर्यटन करने का भी मौका मिलता है! और क्या?”

“ओह्हो! आप मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दे रहे हैं.. हनीमून में करना क्या होता है?”

“अरे! बताया तो..” मैं जान बूझ कर टाल रहा था।

फिर से भानु बीच में टपक पड़ी,

“क्या मेरे भोले जीजू! आप भी न..” फिर सुमन की तरफ मुखातिब होते हुए, “मेरी बन्नो.. हनीमून में जीजू तेरी जम कर चुदाई करेंगे! और क्या? अभी तो तू अपनी मर्ज़ी से नंगी बैठी है, लेकिन जब हनीमून पर जायेगी, तो तुझे ये जबरदस्ती नंगी रखेंगे! और तेरी चूत का...”

“चोप्प्प्प!” मैंने डांट लगाई, “हनीमून में कुछ हो या न हो.. लेकिन कम से कम तू तो नहीं होगी वहाँ.. वही काफी है मेरे लिए..”

“हाय मेरे जीजू! इतनी बेरुखी मुझसे? अपनी एकलौती साली से?” उसने फ़िल्मी अंदाज़ में अपनी दाहिनी बाँह थोड़ा ट्विस्ट करके अपने माथे पर, और बाईं बाँह ट्विस्ट कर के अपनी कमर के पीछे कर लिया और कहा, “हाय री किस्मत! कैसा जीजा मिला मुझे!”

“तेरी तो..”

सुमन ने मुझे बाँह से पकड़ा, और मुस्कुराई, “जानू.. आप इसकी बातें मत सुना करिए! वैसे मैं कह रही थी, कि जो काम हम हनीमून पर करने वाले हैं, वो सच में, अभी भी तो कर ही रहे हैं न! मैं संतुष्ट हूँ पूरी तरह से.. और आपको संतुष्ट रखने की पूरी कोशिश करूंगी..”

“ओये होए मेरी पतिव्रता नारी! वैसे सच कहूं जीजू.. अपनी नीलू तो हमेशा से आपके ही सपने संजोए रही थी। पूरी तरह से आपके प्रति वफादार! बस.. एक बार मैंने ही इसको बहका दिया था..”

“तू तो कुछ भी कर सकती है” मैंने तल्खी से जवाब दिया।

“अरे अरे! आप तो नाराज़ हो गए.. और एक मैं हूँ.. जो आपसे खुश हुई जा रही हूँ..”

“तेरे खुश होने से भी मुझे क्या मिला जा रहा है?”

“अरे! नहीं मिला है तो मिल जायेग! आप तो ऐसे उतावले होंगे तो कैसे चलेगा?”

“क्या? मैं उतावला..!”

“जानू.. आप परेशान मत होइए! इस कमीनी ने मुझसे कहा था की तेरे हस्बैंड को अपने दूध का स्वाद चखाएगी! चल री! कर न.. दे न अपने जीजू को गिफ्ट...”

“अबे! मैंने कब कहा था?”

“कहा नहीं था तूने?”

“न बाबा! तू ही पिला दूध वूध... ये सब मेरे अरुण की अमानत हैं... लेकिन... अपने प्यारे जीजू को भी कुछ न कुछ तो दूँगी ही!”

कह कर उसने मुझे होंठों पर चुम्बन दिया.. और हँसते हुए अन्दर कमरे में भाग गयी।

और इसी के साथ सुमन और मेरी शादी-शुदा जिंदगी चल निकली। एक महीना ऐसे ही हँसते हँसते बीत गया। सच में – जो सब कुछ रश्मि के जाने से खो गया था, वो सब कुछ सुमन के आते ही वापस आ गया। सब कुछ तो नहीं – लेकिन काफी कुछ। दिल का घाव भर तो सकता है, लेकिन उसका चिन्ह कैसे छूटे? इस सब का पूरे का पूरा श्रेय सुमन को ही जाता है। मैंने तो समय से पूरी तरह से हार मान लिया था और उसके सम्मुख अपने सारे हथियार डाल दिए थे। बस इसी बात की तमन्ना रह गई थी की कब मुझे समय अपने अंक में भर के इस धरती से मुक्ति दे दे। लेकिन, वो एक दिन था, और आज का दिन है – जीवन को भरपूर जीने की इच्छा बलवती हो गई है।
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12-17-2018, 02:24 AM,
#98
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
भगवान् ने एक और सद्बुद्धि दी – और वह यह की मैंने कभी भी सुमन की रश्मि से तुलना नहीं करी.. और करने की सोची भी नहीं। दोनों ही लडकियाँ अप्रतिम और अनोखी थीं। दोनों ही मेरी पत्नियाँ थीं, और दोनों से ही मुझे अत्यंत प्रेम था। जहाँ रश्मि ने मेरे यंत्रवत जीवन में अपने प्रेम की फुहार सिंचित कर उसमें बहार ला दी थी, उसी प्रकार सुमन ने मेरे मृतप्राय शरीर में पहले तो प्राण फूंके, और फिर अपने प्रेम के रस से सींच कर जैसे मुझे संजीवनी दे दी थी। एक आदमी को भला जीवन से और क्या प्रत्याशा हो सकती है?

“बत्तीस नंबर के पेशेंट को होश आ गया है..”, सरकारी अस्पताल की नर्स सुषमा हर्ष-पूरित उत्तेजना में भागते भागते बाहर आई और लगभग चीखते हुए यह उद्घोषणा करने लगी। 

“जल्दी से डॉक्टर संजीव को बुलाओ.. हे प्रभु! कैसे कैसे निराले खेल! मैंने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी..” वह रिसेप्शन पर निठल्ले से खड़े दोनों वार्ड-बॉयज को कह रही थी। उन दोनों ने उसकी बात पर ऐसे मुँह बनाया जैसे उनको किसी ने रेंडी का तेल पिला दिया हो, लेकिन सुषमा ने जब आँखे तरेरी, तो दोनों ही भाग कर डॉक्टर संजीव को बुलाने निकल लिए। किसी की मजाल नहीं थी की नर्स सुषमा की बात न माने।

कोई पंद्रह मिनट बाद डॉक्टर संजीव, बतीस नंबर की पेशेंट की जांच कर रहे थे। नब्ज़ और आँखें इत्यादि देखते हुए वो मरीज़ से पूछते जा रहे थे,

“बहुत बढ़िया! कैसा लग रहा है आपको? कहीं दर्द तो नहीं?”

“मैं कहाँ हूँ?” मरीज़ ने पूछा।

“ओह! सॉरी! मैंने तो बताया ही नहीं – आप गौचर के सरकारी अस्पताल में हैं! मैं डॉक्टर संजीव हूँ.. और ये हैं नर्स सुषमा! इन्होने ही आपकी दिन रात देखभाल करी है।“

“क्या डॉक्टर साहब.. आप भी..”

“अस्पताल में? क्यों?”

“आपको सब बताएँगे.. लेकिन, आप पहले यह बतोये की आपका नाम क्या है?”

“नाम? मेरा नाम.. क्या? मेरा नाम क्या है?” मरीज़ को कुछ समझ नहीं आ रहा था।

“कोई बात नहीं.. कोई बात नहीं.. आराम से!” कहते हुए डॉक्टर ने अपने नोट पैड में कुछ लिख लिया, और फिर सुषमा से कहा, “इनके वाइटल स्टैट्स सब ठीक हैं.. लेकिन, इतने महीने कोमा में रहने के कारण लगता है याददाश्त सप्रेस हो गयी है। कोई बात नहीं.. तीन दिन ऑब्जरवेशन पर रखते हैं – अगर हालत ठीक रही तो पेशेंट को रिलीव कर दे सकते हैं.. मेमोरी गेन में टाइम लग सकता है और उसके लिए हॉस्पिटल में रहने की ज़रुरत नहीं! इनके घर इत्तला कर दी?”

“अभी नहीं डॉक्टर! अभी करती हूँ!”

“देखिए,” संजीव ने मरीज़ को कहा, “आप घबराइये नहीं.. आप महीनो के बाद होश में आईं हैं, इसलिए शायद आपको अभी कुछ ख़ास याद नहीं है। लेकिन, जल्दी ही आपको सब याद आ जायेगा। इस बीच नर्स सुषमा आपका पूरा ख़याल रखेंगी।“ 

कह कर डॉक्टर ने मरीज़ के सर पर प्यार से हाथ फिराया और फिर कुछ और ख़ास निर्देश दे कर वहां से विदा ली।

“हाँ! कुंदन जी... मैं सुषमा बोल रही हूँ... नर्स सुषमा!” टेलीफोन पर सुषमा कह रही थी, 

“हाँ हाँ.. अस्पताल से.. आपके लिए खुश खबरी है.. हाँ! आपकी पत्नी को होश आ गया है.. हाँ हाँ! ... आप बिलकुल आ सकते हैं देखने उसको! क्या नाम बताया था आपने उसका? ... अंजू? हाँ? ओके! उनको एक्चुअली फिलहाल याद नहीं आ रहा है! कोमा का असर लगता है.. आप आ जाइए, फिर आराम से बात कर लेंगे.. ओके .. ओके!”

कुंदन कोई बीस इक्कीस साल का गढ़वाली युवक था। उसकी इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयर की दूकान थी – दूकान क्या थी, बस महीने का खर्च निकल जाता था। पोलिटेकनिक की पढाई करते ही उसने अपना खेत बेच दिया, और यह काम करने लगा। माँ बाप उसके थे नहीं, इसलिए किसी ने रोका भी नहीं! मौज से कट रही थी। लेकिन आमदनी अधिक तो नहीं थी। रहने सहने का काम हो जाता था। बाकी लोगों की तरह उसको भी यह मन होने लगा था कि तनहा रातों में वो अकेला न सोये! यूँ ही अकेले, ठन्डे बिस्तर में पड़े रहने से अच्छा था की कोई एक गरम शरीर उसके बगल में हो, जिसके संग वो साहचर्य कर सके! ऐसे ही नाहक अपने वीर्य को वो कब तक नाली में बहाता रहेगा? 

महीनो पहले वो केदारनाथ जी के दर्शनों के लिए गया था यह मन्नत मांगने की उसको एक सुन्दर सी पत्नी मिल जाय। पत्नी वत्नी का तो पता नहीं, लेकिन वो उस प्राकृतिक आपदा की चपेट में आ गया। जैसे तैसे वो जान बचा कर भागा। चोटें बहुत सी आईं, लेकिन फिर भी वो न जाने कैसे पहाड़ों की तरफ ऊपर की ओर पहुँच गया। रस्ते में उसने न जाने कितने ही अभागों के शवों को देखा। हर शव उसको यही याद दिलाता की अंत में उसकी भी यही दशा होने वाली थी, लेकिन फिर भी उसने हिम्मत न हारी।

एक शाम को उसने एक लड़की को वहीँ पहाड़ों पर पड़े देखा – वो लगभग मरणासन्न थी। उसके आस पास सियार मंडरा रहे थे, की कब वो मरे, और कब उनका भोजन बने। अचानक ही कुंदन को लगा की उसकी आस पूरी होने वाली है। उसने उस लड़की को जंगली जानवरों की दृष्टि से बचाया, और जैसे कैसे भी उसको वापस जीवन की तरफ लाया। लेकिन लड़की की हालत बहुत खराब थी। होश तो कब का खो चुकी थी। इस घटना के कोई दो दिन बाद भारतीय सेना ने उन दोनों को बचाया और अस्पताल में भरती किया। 

कोई और उस लड़की पर हाथ साफ़ न कर ले, उसके लिए कुंदन ने उसको अपनी पत्नी ‘अंजू’ के नाम से भरती किया था। कम से कम वह देह व्यापार करने वालो की कुदृष्टि से तो बची रहेगी। उसको तो अस्पताल से हफ्ते भर में छुट्टी मिल गयी, लेकिन अंजू को होश नहीं आया। इस बीच उसको पता चला की वो बाप बनने वाला था। 

‘साला! कैसी किस्मत! लड़की मिली भी तो पेट से!’ उसने सोचा।

लेकिन फिर उसको यह सुन कर राहत हुई की वो बच्चा उस प्राकृतिक आपदा का शिकार बन गया था। यह सुन कर उसको सच में दुःख हुआ। लेकिन यह तसल्ली भी हुई, की शायद अंजू का पति मर गया हो, और अब यह सुन्दर सी, अप्सरा सी दिखने वाली लड़की उसकी बन सके। लेकिन यह तसल्ली बहुत दिन न रही – अंजू जैसे होश में आने का नाम ही नहीं ले रही थी। महीनो बीत गए। कुंदन की उम्मीद तो कब की छूट गयी थी। माँ बाप नहीं थे, तो किसी को क्या पड़ी थी की उसके लिए लड़की ढूंढता? ऐसा नहीं था की कुंदन की माली हालत में कोई बहुत ज्यादा खराबी थी – उसका गुजरा हो जाता था, उसको कोई बुरी आदत नहीं थी.. लेकिन उसके कसबे में एक बात प्रसिद्द थी – वो बाद बेबुनियाद भी हो सकती है – और वो यह की कुंदन ‘उतना मर्द’ नहीं था। उसको अपने बारे में यह बात सुनने में आती रहती थी। उसको गुस्सा भी आता था, लेकिन बेचारा क्या करता? बस, खून के घूँट पी कर रह जाता। 

इस अफवाह के कारण कई सारे सम्बन्धी नहीं चाहते थे की उनकी लड़की का रिश्ता कुंदन से हो जाय। कौन माँ बाप चाहेंगे की उनकी लड़की वैवाहिक सुख से वंचित रहे? किसी को न मालूम होता तो कोई बात नहीं, लेकिन जान बूझ कर कोई मक्खी तो नहीं निगलेगा न! अंजू उसके लिए एक आखिरी आस थी, लेकिन उसको भी होश नहीं आ रहा था। लेकिन आज जब अचानक ही नर्स सुषमा का फ़ोन आया, तो कुंदन की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं रहा! निश्चित सी बात है, अंजू का कोई भी रिश्तेदार जीवित नहीं है.. होता तो अब तक कोई इश्तेहार न दे देता? ढूँढने न आता भला? कुंदन के अकेलेपन के दिन बस समाप्त होने ही वाले थे।

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आज ऑफिस जाने का मन नहीं हुआ, इसलिए सवेरे ही बहाना बना कर घर में रुकने का प्लान कर लिया। लेकिन, सुमन को कॉलेज जाना ही था – उसका कोई बहुत ज़रूरी लेक्चर था, जिसको वो बिलकुल भी मिस नहीं कर सकती थी। खैर, मैंने ठान ही ली थी, की आज घर में बैठूँगा, और सुमन के लिए कुछ अच्छा सा पका कर उसको दोपहर बाद सरप्राइज दूंगा।

खैर, दोपहर के निकट मैं टीवी लगाए चैनल इधर उधर कर रहा था। टीवी देखने की आदत नहीं थी, लेकिन समय काटने के लिए कुछ तो करना ही था। सैकड़ों चैनल तीन चार बार इधर उधर करने के बाद नेशनल जियोग्राफिक चैनल पर रोक दिया – रोक क्या दिया, मेरी उंगलियाँ स्वतः रुक गईं। सामने टीवी स्क्रीन पर उत्तराखंड त्रासदी की एक डाक्यूमेंट्री चल रही थी। वो त्रासदी मेरे जीवन का सबसे बड़ा घाव थी – मेरे हाथ खुद ही रुक गए, और मैं देखने लगा। दिमाग कहीं और ही मंडरा रहा था। डाक्यूमेंट्री में क्या कहा जा रहा था, मुझे सुनाई नहीं दे रहा था – मेरा मष्तिष्क स्वयं ही सामने के चित्रों में कभी तो अथाह जलराशि की गड़गड़ जैसी आवाज़ भरता जा रहा था, तो कभी चोटिल व्यक्तियों की कराह की आवाज़! मन में तो हुआ की टीवी बंद कर दूं – लेकिन वो कहते हैं न, आदमी को अपने दुस्वप्नों से दो-चार होना चाहिए। और कुछ न हो, कम से कम तसल्ली तो मिल ही जाती है।

मैं टीवी बंद नहीं कर सका। बस – चित्र देखता गया। अचानक ही एक ऐसा चित्र आँखों के सामने आया जिसने मेरे ह्रदय की धड़कन कुछ क्षणों के लिए रोक दी। डाक्यूमेंट्री में एक अस्पताल का दृश्य दिखा रहे थे, जिसमे त्रासदी के शिकार लोग भरती किये गए थे। कैमरामैन ने अस्पताल के बड़े से हाल में अपना कैमरा एक कोने से दूसरे कोने तक चलाया था, लेकिन मुझे जो दिखा वो अत्यंत ही अकल्पनीय था। 

उस अस्पताल के एक बिस्तर पर रश्मि थी!!

कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगा। दृश्य में रश्मि लगभग निर्जीव सी बिस्तर पर लेटी हुई थी, नहीं – बैठी हुई थी। उसको एक नर्स ने पीछे से सहारा दिया हुआ, और सामने से एक और नर्स उसका कुछ तो मुआयना कर रही थी। एक क्षणिक दृश्य, एक झलक भर.. लेकिन मेरे दिलोदिमाग पर एक अमिट छाप लगाता हुआ! एकदम से रोमांच हो गया – शरीर से सारे रोंगटे खड़े हो गए। उत्तेजना में मेरी साँसे तेज हो गईं। 

‘क्या सचमुच रश्मि जीवित है? हे प्रभु! काश, ऐसा ही हो!’
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12-17-2018, 02:24 AM,
#99
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
अब मैं बहुत सचेत हो कर वो डाक्यूमेंट्री देखने लगा – हो सकता है पुनः दिखाएँ? लेकिन उस अस्पताल का दृश्य पुनः नहीं दिखाया गया। बीच में जब प्रचारों का समय आया तब मैंने डाक्यूमेंट्री का नाम नोट कर लिया। और वापस देखने लगा। अंत तक दोबारा वहां का दृश्य नहीं दिखाया गया। डाक्यूमेंट्री ख़तम होने पर मैंने कैमरामैन, फोटोग्राफर, निर्देशक और निर्माता समेत उस डाक्यूमेंट्री को बनाने में जितने भी सहयोगी थे, सबका नाम लिख लिया।

कुछ देर समझ ही नहीं आ सका की क्या करूँ! कहाँ से शुरू करूँ! कहीं ऐसा तो नहीं की पुराने दुःख के कारण मुझे रश्मि दिखी हो! या वो लड़की रश्मि न हो, कोई और हो? और फिर, सुमन ने भी तो देखा ही था न की रश्मि मर चुकी थी। सुमन से पूछूं? नहीं नहीं! वो बेचारी को फिर से उस बुरी घटना की याद दिलाना बिलकुल ही गलत होगा। वैसे भी वो कितना कुछ झेल चुकी है। नहीं नहीं! सुमन से नहीं।

मैंने जल्दी से लैपटॉप में इन्टरनेट चला कर नेशनल जियोग्राफिक की वेबसाइट खोली, और उनके कॉर्पोरेट ऑफिस कॉल लगाई। अगले एक घंटे तक मैंने एक के बाद एक कई सारे लोगों से वहां बात करी, और सिलसिलेवार तरीके से उनको अपनी आप बीती सुनाई। अंततः, वहां ले एक बड़े अफसर ने मुझसे मिलने का वायदा किया और उसने अपना फ़ोन और ईमेल भी दिया। मैंने झटपट उसके ईमेल पर रश्मि की तस्वीर के साथ, उस डाक्यूमेंट्री का पूरा विवरण लिख कर भेज दिया। सुमन के घर आने से पहले मुझे उनका कॉल आया की उन्होंने डाक्यूमेंट्री देखी है, लेकिन उनको नहीं लगता की वो लड़की रश्मि है! क्योंकि ठीक से कुछ भी नहीं दिखा। लेकिन मैंने अपनी जिद नहीं छोड़ी। उन्होंने अंत में हार मान ली और डाक्यूमेंट्री बनाने वाली टीम से बात करने का वायदा किया। उन्होंने कहा की जो कुछ भी बन पड़ेगा, वो करेंगे। 

कुछ देर में सुमन आ गई। कोई और समय होता, तो मैं सांझ को पहली बार मिलने के अवसर में अगले दस मिनटों में सुमन के साथ गुत्थम-गुत्था हो चुका होता। लेकिन आज मैं काफी शांत बैठा हुआ था – कम से कम सुमन को तो ऐसा ही लगा होगा। लेकिन, मुझे अगले कुछ मिनटों में मालूम होने वाला था की मैं अपनी पत्नी के बारे में काफी कम जानता था – और वो मुझको मुझसे ज्यादा समझती और जानती थी। सुमन ने मुझसे क्या बाते करीं, मुझे याद नहीं, लेकिन वो अन्दर चली गयी। संभवतः चाय बनाने गयी होगी। 
मुझे नहीं मालूम की वो कब वापस आई और उसने क्या कहा – मेरी आँखें तो खुली हुई थीं लेकिन मन न जाने कितने ही कोसों दूर था। अचानक ही मुझे अपने चेहरे पर गरम साँसों और गालों पर नरम उँगलियों का स्पर्श महसूस हुआ। मैं एक झटके से वापस आया – सुमन मेरी आँखों में झाँक रही थी, मानों प्रयास कर रही हो की मेरे अन्दर क्या चल रहा था। वो प्रत्यक्ष मुस्कुराई, लेकिन वो चिन्तित थी। उसने कुछ कहा नहीं।

“जानू – कॉफ़ी!” उसने एक हाथ से मेरे गाल को छुआ, और उसके दूसरे में कॉफ़ी का मग था।

मैं उल्लुओं की भांति कभी उसकी तरफ तो कभी कॉफ़ी मग की तरफ देख रहा था। उसने फिर दोहराया, “कॉफ़ी..”

“ओह सॉरी! मैं किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था।“

उसने कुछ कहा नहीं। बस मेरी बगल आकर मुझसे सट कर बैठ गयी। हम दोनों ही शान्ति से कॉफ़ी पीने लगे। कॉफ़ी समाप्त होने के बाद सुमन ने अपना और मेरा मग सामने की टेबल पर रखा, और वापस आकर मेरी गोद में इस तरह बैठ गयी जिससे की उसकी दोनों टाँगे मेरे इधर उधर रहें। गोद में बैठे बैठे ही उसने अपनी पहनी हुई टी-शर्ट उतार फेंकी। अन्दर कुछ भी नहीं पहना हुआ था – कोमल पहाड़ियों के मानिंद उसके सुन्दर स्तन तुरंत ही स्वतंत्र हो कर मेरे सम्मुख हो गए।

इस बात का असर मुझ पर बहुत ही सकारात्मक पड़ा – उस मुद्रा में मेरा लिंग तुरंत ही खड़ा हो कर उसकी नितम्बों के मध्य की घाटी में अटक सा गया। हम दोनों ने ही इस समय पजामे पहने हुए थे, इसलिए सीधा कनेक्शन नहीं हो सका – लेकिन सुमन मेरे ऊपर पड़ने वाले अपने इस प्रभाव पर हलके से मुस्कुराई। उसने प्यार से मेरे गले में अपनी बाहें डाल दीं, और लिंग के ऊपर अपने नितम्बों को घिसने लगी। कुछ ही देर में मैंने भी देखा की मैं स्वयं भी हलके हलके अपनी कमर चला कर उसका साथ देने लगा था।

हम दोनों ने एक दूसरे का चुम्बन लिया। मैंने रह रह कर उसके होंठों, गालो, कन्धों और चूचकों पर चुम्बन लिया। इस बीच हम दोनों ही अपने अपने तरीके से तेजी तेजी घिस रहे थे। मेरा लिंग उत्तेजना के मारे फूल कर मोटा हो गया था।

थोड़ी देर में मैंने उससे कहा, “अगर मज़ा ही लेना है, तो ठीक से लेते हैं न...”

तो वो कुछ बोली नहीं, तो मैंने उसको अपनी गोद से उठाया और सामने खड़ा कर दिया। उसके बाद मैंने खुद उठा और अपना पजामा उतार दिया और फिर लगे हाथ सुमन का पजामा भी उसके शरीर से अलग कर दिया। उसने शर्म से अपनी आँखें बंद कर ली। सुमन ने उस समय काले रंग की चड्ढी पहनी हुई थी। मैंने देखा की इतनी देर तक लिंग घिसने के कारण चड्ढी का नरम नरम कपड़ा उसके नितम्बों की दरार में अन्दर घुस गया था। 

मैंने जब उसके चूतड़ों को सहलाया, वो एकदम से कांप गयी। मैंने उसके चूतड़ों को कुछ देर तक सहला कर तीन चार बार दबाया और उसको कमर से खींच के फिर से अपने लिंग पर बैठा लिया। पहली ही बार की तरह इस बार भी सुमन अपनी कमर हिला रही थी। मैं उसी के ताल में उसकी नंगी जांघों को सहलाने लगा। एकदम चिकनी जाँघें – मक्खन के जैसी! कुछ देर ऐसा ही करने के बाद मैंने एकदम से उसकी चड्ढी को पकड़ा और घुटनों तक खींच दिया। मैंने एक हाथ से अपने लिंग को साधा, और दूसरे से सुमन को फिर से अपनी गोद में बैठा लिया। उस समय मेरे लिंग के उसकी नग्न गुदा के स्पर्श से मुझे मन में आया की क्यों न गुदा मैथुन किया जाय? एक अजीब सा वासना पूर्ण अहसास था वो। मैंने अपने हाथों से उसके चूतड़ों को चौड़ा किया और उनके मध्य अपने लिंग को बैठाया। 

“जानू.. जानू! उसमे नहीं! आपका बहुत मोटा है.. मर जाऊंगी मैं..”सुमन ने मिन्नत करी। 
सचमुच! ध्यान ही नहीं रहा!

“ठीक है.. लेकिन, कभी ट्राई करते हैं!”

“हाँ.. लेकिन आज नहीं! प्लीज!”

“ओके” मैंने कहा और उसको लिटा कर, अपना मुँह उसकी योनि पर रख दिया। लोग उत्तेजित योनि को ‘पाव रोटी’ की उपमा देते हैं.. मुझे यह पसंद नहीं आता। मुझे उत्तेजित योनि को मालपुए की उपमा देनी अच्छी लगती है। मालपुआ रसीला, और मीठा होता है। सुमन की योनि भी उसी तरह की हो रही थी। अब मेरा भी लिंग उत्तेजना के बल को सहन नहीं कर पा रहा था। लेकिन फिर भी फोरेप्ले तो करना होता ही है न! मैं अपनी जीभ उसकी योनि के भीता डाल कर अन्दर के स्वाद और वातावरण को महसूस कर रहा था, और उंगली से उसके भगनासे को छेड़ रहा था। सुमन उस शाम पहली बार स्खलित हुई। उसकी आवाजें अब कामुक सिसकारियों में बदल गई थी।

मैं फिर उसकी टाँगों के बीच आ गया। मैंने उसकी टाँगें उठा कर अपने कंधों पर रख ली और अपने लिंग को उसकी योनि के मुहाने पर टिका दिया। आप लोग उस दृश्य की कल्पना कर सकते हैं। सुमन की कुछ ऐसी हालत थी उसकी जांघें मुड़ कर लगभग क्षैतिज हो गयी थीं, और योनि लगभग ऊर्ध्व! मैंने तेजी से अपना लिंग उसकी योनि में डालना शुरु कर दिया। मैंने गुरुत्व के प्रभाव से सारा काम जल्दी हो गया। और फिर वही चिरंतन चली आ रही प्रक्रिया करने लगा। सुमन भी मस्त हो कर अपनी चुदाई का आनंद लेने लगी । मेरे होंठ उसके मुँह और होंठों को चूस रहे थे। करीब पंद्रह मिनट के बाद मैंने अपना वीर्य सुमन के अन्दर ही छोड़ दिया।

उस पूरे साहचर्य के दौरान मेरे मन में सिर्फ रश्मि की ही छवि घूम रही थी...

*************************

कुंदन आज अंजू को घर ले आया। नर्स सुषमा के कहने पर वह अंजू के लिए कपडे वगैरह खरीद कर ले आया था। उसकी बीवी होती तो कम से कम उसके कपडे इत्यादि तो रहते.. और उसको कुछ आईडिया भी होता की उसकी बीवी की नाप क्या है.. लेकिन आश्चर्य की बात थी की नर्स सुषमा को उसका यह अनाड़ीपन खटका नहीं.. उसने अपने मन में यह कह कर समझा लिया की संभव है की वो अपनी बीवी को नए कपडे पहनाना चाहता हो! यह भी हो सकता है की वो हद से अधिक शर्मीला हो। सुषमा ने ही अंदाजे से उसको अंजू के अधोवस्त्रों की नाप बता दी, और उसको छेड़ा भी की कम से कम अपनी पत्नी का ठीक से जायजा तो लिया कर!

अंजू के लिए ब्रा और चड्ढी खरीदते समय कुंदन बहुत ही उत्तेजित हो गया था। अपनी समझ से उसने बेहद सेक्सी लगने वाली गुलाबी सी ब्रा और उसकी मैचिंग चड्ढी खरीदी थी। और गुलाबी ही रंग के शेड का शलवार सूट भी। एक मैक्सी भी खरीद ली, यह सोच कर की वो घर में क्या पहनेगी! अंजू को देख कर उसको लगा था की वो उम्र में उससे कुछ बड़ी है, लेकिन उसको इस बात की कोई परवाह नहीं थी – अगर बड़ी होगी तो होती रहे! बालिग़ तो अब वो खुद भी है! खैर, वो अस्पताल पहुंचा, और सभी ज़रूरी कागजों पर दस्तखत कर के अंजू को लिवा लाया।

आज अंजू को उसने पहली बार होश में देखा था – बेहोशी की हालत में भी वो अति सुन्दर लगती थी, लेकिन इस समय वो सचमुच की अप्सरा लग रही थी। उस नितांत कमजोरी की हालत में भी। अंजू ने जब कुंदन को देखा तो उसके चेहरे पर न तो ख़ुशी के भाव थे, और न ही दुःख के। वो दरअसल अपने पति को पहचान ही नहीं पाई। नर्स सुषमा ने जब दोनों को ऐसे ‘हिचकिचाते’ हुए देखा, तो प्रसन्न भाव से बोली, “कोई बात नहीं.. घर जा कर आराम से मिलना!” उसने अपने हिसाब से दो बिछड़े हुए प्रेमियों को मिला दिया था और यही सबसे बड़े पुण्य की बात थी। 

डॉक्टर संजीव ने कुंदन को सख्त हिदायद दी थी की अंजू से घर के काम न कराये जांए, और उसको आराम करने दिया जाय। वो अभी भी काफी दुर्बल थी, और कम से कम एक महीना लगेगा उसको वापस अपनी ताकत पाने के लिए। उन्होंने उन दोनों को यह भी कहा था की वो दोनों यदि हो सके तो अगले दो सप्ताह शारीरिक सम्बन्ध न बनायें.. अभी वह सब झेलने की दशा में नहीं थी अंजू। अस्पताल में सबकी नज़रों में दोनों पति-पत्नी थे, इसलिए ऐसी बाते आराम से करी जा सकती थीं। दवाइयाँ इत्यादि समय पर लेते रहें.. और ऐसी ही कई सारी बातें। 

खैर, कुंदन अंजू को घर ले आया। कसबे में आते हुए वो बहुत चौकन्ना था की कोई देख न ले की वो किसी लड़की को घर ला रहा था। कोई देखता तो हज़ार सवाल पूछते – कौन है, कहाँ से आई है इत्यादि इत्यादि! और वो उनसे झूठ नहीं कह सकता था, क्योंकि वहां सभी को मालूम था की कुंदन की शादी ही नहीं हुई है, तो उसकी बीवी कहाँ से आ जाएगी! उसकी तेज किस्मत कहिए, की जिस समय वो अपने घर आया, उस समय सड़क पर और आस पास कोई भी नहीं मिला। वो जल्दी से अंजू समेत अपने घर में घुस गया, और अन्दर से किवाड़ लगा ली।

वो एक पुराने पहाड़ी तरीके का घर था – जिसमे कुछ फेरबदल कर के आधुनिकीकरण कर लिया गया था। एक कमरा था, एक खुला हुआ सा रसोईघर, उसके बिलकुल विपरीत दिशा में स्नानघर और शौचालय था। एक हाल और एक अहाता जैसा बना दिया गया था। पत्थर, लकड़ी जैसी सामग्री से बना हुआ घर बाहर से पहाड़ी घर दिखता था, लेकिन अन्दर से बिजली और खड्डी स्टाइल के शौच की व्यवस्था थी। 

“अंजू... रर रानी..” कुंदन ने अटकते हुए कहा, “तु तुम.. नहा लो.. अगर चाहो तो..”

अंजू को तो इस समय कोई भी अजनबी लगता। लेकिन यह सामने खड़ा व्यक्ति उसका पति था, ऐसा नर्स सुषमा ने उसको बताया था। इसलिए इस व्यक्ति से कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। लेकिन फिर भी वो संयत नहीं थी। उसने महसूस किया की उसका पति भी संयत नहीं है।

“ज जी!” कह कर उसने कुंदन की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि डाली।

“ओ ओह! बाथरूम उधर है.. सब भूल गई?” उसने खींसे निपोरी।

अंजू ने भी खिसियाई हुई मुस्कान डाली! 

‘ओ भगवान! कितनी सुन्दर सी मुस्कान है इसकी! हे बाबा केदार.. हे बद्री विशाल! आपका बहुत बहुत धन्यवाद!’ कुंदन ने मन ही मन अपने सारे इष्टों को धन्यवाद किया।

“नहा लो.. तुम्हारे पुराने कपडे सब खराब हो गए थे.. जल्दी ही और नए कपड़े खरीद लूँगा तुम्हारे लिए..”

अंजू ने हामी में सर हिलाया। वो एक क्षण को हिचकिचाई, फिर कुंदन के सामने ही मुँह फेर कर अपने अस्पताल वाले कपड़े उतारने लगी (नर्स सुषमा ने कुंदन को कहा था की जब वो वापस अस्पताल आये, तो वो कपडे लेता आये)। कुछ ही देर में पूर्ण नग्न अंजू का पृष्ठ भाग कुंदन के सामने था। हाँलाकि अंजू के कमज़ोर शरीर से हड्डियाँ कुछ कुछ झाँक रही थीं, लेकिन उतना दृश्य ही कुंदन के लिए पर्याप्त था। उसका लिंग तुरंत ही तनावग्रस्त हो गया। वो अनिश्चित हालत में अंजू की तरफ बढ़ा, लेकिन उसी समय अंजू स्नानघर की तरफ चल दी। 

जब स्नानघर का दरवाज़ा बंद हो गया, तो कुंदन ने अपनी पैंट के सामने गीलापन महसूस किया – उसके लिंग ने वीर्य उगल दिया था। वो शर्मसार हो गया – कैसी छीछालेदर! क्या लोग सच कहते हैं? उसके मन में एक क्षण शंका हुई.. फिर उसने उस शंका को मन से निकाल दिया – पहली बार उसने एक लड़की इस हालत में देखी थी.. ऐसे तो किसी का भी निकल जाता.. उसने झटपट से अपनी पैंट उतार दी। फिर उसके मन में ख़याल आया की क्यों न आज वो नंगा ही रह ले.. क्या पता अंजू को भी नंगी रहने के लिए पटा सके? अपने इस विचार पर उसको बहुत आनंद आया – उसने झटपट अपनी जांघिया उतार दी।


जब अंजू नहा चुकी, तो उसने पाया की नहा कर पहनने वाले कपडे तो वो लाई ही नहीं। कुछ असमंजस के बाद उसने अपने पति को आवाज़ लगाई,

“सुनिए..?”

बाहर कुंदन नंगा खड़ा हुआ था – क्या वो अंजू को पसंद आएगा? वो उसको देख कर ‘डर’ तो नहीं जायेगी? वह यह सोच ही रहा था की अन्दर से अंजू की आवाज़ आई।

“ह हाँ?” कुंदन अचकचा गया। 

“मेरे कपडे..”

“बाहर आ जाओ..” उसने कहा, फिर अपनी शैतानी स्कीम के अंतर्गत उसने कहा, “तुम वैसे भी घर में ऐसे ही रहती हो..”

‘ऐसे रहती हूँ? नंगी? अच्छा!’ अंजू ने सोचा। 

कुंदन ने देखा की कुछ देर में स्नानघर का दरवाज़ा खुला, और पूर्ण नग्न अंजू बाहर निकली! वो उसको देखता ही रह गया...

‘ओह प्रभु! यह तेरी कैसी कलाकृति है! इतनी सुन्दर! कैसे सुन्दर स्तन! 

अंजू ने देखा की कैसे उसका पति उसको प्यासी दृष्टि से देख रहा है.. वो हलके से मुस्कुरा दी। नर्स सुषमा ने बताया था की वो महीनो से बेहोश पड़ी है.. इतने दिनों तक कैसे इस बेचारे ने जीवन व्यतीत किया होगा! उसकी दृष्टि अपने पति के जनन क्षेत्र पर पड़ी। 

“इधर आओ..” अंजू ने कुंदन को कहा।

कुंदन यंत्रवत उसकी तरफ चल दिया। अंजू वही रखे पीठे पर बैठ गई।

“अभी कुछ दिन सब्र कर लो.. लेकिन तब तक..” उसने अपने स्तन की तरफ इशारा किया, “आपको दूध पिलाती हूँ..”

अंजू की कही हुई बात कुंदन को मिश्री जैसी मीठी लग रही थीं। कहाँ तो एक लड़की मिलनी दुश्वार थी, और कहाँ आज ऐसी बला की खूबसूरत लड़की के रसीले स्तनों का पान करने को मिलेगा! इस विचार के साथ ही कुंदन को लगा की जैसे वो गलत कर रहा है – वो लड़की उसको अपना पति समझ कर यह सब कर रही थी। लेकिन वो जान बूझ कर उसका फायदा उठा रहा था। लेकिन कुंदन ने अपने मन को यह कह कर समझा लिया की बाद में वो अंजू को समझा देगा। फिलहाल तो ये मीठे मीठे दूध पिए जांए!


“सुनिए...?” अंजू की आवाज़ दोबारा सुन कर कुंदन की तन्द्रा टूटी! 

‘ओ तेरी! ये तो सपना था!’ यह सोच कर उसने आवाज़ की दिशा में देखा। अंजू स्नानघर के दरवाज़े की ओट से झांकती हुई उसी की तरफ देख रही थी। 

“क क्या?”

“जी मुझे कपड़े दे दीजिए पहनने के लिए..”

“अच्छा..” कह कर जब वो उठा, तो उसने देखा की वो कमर के नीचे पूरी तरह नंगा था। 

‘धत्त तेरे की..’ वो नंगा होते ही लगता है सपना देखने लगा था! एक पल को वो हाथों से अपने छुन्नू को छुपाने को हुआ, लेकिन फिर रुक गया – बीवी से क्या छुपाना?

अपने पति को ऐसे अपने सामने नंगा घुमते हुए देख कर उसको थोड़ी सी शर्म आई, और हंसी भी! बेर के आकार के अंडकोष, और छुहारे के जैसा लिंग! दिखने में भी, और आकार में भी! अंजू को कहीं याद आया की लड़को का ऐसा होता है.. उसको नहीं मालूम था, की आदमियों का भी ऐसा ही होता है। या कहीं, उसका पति अभी लड़का ही तो नहीं? अगर ऐसा है, तो उसकी खुद की उम्र क्या है?

कुंदन अन्दर कमरे में जा कर अंजू की मैक्सी ले आया। फिर उसको एक शैतानी सूझी,

“यहाँ बाहर आ कर ले लो..”

“दीजिए न..”

“नहीं.. आज तो बाहर आ कर ही लेना पड़ेगा..”

अंजू ने उसको कुछ देर देखा, फिर वापस अन्दर हो कर उसने स्नानघर का दरवाज़ा बंद कर लिया।

‘ओये! ये क्या हो गया..’
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12-17-2018, 02:24 AM,
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
फिर कुछ देर बाद जब दरवाज़ा खुला, तो अंजू अपने सीने पर अंगौछा लपेटे बाहर निकली। अंगौछा गीला था, और उसके शरीर पर पूरी तरह से लिपटा हुआ था। और चूंकि उसकी लम्बाई और चौड़ाई बहुत बड़ी नहीं थी, इसलिए वो अंगौछा अंजू का शरीर छुपा कम और दिखा अधिक रहा था। कुंदन को वह दृश्य बहुत पसंद आया। अंजू के उस रूप का अनुमोदन (approval) उसके छुन्नू ने अपना छुहारे वाला रूप छोड़ कर, भिन्डी जैसा रूप धारण कर के किया। अंजू ने देखा की उसके पति का लिंग उसकी मध्यमा उंगली के जितना ही लम्बा, और बस मुश्किल से कोई दो गुना मोटा था। 

न जाने क्यों उसको हलकी सी निराशा हुई। उसको निराशा क्यों हुई? कहीं न कहीं उसके मन में ऐसा विचार आया था की उसके पति के जननांग बहुत पुष्ट होंगे। और उसका पति बहुत ही दृढ़ शरीर और व्यक्तित्व का मालिक होगा.. लेकिन कुंदन ऐसा नहीं था। ऐसे विचार उसको क्यों आ रहे थे जैसे कुंदन उसका पति न हो? लेकिन, उसको कुछ याद ही नहीं और सभी तो यही कह रहे हैं की कुंदन ही उसका पति है.. उसी ने उसको बचाया था।

“अब दीजिए...” 

कुंदन क्या करता भला? उसने अंजू को उसकी मैक्सी दे दी। 

“अच्छा, मैं आपसे एक बात पूछूँ?” अंजू ने अपने बाल सुखाते हुए कहा।

“एक क्या? जितना मन करे उतना पूछो!”

“नहीं.. आपको लग सकता है की मैं कैसी फालतू बातें कह रही हूँ, और पूछ रही हूँ...”

“नहीं नहीं.. ऐसा कुछ भी नहीं.. पूछो न?”

“आपकी उम्र कितनी है?”

कुंदन को फिर शरारत सूझी, “सोलह साल..” 

‘ओह! तो मेरा ख़याल सही था...’ अंजू ने सोचा।

“और मेरी..?”

“इक्कीस साल..”

“सही में? मैं आपसे पांच साल बड़ी हूँ?”

“और क्या!” 

कुंदन ने उसको और कुरेदा, “तुमको क्या लगा की मैं कितना बड़ा हूँ?”

“मुझे लगा की पंद्रह सोलह के होगे!”

“हैं! वो कैसे?” कुंदन को वाकई आश्चर्य हुआ!

“वो कैसे क्या? आपके अंडे और छुन्नू, लड़के जैसे ही तो हैं अभी..”

अंजू की बात पर उसको अचानक ही बेहद गुस्सा आया, “इसी छुन्नू से मैंने तुझे गाभिन किया था..” वो गुस्से से बोला।

“आप गुस्सा क्यों हो गए? मैंने कब मना किया इस बात से? बिलकुल किया था आपने! वो नर्स बता रही थीं.. की हमारा बच्चा..” कहते कहते अंजू की आँख में पानी आ गया। 

“आई ऍम सॉरी.. मेरा मतलब.. मुझे माफ़ कर दो!”

“नहीं! आप माफ़ी मत पूछिए... पति का आदर करना चाहिए.. मैंने गलती करी है.. आप मुझे माफ़ कर दीजिए!”

“अरे! अब माफ़ी वाफी छोड़ो.. और जल्दी से कपड़े बदल लो...”

कुंदन की बात पर अंजू कुछ देर चुप रही.. वो फिर से हिचकिचा रही थी..

“क्या हुआ?”

“कपड़े पहनने हैं..”

“तो पहनो न?”

“आपके सामने?”

“हाँ! क्यों क्या हो गया?”

अंजू लेकिन चुप ही रही।

“अरे मुझसे क्या शरमाना? मैं तो तुमको नंगा देखता ही रहता हूँ..” कुंदन ने उत्तेजित और भर्रायी हुई आवाज़ में अंजू को छेड़ा।

“धत्त झूठे..”

“अरे मैं झूठ क्यों कहूँगा? तुम तो मुझे देखते ही अपना कुरता उतारने लगती हो!”

“अच्छा जी! वो क्यों भला?”

“मुझको दूध पिलाने के लिए..”

अंजू इस बात पर एकदम से गंभीर हो गयी। 

“सच में?”

“सोलह आने सच!”

अंजू ने मैक्सी वहीँ ज़मीन पर फेंकी, और अंगौछे को अपने सीने से हटाते हुए सामने पड़ी खटिया की तरफ बढ़ी। खटिया पर बैठते बैठते अंजू पूरी तरह से नंगी हो चली थी। 

“इधर आओ..” अंजू ने कुंदन को कहा।

कुंदन ने अंजू के स्तन देखे, तो उसको बाकी कुछ भी दिखना बंद हो गया... वो यंत्रवत उसकी तरफ चल दिया।

अंजू ने अपने स्तन की तरफ इशारा किया, “...आपको फिर से अपना दूध पिलाती हूँ..”

अंजू की कही हुई बात कुंदन को मिश्री जैसी मीठी लग रही थीं। कहाँ तो एक लड़की मिलनी दुश्वार थी, और कहाँ आज ऐसी बला की खूबसूरत लड़की के रसीले स्तनों का पान करने को मिलेगा! इस विचार के साथ ही कुंदन को लगा की जैसे वो गलत कर रहा है – वो लड़की उसको अपना पति समझ कर यह सब कर रही थी। लेकिन वो जान बूझ कर उसका फायदा उठा रहा था। लेकिन कुंदन ने अपने मन को यह कह कर समझा लिया की बाद में वो अंजू को समझा देगा। फिलहाल तो ये मीठे मीठे दूध पिए जांए!

एक पल को कुंदन को लगा जैसे सपने वाली बात एकदम सचित्र हो गयी! अगर सपने इतनी जल्दी सच होते हैं, तो वो और देखेगा! यह छलकता हुआ सौन्दर्य, ऐसा मीठा आमंत्रण! कुंदन अंजू के पास पहुंचा, और उसके दाहिने स्तन के एक निप्पल को अपने मुँह मैं ले कर चूसने लगा और दूसरे स्तन को सहलाने लगा! जाहिर सी बात है की एक वयस्क आदमी, स्तनों को अलग तरीके से चूसेगा - ख़ास तौर से तब, जबकि उसको अपने जीवन में पहली बार ऐसे सुन्दर स्तन देखने और भोगने को मिले हों!

"आराम से बाबा.. यह आपके लिए ही तो हैं! जितना मन चाहे, उतना चूसो..." अंजू ने कुंदन के सर को प्यार से सहलाते हुए कहा। 

कुंदन बारी बारी से अंजू के दोनों स्तनों को चूसता रहा।

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रात का खाना कुंदन ने ही बनाया – अंजू काफी थक गयी थी, और क्योंकि डॉक्टर ने आराम करते रहने की सख्त हिदायद दी थी, इसलिए कुंदन अपना पति-धर्म (यानि की आराम से बैठना, जब पत्नी खाना पका रही हो, और फिर सम्भोग कर के सो जाना) निभा नहीं पाया। अंजू कुछ ढंग से खा नहीं सकी – एक तो खाना बेस्वाद बना था, और ऊपर से दवाइयों, और लम्बे कोमा के प्रभाव से उसको खाने से अरुचि सी हो गयी थी। खाना और दवाइयाँ खा कर अंजू सो गयी; तो उसके साथ कुंदन को भी झक मार कर लेटना पड़ा। पहली बार एक स्त्री के साथ रात बिताने की उत्तेजना में उसके लिंग ने अनायास ही वीर्य थूक दिया। लेकिन फिर भी कुंदन को उम्मीद थी, की उसकी यह हालत जल्दी ही ठीक हो जायेगी – अब क्योंकि अंजू भी उसके साथ है!

आज अंजू पहली बार कोमा के प्रभाव से पूरी तरह से बाहर आ कर सो रही थी। नींद बहुत गहरी आई – और नींद में बड़े ही विचित्र से सपने भी! सपनो ने ऐसे ऐसे स्थानों और ऐसे वस्तुओं के दृश्य थे, जो उसने अपने जीवन में पहले कभी भी नहीं देखे थे – अथाह समुद्र, रेतीला बीच, समुद्र की गहराइयाँ, बहुत ही घना बसा शहर और उसके अनगिनत दृश्य, एक आलीशान सा घर.... और इन सभी दृश्यों में परिलक्षित होता एक पुरुष! और सिर्फ यही नहीं... वह पुरुष उसके सपनो में सुस्पष्ट रूप से दिख रहा था – कभी इस वेश में, तो कभी किसी और... और तो और कभी कभी नग्न भी! दो तीन दृश्य तो उसने उस पुरुष के साथ सम्भोग के भी देखे! कौन है वो? उसने सपने में ही अपने दिमाग पर जोर डाला! लेकिन निद्रा ने विवश कर के रखा हुआ था। और भी लोग दिखे – एक लड़की.. “नीलू!” उसके दिमाग में कौंधा!

कुंदन उथली नींद में सो रहा था की अचानक उसने अंजू को ‘नीलू नीलू’ पुकारते सुना! वो जाग गया।

‘नीलू कौन?’ उसने सोचा! कहीं यह अंजू का असली नाम तो नहीं? या उसकी किसी सहेली का? तो क्या अंजू को अपनी भूली हुई याद-दाश्त वापस मिलने लगी? बेटा! जल्दी कुछ कर.. नहीं तो ये लड़की जायेगी हाथ से! और कुछ इस्धर उधर हो गया, तो पिटाई भी हो सकती है! उसने कुछ देर और इंतज़ार किया, लेकिन अंजू ने कुछ और नहीं कहा.. उसको कब नींद आई, उसको खुद ही नहीं पता चला।
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