Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 02:19 PM,
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -59 

गतान्क से आगे... 

मैं चीखे जा रही थी. मगर उनपर कोई असर नही हो रहा था. उन्हो ने अपने लिंग को कुच्छ बाहर खींचा तो लगा कि शायद उनको मुझ पर रहम आ गया हो. मैं उनके लिंग के बाहर निकलने का इंतेज़ार कर रही थी की उन्हो ने एक और ज़ोर का धक्का मारा और उनका लिंग अब आधे के करीब मेरे गुदा मे समा गया. मैं तड़प कर उठने लगी मगर हिल भी नही सकी. उनको मेरे दर्द मे मज़ा आ रहा था. वो मेरी चीखें सुन कर हंस रहे थे. 

"ऊओमााअ……..बचाऊ कोइईईई……मैईईइ माआर जौउुउऊनगिइिईईईई……..हे प्रभुऊऊउ बचाऊ…." मैं दर्द से रोने लगी. मई दर्द से बुरी तरह छॅट्पाटा रही थी. वे अब मुझे पूचकार कर चुप करने की कोशिश करने लगे. मुझे इस तरह रोता देख वो एक बार घबरा गये थे. 

" देवी……देवी थोड़ा धीरज रखो. बस अब थोड़ा सा ही बचा है. एक बार अंदर घुस गया तो फिर दर्द नही होगा. अपने शरीर को ढीला छ्चोड़ो देवी." वो मेरे सिर पर और मेरे गाल्लों पर हाथ फेर रहे थे. 

" नही स्वामी मैं नही झेल पाउन्गी आपको.. मेरा गुदा फट जाएगा. दर्द से मेरा बुरा हाल है स्वामी मुझ पर रहम करो." मैने गिड़गिदते हुए कहा. 

" थोड़ा और सबर करो देवी कुच्छ नही होगा. तुम बेवजह घबरा रही हो." कहकर उन्हो ने वापस अपने लिंग को बाहर की ओर खींचा. सूपदे के अलावा पूरे लिंग को बाहर निकाल कर इस बार बहुत धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे. एक एक मिल्लिमेटेर करके सरकता हुआ लिंग मेरे गुदा की दीवारो को चीरता हुआ अंदर प्रवेश कर रहा था. धीरे धीरेकब तीन चौथाई मेरे गुदा मे समा गया मुझे पता ही नही चला. मैने अपना एक हाथ पीछे ले जाकर उनके लंड को टटोला तब जाकर पता चला. 



वो उस अवस्था मे एक मिनिट रुके फिर अपने लिंग को वापस बाहर खींचा. अब दर्द कुच्छ कम हुया तो मैं भी मज़े लेने लगी मगर उन्हे तो मुझे दर्द देने मे ही मज़ा आ रहा था. अगली बार वापस उन्हों ने पूरी ताक़त को अपने लिंग पर झोंक दिया और एक जोरदार धक्का मेरे गुदा मे लगाया. फिर एक तेज दर्द की लहर पूरे जिस्म को कन्पाती चलीगाई. 

" ऊऊऊऊओमााआआअ……ऊऊऊफफफफफफफफ्फ़……आआआआअहह" मेरे मुँह से निकला और मैं ज़मीन पर गिर पड़ी. मेरी गुदा मे उनका लिंग इस तरह फँस गया था कि मेरे गिरते ही उनका लिंग बाहर नही निकला बल्कि वो भी मेरे उपर गिरते चले गये. गिरने से उनके लिंग का जो थोड़ा बहुत हिस्सा अंदर जाने से रह गया था वो पूरा अंदर तक घुस गया. 



“ ऊऊहह…स्वाआअमी…….आआप बाआहूत निष्ठुर हो. मेरिइइ जाअँ निकााल डियी आपनईए………उईईईईईई म्‍म्म्ममाआअ……..” मैं वापस रोने लगी. 

" देखो अब पूरा घुस गया है अब थोड़ी ही देर मे सब कुच्छ अच्च्छा लगने लगेगा." उन्हो ने वापस उठते हुए मुझे भी अपने साथ उठाकर पहले वाली पोज़िशन मे किया. 



कुच्छ देर तक उन्हो ने अपने लिंग को पूरा मेरी गंद के अंदर फँसा रहने दिया. जब दर्द कुच्छ कूम हुआ तो पहले धीरे धीरे उन्हों ने अपने लिंग को हरकत देना शुरू किया. धीरे धीरे दर्द कम होता गया. कुच्छ ही देर मे वो मेरी गुदा मे ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगे. हर धक्के के साथ अपने लिंग को लगभग पूरा बाहर निकालते और वापस पूरा अंदर थेल देते.

मैं उनके हर धक्के के साथ सिसक उठती. शायद मेरे गुदा के अंदर की दीवार छिल गयी थी इसलिए हर धक्के के साथ हल्का सा दर्द हो रहा था. ऐसा लग रहा था उनका डंडा आज मेरी अंतदियों का कचूमर बना कर छ्चोड़ेगा. 



गांद मार मार कर उन्हों ने मेरा दम ही निकाल दिया. मैं भी उत्तेजना मे अपने बदन को नीचे पसार कर सिर्फ़ अपने कमर को उँचा कर रखी थी. अपने एक हाथ से मैं अपनी योनि को मसल रही थी. जिससे दो बार रस की धारा बह कर मेरे जांघों को चिपचिपा कर चुकी थी. 



काफ़ी देर तक इसी तरह मुझे ठोकने के बाद उन्हों ने अपने लिंग को बाहर निकाला. 



“ ले..ले…संभाल मेरे वीर्य को….मेराअ निकलने वलाअ हाऐी…….अयाया.” वो अपने लिंग को थामे बड़बड़ाने लगे थे. 



मैं लपक कर कलश को उनके लिंग के सामने पकड़ कर अपने हाथों से उनके लिंग को झटके देने लगी. कुच्छ ही देर मे उनके वीर्य की एक तेज धार निकली जिसे मैने उस कलश मे इकट्ठा कर लिया. उनके ढेर सारे वीर्य से वो लोटा तकरीबन भर गया था. सारा वीर्य निकल जाने के बाद उनका लिंग वापस लटक कर चूहे जैसा हो गया. 



मैं उठी और अपने वस्त्र को किसी तरह बदन पर लपेट कर बाहर निकली. पूरा बदन दर्द कर रहा था. गुदा तो लग रहा था की फट गयी है. मैं लड़खड़ते हुए बाहर निकली और रत्ना जी की बाहों मे ढेर हो गयी. उन्हों ने मुझे सांत्वना देते हुए मुझे सम्हाला. मेरे बदन को सहारा देते हुए वापस उस कमरे तक ले गयी जो मुझे रुकने के लिए दिया हुआ था. अब हर संभोग के बाद मुझे आराम की ज़रूरत पड़ रही थी. बदन सुबह से हो रही चुदाई से टूटने लगा था. 

रत्ना को पहले से ही मालूम था इसलिए सारा इंटेज़ाम पहले से ही कर रखी थी.सारा समान पहले से ही मौजूद था. एक कटोरी मे पानी गर्म हो रहा था. उसमे किसी दवाई की दो बूँदें अपनी हथेली पर डाल कर उन्हों ने मेरे गुदा की सिकाई की. इससे मुझे बहुत आराम मिला. कुच्छ देर मे जब दर्द कम हुआ तो मैं अपने अगले गेम के लिए तैयार थी. 



हमने अगले किसी संभोग से पहले दोपहर का खाना खाया और फिर मैने दो घंटे की नींद ली अब मैं वापस तरोताजा हो गयी थी. अब दो ही शिष्य बचे थे. शाम हो चली थी सूरज डूबने से पहले मुझे अपनी चुदाई पूरी करनी थी. 



मेरे जागने पर रत्ना ने मुझे इसबार शरबत की जगह कुच्छ खाने को दिया जिससे इतनी थकान मे भी मेरे बदन मे चिंगारिया भरने लगी. मेरी योनि मे तेज जलन होने लगी. मेरा बदन किसी के लंड से जबरदस्त चुदाई को तड़पने लगा. 

रत्ना मुझे लेकर अगले कमरे मे पहुँची तो कमरा बाहर से बंद था. पूच्छने पर पता नही चल पाया कि वो इस वक़्त कहाँ मिलेंगे. हम वहीं कमरे के बाहर सत्यानंद जी का इंतेज़ार करने लगे. 


कुच्छ देर इंतेज़ार करने के बाद भी जब वो नही आए तो रत्ना ने कहा, "समय कम है चलो अगले स्वामीजी के पास पहले हो लेते हैं. उनसे निबट कर हम वापस यहाँ आ जाएँगे.” 



हम कुच्छ दूर मे बने एक कमरे तक गये. वहाँ दरवाजा खटखटाया तो एक जवान काफ़ी बालिश्ट साधु ने दरवाजा खोला. मुझे बाहर देख कर उन्हों ने बिना कुच्छ बोले सिर्फ़ सिर हिलाया ये जानने के लिए कि मैं कौन हूँ. मैने भी बिना कुच्छ बोले अपने हाथों मे पकड़े कलश को उपर किया. वो कलश को देख कर सब समझ गये. पल भर को मेरे बदन को उपर से नीचे तक निहारा. जिसमे उनकी आँखें मेरे स्तनो के उभार पर एवं मेरे टाँगों के जोड़ पर दो सेकेंड रुकी और फिर आगे बढ़ गयी. उन्हों ने मुझे अच्छि तरह से नाप तौल कर स्वीकार किया. 



मुझे निहारने के बाद उन्होने बिना कुच्छ कहे दरवाजे से एक ओर हटकर मुझे अंदर आने को रास्ता दिया. कमरे मे प्रवेश करने के लिए अब भी रास्ता पूरा नही था. वो इस तरह खड़े थे की बिना उनके जिस्म से अपने जिस्म को रगडे मैं अंदर नही घुस सकती थी. 



मैने उनकी बगल से उनकी तरफ मुँह कर कमरे मे प्रवेश किया. इस कोशिश मे मेरे दोनो उन्नत स्तन उनकी चौड़ी छाती पर अच्छि तरह से रगड़ खा गये. अंदर मैने देखा कि एक और शिष्य ज़मीन पर बैठे हुए हैं. मुझे अंदर आते देख वो चौंक उठे. 

" सत्यानंद..ये देवी गुरु महाराज का महा प्रसाद ग्रहण करने आई है. इसलिए ये हम सब से पहले हमारा प्रसाद इकट्ठा कर रही है. मेरे ख्याल से हम दोनो ही बचे हैं. क्यों देवी बाकी सबके साथ तन का मेल तो हो चुक्का है ना?" मेरे साथ वाले शिष्य ने अंदर बैठे अपने साथी से कहा. 



“ ज्ज्ज…जीि” मैं सिर्फ़ इतना ही कह पाई. 

" बहुत खूबसूरत ….अद्भुत सोन्दर्य की देवी है. कोई स्वर्ग से उतरी अप्सरा लग रही है. आओ देवी सामने आओ." मैं चलते हुए उनके पास आई. मेरे पीछे जो शिष्या थे वो भी जाकर उनकी बगल मे बैठ गये. 

" तेरे बदन मे कितनी सुंदरता, कितनी कामुकता, कितनी आग भरी हुई है. देवी अपने सोन्दर्य को बेपर्दा कर दो. हम भी तो दर्शन करें तुम्हरे इस अदभुत योवन के.” 



मैं बिना कुच्छ कहे उनके सामने चुपचाप खड़ी रही. 



“मैं हूँ सत्यानंद और ये राजेश्वरणद. तुम शायद पहले मेरे कमरे मे गयी होगी. मुझसे मिलने के बाद इनके पास आना था. इनका नंबर इस लिस्ट मे आख़िरी है. चलो अच्च्छा हुआ दोनो एक साथ ही मिल गये. अब एक साथ दोनो से प्रसाद ग्रहण कर लोगि. और तुझे यहाँ वहाँ भटकना नही पड़ेगा." सत्यानंद ने कहा. 



“ चलो अपने बदन के वस्त्र अलग कर दो.” राजेश्वरनंद ने कहा. 



मैने अपने बदन पर पहनी सारी को अलग कर ज़मीन पर गिर जाने दिया. बदन पर सिर्फ़ एक ही वस्त्र होने के कारण अब मैं उनके सामने निवस्त्र खड़ी थी. 

"म्‍म्म्ममम आती सुंदर. क्या स्तन हैं मानो हिमालय की चोटियाँ. और नितंब….पीछे घूमो देवी” सत्या जी ने कहा. मैं उनका कहा मान कर अपनी जगह पर पीछे की ओर घूम गयी. मेरी ढालाव दार पीठ और उन्नत नितंबों को देख कर दोनो की जीभों मे पानी आ गया. 



“ वाआह…क्या कटाव हैं. नितंब तो जैसे मानो तानपूरा हों. अब तुम्हारी योनि को भी तो देखें कैसा खजाना छिपा रखा है दोनो जांघों के बीच. दोनो पैरों को चौड़ा करो देवी" राजेश ने कहा. 

मैने बिना कुच्छ कहे अपने दोनो पैरों को फैला दिया मेरी काले जंगल से घिरी योनि कुछ कुछ सामने से दिखाई पड़ने लगी. 

" वाआह क्या अद्भुत सुंदरता की मूरत हो तुम. अपने हाथों को छत की ओर उठा दो और अपने रेशमी बालों को अपने स्तनो के उपर से हटा कर पीठ की ओर कर दो." उन्हों ने जैसा कहा मैने वैसा ही किया. मैं दो मर्दों के सामने अपने हाथों को उपर किए और अपनी टाँगों को चौड़ी किए अपनी सुंदरता की नुमाइश कर रही थी. 

“ देवी अब झुक कर अपने पंजों को अपनी उंगलियों से छुओ.” उन्हों ने कहा. मैने अपनी टाँगें घुटनो से मोड बगैर झुक कर अपनी उंगलिओ से अपने पैरों के पंजों को छुआ. ऐसा करने से मेरे नितंब आसमान की ओर मुँह करके खड़े हो गये. एक साथ दोनो छेद उनके सामने थे. मेरे स्तन पके हुए आम की तरह मेरे सीने से झूल रहे थे. वो मेरी सुंदरता को दूर से ही निहारते रहे. 


" एम्म्म ऐसे नही. अपनी योनि को उभार कर तो दिखाओ.धनुष आसान जानती हो?" एक ने पूछा. 

"हां" मैने बुदबुदते हुए अपने सिर को हिलाया. 

" वहाँ ज़मीन पर लेट जाओ और हमारे सामने अपनी योनि खोल कर दिखाओ" मैने देखा दोनो के लंड उत्तेजित हो चुके थे और दोनो अपने अपने खड़े लंड को सहला रहे थे. 

मैं वहीं ज़मीन पर नग्न पीठ के बल लेट गयी और अपने पैरों को एवं अपने हाथों को मोड़ कर अपनी कमर को ज़मीन से उठाया. मेरे पैर कुच्छ खुले हुए थे. मेरा पूरा शरीर धनुष की तरह बेंड हो गया और मेरी चिकनी योनि दोनो की आँखों के सामने खुल गयी. दोनो के मुँह से उत्तेजना भरी सिसकारियाँ निकलने लगी. 

क्रमशः............
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12-10-2018, 02:35 PM,
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -60 

गतान्क से आगे... 
मैं उसी अवस्था मे कुच्छ देर तक रही. एक ने आगे बढ़कर अपनी उंगलियों से मेरी योनि की फांकों को अलग किया. अंदर की लाल सुरंग उनके सामने लपलपा रही थी. दोनो अपने अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए उन्हे निमंत्रण देती मेरी योनि को देख रहे थे. दोनो ने एक एक कर मेरी योनि को चटा और फिर अपनी अपनी जीभ कुच्छ देर तक मेरी योनि के अंदर भी घुमा दिए. 

" अद्भुत नशीला स्वाद है तुम्हारी योनि का. इसीलिए तो आज सब नशे मे चूर हो गये हैं. अब तुम उठ जाओ देवी.” एक ने कहा. मैं लेट गयी. फिर उठ कर अपनी जगह पर बैठ गयी. दोनो एक खाट पर बैठे थे 



“ इधर आओ हमारे पास. ना ना उठो मत घुटनो के बल आगे आओ.” दूसरे ने कहा. मैं उसके कहे अनुसार अपने घुटने और हाथों के बल चलती हुई उनके पास आई. मैं उनके सामने घुटने के बल अपना सिर झुकाए हुए बैठी थी. 



“ देवी दिशा आगे आओ और हम दोनो के लिंग को अपने सिर से च्छुआ कर आशीर्वाद लो" मैं उठकर घुटने के बल बैठी थी. 



दोनो मेरे सामने तखत पर पैर लटका कर बैठे हुए थे धोती के बाहर से ही उनके लिंग के उभार नज़र आ रहे थे. मैने पहले सत्यानंद जी के लिंग को धोती से बाहर निकाला. फिर अपने सिर से उसे च्छुअया. उनका लिंग एकदम तन कर खड़ा था. उन्हों ने मेरे सिर पर अपने लिंग के सूपदे को रख कर मुझे आशीर्वाद दिया. फिर यही क्रिया मैने दूसरे के साथ भी दोहराई. 

उसके बाद दोनो ने मुझे उठा कर अपने बीच बिठा लया. दोनो मेरे एक एक स्तन को लेकर चूसने और मसल्ने लगे. मेरे दोनो हाथों मे दोनो के लिंग थे जिसे मैं सहला रही थी. दोनो मेरे निपल्स को अपनी अपनी जीभ से सहला रहे थे. 



“ गुरुदेव जब तुम्हारी कोख भरेंगे तब ये तरबूज भी रसीले हो जाएँगे. इनसे जब दूध निकलेगा तब उस पर हमारा भी हक़ होगा.” एक ने कहा. 



“ हमे अपना स्तन पान करओगि ना?” दूसरे ने पूछा. मैं क्या कहती मुस्कुरा कर चुप ही रही. तभी एक ने मेरी टाँगो को कमर से पकड़ कर उठाया और उसी हालत मे मुझे तखत पर लिटा दिया. दूसरा तब अपनी धोती को बदन से हटा रहा था. 



सत्या ने मेरी टाँगों को मोड़ कर मेरे नितंबों से लगा दिया. फिर घुटनो को पकड़ कर मेरी जांघों को अलग कर दिया. मेरी योनि खुल कर सामने आ गयी. उन्हों ने अपने होंठ मेरी योनि पर लगा दिए. मैने खुद अपनी उंगलियों से अपनी योनि की फांके अलग कर उन्हे आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया. उनकी जीभ मेरी योनि मे घुस कर आगे पीछे हो रही थी. मैं उत्तेजना मे अपनी कमर को तखत से उपर उठा दी. मैने अपने दोनो हाथों से सत्या के सिर को पकड़ कर अपनी योनि पर दाब दिया. 



जब वो इस तरह मेरी योनि को चाट रहे थे तब राजेश मेरे सिर के पास आकर अपने खड़े लिंग को मेरे होंठों के उपर फिराने लगा. मैने नज़रें उठा कर उसको देखा तो वो मुझे अपने लिंग को मुँह मे लेने के लिए अनुरोध कर रहा था. मैने बिना किसी झिझक के अपना मुँह खोल कर उसे अपने लिंग को अंदर करने का आमंत्रण दिया. 



उसका लिंग अब मेरे मुँह के अंदर प्रवेश कर चुक्का था. उसने मेरे सिर को अपने दोनो हाथों से थाम कर बिस्तर से उपर उठा कर अपनेर लिंग पर दाब दिया. अब वो मेरे मुँह मे धक्के मारने लगा. अब एक लिंग मेरे मुँह मे धक्के मार रहा था तो दूसरे के मुँह पर मैं धक्के मार रही थी. बहुत जल्दी ही मेरे बदन से चिंगारियाँ फूटने लगी और मैं स्खलित हो गयी. 



स्खलन के वक़्त उत्तेजना मे मैने दूसरे आदमी के लिंग पर अपने दाँत गढ़ा दिए और उनके लिंग को कुच्छ इस तरह अपनी जीभ से चूसा की वो मेरे बालों मे अपनी उंगलियाँ फँसा कर अपने लिंग को मेरे मुँह मे ठूँसने लगे मगर मैने उनका आशय समझ कर अपने दिल की बजाय दिमाग़ से काम लेते हुए अपने सिर को बाहर की ओर खींचा. जैसे ही उनका लिंग मेरे गले से बाहर निकल कर मेरे मुँह मे आया उनके लिंग से एक ज़ोर दार पिचकारी के रूप मे वीर्य निकल कर मेरे मुँह मे भरने लगा. मेरे मुँह मे मैं जितना इकट्ठा कर सकती थी उतना मैने इकट्ठा कर लिया और उसके बाद उनका वीर्य मेरे होंठों के कोरों से छलक छलक कर मेरे गाल्लों से होते हुए बालों मे समाने लगा. जब उनके लंड से सारा वीर्य निकल गया तो मैने “ उम्म्म्म..उम्म्म” की आवाज़ निकाल कर उन्हे इशारा किया. वो मेरी बात समझ कर जल्दी से उस लोटे को मेरे होंठों के पास ले आए. मैने अपने मुँह मे इकट्ठा किए वीर्य को पहले मुँह खोल कर उनको दिखाया फिर सारा उस लोटे मे उलीच दिया. 



अब वो खल्लास हो कर वहीं बैठ कर हाँफने लगे. सत्या अब मेरी योनि को चूस्ता चाट्ता हुया मेर उपर लेट गया. उसने भी मेरी योनि से निकला सारा वीर्य चाट चट कर सॉफ कर दिया था. अब वो मेरे जिस्म के ऊपर लेट कर मेरी योनि को दोनो हाथों से चौड़ा कर के उसे बुरी तरह से चाट रहा था. उसका मस्त मोटा लंड मेरे चेहरे के ऊपर ठोकरे मार रहा था. 



मुझसे रहा नही गया और मैने उसके लिंग को पकड़ कर अपने मुँह मे भर लिया. मेरे जबड़े पहले मुख मैथुन से दुख रहे थे मगर मैने उसकी परवाह ना कर उनके लिंग को मुँह मे भर लिया. अब हम 69 पोज़िशन मे एक दूसरे के गुप्तांगों को चूस रहे थे. 



वो मेरे उपर लेट कर मेरे मुँह को मेरी चूत समझ कर धक्के मार रहा था तो मैं उसकी जीभ को ज़्यादा से ज़्यादा अपनी योनि मे लेने के लिए उसकी जीभ को उसका लंड मान कर नीचे से अपनी कमर को उच्छाल रही थी. उसका लंड जड़ तक मेरे मुँह मे घुस जाता तब उसकी गेंदे मेरे नाक को दबा देती. उसके लंड के चारों ओर फैले बाल मेरे नथुनो मे घुस जाते. एक बार तो मैं ज़ोर से छिन्क दी. ऐसा करते वक़्त मेरे दाँत उसके लंड पर गढ़ गये और वो “ अयीई” कर उठा. लेकिन उसकी रफ़्तार कुच्छ ही पल मे वापस पहले जैसी ही हो गयी. 



“ आआहह……….उम्म्म्मम……आब्ब्ब्ब्ब्ब्बबब….उप्प्प्प्प” जैसी आवाज़ें मेरे मुँह से निकल रही थी तो योनि की तरफ से “ स्लूर्र्ररर्प……चहात…..उम्म्म्म” जैसी आवाज़ें आ रही थीं. 



मेरी योनि से दोबारा रस बहने लगा. मगर उसके लंड मे और उसके जोश मे कोई भी ढील नही महसूस हो रही थी. वो लगा तार मेरे मुँह मे उसी रफ़्तार से धक्के मारते हुए मेरी योनि से बह रहे रास को पूरा चाट चाट कर सॉफ कर दिया. 



काफ़ी देर तक इस तरह एक दूसरे को चूसने चाटने के बाद वो मेरे उपर से उठा. तब तक राजेश जी वापस चार्ज हो चुके थे.उनका लिंग वापस तन कर खड़ा हो गया था. 



“ सत्या भाई इस तरह मज़ा नही आया. एक काम करते हैं आप दो पॅकेट वहाँ शेल्फ से निकालो.” सत्या जी उठे और शेल्फ से दो कॉंडम के पॅकेट निकाल कर ले आए. 



“ हां राजेश भाई अब हम अंदर ही डालेंगे. ठीक उत्तेजना के चरमोत्कर्ष पर बाहर निकालना नही पड़ेगा.” सत्या जी ने कह कर एक पॅकेट खोल कर उन्हे पकड़ाया. दोनो मेरे करीब अपने अपने खड़े लंड लेकर खड़े हो गये. मैने एक एक करके दोनो के लंड पर कॉंडम चढ़ाया. मैने देखा दोनो कॉंडम रिब्ब्ड थे एक्सट्रा मज़ा देने के लिए. 



इस बार राजेश जी तखत पर लेट गये और मुझे अपने ऊपर आने का इशारा किया. मैं अपनी टाँगे उसके पेट के दोनो ओर रख कर अपनी कमर को कुच्छ उठा कर अपनी योनि को उसके लंड के ऊपर सेट किया. फिर अपनी योनि के मुँह पर उसके लिंग को लगा कर मैं उसके लिंग पर बैठ गयी. उसका लंड बिना किसी परेशानी के मेरी योनि मे घुस गया था. 



उसने मेरे दोनो स्तनो पर अपने पंजे रख दिए. उन्हे वो अपनी उंगलियों से उमेथ्ने लगा. मेरे निपल्स उसकी इन हरकतों से खड़े और लंबे हो गये थे. वो उन दोनो निपल्स को अपनी उंगलियों मे सख्ती से पकड़ कर एक दूसरे की उल्टी दिशा मे मसल्ने लगे. सुबह से वैसे ही दोनो स्तनो मे लोगों के द्वारा मसले जाने से टीस बनी हुई थी. उपर से उनके उमेठे जाने से मुझे ऐसा दर्द होने लगा मानो वहाँ कोई घाव हो गया हो. मैं दर्द से बिलखने लगी. 



“ प्लीईसए इनहीए हाथ मॅट लगाऊऊ…..आआआअहह….माआआ…..माइइ दाअर्द से मार जौंगिइिईईईई.” मैं च्चटपटाते हुए उनसे अपने साथ प्यार से पेश आने की मिन्नत कर रही थी. 



“ लगता है भाइयों ने इसके बदन को बुरी तरह मसला कुचला है. हम तक आते आते औरतों मे दम ही नही बचता चुदवाने का. ठीक है चल लेट जा मेरे सीने पर.” राजेश ने कहा. 



मैं उनके कहे अनुसार उनके सीने पर लेट गयी. उनका लंड अभी भी मेरी योनि के अंदर था. उन्हों ने अपने टाँगों को फैला दिया था. सत्या जी ने एक तकिया लाकर उनकी कमर के नीचे लगा दिया. जिससे उनकी कमर कुच्छ टेढ़ी रहे और मुझे उनके पूरे लंड का मज़ा मिले. राजेश जी ने मुझे अपनी बाँहों के बंधन मे बाँध कर अपने सीने पर चिप्टा लिया. राजेश जी अब मेरे गुदा मे अपनी उग्लियों मे तेल लेकर अंदर तक लगाने लगे. आच्छि तरह मेरे गांद के छेद मे और अपने लंड पर तेल चुपाड़ने के बाद उन्हों ने मेरे नितंबों को अपनी हतलियों मे भर कर फैलाया. कॉंडम लूब्रिकेटेड होने के बावजूद उन्हों ने उसे अच्छि तरह तेल से चुपद दिया था. 



अब अपने कॉंडम चढ़े लंड को मेरी गांद की छेद पर रख कर ज़ोर लगाया. हल्के से दर्द के साथ पहले उनके लंड का मोटा टोपा अंदर घुस गया. वो इस अवस्था मे दो मिनिट रुके. नीचे से राजेश जी ने एक दो झटके दिए अपने लंड के उसके बाद सत्या जी ने पूरा ज़ोर लगा कर अगला झटका मारा और उनका लंड आधे के करीब मेरर गुदा मे धँस गया. मैं छॅट्पाटा उठी. मगर राजेश जी के मजबूत बंधन मे मैं सिर्फ़ मचल सकती थी. 



मेरे बदन मे दर्द की हिलोरें उठने लगी. राजेश जी का लंड भी अच्च्छा मोटा था इसलिए मुझे काफ़ी तकलीफ़ हो रही थी. मेरे मुँह से दबी दबी कराहें निकल रही थी. 



“ आआहह…..ऊऊऊ…म्‍म्म्माआआअ” मैं दर्द से तड़पने लगी थी मगर उन दोनो को अपने अपने मज़े से मतलब था. कुच्छ देर रुक कर सत्या जी ने अपने लिंग को कुच्छ बाहर खींचा. लिंग पर लगे कॉंडम के रिब्स से मेरे गुदा की दीवारें घिस कर जलन करने लगी. उन्हों ने अपने लंड को कुच्छ बाहर निकाल कर दोबारा पूरी ताक़त से अपने लंड को मेरे गुदा मे पूरे ज़ोर से धक्का मारा. मैं दोनो के बीच फँसी मचल उठी और उनका लंड जड़ तक मेरी गांद के अंदर घुस गया. 

क्रमशः............
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12-10-2018, 02:35 PM,
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -61 

गतान्क से आगे... 

मैने दर्द से अपनी आँखें बंद कर ली थी और मुँह खुल गया था. मेरे मुँह से चीख निकल रही थी. दोनो अपनी कामयाबी पर एक दूसरे को देखते हुए मुस्कुरा रहे थे. 



“ इतनी ठुकाई के बाद भी काफ़ी टाइट है. मज़ा आ गया. लग रहा है किसी चक्की के पाटों के बीच मेरा लंड पीसा जा रहा है.” सत्या जी ने कहा. 



“ बस अब कुच्छ देर मे तुझे भी आराम मिलने लगेगा.” कहकर राजेश जी ने मेरे होंठो को एक बार चूम लिया. मैने निढाल होकर अपने चेहरे को राजेश जी के चेहरे पर रख दिया और आँखे बंद रख कर उनकी चुदाई का मज़ा लेने की कोशिश करने लगी. 



सत्या जी मेरे गुदा मे ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगे मगर राजेश जी उतने खुश किस्मत नही रहे. हम दोनो के बोझ तले दबे वो अपने लंड को ज़ोर के धक्के नही दे पा रहे थे. वो तो हमारे साथ साथ ही उपर नीचे होने की कोशिश कर रहे थे. और तो और सत्या जी के धक्कों का पूरा मज़ा लेने के लिए अपने नितंब उपर की ओर उठाए तो राजेश जी का लंड ऑलमोस्ट पूरा ही बाहर आ गया. उसका सिर्फ़ सामने का हिस्सा ही मेरी योनि की फांको के बीच जकड़ा हुया था. 



वो अपनी कमर को उठाने की पूरी कोशिश कर रहा था मगर हम दोनो के नीचे दबे होने की वजह से उनको सफलता नही मिल पा रही थी. कुच्छ देर तक कई तरह से कोशिश करने के बाद वो तक कर शांत हो गये. शायद अब उनको सत्या जी के झड़ने का इंतेज़ार था. अब वो इंतेज़ार कर रहे थे कि सत्या जी झाड़ कर मेरे उपर से हटें तो वो मुझे जी भर कर चोद सकें. 



राजेश जी के धक्कों मे तेज़ी आती जा रही थी. मैं तो पता नही कितनी बार झड़ी. ऐसा लग रहा था मानो मेरी योनि से वीर्य का कोई बाँध टूट गया. सत्या जी चोद नही पाने की वजह से अपनी उत्तेजना मुझे चूम कर और मेरी चूचियो को मसल कर शांत करने की कोशिश कर रहे थे. 



पंद्रह मिनिट की आस पास मेरे गुदा को घिस घिस कार लाल करने के बाद उन्हों ने एक ज़ोर के धक्के के साथ अपने लिंग को पूरा अंदर कर दिया और अपने लंड उसी अवस्था मे कई मिनिट तक दबाए रखे. उनके आख़िरी धक्के की ताक़त से मेरा मुँह खुल गया और मुँह से “ आआहह” की एक दबी दबी कराह निकली. 



मैने उनके लिंग से गर्म गरम रस निकलता हुया महसूस किया. उनका पूरा नग्न बदन पसीने से लथपथ था. उनके जिस्म से पसीने की बूंदे मेरे बदन पर टपक रही थी. 



वो अपने लंड को मेरी गांद मे डाले हुए “सस्सस्स….आआअहह…. उम्म्म्म…..ले.. ली…. मेरिइई राआनद लीई… और ले…….टेरिइई गाआंद सीए तेरी पीट तक भाअर दूंगाआ..” जैसी बे सिर पैर की बातें बॅड बड़ा रहे थे. 



“ हाआन्न…..हाआअन्न…माऐइ प्याअसीईई हूऊं…..मीरीईई प्याआस बुझाअ डूऊ….आआआहह….. माआर डाालूओ मुझीईए….. उफफफफ्फ़ ईईए गाअरमीईिइ आब स्ाआहान नहिी होटिईईईईईई” मई भी उनके साथ बड़बड़ाती जा रही थी. 



कुच्छ देर बाद वो मेरे उपर से हट गया और पास लेते लेते लंबी लंबी साँसे ले रहा था. उसके हटने के बाद राजेश जी ने मुझे पल भर भी आराम नही करने दिया उन्हों ने किसी गुड़िया की तरह मुझे उठाया और अपनी दोनो हथेलियों को मेरे दोनो बगलों के भीतर लगा कर मेरे पूरे बदन को अपने लिंग पर ऊपर नीचे करने लगे. मैं तो उनकी ताक़त की कायल हो गयी. मैने अपने टाँगों को उसकी कमर के दोनो ओर रख कर उसके लंड पर अपनी चूत को उपर नीचे करने लगी. मैने अपने चूत की मुस्सलेस से उसके लंड को जाकड़ रखा था जिससे उसके लंड को उल्टियाँ करने मे समय नही लगे.



और जैसा सोचा था वैसा ही हुया. मुश्किल से पाँच मिनिट टिक पाए होंगे. वो अपने जबड़ों को भींच कर पूरी कोशिश कर रहे थे और कुच्छ वक़्त टिक जाएँ. मगर मेरी कोशिशों ने उन्हे बहुत जल्दी अपने आगे नतमस्तक कर दिया. उन्हों ने मुझे खींच कर अपने सीने पर दबा लिया और मेरे मुँह मे अपनी जीभ डाल दी. मैने भी उनकी जीभ से अपनी जीभ सहलाने लगी. उनके जिस्म से वीर्य का एक रेला बहता हुया कॉंडम मे इकट्ठा होने लगा. 



वो मुझे अपने सीने पर लिटाए ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रहे थे. जब उनका लंड सिकुड कर छ्होटा हो गया तब जा कर उनकी बाँहों का बंधन शिथिल हुया. मैं लुढ़क कर नीचे उतर गयी. कुच्छ देर तक अपनी सांसो को व्यवस्थित करने के बाद मैं उठी और उनके सिकुदे हुए लंड से कॉंडम को बिना एक बूँद भी अमृत व्यर्थ किए उतारा और उसमे इकट्ठा वीर्य को अपने लोटे मे भर लिया. लोटा उनके वीर्य से पूरा भर गया था. मैं उन दोनो के होंठों को चूम कर उठी और किसी तरह अपनी सांसो को काबू मे किया. फिर अपने कपड़े को पहन कर बाहर आ गयी. 



बाहर रत्ना के साथ दो और युवतियाँ मेरे इंतेज़ार मे ही खड़ी थी. तीनो ने मुझे लपक कर सहारा दिया और मुझे सम्हालते हुए एक कमरे मे ले गये. उन मे से एक युवती ने मेरे हाथों से वो लोटा ले लिया था. तीनो मुझे एक आरामदेयः बिस्तर पर बिठा कर बाहर निकल गये. 



अभी सूरज डूबने मे कुच्छ वक़्त बाकी था. उनकी आपसी बातों के हिसाब से आगे के कार्य क्रम सूरज ढलने के बाद होने थे. मैं आधे घंटे के करीब वहाँ लेटी आराम करती रही. आधे घंटे बाद माइक मे कुच्छ अनाउन्स्मेंट हुई. 



रत्ना और वही दोनो युवतियाँ आकर मुझे उठा कर अपने साथ बाहर ले आइ. बाहर एक हॉल के बीचों बीच फर्श पर एक काफ़ी बड़ी तश्तरी जैसा कुच्छ रखा हुआ था. तश्तरी का दिया कम से कम पाँच फीट होगा. उस तश्तरी के बीच एक काले पत्थर की एक फुट के करीब उँची देवता की प्रतिमा रखी हुई थी. उस प्रतिमा की घेराई करीब साढ़े तीन चार इंच होगी. 



वो प्रतिमा बड़ी विचित्र थी उसमे उनका चेहरा सामने की ओर ना होकर आसमान की ओर था. प्रतिमा के मुँह से आधे इंच लंबी जीभ उपर की ओर निकली थी. दोनो मुझे लेकर उस तश्तरी के पास पहुँची. 



“ चलो इस पर चढ़ जाओ. “ रत्ना ने कहा तो मैं उस तश्तरी के उपर चढ़ गयी. मैने देखा कमरे मे ढेर सारे मर्द शिष्य एवं अन्य लोग खड़े थे. सबके हाथों मे फूलों की एक एक टोकरी थी. जिसमे गुलाब के सुर्ख लाल फूलों की सिर्फ़ पंखुड़ीयाँ थी. 



मैं तश्तरी पर चढ़ कर रुकी तो रत्ना ने मेरे बदन से कपड़ा हटा कर मुझे बिल्कुल नग्न अवस्था मे ला दिया. मैं पूरी नग्न अवस्था मे ढेर सारे मर्दों के बीच खड़ी थी. 



“ अब इनके उपर बैठ जाओ.” रत्ना के साथ वाली एक युवती ने कहा. मैं उनके कहने का आशय नही समझ पाई और मैने उसकी ओर देखा. 



“ इस तरह बैठो कि ये देवता की मूर्ति तुम्हारी योनि मे प्रवश् कर जाए.” मैं उसके कहे अनुसार करने मे अब भी झिझक रही थी. 



रत्ना ने मेरी झिझक समझ कर मुझे अपनी टाँगें चौड़ी करने का इशारा किया. मैने वैसा ही किया और धीरे धीरे अपनी टाँगे मोड़ कर अपनी कमर को नीचे करने लगी. कमर को काफ़ी नीचे करने पर अचानक अपनी जांघों के बीच ठंडे पत्थर की चुअन महसूस की. रत्ना ने मुझे उसी अवस्था मे रुकने का इशारा किया. मैं उसी अवस्था मे रुक गयी. 



एक युवती नीचे बैठ कर मेरी योनि की फांकों को अपनी उंगलियों से फैलाया. तभी दूसरी युवती ने देवता की मूर्ति को मेरी खुली हुई योनि के नीचे सेट किया. रत्ना ने अब मुझे बैठने का इशारा किया. मैने अपनी कमर को नीचे की ओर दबाया तो मेरी योनि को चीरता हुए वो पत्थर कि शीला मेरी योनि मे घुसने लगी. उसका सिरा इतना मोटा था कि मेरी योनि पूरी तरह फैल गयी थी मगर अब भी वो अंदर नही जा पा रही थी. 



“ आअहह……काफ़ी मोटाआ है……ये अंदर नही जा पाएगा.” मैने कराहते हुए कहा. 



“ सब चला जाएगा. नयी नवेली दुल्हनो की चूत मे घुस जाता है तो फिर तेरी चूत मे क्यों नही जा पाएगा.” रत्ना ने कहा. 



“ नही……मैं इसे नही ले पाउन्गी” मैने अपने निचले होंठ को अपने दाँतों के बीच भींच कर वापस ज़ोर लगाया मगर फिर भी मेरी योनि ने उस पत्थर की शीला को अंदर प्रवेश करने का रास्ता नही दिया. हां दर्द से ज़रूर मेरा जबड़ा खुल गया और दबी दबी चीख निकल गयी. मैने आँखें बंद कर ली. 



“ थोडा धीरज रखो.” रत्ना की आवाज़ सुनाई दी. 



“ थोड़ा ताक़त और लगाओ. एक बार अंदर जाते ही सारा दर्द ख़त्म हो जायगा. बस कुच्छ ही पल की परेशानी है.” किसी महिला की आवाज़ कानो मे पड़ी. मैने अपनी आँखें खोली तो पाया रत्ना मेरे सामने घुटनो के बल झुक कर मेरी योनि के मुँह को अपनी एक हाथ की उंगलियों से चौड़ा कर रही है और दूसरे हाथ से उस मूर्ति के सिरे को मेरी योनि की फांकों के बीच सेट कर रही है. उसने अपनी दो उंगलियाँ अंदर डाल कर उन्हे मेरे योनि रस से सान कर उसे मूर्ति के उपर लगाया. 



मैने भी हिम्मत नही हारी. पूरी हिम्मत को वापस जुटा कर मैने अपनी कमर को नीचे उस मूर्ति पर दबाया. पहले तो दो पल को थोड़ा दर्द हुआ और फिर “प्लुक” जैसी आवाज़ के साथ मूर्ति का मोटा सिरा मेरी योनि को पूरी तरह फैलाता हुया अंदर घुस गया. दिन भर की इतनी चुदाई के बाद भी मूर्ति के उस विशाल के सिर को अंदर लेने मे मेरे पसीने छ्छूट गये. मैं उसी अवस्था मे अपनी कमर को रोक कर लंबी लंबी साँसे लेने लगी. रत्ना मेरे बालों मे अपनी उंगलियाँ फिरा रही थी. 



दो पल उसी तरह रुक कर मैने वापस एक लंबी साँस ली और अपनी कमर को नीचे किया. धीरे धीरे वो मूर्ति मेरी योनि की दीवारों को चीरती हुई अंदर प्रवेश होती गयी. मैं धाम से ज़मीन पर बैठ गयी और वो मूर्ति जड़ तक मेरी योनि मे घुस गयी. मैने अपनी उंगलियों को नीचे ले जा कर टटोल ; कर देखा कि मूर्ति के बेस के अलावा पूरी मूर्ति अब मेरी योनि मे थी. मैने अपने चारों ओर खड़े लोगों को देखा. सबके होंठों पर मुस्कुराहट थी. 



मैं कुच्छ देर उसी तरह बैठी रही तभी अचानक. उस मूर्ति मे सरसराहट होने लगी. वो मूर्ति एक तरह से वाइब्रटर जैसी थी जिसका तार फर्श मे कहीं छिपा था. किसी ने उसका स्विच ऑन कर दिया था. उस मूर्ति मे कंपकंपी बढ़ने लगी और उसकी तरंगे मेरे पूरे वजूद को हिला कर रख दे रही थी. 
क्रमशः............
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12-10-2018, 02:36 PM,
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -62 

गतान्क से आगे... 


मेरे बदन मे उत्तेजना भरने लगी. मैं दबी दबी सिसकारियाँ लेने लगी. रत्ना ने मेरे हाथों को पीछे कर एक पतली डोर से बाँध दिया. फिर हर आदमी एक एक टोकरी ले कर आया. सारी टोकरियाँ लाल गुलाब की पंखुड़ियों से भरी हुई थी. एक एक टोकरी मेरे उपर खाली करने लगे धीरे धीरे मेरा पूरा बदन लाल गुलाब की पंखुड़ियों मे धँस गया. इतना फूल मेरे उपर डाला गया कि मेरे चेहरे को छ्चोड़ कर पूरा जिस्म फूलों से ढक गया था. अब वहाँ एक लाल गुलाब की पंखुड़ियों के ढेर के उपर मेरा चेहरा ही नज़र आ रहा था. 



वो मूर्ति मेरे जिस्म के अंदर उथल पुथल मचा रही थी. मैं दो बार स्खलित भी हो चुकी थी. मुझे इसी अवस्था मे रख कर सारे मर्द और युवतियाँ मुझे घेर कर खड़े हो गये. मैं बार बार अपने सूखे होंठों पर अपनी जीभ फिरा रही थी. 



तभी स्वामी त्रिलोका नंद जी कमरे मे पधारे सारे शिष्य सिर झुका कर खड़े हो गये. वो मुस्कुराते हुए आकर मेरे सामने खड़े हो गये. 



एक युवती आगे बढ़ कर उनके हाथ मे एक लोटा पकड़ा दी. ये लोटा मेरे वाले लोटे से अलग था. स्वामी त्रिलोकनंद ने अपने दोनो हाथों से लोटे को थाम कर उँचा किया. 



“ सबसे पहले तेरा दुग्ध स्नान होगा. ये ताज़ा दूध हमारे आश्रम की ही एक महिला के स्तनो का दूध है. मानव दूध सर्वोत्तम होता है. इससे तुम्हारे जिस्म पर चढ़े सारे कीटाणुओं का नाश होकर तुम्हारी त्वचा निर्मल और सूद्ढ़ हो जाएगी. 



ये कह कर उन्हों ने उस लोटे का दूध एक पतली धार के रूप मे मेरे सिर पर उधलने लगे. दूध सफेद धाराओं के रूप मे बहती हुई नीचे जाने लगी. मेरा जिस्म तो पहले से ही उत्तेजित था उस वाइब्रटर के कंपन की वजह से उपर से इस तरह का रोमॅंटिक स्नान मुझे और उत्तेजित कर रहा था. सारा दूध ख़तम हो जाने पर स्वामी जी ने उस खाली लोटे को वापस उसी युवती को दे दिया. 



उसके बाद एक दूसरी युवती नेआगे बढ़ कर उनके हाथ मे एक दूसरा लोटा दिया. स्वामी जी ने वापस उस लोटे को उपर कर के कहा, 



“ अब तुम्हारा स्नान विलुप्त और बहुत ही दुर्लाब जड़ी बूटियों के रस से किया जाएगा. इस स्नान से तुम्हारे जिस्म मे एक अद्भुत कांती आ जाएगी. तुम्हारे जिस्म के एक एक रोएँ मे कामग्नी भर जाएगी. तुम्हारे जिस्म मे काम की भूख कई गुना बढ़ जाएगी. तुम्हारे जिस्म मे एक अबूझ प्यास उत्पन्न होगी. तुम रति सच के लिए पागल हो जाओगी.” कहकर उन्हों ने उस मे भरा तरल प्रदार्थ मेरे सिर पर धीरे धीरे उधेलना शुरू किया. 



वहाँ मौजूद सारी युवतियाँ आगे बढ़ कर फूलों के ढेर के भीतर अपने हाथ डाल कर उस तरल औस्धी को मेरे बदन पर लगाने लगी. कुच्छ देर बाद वो लोटा भी ख़तम हो गया. 



एक युवती तभी वही कलश लाकर उनके हाथों मे थमाया. स्वामी जी ने उस कलश को अपने हाथों मे थामा और उसे पहले अपने सिर से च्छुअया. 



“ यही अमृत है. जीवन अमृत….इसकी एक बूँद से एक नया जीवन शुरू होता है. इस अमृत के बिना जीवन एक रेगिस्तान की तरह हो जाती है. इस अमृत के बिना औरत बांझ और मर्द नमार्द कहलाता है और उसके लिए विषपान के अलावा कोई चारा नही बचता है. इसलिए ही ये अमृत कहलाता है. देवी आज तुम्हारे जिस्म के अंदर अमृत भरने से पहले तुम्हारे जिस्म को अमृत स्नान भी करवाना पड़ेगा. तुम्हारे जिस्म को भीतर और बाहर से अमृत का लेप लगाना पड़ेगा.” उसने कहा और उस कलश को मेरे होंठों से च्छुआ कर कहा,” लो इसमे से एक घूँट ले लो जिससे ये अमृत तुम्हारे जिस्म के अंदर प्रवेश कर जाए और तुम्हारी धमनियों मे खून के साथ एक एक कोशिका तक पहुँच जाए.” 



मैने अपने होंठ खोल कर उस कलश को अपने होंठों के बीच दबाया. मेरे नथुनो मे वीर्य की महक भरती चली गयी. मैने उस कलश से एक घूँट लिया. फिर स्वामी जी ने उस कलश को मेरे होंठों पर से हटा लिया. 



“ अब तुम्हारा अमृत स्नान होगा. जिससे तुम्हारा जिस्म पवित्र हो जाए.” कह कर उन्हों ने उस कलश को मेरे सिर के उपर कर एक पतली धार के रूप मे उसमे भरा वीर्य मेरे सिर पर उधलने लगे. गाढ़ा गाढ़ा वीर्य मेरे बालों से टपकता हुया मेरे नग्न बदन को चूमता हुया नीचे की ओर बह रहा था. मैने अपनी आँखें बंद कर रखी थी लेकिन मेरी पलकें वीर्य से भीग चुकी थी. मेरी नाक मेरे गाल सब वीर्य से सन चुके थे. 



फॉरन वाहा मौजूद युवतिओ ने वीर्य को मेरे पूरे बदन पर मसलना चालू कर दिया था. मेरे एक के अंग को उन सबने वीर्य से सान दिया था. आस पास मौजूद हर व्यक्ति बहुत ही धीमी आवाज़ मे कुच्छ बुदबुदा रहा था. 



कुच्छ देर तक यूँ ही बैठे रहने के बाद स्वामी जी ने मेरे नग्न बदन को धन्पे गुलाब की पंखुड़ियों को हटाना शुरू कर दिया. जब मेरा पूरा बदन फूलों से बाहर आ गया तो स्वामी जी मेरे सामने आ खड़े हुए. उन्हों झुक कर मेरे गीले होंठों को एक बार चूमा. 



उन्हों ने अपनी बाँहें मेरे बगलों मे पिरो कर मुझे उठाया. पहले मुझे भी उठने मे कुच्छ ज़ोर लगाना पड़ा और वो मूर्ति “प्लॉप” की एक आवाज़ के साथ मेरी योनि से निकल गयी. मुझे ऐसा लगा मानो मेरी योनि के रास्ते मेरे जिस्म से सब कुछ बाहर निकल गया हो. और मेरा जिस्म खाली हो गया हो. उस मूर्ति के बाहर निकलते ही ऐसा लगा मानो कोई बाँध टूट गया हो और वीर्य की एक धार तेज़ी से निकल कर मेरी टाँगों से बहती हुई घुटनो के नीचे पहुँच गयी. धीरे धीरे ढेर सारा वीर्य फर्श पर इकट्ठा होने लगा. 



फिर उन्हों ने जो किया उसे देख कर मैं उनकी ताक़त का लोहा मान गयी. उन्हों ने एक झटके मे मुझे अपनी बाँहों मे उठा लिया. मैने उनके गले मे अपनी बाँहों का हार डाल दिया और उनके जिस्म से लिपट गयी. वो मुझे अपनी बाँहों मे उठाए उस कमरे से बाहर आ गये. इतनी उम्र मे भी वो मुझे उठा कर चलते हुए मुझे आश्रम के बीच बने उसी कुंड पर लेकर आए जहाँ से आज सुबह मैने शुरुआत की थी. मुझे कमरे से वहाँ लाते हुए वो एक बार भी नही लड़खड़ाए. आच्छे अच्छे मर्द मे इतनी ताक़त नही होती. 



कुंड भी अब लाल गुलाब की पंखुड़ियों से अटा पड़ा था. उन्हों ने मुझे उस कुंड मे उतार दिया. मैने पानी मे उतर कर एक डुबकी लगाई. पानी मे इत्र घुला हुआ था पूरा बदन रोमांचित था. जीवन मे इतना मज़ा कभी नही आया था. मैं पानी के उपर आइ तो मैने देखा की स्वामी जी ने अपने कमर मे लिपटे वस्त्रा को उतार दिया और वो भी बिल्कुल नग्न हो चुके थे. सारे मर्द और युवतियाँ उनके लिंग को अपने हाथों मे लेकर चूम रहे थे. सेक्स का ऐसा खेल कभी किसी पिक्चर मे भी नही देखने को मिला था. 



वो बिल्कुल नग्न अवस्था मे उस कुंड मे उतर गये. कुंड मे गर्देन तक पानी था. सारे शिष्य और शिष्याएँ उस कुंड को घेर कर खड़े हो गये. 


त्रिलोका नंद जी कुंड मे उतर कर मेरे नग्न जिस्म से लिपट गये. मैने भी उनकी गर्देन के इर्द गिर्द अपनी बाँहें लप्पेट दी. इससे पहले की वो कुच्छ करते मैने अपने प्यासे होंठ उनके होंठो पर रख दिए और अपने सीने को उनके सीने पर दबा दिया. उनके खड़े हो चुके लिंग की ठोकर मैं अपनी जांघों के बीच महसूस कर रही थी. 



मैने अपना एक हाथ नीचे ले जा कर उनके लिंग को सहलाया और उसे अपनी जांघों के बीच रख कर दोनो जांघों से उसे दबा दिया. उनके हाथ मेरे स्तनो को सहला रहे थे. फिर उन्हों ने नीचे झुक कर मेरे दोनो निपल्स को चूमा और अपने दाँतों के बीच लेकर कुरेदा. 



मैने अपनी उंगलियाँ उनके बालों मे धंसा दी और उनके चेहरे को अपने स्तनो पर भींच लिया. उन्हों ने अपने एक हाथ को नीचे ले जाकर पहले मेरे नितंबों को सहलाया फिर उनके हाथ मेरी जांघों के बीच मेरी योनि को सहलाने लगे. दो उंगलियों ने मेरी योनि के अंदर प्रवेश कर सहलाना शुरू कर दिया. 



उनके होंठ मेरे जिस्म पर उपर से नीचे तक फिसल रहे थे. ऐसा करते हुए वो पानी के भीतर डुबकी लगा कर मेरी योनि को चूमने लगे. मैने भी पानी के भीतर घुस कर उनके लंड को चूमा और अपने मुँह मे लेकर उसे दो बार चूसा. 



फिर र्वो मुझे साथ लेकर कुंड के पानी मे अठखेलिया करने लगे. महॉल इतना रोमॅंटिक था कि मैं तो मदहोश ही हो चुकी थी. सब कुच्छ एक दम नशीला नशीला सा लग रहा था. 



वो मुझे पकड़ने की कोशिश कर रहे थे और मैं किसी मच्चली की तरह उनकी गिरफ़्त से बचती जा रही थी. इस खेल मे कभी मैं उनके किसी अंग को चूमती तो कभी उनसे लिपट जाती. ऐसे वक़्त वो खुद मेरी गिरफ़्त से निकल जाते. ऐसा लग रहा था कि वो कोई 20 – 30 साल के नौजवान हों. उनकी हरकतों, उनकी चपलता को देख कर अच्छे मर्द अपनी दाँतों तले उंगलियाँ दबा सकते थे. 



बाहर खड़े लोग हमारे उपर पुष्प वर्षा कर रहे थे. तभी त्रिलोकनंद जी ने मुझे टाँगों से पकड़ कर उनको कुच्छ उपर किया और अपने कंधे पर रख दिया. तैरते हुए मेरा पूरा बदन पानी के उपर था. उन्हों ने अपने चेहरे को मेरी जांघों के बीच रख कर मेरी क्लाइटॉरिस को अपने दाँतों से कुरेदने लगे. मैं उनके ऐसा करने से तड़प उठी. टाँगे स्वतः ही भींच गयीं. उन्हों ने कुच्छ देर तक मेरे क्लिट को अपनी जीभ से और अपने दाँतों से कुर्दने के बाद मेरी योनि मे अपनी जीभ डाल कर चाटने लगे. 



“ आआआहह……गुरुउुऊउदीएव……..माआई माअर जवँगिइिईई…….उफफफफफ्फ़….प्ाअनीिइ मईए भी बदान जाल रहाआ हााईयईईई” मैं तड़प रही थी संभोग के लिए. मन कर रहा था स्वामी जी मेरे एक एक अंग को मोड़ तोड़ कर रख दें. इसी हालत मे मेरा एक स्खलन हो गया. कुच्छ देर तक जब गुरुदेव ने नही छ्चोड़ा तो मैं ही उनसे दूर भाग गयी. 



वो मेरी ओर झपते. उन्हों ने पीछे से पकड़ कर कुंड की दीवार से टीका दिया. मैने अपनी बाँहें किनारों पर रख कर सहारा लिया. वो मेरे जिस्म से पीछे की ओर से लिपट गये. उन्हों ने मेरी बगलों के नीचे से अपनी बाँहें निकाल कर मेरे स्तनो को थाम लिया और पीछे की तरफ से अपने लिंग को मेरे नितंबों के बीच फँसा दिया. 



मैने अपनी हथेली पीछे कर उनके लिंग को थामा और फिर अपने कमर को कुच्छ पीछे कर उनके लिंग को नितंबों की दरार पर नीचे की ओर सरकाया. फिर अपनी टाँगें फैला कर उनके लिंग को अपनी योनि के मुहाने पर ले गये. बाकी कुच्छ भी करने की ज़रूरत नही हुई. 



उन्हों ने अपनी कमर को आगे की ओर धकेला. मेरी योनि का मुँह दिन भर की चुदाई से इतना खुल गया था कि कोई परेशानी ही नही हुई उनके उस शानदार लंड को जड़ तक घुस जाने मे. फिर मुझे उसी तरह पकड़ कर चोद्ते रहे. जब वो अपने लंड को खींच कर बाहर निकालते तो कुंड का ठंडा पानी उनकी जगह लेने के लिए मेरी योनि मे घुस जाता और फिर अगले धक्के के साथ अंदर का पानी पिचकारी के रूप मे बाहर आ जाता था. इस अनोखी चुदाई मे खूब मज़ा आ रहा था. 



तकरीबन पंद्रह मिनिट तक मेरी चूत को ठोकने के बाद उन्हों ने मुझे घुमा कर सीधा कर लिया. उनकी मदद से मैं उनकी कमर तक उठ कर अपनी टाँगें उनकी कमर के इर्द गिर्द डाल कर उन्हे अपनी टाँगों की गॉश मे क़ैद कर लिया. उनका लंड वापस मेरी योनि मे घुस गया था. मैं अपनी बाँहे कुंड के किनारों पर रख कर उनके कमर की सवारी कर रही थी. उनके हर धक्के के साथ मेरी पीठ उस कुंड की दीवार से रगड़ खा रही थी. हल्का सा छिल भी गया था. मगर ऐसी चुदाई पाने के बाद किसे परवाह रहती है छ्होटे मोटे दर्द की. 
क्रमशः............ 
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12-10-2018, 02:36 PM,
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -63 

गतान्क से आगे... 


उस अवस्था मे भी मुझे पाँच सात मिनिट चोद्ते रहे. मैं उत्तेजित हो कर सिसकारियाँ ले रही थी. 



“आआहह….म्‍म्म्ममम…..ऊऊओह माआ……हाआनन्न छ्छूऊओदूऊ…. और्र्रर जूऊर सीए…..उफफफफफफफ्फ़ आआअपनईए मुझीए पगाआल बनाआ दियाआअ…. स्शह….आआआहह….कितनीईीई तापाअश्याअ कििई त्ीईिइ इसीई चुदाईईईई कीए लिईई. ….ऊऊओह गुरुउउउदीएव……मुऊऊुझीई अपनईए सीई दूऊवर माअट करणाा ……उउईईईईइइम्म्म्माआ……….माआईयईईई पाआअगााल्ल्ल हूओ जाआवँगिइिईईई……” 



“ हाआँ देविीई…हम्‍म्फफ्फ़….हम्फफ्फ़…. आज सीए तुम मेरि च्चात्रा छ्चाअया मईए रहोगिइ…. बोलूऊ… जब काहूँगाअ आओगिइइई नाआ” स्वामी जी भी पूरे मूड मे आ चुके थे. 



“ हाँ…हाआँ….आप जब बुलाऊओगीए माइइ साब छ्चोड़ड़ कार आ जावँगिइइई…साआब कूच…जूओ काहूगीए माइ कारूँगीइिईई.” मैने अपनी कमर को उनके लिंग पर दाब दिया. और उसके हर झटके के साथ अपनी कमर को आगे पीछे करने लगी. मुझे इतना मज़ा आया कि उसका शब्दों मे वर्णन नही कर सकती. काफ़ी देर तक इसी अवस्था मे चोदने के बाद गरम गरम वीर्य मेरी योनि मे उधेल दिया. काफ़ी देर तक उनके लिंग से रस निकलता ही रहा. स्वामीजी इतनी जड़ी बूटियों का सेवन करते हैं और इतनी नियमित दिन चरया का पालन करते हैं कि उनमे सेक्स की जबरदस्त पॉवेर है. 



उनके सेक्स की शक्ति के आगे अच्छे अच्छे फैल हो जाएँ. मैं तो पहली मुलाकात मे ही उनकी कायल हो गयी. मैं उनकी गुलाम हो कर रह गयी. जब उनका लंड पूरी तरह कमजोर होकर बाहर निकल आया तब जाकर उन्हों ने मुझे अपने बंधन से आज़ाद किया. 



हम उस कुंड से बाहर निकल आए. स्वामी जी ने अपनी कमर पर तहमद लप्पेट ली और सारी युवतियाँ मुझे सारी पहना कर वहाँ से एक कमरे मे ले गयी. उस कमरे मे ले जाकर मेरा अद्भुत शृंगार किया गया. 



ऐसा लग रहा था मानो मेरी दूसरी शादी हो रही हो. मुझे किसी नयी नवेली दुल्हन की तरह सजाया गया. सबसे पहले पूरे बदन पर इत्र और जड़ी बूटियों से मालिश की गयी. जड़ी बूटियों की मालिश से जिस्म मे एक अद्भुत उउतेज्ना का संचार होने लगा. जिस्म मे सेक्स की भूख बढ़ने लगी. हर एक अंग फदक रहा था मर्द की चुअन के लिए. 



एक काफ़ी भारी सारी पहनाई गयी. मुझे ढेर सारे सोने के गहनो से लाद दिया गया. फूलों से शृंगार किया गया. चेहरे पर गहरा मेक अप किया. बालों को एक युवती ने किसी ब्यूटीशियन की तरह संवार कर उस पर अनगिनत मोती पिरो दिए. 



मुझे पूरी तरह तैयार करने मुश्किल से उन्हे घंटा भर लगा. फिर मुझे लेकर एक युवती एक आदमकद आईने के सामने ले आइ. मैं अपना अक्स उस आईने मे देख कर चौंक गयी. मैं अपनी शादी के वक़्त भी इतनी खूबसूरत नही लग रही थी जितनी खूबसूरत अब लग रही थी. 



फिर दो युवतियाँ मेरे अगल बगल मे आ खड़ी हुई और मुझे अपने साथ लेकर स्वामी जी के कमरे मे ले आइ. स्वामी जी का कमरा आज तो किसी परी लोक की तरह सज़ा हुया था. एक नाइट बल्ब की हल्की सी रोशनी मे सब कुच्छ नशीला नशीला लग रहा था. मुझे ले जाकर उन्हों ने बिस्तर पर बिठा दिया. बिस्तर इतना नरम था मानो मैं किसी रूई के बादल पर बैठी हौं. मैं समझ गयी कि वो वॉटर बेड था जिसमे गद्दे मे स्पंज की जगह पानी भरा होता है. 



मुझे वहाँ बिठा कर दोनो युवतियाँ बाहर चली गयी. कुच्छ देर बाद एक युवती अंदर आकर मुझे एक शरबत पीने के लिए दी. मैने पूरा ग्लास एक ही साँस मे खाली कर दिया. 



“ तुम यहीं बैठी रहना स्वामी जी महाराजा कुच्छ ही देर मे आने वाले हैं.” कह कर वो युवती कमरे से निकल गयी. जाते हुए उसने अपने पीछे कमरे के दरवाज़ों को भिड़ा दिया. 



मैं वहाँ दुल्हन के लिबास मे बैठी अपने प्रियतम अपने गुरु देव का इंतेज़ार करने लगी. मेरे बदन मे उत्तेजना बढ़ने लगी तो मैने अपनी टाँगों को एक दूसरे से रगड़ना शुरू कर दिया. मगर जब इस पर कोई आराम नही मिला तो मेरे हाथ सारी के भीतर प्रवेश कर अपने स्तनो को दबाने लगे. मेरी जीभ बार बार सूखते हुए होंठों पर फिर रहे थे. मेरे मुँह से दबी दबी सिसकारियाँ निकल रही थी. मैने अपनी सीकरियों को दबाने के लिए अपने होंठों को बार बार अपने दन्तो के बीच दबा रही थी. 



मुझे एक एक पल एक एक घंटे जैसा लंबा लग रहा था. मैने अपनी जांघों को भी एक दूसरे पर रगड़ना शुरू कर दिया. मेरे हाथ ब्लाउस के अंदर घुस कर मेरे स्तनो को मसल रहे थे. मैने अपना दूसरा हाथ जांघों के बीच रख कर अपनी योनि को सारी के उपर से दबाने लगी. 



बार बार मेरी नज़रें दरवाजे की तरफ उठ जा रही थी. मुझे लग रहा था कि शायद स्वामी जी मुझे जान बूझ कर उत्तेजना के चरम पर ले जा रहे थे. इतना आगे की मेरा अपने जिस्म पर से अपने मन पर से अपने दिमाग़ पर से कंट्रोल हट जाए और मैं सेक्स की एक भूखी मशीन बन कर रह जाऊ. 



काफ़ी देर इंतेज़ार के बाद स्वामी जी के कदमो की आहट दरवाजे के बाहर आकर रुके. मैने अपनी नज़र उठा कर देखा. दरवाजा धीरे धीर खुला और स्वामी जी एक रेशमी तहमद पहने अंदर प्रवेश किए. 



दरवाजे को खोल कर स्वामी जी अंदर परवेश किए. मैने उठ कर उनके चरण च्छुए तो उन्हों ने मुझे आशीर्वाद देते हुए अपने गले से लगा लिया. उन्हों ने मुझे अपनी बाँहो मे भर लिया. मैं किसी कमजोर लता की तरह उनके जिस्म से लिपट गयी. मैने उनके गले मे अपनी बाँहें डाल कर अपनी ओर से पूर्ण समर्पण का संकेत दिया. उन्हों ने मेरे चेहरे को अपने हाथों मे थाम कर उपर उठाया तो मेरे होंठ उनके होंठों को पाने के लिए काँप रहे थे. 



मैने अपनी आँखें बंद कर अपने होंठ उनकी ओर बढ़ा दिए. मगर उन्हे मेरे होंठो की प्यास बुझाने की इतनी जल्दी नही थी. उनकी गर्म सांसो का अहसास मुझे अपनी माँग पर हुआ और अगले पल उनके गर्म होंठ मेरे माथे से लग गये. उन्हों ने मेरे माथे को चूमते हुए अपने होंठ मेरी दोनो आँखों के बीच तक ले आए. 



फिर उनकी आँखें पहले एक फिर दूसरे पलक पर फिरी. मेरी आँखें बंद थी मगर ऐसा लग रहा था मानो उनके होंठो से निकलती हुई गर्मी मेरे पलकों से होते हुए मेरी आँखो तक पहुँच रही हों. उन्हों ने अपने होंठों को थोड़ा सा अलग किया और अपनी जीभ थोड़ी सी बाहर निकाल कर मेरे बंद पलकों पर फिराई. मेरे बदन मे सिहरन सी उठने लगी. 



फिर उनके होंठ नीचे फिसलते हुए मेरे गाल्लों पर आए. गाल्लों पर उन्हों ने अपने दांतो को गढ़ा दिए. मैं कराह उठी,”अयाया”. अब उनके होंठ मेरे कानो को बारी बारी चूमने लगे. उनकी लंबी सी जीभ मेरे कानोके उपर फिरने लगी. उन्हों ने मेरे कानो मे अपनी जीभ फेरते हुए मेरे कान की छेद को कुरेदा. फिर अपने दांतो से मेरे कान की लो को हल्के हल्के से काटने लगे. कान भी किसी महिला के सबसे ज़्यादा उत्तेजक अंगों मे से एक होते हैं. जब उनकी गर्म साँसे उन पर पड़ रही थी तो मैं अपने जबड़े को बुरी तरह से भींच कर अपनी उत्तेजना को काबू मे करने की कोशिश कर रही थी. 



उनके होंठ कान से होते हुए मेरी ठुड्डी पर जा कर दो पल रुके. फिर उन्हों ने अपने होंठ खोल कर मेरी ठुड्डी की कुच्छ देर इस तरह चूसा मानो किसी रसीले फल का रस चूस रहे हों. उन्हों ने अपने दन्तो से मेरी ठुड्डी को कुरेदना शुरू कर दिया. ऑफ रश्मि…….तुझे क्या बताऊ आज भी उस मिलन की बात सोच सोच कर मेरी योनि गीली होने लगती है. अया क्या अद्भुत प्यार करने का उनका तरीका. तू मानेगी नही जब तक उनका लिंग मेरी योनि मे प्रवेश हुआ तब तक तो मैं तीन चार बार झाड़ चुकी थी. 



मैने उनकी हरकतों से परेशान होकर उनके सिर को अपने चेहरे पर दाब लिया. वो किसी ना समझ बच्चे की तरह मेरी ठुड्डी को चूसे जा रहे थे. हार कर मुझे उनके सिर को पकड़ कर अपने चेहरे से हटाना पड़ा. 



उन्हों ने मुझे अपनी जगह पर घुमा कर मेरे पीछे आ गये. उन्हों ने मेरे बालों को थाम कर सामने की ओर कर दिए जिससे उनके कार्य मे वो किसी तरह का विघ्न पैदा नही कर सकें. 



उनकी जीभ मेरी रीढ़ की हड्डी के उपर मेरे कमर से गर्देन तक फिर रही थी. मैं अपने हाथ पीछे ले जाकर उनके लिंग को टटोलने की कोशिश कर रही थी उन्हों ने मेरी मनसा भाँप कर अपना कमर पीछे की ओर कर ली जिससे मैं अपने मकसद मे कामयाब ना हो सकूँ. 



उनकी गर्म साँसे अब मैं अपनी गर्देन के पीछे की ओर पा रही थी. उनकी सांसो की गर्माहट मेरी पूरे वजूद को पिघला देने के लिए काफ़ी थी. वो भली भाँति जानते थे कि किसी महिला के उत्तेजना को शिखर तक पहुँचा देने वाले पोइट्‍स कौन कौन से हैं. मैं अब अपनी उत्तेजना को काबू मे नही कर पा रही थी. और उनकी हरकतों से परेशान हो कर बॅड बड़ा रही थी. 



“ ऊऊऊऊओह…….हाआऐययईईई…..म्‍म्म्ममम…….. मुझीईए आआओउूर माआट तरसााूऊ……ऊऊओह माआआआ माआर जावँगिइिईईईई……आआआः गुऊुरूऊओजीीइईईईईई…….माआऐयइ पाअगाआल हो गइई हूऊं………माआआअ…. ऊऊऊऊओह उईईईईईईईई माआ……….” 



उनके दांतो का हल्का हल्का दबाव मैं अपने गर्देन के पीछे महसूस कर रही थी. मेरे पूरे जिस्म से चिंगारियाँ निकलने लगी. उनकी जीभ मेरी पीठ पर इस तरह घूम रही थी मानो कोई रूई से मेरी पीठ सहला रहा हो. मेरे पति के साथ सेक्स मे कभी मुझे इतना मज़ा नही मिला था जितना आज मुझे इनके साथ मिल रहा था. मेरे पति प्रेसेक्श एग्ज़ाइट्मेंट के मामले मे एक दम ज़ीरो हैं. उन्हे तो सिर्फ़ एक बात ही आती है की बिस्तर पर पटक कर औरत को अपने लिंग से धक्के मारने के अलावा दुनिया मे सेक्स का और कोई नाम 

नही है. 



उन्हों ने मेरी सारी के आँचल को कंधे से नीच लुढ़का दिया. उन्हों ने मुझे कंधे से थाम कर अपनी ओर घुमाया. फिर ऊपर से नीचे तक मुझे कुच्छ देर तक निहारते रहे. मैं अपनी नज़रें झुकाए उनकी हर हरकत का मूक रह कर समर्थन कर रही थी. 



उन्हों ने मेरे दोनो स्तनो के ऊपर ब्लाउस के उपर से ही अपना हाथ फिराया और हल्के से उन्हे दबाया. फिर एक एक करके मेरे ब्लाउस के सारे बटन्स खोल डाले. एक एक बटन खोलते जाते और मेरे सीने का जितना हिस्सा सामने आता उसे अपने होंठों से अपनी जीभ से चूमते जाते. 

क्रमशः............ 
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12-10-2018, 02:36 PM,
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -64 

गतान्क से आगे... 


एक एक करके मेरे ब्लाउस के सारे बटन्स खुल कर अलग हो गये. उन्हों ने मेरे ब्लाउस को बदन से खींच कर अलग कर दिया. इसमे मैने भी उनकी सहयता की. ब्लाउस को अलग होने के बाद फर्श पर डाल दिया गया. अब मैण सिर्फ़ ब्रा पहने उनके सामने खड़ी थी. 



उन्हों ने अपनी उंगलियाँ मेरे ब्रा के स्ट्रॅप मे फँसा कर अपनी ओर खींच कर छ्चोड़ दिया. फिर अपना सिर नीचे झुका कर ब्रा के उपर से उभरे मेरे दोनो निपल्स को अपनी जीभ से चटा. जिससे मेरे निपल्स और ज़्यादा बड़े बड़े हो गये एवं उनके चाटने की वजह से मेरी ब्रा के वो हिस्से गीले हो कर निपल्स से चिपक गये थे. वो मेरे दोनो स्तनो को अपने हाथों से उठा कर काफ़ी देर तक चूमते रहे. 



जैसे ही उन्हों ने मुझे छ्चोड़ा मैं उनके सीने से वापस लग गयी. मैं अपने ब्रा मे कसे दोनो स्तन उनकी नग्न छाती पर दबा कर रगड़ने लगी. 



“ आपको प्यारे लगे?” मैने उनसे पूचछा. वो मेरी बात का जवाब अपने चिरपरिचित मुस्कुराहट सी दिए. 



“ स्वामी जी ये दोनो आपके लिए ही हैं. आप इनका जैसे चाहे वैसे इस्तेमाल करो. मैं आपसे कोई शिकायत नही करूँगी. आप इन्हे जी भर कर प्यार करना. इनको बस आपके होंठों का इंतेज़ार हैं.” कह कर मैने उनके हाथों को उठा कर अपने स्तन पर वापस रख दिए. उन्हों ने दोनो स्तनो को हल्के हल्के से सहलाना शुरू किया. 



“ ये दोनो तुम्हारे खजाने हैं. तुम नही जानती कि इनकी क्या वॅल्यू हैं. किसी को भी तुम इनका एक झलक दिखा कर अपना गुलाम बना सकती हो.” वो बोलते बोलते मेरे स्तन युगल को मसल्ते जा रहे थे. मुझे उनकी हरकतों मे बहुत मज़ा आ रहा था. 



“ ये अभी खाली हैं. इनमे आप रस भर दो फिर देखना ये कितने खूबसूरत हो जाएँगे. इनकी साइज़ आपसे सम्हाले नही संहलेंगे. तब इनको अपने मुँह से लगा कर खूब रस पीना.” मैने उनके बालों मे अपनी उंगलियाँ फिराई. फिर उनके सीने पर उगे घने बालों को अपने होंठों से सहलाया. मैं अपनी जीभ से उनके मटर के दाने सरीखे उभरे हुए निपल्स को चाटने लगी. अपने दाँतों से उनके सीने पर कई जगह निशान भी बना दिए थे. 



उन्हों ने मेरे कंधे पर अपने हाथ रख कर मेरी ब्रा के दोनो स्ट्रॅप्स नीचे उतार दिए. मैने पीछे मूड कर अपने ब्रा का हुक उनकी ओर किया. उन्हो ने मेरे ब्रा के हुक को खोल दिया तो मैं वापस उनकी ओर मूड कर खड़ी हो गयी. मैने अपने दोनो बाँहें सिकोड कर अपने ब्रा को नीचे गिर जाने से रोक रखा था. मैं ये अवसर स्वामी जी को ही देना चाहती थी. उन्हों ने मेरी बाँहों को थोडा अलग किया तो मेरी ब्रा किसी तिरस्कृत छिल्के की तरह मेरे बदन से अलग हो कर पैरो पर गिर पड़ी. 



उनके सामने मेरे बड़े बड़े स्तन अब बिल्कुल नग्न हो कर उन्हे प्यार का आमंत्रण दे रहे थे. उन्हों ने मेरे स्तनो को देख कर इस तरह अपने होंठों पर अपनी जीभ फिराई मानो उनके सामने उनका कोई मनपसंद व्यंजन रखा हुआ हो. 



उन्हों ने मेरे दोनो स्तनो को अपनी दो उंगलियों से बहुत हल्के से च्छुआ और हल्के हल्के च्छुअते हुए उनको नीचे की ओर बढ़ते हुए निपल्स तक ले गये. उन्हों ने अपनी उंगलियों से मेरे दोनो निपल्स को हल्के हल्के से प्रेस किया. फिर उंगलियों और अंगूठे के बीच दोनो निपल्स को लेकर बहुत हल्के से सहलाने लगे. 



मेरे दोनो निपल्स उत्तेजित होकर इतने बड़े बड़े भी हो सकते हैं ये मुझे पहली बार पता चला था. यहाँ तक की निपल्स के चारों ओर फैले गोल गोल काले दायरे मे पिंपल्स की तरह कुच्छ दाने भी उभर आए थे. मेरा सिर पीछे की ओर धूलक गया था. 



उन्हों ने अपने होंठ एक निपल के इर्दगिर्द रख कर उसे किस बच्चे की तरह चूसने लगे. चूसने के साथ साथ वो अपने पंजे से मेरे उस स्तन को मसल्ते भी जा रहे थे मानो उसके अंदर से दूध निकालना चाहते हों. जिस वक़्त वो एक निपल को चूस रहे थे उस वक़्त वो अपने दूसरे पंजे की उंगलियों से मेरे दूसरे निपल को कुरेद रहे थे जिससे उसमे उत्तेजना की कमी आकर उसका आकर छ्होटा ना हो जाए. एक निपल को जी भर चूसने के बाद उन्हों ने वही क्रिया दूसरे निपल के साथ भी दोहराई. 



स्वामी जी की हरकतों से मैं उत्तेजना के चरम पर पहुँच गयी थी. मैने उनके सिर को अपने दोनो सीने के बीच दबा लिया. वो अपनी जीभ को वहाँ फिराने लगे और मैं अपनी उत्तेजना को सम्हालने मे विफल होकर उस अवस्था मे ही झाड़ गयी. 



काफ़ी देर तक उन्हों ने मुझे इस तरह प्यार करने के बाद मुझे घुमा कर खड़ा कर दिया. अब उनके होंठ मेरी नगी पीठ पर फिर रहे थे. मेरी रीढ़ की हड्डी पर नीचे से उपर की ओर उठते हुए उनके होंठ मेरे बालों के जड़ तक जा पहुँचे. 



मेरा बदन सिहरन से काँप रहा था. मैं दीवार से सहारा ले कर खड़ी हो गयी. मैने अपने सिर को सामने की ओर झुका लिया था और बालों को को अपने कंधे के उपर से सामने की ओर कर लिया था जिससे उनके प्यार के खेल मे किसी तरह की बाधा ना आए. 



मैं उत्तेजना मे अपने स्तनो को अपने ही हाथों से मसल्ने लगी. जब इससे भी ज़्यादा संतुष्टि नही मिली तो स्वामी जी के हाथों को अपने हाथों से पकड़ कर अपने दोनो स्तनो पर रख कर उन्हे दबाया. मेरे इशारे को समझ कर, मेरे मन की स्थिति को समझ कर वो अपने हाथों से मेरे दोनो स्तनो को मसल्ने लगे. 



वो होल होल मेरे कंधों पर अपने दाँत गाढ़ने लगे. मेरे दोनो हाथों को उन्हों ने सिर के उपर उठा दिया और मेरी बगलों को अपनी जीभ से सहलाने लगे थे. उनकी जीभ जब मेरे बगलों की नाज़ुक त्वचा को छुति तो मेरा पूरा बदन काँपने लगता. 



उन्हों ने अब मेरी सारी बदन से अलग कर दी तो मैने उन्हे किसी तरह का मौका दिए बगैर अपने पेटिकोट के नारे को खींच कर ढीला कर दिया. मेरा पेटिकोट पैरों से सरकता हुया फर्श पर गिर गया. 



स्वामी जी ने दोबारा मुझे सीधा किया और अपनी नज़रों से मुझे निहारने लगे. मैं उस वक़्त सिर्फ़ एक छ्होटी सी पॅंटी मे थी. जो बड़ी मुश्किल से मेरे टाँगों के बीच के खजाने को उनकी नज़रों से बचाने की कोशिश कर रहा था. 



वो मेरे सामने घुटने के बल बैठ गये और मेरी योनि को मेरी पॅंटी के उपर से चूमने लगे. फिर अपने दाँतों से मेरी योनि के सामने के उभार को हल्के हल्के से काटने लगे. मेरी योनि को ढके कपड़े को एक ओर खींचा और अपनी जीभ मेरी योनि पर फिराई. फिर दोनो हाथों की उंगलिया मेरी पॅंटी के बॅंड मे फँसा कर उसे नीचे उतार दिया. 



अब मैं बिल्कुल नग्न स्थिति मे आ गयी थी. वो मेरे सामने बैठ कर मेरी जांघों को मेरे, जांघों के बीच मेरी योनि को प्यार करने लगे. उन्हों ने मेरे एक पैर को उठा कर अपने कंधे पर रख लिया और अपनी जीभ से मेरी योनि के उपर सहलाने लगे. फिर अपनी उंगलियों से मेरी योनि को फैला कर अंदर अपनी जीभ से चाता. मेरी योनि के बाहर उभरे क्लाइटॉरिस को वो अपनी जीभ से सहलाने लगे. जैसे ही मेरी क्लिट को उन्हों ने अपने दाँत से हल्के से दबाया मैं उत्तेजना मे उच्छल पड़ी. 



स्वामी जी ने मुझे पीछे घुमाया और मेरे नितंबों को जगह जगह पर दांतो से काटने लगे. मेरे नितंबों को फैला कर मेरे गुदा को भी उन्हों ने चूम लिया. उनकी उंगलिया मेरे जिस्म पर थिरक रही थी. वो मेरे जिस्म पर पता नही कहाँ कहाँ दबा रहे थे कि मैं उत्तेजना से तड़पने लगती. वो अक्कुप्रेससोर के अच्छे ग्याता थे. उन्हे मालूम था कि कहाँ कहाँ और किस तरह किसी महिला को दबाने और छूने से महिला की उत्तेजना अपने चरम पर पहुँच जाती है. 



मैं और उनकी हरकतों को सहन नही कर पाई. मैने खींच कर उन्हे ज़मीन पर से उठाया. वो मेरा हाथ पकड़ कर अपने बिस्तर पर ले गये. 



“ देवी आज तुम्हारी दूसरी सुहागरात है. आज से हफ्ते भर के लिए तुम मेरी बंदिनी होकर रहोगी. इसे तुमने अपनी इच्च्छा से स्वीकार किया है. आओ इन सात दिनो मे हम एक पूरी जिंदगी जी लें.” स्वामीजी के होंठों से प्यार भरी बातें सुन कर मैं निहाल हो गयी. 



मैने उनका जवाब मुस्कुरा कर दिया. और उनसे कहा, “ स्वामी आज आपके पास आकर मैने प्यार का सही मतलब जाना है. सेक्स के खेल इतने हसीन और इतने मजेदार हो सकते हैं ये मैने आज जाना है. आज तक मैं इन सब से अंजान थी. आज आपके चर्नो मे आकर मैने प्रेम का सही मतलब सीखा है.” मैने उनकी आँखों मे झाँकते हुए कहा. 



उन्हों ने मुझे बिस्तर पर लेटने का इशारा किया मगर मैं ऐसा नही चाहती थी. मैने उन्हे बिस्तर पर लेटने का इशारा किया. 



“ एक तरफ़ा प्यार अच्च्छा नही होता. हर किसी को अपना हूनर दिखाने का पूरा मौका मिलना चाहिए. अब आप बिस्तर पर लेट जाइए. आप ने जितना प्यार मुझे किए है उसे आपको लौटाने की अब मेरी बारी है.” मैने उनसे कहा. 



वो मुस्कुराते हुए बिस्तर पर लेट गये. मैने उनके कमर पर बँधी तहमद को खोल कर उनके बदन से अलग कर दिया. 



“ सुहाग रात को मर्द को कोई भी कपड़ा पहनने की मनाही होती है. मैं तो आपकी बंदिनी हो गयी मगर आप भी अपना पूरा जोश, पूरा प्यार मुझ पर ही न्योचछवर करोगे.” मैने हंसते हुए उनको धक्का दिया तो वो मेरे इस अचानक वार से सम्हाल नही पाए हौर बिस्तर पर गिर पड़े. मैं कूद कर उनके सीने पर सवार हो गयी. हम दोनो ही बिल्कुल नंगे थे मगर शर्मो हया का कही डोर दूर तक नामो निशान नही था. ऐसा लग रहा था मानो दोनो एक दूसरे को कई जन्मो से जानते हों. 



मैने अपनी दोनो हथेलिया उनके कंधों पर रख कर उन्हे बिस्तर पे दबा दिया. 



“ अब आप बिल्कुल नही हिलोगे. बस ऐसे ही लेते रहना. नही तो मैं आपको काट खाउन्गी. आपने मुझे इतना उत्तेजित कर दिया है कि मैं कुच्छ भी कर सकती हूँ. मुझे दीवाना बना दिया है आपने. ओफफफफ्फ़……प्यार करना तो कोई आपसे सीखे. पता नही आप कहाँ कहाँ दबा रहे थे और मुझे ऐसा लग रहा था मानो जिस्म की गर्मी से मैं जल कर रह जाउन्गी…” मैं पागलों की तरह उनके चेहरे को चूमने लगी. ऐसा करते वक़्त मेरे झूलते स्तन उनकी छाती को सहला रहे थे. वो अपनी उंगलियों से मेरे तने हुए निपल्स को छेड़ रहे थे. 

क्रमशः............
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12-10-2018, 02:36 PM,
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -65 

गतान्क से आगे... 


मैने उनके होंठों पर अपने दाँत गढ़ा दिए. मैने उनके पूरे चेहरे को अपनी जीभ से चाट लिया था. मैं अब कुच्छ नीचे खिसक कर उनके सीने पर अपने होंठ फिराने लगी. मैं उनके निपल्स को अपने दाँतों के बीच दबा कर हल्के हल्के से कुरेदने लगी. 



उनके घने बालों से भरे सीने पर अपने होंठ और गाल रगड़ रही थी तो मुझे इतना मज़ा आ रहा था जिसकी मैने कभी कोई कल्पना भी नही की थी. 



मैं अपनी जीभ उनके सीने पर फिराते हुए मैं नीचे की ओर झुक कर उनके नाभि के इर्द गिर्द अपने होंठ फिराने लगी. मेरी हरकतों से वो भी काफ़ी उत्तेजित हो गये थे. उनकी उत्तेजना का पता मेरे स्तनो पर पड़ रहे उनके हाथों के दबाव से चल रहा था. पहले वो मेरे स्तनो को बड़े प्यार से सहला रहे थे मगर अब उनकी हथेलिया मेरे स्तनो को बुरी तरह मसल्ने लगी थी. 



मैं अपनी जगह पर घूम गयी. अब मेरा चेहरा उनके पैरों की तरफ था. मैं उनकी टाँगों के उपर झुक कर उनके पैरों को चूमने लगी अपनी जीभ उनके पैरों पर फिराने लगी. मैं उनके अंगूठे को और उनके पैरों की उंगलियों को चूस रही थी. फिर मैने उनकी टाँगों पर अपने जीभ फिराई. उनकी जांघों पर मैं अपने दाँत गाढ़ने लगी. जगह जगह पर मैने अपने दांतो के निशान छ्चोड़ दिए. 



उनका तना हुआ लंड मेरी जांघों के बीच रगड़ खा रहा था. उनका लंड इतना लंबा और मोटा था कि जब मैं उन्हे प्यार करने झुकती तो उनका लंड मेरे स्तनो को ठोकर मारने लगता. 



मैने वापस घूम कर उनके चेहरे की ओर अपना चेहरा कर लिया. मगर इस बार मैं उनकी टाँगों पर बैठी थी. मैं नीचे झुक कर उनके लिंग को चूमने लगी. मैने उनके लंड के उपर का चमड़ा नीचे की और सरकाया तो उनका लंड के उपर का सूपड़ा बाहर निकल आया. ऐसा लग रहा था मानो की जांघों के बीच कोई मीनार खड़ा हो. 



मैने उनके लंड के ठीक उपर झूलते मेरे स्तनो को अपने हाथों से थामा और उनके लिंग को अपने दोनो स्तनो के बीच रख कर भींच दिया. फिर मैं उसी अवस्था मे अपनी कमर को आगे पीछे करने लगी. 



उनका लिंग बार बार मेरे स्तनो के बीच के दरार से पल भर के लिए झाँकता और फिर उनकी गहराईयों मे खो जाता. जब उनका लंड मेरे स्तनो के उपर निकल कर आता तो मैं अपनी जीभ निकाल कर उनके सूपदे को चाटने लगती. स्वामी जी काफ़ी उत्तेजित हो चुके थे. वो बार बार मेरी पतली कमर मेरे स्तनो पर और मेरी जांघों के बीच सहलाने लगते थे. 



कुच्छ देर तक इसी तरह उनके लिंग को अपने उरजों से चोदने के बाद मैने उनके लंड को चाटना शुरू किया. वो अपनी कमर को बिस्तर से उठा कर मुझे अपने जुनून का इशारा दे रहे थे. वो चाह रहे थे कि मैं उनके लंड को अपने मुँह मे भर कर प्यार करूँ. मैने उनको ज़्यादा परेशान नही किया और कुच्छ देर बाद उनके लिंग को अपने मुँह मे भर कर चूसने लगी. वो उत्तेजित हो कर मेरे सिर को अपने लंड पर दाब रहे थे. उन्हों ने जैसे ही मेरे सिर को अपने लंड मे दाबा तो उनका लंड मेरे मुँह से होकर मेरे गले तक उतर गया. मैं साँस लेने के लिए छॅट्पाटा उठी. मैने अब उनके लिंग को ज़्यादा अंदर तक नही लेने का ठान लिया. मैं उनके लंड को अपने मुँह मे अंदर बाहर कर रही थी. 



उनका लंड इतना मोटा था की मुझे उसको अपने मुँह मे लेने के लिए अपने जबड़ों को पूरा खोलना पड़ रहा था. थोड़ी ही देर मे मेरे जबड़े दुखने लगे तो मैने अपने सिर को उठाया. अब मैं अपनी जीभ से उनके मोटे मोटे अंडकोषों को चाटने लगी. वो इतने उत्तेजित हो गये थे की उनके मुँह से अब सिसकारियाँ निकल रही थी. 



“ स्वामी….आअपकाअ ईए बहुत बड़ाअ हाईईइ. मुझे विस्वास नही है कि मैं इसे झेल भी पाउन्गी…..या नही.” मैने 



जब उनसे और नही रहा गया तो उन्हों ने मुझे बिस्तर पर पटक दिया. और मुझ पर टूट पड़े. मैं उनकी हालत पर खिलखिला उठी. उन्हों ने मेरी योनि के उपर बने क्लाइटॉरिस को अपनी उंगलियों से छेड़ दिया. मैं उनकी इस हरकत से लगभग उच्छल पड़ी. मगर मेरे स्तनो को दबे हुए उनके मुँह ने मुझे बिस्तर से उठने नही दिया. 



“ ऊऊहह स्वाअमीज़ी….मेरे साआमिी….मेरीई…..आआआहह….क्यूऊन….. सातआटीए हूऊऊ……उफफफफ्फ़ माआ….आब तूओ आजा” मैं च्चटपटाने लगी. 



मैं बिस्तर पर चित लेटी हुई थी. वो मेरे स्तनो को छ्चोड़ कर उठे. उन्हों ने अपने दोनो हाथों से मेरी टाँगें थाम ली और उन्हे छत की ओर उठा दिया. फिर उन्हों ने अपने दोनो हाथ अलग कर मेरी टाँगों को फैलाया. मैने भी बिना किसी विरोध के अपनी टाँगों को फैला दिया. मेरी योनि उनकी नज़रों के सामने थी. मैं भी उत्तेजना मे फूँक रही थी. मैं उनकी ओर अपनी कमर को उठा कर उनको अगले खेल के लिए इशारा कर रही थी. 



“ देवी इस रति क्रीरा मे जो खिलाड़ी जितना वॉर्म अप होता है उसे खेल मे उतना ही मज़ा आता है.” स्वामी जी ने कहा.



“ गर्म? स्वामी जी मैं तो गर्मी से फूँक रही हूँ अब आ जाओ नही तो मैं पागल हो जाउन्गी.” मैने कराहते हुए कहा, “ ये देखो……” उत्तेजना की वजह से मेरी योनि से काम रस का निकलना बंद होने का ही नाम नही ले रहा था. दोनो जंघें गीली हो रही थी. मैने अपने हाथों को उन पर फिराते हुए स्वामी जी को दिखाया, “ देखो मेरे बदन का सारा खून आज वीर्य बन कर बाहर निकला जा रहा है. अब अगर अपने मुझे जल्दी संतुष्ट नही किया तो मैं मर ही जाउन्गी.” 



मेरी बात सुन कर स्वामी जी हंस पड़े. उन्हों ने बगल के टेबल पर रखी एक शीशी खोल कर उस मे से कुच्छ पिया और वापस बॉटल वहीं रख दी. मैं जिगयसा भरी नज़रों से उनकी तरफ देख रही थी. 



“ ये सब मेरी बरसों की मेहनत का नतीजा है. ये दुर्लभ जड़ी बूटियों का रस है जिसे पीने के बाद आदमी वियाग्रा को भी मात दे सकता है. देखना अब ये तुम्हे कितने खेल दिखाता है.” कह कर उन्हों ने अपने तने हुए लंड को सहलाते हुए कहा. 



“ स्वामी जी मुझे भी कुच्छ दो. मैं भी आपका बराबर साथ देना चाहती हूँ. सुबह से मैं इतना थक गयी हूँ कि आपको पूरा मज़ा नही दे पाउन्गी.” 



स्वामी जी ने उस बॉटल से कुच्छ बूंदे मेरे मुँह मे भी दी. अजीब सा कसैला स्वाद था पूरा मुँह एक बार कड़वा हो गया. मैं वापस अपने पैरों को फैलाए लेट गयी. स्वामी जी मेरे पैरों के बीच अपने घटनो के बल बैठे हुए थे. उन्हों ने मेरे पैर अपने कंधो पर रख दिए. इस अवस्था मे उनका विशाल लंड मेरी योनि और नितंबो के बीच ठोकर मारने लगा. 





उन्होने दो मोटे मोटे तकिये उठा कर मेरी कमर के नीचे रख दिए जिससे मेरी कमर बिस्तर से एक फुट के करीब उपर उठ गयी. 



मैने अपने हाथों से अपनी योनि की फांकों को अलग कर उनके लंड को थाम कर उनके बीच किया. वो उस वक़्त मेरी जांघों को सहला रहे थे. मेरे घुटनो को चूम रहे थे. मुझे इस अवस्था मे अपनी टपकती हुई चूत साफ दिखाई दे रही थी. मैने देखा की मेरी योनि के गीले होंठ उत्तेजना मे काँप रहे थे. जैसे ही उनके लंड को बीच मे रख कर मैने अपनी उंगलियों को योनि की फांको पर से हटाया तो दोनो उनके लंड से ऐसे चिपक गयी मानो किसी भूखे बच्चे को दूध की बॉटल मिल गयी हो. 



उन्हों ने अपने लिंग को मेरी योनि मे दबाया. मेरी योनि का मुँह चौड़ा होने लगा. उनके लिंग को अंदर लेने के लिए मेरी योनि ऐसे खुल गयी थी मानो उसमे पूरा हाथ चला जाए. उनके लंड के सामने का सूपड़ा काफ़ी मोटा था मुझे पल भर को तकलीफ़ हुई उसे लेने मे. मेरी योनि इतनी गीली हो चुकी थी की अब अगर मुझे गधे का लंड भी लेना पड़ता तो मुझे कोई तकलीफ़ नही होती. 



“ आअहह…” मेरे मुँह से एक कराह निकली और उनके लंड का सिरा मेरी योनि के होंठों को चीरता हुआ अंदर प्रवेश कर गया. 



“ आआहह….गुरुजिइइई….ध्ीएरए….ध्ीएरए…..तोड़ाआ धीरे करूऊ…..काफ़िई दाअर्द हाईईईई……” मैं उनसे रिक्वेस्ट करने लगी. 



एक एक इंच करके उनका लंड अंदर जा रहा था. उन्हों ने भी एक दम से पूरा अंदर कर देने मे जल्दी नही दिखाई. मैं भी उनके लंड को अपने योनि की दीवारों से सहला कर उत्तेजित हो रही थी. मेरी योनि उपर की ओर उठी होने की वजह से उनके लिंग का अंदर जाना अच्छि तरह दिख रहा था. मैने अपनी दो उंगलियों को वी की शेप मे योनि की होंठों पर रख कर उनके लंड के सरकने का अहसास कर रही थी. 



उन्हों ने पूरा अंदर डालने से पहले दो बार बाहर भी खींचा और दोबारा अगले ही पल वापस उतना ही अंदर डाल दिया. धीरे धीरे उनका पूरा लिंग मेरी नज़रों से ओझल हो गया. मैने अपनी हथेली पर उनके लिंग के जड़ को महसूस किया. मैने उनकी आँखों मे झाँका. 



“ पूरा अंदर है. मज़ा आया?” उन्हों ने पूछा. 



“एम्म….बहुऊट” मैं मुस्कुरा दी,” ओफफफफ्फ़….कितनाअ बड़ाअ हाई आपकाअ…..ल्ाअग रहाआ था की मुँह सी बाआहर निकाल आईईगा……” 



“ हहाआहा….कैसा लगा? माअजा टू आयाअ ना?” 



“ बोहूऊओट…..आअपँे तूओ मुझीए अपणीी ब्ाअंड्ी बनाअ लिय्ाआ हाईईईईईईई” 



अब उन्हों ने अपने दोनो हाथों को मेरे कंधो के दोनो ओर रख कर सहारा लेते हुए अपने लिंग को बाहर खींचना शुरू किया. मैने अपनी योनि की दीवारों को उनके लंड पर दाब दिया था. उनका लंड बाहर जाते हुए भी इतना मज़ा दे रहा था कि मज़ा आ गया. 



“ उम्म्म……कुच्छ देर अंदर ही रहनी देतीए…जीए भार कार स्वाआद तो लेनी देते…..हााहह” मैं उत्तेजना मे बड़बड़ा रही थी. 



उन्हों ने अपने लिंग को लगभग पूरा खींच कर बाहर निकाला. यहाँ तक की लंड के सामने का सूपड़ा भी बाहर निकाल लिया. और अगले ही पल दोबारा पूरे जोश के साथ अपने लिंग को मेरी योनि मे जड़ तक घुसा दिया. मेरी आँखे अत्यधिक आनंद से बंद हो गयी और मुँह खुल गया था. हर धक्के के साथ ऐसा लगता मानो फेफड़े की सारी हवा निकली जा रही हो. 
क्रमशः............ 
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -66 

गतान्क से आगे... 



उसके बाद शुरू हुआ धक्कों का सिलसिला. लगातार और बिना कोई रफ़्तार मे कमी आए वो लगभग बीस मिनिट तक मेरे बदन के उपर दंड पेलते रहे. ऐसा लग रहा था मानो वो कोई हाड़ माँस के व्यक़्ति ना हो कर सेक्स की मशीन हों. 



इस दौरान हम दोनो ही पसीने से लटपथ हो गये थे. ए.सी. से कमरा बिल्कुल ठंडा था मगर वो भी हमारी गर्मी कम करने मे असमर्थ हो रहा था. बीस मिनिट बाद वो रुके और अपने लंड को मेरी योनि से खींच कर बाहर निकला. उनका लंड मेरे योनि रस से पूरा भीगा हुआ था. उससे चासनी की तरह कर्मस तार बनाते हुए टपक रहा था. मैने अपनी आँखें खोली. अब वो मेरी बगल मे लेट गये और मुझे दूसरी तरफ करवट लेने के लिए कहा. 



मैने दाई तरफ करवट ले कर अपनी पीठ उनकी ओर कर दी. मैने अपनी टाँगो को छाती से लगा लिया और अपने नितंबों को उनकी ओर थेल दिया. वो मेरी पीठ से चिपक गये और पीच्चे से मेरी योनि मे अपना लंड डाल कर धक्के मरने लगे. अब हम दोनो अगल बगल लेटे हुए थे. वो पीछे की ओर से मुझे धक्के मार रहे थे. साथ साथ मेरे दोनो स्तनो को अपनी मुट्ठी मे भर कर मसल्ते जा रहे थे. 



इस तरह उन्हे काफ़ी आराम मिल रहा था क्योंकि मेहनत कम करनी पड़ रही थी धक्के लगाने मे. वो उसी तरह पाँच दस मिनिट तक धक्के लगाते रहे. उनके धक्को मे कुच्छ शिथिलता आ गयी थी वो अब ख़तम हो गयी. 



कुच्छ देर तक इस तरह करने के बाद वो वापस पूरे जोश मे आ गये. उन्हों ने मुझे उठा कर चौपाया बनाया. मैं तीन तकियों को एक के उपर एक रख कर उन्हे अपने पेट के नीचे रख कर अपने उपरी शरीर को बिस्तर पर लिटा दिया. इस तरह मेरे नितंब उँचे हो गये. मैं बिना किसी सहारे के भी अब चौपाया बनी हुई थी. उन्हों ने मेरे पीछे आकर मेरी योनि मे अपना लंड डाल दिया. उसके बाद दनादन धक्कों की बोच्चार शुरू हो गयी. हर धक्के के साथ मैं बुरी तरह हिल रही थी. मेरे रेशमी घने बाल मेरे पूरे चेहरे को ढँक लिए थे मैं उत्तेजना मे अपने दोनो पंजे गद्दे मे गढ़ा कर मुत्ठियों मे भर रखी थी और दाँतों मे एक तकिये को भींच रखा था. वो मेरे पीछे घुटनो के बल बैठ कर अगले पाँच मिनिट तक बिना रुके धक्के मारते रहे. फिर वो खड़े होकर अपने पैरों को घुटनो से मोड़ लिया और अपने दोनो हाथ मेरी पीठ पर रख कर धाकी लगाने लगे.इस वक़्त उनका लिंग मेरी योनि मे उपर से अंदर घुस रहा था. पता ही नही चल रहा था कितनी देर तक वो इस तरह मुझे चोद्ते रहे. 



कुच्छ देर तक इसी तरह चोद्ते रहने के बाद उन्हों ने अपने लिंग को वापस बाहर निकाला. फिर उन्हों ने मुझे उसी अवस्था मे बिस्तर के किनारे तक खींच लिया. मैं अब बिस्तर के एक दम किनारे अपने घुटनो को टीका कर चौपाया बनी हुई थी. 



अब वो ज़मीन पर खड़े हो गये. इस अवस्था मे मेरी योनि उनके लंड के लेवेल पर थी. वो खड़े हो कर मेरी योनि मे एक ही धक्के मे वापस अपने लिंग को डाल कर पूरी ताक़त से दस मिनिट तक मुझे झींझोड़ते रहे. इतनी देर से लगातार चोदने के बाद भी उनके लिंग मे थोड़ा सा भी ढीलापन नही आया था. उनका लिंग अभी तक मेरी योनि को फैला रखा था. इस पोज़िशन मे लिंग सबसे ज़्यादा अंदर तक घुस रहा था. मुझे अपनी योनि मे उनके लिंग का अहसास सातवें आसमान पर चढ़ा रहा था. 



पंद्रह मिनिट तक बिना किसी शिथिलता के लगातार पूरे जोश से धक्का लगाना उनकी उम्र मे किसी के वश का नही होता. ऐसा लग रहा था की उनकी उम्र मानो घट कर आधे से भी कम रह गयी हो. मैं अब तक तीन बार स्खलित हो चुकी यही मगर उनका एक बार भी स्खलन नही हुआ था. 



मैं तो हाँफने लगी थी मगर वो लगातार धक्के मारे जा रहे थे. पंद्रह मिनिट बाद वो रुके और अपना लिंग बाहर खींचा उनके लिंग से मेरा वीर्य टपक रहा था. 



“ मज़ा नही आ रहा है. बहुत ज़्यादा गीली हो गयी है. चल इसे साफ कर.” उन्हों ने अपने लंड की ओर इशारा किया. 



“ मज़ा नही आ रहा है? इधर मेरी जान निकाल कर रख दी और आपको मज़ा नही आ रहा है. ऑफ कितना बड़ा है आपका. जैसा आपका लंड वैसा ही आपकी ताक़त. मैं तो हार गयी आपके जोश के सामने.” मैने उनके हाथ से कपड़ा ले कर उनके लिंग को पोन्छ्ते हुए कहा. 



“ अब अपनी योनि को भी साफ कर. जितना सूखा रहेगा घिसाई का उतना ही अहसास होगा और घिसाई मे ही तो मज़ा है.” स्वामी जी ने कहा. 



मैने उस कपड़े से अपनी योनि को भी साफ किया. स्वामी जी वापस बिस्तर पर उठ कर लेट गये. 



“ चाल आजा अब तू अपना हूनर दिखा.” उनका खड़ा लंड मुझे आमंत्रण दे रहा था. मैं उठ कर उनके पास आइ. और मैने उनके लंड को अपनी मुट्ठी मे भर कर दो बार सहलाया. फिर अपनी जीभ निकाल कर पूरे लंड पर उपर से नीचे तक चाटने लगी. उनके लिंग को चाटते हुए मुझे अपने ही वीर्य का स्वाद मिल रहा था. मैने अपने दोनो होंठों को गोल किया और उन्हे उनके लिंग के उपर लगा दिया. फिर अपनी जीभ को हल्की सी निकाल कर उनके लिंग के उपर के छेद को छेड़ने लगी. उनके उस छेद से गढ़ा गाढ़ा प्रेकुं निकल रहा था जिसे मैं चाट कर सॉफ कर रही थी. 



“ नही और नही…वरना मेरा स्खलन बाहर ही हो जाएगा.” स्वामी जी ने कहा. 



“ बस कुच्छ देर और रोक लो. मुझे इस मूसल को कुच्छ और प्यार कर लेने दो. “ मैने कहा. मैने अपना मुँह खोला और उनके लंड को अपने मुँह मे भर कर चूसने लगी. जब उनका लंड झटके खाने लगा तो मैने उसे मुँह से निकाल लिया जिससे उत्तेजना कुच्छ कम हो जाए. 



फिर मैने उठ कर उनकी कमर के दोनो ओर अपने घुटने रख कर उनके लिंग को अपनी हाथों से थामा. फिर एक हाथ से अपनी योनि का मुँह खोला और दूसरे हाथ से उनके लंड को अपनी योनि पर सेट किया. सूख जाने के कारण कुच्छ देर लगी उनके लिंग को सही जगह पर सेट करने मे. 



फिर मैं उनके उपर झुक कर अपनी दोनो हथेलिया उनके सीने पर रख कर उनके सीने पर उगे घने बालों को सहलाने लगी. साथ साथ अपनी कमर को उनके लिंग पर नीचे करे लगी. उसके लंड को एक झटके मे ना लेकर धीरे धीरे अंदर करने लगी. 



मेरी योनि और उनका लंड दोनो सूखे होने की वजह से उनका लंड लंड मेरी योनि की दीवारों को घिसता हुआ अंदर जा रहा था. ऐसा लग रहा था मानो किसी खुरदूरी चीज़ से मेरी योनि की दीवारों को घिसा जा रहा हो. योनि मे वापस दर्द की लहर उठने लगी. जब उनका लंड पूरा अंदर हो गया तो मैने स्वामी जी की तरफ देखा. 



“ मज़ा आ गया जब तक लिंग को योनि के साथ रगडे जाने का अहसास ना हो तब तक मज़ा ही नही आता है. आज के लोग कॉंडम लगा कर पता नही कैसे मज़ा ले पाते हैं. असली मज़ा तो बदन से बदन का मिलन ही देता है.” स्वामी जी ने मेरी लटकते हुए स्तनो को अपने हाथों से सहलाया. मैं अब उनके लंड पर अपनी योनि को आगे पीछे करने लगी. अब धीरे धीरे दर्द कम होकर वापस मज़ा आने लगा. 



मैं भी घने बालों मे छिपी उनकी छतियो को सहलाने लगी. मैं अपने दोनो हाथों से उन्हे मसल रही थी. वो मेरे स्तनो को मसले जा रहे थे और मैं उनके. मैं उनके लंड पर धक्के देती देती नीचे झुकी और उनके सीने को चूमने लगी. अपनी जीभ से उनके मटर के दाने जैसे उभरे निपल्स को छेड़ने लगी. 



“ आपकी चूचियो का साइज़ भी लाजवाब है. मानो तेरह साल की किसी बच्ची के स्तन हों.” मैने उनकी छातियो पर अपने दाँत गढ़ाते हुए कहा. 



“हाहाहा…..लेकिन कुच्छ भी करो. कितनी भी मेहनत करो इनमे रस नही आएगा.” स्वामी जी ने कहा. 



“ अच्च्छा? लेकिन कोशिश करने मे क्या बुराई है. कोशिश तो कर ही सकते हैं.” मैने उन्हे छेड़ते हुए कहा. मैं उनकी एक छाती को अपने मुँह मे भर कर चूसने लगी जिस तरह उन्हों ने मेरे स्तनो को चूसा था. 



मैं अपनी योनि के मुस्सलेस से उनके लिंग को बुरी तरह जाकड़ रखी थी. और ज़ोर ज़ोर से अपनी कमर को उपर नीचे कर उनके लिंग को दूह रही थी. पाँच मिनिट्स तक इसी तरह चोदने के बाद मैं अपने घुटनो को मॉस कर उनके लिंग पर उकड़ू होकर बैठ गयी. और अपने घुटनो पर अपने दोनो हाथों को रख कर उनके लंड को वापस घिसने लगी. वो मेरे हमलों से अपना बचाव नही कर पाए और कुच्छ ही देर मे उन्हों ने मुझे अपने लंड से उठा कर बिस्तर पर पटक दिया और वापस मेरे उपर आकर अपने लिंग को जड़ तक मेरी योनि मे डालकर मेरे एक स्तन पर अपने दाँत गढ़ा दिए. मैने भी अपनी टाँगों का हार उनके कमर के इर्दगिर्द डाल दिया और उन्हे अपनी बाँहों मे जाकड़ कर अपने नाख़ून उनकी पीठ पर गढ़ा दिए. 



उनके लिंग से वीर्य की धार फूट पड़ी. मेरे लिए उनका इशारा ही काफ़ी था. मैं चौथी बार उनके साथ ही झाड़ गयी. 



मेरी कोख के हर कोने को उन्हों ने लबालब भर दिया. इतना वीर्य निकला उनके लंड से की जब उनका लिंग ढीला होकर बाहर निकला तो उनके लिंग के साथ साथ ढेर सारा वीर्य मेरी योनि से छलक कर बाहर निकल्ने लगा. मलाई की तरह उनका वीर्य मेरी योनि से बाहर निकल कर दोनो नितंबों के बीच से बहता हुया नीचे चादर पर ढेर हो रहा था. 



हम दोनो लेटे हुए एक दूसरे को चूम रहे थे, चाट रहे थे. 



हम दोनो बिस्तर पर लेटे किसी नये जोड़े की तरह चूमा चॅटी मे व्यस्त थे. स्वामी जी सेक्स के मामले मे इतने निपुण थे की उनके पास आकर कठोर से कठोर महिला भी अपने जिस्म पर से काबू खो बैठती थी. 



उनको किसी महिला के जिस्म मे कौन कौन से पायंट्स होते हैं जिनको छेड़ने से पूरे जिस्म मे करेंट दौड़ जाता था, के बारे मे पूरी जानकारी थी. इसलिए किसी महिला को अपने वश मे कर लेना उनके लिए सिर्फ़ चुटकी भर का काम था. उनकी आँखों मे, उनके होंठों मे उनके जिस्म मे इतनी तीव्र सम्मोहन शक्ति थी कि अगर कोई महिला एक बार उनके संपर्क मे आती तो जिंदगी भर के लिए उनकी गुलाम बन कर रह जाती. मैं भी उनकी गुलाम बन कर रह गयी थी. 

क्रमशः............ 
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12-10-2018, 02:36 PM,
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -67 

गतान्क से आगे... 


सेक्स के मामले मे भी उनकी सानी नही थी वो ऐसी ऐसी जड़ी बूटियों का सेवन करते थे कि उनका लिंग कई कई घंटो तक किसी खंबे की तरह खड़ा रहता था. आच्छि अच्छि रांड़ भी उनके सामने पानी भरने लगती थी. 



खैर हम दोनो एक दूसरे के बदन को सहलाने लगे. मैं उनको चित लिटा कर उनके सीने पर लेट गयी और उनके चेहरे को अपनी अंजूरी मे भर कर चूमने लगी. उनके हाथ मेरी पीठ पर फिर रहे थे. उनके हाथ गर्देन से फिसलते हुए नितंबों तक जा कर रुक रहे थे. 

उनका हाथ मेरी पीठ पर इतनी आहिस्ता से फिर रहा था की मुझे सिहरन सी होने लगी थी. 



तभी उनके हाथ मेरे नितंबों पर जा कर रुक गये. अब वो मेरे दोनो नितंबों को अच्छि तरह सहला कर दोनो नितंबों के बीच की दरार मे एक उंगली डाल कर मेरे गुदा द्वार को सहलाने लगे. कुच्छ देर तक यूँ ही सहलाने के बाद उनकी उंगली नीचे खिसक कर मेरी योनि को छू गये. मैने अपनी टाँगे दोनो ओर फैला कर उनकी उंगली का स्वागत किया. उनकी उंगली अब मेरी योनि के होंठों से खेलने लगे. 



मैने अपने सिर को उठाया और अपने दोनो कोहनियो स्वामी जी की छाती पर रख कर अपने चेहरे को दोनो हथेलियों पर सहारा दिया. मैं उन्हे निहारने लगी. स्वामी जी अब आपमे हाथ को उपर लाकर पहले सामने लटक रहे मेरे बालों को पीछे किया और फिर उनकी उंगलियाँ मेरे माथे से सरकते ही छतियो के इर्दगिर्द घूमने लगी. 



मैने महसूस किया की मुझे निहारते हुए वापस उनके लिंग मे कठोरता आने लगी. है मैने अपना एक हाथ उनकी जांघों के बीच ले जाकर उनके लिंग को टटोला. 



“ हाहाहा…..ये बदमाश तो फिर खड़ा होने लगा है.” मैने हंसते हुए उनसे कहा. 



“ तुम्हारे जैसी खूबसूरत सहेली पाकर तो ये जिंदगी भर खड़ा रहने को तैयार है.” कहकर उन्हों ने एक झटके से मुझे बिस्तर पर पटका और दूसरे ही पल वो मेरे उपर सवार थे. 



“ अरे..अरे क्या कर रहे हैं. इतना उतावला पन अच्च्छा नही है.” मैने उन्हे रोकते हुए कहा जबकि मन से मैं उन्हे रोकना ही नही चाहती थी. 



“ हा…..” एक झटके मे उन्हों ने वापस मेरी योनि मे अपना लिंग डाल दिया और फिर शुरू हुआ दूसरा दौर. इस बार कई तरह के आसनो से लगभग आधे घंटे तक मेरी चुदाई की. कभी मैने धक्के लगाए तो कभी उन्हों ने. दोनो की मानो एक दूसरे को हराने की होड़ लगी हो. मगर अंत तक दोनो ही जीत गये. मेरे बदन का निचला हिस्सा उनके वीर्य से लत्पथ था. दूसरे दौर के बाद कुच्छ देर तक दोनो एक दूसरे के आलिंगन मे बँधे अपनी साँसे व्यस्त करने मे जुटे रहे. 



कुच्छ देर बाद रात के खाने का बुलावा आ गया. स्वामी जी उठ खड़े हुए और अपने कपड़ों को दुरुस्त किया. मैं उसी नंगी हालत मे बिस्तर पर पड़ी उनको निहारती रही. जब वो तैयार हो गये तो मैने अपना एक हाथ उठा कर उठने मे मदद करने को कहा. इतनी चुदाई से मेरे बदन मे अब जान ही नही बची थी. 



स्वामी जी की मजबूत बाँहों ने मुझे उठने के लिए सहारा दिया. मैं लड़खड़ाते हुए उठी. अचानक ज़ोर से चक्कर आ गया तो मैं कुच्छ दे बिस्तर पर चुप चाप बैठी रही. स्वामीजी ने मुझे पानी पिलाया. जब वापस मेरी हालत कुच्छ नॉर्मल हुई मई उठ कर खड़ी हो गयी. स्वामी जी ने मुझे कपड़ों को पहनने मे मुझे मदद की. 



मैं उनका सहारा लेकर लड़खड़ाती हुई डाइनिंग हॉल मे आइ. वहाँ मौजूद हर नज़र मेरा पीछा कर रही थी. मैं शरमाती सकुचती खाना खा कर वापस अपने कमरे मे आ गयी. 



वापस आकर मैने देखा पूरे कमरे का नक्शा ही कुच्छ देर मे बदल दिया गया है. 

बिस्तर से गुलाबी चादर को चेंज कर एक सफेद सिल्क की चादर बिच्छा दिया गया था. बिस्तर के चारों कोनो पर रजनीगंधा के ढेर सारे स्टिक्स लगा दिए गये थे. पूरे बिस्तर पर लाल गुलाब की पंखुड़ीयान बिछि हुई थी. सिरहाने रखे टेबल पर शरबत के ग्लास भरे हुए थे और एक बास्केट मे ढेर सारे मेवे रखे हुए थे. 



हम दोनो वापस बिस्तर पर आकर निवस्त्रा हो गये. उनका लिंग अभी भी तनाव मे खड़ा था. मैं बिस्तर पर नग्न लेट कर उनका इंतेज़ार करने लगी. वो शेल्फ से एक बॉटल लेकर आए और उसे साइड टेबल पर रख कर अपने बदन से इकलौती धोती को हटा दिया. उनका एक फूटा लंड मुझे ललकार्ते हुए झटके खा रहा था. 



मैने उनके स्वागत के लिए अपनी टाँगें फैला दी. अपने हाथों को उनकी ओर उठा कर उनमे समा जाने का न्योता दिया. उन्हों ने वापस मेरी कमर को उँचा किया और चौपाया हो कर अपने घुटनो को मेरे कंधे के दोनो ओर रख कर मेरी योनि की ओर झुके. उन्हों ने उस बॉटल से मेरी योनि पर कुच्छ टपकाना शुरू किया. मैने देखा कि वो मेरी योनि पर पतली शहद की धार गिरा रहे थे और फिर उसे अपनी जीभ से चाट चाट कर सॉफ करने लगते. मुझे ये सब बहुत ही अद्भुत लग रहा था. मेरी योनि और उसके इर्द गिर्द हल्के रेशमी बाल सब चिपक गये थे. 



योनि को लगातार कई मिनिट तक जीभ से छेड़े जाने की वजह से मेरा कई बार वीर्य निकल गया. उन्हों ने मुझे उठा कर बैठा दिया. फिर उन्हों ने अपने लिंग को मुझे चाटने को कहा. मैने अपनी जीभ निकाल कर उनके लिंग को चाटने लगी तो वो अपने लिंग पर बूँद बूँद शहद टपकाते जा रहे थे जो की जाहिर है मुझे चाट कर सॉफ करना था. वीर्य और शहद का मिश्रण बड़ा ही टेस्टी लग रहा था. कुच्छ देर तक उनके लिंग को और अंडकोषों को चाटने के बाद मैं अपने मुँह को खोल कर उनके लिंग को अपने मुँह के अंदर लेकर चूसने लगी. उनके लिंग को चूस्ते वक़्त मैं अपनी जीभ से उन्हे छेड़ती भी जा रही थी. ज़ोर ज़ोर से चूसने की वजह से कुच्छ ही देर मे उन्हों ने मेरे सिर को अपने लिंग पर दाब कर ढेर सारा वीर्य मेरे मुँह मे भर दिया. 



लिंग को गले मे दबा देने की वजह से मेरी साँस रुक गयी. फिर इतना सारा वीर्य मेरे गले मे उधेला की कुच्छ वीर्य मेरे गले मे अटक गया और एक ज़ोर की खाँसी के साथ मेरे नाक से बह निकला. जब तक उनका लिंग ढीला नही पड़ गया तब तक उसे मेरे मुँह से बाहर नही निकाला. 



थकान की वजह से खाना खाने के बाद से ही मेरा बदन टूटने लगा था उसके बाद मेरी योनि से इतना वीर्य पात मुझे बुरी तरह थका दिया था. मेरी आँखें इतनी भारी हो गयी थी की उन्हे अब खोले रखना मुश्किल हो रहा था. बहुत कोशिशों के बाद भी आँखें मूंडने लगी थी. जैसे ही उन्हों ने मेरे सिर को छ्चोड़ा मैं भाड़ से बिस्तार पर गिर पड़ी और जैसी गिरी थी उसी हालत मे मेरी आँखें मूंद गयी. 



स्वामी जी मेरी अवस्था भाँप चुके थे. वो बिस्तर से नीचे उतर कर मुझे अपनी गोद मे उठाया और बाथरूम की ओर ले चले. मैने उनके गले मे अपनी बाँहों का हार पहना दिया. उन्हों ने मुझे ले जाकर शवर के नीचे खड़ा कर दिया. बदन पर पानी की ठंडी बूंदे अपना असर दिखाने लगी. मेरे बदन मे ताज़गी का संचार होने लगा. मेरे बदन मे ताज़गी आते ही वापस हवस का भूत अपना असर दिखाने लगा. 



वो शवर के नीचे मुझ से लिपटे हुए मेरे बदन को सहला रहे थे मैं वापस उत्तेजित होकर उनसे बुरी तरह से लिपट गयी. मैं कूद कर उनकी कमर के चारों ओर अपने पैरों को लपेट दिया और उनके गले मे बाँहे डाल कर झूल गयी. मैने अपने दाँत उनके कंधे पर गढ़ा दिए. मैं अपनी नंगी चूचियाँ बेतहासा उनके सीने से रगड़ रही थी. मेरी हालत किसी भूखी शेरनी जैसी हो गयी थी जो किसी भी कीमत पर अपने शिकार को हाथ से निकलने नही देना चाहती हो. 



स्वामी जी ने अपनी पीठ दीवार से सटा दी और एक हाथ से अपने खड़े लिंग को मेरी योनि की फांकों को खोल कर अंदर किया. मैं उनके गले से लिपटे लिपटे ही अपनी कमर को कुच्छ नीचे सर्काई और…..वाआहह….म्‍म्म्ममम…..उनका तगड़ा लिंग वापस मेरी योनि के अंदर था मेरी खाज को मिटाने के लिए. 



उन्हों ने अपनी हथेलियों को मेरे बगलों के नीचे लगा कर मेरे बदन को उपर नीचे होने मे सहयता करने लगे. उन्हों ने मेरे जिस्म को ऐसे उठा रखा था मानो मैं को औरत नही बल्कि रूई की गुड़िया हूँ. 



उनकी ताक़त, उनका बाल उनकी एक एक चीज़ की मैं कायल हो गयी थी. मैं जानती थी कि मैं अब वापस पहले जैसी जिंदगी नही जी सकती थी. ये एक तरह का नशा था जिसकी मैं आदि बनती जा रही थी. मेरा कोई परिचित मुझे इस हालत मे देखता तो विस्वास ही नही करता. इतनी सुंदर, इतनी शुशील और उच्च मान मर्यादाओं वाली एक घरेलू महिला किसी निंफो की तरह भी हरकतें कर सकती है इसे कोई नही मानता. 



मैने अपने पंजों को स्वामीजी के पीछे दीवार पर रख दिया और उनके गले का सहारा लेकर अपनी कमर को उनके लिंग पर आगे पीछे करने लगी. उन्होंने अपनी हथेलियों को मेरे नितंबों पर रख कर मेरे बदन को हवा मे संहाल रखा था. उनके साथ मैने ऐसे ऐसे आसनो का मज़ा लिया जिन आसनो के बारे मे मैं कभी सोच भी नही सकी थी. 



सिर पर गिरती पानी की बूंदे भी हमारे बदन मे लगी आग को बुझाने मे असमर्थ थे बल्कि वहाँ का नशीला वातावरण पानी मे आग लगाता हुआ महसूस हो रहा था. 



कुच्छ देर तक इसी तरह चोदने के बाद उन्हों ने मुझे अपनी कमर से नीचे उतार दिया. मैने शवर के नीचे खड़ी होकर दीवार पर अपनी दोनो हथेलिया रख कर उनकी ओर अपनी कमर को आगे कर दिया. 



“ आअहह…..आऊओ…..आआजाऊओ….” मैने अपनी टाँगों को कुच्छ फैला कर अपने नितंबों के नीचे से अपनी योनि की ओर इशारा किया. स्वामी जी मेरे जिस्म से पीठ की ओर से सॅट गये. मैने खुद अपनी हथेलियों से उनके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि मे डाल लिया. उनके दोनो हाथ मेरे स्तनो को थाम कर उनको बुरी तरह मसल्ने लगे थे. बीच बीच मे उनके हाथ फिसलते हुए पेट के उपर से होते हुए मेरी योनि तक भी जाते. 



वो मुझे धक्के लगाने लगे. कुच्छ देर तक तो मैं उनके धक्को को अपनी हथेलियों से झेलती रही मगर जब मेरी बाजुओं ने जवाब दे दिया तो मेरी कोहनियाँ मूड गयी और मेरे पेट से उपर का हिस्सा दीवार से चिपक गया. मेरे बड़े बड़े स्तन सपाट दीवार पर दब कर फैल गये. 



उन्हों ने भी अपने हाथ दीवार पर रख कर मुझे ज़ोर ज़ोर के धक्को से हिला कर रख दिया, मैं मस्ती मे अया ऊ करती जा रही थी. बीच बीच मे अपनी उंगलिओ से उनके खंबे को छ्छू कर उसके अंदर बाहर होने का अहसास कर रही थी. 



कुच्छ देर तक लगातार इसी तरह से चोदने के बाद उन्होने शवर को बंद कर दिया दोनो की साँसे अब फूलने लगी थी. मैने उनको फर्श पर लेटने का इशारा किया तो वो बिना कुच्छ कहे फर्श पर लेट गये और मैं उन पर सवार हो कर उन्हे चोदने लगी. हम दोनो साथ साथ ही झाड़ गये. 


क्रमशः............
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -68 

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हमने उठ कर एक दूसरे के बदन को तौलिए से पूंच्छा. हम उसी अवस्था मे वापस बेडरूम मे आ गये. मैने घड़ी पर निगाह डाली. रात के दस बज चुके थे. अभी तो पूरी रात बाकी थी अभी तो बहुत खेल बाकी था. देखना था कि मैं स्वामी जी को हरा देती या खुद उनसे रहम की भीख माँगने लगती. 



स्वामी जी के चेहरे पर थकान का कोई नामो निशान भी नही दिखाई दे रहा था. वो पूरी रात बिना रुके मुझे चोद सकने की हिम्मत रखते थे. मैं ही दिन भर की चुदाई से पस्त हो गयी थी. 



दोनो वापस बिस्तर पर आकर लेट गये. स्वामी जी मुझसे लिपट कर लेट गये. मैं भी उनसे इस तरह लिपट गयी मानो कोई कमजोर लता अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश मे मजबूत पेड का सहारा लेता हो. 



हम दोनो एक दूसरे को सहला रहे थे और चूम रहे थे. मैं उनके बलों भरे सीने पर अपनी उंगलियाँ फिर रही थी तो वो मेरे चिकने सीने को सहला रहे थे, उनके चेहरे पर उगी लंबी दाढ़ी उनके अस्तित्व को और ज़्यादा रोमॅंटिक बना रही थी. मैं अपने गाल्लों को उनकी दाढ़ी पर घिसने लगी. इससे बदन मे एक गुदगुदी सी दौड़ने लगी. 



मैं कुच्छ ही देर मे गहरी नींद मे डूब गयी. पता नही कितनी देर तक वो मुझे प्यार करते रहे. मैं उनकी हरकतों से बेख़बर सो रही थी. पता नही कब उनका लंड वापस उत्तेजी हो कर खड़ा हो गया. जब उन्हों ने मुझे सीधा कर के मेरी योनि मे अपने लंड डाल दिया तो मेरी नींद खुल गयी. 



उन्हों ने मेरी दोनो टाँगों को अपने कंधे पर रख लिया था. अपने दोनो हाथों मे मेरे दोनो स्तन थाम रखे थे. उनका ही सहारा लेकर वो मेरे उपर झुक कर मुझे चोद रहे थे. उनके हर धक्के के साथ मेरा पूरा बदन बुरी तरह हिल रहा था. मैं काफ़ी देर तक यूँ ही बिना किसी आवेग के बिल्कुल निस्चल पड़ी रही. ऐसा लग रहा था मानो जिस्म मे अब जान ही नही बची हो. मेरा मुँह खुला हुआ था और मेरे सीने धोक्नि की तरह उपर नीचे गिर रहे थे. 



काफ़ी देर तक इसी तरह चोदने के बाद जब उन्हों ने मुझे उल्टा किया तो मैं अपने हाथों और पैरों मे ज़ोर नही ला सकी. मैं बिस्तर पर किसी लाश की तरह पसरी रही. स्वामी जी मुझे इतनी जल्दी छ्चोड़ने वाले थे नही उन्हों ने मेरी कमर के नीचे दो तकिये लगा कर वापस मेरे नितंबों को उँचा किया और इस बार उनका हमला मेरी योनि की जगह मेरा गुदा रहा उन्हों ने बिना किसी चिकनाई के ईक दम से मेरे नितंबों को चौड़ा कर अपने लंड को मेरी गंद मे थेल दिया. मैं दर्द से च्चटपटा उठी. मुझे ज़ोर से चक्कर आया और मैं अंधेरो मे डूबती चली गयी. 



पता नही कितनी देर मैं बेहोश पड़ी रही. और स्वामी जी मेरे जिस्म को कितनी देर नोचते रहे कुच्छ पता नही चला. सुबह पाँच बजे स्वामी जी ने मेरे चेहरे पर पानी के छिंट डाल कर मुझे होश मे लाया. 



वो मुझ पर झुके हुए थे. मैने उनके गले मे अपनी बाँहों का हार डाल दिया. 



“ सॉरी गुरुजी मैं आपको बीच मे ही छ्चोड़ कर चली गयी थी. पता नही मुझे ज़ोर से चक्कर आया और फिर मुझे कुच्छ भी होश नही रहा.” 



“ कोई बात नही पहले पहले ऐसा ही होता है. धीरे धीरे तुम सेक्स की इतनी आदि हो जाओगी कि हर वक़्त तुम्हारी योनि मे एक आग जलती रहे गी. हर पल सिर्फ़ सेक्स और सेक्स ही सूझेगा.” स्वामी जी ने कहा. 



“मुझे अब नित्य कर्म के लिए निकलना है उसके बाद पूजा पाठ योगा इन सब मे दोपहर हो जाएगी तुम इस दौरान आराम कर लेना.” स्वामी जी ने कहा. 



“ जाने से पहले एक बार……..” मैने अपनी बात अधूरी ही रख दी. कहने को कुच्छ नही था दोनो समझ रहे थे बात का मर्म. 



मैने अपनी टाँगें हवा मे उँची कर छत की ओर तान दी और अपनी उंगलियों से अपनी योनि को फैला कर उन्हे न्योता दिया. स्वामी जी मेरे न्योते को स्वीकार कर मेरे हवा मे उठी टाँगो को थाम लिया और उन्हे फैला कर मेरी खोली योनि की फांको को एक बार सहलाया. वो मुझे तडपा रहे थे. मैं उत्तेजित हो कर उनके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि की ओर खींचा और साथ साथ अपनी कमर को उनकी ओर उठा दिया. 



उन्हों ने मेरी टाँगो को छ्चोड़ कर अपनी हथेलियों को मेरे कंधे की बगल मे रख कर सहारा लिया और एक बार फिर हम सेक्स के आनंद मे डूब गये. मेरी थकान अब काफ़ी हद तक कम हो चुक्का था इसलिए मैने भी खूब एंजाय किया. काफ़ी लंबी चुदाई के बाद हम दोनो एक साथ स्खलित हो गये. 



मैं निढाल होकर वापस बिस्तर पर गिर गयी. मगर इस उम्र मे भी उनके जिस्म मे किसी तरह की शिथिलता नही थी. मैं टकटकी मारे उनको देखती रह गयी. स्वामी जी मेरे माथे पर अपना हाथ फेरते हुए कमरे से बाहर निकल गये. 



उनके जाने के कुच्छ देर बाद तीन युवतियाँ कमरे मे आई. मैं बिस्तर पर पसरी हुई थी मेरी दोनो टाँगे फैली हुई थी और योनि मुख पर एवं आस पास जांघों पर सफेद सफेद वीर्य के थक्के लगे हुए थेऊन्होन ने मेरे पूरे जिस्म की सुगंधित तेल से और जड़ी बूटियों से मालिश की. फिर तीनो ने मुझे अपने साथ बाथरूम मे ले जाकर खूब नहलाया. फिर बाहर आकर उन्हों ने मुझे कमरे के बीच खड़ा कर पूरे बदन पर बहुत ही भीनी खुश्बू वाला इत्र लगाया. फिर उन्हों ने एक बहुत ही झीनी सी नाइटी मुझे पहनाई. वो मेरे हाथों को थामे बेड तक ले आए. बेड के साइड टेबल पर एक तश्तरी भर सूखे मेवे रखे और फल रखे थे. उन्हों ने मुझे उनका नाश्ता कराया. 



“ अब आप आराम कर लें. वरना स्वामी जी के साथ सहवास का पूरा मज़ा लेने से आप वंचित रह जाएँगी. किसी भी तरह की सेवा की ज़रूरत हो तो पलंग पर लगी इस घंटी को दबा दीजिएगा.” एक ने मुझे कहा और फिर सारे मुझे उस कमरे मे अकेला छ्चोड़ कर बाहर निकल गयी. मैं भी बुरी तरह थॅकी होने की वजह से लेट गयी और लेट ते ही नींद आ गयी. मैं जिस हालत मे सोई थी. घंटो तक बिना हीले दुले उसी हालत मे सोती रही. 



दोपहर को भोजन के वक़्त मुझे उन्ही युवतियों ने आकर उठाया. कुच्छ ही देर मे स्वामी जी भी आ गये. हम दोनो ने कमरे मे ही खाना खाया. खाना खाते वक़्त मैं उनकी एक जाँघ पर बैठी हुई थी और उस अवस्था मे हम दोनो ने एक दूसरे को खाना खिलाया. खाना ख़तम होने के बाद उसे नशीले शरबत का हम दोनो ने सेवन किया. 



खाना खाने के बाद हमारे बीच एक और राउंड चला . इस बार ये खेल तकरीबन एक घंटे तक चला. इस बीच उन्हों ने दो बार अपने वीर्य की बौच्हर मेरी कोख मे की और मैं तीन बार स्खलित हुई. फिर हम दोनो लिपट कर सो गये. 



इसी तरह रोज पाँच सात बार चुदाई हो ही जाती थी. गुरु जी के बल का उनकी पवर का मैने तो लोहा मान लिया था. किसी भी नॉर्मल 25-30 साल के मर्द के लिए भी रोज पाँच सात बार स्खलन करना नामुमकिन काम था. और ऐसा भी नही की जल्दी झाड़ जाते हों. पंद्रह मिनिट से पहले तो कभी उनका रस नही निकला. 



मैं चुदाई की इतनी आदि हो गयी थी की हर वक़्त मेरी चूत मे खुजली चलती रहती थी. दिन मे कई कई बार चुदवा कर भी मेरा मन नही भरता था. स्वामी जी ने चोद चोद कर मेरी सारी खाज मिटाने का जिम्मा ले रखा था. 



चार दिन ऐसे ही बीत गये. पाँचवे दिन स्वामीजी ने कहा कि कोई मिनिस्टर आने वाला है. उन्हों ने उस मिनिस्टर से आश्रम की ज़मीन मुफ़्त मे हासिल की थी. बदले मे उन्हे आश्रम के इनऑयरेशन मे चीफ गेस्ट बनाया था. चीफ गेस्ट बनने को राज़ी होना तो बस एक दिखावा था. असल मे उन्हे आश्रम मे भरपूर सेक्स का आनंद लेने के लिए बुलाया गया था. स्वामी जी ने भी उन्हे भरपूर मौज मस्ती का अस्वासन दिया था. मंत्री जी को भी रोज रोज नयी औरत की ज़रूरत होती थी. 



“ मंत्री जी का स्वागत तुम करोगी. उनके साथ जो चेले चपाते होंगे उनका ख्याल रखने के लिए आश्रम की दूसरी शिष्याएँ हैं. तुम सिर्फ़ मंत्री जी का ख़याल रखोगी. उनकी पूरे तन मन से सेवा करना. उनको किसी तरह की शिकायत का मौका मत देना. उनसे मुझे और भी कई काम निकलवाने हैं.” 



मैं राज़ी हो गयी. 



“ ये दवा जब मंत्री जी आए तो ले लेना” स्वनी जी ने मुझे एक टॅबलेट देते हुए कहा. 



मैने जिगयसा वश उनकी तरफ देखा तो उन्हों ने आगे कहा,” ये दवा लेने के बाद तुम फ्री होकर सेक्स कर सकती हो 24 घंटे ये दवा काम करती है इस दौरान तुम्हे प्रेग्नेन्सी नही होगी. ये शुक्राणु को निष्टेज करता है.” 



मैने चुपचाप उनसे दवा ले ली. 



अगले दिन शाम को स्वामी जी उन्हे ले कर आए. उनकी एक झलक देखते ही मुझे उनसे नफ़रत हो गयी. नफ़रत के ही लायक थे वो. सवा सौ किलो का बोझ था वो धरती पर. आगे से पेट किसी गुब्बारे की तरह फूला हुआ था. एक दम भैंस की तरह काली रंगत और चेहरा उतना ही कुरूप. पूरे चेहरे पर चेचक के दाग थे. 



हर वक़्त मुँह मे गुटखा चबाते रहते थे. होंठों के कोने हल्के से फटे हुए थे जिन पर गुटके के दाने निकल आते थे. मुझे घिंन आ गयी उनके पास जाने मे. बिल्कुल जुगली करता हुआ कोई भैंसा प्रतीत हो रहा था. 



मैने स्वामी जी की दवा उत्तेजक शरबत के साथ ले ली. मैं उनक संपर्क मे आने से पहले अपने मन मस्तिष्क को उत्तेजना से भर देना चाहती थी जिससे किसी तरह का कोई विरोध, कोई नफ़रत या झिझक के लिए जगह नही रहे. 



मैं स्वामी जी के कमरे मे सिर्फ़ एक पतली सारी बदन पर लपेटे रहती थी. इसके अलावा बदन पर और कुच्छ भी पहनने को स्वामी जी ने मना कर दिया था. मेरे बड़े बड़े बूब्स मेरी हर चाल के साथ हिलने लगते थे. सामने से मेरे दोनो स्तनो की भरपूर झलक मिलती थी और पीछे से मेरे नितंब साफ नज़र आते थे. 



दोनो आकर कमरे मे सोफे पर बैठ गये. स्वामी जी ने मुझे बुलाया. 

क्रमशः............
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