Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:40 PM,
#51
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--50

गतान्क से आगे......

“तुम्हे पता है तुम्हारा

“तो मैं चालू?”,देवेन ने कार का दरवाज़ा खोला.

“ओके.”,रंभा मुस्कुराइ तो उसने उसे 1 कार्ड थमाया.

“ये मेरा नंबर है.”

“थॅंक यू.मैं आज ही घर जाके मा की चीज़े देखती हू.हो सकता है उनमे कोई सुराग मिले.”

“हूँ..चलो,बाइ.”

“बाइ.”

“आज याद आई है मेरी?”,प्रणव के कमरे मे कदम रखते ही रीता ने तल्ख़ नज़रो से उसका स्वागत किया.प्रणव खामोशी से बिस्तर पे उसके बगल मे बैठ गया,”..अब मन भर गया ना मुझसे?”,प्रणव ने उसे ऐसे देखा जैसे उसे ये बात बहुत बुरी लगी हो.अचानक उसने रीता को बाहो मे भींच लिया & उसे पागलो की तरह चूमने लगा.

“आहह..नाआअ……छ्चोड़ो..छोड़ो..मुझे..उउम्म्म्मम..!”,रीता उसकी गिरफ़्त मे च्चटपटाने लगी.

“कैसे आता पहले?..हर रोज़ तो शिप्रा आपके साथ चिपकी रहती थी..उसके सामने आपको प्यार करने लगता क्या?”,प्रणव ने उसे बिस्तर पे लिटा दिया था & उसके उपर चढ़ उसे अपनी गर्म किस्सस से बहाल कर रहा था.

“ओह..माआअ..कभी अकेले मे पकड़ लेते मुझे..आन्न्‍णणन्..”,प्रणव ने उसकी नाइटी मे हाथ घुसा उसकी चूचियाँ मसल दी थी,”..कितना तदपि हूँ तुम्हारे लिए,प्रणव..ऊहह..!”,अपनी चूचियो को पीते अपने दामाद के सर को उसने अपने सीने पे & भींच दिया और सुकून से आँखे बंद कर ली.

“आपको भी बस अपने दर्द की फ़िक्र है मेरी परवाह नही.”,प्रणव ने उसकी चूचियो को जी भर के चूमने के बाद सर उपर उठा के अपनी सास को देखा.

“क्या हुआ प्रणव?क्या बात परेशान कर रही है तुम्हे?”,रीता ने थोड़ी चिंता के साथ उसके बालो मे हाथ फिराए.

“मोम,डॅड के लिए मैं कभी 1 चौकीदार से ज़्यादा नही रहा.”,उसका बाया हाथ अभी भी रीता की चूचियो को बारी-2 से दबा रहा था.

“क्या बोल रहे हो प्रणव!तुम दामाद हो इस घर के!..ऊहह..!”,रीता ने टाँगे फैलाई तो प्रणव ने अपना पाजामे मे क़ैद लंड उसकी चूत पे दबा दिया.

“हां,लेकिन हैसियत तो चौकीदार के जितनी ही है.जब समीर गायब हुआ तो डॅड ने सब मुझे सौंप दिया & जब वो वापस आ गया तो उनकी वसीयत मे तो मुझे कुछ नही मिला.ये मत समझिए कि मैं लालची हू & मुझे आपकी दौलत की हवस है..”,प्रणव अपनी कमर हिलाके सास की चूत को लंड से बुरी तरह दबा रहा था,”..मुझे चाहत है इज़्ज़त की.ट्रस्ट ग्रूप को मैने अपना सबकुच्छ दिया है तो बदले मे मुझे बस इतनी इज़्ज़त चाहिए की मेरा भी नाम उसके मालिको मे शुमार हो,मुझे भी समीर के बराबर की जगह मिले, भले उसके बदले मे मुझे हर महीने वही तनख़्वाह मिले जो अभी मिलती है.”,रीता गौर से दामाद को देख रही थी.1 मर्द के अहम को ठेस लगे तो वो तिलमिला जाता है & कोई भी ग़लत कदम उठा सकता है.प्रणव ने ऐसा किया तो परिवार के साथ-2 कारोबार पे भी असर पड़ता & उसे भी उसकी ज़ोरदार चुदाई से महरूम रहना पड़ सकता था.

रीता ने दामाद को बाहो मे भरते हुए पलटा & उसके सीने को चूमते हुए उसके पाजामे तक आई & उसे छोड़, उसके लंड को निकाला & मुँह मे भर लिया.उसने लंड चूस-2 के प्रणव के दिल को खुशी से भर दिया फिर उसके कपड़े उतार उसे नंगा किया & अपनी पॅंटी उतारी & फिर नाइटी को हाथो मे उठा उसके उपर आ उसके लंड पे बैठ गयी.

“अपने दिल से सारे बुरे ख़याल निकाल दो,प्रणव..ऊहह..”,लंड ने उसकी चूत को पूरा भर दिया था.वो झुकी & दामाद के होंठो को चूमा,”..मुझपे भरोसा रखो,मैं तुम्हारी चाहत पूरी करूँगी..ज़रूर करूँगी..माइ डार्लिंग..तुम बस मुझे यू ही अपने पास रखो..आन्न्न्नह..शरीरी कहिनके!”,प्रणव ने उसकी गंद को दबोच उसके छेद मे उंगली घुसा दी थी.रीता ने शरारत से मुस्कुराते हुए दामाद के गाल पे प्यार भरी चपत लगाई तो उसने उंगली को & अंदर घुसा दिया,”..ऊव्ववव..!”,रीता मस्ती मे कराही & जिस्मो का खेल शुरू हो गया.प्रणव ने उसे बाँहो मे भरा तो उसने अपना चेहरा उसके दाए कंधे मे च्छूपा लिया.प्रणव उसकी चूत को लंड से और गंद को उंगली से चोद्ता मुस्कुराने लगा..समीर को घेरने के लिए उसका जाल तैय्यार होता दिख रहा था उसे अब.

रंभा उस रात खूब सोई.उसने पूरी शाम अपनी मा के बारे मे सोचा & देवेन के बारे मे भी.देवेन के लिए वो 1 लगाव सा महसूस कर रही थी.उसकी मा को कितना चाहता था वो लेकिन उस बेचारे को क्या मिला?..बस दर्द & तकलीफ़..पूरी उम्र के लिए!उसने तय कर लिया कि वो उसके घाव पे मरहम ज़रूर लगाएगी & उस दयाल को खोज के रहेगी चाहे कुच्छ भी हो जाए.

अगली सुबह वो उठी तो उसे प्रणव का ख़याल आया.उसने उसे फोन करने की सोची लेकिन उस से भी पहले समीर को फोन किया.समीर ने उस से ढंग से बात नही की & मसरूफ़ होने का बहाना बनाया.उसके रवैयययए ने रंभा के ट्रस्ट फिल्म्स को जाय्न करने के इरादे को और पुख़्ता कर दिया.उसने प्रणव को फोन किया तो आज उसे भी बहुत काम था.उसने शॉपिंग जाने का इरादा किया और उसकी तैय्यारि करने लगी.

“हेलो..”,रंभा ने 1 ढीली सी लंबी,सफेद स्कर्ट पहनी थी & काले ब्रा के उपर पूरे बाजुओ की काली कमीज़ डाल उसके बटन्स लगा ही रही थी कि प्रणव का फोन आ गया,”..मैं तो शॉपिंग जा र्है थी..हां..पूरा दिन बिज़ी रहोगे क्या?..बहुत बुरे हो तुम..अभी तो समीर भी नही है & तुम्हारे पास मेरे लिए वक़्त ही नही है..हूँ..ओके,बाइ!”,रंभा ने मुस्कुराते हुए मोबाइल बंद किया..उसका नंदोई तो उसका दीवाना हो गया था!

“हां वो दिखाओ..”,दोपहर के 12 बजे डेवाले के नेहरू मार्केट मे भीड़ होने लगी थी,”..इस मार्केट मे हर समान की दुकाने थी & कॉलेज जाने वाले लड़के-लड़की यहा कपड़े खरीदने के लिया खूब आते थे.रंभा 1 दुकान मे टँगे 1 स्कर्ट को देख रही थी.

“हाई!”,वो चौंक के घूमी.

“प्रणव..तुम यहा?”,उसके चेहरे पे हया की सुर्खी आई & फिर उसने आवाज़ थोड़ी धीमी की,”..तुम तो पूरा दिन बिज़ी रहने वाले थे?”,वो स्कर्ट को हाथो मे ले देख रही थी,”..उन..नही..वो दिखाओ..उधर उपर जो तंगी है..”,उसने दाए हाथ को उपर उठाके इशारा किया & ऐसा करने से उसकी कंज़ी थोड़ा उचक गयी & उसकी गोरी कमर नुमाया हो गयी.

“वो तो तुम्हे छेड़ रहा था.”,प्रणव उसके पीछे खड़ा था & उसका दाया हाथ रंभा की कमर से आ लगा था लेकिन इस तरह की दुकानदार को ना दिखे,”..वरना मेरी ऐसी मज़ाल की तुम्हारी खदिमात से पहले कंपनी की खिदमत करू!”,उसने वाहा के माँस को दबाया तो रंभा की चूत कसक उठी & उसने बड़ी मुश्किल से अपनी आह को दबाया.

“वो भी दिखाना..”,रंभा ने दुकानदार को दूसरी तरफ तंगी स्कर्ट दिखाई & फिर उसके घूमते ही प्रणव का हाथ कमर से नीचे करते हुए घबरा के देखा,”..क्या कर रहे हो?..किसी ने देख लिया तो?”

“तो..क्या कह दूँगा कि मेरी महबूबा है!”,प्रणव फुसफुसाया & दुकानदार के घूमने से पहले कमर को ज़ोर से दबा के हाथ पीछे खींचा.

“ये दोनो दे दो.”,रंभा ने स्कर्ट्स चुन ली तो प्रणव ने उनके पैसे दे दिए & फिर दोनो बाहर निकल आए.बाज़ार मे भीड़ पल-2 बढ़ रही थी.प्रणव रंभा के बाई तरफ चल रहा था & भीड़ मे उसे रास्ता दिखाने का बहाने बार-2 उसकी पीठ या कमर च्छू रहा था.रंभा को उसके हाथो का एहसास मस्त कर रहा था.देखे जाने का डर,महबूब का साथ..ये बातें उसके जिस्म को जगा रही थी.मगर पकड़े जाने का डर बहुत था वाहा.1 तो इतने बड़े खानदान की बहू ऐसे आम लोगो के बेज़ार मे शॉपिंग कर रही थी,उपर से किसी ने उसके नंदोई को उसके जिस्म को छेड़ते देख लिया तो बहुत बड़ा स्कॅंडल हो सकता था.समीर वाले हादसे के बाद लोग रंभा को भी पहचानने लगे थे.रंभा 1 विदेशी लाइनाये ब्रांड के शोरुम मे घुस गयी,ये सोचते हुए कि प्रणव तो वाहा आ नही पाएगा & बड़ा मज़ा आएगा उसकी शक्ल उस वक़्त देखने मे!

मगर प्रणव की किस्मेत उसका पूरा साथ दे रही थी.उस ब्रांड ने हाल ही मे मर्दो की रंगे भी निकाली थी सो वो अपनी सलहज के पीछे-2 अंदर घुसा & मेन’स सेक्षन मे चला गया.दोनो स्टोर मे घूम-2 के समान देखने लगे.रंभा 1 शेल्फ के पास आई,पुतलो पे लगी ब्रा & पॅंटी अलग-2 साइज़स मे उनके बगल मे रखे शेल्व्स पे भी थी & हर पुतले के बगल मे 1 शीशा लगा था.रंभा ने 1 ब्रा उठाया & उसे देखने लगी.

वो जहा ब्रा देख रही थी,उसके ठीक उल्टी दिशा मे प्रणव 1 अंडरवेर देख रहा था & वाहा भी वैसा ही 1 शीशा लगा था.उसने शीशे मे देखा & उसे सामने के शीशे मे देखती उस से नज़रे मिलती रंभा दिखी.रंभा ने ब्रा उठाके अपने सीने के सामने की तो प्रणव ने हौले से सर हिला के मना का दिया.वो आगे बढ़ी तो वो भी आगे बढ़ा & इस बार की ब्रा पसंद आने पे उसने ना मे सर हिलाया.रंभा मुस्कुराइ,उसे इस खेल मे बड़ा मज़ा आ रहा था.दोनो प्रेमी 1 दूसरे से अलग-थलग ,1 दूसरे की ओर पीठ किए भी रोमॅन्स कर रहे थे.उसने उसी तरह प्रणव को भी अंडरवेर चुनवाया & फिर अपना बिल अदा कर वाहा से निकल के आगे बढ़ गयी.कुच्छ देर बाद प्रणव भी वाहा से निकला & फिर तेज़ी से चलता हुआ उसके साथ हो लिया.रंभा की चूत अब रिसने लगी थी.

1 जगह बहुत भीड़ थी & प्रणव ने उसका फ़ायदा उठाते हुए उसकी कमर से हाथ उसकी गंद पे सरका दिया & उसे दबा के हाथ फ़ौरन पीछे खींचा.रंभा चिहुनकि & थोडा आयेज हुई तो प्रणव उसके बिल्कुल पीछे आ गया & उसके कंधो पे हल्के से हाथ रख थोड़ा आगे हुआ & अपना लंड उसकी गंद से सटा दिया.स्कर्ट,पॅंटी & प्रणव की पॅंट & अंडरवेर के बावजूद रंभा को उसके मर्डाने अंग की जलन महसूस हुई & उसकी चूत कसमसा उठी.रंभा थोड़ा आगे बढ़ी & 1 एटीएम मे घुस गयी.उसके पीछे प्रणव भी वाहा आ गया.एटीम कार्ड से खुलता था & 1 बार कोई अंदर हो तो बाहर से वो खिल नही सकता था.प्रणव ने 1 बार शीश एके दरवाज़े से बाहर देखा,कोई नही था..उसने अपनी सलहज को खींच के शीशे के दरवाज़े के बगल की दीवार से सटा दिया.

“नही..प्रणव..कोई आ जाएगा..!”,रंभा की आँखे जिस्म के नशे से भारी हुई थी.प्रणव ने उसकी दोनो कलाइयाँ पकड़ के उसके सर के दोनो तरफ दीवार से लगाया & उसके बाए कान मे जीभ फिराने लगा.रंभा ने मस्ती मे आँखे बंद कर ली.प्रणव आगे हो उसकी चूत पे अपना लंड दबा रहा था.उसके होंठ अब उसकी गर्देन को चूमते हुए उसके चेहरे पे आए & रंभा ने फ़ौरन उसके होंठो को अपने होंठो मे भींच उसकी ज़ुबान को चूस लिया.उसके जिस्म की कसक बहुत बढ़ गयी थी.वो अपनी कमर हिलाके प्रणव के लंड पे जवाबी धक्के दे रही थी.प्रणव ने उसकी कलाइयाँ छ्चोड़ी & उसकी शर्ट मे हाथ घुसा उसकी कमर मसल्ने लगा.रंभा तेज़ी से कमर हिला रही थी..बस कुच्छ देर &..प्रणव ने लंड & ज़ोर से उसकी चूत पे दबाया..”..उउन्न्ञनननणणन्..!”,रंभा ने बड़ी मुश्किल से अपनी आह को प्रणव के होंठो मे दफ़्न किया & उसका जिस्म झटके खाने लगा.प्रणव ने झड़ती हुई रंभा को थाम लिया.कुच्छ पल बाद जब खुमारी उतरी तो दोनो अलग हुए & सावधानी से बाहर निकल गये.रंभा के दिल मे अब चुदाई की हसरत जाग गयी थी.उसका दिल कर रहा था कि प्रणव उसे कही ले चले जहा दोनो इतमीनान से 1 दूसरे मे खो सकें & वो अपनी आग बुझा पाए.

“अरे..रंभा जल्दी इधर कोने मे आओ!”,प्रणव ने धीमे मगर अर्जेंट लहजे मे कहा तो रंभा उसके पीछे 1 पतले से रास्ते पे चली गयी.

“क्या हुआ?”

“शिप्रा घूम रही है यहा &..”,उसने मूड के देखा,”..& इधर ही आ रही है.”,दोनो तेज़ी से निकले & खुले मे आ गये.प्रणव ने इधर-उधर देखा & उसे सामने पार्किंग के पार मल्टिपलेक्स नज़र आया,”..वाहा सिनिमा हॉल पे चलो.जल्दी!”,रंभा तेज़ कदमो से उधर गयी तो प्रणव उस से अलग हो कही गायब हो गया मगर जब रंभा सिनिमा हॉल तक पहुँची तो उसने देखा कि प्रणव टिकेट काउंटर से टिकेट खरीद के खड़ा है.

“ये टिकेट लो & अंदर जाओ.”,रंभा हॉल मे पहुँची तो देखा की प्रणव भी पीछे से आ रहा है.दोनो अलग-2 हॉल के अंदर अपनी सीट्स पे पहुँचे,”बच गये.”,लाइट्स बंद होते ही प्रणव फुशफुसाया.कोई बकवास फिल्म थी & हॉल लगभग खाली था.सिर्फ़ चंद जोड़े वाहा कुच्छ निजी पल चुराने वाहा बैठे थे.प्रणव ने सबसे पीछे की किनारे की सीट्स की टिकेट्स ली थी & उनकी रो मे 1 जोड़ा बैठा था मगर दूसरे कोने पे.

“सब तुम्हारी वजह से.क्या ज़रूरत थी ऐसे मेरे पीछे-2 बाज़ार मे आने की?”,रंभा ने उसे झिड़का तो प्रणव ने सीट्स के बीच के हत्था उठाया & अपनी बाई बाँह मे उसे लेके उसका गाल चूम लिया.”..ओफ्फो,अब यहा भी शुरू हो गये!..उउन्न्ञणणनह..!”,रंभा ने उसकी बाह से छूटने की कोशिश की लेकिन प्रणव की पकड़ बहुत मज़बूत थी.

“ग़लती मेरी नही,तुम्हारी है!”,प्रणव उसकी ज़ुबान से खेलने के बाद उसकी शर्ट मे दाया हाथ घुसा के उसकी कमर को सहला रहा था,”..इतनी हसीन क्यू हो कि बस तुमहरे करीब रहने का दिल करता है!”,उसका हाथ कमर से स्मने पेट पी आ गया & उसकी नाभि को छेड़ते लगा.

“हटो झूठे..ओह..!”,रंभा टॅरिफ सुन के मुस्कुराइ & उसके दाए कंधे को थाम लिया,”..बस मुझे बहलाने को बाते बना रहे हो..नाआ!”,प्रणव उसकी नाभि को छेड़ रहा था & उसकी चूत मे फिर से कसक होने लगी थी.

“झूठ बोलू तो अभी मर जाऊं!”,प्रणव का हाथ उसकी नाभि से सरक के उसकी पीठ पे आ गया था & उसने उसे सीने से चिपका के उसकी छातियो को अपने से भींचते हुए चूमना शुरू कर दिया.रंभा भी पूरी गर्मजोशी से उसका साथ देने लगी.पता नही कितनी देर तक दोनो 1 दूसरे की ज़ुबानो से खेलते रहे.प्रणव के हाथ उसकी कमीज़ के कसे होने की वजह से ज़्यादा उपर नही जा पा रहे थे & वो बस उसकी मांसल कमर को मसल के ही अपने को बहला रहा था.

“आह..नही..कोई देख लेगा,प्रणव!..ऊहह..!”,प्रणव ने हाथ वापस सामने लाके उसकी स्कर्ट मे आगे से घुसा दिया था & उसकी पॅंटी टटोल रहा था,”..नाआअ..!”,रंभा उसका हाथ पकड़ के खींच रही थी लेकिन प्रणव ने हाथ अंदर घुसा ही दिया था.रंभा ने शर्म & मस्ती से आहत हो अपना सर उसके बाए कंधे पे रख दिया & चेहरे गर्देन & कंधे के मिलने वाली जगह मे च्छूपा उसकी गर्देन को चूमने लगी.प्रणव की उंगलिया उसकी चूत को सहलाते हुए अंदर घुसी & उसे रगड़ने लगी.रंभा कसमसाते हुए सीट पे ही च्चटपटाने लगी.प्रणव उसके बाए कान को जीभ से छेड़ते,उसके गाल को चाटते हुए उसकी चूत मार रहा था.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:40 PM,
#52
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--51

गतान्क से आगे......

“उउन्नगज्गघह..!”,रंभा ने उसकी गर्देन के नीचे अपने दाँत गढ़ाए & अपने दाए हाथ को उसकी पीठ से ले जाते हुए प्रणव के दाए कंधे को भींचा & बाए को उसकी शर्ट के अंदर घुसा उसकी छाती मे नाख़ून धंसा दिए & झड़ने लगी.उसका जिस्म थरथरा रहा था.प्रणव उसके चेहरे को हौले-2 चूमते हुए बाए हाथ से उसकी पीठ सहलाता रहा.

रंभा संभली तो उसने चेहरा प्रणव के कंधे पे रखे-2 ही उपर घूमके उसे देखा तो प्रणव ने उसके रस से भीगी अपनी उंगलिया उसकी स्कर्ट से निकाली & उसे दिखाते हुए उन्हे मुँह मे भर उसका रस चाट लिया.रंभा ने बाए हाथ से उसके बालो को पकड़ते हुए सुके सर को घुसाया & चूमने लगी.

प्रणव ने चूमने के बाद उसका हाथ अपने लंड पे रख दिया.रंभा ने इधर-उधर देखा & उसकी ज़िप खोल दी & हाथ अंदर घुसा अंडरवीअर के उपर से ही उसके लंड को सहलाने लगी & अपने प्रेमी को चूमने लगी.प्रणव ने उसके हाथ को अपने अंडरवेर पे और दबाया & फिर अंडरवेर नीचे कर लंड को बाहर निकाल उसे अपनी महबूबा के हाथ मे दे दिया.

“पागल हो क्या!..कोई देख लेगा..!”,रंभा घबरा के बोली मगर उसे मज़ा भी आ रहा था.

“कोई नही देखेगा.”,प्रणव ने उसके हाथ को लंड पे & दबाया तो वो उसे बाए हाथ से हिलाने लगी.प्रणव उसकी शर्ट के बटन्स खोलने लगा.

“नही!बिल्कुल नही!”,रंभा ने लंड छ्चोड़ दूर होने की कोशिश की तो प्रणव ने फिर से लंड को उसे थमा दिया.

“बस 2 बटन्स खोल रहा हू,जान!घबराओ मत.”,उसने अपना दाया हाथ अंदर घुसा उसकी चूचियो को ब्रा के उपर से ही दबाना शुरू कर दिया.कुच्छ देर बाद रंभा ने देखा कि कोई उनकी ओर ध्यान नही दे रहा तो वो थोड़ा सायंत हुई & लंड ज़ोर-2 से हिलाने लगी.अब प्रणव के च्चटपटाने की बारी थी.उसने हाथ रंभा के सीने से हटाया & उसका सर पकड़ के नीचे किया तो रंभा उसका ऐशारा समझ गयी & फिर मना किया.

“प्लीज़..कोई नही देख रहा..बस तुरंत हो जाएगा..प्लीज़ मेरी जान!”,दिल तो रंभा का भी कर रहा था & प्रणव के इसरार ने उसे थोड़ा पिघला भी दिया.उसने फिर इधर-उधर देखा & जल्दी से नीचे झुक अपने महबूब का लंड मुँह मे भर लिया.उसने उसे हिलाना नही छ्चोड़ा था & साथ मे चूसना भी शुरू कर दिया था.थोड़ी ही देर मे प्रणव सीट पे अपने आप को रोकने की कोशिश कर रहा था & रंभा का मुँह उसके लंड पे & दाब रहा था.रंभा उसके आंडो को भिंचे हुए थी & उसकी ज़ुबान जिसने प्रणव के सुपादे को खूब छेड़ा था अब उसके वीर्य को चख रही थी.रंभा उसके आंडो को ऐसे दबा रही थी जैसे उन्हे दबा के वीर्य की सारी बूंदे निकाल लेना चाहती हो.उसकी ज़ुबान जल्दी-2 सारे वीर्य को अपने हलक मे उतार रही थी.कुच्छ पल बाद उसने प्रणव की गोद से सर उठाके उसकी निगाहो मे झाँका तो उसे वो उसका शुक्रिया अदा करती दिखी.प्रणव ने उसके शर्ट के बटन्स लगाए तो सुने भी उसके लंड को अंदर डाल उसकी पॅंट की ज़िप चढ़ा दी & फिर उसके कंधे पे सर रख उसकी बाहो मे क़ैद हो आँखे बंद किए सुकून के एहसास का लुफ्त उठाने लगी.

रंभा ने अपने पास रखे सुमित्रा के थोड़े से समान को छान मारा था लेकिन उसके हाथ कुच्छ नही लगा था.उसने देवेन को ये बात बताई थी.उसका कहना था कि शायद गोपालपुर जाके फिर से नये सिरे से खोज करने से दयाल के बारे मे कुच्छ जानकारी मिल सके मगर रंभा उसकी इस बात से सहमत नही थी.उसका मानना था कि दयाल जैसा लोमड़ी की तरह का चालक & शातिर शख्स ने अपने पीछे कोई निशान नही छ्चोड़ा होगा.

“तो क्या करें?”,देवेन थोड़ा झल्ला गया था.

“मुझसे मिलिए तो साथ बैठ के कुच्छ सोचते हैं.”

“ठीक है.मेरे होटेल आ जाओ.”,रंभा शाम को उसके होटेल के कमरे मे बैठी थी.उसने घुटनो तक की कसी,भूरी स्कर्ट & 1धारियो वाली पूरे बाज़ू की क्रीम शर्ट पहनी थी.पैरो मे हाइ हील वाले जूते थे & जब उसने देवेन के कमरे मे कदम रखा तो उसकी नज़रो मे दिखी उसके जिस्म की तारीफ रंभा से च्छूपी नही रही थी मगर अगले ही पल देवेन की नज़रे फिर से पहले जैसी हो गयी थी जिन्हे रंभा के हुस्न से कोई मतलब नही था.रंभा को उसका उसकी सुंदरता को निहरना बहुत अच्छा लगा था लेकिन जब उसकी निगाहे अपने पहले वाले अंदाज़ मे आ गयी तो वो अंदर से थोड़ी मायूस हो गयी थी.

ये उसकी मा का प्रेमी था..ये उसकी मा को कैसे प्यार करता होगा?..& मा..क्या वो भी इसका साथ देती होगी?..अजीब लगा उसे मा के बारे मे ऐसी बातें सोच के लेकिन इंसान का दिमाग़ तो वो बेलगाम घोड़ा है जो अपनी मर्ज़ी से अपने रास्ते पे भागता है..वक़्त के थपेड़े इसकी शक्ल पे दिखते हैं लेकिन अभी भी देखने मे ये बुरा नही है..& उसकी तरफ क्यू नही देखता वो?..क्या मा के बाद इसने किसी औरत से रिश्ता नही रखा?..ऐसा नामुमकिन है तो फिर..-

“क्या सोच रही हो?”,वो उसके सामने चाइ बनाके प्याला बढ़ाए उसे देख रहा था.

“कुच्छ नही.”,धीमी आवाज़ मे जवाब दे रंभा ने कप लिया.उसके दिल मे इस शख्स के लिए 1 जगह बन गयी थी लेकिन कैसी ये उसकी समझ मे अभी नही आ रहा था,”दयाल को जानने वाले क्या बहुत लोग थे गोपालपुर मे?..आपकी मुलाकात कैसे हुई थी?..& आपने कहा था कि आपको ये पता था कि वो कुच्छ ग़लत करता था लेकिन पूरी तरह से मालूम नही था तो ये बताइए कि क्या पता था आपको उसके बारे मे?”

“बाप रे!तुमने तो सवालो की झड़ी लगा दी.”,देवेन हंसा & चाइ का घूँट भरा.रंभा को उसकी हँसी सूरत अच्छी लगी & अपने बचपाने पे थोड़ी शर्म भी आई.देवेन उसके सुर्ख गुलाबी चेहरे को देखने लगा..मा की झलक थी उसमे..& वही शर्मीली मुस्कान..जब वो चूमता था उसे तो कैसे शरमाते हुए उसके सीने मे मुँह च्छूपा लेती थी सुमित्रा..उफफफ्फ़..& फिर जवाब मे उसकी गर्दन को चूम लेती थी..सुमित्रा को कभी नंगी नही देखा था लेकिन ये तो बला की खूबसूरत थी & कितनी बेबाक!..अपने ससुर से रिश्ता जोड़ा था & बिस्तर मे उसका पूरी गर्मजोशी से साथ दे रही थी..वो गुस्से मे तिलमिला गया था जब उसे देखा था विजयंत मेहरा से चुद्ते हुए लेकिन 1 ख़याल ये भी तो आया था कि विजयंत कितना किस्मतवाला है जो उसके नशीले जिस्म को भोग रहा है!..क्या हो गया है उसे?..वो उसकी माशूक़ा की बेटी है..तो क्या हुआ?..नही..!

“मेरी मुलाकात दयाल से उसी लॉड्ज मे हुई थी जहा मैं रहता था.वैसे तो वो अपने काम से काम रखता था..”,उसकी निगाह उसकी गोरी,सुडोल टाँगो पे पड़ी & उसे याद आया कि कैसे 1 बार सुमित्रा ने कीचड़ से बचने के लिए अपनी सारी उपर कर ली थी & उसकी टाँगो की गोराई से मदहोश हो बाद मे उसने उसके घर पे उस से विदा लेने से पहले उसकी सारी उपर कर उसकी टाँगो का निचला हिस्सा चूम लिया था.सुमित्रा उस से छिटक गयी थी,कुच्छ शर्म..कुच्छ गुस्से से लेकिन उसकी निगाहो मे उस रोज़ पहली बार उसने मस्ती की चमक देखी थी.3 बार उसने अपना लंड हिलाया था उस रात सुमित्रा को याद करके..वो क्यू बार-2 बीती, मस्तानी यादों मे खो रहा था..सब इस लड़की के हुस्न का असर था!

“..मगर कुच्छ इत्तेफ़ाक़ यू हुआ कि हमारी 1-2 बार बातें हुई & फिर या तो उसे मेरा साथ ठीक लगा या फिर उसने मुझे फसाने के ख़याल से मुझसे मेल-जोल बढ़ाना शुरू किया.मुझे भी उस से बाते करना अच्छा लगता था & बस हम दोस्त बन गये.मुझे पता था कि अगले कस्बे मे बनी जैल के क़ैदियो को वो वो जैल के हवलदारो के साथ मिलके कुच्छ चीज़ें सुप्पलाई करता था मसलन गंजा,अफ़ीम या फिर छ्होटे चाकू या फिर कॉन..-“,उसने खुद को रोका.उसे उस लड़की से कॉंडम का ज़िक्र करना अजीब सा लगा.रंभा ने भी उसकी उलझन समझते हुए नज़रे नीची कर ली.ना जाने क्यू उसे भी उसके सामने थोड़ी शर्म आने लगी थी..ऐसा पहले तो कभी नही हुआ था..विजयंत के साथ भी उसे इतनी शर्म नही आई थी..फिर आज क्यू?

“यही था उसका काम?”,रंभा ने बात आगे बढ़ाई.

“हां या फिर वो कभी-कभार शहर से कुच्छ समान लाके गोपालपुर मे बेचता था जैसे कपड़े या जूते मगर 1 बात थी.वो कभी-कभार बिना बताए अचानक चला जाता था & जब लौटता था तो उन्ही सामानो के साथ जिन्हे वो बेचने को लाता था.लॉड्ज के मालिक ने 1 बार मुझे कहा था कि मैं उसके साथ ज़्यादा ना घुलु क्यूकी उसे वो ठीक आदमी नही लगता था.मैने हंस के बात टाल दी थी.अगर पता होता तो..”

“खैर..वो इतना समान लाता था कि 3-4 दिन मे बिक जाए & 1 बात और थी.मैने उसे वो समान बेचने के लिए बहुत परेशान होते या फिर उसका प्रचार करते उसे नही देखा.आमतौर पे कैसा भी कारोबारी हो,अपने धंधे को बढ़ाने के लिए वो ज़्यादा से ज़्यादा लोगो से मिल उन्हे उसके बारे मे बताना चाहता है लेकिन दयाल ऐसा नही करता था.”

“यानी कि वो ये सब बस दिखावे के लिए करता था.”,..लड़की खूबसूरत होने के साथ तेज़ भी थी..अगर सुमित्रा सच मे मेरी तरह दयाल की चाल की शिकार बनी तब तो ये मा पे बिल्कुल नही गयी है & नही तो फिर ये अपनी मा की ही बेटी है,”..मुझे तो यही लगता है कि शुरू मे तो उसने आपसे दोस्ती बस इसीलिए रखी थी ताकि कोई तो ऐसा हो जो उसे कस्बे के बारे मे & किसी भी नयी खबर के बारे मे बताता रहे.अपने छ्होटे-मोटे कामो के बारे मे बता या यू कहे की अपने कुच्छ मामूली से ‘राज़’ आपके साथ बाँट के उसने आपका भरोसा जीता & बाद मे जब मौका मिला तो उसने आपको फँसा दिया.देखिए,जिस तरह से आप पकड़े गये थे,उस से तो यही लगता है कि दयाल को भनक लग गयी थी कि पोलीस उसके लिए जाल बिच्छा रही है & उसने चालाकी से अपनी जगह उसमे आपको फँसा दिया.”

“हूँ..तो अब क्या कहन्ना है तुम्हारा..उसे कैसे ढूंडे?”

“जो तस्वीर आपके पास है वो बहुत पुरानी & खराब भी हो गयी है.बस अंदाज़ा भर लग पता है उसकी शक्लोसुरत का.”,रंभा सोचने लगी.उसे उस कामीने दयाल को ढूँढना ही था जिसकी वजह से उसकी मा की ज़िंदगी मे खुशियाँ आने से पहले ही वापस लौट गयी..उस हरम्खोर की वजह से उसकी मा की देवेन से शादी नही हुई..अगर वैसा हुआ होता तो शायद आज वो भी ऐसी ना होती..कही बहुत सुकून से 1 आम लड़की की ज़िंदगी जी रही होती,”..उस जैल मे काम करने वाले हवलदरो को नही खोज सकते क्या हम?..हो सकता है उन्हे कुच्छ पता हो उसके बारे मे?”

“रंभा..”,वो खड़ा हो गया,”..मैं तुम्हारे जज़्बात समझता हू लेकिन क्या तुम मेरा साथ दे पओगि इस काम मे?..तुम्हारी अपनी ज़िंदगी है..1 पति है..ऐसे मे..-“

“-..अपनी मा का नाम बेदाग रखने से ज़रूरी & कोई काम नही मेरे लिए & इसके लिए मैं कोई भी कीमत चुकाने को तैय्यार हू.”

“हूँ..”,लड़की की सच्चाई पे उसे अब बिल्कुल भी शुबहा नही था,”..ठीक है.मैं देखता हू कि आगे क्या हो सकता है.”

“ठीक है तो मैं चलती हू.आप मुझे फोन कीजिएगा.”

“ज़रूर.”

“ओके,बाइ!”,रंभा को समझ नही आया कि विदा कैसे ले & उसने अपना हाथ आगे कर दिया.देवेन ने उसका हाथ थामा & उस पल दोनो के जिस्मो मे जैसे कुच्छ दौड़ गया & दोनो की मिली नज़रो ने दोनो के दिलो तक 1 दूसरे के 1 जैसे एहसास के महसूस होने की बात पहुँचा दी.

समीर वापस आ गया था & उसका बदला रवैयय्या बरकरार था.ऐसा नही था कि वो रंभा से बिल्कुल ही बेरूख़् था लेकिन दोनो के रिश्तो मे वो पहले जैसी चाहत,वो गर्मजोशी नही रह गयी थी.रंभा को उसकी ये बात पसंद तो नही आ रही थी मगर उस से इस बात पे झगड़ वो बात बिगाड़ना नही चाहती थी.उसकी जिस्मानी ज़रूरतें तो प्रणव से पूरी हो रही थी & उसके दिमाग़ ने उसके पति को अपने काबू मे रखने की तरकीबो के बारे मे सोचना शुरू भी कर दिया था.

“समीर..”,उसने उसे पीछे से बाहो मे भर लिया & उसके कुर्ते के उपर से ही उसके सीने पे नाख़ून चलाए & उसके दाए कंधे को चूम लिया,”..1 बात कहु?”

“हां.”,समीर ने अलमारी मे अपनी घड़ी रख के उसे बंद किया & घूमा तो रंभा ने उसके गले मे अपनी बाहे डाल दी.समीर ने भी अपने हाथ उसकी कमर पे रख दिए.रंभा आयेज बढ़ी & उसके जिस्म से बिल्कुल सॅट गयी.समीर अपनी पत्नी से कितना भी बेरूख़् क्यू ना हो गया हो था तो वो 1 मर्द ही.रंभा के कोमल जिस्म की हरारत ने उसके बदन की गर्मी भी बढ़ा दी & उसकी कमर पे रखे हाथ पीछे गये & उसकी पीठ को घेरते हुए उसे अपने जिस्म से और सतने लगे.

“डार्लिंग,मैं कुच्छ काम करना चाहती हू.”,रंभा उसके सीने को चूम रही थी & उसके हाथ पति के गले से उतार उसके कुर्ते मे घुस उसके पेट पे घूम रहे थे.

“कैसा काम?”,समीर के हाथ भी बीवी की निघट्य को उठा उसकी गंद को मसल रहे थे.रंभा ने जानबूझ के नाइटी के नीचे कुच्छ नही पहना था.समीर के हाथ जैसे ही उसकी मुलायम त्वचा से सटे उसका लंड पूरा तन गया & उसने जोश मे भर बीवी को खुद से और सटा लिया.

“ऊव्ववव..आराम से,मेरी जान..कही भागी थोड़े जा रही हू..आख़िर बीवी हू तुम्हारी!”,रंभा उसके पैरो पे खड़ी हो गयी & उचक के उसके होंठ चूम लिए.समीर ने फ़ौरन उसकी गंद को मसल्ते हुए उसके मुँह मे अपनी जीभ घुसा दी,”..उउम्म्म्म..घर मे बैठे-2 ऊब जाती हू..उउफफफ्फ़..इसीलिए सोचा कि कुच्छ काम ही कर लू..”,समीर के हाथ उसकी गंद से उपर उसकी नंगी पीठ पे चल रहे थे & रंभा भी मस्त हो गयी थी.रंभा ने हाथ नीचे ले जाके पति के पाजामे की डोर खींच दी & उसके लंड को पकड़ लिया.सच बात तो ये थी कि विजयंत मेहरा के बाद उसे कोई भी लंड उतना कमाल का नही लगा था & फिर समीर का लंड तो बाप के लंड के मुक़ाबले काफ़ी छ्होटा था मगर फिर भी था तो 1 लंड ही वो भी उस पति का जिसे वो फिर से जीतने की कोशिश कर रही थी,”..आपकी कंपनी मे कोई नौकरी मिलेगी,सर?”,रंभा नीचे बैठ गयी & बड़ी मासूम निगाहो से पति को देखा & फिर लंड के सूपदे को अपने गुलाबी होंठो से पकड़ लिया.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:40 PM,
#53
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--52

गतान्क से आगे......

“उउन्नगज्गघह..!”,रंभा ने यूस्क

समीर को उसकी इस अदा पे हँसी आ गयी,”कैसी नौकरी चाहिए तुम्हे?”,रंभा ने उसके अंडे दबाए & उसके लंड को हिलाते हुए चूसा.

“कैसी भी..”,उसने लंड को निकाला & बाए गाल पे रगड़ा,”..आपकी सेक्रेटरी की नौकरी भी चलेगी.”,उसने लंड को मुँह मे भर ज़ोर से चूसा.समीर हंसा & उसे उठाया & उसकी नाइटी निकल दी.रंभा ने भी उसका कुर्ता निकाल फेंका.समीर ने उसे बाहो मे भरा & चूमते हुए कमरे के कोने मे रखी अपनी स्टडी टेबल पे बिठा दिया.रंभा ने अपनी टाँगे फैला दी & अपने पति की कमर को बाहो मे कसते हुए उसके लब से अपने लब लगा दिए.

“वो जगह तो खाली नही है.कोई & नौकरी चलेगी?”,समीर उसकी गर्दन चूम रहा था & उसके हाथ उसकी छातियों को गूँध रहे थे.

“कहा ना सर,कोई भी नौकरी चलेगी..हाईईईईईईईईईईई..!”,समीर ने आगे बढ़ते हुए उसकी गीली चूत मे लंड घुसा दिया था.अचानक हुए इस हमले से रंभा ने दर्द से आह भरी & पति की गंद मे नाख़ून धंसा दिए,”..जानू,1 बात बोलू?”

“बोलो ना!”,समीर उसकी कसी चूत मे लंड घुसा के मस्ती मे उसके हसीन चेहरे पे अपनी जीभ फिरा रहा था.उसके हाथ तो रंभा की मखमली पीठ & मांसल कमर को छ्चोड़ना ही नही चाह रहे थे.

“मुझे फिल्म प्रोडक्षन मे काम दे दो ना!बड़ा मन करता है मेरा फिल्मी सितारो को करीब से देखने का..आननह..ज़ालिम कहीं!..काटो नही..ऊव्वववव..मैं भी काटुगी..ये लो..!”,समीर उसके निपल्स को दांतो से हल्के-2 काट रहा था तो रंभा ने भी जवाब मे उसके कान पे काट लिया.कितने दिनो बाद वो समीर के साथ अपने रिश्ते के शुरुआती दिनो की तरह चुदाई कर रही थी.समीर ने उसकी छातियो को हाथो मे पकड़ा & उसके खुद को काटते दांतो को रोकने के लिए उसके होंठो को अपने होंठो से बंद कर दिया.थोड़ी देर तक पति-पत्नी 1 दूसरे को बाहो मे भरे,चूमते हुए बस लंड के चूत मे अंदर-बाहर हो चूत की दीवारो को रगड़ने का लुत्फ़ उठाते रहे.

“हाईईईईईईईईईईईईईईईई....समीईईईईईररर्र्र्र्र्र्ररर............हााआअन्न्‍नननननणणन्..बस थोड़ी दे और......ऊहह....!”,रंभा उसकी पीठ & गंद पे बेसबरे हाथ फिराती मस्ती मे बोल रही थी & समीर भी उसके रेशमी जिस्म पे हाथ चलते हुए उसके चेहरे से लेके सीने तक को अपने होंठो से महसूस करते हुए गहरे धक्के लगा रहा था,”..ओईईईईईईईईई..माआआआआआआ..!”,रंभा के होंठ चीखने के बाद गोल हो खामोश हो गये,उसके चेहरे पे दर्द का भाव था लेकिन उस मस्ताने,मीठे दर्द का जिसकी चाहत हर लड़की को होती है.उसका सर पीछे झुका हुआ था & जिस्म पति की बाहो मे झूल रहा था.उसके जिस्म मे खुशी की वोही लहर दौड़ रही थी जो चुदाई के अंजाम पे पहुचने पे पैदा होती है & जिसे लोग झड़ना कहते हैं.उसकी बाई चूची के उपर होंठ चिपकाए,उसके उपर अपनी चाहत का निशान बनाते हुए आहे भरता समीर भी झाड़ रहा था.

“मेरी जान,कल ही से फिल्म कंपनी जाय्न कर लो.”,वो बीवी के चेहरे को चूम रहा था.

“..उउम्म्म्म..& काम क्या होगा मेरा?”,रंभा को बहुत सुकून मिला था & वो भी समीर के जिस्म को सहला रही थी.समीर ने उसे वैसे ही गोद मे उठा लिया & बिस्तर पे ले आया.रंभा उठी & चादर खींच दोनो के जिस्मो पे डाली & उसके सीने से लग गयी.

“जो दिल मे आए वो करना मेरी जान..”,उसने उबासी ली & उसे खुद से थोड़ा और चिपकाते हुए आँखे बंद कर ली,”..आख़िर कंपनी की मालकिन हो तुम.”

“थॅंक्स,डार्लिंग!आइ लव यू!”,रंभा ने उसे चूम लिया.

“हूँ.”,समीर की आँखे बंद थी & वो नींद के आगोश मे चला गया था.

ट्रस्ट फिल्म्स के सीओ को समीर ने हिदायत दे दी थी कि उसकी बीवी को कंपनी मे जो भी मर्ज़ी हो काम करने दिया जाए,साथ ही उसने उसे भरोसा भी दिलाया था कि रंभा की वजह से उसके काम मे कोई अड़चन नही आएगी.सीओ भी जानता था कि राईस्ज़ादे की बीवी घर मे बैठी ऊब गयी होगी तो उसे ये नया शौक चर्राया है जोकि कुच्छ दिनो मे पूरा हो जाएगा.उसने भी रंभा की चापलूसी मे कोई कसर नही छ्चोड़ी लेकिन हफ़्ता बीतते वो समझ गया कि ये लड़की यहा वक़्त काटने के लिए नही आई थी.

रंभा उसके काम मे दखल नही डालती थी & वो बस फिल्म बनाने के तरीके को गौर से देख उसे सीखने की कोशिश कर रही थी.ट्रस्ट फिल्म्स इस वक़्त 3 फिल्म्स पे काम कर रहा था.पहली फिल्म बन चुकी थी & पोस्ट-प्रोडक्षन मे थी.रंभा ने 1 दिन जाके ये देखा कि डाइरेक्टर,एडिटर,बॅकग्राउंड म्यूज़िक डाइरेक्टर वग़ैरह के हाथो मे पूरी शूट की हुई फिल्म किस तरह उस रूप मे आती है जिसे हम सिनिमा हॉल मे देखते हैं.दूसरी फिल्म की शूटिंग वही ट्रस्ट स्टूडियोस मे ही चल रही थी.वाहा जाने पे रंभा ने देखा की आख़िरकार फिल्म शूट कैसे होती है.

वही वो कामया से टकराई.कामया ने तो उस से गर्मजोशी से मुलाकात की लेकिन रंभा ने उस से कोई खास बातचीत नही की.इसी चिड़िया के पर काटने के इरादे से तो वो यहा आई थी.उसने डाइरेक्टर से फिल्म के बारे मे काफ़ी तफ़सील से बात की & उसके पैने दिमाग़ ने भाँप लिया कि अगर बस थोड़ी सी फेर बदल की जाए तो साइड हेरोयिन का रोल,जोकि कामया से ज़्यादा अच्छी अदाकारा थी,थोड़ा सा बढ़ाया जाए तो 1 तरफ कामया का रोल थोड़ा घटेगा भी & फिल्म मे थोड़ा निखार भी आ जाएगा.वो जानती थी कि कामया 1 स्टार है जिसके करोड़ो चाहनेवाले हैं & ट्रस्ट फिल्म्स अपने मुनाफ़े के लिए उसके स्टारडम को भुनाने की कोशिश तो करेगी ही लेकिन अब नही.बस कुच्छ ही दिनो की बात थी उसके बाद रंभा कामया को उसके पति को उस से बेरूख़् करने की सज़ा ज़रूर देगी.

तीसरी फिल्म की स्क्रिप्ट लगभग तैय्यार थी & डाइरेक्टर अब उसकी शूटिंग के लिए जगहो की तलाश शुरू करने वाला था रंभा ने खुद को इसी फिल्म से जोड़ने का फ़ैसला किया.वो 1 पूरी फिल्म को काग़ज़ के सफॉ पे 1 कहानी के होने से लेके उसके फिल्मी पर्दे पे रिलीस करवाने तक के सारे काम-काज का हिस्सा बन उसे अच्छे से समझ लेना चाहती थी.उसने कंपनी के उस आदमी से बात की जो फिल्म का एग्ज़िक्युटिव प्रोड्यूसर था & उसने उसे समझाया कि फिल्म की स्क्रिप्ट के हिसाब से लोकेशन कैसे ढूँढनी है.

डाइरेक्टर,राइटर,कॅमरमन,आक्टर्स सब की राइ के साथ कुच्छ जगहो को चुना जाता था शूटिंग के लिए.रंभा ने सब से पहले इसी काम का हिस्सा बनना तय किया.

“हेलो,मैं देवेन बोल रहा हू.”

“हाई!कैसे हैं आप?”

“क्या बात है?तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना?”

“हां-2.क्यू?”

“नही,तुम्हारी आवाज़ से लगा जैसे तुम नसाज़ हो.”,रंभा समीर के साथ पिच्छली रात 1 पार्टी मे गयी थी.वाहा प्रणव ने उसे 1 कोने मे खींच लिया & उसे चूमने लगा.तभी रंभा के कानो मे 1 जानी-पहचानी आवाज़ सुनाई दी-कामया की आवाज़.प्रणव उसके क्लेवगे को चूमने मे मशगूल था & उसने वो आवाज़ नही सुनी थी.रंभा ने उसे फुसला के वापस पार्टी मे भेजा & खुद उस आवाज़ की ओर चल पड़ी.

पार्टी 1 होटेल के बॅंक्वेट हॉल मे थी & रंभा उस से डोर 1 गलियारे मे प्रणव के साथ खड़ी थी.गलियारा आगे जाके बाई तरफ घूम रहा था & आवाज़ उसी तरफ से आ रही थी.प्रणव को वाहा से भेज उस गलियारे के मोड़ पे गयी & छुप के देखा & उसे कामया के साथ समीर बात करता दिखा.

“..समझने की कोशिश करो,डार्लिंग अभी हम शादी नही कर सकते.डॅड की मौत से पहले ही कंपनी के स्टॉक्स पे असर पड़ा.अब मानपुर वाला टेंडर अभी भरा है.ऐसे मे उसे तलाक़ दे तुमसे शादी करूँगा तो 1 स्कॅंडल तो होगा ही & ये बात ग्रूप के लिए & नुकसानदेह होगी.फिर इतनी जल्दी तलाक़ मिलेगा भी नही.”

“समीर,तुम मुझे धोखा देने की कोशिश कर रहे हो ना?..”,कामया रुआंसी थी,”..बस तुम्हारा मतलब निकल गया &..”,कामया सुबकने लगी.

“बिल्कुल नही,जान.आइ लव यू!”,समीर उसे बाहो मे भर रहा था,”..मैं मना नही कर रहा तुम्हे बस इंतेज़ार करने को कह रहा हू.”

“तो फिर तुमने उसे कंपनी की मालकिन क्यू बना दिया है?”,कामया ने उसके हाथ झटक दिए.

“मालकिन कहा है वो!घर मे बैठी ऊब रही थी तो उसे वाहा दिल बहलाने को भेज दिया,मेरी जान.कुच्छ दिन इंतेज़ार करो.उस वक़्त तक तुम्हे उसे झेलना पड़ेगा & उसके लिए मैं तुमसे माफी चाहता हू.मानपुर वाला टेंडर तो हमे ही मिलना है पर अभी वो मिला नही है.1 बार वो मिल जाए तो फिर ग्रूप की पोज़िशन & मज़बूत हो जाएगी,फिर रंभा को चलता करूँगा & तुम बनोगी म्र्स.मेहरा.”

“प्लीज़ समीर,अपने वादे निभाना वरना मर जाऊंगी मैं!”,दोनो प्रेमी 1 दूसरे के आगोश मे थे.रंभा का दिल बहुत ज़ोरो से धड़कने लगा था..आख़िर क्यू?..क्यू शादी की थी समीर ने उस से?..& ये कामया से प्यार उसे हुआ कब?..पंचमहल मे कितने खुश थे दोनो..ये कामया आख़िर आई कब उसके पति की ज़िंदगी मे?

“चलो,पार्टी मे चलें.कही कोई हम मे से किसी 1 को ढूंढता हुआ यहा ना आ पहुँचे.”,रंभा ने उनकी बात सुनी तो तेज़ी से वाहा से निकल गयी.इसी बात से वो उदास और परेशान थी & इन्ही भाव को देवेन ने उसकी आवाज़ मे भाँप लिया था.

“जी,बस कल रात सोने मे देर हो गयी थी.नींद पूरी ना होने की वजह से थोड़ी सुस्ती है.”

“ओह,अच्छा मैने ये बताने को फोन किया था कि दयाल के बारे मे 1 सुराग तो मिला है मगर उसके लिए क्लेवर्त के पास के किसी गाँव मे जाना पड़ेगा.

“ओह,तो आप जा रहे हैं वाहा?”

“हां.”

“हूँ.मैं कर दू वाहा जाने का इंतेज़ाम या 1 मिनिट..मुझे भी उस तरफ तो जाना है.”

“अच्छा,क्यू?”

“वो 1 फिल्म के सिलसिले मे.”

“फिल्म?!”

“हां,आप यहा आके मुझसे मिलिए तो सब बताती हू.”

“ठीक है.”

टोयोटा फोरटुनेर उबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्ते पे उच्छलती-कूड़ती बढ़ी जा रही थी.उस बड़ी,भारी गाड़ी को उस टूटे रास्ते पे संभाल के मगर तेज़ी से चलाने मे रंभा को काफ़ी मज़ा आ रहा था.साथ की सीट पे बैठे देवेन ने उसे मुस्कुराते हुए देखा..अपनी मा की झलक थी इसमे लेकिन उस से कितनी अलग थी..कहा वो चुप-चाप रहने वाली सीधी-सादी लड़की & कहा ये बेबाक,भरोसे से भरी हुई लड़की!

देवेन गोपालपुर के पास की उस जैल मे गया था जहा दयाल क़ैदियो को चोरी से समान बेचा करता था.उस जैल से उसने उस वक़्त के जैल के अफसरो के नाम निकलवाए थे.उसकी किस्मत अच्छी थी कि उनमे से रिटाइर्ड अफ़सर वही रहता था.जब देवेन उस से मिला और दयाल के बारे मे पुछा तो उस भले आदमी ने देवेन को उन 4 लोगो के बारे मे बताया जिनके साथ मिल के वो ये काम किया करता था.देवेन ने उन चारो की तलाश शुरू कर दी लेकिन पहली 2 कोशिशो मे वो नाकाम रहा.

उसकी फेहरिस्त मे पहला नाम जिस शख्स का था वो मर चुका था & दूसरा अपने बेटे के साथ विदेश चला गया था.अब वो रंभा के साथ फेहरिस्त के तीसरे शख्स की तलाश मे क्लेवर्त के पास के 1 गाँव सनार जा रहा था.उसे पता चला था कि बालम सिंग नाम का वो शख्स वाहा मशरूम की खेती करता था.

रंभा ट्रस्ट फिल्म्स की अगली फिल्म की लोकेशन स्काउटिंग के लिए क्लेवर्त के आस-पास के इलाक़े का मुआयना करने आई थी.समीर डेवाले मे ही था & रंभा ने पता कर लिया था कि कामया शूटिंग के लिए स्विट्ज़र्लॅंड गयी है & 15 दिनो से पहले वापस नही आनेवाली.उसे अपने पति का उस से मिलने का कोई डर नही था & इसी का फ़ायदा उठाके वो अपनी मा & उसके प्रेमी को धोखा देने वाले शख्स का पता लगाने के लिए देवेन के साथ निकल पड़ी थी.

लोकेशन स्काउटिंग के लिए फिल्म के राइटर के साथ 1 असिस्टेंट डाइरेक्टर,असिस्टेंट कॅमरमन & वो आए थे.डाइरेक्टर कॅमरमन & 2 & लोगो के साथ कोई & जगह देखने गया था.ये रंभा का ही सुझाव था कि डाइरेक्टर अपनी पसंदीदा जगह देख आए & वो शॉर्टलिस्ट की बाकी जगहो को देख उसे रिपोर्ट दे देगी & फिर डाइरेक्टर फ़ैसला ले लेगा कि उसे कहा शूटिंग करनी थी.इस तरह से वक़्त की बचत हो रही थी.रंभा ने कल ही काम ख़त्म किया था & अपनी रिपोर्ट लिख के डाइरेक्टर के असिस्टेंट को दे दी थी इस हिदायत के साथ को उसे अपने बॉस को दे दे.उसके बाद वो देवेन के साथ निकल पड़ी थी.

"शाम गहरा रही है..",देवेन ने खिड़की से बाहर आसमान को देखा,"..बेहतर होगा कि आज की रात यही किसी गाँव मे गुज़ार लें."

"हूँ..लेकिन यहा रहने की जगह कैसे मिलेगी?",रंभा ने देखा दूर कुच्छ बत्तियाँ टिमटिमा रही थी & उसने कार उधर ही बढ़ा दी.

"कुच्छ ना कुच्छ तो मिल ही जाएगा.",थोड़ी देर बाद कार 1 छ्होटे से गाँव मे थी.रंभा ने कार गाँव के बाज़ार मे लगाई जहा सिर्फ़ 4 दुकाने थी.1 किराने की,1 हलवाई की,1 लोहार की & 1 कोयले की.इस वक़्त केवल किराने की & हलवाई की दुकाने खुली थी लेकिन लग रहा था कि वो भी बस बंद करने ही वाले हैं.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:40 PM,
#54
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--53

गतान्क से आगे......

"क्यू भाई यहा कही रहने को जगह मिलेगी?",देवेन ने किराने वाले से 1 माचिस खरीदी.वो अपना लाइटर अपने होटेल के कमरे मे भूल आया था & रास्ते मे रंभा के साथ की वजह से उसने 1 भी सिगरेट नही पी थी & अब उसका हाल बुरा था.उसने सिगरेट सुलगा के 1 लंबा कश भरा & फिर सुकून से धुएँ को बाहर छ्चोड़ा.

"यहा कहा साहब..हां,सनार मे मिल जाएगा होटेल."

"फिर भी यार कुच्छ तो इंतेज़ाम होगा..कोई धर्मशाला,कोई सराई?"

"नही साहब यहा तो कुच्छ भी नही मिलेगा.वैसे आप यहा क्या करने आए हैं?",दुकानदार ने दुकान से थोड़ा हटके कार से टेक लगाके खड़ी रंभा को देखा.कसी जीन्स & बिना बाज़ू के टॉप मे रंभा के जिस्म के सारे कटाव उभर रहे थे.

"यहा नही हम तो सनार ही जा रहे थे लेकिन अंधेरा होने लगा तो सोचा रात यही गुज़ार लें.",देवेन को उसका रंभा को यू घूर्ना अच्छा नही लगा & उसे बहुत गुस्सा आया.उसका दिल किया कि उसी वक़्त उसे 4-5 झापड़ रसीद कर दे!मगर अपने गुस्से पे काबू रखते हुए वो थोड़ा दाई तरफ हो गया ताकि रंभा उस किरनेवाले की ललचाई निगाहो से च्छूप जाए.

"तो साहब..यहा तो..",वो सोचने लगा,"..अच्छा चलिए,मैं मुखिया जी के पास ले चलता हू.वो कुच्छ ना कुच्छ कर ही देंगे.",रंभा ने हलवाई से उसके बचे-खुचे समोसे खरीद लिए थे & खाने लगी थी.दुकान बंद कर वो दुकानदार देवेन के साथ उसके करीब आए तो उसने पत्ते का डोना उनकी ओर बढ़ा दिया.देवेन ने मना किया तो रंभा ने मुस्कुराते हुए दुकानदार को समोसे पेश किए.दुकानदार की तो जैसे किस्मत खुल गयी & वो बेवकूफो की तरह हंसते,शरमाते हुए समोसा उठा खाने लगा.

गाँव मे मुश्किल से 30 घर होंगे & दुकानदार उन्हे वाहा के सबसे बड़े घर मे ले गया.मुखिया वही रहता था मुखिया 70 बरस का बिल्कुल बुड्ढ़ा शख्स घर के अंदर आँगन मे बैठा हुक्का गुदगुदाता खांस रहा था.

"आप दोनो हो कौन?",देवेन ने रंभा को देखा & रंभा ने देवेन को.अभी तो दोनो ने अपना नाम बताया था,"..देखो,जगह तो मिल जाएगी लेकिन ये बताओ कि दोनो क्या लगते हो 1 दूसरे के?",देवेन नही समझा मगर रंभा उसके सवाल का मतलब समझ गयी.

"ये मेरे पति हैं.हम दोनो सनार जा रहे हैं क्यूकी सुना है वाहा कोई विदेशी सब्ज़ी की खेती होती है & उसके आगे जाके 1 छ्होटी पहाड़ी नदी भी है ना जोकि बहुत खूबसूरत है उसी को देखने जा रहे हैं.हमारे होटेल है ना शहर मे तो सोचा कि देखे शायद वाहा से कुच्छ सस्ती सब्ज़ियाँ हमे सप्लाइ हो सकें.",देवेन उसके जवाब से चौंक गया & फ़ौरन पलट के उसे देखा.

"हा-हां..",बुड्ढे की नज़र अब उसी पे थी.उसने झट से झूठ बोला और 1 सिगरेट सुलगा ली.पिच्छली उसने घर मे घुसने से पहले फेंक दी थी.

"हूँ..आओ.",तीनो उठे तो बुड्ढे ने किसी नौकर को आवाज़ दी.रंभा ने अपनी बाई बाँह देवेन की दाई बाँह मे फँसा दी.उसने तो ऐसा बुड्ढे को ये यकीन दिलाने के लिए किया था कि दोनो पति-पत्नी हैं लेकिन उसे बिल्कुल अंदाज़ा नही था कि उसके जिस्म मे बिजली का करेंट दौड़ जाएगा.उसके दिल मे गुस्ताख अरमानो ने अंगड़ाई ली & उसने अपने चेहरे को देखते देवेन की निगाहो से शर्मा के अपना मुँह फेर लिया.देवेन भी उस खूबसूरत लड़की के मुलायम,महकते एहसास से मदहोश हो गया था.उसके जिस्म के रोएँ खड़े हो गये थे & धड़कन तेज़ हो गयी थी.रंभा को कुच्छ औरतो की दबी हँसी की आवाज़ सुनाई दी.उसने गर्दन घुमाई तो 1 पर्दे की ओट से 2-3 औरतें खड़ी दिखी.वो मुस्कुराइ & 'अपने पति' के साथ मुखिया & उसके नौकर के पीछे हो ली.

"मुखिया जी,आपके गाँव का नाम क्या है?"

"हराड.",मुखिया इतनी उम्र के बावजूद बिना सहारे के बिल्कुल सीधा चल रहा था.

"बहुत सॉफ-सुथरा है & बिजली भी है यहा तो."

"हां.मुझे कूड़ा-कचरा नही पसंद तो सभी को हिदायत देता रहता हू & बिजली के लिए तो पुछो मत कितना भागना-दौड़ना पड़ा.",चारो गाँव मे & अंदर आ गये थे.नौकर 1 घर के तले को खोल रहा था,"..आओ यहा बैठो.जब तक ये अंदर सॉफ-सफाई कर ले.ये मेरे छ्होटे भाई का घर है.वो यहा नही रहता.",दोनो घर के बाहर की सीढ़ियो पे बैठ गये.

"खाना हमारे साथ ही खाना.यहा कोई परेशानी नही होगी,आराम से सोना.",बुड्ढे ने मुस्कुराते हुए देवेन को देखा & 'सोने' पे ज़ोर दिया.देवेन ने कोई जवाब नही दिया & बस सिगरेट फूंकता रहा.रंभा के गाल उस बात से थोड़े सुर्ख हो गये लेकिन दिल मे 1 उमंग भी उठी.थोड़ी ही देर मे नौकर ने सब सॉफ कर दिया था.

सभी अंदर गये तो देखा की आँगन के बाद 1 बड़ा सा कमरा था जिसमे बड़ी आरामदेह कुर्सियाँ & 1 मेज़ थी & दूसरे मे 1 बिस्तर था जोकि थोड़ा छ्होटा था.उसपे 2 आदमी तो सो सकते थे लकिन फिर दोनो के जिस्मो का टकराने से बचना नामुमकिन था.उस बिस्तर को देख रंभा का दिल धड़क उठा.1 तरफ 1 गुसलखाना बना था जिसमे बल्टियो नौकर ने कुएँ से लाके पानी रख दिया था.देवेन किराने की दुकान के सामने खड़ी कार को उस घर के बाहर ले आया तो नौकर ने उस से उनका समान उतार के अंदर रख दिया.फिर वो वापस मुखिया के घर गया & 1 लालटेन जला के वाहा रख दी.

"अभी 2-3 घंटे के लिए जाएगी बिजली.रोज़ ही जाती है.",मुखिया ने उसकी सवालिया निगाहो को देख जवाब दिया.

"अच्छा,चलता हू..",देवेन मुखिया को बाहर तक छ्चोड़ने आया.नौकर उनसे दूर खड़ा था,"..नहा-धो के खाना खाने आ जाना.हम ज़रा जल्दी सो जाते हैं.वैसे तुम्हे भी जल्दी ही होगी सोने की?",मुखिया फिर दोहरे मतलब वाली बात बोल के हंसा.देवेन भी बस हंस दिया,"..मेरी तरह तुम भी असल मर्द हो.उम्र का हम जैसो पे कोई असर नही पड़ता.मैं तुम्हे कुच्छ उपाय बताउन्गा ताकि जब मेरी उम्र मे पहुँचो तो भी ये दम-खम बरकरार रहे."

"नही,मुझे ज़रूरत नही.",देवेन को अब उस बुड्ढे की बातें हद्द से बाहर जाती दिख रही थी लेकिन वो उसे नाराज़ नही करना चाहता था.

"पक्के मर्द हो!",बुड्ढ़ा फिर हंसा,"..अपनी मर्दानगी के आगे जाके कमज़ोर होने की बात से तिलमिला गये?..कोई बात नही पर मैं बताउन्गा तुम्हे उपाय.भरोसा करो,आगे जाके बहुत काम आएँगे तुम्हे.अच्छा चलो जाके नहा लो.मैं खाने पे इंतेज़ार करूँगा.जल्दी आना.असल मे मैं ज़रा जल्दी सोता हू.",बुड्ढे ने सोता लफ्ज़ पे फिर ज़ोर दिया & हंसता हुआ नौकर के साथ चला गया.देवेन कुच्छ देर उसे जाते देखता रहा & फिर अंदर आ गया.

“तुमने उस मुखिया से ये क्यू कहा कि हम..हम पति-पत्नी हैं?”,देवेन & रंभा उस मुखिया के घर खाना खाने जा रहे थे.रंभा अभी भी जीन्स पहने थी बस उपर का टॉप बदल लिया था.अब उसने 1 काली वेस्ट पहन ली थी जिसमे उसकी बड़ी छातियो का आकार सॉफ उभर रहा था.देवेन को ये अच्छा तो नही लगा था क्यूकी वो जानता था कि अब वाहा के मर्द उसे और घुरेंगे.

“ऐसा ना कहती तो हमे रहने की जगह नही मिलती.अगर मैं सही बात बताती तो उसे लगता हम झूठ बोल रहे हैं & वो हमे चलता कर देता ताकि यहा रुक के हम यहा के माहौल को ना ‘बिगाड़े’.”,रंभा हँसी.दोनो मुखिया के घर की दहलीज़ पे थे.चाँद की रोशनी मे रंभा का खूबसूरत चेहरा चमक रहा था.देवेन का दिल किया की उसके गाल को चूम ले..अभी उसका हाथ पकड़ उसे वापस उस घर मे ले जाए & उसके हुस्न को करीब से देखे..बहुत करीब से..उतने करीब से जितना 1 मर्द & औरत के लिए संभव होता है..रंभा सीढ़िया चढ़ रही थी.देवेन का हाथ आगे बढ़ा लेकिन तब तक अंदर से कोई बाहर आ गया था.

“ये मेरी पत्नी है.”,बमुश्किल 20 बरस की 1 लड़की आगे तक घूँघट गिराए खाना परोस रही थी.रंभा तो खाते-2 चौंकी & देवेन भी.बुड्ढ़ा देवेन की ओर देख मुस्कुराया,”..यहा पास के जंगल मे बड़ी ज़ोरदार बूटियाँ होती हैं.मैं कल तुम्हे दूँगा..”,वो उसके कान मे फुसफुसाया,”..जैसे बताउन्गा वैसे लेना तो ये..”,उसका इशारा रंभा की ओर था,”..पूरी ज़िंदगी तुम्हारी बाँदी बन के रहेगी जैसे मेरी घरवाली है.”,दोनो का खाना ख़त्म हो गया था & दोनो उठ के हाथ धोने जा रहे थे,”..गाँव के कयि नौजवान इसे खराब करने के चक्कर मे लगे रहते हैं..”,1 नौकर लोटे से उनके हाथ धुल्वाने लगा,”..लेकिन मेरी मर्दानगी के नशे मे डूबी इसकी आँखो को वो लंगूर दिखते ही नही!”,वो हंसा तो देवेन भी 1 फीकी हँसी हंस दिया.उसकी बातें उसे असहज कर रही थी & उसका दिल रंभा के नंगे जिस्म के उस से लिपटे होने का तस्साउर करने लगा था.

“वो तो उसकी पोती के बराबर है!”,दोनो खाना खा के लौट रहे थे,”..कैसे शादी हुई होगी इनकी?!”,रंभा बोले जा रही थी.दोनो घर तक पहुँचे ही थे कि रंभा के पैर मे कुच्छ ठोकर लगी & वो गिर गयी,”आउच!”

“क्या हुआ?!..ठीक तो हो?”,देवेन ने उसे सहारा दे के उठाया & फिर जेब से निकाल के मोबाइल ऑन किया.उसकी रोशनी के सहारे दोनो घर के अंदर पहुँचे तो देवेन उसे सीधा उस कमरे मे ले गया जहा बिस्तर लगा था,”देखु,कहा चोट आई है.”रंभा के बदन के दाए हिस्से पे धूल लगी थी जिसे वो झाड़ रही थी,”..पाँव मे लगी है लगता है.”,वो झुक के बैठ गया & रंभा का दाया पाँव उठा लिया.रंभा के जिस्म मे झुरजुरी दौड़ गयी & उसके मुँह से हैरत भरी आह निकल गयी.

देवेन ने उसके पाँव को बाए हाथ मे थामा हुआ था & दाए से वो धीरे-2 उसपे लगी धूल हटा रहा था.पाँव मे हल्की खरॉच आई थी & सबसे छ्होटी उंगली मे कुच्छ चुभा भी दिख रहा था.रंभा के जिस्म को छुते ही उसके भी अरमान जाग उठे थे..कितनी कोमल त्वचा है इसकी..कितने खूबसूरत & नाज़ुक पाँव..जी करता है चूम लू इन्हे..रंभा की भी साँसे तेज़ हो गयी थी. देवेन ने उसके पाँव को थोड़ा & करीब से देखा.छ्होटी उंगली मे 1 काँटा चुबा था.उसने पाँव को दाए हाथ मे पकड़ा & बाए से काँटे को खींचा.देवेन ने उसके पाँव को ज़मीन पे रखा & उसकी दाई टाँग पे जीन्स की सीम के उपर नीचे से उपर तक बहुत ही धीमे से अपने दाए हाथ की 1 उंगली चलाई.रंभा ने माथा दीवार से लगा लिया.उसके दिल मे उमँगो की लहरें अब बहुत तेज़ी से उमड़ रही थी.देवेन उसकी मा से बेइंतहा प्यार करता था,ये जानते ही उसके दिल मे उसके लिए इज़्ज़त पैदा हो गयी थी & लगाव भी.वो पहले दिन से ही उसके साथ केवल सुमित्रा के नाम से जुड़ी ग़लतफहमी को दूर करने के लिए नही हुई थी.उसके दिन ने उस से कहा था कि उस भले इंसान की मदद करके ही उसका शुक्रिया अदा करे.मगर अभी जो हो रहा था उसे वो बिल्कुल भी ग़लत या बुरा नही लग रहा था.

“हान्न्न्ंह..!”,रंभा मामूली से दर्द & बड़ी सी कसक से आहत हो गयी थी.रात के वक़्त,चारो तरफ फैली खामोशी मे 1 घर मे,1कमरे मे उन दोनो का तन्हा होना-रोमानी माहौल ने उसके उपर असर करना शुरू कर दिया था.खून की 1 बहुत छ्होटी सी बूँद उसकी गोल सी उंगली पे दिख रही थी.देवेन ने उस काँटे को किनारे किया & रंभा के पाँव को थोड़ा उपर उठाया.वो सहारे के लिए पीछे की दीवार से टिक गयी.उसकी निगाहे अपनी मा के प्रेमी पे ही जमी हुई थी.देवेन का चेहरा अब उसके पाँव के इतने करीब था कि वो उसकी गर्म साँसे महसूस कर रही थी.

“आहह..!”,वो थोडा & झुका था & उसकी उंगली को मुँह मे भर खून की उस बूँद को चूस लिया था.रंभा के जिस्म मे बिजली दौड़ गयी थी.उसकी चूत मे कसक उठने लगी थी & उसके होंठ देवेन के होंठो की तमन्ना मे काँपने लगे थे.कुच्छ पल बाद देवेन ने उसकी उंगली को मुँह से निकाला तो खून बंद हो गया था.उसने उपर देखा & मस्ती से भरी 2 काली-2 आँखो से उसकी नज़रें टकराई.उसने उसे देखते हुए उसके पाँव को चूमा & उसके अन्द्रुनि हिस्से पे 1 उंगली फिराई.रंभा को ना जाने क्यू शर्म आ गयी.उसे बिल्कुल वैसा महसूस हो रहा था जैसा विजयंत के साथ पहली रात महसूस हुआ था.वो घूमी & दीवार की ओर मुँह कर खड़ी हो गयी.देवेन की नज़रो के सामने काली जीन्स मे कसी उसकी चौड़ी,पुष्ट गंद आ गयी.

उसने उसके पाँव को ज़मीन पे रखा & बहुत हौले से उसकी दाई टांग के बाहरी हिस्से पे,नीचे से लेके उपर तक जीन्स की सीम पे अपने दाए हाथ की 1 उंगली चलाई.रंभा के दिल मे उमड़ रही हसरतें अब तूफ़ानी लहरो की शक्ल इकतियार कर रही थी.उसने अपना माथा दीवार से लगा लिया था & देवेन की अगली हरकत का इंतेज़ार कर रही थी.देवेन के लिए उसके दिल मे जगह तो तब ही बन गयी थी जब उसे पता चला था कि वो उसकी मा से बेइंतहा मोहब्बत करता था.वो उसके साथ केवल इसीलिए नही आई थी क्यूकी वो सुमित्रा के नाम के साथ जुड़ी ग़लतफहमी को दूर करना चाहती थी बल्कि वो सच मे उसकी मदद करना चाहती थी.उस इंसान ने बहुत दर्द सहे थे केवल इसीलिए क्यूकी वो उसकी मा के साथ सारी ज़िंदगी गुज़ारना चाहता था.उसने भी तय कर लिया था कि वो उसके दर्द जितना हो सके कम करेगी & उसके घाव पे ज़रूर मरहम लगाएगी.मगर कुच्छ और भी था..वो खिचाँव जो 1 मर्द & 1 औरत 1 दूसरे के लिए महसूस करते हैं..वो खिचाँव जो उनके दिल मे जिस्मो को 1 साथ जोड़ प्यार का इकरार करने पे मजबूर कर देता है.

अब देवेन की 1-1 उंगली दोनो टाँगो की सीम्ज़ पे नीचे से उपर & उपर से नीचे आ रही थी.रंभा उसकी साँसे अपनी गंद पे महसूस कर रही.जीन्स के मोटे कपड़े के बावजूद उनकी तपिश वो अपने नाज़ुक अंग पे महसूस कर रही थी.उसकी चूत से अब पानी रिसने लगा था,”..उउन्न्ह..!”,उसने फिर आह भरी.उसकी काली वेस्ट थोड़ी उपर हो गयी थी & देवेन की गर्म साँसे अब उसकी कमर के उस नुमाया हिस्से को गर्म कर रही थी.इस बार जब उसकी दाई उंगली उपर आई तो फिर नीचे नही गयी बल्कि जीन्स के दाई तरफ के बेल्ट के लूप मे फँस गयी.उसने उसी उंगली से रंभा को खींचा & रंभा मुड़ने लगी.अब रंभा की पीठ दीवार से लगी थी & उसकी वेस्ट & जीन्स के बीच के 2 इंच के नुमाया हिस्से पे देवेन की गर्म साँसे गिर रही थी.रंभा की साँसे अब बहुत तेज़ हो गयी थी.उसकी नाभि का बस ज़रा सा निचला हिस्सा नुमाया था & उसके कोने को चूमती देवेन की सांसो को वो महसूस कर रही थी.उसने देखा वो उसके पेट को निहार रहा था.उसके दाए हाथ की उंगली उसकी कमर पे दाई तरफ से जीन्स के वेयैस्टबंड पे चलते हुए उसके बटन तक आ गयी थी.

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क्रमशः.......
Reply
12-19-2017, 10:40 PM,
#55
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--54

गतान्क से आगे......

उंगली बटन से उपर गयी फिर अंगूठे के साथ मिल कर बॉटन को खोल दिया.रंभा ने दोनो होंठ दन्तो मे दबा लिए.देवेन आगे झुका & उस खुले बटन के पीछे के हिस्से को बहुत हल्के से चूम लिया.रंभा ने आह भरते हुए सर पीछे कर लिया.देवेने ने उसके बाए हाथ मे बँधी घड़ी की चैन मे अपनी उंगली फँसाई & खड़ा होते हुए उसी चैन से रंभा के हाथ को उठाने लगा.अब वो रंभा के सामने खड़ा था & उसका हाथ उसने उपर ले जाके उसके सर के उपर दीवार से लगा दिया था.वो रंभा के चेहरे को निहार रहा था..सुमित्रा उसके करीब थी..उसके सामने थी..वही लरजते होंठ..वही दिलकश सूरत..वही शर्मोहाया & वही मस्ती!

उसकी निगाहो की तपिश को झेलना रंभा के नैनो के बस मे नही था.उसने आँखे बंद कर ली.पल-2 देवेन की गर्म साँसे उसके चेहरे के & करीब आ रही थी.उसके होंठ खुद बा खुद खुल गये थे.अगेल ही पल उसके जिस्म मे सिहरन दौड़ गयी.देवने के तपते होंठ उसके नर्म लबो से आ लगे थे.वो बस अपने लबो से उसके होंठो को सहला रहा था.रंभा की साँसे धौकनी की तरह चल रही थी.उसके काँपते होंठ देवेन के होंठो से मिलने को बेकरार हो रहे थे & जैसे ही देवेन ने होटो का दबाव बढ़ाया,रंभा ने भी उसे चूम लिया & उसकी आँखो से आँसुओ की 2 बूंदे टपक पड़ी.ये खुशी के आँसू थे.देवने के चूमने गर्मजोशी थी,शिद्दत थी लेकिन उस से भी ज़्यादा 1 एहसास था हिफ़ाज़त का,सुकून का.रंभा ने खुद को पूरी तरह से उसके हवाले कर दिया था.वो उसके होटो को बस अपने होंठो से चूम रहा था.अभी तक ज़ुबान फिराई तक नही थी उसने & रंभा की चूत का बुरा हाल हो गया था.

रंभा ने बेसबरा हो अपने दाए हाथ को थोड़ा आयेज कर देवेन के बाए हाथ को थाम दोनो की उंगलियो को आपस मे फँसा लिया था.देवेन उसके बाए हाथ को उपर दीवार पे सटा अपने दाए हाथ को उसकी कलाई से नीचे सरका रहा था.रंभा की बाँह का अन्द्रुनि हिस्सा बहुत मुलायम था & उसकी छुअन ने देवेन के लंड को बिल्कुल सख़्त कर दिया था.

“हाआअन्न्‍न्णनह..!”,रंभा गुदगूदे एहसास से चिहुनक & किस तोड़ दी.देवेन का हाथ उसकी गुदाज़ बाँह पे फिसलता हुआ बिकुल नीचे बाँह की बगल से आ लगा था & उस कोमल जगह पे उसकी उंगली के फिरने से उसे गुदगुदी महसूस हुई थी & उसने बाँह नीचे कर ली थी.देवेन ने फिर से बाँह को उपर दीवार से सटा दिया & उसकी आँखो मे देखने लगा.उन नज़रो मे उसकी चाहत थी & रंभा को उनमे दिखती उसके इश्क़ की ख्वाहिश ने खुशी से भर दिया.उन नज़रो मे उसके जिस्म की हसरत भी थी & उस एहसास को समझते ही रंभा के चेहरे की लाली & बढ़ गयी & उसकी पलके बंद हो गयी.

देवेन के होंठ उसके गालो को चूम रहे थे.रंभा गर्दन घुमा के अपने गुलाबी गाल उसे पेश कर रही थी & जैसे ही वो नीचे हुआ उसने सर उठा अपनी गोरी गर्दन अपने महबूब की खिदमत मे पेश कर दी.वो हौले-2 मुस्कुराती हुई बस उस रोमानी लम्हे का मज़ा ले रही थी.देवेन के होंठ उसके गले से उसके दाए कंधे पे पहुँचे & वो चूमते हुए अपनी नाक से उसकी वेस्ट & ब्रा के स्ट्रॅप्स को नीचे करने की कोशिश करने लगा.रंभा को फिर से गुदगुदी हुई & उसने कंधा सिकोडा लेकिन देवेन को दूर करने की कोई कोशिश नही की.वो उसके स्ट्रॅप्स को कंधे के किनारे पे कर के वाहा पे चूम रहा था.कुच्छ देर बाद उसके होंठ उसकी गर्दन के नीचे के गड्ढे को चूमते हुए दूसरे कंधे पे पहुँचे.

“आन्न्न्नह..!”,रंभा चिहुनक के बाँह नीचे करने लगी क्यूकी देवेन के होंठ उसकी चिकनी बगल से जा लगे थे.देवने उस जगह के उतने मुलायम होने से हैरान था.वाहा के बाल कितने भी साफ कर लो,वो जगह औरत के बाकी जिस्म की तरह उतनी कोमल नही होती लेकिन रंभा को तो उपरवाले ने कुच्छ ज़्यादा ही फ़ुर्सत मे बनाया था.देवेन ने उसकी बाँह को मज़बूती से दीवार से लगे & अपनी ज़ुबान से उसकी बगल को चखने लगा.रंभा की सांस अटक गयी,ऐसे वाहा पे उसे किसी ने प्यार नही किया था.देवने की आतुर ज़ुबान से उसे गुदगुदी के साथ सिहरन भरा एहसास हो रहा था.उस अनूठे एहसास को उसका जिस्म ज़्यादा नही झेल पाया & देवेन के बाए हाथ की उंगलियो को बहुत ज़ोर से कसते,काँपते हुए आहे भरती रंभा झाड़ गयी.

वो गिर ही जाती अगर देवेन उसकी कमर को जाकड़ उसे बाहो मे थाम ना लेता.उसने भी अपने हाथ उसके कंधो पे रख दिए थे.वो उसके लंड की सख्ती महसूस कर रही थी & वो भी उसके मुलायम जिस्म के आकार को अपने जिस्म से मिलते महसूस कर रहा था.दोनो की नज़रे आपस मे उलझी हुई थी & उनके रास्ते 1 दूसरे का हाल दोनो को मिल रहा था.देवेन ने उसे वैसे ही उठा लिया & लिए-दिए बिस्तर पे लेट गया.उसके जिस्म के भार के नीचे दबी रंभा ने अपनी बाहे उसकी गर्दन पे कस प्यार से उसके बालो मे हाथ फेरा & दोनो के होंठ 1 शिद्दत भरी किस मे जुड़ गये.दोनो 1 दूसरे की ज़ुबानो से खेल रहे थे,उन्हे चूस रहे थे.उनके हाथ 1 दूसरे के चेहरे पे घूम रहे थे अपनी हसरत,अपनी बेकरारी बयान कर रहे थे.दोनो को अब कोई होश नही था सिवाय इसके के की उनकी पसंद के शख्स का जिस्म उनकी बाहो मे है & वो उसे जी भर के प्यार कर सकते हैं.

काफ़ी देर के बाद जब सांस लेने की ज़रूरत महसूस हुई तो दोनो के लब जुदा हुए.दोनो तेज़ी से साँसे लेते हुए 1 दूसरे को देख रहे थे.रंभा ने नशीली आँखो से देखते हुए अपने अरमानो को ज़ाहिर करते हुए देवने के सीने पे हाथ फिराए तो उसने उसके हाथ शर्ट की बटन पे रख दिए.रंभा को उसकी गर्म निगाहो से शर्म आ रही थी.उसने मुँह फेर लिया & बटन खोलने लगी.आख़िरी बटन खोल उसने अपनी मा के प्रेमी-जोकि अब उसका प्रेमी बन चुका था,को देखा तो वो उठा & अपनी कमीज़ निकाल दी.उसका चौड़ा सीना ज़्यादातर सफेद & कुच्छ काले घने बालो से पूरा ढँका हुआ था.

रंभा का दिल खुश हो गया & उसके हाथ देवेन के सीने पे चले गये.उसकी आँखो मे उसके जिस्म की तारीफ उतर आई थी & वासना के डोरे भी.सीने के बालो को हसरत से छुते हुए उसने उपर देखा तो देवेन को खुद को देख मुस्कुराते पाया & शर्मा के उसने हाथ खीच लिए.देवेन हंस दिया & उसके चेहरे पे उंगली फिराने लगा.रंभा ने आँखे बंद कर चेहरा दाई तरफ घुमा लिया....आज उसका इंतेज़ार ख़त्म हुआ!..सुमित्रा उसके साथ थी..& वो उसे अपना बनाने वाला था!देवेन की उंगली उसके चेहरे से उतर के उसकी गर्दन से होते हुए उसके क्लीवेज के पास आ के रुकी.रंभा धड़कते दिल से सीने के उभारो को उपर-नीचे करते उसे देखने लगी.

देवेन की उंगली 1 पल को वाहा रुक उसके बाए कंधे पे गयी & उसकी वेस्ट के स्ट्रॅप को नीचे सरका दिया.रंभा ने भी कंधे सिकोड उसे उतरने की इजाज़त दे दी.देवेन ने उसके दूसरे कंधे से भी स्ट्रॅप उतार वेस्ट को उसके सीने के नीचे सरका दिया.काले ब्रा मे क़ैद रंभा की चूचियाँ उसकी सांसो की बेकरारी की कहानी कहती उपर-नीचे हो रही थी.देवेन का हाथ उतरी वेस्ट के नीचे उसके पेट पे रखा था & वाहा धीरे-2 सहला रहा था.दोनो 1 तक 1 दूसरे को देखे जा रहे थे.

वो फिर झुका & उसे चूमने लगा.उसने रंभा के चेहरे को अपनी किस्सस से ढँक दिया.वो उसके बालो को सहलाती उसके होंठो का लुत्फ़ उठा रही थी.देवेन उसके सीने पे आया मगर चूमा नही.रंभा अब तड़प रही थी उसके होंठो और हाथो को वाहा महसूस करने के लिए.उसकी चूत बहुत ज़्यादा कसमसा रही थी.देवेन उसके सीने के उभारो को देखता हुआ नीचे आया & उसकी वेस्ट उठाके उसके पेट को चूमने लगा.गोल पेट पे उसके तपते लब महसूस करते रंभा की आहे निकलनी शुरू हो गयी.

देवेन के होंठो मे गर्मजोशी थी,जोश था लेकिन वो ज़रा भी बेसब्र नही था.उसके पास मानो वक़्त ही वक़्त था रंभा को प्यार करने के लिए & खुद के झड़ने की उसे जैसे कोई चिंता ही नही थी!.रंभा की नाभि मे दाए हाथ की सबसे बड़ी,बीच की उंगली घुसा के उसे कुरेदते हुए जब उसने उसमे हौले से जीभ फिराई तो रंभा ने बदन को कमान की तरह मोड़ लिया.उसकी नाभि की गहराई नाप के देवेन उसके पेट को & चूमने के बाद देवेन ने & नीचे का रुख़ किया.

उसने जीन्स के उपर से ही रंभा की जाँघो को चूमा.कसी जीन्स & पॅंटी के अंदर उसकी चूत अब बिल्कुल बावली हो गयी थी.देवेन उसके पैरो तक पहुँच गया था & अब उसकी उंगलिया चूस रहा था.उसने उसके तलवे चूमे & फिर से उसकी टांगो के रास्ते उसकी जाँघो तक आ गया & उसकी चूत के उपर आया..क्या कर रहा है वो?..ये सुमित्रा की बेटी है..उसके साथ ये सब..उसका दिल उसे अचानक रोकने लगा था..तो क्या हुआ?..वो भी चाहती है तुम्हे..आगे बढ़ो..बुझाओ अपनी & उसकी प्यास..

रंभा शायद उसकी उलझन समझ गयी थी.देवेन का दाया हाथ उसके पेट पे था & वो उसके उपर झुका कशमकश मे पड़ा था.उसने अपना बया हाथ उसके पेट पे रखे हाथ पे रखा & उसे उठाके अपनी जींस के ज़िप पे रख दिया.देवेन ने गर्दन घुमा उसे देखा तो रंभा ने हां मे सर हिलाया.देवेन उसे देखे जा रहा था.उसकी आँखो मे इजाज़त दिख रही थी उसे..हसरत भी..जोश भी..खुमारी भी..वो सारे एहसास जो उसके दिल मे भी घूमड़ रहे थे.रंभा ने उसके ज़िप पे रखे हाथ को दबाया तो उसके हाथ ने खुद बा खुद ज़िप नीचे खींच दी.

देवेन ने चौंक के ज़िप की तरफ देखा & फिर रंभा की तरफ.वो मुस्कुरा रही थी.उस मुस्कान मे बस खुशी थी,केवल खुशी.देवेन के होंठो पे भी वैसी ही मुस्कान खेलने लगी & उसके हाथ रंभा की जीन्स के वेयैस्टबंड मे फँस गये.उसने बहुत प्यार से जीन्स को नीचे खींचा.रंभा ने कमर उपर उचका दी & वो उसकी कसी जीन्स को धीरे-2 नीचे करने लगा.वो उसके पैरो के पास गया & जीन्स को पकड़ के नीचे किया.उसके कपड़े उतरने मे कोई जल्दबाज़ी नही थी.रंभा को पता था की वो बहुत जोश मे है लेकिन उस वक़्त भी उसे उसका ख़याल था & वो हर काम उसके आराम & मज़े को मद्देनज़र रख के कर रहा था.

देवेन ने जीन्स पूरी खींच दी & काली ब्रा & पॅंटी मे बिस्तर पे लेटी लंबी-2 साँसे लेती रंभा को निहारने लगा.रंभा को शर्म आ रही थी..वो पहली बार उसके सामने इस हालत मे थी..नही..ग़लत थी..वो क्लेवर्त मे विजयंत के साथ उसने उसे उसके पूरे नंगे शबाब मे देखा था..हया ने अब तो उसे पूरा आ घेरा & उसने आँखे बंद कर ली.कुच्छ देर तक जब उसने देवेन के हाथो को अपने जिस्म पे महसूस नही किया तो उसने अपनी हया को समझा-बुझा के पॅल्को की चिलमन को ज़रा सा हटाया & उसे वो अपनी पॅंट उतारता दिखा.काले अंडरवेर मे क़ैद उसका लंड बहुत बड़ा था,ये उसे देखते ही वो समझ गयी थी.उसने थूक गटका..उसका हलक सुख गया था आने वाले मज़े के ख़याल से!

देवेन बिस्तर पे आ गया & उसके कंधे पकड़ उसे उठाया.रंभा शर्म से दोहरी हुए जा रही थी..क्या वो उसकी मा को भी ऐसे ही प्यार करता?..इसी तरह बाहो मे भरता?..उसका दिल फिर से गुस्ताख बातें सोचने लगा था.देवेन बिस्तर पे बैठ गया & उसे अपनी टाँगो के बीच अपने पहलू मे ले लिया.रंभा अब अपना दाया कंधा उसके सीने से लगाए उसके बाए कंधे पे सर रखे उसकी बाहो मे थी.

देवेन ने उसे बाई बाँह के सहारे मे घेरा हुआ था & दाए हाथ से उसके हसीन चेहरे को ठुड्डी से उठा रहा था.रंभा को अपनी गंद के बगल मे उसका सख़्त लंड चुभता महसूस हो रहा था.उसकी चूत अब & कसमसने लगी थी.देवेन झुका & रंभा ने खुले होंठो के साथ उसके होंठो का इस्तेक्बाल किया.दोनो पूरी शिद्दत एक साथ 1 दूसरे को चूमने लगे.रंभा के हाथ उसके सर के बालो से लेके कंधो,पीठ & सीने पे घूम रहे थे.देवेन भी उसकी पीठ पे अपने सख़्त हाथ फेरता उसकी कमर को हौले-2 मसलता उसे चूम रहा था.

देवेन मज़बूत शरीर का मालिक था.जैल मे की मशक्कत ने उसके जिस्म को तोड़ा नही था बल्कि फौलाद सा सख़्त बना दिया था.उसका सीना चौड़ा & बाज़ू बड़े मज़बूत थे.जंघे भी पेड़ो के तनो जैसी लग रही थी.रंभा उसकी गिरफ़्त मे महफूज़ महसूस कर रही थी.वो अपनी सारी परेशानियाँ,सारी उलझने भूल गयी थी.विजयंत की बाहो मे भी उसे ये एहसास मिलता था लेकिन देवेन की बाहो मे इस एहसास की तासीर अलग किस्म की थी.

देवेन के बाज़ू जैसे उसे अपनी पनाह मे ले उस से ये वादा कर रहे थे कि वो हमेशा उसकी हिफ़ाज़त करेंगे & यू ही उम्र भर थामे रहेंगे..क्या वजह थी इस बात की?..क्या ये कि वो उसकी मा से सच्चा प्रेम करता था या ये कि उसे पता था की विजयंत कभी उसका पूरी तरह से नही हो सकता था & अब तो खैर वो 1 ख्वाब ही बन गया था!..जो भी हो उसे बहुत सुकून मिल रहा था उसकी बाहो मे & उसका दिल कर रहा था की काश वक़्त यही थम जाए & दोनो क़यामत के दिन तक बस यू ही 1 दूसरे से लिपटे जिस्मो के नशे मे खोए रहें.

दोनो अंजाने मे 1 दूसरे की नकल कर रहे थे.देवेन उसकी मखमली पीठ को सहलाता तो वो भी उसकी सख़्त पीठ को अपने हाथो मे भींचने लगती.रंभा के हाथ उसके सीने के बालो मे घुस जाते तो वो भी उसके क्लीवेज पे बड़े हल्के-2 अपनी दाई हथेली चलाने लगता.उसके हाथ रंभा की मखमली जाँघो पे फिसले तो रंभा ने भी उसकी बालो भरी अन्द्रुनि जाँघो को सहलाया & जब रंभा ने उसके गले मे बाहें डाल उसे ज़ोर से चूमा तो उसने भी जवाब मे बाए हाथ से उसके जिस्म को खुद से पूरा सताते हुए दाए से उसकी ठुड्डी को पकड़ अपनी ज़ुबान उसके मुँह मे घुसा दी.

"उउन्न्ञनननगगगगगगगघह......!",रंभा ने किस तोड़ी & उसके कंधो पे सर रख वाहा पे चूमते हुए च्चटपटाने लगी.वो फिर से झाड़ गयी थी.देवेन के हाथ उसकी पीठ सहलाते हुए उसे संभालने लगा.थोड़ी देर बाद रंभा ने सर कंधे से थोड़ा उपर करते हुए देवेन के बाए गाल को चूमा तो देवेन ने उसकी पीठ पे दोनो हाथ ले जाके उसकी ब्रा के हुक्स को खोल दिया.लाज की 1 नयी लहर ने रंभा को आ घेरा..वो उसकी नंगी चूचियाँ देखने वाला था..क्या उसे वो खूबसूरत लगेंगी?..क्या पसंद करेगा इन्हे वो?..वो हैरत मे पड़ गयी..आज तक उसके दिल मे कभी भी ऐसा ख़याल नही आया था बल्कि वो तो ये मान के ही चलती थी की उसके जिस्म को नापसंद करने की हिमाकत तो कोई मर्द कर ही नही सकता!

देवेन ने उसके ब्रा को उसकी बाहो से बाहर खींचा & गुलाबी निपल्स से सजी रंभा की बड़ी-2,कसी चूचियाँ उसकी आँखो के सामने छल्छला उठी.देवेन का मुँह खुला खुला रह गया.उसने क्लेवर्त मे उस रात उन्हे इतनी गौर से नही देखा था..बला की खूबसूरत थी वो!..बिल्कुल गोल,कसी & निपल्स का रंग कितना दिलकश था!..कैसे सख़्त हो रहे थे उसके निपल्स..दिल की धड़कनो के साथ उपर-नीचे होता हुआ उसका सीना इस वक़्त & जानलेवा लग रहा था.

देवेन का दाया हाथ काँपते हुए आगे बढ़ा.उसे लग रहा था कि उसके हाथ उस शफ्फाक़ गोरी हुस्न परी के बदन को मैला कर देंगे & वो झिझक रहा था.उसने रंभा की निगाहो मे देखा & उसने सर उसके कंधे से थोड़ा सा उठाके उसके लब चूम लिए.देवेन ने अपना कांपता हाथ आगे बढ़ाया & बहुत हल्के से रंभा की बाई छाती पे रखा.

उस पल दोनो ही के जिस्मो मे बिजली दौड़ गयी.रंभा ने सर पीछे झटकते हुए आह भरी.उसका दिल कर रहा था कि उसका आशिक़ अब उसके उन उभारो को अपने सख़्त हाथो तले रौंद डाले..कुचल दे उन फूलो को & उसके बेचैन दिल को करार पहुचाए!..देवेन उसके सीने को देखते हुए बहुत हल्के हाथो से उसकी बाई चूची को सहला रहा था मानो यकीन करना चाह रहा हो की उसके हाथ उस परी के जिस्म को मैला नही कर रहे.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:40 PM,
#56
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--55

गतान्क से आगे......

कुच्छ पलो बाद जब उसे ये भरोसा हो गया तो वो अपनी उंगली को उसकी चूची पे दायरे की शक्ल मे घुमाने लगा.उंगली चूची की पूरी गोलाई पे घूमते हुए उसके निपल की ओर बढ़ रही थी & निपल पे पहुँचते ही उसने उसे ऐसे दबाया जैसे कोई बटन दबा रही हो.रंभा चिहुनकि और अपना सीना और आगे कर दिया.देवेन अब उसकी चूचियो को सख़्त हाथ से दबाने लगा.रंभा उसकी गोद मे कसमसाते हुए आहे भरने लगी.

देवेन ने उसके सीने के उभारो को जम के मसला.रंभा के चेहरे पे शिकन पड़ गयी थी.उसे बहुत मज़ा आ रहा था.उसके जिस्म मे दर्द उठने लगा था,मीठा दर्द & उसकी चूत तो रस की धार बहा ही रही थी.वो अपने होंठो को अपने ही दन्तो से काट रही थी.देवेन तो जैसे उसे भूल ही गया था और उसे बस उसकी चूचियाँ ही दिख रही थी.वो उन्हे देखते हुए उन्हे दबा रहा था.रंभा ने उसका चेहरा पकड़ के उपर किया तो उसने उसे चूम लिया.बहुत देर तक वो उसकी चूचियाँ दबाते हुए,उसके निपल्स को रगड़ते हुए उसे चूमता रहा.

उसके बाद वो नीचे हुआ & उन मस्ती भरे उभारो को अपने मुँह मे भर लिया.उसकी बाई बाँह पे टिकी रंभा पीछे झुक ज़ोर-2 से आहें भरने लगी.देवेन की आतुर ज़ुबान उसकी चूचियो को मुँह मे भर चाट रही थी & वो अपनी भारी जंघे आपस मे रगड़ते हुए अपनी चूत को समझा रही थी.रंभा के दिल मे भी अपने प्रेमी के जिस्म को चूमने की ख्वाहिश हुई & वो आगे हुई & अपने सीने से देवेन का सर उपर उठाया & झुक के वैसे ही उसके सीने को चूमने लगी जैसे वो उसके सीने को चूम रहा था.

वो मस्त आवाज़ें निकालते हुए उसके सीने के घने बालो मे अपनी नाक घुसा के रगड़ रही थी & उसके निपल्स को चूस रही थी.देवेन जैल से निकलने के बाद कयि औरतो के साथ हुम्बिस्तर हुआ था.कुच्छ पेशेवर थी & कुच्छ वो थी जिन्हे उस से रिश्ता जोड़ने की उम्मीद थी.उन सभी औरतो मे से किसी ने आज तक उसके निपल्स के साथ ऐसे खिलवाड़ नही किया था.वो आहे भरते हुए उसकी पीठ पे हाथ फिराने लगा .रंभा उसके सीने को चूमते हुए थोड़ा नीचे गयी & फिर उपर आ उसे बाहो मे भर उसके सीने मे मुँह च्छूपा लिया.

उसने उसकी ठुड्डी पकड़ चेहरा उपर किया & उसे चूमने लगा और चूमते हुए उसकी मखमली जाँघो के अन्द्रुनि हिस्सो को सहलाने लगा.रंभा ने जंघे भींच उसके हाथ को क़ैद कर लिया लेकिन फिर भी वो उसकी जाँघो को सहलाता रहा.रंभा अब जोश मे पागल हो गयी थी.उसने बेचैनी से अपनी कमर हिलाई तो देवेन ने उसकी हालत समझते हुए उसे बिस्तर पे लिटा दिया & उसकी पॅंटी खिचने लगा.पॅंटी उसकी चूत से चिपकी हुई थी & जब वो उसके जिस्म से अलग ही तो देवेन उसे सूंघने से खुद को रोक नही पाया.

अब वो उसके सामने बिल्कुल नंगी पड़ी थी & उसका हुस्न अपने पूरे शबाब मे उसके सामने था.रंभा को बहुत शर्म आ रही थी.वो चाह रही थी कि अपने जिस्म को ढँक ले मगर उसकी ये भी ख्वाहिश थी कि देवेन उसके जिस्म को भरपूर प्यार करे.अब ये उलझन तो 1 ही सूरत मे सुलझ सकती थी,अगर वो देवेन के जिस्म को खुद पे ओढ़ ले तो.

"आन्न्‍नणणनह..!",वो ख्यालो मे खोई थी कि देवेन उसकी जाँघो को चूमने लगा था.उसने तड़प के करवट ले ली & देवेन उसकी चौड़ी गंद को चूमने लगा.उसके सख़्त हाथ उसकी गंद को दबाने लगे & वो उसकी कमर के मांसल हिस्से को चूमने लगा.रंभा अब मस्ती मे बिल्कुल पागल हो चुकी थी.बिस्तर की चादर को ज़ोर से भींचते हुए वो आहे भरे जा रही थी.देवेन ने उसे सीधा किया & उसकी जंघे फैला दी.उसने उन्हे फिर से बंद कर लिया लेकिन उसने उसकी अनसुनी करते हुए उन्हे फैलाया & उसकी चूत पे झुक गया.

"हे भगवांनननननणणन्..हाईईईईईईईईई.......!",रंभा चीखी & बिस्तर पे छटपटाने लगी. उसका प्रेमी उसकी चूत चाट रहा था और उसकी ज़ुबान अपने दाने पे महसूस करते ही वो झाड़ गयी थी.उसने देवेन के सर को अपनी मोटी जाँघो मे दबा दिया तो देवेन ने जीभ उसकी चूत मे काफ़ी अंदर तक उतार दी.उसके हाथ उपर आए और अपनी महबूबा की चूचियो पे कस गये.रंभा कभी बेचैनी मे उसके सर के बाल नोचती तो कभी चूचियाँ मसल्ते उसके हाथो पे अपने हाथ दबाती.ना जाने कितनी देर तक वो उसकी चूत से बहते रस को चाटता रहा और वो झड़ती रही.देवेन ने उस जैसी हसीन लड़की नही देखी थी.वो उसे खास लगने लगी थी-शायद सुमित्रा की वजह से.

वो उसके जिस्म को प्यार कर उसे दुनिया की सारी खुशियो से वाकिफ़ कराना चाहता था.उसकी नाज़ुक,गुलाबी,कसी चूत देख उसका दिल खुशी और जोश से भर गया था & उसने उसे जी भर के चटा,चूमा & चूसा था.अपनी उंगली उसमे घुसा उसने उसकी कसावट महसूस की थी और उसका लंड उस एहसास से और सख़्त हो गया था.

रंभा ने नशे मे बोझल पॅल्को को थोड़ा सा खोला तो देखा कि देवेन अपना अंडरवेर उतरने ही वाला है.ठीक उसी वक़्त उसके दिल ने कहा कि उसका लंड विजयंत के लंड जैसा ही होगा & जब अंडरवेर नीचे सरका तो सच मे सामने 9.5 इंच का लंड तना खड़ा था.रंभा ने उसे देखा & अपने नीचे के होंठ को धीरे से काटा.देवेन का दिल बहुत ज़ोरो से धड़क रहा था..ये क्या हो रहा था उसे?..ये तो वोही एहसास था जो उसे सुमित्रा के करीब आने पे होता था..मगर सुमित्रा को कभी उसने चोदा नही था..फिर आज क्यू वही एहसास उसके दिल मे उमड़ रहा था?

"आन्न्‍न्णनह..!",उसने रंभा की जंघे फैलाई & अपने लंड को हाथ मे थाम उसकी चूत के दाने पे हल्के से मारा.रंभा जैसे दर्द से च्चटपताई.लंड की मार उसे जोश से पागल कर रही थी.अभी तक आहो के सिवा दोनो कुच्छ नही बोले थे & इस वक़्त भी रंभा ने बस कतर निगाहो से अपने आशिक़ को देखा मानो मिन्नत कर रही हो कि और ना तडपाए और दोनो जिस्मो की दूरी को अब हमेशा-2 के लिए मिटा दे.देवेन ने उसकी आँखो को पढ़ लिया & इस बार लंड को उसकी गीली चूत की दरार पे रख आगे झुका.

"आआहह..!"

"ओईईईईईईईईईईईईईईईईई....माआआआआआआआअ..!",दोनो प्रेमी कराह,देवेन उसकी चूत के बेहद कसे होने की वजह से & रंभा उसके लंड की लूंबाई & मोटाई से.देवेन का लंड विजयंत से मोटा था & इस वक़्त अंदर जाते हुए वो रंभा की चूत को बुरी तरह फैला रहा था.रंभा को वही मस्ताना एहसास हुआ जो विजयंत के साथ होता था बल्कि उस से भी कुच्छ ज़्यादा!

देवेन ने झांतो तक लंड को उसकी चूत मे धंसा के ही दम लिया.जैसे ही लंड का सूपड़ा उसकी कोख से सटा रंभा के जिस्म ने झटका खाया & वो झाड़ गयी.रंभा हैरत & खुमारी मे आहें भरने लगी..उसकी मर्दानगी की कायल हो गयी वो उसी पल!..अभी बस लकंड अंदर घुसा था और वो झाड़ गयी थी.

देवेन भी उसकी चूत के सिकुड़ने-फैलने की जानलेवा हरकत से चौक गया था और बड़ी मुश्किल से उसने खुद को झड़ने से रोका था.उसने अब बहुत धीमे और लंबे धक्को से उसकी चुदाई शुरू की.वो लंड पूरा बाहर खींचता और फिर जड तक अंदर घुसा देता.लंड कोख से टकराता तो रंभा के जिस्म मे मानो सितार बजने लगते.वो खुशी मे पागल हो गयी & उसने अपने आशिक़ को अपनी नाज़ुक,गुदाज़ बाहो मे कस लिया & उसके चेहरे पे अपने आभारी होंठो से चूमने लगी.देवेन का लंड उसकी चूत की दीवारो को भी रगड़ रहा था.उसके हाथ उसकी छातियो को मसला रहे थे और होंठ उसके चेहरे से लेके सीने तक घूम रहे थे.रंभा 1 बार फिर मस्ती के आसमान मे ऊँचा उड़ने लगी थी.उसकी चूत से बहते रस की हर तेज़ हो गयी थी.

उसी वक़्त देवेन ने अपनी बाई बाँह उसकी गर्दन के नीचे लगाई और उसे चूमते हुए उसकी बाई जाँघ पे अपना दाया हाथ बेसब्री से फिराने लगा.रंभा ने अपनी टाँगे उसकी कमर पे कैंची की तरह कस दी & कमर उचकाने लगी.देवेन की चुदाई उसे जोश से भर रही थी & उसने टाँगो को नीचे कर उसकी जाँघो पे फँसाया & उनके सहारे & ज़ोर-2 से कमर उचकाने लगी.

देवेन का दाया हाथ मस्ती मे पागल हो उसकी कमर को सहलाते हुए नीचे गया & उसकी गंद की बाई फाँक को दबोच लिया.रंभा ने सर झटकते हुए आह भरी तो देवेन ने उसकी गंद को दबोचे हुए बाई तरफ करवट ले ली.अब दोनो करवट से लेटे हुए थे & रंभा की बाई टाँग देवेन के उपर चढ़ि हुई थी & वो उसे बाँहो मे भरे मदहोश हो चूमे जा रही थी.देवेन उसकी गंद को सहलाता,उसकी दरार मे उंगली फिराता धक्के तेज़ कर रहा था.रंभा उस से बिल्कुल चिपकी हुई थी & उसके नाख़ून देवेन के कंधो & पीठ पे घूम रहे थे.

"उउफफफफफफफफफ्फ़..ओईईईईईईईईईई..माआआआआअ..हाआआआआअन्न्‍नननननननणणन्..!",रंभा ने देवेन के दाए गाल से बाया गाल सटाया हुआ था & उसकी बाई टांग उसकी कमर पे चढ़ि बेचैनी से उपर-नीचे हो रही थी.उसकी कमर आगे-पीछे हो रही थी & जिस्म झटके खा रहा था-वो झाड़ रही थी.देवेन को लंड पे फिर से उसकी चूत की क़ातिल कसावट महसूस हुई & उसके होंठ महबूबा की गर्दन से चिपक गये.

देवेन ने फ़ौरन करवट ली & इस बार पीठ के बल लेट गया.अब रंभा उसके उपर लेटी उसकी गर्दन मे मुँह च्छुपाए साँसे संभाल रही थी.देवेन उसकी पीठ सहला रहा था.कुच्छ पलो बाद देवेन ने उसके रेशमी बालो को उसके चेहरे से हटाया & उसके चेहरे को उपर कर चूमा & फिर उसके कंधे थाम उसे उपर किया.रंभा उसके दोनो तरफ घुटने जमाए उपर हुई.

देवेन की निगाहे अपने होंठो के ताज़ा निशानो से ढँकी उसकी चूचियो से टकराई तो वो खुशी से चमकने लगी.उस चमक को देख रंभा शर्मा गयी & उसने अपने हाथो से अपने दिलकश उभारो को च्छूपा लिया.देवेन ने उसके हाथ पकड़ के उसके सीने से हटाए और अपनी उंगलिया उसकी उंगलियो मे फँसा उन्हे अपनी गिरफ़्त मे ले लिया.उसकी आँखे रंभा के हया और मदहोशी से भरी सूरत से लेके उसकी गीली उसके लंड को अपने अंदर ली चूत तक घूमने लगी.

रंभा ने उसकी निगाहो की तपिश से आहत हो हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो देवेन ने हाथो को और मज़बूती से थाम नीचे से कमर उचकाई.

"ऊव्ववव..!",रंभा चिहुनकि मगर उसकी कमर खुद ब खुद हिलने लगी और 1 बार फिर दोनो की चुदाई शुरू हो गयी.कुच्छ ही पल मे रंभा अपने बाल झटकती,जिस्म को कमान की तरह मोडती तेज़ी से कमर हिला रही थी.मस्ती मे पागल हो वो नीचे झुकी & देवेन के हाथ उसके सर के दोनो तरफ जमाते हुए उसे चूमने लगी.देवेन उसकी मदहोशी का पूरा लुत्फ़ उठा रहा था.रंभा उसके सीने को चाट रही थी,उसके निपल्स को काट रही थी.उसकी चूत मे फिर से कसक बहुत क़ातिल हो गयी थी & उसकी कमर बहुत तेज़ी से हिल रही थी.

"उउन्न्ञणणनह...आआहहाआआन्न्‍नननणणन्......!",उसने सर उठा लिया था और उसकी पकड़ देवेन के हाथो पे ढीली हो गयी थी.देवेन ने फ़ौरन उसे बाहो मे भर लिया & करवट ली.दोनो की जद्ड़ोजेहाद से बिस्तर की चादर मूड के 1 कोने मे पहुँच गयी थी & पलंग से नीचे लटक रही थी.देवेन अब अपनी प्रेमिका की चूत मे झाड़ अपने अरमानो को पूरा करना चाहता था.उसकी बाई बाँह अभी भी उसकी गर्दन के नीचे थे.उसने उसे अपने से चिपका के अपने नीचे दबा धक्का मारा तो रंभा कस कर बिस्तर से नीचे लटक गया.

देवेन उसके उपर झुका उसकी गर्दन चूमता उसे चोदने लगा.रंभा अब चीख रही थी.शायद दोनो की आवाज़ें बाहर गाँव की सड़क पे भी सुनाई दे रही थी.जो भी हो,उन दोनो को अब किसी बात की परवाह नही थी.देवेन का दाया हाथ उसके जिस्म के नीचे से उसके बाए कंधे को थामे था & अब उसके धक्के बहुत तेज़ हो गये थे.रंभा समझ गयी थी कि वो भी अपनी मंज़िल तक पहुचना चाहता है.उसके हाथ भी उसके बालो को खींच रहे थे.उसकी चूत की कसक अब चरम पे पहुँच रही थी.

देवेन का लंड उसकी चूत को ऐसे भरे हुए था की उसे पूरा जिस्म भरा-2 लग रहा था.उसके दिल मे कुच्छ बहुत मीठा,कुच्छ बहुत नशीला भरने लगा था.उसे ऐसा शिद्दत भरा एहसास पहले कभी नही हुआ था और वो मस्ती मे आहत हो च्चटपटते हुए देवेन की पीठ नोचने लगी थी.उसकी टाँगे उसकी जाँघो पे चढ़ि उपर -नीचे हो उसकी टाँगो के बालो मे खुद को रगड़ रही थी.देवेन के दिल मे भी खुशी भरी हुई थी-वो खुशी जिसे वो भूल गया था.रंभा को खुद से चिपकाए वो उसे चूमते हुए अब क़ातिल धक्के लगा रहा था.

"ऊऊऊऊहह..!",रंभा आह भरते हुए उचकी और देवेन की गर्दन के ठीक नीचे पागलो की तरह चूमने लगी.उसकी चूत ने अपनी मस्तानी हरकत शुरू कर दी थी & देवेन भी अब आख़िरी धक्के लगा रहा था.रंभा के होंठो ने अपनी छाप छ्चोड़ने के बाद देवेन के सीने को छ्चोड़ा & वो मदहोशी मे 'ओ' के आकर मे गोल हो गये.रंभा का सर बिस्तर से नीचे लटक गया था & उसके हाथ भी.उसके होंठ थारथरा रहे थे & जिस्म कांप रहा था.झड़ने की ऐसी शिद्दत उसने कभी महसूस नही की थी कि तभी वो बहुत ज़ोर से करही,",ऊऊवन्न्‍नणणनह..!"

"तड़क्कककक..!",उसने अपने चेहरे को पागलो की तरह चूमते देवेन को चांटा मार दिया था.रंभा की आँखो से आँसू छलक गये.देवेन के लंड ने उसकी कोख से टकराते हुए अपने वीर्य की गर्म बारिश सीधा उसके अंदर की थी & उस बौच्हर ने उसके जिस्म को फिर से झाड़वा दिया था.वो उस गहरे एहसास को बर्दाश्त नही कर पाई थी & उस वक़्त देवेन के होंठो की च्छुअन भी वो झेल नही पाई & उसका हाथ उठ गया.वो ज़ोर-2 से सूबक रही थी.देखने वाले को ये लगता कि लड़की तकलीफ़ मे है जबकि सच्चाई ये थी कि उस लड़की ने वो बेइंतहा खुशी पाई थी जिसके आबरे मे उसके सपने मे भी नही सोचा था.

देवेन ऐसे कभी नही झाड़ा था.इतनी कसी चूत मे उसने कभी अपना लंड नही घुसाया था & झाड़ते वक़्त जो खुशी उसे मिली वो बिल्कुल अनूठी थी लेकिन रंभा के थप्पड़ ने उसे हैरत मे डाल दिया & उसे लगा कि उसने कुच्छ ग़लत किया है.आजतक जब भी उसने चुदाई की थी उसके साथ की लड़की झड़ी ज़रूर थी मगर इस तरह से उसने किसी को झाड़ते नही देखा था.उसकी समझ मे नही आ रहा था कि वो क्या करे & वो वैसे ही उसे बाहो मे थामे पड़ा रहा.

काफ़ी देर बाद रंभा होश मे आई & उसकी रुलाई रुकी तो उसने खुद को चिंता से देखते देवेन को देखा.कहते हैं दिल से दिल को राह होती है & उस पल जैसे इसी बात को सच साबित करते हुए रंभा का दिल देवेन की उलझन समझ गया.वो फ़ौरन उपर उचकी & उसे बाहो मे भर उसके गाल को चूमने लगी.देवेन ने वैसे ही सिकुदे लंड को चूत मे डाले हुए उसे बाहो मे भर उसके सर को उपर बिस्तर पे किया.

"सॉरी,आपको मारा मैने.",रंभा की आँखो मे अभी भी नशे के डोरे दिख रहे थे,"..मगर आपने मुझे ऐसे प्यार किया,जैसे कभी किसी ने नही किया है..& मैं वो खुशी झेल नही पाई थी.",बात समझते ही देवेन के होंठो पे मुस्कान आ गयी & उसने उसे गले से लगा लिया,"आइ लव यू."

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:41 PM,
#57
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--56

गतान्क से आगे......

देवेन ने उसके प्यार के इज़हार को सुन सर उपर उठाया & उसकी आँखो मे झाँकने लगा..वो इस लड़की की जान लेना चाहता था लेकिन आज उसे उस से जुदा होने के ख़याल से ही डर लग रहा है..वो उसकी जान बन गयी है..कैसा अजीब खेल खेला था उपरवाले ने..मा की जिस अधूरी चाहत की प्यास ने उसे आजतक बेताब & बहाल कर रखा था,वो आज बेटी की बाहो मे बुझी थी,"आइ लव यू टू.",वो झुका & दोनो के होंठ 1 दूसरे की लज़्ज़त चखने लगे.

"उन्न्ञन्..मत जाइए ना!",बिजली चली गयी थी & देवेन उसकी चूत से लंड खींच उठने लगा था जब रंभा ने उसे रोक दिया था.

"अंधेरे मे तुम दिख नही रही मुझे.लालटेन तो लाने दो.",उसने उसके होंठो पे दाए हाथ की उंगली को फिराया तो रंभा ने मस्ती मे आह भरी और उंगली के पोरो को चूमा & फिर उसे मुँह मे भर चूसने लगी.

"चाँदनी तो आ रही है खिड़की से,लालटेन की क्या ज़रूरत है.",रंभा ने उसे बाहो मे भरे रखा.देवेन हंसा & उंगली को उसके होंठो से हटा अंगूठे को उनपे दबा दिया.रंभा ने उसे शरारत से काट लिया तो दोनो हँसने लगे मगर अगले ही पल देवेन खामोश हो गया और उसके चेहरे पे उदासी की परच्छाई आ गयी.

"क्या हुआ?",रंभा ने उसके चेहरे को हाथो मे थाम लिया.

"कुच्छ नही.बस ये सोच रहा था कि कुच्छ दिन बाद तुम अपनी ज़िंदगी मे लौट जाओगी फिर मैं कैसे जियूंगा?..वही उलझन,वही बेकरारी फिर मेरे सीने को जलाने लगेगी."

"ये उलझन,ये बेकरारी बस चंद दीनो के लिए होगी.",रंभा ने उसके कंधे थामे & पलटने का इशारा किया तो वो उसके नीचे आ गया.रंभा ने चूत से लंड को जुदा किया & उसके सीने को चूमते हुए नीचे जाने लगी.

"मुझे बहलाने की कोशिश कर रही हो?..चंद दिनो की कैसे होगी?..तुम्हारी अपनी ज़िंदगी है,अपनी दुनिया है..आहह..!",देवेन आँखे बंद कर कराहा.रंभा उसके लंड तक पहुँच गयी थी & उसे थाम के चूम लिया था.

"बहलाने की कोशिश नही कर रही.",रंभा ने सूपदे पे लगे उसके वीर्य & अपने रस को चॅटा.उसकी चूत से बह के देवेन का वीर्य उसकी जाँघो से चिपक गया था,"..सच कह रही हू.अब मैं भी आपके बगैर नही रह सकती!",रंभा झुकी & लंड को मुँह मे भर लिया & आँखे बंद कर चूसने लगी.

"ओह..रंभा,पागल मत बनो!",वो उठ बैठा था & लंड चुस्ती रंभा के बाल सहला रहा था,"..मैं बस अपने दिल का हाल कह रहा था.मेरी वजह से अपना बसा-बसाया घर क्यू उजाड़ रही हो?",रंभा ने दाए हाथ के अंगूठे & पहली उंगली के दायरे मे लंड को हिलाना शुरू कर दिया था & साथ-2 उसे चूस भी रही थी.उसका दूसरा हाथ झांतो से घिरे देवेन के आंडो को दबा रहा था.उसने लंड को हिलाना छ्चोड़ा & उसे मुँह मे भरने लगी.उसकी सांस अटकने लगी थी लेकिन उसने लंड को अंदर लेना नही छ्चोड़ा.लंड का कुच्छ हिस्सा उसके हलक मे भी चला गया था.देवेन की कमर अपनेआप हिल गयी.उसे ऐसा लग रहा था मानो वो फिर से अपनी महबूबा के चूत मे लंड घुसा रहा हो.

रंभा उसे जड तक मुँह मे भर चूस रही थी.देवेन उसके बालो को पकड़े बेचैनी मे आहें भर रहा था & उसने अचानक लंड बाहर खींच लिया.हाँफती रंभा ने उसे देखा & मुस्कुराइ.झड़ने के डर से उसने लंड खींच लिया था.उसने देवेन की टाँगे पकड़ उन्हे पलंग से नीचे लटका दिया & फिर ज़मीन पे घुटनो के बल उनके बीच आ गयी.

"इतना सुकून मैने कभी महसूस नही किया..",उसने अपनी भारी-भरकम चूचियो को अपने हाथो मे थामा & देवेन के खड़े लंड को उनके बीचे कस लिया.देवेन ने आह भरते हुए उसके सर को पकड़ लिया.वो अपनी चूचियो को आपस मे भींच उन्हे उपर-नीचे कर लंड को रगड़ने लगी,"..& बसा-बसाया घर?..हुंग!....वो पति जो मुझे खिलोना समझता है & मुझसे बेवफ़ाई कर रहा है..मैने भी उसे धोखा दिया है.उसकी ब्यहता होते हुए उसके पिता के साथ सोई लेकिन कभी बताउन्गि आपको किन हालात मे मेरे ससुर और मैं करीब आए थे..",उसने लंड को और ज़ोर से रगड़ा & झुक के उसके सूपदे को चूमा.

"..मगर वो मुझे किस वजह से धोखा दे रहा है & मुझे छ्चोड़ना चाह रहा है सिवाय इसके कि उसका मन भर गया लगता है!",देवेन ने उसके बाल पकड़ उसे उपर खींचा & बिस्तर पे लेट गया & उसे उपर आने का इशारा किया.रंभा ने सोचा कि वो उसे उपर से लंड अपनी चूत मे लेने को कह रहा है & वो उसके जिस्म के दोनो ओर घुटने जमाके उसपे झुकने लगी कि उसने उसकी कमर पकड़ के उसे आगे किया & अपने मुँह पे बिठा लिया.

"ऊव्वववव....हााअ....मुझे गुदगुदी होती है..नही..!",वो हस्ते हुए मस्त होने लगी.देवेन उसकी अन्द्रुनि जाँघो मे अपनी नाक घुसा के ज़ोर से रगड़ उसे गुदगुदा रहा था.अगले पल उसकी ज़ुबान उसकी चूत की दरार पे दस्तक दे रही थी.

"रंभा,मैं नही जानता कि तुम्हारी शादी मे क्या परेशानी है मगर मेरे साथ तुम्हारा भविश्य कुच्छ भी नही..-",रंभा ने अपनी चूत उसके होंठो पे दबा उसे खामोश कर दिया था.वो भी उसकी अन्द्रुनि जाँघो को सहलाते हुए उसकी चूत चाटने लगा था.

"-..उउन्न्ञणनह..आहह..आप मेरी ज़िंदगी का 1 अहम हिस्सा हैं अब और आगे से मुझसे दूर जाने की बात करने का आपको कोई हक़ नही..ऊव्वववववव..",रंभा मस्ती मे कमर हिलाते हुए आगे झुक गयी.देवेन ने उसके दाने को बहुत धीमे से होंठो से काट लिया था,"..मैं यहा से जाऊंगी अपने पति के पास,उसे & उस लड़की को सज़ा देने के लिया,जिसके लिए वो मुझे छ्चोड़ना चाहता है.मुझे चोट पहुचने की कीमत तो मुझे अदा करनी ही पड़ेगी..आआन्न्न्नह..हााआआन्न्‍ननणणन्..!",रंभा उसके बालो को जकड़े,ज़ोर-2 से कमर हिलाती झाड़ रही थी.देवेन ने उसकी गंद पकड़ उसकी चूत को मुँह से उठाया तो वो आगे हो पेट के बल बिस्तर पे गिर गयी.देवेन उसकी टाँगो के बीचे सर रखे हुए करवट बदल पेट के बल हुआ & उसकी चूत से टपकते रस को चाट लिया.उसकी नज़रो के सामने रंभा की गंद का गुलाबी छेद था.उसकी गंद बहुत मस्त थी.

इतनी भारी-भरकम होने के बावजूद माँस कही से भी लटका नही था.उसने जोश मे भर उसकी गंद की दोनो फांको को काट लिया & उन्हे मसलते हुए उसकी गंद के छेद को अपनी ज़ुबान से छेड़ने लगा.

"तुम कोई ग़लत कदम नही उथाओगि.",वो उसकी गंद को फैलते हुए छेद मे उंगली कर रहा था.

"ऊन्न्‍नणणनह..उसके लिए आप बेफ़िक्र रहिए..इतनी भी गरम मिजाज़ नही हू..ऊव्ववववववव..!",उंगली बहुत अंदर तक घुस गयी थी.

देवेन विजयंत की ही तरह रंभा के गंद के च्छेद को उंगली कर के थोड़ा फैलाना चाहता था ताकि लंड आसानी से उसके अंदर जा सके.रंभा उसकी उंगली की रगड़ से मदहोश हुए जा रही थी.देवेन ने उसके पेट के नीचे हाथ लगा के उसकी कमर उपर की तो रंभा ने भी गंद हवा मे उठा ली & चेहरा बिस्तर मे च्छूपा लिया.उसकी उंगलिया अब बिस्तर के गद्दे को नोच अपनी बेचैनी को शांत करने की कोशिश अकर रही थी क्यूकी चादर तो अब कमरे के फर्श पे थी.

देवेन काफ़ी देर तक उसकी गंद मे उंगली करता रहा & जब उसे लगा कि अब उसका च्छेद थोड़ा खुल गया है तो उसने अपनी महबूबा के पीछे घुटनो पे पोज़िशन ली.रंभा ने गद्दे को ज़ोर से भींच लिया,लंड अब बस उसकी गंद मे घुसने ही वाला था.उसकी धड़कने तेज़ हो गयी & उसने झुके हुए ही सर को नीचे कर अपनी टाँगो के बीच देखा.देवेन उसकी कमर थामे लंड को उसकी गंद पे टीका के धक्का दे रहा था.

"आाआईयईईईईईईईईईईईईईईयययययययययययईईई..!",उसकी चीख तो पूरे गाँव मे गूँजी होगी!देवेन का लंड कुच्छ ज़्यादा ही मोटा था & उसने उस ज़रा से छेद को बहुत फैला दिया था.रंभा सर उठाके छॅट्पाटा रही थी.देवेन धीरे-2 लंड को छेद मे & अंदर उतार रहा था.

"आआन्न्न्नह.....उउन्न्ञणनह..ओफफफफफ्फ़....ओह..!",देवेन ने लंड को आधे से ज़्यादा अंदर घुसा दिया था.इतनी अंदर उसकी गंद मे आजतक कोई लंड नही गया था.देवेन आगे झुका & रंभा की चूचियो को हाथो मे भर उसकी गर्दन के पीछे चूमने लगा.रंभा का दर्द अब कम हो रहा था & उसने बाई तरफ चेहरा घुमाया & अपने महबूब के होंठो को चूम लिया.थोड़ी देर तक देवेन उसे वैसे ही उसकी चूचियो मसलते हुए चूमते रहा.जब रंभा ने अपनी ज़ुबान उसके मुँह से खींच उसकी ज़ुबान को अपने मुँह मे ले चूसा तो वो समझ गया कि अब वो तैय्यार है & उसने आधे घुसे लंड के धक्के लगाने शुरू कर दिए.

"उउगगगघह..बहुत बड़ा है आपका..उउफफफफ्फ़..!",रंभा ने आह भरी,"..पता है..ऊव्ववव..जब मेरी चूत मे था तो मुझे कितना भरा-2 लग रहा था?..मैने वैसा कभी महसूस नही किया किसी के साथ..उउम्म्म्ममममम..!",देवेन ने अपनी प्रेमिका के निपल्स को मसल उसे चूम लिया था.रंभा की गंद उसके लंड के धक्को से आहत हो उसपे सिकुड जाती थी & वो मस्ती मे पागल हो जाता था.

"तुम्हारी बाहो मे आके आज मेरी सारी बेताबी,सारा गुस्सा जैसे ख़त्म हो गया..",उसने रंभा के दाने को दाए हाथ से रगड़ना शुरू कर दिया था,"..अब मैं सुकून से मार सकता हू!",उसके धक्के तेज़ हो गये थे.

"ऊहह..ऐसी बातें मत कीजिए प्लीज़..........ऊव्ववववववव..!",रंभा तेज़ी से गंद पीछे धकेल रही थी.देवेन उसकी कसी गंद के एहसास से लंड को अब रोक नही पा रहा था.उसकी उंगली ने रंभा को भी झड़ने पे मजबूर कर दिया था,"..ओओओओऊऊऊऊऊऊऊईईईईईईईईईईईई माआआअन्न्‍नननणणन्..!",झड़ने के करीब पहुँचते ही देवेन के लंड का सूपड़ा थोड़ा फूला & रंभा की संकरी गंद & फैल गयी & वो चीखते हुए झाड़ गयी.देवेन ने अपनी उंगली को उसकी चूत मे क़ैद होते महसूस किया & उसकी गंद को लंड पे कसते & वो भी आह भरते हुए उसकी पीठ पे गिर गया & उसका जिस्म झटके खाने लगा.रंभा की गंद उसके गाढ़े वीर्य से भर रही थी.

रंभा बिस्तर पे लेट गयी थी & उसके उपर देवेन लेटा उसके बालो को चूम रहा था.लंड जब पूरा सिकुदा तो देवेन ने उसे बाहर खींचा & करवट ली.रंभा घूमी और उसकी बाई बाँह के घेरे मे आ उसके सीने के बालो मे मुँह च्छूपा सोने लगी.देवेन ने उसे आगोश मे कस लिया.आज अरसे बाद उसे अच्छी नींद आनेवाली थी.

जिस्म पे कुच्छ रेंगने के एहसास से रंभा की नींद खुली.उसने आँखे खोली तो पाया की देवेन के हाथ उसके जिस्म पे घूम रहे थे.अलसाई सी मुस्कान उसके होंठो पे खेलने लगी.देवने उसकी चूत मे उंगली घुसा रहा था.उसने हल्की सी आह भर अपने जागे होने का एहसास देवेन को दिलाया.देवेन उसे देख मुस्कुराया & उसकी चूत मे वैसे ही उंगली घुसाता रहा.रंभा समझ गयी थी कि वो क्या कर रहा है.उसकी उंगली उसे मस्त कर रही थी & वो लेटे हुए उसमे खोती ये देखने लगी की देवेन उसका जी-स्पॉट ढूँढने मे कामयाब होता है या नही.

“आन्न्‍ननणणनह..!”,कुच्छ ही पॅलो बाद चूत की दीवार पे उसके जिस्म के सबसे नाज़ुक,कोमल हिस्से पे उंगली का दबाव पड़ते ही वो चिहुनक उठी & आहें भरने लगी.जिस्म के मज़े की इंतेहा से उसके दिल मे जज़्बातो का सैलाब उमड़ आया था & वो सिसक रही थी.देवेन ने उसकी टाँगे फैलाई और अपने लंड को उसकी चूत मे घुसा के उसके जी-स्पॉट पे दबाने की कोशिश करने लगा.रंभा का जिस्म झटके खाने लगा.मज़ा हद्द से ज़्यादा था,थोड़ी देर पहले हुई उनकी पहली चुदाई से भी ज़्यादा!उसकी आँखो से आँसू बहने लगे थे & वो लगभग बेहोश सी हो गयी थी.

देवेन ने लंड पूरा अंदर घुसाया & उसके उपर लेट उसे बाहो मे भर लिया.जोश मे मदहोश रंभा ने प्रेमी के जिस्म पे अपनी संगमरमरी बाहें बँधी & उसकी चुदाई का भरपूर लुत्फ़ उठाने लगी.उसकी कोख से टकराता लंड उसे हर पल जन्नत का 1 नया नज़ारा दिखा रहा था.रंभा मस्ती मे चूर अपने आशिक़ के जिस्म को खुद से चिपकाए बस चुदी जा रही थी कि देवेन उसकी बाहो से निकल घुटनो पे बैठ गया.रंभा ने उसे सवालिया निगाहो से देखा तो उसने उसके उपरी बाज़ू पकड़ उसे उठा के अपनी गोद मे ले लिया & वैसे ही लंड चूत मे घुसाए उसे लिए-दिए बिस्तर से उतर गया.

रंभा ने अपनी बाहें उसकी गर्दन मे डाल दी & उसके बाए कंधे पे चेहरा टिका दिया.देवेन ने उसे कमरे के दरवाज़े के पास की दीवार से लगाया & चंद धक्के लगाए.रंभा के शिकन भरे चेहरे पे मुस्कान भी खेल रही थी.उसने सोचा कि देवेन खड़े होके उसकी चुदाई करना चाहता है लेकिन उसका इरादा तो कुच्छ & था.रंभा को थामे वो कमरे से बाहर निकल गया.रंभा उसकी मर्दानगी की पूरी तरह से कायल हो गयी थी.पहले तो बिस्तर मे उसकी हर्कतो ने उसे उसका दीवाना बना दिया था & अब जिस तरह से उसने उसे उठा रखा था,वो उसकी जिस्मानी ताक़त की भी मुरीद हो गयी थी.

देवेन उसे लेके गुसलखाने मे आ गया था.गुसलखाना पुराने ढंग का था.1 कमरा था जिसमे पीतल की बल्टियाँ रखी थी & 2-3 लोटे.1 लकड़ी का छ्होटा सा तख्त भी रखा था & उसी पे देवेन अपनी महबूबा को लिए हुए बैठ गया.रंभा मुस्कुराइ & उसके बालो को सहलाते हुए चूमने लगा.देवेन ने भी उसकी ज़ुबान चूसी & फिर 1 लोटे मे पानी ले उसके सर पे हौले से डाला.रंभा हँसी & दूसरे लोटे को उठा के उसका पानी देवेन के सर पे उलट दिया.दोनो ने 1 दूसरे के जिस्मो को नहलाना शुरू कर दिया.देवेन ने उसकी पीठ को सहलाते हुए उसकी गर्दन चूमि & फिर 1 साबुन उठा उसकी पीठ पे लगाने लगा.रंभा मुस्कुराते हुए उसे चूमने लगी.

देवेन के हाथ सामने आए तो रंभा ने उस से साबुन लिया & फिर उसकी पीठ पे मलने लगी.दोनो 1 दूसरे की आँखो मे झाँक रहे थे.देवेन का सख़्त लंड अभी भी रंभा की चूत मे था & जिस्मो की हर्कतो से वो उसकी चूत मे हुलचूल मचाता तो मज़े की लहर उसके बदन मे दौड़ जाती.रंभा हाथ सामने लाई तो देवेन ने फिर से उस से साबुन ले लिया & उसकी दाई जाँघ पे मलने लगा.रंभा की अन्द्रुनि जाँघो पे जब उसने अपना दाया हाथ चलाया तो रंभा की आँखो मे नशा भर गया.वो अपने महबूब को देखे जा रही थी & देवेन भी उसकी निगाहो मे झाँक रहा था.उसने बाए हाथ से रंभा की टांग को थामा & उसके सीने पे दाया हाथ रख के दबाया तो रंभा उसका इशारा समझते हुए पीछे लेट गयी & फर्श से अपना सर टीका दिया.देवेन ने उसकी बाई टांग को उठाके अपने दाए कंधे पे रखा & उसपे साबुन घिसने लगा.रंभा की आँखे मस्ती मे बंद हो गयी थी.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:41 PM,
#58
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--57

गतान्क से आगे......

अपने नये प्रेमी के प्यार करने के बिल्कुल ही निराले अंदाज़ ने उसे बहुत मदहोश कर दिया था.उसके मुँह से हल्की सी आह निकली,देवेन उसके पाँव की उंगलियो मे अपने हाथ की उंगलिया घुसा के साबुन लगा रहा था.देवेन ने उसकी टांग नीचे कर दाई टांग को बाए कंधे पे चढ़ाया & वाहा भी वही हरकत दोहराई,फिर उसके हाथ थाम उसे वापस उपर खींचा.इस सब के दौरान लंड चूत मे वैसे का वैसा धंसा हुआ था.रंभा ने उसकी गर्दन मे बाहे डाल उसे शिद्दत से चूमा & अपने हाथ मे साबुन ले उसके सीने पे घिसने लगी.थोड़ी देर बाद साबुन उसके हाथो से फिसल फर्श पे था लेकिन उसके हाथ वैसे ही देवेन के सीने पे घूम रहे थे.उसने उसके सीने से लेके उसके पेट तक साबुन लगाया & फिर दोनो हाथ पीछे ले जाके फिर से उसकी पीठ रगडी तो देवेन ने भी उसे बाहो मे भर लिया & अपने सीने से उसकी छातियो को पीसते हुए उसे चूमने लगा.

देवेन ने कुच्छ देर बाद किस तोड़ी & रंभा के सीने के उभारो को साबुन के खुश्बुदार झाग से ढँकने लगा.रंभा ने मस्ती मे आँखे बंद कर ली & अपने हाथ पीछे फर्श पे टीका दिए & आहें भरने लगी.देवेन उसकी छातियो को मसल रहा था & वो अपनी कमर हिलाने लगी थी.देवेन ने साबुन को उसके पेट पे मला & रंभा की कमर के हिलने की रफ़्तार & तेज़ हो गयी.देवेन उसकी नाभि मे उंगली घुसा-2 के साबुन मल रहा था.रंभा अब मस्ती मे आहें भरती हुई बहुत तेज़ी से कमर हिला रही थी.देवेन का हाथ नीचे गया & रंभा के दाने पे साबुन लगाने लगा.रंभा ने सर पीछे झटका & ज़ोर से चीख मारी.उसका जिस्म काँपने लगा-वो झाड़ गयी थी.

वो निढाल हो पीछे फर्श पे गिरने ही वाली थी की देवेन ने उसकी बाहे थाम उसे उपर अपनी तरफ खींचा & अपनी बाहो मे भर लिया & उसके गंद की फांको पे साबुन लगाने लगा.रंभा अभी मस्ती के तूफान से उबरी भी नही थी कि देवेन ने उसकी गंद मे उंगली घुसा उसे फिर से उस दूसरे तूफान की ओर धकेलना शुरू कर दिया था.

रंभा ने उसकी गर्देन के गिर्द दाए बाज़ू को बँधे हुए बाए हाथ मे लोटा ले उपर उठा पानी गिराया & दोनो जुड़े जिस्मो से साबुन धुलने लगा.देवेन ने उसके हाथो से लोटा लिया & उसकी टाँगो पे पानी डालने लगा.रंभा ने दूसरा लोटा उठा लिया & अपने आशिक़ को नहलाने लगी.कुच्छ ही पलो मे दोनो जिस्मो से साबुन धूल चुका था.दोनो ने लोटो को किनारे किया & 1 दूसरे को बाहो मे भर चूमने लगे.देवेन ने उसे फिर से गोद मे उठा लिया & गुसलखाने से निकल गया.

“नही,कमरे मे नही.”,रंभा उसे चूम रही थी.

“तो कहा?”,देवेन उसकी गंद की पुष्ट फांको को थामे था.

“बाहर.”,रंभा शरारत से मुस्कुराइ & उसके बाए कान पे काट लिया.

“पागल हो गयी हो क्या?कोई देख लेगा तो?”

“उसी मे तो मज़ा है..अभी तो पौ भी नही फटी है फिर भी पकड़े जाने का डर तो है ही,वही रोमांच को बढ़ाता है.चलिए ना प्लीज़!”,किसी बच्ची की तरह ज़िद की उसने तो देवेन मुस्कुरा दिया.दोनो दरवाज़े तक आए तो रंभा ने हाथ पीछे ले जा सांकॅल खोली.देवेन ने उसे गोद मे उठाए हुए बाहर की ठंडी हवा मे कदम रखा.गाँव मे सन्नाटा पसरा था.दरवाज़े के बाहर के छप्पर से ढँके हिस्से के फर्श पे वो घुटनो के बल बैठ गया & आगे झुक रंभा की छातियो से मुँह लगा दिया.

रंभा थोड़ा पीछे झुकी & उसके होंठो से आहत होती,उसके सर को जकड़े आह भरने लगी.देवेन ने धक्के लगाना शुरू कर दिया था.रंभा को बहुत मज़ा आ रहा था.ठंडी हवा दोनो को सिहरा रही थी.देवेन उसकी गांद को भींच बहुत गहरे धक्के लगा रहा था.रंभा ज़ोर-2 से आहे भर रही थी.देवेन ने उसकी चूचियो को चूसने के बाद सर उठा के आस-पास देखा,कही कोई नज़र नही आ रहा था लेकिन ज़्यादा देर यहा ऐसे बैठ के चुदाई करना ख़तरे से खाली नही था.पता नही था की गाँव वाले उस बात को कैसे लेते & वो मुसीबत मे भी पद सकते थे लेकिन रंभा ने सही कहा था,बहुत रोमांच था यू चुदाई करने मे.

रंभा उसके सर को थामे उसे पागलो की तरह चूमती बहुत तेज़ी से अपनी कमर हिला रही थी.देवेन की साँसे भी तेज़ हो गयी थी & उसके हाथो की पकड़ भी रंभा की गंद पे बहुत कस गयी थी.दोनो 1 दूसरे की आँखो मे देखते ज़ोर-2 से आहे भरते हुए अपनी-2 कमर हिला रहे थे.अचानक रंभा ने ज़ोर से आह भरी & सिसकते हुए देवेन का सर पकड़ अपनी चूचियो मे धंसा दिया & बहुत ज़ोर से कमर हिलाने लगी.उसकी चूत ने देवेन के लंड को कसा & देवेन ने भी उसकी छातियो पे होंठ दबाते हुए उसकी गंद को बहुत ज़ोर से भींचा.उसका जिस्म झटके खाने लगा & उसने भी अपना गढ़ा,गर्म वीर्य रंभा की चूत मे छ्चोड़ दिया.

थोड़ी देर तक दोनो 1 दूसरे से चिपके हुए लंबी-2 साँसे लेते हुए बैठे रहे,फिर देवेन ने उसकी गंद को थाम उसे वैसे ही अपनी गोद मे उठाया & घर के अंदर आया.रंभा ने सांकॅल वापस लगाई & दोनो वैसे ही कमरे मे चले गये.

“हाई!समीर,कैसे हो?”,रंभा & देवेन सनार पहुँच चुके थे.सनार था तो 1 गाँव मगर वाहा विदेशी सब्ज़ियो & फलो की खेती होती थी & इस वजह से बाहरी लोगो का आना-जाना लगा रहता था.इस वजह से वाहा 2-3 छ्होटे होटेल भी खुल गये थे.देवेन उन्ही मे से 1 मे कमरे के बारे मे पता कर रहा था & रंभा बाहर कार मे ही बैठी थी.

“ठीक हू.तुम कहा घूम रही हो,यार?वापस क्यू नही आ रही?”

“बहुत याद आ रही है मेरी?”,रंभा ने सवाल तो ऐसे किया कि समीर को लगे कि वो उसे छेड़ रही है मगर उसके चेहरे पे गुस्सा था.

“अब ये भी कोई पुच्छने की बात है!कर क्या रही हो यार तुम वाहा?बाकी लोग तो आ गये वापस.”

“काम ही कर रही हू बाबा!यहा तक आई तो सोचा आस-पास की और जगहें भी देख लू.उनकी तस्वीरें खींच लूँगी & उनके डीटेल्स अपनी कंपनी के डेटबेस मे डाल दूँगी तो आगे ज़रूरत पड़े तो डाइरेक्टर फोटोस देख के अंदाज़ा लगा सकता है कि जगह उसके काम की है या नही.”

“तो अकेले जाने की क्या ज़रूरत थी?किसी को साथ तो रखना था.वैसे बड़े दूर की सोचने लगी हो!”

“क्या करें!नुकसान से बचने के लिए दूर की तो सोचनी ही पड़ती है & किसी को साथ लाती तो कंपनी के काम पे असर पड़ता ना.”,रंभा ने देखा देवेन होटेल से बाहर आ रहा था.उसने समीर से थोड़ी देर & बात की & फोन काट दिया.

“देखो,होटेल मे कमरा तो मिल गया है मगर तुम ज़रा सबके सामने आने से थोड़ा बचना.”

“क्यू?”,रंभा शोखी से मुस्कुराइ.उसे लगा कि देवेन को बाकी मर्दों का उसे घूर्ना पसंद नही.

“क्यूकी तुम मेहरा खानदान की बहू हो & समीर वाले मामले के बाद लोग तुम्हारी शक्ल पहचानने भी लगे हैं..”,रंभा कार से उतर गयी थी & धूप का चश्मा आँखो पे रहने दिया था,”..कोई पहचान लेगा तो बेकार मे तुम्हारे बारे मे बातें उछ्लेन्गि.”,रंभा ने 1 स्कार्फ अपने सर पे लपेटा & देवेन ने होटेल के वेटर को आते देख डिकी खोल दी,”..& फिर मुझे अच्छा नही लगता जब लोग तुम्हे ललचाई निगाहो से देखते हैं.”,वो तेज़ी से वेटर के पीछे-2 आगे बढ़ गया.रंभा मुस्कुराती उसके पीछे चलने लगी.

“बस देख ही सकते है ना!”,कमरे मे घुसते ही रंभा ने अपने आशिक़ के गले मे बाहे डाल दी & उसके गाल चूमने लगी,”..कर तो नही सकते उसने उसके चेहरे पे प्यार से हाथ फिराए,”..वो हक़ तो किसी-2 को ही है.”,देवेन मुस्कुराया & उसकी कमर को बाहो मे कस चूम लिया.

“अच्छा चलो.कुच्छ खा के देखने चलते हैं बालम सिंग का देवी फार्म.”,देवेन ने उसके गाल थपथपाए & बाथरूम मे चला गया.रंभा का फोन बजा तो उसने देखा की प्रणव का फोन था.

“हेलो.”,मुस्कुराते हुए उसने फोन उठाया.

“कहा गायब हो गयी हो जानेमन?..अपने दीवाने का ज़रा भी ख़याल नही तुम्हे?”

“इश्क़ मे थोड़ा तड़पना भी ज़रूरी होता है हुज़ूर!अभी तदपिये थोड़ा.”

“अरे,ठीक से बोलो ना!हो कहा तुम?”

“बस 1-2 दिन मे वापस आ जाऊंगी.अकेले घूम के देख रही थी कि कैसा लगता है.”,देवेन बाथरूम से बाहर आ उसे देख रहा था.रंभा उसके करीब गयी & उसे चूमा & आँखो से शांत रहने का इशारा किया.

“तो कैसा लगा?”

“बहुत अच्छा.कोई दीवाना नही परेशान करने वाला.बहुत सुकून से हूँ!”

“तड़पाव मत यार!जल्दी वापस आओ.कुच्छ बहुत ज़रूरी काम है तुमसे.”,प्रणव की आवाज़ संजीदा हो गयी थी.”

“कैसा काम?”

“आओ तो बताउन्गा.”

“ठीक है.चलो,मैं फिर फोन करूँगी.ओके?”

“ओके,बेबी.बाइ!”

“बाइ!”,रंभा ने देखा देवेन उसे सवालिया निगाहो से देखा रहा था.

“मेहरा खानदान मे अपनी जगह बनाए रखने के लिए मुझे खेल खेलने पड़ते हैं.उसी खेल का 1 मोहरा था ये.”,रंभा ने अपने मोबाइल की ओर इशारा किया.उसके चेहरे पे उदासी की छाया देखा देवेन उसके करीब आया & उसे बाहो मे भर उसके चेहरे को प्यार से सहलाया.

“मुझे नही पता की कौन-2 है तुम्हारी ज़िंदगी मे लेकिन जो भी हैं उनसे रिश्ता रखने का फ़ैसला केवल तुम्हारा होगा.मैं तुमसे कभी भी ये नही कहूँगा की मेरी वजह से तुम किसी से अपना कोई नाता तोडो.मैं तुम्हे चाहता हम अगर ये ज़रूरी नही कि तुम भी मुझे चाहो.”

“ऐसे क्यू बोल रहे हैं?”,रंभा के आँखो मे चिंता झलकने लगी थी.

“अरे तुम समझी नही मेरी बात.”,वो मुस्कुराया,”..मेरा ये कहना है कि मैं तुम्हे चाहता हू & चाहता रहूँगा लेकिन इसका मतलब ये नही कि मैं तुम्हे बाँधना चाहता हू.तुम आज़ाद ख़याल लड़की हो & मुझे ऐसे ही पसंद हो.”

“ओह..देवेन.”,रंभा उसके सीने से लिपट गयी,”..बस कुच्छ दिन और.1 बार मैं अपने पति को बेवफ़ाई करने का सबक सीखा दू फिर मैं आपसे दूर नही जाऊंगी.”,रंभा की आँखे छल्छला आई थी.

“मुझे पूरा भरोसा है तुमपे रंभा.”,दोनो 1 दूसरे को चूमने लगे कि दरवाज़े पे दस्तक हुई,वेटर उनका नाश्ता लेके आ गया था.

सनार के बाहरी इलाक़े मे कोई 10-12 छ्होटे-2 फार्म्स थे जिनमे देवी फार्म सबसे बड़ा था.बाकी फार्म्स तो बस कांटो की तरोसे घिरे थे लेकिन देवी फार्म के चारो तरफ कोई 10 फ्ट ऊँची दीवार थी & उसके उपर भी कांटो की तार लगी थी.

“सब्ज़ियो के लिए ऐसी सेक्यूरिटी!”,देवेन कार मे बैठा सोच मे पड़ गया था.रास्ते के दूसरी तरफ फार्म का मैं गेट था जो बंद था & उसके पार भी कुच्छ नही दिख रहा था,”..1 काम करो उस फार्म पे चलो.”,उसने रंभा को रोड पे पीछे छ्चोड़ आए 1 फार्म की ओर इशारा किया.रंभा ने कार घुमा दी.

“अरे,साहिब.ऐसे मशरूम आपको कही नही मिलेंगे.मेहरा फार्म्स के मशरूम का भी कोई मुक़ाबला नही हमारे मशरूम से.”,रंभा मुस्कुराइ उस किसान ने उसे पहचाना नही था.

“अच्छा.पर हमने तो सुना था कि सनार मे देवी फार्म के मशरूम माशूर हैं.”,किसान के चेहरे का रंग बदल गया.

“अच्छा!कौन बोला आपको ये बात?”

“क्यू?”

“जो भी बोला साहिब आपको झूठ बोला क्यूकी देवी फार्म मे तो मशरूम उगाया ही नही जाता.”,वो हंसा.

“क्या?!”

“जी,वाहा तो विदेशी सलाद के पत्ते उगाए जाते हैं.”,देवेन ने रंभा की ओर देखा.

“लेटास.”,उसने उसे समझाया.

“खैर,आप हमे सॅंपल दीजिए फिर हम आपके पास आएँगे?”

“ज़रूर साहिब ये लीजिए.”,उसने उसे कुच्छ पॅकेट्स पकड़ाए.

“1 बात पुच्छनी थी.”

‘हां पुछिये.”

“आप सभी के फार्म तो बॅसकॅंटो की तार से घिरे हैं ये देवी फार्म की सब्ज़ियाँ क्या आवारा जानवरो को कुच्छ ज़्यादा पसनद है जो इतनी लंबी-चौड़ी दीवार खड़ी कर रखी है!”

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:41 PM,
#59
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--58

गतान्क से आगे......

“मज़ाक करते हैं साहिब आप तो!”,किसान ने ठहाका लगाया,”..अरे बड़े आदमी की ज़मीन है साहब,उसका अपना तरीका.”

“अच्छा किसका फार्म है?”

“कोई बालम सिंग है साहिब.”

“मिले हैं आप उस से?”

“नही साहब.1-2 बार देखा है.ज़्यादा मिलता-जुलता नही हम सब से जबकि रहता यही है फार्म पे ही.”

“अच्छा.”,दोनो वाहा से निकल गये & वापस होटेल पहुचे.

“रंभा,तुम वापस चली जाओ.”,बिस्तर पे नंगी लेटी रंभा के दाए तरफ लेटा देवेन उसकी दाई चूची को चूस्ते हुए दाए हाथ की उंगलो उसकी चूत मे घुसा रहा था.

“क्यू?!”,रंभा ने हैरत से उसे देखा,”..आआअन्न्‍ननणणनह..!”,देवेन ने उसके जी-स्पॉट को दोबारा ढूंड लिया था.रंभा फिर से बेहोश जैसी हो गयी & बिस्तर पे निढाल पड़ गयी.उसका जिस्म थरथरा रहा था.देवेन ने उसकी चूत से उंगली निकाली & उसे निहारने लगा.कुच्छ पॅलो बाद रंभा जब खुमारी से बाहर आई तो उसने देवेन को बाहो मे जाकड़ लिया & उसके चेहरे & होंठो पे किसिज की झड़ी लगा दी,”..क्यू अलग कर रहे हैं मुझे खुद से?..”,उसने उसे पलट दिया & उसके उपर सवार हो गयी & उसके सीने को चूमने लगी,”.वैसे भी 2 दिनो मे तो जुदा होना ही है.”,रंभा की आँखो मे पानी था.देवेन ने उसे बाहो मे कस के चूम लिया & उसकी गंद दबाई.

“दिल तो करता है की तुम्हे अभी भगा के गोआ ले चलु.”,रंभा उसकी प्यार भरी बात सुन मुस्कुरा दी & उसके निपल्स को नखुनो से खरोंचा,”..लेकिन दयाल को ऐसे कैसे छ्चोड़ दू बिना सज़ा दिए?”,रंभा उसकी बात से संजीदा हो गयी.

“हां तो फिर मैं भी तो इसीलिए आई हू ना आपके साथ यहा तक..तो अब जाने को क्यू कह रहे हैं?”,उसने अपनी चूत को उसके लंड पे दबाया तो देवेन ने उसकी कमर पकड़ी & उसके जिस्म को उपर उठाया.रंभा उसका इशारा समझते हुए हाथ नीचे ले गयी & लंड को अपनी चूत का रास्ता दिखाया,”..ऊऊहह….!”

“क्यूकी यहा बहुत ख़तरा है.”,देवेन उसकी गंद को दबाते हुए नीचे से कमर उचका रहा था & रंभा उसके सीने पे अपनी भारी-भरकम चूचियाँ दबाए उसे चूमते हुए चुद रही थी,”..देखा नही कितनी ऊँची दीवार थी.उसका मतलब था कि वो कुच्छ च्छुपाना चाहता है दुनिया की नज़रो से.कोई ग़लत काम होता है वाहा & ये यहा की पोलीस या बाकी सरकारी लोगो की मिली-भगत के बिना मुमकिन नही..उउम्म्म्ममम..!”,उसने अपना सर उठाके रंभा की चूचियो को बारी-2 से मुँह मे भरना शुरू कर दिया.

“तो आप क्यू जा रहे हैं वाहा अकेले?..ओईईईईईईईई..!”,देवेन उसकी गंद मे उंगली घुसा रहा था & उसकी कमर अब तेज़ी से हिलने लगी थी.

“क्यूकी & कोई रास्ता नही,मेरी जान.”,रंभा ने मस्ती मे सर उपर कर लिया था & देवेन अब उसकी गर्देन चूम रहा था,”..मैं किसी तरह उस से मुलाकात कर ही लूँगा लेकिन अगर कुच्छ गड़बड़ हुई तो वो तुम्हारे पीछे आ सकते हैं.ये उसका इलाक़ा है & कोई ना कोई उसे बता ही देगा की तुम मेरे साथ देखी गयी थी..”,रंभा के होंठ खुले हुए थे मगर वो आह नही भर रही थी.उसने आँखे बिल्कुल कस के मीची हुई थी & उसकी कमर को जकड़े देवेन बहुत ज़ोर के धक्के लगा रहा था,”..इसीलिए हम यहा से अभी चेक आउट करेंगे & कह देंगे की वापस जा रहे हैं.तुम मुझे रास्ते मे उतार देना & खुद वापस क्लेवर्त चली जाना.”

“आन्न्‍ननणणनह..मुझे पास ही रखिए ना…..ऊऊहह..!”,वो उसकी जाकड़ मे कसमसाने लगी थी.देवेन ने उसके चेहरे के भाव देखे & उसकी चूत की हरकत महसूस की & समझ गया कि वो झाड़ गयी है.उसने फ़ौरन उसे पलट के अपने नीचे किया & चूमने लगा.

“प्लीज़ रंभा.मेरी बात मानो मेरी जान.”,वो उसे चूमते हुए चोद रहा था.रंभा मस्ती की इस लहर से नीचे उतरी नही थी की उसके प्रेमी ने उसे दूसरी लहर पे सवार करा दिया था,”..तुम वापस जाओ,मैं कल शाम 5 बजे तक अगर फोन ना करू तो समझलेना कि..-“,रंभा ने उसे 1 थप्पड़ लगाया & उचक के उसके होंठ अपने होंठो से सील दिए.उसकी आँखो के कोनो से 2 मोती की बूंदे उसके मस्ती मे & सुर्ख हो गये गालो पे ढालाक पड़ी.उसके जिस्म मे फुलझड़ियाँ छूट रही थी लेकिन दिल दिलबर की बात से उदास हो गया था.उसकी चूत सिकुड़ने लगी थी & उसकी तमन्ना की वो अपने महबूब के जिस्म के साथ 1 हो उस से हुमेशा-2 के लिए जुड़ी रहे,ना केवल उसके दिल बल्कि उसकी रूह मे भी पैबस्त हो गयी थी.देवेन का भी कुच्छ ऐसा ही हाल था & उसे यकीन नही हो रहा था की चंद घंटो मे ही वो लड़की उसकी ज़िंदगी बन गयी थी.रंभा झाड़ रही थी & जज़्बातो के तूफान से आहत हो ज़ोर-2 से सिसक रही थी.देवेन ने बाई बाँह उसकी गर्देन के नीचे लगा दाए हाथ मे उसके चेहरे को थाम उसे चूमते हुए अपनी मोहब्बत से उसे समझाने की कोशिश करने लगा & उसका लंड उसकी कोख को अपने वीर्य से भरने लगा.

शाम का ढुंदालका गहरा रहा था & देवेन झाड़ियो मे छुपा ये सोच रहा था कि देवी फार्म के अंदर घुसा कैसे जाए.उसने छुप-2 के फार्म की चारदीवारी के जायज़ा ले लिया था & उसे कही भी ऐसी कोई जगह नही दिखी जहा से अंदर जया जा सके.अब 1 ही रास्ता था की मेन गेट से घुसा जाए लेकिन गेट पे 2 हत्यारबंद गरॅड्स थे.उनके हथियार सामने तो नही थे मगर उनके कपड़ो के उभारो को देख समझ गया था कि उनकी बंदूके वही छिपि हैं.

तभी 1 काली टाटा सफ़ारी आती दिखी.वो कार गेट के सामने रुकी & उसका पीछे का 1 शीशा नीचे हुआ & अंडरबैठे आदमी ने बाहर पान की पीक फेंकी.देवेन की आँखे चमक उठी..यही था बालम सिंग.उसे बताया था उस आदमी ने की वो पान बहुत ख़ाता था फिर यहा का मालिक भी वही था.उसे गेट खोल सलाम ठोनकटे गुरदस से कार मे बैठा शख्स भी मालिक ही लग रहा था.

देवेन अब बेचैन हो उठा था.बालम सिंग को देख उसका दिल किया था कि उसी वक़्त दौड़ के कार से उसे उतार उस से दयाल के बारे मे पुच्छ ले लेकिन ऐसा करना बहुत बड़ी बेवकूफी होती.मगर उसकी तक़दीर शायद उसपे मेहेरबान थी.अंधेरा होते ही उसे 1 ट्रक आता दिखा.ट्रक गेट पे रुका & हॉर्न बजाया फिर ड्राइवर उतरा & गेट से बाहर आए 1 गार्ड से कुच्छ बात की.तब तक देवेन दबे पाँव च्छूपने की जगह से निकल ट्रक के पीछे आ गया था.देवेन ने देखा ड्राइवर & गार्ड ट्रक के बॉनेट के आगे बात कर रहे थे.उसने ट्रक के पीछे लगा कॅन्वस थोड़ा सा उठाके अंदर झाँका तो वो उसे खाली नज़र आया.वो फ़ौरन बिना आहट किए अंदर घुस गया.

"जल्दी चेक कर यार!",ड्राइवर गार्ड से बोल रहा था..देवेन घबरा गया..वो इधर आ रहे थे..उसने ट्रक मे इधर-उधर देखा & उसे 1 बड़ी सी प्लास्टिक शीट दिखी.वो फ़ौरन उसके नीचे घुस के लेट गया & अपनी साँसे रोक ली.

गार्ड आया & कॅन्वस उठाके टॉर्च की तेज़ रोशनी अंदर डाली,"ये क्या है भाई?"

"अरे प्लास्टिक शीट है,यार.",ड्राइवर ने जवाब दिया,"..माल को ढँकने के लिए.",उसने दबी आवाज़ मे कहा.

"हूँ.",गार्ड ने टॉर्च चारो तरफ घुमाई & फिर उतर गया.कुच्छ देर बाद ट्रक स्टार्ट हुआ & गेट खुलने की आवाज़ आई.ट्रक कोई 2 मिनिट तक चलने के बाद रुका.

"चढ़ाओ भाई समान.",ड्राइवर ट्रक से उतरा.

"अभी काफ़ी टाइम है भाई.जा खाना-वाना खा ले.",1 दूसरी आवाज़ आई,"..अभी 2 घंटे हैं."

"अच्छा.चलो तब तो खा के 1 नींद भी मार लेता हू!",ड्राइवर की आवाज़ दूर जा रही थी.देवेन शीट के नीचे से निकला & कॅन्वस हटा के बाहर देखने लगा.

“फ़र्ज़ करो की समीर नही है..”,महादेव शाह प्रणव के साथ अपने बुंगले के लॉन मे बैठा था.दोनो की सारी मुलाक़ातें यही होती थी केवल इसीलिए नही की बाहर उनके 1 साथ देखे जाने का उन्हे डर था पर इसीलिए भी की शाह बहुत ज़्यादा बाहर नही निकलता था.वो अपना सारा काम अपने बंगल से ही देखता था,”..तो उसके शेर्स रंभा को मिल जाएँगे.”

“हां.”

“तो ग्रूप की मालिको मे से सबसे मज़बूत पोज़िशन उसी की होगी है ना?”

“हां.”

“लेकिन ग्रूप को चलाने के लिए,रोज़ के फ़ैसले लेने के लिए 1 Cएओ की दरकार होगी.”

हां,वो ज़रूरत मैं पूरी करूँगा.”

“ऐसा तुम सोचते हो.”,शाह मुस्कुराया.

“मैं आपकी बात नही समझा.”

“तुम्हारा मानना है कि वो लड़की तुम्हारे कहे मे है & तुम्हे Cएओ की कुर्सी पे बिठाने मे वो ज़रा भी देर नही लगाएगी.”

“बिल्कुल.”

“प्रणव साहिब,दौलत के नशे से बड़ा नशा ताक़त का होता है.उस लड़की ने इनकार कर दिया तो?”

“मेरी सास रीता मेहरा & बीवी शिप्रा के पास भी शेर्स हैं.मैं बाकी शेर्होल्डर्स के साथ मिलके बोर्ड मीटिंग मे वोटिंग की बात कर सकता हू.”

“बिल्कुल कर सकते हो लेकिन वो लड़की भी ऐसा कर सकती है.”

“मगर कोई उसकी क्यू सुनेगा?!”,प्रणव झल्ला उठा था.

“क्यू नही सुनेगा!..प्रणव उसे कम मत आंको.समीर लापता हुआ था तब विजयंत मेहरा उसे दूध मे पड़ी मक्खी की तरह बाहर फेंक सकता था पर नही वो तो उसे अपने साथ ले गया अपने लड़के की तलाश मे.अगर विजयंत जैसा दिमाग़ दार शख्स ऐसा कर सकता है,इसका मतलब है वो लड़की मूर्ख तो नही है!”

“हां,ये तो है.”

“इसीलिए बहुत ज़रूरी है की उसे अपने काबू मे रखा जाए.”

“ब्लॅकमेल?”

“नाह..!”.शाह जैसे उसकी बात से झल्ला सा गया,”..ये बचकाने खेल हैं.मैं किसी तरह उस से मेलजोल बढ़ाता हू.मैं उस से तुम्हारी पैरवी नही करूँगा बल्कि उल्टे उसे ये एहसास कारवंगा की तुम मुझे पसंद नही करते & हम दोनो 1 दूसरे को देखना पसंद नही करते मगर जब वक़्त आएगा तो मैं भी उस से यही कहूँगा कि कंपनी की बागडोर संभालने के लिए तुमसे बेहतर शख्स कोई नही हो सकता.”

“& वो आपकी बात क्यू मानेगी?”

“दुश्मन की तारीफ से बड़ी तारीफ क्या हो सकती है!”,शाह मुस्कुरा रहा था,”..प्रणव,ट्रस्ट बहुत बड़ा जहाज़ है,बड़े से बड़ा तूफान झेलने का माद्दा है उसमे लेकिन अक्सर बड़े जहाज़ो को डूबने के लिए 1 छ्होटा सा सुराख ही काफ़ी होता है.हमे इस जहाज़ को समंदर का बादशाह बनके उसपे राज करना है,इसीलिए बहुत ज़रूरी है कि हम हर कदम फूँक-2 के उठाएँ.मुझे पता है कि मेरा प्लान ग़लत भी साबित हो सकता है लेकिन रंभा पे हर वक़्त नज़र रखने का & उसकी सोच को अपने हिसाब से मोड़ने का इस से बेहतर रास्ता मुझे नही दिख रहा.”

“हूँ.. ठीक है.जब वो डेवाले वापस लौटती है तो मैं आपको बताता हू फिर जो करना हो कीजिएगा.”,प्रणव खड़ा हो गया,”अब चलता हू.”,उसने शाह से हाथ मिलाया & वाहा से निकल गया.

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देवेन ट्रक से उतरा & चारो तरफ देखा.उसने देखा सामने 1 गोदाम जैसी इमारत थी.वो दबे पाँव उसके करीब गया & उसकी 1 खिड़की से अंदर झाँका.5 आदमी थे अंदर उस ड्राइवर समेट.1 किनारे 1 टेबल पे कुच्छ बर्तन रखे थे जिनमे से लेके वो पाँचो खाना खा रहे थे,”आराम से खाना.आज काफ़ी वक़्त है ,आराम से समान चढ़ाएँगे.”,बोलते हुए उस शख्स ने 1 कोने मे देखा तो देवेन की नज़र भी उधर गयी.वाहा फलों के गत्ते वाले कारटन रखे थे..यहा तो लेटास..सलाद के पत्ते उगाए जाते थे फिर ये सेब की तस्वीर वाले कारटन..वो सोच मे पड़ गया लेकिन उसे इस सब से क्या लेना-देना था.उसका मक़सद तो बालम सिंग से दयाल के बारे मे पुच्छना था.

वो वाहा से दबे पाँव दूसरी दिशा मे गया.सामने 1 बुंगला दिख रहा था मगर उसके आस-पास उसे बंदूक थामे लोग घूमते दिख रहे थे..उन कारटन्स मे कुच्छ तो ग़ैरक़ानूनी था.वो सोच मे पड़ गया की बालम सिंग तक पहुचे कैसे & उस से भी ज़रूरी बात की उस से मिलने के बाद यहा से निकले कैसे.कुच्छ ऐसा करना था कि फार्म के गेट उसके लिए खुद बा खुद खुलें & वो बाहर निकल जाए.क्या किया जा सकता था ऐसा..वो सोच रहा था कि उसकी निगाह 1 कोने मे पड़ी.

वो 1 गॅरेज था जहा अभी कोई नही था.वो उसके अंदर गया & उसे वाहा 1 फोन भी रखा दिखा..बस उसका काम हो गया.उसने फोन उठाया 101 नंबर घुमाया,”हेलो,फिरे ब्रिगेड..मैं देवी फार्म से बोल रहा हू..यहा आग लग गयी है..जल्दी आएँ वरना पूरा फार्म खाक हो जाएगा!”,घबराई आवाज़ मे बोल उसने फोन काट दिया.सनार था तो 1 गाँव मगर अपने फार्म्स की वजह से यहा की आमदनी से सरकार को भी काफ़ी मुनाफ़ा हो रहा था & अब ज़रूरत की बुनियादी चीज़ें यहा दिखने लगी थी.देवेन ने दिन मे ही बस ताज़ा खुले फिरे स्टेशन को देखा था.बस 1 दमकल की गाड़ी थी मगर थी तो!

उसके बाद उसने डीजल के कॅन खोल कर गॅरेज मे बहाना शुरू किया.सारे डीजल से गॅरेज को अच्छे से भिगोने के बाद उसने सिगरेट सुलगाई & 1 काश ले उसे ज़मीन पे फेंका & भागा वाहा से.चंद पॅलो मे ही गॅरेज धू-2 करके जल रहा था.आग की लपटें उसके साथ लगी उस गोदाम जैसी इमारत को भी च्छुने लगी थी.देवेन जिस ट्रक से आया था उस से थोड़ा हटके 1 दूसरा ट्रक भी लगा था.देवेन उसी मे च्छूपा था.उसने देखा कि फार्म मे कोहराम मच गया.सभी पानी लेके आग बुझाने की कोशिश मे लग गये.

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क्रमशः.......
Reply
12-19-2017, 10:41 PM,
#60
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--59

गतान्क से आगे......

अफ़रा-तफ़री का फ़ायदा उठाते हुए देवेन अपनी च्छूपने की जगह से निकला ,गॅरेज से उसने 1 रस्सी उठा ली थी जो कि अब उसके कंधे पे तंगी थी.वो बंगल की तरफ भागा,”आग लग गयी आग!”,वो बेतहाशा चीख रहा था.उसे पता था कि वो बहुत बड़ा ख़तरा उठा रहा है.अगर किसी को ज़रा भी अंदेशा हुआ कि वो घुसपैठिया है तो उसे गोली मारने मे वो ज़रा भी नही हिचकिचाएंगे लेकिन ये ख़तरा तो उसे उठाना ही था,”अरे खड़े-2 देख क्या रहे हो.आग बुझाने मे मदद करो!मैं बॉस को बुलाता हू!”,वो बंगल के दरवाज़े की ओर भाग रहा था.बंगल की रखवाली करते गार्ड्स थोड़े हिचकिचाते दिखे मगर देवेन ने जिस भरोसे के साथ उनसे बात की थी उन्हे उसपे शक़ नही हुआ था & वो आग बुझाने भागे,”कमाल हो यार तुम सब भी!हथियार लेके आग बुझा रहे हो.रखो यहा सब!”,उसे खुद पे हैरत हो रही थी.वो उन सबको ऐसे डाँट रहा था जैसे वो ही उनका बॉस हो!

उसने 1 गुंडे की छ्चोड़ी मशीन गन उठाई & अंदर भागा & उसकी किस्मेत की वो भागते आते बालम सिंग से टकराया,”क्या हुआ?..तुम कौन हो?”

“चुप!”,देवेन ने उसपे बंदूक तानि.बंगल के अहाते मे वो वही काली गाड़ी खड़ी थी जिसमे बालम सिंग वाहा आया था,”चुप चाप गाड़ी मे बैठ.चल!चिल्लाना मत वरना बस 1 बार ट्रिग्गर दबाउन्गा,उसके बाद मैं मर भी जाऊं तो मुझे परवाह नही.तू तो उपर पहुँच चुक्का होगा साले!”,

“द-देखो,तुम बच के नही जा सकते..”

“तो क्या हुआ कामीने..तू भी तो नही बचेगा..अगर जान प्यारी है तो बैठ गाड़ी मे ड्राइविंग सीट पे.”बालम सिंग आगे बैठा & पीछे देवेन,”..अब गाड़ी बुंगले से बाहर ले चल.”,उसने वैसा ही किया,”..गार्ड को कोई इशारा तक किया तो ट्रिग्गर दब जाएगा.”,पिच्छली सीट पे बैठे उसकी कमर के ठीक उपर बाई तरफ बंदूक की नाल सटी हुई थी.बालम सिंग जानता था कि पीछे बैठा आदमी जुनूनी है & वो कुच्छ भी कर सकता है.वो गाड़ी गेट तक ले गया & गार्ड से गेट खोलने को कहा.गाड़ी गेट से बाहर निकली & देवेन ने उसे हराड की ओर चलने को कहा.रास्ते मे बालम सिंग ने दमकल की गाड़ी को उसके फार्म की ओर जाते देखा.कुच्छ देर पहले वो कितना निश्चिंत बैठा टीवी देख रहा था & अब उसे ये भी पता नही था कि वो ज़िंदा बचेगा या नही & अगर बच भी गया तो उसका धंधा सलामत रहेगा या नही,”..उधर मोड़ झाड़ियो में..हां ..रोक!”

“आईईयईीई..क्या कर रहे हो?..मैं मर जाऊँगा..आहह..!”,देवेन ने पीछे से रस्सी उसके गले मे बाँध दी थी & फिर उसे लपेटते हुए बालम सिंग को गाड़ी की सीट से ही बाँध दिया था,”..तुम्हे चाहिए क्या?..पैसा..मैं मालामाल कर दूँगा तुम्हे..जो बोलो सो दूँगा..!”,घबराया बालम सिंग बके जा रहा था.

“दयाल.”

“हैं?”

“दयाल कहा है?”

“अरे कौन दयाल..मैं किसी दयाल को नही जानता..तुम्हे ग़लतफहमी..-“

‘-..चुप!याद कर जब तू गोपालपुर के साथ वाले कस्बे की जैल मे था.तू किसके साथ मिलके क़ैदियो को ग़ैरक़ानूनी चीज़ें मुहैय्या करता था..याद कर..!”

“वो..दयाल..”

“हां..याद आया.”

“कहा है वो कमीना?”

“मुझे क्या पता भाई!..वो तो भाग गया था वाहा से.”

“क्या?क्यू भागा था & कहाँ?”

“हां..अब मुझे क्या पता कहा गया वो..आहह..”

“झूठ मत बोल!”,गले मे बँधी रस्सी को देवेन ने ज़ोर से खींचा था & बालम सिंग की सांस रुकने लगी थी,”..तू उसके बारे मे जो भी जानता है मुझे बता वरना ये रस्सी अभी & कसेगी.”,देवेन ने रस्सी को & खींचा.

“आरर्ग्घह..आहह..बताता हू..ढीला करो इसे.”,देवेन ने रस्सी ढीली की,”..दयाल ..”,वो खांसने लगा,”..वाहा ड्रग्स का धंधा करता था.मैं उस से चर्स,गार्ड लेके अंदर क़ैदियो को बेचा करता था.वो बाकी चीज़ें भी सप्लाइ करता था मगर उसका असली धंधा ड्रग्स का ही था.”

“उसका धंधा तो चोरी के जवाहरात बेचना था?”

“नही.वो तो उसकी 1 चाल भर थी खुद को बचाने के लिए.नारकॉटैक्स ब्यूरो को इस बात की खबर लग गयी थी कि वो ड्रग्स का कारोबार करता है लेकिन उन्हे पता नही था कि वो कैसा दिखता है फिर दयाल उसका असली नाम था भी नही.”

“तो क्या था उसका असली नाम?”

“ये तो शायद केवल उसकी मा को पता होगा.साला,कपड़ो की तरह नाम बदलता था.उस वक़्त वो दयाल नाम इस्तेमाल कर रहा था.उसने 1 चाल चली जिसमे मैं भी शामिल था.उसने 1 दूसरे शख्स को अपनी जगह नारकॉटैक्स ब्यूरो के जाल मे फसाने की सोची.ब्यूरो का 1 एजेंट दयाल के पीछे-2 गोपालपुर तक आ पहुँचा था.

“मैने उसे उस शख्स के बारे मे बता दिया जिसे दयाल अपनी जगह गिरफ्तार करवाना चाहता था.”

“अच्छा,कौन था वो?”,देवेन की आवाज़ का गुस्सा अब बहुत ख़तरनाक लग रहा था लेकिन बेचारे बालम सिंग को इसका एहसास नही था.

“पता नही.मैं उसका नाम नही जानता था..हां,उसकी कोई प्रेमिका थी..मैने दयाल केकेहने पे उसे ये बताया कि उसका प्रेमी ग़लत काम कर रहा है & अगर वो 1 बार पोलीस की मदद कर दे तो वो उसे पकड़ के उस से चोरी का माल बरामद कर उसे छ्चोड़ देंगे फिर वो उसे समझा-बुझा के अपने साथ ले जा सकती है.”..तो ये बात थी!इन कामीनो ने उसकी सुमित्रा का इस्तेमाल किया था उसके खिलाफ.

“फिर क्या हुआ?”

“वो बड़ी भोली थी.मान गयी हमारी बात & सीधा उस नारकॉटैक्स एजेंट को बता दिया अपने आशिक़ के बारे मे & फिर वो पकड़ा गया.दयाल का काम हो गया.”

“लेकिन 1 बार वो कोलकाता गया था उस लड़की के साथ?”

“हां,साला जितना शातिर था उतना हिम्मती भी.उस लड़की को ले गया कोलकाता ये भरोसा दिलाके की अब वो उसके प्रेमी को छुड़ा के ले आएगा.उसे इस बात का डर भी नही था कि वो पकड़ा जाएगा.उसका कहना था कि जब ‘दयाल’पोलीस की गिरफ़्त मे है तो कोई उसपे हाथ क्यू डालेगा!..हुंग!..जब वो लड़की वाहा पहुँची & ये सुना कि उसका प्रेमी 1 ड्रग स्मग्लर था तो उसका दिल टूट गया & वो वापस आ गयी & दयाल उसे दिलासा देने के बाद मुल्क से रफूचक्कर हो गया.”..दोस्ती का नाम लेके कितना बड़ा खेल खेला था उस कामीने ने & अपने जाल मे फँसा 2 प्यार भरे दिलो को हमेशा-2 के लिए जुदा कर दिया था उसने..& वो अपनी सुमित्रा को धोखेबाज़ समझता रहा & सुमित्रा उसे 1 गलिज़ मुजरिम!

“दयाल गया कहा आख़िर?”

“मुझे नही मालूम.”

“बोल?”,रस्सी कस गयी.”

“उउन्नगगगगगघह..सच..के..हता..हू..!”,वो सच कह रहा था.देवेन ने रस्सी ढीली की & अपनी जेब से रुमाल निकाला & उस बंदूक को पोंच्छा.उसके बाद कार की पिच्छली सीट से उतरा & आगे का दरवाज़ा खोल उस गन के पिच्छले हिस्से को बालम सिंग के माथे पे दे मारा.चीख मार वो बेहोश हो गया.20 मिनिट बाद उस जगह से 1किमी दूर पहाड़ी रास्ते के किनारे क्की खाई मे कुच्छ गिरने की बहुत ज़ोर की आवाज़ आई.1 शख्स ने बहुत दूर से देखा था & उसने पोलीस को यही बताया था की कोई जलती सी चीज़ खाई मे गिरी थी.अगले रोज़ बालम सिंग की राख हो चुकी लाश बंदूक के साथ खाई मे गाड़ी की अगली सीट पे पड़ी मिली थी.

देवेन आँसू बहाता रास्ते पे पैदल चला जा रहा था.उसे बालम सिंग के बेहोश जिस्म को उसी की कार के पेट्रोल से नहला के आग लगाके कार समेत खाई मे धकेलने का गम नही था,उसे गम था कि वो अपनी सुमित्रा को सच्चाई नही बता सका की वो मुजरिम नही था.उसके साथ 1 बेहतर ज़िंदगी गुज़ारने के लालच का फयडा उठाया था उस कामीने ने..& वो कमीना भी गायब था अब..पता नही कहा..कैसे सज़ा देगा उसे वो..आख़िर कैसे?

वो 1 ढाबे पे पहुँचा & हाथ-मुँह धोया.वो जानता था कि पोलीस अब 1 काली कमीज़ & काली जेनस वाले शख्स की तलाश मे होगी.गाल का निशान किसी ने देखा या नही ये उसे पता नही था मगर ये बहुत मुमकिन था कि उन्हे ये पता चल जाए कि 2 लोग वाहा मशरूम की पैदावार के बारे मे पता करने आए थे.उसने पहले ही अपना & रंभा का झूठा नाम लिखवाया था.भला हो गोआ के उसके दोस्तो का जो उन्होने बिल्कुल असली दिखने वाली फ़र्ज़ी ईद उसे मुहैय्या कराई हुई थी.अब उसे रंभा को खबर करनी थी लेकिन हो सकता है कि बाद मे पोलीस सारे इलाक़े मे इस वक़्त की गयी फोन कॉल्स को खंगले.उसे कोई बहुत महफूज़ लाइन खोजनी थी फोन करने के लिए..हां!

उसने 1 ट्रक मे लिफ्ट ली & हराड की ओर बढ़ा.हराड से थोड़ा पहले 1 गाँव था जहा उसने 1 डाक खाना देखा था.वो उस गाँव से थोड़ा आगे उतरा..वो कोई चान्स नही ले रहा था..अगर ट्रक ड्राइवर को वो याद भी रहा तो वो यही कहेगा की वो गाँव से आगे उतरा था.डाक खाने के अंदर घुसना उतना आसान नही था जितना उसने सोचा था.पुराने अंदाज़ की लोहे की च्छड़ो वाली खिड़कियाँ थी & दरवाज़े पे बड़ा सा ताला.वो मायूस हो वाहा से जा ही रहा था कि उसकी निगाह फूस के छप्पर पे पड़ी & अगले ही पल इक्का-दुक्का घूमते लोगो की नज़र बचा वो छप्पर पे चढ़ गया था & फिर पेट के बल लेट के फूस हटा थोड़ी देर बाद अंदर उतर चुका था.

“हेलो,रंभा.कहा हो तुम?”

“आप कहा हैं?ठीक है ना आप?..जल्दी आइए ना!मुझे कुच्छ बहुत ज़रूरी बताना है आपको..प्लीज़ आप फ़ौरन यहा आइए.”

“क्या बताना है & आऊँ कहा?..सब ठीक तो है ना?”

“हां,सब ठीक है.पर..पर..ओफ्फो..आप आइए ना यहा?!”

“अरे मगर बताओ तो कहा?”,उस तनाव भरे माहौल मे भी देवेन को हँसी आ गयी.

हराड & उस डाक खाने वाले गाँव के बीच 1 रास्ता मैं रोड से उतर के अंदर जाता था.उसी पे 1 गाँव था भूमल.1 बरसाती नदी बहती थी उस तरफ से जिसमे अभी उतना पानी नही था.बरसात के आसपास वो जगह बड़ी खूबसूरत हो जाती थी & नदी मच्चलियो से भर जाती थी.मच्चली मारने वालो का मजमा लगा रहता था उसके किनारे.अब रंभा के हाथ वाहा कौन सी मच्चली लग गयी थी यही देखने देवेन वाहा जा रहा था.1 लेट नाइट बस सर्विस की बस को हाथ देके उसने रोका & उसमे सवार हो गया.जब वो बस मे चढ़ा तो उसमे बैठी सवारीयो को कोई काली कमीज़ & पतलून पहना शख्स नही बल्कि पीली चेक की कमीज़ & काली पतलून पहना चेहरे पे गम्छा ओढ़े देहाती सा शख्स दिखा.ये कमीज़ उसने गाँव के 1 घर के बाहर सुख़्ते कपड़ो मे से उठा ली थी & गंच्छा उसे पोस्ट ऑफीस मे ही पड़ा मिल गया था.उसकी कमीज़ अभी उसके कंधे पे लटके 1 झोले मे थी जोकि किसी डाकिये ने पोस्टॉफ़्फिसे मे रख छ्चोड़ा था.

1 घंटे बाद वो बस से उतरा & भूमल की ओर जा रहे रास्ते पे पैदल चलने लगा कि तभी सामने से उसे किसी गाड़ी की हेडलाइट्स दिखी.वो मुस्कुराता खड़ा हो गया.गाड़ी उसके करीब आई & उसकी खिड़की का शीशा नीचे हुआ,”हा..हा..ये क्या हुलिया बना रखा है!”,रंभा हँसने लगी.1 पल को सुमित्रा की शक्ल नाच उठी देवेन की आँखो के सामने..हंसते वक़्त वो बिल्कुल सुमित्रा जैसी लग रही थी,”..क्या हुआ?”,रंभा ने हँसना बंद किया & खुद को 1 तक देखते देवेन से पुचछा.

“बाद मे बताउन्गा.”,देवेन खिड़की के पास आया & उसका माथा चूमा,”..अब बताओ क्या दिखाना चाहती थी मुझे?”,रंभा अचानक संजीदा हो गयी.सच तो ये था की जबसे वो भूमल आई थी उसके होश-हवस उड़ गये थे.वो खुश तो बहुत हुई थी लेकिन साथ ही 1 अंजाना डर भी उसके दिल मे पैदा हो गया था.वो तो देवेन का हुलिया देख उसे हँसी आ गयी &1 पल को वो सब भूल गयी थी.

“चलिए.”,देवेन बैठा तो रंभा ने कार घुमाई.

“तुम यहा कैसे आ गयी?”

“मेरा मन नही माना की आपको अकेला छ्चोड़ू लेकिन आपकी बात मना करना भी ठीक नही लग रहा था.इसी उधेड़बुन मे मुझे बोर्ड दिखा & मुझे यहा की बरसाती नदी की याद आ गयी.उसके बारे मे बहुत सुना था.तो सोचा कि उसे भी देख लू लेकिन दरअसल मैं आगे बढ़ना टाल रही थी.”,देवेन उसकी बात सुन मुस्कुराया.

“पर तुम्हे मिला क्या है?”

“वही चल के देख लीजिएगा.”,कोई 40 मिनिट & ड्राइव करने के बाद वो दोनो भूमल पहुँच गये थे.यहा बिजली नही थी & घरो मे लालटेने जल रही थी.नदी की कल-2 की आवाज़ भी आ रही थी.रंभा गाड़ी से उतरी & टॉर्च से रास्ता दिखाते उसे ले जाने लगी.1 घर की आगे पहुँच वो रुक गयी.उस घर की चौखट के 1 किनारे उसके बरामदे मे कोई बैठा था.अंधेरे मे देवेन को उसकी शक्ल नही दिख रही थी बस इतना पता चल रहा था कि वो शख्स ज़मीन पे चादर या दुशाला ओढ़े बैठा है.

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क्रमशः.......
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