Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:30 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मैने रेहाना को आवाज़ देकर उसके लिए नीबू-पानी लाने को कहा, नीबू पानी पीकर उसको कुछ अच्छा लगा, फिर खाना खिलाया.

उस रात थकान की वजह से मे जल्दी ही सो गया था, रात को शाकीना मेरे पास आई, और आकर मेरे पास बैठ गयी, जब उसने मुझे हिलाया तो मे उठ गया और उसको अपने पास सुला लिया. 

वो आगे बढ़ना चाहती थी लेकिन उसकी कमजोर हालत देख कर मैने उसे मना कर दिया और कल उसी झरने पर चलने का प्रोग्राम बना कर उसे अपने साथ सटा कर सो गया.

पता नही वो कितने बजे मेरे पास से चली गयी, जब सुबह मेरी आँख खुली तो मे अकेला ही था.

दूसरे दिन मे उसके साथ जानवरों को लेकर निकल गया झरने के किनारे और अपने- 2 कपड़े निकाल कर बिछावन पर रख दिए. 

मे मात्र अंडरवेर में था, और शाकीना ब्रा और पेंटी में.

आज उसको कपड़े निकालने में झिझक महसूस नही हुई और मेरे साथ पानी में उतर गयी.

हम दोनो तैरते और एक दूसरे से छेड़खानी करते हुए झरने तक पहुँचे और उसके सफेद दूधिया पानी का लुफ्त लेने लगे.

मैने झरने के नीचे शाकीना को पीछे से अपनी बाहों में कस लिया, वो भी मेरे लंड से अपनी गोल-2 उभरी हुई छोटी सी गान्ड सटा कर चिपक गयी.

मे उसके गालों को किस करते हुए उसकी गोल-2 अविकसित चुचियों को मसल रहा था, उसके बदन को सहलाते-2 जब मेरा एक हाथ उसकी चूत पर गया तो मैने उसे पेंटी के उपर से ही मसल दिया.

वो सीत्कार कर उठी… सीईईई….आहह….उफ़फ्फ़.. और अपनी टाँगें भींच ली.

उसकी ब्रा के हुक खोल कर पानी से दूर फेंक दिया और उसको अपनी ओर घुमाकर उसके होठों को चूसने लगा, मेरे हाथ उसकी चुचियों को आकार देने में लगे हुए थे.

वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी, और मेरे निचले होठ को अपने होठों के बीच दबाकर चूसने लगी.

फिर मैने उसकी गान्ड को उसी पत्थर पर लॅंड करा दिया और उसकी पेंटी भी निकाल कर उसकी ब्रा के पास फेंक दी.

उसकी चूत आज कुछ फूली सी दिख रही थी, जो होंठ उस दिन आपस में जुड़े हुए थे, आज थोड़ी सी जगह बनाए हुए थे. 

मैने अपनी पूरी जीभ को एक बार उसकी चूत पर फिराया, उसकी आँखें बंद हो गयी और आआहह…. सीयी… निकल गयी उसके मुँह से….

एक बार उसकी चूत को चूस-2 कर मैने झाड़ दिया, अपना अंडरवेर उतार कर उसको लंड चूसने को कहा, उसने मेरा लंड मुँह में ले लिया और मज़े ले लेकर उसे चूसने लगी,

वो कभी-2 मेरे अंडों को भी मुँह में लेकर चूसने लगती तो मेरे मुँह से भी आआहह… निकल जाती.

धीरे-2 उसको लंड चूसने का अनुभव होता जा रहा था, अब वो मेरी आँखों में देखती हुई लंड चूस रही थी.

उसके मुँह की गर्मी मे ज़्यादा देर नही झेल पाया और उसके सर को अपने लंड पर दबा कर उसके मुँह को ही चोदने लगा.

उसके मुँह से लार निकल-2 कर उसके मम्मों को गीला कर रही थी. अंत में मुझसे बर्दास्त नही हुआ और उसके मुँह में ही झड गया.

वो पहली बार वीर्य टेस्ट कर रही थी, सो जैसे ही मेरा वीर्य उसके मुँह में गया उसने मेरा लंड बाहर निकालना चाहा लेकिन मैने उसका मुँह अपने लंड पर ही दबाए रखा, जब तक कि पूरी तरह नही झड गया.

मजबूरी में उसको वो सब पीना पड़ा, लेकिन जैसे ही मैने अपना लंड बाहर निकाला, उसको भी टेस्ट अच्छा लगा और उसने मेरे लौडे को चाट-2 कर चम्का दिया….!

हम फिर से झरने के नीचे आ गये और एक दूसरे के अंगों से खेलते हुए झरने के पानी का मज़ा लेने लगे….

हमारी उत्तेजना एक बार फिर से भड़कने लगी….

मे उसको गोद में उठाए उस पत्थर पर बैठ गया, और उसकी चूत को अपने लंड पर रखवा कर उसकी कमर से पकड़ कर अपनी ओर खींचा, लंड आधा चूत में घुस गया, उसके मुँह से दर्द भरी आहह.. निकल पड़ी.

मैने उसको किस करते हुए उसके निप्पलो को मरोड़ दिया, उसने मज़े और दर्द में अपनी बाहें मेरे गले में लपेट दी और अपनी कमर को एक तेज झटका दिया, जिससे पूरा लंड उसकी चूत में समा गया.

आहह….अम्मिईिइ….. उफफफफ्फ़….मारीई…हाईए…अल्लहह…

उसने अपनी कमर को उपर किया, अभी वो आधा ही लंड बाहर निकाल पाई थी कि मैने अपनी एक उंगली उसकी गान्ड के छेद में डाल दी.

गान्ड को सिकॉड़ते हुए उसने फिर से अपनी कमर मेरी ओर की, तो फिर से पूरा लंड अंदर सरक गया, उत्तेजना और मस्ती में उसने मेरे कंधे में अपने दाँत गढ़ा दिए.

मेरी चीख उबल पड़ी और अपनी पूरी उंगली उसकी गान्ड में पेल दी.

उत्तर में उसने मेरे दोनो कान पकड़ लिए और मेरे होठों को मुँह में भर कर चूसने लगी और अपनी कमर को तेज़ी से आगे-पीछे करने लगी.

मेरे कंधे में अभी भी जलन हो रही थी, मैने उसकी गान्ड पर एक थप्पड़ मारते हुए कहा- साली जंगली बिल्ली काटती है..

वो मेरे होठ छोड़कर मेरी आँखों में देखती हुई स्माइल करते हुए बोली- आपकी उंगली कहाँ है.. हन ! दूसरों की फिकर नही करोगे तो कुछ तो भुगतना पड़ेगा ना.

ऐसी ही मस्ती भरी चुदाई कुछ देर चलती रही, फिर मैने उसको नीचे उतरने को कहा और पत्थर पर हाथ टिका कर उसको घोड़ी की तरह झुका दिया.

उसकी मस्त गोल-मटोल गान्ड को मुँह में भर कर चूसने लगा, फिर जीभ से उसके दोनो छेदों को बारी-2 से चाटा. उसकी सिसकियाँ बदस्तूर जारी रही.

जब मैने उसकी गान्ड के छेद पर अपनी जीभ लगाई, तो उसका छेद खोल-बंद होने लगा. 

उसकी चूत में सुरसुरी बढ़ रही थी और अनायास ही उसका हाथ अपनी चूत को सहलाने लगा.

मैने उसके पीछे खड़े होकर अपना लंड उसकी चूत के छेद पर सेट किया और एक करारे झटके से पूरा अंदर डाल दिया…!

आअहह…..सीईईई…धीरीए…. मेरिइइ….जाअंणन्न्….हइई…उफफफ्फ़..

और जल्दी ही उसका दर्द मस्ती बढ़ने लगा और वो और ज़ोर-2 से गान्ड हिलाने लगी.. पीछे से मेरे धक्के पूरी ताक़त से लग रहे थे…

बड़ी गरम लौंडिया थी शाकीना… पूरी ताक़त से अपनी गान्ड को मेरे लंड पर पटक-2 कर चुद रही थी.

15 मिनट की धमाकेदार चुदाई के बाद हम दोनो ही एक साथ झड गये और उसी पत्थर पर उसे गोद में बिठा कर सुसताने लगा. 

उसके बाद थोड़ी देर और झरने के नीचे खड़े होकर नहाए फिर तैरते हुए बाहर आ गये.
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12-19-2018, 02:30 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
जानवरों की हमें कोई फिकर ही नही थी. नंगे ही बैठ कर हम दोनो ने कुछ खाया जो घर से लेकर आए थे, फिर मैने अपना गीला ही अंडरवेर पहना और जानवरों को एक बार इकट्ठा किया.

उसके बाद मैने दो बार शाकीना को और जमके चोदा, जब वो पूरी तरह संतुष्ट हो गयी, तब तक शाम भी घिरने लगी थी तो हम घर की ओर लौट लिए.

जानवरों के पीछे-2 हम एकदुसरे से सटके चल रहे थे, रास्ते में छेड़-छाड़ करते हुए हम घर की ओर आ रहे थे. 

सूरज पश्चिम की ओर बढ़ते हुए धरती से विदा हो रहा था.

अभी हम घर पहुँचे ही थे, कि रेहाना भागती हुई बस्ती की तरफ से आई, उसकी साँसें चढ़ि हुई थी. 

दौड़ते हुए वो मेरी ओर आई और मेरे सीने से लग कर सुबकने लगी.

मैने जब कारण पुछा तो वो बोली- व्व..वो..फ़ौजी रहमत को उठा ले गये…!

मैने चोन्कते हुए कहा- क्या…? क्या कहा तुमने..? 

वो- हां ! और साथ में कई और लड़के, लड़कियाँ भी हैं..!

मे - लेकिन ये हुआ कैसे..?

वो - हम बाज़ार में समान खरीद रहे थे, कि तभी वहाँ गोलियों की आवाज़ गूँज उठी, हमने मूड के देखा तो वो 5-6 फ़ौजी एक जीप में थे, 

उन्होने पहले हवा में गोलियाँ चलाई, फिर 4 लोग नीचे उतरे, और लोगों के साथ मार-पीट करने लगे, औरतों के साथ छेड़-छाड़ करने लगे.

कुछ लोगों ने विरोध करना चाहा तो उन्हें खूब मारा और जीप में डाल कर ले गये.

मे - कितने लोगों को ले गये हैं…?

वो - रहमत समेत 3 आदमी हैं और 2 लड़कियाँ हैं.

मे - तुम्हें पता है वो किधर को गये हैं.. और कितनी दूर पहुँचे होंगे..?

वो - हाँ ! अभी वो 2-3 किमी ही पहुँच पाए होंगे.

मे - चलो फटाफट, मेरे साथ..!

शाकीना - मे भी चलती हूँ आप लोगों के साथ…!

मे - नही ! तुम यहीं अपनी अम्मी को सम्भालो..!

मैने बाइक उठाई और रेहाना को पीछे बिठाया और दौड़ा दी उधर को जिधर जीप गयी थी.

रास्ता खराब था तो जीप ज़्यादा तेज नही भाग सकती थी, लेकिन मेरी बाइक भाग सकती थी. 

अभी हम कोई 8-9 किमी ही आए थे कि हमें जीप से उड़ने वाली धूल उड़ती दिखाई दी.

हम दोनो ने अपने-2 चेहरे कपड़ों से ढक लिए थे. करीब आधे मिनट के बाद ही हम जीप के पीछे थे. 

मैने बाइक की स्पीड कम कर दी जैसे ही जीप मेरी गन की जड़ में आई, मैने स्पीड को जीप के बराबर कर दिया और रेहाना को हॅंडल पकड़ने को कहा.

वो भी साइकल तो चला ही लेती थी, इस समय स्पीड भी कम ही थी सो उसको बाइक का हॅंडल कंट्रोल करने में कोई विशेष दिक्कत नही हुई.

4 फ़ौजी पीछे की साइड में हाथों में राइफल्स लिए खड़े थे, जिनका मुँह आसमान की ओर था, और वो आगे की ओर ही देख रहे थे.

पाँचों क़ैदी नीचे पड़े हुए थे शायद उनके हाथ पैर बाँध रखे होंगे..?

मैने दोनो हाथों से निशाना साधा और एक साथ 4 फाइयर किए, जिनका चूकने का तो सवाल ही पैदा नही होना था.

वो चारों फ़ौजी गोली लगते ही गिर पड़े, जिसमें से दो जो किनारे की तरफ थे वो ज़मीन पर गिर गये, और दो जीप के अंदर ही.
जैसे ही ड्राइवर और उसके बगल में बैठे फ़ौजी को गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी, उस बाजू वाले ने पीछे मूड कर देखा, तो उसके होश उड़ गये और उसने ड्राइवर को जीप रोकने को कहा.

ड्राइवर अभी जीप खड़ी भी नही कर पाया था कि उस 5वे फ़ौजी ने अपनी राइफल उठाई और खड़ा होकर एक लड़की को पकड़ कर उसको अपनी ढाल बनाने ही वाला था कि मेरी एक गोली उसकी खोपड़ी में सुराख बना चुकी थी.

ड्राइवर ने जब अपने आख़िरी साथी को भी जहन्नुम जाते देखा तो जीप रोकते-2 उसने उसे और स्पीड दे दी. 

मैने बाइक अब अपने कंट्रोल में ले ली और स्पीड देकर जीप के पास तक ले आया और सीट पर दोनो पैर रख कर बैठ गया.

रेहाना को हॅंडल थमा कर मैने जीप के अंदर छलान्ग लगा दी, और अपने आपको को बॅलेन्स करते हुए, ड्राइवर की गर्दन को पीछे से अपने बाजू में कस लिया.

जैसे ही ड्राइवर का दम घुटने लगा, ऑटोमॅटिकली उसका पैर ब्रेक पर दब गया और गियर में पड़ी जीप झटका खाकर रुक गयी.

उधर मैने जैसे ही बाइक से छलान्ग लगाई बाइक डिसबॅलेन्स हो गयी, रेहाना उसको संभाल नही पाई, और वो रोड साइड खड़ी झाड़ियों में जा घुसी.

उसके मुँह से एक चीख निकल गयी, लेकिन इसका मेरे पास कोई इलाज नही था.

जीप के रुकते ही मैने उस ड्राइवर को जीप से नीचे धक्का दे दिया और उसके उपर छलान्ग लगा दी, उसकी छाती पर चढ़ उसके गले को दबाने लगा.

थोड़ी ही देर में उसकी जीभ बाहर निकल आई, और आँखें फटी रह गयी, उसका भी खेल ख़तम हो चुका था.

फिर मैने उन पाँचों को खोला और झाड़ियों की तरफ दौड़ लगा दी.

झाड़ियों में एक ओर बाइक उलझी पड़ी थी जो अभी भी उसका एंजिन चालू ही था और पिच्छला व्हील घूम रहा था. दूसरी ओर रहना पड़ी कराह रही थी.

मैने पहले बाइक बंद की और उसे झाड़ियों से बाहर लाकर खड़ा किया, फिर रेहाना को उठाकर लाया, उसके शरीर में काँटों की वजह से कई जगह खरोंच आ गयी थी, 

उसके कपड़े भी कई जगह से फट गये थे, जिनसे उसका गोरा मादक बदन झलक रहा था.

मैने जैसे ही अपने हाथ से उसके शरीर को सहलाया, तो वो सिहर गयी और उसके मुँह से एक मादक सिसक निकल गयी.

मे - तुम ठीक तो हो ना..!

वो - हां ! मे ठीक हूँ ! आप उन लोगों को सम्भालो..

मे उसको वहीं बाइक के पास खड़ा करके जीप के पास आया और रहमत अली से पुछा- आप लोगों में से किसी को जीप चलानी आती है..? 

रहमत अली ने हामी भर दी, मैने उन फ़ौजियों के सारे हथियार लेकर जीप में डाले और उसको जीप लेकर घर लौट जाने का बोला.

जब वो वहाँ से लौट गये तो मैने उन सभी की लाशों को झाड़ियों के पीछे इकट्ठा किया और बाइक से पेट्रोल निकाल कर उनके उपर डाल दिया.

दो पत्थरों को आपस में रगड़ कर चिंगारी पैदा करके उन पाँचों के शवों को आग के हवाले कर दिया.

घर हम दोनो भी लगभग जीप के साथ ही पहुँच गये, वो चारों लोग भी रहमत के साथ हमारे घर ही आ गये थे.

जब मैने उसको पुछा क़ि इनको यहाँ क्यों ले आए, तो वो लोग काँपते हुए बोले- हमें डर लग रहा है, पता नही अब फौज हमारे साथ क्या करेगी.

मे - कब तक इस तरह डर डर कर मरते रहोगे..? मरना ही है तो लड़ कर मरो ना..! मौत तो एक दिन सबको आनी ही है फिर उससे क्या डरना.

उनमें से एक बोला – भाई हम आपके जैसे जुंगजू नही है जो किसी हथियार बंद फ़ौजी का मुकाबला कर सकें.

मे - तुमसे किसने कहा कि मे कोई जुंगजू हूँ..? 

वो - क्या आपने हमें नही बचाया..?

मे - तो इससे क्या मे जुंगजू हो गया..? बस जुर्म के खिलाफ लड़ना सीख लिया है मैने. अगर तुम लोग भी लड़ना चाहोगे तो तुम्हें भी आजाएगा.

वो – क्या आप हमें सिखाएँगे जुर्म के खिलाफ लड़ना..?

मे – एक बार पक्का इरादा कर लोगे तो मे मदद ज़रूर कर सकता हूँ तुम्हारी, वाकी लड़ना तो तुम्हें ही पड़ेगा..!

दूसरा लड़का बोला- ऐसे डर-2 के मरने से तो लड़ कर मरना लाख गुना अच्छा है, वैसे भी आज तो हम एक तरह से मर ही गये थे, 

अगर आप हमें नही बचाते तो पता नही वो लोग हमें कहाँ ले जाते, और ना जाने क्या करते हमारे साथ ? 

जीवित रखते भी या नही, इसलिए आज से हम वही करेंगे जो आप कहोगे.
उनमें से एक लड़की बोली – लेकिन हमारा क्या होगा..?
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12-19-2018, 02:31 AM,
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मैने रेहाना की ओर मुस्कराते हुए देखा, वो उस लड़की से बोली, क्यों तुम्हारे चार हाथ पैर नही हैं क्या..?

दूसरी लड़की – क्या सच में हम भी लड़ना सीख सकते हैं..?

रेहाना – बिल्कुल ! चाहो तो एक नमूना देख लो, और फिर वो उन दोनो लड़कों से बोली- आ जाओ तुम दोनो एक साथ मुझ पर हमला करो..!

वो दोनो आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगे..! वो फिर बोली- आ जाओ डरो मत और हां अपनी पूरी ताक़त से हमला करना…!

फिर उन तीनों में एक रिहर्सल जैसा हुआ, वो दोनो लड़के अपने पूरे दम खाँ से रेहाना पर टूट पड़े, 

वो दोनो जितने हाथ-पैर चला सकते थे चलाने लगे, 

लेकिन उस चालाक लोमड़ी ने उन दोनो को 5 मिनट में ही धूल चटा दी, वो दोनो लड़कियाँ अपने दाँतों में उंगली दबा कर हैरानी से उसे देखती रह गयी.

फिर मैने उन चारों का नाम पुछा – पहले लड़के का नाम अकरम था और दूसरे का परवेज़, लड़की एक आईशा थी और दूसरी जाहिरा.

मैने उनसे कहा - कल से आ जाना तुम लोगों को भी लड़ना सिखा देंगे. लेकिन ये बात और किसी को मत बताना, ये भी नही कि तुम लोग बचके कैसे आ गये.

अकरम बोला- अगर लोग पुछेन्गे तो हम उन्हें क्या जबाब देंगे..?

मे - उनको बोल देना कि जंगल में दो नकाबपोश आ गये और उन्होने हमें बचा लिया.

जब वो चारों चले गये, उसके बाद मैने रहमत को जीप लेकर अपने साथ चलने को कहा और खुद बाइक लेकर किसी उँची सी पहाड़ी की तरफ निकल पड़े.

उस जीप को एक उँची सी पहाड़ी से हज़ारों फीट गहरी खाई में धक्का दे दिया और बाइक से वापस घर आ गये.

लेकिन ये दूसरा केस था जो कि जीप खाई से नीचे कुदाइ थी, पहली वाली में तो उसके साथ डेड बॉडी भी थी, लेकिन ये मामला एक तो फ़ौजियों का था, दूसरा जीप खाली खाई में गिरी थी.

फौज इस मामले में चुप तो नही बैठेगी, खैर अभी तक कोई सुराग तो नही छोड़ा था मैने, बस एक ही पॉइंट ऐसा था जिससे फौज की जाँच इस इलाक़े तक भी आ सकती थी, 

अगर उन्हें ऐसी कोई वारदात यहाँ के बाज़ार में हुई थी ये पता चल गया तो. 

मे बस इन्ही बातों को सोच रहा था कि रहमत मेरे पास आकर बैठ गया और मुझे सोच में डूबा हुआ देख कर बोला – क्या बात है भाई जान.. किस सोच में डूबे हो..?

मे - कुछ नही, बस ये सोच रहा था कि ख़तरा किस ओर से हमारी तरफ आ सकता है, हालाँकि अभी तक कोई ऐसा सुराग तो हमने छोड़ा नही है जिससे फौज की जाँच हम तक पहुँच सके.

रहमत – हां ! जब तक फौज को ये पता ना चले कि यहाँ कोई वारदात हुई है या नही, अगर ये पता चल गया, तो वो लोगों को डरा धमका कर ये पता ज़रूर लगा लेंगे कि यहाँ क्या हुआ था.

मे – और फिर उन्हें ये पता लगाने में भी देर नही लगेगी कि उन्होने किन-किन लोगों को उठाया था. 

हमने जो बहाना लोगों को बहकाने के लिए उन चारों को बताया है उस पर फौज कभी यकीन नही करेगी.

रहमत – और अगर उन्होने उन्हें टॉर्छेर किया तो लड़के शायद झेल भी जायें, लेकिन लड़कियाँ टूट सकती हैं और फिर हम सब लोगों के लिए बचना मुश्किल होगा.

मे – तो अब क्या किया जाए..? और कोई रास्ता है बचने का..?

रहमत – यहाँ रहते हुए तो नही लगता….

मे - चलो देखते हैं, जो होगा सो अल्लाह मालिक, फिलहाल इतना जल्दी तो कोई आने वाला नही है इधर.

रहमत – वो फ़ौजियों की लाशें रास्ता बता देंगी इधर का..

मे - वो वहाँ होंगी तब ना बता देंगी..!

रहमत – क्या मतलब..? कहाँ चली जाएँगी वो लाशें वहाँ से..?

मे – कब की चली गयी वो तो .. कल तक तो वहाँ उनकी राख भी नही मिलेगी.

रहमत – क्या किया उनका आपने..?

मे – पेट्रोल डालकर जला दिया..! अब राख तो पता नही दे सकती कि ये किसकी है..

इस बात से रहमत को थोड़ी राहत पहुचि, फिर हमने रेहाना, शाकीना और उनकी अम्मी को भी बोल दिया, कि वो बस्ती में लोगों को डरने की कोशिश करें ये कहकर की, 

अगर फौज को यहाँ क्या हुआ था ये पता लगा तो वो पूरी बस्ती को ही ख़तम कर देंगे. 

इसलिए कोई अगर पुछने आए भी तो बताएँ नही कि यहाँ कुछ भी हुआ था.

इस काम में वो चार नये साथी भी हमारा हाथ बटा सकते थे.

इन सब बातों की चर्चा के बीच हम सबने खाना खाया, और कुछ देर और बैठे बातें करते रहे, फिर सोने चले गये अपने-2 बिस्तर पर.

दूसरे दिन वो चारों भी सुबह-2 जल्दी आ गये, जब उन्होने बताया कि हमें सही सलामत देख कर उनके घरवाले खुश हुए लेकिन फिर पुछा कि कैसे छोड़ दिया तो जो आपने बताया था हमने वैसे ही बता दिया.

मे - वो तो ठीक है, लेकिन अब तुम सब लोग बस्ती में ये बात चलाओ, कि अगर यहाँ कोई उस बाबत तहकीकात करता है, तो कोई कुछ भी ना बताए.

यहाँ तक कि ऐसा कुछ हुआ भी था या नही, अगर फौज को पता लगा कि ऐसा कुछ यहाँ हुआ है, तो वो लोग पूरी बस्ती को ही ख़तम कर देंगे.

ऐसा डर दिखा कर लोगों को कुछ भी ना बताने के लिए कहो.

उसके बाद हमने उन सब को एक्सर्साइज़ शुरू कराई, रेहाना और शाकीना उन लड़कियों को ट्रेन करने लगी और मे उन तीनो को, वैसे रहमत तो था ही ट्रेंड फ़ौजी, 

पर फिर भी इतने दिन जैल की कमर तोड़ यातनाओं के बाद उसको भी रेफ्रेश करना ज़रूरी था.

और वैसे भी मेरी ट्रेनिंग ज़रा आम फोर्सस से हटके थी, लेकिन उतनी ही देनी थी जिससे वो अपनी आत्म रक्षा कर सकें.

मे कभी-2 अपने काम से बाहर भी चला जाता था, लेकिन वो लोग ट्रैनिंग बदस्तूर जारी रखते, ऐसे ही बिना किसी विशेष बात हुए 1 महीना निकल गया.

अब वो 5 लोग और एक ट्रेंड सिपाही की तरह हमारे ग्रूप में शामिल हो गये थे. 

अब हम 8 लोग ऐसे थे जो किसी भी असाधारण परिस्थिति का सामना कर सकते थे, सिवाय एक वॉर सिचुयेशन के.

चारों लड़कियाँ भी आम लड़कियाँ नही रही थी. उन सभी की ट्रैनिंग के बारे में उनके घरवालों को भी ज़्यादा कुछ नही बताया गया था.

लेकिन अब हम यहाँ ठहर कर किसी आने वाली मुशिवात का इंतजार नही कर सकते थे, 

क्योंकि यहाँ पर होने वाली अब कोई एक भी वारदात शक़ पैदा कर सकती थी, इसलिए अब हमें आगे बढ़ कर मूषिबतों को दावत देनी ही पड़ेगी. 

वो भी अपने इलाक़े से बहुत दूर, और दुश्मन की एकदम नाक के नीचे, जिससे वो हड़बड़ा जाए. 

लेकिन ये काम इस तरह से होना चाहिए, जो लगे कि ये अवाम में हुकूमत और दहशतगर्दी के खिलाफ पैदा हुई बग़ावत का नतीजा है…

यही चाणक्य नीति कहती है : “इससे पहले की दुश्मन आपके बारे में कुछ सोचे आप उसके बारे में सब कुछ सोच और समझ लो”. 

इसी प्लॅनिंग को मद्दे नज़र रखते हुए मैने अपने सभी साथियों को लेकर एक मीटिंग रखी…….!!
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12-19-2018, 02:31 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मैने सबको एक साथ बिठाया, हम सभी 9 लोग अमीना बी के साथ, क्योंकि वो भी अब हमारे ग्रूप का अहम हिस्सा थी, तो उनको भी सारी बातें पता होनी चाहिए थी.

और वैसे वो भी अपनी बेटियों के साथ मिलकर फिट रहने लायक तो एक्सर्साइज़ करती ही रहती थी.

मैने सबको संबोधित करते हुए कहा – दोस्तो ! अब आप सब लोग एक आम इंसान नही रहे, खास हो चुके हैं और हमने जो भी सीखा है उसको अमल में लाने का समय आ चुका है.

नीति कहती है कि आपका दुश्मन आपके बारे में कुछ जाने या सोचे उससे पहले हमें उसके बारे में सब कुछ सोच विचार कर लेना चाहिए. 

इससे पहले कि वो कोई पहल करे हमें उसे इसका मौका दिए वगैर उसके घर में ही दबोच लेना चाहिए.

हमारा दुशमन कोई बाहरी मुल्क नही है, हमारी ही फौज है, हुकूमत है जो दहशतगर्दों के साथ मिलकर इंसानियत का कत्ल करवा रही है.

कहने को तो हम आज़ाद कश्मीर के बाशिंदे हैं, पर असल में हम क़ैदियों से भी बदतर हालत में हैं. 

हम हुकूमत से सीधे तौर पर तो टकरा नही सकते, लेकिन अगर हम दहशतगर्दी के खिलाफ कुछ करते हैं, 

और उन्हें किसी भी हद तक कमजोर करने में कामयाबी हासिल कर पाते हैं तो ये इस इंसानियत की दुश्मन हुकूमत के लिए किसी चुनौती से कम नही होगी.

और इससे अवाम का साथ भी हमें मिल सकेगा, लोग हम पर भरोसा करने लगेंगे और हमारा साथ देंगे. 

अकरम – लोग हमारा साथ किस कदर देंगे..?

मे – दोस्त ! साथ रहकर गोली चलाना या मार-पीट करना ही साथ देना नही होता, इसके लिए तो हमें आगे चल कर और भी साथी मिल सकते हैं, जैसे तुम लोग मिल गये हमें. 

हमारे बारे में किसी को कुछ ना बताना या वक़्त आने पर हर संभव मदद करना भी साथ देने के बराबर ही है.

रहमत – तो अब आप क्या करने वाले हैं..? 

मे - देखो ! जैसे यहाँ एक बार कुछ फ़ौजी आए, उन्होने दहशत फैलाई, आप लोगों को पकड़ कर ले गये, ऐसे ही किसी मौके का यहाँ बैठ कर इंतेज़ार करना और फिर उन पर हमला करना ये हमारी बहुत बड़ी भूल होगी.

क्योंकि अब अगर ऐसा कुछ भी इस इलाक़े में हुआ, तो हम तुरंत शक़ के घेरे में आ सकते हैं, 

हमारी लोकेशन पता चलते ही हुकूमत अपनी माकूल ताक़त का स्तेमाल करके हमें ख़तम कर देगी.

यही काम हम अपने इलाक़े से दूर अंजाम देंगे तो उनका ध्यान हमारे इलाक़े की तरफ आएगा ही नही, और वो हमें उसी इलाक़े के आस-पास ही ढूँढने की कोशिश करते रहेंगे…

परवेज़ – तो फिर अब हमें क्या करना चाहिए..?


मे - उसी बात पर आ रहा हूँ..! आप लोगों में से किस किस के पास बाइक या दूसरे साधन हैं..? तो सब की ओर देख कर मैने कहना जारी रखा और बोला-

सबसे पहले हमें कम-आज़-कम दो बाइक का और इंतेज़ाम करना होगा. अकरम और परवेज़, आज ही मेरे साथ किसी नज़दीक के शहर चलो, हमें दो बाइक लेनी पड़ेगी. 

और लड़कियों की ओर देख कर, तुम सभी को बाइक चलानी सीखनी होगी, तो आज से ही प्रॅक्टीस शुरू करदो, साथ-2 आप सबको निशाने बाज़ी भी सीखनी है. 

वो चारो एक्शिटेड दिखी ये सब सीखने के लिए. 

फिर मैने रहमत अली को बोला- भाई आप आज से ही इनको शूटिंग करना सिख़ाओ, ध्यान रहे केवल रेवोल्वेर इस्तेमाल करनी हैं, वो भी साइलेनसर लगाकर. ताकि इलाक़े में किसी को इस बात का इल्म ना हो.

कल से बाइक भी आ जाएँगी तो वो भी साथ-2 सीखना है, मैने लड़कियों की ओर देख कर कहा – समझ गये सब लोग, क्या तुम तैयार हो..?

वो सब एक स्वर में बोली – यस सर !

मे – ये सर किसको कह रही हो तुम लोग..?

आईशा मुस्करा कर बोली- अरे आपको और किसको कहेंगे, यहाँ आप ही तो सबके उस्ताद हैं. 

जाहिरा – आपकी बातों ने ही तो हमें उठ खड़ा होना सिखाया है, वरना अब तक तो रोज़ मार-मार के ही जी रहे थे. 

सही मायने में आप ही हमारे सच्चे उस्ताद हो.

मे - चलो ठीक है.. अब तुम लोग जितना जल्दी ट्रेंड हो जाओगी, हमारा काम उतना ही आसान होगा.

वो चारों वॉली- हम सब अपनी पूरी लगान से सीखेंगी.

रहमत – लेकिन भाई जान खर्चा पानी और ये बाइक खरीदने के लिए रकम कहाँ से आएगी..?

उसकी फिकर मत करो, सब हो जाएगा.. और फिर नाश्ता वग़ैरह करके मे अकरम और परवेज़ को लेकर मुज़फ़्फ़राबाद की ओर निकल गया और रहमत उन लड़कियों को शूटिंग सीखने में जुट गया.

हफ्ते दस दिन में ही लड़कियों ने पूरी लगान से काम चलाने लायक निशाने बाज़ी और बाइक चलाना सीख लिया था.

मैने तीन ग्रूप बनाए, 1) मेरे साथ शाकीना और आईशा, 2) अकरम + परवेज़ + जाहिरा, 3) रहमत के साथ रहना. 

इन दोनो को एकांत की नितांत ज़रूरत थी, बहुत दिनो की जुदाई जो झेली थी बेचारों ने.

मैने कहा- अब हम सभी तीन ग्रूप्स में पूरे पीओके के अंदर जितने दहशत गार्दी के कॅंप चल रहे है, उन सब की गुप्त रूप से जानकारी हासिल करेंगे.

सबको एक-2 मोबाइल दिया, उनके नंबर एक दूसरे के फोन में ऑलरेडी फीड थे.

ज़रूरत पड़ने पर एक दूसरे से कॉंटॅक्ट कर सकते हो इस फोन के ज़रिए. 
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12-19-2018, 02:32 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
कुछ को ऑपरेट करना नही आता था, क्योंकि मोबाइल अभी तक आम नही हुआ था. 

मोबाइल से फोटो निकालना भी सिखाया जिससे ज़रूरत पड़ने पर वहाँ के फोटो वग़ैरह भी लिए जा सकें.

मोबाइल देख कर वो सभी लोग खुश हो गये, और जब उनके फंक्षन चला कर ट्राइ किए तो और ज़्यादा खुशी दिखाने लगे.

एक मोबाइल हमने घर पर भी रखा और उसको अमीना बी को सिखाया, जिससे अगर कोई एमर्जेन्सी आ पड़े तो घर से कॉंटॅक्ट हो सके.

फिर सबको थोड़े-2 पैसे दिए, जो ज़रूरत पड़ने पर काम आ सकें. 

अमीना बीबी ने पुछा भी कि मेरे पास इतने पैसे कहाँ से आए, तो मैने अपनी घर की प्रॉपर्टी बेची है ऐसा कह कर उनको समझा दिया.

उन सबको कुछ और हिदायतें देकर मैने कहा-

सभी को खास ध्यान ये रखना है, कि किसी को शक़ नही होना चाहिए कि हम क्या और क्यों कर रहे हैं, अब आगे आप सबकी सूझ-बुझ का इम्तेहान है, कि आप किस तरह और कितना जल्दी कामयाब होते हो.

आम लोगों के सामने हम एक दूसरे से ऐसे ही वर्ताब करेंगे जैसे पहले करते थे. ठीक है ..! सबने हामी भर दी.

एक बात और, किसी भी कॅंप से संबंधित आदमी की नज़रों से बचके ही हमें जानकारी हासिल करनी है, लड़कियाँ बुर्क़े के नीचे एक दम टाइट कपड़े ही पहनें, जिससे कोई भी फिज़िकल काम करने में दिक्कत ना हो.

अगर कभी ऐसा लगे कि अब सामने वाले पर हमला किए बिना और कोई रास्ता नही बचा है, तभी अपने हाथ-पैर चलाना. 

बेवजह लोगों की नज़र में नही आना है.

इसी तरह की कुछ खास-2 हिदायतें देने के बाद हम सभी ने एक दूसरे को विश किया और दिशा निर्देश के अनुसार अपने-2 रास्ते निकल पड़े.

अब रोज़ का हमारा रूटीन ये था कि सुबह निकल जाते और देर रात तक पूरे पीओके की छान बीन करते रहते, बिना वजह किसी विवाद में पड़े 

15 दिन के अंदर-2 हमारे पास इतनी इन्फर्मेशन्स थी कि शायद इतनी पाकिस्तानी आर्मी के पास भी नही होगी.

ये सारी इन्फर्मेशन्स साथ-2 अपने ऑफीस भी भेजता जा रहा था. 

इतने दिनो के साथ ने उन्हें भी लड़कों के करीब ला दिया था. 

आईशा तो खुल कर मेरे साथ फ्लर्ट करने लगी थी, जो शाकीना को पसंद नही आता और वो उससे चिडने लगी थी. 

लेकिन मेरे समझाने के बाद वो भी एंजाय करने लगी और उसका साथ देते हुए मुझे खुले आम छेड़ देती.

कसरत ने उनके शरीर के उठानों को और भी मादक बना दिया था. इन चारों में आईशा का फिगर ज़्यादा सेक्सी था, 5’6” की हाइट के साथ 34-28-34 का फिगर किसी का भी लॉडा खड़ा कर्दे.

अकरम और पेरवेज़ भी उसको लाइन मारते, लेकिन वो उन्हें अवाय्ड कर देती थी.

एक दिन हम सभी टीम मेंबर्ज़ ऐसे ही इकट्ठा तीनों बाइक लेकर उत्तर-पूर्व की ओर निकल पड़े, जून-जुलाइ का मौसम, आसमान में कहीं-2 बदल छाये हुए थे. 


मस्ती-2 में हम लोग काफ़ी दूर निकल आए थे 2-3 घंटे के सफ़र के बाद.

बीच-2 में लड़कियाँ भी ड्राइव कर लेती, बुर्क़े तो अपनी हद निकलते ही उतार लिए थे, और वो भी टाइट सूट्स में ही थी. 

मेरी वाली बाइक जब एक चलाती तो मे सबसे पीछे बैठ जाता जिससे बीच में बैठी हुई लड़की अपनी गान्ड उठा कर मेरे लंड पे रख देती, जिससे वो साला अकड़ने लगता.

बड़ा ही सुहाना मौसम हो रहा था, मानो स्विट्ज़र्लॅंड में पहुँच गये हों, उपर घने बादल लगता था कभी भी बारिस हो सकती थी.

इस समय हम एक हरे-भरे पहाड़ी इलाक़े से गुजर रहे थे, कि तभी…. 

एक साथ तेज बारिश शुरू हो गयी, बचने का कोई चान्स नही था. भीगना ही पड़ा, बारिश इतनी तेज थी कि बाइक चलाने में भी प्राब्लम आ रही थी.

सो एक जगह घने पेड़ों के नीचे लेजा कर हमने अपनी-2 बाइक खड़ी की और वहीं खड़े होकर बारिश का नज़ारा लेते हुए उसके कम होने का इंतजार करने लगे, 

हम सभी पूरी तरह भीग चुके थे. कपड़े शरीर से एकदम चिपक गये थे….!

तीनों बाइक हमने कुछ-2 दूरी से खड़े पेड़ो के नीचे अलग-2 खड़ी कर दी थी. 

मेरे साथ शाकीना और आईशा थी और हम सबसे पीछे थे तो लास्ट में ही खड़े हो गये.

शाकीना तो खुले में खड़ी होकर बारिश का मज़ा लूट रही थी, आइशा मेरे बाजू में खड़ी थी, उसका टाइट सूट जो उसकी 34 की चुचियों को ढकने का असफल प्रयास कर रहा था, भीगने के बाद तो उसके दोनो कबूतर बिल्कुल ही बग़ावत पर उतारू थे.

उसकी एक-तिहाई चुचियाँ तो वैसे ही बाहर छलक रही थी, भीगने के बाद तो और ज़यादा उभर आई थी, निपल कपड़ों के बबजूद साफ-2 अपनी उपस्थिति करा रहे थे. 

उसका शॉर्ट कुर्ता टाँगों के बीच में एकदम चिपक रहा था, और उसके योनि प्रदेश को साफ-साफ प्रदर्शित कर रहा था.

उभरे हुए कूल्हे और ज़्यादा उभर आए थे. 

वो नज़रें नीची किए तिर्छि नज़र से मेरी ओर देख रही थी. मैने उसके कान में जाकर कहा- 

शा तुम तो एकदम कयामत लग रही हो, देखना कोई तुम्हारा रेप ना कर्दे.
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12-19-2018, 02:32 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
वो मेरे एकदम सामने, नज़दीक आकर खड़ी हो गयी, उसके निपल मेरे सीने को छुना ही चाहते थे, लेकिन अभी तक छु नही पाए थे, 

मेरी आँखों में देख कर वो बोली- आप ही करदो ना मेरा रेप…!

मे - मेरी इतनी भी हिम्मत नही है, कि किसी का रेप कर सकूँ…!

वो मुझे पकड़ना ही चाहती थी कि मैने उसे रोक दिया और बोला- ये सब खुले आम नही, थोड़ा परदा ज़रूरी है.

शाकीना तो अपने मज़े में मस्त बारिश का मज़ा लूट रही थी, मेरे ऐसा कहते ही 

आइशा ने मेरा हाथ पकड़ा और पेड़ के पीछे ले गयी और मुझे दोनो हाथों से पकड़ कर मेरे होठ चूम लिए.

मैने उसके चुतड़ों को पकड़ कर मसल दिया और अपनी ओर खींच कर उसकी चूत को अपने लंड से सटा लिया… आअहह… उसके बारिश से भीगने के कारण निपल कड़क हो गये थे जो अब मेरे सीने में चुभने लगे.

हम दोनो चुंबन में खो गये… उसकी आखें लाल होने लगी, अभी हम और आगे बढ़ते की एक चीख ने हमारा ध्यान भंग कर दिया.

जब मैने चीख की दिशा में देखा और तुरंत आईशा को पकड़ कर आड़ में हो गया. 

सबसे आगे अकरम, परवेज़ और जाहिरा थी, उसके बाद रहमत और रेहाना. 

मैने देखा कि पहले वाले पेड़ के बराबर में एक बड़ी वाली फ़ौजी जीप खड़ी थी, और 9-10 फ़ौजी जवानों ने उन पाँचों को राइफलों की नोक पर कवर कर रखा था, 

शाकीना हाथ उपर किए उनकी ओर धीरे-2 बढ़ रही थी.

फ़ौजियों को शायद हम दोनो का पता नही चल पाया था, मैने तुरंत एक स्कीम बना ली,

आईशा को लिए हुए मैने रोड की दूसरी तरफ छलान्ग लगा दी और झाड़ियों में लुढ़कता चला गया. 

तेज बेरिश की वजह से दूर तक साफ-साफ देख पाना थोड़ा मुश्किल था, इस वजह से वो हमें नही देख सके…

आइशा मेरे शरीर से चिपकी हुई थी. मैने फ़ौरन अपनी गन निकल ली और उसको भी बोला तो उसने भी अपनी गन निकाल कर हाथों में ले ली, अब हम दोनो झाड़ियों की आड़ लिए उनके करीब जाने लगे. 

अभी शाकीना उनके पास तक नही पहुँची थी, उसकी चाल देख कर एक फ़ौजी गुर्राया- ये साली क्या कछुये की चाल चलती है, जल्दी से आ, 

दो फ़ौजी ऑलरेडी जाहिरा और रेहाना के शरीरों के साथ खेल रहे थे.

तीनों मर्द अपने हाथों को सर के उपर रखे खड़े थे, 4-5 फ़ौजी अपनी राइफले ताने उनके सरों पर खड़े थे. 

जैसे ही शाकीना भी उनके पास पहुँची, एक फ़ौजी ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ कर खींचा और वो उसके सीने से जा लगी.

मुझे ये विश्वास नही था कि शाकीना इतनी हिम्मत दिखा सकती है, 

जैसे ही वो उस फ़ौजी के सीने से लगी, उसका घुटना तेज़ी से चला और उस फ़ौजी के गुप्ताँग को जोरदार हिट किया, 

वो डकार मारता हुआ अपने दोनो हाथ अपने आंडों पर रख कर घुटने जोड़े हुए नीचे की ओर झुकता चला गया, उसकी राइफल हाथ से छूट गयी जो बिजली की तेज़ी से शाकीना के हाथों में आ गई.

पलक झपकते ही उनमें से एक फ़ौजी की राइफल शाकीना की ओर मूड गयी, इससे पहले कि वो गोली चलाता, 

शाकीना ने उन तीन में से एक को निशाना बना लिया, जो जाहिरा और रेहाना को छेड़ रहे थे.

निशाने पर लेते हुए वो गुर्राइ – खबरदार अगर गोली चलाई, तो तुम्हारा ये साथी भी नही बचेगा…

फ़ौजियों को एक आम लड़की से ऐसी हिमाकत करने की आशा नही थी, वो कुछ देर तो सकते की हालत में आ गये, 

लेकिन फिर वो फ़ौजी जिसे शाकीना ने निशाना बनाया था, उसकी तरफ पलटा, और उसकी राइफ़ल पर झपटा…, शायद उसको लगा कि ये नाज़ुक सी लड़की क्या राइफल चलाएगी…

लेकिन उसके पलटते ही शाकीना ने ट्रिगर दबा दिया, और राइफ़ल की गोली सीधी उसका भेजा फाड़ती हुई निकल गयी…

वो अपनी आँखों में जमाने भर की हैरत लिए दुनिया से रुखसत हो गया..

उसके गिरते ही, राइफ़ल धारिरयों की राइफ़ल शाकीना की तरफ घूम गयी, लेकिन इससे पहले कि वो उसे शूट करते, झाड़ियों से एक साथ 5 फाइयर हुए और वो पाँचों राइफलधारी ज़मीन पर पड़े तड़प्ते नज़र आने लगे. 

अब बचे चार फ़ौजियों में से जो शाकीना की चोट से नीचे बैठा था उसको उसने कवर कर लिया और तीन को हमारे तीनों साथियों ने लपक लिया.

मे और आइशा झाड़ियों से निकल कर बाहर आ गये, हमें देखते ही उनकी बची-खुचि साँसें भी अटक गयी. 

फिर हमने उन्हे लात घूँसों से धुनना शुरू किया, पीटते-2 वो चारो बेहोश हो गये.

मैने अपना खंजर निकाला और एक फ़ौजी के माथे पर लिख दिया “आज़ाद कश्मीर ज़िंदवाद” 

मेरी इस कार गुज़ारी को देख कर उन सभी के शरीर में झूर झूरी सी दौड़ गयी…, उस फ़ौजी का चेहरा खून से सुर्ख हो गया था…

आईशा और जाहिरा ने तो अपनी आँखें ही बंद कर ली…

मेरी आखों में छाए हुए हिंसक भावों को देख कर वो लोग काँप उठे…

मैने उस फ़ौजी को पेड़ से उल्टा लटका दिया, और वाकियों को भी मौत देकर हम वहाँ से तेज बारिश में ही आगे बढ़ने लगे….!

सभी के चेहरों पर मौत का सन्नाटा पसरा हुआ था… मैने उन सभी की मनोदशा भाँप कर कहा…

तुम लोग ऐसे गुम-सूम क्यों हो गये मेरे शेरो…, ये लोग इसी के हक़दार थे… अब अगर यल्गार शुरू कर ही दी है, तो शुरुआत धमाकेदार ही होनी चाहिए…

शाकीना थोड़ी हिम्मत जुटाकर मेरे पास आई, और बोली – आपका ये खौफनाक रूप देखकर हमें डर लगने लगा था…

मे – दोस्तों को मुझसे डरने की ज़रूरत नही है..? और वैसे भी सबसे ज़्यादा डर तो तुमसे लगना चाहिए…

इतनी विपरीत परिस्थिति में भी तुमने वो कर दिया, जो कोई आम इंसान सोच भी नही सकता था…!

मेरी बात सुनकर रेहाना ने उसे अपने गले से लगा लिया, वाकीओं ने भी उसके हौंसले को सलाम किया…

मैने आगे कहा - ये सब करना ज़रूरी था, अब दुश्मन के दिल में हमारे प्रति भय पैदा हो जाएगा, और वो कोई भी मन-मानी करने से पहले हज़ार बार सोचेंगे…

रहमत अली ने मेरी बात से सहमत होते हुए कहा – आपकी बात एकदम जायज़ है भाई जान… दुश्मन पर रहम दिखाना अपनी कमज़ोरी जाहिर करना है…

अब वाकी सब नॉर्मल नज़र आने लगे थे, सो ह्मने आगे का सफ़र शुरू कर दिया…वो मेरे एकदम सामने, नज़दीक आकर खड़ी हो गयी, उसके निपल मेरे सीने को छुना ही चाहते थे, लेकिन अभी तक छु नही पाए थे, 


मेरी आँखों में देख कर वो बोली- आप ही करदो ना मेरा रेप…!

मे - मेरी इतनी भी हिम्मत नही है, कि किसी का रेप कर सकूँ…!

वो मुझे पकड़ना ही चाहती थी कि मैने उसे रोक दिया और बोला- ये सब खुले आम नही, थोड़ा परदा ज़रूरी है.

शाकीना तो अपने मज़े में मस्त बारिश का मज़ा लूट रही थी, मेरे ऐसा कहते ही 

आइशा ने मेरा हाथ पकड़ा और पेड़ के पीछे ले गयी और मुझे दोनो हाथों से पकड़ कर मेरे होठ चूम लिए.

मैने उसके चुतड़ों को पकड़ कर मसल दिया और अपनी ओर खींच कर उसकी चूत को अपने लंड से सटा लिया… आअहह… उसके बारिश से भीगने के कारण निपल कड़क हो गये थे जो अब मेरे सीने में चुभने लगे.

हम दोनो चुंबन में खो गये… उसकी आखें लाल होने लगी, अभी हम और आगे बढ़ते की एक चीख ने हमारा ध्यान भंग कर दिया.

जब मैने चीख की दिशा में देखा और तुरंत आईशा को पकड़ कर आड़ में हो गया. 

सबसे आगे अकरम, परवेज़ और जाहिरा थी, उसके बाद रहमत और रेहाना. 

मैने देखा कि पहले वाले पेड़ के बराबर में एक बड़ी वाली फ़ौजी जीप खड़ी थी, और 9-10 फ़ौजी जवानों ने उन पाँचों को राइफलों की नोक पर कवर कर रखा था, 

शाकीना हाथ उपर किए उनकी ओर धीरे-2 बढ़ रही थी.

फ़ौजियों को शायद हम दोनो का पता नही चल पाया था, मैने तुरंत एक स्कीम बना ली,

आईशा को लिए हुए मैने रोड की दूसरी तरफ छलान्ग लगा दी और झाड़ियों में लुढ़कता चला गया. 

तेज बेरिश की वजह से दूर तक साफ-साफ देख पाना थोड़ा मुश्किल था, इस वजह से वो हमें नही देख सके…

आइशा मेरे शरीर से चिपकी हुई थी. मैने फ़ौरन अपनी गन निकल ली और उसको भी बोला तो उसने भी अपनी गन निकाल कर हाथों में ले ली, अब हम दोनो झाड़ियों की आड़ लिए उनके करीब जाने लगे. 

अभी शाकीना उनके पास तक नही पहुँची थी, उसकी चाल देख कर एक फ़ौजी गुर्राया- ये साली क्या कछुये की चाल चलती है, जल्दी से आ, 

दो फ़ौजी ऑलरेडी जाहिरा और रेहाना के शरीरों के साथ खेल रहे थे.

तीनों मर्द अपने हाथों को सर के उपर रखे खड़े थे, 4-5 फ़ौजी अपनी राइफले ताने उनके सरों पर खड़े थे. 

जैसे ही शाकीना भी उनके पास पहुँची, एक फ़ौजी ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ कर खींचा और वो उसके सीने से जा लगी.

मुझे ये विश्वास नही था कि शाकीना इतनी हिम्मत दिखा सकती है, 

जैसे ही वो उस फ़ौजी के सीने से लगी, उसका घुटना तेज़ी से चला और उस फ़ौजी के गुप्ताँग को जोरदार हिट किया, 

वो डकार मारता हुआ अपने दोनो हाथ अपने आंडों पर रख कर घुटने जोड़े हुए नीचे की ओर झुकता चला गया, उसकी राइफल हाथ से छूट गयी जो बिजली की तेज़ी से शाकीना के हाथों में आ गई.

पलक झपकते ही उनमें से एक फ़ौजी की राइफल शाकीना की ओर मूड गयी, इससे पहले कि वो गोली चलाता, 

शाकीना ने उन तीन में से एक को निशाना बना लिया, जो जाहिरा और रेहाना को छेड़ रहे थे.

निशाने पर लेते हुए वो गुर्राइ – खबरदार अगर गोली चलाई, तो तुम्हारा ये साथी भी नही बचेगा…

फ़ौजियों को एक आम लड़की से ऐसी हिमाकत करने की आशा नही थी, वो कुछ देर तो सकते की हालत में आ गये, 

लेकिन फिर वो फ़ौजी जिसे शाकीना ने निशाना बनाया था, उसकी तरफ पलटा, और उसकी राइफ़ल पर झपटा…, शायद उसको लगा कि ये नाज़ुक सी लड़की क्या राइफल चलाएगी…

लेकिन उसके पलटते ही शाकीना ने ट्रिगर दबा दिया, और राइफ़ल की गोली सीधी उसका भेजा फाड़ती हुई निकल गयी…

वो अपनी आँखों में जमाने भर की हैरत लिए दुनिया से रुखसत हो गया..

उसके गिरते ही, राइफ़ल धारिरयों की राइफ़ल शाकीना की तरफ घूम गयी, लेकिन इससे पहले कि वो उसे शूट करते, झाड़ियों से एक साथ 5 फाइयर हुए और वो पाँचों राइफलधारी ज़मीन पर पड़े तड़प्ते नज़र आने लगे. 

अब बचे चार फ़ौजियों में से जो शाकीना की चोट से नीचे बैठा था उसको उसने कवर कर लिया और तीन को हमारे तीनों साथियों ने लपक लिया.

मे और आइशा झाड़ियों से निकल कर बाहर आ गये, हमें देखते ही उनकी बची-खुचि साँसें भी अटक गयी. 

फिर हमने उन्हे लात घूँसों से धुनना शुरू किया, पीटते-2 वो चारो बेहोश हो गये.

मैने अपना खंजर निकाला और एक फ़ौजी के माथे पर लिख दिया “आज़ाद कश्मीर ज़िंदवाद” 

मेरी इस कार गुज़ारी को देख कर उन सभी के शरीर में झूर झूरी सी दौड़ गयी…, उस फ़ौजी का चेहरा खून से सुर्ख हो गया था…

आईशा और जाहिरा ने तो अपनी आँखें ही बंद कर ली…

मेरी आखों में छाए हुए हिंसक भावों को देख कर वो लोग काँप उठे…

मैने उस फ़ौजी को पेड़ से उल्टा लटका दिया, और वाकियों को भी मौत देकर हम वहाँ से तेज बारिश में ही आगे बढ़ने लगे….!

सभी के चेहरों पर मौत का सन्नाटा पसरा हुआ था… मैने उन सभी की मनोदशा भाँप कर कहा…

तुम लोग ऐसे गुम-सूम क्यों हो गये मेरे शेरो…, ये लोग इसी के हक़दार थे… अब अगर यल्गार शुरू कर ही दी है, तो शुरुआत धमाकेदार ही होनी चाहिए…

शाकीना थोड़ी हिम्मत जुटाकर मेरे पास आई, और बोली – आपका ये खौफनाक रूप देखकर हमें डर लगने लगा था…

मे – दोस्तों को मुझसे डरने की ज़रूरत नही है..? और वैसे भी सबसे ज़्यादा डर तो तुमसे लगना चाहिए…

इतनी विपरीत परिस्थिति में भी तुमने वो कर दिया, जो कोई आम इंसान सोच भी नही सकता था…!

मेरी बात सुनकर रेहाना ने उसे अपने गले से लगा लिया, वाकीओं ने भी उसके हौंसले को सलाम किया…

मैने आगे कहा - ये सब करना ज़रूरी था, अब दुश्मन के दिल में हमारे प्रति भय पैदा हो जाएगा, और वो कोई भी मन-मानी करने से पहले हज़ार बार सोचेंगे…

रहमत अली ने मेरी बात से सहमत होते हुए कहा – आपकी बात एकदम जायज़ है भाई जान… दुश्मन पर रहम दिखाना अपनी कमज़ोरी जाहिर करना है…

अब वाकी सब नॉर्मल नज़र आने लगे थे, सो ह्मने आगे का सफ़र शुरू कर दिया…
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12-19-2018, 02:32 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मे बाइक चला रहा था, शाकीना मेरी गोद में बैठ गयी जिसकी वजह से मुझे आगे को झुक कर हॅंडल पकड़ना पड़ रहा था, आईशा मेरे पीछे एक दम चिपक कर बैठी थी. 

बाइक की स्पीड बहुत ही कम थी.

वाकी दोनो बाइक हमसे काफ़ी आगे थी, डिसाइड हुआ था कि आगे जो भी छोटा बड़ा शहर या टाउन आएगा, हम सब वहीं रुकेंगे आज.

शाकीना ने अपनी गान्ड उठाके मेरे एन लंड के उपर रख दी थी और अपनी कमर मटका-2 कर अपनी मुलायम गान्ड से उसे मसाज दे रही थी. 

उधर पीछे आईशा अपने कबूतरों की चोंच मेरी पीठ से रगड़ रही थी, भीगने की वजह से कपड़ों का होना ना होना एक जैसा ही था.

एक तो बारिश इतनी तेज, उपर से ये दोनो हसीनाएँ मेरी हवा निकाल रही थी, मुझे डर था कि कही पहाड़ी रास्ते पर ज़रा भी बाइक इधर उधर हो गयी तो सेकड़ों फीट नीचे, शरीर के टुकड़े-2 छितरे नज़र आएँगे.

मैने एक पहाड़ी की साइड में अपने बाइक खड़ी करदी, और उन दोनो को एक साथ बाहों में कस के चूमने लगा, बहुत देर तक कॉन किसके होठों को चूम-चाट-काट रहा है पता नही. फिर मैने उनको अलग किया और बोला-

थोड़ा सबर करो मेरी शेरनियो, किसी होटेल में चल कर तुम दोनो की गर्मी निकाल दूँगा. अभी आराम से बाइक चलाने दो वरना किसी घाटी में पड़े जन्नत की सैर करते नज़र आएँगे. 

वो दोनो थोड़ी झेंप गयी और हामी में सर हिलाकर चुप-चाप मेरे पीछे बैठ गयी…

करीब आधे घंटे के बाद हम एक छोटे से शहर में थे, वाकी के साथी बाहर ही खड़े हमारा इंतजार कर रहे थे.

हमने पुछ-ताछ करके एक छोटे से होटेल जो उस शहर का सबसे अच्छा होटेल था उसमें 4 कमरे किराए पर लिए और अपने-2 कमरों में चले गये…! 

हमारे कपड़े सब गीले हो चुके थे, जो बॅग में थे वो भी, 

तो सबसे पहले कपड़ों को सूखने का इंतेज़ाम करना था, इस लिहाज़ से एक कमरे में तीनो लड़कियों को भेज दिया, 

अकरम और परवेज़ दूसरे में, रहमत और रेहाना तो मियाँ-बीबी थे ही तो वो एक में चले गये, और मैने एक सेपरेट कमरा अपने लिए रखा.

मैने अपने कपड़े उतार कर उन्हें पानी में निकाल कर सूखने के लिए फुल स्पीड में फॅन चला दिया, जहाँ जगह मिली वहाँ फैला दिया, और बाथरूम में फ्रेश होने घुस गया कि तभी डोर बेल बजने लगी….

मे तौलिया लपेट कर गेट खोलने गया, देखा तो सामने वो दोनो हिरनिया खड़ी थी उन्ही गीले कपड़ों में.

मैने कहा - अरे यार ये कपड़े तो उतार कर फ़रारे कर लेती, तो उन्होने मुझे धकेलते हुए कमरे में ढेस दिया और गाते लॉक करके शाकीना बोली- बॅग के कपड़े तो सुखाने डाल दिए हैं, इनको यहाँ सूखा लेंगे.

मे - अरे यार ! तुम लोग भी कमाल करती हो, किसी को पता चल गया कि तुम लोग मेरे रूम में हो तो पता नही वो लोग क्या समझेंगे..?

आइशा - कोई कुछ नही समझेगा..! वैसे भी जाहिरा और परवेज़ को स्पेस चाहिए था सो हम यहाँ आ गये. और फिर रास्ते में आपने प्रॉमिस भी किया था वो पूरा नही करेंगे ?

शाकीना - और अब बचना चाहते हैं… क्यों..? आज हम लोग आपको नही छोड़ने वाले, ये कहकर उन दोनो ने अपने-2 गीले कपड़े उतार दिए और मात्र ब्रा पेंटी में आ गयी.

मैने कहा ये भी तो गीले हैं, इनको नही सुखाना है ? तो वो दोनो खिल-खिला कर हँसती हुई गीले कपड़े उठा कर बाथ रूम में घुस गयी, 

कपड़े पानी में निकाल कर बाहर आ गयीं एकदम नंगी, और मेरे कपड़ों के पास ही अपने कपड़े सूखने के लिए डाल दिए.

आइशा ने आगे बढ़कर मेरी टावल खींच दी, फिर बड़े प्यार से मेरे सीने पर हाथ टिका कर मुझे सोफे पर धकेल दिया और मेरे बगल में आकर बैठ गयी, मेरे बालों से भरे सीने पर हाथ फेरते हुए मेरे होठ चूसने लगी.

उधर शाकीना मेरी टाँगों के बीच आकर अपने मनपसंद खिलोने के साथ खेलने लगी, आईशा की बड़ी-2 मुलायम गोल-2 चुचियाँ मेरे बाजू से रगड़ रही थी. 

मैने भी अपना हाथ सरका कर उसकी चूत पर पहुँचा दिया और उसको मुट्ठी में कस लिया.

वो मेरे होठ छोड़कर मदहोशी में कराह उठी…आअहह…. नाहहिईिइ…उईईई….आमम्म्मि… क्या करते हूऊ…
उफफफ्फ़…नहियिइ…. मत..कारूव..ना..प्लसस्स…हाईए…अल्लहह…मारीइ..

मेरा एक हाथ उसकी चुचि को मसल्ने में व्यस्त था.. वो अब अपनी गान्ड उठा-2 कर अपनी रस छोड़ती चूत को मेरे शरीर से रगड़ने लगी.

शाकीना ने मेरे लंड को अपनी चुचियों के बीच में लेकर टिट फक्किंग देने लगी, और उपर मे आईशा के चुचे मुँह में लेकर चूस रहा था.

कुछ देर टिट फक्किंग करने के बाद उसने लंड मुँह ले लिया और कुलफी तरह चूसने लगी, 

मज़े में मेरी आँखें बंद होने लगी, लंड और ज़्यादा कड़क होकर स्टील की रोड के माफिक सख़्त हो गया.

मैने फ़ौरन शाकीना के मुँह को अपने लंड से दूर किया और आइशा को सोफे पर डाल कर उसकी चूत को चाटने लगा, वो अपनी कमर को उचका-2 कर मेरे मुँह पर घिसने लगी.

उसकी टाँगें मैने अपनी गांघों पर रखी जिससे चूत और उभर आई, 

फिर देर ना करते हुए उसकी नयी कोरी चूत की फाँकें खोली और अपना मूसल उसके छेद पर रख कर थोड़ा सा दबा दिया, जिससे मेरा सुपाडा उसकी रसीली चूत में गायब हो गया.

उसके हलक से एक दर्द भरी कराह फुट पड़ी, शाकीना ने उसके होठों को अपने मुँह में भर लिया, वो दोनो एक दूसरे को किस करने लगी और मौका देख कर मैने एक करारा झटका अपनी कमर को मार दिया.
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12-19-2018, 02:32 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मेरा तीन-चौथाई लंड उसकी चूत की झिल्ली को तोड़ता हुया अंदर घुस गया, मुझे मेरे लंड पर गरम-2 सा महसूस हुआ, जब देखा तो उसकी चूत से खून आकर मेरे लंड को रंग रहा था.

शाकीना ने उसके होठ पूरी तरह जकड रखे थे, तो दर्द की वजह से वो मुँह ही मुँह में गॉंगो सी आवाज़ें ही आ पा रही थी, उसकी आँखों के कोरे से पानी बहने लगा.

मैं थोड़ा रुक-कर उसके कड़क हो चुके निपल को मुँह में लेकर चूसने लगा, और दूसरे को अंगूठे से दबा कर रगड़ दिया.

कुछ देर बाद उसकी कमर में हलचल हुई, तो मैने हल्के-2 धक्के लगाना शुरू कर दिया.

अब मैने शाकीना को अपने मुँह के सामने खड़ा कर लिया और जीब से उसकी चूत चाटने लगा और साथ-2 धक्के भी लगाता जा रहा था, शा नीचे से अपने मुँह से अनप शनाप बकती जा रही थी और अपनी कमर को भी चला रही थी.

फिर मैने एक फाइनल शॉट मार कर पूरा लंड उसकी कोरी करारी चूत में ठूंस दिया.
आह्ह्ह्ह…अम्मिईिइ…हाईए…अममाआ…रीइ…मररर.. गाइिईई…

लेकिन कुछ ही धक्कों में वो फिर से कमर उचका-2 कर चुदाई का मज़ा लेने लगी, इधर मेरे सामने खड़ी शाकीना अपनी चूत को मेरे मुँह पर रगड़ रही थी, मज़े में हम तीनों ही सराबोर थे.

10 मिनट की चुदाई के बाद आईशा की चूत पानी छोड़ने लगी और वो हाए-2 करती हुई झड गयी..

अब हम सोफे से उठकर बेड पर आ गये, शाकीना को मैने पलंग पर घोड़ी बना दिया, और उसकी गान्ड पर थपकी लगा कर पीछे से उसकी रसीली चूत में अपने लंड डाल दिया…

एक बार झड़ी हुई उसकी चूत धीरे-धीरे करके पूरा लंड निगल गयी. 

आइशा को अपने बाजू में घुटनो पर खड़ा करके उसके होठों को चूस्ते हुए…मैने अपने धक्के शाकीना की चूत में लगाने शुरू कर दिए..

वो हाईए…अल्लहह….करती हुई चुदने लगी, कुछ ही धक्कों में वो अपनी गान्ड को मेरे लंड पर पटक-पटक कर चुदाई का लुफ्त लेने लगी...

शाकीना की गान्ड जब मेरी जांघों पर पड़ती तो थप-2 करके उसकी गोल-गोल उभरी हुई गान्ड से टकरा रही थी. ऐसा लगता था मानो टेबल पर थाप पड़ रही हो.

इधर आईशा के होठ चूस्ते हुए मैने अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत में पेल दी… 

वो अपनी गान्ड मटकाते हुए , मेरी उंगलियों से अपनी चूत को चुदवाने लगी…. 

हम तीनों को ही बहुत मज़ा आरहा था…चोदते-2 मैने एक तूफ़ानी धक्का लगा दिया जिससे शाकीना बॅलेन्स नही बना सकी और वो औंधे मुँह पलंग पर गिर पड़ी…

मैने उसी पोज़िशन में अपना लंड उसकी चूत में डाले हुए अपना गाढ़ा-गाढ़ा पानी उसकी चूत में भर दिया… 

उधर शाकीना भी मेरे वीर्य की गर्मी अपनी चूत की गहराइयों में पाकर भल्भलाकर झड़ने लगी….. 

धुआँधार चुदाई के दौर के बाद मे, शाकीना के बगल में लेट कर अपनी साँसों को संयत करने लगा…

अभी दो मिनट भी नही हुए थे, कि आईशा मेरा लॉडा फिर से चूसने लगी… ढीला पड़ा हुआ मेरा शेर उसके मुँह की लज़ीज़, लज़्ज़त भरी गर्मी से फिर से सर उठाने लगा…

और कुछ ही मिनटों में वो फिर से अपनी पुरानी अदाएँ बिखेरने लगा…

आइशा को पलंग पर पटक कर मैने अपना मूसल एक झटके से आईशा की ताजी चुदि चूत में पेल दिया, इतने पवरफुल स्ट्रोक के बाद भी वो पूरा उसकी चूत में नही घुस पाया.

आइशा की एक तेज चीक्ख निकल गयी, लेकिन अब मैने रहम नही किया और एक और धक्का मार कर पूरा लंड उसकी चूत में डाल दिया और धक्का-पेल चुदाई शुरू कर दी.

मेरी ताबड-तोड़ चुदाई से आईशा बिल-बिलाने लगी, लेकिन थोड़ी सी ही देर में उसे भी मज़ा आने लगा, और वो भी गान्ड उच्छाल-उच्छालकर चुदने लगी.

20-25 मिनट की चुदाई से वो दो बार झड गयी, फिर अंत में मैने भी उसकी सुखी खेती की अपनी तेज पिचकारी से सिंचाई कर दी….

उसकी पैर की एडीया मेरी गान्ड के इर्द-गिर्द कस गयी और मुझे उसने उपर की ओर ठेल दिया.

मे दो-दो चुतो की गर्मी निकालते-2 पस्त हो गया था, सो आईशा के उपर ही पड़ा रह गया अपने लंड को उसकी चूत में डाले ही.

जब 5 मिनट के बाद मैने अपना लंड बाहर निकाला तो ढेर सारा रॉ मेटीरियल भलल-2 करके उसकी चूत ने फेंक दिया, और रसते-2 उसकी गान्ड से होते हुए पलंग की चादर को गीला करने लगा.

हम तीनो ही बहुत देर तक एक दूसरे ले लिपटे पड़े रहे. आधे घंटे के बाद उठे, फिर साथ में ही बाथरूम में जाकर नहाए एक दूसरे को साफ कर कर के.

तब तक हमारे कपड़े कुछ पहनने लायक हो चुके थे, सो कपड़े पहने और दूसरे टीम मेंबर को फोन लगाया.

नीचे जाकर एक साथ बैठ कर खाना खाया, अकरम को छोड़ कर वाकी सभी खुश दिख रहे थे, मैने आईशा के कान में बोला, कि अब तो तुम उसको घास डाल सकती हो, देखो वो अकेला ही बेचारा दुखी सा बैठा दिख रहा है. 

कुछ देर तो वो आना-कानी करती रही लेकिन कुछ सोच कर उसने हामी भर दी.

खाना खाने के बाद मैने अकरम और आईशा को एक रूम में भेज दिया और 
शाकीना मेरे साथ आ गयी. सोने से पहले एक बार और मैने शाकीना की चुदाई की और फिर सो गये…..!

दूसरी सुबह रूम सर्विस चाइ के साथ अख़बार दे गया था, मैने अख़बार शाकीना की ओर बढ़ा दिया वो उसे पढ़ने लगी, आज की हेडलाइन ही फ़ौजियों की किल्लिंग से थी, जिसमें फोटो के साथ-साथ बड़ी सी न्यूज़ दी गयी थी.

दूसरे कॉलम में उसका पोस्टमार्टम किया था कि ये कॉन और क्यों करना चाहता है ? 

न्यूज़ के हिसाब से फौज की कारगुजारियाँ दहशतगर्दों के साथ मिलकर जो पीओके में चल रही हैं, उससे अवाम में नाराज़गी बढ़ती जा रही है.

जो मेरा मकसद था वो शुरू हो चुका था, अब देखना था कि आनेवाले समय में अवाम का रुख़ क्या होता है. 

अख़बार ने तो यहाँ तक लिख दिया था, कि अगर हालात नही सुधरे तो हो सकता है कि अवाम में बग़ावत के सुर तेज होने लगें.

लेकिन ये किसने किया है, ऐसा कोई सुराग अभी तक नही मिला है, फौज पागल कुत्तों की तरह उन लोगों को ढूँढ रही है, उम्मीद जताई गयी थी, कि वो जल्दी ही गिरफ़्त में होंगे.

मे न्यूज़ सुनकर मन ही मन मुस्करा उठा…!

हम और आगे बढ़ना चाहते थे, लेकिन ये वारदात होने के बाद पूरे इलाक़े में फ़ौजी गतिविधिया तेज होने के चान्स बढ़ गये थे, सो अब लौटने का ही फ़ैसला लिया.

ब्रेकफास्ट ले कर हम लोग वहाँ से निकल पड़े और अपने घर की ओर लौट लिए.

लेकिन लौटते वक़्त हमने पहले वाला रास्ता नही लिया और थोड़ा घूम कर और उत्तरी साइड को निकले जो हमें अपने घर तक पहुँचने में 50-60 केयेम ज़्यादा लगने वाला था.

आज मौसम खुला हुआ था, कहीं-2 बदली आ जाती थी और अपनी छाया बिखेर कर चली जाती.

वातावरण में हल्की उमस पैदा हो गयी थी…
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12-19-2018, 02:32 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
अभी हम लगभग 1 घंटे का ही सफ़र तय कर पाए थे, इस समय एक घनी आबादी वाली बस्ती के पास से गुजर रहे थे कि तभी कुछ गोलियों की आवाज़ हमारे कानों में पड़ी.

हमने अपनी बाइक रोक दी और आवाज़ों का अनुमान लगाने लगे. 

फिर बहुत देर तक कोई आवाज़ सुनाई नही दी. 

कुछ देर हम लोग यूँही खड़े रहे लेकिन फिर भी कुछ सुनाई नही दिया, 

अभी हम आगे बढ़ने की सोच ही रहे थे कि कुछ लोगों की चीख पुकार और भागते कदमों की आवाज़ें जो अब हमारी तरफ ही बढ़ती चली आ रही थी कानों में पड़ी.

हमने फ़ौरन अपनी बाइक्स मेन रास्ते से हटाकर घरों की ओट में खड़ी कर दी, और अपने चेहरों को कपड़ों से ढक लिया, हथियारों पर पकड़ अपने आप ही मजबूत हो गयी, और घरों की आड़ लेकर आने वालों का इंतेज़ार करने लगे.

कुछ ही लम्हे बीते होंगे, की 30-40 लोग हमारी ओर बेतहाशा भागते हुए आरहे थे, जिनमें ज़्यादा तार युवतियाँ और कुछ युवक और बच्चे थे.

उनके पीछे एक ओपन टेंपो ट्रॅक्स जीप जिसमें 8 लोग एके-47 लिए जिनका रुख़ इस समय आसमान की तरफ था, बदन पर भारी कपड़े का पठानी सूट और मुँह कपड़ों से ढका हुआ था,

वो जीप के पिछले हिस्से में खड़े थे और ड्राइवर समेत 3 लोग अगले हिस्से में बैठे थे उसी तरह के लिबास में.

ड्राइवर के अलावा उन दोनो के हाथ में भी ऑटोमॅटिक गन थी. 

जीप ने स्पीड बढ़ा कर लोगों को रौंदने की कोशिश की लेकिन ज़्यादातर लोग अगल-बगल को बचने लगे, लेकिन एक-दो बच्चों को फिर भी उसने रौंद दिया.

साइड में बचने वाली एक युवती को आगे बैठे हुए आतंकी ने अपनी बाजू की गिरफ़्त में ले लिया और उसको चलती जीप में उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया. 

वो बेचारी रहम की भीख माँग रही थी जो उन इंसानियत के दुश्मनों के पास देने को नही थी.

अचानक एक गोली हवा में चली और एक भयानक आवाज़ उनमें से एक दहशतगर्द के मुँह से निकली.

सब लोग रुक जाओ वरना सबको भून दिया जाएगा, वो बेचारे सभी लोग एक साथ डर के मारे एक जगह खड़े हो गये.

वो 10 के 10 आतंकी जीप से नीचे आए और उन सभी को घेर कर खड़े हो गये. 

वही आवाज़ फिर गूँजी- बताओ तुम में से किसी ने कल हुए फ़ौजिओं के क़त्ले आम को देखा है..? 

चारों तरफ सन्नाटा पसर गया, कहीं से कोई आवाज़ नही आई.

जब किसी ने उसकी बात का जबाब नही दिया तो उसकी राइफल से एक गोली निकली और भीड़ में खड़े एक आदमी का सीना चीरती हुई निकल गयी.

उस आदमी की लाश देख कर सभी के चेहरे पीले पड़ गये, वो खड़े-2 थर-2 काँप रहे थे.

उनमें से हिम्मत जुटा कर एक आदमी बोला - मई-बाप हम में से किसी ने ये वाकीया नही देखा. हमें मुआफ़ कीजिए.

वो आतंकी जो शायद इस दल का लीडर था, झुंझल कर बोला- ऐसा कैसे हो सकता है, कि कोई इतना बड़ा कांड करके चला गया और आस-पास दूर-2 तक किसी को कुछ पता नही, सारा इलाक़ा कुछ भी बताने को राज़ी नही है.

उस युवती का हाथ अभी भी वो मजबूती से पकड़े हुए था, फिर अपने साथियों से बोला- चलो कहीं दूसरी बस्ती में पता करते हैं और इनमें से एक-2 अच्छे से माल को उठा लो. 

कुछ तो यहाँ आने का फ़ायदा हो, कहीं जंगल में ले जाकर मंगल करके छोड़ देंगे सालियों को.

और खुद उस युवती को घसीटता हुआ फिर से जीप की ओर ले जाने लगा.

उसके साथी तो शायद इसी इंतेज़ार में थे, सुनते ही पहले से सुंदर सी लड़कियों पर नज़रें गढ़ाए हुए थे, फ़ौरन उन्हें उठा लिया और जीप में भूसे की तरह पटक दिया.

वो सभी बेचारी रोती बिलखती रही, दुआ करती रही कि कोई आके बचाए उन्हें. लेकिन ऐसा कॉन था उनके बीच जो उन्हें बचा पता इन दरिंदों से.

उन 10 लड़कियों को अपने पैरों के नीचे दबाए वो लोग जीप लेकर वहाँ से निकल गये, और छोड़ गये गहन सन्नाटा जो वहाँ के बचे-खुचे लोगों के चेहरों पर व्याप्त था.

हम खुले तौर पर अवाम की नज़रों में नही आना चाहते थे, सो उन्हें जाते हुए देखते रहे और जब वो कुछ आगे निकल गये, हमने भी अपनी-2 बाइक निकली और उनके पीछे लग लिए.

कुछ दूर चल कर वो टेंपो ट्रॅक्स सड़क छोड़ कर कच्चे रास्ते पर आ गयी और घने जंगलों की तरफ बढ़ने लगी.

जंगल में थोड़ा चलकर ही उन्होने गाड़ी रोक दी और झाड़ियों के बीच एक छोटे से मैदान में उन लड़कियों को खींच कर ले गये.

वो लड़कियाँ बेजार आँखों से पानी बहाए जा रही थी, लेकिन उन दरिंदों पर उनके आँसुओं का कोई असर नही था, 

वो सबके सब उनके कपड़ों को नोंचने में लग गये, अपनी-2 गन उन्होने जीप में ही छोड़ दी थी.

अभी वो उनके कपड़े उतार ही रहे थे कि हवा में सनसनाती हुई एक गोली उनके लीडर की कनपटी में लगी और उसकी खोपड़ी को खोलती हुई निकल गयी.

सेकेंड के सौवे हिस्से में ही उसकी आत्मा उसके शरीर को छोड़ कर 72 हूरों के साथ मटरगस्ति करने चली गयी. 

वाकी बचे 10 के 10 आतंकी सकते में रह गये, और भौंचक्के से इधर-उधर को देखने लगे, लेकिन उन्हें कोई नज़र नही आया.

अभी वो सदमे से निकल कर जीप की ओर बढ़ने ही वाले थे अपनी गनों को लेने के लिए, कि तभी दो गोलियाँ और चली और जो दो लोग सबसे आगे थे उन दोनो के सीने चीरती हुई निकल गयी.

वाकी के बचे दहशतगर्द वही के वही जमे रह गये मानो उन्हें साँप सूंघ गया हो. 

अपने तीन साथियों के मुर्दा शरीर देख कर उनकी रूह फ़ना हो चुकी थी, वो मौत को अपने सामने देख कर थर-2 काँप रहे थे.

लाचार लोगों में मौत बाँटने वाले दरिंदों की आज अपनी मौत को सामने देख कर गान्ड फट के हाथ में आ गई.

हिम्मत करके उनमें तीन आतकियों ने जीप की तरफ जंप लगा दी, लेकिन उसमें से गन नही उठा सके, 

जीप की आड़ लिए वो हमारी पोज़िशन को भाँपने की कोशिश कर रहे थे, जो अब तक बदलकर तीन दिशाओ में पहुँच चुके थे.

बदनसीबी से उनमें से दो मेरी और मेरे साथ बैठी शाकीना की ओर ही थे उनकी पीठ हमारे निशाने पर थी, 

वो जीप के सहारे-2 आगे बढ़ कर गन उठाने ही वाले थे कि हम दोनो की गानों से एक-एक गोली निकली और उन दोनो की रीढ़ को चीरती हुई निकल गयी.

वो दोनो चीख मारते हुए वहीं ढेर हो गये. 

अपने साथियों का हश्र देख कर उस तीसरे बंदे की हिम्मत जबाब दे गयी जो कि रहमत के साथ रेहाना और आईशा की तरफ था.

उसने सर उठाकर अपने दोनो साथियों की स्थिति का जायज़ा लेना चाहा कि तभी रेहाना की गन ने एक गोली उगल दी जिसने उसकी खोपड़ी को पूरी तरह खोल दिया.

अब वाकी बचे 5 आतंकी खड़े-2 अपने पाजामों को गीला करने के अलावा और कुछ नही कर सके….!

मे और शाकीना अपनी जगह से निकल कर बाहर आ गये, मुँह हमारे अभी भी कपड़ों से ढके हुए थे.

वो लड़कियाँ अब तक अपने-2 कपड़े दुरुस्त कर चुकी थी, कुछ के कपड़े थोड़े बहुत कहीं-2 से फट भी गये थे.

मैने उन पाँचों आतंकियों को अपने-2 कपड़े उतारने को कहा, पहले तो वो ना-नुकर करते रहे, लेकिन जैसे ही मैने गन उनकी ओर की वो फटा फट अपने-2 कपड़े उतारने में जुट गये.

अपने-अपने अंडरवेर को छोड़ वो नंगे खड़े थे, मैने अपनी गन से इशारा करते हुए कहा – इन्हें कॉन उतारेगा..?

मेरी बात सुनकर उन आतंकियों के साथ-साथ मेरे सभी साथी भी चोंक कर मेरी ओर देखने लगे…

मैने सर्द लहजे में फिर से कहा – उतारो इन्हें भी वरना समय से पहले मारे जाओगे..

पाँचों ने तुरंत अपने अंडरवेर भी नीचे खिसका दिए…
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12-19-2018, 02:32 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मैने उन लड़कियों को अपने पास आने का इशारा किया तो वो सब बेखौफ़ हमारे पास चली आईं, क्योंकि उन्हें यकीन हो गया था, कि हम उनको बचाने वाले मसीहा हैं और हमसे उन्हें कोई ख़तरा नही होने वाला.

जैसे ही वो पाँचों मादरजात नंगे हुए मैने अपना खजर निकाल कर एक लड़की की तरफ बढ़ाया और उसको उनमें से एक का लिंग काटने को कहा.

वो लड़की डर कर पीछे हट गयी, 

शाकीना ने आगे बढ़ कर अपना खंजर निकाला और एक आदमी का लिंग हाथ से पकड़ कर उड़ा दिया.

वो बुरी तरह चीख मार कर ज़मीन पर तड़पने लगा.

मे - क्यों हरामज़ादे, पता चला दर्द किसे कहते हैं..? दूसरों को दर्द बाँटते-2 ये भूल गये कि यही दर्द तुम्हें भी झेलना पड़ सकता है.

फिर शाकीना घायल शेरनी की तरह बिफर कर उन लड़कियों पर गुर्राई. 

अपने डर को कब तक अपने अंदर पनाह देती रहोगी तुम लोग..? 

सोच लो कि तुम भी किसी से कम नही हो, निकाल फेंको अपने अंदर के डर को, ये लो खंजर और उड़ा दो इन हरामज़ादों के अंगों को जो तुम्हें खराब करने का मंसूबा पाले बैठे थे.

शाकीना की बात का उनपर तुरंत असर हुआ और उनमें से दो लड़कियाँ आगे आई, और उन्होने मेरा और शाकीना का खंजर ले लिया.

जिस तरह से शाकीना ने उसका लिंग काटा था, ठीक उसी तरह उन्होने भी उनमें से दो के लिंग काट डाले.

वो भी चीखते हुए तड़पने लगे. 

फिर तो उन सभी लड़कियों में हिम्मत आ गयी और उनमें लिंग काटने की जैसे होड़ सी लग गयी.

उन तीनो के ही नही, जो मर चुके थे उनके भी लिंग उन लड़कियों ने काट डाले. 

ये एक मेसेज था उन दरिंदों और उनको पनाह देने वाले नामर्दों के लिए, की औरतों पर अत्याचार का जबाब ऐसे भी दिया जाएगा.

फिर बचे-खुचे आतंकियों को भी शूट करके हमने उन लड़कियों को उनके घर भेज दिया, ज़्यादा दूर नही लाए थे वो लोग सो वो सब पैदल ही निकल पड़ी.

उनके चले जाने के बाद हमने उनके सारे हथियार जीप में डाले और उसकी नंबर प्लेट खरोंच कर ऐसी कर दी जो सीधे तौर पर नंबर पढ़े ना जा सकें.

तीनों बाइक भी हमने जीप में डाली और उसको ले कर चल दिए अपने घर की तरफ….!
.....................................................
एसीपी ट्रिशा शर्मा : उनके पति को गये हुए 1 साल से भी ज़्यादा वक़्त हो चुका था, तबसे वो ऑफीस और घर दोनो को अच्छे से संभाल रही थी. 

नीरा ने इसमें उनका भरपूर साथ दिया था, वो भी अब एक बेटे की माँ बन चुकी थी.

दोनो बच्चे अब बड़े हो रहे थे, और स्कूल जाने लगे थे, पढ़ने में दोनो ही एक से बढ़ कर एक निकले.

जिस बच्चे को भ्रूण में ही ख़तम करने की सलाह दी जा रही थी, वो तो अपनी क्लास में हर बार टॉप पर आता था जो अब तक केजी और 1स्ट स्ट्ड. को पार कर चुका था, बड़ा 3र्ड में आ गया था.

भाग्यवश राज्य की बागडोर एक ऐसे जुझारू और कर्मठ लीडर के हाथों में थी जिसने कुछ ही समय में अपने राज्य को देश के सरबोच्च स्थान पर ला खड़ा किया था.

उनके राज्य का नाम देश में ही नही वरण विश्व में उँचा हुआ था. 

ज़्यादातर विदेशी कंपनियाँ उनके राज्य में निवेश करने को तत्पर दिखाई देती.

लॉ & ऑर्डर की व्यवस्था अन्य राज्यों की तुलना में देश भर में टॉप पर थी, इनफ्रस्ट्रक्चर के मामले में ये राज्य सबको पीछे छोड़ चुका था, 

यही वजह थी कि सभी देसी वीदेसी कोम्पनियाँ यहाँ निवेश करना चाहती थी.

ऐसा नही था कि आतंकवादियों के निशाने पर ये राज्य नही था, बड़ी-2 आतंकी वारदातें हो चुकी थी, बावजूद इसके अब उनके पैर इस राज्य में जम नही पा रहे थे. 

कारण था पोलीस और प्रशासन का चौन्कन्ना रहना.

दुश्मन मुल्क की ज़्यादातर समुद्रि सीमा इसी राज्य से लगी थी, फिर भी वो कई बार की नाकाम कोशिशों के बाद भी घुस नही सके, कई को तो अंजाम तक पहुँचा दिया था.

समय तेज़ी से आगे बढ़ रहा था, कभी-2 अरुण की तरफ से ही फोन आता था जिससे पति-पत्नी अपने दिलों को तसल्ली दे लेते थे, बच्चों को तो पता भी नही था, कि उनके प्यारे पापा हैं भी या नही. 

जब दूसरे बच्चों के मम्मी-दादी को एक साथ देखते थे, तो पुछ लेते अपने पापा के बारे में, 

ट्रिशा कोई ना कोई बहाना बना कर उन्हें चुप करा देती, लेकिन अपने खुद के अंतर्मन को चुप करना उसे कभी-2 असहनीय हो जाता था.

लेकिन वो भी तो एक सुपर कॉप थी देश की, जो अपनी मजबूरियों को भली भाँति समझती थी. 

कोई और आम महिला होती तो शायद अब तक टूट कर बिखर चुकी होती या फिर कुछ ऐसा कर बैठती जो एक सभी महिला को नही करना चाहिए.

ऐसा नही था कि लोगों की गंदी नज़र से वो अछुति थी, गाहे बगाहे उसके आस-पास के लोग कॉमेंट पास करते रहते, 

लेकिन वो उन्हें अनदेखा कर जाती. पद का रुतवा उसको इन सबमें काफ़ी मददगार साबित होता था.

उधर मे (अरुण) ने दुश्मन मुल्क में पीओके के अंदर आतंकवादियों और फ़ौजी हुकूमत के खिलाफ जंग छेड़ रखी थी, 

कितने ही आतंकियों को उनके अंजाम तक पहुँचा चुका था, कितने ही फ़ौजी हलाक हो चुके थे उसके और उसके साथियों द्वारा.

धीरे-धीरे अब मैने अपनी एक पूरी 25 लोगों की टीम खड़ी कर दी थी, जो मेरे एक इशारे पर मर खपने को तैयार थे, 

कुछ छोटी टेंपो टाइप गाड़ियाँ और हथियार जो हमने फ़ौजियों और आतंकवादियों को मार कर लूटे थे. 

ये सब वही लोग थे जो फ़ौजी हुकूमत और दहशतगर्दों के सताए हुए थे.

पाकिस्तान की फ़ौजी हुकूमत पूरा ज़ोर लगाने पर भी इनका कोई सुराग नही निकाल पाई थी, 

गोरिल्ला नीति के तहत ये दुश्मन पर टूट पड़ते और उन्हें उनके अंजाम तक पहुँचा कर ही दम लेते.

चूँकि हमारे हमले अपने ठिकाने से कोसों दूर ही होते थे, जिस कारण से किसी को गुमान ही नही होता कि वारदातों के पीछे हम लोग भी हो सकते हैं, 

और वैसे भी हमारे आस-पास के इलाक़े के लोग आँख बंद करके हमारा साथ देते थे.

बॅक-अप के तौर पर अब हमने अपना एक ठिकाना इस्लामाबाद में भी खड़ा कर लिया था, जिसमें भारत के राजदूत की मदद ली गयी थी जगह और इनफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में. 

ज़रूरत पड़ने पर हम रातों रात वहाँ शिफ्ट हो सकते थे. जिसकी भनक मेरे अलावा और किसी को नही थी.

लेकिन ये भी सही है कि हर घर में एक विभीषण ज़रूर होता है…!
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