Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 02:16 PM,
#91
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -49 

गतान्क से आगे... 


“ गुरुजी से तुम खुद अपने संस्था मे शामिल करने के लिए अनुरोध करना.” रत्ना ने आगे कहा “ और उनसे कहना कि वो अपना महाप्रसाद देकर तुम्हे आशीर्वाद दें. तुम लेना चाहोगी उनका महाप्रसाद” 



“ ये महाप्रसाद क्या होता हिया?” मैं कुच्छ समझ नही पायी. 



“ अरे बुद्धू, स्वामी जी का महाप्रसाद बहुत किस्मेत वाले ही ग्रहण कर पाते हैं. स्वामीजी से महाप्रसाद पाना हर किसी की किस्मेत मे नही होता. ये उनके प्रति पूरी लगन से पूर्ण समर्पण भावना से ही हासिल हो सकता है. ये कोई खाने या पीने की वास्तु नही है. इसे तो अपनी कोख मे ग्रहण करना पड़ता है. उनका महाप्रसाद यहाँ पड़ता है.” कहकर रत्ना ने मेरी नाभि के निचले हिस्से को च्छुआ “ उसे नौ महीने तक अपनी कोख मे सहेज कर रखना पड़ता है तब जा कर उनका महाप्रसाद फूल का रूप ग्रहण करता है. उनके जैसी एक दिव्य संतान का आशीर्वाद मिलता है. कब तक यूँ ही अकेली रहोगी? अब तो एक सुंदर सा बच्चा परिवार मे आने का समय हो गया है. अपनी कोख मे सबसे पहले गुरुदेव का आशीर्वाद लेना. तुम्हारा जीवन धन्य हो जाएगा.” 



“ आश्रम मे कई महिलाओं को स्वामी जी का आशीर्वाद मिल चुक्का है. उनके वीर्य मे इतनी शक्ति है की फूल काफ़ी तंदुरुस्त और मेघावी होता है. अब तुम्हे भी तो शादी को कितने दिन हो चुके हैं. अभी तक अकेली ही हो. तुम्हे नही लगता जिंदगी का सूना पन?” सेवकराम ने पूचछा. 



मैं चुप चाप खड़ी रही. कुकछ देर असमंजसयता मे रही क्योंकि इसके साइड एफेक्ट्स भी हो सकते हैं. पता नही देव इसे किस तरह ले. कहीं इसका परिणाम हमारे वैवाहित संबंधों मे शक़ के बीज ना पैदा कर दें. कहीं हमारा संबंध ही टूट जाए. क्या देव इस तरह के बच्चे को स्वीकार कर पाएगा. इतने दिन तो हमारे जीवन मे किसी की किल्कारी नही गूँज पाई. ऐसे ही गोद भर जाए तो बुराई क्या है. खून तो मेरा ही होगा ना. मैं इस खुशी के लिए कुच्छ भी कर सकती हूँ. 



मैने अपने सिर को उठाए बिना हामी मे सिर हिला दिया. 



आश्रम के इनएग्रेशन के मौके पर पूरे आश्रम को बहुत सजाया गया था. मैं भी अक्सर आश्रम मे चली जाती थी. जैसा की मैने पहले बताया कि रत्ना जी और सेवकराम जी के बहलाने फुसलाने पर देव भी आश्रम का शिष्य बन गया था. उसे आश्रम की शिष्याओं ने ऐसा अपना रंग दिखाया की देव तो बस लट्तू हो कर रह गया. वैसे भी शुरू से ही उसकी आदत थी इधर उधर मुँह मारने की उपर से अक्सर शहर से बाहर रहने की मजबूरी सोने पे सुहागा का काम करती थी. पता नही मेरी नज़रों से दूर होकर कब किसके साथ गुकच्छर्रे उड़ाता होगा. 



देव को मैने अपने सेक्षुयल रिलेशन्स के बारे मे कुच्छ भी नही बताया था. मैं शुरू शुरू मे झिझक रही थी. कुच्छ भी हो किसी पति के लिए उनकी पत्नी का दूसरे आदमियों से शारीरिक संबंध के बारे मे जानकारी देना हमेशा ख़तरेवाला काम रहा है. मेरे एक्सट्रा मार्षल अफेर्स के बारे मे धीरे धीरे उसे सब पता चला इसलिए उसने इसे सहजता से स्वीकार कर लिया. अब हम दोनो जानते थे कि दूसरा आश्रम मे क्या कर रहा होगा. मगर एक दो बार आपसी सेक्स के दौरान फॅंटसाइज़ करने के अलावा हम दोनो एक दूसरे को इस बारे मे टोकते नही थे. 



वैसे उसने कभी भी मुझे किसी बात से मना नही किया था. वो खुद ही मुझे एक्सपोषर के लिए उकसाता रहता था. दूसरो के सामने मेरी नुमाइश करने मे उसे मज़ा आता था. हम जब हनिमून पर गोआ गये थे तो उसने मुझे वहाँ पब्लिक बीच पर टू पीस बिकनी मे रहने को कहा था. बिकनी भी वो खुद ही पसंद कर लाया था. वो इतनी छ्होटी थी कि लगभग पूरा बदन ही नग्न दिख जाता था. ड्रेस मेटीरियल भी काफ़ी महीन था और हल्के रंग का होने से वो भीगने के बाद पारदर्शी फिल्म की तरह बदन से चिपक जाता था. मुझे तो शुरू शुरू मे बहुत गुस्सा आता था उसकी इन छिछोरि हरकतों पर और उसके इस तरह के पागलपन के शौक़ पर. इसे ले कर हम लोगों मे बहुत झगड़ा हुया था. मगर बाद मे मुझे ही उनके आगे झुकना पड़ा. मुझे अपने बदन की नुमाइश करने मे शर्म आती थी क्योंकि मैं देहात से थी, हमारे यहा लड़कियों पर बहुत पाबंदी रहती थी. लेकिन हज़्बेंड की खुशी की खातिर मैने जल्दी ही अपने को बदल लिया. 

खैर हम बात कर रहे थे आश्रम के इनॉवौग्रेशन की. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि बड़े स्वामी जी के सामने मैं किस तरह अपने साथ सहवास का प्रस्ताव रखूँगी. कुच्छ भी हो स्वामी जी थे तो अंजान ही. उनके सामने एकदम से संभोग का प्रस्ताव रखना किसी भी घरेलू औरत के लिए एक बड़ी बात थी. 

सेवकराम जी के साथ शारीरिक संबंध तो एक तरह से छल से शुरू हुआ था. रत्ना ना होती तो शायद इस संबंध की नीव ही नही पड़ पाती. रत्ना ने हम दोनो के बीच किसी सेतु का काम किया था. ये अलग बात है मैने उनके साथ सहवास को अपनी कल्पना से भी ज़्यादा एंजाय किया था. लेकिन किसी अंजान आदमी से प्रण निवेदन वो भी पहली मुलाकात मे. पता नही वो मुझे क्या समझेंगे. मैं इस तरह के कई शन्शयो से घिरी हुई थी. मन मे कुच्छ झिझक भी थी. लेकिन रत्ना के और सेवकराम जी के समझा ने पर कुच्छ मन मे तसल्ली हुई. रत्ना ने स्वामी जी की इतनी तारीफ की उनके किसी घोड़े के समान लिंग की इतनी व्याख्या की, कि मैं उनसे अपने पहले मिलन के दिन मे जागते हुए भी सपने देखने लगी. मुझे ऐसा लगने लगा कि अगर मैने बड़े स्वामी जी के साथ सेक्स नही किया तो मेरे इस जीवन के ही कोई मायने नही रह जाएँगे. 

फिर भी एक डर सा बना हुआ था कि देव को जिस दिन पता चलेगा कि उसका पहले बच्चे का बाप वो नहीं कोई और है तो पता नही वो कैसे रिक्ट करेंगे. लेकिन आश्रम जाय्न करने के बाद उनके हावभाव से लग गया था कि वो कुच्छ नही बोलेंगे. और पूरी घटना को सहजता से लेंगे. 

खैर देव भी इनॉवौग्रेशन की तैयारी मे व्यस्त हो गया. लेकिन अचानक ही किसी ज़रूरी काम से उसे कोलकाता जाना पड़ा. दस - पंद्रह दिन का प्रोग्राम था. ये खबर मेरे लिए बहुत सुकून लेकर आई. इस खबर को सुनकर मेरी साँस मे साँस आई क्योंकि अब मैं किसी भी तरह के कार्य के लिए आज़ाद थी. किसी से अब कोई रोक टोक या ख़तरा नही था. 



बस तीन दिन ही बाकी थे कार्यक्रम शुरू होने मे. जाने से पहले मेरे कहने पर तृप्ति (उस आश्रम की एक सन्यासिन) आई और देव को कह दिया कि मुझे आश्रम के कामो मे बिज़ी रखेगी इसलिए हो सकता है फोन पर मैं नहीं उपलब्ध हो सकूँ. देव उसके और रत्ना के मनाने पर खुशी खुशी मान गया. बदले मे उन्होंने देव को जाने से पहले एक हसीन रात दी जिसमे रात भर ना देव सोया और ना तृप्ति और रत्ना. दोनो ने सुबह तक देव को झींझोड़ कर रख दिया. उस दौरान मैं सेवक राम के कमरे मे ही थी. 

मैं घर मे अब कम समय बिताती और दिन भर आश्रम मे रहने लगी. वहाँ एक से एक मर्द थे जिनसे मैं अपने बदन की भूख मिटाती थी. मेरी हालत सेक्स की किसी भूखी न्यंफोमानियाक की तरह हो गयी थी. अब मेरा मन किसी एक के संभोग से नही भरता. जब तक घंटो की चुदाई नही होती तब तक मेरे जिस्म की आग नही बुझ पाती थी. दिन मे दो चार बार संभोग हुए बिना मुझे शांति नही मिलती थी. सेवकराम जी ने मुझे जी भर कर भोगा था. सिर्फ़ सेवकराम जी ही क्यों उस आश्रम मे कोई ऐसा नही बचा था जिसने मुझे चोदा ना हो. आश्रम के हर शिष्य ने अपने वीर्य से मेरा बदन को रंगा था. हर शख्स ने अपनी भूख मुझ से मिटाई. अब तो सिर्फ़ बड़े स्वामी जी का इंतेज़ार था. 



उन लोगों के मुँह से रोज़रोज बड़े गुरुजी के साइज़ और उनके स्टॅमिना के बारे मे सुन सुन कर मैं गीली हो जाती थी. कई बार रात मे अकेले मे उन्हे याद करके अपनी उंगलियों से ही अपनी प्यास मिटाती थी. 

कार्यक्रम के एक दिन पहले आश्रम के संस्थापक बड़े गुरुजी श्री त्रिलोकनंद जी पधारे. अफ क्या चमक थी उनके चेहरे पर. क्या व्यक्तित्व था उनका. मैं तो किसी चकोर की तरह उन्हे देखती ही रह गयी. उनके एक एक अंग से पौरुष्टा फूट रही थी. जैसा उनका कद था वैसी ही काठी. उनकी बोली तो और ही ज़्यादा मीठी थी. इसमे कोई आश्चर्य नही कि जो भी एक बार उनसे मिलता वो उनके सम्मोहन मे ना बँध जाता हो. 



शाम को खाना खाने के बाद जब वो अपने कमरे मे गये. तो रत्ना मुझे लेकर उनके कमरे मे गयी. रत्ना ने पहले से ही मुझे सब समझा रखा था की उनके सामने क्या करना है और कैसे करना है. 



मेरे बदन पर उस वक़्त सिर्फ़ एक झीनी साडी थी. सारी के अलावा मुझे कुच्छ भी नही पहनने दिया था. उनके कमरे मे प्रवेश करने से पहले रत्ना मुझे एक कमरे मे ले गयी और वहाँ मुझे अपने अन्द्रूनि वस्त्र खोल कर रख देने को कहा. मैने वैसा ही किया. मैने अपने सारे कपड़े उतार कर सिर्फ़ सारी को बदन पर लप्पेट लिया. सारी भी ऐसी थी की मेरा एक एक अंग बेपर्दा था. रत्ना ने मेरे पूरे बदन को घुमा फिरा कर निहारा. फिर मेरे कपड़ों को तह करके वहाँ मौजूद एक शेल्फ मे रख दिया. 



सामने लगे आदमकद आईने मे मैने अपने आप को निहारा. मैं तो बला की खूबसूरत लग रही थी उस परिधान मे. मेरी हर चाल पर मेरे दोनो भारी भारी स्तन इधर उधर उच्छल रहे थे. रत्ना ने वहाँ मुझे स्टूल पर बिठा कर मेरे चेहरे पर हल्का सा मेकप किया. बदन पर एक पर्फ्यूम भी लगा दिया. ऐसा लग रहा था मानो रत्ना मुझे अपने प्रियतम से मिलने ले जाने के लिए तैयार कर रही हो. तभी एक शिष्य आकर ढेर सारी गुलाब की पंखुड़िया दे गया. रत्ना ने मेरे हाथों को जोड़ कर उसमे गुलाब की पंखुड़ीयाँ भर दी थी. फिर मुझे लेकर वो स्वामीजी के कमरे तक गयी. 

मुझे दरवाजे पर रुकने को कहकर पल भर के लिए रत्ना अंदर गयी. मैं उस वक़्त चुपचाप बाहर खड़ी रही.कुच्छ ही देर मे वो बाहर आकर मुझे वापस अपने साथ लेकर कमरे मे ले गयी. 

कमरे मे एक भीनी भीनी सुगंध फैली हुई थी. सामने एक उँचा बिस्तर लगा था. जिस पर मखमल की चादर के उपर शेर की छाल बिछि थी. स्वामी जी अपने सारे वस्त्र खोल कर बिल्कुल नग्न अवस्था मे बिस्तर पर बैठे हुए थे. 



पूरे बदन मे एक वस्त्र भी नही था. सिर्फ़ उनके टाँगों के जोड़ पर लिंग के उपर एक छ्होटा सा तौलिया रखा हुआ था. तौलिया किसी टेंट की तरह उठा हुया ये साबित कर रहा था कि उनका लिंग कितना लंबा है और वो पूरी तरह जोश मे खड़ा है. लेकिन अफ़सोस तब तक उनके लिंग की झलक मुझे नही मिल पा रही थी. 

मैं जाकर उनके सामने सिर झुका कर खड़ी हो गयी. उनकी आँखों मे और उनके चेहरे पर इतना तेज था कि मैं उनसे नज़रें नही मिला पा रही थी. रत्ना ने मुझे उनके सामने बैठने का इशारा किया. रत्ना जैसे जैसे कहती जा रही थी मैं बिना झिझक वैसा ही करती जा रही थी. मैने घुटनो के बल बैठ कर उनके पैरों पर फूल अर्पित किए. फिर उनके पैरों पर अपना सिर झुकाकर उनके चरनो पर अपना माथा टीकाया. रत्ना एक हाथ से मेरे सिर को उनके कदमो पर दबा रखी थी और इस अवस्था मे उसने आगे बढ़कर धीरे से स्वामीजी के कानो मे कुच्छ कहा. 



स्वामीजी ने अपने हाथों से मेरे सिर को थाम कर उठाया. उन्हों ने मेरी ठुड्डी के अपने हाथ रख कर मेरे चेहरे को उँचा किया. उस अवस्था मे कुच्छ देर तक मेरे चेहरे को निहारते रहे. मैने नज़रें उठाई तो उनकी नज़रों से मेरी नज़रें टकरा गयी. ऐसा लगा मानो मेरी नज़रें उनकी नज़रों से चिपक कर रह गयी. उनकी आँखों से एक अद्भुत सा तेज निकल रहा था. वो एक टक मेरी ओर देख रहे थे. तभी उन्हों ने अपने दूसरे हाथ से कुच्छ इशारा किया. 
क्रमशः............ 
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12-10-2018, 02:16 PM,
#92
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -50 

गतान्क से आगे... 
रत्ना ने आगे बढ़ कर अपने हाथों से मेरे कंधे पर टिकी मेरी सारी के आँचल को हटा 
दिया. मेरी नग्न चूचियाँ बाहर बेपर्दा हो गयी. मैने जल्दी से अपनी सारी के आँचल से अपनी चूचियों को वापस ढक लिया. लेकिन स्वामीजी की नज़र उन नाज़ुक फूलों को देख चुकी थी. 

" सुंदर…….बहुत सुंदर. देवी तुम्हारा योवन तुम्हारे जिस्म का हा रंग अपनी अद्भुत चटा बिखेर रहा है. देवी रत्ना कहाँ छिपा रखा था इस सोन्दर्य की मूरत को? " स्वामी जी ने मेरे माथे पर अपना हाथ रख कर मुझे आश्रर्वाद दिया. 



“ स्वामी जी ये महिला बहुत दिनो से किसी चकोर की तरह आस लगाए बैठी है की कब आपके दर्शन होंगे. आपने इसके जीवन को सफल कर दिया स्वामी आपने इसका उद्धार कर दिया.” रत्ना ने कहा. 

" रत्ना हमारे मेहमान को हमारा प्रसाद दो." रत्ना एक कटोरे मे वही शरबत जो मैने पहले भी पी रखी थी, लेकर आई. उसने वो कटोरा मुझे दिया. उसके इशारा करते ही मैने उसे पूरा पी लिया. उस शरबत का स्वाद कुच्छ ज़्यादा तेज था. मुझे एक बार खालकी सी उबकाई भी आई मगर मैने अपने आप को कंट्रोल किया और बिना कुच्छ कहे उसे पूरा पी लिया. 

उस शरबत को पीने के बाद पूरे शरीर मे सिहरन सी दौड़ने लगी. इस दौरान स्वामीजी अपने हाथ से मेरे माथे को छू कर कुच्छ बुदबुदा रहे थे. कुच्छ देर बाद वो मेरे सिर को सहलाने लगे. मैं उनके सामने घुटने के बल बैठी हुई थी उस वक़्त मेरे स्तन बेपर्दा उनके सामने उन्मुक्त भाव से खड़े उन्हे ललकार रहे थे की आओ और इन फूलों को अपने हाथों से मसल दो. 



उस शरबत को पीने के बाद से ही पूरे बदन मे एक अजीब सी बेचैनी सी होने लगी. ये उसी प्रकार का शरबत था जो मुझे पहली बार आश्रम मे आने पर पीने को मिला था. इसे पीने के बाद शरीर मे सेक्स की भावना बहुत तीव्र हो जाती थी. पीने वाले का अपनी इच्च्छाओं से कंट्रोल हट जाता था. उसके जिस्म पर चींटियाँ चलने लगती थी. योनि मे इतनी तेज खुजली होती थी अपने ऊपर कंट्रोल करना ही मुश्किल हो जाता था. बस ऐसा लगता था कि कोई उसे यूही प्यार करता रहे. ऐसा लगता कि कोई उसके साथ दिन भर सेक्स करे. मेरी भी वही हालत हो रही थी. 

"हां अब बोलो क्या चाहती हो? रत्ना…..पूछ इससे." उन्हो ने अपनी आँखें बंद कर ली. 

"ज....ज्ज.जीि " मेरी ज़ुबान तो जैसे शर्म से चिपक गयी थी. मैं बिल्कुल नही बोल सकी. 

" स्वामी जी इसे आपका आशीर्वाद चाहिए. ये आश्रम की नयी मेंबर है. इसे आपका महा प्रसाद चाहिए" रत्ना ने कहा. 

"हुउऊँ" कहकर स्वामीजी ने एक हुंकार छ्चोड़ी. 

" अब ये आपकी छत्र छाया मे है इसकी इच्च्छाओं की पूर्ति करना आपका धर्म है. आप इसे अपना आशीर्वाद दे दें" रत्ना ने कहा. 

" ये महिला नयी है. इसे समझा दो रत्ना कि मेरा आशीर्वाद या महाप्रसाद हर किसी को नही मिलता. इसे लेने के लिए काकी कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है और अपने काफ़ी कुच्छ इच्च्छाओं की तिलांजलि देनी पड़ती हैं. ये कर सकेगी ऐसा?" 

"मैने इसे पहले ही समझा दिया है गुरुदेव" रत्ना ने कहा. 

" देवी तुमने अच्छे से सोच तो लिया है ना कि अगर तुम्हारे पति को पता चल जाए तो अनर्थ भी हो सकता है. उनकी अनुमति ली हो क्या? देवी मेरा महाप्रसाद लेने के लिए इस पूरी दुनिया को भूल कर सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी बन कर रहना होगा. तुम एक बार अगर ठान लॉगी तो उससे मुँह मोड़ कर वापस नही जा सकती." उन्हों ने मुझ से कहा. 

मैं अब तक चुप थी आख़िर मे मैने बोला, " स्वामीजी मैं कुच्छ भी करने के लिए तैयार हूँ. आप जैसा करने के लिए कहेंगे मैं वैसा ही करूँगी. आपको किसी तरह की शिकायत का मौका नही दूँगी. और रही मेरे पति की सहमति की बात तो मैं आपको बता दूँ कि वो आपके आश्रम के मेंबर बन चुके हैं और मेरे किसी भी फ़ैसले से उन्हे इत्तेफ़ाक नही 
होगा." मुझे पहली बार किसी से इस तरह का प्रण निवेदन करने मे बहुत शर्म आ रही थी. वो भी अपने हज़्बेंड के अलावा किसी और आदमी से. 

" देखो देवी…..कोई जल्दी बाजी नहीं है. अभी मैं दस दिन यहीं रहूँगा. अपने इस फ़ैसले पर कुच्छ गहन विचार कर्लो. फिर मेरे पास आना. कहीं बाद मे ऐसा ना लगे कि तुमने जल्दी बाजी मे कोई ग़लत फ़ैसला ले लिया. तुम्हे बाद मे किसी प्रकार का पछतावा ना हो इसलिए तुम अपने निर्णय पर विचार कर सकती हो." स्वामी जी ने कहा. 

" जी मैने कई दिन तक अच्छि तरह विचार करने के बाद ही ये फ़ैसला लिया है. मुझे अपने इस फ़ैसले से कोई इत्तेफ़ाक़ नही है. मैं अपनी पूर्ण रज़ामंदी से अपना जिस्म आपको सौंपती हूँ." मैने कहा. 

"ठीक है देवी" स्वामीजी ने एक लंबी साँस छोड़ी. "ठीक है अगर तुमने मन मे ठान ही ली है तो वही सही…….लेकिन रत्ना ने तुम्हे इसके कठोर नियमो के बारे मे अब तक बताया है या नही. क्यों रत्ना….तुमने इसे सॅबनियमो के बारे मे इसे समझाया है या नही." 

"जी" मैने कहा. स्वामीजी ने रत्ना को इशारा किया. 

" इसका सबसे ज़रूरी नियम है कि तुम इसे पूरे दिल से एंजाय करोगी. सब कुच्छ खुशी से होना चाहिए. किसी भी आदेश पर उसके विपरीत प्रतिक्रिया नही होनी चाहिए. तुम हमारे हर आदेश का पालन बिना किसी झिझक बिना किसी शन्सय के पूरा करोगी. मनजूर है. हो सकता है मेर कुच्छ आदेश तुम्हे पसंद नही आए. मगर उनका भी पालन तुम्हे चुपचाप सिर झुका कर करना होगा." 

" आप निसचिंत रहें स्वामीजी इसके मन मे किसी प्रकार की कोई झिझक नही आएगी. मैने इसे अच्छि तरह सब समझा दिया है. आप तो बस इसका निवेदन स्वीकार कर लें" रत्ना ने कहा. 

" ठीक है....... रत्ना ज़रा इस देवी के शारीरिक सोन्दर्य के हमे दर्शन तो कराओ… देखें तो सही ये फूल बिना आवरण के कैसा लगता है." 

"जी गुरुदेव....जैसी आपकी आग्या." कहकर रत्ना ने मेरे कंधे पर रखे सारी के आँचल को कंधे से नीचे सरका दिया. मैने अपनी नज़रें शर्म से झुका दी. मेरे स्तन युगल गुरुजी के सामने तन कर खड़े उन्हे ललकार रहे थे. मैं टॉपलेस हालत मे घुटने मोड़ कर उनके सामने बैठी हुई थी. रत्ना ने मेरे बालों को समेट कर पीछे कर दिया और मेरे हाथों को सिर से उपर कर दिया जिससे मेरे स्तन बिल्कुल नग्न स्वामी जी के सामने तने रहें. 

" अद्भुत...... .अद्भुत.. ..." गुरुजी बुदबुदा रहे थे. रत्ना ने मेरे 
स्तानो के नीचे अपनी हथेली लगा कर उनको कुच्छ उठा कर स्वामी जी को निमंत्रण सा दिया. मेरा दोनो स्तन वैसे ही काफ़ी बड़े और सख़्त थे मगर रत्ना की हरकतों ने उन्हे और सख़्त कर दिया. निपल्स उत्तेजना मे खड़े हो गये थे. यहाँ तक की उनके चारों ओर फैले गोल दायरे मे फैले रोएँ ऐसे खड़े हो गये थे कि पिंपल्स का आभास दे रहे थे. 



स्वामीजी ने अपने हाथ बढ़ाकर मेरे दोनो निपल्स को हल्के से स्पर्श किया. उन्हे अपने अंगूठे और उंगली के बीच लेकर हल्के से मसला. उसके बाद मेरे स्तनो पर कुछ देर तक इतने हल्के से हाथ फेरते रहे कि मुझे लगा मेरे स्तनो पर कोई रूई का फ़ाहा फिरा रहा हो. मेरा गला सूखने लगा था और मेरे पूरे बदन मे एक सिहरन सी दौड़ रही थी. मैने अपनी आँखें भींच ली और अपने दन्तो के बीच अपने होंठों को दबा लिया जिससे मेरे होंतों से सिसकारियाँ छ्छूटने ना लग जाए. 



" अद्भुत…..अद्भुत देवी अद्भुत.” उनकी आँख खुशी से भर गयी, “ ह्म्‍म्म्मम...... रत्ना…. इसे पूरा उतारो" मुझे स्वामी त्रिलोकनंद की गंभीर आवाज़ सुनाई दी. 



रत्ना ने मेरी बाँह पकड़ कर मुझे उठाया और मेरे शरीर से सारी को खींच कर उतार दिया. मैं बिल्कुल नग्न उनके सामने खड़ी थी. मेरे खड़े ललचाते उभार, पतली कमर, भरे भरे नितंब और जांघों के बीच रेशमी जंगल किसी को भी लुभाने के लिए काफ़ी था. 



रत्ना ने मेरे कंधे को हल्के से दबाया. मैं उनका इशारा समझ कर वापस स्वामीजी के सामने घुटने के बल बैठ गयी. रत्ना ने मेरे बालों को भी खोल कर बिखेर दिया. स्वामीजी ने मेरी ठुड्डी के नीचे अपना हाथ देकर मेरे चेहरे को उपर उठाया. मैने झिझकते हुए अपनी आँखे खोल दी. उनकी आँखों से आँखें मिलते ही मैं एक सम्मोहन मे बँध सी गयी. क्या तेज था उन आँखों मे ऐसा लग रहा था मानो उनकी आँखे बोल रही हों. उनकी नज़रों की तपिश मेरी आँखों से होते हुए दिल के अंदर तक उतर रही थी. उन्हों ने मेरी आँखों मे आँखें डाल कर कहा, 

"अद्भुत....अद्भुत. ....सुंदरी तुम्हारा जिस्म तो मानो देव ने बहुत तसल्ली के साथ तराशा है. किसी अप्सरा से कम नही हो तुम. तुम्हारा स्वागत है मेरी छत्र्छाया मे." कहते हुए उन्हों ने वापस मेरे स्तनो को सहलाया. इस बार उनके हाथों मे कुच्छ सख्ती थी. उन्हों ने मेरे स्तन यूगल को हल्के से दबाया. 



“देवी रत्ना….ये आज से हमारी ख़ास शिष्या हुई. तुम इस परी को मेरे समर्क मे लाई हो इसके लिए मैं तुम्हारा शुक्रिया करता हूँ.” उन्हों ने रत्ना को इशारा किया. रत्ना आकर उनके चर्नो पर झुक गयी. उन्हों ने रत्ना के बालों पर हाथ फेरा फिर मुझसे कहा, “अब बोलो तुम क्या चाहती हो?” 

मैने अपनी नज़रें उठाकर उन्हे देखा मानो पूच्छना चाहती हूँ की इतनी सारी बातें होने के बाद फिर इस प्रकार का सवाल 

" देवी तुम्हे अपनी इच्छा अपनी ज़ुबान से बतानी होगी. बिना माँगे तो उपरवाला भी कुच्छ नही देता. हम तो मनुश्य हैं. "

" दिशा तुम्हे महप्रसाद के लिए इनसे याचना करनी पड़ेगी." रत्ना ने मुझे अपनी कोहनी से एक टोहका देते हुए कहा. 

" स्वामीजी मुझे आपका महाप्रसाद चाहिए. मेरी कोख आपके अमृत का इंतेज़ार कर रही है. मुझे अपनी कोख मे आपका महाप्रसाद चाहिए" मैने अपनी नज़रें झुकाते हुए धीरे से कहा. 



“ प्रभु इन्हे अपना पौरुष तो दिखाओ. इसे भी तो दर्शन करने दो आपके दिव्य रूप का.” रत्ना ने उनसे कहा. 



“ और तुझे…..? तुझे दर्शन नही करना?” 



“ मैं तो आपकी दासी हूँ. इसको दर्शन कराएँगे तो मेरे भी भाग खुल जाएँगे. बहुत अरसा हो गया आपने मेरे जिस्म को छुये हुए. कभी हम पर भी कृपा दृष्टि डाल दिया करें.” रत्ना ने उनसे कहा. 



“ चलो आज तुम्हारी विनती मान लेता हूँ.” 

स्वामी जी ने अपने जांघों के बीच रखे तौलिए को हटाया. मेरी नज़र तो बस उस स्थान पर चिपक कर रह गयी. वो अब पूरी तरह नग्न थे. उनका लिंग पूरी तरह से खड़ा था. 
क्रमशः............ 
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12-10-2018, 02:16 PM,
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -51 

गतान्क से आगे... 


ओफफफफफ्फ़ कितना मोटा और लंबा था उनका लिंग. ऐसा लग रहा था मानो कोई खंबा हो. मैने अपनी जिंदगी मे इतना मोटा तगड़ा लंड किसी का भी नही देखा. ऐसा लग रहा था मानो किसी मनुष्य का नही किसी घोड़े का लिंग हो. मैने चौंक कर रत्ना की तरफ देखा तो उसने प्यार से मेरे सिर पर हाथ फिराया, 

" अरे तू घबरा क्यों गयी. एक बार लेकर देखना फिर और कोई दूसरा लिंग जिंदगी मे पसंद नही आएगा." 

स्वामीजी ने मेरे सिर को पकड़ा और मेरे माथे पर अपने लिंग के टोपे को च्छुअया. फिर उससे निकलते एक दो बूँद प्रेकुं को मेरी माँग पर फेर दिया. उसके बाद उन्हों ने अपने लिंग को मेरे ललाट से नीचे लाते हुए नाक के उपर से सरकाते हुए मेरे होंठों से च्छुअया. 



मुझे कुच्छ भी बोलने की अब ज़रूरत नही पड़ी मैने उनका इशारा पाकर अपने मुँह को खोल कर उनके लिंग को अपने मुँह मे ले लिया. उन्हों ने मेरे सिर पर प्यार से हाथ फिराया और मेरे सिर के पीछे अपनी हथेली रख कर मेरे सिर को अपने लिंग की तरफ खींचा. उनका लिंग इतना मोटा था की मेरे मुँह मे ही नही जा पा रहा था. सिर्फ़ उनके लिंग का टोपा ही मेरे मुँह के अंदर जगह बना पाया. मुझे लग रहा था की अगर मैने उनके लिंग को और अंदर लेने की कोशिश की तो शायद मेरे होंठ फट जाएँगे. उन्हों ने भी ज़ोर ज़बरदस्ती नही की. 



कुच्छ ही देर मे जैसे ही मैं उनके गधे समान विशाल लंड की अभ्यस्त हुई, उनके लंड को पूरे जोश चूसने लगी. कुच्छ देर की कोशिशों के बाद उनका लिंग बड़ी मुश्किल से एक चौथाई ही जा पाया था मेरे मुँह के अंदर. उससे ज़्यादा लेने की मुझमे हिम्मत नही थी. शायद दम ही घुट जाता या मेरा गला ही फट जाता. 



कुच्छ देर बाद स्वामीजी ने मेरे सिर को अपने हाथों से थामा और धीरे धीरे उस मूसल के समान लिंग को अंदर ठेलने लगे. मैं अपने मुँह को जितना खोल सकती थी खोल दी. उन्हों ने मेरे सिर को अपने लिंग के उपर दबाना शुरू कर दिया. मेरा दूं घुटने लगा. आँखें बाहर को उबल रही थी. उनका लिंग मेरे मुँह मे घुसता चला गया. करीब आधे लिंग को उन्हों ने मेरे मुँह के अंदर डाल दिया. मेरा जबड़ा दुखने लगा था. लेकिन मैने उनको रोकने की कोई कोशिश नही की. दो पल उस अवस्था मे रुक कर उन्हों ने एक झटके मे अपने लिंग को पूरा बाहर निकाला और मेरे सिर को छ्चोड़ दिया. 



मैं अपने गले को थाम कर रत्ना के बाँहों मे गिर पड़ी. मैं उस अवस्था मे पसरे हुए ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रही थी. उनके लिंग के कारण काफ़ी देर तक मुझे साँस रोक कर रहना पड़ा था. मुझे ऐसा लग रहा था मानो कुच्छ देर और अगर मैं उस अवस्था मे रहती तो शायद बेहोश ही हो जाती. मैं रत्ना के सीने मे अपने मुँह को छिपा कर कुच्छ देर तक खाँसती रही. 

त्रिलोकनांदजी ने मेरे रेशमी बालों को अपनी हथेली मे लिया और अपने लिंग पर लगे वीर्य को उसमे पोंच्छ दिया. वापस उन्हों ने अपने लिंग पर तौलिया रख दिया. और कुच्छ देर आँख बंद करके ना जाने किस साधना मे लीन हो गये. मैं कुच्छ देर तक रत्ना की गोद मे पड़ी अपनी साँसों को व्यवस्थित करती रही. कुच्छ देर बाद जब मैं कुच्छ नॉर्मल हुई तो अपने आप को संहाल कर स्वामी जी के सामने वापस सिर झुकाए उनके आँखें खोलने का इंतेज़ार करती रही. 



कुच्छ देर बाद वापस उनकी आवाज़ सुनाई दी तो पता चला कि उन्हों ने अपनी आँखें खोल दी हैं. उन्हों ने रत्ना से कहा,

" मैं संतुष्ट हूँ. देवी मेरे जिस्म की काम्ज्वाला की तपिश को सहने के लिए उपयुक्त है. इसके जिस्म मे वो शक्ति है कि काम की पार्कश्ठा मे भी ये उफ्फ नही करेगी. बहुत सुंदर देवी आती सुंदर.” उन्हों ने आगे कहा,” देवी रत्ना मेरे महाप्रसाद को ग्रहण करने के लिए इसे जो जो हिदायतों को पालन करना पड़ेगा वो इसे समझा दिया है ना. ये हमारे बंधानो को, इस आश्रम के नियमों को पालन करने के लिए पूरे दिल से राज़ी है ना? बिना लेने वाले की पूरी रज़ामंदी के मैं किसी को भी महाप्रसाद नही देता. मेरे महाप्रसाद को बिना किसी किंतु परंतु के स्वीकार करने वाला ही फल पाता है. किसी तरह की झिझक हो तो तुम अभी भी उठ कर यहाँ से जा सकती हो." 



” स्वामी मैने इसे एक बार तो समझा दिया था. अभी आपके सामने दोबारा समझा देती हूँ” रत्ना ने फिर मुझसे कहा, " तुम्हे यहाँ रहने के लिए जिन जिन नियमो का पालन करना पड़ेगा वो मैं तुमको सुना ती हूँ. तुम्हे इस आश्रम के हर नियम का पालन बिना किसी विरक्ति के करना पड़ेगा. अगर किसी पर कोई भी शंका हो तो पहले ही उसका निवारण कर लेना." 

मैं स्वामी जी के सामने मई हाथ जोड़े उसी तरह नग्न बैठी हुई थी. मैने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी. 

" तुम्हे एक हफ्ते के लिए इस आश्रम मे रहना पड़ेगा बिना किसी से मिले बिना बाहर की रोशनी देखे." रत्ना ने कहा 

"मुझे मंजूर है" मैने अपनी स्वीकृति दी. 

" इस पूरे हफ्ते तुम यहाँ से बाहर नही जा सकती. चाहे कितना भी ज़रूरी काम क्यों ना आ पड़े. तुम्हे ये सात दिन स्वामीजी के साथ इनके कमरे मे गुजारने होंगे. " रत्ना ने आगे बताया. 

" मुझे मंजूर है" 

" तुम्हे आश्रम मे निवास के दौरान स्वामीजी की सेवा पूरे तन और मन से करनी होगी. तुम्हे अपना तन इनके हवाले करना होगा. इस दौरान तुम्हारे दिमाग़ और तुम्हारे जिस्म पर सिर्फ़ और सिर्फ़ स्वामीजी का हक़ रहेगा. तुम एक तरह से एक हफ्ते के लिए स्वामीजी किकिसी ब्यहता की तरह ही सेवा करनी है." 

" मुझे मंजूर है. मैं पूरे तन मन से इनकी सेवा करूँगी" 

" तुम इनके किसी भी आदेश का उल्लंघन नही कर सकती. इनके आदेश के बिना तुम कुच्छ नही करोगी. ये तुम्हे जैसा चाहेंगे वैसे भोगेंगे." 

" आप दुविधा मे ना पड़ें स्वामी मैं आपकी दासी बन कर रहूंगी. किसी गुलाम की तरह आपकी सेवा करूँगी. आप बस मुझे अपनी छत्र छाया मे रहने का मौका दें" मैने कहा. 

" इस पूरे एक हफ्ते तुम किसी तरह का कोई भी वस्त्र बिना स्वामीजी की अग्या के नही धारण कर सकती. तुम्हे बिल्कुल नग्न रहना होगा. तुमको उसी हालत मे आश्रम मे घूमना फिरना पड़ेगा. इस आश्रम का कोई भी शिष्य तुम्हारे जिस्म को भोग सकता है मगर तुम्हारी कोख मे अमृत वर्षा करने का हक़ सिर्फ़ और सिर्फ़ स्वामी जी को होगा." उसने आख़िर मे कहा. 

" आपका हर आदेश सिर आँखों पर. " मैने उनके चर्नो पर अपना सिर झुकाया, “ मैं आपको वचन देता हूँ कि मेरी ओर से आपको किसी तरह की कोई परेशानी का सामना नही करना पड़ेगा.” 

" बहुत अच्च्छा ठीक है देवी तुम कल सुबह आ जाना" स्वामी जी ने मेरे सिर पर हाथ रखा, “ देवी रत्ना कल के कार्यक्रम के बारे मे इसे अच्छे से समझा देना. कल इसे काफ़ी मेहनत करनी है. इसलिए आज भरपूर आराम करले.” 



“ उठो दिशा स्वामीजी के आराम का वक़्त हो गया है. अब इन्हे आराम करने दो. “ रत्ना ने मुझे उठाया. मैं उठ कर अपनी साडी को बदन पर लपेट कर रत्ना के साथ बाहर आ गयी.. 

" दिशा अब घर जा कर रेस्ट करो. कल सुबह चार बजे मैं तुम्हे लेने तुम्हारे घर आ जाउन्गी. कोई समान लेने की ज़रूरत नही. ज़रूरत का सारा समान वहाँ मिल जाएगा. और जितने दिन वहाँ रहोगी उतने दिन बदन पर कुच्छ पहनना तो है नही फिर कुच्छ लेने की क्या ज़रूरत. " रत्ना ने कहा. मैने सहमति मे सिर हिलाया और वहाँ से घर आ गयी. 

मैने देव को फोन करके बता दिया कि मैं आश्रम के इनॉवौग्रेशन के कार्यक्रमो की वजह से हफ्ते भर आश्रम मे बिज़ी रहूंगी इसलिए उससे कॉंटॅक्ट नही हो पाएगा. देव कुच्छ नही बोला. हमने काफ़ी देर तक बातें की. उसने बताया कि उसे आने मे काफ़ी दिन लगेंगे इसलिए आश्रम के इनॉवौग्रेशन समारोह मे शामिल नही हो पाएगा. 



उसे काफ़ी उत्सुकता हो रही थी कि हफ्ते भर तक क्या क्या कार्यक्रम होने वाले हैं. अब मैं उन्हे क्या बताती कि आश्रम का कार्यक्रम तो बस एक दिन का है. बाकी छह दिनो का कार्यक्रम तो मेरा होने वाला है जिसमे पता नही कितन बिज़ी रहूंगी मैं. 

मैं रात को जल्दी ही सो गयी. सोई क्या थी रात भर आने वाले हफ्ते की कल्पना करते करते कब सुबह के चार बज गये पता ही नही चला. ठीक चार बजे रत्ना ने डोरबेल बजाई. मैने उसे अंदर बुला कर कुच्छ देर इंतेज़ार करने को कहा जिससे मैं तैयार हो लूँ. 

" चलो फटाफट नहा लो. आओ मैं नहला देती हूँ तुझे. " रत्ना ने कहा. रत्ना ने मेरे कपड़े एक एक करके उतार दिए फिर मुझे बाथरूम मे ले जाकर खूब नहलाया. उसने मेरे पूरे बदन को अच्छी तरह से नहलाया. फिर मेरा बदन तौलिए से पोंच्छ कर मुझे बाहर ले आइ. उसने पहले मेरे बदन मे पर्फ्यूम का स्प्रे किया. रत्ना ने मुझे तैयार करते हुए मेरे शरीर के सारे गहने, यहाँ तक की चूड़ियाँ और मन्गल्सुत्र तक उतार दिया. मैं वैसे भी नयी ब्यहताओं की तरह माँग मे सिंदूर 
नही भरती थी. उसने मेरे माथे की बिंदिया भी उतार दी. मेरे जिस्म पर मेरी शादी शुदा जिंदगी की कोई निशानी नही रहने डी. अब मुझे देख कर कोई नही कह सकता था कि मैं कोई ब्यहता हूँ. मैने एक सुंदर सी सारी निकाली पहनने के लिए तो रत्ना ने रोक दिया., 

" भारी सारी मत पहनना. बस कोई सूती की हल्की सी सारी पहन लो." 

उसके कहे अनुसार मैने उस सारी को वापस रख कर एक सूती सारी निकाल ली. उसने मेरा हल्का सा मेकप किया. हम दोनो अगले दस मिनिट मे तैयार होकर घर से निकल कर आश्रम पहुँचे. आश्रम के लोग उस वक़्त दैनिक काम से फारिग हो रहे थे. 

रत्ना मुझे लेकर सीधे सेवकराम जी के पास गयी. सेवकराम जी ने कहा, 

" देवी तुम्हे अब आश्रम का पवित्र वस्त्र ग्रहण करना पड़ेगा. पहले अपने वस्त्र बदल कर कुंड मे डुबकी लगा कर आओ फिर आगे के नियम पर बात करेंगे." 

रत्ना मुझे लेकर एक कमरे मे घुसी वहाँ मुझे एक सारी देते हुए कहा, " चलो अपने सारे वस्त्र उतार कर इस सारी को पहन लो" मैने वैसा ही किया. सारी सफेद रंग की बहुत ही झीनी सूती सारी थी. सारी के नीचे किसी अंडरगार्मेंट्स नही होने की वजह से मेरे पूरे बदन की सॉफ झलक सामने से मिल रही थी. हर कदम पर मेरे बड़े बड़े उरोज हिलने लगते. देखने वाले के बदन मे अगर तनाव ना अजाए तो ये एक ताज्जुब की बात ही होती. मुझे इतने सारे मर्दों के बीच इस प्रकार अर्धनग्न अवस्था मे चलते फिरते हुए बहुत शर्म आ रही थी. 
क्रमशः............ 
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12-10-2018, 02:16 PM,
#94
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -52 

गतान्क से आगे... 


“ वाह क्या ग़ज़ब लग रही हो. आज तो सारे मर्दों के लंड झुकने का नाम ही नही लेंगे.” रत्ना ने मुझे निहारते हुए कहा. 

रत्ना मुझे लेकर आश्रम के बीच बने कुंड पर ले आई. जिसे सब कुंड कह रहे थे वो एक तरह से स्विम्मिंग पूल ही था. रत्ना ने कहा, 

" जाओ इसमे प्रवेश करके एक डुबकी लगाओ. इसका पानी सूद्ढ़ और अभिमंत्रित है. यहाँ के हर शिष्य शिष्या को सख़्त आदेश है कि इस कुंड से अपने बदन को सूद्ढ़ किए बिना किसी भी प्रकार के पूजा अर्चना नही शुरू करें. " 

तभी मैने देखा कि एक आश्रम का शिष्य कमर पर छ्होटी सी लंगोट बँधे उस कुंड मे प्रवेश किया. कुच्छ मंत्र पढ़ते हुए उसने दो डुबकी लगाई और बाहर आ गया. बाहर आते वक़्त उसकी छ्होटी सी लंगोट गीले बदन से चिपक गयी थी. लंगोट के अंदर से 
उसका तगड़ा लिंग जो पहले आँखों की ओट मे था अब एकदम सॉफ सॉफ दिखाई दे रहा था. 



उनका लिंग किसी बेल पर लगे मोटे खीरे की तरह लटक रहा था. उसे देख कर मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया. उसका लंड अभी सोया हुआ था मगर उस अवस्था मे भी उसका आकार अच्छे अच्छो के खड़े लंड के बराबर था. मैने मन ही मन सोचा की वैसा मोटा तगड़ा लंड जब खड़ा होता होगा तो कितना ख़तरनाक लगता होगा. 



मैने अपने बदन पर एक नज़र डाली पानी से बाहर आने पर मेरी हालत उससे भी बदतर होने वाली थी. काफ़ी सारे शिष्य कुंड के चारों इधर उधर आ-जा रहे थे. मैं झिझकते हुए कुंड मे प्रवेश कर गयी . मैं दो डुबकी लगा कर बाहर आई. अब मेरा बदन पूरा ही नग्न हो गया था. बदन की सारी का होना और ना होना बराबर ही था. सारी गीली होगार मेरे बदन से किसी केंचुली की तरह चिपक गयी थी. मेरे बड़े बड़े सुडोल बूब्स एक दम बेपर्दा हो गये थे. मेरे दोनो निपल्स खड़े होकर बड़ी हसरत से सामने वाले को आमंत्रित कर रहे थे. सारी गीली होकर पारदर्शी हो जाने के कारण 
मेरी योनि के उपर उगे रेशमी बाल भी साफ साफ नज़र आ रहे थे. मैं अपनी योनि के उपर से रेशमी बालों को साफ नही करती थी. वो इस वक़्त एक काले धब्बे की तरह नज़र आ रहे थे. अब मेरे लिए दूसरों की नज़रों से छिपाने के लिए कुच्छ भी नही बचा था. 



मुझे उसी हालत मे त्रिलोकनंद जी के पास ले जाया गया. रत्ना कमरे के बाहर ही रह गयी थी. त्रिलोकनंद जी ने मुझे उपर से नीचे तक देखा. फिर अपने सामने खड़ा कर के मेरी सारी को मेरे बदन से हटाने लगे. मेरे पूरे बदन से और सारी से अब भी पानी टपक रहा था. मैं उनके सामने सिर झुकाए खड़ी थी. पूरी सारी को मेरे बदन से हटा कर उन्होने मुझे पूरी तरह नंगी कर दिया. फिर मेरे नग्न बदन पर उपर से नीचे तक अपने दोनो हाथों को फिराया. उनकी उंगलियों ने मेरे जिस्म के हर शिखर और कंदराओ को च्छुआ. उनकी उंगलियों की चुअन पूरे बदन पर सैकड़ो चींटियाँ चला रही थी. मेरे सारे रोएँ ऐसे खड़े हो कर तन गये थे जैसे वो बाल ना होकर काँटे हों. ऐसा लग रहा था मानो कोई मेरे बदन पर मोर पंख फेर रहा हो. सिहरन से मेरे निपल्स खड़े होकर कठोर हो गये. उनके हाथ पूरे बदन पर फिसल रहे थे. अपने कंधे पर पड़ी चुनरी को उन्हो ने उतारा और मेरे गीले बदन को पोंच्छने लगे. 



पोंच्छने के साथ साथ जगह जगह पर सहलाते भी जा रहे थे. मेरे बदन को 
पोंच्छने के बाद उन्हों ने मुझे खींच कर अपने बदन से सटा लिया और मेरे चेहरे को अपने हाथों से थाम कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए. काफ़ी देर तक यूँ ही मेरे होंठों को चूमते रहे. 

उन्हों ने कमरे के एक कोने पर विराजमान देवता जी की मूर्ति के पैरों के पास से भभूत जैसी कोई चीज़ अपने हाथों मे ले कर मेरे पूरे बदन परमालने लगे. फिर एक सुराही से एक ग्लास मटमैले रंग का कोई तरल भर कर मुझे पीने को दिया. उस शरबत जैसी चीज़ बहुत तेज थी. उसका स्वाद कुच्छ कुच्छ वैसा ही था जैसा मैने कई बार उस आश्रम मे पिया था. 



जब मैं एक एक घूँट ले कर उस ग्लास को खाली कर रही थी तब वो मेरे निपल्स को अपनी जीभ से कुच्छ ऐसे चाट रहे थे जैसे कोई बच्चा सॉफ्टी के उपर लगे चर्री को चाट्ता है. 


" देवी, ये अवसर मैं बहुत कम महिलाओं को ही देता हूँ. तुम बहुत अच्छि हो और बहुत सेक्सी……मुझे तुम पसंद आई इसलिए तुम्हे भी मेरा वीर्य अपने कोख मे लेने का अवसर मिला. अब एक हफ्ते तक तुम्हे सब कुच्छ भूल कर मेरी बीवी की तरह रहना होगा. तुम्हारे बदन का मालिक मैं और सिर्फ़ मैं होऊँगा." कहते हुए उन्हों ने अपने तपते होंठ मेरे होंठों पर रख दिए, “ तुम मेरी इच्छा की विरुढ़ह कुच्छ नही कर सकती. मेरे आदेशों का पालन किसी गुलाम की तरह सिर झुका कर करना पड़ेगा. हल्का सा भी विरोध तुम्हारी पूरी मेहनत, पूरी तपस्या एक पल मे ख़त्म कर सकती है.” 



मुझे ऐसा लगा मानो मेरे ठंडे होंठों को किसी ने अंगारो से च्छुआ दिए हों. मेरा गीला बदन भी उनके शरीर से लग कर तप रहा था. मेरे हाथ अपने आप नीचे उनकी जांघों के बीच जाकर उनके तने हुए विशालकाय लिंग को थाम लिए. मेरे होंठ उत्तेजना से खुल गये और मैं अपनी जीभ निकाल कर पहले मेने उनके होंठों पर फिराया और फिर मैने उनके मुँह मे अपनी जीभ को डाल दिया. 

" आआअहह……कब से मैं तड़प रही थी इसी मौके के लिए. मैं आपकी शरण मे आइ हूँ. आपको पूरा अधिकार है मुझे जैसी इच्छा हो आपकी उसी तरह यूज़ करो. मुझे तोड़ मरोड़ कर रख दो. मुझे अपनी दासी बना कर रखो. मैं आपके साथ बीते हर पल को एंजाय करना चाहती हूँ. मुझे अपने जिस्म से लगा कर मेरी प्यास को शांत कर दो. मुझे अपने चर्नो मे जगह दे दो गुरु देव. मुझे अपना बना लो." उन्हों ने अपने होंठों को खोल कर मेरी जीभ को अंदर प्रवेश करने दिया. 



" दिशा…….मेरे लिंग को अपने अंदर लेने से पहले मेरे बीज को अपनी कोख मे लेने से पहले इस आश्रम के बाकी सारे मर्दों का आशीर्वाद लेना पड़ेगा. उन्हे खुश करके उनसे अनुमति लेनी पड़ेगी. उन्हे एक बार खुश करना पड़ेगा." मैने बिना कुच्छ कहे उनकी नज़रों मे झाँका ये कहने के लिए कि मैं उनकी हर शर्त मानने के लिए तैयार हूँ. मुझे रत्ना ने हर बात बड़ी तसल्ली से मुझे समझा दिया था. मुझे सब पता था कब किसके साथ क्या करना था. 

” देवी तुम्हे अपने करमो से साबित करना पड़ेगा की तुम भूखी हो मेरे वीर्य रस की. तुम्हे अपनी गर्मी का अहसास दिलाना पड़ेगा हर किसी को. तुम्हे इस आश्रम मे मौजूद हर व्यक्ति की उत्तेजना को शांत करना होगा तब जा कर तुम मेरे अमृत को ग्रहण करने के योग्य हो पओगि.” उन्हों ने मुझे कहा. 



वो मेरे बदन से अलग होकर पूजा के स्थान से एक छ्होटा सा पीतल का कलश ले आए. उसे मेरे हाथों मे थमाया और बोले, 

" लो इसे सम्हालो" मैने कलश को थाम लिया, " ये अमृत कुंड है. इसे तुम्हे भर कर लाना होगा." 

मैने सिर हिला कर पीछे उन्हे अपनी राजा मंदी जताई. जब मैने बाहर जाने के लिए मुड़ना चाहा तो उन्हों ने रोक दिया. 

" अरे पगली इसे पानी से भर कर थोड़े ही लाना है. इसे अंकुरित बीजों से भरना है. यहाँ इस आश्रम मे सेवकराम को मिलाकर दस शिष्य हैं. दसों मर्द तुम्हे अपने आगोश मे लेने के लिए आतुर हैं.तुम्हे इस कलश को उनके वीर्य से भर कर लाना होगा. तुम्हे उनसे प्रणय निवेदन कर अपने साथ संभोग के लिए राज़ी करना होगा." 

मेरा उनकी बातें सुन कर चौंक गयी. मेरा मुँह खुला का खुला रह गया. मेरे मुँह से कोई आवाज़ नही निकली. रत्ना मुझे सब समझाते हुए भी शायद कुच्छ बातों को छिपा गयी थी. वो बोलते जा रहे थे, 

" इसके लिए तुम्हे हर शिश्य के कमरे मे जाकर उनको उत्तेजित करना है. उन्हे अपने साथ संभोग के लिए राज़ी करवाना होगा और उनसे सेक्स करने के बाद उनका वीर्य अपनी योनि मे या इधर उधर बर्बाद करने की जगह इस छ्होटे से कलश मे इकट्ठा करना होगा. इसके लिए तुम्हे अपना रूप, अपने बदन, अपना सोन्दर्य और अपनी अदाओं का भरपूर इस्तेमाल करना होगा." 

मैं चुपचाप उनको सुन रही थी. जब वो पल भर को रुके तो मैने,” जी” कह कर उन्हे अपनी सहमति जताई. 

" अभी पाँच बज रहे हैं. तुम अभी से शुरू हो जाओ क्योंकि सुर्य अस्त होने से पहले तुम्हे ये काम निबटना पड़ेगा. जाओ तैयार हो जाओ. सबसे पहले सेवक राम के पास 
जाना. उस के लिंग के रस से ही तो आधा भर जाएगा. बहुत रस है उसके अंदर. जाओ उसे निचोड़ लो. हाहाहा…." उन्हों ने एक पहले जैसी ही सूखी सारी लाकर मुझे दी. 

" वो सारी तो अब पहनने लायक नही है. पूरी तरह गीली हो चुकी है. लो इसे अपने बदन पर लप्पेट लो" स्वामी जी ने कहा. मैने उसे अपने बदन पर लप्पेट ने लगी. स्वामी जी ने उस सारी को मुझे पहनने मे मदद की. 

मैं उनके चरण च्छू कर बाहर निकली. मुझे अगले दस-बारह घंटे मे दस मर्दों की काम वासना शांत करना था. पंद्रह बलिष्ठ मर्दों से सहवास करते हुए बदन का टूटना तो लाजिमी ही था. जाने कितनी कुटाई होनी थी शाम से पहले. एक ओर बदन उत्तेजित था पंद्रह मर्दों से सहवास के बारे मे सोच कर तो दूसरी ओर मन मे एक दार भी था की शाम तक कहीं मुझे लोगों का सहारा ना लेना पड़े खड़े होने के लिए भी. 



रत्ना को साथ मैने पूरे वक़्त मेरे साथ ही रहने को कहा. सेवकराम जी जैसे दस आदमियों को झेलते हुए मेरी जो दुर्गति होनी थी वो मैं ही जानती हूँ. हिम्मत बढ़ने के लिए काम से काम रत्ना जैसी किसी जानकार महिला का होना बहुत ज़रूरी था जिससे मैं पहले से ही घुली मिली थी. 

मैं रत्ना को साथ लेकर चलते हुए सबसे पहले सेवकराम जी के पास गयी. उन्हों ने मेरे हाथ मे थामे कलश को देख कर मुस्कुराते हुए कहा, 

"आओ अंदर आओ. रत्ना तुम बाहर ही ठहरो. इसे अभी छ्चोड़ता हूँ." सेवक राम जी ने रत्ना को बाहर ही रोक कर मेरी कमर मे अपनी बाँहें डाल कर कमरे मे ले गये. 



सेवक रामजी ने मुझे अपना वस्त्र बदन से हटाने को कहा. मैने उनके सामने बेझिझक अपनी सारी उतार कर रख दी. उनके साथ तो वैसे ही कई बार संभोग कर चुकी थी इसलिए अब कोई झिझक नही बची थी. उन्हों ने भी अपनी कमर से लिपटा एक मात्र वस्त्र को उतार कर एक ओर फेंक दिया. मैने देखा कि उनका वही चिर परिचित लंड पूरे जोश के साथ खड़ा हो कर मुझे ललकार रहा था. 



उन्हों ने मुझे सामने की दीवार का सहारा लेकर खड़ा किया. मैने दीवार की तरफ मुँह करके अपने हाथ दीवार पर रख कर उसका सहारा लिया और अपनी कमर को कुच्छ बाहर निकाला. क्रमशः............
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12-10-2018, 02:16 PM,
#95
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -53 

गतान्क से आगे... 


वो पीछे की तरफ से आकर मेरे बदन से चिपक गये और अपने हाथ मेरे बगलों के नीचे से निकाल कर मेरे दोनो स्तनो को थाम कर उन्हे मसल्ने लगे. उनकी साँसे मैं अपनी गर्दन पर महसूस कर रही थी. उनके होंठ मेरी पीठ पर मेरी गर्देन के पीछे और यहाँ तक की मेरे नितंबों पर भी घूम रहे थे. 



मेरी आँखें उत्तेजना से खुद बा खुद बंद होने लगी और होंठ खुल गये. सारा जिस्म सेक्स की आग से तप रहा था और मेरा दिल व दिमाग़ अपने जांघों के जोड़ पर किसी चिर परिचित मेहमान का इंतेज़ाए कर रहा था. मेरी टाँगें उनके लंड के इंतेज़ार मे अपने आप ही एक दूसरे से अलग होकर उनको रास्ता दिखाने लगी. 

उनके लिंग की छुअन मैं अपने नितंबों के बीच महसूस कर रही थी. उनके होंठ मेरे कंधों पर फिरते हुए मेरे गर्दन पर घूमने लगे. उन्हों ने मेरी गर्दन के पीछे अपने दाँत गढ़ा दिए और हल्के हल्के से काटने लगे. पूरा बदन सिहरन से भर उठा. बदन के रोएँ कांटो के जैसे खड़े हो गये. मेरी योनि से तरल प्रेकुं रिस रिस कर बाहर आ रहा था. 

"आआआहह… ..म्‍म्म्मममम… ..क्यों साताआ रहीए हूऊऊ" कहकर मैने 
अपना एक हाथ दीवार पर से हटाया और पीछे ले जाकर उनके लिंग को दो बार सहलाया. फिर उनके लिंग को अपनी योनि के द्वार पर ले जाकर उससे सटा दिया. ऐसा करने के लिए मैने अपने नितंबों को पीछे की ओर धकेला. 



उन्हों ने मेरे निपल्स को अपनी उंगलियों से दबा कर ज़ोर से खींचते हुए अपने लिंग को मेरी योनि मे डाल दिया. उनका लिंग काफ़ी मोटा है इसलिए जब भी मेरी योनि मे घुसता है तो चाहे जितनी भी गीली हो ऐसा लगता है मानो उसे चीर कर रख देगा. मैं इतनी बार 
उसने संभोग करने के बावजूद आज भी उनके पहले धक्के से कराह उठती हूँ. आआज तक मैं उनके लिंग की अभ्यस्त नही हो पाई. 



वो पीछे की तरफ से मेरी योनि मे धक्के मारने लगे. उनके धक्के इतने ज़ोर दार थे की हर धक्के के साथ मेरे उरोज दीवार से रगड़ खा जाते थे. निपल्स इतने तन चुके थे कि दीवार से रगड़ खा खा कर दुखने लगे थे. कुच्छ देर बाद इस तरह के ज़ोर दार झेलते झेलते मेरे हाथों ने जवाब दे दिया और मेरा पूरा बदन दीवार से जा चिपका. उसी हालत मे वो मुझे आधे घंटे तक चोद्ते रहे. मेरे निपल्स दीवार से रगड़ खाते खाते छिल गये थे. मेरी टाँगें भी उनके वजन को थामे दुखने लगी थी. मैं दो बार इस बीच झाड़ चुकी थी. 

" आअहह…….ऊऊऊहह…….उउउइईई…..हहुूहह….माआ………आब्ब बुसस्स भीइ करूऊ…..सेवकराम जी…….अभी तो बहुत लोगोणणन्न् का लेआणा हाईईईईईईईई…. इससस्स तरह तूऊऊओ….मैईईईई… मार ही जौंगिइइइ……" मैं सिसक उठी थी. 

" चल….आअज मैं तुझे चोदता हूँ……” कहकर उन्हों ने अपने धक्कों की गति बढ़ा दी. मेरे स्तनो को थाम कर तो उन्हे मसल कर रख दिया और पूरे वेग से अपने लंड से मेरी चुदाई करने लगे. मुश्किल से दो मिनिट हुए की उनका बदन अकड़ने लगा. मैं समझ गयी की अब इनका वीर्यपात होने वाला है. 



“ले …..मेरे वीर्य को अपने कलश मे भर ले." कहकर सेवक रामजी ने एक झटके से अपने लिंग को बाहर निकाला. में हन्फ्ते हुए दीवार से सॅट कर ज़मीन पर बैठ गयी और पास रखे कलश को उठा कर उनके लिंग पर लगाया. उन्हों ने अपने लिंग को मेरे कलश की दिशा मे कर रखा था. 

अपने दूसरे हाथ से उनके लिंग को पकड़ कर सहलाने लगी. दो – तीन बार सहलाते ही एक तेज दूध की तरह सफेद धार निकल कर उस कलश मे इकट्ठा होने लगी. उन्होने ढेर सारा वीर्य मेरे हाथो मे पकड़े उस कलश मे भर दिया. जब तक उनके लंड से आख़िरी बूँद तक ना निकल गयी तब तक मैने उनके लंड को छ्चोड़ा नही. 



मेरी भी योनि से ढेर सारा वीर्य बह निकाला था. वो बाते बाते मेरी जांघों को और मेरे नितंबों को गीला कर रहा था. कुच्छ कतरे ज़मीन पर भी गिर गये थे. 



मेरा गला सूखने लगा था. वो मेरी हालत को समझ कर दो ग्लास ले कर आए. एक मे पानी था और दूसरे मे वही शक्ति वर्धक पेय था. मैने एक घूँट पानी पीकर दूसरे ग्लास को लिया और उसे एक झटके मे खाली कर दिया. आज मुझे सारे दिन इसी पेय की ज़रूरत थी. जिससे मेरे जिस्म मे एक अन्बुझि आग पूरे दिन जलती रहे और मैं अपने कार्य को पूरे मन से संपूर्ण कर सकूँ. 

मैं कुच्छ देर वही दीवार के सहारे नंगी ज़मीन पर बैठी रही. सेवकराम जी मेरे बालों पर हाथ फेर रहे थे और मेरे बदन को सहला कर प्यार कर रहे थे. मैं चुपचाप आँखें बंद किए बैठी अपनी सांसो को व्यवस्थित करती रही. जाब साँसे कुच्छ नॉर्मल हुई तो उठकर सारी को अपने बदन से लपेटा और सेवकराम जी के चरण च्छू कर उस कमरे से निकल गयी. 



मैने अपने दोनो हाथों मे वही कलश थाम रखा था जिसमे सेवकराम जी का गाढ़ा वीर्य इकट्ठा था. कुच्छ ही देर मे वापस मेरे बदन मे सेक्स की ज्वाला सी जलने लगी थी. उस दिन तो मेरा बदन सेक्स की आग से तप रहा था. 

बाहर रत्ना मेरे इंतेज़ार मे मिल गयी. वो मुझे देखते ही खिल उठी. आगे आकर उसने उस कलश मे झाँका और फिर मुस्कुराते हुए पूछा, 



“ कैसा लगा? कोई परेशानी तो नही हुई?” 



“ सेवकराम जी के साथ परेशानी कैसी? वो तो मेरे अंग अंग से अब तक वाक़िफ़ हो चुके हैं. हमेशा की तरह उनके साथ सेक्स मे मज़ा आ गया. उनकी मर्दानगी तो लाजवाब है. एक एक अंग को तोड़ कर रख देते हैं. लेकिन आज उन्हों नेज्यदा परेशान नही किया.” मैने कहा. 



वो मुझे लेकर दूसरे कमरे के द्वार पर गयी. मैने दरवाजे को दो बार खटखटाया. एक 60 – 65 साल के बुजुर्ग ने दरवाजा खोला. काले रंग का वो शिष्य बदन से भी कमजोर था. उसके चेहरे पर चेचक के दाग थे उसपर हल्की दाढ़ी 
किसी कॅक्टस के कांटो समान दिख रही थी. सिर पर एक भी बाल नही थे. 

वो दो पल हमे जिग्यासा भरी नज़रों से देखते रहे. फिर मेरे हाथों मे कलश को देख कर वो बिना कुच्छ कहे दरवाजे से हट गये. रत्ना ने मेरी बाँह पकड़ कर आगे की ओर हल्का सा धकेला. मैं उनकी बगल से होती हुई अंदर प्रवेश कर गयी. अपने पीछे मैने दरवाजे के बंद होने की आवाज़ सुनी. मैं कमरे के बीच चुपचाप खड़ी रही. वो मेरे पास आकर मेरे हाथो से कलश को लेकर एक ओर रखा. 

" अब किसका इंतेज़ार कर रही हो? चलो फटाफट अपने कपड़े उतार डालो. कपड़ों के उपर से तो एक दम गाथा हुआ मजबूत माल लग रही हो. अब मैं तो बुड्ढ़ा होने लगा हूँ. देखो…." कहकर उन्हों ने अपने बदन को ढके इकलौते वस्त्र अपनी धोती को एक झटके मे उतार दिया. मैने भी अपनी सारी को बदन से उतार दिया. 

" वाआह शानदार... .........क्या माल है. काश आज से बीस तीस साल पहले मिली होती तो तुझे चोद चोद कर चौड़ा कर देता.” कहकर उन्हों ने अपने बेजान लटके हुए लिंग को मसला, “लड़की इस उम्र मे इससे दूध निकालने के लिए तुझे खुद मेहनत करनी होगी. इस मे जीवन का संचार करना होगा." उन्हों ने अपने सोए हुए लिंग की तरफ इशारा किया. मैने अपना हाथ बढ़ा कर उनके लिंग को थाम लिया और सहलाने लगी. मुझे गुस्सा आ रहा था. इधर तो मेरा बदन जल रहा था और यही बुड्ढ़ा मिला था अपने तन की आग बुझाने के लिए. रत्ना अभी तो किसी कड़क मर्द से मेरी मुलाकात करवा सकती थी. इससे तो बाद मे जब मैं थक जाती तब ही मिलना बेहतर होता. 



मैं उसके लिंग को अपने हाथों मे लेकर सहलाने लगी. लेकिन उसमे कोई हरकत नही हुई. 

"देवी इस तरह कुच्छ भी नही होगा. इसे अपने मुँह मे लेकर प्यार करो." कहकर उसने अपने दोनो हाथ मेरे कंधों पर रख कर मुझे नीचे झुकने का इशारा किया. मुझे उस आदमी के साथ और एस्पेशली उसके लिंग को अपने मुँह मे लेने मे घिंन आ रही थी. क्योंकि उसके बदन से पसीने की बू भी आ रही थी. 



लेकिन मेरी मर्ज़ी का यहा कोई महत्व ही नही था. यहाँ तो मैं तो आज सिर्फ़ एक सेक्स मशीन थी. मुझे बिना किसी लग लप्पेट के इनसे चुदना था और अपना काम निकालना था. मैने अपने घुटने मोड़ लिए और उनके सामने ज़मीन पर बैठ गयी. 



मेरे आँखों से कुच्छ इंच की दूरी पर उनका लिंग किसी मरे चूहे की तरह लटक रहा था. मैने झिझकते उसके लिंग को अपने एक हाथ से थामा और उसे उठा कर अपने होंठों के सामने ले कर आई. मैने अपने होंठों से उनके लिंग को चूमा फिर कुच्छ देर अपने होंठ उनके लिंग पर फिराती रही. 



“ इसे मुँह मे लेकर चूसो कुच्छ देर तब जाकर इसमे हरकत आएगी.” कह कर वो नीचे झुक कर मेरे स्तनो को अपनी हथेलियों मे थाम कर उन्हे मसल दिए. 



उनके लिंग से एक अजीब सी बदबू आ रही थी. मेरा जी मचल रहा था और उबकाई सी आने लगी. मैने साँस रोक कर अपना मुँह खोला और उनके लिंग को अपने मुँह मे ले लिया. साँस लेते ही ज़ोर से उबकाई आई. 

मैं उनके लिंग को मुँह से निकाल कर अपनी उबकाई रोकने के लिए अपने मुँह को हथेली से दाब कर बाथरूम की तरफ जाना चाहती थी लेकिन उन्हों ने मेरे बाल सख्ती से पकड़ 
लिए. 

" कहाँ जा रही है. मेरे लिंग का अनादर करके तू बच नही सकती. हरामजादी पता नही कितनो से चुद चुकी है और मेरे लंड को मुँह मे लेने मे तुझे उल्टी आ रही है. चल नखरे मत कर. मुँह खोल और इसे अंदर ले." उनके बोलने का लहज़ा ऐसा था मानो वो किसी दो टके की वेश्या से बातें कर रहे हों. इतने बड़े महात्मा के शिष्य होकर बाजारू भाषा का प्रयोग कर रहे थे. 



मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उसे अपने चेहरे पर नज़र आने नही दिया. मैने अपना 
मुँह खोल कर उनके लिंग को अंदर ले लिया. मैं अपनी दो उंगलियों से उनके लिंग को थाम कर उसे चूसने लगी. वो झुक कर मेरी पीठ पर हाथ फेर रहा था और मेरे गालों को सहला रहा था. काफ़ी देर तक चूसने के बाद उसके लिंग मे हरकत आनी शुरू हुई. धीरे धीरे उसका लिंग तनने लगा. 



जिस लिंग को मैं बेजान समझ रही थी उसका आकार जब बढ़ने लगा तो मैं अस्चरय से रुक गयी. उसकी मोटाई और लंबाई अद्भुत रूप से बढ़ने लगी थी. उसका आकार बड़ा ही विकारल हो गया. वो मेरे सिर को अपने हाथों से थाम कर अपने लिंग पर दबाने लगे. अब उनके लिंग को पूरा मुँह मे लेने मे भी परेशानी हो रही थी. 



उनका तना हुआ लिंग आधा भी मुँह मे नही जा पा रहा था. जब उनका लिंग अपने आकर मे आ गया तो उसे देख अब मुझे भी मुख मैथुन मे मज़ा आने लगा. अब उनके लिंग को मैं तेज़ी से मुँह मे लेने लगी. मेरी रफ़्तार काफ़ी तेज हो गयी थी. उन्हों ने अपना कमर आगे की ओर बढ़ा दिया था और मेर हर धक्के का साथ वो भी अपनी कमर से धक्का लगा कर दे रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो वो मेरे मुँह को नही बल्कि मेरी चूत को ठोक रहे हों. 
क्रमशः............
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12-10-2018, 02:17 PM,
#96
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -54 

गतान्क से आगे... 


वो मेरे सिर को पकड़ कर अपने लिंग को मेरे मुँह मे इतनी ज़ोर से ठोकते कि उनका लंड मेरे मुँह से होता हुया गले के अंदर तक घुस जाता था. मेरी साँसे रुक जाती थी और मेरा गला फूल जाता था. मेरी आँखें तक बाहर को उबल पड़ती थी. मगर उन्हे इन सब से कोई मतलब नही था. वो तो मुझे किसी दो टके की रांड़ की तरह चोद रहे थे. मानो अपनी एक एक पाई उसूल करना ही उनका मकसद हो. 



कुच्छ देर बाद उनका लिंग उत्तेजना मे हल्के से काँपने लगा. मैं अपने सिर को हटा कर उनके वीर्य को कलश मे इकट्ठा करना चाहती थी लेकिन उन्होने पूरी ताक़त से मेरे सिर को पकड़ कर हिलने नही दिया. 

" ले....ले..... मेरे प्रसाद को पहले अपने मुँह मे इकट्ठा कर और बाद मे इसे कलश मे उलीच लेना. तेरे इस सुंदर और खूबसूरत मुँह को चोदने का मज़ा ही अलग है. मैं तेरे मुँह मे भरूँगा अपना अमृत. तेरी मर्ज़ी उसे अपने कलश मे ले या अपने पेट मे भर." इसके साथ ही उनके लिंग से वीर्य की बौछार सी निकल कर मेरे मुँह मे भरने लगी. वो भद्दी भद्दी गालियाँ दे रहे थे. 



मैने बड़ी मुश्किल से उनके वीर्य को अपने गले से नीचे उतरने से रोका. मेरा मुँह गुब्बारे की तरह फूल गया था. होंठों के कोनो से उनका कम निकल कर ठुड्डी से होता हुआ ज़मीन पर टपक रहा था. 



सारा वीर्य स्खलित करके ही उन्हों ने मेरे सिर को छ्चोड़ा. मैने फॉरन अपने मुँह मे भरे उनके वीर्य को उस बर्तन मे खाली कर लिया. अब भी जितना वीर्य उनके लंड से टपक रहा था उतना मैने उसे कलश मे ले लिया. 

“ जब हट जा यहाँ से….छिनाल” उन्होने मुझ से कहा. उनका लिंग वापस सिकुड कर मरे चूहे जैसा हो गया था. अपना वीर्य मेरे मुँह मे निकाल कर उन्हों ने मुझे धक्का दे कर अपने पास से हटा दिया और अपने नित्य के कामो मे ऐसे व्यस्त हो गये मानो मेरा कोई अस्तित्व ही नही हो. ऐसा लग रहा था मानो वो मेरी उपस्थिति से अन्भिग्य हों. एक बार भी मेरी ओर उन्हों ने नज़र उठा कर नही देखा. मैं अपने मुँह मे बचे 
हुए थूक और कुच्छ वीर्य को निगलते हुए उठी. मेरा गला सूख रहा था. उनके उस लिंग की लगातार चोट की वजह से गला दर्द कर रहा था. 

" पीने को थोड़ा पानी मिलेगा?" मैने पूछा तो उन्हों ने कमरे के एक कोने पर रखे मटके की तरफ इशारा कर दिया. मैं उस मे से पानी निकाल कर एक घूँट पी ली जिससे गले का दर्द कुच्छ शांत हो और मुँह से वीर्य का कसैला स्वाद ख़त्म हो जाए. मैने देखा कि वो वापस अपने नहाने के लिए बाथरूम मे घुस गये थे. 



मैने अपने इकलौते वस्त्र को जैसे तैसे बदन पर लपेटा और कलश को अपने हाथों मे लेकर बाहर आई. 



रत्ना बाहर मुझे कहीं नही दिखी. मैं कुच्छ देर तक दरवाजे के बाहर उसे इधर उधर देखते हुए यूँ ही खड़ी रही. समझ मे नही आ रहा था कि अब क्या किया जाए. अब आगे किस दरवाजे पर जाउ. फिर कुच्छ सोच कर मैं अगले दरवाजे की ओर बढ़ गयी. उस दरवाजे पर खटखटाते ही एक बहुत बलिष्ठ शिष्य ने दरवाजा खोला. वो शिष्य बहुत हंडसॉम था. उसे देखते ही मेरा मन प्रसन्न हो गया. क्या पर्सनॅलिटी थी छह फुट के उपर हाइट, चौड़े कंधे साँसे मे गढ़ा हुया कसरती बदन, निहायत ही आकर्षक चेहरा और छ्होटे घुंघराले बाल. ऐसा लग रहा था मानो कोई रोम का देव पुरुष उठ आया हो. 

" ओह अद्भुत…….आओ देवी अंदर आजओ…" उसने दरवाजे से हटने का अपनी ओर से कोई उपक्रम नही किया. मैं अपनी जगह पर असमंजस मे खड़ी रही. दरवाजे की चौखट और उसके जिस्म के बीच थोड़ी सी जगह बची थी. जिससे मेरे जैसी भरे जिस्म की महिला बिना अपना बदन उससे रगडे अंदर नही जा सकती थी. शायद वो भी ऐसा ही चाह रहा था. 

" क्या हुआ? अंदर तो आओ….ऊवू मैं तो भूल ही गया तुम आओगी कैसे." उसने एक ओर हटते हुए कहा. मैं आगे बढ़ने को हुई तो उसने अपने दोनो हाथ बढ़कर मेरी सारी के उपर से मेरे निपल्स पकड़ लिए और खींचते हुए अंदर ले गये. 



“ ऊवू…..माआ.” मैं दर्द से बिलबिला उठी. अब मैं अपने दर्द से च्छुतकारा पाने के 
लिए उनके पीछे पीछे अंदर चली गयी. 



“ जब चुदने को आए हो तो इतनी झिझक क्यों. सब के सामने ही कपड़े उतार कर कह देती कि तुझे मुझसे चुदना है. यहाँ कोई कुच्छ बुरा नही मानता.” उन्हों ने मुझे कमरे मे ले जाते हुए कहा. अंदर पहुँच कर एक ज़ोर के झटके के साथ मेरी सारी खींच कर एक कोने मे फेंक दी. 

"वाआह……आअज तो मज़ा आ जाएगा. आज जी भर कर अपनी प्यास बुझाउन्गा. जब चुदना ही है तो ये सब पहनने और उतारने मे क्यों टाइम बर्बाद कर रही हो. खुद भी मज़े लो और दूसरों को मज़े दो." कह कर उसने मेरे उरोज अपने हाथों मे थाम लिए. पहले वो 
उनको धीरे धीरे कुच्छ देर तक मसलता रहा. 

"ह्म्‍म्म….काफ़ी बड़े बड़े हैं. लोग खूब नोचते और मसल्ते होंगे इन्हे. तेरी चूचियो के बीच लंड रख कर चोदने मे खूब मज़ा आएगा. आज तो खूब चुदवा रही होगी. अब तक कितनो से चुदवाया?" उनके मुँह से इस प्रकार की अश्लील बात सुन कर मैने अपनी नज़रें झुका ली. उन्हों ने अपनी धोती बदन से अलग कर दी. मैने देखा कि उनका लिंग का आकार बहुत ही बड़ा था. किसी घने जंगल के बीच विशाल पेड की तरह तन कर खड़ा था. 



“ उई मा.” मैं उसके लंड को देख कर बड़बड़ा उठी. 



“ कैसा लगा जानेमन. पसंद आया.” उन्हों ने पूछा. मैं चुपचाप खड़ी रही. तो उन्हों ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख कर दबाया. मैने अपने हाथ को उसके लंड पर फिराया. 



“ ये…ये तो बहुत बड़ा है. मेरी योनि मे नही जा पाएगा.” मैं घबरा कर उनसे बोली. 



“ डरो मत कुच्छ नही होगा. पहली बार अंदर घुसने मे तकलीफ़ होती है. बाद मे तो चूत का मुँह इतना चौड़ा हो जाता है कि उसमे मेरे लंड के घुसने के बाद भी जगह बच जाती है. तुम लोगों की चूत की बनावट ही ऐसी होती है कि अच्छे अच्छे लंड पानी भरने लगते हैं.” 



“ फिर भी…..मैं ले नही पाउन्गी इसे…….मर जाउन्गी….बाप रे बाप. इतना बड़ा मैने पहली बार देखा है.” वो मुझसे लिपट गये और मुझे चूम चूम कर दिलासा देने लगे. 

वो आगे बढ़ कर बिस्तर पर बैठ गये. और मेरे हाथ को पकड़ कर अपनी ओर खींचा, "आ इधर आ मेरी गोद मे बैठ जा." मैं चुप चाप उनकी गोद मे बैठ गयी. उन्हों ने मेरे उरजों को अब सख्ती से मसलना शुरू कर दिया. मैं दर्द और उत्तेजना से कसमसाने लगी. ना चाहते हुए भी मुँह से अब दबी दबी कराह निकल रही थी. मेरे उरोज उनके 
हाथों मे आते की तरह गुथे जा रहे थे. मैने उनके हाथों पर अपने हाथ रख कर उन्हे रोकना चाहा तो उन्हों ने एक झटके से मेरी हथेलियों को हटा दिया और वापस दुगने जोश से मेरे स्तनो पर टूट पड़े. 



उनकी इस तरह की हरकत से कुच्छ ही देर मे मेरे दोनो दूधिया उरोज एकदम लाल सुर्ख हो गये. मैने उनके गले मे अपनी बाहें डाल दी थी और "आआआहह… .ऊऊऊहह ….उईईईईईईईईईईईईईई…… नहियीईईई" जैसी आवाज़े अपने मुँह से निकलने से नही रोक पा रही थी. 



दर्द की अधिकता से तो एक बार आँखों मे आँसू तक छलक आए. वो उन मम्मो को 
लगता था उखाड़ कर ही दम लेगा. काफ़ी देर तक यूँही मसल्ते हुए उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए. मेरे निचले होंठ को अपनी होंठों के बीच लेकर मुँह के अंदर ले लिया और चूसने लगे. उत्तेजना से मेरी योनि से काम रस बहने लगा. मेरे दोनो जाँघ चिपचिपे हो रहे थे. 



कुच्छ देर तक इस तरह चूसने के कारण मेरा होंठ दर्द करने लगा. मैने उनका ध्यान उस तरफ से हटाने के लिए उनके मुँह मे अपनी जीभ डाल दी और उनके मुँह मे अपनी जीभ फिराने लगी. उन्हों ने तब जाकर मेरे होंठ को छोड़ा और अपनी जीभ से ढेर सारा थूक मेरे मुँह मे डाल दिया. मुझे उनके साथ सेक्स के खेल मे मज़ा आने लगा. वो मुझे छ्चोड़ कर बिस्तर पर लेट गये. 

"चल मेरे पूरे बदन पर अपने होंठ फिरा. अपनी जीच फिरा. मुझे खूब प्यार कर." मैं उनके उपर झुक कर अपने होंठ उनके पूरे बदन पर फिराने लगी. उनके छ्होटे छ्होटे निपलेस को अपनी जीभ से प्यार करके उनके उनकी नाभि के अंदर अपनी जीभ घुसाने लगी. उत्तेजना से उनके बदन के रोएँ खड़े होने लगे थे. मैने अपने होंठ नीचे ले जाते हुए उनके लिंग को चूसा और उसके नीचे लटकते उनके बड़े बड़े गेंदों को भी मुँह मे भर कर प्यार किया. फिर मेरे होठ पैरों से होते हुए नीचे जाने लगे. नीचे मेरे होंठ उनके पंजों पर जाकर रुके. 

"ले मेरे पैरों को चाट कर सॉफ कर" उन्हों ने मेरे सिर को अपने पैरों पर दबाया. मैं अपनी जीभ निकाल कर उनके पैरों पर फिराने लगी. जब मैं एक पैर पर अपने होंठ फिरा रही थी तब वो दूसरे पैर को मेरे सीने पर रख कर उसके अंगूठे और उंगलियों के बीच मेरे निपल्स को पकड़ कर दबा रहे थे. 



“ आआहह….नहियिइ…..दर्द हो रहाआ है….प्लीईएससे ..इन्हें छ्चोड़ दो…एयाया..उईईई म्माआ…” मैं तड़प उठी. कुच्छ देर बाद उन्हों ने करवट ली और बिस्तर पर ओन्धे लेट गये. 

"चल मेरे नितंबों को अब प्यार कर. इन्हे अच्छे से चाट." मैं वापस उपर उठ कर उनके नितंबों पर अपनी जीभ फिराने लगी. 

"हाआँ ….हाआँ ऐसे……म्‍म्म्मम…..हाआँ जीब को दोनो के बीच डाल." वो अपने चेहरे को बिस्तर के अंदर धंसाए बड़बड़ा रहे थे. 
क्रमशः............
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12-10-2018, 02:17 PM,
#97
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -55 

गतान्क से आगे... 
उन्हों ने अपने दोनो हाथों से अपने नितंबों को अलग करके कहा, "हाआँ…..अब ले मेरी गांद को चाट....उम्म्म्म….तू तो पक्की राअंड बन सकतीी हाईईइ…….." मैं चुप चाप बैठी रही मुझे उसके इस तरह की हरकतों से घिंन आ रही थी. मगर वो मानने वाला नही था. उसने पलट कर मुझे एक कस कर झापड़ मारा. 



“ साली जो कहता हूँ चुपचाप कर वरना पूरा कलश उल्टा कर दूँगा. फिर सारे दिन के साथ रात भर भी अपनी चूत मरवाते रहना.” उसने मुझे गुस्से से धमकी दी. मैं चुप चाप अपना सिर झुका कर वैसा ही करने लगी जैसा वो चाहता था. 

इस काम मे तो मुझे सच कह रही हूँ इतनी घिंन आई कि मैं बयान नही कर सकती. सेक्स मे इस तरह की हरकतें भी लोग पसंद करते हैं मैं नही जानती थी. मेने अपनी जीभ बाहर निकाली. और उसके द्वारा अलग किए नितंबों की दरार के बीच उसके गुदा द्वार पर एक बार फिराया. 

" हाआँ आौर अच्छे से चाट वाहा पर अपनी जीईईभ फिराआा.... ....वाह तू तो सेक्स की मांझी हुई खिलाड़ी लगती है. फर्स्ट क्लास रांड़ बनने के सारे गुण हैं तुझमे. खूब कमा सकती है. ले......अपनी जीभ मेरी गांद के अंदर डाल" मैने अब अपने हाथों 
से पकड़ कर उनके गुदा द्वार को कुच्छ चौड़ा किया और अपनी जीभ उसके अंदर घुसाने की कोशिश की. लेकिन जगह इतनी कम थी की जीभ अंदर नही जा सकी. 

कुच्छ देर तक मुझसे अपने बदन को चटवा कर अब वो सीधे हुए उनका लिंग एक दम तना हुआ खड़ा था. उसकी मोटाई और लंबाई देख कर बदन मे झुरजुरी सी दौड़ गयी. 

" चल आजा मेरे उपर.......अगर मुझसे चुदवाना चाहती है तो मुझे चोद. जो कुच्छ करना है उसके लिए खुद को मेहनत करनी पड़ेगी. " मैं उनकी जांघों के जोड़ पर बैठ कर अपने पैरों को फैला कर कुच्छ उठी फिर अपने हाथों से उनके लिंग को अपनी योनि के द्वार पर सेट करकूच्छ पल रुकी. मेरी योनि उसकी हरकतों से उत्तेजित होकर पहले से ही गीली हो रही थी. इसलिए मुझे उम्मीद थी की उस गधे के समान लंड को झेलने मे ज़्यादा दिक्कत नही होगी. मैं धीरे धीरे अपने बदन का वजन अपनी कमर पर डालने लगी. उसका लंड कुच्छ देर तक मेरी चूत मे घुसने के लिए ज़ोर लगाता रहा मगर अंदर नही घुस पा रहा था. 



मैने अपने जबड़े भींच कर उनके लंड पर अपनी कमर से एक ज़ोर धक्का मारा तो लगा मानो मेरी योनि को चीरता हुआ उनका लंड के आगे का हिस्सा मेरे जिस्म मे समा गया. मैं दर्द से कराह उठी. मैं च्चटपटा कर उठने को हुई तो उन्हों ने अपने हाथों से मेरी कमर को ऐसे थाम लिया कि मैं उठ ही नही सकी. कुच्छ देर तक हम इसी पोज़िशन मे रहे. मेरा जिस्म पसीने से लटपथ हो गया था. 



धीरे धीरे दर्द कम होता चला गया. मैं उसके लंड पर धीरे धीरे बत्ती चली गयी. जब मई उसके टाँगों के जोड़ पर पूरी तरह बैठ गयी तो मैने अपने हाथ को नीचे ले जाकर उनके लंड को छ्छू कर तसल्ली की उनका लंड पूरा का पूरा मेरी चूत मे समा चुक्का था. मैं सिर्फ़ लंड को अपने अंदर लेने मे ही हाँफने लगी थी. वो मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे. 



“ हो गयी तसल्ली?” वो मेरी नज़रों मे झाँकते हुए मुस्कुरा रहे थे,” मैं कह रहा था ना की पहली बार ही थोड़ी परेशानी होगी बाद मे तो खूब मज़ा आ जाएगा. तुम तो बेकार ही घबरा रही थी.” 



मैं अपने जिस्म मे उठ रही दर्द की टीस दबा कर मुस्कुरा उठी. 



मैं अब उनके लिंग पर उपर नीचे होने लगी. उन्हों ने अपने हाथों से मेरे उच्छलते हुए दोनो उरोज थाम लिए और वापस उनको बेरहमी से मसल्ने लगे. मैं अपने निचले होंठ को दाँतों के बीच दबा कर उनको चोद रही थी. कुच्छ देर इसी तरह चोदने के बाद उन्हों ने मुझे अपने से अलग किया. 



“ मज़ा आ गया. क्या धक्के मारती है तू. कितने मर्दो से चुदी है अबतक. क्या सेक्सी माल है. सारा दिन चोद्ते रहो तो भी मन ना भरे.” वो मेरे जिस्म पर अपनी उंगलियाँ फिरा रहे थे. 

उन्हों ने अब मुझे बिस्तर पर पटक कर मेरी टाँगे उठा कर अपने कंधों पर रख लिया और किसी ढोक्नी की तरह मेरी कुटाई करने लगे. मैं उनके धक्कों से हाँफने लगी. एक चीज़ तो मैने देखी थी कि इस आश्रम का हर व्यक्ति सेक्स के मामले मे बहुत बलशाली था. चाहे वो कितना ही बुजुर्ग क्यों ना हो. भले ही उनके साथ सेक्स मे मेरे बदन पर अत्याचार खूब हुए मगर उनकी चुदाई मे इतना मज़ा आया कि मैं सब परेशानी सब दर्द भूल कर उनकी मर्दानगी पर मर मिटी. 



मुझे एक ही पोज़िशन मे लगभग आधे घंटे तक 
चोद्ते रहे. तब जाकर उनका लिंग झटके खाने लगा. वो मेरी बगल मे लुढ़क गये. वो बिस्तर पर चित होकर लेट गये. और मुझे अपने लिंग की ओर इशारा किया. 

मैं ने जल्दी से कलश को लेकर उनके लिंग के सामने रखा. छत की ओर तना हुआ लिंग किसी पिचकारी की तरह वीर्य की धार छोड़ने लगा. जिसे मैं किसी कुशल कॅचर की तरह उस कलश मे इकट्ठा करने लगी. कुछ बूंदे उनकी जांघों पर और पैरों पर भी गिरी जिन्हे मैने अपनी उंगलियों से समेट कर उस कलश मे भरा. इन्हों ने अपने ढेर सारे वीर्य की मुझे सौगात दी. मैं तो इस चुदाई मे पता नही कितनी बार स्खलित हो चुकी थी मैने कलश को हाथों मे संभाल कर उठना चाहा तो एक दम से लड़खड़ा कर गिरने को हुई. तो उन्हों ने फ़ौरन मेरे बदन को अपनी आगोश मे लेकर मुझे गिरने से बचाया. 

"सम्हालकर….कलश ना गिर जाए. इतनी मेहनत से जमा किया हुआ सारा वीर्य नष्ट हो जाएगा. " 

"वो….वो…..थकान के कारण मेरे पैर लड़खड़ा गये थे. आप नही सम्हालते तो मैं सही मे गिर जाती. आख़िर अपने मेरे बदन को थकाया भी तो बहुत." मैने उनकी आँखों मे झाँक कर कहा. 

" तुम हो ही इतनी खूबसूरत. क्या नाम है तुम्हारा देवी?" 

"दिशा…..दिशा नाम है मेरा." 

"यहीं रहती हो? " 

"हां इसी शहर मे रहती हूँ." मैने कहा. 

"मैं तो अब यहाँ आता जाता रहूँगा तुम्हारा साथ भी मिल जाया करेगा. उम्मीद है कि जल्दी ही दोबारा मुलाकात होगी." 

"जी" कहकर मैं लड़खड़ाते कदमो से उठी और अपने वस्त्र पहन कर कमरे से बाहर आई. बाहर रत्ना मुझे सामने से आती हुई दिखी. 

"तुम कहाँ थी?" उसने पूछा 

"आप दिखी नही इसलिए मैं इस कमरे मे गयी थी." मैने कहा. 

" क्या तू अमृत महाराज के पास?....... अरे तभी तेरा ये हाल हो रहा है. तेरा हाल तो बुरा होना ही था. इनके पास तो सबसे आख़िर मे जाना चाहिए था. क्योंकि ये हर औरत को इतनी बुरी तरह मसल्ते हैं कि पूरा बदन ही टूट जाता है. उसके बाद तो दिन भर दोबारा किसी से चुदाई के नाम से ही डर लगने लगता है. फिर भी देख रही हूँ कि तूने इन्हे बड़े आराम से झेल लिया." मैने सिर्फ़ एक बार मुस्कुरा दिया. 



“ अब मैं क्या बताऊ ऐसा लग रहा था जैसे मेरे बदन को चीर कर इनका लंड मुँह की ओर से ही बाहर निकल आएगा.” 

चौथे दरवाजे पर जाकर हम रुक गये. अंदर से “ अया ऊओ” की आवाज़ें आ रही थी. हम दोनो ने एक दूसरे को देखा और मुस्कुरा दिए. 



“यहाँ तो लगता है पहले से ही कोई कार्यक्रम चल रहा है.” रत्ना ने मुझे टोहका लगाया. मैं उसकी बातें सुन कर अपनी थकान भूल कर मुस्कुरा दी. 



रत्ना ने आगे बढ़ कर दरवाजा खाट खाटाया. दो मिनिट तक कोई आवाज़ नही आई. फिर किसी ने आकर कुण्डी खोली. मैने अंदर झाँका तो सामने बिस्तर पर दो महिलाएँ और एक पुरुष अपनी नग्नता को छिपाने की कोशिश कर रहे थे. दरवाजे पर जो पुरुष खड़ा थॉ ओ भी कुच्छ पल पहले उन्ही मे से एक था. अंदर सेक्स की सुगंध फैली हुई थी. 



तभी दरवाजे पर खड़े पुरुष ने अपना हाथ आगे कर मेरी कमर के इर्द गिर्द लप्पेट दिया. 



“ स्वामी अग्निदेव एक महिला आइ है कलश लेकर. वो अपने बड़े महाराज का अमृत प्रसाद लेना चाहती है. चलो अच्छा हुआ. देवी तृष्णा तो आज बहुत जल्दी झाड़ गयी है. मेरा तो अभी तक तना हुआ खड़ा है. आज इनकी योनि ही संतुष्टि देगी मेरे लिंग को.” कह कर उसने मुझे अंदर कमरे मे खींचा. रत्ना बाहर ही रुक गयी. उन्हों ने दरवाजा बंद कर दिया और मुझे अपनी बाँहों मे भरे हुए बिस्तर तक ले कर आए. 



बिस्तर पर एक महिला थॅकी हुई हाँफ रही थी और दूसरा जोड़ा दरवाजा बंद होते ही सारी शर्मो हया ताक पर रख कर एक दूसरे के उपर टूटा पड़े. वो दोनो मेरे सामने ही पूरे जोश के साथ सेक्स के गेम मे एक दूसरे को हराने की कोशिश करने लगे. मेरे साथ वाले आदमी ने मेरे कपड़े उतार कर मुझे नग्न कर दिया. फिर वो मुझे खींच कर बिस्तर पर ले गये. बिस्तर पर अब जगह ही नही बची थी हम दोनो के लिए. 



उसने अकेली हाँफती उस महिला को धक्का दिया तो वो उठ कर अपने वस्त्र पहन कर लड़खड़ाते कदमो से कमरे से बाहर निकल गयी. उसकी हालत ही बता रही थी कि वो अभी कुच्छ देर पहले जम कर चुदी थी. बिस्तर पर अभी भी दूसरा जोड़ा चुदाई मे व्यस्त था. 



उन्हों ने मुझे ज़मीन पर ही लिटा दिया और मेरे जिस्म पर टूट पड़े. वो मेरी योनि को अपनी जीभ से चाटने लगे. उस वक़्त उनका जिस्म मेरे जिस्म के उपर पसरा हुआ था. मेरे चेहरे के सामने उनका मोटा लिंग काँप रहा था. उनके लिंग को मैने अपने हाथों से थाम लिया. उनके लिंग पर अभी कुच्छ ही देर पहले साथ वाली महिला का वीर्य लगा हुआ था. कुच्छ रस ने तो सूख कर पपड़ी का रूप ले लिया था और कुच्छ रस अभी भी लंड के उपर एक लेप चढ़ा रखा था. लंड के मुँह पर भी रस की कुच्छ बूंदे झूल रही थी. मैने अपनी जीभ निकाल कर उनके लिंग को चॅटा. 



वो उस वक़्त मेरी योनि को अपनी उंगलियों से चौड़ा कर उसके अंदर अपनी जीभ डाल कर चाट रहे थे. मैं उनके लंड पर उपर से नीचे तक अपनी जीभ फिराने लगी. मेरी जीभ नीचे सरकते हुए उनकेअनदकोषों को भी चॅटा. उनके लंड के नीचे लटकते हुए अंडकोष किसी टेन्निस की बॉल जैसे लग रहे थे. 

क्रमशः............ 
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12-10-2018, 02:17 PM,
#98
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -56 

गतान्क से आगे... 

बिस्तर बुरी तरह हिल कर ये बता रहा था कि उपर ज़ोर दार चुदाई चल रही है. वो महिला हाथों और पैरों के बल बिस्तर पर झुकी हुई थी और आदमी पीछे से उसको ठोक रहा था. उस आदमी के धक्कों मे इतना दम था कि वो महिला उनके धक्कों को ना झेल पाने की वजह से कई बार बिस्तर पर औंधे मुँह गिर जाती थी. फिर संभाल कर अपने बदन को हाथों पर ज़ोर दे कर उपर करती. 



जो महिला उस वक़्त चुद रही थी वो ज़ोर ज़ोर से चीखे जा रही थी. 



“ आआहह…..म्‍म्म्मम….ऊऊओह माआआ,,,,, छोड़ो….हाआँ,,,,,ओउर जूओर से हाां….ऊऊओह मेरीईए रजाआअ……आआआहह…….उईईईईईईई……हाां मजाआ आ गय्ाआ…….. तुउुउउंम टूऊ कीसीईइ डीईईिन मुझे माअर ही डलूऊगी………. हाां फ़ाआड़ डााालूओ…..” 



उनकी आवाज़े हमे और उत्तेजित कर रही थी. कुच्छ देर तक मुख मैथुन के बाद उन्हों ने मुझे उठा कर बिस्तर पर अपना सिर रखने को कहा. मैने वैसा ही किया. मेरा आधा जिस्म अब बिस्तर के उपर था और पेट से नीचे का हिस्सा हवा मे. मेरे घुटने ज़मीन पर थे. इस पोज़ मे वो पीछे से अपना लंड मेरी चूत मे डाल कर ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगा. उस अवस्था मे मैं चुदाई करते हुए बिस्तर पर दूसरे जोड़े की चुदाई बड़े मज़े से देख सकती थी. उन दोनो की रफ़्तार अपने चरम पर थी. 



वो महिला लगातार चीखे जा रही थी. 



“ हां हाआँ सुराअज अओ ज़ोर से…..हाआँ आईसीए…..उफफफफ्फ़ कितने दणूओ से गर्मीि से छॅट्पाटा रही थी. हा…हा….हा…” उंदोनो के बदन पसीएनए से लटपथ थे. तभी एक दम से वो चिल्ला उठी, “ ऊऊओह…माआआ…मेरााा निकल रहा हाई.” उसने अपने साथी के कंधे पर अपने दाँत गढ़ा दिए और दूसरे ही पल निढाल हो कर गिर पड़ी. उसके बदन मे अब कोई हरकत नही थी. वो किसी जिंदा लाश की तरह पसरी हुई थी. 


इधर दूसरा आदमी मुझे लगातार ठोके जा रहा था. मेरा आधा बदन बिस्तर पर ओंदे मुँह पड़ा हुया था इसलिए मेरे साथ साथ पूरा बिस्तर ही हिल रहा था. वो मुझे चोद्ते हुए मेरे बालों को अपनी मुट्ठी मे सख्ती से पकड़ रखा था मानो किसी घोड़े की सवारी करते हुए उसकी लगाम अपने हाथों मे थाम रखी हो. मेरा चेहरा बिस्तर मे धंसा हुया था और आँखें उत्तेजना के मारे बंद होने लगी थी. 



दूसरे आदमी के साथ उस वक़्त बड़ी चोट हो रही थी. वो महिला झड़ने के बाद एकदम ढीली पड़ी थी और उस आदमी का लंड तना हुआ खड़ा था. उसने उस अवस्था मे उस महिला को कुच्छ देर तक चोदने की कोशिश की मगर ठंडे पड़े जिस्म की वजह से उसका मज़ा किरकिरा हो रहा था. 



“ ये क्या निशा तू इतनी ख़ुदग़र्ज़ कब से हो गयी. खुद तो मज़े ले लए और अब मेरी आग कौन बुझाएगा. देख मेरा लंड कैसे झटके खा रहा है. इसे तो ठंडा कर..” उसने नीचे पसरी हुई महिला से कहा. 



उस महिला ने अपनी बंद आँखे खोल कर दो पल उसे देखा फिर कहा, “ आज मैं बहुत थक गयी हूँ अब और जान नही बची है मुझमे. तुम्हे ठंडा करने के लिए एक और भी तो आ गयी है. दोनो मिल कर उसे चोद लो. अभी तक तो तुम दोनो मुझ पर भी तो चढ़े हुए थे.” 



वो आदमी घटने के बल बिस्तर पर सरक कर मेरे पास आया और मेरे बालों को मेरे साथी के हाथों से लेकर उपर की ओर खींचा. दर्द से बचने के लिए मैने अपना चेहरा उपर किया. उस वक़्त मेरे होंठों से मुश्किल से तीन इंच दूर उसका लंड लपलपता हुआ खड़ा था. मैने देखा उसका लंड अभी भी निशा के रस से भीगा हुया चमक रहा है. 



“ तुझे हमारा वीर्य चाहिए ना?” उसने पूच्छा. 



“ हाआँ…हाआँ.” मेरा मुँह तो पहले से ही खुला हुआ था मगर उससे सिसकारियों के अलावा और कुच्छ नही निकल रहा था. 



“ तो फिर मेरा रस चूस कर बाहर निकाल.” कहकर बिना किसी परवाह के उसने अपना लंड मेरे होंठों से लगा दिया. मैने अपने होंठ ज़रा खोले तो उसका लंड मेरे मुँह के अंदर घुस गया. उसका रस से चूपदा लंड एक अजीब नशा पैदा कर रहा था. 



अब मेरी आगे पीछे दोनो ओर से चुदाई होने लगी. सामने वाला आदमी अपना लंड जड़ तक मेरे मुँह मे ठोक देता. उसका लंड का सिरा जाकर मेरे गले मे फँस जाता. मैं जैसे ही अपने जिस्म को पीछे खींचती, पीछे वाले का लंड मेरी योनि को रगड़ता हुया अंदर तक घुस जाता. इसी तरह दोनो ओर से चुदाई से मेरी हालत खराब हो गयी. मैं उन दोनो के बीच सॅंडविच बनी हुई थी. 



दोनो मुझे अगले पंद्रह मिनिट तक इसी तरह चुदाई के बाद पहले सामने वाले ने अपना लंड मेरे मुँह से खींच कर बाहर निकाला. उन लोगों की शायद रस अंदर नही टपकाने की आदत पड़ी हुई थी नही तो उत्तेजना के चरम पर पहुँच कर किसी भी आदमी 

के लिए अपना लंड योनि से बाहर निकाल कर झड़ना बड़ा ही मुश्किल होता है. 



उसने अपने लंड से ढेर सारा वीर्य उस लोटे मे डाल दिया. अब वो तक कर बिस्तर पर लेट गया. उसके झड़ने के भी दो तीन मिनिट बाद तक मेरी योनि चुद्ती रही फिर पीछे वाला भी झाड़ गया. 



पहले वाली महिला बड़े मज़े से मेरी चुदाई के नज़ारे देख रही थी. मेरी चुदाई देखते देखते वो वापस गर्म होने लगी और अपने साथी के ढीले पड़े लिंग को टटोल कर उसमे जीवन संचार करने की कोशिश करने लगी. 



मेरा काम तो हो ही चुक्का था. इसलिए मैं किसी मोह माया के चक्कर मे ना पड़ कर उठी और अपने जिस्म को वहीं ज़मीन पर धूल खाती पड़ी मेरी सारी से लपेट कर बाहर आ गयी. 



रत्ना बाहर मेरा ही इंतेज़ार कर रही थी. मुझे देखते ही वो खुशी से लपक कर मेरे पास आ कर मुझ से लिपट गयी. 



“ थक गयी होगी कुच्छ आराम कर लेते हैं.” कहकर वो मुझे लेकर एक कमरे मे गयी. वहाँ नरम बिस्तर पर कुच्छ देर मैने आराम किया. थकान के कारण आँख लग गयी. घंटे भर तक सो लेने के बाद अब मैं वापस तरोताजा महसूस कर रही थी. 



मुझे नींद से जगाने वाली रत्ना ही थी उसके हाथ मे शरबत का ग्लास था जिसे पीते ही वापस जिस्म मे ताज़गी आ गयी. मैं वापस अपनी दूसरो पारी के लिए तैयार थी. 



फिर हम अगले दरवाजे पर गये. वहाँ जिस शिष्य से मिली उसने मुझे अंदर बुलाया और अपने सामने खड़ी कर मेरे नंगे शरीर के एक एक अंग को बड़ी तसल्ली से निहारा. मुझे पीछे घुमा कर मेरे नितंबों को भी निहारा. मेरे नितंबो को अपने हाथ से सहलाने लगे. उन्हे अपनी मुट्ठी मे भर कर मसल्ने लगे. उनकी एक उंगली नितंबों के दरार से अंदर जाते हुए मेरे गुदा द्वार पर पहुँची. वो अपनी उंगली से मेरे छेद को सहलाने लगे. फिर मुझे अपने सीने से लगा कर चूमते हुए कहा, 

"तुम बहुत खूबसूरत हो मगर तुम्हारी गंद तुम्हारे शरीर का सबसे सुंदर हिस्सा है. मैं तो तुम्हारे साथ गुदा मैथुन ही करूँगा." 



यह कहते हुए वो मुझे अपनी बाहों मे लेकर बिस्तर तक आए. मैं बिस्तर पर चित लेट कर हर बार की तरह अपनी टाँगों को फैला दी जिससे मेरी चूत बेपर्दा हो जाए. वो बड़ी उत्सुकता 
से मेरी हरकतों को देख रहा था. मैं तो बिल्कुल ही निर्लज्ज किसी वेश्या सी हरकतें कर रही थी. अब शर्म हया से मैं उपर उठ चुकी थी. अब इन गंदी और निर्लज्ज बातों से मुझ पर कोई भी असर नही हो रहा था. 

" आ जाओ…..प्लीज़. मुझे अभी काफ़ी लोगों के पास जाना है." मैने उससे प्रणय निवेदन किया. 

उसने आगे बढ़ कर मेरी योनि के ऊपर हाथ रखा, " अद्भुत……अपूर्वा……..अति सुंदर……."वो मेरी योनि को अपनी मुट्ठी मे भर कर मसल्ने लगे. उसके बाद एक 
दो नही पूरी चार उंगलियाँ मेरी योनि के अंदर डाल दी. मैं उनके एक दम से हुए हमले से चिहुनक उठी. 



“ ह्म्‍म्म….काफ़ी गीली है….कितनो को निबटा चुकी हो अब तक?” उन्हों ने मुझ से पूछा. 



“ ज्जज्ज जीईइ…..” 



“ अरे बाबा मैने पूछा आज कितनो से चुद चुकी हो अब तक?” 



“ ज्ज्ज जीि….. आआप छठे हैं..” मैं अपनी ज़ुबान से इसे स्वीकारते हुए शर्म से गढ़ी जा रही थी. 



“ तब तो अब तक तेरी चूत भोसड़ा बन चुकी होगी.” कह कर वो अपनी चारों उंगलियाँ मेरी योनि मे डाल कर अंदर उन्हे घुमाने लगे. 

"उफफफफफफफफफ्फ़ म्‍म्म्ममममम" मेरे मूह से उत्तेजित आवाज़ें निकलने लगी. मैने अपने हाथों से धोती के उपर से उनके लिंग को टटोला. उनका हथियार काफ़ी तगड़ा था और पूरी तरह उत्तेजित हो चुका था. उसका लिंग काफ़ी बड़ा और मोटा था. वैसे भी अभी तक जिनसे भी मैने संभोग किया था आश्रम मे सब के हथियार देखने लायक थे. उनसे इतनी चुदाई के बाद तो मैं किसी गधे का भी लंड आराम से लेने को तैयार हो जाती. 

मेरी योनि को मसल्ते हुए वो अपनी पूरी हथेली मेरी योनि मे अंदर बाहर करने लगे. कुच्छ देर बाद जब अपनी उंगलियाँ बाहर निकाल कर मुझे दिखाया तो मैने देखा उनकी सारी उंगलियों से टपकता एक तार की चासनी जैसा रस अबतक हुए मिलन की कहानी कह रहा था. 

" तुम्हारी योनि का तो बहुत ही बुरा हाल है प्रिय……… तुम्हारे ये जो सामने दो फूल खिले है मैं इनमे ही रागडूंगा अपना लिंग. तुम्हारे ये दो फूल इतने खूबसूरत हैं कि जी चाहता है कि इन्हे तोड़ कर रख दूँ" और उसने मुझे अपने सामने बिठा लिया. 
क्रमशः............ 
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12-10-2018, 02:17 PM,
#99
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -57 

गतान्क से आगे... 


“ अहराम से महाप्रसाद पाकर जब इन्फूलो मे दूध भरेगा इनकी साइज़ तो किसी को भी मदहोश कर देने वाली हो जाएगी. अगर मुझे सूचना मिली तो मैं ज़रूर इनसे दुग्ध पान करने आउन्गा देवी.” 



उन्हों ने मेरे दोनो स्तनो को अपने हाथों मे थाम लिया और उन्हे किसी रबर की गेंद मान कर बुरी तरह मसल्ने लगे. मैं उनके इस तरह मसल्ने से गर्म होने लगी थी. उन्हों ने मेरे दोनो निपल्स के साथ तो बहुत ही बेदर्दी दिखाई, उन दोनो को इस तरह मसल्ने नोचने लगे कि मैं अपने मुँह से निकलती कराहों को नही रोक पा रही थी. काफ़ी देर तक इसी तरह मेरे दोनो स्तनो से खेलने के बाद उन्हों ने अपने लिंग को मेरी दोनो बड़ी बड़ी छातियो के बीच रख कर उन्हे भींचने का इशारा किया. 



मैने अपने दोनो बूब्स को लिंग पर दबा कर अपनी चूचियो के बीच बनी जगह मे उसके लिंग को रगड़ रही थी. उसका लिंग काफ़ी गर्म था. लाल रंग का सूपड़ा हर धक्के के साथ मेरे दूध की तरह सफेद चूचियो के बीच किसी गेंद जैसे उभर आता फिर कुच्छ देर मे वापस उनके बीच कहीं खो जाता. 



मैं उत्त्जित होने लगी थी. वो इस तरह मुझे चोद्ते हुए अपने हाथ से मेरी योनि को भी मसल रहे थे. कुच्छ ही देर मे मेरे बदन से चिंगारियाँ फूटने लगी और मेरी योनि से रस की धार बह निकली जो मेरी जांघों को भिगोति हुई ज़मीन तक सरक रही थी. 



“ क्या मस्त माल है…..मज़ा आ गया….ऐसा लग रहा है रूई की गेंदों के बीच अपना लंड रगड़ रहा हूँ.” वो अनाप शनाप बड़बड़ाते जा रहे थे. 

काफ़ी देर तक इसी तरह करने के बाद उन्हों ने मुझे उठाया और अपनी गोद पर बिठा कर मेरे निपल्स को चूसने लगे. बीच बीच मे दाँतों से भी काट ते जा रहे थे. मेरे मुँह से "आ……..ऊवू……..उम्म्म्म" जैसी आवाज़ें निकल रही थी. 



काफ़ी देर तक यूँ ही चूस्ते रहे. ऐसा लग रहा था मानो वो एक बच्चे बन गये हों. आख़िर मुझे ही उनके सिर को पकड़ कर अपने स्तनो से ज़बरदस्ती ही हटाना पड़ा. वो अभी भी उन स्तनो को छ्चोड़ने के मूड मे नही थे. मैने देखा दोनो स्तन उनके उपर हुए 
हमलों से सुर्ख लाल हो गये थे पहले तो चुदाई और फिर इस तरह चूसना. दोनो निपल्स पूल पूल कर इंच भर के हो गये थे. उनके चारों ओर काले दायरे मे पिंपल्स की तरह कई दाने उभर आए थे. 

अब उन्हो ने मुझे घुटनो के बल बिठा कर उनके लिंग को मुँह मे लेने का इशारा किया. मैं उनकी आग्या के अनुसार उनके सामने बैठ गयी और उनके लिंग के सामने के सूपदे को अपने मुँह मे लेकर चूसने लगी. 

सूपड़ा ही इतना बड़ा था कि पूरा मुँह भर गया था. मैं उसके लंड को अपने मुँह मे पूरा अंदर तक लेने की कोशिश कर रही थी. साथ साथ अपनी जीभ को बीच बीच मे उनके सूपदे के उपर फिरा रही थी. 



मेरी हरकतों से वो काफ़ी उत्तेजित हो गये. उन्हों ने मेरे सिर को अपने हाथों से सख्ती से थाम लिया और पूरी ताक़त से मेरे मुँह मे अपने लिंग से धक्के देने लगे. ताक़त चाहे कितना भी तेज क्यूँ ना हो मुँह मे इतनी जगह ही नही थी की उनके उस खंभे के समान लिंग को पूरा समा सके. उनका लिंग आधा भी अंदर नही जा पा रहा था. 



उन्हों ने मेरे सिर को उपर की ओर इस तरह मोड़ा की मेरा मुँह और गला एक सीध मे खुले. मैने अपने मुँह को जितना हो सकता था उतना खोल दिया जिससे उनके लिंग को अंदर प्रवेश करने मे कोई दिक्कत नही महसूस हो. उन्हों ने मुस्कुराते हुए अपने खड़े 
मूसल जैसे लिंग को मेरे मुँह मे डालना शुरू किया. एक एक इंच सरकता हुआ उनका लिंग मेरे मुँह मे से होता हुआ गले मे प्रवेश करता जा रहा था और मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे तपते बदन को ठंडक पहुँच रही हो. मेरे बदन की सिहरन शांत होती जा रही थी. 

आज सुबह से मेरा ये छठा संभोग हो रहा था. अब मेरा एक एक अंग दर्द करने लगा था. दिमाग़ सुन्न हो चुक्का था अब सिर्फ़ लंड और चूत के सिवा मुझे कुच्छ भी याद नही रहा था. 

मैं उनके जोरदार धक्कों से बुरी तरह हिल रही थी. मेरी जीभ दर्द से तालू से चिपक गयी थी. उनके काफ़ी ज़ोर लगाने के बाद भी उनका लिंग मेरे गले के अंदर नही उतर पा रहा था. उन्हों ने मुझे अपनी बाहों मे किसी बच्चे की तरह उठाया और दीवार के पास ज़मीन पर बिठा दिया. इस पोज़िशन मे दीवार का सहारा लेकर वापस मेरे 
मुँह मे अपने लिंग से हमला बोल दिया. इस अवस्था मे मेरा सिर दीवार से सटा होने के कारण हट नही पा रहा था और उनको अपना पूरा ज़ोर लगाने की आज़ादी मिल गयी थी. हर धक्के के साथ भाड़ भाड़ करके मेरा सिर दीवार से भीड़ रहा था. 



ऐसा लग रहा था मानो आज उनका वो खंभे की तरह तना हुआ लिंग मेरे गले को चीर कर रख देगा. मगर धीरे धीरे मैं उनके धक्कों की अभ्यस्त हो गयी. हर धक्के के साथ मेरा सिर भाड़ से दीवार से बार बार टकराने की वजह से अब दुखने लगा था. 



जब वो अपने लिंग को बाहर खींचते तो मेरा सिर उनके साथ ही आगे बढ़ जाता. कोई पंद्रह मिनिट तक इस तरह मेरे मुँह को चोदने के बाद उन्हों ने अपना लिंग 
बाहर निकाला. अब वापस मेरे स्तनो को पकड़ कर उनके बीच अपना लिंग रख कर एक तरह से मेरे स्तनो को चोदने लगे. मैं अपने दोनो स्तनो को सख्ती से उनके लिंग पर दबा रखी थी जिससे उन्हे योनि जैसा मज़ा मिले. 



कुच्छ देर तक इस तरह अपना लिंग रगड़ने के बाद उन्हों ने ढेर सारा वीर्य मेरे चेहरे पर और स्तनो पर डाल दिया. मैने अपने चेहरे के नीचे कलश को लगा रखा था उनका वीर्य मेरे चेहरे से टपकता हुया उस छ्होटे से कलश मे इकट्ठा हो रहा था. 



उनका लिंग शिथिल हो जाने के बाद मैने अपनी उंगलियों से अपने स्तनो पर एवं अपने गले 
पर लगे उनके वीर्य को कलश मे डाला. उस वक़्त तो बदन मे एक उत्तेजना ने बाकी सब दर्द भुला रखा था मगर जब उत्तेजना शांत हुई तो मेरा सिर बुरी तरह दुखने लगा. 



मैं उठते हुए एकदम से लड़खड़ाई. उन्हों ने मुझे अपनी बाँहों मे थाम लिया. मेरे पैरों मे अब जान नही बची थी. उन्हों ने मुझे सहारा देकर उठाया. मैं लड़खड़ाते हुए कदमों से ड्रवजे के बाहर इंतेज़ार कर रही रत्ना के पास पहुँची. 

रत्ना ने एक सच्चे मददगार की तरह मुझे जब जब ज़रूरत पड़ी मदद की. मैं उनका सहारा लेकर आगे बढ़ी. मगर मेरे जिस्म ने मेरा साथ नही दिया और धाम से वहीं फर्श पर बैठ गयी.मेरा सिर बुरी तरह घूम रहा था. मुझे चक्कर आ रहा था. 



रत्ना ने जल्दी एक शिष्य को बुला कर मुझे एक तख्त पर लिटाया और उस आदमी से मेरे बदन की काफ़ी देर तक मालिश करवाई. मुझे पीने के लिए उत्तेजकता से भरा हुया पेय दिया. कोई पंद्रह मिनूट बाद मैं कुच्छ नॉर्मल हुई. रत्ना मेरे बदन को सहला रही थी. मैं उनकी बाँहों का सहारा लिए हुए बैठी हुई थी. 

"वापस कुच्छ देर रेस्ट कर लें? पूरा बदन टूट रहा है." मैने उनसे कहा. 

"इतनी जल्दी थक गयी क्या. अभी तो कुच्छ देर पहले रेस्ट किया था. अरे बावरी अभी शाम तक काफ़ी संभोग बाकी है अभी तो आधा ही कंप्लीट हुआ है. कुच्छ और के साथ हो लेते हैं. रेस्ट करने मे इतना समय बर्बाद कर देंगे तो शाम तक सब लोगों को कैसे निबटा पाएगी. चल कुच्छ और लोगों से चुदवाने के बाद कुच्छ देर रेस्ट कर लेना. जैसे जैसे समय आगे बढ़ता रहेगा तेरा जिस्म जवाब देने लगेगा. इसलिए उचित है पहले दौर मे जितना हो सके आगे बढ़ लो फिर रेस्ट कर लेना." रत्ना ने मुझे ढाढ़स दिलाया. मैने चुपचाप उसकी बातों का समर्थन किया. 


इसके बाद हम एक और शिष्य के पास गये. जो काफ़ी कमजोर लग रहा था. दुबला पतला शरीर लेकिन लंबाई काफ़ी अच्छि थी. उनके सारे बाल सफेद हो चुके थे. उम्र साठ-सत्तर के आस पास होनी चाहिए थी. नंगे बदन मे उसकी सारी हड्डियाँ गिनी जा सकती थी. 



रत्ना मुझे उनके सामने छ्चोड़ कर उनके पैरों पर माथा टीकाया. उनकी देखा देखी मैने भी उनके पैर छुये. रत्ना मुझे उनके पास छ्चोड़ कर कमरे से निकल गयी. मैने अपने हाथों मे थामे कलश को आगे कर उनसे प्रणय निवेदन किया. वो मुझे दो बार उपर से नीचे तक काफ़ी गहरी नज़रों से निहारते रहे. मेरे उन्नत उरोज और पतली कमर देख कर उनकी आँखे चमक उठी. 

उन्हों ने अपनी धोती उतारी तो मैने देखा कि उनका लिंग तो तगड़ा है लेकिन उसमे तनाव नही है. सोए हुए अवस्था मे ही लग रहा था कि जब वो खड़ा होगा तब खंबे जैसा हो जाएगा. मेरी आँखें तो उनके हथियार से चिपक सी गयी थी. जब मैने अपनी नज़रें उठाई तो उनकी नज़रों से मिली. 



“ कैसा लगा?” पूछ्ते हुए मुस्कुरा रहे थे. 



मैने बिना कोई जवाब दिए अपनी नज़रें झुका ली. उन्हों ने अपने हाथ से मेरी हथेली को थामा और उसे अपने लिंग पर रखा. मैने उनका इशारा समझ कर उनके लिंग को अपनी हथेली मे थामा और धीरे धीरे सहलाने लगी. 



“ लो इसे पहले खड़ा करो.” उन्हों ने मुझे उसे खड़ा करने को कहा. 



मैने उनके लिंग को अपने हाथ मे लेकर कुच्छ देर तक सहलाया लेकिन कोई असर ना होता देख मैने उनकी ओर देखा. 



“देवी उमर हो गयी है इसलिए इस हथियार को जगाने मे काफ़ी मेहनत करनी पड़ेगी.” उन्हों ने मेरी दुविधा को समझते हुए कहा. 



मैं उनके सामने घुटने के बल बैठ गयी. उनके लिंग को अपनी हथेली मे उठा कर अपने होंठों से च्छुअया. मैने पहले उनके लिंग के टोपे पर अपने होंठ फिराए. फिर अपनी जीभ निकाल कर उनके लिंग के टोपे पर फिराया. फिर अपनी जीभ को उनके लिंग पर फिराते हुए लिंग की जड़ तक ले गयी. लिंग पर अपनी जीभ अच्छि तरह फिराने के बाद उसके नीचे लटक रहे गेंदों को अपनी जीच से चॅटा. मेरी हरकतों से लिंग मे कुच्छ जीवन का संचार हुया. मैं अपनी कोशिशों से खुश होकर उनके लिंग को अपनी मुँह मे भर लिया. मैने उसे मुँह मे लेकर चूसना शुरू किया. उनका लिंग उस वक़्त किसी मरे चूहे सा लिजलिजा लग रहा था. 



मैं उनके अंडकोषों को भी सहलाती और मसल्ति जा रही थी. जब ज़्यादा कोई असर नही हुआ तो 
मैं उठ खड़ी हुई और अपने कपड़े उतार फेंके. मैं बिना किसी शर्म के बिल्कुल नंगी हो गयी. फिर मैने उनको अपने बदन को मसल्ने के लिए कहा. उन्होने मेरी दुखती हुई 
चूचियो को, मेरे भारी भारी नितंबों को और मेरी इतनी ठुकाई झेल चुकी योनि को बुरी तरह मसलना शुरू किया. उन्हों ने अपनी जीभ से मेरी योनि को चॅटा. मेरी जांघों पर और मेरी योनि पर दांतो से काटा भी. मेरे स्तनो पर और निपल पर भी ज़ोर से अपने दाँत गढ़ाए. एक बार तो उन्हों ने मेरे निपल को इतनी ज़ोर से काटा की खून निकल आया. मैं दर्द से चीख रही थी. लेकिन जो मैं चाहती थी बस वो ही नही हो पा रहा था. उनका लिंग अभी भी किसी सड़े बेंगन की तरह लटक रहा था. 
क्रमशः............
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12-10-2018, 02:17 PM,
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -58 

गतान्क से आगे... 


मुझे उस आदमी पर गुस्सा आने लगा. लग रहा था जैसे मैं बेकार ही मेहनत कर रही हूँ. उनमे शायद अब कोई उत्तेजना बाकी नही रही थी. 

काफ़ी कोशिशों के बाद लिंग मे कुच्छ तनाव आया तो मैं वहीं फर्श पर चौपाया बन कर उसे जैसे तैसे अपनी योनि मे लेकर खुद ही धक्के मारने लगी. पूरी तरह खड़ा ना होने की वजह से बार बार उनका लिंग मेरी गीली योनि से फिसल कर बाहर आ जाता था. मुझे लग रहा था कि उस बुड्ढे को एक लात मार कर अपने जिस्म से हटा दूं और कमरे से निकल जाऊ. लेकिन मुझे तो अपना काम निकालना था. मुझे उनका वीर्य चाहिए था. 



जब उनका लिंग योनि मे नही घुस पाया तो मैने उनके लिंग से मुख मैथुन कर वीर्य निकालने की ठान ली. मैं उनके लिंग को वापस अपने मुँह मे लेकर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी. उनके लिंग पर मैं अपने होंठों से और अपनी जीभ से दबाव बना कर रखी थी. वो मेरे बदन को पूरी ताक़त से मसल रहे थे. कुच्छ ही देर मे उन्हों ने अपना पानी छ्चोड़ दिया. जिसे मैने अपने उस कलश मे इकट्ठा कर लिया. 

उनके साथ संभोग कर मेरी आग तो बुझी नही लेकिन उस थोड़े से समय मे उन्हों ने मेरे पूरे बदन को तोड़ मरोड़ कर रख दिया. उनके दाँतों के निशान मेरे स्तनों पर और मेरी जांघों पर चमक रहे थे. 

मैं उठ कर बाहर आई. दो ही संभोग ने मुझे इतना थका दिया था कि मैं खड़ी भी ठीक से नही हो पा रही थी. अब और मुझमे हिम्मत नही थी कि किसी और के पास जाऊ. सुबह से मैं सात लोगों से संभोग कर चुकी थी. कुच्छ लोगों ने तो मुझे बुरी तरह तोड़ कर रख दिया था. एक एक अंग फोड़े की तरह दुख रहा था. मैं बाहर निकल कर लड़खड़ा गयी. मैने दीवार का सहारा ले लिया. रत्ना कुच्छ ही दूर बैठी थी. वो दौड़ कर मेरे पास आइ. 

मैने रत्ना से अपनी अवस्था के बारे मे बताया और अगले संभोगो के लिए जाने मे अपनी असमर्थता जताई. उसने इशारा किया तो दो सेवक मुझे दोनो ओर से सहारा देते हुए एक कमरे मे ले गये. वहाँ खूबसूरत सा एक बिस्तर लगा हुआ था. रत्ना मेरे लिए तरह 
तरह का नाश्ता लेकर आ गयी. मैने नाश्ता करके वापस वही शरबत पिया जिससे जिस्मानी भूख बढ़ जाती है. रत्ना ने मुझे बिस्तर पर लिटा कर एक चादर से मेरे नंग बदन को ढक दिया. वो मुझे लिटा कर कमरे से बाहर निकल गयी. मैं वापस गहरी नींद मे डूब गयी. सपने मे भी मैं अपने आप को किसी के द्वारा भोगे जाते हुए ही देख रही थी. 

काफ़ी देर बाद रत्ना जी के पुकारे जाने पर ही नींद खुली. एक नींद लेने के बाद शरीर मे काफ़ी ताज़गी आ गयी थी. मैं सुबह से उन सात शिष्यों से संभोग करते हुए करीब बारह बार स्खलित हुई थी. किसी नॉर्मल महिला के लिए ये एक काफ़ी मुश्किल बात है. 



“ रत्ना मैं नहाना चाहती हूँ जिससे जिस्म मे कुच्छ ताज़गी आए.” मैने उससे कहा. 



“ नही अभी नही. तुम अपना कार्य पूरा होने से पहले नहा नही सकती. इससे हम जिस कार्य के लिए निकले हैं उस कार्य मे विघ्न पैदा हो जाएगा.” रत्ना ने मुझे साफ साफ मना कर दिया. 

रत्ना ने मुझे वापस उसी वस्त्र को पहनाया. मेरे पूरे बदन पर और उन वस्त्रों पर वीर्य के धब्बे और पपड़ियाँ दिख रही थी. मेरे बाल बिखरे हुए थे. वो भी वीर्य से संकर लाटो जैसे हो गये थे. मुझे पूरा कार्यक्रम ख़त्म होने से पहले अपने शरीर को सॉफ करने या नहाने की इजाज़त नही मिली थी. मुझे पूरे दिन उसी तरह रहना 
था. यहाँ तक की चेहरा भी साफ नही कर सकती थी. 



रत्ना मुझे लेकर अगले कमरे तक गयी. कमरे मे घुसने से पहले ही उसने मुझे चेता दिया. 

" दिशा अब जिस के पास जा रही हो ये स्वामीजी कुच्छ अलग हैं औरों से. इन्हे योनि से ज़्यादा गुदा का शौक है. इस लिए इनसे मिलने से पहले अपने गुदा मे क्रीम लगा लेना. नही तो हालत खराब हो जाएगी. इनका लिंग लंबा और पतला है. जब अंदर घुसता है तो लगता है मानो पेट फाड़ कर ही निकलेगा." 

"दीदी क्रीम लाकर दो ना. आप ही लगा दो." मैने कहा. 

"अंदर सब मिल जाएगा. उनसे ही माँग लेना. जो इस तरह का शौक रखते हैं वो इनके सारे साधन भी साथ रखते हैं." रत्ना ने कहा. 

मैं चुप चाप दरवाजा खोल कर अंदर गयी. सामने ज़मीन पर एक शिष्य बैठे थे. उनकी आँखें बंद थी और वो शायद ध्यान मे लीन थे. मेरे अंदर आने की आवाज़ से उन्हों ने आँख खोल कर मुझे देखा. फिर आँखें बंद कर ली मैं उनके सामने आकर बैठ गयी. 



कुच्छ देर तक चुप चाप हाथ जोड़े बैठी रही फिर मेने अपने बदन पर ओढ़े हुए वस्त्र को हटा दिया. मैं अब उनके सामने पूरी तरह नग्न बैठ गयी. मैने इधर उधर अपनी नज़रें दौड़ाई क्रीम की शीशी के लिए मगर कुच्छ नज़र नही आया. 



तभी उन्हों ने दोबारा आँखें खोली और मेरे बदन से उनकी नज़रें चिपक कर रह गयी. मैने आगे की ओर झुक कर उनके चरण च्छुए. उन्हों ने मेरे नग्न कंधों पर अपने हाथों को रखा और फिर उन्हे सरकाते हुए मेरे स्तनो को च्छुआ. एक बार उन्हे मसल कर मेरे दोनो निपल्स को अपने हाथों से पकड़ कर उमेथ्ने लगे. मेरे मुँह से उत्तेजना और दर्द से मिली जुली "आआआहह" निकलने लगी. 



उन्हों ने अचानक मेरे दोनो निपल्स को अपने मुत्ठियों मे भर कर अपनी ओर एक झटके से खींचा. मैं घुटने के बल चल कर उनके समीप आ गयी. 

" आआहह स्वामीजी म्‍म्म्मममम बस….बस….आज माइईइ बहुत थक गयी 
हूँ. इनपर आज बहुत अत्याचाार हो चुक्काआअ हाीइ. मेरे दोनो स्तन फोड़े की तरह दुख रहीए हाऐं. प्लीईईसए अभी भी काफ़ी लोगों के पास जाना है" मैने कहा. 



“ देवी फिर मेरे पास आने की ज़रूरत ही क्या थी.” उनकी आवाज़ मे हल्की सी नाराज़गी झलक रही थी. 



“ आअप के लिंग का प्रसाद लेने आइ हूऊं. आप का प्रसाद मुझे देदेन प्रभुऊऊ.” मैने अपने हाथ मे पकड़े कलश को उपर उठाया. 



“ देवी किसी चीज़ को पाने के लिए मेहनत तो करनी पड़ती है. कुच्छ समर्पित करना पड़ता है तो कुच्छ बर्दास्त भी करना पड़ता है. इन्सब का असर हमारे जिस्म पर पड़ता ही पड़ता है. बिना मेहनत किए तो आदमी के मुँह तक रोटी ही नही पहुँचती. देवी जितना तुम्हारा जिस्म टूटेगा उतना ही तुम्हे मज़ा आएगा.” उन्हों ने मुझे कहा. 



“ जी गुरुदेव….मैं तो बस आपको इनपर थोड़ा प्यार दिखाने के लिए ही याचना कर रही थी.” मैने अपने सिर को उनके कदमों पर झुकाते हुए कहा. 

"चलो वहाँ तिपाई पर रखी तेल की शीशी ले आओ." मैं उठी और तिपाई तक गयी तेल की शीशी लाने के लिए.जब मैं जा रही थी वो बड़ी गहरी नज़रों से मेरे नितंबों की थिरकन का मज़ा ले रहे थे. 



“ अद्भुत देवी…अद्भुत.” मैने अपनी गर्देन घुमा कर उन्हे देखा,” देवी तुम्हारे बदन का गठन बड़ा ही उत्तेजक है. जितनी तुम सुंदर हो तुम्हारे शरीर की बनावट उतनी ही आकर्षक है. लगता है देवताओं ने बड़ी तसल्ली से गढ़ा है तुम्हारा जिस्म.” 



मैने मुस्कुरा कर उन्हे देखा और ला कर तेल की शीशी लाकर उन्हे दी. 

" देवी अब तुम किसी कुतिया की तरह अपने हाथों और पैरों के बल झुक जाओ. मेरा लिंग तुम बिना चिकनाई के नही झेल पओगि. तुम्हारी योनि की जगह मैं तुम्हारे गुदा मे प्रवेश करना चाहता हूँ. तुम्हे कोई आपत्ति तो नही" उन्हों ने कहा.

उन्हों ने जैसा कहा मैने वैसा ही किया. मैने देखा की उन्हो ने तेल की शीशी से कुच्छ तेल अपनी हथेली पर लिया और एक उंगली उसमे डुबो कर मेरे गुदा द्वार पर फेरने लगे. 



मैं पहले से ही इस हमले के लिए तैयार थी. पहले एक फिर दो उंगलियाँ मेरे गुदा द्वार से प्रवेश कर अंदर तक की दीवारो पर तेल मालिश करने लगी. ऐसा करते समय मुझे 
दर्द हो रहा था. मैं बार बार चिहुनक कर कभी अपनी नितंबों को भींच लेती तो कभी इधर उधर सरक जाती तो वो ज़बरदस्ती मुझे वापस उसी पोज़िशन मे कर देते. 



वो मेरी परेशानी को भाँप गये और मेरे ध्यान को वहाँ से हटाने के लिए वो ज़ोर ज़ोर से मेरे स्तनो को मसल्ने लगे. उनके मसल्ने से स्तनो मे ज़्यादा दर्द होने लगा इसलिए मेरा ध्यान स्वतः ही गुदा से हट कर स्तनो पर आ गया. 



मेरे गुदा के बाहर और अंदर काफ़ी देर तक तेल लगाने के बाद उन्हों ने अपने बदन से 
धोती को हटा दी. उनका तना हुआ लिंग देख कर मेरा कलेजा छलक गया. उनका लिंग दस इंच के करीब लंबा था. ये किसी आदमी का नही बल्कि किसी गधे के लिंग जितना मोटा था. ये लिंग जब मेरे गुदा मे घुसेगा तो सब कुच्छ चीरता हुआ पेट तक चला जाएगा. 

" स्वामी…आपका तो काफ़ी बड़ा है. मैं इसे नही ले पाउन्गी. ये मेरी अंतदियों को चीर कर रख देगा. एम्म मुझे घबराहट हो रही है." मैने डरते हुए उनसे कहा. 

"ऐसा कुच्छ भी नही होगा देवी तुम डरो नही. मैं अब तक कई महिलाओं को संतुष्ट कर चुका हूँ. शुरू मे हो सकता है कुच्छ दर्द हो लेकिन बहुत जल्दी तुम मेरे लिंग की अभ्यस्त हो जाओगी." कहते हुए वो पीछे से मेरे दोनो घुटनो के बीच आ गये. 



सामने लगे बड़े से शीशे मे मुझे हम दोनो का अक्स दिख रहा था. वो भी शीशे मे मेरे नग्न बदन को मेरे झूलते हुए स्तनो को और मेरे खुले हुए 
होंठों को देख कर मुस्कुरा रहे थे. 



उन्हों ने ढेर सारा तेल लेकर अपने उस मोटे लिंग पर लगाया और अपने हाथों से मेरे नितंबों को फैला कर मेरे गुदा द्वार पर अपने लिंग को सताया. मैं अपने सिर को झुका कर आने वाले दर्द का इंतेज़ार कर रही थी. उन्हों ने अपने लिंग से एक ज़ोर का धक्का मारा और मैं दर्द से बिलबिला उठी," उवूऊयियैआइयैयीयीयियी म्‍म्म्माआ" 



लेकिन उनका लिंग एक मिलीमेटेर भी अंदर नही घुस पाया. मेरे गुदा द्वार का मुँह इतना संकरा था कि उस मोटे लंड को कहाँ से ले पाता. उन्हों ने वापस मेरे नतंबों को फैला कर एक और ज़ोर का धक्का मारा. ऐसा लगा मानो मेरी गुदा आज फट जाएगी. लेकिन फिर भी उनका लिंग अंदर नही गया. दर्द इतना ज़्यादा हुआ कि मैं अपनी चीख नही रोक सकी ऐसा लग रहा था मानो कोई मेरे गुदा मे डंडा करना चाहता हो. 

" माआआआआआआअ" मैं ज़ोर से चीख उठी. 

"तुम्हारा गुदा बहुत टाइट है देवी." उन्हों ने दोबारा तेल लेकर मेरे गुदा के अंदर तक लगाया. मेरी आँखों से दर्द से आँसू निकल आए थे. वो लुढ़क कर मेरे गालो तक आ रहे थे. इस बार मैने अपने दोनो नितंबों को दोनो हाथों से पकड़ कर और चौड़ा किया और उन्हों ने अपने हाथों से अपने लिंग को मेरे छेद पर लगा कर एक ज़ोर का धक्का दिया. 



मैं दर्द से चीखने लगी, " उईईईईईईईईईईइमाआ आअहह मैं मर गइईई" कहते हुए मैं मुँह के बल ज़मीन पर गिरगई क्योंकि मेरे हाथ नितंबों पर थे. मैने जल्दी से अपने हाथ वहाँ से हटा कर ज़मीन पर टिकाए. 

उनके लिंग का सूपड़ा मेरे गुदा मे धँस चुका था. मेरी आँखें दर्द से बाहर को उबल आ रही थी. मैं घबरा कर उठना चाहती थी लेकिन वो मुझसे काफ़ी ज़्यादा बलशाली थे. उन्हों ने मुझे दबोचकर हिलने तक नही दिया. इतना लंबा लिंग मैने कभी अपने गुदा मे नही लिया था. ऐसा लग रहा था जैसे उनका लिंग पेट को फाड़ता हुआ गले तक 
पहुँच जाएगा. मेरे गुदा मे उनके लिंग का अभी तक सिर्फ़ टोपा ही गया था. जब पूरा लिंग जाता तो मेरी क्या हालत होती. 

"आआहह स्वामीजीीइईईईई…….स्वामीजी…….प्लीईईसए……..ईसीईए बहाआअर निकऊऊओ" मैं दर्द से छॅट्पाटा रही थी. वो पूरी ताक़त से अपने लिंग को मेरे गुदा मे दबा रखे थे. वो अपने उस लंबे लंड के टोपे को किसी भी कीमत पर बाहर निकालने को तैयार नही थे. उन्हों ने मेरी कमर को ऐसे पकड़ रखा था कि मैं अपनी कमर को हिला भी नही पा रही थी. 

क्रमशः............ 
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