Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:21 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
दो मंज़िला बंगला काफ़ी बड़ा था, अब अंदर का क्या जियोग्रॅफिया था, वो तो अंदर जा कर ही पता चलेगा, लेकिन पहले बाहर से देख लेना चाहिए.

ऐसा सोचता हुआ सज्जाक पार्किंग से ही बंगले के पिछले हिस्से की ओर चल दिया, बंगले के पीछे एक बहुत बड़ा स्विम्मिंग पूल भी था, जिसके लिए बंगले के पिछले गेट से भी आया जा सकता था.

सज्जाक स्विम्मिंग पूल से होता हुआ, दूसरी साइड से चक्कर लगा कर बंगले के गेट पर पहुँच गया, वो अंदर जाना चाहता था लेकिन उस पहलवान जैसे दरवान ने उसे रोक दिया, तो वो उससे बात-चीत करने में लग गया.

सज्जाक- ये फार्म हाउस चौधरी साब का हैं..?

दरबान - हां ! तुम्हें क्या लगा कि वो किसी दूसरे के फार्म हाउस पर आए हैं..?

सज्जाक - नही ऐसी बात नही है, लेकिन वो और भी गाड़ियाँ खड़ी दिखी इसलिए पुछा, मे अभी नया ही आया हूँ तो पता नही है ना..!

दरबान - वो कुछ लोग उनसे मिलने आए हैं यहाँ और वो सब कल सुबह तक यहीं रहेंगे.

सज्जाक - तो कल सुबह तक मे कहाँ रहूँगा..?

सज्जाक के पुच्छने पर उसने पार्किंग साइड से बने एक लाइन में कुछ क्वॉर्टर्स की ओर इशारा किया, 

और उससे बोला - वहाँ जाकर आराम से बैठो, समय पर सब कुछ पहुँच जाएगा तुम्हारे पास.

सज्जाक उन क्वॉर्टर्स की तरफ बढ़ गया, जिनमें से कुछ में पहले से ही कुछ लोग मौजूद थे जो शायद दूसरों के ड्राइवर वग़ैरह होंगे.

वो भी उन लोगों के पास पहुँचा और अपना परिचय दिया, अब वो सब लोग आपस में बात-चीत करने लगे.

बातों-2 में पता चला कि एक नेता बस्तर से आया है जिसका नाम प्रताप खांडेकर है, दो रायगढ़ के ही हैं, उनमें से एक नेता और दूसरा प्रशासनिक अधिकारी है, 

चौथी एक महिला विकास मंडल की प्रमुख अपनी दो सहायकाओ के साथ आई हुई है.

अब अंदर क्या चल रहा था, ये इनमें से कोई नही जानता था.

करीब 9:30 एक आदमी अंदर से ही इन लोगों को खाना दे गया, जो सबने मिलकर खाया, और अपने-2 क्वॅटरो में सोने चले गये.

सज्जाक ने भी एक कोने का क्वॉर्टर पकड़ा और उसमें पड़ी एक चारपाई के बिस्तेर पर लेट गया.

कोई 11 बजे के आस-पास बंगले के अंदर की लाइट ऑफ हो गयी, दो-चार कमरों को छोड़ कर, बाहर की बौंड्री वॉल पर कुच्छ बल्ब लगे थे जो टीम-टीमा कर अपनी पीली सी रोशनी फार्म हाउस में डाल रहे थे.

अंदर की लाइट ऑफ हुए कोई आधा –पोना घंटा ही गुज़रा होगा कि एक साया बंगले के पीछे प्रगट हुआ, जो अंधेरे का लाभ उठाते हुए एक पाइप के सहारे उपर की ओर चढ़ने लगा और फर्स्ट फ्लोर की छत पर पहुँच गया.

छत से वो सीडीयों के ज़रिए दबे पाव नीचे की ओर आया और सभी कमरों को चेक करता हुआ एक बड़े से हॉल जैसे कमरे के पास पहुँचा जिसकी सारी खिड़कियों पर पर्दे पड़े हुए थे.

वो अभी इधर उधर की आहट लेने की कोशिश कर रहा था, कि उसके कानों में हॉल से आती हुई कुछ सम्मिलित आवाज़ें सुनाई दी.

उसने दरवाजे के कीहोल से अंदर देखने की कोशिश की, लेकिन उस पर भी अंदर से परदा होने के कारण कुछ दिखाई नही दिया.

फिर उसने अपनी जेब से कुछ स्क्रू-ड्राइवर जैसा निकाला और एक विंडो के लॉक को खोलने लगा, जैसे ही लॉक के स्क्रू लूस हुए उसने लॉक को 90 डिग्री टर्न किया और विंडो अनलॉक हो गयी.

एक काँच के पारटिशन को बिना आवाज़ उसने सरकाया और बड़ी सावधानी से खिड़की के पर्दे को हल्का सा एक साइड में कर दिया. 

अब वो हॉल में होने वाली सभी तरह की गति विधियों को साफ-2 देख सकता था, 
जैसे ही उसने हॉल में हो रहे कार्य क्रम को देखा…! उसका मुँह खुला का खुला रह गया………..!!!!
हॉल में इस समय चौधरी समेत 4 पुरुष और 3 महिलाएँ मजूद थी, 

पुरुषों के बदन पर मात्र अंडरवेर थे और वो एक बड़े से सोफे पर बैठे थे जो एक एल शेप में हॉल के बीचो-बीच पड़ा था. 

तीनों महिलाएँ मात्र ब्रा और पेंटी में उनकी गोद में बैठी हुई थी, सबके हाथ में महगी शराब के जाम थे.

उन तीन औरतों में एक औरत अधेड़ उम्र की जो थोड़ा सा भारी भी थी, 38 साइज़ की चुचिया और 42 की गान्ड, कमर भी 36 की होती. लेकिन वाकी दो युवतियाँ 25-26 की एज की और फिट शरीर वाली थी.

अधेड़ औरत प्रताप खांडेकर और एक दूसरे आदमी जो की तकरीबन 55-56 साल का तो होगा उन दोनो के बीच में बैठी थी.

वो उन औरतों के अंगों से खेलते हुए शराब की चुस्कियाँ ले रहे थे और साथ-2 में बातें भी करते जा रहे थे.

चौधरी अपनी गोद में बैठी युवती के निपल को सहलाते हुए बोला- खांडेकर साब, आपके किए हुए वादे का क्या हुआ..? 

एक महीना हो गया अभी तक चंदन और जानवरों की खाल हमारे पास तक नही पहुँचे हैं.

प्रताप - मुझे याद है, लेकिन वो साला नाबूदिया गोमेस ना तो मिलने आता है, और फोन करो तो उल्टा जबाब देता है. 

वैसे उसका कहना भी सही है, हमने अभी तक उसके हथियार जो उसने माँगे थे वो भी सप्लाइ नही किए हैं.

वो बोल रहा था, कि मेरे बहुत से आदमियों के पास हथियार ही नही है. उधर जंगल में सीआरपीएफ की गस्त बढ़ती जा रही हैं.

फिर चौधरी उस प्रशासनिक अधिकारी से मुखातिब हुआ जिसका नाम राइचंद था बोला- क्यों राइचंद जी, भाई क्या हुआ हथियार क्यों नही पहुँचे अब तक, जबकि हम उस डीलर को 25% अड्वान्स भी दे चुके हैं.

राइचंद – वो अगले हफ्ते तक पहुँचाने की बात कर रहा है, लेकिन उन्हें लाने में एंपी साब की मदद चाहिए.

चौधरी - हां तो इसमें क्या है, मदद मिल जाएगी.. क्यों एंपी साब..?

एंपी - हां..हां.. ! बिल्कुल, जब कहो में ट्रूक की एंट्री करवा दूँगा.

चौधरी - देखिए भाई लोगो, हम इसमें काफ़ी पैसा लगा चुके हैं, अब जितना समय बर्बाद होगा हम लोगों का नुकसान भी उतना ही होगा. इसलिए जैसे ही हथियार मिलते हैं, उन्हें गोमेस को सौंप कर उससे माल ले लो.

फिर वो सब लोग उन औरतों के साथ खेलने में जुट गये, और एक सामूहिक चुदाई का खेल रात भर चलता रहा, 

इस बात से बेख़बर की एक जोड़ी आँखें उनकी इस करतूत को देख ही नही रही थी अपितु ये सब एक कमरे में क़ैद भी हो चुका था.

और सुबह के 4 बजते-2 वो सब एक-एक करके वहीं फार्स पर पड़ी कालीन पर लुढ़कते चले गये.
दूसरे दिन शाम को मैं अपने लॅपटॉप पर रिपोर्ट टाइप कर रहा था, कि मेरे ट्रांसमीटर पर कुछ सिग्नल आने लगे. 

मैने हेड फोन कान से लगाए और उस तरफ की बातें सुनने लगा.

प्रताप खांडेकर अपने फोन पर किसी नाबूदिया गोमेस नाम के आदमी से बात कर रहा था.

प्रताप - गोमेस ये क्या कर रहे हो तुम ? अभी तक हमारा माल क्यों नही पहुँचा..? मेरे पार्ट्नर्स मेरी जान खाए जा रहे हैं भाई.

गोमेस - अपुन का असलाह भी तो नही मिला हमको, तुम तुम्हारा ही माल का बात करता रहता है, हमारा आदमी कैसे-2 करके माल निकालता है तुमको क्या पता, 
अब साला गवर्नमेंट का सेक्यूरिटी फोर्सस इतना बढ़ गया है जंगल में. खबर भी है तुमको कुछ..?

प्रताप – हां ! मे समझता हूँ, फिर भी एक खेप तो अरेंज करो इस हफ्ते, तुम्हारे हथियार अगले हफ्ते मिल जाएँगे.

गोमेस - तो तभिच बात करने का, अभी हमारे पास कुछ नही है. इधर तुम हमको हथियार और पैसा देगा उधर तुम्हारा माल तुमको मिल जाएगा.

प्रताप – अरे यार इतना क्यों भाव ख़ाता है, बोला ना तुम्हारा माल मिल जाएगा जल्दी ही, तब तक कुछ तो करदो…

गोमेस – एक बार बोल दिया बात फिनिश, एक हाथ ले और दूसरे हाथ दे..

प्रताप - ठीक है अगले हफ्ते ही मिलते हैं फिर, बस्तर नाके के पास.

गोमेस - ओके.. अब मे फोन रखता है.. चलो..!
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12-19-2018, 02:21 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
उधर जंगल में गोमेस के 5 आदमी एक टाइगर का पीछा कर रहे थे.

टाइगर जो कई बार उनकी गोलियों का निशाना बनते-2 बचा था लेकिन उनके हाथ नही आरहा था, अचानक भागते-2 टाइगर कहीं झाड़ियों में घुस गया और गायब हो गया.

वो लोग बंदूकें लिए उसको चारों ओर खोजने लगे, अचानक दो आदमी जो एक दिशा में बढ़ गये थे, उन्हें अपने पीछे कुछ हलचल सी सुनाई दी.

इससे पहले की वो पलट पाते, टाइगर ने उनके उपर छलान्ग लगा दी और देखते ही देखते उन दोनो को उसने चीर फाड़ डाला.

अब जो वो तीन लोग बचे थे, उन्हें उनकी चीखे सुनाई पड़ी, जब वो उधर उन्हें देखने आए और और जैसे ही अपने साथियों की छत-विच्छित लाशें देखी, 
उनकी रूह फ़ना हो गयी, डर के मारे उनकी टाँगें काँपने लगी.

अभी वो वहाँ से निकलने की सोच ही रहे थे कि ना जाने कहाँ से टाइगर दहाड़ता हुआ निकला और उन पर छलान्ग लगा दी.

उन तीनों को अपनी बंदूक सीधी करने का भी समय नही मिला कि टाइगर उनके सर के उपर आ पहुँचा…

लेकिन इससे पहले कि वो उन तक पहुँचता…एक सनसनाता हुया भाला एक तरफ से आया और टाइगर के पेट को चीरता हुया निकल गया.

वो टाइगर वहीं ढेर हो गया. वो लोग भोंचक्के से उस टाइगर को देख ही रहे थे कि तभी पेड़ों से निकल कर आदिवासी भेषभूषा में एक व्यक्ति उन्हें अपनी तरफ आता दिखाई दिया.
उसके कंधे पर एक धनुष था और उसकी पीठ पर कुछ तीर बँधे थे.

उन लोगों ने उसका शुक्रिया अदा किया और उसे टाइगर के साथ-2 अपने सरदार गोमेस के पास ले गये.

जब गोमेस ने सुना कि किस तरह से उसने उनकी जान बचाई थी और टाइगर को मारा था, वो उससे बहुत प्रभावित हुआ और उसे अपने साथ काम करने के लिए पुछा. 

पहले तो वो मना करता रहा, लेकिन ज़्यादा कहने पर वो मान गया.

जब गोमेस ने उससे उसका नाम पुछा तो उसने अपना नाम अंगद बिसला बताया.
.......................
इधर प्रताप के घर नीरा ने अपने स्वाभाव और कामों से अपनी मालकिन को बहुत प्रभावित किया था, वो अब उस पर आँख बंद करके विश्वास करने लगी थी.

जैसा कि पहले भी लिखा जा चुका है कि नीरा एक सामान्य कद और रंग रूप की एक सुंदर सी लड़की थी, 

उसकी सादगी और व्यवहार से रॉकी भी प्रभावित हुए बिना नही रह सका, एक दो मुलाक़ातों से ही वो उसकी ओर खिंचने लगा.

अब वो जानबूझ कर ऐसे मौके ढूंढता रहता जिससे नीरा उसके करीब आ सके. 

लेकिन नीरा उसकी मंशा जान चुकी थी और उससे दूर रहने की कोशिश करती रहती थी.

ऐसे ही एक दिन नीरा किचेन में कुछ काम कर रही थी, उसकी मालकिन ने उसको आवाज़ देकर अपने कमरे में बुलाया तो वो दौड़ी हुई उनके पास जा रही थी, 

इधर रॉकी उपर से धड़ाधड़ाता सीढ़ियाँ उतरता हुआ जैसे ही हॉल में पहुँचा कि नीरा से टकरा गया.

दोनो को ही ज़ोर दार झटका लगा और दोनो ही एक दूसरे को बचाने के चक्कर में गुथम गुत्था हुए ज़मीन पर पलटियाँ खाते चले गये.

जब वो रुके तो रॉकी नीचे था और नीरा उसके सीने पर पड़ी थी, दोनो ही एक दूसरे को जकड़े हुए थे.

कुछ देर तक यौंही एक दूसरे की आँखों में देखते हुए पड़े रहे, जब नीरा को होश आया तो वो हड़बड़ा कर उठने को हुई, लेकिन रॉकी उसको जकड़े रहा.

आग फूंस एक साथ हो तो आग भड़कना लाजिमी है, नीरा के मादक बदन के स्पर्श से रॉकी का पप्पू अकड़ने लगा. 

उसके अकडे हुए पप्पू को जैसे ही नीरा ने अपनी मुनिया के उपर फील किया, वो शर्म के मारे पानी-पानी हो गयी और अपना मुँह एक तरफ को करके फुसफुसाई… 

रॉकी बाबू छोड़िए मुझे..!

रॉकी ने उसे हड़बड़ा कर छोड़ दिया और वो दोनो एक दूसरे की ओर मुस्कराते हुए अपने-2 रास्ते चले गये.
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12-19-2018, 02:21 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
सुंदर चौधरी, रायगढ़ शहर का जाना माना नाम बहुत सारे सामाजिक संस्थाओं का संचालक, ट्राइबल एरिया में लोग उसे अपना मशिहा मानते हैं. कितने ही मंदिर, मस्जिद और चर्च इसके दान से चलते हैं.

42 वर्षीय मध्यम लेकिन मजबूत कद काठी का चौधरी शहर की जानी मानी हस्तियों में शुमार किया जाता है, जिसके बड़े-2 राजनीतिक- गैर राजनीतिक, ओद्योगिक घरानों से घनिष्ठता है.

दुनिया की नज़रों में चौधरी एक प्रॉपर्टी डीलर है, एक कन्स्ट्रक्षन कंपनी का मालिक है. शहर की ज़्यादातर अच्छी-2 बिल्डिंग उसी की कंपनी ने खड़ी की हैं.

शाम कोई 8 बजे सुंदर चौधरी अपनी एक कन्स्ट्रक्षन साइट जो शहर के बाहरी इलाक़े में चल रही थी, अपनी एक शानदार कार से लौट रहा था, 

साइट से अभी उसकी कार एक फरलॉंग ही पहुँची होगी की रास्ते के दोनो तरफ खड़ी झाड़ियों से गोलियों की बाद ने उसकी गाड़ी को रुकने पर मजबूर कर दिया.

एक गोली विंड्स्क्रीन को तोड़ती हुई उसके ड्राइवर के दाएँ कंधे को चीरती हुई निकल गयी. जिसकी वजह से गाड़ी झाड़ियों में घुसती चली गयी और रोकते-2 भी एक पेड़ जा टकराई. 

टक्कर तो ज़्यादा घातक नही थी, लेकिन घायल ड्राइवर अपनी चेतना खो चुका था.

चौधरी के हाथ पाँव फूल गये, अभी वो कुछ सोचने समझने की स्थिति में आता कि दो नकाब पोश उसके दोनो साइड के दरवाजे पर खड़े थे.

उन्होने उसको बाहर आने का इशारा किया, मरता क्या ना करता, उसे बाहर आना ही पड़ा.

अभी उसने अपने बाएँ तरफ का गेट खोल कर अपना पैर बाहर निकाला ही था कि एक जिस्म हवा में तैरता हुआ आया और दूसरी तरफ खड़े नकाब पोश की पीठ पर उसके दोनो पैरों की जबरदस्त ठोकर पड़ी.

वो नकाब पोश पहले धडाम से गाड़ी से टकराया और फिर पीछे को उलट गया, उसकी गन उसके हाथ से छिटक गयी.

अभी वो चौधरी के साइड वाला नकाब पोश कुछ स्थिति को समझ पाता कि वो शख्स फिर से उच्छल कर उठा और कार की छत पर हाथ टिका कर दोनो पैरों की किक उस दूसरे नकाब पोश के कंधे पर पड़ी.

किक बहुत ज़ोर से लगी, परिणाम स्वरूप वो नकाब पोश भी धूल चाट रहा था, लेकिन उसने अपनी गन नही च्छुटने दी.

वो नकाब पोश उठकर खड़ा हुआ, और अपनी गन उसने कार की ओर घमाई ही थी कि उस शख्स ने उसकी गन वाली कलाई थाम ली और उसे उपर की ओर कर दिया, तभी एक धमाका हुआ और गोली हवा में जाके बेकार हो गयी.

ये दोनो एक दूसरे से गुत्थम गुत्था थे, कि तभी दूसरा नकाब पोश भी उधर आ गया, और उसने उस शख्स को पीछे से पकड़ लिया.

तभी चौधरी हिम्मत करके बाहर आया और उसने पास पड़ी एक मोटी सी लकड़ी को पीछे से उस नकाब पोश के सर पर दे मारी जो उस शख्स को पीछे से पकड़े हुए था.

वो नकाब पोश अपना सर थाम कर बैठता चला गया, लेकिन तब तक उस गन वाले नकाब पोश को छूटने का मौका मिल गया और उसने उस शख्स पर फाइयर कर दिया.

हड़बड़ी में चलाई गयी गोली उसके कंधे को रगड़ती हुई निकल गयी.

दर्द से कराहते हुए वो शख्स अपने कंधे को थाम कर लड़खड़ा गया और ज़मीन पर बैठ गया, फिर चौधरी उस नकाब पोश की ओर लपका लेकिन वो झाड़ियों की ओर भाग लिया. 

मौका पाकर वो दोनो नकाब पोश वहाँ से भाग खड़े हुए. 

चौधरी ने उस शख्स को अपनी गाड़ी की पिच्छली सीट पर बिठाया, और अपने बेहोश ड्राइवर को साइड वाली सीट पर डालकर खुद गाड़ी ड्राइव करके शहर की ओर दौड़ा दी.

सुंदर चौधरी गाड़ी को आँधी-तूफान की तरह भगाता हुआ एक बड़े से प्राइवेट हॉस्पिटल में दाखिल होता है, 

उसकी गाड़ी देखते ही वहाँ उसको स्पेशल अटेन्षन मिलनी शुरू हो जाती है, 
उसके ड्राइवर और उस शख्स को आनन फानन में भरती करके विशेष सुविधाओं के तहत ट्रीटमेंट शुरू हो जाता है.

वो शख्स तो ज़्यादा सीरीयस नही था, तो उसको स्पेशल वॉर्ड में ले जाकर कुछ पेन किल्लर देकर उसकी ड्रेसिंग कर दी जाती है, लेकिन उसके ड्राइवर को आइसीयू में भरती कर दिया जाता है.

जब उस शक्श की ड्रेसिंग और ज़रूरी इल्लाज़ हो जाता है तो वो चौधरी से जाने की इज़ाज़त लेता है..

शख्स - अच्छा सर अब में चलता हूँ, आपका बहुत-2 शुक्रिया जो आपने मेरा इस बेहतरीन हॉस्पिटल में इलाज़ कराया.

चौधरी- अरे भाई शुक्रिया तो हमें तुम्हारा करना चाहिए, जो एन मौके पर आकर तुमने हमारी जान बचाई..!

सख्स - सर ! वो तो मैने इंशानियत के नाते किया था, जब आपको मुशिबत में पाया तो जो मुझे उचित लगा वो मैने किया.

चौधरी - नही ! ये साधारण बात नही है भाई, आज के जमाने में कॉन किसी के लिए अपनी जान जोखिम में डालता है, 

तुमने किसी फरिस्ते की तरह आकर हमारी मदद की.

वैसे अपना परिचय तो दो… कॉन हो? क्या नाम है ? क्या करते हो..?

सख्स – मेरा नाम सज्जाक है सर, पास के ही गाँव में रहता हूँ, बेरोज़गार हूँ, ऐसे ही कभी किसी की ड्राइविंग वग़ैरह कर लेता हूँ, 

आजकल कोई काम नही है, तो ऐसे ही किसी काम की तलाश में भटक रहा था कि आपके साथ वो घटना होते दिखी.

चौधरी - तो समझो आज से तुम्हारी तलाश ख़तम हुई, आज से तुम मेरे पर्सनल ड्राइवर हो, 

अच्छी पगार दूँगा, रहना, खाना, कपड़े सब का इंतेज़ाम हमारी ओर से रहेगा. बोलो करोगे मेरे लिए काम..?

सज्जाक - मुझे तो सर काम चाहिए, आपके यहाँ भी कर लूँगा.

चौधरी - तो फिर ठीक है, जल्दी से ठीक होकर मेरे ऑफीस आ जाना, ये कहकर उसने अपना विज़िटिंग कार्ड उसे पकड़ा दिया और अपने घर की ओर चला गया.

सुंदर चौधरी सज्जाक को अपना ड्राइवर रखकर संतुष्ट था, अब उसको जैसा दिलेर आदमी चाहिए था वो मिल गया था, जो वक़्त आने पर उसकी हिफ़ाज़त भी कर सकता था और साए की तरह उसके साथ रहने वाला था.

वैसे तो वो भी कोई सॉफ सुथरा आदमी नही था और आउट ऑफ बिज़्नेस बॉक्स और ना जाने किन-किन लोगों के साथ कैसे-2 धंधे करता था, तो जाहिर सी बात है आदमी भी वैसे ही रखे होंगे.

उस घटना के ठीक चार दिन बाद सुंदर चौधरी अपनी गाड़ी में बैठ कर शहर से बाहर कहीं जा रहा था. 

सज्जाक उसकी गाड़ी को चला रहा था और वो अपने फोन पर किसी से बात कर रहा था, चूँकि वो ड्राइवर नया था, सो बीच-2 में वो उसको दिशा निर्देश भी देता जा रहा था.

शहर से कोई 25-30 किमी निकल कर, अब उसकी कार रोड से उतार कर घने जंगलों के बीच बने एक कच्चे पथरीले रास्ते पर दौड़ने लगी, 

कोई 1 किमी अंदर जाकर घने पेड़ों के बीच बने एक फार्म हाउस के सामने खड़ी हो जाती है.

9-10 फीट उँची चारदीवारी से घिरे उस फार्म हाउस के गेट पर एक चौकीदार खड़ा हुआ था, उसने गेट खोला और गाड़ी अंदर चली गयी.

गेट से करीब 100-150 मीटर और अंदर जा कर एक अच्छी ख़ासी बिल्डिंग थी, जो सामने से किसी बंगले जैसी दिखती थी.

उस बंगले के गेट पर जैसे ही गाड़ी खड़ी हुई, एक और दरबान जैसा आदमी दौड़ कर कार की ओर आया, उसने लपक कर कार का गेट खोला और अदब से सर झुका कर खड़ा हो गया. 
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12-19-2018, 02:21 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
चौधरी गाड़ी से उतार कर अंदर चला गया, उस दरबान ने ड्राइवर को इशारा किया और गाड़ी बंगले के साइड में बने पार्किंग की ओर चली गयी.

यहाँ 3-4 गाड़ियाँ पहले से खड़ी हुई थी, इसका मतलब यहाँ और भी लोग थे. 

सज्जाक ने गाड़ी खड़ी की और बाहर आकर बंगले का निरीक्षण करने लगा.

दो मंज़िला बंगला काफ़ी बड़ा था, अब अंदर का क्या जियोग्रॅफिया था, वो तो अंदर जा कर ही पता चलेगा, लेकिन पहले बाहर से देख लेना चाहिए.

ऐसा सोचता हुआ सज्जाक पार्किंग से ही बंगले के पिछले हिस्से की ओर चल दिया, बंगले के पीछे एक बहुत बड़ा स्विम्मिंग पूल भी था, जिसके लिए बंगले के पिछले गेट से भी आया जा सकता था.

सज्जाक स्विम्मिंग पूल से होता हुआ, दूसरी साइड से चक्कर लगा कर बंगले के गेट पर पहुँच गया, वो अंदर जाना चाहता था लेकिन उस पहलवान जैसे दरवान ने उसे रोक दिया, तो वो उससे बात-चीत करने में लग गया.

सज्जाक- ये फार्म हाउस चौधरी साब का हैं..?

दरबान - हां ! तुम्हें क्या लगा कि वो किसी दूसरे के फार्म हाउस पर आए हैं..?

सज्जाक - नही ऐसी बात नही है, लेकिन वो और भी गाड़ियाँ खड़ी दिखी इसलिए पुछा, मे अभी नया ही आया हूँ तो पता नही है ना..!

दरबान - वो कुछ लोग उनसे मिलने आए हैं यहाँ और वो सब कल सुबह तक यहीं रहेंगे.

सज्जाक - तो कल सुबह तक मे कहाँ रहूँगा..?

सज्जाक के पुच्छने पर उसने पार्किंग साइड से बने एक लाइन में कुछ क्वॉर्टर्स की ओर इशारा किया, 

और उससे बोला - वहाँ जाकर आराम से बैठो, समय पर सब कुछ पहुँच जाएगा तुम्हारे पास.

सज्जाक उन क्वॉर्टर्स की तरफ बढ़ गया, जिनमें से कुछ में पहले से ही कुछ लोग मौजूद थे जो शायद दूसरों के ड्राइवर वग़ैरह होंगे.

वो भी उन लोगों के पास पहुँचा और अपना परिचय दिया, अब वो सब लोग आपस में बात-चीत करने लगे.

बातों-2 में पता चला कि एक नेता बस्तर से आया है जिसका नाम प्रताप खांडेकर है, दो रायगढ़ के ही हैं, उनमें से एक नेता और दूसरा प्रशासनिक अधिकारी है, 

चौथी एक महिला विकास मंडल की प्रमुख अपनी दो सहायकाओ के साथ आई हुई है.

अब अंदर क्या चल रहा था, ये इनमें से कोई नही जानता था.

करीब 9:30 एक आदमी अंदर से ही इन लोगों को खाना दे गया, जो सबने मिलकर खाया, और अपने-2 क्वॅटरो में सोने चले गये.

सज्जाक ने भी एक कोने का क्वॉर्टर पकड़ा और उसमें पड़ी एक चारपाई के बिस्तेर पर लेट गया.

कोई 11 बजे के आस-पास बंगले के अंदर की लाइट ऑफ हो गयी, दो-चार कमरों को छोड़ कर, बाहर की बौंड्री वॉल पर कुच्छ बल्ब लगे थे जो टीम-टीमा कर अपनी पीली सी रोशनी फार्म हाउस में डाल रहे थे.

अंदर की लाइट ऑफ हुए कोई आधा –पोना घंटा ही गुज़रा होगा कि एक साया बंगले के पीछे प्रगट हुआ, जो अंधेरे का लाभ उठाते हुए एक पाइप के सहारे उपर की ओर चढ़ने लगा और फर्स्ट फ्लोर की छत पर पहुँच गया.

छत से वो सीडीयों के ज़रिए दबे पाव नीचे की ओर आया और सभी कमरों को चेक करता हुआ एक बड़े से हॉल जैसे कमरे के पास पहुँचा जिसकी सारी खिड़कियों पर पर्दे पड़े हुए थे.

वो अभी इधर उधर की आहट लेने की कोशिश कर रहा था, कि उसके कानों में हॉल से आती हुई कुछ सम्मिलित आवाज़ें सुनाई दी.

उसने दरवाजे के कीहोल से अंदर देखने की कोशिश की, लेकिन उस पर भी अंदर से परदा होने के कारण कुछ दिखाई नही दिया.

फिर उसने अपनी जेब से कुछ स्क्रू-ड्राइवर जैसा निकाला और एक विंडो के लॉक को खोलने लगा, जैसे ही लॉक के स्क्रू लूस हुए उसने लॉक को 90 डिग्री टर्न किया और विंडो अनलॉक हो गयी.

एक काँच के पारटिशन को बिना आवाज़ उसने सरकाया और बड़ी सावधानी से खिड़की के पर्दे को हल्का सा एक साइड में कर दिया. 

अब वो हॉल में होने वाली सभी तरह की गति विधियों को साफ-2 देख सकता था, 
जैसे ही उसने हॉल में हो रहे कार्य क्रम को देखा…! उसका मुँह खुला का खुला रह गया………..!!!!
हॉल में इस समय चौधरी समेत 4 पुरुष और 3 महिलाएँ मजूद थी, 

पुरुषों के बदन पर मात्र अंडरवेर थे और वो एक बड़े से सोफे पर बैठे थे जो एक एल शेप में हॉल के बीचो-बीच पड़ा था. 

तीनों महिलाएँ मात्र ब्रा और पेंटी में उनकी गोद में बैठी हुई थी, सबके हाथ में महगी शराब के जाम थे.

उन तीन औरतों में एक औरत अधेड़ उम्र की जो थोड़ा सा भारी भी थी, 38 साइज़ की चुचिया और 42 की गान्ड, कमर भी 36 की होती. लेकिन वाकी दो युवतियाँ 25-26 की एज की और फिट शरीर वाली थी.

अधेड़ औरत प्रताप खांडेकर और एक दूसरे आदमी जो की तकरीबन 55-56 साल का तो होगा उन दोनो के बीच में बैठी थी.

वो उन औरतों के अंगों से खेलते हुए शराब की चुस्कियाँ ले रहे थे और साथ-2 में बातें भी करते जा रहे थे.

चौधरी अपनी गोद में बैठी युवती के निपल को सहलाते हुए बोला- खांडेकर साब, आपके किए हुए वादे का क्या हुआ..? 

एक महीना हो गया अभी तक चंदन और जानवरों की खाल हमारे पास तक नही पहुँचे हैं.

प्रताप - मुझे याद है, लेकिन वो साला नाबूदिया गोमेस ना तो मिलने आता है, और फोन करो तो उल्टा जबाब देता है. 

वैसे उसका कहना भी सही है, हमने अभी तक उसके हथियार जो उसने माँगे थे वो भी सप्लाइ नही किए हैं.

वो बोल रहा था, कि मेरे बहुत से आदमियों के पास हथियार ही नही है. उधर जंगल में सीआरपीएफ की गस्त बढ़ती जा रही हैं.

फिर चौधरी उस प्रशासनिक अधिकारी से मुखातिब हुआ जिसका नाम राइचंद था बोला- क्यों राइचंद जी, भाई क्या हुआ हथियार क्यों नही पहुँचे अब तक, जबकि हम उस डीलर को 25% अड्वान्स भी दे चुके हैं.

राइचंद – वो अगले हफ्ते तक पहुँचाने की बात कर रहा है, लेकिन उन्हें लाने में एंपी साब की मदद चाहिए.

चौधरी - हां तो इसमें क्या है, मदद मिल जाएगी.. क्यों एंपी साब..?

एंपी - हां..हां.. ! बिल्कुल, जब कहो में ट्रूक की एंट्री करवा दूँगा.

चौधरी - देखिए भाई लोगो, हम इसमें काफ़ी पैसा लगा चुके हैं, अब जितना समय बर्बाद होगा हम लोगों का नुकसान भी उतना ही होगा. इसलिए जैसे ही हथियार मिलते हैं, उन्हें गोमेस को सौंप कर उससे माल ले लो.

फिर वो सब लोग उन औरतों के साथ खेलने में जुट गये, और एक सामूहिक चुदाई का खेल रात भर चलता रहा, 

इस बात से बेख़बर की एक जोड़ी आँखें उनकी इस करतूत को देख ही नही रही थी अपितु ये सब एक कमरे में क़ैद भी हो चुका था.

और सुबह के 4 बजते-2 वो सब एक-एक करके वहीं फार्स पर पड़ी कालीन पर लुढ़कते चले गये.
दूसरे दिन शाम को मैं अपने लॅपटॉप पर रिपोर्ट टाइप कर रहा था, कि मेरे ट्रांसमीटर पर कुछ सिग्नल आने लगे. 

मैने हेड फोन कान से लगाए और उस तरफ की बातें सुनने लगा.

प्रताप खांडेकर अपने फोन पर किसी नाबूदिया गोमेस नाम के आदमी से बात कर रहा था.

प्रताप - गोमेस ये क्या कर रहे हो तुम ? अभी तक हमारा माल क्यों नही पहुँचा..? मेरे पार्ट्नर्स मेरी जान खाए जा रहे हैं भाई.

गोमेस - अपुन का असलाह भी तो नही मिला हमको, तुम तुम्हारा ही माल का बात करता रहता है, हमारा आदमी कैसे-2 करके माल निकालता है तुमको क्या पता, 
अब साला गवर्नमेंट का सेक्यूरिटी फोर्सस इतना बढ़ गया है जंगल में. खबर भी है तुमको कुछ..?

प्रताप – हां ! मे समझता हूँ, फिर भी एक खेप तो अरेंज करो इस हफ्ते, तुम्हारे हथियार अगले हफ्ते मिल जाएँगे.

गोमेस - तो तभिच बात करने का, अभी हमारे पास कुछ नही है. इधर तुम हमको हथियार और पैसा देगा उधर तुम्हारा माल तुमको मिल जाएगा.

प्रताप – अरे यार इतना क्यों भाव ख़ाता है, बोला ना तुम्हारा माल मिल जाएगा जल्दी ही, तब तक कुछ तो करदो…

गोमेस – एक बार बोल दिया बात फिनिश, एक हाथ ले और दूसरे हाथ दे..

प्रताप - ठीक है अगले हफ्ते ही मिलते हैं फिर, बस्तर नाके के पास.

गोमेस - ओके.. अब मे फोन रखता है.. चलो..!
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12-19-2018, 02:22 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
उधर जंगल में गोमेस के 5 आदमी एक टाइगर का पीछा कर रहे थे.

टाइगर जो कई बार उनकी गोलियों का निशाना बनते-2 बचा था लेकिन उनके हाथ नही आरहा था, अचानक भागते-2 टाइगर कहीं झाड़ियों में घुस गया और गायब हो गया.

वो लोग बंदूकें लिए उसको चारों ओर खोजने लगे, अचानक दो आदमी जो एक दिशा में बढ़ गये थे, उन्हें अपने पीछे कुछ हलचल सी सुनाई दी.

इससे पहले की वो पलट पाते, टाइगर ने उनके उपर छलान्ग लगा दी और देखते ही देखते उन दोनो को उसने चीर फाड़ डाला.

अब जो वो तीन लोग बचे थे, उन्हें उनकी चीखे सुनाई पड़ी, जब वो उधर उन्हें देखने आए और और जैसे ही अपने साथियों की छत-विच्छित लाशें देखी, 
उनकी रूह फ़ना हो गयी, डर के मारे उनकी टाँगें काँपने लगी.

अभी वो वहाँ से निकलने की सोच ही रहे थे कि ना जाने कहाँ से टाइगर दहाड़ता हुआ निकला और उन पर छलान्ग लगा दी.

उन तीनों को अपनी बंदूक सीधी करने का भी समय नही मिला कि टाइगर उनके सर के उपर आ पहुँचा…

लेकिन इससे पहले कि वो उन तक पहुँचता…एक सनसनाता हुया भाला एक तरफ से आया और टाइगर के पेट को चीरता हुया निकल गया.

वो टाइगर वहीं ढेर हो गया. वो लोग भोंचक्के से उस टाइगर को देख ही रहे थे कि तभी पेड़ों से निकल कर आदिवासी भेषभूषा में एक व्यक्ति उन्हें अपनी तरफ आता दिखाई दिया.
उसके कंधे पर एक धनुष था और उसकी पीठ पर कुछ तीर बँधे थे.

उन लोगों ने उसका शुक्रिया अदा किया और उसे टाइगर के साथ-2 अपने सरदार गोमेस के पास ले गये.

जब गोमेस ने सुना कि किस तरह से उसने उनकी जान बचाई थी और टाइगर को मारा था, वो उससे बहुत प्रभावित हुआ और उसे अपने साथ काम करने के लिए पुछा. 

पहले तो वो मना करता रहा, लेकिन ज़्यादा कहने पर वो मान गया.

जब गोमेस ने उससे उसका नाम पुछा तो उसने अपना नाम अंगद बिसला बताया.
.......................
इधर प्रताप के घर नीरा ने अपने स्वाभाव और कामों से अपनी मालकिन को बहुत प्रभावित किया था, वो अब उस पर आँख बंद करके विश्वास करने लगी थी.

जैसा कि पहले भी लिखा जा चुका है कि नीरा एक सामान्य कद और रंग रूप की एक सुंदर सी लड़की थी, 

उसकी सादगी और व्यवहार से रॉकी भी प्रभावित हुए बिना नही रह सका, एक दो मुलाक़ातों से ही वो उसकी ओर खिंचने लगा.

अब वो जानबूझ कर ऐसे मौके ढूंढता रहता जिससे नीरा उसके करीब आ सके. 

लेकिन नीरा उसकी मंशा जान चुकी थी और उससे दूर रहने की कोशिश करती रहती थी.

ऐसे ही एक दिन नीरा किचेन में कुछ काम कर रही थी, उसकी मालकिन ने उसको आवाज़ देकर अपने कमरे में बुलाया तो वो दौड़ी हुई उनके पास जा रही थी, 

इधर रॉकी उपर से धड़ाधड़ाता सीढ़ियाँ उतरता हुआ जैसे ही हॉल में पहुँचा कि नीरा से टकरा गया.

दोनो को ही ज़ोर दार झटका लगा और दोनो ही एक दूसरे को बचाने के चक्कर में गुथम गुत्था हुए ज़मीन पर पलटियाँ खाते चले गये.

जब वो रुके तो रॉकी नीचे था और नीरा उसके सीने पर पड़ी थी, दोनो ही एक दूसरे को जकड़े हुए थे.

कुछ देर तक यौंही एक दूसरे की आँखों में देखते हुए पड़े रहे, जब नीरा को होश आया तो वो हड़बड़ा कर उठने को हुई, लेकिन रॉकी उसको जकड़े रहा.

आग फूंस एक साथ हो तो आग भड़कना लाजिमी है, नीरा के मादक बदन के स्पर्श से रॉकी का पप्पू अकड़ने लगा. 

उसके अकडे हुए पप्पू को जैसे ही नीरा ने अपनी मुनिया के उपर फील किया, वो शर्म के मारे पानी-पानी हो गयी और अपना मुँह एक तरफ को करके फुसफुसाई… 

रॉकी बाबू छोड़िए मुझे..!

रॉकी ने उसे हड़बड़ा कर छोड़ दिया और वो दोनो एक दूसरे की ओर मुस्कराते हुए अपने-2 रास्ते चले गये.
..............................
बस्तर शहर का चेक नाका जो शहर से कांकेर जाने वाले रोड पर शहर से 1 किमी बाहर था, वहाँ एक सब इंस्पेक्टरर और 4 कोन्स्टेबल ड्यूटी पर मौजूद थे, 

नाके से दक्षिण की तरफ एक कच्चा पथरीला रास्ता जंगल की ओर जाता है…

इसी रास्ते पर नाके से 1.5 किमी अंदर जंगल में इस समय 2 ट्रक खड़े हुए हैं जिनमें एक में चंदन की लकड़ी भरी हुई थी, जो तिरपाल से चारों ओर से पॅक था.

दूसरे ट्रक में जानवरों की खाल और दूसरी जंगल की दुर्लभ चीज़े जैसे हाथी दाँत, बारहसिंघा हिरण के सींग (हॉर्न) जो आमतौर पर अमीर लोगों के घरों की शोभायें बढ़ाती हैं.

दोनो ट्रको में 4-4 हथियार बंद आदमी बैठे हुए थे. खुद गोमेस इस डेलिवरी को देने के लिए साथ आया था.

ये उनकी अबतक की सबसे बड़ी डील थी…

कुच्छ देर में ही वहाँ प्रताप खांडेकर की गाड़ी आकर रुकती है, 

उसके पीछे -2 एक मिनी ट्रक भी था, जिसमें आधुनिक राइफले और कयि ट्रंक (बक्से) कारतूसों से भरे हुए थे.

खांडेकर एक सूटकेस लेकर अपनी गाड़ी से नीचे उतारता है और उधर एक ट्रक में से गोमेस नीचे आता है और वो प्रताप की गाड़ी के पास पहुँचता है.

प्रताप गोमेस को वो सूटकेस पकड़ा देता है, और मिनी ट्रक की ओर इशारा करके बोलता है- लो गोमेस सौदे के मुताबिक अपना पैसा लो और ये ट्रक में तुमने जितना असलह माँगा था वो सब है.

गोमेस - तुम भी अपना समान चेक कर लियो. जो माँगा था वो सब लेके आया मे.

कुछ देर और इधर-उधर की बात करके गोमेस अपने आदमियों को ट्रक हॅंड ओवर करने को बोल देता है और वो प्रताप के आदमियों को ट्रक की चाबी पकड़ा कर सब लोग मिनी ट्रक में आकर बैठ जाते हैं.

गोमेस मिनी ट्रक लेकर अपने आदमियों के साथ जंगल की ओर बढ़ जाता है,

उधर प्रताप अपने आदमियों को ट्रक लेकर नाके की ओर बढ़ने का इशारा करके खुद गाड़ी लेकर नाके पर पहुँच जाता है.

अभी उसके वो ट्रक वहाँ नही पहुँचे थे कि तभी वहाँ रायगढ़ के एंपी साब पहुँचते हैं, 

दोनो अपनी-2 गाड़ियों से उतर कर हाथ मिलाते हैं और आपस में बात-चीत करने लगते हैं.

तभी वो ट्रक भी वहाँ पहुँच जाते हैं और नाके को क्रॉस करने लगते हैं, लेकिन ड्यूटी पर तैनात पोलीस वाले उनको रोकते हैं.

तभी वो एंपी महोदय अपना हाथ उठाकर उस सब इंस्पेक्टरर को इशारा करते हुए कहते हैं - जाने दो अपने ही ट्रक हैं.

पोलीस वाले बिना कोई चेकिंग किए ही उनको जाने देते हैं.
हथियारो से लदा वो मिनी ट्रक अभी वहाँ से कोई 2 किमी ही जंगल में गया होगा कि उसमें बैठा हुआ अंगद बिसला उसे रोकने का इशारा करता है. 

ट्रक रोक कर गोमेस उससे पुछ्ता है, कि ट्रक क्यों रुकवाया तो बिसला बोलता है.

यहीं पास के जंगल मे मेरे कू कुछ काम है, वो निपटा के मे शाम तक तुम्हारे पास पहुँचता है.

ट्रक उसे उतर कर आगे बढ़ जाता है, अभी वो एक फरलॉंग ही पहुँच पाया होगा, कि एक जबरदस्त धमाके से जंगल दहल उठा, वो ट्रक हथियारों समेत उसमें मौजूद सभी लोगों की समाधि बन गया.

अंगद बिसला के चेहरे पर एक विषाक्त सी हसी तैर जाती है, और वो अपनी धुन में ही घने जंगल में विलुप्त हो जाता है..., 

कुछ ही दूर चला होगा कि उसे उसका साथी दिखाई दिया, जिसके कंधे पर एक बॅग लटका हुआ था…

नज़दीक जाकर उसने उससे बॅग लेकर कुछ कपड़े निकाले और उन्हें पहन कर वो दोनो बहुत ही तेज़ी से रायगढ़ की तरफ जाने वाले रोड की तरफ लपके………

उधर नाके को पार कर वो दोनो ट्रक कांकेर होते हुए रायगढ़ की तरफ बढ़ चले, अभी वो 4-5 किमी ही पहुँचे होंगे कि रोड बड़े-2 पत्थरों से ब्लॉक हुआ मिला.

दोनो ट्रक खड़े हो गये और उनमें से एक-2 आदमी उतर कर उन पत्थरों को हटाने के लिए जैसे ही वहाँ पहुँचे और झुक कर पत्थर उठाने लगे, 

कि तभी दो नकाब पॉश जिन्न की तरह वहाँ प्रगट हुए और उनकी खोपड़ी पर किसी बजनी चीज़ का प्रहार हुआ, 

वो दोनो बेहोश होकर वहीं ढेर हो गये.
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12-19-2018, 02:22 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
जब उन ट्रक ड्राइवरों को जैसे ही ख़तरे का आभास हुआ वो ट्रक छोड़ कर सर पर पैर रख कर भाग खड़े हुए.

उन नकाब पोषों में से एक ने अपनी जेब से सेल फोन निकाला और किसी को फोन करने लगा.

आधे घंटे में ही वहाँ सिटी एसपी अपने दल बल के साथ आया और दोनो ट्रकों को अपने कब्ज़े में लेकर कोतवाली की तरफ हकवा दिए.

आनन फानन में ये खबर सुंदर चौधरी को मिल गयी, जब उसने सुना कि उसके माल के दोनो ट्रक पोलीस की हिरासत में हैं, तो वो बौखला उठा. सारा पैसा तो उसी का लगा हुआ था इस सब में.

नेता और अधिकारी तो सिर्फ़ अपना हिस्सा बाँटने आ जाते थे. 

इस समय वो फोन पर खांडेकर को बुरी तरह लताड़ रहा था.

प्रताप खांडेकर पर अपना गुस्सा निकालने के बाद उसने एंपी को कॉल की और उसको किसी भी तरह अपने माल को पोलीस के चंगुल से निकाल कर लाने को बोला.

एंपी ने उसको आश्वासन दिया कि वो कुछ करता है.

अब एंपी का काफिला कोतवाली की तरफ बढ़ रहा था.
इधर एसपी ऑफीस में नाके की ड्यूटी पर तैनात उस सब इंस्पेक्टरर और कॉन्स्टेबल्स से पुछ ताछ चल रही थी.

जब उन्होने बताया कि हम लोग जैसे ही उन ट्रको को चेक करने वाले थे, कि एंपी साब वहाँ आ गये और हमें बिना चेकिंग के जाने देने के लिए बोला.

मामला एसपी की कुछ-2 समझ में आता जा रहा था, और वो सोच ही रहा था कि अभी तक कोई सिफारिशी फोन क्यों नही आया, कि तभी उसके फोन की घंटी बजने लगी.

एसपी ने लपक कर फोन उठाया, और हेलो बोलकर अपना परिचय दिया, 

कॉलर – हेलो एसपी साब ! अभी कुछ देर पहले जो आपने ट्रक जप्त किए हैं उन्हें छुड़वाने की कार्यवाही तेज हो चुकी हैं. 

ध्यान रहे ये मामला किसी भी सूरत में दबाना नही चाहिए.

एसपी- आप कॉन बोल रहे हो..?

कॉलर – मे वही हूँ जिसने ये ट्रक पकड़वाए हैं, और अब मे नही चाहूँगा कि हमारी मेहनत बेकार हो. 

एंपी पहुँचने वाला ही होगा आपके पास.

एसपी – लेकिन अगर उपर से ज़्यादा प्रेशर आया तो मे कुछ नही कर पाउन्गा.

कॉलर – ये समझ लो एसपी! ये स्मगलिंग नकशालियों द्वारा हुई है, अब अगर जो भी कोई इसमें इन्वॉल्व है, उस पर सीधा देशद्रोह का केस डाला जा सकता है. 

हमारे पास इस सब के पुख़्ता सबूत हैं. इस मामले को हम दबाने नही देंगे, और इतना बोलकर कॉल कट हो गयी.

अभी एसपी फोन रख कर चुका ही था की धड़ धड़ाते हुए एंपी महोदय उसके ऑफीस में घुसे.

एंपी - सुनो एसपी साब ! इन ट्रको में ऐसा कुछ ग़लत नही है, जब हमने इन्हें पास करवा दिया था तो फिर आपने क्यों पकड़ा..?

एसपी ने उसे समझाते हुए कहा- एंपी साब मे आपकी रिस्पेक्ट करता हूँ, इसलिए एक सलाह ज़रूर दूँगा, आप इस मामले से अपना हाथ खींच लीजिए वरना…!

एंपी भड़क कर बोला - वरना क्या एसपी..? 

एसपी - वरना ! जिसने भी हमें खबर दी थी उसके पास इस बात के पुख़्ता सबूत हैं कि ये ट्रक नकशालियों के हैं, 

अब अगर आपने इन्हें छुड़वाने की कोशिश की तो आपके उपर भी देशद्रोह का केस लग सकता है, अब आप खुद सोच लीजिए कि क्या करना चाहेंगे..?

एंपी - कॉन है वो..? किसने खबर दी आपको..?

एसपी - उसने अपना नाम नही बताया..! पर उसकी बातों से लग रहा था कि वो कोई छोटा-मोटा आदमी नही है, ये भी हो सकता है कि कोई ख़ुफ़िया विभाग का आदमी हो.

देशद्रोह का नाम सुनते ही एंपी की गान्ड फटकार हाथ में आ गयी .. और वो वहाँ से उल्टे पाँव लौट गया.

.....................

नीरा और रॉकी की प्रेम कहानी धीरे-2 आगे बढ़ रही थी, रॉकी को नीरा दुनिया की सबसे सुंदर लड़की लगने लगी थी. 

अब वो हर संभव इस प्रयास में ही रहता था, कि किसी तरह नीरा उसके नज़दीक ही रहे. 

लेकिन जैसे-2 वो उसके नज़दीक आने की कोशिश करता, नीरा उससे दूर चली जाती, उसे पता था कि रॉकी कैसे स्वभाव का लड़का है, 

और वैसे भी अगर किसी को पता चला तो सब उसे ही दोष देंगे. ग़रीब की आज के जमाने में कॉन सुनता है.

ऐसे ही एक दिन जब सुबह वो उसको चाइ देने उसके रूम में गयी, छाई रख कर वो जाने के लिए पलटी ही थी कि रॉकी ने उसका हाथ पकड़ लिया.

उसने पलट कर रॉकी की तरफ देखा और उसके हाथ की कलाई को पकड़ कर अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली- रॉकी बाबू मेरा हाथ छोड़िए.

रॉकी - तुम मुझसे दूर क्यों भागना चाहती हो..? जबकि मे तुम्हारे नज़दीक आना चाहता हूँ.

नीरा - लेकिन क्यों..? क्यों आप मेरे नज़दीक आना चाहते हैं..,? आपको पता है कि मे एक ग़रीब बेसहारा लड़की आपकी नौकर हूँ फिर भी..?

रॉकी – क्योंकि तुम मुझे अच्छी लगती हो..!

नीरा - अच्छी लगती हूँ, तो क्या आप मेरे साथ कुछ भी कर सकते हैं..? मे कोई वस्तु तो नही कि आपको अच्छी लग गयी और आपकी हो गयी..?

रॉकी ने फ़ौरन उसका हाथ छोड़ दिया और बोला- मेरा कहने का मतलब था कि मे तुम्हें पसंद करने लगा हूँ, या शायद प्यार भी..! 

तुम्हारी सादगी पर दिल आ गया है मेरा. 

नीरा - शायद कल रात को ज़्यादा चढ़ा ली होगी आपने..! अभी तक उतरी नही है वरना इस तरह की बहकी-बहकी बातें ना करते.

रॉकी - तुम्हें मेरी बातों पर विश्वास नही है..? बोलो तुम क्या चाहती हो जिससे तुम्हें विश्वास हो..?

नीरा - देखिए ! मे एक ग़रीब, लाचार, बेसहारा लड़की हूँ, ये कभी भी संभव नही हो पाएगा.. और कॉन मानेगा इन बातों को..?

रॉकी - मे तुम्हें सहारा ही तो देना चाहता हूँ, और रही बात किसी के मानने ना मानने की तो मे किसी की परवाह नही करता.

नीरा - क्या अपने माता-पिता से बग़ावत करेंगे..?

रॉकी - मेरे मम्मी पापा मेरी कोई बात नही टालते, मुझे पता है, ये बात भी माननी ही पड़ेगी उनको. 

तुम सिर्फ़ हां कहो ! क्या तुम्हें मेरा प्यार मंजूर है..?

नीरा - मेरे लिए आप क्या कर सकते हैं..?

रॉकी - तुम जो भी बोलो—

नीरा - ये शराब पीना और आवारागर्दि करना बंद कर दीजिए.. फिर मे आपको जबाब दूँगी, और इतना बोल कर वो उसके कमरे से चली गयी.

रॉकी बस उसे जाता हुआ देखता रहा…..

.............
इधर प्रताप & कंपनी इतनी बड़ी चपत लगने से तिलमिला उठे थे, यही नही उन्हें जैसे-तैसे करके अपने आप को बचाना भी भारी पड़ गया था.

लेकिन कहते हैं ना कि शेर को अगर इंसानी खून का चस्का लग जाए तो वो नरभक्षी हो जाता है, ऐसा ही कुछ हाल इन लोगों का हो चुका था. 

अब हर संभव वो इस प्रयास में थे कि फिर से अपने इस कारोबार को कैसे खड़ा किया जाए.

गोमेस जैसा मोहरा ख़तम हो चुका था, इसी धुन की कड़ी में आज प्रताप एक छोटे से कस्बे में स्थित एक चर्च की सीढ़ियाँ चढ़ रहा था.

यहाँ का पादरी नकशालियों को हर संभव मदद करता था. कई विदेशी एनजीओ,स इनको आर्थिक मदद करते थे, साथ ही साथ ट्राइबल वेलफेर के नाम पर इनका पक्ष भी मजबूती से रखते थे.

चर्च में पहुँच कर प्रताप ने पादरी से मुलाकात की, अब वो दोनो आमने सामने बैठ कर बातें कर रहे थे.

प्रताप - फादर आपका वो मोहरा गोमेस तो पिट गया, अब क्या करें अपना तो साला धंधा ही चौपट होता जा रहा है.

पादरी - कोई बात नही मिस्टर. प्रताप, मोहरे तो होते ही पिटने के लिए हैं. हम आपको और भी अच्छा आदमी देगा, तुम उससे कुछ भी काम ले सकता है. 

प्रताप – इसलिए तो मे आपके पास आया हूँ फादर, अब आप जल्दी से उसको मिलवाए.

पाद्री – वो थोड़ा टेडा आदमी है, आंड्रा के जंगलों से भाग कर इधर आया है कुछ दिन पहले ही, नेटवर्क बहुत अच्छा है उसका, 

ख़तरनाक से ख़तरनाक काम को अंजाम दे सकता है, ऐसा आदमी है वो.

प्रताप - हम भी इस बार कुछ बड़ी दहशत पैदा करना चाहते हैं इलाक़े में जिससे कोई हमारे सामने खड़ा होने की जुर्रत ही ना कर सके.

पादरी - मे उसको तुम्हारे पास भेजेगा, उसका नाम रघुनाथ कुट्टी है, वो तुमसे तुम्हारे घर आके मिल लेगा, अभी वो यहाँ नही आ पाएगा. ओके अभी तुम बेफकर होकर जाओ.

प्रताप वहाँ से खुशी-2 लौट आया, और रास्ते में ही उसने चौधरी को खुशख़बरी भी दे डाली……………….. 

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कुछ दिनो से रॉकी के व्यवहार और रहन-सहन में काफ़ी तब्दीली आ चुकी थी, उसके माँ-बाप भी अपने बेटे में आए परिवर्तन से काफ़ी खुश थे. 

अब वो समय पर घर आता जाता, रेग्युलर कॉलेज जाना, कभी शाम को लेट भी हुआ तो बड़े अच्छे मूड में होता.

आज एक महीने से उसने शराब को हाथ भी नही लगाया था. 

उसमें आए परिवर्तन से नीरा बहुत प्रभावित हुई, उसे अब लगने लगा था कि रॉकी वाकई में उससे सच्चा प्यार करता है जो उसके कहने पर अपनी सारी ग़लत आदतें छोड़ रहा है.

उसी के चलते आज उसने रॉकी के लिए स्पेशल डिशस बनाई और रॉकी के कॉलेज जाने से पहले ही उसके रूम में लेकर पहुँची.

नाश्ते की खुश्बू से ही रॉकी का मूड बन गया था. नाश्ता टेबल पर रख कर नीरा ने रॉकी से कहा-

लीजिए रॉकी बाबू नाश्ता कर लीजिए.

रॉकी - आज तो बड़ी अच्छी सुगन्ध आ रही है नाश्ते से, कोई खास बात है आज..? लगता है कुछ स्पेशल बनाया है तुमने..?

नीरा - हां ! आज मे बहुत खुश हूँ, और उसी के चलते आज मैने आपके लिए स्पेशल नाश्ता बनाया है.

रॉकी - क्या हुआ..आज इतनी खुश क्यों हो..?

नीरा - आप तो मुझे प्यार करते हैं ना ! तो पता लगा लीजिए मेरी खुशी का राज..

रॉकी - कुछ देर सोच में पड़ गया, फिर जैसे ही उसके दिमाग़ में क्लिक हुआ, झट से उसने नीरा के हाथों को अपने हाथ में लिया और बोला-

सच नीरा तुमने मेरे प्यार को स्वीकार कर लिया.. बोलो यही बात है ना..!

नीरा ने अपनी नज़रें झुका कर सिर्फ़ हां में अपनी गर्दन हिला दी.

रॉकी ने झट से उसके हाथ चूम लिए, शर्म से नीरा का चेहरा दूसरी ओर घूम गया और वो मंद-2 मुस्कराने लगी.

ओह्ह्ह्ह… नीरा मे बता नही सकता कि, आज कितना खुश हूँ मे. सच में कब से इस बात का इंतेज़ार कर रहा था कि तुम कब मेरे प्यार को आक्सेप्ट करोगी. 
आइ लव यू नीरा !

आइ लव यू टू रॉकी ब..बा..बुऊउ.. !

रॉकी बाबू नही जान… सिर्फ़ रॉकी..! सिर्फ़ तुम्हारा रॉकी, और उसने उसे अपने अंक में भर लिया, वो भी किसी छोटी बच्ची की तरह उसके सीने में समा गयी. 

कितनी ही देर वो ऐसे एक दूसरे से चिपके खड़े रहे… जब रॉकी की माँ ने आवाज़ दी तब जाके उनकी तंद्रा टूटी.

हड़बड़ा कर नीरा नीचे की ओर भागी और रॉकी नाश्ते में जुट गया… आज वो बहुत खुश था, और इसी खुशी में गाता गुनगुनाता कॉलेज चला गया.

आज कॉलेज से लौटते समय वो एक ज्वेल्लरी शॉप से नीरा के लिए एक गिफ्ट लेना नही भुला और घर में घुसते ही उसकी आँखें उसे तलाश करने लगी.

नीरा उस समय उसकी माँ के पास बैठी थी, उसकी माँ रॉकी में आए बदलाव के बारे में ही चर्चा कर रही थी.

नीरा सब चुप-चाप सुनती जा रही थी, और मन ही मन सोच रही थी, कैसे उसके माँ बाप बेटे के सुधरने से खुश हैं, वो भी अब रॉकी से दूर रहना नही चाहती थी.

रॉकी जब नीरा को ढूंढता हुआ अपनी माँ के कमरे में पहुँचा तो वहाँ उसने नीरा को अपनी माँ से बातें करते हुए देखा, उसने दरवाजे से ही अपनी माँ को पुकारा तो उन्होने उसे अंदर बुला लिया-

आजा बेटा थोड़ा अपनी माँ के पास भी बैठ लिया कर, तो रॉकी आकर अपनी माँ के पास बैठ गया, माँ ने प्यार से अपने बेटे के माथे को चूमा और नीरा को संबोधित करके बोली-

नीरा तूने गौर किया है, आजकल रॉकी कितना बदल गया है, मैने जो सपना अपने बेटे को लेकर देखा था, अब वो पूरा होता नज़र आ रहा है.

नीरा - हां मालकिन ! आप सही कह रही हैं, रॉकी बाबू वाकई में बदल रहे हैं, और तिर्छि नज़र उसने रॉकी पर डाली जो अपनी माँ से नज़र बचा कर उसी को देख रहा था.

कुछ देर अपनी माँ के साथ बैठ कर वो बोला- माँ अब में चलता हूँ, चेंज करके मुझे अपना कोर्स रिविषन करना है, नीरा तुम मेरा खाना मेरे रूम में ही ले आना.

माँ - ठीक है, तू जा तब तक चेंज कर, नीरा तू भी जा और रॉकी को खाना खिला दे.

दोनो वहाँ से उठकर बाहर आ गये…..!

रॉकी अभी चेंज करके अपना बॅग अनपॅक कर ही रहा था कि नीरा उसका खाना लेकर उसके रूम में आ गयी, और उसने उसका खाना टेबल पर रख दिया. रॉकी ने तब तक गेट बंद कर दिया.

नीरा – अरे ! आपने गेट क्यों बंद किया..?

रॉकी - ताकि अपनी डार्लिंग को जी भरके देख सकूँ, ये मन बाबला कितने दिनों से तरस रहा था तुम्हारे समीप आने को. 

फिर वो नीरा को घुमा कर उसके पीछे खड़ा हो गया और अपनी जेब से एक सोने की चैन निकाल कर उसने नीरा के गले में पहना दी.

नीरा - ये क्या है..? और उसको हाथ में लेकर देखने लगी.

रॉकी - ये हमारे प्यार की निशानी है, इसे स्वीकार करके मेरे प्यार को अपना लो नीरा.

नीरा - ये मे कैसे ले सकती हूँ आपसे ? किसी की नज़र पड़ गयी और किसी ने पुछा तो क्या जबाब दूँगी..?

रॉकी - कोई भी बहाना बना देना..! छोड़ो वो सब चिंता.. ये बताओ तुम्हें पसंद आया या नही.

नीरा - है तो बहुत अच्छा पर……
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12-19-2018, 02:22 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
अभी वो कुछ और बोलती उससे पहले रॉकी ने उसके पतले-2 शुर्ख होठों पर अपने प्यासे होठ रख दिए और बड़े प्यार से उन्हें चूसने लगा.

नीरा ने कुछ देर तो कोई रिस्पोन्स नही किया, पर थी तो वो भी नव यौवना, कहाँ तक सबर कर पाती, वासना ने उसको भी अपने लपेटे में ले लिया और वो भी रॉकी का साथ देने लगी.

किस तोड़ते हुए नीरा ने कहा- अरे आपका खाना ठंडा हो रहा है, पहले इसको ख़तम करिए…

रॉकी ने उसकी कमर को अपने बाहों में लपेट कर उसको अपने से चिपकाते हुए कहा – 

जब सामने ऐसे स्वादिष्ट पकवान हैं तो उनको छोड़ कर कॉन साला उस सदेले से खाने को खाना चाहेगा… मेरी जान.. और उसने फिर से उसके होठों को अपने मुँह में क़ैद कर लिया.

उसके दोनो हाथ उसकी गोल-2 गान्ड को मसल रहे थे, रॉकी का लंड अकड़ कर नीरा की नाभि में घुसा जा रहा था.

अब उसने नीरा को पलटा दिया और उसकी पीठ से चिपक कर अपने लंड को थोड़ा झुक कर उसकी मुलायम गान्ड की दरार में सेट कर दिया और उसके गोल-2 कच्चे अमरूदो को मसल्ने लगा.

नीरा भी आँखें बंद करके उसकी हरकतों का मज़ा ले रही थी. 

रॉकी कभी उसकी गर्दन को चूमता, तो कभी उसके कान की लौ को मुँह में लेकर चाटने लगता जिससे नीरा अपनी सुध-बुध खोती जा रही थी.

अब रॉकी के सब्र का पैमाना छलकने लगा था, उसको अब हर हाल में उसको चोदना था सो उसने उसकी चोली के बटनों पर हाथ रख कर जैसे ही खोलना शुरू किया…

नीरा ने उसके हाथ पकड़ लिए और बोली- नही रॉकी इसके आगे नही.

रॉकी उसके प्रतिरोध को महज़ एक लड़की का दिखावा समझ रहा था, सो उसने उसके हाथों को अलग करके फिर खोलना शुरू किया..

अभी वो उपर का एक बटन ही खोल पाया था कि, नीरा झट से पलट गयी और रॉकी के दोनो हाथों को पकड़ कर रोक दिया.
रॉकी अवाक सा खड़ा नीरा के चेहरे की ओर देख रहा था, फिर कुछ देर बाद बोला- लेकिन क्यों नीरा..? 

तुम्हें अभी भी मेरे प्यार पर भरोसा नही है..? तुम्हारे कहने से मैने अपने आप को बदल लिया, इससे बड़ा और कोई सबूत चाहिए तुम्हें मेरे प्यार का.

नीरा - प्यार में ज़रूरी नही कि ये सब ही हो तभी प्यार सच्चा माना जाए… 

प्यार को प्यार ही रहने दो रॉकी बाबू, वासना में बहने मत दो. आप जो चाहते हैं वो वासना है.

रॉकी - लेकिन नीरा ! अब हम दोनो प्रेमी हैं, और प्रेमी अपने प्रेम में तन-मन न्योछावर कर देते हैं एक दूसरे पर..

नीरा - सच्चा प्रेम मन का होता है, तन जब एक हो जाते हैं तब मिलते हैं. इसलिए ये सब अब हम एक होंगे तभी संभव होगा. 

इतना बोल कर वो उसके रूम से बाहर चली गयी और रॉकी अपना खड़ा लंड पकड़े, चूतिया की तरह गेट की ओर देखता ही रह गया.

रॉकी के दिमाग़ में विचारों का बवांडर सा चल रहा था. वो समझ नही पा रहा था कि उसने नीरा का कहा मान कर अपने को बदलने के लिए कितनी जद्दो जहद अपने दिमाग़ में झेली थी.

क्योंकि शराब और शबाब की लत इतनी आसानी से नही छूटती वो भी उसने छोड़ दी एक लड़की का प्यार पाने के लिए, और वो ही आज उसे खड़े लंड पर लात मार कर चली गयी. 

वो अपने आप को मामू बनता महसूस कर रहा था.

वो मन ही मन नीरा को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगा. 

साली अपने आप को हेमा मालिनी समझती है भोसड़ी की दो टके की नौकरानी. 

अभी वो रॉकी को जानती नही है, सारा शहर जिससे डरता है उस रॉकी को ये दो टके की लौंडिया चूतिया बना के चली गयी.

रॉकी चाहता तो अपनी माँ को बोलकर नीरा को अभी घर से बाहर फिकवा सकता था, लेकिन उसने ऐसा नही किया, अब वो उसे इसी घर में रख कर नौकर और मालिक का फ़र्क महसूस कराना चाहता था.

उसने फ़ौरन आवाज़ देकर बहाने से नीरा को उपर आने को कहा, जैसे ही वो उसकी आवाज़ सुन कर उपर आई, 

रॉकी ने रूम का गेट बंद कर दिया और नीरा की ओर बढ़ते हुए बोला-

साली दो टके की नौकर अपने आप को समझती क्या है तू, तेरी जैसी ना जाने कितनी इस लंड के नीचे से निकल चुकी हैं और तू मुझे ही लैला मजनू का पाठ पढ़ा रही थी, अब देख कैसे मे तेरी चूत की धज्जियाँ उड़ाता हूँ.

उसने झपट कर नीरा का हाथ पकड़ लिया और अपनी ओर झटका देकर उसे अपनी बाहों में कस लिया. 

नीरा को ऐसी कुछ संभावना नही थी कि रॉकी उसके साथ ज़बरदस्ती भी कर सकता है, वो उससे छूटने का भरसक प्रयास करने लगी, लेकिन रॉकी के हाथों की मजबूत पकड़ से वो असफल होती जा रही थी.

वो चाहती तो चीख कर लोगों को इकट्ठा भी कर सकती थी, लेकिन उस सूरत में अगर रॉकी ने उल्टा उसी पर इल्ज़ाम लगा दिया तो शायद कोई भी उसकी बात पर विश्वास नही करता और उसे और ज़िल्लत उठानी पड़ती. 

अपनी ग़रीबी के कारण ये सबक उसने अच्छे से सीख लिए थे.

अब उसके सामने रॉकी को सबक सिखाने के अलावा और कोई रास्ता नही बचा था, अब अरुण की दी हुई शिक्षा को काम में लाने का समय आ गया था.

नीरा ने अपनी दोनो हथेलियों को रॉकी की छाती से सटा कर पूरी ताक़त से उसके बंधन से अपने को मुक्त किया और दो कदम पीछे हट के खड़ी हो गयी.

रॉकी गुस्से से भुन्भुनाता हुआ उसको फिर से पकड़ने के लिए आगे बढ़ा कि तभी उसके गाल पर तडाक से नीरा का एक भरपूर थप्पड़ पड़ा, 

एक बार को तो उसे अपना कान सुन्न पड़ता लगा, उसके कान में सीटियाँ सी बजने लगी.

गुस्से और ज़िल्लत के कारण उसका चेहरा कनों तक लाल हो गया और वो गुर्राते हुए नीरा की ओर झपटा- साली मदर्चोद अपने आप को सती सावित्री समझती है, अब में तेरे को कैसा सबक सिखाता हूँ देख.

अभी वो नीरा तक पहुँच भी नही पाया था, कि एक और जबरदस्त घूँसा उसकी कनपटी पर पड़ा, 

उसको दिन में ही चाँद तारे नज़र आने लगे, फिर तो नीरा ने बस नही की और लात घूँसों से उसकी वो धुनाई की, कि उसके फरिश्ते कून्च कर गये.

जब रॉकी की विरोधक शक्ति भी जबाब दे गयी तो वो फुंफ़कार्ते हुए बोली- मुझे पता था रॉकी, साँप का संपोला ही हो सकता है, 

उसको कितना ही प्यार से दूध पिलाओ वो काटता ही है. राक्षस के घर प्रहलाद पैदा कभी-2 ही हो सकते हैं, देशद्रोही बाप की नीच औलाद.

इतना बोलकर उसने रॉकी की दी हुई चैन को उतारकर उसके मुँह पर मारकर वो कमरे का गेट खोल कर बाहर चली गयी.. 

और पीछे छोड़ गयी एक गहन सन्नाटा जो अब रॉकी के मनो मस्तिस्क में व्याप्त हो चुका था.

वो अब उसके द्वारा कहे गये शब्दों के बारे में सोच रहा था.. बार-2 उसके वो शब्द किसी हथौड़े की तरह उसके दिमाग़ में पड़ रहे थे…

देशद्रोही….देशद्रोही…!!! 

तो क्या उसका बाप एक देशद्रोही है..? नही..नही.. ये नही हो सकता… ये साली झूठ बोल रही है…

अभी वो आगे कुछ और सोच पाता, कि नीरा के शब्द किसी भाले की नोक की तरह फिर से उसके दिमाग़ में चुभने लगे…

एक साँप के संपोले को कितना ही दूध पिलाओ, वो काटता ही है, देशद्रोही बाप की नीच औलाद…. देशद्रोही…देशद्रोही…

रॉकी अपना सर पकड़ कर वहीं बैठ गया…उसके दिमाग़ में साय…साय करके विचारों की बवंडर सा चलने लगा…

अब वो नीरा से अपनी मार को तो भूल गया, और उसकी बातों में उलझ सा गया, फिर उसने एक निर्णय लिया कि अब वो इस बात की सच्चाई जानकार ही रहेगा….

इधर नीरा रॉकी को सबक सिखा कर धड़ धड़ाती हुई नीचे आई और अपनी मालकिन से बोली- मालकिन एक ज़रूरी काम आ गया है, 

मे अपने घर जा रही हूँ कल तक वापस आ जाउन्गी, और उसकी पेर्मिशन लेकर वो उसके घर से निकल गयी….
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12-19-2018, 02:22 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
दूसरे दिन प्रताप अपनी पत्नी और बेटे के साथ बैठा हॉल में नाश्ता कर रहा था, कि एक नौकर बाहर से आया और उसको बोला, साब बाहर आपसे कोई मिलने को आया है.

प्रताप - क्या नाम बताया उसने अपना..?

नौकर - साब कुछ कुट्टी—कुट्टी बता रहा था..!

प्रताप फ़ौरन समझ गया और उसने नौकर को बोला- उसे पीछे के गेट से हमारे मीटिंग हॉल में लेकर आओ, 

फिर खुद ने भी जल्दी से नाश्ता ख़तम किया और मीटिंग हॉल की तरफ बढ़ गया जो कि उसके बंगले की पीछे की साइड में था.

रॉकी के दिमाग़ में नीरा का छोड़ा हुआ कीड़ा उसके बाप के जाते ही कुलबुलाने लगा, वो सोचने लगा कि उसके पापा ने इस आदमी को पीछे के गेट से आने को क्यों कहा ?

अब वो उनकी मीटिंग की बातों को सुनने के बारे में सोचने लगा, उसने भी अपना नाश्ता ख़तम किया और अपने कमरे की ओर बढ़ गया.

अब वो किसी तरह अपने बाप की बातों को सुनना चाहता था, 

रॉकी अपनी माँ की नज़रों से बचते बचाते हुए, किसी तरह बंगले के पीछे पहुँचा और मीटिंग हाल की एक खिड़की से कान लगा कर उनकी बातें सुनने की कोशिश करने लगा.

उसके सर के धक्के से वो खिड़की हल्की सी खुल गयी, अब वो उन दोनो को सुन ही नही देख भी सकता था, 

उसने अपने पिता के साथ एक जंगली काले भैंसे जैसे आदमी को बैठे देखा, जिसकी नाक से लेकर उसके बाँये गाल तक एक बड़ा सा कट का निशान थी, 

बड़ी-2 घनी मुन्छे और छोटी घनी दाढ़ी, मानो हफ्ते-10 दिन से शेव ना हुई हो, वो शक्ल सूरत से ही कोई ख़तरनाक अपराधी दिख रहा था.

जब उसने उन दोनो की बातें सुनी तो वो सुन्न रह गया, नीरा द्वारा कहे गये शब्द उसे शत-प्रतिशत सही लगे… उसका बाप सही में एक देशद्रोही है. 

पहले तो रॉकी ने सोचा कि जाकर अपने बाप से सीधे-सीधे बात करे, लेकिन फिर उसने अपनी सोच को अपने दिमाग़ से झटक दिया क्योंकि जो आदमी ता उम्र जिस काम को करता आ रहा है, वो उसको अब्बल तो मानेगा ही नही, 

और अगर मान भी गया तो वो अपने बेटे को भी अपनी महत्वाकांक्षाओं के आड़े नही आने देगा.

अब वो इसकी तह तक जाना चाहता था, लेकिन कैसे..? 

अकेला वो कुछ भी नही कर सकता था, उसे फ़ौरन नीरा का ध्यान आया जो अब ना जाने कहाँ चली गयी थी.

आज उसे नीरा की अच्छाइयाँ याद आ रहीं थीं, उसकी बातें याद करके उसकी पलकें भीग गयी…

क्या ग़लत कहा था उसने ? वो तो मुझ जैसे एक बिगड़े हुए आदमी को सही रास्ते पर लाना चाहती थी. 

मैने एक ही झटके में एक सच्ची और मन की पवित्र लड़की को खो दिया. 

लेकिन “अब पछ्ताये होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गयी खेत”
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उधर मे अपने लॅपटॉप पर प्रताप और कुट्टी की मीटिंग को देख सुन रहा था, नीरा मेरे बाजू में बैठी थी, 

ये उसी की चपलता और सूझ भुज का नतीज़ा था कि में उसे देख पा रहा था, क्योंकि उसने उसके मीटिंग हाल में एक बहुत ही छोटा लेकिन पॉवेरफ़ुल्ल ट्रांसमीटर कॅमरा फिट कर दिया था.

उनकी मीटिंग ख़तम होते ही मैने नीरा को धन्यवाद किया कि उसकी वजह से हम ये सब देख सुन पा रहे थे.

नीरा अपने चेहरे पर एक अर्थपूर्ण मुस्कान लाते हुए बोली- भैया जी रूखा-2 ही धन्यवाद से काम नही चलेगा, कुछ तो गीला-2 होना चाहिए, 

उसकी मंशा समझ कर मैने उसके पतले रसीले होठों पर एक गरम-2 चुंबन जड़ दिया तो वो खुश हो गयी.

नीरा ने कल आते ही मुझे उसके और रॉकी के बीच हुई घटना बता दी थी, और वो वहाँ से हमेशा के लिए छोड़ कर चली आई थी, 

लेकिन मे नही चाहता था कि नीरा अभी उसका घर छोड़े सो मैने उसे फिर से उसके यहाँ जाने के लिए कहा.

जब उसने अपना डर बताया कि कहीं रॉकी ने अपने घरवालों को बता दिया हो, और वो लोग कहीं उसका कत्ल ही ना करवा दें तो… 

मैने उसे समझाते हुए कहा - अब्बल तो वो ऐसा करेगा नही, क्योंकि अपनी कमज़ोरी वो दूसरों को नही बता सकता. 

आख़िर उसने एक लड़की से मार खाई है, किसी गुंडे या मवाली से नही.

और अगर बता भी देता है, तो जिस तरह से तुमने उसे बदला है, उसकी माँ का भरोसा तुम पर जम चुका है, 

अब वो रॉकी की बातों को ही ग़लत मानेगी, और तुम्हारा बचाव करेगी, और वैसे भी मेरी नज़र हर समय उस घर पर ही रहेगी. 

तो तुम इस बात की बिल्कुल फिकर मत करो कि मे तुम्हें कुछ भी होने दूँगा. 

मे चाहता हूँ तुम कुछ दिन और वहाँ रहो.

नीरा अब मेरे साथ थोड़ा खुल चुकी थी, सो अपनी मुस्कुराती हुई नज़रों को मेरे चेहरे पर गढ़ा कर बोली - एक शर्त पर जाउन्गी..! जाने से पहले एक बार मे…आप..के…सा..थ..

मे - ओह क्यों नही ! अभी लो.. और फिर मैने उसकी पूरी तन मन से अच्छे से सेवा की जब वो पूरी तरह संतुष्ट हो गयी तो अपने मिसन पर वापस चली गयी..!

मैने विक्रम को पहले ही कुट्टी के पीछे लगा दिया था, 

वो जबसे प्रताप के पास से गया था तभी से वो उसके पीछे था. 

वैसे भी वो पहले से ही अंगद बिसला के रोल में था, सो उसको जंगल के बारे में अब बहुत कुछ मालूम था.
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आज रॉकी कॉलेज नही गया था, जैसे ही नीरा वहाँ पहुँची, रॉकी की खुशी का ठिकाना नही रहा. 

उसने तो कभी ख्वाब में भी नही सोचा था कि वो अब वापस भी आ सकती है.

नीरा सीधी उसकी माँ से मिली और अपने काम में लग गयी. उसने रॉकी की तरफ कोई ध्यान ही नही दिया, जैसे कल उन्दोनो के बीच कुछ हुआ ही ना हो.

पर अब रॉकी उससे बात करने को उतावला हो रहा था, वो अपने बाप की करतूत उसके साथ शेयर करके कोई समाधान निकालने की सोच रहा था.

भले ही उसका बाप कैसा भी हो और वो अपने माँ-बाप के लाड प्यार और छूट की वजह से बिगड़ गया था, 

लेकिन उसकी माँ एक अच्छी औरत थी, शायद उसीके संस्कारों की बदौलत वो अपने बाप के इन कुकृत्यों को उचित नही ठहरा पा रहा था. 

उसने तो कभी सपने में भी नही सोचा था कि उसका बाप पैसे के लालच में देशद्रोह जैसा संगीन जुर्म भी कर सकता है, वो तो उसे एक सीधा-साधा राजनेता ही समझता था.

मौका निकाल कर उसने नीरा से बात करने की कोशिश की, पहले तो नीरा ने उसको कोई तबज्जो नही दी, लेकिन जब वो उसके सामने हाथ बाँधे खड़ा हो गया और बोला- नीरा प्लीज़ सिर्फ़ एक बार मेरी बात सुन लो.

नीरा – अब बात करने को रह ही क्या गया है रॉकी बाबू, मुझ दो टके की नौकरानी से क्या बात करेंगे आप..?

रॉकी – अब मुझे रीयलाइज़ हुआ है कि मे कितना ग़लत था ? मुझे तुम जैसी नेक लड़की के साथ ऐसा व्यवहार नही करना चाहिए था. प्लीज़ एक बार मुझे माफ़ करदो..!

तुमने जो उस दिन मेरे पिता जी के बारे में कहा था, वो बिल्कुल सही निकला..! सच में वो देशद्रोह में लिप्त हैं.

नीरा – क्या ? आपको कैसे और कब पता लगा अपने पिता के बारे में..?

फिर रॉकी उसे पूरी बात बताता चला गया, जो उसको पहले से ही पता थी, लेकिन उसने उसको ये जाहिर नही होने दिया कि उसे ये सब पता है. 

नीरा – तो अब क्या सोचा है आपने..?

रॉकी – उसी के बारे में मे तुम्हारी राय जानना चाहता था, कि मे उन्हें ये सब ना करने के लिए कैसे रोकू. 

मे जानता हूँ, तुम बहुत सुलझी हुई लड़की हो, ज़रूर कोई ना कोई रास्ता निकल लोगि.

नीरा - मे भला इसमें क्या कर सकती हूँ..? आप चाहो तो अपने पिता से बात करो इस बारे में.

रॉकी - इस विषय पर भी मे सोच चुका हूँ, पर शायद ये संभव नही होगा, क्योंकि वो इस दलदल में बहुत अंदर तक जा चुके हैं, 

शायद अब वापस आना उनके लिए भी मुश्किल है. हो सकता है वो मेरे खिलाफ भी हो जाएँ.

नीरा - तो पोलीस को बता दो…!

रॉकी- पोलीस कुच्छ साबित नही कर पाएगी.. ! उल्टा इतने बड़े नेता के खिलाफ बोलने से वो हमें ही ग़लत ना ठहरा दे…

और फिर मेरे पास अभी उनके खिलाफ कोई सबूत भी तो नही है.

नीरा - तो अब हम सिर्फ़ समय का इंतजार ही कर सकते हैं, और उनपर नज़र रख कर सबूत इकट्ठा करने की कोशिश करते हैं….!

रॉकी – हां शायद अब तो यही एक रास्ता है….!
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12-19-2018, 02:22 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मैने चारों ओर से सारी इन्फर्मेशन कलेक्ट करके पूरी रिपोर्ट होम मिनिस्ट्री को भेज दी, प्रताप आंड कंपनी कुट्टी के द्वारा बहुत बड़े नर संहार को अंजाम देने की तैयारी में थे.

दुसरे के दिन रायगढ़ के मैदान में होने वाले उत्सव में वो कोई बड़ा हमला करने वाले हैं, जिसमें सैकड़ों जानें जाने की पूरी संभावना थी.

मेरी रिपोर्ट के आधार पर होम मिनिस्ट्री से कर्प्फ़ के एरिया कमॅंडर को विशेष सूचना मिली कि वो हमारे ग्रूप से मिलकर कोई ठोस योजना बना कर इस ख़तरे से निपटने का प्रयास करें. 

सूचना बहुत ही गोपनिया रखी जाए.

कमॅंडर का कॉल आने के बाद हमने मीटिंग का समय और जगह निर्धारित कर ली, और समय पर एक गोपनीय स्थान पर हम लोग मिले.

हम दो ही जाने थे, रणवीर तो अपनी ड्राइवर की ड्यूटी पर तैनात था और चौधरी के पल-2 के मूव्मेंट की जानकारी दे रहा था.

हमारी खबर के मुताविक कम-से-कम 100 से ज़्यादा नक्सली ऑटोमॅटिक हथियारों से लेश उत्सव में आई भीड़ पर हमला करने वाले हैं, 

ये भी संभव था, कि वो लोग बॉम्ब वग़ैरह का भी स्तेमाल कर सकते हैं. 

अगर ये हमला हुआ तो भारी जान माल के नुकसान से कोई नही बचा सकता.

हमें किसी भी सूरत में हमले से पहले ही उन नकशालियों को घेर कर ख़तम करना होगा.

उनका संभावित ठिकाना भी हमने खोज लिया था, जहाँ वो हमले से पहले इकट्ठा होने वाले थे, 

फिर तय हुआ कि कम से कम 200 के करीब हमारे जवान रात के अंधेरे में उस इलाक़े को शांति पूर्वक घेर लेंगे और उचित समय पर एक साथ अटॅक करके उन्हें ख़तम कर देंगे. 

चूँकि विक्रम को वो जगह पता थी, और उसके आस-पास किस तरह से घेरा बनाना था, वो भी हमने खाका तैयार कर लिया था.

तय हुआ कि हम दोनो जवानों की टुकड़ी के साथ जाएँगे. 

मीटिंग ख़तम करके कमॅंडर अपने कॅंप को लौट गये और अपनी गुप्त तरीक़ा से तैयारियों में जुट गये…!

कल दशहरा है, हिंदू मान्यता के हिसाब से कल के दिन हिंदुओं के ईष्ट मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने बुराई के प्रतीक रावण पर विजय प्राप्त की थी.

आज भी बहुत सारे रावण हमारे समाज में मौजूद हैं और अपनी झूठी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए जन साधारण को भेड़ बकरियों से ज़्यादा महत्व नही देते हैं, 

लोगों की जान से खेलना तो जैसे इन्होने अपना पेशा और शौक बना लिया है.

आज की राजनीति भी इससे अछुति नही है, नेताओं के दबाब में आकर प्रशासन भी असमर्थ हो जाता है, जब कुछ नही कर पता तो वो भी स्वार्थवस उनके साथ मिल जाते हैं.

ऐसे ही कुछ रावण, कल के उत्सव में होने वाली बर्बरता के सूत्रधार हैं, जिन्हें उनके अंजाम तक पहुँचाने की ज़िम्मेदारी कुछ देशभक्तों के कंधों पर थी, जिसे वो अपनी जान की परवाह ना करते हुए भी निभाने में जुटे हुए थे.

हमारे दिशा निर्देशन में सीआरपीएफ के 200 शसस्त्र जवान इस धुंधली चाँदनी रात में घने जंगलों के बीच दम साधे, इशारों के मध्यम से बढ़े चले जा रहे थे.

विक्रम द्वारा बताए गये अनुमानित जगह से हम अभी भी 2 किमी दूर थे. 

हमने सबको रुकने का इशारा किया, फिर दो-2 के हिसाब चारों दिशाओं का निरीक्षण करने के लिए एक दम चुस्त, चालाक और दुर्दांत जवानों को चुना.

दो-दो को चारों दिशाओं मे जाने का सिग्नल देकर 4-4 लोगों को उनके पीछे बॅक-अप के लिए भेजा, जो शीघ्र लौट कर अपनी-2 दिशाओं की वास्तु-स्थिति से भी अवगत करते.

इस काम में हमें दो घंटे गुजर गये, रास्ते में एक दो जगह नक्सली भी फैले हुए थे, जिन्हें बड़ी सावधानी से बिना आवाज़ किए ठिकाने लगा दिया गया.

करीब 120-125 नक्सली, घने जंगलों के बीच स्थित एक मैदान में जमा थे, जो सुबह होते ही वहाँ से निकलते और दोपहर बाद तक वो अपने टारगेट तक पहुँच जाने थे.

चूँकि मैदान के चारों ओर घना जंगल होने से वो अपने आप को सुरक्षित मान रहे थे, और सावधानी के लिए उन्होने अपने आदमी भी फैला रखे थे, जो हमने उनके सोचने समझने से पहले ही ठिकाने लगा दिए.

आगे वाले दो-2 जवान अभी भी अपनी पोज़िशन पर सतर्क थे, इधर हमने फिर जल्दी से आगे बढ़ना शुरू किया और जल्दी ही चार टुकड़ियों बाँट कर चारों ओर से मैदान को घेर लिया और घने जंगलों के बीच पोज़िशन ले ली.

हमने उस मैदान को एक तरह लॉक कर दिया था, अब अगर कोई नक्सली बच कर निकलना भी चाहे तो वो निकल नही सकता था.

रात का अंतिम पहर था, ज़्यादातर नक्सली गहरी नींद में डूबे हुए थे, 

कुछ ही थे जो जगह-2 पहरे पर तैनात थे, लेकिन आख़िरी पहर होने के कारण वो भी उन्घ रहे थे.

मे, विक्रम और कमॅंडर तीनो एक जगह मजूद थे, वो सब हमारे निर्देश के इंतजार में थे, मुझे सिचुयेशन कुछ आसान सी दिखी, बेमतलब की ज़्यादा गोलीबारी से बचा जा सकता था.

मैने कमॅंडर को कहा- क्यों ना हम किसी तरह इनके चारों ओर बॉम्ब फिट कर दें, और एक साथ धमाका करदेने से ये लोग यूँही ख़तम हो जाएँगे. हमें ज़्यादा गोलीबारी नही करनी पड़ेगी.

एक ही बार में ये आधे से ज़्यादा मारे जा चुके होंगे, जो बचेंगे उन्हें आसानी से काबू कर लिया जा सकेगा.

मेरी बात उनको जमी, और तय हुआ कि अब हम धमाका ही करेंगे. 

गस्त पर तैनात नक्सली ज़्यादा तर ऊंघ ही रहे थे, सो हमारे कुछ जवान चारों टुकड़ियों से रेंगते हुए उनके बीच तक पहुँच गये, और बड़ी आसानी से उन्होने बॉम्ब प्लांट कर लौट लिए.

चाँद आसमान में अपनी चाँदनी समेट कर विदा ले चुका था, पूरव में आसमान का रंग कुच्छ लालिमा लिए हुए सूरज के स्वागत की मानो तैयारिया शुरू कर रहा था. 

हमने अपने जवानों को थोड़ा और पीछे जंगल में सेफ दूरी पर रहकर पोज़िशन पर लगाया और एक साथ चारों बॉम्ब को रिमोट से उड़ा दिया.

धमाके इतने तेज हुए कि 600-700 मीटर दूर होने के बावजूद भी हमारे पास तक की ज़मीन भूकंप की तरह काँप उठी.

नक्सलियों के कॅंप में चीखो-पुकार मच गयी, मानव अंग हवा में उड़ने लगे, 

धमाके से आधे से ज़यादा नक्सली मारे गये, बचे-खुचे घायल थे, कुछ 10-5 ने भाग निकलने की कोशिश तो उन्हें गोली से भून दिया गया.

मिसन शत-प्रतिशत कामयाब रहा था, हम दोनो दोस्त कमॅंडर को फाइनल एक्सेक्यूशन का बोल कर अपने ठिकाने की ओर लौट लिए, 

क्योंकि अब जो असली रावण बचे थे उनको भी अंजाम तक पहुँचना वाकी था.

हमने अपनी कामयाबी की खबर रणवीर तक पहुँचा दी थी. सुबह 10 बजे तक हम अपने ठिकाने पर लौट आए…. 

रणवीर ने उन लोगों के प्लान के बारे में सब पता लगा लिया था…

उसकी खबर के मुतविक चौधरी आंड कंपनी प्रताप के घर पर ही मेले का प्रशारण टीवी पर देखते हुए जश्न मनाने की तैयारी में थे…

वो इस सबसे दूर बैठ कर तमाशा देखना चाहते थे, उन्हें सपने में भी ये गुमान नही था, कि कोई तो हैं जो उनके इस प्लान की धाज़ियाँ उड़ा चुके हैं, 

और अब वो यमदूत बनकर उनके सरों पर पहुँचने वाले हैं… थे…..!

आज दशहरा है, रायगढ़ का विशाल मैदान लोगों के हुज़ूम से भरा हुआ है, जहाँ तक नज़र जाती है, लोगों के सर ही सर नज़र आते हैं, 

चारों ओर चहल-पहल दिखाई दे रही थी, लोग आज का सारा दिन मेले का आनंद उठाने पहुँचे हैं.

मैदान के एक सिरे पर एक विशाल स्टेज सजाया गया था, जहाँ रामलीला के दृश्य दिखाए जाने थे और शाम ढलते-2 रावण, मेघनाथ, कुम्भकरण आदि के पुतलों को जलाया जाना था.

उधर दिन के 12 बजते-बजते प्रताप के घर पर सुंदर चौधरी, एंपी और उनका चौथा पार्ट्नर राइचंद भी आ चुके थे. 

चौधरी के साथ उसका विश्वसनीय ड्राइवर सज्जाक उसके साथ था, जो फिलहाल बाहर गेट पर ही रह गया था.
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12-19-2018, 02:22 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
शराब का दौर शुरू हो चुका था, टीवी ऑन करके रखा था, लोकल न्यूज़ चनेल लगा के रखा था, आज देश भर की खास न्यूज़ दशहरा से संबंधित थी, देश के अलग-अलग हिस्सों से दशहरा मनने की खबरें आ रही थी.

चौधरी नशे की पिन्नक में ही बोला- मनालो खुशियाँ सालो कुछ देर और ! फिर तो ये खुशियाँ मातम में बदलने वाली हैं.. हाहहाहा….!

उसके साथ-साथ वाकी भी अट्टहास करने लगते हैं… !

अभी उनकी हँसी थमी नही थी कि टीवी पर एक न्यूज़ फ्लश होने लगी.

न्यूज़:- देखिए किस तरह से हमारे देश के जवाजों ने एक बहुत बड़ी नक्सली घटना होने से बचाई है, 

अब आपके सामने सीआरपीएफ की विशेष टुकड़ी के कमॅंडर बीएस बत्रा आपको बताएँगे कि किस तरह से उन्होने एक बड़ी वारदात होने से बचाई जिसमें सैकड़ों लोगों की जान जा सकती थी और ना जाने कितने करोड़ का नुकसान हो सकता था.

फिर टीवी स्क्रीन पर कमॅंडर बत्रा दिखाई दिए और उन्होने बोलना शुरू किया..

हमें इंटेलिजेन्स रिपोर्ट से ग्यात हुआ कि कोई नक्सली ग्रूप एक बहुत बड़ी वारदात को अंजाम देने वाला है, 

उनका प्लान दशहरे के मेले को टारगेट करना था. करीब 125-150 नक्सली आधुनिक हथियारों से लेश अटॅक करने के लिए तैयार थे.

हो सकता था, बॉम्ब वग़ैरह से विस्फोट भी कर सकते थे वो लोग. 

हमने उनकी लोकेशन को ट्रेस किया और अपने जवानों के दस्ते को गुप्त रूप से लेजा कर उन्हें घेर लिया और वक़्त रहते हुए उनके मंसूबों को ध्वस्त करके उन्हें उनके अंजाम तक पहुँचा दिया.

फिर स्क्रीन पर वो सब मंज़र दिखाया गया, जहाँ नक्सलियों की छत-विच्छित लाशें ही लाशें पड़ी थी.

कमॅंडर ने आगे बोलते हुए कहा- हमें ये भी पता चला है कि इस साजिश के पीछे कुछ सफेद पॉश देश द्रोहियों का हाथ है, 

जिनके नाम अभी तक हमें पता नही है, लेकिन जल्द ही उनका भी यही अंजाम होनेवाला है….! 

क्योंकि आज का ये पावन पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए ही मनाया जाता है, तो अच्छाई अभी तक ख़तम नही हुई है,
आज भी इस देश में सच्चे सपूत मौजूद हैं जो हर संभव उन रावनो का वध करते रहेंगे जो हमारे देश को नुकसान पहुँचाना चाहते हैं.

अब हम आशा करेंगे कि हमारे देश के लोग इस पर्व को धूम-धाम से मनाएँ ताकि उन देश द्रोहियों के मंसूबे मिट्टी में मिल जाएँ. “ज़य हिंद” “वन्दे मातरम”.

इतना सुनते ही इन चारों के चेहरों पर बारह बज गये, उत्तेजना और आक्रोश की अधिकता में चौधरी ने अपने हाथ में पकड़ा हुआ ग्लास ही टीवी स्क्रीन पर दे मारा, 

छ्हन्नक की आवाज़ से टीवी का स्क्रीन टूट गया और उसमें भक्क से आग लग गयी.

ये नही हो सकता…? चौधरी पूरी ताक़त से चिल्लाया, हम ऐसे मात नही खा सकते..?

ये मिसन लीक कैसे हुआ..? बोला एंपी.

प्रताप- इतना गोपनीया मिसन आख़िर लीक कैसे हुआ..? ज़रूर कोई ख़ुफ़िया एजेन्सी हमारे आस-पास सक्रिय है, अगर ऐसा है तो अब उन्हें हम तक पहुँचने में ज़्यादा वक़्त नही लगेगा.

सबके चेहरों पर भय की परच्छाइयाँ साफ दिखाई देने लगी, शराब का नशा तो ना जाने कहाँ गायब हो गया था.

अभी वो इस समस्या के बारे में बात कर ही रहे थे, कि उन्हें लगा कि कोई और भी इस हॉल में मौजूद है, जो उनकी गति विधियों पर नज़र रखे हुए है.

वो चारों चोन्कन्ने हो गये और ध्यान देकर इधर उधर नज़रें दौड़ाई, तभी प्रताप को लगा कि पर्दे के पीछे कोई है.

वो चुप-चाप उधर को बढ़ा और नज़दीक जाकर झटके से परदा हटा दिया…

वहाँ नीरा को खड़े देख कर प्रताप का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, उसने उसके बाल पकड़ कर उसे खींचते हुए बाहर लाया.

तो तू है वो भेदी..! जो हमारी सारी खबरें लीक करती है. 

बाल पकड़ कर खींचने से नीरा का दर्द से बुरा हाल हो रहा था, 

भय से थर-2 काँपते हुए वो बोली- नही मुझे कुछ पता नही है, मैने कुछ नही किया, मुझे छोड़ दो.

प्रताप दाँत पीसते हुए गुर्राया- साली हरम्जादि ! झूठ बोलती है, तूने कुछ नही किया है तो यहाँ छुप कर हमारी बातें क्यों सुन रही थी बोल.

नीरा रोते-2 बोली- आप लोग ज़ोर-ज़ोर से हँस रहे थे इसलिए देखने आई थी, फिर वो न्यूज़ देख कर छुप गयी. 

मे सच कह रही हूँ मुझे कुछ पता नही.

तभी चौधरी गुर्राया- प्रताप क्यों समय बर्बाद कर रहा है, इससे पहले कि ये साली कुछ और किसी को कुछ बताए, उड़ा दे साली को.

प्रताप ने फ़ौरन अपनी गन निकाली और नीरा पर तान दी, तभी दूसरी तरफ के पर्दे के पीछे से रॉकी बाहर आया और प्रताप और नीरा के बीच आकर खड़ा हो गया.

रॉकी- हां हम लोग आपकी बातें सुन रहे थे, और ये भी जानते हैं कि आप लोग ही इस सबके पीछे हो, ऐसा क्यों किया पिता जी आपने.. बोलो.

प्रताप अपने बेटे को वहाँ देख कर सकपका गया, लेकिन तुरंत अपने उपर काबू करके हुए बोला- 

हट जा रॉकी मेरे सामने से वरना में तुझे भी मार दूँगा.

तभी आवाज़ें सुन कर उसकी पत्नी भी वहाँ आ गई, जब उन्होने अपने पति को अपने ही बेटे के उपर गन ताने हुए देखा तो हड़वाड़ा कर प्रताप की ओर भागी और जाकर उसके गन वाला हाथ पकड़ते हुए बोली- 

आप पागल तो नही हो गये, अपने ही बेटे को मारने की बात कर रहे हैं. हो क्या गया है आपको… और वो उसके हाथ से गन छीनने की कोशिश करने लगी.

इसी हाथापाई में ट्रिगर दब गया और …. ढाय…से..एक गोली चली जो सीधी राम दुलारी देवी के सीने को चीरती हुई चली गयी…

हे राम… बस इतना ही निकला उनके मुँह से और उनका मृत शरीर वहीं फर्श पर गिर पड़ा.

प्रताप बौखलाया हुआ कभी अपनी पत्नी की लाश को देखता तो कभी अपनी गन को. उसको कुछ भी समझ नही पड़ा कि आख़िर ये हुआ तो क्या हुआ..?

उधर जैसे ही रॉकी ने अपनी माँ को लाश में तब्दील होते हुए देखा, वो अपना आपा खो बैठा और अपने बाप के उपर झपटा- 

हरम्जादे में तेरा खून पी जाउन्गा, तूने मेरी माँ को ही मार डाला…आआ…आअहह…

इससे पहले कि वो अपने बाप तक पहुँचता कि एक और गोली चली जो सीधी रॉकी के भेजे में लगी और वो वहीं ढेर हो गया.

ये गोली चौधरी ने चलाई थी, अपने बेटे और पत्नी का हस्र देख कर प्रताप बौखला गया….
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