Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
12-28-2018, 12:48 PM,
#41
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
"माँ मज़ा आ रहा है ना बेटे से चुदवाने का" मैने माँ की चूत मे एक ज़ोरदार घस्सा लगाकर पूछा. माँ ने अपनी आँखे खोलीं. वो मदमस्त थी. उसके मुख से निकल रही सिसकियाँ उसका जबाब थी. मगर मुझे इस जवाब से संतुष्टि नही थी. मैने उसके चूतड़ो को ज़ोर से मसल कर फिर से पूछा, "माँ मज़ा आ रहा है अपने बेटे से चूत मरवाने का" माँ ने फिर से आँखे खोलीं और मेरी ओर देखकर हल्का सा सर हिलाया. मैने एक पल के लिए घस्से मारना रोक उसके चुतड पर कस कर थप्पड़ मारा. माँ 'हीईीईईईईईईई' कर चिल्ला उठी मगर मैने रुकने की वजाय दो तीन थप्पड़ दोनो चुतड़ों पर जमा दिए. 

"मैने तुझसे कुछ पूछा है, जवाब देगी या?" माँ ने आँखे खोल मेरी ओर देखा और इस व्यवहार पर थोड़ा सा चकित नज़र आई मगर फिर तेज़ी से बोली "आ रहा है, बहुत मज़ा आ रहा है" 

"किसमे बहुत मज़ा आ रहा है? क्या करवाने में मज़ा आ रहा है? पूरा बोल नही तो चुदाई ख़तम समझ!" मैं खुद अपने पर चकित था, वो लफ़्ज जैसे मैं नही बोल रहा था बल्कि मेरे अंदर बैठा कोई और सख्स बोल रहा था.

"तुमसे चुदवाने में, तुमसे चुदवाने मैं बहुत मज़ा आ रहा है" माँ एकदम से बोल उठी. लगता था जैसे वो मेरे चुदाई रोक देने की बात से ख़ौफज़ादा हो गयी थी.

"अपने बेटे के लंड से चुदवाने मैं मज़ा आ रहा है तुझको? अपने बेटे से अपनी चूत मरवाने में मज़ा आ रहा है" मैने लंड को वापस हरकत में लाते कहा. जाने क्यों उन लफ़्ज़ों के इस्तेमाल से मुझे एक अलग ही आनंद मिल रहा था.

"हां! हां! अपने बेटे से अपनी चूत मरवाने में बहुत मज़ा आ रहा है मुझे. हइईई.....मारो मेरी चूत....अपनी माँ की चूत मारो....चोदो अपनी माँ को.....आआअहज....चोदो....कस कस कर चोदो"


माँ के इन अल्फाज़ों को सुन मेरी नसों में बहने वाला लहू दुगनी रफ़्तार से दौड़ने लगा. मैं उसे कस कस कर पूरा ज़ोर लगाकर चोदने लगा. हर धक्के के साथ मेरे मुख से 'हुंग' , 'हुंग' करके आवाज़ निकलती. ज़ोरदार धक्के लगने से माँ फिर से अपने पुराने रूप में आ गयी थी. उसकी सिल्क जैसी मुलायम चूत की दीवारों को रगड़ता, घिसता मेरा लंड उसे कितना मज़ा दे रहा था उसके मुख से निकलने वाली सिसकियाँ बता रही थी. मगर ऐसे खड़े खड़े चुदाई करने से मैं पूरा लंड उसकी चूत में नही घुसेड पा रहा था मतलब जो चुदाई होनी चाहिए थी वो नही हो पा एही थी. मैने आसन बदलने का फ़ैसला किया. 

"माँ अपनी बाहें मेरी गर्दन में डाल लो और अपनी टाँगे मेरी कमर पर लपेट लो. माँ को पहले शायद समझ नही लगी तो मैने उसके चुतड़ों के नीचे हाथ जमा उसे उपर को उछाला और उसका वज़न अपने हाथों पर ले लिया, वो अब मेरी गोदी मे थी. उसको समझ में आ गया और उसने तुरंत अपनी टाँगे मेरी कमर पर कस दी.' अब वो मेरी गर्दन में बाहें डाले मेरे लंड पर झूल रही थी.

मैने माँ के कुल्हों पर ज़ोर लगाकर उपर उठाया और फिर नीचे आने दिया. पुक्क्कक कर लंड जड़ तक उसकी चूत में जा टकराया. माँ 'उफफफफफफफफ्फ़' कर उठी. 

"वैसे मेरा पूरा लंड तुम्हारी चूत में नही जा पा रहा था, अब यह पूरा अंदर जाएगा और देखना तुम्हे बेटे से चूत मरवाने में कितना मज़ा आएगा" माँ के कानो में बोलते हुए मैने उसे अपने लंड पर उछालना सुरू कर दिया. मज़ा माँ को ही नही,'मुझे भी पूरा आ रहा था. उसकी चूत में जब पूरा लंड अंदर बाहर होने लगा तो एक अलग ही मज़ा आने लगा और उपर से मेरी छाती पर रगड़ खाते उसके मम्मे मेरे मज़े को दुगना कर रहे थे. माँ की क्या कहूँ, उसको तो इतना मज़ा आ रहा था कि कुछ धक्कों के बाद मुझे ज़ोर लगाने की ज़रूरत ही नही रही, वो खुद ही मेरी गर्दन में बाहें डाले झूलती हुई मेरे लंड पर उछालने लगी. खूब उछल उछल कर मरवा रही थी माँ अपनी चूत. मैं तो बस अब उसके चूतड़ो को थामे वहाँ खड़ा था. माँ जब भी उपर होकर लंड बाहर करती और फिर एकदम से नीचे आती तो लंड सटाक से पूरा चूत में घुस जाता. मेरी उत्तेजना चरम पर पहुँचने लगी थी. चुदाई की आवाज़ों के साथ हमारे होंठो से निकलती सिसकियाँ हमारी मस्ती में और भी बढ़ोतरी कर रही थी. 

"माँ कैसा लग रहा है अपने बेटे के लंड पर उछल उछल कर चुदवाने में? मज़ा आ रहा है ना मेरी माँ को?" मैं माँ के होंठो को चूमना चाहता था, उसके मम्मो को मसलना चाहता था मगर मेरे दोनो हाथ व्यस्त थे. माम ने मेरी बात सुनकर एक हुंकार सी भरी. वो और भी ज़ोरों से उछलने लगी. मेरे लफ़्ज़ों ने आग में घी का काम किया था.

"हाए बेटा ....बड़ा मज़ा...... आआ....रहा है....उफफफफफफ्फ़....ऐसे......ही मुझे........चोदता......रह........हाए.....मेरी चूत...........मारता.....रह"

"चुदवा ले माँ जितना चुदवाना है, जी भर कर चुदवा. ठुकवा ले अपनी चूत अपने बेटे से" मैं भी माँ को उछलने में मदद करते बोला. 

"हाए...ठोक....ठोक....मुझे........ठोक मेरी चूत...........हाए.....हाए........मार अपनी माँ....की चूत "

माँ के साथ उस जबरदस्त चुदाई और उस गर्मागर्म बातचीत से मुझे अहसास होने लगा कि मैं अब जल्द ही छूटने वाला हूँ. अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछेक मिंटो मे मैं स्खलित हो जाने वाला था. मगर उस समय जो असीम मज़ा मुझे प्राप्त हो रहा था उसके कारण मैं उस समय छूटना नही चाहता था. माँ की हालत एसी थी कि वो अब मेरे कहने से रुकने वाली नही थी. तभी मेरे मन में एक विचार आया. माँ को अपनी गोदी में उठाकर चोदते हुए में मकयि के खेत से बाहर की ओर जाने लगा. इससे धक्कों की रफ़्तार थोड़ी कम पड़ गयी. "उफफफ्फ़...क्या कर रहा है? कहाँ जा रहा है?" माँ ने वैसे ही लंड पर उछलते हुए कहा

मगर मैं कोई जवाब दिए बिना धीरे धीरे कदम उठाता चलता रहा. मकई से बाहर निकल धान के खेत के पास हमारा बोरेवेल्ल था. कदम दर कदम बढ़ाता मैं बोरेवेल्ल के पास पहुँच गया. मैं माँ को उठाए बोरेवेल्ल की धार के पास चला गया और वहाँ जाकर मैने धीरे से माँ को उतारा. माँ ने विरोध जताया मगर मैने उसे ज़ोर लगाकर उतार दिया और फिर वहीं पानी में लिटा दिया. माँ को कुछ समझ नही आ रहा था, वो मेरी ओर सवालिया नज़र से देख रही थी. पानी में लिटाकर मैने माँ को थोड़ा उपर को खींचा. अब उसका सर मिट्टी की उस बाढ़ पर था जो पानी को बाँध रही थी और बाकी पूरा जिस्म पानी के अंदर. मैने माँ को थोड़ा सा घुमाया, अब बोरेवेल्ल से पानी की धार सीधे उसके उपर पड़ रही थी. माँ को सही जगह करके मैं उसके उपर चढ़ गया और बिना किसी देरी के उसकी चूत में लंड पेल दिया. माँ हाए कर उठी. मैने बिना एक पल भी गवाए माँ की ताबड़तोड़ चुदाई सुरू करदी. लंड के साथ साथ उसकी चूत में पानी भी अंदर बाहर हो रहा था. दूसरे धक्के के साथ ही उसने अपनी कमर उछालनी सुरू करदी. मैने भी खींच खींच कर धक्के लगने सुरू कर दिए.

बोरेवेल्ल की धार के नीचे चुदाई करने से सबसे बड़ा फ़ायदा यह था कि मेरी कमर पर गिरती पानी की सीधी धार मुझे ठंडक प्रदान कर रही थी. अब मैं जल्द ही स्खलन नही होने वाला था. मैने माँ के मम्मे हाथो में थाम अपना ज़ोर लगाना चालू रखा. उधर माँ भी अब अपना रौद्र रूप दिखा रही थी. कमर उछाल उछाल कर चुदवाते हुए वो अपना सर इधर उधर पटक रही थी. उसके बालों और गालों पर इससे कीचड़ लग रहा था. वो उस समय शिकार पर निकली भूखी शेरनी के समान थी. पानी में छप छप करते हम दोनो जैसे एक दूसरे से ज़ोर आज़माइश कर रहे थे. 

"माँ मज़ा आ रहा है ना" मैने घस्से लगाते पूछा.

"पूछ मत, बस चोदता जा...हाए ऐसे....मज़े के बारे मैं तो.......कभी सोचा भी नही था.......उफफफ़फगफ्फ ऐसे ही घस्से मारता रह.........हाए ऐसे ही, ऐसे ही...मार मेरी चूत......मैं अब छूटने ही वाली हुउऊन्न्नम" 

"हाए माँ मेरा भी जल्द ही निकलने वाला है......,बड़ी कसी चूत है तेरी माँ........चोद चोद कर भोसड़ा बना दूँगा इसे मैं" 

"बना दे....बना दे.......मेरी चूत को भोसड़ा....ठोक अपनी माँ को....उफफफफफफ्फ़ हाए...बेटा....मेरे...लाल.....ऐसे ही चोदते जा...आअहझहह...हाए....मेरी चूत...उउफफफ़फ़गगगगफ्फ" 

माँ के अल्फाज़ों ने, उसकी सिसकियों ने और उसे काम वासना में इधर उधर सर पटकते देख मेरे टट्टों मे मेरा वीर्य उबलने लगा. अब मैं चाह कर भी चुदाई रोक नही सकता था. मैं माँ के निप्प्लो को चुटकियों में मसलते अपनी कमर पूरी स्पीड से चलाने लगा. माँ ने अपनी टाँगे हवा में उठा दी. मेरे लंड पर उसकी चूत कुछ संकुचित सी होती महसूस हो रही थी. माँ की सांसो की रफ़्तार बढ़ गयी थी, उसने कमर उछालनी बंद कर दी, वो अपने हाथ पाँव पाटने लगी, मछली की भाँति तड़फ़ड़ने लगी और इससे पहले कि मैं छूटता वो छूटने लगी. मैने चुदाई उसी तरह चालू रखी. माँ बहुत ज़ोरों से चीख रही थी. उसकी आवाज़ काफ़ी दूर तक जा रही होगी मगर हम दोनो में से किसी को भी इसकी परवाह नही थी. उधर माँ अपने सखलन की तीव्रता में मेरी गर्दन को अपनी बाहों में कस्ति मेरे कंधो को अपने नखुनो से कुरेद रही थी, उधर मेरे लंड से पिचकारियाँ निकलनी सुरू हो गयीं. मैने वीर्य निकलते निकलते उसकी चूत में कुछ धक्के लगाए फिर उसके उपर गिर गया. लंड से अब भी पिचकारियाँ निकल रही थीं. मुझे ऐसे महसूस हो रहा था जैसे मेरे सरीर से पूरी उर्जा निकल रही है. मेरा जिस्म बेजान होता जा रहा था. मैं माँ की छाती पर सर रखे गहरी साँसे ले रहा था और माँ जिसका सखलन अब धीमा पड़ चुका था, मेरे गाल को चूमती मेरी पीठ सहला रही थी

हम दोनो कुछ देर बिना हीले डुले वहीं पड़े रहे. मुझे बहुत थकान महसूस हो रही थी. बदन का अंग अंग टूट रहा था, हालाँकि बदन में एक हलकापन सा भी महसूस हो रहा था, मन में एक संतोस सा अनुभव हो रहा था, जैसे जिस्म में घर किए एक बैचैनि ने मेरा पीछा छोड़ दिया हो. एक तरफ अच्छा लग रहा था तो दूसरी तरफ मैं पूरा निढाल हो गया था जैसे बरसों का थका मांदा हूँ. कुछ देर बाद बदन में हल्की सी जान आई तो मैं माँ के उपर से हट गया. मेरा छोटा पड़ चुका लंड फिसल कर माँ की चूत से बाहर आ गया. माँ की ओर मैने हाथ बढ़ाया तो उसने मेरा हाथ थामा और उठ खड़ी हुई. हम दोनो बोरेवेल्ल की धार के नीचे खड़े होकर नहाने लगे. माँ अपने सर और गालों से कीचड़ धो रही थी. अच्छी तरह मल मल कर बदन धोने और नहाने के बाद हम पानी से बाहर निकले. माँ ने मेरी तरफ देखा तो मैने उससे कहा "तुम शेड में चलो, मैं कपड़े लेकर आता हूँ" माँ ने इधर उधर देखा जैसे किसी के वहाँ होने का शक हो. 

"ओह माँ क्यों बेकार मैं इतनी चिंता करती हो. यहाँ कभी कोई नही आता. तुम्हे खुद भी तो पता है. तुम चलो मैं अभी कपड़े लेकर आया" माँ ठंडी साँस लेकर शेड की ओर चल पड़ी और मैं वापस मकयि के खेतों की ओर. 

वापस उसी स्थान पर से मैने अपने कपड़े उठाए, जब माँ के कपड़े उठाए तो उसके पेटिकोट में से उसकी कच्छि नीचे गिर पड़ी. मैने उसे उठाया और ध्यान से देखा. वो अब सुख चुकी थी मगर चूत के रस का धब्बा सा वहाँ रह गया था. मैने जिग्यासा वश उसे धब्बे को अपनी उँगुलियों से मसला, फिर कच्छि उठाकर अपने नाक के पास ले जाकर उसे सूँघा. उसकी वो तीखी गंध मेरे नथुनो से टकराई तो जिस्म मे एक बिजली की लहर सी दौड़ गयी. मैने नाक पर कच्छि लगाकर एक ज़ोर से साँस खींची तो मेरा अंदर सनसनाहट से भर गया. माँ की चूत की महक पुरानी शराब के नशे जैसी थी. मैने अपनी जाँघो के बीच झूलते अपने लंड में एक सुरसुरी सी महसूस की. अपना सर झटकते मैं वहाँ से निकल शेड की ओर चल पड़ा.
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12-28-2018, 12:48 PM,
#42
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माँ शेड के कमरे में नंगी बैठी स्टोव पर खाना गरम कर रही थी. वो एक लकड़ी के गुटके पर बैठी थी जो हमारे लिए स्टूल का काम देता था. उसके घुटनो पर उसके भारी मम्मे दबे हुए थे, और टाँगे थोड़ी खुली होने से चूत के होंठ थोड़ा सा खुल गये थे. अंदर से लाली झलक रही थी. मेरे लंड मैं कुछ तनाव आना सुरू हो गया था. माँ ने खाना गरम कर लिया था और स्टोव पर चाय रख वो खाना लेकर चारपाई पर आ गयी. खाना रख वो मेरे पास आई और अपने कपड़े लेने लगी तो मैने उसका हाथ झटक दिया. 

"माँ इतनी भी क्या जल्दी है कपड़े पहनने की, देखो कितनी गर्मी है. चलो पहले खाना खाते हैं फिर कपड़े पहन लेना" 

"अगर कोई आ गया तो हमे देखकर क्या समझेगा" माँ ने पूछा तो मैं हंसकर उसके मम्मे को प्यार से सहला कर कहा "क्या कहेगा? यही कहेगा कि माँ बेटा आपस में प्यार कर रहे हैं. बेटा माँ की ले रहा है. और क्या कहेगा?"

"कुछ शरम करो.........देखो बेटा सच में खेतों के बीच कोई और बात थी मगर यहाँ ऐसे नंगे अच्छा नही है. कोई भी आ सकता है"

"ओह माँ तुम भी कितना डरती हो" मैं उसके दोनो मम्मे दबाता बोला. "इधर कोई नही आएगा. ना कभी कोई आया है, ना कभी कोई आएगा. देखो आसमान में बदल घिर रहे हैं, लगता है बारिश होगी. ऐसे में कॉन आएगा" मैने माँ को समझाने का प्रयत्न किया मगर उसके चेहरे पर चिंता दिखाई दे रही थी. 

"माँ क्यों परेशान होती हो, चलो हम खिड़की खोल लेते हैं. इधर कोई आएगा तो हमे दूर से दिखाई पड़ेगा. चलो अब खाना खाते हैं. बहुत भूख लग रही है, बहुत मेहनत करवाई है तुमने आज" माँ मेरी बात सुनकर कुछ शरमा सी गयी. मगर इतना शुक्र था वो मेरी बात मानकर चारपाई पर मेरे साथ बैठकर खाना खाने लगी. माँ मेरे सामने पालती मारकर बैठी थी. उसकी चूत पूरी खुलकर मेरी आँखो के सामने थी. मैं खाना ख़ाता ख़ाता बस माँ की चूत को घुरे जा रहा था. उस गुलाबी चूत को देखकर ही मेरे अंदर नशा सा छाने लगता था. 

"खाने पर ध्यान दो. क्या ऐसे नज़र जमाए देखे जा रहे हो?" माँ ने थोड़ा सा गुस्सा दिखाते कहा.

"हाए माँ क्या कहूँ. तेरी इस गुलाबी चूत के बलिहारी जाऊ,'इससे नज़र हटती ही नही. देख तेरी चूत को देखने से मेरा लंड फिर से हार्ड हो गया है" मैने माँ को अपने खड़े हुए लंड की ओर इशारा करके कहा तो माँ के गाल लाल हो उठे. चेहरे पर शरम की लाली सी दौड़ गयी. उसने अपनी टाँगे खोल कर मोड़ कर अपनी चूत को छुपाना चाहा मगर असफल रही. मैं हंस पड़ा तो माँ खीज उठी.

"कुछ शरम कर. अब ऐसे बात करेगा अपनी माँ से" 

"अरे क्यों गुस्सा करती हो माँ. अभी तो हमारे मज़ा करने का समय है. थोड़ा खुलेंगे तभी तो असली मज़ा आएगा ना?" 

"क्यों अभी तक पेट नही भरा. इतना टाइम तक तो लगे रहे अभी और कॉन सा मज़ा करना बाकी है?"

"अरे माँ वो तो थोड़ी गर्मी निकली थी बदन से. असली मज़ा तो अभी करेंगे" मैने अपनी उंगली माँ की चूत की ओर बढ़ाई,'माँ ने मेरा हाथ झटका मगर मैं माना नही और फिर से उंगली चूत की ओर बढ़ा दी, उसने फिर से मेरा हाथ झटक दिया. ऐसे कुछ पलों तक चलता रहा, अंत मैं माँ ने हार मानते हुए मेरा हाथ नही झटका. मैने अपनी उंगली माँ की चूत के होंठो की लकीर पर फेरी और फिर धीरे से उसे अंदर घुसेड दिया. "हाए" माँ सिसक उठी. मेरी उंगली को गीलेपन का अहसास हुआ. मैने दो तीन बार उगली आगे पीछे कर जब बाहर निकाली तो वो पूरी भीगी हुई थी.

"माँ तुम्हारी तो पूरी चू रही है. लगता है फिर से बेटे के लंड से मरवाना चाहती है" माँ कुछ नही बोली. मगर कब्से से उसके कड़े हो चुके निपल उसकी कहानी बयान कर रहे थे.खाना लगभग ख़तम हो चुका था. माँ ने उठकर खाना ख़तम किया और बर्तन उठाकर चाय ग्लासों में डालने लगी. जब वो चाय डालने के लिए झुकी तो पीछे से उसकी गान्ड का टाइट छेद और उसकी गीली चूत चमक उठे. मेरे लंड ने एक तेज़ झटका खाया. उसने मुझे गिलास पकड़ाया और अपना ग्लास लेकर खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गयी. बादल घिरने लगे थे और रोशनी कम होने लगी थी. लगता था बारिश कभी भी हो सकती है. मैं माँ के पीछे जाकर खड़ा हो गया. मुझे वो दिन याद आ गया जब कोई डेढ़ साल पहले मैं और माँ वहाँ खड़े थे और बाहर ज़ोरदार बारिश हो रही थी. उस दिन हमारे बीच पहली बार संबंध बना था और दूसरी बार आज, लगभग डेढ़ साल बाद. माँ के पीछे खड़ा चाय की चुस्कियाँ लेता मैं उस दिन को याद कर रहा था जो अब भी मेरे मन में पूरी तरह जीवंत था.

"तुम्हे याद है वो दिन........उस दिन भी बारिश हो रही थी जब हम दोनो ने........कितना समय बीत गया है....कितना कुछ बदल गया है इन चन्द महीनो में" माँ के पीछे खड़ा होने के कारण मुझे नही मालूम वो खुश थी या उदास थी.

"माँ जो भी बदला है अच्छे के लिए ही बदला है...तुम खुश तो हो ना माँ" मैने पूछा तो माँ थोड़ा पीछे हुई और उसने अपनी पीठ मेरे बदन से चिपका दी. 

"मैं बहुत खुश हूँ......तुम दोनो इतनी मेहनत कर रहे हो.......इतना कुछ हासिल करके दिखाया है तुमने.....बॅस मुझे इस बात का दुख है जो काम जो मेहनत हमे करनी चाहिए थी वो तुम कर रहे हो. मुझे इसी बात का दुख है कि मैं और तुम्हारे पिता तुम्हारे लिए कुछ कर नही पाए.......तुम्हारे पिता ने तो कभी कोशिस भी नही की और मुझमे इतनी हिम्मत ही नही थी कि......" माँ का उदास स्वर सुनकर मुझे थोड़ा दुख हुआ. वो हमारी पुरानी प्रस्थितियों के लिए खुद को कसूरवार मानती थी

"मेरी प्यारी माँ तुमने आज तक कभी हमे किसी भी चीज़ की कमी नही होने दी. हमने काम तो अब सुरू किया है, इतने सालों से हम तुम पर ही तो निर्भर थे. फिर तुम अकेली हम दोनो का बोझ उठाए क्या करती. इसलिए अपना दिल छोटा मत करो माँ. बुरा समय गुज़रा समझो, अब हमारे अच्छे दिन आ गये हैं, तुम खुश रहो. हमारी माँ जैसी अच्छी माँ किसी के पास नही होगी......और सेक्सी भी...है ना माँ" मैने अंतिम लफाज़ माँ का मूड हल्का करने के लिए कहे तो उसने अपनी कोहनी पीछे मेरे पेट पर मारी. "बेशरम" उसके मुख से फूटा. मेरी हँसी छूट गयी. शुक्र था चाय ख़तम हो चुकी थी, मैने गिलास दूर फेंक दिया. अपने हाथ आगे कर मैने माँ के मम्मे पकड़ लिए. 

"सच ही तो है...तुम जैसी कामुक और नशीले बदन वाली माँ किसके पास होगी" मैने माँ का गाल चूमते हुए कहा.
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12-28-2018, 12:48 PM,
#43
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
माँ ने कोई जबाव नही दिया, मेरी बातों से उसका मन ज़रूर हल्का हो गया था, इतना मैं ज़रूर जानता था लेकिन शायद वो अभी उत्तेजित नही हुई थी. और मैं उसे खूब उत्तेजित करना चाहता था. मैने अपने हाथ नीचे लेजा कर माँ के दोनो चुतड़ों को थोड़ा सा फैलाया और आगे बढ़कर अपना लंड उसकी गान्ड के छेद पर धीरे धीरे रगड़ा. आधे मिंट में ही मुझे माँ के बदन में बदलाव नज़र आने लगा. उसका बदन हल्का हल्का कांप रहा था. सांसो की आवाज़ बढ़ गयी थी. मैने लंड को थोड़ा सा आगे बढ़ा कर उसकी चूत के मुँह पर रगड़ा और उसके चुतड़ों को मुत्ठियों में भरकर मसलने लगा.

"माँ एक बात कहूँ" मैं माँ के कान की लौ को अपने दाँतों से काटते हुए बोला.

"हुंग?" माँ ने धीरे से कहा.

"माँ तुम्हारी गान्ड बहुत प्यारी है, हाए तुम्हारे चुतड कितने टाइट हैं. एसी टाइट गान्ड तो कुँवरियों मे भी देखने को नही मिलती" 

"कितने बेशरम बन गये हो, ज़रा तो लाज करो" माँ ने धीरे से सिसकते कहा. 

"अब काहे की लाज माँ. हाए माँ असली मज़ा तो बेशहमी में ही है. तुम्हे मज़ा नही आता इस बेशर्मी में माँ?" मैने हाथ आगे लेजा कर उसके मम्मे अपने हाथों में समेट लिए. 

"हाए बेटा मगर कोई हद तो होती है ना" माँ की साँसे अब बहुत गहरी हो चली थीं. बस कुछ ही मिंटो की बात थी जब वो फिर से उसी आवेश में आ जाएगी जिसमे वो तब थी जब मैं उसे मकयि के खेत में चोद रहा था और वो मेरे लंड पर उछल उछल कर चुदवा रही थी.

"माँ हदें तोड़ डालो. हदों के पार जाकर ही असली आनंद है. वैसे भी हम रिश्तों की सभी हदें तोड़ ही चुकें हैं. क्या कहती हो माँ?" माँ की चूत पर घिसता मेरा लंड गीला होना सुरू हो गया था. उसकी चूत से पानी रिस रिस कर बाहर आना सुरू हो गया था.

"तुम्हे सच में मेरी इतनी प्यारी लगती है या झूठ बोल रहे हो" माँ कुछ पलों तक चुप रहने के बाद बोली. लगता था लोहा पूरा गरम हो चुका था. चूत रिस रही थी, मेरे गंदे अल्फ़ाज़ उसकी आग में घी डाल रहे थे, बस अब कोई बढ़ा नही थी अगर थी तो वो जल्द ही गिरने वाली थी. माँ की बात सुन मैने हाथ फिर से नीचे लेजा कर उसके चुतड़ों को सहलाया और अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ा तो उसने भी कमर पीछे को मेरे लंड पर दबाकर अपनी बेकरारी का सबूत दिया. 

"झूठ में क्यूँ बोलूँगा माँ, सच में तुम्हाई गान्ड बहुत प्यारी है. हाए बिल्कुल दिल के आकार की है. सिरफ़ गान्ड ही क्या, तुम्हारे ये भारी मम्मो की क्या बात करूँ, हाए साला देखते ही मेरा पत्थर की तरह खड़ा हो जाता है" मैने माँ को अपनी और घूमाते हुए कहा. उसके मम्मो को अपने हाथों में तोलने लगा. खिड़की से आती ठंडी हवा से और उत्तेजना से उसके निपल इतने अकड़ गये थे. "हाए माँ देखो तुम्हारे निपल कितने अकड़ गये हैं, कितने नुकीले हो गये हैं" मैं उन्हे ध्यान से देखता बोला. "माँ चुसू तुम्हारे मम्मे?" 

जबाब मे माँ ने एक हाथ से अपना मम्मा पकड़ मेरे मुँह में डाल दिया और मेरे सर को अपने मम्मे पर दबाया. "चूस ना, मैं कब मना करती हूँ. जितना चाहे चूस ले. माँ के मम्मों पर बेटे का ही अधिकार होता है" माँ अब मेरे वश में थी, जिस हालत में मैं उसे देखना चाहता था वो उस हालत में पहुँच चुकी थी.

ना जाने क्यो आज मेरा दिल कर रहा था कि माँ की काम वासना इतनी भड़का दूं, इतनी भड़का दूं कि वो सब कुछ भूलकर पूरी बेशर्मी से मुझसे चुदवाये. और जिस तरह माँ की हालत थी, मुझे लगा माँ अब जैसा मैं चाहूँगा वो वैसा ही करेगी, जैसा मैं कहूँगा वो वैसा ही बोलेगी. 

उसके मम्मों को बदल बदल कर खूब चूसा. माँ बुरी तरह सिसक रही थी. मेरा सर अपने मम्मों पर दबवा रही थी. काली घटायें, ठंडी हवाएँ हमारे आनंद में और इज़ाफा कर रही थीं. उसके बदन से नहाने के बाद बहुत प्यारी सी गंध आ रही थी. मैने खूब दबा कर मम्मे चूसे उसके. अंत मैं अपना मुख उसके मम्मो से हटाया तो पूरे लाल सुर्ख हो चुके थे.

"अब बोल, पहले चुदवायेगी या चटवाएगी,......... बोल माँ" मेरी बात से माँ का सुर्ख चेहरा और भी सुर्ख हो गया.

"और कितना करेगा, पहले ही तूने घंटा भर मकयि के खेत में किया, फिर बोरेवेल में भी. अभी बस करते हैं ना" माँ चुदवाने के लिए तरस रही थी लेकिन अपने मुख से नही कहना चाहती थी. नारी का स्वभाव ही ऐसा होता है और सच पूछिए मर्द को नारी की इस लज्जा मे ही ज़्यादा मज़ा आता है. मगर कहते हैं ना कभी कभी स्वाद बदल लेना चाहिए, एक सा खा खा कर मन उब जाता है, मेरी भी वोही हालत थी. मैं चाहता था माँ आज अपनी लाज छोड़ कर मुझसे चुदवाये. जितनी बेशर्मी से मैं उससे पेश आ रहा था वो भी मुझसे उसी बेशर्मी से पेश आए. माँ को अब मेरी बेशरमी पर कोई एतराज़ नही था, वो उतनी उत्तेजित तो हो ही चुकी थी, मगर वो खुद उस बेशर्मी पर नही उतरी थी, अभी उसमे कुछ लज्जा बाकी थी और वो दूर करनी थी. हालाँकि अगर मैं चाहता तो अपना लंड उसकी चूत में घुसेड कर उसे उस अवस्था मैं कुछ एक पलों में पहुँचा सकता था मगर मैं उसे चुदाई से पहले उस हालत में देखना चाहता था.

"अरे माँ वो तो ज़रा बदन से गर्मी निकली थी, असली चुदाई तो अब होगी तेरी. आज तो खुल कर तुम्हे चोदुन्गा. बहुत सी हसरतें पूरी करनी हैं मुझे. तू बता तेरा दिल नही करता, तुझे मज़ा नही आया था चुदवाने में?" 

"नही, मुझे नही आया" माँ के होंठो पर मुस्कान भी थी, लज्जा भी थी. मैने आगे बढ़ कर उसकी चूत से लंड भिड़ा दिया और उसके चूतड़ो को अपने लंड पर दबाने लगा. हमारे चेहरे आमने सामने थे, एक दो इंच का फासला था, सांसो से साँसे टकरा रही थीं. 

"मज़ा नही आया! मज़ा नही आया तो मेरे लंड को उछल उछल कर अपनी चूत मे क्यों ले रही थी, हुंग? याद है कैसे तुझे बोरेवेल्ल में पानी के अंदर ठोका था? तब तो ज़ोर से ज़ोर से पेलने के लिए कह रही थी!" मेरा लंड चूत के होंठो को खोल कर उसके भंगूर को रगड़ रहा था. अगर मैं चाहता तो हल्के से धक्के से लंड अंदर कर देता, मगर जो मज़ा माँ को उतावला करने में था फिर वो नही मिलता. मा सिसकते सिसकते कभी मेरी ओर देखती, कभी नज़र नीची कर लेती. जैसे ही मेरा लंड चूत के दाने को रगड़ता तो उसके होंठ खुल आते और वो बड़ी ही मादक सी सिसकी भरती.

"तो कर ना जो तेरा दिल करता है, जैसे तेरा दिल करता है करले. तुझे मालूम है मुझे कितना मज़ा आया था" माँ ने मेरी आँखो में आँखे डाल कर कहा.

"जैसे चाहूं कर लूँ?" मैने वैसे ही अपना लंड उसकी चूत पर घिसते हुए पूछा.

"अब क्या लिख कर दूं?" वो थोड़ा सा खीच कर बोली. लगता था वो चूत में लंड लेने के लिए तड़प रही है.

" तो फिर मेरा साथ क्यों नही देती?" मैने लंड को हिलाना बंद कर दिया. बिल्कुल स्थिर होकर उसकी आँखो में आँखे डाले उससे पूछा. हमारे होंठ लगभग सट गये थे.

"पूरी नंगी होकर तुम्हारे सामने खड़ी हूँ! तुम्हे जैसा तुम्हारा दिल चाहे वैसा करने की खुली चूत भी दे दी, अब और क्या करूँ?" मैने अपने होंठ माँ के होंठो पर दबा एक चुंबन लिया.

"तू जानती है मैं क्या चाहता हूँ! नही जानती?" मैने फिर से उसकी आँखो में झाँका. वो कुछ पलों तक चुप रही, जैसे कुछ निस्चय कर रही थी. फिर उसने मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिए और हम एक गहरे चुंबन में डूब गये. 

जब हमारे होंठ अलग हुए तो माँ ने अपनी साँस संभाली फिर मेरे गाल को चूमती मेरे कान मे फिसफ्साई "बेटा! मेरी चूत तो चाट" माँ के होंठो से वो अल्फ़ाज़ सुनते ही मेरे होंठो से सिसकी निकल गयी, मेरे लंड ने एक जबरजस्त झटका मारा. ना सिर्फ़ वो लफ़्ज इतने अश्लील और भड़काऊ थे मगर जिस तरीके से माँ ने उन्हे कहा था उसने उन लफ़्ज़ों की मादकता और भी बढ़ा दी थी. अब माँ बिल्कुल उस हालत में थी जिसमे मैं उसे चाहता था.

"क्या करूँ माँ? फिर से बोल ना" मैने उसे उकसाते हुए कहा.

"मेरी....मेरी चूत....चाट ना बेटा........हाए मेरा बड़ा दिल कर रहा है ......चूत चटवाने को" माँ मेरे कान में वैसे ही सरगोशी करते हुए बोली. मैने माँ की आँखो में झाँकते हुए कहा "यह हुई ना बात. यही तो मैं सुनना चाहता था" मैने माँ के होंठो पर एक चुंबन अंकित किया और बोला "अगर चूत चटवानी है तो ज़रा अपनी टाँगे चौड़ी कर ले" मैं घुटनो के बल नीचे बैठता बोला. माँ ने तुरंत मेरा हुकम माना. अब वो पूरी तरह मेरी मुट्ठी मैं थी. 
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12-28-2018, 12:48 PM, (This post was last modified: 12-28-2018, 12:49 PM by sexstories.)
#44
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मैने बिना कोई देरी किए उसकी कामरस से बरसाती और महकती चूत पर अपनी जीभ लगा दी. जीभ की नोंक को जैसे ही मैने माँ की चूत की लकीर पर उपर से नीचे तक फेरा तो माँ "हाए" करके बहुत ज़ोर से करही. मैने अपने हाथ पीछे माँ के चूतड़ो पर ज़मा दिए. 

"माँ ज़रा अपनी चूत तो खोल अपने हाथों से" माँ ने तुरंत अपने हाथों से अपनी चूत को फैला दिया. अंदर से गुलबीपन लिए उसकी चूत रस से लबालब भरी दिखाई दे रही थी. मैने अपने होंठ चूत पर लगाकर उसका रस पीने लगा. रस चूस कर मैं अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटते हुए उसका बाकी का रस भी समेटने लगा. एक बार जब उसको पूरा सॉफ कर दिया फिर मैने अपने होंठो से उसके भग्नासे को दबा लिया और उस पर अपनी खुरदरी जीभ घिसने लगा. माँ तो जैसे पागल होने लगी. आआहह.....हइईई............,उूुुुउउफफफफफफफफफ्फ़......करके चीखने चिल्लाने लगी. उधर मेरी भी बुरी हालत थी. लॉडा इतना अकड़ चुका था कि दर्द कर रहा था. मैने किसी प्रकार सबर रखा और उसकी चूत के दाने को अपनी जीभ से घिसना चालू रखा. कभी कभी उसे मैं दाँतों से काटता तो माँ का जिस्म काँपने लगता. उसने चूत से हाथ हटाकर मेरे सर पर रखकर मेरे बालों को मुत्ठियों में भीच लिया. वो मेरा मुँह अपनी चूत पर रगड़ रही थी. चीख रही थी, चिल्ला रही थी, आहें भर रही थी. उसके बदन मे ज़ोर की कंपकंपी होने लगी, मैं समझ गया कि क्या होने वाला है. मैने पूरा ज़ोर लगाकर भन्कुर को चूसने लगा और उसकी चूत में एक उंगली घुसा कर आगे पीछे करने लगा. 

आआआहझज...............हहिईीईईईईईईईईईईईईईईईई...........मैं गयी.........मैं गयी...............आआआआहज्ज.........वो झाड़ रही थी. मेरे बालों को इतने ज़ोरों से खींच रही थी कि मुझे बहुत दर्द होने लगा. मगर मैने अपने होंठ उसकी चूत पर दबाए रखे और उसकी रस बरसाती चूत से बहते रस को तब तक चूस्ता रहा जब तक उसका सखलन होना बंद ना हो गया. एक बार झड कर जब वो थोड़ी निढाल सी होने लगी और मेरे बालों पर उसकी पकड़ ढीली पड़ गयी तो मैं झटके से उठ खड़ा हुआ. मेरा पूरा मुँह उसकी चूत के रस से भीगा हुआ था. मैने माँ को अपनी बाहों में उठाया और चारपाई पर लिटा दिया. जैसे ही मैं चारपाई पर चढ़ने लगा, माँ ने अपनी टाँगे फैला दीं ताकि मैं उनमे समा सकूँ, उसने अपनी बाहें मेरी ओर फैला दीं. "आजा.....आजा....जल्दी कर....जल्दी कर.....हाए..,,उफफफफफ्फ़.....," 



माँ की टाँगो के बीच पोज़िशन सेट करके मैने अपना लंड माँ की चूत से भिड़ा दिया. माँ कुहनीओ के बल होकर हमारे मध्य में देखने लगी."डाल.....जल्दी........जल्दी डाल........उफफफफफ्फ़......" मैने लंड को निशाने पर लगाकर माँ की कमर को थाम लिया.

"डाल दे ....घुसा दे पूरा.......हाए.......जल्दी से घुसा....." मैने कमर पर हाथ ज़माए एक करारा झटका मारा और लंड माँ की मक्खन सी चूत को भाले की तरह छेदता हुआ पूरा अंदर जा धंसा. 

"हहिईीईईईईईईईईईईई........हाए....हाए .....मेरी चूत......उफफफफ्फ़....चोद....चोद मुझे.....चोद बेटा........चोद अपनी माँ को......,उफफफफफफफफ्फ़...,,चोद मुझीईई......" माँ ने आनी टाँगे मेरी कमर पर कस दीं थी. मैने भी कमर खींच कर लंड पेलना सुरू कर दिया. पहले धक्के से ही माँ अपनी कमर उछालने लगी. जितना ज़ोर मैं उपर से लगाता, उतना ही ज़ोर वो मेरे कंधे थामे नीचे से लगती. हमारी ताल से ताल मिल रही थी. लंड और चूत खटक खटक एक दूसरे पर वार पे वार कर रहे थे. उस ठंडे मौसम में भी हमारे बदन पसीने से भीगने लगे थे.

"हाए चोद....ऐसे ही चोद........मार मेरी चूत.........उउउफफफफ्फ़.......कस कस कर मार मेरी चूत............चोद दे अपनी माँ को.......चोद दे अपनी माँ को मेरे लाल......" माँ पूरी बेशहमी पर उतर आई थी जा मैने उसे मजबूर कर दिया था जो भी हो मगर उस घमसान चुदाई का एक अलग ही मज़ा था. 

"ले......ले मेरा लंड माँ.......,,,चुदवा ले अपने बेटे से.......ऐसा चोदुन्गा जैसे आज तक ना चुदि होगी तू.........." मैं ताबड़तोड़ धक्के मारता अपना पूरा ज़ोर लगा रहा था.

"आजा मेरे लाल....चोद ले अपनी माँ को.........चोद ले हाए.............हाए मेरे मम्मे मसल........मसल मेरे मम्मों को..........ऐसे ही पूरा लंड जड़ तक पेल मेरी चूत में ........हाए....हाए......" मैं हर धक्के पर और भी गहराई तक लंड घुसेड़ने की कोशिश करता. मेरे हाथ पूरी बेरेहमी से माँ के मॅमन को मसल रहे थे. इतनी बेरहमी से शायद वो आम हालातों मे बर्दाशत ना कर पाती मगर इस समय जितना मैं उससे ज़ोर आज़माइश करता उतना ही उसे मज़ा आता. 

"ऐसे ही चुदवा बेशर्म बनके माँ......ऐसे ही.....हाए बड़ा मज़ा आता है मुझे.....जब...तू...हाए......उफफफ़फ़गगग......" 

"बस तू अपना लॉडा पेलता रह मेरे बेटे ..........अपनी माँ को ठोकता रह.........हाए....जितना तू चाहेगा........ उससे ज़्यादा ...........तेरी माँ बेशर्म बनके तुझसे चुदवायेगी..........मेरे लाल.....मेरे बच्चे.......अपनी माँ की ले ले .....ले ले अपनी माँ की......"

"तू देखती जा कैसे चोदता हूँ तुझे .........साली कुतिया बनाकर चोदुन्गा तुझे........कुतिया बनाकर" कामोउन्माद मे कोई हद नही होती, कोई हद नही होती.

"कुतिया बनाएगा मुझे.... अपनी माँ को कुतिया बनाएगा......." माँ ने अपनी कमर एक पल के लिए रोक दी, शायद मुझे वो नही कहना चाहिए था उस समय मेरी हालत एसी थी कि मुझे कोई परवाह नही थी.

"हां बनाउन्गा कुतिया..........कुतिया बनाकर चोदुन्गा तुझे" मैने भी धक्के रोककर उससे कहा. 

"तो बना ना कुतिया....बना मुझे कुतिया और चोद मुझे...." माँ का ये रूप मेरे लिए बिल्कुल अलग था मगर उस समय मेरे पास बिस्मित होने के लिए भी समय नही था. मैं फॉरन झटके से माँ के उपर से हटा और चारपाई से उतरा. माँ भी तुरंत मेरे पीछे उठ खड़ी हुई और मेरी तरफ पीठ करने लगी. मगर मैने उसे पकड़ कर नीचे को झुकाया, उसने सवालिया नज़रों से मेरी ओर देखा मगर वो नीचे बैठ गयी.

"अपना मुँह खोल कुतिया...." मैने अपना लंड माँ के मुँह के आगे कर दिया. माँ को समझ आ गया और उसने अपना मुँह खोल दिया. मैने लंड उसके मुँह में ठोक दिया और उसके बाल पकड़ उसका मुँह चोदने लगा.

"चूस मेरा लंड....चूस इसे...,तेरी चूत का रस भी लगा है इस्पे.....चूस" हालाँकि मैं माँ के गले तक लंड ठेल देता था मगर उसने कमाल का साहस दिखाया और एक बार भी मुझे नही रोका बल्कि अपने होंठ मेरे लंड पर कस वो सुपाडे पर खूब जीभ घिस रही थी. मैने ज़्यादा देर माँ को लंड ना चुस्वाया. उसे उठाकर खड़ा किया और फिर दूसरी और घुमाया. माँ थोड़ी घूम गयी और खुद ही चारपाई पर हाथ रख अपनी गान्ड पीछे को उभार कर चौपाया बन गयी. मैने बिना एक पल गँवाए माँ की चूत पर लंड रखा और अपने हाथों से उसकी पतली कमर को थाम लिया. दाँत भींच मैने ज़ोर लगाया तो लंड पूरी चूत को चीरता अंदर जा घुसा. फिर से वोही वहशी चुदाई चालू हो गयी. 

"ले साली कुतिया....ले मेरा लंड..........ले ले मेरा लंड.........तेरी चूत का भोसड़ा बना दूँगा आज" मैं दाँत भींचते चिल्लाया. ऐसे पीछे से खड़े होकर धक्के मारने में बहुत आसानी थी, इस अवस्था में मर्द वाकई अपनी पूरी ताक़त इस्तेमाल कर सकता है और मेरे उन ताक़तबर धक्कों का प्रभाव माँ पर दिखाई दे रहा था. माँ अब बोलना बंद कर बस अब सिसक रही थी. 

"आआअहह बेटा मैं झड़ने वाली हूँ.......हाए उफफफफफफफफफफ्फ़...........मैं हाए.....आआहह....हे भगवान....चोद.....चोद....उफफफफ्फ़..बेटा....बेटा......मेरे लाल...."

"मेरा भी निकलने वाला है माँ.....हाए ...बस थोड़ी देर माँ ........." मैं उन पलों को कुछ देर और बढ़ाना चाहता था मगर जिस ज़ोर से मैने चुदाई की थी अब ज़्यादा देर मैं टिकने वाला नही था. उन आख़िरी धक्कों के बीच मेरा ध्यान माँ की गान्ड के उस बेहद संकरे छेद पर गया और अगले ही पल मेरे मन में एक नया विचार आया. 

"माँ हाए मेरा तो....अभी...उफ़फ्फ़ ध्यान ही नही गया.......तुम्हारी...,गान्ड कितनी .........टाइट है.......उफफफफफ्फ़...बड़ा मज़ा आएगा...,तेरी गान्ड मारने में........" मैने एक हाथ उठाकर दोनो चुतड़ों के बीच की खाई में डाल उसकी गान्ड का छेद रगड़ने लगा. मैने अपनी एक उंगली माँ की गान्ड में घुसा दी.

"आआआआआआहह..." माँ चिहुनक पड़ी. मैने चूत में लंड पेलते हुए उसकी गान्ड में जब उंगली आगे पीछे की. बस अगले ही पल माँ का पूरा जिस्म काँपने लगा, चूत संकुचित होने लगी वो चीखती, चिल्लाती मेरे लंड पर अपनी चूत रगड़ती छूटने लगी. उसके छूटते ही मेरा भी बाँध ढह गया और मेरे लंड से भी विराज की गरमागरम पिककारियाँ छूटने लगीं. माँ सिसक रही थी, कराह रही थी, मैं हुंकारे भर रहा था. 

आह्ह्ह्ह 'बेटा....बेटा' कह रही थी और मेरे मुख से 'माँ...माँ......ओह माँ' फुट रहा था. ऐसे स्खलन के बारे में कभी सोचा तक नही था.

हम दोनो बुरी तरह थक कर पस्त हो चुके थे. किसी में भी हिकने का दम नही था. आधे से भी ज़्यादा घंटे तक माँ और मैं बिना हीले डुले पड़े रहे. अंत मैं माँ ने ही हिम्मत दिखाई. उसने कपड़े पहने और मेरे कपड़े मेरे पास रख वो बाल्टी लेकर दूध निकालने चली गयी. मैं कुछ देर पड़ा रहा. हिम्मत ही नही थी, मगर उतना तो आख़िर था ही. उठकर मैं शेड से बाहर आया तो शाम को ही रात जैसा अंधेरा हो गया था. हल्की हल्की बूंदे धरती पर गिर रही थी. माँ दूध निकल कर आ रही थी. मैं पशुओं को पानी पिला उनको चारा डालने लगा. चारा डाल जब मैं वापस शेड में गया तो माँ मेरा ही इंतजार कर रही थी. उसने दूध की बाल्टी उठाई हुई थी. वो सब्जियाँ तोड़ लाई थी. मैने साइकल निकली. समान को साइकल पर अच्छे से रख हम घर की ओर चल पड़े.

घर पहुँचते पहुँचते बारिश काफ़ी तेज़ हो गयी थी. हम दोनो भीग गये थे. घर के अंदर घुसते ही माँ बाथरूम मे नहाने चली गई और मैं सामान अंदर रखने लगा. सामान रखकर मैने सब्ज़ी काटनी चालू की ताकि माँ के आने तक उसकी कुछ मदद कर सकूँ. माँ ने आते ही मुझसे छुरी छीन ली और मुझे रसोई से भगा दिया. मैं भी नहाने चला गया. नाहकार कपड़े पहने मैने रेडियो लगाया. तब तक खाना तैयार था. खाना खाने के बाद माँ किचेन में बर्तन सॉफ करने चली गयी. खाना खाने के पूरे समय हम लगभग चुप रहे थे. बारिश के सिवा और कोई बात नही हुई थी. हम दोनो उस चुदाई के बाद से एक दूसरे से कुछ सकुचा से रहे थे. हालाँकि मुझे किसी किस्म का पछतावा नही था कि हमने आज ऐसे निर्लज्ज होकर चुदाई की थी ही मुझे लगता था माँ को भी कोई शिकवा है. फिर भी हम एक दूसरे से कतरा रहे थे.


 
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12-28-2018, 12:49 PM,
#45
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
आख़िर माँ हाथ में गिलास थामे दूध देने आई. जैसे ही वो जाने लगी तो मैने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया. 

"नाराज़ हो माँ" मैने उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा. दूध का गिलास मैने बेड की पुष्ट पर रख दिया.

"नाराज़, नही तो. मैं भला क्यों नाराज़ होंगी तुमसे" माँ ने दूसरी तरफ देखते हुए कहा.

"तो फिर मुझसे बात क्यों कर रही हो, मेरी और देख क्यों नही रही हो?" मैने माँ का चेहरा अपनी ओर घूमाते पूछा. 

"मैं सोच रही थी तुम......तुम मेरे बारे क्या सोचते होगे....मैने ऐसे व्यवहार किया...." 

"ओह माँ..,तुम भी ना. इधर देखो मेरी आँखो मे" मैं माँ के चेहरे को उपर उठाता बोला. उसने मेरी आँखो मे देखा. "अब बताओ तुम्हे लगता है कि मेरी नज़र में तुम्हारी इज़्ज़त घट गयी लगती है? क्या तुम मेरी आँखो मे अपने लिए मोह और प्यार नही देख रही हो?" 

"हँ.......ऐसे ही मैने सोचा था......" माँ ने कुछ देर चुप रहने के बाद कहा. उसके होंठो पर अब मुस्कान आने लगी थी.

"माँ ऐसा वैसा कुछ मत सोचो. तुम हमेशा मेरी माँ हो और मेरी माँ ही रहोगी. रही तुम्हारे व्यवहार की बात तो वो मैने खुद तुम्हे मजबूर किया था, तुम खुद को कसूरवार मत ठहराओ" मैं माँ को बेड पर अपने पास खींचता बोला. "वैसे भी मुझे उसमे मज़ा आया था, बल्कि इतना मज़ा आया जैसे पहले कभी नही आया था. इसलिए यहाँ तक तुम्हारे उस रूप की बात है तो मैं तो तुम्हे उस रूप मे पाकर खुश ही होऊँगी. हां अब तुम्हे अगर परेशानी है तो...," मैने जानबूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया.

"मुझे कोई परेशानी नही है..........मैं तो बॅस सोच रही थी की तुम क्या सोचोगे कि मेरी माँ कितनी निरलज्ज है" मैने बेड की पुष्ट से पीठ लगाकर माँ को अपनी गोदी में खींच लिया. "यही सोचेगा कि मेरी माँ कितनी अच्छी है..........मैने तुम्हे बताया ना मुझे कितना मज़ा आया था........तुम्हे नही आया" माँ अब मेरी गोद में बैठी थी. उसकी टाँगे मेरी कमर के दोनो और थी और उसका चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल सामने. 

"आया था......." माँ कुछ देर चुप रहने के बाद शरमाती सी बोली. वो नज़रें चुरा रही थी.

"अगर मज़ा आया था तो नज़रें क्यों चुरा रही हो..........." मैने माँ के होंठो को अपने होंठो में भर लिया और ज़ोरों से चूसने लगा. माँ उत्तेजित हो रही थी. उसके उपर नीचे होता सीना और उसकी चोली मे से तान्क झाँक करते उसके मम्मों के आकड़े निप्पल बता रहे थे वो उत्तेजित हो रही है. मेरी उत्तेजना को तो उसने बहुत पहले ही महसूस कर लिया होगा जब मैने उसे अपनी गोद में खींच अपने खड़े लंड पर बैठाया था जो उसकी गान्ड की गर्मी से और भी कठोर हो गया था.

"छोड़ो मैं जाती हूँ........अब तुम सो जाओ.......आराम कर्लो थोड़ी देर" वो उठाने लगी तो मैने फिर से उसके चेहरे को पकड़ अपने होंठ उसके होंठो से सटा दिए. एक दीर्घ चुंबन के बाद हमारे होंठ अलग हुए. "जाने की इतनी जल्दी भी क्या है मेरी जान..........अभी तो कह रही थी तुम्हे मज़ा आया था तो और मज़ा नही लोगि" मैं माँ के मोटे मोटे मम्मों को हथेलियों में भरते पूछने लगा.

"और कितना.....अभी सारी दोपेहर तो लगे रहे........अभी पेट नही भरा तुम्हारा......थके नही तुम अभी तक" माँ मेरे होंठो को चूमते बोली. वो वापस लाइन पर आ रही थी. उसको मालूम था मैं उसे जाने देने वाला नही था. 

"मर्द और घोड़ा कभी नही थकते माँ......" मैने माँ को कहावत सुनाई तो माँ की हँसी छूट गयी. "मेरा पेट तो नही भरा, तुम अपनी सूनाओ!" माँ की चोली को उपर उठा जब मैने हाथ उसके मम्मों पर रखे तो खुश हो गया. वो अंदर से नंगी थी. जानती थी मैं उसे चोदे वगैर मानूँगा नही.

"मुझे सोना है.....बहुत नींद आ रही है...हाए...उफ्फ इतनी ज़ोर से क्यों मसलते हो......पहले ही दरद हो रहा है" मगर मैने उसके निप्पलो को मसलना जारी रखा.

"तुम सो जाओगी तो इसका क्या होगा जो जगा हुआ है. वो कैसे सोएगा!" 

"यह तो लगता है कभी सोता ही नही है......अब मैं तो कुछ नही कर सकती"माँ मेरे होंठो को चूमती बोली. उसकी जिव्हा रह रहकर मेरे होंठ को गीला कर जाती थी. 

"क्यों नही कर सकती......एक बार और दे दोगि तो क्या हो जाएगा" मैने माँ की चोली के हुक खोल दिए, उसने खुद अपनी चोली उतार दी. अब वो मेरे सामने नंगी थी. उसके भारी भरकम मम्मे मेरी आँखो के सामने थे. उन पर जगह जगह मेरे काटने के निशान पड़ गये थे. वैसे भी मेरे मसलने से लगता था सूज गये थे.

"कैसे दे दूं एक बार और....तुमने पूरी दोपहर मार मार कर सूजा दी है..........." माँ मेरी कमीज़ के बटन खोलती बोली.

"अगर इसने सुजाई है तो इलाज भी यही करेगा...." मेरी कमीज़ उतार चुकी थी मैं माँ का पेटिकोट खोल रहा था. 

"हाए मैं जानती हूँ इस जालिम को.........और इसके इलाज को भी............मेरी फाड़ कर ही दम लेगा" माँ ने मेरी गोद में कूल्हे उठाए और मैने उसका पेटिकोट खींच उसके पाँव में पहुँचा दिया उसने उसे दोनो पाँव से निकाल फेंक दिया. तब तक मैं अपना पायज़मा अपने कूल्हे उठाकर अपने घुटनों से नीचे कर चुका था. माँ नीचे हुई तो उसकी चूत को मेरा नंगा लंड चूमने लगा.

"हाए देख तो इस हरामी को कैसे अंदर घुसने को बेताब है" माँ मेरे लंड के उपर अपनी उंगलिया फिराती बोली. 

"तेरी चूत का दीवाना हो गया है माँ, देख कैसे तड़प रहा है, अब इसे तरसा मत माँ" मैं माँ के मम्मों को सहलाता बोला.

"हाए नही तरसती इसे बेटा..........इसे क्यों तर्साउन्गी....इसने तो वो मज़ा दिया है....हाए इसे जो चाहिए वो मिलेगा.......और देख मेरी चूत भी कैसे रो रही है" माँ ने अपने कूल्हे उठाए. एक हाथ से मेरा लंड पकड़ा और उसे अपनी चूत पर सही जगह पर अड्जस्ट किया. फिर धीरे धीरे नीचे बैठने लगी. एक बार सुपाडा अंदर घुस गया तो उसने सिसकते हुए अपना हाथ हटा लिया और मेरे कंधो पर दोनो हाथ रख नीचे मेरे लंड पर बैठने लगी. चूत पूरी गीली थी. जैसे जैसे लंड अंदर घुसता गया माँ की आँखे बंद होती गयी, वो सिसकती हुई पूरा लंड लेकर मेरी गोद में बैठ गयी. उसकी आँखे भींची हुई थी. माँ के मुख पर एसी मादकता ऐसा रूप पसरा हुआ था कि मैने उसके चेहरे पर चुंबनो की बरसात कर दी. सच में उस समय वो बहुत ही कामुक लग रही थी.

"उफ़फ्फ़....कितना बड़ा है........एकदम फैला कर रख दी है इसने" माँ ने आँखे खोल कर कहा.

"चिंता मत करो, दो चार दिन खूब चुदवायेगी तो आदत पड़ जाएगी" माँ ने मेरी छाती पर थप्पड़ मारा. मैं हँसने लगा.

"मज़ाक नही कर रही हूँ,'बहुत दुख रही है मेरी, सूज भी गयी है" वो मेरे कंधे थामे थोड़ा थोड़ा उपर नीचे होती चुदवाने लगी. 

"चिंता मत करो माँ आगे से यह परेशानी नही होगी"

"क्या मतलब?" माँ अब हल्की से स्पीड पकड़ रही थी. लंड भी काफ़ी गहराई तक जा रहा था.

"आज बहुत दिनो बाद चुदि थी ना इसलिए......अब इतना टाइम तक बिना चुदाई के नही रहोगी.....अब तो आए दिन तुम्हारी वजती रहेगी...........तुम्हे खूब लिया करूँगा"

"हुंग.......अपनी बहन की लेना......इस रक्षक को वोही सह सकती है...." 

"उसकी तो मैं लेता ही रहूँगा मगर तेरी भी खूब ठोकुन्गा..........आज जैसी तेरी चुदाई होती ही रहा करेगी"

"आज जैसी चुदाई.......?" मैने माँ को एक पल के लिए रोका, और थोड़ा सा घूम कर बेड पर लेट गया. मैने अपनी टाँगे घुटनो से मोड़ कर खड़ी कर दी और माँ को इशारा किया, माँ मेरे घुटनो पर हाथ रखे मेरे लंड पर उपर नीचे होती ठुकवाने लगी.

"आज जैसी चुदाई माँ.......आज जैसी चुदाई..........जैसे आज तुझे कुतिया की तरह चोदा था वैसे ही चोदा करूँगा"
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12-28-2018, 12:49 PM,
#46
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मेरे मुँह से वो लफ़्ज सुन कर माँ अपने होंठ काटती मेरी आँखो में देखने लगी. उसकी स्पीड एक जैसी थी, मगर अब फ़ायदा ये था वो उपर उठाकर लंड चूत से सुपाडे तक बाहर निकालती और फिर पूरा अंदर वापस ले लेती. मैं उसे उपर नीचे होता देख उसकी पतली कमर पर उन भारी मम्मों की सुंदरता को निहार रहा था और सोच रहा था वो इतने साल बिना चुदवाये कैसे काट गयी.

"अब चुप क्यों हो गयी....बोलती क्यों नही......मेरी कुतिया नही बनेगी क्या?" मैं उसके मम्मों को मसलता बोला.

"बनूँगी........,जब भी बोलेगा बनुन्गी........हाए जब तेरा दिल करे चोद लेना अपनी कुतिया को"

"हाए सच कहता हूँ तेरे मम्मे तो बॅस कमाल के हैं......इतने बड़े बड़े हैं.........मगर फिर भी कितने नुकीले हैं, कितने सख़्त हैं" 

"हाए अगर कोई मसलता तभी ढीले पड़ते ना......." माँ मेरे लंड पर उपर नीचे होते चुदवाते बोली.

"हाए मैं हूँ ना माँ... देखना कैसे कस कस कर मसलूंगा......."

"तब तो यह और भी बड़े हो जाएँगे बेटे..........उफफफफफफ्फ़...........तुझे क्या सिर्फ़ मेरे मम्मे ही अच्छे लगता हैं........मेरी चूत कैसी लगती है हाए बता ना.....कैसी लगी है तुझे अपनी माँ की चूत" माँ ने सिसकते हुए पूछा. लगता था उस पर फिर से वासना की खुमारी चढ़ गयी थी. 

"हाए माँ ......तेरी चूत की क्या कहूँ........इतनी चुदने के बाद भी देख कैसे मेरे लंड को कस रही है, कितनी टाइट है.उपर से इसके मोटे मोटे होंठ. माँ तेरी गुलाबी चूत की तो मैं जितनी भी तारीफ करूँ कम है" मुझे लगा माँ को अपनी तारीफ खूब भाई थी. वो थोड़ा स्पीड बढ़ा रही थी और स्पीड बढ़ने से उसके मम्मे भी पूरे जंप मार रहे थे, हाए बड़ा दिलकश नज़ारा था.

"और ....और भी बोल ना......रुक क्यों गया....,बोल मेरे लाल ...अपनी कुतिया मैं क्या क्या अच्छा लगता है तेरे को...."

"हाए माँ तेरी गान्ड भी......तेरी गान्ड भी बहुत प्यारी है.......सच में कितनी प्यारी है.....दोपेहर को तो मेरा दिल कर रहा था कि तेरी चूत से निकाल अपना लॉडा तेरी गान्ड मे पेल दूं" 

"नही नही बाबा.....मैं नही कह सकती. इतना मोटा लंड ......उफफफ्फ़ मेरी गान्ड तो फट जाएगी" मुझे मालूम था माँ उपर उपर से बोल रही थी. उसने मेरे घुटनो से हाथ उठाकर मेरी छाती पर रख दिए और गान्ड घुमा घुमा कर मेरा लंड चूत में पीसने लगी.

"अरे माँ सच में बड़ा मज़ा आएगा........हाए तुझे घोड़ी बनाकर तेरी सांकरी सी गान्ड में लंड घुसाने का बड़ा मज़ा आएगा.........."

"तुझे तो मज़ा आएगा.............मेरा क्या होगा यह भी सोचा है........मेरी तो फट ही जाएगी......मैं बर्दाशत नही कर पाउन्गी"

मैने माँ के निपल चुटकियों में लेकर फिर से मसलने सुरू कर दिए. 

"क्यों पिताजी भी तो मारते होंगे ना तेरी गान्ड. जब उनसे मरवा सकती है तो फिर मुझसे क्यों नही"

"तुझे क्या पता वो मारते थे कि नही?" 

"इतनी प्यारी टाइट गान्ड तो कोई नामर्द ही बिना चोदे छोड़ेगा.......बोल मारते थे ना?" मैने माँ के निप्पलो को कस कर मसला तो वो कराह उठी. 

"इतना ज़ोर से क्यों मसलता है........मारते थे वो मेरी गान्ड....बस बोल दिया" माँ ने अपनी कमर घुमाना बंद कर दिया था. मैने उसकी कमर पर हाथ रख उसे अपने लंड पर उपर नीचे करने लगा तो वो फिर से सुरू हो गई.

"और तू मज़े ले लेकर उनसे गान्ड मरवाती थी....अब यह ना कहना कि नही मरवाती थी" मैं अपनी कमर उछाल लंड उसकी चूत में पेलते बोला. माँ अब फिर से सिसकने लगी थी.

"हाए मरवाती थी बेटा ........मज़े से मरवाती थी बेटा.......मगर मज़ा उतना नही आता था" 

"क्यूँ माँ....क्यूँ मेरी माँ को मज़ा नही आता था?" 

"हाए वो कभी कभी मारते थे....रोज नही.......इसलिए मेरी टाइट ही रहती थी........इसलिए जब तेरे पिता अपना लंड मेरी टाइट गान्ड में घुसाते तो सुरू में बहुत तकलीफ़ होती.......हाए जब......उफफफफ्फ़........जब थोड़ी सी जेगह बनती और मुझे मज़ा आना सुरू होता तो उनका.....उनका छूट जाता"

"मतलब मेरी ......मेरी कुतिया की जम कर गान्ड चुदाई नही होती थी......यही कहना चाहती है ना तू?"

"हां.....उन्न्नन्ग्घह......हाए......उफफफफफफफफ्फ़.......हााआआं.........नही होती थी जम कर चुदवाइ......." मैने नीचे से कमर उछालना बंद कर दिया और माँ की कमर थामे उठ कर बैठ गया लेकिन उसकी चूत से लंड नही निकलने दिया.

"और तुझे जम कर गान्ड मर्वानी है?.......जैसे आज तूने अपनी चूत मरवाई है?"

"हां मर्वानी है" माँ मेरी आँखो मैं आँखे डालते होंठ काटते बोली.

"अभी अभी तेरा दिल कर रहा है.......कर रहा है ना तेरा दिल"

"हाए करता है बेटा....करता है"

"क्या चाहिए मेरी कुतिया को.......बोल साली" मैं माँ के निप्पलो को रबड़ बॅंड की तरह खींचते बोला.

"हीईिइîईईईईईईईई......उफफफफफफफ्फ़.......तेरी कुतिया को तेरा लंड चाहिए........तेरा लंड चाहिए वो भी अपनी गान्ड में...........मार अपनी माँ की गान्ड मेरे लाल"

मैने माँ को धक्का दे अपनी गोद में से उतारा. मैं फॉरन बेड से नीचे उतरा और उसके सिरे पर खड़े होकर माँ को अपनी तरफ खींचा. वो फॉरन पीछे को हो गई. जैसे ही मैने उसे पलटने के लिए उसकी कमर पकड़ी वो खुद इशारा समझ पलट गयी. 

"चल रानी.......कुतिया बन जा जल्दी से" मैं माँ की कमर उपर को उठाते बोला. माँ एक भी पल गँवाए बिना कमर हवा मे उँची कर कुतिया बन गयी. मैने माँ की गान्ड की उँचाई अपने लंड के हिसाब से सेट की और फिर उसकी टाँगे थोड़ी चौड़ी कर दी. अब पोज़िशन यह थी कि माँ बेड के किनारे गान्ड हवा में उठाए कुतिया बनी हुई थी, उसके पाँव बेड के थोड़े से बाहर थे. मैने माँ की गान्ड के छेद पर जैसे ही लंड लगाया तो वो एकदम से बोल उठी "हाए इतना मोटा सूखा घुसाएगा....तेल लगा ले" 

"माँ लॉडा तो पहले ही तेरी चूत के रस से सना पड़ा है...तेल की क्या ज़रूरत है"

"मगर मेरी गान्ड तो सूखी है ना.......ऐसे बहुत तकलीफ़ होगी......थोड़ा तेल लगा ले बेटा" 

माँ की सांकरी गान्ड देख मुझे भी लगा कि तेल लगा ही लेना चाहिए. मैने कमरे में सरसों के तेल की शीशी उठाई और एक ढक्कन में डाल वापस बेड पर माँ के पीछे पहुँच गया. उंगली तेल से तर कर मैं माँ की गान्ड में घुसाने लगा. साली गान्ड इतनी टाइट थी कि उंगली भी मुश्किल से जा रही थी. मुझे अहसास हो गया कि खूब मेहनत करनी पड़ेगी. मैं बार बार तेल लगा माँ की गान्ड में उंगली पेलने लगा, उधर माँ जब भी उंगली गान्ड में जाती महसूस करती तो गान्ड टाइट करने लग जाती. 
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12-28-2018, 12:50 PM,
#47
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
"माँ गान्ड को ढीला छोड़.......क्यों कस रही है" मेरी बात सुन माँ थोड़ा कोशिश करने लगी. मैने एक के बाद धीरे धीरे दो उंगलियाँ माँ की गान्ड में डालने की कोशिश करने लगा. माँ फिर से गान्ड टाइट करने लगी. मैने खीज कर एक चांटा कस कर उसके चुतड पर मारा तो माँ को समझ में आ गया. बहुत जल्द तेल से सनी मेरी दो उंगलियाँ माँ की गान्ड में अंदर बाहर हो रही थीं. हालाँकि माँ सी सी कर रही थी. अब मुझे लगा कि लंड घुसाया जा सकता है. मैने दो तीन वार तेल से उंगलियाँ तर कर उसकी गान्ड में डाली ताकि अच्छी तरह से चिकनाई हो जाए और ढक्कन उठाकर दूर रख दिया. 

"माँ थोड़ा अपनी गान्ड तो फैला" मैने जैसे ही कहा माँ ने अपने हाथ पीछे लाकर अपने दोनो चुतड़ों को फैलाया. उसकी टाँगे तो पहली ही खूब चौड़ी थी अब उसने जब अपने चुतड़ों को विपरीत दिशा में खींचा तो गान्ड का छेद हल्का सा खुल गया. मैने अपने हाथ उसकी कमर पर रखे और अपना लन्ड़ उसकी गान्ड के सुराख पर रख दिया.

"हाए धीरे....धीरे-धीरे डालना.......उूउउफफफ्फ़ बहुत बड़ा है" माँ ने मुझे चेताया"


"तू डर मत माँ......तुझे मैं तकलीफ़ नही होने दूँगा" मैने माँ को दिलासा दिया. वो कुछ घबरा रही थी क्यॉंके एक तो इतने सालों से ना चुदने से गान्ड बिल्कुल सांकरी हो गयी थी और उपर से मेरा लंड काफ़ी मोटा था. मैने माँ की कमर हाथों मे कस कर पकड़ ली और लंड आगे सुराख के उपर रख ज़ोर लगाने लगा. माँ का बदन कांप रहा था. मगर वाकई गान्ड बहुत टाइट थी. वो मेरे ज़ोर लगाने से थोड़ा सा खुली तो ज़रूर मगर इतनी नही कि लंड घुस पाता. लगता था काफ़ी ज़ोर लगाना पड़ेगा और माँ को भी थोड़ी तकलीफ़ सहन करनी पड़ेगी. मैने कमर को पूरे ज़ोर से थाम फिर से ज़ोर लगाना सुरू किया.

इस बार जब मैं ज़्यादा और ज़्यादा ज़ोर लगाने लगा और उसकी गान्ड खुलने लगी तो माँ उन्ह...उन्ह करने लगी. वो कराह रही थी मगर एक बार तो उसे झेलना ही था. तेल से सने लंड का चमकता सुपाडा गान्ड को धीरे धीरे खोलता गया और फिर 'गप्प' की आवाज़ हुई और लंड का माँ की गान्ड में गायब हो गया. इधर मेरा लंड माँ की गान्ड मे घुसा उधर माँ ने अपने हाथ कुल्हों से हटा चादर अपनी मुत्ठियों में भींच ली. उसे दर्द हो रहा था मगर उसने अभी तक मुझे रुकने के लिए नही कहा था. मैने ज़ोर लगाना चालू रखा. बिल्कुल आहिस्ता आहिस्ता धीरे धीरे ज़ोर लगाता मैं लंड को आगे और आगे ठेलने लगा. माँ के मुख से हाए...हाइ......उफफफफ्फ़....आआहज.....हे भगवान..... करके कराहें फूट रही थीं. जिस तरह उसका बदन पसीने से भर उठा था और जिस तरह वो बदन मरोड़ रही थी मैं जान गया था कि उसे बहुत तकलीफ़ हो रही थी. मगर हैरानी थी उसने मुझे एक बार भी रुकने के लिए नही कहा..... और जब उसने मुझे रोका तब तक लगभग दो तिहाई लंड उसकी गान्ड में घुस चुका था. मैने आगे घुसाना बंद किया और धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा. गान्ड इतनी टाइट थी कि खुद मुझे बहुत तकलीफ़ हो रही थी. गान्ड लंड को बुरी तरह से निचोड़ रही थी. इसलिए पीछे लाकर वापस अंदर डालने में बहुत परेशानी हो रही थी और उपर से माँ भी बुरी तरह सिसक रही थी और बार बार दर्द से बदन सिकोड अपनी गान्ड टाइट कर रही थी. मगर तेल की चिकनाई की वजह से मुझे लंड आगे पीछे करने मे मदद मिली. धीरे धीरे लंड उसकी गान्ड मैं थोड़ा आसानी से आगे पीछे होने लगा. हर घस्से से कुछ जगह बनती जा रही थी. मैने मौका देख हर धक्के के साथ लंड थोड़ा....थोड़ा आगे और आगे पेलने लगा. आख़िर कार कोई बीस मिनिट बाद मेरा पूरा लंड माँ की गान्ड में था. माँ को भी इसका जल्द ही अहसास हो गया जब मेरे टटटे उसकी चूत से टकराने लगे.

"उफफफफ्फ़.......पूरा घुसा दिया........इतना मोटा लॉडा पूरा मेरी गान्ड में डाल दिया"

"हां माँ......पूरा ले लिया है तूने........ऐसे ही बेकार में डर रही थी"

"बेकार में......उूउउफफफफ्फ़.........मेरी जगह तू होता तो तुझे मालूम चलता.....अभी भी कितना दुख रहा है....,धीरे कर" 

"माँ अब तो चला गया है ना पूरा अंदर.......बस कुछ पलों की देर है देखना तू खुद अपनी गान्ड मेरे लौडे पर मारेगी" मैं माँ की पीठ चूमता बोला.

"धीरे पेल बेटा.......हाए बहुत दुख रही है मेरी गान्ड......." माँ सिसिया रही थी. माँ का तेल वाला सुझाव वाकई मे बड़ा समझदारी वाला था. तेल से लंड आराम से अंदर बाहर फिसलने लगा था. जहाँ पहले इतना ज़ोर लगाना पड़ रहा था लंड को थोड़ी सी भी गति देने के लिए अब वो उतनी ही आसानी से अंदर बाहर होने लगा था. हालाँकि माँ ने मुझे धीरे धीरे धक्के लगाने के लिए कहा था मगर पिछले आधे घंटे से किए सबर का बाँध टूट गया और मैं ना चाहता हुआ भी माँ की गान्ड को कस कस कर चोदने लगा.

"हाए उउउफफफफफफफ्फ़.........आआआहज्ज्ज्ज मार...डााअल्ल्लीीगगगघाा क्य्ाआआअ......हीईीईईईई.....ओह माआआअ.......,,हे भगवान......मेरी गान्ड....,उफफफफफफफ़फ्ग"

माँ चीख रही थी, चिल्ला रही थी मगर मुझे रुकने के लिए नही कह रही थी. सॉफ था उसे इस बेदर्दी में भी मज़ा आ रहा था. अगर बाहर इतनी बारिश ना होती और बारिश का और बादलों का इतना तेज़ शोर ना होता तो हमारे पड़ोसी ज़रूर उसको चिल्लाते सुन लेते.वैसे भी वो रोकती तो मैं रुकने वाला नही था. दाँत भींचे मैं माँ की गान्ड को पेलता जा रहा था और वो पेलवाती जा रही थी. 

"हाए अब बोल साली कुतिया......मज़ा आ रहा है ना गान्ड मरवाने में....."

"आ रहा है....हाए बहुत मज़ा आ रहा है....ऐसे ही ज़ोर लगा कर चोदता रह.......हाए मार अपनी माँ की गान्ड"

"ले साली कुतिया .....ले....यह ले.........मेरा लॉडा अपनी गान्ड में" मैने पूरी रफ़्तार पकड़ते हुए माँ के चुतड़ों पर ताड़ ताड़ चान्टे मारने सुरू कर दिए.

"हाई....उूुुउउफफफ्फ़...,मार ..,हरामी....मार अपनी माँ की गान्ड....मार अपनी माँ की गान्ड.......,हाए मार मार कर फाड़ डाल इसे...,उफफ़गगगगगग...हे भगवान..........ले ले मेरी गान्ड.......ले ले मेरे लाल...," 

मेरे थप्पड़ों से माँ के चुतड लाल सुर्ख होने लगे. उधर फटक फटक मेरा लॉडा भी उसकी गान्ड फाड़ने पर तुला हुआ था. माँ तो लगता था जैसे एसी चुदाई की भूखी थी, यह उसका मैने नया रूप देखा था. उसकी इच्छाएँ इतने समय तक दबी रहने के कारण हिंसक रूप धारण कर चुकी थी. उसे चुदाई में गालियाँ अच्छी लग रही थी, मेरी मार अच्छी लग रही थी, मेरा उससे जानवरों की तरह पेश आना अच्छा लगता था. बल्कि जितना मैं बेदरद हो जाता उतना ही उसका आनंद बढ़ जाता, इस बात को जान मैने उसके साथ कोई नर्मी नही वर्ती, तब भी जब मैं उसकी गान्ड मार रहा था या तब जब रात के आख़िरी पहर के समय में उसे हमारे आँगन में बर्फ़ीली हवा के बीच बारिश के बीच पेड़ के साथ घोड़ी बनाकर चोद रहा था ना आने वाले दिनो में जब कभी मैं उसे खेतों में, तो कभी घर में अपने पिता की उस कामसूत्र की किताब में दिखाए अलग अलग आसनो मे चोदता. वो हर वार मेरा पूरा साथ देती और चुदाई के समय मेरी किसी बात पर एतराज ना करती. चुदाई के बाद हम फिर से अपने पुराने रूप मे आ जाते जिसमे वो मेरी माँ होती और मैं उसका बेटा. हालाँकि हम दोनो को चुदाई में बेहद आनंद आता था मगर फिर भी हमारे बीच रोजाना चुदाई नही होती थी. साप्ताह में एक दो बार, ज़्यादा से ज़्यादा. मैने अपना ध्यान कभी भी लक्ष्य से भटकने नही दिया था और माँ भी इस बात का पूरा ख़याल रखती थी. मैं एक पल के लिए भी नही भूला था कि कोई हर दिन हर पल मेरी राह देख रहा है, मैं एक पल के लिए भी नही भुला था

समय अपनी रफ़्तार चलता रहता है वो किसी के लिए नही रुकता. मैं इस बात को भली भाँति जानता था. हालाँकि मेरे लिए बहन से दूर रहकर अब एक दिन भी काटना मुश्किल था मगर फिर भी कभी कभी मुझे समय की रफ़्तार बहुत तेज़ लगती. मुझे एक नई ज़िंदगी सुरू करनी थी नयी जेगह पर; अपनी पुरानी ज़िंदगी से हमेशा हमेशा के लिए डोर जाना था मुझे. इसलिए मुझे ढेरों पैसा चाहिए था. ढेरों पैसा कमाने के लिए टाइम भी उतना ही ज़्यादा चाहिए था. इसीलिए मैं हर एक पल को सही तरीके से इस्तेमाल कर ज़्यादा से ज़्यादा पैसा जोड़ लाना चाहता था टके वाक़त आने पर पैसों की कमी ना खल सके, क्योंकि मेरे पास एक सिमट समय था, सिमत समय.

मैं जानता था वो कितनी बैचैनि से कितनी बैसब्रि से उस दिन का इंतजार कर रही है जब मैं उसे वहाँ से ले जाउन्गा, हमेशा हमेशा के लिए अपनी बनाकर.

भारी बारिश ने मेरी चौथी फसल का जितना नुकसान किया था, भगवान का शुक्र था वैसी बारिश या वैसी कुदरती आफ़त मेरी आने वाली बाकी तीन फसलों पर नही आई. मगर मेरा असली धन था मेरी मुर्गियाँ जिनसे मैने असली कमाई की. इतनी कमाई कि मैने नयी ज़िंदगी में उसे अपना नया धंधा बनाने का फ़ैसला कर लिया. 

तीन साल बीत जाने पर मैं बहन से मिलने गया तो वो बहुत खुश थी. हमारा बनवास ख़तम होने वाला था. वो इतनी खुश थी, इतने उत्साह में थी, इतने जोश मे कि मैं उसे देखकर बार बार मुस्करा पड़ता. मैने उसे हिम्मत दी कि अब बस थोड़े ही दिन हैं, मुझे कोई ठिकाना ढूँढना था, यहाँ से कहीं दूर' जहाँ हमे कोई ना जानता हो. 

मैने एक दो सहरों के चक्कर लगाए पर मुझे हर जगह कोई ना कोई कमी नज़र आ जाती. हारकर मैने ना चाहते हुए भी बोम्बे (उस टाइम वो बोम्बे के नाम से ही जाना जाता था) का रुख़ किया. बॉम्बे मेरी पहली पसंद कभी नही था' क्योंकि ज़मीन के भाव वहाँ और जगहो की तुलना मे अधिक थे. मगर मरता क्या ना करता, मेरे पास ज़्यादा विकल्प नही थे.
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12-28-2018, 12:50 PM,
#48
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मुंबई भी लगता था जैसे मेरे सपनो को चकनाचूर करने पर तुली हुई थी. यहाँ जाकर पता करता ज़मीन के भाव मेरे अंदाज़े से कहीं ज़्यादा निकलते. मेरे पास पैसा था, इतना पैसा था कि मैं बड़े आराम से घर खरीद सकता और मगर फिर उसके बाद? मुझे ऐसा इंतज़ाम करना था कि मुझे ना सिर्फ़ घर मिल जाता बल्कि इतने पैसे भी बच जाते कि बाद में, मैं अपना गुज़र बसर कर सकता. कभी कोई आफ़त आ पड़ती तो उसका मुक़ाबला कर सकता.

मगर मेरी किस्मत इतनी भी बुरी नही थी. जब मैं बोम्बे मे जगह जगह घर ढूँढ रहा था तो एक प्रॉपर्टी डीलर ने मुझे सलाह दी कि अगर मैं थोड़े सस्ते रेट पर ज़मीन चाहता हूँ तो मुझे बॉम्बे की सीमा पर बन रही छोटी छोटी कॉलोनियों में भाग्य आज़माना चाहिए. उसकी बात मुझे जॅंच गयी. एक कॉलोनी से दूसरी कॉलोनी में जाता मैं वापस उत्साह मे आने लगा था क्योंकि कॉलोनियाँ अविकसित होने के कारण रेट काफ़ी कम थे. मैने कुछ जगहों को चुना जहाँ पर घर और अपना काम दोनो चला सकता था. लेकिन लगता था मेरे नसीब जाग गये थे.

एक दिन एक कॉलोनी में घर देखता जब मैं एक रोपेर्टी डीलर से बात कर रहा था, तो एक सज्जन उधर से गुज़रते हुए हमारे पास आए, वो उस डीलर के परचित थे. उन्होनो भी मुझसे बातचीत की और मेरे बारे में पूछने लगे कि मैं किधर का हूँ? क्या करता हूँ? व्गारेह, वग़ैरेह..... मैं एहतियात के तौर पर कभी भी अपना असली पता नही बताता था, सो उसे भी दूसरे सहर का पता दिया. काम के बारे मैने उसे खुद का मुर्गिफार्म होने के बारे में बताया. मुर्गिफार्म के बारे मे सुन उसकी आँखे चमक उठी. वो मुझसे मुर्गिफार्म से संबंधित या इस धंधे से संबंधित सवाल पर सवाल पूछने लगा. मुझे थोड़ी हैरत थी मगर मैने उसके सवालों के जबाव अपने ढाई साल के मुर्गिफार्म के तज़ूरबे के आधार पर दिए. मेरे जबाब सुनकर उसने कहा कि मेरी जानकारी अच्छी है, मगर मुझे इस धंधे से संबंधित आधुनिक तौर तरीकों की खबर नही है. मैने जब उसके इस तरह सवाल करने की वजह पूछी तो उसने कहा कि खुद उसके पास एक बहुत बड़ा मुर्गिफार्म है, लेकिन अब वो अपने बच्चो के पास रहने हमेशा हमेशा के लिए विदेश जा रहा था इसलिए उसे मुर्गिफार्म बेचना था. मैने उसकी बात सुनी तो नज़ाने क्यों मेरे दिल ने कहा के एक बार चल कर देखना चाहिए. हालाँकि घर खरीदने से पहले मुर्गिफार्म खरीदने का सोचना पागलपन ही था मगर मन में कुछ कोतुहुल था, मैने सोचा देखने से क्या जाएगा. मैने उसे विनती की तो वो मान गया और हम प्रॉपर्टी डीलर से विदा लेकर उसके मुर्गिफार्म की ओर चल पड़े. 

मुर्गिफार्म बहुत बड़ा था, बहुत ज़्यादा बड़ा. मेरी शेड से कम से कम दस गुना बड़ी शेड थी, और उपर से दो मंज़िला. बिल्कुल बढ़िया अवस्था में, बिल्कुल आधुनिक तौर तरीकों से बनी थी लेकिन सबसे बढ़िया बात थी कि उस शेड से दो गुना ज़मीन और खाली पड़ी थी वहाँ. उस मुर्गिफार्म को देख मेरी आँखे उसके कोने कोने को तलाशने लगी. मुझे वो धंधा जमाने की सबसे बढ़िया जगह नज़र आई, मगर मैं जानता था कि मैं उसे खरीद नही सकता था, क्योंकि इतनी बड़ी इमारत और ज़मीन को खरीदता तो घर के लिए कुछ ना बचता. मेरा मन बुझ गया. मैने सेठ से रेट तक नही पूछा क्योंकि मैं जानता था कि वो मेरी पहुँच से बाहर है. सेठ ने मेर चेहरे के भाव पढ़ लिए, पुराना तज़ूरबेकार आदमी था. उसने मुझसे पूछा अगर मैं उसे खरीदने का ख्वाईशमंद हूँ तो? मैने सेठ को अपनी मजबूरी बताई. 

सेठ ने मेरी बात सुनी, कुछ पलों के लिए चुप हो गया. फिर वो मुझसे बोला कि मैं उसे कितना दे सकता हूँ. मैने उसे अपनी हद बताई. सेठ फिर से चुप हो गया. फिर बोला कि इतने पैसों की तो खाली ज़मीन ही है. मैं जानता था इसलिए मैने सेठ से विदा माँगी. वहाँ खड़े रहने का कोई फ़ायदा नही था. जब हम सड़क से बाहर आए तो सेठ ने मेरी बाँह पकड़ी और बोला "यह मेरे खून पसीने की कमाई है. मैने जब पँद्रेह साल पहले यहाँ धंधा शुरू किया था तो सभी लोगों ने मुझे पागल कहा था क्योंकि तब यहाँ कुछ नही था, कुछ भी नही. मगर मैने उन्हे दिन रात मेहनत करके ग़लत साबित किया. घर का खरच उठाने से लेकर बच्चों को विदेशों मे पढ़ाने का खरच तक मैने इससे निकाला है. मैं इसे कभी नही बेचता अगर बच्चों की ज़िद ना होती. उन्हे अकेला नही रहना, माँ बाप साथ चाहिए और यहाँ आकर वो रहने के लिए तैयार नही हैं. अब हमे ही उनके पास जाना हैं. इसलिए सब बेचकर उनके पास जा रहे हैं. जितने पैसे तुमने मुझे बताए हैं उससे दुगने मुझे कयि देने का ऑफर कर चुके हैं. मगर मैने उन्हे नही बेचा, जानते हो क्यों? क्योंकि उनके लिए यह सिर्फ़ एक मुर्गिफार्म है जबकि मेरे लिए....मेरी ज़िंदगी के पंद्रह साल, मेरी जिंदगी का एक हिस्सा. इसे मैं किसी ऐसे वैसे के हाथों नही बेच सकता. इसलिए आज तक जितने आए सबको मना कर दिया. मन ही नही मानता. मगर आज तुमसे बातचीत की तो तुमने मुझे उस समय की याद दिला दी जब मैने यह धंधा यहाँ सुरू किया था. तुममे जोश है, दिमाग़ है और मेरा तजुर्बा है तुम मेहनत भी खूब करते हो. क्योंकि तुमने मुर्गिफार्म से संबंधित कुछ एसी बातें बताई हैं जो खुद मुझे नही मालूम. तुम्हारा ग्यान आधुनिक नही है तुम पुराने तरीकों से मुर्गिफार्म का काम करते हो यह मैं देख चुका हूँ मगर फिर भी मैं कह सकता हूँ तुमने अपने तज़ूरबे से बहुत कुछ सीखा है. और ऐसा तज़ूरबा सिर्फ़ मेहनत से आता है" 


सेठ कुछ पलों के लिए चुप हो गया. मैं नही जानता वो मुझे यह सब क्यों बता रहा था. कुछ देर बाद वो फिर बोला " सुनो मैं तुम्हे यह मुर्गिफार्म दे सकता हूँ अगर तुम भाव 50% बढ़ा सको तो? और दूसरा तुम्हे वादा करना होगा तुम इसे कभी दूसरे को नही बेचोगे" मैं सेठ का मुँह ताकने लगा. सेठ का ऑफर वाकई में बहुत बड़ा था. मगर फिर भी अगर मैं उतने पैसे भी देता तो भी मेरे पास घर खरीदने के लिए उतने पैसे ना बचते. सेठ ने मुझे सुझाव दिया कि मैं उसका घर भी खरीद लूँ. मैने सेठ को बता दिया कि मेरे पास जमा कुल कितनी रकम है. सेठ ने कहा कि वो मुझे कुछ वक़्त दे सकता है. लेकिन बहुत ज़यादा वक़्त नही क्योंकि तीन महीने बाद उसकी बेटी की शादी है. मैने सेठ से एक साप्ताह का वक़्त माँगा. उसने मुझे वक़्त दे दिया और वादा किया कि वो इस समय में किसी से कोई सौदा नही करेगा और नही मेरे लिए कीमत बढ़ाएगा. इसके बाद हम सेठ के घर गये. घर काफ़ी बड़ा था. आधुनिक था. दो बेडरूम नीचे और एक बेडरूम उपर. कुल मिलाकर तीन बेडरूम, एक ड्रॉयिंग रूम और एक बहुत बढ़िया रसोई थी. मगर उसके घर ने जिस ओर मेरा ध्यान खींचा वो थी घर के एक कोने मे सड़क पर बनी दुकान, जो शायद कभी इस्तेमाल में नही लाई गयी थी. उस दुकान को देख मेरा घर खरीदने का मन और भी पक्का हो गया. मैने सेठ से विदा ली. घर जाते पूरे रास्ते मे पैसे का हिसाब लगाता रहा. मेरे पास कम से कम बीस फीसदी रकम कम थी सेठ को देने के लिए. 


सूरत पहुँच मैं घर जाने की बजाय सीधा बहन के पास गया और उसे सब बातें बताई. बॉम्बे का नाम सुन वो थोड़ा खुश हो गई, शायद वो उसकी पसंदीदा जगह थी. उसने जब मेरे मुख से पैसों की समस्या के बारे में सुना तो उसने मुझसे पूछा कि कितने पैसे कम पड़ रहे हैं. मैने उसे बताया तो वो हँसने लगी. मैं उसकी ओर देखकर हैरान रह गया. भला इसमे हँसने की कोन्सि बात थी. उसने मुझे साथ चलने के लिए कहा मगर यह नही बताया कि हम कहाँ जा रहे हैं. लेकिन जल्द ही मुझे अंदाज़ा हो गया जब हमारा रिक्शा उसने एक बॅंक के सामने रुकवाया. बॅंक के गेट पर मैने उसकी बाँह पकड़ ली और उसे कहा कि मैं उसके पैसे नही ले सकता. उसने मेरी ओर देखा और अगले ही पल उसकी आँखे भर आई. उसने कहा कि अब जो कुछ है वो हम दोनो का है. वो खुद चाहती थी कि हम वो घर खरीदे बाद में सेठ का मन बदल गया तो. हालाँकि मेरा मन नही मान रहा था मगर बहन के चेहरे पर दुख के ऐसे भाव देखकर मैने हथियार डाल दिए. 

जब बहन ने अपनी बॅंक की पासबूक निकाली और मैने उसका बॅलेन्स देखा तो मैं हैरान हो गया. मेरा मुँह खुला का खुला रह गया. इतना पैसा उसने कैसे जमा कर लिया! उसके पास तकरीबन तकरीबन मेरी जमापूंजी का 50% था. बहन मेरी हालत देख मुस्करा रही थी. उस रकम को जमा करने के लिए उसे कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी मैं सोचकर उदास हो गया. अब मुझे समझ आ रहा था कि जब भी मैं उससे मिलने आता था क्यों हमेशा उसने पुराना सूट पहना होता था और वो हमेशा बहाना बनाती थी कि उसी दिन उसने कपड़े धोए हैं. उसने एक एक पैसा बचा कर फॅक्टरी और ब्यूटी पार्लर मे काम करके इतनी रकम जमा की थी. मेरी आँखे भर आई. मगर वो मुस्करा रही थी. उसने कहा कि इसी दिन के लिए तो वो दिन रात मेहनत कर रही थी. इसी दिन के लिए तो वो जी रही थी. बहन के लिए मेरे दिल मे इज़्ज़त इतनी बढ़ गयी कि मेरा सर उसके सामने झुक गया. 

जैसी बहन ने सलाह दी थी मैं घर ना जाकर सीधा वहीं से वापस मुंबई को रवाना हो गया. सेठ मुझे दो दिन बाद लौटा देखकर थोड़ा हैरान हो गया. मगर मैने उसे पैसे का इंतज़ाम होने की बात बताई कि मैं उसका घर और मुर्गिफार्म खरीदने के लिए तैयार हूँ.
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12-28-2018, 12:50 PM,
#49
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
जब तक उस मुगीफार्म और घर की रिजिस्ट्री मेरे नाम नही हो गयी मुझे डर लगता रहा कि कही सेठ अपनी बात से मुकर ना जाए. उस घर और उस मुर्गिफार्म से मैने एक नाता जोड़ लिया था. उनमे अपने हंसते, फलते फूलते परिवार के सपने देख रहा था. मगर सेठ अपनी बात पर कायम रहा और उसने मुझे खुशी खुशी अपना घर और मुर्गिफार्म सौंप दिया. लेकिन उसने आख़िरी बार फिर से अपनी शर्त दोहराई कि मैं अपना घर और मुर्गिफार्म किसी को नही बेचुँगा.

घर को मैने पैंट पोलिश करवाई. दुकान के लिए मुझे ख़ासी तैयारी करनी पड़ी. बहुत कुछ सामान खरीदना था, फिर एक बोर्ड भी बनवाना था. अंत में ,मैं सब कामो से फ्री होकर घर गया जहाँ बहन जो सहर से लौट चुकी थी, माँ के साथ मेरा बेसब्री से इंतजार कर रही थी. इतने दिन लगने पर वो चिंतत हो गयी थीं मगर मेरे चेहरे की खुशी से उन्हे मालूम हो गया कि सब ठीक ठाक रहा है. बहन की खुशी का तो ठिकाना ही नही था. वो तो खुशी के मारे बच्चों जैसी हरकते कर रही थी, कभी हँसती कभी मुँह बनाती, आख़िरकार माँ को उसे डांटना पड़ा तब जाकर वो थोड़ी शांत हुई. वो तीन साल से ज़्यादा समय बाद घर लौटी थी और उसके घर में आ जाने से हमारा घर फिर से घर बन गया था. माँ भी बहन को इतना खुश देखकर बहुत खुश थी. उस रात हालाँकि मैं बहुत थका हुआ था मगर मैं और बहन आधी रात के बाद तक बातें करते रहे. उसने इस दिन के लिए बहुत क़ुर्बानी दी थी इसलिए अब उससे खुशी संभाले नही संभलती थी.

उस दिन हम कोई साढ़े तीन साल बाद एक ही बिस्तर पर रात गुज़ार रहे थे. मगर हमे सेक्स की कोई इच्छा नही थी. जो खुशी जो आनंद हमे एक दूसरे के साथ प्राप्त हो रहा था उसके आगे सेक्स का सुख कुछ भी नही था. वो मुझसे सवाल पर सवाल पूछती रही और मैं उसके जबाव देता रहा. मैने उसे माँ और मेरे संबंधो के बारे में बताया तो उसने कोई प्रतिक्रिया नही दी. मुझसे चिपके वो बार बार मुझसे पूछी कि मुझे उससे कितना प्यार है, मुझे उसकी कितनी याद आती थी, वग़ैरेह वग़ैरेह.........


.मैं उसे अपने सीने से लगाए उसका माथा उसके गाल चूमता उसे बार बार बताता रहा कि मुझे उससे कितनी मोहब्बत है, कि मुझे उसकी कितनी याद आती थी, कि मैं उसके जाने के बाद उसे याद करके कैसे अकेला रोया करता था....??वो मेरी बातें सुनती मुस्करा पड़ती, हँसती फिर से वोही स्वाल दोहराती. आख़िर आधी रात के करीब माँ अपने कमरे से चिल्लाकर बोली कि अब सो जाओ, आधी रात हो गयी है और बहन को कहा कि अब हँसना बंद करो. मगर बहन नही मानी. वो बात करती, हँसती जब मैं उसे इशारा करता कि इतना उँचा ना हँसे तो वो अपने होंठो पर उंगली रख लेती और हां मैं सर हिलाती मगर फिर अगले ही पल फिर से हंस पड़ती. मैं भी उसके साथ हँसने लगता. ...........

वो रात अजब थी. ऐसा लग रहा था जैसे हमे संसार की सारी खुशियाँ मिल गयीं हों.....हमे अपनी किस्मत से अपने भगवान से अब कोई शिकवा नही था. वो ऐसे ही बातें करती करती मेरे कंधे पर सर रखे सो गयी. और मैं उसके सुंदर, भोले चेहरे को निहारता रहा, उसकी छोटी सी उपर को उठी नाक को चूमता रहा और सोचता रहा कि मैं कितना खुशकिस्मत हूँ कि वो मेरे पास है जब तक कि खुद मुझे नींद ने अपने आगोश में ले लिया
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12-28-2018, 12:50 PM,
#50
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मैने घर, ज़मीन और दुकान का सौदा कर दिया. घर तो हमारी पड़ोसन सोभा के बेटे ने जो फ़ौज़ में नौकरी करता था उसने खरीद लिया, उसके घर के साथ सटा होने के कारण उसने खुद ब खुद दाम बढ़ा कर सौदा कर लिया ताकि कोई और ना खरीद सके. दुकान के भी अच्छे पैसे मिल गये. अब खेत बाकी थे. गाँव में कोई ऐसा नही था जो उन्हे खरीद सकता क्योंकि ज़मीन बहुत ज़्यादा थी. मगर खरीदार खुद चल कर मेरे पास आया. डेविका का पति. जी हां उसी ने मुझसे ज़मीन खरीदने की बात की. जब मैं उसकी गाड़ी में बैठा खेतों में गया और उसने खेतों का अच्छे से मुयायना कर लिया तो उसने पहले ज़मीन का एरिया पूछा और फिर कीमत. मैने उसके चेहरे को देखा और कहा कि मेरी ज़मीन की कोई कीमत नही है. इस ज़मीन से जी हमारी नज़ाने कितनी पीढ़ियो ने खाया था और कितनी पीढ़ियाँ खा सकती हैं. और मुझे तो इसने सोना उगा कर दिया था. मैं उसकी कीमत नही ले रहा था बल्कि अपना मालिकाना हक़ छोड़ने का पैसा ले रहा था. उस ज़मीन की कीमत वो भी नही दे सकता था. वो मेरी सुन कर हंस पड़ा. मगर फिर गंभीर हो गया और बोला कि मैं कितना चाहता हूँ.

मैने उसे बताया, उसने एक बार भी बिना कुछ बोले, बिना किसी मोल-भाव के हां करदी. मगर जब हम वहाँ से जा रहे थे तब उसने मुझसे पूछा कि जब मुझे उस ज़मीन से इतना लगाव था और मेरा काम इतना बढ़िया चल रहा था तो मैं उसे क्यों बेच रहा था, मैने उसे सिर्फ़ यही कहा कि यहाँ हमारे परिवार ने सुख कम दुख ज़यादा पाए हैं. इसलिए हम यहाँ से दूर जा रहे थे. उसने कोई और बात ना की. 

एक हफ्ते के अंदर सब काम निपट गया. घर का ज़्यादातर समान हम वहीं छोड़ कर जाने वाले थे, बल्कि मैं तो सब कुछ छोड़ना चाहता था मगर माँ को यह मंजूर नही था. उसे कुछ पुरानी चीज़ों से बहुत लगाव था. खैर मैने बाकी का समान बेच दिया, दुकान का बहुत सारा सामान था, हमारे जानवर थे, खेतीबाड़ी के औज़ार थे. कुल मिलाकर एक अच्छी ख़ासी रकम जमा हो गई थी. मैने सहर से एक गाड़ी किराए पर ले रखी थी समान बॉम्बे ले जाने के लिए. 

जिस दिन हमने जाना था उसके एक दिन पहले मैं बहन और माँ के साथ खेतों में गया. हम शेड में बैठे थे. खेतों में फसल ना बिजने से घास उगनी सुरू हो गयी थी. ना ही अब वहाँ मुर्गियों का शोर था ना ही लहलहाती फसलें. बोरेवेल्ल बंद पड़े थे. मैं चारपाई पर माँ और बहन के बीच बैठा खेतों में बिताए पिछले साढ़े तीन सालों के एक एक दिन को याद कर रहा था. पहले दिन से लेकर जिस दिन मैने खेतों और शेड का मुयाइना किया था से लेकर पहली फसल बिजने, मुर्गीओं के लिए शेड बनाने, फिर मुर्गियाँ पालने से लेकर माँ के साथ सेक्स करने तक हर पल याद आ रहा था. मेरा दिल भारी होने लगा. माँ की भी शायद वोही हालत थी. बहन हम दोनो को देखकर चहकना बंद कर चुकी थी. वो उठकर हम दोनो के बीच में आ गयी और अपनी बाहें हम दोनो को लपेट संतवाना देने लगी. ज़मीन से बिछूड़ना बहुत भारी था. अब मुझे मालूम पड़ा उस सेठ ने ज़मीन मुझे ही क्यों दी थी जबकि मैने औरों के मुक़ाबले कम दाम दिए थे. अगर बहन से प्यार ना होता तो शायद मैं उस ज़मीन से अपना एक बड़ा कारोबार खड़ा कर लेता. मगर ज़िंदगी में सब खावहिशें पूरी नहीं होती. कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है, और मुझे यह खोना ही था. 

मगर बात सिर्फ़ ज़मीन की नही थी. घर से विदा लेना और भी मुश्किल भरा था. घर के कोने कोने से इतनी यादें जुड़ी हुई थीं. माँ उस रात को बहुत रोई, बहन भी, मैं भी. हम तीनो रो रहे थे. इतने सालों का साथ हमेशा हमेशा के लिए छूट रहा था और दिल इसे कबूल ही नही कर पा रहा था. 

घर से जाने के दिन एक और घटना हुई थी जिसका उल्लेख किए बिना यह कहानी अधूरी रहती.

जिस दिन हमने जाना था हम डेविका से मिलने उसके घर गये. वो किस्मत से पिछले दिन ही सहर से गाँव आई थी. क्योंकि अब उसके बच्चे बड़े हो गये थे और गाँव मे बहुत ज़यादा दिन रहना उन्हे पसंद नही था. मगर डेविका जब तब अपने पति के साथ गाँव चली आती थी.

हमे देखकर डेविका का चेहरा खिल उठा. बहन को तो वो ऐसे मिली जैसे वो उसकी सग़ी बहन हों और दोनो वर्षों बाद मिल रही हों. बहन और उसने खूब बातें की. उसका पति भी आ गया. हम से अच्छे से मिला. इतना बड़ा आदमी था पैसे मे, जात में बल्कि हर चीज़ में. मगर फिर भी खुले दिल का मालिक था. हम सब ने चाय पी. उसने फिर से मेरे इतने बढ़िया कामकाज होने के बावजूद शहर जाने पर हैरानी जताई. अब हम उसको क्या बताते, हमारी मजबूरी क्या थी! खैर चाय पीकर वो फॅक्टरी चला गया और जाते जाते उसने बॉम्बे का अपना पता दिया जहाँ उसका कुछ कारोबार था. 


हमे जाना था मगर बहन और डेविका की बातें ही नही ख़तम हो रही थीं. अंत मे बहन को मुझे बोलना पड़ा कि हम सहर के लिए लेट हो जाएँगे तब जाकर वो उठी. मैं डेविका का तहे दिल से शुक्रिया करना चाहता हर बात के लिए. उसने बहन के लिए इतना कुछ किया था मगर उसने मेरी बात बीच में ही काट दी और बोली कि वो उसकी बहन ही है.

जब हम जाने को हुए, सभी उठ खड़े हुए, एक दूसरे से विदा ली, मैने डेविका को अपना सहर का पता दिया और उससे कहा कि वो किसी को ना बताए तो वो मेरे बोलने से पहले ही बोल पड़ी कि मुझे चिंता करने की ज़रूरत नही है. 

बहन दरवाजे की ओर बढ़ी, मैने डेविका की ओर देखा, मुझे फिर से वोही अनुभूति होने लगी जो तब हुई थी जब वो मुझसे खेतों में मिलने आई थी. मैं उसे आज भी कुछ कहना चाहता था, आज भी मुझे उसकी आँखो में छिपे उस अंतहीन दर्द की परछाई दिखाई दे रही थी जिसे वो सबसे छिपाए रखती थी, जिसे वो अकेले बर्दास्त करती थी. वो सदैव चेहरे पर मुस्कान लिए होती थी मगर उसके अंदर .बहन ने मुझे आवाज़ दी और पूछा कि अब देर नही हो रही है. मैने फिर से डेविका की आँखो में देखा. उसकी तन्हाई, उसके अकेलेपन उसके दर्द से मेरा सीना बिन्ध गया. वो मुझे अपनी ओर इतना गौर से देखते देख थोड़ा परेशान हो गयी थी. मैं उसकी ओर बढ़ा. उसके चेहरे पर असमंजस के भाव थे. मगर अब मेरे दिल में कोई असमंजस नही था. मैं उसके सामने जाकर उसके आगे झुका, उसके पाँव छुए, वो एकदम से थोड़ा पीछे को हटी और फिर मुझे अविश्वास से देखने लगी.

"हम से मिलने आईएगा........हमे भूल मत जाना ..........दीदी.....हमे आपकी बहुत याद आएगी" 

उसके होंठ कांप उठे, उसकी आँखे एक पल में भर आई. वो कुछ पल मुझे देखती रही.'लगता था वो खुद को संयत करने की कोशिश कर रही थी मगर वो खुद को संभालने में नाकाम रही. सालों से खामोशी को अपने गले लगाए उसकी सहनशक्ति का बाँध टूट गया और अगले ही पल वो भाग कर मुझसे लिपट गयी. उसका पूरा बदन कांप रहा था. आँखो से अश्रुओं की धाराएँ बह रहीं थी. 
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