Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
12-28-2018, 12:39 PM,
#11
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
अगले दिन सुबह मेरे खेतों में पहुँचने के कुछ ही समय बाद माँ ने वहाँ आकर मुझे चकित कर दिया. वो मेरे साथ मिलकर खेतों को तैयार कर उसमे बीज बोने, जानवरों को चारा डालने और जो फसल अब तैयार हो रही थी उसको पानी देने जैसे कामो में मेरी मदद करने लगी. मैने अपनी जिंदगी में माँ को कभी भी इतनी मेहनत करते नही देखा था जितनी वो उस दिन कर रही थी या आने वाले दिनो में करने वाली थी. 


और जब हम पेड़ों वाली उँची जगह जिसे मैं टीला बोलता था, पे बैठकर आराम करते हुए नीचे अपने दिन भर के निपटाए काम को देख रहे थे तो वो मेरी पीठ थपथपाते बोली "बेटा तुमने वो कर दिखाया है जो तुम्हारे पिता के बाद असंभव ही था बल्कि उनके रहते भी असंभव ही था. अब मुझे यकीन है कि ज़मीन की तरह तुम हमारी ज़िंदगी में भी खुशली ला दोगे"


"चिंता मत करो माँ, अगर किस्मत ने साथ दिया तो समझो हमारे बुरे दिनो की लंबी रात ख़तम होने वाली है और ख़ुसीयों की नयी सुबह उगने वाली है" मैने माँ को हॉंसला दिया इस उम्मीद से कि या तो वो मुझे आलिंगन में ले लेगी या कल की तरह ही चूमेगी. मगर उस दिन उसका आचरण बहुत सही था उसने एसा कुछ नही किया जिसकी मैं उम्मीद लगाए बैठा था. 


मेरी माँ के खेतों में काम करने का नकारात्मक पहलू ये था कि अब उसके पास मेरी बेहन को दुकान से राहत देने का समय नही मिलता था. उस दिन जब हम घर पहुँचे तो कोई खाना तैयार नही था. मेरी माँ ने घर के बॉरेहोल के पानी से जल्दी से स्नान किया और फिर हम सब के लिए खाना बनाया. ये मेरी बेहन के लिए एक और ताज्जुब की बात थी क्योंकि माँ ने कब का घर के काम काज में दिलचपसी लेना छोड़ दिया था. मेरी माँ दिन भर के कठिन परिश्रम के बाद बुरी तरह से थक गयी थी इसलिए खाने के बाद जल्द ही सो गयी. मैने अपनी बेहन को बताया कि कोई और भी है जिसे माँ के उस जबरदस्त बदलाव ने असचर्यचकित कर दिया होगा; सोभा. वो ज़रूर सोच रही होगी कि माँ या तो बीमार है या किसी और वजह से उससे लगातार दो दिन मिलने नही गयी.


मैने और मेरी बेहन ने उस रात कुछ बुझे हुए अनमने मन से प्यार किया. वो इस बात से नाखुश थी कि उसे दुकान में ज़्यादा समय काम करना पड़ा और जिसकी वजह से हम दोनो को आपस में कम समय मिला. अपनी बाहों में लेते हुए मैने उसे धृड़तापूर्वक बताया कि मुझे उसका इस तरह परेशान और व्याकुल होना बिल्कुल अच्छा नही लगता. यह एक और बदलाव था जिसकी हम दोनो को आदत डालनी थी और उस हिसाब से खुद को व्यवस्थित करना था. उसे मेरी बात समझ आ गयी थी शायद इसीलिए इसके बाद उसके चुंबनो में फिर से गर्माहट लौट आई थी. जब तक उसके सोने का समय होता वो अपनी व्यथा भूलकर वापस अपने रंग में आ गयी थी.


अगले दिन मेरी माँ हम तीनो मे सबसे पहले जागी और उसने मुझे जगाने के लिए सबसे पहले मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाया. मेरी बेहन मेरे कंधे पर सर रखे गहरी नींद मे डूबी हुई थी. मैं एकदम से घबरा गया मुझे लगा जैसे वो अंदर आने वाली है और हम दोनो रंगे हाथों पकड़े जाने वाले हैं. मगर माँ दरवाजा खटखटा कर चली गयी. मैने बहन को हिला कर जगाया और उसे जल्दी से रूम से जाने के लिए कहा क्योंकि उस समय रास्ता सॉफ था. उस दिन हमारा बचाव हो गया था, मैने बहन को समझाया कि अब हमें ज़्यादा सावधानी रखनी होगी. यह भी एक एसा बदलाव था जिसकी हमें अब आदत डालनी थी. 


लगभग एक हफ्ते बाद जब हम रोज की तरह टीले पर बैठे दिन भर के ख़तम किए काम को देखते हुए अपनी मेहनत के नतीजे से खुश हो रहे थे तो मैने माँ के गिर्द अपनी बाँह लपेटने का फ़ैसला किया. उसने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया तो मैने उसके कंधे पर हाथ रख उसे हल्का सा दबा कर खेती के काम में मेरी मदद के लिए उसका आभार प्रकट किया. यह वो आलिंगन नही था जिसकी मुझे चाह थी मगर ना होने से तो ये कहीं ज़्यादा अच्छा था.


उस समय मुझे इसका एहसास नही हुआ, मगर मेरे उस इशारे या भाव ने माँ को मेरे प्रति थोड़ा ज़्यादा सनेही बना दिया था. अब वो मुझे पहले की तुलना में थोड़ा खुल कर छू लेती थी. अब यह हमारे लिए नित्य का रीति रिवाज बन गया था कि दिन भर का काम ख़तम कर हम टीले पर एक दूसरे के साथ बैठते थे, उसका सर मेरे कंधो पर होता और मेरी बाँह उसके कंधो के गिर्द, कभी मैं प्यार से उसके कंधे को छू कर दुलार्ता और कभी कभी दबा देता. कभी कभी वो अपनी बाँह मेरी कमर के गिर्द सहारे के लिए लपेट लेती. 


मेरी बेहन और मुझे अब इकट्ठे होने का निकटता का उतना समय नही मिलता था जितना हम दोनो एक दूसरे को प्यार करने के लिए चाहते थे इसलिए हम को झटपट जल्दी जल्दी संभोग से संतोष करना पड़ता जिसका मतलब होता मुझे जल्दी से अंदर डालकर जल्दी से स्खलित होना पड़ता, नतीजतन वो कयि बार स्खलित भी नही होती थी. केयी बार हमे सिर्फ़ चूमने-चिमटने का मौका मिलता और कयि बार हम प्यार करना शुरू भी नही कर पाते और दिन भर की थकान हमें सोने को मजबूर कर देती और जब आँख खुलती तो सुबह हो चुकी होती.

नतीजतन हमारा रिश्ता बुरी तरह प्रभावित होने लगा.

जल्दबाजी की आत्मीयता बहुत असंतोषजनक थी. हम वो सब कुछ एक दूसरे को कह नही सकते थे जो हम कहना चाहते थे, हम वो सब एक दूसरे के साथ कर नही सकते थे जो हम करना चाहते थे. मैं उसके साथ दिन भर का विवरण नही बाँट सकता था, उसे अपनी प्रगति के बारे में उतना खुल कर विस्तार से नही बता सकता था जितना मैं बताया करता था. हमारी कामक्रीड़ा से पहले एक दूसरे के अंगो को चूमने, चूसने, सहलाने जैसी गतिविधियाँ दिन भर दिन कम होती जा रही थी जिसकी वजह से स्नेह भी कम होता जा रहा था. हमारे अंदर एक दूसरे के लिए स्नेह पहले जैसा ही मौजूद था मगर यह कम होता इसलिए महसूस हो रहा था क्योंकि हम एक दूसरे को पहले जैसे प्यार नही कर पा रहे थे. इस मामले मे समझिए कम गिनती का मतलब कम गुणवत्ता भी था.

मैं उसकी आँखो में उसके स्वाभाव मे उस निराशा को बल्कि उस गुस्से को भी देख सकता था जो हमारी आत्मीयता का समय कम होने के कारण था. अब, क्योंकि इसमे मेरा कोई दोष नही था, इसलिए मुझे उसका इस तरह निराश होना या गुस्सा करना जायज़ नही लगा. हम पहले जितना या पहले जैसा समय एक साथ नही बिता सकते थे इसलिए नही कि चाहत में कोई कमी आ गयी थी बल्कि असलियत में अब मैं उसे पहले से ज़यादा चाहता था. समस्या सिर्फ़ यही थी कि मेरे पास समय ही नही बचता था कि मैं उसे दिखा सकता, मैं उसे कितना प्यार करता हूँ. मुझे यह बात भी अच्छी नही लगती कि मैं पूरा दिन इतना कठोर परिश्रम करता था ता कि हमारा भविष्य उज्ज्वल बन सके और वो हमारे मिलन के समय की कमी को हमारे बीच एक दरार का रूप दे रही थी. और यह दरार आने वाले हर दिन के साथ गहरी होती जा रही थी
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12-28-2018, 12:40 PM,
#12
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
कुछ दिन बीतने के बाद मुझे अहसास हुआ कि बहन के साथ बढ़ती दूरी और आत्मीयता की कमी के कारण जो स्थान मेरे हृदय मे रिक्त हो रहा था उसे मैं माँ से नज़दीकियाँ बढ़ा कर पूरा करने की कोशिस कर रहा था. मैं बहन के साथ बहुत कम समय बिता रहा था मगर मैं तन्हा नही था. अगर मेरी बहन मेरे पास नही होती तो मेरी माँ ज़रूर होती. अगर एक औरत मेरी ज़िंदगी से दूर होती जा रही थी तो दूसरी उतनी ही पास आती जा रही थी. मैं हमेशा अपनी बहन के जिस्म को सराहता था, उसकी खूबसूरती से मोहित हो उठता था. मगर अब मेरी आँखे माँ के बदन का मुयायना करने लगी थी और जिस नज़र से मैं बहन को देखता था वो नज़र अब माँ के गदराए अंगो का जायज़ा लेती थी. माँ मुझे बहुत आकर्षक, बड़ी मनमोहक और कामुक लगने लगी थी. वो हमेशा वैसी ही थी बस उसे देखने की मेरी नज़र बदल गयी थी. मगर अब मेने ध्यान देना सुरू कर दिया था. जब मैं किताब के उन आसनो में माँ और खुद की कल्पना करता था तब भी वो मुझे इतनी कामुक, आकर्षक, गदराई नही लगती थी जितनी अब लगने लगी थी, उसका हुश्न तब भी मुझे इस तरह तरसता नही था जितना अब तरसाने लगा था. अचेतना में मैं अपनी बहन का स्थान अपनी माँ को दे चुका था. अब जब भी मैं और मेरी बहन एक साथ हमबिस्तर होते तो मुझे वो बड़ी अटपटी अपराध भावना का अहसास होता जैसे मैं अपनी माँ को दगा दे रहा होता हूँ. कहने का मतलब जल्द ही मेरा और बहन का अब कभी कभार होने वाला मिलन भी पूरी तेरह बंद हो गया था. मैं जैसे खो गया था. जो औरत मेरी थी वो अब दूर चली गयी थी, और जो मेरे पास थी वो शायद मेरी किस्मत मे नही थी.

ऐसा ही उदासी और अकेलेपन से भरा एक दिन था जब मैं टीले पर खड़ा मकयि और धान की फसल को देख रहा था, मकयि को भुट्टे निकलने सुरू हो गये थे. मुझे इस बात से बहुत दुख महसूस हो रहा था कि मैं और मेरी बहन दोनो हमारी इतनी बढ़िया फसल होने का आनंद भी नही ले सकते थे. मुझे उन दिनो की याद आ रही थी जब हम दोनो पूरी पूरी रात प्यार और कामक्रीड़ा में गुज़ारते थे. अचानक मैने अपनी कमर पर किसी की बाँह कस्ति महसूस की. वो मेरी माँ थी जो अपने बदन की एक तरफ मेरे बदन से दबाते हुए बोली "देखो इस सबको बेटा! तुम्हारी कड़ी मेहनत का फल आज तुम्हारे सामने है"

मैने अपनी बाहें छाती से खोल कर अपना बाया हाथ उसके कंधे के गिर्द लपेट दिया. उसने जैसे मेरे इशारे को समझते हुए अपने बदन की दाई साइड थोड़ी और मेरे बदन से सटा दी. उसका बाया मम्मा मेरे कंधे के नीचे मेरी छाती को छू रहा था. मुझे उसके मम्मे का कोमल अहसास बहुत सुखद महसूस हुआ. 

"हमारी कड़ी मेहनत का फल माँ!" मैने माँ को दुरूष्ट किया.

वो थोड़ा बेढंग सी खड़ी थी इसलिए वो थोड़ा सा मेरी और घूम गयी. उसने बहुत धीरे से बहुत आराम से मुझे आलिंगन मैं लिया. अब उसके दोनो मम्मे मेरी बाईं ओर चुभ रहे थे. मैने उसके कंधे को थोड़ा सा दबाया और उसे कोमलता से थामे वहाँ खड़ा रहा. उसे ज़रूर अहसास रहा होगा के मैं उस दिन उदास था शायद इसीलिए उसने समझदारी दिखाते हुए कुछ ना बोलना ही उचित समझा होगा और मेरे साथ उस अर्ध आलिंगन मे बिल्कुल स तरीके से खड़ी रही जब तक कि मैने हिलने का फ़ैसला ना किया. उसकी इतनी समाझदारी और कोमलता को देख मेरा मन उसकी तारीफ से भर उठा. 

एक बार जब हमारे बीच ऐसा संपर्क बन गया तो आगे ऐसा संपर्क बनाना आसान हो गया. मैं हर शाम थोड़ा उदास सा टीले पर खड़ा होता और वो अपनी बाँह मेरी कमर के गिर्द लपेट देती और फिर मेरा हाथ पकड़ कर अपने कंधे पर रख देती. मैं अपनी बाँह उसके कंधे के गिर्द लपेटता तो वो मुझसे सटते हुए अपने बदन का बयान हिस्सा मेरे दाएँ हिस्से में दबाती. लगभग एक हफ्ते तक हमें इसकी आदत पड़ गयी थी और ये हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गया था. हमारा यह संपर्क इतना सामान्य सी बात बन गया था कि एक दिन जब मैने थोड़ी उज्जडता दिखाते हुए अपनी बाँह कंधे की बजाए उसकी कमर के गिर्द लपेटकर उसको अपने सामने खींचा तो वो मेरे सामने आ गयी और मैने अपनी दूसरी बाँह भी उसकी कमर में डाल कर कर उसके पेट पर अपने हाथों को बाँध दिया और उसे पीछे से आलिंगन में लिए ऐसे ही खड़ा रहा. उसने अपने हाथ मेरे हाथों पर रख दिए और अपने बदन को थोड़ा पीछे को झुकाया तो उसके कंधे मेरे सीने से लग गये. कंधो से नीचे उसका पूरा जिस्म मेरे जिस्म से थोड़ा सा दूर था. मैं ऐसे ही उसके पेट पर हाथ बाँधे उसे लेकर कुछ समय तक खड़ा रहा और फिर उसे छोड़ते हुए कहा कि अब हमे घर चलना चाहिए, अंधेरा हो रहा था. 


उसे मालूम था या नही मालूम था, उसे अहसास हुआ था या नही हुआ था, मगर मैने हमारे बीच आत्मीयता बढ़ाने की, रिश्ते मैं खुलापन लाने की कोशिस की थी और उसने अपनी सहमति जताई थी.

मैने वोही कोशिस अगले दिन और आने वाले कई दिनो तक जारी रखी जिसका नतीजा पहले दिन जैसा ही था. उसकी कमर में बाहें डाले, उसके पेट पर हाथ बाँधे में उसके साथ खड़ा होता और वो अपनी कमर पीछे को झुकाए अपने कंधे मेरे सीने पर टिका देती, उसका सर मेरे बाएँ कंधे पर आराम करता और उसके लंबे बाल मेरे गालों पर खेलते मगर वो भी इत्तेफ़ाक़न ही होता.

धीरे धीरे लगातार उसकी कमर और मेरे जिस्म के बीच का फासला कम होने लगा और एक दिन आख़िरकार मैं उसे अपनी बाहों में लेकर खड़ा था और उसकी पीठ मेरे बदन से स्पर्श कर रही थी. जहाँ तक कयि बार उसके चुतड भी मेरी जाँघो से सटे होते.


माँ और मैं सारा दिन साथ साथ काम करते, जानवरों की देखभाल करना, फसलों से खर पतवार निकालना, खाद डालना, बारिश के पानी को ज़रूरत के हिसाब से फसल में पहुँचाना और बाकी के काम या यूँ कहिए भूमि के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक हम सारा काम इकट्ठे करते. यहाँ तक कि हम दोनो ने मिलकर गाय का प्रसव करवाया और एक नई बछिया के जनम से हमारा पशु धन फिर से बढ़ने लगा. हम मिलकर गाय का दूध दोहते. धीरे धीरे हमने बछिया को दूध पिलाना कम कर दिया, दूध बस घर के गुज़ारे लायक ही होता इसलिए हमने उसे बेचने के बारे में सोचा भी नही.

हम दोनो अब एक जोड़े की तरह मिलकर काम करते थे. वो मेरी औरत थी और मैं उसका मरद, कम से कम मेरी सोच तो ऐसी ही थी. हम दोनो एक दूसरे की हल्की फुल्की चोटों का इलाज करते क्यॉंके किसानी जीवन बहुत कठोर होता है इसलिए कुछ चोटें लगना स्वाभाविक ही था. एक के बदन में किसी अंग में दर्द होता या किसी मांसपेशी में खींचाव होता तो दूसरा मालिश करके उसका दर्द कम करने में मदद करता. इस सबसे हमारी घनिष्टता, हमारी आत्मीयता इतनी प्रगाढ़ हो गयी थी कि अगर कभी कभार हमारे बीच कोई ऐसा संपर्क बन जाता जो आम हालातों में माँ बेटे के बीच अनुचित माना जाता तो हम उसकी परवाह किए बगैर फिर से अपने काम इन जुट जाते. 
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12-28-2018, 12:40 PM,
#13
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मुझे इस बात का अहसास ही नही था कि हम दोनो एक दूसरे के साथ कितना खुल गये थे. एक दिन जब मकयि की फसल पूरी तैयार हो गयी थी और भुट्टे सूखने सुरू हो गये थे तो मेरा दिल में एक विचार आया और मैं मकयि के खेत के बीचो बीच जाकर लेट गया, मैं बस सफलता के अहसास को महसूस करना चाहता था. मेरे गायब होने के काफ़ी समय बाद मा मुझे ढूँढते हुए मेरे पीछे पीछे वहाँ आ गयी और मुझे लेता देख वो भी मेरे साथ ही लेट गयी. हम दोनो लंबे समय तक वहाँ साथ साथ लेटे हुए फसल काटने, संभालने और बेचने की योजनाएँ बना रहे थे. हम वहाँ कुछ एक घंटे लेटे रहे और उतने समय में लेटने से, करवटें बदलने से हमारी पीठें और बाल धूल से भर गये थे. आख़िर मे जब हमने उठने और बाकी के काम निपटने का फ़ैसला किया तो माँ ने मेरी पीठ मिट्टी और सूखे पत्तों से भरी देखी तो उसे सॉफ करने लगी. उसे काफ़ी समय लगा मेरी कमीज़, पेंट और बालों से मिट्टी निकालने में. और पेंट से धूल निकालते समय उसको मेरे चुतड़ों को झाड़ना था ता कि पेंट से धूल निकल सके जिसे करने मे उसने लेश मात्र भी हिचकिचाहट नही दिखाई. उसके हाथ मेरे चुतड़ों पर घूमते हुए मुझे बहुत आनंदित कर रहे थे और मैं अपने जंघीए मैं थोड़ी हलचल महसूस कर रहा था. एक बार जब उसका काम निपट गया तो उसने मेरी और अपनी पीठ घुमाई और बोली,

"अब तुम्हारी वारी है. देखना अच्छे से सॉफ करना. मैं नही चाहती गाँव वाले सोचे हम दोनो खेतों में काम करने की बजाए एक दूसरे का काम कर रहे थे"

उसने वो बोल भोलेपन से कहे थे और उनमे उन शब्दों का मतलब क्या हो सकता है या क्या निकाला जा सकता था ये सोच विचार नही था मगर उन लफ़्ज़ों को सुन मेरा दिल ज़ोरों से धड़क उठा. पहले तो मेरे मन मे एक तस्वीर उभरी जिसमे मेरी माँ मकयि के खेत के बीचो बीच लेटी हुई थी और मैं उसके उपर चढ़ा हुआ था. मेने खुद को अपनी माँ की चूत मे गहराई तक कस कस कर धक्के लगाते हुए कल्पना की, मेरे धक्कों से मिट्टी मेने उसके मचलते, तड़फटे जिस्म की कल्पना की. उन कल्पनाओं से, उन ख़यालों से पहले से कड़े हो रहे मेरे लंड में हाइ वोल्टेज करेंट सा दौड़ने लगा जिससे वो और भी कड़ा होने लगा. और जब मेरे हाथ उसकी पीठ पर धूल साफ करने का काम रहे थे तो वो करेंट और भी तेज़ होता जा रहा था. सर के बालों से सुरू होकर नीचे आते हुए गर्दन पर, कंधो पर, कमर पर, उसकी टाँगो पर और अंत में उसकी गान्ड पर मेरे हाथ धूल सॉफ करने के बहाने उस मनमोहक, कामुक देह का आनंद ले रहे थे. मेरे हाथ बुरी तरह कांप रहे थे जब मैं उसके नरम, कोमल कुल्हों से धूल सॉफ कर रहा था. उसके पिछवाड़े का स्पर्श बहुत सुखद और आनंदमयी था और मैने स्थिति का लाभ उठाते हुए उसके कुल्हों से मिट्टी झाड़ने के बहाने उसके कुल्हों को सहलाना सुरू कर दिया ख़ासकर दोनो कुल्हों के बीच के हिस्से पर मेरे हाथ बहुत कोमलता से घूम रहे थे. मुझे यह देखने के लिए कि मिट्टी कहीं रह तो नही गयी है नीचे झुकना पड़ा, एक तरह से यह अच्छा था क्योंकि मैं अब अपने पूरे खड़े लंड को अपनी जाँघो के बीच दबाकर छुपा सकता था. मगर जब उसने देखा कि उसके कुल्हों से धूल सॉफ करने के लिए मैं ज़रूरत से कहीं ज़्यादा समय ले रहा हूँ तो उसने कंधे के उपर से सर घूमाकर मेरी ओर देखा कि मैं क्या कर रहा हूँ. मैने जल्दी से थोड़ा बहुत हाथ उसकी टाँगो पर चलाया और उसे बताया कि धूल पूरी सॉफ हो गयी है. वो मेरी और मूडी और उठने मे मेरी मदद करने के लिए मेरी ओर अपना हाथ बढ़ाया. मगर मैं उठना नही चाहता था क्यॉंके उस समय मेरी पेंट मेरे कठोर लंड की वजह से आगे से पूरी फूली हुई थी. मगर ना चाहते हुए भी मुझे उठना पड़ा क्योंकि नीचे बैठे रहने का मेरे पास कोई बहाना नही था. मालूम नही उसका ध्यान मेरे खड़े लंड पर गया या नही गया मगर मेरे घुटनो पर लगी धूल पर उसका ध्यान चला गया जो मेरे नीचे बैठने के कारण लग गयी थी. वो मेरे घुटनो को सॉफ करने के लिए झुकी और ऐसा करने से उसका सर मेरे लंड के एकदम सामने आ गया. घुटनो से धूल सॉफ करने के पश्चात उसने सर उठाकर मेरी ओर देखा तो उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी, मगर जब उसकी नज़र पेंट में स्टील की रोड की तरह अकडे और उठक बैठक कर रहे मेरे लंड से टकराई तो उसकी मुस्कान उसके होंटो से एकम से गायब हो गयी.

माँ के चेहरे का रंग उड़ गया और वो तेज़ी से दूसरी ओर घूम गयी. वो मकयि के खेत से निकल जल्दी जल्दी मुझसे दूर भाग गयी. मैं कह नही सकता था कि वो घबरा गयी है या शर्मिंदा है मगर मैने इतना ज़रूर देखा था कि बाकी पूरा दिन वो जब भी मेरे नज़दीक आती या जब भी मैं उसके पास जाता तो वो अपनी आँखे फेर लेती थी. उसके रवैये में किसी बढ़ाव की बात उस समय पक्की हो गयी जब वो उस दिन शाम को टीले पर भी नही आई जो हमारी दिनचर्या का अटूट हिस्सा बन चुकी थी.


असलियत मैं हमारा टीले पर बैठ कर हर रोज शाम को होने वाला सर्वेक्षण पूरी तरह से बंद हो गया था. हम अब भी इकट्ठे काम करते थे मगर फिर भी हमारे व्यबहार में या यूँ कहिए उसके व्यबहार में फरक आ गया था. और कारण मुझे समझ नही आ रहा था. वैसे तो उसे इतना तो मालूम था ही कि मेरे पास एक लंड भी है. और उसके खड़े होने से ऐसा क्या पहाड़ टूट पड़ा था जिससे उसका रवैया एकदम से इतना बदल गया था.?


इस सवाल का जबाब मुझे भारी मूसलाधार बरसात के आने से मिला. जैसा हमारे कभी कभार होता था, यकायक बादल फट पड़ते थे और इतनी ज़ोरदार बारिश होती थी कि उसमे कुछ भी करना नामुमकिन होता. एक दिन दोपहर को एसी ही बरसात आई और हम दोनो उसमे फस गये. जब तक हम जानवरों को उनके बाडे में पहुँचाते हुए हम पूरी तरह से भीग चुके थे, हमारे कपड़े कीचड़ से भर गये थे. हमारे पास अब कपड़े उतारने के सिवा और कोई चारा नही था. इतनी तेज़ बरसात और तूफ़ानी हवा में गीले कपड़े पहने रहना निमोनिया को बुलावा देने जैसा था. मैने माँ को कंबल दिया और बिना कुछ बोले मकयि के खेत की ओर चल दिया. माँ को कुछ बोलने की ज़रूरत नही थी वो खुद समझ सकती थी मैने उसे कंबल क्यों पकड़ाया था. मैने जल्द से जल्द मकयि के खेत से आठ दस भुट्टे तोड़े और वापस शेड की ओर चल दिया. माँ ने कंबल ओढ़ा हुआ था और एक तार पर अपने कपड़े बरसात के पानी से धोकर डाल रही थी. मैने भी कपड़े उतार चादर ओढ़ ली और उन्हे थोड़ा बहुत बरसात के पानी से सॉफ कर दिया. उसके बाद शेड में रखी हुई सुखी लकड़ी से आग जलाई और अपने और माँ के कपड़े आग के पास एक लकड़ी पर रख दिए ताकि आग की गर्मी से सुख जाएँ. मैने खाने के लिए आग पर चार पाँच भुट्टे भुन लिए.

माँ कंबल ओढ़े फोल्डिंग बेड पर बैठी थी. जब मैं भुट्टे सेंक रहा था और कपड़े सूखा रहा था तो मैने उसे बेड से उठकर खिड़की के पास जाते देखा, खिड़की में खड़ी वो बाहर खेतों की ओर देख रही थी. वहाँ खड़ी वो बहुत समय से बाहर देख रही थी. उसकी मुद्रा एन कुछ ऐसा था जिसे देखकर मुझे लगा कि वो बाहर खेतों को नही बल्कि बहुत दूर किसी और समय को किसी और स्थान को देख रही थी. मैं एक भुना हुआ भुट्टा लेकर उसके पास गया और उसके पीछे खड़ा होकर वो क्या देख रही है, देखने की चेस्टा करने लगा. वहाँ खड़े हम दोनो चुपचाप भुट्टा खा रहे थे जब उसने लंबे इंतज़ार के बाद अपनी चुप्पी तोड़ी. 

"मुझे एसी बारिश बहुत अच्छी लगती है" वो धीरे से बुदबुदाई थी.

मुझे उसका मतलब नही समझ में आया क्यॉंके इतनी तेज़ बरसात फसल के लिए अच्छी नही थी, हमारे खेतों में पानी ही पानी हो गया था. 

"जिस तरह यह बारिश हो रही है हम वास्तव में बाकी पूरी दुनिया से कट गये हैं" वो फिर से धीरे से बोली " कितनी शांति है यहाँ. कितना सुकून है इस बात में कि यहाँ तुम बिल्कुल अकेले हो, कि कोई भी तुम्हारी शांति भंग करने यहाँ नही आ सकता, कि कोई भी यह नही जान सकता कि तुम क्या कर रहे हो. यहाँ सिरफ़ तुम और तुम हो; और कोई नही"


वो मुझसे ज़्यादा खुद से बात कर रही थी क्योंकि उसके वाक्यों में मेरा कोई सन्दर्भ नही था. 

"मैं हमेशा से ऐसे तेज़ ग़रज़ने, बरसने वाले तूफान के बारे में सोचती थी. मैं हमेशा से चाहती थी कि कोई ऐसा तूफान सा आए और कयि दिनो तक यू ही चलता रहे ताकि मैं इससे होने वाली तन्हाई को महसूस कर सकूँ. ज़रा सोचो; कोई भी नही जानता हो कि तुम कहाँ हो, क्या कर रहे हो, तुम्हारे साथ क्या हो रहा है. तूफान चलने तक तुम बिल्कुल गुमनाम हो जाओगे!"
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12-28-2018, 12:41 PM,
#14
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मैं चुपचाप उसकी बातें सुन रहा था और उनका क्या मतलब हो सकता था यही सोच रहा था. सही में हम बाकी दुनिया से पूरी तरह कट गये थे, मगर दुनिया सिर्फ़ कुछेक किलोमेटेर की दूरी पर थी. मेरा मतलब अगर कोई चाहे तो बड़ी आसानी से हमें ढूँढ सकता था. 

यह बात दिमाग़ में आते ही मेरा ध्यान मेरी बहन की ओर गया. वो जानती थी एसी तेज़ तूफ़ानी बारिश में हम खेतों में रुकते थे जब तक कि बारिश इतनी कम ना हो जाए कि हम घर लौट सके. इसलिए मुझे इस बात की चिंता नही थी कि वो हमे लेकर चिंतत होगी. मगर जब मेरे जेहन में यह ख़याल आया कि हमारे उस सुने घर में मेरी बहन कितनी अकेली होगी, कितनी तन्हा होगी, मेरे सीने में दर्द की एक तेज़ लहर दौड़ गयी.

माँ चुप थी और पहले की तरह ध्यान लगाए बाहर देख रही थी. उसे अहसास नही हुआ कब मैने अपनी बाहें उसकी कमर में डाल दी. उसकी पीठ से सटाते हुए मैने अपनी बाहें उसकी कमर पर कसते हुए उसके पेट पर हाथ बाँध दिए तब उसका ध्यान इस ओर गया. हम बिल्कुल उसी आलिंगन में खड़े थे जैसे हम टीले पर हर शाम को काम निपटा कर खड़ा करते थे. वो पीछे को थोड़ा झुक कर अपना सर मेरे कंधे पर रख देती है और मैं उसे अपनी बाहों में लिए कुछ पलों तक वैसे ही खड़ा रहता हूँ. वो अब भी उसी कंबल को ओढ़े हुए थी. 


उस गगनभेदी तूफान का गगनभेदी सन्नाटा जैसे हमें सच्चाई की धरातल से दूर कहीं किसी काल्पनिक दुनिया में ले गया था. वो मेरी बाहों में थी और हम उस तन्हाई का आनंद ले रहे थे जो उस तूफान के कारण बाकी दुनिया से काट जाने के कारण हमे मिली थी. वहाँ सिर्फ़ हम थे, हम दोनो, अकेले, इकट्ठे, बस एक दूसरे का साथ था. वो मेरी माँ थी और मैं उसका बेटा था मगर ये नाता सिर्फ़ उस शेड में था. इस नयी अंजानी, अनदेखी दुनिया में वो एक बेटा नही था जो अपनी माँ को थामे खड़ा था, वो एक युवा मर्द था जो अपनी संगिनी को अपने आलिंगन में लिए था. वो एक औरत थी जो उस बाहर बरस रहे तूफान को लेकर रोमांचित थी, मैं एक मर्द था जिसके अंदर तूफान बरस रहा था. आग कब की बुझ चुकी थी और आसमानी बिजली का चमकना भी लगभग बंद हो गया था. रात के अंधेरे में हम दोनो जिस्म से जिस्म चिपकाए खड़े थे और हमारे जिस्मो के बीच केवल एक कंबल था.


यह सब जैसे स्वचालित था, मेरा हाथ उसके दाहिने कंधे पर गया और बहुत धीमे से कोमलता से मैने उसे अपनी ओर घुमा कर बिल्कुल अपने सामने कर लिया.

यह भी जैसे स्वचालित था कि जब वो घूमी, तो उसका कंबल उसके जिस्म से फिसल गया और फर्श पर गिर गया जहाँ मेरी चादर पहले से गिरी पड़ी थी.

मैने उसके हाथ पकड़े और उनको अपने कंधो पर रख दिया. उसने अपनी बाहें मेरी गर्दन में डाल दी और मेरी बाहें उसकी कमर के गिर्द लिपट गयी और वो मुझ मे समा गयी. 

उसे अपनी बाहों में लिए मैं ना जाने कब तक खड़ा रहा, उसके बड़े बड़े मम्मे मेरी छाती में चुभ रहे थे, हमारे जिस्म सर से पाँव तक एक दूसरे से सटे थे, अंग से अंग मिला हुआ था, मेरा लंड उसकी जाँघो पर ठोकर मार रहा था. 

जब उसके हाथ मेरे सर के पीछे गये तो मेरे हाथ उसके चुतड़ों पर पहुँच गये और मैं उसकी पीठ सहलाने लगा. वो थोड़ा उपर को उठी और मेरे सर को नीचे की ओर खींचा और उसका मुख मेरे मुख से मिल गया. पहले हमारे होंठ मिले, फिर हमारे होंठ आपस में उलझे, फिर होंठ खुले, हमारी जिभे मिली , और फिर हमारी जीबे आपस मे उलझ गयी. वो चुंबन बहुत खूबसूरत था. जो अनुभव मैने हासिल किया था, जो अनुभव उसके पास था उसने मिलकर इस चुंबन को एक कभी ना भूलने वाली यादगार बना दिया. वो चुंबन मीठा था, मधुर था और सबसे बढ़कर मादकता से भरपूर एक नशीला चुंबन था. मुझे लगा जैसे माँ के चुंबनो से मुझ पर उत्तेजना का मादकता का नशा सा छाता जा रहा है.




एक लंबे और स्वादिष्ट चुंबन के बाद उसके होंठ उखड़ी सांसो पर काबू पाने के लिए अलग हुए. मैने थोड़ा नीचे झुक कर अपना मुख उसके मम्मों के बीच दबाया. कितने बड़े बड़े मम्मे थे मेरी माँ के. एकदम कोमल, नर्म, मक्खन के जैसे मुलायम. मैने उन दोनो को खूब चूमा और फिर अपने जलते होंठ उसके निप्प्लो पर लगा दिए. उसके निप्पलो को बदल बदल कर चूस्ते हुए मैं उसके मम्मे ज़ोर ज़ोर से दबाने, मसलने लगा. उसके हाथ मेरी पीठ पर घूम रहे थे और वो अपने मम्मे मेरे मुँह पर दबा रही थे. मम्मो को जी भर कर चूसने के बाद मैं नीचे की ओर बढ़ा और उसके पेट पर अपनी जिव्हा घुमाने लगा. खेतों में पिछले तीन महीने के हर रोज के कठिन परिश्रम ने उसका पेट कितना स्पाट कर दिया था, उसकी कमर पहले की तुलना में कितनी पतली हो गयी थी, मैं देख कर हैरान था. पेट से नीचे होते हुए उसकी जाँघो के जोड़ पर छोटे छोटे बालों को चूमते हुए अंत में, मैं उसकी महकती, दहकती चूत तक पहुँच गया. मैं उसके सामने घुटने टेक कर बैठ गया ताकि अपनी जिव्हा ठीक से उसकी चूत में डाल सकूँ. जब मेरी खुरदरी जीभ ने उसकी चूत के कोमल दाने को स्पर्श किया तो उसने दोनो हाथों से मेरा सर कस कर पकड़ लिया और अपनी चूत मेरे मुँह पर मारने लगी. मैं अपनी जिव्हा को पूरे ज़ोर से चूत के दाने पर रगड़ने की कोशिस कर रहा था. माँ हर धक्के पर कराह उठती जब मेरी जिव्हा उसके दाने को रगड़ती. उसकी कराह उँची, और उँची होती गयी और आख़िरकार जब उसकी बर्दाश्त से बाहर हो गया तो मेरे कंधो को पकड़ कर मुझे फोल्डिंग बेड की ओर खींचते हुए, लगभग घसीटते हुए लेजाने लगी. वो फोल्डिंग बेड पर पीछे की ओर गिर पड़ी मगर जल्दी से उठ कर बेड पर सीधी लेट कर मुझे अपने उपर खींच लिया. मैं भी बिना देरी किए माँ पर चढ़ गया. माँ ने टाँगे खोल दी और मैने उसकी टाँगो के बीच होकर अपना लंड उसकी चूत से सटा दिया. माँ ने हाथ आगे कर मेरे लंड को पकड़ा और उसे अपनी चूत के छेद पर टिका कर अपने अंदर लेने लगी. उसने कमर उपर को उछाली तो गप्प की आवाज़ से एक चौथाई लंड चूत में जा घुसा. होंठ भिंचे चेहरे पर तनाव लिए माँ सिसक उठी. उसके अंदर कामोउत्तेजना का एक अलग तूफान बरस रहा था जिसने उसकी चूत को इतना भर दिया था जितना बाहर बरसने वाला तूफान हमारे खेतों को नही भर सका था और मेरे लंड रूपी हल ने उस मातृभूमि की उसी पल जुताई सुरू कर दी थी जिस पल उसने चूत के होंठो को छुआ था. फिर माँ मेरे चुतड़ों को पकड़ कर मुझे चूत में गहराई तक कस कस कर धक्के लगाने में मेरी मदद करने लगी. वो आँखे बंद किए अपना निचला होंठ काटते हुए कराह रही थी, सिसिया रही थी और उसकी गहरी सिसकियाँ मुझे बता रही थी कि वो बाँध टूटने के कितने करीब थी. 

जब वो स्खलित हुई तो उसका स्खलन बहुत ज़ोरदार हुआ. वो अपनी कमर उपर को इतने ज़ोर से उछाल रही थी कि कुछ पलों के लिए मैने धक्के लगाना बंद कर दिया. उसकी चूत के अंदर उठने वाले सैलाब ने मेरे लंड को सरोवार कर दिया. जितने जबरदस्त तरीके से माँ स्खलित हुई थी वैसे बहन कभी स्खलित नही हुई थी और माँ का स्खलन बहन के मुक़ाबले कहीं ज़यादा देर तक चला था. बहन के मुक़ाबले माँ कहीं जल्दी छूट गयी थी और मैं अभी तक नहीं छूटा था. और जब वो एकबार शांत और नरम पड़ गयी तो मुझे माँ को चोदने में बहुत मज़ा आया क्योंकि अब मैं उसे अपनी मर्ज़ी से अपनी जिस्मानी चाहत के हिसाब से चोद सकता था ना कि उसकी मर्ज़ी से. आख़िरकार जब मेरा स्खलन हुआ तो उसने अपनी टाँगे मेरी कमर के गिर्द लपेट दीं और अपनी चूत को भींचते हुए मेरे लंड से वीर्य की आख़िरी बूँद तक निचोड़ने लगी. उसने स्खलन के बाद इतने समय तक मुझे अपनी चूत के अंदर रखा जितना मैं स्खलन के बाद बहन के अंदर कभी नही रहा था. फिर से माँ का तजर्बा मेरे लिए लाभकारी साबित हुआ था क्योंकि उस समय मैं अपनी औरत को नही चोद रहा था बल्कि असलियत में मेरी औरत मुझे चोद रही थी और मुझे माँ से चुदने में अत्यधिक आनंद आया था. मेरी बहन मुझसे चुदवाती थी जबकि माँ मुझे चोद रही थी. 

मुरझाए लंड को जल्द से जल्द पुनर्जीवित करने में माँ, बहन से कहीं ज़्यादा आगे थी. इसीलिए, पहले के विपरीत जैसी मुझे आदत थी इस बार मेरा लंड बहुत जल्दी दोबारा खड़ा हो गया. एक और परिवर्तन के तहत, वो मेरे उपर चढ़ गई और फिर से मुझे चोदने लगी. 


वो रात मेरे लिए कयि रहस्यों से परदा उठाने वाली रात थी. मैने जाना कि मकयि के खेत की घटना के बाद माँ के व्यवहार में तब्दीली क्यों आई थी. दरअसल पेंट में खड़े लंड पर एक नज़र ने मुझे मेरी माँ की आँखो में एक बलवान ख़तरनाक सांड के रूप में तब्दील कर दिया था जो अपनी सग़ी माँ पर चढ़ने के लिए तैयार था, बस एक खास उपयुक्त या अनुकूल मौका चाहिए था. जिस पल उसकी नज़र पेंट में उठे उफान पर गयी, उसी पल से वो मुझे चाहने लगी थी. कोई एक दसक से ज़्यादा समय बीतने के बाद उसने पहली वार एक तगड़ा लंड देखा था और ना चाहते हुए भी वो उस लंड को पाना चाहती थी, मेरे लंड को पाने की उसकी अभिलाषा इतनी ज़ोरदार थी कि खुद को संभालने के लिए उसने मुझसे दूरी बना ली थी.


मुझे यह भी मालूम चला कि माँ को मेरे मेरे वीर्य का स्वाद बेहद अच्छा लगा था. और उसको लंड मुँह में लेकर चूस्ते हुए स्खलित करने और फिर उसका रस पीने में बहुत मज़ा आता था. वो लंड चूसने में बहुत माहिर थी. उसने मुझे दिखाया था कि लंड चुसवाना कितना आनंदमयी कितना मज़ेदार हो सकता था. एक और बात जो मैने उस रात जानी कि उसे अधिकार में रहना पसंद था, अगुवाई करना पसंद था और इससे मुझे थोड़ी आसानी हो गयी थी. मुझे यह अनुमान लगाना नही पड़ता था कि वो कितनी कामुक है और उतेज्ना के किस पडव् पर है और उसकी उत्तेजना के हिसाब से मुझे कोन्सि कामक्रीड़ा करनी चाहिए. वो खुद अपनी कामोत्तेजना के हिसाब से हमारे संभोग को आगे बढ़ाती और वो इस बात का पूरा ध्यान रखती कि उसे हमारे मिलन से वो सब कुछ मिले जिसकी वो कामना करती थी और इसमे मेरे लिए भी वो सब कुछ शामिल होता जिसकी मैं कामना कर सकता था या यूँ कहिए के कल्पना कर सकता था. और उस रात मैने एक तंग चूत और एक बड़ी चूत के बीच के अंतर को भी जाना. और आज भी, मैं आज भी यह नही कह सकता कोन्सि ज़्यादा आनंदमयी थी.
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12-28-2018, 12:41 PM,
#15
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
सुबह मेरी आँख खुली तो सवेरा हो चुका था. माँ मेरी ओर पीठ किए सो रही थी. हम पिछली रात बहुत देर से सोए थे. तीसरी वार संभोग बहुत लंबा चला. जिंदगी की एक बेहतरीन रात थी वो रात. मैं धीरे से उठा ताकि माँ जाग ना जाए. खिड़की में से झाँक कर देखा तो पाया बारिश अभी भी चालू थी हालाँकि अब वो बहुत कम रह गयी थी. खेतों में हर तरफ पानी ही पानी था. आज खेतों में कुछ नही हो सकता था, शायद कल या परसो भी नही. मैने कमर पर एक पुराना कपड़ा लपेटा और बाहर निकलकर पशुओं के बाडे की ओर चल दिया. मैं घर जाने से पहले जानवरों को पानी और चारा डाल देना चाहता था. पशुओं के बाडे की ओर जाते हुए मैने देखा की फसल को कोई नुकसान नही हुआ था. हालाँकि पानी बहुत था लेकिन अगर बारिश जल्द ही रुक गयी तो इससे कोई बड़ा नुकसान नही होने वाला था. मैने आसमान की ओर देखा, बादल घुले हुए थे, लगता था दोपहर तक बारिश रुक जाएगी. मैने मन ही मन भगवान को धन्यवाद किया और पशुओं के बाडे में उनके पानी पीने के लिए जो दो हौदी मैने बनाई थी, देखा पानी से भरी पड़ी हैं. शायद ठंडे मौसम में जानवरों को भी पानी पीने से गुरेज़ हो रहा था. खैर मैने चारा निकाल उनको डाल दिया. अब वो कल तक आराम से रह सकते थे. गाय का दूध दोहकर मैं वापस शेड की ओर चल पड़ा.

शेड तक पहुँचते पहुँचते मैं फिर से कीचड़ से सन गया था, पाँव घुटनो तक गीली ज़मीन में धँस रहे थे. शेड में पहुँचकर मैने दूध रखा और पहले पानी के ड्रम से पानी लेकर मैं नाहया. बिना कुछ पहने कमरे के अंदर गया तो देखा माँ उठ गयी थी और स्टोव जला रही थी. वो बिल्कुल नंगी थी. हम दोनो ऐसे दर्शा रहे थे जैसे अब नंगे रहने से कोई फरक नही पड़ने वाला था जबके असलियत में मेरा दिल धड़क धड़क कर रहा था, जिस्म के रोएँ खड़े हो गये थे. माँ की खूबसूरत नंगी देह देख मेरे रोम रोम में उत्तेजना का संचार होने लगा.

"मैने कहा थोड़ी चाय बना लूँ, फिर घर चलते हैं" माँ ने कहा और फिर से अपने काम में जुट गयी. मैने दूध एक तरफ रखा और चादर से बदन का पानी पोछने लगा. माँ स्टोव पर पानी रख उठ खड़ी हुई तो मैने उसको सुबह की रोशनी में देखा. कितनी सुंदर, कितनी मनमोहक, कितनी कामुक थी वो औरत. उसकी पतले से जिस्म पर वो दो मोटे मोटे मम्मे कहर ढा रहे थे. मेरा लंड खड़ा हो रहा था. माँ ने मेरी और देखा और फिर मेरे करवटें लेते लंड की ओर तो उसके होंठो पर शरारती सी मुस्कान फैल गयी. वो मूडी और एक कोने में जहाँ सामान रखा था वहाँ गयी और झुक कर चाय और चीनी ढूढ़ने लगी. उसकी टाँगे बिल्कुल सीधी थी और कमर से उपर का बदन पूरा झुका हुआ था. मैं पीछे खड़ा हतप्रभ सा कभी उसकी जाँघो के बीच से झाँकती गुलाबी चूत को देखता तो कभी उसके गान्ड के छेद को. लंड पत्थर के जैसे सख़्त हो चुका था. बिना किसी देरी के मैं माँ के पीछे पहुँच गया और उसकी कमर पर हाथ रख दिए. माँ ठिठक गयी, मैने अपने हाथों में उसके जिस्म में हो रहे कंपन को महसूस किया. वो उसी स्थिति में खड़ी रही और मैने अपना लंड उसकी चूत से भिड़ा दिया और बिना देर किए उसे अंदर डाल दिया. माँ सिसिया उठी. उसकी चूत अभी भी गीली थी, रात की वजह से या वो अब भी उतनी ही कामोत्तेजित थी. मगर मुझे परवाह नही थी मैने दो तीन झटकों में लंड जड़ तक ठोक कर धक्के लगाने सुरू कर दिए. माँ थोड़ा उपर उठी और दीवार पर हाथ रख टाँगे और भी खोल दीं. अब मुझे माँ को चोदने में बहुत मज़ा आ रहा था. माँ ने भी सिसकना चालू कर दिया था, उसकी कराहें निकलना सुरू हो गयी थी. जब मैने थोड़ी गति बढ़ाई तो वो भी कूल्हे पीछे धकेल कर मेरे धक्कों का जबाब धक्कों से देने लगी. चूत में गीलापन बढ़ता जा रहा था. मैं थोड़ा आयेज को झुका और माँ के लटक रहे मम्मे अपने हाथों में थाम लिए. इस पोज़िशन में घस्से तो बहुत ज़ोरदार नही लग सकते थे मगर मम्मों को ज़ोर ज़ोर से मसला जा सकता था और मैं भी बिना कोई हमदर्दी दिखाए माँ के मम्मे पूरी बेदर्दी से मसल रहा था, माँ हाए हाए कर रही थी. 

"माँ हम उसी मुद्रा में है जैसे हमारा बैल उस दिन हमारी गाय को चोद रहा था" संभोग के समये पहली वार वो लफ़्ज मेरे मुख से निकले थे. और मेरे मुख से उन लफ़्ज़ों के निकलने की देर मात्र थी कि माँ स्खलित होने लगी. वो मेरे हाथों को दबा रही थी जो उसके मम्मों को मसल रहे थे. मैं बहुत ज़्यादा देर तक ना रुक सका और जल्द ही मेरा भी स्खलन हो गया था. माँ कुछ पल वैसे ही खड़ी रही और मैं उसकी पीठ पर सर टिकाए हाँफ रहा था. आख़िरकार हम अलग हुए. माँ ने एक पुराना कपड़ा लिया और खुद को सॉफ करने लगी फिर वो कपड़ा मुझे देते बोली " कपड़े पहन लो हमें घर जाना है" माँ ने कपड़े पहने और चाय बनाई जिसका पानी दोबारा रखना पड़ा. चाय पी हम दोनो घर की ओर चल पड़े. 


क्रमशः.......

बंधुओ अभी तो जाने क्या क्या होना था वो सब जानने के लिए साथ बनाए रखे
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12-28-2018, 12:42 PM,
#16
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मेरी हालत थोड़ी अजीब सी थी. एक तरफ तो मैं घर नही जाना चाहता था क्योंकि जो आनंद मुझे कल माँ ने दिया था वो लफ़्ज़ों में भी बयान नही किया जा सकता था और मैं उस आनंद को एक रात तक सिमट ना रखकर कयि दिनो बल्कि कयि हफ्तों तक खींचना चाहता था. मगर ऐसा संभव तो नही था.

उधर दूसरी तरफ मुझे घर जाने की जल्दबाज़ी भी हो रही थी, मुझे ना जाने क्यों बहन की बहुत चिंता हो रही थी. वो कल रात से अकेली थी. हम माँ बेटा जब उस अनैतक मिलन मे संलग्न थे तो वो बेचारी शायद हमारी चिंता में घुल रही होगी. बहन के साथ नाता जुड़ने के बाद जब मेरे दिल में माँ के बारे में ख़याल आता तो मुझे लगता की मैं बहन के साथ दगा कर रहा हूँ. जब माँ से मेरी नज़दीकियाँ बढ़ गयी तो मुझे बहन का ख़याल आने से लगता कि मैं माँ से दगा कर रहा हूँ, हालाँकि माँ और मेरे बीच उस समय असलियत में माँ बेटे के सिवा और कुछ भी नही था. और आज जब मैं अपनी ज़िंदगी की सबसे सीन रात बिताकर घर लौट रहा था तो मेरा दिल ना जाने क्यों बैचैन होता जा रहा था. जब भी मुझे ख़याल आता कि जब मैं कल रात माँ के साथ कितना आनंदमयी समय बिता रहा था और बहन बिल्कुल तन्हा बिल्कुल अकेली सूने घर में हमारे आने की राह देख रही होगी तो मेरे दिल पर आरी सी चल जाती. बहन का चेहरा रह रहकर मेरी आँखो के सामने आ जाता और मुझे ऐसा लगता जैसे कल मैने जिंदगी का जो सुख पाया था उसका बदले मुझे कोई भारी कीमत देनी थी.


जैसे जैसे गाँव नज़दीक आता जा रहा था मेरी धड़कन बढ़ती जा रही थी. मैं अपने मन को तस्सली दे रहा था कि बहन के साथ मेरे रिश्ते में कुछ भी ग़लत नही था और जो ग़लती मेने उससे दूरी बनाकर की थी उसे मैं आज एक ही दिन में दूर कर दूँगा, कि आज दिन और पूरी रात मैं उसे इतना प्यार करूँगा कि वो पिछले दिनो की तन्हाई भूल जाएगी, मैं उसे इतना प्यार करूँगा कि मुझे उसे छोड़ने के लिए बोलेगी तो भी उसे नही छोड़ूँगा. उसे इतना प्यार करूँगा, इतना प्यार करूँगा........

हम घर में दाखिल हुए तो देखा बहन घर पर नही थी. शायद दुकान पर थी. मगर इतनी सुबह सुबह हम दुकान नही खोलते थे और वो भी ऐसे मौसम में? हमारे कपड़े बारिश से पूरी तरह भीग गये थे, माँ कपड़े बदलने लगी और मुझे कहने लगी कि बहन को दुकान से बुला लाऊ. वैसे भी ऐसे मौसम में कुछ खास कमाई नही होती थी. मैं दुकान की ओर चल पड़ा. मैं तेज़ तेज़ कदम उठा रहा था. मेरी उस समय एक ही ख्वाहिश थी कि जल्द से जल्द उसका खूबसूरत चेहरा देख लूँ, तभी मेरे दिल को सकुन आने वाला था. मगर दुकान पर पहुँचते ही मेरे पैर ठिठक गये. दुकान बंद थी. मुझे घबराहट होने लगी. शायद किसी सहेली को मिलने गयी होगी. मैं बैचैन मन को तस्सली देता घर को वापस चल दिया. शायद वो अब घर लौट भी आई होगी. मैं घर पहुँचा और माँ को आवाज़ दी, उसे बताया कि बहन दुकान पर नही थी. पर माँ ने कोई जबाब नही दिया. मैं अपने और बहन के कमरे से होकर माँ के कमरे में गया, पर वो वहाँ नही थी. शायद वो रसोई में थी. मैं रसोई की और गया देखा माँ वहीं थी और एक कुर्सी पर बैठी हुई थी, मेरी ओर उसकी पीठ थी. मैने रसोई की ओर जाते हुए फिर से माँ को पुकारा मगर वो चुप रही, उसने पीछे मुड़कर भी नही देखा. मैं थोड़ा हैरान था, ये माँ को अचानक क्या हो गया. रसोई में दाखिल हुआ तो देखा माँ के कंधे ज़ोरों से हिल रहे थे, जैसे वो हंस रही थी. तभी माँ ने ज़ोरों से हिचकी ली और धीरे से अपना चेहरा मेरी ओर घुमाया. मेरे कदम वहीं ठिठक गये, दिल बैठने लगा. माँ का चेहरा आँसुओं से तर था, वो रो रही थी. उसके हाथ में काग़ज़ का एक बड़ा सा टुकड़ा था

"वो चली गयी....,.,वो चली गयी....... वो हमें छोड़ कर चली गयी"

"वो चली गयी........हमे छोड़ कर चली गयी" मुझे एकदम से कुछ समझ में ना आया. ये माँ को हो क्या गया है. किसके बारे में बात कर रही है, कौन, कहाँ चली गयी है, माँ ऐसे रो क्यों रही है. 

माँ के इस तरह सूबक सूबक कर रोने से, उसके हाथों में उस काग़ज़ के टुकड़े से और बहन की घर में अनुपस्थिति से मुझे मालूम था कि वो किसके बारे में बात कर रही है. मगर दिल ने उस बात को पूरी तरह से नकार दिया. ऐसे हो ही नही सकता था. भला वो हमे छोड़ कर क्यों जाएगी, किस लिए छोड़ेगी हमे. वो और हमें छोड़ कर चली जाए.....नही...नही...नही. ये संभव नही था. शायद माँ को ग़लती लगी है. लगता है उसने कोई मज़ाक किया है. और हमारे हमारे सिवा दुनिया में उसका है कौन. यहाँ मेरा दिमाग़ इसके चले जाने की बात मानने से इनकार कर रहा था, अपने तर्क दे रहा था, वहीं दिल में दर्द की लहरें उठ रही थी. मुझे साँस लेने में तकलीफ़ हो रही थी. लगता था जैसे अंदर कुछ टूट रहा था. एक पल के लिए मैने कल्पना की कि माँ की बात सच है और वो वाकई हमे छोड़ कर.......नहिंन्नननननणणन्.......ऐसा नही हो सकता.....ऐसा कतयि नही हो सकता. कल्पनामात्र से मेरे रोम रोम मे सहरान दौड़ गयी, दिल में चीखो पुकार मचने लगी. मैं अपनी अंतरात्मा में भगवान के आगे प्रार्थना करने लगा कि यह बात झूठ हो.
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12-28-2018, 12:43 PM,
#17
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
तभी माँ कुर्सी से नीचे गिर पड़ी. मैं भागकर माँ के पास गया. माँ की आँखे बंद थी, मुझे लगा जैसे वो साँस नही ले रही है. मुझे कुछ समझ में नही आ रहा था कि मैं क्या करूँ. मैने माँ को अपनी बाहों में उठाया, और उसे हॉल में चारपाई पर लिटाकर उसका चेहरा थपथपाया. रसोई से भागकर जग मे पानी लाया, माँ के मुँह पर छींटे मारे तो उसने आँखे खोल दीं. एक पल के लिए उसके चेहरे से ऐसे लगा जैसे वो सपने से जागी हो, लेकिन अगले ही पल उसकी नज़र मेरे घबराए चेहरे पर पड़ी तो उसे उस कड़वी सच्चाई का अहसास हुआ. माँ ने चेहरा एक तरफ मोड़ लिया और फिर से सुबकने लगी. 

मैने माँ को सहारा देकर उठाया, उसे एक ग्लास मे पानी डालकर पकड़ाया तो उसने लेने से इनकार कर दिया. मैने ग्लास उसके होंठो से लगाया. पहले तो उसने पानी नही पिया, मगर मेरे चेहरे का भाव देखकर आख़िर वो धीरे से पानी का घूँट भरने लगी.

"घबराओ मत माँ. ऐसा कुछ नही है जैसा तुम सोच रही हो. हमरे सिवा उसका कौन है इस दुनियाँ में, कहाँ जाएगी वो, किसके पास जाएगी. ज़रूर उसने कोई बेहूदा मज़ाक करने की सोची है, आने दो उसे ज़रा, देखना मैं उसकी कैसी खबर लेता हूँ" माँ फिर से रोने लगी. मैं माँ को कम खुद को ज़्यादा धाँढस बँधा रहा था. मगर माँ अच्छी तरह से जानती थी, बहन कभी ऐसा मज़ाक करने वाली नही थी. माँ मेरी ओर मूडी और मेरे कंधो को थाम लिया

"बेटा....बेटा.. ....वो चली गयी....वो चली गयी....उसने ...उसने लिखा वो अब नही आएगी....वो लौट कर कभी नही आएगी" माँ फिर से बेहोश सी हो गयी. मैने माँ का चेहरा रगड़ा, उसके चेहरे पर पानी डाला. लाख कोशिश करने के बाद भी मैं अपनी रुलाई ना रोक सका. मेरी हिम्मत हौसला जबाव दे गये, और मैं फूटफूट कर रो पड़ा. माँ जल्द ही दोबारा होश मे आ गयी. मगर उसका रोना बदस्तूर जारी था. 

"माँ हिम्मत करो, कुछ नही हुआ, मैं उसे ढूँढ कर ले आउन्गा. मैं उसे ले आउन्गा माँ, कैसे भी, कहीं से भी मगर मैं उसे ढूंढकर ले आउन्गा माँ. देखो अगर तुम इस तेरह हौंसला छोड़ दोगि तो मेरा क्या होगा" 

मैने माँ को आलिंगन में लिया तो माँ ने भी मुझे कस कर अपनी बाहों में जाकड़ लिया. हम दोनो रो रहे थे. मैं माँ की पीठ पर हाथ फेरता उसे कुछ राहत देने की कोशिस कर रहा था. आख़िरकार ना जाने कितना समय उसी तरह रोते रोते जब हमारी आँखो से आँसू ख़तम हो गये तो माँ ने आलिंगन को तोड़ा. धीरे से वो उठी और अपना मुँह धोने लगी. मैने किचन मे से वो खत उठाया. मेरे हाथ ऐसे कांप रहे थे जैसे मैं जलते हुए शोलों को छूने जा रहा था. खत पर जगह जगह उसके आँसू गिरे हुए थे. उसने बस इतना लिखा था, कि वो कुछ बनाना चाहती है, इस गाँव मे रहकर अपनी ज़िंदगी बर्बाद नही करना चाहती, इसीलिए वो हमें छोड़कर जा रही है. इस बात के डर से कि हम उसे पूछने पर शायद जाने की इज़ाज़त नही देंगे , इसीलिए वो बिना बताए जा रही थी. और उसने ये भी लिखा था कि अगर वो अपने मकसद में कामयाब ना हो सकी तो शायद वो कभी वापस नही आ सकेगी. सफलता ही उसके वापस लौटने की शर्त थी. और उसने उसकी सफलता के लिए हमारी सूभकामनाएँ माँगी थी और कहा था कि हम उसके लिए प्रार्थना करें कि वो अपने मकसद में कामयाब हो सके. और उसने बार बार हम दोनो को एक दूसरे का ख़याल रखने की ताकीद की थी. अंत में उसने इस तरह हमारा दिल दुखाने के लिए हम से माफी माँगी थी और लिखा था कि यह कदम वो मजबूरी में उठा रही है, इसके सिवा उसके पास और कोई चारा नही है. कि हमे छोड़ कर जाते हुए उसे बेहद तकलीफ़ हो रही है, उसने भगवान से प्रार्थना की थी कि हम सदा खुश रहें और उसके लिए परेशान ना हों और उसने हमे उसको ना ढूँडने के लिए भी ताकीद की थी.

आधी रात गुज़र चुकी थी. दीवार से टेक लगाए बेड पर बैठा मैं कमरे के गहरे अंधेरे में खुद को छुपाने की कोशिश कर रहा था. रोशनी अब आँखो को चुभती थी, उजाला उस भयानक सच्चाई की तकलीफ़ को और बढ़ा देता. अंधेरे में अपनी तन्हाई में, उस अकेलेपन में, उसके साथ बिताए एक एक पल को मैं याद कर रहा था. 

दो दिन गुज़र चुके थे बहन को गये हुए. उस दिन सुबह खत पढ़ने के बाद मैं सबसे पहले बहन के कमरे मे गया और उसकी अलमारी मे उसकी वो ख़ुफ़िया जगह देखी जहाँ वो अपनी बचत छिपा कर रखती थी. वहाँ कुछ भी नही था. रकम गायब थी. मेरी रही सही उम्मीद भी मिट गयी. मुझे लगा था शायद वो मुझे जलाने के लिए कोई नाटक खेल रही है, लेकिन उसकी कमाई वहाँ मौजूद ना होने का सॉफ मतलब था कि वो वाकाई मे मुझे छोड़कर चली गयी है. दिमाग़ ये बात मान चुका था,मगर दिल अब भी मानने को तैयार नही था. दिल कह रहा था वो यहीं है, इसी घर में, वो अभी मेरे सामने आएगी और मुझसे लिपट जाएगी, वो मुझसे पहले की तरह प्यार करेगी, मुझे पहले की तरह दुलारेगी. मगर ना वो आने वाली थी, ना वो आई. मेरी दुनिया उजड़ चुकी थी. 

माँ के बहुत कहने पर मैने चाय के दो घूँट भरे और गाँव के बस स्टेशन की ओर चल पड़ा. हमारे गाँव में एक ही बस आती थी जो दस किलोमेटेर दूर एक बड़े गाँव तक जाती थी और फिर वहाँ से सूरत जाने के लिए दूसरी बस पकड़नी पड़ती थी. गाँव का बस स्टेशन गाँव से थोड़ा बाहर की ओर था क्यॉंके पक्की सड़क हमारे गाँव से होकर नही गुज़रती थी. मैं बस स्टेशन पहुँचा और बस का इंतज़ार करने लगा. बस स्टेशन के सामने एक पॅनवाडी की दुकान थी, जो हमारे गाँव से ही था. उसने मेरी ओर देखकर हाथ हिलाया. मैं उससे जाकर पूछना चाहता था कि उसने मेरी बहन को बस में चढ़ते देखा था या नही, मगर मैं ऐसा कर ना सका. वो पूरे गाँव में धिंडोरा पीट देता. 

बस आई और मैं उसमे सवार हो सहर की ओर चल दिया. फिर सुरू हुआ मेरा सफ़र. सूरत के बस स्टेशनो से लेकर रेलवे स्टेशनो तक. मैं जहाँ जहाँ ढूँढ सकता था, उसे ढूँढा मगर वो ना मिली. सुबह से दोपहर हो गई, दुपहर से शाम, और शाम से रात. मैने वो ठंडी रात रेलवे स्टेशन के एक बेंच पर लेटकर गुज़ारी. अगली सुबह फिर से मैं अपनी तलाश में जुट गया. केयी सस्ते होटलों में गया, पैसे दे देकर उन लोगों से अपनी बहन के बारे में पूछा मगर कुछ पता ना चल सका. मेरा अंदाज़ा था शायद वो किसी सस्ते होटेल में रुकी हो. कुछ लोग मेरी हालत देखकर मुझे पैसे वापस कर देते और मुझे किसी और जगह देखने की सलाह देते. शाम होते होते हर जगह से निराश होकर मैने घर का रुख़ किया. जेब में इतने पैसे ही बचे थे कि सहर से एक बस का सफ़र कर सकता, दूसरी बस के लिए कुछ नही था. मैने पैदल गाँव का रास्ता पकड़ा. सर झुकाए ये सोचता कि वो कहाँ चली गयी थी, क्यों चली गयी थी, किसके लिए चली गई थी, मैं चला जा रहा था. मुश्किल से एक किलोमेटेर चला हुंगा कि बरसात सुरू हो गयी. कुछ ही मिंटो में मेरे पूरे कपड़े भीग गये, हवा बहुत ठंडी थी. मगर मुझे कोई अहसास नही था. मुझे कुछ मालूम नही था मेरे आसपास क्या हो रहा है. मैं बस अपनी बेदना से पीड़ित, निराशा के विशाल सागर में गोते लगाता चला जा रहा था. 

इसीलिए जब एक कार मेरे पास से गुज़रकर थोड़ा आयेज रुकी तो मैने कोई ध्यान नही दिया. मगर जब मैं चलता हुआ उसके पास से गुज़रा तो कार का शीसा नीचे हुआ और किसी ने मेरा नाम लेकर ज़ोर से मुझे पुकारा. मैने देखा मगर आँसुओं और बरसात के पानी से भरी अपनी आँखो से कुछ देख ना सका. जब मैने हाथ से आँखे पोन्छि तो जाना वो देविका थी. कभी हमारे गाँव के बीच उनकी बड़ी सी हवेली थी जिन्हे वो अब छोड़ चुके थे. गाँव से बाहर उनकी एक लकड़ी की फॅक्टरी थी और उसके साथ उनका एक घर जिसमे वो कभी कभार छुट्टियाँ काटने के लिए आते थे. वो अब सहर में रहते थे.

"अरे इतनी बारिश में कहाँ से चल कर आ रहे हो?" देखो कितने भीग गये हो. गाड़ी में आ जाओ"

"नही, मैं ठीक हूँ. वो...वो बस नही आई, इसीलिए पैदल जा रहा था......कोई बात नही मैं आ जाउन्गा आप लोग चलिए" मैने उसे टालने की कोशिस की. 

"अरे इतनी दूर पैदल कैसे जाओगे? इतनी ठंडी हवा है बीमार पड़ जाओगे. आओ हम तुम्हें छोड़ देंगे. जल्दी करो" 

"जी पर...पर मेरे कपड़े पूरे भीगे हुए हैं. आपकी गाड़ी खराब हो जाएगी. कोई बात नही शायद बस आएगी तो मैं उसमे आ जाउन्गा" 

"कोई गाड़ी वाडी खराब नही होगी, मालूम है गाँव से अभी कितना दूर हो. चलो आओ बैठो" 

इस बार उसका स्वर कुछ हुकुम देने वाला था. बहुत बड़े रईस थे वो लोग. मुझे कुछ हिच्किचाह्ट हो रही थी, मगर जब उसने इतना ज़ोर दिया और फिर थोड़ा खिसक कर मेरे लिए जगह खाली की तो मेरे लिए कोई रास्ता ना बचा. मैं गाड़ी में बैठ गया. गाड़ी में सिर्फ़ ड्राइवर और वो थी. और उसने मुझे बिठाया भी पीछे की सीट पर था.

"सहर गये थे" उसने जैसे पुष्टि करने के लिए पूछा. 

"जी?...........जी हां.... सहर गया था. फसल तैयार है उसका मोल भाव पता करने के लिए गया था" मैने झूठ बोल दिया.

"ओह हाँ. कल मैं बच्चों को लेकर हमारी गाँव वाली पुश्तैनी हवेली देखने के लिए गयी थे तो तुम्हारी दुकान पर भी गयी थी. तुम्हारी बहन से पता चला था. कह रही थी तुमने खेतों में जादू कर दिया है. बहुत मेहनत कर रहे हो. तुम्हारे पिता अगर इतनी मेहनत करते तो शायद तुम्हारा आज कुछ और होता. खैर, सब नसीबो की बात है" वो थोड़े चिंतत स्वर में बोल रही थी. उसके चेहरे से लग रहा था जैसे वो भी मेरी ही तरह किसी बात से परेशान है. 

"तुम्हारी बहन बहुत समझदार है, अगर पढ़ी लिखी होती तो बहुत आगे जाती. वो भी तुम्हारी तरह कुछ करना चाहती है, लेकिन इस गाँव में रहकर कुछ कर पाना, कुछ बन कर दिखना लगभग असम्भव ही है मुझे वो अच्छी लगती है, इस पूरे गाँव में एक वोही है जिससे बात करने को दिल करता है. तुम उसे परेशान तो नही करते? ............. उसका ख़याल रखते हो ना?"

"जी" बड़ी मुश्किल से मैं कह पाया. मेरे लाख रोकने पर भी मेरा गला भर आया था. आँखो में आँसू तैरने लगे थे. देविका से छुपाने के लिए मैने चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया, और बाहर देखने लगा. 

"बहुत ठंड है, तुम यह ओढ़ लो" वो मुझे बॅग से एक नया शॉल देते हुए बोली. मैने उसे मना करना चाहा लेकिन वो ना मानी. उसका इतना स्नेह दिखाना, मेरे लिए उसकी चिंता मुझे बहुत अटपटी सी लगी. कोई और मौका होता तो शायद मैं इस बारे में सोचता मगर उस समय मेरी हालत एसी नही थी कि मैं इस बात पर ज़यादा ध्यान देता. 

कुछ ही समय में हम गाँव पहुँच गये, उनकी फेक्टरी और घर गाँव के रास्ते में था, मैं वहीं उतार गया हालाँकि देविका ने बहुत ज़ोर दिया कि उसका ड्राइवर मुझे घर छोड़ देगा लेकिन मैने मना कर दिया. बारिश अभी भी हो रही थी. जब मैने उससे विदा लेकर घर की ओर रुख़ किया तो कुछ ही कदम चलने पर उसने मुझे पुकारा. "किसी बात की चिंता मत करो. भगवान पर भरोसा रखो वो सब ठीक करेंगे" उसने ऐसे कहा जैसे वो मेरी व्यथा जानती हो. मेने उसकी ओर मुड़कर देखा तो वो अपने घर की ओर मूड चुकी थी. मैं भी घर की ओर चलने लगा. माँ को घर छोड़े दो दिन हो गये थे. मालूम नही उसकी कैसी हालत होगी. मुझे फिर से चिन्ताओ ने घेर लिया. फिर मेरे मन में ना जाने कहाँ से एक विचार आया, शायद वो मूड आई हो, शायद उसने अपना फ़ैसला बदल लिया हो. या शायद वो हम से बिछड़ कर रह ना पाई हो और लौट आई हो. शायद....शायद......शायद वो माँ के साथ मेरे लौट आने की राह देख रही हो, मैं अपने मन को फिर से तस्सली देने लगा, जानता था झूठी उम्मीद लगा रहा हूँ जो कुछ ही पलों में टूट जाएगी. घर का गेट खोल कर जैसे ही मैं अंदर दाखिल हुआ तो सामने घर के बरामदे में एक पिल्लर से टेक लगाए माँ को खड़े देखा जो गेट खुलने की आवाज़ सुनकर भागकर बाहर आँगन में आई. मगर जब उसने मुझे अकेले को खाली हाथ, निराश लौटते देखा तो वो वहीं आँगन में बैठ गयी. मैं उसके पास गया. उसके चेहरा रो रोकर सूज गया था. आँखो के नीचे काले धब्बे उभर आए थे. मैने माँ को अपनी बाहों में भर लिया और बिना कुछ कहे उसकी पीठ सहलाने लगा. आँगन में बरसाती बारिश के बीच हम दोनो कमोशी से रो रहे थे, खामोशी से चीख रहे रहे थे.

दो दिन सहर की खाक छानने के बाद भी मैं बहन का कुछ अता पता ना लगा सका. मुझे उम्मीद थी शायद माँ को मेरी अनुपस्थिति में कुछ जानकारी मिली हो. लेकिन नही, बहन के बारे में हम कोई सुराग नही ढूँढ सके. मैने कमरे में जाकर कपड़े पहने तो माँ खाना लेकर आ गयी. खाना देखकर मुझे पहली बार अहसास हुआ कि मैने पिछले दो दिनो से कुछ खाया नही है. और ना ही मैं अब खाना चाहता था. मुझे कोई भूख नही थी, प्यास नही थी. अगर कोई भूख थी, कोई प्यास थी तो वो बहन को वापस पाने की थी. मैने मना किया तो माँ की आँखे भर आई, वो मिन्नत करने लगी. मैं माँ को और दुख नही देना चाहता था, इसीलिए ना चाहत हुए भी खाने लगा. 

उस रात नीम अंधेरे में अपने बेड के कोने पर बैठा मैं पिछले दो दिनो के बारे में सोच रहा था. कितना कुछ बदल गया था दो दिनो मैं. बड़ी मुश्किल से इतनी मेहनत करने के बाद अच्छे दिनो के आसार बने थे, लगता था अब हम बेहतर ज़िंदगी जी सकेंगे. बहन संग कैसे कैसे सपने देखे थे, कैसी कैसी योजनाएँ बनाई थी, भविष्य कितना सुखद लगने लगा था. और फिर एक ही झटके में सब सपने टूट गये, सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया, जैसे किसी ने आसमान से ज़मीन पर पटक दिया था. जिसके लिए सब कुछ कर रहा था वोही छोड़ कर चली गयी थी. 

आँखे लगातार रोने और जागने से लाल हो गयी थी, दिमाग़ में तूफान चल रहा था, जिस्म थक कर चूर हो चुका था मगर नींद का कोई नामो निशान नही था. अंधेरे में देखता मैं कल्पना करता शायद वो अभी आ जाएगी जैसे वो उन प्यारी रातों को माँ के सोने के बाद चुपके से मेरे रूम में आ जाती थी. 
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12-28-2018, 12:43 PM,
#18
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
नज़ाने इन्ही सोचों मे डूबे मुझे कितना वक़्त बीत गया था कि अचानक मुझे कमरे के बाहर किसी के कदमो की आहट सुनाई दी, फिर किसी ने धीरे से दरवाजा खोला. चरमराहट से दरवाजा खुला और एक पतला सा गहरा काला साया कमरे में घुस गया. अंदर आते ही उस साए ने दरवाजा बंद कर दिया. मेरे जिस्म के रोम रोम में सहरान सी दौड़ गयी, मैने अपनी साँस रोक ली. फिर वो दुबला पतला सा साया मेरे बेड की ओर धीरे धीरे बढ़ा. 

"कहाँ हो तुम? कहाँ हो? इतना अंधेरा क्यों कर रखा है कमरे में?" 

वो वोही थी! वो वोही थी. वो मेरे पास मेरे कमरे में थी. मेरा दिल मेरे सीने में इतने ज़ोरों से धड़क रहा था कि मैं उसकी आवाज़ अपने कानो में सुन सकता था. मैने कुछ गहरी गहरी साँसे ली और खुद को संभालने की कोशिस की. 

"क्या हुआ? तुम ठीक तो हो? इतने अंधेरे मैं क्यों बैठे हो?" अंधेरे मैं वो धीरे से फुसफ्साई. 

उसने जल्दी जल्दी दीवार पर लगा नाइट बल्ब का स्विच ढूँढा और उसे दबा दिया. उसने मुझे और मैने उसे देखा, नाइट बल्ब की हल्की सी रोशनी में उसका चेहरा पूरी तरह से दिखाई नही दे रहा था. "क्या......क्या यह रात पहली रातों की तरह सुखद होगी?" मेरी बैचैनि बढ़ रही थी.

एक पल के लिए उसके चेहरे पर बल पड़ गये. मगर अगले ही पल मेरी मनोदशा समझ उसके चेहरे के भाव बदल गये. वो धीरे धीरे चलते मेरे पास आई और मेरी टाँगो को चौड़ा कर उनके बीच में थोड़ा झुक कर खड़ी हो गयी. उसने अपनी बाहें मेरी गर्दन पर लपेट पहले मेरे गाल और फिर मेरे माथे को चूमा. बहुत धीमे और मधुर स्वर में वो मेरे कान में बोली "मेरे प्रियतम! तीन महीने गुज़र चुके हैं. पूरे तीन महीने!. याद है ना हम दोनो ने एक दूसरे से क्या वायदा किया था? कभी भी एक दूसरे को प्यार के लिए तरसने नही देंगे? कुछ अंदाज़ा है तुम्हे ये तीन महीने मैने कैसे गुज़ारे हैं?"


मेरी आँखे भर आई, गला रुंध गया "मुझे माफ़ करदो...............मुझे माफ़ करदो" मैं बड़ी मुश्किल से बोल पाया. मैं अपने अंदर दुख को पसरते महसूस कर रहा था लेकिन इसकी वजह नही जानता था. 

"देखो यह सब नही चलेगा" वो धीरे से फुसफसाई. उसने अपना सर पीछे किया और मेरे होंठो पर एक कोमल सा चुंबन दिया, और फिर मेरी गालों पर बहते आँसुओं को अपने होंठो मे समेटने लगी. वो थोड़ा पीछे की ओर झुकी और मेरी आँसुओं से तर आँखो में झाँकते हुए बोली "जानते हो मैं तुम्हारे पास क्यों आई हूँ?"

मैने अपना गला सॉफ किया और सर ना में हिलाया "क्यों?"

"क्यॉंके मैं तुमसे प्यार करती हूँ. इतना प्यार करती हूँ कि उसे लफ़्ज़ों में बयान नही कर सकती"

मेरे चेहरे पर फिर से आँसू बहने लगे. "मुझे मालूम है तुम मुझे प्यार करती हो. मगर.....आज आज तुमने पहली वार इकरार किया है" मैं चेहरा झुका कर हल्के हल्के रोने लगा. 

"इसी बात से तुम इतने उदास हो के रो रहे हो?" वो हल्के से मुस्कराई.

"मैं खुश हूँ........मैं बहुत खुश हूँ कि तुम मुझसे प्यार करती हो. मैं भी तुमसे बहुत ....बहुत प्यार करता हूँ" मैं अपने अंदर अब भी वोही उदासी और डर महसूस कर रहा था जिसका कोई कारण मुझे मालूम नही था.

"अछा..... तो फिर तुम मुझसे फिर से प्यार करना चाहोगे?" उसके चेहरे पर वो मुस्कान बनी हुई थी.

"हुउऊउऊँ......क्या तुम.....क्या तुम मुझसे प्यार करना चाहती हो" 

"हां मेरे दिलदार, मेरे प्रियतम! हर दिन, हर पल मैं तुमसे प्यार करना चाहती हूँ. मगर......पहले तुम्हे एक काम करना होगा"

"क्या?" मैने पूछा

उसने अपना दुपट्टा उतारा और मुझे देते बोली "पहले कृपया कर अपने आँसू पोंछिए और अपनी नाक सॉफ कीजिए" वो मुँह पर हाथ रख हँसने लगी.

मैं अब थोड़ी राहत महसूस कर रहा था और उससे हंस कर बोला "अगर तुम इतना ज़ोर देती हो तो मैं कर लेता हूँ"
जब मैं नाक सॉफ कर रहा था तो हम दोनो हंस रहे थे.

"अब अच्छा महसूस कर रहे हो?" उसने मेरे होंठो को चूमा

मेने सहमति में सा हिलाया "हुन्न्ं.......मैं तुम्हे पहले वहाँ चूमना, चाटना चाहता हूँ" 

वो उठ कर खड़ी हो गयी और अपनी कमीज़ उतारते बोली "नही पहले मैं तुम्हारा मुँह में लेकर चुसुन्गि"

"नही, नही. पहले मैं तुम्हारी चाटूँगा" मैं मुस्कराते बोला "चाहो तो इसे मेरा हक समझ लो. जल्दी करो. कपड़े उतारो"

"जानती हूँ तुम कितने ढीठ हो!"

"तुम्हारा ही छोटा भाई हूँ. अब जल्दी करो, अपनी सलवार भी उतारो जल्दी से. मैने बहुत लंबा इंतज़ार किया है"

वो अपने कपड़े उतारते हुए मुझे कपड़े उतारते देख रही थी. जब वो मेरे निकट आई तो उसने अपना हाथ मेरे लंड की जड़ पर कस दिया "हाए.....कितना बड़ा है, लगता है जैसे पिछले तीन महीनो में और बढ़ गया है"

मैने एक गहरी साँस ली "तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे पहली वार देख रही हो"

वो हंस पड़ी "जानती हूँ. चुप करो और मुझे मेरा काम करने दो" वो ज़मीन पर घुटने टिका कर बैठ गयी. उसने अपना मुख पूरा खोला और मेरे मोटे लंड का अग्रभाग अपने होंठो में दबा लिया. उसकी जिव्हा लंड के कोमल्मुख पर घूम रही थी. फिर उसने ज़ोर से गालों को पिचकाते हुए मेरे लंड को चूसना सुरू कर दिया. 

"उफफफफफफफफ्फ़.... हाए......" मेरी उंगलियाँ उसके लंबे काले बालों मे घूमते हुए उन्हे उसके चेहरे से हटा रही थीं. मैने उसके बालों को थामते हुए उसके सर पर हाथ रख दिए. मगर ना मेने उसका मुख अपने लंड पर खींचा और ना ही अपना लंड उसके मुँह में धकेला. बहन ने थोड़ा सा मुखरस निकाल कर मेरे लंड पर मल दिया और लंड चूस्ते चूस्ते उसका एक हाथ मेरे लंड पर आगे पीछे होने लगा. जड़ से उपर की ओर जाते हुए उसका हाथ उसके होंठो को टच करता जो मज़बूती से मेरे लंड पर कसे हुए थे. 


"हे भगवान....उफफफ्फ़" मेरी आँखे बंद हो गई और मेने अपने कूल्हे थोड़े से आगे को धकेले. 

बिना उपर देखे वो जानती थी उस वक़्त मेरी हालत क्या थी. वो जानती थी कि मेरी आँखे बंद थी, वो जानती थी कि उसकी लंड चुसाई मुझे कितना आनंद दे रही थी. मैने उसे पहले कयि बार बताया था कि वो लूंस चूसने में कितनी माहिर है. उसे लगता था कि मैं उसका दिल रखने के लिए कहता हूँ. उसका हाथ लगातार मेरे लंड पर आगे पीछे हो रहा था मगर उसका मुख लंड के अग्रभाग पर रुक गया था जहाँ उसकी खुरदरी जीभ लंड के टोपे को घिस रही थी. 


"आआआहह...ज़ोर से चूसो, ज़ोर से चूसो" मेने आँखे और भी ज़ोर से भींच दी थी. "हुउन्न्ञणन्....इसी तरह.......बस इसी तरह" मेरी साँसे उखड़ने लगी थी. मेने नीचे उसकी ओर देखा. मेरे हाथ अभी भी उसके सर पर थे जिनसे मेने उसके सर को पीछे की ओर धकेला और अपने कुल्हो को भी पीछे को खींचा. "बस....बस....इतना ही काफ़ी है....मैं अभी छूटना नही चाहता" 

मगर उसका हाथ मेरे लंड पर और भी तेज़ी से आगे पीछे घूमने लगा. वो शायद मुझे ज़यादा से ज़यादा मज़ा देना चाहती थी. वो मुझे अपने मुँह मे स्खलित करना चाहती थी.. उसका मुख तेज़ी से लंड के अग्रभाग पर घूमने लगा और उसकी जिव्हा लंड के टोपे को सहलाने लगी. मैने अपने हाथों का दबाव उसके सर पर बनाया तो उसने "उम्म्म्ममममम" कर विरोध किया. 

"बस करो...उफफफफ्फ़...भगवान के लिए. मैं तुम्हारी चाटना चाहता हूँ"

मेरी बात का उस पर कोई असर ना हुआ तो मैने अपने कुल्हों को ज़ोर से पीछे की ओर झटका दिया. "पोप" की आवाज़ से मेरा लंड उसके मुख से बाहर आ गया. 

"नही....इधर आओ. मुझे तुम्हारा रस पीना है" वो थूक गटकते गुस्से से चिल्लाई.

मगर मैं पहले ही घुटनो के बल ज़मीन पर बैठ चुका था "मुझे तुम्हारी नन्ही सी, प्यारी सी, मीठी चूत को चखना है.

बहन ने पलकें झपकाई, फिर उसके चेहरे पर शरारती हँसी फैल गयी जैसे वो कुछ छिपा रही थी.

"तुम्हे वाकई मे मेरी चूत चखनी है? कहीं तुम्हारा मूड सीधे अंदर घुसा कर मुझे प्यार करने का तो नही है?"

"तुम्हारे उस नन्हे, प्यारे और स्वादिष्ट फूल को चूमना भी मेरे लिए तुमसे प्यार करने से कम नही है. कितनी दफ़ा मुझे यह बात तुम्हे बतानी होगी?"

"ओह, उः....हा..हो......बड़े अच्छे से याद है मुझे तुम्हारी बात" वो मुस्कराती है. मैं उसकी टाँगे खोलता हूँ तो उसकी गीली चूत की मदमस्त महक मेरे नथुनो से टकराती है. वो पीछे को लेटकर कोहनियों के बल सर तोड़ा उँचा कर लेती है. कमरे में लाइट लगभग किसी दिए जैसे ही थी शायद इसीलिए पहले मेरा ध्यान इस ओर नही गया.

"तुमने चूत पे शेव की है" मैं अशर्यचकित हो गया था. 

मेरे चेहरे पर हैरत देख कर उसका चेहरा खिल उठता है "हूऊऊओन..........तुम्हे अच्छा...."

मेने उसके चुतड़ों को पकड़ उसे उपर को उभारा और अपना चेहरा नीचे उसकी चूत से सटा दिया. मेरी गरम जीभ उसकी चूत को और उसके आसपास के शेव्ड कोमल हिस्से को नहला रही थी. चूत चटाई से उसकी हालत एकदम से पतली होने लगती है. उसकी अति कोमल और संवेदनशील चूत में घूमती मेरी खुरदरी जीभ से जो मज़े की ज़बरदस्त लहरें उठना सुरू होती हैं तो वो अपने कंधे और सर को नीचे गिरा देती है.

"हाए....हाए...उफफफफ्फ़" वो सीस्या उठती है. उसकी सांसो की रफ़्तार बढ़ जाती है. मैं अपनी जीभ को चूत के दाने पर घिसता हूँ तो उसका पूरा जिस्म उस अनोखे मज़े के कारण काँपने लगता है. 

मैं चेहरा उपर उठाकर उसकी चूत को निहारता हूँ और चूत के मोटे होंठो पर गरम गर्म चुंबन लेता हूँ और फिर उसे बोलता हूँ "अपनी टाँगे मोड़ कर अपनी छाती से लगा लो" मैं फिर से एक बार चेहरा नीचे करता हूँ और अपनी जीभ उसकी गुलाबी चूत मे डुबोता हूँ. 

जैसे मैने उसे कहा था उसने वैसा ही किया. वो अपनी टाँगे मोड़ती है और पीछे को करती है. अपने हाथों से अपनी एडीया पकड़े वो अपनी टाँगे मोड़ कर अपनी छाती सेलगा लेती है. इससे उसकी चूत खुल कर मेरे सामने आ जाती है. हमारे संबंध की शुरुआत में जब मैने उसे ऐसा करने के लिए बोला था तो उसने सॉफ मना कर दिया था, क्योंकि ऐसा करने में उसे बद्चल्नी करने जैसा महसूस होता था मगर जाहिर था अब उसे ऐसा करने में कोई एतराज़ नही था. मैं अपनी जीभ फिर से उसकी चूत में घुसाता हूँ और उसे घुमा घुमा कर मरोड़ कर उसकी चूत को चाटता हूँ. वो अपना सर गद्दे मे दबाती है और उसकी गर्दन तन जाती है. "उफफफफफफ्फ़ हााईयईईईईईई" वो कराह उठती है. मेरी जीभ चूत के दाने को घिसती है, रगड़ाती है, अपनी जिव्हा की नोंक से मैं उस गुलाबी फूल को इधर उधर घुमाता हूँ, उसे अपनी जिव्हा से ढँक देता हूँ, कभी उसे फिर से सहलाता हूँ और फिर से रगड़ता हूँ. बहन की संकुचित होती चूत से जाहिर था वो अब मंज़िल के करीब है, इतनी करीब कि वो होंठ और आँखे भिंचे चीख रही थी.
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12-28-2018, 12:43 PM,
#19
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मैने चूत के दाने को अपने होंठो के बीच दबाया और ज़ोर से चूसने लगा, उसका पूरा बदन अकड़ गया और फिर उसका पूरा जिस्म मिर्गी के दौरे की तरह काँपने लगा. उसका पूरा जिस्म उस ज़ोरदार स्खलन की चपेट में आ गया, पूरे जिस्म को मरोडते हुए वो थरथरा रही थी, कराह रही थी, सीस्या रही थी. मैने चूत के दाने से होंठ हटाए और उस पर फिर से अपनी जीभ रगड़ने लगा, उसने अपनी एडियो से हाथ हटा लिए, उसकी बाहें सर के पीछे को फैल गयीं, उसके हाथों ने चड़दर को मुट्ठी मे कस लिया, उसकी काँपति हुई टाँगे खुली और उसने अपने पाँव मेरी पीठ पर रख दिए, उसकी जांघे मेरे सर पर कस गयीं. मेरी जिव्हा की रफ़्तार थोड़ी कम हो गयी मगर वो अब भी हरकत में थी. मेरी जीभ की हर छोटी सी हरकत से उसका पूरा जिस्म उस कामनीय आनंद की तेज़ लहरों से काँपने लगता. उसके लिए बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था. यह आनंद हद से ज़यादा था. उसकी जाँघो ने मेरे सर को और भी मज़बूती से कस लिया था. वो बुरी तरह हाँफ रही थी. 
मैने अपनी थक चुकी जीभ को अपने मुँह मे समेटा और उसके हवा मे उठे हुए कुल्हों को नीचे बेड पर रखा. मैने चेहरा उपर उठाया और उसकी जाँघो को सहलाते हुए अपने हाथ उसकी एडियो पर रखे. 

उसकी निगाह मेरे चेहरे पर जमी हुई थी. कमरे में हालाँकि काफ़ी अंधेरा था मगर मुझे यकीन था वो मेरे चेहरे को ज़रूर देख सकती है जो उसके चूतरस से भीग कर चमक रहा था. वो अभी भी हाँफ रही थी. मैने उसकी टाँगे अपने सर से खोली और उसकी जाँघो को चूमने लगा.

"मज़ा आया!" मैने उससे मुस्कराते हुए पूछा. 

वो उखड़ी सांसो के मध्य हँसती है और फिर सहमति मे सर हिलाती है. "हुउन्न्ञणन्........तुम जानते हो मुझे कितना मज़ा आया" 

"अब अंदर डालूं?" मैने उससे कहा

"हां . कितना.....कितना समय बीत गया है तुमने मुझे प्यार नही किया" उसके स्वर में नाराज़गी और बैचैनि का अहसास था.

उसके ऐसा कहने की देर थी कि मेरे अंतर में फिर से उदासी छाने लगी मगर क्यों ये मेरी समझ से बाहर था.
मैने उसकी टाँगे पकड़ी उन्हे घुटनो से मोड़ उसकी छाती पे दबाया. मैं अपने घुटनो पर खड़ा हो गया. बहन की नज़र मेरे मोटे लंड पर टिकी हुई थी जो झटके मार रहा था. 

"इसे अंदर का रास्ता दिखाओ" मैने धीरे से उसे कहा.

उसने अपने कंधे झटके और मेरे लंड को हाथ बढ़ा कर पकड़ लिया. वो जानती थी वो मुझे किस हद तक उत्तेजित कर सकती थी और उसे इसी में मज़ा आता था. मेरी कामग्नी भड़का कर मेरा लंड खड़ा कर देना उसके लिए बाएँ हाथ का खेल था. 

"लंड की टोपी को पहले चूत के होंठो पर रगडो फिर दाने पर" मैने उसे कहा

उसने हाँ मैं सर हिलाया. जब भी मैं उसे ऐसा करने को बोलता तो उसे बेहद मज़ा आता. जैसे ही लंड ने चूत को स्पर्श किया उसकी आँखे बंद हो गयीं. जब लंड का सिरा उसकी चूत के दाने को छेड़ता है तो उसके बदन को फिर से झटका लगता है. 

"अयाया.....हां, ऐसे ही....बिल्कुल तुम्हारी चूत के दाने पर........ऐसे ही घिसो........हाए मुझे बड़ा मज़ा आ रहा है..." मेरी आवाज़ बहुत धीमी और भर्राई हुई थी.

उसे भी बेहद मज़ा आ रहा था बावजूद इसके कि स्खलन के बाद वो अतिसंवेदनशील थी. लंड का चूत के दाने पर स्पर्श होने से उसका बदन अकड़ जाता, बदन ऐसे झटके ख़ाता जैसे बिजली की नंगी तार को छू लिया हो. 

"उूउउफफफफफफफफफफफ्फ़......,अब......अब इसे अपनी चूत के मखमली होंठो के बीच उपर से नीचे घूमाओ" मैने उसे कहा

उसने वैसे ही किया और वो फिर से कांप उठी. उसका स्खलन हुए अभी ज़यादा समय नही हुआ था मगर लगता था वो फिर से स्खलित होने वाली है. कभी कभार ऐसा होता था. 

"हाआआईई...." वो कराह रही थी

"मैं अब....अंदर डालूँगा.....ठीक है?"

"हूँ......डालो.....डालो जल्दी से"

"उफफफफफफफ्फ़......" सिसकते हुए उसने मेरे लंड का सिरा अपनी गीली चूत के छेद पर टिका दिया. मैने लंड को अंदर धकेला और टोपी अंदर जाते ही उसने अपनी आँखे भींच ली. उसने अपना हाथ मेरे लंड से हटा दिया. मैने एक इंच और अंदर डाल दिया. उसके चेहरे का तनाव बता रहा था मेरा मोटा लंड उसे कितनी तकलीफ़ दे रहा था. उसकी इतनी तंग गीली चूत में लंड डालने मे इतना मज़ा आ रहा था कि मेरी भी आँखे बंद हो गयी. कितनी तंग चूत है बहन की. मैं तो उसकी तंग चूत में अपना मोटा लंड घुसेड़ने का अहसास भूल ही गया था. मैने एक झटके से अपनी आँखे खोल दीं. मैने फिर से उदासी और डर का तेज़ झोंका अपने अंतर मे महसूस किया. मुझे हैरत थी मैं इस अहसास को क्यो कर भूल गया था.


"ओह भाई......कितना लंबा है तुम्हारा....कितना मोटा है.....एकदम लगता है मेरी चूत के लिए ही बना है" उसकी बात सुन मैं अपनी सोच से बाहर निकला और मैने लंड थोड़ा पीछे खींच कर फिर से अंदर धकेला. 

मेरी आँखे फिर से बंद हो गयी. यह याद करने की कोशिस छोड़ दी कि आख़िरी बार मैने बहन को कब चोदा था, और धीरे धीरे मैं लंड अंदर और अंदर डालने लगा. बाहर निकाल फिर से अंदर डालते डालते जल्द ही मेरा पूरा लंड उसकी चूत मे समा चुका था. फिर से मेने उसकी तंग चूत की दाद दी और उसकी बात को भी माना कि हम एक दूसरे के लिए ही बने हैं. वो अपनी चूत को भींच कर मेरा लंड निचोड़ रही थी. मैं उससे कभी भी जुदा नही होना चाहता था. एक पल के लिए भी नही.
"हइईई......उंगूँगूंघ.............मुझे बहुत अच्छा लगता है जब तुम मुझे इस तरह अपने अंदर निचोड़ती हो" 
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12-28-2018, 12:43 PM,
#20
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
हम दोनो एक दूसरे पर अपनी कमर धकेलते हुए रगड़ रहे थे. जब मैने लंड थोड़ा सा बाहर निकाला तो उसने अपनी चूत की पकड़ थोड़ी ढीली कर दी. मैं अब लंड को अंदर बाहर कर उसकी चूत को घिसना चाहता था और मैं जानता था वो भी यही चाहती है. जब मैने उसकी टाँगे और भी मोड़ कर बिल्कुल उसकी छाती पर दबाई तो उसने अपनी आँखे खोल दी. मैने चेहरा नीचे झुकाया मेरे होंठ उसके होंठो से मिल गये. हमारी जीभ आपस में उलझ गयी और मैने धीमी रफ़्तार से उसे चोदना सुरू कर दिया. वो अपने कूल्हे हिलाने लगी, कभी कभी जब मेरा लंड पूरी जड़ तक घुस जाता तो वो अपनी चूत से मेरे लंड को कस लेती. मुझे उसका इस तरह करने में बेहद मज़ा आता. मुझे और भी मज़ा आता जब हम कामोउन्माद में थोड़े सनकी हो उठते, जब हमारी चुदाई एक प्रचंड रूप ले लेती. मुझे हर उस चीज़ में मज़ा आता था जो हम दोनो मिलकर करते थे जब मुझे अहसास होता वो मेरे साथ है तब मैं उसके साथ अपने संबंध को अपने नाते को महसूस करता, और अब मुझे वोही अहसास अपनी आत्मा की गहराई में महसूस हो रहा था.

मैने चुंबन तोड़ा, उखड़ी साँसे लेते हुए मैने उसके कंधे को कयि बार चूमा. उसने अपनी गर्दन तान ली, जानती थी अब मैं उसको दिल खोल कर चुमूंगा. जब मैने उसकी गर्दन को चूमना सुरू किया तो उसका मुख खुल गया और वो गहरी साँसे लेने लगी. उसके होंठो पर नन्ही सी मुस्कान थी. मेरे चुंबनो और धक्को की रफ़्तार बढ़ गयी थी. उसके कूल्हे भी मेरे तेज़ धक्को का जवाब धक्कों से देने लगे. उसने मेरे कंधों को मज़बूती से थाम लिया. ताल से ताल मिलाते हमारे धक्कों का वेग और जोश बढ़ गया था. मुझे अब चुदाई के समय उत्पन्न होने वाली वो आवाज़ सुनाई दे रही थी जो मुझे बहुत उत्तेजित करती थी,
पटक.....पटक........पटक........पटक.......पटक....

जब भी वो आवाज़ उत्पन्न होती, जैसे आज रात हो रही थी , तो मैं उस आवाज़ को हमारी एक दूसरे का ख़याल रखने की इच्छा से जोड़ कर देखता, उसे मैं हमारी एक दूसरे को पाने की लालसा से, अभिलाषा से जोड़ कर देखता, उस आवाज़ को में हमारे उस करम से जोड़ कर कर देखता जो हमारे संबंध हमारे नाते को परिभासित करता. 

और अब इस आवाज़ के मायने और भी बढ़ गये थे क्यॉंके मैं जानता था वो मुझसे प्यार करती है. वो अपने कूल्हे नीचे से ज़ोर लगा कर उछालती है. मैं अपनी कमर खींच कर पूरे ज़ोर से उसका जबाब देता हूँ.
पटक......पटक........पटक.......पटक....

"मैं.......अभी...स्खलित नही...होना चाहता" हान्फते हुए उसे मैं बोलता हूँ. 

"मैं तुम्हे अपने अंदर स्खलित होते महसूस करना चाहती हूँ" 

"नही....अभी नही" मैं अपनी गति कम कर लेता हूँ और लंड पूरी गहराई में घुसा कर उसकी कमर पर अपनी कमर रगड़ता हूँ. 
वो अपनी आँखे भिंचे धक्का मारती है और मेरे नीचे मचलती है. वो अपनी चूत के दाने को मेरे लंड पर रगड़ रही थी. "हइईईई.....,हे भगवान...."

मैं उसकी एडियों से हाथ हटा देता हूँ "अपनी टाँगे मेरी कमर पर लपेट लो . चलो....अब कुर्सी पे करते हैं"

वो अपनी आँखे खोलती है. "कुर्सी......कोन्सि कुर्सी?" लगता था वो भी स्खलन के करीब ही थी. 
"अपनी कुर्सी"
वो अपना मुँह घूमाकर कमरे के कोने में पड़ी हमारे पिताजी की आराम करने वाली पुरानी कुर्सी देखती है. उसकी और उसका शायद पहले ध्यान नही गया था. "तुम्हारा दिल नही करता बस ज़ोरों से धक्के मार...."

"मैं अब उस कुर्सी पर करना चाहता हूँ" मैने उसे बीच मे ही टोकते हुए कहा. 

"ठीक है....जैसे तुमाहरी मर्ज़ी"

मैं नीचे झुकता हूँ तो वो अपनी बाहें मेरी गर्दन में डाल देती है और अपनी टाँगे मेरी कमर पर कस देती है. जब मैं खड़ा होता हूँ और उसके चूतड़ो को कस कर दबोच लेता हूँ, तो वो थोड़ा घबराती है और फिर हँसने लगती है. हर एक कदम पर जो मैं कुर्सी की ओर उठाता, मेरा लंड जड़ तक उसकी चूत में घुस जाता और हम दोनो को एक नये रोमांच का अहसास होता. उसे मालूम था कुर्सी पर जाते ही मैं उसे टाँगे खोल दूसरी तरफ घूमने वाला था और फिर अपने उपर आने के लिए बोलने वाला था. जब भी वो ऐसा करती तो मुझे लगता जैसे वो मेरा लंड मरोड़ रही है और कयि बार तो उसने पूछा भी था अगर वो मुझे तकलीफ़ दे रही हो, मैं बस हंस देता.

और इस बार भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ. जैसे वो मेरी गोदी मे घूम कर सीधी हुई मेरे हाथ उसके गोल मटोल मम्मो पर कस गये, उन्हे प्यार से दुलारता, सहलाता उसके निप्प्लो से छेड़खानी करने लगा और फिर मैने एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी चूत को सहलाया. मेरी उंगली चूत के दाने को सहला रही थी उससे खेल रही थी. मेरी इन हरकतों से वो छटपटाने लगी. उसके चुतड मेरी कमर पर थिरकने लगे. और फिर मेरे मुख से एक गुर्राहट निकली जिसे सुन वो भी लरज उठी.

"उर्र्ररगगगगगघह........उूउउफफफफफफफफ्फ़........लगता है जैसे...........तुम्हारी चूत तो बिल्कुल मेरे लंड का नाप लेकर बनाई गयी है" मैं अपना मुख आगे कर उसके रेशमी बालों में घुसाता हूँ. उसकी गर्दन तन जाती है और मैं उसकी गर्दन पर लगातार कयि गीले मीठे चुंबन अंकित करता हूँ. 

"तुम .....तुम मुझे लगता है....बहुत जल्दी स्खलित कर दोगे" वो सिसकती है

"मैं तुम्हे स्खलित करना चाहता हूँ" मैं मुस्कराता हूँ

"नही, पहले मैं तुम्हे स्खलित करूँगी" वो कुर्सी के हाथों को पकड़ लेती है, अपनी टाँगे मोड़ कर अपने पाँव मेरे कुल्हों के पास रखती है और फिर आगे को झुक जाती है. उसकी कमर उपर उठती है, फिर नीचे आती है, उपर होती है और फिर नीचे आती है और ऐसा बार बार होने लगता है. मेरी उंगली उसकी चूत के दाने को कुरेदना चालू रखती है. उसका बदन झटके खा रहा था और लगता था वो एक बार फिर छूटने के करीब थी. मगर वो चाहती थी हम दोनो एक साथ स्खलित हो. जब भी हम दोनो एक साथ स्खलित होते तो स्खलन का मज़ा दुगना हो जाता था. अगर मैं छूट जाता तो वो भी छूट जाती. इसीलिए उसके धक्कों मे अब पहेल से ज़यादा जान थी. असलियत में वो मेरी गोद में उछल रही थी.
"उम्म्म्मममह......,धीमे.....थोड़ा धीरे करो.....मैं इसे ज़यादा से ज़यादा समय तक खींचना चाहता हूँ.........धीरे करो"

"नही, .....मैं तुम्हे अपने अंदर छूटते महसूस करना चाहती हूँ" हान्फते हुए वो बोलती है और वो अपनी कमर और भी उँची उठती है और फिर मेरे लंड पर पटकती है. "उफफफफफफफ्फ़! नही" दूसरी बार कमर इतनी उँची उठाने पर मेरा लंड बाहर निकल जाता है. मेरी हँसी निकल जाती है. वो अपने कूल्हे उपर करती है और हाथ नीचे लाकर मेरे लंड को जल्दी जल्दी तलासती है.

"नही! चलो बेड पर चलते हैं" 

वो लंड का सिरा अपनी चूत से सटाने की कोशिस करती है मगर मैं कुर्सी पर हिल डुल उसे सफल नही होने देता.

"नही! बस अब यहीं करना है" वो लगभग चीख उठती है.

"नही, मेरी बात तो सुनो. मैं बस कुछ समय के लिए रफ़्तार कम करना चाहता हूँ. और मैं तुम्हारा चेहरा देखना चाहता हूँ. अब मान भी जाओ"

उसने चेहरा मेरी और मोड़ा, उसकी आँखो में कुछ नमी थी. 
मैने उसके गाल से गाल सटा कर उसे प्यार से सहलाया. वो भी शायद यही चाहती थी जब हम दोनो का एक साथ स्खलित हो तो हम एक दूसरे के चेहरे को देखें, एक दूसरे की आँखों में देखें.
"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी" हम दोनो मुस्कराते हैं. मैं उसके मम्मो को दबाता हूँ और उसके गालों को चूमता हूँ

"यह हुई ना बात........चलो चलते है." मैने उसके कान में धीरे से कहा

वो उठ कर खड़ी हुई, मूडी, मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कुर्सी से खींच कर उठाया. मैने उसे अपनी बाहों में लिया और उसके होंठ चूमे. उसका मुख थोड़ा सा खुला और हमारी जीबो का अक्सर होने वाला रोमांचकारी नृत्य सुरू हो गया. उसकी बाहें मेरी गर्दन पर कसने लगी और मैं उसे पकड़े धीरे धीरे बेड की ओर बढ़ने लगा, मेरा मोटा लंड हम दोनो के बीच रगड़ खा रहा था. 

बेड के किनारे पहुँच कर मैने चुंबन तोड़ा "मैं इस बार एक दूसरे का चेहरा देखते हुए करना चाहता हूँ, मगर........पहले, बेड के किनारे झुक जाओ, ठीक है?"

"तुम्हारा मतलब......तुम्हारा मतलब...डॉगी?" 

"हूँ, बिल्कुल ठीक समझी. मुझे.......मुझे तुम्हारी प्यारी सी गंद देखनी है, बस...बस कुछ ही मिंटो के लिए"
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