Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:23 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
वो हिश्टीरियाइ ढंग से हँसता हुआ हुआ नीरा की ओर गन लहराता हुआ झपटा, और उसे गन पॉइंट पर लेते हुए बोला-

ये सब तेरी वजह से हुआ है हरम्जदि कुतिया, मे तुझे जिंदा नही छोड़ूँगा.

अभी वो उस पर गोली चलाना ही चाहता था, कि तभी…. ढाय… धाय… दो गोली और चली, 

प्रताप और चौधरी दोनो के शरीर फर्श पर पड़े तड़प रहे थे.

तभी वहाँ तीन नकाब पोश नुमाया हुए, जिनमें से दो की गन की नाल से अभी भी धुआँ निकल रहा था.

उन्हें देख कर एंपी और राइचंद का मूत निकल गया और वो थर-2 काँपने लगे.

उनमें से एक नकाब पोश गुर्राया- क्यों एंपी.. ग़लत काम करते कभी नही 
काँपा, आज अपनी मौत को सामने देख कर मूतने लगा.

वो दोनो मिमियाते हुए बोले…हहामें माफ़ करदो, ये सब इन दोनो कुत्तों ने किया था…

नकाब पोश - अच्छा तो क्या तुम लोग अपना गुनाह कबूल करोगे…?

एंपी - हां ! आप लोग जैसा कहोगे हम वैसा ही करेंगे..!

नकाबपोश – अच्छा ! और फिर कोर्ट के सामने मुकर जाओगे..! है ना ! या फिर उससे जुड़े हुए जड्ज या पोलीस को ही खरीद लोगे.. क्यों..?

सुन एंपी , हम लोग यहाँ क़ानून-2 का खेल खेलने नही आए… समझे, हमारा काम है ऑन दा स्पॉट फ़ैसला… 

इसके साथ ही फिर धाय..धाय… दो गोली और चली, और उन दोनो के जिस्म भी थोड़ी देर तडपे, फिर शांत हो गये.

उन्होने वहाँ कुछ ऐसे सबूत छोड़े जो ये साबित करते थे कि वे देश-द्रोही थे… 

फिर वो तीनों नीरा को साथ लेकर वहाँ से ऐसे गायब हो गये जैसे गधे के सर से सींग….

हमारा ये मिसन भी लगभग सक्सेस्फुल रहा, ज़्यादातर हार्ड कोर नक्सली जो कुट्टी के साथ थे वो मारे जा चुके थे, 

कुछ ने सरेंडर कर दिया था. जंगलों में कुछ दिनों के लिए शांति हो गयी थी.

हम लोग कुछ दिनो के लिए अपने-2 परिवार के पास लौट गये. 

वाकी के ग्रूप भी बहुत हद तक सक्सेस रहे थे, अपने इलाक़ों में उन्होने कुछ हद तक कामयाबी हाशील की थी…

कुछ अभी भी लगे थे अपने-2 मिसन पर, जिनकी टाइम तो टाइम रिपोर्ट हम हेड ऑफीस को देते रहते थे.

ट्रिशा की प्रेग्नेन्सी का ये लास्ट समय चल रहा था, उसकी माँ हमारे साथ आई हुई थी, और अब नीरा भी मेरे साथ ही हमारे घर आ गयी थी.

मौका देख कर समय समय पर उसकी भी सेवा हो जाती थी, वैसे भी मेरी पत्नी तो इस काबिल थी नही आजकल.

एक दिन ट्रिशा ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया, घर भर में काफ़ी समय के बाद खुशियों ने कदम रखा था. 

उधर निशा ने भी एक बेटे को जन्म दिया, दोनो बहनों के जीवन में एक साथ खुशियों की बहार आई थी, 

ऋषभ और उसकी पत्नी ने वहाँ का सब संभाल लिया था.

मैने अपनी माँ को भी बुलवा लिया था, श्याम भाई उन्हें अपने साथ ले आए थे…

पोते को देख कर मेरी माँ बहुत खुश थी, अपने सबसे छोटे बेटे, जिसके भविष्य की उसे हर समय चिंता सताती रहती थी, वो आज अपने परिवार के साथ सुखी था.

हमने अपने बेटे का नाम सुलभ रखा.. वो बिल्कुल अपनी माँ की छवि था. इतना प्यारा था कि हर कोई उसे प्यार करने लग जाता. 

रोना तो जैसे उसको आता ही नही था. नीरा उसका विशेष ख्याल रखती थी.

कुछ समय और व्यतीत हुआ, बीच बीच में हम तीनों दोस्त अपने मिसन का रिव्यू लेने चले जाते, और जो भी उचित आक्षन होता वो करके वापस अपने घर आ जाते.

मैने ट्रिशा के साथ सलाह मशविरा करके, उसी के स्टाफ के ही एक कॉन्स्टेबल रमेश के साथ नीरा की शादी करवा दी,

रमेश का भी इस दुनिया में कोई नही था…वो दोनो एक दूसरे का साथ पाकर बड़े खुश थे.

अभी मेरा बेटा 10 महीने का ही हुआ था कि ट्रिशा फिर से प्रेग्नेंट हो गयी, लोगों ने काफ़ी सुझाव दिए कि अभी बड़ा बेटा छोटा है, तो दूसरे की परवरिश कैसे होगी, 

इसलिए अबॉर्षन करा लेना चाहिए, जिससे कुछ हद तक ट्रिशा भी सहमत हो गयी, लेकिन मैने मना कर दिया.

पता नही ईश्वर ने क्या सोच कर उस भ्रूण को मेरी पत्नी के गर्भ में डाला होगा, अब उसके अरमानों का गला गर्भ में ही घोंट देना ये मेरी नज़र में महपाप होगा. सो हमने उसे रखने का फ़ैसला लिया.

ट्रिशा ने समय पर दूसरे बेटे को जन्म दिया, हमने दुगने उत्साह से नये मेहमान का स्वागत किया और उसका नाम कौशल रखा.

चूँकि नीरा भी ज़्यादातर हमारे साथ ही रहती थी, तो दोनो बच्चों की परवरिश में कोई खास परेशानी नही आई.
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12-19-2018, 02:23 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
इधर अल्पमत की केंद्र सरकार, ढाई साल में ही धराशाई हो गयी, दुबारा चुनाव हुए वो भी कोई एकमत नही दे पाए. 

देश के वरिष्ठतम और सुलझे हुए राजनेता ने कुछ पार्टियों को लेकर सरकार चलाने की कोशिश की.

इसी बीच हमारे दुश्मन मुल्क जो कि जग जाहिर है, ने अपनी सेना को घुस्पेठ करने की कोशिश की, जिसका हमारी अल्पमत की सरकार ने अपनी बिल पॉवर दिखाते हुए सेना को उचित कार्यवाही करने का आदेश दिया.

हमारे मुल्क में जँवाज़ो की तो कभी भी कमी नही रही है, सो कुछ ही दिनो में हमारी सेना के जँवाज़ो ने दुश्मन को उसकी औकात दिखा दी, और उन्हें मुँह की खानी पड़ी.

इसका एक फ़ायदा हुआ, अल्पमत की सरकार तो गिर गयी लेकिन दुबारा एलेक्षन में उन्होने बहमत के साथ स्थाई सरकार बना ली. 

देश को एक अच्छा और संवेदनशील नेता मिल गया था.

सरकार तो स्थाई बन गयी थी, साथ ही साथ दुश्मन भी स्थाई मिला, जो हर संभव हमें नुकसान पहुँचाने का प्रयास करता रहता. 

हमारी ओर से अनगिनत प्रयास हुए कि किसी तरह महाद्वीप में शांति की स्थापना हो सके, 

लेकिन शायद वो हमारे शांति संदेश को हमारी दुर्बलता ही समझता रहा, और उसके अशांति फैलाने वाले प्रयास बदस्तूर जारी रहे, जो हमें ना चाहते हुए भी समय समय पर झेलने पड़ रहे थे.

चाहे वो अक्षर धाम पर हमला हो, फिर चाहे मुंबई रेल धमाके. चाहे गोधरा कांड हो या फिर सीमा पर हमला. 

ना जाने कितने ही जान माल का नुकसान हर वर्ष झेल रहा था हमारा देश.

समय आ गया था, कि अब हमें भी उसी की भाषा में जबाब देना चाहिए..

वो अगर हमारे देश में आतंकवादियों की घुस्पेठ करा सकते हैं, तो क्या हम उनके घर से निकलने पर पाबंदी नही लगा सकते…? उनकी मनमानियों पर नकेल नही कस सकते..?

उसी कड़ी के तहत एक दिन मुझे अपने एनएसएसआइ ऑफीस, जो नयी सरकार के बनते ही पुनः गठित हो गयी थी से कॉल आई, 

मुझे घर की ज़िम्मेदारियाँ ट्रिशा के कंधों पर डालकर अर्जेंट देल्ही निकलना पड़ा.


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मुज़फ़्फ़राबाद के उत्तर का पहाड़ी और जंगली इल्लाका, जहाँ की अधिकतर अवादी छोटे-2 कबीले टाइप टुकड़ों में बस्ती है, 

परिवारों के ज़्यादातर मर्द काम की तलाश में या तो दूर दराज शहर की ओर चले जाते हैं, 

या फिर कहीं रोड साइड कोई छोटा-मोटा धंधा रख कर अपनी रोज़ी-रोटी कमाने की कोशिश में लगे रहते हैं.

औरतें घर परिवार, बच्चों की परवरिश के साथ-2 जंगली पहाड़ों में जाकर आमदनी का कोई ज़रिया या फिर रेहड़ और दूसरे जानवरों को पाल कर काम चलाती हैं. 

ऐसे ही एक कबीले से हटकर पहाड़ी के आँचल में बने एक इकलौते घर में, एक विधवा औरत अपनी दो जवान बेटियों के साथ रहती है, 

उसका इकलौता बेटा असलम शहर में रहकर चार पैसे कमाता है किसी रेस्टौरेंट में वेटर का काम करके.

अधेड़ उम्र अमीना बेगम और उसकी 24 साल की बड़ी बेटी रेहाना जो शुदा सुदा होने के बावजूद विधवाओं जैसा जीवन जीने पर मजबूर है, और अपनी अम्मी के साथ ही रहती है.

उसका शौहर पाकिस्तानी फौज में था, लेकिन कारगिल वॉर के बाद जान बचा कर भागने के जुर्म में पाकिस्तानी हुकूमत ने उसे गद्दार घोषित करके जैल में सड़ने के लिए डाल दिया था.

उससे दो साल छोटा असलम, जो शहर चला गया, अमीना की तीसरी औलाद उसकी छोटी बेटी शाकीना जो इस समय 19 साल की कमसिन कली निहायत ही खूबसूरत किसी खिलती कली जैसी.

अमीना का शौहर पीओके में आए दिन होने वली दहशत गर्दि का शिकार हो चुका था. 

कुल मिला कर ये परिवार, पाकिस्तानी हुकूमत और उसके पाले हुए दहशत गर्दो का शिकार था.

ऐसा नही था कि ये इकलौता परिवार ही इन जुल्मों का शिकार हुआ हो, ऐसे ना जाने कितने ही परिवार इस तरह के हादसों के शिकार होकर ग़रीबी और कुरबत की जिंदगी बसर करने पर मजबूर थे.

इन लोगों में हुकूमत और दहशत गर्दि के खिलाफ रोष तो था, लेकिन मजबूर थे, क्योंकि खिलाफत करने का मतलब था मौत. 

ज़्यादातर बेसहारा परिवार अपने सिसकते जीवन को जीने पर मजबूर थे, कहीं कोई गोली चलने की आवाज़ ही इनकी रूह को कंपा देती थी.

हर संभव यही कोशिश करते, कि कभी किसी सरकारी नुमाइंदे या फ़ौजी या फिर किसी दहशत गर्द की नज़र इन पर ना पड़े.

ऐसे ही एक दिन शाकीना अपने घर से थोड़ा दूर अपने रेहड़ और पालतू जानवरों को पास के ही एक मैदान में चरा रही थी, 

पास से ही एक पतली सी ख़स्ता हाल सड़क गुजरती थी, जिस पर बमुश्किल कभी कोई वहाँ गुज़रता था.

शाम होने को थी, धूप अपने अंतिम पड़ाव पर थी कि तभी उस सड़क से होकर एक पोलीस की जीप गुज़री, उसमें 4 पोलीस के सिपाही दारोगा के साथ गस्त पर निकले होंगे शायद.

उनकी मनहूस नज़र शाकीना पर पड़ी और उन्होने जीप रोक ली. 

पोलीस जीप को रुकता हुआ देखकर उसके शरीर में डर की लहर दौड़ गयी, 

उसने उन पोलीस वालों को अनदेखा करके अपने जानवरों को घर की ओर ले जाने के लिए हांकना शुरू कर दिया.
जीप में बैठे दारोगा ने उसको आवाज़ देकर अपने पास आने का इशारा किया, वो बेचारी उसकी बात टाल भी तो नही सकती थी. 

सो नज़रें झुकाए काँपते कदमों से वो उन लोगों के पास पहुँची. 

उन पोलीस वालों की हवस भरी नज़रें उसके शरीर का एक्स्रे कर रही थी, और वो बेचारी दूर खड़ी थर-2 काँप रही थी.

दारोगा – आए लड़की ! कहाँ रहती है तू, और क्या नाम है तेरा ?

उसने उंगली से अपने घर की तरफ इशारा किया, और धीरे से अपना नाम बताया.

अब वो दारोगा और दो सिपाही जीप से उतर गये और उससे बोला- दूर क्यों खड़ी है यहाँ पास आकर बोल, सुनाई नही दे रहा.

वो बेचारी काँपते कदमों से और थोड़ा नज़दीक आई और बोली- जी मेरा नाम शाकीना है, 

अभी वो अपना नाम ठीक से बता भी नही सकी थी कि उस दारोगा ने एक सिपाही को इशारा किया और उसने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला-

चल हमारे साथ जीप में बैठ, तुझे थाने ले जाना है, बिना इज़ाज़त कहीं भी जानवरों को चराते हो तुम लोग.

वो बेचारी अपनी नाज़ुक कलाई को छुड़ाने की जद्दोजहद करने लगी, लेकिन कहाँ वो नाज़ुक कलाई और कहाँ उस पोलीस वाले का शख्त कठोर हाथ. 

उसकी आँखों से जार-2 आँसू बहने लगे, वो उनसे खुद को छोड़ देने की गुहार कर रही थी लेकिन उन ज़ालिमों पर उसके बेबस आँसुओं का कोई असर नही हुआ.

वो नर-पिशाच भेड़िया उस लाचार मजबूर नाज़ुक सी कली को हाथ पकड़ कर घसीटते हुए जीप की तरफ ले जाने लगा…

वो बेचारी सिवाय रोने बिल्खने के और कुच्छ भी कर पाने में असमर्थ थी…जब कोई चारा नही बचा तो वो वहीं ज़मीन पर बैठ गयी…

उस सिपाही ने उसकी कलाई छोड़ दी, और उसके पीछे जाकर उसे अपनी गिरफ़्त में ले लिया.. 

पहले तो वो उसके नाज़ुक मुलायम अधखिले वक्षों से खेलता रहा, और फिर उसने ज़बरदस्ती उसे अपनी गोद में उठा लिया.

वो किसी छोटी बच्ची की तरह उसकी गोद में तड़पति हुई उसकी मजबूत गिरफ़्त से निकलने की नाकाम कोशिश करती रही..लेकिन निकल ना सकी..

वो सिपाही उसे उठाए हुए जीप की तरफ बढ़ने लगा. वो चीख-2 कर अपनी आममी और अप्पा को आवाज़ देने लगी.

अभी वो सिपाही शाकीना को लेकर जीप तक पहुँचा ही था कि एक बड़ा सा पत्थर भनभनाता हुआ उसकी कनपटी पर पड़ा. 

अप्रत्याशित पत्थर की चोट इतनी ज़ोर्से पड़ी, कि वो शाकीना को वही छोड़कर दर्द से बिलबिलाता हुआ अपनी कनपटी पर हाथ रख कर ज़मीन पर बैठता चला गया……!
जैसे ही वो सिपाही दर्द से बिलबिलाता हुआ ज़मीन पर बैठा, झट से दारोगा और उसके वाकी साथियों की नज़र, पत्थर मारने वाले की तरफ घूम गयी….

उनसे कोई 50-60 मीटर की दूरी पर एक 6 फूटा युवक पठानी सूट में, चेहरे पर घनी लेकिन छोटी सी दाढ़ी थी, उमर कोई 28 साल होती, अपनी कमर पर हाथ रखे खड़ा था. 

फ़ौरन उन चारों की गने उसकी ओर तन गयी.

दारोगा ने उसे अपनी ओर आने का इशारा किया, 

वो जवान, अपने संतुलित कदमों से उनकी तरफ बढ़ा…जब वो उनसे कोई 10 कदम पर आकर रुक गया तो गुर्राते हुए दारोगा उससे बोला- आए ! कॉन है तू..? इसको पत्थर तूने मारा..?

जी जनाब ! मैने ही मारा है. मुझे लगा ये आदमी इस लड़की के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती कर रहा था इसलिए.

दारोगा उसकी साफ़गोई से और भड़क उठा और उसको गाली देते हुए चिल्लाया- कफर की औलाद जानता नही पोलीस के कामों में दखलंदाजी करने का अंजाम क्या होता है..? मे तुझे बताता हूँ.

और उसने एक सिपाही की ओर इशारा करके बोला- मार साले को, इसकी हीरो गिरी निकाल. 

वो सिपाही उस युवक की ओर बढ़ा, और उसके कंधे पर राइफ़ल के हत्थे से एक ज़ोर दार प्रहार किया. वो जवान अपने कंधे को पकड़ के बिलबिला उठा.

बोल हरम्जादे..! हीरो बनेगा..? और एक और प्रहार उसके पेट पर कर दिया. 

दर्द से वो युवक पेट पकड़ कर दोहरा हो गया और गिडगिडाते हुए बोला- मुआफी माई-बाप, अब आइन्दा ऐसा नही करूँगा.

तब तक वो सिपाही उसके पीछे पहुँच गया था, और राइफल के हत्थे की एक और भरपूर चोट उसकी पीठ पर पड़ी. 

चोट काफ़ी जोरदार थी, जिसकी वजह से वो जवान 5-6 कदम आगे तक गिरता हुआ बढ़ गया, जैसे तैसे उसने अपने को आगे की तरफ गिरने से बचाया…
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12-19-2018, 02:23 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
अभी वो सीधा खड़ा भी नही हो पाया था कि एक और प्रहार उसकी पीठ को झेलना पड़ा. 

नतीजा वो अब उस दारोगा के उपर ही गिरने को हुआ, तभी एक साथ तीन काम हुए.

उस युवक ने ये भाँप लिया था कि दारोगा समेत उनकी गने उसकी ओर तनी ज़रूर थी, लेकिन वो अभी तक अनलॉक नही कर पाए थे.

एक जैसे ही वो युवक उस दारोगा के उपर गिरने को हुआ, उसने उस युवक का गिरहवान थाम कर उसे अपने उपर गिरने से रोका.

दूसरा युवक का बाँया हाथ दारोगा के हाथ में पकड़ी हुई गन वाली कलाई पर गया, और तीसरा झुकने का नाटक करते हुए उसने ना जाने कब अपना खंजर अपनी कमर से निकाला और दारोगा के पेट में मूठ तक घुसा दिया.

दारोगा दर्द से अभी ठीक से चीख भी नही पाया था, कि उसकी गन उस युवक के हाथ में आ गई, खंजर को एक राउंड उसके पेट में घुमा कर उसने बाहर खींचा.

भलभलाकार खून की एक तेज धार दारोगा के पेट से उबल पड़ी, उसके छोड़ते ही, वो त्योराकर ज़मीन पर गिरकर तड़पने लगा…
जब तक वो पोलीस वाले अपने दारोगा की हालत देख कर बौखलाए से खड़े अपनी-2 गन को अनलॉक करके चलाने की स्थिति में आते, 

कि एक साथ चार फाइयर हुए और वो चारों भी ज़मीन पर पड़े तड़प्ते नज़र आने लगे.

अभी ये वाकीया हो ही रहा था कि शाकीना की चीख सुन कर उसकी अम्मी और बड़ी बेहन दौड़ती हुई वहाँ पर आ पहुँची. 

शाकीना ने ये मंज़र अपनी आँखों से देखा था, डर के मारे उसकी चीखें लगातार निकल रही थी, वो खड़ी-2 सूखे पत्ते की तरह काँप रही थी.

जैसे ही उसकी अम्मी और अप्पा वहाँ पहुँची, वो भागती हुई अपनी अम्मी के गले से लग कर रोने लगी.

वहाँ का खूनी मंज़र देख कर उन तीनों की हालत जुड़ी के मरीज़ जैसी हो रही थी. जब उस युवक ने शाकीना से पुछा- तुम ठीक तो हो..?

शाकीना ने अपनी गर्दन हां में हिला दी, उसके मुँह से कोई बोल ना निकल सका.

थोड़ा होश में आकर उसकी अम्मी ने उस युवक से कहा- तुम्हारा बहुत-2 शुक्रिया बेटा, जो तुमने मेरी बेटी को बचा लिया इन दरिंदों से, वरना ना जाने ये इसका क्या हश्र करते.

युवक - इसमें शुक्रिया की कोई बात नही है बीबी, ये तो मैने इंसानियत के नाते किया है, जब मैने इनका विरोध किया तो इन्होने मुझे ही मारना शुरू कर दिया, 

तो अपनी जान बचाने के लिए मुझे मजबूरन इन हैवानो को मारना ही पड़ा, वरना ये लोग मुझे मार डालते.

वो तीनों ही उसे किसी फरिस्ते की तरह देख रही थी, फिर कुछ देर बाद अमीना ने पुछा- बेटा तुम्हारा नाम क्या है और कहाँ के रहने वाले हो.

युवक- बीबी ! मेरा नाम अशफ़ाक़ है, मेरा घर यहाँ से दूर गिलगित के पास एक छोटे से गाँव सांप्ला में है, मेरा भरा पूरा परिवार था, 

अम्मी, अब्बू, 3 भाई और 2 बहनें, जिनमें मे सबसे बड़ा था. सभी खुश हाल जिंदगी जी रहे थे.

अब आगे की कहानी अशफ़ाक़ की ज़ुबानी……

मेरे अब्बू और कुछ लोगों ने मिलकर हुकूमत की नाइंसाफी और दहशतगर्दी के खिलाफ आवाज़ उठाने की कोशिश की, 

इसके एवज में हमें आए दिन धमकियाँ मिलती रहती, 
एक दिन मे घर पर नही था तो कुछ फ़ौजी जवानों ने गाँव पर हमला कर दिया और मेरे पूरे खानदान को हलाक़ करके घर को आग के हवाले कर दिया.

उस घटना के बाद से ही अब मे भी इन नकारा हुकूमत के नुमाइन्दो से और फौज से छिप्ता फिर रहा हूँ, ना अब कोई मेरा घर है, और ना कोई ठिकाना.

जहाँ रात हो जाती है, सो जाता हूँ, जब भूख लगती है, तो जो भी मिलता है खाकर पेट की आग को शांत कर लेता हूँ.

लेकिन अब वक़्त की बेरहम मार ने मुझे ऐसा बना दिया है, कि जब भी कोई ज़ुल्म मेरी आँखों के सामने होता दिखता है, मेरे पूरे बदन में आग सुलगने लगती है, और मे उन दरिंदों को उनके अंजाम तक पहुँचा कर ही दम लेता हूँ.

हो सकता है, किसी दिन कोई गोली मेरा भी ख़ात्मा कर दे, लेकिन तब तक मे इन दरिंदों से लड़ता ही रहूँगा.

वो तीनों उस युवक की आप बीती सुनकर इतनी भावुक हो गयी की उनकी आँखों से आँसू निकल पड़े, और वो अपने गमो को छोटा महसूस करने लगी.

तभी अमीना की बड़ी बेटी रेहाना बोली- लेकिन अब क्या होगा, जैसे ही हुकूमत को पता चलेगा कि उनके पोलीस के जवानों को किसी ने हलाक़ कर दिया है, तो वो इस सारे इलाक़े में तबाही मचा देंगे.

मे - आप लोग इनकी फिकर ना करो, मे इन सब को जीप में डालकर यहाँ से 3-4 किमी दूर एक घाटी है, जिसकी पहाड़ी पर एक मोड़ है, मे इन्हें जीप समेत उस पहाड़ी से सेकड़ों फीट गहरी घाटी में फेंक दूँगा, 

पोलीस यही समझेगी, कि नशे और अंधेरे के कारण जीप स्पीड में कंट्रोल नही हुई और मोड़ से घाटी में गिर गयी. आप लोग आराम से अपने घर जाओ.

अमीना - नही बेटा ! अब तुम भी हमारे साथ ही रहोगे, कब तक अकेले यूँही भटकते रहोगे..?

मे - नही बीबी ! मेरी वजह से खंखाँ आप लोगों पर कोई मुशिबत आ बने ये मे नही चाहता.

रहना - वैसे भी हम लोग क्या कम मुशिबत झेलते हैं..! आए दिन ऐसे हादसे लोगों के साथ होते ही रहते हैं, आप हमारे साथ रहोगे तो मूषिबतों का मिल जुल कर सामना कर लेनेगे.

मे - लेकिन मे आप लोगों……!

अमीना - बस बेटा अब और आगे कुछ नही सुनना, तुम्हें हमारे साथ ही रहना है तो रहना है बस… !

मे - तो ठीक है बीबी ! आप लोगों की यही ज़िद है तो मे इन लोगों को ठिकाने लगा कर लौटता हूँ.

अमीना - लेकिन बेटा इतनी दूर से लौट कर आओगे कैसे, पैदल तो बहुत समय लग जाएगा, फिर कुछ सोच कर बोली-

रेहाना तू एक काम कर, अपनी बाइसिकल ले आ, इधर से जीप में डाल कर ले जाना और उधर से तुम दोनो उससे लौट आना.

ये ठीक रहेगा अम्मी, कहकर रहना दौड़ गयी घर की तरफ और कुछ ही देर में साइकल लेकर आ गयी, 

तब तक मैने उन पाँचों को जीप में डाला, और हम तीनों ने मिलकर खून के निशान मिटा दिए.

अंधेरा हो चुका था, साइकल को भी पीछे डालकर, रेहाना को बगल की सीट पर बिठाया और मे चल दिया उन कुत्तों को ठिकाने लगाने,

शाकीना और उसकी अम्मी अपने घर की तरफ बढ़ गयी….!

रेहाना को मैने मोड़ से पहले ही उतार दिया, साइकल नीचे रख के वो वहीं खड़ी हो गयी, मैने जीप स्टार्ट की और उसको स्पीड देकर मोड़ से हल्का सा टर्न दिया और सीधी खाई की तरफ दौड़ा दी.

जैसे ही जीप खाई के पास पहुँची, मैने जीप से जंप लगा दी, और उसको खाई में कुदा दिया, 

किसी पत्थर से टकरा कर जीप में आग लग गयी और जलती हुई जीप उन हरामजादो की लाशों के साथ सेकड़ों फीट गहरी खाई में जा गिरी.

अंधेरे के कारण मेरा शरीर एक पत्थर से जा टकराया, मेरा बाँया कंधा पत्थर की रगड़ से छिल गया था, मेरी कमीज़ भी उस जगह से फट गयी और उसमें से खून रिसने लगा. 

चोट थोड़ी ज़्यादा लगी थी, जिसकी वजह से मे कुछ देर यूँही पड़ा रह गया, फिर थोड़ा हाथ से सहारा लेकर उठा और धीरे-2 रेहाना के नज़दीक पहुँचा, वो साइकल का हॅंडल पकड़े खड़ी मेरा इंतजार कर रही थी.

मुझे कंधे पर हाथ रखे और धीमे कदमों से आते देख उसने साइकल वहीं छोड़ी और दौड़ते हुए मेरे नज़दीक आई, 

मेरा बाजू थाम कर सहारा देते हुए बोली- आप ठीक तो हैं..? हाथ हटाइए ज़रा, और फिर जब उसने मेरे कंधे से खून रिस्ता देखा तो घबरा कर बोली-

अरे आपको तो चोट लगी है..! आप बैठो मे कुछ बाँध देती हूँ इस पर, वरना खून बहता रहेगा, और फिर उसने अपने दुपट्टे से मेरे कंधे के जख्म को बाँध दिया और बोली- 

आपको दर्द हो रहा होगा, आप साइकल पर बैठो मे चलाकर ले चलती हूँ.

मे उसकी मासूमियत पर मुस्करा उठा और बोला- अरे ऐसी चोटें तो आए दिन लगती ही रहती हैं, इसकी मुझे आदत सी हो गयी है तुम चिंता मत करो मे साइकल चला लूँगा, 

फिर साइकल ज़मीन से उठा कर उसकी सीट पर बैठ गया और उसको पीछे कॅरियर पर बैठने को बोला.

जब वो बैठ गयी तो मैने साइकल पर पैदल मार कर आगे बढ़ाया. 

उसका कॅरियर कमजोर सा था, रेहाना के वजन की वजह से वो इधर-उधर लचक्ने लगा, जिसकी वजह से साइकल भी इधर-उधर लहराने लगी.

मुझे साइकल को संभालने में दिक्कत हो रही थी, जिसकी वजह से पैडल पर ज़ोर नही दे पा रहा था.

मैने साइकल खड़ी कर दी, और बोला- ये ऐसे तो नही चल पाएगी, कॅरियर कमजोर है, तुम्हारे वजन से ही कहीं टूट ना जाए, और साइकल भी लहरा रही है, अब तो पैदल ही चलना पड़ेगा. 

और मे एक हाथ से उसका हॅंडल पकड़ कर चलने लगा, रेहाना मेरे बगल में चल रही थी.
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12-19-2018, 02:23 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
थोड़ी दूर ही चले कि रेहाना बोली - इस तरह से तो रात बहुत हो जाएगी घर पहुँचते-2, एक काम करते हैं, मे आगे डंडे पर बैठ जाती हूँ फिर आप आसानी से चला सकते हो.

मैने उसकी तरफ नज़र डाली, तो वो अपनी ही धुन में चली जा रही थी, मानो उसके लिए ये नॉर्मल सी बात हो.

मे - तुम बैठ लोगि डंडे पर..? कोई प्राब्लम तो नही होगी बैठने में..?

वो - नही..! मुझे क्या प्राब्लम होगी, उल्टा पकड़ने को हॅड्ल जो मिलेगा और साइकल का बॅलेन्स भी अच्छा रहेगा.

फिर मैने साइकल खड़ी की और वो उचक कर आगे डंडे पर बैठ गयी, मैने साइकल आगे बढ़ा दी.

उसकी बात सही थी, अब साइकल बॅलेन्स के साथ चल रही थी, मैने पैडल पर दम लगाना शुरू किया और अच्छी ख़ासी स्पीड से साइकल भागने लगी.

रेहाना ने अपने शरीर को बॅलेन्स रखने के लिए अपने घुटने थोड़ा बाहर की ओर रखे थे और डंडे पर वो जांघों और चुतड़ों के जोड़ को रख कर बैठी थी, 
जिसकी वजह से उसके कूल्हे दब कर और ज़यादा पीछे को निकल रहे थे.

पेडल मारने के लिए मुझे दम लगाना पड़ रहा था जिससे मेरी टाँगें भी अंदर की ओर हो जाती थी, इस कारण से मेरी जंघें एक तरफ से उसकी मंशाल जांघों से रगड़ खा जाती और दूसरी तरफ उसके कूल्हे से रगड़ जाती.

वो अपने दोनों हाथों को आगे करके हॅंडल थामे हुए थी. मेरी दोनो जंघें बारी-2 से उसके मंशाल जांघों और कुल्हों से रगड़ रही थी और उपर मेरे दोनो बाजू भी उसके मांसल बाजुओं से सटे हुए थे. 

यौवन से लदी फदि रेहाना के शरीर की गर्मी मेरे शरीर मे उत्तेजना पैदा करने लगी. पप्पू अपना सर उठाने लगा और पाजामे में खड़ा हो गया.

आज ना जाने कितने दिनों के बाद साइकल चलाई थी मैने, सो मेरे हाथ हॅंडल को पकड़े-2 थकने लगे, और मैने अपना सीधा हाथ हॅंडल की मूठ से हटा कर थोड़ा अंदर की तरफ पकड़ लिया जहाँ उसके भी हाथ रखे हुए थे.

मैने जैसे ही अपना हाथ उसके हाथ के पास रखा उसने मेरे हाथ को जगह देने के लिए अपना सीधा हाथ वहाँ से हटा कर हॅंडल के मूठ पर रख लिया.

अब मेरा राइट हॅंड उसके बाजू के नीचे से होकर हॅंडल को थामे था, 

रेहाना भी शायद मेरी तरह उत्तेजित हो रही थी, तो उसने अपने शरीर को और पीछे की ओर कर लिया, अब मेरी बाजू उसके राइट बूब से टच होने लगी.

टच क्या होने लगी, लगभग उसके बूब का आधा बाहरी हिस्सा मेरी बाजू पर रखा था…

जैसे ही मुझे उसकी गदराई मोटी चुचि का एहसास अपनी बाजू के उपर हुआ, मेरे पूरे शरीर में करेंट सा दौड़ गया और मेरा पप्पू और ज़यादा अकड़ कर खड़ा हो गया, 

रहना के पीछे हटने की वजह से वो उसकी पीठ में बगल से जा भिड़ा.

रात का अंधेरा गहराता जा रहा था, उबड़-खाबड़ ख़स्ता हाल सड़क पर साइकल उछल रही थी, जिसकी वजह से दो जवान शरीरों में घर्षण हो रहा था.

मेरी बाईं टाँग उसकी जाँघ से रगड़ती, राइट जाँघ उसके कूल्हे से रगड़ती, राइट बाजू उसकी चुचि से और पप्पू राम उसकी पीठ में होल किए दे रहे थे.

रेहाना अपनी आँखें बंद करके मज़े ले रही थी, बार-2 के घर्षण से मेरे पप्पू का मुँह गीला होने लगा. 

हो सकता है उसकी मुनिया भी खुशी से लार टपका रही हो पर ये कैसे पता लगे.

फिर मैने अपना लेफ्ट हॅंड भी हॅंडल के बीच में कर लिया, 

आप अगर साइकलिंग करते हों, तो आपको पता होगा कि अगर साइकल को स्पीड से चलाना हो तो हॅंडल को बीच में पकड़ के स्पीड से भगाना आसान होता है.

ये शायद रेहाना को भी पता होगा, इसलिए उसने मेरे दोनो हाथों को जगह दे दी, और अपने दोनो हाथ मेरी बाजुओं के उपर से हॅंडल के मुठो पर रख लिए. 

अब मेरी दोनो बाजू उसकी दोनो चुचियों को साइड से रगड़ रही थी, शायद उसे भी ज़्यादा मज़ा आने लगा था, क्योंकि उसके सीने का भर मेरी बाजुओं के उपर बढ़ता ही जा रहा था.

जैसे-2 साइकल अपने मंज़िल की ओर बढ़ रही थी, हम दोनो की उत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी, रेहाना ने अपना लेफ्ट बाजू हॅड्ल से हटा लिया, 

अब वो उसे अपनी जांघों के बीच ले आई, शायद अपनी गीली मुनिया को पोन्छ रही होगी…

अब उसकी एल्बो पीछे से मेरे लंड को दबा रही थी.

अब एक तरफ उसकी मंशाल पीठ की बगल, दूसरी तरफ उसकी बाजू का दबाब, उपर से साइकल की उच्छल कूद, मुझे ऐसा लग रहा था मानो कोई मेरी मूठ मार रहा हो. 

उत्तेजना में मैने साइकल और तेज कर दी और अपनी बॉडी के मूव्मेंट को आगे-पीछे करने लगा, मेरे मुँह से स्वतः ही उउउहह…उउउहह…हूंन.. 

जैसी आवाज़ें आने लगी जैसे कि बहुत मेहनत का काम करते समय निकलती हैं.

रेहाना की आँखें बंद हो चुकी थी, मेरा लेफ्ट हॅंड हॅंडल छोड़ कर उसकी जांघों के बीच पहुँच गया, मेरा हाथ लगते ही उसकी जांघे अपने आप खुलती चली गयी.
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12-19-2018, 02:24 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मैने अपने हाथ को जैसे ही उसकी मुनिया के उपर रखा, मेरा हाथ गीला हो गया, मतलब… वो एक बार झड चुकी थी, और अभी भी लगातार पानी बहा रही थी.

हाथ की रगड़ पाते ही रेहाना के मुँह से एक सिसकी निकल गयी और उसने मेरे हाथ को अपनी जांघों में भींच लिया.

रास्ते का हमें पता ही नही चला कब हम उस जगह पहुँच गये, जहाँ से चले थे, लेकिन तब तक मेरा भी पाजामा गीला हो चुका था…!

घर पहुँच कर जैसे ही साइकल खड़ी हुई, वो उतर कर नज़रें झुकाए घर में घुसने लगी, मैने उसको पुछा- ये साइकल कहाँ रखूं..?

मेरे से बिना नज़रें मिलाए, वो किसी रोबोट की तरह मूडी, मेरे हाथ से साइकल ली और अंदर ले गयी. 

घर में एक लालटेन जला कर रोशनी कर रखी थी.

उसका घर एक सामान्य रहने लायक साधारण सा घर था, आगे एक वरामदा जैसा था, उसके बाद एक बड़ा सा कमरा, उसके पीछे एक रसोई जैसी बनी थी.

वरामदा से ही साइड में दूसरा कमरा वो भी काफ़ी बड़ा था, जिसके दो गेट थे, एक वरामदा से था और दूसरा पीछे की ओर किचेन से था.

किचेन को कमरों से होकेर ही जाया जा सकता था. 

अमीना बी और शाकीना भी हमें देख कर बाहर आ गयी. 

सबसे पहले अमीना बी ने शाकीना को बोल कर मेरे लिए गुनगुना पानी वरामदे के ही साइड में बने एक ओट से में बड़ा सा पत्थर डाल कर रखा था उस पर रखवा दिया.

अमीना बी मेरे कंधे की चोट को देखकर बोली - ओह्ह.. तुम्हें तो चोट लगी है बेटा, जाओ पहले ये कपड़े उतार कर पानी से अपने बदन को साफ कर्लो, फिर मे तुम्हारी दवा दारू कर देती हूँ. 

और शाकीना ! बेटी वो देख असलम के कपड़े रखे होंगे उसमें से एक जोड़ी ले आ.
मैने अपनी कमीज़ उतार कर साइड में रख दी और अपने शरीर को गरम पानी से साफ किया, 

मेरे पीछे खड़ी दोनो बहनें मेरी चौड़ी पीठ को देख कर ही मेरे शरीर की बनावट का अनुमान लगा रही थी.

पाजामा मैने नही उतारा, क्योंकि वो साला लंड के पानी से गीला हो रहा था.

अमीना बी ने कुछ जड़ी बूटियाँ पत्थर पर पीस कर मेरे जख्म पर रख दी, बड़ी जलन सी हुई, मेरे मुँह से ना चाहते हुए सीत्कार निकल गयी, 

वो बोली- बेटा ये शर्तिया दवा है, थोड़ा जलेगा ज़रूर लेकिन देखना सुबह तक ही ये आधा ठीक हो चुका होगा.

फिर एक कपड़े से जख्म को बाँध दिया, और मैने असलम की कमीज़ को पहन लिया जो मुझे टाइट पड़ रही थी, पर जैसे-तैसे आ गयी. 

कमीज़ में से मेरा आधा सीना बाहर दिख रहा था, जिसे रेहाना नज़र गढ़ाए देखे जा रही थी गुम सूम सी खड़ी. 

यहाँ आने के बाद से ही उसने मुझसे नज़र ही नही मिलाई थी, शायद रास्ते में हुए उत्तेजक एनकाउंटर की वजह से उसे शर्म आ रही थी.

हमारे लौटने तक माँ बेटी ने खाना बना के रखा था, हम सबने खाना खाया, और आपस में कुछ देर बात-चीत करते रहे, 

मैने उनसे उनके परिवार के बारे में पुछा जो उन्होने मुझे सब डीटेल में बता दिया.

रात काफ़ी हो चुकी थी, सो अमीना बी ने मेरे सोने के लिए साइड वाले कमरे में बिस्तेर करने को बोला, मैने कहा में वरामदे में ही सो जाउन्गा, आप लोग अंदर अपने हिसाब से सो जाओ.

उन्होने मेरी बात मान ली और एक चारपाई पर मेरा बिस्तेर लगा दिया, और वो लोग अंदर चली गयी सोने, 

अमीना और शाकीना दोनो माँ-बेटी सामने वाले कमरे में सोती थी और रेहाना अकेली साइड वाले कमरे में.

मे बिस्तर पर लेटते ही गहरी नींद में डूब गया, क्योंकि पूरे दिन की थकान से बदन टूटा पड़ा था, उपर से 4 किमी डबल सवारी साइकल खींची थी, जो ना जाने कितनी मुद्दतो के बाद चलाई थी, मेरी जांघें एक दम टाइट हो रखी थी साइकल चलाने से.

वैसे तो मार्च एप्रिल का महीना था, लेकिन वो इलाक़ा एक तो पहाड़ी था, उपर से उत्तरी छोर पर, तो आधी रात से ही मौसम ठंडा सा हो जाता था, 

नींद की वजह से में कुछ ओढ़ भी नही पाया था, तो ठंड से में उकड़ूं लेटा पड़ा था, मेरे दोनो घुटने पेट से लगे पड़े थे.

पता नही रात का कौन सा प्रहार हुआ होगा, कि मुझे अपने बालों में किसी की उंगलियों का स्पर्श महसूस हुआ, शरीर पर भी एक कंबल पड़े होने का एहसास हुआ, मेरी नींद टूट गयी और मैने धीरे से अपनी पलकें खोली..

अमीना बी मेरे सर के पास चारपाई पर बैठी मेरे सर को सहला रही थी, और मेरे सोते हुए मासूम से चेहरे को देखे जा रही थी.

मैने जान बूझकर करवट बदली और उसकी तरफ मुँह करके अपना हाथ उसकी जांघों पर रख दिया, अमीना बी का शरीर हल्के से काँपा जो मुझे महसूस हुआ, 

फिर उसने मेरे चेहरे पर नज़र डाली, जब मुझे सोते हुए पाया तो झुक कर मेरे माथे पर एक चुंबन लिया जिससे उनकी भारी अधेड़ चुचियाँ मेरे सर से दब गयी.

कितनी ही देर वो इसी पोज़िशन में झुकी रही मेरे उपर और मेरे सर और गालों को सहलाती रही, 

मेरा हाथ जो शुरू में सीधा था जो उसकी दूसरी जाँघ तक चला गया था, मैने खींच कर उसके जांघों के बीच में कर लिया, अब मेरे हाथ और उसकी चूत के बीच कुछ ही इंच का फासला बचा था.

उसने अपने गान्ड को थोड़ा खिसका कर नीचे को किया और मेरे हाथ को पकड़ कर अपनी चूत के उपर दवा दिया, अब मेरा मुँह भी उसकी कुरती के उपर से ही उसके पेट के बगल में घुसा हुआ था और वो मेरे उपर झुकी हुई थी.
मेरा पप्पू ये सब कहाँ झेलने वाला था, औरत के अंगों का स्पर्श पाते ही औकात में आ गया.
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12-19-2018, 02:24 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
अमीना बी की वासना जो ना जाने कब से दबी पड़ी थी, एक जवान मर्दाने बदन के एहसास से भड़क उठी, 

उसने अपने पैरों को भी चारपाई के उपर रख कर मेरे बगल में ही अढ़लेटी सी पड़ गयी और अपना एक हाथ कंबल के अंदर डाल कर मेरे शरीर को धीरे-2 सहलाने लगी.

जैसे-2 उसका हाथ नीचे की ओर बढ़ रहा था मेरी उत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी, 

आख़िर में उसका हाथ अपनी मंज़िल पर पहुँच ही गया और जैसे ही उसका हाथ मेरे लंड से लगा, एक ठुमका सा मारकर उसने उसके हाथ पर झटका दिया.

अमीना बी को कुछ शक हुआ तो उसने मेरे चेहरे की ओर देखा, लेकिन अब भी मुझे नींद में देख उसने मेरे लंड को मुट्ठी में ले लिया. 

लंड का आकार महसूस कर उसकी चूत पनियाने लगी, और मुँह ही मुँह में बुदबुदाकर उसने मेरे पप्पू की तारीफ की.

अब वो उसे पाजामे के उपर से ही सहला रही थी, ना जाने उसने क्या सोचा, अपनी सारी झिझक छोड़कर उसने मेरे पाजामे की डोरी खोल दी और नंगे लंड को अपनी मुट्ठी में भरके मुठियाने लगी, 

मेरा भी अब लंड जबाब दे गया और उसने मुझे आदेश दिया कि अब तू भी खुलके मैदान में आ जा.

मेरा हाथ उसकी भारी भरकम चुचियों पर चला गया और उन्हें ज़ोर से मसल दिया, अमीना बी के मुँह से आहह… निकल गयी और मेरी ओर देखा, 

अब मैने भी अपनी आँखें खोल ली थी.

उसने अपना हाथ पाजामे से बाहर खींच लिया और उठने लगी, तो मैने उसकी कमर में हाथ डाल कर अपने से सटाते हुए कहा- अब कैसी शर्म बीबी… 

इतना सब कुछ करने बाद अब पीछे हटने का क्या मतलब, अब और थोड़ा वाकी है उसे भी हो ही जाने दो.

मेरी बात सुन कर वो मेरे सीने से चिपक गयी और फिर उसकी दबी कुचली वासना इस कदर बाहर निकली कि सारे बंधन तोड़ कर खूब बही, और ऐसी बही कि उसकी टाँगें चूत और लंड रस से सराबोर हो गयी….!! 

वो चुदाई में खो सी गयी…

मुद्दत के बाद उसे लंड मिला था, और वो भी एक जवान का लंड जिसने उसकी मुरझाई हुई चूत की अंदर तक ऐसी सेवा की, कि वो फिर से हरी भरी हो गयी.

पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद वो मेरे गाल चूमकर अपने बिस्तेर पर चली गयी और में फिर से गहरी नीद में चला गया…..!!
दूसरे दिन लेट तक सोने के बाद मे उठा, थोड़ा बहुत घर के कामों में हाथ बँटाया, इन लोगों ने तो मना किया लेकिन मैने उन्हें मजबूर कर दिया मदद लेने के लिए.

दिन में शाकीना जानवरों को चराने ले गयी, मे उसके आस-पास ही रहा, लेकिन कोशिश ये रही कि कोई मुझे नोटीस ना करे…

वैसे तो इनका घर अलग-थलग था, लेकिन फिर भी खंखा की मुशिबत फिलहाल गले पड़े, ये मे नही चाहता था…

शाम को मैने उनको बोला कि मे थोड़ा घूम फिरके आता हूँ, कुछ अपने लिए कपड़े वग़ैरह का इंतज़ाम करता हूँ, 

अमीना ने मुझे जगह बताई और पैसे देने लगी, तो मैने कहा कि नही मे इंतेज़ाम कर लूँगा.

रेहाना की साइकल उठाई और चल दिया बस्ती की तरफ, 

कबीले के दूसरी ओर एक सुनसान जंगल में एक छोटा सा खंडहर था, शायद कोई पुराने जमाने में किसी का चरागाह रहा होगा…

इसमें कई गुप्त स्थान ऐसे थे जो बारीकी से ढूढ़ने पर ही खोजे जा सकते थे, 

आजकल ऐसे ही एक जगह मैने अपना अड्डा बना रखा था. वहाँ मैने अपने सारी ज़रूरत की चीज़ें छिपा रखी थी.

एक हल्के वजन की स्पोर्ट्स बाइक भी ले ली थी यहाँ आकर, वो भी वही छिपा रखी थी. 

मेरा खंजर और दारोगा से छीनी हुई गन तो वहाँ ही थी सो और कोई हथियार लेने की तो ज़रूरत ही नही थी, तो 3-4 जोड़ी कपड़े और कुछ पैसे लेकर मे लौट लिया.

वापस घर पहुँचते-2 अंधेरा छा गया था. मैने थोड़ा गरम पानी कराया और आज कई दिनों के बाद ढंग से नहाया और कपड़े चेंज किए.

नहा धोकर, मैने चारपाई बाहर खुली जगह में बिच्छाई और उस पर बैठ कर अपने प्लान के बारे में सोचने लगा. 

रेहाना थोड़ी दूर पर ही जानवरों के बाडे में कुछ कर रही थी, कश्मीरी सूट में वो बहुत सुंदर दिख रही थी.

निकाह को एक साल भी नही बीता था कि बेचारी को अपने शौहर से बिछड़ना पड़ा था, डेढ़-दो साल से ना जाने कैसे वो अपनी जवानी को संभाले हुए थी.

वो झुक कर कुछ कर रही थी, शायद सुखी घास जानवरों को डाल रही होगी, अंधेरे में इतनी दूर से कुछ साफ-साफ दिखाई नही दे रहा था.

मे उठ के उसकी तरफ चल दिया, नज़दीक से उसके सुडौल कूल्हे दो बड़े-बड़े बॉल जैसे झुकने की वजह से साफ-2 दिख रहे थे, सूट कुछ ढीला होने की वजह से बीच की दरार हल्की सी दिखाई दे रही थी.

मैने उसके पीछे पहुँच कर उसको आवाज़ दी, तो वो चोंक कर खड़ी हो गयी और मेरी ओर मुड़कर नज़रें झुकाए बोली- जी अशफ़ाक़ साब ! कोई काम था..?

मे - नही मुझे कोई काम नही था, क्या तुम्हें मेरी कोई मदद चाहिए..?

वो - नही ऐसा कोई भारी काम नही है, बस थोड़ी सी घास जानवरों के आगे डाल देती हूँ, रात में खाते रहेंगे, आप चलो मे अभी डाल के आती हूँ.

मे - रेहाना ! ना जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम मेरे यहाँ रहने से खुश नही हो…!

मेरी बात पर वो एकदम चोंक कर बोली - क्यों..? आपको ऐसा क्यों लगा..?

मे - जबसे आया हूँ, ना तो तुमने मुझसे कोई बात की है और ना ही मेरे पास बैठी हो, दूर ही दूर रह रही हो…! 

मुझसे डर लग रहा है तुम्हें कि मे कुछ ग़लत ना कर दूं तुम्हारे साथ..?

वो – ये क्या कह रहे हैं आप..? प्लीज़ ऐसा कुछ सोचना भी मत..! 

वो बस साइकल पर जो अंजाने में मेरे से हो गया तो उसकी वजह से मुझे आपसे बात करने में हया आ रही है, और कुछ नही…!
मे - तुमसे हो गया मतलब.. क्या हुआ था..? मुझे तो ऐसा कुछ नही लगा कि तुमसे कुछ हुआ था..? अब आगे बैठने से इतना तो हो ही जाता है, इसमें हया आने जैसी तो कोई बात नही हुई..? 

अब तक उसका काम ख़तम हो गया था, हम बातें करते हुए वापस घर की तरफ आ गये, 

मे आकर चारपाई पर बैठ गया, वो अंदर जाने लगी तो मैने कहा- 

देखो अभी भी मेरे साथ नही बैठना चाहती हो, ये नाराज़गी नही तो और क्या है..?

वो - नही ! नही ! प्लीज़ आप ऐसी बातें मत करिए, बस यूँही, शायद अम्मी को मेरी कुछ मदद लगे इसलिए जा रही थी.

मे उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ बिठाते हुए बोला - छोड़ो उसे ! ऐसा क्या ज़्यादा काम होगा, वो दो हैं कर लेंगी, आओ बैठो कुछ बातें करते हैं.

वो मेरे साथ सकुचती सी बैठ गयी.. कुछ देर हम दोनो के बीच चुप्पी छाइ रही, 
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12-19-2018, 02:24 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
वो नज़रें झुकाए बैठी रही मे उसकी ओर देखता रहा फिर पहल करते हुए मैने कहा- तुम्हारे शौहर इस समय कहाँ हैं..?

मेरी बात सुनकर उसने झटके से मेरी तरफ देखा, और बोली - स्यालकोट की जैल में हैं..!

मे – कभी मिलने नही जाती हो उनसे..?

वो - गये थे एक दो बार, लेकिन वो मर्दुद मिलने ही नही देते..! 

मे - तुम्हें अपने शौहर की याद तो आती होगी..!
मेरी बात सुन कर उसकी आँखें भर आई, और ना चाहते हुए उसकी रुलाई फुट पड़ी और रोते हुए बोली – 

बहुत आती है, वो बहुत अच्छे और नेक इंसान थे, मुझे बहुत प्यार करते थे.

मैने उसे चुप कराते हुए उसे अपने कंधे से सटा लिया और उसकी पीठ पर प्यार से सहलाते हुए कहा- क्या अब भी तुम उनका इंतजार कर रही हो..?

वो - साँस हैं तब तक आस तो रहेगी. लेकिन अब लगता है कि हम कभी नही मिल पाएँगे, और सूबकती हुई मेरे सीने से लग कर रोने लगी. 

उसकी बाहें मेरे इर्द-गिर्द कसने लगी थी.

मे - चुप हो जाओ रेहाना ! खुदा ने चाहा तो तुम दोनो ज़रूर एक होगे, और मे उसकी पीठ को सहलाते हुए उसकी कमर तक हाथ ले आया.

वो मेरे साथ और चिपक गयी और मेरे चेहरे की ओर देख कर बोली – खुदा अगर यही चाहता होता तो ऐसा होता ही क्यों..? 

अपनी जान बचाना कोई गुनाह तो नही था, तो क्यों हुकूमत ने उन्हें जैल में डाला.

खुदा हर सच्चे इंसान का इम्तेहान लेता है, मैने उसे अपने से और सटाते हुए कहा - 

अब उसकी कड़क, लेकिन मुलायम चुचियाँ मेरे सीने में दबने लगी थी, 

मेरा एक हाथ उसकी कमर के निचले हिस्से को सहला रहा था और दूसरा उसकी जांघों पर.

फिर मैने उसकी चिन को अपने हाथ से उपर उठा कर उसकी झील सी नीली आँखों में झाँकते हुए कहा- अगर मे ये कहूँ कि तुम दोनो ज़रूर एक होगे तो..?

वो - क्या ये मुमकिन हो सकता है..?

मे - तुम्हें यकीन है मुझ पर…?

पता नही उसको क्या हुआ..कि उसने मेरे होठों को चूम लिया और बोली- सच कहूँ तो कल की घटना के बाद से ही ना जाने क्यों ऐसा लगने लगा है, कि खुदा ने हमारी कुरबत दूर करने के लिए ही इस फरिस्ते को हमारे पास भेजा है. 

मे – नही ! मे कोई फरिस्ता-वरिस्ता नही हूँ, और ना ही मैने कभी इन बातों पर यकीन किया है, 

लेकिन हां ये हो सकता है कि शायद खुदा की यही मेर्जी रही हो कि मे तुम्हारी जैसी नेक और खूबसूरत औरत के कुछ काम आ सकूँ.

वो मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली- क्या मे खूबसूरत हूँ..? 

मे - बहुत..! ये कहकर मैने उसके पतले रसीले होठों को चूम लिया. 

वो भी यही चाहती थी, सो मेरा साथ चुंबन से देने लगी. 

कुछ ही देर में चुंबन चुसाई में बदल गया, मेरा एक हाथ उसकी एक चुचि पर चला गया और उसे सहलाने लगा. 

अभी और कुछ आगे हो पता कि तभी उसकी अम्मी ने आवाज़ दी, खाना तैयार है खा लो.

हम दोनो अलग हुए वासना की खुमारी उसकी आँखों में उतर आई थी, अनमने मन से हम उठकर खाना खाने के लिए अंदर चले गये….!

आधी रात को मुझे लगा कि कोई मेरे पास बैठा है, मैने आँखें खोल कर देखा तो रेहाना मेरे गाल पर हाथ रख कर सहला रही रही थी, 

मुझे जागते देख उसने मुझे चुप रहने का इशारा किया और मेरा हाथ पकड़ कर उठने का इशारा किया.

वो मुझे अपने कमरे में ले आई, और गेट बंद करके मुझे पलग पर बिठा दिया और खुद मेरी गोद में बैठ गयी, 

मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर बोली- अशफ़ाक़ साब ! आप किस तरह मेरे शौहर को जैल से निकालेंगे..?

मैने अपने दूसरे हाथ को उसकी कमर में लपेटते हुए कहा - अभी मे इस बाबत कुछ नही बता सकता, मुझे उस जैल का मुआयना करना होगा तभी कुछ कह पाउन्गा. 

वैसे तुम्हारे शौहर का नाम क्या है..?

रहमत अली.. उसने बताया, फिर मैने उसके माल पुआ जैसे गाल पर किस करते हुए पुछा- उनकी कोई तस्वीर है तुम्हारे पास..?

हां है तो सही, हमारे निकाह की एक तस्वीर है मेरे पास उसने कहा.

मे - वो मुझे दे देना, पर मे कोई ये वादा नही कर सकता कि ये काम कब तक होगा..! लेकिन होगा ज़रूर ये मेरा वादा है तुमसे, चाहे इसके लिए मेरी जान ही क्यों ना चली जाए…!

उसने तुरंत मेरे मुँह पर अपना हाथ रख दिया.. और दबदबाई आँखों के साथ बोली – इस कीमत पर कतई नही..! 

चाहे हम दुबारा ना मिलें लेकिन खुदा के लिए ऐसा मत करना, आपको खुदा का वास्ता.

मैने उसके होठों को अपने मुँह में लेकर चूस लिए और उसकी कठोर चुचियों को मसल्ते हुए कहा- ये नौबत नही आएगी रेहाना तुम बेफ़िक्रा रहो. 

उसकी आहह.. निकल गयी और सिसकते हुए बोली - सीईइ.. आहह… वादा करो मुझसे… कि आप ऐसा कोई कदम नही उठाएँगे जिसमें आपकी जान जोखिम का ख़तरा हो. 

मैने उसके कुर्ता को उतार कर एक ओर डाल दिया और उसके बिना ब्रा के गुलाबी रंगत लिए अनारों को चूमते हुए कहा- वादा मेरी जान ! आहह… सच में तुम कितनी हसीन हो, लेकिन तुम्हें भी मेरा साथ देना होगा..!

आहह.. सीयी…हहूउकुम्म्म.. करो मेरे दिलवर..! आपका हर हुकुम सर आँखों पर..!

उसकी गर्दन को चूमते हुए मैने कहा… तो फिर तुम्हें अपने आपको हर ख़तरे का मुकाबला करने के लिए अपने आपको तैयार करना होगा.

आहह… उफ़फ्फ़.. ये कैसे होगा..??

मे तैयार करूँगा तुम्हें, और उसको अपनी बाहों में लिटा कर उसके पेट को चूम लिया..! 

तुम्हारा ये नाज़ुक बदन एक महीने में ही ऐसा हो जाएगा कि तुम किसी भी मर्द का सामना बड़ी आसानी से कर सकोगी..

ससिईइ…उउउहह… आअहह… क्या सच में ऐसा हो सकता है..?

अब मैने उसको बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी नाभि के चारों ओर अपनी उंगली को घुमाते हुए कहा- बिल्कुल ऐसा ही होगा..! 

मेरे ऐसा करने से उसका पतला सा पेट थरथराने लगा…,
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12-19-2018, 02:24 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
उसकी नसीली आँखों में एक अजीब सी चाहत तैर रही थी, मानो कह रही हो कि आ जाओ और समा जाओ मुझमें अब और सब्र नही होता.

उसकी झील सी आँखों के पलकों पर चुंबन लेकर में बोला- तुम्हारा अंग-2 कितना हसीन है रेहाना, क्या इसे अपनी खुशी से मुझे सौंपना चाहोगी..?

आहह… मेरे दिलवर… ये तो कब्से आप में सामने को बेकरार है, अब और ना तरसाओ, समेट लो इसे अपनी बाहों में..!

फिर मैने देर नही की और उसके हसीन बदन को उपर से नीचे तक चूमता चला गया, 

जब मैने उसकी चूत को उसकी सलवार के उपर से चूमा तो वो बैठ कर दोहरी हो गयी और मुझे खींच कर मेरे होठों पर टूट पड़ी.

होठ चूसने के साथ-2 मैने उसकी सलवार भी उतार दी, बिना पेंटी की उसकी छोटे-2 बालों वाली गुलाबी चूत देख कर मेरा लंड ठुमके लगाने लगा.

मैने अपने कपड़े भी उतार दिए और मात्र अंडरवेर में उसके दोनो टॅंगो के बीच आकर जम गया.

वो मेरी चौड़ी छाती देख कर एक बार फिर उठकर बैठ गयी और कस कर मेरे सीने से लिपट गयी. उसका उतावला पन देख कर मेरे चेहरे पर स्माइल आ गयी.

उसकी रसीली चूत को हाथ से सहला कर उसकी जांघों के नीचे हाथ ले जाकर उसकी कमर को उपर उठाया और अपनी जीभ को जैसे ही उसकी चूत के उपर फिराया, उसकी सिसकी फुट पड़ी, ना चाहते हुए उसके मुँह से एक आहह.. निकल गयी…!

आअहह…आशफ़ाक़…. ससिईइ…उफफफफ्फ़…प्लस्सस्स…उऊहह…हाईए…चतूऊ..ईससीई…

उसकी पवरोटी जैसी चूत को अपनी मुट्ठी में लेकर भींच दिया… उसकी कमर हवा में लहरा उठी और उसने पानी छोड़ दिया..

हाँफती हुई वो मेरे सीने से एक बार फिर लिपट गयी और मेरे लंड को मुट्ठी में लेकर ज़ोर से मसल दिया…!

आअहह… क्या करती हो… नाराज़ हो जाएगा ईए…!

होने दो मना लूँगी उस्सीए…!

मे - कैसे…, तो उसने फ़ौरन मेरा अंडरवेर उतार फेंका और मेरे लंड को मुँह में भरके चूसने लगी, और मेरी आँखों में देख कर इशारा किया मानो कह रही हो ऐसे…!

कुछ देर लंड चूसने से वो इतना कड़क हो गया मानो कोई स्टील की रोड हो, अब वो किसी कठोर से कठोर चीज़ में भी पार हो सकता था.

मैने रेहाना को लिटा दिया और उसकी चूत पर थूक लगा कर अपने मूसल को एक बार हाथ से सहलाया और उसकी चूत के छेद पर रख कर हल्का सा पुश किया.

रस से लबरेज़ चूत मेरे लंड के सुपाडे को गडप्प से निगल गयी. रेहाना की आँखें मज़े से बंद हो गयी, मैने कस कर एक धक्का लगाया.

उसके मुँह से एक कराह निकल पड़ी, मेरा तीन चौथाई लंड उसकी डेढ़ साल से भूखी चूत में समा गया. उसको दर्द होने लगा और कराह कर बोली-

प्लीज़ अशफ़ाक़ ! धीरीए… आअहह… दर्द हो रहा है.. थोड़ा आराम सीई….

मैने उसके होठ चूमते हुए एक और धक्का दे दिया और मेरा पूरा 8” लंबा लंड उसकी सन्करि चूत में फिट हो गया, 

मज़े और दर्द के मिले जुले भाव उसके चेहरे पर साफ-साफ दिखाई दे रहे थे.

मैने उसकी चुचियों को मसलना शुरू कर दिया, उसकी मादक सिसकियाँ कमरे में गूंजने लगी लेकिन धीमे से, ताकि बाजू वाले रूम में सोई हुई उसकी अम्मी और छोटी बेहन ना सुन पाए… 

जैसे-2 मेरे धक्के स्पीड पकड़ते जा रहे थे, उसकी सिसकियों की मात्रा भी बढ़ती जा रही थी, 

अब वो भी नीचे से अपनी कमर उचका-2 कर पूरे मज़े लेकर चुद रही थी. 

थोड़ी देर में ही उसकी रसभरी गागर छलक गयी, दो मिनट उसकी चूत में लंड डाले रहने के बाद मैने उसको अपने उपर बिठा लिया, 

उसके गोल-मटोल चुचियाँ मेरी नज़रों के सामने थी उनको अपने दोनो हाथों में जो एक दम माप की थी लेकर मीजने लगा.



उसकी कमर उपर-नीचे हो रही थी, वो पूरी लंबाई के शॉट ले रही थी, पूरे लंड को सुपाडे तक बाहर लाती, फिर पूरा ले जाती…

कुछ देर तक ये चला, लेकिन उसकी ये कोशिश मेरे लौडूराम को रास नही आई, उसे तो कुछ बिस्फोटक चाहिए था,

सो उसको घोड़ी बना कर मैने लगाम अपने हाथ में ले ली और जो एक बार सरपट दौड़ाया,

वो घोड़ी की तरह हिन-हिनाने लगी, और अपनी गान्ड को मेरे मूसल पर पटक-2 कर चुदने लगी.

मेरी जांघे थप्प-2 उसके गोल सुडौल गान्ड पर थपकी देते हुए मधुर ताल दे रही थी.

आधे घंटे की धुआँधार चुदाई के बाद हम दोनो ही भरभरा कर जो बरसे, मानो बाढ़ ही आ गई थी, 

उसकी जांघों से बहता हुआ रस बूँद-बूँद करके बिस्तर को गीला करने लगा, पूरे दो मिनट तक झड़ने के बाद वो पेट के बल बिस्तर पर पसर गयी, और में उसके उपर ही पड़ गया.

10 मिनट के बाद मैने अपना मूसल उसकी चूत से बाहर खींचा, एक पुच की आवाज़ आई और मे उसकी बगल में लेट गया, 

उसकी गोल-2 सुंदर सी गान्ड को सहलाते हुए मैने उसे पुछा- रहना ! मज़ा आया…?

वो - बहुत..! इतना मज़ा तो मेरे शौहर के साथ भी कभी नही आया था, सच में. आप पता नही क्या हो..?

फिर उसने मुझे पुछा – आपको कैसा लगा मेरे साथ…?

मैने उसकी चुचि सहला कर कहा – तुम वाकाई में एक शानदार और खूबसूरत औरत हो, तुम्हारे साथ चुदाई में मुझे बहुत मज़ा आया…

कुछ देर ऐसी ही बातें करते रहे और एक दूसरे को गरम करते रहे, 
धीरे-धीरे एक बार फिर वासना की खुमारी चढ़ने लगी, रहना इस लम्हे को खुलके जी लेना चाहती थी, 

सो अपने बीते दिनों के गमों को बिस्तर के नीचे दबाकर मेरे साथ एक बार फिर खुलकर चुदाई का आनंद लूटने लगी….

उसको दो बार पूरी तरह संतुष्ट करने के बाद में अपने बिस्तेर पर आकर सो गया…!

अगली दिन मैने अमीना बी से कहा – बीबी मे चाहता हूँ, आपकी दोनो बेटियों को इस काबिल बनाया जाए कि वो अपनी हिफ़ाज़त खुद कर सकें.

अमीना- ये क्या बात हुई भला..? ये कैसे मुमकिन है कि कोई लड़की इतनी ताक़तवर हो जाए कि वो मर्दों से मुकाबला कर सके..?

मे - रज़िया सुल्तान का नाम सुना है आपने..?

अमीना - हां सुना तो है, पर वो तो एक सल्तनत की मल्लिका थी.

मे - तो क्या हुआ..? थी तो लड़की ही ना..! फिर कैसे उसने मर्दों पर हुकूमत की ? और भी बहुत से नाम हैं हिंदुओं के इतिहास में जहाँ औरतों ने वो काम किए, जिन्हें कोई मर्द कभी करने की सोच भी नही पाया.
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12-19-2018, 02:24 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
एक बार पक्का इरादा हो तो सब कुछ मुमकिन है, वो सब आप मुझ पर छोड़ दो, कि कैसे क्या करना है, आप सिर्फ़ हां बोलो, फिर देखो ये आपकी दोनो बेटियाँ 10-10 पर भारी ना पड़ें तो कहना..!

शाकीना - सच अशफ़ाक़ साब ये मुमकिन है..?

मे - हां मेरी छुइ-मुई गुड़िया बिल्कुल मुमकिन है..! क्यों बीबी क्या कहती हो..?

अमीना - मे क्या बोलूं बेटा, इनसे ही पुछो क्या ये तैयार हैं इसके लिए..?

मे - क्यों रहना, शाकीना क्या कहती हो..?

रहना - क्या करना होगा हमें..?

मे - ज़्यादा कुछ नही जैसे मे तालीम दूँगा, वैसे ही करना है तुम्हें, और हां आज से दूध और घी की मात्रा खाने में बढ़ानी होगी.

अमीना – खुदा के फ़ज़ल से इस चीज़ की तो अपने यहाँ कोई कमी नही है, लेकिन ये मर्जानी खाती नही हैं..!

मे - आज से खायेंगी..! क्यों खाओगी ना तुम दोनो.. 

दोनो ने हां में मुन्डी हिला दी..

तो फिर अब देखो मे तुम्हें क्या से क्या बनाता हूँ..? 

अब फटाफट घर के काम में बीबी का हाथ बँटाओ, उन्हें ख़तम करके अपने जानवरों को चराने किसी ऐसी जगह ले चलेंगे जहाँ आम तौर पर कोई आता जाता ना हो.

हम क्या कर रहे हैं, किसी को कानो-कान खबर नही होनी चाहिए ठीक है.

वो दोनो ये सब करने के लिए एक्शिटेड लग रहीं थी, सो जल्दी-2 घर के काम निपटा कर खाना वाना ख़ाके जानवरों को लेकर हम चल दिए एक पहाड़ी मैदान की ओर, जिधर कोई कभी-कभार ही निकलता था.

वहाँ पहुँच कर जानवरों को छोड़ दिया घास खाने, मे कुछ देर इधर-उधर वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य को देखता रहा.

ये एक झरने के पास एक छोटा सा हरा-भरा सा मैदान था, ज़्यादा समतल तो नही पर ठीक था, जानवर अपने घास खाने में लगे थे.

कुछ देर में धूप भी थोड़ी कम हो गयी, और खाना खाए हुए भी काफ़ी टाइम हो गया तो मे उन दोनो को लेकर एक्सर्साइज़ करने में लग गया.

दो घंटे मैने उनका पूरा शरीर थका दिया, साथ में अपना भी. 

पहला-2 दिन शौक-2 में वो मेरे साथ-2 जैसे मे करता गया, करती गयी. शाम को घर लौटते-2 उनके शरीर थक कर चूर हो गये थे.

घर आकर जम के खाना खाया, फिर सोने से पहले के एक-एक लीटर गरमा-गरम दूध घी और अंडा (एग) डालकर हम तीनों ने पिया और सो गये.
दूसरे दिन उन दोनो का उठने का मन ही नही हो रहा था, पूरा बदन दर्द से टूट रहा था, 

मैने ज़बरदस्ती उनको गुदगुदाके उठाया, शाकीना कुछ ज़यादा नखरे कर रही थी.

पेट के बाल उल्टी लेटी थी वो, उसकी 32 की गोल-मटोल गान्ड उपर को उठी हुई बड़ी मनमोहक लग रही थी. 

पहले मैने उसकी गान्ड की चोटी पर हाथ का दबाब देकर हिलाया, वो कुन्मुना कर रह गयी. 

फिर मैने उसके बगल में ठीक उसकी चुचियों के पास अपनी उंगलियों से गुदगूदाया.

तो उसने अपने बाजुओं को भींच कर मेरे हाथ को दबा दिया, जब और थोड़ा आगे बढ़ते हुए जब उसकी चुचियों को साइड से सहलाया तो वो झट से सीधी हो गयी और मुस्करा कर उठ बैठी.

फ्रेश होकर वो दोनो घर के कामों में लग गयी.

दोपहर ढलते – ढलते फिर जानवरों को लेकर हम वहीं पहुँचे, और लग गये एक्सर्साइज़ करने, शुरू-2 में तो वो आनाकानी कर रही थी, लेकिन मैने अपने तरीक़े से उनको शुरू करा दिया.

कुछ ही देर में उनका शरीर खुल गया और वो मन लगा कर एक्सर्साइज़ करने लगी.

इसी तरह मैने उनको 10 दिन लगातार जम कर एक्सर्साइज़ करवाई, जब उनका शरीर एक्सर्साइज़ के मुतविक ढल गया तब मैने उनको योगा और ध्यान के टिप्स दिए. जिससे अपने को किसी भी पोज़िशन में कोन्स्टरेट करने में आसानी हो सके.

साथ-2 फाइटिंग भी करवाना भी शुरू कर दिया. 15 दिनों में ही उन दोनो को इसमें इंटेरेस्ट आने लगा, और वो अपने से ही ये सब करने लगी, 

अब तो घर में भी दोनो आपस में फाइट प्रॅक्टीस और दूसरी एक्सर्साइज़ करने लगी जब भी मौका लगे कि शुरू हो जाती.

कोई एक महीने की मेहनत और मशक्कत के बाद ही वो शेरनी बन गयी. 
एक दिन मैने अमीना बी से कहा-

बीबी देखना चाहोगी आपकी बेटियाँ क्या गुल खिलाने लगी हैं..?

वो शंकित स्वर में बोली- हाए बेटा ये क्या कह रहे हो तुम..?

मे - यकीन नही है तो खुद देख लो…!

और मे उन दोनो को घर के सामने मैदान में ले आया और उन दोनो को चॅलेंज दिया कि अगर तुम दोनो ने मिलकर मुझे हरा दिया, तो तुम दोनो को एक-एक सोने की चैन इनाम में मिलेगी.

वो दोनो ही शेरनिया एक साथ बोली- क्या ? सोने की चैन.. ! फिर क्या है आ जाओ मैदान में देखें किस्में कितना दम है.

अमीना बी मुँह फाडे उन दोनो की ओर देखने लगी.

हम तीनों की फाइट शुरू हो गयी, ऐसी फाइट उनकी अम्मी ने कभी देखी ही नही थी, वो दोनो तो चैन के लालच में अपने शरीर पर लगी मेरी करारी चोटों की भी परवाह नही कर रही थीं.

लड़ते-2 एक घंटा हो गया, वो दोनो हाँफने लगी, पसीने से हम तीनों के कपड़े सराबोर हो गये, मे बीच-2 में उन्हें चिढ़ाता जाता जिससे वो और दुगने जोश से फाइट करने लगती.

अंत मे मैने उन्हें जिता देना उचित समझा और मे जान बुझ कर हार गया.

वो दोनो ही बड़ी खुश हो गयी और याहू…2 .. करके उछल्ने लगी.
Reply
12-19-2018, 02:25 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मे अंदर गया और अपने बॅग से निकाल कर उन दोनो को एक-एक चैन अपने हाथों से पहनादि.
अमीना बी की आँखों में खुशी के आँसू आ गये. 

मैने कहा - क्यों बीबी, देखा अपनी बेटियों को..! अब ये आम लड़कियाँ नही रहीं, शेरनिया हो गयी हैं, 

अब इन दोनो को 10 से भी ज़्यादा लोग आ जायें तो भी ये हार मानने वाली नही हैं.

अमीना बी ने मुझे अपनी बेटियों की परवाह ना करते हुए अपने मोटे-2 चुचों से चिप्टा लिया और मेरा माथा चूम कर बोली- 

तुम सच में कोई फरिस्ता ही हो बेटा, जो हम जैसे कुरबत में जी रहे इंसानो में जान फूँकने आ गये.

अरे बीबी, मे अगर फरिस्ता होता तो ये दोनो बिल्लियाँ मुझे हरा पाती क्या..? इस बात पर हम सब हँसने लगे. 

रेहाना ने आँखों-2 में ही मुझे थॅंक्स कहा, मैने भी अपनी पलकें झपका कर उसे समझा दिया.

जब उनकी अम्मी अंदर जाके काम में लग गयी तब मैने उन दोनो को कहा- देखो ये प्रॅक्टीस बंद नही होनी चाहिए, 

अब मे इसके साथ-2 तुम दोनो को कुछ शहरी लड़कियों की तहज़ीब और नाज़ नखरे सिखाउन्गा, जिससे ज़रूरत पड़ने पर तुम शहरियों के बहकाबे में ना आ सको.

उन दोनो ने सहमति में गर्दन हिला दी, फिर जब शाकीना भी अंदर चली गयी तो मेरे गाल को चूम कर रेहाना बोली- आप जानबूझकर हारे थे है ना..?

मे - हां ! ताकि तुम लोग और हिम्मत से आगे बढ़ो.

रहना – नही वो बात नही है ! आपको हमें ये चैन जो देनी थी ! मे अब कुछ-2 आपको समझने लगी हूँ.

मे - अच्छा ! ये तो और भी अच्छी बात है. तो बताओ अब मे आगे क्या करने वाला हूँ..?

रहना – मे क्या जानू..?

मे - क्यों अभी तो तुम कह रही थी, तुम मुझे समझने लगी हो, तो बताओ अब में क्या करने वाला हूँ..?

वो कुछ देर सोचती रही, फिर ना में गर्दन हिला दी, मैने उसका चेहरा आपने हाथों में लिया और उसके होठ चूम लिए और बोला- 

इतनी सी बात नही समझ पाई और दावा कर रही थी कि मुझे समझने लगी हो.

वो खिल-खिलाकर हंस पड़ी और बोली- मे तो सच में कुछ और ही सोचने लगी थी..!

मे - क्या..?

वो- बिस्तर वाली फाइट…! ये कह कर वो हसने लगी.

मे - तुम्हारी इच्छा है..? उसने सर झुका कर हामी भरी, तो मैने उसे बाहों में भर के फिर से उसे चूम लिया और कहा- ओके फिर ठीक है आज रात को हो ही जाए…! वो हां बोलकर अंदर चली गयी.

शाकीना ये नज़ारा अंदर से आड़ लेकर देख रही थी, ये हम दोनो को ही पता नही था.

उस रात अमीना बी के सोते ही, रेहाना मुझे अपने कमरे में ले गयी, मैने रेहाना को 2-3 बार जमकर चोदा, 

हमने सपने में भी नही सोचा था, कि हमारी इस काम क्रीड़ा का लुफ्त हमारे अलावा भी कोई उठा रहा है…

शाकीना ने शुरू से लेकर लास्ट हमारे सोने तक का चुदाई प्रोग्राम देखा, और अपने हाथ से अपनी चूत सहला-सहला कर उसे शांत करने की कोशिश करती रही…….!

दूसरे दिन एक ज़रूरी काम का बोलकर मे निकल गया, 

अपने ठिकाने से बाइक ली और चल दिया स्यालकोट की तरफ, आख़िर रेहाना से किया हुआ वादा जो निभाना था.

पाकिस्तान के रोड.. ! खुदा बचाए ऐसे रास्तों से, जैसे तैसे करके पहुँच ही गया जैल तक.

मेन गेट पर दो संतरी पहरे पर थे, उनको कुछ ले-दे कर पटाया और पता किया कि कोई रहमत अली नाम का क़ैदी इस जैल में है क्या..?

तो उन्होने बताया कि उसको तो 6 महीने पहले ही मुज़फ़्फ़राबाद की लोकल जैल में शिफ्ट कर दिया है, उसका कोई संगीन जुर्म साबित नही हुआ था तो यहाँ की सेंट्रल जैल से निकाल कर लोकल जैल में शिफ्ट कर दिया है.

मे - ये लोकल जैल में क्या होता है..?

संतरी - अरे भाई ! लोकल जैल का मतलब वो क़ैदी जिन पर कोर्ट में कोई अपराध सिद्ध ना हो, और हुकूमत उन्हें जैल में ही सडाना चाहती हो तो उन्हें ऐसी जेलों में रखा जाता है, जहाँ उनसे फ्री में लेबर का काम करवाया जा सके.

मैने मन ही मन कहा- कि साला ये कैसा मुल्क है, जहाँ आदमी की कोई कीमत ही नही है. फिर प्रत्यक्ष में उसको शुक्रिया बोल कर वहाँ से चल पड़ा.

लौटते-2 शाम हो चुकी थी, बाइक अपनी जगह रखी और साइकल लेके घर पहुँचा तब तक अंधेरा छाने लगा था.

मैने रेहाना को अपने पास बिठा कर उसको सारी बात बताई, तो वो तो झटका ही खा गयी. 

फिर मैने उसको समझाया, कि देखो ये तो शायद हमारे लिए अच्छा ही हुआ है, लोकल जैल में इतनी सुरक्षा भी नही होगी, मे जल्दी ही तहकीकात करता हूँ, तुम चिंता मत करो अब शायद तुम जल्दी ही अपने शौहर से मिल पाओगि.

मेरी बातें सुन कर उसकी आँखें छलक आई और बोली - हमारा आपका कोई रिस्ता नही है, फिर भी आप हमारे लिए कितना कुछ कर रहे है..!

मे - क्या कहा कोई रिस्ता नही है..? कुछ दिनो पहले तक मे एक आवारा कुत्ते की तरह तन्हा यूँही जंगल-2 भटकता रहता था, 

आज मेरे पास एक परिवार है जो मेरी अपनों से भी ज़्यादा परवाह करता है. आइन्दा ऐसा मत बोलना..!

फिर आगे मुद्दे पर आते हुए बोला - मानलो अगर जैल से हम लोग उसको निकाल भी लाए तो तुम दोनो रहोगे कहाँ..? 

क्योंकि हुकूमत उसकी तलाश हर जगह करेगी, खास तौर से उसके और तुम्हारे घर पर तो ज़रूर ही.

वो सोच में पड़ गयी, जब काफ़ी देर तक उसको कुछ नही सूझा तो मैने उसको बोला- तुम फिकर मत करो, इंशा अल्लाह कोई ना कोई रास्ता ज़रूर निकल आएगा. 

अभी हम ये बातें कर ही रहे थे उसकी अम्मी भी वहाँ आ गई.

अमीना - क्या बातें हो रही हैं उस्ताद और शागिर्द के बीच..?

मे - बीबी ! हम रेहाना के शौहर के बारे में बात कर रहे थे.

अमीना - उसको तो उन मर्दुदो ने स्यालकोट की जैल में डाल रखा है सड़ने को, किसी से मिलने भी नही देते.

मे - बीबी ! वो अब वहाँ नही है, मे आज ही पता लगाके आया हूँ, उसको मुज़फ़्फ़राबाद की लोकल जैल में रखा है आजकल..!

अमीना - क्या..? लेकिन क्यों..? 

मे - वो बाद में बताउन्गा, पहले दिक्कत ये है, कि अगर हम उसको किसी तरह निकल लाते हैं तो ये दोनो रहेंगे कहाँ ?

अमीना - वो सब बाद की बात है, पहले ये बताओ कि बाहर निकालोगे कैसे..?

मे - वो मे वहाँ जाके पता लगाकर ही बता सकता हूँ, कि वो किस हालत में है..?

अमीना - जगह तो है, असलम से बात करनी पड़ेगी, शहर में कहीं भी छिप कर रह सकते हैं. 

इस्लामाबाद बड़ा शहर है, खाने कमाने का भी साधन हो सकता है, और कहीं भी गुमनामी की जिंदगी बसर कर सकते हैं.

इस्लामाबाद का नाम सुनते ही मेरे दिमाग़ में एक बड़ा प्लान पनपने लगा और मैने रेहाना को कहा, अब तुम सारी चिंता-फिकर मेरे उपर छोड़ दो.

वो – आप पर भी यकीन नही करूँगी तो और है ही कॉन हमारा अब..!

कुछ देर बाद, रहना साइकल लेके ज़रूरत के कुछ समान लेने कबीले के पास वाले छोटे से बाज़ार को चली गयी, 

उसकी अम्मी घर के कामों में लगी थी, मे बाहर पेड़ के नीचे चारपाई डाल कर लेटा हुआ था.

चारपाई पर लेटा हुआ अपनी आँखों पर बाजू रखे मे अपनी सोचों में डूबा हुआ था,

मेरे दिमाग़ में आगे की प्लॅनिंग चल रही थी, कि तभी मुझे लगा कि कोई और भी है मेरे आस-पास.

मैने आखें खोली तो देखा शाकीना मेरे बगल में खड़ी थी. 
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