Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:48 PM,
#71
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--70

गतान्क से आगे......

"म्र्स.मेहरा मुझे सिर्फ़ आपको ढूँदने का काम दिया गया था.आप दोनो के ज़ाति मामलो मे पड़ने का मेरा ना इरादा है ना ही ख्वाहिश."

"मिस्टर.मोहन,शायद समीर ने आपको बताया नही कि मैने उस से साफ-2 कहा था कि वो मुझे ढूँढने की कोशिश ना करे वरना वही होगा जो मैने अभी पहले कहा था & आपने जिस दिन मुझे ढूँढने का काम अपने हाथ मे लिया,चाहते या ना चाहते हुए आप भी हमारे ज़ाति मामले का हिस्सा बन गये.अब ये बात समीर को बताइए & मुझे चंद दिन यहा सुकून से गुज़रने दीजिए.गुडबाइ!",बलबीर अपने मोबाइल को देख कर सर हिला रहा था.

रंभा ने मोबाइल किनारे रखा & सामने समंदर की लहरो को देख उसका दिल उनसे खेलने को मचल उठा.उसने पिच्छली शाम ही देवेन की पसंद के कुच्छ स्विमस्यूट्स खरीदे थे.आज वक़्त था उनमे से 1 को ट्राइ करने का.वो मुस्कुराती हुई अपने कमरे मे गयी & जब लौटी तो उसके गोरे जिस्म पे 1 सफेद 2-पीस बिकिनी थी.रंभा घर के पिच्छले हिस्से मे बने लॉन के आख़िर मे बनी सीढ़ियो से नीची उतरी & 1 गेट खोल बीच पे आ गयी.यहा काफ़ी दूरी पे घर बने थे & बीच भी लगभग खाली ही था.उसे बस इक्का-दुक्का लोग या तो सुन्बाथ लेते या फिर कही आते-जाते दिख रहे थे.रेत पे चलते हुए वो समंदर के पानी मे उतर गयी & लहरो से खेलने लगी.उसे बड़ा मज़ा आ रहा था तैरने मे.लहरे उसके जिस्म को अपनी बाहो मे भर उच्छलती तो उसका दिल रोमांच से भर जाता.देर तक वो किसी जलपरी की तरह पानी मे अठखेलिया करती रही.

जी भर के तैरने के बाद वह पानी से निकली & घर की तरफ बढ़ी.घर की ओर देखते ही वो चौंक गयी.जिस जगह खड़ी हो वो बलबीर से बात कर रही थी वाहा पे अब विजयंत मेहरा खड़ा उसे देख रहा था.रंभा को गुजरात के समंदर के किनारे की वो सवेरे की मुलाकात याद आ गयी & उसका दिल धड़क उठा.वो धीमे कदमो से गेट तक पहुँची,उसे खोला & अंदर गयी.विजयंत उसे देखे जा रहा था & उसकी आँखो मे वही कुच्छ समझने का सा भाव था.

रंभा सीढ़िया चढ़ उसके करीब पहुँची.उसका गीला जिस्म धूप मे चमचमा रहा था.विजयंत की निगाहें उसके चेहरे पे जमी थी जिसे भीगे गेसुओ से टपकती बूंदे चूम रही थी.उसने अपना हाथ आगे बढ़ा के रंभा को तौलिया थमाया & उसकी निगाहें उसके चेहरे से नीचे उसके गीले चमचमते बदन को चूमने लगी.रंभा का धड़कता दिल मस्ती से भर उठा था.उसके बिकिनी के ब्रा मे 2 नुकीले उभार उभर आए थे..क्या इसे याद है वो सुबह जब मैने इसकी मौजूदगी मे झुर्मुट की आड़ मे कपड़े बदले थे?

"थॅंक्स.",उसने तौलिया लिया & अपने बाई तरफ के 2 बड़े पौधों के पीछे चली गयी.उनके बड़े-2 पत्तो की आड़ मे अपने प्रेमी को देखते हुए वो तौलिए से अपने गाल सुखाने लगी.

"रंभा.",वो अपने सीने पे तौलिए को दबा रही थी जब उसके ससुर ने उसका नाम पुकारा.

"हूँ.",विजयंत ने पत्तो को नीचे किया.उसकी निगाहें बहू के सीने पे रखे तौलिए पे थी.

"तुमने कोई अच्छा काम किया है.",रंभा के माथे पे शिकन पड़ गयी..ये कैसा सवाल था?,"..तुमने कुच्छ अच्छा किया है.",..अब वो समझी..गुजरात मे उसने उसकी सेमेंट के दाम वाली बात बताने पे तारीफ की थी..उसे वही याद आ रहा था.विजयंत के हाथ उसके सीने पे रखे तौलिए को थामे हाथो पे आ गये थे.

"हां,बताइए क्या अच्छा किया है?",विजयंत ने तौलिया नीचे गिरा दिया & उसके हाथ पकड़ के सीने से हटा दिए & उसके क्लीवेज को देखने लगा.

"कुच्छ अच्छा किया है..",वो झुका & उसकी गर्दन चूमने लगा.

"उउन्न्ञन्..याद कीजिए डॅड,क्या अच्छा किया था?",वो उसके क्लीवेज पे लगी बूँदो को अपनी ज़ुबान से चख रहा था.उसकी ज़ुबान & गर्म साँसे रंभा के सीने को तपते हुए उसे मस्त कर रही थी.उसके हाथ ससुर के मज़बूत जिस्म को महसूस करने को मचल रहे थे.उसने अपनी उंगलिया विजयंत की उंगलियो से अलग की & उसके कंधे थाम लिए & उसके सर को चूमने लगी.

"आपने मुझे ऐसे देखा है कभी..ऊहह..?",विजयंत उसके क्लेवगे को चूस रहा था.उसने उसके बाल पकड़ सर को उपर किया & उसकी आँखो मे देखा,"..बोलिए देखा है आपने मुझे कभी ऐसे?"

"शायद..नही..कुच्छ..धुँधला सा....है..!",उसके माथे पे शिकन गहरी हो रही थी.रंभा ने उसके सीने पे हाथ रख उसे पीछे रेलिंग पे बिठा दिया & उसके कंधो पे बाहे जमा उसके चेहरे को हाथो मे भर लिया & चूम कर उसके माथे की सलवटो को दूर करने लगी.

"कोई बात नही..परेशान मत होइए.सब याद आ जाएगा..ऊव्ववव..!",विजयंत के हाथ उसकी मोटी गंद को दबाने लगे थे & वो चिहुनक के आगे हो गयी थी.विजयंत का चेहरा उसके सीने मे घुस गया था & 1 बार फिर उसके क्लीवेज पे उसके गर्म होंठ अपने निशान छ्चोड़ने लगे थे.रंभा ने उसके सर को बाहो मे पकड़ सीने पे ज़ोर से दबाया & और आगे हो गयी.विजयंत के हाथ उसकी पॅंटी मे घुस उसकी गंद की कसी फांको को मसल रहे थे.

"आपको समीर याद है डॅड..शिप्रा..रीता..बोलिए?..आननह..!",उसकी पॅंटी को नीचे कर वो उसकी गंद को दबोचते हुए उसके क्लावेज को काट रहा था.रंभा ने उसके बाल पकड़ उसके सर को अपने सीने से अलग किया & उसकी टी-शर्ट को उपर खींचा.विजयंत ने उसकी बिकिनी टॉप के कप्स से उसकी मोटी छातियो बाहर निकली & उन्हे मसलने लगा.रंभा ने अपने नाख़ून उसकी नाभि से लेके निपल्स तक चलते हुए उसे झुक के चूमा तो वो बहुत ज़ोर से उसकी ज़ुबान चूसने लगा.

"नही.",वो उसकी चूचिया चूस रहा था & उसकी कमर को जकड़े हुए उसकी गीली पीठ & गंद को अपने हाथो से मसल रहा था.

"ट्रस्ट..डेवाले..पंचमहल..क्लेवर्त..होटेल वाय्लेट....ये नाम जानते हैं आप?..ओईईईईई..!",विजयंत ने उसकी पॅंटी उपर की & फिर उसकी टाँगे फैला के उसे अपनी गोद मे बिठा लिया था & उसे बाहो मे भींच उसके निपल्स काट रहा था,"..दाँत मत लगाइए..दर्द होता है..हान्न्न्न्न..ऐसे ही..वी माआआ..ऐसे ही चुसिये..हाईईईईईईईईई..!",नीचे हाफ-पॅंट मे क़ैद विजयंत का लंड उसकी बिकिनी बॉटम के गीले कपड़े से ढँकी उसकी उतनी ही गीली चूत को चूम रहा था & उपर उसका ससुर उसकी चूचियो को अपने मुँह मे पूरा भरने की कोशिश करता हुआ चूस रहा था.रंभा तो मस्ती मे पागल हो गयी & पीछे झुक के अपने बाल पकड़ उनमे बेचैनी से हाथ फिराते हुए झड़ने लगी.विजयंत की मज़बूत बाहे उसे पीछे गिरने से रोके हुई थी.

"कुच्छ नही याद आ रहा आपको?",रंभा संभली तो सीधी हुई & उसकी पीठ को नोचते हुए उसे चूमने लगी.गंद आगे-पीछे कर वो ससुर के लंड को छेद रही थी.

"नही.",विजयंत ने उसकी कमर पकड़ उसे उठाया & उसे घुमा के चौड़ी रेलिंग पे लिटा दिया & अपनी पॅंट उतार दी.रंभा ने उसका लंड पकड़ उसे अपनी ओर खींचा & लेटे-2 ही उसे मुँह मे भर लिया & चूसने लगी.

"ये याद है आपको डॅड?",रंभा ने लंड मुँह से निकाल उपर कर उसके आंडो को अपने सामने किया & 1 को मुँह मे भर लिया.

"हान्न्न्न्न्न..आहह..!",रंभा हैरान हो गयी.

"सच ये याद है आपको?",वो आंडो के उपर की त्वचा को अपने दन्तो मे बहुत हल्के से पकड़ के खींच रही थी.

"हां..याद है..",रंभा ने लंड को ज़ोर से हिलाया & फिर उसके सूपदे को चूसा.

"& क्या याद है आपको?",वो उठ बैठी & ससुर की कमर को बाहो मे भर उसकी गंद को दबोचते हुए उसके पेट के बालो मे अपने गालो & नाक को रगड़ने लगी.

"बस यही..आहह..!",वो उसके बालो मे बेचैनी से हाथ फिराते हुए उसके सर को अपने पेट मे दबा रहा था.रंभा ने दाए हाथ से उसके लंड को पकड़ अपनी चूचियो के बीच की वादी मे दबाया & फिर उसकी नाभि मे जीभ घुसाते हुए अपनी दोनो छातियो को बाहर से थाम लंड को उनके बीच क़ैद कर उसे हिलाने लगी.

"यही की आप ये सब करते थे मेरे साथ?"

"हान्न्न्न्न..ओह..!",विजयनत्न की आँखे बंद थी & उसके चेहरे पे लकीरे खीच गयी थी..मज़े की या उलझन की-ये रंभा की समझ मे नही आ रहा था.

"कहा करते थे ये सब मेरे साथ आप?",वो बदस्तूर लंड को अपनी मखमली चूचियो के बीच दबा हिलाए जा रही थी.

"कमरे मे.",विजयंत के माथे की शिकने फिर गहरी हो रही थी.

"कैसे कमरे मे?..किसके कमरे मे?..किसी घर के कमरे मे या फिर कही & के?",उसने लंड को ज़ोर से हिलाते हुए & सवाल किए.

"नही याद मुझे..बिल्कुल नही..आहह..!",विजयंत चीखा.उसके माथे की शिकने अब बहुत गहरी हो गयी.आँखे बिल्कुल मीची हुई थी & वो रंभा के बालो को अब इतनी ज़ोर से खींच रहा था की उसे दर्द होने लगा था.

"कोई बात नही.छ्चोड़ दीजिए याद करना.",रंभा समझ गयी कि अब & सवाल करना विजयंत के लिए नुकसानदेह हो सकता था.उसने लंड को चूचियो की क़ैद से आज़ाद किया & लेट गयी,"..आइए अब वो कीजिए जो आपको याद है डॅड.इस जिस्म को प्यार कीजिए..",नशीली निगाहो से देखते हुए उसने अपने हाथो से अपनी चूचियाँ आपस मे ज़ोर से दबाई,"..जी भर के खेलिए इस से..",उसके हाथ सीने के उभरो से फिसलते हुए उसके पेट से होते हुए उसकी पॅंटी पे आए.उसने अपने घुटने मोडते हुए अपनी टाँगे फैलाई & अपने हाथ चूत पे दबा दिए,"..& अपनी & मेरी,दोनो की प्यास बुझा दीजिए जैसे आप हमेशा बुझाते हैं!"

बहू की बातो ने विजयंत के माथे की शिकनो को दूर कर दिया था.उसकी ज़हनी परेशानिया दूर हो गयी थी & उसे अब बस जिस्मानी चाहत का होश था.उसने रंभा के हाथ उसकी पॅंटी से अलग किए & उसे उतार दिया.रंभा ने पनती उतरते ही फिर से अपने हाथो से अपनी चूत को च्छूपा लिया.विजयंत ने उसके चेहरे को देखा.रंभा के अधखुले होंठ & नशे से बोझल पलके चीख-2 के उसके मस्ताने हाल को बयान कर रही थी.विजयंत बहुत जोश से भर गया था.

"उउम्म्म्म.....आन्न्न्नह..हान्ंनणणन्..उउन्न्ह..!",वो झुका & रंभा के हाथो को चूमने लगा & उसकी उंगलियो के बीच ऐसे ज़ुबान फिराने लगा मानो वो उंगलिया चूत की फांके हों & उनके बीच की जगह चूत की दरार.रंभा मस्ती मे सर दाए-बाए झटकते हुए आहे भरने लगी.विजयंत की ज़ुबान ने उसकी उंगलियो को इतना छेड़ा की वो मस्ती से आहत हो उन्हे मोड़ने लगी & अपनी चूत को नुमाया कर दिया.ऐसा करते ही विजयंत की ज़ुबान ने उसकी कोमल उंगलियो को छ्चोड़ उसकी नाज़ुक,गुलाबी चूत को अपना निशाना बनाया & कुच्छ ही देर मे रेलिंग पे खुले आसमान के नीचे कमर हिलाती रंभा झाड़ रही थी.

"आननह..!",विजयंत फ़ौरन उठा & रैलैन्ग पे दाया घुटना जमाते हुए अपना लंड रंभा की रस बहाती चूत मे घुसा दिया.रंभा ने दर्द & मस्ती से जिस्म को कमान की तरह मोड़ा & अपनी चूचियो को अपने ही हाथो से दबाने लगी.विजयंत रैलैन्ग पे घुटना जमा उसे चोदने मे जुट गया.रंभा अपनी छातियो से खेलती मस्ती भरी आँखो से उसके चेहरे को देख रही थी..क्या उसे बस उसका & अपना रिश्ता याद था?..& कुच्छ भी नही..हां,तभी तो कल भी उसने उसका आँचल थाम उस रोका था & फिर..,"..ऊव्ववव..!",वो करही.उसके ससुर के धक्के अब बहुत गहरे हो गये थे & उसकी चूत की दीवारो को उसका लंड बुरी तरह रगड़ रहा था.

विजयंत ने उसके हाथ उसकी छातियो से अलग किए & उन्हे बुरी तरह दबाने लगा..बस यही बात रंभा की समझ मे नही आ रही थी..पहले का बड़ी गर्मजोशी मगर उतनी ही कोमलता से उसे छुने वाला विजयंत अब इस जूंगलिपने के साथ उस से क्यू पेश आ रहा था?..हां..ड्र.पोपव..इस सवाल का जवाब दे सकते थे..उसका दिमाग़ थोड़ी देर को इन सवालो से जूझने के बाद फिर से वापस जिस्म की मस्ती के ख़यालो से भर गया था.

उसने अपने सीने को रौन्दते हाथो को थाम विजयंत को आगे खींचा तो वो उसके उपर गिर गया.रंभा ने अपने नाख़ून उसकी गंद मे धंसा दिए & उसके बाए कान मे जीभ फिराते हुए कमर उचकाने लगी.विजयंत अपने दाँत पीसते हुए बस धक्के पे धक्के लगाए जा रहा था.बेचैनी मे वो कभी रंभा के चेहरे तो कभी चूचियो को चूमता या बस सर उठाये आहे भरने लगता.

"आननह..दद्द्द्द्द्द्दद्ड..!",रंभा ने ज़ोर से आह भरी & विजयंत की कंधो मे नाख़ून धँसाते हुए अपनी चूचियाँ उपर उचकाई & सर पीछे कर लिया.उसकी आँखे बंद थी & चेहरे पे झड़ने की खुमारी के भाव.

गंद मे नाख़ून धंसते ही विजयंत के धक्के अपनेआप तेज़ हो गये & उसका बदन झटके खाने लगा.रंभा की चूत की मस्तानी हर्कतो से विवश हो वो भी झाड़ गया था.आँखे बंद किए सर उपर उठाए वो उसकी चूत की कसावट से बहाल हो आहे भर रहा था.

कुच्छ पलो बाद दोनो प्रेमियो ने 1 साथ आँखे खोली & 1 दूसरे को देखा.विजयंत की नज़रे रंभा के बाई ओर रेलिंग के नीचे गयी & रंभा को उनका रंग बदलता दिखा.वो समझ गयी कि कुच्छ गड़बड़ होने वाली थी.उसना फ़ौरन गर्दन घुमा रेलिंग के नीचे देखा.वाहा कुच्छ भी नही था बल्कि दूर-2 तक बीच खाली पड़ा था,"डॅड..क्या हुआ?"

मगर विजयंत ने जैसे उसका सवाल सुना ही नही था.उसके चेहरे को देख ऐसा लग रहज़ा था मानो वो बहुत तकलीफ़ मे हो,बहुत दर्द हो रहा हो उसे,"नही..सोनियाआआ..!",वो चीखा & उसकी आँखे उलट गयी & वो रंभा के सीने पे गिर गया.

"डॅड!..क्या हुआ?!..उठिए..!",रंभा ने उसके भारी-भरकम जिस्म को धकेला तो वो कटे पेड़ की तरह लॉन की घास पे गिर गया.वो बहुत घबरा गयी.उसने फ़ौरन उसकी धड़कन & सांस चेक की..दोनो ठीक थे.वो बेहोश हो गया था.तभी 1 कार के रुकने की आवाज़ आई.वो भागती हुई घर के सामने की ओर गयी.देवेन अपनी चाभी से मेन गेट खोल कार अंदर लगा रहा था,"..देवेन..जल्दी आइए..जल्दी!",देवेन ने जल्दी से गेट लॉक किया & उसके पीछे-2 अंदर आया.

"क्या हुआ?",दोनो की नंगी हालत देख उसे समझने मे देर नही लगी कि कुच्छ देर पहले दोनो कर क्या रहे थे.

"डॅड..बेहोश हो गये.",रंभा की आवाज़ कांप रही थी.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:48 PM,
#72
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--71

गतान्क से आगे......

..& बस उस दिन की याद ताज़ा करने के इरादे से मैने इनका साथ दिया और फिर हम दोनो..-“

“-..रंभा,मुझे यू शर्मिंदा ना करो!”,देवेन झल्ला गया था.रंभा उसे उसकी गैरमोजूदगी मे हुई विजयंत मेहरा & उसकी चुदाई की पूरी कहानी सुना रही थी,”..तुम मुझे इस तरह सफाई मत दिया करो,प्लीज़!..प्यार का दूसरा नाम भरोसा होता है & वो मुझे तुमपे है.”,वो उसके करीब आ गया.रंभा ने झीनी हरी सारी & मॅचिंग स्ट्रिंग बिकिनी का टॉप पहना था जिसकी पतली डोर उसके गले मे माला की तरह से लटकी थी & पीछे पीठ पे बँधी उसकी छातियो को ढँके थी.देवेन को वो बहुत प्यारी लग रही थी & उसने उसके खुले बालो को उसके कानो के पीछे कर उसके चेहरे को हाथो मे थामा,”..बेकार की बातो मे दिमाग़ को मत उलझाया करो,वैसे ही कम उलझने नही हैं हमारी ज़िंदगी मे.”,उसने उसका माथा चूमा,”चलो अब मुस्कुरओ.”,तभी बाहर गेट पे किसी कार के हॉर्न की आवाज़ आई,”..लगता है यूरी आ गया.”,वो बाहर गया तो रंभा विजयंत के कमरे की ओर चली गयी.

लॉन मे बेहोश पड़े विजयंत को वही पौधो को पानी देने वाले फुआहरे से पानी डाल के देवेन होश मे लाया था मगर कुच्छ देर बाद वो फिर से बेहोश हो गया था.देवेन ने उसे उठाके उसके कमरे मे पहुचेया & फिर यूरी को बुलाया था.

अमोल बपत कोई कच्ची गोलिया खेला इंसान तो था नही.उसने उसी रोज़ देवेन के बारे मे पता करना शुरू कर दिया मगर साथ ही उसने बीसेसर गोबिंद के बारे मे भी पता करने का फ़ैसला लिया.अपनी अफीशियल आइड से लोजीन कर उसने महकमे के डेटाबेस मे गोबिंद को ढूँढना शुरू किया & कोई 30-35 मिनिट बाद उसे वो मिल गया.जैसा देवेन ने उसे बताया था,गोबिंद मारिटियस के पासपोर्ट से सेच्लेस से फ्लाइट पकड़ के मुंबई एरपोर्ट से घुसा था.उसने यहा आने का कारण सैर-सपाटा & यहा के ऐतिहासिक जगहो को देखने की हसरत बताई थी.उसके साथ उसने अड्वेंचर स्पोर्ट्स का शौकीन होने की बात भी कही थी.सामने तस्वीर मे 1 भूरे बालो वाला बुज़ुर्ग सा शख्स दिख रहा था..ये उम्र & अड्वेंचर स्पोर्ट्स..बपत को बात कुच्छ हाज़ाम नही हो रही थी.उसने प्रिंटर ऑन किया & कमॅंड देके उस से निकलते पन्नो को देखने लगा.

“रंभा कहा है?”,होश मे आते ही विजयंत ने ड्र.पोपव से सवाल किया.

“यही है.मैं अभी उसे बुलाता हुआ..”,वो उसकी आँखे देखने लगा & फिर उसकी नब्ज़ चेक की & फिर उस से कुच्छ सवाल करने लगा,”..कैसे बेहोश हुए थे याद है तुम्हे?”

“हाँ,मैं & रंभा बाहर..-“,वो चुप हो गया.उसे इस आदमी को अपनी चुदाई के बारे मे बताना कुच्छ ठीक नही लग रहा था.

“देखो,तुम्हारी ज़ुबान मे 1 सेयिंग है..आइ मीन हां!..कहावत है कि डॉक्टर & वकील से कुच्छ नही च्छुपाना चाहिए.वैसे भी मुझे देवेन & रंभा ने सारी बात बता दी है.मैं तो बस तुम्हे चेक करने के लिए ये सवाल कर रहा हू.”

“हम चुदाई कर रहे थे.”,विजयंत ने चेहरा दूसरी तरफ कर लिया था,”..रेलिंग पे..& तभी मैने नीचे देखा & मेरे दिमाग़ मे जैसे धमाका सा हुआ..रोशनी कौंधी..बहुत सी तस्वीरे 1 साथ उभरी..बहुत तेज़ी से..& फिर अंधेरा च्छा गया..”

“वो तस्वीरे याद हैं अभी?”

“नही.पर रंभा कहा है?”

“अभी बुलाता हुआ उसे.पर रंभा के बारे मे सब याद है तुम्हे?”

“वो मेरी महबूबा है.मैं उस से बहुत प्यार करता हू.”

“अच्छा,कब मिले थे उस से पहली बार?”

“ये तो याद नही पर हमेशा मेरे दिमाग़ मे उसके साथ अकेले मे बिताए..खूबसूरत लम्हो की सॉफ तस्वीरे मेरे ज़हन मे घूमती हैं.”

“अच्छा,अभी तक तुम ठीक से बोलते क्यू नही थे?..बस 1-2 लफ्ज़ कहते थे..ऐसा क्यू?..कुच्छ बता सकते हो?”

“पता नही.”,विजयंत ने कंधे उचका दिए.

“हूँ.”,डॉक्टर उठ खड़ा हुआ,”रंभा को भेजता हू.”,वो मुस्कुराता हुआ कमरे से बाहर चला गया.

कुच्छ पल बाद रंभा कमरे मे आई तो विजयंत बिस्तर से तेज़ी से उतरा & मुस्कुराता हुआ उसके पास आ गया & उसके कंधे थाम लिए,”रंभा!”

“डॅड,आप ठीक हैं?”,वो भी मुस्कुराइ.यूरी ने उसे सब बताया था.

“डॅड..”,विजयंत के माथे पे शिकन पड़ गयी,”..मुझे डॅड क्यू कह रही हो,रंभा?”

“आप यहा बैठिए.”,रंभा ने उसे बिस्तर पे बिठाया,”..मेरी बात ध्यान से सुनिए.मैं आपको आपकी ज़िंदगी की दास्तान सुनाने वाली हू.”

“देवेन..”,यूरी & देवेन ड्रॉयिंग हॉल के 1 कोने मे बने बार पे बैठ के जिन पी रहे थे,”..मैं समझ सकता हू,तुम्हारे लिए ये बहुत मुश्किल होगा पर विजयंत को ठीक करने का इस वक़्त इस से बेहतर रास्ता कोई & नही दिखता.वो रंभा को अपनी लवर समझता है & मैं चाहता हू कि फिलहाल उसे रंभा के करीब रहने दिया जाए.”

“यूरी,रंभा अभी अंदर उसे उसकी ज़िंदगी के बारे मे सब बता रही है तो उसके बाद क्या ज़रूरत है इस सबकी?”,यूरी हंसा.वो समझ सकता था कि कितना मुश्किल था अपनी महबूबा को 1 दूसरे मर्द के साथ बाँटना.

“माइ डियर फ्रेंड,थे ह्यूमन ब्रायन इस आर्ग्यूवब्ली दा मोस्ट इंट्रीगिंग थिंग एवर क्रियेटेड बाइ दा ऑल्माइटी..खुदा ने इंसानी दिमाग़ से ज़्यादा पेचिड़ी चीज़ शायद ही कोई और बनाई हो!..रंभा उसे कहानी सुनाएगी मगर उसे उस पे यकीन भी तो होना चाहिए.इसका मतलब ये नही कि उसे रंभा पे भरोसा नही मगर जब तक उसे खुद सारी बात याद नही आ जाती वो उसकी सुनाई कहानी को पूरे दिल से नही मानेगा.”,उसने जिन ख़त्म कर ग्लास बार पे रखा,”प्रोग्रेस अच्छी है & अगर मेरा कहा मनोगे तो शायद बहुत जल्द वो बिल्कुल ठीक हो जाए..ये मेडिसिन्स मंगवा लेना..”,उसने अपना ब्रीफकेस खोल 1 पॅड पे कुच्छ दवाओ के नाम लिखे & फिर पन्ना फाड़ देवेन को दिया,”..पुरानी मेडिसिन्स बंद कर इन्हे शुरू कर दो.ओके,अब चलता हू.”

“हॅव डिन्नर विथ उस,यूरी.”

“थॅंक्स ,देवेन पर आज वेरा आने वाली है.”यूरी मुस्कुराया & ब्रीफकेस बंद कर उस से हाथ मिलाया & 1 बार रंभा & विजयंत से बात की & फिर वाहा से चला गया.देवेन उसे बाहर तक छ्चोड़ने गया & वापस आ अपनी जिन ख़त्म कर बार से टिक के खड़ा हो गया.

“देवेन..”,विजयंत & रंभा वाहा आ गये थे,”..थॅंक्स,तुमने मेरे लिए इतना सब किया.”,विजयंत उसके करीब आ उसका हाथ थाम के हिला रहा था,”..& मैं माफी चाहता हू अगर..”

“नही कोई बात नही.”,देवेन ने 1 सॉफ्ट ड्रिंक की बॉटल खोल उसे दी & बार के दूसरे कोने पे जा अपने लिए फिर से जिन भरा.अब रंभा दोनो के बीच खड़ी थी.

“ड्र.पोपव चाहते हैं कि..”,रंभा की अधूरी बात का मतलब देवेन जानता था.

“हूँ.”,उसने जिन का घूँट भरा.विजयंत दोनो को देख रहा था.वो भी जानता था कि रंभा किस बात के बारे मे कह रही थी,”..अभी तो तुम्हे समझाया था,रंभा.कम ऑन रिलॅक्स!”,देवेन मुस्कुराया & अपना ग्लास खाली करने लगा.

रंभा बार से पीठ लगाए उसपे दोनो हाथ रखे खड़ी थी.विजयंत मेहरा उसके दाई तरफ उसी के जैसे खड़ा था.उसका बाया हाथ शेल्फ पे आगे सरका & रंभा की उंगलियो के पोरो को छुने लगा.रंभा ने उसके हाथ को देखा,उसके दिल की धड़कने तेज़ हो गयी थी.विजयंत की उंगलिया आगे सर्की & उसकी उंगलियो के बीच घुस गयी.रंभा के जिस्म मे वही जानी-पहचानी सिहरन दौड़ गयी.विजयंत ने देखा सारी के झीने आँचल के पार उसके दिल का हाल कहता उसका सीना उपर-नीचे हो रहा था.विजयंत का हाथ अब उसके पूरे हाथ को ढँक चुका था & सहला रहा था.रंभा ने आँखे बंद कर ली & अपनी ठुड्डी को 1 बार अपने दाए कंधे पे यू रगड़ा मानो कह रही हो कि उसके गुलाबी गाल,उसका हसीन चेहरा अब बस किसी के गर्म होंठो का साथ चाहते थे.

तभी उसके जिस्म मे बिजली की 1 & लहर दौड़ गयी.शेल्फ के दूसरी तरफ रखे उसके बाए हाथ पे देवेन ने अपनी 1 उंगली रख दी थी & उसे बहुत धीमे-2 उसके हाथ पे उपर बढ़ा रहा था.रंभा ने गर्देन घुमाके उसे देखा.देवेन को उसकी निगाहो मे केवल नशा दिखा,जिस्म की चाहत का नशा.विजयंत अपने पूरे हाथ को उसकी गोरी कलाई पे चलता हुआ उपर बढ़ा रहा था.उसका सख़्त हाथ रंभा की अन्द्रुनि बाँह को सहलाते हुए उपर के गुदाज़ हिस्से पे पहुँच रहा था.उधर देवेन की उंगली भी उसकी दूसरी बाँह के उपरी हिस्से पे पहुँच गयी थी & दायरे बना रही थी.

उसकी दाई,नर्म बाँह को विजयंत ने अपनी तरफ खींचा तो रंभा ने उसकी ओर देखा.विजयंत का चेहरा उसके चेहरे की तरफ झुक रहा था.रंभा के होंठ आने वाली किस के लिए खुद बा खुद ही खुल गये.विजयंत के होंठ रंभा के लरजते होंठो से मिले & अगले ही पल दोनो की ज़ुबाने गुत्थमगुत्था हो गयी.रंभा का जिस्म मस्ती से कांप रहा था.विजयंत का हाथ उसकी बाँह से उतर उसकी लगभग नंगी पीठ पे घूम रहा था.दोनो शिद्दत से काफ़ी देर तक 1 दूसरे को चूमते रहे.

जब सांस लेने की ज़रूरत महसूस हुई तो दोनो के होंठ अलग हुए & तब देवेन की उंगली उसकी बाँह से आगे उसके बाए कंधे पे आई & उसकी गर्देन से होते हुए उसकी ठुड्डी पे आई & उसके चेहरे को अपनी ओर घुमाया.अपने प्रेमी से नज़रे मिलते ही रंभा उसकी ओर झुकी & देवेन की खिदमत मे अपने होंठ पेश कर दिए.देवेन ने उसकी पेशकश बड़ी गर्मजोशी से कबूल की & उसके गुलाबी होंठो का रस चूस्ते हुए उसके मुँह मे अपनी जीभ घुसा दी.विजयंत दोनो को चूमते हुए देख रहा था & रंभा की चिकनी पीठ सहला रहा था.

देवेन ने रंभा को चूमते हुए उसके बाए कंधे से उसके सारी के आँचल को सरका दिया.रंभा अब बहुत मस्त हो गयी थी & आह भरते हुए उसने किस तोड़ दी.इस तरह से 2 मर्दो के साथ दूसरी बार उनकी गर्म हर्कतो का निशाना बनाना उसे बहुत मदहोश कर रहा था.तभी विजयंत ने उसकी कमर मे अपना हाथ डाला & उसे अपनी ओर खींचा & खुद से चिपका लिया.रंभा तेज़ साँसे लेती हुई उसके कंधे पे हाथ रख उसकी आँखो मे देखने लगी.उस शख्स को कुच्छ भी याद नही था सिवाय इसके की वो उसकी महबूबा थी..उसकी बीवी थी,बच्चे थे..इतना बड़ा कारोबार & ना जाने कितनी माशुकाएँ थी..पर उसे केवल वो याद थी,केवल रंभा!वो अपने पंजो पे उचकी & उसके बालो को नोचती उसे चूमने लगी.

विजयंत को चूमते हुए उसकी आह निकल गयी.देवेन की 1 उंगली अब उसकी गर्देन के नीचे से उसकी पीठ पे घूम रही थी & उसके ब्लाउस की डोर तक आ गयी थी & उसकी पीठ की चौड़ाई पे उस डोर के साथ-2 घूम रही थी.रंभा जानती थी कि बस अब उसके ब्लाउस की वो पतली सी डोर खुलने ही वाली है..कुच्छ ही पलो मे वो नंगी होगी & इन दोनो के जिस्मो के बीच उसका नंगा जिस्म मस्ती की नयी ऊचईयाँ च्छुएगा!..इस ख़याल ने आग मे घी का काम किया & उसकी चूत मे कसक उठी जिसकी वजह से उसने अपनी मोटी जंघे बेचैनी से आपस मे रगडी.देवेन ने उसकी इस हरकत के कारण उसकी गंद मे होने वाली थिरकन को देखा & उसका लंड उसकी पॅंट मे छॅट्पाटेने लगा.उसने अपनी उंगली & अंगूठे को मिला ब्लाउस की डोर को खींचा & फिर रंभा की नंगी पीठ के बीचोबीच अपने होंठ रख बहुत ज़ोर से चूमा.

“आहह..!”,रंभा ने आह भरते हुए किस तोड़ी & पीछे सर झटका.देवेन ने उसकी कमर मे हाथ डाल उसके पेट को दबाते हुए अपनी ओर खींचा & उसके दाए कंधे को चूमते हुए उसके हसीन चेहरे तक अपने होंठ ले आया.रंभा ने दोनो हाथ पीछे ले जा अपने आशिक़ के गले मे डाले & उसके बॉल खींचते हुए उसके होंठो को तलब किया & उन्हे चूमने लगी.विजयंत को अजीब लग रहा था रंभा को इस तरह देवेन की बाहो मे देखना..वो उसकी थी..इतना तो याद था उसे..मगर उसने खुद उसे थोड़ी देर पहले जो बातें बताई थी,उस हिसाब से वो उसकी बहू लगती थी & उनका रिश्ता दुनिया की नज़रो मे नाजायज़ होता..पर फिर उसे ये बात क्यू याद नही?..याद तो उसे बहुत कुच्छ नही..दोनो के होंठ अलग हो चुके थे & दोनो 1 दूसरे को देख रहे थे.विजयंत को देवेन से जलन हुई..कुच्छ ऐसा था रंभा की निगाहो मे जोकि जब वो उसे देखती थी तो नही होता था..जब वो उसे देखती थी तो वासना होती थी,चाहत होती थी मगर वो बात..वो लगाव..वो मोहब्बत की शिद्दत नही होती थी जो इस वक़्त उसकी आँखो मे देवेन को देखते हुए थी..पर ये हक़ीक़त थी & चाहे जैसी भी हो उसे इसी के साथ जीना था.

उसका दिल तो नही किया दोनो को अलग करने का मगर उसका जिस्म रंभा की नज़दीकी के लिए तड़प रहा था.वो झुका & फर्श पे बैठते हुए रंभा का दाया पाँव अपने हाथ मे ले लिया & उस से सॅंडल उतारा.रंभा ने नीचे देखा विजयंत उसके पैरो की उंगलियो को 1-1 करके चूम रहा था.उसने आह भरी & पीछे देवेन के सीने से सर टीका के आँखे बंद कर ली.बहुत मज़ा आ रहा था उसे मगर साथ ही थोड़ा ग्लानि भी हो रही थी..उसे क्यू अच्छा लग रहा था विजयंत का साथ?..वो तो देवेन को दिलोजान से चाहती थी..उसके लिए अपनी जान देने से भी नही झिझकति वो फिर क्यू विजयंत को वो रोकती नही थी बल्कि उसका पूरा साथ देती थी वो!..जिस्म को इन बातो से क्या मतलब!..उसे तो बस अपनी भूख मिटानी होती है..& उसे जब कोई पसंद आ जाए तो वो रिश्ते-नाते-वफ़ा,किसी की परवाह नही करता..रंभा को अपनी इस उलझन,इस बेबसी पे गुस्सा आया & उसने अपने हाथ पीछे ले जाके देवेन के बाल बहुत ज़ोर से खींचे.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:48 PM,
#73
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--72

गतान्क से आगे......

देवेन को भी विजयंत का अपनी महबूबा के साथ ये मस्ताना खेल खेलना ज़रा भी पसंद नही था मगर ना जाने क्या बात थी इस खेल मे कि दोनो को 1 साथ देख उसके दिल मे नफ़रत की जगह 1 अजीब सा रोमांच भर जाता था..उसे भी विजयंत से जलन होती थी मगर साथ ही वो खींचता था उनकी तरफ,उस खेल मे शामिल होने के लिए..फिर यूरी ने भी कहा था की बहुत मुमकिन था की रंभा के साथ चुदाई की वजह से विजयंत पूरा का पूरा ठीक हो जाए..फिर सारी गुत्थिया सुलझ जाती & वो दयाल को ढूँढने मे अपना सारा वक़्त & सारी ताक़त लगा सकता था.

“उउम्म्म्म..आहह..!”,रंभा की आहो & उसके बॉल खींचने से वो अपने ख़यालो से बाहर आया.विजयंत का हाथ रंभा की सारी मे घुस उसकी टाँगे सहला रहा था & वो अभी भी उसके दाए पैर को चूमे जा रहा था.देवेन ने उसके पेट पे अपने हाथ दायरे की शक्ल मे घुमाए तो रंभा मस्ती मे और ज़ोर से आहे भरने लगी.विजयंत का हाथ उसकी जाँघ के नीचे सहला रहा था & उसके होंठ उसके पैरो की उंगलिया चूसे जा रहे थे.जिस्म मे वो मीठा तनाव बहुत बढ़ गया था & चूत की कसक भी.देवेन ने उसकी नाभि मे अपनी उंगली उतार ज़ोर से कुरेदते हुए उसके दाए कान पे काटा & उसी वक़्त विजयंत ने उसके पाँव की सबसे छ्होटी उंगली को चूस उसके & उस से पहले वाली उंगली के बीच की जगह को जीभ से छेड़ा & उसकी जाँघ के निचले हिस्से को बहुत ज़ोर से दबाया.रंभा ने ज़ोर से आह भरी & देवेन की बाहो मे कसमसने लगी.दोनो मर्द समझ गये की वो झाड़ गयी है.

विजयंत ने उसके पैर को ज़मीन पे रखा & दोनो हाथ उसकी सारी मे घुसा उसकी टाँगो & जाँघो को सहलाते हुए उसके गोल पेट को चूमने लगा.देवेन के हाथ उसके खुले ब्लाउस के नीचे से उसकी चूचियो के निचले हिस्से को 2-2 उंगलियो से सहला रहे थे.रंभा के हाथ अब देवेन के गले से उतर विजयंत के सर से लग चुके थे & उसके बालो मे को बेचैनी से खींच रहे थे.विजयंत की लपलपाति ज़ुबान उसकी नाभि को चाते जा रही थी.देवेन के हाथ तो जैसे उसकी चूचियो को च्छू के भी नही च्छू रहे थे.वो उन्हे अपनी हथेलियो मे भर के दबा नही रहा था,ना ही उनके निपल्स को छेड़ रहा था बस उनके नीचे के हिस्से को अपनी उंगलियो से सहला रहा था & रंभा को मस्त किए जा रहा था.रंभा की मस्ती इतनी बढ़ गयी की उसे अब दोनो का च्छुना भी सहन नही हो रहा था & वो दोनो को अपने जिस्म से परे धकेल उनसे छिटक के अलग हो गयी.

उसकी साँसे बहुत तेज़ चल रही थी,उसका आँचल फर्श पे था & ढीले ब्लाउस के किनारो से उसकी उपर-नीचे होती चूचियो की झलकिया दिख रही थी.बॉल बिखर के चेहरे पे आ गये थे & होंठ कांप रहे थे.देवेन उसे देख मुस्कुराते हुए अपनी शर्ट के बटन्स खोलने लगा तो रंभा ने अपना दाया हाथ बालो मे घुमाया & उसे अपने चेहरे पे बेचैनी से चलाया.विजयंत ने देवेन की देखा-देखी अपनी कमीज़ भी उतार दी.दोनो के बालो भरे चौड़े सीनो को देख रंभा की चूत मे फिर से कसक उठने लगी.उसने बाए हाथ को अपनी सारी पे रख अपनी चूत पे दबा उसे शांत करने की नाकाम कोशिश करते हुए दाए हाथ को होंठो पे भींचते हुए अपनी आह को रोका.

देवेन उसके बिल्कुल करीब आ खड़ा हुआ था & उसके गले से ब्लाउस को निकाल रहा था,विजयंत के हाथ उसकी कमर मे घुस उसके नर्म पेट को छुते हुए उसकी सारी को निकाल रहे थे.रंभा बस ज़ोर-2 से साँसे लेती हुई दोनो मर्दो के हाथो नंगी हो रही थी.सारी के उतरते ही देवेन ने उसके पीछे जा उसकी कमर सहलाते हुए उसके पेटिकट को उसकी कमर से सरकया & फिर उसकी गंद की दरार मे फँसे उसके हरे तोंग को विजयंत ने नीचे सरकया.

देवेन पीछे से उसे बाहो मे भर उसके गालो को चूमते हुए अभी भी वैसे ही उसकी चूचियो के निचले हिस्सो को दोनो हाथो की 2-2 उंगलियो से सहला रहा था & नीचे बैठा विजयंत मेहरा उसकी कमर को पकड़े उसकी गंद को धीमे-2 सहलाते हुए उसकी कमर के दाई तरफ के मांसल हिस्से को चूम रहा था.रंभा मस्ती मे चूर थी & दोनो की ज़ुबानो का भरपूर लुत्फ़ उठा रही थी.देवेन ने नीचे से उसकी चूचियो को अपने हाथो मे भर दबाया तो वो आह भरते हुए सिहर उठी.विजयंत उसकी चूत के ठीक उपर पेट पे चूम रहा था & उसकी गर्म साँसे भी उस हिस्से को च्छू रही थी.

“उउन्नग्घह..!”,देवेन ने उसकी चूचियो को दोनो हाथो मे भर आपस मे दबाया & विजयंत की ज़ुबान ने चूत की दरार को सहलाते हुए उसके दाने को छेड़ा.रंभा ने दाए हाथ से उसके बाल पकड़ उसके सर को अपनी चूत पे दबाया & विजयंत ने उसकी चूत चाटना शुरू कर दिया.देवेन उसके पूरे चेहरे को अपने तपते होंठो से चूम रहा था,उसके हाथ महबूबा की चूचियो को हर तरीके से दबा रहे थे-कभी बहुत हल्के-2 उनकी नज़ाकत की इज़्ज़त करते हुए तो कभी उनकी कोमलता से बेपरवाह काफ़ी ज़ोर से.विजयंत उसकी चूत के गीलेपान को पीते हुए जीभ चट मे बहुत अंदर तक घुसा रहा था.रंभा कसमसा रही थी.उसकी कमर हिलने लगी थी & वो देवेन के मुँह पे चूत रगड़ने लगी थी.जिस्म मे बेचैनी & मदहोशी इतनी भर गयी थी की वो परेशान हो सर इधर-उधर घूमाते हुए कभी इस प्रेमी तो कभी उस प्रेमी के बालो को नोचते हुए आहे भर रही थी.देवेन ने उसकी चूचियो को आपस मे सटा के दबाते हुए दोनो हाथो की 2-2 उंगलियो से उसके किशमिश के दानो सरीखे निपल्स को मसला & उसी वक़्त विजयंत की ज़ुबान ने भी उसके दाने को ज़ोर से छेड़ा.रंभा ने च्चटपटाते हुए आह भरी & झाड़ गयी.वो दोनो की गिरफ़्त से निकल बार के सहारे खड़ी हो सिसकने लगी.

दोनो मर्द उसके करीब आए & उसके जिस्म पे हाथ रखा तो वो घूमी & दोनो के सर को 1-1 हाथ मे थाम लिया & पहले अपने दाए तरफ खड़े देवेन & फिर बाए तरफ खड़े विजयंत को चूमा & फिर अपने नखुनो से उनके सीने से पेट तक खरोंछते हुए उनके पॅंट खोल दिए.दोनो मर्दो के लिए ये इशारा काफ़ी था & दोनो ने अपनी -2 पॅंट्स उतार दी & अपने तगड़े लंड उसकी खिदमत मे पेश करते खड़े हो गये.रंभा ने दोनो की आँखो मे आँखे डालते हुए दोनो हाथो मे दोनो लुंडो को भर के दबाया.विजयंत के जिस्म के साथ ज़हन मे भी जैसे बिजली दौड़ गयी.ये एहसास उसे याद था!..उसे याद था कि वो उसके लंड से जिस मस्ताने अंदाज़ मे खेलती थी वैसे कभी किसी ने नही खेला था मगर वो बाकी लोग कौन थे जिनकी तुलना वो रंभा से कर रहा था?..कौन थी वो लड़कियाँ?..उसकी बीवी..क्या नाम बताया था रंभा ने उसका..हां..रीता..क्या वो उसे ऐसे नही प्यार करती थी?..आख़िर क्यू..वो सब भूल गया था..उस झरने पे क्या हुआ था उस रात?..,”आहह..!”,उसने कुच्छ बेबसी & काफ़ी मज़े मे वो आँखे बंद कर आह भरी.देवेन रंभा की तुलना किसी & औरत से नही कर रहा था..ऐसा करना उस हुसनपरी,जिसे वो बेइंतहा प्यार करने लग था.की तौहीन होती..शुरू मे उसे सुमित्रा का दर्जा देते हुए उसे ग्लानि हुई थी,लगा था वो अपनी सुमित्रा से बेवफ़ाई कर रहा था मगर उसका दिल हुमेशा उस से कहता रहता था कि ये सही था..सुमित्रा की बेटी उसे वो दे रही थी जिसका वो हक़दार था लेकिन जिस से वो अभी तक महरूम था.उसने रंभा के दाए गाल पे अपनी हथेली जमाई तो उसने नशीली आँखो से उसे देखते हुए हथेली पे अपना गाल रगड़ा.विजयंत ने अपना दाया हाथ उसके बाए गाल पे रखा & रंभा ने उसके साथ भी वही हरकत दोहराई.दोनो मर्द आगे झुके & उसके 1-1 गाल और गर्देन से लेके कंधो तक चूमने लगे.रंभा वैसे ही उनके लंड हिलाती रही.

डेवाले मे मेहरा परिवार के 1 बुंगले मे भी वासना का खेल चल रहा था.कामया समीर की बाहो मे उसके बिस्तर पे पड़ी थी.समीर के हाथो मे उसकी नर्म चूचिया कसने लगी थी & उसके जिस्म मे बेचैनी भरने लगी थी,”समीर..सब ठीक रहेगा ना?..ऊव्वववव..!..कितनी ज़ोर से दबाते हो!..दुख़्ता है..आननह..!”,समीर बेरेहमी से उसकी चूचिया मसल रहा था.वो जानता था की कामया कुच्छ भी बोले,उसे पसंद था इस तरह से चूचियाँ मसलावाना.उसने उसकी बाई छाती को मुट्ठी मे पकड़ के भींचा & दाई के निपल को दन्तो मे पकड़ उपर खींचा,”..औचह..!”कामया ने उसके बाल खींचे & उसकी गर्देन के नीचे अपने नाख़ून जमा दिए.

“सब ठीक रहेगा.तुम घबराओ मत.”,समीर ने उसकी छाती को छ्चोड़ उसे उल्टा किया & उसकी गंद से हाथ लगा दिए.

“फिर उसे इस तरह क्यू ढूंड रहे हो?..उउम्म्म्मम..!”,समीर जिस बेरेहमी से उसकी चूचियो को मसल रहा था,अब उतनी ही कोमलता से उसकी गंद सहला रहा था,”..जलन हो रही है सोच के कि वो वाहा किसी & की बाहो मे तो नही?”,गर्देन घुमा के वो शोखी से मुस्कुराइ तो समीर ने उसकी गंद पे चिकोटी काट ली,”..औचह..गंदे..!”,उसने प्यार से अपने प्रेमी को झिड़का.

“नही.”,समीर उसकी पीठ पे लेट गया & अपना लंड उसकी गंद पे दबाया तो कामया ने टाँगे फैला दी.समीर ने हाथ नीचे ले जाके अपने लंड को उसकी चूत पे रखा तो कामया थोडा उठ गयी & लंड को चूत मे घुसाने मे मदद की,”..तुम उसे जानती नही.वो बहुत होशियार है.पता नही क्यू मुझे लग रहा है कि वो गोआ कुच्छ ऐसा करने गयी है जोकि हमारे लिए बहुत मुश्किले पैदा कर सकता है.”,वो अपने हाथो को उसके जिस्म के नीचे ले जा उसकी चूचियो को वैसे ही बेरेहमी से मसल्ते हुए धक्के लगा रहा था.

“ऊन्नह..मगर क्या?..& मुझे नही लगता ऐसा डार्लिंग..नही तो वो बताती ही क्यू कि वो गोआ मे है?”,कामया ने अपने बाए कंधे के उपर से अपने आशिक़ के सर को थाम अपनी तरफ किया & उसे चूम लिया.

“क्यूकी होशियार होने के साथ-2 वो काफ़ी हिम्मतवाली भी है & फिर मैने उस से बेवफ़ाई भी की है & चोट खाई औरत से ख़तरनाक चीज़ कोई नही होती. ”

“तो फिर जल्दी से ढूँड़ो उसे & अपने शुबहे दूर कर लो.कही सब कुच्छ बर्बाद ना हो जाए!”

“नही जानेमन,मैं ऐसी अनहोनी नही होने दूँगा.”,समीर झुका & महबूबा के रसीले होंठो को चूमते हुए उसे चोदने लगा.

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12-19-2017, 10:48 PM,
#74
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--73

गतान्क से आगे......

रंभा ने विजयंत को धकेल 1 बार स्टूल पे बिठा दिया & फिर झुक के उसके लंड को मुँह मे भर चूसने लगी.अपने नखुनो से वो उसके आंडो को खरोंच उसके मज़े को और बढ़ा रही थी.विजयंत आँखे बंद किए उसके बालो को पकड़ मस्ती मे आहे भर रहा था मगर उसके ज़हन मे वो सवाल की रंभा के अलावा और कौन-2 सी औरतें उसकी ज़िंदगी मे आई थी,अभी भी घूमड़ रहा था..वो सोनिया कौन थी जिसका नाम ले वो दोपहर को बेहोश हो गया था?..कौन थी वो?..उसने सवालो को थोड़ी देर शांत रहने को कहा & अपना ध्यान रंभा पे लगाया.वो दीवानो की तरह उसके लंड के सूपदे को चूस्ते हुए उसे हिला रही थी.

“उउम्म्म्मम..!”,लंड मुँह मे भरे हुए वो मस्ती मे करा ही.पीछे से देवेन झुक के उसकी चूत चाटने मे जुट गया था.रंभा अब कमर हिलाती,च्चटपटती हुई अपने ससुर का लंड चूस रही थी.देवेन 1 उंगली को उसकी गंद मे घुसा के अंदर-बाहर करते हुए उसकी चूत चाट रहा था.रंभा के जिस्म मे फिर वोही बेचैनी भर गयी & उसे शांत करने की गरज से वो अपने ससुर के लंड & आंडो को बुरी तरह दबाते हुए चूसने लगी.विजयंत के लिए अब खुद पे काबू रखना मुश्किल था & उसने बहू के बाल पकड़ उसके मुँह को लंड से अलग किया.रंभा के चेहरे पे अपने मनपसंद खिलोने के छिनने से नाखुशी के भाव थे.विजयंत ने उसकी बाई जाँघ पकड़ उसे अपनी गोद मे बीताया तो रंभा खुद ही उसके लंड को थाम चूत पे रखा & फिर उसके कंधे थाम बैठने लगी.

“आहह..!”,रंभा चीखी.वो लंड को चूत मे ले विजयंत की गोद मे बैठी ही थी कि पीछे से उसके प्रेमी ने उसकी गंद की फांको को फैलाते हुए उसके छेद मे अपना लंड उतार दिया था.विजयंत उसकी चूचियो को दबाते हुए चूस रहा था & देवेन उसकी गंद मार रहा था.रंभा मस्ती मे विजयंत के लंड पे उच्छलते हुए सर पीछे झुका बालो को झटकती मस्ती मे चीखे जा रही थी.देवेन आज लंड को आधी लंबाई से आगे घुसा रहा था.रंभा को प्यार से चूमते ,उसके कानो मे प्यार भरे बोल बोलते हुए,वो अपने लंड को उसकी गंद की अनच्छुई गहराइयो मे उतार रहा था.गंद मे होती हुलचूल की वजह से रंभा का पूरा जिस्म सिहर उठा था & उसकी चूत बुरी तरह कसमसा रही थी.विजयंत का लंड उसकी कसमसाहट से पागल हो गया था & अब विजयंत भी नीचे से कमर उचका के उसे तेज़ी से चोद रहा था.

देवेन उसकी गंद की कसावट से पागल हो गया था.बड़ी मुश्किल से वो खुद को तेज़ धक्के लगाने से रोक रहा था.वो अपने हाथो से कभी उसकी मांसल कमर तो कभी उसकी मोटी चूचियाँ दबा रहा था.उसका दिल किया कि वो अकेला ही रंभा की जवानी का लुत्फ़ उठाए & उसने आगे झुकते हुए उसकी मूडी टाँगो को दोनो हाथो मे थामा & उसे विजयंत के लंड से उठा हॉल मे रखे बड़े सोफे पे ले गया.विजयंत इस तरह से चुदाई मे खलल पड़ने से झल्ला गया था लेकिन देवेन रंभा का प्रेमी था & वो उसे चाह के भी मना नही कर सकता था.

रंभा सोफे पे घुटनो & हाथो पे थी & देवेन बाए हाथ को उसकी कमर की बगल से ले जाते हुए उसके दाने को रगड़ते हुए उसकी गंद मार रहा था.कुच्छ ही पॅलो मे रंभा झाड़ गयी & सोफे पे निढाल हो गयी.देवेन ने लंड उसकी गंद से बाहर खींचा & उसके चेहरे के पास बैठ के उसपे किस्सस की झड़ी लगा दी.अब विजयंत भी सोफे पे आ गया था & रंभा की गंद सहला रहा था.

वो झुका & उसकी गंद की फांको को चूमने लगा.रंभा ने देवेन को चूमा & उसे खड़े होने का इशारा किया & फिर उठते हुए उसके पेट मे अपना मुँह घुसा चूमने लगी.देवेन उसके बालो मे प्यार से हाथ फिराने लगा & उसने उसके लंड को मुँह मे भर लिया.

"उउन्नग्घह..!",वो घुटनो & हाथो पे हो देवेन के लंड को पकड़ के हिलाते हुए चूस ही रही थी कि पीछे से अपने घुटनो पे बैठ विअजय्न्त ने उसकी चूत मे लंड उतार दिया था.रंभा अब पूरी तरह से मदहोश थी.दोनो मर्द उसके जिस्म से पूरे जोश के साथ खेल रहे थे & वो भी उनकी हर्कतो से जोश मे पागल हो रही थी.विजयंत का तगड़ा लंड उसकी चूत को बुरी तरह फैलाता हुआ रगड़ रहा था & हर धक्के पे जब विजयंत का जिस्म उसकी गंद से टकराता तो वो सिहर उठती & देवेन के लंड को मुँह मे भरे हुए आह भरती.विजयंत उसकी गंद की फांको पे चपत मारता उसकी चूत चोद रहा था & देवेन उसके सर को थामे,बीच-2 मे उसकी छातिया दबाता उसका मुँह.कुच्छ देर बाद रंभा 1 बार फिर झाड़ गयी & देवेन के लंड को छ्चोड़ सोफे पे गिर गयी.

विजयंत ने उसकी कमर थाम उसे उठाया & उसे पकड़ते हुए सोफे से नीचे पैर लटका के बैठ गया.अब रंभा उसके सीने से पेट लगाए ,उसके लंड को चूत मे लिए बैठी थी.विजयंत ने उसकी कमर पकड़ उसे उपर उठाया & लंड को चूत से निकाला & फिर गोद मे बिठा के आगे झुकाया.रंभा समझ नही पा रही थी कि वो कर क्या रहा है मगर देवेन समझ गया था.वो सामने आया & रंभा के सामने बैठ के उसके होंठ चूमने लगा.

"ऊन्न्‍न्णनह..!",रंभा ने दर्द & मस्ती मे बहाल हो देवेन के कानो को पकड़ते हुए उसके मुँह मे अपनी जीभ घुसा दी थी.विजयंत ने उसकी कमर थाम उसकी गंद मे अपना लंड डाल दिया था.देवेन चूमते हुए उठा & उसे विजयंत के सीने पे गिरा दिया & उसकी टाँगे फैला दी & घुटने मोड़ दिए.रंभा ने अपने घुटने अपने हाथो मे पकड़ अपनी चूत अपने महबूब के लिए खोलो दी.देवेन आगे झुका & लंड को उसकी चूत मे घसा दिया.रंभा अभी भी उसके मोटे लंड के घुसने पे थोड़ा दर्द महसूस करती थी,उसका लंड था ही इतना मोटा!

देवेन आगे झुका & उसे चूमते हुए उसकी चूचियाँ मसल्ते हुए धक्के लगाने लगा.विजयंत उसकी कमर को जकड़े उसके कंधो & गर्दन को चूमता हुआ उसकी गंद मार रहा था.रंभा अब बिल्कुल बहाल हो गयी.2 ताक़तवर मर्दो से इस तरह अपने जिस्म को ऐसे भोगा जाना उसे मदहोशी के उस आलम मे ले गया था,जिसके बारे मे उसने कभी सपने मे भी नही सोचा था.दोनो उसके जिस्म को अपने हाथो मे भरते हुए,उसके चेहरे & बाकी जिस्म पे चूमते हुए उसके दोनो सुराखो मे अपने क़ातिल अंगो को इस गर्मजोशी से अंदर-बाहर कर रहे थे की वो बस झड़ती चली जा रही थी.उसका अपने जिस्म पे कोई इकतियार नही रह गया था.उसे होश भी नही था कि वो चीख रही थी & उसका जिस्म कांप रहा था.वो तो बस मज़े मे डूबी हुई थी.तीनो ने 1 साथ ज़ोर से आह भरी & रंभा ने 1 साथ अपनी चूत & गंद मे गर्म,गाढ़े वीर्य की बौच्चरें महसूस की & उसकी चूत भी उनके जवाब मे पानी बहाने लगी.खेल अपने अंजाम तक पहुँच गया था & तीनो अब सुकून ओर खुशी से भरे हुए थे.

हॉलिडे इन्न गोआ मे रॉकी को वो मिल गया जिसकी उसे तलाश थी-रंभा मेहरा का नाम.कितनी मुश्किल हुई थी उसे ये काम करने मे ये वोही जानता था.उसके क्लाइंट ने उसे रंभा के डेवाले से गोआ आने की तारीख & फ्लाइट के बारे मे बताया था & केवल उसी के सहारे वो इस होटेल तक पहुँच गया था.इसके पहले उसने 10 5 स्तर होटेल्स मे छन्बिन की थी मगर हर जगह से उसे खाली हाथ लौटना पड़ा था.उसे लगने लगा था कि रंभा ज़रूर किसी छ्होटे-मोटे होटेल या फिर किसी जान-पहचान वाले के घर चली गयी होगी मगर हॉलिडे इन्न के फ्लोर मॅनेजर से मिलने के बाद उसकी तलाश ख़त्म हो गयी थी या कहिए की शुरू हो गयी थी.

"पूरा कमरा तहस-नहस था मानो अंदर कोई तूफान आया हो."

"अंदर हाथापाई हुई थी क्या?",रॉकी ने 1 मोटा पॅकेट मॅनेजर को थमाया.

"हां..",वो हंसा,"..मगर वो हाथापाई जो मर्द & औरत करते हैं.",उसने पॅकेट को खोल अंदर देखा & फिर उसे अपने कोट की अंदर की जेब मे रख लिया.रॉकी उसकी बात समझ मुस्कुराने लगा.

"कैसा दिखता था वो मर्द?"

"बुड्ढ़ा था 50 बरस से उपर का,खिचड़ी मगर करीने से बने बाल & हां..",उसने अपने बाए गाल पे अपना हाथ रखा,"..यहा 1 निशान था."

"हूँ..",रॉकी कुच्छ सोच रहा था,"..1 काम & कर सकते हो?"

"क्या?"

"तुम्हारे होटेल के सेक्यूरिटी कॅमरास के फुटेज से मुझे उसकी तस्वीर दे सकते हो?"

"ये तो बहुत ख़तरे का काम है.पता चल गया तो मेरी नौकरी तो जाएगी ही आगे नौकरी मिलना भी नामुमकिन हो जाएगा."

"अच्छा,1 काम करो.तुम उस फुटेज तक पहुँच बस उस आदमी की शक्ल मुझे 1 बार दिखा दो."

"मगर कैसे?..मैं फुटेज आक्सेस नही कर सकता क्यूकी वो मेरा डिपार्टमेंट नही है."

"हां..मगर तुम फ्लोर मॅनेजर हो,वो शख्स तुम्हारे फ्लोर के 1 कमरे मे 1 पूरी रात रहा.तुम किसी भी बहाने से उस वीडियो को देख सकते हो & मुझे बस उसकी 1 फाइल किसी तरह दे दो."

"हूँ..मैं पक्का नही कह सकता पर कोशिश कर सकता हू."

"ओके.कल मिलूँगा,यही इसी वक़्त."

"ओके और पैसे?"

"उसकी फ़िक्र मत करो.",रॉकी ने उसकी तरफ का कार का दरवाज़ा खोला जिसमे वो बैठे थे.वो मॅनेजर उतर गया & दरवाज़ा बंद कर दिया तो रॉकी ने कार स्टार्ट की & होटेल की बेसमेंट पार्किंग से निकल गया.पार्किंग से निकलते हुए उसने आँखो पे काला चश्मा & सर पे बेसबॉल कॅप लगा ली ताकि पार्किंग के एंट्रेन्स,एग्ज़िट & अंदर लगे कॅमरास मे उसकी शक्ल सॉफ ना आए.उसे जिस काम को अंजाम देना था,उसके कामयाब होने पे बहुत मुमकिन था कि पोलीस सिरो को जोड़ने के इरादे से इस होटेल तक आ पहुँचे & वो किसी भी कीमत पे पोलीस की नज़र मे नही आना चाहता था.

रॉकी 6'4" का लंबा-चौड़ा,ताक़तवर जवान था.उसके गर्दन तक लंबे बाल & चेहरे की घनी दाढ़ी & उसका गथिला जिस्म लड़कियो को उसकी ओर खिचने मे हमेशा कामयाब होते थे.वो भी इसका खूब फयडा उठता था मगर अपने काम के आगे वो अपने इस शौक को कभी तवज्जो नही देता था.उसने अपनी कार 1 पब्लिक पार्किंग मे लगाई & 1 बीच शॅक मे बने बार मे गया जो इस वक़्त शाम को खचाखच भरा था.

वो बार तक गया & 1 बियर ऑर्डर की.पास बैठी 1 लड़की उस से फ्लर्ट करने की कोशिश कर रही थी & वो भी मुस्कुराते हुए उसका साथ दे रहा था.लड़की के बिकिनी के टॉप & सरॉंग मे कसा अधनंगा जिस्म काफ़ी दिलकश था लेकिन इस वक़्त रॉकी अपने काम के सिलसिले मे इस बार मे आया था & अभी उस लड़की का हुस्न उसके लिए कोई मायने नही रखता था.रॉकी उस लड़की से बाते करते हुए किसी को ढूंड रहा था.लड़की उसके दाए तरफ बैठी थी & बाते करते हुए बार-2 उसकी जाँघो पे हाथ रख रही थी.रॉकी जानता था कि बस उसे अपनी बातो से उसके बातो मे च्छूपे बुलावे को कबूल करना था & उसकी आज की रात को वो नशीली बनाने मे कोई कसर नही छ्चोड़ती मगर आज उसे उस लड़की की जवानी से महरूम रहना होगा क्यूकी वो जिसे ढूंड रहा था,उसे वो शख्स दिख गया था,"एक्सक्यूस मी पर मैं यहा अपनी ग्रिल्फ्रेंड का इंतेज़ार कर रहा हू.",लड़की बुरा सा मुँह बनाती चली गयी.

"शालोम,यहेल.",तगड़े फिरंगी बारटेंडर के पीछे आए 1 5'9' कद का चुस्त जवान उसकी आवाज़ सुन ठिठक गया.

"शालोम.",वो नज़रो से रॉकी को तोल रहा था.रॉकी ने देखा की बारटेंडर का दाया हाथ उसके एप्रन के पीछे चला गया था.रॉकी जानता था कि उसने ज़रा भी गॅडबॅड की & बारटेंडर का छिपा हत्यार उसकी ओर आग उगलने लगेगा.

"वॉट ईज़ दा मीनिंग ऑफ शालोम,यहेल?..शालोम का मतलब क्या होता है?",उसने अपनी आँखे यहेल की आँखो से मिला दी.

"पीस..अमन.",यहेल का बाया हाथ बार काउंटर के नीचे था & दाया काउंटर के उपर.अपने जवाब से उसने ये भी जता दिया था कि उसे भी यहा की ज़ुबान आती थी.

"तो मैं शांति से यहा बिज़्नेस की बात करने आया हू कोई गड़बड़ करने नही..",रॉकी ने दोनो हाथ काउंटर पे रख दिए थे,"..मेरे पास कोई हत्यार नही है.चाहो तो मेरी तलाशी ले लेना."

"वॉट सॉर्ट ऑफ बिज़्नेस?"

"मुझे फ़ारूख़ ने तुम्हारा पता दिया था.",उस नाम को सुनते ही यहेल के चेहरा थोड़ा नर्म पड़ा मगर वो & उसका बारटेंडर साथी अभी भी चौक्काने थे,"..मुझे 1 शख्स को ढूँढना है & फिर..",उसने बात अधूरी छ्चोड़ दी लेकिन यहेल समझ गया.

"हूँ..कम.",रॉकी जिस बार मे आया था ये इज़्रेली माफिया के गुर्गो का था.इसका पता उसे डेवाले के अंडरवर्ल्ड के अपने 1 कॉंटॅक्ट से मिला था.यहेल उसे शॅक के पीछे ले गया.यहेल आगे चल रहा था,उसके पीछे रॉकी & सबसे पीछे वो बारटेंडर.1 कमरे मे जा यहेल 1 कुर्सी पे बैठा & अपनी शर्ट के नीच्चे से पॅंट मे अटकी ऑटोमॅटिक पिस्टल निकाल के अपने हाथ मे ले ली & रॉकी को बैठने का इशारा किया.रॉकी के बैठते ही बारटेंडर ने दरवाज़ा बंद किया & उसपे खड़ा हो अपने पेरो के पीछे च्छूपी पिस्टल निकाल के हाथ मे ले ली.यहेल ने अपना मोबाइल निकाला & नंबर मिलाया.

"हूँ..ओके..राइट..बाइ..!",उसने फोन काटा & मोबाइल अपनी जेब मे डाला,"..तुम्हारा नाम क्या है?"

"रॉकी."

"कहा से आया हो?",हिन्दुस्तानी ज़ुबान पे उसकी पकड़ अभी उतनी मज़बूत नही हुई थी.

"डेवाले."

"हूँ..क्या चाहिए..ऑटोमॅटिक..सेमी-ऑटोमॅटिक..उस से हेवी वेपन..प्लीज़ नो बारगिनिंग..प्राइस पे..",वो अच्छे हिन्दुस्तानी लफ्ज़ सोचने की कोशिस कर रहा था.

"हुज्जत करना तुम्हे पसंद नही.",रॉकी ने मुस्कुराते हुए उसकी मदद की.

"यस."

"पर मुझे हत्यार से ज़्यादा कुच्छ और मदद चाहिए."

"ओके..वॉट?"

"मुझे 1 शख्स की तलाश है..आइ मीन 2 लोगो की तलाश है..",उसने जेब से रंभा की तस्वीर निकाली,"..1 तो ये लड़की ."

"ओके..",यहेल ने तस्वीर को देखा & फिर रॉकी को वापस किया,"..& दूसरा?"

"उसकी तस्वीर मेरे पास नही है अभी..",उसने वही हुलिया बताया जो हॉलिडे इन्न के फ्लोर मॅनेजर ने उसे बताया था,"..& अगर लक अच्छा रहा तो कल शायद तस्वीर भी मिल जाए."

"आफ्टर फाइंडिंग देम..क्या?"

"वो मुझे करना है.मेरे क्लाइंट की सख़्त ताकीद है कि उसके बाद का काम मैं अकेले ही करू."

"& युवर क्लाइंट इस वेरी राइट क्यूकी उसके बाद का काम..आइ नो वॉट तट'स गोन्न बी& उसमे हम इन्वॉल्व नही होंगे.",रॉकी जानता था.उसकी तरह ये लोग पोलीस से डरते नही मगर उसी की तरह ये लोग उनकी नज़रो मे आना या अपने रास्ते मे उन्हे आने देना नही चाहते थे.

"ओके."

"नाउ दा फीस."

बोलो क्या चाहिए.",यहेल के कहने के बावजूद रॉकी ने दाम पे हुज्जत की & थोड़ी देर बाद सब तय हो गया था.यहेल आज से ही उसके बताए हुलिए वाले शख्स & रंभा की खोज मे अपने आदमियो को लगाने वाला था.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:48 PM,
#75
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--74

गतान्क से आगे......

"क्या?!",देवेन बिस्तर मे उठ बैठा.वो बिल्कुल नंगा था & रंभा केवल ब्रा और पॅंटी मे.वो उसके क्लेवगे को चूमते हुए उसके पेट को सहला रहा था जब उसके दिमाग़ मे समीर के बलबीर मोहन को रंभा को खोजने के काम पे लगाने & रंभा के उस से निपटने वाली बात आई & उसने उस बारे मे उस से पुछा,"..और तुमने उसे बता दिया कि तुम यहा हो गोआ मे?!"

"हां..",रंभा उठ बैठी,"..अब वो हमे ढूँढने नही आएगा.मैं जानती हू उसे.वो समीर को ये बात बता और फिर इस काम को करने से इनकार देगा."

"ओह..रंभा..तुम इतनी बड़ी ग़लती कैसे कर सकती हो?!",देवेन परेशान सा बिस्तर से उतर कमरे मे चहलकदमी करने लगा.

"मगर हुआ क्या?..बताइए तो?"

"रंभा,समीर बलबीर को नही तो किसी और को भेजेगा तुम्हे ढूँढने और कही उन्हे तुम्हारे साथ-2 विजयंत मेहरा के बारे मे पता चल गया तो?",रंभा उसकी बात समझ चिंतित हो गयी.

"रंभा,मेहरा परिवार मे कोई भी शक़ के दायरे से बाहर नही है और मान लो समीर अपने पिता के इस हाल का ज़िम्मेदार नही है तो भी..वो जब ये देखेगा कि तुम 1 सज़ायाफ़्ता मुजरिम के साथ उसके पिता को यहा च्छुपाए बैठी हो तो फिर क्या होगा?"

"अब क्या करें?",रंभा घबरा गयी थी.

"सोचने दो मुझे.",वो कमरे मे नंगा ही चहलकदमी करने लगा.कोई 10 मिनिट के बाद वो रुका,"अपना समान समेटो और फिर विजयंत को भी चलने को तैय्यार करो.",वो अपने कपड़े पहनाने लगा और 1 बॅग मे अपना समान डालने लगा.रंभा बिस्तर से उतरी & उसके कहे मुताबिक करने लगी.

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"अब यहा रहना है हमे..",उसने अपने घर से दूरी पे बने अगले बंगल के अंदर कार घुसाई,"..पर ध्यान रहे,दुनिया के लिए सिर्फ़ मैं यहा हू.तुम दोनो मे से कोई भी बाहर नही दिखना चाहिए.ये लो चाभी..",उसने रंभा को चाभियो का 1 गुच्छा दिया & जल्दी से अंदर जाओ.विजयंत,प्लीज़ ये समान उठाओ,मैं मेन गेट लॉक कर के आता हू.",कुच्छ देर बाद विजयंत अपने कमरे मे सो रहा था & देवेन & रंभा अपने कमरे मे थे.रात के अंधेरे का फयडा उठाके वो सब को छुपा के यहा ले आया था & अब उसका तनाव थोडा कम हुआ था.

"आइ'एम सॉरी.",रंभा उसके पहलू मे उस से सॅट गयी & उसके सीने पे सर रख दिया.

"इसमे सॉरी की क्या बात है?..हो जाती है ग़लती."

"अच्छा,1 बात पुच्छू?",रंभा उसके सीने पे उंगली चला रही थी.

"कैसा बेवकुफ़ाना सवाल है!",देवेन ने उसके गाल पे प्यार से चपत लगाई,"..पुछो क्या पुच्छना है."

"आप काम क्या करते हैं?"

"तुम सोचती हो कि मैं कोई ग़लत काम करता हू..हूँ?",उसने महबूबा के चेहरे को सीने से उपर उठाया ताकि वो उसकी आँखो मे देख सके.रंभा ने धीरे से नज़रे झुकाते हुए सर हां मे हिलाया.

"देखो,रंभा.मैने तुम्हे बताया था ना कि जैल से निकलने के बाद मैने हर तरह का धंधा किया,कुच्छ सही कुच्छ ग़लत मगर अब मैं कोई ग़लत काम नही करता.हां,अपने इन्टेक़ाम के लिए और फिर मेरी जान-पहचान तो शुरू से ही ऐसे लोगो से रही है,मैं ग़लत लोगो से मिलता रहता हू.उनसे कॉम्न्टेक्ट मे भी रहता हू मगर अब मैं खुद कोई ग़लत काम नही करता बालम सिंग जैसे लोगो को मारने के सिवा.",रंभा ने उसके चेहरे पे प्यार से हाथ फिराया,"..मैने तमिल नाडु मे और फिर यहा जो भी पैसे कमाए उनसे यहा 5-6 प्रॉपर्टीस कहरीदी हैं & इन 2 को छ्चोड़ के..",उसका इशारा अभी-2 छ्चोड़े मकान और उस बुंगले मे था जिसके कमरे मे वो लेटे थे,"..सभी को किराए पे लगा रखा है.1 छ्होटा सा फिशरी का भी धंधा है.इसी से खर्चा चलता है मेरा."

"आप ये तो नही सोच रहे क़ी मैं आप पे शक़ कर रही थी या फिर आपको ग;लत समझ रही थी?",

"नही,मैं जानता हू की तुम्हारे दिल मे बस सवाल उठ रहे थे & ये कुद्रती बात है."

"आइ लव यू,देवेन!",रंभा उसके गले से लग गयी तो देवेन ने भी उसे बाँहो मे कस लिया,"..मेरी ग़लती से कोई बड़ी परेशानी तो नही खड़ी होगी ना?",वो देवेन के दाए कंधे के उपर अपना चहरा उसकी गर्दन मे च्छुपाए थी.

"नही,रंभा..",देवेन ने उसकी पीठ थपथपाई,"..और हुई भी तो मैं उसे डोर कर दूँगा."

"हूँ.",रंभा उस से & ज़ोर से चिपक गयी तो देवेन ने भी अपनी बाहो की कसावट को बढ़ा दिया.

"मैं शहर का चक्कर लगा के आता हू..",देवेन ने जूते के फीटे बाँधे & खड़ा हो गया,"..विजयंत,इधर आओ.",विजयंत मेहरा उसके पीछे-2 बंगल के उस कमरे मे गया जिसकी खिड़की से उनका पुराना घर दिखता था.रंभा भी उनके पीछे-2 वाहा आ गयी.देवेन दिन मे भी बाहर गया था & कुच्छ समान ले कर आया था जोकि कुच्छ कारटन्स मे कमरे मे ही रखे थे.अभी तैय्यार होने से पहले उसने इस बंगल के चारो तरफ सीक्ट्व कॅमरास लगाए थे.देवेन ने पहले कमरे की बड़ी खिड़की के पर्दे बराबर किए,फिर बत्ती जलाई & फिर कारटन्स को खोलना शुरू किया.

"देखो विजयंत,मेरा सोचना है कि समीर अभी भी रंभा को ढूँदने की कोशिश करेगा.कंधार वाले हादसे मे भी वो शक़ के दायरे मे है.मैं कोई भी बात चान्स पे छ्चोड़ना नही चाहता..",उसने कारटन्स खोल के मोटे पाइप सी चीज़ें & 1 स्टॅंड निकाल लिया था.कमरे मे मौजूद बाकी 2 लोग उसके निकाले समान को देख समझने की कोशिश कर रहे थे कि वो कर क्या रहा था,"..ये लो.",जब उसने स्टॅंड पे पाइप्स जैसी चीज़ो को जोड़ के लगाया तब दोनो की समझ मे आया कि वो हाइ पवर की दूरबीन थी,"..मैं चाहता हू कि तुम इस की मदद से हमारे पुराने घर पे नज़र रखो."

उसने 1 मेज़ खींच के उसी खिड़की के बगल की दीवार से लगाई & उसपे 1 लॅपटॉप रख के ऑन किया,"..इस लॅपटॉप के ज़रिए तुम घर के चारो तरफ लगे सीक्ट्व कॅमरास की फुटेज देख सकते हो."

"ध्यान रहे कमरे मे बिल्कुल अंधेरा होना चाहिए.इन 2 भारी पर्दो के बीच से बस दोर्बीन का लेंस निकला रहे & कंप्यूटर हमेशा इसी जगह पे रहे ताकि इस खिड़की की तरफ देखने वाले को बिल्कुल भी ये अंदाज़ा ना हो की इस कमरे मे कोई है भी.",विजयंत को उसने 1 कुर्सी पे बैठाके दूरबीन को उसके हिसाब से अड्जस्ट किया & फिर रंभा से मुखातिब हुआ,"..तुम्हे इसकी मदद करनी है & इस लॅपटॉप की फुटेज को चेक करती रहना..",1 एक्सटर्नल हार्ड डिस्क उस लॅपटॉप से जुड़ी थी,"..इस डिस्क मे सारी फुटेज रेकॉर्ड होती रहेगी बस तुम्हे इस बात का ख़याल रखना है कि तुम इसे बहकाओ ना.",देवेन मुस्कुराया & कमरे से बाहर चला गया.रंभा भी शोखी से मुस्कुराते उसके पीछे आई.

"इतने ताम-झाम की क्या ज़रूरत है?",उसने देवेन के सीने पे दोनो हाथ जमाए,"..हमने तो घर भी बदल लिया है.अब अगर कोई आएगा भी तो वो नाकाम हो के चला जाएगा."

"तुम्हारी बात ठीक है मगर मुझे उस इंसान की शक्ल देखनी है जो तुम्हे ढूँढने यहा आ सकता है.",उसने उसके गुलाबी गाल थपथपाए & उनके उपर झुक गया.1 लंबी किस के बाद बंगल के दरवाजे से देवेन के बाहर जाने के बाद उसने दरवाज़ा बंद कर लिया.

देवेन ने कार निकली & बंगल के मेन गेट पे ताला लगाया & वाहा से चला गया.आज उसका इरादा गोआ के सुनहरे बीचस पे बने शॅक्स & बार्स थे मगर वो वाहा शराब पीने या ऐश करने नही बल्कि 1 बहुत अहम काम से जा रहा था.आज सवेरे ही उसे अपने रशियन दोस्तो से पता चला था कि इज़्रेली माफिया 1 गाल पे निशान वाले बुड्ढे को ढूंड रहे हैं.उसे लग रहा था कि हो ना हो ये काम अमोल बपत का था & अब वो इस मामले से निपट बपत को हद्द रहने की चेतावनी देना चाहता था.मगर उसे रंभा & विजयंत की फ़िक्र थी & इसीलिए उसने घर के चारो तरफ कमेरे लगाए थे.

मगर केवल बपत ही नही था जो उसके पीछे इसरालियो को लगा सकता था,ये काम उस ड्रग सिंडिकेट का भी हो सकता था जिसका बालम सिंग हिस्सा था.अगर ऐसा था तब तो बड़ी अच्छी बात थी.उसे यकीन था कि दयाल किसी ना किसी तरह से अभी भी ड्रग्स के धंधे से जुड़ा था & इस तरह से भी वो उस तक पहुँच सकता था.दयाल की तलाश अब 2 रस्तो से हो रही थी.1 उसके ड्रग्स के धंधे के लिंक्स के रास्ते से & दूसरे बीसेसर गोबिंद नाम के 1 मौरीतियाँ के तलाश के रास्ते से.

"उउन्न्ञनह..!",वो लड़की आँखे बंद किए यू पड़ी थी जैसे बेहोश हो मगर उसी च्चटपटाहत उसके होश मे होने की गवाही दे रही थी.हक़ीक़त तो ये थी कि वो अपने जिस्म के रोम-2 से फुट रही मस्ती ने उसे बेसूध कर दिया था.वो बस 2 दिन पहले ही 19 बरस की हुई थी.6 महीने पहले ही उसका कुँवारापन टूटा था और आज जैसा तजुर्बा उसके लिए ना केवल नया था बल्कि बहुत नशीला & मदहोश करने वाला भी.रॉकी जैसा गतिला,जवान मर्द जोकि चुदाई का माहिर खिलाड़ी था उसे नंगी करने के बाद ना जाने कितनी देर तक उसके पूरे जिस्म की तारीफ करने के साथ उसे चूमता,सहलाता रहा था.कब उसके सख़्त हाथो की च्छुअन से हँसती,उस से च्छेदखानी करती वो इस हालत मे पहुँच गयी थी उसे पता ही नही चला था.

रॉकी उस लड़की से दोपहर को 1 बीच शॅक मे हो रही पार्टी मे मिला था.वो यहा अपनी सहेलियो के साथ छुट्टियाँ मना रही थी.2-3 मोकक्थाइल्स & 2 घंटो के बाद ही दोनो बीच के होटेल के 1 कमरे मे आ गये थे & इस खेल मे जुट गये थे.

1 लंबे अरसे तक उसकी चूत चाटने के बाद रॉकी उठा तो उस लड़की ने अड़खुली आँखो से उसे देखा.उसकी आँखो मे रॉकी से आगे बढ़ने की इल्टीजा थी.उसके लंड को चूस्ते वक़्त ही वो लड़की उसकी दीवानी हो गयी थी & अब रॉकी की हर्कतो के बाद उसके 8 इंच के लंबे & मोटे लंड को अपने अंदर लेने मे उसे कोई हिचक नही थी.उसका दिल लंड के आकार को देख घबरा तो गया था मगर अब उसे अपनी चूत मे लिए बिना उसे चैन भी तो नही पड़ने वाला था.

"आईियययययई..नहियीईईईईई....!",रॉकी अब तक उस से बड़ी नज़ाकत से पेश आ रहा था मगर अब जान-बुझ के उसने बेरेहमी से अपना लंड 1 ही झटके मे उसकी चूत मे जड तक घुसा दिया था.लड़की दर्द से चीखी,बेइंतहा गीलेपान के बावजूद उसे चूत मे बहुत ज़ोर का दर्द हुआ था.रॉकी के लंड ने उसकी चूत को पूरा फैला दिया था.उसे ऐसा लगा जैसे की कोई दूसरी बार उसका कुँवारापन तोड़ रहा हो मगर साथ ही उसे 1 अजीब सा,बड़ा अच्छा,भरा-2 एहसास हो रहा था.उसके जिस्म मे अजीब सी बेचैनी भर गयी & वो कसमसाने लगी & दर्द के कम होते ही अपनी कमर हिलाने लगी.

रॉकी अब तक लंड घुसाए बिल्कुल शांत बस अपनी कोहनियो पे उचका लड़की को देख रहा था.जैसे ही लड़की ने कमर हिलाई रॉकी ने उसकी चुदाई शुरू कर दी.लड़की के मज़े का तो कोई ठिकाना नही था.बस 2 धक्को मे वो झाड़ गयी & मस्ती मे सुबक्ती हुई,आहे भरती हुई कभी रॉकी के बाल तो कभी उसकी पीठ नोचते हुए उसकी कमर & टाँगो पे अपनी टाँगे चढ़ाते हुए उसकी चुदाई का लुत्फ़ उठाने लगी.

"हेलो..",रॉकी का मोबाइल बजा तो उसने उसे कान से लगाया,"..गुड..ओके,मैं आता हू.!",होटेल के फ्लोर मॅनेजर का फोन थे जिसने सीक्ट्व फुटेज से उस बुड्ढे की तस्वीर निकाल ली थी.रॉकी ने फोन किनारे रखा & लड़की के उपर लेट गया & उसकी छ्होटी मगर गोल & मुलायम चूचियो को मसल्ते हुए उसके पतले-2 होंठ चूस्ते हुए उसे चोदने लगा.

तो ये है वो शख्स जिसके साथ रंभा होटेल से गयी थी..रॉकी फ्लोर मॅनेजर की दी गयी सीडी को अपने लॅपटॉप मे देख रहा था.क्लिप कोई 60-65 सेकेंड की ही थी & 2-3 अलग-2 कॅमरास से ली गयी फुटेज को जोड़ के बनाई गयी थी.क्लिप मे रंभा जिस अंदाज़ मे उस बुड्ढे की कही किसी बात पेउस्की बाँह पकड़ के हंस रही थी,उस से तो सॉफ ज़ाहिर था की दोनो के बीच काफ़ी नज़दीकी ताल्लुक़ात थे.उसने सीडी को कवर मे डाल अपनी जेब के हवाले किया & यहेल से मिलने चल दिया.

देवेन अब तक इजराइलियो के कंट्रोल वाले 3 बार्स का चक्कर लाघा चुका था मगर तीनो मे से किसी मे उसने अपनी मौजूदगी से कोई सुगबुगाहट होते नही देखी.गोआ आने के बाद उसने 1 ही जुर्म किया था-अगर उसे जुर्म कहा जा सकता हो तो-& वो था बालम सिंग का क़त्ल..उसकी समझ मे नही आ रहा था कि आख़िर इसरएलियो को उसमे इतनी दिलचस्पी क्यू हो गयी?..पहाड़ो के ड्रग्स के धंधे मे भी ये गैर मुल्की घुसे हुए थे मगर क्या वाहा का सिंडिकेट & यहा का सिंडिकेट मिल के काम करते थे & फिर उन्हे ये पता कैसे चला कि वो ही बालम सिंग की मौत का ज़िम्मेदार था..फेणी की बू से वो अपनी सोच से बाहर आया.गोआ मे रहते उसे इतने बरस हो गये थे मगर उसे वाहा की शराब कभी रास नही आई थी.उसने बियर की छ्होटी बॉटल से 1 घूँट भरा..शॅक के 1 कोने मे बने डॅन्स फ्लोर पे काई लोग नाच रहे थे.वो पीते हुए उन्हे देख रहा था.उसने बालम सिंग वाले नज़रिए पे बहुत सोचा था & अब उसे लगने लगा था कि ये काम समीर का था..वो रंभा के साथ होटेल के कमरे मे 1 पूरी रात रहा था & उस कमरे का दोनो ने जो हाल किया था,उसके बाद तो दोनो की शकलें वाहा कयि लोगो को अच्छे से याद हो गयी होगी.ये 1 कमाल ही था कि कोई मीडीया वाला अभी तक रंभा मेहरा की ज़िंदगी से जुड़ी इस मसालेदार खबर सुन्घ्ता उसके घर तक नही पहुँचा था.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:49 PM,
#76
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--75

गतान्क से आगे......

उसने बार काउंटर पे पैसे रखे & वाहा से जाने लगा की अपने बाई तरफ आँखो के कोने से कुच्छ दिखा जोकि उस शॅक की गहमागहमी से बिल्कुल अलग था.देवेन ने फ़ौरन अपनी पीठ उस तरफ की और सामने खड़ी चिलम से गांजे के कश लगाती 1 फिरंगी लड़की के गले मे लटके बड़े से लॉकेट को उठाके देखने लगा,”नाइस लॉकेट.”,लॉकेट कोई 2इन्चX2इंच का था & देखने मे छ्होटा सा फोटो फ्रेम लगता था.देवेन उसके शीशे को घुमा के 1 आईने की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा था.

“यू ट्राइयिन टू पिक मी अप?”,लड़की गांजे के नशे मे चूर थी.

“वॉट डू यू थिंक?”,उसका आइडिया काम नही कर रहा था.उसने लड़की के हाथ से चिलम ली & उसके बाई तरफ दीवार से टिक के उसके साथ खड़ा हो गया & चिलम का 1 कश लिया & लेते हुए सामने 2-3 इसरएलियो को खुद की ओर देखते पाया.

“आइ थिंक यू आर नोट यूज़्ड टू दिस स्टफ.”,देवेन की आँखो से पानी आ गया था.लड़की ने उस से चिल्लूम ली & फिर 1 लंबा कश लिया.

“सो वाइ डॉन’ट यू हेल्प मी इन गेटिंग यूज़्ड टू इट.”,देवेन का दिमाग़ तेज़ी से काम कर रहा था.

“ओके.”,लड़की ने उसका हाथ थाम लिया तो देवेन ने दाया हाथ उसके गले मे डाला & बाए हाथ मे उसका बाया हाथ ले चूमते हुए बाहर निकल गया.उसे ये देखना था कि वो लोग आगे क्या करते हैं.वो लड़की को लेके बीच के 1 खाली पड़े हिस्से की तरफ बैठ गया & रेत पे बैठ गया.

देवेन चिल्लूम से बहुत हल्के काश खीच रहा था मगर जता ऐसे रहा था जैसे बहुत लंबे कश लगा रहा हो.वो & लड़की बारी-2 से गांजा पी रहे थे.देवेन का सारा ध्यान उन तीनो इसरएलियो पे ही था.उसकी समझ नही आ रहा था कि आख़िर वो बस उसपे नज़र क्यू रख रहे हैं,कोई कदम क्यू नही उठाते?..ज़रूर वो अपने बॉस का इंतेज़ार कर रहे हैं..मगर कौन है इनका बॉस?..फ़ौरन ही देवेन को अपने सवाल का जवाब मिल गया..यहेल!..तो वो इसके आदमी हैं..मगर इसका तो पहाड़ो के ड्रग सिंडिकेट से कोई लेना-देना नही है..तो क्या इसे समीर ने रंभा की तलाश मे लगाया है..मगर समीर इस तक कैसे पहुँचा?..देवेन का गोआ की जुर्म की दुनिया के ज़्यादातर पहलुओ से वाकिफ़ होना आज काम आ रहा था.

"हेलो,तुम्हारा आदमी मिल गया है,कोकाउंट ग्रोव शॅक.",यहेल ने रॉकी से बस इतना कह के फोन काट दिया & फिर शॅक के अंदर चला गया.1 बार फिर उसके तीनो आदमी चोरी से देवेन पे नज़र रखने लगे.देवेन अब & सोच मे पड़ गया था..आख़िर यहेल ने फोन किसे किया था?..कोई 20 मिनिट बाद इस सवाल का जवाब भी उसे मिल गया.1 लंबा-चौड़ा दाढ़ी वाला नौजवान वाहा आया & उसे देखा & फिर शॅक की ओर बढ़ गया.रॉकी को ज़रा भी शक़ नही था कि ये वही सीडी वाला बुड्ढ़ा था.अब बस यहेल को उसकी फीस देके वो इस से निबट लेगा.

देवेन ने भी रॉकी को देख के उसकी तस्वीर अपने दिमाग़ मे उतार ली थी.उसका काम हो गया था & अब जाने का वक़्त हो गया था.कुच्छ गड़बड़ होने पे वो इन इसरएलियो से यहा उनके इलाक़े मे नही भिड़ना चाहता था.इसराइल दुनिया के उन मुल्को मे से है जहा की बालिग होने पे फौज मे कुच्छ दिन काम करना & ट्रैनिंग लेना ज़रूरी है.देवेन मे अभी भी दम-खाँ था लेकिन 1 साथ बहुत उम्दा फ़ौजी ट्रैनिंग वाले इज़्रेली नौजवानो से भिड़ना तो अपनी मौत को आप बुलावा देने जैसा था.वो तेज़ी से कार की ओर बढ़ा तो 1 इज़्रेली तेज़ी से शॅक के अंदर गया.

"ये तुम्हारी फीस,यहेल.",रॉकी ने 1 पॅकेट मेज़ पे रखा जिसे यहेल के साथी बारटेंडर ने उठा के चेक किया & फिर अपने साथी की ओर देख के सर हिलाया,"..थॅंक्स फॉर एवेरितिंग."

"ओके,जाओ.",यहेल के चेहरे पे इतने आसान काम के इतने पैसे मिलने की खुशी की झलक भी नही थी.तभी 1 इज़्रेली भागता हुआ अंदर आया & हिब्र्यू मे कुच्छ कहा,"..तुम्हारा आदमी जा रहा है.",रॉकी सुनते ही खड़ा हो गया & बाहर भागा.

देवेन कार सड़क पे उतार रहा था जब उसने उस दाढ़ी वाले शख्स को दौड़ते हुए बाहर आते देखा.देवेन ने गियर बदले & तेज़ी से कार को सड़क पे दौड़ाने लगा.ठीक 2 मिनिट बाद रॉकी अपनी कार मे उसके पीछे था.

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"बाहर तो सब शांत है.",रंभा कंप्यूटर के सामने से उठ गयी.देवेन को गये हुए 1 घंटे से उपर हो गया था & अब वो बहुत उब चुकी थी.वो विजयंत मेहरा के पीछे आ खड़ी हुई & उसके कंधे दबाने लगी.अपनी तरफ आती रंभा के लाल & काले रंग के चौखानो वाले मिनी स्कर्ट से बाहर निकलती दूधिया जंघे & सुडोल टाँगे उसे ललचा रही थी.उपर से उसके नाज़ुक हाथो के दबाव ने उसकी हसरत को जगा दिया था मगर अभी वो लाचार था.

"हां,पर नज़र तो रखनी ही है.देवेन ने कहा है तो बात ज़रूर संगीन होगी.",रंभा की नज़दीकी अब उसे मदहोश कर रही थी.उसने बात बदलने की गरज से उस से सवाल किया,"रंभा,1 बात बताओ,क्या समीर ऐसा शख्स है?"

"कैसा?",रंभा जानती थी कि उसके ससुर का इशारा किस तरफ था मगर फिर भी उसने पुचछा.

"यही जो मेरे इस हाल का ज़िम्मेदार है.",विजयंत जब भी बाहर कोई हुलचूल देखता तो दूरबीन से उसे ध्यान से देखने लगता.

"जिस समीर से मैने शादी की थी & जो समीर गायब होने के बाद वापस लौटा था-उन दोनो मे इतना फ़र्क था कि लगता था कि दोनो 2 बिल्कुल अलहदा इंसान हैं.",रंभा के कोमल हाथ अब आगे विजयंत के सीने पे चले आए थे & वो अपनी ठुड्डी उसके दाए कंधे पे टीका चुकी थी.रंभा की नज़र गयी & उसे ससुर की कार्गो पॅंट मे तंबू बना दिखा.वो मन ही मन मुस्कुराइ & उसके दाए गाल को चूम लिया.

"अभी नही.",उसने ना चाहते हुए भी उसके सर को अपने चेहरे से दूर किया.रंभा को उसकी ये बात पसंद तो नही आई मगर वो किनारे हो गयी,"..क्या वजह हो सकती है उसके बदले रवैयययए की?",उसने समीर के बारे मे बात जारी रखी.

"ये तो मुझे भी समझ नही आता.अगर उसे कामया पसंद थी तो आपको & बाकी घरवालो को नाराज़ कर मुझसे शादी क्यू की उसने?",रंभा ने 1 काली वेस्ट पहनी थी.अपनी गोरी,गुदाज़ बाहे उपर ले जा उसने उस वेस्ट को निकाल दिया & अपनी मोटी जंघे विजयंत के चेहरे के सामने से ले जाते हुए उसकी दोनो टाँगो के बीच खड़ी हो गयी.विजयंत के सामने उसका गोल पेट & लाल ब्रा मे क़ैद बाहर निकलने को बेताब चूचियाँ छल्छला रही थी,"खैर छ्चोड़िए.देखते हैं आगे क्या होता है.",रंभा झुक के उसकी टांगो के बीच बैठ गयी.विजयंत भी झुक के उसे देखने लगा.

"अब बाहर क्यू नही देखते?",रंभा ने शोखी से मुस्कुराते हुए ससुर को प्यार से झिड़का & उसकी पॅंट की ज़िप खोल उसके लंड को बाहर निकाल लिया,फिर अपने ब्रा कप्स के बीच लगे बटन को खोल अपनी चूचियाँ आज़ाद कर दी & उन्हे अपने हाथो मे भर लंड को उनके बीच दबा लिया.विजयंत ने बड़ी मुश्किल से अपनी आह रोकी & खिड़की के बाहर देखा,1 बाइक सवार रास्ते पे आगे चला गया.रंभा उसके लंड को चूचियो के बीच दबा के हिला रही थी & वो जोश से भर रहा था.

वो चाह के भी रंभा के जिस्म को नही च्छू रहा था क्यूकी उसे पता था कि 1 बार उसने उसके रेशमी बालो या नर्म चूचियो को च्छुआ तो उसके सब्र का बाँध टूट जाएगा & फिर दोनो को 1 दूसरे के जिस्मो मे खोते देर नही लगेगी.उसे देवेन पे पूरा भरोसा था & इतने दिनो मे वो समझ गया था कि वो बिना बात के नही घबराता था.अगर उसने कहा था तो उसे बाहर दूसरे घर पे नज़र रखनी ही थी.उसने सर नीचे झुकाया.रंभा चूचियो के बीच लंड को हिलाते हुए उसके सूपदे को अपने गुलाबी होंठो से बार-2 चूम रही थी.विजयंत के आंडो मे 1 अजीब सा मीठा दर्द शुरू ही गया था.

रंभा ने कुच्छ देर बाद अपनी चूचियो मे से लंड को निकाल के दाए हाथ मे जकड़ा & हिलाते हुए उसके सूपदे को अपने मुँह मे भर चूसने लगी.विजयंत की हालत अब और खराब हो गयी.रंभा लंड चूस्ते हुए उसे देख रही थी.उसकी आँखो मे ससुर के लिए बुलावा सॉफ दिख रहा था मगर वो भी जानती थी कि विजयंत अभी उसकी हसरत पूरी करने वाला नही.उसने बाए हाथ को नीचे अपनी पॅंटी के किनारे से अपनी चूत पे लगाया,इस वक़्त तो उसे खुद ही दोनो की प्यास बुझानी पड़ेगी.

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देवेन गोआ के चप्पे-2 से वाकिफ़ था & वो रॉकी को बुरी तरह से उलझा रहा था.कभी कार बिल्कुल भीड़ भरे इलाक़े मे घुस जाती तो कभी बिल्कुल सुनसान.देवेन उसे अपने पीछे से हटाना नही चाहता था.वो तो चाहता था कि वो उसके पीछे आए मगर उस से पहले वो उस अंजान शख्स को पूरी तरह से भटका देना चाहता था की ताकि उसे पता ही ना चले कि वो गोआ के किस हिस्से मे है.कुच्छ देर के बाद उसने कार को अपने घर की तरफ मोड़ा.रॉकी भी उसके पीछे हो लिया.देवेन ने शीशे मे देखा & मुस्कुराया,बस ये पंछी उसके जाल मे फँसने को पूरी तरह से तैय्यार था.

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"डॅड,आपको याद है कि मैं आपके साथ इसी तरह खेलती थी?",रंभा लंड पे पूरे जोशोखरोश के साथ जुटी थी.उसने उसे उठा के अपनी जीभ की नोक उसकी लंबाई पे चलाई & फिर उसके नीचे लटके आंडो को जीभ से छेड़ने लगी.

"कुच्छ-2..ओह्ह..!",विजयंत ने आह भरी.उसके ज़हन मे तस्वीर घूमने लगी थी.रंभा & उसके हुमबईस्तर होने की मगर वो कभी भी उस जगह को ठीक से नही देख पाता था जहा वो चुदाई कर रहे होते थे.

"आपको ये भी याद नही कि मेरे अलावा & किस-2 लड़की ने आपके लंड से ऐसे खेला है?",रंभा ने अपनी चूत कुरेदते हुए उसके आंडो को दबाया & फिर लंड को दाए हाथ मे पकड़ बहुत ज़ोर से हिलाने लगी.

"नही.",उसने आँखे बंद कर ली.1 धुंधली सी शक्ल आ रही थी उसके ज़हन मे और वो रंभा नही थी.....कौन थी वो?..वो उसकी छातियों पी रहा था & वो उसके बालो से खेल रही थी..वो खुश नही थी मगर..कौन थी वो?

"आँखे खोलिए & बाहर देखिए,डॅड.",रंभा उसका चेहरा देखते समझ गयी थी कि वो दिमाग़ पे ज़ोर डाल रहा था.वो अपनी मंज़िल के बहुत करीब थी & जानती थी कि विजयंत का भी कुच्छ ऐसा ही हाल था.

"रंभा..",विजयंत उसे देख रहा था,"..वो सोनिया कौन थी तुम्हे पता है?"

"बताया तो था आपको की आपके दुश्मन ब्रिज कोठारी की बीवी थी वो."

"और किसी तरह नही जानते थे क्या हम उन दोनो को?",उसके अंडे अब बिल्कुल कस चुके थे & वो मीठा दर्द अब अपने चरम पे पहुँच रहा था.रंभा की चूत की कसक भी अब बिल्कुल उपर पहुँच चुकी थी.

"नही,डॅड.",& उसी वक़्त रंभा ने मुँह मे लंड को भर विजयंत के ज़हन से उसके जिस्मानी जोश के अलावा & सारे ख़यालो को बाहर निकाल दिया.वो अपनी चूत तेज़ी से कुरेदते हुए उसके लंड को चूसने लगी.अगले ही पल उसके मुँह मे 1 गर्म फव्वारा च्छुटा & उसी वक़्त उसकी उंगली के कमाल से उसकी चूत मे भी हुलचूईल मच गयी.ससुर के उसके मुँह को अपने वीर्य से भरते ही वो भी जहड़ गयी थी & तभी रंभा के दिमाग़ मे 1 ख़याल कौंधा..कही सोनिया से भी इनके ताल्लुक़ात तो नही थे?..वो अपने ख़याल से खुद हैरत मे भर गयी & लंड से वीर्य की सारी बूँदो को चाट कर पीने लगी.

विजयंत ने उसके सर को पकड़ उपर उठाया & उसके होंठो को बड़ी शिद्दत से चूमने लगा.रंभा भी घुटनो पे खड़ी हो उसे बाहो मे भर उसकी किस का जवाब देने लगी की विजयंत को सामने कोई रोशनी सी दिखी.उसने फ़ौरन रंभा के होंठो को छ्चोड़ा & दूरबीन से अपनी आँख चिपका दी,"..ये तो देवेन की कार है मगर वो पुराने घर मे क्यू जा रहा है?"

"क्या?!",रंभा भी हैरत से घूमी & पर्दे को ज़रा सा हटा बाहर देखने लगी की उसका मोबाइल बजा.वो फ़ौरन विजयंत की टाँगो के बीच से निकली & फोन उठाया,"देवेन.क्या बात है?..क्या हुआ?"

"फोन विजयंत को दो,रंभा.जल्दी!",रंभा ने वैसा ही किया.

"बोलो देवेन क्या बात है?..हूँ..अच्छा!..",वो दूरबीन से देखते बात कर रहा था,"ओके.",उसने फोन बंद कर रंभा को दिया & दूरबीन से बाहर देखने लगा.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:49 PM,
#77
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--76

गतान्क से आगे......

"रंभा,तुम फ़ौरन अपना मोबाइल का हंडसफ़री किट मुझे दो.",विजयंत मेहरा की आँख दूरबीन से ही चिपकी हुई थी,"..& फ़ौरन दूसरे घर पे जाओ मगर यहा के पीछे के गेट से.",सामने के गेट को तो देवेन ताला लगाके गया था.रंभा ने अपने कपड़े ठीक किए & फ़ौरन विजयंत के कान पे इयरफोन लगाया,"..अभी 1 कार आएगी & देवेन चाहता है कि उसका ड्राइवर तुम्हे देख ले.",रंभा बाहर की तरफ भागी,"..उसके देखते ही घर के अंदर चली जाना.बाकी देवेन संभाल लेगा.",2 मिनिट बाद रंभा दूसरे घर के गेट को बंद कर रही थी.उसके सामने 1 कार धीमी हो रही थी जिसमे बैठे रॉकी की बाछे उसे देखते ही खिल गयी थी.

तभी रंभा और रॉकी दोनो चौंक पड़े.अंदर से देवेन नशे मे बुरी तरह धुत इंसान की तरह ज़ोर-2 से गाना गा रहा था.रंभा मूडी और घर के अंदर चली गयी.देवेन गाना गाते हुए 1 काग़ज़ पे कुच्छ लिख रहा था & उसे दिखा रहा था,"तुम मुझे डांटो और नशे मे होने के लिए झिड़कती रहो फिर मुझे सुलाने का नाटक करना."

रंभा ने वैसा ही करना शुरू किया.रॉकी घर के चारो तरफ घूम के जायज़ा ले रहा था इस बात से अंजान की विजयंत सब देख रहा था & देवेन अपने कान पे लगे इयरफोन से उसके ज़रिए बाहर का सारा हाल सुन रहा था.रॉकी अंदर देख तो नही पा रहा था बस सुन पा रहा था & इस वक़्त उसके कानो मे 1 जोड़े की नोक-झोंक आ रही थी.

"अब सो जाओ..नशेड़ी इंसान!"

"देवेन,वो घर के अहाते मे घुस चुका है.तुम्हारे बेडरूम की खिड़की के बाहर है अभी.",देवेन ने रंभा को इशारा किया & दोनो उसके कमरे मे गये.देवेन ने बिस्तर पे गिरने का नाटक किया & फिर फ़ौरन उठ गया & रंभा को बोलते रहने का इशारा किया.

"रंभा डार्लिंग..आ जाओ मेरी जान..!",देवेन नशे मे होने का नाटक करते हुए बाहर की तरफ गया.रॉकी ने उसके मुँह से रंभा का नाम सुना तो उसकी खुशी का ठिकाना नही रहा.वो आज रात ही काम निपटा के वापस जा सकता था.रंभा गुस्से मे बड़बड़ा रही थी & लाइट बंद कर रही थी.देवेन उसे लेके घर के ड्रॉयिंग रूम मे आया & उसे टीवी चलाने का इशारा किया.वो उसके करीब आया & कान मे फुसफुसाया,"जो भी हो इस सोफे से ना हिलना ना पीछे घूम के देखना."

"सो गया नशेड़ी..हुंग!",रंभा ने बड़बड़ाते हुए टीवी ओन किया & देवेन स्टोर रूम मे घुस गया.उसे बस 2 चीज़ें चाहिए थी जोकि वही मौजूद थी-1 3फिट का लोहे का पाइप & 1 कपड़ा.देवेन ने पाइप के 1 सिरे पे कपड़े को लपेट के बाँधा & उस कमरे मे आ गया जहा विजयंत रहता था.उस कमरे के दरवाज़े की ओट मे खड़े हो वो बाहर खड़े रॉकी के अंदर आने का इंतेज़ार करने लगा.

रॉकी कुच्छ देर तो बाहर खड़ा रह के इंतेज़ार करता रहा.उसके बाद उसने घर के खिड़की दरवाज़ो को टटोल के कम से कम आवाज़ कर अंदर घुसने का रास्ता ढूँडने लगा.विजयंत ने ये बात देवेन को बताई तो वो धीरे से किचन मे गया & वाहा की खिड़की की चिताकनी खोल दी & वापस अपने छुप्ने की जगह पे आ गया.टीवी के चॅनेल्स रिमोट से बदलती रंभा का दिल ज़ोरो से धड़क रहा था..आख़िर कौन था वो कार मे बैठा शख्स?..समीर ने उसे क्यू भेजा था यहा?

रॉकी रसोई की खिड़की तक आ गया था & उसे टटोलते ही उसे अपनी किस्मत पे भरोसा नही हुआ.सब कुच्छ उसके हक़ मे जा रहा था.उसने खिड़की खोली तो थोड़ी आवाज़ हुई.वो झुक के खिड़की ने नीचे बैठ गया & इंतेज़ार करने लगा कि कही रंभा को आहट तो नही हो गयी.रंभा को आहट हुई थी मगर देवेन के कहे मुताबिक उसने अपनी गर्दन तक नही हिलाई.रॉकी घड़ी देख के 5 मिनिट बाद उठा & फुर्ती से खिड़की के रास्ते रसोई मे घुस गया.

उसने अपनी शर्ट के कॉलर के नीचे गले मे बँधा बड़ा सा रुमाल निकाल के अपने मुँह पे बाँधा & फिर जीन्स की हिप पॉकेट से सर्जिकल रब्बर ग्लव्स निकाले & पहन लिए.दवा की दुकान से खरीदे ये दस्ताने वो हमेशा अपने पास रखता था.उसने बाई टांग उठा के जीन्स को उपर किया & जूते के उपर टांग पे बँधी शीत मे रखा खंजर निकाल के हाथ मे ले लिया.वो किचन से निकला & पहले उसने देवेन के कमरे को चेक करने का फ़ैसला किया.

देवेन जानता था कि वो ऐसा ही करेगा इसीलिए वो स्टोर मे च्छूपा था.रसोई से निकलते ही उसका कमरा दाई तरफ पड़ता था जबकि विजयंत का कमरा था रसोई के बाई तरफ.जैसे ही रॉकी उसके कमरे की दहलीज़ तक पहुँचा देवेन दरवाज़े की ओट से बाहर आया & दबे पाँव मगर फुर्ती से रॉकी के पीछे गया & पाइप से वार किया.

"ठुड्द..!..खन्णन्न्....!",1 थोड़ी भारी मगर दबी सी आवाज़ & फिर कोई मेटल फर्श पे गिरने की खनकती आवाज़ रंभा के कान मे पड़ी मगर उसने अपने महबूब के कहे मुताबिक ना ही गर्दन घुमाई ना ही सोफे से उठी.

देवेन रॉकी को बस बेहोश करना चाहता था,उसका सर फोड़ना उसका मक़सद नही था इसीलिए उसने पीपे पे कपड़ा बाँधा था.ये तरकीब और ऐसी काई बातें उसने जैल मे या फिर जैल से निकलने के बाद सीखी थी.अचानक हुए साधे हाथ के ज़ोर के वार से रॉकी पल मे बेहोश हो गया था & उसके हाथ का खंजर फर्श पे गिर गया था.

"रंभा,इधर आना.",जहा देवेन ने रॉकी को चित किया था उस जगह से थोड़ा हटके 1 गलियारे के बाद ड्रॉयिंग रूम था.रंभा फ़ौरन वाहा आई,"सब ठीक है,विजयंत.मैने उसे काबू मे कर लिया है मगर तुम अभी नज़र रखे रहो.सब ठीक रहा तो हम बस 15 मिनिट मे वाहा पहुचते हैं."

"ओके,देवेन."

देवेन ने रॉकी को नंगा किया & उसकी कपड़ो की तलशी ली.रॉकी के पास से उस खंजर के अलावा 1 बहुत छ्होटी सी पिस्टल मिली थी जोकि उसके शर्ट के नीचे की बनियान मे बने 1 खास पॉकेट मे छिपि थी.उसके पर्स मे जो ड्राइविंग लाइसेन्स & आइडी मिले उसमे उसका नाम अनिल कुमार लिखा था.देवेन जानता था कि वो फ़र्ज़ी हैं.

"इसे नंगा क्यू कर रहे हैं?",रंभा देवेन के बगल मे बैठी तो देवेन ने उसे घूम के देखा.रंभा पसीने से भीगी थी जबकि मौसम खुशनुमा था.उसने अपनी माशूक़ा को बाँहो मे भर लिया.

"घबरा गयी क्या?",रंभा ने उसकी गर्दन मे मुँह च्छूपा लिया & हां मे सर हिलाया,उसकी नज़र वाहा आते ही फर्श पे पड़े खंजर पे पड़ी थी & उसे समझते देर नही लगी थी कि वो अजनबी किस इरादे से वाहा आया था,"..मेरे होते भी घबराती हो!",वो उसकी पीठ सहला रहा था,"..अब सब ठीक है.हूँ.",काफ़ी देर तक वो उसे बाहो मे भरे चुपचाप बैठा रहा & उसकी पीठ सहलाता रहा & उसके बाल & माथे को चूमता रहा,"अब ठीक हो?",रंभा ने कंधे से सर उठाया तो विजयंत ने उस से पुछा.

"हूँ."

"पानी पियोगी?..अभी लाता हू."

"आप रहने दीजिए.मैं लाती हू.",रंभा उठ खड़ी हुई.

"स्टोर मे जितनी रस्सिया पड़ी होंगी सब लेती आना & थोड़े पुराने कपड़े भी."

"अच्छा.",10 मिनिट बाद नंगा,बेहोश रॉकी फर्श पे बँधा पड़ा थे.देवेन ने उसे ऐसे बाँधा था कि वो बस लेटा रह सकता था & ज़रा भी हिलडुल नही सकता था.देवेन ने पुराने कपड़ो से उसका मुँह बाँधा.वैसे अभी तो वो बेहोश था मगर वो कोई रिस्क नही ले रहा था.

रंभा के पानी लाने का बाद दोनो ने पानी पिया उसके बाद देवेन ने रंभा की मदद से रॉकी को घर के बाहर खींचा & फिर कार की पिच्छली सीट पे डाल दिया.उसके बाद घर बंद किया & तीनो बुंगले पे आ गये.

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"इसकी पहरेदारी की ज़रूरत नही क्या?",देवेन ने बंगल पे पहुँच रॉकी के मुँह से कपड़ा हटाया & मोटा डक्ट टेप लपेट दिया & फिर 1 पेन से होंठो के उपर 1 सुराख किया ताकि उसे थोड़ी कम तकलीफ़ हो.दोनो ने उसे बुंगले के स्टोर रूम मे डाला & फिर उसके पैरो मे 1 रस्सी बाँध के दूसरा सिरा पास पड़ी 1 टूटी कुर्सी से बंद दिया.अब रॉकी जब भी उठता & ज़रा भी हिलता तो कुर्सी की टूटी टांग जिस से रस्सी बँधी थी,गिर जाती & उसके बाद कुर्सी भी & उस आवाज़ से उन्हे उसके होश मे आने का पता चल जाता.

"खाना तैय्यार है.",रंभा वाहा आई तो दोनो स्टोर पे ताला लगा रहे थे.

"चलो,विजयंत खाना खाते हैं.",देवेन ने उसके कंधे पे हाथ रखा,"..आज तुम बहुत थके हुए हो.खा के सो जाना.यूरी के हिसाब से तुम्हे अभी ज़्यादा स्ट्रेन नही लेना चाहिए.",विजयंत ने पीछे घूम स्टोर के दरवाज़े को देखा.

"उसकी फ़िक्र मत करो,दोस्त.",देवेन हंसा,"..वो 5-6 घंटो से पहले जागने वाला नही & हां चाहे कुच्छ हो जाए तुम उसके सामने मत जाना,दोस्त.",तीनो खाने की मेज़ के पास आ कुर्सिया खीच बैठ गये & रंभा सबको खाना परोसने लगी.

खाना खाने के बाद देवेन ने विजयंत मेहरा को सोने भेज दिया.वो नही चाहता था कि उसकी सेहत पे कोई भी बुरा असर पड़े & फिर उसे अपनी माशुका के साथ तन्हाई के लम्हे भी गुज़ारने थे.रंभा बचा खाना फ्रिड्ज मे रख रही थी जब देवेन ने उसे पीछे से बाहो मे भर लिया.रंभा ने फ्रिड्ज बंद किया & पलट के उसके आगोश मे समा गयी.देवेन उसे बाहो मे भरते ही समझ गया कि वो अभी तक थोड़े तनाव मे है.उसने बड़े प्यार से उसकी पीठ सहलाते हुए झुक के उसके गाल चूमे,”अभी तक घबरा रही हो?”

रंभा ने बिना जवाब दिए चेहरा झुका लिया.खंजर गिरने की आवाज़ अभी तक उसके कानो मे गूँज रही थी,”वो आदमी..क़त्ल के इरादे से आया था..”

“हां,पर नाकाम रहा और यही अहम बात है.”,देवेन ने उसके बाल उसके चेहरे से हटके उसकी आँखो मे झाँका,”..रंभा,शायद आज से पहले तुम्हे उस ख़तरे का एहसास नही था जो हमारे चाहते ना चाहते हुए भी हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन गया है.ये घबराहट होना भी लाज़मी है मगर रंभा,मुझे लगता है कि बहुत जल्द ये सारा मामला अपने अंजाम तक पहुचने वाला है..”,उसके हाथ प्रेमिका के गालो से हाथ उसकी कमर पे आ गये थे,”..अब वो अंजाम हुमारे हक़ मे होगा या नही ये बस उसे पता है..”,देवेन ने नज़रे उपर कर दुनिया के मालिक की ओर इशारा किया,”..& उस अंजाम की फ़िक्र मे डर-2 के जीना मुझे ठीक नही लगता.तुम्हे क्या लगता है?”,उसकी निगाहे अभी भी रंभा की निगाहो मे झाँक रही थी.

रंभा भी उसकी आँखो मे देख रही थी.देवेन की बातो से उसे हौसला मिला था..सही कह रहा था वो..यू घुट-2 के वो क्यू जिए?..उसकी क्या ग़लती थी बल्कि उसे तो उस शख्स का जीना हराम कर देना चाहिए जिसने उसके इन खुशियो भरे पलो को बर्बाद करने की सोची..रंभा के हाथ देवेन के सीने पे थे.उसने उन्हे वाहा से उपर उसकी गर्देन मे डाला & उचक के मुस्कुराते हुए उसके लबो से अपने लब सटा दिए.देवेन ने उसकी कमर को कस लिया & दोनो प्रेमी 1 दूसरे को शिद्दत से चूमने लगे.

किचन मे रखी खाने की मेज़ की कुर्सी पे देवेन बैठा तो रंभा खुद ही उसकी गोद मे बैठ गयी.दोनो अभी भी 1 दूसरे को चूमे जा रहे थे.देवेन का दाया हाथ रंभा की पीठ पे था & बाया उसकी वेस्ट को उठा उसकी कमर के मांसल भाग को सहला रहा था.रंभा देवेन की बातो & अब उसकी हर्कतो से थोड़ी देर पहले की घटना की वजह से पैदा हुई घबराहट को भूल रही थी.दोनो प्रेमियो ने अपनी ज़ुबाने अपने-2 मुँह से बाहर निकाल ली थी & उन्हे लड़ा रहे थे.रंभा अपने महबूब की ज़ुबान चाटते हुए मुस्कुरा रही थी & जब देवेन ने उसकी वेस्ट उपर कर उसके पेट को दबाया तो वो खुशी से चिहुनकि & अपनी बाहे उपर कर दी.

देवेन ने उसकी वेस्ट निकाली & 1 बार फिर उसकी पतली कमर को अपनी बाहो मे कसा & उसके चेहरे & होंठो को अपने गर्म होंठो से ढँकने लगा.रंभा के हाथ भी अपने आशिक़ की टी-शर्ट मे जा घुसे थे & उसकी मज़बूत पीठ पे घूम रहे थे.देवेन उसके चेहरे से नीचे उसकी गर्देन को चूम रहा था & रंभा अब अपने हाथ आगे ले आके उसके सीने के बालो मे घूमाते हुए उसके निपल्स खरोंच रही थी.देवेन का बाया हाथ उसकी स्कर्ट मे घुस गया था & उसकी जंघे भी उसके हाथ की आहट पाते ही अपने आप खुल गयी ताकि उनके बीच छुपि उसकी चूत को वो हाथ आसानी से च्छू सके.रंभा अब मस्त होने लगी थी.पॅंटी के उपर से ही देवेन उसकी चूत सहला रहा था & अब उसकी हसरतें भी बढ़ रही थी.उसने देवेन का मुँह अपने गले से उठाया & उसकी शर्ट निकाल दी & फिर झुक के उसके सीने को चूमने लगी.उसका दाया हाथ देवेन के मज़बूत सीने को सहलाता हुआ नीचे उसकी जीन्स के उपर से ही उसके लंड को दबा रहा था.देवेन भी उसकी इस हरकत से जोश मे आ गया & उसने रंभा की कमर थाम उसे अपने सामने खड़ा किया & फिर उसकी कमर के बगल मे लगे हुक्स खोल उसकी स्कर्ट को नीचे सरका दिया.लाल ब्रा & पॅंटी मे सज़ा रंभा का गोरा जिस्म बड़ा ही नशीला लग रहा था.देवेन कुच्छ पॅलो तक अपने सामने खड़ी उस हुस्न की मल्लिका को निहारता रहा.

“ऐसे क्या देख रहे हैं?”,रंभा के गालो के गोरे रंग मे हया की सुर्ख लाली घुल गयी थी.उपरवाले ने लड़कियो का दिल भी अजीब अदा से बनाया है.जिस मर्द के साथ हर रात सोती हैं,जिस से उन्हे कोई परदा मंज़ूर नही,उसकी निगाहो से भी शर्मा जाती हैं!पर शायद यही बात है जोकि मर्दो को लुभाती है!

“ये बेपनाह हुस्न देख रहा हू.”,देवेन भी खड़ा हो गया था.

“रोज़ ही तो देखते हैं.”

“पर हर रोज़ नयी लगती हो.”,1 बार फिर दोनो आगोश मे समा गये & 1 दूसरे को चूमने लगे.देवेन के हाथ रंभा के लगभग नंगे जिस्म पे बड़ी बेचैनी से फिसल रहे थे.उसके हाथो की गर्मी रंभा की मस्ती भी बढ़ा रही थी.देवेन उसे चूमते हुए थोड़ा आगे हुआ तो रंभा पीछे खाने की मेज़ पे बैठ गयी.उसने अपनी टाँगे खोल देवेन को आगे खींचा & उसके लंड को अपनी चूत पे दबाते हुए चूमने लगी.रंभा के हाथ देवेन की सख़्त पीठ से फिसलते हुए नीचे आए & जीन्स के उपर से ही उसकी गंद को दबाते हुए आगे आए & उसके बेल्ट को खोल ज़िप को नीचे सरकया & अंडरवेर के उपर से ही उसके सख़्त लंड को दबाने लगे.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:49 PM,
#78
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--77

गतान्क से आगे......

देवेन उसकी इस हरकत से बहुत जोश मे भर गया और आगे हो चूमने लगा.रंभा मेज़ पे पीछे झुक के अपनी कोहनियो पे उचक गयी & उसकी किस का जवाब देने लगी.देवेन के होंठ नीचे उसकी गर्देन पे आए & फिर उसके धड़कते क्लीवेज पे.उसकी आँखो ने ब्रा कप्स के बीच लगे बटन को भाँप लिया & उसे फ़ौरन खोल उसकी छातियो को अपनी निगाहो के सामने किया.रंभा मस्ती मे देवेन की कमर को टांगो मे कस उसके लंड पे चूत को दबा रही थी.देवेन उसकी छातियो को चूम रहा था.

रंभा के जिस्म मे अब सनसनी फैल गयी थी.देवेन का लंड उसकी चूत की कसक भी बढ़ाए जा रहा था.देवेन ने उसके कंधो से ब्रा को सरकाया तो रंभा फ़ौरन कोहनियो पे से उठी & ब्रा को जिस्म से अलग किया & उसके बाद प्रेमी के सर को बाहो मे भरे उसे अपने सीने से चिपकाए लेट गयी.देवेन उसकी भारी-भरकम चूचियो का लुत्फ़ उठाने मे जुट गया.मेज़ से किचन का काउंटर बस थोड़ी ही दूर था & रंभा ने बेचैनी मे टाँगे फैलाई तो वो उसी से जा लगी.रंभा ने काउंटर पे पैर जमा देवेन के लंड पे चूत को रगड़ अपनी बेचैनी जताई मगर उसका आशिक़ तो उसके सीने के उभरो की खूबसूरती मे जैसे उसके बाकी जिस्म को भूल ही गया था.देवेन उसकी चूचियो को अपने सख़्त हाथो मे दबा रहा था,मसल रहा था.उसकी ज़ुबान उसके निपल्स को छेड़ती & फिर वो उसकी चूचियो को मुँह मे भर ज़ोर से चूस लेता.रंभा आहे भर रही थी.उसका जिस्म देवेन की 1-1 हरकत से मज़े के समुंदर मे और गहरे डूबा जा रहा था.उसकी चूत की कसक बहुत ज़्यादा बढ़ गयी थी.लंड की इतनी नज़दीकी के बावजूद चूत अभी तक खाली थी & शायद ये बात उस से बर्दाश्त नही हो रही थी.उपर से देवेन की ज़ुबान की मस्ताना हरकतें जो खेल तो रंभा की चूचियो से रही थी मगर उनके छुने से पैदा हुई बिजलिया उसके पूरे जिस्म मे दौड़ती हुई मानो उसकी चूत मे ही आ के रुक रही थी.देवेन ने उसकी दोनो चूचियो को पकड़ के आपस मे मिलाते हुए दबाया & फिर उसकी दाई चूची को बहुत ज़ोर से दबोचते हुए बाई को मुँह मे पूरा भरने की कोशिश की.रंभा ने ज़ोर से आह भरते हुए अपना सीना और उपर उचकाया & देवेन की कमर को टांगो मे कस ज़ोर से कमर हिलाई-वो झाड़ चुकी थी.

वो काँपते हुए सूबक रही थी & देवेन उसके सीन के उभारो को चूमे जा रहा था.कुच्छ देर बाद वो नीचे उसके पेट तक पहुँचा & उसकी नाभि के अंदर जीभ घुमाने लगा.रंभा के चेहरे पे मस्ती भरी मुस्कान खेलने लगी & उसने प्रेमी के बालो को पकड़ उसे पेट पे दबा दिया.देवेन उसके जिस्म की बगलो मे हाथ चलाते हुए उसकी नाभि सहित पूरे पेट को चूमने लगा.चिकने पेट पे उसकी फिसलती ज़ुबान का गुदगुदाता एहसास रंभा के जिस्म को रोमांच से भर रहा था & बीच-2 मे वो हल्के से हंस भी देती.देवेन उसके पेट के बाद उसकी पॅंटी को चूमने लगा तो उसने अपनी दोनो टाँगो-जिन्हे उसने झड़ने के बाद मेज़ पे रख किया था,को घुटने से मोड़ा & अपने प्रेमी के पेट पे रख उसे परे धकेला.

देवेन ने उसे हैरत से देखा तो वो शोखी से मुस्कुराती उठ बैठी & फिर दाए हाथ से देवेन की जीन्स को पकड़ उसे अपनी ओर खींचा & फिर उसके अंडरवेर पे उपर से नीचे तक हाथ चलाने लगी.उसने देवेन की जीन्स को नीचे सरकाया & जब वो उसके घुटनो मे फँस गयी तो उसने अपने पाँवो से उसे & नीचे कर दिया.देवेन ने भी मुस्कुराते हुए जीन्स को अपने जिस्म से जुदा कर दिया तो रंभा ने उसे अपनी बाहो मे फिर से वैसे ही भर लिया.देवेन उसकी मखमली पीठ को सहलाते हुए उसकी टाँगो मे क़ैद हो चूत पे अपना लंड दबाते हुए उसे चूमने लगा.

देवेन ने उसे चूमते हुए उसकी गंद के नीचे हाथ लगाके गोद मे लेते हुए मेज़ से उठाके सामने के काउंटर पे रख दिया.रंभा भी उसकी दीवार से टिक के बैठ गयी & अपनी चूचिया आगे कर दी ताकि देवेन उन्हे आसानी से चूस सके.देवेन भी उन्हे अपने हाथो मे कस के दबाते हुए चूसने लगा मगर इस बार उसने उनपे ज़्यादा वक़्त नही लगाया.इस बार वो जल्द ही रंभा की मोटी चूचियो से नीचे उसके पेट को चूमते हुए अपने पंजो पे बैठ गया.रंभा ने भी अपनी जंघे फैला दी थी & जब देवेन ने उसकी पॅंटी खींची तो उसने काउंटर से अपनी गंद उचका देवेन की पॅंटी निकालने मे मदद की.रंभा अब पूरी तरह नंगी बैठी थी & घुटने मोड़ पाँव काउंटर पे जमा अपने आशिक़ को अपनी चूत पेश कर रही थी.

देवेन ने उसकी आँखो मे देखा & फिर उसकी निगाह रंभा के पूरे जिस्म को चूमती हुई उसकी चूत पे आके रुक गयी.रंभा का कुँवारापन तो बहुत पहले ख़त्म हो गया था,उस पर से उसके चुदाई के शौक ने उसकी चूत को कभी भी बहुत ज़्यादा दिनो के लिए लंड से महरूम नही रखा था मगर फिर भी इस वक़्त देवेन के सामने उसकी चूत गुलाब की बंद काली की तरह दिख रही थी जिसपे सवेरे की ओस की बूंदे चमक रही थी.

देवेन ने उसकी दाई अन्द्रुनि जाँघ को चूमा तो रंभा ने सर दीवार से लगाके आह भरी.जब देवेन ने दूसरी जाँघ के अन्द्रुनि हिस्से पे भी अपने गर्म चलाए तो रंभा ने बेचैनी से उसके बाल नोचे.देवेन बहुत धीमे-2 अपने होंठ उसकी चूत की ओर ले जा रहा था.रंभा को बहुत मज़ा आ रहा था.उसका दिल देवेन के लबो के उसकी चूत से सटने की हसरत से बहुत ज़ोरो से धड़क रहा था और वो मस्ती मे काँपने लगी थी.

विजयंत की आँखो मे नींद नही थी.वो बार-2 यही सोच रहा था कि वो शख्स जो स्टोर रूम मे बेहोश पड़ा था,आख़िर किसके क़त्ल के मंसूबे से यहा आया था.देवेन ने उसे अपनी ज़िंदगी के बारे मे कुच्छ खास नही बताया था ना ही उसे उसके ज़ाति मामले मे दखल देना ठीक लगा था मगर 1 बात तो तय थी कि वो कोई बहुत गहरी चोट खाया था..विजयंत कमरे से बाहर आया तो उसके कानो मे कुच्छ आवाज़ें आई..तो क्या देवेन की ज़िंदगी लेने आया था वो अजनबी?..विजयंत समझ गया कि आवाज़ें किचन से आ रही थी & वो उधर ही चला गया.किचन की दहलीज़ पे कदम रखते ही उसकी आँखे सामने के गर्म नज़ारे से टकराई & उसके दिल मे भी जोश भर गया.

पंजो पे बैठा देवेन नंगी रंभा की चूत चाट रहा था और वो काउंटर पे कसमसा रही थी.उसके चेहरे पे शिकने थी मगर साथ ही मुस्कान भी.वो मस्ती मे पूरी डूबी थी & ना उसे ना ही उसके प्रेमी को विजयंत की मौजूदगी का एहसास था.विजयंत ने अंदर जाने के लिए कदम उठाया मगर फिर रुक गया.वो जानता था कि उसके जाने पे दोनो को कोई ऐतराज़ नही होगा मगर अभी उसे दोनो के बीच दखल देना ठीक नही लगा.वो जानता था कि देवेन रंभा को बहुत चाहता था & उसे उसका भी रंभा को चोदना बहुत पसंद नही था.शायद उसकी ये हालत ना होती तो वो उसे रंभा के पास फटकने भी नही देता.

“आन्न्ग्घ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..!”,रंभा दोनो हाथो से देवेन के सर को पकड़े अपनी चूत पे दबाते हुए अपनी दोनो टाँगे उसके कंधो के उपर से उसकी पीठ पे दबा मानो उसे अपनी चूत मे घुसा लेने की कोशिस कर रही थी.उसके चेहरे की शिकाने और गहरी हो गयी थी & उसकी कसमसाहट & बढ़ गयी थी.विजयंत समझ गया कि वो झाड़ गयी है.तभी देवेन खड़ा हुआ और रंभा को बाहो मे भर लिया & फिर दोनो 1 दूसरे को पागलो की तरह चूमने लगे.रंभा बड़ी बेचैनी से बया हाथ देवेन के पूरे जिस्म पे फिरा रही थी & डाए से उतनी ही बेचैनी से उसके लंड को दबा रही थी.

विजयंत ने 1 पल & उन्हे देखा & फिर वाहा से चला गया.उसे थोड़ी मायूसी थी मगर आज उसे दोनो के बीच घुसना बिल्कुल भी ठीक नही लग रहा था.उसके दिल मे एहसासो का बवंडर घूम रहा था.रंभा को देवेन की बाहो मे देख उसे बहुत जलन होती थी..ऐसा लगता था जैसे कि वो उसी की हो & देवेन ने उसे छ्चीन लिया हो!..मगर कही दिल के किसी कोने मे ये भी एहसास था कि उसका और रंभा का रिश्ता कुच्छ ठीक नही था..वो किसी और की थी.अब उसे ये तो पता था कि रंभा उसकी बहू है मगर नही,ये एहसास तो इस जानकारी के ना होने पे भी उसे होता,इतना उसे पता था..आख़िर इतना गहरा रिश्ता कैसे बन गया था उसका अपनी बहू से?..& उसकी बीवी से कैसा रिश्ता था उसका जिसकी 1 भी बात याद नही उसे?..2 बच्चे पैदा किए थे उसने उसके और फिर भी उसे वो याद नही & चंद महीनो पहले उसके बेटे से शादी करने वाली लड़की के तस्साउर से ही उसका दिल धड़कने लगता था?..& वो सोनिया..जिसके नाम से ही 1 टीस उठती थी दिल मे..वो कौन थी?..ड्रॉयिंग रूम के बगल मे 1 कमरा & था जिसमे वो अभी तक नही गया था.वो उसी कमरे मे चला गया & बत्ती जलाई.वाहा 1 कॅबिनेट था जिसे खोलने पे उसे कुच्छ किताबें & मॅगज़ीन्स दिखाई दी.किताबें तो जासूसी उपन्यास थे.उसने वो सारी किताबें उठा ली.वक़्त काटने मे ये उसके काम आने वाली थी,फिर उसने मॅगज़ीन्स उठाई & उसके ज़हन मे वही धमाका सा हुआ..’हू विल विन दिस वॉर?’,1 मॅगज़ीन पे उसकी और ब्रिज कोठारी की तस्वीर के साथ यही लिखा था.उसके दिल मे उस शख्स की तस्वीर देखने पे कुच्छ गुस्से सा भाव आया था.विजयंत ने देखा सारी की सारी बिज़्नेस मॅगज़ीन्स थी.उसने सभी मॅगज़ीन्स उठाई & उपन्यास वही छ्चोड़ अपने कमरे मे चला गया.

रंभा सुबक्ती हुई देवेन के मुँह मे अपनी जीभ & उसके अंडरवेर मे अपना हाथ घुसा अपने जिस्म की मदहोशी की दास्तान बयान कर रही थी.देवेन ने भी उसकी ज़ुबान चूस्ते हुए अपना अंडरवेर नीचे किया तो रंभा ने अपने पाँवो से उसे उसके जिस्म से अलग कर दिया.देवेन ने उसके घुटने पकड़ के उसकी छातियों से लगा दिए & उसकी चूत को पूरा खोल अपने लंड को आगे धकेला.

“ऊव्ववव..हाआंन्‍नणणन्..!”,रंभा के चेहरे पे शिकने पड़ी,उसकी आँखे बंद हो गयी मगर साथ ही वो मुस्कुराइ & लंड के चूत के अंदर घुसते ही कमर उचकाते हुए सर पीछे झटका.देवेन ने 1 ही धक्के मे लंड को उसकी चूत मे जड तक उतार दिया & उसे बाहो मे भर चूमने लगा.रंभा ने अपना जिस्म उस से पूरी तरह चिपका दिया & उसके कंधे & पीठ से लेके उसकी पुष्ट गंद तक अपने नाख़ून चलाते हुए कमर हिलाके अपनी टाँगे उसकी कमर के उपर बाँध दी & काउंटर पे बैठे-2 अपनी कमर हिलाके उसके हर धक्के का जवाब देने लगी.देवेन अपने सीने मे उसके नुकीले निपल्स की चुभन से & उसकी चूत की कसावट से पागल हो बहुत तेज़ धक्के लगा रहा था.उसके हाथ रंभा की छातियो को दबाने के बाद पीछे गये & उसने उसकी गंद के नीचे हाथ लगाके उसे उठाके 1 बार फिर मेज़ पे बिठा दिया.

देवेन उसकी छातियों को इतनी ज़ोर से दबा रहा था कि रंभा ने आहत हो किस तोड़ दी & जिस्म पीछे झुका के हाथ पीछे मेज़ पे रख दिए & ज़ोर-2 से आहे भरने लगी.देवेन खड़ा होके धक्के लगा रहा था & जब वो आगे झुका & रंभा की चूचियो को दबाते हुए चूसने लगा तो रंभा मेज़ पे लेट गयी & उसे बाहो मे भर उसके सर को सीने पे भींच दिया.उसकी गोरी,मोटी छातियो को चूस्ता देवेन उसकी चूत मे बहुत तेज़ी से लंड अंदर-बाहर कर रहा था.रंभा ने उसके सर को अपनी छातियो के बीच बहुत ज़ोर से दबाया & खुद जैसे मेज़ से उठने की कोशिस करती हुई उसके सर को चूमने लगी.उसकी कमर भी बहुत तेज़ी से हिल रही थी.देवेन ने उसी वक़्त अपने लंड पे उसकी चूत की मस्तानी सिकुड़ने-फैलने की हरकत महसूस की & समझ गया की उसकी महबूबा झाड़ गयी है.

देवेन उसकी छातियो को चूमते,चूस्ते हुए वैसे ही धक्के लगाता रहा.कुच्छ देर बाद रंभा भी झड़ने की खुमारी से बाहर आई & देवेन के बाल पकड़ उसके सर को अपने सीने से उठाया & उसके होंठ चूमने लगी.देवेन ने उसे चूमते हुए फिर से उठाया & रंभा अब उसकी गंद को दबाते हुए उसकी चुदाई का लुत्फ़ उठाते हुए उसकी किस का जवाब देने लगी.दोनो के हाथ 1 दूसरे की गंदो से चिपके हुए थे.देवेन उसकी मुलायम फांको को दबा-2 के मस्ती मे बहाल हो रहा था.रंभा के गुदाज़ जिस्म को हाथो मे भरते ही उसके जिस्म मे अजीब सी सनसनी,1 अजीब सा नशा भर जाता था.उसके धक्के अब बहुत तेज़ हो गये थे.रंभा भी चूत की दीवारो उसके लंड की रगड़ को महसूस कर जोश मे भर सर पीछे झटक रही थी.देवेन के लंड की मोटाई उसकी चूत की दीवारो को हर बार बुरी तरह फैला देती थी & वो हल्के दर्द & ढेर सारे मज़े मे बिल्कुल मदहोश हो जाती थी.उपर से लंड की लंबाई इतनी ज़्यादा थी कि हर बार उसका सूपड़ा उसकी कोख से आ टकराता था & उसके जिस्म मे मस्ती बिजली जैसे दौड़ने लगती थी.रंभा ने अपने आशिक़ की गंद मे नाख़ून धंसा दिए थे & देवेन भी उसकी गंद को मसलते हुए उसकी चूचिया पी रहा था.1 बार फिर रंभा की चूत ने उसके लंड को अपने शिकंजे मे उसी जानी-पहचानी हरकत से तड़पाना शुरू किया & इस बार देवेन का भी सब्र टूट गया.

उसने अपने मुँह मे रंभा की बाई चूची को पूरा भर लिया & पागलो की तरह चूस्ते हुए उसकी गंद दबाते हुए धक्के लगाने लगा.रंभा भी उसकी कमर को टाँगो मे कस मेज़ से लगभग उठती हुई,कमर उचकाती,ज़ोर-2 से चीखती,उसकी गंद को अपने नखुनो से छल्नी करती उस से चुद रही थी.तभी रंभा ने ज़ोर से चीख मारी & जिस्म पीछे की तरफ मोड़ दिया & देवेन का जिस्म भी काँपने लगा.रंभा झाड़ चुकी थी & देवेन का लंड उसकी कोख को अपने वीर्य से भर रहा था.रंभा मस्ती मे कांप रही थी,उसके होंठ थरथरा रहे थे,देवेन लंबी-2 साँसे ले रहा था & अपनी प्रेमिका से चिपका हुआ था.दोनो ही के चेहरे पे झड़ने का सुकून था.

थोड़ी देर तक दोनो वैसे ही लिपटे बस अपनी खुश,सुकुनी & 1 दूसरे के साथ के एहसास को बस महसूस करते रहे फिर रंभा ने देवेन के कंधे से सर उठाया & मुस्कुराते हुए उसके चेहरे को सहलाने लगी.देवेन भी मुस्कुराता उसकी ज़ुल्फो से खेल रहा था..इस इंसान की नेक्दिलि,उसकी मा के लिए बेपनाह मोहब्बत,उसकी मर्दानगी..आख़िर क्या कारण था जो वो अब उसका सब कुच्छ बन गया था?..रंभा अपने आशिक़ की आँखो मे देखते हुए सोचे जा रही थी..उसके लिए तो अब देवेन ही सबकुच्छ था..वो तो उसे अपना खुदा मानने लगी थी & बस हर वक़्त उसकी इबादत मे मशगूल रहना रहती थी.

रंभा ने नीचे देखा,सिकुड़ने के बावजूद लंड अभी भी चूत मे था.रंभा ने देवेन को थोडा पीछे धकेला & लंड को चूत से बाहर कर दिया और मेज़ से सरक के फर्श पे घुटनो पे बैठ गयी.अब उसे अपने देवता की इबादत करनी थी.अपना जिस्म तो उसने उसे सौंप ही दिया था मगर अब उसके जिस्म की खिदमत कर उसे और खुशी देने की हसरत हो रही थी उसे.उसने अपनी हथेलियो को आंडो के नीचे लगाया और लंड के सूपदे को चूमा.

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क्रमशः.......
Reply
12-19-2017, 10:50 PM,
#79
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--78

गतान्क से आगे......

विजयंत मेहरा बिस्तर पे अढ़लेटा खुद के बारे मे सोच रहा था.उसके पास वो सारी मॅगज़ीन्स पड़ी थी जिनमे से हर 1 मे उसके बारे मे कुच्छ ना कुच्छ लिखा था..तो वो सच मे इतने बड़ी मिल्कियत का मैल्क था!..पर उन मॅगज़ीन्स मे 1 ऐसे शख्स की तस्वीर उभर रही थी जिसने बेशाक़ ट्रस्ट ग्रूप को आसमान तक पहुचा दिया था मगर वो खुद 1 मतलबी & केवल अपने फ़ायदे को सोचने वाला इंसान था..पर क्या सच मे वो ऐसा है?..अभी कुच्छ देर पहले उसने अपना मन मार कर खुद को रंभा और देवेन की चुदाई मे शरीक होने से रोका था..नही,वो ऐसा तो नही है..पर फिर सारी मॅगज़ीन्स मे उसके बारे मे ऐसे क्यू लिखा था?..ओफफ्फ़!..कब याद आएगा मुझे सब कुच्छ कब?!!..उसने साइड-टेबल पे रखा लॅंप बंद किया & सोने की कोशिश करने लगा लेकिन उसके ख़याल उसे सोने नही दे रहे थे.1 धुंधली सी तस्वीर उभर रही थी उसके दिमाग़ मे..ऊँचाई से कुच्छ या कोई गिर रहा था & उसे दुख हो रहा था..वो भी उस चीज़/इंसान के साथ-2 गिर रहा था मगर ना तो उस चीज़/इंसान की तस्वीर साफ थी ना ही उस जगह की जहा ये हो रहा था..विजयंत ने करवट बदल तकिये मे मुँह च्छूपा लिया..अब उस से ये उलझन,ये परेशानी & बर्दाश्त नही हो रही थी.

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रंभा घुटनो पे बैठी देवेन के आंडो को हथेलियो मे भर हौले-2 दबा रही थी & उसके सिकुदे लंड के गीले सूपदे को चूस रही थी.देवेन उसके हाथो & होंठो की छुअन से मस्त हो गया था.उसने रंभा के बालो मे हाथ फिराए मगर रंभा को तो उस लंड के सिवा मानो & कुच्छ दिख ही नही रहा था.उसने फॉरेस्किन पीछे धकेली & पूरे सूपदे पे जीभ चला उसके गीलेपन को चाटने लगी.इस गीलेपान मे केवल देवेन का वीर्य ही नही,रंभा का रस भी मिला था & उसका स्वाद चखना उसे रोमांच से भर रहा था.रंभा ने लंड को पकड़ अपने मुँह मे घुसाया & उसे चूसने लगी.देवेन के जिस्म मे बिजली दौड़ गयी.उसने रंभा के बालो से लगे अपने हाथो मे उसकी ज़ूलफे पकड़ ली & उसके सर को अपनी गोद मे हल्के से दबाया.रंभा सिकुदे लंड को हलक तक उतर चुकी थी & उसे चूस रही थी.देवेन आँखे बंद किए उसकी ज़ुबान का लुत्फ़ उठा रहा था.

रंभा ने कुच्छ देर बाद लंड को मुँह से निकाला & फिर आंडो को चूसा.उसने अपना मुँह देवेन की झांतो मे घुसा के रगड़ा तो देवेन उस गुदगूदे एहसास से और रोमांच से भर गया.उसका लंड 1 बार फिर तन के खड़ा था.रंभा ने उसे हिलाया & देवेन के निचले पेट को चूमने लगी.उसका बाया हाथ देवेन की मज़बूत जाँघो को सहला रहा था.देवेन महबूबा के कोमल हाथो के अपने नाज़ुक अंगो से खेलने से अब बिल्कुल जोश मे भर चुका था & 1 बार फिर उसके जिस्म के साथ अपने जिस्म को मिलना चाहता था.रंभा के हाथ उसकी जाँघो को बगलो मे उपर-नीचे चलाते हुए उसकी गंद को भी सहला रहे थे & उसका मुँह लगातार उसके लंड को चूस रहा था.देवेन के आंडो मे अब मीठा दर्द शुरू हो गया था.ये उसके जिस्म का इशारा था,इस बात का की अगर उसकी माशुका ने कुच्छ देर & अपने होंठो का इसी तरह इस्तेमाल किया तो वो उसके मुँह मे ही अपना रस छ्चोड़ देगा.देवेन ने आहिस्ता से रंभा के बालो को पकड़ उसका सर पीछे कर लंड को बाहर खींचा.रंभा उसका इशारा समझ गयी & उसके पेट को चूमते हुएऊपर उठने लगी.उसके हसरत भरे हाथ अपने आशिक़ के सीने के बालो मे घूमते हुए उसके निपल्स को छेड़ रहे थे & वो उसके सीने को केवल चूम ही नही बल्कि हल्के-2 काट भी रही थी.

देवेन ने उसे बाहो मे भरा & उसकी पीठ से लेके गंद तक अपने बेसब्र हाथ चलाते हुए उसके चेहरे,होंठो और सीने को अपनी किस्सस से ढँक दिया.रंभा मस्ती मे मुस्कुरा रही थी.देवेन उसकी गंद की फांको को दबोचे था & उसके दिल मे अपनी प्रेमिका की गंद मारने की ख्वाहिश पैदा हुई.उसने रंभा को बाहो मे भरे हुए घुमा दिया & अब पीछे से उसके पेट को पकड़ उसकी छातियाँ दबाते हुए उसकी गर्देन & कंधे चूमने लगा.रंभा भी गंद के उपर उसके गर्म लंड के एहसास से मस्त हो गयी & अपनी गंद पीछे कर उसके लंड को दबा अपनी मस्ती का इज़हार किया.देवेन ने उसकी छातियो को ज़ोर से दबोचा तो वो थोड़े दर्द & बहुत से मज़े से बहाल हो आगे काउंटर पे झुकी.देवेन ने उसी वक़्त उसकी बाई जाँघ को घुटने से उठा के काउंटर पे रख दिया.रंभा थोड़ा और आगे झुकी & अपनी गंद अपने महबूब के लिए और निकाल के खड़ी हो गयी.देवेन अपने पंजो पे बैठ गया & उसकी गंद की पुष्ट फांको को अलग कर उसकी चूत & गंद के गुलाबी छेद को अपनी जीभ से छेड़ते लगा.रंभा आहे भरती च्चटपटाने लगी.देवेन की ज़ुबान ने उसकी चूत की प्यास फिर से जगा दी थी मगर उसे पता था कि अभी वो उसकी गंद को अपने लंड से भरने वाला है.

देवेन खड़ा हुआ & दाए हाथ मे लंड को पकड़ बाए से उसकी गंद की बाई फाँक को पकड़ उसके छेद को थोड़ा खोलते हुए उसमे घुसने लगा.रंभा की आहे चीखो मे तब्दील हो गयी.वो झटके खाती,च्चटपताई जिस्म के उस छ्होटे से सुराख मे अपने आशिक़ के मोटे तगड़े लंड की 1-1 हरकत पूरी शिद्दत से महसूस कर रही थी.देवेन को लंड अंदर घुसने मे थोड़ी परेशानी हुई तो उसने लंड बाहर खींचा & फिर 1 उंगली चूत मे डाल गीला किया & फिर उस गीलेपान से रंभा की गंद को गीला किया मगर अभी भी बात नही बनी थी.उसकी निगाह पास पड़े मक्खन के पॅकेट पे गयी.उसने फ़ौरन मक्खन का 1 टुकड़ा हाथ मे लिया & रंभा की गंद पे मलने लगा.टुकड़ा पिघलने लगा & देवेन पिघले मक्खन को माशुका की गंद के छेद मे भरने लगा.थोड़ी ही देर मे गंद गीली थी & देवेन अपना लंड उसमे उतार रहा था.

“ऊव्ववववववववव..पूरा अंदर डाल दिया आपने प..हााईयईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई.....!”,वो चीखी मगर उसके जिस्म मे मज़े की फुलझड़िया छूट रही थी.देवेन उसकी कमर थामे धक्के लगा उसकी गंद मारने लगा.गंद का पतला सुराख & लंड के घुसने पे उसके सिकुड़ने से वो जोश मे पागल हो गया था.रंभा को शुरू मे तो दर्द हुआ मगर अब उसे भी मज़ा आ रहा था.देवेन दोनो हाथो से उसकी गंद की फांको को मसलते हुए धक्के लगा रहा था & वो बस काउंटर के सहारे खड़ी आहे भर रही थी.देवेन ने बाई बाँह उसकी कमर पे लपेटी & दाई सीने के पार ले जा उसकी छातियो को भींच उसे खुद से चिपका लिया.रंभा ने भी दाए हाथ को पीछे ले जा देवेन के सर को आगे किया & उसके लबो से अपने लब सटा दिए.देवेन का बाया हाथ उसकी चूत से आ लगा था & उसके दाने पे दायरे की शक्ल मे घूम रहा था.रंभा अब जोश मे पागल हो गयी.1 साथ उसके सभी नाज़ुक अंगो के साथ देवेन के खिलवाड़ ने उसे बिल्कुल मदहोश कर दिया & वो देवेन को पागलो की तरह चूमते हुए आहे भरने लगी.वो उसका नाम लेके उसके प्यार की कसमे खा रही थी,अपने जिस्म मे पैदा हुए बेशुमार मज़े की बात कह रही थी..उसका पूरा जिस्म मस्ती मे भर गया था & देवेन उसकी बातो का जवाब देता,उसके बदन को अपने आगोश मे कसे हुए उसकी चूत & चूचियो को हाथो से छेड़ते हुए,उसकी गंद मारे चला जा रहा था.

“आननह..!”,तभी रंभा ने देवेन के गले से हाथ खींचा & आगे काउंटर पे झुक अपना सर पीछे झटकते हुए सुबकने लगी.वो झाड़ गयी थी & उसकी कमर थामे उसकी चूत रगड़ता देवेन भी उसकी गंद मे अपना वीर्य छ्चोड़ रहा था.

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“कब आएगी ये रंभा वापस?”,महादेव शाह थोड़ा झल्ला गया था.

“कुच्छ पता नही.”,प्रणव उसके साथ बैठा 1 ग्लास की रिम पे अपनी उंगली चला रहा था.रीता उसकी जेब मे थी & समीर को तो वो किनारे करने ही वाला था मगर उसकी चाल का सबसे अहम मोहरा,रंभा ही ना जाने कहा गायब हो गयी थी.उपर से समीर भी उसे ढूँढने की कोशिश करता नही दिख रहा था.

“लगता है,अब इंतेज़ार करने के अलावा & कोई चारा नही.”,शाह ने ठंडी आह भरी.

“हूँ.”

“पर ध्यान रहे,प्रणव.जैसे ही रंभा वापस आए,समीर..”,उसने गर्देन काटने का इशारा किया तो प्रणव हल्के से मुस्कुराया.

“हूँ.ओके,अब चलता हू.”,प्रणव वाहा से निकल आया..रंभा,कहा हो?..जल्दी से आओ & मुझे ट्रस्ट का राजा बनाओ!

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समीर अपने दफ़्तर मे गहरी सोच मे डूबा था.ग्रूप बिल्कुल सही तरीके से चल रहा था.आने वाले दीनो के जो प्रोजेक्षन्स थे,वो भी बहुत बढ़िया थे.अभी-2 पिच्छले क्वॉर्टर्स के नतीजे भी बहुत अच्छे थे.कारोबार इतना बढ़िया चल रहा था मगर उसकी ज़ाति ज़िंदगी मे सब गड़बड़ हो गया था..रंभा ने सब गड़बड़ कर दिया था & अब गोआ मे बैठी थी.2 पार्टीस मे वो उसके बिना शरीक हुआ था मगर अब वो उसके बिना किसी जलसे मे जाने का ख़तरा नही उठा सकता था..बस किसी 1 बंदे को हल्की सी भी भनक लगी तो फिर इस खबर के टीवी & अख़बारो की सुर्खिया बनते देर नही लगेगी...& फिर उसका असर पड़ेगा कारोबार पे..& ये उसे मंज़ूर नही था..कुच्छ तो करना ही था..किसी भी तरह रंभा को वापस तो लाना ही था!

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“गुड मॉर्निंग.”,देवेन 1 स्टूल पे रॉकी के सामने बैठा था,”..कैसी नींद आई?”,वो हंसा.मुँह पे टेप लगाया रॉकी बस उसे देखता रहा.देवेन आगे झुका & 1 झटके मे उसके मुँह से टेप खींच दिया,”अब भाई,ये बताओ की खंजर लेके मेरे घर मे किस लिए घुसे थे?”,रॉकी खामोश रहा.

“हूँ..तुम अभी तो कोई जवाब नही दोगे.”,देवेन ने लंबी सांस ली,”..चलो,मत दो.घर मे घुसे तो तुम मेरे क़त्ल के इरादे से थे..”,तो इसे नही पता कि वो रंभा को मारने के लिए वाहा आया था,रॉकी सोच रहा था,”..इसराइली तुम्हारे साथ थे मगर वो तुम्हारे साथ या पीछे यहा तक नही आए.इसका मतलब तो ये है की तुम उनके लिए नही बल्कि शायद वो तुम्हारे लिए काम कर रहे थे..नही..नही..तुमने उनकी मदद ली थी..& उन्होने उसके लिए पैसे लिए तुमसे.”

“अब जल्दी ये बताओ कि किसने भेजा तुम्हे यहा मेरे पीछे वरना ये तो तुम जानते ही हो कि मैं तुम्हे तकलीफ़ पहुन्चाउन्गा.हूँ?”,रॉकी बुरी तरह फँसा था.उसके धंधे का उसूल था कि अपने क्लाइंट का नाम कभी ना बताओ मगर यहा से निकलने के लिए वो इस शख्स से कुच्छ सौदा कर सकता था मगर उसकी परेशानी ये थी कि उसे पता ही नही था कि रंभा को मारने का कांट्रॅक्ट उसे किसने दिया था.1 फोन आया जिसे उसने टाल दिया मगर अगले ही दिन 10 लाख रुपये से भरा बॅग उसके दरवाज़े पे रखा था.बॅग उठाते ही दूसरी बार फोन आया & इस बार लंबी बात के बाद उसने काम के लिए हां कर दी.रॉकी जानता था कि जिसने भी रंभा की सुपारी दी है वो शख्स चाहता तो उसे भी ख़त्म कर सकता था & इसीलिए उसे धोखा देने का उसे कोई इरादा नही था मगर इस वक़्त उसकी ज़िंदगी का सवाल था.सामने बैठा शख्स जो भी था,उसकी आँखो मे उसे सॉफ दिख रहा था कि उसे मारने मे वो ज़रा भी नही हिचकेगा.

“मुझे नही पता.”

“अच्छा.तो तुम्हे ख्वाब आया & तुम मुझे मारने आ गये?”,रॉकी खामोश रहा.देवेन ने तो अंधेरे मे तीर चलाया था.उसे अभी तक ये नही पता था कि रॉकी आख़िर किसके क़त्ल के इरादे से आया था-रंभा के या उसके,मगर उसे लग रहा था कि ड्रग सिंडिकेट से उलझने की वजह से वो ही उसका निशाना हो.रंभा को मारने की कोई ठोस वजह उसे दिख नही रही थी.कोई 30 मिनिट तक देवेन रॉकी से पुच्छ-ताछ करता रहा मगर उसने कुच्छ भी काम की बात नही बताई.देवेन ने उसके मुँह पे टेप लगाया & कमरे से बाहर आ गया.

"रंभा,अपना & विजयंत का समान बांधो.जल्द से जल्द हमे डेवाले वापस जाना होगा."

"मगर क्यू?",रंभा के माथे पे शिकन पड़ गयी,"..क्या कहा उसने?"

"उसने कुच्छ नही कहा मगर मुझे लगता है कि तुम्हे अब वापस समीर के पास जाना होगा.अब वक़्त आ गया है कि पहले विजयंत के इस हाल की गुत्थी सुलझाई जाए.मेरा इंटेक़ाम अभी इंतेज़ार कर सकता है.",असल बात ये थी कि रंभा को और ख़तरे मे डालना उसे अब ठीक नही लग रहा था मगर ये बात उसे बता के वो रंभा को घबराना नही चाहता था.

"ठीक है.",रंभा अपने कमरे मे जाने लगी तो देवेन ने उसे रोका.

"मैं अभी ज़रा 2-3 घंटो के लिए बाहर जाऊँगा.तुम होशियार रहना."

"हूँ."

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:50 PM,
#80
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--79

गतान्क से आगे......

"बपत साहब,लगता है आपको अपनी इज़्ज़त प्यारी नही!"

"अरे ये क्या बदतमीज़ी है!",अमोल बपत गुस्से और हैरानी से देवेन को देख रहा था जो धड़ाधड़ाता उसके घर मे घुस आया था.

"और जो आपने मेरे साथ किया वो क्या था?",देवेन गुस्से मे था.बपत की बीवी & 12 बरस का बेटा वाहा आ गये थे और उसे सवालिया निगाहो से देख रहे थे.

"अरे,मेरे जान-पहचान के हैं,कुच्छ परेशान हैं..",उसने देवेन की बाँह पकड़ बाहर का रुख़ किया,"..मैं अभी आता हू.दरवाज़ा लगा लो.",वो उसे ले बाहर निकल गया,"..ये क्या बदतमीज़ी है भाई?मैं तुम्हारा काम कर रहा हू & तुम मेरी बीवी के सामने ये सब बकवास कर रहे थे."

"बपत साहब,प्लीज़ ज़्यादा बाते मत बनाइए.ये बताइए कि मुझे मारने की सुपारी क्यू दी आपने?आपको भरोसा नही मुझपे?..अरे मेरा काम कर दीजिए और अपनी और उस फिरंगिन की तस्वीरे ले लीजिए.उपर से आपका फ़ायदा हो रहा है & आप मेरी ही जान लेना चाहते हैं!"

"क्या बक रहे हो!..मैं तुम्हे मरवाना क्यू चाहूँगा?..अरे अगर मुझे तुम्हारे साथ ऐसी-वैसी हरकत करनी होती तो पोलीस का इस्तेमाल करता ये सुपारी-उपारी का ख़तरा क्यू मोल लेता?!",उसकी बातो मे सच्चाई थी..तो फिर घर पे बँधा वो शख्स किसके कहने पे वाहा आया था & यानी कि उसका निशाना रंभा ही थी!..हे भगवान!..उसे फ़ौरन घर जाना होगा.

"आइ'म सॉरी,बपत साहब पर कुच्छ ऐसी बात हुई कि मैं बौखला गया था."

"अरे भाई,कोई ख़तरे वाली बात है तो अभी बता दो.बपत को पैसे,ऐशोअराम सब चाहिए मगर जान से ज़्यादा ये सब प्यारे नही मुझे!"

"अरे नही..",देवेन हंसा,"..आप बेफ़िक्र रहिए.कुच्छ पता चला बीसेसर गोबिंद के बारे मे?"

"हां.तुम्हारी बात मुझे सही लगती है.ये बहुत शातिर शख्स है मगर इस से 1 ग़लती हो गयी."

"कैसी ग़लती?"

"देखो,वो 1 बूढ़ा इंसान है.मारिटियस के पासपोर्ट से सेशेल्स से यहा आने का मक़सद घूमना-फिरना बताया है.हमारे मुल्क के बारे मे जानना चाहता है वग़ैरह-2 मगर्स आठ ही लिखता है की उसे अड्वेंचर स्पोर्ट्स का भी शौक है."

"हूँ..फिर?"

"तो ये आदमी कोई 6 महीने पहले मुल्क मे आता है & फिर किसी आम सैलानी की तरह 2 महीनो तक पूरे मुल्क मे घूमता रहता है.जब ज़रूरत पड़ती है तो फ्ररो मे बिल्कुल वक़्त से पहुँच जाता लेकिन यही शख्स उसके बाद गंगोत्री जाता है रिवर रफ्टिंग के लिए & फिर गायब हो जाता है."

"क्या?!"

"हां.वो लापता है.सबका मानना है कि वो पानी मे गिर गया और बह गया."

"पर ऐसा हुआ नही है."

"बिल्कुल.ये शख्स अब पक्का हमारे मुल्क का नागरिक बनके रह रहा है."

"कोई सबूत है इसका आपके पास?"

"नही पर मेरा तजुर्बा यही कह रहा है कि उसके साथ कोई हादसा नही हुआ,वो सही सलामत नाम बदल के यहा रह रहा है & पोलीस और बाकी महकमे ये सोच के निश्चिंत बैठे हैं कि 1 बुड्ढ़ा मर गया है & जब कभी उसकी लाश मिली तो केस बंद कर देंगे."

"तो अब कैसे मिलेगा वो?"

"1 मिनिट रूको,मैं पहले तुम्हे उसकी तस्वीर तो दिखाऊँ जो मैने निकाली थी.",दोनो देवेन की कार मे बैठे बाते कर रहे थे.बपत कार से उतरा & 5 मिनिट बाद तस्वीर लेके वापस आ गया जिसे देखते ही देवेन खुशी से भर उठा.ये दयाल ही था!हुलिया बहुत बदला था उसने मगर वो शातिर आँखे वैसी की वैसी थी.

"ये वही है.",देवन ने बस इतना कहा & अपनी जेब से मोबाइल निकाल के बपत को दे दिया,"..ये लीजिए आपकी अमानत.अब आप भी इसे ढूंढीए & मैं भी & जिस दिन मुझे ये मिल गया मैं आपको खबर करूँगा."

"ठीक है.",बपत ने उतर के कार का दरवाज़ा बंद किया तो देवेन ने तेज़ी से कार वापस घर की ओर मोड़ दी.ड्राइव करते हुए वो रंभा को फोन लगा रहा था मगर वो फोन नही उठा रही थी.देवेन का दिल अनहोनी की आशंका से धड़कने लगा था.उसने कार की रफ़्तार बढ़ा दी & साथ ही फोन ट्राइ करता रहा मगर फोन नही मिला.

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रॉकी जितना ही तगड़ा था उतना ही फुर्तीला भी.अपने जिस्म को उसने बहुत लचीला बना रखा था & अभी इसी बात का वो फायडा उठा रहा था.देवेन ने उसके दोनो हाथ उसके बदन के पीछे 1 साथ बाँध दिए थे.रॉकी फर्श पे बाई करवट लेट गया & अपने घुटने मोड़ अपने सीने से सटा लिए & हाथो को अपनी गंद से नीचे अपने पैरो की तरफ ले जाने लगा.घुटने उसने और उपर मोदे,उसे बहुत तकलीफ़ हो रही थी मगर यही अकेला रास्ता था जिसके ज़रिए वो इस क़ैद से छूट सकता था.बँधे हाथो को नीचे ले जा उसने पैरो के नीचे से आगे किया & फिर उठ बैठा.अब उसके बँधे हाथ सामने की तरफ आ गये थे.

बँधे हाथो से उसने मुँह का टेप हटाया & फिर पैरो के बंधन खोले.दन्तो से को हाथो की रस्सियाँ नोचने लगा.रस्सिया बहुत मज़बूत थी & उसके होंठ & मसूड़े छिल गये.उनसे खून आने लगा मगर रॉकी रुका नही.40 मिनिट की मशक्कत के बाद गाँठ खुली & कुच्छ ही देर मे वो आज़ाद था.उसके कपड़े उस कमरे मे नही थे & दरवाज़ा भी बंद था.अब उसे दरवाज़ा खुलवाने की जुगत भिड़ानी थी.

रंभा फोन उठा ही नही रही थी & देवेन अब पूरी तरह से घबरा चुका था.उसने कार की रफ़्तार बहुत बढ़ा दी थी मगर रास्ता था की ख़त्म होने का नाम ही नही ले रहा था.

"य्ाआहह..!",रॉकी बहुत ज़ोर से चिल्लाया.विजयंत मेहरा चौंक गया & दरवाज़े के पास आया,"..साँप..साँप..बचाओ..बचाओ..!!!!!",रॉकी पागलो की तरह चीख रहा था.

विजयंत 1 पल को सोचता रहा & फिर उसने दरवाज़ा खोल दिया..अंदर साँप घुस आया था & उस शख्स की जान ख़तरे मे थी.,.अभी तो देवेन को उस से बाते उगलवानी थी!..धड़क..!!!!..दरवाज़ा खोलते ही 1 ज़ोरदार मुक्का विजयंत के जबड़े पे पड़ा & वो फर्श पे चित हो गया.बिल्कुल नंगा रॉकी कमरे से बाहर आया & विजयंत के जबड़े पे 1 लात मारी & फिर चौंक गया.

विजयंत मेहरा!..उसकी हैरानी का ठिकाना ही नही रहा..वो पलके झपका भूल 1 टाल उस शख्स को देख रहा था जो फर्श पे पड़ा दर्द से अपने जबड़े को सहला रहा था..ये ज़िंदा है..!

"आए..!",रॉकी चौंका & गर्दन घुमाई.टवल मे लिपटी रंभा उसे देख के चिल्ला पड़ी थी.रॉकी ने उसकी ओर कदम बढ़ाए..इसका काम तो अब तमाम हो के ही रहेगा.रंभा घबरा गयी और पीछे हुई & कमरे के बाहर रखे शेल्फ से टकराई.उसने उधर देखा & वाहा पड़ा भारी गुल्दान उठाके रॉकी की ओर फेंका.रॉकी जब तक झुकता तब तक गुल्दान उसके सर से आ लगा.

दर्द की लहर उसके सर मे दौड़ गयी.वो गुस्से से आगे बढ़ा मगर तभी बाहर के गेट पे किसी कार के ब्रेक्स की आवाज़ आई & फिर उसके दरवाज़े के खुलने & बंद होने के.रॉकी ने 1 पल रंभा को देखा & सोचा..अगर इसे मारने रुकता है तो वो निशान वाला शख्स यहा आ सकता है & फिर वो दोबारा फँस सकता है..नही,अभी भागना ही ठीक होगा..फिर आके वो इन सबसे निबतेगा.रॉकी तेज़ी से बाहर भागा.सामने से देवेन दौड़ता आ रहा था.रॉकी बाई तरफ भागा & लॉन पार कर तेज़ी से बंगल की दीवार पे चढ़ने लगा.उसका नंगा जिस्म दीवार से रगड़ के छिल रहा था मगर उसे उसकी कोई परवाह नही थी.अपने लंबे कद की वजह से वो जल्दी से दीवार के उपर चढ़ा

& बाहर सड़क पे कूद गया.उसकी कार उसे अभी भी दूसरे मकान के सामने खड़ी दिख रही थी.वो उसी की ओर भागा.उसी वक़्त देवेन बंगल के मेन गेट से बाहर आया & उसकी तरफ दौड़ा.

रॉकी तेज़ी से आगे भागा & अपनी कार मे बैठ गया मगर उसमे चाभी तो थी ही नही.उसने गुस्से से स्टियरिंग पे हाथ मारा & कार से उतर के पीछे देखा,देवेन भागता आ रहा था.वो कार से उतरा & तेज़ी से भागा.सामने रास्ता मूड रहा था & रॉकी पीछे देखते हुए भाग रहा था.

देवेन को सामने से आती वॅन दिखी मगर रॉकी उसे देख रहा था & जब तक उसने सामने देखा मोड़ की वजह से उसे देर से देख पाने वाले वॅन के ड्राइवर ने उसे पूरी रफ़्तार के साथ टक्कर मार दी थी.देवेन फ़ौरन सड़क के किनारे के 1 नारियल के पेड़ के ओट मे हो गया.वॅन मे कयि फिरंगी भरे थे और शायद किसी पार्टी मे जा रहे थे.वो उतरे और रॉकी के जिस्म को घेर लिया.थोड़ी देर बाद देवेन वाहा पहुँचा और उनकी भीड़ मे से रॉकी तक गया-सामने रॉकी की लाश पड़ी थी.

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क्रमशः.......
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