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Desikahani हालत की मारी औरत की कहानी
मजबूरी--हालत की मारी औरत की कहानी
मेरा नाम रचना है...मेरा जनम एक साधारण परिवार मे यूपी के एक छोटे से गाँव मे
हुआ … मेरे घर मुझे से बड़ी एक बहन और एक भाई है दोनो की शादी हो चुकी है … ये तब के बात है जब मेरी एज 18 साल थी.. अभी जवानी आनी शुरू ही हुई थी तब मेरी दीदी की शादी को 5 साल हो चुके थे और मे 12थ मे पढ़ रही थी…
एक दिन जब मे स्कूल से घर आई, तो घर मे मातम छाया हुआ था… मा नीचे ज़मीन पर बैठी रो रही थी जब मेने मा से पूछा तो मा ने कोई जवाब नही दिया.. और पापा जो एक कोने मे खड़े रो रहे थे .. उन्होने मुझे उठाया, और मेरी ओर देखते हुए बोले….. बेटा तुम्हारी दीदी हमे छोड़ कर इस दुनिया से चली गयी….
मेरे पैरो के तले से ज़मीन खिसक गयी, और मे फूट -2 कर रोने लगी…दीदी को एक बेटी थी जो शादी के एक साल बाद हुई थी मे अपने सारे परिवार के साथ जीजा जी के घर के लिए चली गयी दीदी की अंतिम क्रिया हुई
उसके बाद धीरे -2 सब नॉर्मल होने लगे… दीदी की मौत के दो महीने बाद जीजा जी अपनी बेटी को लेकर हमारे घर आए… तब मे स्कूल गयी हुई थी… जीजा जी के घर वालों से किया बात हुई, मुझे पता नही…. पर जब मे घर पहुचि तो, मा मुझे एक रूम मे ले गयी, और मुझे से बोली…..
मा: बेटा मेरी बात ध्यान से सुन…. तुझे तो पता है ना अब तेरी दीदी के गुजर जाने के बाद… तेरी दीदी की बेटी की देख भाल करने वाला कोई नही है, और तेरे जीजा जी दूसरी शादी करने जा रहे हैं… अब सिर्फ़ तुम ही अपनी दीदी की बेटी की जिंदगी खराब होने से बचा सकती हो….
मे: (हैरान होते हुए) मे पर कैसे मा…..
मा: बेटा तूँ अपने जीजा से शादी कर ले… यहीं आख़िरी रास्ता है…. देख बेटी मना मत करना… मे तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ…(और मा की आँखों मे आँसू आ गये)
मे: (मा के आँसू मुझेसे देखे ना गये) ठीक है मा , आप जो भी कहो जी…मे करने के लाए तैयार हूँ..
मा: बेटा तूने मेरी बात मान कर, मेरे दिल से बहुत बड़ा बोझ उतार दिया है…
और उसके बाद मा दूसरे रूम मे चली गयी…. दीदी की मौत के 6 महीने बाद, मेरी शादी मेरे जीजा जी से करवा दी गये…मेरे सारे अरमानो की बलि दे दी गयी…
जीजा जी अब मेरे पति बन चुके थे….उनका नाम गोपाल था… शादी के बाद मे जब अपने ससुराल पहुचि…रात को मेरी सास ने मुझे, घर के कमरे मे बैठा दिया…बिस्तर ज़मीन पर लगा हुआ था…घर कच्चा था…यहाँ तक के घर का फर्श भी कच्चा ही था….मे नीचे ज़मीन पर लगे हुए बिस्तर पर बैठी… अपनी आने वाली जिंदगी के बारे मे सोच रही थी….ऐसा नही था की मुझे सेक्स के बारे मे कुछ नही पता था…. पर बहुत ज़्यादा भी नही जानती थी…
अचानक रूम का डोर खुला, और गोपाल अंदर आ गये…अंदर आते ही उन्होने डोर को लॉक किया और मेरे पास आकर बैठ गये….मे एक दम से घबरा गयी… मेरे दिल की धड़कन एक दम तेज़ी से चल रही थी…..कुछ देर बैठने के बाद वो अचानक से बोले
गोपाल:अब बैठी ही रहोगी चल खड़ी हो कर अपनी सारी उतार
मे एक दम से घबरा गयी…मुझे ये उम्मीद बिकुल भी नही थी, की कोई आदमी अपनी सुहाग रात को ऐसे अपनी पत्नी से पेश आता होगा…
गोपाल: क्या हुआ सुनाई नही दिया …. चल जल्दी कर अपनी सारी उतार…
मेरे हाथ पैर काँपने लगे…माथे पर पसीना आने लगा…दिल के धड़कन तेज हो गयी….मे किसी तरहा खड़ी हुई, और अपनी सारी को उतारने लगी...जब मे सारी उतार रही थी..तो गोपाल एक दम से खड़े हो गये….और अपना पयज़ामा और कुर्ता उतार कर खुंते से टाँग दिया, और फिर से बिस्तर पर लेट गये…मे अपनी सारी उतार चुकी थी…अब मेरे बदन पर पेटिकॉट और ब्लाउस ही था….और उसके अंदर पॅंटी और ब्रा…गोपाल ने मुझे हाथ से पकड़ कर खींचा…मे बिस्तर पर गिर पड़ी…
गोपाल: क्यो इतना टाइम लगा रही हो… इतने टाइम मे तो मे तुम्हें दो बार चोद चुका होता…चल अब लेट जा…
गोपाल ने मुझे पीठ के बल लेता दिया….जैसे मेने अपनी सहेलियों से सुहागरात के बारे मे सुन रखा था…वैसा अब तक बिल्कुल कुछ भी नही हुआ था…उन्होने एक ही झटके मे मेरे पेटिकॉट को खींच कर मेरी कमर पर चढ़ा दिया,और मेरी जाँघो को फैला कर, मेरी जाँघो के बीच मे घुटनो के बल बैठ गये…मेने शरम के मारे आँखें बंद कर ली…आख़िर मे कर भी क्या सकती थी…और आने वालों पलों का धड़कते दिल के साथ इंतजार करने लगी…गोपाल के हाथ मेरी जाँघो को मसल रहे थे…मे अपनी मुलायम जाँघो पर गोपाल के खुरदारे और, सख़्त हाथों को महसूस करके, एक दम सिहर गयी…वो मेरी जाँघो को बुरी तराहा मसल रहा था…मेरी दर्द के मारे जान निकली जा रही थी…पर तब तक मे दर्द को बर्दास्त कर रही थी, और अपनी आवाज़ को दबाए हुए थी…
फिर एका एक उन्होने ने मेरी पॅंटी को दोनो तरफ से पकड़ कर, एक झटके मे खींच दिया… मेरे दिल की धड़कन आज से पहले इतनी तेज कभी नही चली थी…उसे बेरहम इंसान को अपने सामने पड़ी नाज़ुक सी लड़की को देख कर भी दया नही आ रही थी…फिर गोपाल एक दम से खड़ा हुआ और, अपना अंडरवेर उतार दिया…कमरे मे लालटेन जल रही थी…लालटेन की रोशनी मे उसका काला लंड, जो कि 5 इंच से ज़यादा लंबा नही था, मेरी आँखों के सामने हवा मे झटके खा रहा था…गोपाल फिर से मेरी जाँघो के बीच मे बैठ गया, और मेरी जाँघो को फैला कर, अपने लंड के सुपाडे को मेरी चूत के छेद पर टिका दिया…मेरे जिस्म मे एक पल के लिए मस्ती की लहर दौड़ गयी…चूत के छेद और दीवारों पर सरसराहट होने लगी…पर अगले ही पल मेरी सारी मस्ती ख़तम हो गयी…उस जालिम ने बिना कोई देर किए, अपनी पूरी ताक़त के साथ अपना लंड मेरी चूत मे पेल दिया… मेरी आँखें दर्द के मारे फॅट गयी,और दर्द के मारे चिल्ला पड़ी…मेरी आँखों से आँसू बहने लगे…पर उस हवसि दरिंदे ने मेरी चीखों की परवाह किए बगैर एक और धक्का मारा, मेरा पूरा बदन दर्द के मारे एन्थ गया…मेरे मुँह से चीख निकलने ही वाली थी की, उसने अपना हाथ मेरे मुँह पर रख दिया… और मेरी चीख मेरे मुँह के अंदर ही घुट कर रह गये…मे रोने लगी
मे: (रोते हुए) बहुत दर्द हो रहा है इसे निकल लो जी आह
गोपाल: चुप कर साली, क्यों नखरे कर रही है पहली बार दर्द होता है…अभी थोड़ी देर मे ठीक हो जाएगा…
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RE: Desikahani हालत की मारी औरत की कहानी
मे रोती रही, गिड्गिडाति रही, पर उसने मेरे एक ना सुनी,और अपना लंड मेरी चूत के अंदर बाहर करने लगा… मेरी चूत से खून निकल कर मेरी जाँघो तक फेल चुका था..खून निकलने का पता मुझे सुबह चला, जब मे सुबह कपड़े पहनने के लिए उठी थी..दर्द के मारे मेरी जान निकली जा रही थी…पर दरिंदे ने मुझ पर कोई तरस नही खाया…ना ही उसने मुझे प्यार किया, ना ही मेरी चुचियो को मसला, ना ही चूसा बस अपना लंड डाल कर, वो मुझे पेले जा रहा था…मे उसके भारी बदन के नीचे पड़ी दर्द को सहन कर रही थी…5 मिनट लगातार चोदने के बाद,उसका बदन अकडने लगा, और उसके लंड से पानी निकल गया…और मेरे ऊपेर निढाल होकर गिर गये…उसका सारा वजन मेरे ऊपेर था..मेने गोपाल को कंधों से पकड़ कर साइड करने के कॉसिश की….पर उसका वेट मुझसे कहीं ज़्यादा था..आख़िर कार वो खुद ही उठ कर बगल मे निढाल होकर गिर गया…
मेने राहत की साँस ली… मे अभी भी रो रही थी…मेने अपने पेटिकॉट को नीचे किया और, गोपाल की तरफ पीठ करके लेट गयी…वो तो 5 मिनट मे ही झाड़ कर सो गया था…उसके ख़र्राटों की आवाज़ से मुझे पता चला… मे बाथरूम जाना चाहती थी… पर मेरा पूरा बदन दुख रहा था… मेरे चूत सूज चुकी थी…इसलिए मे उठ भी ना
पे…और वहीं लेटे -2 मुझे कब नींद आ गये…मुझे नही पता…उसके बाद मुझे तब होश आया, जब मेरी सास ने मुझे सुबह उठाया…
मेरे सारे अरमान एक ही पल मे टूट गये थे… मे सोचने लगी काश के मेने मा को मना कर दिया होता…पर होनी को कोन टाल सकता है…अब यही मेरा जीवन है…मेने अपने आप से समझोता कर लिया…मेरी जिंदगी किसी मशीन की तरह हो गयी…दिन भर घर का काम करना, और रात को गोपाल से चुदाना यही मेरी नियती बन गयी थी…कुछ दिनो के बाद मेरी चूत थोड़ी सी खुल गयी…इस लिए अब मुझे दर्द नही होता था…पर गोपाल अपनी आदात के अनुसार, रोज रात को मेरे पेटिकॉट को ऊपेर उठा कर मुझे चोद देते… आज तक उन्होने मुझे कभी पूरा नंगा भी नही किया…
गोपाल जिस गाँव मे रहते थे…उस गाँव की औरतो से भी धीरे -2 मेरी पहचान होने लगी…उनकी चुदाई की बातों को सुन मे एक दम से मायूस हो जाती…पर मेने कभी अपने दिल की बात किसी से नही कही…बस चुप-चाप घुट-2 कर जीती रही…गोपाल मुझे ना तो शरीरक रूप से सन्तुस्त कर पाया, और ना ही उसे मेरे भावनाओ की कोई परवाह थी….दिन यूँ ही गुज़रते गये…मेरा ससुराल एक साधारण सा परिवार था…मेरे पति गोपाल ना ही बहुत ज़्यादा पढ़े लिखे थे, और ना ही कोई नौकरी करते थे…मेरे जेठ जी बहुत पढ़े लिखे आदमी थे…घर की ज़मीन जायदाद ज़्यादा नही थे… इसलिए घर को चलाना भी मुस्किल हो रहा था…जेठ जी सरकारी टीचर थे…पर वो अलग हो चुके थे…. ज़मीन को जो हिस्सा मेरे पति के हिस्से आया तो उसके भरोसे जीवन को चलना ना मुनकीन के बराबर था…
टाइम गुज़रता गया… पर टाइम के गुजरने के साथ घर के खर्चे भी बढ़ते गयी…मेरे शादी को 10 साल हो चुके थी…मे 28 साल की हो चुकी थी…पर मेरे कोई बच्चा नही हुआ था…और मे बच्चा चाहती भी नही थी…क्योंकि दीदी की बेटी को जो अब 14 साल की हो चुकी थी उसके खर्चे ही नही संभाल रहे थे…लड़की का नाम नेहा है… वो मुझे मा कह कर ही पुकारती थी…नेहा पर जवानी आ चुकी थी… उसकी चुचियो मे भी भराव आने लगा था…वो जानती थी कि मे उसकी असली मा नही हूँ, पर अब मुझमे वो अपनी मा को ही देखती थी…अब घर के हालत बहुत खराब हो चुके थे…घर का खरच भी सही ढंग से नही चल पा रहा था…
एक दिन सुबह मैं जल्दी उठ कर घेर मे गाय को चारा डालने गई तो मैने देखा की मेरा जेठ विजय मेरी जेठानी शांति से चिपका हुआ है और उसकी चुचियो को मसल रहा है मेरा हाथ इतना सेक्सी सीन देख कर खुद ही मेरी चूत पर चला गया मैं अपनी चूत मसल्ने लगी फिर मुझे होश आया कि कहीं वो दोनो मुझे देख ना ले इसलिए मैं वापस आने लगी लेकिन शायद उन्होने मुझे देख लिया था
शांति कपड़े ठीक करके दूध धोने बैठ गयी…और विजय बाहर आने लगा…मे एक दम से डर गयी…और वापिस मूड कर आने लगी…बाहर अभी भी अंधेरा था…मे अपने घर मे आ गयी..पर जैसे ही मे डोर बंद करने लगी…विजय आ गया, और डोर को धकेल कर अंदर आ गया…
मे: (हड़बड़ाते हुए) भाई साहब आप, कोई काम था….(मेरे हाथ पैर डर के मारे काँप रहे थे…)
विजय: क्यों क्या हुआ… भाग क्यों आई वहाँ से… अच्छा नही लगा क्या?
मे: (अंजान बनाने का नाटक करते हुए) कहाँ से भाई साहब मे समझी नही…
वो एक पल के लिए चुप हो गया….और मेरी तरफ देखते हुए उसने अपना लंड लूँगी से निकाल लिया…और एक ही झटके मे मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख लिया….
मे: ये क्या कर रहे हैं भाई साहब? छोड़ो मुझे (गुस्से से बोली)
विजय: अब मुझसे क्या शरमाना मेरी जान….वहाँ तो देख देख कर अपनी चूत को मसल रही थी…अब क्या हुआ…
मे: (अपने हाथ को छुड़ाने के कॉसिश करते हुए गुस्से से बोली) देखिए भाई साहब आप जो कर रहे है, ठीक नही कर रहे है…मेरा हाथ छोड़ दो…
विजय ने अपने होंटो पर बेहूदा सी मुस्कान लाते हुए मुझे धक्का दे कर दीवार से सटा दिया…और मेरे दोनो हाथों को पकड़ कर मेरी कमर को पीछे दीवार से सटा दिया…..मेरी सारी का पल्लू नीचे गिर गया…और मेरे ब्लाउस मे तनी हुई चुचिया मेरे जेठ जी के सामने आ गयी…उन्होने एक हाथ से मेरे दोनो हाथों को पकड़ कर दीवार से सताए रखा…फिर वो पैरो के बल नीचे बैठ गये…और मेरी सारी और पेटिकॉट को ऊपेर करने लगे…मेरी तो डर के मारे जान निकली जा रही थी…कि कहीं कोई उठ ना जाए…घर पर बच्चे और सास ससुर थे….अगर वो मुझे इस हालत मे देख लेते तो मे कहीं की ना रहती…..मे अपनी तरफ से छूटने का पूरी कोशिश कर रही थी…पर उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी….उसने तब तक मेरे सारी और पेटिकॉट को मेरी जाँघो तक उठा दिया था….और अपनी कमीनी नज़रों से मेरी दूध जैसी गोरी और मुलायम जाँघो को देख रहा था….अचानक उन्होने ने मेरी सारी और पेटिकॉट को एक झटके मे मेरे चुतडो तक ऊपेर उठा दिया…मेरी ब्लॅक कलर की पॅंटी अब उनकी आँखों के सामने थी…इससे पहले कि मे और कुछ कर पाती या बोलती, उसने अपने होंटो को मेरी जाँघो पर रख दिया…मेरे जिस्म मे करेंट सा दौड़ गया…बदन मे मस्ती और उतेजना की लहर दौड़ गयी…और ना चाहते हुए भी मुँह से एक कामुक और अश्लील सिसकारी निकल गयी…जो उसने सुन ली वो तेज़ी से अपने होटो को मेरी जाँघो पर रगड़ने लगा…मेरे हाथ पैर मेरा साथ छोड़ रहे थे…उन्होने ने मेरे दोनो हाथों को छोड़ दिया…और अपने दोनो हाथों को मेरी सारी और पेटिकॉट के नीचे से लेजा कर मेरे चुतडो को मेरी पनटी के ऊपेर से पकड़ लिया….मेरा जिस्म काँप उठा…आज कई महीनो बाद किसी ने मुझे मेरे चुतडो पर छुआ था…वो मेरी जाँघो को चूमता हुआ ऊपेर आने लगा…और मेरी पॅंटी के ऊपेर से मेरी चूत की फांकों पर अपने होंटो को रख दिया ….मे अपने हाथों से अपने जेठ के कंधों को पकड़ कर पीछे धकेल रही थी…पॅंटी के ऊपेर से ही चूत पर उनके होंटो को महसूस करके मे एक दम कमजोर पड़ गयी…
मे: (अब मेने विरोध करना छोड़ दिया था बस अपने मर्यादा का ख़याल रखते हुए मना कर रही थी) नही भाई साहब छोड़ दो जी…कोई आ जाएगा…. अहह नही ओह्ह्ह्ह बस बच्चे उठ जाएँगे ओह्ह्ह ओह्ह्ह्ह
क्रमशः.................
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RE: Desikahani हालत की मारी औरत की कहानी
गतान्क से आगे.....................
अचानक उन्होने अपने होंटो को मेरे पॅंटी के ऊपेर से हटा लिया…मेरे पॅंटी मेरी चूत के पानी से एक दम गीली हो चुकी थी…..उसने मेरे तरफ देखते हुए, अपने हाथों से मेरे चुतड़ों को पॅंटी के ऊपेर से कस के मसल दिया…मेरा बदन एक दम एन्थ गया…फिर वो एक दम से खड़ा हुआ…और मेरे हाथ को अपने फन्फनाते लंड पर रख दिया… मेरी साँसें इतनी तेज़ी से चल रही थी..कि मे बता नही सकती…उनके मोटा लंड किसी लोहे के रोड के तरह दहक रहा था…मेरे हाथ अपने आप उसके 7 इंच के लंड पर कसते चले गये…मेरे सारी अभी भी मेरे कमर पर अटकी हुई थी…उसने मुझे अपने बाहों मे भर कर अपने से चिपका लिया… और मेरे चुतडो को दोनो हाथों से पकड़ कर मसलने लगे…मेरी साँसे तेज़ी से चल रही थी…और उन्होने ने अचानक मेरे होंटो पर अपने होंटो को रख दिए….मे एक दम से मचल उठी…..और छटपटाने लगी….पर उनके हाथ लगातार मेरे चुत्डो को सहला रहे थी…जिसे मेरे विरोध करने के शक्ति लगभग ख़तम हो चुकी थी…उन्होने मेरे होंटो को 2 मिनट तक चूसा… ये मेरा पहला चुंबन था…फिर उन्हें ने अपने होंटो को हटाया और पीछे हट गये…
विजय: मे आज दोपहर 12 बजे तुम्हारा इंतजार करूँगा … तुम्हारी जेठानी आज अपने मयके जा रही है और बच्चे स्कूल मे होंगे…मे तुम्हारा इंतजार करूँगा
मे बिना कुछ बोले अपने रूम मे चली गये….थोड़ी देर बाद बाहर आकर मे फिर से घर के पीछे चली गयी… विजय जा चुका था…मेने दूध ढाया और वापिस आकर नाश्ते के तैयारी करने लगी…नेहा को तैयार करके मेने स्कूल बेज दिया…मेरा दिल कही नही लग रहा था…जेठ जी ने मेरी ऊट की आग को इतना बढ़ा दिया था… के बार-2 मेरा ध्यान सुबह हुए घटनाओ पर जा रहा था…जैसे -2 12 बजे का टाइम नज़दीक आ रहा था मेरे दिल के धड़कन बढ़ती जा रही थी…
जैसे -2 12 बजे का टाइम नज़दीक आ रहा था मेरे दिल के धड़कन बढ़ती जा रही थी…मुझे आज भी ठीक से याद है…मेने घड़ी देखी 12 बजने मे 15 मिनट बाकी थी…तभी मेरी सास मेरी कमरे मे आई…
सास: बहू सुन हम खेतों मे जा रहे हैं दरवाजा बंद कर लो…मे उठ कर बाहर आ गयी और सास ससुर के जाने के बाद मेने डोर बंद कर दिया…और फिर से अपने रूम मे आ गयी…जेठ जी का और हमारा घर साथ – 2 मे था पहले तो पूरा आँगन इकट्ठा था…पर जब मेरी शादी हुई उसके बाद जेठ जी ने घर का बटवारा करवा दिया था…और घर के अंगान के बीचों बीच एक दीवार बनवा दी थी….दीवार 7 फुट की थी…मुझे इस बात का बिल्कुल भी अंदाज़ा नही था…कि अगर मे नही गयी तो , वो दीवार फंद कर आ जाएगें…मे अपने कमरे मे सहमी सी बैठी थी…और अपने आप कोष रही थी…काश मे अपने सास ससुर के साथ खेतों मे चली जाती…तभी मेरा ध्यान किसी आहट से टूटा…मे जल्दी से उठ कर बाहर आई तो देखा विजय वहाँ पर खड़ा था…उसने सिर्फ़ बाणयान और धोती पहन रखी थी…मेरा दिल डर के मारे जोरों से धड़कने लगा…मे अपने कमरे के तरफ वापिस भागी और डोर को बंद करने लगी…पर विजय ने तेज़ी से डोर को पकड़ लिया…और पीछे धकेल दिया….मे गिरते-2 बची….उसने अंदर आते ही डोर बंद कर दिया…और मेरी तरफ बढ़ने लगा…मेरी तो जैसे जान निकली जा रही थी…मेरे समझ मे नही आ रहा था…कि आख़िर मे करूँ तो किया करूँ….विजय ने आगे बढ़ते हुए अपनी बानयन निकाल कर चारपाई पर फेंक दी…और फिर मेरी तरफ देखते हुए आगे बढ़ने लगा…मे उसको अपनी तरफ बढ़ता देख पीछे हटने लगी…और आख़िर मे पीछे जगह ख़तम हो गयी…मे चारपाई के एक तरफ खड़ी थी…. मेरी पीठ दीवार से सॅट गयी…उसने मेरी तरफ बेहूदा मुस्कान से देखते हुए अपनी लूँगी को निकाल कर नीचे फेंक दिया…उसका 7 इंच का तना हुआ लंड मेरे आँखों के सामने था…जो हवा मे झटके खा रहा था…मेने अपनी नज़रें घुमा ली…मेरी कुछ बोलने की हिम्मत भी नही हो रही थी…वो मेरे बिकुल पास आ गया….मे उसकी साँसों को अपने फेस और होंटो पर महसूस कर रही थी…जैसे ही उसने मेरा हाथ पकड़ा मेने उसका हाथ झटक दिया
मे: देखो भाई साहब मे आप की इज़्ज़त करती हूँ…अगर आप अपनी इज़्ज़त चाहते है…तो यहाँ से चले जाओ…नही तो मे दीदी(जेठानी) को बता दूँगी
विजय: बता देना जान जिसे बताना है बता देना…पहले एक बार मेरे इस लंड की प्यास अपनी चूत के रस से बुझा दो…फिर चाहे तो जान ले लेना…
और विजय ने मेरे हाथ को पकड़ कर अपने लंड के ऊपेर रख लिया…और मेरे हाथ को अपने हाथ से थाम कर आगे पीछे करने लगा…मेरे हाथ लंड पर पड़ते ही मुझे एक बार फिर करेंट सा लगा….हाथ पैर कंम्पने लगे…साँसें एक दम से तेज हो गयी…
विजय: आह अहह तुम्हारे हाथ कितने मुलायम हैं, मज़ा आ गया….
फिर जेठ जी ने अपना हाथ मेरे हाथ से हटा लिया…और अपना एक हाथ मेरी कमर मे डाल कर अपनी तरफ खींच के, अपनी छाती से सटा लिया…और दूसरे हाथ को मेरे गाल्लों पर रख कर अपने उंगुठे से मेरे होंटो को धीरे से मसलने लगे….मेरे बदन मे मस्ती के लहर दौड़ गयी…ना चाहते हुए भी मुझे मस्ती से चढ़ने लगी…मुझे इस बात का ध्यान भी नही रहा के मेरा हाथ अभी उनके लंड को सहला रहा है…मेरा हाथ उतेजना के मारे उनके लंड के आगे पीछे हो रहा था….
विजय: हां ऐसे ही हिलाती रहो….अहह तुम्हारे हाथों मे तो सच मे जादू है….ओह्ह्ह्ह हां ऐसे ही मूठ मारती रहो….
जैसे ही ये शब्द मेरे कानो मे पढ़े…मुझे एक दम से होश आया….और मेने अपना हाथ लंड से हटा लिया…और शर्मा कर सर को झुका लिया…उन्होने मेरे फेस को दोनो हाथों मे लेकर ऊपेर उठया….
विजय: रचना तुम बहुत खूबसूरत हो, मेने जब तुम्हें पहली बार देखा था…मे तब से तुम्हारा दीवाना हो गया…
मेरे पति ने ना तो आज तक मेरे तारीफ कभी की थी…और ना ही मेरे बदन के किसी हिस्से को प्यार किया था…मे जेठ जी के बातों मे आकर जज्बातों मे बहने लगी…जेठ जी ने मेरे सारी के पल्लू को पकड़ नीचे कर दिया…और मेरी चुचियो को हाथों से मसलना चालू कर दिया…मे कसमसा रही थी…पर मे अपना काबू अपने ऊपेर से खोती जा रही थी….उन्होने ने अचानक मुझे चारपाई पर धकेल दिया….और मेरे सारी और पेटिकॉट को एक झटके मे ऊपेर उठा दिया…इससे पहले के मे संभाल पाती…उन्होने ने मेरी पॅंटी को दोनो हाथों से पकड़ कर खींच दिया…और मेरे टाँगों से निकाल कर नीचे फेंक दिया…मे एक दम से सकपका गयी…और अपनी सारी को नीचे करने लगी…पर जेठ जे ने मेरे दोनो हाथों को पकड़ कर सारी से हटा दिया…और अपना मुँह खोल कर मेरी चूत पर लगा दिया….मेरे बदन मे मस्ती के लहर दौड़ गयी….आँखें बंद हो गयी….मुझ से बर्दाश्त नही हुआ…और मेरी कमर अपने आप उचकने लगी..
मे: नही भाई सहह नही नहियीई ईीई आप क्या कर रहीईई हूओ अहह अहह सीईईईईई उंह नहिी ओह ओह नहियीई
मेरी कमर ऐसे झटके खा रही थी…के देखने वाले को लगे के मे अपनी चूत खुद अपने जेठ के मुँह पर रगड़ रही हूँ…..उन्होने मेरे टाँगों को पकड़ कर मोड़ कर ऊपेर उठा दिया….जिससे मेरी चूत का छेद और ऊपेर की ओर हो गया…वो अपनी जीभ को मेरी चूत के छेद के अंदर घुस्सा कर चाट रहे थे…मे एक दम मस्त हो चुकी थी…मेरी चूत से पानी आने लगा…मे अपने हाथों को अपने जेठ जी के सर पर रख कर…उन्हें पीछे धेकालने की नाकाम कॉसिश कर रही थी…पर अब मे विरोध करने के हालत मे भी नही थी…उन्होने अपने दोनो हाथों को ऊपेर करके मेरे चुचियो को दोबच लिया….और ज़ोर ज़ोर से मसलने लगे….मे मस्ती के मारे छटपटा रही थी…मेरी चूत के छेद से पानी निकल कर मेरे गांद के छेद तक आ गया था…उन्होने ने धीरे-2 मेरे ब्लाउस के हुक्स खोलने चालू कर दिए….मे अपने हाथों से उनके हाथों को रोकने के कॉसिश की…पर सब बेकार था…मे बहुत गरम हो चुकी थी…एक एक कर के मेरे ब्लाउस के सारी हुक्स खुल गये…और मेरी 36 सी की चुचिया उछल कर बाहर आ गयी… मेने नीचे ब्रा नही पहनी हुई थी…उन्होने ने मेरी चुचियो के निपल्स को अपने हाथों की उंगलयों के बीच मे लेकर मसलना चालू कर दिया….मेरी चुचियो के काले निपल एक दम तन गये…अब मेरे बर्दास्त से बाहर हो रहा था….मे झड़ने के बिकुल करीब थी…मेरी सिसकारियाँ मेरी मस्ती को बयान कर रही थी….अचानक उन्होने ने मेरी चूत से अपना मुँह हटा लिया….और ऊपेर आ गये…और मेरे आँखों मे देखते हुए अपने लंड के सुपाडे को, मेरी चूत के छेद पर टिका दिया….जैसे ही उनके लंड का गरम सुपाड़ा मेरी चूत के छेद पर लगा मेरा पूरा बदन झटका खा गया….और बदन मे करेंट सा दौड़ गया
विजय: कैसा लगा जानेमन मज्जा आया के नही….
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RE: Desikahani हालत की मारी औरत की कहानी
मे कुछ नही बोली और वैसे ही आँखें बंद किए लेटी रही….उन्होने ने मेरी एक चुचि के निपल को मुँह मे ले लिया और चोसने लगे….मे मस्ती मे आह ओह ओह कर रही थी….मुझे आज भी याद है, मे उस वक़्त इतनी गरम हो चुकी थी… कि मेरी चूत की फाँकें कभी उनके लंड के सुपाडे पर कस्ति तो कभी फैलती…अब वो मेरी चुचियो को चूसने के साथ मसल भी रहे थी….मे वासना के लहरो मे डूबी जा रही थी….चूत मे सरसराहट होने लगी…और मेरी कमर खुद ब खुद ऊपेर की तरफ उचक गयी, और लंड का सुपाड़ा मेरी चूत के छेद मे चला गया…मेरे मुँह से आहह निकल गयी….होंटो पर कामुक मुस्कान आ गयी….दहाकति हुई चूत मे लंड के गरम सुपाडे ने आग मे घी का काम किया….और मे और मचल उठी….और मस्ती मे आकर अपनी बाहों को उनके गले मे डाल कर कस लिया….मेरे हालत देख उन्होने मेरे होंटो को अपने होंटो मे ले लिया और चूसने लगे…अपने चूत के पानी का स्वाद मेरे मुँह मे घुलने लगा…वो धीरे-2 मेरे दोनो होंटो को चूस रहे थे…और अपने दोनो हाथों से मेरी चुचियो को मसल रहे थे….मेने अपने हाथों से उनकी पीठ को सहलाना चालू कर दिया….और उन्होने ने भी मस्ती मे आकर अपनी पूरी ताक़त लगा कर जोरदार धक्का मारा….लंड मेरी चूत की दीवारों को फैलाता हुआ अंदर घुसने लगा…लंड के मोटे सुपाडे का घर्सन चूत के डाइयावोवर्न को फैलाता हुआ अंदर घुस्स गया, और सीधा मेरी बचेदानी से जा टकराया….मेरी तो जैसे जान ही निकल गयी…दर्द के साथ-2 मस्ती की लहर ने मेरे बदन को जिंज़ोर कर रख दिया…मेरी चूत की फाँकें कुलबुलाने लगी…
विजय: आहह रचना तुम्हारी चूत तो सच मे बहुत टाइट है…..मज्जा आ गया….देख तेरी चूत कैसे मेरे लंड को अपनी दीवारों से भीच रही है…..
मे जेठ जी की बातों को सुन कर शरम से मरी जा रही थी….पर मेने सच मे महसूस किया कि, मेरी चूत की दीवारें जेठ जी के लंड पर अंदर ही अंदर कस और फेल रही हैं….जैसे मेरी बरसों के पयासी चूत अपनी प्यास बुझाने के लिए, लंड को निचोड़ कर सारा रस पी लेना चाहती हो….
एका एक जेठ जी ने मेरी टाँगों को अपने कंधों पर रख लिया…और अपना लंड मेरी चूत मे पेलने लगे….लंड का सुपाड़ा मेरी चूत की दीवारो पर रगड़ ख़ाता हुआ अंदर बाहर होने लगा….और लंड का सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी के मुँह पर जाकर चोट करने लगा…मे एक दम गरम हो चुकी थी…और मस्ती के सागर मे गोत्ते खा रही थी…
विजय का लंड मेरी चूत के पानी से एक दम सन गया था…और लंड फतच-2 की आवाज़ के साथ अंदर बाहर हो रहा था…..मे अब अपने आप मे नही थी…मे अपने दाँतों मे होंटो को भींचे जेठ जी के लंड से चुदवा के मस्त हो चुकी थी…मे अपनी आँखें बंद किए, अपने जेठ जी के लंड को अपनी चूत मे महसूस करके झड़ने के करीब पहुँच रही थी…..जेठ जी के जांघे जब मेरी गान्ड से टकराती, तो ठप-2 के आवाज़ पूरे कमरे मे गूँज जाती, फतच-2 और ठप-2 के आवाज़ सुन कर मेरी चूत मे और ज़्यादा खुजली होने लगी…और मे अपने आप रोक ना सकी….मेने अपनी गांद को ऊपेर की तरफ उछालना चालू कर दिया…मेरी गांद चारपाई के बिस्तर से 3-4 इंच ऊपेर की तरफ उछल रही थी…और लंड तेज़ी से अंदर बाहर होने लगा…
मेरी उतेजना देख जेठ जी और भी जोश मे आ गये…और पूरी ताक़त के साथ मेरी चूत को अपने लंड से चोदने लगे… मे झड़ने के बहुत करीब थी….और जेठ जी का लंड भी पानी छोड़ने वाला था….
विजय: अह्ह्ह्ह रचना मेरा लंड पानी छोड़ने वाला है….अहह अहह
मे: आह सीईईईईई उंह उंह
और मेरा पूरा बदन अकड़ने लगा….मे आज पहली बार किसी लंड से झाड़ रही थी….मे इतनी मस्त हो गयी थी, के मे पागलों के तराहा अपनी गांद को ऊपेर उछालने लगी…और मेरी चूत ने बरसों का जमा हुआ पानी को उगलना चालू कर दिया…जेठ जी भी मेरी कामुकता के आगे पस्त हो गये…और अपने लंड से वीर्ये की बोछर करने लगे…मे चारपाई पर एक दम शांत लेट गयी…मे इस चरम सुख को सही से ले लेना चाहती थी…मे करीब 10 मिनट तक ऐसे ही लेटी रही….जेठ जी मेरे ऊपेर से उठ गये थे…मेने अपनी आँखों को खोला जिसमे वासना का नशा भरा हुआ था…जेठ जी ने अपनी बनियान और लूँगी पहन ली थी…
विजय: रचना आज तुम्हारी टाइट चूत चोद कर मज्जा आ गया…..आज रात के 11 बजे मे घर के पीछे, भैंसॉं के बड्डे मे तुम्हारा इंतजार करूँगा….
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11-15-2018, 12:15 PM,
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RE: Desikahani हालत की मारी औरत की कहानी
और जेठ जी बाहर चले गये, मे उन्हें रूम मे चारपाई पर लेटे हुए, दीवार को फन्दते हुए देख रही थी, मेरा पेटिकॉट अभी भी मेरी कमर पर चढ़ा हुआ था…मेरी चूत से पानी निकल कर मेरी गांद के छेद और जाँघो तक फेल गया था…
जेठ जी के जाने के बाद मे मे धीरे से चारपाई पर खड़ी हुई और, बाथरूम मे चली गयी…मेरा ब्लाउस भी खुला हुआ था…और चुचिया चलने से इधर उधर हिल रही थी…मेने बाथरूम मे जाकर अपनी चूत और गांद को पानी से सॉफ किया…फिर गीले कपड़े से अपनी जाँघो को सॉफ किया….और अपने कपड़े ठीक किए…चुदाई के बाद मे अपनी जिंदगी मे एक नया पन महसूस कर रही थी…. मे वापिस आकर किचन मे चली गयी…और दोपहर के खाना बनाने लगी…क्योंकि नेहा भी स्कूल से वापिस आने वाली थी…मे खाना तैयार करके अपने रूम मे चारपाई पर आकर लेट गयी….मेरी आँखों के सामने कुछ देर पहली हुई ज़बरदस्त चुदाई का सीन घूमने लगा…
मे ना चाहते हुए भी, फिर से गरम होने लगी,और अपनी चूत को पेटिकॉट के ऊपेर से सहलाने लगी….पर जैसे जैसे मे अपनी चूत को सहला रही थी…मेरी चूत मे और ज़्यादा आग भड़कने लगी थी…मुझसे बर्दास्त नही हो रहा था…मेरा दिल कर रहा था कि मे अभी विजय के पास चली जाउ…और उसके लंड को अपनी चूत मे लेकर उछल-2 कर चुदवाउ….
मुझे अपनी चूत को सहलाते हुए 5 मिनट बीत गये थे…मेरी चूत फिर से गीली हो चुकी थी…पर तभी अचानक गेट पर दस्तक हुई…मे हड़बड़ा गयी…और तेज़ी से उठ कर बाहर गयी….मेने गेट खोला, तो सामने नेहा खड़ी थी…वो स्कूल से वापिस आ गयी थी…वो जल्दी से अंदर आई
नेहा: मा बहुत गरमी है, जल्दी से पानी दो, बहुत प्यास लगी है….
और नेहा तेज़ी से रूम मे चली गयी…मेरी नज़र उसके चहरे से हट नही रही थी….अब नेहा भी जवान होने लगी थी…धूप के कारण उसके गाल एक दम लाल हो कर दहक रहे थे….मे किचन मे गयी, और एक ग्लास पानी लेकर नेहा के पास गयी…और उसे पानी दिया…मे उसकी तरफ देखने लगी…
नेहा के गाल कश्मीरी सेब के तराहा एक दम लाल और गोरे थे….उसकी चुचियो मे उभार आने लगा था….नेहा बिकुल सिल्म थी…उसकी कमर ऐसी थी मानो जैसे कोई नाग बल खा रहा हो…वो बिकुल दीदी पर गयी थी….
क्रमशः.................
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