Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 02:15 PM,
#81
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -41 

गतान्क से आगे... 

वो मुझे छेड़ने लगती. मेरे बदन पर चिकोटी काटने लगती, यहाँ तक की कभी कभार मेरे स्तनो को मसल भी देती. 



“ दिशा ये जो बदन की गर्मी है अगर उंगली से ही बुझ जाती तो फिर किसी औरत को शादी करने की ज़रूरत ही नही होती. चूत की खाज तो किसी मरद के मोटे लंड से ही बुझ सकती है.” वो मुझे च्छेदते हुए कहती. 



“ दीदी आप भी तो पूरे हफ्ते अकेली ही रहती हो आप बताओ आप अपनी प्यास कैसे बुझाती हो?” मैने पूछा. 



“ अब मुझमे और आग कहाँ बची है. अब तो बदन की गर्मी कम हो गयी है.” 



“ लेकिन आप तो शादी करके यहीं आई थी. उस वक़्त अपनी आग को कैसे बुझाती थी?” 



“ एम्म्म…..एक दो मर्द मैने अपने मयके मे पल रखे थे जो मेरे चचेरे-ममेरे भाई बन कर अक्सर यहाँ चले आते थे और कुच्छ दिन मेरे पास रह कर मेरी चूत की खुजली मिटा देते थे.” उन्हों ने धीमी आवाज़ मे कहा. 



“कभी शक़ नही हुआ भैया को की आप…..” 



“ अरे नही उन्हे कभी भनक भी नही लगी. अपनी जवानी मे मैने काफ़ी लोगों से चुदाई की है. जवानी होती ही कितने दीनो की है. अगर इसे भी बिना मज़ा लिए ही गँवा दिए तो क्या बुढ़ापे मे जिंदगी का मज़ा लोगि.” उन्हों ने कहा. 



“ नही दीदी मुझे बहुत डर लगता है.” मैने उनसे अपने दिल की बात बताई. 



“ इसमे डर कैसा. जिस तरह भूख लगने पर आदमी को खाना खाना पड़ता है और प्यास लगने पर किसी के इंतेजार किए बिना ही पानी पी लेता है. उसी तरह ये भी एक ज़रूरत है. इसकी भी भूख लगती है. इसकी भी प्यास लगती है. तब उस ज़रूरत को दबाने से जिस्म कुम्हला जाता है. उस ज़रूरत को भी पूरा करना हमारा धर्म है. इसमे किसी तरह का संकोच या शर्म की कोई बात ही नही है. मर्द अपनी बीवी की जिस्मानी भूख को ख़तम. करने के लिए होता है मगर पति अगर इसे शांत नही कर पता तो बीवी का हक़ है की इसे किसी और तरह से शांत करे. किसी और के द्वारा इसे शांत करे.” उन्हों ने समझाते हुए कहा. 



“ दीदी आप किसी बात को बहुत अच्छि तरह समझती हो.” 



“ इसीलिए तो तुम्हे भी कहती हूँ अपने इस फूल से बदन का रस भंवरों को पीने दो. देखना कितना मज़ा आता है. ऐसा लगेगा मानो तुम हवा मे उड़ती जा रही हो और सारे बदन से बिजली की तरंगें निकल रही हैं. पाँच दस साल बाद ना तो ये तरंगें रहेंगी ना ये उत्तेजना फिर सेक्स एक बोझ लगने लगेगा. इसलिए आज मे जियो. वर्तमान का मज़ा लो. अपनी जिस्मानी भूख को समझो. उसका आदर करो. और उसकी ज़रूरत पूरी करो.” उन्हों ने कहा. 



“ ठीक है दीदी मैं सोचूँगी.” जब उनकी बातें ज़रूरत से ज़्यादा गंभीर होने लगी तो मैने उन्हे टालते हुए कहा. 
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12-10-2018, 02:15 PM,
#82
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
हम अक्सर ऐसे ही शाम को एकत्ते हो कर एक दूसरे का अकेलापन दूर करते. एक दिन उन्होने मुझे पूछा की मैने कोई ब्लू फिल्म देखी है या नही. मेरे इनकार करने पर वो मुझ पर हँसने लगी. मानो मैं उनके सामने बहुत सब स्टॅंडर्ड वाली हूँ. मई उन्हे इस तरह हंसते देख झेंप गयी. 





अगले दिन शाम को वो मुझे अपने घर बुलाई. मैं जब पहुँची तो उसने मुझे अपना एक गाउन पहनने को दिया. वो भी उस वक़्क्त एक झीना सा गाउन पहन रखी थी. मेरे पूछ्ने पर बताया कि इसे पहनने से काफ़ी खुला खुला महसूस होगा. मैं उनकी बातों को उस वक़्त तो समझ नही पे मगर जल्दी ही उनकी बातों का अभिप्राय समझ मे आ गया. 



ड्रॉयिंग मे हम एक लंबे सोफे पर बैठ गये. उसने टी.वी. पर द्वड से एक फिल्म चलाया. जब टीवी पर फिल्म चलने लगी तो मेरा मुँह खुला का खुला रह गया. सामने ब्लू फिल्म चल रही थी. एक औरत के साथ दो व्यक्ति चुदाई कर रहे थे. एक आगे से उसके मुँह मे ठोक रहा था तो दूसरा उसके पीछे से चूत मे पेल रहा था. इतनी जबरदस्त चुदाई चल रही थी कि उसकी बड़ी बड़ी छातियाँ बुरी तरह उच्छल रही थी. ये देख कर मुझे मज़ा आने लगा. वो भी मुस्कुरा कर मेरे बदन से सॅट गयी. 



मेरा पूरा ध्यान टीवी पर ही लगा हुया था. इस तरह की फिल्म मैं पहली बार देख रही थी. मैं आस पास से एक दम बेफ़िक्र हो गयी थी. रत्ना जी काफ़ी खेलीखाई महिला थी. वो मुझे जान बूझ कर गर्म कर रही थी. मुझे उनके मन मे चल रही दाँव पेंच के बारे मे कोई भी अंदेशा नही था. अचानक मेरी चूचियो को रत्ना जी द्वारा मसले जाने से मुझे होश आया. मैने मूड कर देखा तो पाया रत्ना जी बिल्कुल नंगी हो चुकी थी. उसके हाथ मेरे गाउन के गिरेबान से अंदर घुस कर मेरी चूचियो को मसल रहे थे. 



तभी वो फिल्म ख़त्म हो गयी. आख़िर मे दोनो आदमियों ने अपने अपने लंड से वीर्य की फुहार से उस औरत का चेहरा भिगो दिया. 



रत्ना जी ने मेरे गाउन को नीचे से पकड़ कर उपर करना शुरू कर दिया. मैने सोफे से हल्का सा उपर उठ कर उसे उसके काम मे मदद किया. उसने मेरे गाउन को बदन से निकाल कर अलग कर दिया. अब हम दोनो बिल्कुल नंगी एक दूसरे से चिपक कर बैठी हुई थी. 



अगला फिल्म जानवरों के साथ था. दिखाया जा रहा था की राह चलती एक औरत को चार लोग पकड़ कर ले आते हैं. उसे नंगी करके वो कमरे से बाहर जाने लगते हैं तो एक आदमी उसके हाथ बाँध देता है और उसे लिटा कर उसकी चूत मे वहाँ पड़ी एक कुर्सी के पाए को घुसा देता है. उसकी रखवाली के लिए एक लंबे चौड़े कुत्ते को वही छ्चोड़ कर सब बाहर चले जाते है. 



उनके जाने के बाद वो औरत अपने बंधन खोल लेती है और जब वहाँ से भागने को होती है तो कुत्ता गुर्राने लगता है. कुत्ते को चुप करने के लिए वो औरत उस कुत्ते के लिंग को सहलाने लगती है. उसके बाद उसके लिंग को चूसने लगती है. 



इधर रत्ना मेरी टाँगों को फैला कर मेरी योनि को चूस रही थी. और मैं उत्तेजना मे सोफे पर कस्मसा रही थी. मैने उसके सिर को अपनी दोनो जांघों के बीच दबोच रखा था. 

उसकी जीभ मेरी योनि के फांकों के बीच घूम रही थी. सामने चलते ब्लू फिल्म ने मेरी दबी आग को इतना भड़का दिया था की उस वक़्त मैं अपनी गर्मी शांत करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी. 



सामने उस वक़्त उस औरत के द्वारा कुत्ते को चुदाई के लिए उत्तेजित करने का सीन चल रहा था. कुत्ते का लंड उस औरत की हरकतों से तन गया था अब वो औरत किसी कुतिया की तरह चौपाया हो गयी थी और वो कुत्ता उसकी चूत को सूंघ रहा था, उसके बाद उस कुत्ते ने उस औरत की कमर पर अपने दोनो पंजे रख दिए और अपने लंड को अंदर डालने की कोशिश करने लगा. मगर उसे सफलता नही मिल रही थी. 



रत्ना की हरकतों से मेरे बदन मे सिहरन सी दौड़ रही थी. पूरे बदन के रोएँ उत्तेजना मे काँटों की तरह खड़े हो गये थे. अब मैं अपनी उत्तेजना को चिपचिपे धारा के रूप मे बह निकलने से नही रोक पाई. और मैने रत्ना के सिर को पकड़ कर अपनी योनि पर दबा लिया और अपनी योनि को सोफे से उपर उठा लिया. 



“आआआआआअहह,,,,,माआआ” की आवाज़ के साथ मेरी योनि से रस की धारा बह निकली. रत्ना अपनी जीभ से उसे चाट चाट कर सॉफ कर रही थी. मैं निढाल सी सोफे पर पसार गयी. 



रत्ना ने वापस मेरी टाँगों को फैला कर मेरी योनि को चाट चाट कर लाल कर दिया. मेरी योनि की फाँकें फूल कर मोटी मोटी हो गयी थी. 

क्रमशः............
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12-10-2018, 02:15 PM,
#83
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -42 

गतान्क से आगे... 

सामने फिल्म मे भी वो कुत्ता उस औरत की चूत को चाट रहा था. कुच्छ ही देर मे वो औरत उस कुत्ते के चाटने से उत्तेजित हो गयी थी और कुत्ते के लिंग को एक हाथ से खींच कर अपनी चूत मे डाल ली थी. अब वो कुत्ता ज़ोर ज़ोर से धक्के मार रहा था. वो औरत अपने हाथों से अपने झूलते बड़े बड़े स्तनो को मसल्ते हुए उस कुत्ते से चुदवा रही थी. 



रत्ना अब मेरी योनि के क्लिट को अपनी उंगलियों से मसल्ने लगी जिससे मेरा बदन उत्तेजना मे वापस झटके खाने लगा.



“ आआआहह क्य्ाआअ काअरररर रहियीई हूऊऊ…..म्‍म्म्माआआ……उफफफफफफफ्फ़….. हाऐईयईईई…. मेरााा बदाअन जाअल रहााअ हाईईइ….ईईईईईईईइइम्म्म्मम…….न्‍

न्न्नाअ नहियीईईई…… आआब मुझीईए चहूऊओद डूऊऊ…..” मैं च्चटपटा रही थी. 



“ क्यों मज़ा नही आ रहा है?” रत्ना मेरी हालत के मज़े ले रही थी. 



“ क्यूऊऊँ मुझीई साताआ रहियीई हूऊओ….. हाईईइ आअब ईीई आाअग कौउूँ बुझाआएगाआ रतनाआअ प्लीईसी कीसीईईईई कूऊ बुलाआअ…..कीसीईईई कूऊव भीईीई लीई एयाया…..उफफफफफ्फ़….माऐइ माररर जौउऊनगिइइई. कीसीईईई भीईिइ माअर्द काअ लुन्न्ञदड़ लाआ डीई. कीसीईइ कूओ भीईीई बूओल मुझीई चूओद डलीई” 



“ किसी को भी क्यों मैं हूँ ना.” कह कर वो अपनी चारों उंगलिया मेरी योनि मे डाल कर तेज़ी से अंदर बाहर करने लगी. मैने अपनी दोनो जांघों को सख्ती से एक दूसरे से भींच लिया. वो मेरे होंठों को चूसने लगी और दूसरे हाथ से मेरे एक निपल को कुरेद रही थी. 



मेरे बदन मे वापस चिंगारियाँ फूटने लगी और वीर्य की धारा बह निकली. जब वीर्य का बहाव रुका तो उसने अपने हाथ को खींच कर बाहर निकाला. मैने देखा उसकी सारी उंगलिया मेरे रस से सनी हुई थी और उनसे बूँद बूँद कर मेरा रस नीचे टपक रहा था. 



मैं किसी भूखी शेरनी की तरह रत्ना पर झपट पड़ी और उसे सोफे पर गिरा कर उस पर सवार हो गयी. मैने उसके स्तनो को बुरी तरह मसल दिया और उसकी योनि की फांकों को अपने दन्तो से काटने लगी. 



मैने अपनी उंगलियों को उसकी योनि के अंदर डाल कर उसे चौड़ा किया. फिर अपनी जीभ निकाल कर उसकी योनि मे बाहर से अंदर की ओर फिराने लगी. वो उत्तेजना मे उचकने लगी थी. 



“ आआहह….डीईइ….दीस्स्शहाअ…..क्य्ाआअ कार रहियिइ हूऊ…. नहियीईई…नहियीईई…. डाांट नहियीई…..ऊऊहह…दाअर्द हूओ रहाा हाईईईईई….हाआँ हाआँ अओर ज़ोर से और अंदर अया….आ…. ” कह कर उसने भी अपना रस छ्चोड़ दिया. जिसे मैने चाट चाट कर सॉफ किया. जब मैने अपना चेहरा उठाया तो मेरी नाक से उसका वीर्य एक रेशमी धागे की तरह झूल रहा था. मैने अपने हाथों से उसे पोंच्छा. 



सामने टीवी पर भी उस औरत की कुत्ते से चुदाई ख़तम हो चुकी थी. मगर कुत्ते का लंड उसकी चूत मे फँसा हुया था. वो चारों आदमी वापस आ चुके थे और कुत्ते के लंड से फँसी उस औरत को देख देख कर हंस रहे थे. वो औरत छॅट्पाटा रही थी मगर जब तक कुत्ते का लिंग ढीला नही पड़ गया तब तक उसका लंड बाहर नही निकला. 



रत्ना मेरी ओर देख कर मुस्कुरा दी. ”अब मरद की जगह किसी और का लेगी तो ये तो झेलना ही पड़ेगा.” 



हम दोनो की गर्मी कुच्छ हद तक शांत हो चुकी थी. मगर जो राहत किसी मर्द से चुदवा कर मिलती है वो नही मिली. मैने पहली बार ही किसी औरत के साथ इस तरह की हरकत की थी इसलिए मन मे एक झिझक भी थी. 



अब हम अक्सर एक साथ होकर ब्लू फिल्म और राज शर्मा की हिन्दी सेक्सी स्टोरीस पढ़ने और सुनने लगे. मैं उसके साथ रह कर काफ़ी कामुक हो गयी थी. रत्ना अपने मकसद के लिए मेरे मन मे दबी चिंगारी को और हवा दे रही थी. 



एक दिन रत्ना दोपहर को घूमने आई. देवेंदर कई दिनो के लिए बिज़्नेस के सिलसिले मे बारेल्ली गये हुए थे इसलिए मैं अकेली ही थी. उसे देख कर मेरा मन खिल उठा. दोनो तरह तरह की बातें कर रहे थे. बातों बातों मे आश्रम की बात चल गयी. 



“ दिशा तूने आश्रम को देखा है अंदर से?” रत्ना जी ने पूछा. 



“ नहीं दूर से ही देखा है बनते हुए. काफ़ी बड़ा बन रहा है. काफ़ी भव्य होगा अंदर से.” मैने कहा 



“ हाँ…अब तो पूरा बन कर तैयार हो गया है. मैं तो अक्सर वहाँ जातो रहती हूँ. अंदर से तो इतना शानदार है कि लगता है किसी राजा-महाराजा के महल मे आ गये हों.” रत्ना जी ने कहा, “ मैने तो उस आश्रम की सदस्य बन गयी हूँ. बहुत शान्ती मिलती है वहाँ.” 

उनकी बातें सुनकर मुझमे भी कुच्छ जिग्यासा जागी. 



“ अच्च्छा? एक दिन मुझे भी ले चलो ना. बाहर से देख कर बहुत मन करता है अंदर जाने का लेकिन जा नही पाती.” 



“ तो इसमे डर कैसा. कोई रोकटोक थोड़ी है वहाँ. कोई भी जिसके मन मे श्रद्धा हो वहाँ जा सकता है. सेवक राम जी तो तेरे बगल मे ही रहते हैं. उन्हों ने कभी आश्रम दिखाने का न्योता नही दिया तुझे? ” 



“ हां मुझे सेवकराम जी ने एक बार कहा तो था आश्रम दिखाने के लिए. मैने ही मना कर दिया था. अब मैं अकेली औरत कहाँ जाती किसी गैर मर्द के साथ घूमने. वैसे ये सेवकराम कैसे आदमी है?” 



“ सेवकराम नही सेवकराम जी कहो. वो बहुत ही पहुँचे हुए महात्मा हैं. लगता है तुम्हारा उनसे संपर्क कम ही हुआ है. उनके साथ रहोगी तो एक बार भी नही लगेगा की किसी अंजान आदमी के साथ हो. उन मे हर किसी को अपना बना लेने की बड़ी छमता है. उनकी बोली से तो अमृत टपकता है. उनके भी गुरु हैं स्वामी त्रिलोकनंद कभी उनसे मिलना. देवता स्वरूप आदमी हैं. उनकी वाणी इतनी मीठी है की आदमी अपना सब कुच्छ लुटाने को तैयार हो जाता है. ” रत्ना जी ने कहा. 



“ वो भी यहीं रहते हैं?” मैने उत्सुकता से पूछा. 



“ कौन? त्रिलोकनंद स्वामी जी के बारे मे पूछ रही हो? वो यहाँ नही रहते. लनोव के पास एक बहुत लंबा चौड़ा आश्रम है. वो एक तरह से इनके पंथ का हेड ऑफीस है.. बड़े गुरुजी वहीं रहते हैं. अभी अगले महीने इस आश्रम का इनॉवौग्रेशन है जिसमे वो शामिल होने के लिए यहाँ आएँगे. मैने तो उनसे दीक्षा ली है तुम भी उनसे चाहो तो दीक्षा ले सकती हो. उनकी शिष्या बन सकती हो.” 



“ मुझे इन सब साधु संतों मे विस्वास कम ही है.” मैने कहा. 



“ अरे पगली ये वैसे नही हैं. इनके संपर्क मे पहुँचोगी तो पता चलेगा की इस संसार मे आज भी देवता स्वरूप मनुष्य पैदा होते हैं.” वो तो तारीफों के पुल बँधे जा रही थी. मुझे इन सबमे उतनी दिलचस्पी नही थी इसलिए इनमे पड़ना नही चाहती थी. लेकिन वो तो लग रहा था आश्रम और उनके तौर तरीकों की कायल हो चुकी थी. 



“ बोलो कब चलॉगी आश्रम देखने. मैं तुम्हे पूरा आश्रम घुमा कर दिखाउंगी. भोचक्की रह जाओगी वहाँ का रहन सहन देख कर. एक बार उनसे भी मिल तो लो फिर तुम भी गुलाम हो जाओगी उनकी” रत्ना जी ने मुस्कुराते हुए कहा. 



“ किनसे?” मैने अंजान बनते हुए पूछा. 



“किनसे और? सेवक राम जी से. जीवन सफल हो जाएगा. मुझे दुआएँ देगी की मैने ऐसे आदमी से तेरा संपर्क करवा दिया.” 

क्रमशः............ 
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12-10-2018, 02:15 PM,
#84
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -43 

गतान्क से आगे... 

“उनसे तो मैं पहले भी कई बार मिल चुकी हूँ. मेरे पड़ोस मे ही तो रहते हैं. आजकल तो अक्सर ही मिल जाते हैं. लगता है तुम्हारे ये सेवक राम बड़े रसिक स्वाभाव के आदमी हैं.” मैने उनसे कहा. 



“ क्यों ऐसा क्या देखा उनमे?” 



“ मैं जब भी बाहर कुच्छ काम करती हूँ तो तुम्हारे ये रसिक लाल जी मुझे घूरते रहते हैं मानो मुझे जिंदा खा जाएँगे.” 



“ दिशा तुम हो ही इतनी खूबसूरत की हर मर्द का लंड सलाम करने लगे तुझे देख कर.” 



“ दीदी आप भी ना हमेशा मेरी खिंचाई करती रहती हो. खुद को देखो. ऐसा सेक्सी बदन है कि इस बदन की एक झलक पाकर ही कोई भी अपने उपर से कंट्रोल खो दे.” 



“ चल छ्चोड़ पहले ये बता कब चलेगी घूमने?” 



“ देखती हूँ. देव आ जाए फिर किसी दिन देख आएँगे उनका आश्रम.” 



“ अरे देवेंदर जी तो जाने कब आएँगे. कल ही हम दोनो चलते हैं आश्रम. मैं ले चालूंगी तुझे वहाँ. तुम तैयार रहना मैं ठीक दस बजे आ जाउन्गी तुम्हे लेने.” रत्ना ने उठते हुए कहा, “सुबह नौ दस बजे तक काम निबटा लेना और नहा धो कर तैयार रहना….” 



“ अरे सुनो तो….” मैं उसे मना करना चाहती थी मगर उसने मेरी एक ना चलने दी.. वो कुच्छ भी सुनने को तैयार ही नही हुई. 



“ कुच्छ नही सुनना तुम बस नहा धो कर और खूब बन संवर कर तैयार रहना. हम दोनो साथ चल चल्लेंगे.” रत्ना कहते हुए चली गयी. मैं उन्हे रोक कर इनकार करना चाहती थी लेकिन उनकी बातों ने कुच्छ ऐसा असर किया था मेरे उपर कि उस आश्रम और वहाँ के मठाधीश से मिलने का मौका भी हाथ से निकलने नही देना चाहती थी. मुझे एक बार लगा कि पता नही कैसी औरत है. अभी जान पहचान ही कितने दिनो की थी. मगर मैने अपने मन मे उठती एक शन्सय को दबा दिया. 



वैसे भी दिन मे किसी औरत के साथ कहीं जाने मे क्या बुराई हो सकती थी. आच्छा नही लगा तो वापस लौट आउन्गी. 



अगले दिन मैं पौने दस बजे तक नहा धो कर तैयार हो गयी थी. अपने चेहरे पर हल्का सा मेकप भी किया था. होंठों पर लिपस्टिक, माथे पर बिंदी माँग मे सिंदूर लगाकर बदन पर एक प्यारी सी गुलाबी सारी पहनी थी. वैसे तो मैं अक्सर सलवार कमीज़ पहनती थी लेकिन किसी धार्मिक स्थल पर जाने के लिए मुझे सारी पहनना ही उचित लगा. गले पर भारी मंगलसूत्रा और हाथों मे कोहनी तक सुंदर रंग बिरंगी चूड़ियाँ मेरे रूप को और निखार रही थी. मुझे बनने सँवरने का शुरू से ही बहुत शौक़ था. जिसे शादी के बाद देव ने और हवा दी थी. वो चाहते थे कि मैं हर वक़्त बनी सन्वरि रहूं.



मॅचिंग ब्लाउस के अंदर मैने एक लेसी ब्रा और जांघों पर मॅचिंग पॅंटी पहनी थी. उन्हे पहनते वक़्त मैं मुस्कुरा दी. किसे पता चल सकेगा कि मैने अंडर गारमेंट्स का भी चयन सारी के मॅचिंग ही किया था. कोई कपड़े उतार कर देखने तो जा नही रहा था कि मैने अंदर क्या पहन रखा है. 



“कौन देखेगा इन अंदरूनी वस्त्रों को. भगवान के घर जा रही हूँ वहाँ पर साधु महात्मा रहते हैं को छिछोरे आशिक़ तो मिलेंगे नही जो मौका मिलते ही कपड़ों के अंदर तक झाँक लें” मैने आईने मे अपने आप को निहारते हुए सोचा. 



रत्ना ठीक दस बजे घर पर आ गयी. आश्रम पास ही था इसलिए हम दोनो पैदल ही वहाँ के लिए रवाना हुए. कोई पाँच मिनिट का रास्ता था. वहाँ मैने देखा की वाकई काफ़ी भव्य आश्रम बन रहा था. काफ़ी बड़ा एरिया घिरा हुआ था. ऑलमोस्ट पूरा ही बनकर तैयार हो गया था अब फिनिशिंग चल रही थी. एक नक्काशी वाले प्रवेश द्वार से अंदर घुस कर सामने रिसेप्षन जैसी जगह पर पहुँचे. 



रिसेप्षन पर दीवारों से लगे काफ़ी मुलायम सोफे बिछे हुए थे. रत्ना जी ने मुझे वहाँ बैठने का इशारा किया. रिसेप्षन मे उस वक़्त केवल एक आदमी गेरुआ वस्त्र पहने मौजूद था. उसने रत्ना जी को झुक कर अभिवादन किया. जिससे लगा की रत्ना जी काफ़ी परिचित व्यक्तियों मे हैं. मैं सोफे पर जाकर बैठ गयी. 



“ मैं अभी आती हूँ दो मिनिट वेट करो.” कहकर रत्ना जी एक विशाल दरवाजे से अंदर चली गयी. मैं वहाँ बैठे हुए दीवारों पर बने हुए पत्थर से तराशे हुए देवी देवताओं की मूर्तियाँ देख रही थी. मुझे लग रहा था कि पता नही मैं किस लोक मे आ गयी हूँ. सारे अश्रमवसी गेरुए रंग के लबादे पहने हुए थे. जो आगे से खुलते थे. ये वस्त्र कमर पर किसी नाइट गाउन की तरह एक डोरी से कसे हुए थे. 



वहाँ कुच्छ औरतें भी दिखी वो भी इसी तरह के वस्त्र मे थी. चलने फिरने से उनके वस्त्र सामने से खुल जाते थे और उनकी जांघों का काफ़ी हिस्सा सामने से दिखने लगता था. 



मैं अपनी नज़रें इधर उधर दौड़ने लगी. मैने देखा की वहाँ जितनी भी मूर्तियाँ नक्कासी की हुई थी वो अजंता या खजुराहो की मूर्तियों की तरह काम रस मे डूबी हुई थी. मर्द और औरत सेक्स के अलग अलग पोज़ मे दिख रहे थे. तस्वीरें जो दीवार पर लगी थी वो भी काफ़ी उत्तेजक और कामुक थी. हर ओर काम रस बिखरा पड़ा था. मैं उन सब को देख कर वहाँ के रहने वालो के रहण सहन के बारे मे सोचने लगी. 



तभी एक आदमी एक ट्रे मे शरबत जैसा कोई पेय प्रदार्थ ले आया. रंग से रूह आफ्ज़ा की तरह दिख रहा था. उसने मुझे झुक कर नमस्कार किया और ट्रे सामने की. मैने उसे शरबत समझ कर एक ग्लास ले लिया. उसमे से बहुत भीनी भीनी सुगंध आ राझी थी.. मैने उस ग्लास को लेकर उसमे से एक घूँट सीप किया. शीतल पेय का स्वाद बड़ा ही अजीब था. वैसा नशीला स्वाद मैने कभी नही चखा था. एक घूँट पीते ही मन झूम उठा. 



“ ये कौन सा शरबत है?” मैने पूछा. 



“ ये एक ख़ास आयुर्वेदिक पेय है. खास खास जड़ी बूटियों से बना है ये. इस आश्रम मे जो भी मेहमान आता है उनका स्वागत इसी पेय से किया जाता है. यहाँ चाइ या कोल्ड ड्रिंक्स तो मिलेगी नही. आपको इससे ही काम चलना पड़ेगा. आपको पसंद नही आया?” उसने पूछा. उसके इस तरह पूच्छने से मैं हड़बड़ा गयी और एक झटके मे पूरा ग्लास खाली कर दिया. 



मुझे इस तरह हड़बड़ा कर पीता देख वो मुस्कुराता हुया पलटा और अंदर चला गया. उसकी महक काफ़ी देर तक मेरे नथुनो मे भरी रही. उसे पीने के बाद मैं अपने बदन को बहुत हल्का महसूस करने लगी. 



कोई दस मिनिट बाद रत्ना जी वापस आई. वो भी अपने वस्त्र खोल कर उसी तरह के गेरूए वस्त्र पहन कर आई थी. उनके हाथ मे भी एक वैसा ही लबादा था जैसा उन्हों ने पहन रखा था. उन्हे आते देख मैं उठ खड़ी हुई. 



“क्या हुआ आप अपने कपड़े चेंज कर आई?’ मैने उनसे पूछा मगर उन्हों ने मेरे सवाल का कोई जवाब देने की ज़रूरत नही महसूस की. 



“आओ..” कहकर रत्ना जी मेरा हाथ पकड़ कर अपने साथ उस दरवाजे से अंदर ले गयी.. सामने एक कॉरिडर था जिसके दूसरी ओर काले काँच का एक और दरवाजा था उसमे प्रवेश करते ही दरवाजा अपने आप पीछे बंद हो गया. हम एक कमरे मे थे कमरे के अंदर घुप अंधेरा था. कुच्छ भी दिखाई नही दे रहा था. मैने घबरा कर रत्ना जी की कलाई को सख्ती से थाम लिया. 

क्रमशः............ 
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12-10-2018, 02:15 PM,
#85
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raj sharma stories

रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -44 

गतान्क से आगे... 

तभी रत्ना जी ने हाथ बढ़ा कर एक स्विच ऑन किया तो छत से लटकता हुआ एक कॉनिकल शेड के अंदर का बल्ब जल उठा. उसकी तेज रोशनी हमारे चारों ओर एक गोल सर्कल बना रही थी. रोशनी इतनी तेज थी की हमारी आँखें चोंधिया गयी थी. वो बल्ब सिर से कोई 4-5 फीट उपर लगा हुआ था. उस रोशनी के गोल दायरे के बाहर घुप अंधेरा था. रत्ना ने मुझे खींच कर उस रोशनी के दायरे के बीच मे खड़ा कर दिया. कमरे मे चारों ओर घुप अंधेरा था उस दायरे से बाहर कुच्छ भी नही दिखाई पड़ रहा था. पूरा वातावरण ही रहश्मयी सा लग रहा था. 



“ ये…. तुम मुझे कहाँ ले आए हो?” मैने उनसे सतते हुए पूछा, “ मुझे यहा पता नही कैसा अजीब सा महसूस हो रहा है. मानो कई जोड़ी आँखें मुझे घूर रही हो.” 



“ ये तुम्हारे मन का वेहम है दिशा. ये आश्रम का सबसे पवित्र स्थान है. यहीं सबको दीक्षा दी जाती है. यहीं पर तन और मन का सुद्धि करण किया जाता है. इसी कमरे मे अमृत की धारा बहती है.” वो पता नही क्या क्या बोले जा रही थी. मेरी समझ मे कुच्छ भी नही आ रहा था. मैं बस आँखें फाड़ फाड़ कर उस कमरे का जयजा लेने की कोशिश कर रही थी. 



“ रश्मि तुम्हे यहाँ आश्रम मे घूमने फिरने के लिए मेरी तरह के वस्त्र पहनने पड़ेंगे. बाहर के डूसिट वस्त्र यहाँ अलोड नही हैं.” 



“लेकिन….” मैं कुच्छ विरोध करना चाहती थी. मगर उसने मेरे विरोध को दबा दिया. 

“ इस आश्रम के कुच्छ कठोर उसूल है. और ये उनमे से एक है कि कोई भी व्यक्ति बाहर के कपड़े पहन कर सभा स्थल के अलावा कहीं नही जा सकता. लो इन्हे पहन लो. देखो मैने भी तो पहन रखा है. इसमे झिझकने जैसी तो कोई बात ही नही है.” उसने कहा. 



मैं अब भी कुच्छ कुच्छ हिचकिचा रही थी. मेरी हिचकिचाहट को देखते हुए रत्ना जी ने कहा. “ घबराओ नही तुमने देखा नही यहा मौजूद सारे आदमी और औरत इसी तरह का वस्त्र पहनते है. चलो अपने सारे वस्त्र उतार कर मुझे दे दो. मैं उन्हे सम्हाल कर रख देती हूँ. वापस जाते समय हम इसी कमरे मे आकर अपने वस्त्र पहन लेंगे.” 



मैने हिचकिचाते हुए अपनी सारी के प्लीट्स पर लगे पिन को खोल कर अपने आँचल को नीचे गिर जाने दिया. मेरे गुलाबी ब्लाउस मे कसे बड़े बड़े स्तन दो मिज़ाइल्स की तरह तने हुए खड़े थे. मैने एक बार चारों ओर नज़र दौड़ाई ये देखने के लिए की कहीं कोई दूसरा तो नही है. 



“ चलो सारी उतार कर मुझे दो.” रत्ना ने अपने हाथ मेरी ओर बढ़ा दिए. 



मैने अपनी सारी के प्लीट्स को अपने पेटिकोट से खींच कर निकाला और सारी को अपने बदन से अलग कर दिया. रत्ना जी ने जल्दी से मेरी सारी को समेट लिया. मैने अपना हाथ उसकी तरफ गाउन लेने के लिए बढ़ाया. उसने अपने जिस हाथ मे गाउन थाम रखा था उसे मेरी पहुँच से दूर कर दिया 



“ उन्ह अभी नही. तुझे ये भी उतारना पड़ेगा. ये शुद्ध वस्त्र किसी दूषित वस्त्र के उपर नही पहन सकती.” उसने ब्लाउस और पेटिकोट की ओर इशारा किया. मैने चौंक कर उसकी तरफ देखा. आख़िर कुच्छ भी हो औरतें किसी और की मौजूदगी मे अपने इन वस्त्रों को अपने बदन से अलग करने मे हिचकति हैं. 



“ यहाँ?” मैने चारों ओर देखते हुए आगे पूछा,” यहा बाथरूम किधर है..” 



“ तेरा दिमाग़ खराब हुया है. इस वस्त्र को तू बाथरूम मे ले जाएगी?” रत्ना ने मुझे घूरते हुए पूछा,” इसे यहा पहनने मे क्या दिक्कत है?” 



“ यहाँ? कमरे मे कोई आ गया तो?” मैने झिझकते हुए पूछा. 



“यहाँ कोई नही आ सकता. किसी को भी बिना सूचना इस कमरे मे आने पर पाबंदी है. चलो जल्दी करो. मैं हूँ ना.” रत्ना ने मुझसे कहा 



“ कम से कम अंधेरा तो कर दो.” 



“अरे आज हो क्या गया है तुझे क्यों बेकार की बहस कर रही है.” रत्ना ने मुझे झिड़कते हुए कहा. 



मैं अभी भी आश्वस्त नही हो पाई थी और अपने बदन को निवस्त्र करने से झिझक रही थी. 



“ अरे बाबा घबरा क्यों रही है. यहाँ पर मेरे और तुम्हारे अलावा है कौन. और अगर मैने तुम्हारा नग्न बदन देख भी लिया तो क्या फ़र्क पड़ जाएगा. पहली बार तो तुम नग्न हो नही रही हो मेरे सामने. वैसे तुम हो बहुत ही खूबसूरत. कोई अगर ग़लती से तुम्हे देख भी ले तो मुझे विश्बवास है कि वो अपने उपर कंट्रोल नही रख पाएगा.” उसने मेरे बदन को निहारते हुए मेरे नितंब पर पेटिकोट के उपर से ही चिकोटी काटी. मैने भी उसकी बातों पर दोबारा विचार किया और अपने ब्लाउस के बटन्स एक एक करके खोलने लगी. 



कुच्छ ही देर मे अपने ब्लाउस के सारे बटन्स खोल कर मैने अपना ब्लाउस उतार कर पास खड़ी रत्ना को दे दिया. मैं अब नेट की बनी एक पारदर्शी ब्रा पहने हुई थी. मेरे सामने रत्ना खड़ी थी इसलिए मैने अपने नग्न होते बदन को च्चिपाने की कोई कोशिश नही की. वो मुझे बड़ी गहरी नज़रों से निहार रही थी. मानो वो पहली बार मुझे इस हालत मे देख रही हो. 



अब मैने अपने पेटिकोट की डोर खींच दी. एक ही झटके मे गाँठ खुल गयी. डोर को हाथ से छ्चोड़ते ही मेरा पेटिकोट पैरों से सरकता हुआ ज़मीन पर ढेर हो गया. जिसे मैने अपने पैरोंसे निकाल कर रत्ना को दे दिया. रत्ना ने उसे भी झपट कर मेरी हाथों से ले लिया. 



मेरे बदन पर अब एक जालीदार ब्रा और वैसी ही एक छ्होटी सी पॅंटी ही बची थी. मेरा लगभग नग्न बदन रोशनी मे शीशे सा चमक रहा था. रत्ना ने एक हाथ से ब्रा मे कसे मेरे स्तनो को सहलाया और फिर हाथ को नीचे ले जाकर मेरी योनि को पॅंटी के उपर से मसला. मैने वापस कपड़े के लिए उसकी तरफ हाथ बढ़ाया तो उसने मना कर दिया. 



“ नही अभी सारे वस्त्र कहाँ उतरे. इन्हे भी उतार. अंदर किसी भी तरह का दूषित वस्त्र पहन कर घूमना बिल्कुल निषेध है.” रत्ना जी ने कहा. मैं कुच्छ विरोध करना चाहती थी लेकिन ना जाने क्यों मैं चुप रह गयी. मैने अपने हाथ अपनी पीठ की ओर बढ़ाए अपने ब्रा के हुक को खोलने के लिए. लेकिन तभी रत्ना ने मुझे रोक दिया. 



“ ठहरो “ कहकर रत्ना जी मेरे पीछे की ओर चली गयी और कहा“ इधर मेरी तरफ घूमो.” 



मुझे समझ मे नही आया कि वो मुझे ऐसा क्यों कह रही है. लेकिन मैने उससे कुच्छ पूछा नही. मैं उनके कहे अनुसार पीछे मूड गयी. मैने वापस अपने हाथ पीछे ले जाकर ब्रा के हुक को खोल दिया. रत्ना जी की नज़र मेरी छातियो पर गढ़ी हुई थी. मैने ब्रा को अपनी छातियो से उतार कर उसको दे दिया. मैं अपने हाथों से अपनी नग्न छातियो ढँकने की कोशिश कर रही थी. उसने मेरी हथेलियों को पकड़ कर सीन एके उपर से हटा दिया. 

उसकी नज़रों मे मेरी छातियो के लिए प्रशन्षा के भाव थे. मेरे निपल्स कुच्छ तो ए/सी की ठंडक से और कुच्छ सामने खड़ी रत्ना जी की आँखों की तपिश से तन कर खड़े हो गये. हो सकता है इसमे उस नशीली और कामोत्तेजक शरबत का भी कुच्छ कमाल रहा हो. मेरे स्तनो का शेप तो पहले से ही लुभावना था उस पर मेरे खड़े निपल्स और सेक्सी बना रहे थे. 



“ एम्म्म….क्या रसीले स्तन हैं तेरे. कोई मर्द इन नारंगियों को देखे तो मसल मसल कर इनका रंग भी नारंगी जैसा कर दे. “रत्ना ने अपनी उंगलियों से पहले उन्हे च्छुआ फिर हल्के से दोनो बूब्स को प्रेस किया. वो अपनी दोनो हाथों की उंगलियों से मेरे निपल्स थाम कर उनसे खेलने लगी. 



“ रत्ना जी आज आपको क्या हो गया है. आप आज इस तरह का बर्ताव क्यों कर रही हो. अब?” 



“ बहुत शानदार फिगर है. तभी आस पड़ोस के सारे मर्द दीवाने रहते हैं तुम्हारी एक झलक के लिए.” रत्ना ने कहा. 



मैं हल्के से मुस्कुरा दी. पता नही आज रत्ना इस तरह का बर्ताव क्यों कर रही थी मानो वो मुझे इस हालत मे पहली बार देख रही हों. 



“ अब उसके भी तो दर्शन करवा दो.” उसने मेरी योनि की तरफ इशारा किया. 



“आप गाउन तो देदो. गाउन पहन कर मैं अपनी पॅंटी खोल कर आपको दे दूँगी. मुझे इस तरह शर्म आ रही है.” 



“ नही पहले पॅंटी को अपने बदन से दूर करो तभी तुम इन कपड़ों को छ्छू सकती हो.” 

क्रमशः............ 
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12-10-2018, 02:15 PM,
#86
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
raj sharma stories

रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -45 

गतान्क से आगे... 

मैने अपनी पॅंटी की एलास्टिक मे उंगलियाँ फँसाई और उसे नीचे झुक कर नीचे की ओर खींचने लगी की उसने फिर मुझे रोका. 



“ ऐसे नही. “ उसने कहा “ पॅंटी को बहुत आहिस्ता आहिस्ता उतारो और उतारते हुए पीछे की तरफ घूमो.” 



“ क्यों?” मैं उसके इस आदेश का मतलब नही समझ पाई थी. 



“ जैसा कह रही हूँ करो.” 



मैने धीरे धीरे अपनी पॅंटी को नीचे करना शुरू किया. जैसे जैसे मेरी पॅंटी नीचे जा रही थी मेरा बदन सामने की ओर झुकता जा रहा था. मैं उस तरह झुकते हुए पीछे की तरफ घूम रही थी. जिस वक़्त मैं पीछे घूम कुकी थी तब मेरी पॅंटी घुटनो के नीचे जा चुकी थी. मेरी बड़ी बड़ी चूचियाँ सामने की ओर झूल रही थी. 



मैने अपनी पॅंटी को घुटनो के नीचे ले जा कर छ्चोड़ दिया और खड़ी हो गयी. पॅंटी ढीली होकर खुद ही सरक्ति हुई पंजों पर गिर पड़ी. मैं उसे अपने पैरों से निकाल कर रत्ना को देने के लिए पीछे घूमना चाहती थी. 



“ नही नही पीछे मत घूमना. मैं इसे ले लेती हूँ.” कह कर उसने मेरे हाथ से पॅंटी ले ली. मैं अब बिल्कुल नंगी हालत मे सीधी खड़ी थी. शरीर पर कपड़े का एक रेशा तक नही था. उन्नत उरोज, खड़े कठोर निपल और जांघों के बीच उगा घना काला रेशमी बालों का जंगल, भारी नितंब सब कुच्छ बेपर्दा था.उस तीव्र रोशनी मे मेरा दूधिया रंग का बदन चमक रहा था. 



बदन पर कपड़ों के अलावा सारे गहने वैसे ही रहने दिए थे. गले पर भारी मन्गल्सुत्र, हाथों मे भारी चूड़ीयाँ और माथे पर कुमकुम एक अप्सरा सी लग रही थी. यहाँ तक की पैरों मे अभी तक हाइ हील्स के सॅंडल मौजूद थे. 



मुझे इस तरह खड़े होने मे बहुत शर्म आ रही थी. लेकिन मैने अपने गुप्तांगों को च्चिपाने की कोई कोशिश नही की. क्योंकि मैं जानती थी की रत्ना मेरी एक नही चलने देगी. आज उसे पता नही क्या हो रहा था. इस तरह घर के अलावा किसी पब्लिक प्लेस पर मैं पहली बार नंगी हुई थी. गुस्सा भी आ रहा था की मैं इनके साथ बिना कुच्छ सोचे समझे क्यों चली आइ. 



“ अब तो मुझे कपड़ा दे दो. अब तो सारे कपड़े उतार दिए मैने. आज आपकी नियत कुच्छ सही नही लग रही है. मगर जो करना है वो घर जा कर ही करना बेहतर होगा इस तरह पब्लिक प्लेस मे कोई भी हमे देख सकता है.” मैने अपने हाथ उसकी ओर बढ़ाए. 



“ अब अपने हाथ छत की ओर उठा दो” रत्ना जी ने मेरी बात को बिल्कुल अनसुना करते हुए कहा. 



“ लेकिन इसके साथ उस वस्त्र को पहनने का क्या संबंध है? “ मैने आख़िर मे पूछ ही लिया. मेरे पूरे बदन मे सिहरन सी दौड़ रही थी शायद उस शरबत का ही कुच्छ कमाल था. मेरी योनि भी गीली हो चुकी थी. उसमे से चिपचिपा प्रदार्थ निकल रहा था. उस महॉल मे इस तरह निवस्त्र होते होते मुझमे भी काम का ज्वार चढ़ने लगा. 



“ जैसा मैं कहती हूँ वैसा ही करो. ये सब यहाँ का रिवाज है इसे तुम्हे मानना ही पड़ेगा. कुच्छ रस्में हैं जिसे पूरा करने के बाद ही तुम इस वस्त्र को पहन सकती हो. देखो मेरे अलावा कोई और तुम्हे देख सकता इसलिए घबराओ नही. किसी तरह का मन मे डर हो तो उसे निकाल दो.” 



मैने उसकी बातों मे आकर अपने हाथ हवा मे उपर उठा दिए. मेरा योवन बेपर्दा हो गया था. 



“ अब अपनी टाँगों को चौड़ा करो.” रत्ना की आवाज़ सुनाई दी. मैने धीरे धीरे झिझकते हुए अपनी टाँगें फैलानी शुरू की. ऐसा लग रहा था मानो किसी के आगे मैं अपने कटीले हुष्ण की किसी को नुमाइश करवा रही हूँ. मुझे बड़ी शर्म आ रही थी. ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई रांड़ हूँ और अपने बेपर्दा जिस्म किसी ग्राहक को दिखा रही हूँ. रत्ना मेरे पीछे थी. मैं उसकी ओर मुड़ना चाहती थी मगर उसने मुड़ने नही दिया. 



“ अब तो मुझे कपड़े देदो.” मैने कहा मगर रत्ना की तरफ से कोई आवाज़ नही आइ. 



मैं इसी उत्तेजक अवस्था मे खड़ी रही. तभी अचानक एक हल्की सी “क्लिकक” की आवाज़ सुनाई दी. मैने गर्देन घुमा कर देखा रत्ना मेरे उतारे हुए कपड़े और जो कपड़े साथ लाई थी सारे समेट कर मेरे पास से गायब हो चुकी है. मैं दौड़ कर दरवाजे की ओर गयी. मगर दरवाजा उसने बाहर से लॉक कर दिया था. मैं वापस अपनी जगह आकर इधर उधर कपड़े ढूँढने लगी. 



मैं इससे पहले की कुच्छ समझ पाती पूरा हॉल रोशनी से जगमगा उठा. सामने देखा कमरे के दूसरे छ्होर पर सेवकराम जी पूरे नग्न अवस्था खड़े थे. उनके जांघों के बीच उनका लिंग किसी खंबे की तरह खड़ा था. वो मेरी हालत को देख कर मुस्कुराते हुए अपने लिंग को सहला रहे थे. 



उनके लिंग का टोपा किसी काले नाग की तरह लपलपा रहा था. वो मेरी ओर अपने ताने हुए लिंग को सहलाते हुए बढ़ रहे थे. मुझे समझ मे ही नही आया की मैं क्या करूँ. मेरा गला डर और घबराहट मे सूखने लगा. मैं पीछे की ओर सरकी. दो एक कदम ही पीछे खिसक पाई होंगी की सेवक राम जी मुझ तक पहुँच कर मेरे नग्न स्तनो को अपनी मुट्ठी मे भर लिए. और उन्हे ज़ोर से भींच दिया. 



मैने उनके हाथ को झटक दिया और अपने हाथों से अपनी चुचियो को ढकने की असफल कोशिश करते हुए पीछे हटी तो उन्हों ने अपने हाथों से मेरी योनि के उपर रख दिया. मेरी योनि के उपर घने काले बालों को अपनी मुट्ठी मे भर कर सहलाने लगे. मैने झट अपना एक हाथ अपने स्तनो से हटा कर अपनी योनि को ढकने लगी. हाथ के हटते ही मेरे स्तन युगल बेपर्दा हो गये. सारे गुप्तांगों को एक साथ ढक पाना वश मे नही था. उनके हाथ को योनि से हटाने पर उन्होने मेरे एक नितंब को मुट्ठी मे भर कर मसल दिया. 



तभी पीछे कुच्छ खटका हुआ. मैने सिर घुमा कर देखा रत्ना वापस अंदर आ रही थी. उसके हाथ अब खाली थे. मेरे वस्त्र उसके हाथ मे नही थे ना ही मेरे को पहनाया जाने वाला वो लबादा. 



“ रत्ना…..ये क्याअ हो रहाआ हाईईइ. मुझे निकालो यहाआँ से.” मैने उसकी ओर देख कर गिड़गिदते हुए कहा, “ इनसे मुझे बचाओ. ये मेरे साथ ग़लत काम करना चाहते हैं. मैं…मैं शोर मचा दूँगी.” 



“ बकवास मत कर दिशा…ये तुझे जन्नत की सैर कराएँगे. ये तेरे मन मे जल रही ज्वाला को शांत कर देंगे. ये तुझे खुशी और संतुष्टि की इतनी उँची मंज़िल तक ले जाएँगे जिसकी तूने कभी कल्पना भी नही की होगी. अओर एक बात ये भी सुन ले…..यहाँ तेरे विरोध के कोई मायने नही हैं. तू जितना चीख सकती है उतना चीख ले मगर तेरी आवाज़ इन चार दीवारों के बाहर नही जा पाएगी. ये कमरा साउंड प्रूफ है. इसमे से कोई आवाज़ बाहर नही जाती.” 



मेरी विरोध करने की छमता ख़त्म होती जा रही थी. मैं अपने जांघों के बीच पड़ते किसी के हाथों का स्पर्श महसूस कर वापस अपना ध्यान रत्ना की ओर से हटा कर सेवकराम को देखा. 



सेवक राम जी के जांघों के बीच लटकता उनका लिंग पूरे जोश मे आ चुक्का था. मेरी नज़रें एक टक सेवकराम जी के गधे के समान खड़े लिंग पर अटकी हुई थी. सेवकराम जी ने आगे बढ़ कर मुझे अपनी बाहों मे भर लिया. मुझे लग रहा था मानो मेरे साथ सब कुच्छ एक सपने की तरह घट रहा हो. मेरा दिमाग़ सुन्न होता जा रहा था. मन तो चेता रहा था कि जो कुच्छ भी हो रहा था ठीक नही हो रहा था. मगर जिस्म का हर रोया उत्तेजना मे च्चटपटाते हुए किसी काँटे के समान खड़ा हो गया था. 



रत्ना जी मुझे हाथ पकड़ कर उस रोशनी के दायरे से बाहर लेगई. उसने एक ओर लगे भारी पर्दे को हटा दिया. तब तक सेवक राम ने उस लाइट को बुझा कर कमरे मे हल्की नीली रोशने के छ्होटे छ्होटे बल्ब जला दिए. पूरा कमरा मदहोश कर देने वाले वातावरण से भर गया. 



पर्दे के उस ओर दीवार के साथ एक डबल बेड लगा था. रत्ना मुझे खींचते हुए उस बेड पर ले गयी. बेड पर मुलायम गद्दे के उपर सफेद रंग का रेशमी चादर बिच्छा था. रत्ना उस बेड पर बैठ गयी और खींच कर मुझे भी अपने पास बिठा लिया. उस वक़्त रत्ना गाउन पहने थी और मैं बिल्कुल नग्न. मेरा सिर घूम रहा था और मैं किसी नशे के जाल मे फँस गयी थी. मुझे अपनी नग्नता पर भी कोई अफ़सोस नही हो रहा था. बस हल्की हल्की सी एक तरंग पूरे बदन को सिहरा देती थी. मेरे पूरे बदन को एक अजीब सी खुमारी ने अपने आगोश मे ले लिया था 



हमारे साथ साथ सेवकराम जी भी वहाँ पर आ गये. रत्ना मेरे पूरे बदन पर अपनी उंगलियाँ इतने आहिस्ता से फिरा रही थी कि ऐसा लग रहा था मानो बदन पर चींटियाँ चल रही हों. मेरी आँखें खुद बा खुद मूंडने लगी. मेरे होंठ एक दूसरे से अलग हो गये. मेरी गर्देन पर और कानो की लबों पर किसी की गर्म साँसों की तपिश मिल रही थी. मेरा बदन गन्गनाने लगा. मैने अपने सिर को झटका दिया. मेरे लंबे रेशमी बाल पूरे चेहरे पर बिखर गये. 

क्रमशः............ 
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12-10-2018, 02:15 PM,
#87
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
raj sharma stories

रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -46 

गतान्क से आगे... 

अचानक किसी ने मेरे रेशमी बालों को पीछे से उठाया और मेरी गर्देन पर अपनी जीभ फिराने लगा. एक जीभ कभी मेरे एक निपल को हल्के से छुति तो कभी दूसरे निपल को. मेरा अपने बदन पर से कंट्रोल ख़तम हो चुक्का था. दोनो मुझे उत्तेजना की इतनी उँची शिखर तक ले गये थे कि अब मेरा कोई ज़ोर नही चल रहा था. मैं जानती थी कि अब क्या होने वाला है. दिमाग़ वॉर्निंग दे रहा था कि मैं अपने आप पर कंट्रोल कर लूँ नही तो वापस लौटने के सारे रास्ते बंद हो जाएँगे. मगर जिस्म तो इस कदर फूँक रहा था कि अगर वो मेरे साथ सेक्स करने से मना कर देते तो मैं किसी पागल शेरनी की तरह उनको नोच खाती. मैं खुद उनको रेप कर देती. 



फिर दोनो ने मेरे एक एक निपल को अपने होंठों के बीच दबा लिया. दोनो के होंठ मेरे तने हुए निपल्स को चूसने मे व्यस्त थे और उनके हाथ मेरे पूरे बदन पर रेंग रहे थे. मैं धीरे धीरे बिस्तर पर लेट गयी. दोनो भी मेरे बदन से चिपके हुए मुझ पर पसर गये. 



कुच्छ देर तक मेरे एक निपल से खेलने के बाद रत्ना मुहे छ्चोड़ कर उठी. मैने देखा मेरा निपल किसी अंगूर से भी बड़ा दिख रहा था. अब सेवकराम को तो पूरी छ्छूट मिल गयी थी उसने एक निपल को तो अपने मुँह मे भर ही रखा था, रत्ना के हटते ही दूसरे स्तन को अपनी मुट्ठी मे थाम कर उसे सहलाने लगा. 



तभी रत्ना जी ने बिस्तर के साइड के टेबल से दो छ्होटी छ्होटी किसी देवता की मूर्तियाँ उठा कर मेरे दोनो हाथों मे थमा दी. तब मैने अपनी आँखें खोल कर देखा कि वो कर क्या रही थी. 



“ लो इन्हे पाकड़ो. इन्हे अपनी मुट्ठी मे सख्ती से पकड़े रखना.” रत्ना ने मुझे कहा. 



“ ये क्या हैं.” मैने कुच्छ ना समझ कर उससे पूछा. 



“ ये देवता की मूर्तियाँ हैं. काम के देवता ये तेरे जिस्म मे इतनी आग भर देंगे कि तुझे ठंडा कर पाना किसी एक मर्द के बस का काम नही रह जाएगा.” उसने कहा. 



मैने उन मूर्तियों को अपनी दोनो मुट्ठी मे थाम लिया. सेवकराम मुझे छ्चोड़ कर उठ चुका था. मैं बिस्तर पर नग्न लेटी हुई थी. सेवकराम आकर मेरे सामने खड़ा हो गया. सेवकराम कुच्छ सेकेंड्स तक मेरे निर्वस्त्र हुष्ण को सिर से पावं तक निहारता रहा. मैं भी उनके जांघों के बीच तने लिंग को अपनी आँखों से निहार रही थी और उनके अगले कदम का बेसब्री से इंतेज़ार कर रही थी. 



रत्ना ने मेरी टाँगों को पकड़ कर फैला दिया. जिससे मेरी योनि भी बेपर्दा हो गयी. 



“ देखो गुरुदेव…..इस के फूल से बदन मे कितनी वासना भरी हुई है. देखो इसकी चूत से कितना काम रस बह रहा है. इसकी चूत के दोनो होंठों को देखो कैसे काप रहे हैं इन्हे किसी मर्द के मोटे लंड का इंतेज़ार है. इसकी ये इच्छा आप ही पूरी कर सकते हैं. देव इस हुश्न की परी को निराश ना करें.” उसने कहा. सेवकराम की एक हथेली रत्ना ने अपने हाथों से पकड़ कर मेरी योनि के उपर फिराया. मैं कामोत्तेजना मे अपने निचले होंठ को अपने दाँतों से काट रही थी. इस हालत मे किसी गैर मर्द के सामने लेटे रहने की वजह से शर्म भी बहुत आ रही थी. मैने अपनी आँखें अपनी हथेलियों से ढँक ली थी. 



फिर रत्ना ने मुझे सहारा देकर बिस्तर से उठाया. सेवक राम बिस्तर के पास ही खड़े थे. रत्ना ने मुझे घुटनो के बल ठंडे नग्न फर्श पर झुका कर बिठा दिया. सेवक राम जी पास आकर खड़े हो गये. रत्ना ने मेरे सिर को पकड़ कर उनके चरणो पर झुकाया. 



“ चूमो इन्हें. इनके चरणो को अपने होंठों से चूमो. ये कोई आम आदमी नही हैं. इनका इस धरती पर आगमन ही हम जैसी महिलाओं के तन और मन को शांति प्रदान करने के लिए हुआ है. ” उसने कहा. 



मैने अपने सिर को झुका कर उनके पैरों को चूम लिया. ऐसा करते वक़्त मेरे नग्न नितंब उपर की ओर उठ गये. सेवक राम ने उन्हे अपने हाथों से सहलाया. उनकी उंगलिया पल भर के लिए मेरे गुदा द्वार और योनि को उपर से सहलाई. मैं सिर उठाने लगी तो रत्ना मेरे सिर को पकड़ कर उनके लिंग के नीचे ले आई. रत्ना ने उनके लिंग को अपने हाथों से पकड़ कर मेरे सिर पर मेरी माँग पर रख कर आशीर्वाद दिया. ऐसा करते वक़्त उनके लिंग से टपकता रस मेरी माँग मे भर गया. 



“ ये देवता तुल्य हैं. इनकी जितनी तन और मन से सेवा करोगी तुम्हारे जिस्म को उतनी ही ज़्यादा शांति मिलेगी.” रत्ना ने कहा, “ और तुमने ही तो कई बार मुझसे रिक्वेस्ट भी किया था कि तुम्हारे बदन की आग को बुझाने का कोई इंटेज़ाम करूँ. बदन मे जल रही कामग्नी को ठंडा करने का उपाय इनसे अच्च्छा कोई नही कर सकता.” 



मैं चुपचाप किसी बुत की तरह जैसा वो कहती जा रही थी कर रही थी. मेरा दिमाग़ सुन्न होता जा रहा था. बस याद थी एक कामुक उत्तेजना जो मैं किसी भी तरह शांत करना चाहती थी. 



“ बिना किसी हिचक और आशंका के अपने आप को पूरी तरह इनकी चरणो मे समर्पित कर दो. तुम्हारी हर तड़प को उनके शीतल बदन की च्छुअन शांत कर देगी. इनके चर्नो पर अपना दिल रख कर अपनी ओर से पूर्ण समर्पण दिखाते हुए इन्हे अपने बदन को छूने की याचना करो. ” रत्ना कहती ही जा रही थी. 



शांता ने सेवकराम के पैरों पर मेरी दोनो छातियो को निपल्स से पकड़ कर च्छुअया और उनको उनके पैरों पर रख कर सहलाया. ऐसे मे सेवक राम ने अपने अंगूठे और उसके पास की उंगली के बीच मे मेरे एक निपल को लेकर मसला. 



“ देख देव, ये अपने दोनो फूलों को आपको समर्पित कर रही है और इनकी प्यास शांत करने के लिए आपसे विनती कर रही है.” कहते हुए शांता ने मेरी योनि और मेरे गुदा मे अपनी उंगलिया डाल कर उन्हे सेवक राम की ओर करके फैलाया. 



रत्ना ने सेवक राम के लिंग को पकड़ कर मेरी आँखों पर, मेरे गालों पर, मेरे माथे पर, मेरे होंठों पर हर जगह फिराया. मैं अपने दोनो हाथों को अपने घुटनो पर रख कर घुटनो के बल फर्श पर बैठी थी. फिर रत्ना ने एक हाथ से मेरा सिर पकड़ा और दूसरे हाथ से सेवकराम का लंड और मेरे चेहरे को उसके लंड की ओर खींचा. 



“इस लिंग को पहले प्यार करो. आज से ये लिंग तुम्हारी सेवा के लिए हर वक़्त तैयार रहेगा. चलो इसे चूमो. अगर शिष्य का अपने गुरु की हर तरह से सेवा करना धर्म होता है तो उसी तरह गुरु का भी कर्तव्य होता है अपने शिष्य की हर इच्छा को पूरा करना.” 



मैने झुक कर उनके लिंग को अपनी होंठों से चूम लिया. वो पास बैठी उनके लिंग को सहलाने लगी थी. उसके सहलाने से सेवकराम जी के लिंग के सूपदे के उपर की चॅम्डी बार बार उपर नीचे हो रही थी. और बार बार उनके लिंग का टोपा अंदर बाहर हो रहा था. 



रत्ना ने मेरा सिर पकड़ कर दोबारा उनके लिंग से सटा दिया. उसने मेरे सिर को कुच्छ देर उनके लिंग पर दबा कर थामे रखा जिससे कहीं मैं अपना सिर हटा ना लूँ. दूसरे हाथ की उंगलियों से वो मेरी योनि को सहला रही थी. 



मेरे होंठ उनके लिंग से सटे हुए थे. रत्ना ने जब देखा कि मेरे होंठ कुच्छ देर तक बंद ही रहे तो अपने दूसरे हाथ को मेरी योनि से हटा कर उनके लंड की चॅम्डी को नीचे खींच कर लाल लाल सूपदे को बाहर निकाला. फिर मेरे सिर को पकड़ कर उनके लिंग की पर वापस दबाया. मेरे हाथ दोनो ओर फैले हुए थे उनमे वो दोनो मूर्तियाँ बंद थी. 



“ चलो मुँह खोल कर इसे अपने मुँह मे ले लो.” रत्ना ने कहा. 



मैने अपना मुँह खोल कर उसके लिंग को अपने मुँह मे भर लिया. उनका लिंग मेरे मुँह मे जितना अंदर तक जा सकता था मैने ले लिया. अपनी जीभ से उसके लिंग को एक बार सहला कर देखा. मैने अपने हज़्बेंड का लिंग ही सिर्फ़ एक बार उनके बहुत ज़ोर देने पर अपने मुँह मे लिया था. मैं इसे एक गंदी हरकत मानती थी. मगर सेवकराम जी के लिंग को मुँह मे लेने के बाद मुझे लगा कि मैं अब तक ग़लत थी. इस तरह किसी को प्यार करना कोई बुरी चीज़ नही था. 



मुख मैथुन किस तरह किया जाता है उससे मैं बिल्कुल अंजान थी. मैं लिंग को मुँह मे भर लेने को ही मुख मैथुन समझती थी. रत्ना ने मुझे इस कार्य से इतनी तसल्ली से अवगत कराया कि मैं कुच्छ ही देर मे एकदम एक्सपर्ट हो गयी. रत्ना ही मेरे सिर को पकड़ कर उनके लिंग पर आगे पीछे कर रही थी. वो उनके लिंग पर मेरे सिर को इतनी ज़ोर से दबाती की कुच्छ पलों के लिए मेरा दम घुटने लगता. फिर जैसे ही वो अपने हाथ को ढीला करती मैं साँस लेने के लिए अपने सिर को पीछे हटती. इसी तरह कुच्छ देर तक मैं उनके लिंग को अपने मुँह मे लेती रही. 



कुच्छ देर बाद मे बिना किसी के मदद के ही मैं उनके लिंग को चूसने लगी. मैं उनके लिंग को चूसने चाटने मे इतना मसगूल हो गयी कि रत्ना को मेरे सिर को बालो से पकड़ कर सेवकरामके लिंग से हटाना पड़ा. 

क्रमशः............ 
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12-10-2018, 02:15 PM,
#88
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
raj sharma stories


रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -47 

गतान्क से आगे... 

“ले अब जीभ निकाल कर इनके लिंग को और नीचे लटकते इनके अंडकोषों को छातो” रत्ना ने कहा. मैं अब पूरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी और खुशी खुशी वही कर रही थी जो रत्ना मुझे करने को कहती. मेरी योनि बुरी तरह गीली हो चुकी थी. उससे निकल कर मेरा रस बहते हुए घुटनो तक जा रहा था. ऐसा लग रहा था कि पूरा बदन ही पिघल कर योनि के रास्ते बह निकलेगा. इतना रस मैने कभी नही देखा था. 



मैं बिल्कुल भूल चुकी थी की मैं किसी की ब्यहता बीवी हूँ. सारी लाज हया सब पता नही कहाँ भाप की तरह उड़ गये थे. किसी और मर्द से संभोग तो दूर उसके सामने नग्न होने की बात सोचना भी मैं बुरा मानती थी. लेकिन अब मुझे कुच्छ भी बुरा नही लग रहा था. ऐसा लग रहा था मानो वो मेरे कोई अपने हों. मैं उनके सामने अब बिल्कुल भी नही झिझक रही थी. 



मैं अब तो बस एक सेक्स की भूखी रांड़ की तरह हरकतें कर रही थी. जो कुच्छ विरोध शुरू शुरू मे था वो सब उस नशीले शरबत ने ख़त्म कर दिया था. ऐसा लग रहा था मानो मैं हवा मे उड़ती जा रही हूँ. घने बादलों के बीच किसी कल्पना लोक मे. धीरे धीरे उस नशे का असर पूरे बदन पर च्छा गया था और मेरा बदन सेक्स की ज्वाला मे जल रहा था. जी कर रहा था कि ढेर सारे मर्द मिल कर मेरे बदन को नोच डालें. अब तो झुंझलाहट हो रही थी कि सेवकराम मेरी योनि मे मची सिहरन को मिटाने मे इतनी देर क्यों कर रहा है. 



मैं अपनी जीभ निकाल कर उसके लिंग को और उसके अंडकोषों को पागलों की तरह चाट रही थी. मैने कभी अपने पति के साथ मुख मैथुन नही किया था लेकिन आज सिर्फ़ रत्ना के एक बार कहते ही मैं तैयार हो गयी थी. मैं किसी एक्सपर्ट की तरह उसके लंबे तने हुए लंड को चूस रही थी. उनका लिंग पूरी तरह तन चुक्का था. उसका साइज़ इतना जबरदस्त था की कोई और वक़्त होता तो उसे अपनी चूत मे लेने की कल्पना से ही डर लगने लगता. उसके सामने तो देव का लिंग कहीं नही लगता था. जितना लंबा था उतना ही मोटा. आधा लिंग भी मेरे मुँह मे नही जा पा रहा था. किसी तरह उसके सूपदे को मुँह मे भर कर चूस रही थी 



रत्ना ने मेरे बाल खोल दिए थे. मेरे बाल खुल कर पूरे चेहरे पर बिखर गये थे. सेवक राम जी मेरे चेहरे पर फैले मेरे बालों को पीछे हटा कर मुझे अपने लिंग को चूस्ता हुआ देख रहे थे. मैं उनके लिंग को चूस्ते हुए उनकी आँखों मे ही झाँक रही थी. हमारी आँखें एक दूसरे की आँखों मे बँध गयी थी. वो मुझे देख देख कर मुस्कुरा रहे थे. 



कुकछ देर बाद रत्ना ने मुझे खींच कर उनके लिंग से हटाया. मुझे बाँहों से थाम कर अपने पैरों पर उठाया और मेरी चूचियो के नीचे हाथ रख कर उनको उठा कर सेवकराम की ओर किया. 



“ गुरुजी इनका स्वाद तो ग्रहण करो. देखो कितना रस खीर के रूप मे बह कर बाहर निकल रहा है. इसे चख कर तो देखो कैसी है ये..” सेवकराम जी को कहते हुए मुझे अपने स्तनॉ को सेवकराम से चुसवाने को कहा, “ ले गुरु जी को अपने फूल से बदन की भेंट तो चढ़ा.” 



मैं अब तक तो निर्लज्जता से परे हो चुकी थी मगर फिर भी किसी गैर मर्द को अपने साथ प्रण निवेदन करने से हिचकिचा रही थी. मेरे वैवाहित जीिवान मे सेंध लगने वाली थी. आज पहली बार किसी गैर मर्द के साथ सेक्स की बात सोच कर ही मेरा बदन सिहर रहा था. मैं अपने सूखते होंठों पर जीभ फिरा रही थी. 



उसने मेरे हाथों को स्तनो पर रखा और कहा, “ ले इन्हें उनको अर्पण कर. बोल कि गुरु जी मेरे इन फलों का रसोस्स्वादन करें. इनमे इतना रस भर दें कि ये आपकी भरपूर सेवा के काबिल हो जाए.” 



मैने झिझकते हुए अपने स्तनो को अपनी हथेली मे थमा. फिर उनको उपर करते हुए सेवक राम के होंठों से च्छुअया. मेरे निपल एकदम सख़्त हो चुके थे. उनके होंठों पर अपने निपल रगड़ने लगी तो ऐसा लगा मानो बिजली के झटके उनके होंठों से निकल कर मेरे पूरे जिस्म मे फैल रहे हैं. 



“ प्लीईज़…..” बस इतना ही मुँह से निकल पाया. सेवकराम मेरी झिझक को समझ गये सो उनके होंठों पर मुस्कुराहट च्छा गयी. 



सेवकराम ने झुक कर मेरे एक बूब पर अपने होंठ रख दिए. वो एक स्तन को चूस रहे थे और अपनी हथेलियों से दूसरे स्तन को बुरी तरह मसल रहे थे. मेरे निपल को खींच कर उन्हे उमेथ रहे थे. मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी. 

“ उम्म्म्ममम…..आआअहह….सीईईईईईई…….” मैं अपनी उंगलियों को उनके बालों मे फिरा रही थी. मैने झुक कर उनके माथे को चूम लिया. फिर उनके चेहरे को अपने स्तनो पर दबाने लगी. वो मेरे एक निपल को अपने मुँह मे भर कर चूस रहे थे. उन्हों ने भी उत्तेजना मे मेरे स्तनो पर दाँत गढ़ा दिए.
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12-10-2018, 02:16 PM,
#89
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
उनके मसल्ने के कारण पहले से ही मेरे निपल खड़े हो चुके थे, मेरे बूब्स भी उनकी हरकतों से सख़्त हो गये. उन्हों ने मेरे एक निपल को चूस चूस कर सूजा दिया. फिर उनके होंठ मेरे दूसरे निपल को अपनी गिरफ़्त मे ले लिए. मैने सेवकराम का सिर दोबारा अपनी बाहों से चूचियो पर दबा दिया. वो मेरे निपल्स को चूस्ते हुए बीच बीच मे अपने दाँतों से उन्हे काट भी लेते या कुरेदने लगते. 



मेरी उत्तेजना अपने चरम पर थी. मेरे मुँह से “आआआअहह…… उम्म्म्ममम” जैसी आवाज़ें निकल रही थी. रत्ना उस वक़्त मेरी योनि मे अपनी उंगलियाँ अंदर बाहर कर रही थी. कभी वो मेरी क्लाइटॉरिस को नाख़ून से कुरेदने लगती तो कभी मेरी योनि की फांकों को उंगलियों मे भर कर मसल्ने लगती. वो मुझे लगातार उत्तेजित किए जा रही थी. मैं इतनी उत्तेजना सम्हाल नही पाई और बिना किसी के कुच्छ किए ही मेरा पहला वीर्यपात हो गया. मेरा रस योनि से बहता हुया घुटनो तक बह रहा था. 



मैं पल भर को कुच्छ ठंडी हुई मगर दूसरे ही पल वापस उनकी हरकतों से जिस्म मे आग भरने लगी. कुच्छ देर तक दोनो निपल्स को चूसने के बाद जैसे ही सेवकराम जी ने अपना चेहरा हटाया, मैने बिना किसी के कहने का इंतेज़ार किए उनके होंठों पर अपने होंठ रख दीए और उनके निचले होंठ को अपने दाँतों के बीच लेकर काटने लगी. मैं उनके सीने पर अपने स्तनो को रगड़ रही थी. मैं उत्तेजना मे फुंफ़कार रही थी. 



उन्हों ने मुझे अपनी बाँहों मे जाकड़ लिया. मेरा नाज़ुक बदन उनके पत्थर के समान सख़्त सीने पर पिसा जा रहा था. उनका लिंग मेरी योनि के सामने ठोकर मार रहा था. मैं अपनी झांतों से भरी योनि को उनके लिंग पर रगड़ रही थी. रत्ना आकर मेरे बगल मे खड़ी हो गयी उसने मेरी एक टांग को अपने हाथों से उठा कर मेरी योनि को सेवकराम के लिंग के लिए खोज पाना आसान बना दिया. मेरी एक टांग को उसने ज़मीन से उठा रखा था. 



सेवक राम जी ऑलमोस्ट मेरी हाइट के हैं इसलिए उनका लिंग मेरी योनि के होंठों को रगड़ रहा था. उन्हों ने थोड़ा अपने शरीर को झुकाया और अपने लिंग को मेरी योनि मे धक्का दे दिया. उनका लिंग सरसरता हुया मेरी योनि के भीतर घुस गया. मेरी नज़रें रत्ना से मिली. वो मुस्कुरा रही थी. मेरे होंठों पर भी एक संतुष्टि भरी मुस्कुराहट छा गयी थी. 



“ दिशा आज तुम्हारा भी जीवन सेवकराम जी की छत्र्चाया मे आकर धन्य हो गया. “ वो मेरे सिर पर हाथ फेर रही थी. मैने खुश होकर उनके हाथ को चूम लिया. मेरी हरकत ये दिखाने के लिए काफ़ी थी कि सेवकराम जी के साथ सेक्स मे मेरी पूरी रजा मंदी है. 



सेवकराम खड़े खड़े मुझे चोदने लगे. वो मेरे बदन को अपनी बाँहों मे जाकड़ कर अपनी कमर को तेज तेज आगे पीछे कर रहे थे. उनका लिंग काफ़ी मोटा ताज़ा था लेकिन उस आंगल से ज़्यादा अंदर नही जा पा रहा था. उनकी मोटाई तो मैं महसूस हल्के हल्के दर्द के रूप मे महसूस कर रही थी. कुच्छ देर तक यूँ ही चोदने के बाद उन्हों ने अपने लिंग को मेरी योनि से बाहर निकाला. उनका लिंग मेरे रस से लिकडा हुया चमक रहा था. 



“ ले इसे सॉफ कर क्योंकि अब ये तेरी योनि के दूसरे छ्होर तक भर देगा. ये अब तेरी चूत को फाड़ कर चौड़ा करेगा.” रत्ना ने कहा. मैने उसका आशय स्मझ कर वापस उनके लिंग को अपनी जीभ से चाट कर सॉफ किया. सेवकराम जी का चेहरा अब उत्तेजना मे तप कर लाल हो गया था. अगर मैं अब ना रुकती तो उनका लिंग अपनी उत्तेजना मेरे चेहरे पर उधेल कर शांत हो जाता. मगर मैं इतनी जल्दी उन्हे शांत नही होने देना चाहती थी. मैं तो उनके बदन की आग को इतना हवा देना चाहती थी कि वो आग मुझे भी जला कर राख कर दे. 



रत्ना मेरी बाँह पकड़ कर बिस्तर तक ले आई. मैं बिना किसी विरोध के चुपचाप उस बिस्तर पर लेट गयी. रत्ना ने मेरी टाँगों को पकड़ कर फैला दिया. वो आकर मेरे दोनो पैरों के बीच बैठ गये. रत्ना ने अपनी उंगलियों से मेरी योनि को उनके सामने फैला दिया. 



“ देखो गुरुजी कितनी भूखी है इसकी चूत. इस की भूक मिटा दो. ये पता नही कब से प्यासी है. इसे आपके लिंग से अमृत वर्षा का इंतेज़ार है.” रत्ना ने कहा. सेवकराम जी अपना चेहरा मेरी योनि के एकदम पास ले गये और अपनी नाक से कुच्छ देर तक मेरी योनि को सूँघा फिर अपनी जीभ से मेरी योनि के चारों ओर फैली झाग को चाट कर सॉफ किया. मेरे हज़्बेंड ने भी कभी मेरी योनि को अपनी जीभ से स्पर्श नही किया था. मुझे पहली बार पता चला था कि योनि मे लंड डाल कर धक्का मारने के अलावा भी कई तरह के खेल होते हैं सेक्स मे. 



सेवकराम जी उठ कर मेरी टाँगों के बीच बैठ गये. 



“ दिशा कैसा लग रहा है?” रत्ना ने मेरे बालों को सहलाते हुया पूछा. मैने हामी मे सिर हिलाया. मेरे मुँह से सिर्फ़ “उम्म्म्मम…..आआअहह” के अलावा कुच्छ नही निकला. 



“ बोलो बनोगी इस आश्रम की शिष्या? बनोगी इनकी चेली? इस लिंग को अपनी योनि मे बार बार लेना चाहोगी?” 



“ हां हाआँ …..” मेरे मुँह से निकला. 



“मुझे नही इनसे रिक्वेस्ट करो. इनसे कहो अपने मन की बात. प्यासी हो तो अपनी प्यास इनके सामने जाहिर करो. जो तुम्हारी बदन की प्यास को बुझा सकें.” 



“ ःआआन ….हाां….प्लीई….प्लीज़ मुझे अपनी शरण मे ले लो. मुझे अपने मे समा लो मेरे वजूद आपके वजूद मे खो जाने के लिए तड़प रहा है. मेरी प्यास बुझा दो.” मैने सेवकराम जी से कहा. 

क्रमशः............
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12-10-2018, 02:16 PM,
#90
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -48 

गतान्क से आगे... 

“ देवी आपने अपने पति देव से पर्मिशन लिया था?” सेवक राम जी ने मेरी रिक्वेस्ट पर मुस्कुराते हुए पूछा. उन्हों ने मेरे होंठो पर अपने होंठ रखते हुए कहा, 



“ एक बार और सोच लो जब भी कहूँगा जिससे कहूँगा तुम्हे चुदवाना होगा. “ 



ऐसे समय मे मैं क्या किसी की भी सोचने समझने की छमता ख़त्म हो जाती है. मेरा जिस्म सेक्स की आग मे जल रहा था. निपल्स एग्ज़ाइट्मेंट मे खड़े खड़े दुखने लगे थे. योनि के दोनो होंठ उत्तेजना मे खुल बंद हो रहे थे. योनि के अंदर सिहरन खुजली का रूप ले ली थी. ऐसे समय मे तो बस एक ही चीज़ मुझे याद थी वो था उनका किसी खंबे की तरह खड़ा लंड. मेरी योनि तो बस एक चीज़ ही माँग रही थी…. जम कर ठुकाई, जिससे जिस्म की आग बुझ सके, चूत की खुजली मिटे. मेरा पति मेरा ग्यान मेरा परिवार सब धुंधले हो चुके थे दिमाग़ से. सेक्स मे तड़प्ते किसी जानवर जैसी हालत थी मेरी. 



मैने कहा, “हाआँ हाआँ….आप जो कहोगे मैं करूँगी……जिससे कहोगे मैं कार्ओौनगी प्लीईससस्स मुझ पर रहम करो…..प्लीईसए इस अवस्था मे मुझे मत छ्चोड़ो. आअहह…… रतनाआआ……..ईनसीए कहूऊऊ मेरी चुउत पर चींतियाअँ चल रहिी हैं. ” मैं अपनी टाँगे मोड़ कर बार बार अपनी कमर को उनके लिंग को छ्छूने के लिए उचकाने लगी. अपने हाथों से उनके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि मे डालने को छॅट्पाटा रही थी. मैने अपनी टाँगों को अपने सीने से चिपका लिया जिससे मेरी योनि उनके सामने हो गयी. मैने अपने ही हाथों से अपनी योनि की फांकों को फैला कर उनकी आँखो मे झाँका. हम दोनो की नज़रें एक दूसरे से चिपक गयी थी. मैने आँखो ही आँखो मे उनसे निवेदन किया कि अब और ना तरसाएँ. 



सेवकराम ने मेरी योनि पर अपना लिंग रखा. रत्ना ने एक हाथ से उनके लिंग को थामा और दूसरे हाथ से मेरी चूत को खोल कर उनके लिंग को मेरी योनि के मुँह पर रखा. सेवकराम ने एक मजबूत धक्के मे अपना पूरा लिंग जड़ तक मेरी योनि मे पेल दिया. मेरी योनि रस से चुपड़ी हुई थी. उनका लिंग भी मेरे रस से गीला था लेकिन फिर भी उनके लिंग का साइज़ ऐसा था कि मेरे मुँह से “ आआआआआआआहह……….माआआ……..मर गइईईईईई” जैसी आवाज़े निकल पड़ी. 



मैं छॅट्पाटा उठी. उनके अंडकोष मेरी योनि के नीचे मेरे जिस्म से चिपके हुए थे. फिर उन्हों ने एक झटके मे पूरा लिंग बाहर निकाला. ऐसा लगा मानो मेरे पेट से सब कुच्छ निकल कर बाहर आ गया और मेरी योनि एक दम खाली हो गयी हो. फिर उन्हों ने दोबारा अपने लिंग को एक झटके मे अंदर घुसा दिया. इस बार उन्हे अपने लिंग को योनि के मुँह पर सेट करने की ज़रूरत नही पड़ी. दोनो के बीच सामंजस्या ऐसा हो चुक्का था की धक्का मारते ही लिंग अपनी जगह ढूँढ कर अंदर चला गया. 



मैने अपनी टाँगों को अपने सीने से चिपका कर अपनी कमर को उपर की ओर उठा रखा था इसलिए अपनी योनि मे प्रवेश करता हुआ उनका मोटा लिंग मुझे साफ साफ दिखा रा था. मैने जी भर कर अपनी ठुकाई देखने के बाद अपनी टाँगे नीचे कर के फैला दी. 



उन्होने मेरे नग्न जिस्म पर लेट कर मेरे होंठों पर वापस अपना होंठ रख दिए. मैने अपने हाथों से उनके सिर को थाम कर उनके मुँह मे अपनी जीभ डाल दी और उनकी जीभ से अठखेलिया करने लगी. उनकी जीभ भी मेरी जीभ को सहला रही थी. उस वक़्त उनके हाथ मेरे दोनो स्तनो को बुरी तरह मसल रहे थे. 



उसके बाद लगातार ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगे. हर धक्के मे पूरे लिंग को टोपे समेत बाहर निकालकर वापस जड़ तक पेल देते थे. मैं उनके हर धक्के से उच्छल उच्छल जा रही थी. काफ़ी देर तक इसी तरह करने के बाद मुझे पीछे घुमाया और मेरी कमर को खींच कर उपर कर लिया. मेरा सिर तकिये मे धंसा हुआ था. वो पीछे से मेरी योनि मे धक्के मारने लगे. 



एक…..दो…..तीन….. इस चुदाई के दौरान मैं तीन बार स्खलित हो चुकी थी. मगर उनकी रफ़्तार मे अभी तक कोई कमी नही आई थी. मेरी टाँगे थकान से काँपने लगी. मेरा मुँह खुल गया था और आँखे भी थकान से बंद हो गयी थी. घंटे भर तक बिना रुके, बिना रफ़्तार मे कोई कमी करे इसी तरह मुझे चोद्ते रहे. 



“आआहह…गुउुुरुउुजिइीइ बुसस्स्स……बुसस्स्स..गुरुजिइइई बुसस्स…..अब मुझ पर्र्र्ररर रहम करूऊऊ” 



लेकिन सेवकराम ने मेरी मिन्नतों पर कोई ध्यान नही दिया. करीब घंटे भर बाद उन्हों ने अपने लिंग को मेरी योनि से निकाला. रत्ना ने मुझे खींच कर सीधा किया और मेरे चेहरे को उनके लिंग के सामने ले आई. फिर उन्हों ने ढेर सारा वीर्य मेरे चेहरे पर मेरे स्तनो पर और मेरे बालों मे भर दिया. कुच्छ वीर्य मेरे मुँह मे भर गया था. मेरी नाक पर भी वीर्य लगा होने की वजह से मैं साँस नही ले पा रही थी. मैने अपनी हथेली से उनके वीर्य को सॉफ कर उसे अपनी जीभ से चाट लिया. 



मैं अपने हाथों से पेट के नीचे अपनी दुखती कोख को दबाते हुए वहीं बिस्तर पर लुढ़क गयी. करीब पंद्रह मिनूट तक मैं इसी तारह बिना हीले दुले पड़ी रही. मानो अब शरीर मे कोई जान नही बची हो. पंद्रह मिनूट बाद जब आँखें खोली तो पाया कि सेवक राम जी जा चुके हैं. रत्ना मेरे सिरहाने पर बैठ कर मेरे बालों को सहला रही है. 



“ कैसा लगा? मज़ा आया?” रत्ना ने पूछा. 



“हाआँ डीडीिई……..बहुत मज़ा आया.” मैं अब तक उत्तेजना मे अपनी कमर उच्छाल रही थी. मगर अब अपनी नग्नता का अहसास और किसी गैर मर्द के साथ सहवास याद आते ही मैने शर्म से अपना चेहरा अपनी हथेलियों मे छिपा लिया.



“ कभी किसी और के साथ ऐसी खुशी ऐसी शांति ऐसा पूर्णता का अहसास हुया है क्या?” 



“ नही…. रत्ना. आज तक मैने इतना सुख कभी हासिल नही किया था. दीदी मेरी सेक्स की भूख इन्होंने ऐसी मिताई कि मैं दीवानी हो गयी हूँ इनकी.” 



“ मैं कहती थी ना कि एक बार इनके संपर्क मे आओगी तो जिंदगी भर की गुलाम बन जाओगी इनकी.” रत्ना ने मुस्कुरा कर कहा. 



मैने उनकी सहायता से किसी तरह अपने कपड़े पहने और वहाँ से उठकर उनके बदन का सहारा लेकर लड़खड़ाते कदमो से घर आई. 



आज मुझे इतना मज़ा आया था जितना मैने कभी महसूस नही किया था. मेरे बदन रोम रोम खुशी से काँप रहा था. मेरे बदन पर जगह जगह से मीठी मीठी कसक उठ रही थी. रात को पता नही कब तक मैं जागती रही अपने इस संभोग के बारे मे सोच सोच कर करवटें बदलती रही. जब तक ना मैने अपनी उत्तेजना को अपने ही हाथों से निकाल नही दिया मुझे नींद नही आई. 



दो दिन तक मेरा बदन दुख़्ता रहा लेकिन मैं इस दर्द से बहुत खुश थी. ऐसी चुदाई के लिए अब हमेशा मन तड़पने लगा. अब तो शाम को मैं खुद हमारे बीच की डॉली को कूद कर सेवकराम जी के पास चली जाती थी. देव जब घर पर होता तो हम बहुत सांय्याम बरतते थे. जिसे उसके मन मे शक़ के बीज नही पैदा हों. 



देव बहुत खुले विचारों का था. लेकिन मैं डर की वजह से उनको बता नही पाई. मैने सेवकराम जी से उनकी मुलाकात करवाई. सेवकराम जी ने उनके साथ मेलजोल बढ़ाना शुरू कर दिया. फिर धीरे धीरे उन्हे भी आश्रम बुलाया. उनकी वहाँ की औरतों ने इतनी आवभगत की कि वो भी उस आश्रम से बँध कर रह गये. आश्रम की शिष्याओं का जादू ही ऐसा होता है कि किसी साधु महात्मा भी उनके प्रेम पाश मे फँसे बिना नही रह सकता. 



रत्ना मुझे बाद मे चटखारे ले लेकर सुनाती थी. किस तरह उसने भी देव के साथ सेक्स किया. हम दोनो मे एक मूक समर्थन सा बन गया. दोनो साथ साथ आश्रम मे जाते फिर अंदर दोनो अलग अलग हो जाते. दोनो को पता ही नही रहता कि दूसरा कहा और किससे अपनी जिस्मानी भूख मिटा रहा है. धीरे धीरे हम अपने आपस के सेक्स के गेम के दौरान आश्रम मे घटी घटनाओ को फॅंटिज़ करने लगे. जब हम दोनो साथ बिस्तर पर होते तो एक दूसरे के साथ हुए सेक्स के गेम का वर्णन सुनते हुए सेक्स का आनंद लेते थे. 



मैं तो सेवकरम की गुलाम बन ही चुकी थी. बिना उनके साथ संभोग किए मेरे बदन की आग नही बुझ पाती थी. उन्हों ने मुझे काम्सुत्र मे एक्सपर्ट बना दिया था. उन्हों ने मुझे ऐसे ऐसे आसान सिखाए जिनकी मैने कभी कल्पना भी नही की थी. लेकिन एक बात मुझे हमेशा कचोटती थी. उन्हों ने कभी मेरी योनि के अंदर डिसचार्ज नही किया था. वो हमेशा मेरे चेहरे पर मेरे मुँह मे मेरे स्तनो पर यहाँ तक की कई बार मेरे गुदा मे भी डिसचार्ज किया था मगर मेरी योनि मे डिसचार्ज के अहसास से मुझे हमेशा मरहूम रखा था. 



एक दिन हम तीनो लंबी चुदाई के बाद नग्न बैठे बातें कर रहे थे तो मैने सेवकराम जी से पूछा, “ एक बात बताएँ गुरुजी, आप मेरी योनि के अंदर अपना रस क्यों नही भर देते. मेरी बहुत तमन्ना है कि आप ये ढेर सारा रस मेरी योनि मे डालें जिससे मेरी योनि की प्यास बुझ जाए. मैं चाहती हूँ कि आपका रस मेरी योनि से छलक छलक कर बाहर रिसे.” 



“ नही दिशा हम ऐसा नही कर सकते. जब तक स्वामी जी का रस तुम्हारी कोख को भर नही देता और वो तुम्हे दीक्षा नही देदेते उनका कोई भी शिष्य ये काम नही कर सकता. हम सबसे पहले सब महिलाओं पर उनका अधिकार है. पहले उनका प्रसाद तुम्हे ग्रहण करना पड़ेगा. तुम्हारी योनि मे डिसचार्ज करने का पहला अधिकार सिर्फ़ और सिर्फ़ उनका है. फिर हम सबका.” सेवकराम जी ने कहा 



रत्ना दीदी ने बताया कि कुच्छ दिनो मे आश्रम के सबसे बड़े गुरु श्री श्री त्रिलोकनंद जी पधार रहे हैं. वो ही मुझे दीक्षा देकर आश्रम मे शामिल करेंगे. मैं ये सुनकर बहुत खुश हुई. 
क्रमशः............
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