Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:38 PM,
#41
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--40

गतान्क से आगे.

विजयंत ने उसे इशारा किया तो वो घुटनो के बल बिस्तर पे चढ़ गयी & जब तक वो लेटटी विजयंत ने उसे वैसे ही झुका दिया.अब रंभा अपने घुटनो पे झुकी हुई थी & विजयंत बिस्तर पे बैठा उसकी कमर को थाम उसकी पॅंटी के उपर से ही उसकी गंद की फांको को चूमने लगा.

"दूसरी ये की अगर उसने खुद ही ये काम करने की बेवकूफी की है तो फिर अपना चेहरा दिखाने से डरता नही.वो तो गधे की तरह खिंसे निपोरटा मेरे सामने खड़ा हो समीर की सलामती का सौदा करता मुझसे.",रंभा की काली,छ्होटी सी पॅंटी उसकी गंद को पूरी तरह से ढँकने मे नाकामयाब थी & जब उसके ससुर ने अपनी दाढ़ी उनपे रगड़ी तो उसे गुदगुदी महसूस हुई & वो जोश & खुशी से मुस्कुरा दी.

"उउन्न्ञन्..तो आपको लगता है कोई और है इस सब के पीछे?",उसने गर्दन घुमा अपनी गंद चाटते ससुर को देखा.

"हूँ..यही तो पता लगाना है अब मुझे.",उसने उसकी गंद मे फाँसी पॅंटी को नीचे सरकाया & फिर उसकी गंद के छेद को चूमते हुए उसे जीभ की नोक से छेड़ा.

"ऊन्नह..नही..",रंभा ने गंद उसके मुँह से हटाते हुए करवट ली & अपनी कोहनियो पे उचक के ससुर को शोखी से मुस्कुराते हुए देखने लगी,"..वाहा नही."

"क्यू?",विजयंत ने मुस्कुराते हुए उसकी घुटनो पे अटकी पॅंटी को नीचे खींच उसे पूरी तरह से नग्न कर दिया.

"दर्द होता है मुझे.",विजयंत ने उसकी टाँगे पकड़ उसे पलट दिया & इफ्र उसके पेट के नीचे हाथ लगा उसे पहले जैसी हालत मे ही कर दिया.

"मज़ा भी तो आता है जानेमन.",वो पीछे से आके उसकी चूत को अपनी ज़ुबान से परेशान करने लगा.

"उउन्न्ह..हाईईईईईई..नही..!",रंभा आहें भरती गंद गोल-2 घूमने लगी.

"प्लीज़,डार्लिंग..",विजयंत ने उसकी कमर को पकड़ उसकी चूत मे ज़ोर-2 से जीभ चलाना शुरू कर दिया.रंभा कमर बेसब्री से हिलाते हुए ज़ोर-2 से आहे भरती झड़ने लगी,"..फिर पता नही कभी मौका मिले भी या नही."

"1 बात समझ लीजिए..",रंभा ससुर की बात सुन फ़ौरन पलटी.विजयंत बिस्तर से उतर फर्श पे खड़ा हो गया था.रंभा उसके सामने बैठ बिस्तर से टाँगे लटका के बैठ गयी & उसका अंडरवेर नीचे सरका दिया,"..समीर के वापस आने के बाद भी मुझे आपका साथ ऐसे ही चाहिए.....उउम्म्म्ममम..!",उसने ससुर के लंड को पकड़ उसे मुँह मे भर लिया.उसके सख़्त एहसास,मदमाती खुश्बू & नशीले स्वाद की खुशी से उसने आँखे बंद कर ली & उसे शिद्दत के साथ चूसने लगी.

"लेकिन रंभा?",विजयंत लंड चुस्ती रंभा के बाल सहला रहा था.

"लेकिन-वेकीन कुच्छ नही..",रंभा ने लंड मुँह से निकाला & उसके आंडो को दबाते हुए लंड के आसपास की जगह को चूमने लगी,"..मैं अब आपकी चुदाई के बिना नही रह सकती.",विजयंत ने बाया घुटना बिस्तर पे जमा दिया था & रंभा ने भी बाई टांग पलंग पे रख ली थी.चूत की कसक उसे बहुत तडपा रही थी लेकिन लंड को भी वो जी भर के चूस लेना चाहती थी.वो विजयंत के लंड को जकड़े उसे चूस्ते हुए बेचैनी से अपनी कमर हिला रही थी & अपनी जंघे भी.उसकी चूत तो बस अब लंड के इंतेज़ार मे आँसुओ की धारा बहाए चली जा रही थी.

विजयंत ने नीचे नज़रे झुकाई,ना जाने कितनी लड़किया उसके बिस्तर की रौनक बनी थी लेकिन वो भी अब इस लड़की से दूर रहने की नही सोच पा रहा था.वो उसके बेटे की बीवी थी लेकिन अब वो उसके दिल मे भी 1 खास जगह बना चुकी थी.समीर की वापसी के बाद भी उसे ये रिश्ता बरकरार रखना ही होगा नही तो वो बेचैनी से मर जाएगा.उसने प्यार से रंभा का मुँह अपने लंड से लगा किया & उसे बिस्तर पे लेटने का इशारा किया.

जैसे ही वो बिस्तर पे आया रंभा ने उसे पलट के लिटा दिया & हँसती उसके जिस्म के दोनो तरफ घुटने जमाते हुए बैठ गयी & फिर दाया हाथ पीछे ले जाके लंड को थामा & उसपे बैठ गयी.

"ऊहह..!",लंड उसकी चूत को हमेशा की तरह फैला रहा था.अभी तक लंड घुसने पे उसे हल्का दर्द होता था.वो आँखे बंद कर मज़े से मुस्कुराती ससुर के सीने पे हाथ दबा के अपने नखुनो से उसके बालो को खरोंछती कमर हिला-2 के उस से चुदने लगी.

विजयंत के हाथ उसकी गंद की फांको को तौलने लगी तो वो आगे झुकी & उसके चौड़े सीने पे अपनी चूचिया टीका के उसके चेहरे & होंठो को चूमते हुए उस से चुदने लगी.

"ये रिश्ता तो अब मेरी जान के साथ ही जाएगा.",विजयंत की बात सुन रंभा ने उसके होंठो को अपने होंठो से बंद कर दिया & बहुत तेज़ी से कमर हिलाने लगी.विजयंत उसकी गंद मसल्ते हुए लेटा था.वो समझ गया था कि रंभा मस्ती मे पागल हो गयी है.

"उउन्न्ञणन्..हााआअन्न्‍ननननननणणन्..!",रंभा ने होंठो को वियजयंत के लबो से जुदा किया & अपना सर उठाके बालो को झटकते हुए ज़ोर-2 से कमर हिलाने लगी & झाड़ गयी.विजयंत ने उसे पलटा & अपने नीचे ले उसकी चूत की आख़िरी गहराइयो मे उसकी कोख तक अपना लंड घुसाते हुए उसकी चुदाई शुरू कर दी.रंभा तो बस मस्ती मे उड़े जा रही थी.अभी वो खुमारी से निकली भी नही थी & विजयंत उसकी चूचियाँ चूस्ता ज़ोर के धक्के लगाता उसे फिर से उसी खुमारी मे वापस ले जा रहा था.

रंभा ने हाथ पीछे बिस्तर पे फैला दिए & अपना जिस्म कमान की तरह मोडते हुए अपना सीना उपर उचकाते हुए ससुर के मुँह मे और घुसाने की कोशिस की & बिस्तर की चादर को नोचते हुए अपनी टाँगे विजयंत की पिच्छली जाँघो पे फँसा के कमर उचकाते हुए उसके धक्को का जवाब देने लगी.

विजयंत ने बाई बाँह उसकी गर्दन के नीचे सरका दी & दाए हाथ से उसकी गंद की बाई फाँक को दबोचते हुए उसके चेहरे को चूमते हुए उसकी चुदाई को आगे बढ़ाया.रंभा ने जिस्म के मज़े से बेचैन हो सुबक्ते हुए ससुर के बालो को खींचते हुए उसके चेहरे को पागलो की तरह चूमने लगी.

रंभा की चूत की कसक फिर से चरम पे पहुँच रही थी & उसने विजयंत के लंड को भी अपने सिकुड़ने-फैलने की हरकत से बेचैन कर दिया.रंभा 1 बार और झाड़ गयी थी.उसे पूरे जिस्म मे मस्ती की लहर दौड़ती महसूस हो रही थी & उसका दिल इतनी खुशी झेल नही पाया & उसके जज़्बात आँखो के रास्ते फूट पड़े.विजयंत ने उसके चेहरे को तब तक चूमा जब तक वो संभाल नही गयी उसके बाद वो घुटने पे हुआ & रंभा की दाई टांग को उठाके उसे उसकी बाई टांग के उपर कर दिया.

रंभा उसका इशारा समझते हुए घूम के बाई करवट पे हो गयी.विजयंत घुटनो पे बैठा थोड़ी देर तक हल्के धक्को से उसकी चुदाई करता रहा.रंभा नशे से बोझल पल्को से उसे देखते हुए होंठो से चूमने का इशारा करती रही..समीर लौटेगा तो उसे कभी-कभार इस हसीन एहसास का लुत्फ़ नसीब होगा..अफ..कैसे रहेगी वो इस मज़बूत,हसीन मर्द की क़ातिल चुदाई के बिना..उसने आँखे बंद कर उस ख़याल को ज़हन से दफ़ा किया & बेचैनी से अपनी चूचिया अपने हाथो से ही दबा दी.

विजयंत बिना लंड निकाले झुकता हुआ उसके पीछे करवट से लेट गया & उसके पेट को सहलाता उसकी गर्दन & दाए कंधे को चूमता चोदने लगा.रंभा ने सर पीछे घुमाया & उसके बालो को खींचते हुए उसे चूमने लगी..कितना नशीला एहसास था ये..उसकी जीभ से खेलने का..लेकिन पता नही आज की रात के बाद फिर कब मौका मिले..इस ख़याल से उसका जिस्म फिर से मस्ती के उस एहसास को फिर से पाने के लिए मचल उठा.

"आन्न्न्नह......ऊहह...डॅड.....हाआंन्‍णणन्..!",रंभा अब चीख रही थी,विजयंत उसकी चूत के दाने को रगड़ते हुए धक्के लगा रहा था.रंभा का बेचैन जिस्म उसकी गिरफ़्त मे कसमसा रहा था & उसकी चूत फिर से उसके लंड को जकड़ने लगी थी.रंभा से अब ये मज़ा बर्दाश्त नही हुआ & उसने विजयंत के अपने चूत के दाने को रगड़ते दाए हाथ की कलाई को पकड़ लिया & सुबक्ते हुए फिर से झाड़ गयी.

रंभा अपनी साँसे संभाल ही रही थी की विजयंत ने करवट लेते हुए उसे बिस्तरा पे पेट के बल कर दिया & खुद उसके उपर चढ़ गया & हाथ नीचे घुसा उसकी कोमल छातियो को दबाते हुए चोदने लगा.रंभा तो मस्ती & थकान मे चूर हो गयी थी & बस बिस्तर पे बेचैनी से सर हिलाते हुए आहें भरते हुए उसके लंड का लुत्फ़ उठा रही थी.

विजयंत उसकी पीठ & कंधो को चूम रहा था.बहू का रेशमी जिस्म उसे अपना दीवाना बना चुका था.उसका दिल उसकी चुदाई से भरता ही नही था.ऐसे परेशानी भरे माहौल मे भी उसके जैसा पक्का कारोबारी रंभा के हसीन बदन के साथ का कोई मौका भी नही छ्चोड़ना चाहता था.चंद दिनो की चुदाई मे ही रंभा का जिस्म विजयंत के होंठो के निशानो से भर गया था जिन्हे देख वो खुद भी मस्त होती थी & उसका ससुर भी.

विजयंत उसकी मुलायम गर्दन को चूम के उठा & घुटनो पे हो उसकी कमर थाम उसकी गंद को भी उठा लिया.रंभा बिस्तर मे मुँह छुपे अपनी कोहनियो & घुटनो पे झुकी उसकी चुदाई से मस्त होती रही.बिस्तर की चादर अब पूरी तरह से सलवटो से भर चुकी थी.इस पोज़िशन मे लंड फिर से उसकी कोख पे चोट करने लगा & वो फिर से मस्ती भरी आवाज़ें निकलती कमर आगे-पीछे कर विजयंत की ताल से ताल मिलाने लगी.

"ऊन्न्न्नह.....आआन्न्न्नह....हाआअन्न्‍नणणन्.....न्‍न्‍नणन्नाआआहह..!",रंभा ने बिस्तर की चादर को अपने हाथो मे भींच लिया & अपना सर उपर उठाके बाल झटकने लगी.विजयंत ने इस बार बड़ी मुश्किल से खुद को झड़ने से रोका.उसके लंड पे बहू की चूत की पकड़ क़ातिलाना हो गयी थी.रंभा पीछे गंद करते हुए इस बार रोने लगी थी.उसके जिस्म की मस्ती की शिद्दत इस बार सारी हदें पर कर गयी थी.

वियजयंत ने लंड बाहर खींचा & अपने थूक से जल्दी से रंभा की गंद के छेद को गीला किया.उसका लंड तो पहले ही उसके प्रकूं & रंभा की चूत के नशीले रस से गीला था.

"हाआऐययईईईईई..!",रंभा ने चेहरे पे दर्द & मस्ती की मिलीजुली लकीरें खींच गयी.लंड का सूपड़ा उसकी गंद के छेद को बहुत फैलाता हुआ अंदर घुसा था.विजयंत ने भी आह भरते हुए उसकी कमर को ज़ोर से पकड़ा & & लंड को उसकी आधी लंबाई तक घुसा दिया.

होटेल सूयीट के उस कमरे मे ससुर & बहू की मस्ती भरी आवाज़े गूंजने लगी.दोनो को कुच्छ होश नही था सिवाय इसके की 1 दूसरे के जिस्म उन्हे जन्नत की सैर करा रहे थे.विजयंत रंभा की गंद मारने के साथ-2 उसकी चूत मे भी उंगली कर रहा था.रंभा की चूत की कसावट ने उसे पहले दिन से ही हैरान कर रखा था.इस वक़्त भी वो उसकी उंगली को अपनी जाकड़ मे कस चुकी थी & उसकी गंद उसके लंड को.

कुच्छ देर बाद ही कमरे मे 2 आवाज़े गूँजी-1 भारी & 1 पतली,लेकिन दोनो ही मस्ती से भरी हुई & दोनो ही ये एलान कर रही थी की 2 प्यार भरे जिस्मो ने 1 दूसरे के साथ वो सफ़र पूरा कर लिया है जिसे दुनिया चुदाई कहती है & उस मंज़िल पे पहुँच गये हैं जहा सिर्फ़ खुशी ही खुशी होती है.

प्रणव अपने कॅबिन मे बैठा था.शाम के 8 बज रहे थे लेकिन अभी तक वो फोन नही आया था जिसका उसे इंतेज़ार था.सोनम ने उसके कॅबिन का दरवाज़ा बहुत हल्के से खोल के अंदर देखा.उसे ये आदमी अब बिल्कुल भी ठीक नही लग रहा था & उसने तय कर लिया था कि अब उसे उसके बारे मे विजयंत मेहरा को बता देना चाहिए.पहले तो उसने सारे प्रॉजेक्ट्स मे कुच्छ ना कुच्छ बदलाव किए.ऐसा नही था कि ट्रस्ट ग्रूप बिना नियमो को तोड़े-मरोड़े हर काम ईमानदारी से करता था लेकिन विजयंत का 1 ही उसूल था कि ग्राहक के साथ हमेशा ईमानदारी बर्तो.उसके ज़्यादा से ज़्यादा पैसे लेने की कोशिश करो मगर उसे ये महसूस नही होना चाहिए कि वो ठगा गया है.तभी बाज़ार मे ग्रूप की साख बनी रहेगी & ग्राहको की तादाद भी बढ़ेगी मगर प्रणव तो हर प्रॉजेक्ट मे बस फ़ायदा देख रहा था & उसे कंपनी की साख की कोई चिंता नही थी.

"हेलो.",तभी उसका मोबाइल बजा & प्रणव ने झट से फोन कान से लगाया,".गुड ईव्निंग मिस्टर.शाह..जी..ओके...हां..हां..",वो कोई पता नोट कर रहा था,"..ठीक है..मार्केट से राइट..ओक.मैं 9 बजे तक आपके पास पहुँचता हू.",उसने फोन काटा & सोनम फ़ौरन दरवाज़े से हट गयी..ये शाह कौन था?..ये उस से मिलने क्यू जा रहा था?

"सोनम..",प्रणव बाहर आया,"..वो लेटर्स ड्राफ्ट हो गये ना?"

"यस सर."

"गुड & कल की मेरी अपायंट्मेंट्स?"

"सर,आपकी डाइयरी मे लिख दिया है..",उसने 1 डाइयरी 1 ब्रीफकेस मे डाली & उसे बंद किया तो प्रणव ने उसे उठा लिया.

"थॅंक यू.चलो,देर हो गयी है.अब घर जाओ.गुड नाइट!"

"गुड नाइट,सर!",सोनम वाहा से सीधा अपनी किसी सहेली से मिलने 1 नाइटक्लब मे गयी जहा उसकी सहेली के बाय्फ्रेंड का बड़ा हॅंडसम दोस्त भी आया हुआ था.नाइटक्लब से निकलने के बाद ही वो उस जवान मर्द के साथ उसके घर चली गयी थी & उसके मज़बूत बाजुओ मे अपनी जवानी उसे चखाते हुए वो विजयंत को फोन करना भूल गयी.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:38 PM,
#42
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--41

गतान्क से आगे.

"वेलकम,मिस्टर.प्रणव.",प्रणव जब उस शानदार बंगल पे पहुँचा जोकि उसके घर से ज़्यादा दूर नही था तो 1 नौकर उसे बुंगले के सजे हुए हॉल मे ले गया जहा उसने पहली बार महादेव शाह को देखा.शाह 50-55 बरस का शख्स था जिसके सारे बाल सफेद हो चुके थे.देखने मे वो भले ही बूढ़ा लगता हो लेकिन 6 फ्ट का वो मर्द बिल्कुल चुस्त जिस्म का मालिक था.

"हेलो,मिस्टर.शाह."

"आइए..",वो उसे हॉल के कोने मे बने बार पे ले गया,"..क्या लेंगे?"

"स्कॉच."

"ओके.",उसने उम्दा स्कॉच का 1 पेग बनाके अपने मेहमान को दिया & खुद के लिए भी 1 पेग बनाया.

"तो मिस्टर.शाह आप किस सिलसिले मे मुझसे मिलना चाहते थे?"

"कम ऑन,प्रणव जी.",शाह ने शराब का 1 घूँट भरा & मुस्कुराया,"..अब आप जैसे दिमाग़दार शख्स से मुझे ऐसे सवाल की उम्मीद नही थी.",प्रणव हंस दिया.

"मिस्टर.शाह,जब डॅड ने आपका ऑफर ठुकरा दिया था तो मैं क्या कर सकता हू!"

"प्रणव जी,मैं जब 30 बरस का भी नही हुआ था तो ये मुल्क छ्चोड़ त्रिनिडाड चला गया था & 30 बार्स का होते-2 अपने गन्ने के फार्म्स & रूम डिसटिल्लरी का मालिक था.उसके बाद मैने कयि मुल्को मे कयि धंधे कर ये दौलत इकट्ठा की.अब मैं कोई कारोबार नही करना चाहता & उम्र के इस आख़िरी दौर मे अपने मुल्क वापस आ यहा के बिज़्नेसस मे अपना पैसा लगाना चाहता हू.."

"..हर व्यापारी को अपने बिज़्नेस को,चाहे बड़ा हो या छ्होटा,आगे बढ़ाने की ख्वाहिश होती है & उसके लिए पैसे की ज़रूरत होती है.बस इसीलिए मैं आपके ससुर के पास गया था मगर उन्होने मेरा ऑफर ठुकरा दिया.पता नही उन्हे मुझे अपने ग्रूप के चंद शेर्स देने मे क्या ऐतराज़ था?..",शाह थोड़ी देर खामोशी से पीता रहा.

"खैर..प्रणव..आइ होप यू डॉन'ट माइंड इफ़ आइ कॉल यू ओन्ली प्रणव."

"नोट अट ऑल."

"प्रणव,मुझे तुम मे अपना अक्स दिखता है.",शाह की आँखो मे उसकी कही बात मे झलकता विश्वास दिख रहा था,"..मुझे लगता है कि तुम इस सुनहरे मौके का फ़ायदा उठा सकते हो."

"वो ठीक है,मिस्टर.शाह लेकिन मैं कोई फ़ैसला कैसे ले सकता हू?..मैं कंपनी का मालिक नही हू."

"नही.पर शेर्स हैं तुम्हारे पास & ससुर की दी हुई पवर ऑफ अटर्नी भी."

"मगर.."

"मगर क्या?..देखो,प्रणव ये सुनेहरी मौका है & इसमे तुम्हारा भी बहुत फ़ायदा हो सकता है..तुम मेरी बात समझ रहे हो.",शाह का बोलने का लहज़ा थोड़ा बदल गया था.

"ज़रा तफ़सील से कहिए."

"देखो,प्रणव.इस कंपनी का मालिक विजयंत है & उसके बाद कौन?"

"समीर.",प्रणव की आवज़ का ठंडापन शाह से च्छूपा नही.

"& तुम..बस वही चंद शेर्स..कहने को बोर्ड पे हो..हर फ़ैसले के वक़्त तुम्हारी मौजूदगी ज़रूरी है..लेकिन क्या सचमुच तुम्हारी राई के बिना कोई भी फ़ैसला रुकता है नही..क्यूकी फ़ैसला तो केवल मालिक ही लेता है..ये सब तो बस फॉरमॅलिटीस हैं.",प्रणव को उसकी बातें सच लग रही थी..वो भी तो बस 1 नौकर ही था..अपने ससुर का.

"..ये मौका है प्रणव की तुम मालिक बन जाओ.मैं ये नही कह रहा कि विजयंत को हटा दो लेकिन मुझे लगता है की अब उसका वक़्त पूरा हो गया है.उसकी सोच अब पहले जैसी पैनी नही रही ही & उपर से ये समीर का चक्कर.वक़्त रहते अगर किसी जवान,चुस्त शख्स ने ग्रूप की बागडोर नही संभाली तो सब बिखर सकता है & इतने दिन हो गये..मुझे नही लगता समीर वापस आने वाला है...तो 1 तरह से तो तुम ग्रूप की भलाई के लिए ये सब कर रहे हो."

"हूँ..लेकिन फिर भी मुझे क्या फ़ायदा होगा इतना बड़ा रिस्क उठाने से?"

"हूँ..",शाह ने अपनी ड्रिंक ख़त्म की & उसकी पीठ पे धौल जमाया,"..अब की तुमने समझदारी वाली बात!..मैं दुनिया मे काई जगह घुमा हू & खास कर के वो जगहें जिन्हे टॅक्स हेवन्स कहा जाता है.",वो हंसा तो प्रणव भी मुस्कुरा दिया.टॅक्स हेवन्स-ऐसे मुल्क जोकि बस 1 छ्होटा सा जज़ीर-आइलॅंड रहता है & वाहा के टॅक्स के क़ानून बिल्कुल बकवास.थोड़े कागज़ी खेल खेल के आप अपना काला धन वाहा के बाँक्स मे महफूज़ रख सकते हैं.

"..केमन आइलॅंड्स के बॅंक मे तुम्हारे नाम से 1 रकम जमा कर दी जाएगी.बस तुम मेरे पैसे लेके मुझे ट्रस्ट के शेर्स दिलवा दो.",शाह उसके जवाब का इंतेज़ार करता उसे देख रहा था & प्रणव सर झुका के अपनी ड्रिंक पी रहा था.

कुच्छ देर बाद उसने अपना सर उठाया & ग्लास बार पे रखा.उसकी आँखो के भाव को देख के शाह समझ नही पा रहा था की उसकी बात उसे पसंद आई या नही.

"दट'स इट!",कुच्छ देर बाद ही प्रणव के चेहरे का भाव बदला & मुस्कुराते हुए उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया था.शाह ने उसे खुशी से थामा & हिलाने लगा.

"उस शख्स को यहा पे 1 निशान था.",रंभा विजयंत मेहरा के सीने पे अपनी छातियाँ दबाए,उसकी पेड़ के तनो जैसी जाँघो पे अपनी मुलायम,भारी जंघे टिकाए लेटी उसके बाए गाल पे दाए हाथ की उंगली फिरा रही थी.

"तुमने ये बात रज़ा को क्यू नही बताई?",विजयंत ने उसके बालो को उसके कान के पीछे किया & उसकी उंगली उसके गोरे गालो पे घूमने लगी.बहू की चूत के नीचे दबा उसका लंड भी धीरे-2 अपना सर उठा रहा था.

"मेरे दिमाग़ से ये बात बिल्कुल उतर गयी थी.अभी अचानक याद आई.",पिच्छली शाम ही विजयंत के अपनी खफा बहू को मनाने के बाद ही दोनो चुदाई मे जुट गये थे.विजयंत बस 1 बार झाड़ा था लेकिन रंभा को तो होश भी नही था कि वो कितनी बार झड़ी & कब सो गयी.कुच्छ देर पहले उसकी नींद खुली तो उसने देखा की घड़ी मे 3 बज रहे हैं.ससुर के नंगे,मज़बूत मर्दाना जिस्म को जैसे ही उसने छेड़ना शुरू किया तो वो भी फ़ौरन जाग गया.

"1 आइडिया आया है.",रंभा के दिमाग़ मे बिजली सी कौंधी & वो ससुर के सीने से उठ गयी.उसके घुटने ससुर के जिस्म के दोनो तरफ बिस्तर पे जम गये & जैसे ही विजयंत ने उसकी कमर को थामा वो उसका इशारा समझ उपर उठी & फिर उसके लंड पे चूत को झुकाने लगी,"..उउम्म्म्म..!",उसकी आँखे मस्ती मे बंद हो गयी.

"कैसा आइडिया?",विजयंत की आँखे भी लंड के बहू की कसी चूत से जकड़े जाने से मज़े मे मूंद गयी.

"ऊहह..",रंभा ने ससुर के सीने के बालो को मुत्ठियो मे भर हल्के से खींचा & मस्ती मे अपनी कमर हिलाने लगी,"..देखिए,आपने रज़ा को कह दिया है कि मैं डेवाले जा रही हू.आप ये बात लीक भी कर दीजिए..आन्न्न्नह..इतनी ज़ोर से नही..!",विजयत ने जोश मे उसकी गंद की फांको को बहुत ज़ोर से दबोच लिया था.

"मगर क्यू?",उसके हाथ बहू के पेट से उसकी चूचियो तक घूम रहे थे.वो बस अपनी उंगलियो के पोरो से उसके कड़े निपल्स को छुते हुए हाथ उपर-नीचे सरका रहा था.

"ताकि वो शख्स धोखा खा जाए & अगर उसका निशाना मैं हू तो वो यहा से डेवलाया चला जाए & मैं यही कही छुप के रहू..ऊन्नह....उउम्म्म्मम..!",विजयंत ने बहू की चूचियाँ पकड़ उसे नीचे खींचा & फिर उसकी कमर को बाहो मे जाकड़ उसकी गर्दन चूमते हुए नीचे से कमर उच्छाल-2 के उसकी चुदाई करने लगा.

"आन्न्न्नह..निशान पड़ जाएगा,दाद..ऊव्ववववव..प्लीज़..नाआअहह..!",लंड के क़ातिल धक्को ने उसे बहुत मस्त कर दिया & वो ससुर के होंठो को अपनी गर्दन से जुदा करते हुए,उसकी जाकड़ से च्चटपटाते हुए उपर उठ गयी & चीख मारते हुए पीछे उसकी जाँघो पे गिर के झड़ने लगी.विजयंत ने लेटे-2 ही उसकी उसके लंड को कस्ति चूत मे से उसके बिल्कुल लाल हो चुके दाने को अपने बाए हाथ के अंगूठे से छेड़ा.रंभा के मस्ताने जज़्बात विजयंत की इस हरकत से उसके काबू मे ना रहे & उसकी आँखो से छलक पड़े.

"प्लान तो बढ़िया है मगर इसमे ख़तरा भी है.",वो जल्दी से उठा & अपनी बहू को अपनी टाँगो से उठाके बाहो मे भर लिया .रंभा उसके सीने के बालो मे मुँह च्छुपाए सिसक रही थी.विजयंत ने उसकी चूत मे लंड धंसाए हुए उसकी गंद को थामे हुए अपने घुटने मोड & उसे अपनी गोद मे ले लिया.

"आप ख़तरो से कब से डरने लगे?",संभालने के बाद रंभा ने नज़रे उपर की & अपने ससुर की आँखो मे झाँका.विजयंत को उन निगाहो मे सुकून के पीछे च्चिपी मस्ती & 1 चुनौती भी थी.

"मुझे ख़तरो से कब डर लगा है!",विजयंत ने उसके लंबे बालो को पीछे खींचा तो रंभा को थोड़ा दर्द हुआ लेकिन ससुर के इस तरह उसकी बात को दिल से लगाने से उसे थोड़ा मज़ा भी आया-वो मज़ा जो प्रेमी-प्रेमिका 1 दूसरे को छेड़ने मे पाते हैं,"..मुझे तुम्हारी फ़िक्र है बस.",रंभा ने सर पीछे झुकाया था तो उसकी गोरी गर्दन विजयंत के सामने चमक उठी थी & उसके बेसबरे होंठ उसी से चिपक गयी थी.

"थोड़ा ख़तरा तो उठाना ही पड़ेगा ना...आन्न्न्नह.नही..कहा ना दाग पड़ जाएगा!",रंभा ने ससुर के बाल उठा के उसकी गर्दन को शिद्दत से चूमते होंठो को अपनी गर्दन से अलग किया.विजयंत उसकी कमर & गंद को थामे ज़ोर-2 से धक्के लगा रहा था.

"प्लान तो ठीक लगता है.मैं डेवाले मे अपने आदमियो को चौकन्ना कर दूँगा & हो सकता है वो शख्स पकड़ा जाए.",रंभा ससुर के लंड की चुदाई से मस्त हो अपनी कमर हिला के उसके धक्को का जवाब दे रही थी & उसके बालो को पकड़े उसे पागलो की तरह चूम रही थी.विजयंत ने अब उसकी गंद की मोटी फांको को अपने बड़े-2 हाथो मे थाम लिया था & घुटनो पे बैठ ज़ोर-2 से लंड अंदर-बाहर कर रहा था.

"ऊवुयूयियैआइयैआइयीयीयियी......अभी तक कोई फोन नही आया ना?..आन्न्‍न्णनह....हान्न्न्नह..!",वो पीछे झुकी थी & विजयंत उसके निपल्स को दांतो से काट रहा था.

"नही.",विजयंत को भी अब समीर की चिंता हो रही थी.उसने दाए हाथ से रंभा की गंद थामे हुए बाए से उसकी दाई चूची को मसला & बाई चूची को मुँह मे भर चूसने लगा.ससुर की ज़ुबान की गुस्ताख हर्कतो ने रंभा की जिस्म मे बिजलियो की कयि लहरें दौड़ा दी & वो उसके सर को पकड़े च्चटपटाने लगी.दोनो जिस्म 1 दूसरे से चिपके 1 बार फिर मस्ती के आसमान मे घूमने लगे थे.रंभा ने दोनो बाहें विजयंत के कंधो पे टिका के उसके सर को अपनी पकड़ मे जाकड़ लिया था & अपना सर उसके सर के उपर टिकाके पागलो की तरह चीख रही थी.उसका जिस्म झटके खा रहा था & नीचे विजयंत उसकी चूचियो को मुँह मे भरता आहें भर रहा था.दोनो 1 बार फिर 1 साथ झाड़ गये थे.

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वो शख्स बहुत बौखलाया हुआ था.उसने सवेरे ही अपना होटेल छ्चोड़ दिया था & अपनी कार भी.जब से रंभा की तलाश ख़त्म हुई थी सब कुच्छ गड़बड़ हो रहा था.पहले समीर गायब हुआ & विजयंत रंभा के साथ चिपक गया.अब तो दोनो के बीच 1 नाजायज़ रिश्ता भी जुड़ गया था & दोनो का अलग होना और मुश्किल नज़र आ रहा था.उपर से सवेरे रंभा ने उसकी शक्ल भी देख ली थी.

क्लेवर्त की पहाड़ियो मे काई होटेल्स & लॉड्जस थी & ऐसा नही था की सभी बहुत चलती थी.उसने पहले अपने गाल के निशान के उपर 1 बॅंड-एड लगाया & अपनी कार को 1 पार्किंग मे छ्चोड़ क्लेवर्त शहर से थोड़ी दूरी पे 1 पहाड़ी पे बने1 छ्होटी सी लॉड्ज मे 1 कमरा ले लिया था.अब उसे 1 नयी सवारी चाहिए थी लेकिन कैसे ये उसकी समझ मे नही आ रहा था.

उसने सबसे पहले अपना हुलिया पूरा बदला.अभी तक वो कोट & पॅंट मे रहता था.उसने मार्केट जाके सबसे पहले कुच्छ जॅकेट्स,जीन्स & स्वेटर्स खरीदे & 1 जॅकेट & जीन्स 1 पब्लिक टाय्लेट मे बदली.उसके बाद उसने पहले उस बंगल का रुख़ किया जहा सवेरे सब गड़बड़ हुआ था.वाहा अभी भी पोलीस थी.अब उसे ये पता करना था की आख़िर रंभा गयी कहा.

उस पूरे दिन उसने काई जुगाड़ किए लेकिन उसे ये नही पता चला की आख़िर विजयंत & रंभा गये कहा.जिस वक़्त विजयत्न & रंभा 1 दूसरे के आगोश मे समाए चुदाई का लुत्फ़ उठा रहे थे,वो शख्स बेचैनी से करवटें बदल रहा था & जिस वक़्त रंभा ने ससुर को अपने प्लान के बारे मे बताया,उसी वक़्त उसकी आँख लगी इस बात से बेख़बर की उसका शिकार अब उसी के लिए जाल बिच्छा रहा था.

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"ओह..प्रणव डार्लिंग..ऊव्ववव..",शिप्रा बिस्तर पे बुरी तरह कसमसा रही थी.उसके चेहरे पे दर्द & मस्ती से भरी मुस्कान खेल रही थी.उसकी टाँगो के बीच उसका प्यारा पति अपने घुटनो पे बैठा उसके उसकी दाई तंग को थामे उसके पैर के अंगूठे को मुँह मे चूस्ते & बीच-2 मे काटते हुए,उसे चोद रहा था.

"क्या बात है जान?..आन्न्‍न्णनह..आज तो तुम बहुत जोश मे हो..हााआ....!",शिप्रा ने अपने बाए घुटने पे जमे प्रणव के हाथ की उंगलियो मे अपने बाए हाथ की उंगलिया फँसाई तो प्रणव उसकी टांग के गुदाज़ हिस्से को चूसने लगा.

"तुम्हे देख को तो हमेशा ही मेरा ये हाल हो जाता है,डार्लिंग!",प्रणव के आंडो मे अब मीठा दर्द हो रहा था.बहुत देर से वो खुद पे काबू रखे हुए थे.उसने उसकी टांग छ्चोड़ी & शिप्रा के उपर लेट गया & उसकी गर्दन के नीचे बाई बाँह लगा के उसे आगोश मे भर लिया,"..1 बात पुच्छू?"

"पूछो ना जान.",शिप्रा ने पति के चेहरे को हाथो मे भर चूम लिया.

"तुम्हारे पास कंपनी के शेर्स हैं & तुम भी ग्रूप की मालकिन हो,अगर मैं कोई फ़ैसला लू तो क्या तुम मेरा साथ दोगि?",प्रणव के धक्के तेज़ ओ गये थे.वो अब जल्द से जल्द झड़ना चाहता था.शिप्रा की टाँगे उसकी पिच्छली जाँघो पे जम गयी थी & वो नीचे से कमर उचकाने लगी थी.

"क्या बात है प्रणव?",उसने उचक के उसे चूमा तो प्रणव ने भी अपनी ज़ुबान उसकी ज़ुबान से लड़ा दी.

"वक़्त आने पे बताउन्गा.तुम्हे मुझपे यकीन तो है ना,शिप्रा की मैं बस कंपनी के भले के लिए फ़ैसला लूँगा?",पति-पत्नी दोनो 1 दूसरे से बेचैनी से गुत्थमगुत्था थे.

"ओह..हां प्रणव,पूरा भरोसा है डार्लिंग....आन्न्‍न्णनह..!"

"थॅंक्स,जान!..य्ाआअहह..!",दोनो 1 दूसरे को चूम रहे थे & दोनो के बदन झटके खा रहे थे.शिप्रा झाड़ रही थी & प्रणव अपना वीर्य उसकी चूत मे छ्चोड़ रहा था.

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विजयंत ने अगली सुबह ये खबर अपने मीडीया के सोर्सस के ज़रिए लीक करा दी कि रंभा वापस डेवाले जा रही है.एरपोर्ट पे तेज़ी से चेक इन काउंटर की ओर जाती रंभा के पीछे उस से सवाल पूछते रिपोर्टर्स की तस्वीरे उस शख्स ने टीवी पे देखी & मुस्कुरा दिया.

उधर रंभा ने टिकेट लिया था पंचमहल & फिर वाहा से डेवाले का लेकिन उसने पंचमहल से आगे की फ्लाइट नही ली.उसकी जगह बलबीर मोहन की कंपनी की 1 लड़की ने रंभा के टिकेट से सफ़र किया.अब कोई भी फ्लाइट रेकॉर्ड्स चेक करता तो यही समझता की रंभा डेवाले पहुँच गयी.

रंभा को बस 1 रात पंचमहल मे अकेले गुज़ारनी थी & फिर वाहा से अगले दिन वो ट्रेन & सड़क के रास्ते वापस क्लेवर्त जाने वाली थी.इन सब बातो से बेख़बर वो शख्स अपना समान बाँध रहा था डेवाले जाने के लिए.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:38 PM,
#43
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--42

गतान्क से आगे......

सोनिया क्लेवर्त पहुँच चुकी थी & वाहा पहुँचते ही उसने विजयंत मेहरा को फोन किया.

"सोनिया जान..तुम यहा क्यू आई?",वियजयंत सच मे परेशान हो उठा था.सोनिया का वो इस्तेमाल कर रहा था लेकिन वो 1 सीधी लड़की थी & वो नही चाहता था कि वो यहा के ख़तरे मे फँसे.

"मुझे बस तुमसे मिलना है,विजयंत..अभी!",सोनिया की आवाज़ ने विजयंत को खामोश कर दिया.उसकी परेशानी,उसकी उलझन सब झलक रहा था उसकी आवाज़ मे.

"तुम ठहरी कहा हो?"

"होटेल पॅरडाइस मे."

"हूँ..आज शाम 8 बजे तुम होटेल वाय्लेट आओ.रिसेप्षन पे आके बस इतना कहना कि रॉयल सूयीट मे ओनर से मिलना है.ओके.जो मैने कहा है उसे बिल्कुल वैसे ही दोहराना.कुच्छ ही देर मे तुम मेरे साथ होगी."

"ओके,विजयंत."

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"1..2..3..4..",तेज़ म्यूज़िक के साथ गाने की लाइन्स पे कामया & कबीर कॉरियोग्रफर के बताए स्टेप्स कर रहे थे.पीछे धारदार फॉल्स के झरनो का खूबसूरत नज़ारा कॅमरा में अपने कैमरे मे क़ैद कर रहा था.

"कट..!",कॉरियोग्रफर बोला & म्यूज़िक रुक गया & दोनो सितारे अपनी-2 कुर्सियो पे आ के बैठ गये.डाइरेक्टर दोनो के पास आया,"कबीर..कामया..इस गाने की शूटिंग के बाद 3-4 एमोशनल सीन्स भी यहा & आस-पास के इलाक़े मे शूट करने हैं.ये हैं वो सीन्स..",उसने 2 फाइल्स दोनो को थमायी,"..डाइलॉग्स याद कर लेना.हो सके तो कल ही कर लेंगे.ओके."

"ये भी ना!",कबीर ने फाइल अपने स्पोतबॉय को थमायी,"..साला 2-2 पेज के डाइलॉग लिखवा लेता है..शूटिंग के बाद सोचा था की तुम्हारे साथ वक़्त गुज़रुँगा लेकिन नही इसे ये बात पसंद थोड़े ही आएगी!",कामया हँसने लगी.

"कम ऑन,लव!",उसने उसकी टांग पे हाथ मारा & फिर अपना मेक-अप करवाने लगी.पीछे शूटिंग देखने वालो की भीड़ लगी थी & उनमे से कुच्छ लोग दोनो सितारो का नाम पुकार रहे थे.

अगला शॉट ऐसा था की दोनो अदाकारो को 1 क्रॅन,जैसी की बिजली कंपनी वाले बिजली के पोल्स को चेक करने के लिए इस्तेमाल करते हैं,उसपे खड़े होके गाने की लाइन्स पे होंठ हिलाने थे.मेक-अप कर & कॉरियोग्रफर से स्टेप्स समझ के दोनो क्रॅन पे चढ़ गये.अब कॅमरमन को बस उनकी कमर तक के शॉट्स लेने थे ताकि क्रॅन की ट्रॉली शॉट मे ना आए.

क्रॅन ऑपरेटर ने क्रॅन को उपर करना शुरू किया.कबीर कामया के पीछे उसके कंधो पे हाथ रखे खड़ा था.कामया मन ही मन हंस रही थी क्यूकी उसे पता था कि कबीर को ऊँचाई से डर लगता है & इस वक़्त उसकी हालत खराब थी.जब क्रॅन सही ऊँचाई पे पहुँचा गयी तो ऑपरेटर ने उसे रोक दिया.कामया कॉरियोग्रफर के मेगफोन से आक्षन की आवज़ सुनने का इंतेज़ार कर रही थी.

"क्या हुआ,पॉपी?",उसने नीचे खड़े कॉरियोग्रफर को इशारा किया तो पॉपी ने कॅमरमन की ओर इशारा किया जोकि अपने असिस्टेंट्स के साथ कमेरे मे कुच्छ कर रहा था.कामया बोर होके नीचे खड़ी भीड़ को देखने लगी की तभी उसकी निगाह भीड़ से अलग-थलग 1 पेड़ के नीचे बैठ 1 कोल्ड ड्रिंक पीती 1 लड़की पे पड़ी..सोनिया मेहरा यहा..उसने आँखे थोड़ी सिकोड के उस लड़की के चेहरे को गौर से देखने की कोशिश की..कही और कोई तो नही..

"रेडी कबीर..कामया?",पॉपी की आवाज़ पे दोनो तैय्यार हो गये & फिर अगले कुच्छ पॅलो तक शूटिंग होती रही.शूटिंग ख़त्म होते ही क्रॅन नीचे आने लगी & कामया की

निगाहें उस लड़की से छिपा गयी..हां ये सोनिया ही थी..ये यहा क्या कर रही है..& फिर उसके होंठो पे मुस्कान खेलने लगी..विजयंत मेहरा..!

"मैं अभी आई,लव.",कबीर अपने धड़कते दिल को शांत कर रहा था.कामया उसके कंधे थपथपाते हुए अपने स्पॉटबाय से अपना मोबाइल ले अपनी वॅन मे चली गयी.

"हाई!विजयंत,डार्लिंग.कैसे हो?"

"ठीक हू,कामया.तुम सूनाओ?"

"मैं ठीक हू.समीर का कुच्छ पता चला?"

"कोशिश जारी है,कामया देखो क्या होता है."

"हूँ..तुम यही हो क्लेवर्त मे?"

"हां,क्यू तुम भी यही हो क्या?"

"हां,कल शाम ही आई.आना तो दिन मे था पर कल सवेरे फॉल्स बंद थे तो शूटिंग हो नही सकती थी तो शाम को आई."

"अच्छा."

"तो मिलो ना जान.आज शाम कैसा रहेगा?"

"आज..आज नही कामया..आज कुच्छ अपायंटमेंट है."

"अरे मैं तो भूल गयी थी,तुम्हारी बहू भी है ना यहा."

"अरे नही,कामया उसकी वजह से नही.",विजयंत हंसा,"..उसे तो मैने डेवाले भेज दिया.किसी और से मिलना है."

"ओह.तो कल?"

"हां,कल पक्का डार्लिंग.मैं फोन करूँगा."

"ओके,जान.",कामया ने फोन बंद किया & मुस्कुराइ..विजयंत डार्लिंग आज किस से अपायंटमेंट है मुझे पता है..वो हँसी & वॅन से बाहर चली गयी.

सोनम का दिल बहुत ज़ोरो से धड़क रहा था.आज प्रणव 9 बजे से भी पहले दफ़्तर आ गया था & अपने लॅपटॉप पे जुटा हुआ था.सोनम से सवेरे से उसने कयि सारी फाइल्स उसके डेस्कटॉप पे सर्च कर उसे फॉर्वर्ड करने को कही थी & कुच्छ की तो हार्ड कॉपीस भी अलग-2 डिपार्ट्मेंट्स से मंगवा के देख रहा था.दोपहर 1 बजे के बाद उसने लॅपटॉप पे बैठे-2 टाइपिंग शुरू कर दी.अच्छी सेक्रेटरी होने का नाटक करते हुए सोनम ने उस से बोला कि वो ये काम कर देगी तो उसने उसे मना कर दिया & बाहर अपनी डेस्क पे बैठने को कहा.

सोनम के कान इस बात से खड़े हो गये थे & उसने तय कर लिया कि वो ज़रूर देखेगी की आख़िर प्रणव कर क्या रहा है.दोफरा लंच मे भी प्रणव कॅबिन से बाहर नही निकला.उस वक़्त सोनम ने अंदर झाँका तो देखा की प्रणव कॅबिन मे ही बने बाथरूम मे चला गया.वो झट से उठी & जाके उसके लॅपटॉप को देखा & उसकी आँखे फॅट गयी.प्रणव महादेव शाह नाम के आदमी को कंपनी मे पैसा लगाने देना चाहता था & इसके लिए वो अपने ब्रोकर्स के ज़रिए कंपनी के शेर्स बाज़ार से खरीद रहा था.तभी फ्लश की आवाज़ आई & वो झट से बाहर भागी.

उसकी समझ मे अभी भी नही आ रहा था कि वो ये बात विजयंत मेहरा या ब्रिज कोठारी को बताए या नही.ना जाने क्यू उसे बड़ी घबराहट हो रही थी.उसने 1 बार फिर इस फ़ैसले को कल पे टाल दिया.उसका मोबाइल बजा तो उसने देखा की रंभा का फोन है,"हेलो."

"हाई सोनम,कैसी है?"

"अच्छी हू,मालकिन!",शादी के बाद वो अपनी सहेली को इसी तरह चिढ़ने लगी थी.

"चुप कर वरना फोन काट दूँगी!"

"अच्छा बाबा..सॉरी!",सोनम हँसी,"..& बता समीर का कुच्छ पता चला कि नही?"

"नही यार.अच्छा सुन मुझे 1 काम था."

"हां,बोल ना."

"तुझे वो प्लेसमेंट एजेन्सी वाला बंदा विनोद याद है?"

"हां."

"बस ये पता कर दे वो आजकल कहा है & 1 आदमी है परेश नाम का..",उसने दोनो के बारे मे उसे बताया & पता करने को कहा.सोनम के दिल मे 1 बार ये ख़याल आया कि वो अपनी सहेली को ही प्रणव के बारे मे बता दे लेकिन फिर उसके घबराए दिल ने उसे रोक दिया.

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"हाई!सोनिया,वॉट ए प्लेज़ेंट सर्प्राइज़!",कामया ने होटेल वाय्लेट की लॉबी मे रिसेप्षन की ओर बढ़ती सोनिया को चौंका दिया.सोनिया के चेहरे का रंग उड़ गया.उसने सोचा भी नही था की इतनी सावधानी बरतने के बावजूद वो किसी जान-पहचान वाले से टकराएगी..लेकीब अब उसे क्या परवाह थी इन बातो की!

"हाई!कामया.कैसी हो?"

"बढ़िया.यहा किसी से मिलने आई हो?",कामया ने गहरी निगाहो से उसे मुस्कुराते हुए देखा.

"हां.",1 पल के बाद उसने जवाब दिया,"..इफ़ यू डॉन'ट माइंड."

"नोट अट ऑल.",कामया ने उसका रास्ता छ्चोड़ दिया & मुस्कुराते हुए उसे लिफ्ट की ओर जाते देखते रही.

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शाम तक रंभा को सोनम ने बता दिया था कि परेश तो अमेरिका चला गया & विनोद वही शहर मे ही है & रोज़ ही दफ़्तर आ रहा है.रंभा के दो पुराने प्रेमी शक़ के दायरे से बाहर हो गये थे.

उसने ससुर को फोन लगाके उन्हे ये बात बताई & उनसे जुदाई का दर्द बयान किया.कुच्छ देर बातें करने के बाद वो फोन रख के टीवी देखने लगी.विजयंत की सख़्त हिदायत थी कि वो होटेल के कमरे से बाहर ना निकले.पंचमहल वाय्लेट मे किसी दूसरे नाम से लॅडीस फ्लोर पे उसके नाम का कमरा बुक था.होटेल के नीचे बलबीर मोहन की सेक्यूरिटी एजेन्सी के 3-4 लोग होटेल पे नज़र रखे थे & रंभा से फोन से कॉंटॅक्ट करते रहते थे.किसी भी गड़बड़ी की सूरत मे रंभा को सबसे पहले उन्ही लोगो को फोन करना था.कल सवेरे भी वो उन्ही लोगो के साथ वापस अपने ससुर के पास जा रही थी.

ससुर के ख़याल ने उसके जिस्म मे आग लगा दी & उसने अपने कपड़े उतार दिए & बाथरूम के बात्ट्च्ब मे जा बैठी.ठंडा पानी भी उसके बदन की अगन नाहही बुझा पा रहा था.रंभा ने अपनी उंगली अपनी चूत से लगा दी & आँखे बंद कर ससुर का तस्साउर करते हुए अपने दाने को रगड़ने लगी.

“ओह..विजयंत!”,सूयीट मे दाखिल होते ही सोनिया की रुलाई छूट गयी & वो विजयंत मेहरा से लिपट गयी.

“बस..बस..!”,विजयंत ने उसे अपनी बाहो मे भर उसकी पीठ सहलाई & उसके बालो को चूमा.

“मैं अब उस आदमी के साथ नही रह सकती.”,सोनिया की आँखे लाल हो गयी थी,”..मुझे नही पता था कि वो चंद रुपयो के फ़ायदे के लिए इतना गिर जाएगा.”

“देखो,सोनिया अभी तुम बहुत जज़्बाती हो रही हो.ऐसे अहम फ़ैसले इस तरह नही लिए जाते जान.”,विजयंत ने उसके गोरे गालो से आँसुओ को पोंच्छा & चूम लिया.

“मैने बहुत सोच समझ के ये फ़ैसला लिया है,विजयंत.मुझे पता है मैं तुम्हारी बीवी कभी नही बन सकती लेकिन मुझे उस बात से कोई फ़र्क नही पड़ता.मैं तुम्हारी रखैल बन के भी रहने को तैयार हू.”

“सोनिया!”,विजयंत ने उसकी कमर मे बाहे डाल उसे खुद से चिपका लिया,”..यू खुद को बेइज़्ज़त & मुझे शर्मिंदा ना करो.”,उसने अपनी प्रेमिका के होंठ चूमे,”..लेकिन तुम्हे इतना यकीन कैसे है कि ब्रिज कोठारी ही समीर के लापता होने के पीछे है?”

“तुम्हे नही मालूम की पिच्छले 2 दिनो से वो इसी जगह के आस-पास है?”,विजयंत खामोश रहा.मीडीया को ये भनक नही लगने दी गयी थी या फिर विजयंत & पोलीस की गुज़ारिशो को मान उन्होने धारदार फॉल्स वाली खबर च्छूपा ली थी,”तुम मुझसे कुच्छ च्छूपा रहे हो क्या?”,विजयंत ने सर झुका लिया,”मुझे सब कुच्छ बताओ.”,सोनिया की आवाज़ मे कुच्छ ऐसा था की विजयंत उसे मना नही कर पाया.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:38 PM,
#44
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--43

गतान्क से आगे......

“तो ये थी सारी बात.”,दोनो बिस्तर पे लेटे थे.सोनिया की स्लीव्ले घुटनो तक की सफेद ड्रेस थोड़ा नीचे खिसकी थी & उसकी गोरी जाँघो का कुच्छ हिस्सा नुमाया हो गया था.विजयंत उसकी बाई तरफ लेटा था & उसका बाया हाथ उसके घुटने के उपर ही घूम रहा था.अब सोनिया भी थोड़ी संभाल गयी थी & अपने आशिक़ की नज़दीकी & उसके मर्दाना जिस्म के एहसास ने उसके जज़्बातो का रुख़ भी अब मोड़ दिया था.उसका दाया हाथ भी विजयंत की कमीज़ के खुले बटन्स के पार उसके सीने के बालो मे घूम रहा था.

“& तुम फिर भी मुझसे उस गलिज़ इंसान को छ्चोड़ने से रोक रहे हो?!”,उसकी उंगलियो ने विजयंत के बाए निपल को छेड़ा.

“देखो,सोनिया..”,विजयंत थोड़ा घूम उसके जिस्म पे अपने आधे बदन का भर डालते हुए उसकी जाँघो के बीच घुसे हाथ को उपर उसकी पॅंटी की ओर बढ़ने लगा,”..मुझे नही लगता की कोठारी इतना बेवकूफ़ है कि ऐसा काम करे & उसमे अपने शामिल होना यू इस तरह ज़ाहिर करे.”,उसका हाथ पॅंटी के उपर से ही सोनिया की चूत को सहला रहा था.सोनिया ने मस्ती मे भर उसके बालो को पकड़ उसे नीचे खींचा & उसके मुँह मे अपनी ज़ुबान घुसाते हुए उसे शिद्दत से चूमने लगी.

“उउम्म्म्म..लेकिन ये भी तो हो सकता है कि,ऐसा नाज़ुक काम किसी & के हाथो मे देने का भरोसा ना हो उसे..आननह..”,सोनिया की उंगलिया विजयंत की बाहो पे कस गयी क्यूकी उसके आशिक़ की उंगलिया उसकी पॅंटी के बगल से अंदर घुस उसकी चूत को कुरेदने लगी थी,”..& इसीलिए उसे खुद आना पड़ा & तुमने उसे देख लिया..आननह..!”,सोनिया के नाख़ून कमीज़ के उपर से ही विजयंत के माबूत बाजुओ मे धँस गये & उसके चेहरे पे वोही दर्द & मस्ती का मिला-जुला भाव आ गया जो किसी लड़की के चेहरे पे मस्ती की शिद्दत का एहसास करने पे आता है.

“हो सकता है.",विजयंत ने उसके रसीले होंठो को चूमा & उसके उपर आ अपना हाथ उसकी चूत से खींचा & अपने लंड को उसकी पॅंटी के उपर से ही उसकी गीली चूत पे दबाया & उसे दिखाते हुए उसके रस से भीगी अपनी उंगलिया मुँह मे घुसा उसका रस पी लिया.सोनिया विजयंत की इस हरकत से मस्ती & उसके लिए प्यार से भर उठी & उसने अपने हाथ उसकी कमीज़ के अंदर घुसा उसे ऐसे फैलाया की उसके बटन्स टूट गये & अगले ही पल कमीज़ विजयंत के जिस्म से जुदा थी.दोनो ने 1 दूसरे को बाहो मे भींच लिया & अपने-2 जिस्मो को आपस मे रगड़ते हुए अपने नाज़ुक अंगो को आपस मे दबाते हुए 1 दूसरे को चूमने लगे.

“मुझे प्यार करो,विजयंत..इतना प्यार कि मैं सब भूल जाऊं..सब कुच्छ..!”,सोनिया के आँखो के कोने से आँसुओ की 2 बूंदे उसके गालो पे ढालक गयी.विजयंत के लिए सोनिया बस 1 मोहरा थी लेकिन इस वक़्त उसे अपने आप पे शर्म आई..वो 1 मासूम लड़की के जज़्बातो से खले रहा था..लेकिन इसमे उसकी क्या ग़लती थी?..वो चाहती तो उसे ठुकरा भी सकती थी लेकिन उसने भी पति से बेवफ़ाई करने का फ़ैसला खुद ही लिया था..& फिर कोठारी को हराने के लिए वो कुच्छ भी कर सकता था..कुच्छ भी!

सोनिया के लब थरथरा रहे थे & जिस्म कांप रहा था.उसका दिलज़ीज़ आशिक़ उसके कपड़े उतार रहा था.कैसा अजीब एहसास था ये..हर बार उसके सामने नंगी होने पे उसे ये शर्म,ये झिझक महसूस होती थी & साथ ही दिल भी आने वाली उमँगो की हसरत से & तेज़ी से धड़कने लगता था..वो उसे ब्रिज से भी पहले क्यू नही मिला..फिर ना ये दर्द होता ना तड़प..बस खुशी ही खुशी होती & मस्ती ही मस्ती!

विजयंत खुद भी नंगा हो गया & सोनिया के उपर लेट गया.2 हसरातो से भरे जिस्म 1 दूसरे से लिपट गये & मस्ती का खेल शुरू हो गया.

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वो शख्स अपना समान बाँध चुका था लेकिन अब उसने डेवाले जाने का ख़याल बदल दिया था..वो इतना उतावला क्यू हो रहा था?..जहा इतने बरस इंतेज़ार किया उसने वाहा चंद दिन और सही..कल सवेरे की घटना के बाद विजयंत तो बहुत होशियार हो गया होगा & इसीलिए उसने अपनी बहू को महफूज़ जगह यानी अपने घर भेज दिया.वाहा जाने मे बहुत ख़तरा था.उसे इन्तेक़ाम लेना था लेकिन उसके बाद फिर से हवालात जाने का शौक उसे नही था..बहुत देर सोचने के बाद उसने वो रात वही गुज़ारना तय किया.उसे क्या पता था कि उसका ये फ़ैसला विजयंत मेहरा के लिए कितना अहम होने वाला था.

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“क्या बात है,कोठारी!”,फिर से उसी शख्स का फोन था & इस बार फिर 1 नये नंबर से.ब्रिज पिच्छले 2 दिनो से अपने हिसाब से ही उस अंजन कॉलर के बारे मे पता लगाने की कोशिश कर रहा था लेकिन टेलिकॉम डिपार्टमेंट के उसके आदमी से उसे सिर्फ़ ये पता चला था कि ये सारे नंबर क्लेवर्त के पब्लिक फोन बूत्स के थे,”..उस दिन तो यार तुम तोहफा लेने से पहले ही भाग गये.बड़े डरपोक हो यार!”,उस शख्स ने उसकी खिल्ली उड़ाई.

“कामीने!तू है कौन?चूहो की तरह च्छूप के के मुझे फँसाने की कोशिश कर रहा है.सामने से वार कर.”

“अरे यार,तुम तो मुझे दुश्मन समझते हो!मैं तो दोस्त हू तुम्हारा.उस दिन ज़रा टाइमिंग गड़बड़ हो गयी मगर आज नही होगी.आज भी आ जाओ यार & देखो की तुम्हारी प्यारी बीवी कैसे तुम्हारे दुश्मन की बाहो मे गुलच्छर्रे उड़ा रही है.”

“कुत्ते!मेरी बीवी के बारे मे ऐसी गंदी बात करता है,हराम जादे!..तुझे अपने हाथो से नर्क भेजूँगा मैं!”

“और गलियाँ दे दे यार लेकिन धारदार फॉल्स के पास के कंधार फॉल्स पे 3 बजे सुबह आओ & अपनी आँखो से देखो की तुम्हारी जान तुम्हारे दुश्मन के साथ कैसे चोंच से चोंच & और भी बहुत कुच्छ मिला रही है.”,& फोन कट गया.ब्रिज गुस्से से कांप रहा था.उसे ज़रा भी यकीन नही था उस कामीने की बात पे लेकिन..

तभी उसका मोबाइल बजा,”हेलो.”

“हाई!ब्रिज डार्लिंग.”,कामया की खनकती आवाज़ उसके कानो मे गूँजी,”..क्या जान,अपनी बीवी को लेके इतनी खूबसूरत जगह आ गये हो & मैं यहा तुम्हारे लिए तड़प रही हू!”

“क्या?!”,ब्रिज के कान खड़े हुए.

“अरे सोनिया मिली थी आज मुझे लेकिन उसने तुम्हारे बारे मे कुच्छ नही बताया..1 मिनिट..”,कामया को जैसे कुच्छ याद आया,”..वो तो मुझे वाय्लेट की लॉबी मे मिली थी.”

“क्या बोल रही हो?!”

“यही की सोनिया वाय्लेट होटेल मे क्या कर रही थी?”,ब्रिज ने फोन काट दिया.उसका चेहरा गुस्से & बेइज़्ज़ती से तमतमाया हुआ था..सोनिया..उसकी जान..बल्कि जान से भी ज़्यादा..उसे देखते ही उसके दिल मे शादी का ख़याल आया था जोकि आज तक किसी भी लड़की के लिए नही आया था & उसने इस तरह से उसका भरोसा तोड़ा था & वो भी विजयंत के साथ!

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"आननह..डालो ना अंदर..ऐसे मत तड़पाव..हाईईईईईईईई..!",सोनिया की खुली टाँगो के बीच उसकी गीली चूत की दरार पे अपना लंड रगड़ते विजयंत उसके जोश को देख मुस्कुरा रहा था.इस वक़्त वो अपनी सारी उलझन भूल बस उसके लंड की चाहत मे दीवानी हो रही थी.विजयंत ने उसके घुटने मोडते हुए उन्हे उसकी छातियो पे दबाया & 1 ही झटके मे लंड को अंदर घुसा दिया.सोनिया के चेहरे पे दर्द की लकीरें खींच गयी लेकिन साथ ही 1 मस्ती भरी मुस्कान भी उसके होंठो पे खेलने लगी.विजयंत का लंड उसकी कोख तक जा रहा था & उसका जिस्म अब खुशी से भर गया था.विजयंत घुटनो पे बैठे हुए उसकी चूचियो को मसलता उसे चोद रहा था लेकिन उसके ज़हन मे रंभा का चेहरा घूम रहा था.अपनी बहू जैसी मस्तानी लड़की आजतक उसके करीब नही आई थी & बस 1 रात की दूरी भी उसे खलने लगी थी.

"ऊव्ववव..आननह..!",उसकी बाहो मे नाख़ून धँसती सोनिया चीख रही थी.रंभा के ख़याल ने विजयंत के जोश को बढ़ा दिया था & उसके धक्के & तेज़ हो गये थे.सोनिया के झाड़ते ही उसने उसके कंधे पकड़ उसे उपर उठाया & अपनी गोद मे बिठा के चोदने लगा.सोनिया ने उसके बाए कंधे पे अपनी ठुड्डी जमाई & उसकी गर्दन के गिर्द अपनी बाहें लपेट & उसकी कमर पे अपनी टाँगे कस आँखे बंद कर के उसके धक्को का मज़ा लेने लगी.

विजयंत के हाथो मे उसकी गंद की फांके थी & उसके होंठ सोनिया की गर्दन को तपा रहे थे.सोनिया की कसी चूत मे घुस उसका लंड अब अपनी भी मंज़िल की ओर बढ़ने को बेताब था लेकिन अभी भी विजयंत के दिलोदिमाग मे रंभा का हसीन चेहरा & नशीला जिस्म घूम रहा था.उसके होंठ सोनिया की गर्दन & बाए कंधे के मिलने वाली जगह पे चिपक गये & उसके हाथो ने उसकी गंद को मसल दिया.सोनिया ने बाल पीछे झटकते हुए ज़ोर से चीख मारी & झड़ने लगी.उसी वक़्त विजयंत के लंड ने भी अपना गर्म वीर्य उसकी चूत मे छ्चोड़ दिया.

"ट्ररननगज्गग..!",विजयंत ने वैसे ही अपनी महबूबा को अपनी गोद मे थामे हुए बाए हाथ को बढ़ा अपना मोबाइल उठाया-फिर से समीर के मोबाइल से फोन आ रहा था!,"हेलो."

"मेहरा,लगता है तुम्हे अपने बेटे से प्यार नही..",विजयंत को आवाज़ पिच्छली बार की ही तरह थोड़ी अजीब लग रही थी,"..तुम ना केवल पोलीस को साथ लाए बल्कि अपने जासूसी कुत्ते को भी मेरे पीछे लगाया हुआ था.लगता है इस बार तुम्हे तोहफे मे समीर के खून के साथ-2 उसके जिस्म का कोई हिस्सा भी चाहिए."

"नही!",विजयंत चीखा तो सोनिया ने उसके चेहरे को अपने हाथो मे थाम लिया.अभी चुदाई की खुमारी उतरी भी नही थी कि इस फोन ने उसे फिर से उसकी उलझानो की याद दिला दी,"..तुम उसे कोई नुकसान नही पहुचना,प्लीज़!!जो चाहते हो वोही करूँगा मैं."

"ठीक है.तो बस अभी 2.30 बजे कंधार फॉल्स पे 1 सफेद टोयोटा क़ुआलिस लेके जिसका नंबर क्प-0व-5214 होना चाहिए,पहुँचो,बिना पोलीस या बलबीर मोहन के & साथ मे वो काग़ज़ भी लाओ जिसपे ये लिखा होगा कि तुम आने वाले दिनो मे अपने कारोबार को नही बढ़ाओगे & आनेवाले 3 महीनो तक कोई नया टेंडर नही भरोगे."

"लेकिन..-",फोन कट चुका था.

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"डॅम इट!",अकरम रज़ा ने खीजते हुए अपनी बाई हथेली पे दाए से मुक्का मारा,"..बस चंद सेकेंड्स & लाइन पे रहता तो कॉल ट्रेस हो जाती.",वो वही क्लेवर्त मे ही बैठ के विजयंत का फोन टॅप करवा रहा था,"..चलो,कंधार फॉल्स 2.30 बजे,चलते हैं.",उसने अपने मातहत अफ़सर को अपना हेडफॉन थमाया & आगे की करवाई के बारे मे सोचने लगा.

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"विजयंत क्या हुआ डार्लिंग?",विजयंत सोनिया की गंद की बाई फाँक को थामे बाए हाथ मे फोन को पकड़े जैसे बुत बन गया था.

"ह-हुन्न्ञन्..",सोनिया की आवज़ से जैसे वो नींद से जगा,"..सोनिया..",& उसने उसे सारी बात बताई.

"मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी.",सोनिया अभी भी उसकी गोद मे बैठी थी.

"पागल मत बनो,सोनिया.उसने मुझे अकेला आने की सख़्त ताकीद की है."

"नही विजयंत,मैं साथ चलूंगी तुम्हारे क्यूकी मैं उसका चेहरा देखना चाहती हू.कैसा लगेगा उसे उस वक़्त जब वो अपने सबसे बड़े दुश्मन से जीतने की खुशी के बीच उसकी बाहो मे अपनी बीवी को देखेगा.विजयंत,उसने तुम्हे इतनी बड़ी चोट पहुचाई है,अब उसका भी हक़ बनता है,उतनी ही बड़ी चोट खुद खाने का!",विजयंत सोनिया को गौर से देख रहा था..सही कह रही थी वो..अगर कमीना कोठारी इस साज़िश मे शामिल है तब तो इस से करारा तमाचा उसे नही पड़ सकता & अगर नही भी शामिल है तो भी ऐसी चोट उसे पागल करने को काफ़ी है!..उसने सोनिया को बाहो मे भर लिया & उसे चूमने लगा.

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वो शख्स क्लेवर्त बस स्टॅंड की पार्किंग मे पहुँचा & पहले वाहा का जायज़ा लिया.उसकी कार अभी भी वैसे ही खड़ी थी & उसे उसपे नज़र रखता भी कोई नही दिखा.उसे 1 सवारी चाहिए थी & नयी का इंतेज़ाम करने का वक़्त नही था.अब ये ख़तरा तो उठाना ही था.उसने धड़कते दिल के साथ आगे बढ़के उसने अपनी चाभी का बटन दबाया & पिंग की आवाज़ के साथ लॉक खुल गया.ठीक उसी वक़्त उसके कंधे पे किसी ने हाथ रखा.उसकी धड़कन & तेज़ हो गयी & वो बहुत धीरे से घुमा.उसे पूरी उमीद थी कि कयि पोलिसेवाले उसकी तरफ अपनी बंदुके ताने खड़े होंगे.उसे खुद पे खिज भी हुई कि क्यू आया था वो इस जगह वापस!

"भाई साहब,आपके पास .50 के छुत्ते होंगे?",1 चश्मा लगाए भला सा शख्स उसके सामने 50 का नोट लिए खड़ा था.उसने राहत की सांस ली.किसी अंकन शख्स को देख ऐसी खुशी उसे पहले कभी नही हुई थी.

"हां-2.ये लीजिए.",उसने छुत्ते उसे दिए & अपनी पार्किंग स्लिप & दिन भर कार खड़ी करने के पैसे उसने अटेंडेंट को थमाए & वाहा से निकल गया.बाहर निकलते ही 1 थोड़ी सुनसान जगह पे सुने रास्ते के किनारे लगे नाल से पानी ले थोड़ी मिट्टी के साथ कीचड़ बना अपनी कार की बॉडी & उसके नंबर प्लेट्स पे ऐसे रगड़ा की देखने वाले को लगे की कार कीचड़ भरे रास्ते से आई है.उसका असली मक़सद तो कार का नंबर च्छुपाना था.उसने कार आगे बढ़ाई & होटेल वाय्लेट से थोड़ा पहले बने सस्ते होटेल्स के सामने लगा दी & अपनी सीट थोड़ा नीचे कर लेट गया.इस जगह से वाय्लेट का मैं एंट्रेन्स सॉफ दिखता था.उसने घड़ी पे नज़र डाली.अभी 11 बजे थे.बस उसे विजयंत मेहरा पे नज़र रखनी थी.हो ना हो वो अपनी बहू के पास या उसकी बहू उसके पास ज़रूर आएगी & तब वो रंभा से मुलाकात करेगा-अकेले मे.

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रात के 1 बजे विजयंत & सोनिया होटेल की 1 टोयोटा क़ुआलिसजसिके नंबर प्लेट्स बदल दिए गये थे,मे कंधार के लिए निकल पड़े.वो शख्स उंघ रहा था कि सामने से आती विजयंत की कार की हेडलाइट्स की रोशनी उसकी आँखो पे पड़ी .उसने आँखे खोली & बगल से गुज़रती कार के शीशे को दाए हाथ से चढ़ाता & बाए से स्टियरिंग संभाले उसे विजयंत दिखा.उसने फ़ौरन कार स्टार्ट की & उसके पीछे लग गया.1 मारुति आल्टो मे 2 सादी वर्दी के पोलीस वाले दोनो कार्स के पीछे लग गये.2 बजे तीनो गाड़ियाँ अपने पीछे लगी गाड़ी से अंजान कंधार पहुँची की विजयंत का मोबाइल बजा,"हेलो."

"कार वापास लो."

"क्या?"

"कार वापस लो.",फोन काट गया.विजयंत ने कार घुमाई तो वो शख्स & पोलीस वाले दोनो बौखला गये & उन्होने फ़ौरन अपनी-2 कार्स को घुमा के आगे बढ़ाया & तब उस शख्स ने आल्टो को देखा.उसने कार की रफ़्तार बहुत तेज़ की & पहाड़ी रास्ते के बिल्कुल किनारे ले जाते हुए अपनी कार से उस आल्टो को ओवर्टेक किया..हो ना हो ये पोलिसेवाले थे!

"सर,क्या करें अब?वो पीछा करने वाला शख्स भाग रहा है & विजयंत भी अब वापस जा रहा है?",सादी वर्दी वाला अफ़सर रज़ा को पल-2 की खबर दे रहा था.

"क्या?!तुम..तुम अभी मेहरा के पीछे लगे रहो.",तब तक आल्टो को दूसरे अफ़सर ने आगे बढ़े रास्ते के किनारे की झाड़ियो मे घुसा दिया था.2 पल बाद ही विजयंत की क़ुआलिस उनके बगल से उनकी मौजूदगी से अंजान वाहा से निकली,"..टीम सी कम इन.",रज़ा ने कंधार फॉल्स पे खड़ी अपनी टीम को तलब किया,"..मीटिंग वाहा नही हो रही है.तुमलोग जितना हो सके उतनी शांति से वाहा से निकलो आगे मैं बताता हू क्या करना है."

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क्रमशः.......
Reply
12-19-2017, 10:38 PM,
#45
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--44

गतान्क से आगे......

उस शख्स ने अपनी कार तेज़ी से वाहा से निकाली & 1 कच्ची सड़क दिखते ही उसे उसी पे उतार दिया & कुच्छ देर बाद उसे उसी रास्ते के किनारे की झाड़ियो मे तब तक अंदर घुसाया जब तक कि वो पेड़ो के झुर्मुट के बीच नही पहुँच गयी & वाहा से आगे जाना नामुमकिन हो गया.उसने कार को वही छ्चोड़ा & आगे बढ़ने लगा कि तभी उसे 1 साया दिखा & वो वही झाड़ियो मे बैठ गया.

"तुम्हे कच्ची सड़क दिख रही है?",विजयत का मोबाइल दोबारा बजा,"..उसी रास्ते पे आगे बढ़ो & अपनी कार को छ्चोड़ दो.",पोलीस की आल्टो थोड़ी पीछे थी & जब तक वो वाहा पहुँची तब तक उसी कच्चे रास्ते से 1 दूसरी क़ुआलिस जिसका नंबर भी क्प-0व-5214 था,बहुइत तेज़ी से वापस क्लेवर्त की ओर जाती दिखी.

"सर,वो वापस क्लेवर्त जा रहा है."

"ओके,उसके पीछे लगे रहो लेकिन उसे शक़ नही होना चाहिए.",रज़ा ने कंधार वाली टीम को भी उसी रास्ते पे आगे बढ़ने को कहा.विजयंत के मोबाइल पे 2 कॉल्स आई थी लेकिन जब तक उन्हे सुना जाता कॉल्स कट गयी थी.वो बस ये सुन पाया था की उस शख्स ने उसे कंधार से लौटने को कहा था,"जीप निकालो.",उसने तय कर लिया था कि अब उसे भी विजयंत के पीछे लगना था.

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"अपना मोबाइल बंद कर वही ज़मीन पे फेंक दो.",विजयंत & सोनिया कच्चे रास्ते पे पैदल बढ़ रहे थे जब उन्हे 1 आवाज़ सुनाई दी.वो शख्स वही झड़ी मे बैठा बोलने वाले साए को देख रहा था..कहा फँस गया था वो लेकिन अब किया क्या जा सकता था?

"आगे देखो,रास्ते के किनारे की झाड़ियो मे छ्होटा सा गॅप दिखेगा.उसी मे आगे बढ़ते जाओ दोनो.",विजयंत को अजीब लगा की जो भी था उसे सोनिया के आने पे ऐतराज़ नही हुआ था लेकिन वो उसके कहे मुताबिक आगे बढ़ता रहा.कोई 30 मिनिट अंधेरे मे झाड़ियो के बीच चलने के बाद वो दोनो फिर से कंधार पे पहुँच गये थे.कंधार का नाम कंधार इसलिए था क्यूकी वो धरधार जितना तेज़ बहने वाला झरना नही था लेकिन इसका मतलब ये नही था की उसकी रफ़्तार धीमी थी,उसकी रफ़्तार भी अच्छी ख़ासी थी.

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ब्रिज जिस वक़्त कंधार & धारदार जाने वाले रास्ते के शुरू मे पहुँचा ही था कि उसने सामने से तेज़ी से आती 1 क़ुआलिस को देखा.वो जब थोड़ा आगे बढ़ा तो उसे 1 आल्टो दिखी & कुच्छ गड़बड़ी के अंदेशे से उसने अपनी कार धीमी कर ली कि उसे वही 1 ढाबा दिखा.उसने कार झट से उसके सामने लगाई & वाहा सिगरेट खरीदने चला गया.सिगरेट सुलगाते हुए उसने 2 पोलीस जीप्स को उसी आल्टो के पीछे जाते देखा.कुच्छ पल इंतेज़ार करने के बाद वो अपनी कार मे बैठा & कंधार की ओर बढ़ गया.आज उसकी ज़िंदगी का बहुत अहम लम्हा उसके इंतेज़ार मे झरने पे खड़ा था.आज उसे पता चलने वाला था कि औरत भरोसे के लायक चीज़ है या नही.

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"डॅड!",अंधेरे को चीरती 1 दर्द भरी आवाज़ गूँजी.

"समीर!",विजयंत जवाब मे चीखा & आवाज़ की दिशा मे आगे बढ़ा & झाड़ियो से निकलते ही आधे चाँद की हल्की,सफेद रोशनी मे रेलिंग्स के दूसरी तरफ अपने घुटनो पे बैठा उसे समीर दिखा.उसकी आँखो पे पट्टी बँधी थी & हाथ पीछे बँधे थे.विजयंत उसकी तरफ दौड़ा की 1 आवाज़ गूँजी.

"वही रूको,मेहरा.पहले ये बताओ की वो काग़ज़ लाए हो."

"हां.",सोन्या बहुत घबरा गयी थी & विजयंत के दाई तरफ उस से चिपकी खड़ी थी.

"आगे बढ़ो & वाहा बीच मे रखे पत्थर के नीचे उसे दबा दो & फिर वापस जाओ लड़की के पास.",विजयंत ने वैसा ही किया.जब वो काग़ज़ रख के लौटा तो सोनिया उस से बिल्कुल चिपक गयी.

"अब दोनो रेलिंग के पार जाओ & अपने बेटे को ले लो.",विजयंत का माथा ठनका,उसे काग़ज़ नही देखना है क्या?

"तुम्हे वो काग़ज़ नही देखना?",विजयंत मेहरा ने सवाल किया.

"वो मेरी परेशानी है,मेहरा.तुम अपने बेटे को सम्भालो.जाओ दोनो!"

"लड़की यही रहेगी,मैं अकेला जाऊँगा."

"तो फिर बेटे की लाश ले जाना यहा से."

"डॅड,क्या रंभा है आपके साथ?",समीर की कांपति आवाज़ आई.

"नही,तेरे बाप की यार है!"

"कामीने!",विजयंत गुस्से से चीखा.

"मेहरा,थोड़ी और देर करो & फिर सच मे बेटे की लाश ही मिलेगी तुम्हे.",सोनिया काफ़ी घबरा गयी थी.ये आवाज़ ब्रिज की नही थी & उसे अब बहुत डर लग रहा था.विजयंत ने उसकी बाँह थामी & आयेज बढ़ा.पहले विजयंत ने रेलिंग पार की & फिर सोनिया की मदद करने लगा.सोनिया रिलिंग से उतरते हुए लड़खड़ाई & विजयंत ने उसे बाहो मे थाम लिया.सोनिया ने अपनी बाहे उसकी गर्दन मे कस दी.

"मुझे बहुत डर लग रहा है,विजयंत."

"बस सब ठीक हो गया.अब वापस चलते हैं.",विजयंत ने उसकी पीठ थपथपाई & उसी वक़्त ब्रिज कोठारी वाहा पहुँचा & सामने का नज़ारा देख उसकी आँखो से अँगारे बरसने लगे.

"सोनिया!",वो चीखता हुआ उधर दौड़ा.विजयंत & सोनिया 1 दूसरे को थामे हैरत से उसे देख रहे थे.अगले पल ही वो रेलिंग पे था & विजयंत से गुत्थमगुत्था था.सोनिया चीख रही थी & दोनो को अलग करने की कोशिशें करती रो रही थी कि तभी उसके सर पे किसी ने वार किया.

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"उम्म्म्म..हूँ..प्रणव!..तुम यहा?!..आन्न्न्नह..!",प्रणव शिप्रा के सोने के बाद अपनी सास के बुंगले मे घुस आया था.बेख़बर सोती रीता को देखते हुए उसने अपने कपड़े उतारे & उसके पीछे बिस्तर मे घुस अपनी दाई बाँह उसकी कमर पे लपेट उसके दाए कान को काट लिया था.

"पागल हो तुम..उउफफफफ्फ़..",प्रणव का हाथ सास की नाइटी मे घुस गया था & उसके पेट को सहलाने के बाद उसकी चूचियों को दबाने लगा था.उसके होंठ रीता के चेहरे पे हर जगह घूम रहे थे,"..शिप्रा को पता चल गया तो ग़ज़ब हो जाएगा..उउम्म्म्मम..!",उसने दामाद के लबो से अपने लब चिपकाते हुए उसके मुँह मे अपनी ज़ुबान घुसा दी.

"वो गहरी नींद मे सो रही है & उसे यही लग रहा है कि मैं स्टडी मे काम कर रहा हू.",प्रणव उसके निपल्स को मसल रहा था & उसका लंड रीता की गंद की दरार की लंबाई मे फँस गया था.रीता ने नाइटी के नीचे कुच्छ नही पहना था & प्रणव के हाथ उसके नाज़ुक अंगो से पूरी गर्मजोशी के साथ खिलवाड़ कर रहे थे.

"फिर भी..",प्रणव ने उसकी नाइटी को उपर खींचा तो रीता ने हाथ उठा दिए ताकि वो आसानी से निकल जाए,"..ऐसे ख़तरा क्यू मोल लेते हो?..आहह..!",प्रणव उसकी दाए घुटने को आगे मोडते हुए उसकी चूत को नुमाया कर उसमे अपना तगड़ा लंड घुसा रहा था.

"क्यूकी आपसे मोहब्बत हो गयी है मुझे,मोम!",प्रणव उसे शिद्दत से चूमने लगा.रीता उसके आगोश मे क़ैद थी.प्रणव का दाया हाथ उसकी चूत के दाने से लेके चूचियो तक घूम रहा था & बाया हाथ जो उसकी गर्दन के नीचे दबा था उसके चेहरे को अपनी ओर घुमाए हुए था ताकि उसके रसीले लबो का स्वाद वो आसानी से चख सके,"..आहह..!"

"क्या हुआ?",रीता ने थोड़ी चिंता से दामाद को देखा.

"कुछ नही.आपकी चूत तो अभी भी बहुत कसी है,मों..ऊहह..आप तो शिप्रा की बड़ी बेहन से ज़्यादा नही लगती!"

"आन्न्न्नह..झूठे!",रीता का दिल तारीफ से खुशी से झूम उठा था & उसने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए दामाद के बाए गाल पे काटा.

"सच कहता हू,मोम.आपके रूप का दीवाना हो अगया हू मैं.अब तो आपके बिना जीने की सोच भी नही सकता!",उसके धक्को & उसकी उंगली की रगड़ ने उसकी सास को झाड़वा दिया था.

"आन्न्न्नह..मैं भी तुम्हारे बिना नही रह सकती,प्रणव..आइ लव यू,डार्लिंग!",प्रणव ने उठके उसकी बाई जाँघ को उठाया & फिर घुटने हुए उसके उपर आ गया.मस्ती मे चूर रीता ने उसे बाहो मे भर लिया & उसके धक्को का जवाब कमर उचका-2 के देने लगी.

"1 बात पुच्छू,मोम?"

"पुछो ना,प्रणव?",रीता ने बाया हाथ उसके चेहरे पे प्यार से फिराया & दाए से उसकी गंद को टटोला.

"अगर मैं कंपनी के लिए कोई फ़ैसला लेता हू लेकिन डॅड को वो पसंद नही & बात अगर वोटिंग तक पहुँची तो आप क्या करेंगी?",प्रणव ने उसकी चूचिया मसली & गर्दन को चूमने लगा.

"तुम्हारे दिमाग़ मे क्या है प्रणव?",रीता दामाद के सवाल से थोड़ा सोच मे पड़ गयी थी.

"अभी कुच्छ नही लेकिन मैं कंपनी के भले के लिए कुच्छ सोच रहा था?"

"क्या?"

"1 आदमी है महादेव शाह जोकि हमारे ग्रूप मे पैसा लगाने को तैयार है.डॅड उसे मना कर चुके हैं लेकिन मुझे लगता है कि हम उसे अपने ग्रूप मे इनवेस्ट करके बहुत मुनाफ़ा कमा सकते हैं."

"हूँ.....ऊव्वववव..कितने बेसबरे हो?थोड़ा आराम से करो ना!..हाईईईईईई..!",रीता ने दामाद की गंद पे चिकोटी काटी तो उसके धक्के & तेज़ हो गये.

"आप इतनी हसीन,इतनी मस्त क्यू हैं कि मैं खुद पे काबू ही नही रख पाता..आहह..!",धक्को की तेज़ी को रीता बर्दाश्त नही कर पाई & उचक के प्रणव की गर्दन थाम उसे पागलो की तरह चूमने लगी.उसकी कमर भी हिल रही थी & जिस्म थरथरा रहा था.वो झाड़ रही थी & उसकी चूत मे उसे प्रणव के गाढ़े वीर्य की पिचकारियाँ छूटती महसूस हो रही थी.

"आपने मेरे सवाल का जवाब नही दिया.",प्राणवा उसकी चूचियो पे सर रखे लेटा था & वो उसके बाल सहला रही थी.

"मुझे ज़रा तफ़सील से सब बताना,उस शाह के बारे मे भी & उसके प्रपोज़ल के बारे मे भी फिर मैं फ़ैसला करूँगी..इतना यकीन रखो प्रणव की अगर उसका प्रपोज़ल ज़रा भी ठीक लगा & बात वोटिंग तक पहुँची तो मैं तुम्हारे हक़ मे ही अपना वोट दूँगी."

"ओह,मोम.आइ लव यू!",प्रणव उसकी चूत मे पल-2 सिकुड़ता लंड डाले उठके उसके होंठ चूमने लगा तो रीता ने भी उसकी गर्दन मे बाहे डाल दी.तभी उसका मोबाइल बजा.

"हेलो..क्या?",रीता के चेहरे का रंग बात सुनते हुए बदलता जा रहा था,"..लेकिन कैसे..मुझे समझ नही आ रहा..",उसके हाथ से फोन छूट बिस्तर पे गिर गया.

"क्या हुआ मोम?!..बोलिए ना!",प्रणव ने उसे झकझोरा.

"समीर मिल गया,प्रणव..",कुच्छ पल बाद रीता बोली,"..लेकिन.."

"लेकिन क्या?"

"लेकिन..विजयंत..विजयंत..",रीता की आँखे छल्कि & फिर उसकी रुलाई छूट गयी.प्रणव ने फ़ौरन उसके उपर से उठते हुए उसकी बगल मे लेट उसे अपने आगोश मे भर लिया.

"मोम..प्लीज़ चुप हो जाइए..क्या हुआ डॅड को?..कहा है वो?..समीर कहा मिला?",वो उसे बाहो मे भरे उसके बाल & पीठ सहला रहा था.

"प्रणव..प्रणव..",प्रणव ने उसका चेहरा अपने दाए हाथ मे थाम लिया.

"हां मोम बोलिए!"

"प्रणव,विजयंत नही रहा..ही ईज़ डेड!"

पूरे मुल्क मे ये खबर जंगल की आग की तरह फैल गयी थी कि विजयंत मेहरा मारा गया है & उसके साथ ब्रिज कोठारी & उसकी बीवी सोनिया भी.मीडीया वाले गुड के आस-पास भीनभिनती मक्खियो की तरह कंधार फॉल्स,डेवाले मे मेहरा परिवार के बुंगले & ट्रस्ट ग्रूप के दफ़्तर के बाहर & आवंतिपुर के उस हॉस्पिटल जिसमे समीर भरती था,के बाहर जमा थे.

विजयंत ने शायद अपनी ज़िंदगी मे पहली बार अपना फ़ायदा ना सोचते हुए किसी & इंसान की परवाह करते हुए रात को झरने पे जाने से पहले बलबीर मोहन को कुच्छ नही बताया था वरना शायद इस वक़्त वो ब्रिज & सोनिया समेत ज़िंदा होता.बलबीर को इस बात का काफ़ी मलाल था कि जो काम उसने हाथ मे लिया था उसे वो सही तरीके से अंजाम तक ना पहुँचा सका.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:39 PM,
#46
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--45

गतान्क से आगे......

हाथ-पाँव बँधे समीर को अकरम रज़ा ने उसी तरह झरने के पास था.हुआ ये था कि रज़ा कंट्रोल रूम से निकला तो उस सफेद क़ुआलिस का पीछा करने के लिए था लेकिन थोड़ा आगे बढ़ते ही उसका दिमाग़ ठनका & उसने आल्टो & जीप्सी मे बैठे अपने आदमियो को क़ुआलिस को ओवर्टेक कर उसे रोकने को कहा & खुद 5 पोलिसेवालो के साथ कंधार की ओर चल पड़ा.ना जाने क्यू उसे ऐसा लग रहा था कि उसे वही झरने के पास कुच्छ सुराग मिलेगा.जब वो वाहा पहुचा तो मदद के लिए पागलो की तरह चिल्लाता,रोता-बिलखता समीर दिखा.उसने उसके बंधन खोल उस से सवाल किए & जो समीर ने बताया उसे सुनके उसे अपने कानो पे यकीन नही हुआ.

समीर के मुताबिक उसका बाप वाहा सोनिया के साथ आया था जिस देख ब्रिज गुस्से मे पागल हो अपनी छुपने की जगह से वाहा भागता हुआ आया & उसके बाप से भीड़ गया.दोनो मे काफ़ी हाथापाई हुई,सोनिया उन्हे अलग करने की कोशिश कर रही थी लेकिन दोनो को कुच्छ नही सूझ रहा था & उसी सब के बीच पता नही कैसे तीनो किनारे तक पहुँच गये.वो चीख-2 के अपने आप को आगाह कर रहा था लेकिन अगले ही पल तीनो कगार सेकयि फीट नीचे गिर गये थे.समीर के मुताबिक उसे क्लेवर्त से हरपाल ने अगवा किया था.वो गेस्ट हाउस मे सोया हुआ था जब उसने उसकी नाक पे बेहोशी की दवा वाला रुमाल दबा उसे बेहोश किया & फिर उसी की कार मे डाल उसे ले वाहा से फरार हो गया.उसे ये नही पता था कि उसे कहा रखा गया था लेकिन वो जगह किसी गोदाम जैसी लगती थी.

शुरू मे तो उसे लगा कि उसे नौकरी से निकालने की वजह से हरपाल ने ऐसा कदम उठाया है लेकिन बाद मे उसे पता चला की इसके पीछे कोठारी का भी हाथ है.उसने अपने बाज़ू दिखाए जहा पे चीरा लगाके उसका खून निकाल उसकी कमीज़ को उस से भिगो के वो ले गये थे.रज़ा को झरने के पास पत्थर के नीचे दबा वो स्टंप पेपर भी मिला था जिसपे विजयंत के दस्तख़त भी थे.उसने समीर से हरपाल के बारे मे पुछा की जब झरने के पास हाथापाई हो रही थी तो वो कहा था तो समीर ने बताया कि ब्रिज ने उसे वाहा आने से पहले ही उसे पैसे दिए थे.उसने उनकी बातें सुन ली थी & उसी से ये अंदाज़ा लगाया था कि ब्रिज को शायद किसी तरह इस बात का पता चल गया था कि हरपाल समीर से नाराज़ है & उसी बात का फ़ायदा उसने उठाया था.जब हाथापाई हुई तो हरपाल उसे वाहा नही दिखा था जबकि वही था जिसने उसे रेलिंग के पार उस जगह पे वैसे बाँध के बिठाया था.

रज़ा ने हरपाल की खोज के लिए आदमी दौड़ा दिए थे लेकिन उसे पता था कि वो नही मिलने वाला था.1 बात और उसे परेशान कर रही थी.वो ये कि सब कुच्छ उसे बहुत साधारण,बहुत सिंपल लग रहा था.ब्रिज कोठारी जैसा पहुँचा हुआ कारोबारी ऐसा कमज़ोर जाल बुनेगा कि अगर कुच्छ गड़बड़ हो तो उसके खिलाफ सारे सबूत इतनी आसानी से जुट जाएँ.मगर & कौन उसे फँसाने की सोच सकता था?..उसका सबसे बड़ा दुश्मन तो उसके साथ झरने की गोद मे सोया था.समीर भी झूठ बोलता नही दिख रहा था.उसके बाज़ू के निशान,उसकी कमज़ोर हालत & उसकी घबराहट सब उसकी सच्चाई की गवाही दे रहे थे.उसने आवंतिपुर सिविल हॉस्पिटल के साइकाइयेट्री के हेड डॉक्टर से भी बात की थी & उसकी शुरुआती रिपोर्ट भी यही कहती थी कि समीर किडनॅपिंग & बाप की दर्दनाक मौत को इतने करीब से देखने से गहरे सदमे मे है.उसने बलबीर का भी बयान दर्ज किया था & उसने भी उसे यही बताया था कि विजयंत को कोठारी पे शक़ था & उसने उसे इसी बात की तहकीकात के लिए लगाया था.वो क़ुआलिस जो कंधार से निकली थी,उसे पोलीस वालो ने रोक लिया था & उसमे से 1 डर से काँपता ड्राइवर निकला था जिसने उन्हे बताया कि 1 शख्स ने उसे ऐसा करने के लिए रुपये दिए थे.जब उसे हरपाल की तस्वीर दिखाई गयी तो उसने उसे पहचान लिया था.सारे सिरे मिल रहे थे मगर कुच्छ तो था जो अभी भी रज़ा को खटक रहा था.

रीता,प्रणव & शिप्रा आवंतिपुर पहुँच चुके थे मगर उन सब से पहले पहुँची थी रंभा.सभी को रज़ा ने ही खबर दी थी.समीर उसकी बाहो मे फुट-2 के किसी बच्चे की तरह रोया था & उसके साथ उसकी भी आँखे बरस पड़ी थी.उसे बिल्कुल अंदाज़ा नही था कि इस सब का अंजाम ऐसा दर्द भरा होगा.विजयंत & उसका रिश्ता नाजायज़ था,दोनो के रिश्ते की बुनियाद जिस्मानी थी & बस चंद दिन ही तो हुए थे उन्हे साथ मिले लेकिन इन ज़रा से दीनो मे ही 1 अजीब सा नाता जुड़ गया था दोनो के बीच मे.आज कुद्रत ने विजयंत के साथ-2 उस नाते को भी ख़त्म कर दिया था & रंभा के दिल मे टीस उठ रही थी.ये तकलीफ़ उसे समीर के लापता होने पे भी नही महसूस हुई थी लेकिन अब अपने ससुर की मज़बूत बाहो मे फिर कभी ना क़ैद हो पाने का गम उसकी आँखो से आँसुओ की शक्ल मे बरस रहा था.

"मिस्टर.प्रणव,आपके ससुर की बॉडी अभी तक झरने से बरामद नही हुई है.",रज़ा ने प्रणव को कुच्छ फॉरमॅलिटीस पूरी करने के लिए आवंतिपुर पोलीस हेडक्वॉर्टर्स बुलाया था,"..मिस्टर.&म्र्स.कोठारी की लाशें तो मिल गयी हैं लेकिन मिस्टर.मेहरा की लाश हमारे हाथ अभी तक नही लगी है.झरने का पानी बहुत गहरा है & आगे वो पानी तेज़ बहती नदी की शक्ल अख्तियार कर लेता है.ख़तरे के बावजूद गोताखोरो ने पूरी कोशिश की.उसी का नतीजा है कि 2 लाशें हमे मिली."

"तो डॅड की बॉडी का क्या हुआ होगा?"

"देखिए,2 सूरतें है या तो उनकी बॉडी बह के बहुत आगे निकली है.उस बात को मद्देनज़र रखते हुए हमने उस नदी के किनारे बसे सभी गाँवो की पोलीस को होशियार कर दिया है..& दूसरी सूरत है की बॉडी वही झरने के गिरने वाली जगह पे गहरे पानी मे डूब गयी है & उस सूरत मे हम लाचार हैं क्यूकी वाहा जो भी गोता लगाएगा वो सीधा मौत के मुँह मे जाएगा."

"हूँ."

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विजयंत मेहरा की तस्वीर उसके बुंगले के लॉन मे लगे सफेद शामियने के नीचे 1 मेज़ पे रखी थी जो उसकी शोक-सभा मे आए लोगो के लाए फूलो से घिरी हुई थी.परिवार के सभी सदस्य सफेद लिबास मे थे.रीता की आँखो पे काला चश्मा चढ़ा था & वो सभी लोगो के अफ़सोस पे बस हाथ जोड़ रही थी.15 दिन हो गये थे उस हादसे को & अब समीर भी पहले से काफ़ी बेहतर दिख रहा था.

उसने आज का सारा इंतेज़ाम अपनी देख-रेख मे करवाया था.कल सवेरे विजयंत का वकील उसकी वसीयत लेके आनेवाला था & मेहमानो की ख़ैयारियत पुछ्ते प्रणव का दिमाग़ अभी भी उसी के बारे मे सोच रहा था.जब उसने आवंतिपुर मे पहली बार समीर के मिलने के बाद देखा था तो उसे बहुत खुशी हुई थी-इसलिए नही कि उसका अज़ीज़ साला फिर से मिल गया बल्कि इसीलिए की वो उसे कंपनी संभालने या फिर उसके फ़ैसले लेने के काबिल नही लगा था.

मगर समीर ने उसकी सोच को ग़लत साबित करते हुए अपने को बिल्कुल ठीक कर लिया था.विजयंत की लाश नही मिली थी & ना ही उसका अंतिम संस्कार हुआ था,उस सूरत मे किसी की समझ नही आ रहा था कि क्या किया जाए,तब समीर ने ही फ़ैसला लिया था कि ये शोक सभा रखी जाए & उसकी आत्मा की शांति के लिए उपरवाले से दुआ की जाए.

समीर & शिप्रा अपनी मा के आस-पास ही घूमते दिख रहे थे & इन सब से थोड़ा अलग-थलग बैठी थी रंभा.उसने अपने को समीर की तीमारदारी मे डूबा दिया था & उसके ठीक होने का कुच्छ श्रेय उसे भी मिलता था लेकिन उसे समीर अब बदला-2 सा लग रहा था.ऐसा लगता था जैसे अगवा कर उसके समीर को गायब कर उसकी जगह किसी दूसरे समीर को उसके पास भेज दिया गया हो.

उसकी सास & ननद का रुख़ तो अभी भी ठंडा ही था.केवल 1 प्रणव था जो उस से हमदर्दी से बात करता था.शोक-सभा मे आए लोग उस से भी मिल रहे थे & वो भी सभी को हाथ जोड़ उनसे बात कर रही थी.उसने आँखो के कोने से देखा कि कामया वाहा आई & तस्वीर पे माला चढ़ाने के बाद पहले रीता & शिप्रा से मिली & उसके बाद समीर के साथ भीड़ से थोड़ा अलग होके बात करने लगी.बाते करते हुए समीर का बाया हाथ आगे बढ़ा & कामया के दाए हाथ को पकड़ के दबाया लेकिन फिर फ़ौरन ही उसे छ्चोड़ दिया & दोनो इधर-उधर देखने लगे जैसे ये पक्का कर रहे हों कि उनकी चोरी पकड़ी तो नही गयी.रंभा ने फ़ौरन उनकी तरफ से नज़रें हटाई & सामने खड़े मेहमान से बात करने लगी.

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"उउन्न्ह..",समीर ने करवट बदली & पीछे से उसे बाहो मे भर उसके बाए गाल को चूमती रंभा को देखने लगा,"..सोई नही तुम अभी तक?",रंभा ने मुस्कुराते हुए इनकार मे सर हिलाया.वो किसी भी कीमत पे समीर को खुद से दूर नही जाने दे सकती थी.उसने तय कर लिया था कि अपने सारे हथियारो का इस्तेमाल कर अपने पति को खुद से बेरूख़् नही होने देगी.उसने समीर के चेहरे को हाथो मे भर उसके होंठ चूमे लेकिन कुच्छ पलो के बाद समीर ने चेहरा घुमा के किस तोड़ दी.

"क्या बात है?",रंभा खिज उठी थी लेकिन उसकी आवाज़ ने उसके दिल के भाव को ज़ाहिर नही होने दिया.

"कुच्छ नही.बस मन नही है."

"अब अच्छी नही लगती मैं क्या?",मासूमियत से वो पति के उपर इस तरह से झुकी की नाइटी के गले मे से उसकी बिना ब्रा की चूचियाँ अपने पूरे शबाब मे उसे नज़र आएँ.

"ये बात नही है.",समीर की उंगलिया उसके चेहरे पे फिसली & निगाहें उसके सीने पे,"..बस सचमुच मन नही है,जान.",रंभा ने उसकी बात अनसुनी करते हुए दोबारा उसके लबो से लब सताए & अपनी छातियाँ उसके सीने पे दबा दी.समीर के बाज़ू उसकी पीठ पे कसे तो उसे बहुत खुशी हुई..उसका हुस्न अपना असर दिखा रहा था.समीर ने उसे पलटा & उसके उपर चढ़ उसे चूमने लगा.रंभा ने खुद को पति की बाहो मे ढीला छ्चोड़ दिया.समीर के हाथ उसकी नाइटी मे घुस रहे थे & कभी उसकी जाँघो तो कभी पेट पे फिसल रहे थे.

"आननह..उसने उसके निपल्स को उंगलियो मे पकड़ चिकोटी काटी तो उसकी आह निकल गयी & उसने भी समीर के लंड को उसके पाजामे के उपर से पकड़ लिया & लंड पकड़ते ही उसे विजयंत के लंड की याद आ गयी.उसका जिस्म ससुर के मज़बूत जिस्म के लिए तड़प उठा & उसके दिल मे कसक उठी.उसने समीर का लंड बहुत ज़ोर से जाकड़ लिया.वो ये भूल गयी थी की उसके पति को उसका लंड छुना पसंद नही था.समीर ने उसका हाथ लंड से अलग किया & दोनो कलाईयो को उसके सर के दोनो तरफ बिस्तर पे दबा उसके गले को चूमने लगा.रंभा को थोड़ा बुरा लगा था लेकिन अब समीर ही उसका अकेला सहारा था & फिलहाल वो उसे नाराज़ नही कर सकती थी.समीर की गर्म साँसे उसकी मस्ती को बढ़ा रही थी.उसने उसकी पकड़ मे कसमसाते हुए अपनी कमर उचकाई तो समीर उसकी बेचैनी का सबब समझते हुए नीचे आया & उसकी पॅंटी सरका के उसकी चूत चाटने लगा.रंभा भी थोड़ी देर के लिए अपनी उलझने भूल गयी & बस मस्ती मे खोने लगी.

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वो शख्स 1 कार मे विजयंत के बुंगले का बाहर से मुआयना कर अपने होटेल की ओर जा रहा था.उस रात झरने का नज़ारा अभी भी उसके ज़हन मे ताज़ा था.ब्रिज के विजयंत से भिड़ते ही वो समझ गया था कि यहा बहुत गड़बड़ होने वाली है & वो अपने च्चिपने की जगह से उठके झाड़ियो की ओट मे से तेज़ी से अपनी कार की तरफ भागा था.गड़बड़ का मतलब था पोलीस & पोलीस का मतलब था उसका फिर से जैल जाना & ऐसा वो हरगिज़ नही चाहता था.कम से कम तब तक तो नही जब तक की उसका इन्तेक़ाम पूरा ना हो जाए.वो कुच्छ दूर गया था कि उस कच्चे रास्ते पे 1 साया बहुत तेज़ी से भागता दिखा.वो जो भी था वो झरने की तरफ से ही भगा था.उसने क़ोहसिह की लेकिन उसकी शक्ल नही देख पाया.उसने इतना ज़रूर देखा कि वो शख्स कच्चे रास्ते के दूसरे तरफ की झाड़ियो मे कुद्ता हुआ घुस गया था & जब तक वो अपनी कार तक पहुँचा उसने देखा की कच्चे रास्ते से 1 मोटरसाइकल उतरके तेज़ी से वाहा से जा रही है.उसके बाद वो भी अपनी कार मे निकल भागा था लेकिन 3 चीखो की आवज़ सुनाई दी थी उसे,हैरत & घबराहट से भरी हुई चीखो की आवाज़.

वो कार मे झरनो से 2 किमी दूर गया होगा जब उसने पहाड़ी घुमावदार रास्ते पे नीचे की ओर 1 सवारी को उपर बढ़ते देखा.उसने फ़ौरन अपनी कार तेज़ी से आगे बढ़ते हुए कुच्छ पेड़ो के बीच घुसा दी & जैसे ही वो सवारी जोकि रज़ा की जीप थी,उसके पास से गुज़री & उसके कानो मे उसके एंजिन की आवाज़ आना भी बंद हो गयी वो वाहा से निकला & फिर सीधा आवंतिपुर मे ही रुका.उस बाइक को उसने दोबारा नही देखा था.उसके बाद कुच्छ दिन गोआ मे रहने के बाद आज सवेरे ही वो डेवाले आ गया था.अब उसे जल्द से जल्द रंभा से मुलाकात करनी थी.

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"आहह..समीर..हाआंणन्न्..बस..थोड़ी देर और...हाआंणन्न्..!",बिस्तर पे लेटी रंभा के उपर झुका समीर उसकी चूत मे तेज़ी से लंड अंदर-बाहर कर रहा था.कुच्छ देर पहले उसने उसकी चूत को बस थोड़ी देर ही चटा था & वो झाड़ भी नही पाई थी.जब तक वो कुछ समझती उसकी टाँगे फैलाक़े वो अपना लंड अंदर डाल उसकी चुदाई शुरू कर चुका था.उसका लंड उसे उसके सफ़र के अंजाम की ओर ले जा रहा था.वो उसके बाजुओ मे नाख़ून धंसाए अपनी कमर उचकाते हुए उसका पूरा साथ दे रही थी कि तभी समीर ने आह भरी & उसने उसका वीर्य अपनी चूत मे च्छूटता महसूस किया.अगले पल समीर उसकी छातियो पे ढेर था.वो नही झड़ी थी उस अब बहुत खिज हो रही थी.कुच्छ देर तक वैसे ही उसके सीने पे लेटे रहने के बाद समीर ने सर उठाया & उसके होतो को हल्के से चूम उसके बगल मे लेटा & फिर उसकी ओर पीठ घुमा चादर ओढ़ के सोने लगा.रंभा उसे हैरत से देख रही थी.पहले तो उसने ऐसा कभी नही किया था..फिर आज क्या वजह थी?..आख़िर क्यू बदल गया था वो?..& उस कामिनी कामया का क्या लेना-देना था इस सब से?..समीर गहरी नींद मे चला गया था.वो उठी & अपनी नाइटी उठाके बातरूम चली गयी.

उसे थोड़ी घुटन सी महसूस हो रही थी.उसने नाइटी पहन ली थी.उसके उपर उसने अपना गाउन डाला & कमरे से बाहर चली आई.आवंतिपुर से आने के बाद समीर उसे लेके अपने मा-बाप के बगल मे बने अपने बंगल मे रहने लगा था.उनका बेडरूम उपरी मंज़िल पे था.रंभा सीढ़ियो से नीचे उतरी & अपने बंगल के सामने के लॉन मे घूमने लगी.बाहर बहुत उमस थी.उसने आसमान मे देखा तो उसे चाँद का मद्धम अक्स बदलो के पीछे च्छूपा दिखा..लगता था बारिश होने वाली थी.

"नींद नही आ रही?",ख़यालो मे गुम वो चौंक पड़ी & पीछे घूमी तो देखा प्रणव खड़ा था,"..मुझे भी नही आ रही.अगर बुरा ना मानो तो तुमहरे साथ टहल लू."

"ज़रूर.",रंभा मुस्कुराइ.प्रणव उसे बहुत भला & अच्छा इंसान लगता था,"इसमे बुरा मानने वाली क्या बात है."

"1 बात पुच्छू?",कुच्छ देर तक खामोशी से साथ चलने के बाद प्रणव ने उस से पुचछा.

"क्या?"

"तुम्हे नींद क्यू नही आ रही है?",रांभ खामोशी से सर झुका के घूमती रही.

"उसकी वजह कही समीर तो नही?",रंभा ने चौक के उसे देखा..कही उसका चेहरा उसके दिल की उलझने तो बयान नही कर रहा?..& फिर नज़रे नीची कर टहलने लगी,"..मैं ये बात इसीलिए कह रहा हू कि मेरे जागने की वजह भी तुम्हारे जैसी ही है.तुम भाई की वजह से जागी हो & मैं बेहन की वजह से.",रंभा उसे देखने लगी.

"रंभा,दरअसल इसमे इन भाई-बेहन की भी कोई ग़लती नही है.इन्हे पाला-पोसा ही इसी तरह गया है कि इन्हे आजतक कभी किसी चीज़ की कमी नही हुई ये इस कारण कभी ये नही समझ पाते कि दूसरे को कभी कोई ज़रूरत महसूस हो सकती है..",वो लॉन के झूले पे बैठ गया था & रंभा भी उसके बगल मे बैठ गयी.प्रणव की निगाहें 1 पल को उसके खुले गाउन के बीच उसकी नाइटी के गले से दिखते उसके गोरे क्लीवेज पे गयी & फिर वापस उसके चेहरे पे,"..& ये हमारे दर्द से अंजान रहते हैं और उसे कभी मिटा नही पाते."

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क्रमशः.......
Reply
12-19-2017, 10:39 PM,
#47
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--46

गतान्क से आगे......

"लेकिन समीर तो पहले ऐसा नही था.",रंभा अपनी उंगलियो से खेल रही थी.

"शिप्रा भी पहले ऐसी नही थी लेकिन अब देखो..माना की मॉम का गम बहुत ज़्यादा है लेकिन मुझे तो वो भूल ही गयी है जैसे!"

"परेशान होगी वो भी."

"नही,हमेशा से ही ऐसे होता आया है.अभी मोम का बहाना है तो पहले कभी उसकी कोई पार्टी या फिर सहेली..हुंग!..मैं कब तक बर्दाश्त करू..आख़िर पति हू उसका मेरी भी उस से कुच्छ उमीदें हैं..",वो खामोश हो गया & फिर सामने देखते हुए बोला,"..कुच्छ ज़रूरतें है मेरी भी.",रंभा उसकी बात का मतलब समझ रही थी..यानी दोनो का गम 1 जैसा ही था.वो भी प्यासी थी & प्रणव भी.उसने थोड़ा सा चेहरा दाई तरफ घुमाया..प्रणव सजीला नौजवान था & जिस्म भी सुडोल था..अब विजयंत जैसी बात नही थी लेकिन अब उसके जैसा मर्द दूसरा मिलना शायद नामुमकिन था..ठीक उसी वक़्त प्रणव ने चेहरा घुमाया & दोनो की आँखे लड़ गयी & उसने शायदा रंभा की निगाहो को पढ़ भी लिया.रंभा ने झट से चेहरा घुमा लिया & उसी पल आसमान से बूंदे बरसने लगी.

"अरे..बारिश आ गयी!",रंभा उठके तेज़ी से बंगल की तरफ जाने लगी & प्रणव भी की उसका पैर फिसला.प्रणव उसके दाई तरफ ही था,उसने झट से बाई बाँह उसकी कमर मे डाल उसे थामा & दाए हाथ मे उसका दाया हाथ थाम उसे सहारा देके बंगल के दरवाज़े तक ले आया.तेज़ी से चलने & प्रणव के हाथो के एहसास ने रंभा की धड़कने तेज़ कर दी थी.उसके हसीन चेहरे & उपर-नीचे होते क्लीवेज पे बारिश के मोती चमक रहे थे.अब दोनो बारिश से भीग नही रहे थे लेकिन फिर भी प्रणव ने अपने हाथ उसके जिस्म से हटाए नही थे & रंभा को देखे जा रहा था.रंभा बेबाक लड़की थी लेकिन थी तो लड़की ही & प्रणव की निगाहो,जिनमे उसके साथ की हसरत सॉफ झलक रही थी,की तपिश से उसके गुलाबी गाल & सुर्ख होने लगे थे.

"मैं जाऊं..",थरथरते लबो से वो बस इतना ही कह पाई थी.

"क्यू?",रंभा ने बस उसकी निगाहो मे अपनी सवालिया निगाहो से देखा.

"मेरा साथ पसंद नही तुम्हे?",प्राणवा का हाथ उसकी कमर पे और कस गया था & उसका चेहरा रंभा के दाए गाल के & नज़दीक आ गया था.आसमान मे बिजली काड्की & उसकी चमक मे रंभा ने प्रणव के चेहरे को देखा.ये वो पल था जब उसे फ़ैसला लेना था.1 कदम आगे बढ़ाके बंगल की दहलीज़ के अंदर होती & दोनो का रिश्ता शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो जाता & अगर वही खड़े हुए बस अपना सर उसके सीने पे झुका देती तो..तो उसे इस परिवार मे अपने ससुर के जाने के बाद 1 और सहारा मिल जाता.समीर की बदली रंगत देख अब उसे प्रणव को अपना साथी बना लेना ठीक लगा & उसने अपना सर दाई तरफ झुका उसके सीने पे रख दिया.

प्रणव ने रंभा के दाए हाथ को थामे हुए ही अपने दाए हाथ से उसकी ठुड्डी उपर की & उसके उपर झुकने लगा.रंभा की साँसे और तेज़ हो गयी.प्रणव की गर्म साँसे वो अपने चेहरे पे महसूस कर रही थी & उसका दिल बहुत ज़ोरो से धड़क रहा था.प्रणव & झुका & उसके नर्म लबो पे सटी पानी की बूँदो को अपने होंठो से हौले से सॉफ किया.रंभा सिहर उठी उस नाज़ुक च्छुअन से.प्रणव के होंठ उसके लबो को सहला रहे थे,उसकी आँखे बंद हो गयी थी & वो बस उस रोमानी लम्हे मे खोए जा रही थी.

प्रणव अब बहुत धीमे से उसके होंठो को चूम रहा था.उसके लब उसकी हर्कतो से कांप रहे थे & जब प्रणव ने किस की शिद्दत बढ़ते हुए उसके होंठो को अपने होंठो की गिरफ़्त मे लिया तो सिले लबो से भी उसकी आह निकल गयी & वो थोड़ा सा उसकी तरफ़ा घूम गयी.प्रणव ने उसके दाए हाथ को छ्चोड़ा & अपने दाए हाथ को भी उसकी कमर मे डाल उसे अपने आगोश मे भर लिया.रंभा के हाथ भी उसके सीने से आ लगे & जब प्रणव के लबो ने उसके लेबो के पार जाने की इजाज़त माँगी तो उसने शरमाते हुए अपने लब बहुत थोड़े से खोल दिए.

प्रणव की ज़ुबान उस ज़रा सी दरार से उसके मुँह मे घुसी & उसकी बेसबरा ज़ुबान से टकराई & उसके बाद रंभा की सारी झिझक ख़त्म हो गयी.उसने अपने इस नये प्रेमी के गले मे बाहें डाल दी & पूरी शिद्दत एक्स आठ उसकी किस का जवाब देने लगी.प्रणव ने उसकी कमर को कसते हुए उसे खुद से ऐसे चिपका लिया की उसकी छातियाँ प्रणव के सीने से पिस गयी & उसका लंड उसके पेट पे दब गया.रंभा उन एहसासो से & मस्त हो गयी & प्रणव के बालो को खींचते हुए उसकी ज़ुबान को चूसने लगी.

प्रणव ने उसे पीछे धकेल के बंगल दरवाज़े की बगल की दीवार से लगा दिया & अपने जिस्म को उसके जिस्म पे दबाते हुए बहुत ज़ोर से चूमने लगा.उसके हाथ रंभा की कमर & पीठ को अपनी बेताबी से जला रहे थे.प्रणव का दाया हाथ नीचे गया & उसने रंभा की जाँघ पकड़ के उपर उठाई & ठीक उसी वक़्त ज़ोर से बिजली काड्की.

"नही!",रंभा उस आवाज़ & रोशनी से जैसे होश मे आई & प्रणव को परे धकेल दिया.दीवार से लगी वो बहुत ज़ोर से साँसे ले रही थी,"..ये ठीक नही!"

"क्या ठीक नही?",प्रणव उसके करीब आया & उसके चेहरे को दाए हाथ मे थामा & बाए हाथ की उंगली उसके दाए चेहरे पे बाई तरफ माथे से लेके बाए गाल से होते हुए ठुड्डी तक फिराई,"..कि हम दोनो ज़ख़्मी दिल 1 दूसरे को मरहम लगा रहे हैं..जब हमारे हमसफ़र हमारे दर्द की परवाह नही कर रहे तो हमे हक़ नही खुद उस दर्द को दूर करने का?!",समीर की आँखो मे चाहत के शोले चमक रहे थे.उसकी उंगली रंभा के लाबो से जा लगी थी & रंभा ने मस्ती मे आँखे बंद कर ली थी,"..जवाब दो,रंभा क्या ठीक नही है?"

"ओह!प्रणव..",रंभा ने उसे बाहो मे खींचा & चूमने लगी,"..लेकिन किसी को पता चल गया तो?",सवाल पुच्छ वो दोबारा उसे बाहो मे बार चूमने लगी.

"मैंहू ना!किसी को कभी कुच्छ पता नही चलेगा!",उसने उसे आगोश मे भरते हुए उसकी गर्दन पे चूमा,"आइ लव यू,रंभा!"

"आइ लव यू टू,प्रणव!",काफ़ी देर तक दोनो 1 दूसरे से लिपटे अपने प्यार का इज़हार अपने हाथो & लबो से करते रहे,"..अब जाओ."

"प्लीज़!",समीर ने बाहो से छिटकी रंभा को रोकना चाहा.

"नही,अभी नही.यहा बहुत ख़तरा है.प्लीज़,प्रणव जाओ!",वो आगे हुई & 1 आख़िरी बार अपने इस नये-नवेले प्रेमी के लब चूमे और उसे जाने को कहा.

"ओके.",प्रणव ने उसके माथे को चूमा & वाहा से चल गया.उसकी पीठ रंभा की तरफ थी & वो उसकी मुस्कान नही देख सकती थी.कल वसीयत पढ़ी जानी थी & उसे पूरा यकीन था कि विजयंत मेहरा ने अपने शेर्स अपने बेटे के नाम छ्चोड़े होंगे लेकिन बेटे की बीवी अब उसके जाल मे थी.उसे कंपनी पे हुकूमत का चस्का लग गया था & वो उस स्वाद को अब थोड़ा महसूस करना चाहता था.

रंभा ने दरवाजा बंद किया & सीढ़ियाँ चढ़ उपर अपने कमरे मे गयी.समीर वैसे ही बेख़बर सो रहा था.रंभा ने अपने कपड़े उतरे & बाथरूम मे घुस गयी.प्रणव की हर्कतो ने उसके जिस्म की आग को और भड़का दिया था.वो बाथरूम के ठंडे फर्श पे लेट गयी & अपने हाथो से अपने जिस्म को समझाने लगी.

"मिस्टर.विजयंत मेहरा के ट्रस्ट ग्रूप के सारे शेर्स उनके बेटे समीर मेहरा को जाते हैं..",सवेरे वसीयत पढ़ते वकील के यही लफ्ज़ अभी रात तक प्रणव के दिमाग़ मे गूँज रहे थे.

"ये लो..",महादेव शाह ने स्कॉच का ग्लास प्रणव की ओर बढ़ाया,"..हमारी पार्ट्नरशिप के नाम,जो शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गयी.",उसने जाम उपर उठाया.प्रणव की आँखें गुस्से & दर्द से लाल थी.उसने ग्लास उठाया & कुच्छ पल शराब को देखता रहा फिर उसे सामने की दीवार पे दे मारा.

"काँच के ग्लास पे गुस्सा उतारने से क्या हासिल होगा बर्खुरदार?",शाह वैसे ही बैठा पी रहा था.

"फ़िक्र मत करिए शाह साहब.हमारी पार्ट्नरशिप ज़रूर होगी."

"लेकिन कैसे?अभी-2 तुम ही ने कहा कि समीर भी बाप के जैसे ही सोच रहा है & उसे भी किसी बाहर के शख्स पे कंपनी मे इनवेस्टमेंट के लिए भरोसा नही!",शाह तल्खी से बोला.

"ये समीर कह रहा है लेकिन अगर समीर की जगह कंपनी का मालिक कोई & हो जाए तो?"

"कोई &..",शाह ने सोचते हुए अपनी ठुड्डी खुज़ाई,"..मसलन?"

"मसलन कोई भी..रीता मेहरा,शिप्रा मेहरा या फिर रंभा मेहरा.",शाह कुच्छ पल उसे देखता रहा & फिर दोनो के ठहाको से शाह का ड्रॉयिंग हॉल गूँज उठा.

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सोनम ने कयि दिनो बाद राहत की सांस ली थी.क्लेवर्त मे हुए हादसे के बाद उसके तो होश ही उड़ गये थे & वो बहुत घबरा गयी थी कि कही पोलीस की तहकीकात से ब्रिज & उसके ताल्लुक का राज़ ना खुल जाए.उसने सबसे पहले उस फोन को,जो उसे ब्रिज ने दिया था & जिसे वो बस उस से बात करने के लिए इस्तेमाल करती थी,उसे तोड़ा & उसके सिम कार्ड को भी तोड़ शहर के बड़े नाले मे डाल आई.ब्रिज ने उसे अभी तक कोई पैसे तो दिए नही थे तो उस बात की चिंता उसे थी नही.

अगले कुच्छ दिन तो उसका फोन बजता तो उसे यही लगता कि पोलीस का होगा लेकिन जैसे-2 दिन बीते उसका डर कम होता गया & सबसे अच्छी बात तो ये हुई कि प्रणव की जगह ग्रूप की कमान अब समीर के हाथो मे थी.उसने इस बीच रंभा से 1 बार मुलाकात की थी लेकिन उसे प्रणव के इरादो के बारे मे बताने की हिम्मत उसे तब भी नही हुई.अब समीर के लौटने के बाद उसने उस बात के बारे मे सोचना छ्चोड़ भी दिया था.

अब तो उसे लगने लगा था कि ब्रिज का मारना 1 तरह से उसके लिए अच्छी ही बात थी.अब उसे किसीसे तरह का कोई डर नही था & उसे 1 सीख भी मिली थी कि आगे से वो अपने फ़ायदे के लिए ऐसे खेल ना खेले जो ख़तरो से भरे होते थे.

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"कल दोपहर 12 बजे मिलना मुझे इस पते पे.",रंभा अपने बंगल की दीवार से सटी थी & प्रणव उसकी कमर सहलाते हुए उसे चूम रहा था.उसने 1 काग़ज़ का टुकड़ा & 1 चाभी अपने कुर्ते की जेब से निकाले & उसकी ब्रा मे अटका दिए.समीर अगले ही दिन पूरे मुल्क मे फैले अपने दफ़्तरो & प्रॉजेक्ट्स के दौरे पे निकल रहा था & दोनो प्रेमियो को मिलने का मौका मिल गया था.

"ठीक है.अब जाओ.",रंभा ने उसे परे धकेला & अपने बंगल के अंदर घुस गयी.

"रंभा!",प्रणव फुसफुसाया.

"कल.",रंभा ने दरवाज़ा बंद करते हुए उसे मुस्कुरा के देखा & फिर उपर अपने कमरे मे चली गयी.समीर बेख़बर सो रहा था,रंभा ने सोचा कि उसे जगाए मगर फिर उसे पिच्छली 2 रातो की कहानी याद आई & उसने अपना इरादा बदल दिया & बिस्तर पे लेट अपने हाथो से अपने जिस्म से खेलने लगी.

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1 अपार्टमेंट बिल्डिंग के 11वे माले के फ्लॅट मे उसे प्रणव ने बुलाया था.रंभा तय वक़्त से थोड़ा पहले ही पहुँच गयी थी.प्रणव को दफ़्तर & बीवी से झूठ बोल कर उस से मिलना था लेकिन उसे ऐसी कोई उलझन नही थी.सास & ननद ने उस से रिश्ता ना के बराबर ही रखा था & पति अभी शहर मे था नही.

रंभा ने आसमानी रंग की सारी & ब्लाउस पहना था लेकिन अपने इस नये प्रेमी को रिझाने मे वो कोई कसर नही छ्चोड़ना चाहती थी.उसने फ्लॅट के बेडरूम मे रखे ड्रेसिंग टेबल के शीशे मे देखते हुए अपना आँचल अपने सीने से गिराया & अपने ब्लाउस को उतार दिया.आसमानी रंग के स्ट्रेप्लेस्स ब्रा मे क़ैद उसकी चूचियाँ शीशे मे चमक उठी.हाथ पीछे ले जाके उसने ब्रा को खोला & उसकी चूचिया खुली हवा मे सांस लेने लगी.

रंभा ने बिस्तर से साथ लाया 1 पॅकेट उठाया & उसमे से चाँदी के रंग का चमकता ब्लाउस निकाला जोकि स्ट्रेप्लेस्स ट्यूब टॉप की शक्ल मे था & उसे पहन लिया.अब उसके गोरे कंधे & सीने के उपर का हिस्सा खुला हुआ था.उसने आँचल को वापस सीने पे डाला & अपने खुले बालो को सामने अपनी बाई चूची के उपर कर लिया.

"ज़्यादा देखोगी तो कही शीशे मे जान ना आ जाए & वो तुम्हे बाहो मे ना भर ले.",रंभा चौंक के मूडी तो देखा प्रणव कमरे की दहलीज पे खड़ा था.कुच्छ शर्म,कुच्छ तारीफ की खुशी से आई मुस्कान उसके होंठो पे खेलने लगी.प्रणव आगे बढ़ा & उसकी गुदाज़ उपरी बाहें थाम उसे अपनी ओर खींचा तो रंभा ने उसे हंसते हुए परे धकेला.

"किस लिए बुलाया है मुझे यहा?",वो शोखी से उसे देख रही थी.

"तुम्हारी इबादत करने के लिए.",प्रणव ने दोबारा वही हरकते दोहराई & रंभा के बाए गाल पे चूम लिया.

"ये इबादत है!",रंभा अपने चेहरे को घुमा उसे अपने सुर्ख लबो से महरूम रखा,"..तुम तो काफिरो जैसी हरकतें कर रहे हो..उउम्म्म्म..!",प्रणव ने उसके लब चूमने मे कामयाबी हासिल कर ही ली थी.

"आशिक़ तो ऐसे ही अपने महबूब को पूजते हैं.",1 पल को होंठ जुदा कर उसने रंभा की काली आँखो मे झाँका & इस बार जब उसके होंठ झुके तो रंभा ने अपने होंठ खोल उसकी ज़ुबान से अपनी ज़ुबान लड़ा दी & अपनी बाहे उसके गले मे डाल दी.

"छ्चोड़ो..",रंभा ने कुच्छ देर बाद किस तोड़ी & उदास सी सूरत बना प्रणव की तरफ पीठ कर ली,"..शुरू मे सब ऐसी ही बाते करते हैं फिर किसी वीरान जंगल मे पड़ी पत्थर मूरत की तरह छ्चोड़ देते हैं जिसकी इबादत तो दूर किसी को उसका ख़याल भी नही रहता.",रंभा प्रणव को ये कतई नही पता चलने देना चाहती थी कि वो चुदाई कि दीवानी 1 गर्मजोशी से भरी लड़की है जोकि अपने फ़ायदे के लिए किसी भी मर्द के साथ सोने से नही झिझकति थी.उसके सामने तो उसे 1 बेबस बीवी की तस्वीर पेश करनी थी जिसका पति उस से बेरूख़् हो गया है.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:39 PM,
#48
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--47

गतान्क से आगे......

"ये पुजारी अपनी इस हुस्न & इश्क़ की देवी की मरते दम तक पूजा करेगा & जिस दिन अपने इस वादे को तोड़े वो उसका इस धरती पे आख़िरी दिन होगा.",पीछे से आ उसके बाए कंधे पे बाया हाथ रख & दाए से उसके चेहरे को अपनी ओर घुमा के प्रणव ने उसकी आँखो मे झाँका तो रंभा तेज़ी से घूमी & उसकी कमर मे बाहे डाल,उसके गले से लग गयी.दोनो के हाथ 1 दूसरे की पीठ पे घूम रहे थे.प्रणव का लंड तो रंभा की नंगी कमर की चिकनाई महसूस करते ही खड़ा हो गया था.दोनो का कद लगभग बराबर था & उसका लंड सीधा रंभा की चूत पे दबा था.

रंभा की चूत भी लंड को महसूस करते ही कसमसाने लगी थी.प्रणव ने अपना सर रंभा के बाए कंधे से उठाया तो उसने भी चेहरा उसके सामने कर दिया & दोनो 1 बार फिर पूरी शिद्दत के साथ 1 दूसरे को चूमने लगे.प्रणव के हाथ उसकी कमर से लेके कंधो तक घूम रहे थे & रंभा अब मस्त हो रही थी.वो भी प्रणव के जिस्म की बगलो पे अपने हाथ हसरत से फिरा रही थी.

दोनो काफ़ी देर तक 1 दूसरे की ज़ुबानो को चूस्ते हुए उनसे खेलते रहे.प्रणव का जोश और बढ़ा तो उसने रंभा की गंद हल्के से दबा दी तो वो चिहुनक उठी & उसे बनावटी गुस्से से देखते हुए किस तोड़ दी.प्रणव की नज़रो मे अब वासना के लाल डोरे तैरने लगे थे.उसने डाए हाथ से रंभा के बाए कंधे से उसका पल्लू सरका दिया.रंभा ने उसे पकड़ने की कोशिश की लेकिन तब तक पल्लू फर्श को चूम रहा था.उसने बनावटी हया से अपना चेहरा बाई तरफ घुमा लिया.

मस्ती से उसकी साँसे तेज़ हो गयी थी & तेज़ साँसे उसके सीने मे जो हुलचूल मचा रही थी,उसे देख प्रणव का हलक सूख गया & उसने थूक गटकते हुए अपने होंठो पे ज़ुबान फिराई.ऐसी हसीन-ओ-दिलकश लड़की आजतक उसने नही देखी थी.उसने दाए हाथ को उसके कंधे से सरकते हुए उसके बाए गाल पे किया & उसका चेहरा फिर से अपनी ओर घुमाया तो रंभा ने आँखे बंद कर ली.मस्ती से तमतमाए गाल & बंद आँखे हया की तस्वीर पेश कर रहे थे & प्रणव के जोश को & बढ़ा रहे थे.

प्रणव ने अपना हाथ उसके बाए गाल से सटा दिया तो रंभा आँखे बंद किए हुए ही,उस तरफ चेहरे को थोड़ा झुका के उसके हाथ पे अपने गाल को हौले-2 रगड़ने लगी.प्रणव की निगाहें उसके चेहरे से लेके उसके सीने & पेट से नीचे उसके पाँवो तक गयी & फिर उपर आई.वो आगे बढ़ा & अपने होंठ रंभा की गर्दन पे दाई तरफ लगा दिए.उसके होंठ उसके ब्लाउस के उपर के नुमाया हिस्से पे घूमने लगे.

रंभा ने उसके अपने गाल पे रखे हाथ कि हथेली से अपने होंठ सटा दिए & चूमने लगी.प्रणव का बाया हाथ उसकी कमर से आ लगा & उसे सहलाने लगा.रंभा अब हल्की-2 आहे भर रही थी.प्रणव ने उसकी कमर को बाई बाँह मे कसते हुए उसके चेहरे को थामा & उसकी गर्दन चूमते हुए उसे घुमा के बिस्तर पे गिरा दिया.

रंभा की टाँगे लटकी थी & उसके उपर चढ़ा प्रणव उसके चेहरे को चूमे जा रहा था.कुच्छ देर बाद वो उठा & उसने उसकी टाँगे पकड़ के बिस्तर के उपर कर दी.ऐसा करने से रंभा की सारी थोड़ा उठ गयी & उसकी गोरी टाँगे दिखने लगी.प्रणव ने उन्हे देखा तो उन्हे पकड़ के उसके पैर चूमने लगा.रंभा बिस्तर पे घूम के पेट के बल लेट गयी & तकिये को पकड़ के प्रणव के होंठो का लुत्फ़ उठाने लगी.

प्रणव के हाथ उसकी सारी को घुटने तक करने के बाद उसकी टाँगो को सहला रहे थे & उसके होंठ उसके हाथो के बताए रास्ते पे घूम रहे थे.रंभा ने खुशी & मस्ती से मुस्कुराते हुए तकिये मे मुँह च्छूपा लिया क्यूकी प्रणव का हाथ उसकी सारी मे & उपर घुस उसकी जाँघो के पिच्छले मांसल हिस्से को दबा रहा था.कुच्छ पल बाद उसकी सारी उसकी कमर तक थी & उसकी आसमानी रंग की पॅंटी नुमाया हो गयी जिसके बीचोबीच 1 गीला धब्बा उसकी चूत की कसक की दास्तान कहता दिख रहा था.

"उउन्न्ह..आन्न्न्नह..!",प्रणव उसकी जाँघो को चूम & चूस रहा था & रंभा की आहें धीरे-2 तेज़ हो रही थी.उसकी जाँघो को चूमते हुए प्रणव उसकी कमर पे आया & उसे भी अपने होंठो से तपाने के बाद उसकी पीठ से होता उसके चेहरे तक पहुँच गया.रंभा के रसीले लबो से उसका जी भर ही नही रहा था.उसने उसके दाए कंधे को पकड़ थोड़ा घुमाया & उसके होंठ चूमने लगा तो रंभा ने भी दाए हाथ को पीछे ले जाके उसके बालो को पकड़ लिया & अपने होंठो से जवाब देने लगी.

प्रणव का दाया हाथ उसके पेट पे चला गया था & उसे सहला रहा था.उसकी उंगलिया उसकी गहरी नाभि की गहराई से बाहर आना ही नही चाह रही थी.उसके होंठ 1 बार फिर से रंभा की गोरी गर्दन पे घूम रहे थे.चूत की कसक & बढ़ी तो रंभा ने गंद पीछे कर अपने प्रेमी के लंड से उसे सटा दिया.प्रणव समझ गया कि उसकी महबूबा अब पूरी तरह से मस्त हो चुकी है.उसने फ़ौरन उसके कंधे पकड़ उसे सीधा किया & उसके हाथो को अपनी कमीज़ पे रख दिया.उसका इशारा समझ रंभा ने उसके बटन्स खोले & उसकी कमीज़ उतार दी.

प्रणव के बालो भरे सीने को देख उसका दिल खुशी से झूम उठा & उसने अपने हसरत भरे बेसब्र हाथ उन बालो मे फिराए & फिर अपनी इस थोड़ी बेबाक हरकत पे शरमाने का नाटक करते हुए हाथ पीछे खींच अपने चेहरे को उनमे च्छूपा लिया.प्रणव उसकी इस अदा पे और खुशी & जीश से भर गया & उसने उसके पेट पे उंगली फिरानी शुरू कर दी.

"ऊन्नह..नही करो..गुदगुदी होती है..!",हाथो के पीछे से ही रंभा बोली तो प्रणव ने हंसते हुए उँघली को उसकी सारी मे घुसा उसे कमर से खींच दिया,"..नही..!",हाथ चेहरे से हटा उसपे फैली मस्ती अपने प्रेमी को दिखाते हुए रंभा ने उसका हाथ पकड़ लिया लेकिन प्रणव ने उसकी अनसुनी करते हुए उसकी सारी खोल दी & फिर पेटिकोट भी.उसने अपनी दाई बाँह रंभा की जाँघो के नीचे लगा के उन्हे उपर उठाया & फिर अपने गर्म होंठ उनसे चिपका दिए.जोश से कसमसाती रंभा कभी उसके बॉल खींच तो कभी उसके हाथो को पकड़ उसे अपने जिस्म से अलग करने की कोशिस कर रही थी लेकिन प्रणव वैसे ही उसकी जाँघो से चिपका हुआ था.

"ओईईईईई..माआाआअन्न्‍नणणन्..!",रंभा का जिस्म झटके खाने लगा & वो मस्ती मे सर दाए-बाए हिलाने लगी.प्रणव ने पॅंटी के उपर से ही उसकी चूत को चूमना शुरू कर दिया था & वो उसकी इस हरकत को बर्दाश्त नही कर पाई थी & झाड़ गयी थी.प्रणव ने फ़ौरन उसकी पॅंटी नीचे खींची & उसकी चूत से बहते रस को पीने लगा.रंभा उसके बाल नोचती वैसे ही कांपति पड़ी थी.

जब प्रणव ने अपना चेहरा उसकी चूत से उठाया तो वो करवट ले फिर से तकिये मे मुँह च्छूपाते हुए पेट के बल हो गयी.प्रणव की हालत जोश से और बुरी हो गई क्यूकी अब उसकी आँखो के सामने रंभा की पुष्ट,क़ातिल गंद थी.उसने उसकी फांको को बड़े हौल्के से च्छुआ.रंभा के जिस्म मे थरथराहट सी हुई & वो फिर से घूमने की कोशिश करने लगी मगर तब तक उसका प्रेमी उसके पिच्छले उभारो पे झुक,उनके बीच की डरा मे अपनी नाक घुसा के अपना चेहरा वाहा दफ़्न करने की कोशिश कर रहा था.

रंभा ने तकिये को खीच अपने सीने के नीचे किया & अपनी चूचियाँ उसपे दबाते हुए सर उठाके ज़ोर-2 से आहें लेने लगी.प्रणव ने उसकी फांको को भींचा & उन्हे काटने लगा.रंभा दर्द & मस्ती के मिले-जुले एहसास से मुस्कुरा उठी & उसकी आहें & तेज़ हो गयी.

"नाआआअ..हाईईईईईईईईईईईईईईई..!",प्रणव की ज़ुबान उसके गंद के छेद को छेड़ने लगी थी & रंभा की हालत बुरी हो गयी थी.उसने दाया हाथ पीछे ले जाते हुए प्रणव के बॉल पकड़ उसके सर को उपर खींचा & करवट ले सीधी हो गयी.प्रणव ने वासना भरी मुस्कान उसकी तरफ फेंकी & बिस्तर पे खड़े हो पॅंट उतार नंगा हो गया.उसके 8.5 इंच के लंड को देख रंभा का दिल खुशी से नाच उठा लेकिन उसने मस्ती से बोझल पॅल्को को बंद कर उसे अपने शर्म मे डूबे होने का एहसास कराया.

नंगा प्रणव उसके दाई तरफ लेटा & उसे बाई करवट पे अपनी तरफ घुमा उसकी कमर सहलाते हुए चूमने लगा.उसका लंड भी उसकी चूत को चूम रहा था.रांभे ने अब अपने को पूरी तरह से अपने आशिक़ के हाथो मे सौंप दिया था.उसके सीने के बालो मे हाथ फिराते हुए उसने भी उसे बाहो मे भर लिया था.प्रणव ने उसके बाए कंधे के उपर से देखते हुए उसके ब्लाउस को खोला & जैसे ही उसकी चूचियाँ नुमाया हुई वो उनपे टूट पड़ा.उन मस्त गोलाईयों को अपने मुँह मे भर के वो उन्हे चूसने लगा.हाथो मे उन्हे भर वो उन्हे ज़ोर से दबाता & जब रंभा आहे भरते हुए जिस्म को उपर मोडती तो वो उसके निपल्स को चूसने लगता. छातियों को चाटते हुए जब उसने उसके निपल्स को उंगलियो मे मसला तो रंभा ज़ोर से चीखते हुए दोबारा झाड़ गयी.

अब वक़्त आ गया था दोनो जिस्मो के 1 होने का & उनके रिश्ते को जिस्मानी बंधन मे बाँधने का.प्रणव ने उसकी टाँगे फैलाई & उनके बीच घुटने पे बैठके अपना लंड अंदर घुसाया,"ऊव्ववव..दर्द हो रहा है..थोड़ा धीरे करो ना..आन्न्न्नह..!",सच्चाई तो ये थी कि विजयंत के बाद उसे अब कोई भी लंड दर्द पहुचने वाला नही लगता था लेकिन ऐसी हरकत कर वो प्रणव के मर्दाना अहम को सहला उसे और जोश मे भर देना चाहती थी.

"बस हो गया,मेरी जान..आहह..!",चूत की कसावट ने तो प्रणव को हैरत मे डाल दिया.ऐसा लग रहा था मानो वो कोई कुँवारी चूत चोद के उसका कुँवारापन लूट रहा हो.मस्ती मे भर उसने ज़ोर का धक्का लगाया.

"हाईईईईईईईई..रामम्म्मममममममम..कितने ज़ल्म हो..ऊन्न्‍न्णनह..!",प्रणव उसके उपर लेट आ गया था & उसके चेहरे को चूमते हुए उसे चोद रहा था.कुच्छ देर बाद रंभा के हाथ भी उसकी पीठ पे फिरने लगे & जब उसने उसकी गंद को दबाया तो उसके धक्के & तेज़ हो गये. दोनो अब 1 दूसरे को पूरी शिद्दत से चूमते हुए चुदाई कर रहे थे.रंभा कयि दिनो बाद ऐसे मस्त तरीके से चुद रही थी.विजयंत के जाने के बाद ये पहला मौका था जब कोई मर्द उसे इस तरह से मस्ती के आसमान मे उड़ा रहा था.प्रणव के पास विजयंत जैसा लंड नही था ना ही वैसी मर्दाना खूबसूरती लेकिन था वो चुदाई मे माहिर.

पहले तो उसने बहुत गहरे धक्के लगाए जिनमे वो लंड को सूपदे तक खींच फिर जड तक अंदर धकेल्ता & उसके बाद जब रंभा झड़ने लगी तो उसने चुदाई की रफ़्तार अचानक बहुत बढ़ा दी जिसमे लंड बस आधा ही बाहर आता था लेकिन चूत की दीवारो पे उसकी तेज़ रगड़ रंभा के जोश को & बढ़ा देती थी.

रंभा ने प्रणव की पीठ को अपने नखुनो से छल्नी कर दिया था लेकिन वो था कि झड़ने का नाम ही नही ले रहा था.प्रणव के लिए ये बहुत मुश्किल काम था.रंभा की कसी चूत झाड़ते वक़्त जब उसके लंड के गिर्द सिकुड़ने-फैलने लगती तो वो अपना काबू लगभग खो ही देता लेकिन वो इस पहली चुदाई मे ही अपनी इस नयी-नवेली महबूबा पे अपनी मर्दानगी की मज़बूत छाप छ्चोड़ना चाहता था.

"हाईईईईईईईई..राम............प्रणव......ज़ाआआअन्न्‍ननननणणन्..ऐसे कभी नही चुदी मैं........ऊहह..आन्न्‍नणणनह..चोदो मुझे.....हाआाआअन्न्‍ननणणन्..!",1 ज़ोर की चीख मारते हुए,उसके कंधो मे नाख़ून धँसाते हुएँ उसकी कमर पे टाँगे फँसा उचकते हुए वो जिस्म को कमान की तरह मोडते झाड़ गयी.उसके चेहरे को देख लगता था जैसे वो बहुत दर्द मे हो जबकि हक़ीक़त ये थी कि वो झड़ने की खुशी को पूरी शिद्दत से महसूस का रही थी.

फिर उसके चेहरे पे हल्की सी मुस्कान खेलने लगी-उसकी चूत मे उसके नये प्रेमी का लंड गर्म वीर्य छ्चोड़ रहा था & वो आहे भरता उसका उसके उपर लेट रहा था.रंभा ने उसे बाहो मे भरा & अपने बाए कंधे के उपर अपना चेहरा रखे प्रणव के सर को चूम लिया.

“मेरी मोहब्बत कबूल कर के तुमने मुझपे कितना बड़ा एहसान किया है,ये तुम्हे पता नही,रंभा.”,चुदाई के बाद प्रणव रंभा के दाई तरफ लेटा दाए हाथ से उसके बाए गाल को सहला रहा था.रंभा भी उसके सीने पे अपनी उंगलिया धीमे-2 घुमा रही थी.

“एहसान तो तुमने मुझपे किया है,प्रणव.सोचती हू तो सिहर जाती हू कि अगर तुम ना मिलते तो क्या करती..मैं तो पागल ही हो जाती!”,अजीब बात थी.दोनो ही 1 दूसरे को अपनी मोहब्बत के सच्ची होने का यकीन दिलाने के लिए झूठ बोल रहे थे.जहा प्रणव रंभा को अपने कंपनी के मालिक बनाने के मक़सद को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करना चाहता था वही रंभा उसे अपनी जिस्मानी ज़रूरतो को पूरा करने का ज़रिया बना के मेहरा परिवार मे अपने 1 साथी के तौर पे इस्तेमाल करना चाहती थी.

प्रणव झुका & उसके होंठ चूमे तो रंभा ने भी उसके होंठो पे अपनी जीभ फिरा दी.प्रणव ने उसके बाए हाथ को थाम उसे अपने सिकुदे लंड पे दबाया तो रंभा ने फिर से शरमाने का नाटक करते हुए हाथ पीछे खींचा & अपना चेहरा थोड़ा आगे हो उसके सीने मे छुपा लिया.प्रणव मुस्कुराया & उसके जिस्म की बगल मे हाथ फेर दोबारा उसका हाथ थाम उसे अपने लंड पे दबाया.इस बार रंभा ने उसका लंड थाम लिया & उसे मसलने लगी.प्रणव जोश मे भर उसके बालो & गर्दन को चूमते हुए उसके जिस्म पे हाथ फेरने लगा.रंभा के हाथ उसके लंड को हिलाते हुए फिर से जगाने लगे.

“तुमने अपनी ज़िंदगी के बारे मे क्या सोचा है,रंभा?”,प्रणव ने लंड उसके हाथ से खींचा & उसे लिटा के अपने घुटनो पे हो लंड को उसके होंठो से सताया.रंभा ने उसके लंड को पकड़ के हिलाया लेकिन जब प्रणव ने लंड को उसके होंठो पे सताए तो उसने शर्मा के मुँह फेर लिया.प्रणव ने उसके चेहरे को अपनी ओर घुमाया & 1 बार फिर लंड को उसके होंठो पे रगड़ा.रंभा ने थोड़ी ना-नुकर की लेकिन फिर अपने गुलाबी होंठो मे उसके लंड को क़ैद कर लिया.उसके ज़हन मे विजयंत मेहरा के तगड़े लंड की तस्वीर कौंधा गयी & उसके दिल मे 1 हुक सी उठी.उसका ससुर लौटने वाला नही था & अब शायद ज़िंदगी भर ये कसक उसका पीछा नही छ्चोड़ने वाली थी.उसके जिस्म मे विजयंत के बदन & उसके प्यार करने के अंदाज़ की याद ने आग लगा दी & उसके होंठ प्रणव के लंड पे & कस गये.

“मैं समझी नही.”,उसने लंड मुँह से निकाला & उठ बैठी.प्रणव अपने घुटनो पे खड़ा हो गया तो वो उसकी झांतो मे & निचले पेट पे अपने चेहरे को रगड़ते हुए अपनी मस्ती का इज़हार करने लगी.

“मेरा मतलब है कि क्या तुम यूही बस अपनी उलझन का रोना रोती रहोगी या कुच्छ करोगी भी?..आहह..!”,रंभा ने उसके 1 अंडे को मुँह मे भर ज़ोर से चूसा.

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12-19-2017, 10:39 PM,
#49
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--48

गतान्क से आगे......

“पर मैं करू क्या?!”,रंभा के कान अब खड़े हो गये थे..आख़िर प्रणव के मन मे क्या चल रहा था?..उसने उसकी गंद को अपनी गिरफ़्त मे ले लिया था & उसके लंड को अपने मुँह मे हलक तक भर सर आगे-पीछे कर रही थी & प्रणव को ये एहसास हो रहा था कि वो अपनी महबूबा का मुँह चोद रहा है.आहें भरते हुए उसने उसके सर को थाम लिया था.

“तुम पढ़ी-लिखी,काबिल लड़की हो.शादी से पहले तुम नौकरी करती थी तो अब क्यू नही काम करती?”,उसने रंभा का सर अपने लंड से खींचा.रंभा को ये अच्छा तो नही लगा लेकिन अगले ही पल वो फिर से खुश हो गयी क्यूकी प्रणव ने उसे लिटा के अपना लंड दोबारा उसके मुँह मे दे दिया था & खुद 69 पोज़िशन मे आते हुए उसकी चूत चाटने मे जुट गया था.उसकी भारी जाँघो को थाम के उसने फैलाया & अपनी आतुर ज़ुबान उसकी गुलाबी चूत मे उतार उसके रस को चाटने लगा.

“उउम्म्म्म..”,रंभा ने अपनी नाक उसकी झांतो मे रगडी.प्रणव की ज़ुबान उसकी चूत को पागल कर रही थी,”..पर कैसा काम करू मैं?..आन्न्‍णणन्..!”,प्रणव उसके दाने को उंगली से ज़ोर-2 से रगड़ रहा था & उसकी कमर अपनेआप उचकने लगी थी.

“ग्रूप को जाय्न कर लो.समीर को बोलो कि वो तुम्हे कोई भी काम दे दफ़्तर मे.कितना भी मामूली क्यू ना हो मगर काम हो ताकि तुम घर मे बैठी मायूस ना हो & तुम्हारा दिल बहला रहे.”,प्रणव उसके दाने को रगड़ते हुए उसकी चूत से बहते रस को पी रहा था.

“आन्न्‍न्णनह..हाआआन्न्‍ननननननणणन्.....!”,प्रणव की झांतो मे मुँह बेचैनी से रगड़ते हुए उसके आंडो को नाक से छेड़ती रंभा झाड़ गयी थी,”..क्यू जानेमन..तुम तो हो ही मेरा दिल बहलाने के लिए फिर मुझे दफ़्तर मे नीरस फाइल्स मे सर खपाने की बात क्यू कर रहे हो?..उउन्न्ञणन्..!”,रंभा मस्ती की खुमारी मे भी प्रणव के दिल को टटोल रही थी.प्रणव उसके उपर से उतरा तो वो बाई करवट पे हो गयी & वो उसके पीछे आ गया & उसकी जाँघ उठाके अपने लंड को दोबारा उसकी चूत मे घुसाने लगा.

“पर तुम भी अच्छी तरह से जानती हो की लाख चाहने के बावजूद..आहह..कितनी कसी है तुम्हारी चूत,जान!..समीर तुम्हे चोद्ता नही क्या,मेरी रानी?”,उसने लंड पूरा अंदर घुसाया & उसकी जाँघ को थामे हुए उसकी चुदाई मे जुट गया.

“चोद्ता है मगर उसके पास तुम्हारे जैसा अंदाज़ कहा!”,रंभा ने दाए हाथ को टाँगो के बीचे ले जा उसके अंडे दबा दिए तो वो जॉश मे पागल हो उसकी चूचियो को दबाने लगा & उसे चूमने लगा.

“हां तो मैं कह रहा था कि मैं हर पल तुम्हारे साथ नही हो सकता और जुदाई के उन लम्हो मे तुम अकेलेपन & अपने दर्द को & शिद्दत से महसूस करोगी.तो ज़रूरी है कि तुम अपना ध्यान कही और भी लगाओ.फिर तुम समीर की बीवी होने के नाते कंपनी की कुच्छ हद्द तक मालकिन भी हो.तुम्हारा भी हक़ बनता है ग्रूप पे.”,प्रणव धक्के लगाता हुआ उसके दाने को भी रगड़ रहा था & रंभा का जिस्म झटके खाने लगा था.चूत पे दोहरी मार वो बर्दाश्त नही कर पाई थी & झाड़ गयी थी,”..& सबसे ज़रूरी बात..”,उसने रंभा की चूत सेबिना लंड निकाले उसे पीठ के बल लिटाया & फिर उसकी जाँघ को थामे हुए उसकी टाँगो के बीच आ गया & उसके उपर लेट गया.रंभा ने उसे बाहो मे भर लिया & उसके चेहरे & होंठो को चूमने लगी.

“..इन भाई-बेहन के लिए हम खिलोने हैं रंभा..”,वो उसकी गर्दन चूम रहा था.उसके धक्के रंभा को मस्ती से बहाल कर रहे थे.रंभा के पैर उसकी पिच्छली जाँघो पे लग गये थे & वो कमर उचका रही थी,”..इन्हे हम पसंद आ गये तो ये हमे शादी कर अपने घर ले आए..”,रंभा ने उसे बाहो मे भींच लिया था.उसके जिस्म का दबाव उसे बहुत भला लग रहा था.उसके दिल मे फिर से विज़ायंत के जिस्म के भार के मीठे एहसास की खुमारी जागी & उसकी चूत की कसक दोगुनी हो गयी & वो आहें भरते हुए तेज़ी से कमर उचकाने लगी,”..कल को ये हम से ऊब जाएँगे और हमे अपनी ज़िंदगी से ऐसे निकाल फेंकेगे जैसे दूध मे पड़ी मक्खी इसीलिए ज़रूरी है कि हम अगर इनकी ज़ाति ज़िंदगी मे इनके काम के ना रहें तो इनकी कारोबारी ज़िंदगी मे हम इनकी ज़रूरत बने रहें..आहह..!”,रंभा की चूत की कसक चरम पे पहुँची & उसने अपने नाख़ून प्रणव की पीठ मे धंसा दिए & उचक के उसे चूमने लगी.उसकी चूत ने झड़ते ही अपनी मस्तानी हरकतें शुरू कर दी & प्रणव का लंड उस मस्ती से बहाल हो वीर्य की पिचकारियाँ छ्चोड़ने लगा.

सुकून से भरी रंभा अपनी च्चातियो पे पड़े हान्फ्ते प्रणव के बॉल सहला रही थी & ये सोच रही थी कि उसके नंदोई की बातो मे ईमानदारी है या फिर उसका मक़सद कुच्छ और है..जो भी हो..उसकी चुदाई ज़बरदस्त थी & उसे तो उसी से मतलब था..& फिर उसकी ईमानदारी जानने के लिए उसे अपने बिस्तर मे रखने से ज़्यादा अच्छी तरकीब और क्या हो सकती है.

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वो शख्स सिगरेट का 1 पूरा पॅकेट ख़त्म कर चुका था.रंभा को अपार्टमेंट के अंदर गये 3 घंटे हो गये थे लेकिन वो अभी तक बाहर नही आई थी.उसकी समझ मे नही आ रहा था कि आख़िर वो अंदर कर क्या रही थी.वो यहा तक कार खुद चला के आई थी & अगर वो यहा से सीधा अपने बंगल गयी तो वाहा तक के रास्ते मे बीच मे 1 सुनसान हिस्सा पड़ता था जहा उसका काम हो सकता था.उसने सिगरेट का 1 नया पॅकेट डॅशबोर्ड से निकाला & खोल के 1 नयी सिगरेट सुलगाई.आज तो वो रंभा से मुलाकात करके ही रहेगा,उसने पक्का इरादा किया & काश खींचने लगा.

“दफ़्तर नही जाना क्या?..छ्चोड़ो ना..& कितना करोगे..ऊव्ववव..!”,रंभा बिस्तर पे बैठी थी & प्रणव उसे पीछे से बाहो मे भरे उसकी छातियो को मसलते हुए उसे वापस लिटाने की कोशिश कर रहा था.

“अभी तो पूरा दिन पड़ा है,जानेमन!”,उसने उसके निपल्स को उंगलियो मे दबाया & उसके दाए कान पे काटा.

“नही.अब हो गया.अब ऑफीस जाओ & मैं भी घर जाती हू वरना किसी को शक़ ना हो जाए.”,रंभा उसकी गिरफ़्त से निकली & बिस्तर से उतर अपने कपड़े उठा बाथरूम मे घुस गयी.प्रणव ने भी ठंडी आह भरी & अपने कपड़े पहनने लगा.रंभा ने बात तो ठीक कही थी लेकिन वो भी मजबूर था.वो हसीन थी ये तो उसे पता था लेकिन उसके नंगी होने पे & साथ हमबिस्तर होने पे उसे पता चला कि उसका हुस्न कितना नशीला,कितना दिलकश है & उसकी अदाएँ कितनी क़ातिल हैं.वो तो उसे अपने पहलू से निकलने ही नही देना चाहता था मगर किया क्या जा सकता था!

रंभा बाथरूम से निकली तो उसने वही ब्लाउस पहना था जिसे पहन वो फ्लॅट मे आई थी.प्रणव ने उसे सवालिया निगाहो से देखा तो रंभा दूसरे ब्लाउस को पॅकेट मे रखते हुए मुस्कुराइ,”ये ब्लाउस पहन के निकलती तो लोग सोचते नही कि पति शहर से बाहर है & किसी पार्टी मे भी नही जा रही तो ऐसे लिबास मे किसे रिझाने जा रही है.”

प्रणव मुस्कुरा. हुए उसके करीब आया & उसे बाहो मे भर चूमते हुए कमरे से निकल फ्लॅट के मेन दरवाज़े की ओर बढ़ा. रंभा हसीन थी,दिलकश थी & काफ़ी होशियार भी.प्रणव को इस बात की खुशी हुई की उसे ज़्यादा कुच्छ समझाना नही पड़ेगा लेकिन साथ ही ये डर भी लगा कि कही उसकी चालाकी उसकी राह मे कोई रोड़ा ना अटकाए.फिलहाल तो ये हुसनपरी उसकी बाहो मे थी & अभी उसे खुद से जुदा करने का उसका कोई इरादा नही था,”तुम 15 मिनिट बाद निकलना.ओके?”,प्रणव ने 1 आख़िर बार उसके लब चूमे & निकल गया & उसके कहे मुताबिक 15 मिनिट बाद रंभा भी.

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रंभा ड्राइव करते हुए प्रणव के बारे मे सोच रही थी.उसकी समझ मे नही आ रहा था कि आख़िर वो उसे ग्रूप जाय्न करने को क्यू उकसा रहा था..जो भी हो बात तो ठीक लगती थी..लेकिन वो करेगी क्या?..उसने कार उसी सुनसान स्ट्रेच पे मोदी.मोड़ पे 1 सिनिमा का पोस्टर लगा था जिस पर कामया की तस्वीर बनी थी.उसे देखते ही रंभा के दिल मे गुस्सा,नफ़रत & जलन भर गये लेकिन दिमाग़ मे 1 ख़याल कौंधा..हां!..यही ठीक रहेगा..वो ट्रस्ट ग्रूप की फिल्म प्रोडक्षन कंपनी को जाय्न करेगी & इस चुड़ैल पे नज़र रखेगी..नज़र क्या,कामिनी का करियर ही चौपट कर देगी!....स्कककककककरररर्रररीईईककचह..!

ख़यालो मे डूबी रंभा ने अचानक 1 इंसान को गश खाते हुए रास्ते के बगल से उसकी कार के सामने आ गिरते देखा & उसने फ़ौरन ब्रेक लगाया.बस ज़रा सी देर करती और वो इंसान उसकी कार के पहियो के नीचे आ जाता.वो जल्दी से कार से उतरी & उस आदमी को देखने गयी जो औंधे मुँह बेहोश पड़ा था.

“सुनिए..सुनिए..!”,रंभा ने उसके कंधे पे हाथ रख के हिलाया ही था कि वो शख्स बिजली की फुर्ती से उठा & अपनी बाए हाथ मे पकड़ी पिस्टल रंभा की ओर तान दी.रंभा डर से कांप उठी..गाल पे वो निशान!..ये तो वही शख्स था जो क्लेवर्त के बुंगले मे घुसा था!

“ चुपचाप अपनी कार मे बैठो.”,उस शख्स ने पिस्टल को अपने कोट की बाई जेब मे घुसा उसे अंदर से रंभा पे तान दिया था ताकि बगल से गुज़र रही इक्का-दुक्का गाडियो को वो ना दिखे,”..भागने की कोशिस या ज़रा भी चूं-चॅपॅड की तो गोली भेजे के पार होगी.बैठो!”

“इधर नही ड्राइविंग सीट पे.”,रंभा कार की पिच्छली सीट पे बैठने लगी तो उसने उसे टोका,”..अब कार आगे बढ़ा & जिधर मैं कहु वाहा ले चलो.”,वो रंभा के बगल मे बैठ गया था & उसकी पिस्टल अभी भी कोट की बाई जेब मे च्छूपी रंभा पे तनी थी.वो शख्स बहुत चालाक था.रंभा की शुरुआती घबराहट कम हुई तो उसने सोचा था की रास्ते के किसी ट्रॅफिक सिग्नल पे कार रुकी तो वो ख़तरा मोल ले शोर मचा देगी लेकिन उस शख्स ने ऐसे रास्ते चुने जिनपे सिग्नल था ही नही & जो 1-2 मिले भी उनपे कोई खास भीड़ थी ही नही.उपर से सिग्नल्स पे वो शख्स पिस्टल को जेब से निकाल उसकी खोपड़ी से सटा देता था.

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थोड़ी देर बाद कार शहर के बाहर 1 नयी बस्ती कॉलोनी के 1 खाली मकान के बाहर रुकी.उस शख्स ने शहर आने के बाद सबसे पहले-रंभा पे नज़र रखने से भी पहले-इस जगह को ढूँढा था.उस मकान के मालिक विदेश मे थे & उनका जो रिश्तेदार बीच-2 मे उसे देखने आता था वो भी 2 महीनो से बाहर था.उसने उसका ताला तोड़ा & उसपे अपना ताला लगा दिया.

“कार से उतर के गेट के अंदर चलो & याद रहे कोई चालाकी मत दिखाना वरना यही ढेर कर दी जाओगी.”,रंभा जानती थी की वो बुरी तरह फँस गयी है & उस शख्स की बातें मानने की अलावा उसके पास & कोई चारा नही.मकान के अंदर घुसते ही उस शख्स ने उसे 1 कुर्सी पे बैठने को कहा & फिर उसे उस से बाँध दिया.

“तुम चाहते क्या हो?कौन हो तुम?..आख़िर मुझे यहा बंद क्यू किया है?”,वो शख्स सिगरेट सुलगाते हुए मुस्कुरा रहा था.

“तुमहरा नाम रंभा है?”

“हां,लेकिन..-“,उसने हाथ उठा उसे खामोश रहने का इशारा किया.

“तुम्हारी मा का नाम सुमित्रा था?”

“हां.”

“तुम उसके साथ गोपालपुर नाम के कस्बे मे रहती थी?”

“हां.”,कयि दिनो मे पहली बार उस शख्स को सुकून मिला था.उसकी तलश अंजाम तक पहुँच गयी थी.यही थी उस कमिनि की बेटी!उसने सिगरेट फेंकी,उसकी आँखो मे खून उतर आया था & इतने दिनो से अंदर उबाल रहा गुस्सा अब बस फूट पड़ना चाहता था.वो तेज़ी से आगे बढ़ा & रंभा का गला दबाने लगा.

“उउन्नगज्गघह..छ्चोड़ो..!”,रंभा के गले से आवाज़ भी नही निकल रही थी.

“ग़लती तुम्हारी नही है..ग़लती तो तुम्हारी कमीनी माँ की है..लेकिन क्या करें मुझे इन्तेक़ाम लेना है & वो मक्कार तो मर गयी.अब मा-बाप के क़र्ज़ औलाद नही उतरेगी तो & कौन उतरेगा!”,वो शैतानी हँसी हंसा & रंभा का गला छ्चोड़ दिया.रंभा बुरी तरह खांसने लगी,”..लेकिन घबराओ मत.तुम्हारी मौत इतनी जल्दी & इतनी आसान नही होगी.14 बरस गुज़ारे हैं जैल मे & उसके बाद भी बहुत धूल फंकी है.उस सब की कीमत तो तुम्हे ही चुकानी है.”

“लेकिन तुम हो कौन?..& मेरी माँ ने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा?..वो बहुत भली औरत थी..तुम्हे कोई ग़लतफहमी हुई है..!”,रंभा का गला दुख रहा था.

“चुप!वो मक्कार थी.अपने रूप & बातो के जाल मे मुझे फँसा के मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी & खुद ऐश करने लगी दयाल के साथ!”

“बकवास मत कर,कामीने!मेरी मा के बारे मे अनाप-शनाप मत बोल,हराम जादे!”,मा के बारे मे उल्टी-सीधी बातें सुन रंभा को गुस्सा आ गया.

“तड़क्कककक..!”,उसने 1 करारा तमाचा रंभा के गाल पे रसीद किया,”..तू भी उस हराम की कमाई पे ही पली-बढ़ी है ना..तुझे तो अब सज़ा ज़रूर मिलेगी.”,वो दोबारा उसका गला घोंटने लगा,”..मेरे पैसे चुरा के भागी थी वो दयाल के साथ.मैं उस से प्यार करता था & शादी करना चाहता था लेकिन वो कमीनी मेरे पैसे लेके भाग गयी मेरे ही दोस्त के साथ!

“तब तो ज़रूर मारो मुझे….उउन्न्नननगज्गघह…..पैसे चुराने के बाद भी जिसे तंगहाली मे ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ी..ऐसी औरत की बेटी का तो मर जाना ही अच्छा है..!”,रंभा की आवाज़ मे कुच्छ ऐसा था कि वो शख्स रुक गया,”..रुक क्यू गये..!दबाओ मेरा गला..”,रंभा खाँसने लगी,”..मार दो मुझे जान से ताकि उपर जाके अपनी मा से ये सवाल कर सकु कि अगर उसने इतने पैसे लूटे थे तो फिर वो बेचारी पूरे साल मे बस 1 सारी क्यू ख़रीदती थी?..क्यू वो मुझे कोई कमी महसूस ना हो इसके लिए वो 12-12 घंटे काम करती रही उस 2 टके के की जगह मे?..& उसका कोई यार था तो क्यू सारी उम्र उसने तन्हा गुज़ार दी?..रातो को मुझसे च्छूप वो क्यू रोती रहती थी?. .”,रंभा कितनी भी मतलबी लड़की थी लेकिन अपनी मा से उसे बहुत प्यार था & उसकी याद आते ही उसकी आँखे छलक पड़ी.,वो शख्स कुच्छ देर उसे देखता रहा.वो उस लड़की को भाँपने की कोशिश कर रहा था..उसके आँसू सच्चे लग रहे थे.बातो से भी ईमानदारी की महक आ रही थी.लड़की हिम्मतवाली भी थी..अभी भी घबरा नही रही थी & शायद उसे बातों मे फाँसना चाह रही हो..लेकिन हो सकता है बात सही कह रही हो..दयाल तो था भी कमीना!..& जब सब हुआ था तो ये बमुश्किल 3-4 बरस की होगी..अब इसे क्या पता?..उपर से ना जाने उसने इसे क्या कहानी सुनाई हो..वैसे बताने मे कोई हर्ज भी नही..पता तो चले सुमित्रा ने बेटी को क्या बताया था अपनी ज़िंदगी के बारे मे!..मगर इस लड़की से होशियार रहना पड़ेगा.थी ये भी मा के ही जैसी..साली ससुर के साथ सोती थी!

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क्रमशः.......
Reply
12-19-2017, 10:39 PM,
#50
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--49

गतान्क से आगे......

“तुम्हे पता है तुम्हारा बाप कौन है?”

“नही.जो भी था 1 डरपोक,बुज़दिल &घटिया किस्म का इंसान था जो मेरी मा के पेट मे मुझे डालने की हिम्मत तो रखता था लेकिन उसे & मुझे अपनाने की नही.”,रंभा की रुलाई अब धीमी हो गयी थी..तो सुमित्रा ने उसे ये बात तो सही बताई थी.

“मेरा नाम देवेन सिन्हा है.तुम्हारी मा को मैने पहली बार गोपालपुर के पोस्ट ऑफीस मे देखा था..”,उसने 1 कुर्सी खींची & बैठ गया & 1 नयी सिगरेट सुलगाई,”..& उसे देखता ही रह गया था.उस वक़्त तुम भी उसकी गोद मे थी.हल्की गुलाबी सारी मे लिपटी तुम्हे गोद मे लिए सुमित्रा को देख पहली बार मेरे दिल मे शादी का ख़याल आया था..मैने सोचा कि काश मेरी भी ऐसी 1 बीवी & बच्ची हो तो ज़िंदगी कितनी सुहानी हो जाए..”

“..उसके बाद इत्तेफ़ाक़ कहो या कुच्छ और मैं उस से कयि बार टकराया और हमारी जान-पहचान हो गयी.चंद मुलाक़ातो मे ही मैने इरादा कर लिया कि सुमित्रा को मैं अपनी बनाउन्गा & 1 दिन अपने दिल की बात मैने तुम्हारी मा से कह दी.उसने कोई जवाब नही दिया & मुझसे मिलना छ्चोड़ दिया.मेरी हालत तो दीवानो जैसी हो गयी & तब मैने दयाल का सहारा लिया..”,रंभा ने देखा कि उसकी मा के बारे मे बात करते हुए उस शख्स की आँखो मे नर्मी आ गयी थी लेकिन दयाल नाम को लेते ही वो फिर से अपने पुराने अंदाज़ मे आ गया था.

“..दयाल मेरा दोस्त था.सब कहते थे कि वो चलता पुर्ज़ा & निहायत शातिर आदमी है लेकिन मेरे साथ उसने कभी कोई धोखाधड़ी नही की थी & हमेशा मदद ही करता था.तुम्हारी मा से भी मेरी दोबारा बात करवाने मे उसने बहुत मदद की थी.मैने सुमित्रा से उसकी बेरूख़ी की वजह पुछि तो उसने कहा कि मैं अपनी ज़िंदगी बर्बाद ना करू और उसने उस रोज़ मुझे तुम्हारे पैदा होने की सही कहानी बताई.उस से पहले तो सब यही समझते थे कि तुम्हारे पिता तुम्हारे जनम होने के पहले ही मर गये.उस रोज़ मेरे दिल मे सुमित्रा के लिए प्यार & गहरा हो गया & मैने अपनी बात दोहराई लेकिन उसे तुम्हारी फ़िक्र थी.उसे डर था कि जब वो मेरे बच्चे की मा बनेगी तो मैं तुम्हे वैसा प्यार नही दे पाऊँगा.मैने उसे बहुत समझाया & आख़िर मे वो मान ही गयी.मैं खुशी से नाच उठा & उसे चूम लिया..”,रंभा ने नज़रे नीची कर ली.मा के बारे मे रोमानी बातें सुनने से उसे शर्म आ गयी थी.

“..वो शाम & उसके बाद की कयि शामे मेरी ज़िंदगी की सबसे हसीन शामे थी.मैं उतावला था & सुमित्रा का दीवाना & बहक के केयी बार कोशिश की उसे शादी के पहले ही अपना बना लू लेकिन वो मुझे हमेशा ही मना कर देती थी.बात सही भी थी.उस छ्होटे से कस्बे मे हमारी चाहत की खबर आम नही हुई थी यही बड़ी कमाल की बात थी & कही मैं हदें पार कर जाता तो वो तो बदनाम हो ही जाती..”

“..मेरी माली हालत बहुत अच्छी तो थी नही & मैं नही चाहता था की शादी के बाद तुम्हारी मा काम करे लेकिन उसके लिए मुझे पैसो की ज़रूरत थी.तब दयाल ने मुझे रास्ता दिखाया जो उस वक़्त तो मुझे लगा कि मेरी खुशली की ओर जाता है पर बाद मे मुझे पता चला कि वो रास्ता तो मेरी बर्बादी की तरफ जाता है और उसे बताने वाला शख्स मेरा दोस्त नही बल्कि दोस्ती का नक़ाब पहने 1 दुश्मन है.”,उसने सिगरेट फर्श पे फेंक के उसके तोटे को जूते से मसला & रंभा को देखने लगा.

“अब मैं तुम्हे बताने जा रहा हू कि कैसे मेरे दोस्त & मेरी महबूबा ने मुझे धोखा दिया & उसकी सज़ा आज तुम्हे भुगतनी पड़ रही है..-“

“-..1 मिनिट.मेरी मा दोषी नही है.”

“ये तुम कैसे कह सकती हो?तुम्हे तो उस वक़्त कोई होश भी नही था?”

“पहले तो आजतक मैने किसी दयाल नाम के शख्स के बारे मे ना तो सुना ना ही देखा & फिर वही बात कि अगर मेरी मा ने आपको धोखा दिया तो फिर हम दोनो को अपनी ज़िंदगी उस ग़रीबी मे क्यू गुज़ारनी पड़ी.”,अब वो शख्स सचमुच सोच मे पड़ गया.जब वो कयि बरसो बाद गोपालपुर गया था & पता किया था तो पाया था कि सुमित्रा 1 छ्होटे से मकान मे ही रहती थी & वो भी किराए पे.उसके बारे मे उसने बहुत जानकारी जुटाई थी & यही पता चला था कि वो निहायत शरीफ औरत थी & उसके चाल-चलन पे कभी कोई 1 उंगली भी नही उठा सका था लेकिन उसके इन्तेक़ाम की आग से झुलस रहे दिलोदिमाग ने उस बात को मानने से इनकार कर दिया था.

“हो सकता है दयाल ने बाद मे उसे भी धोखा दिया हो & उसके हिस्से का रुपया उसे ना दिया हो?”,इस बार उसके सवाल मे वो शिद्दत नही थी.रंभा की बातो ने उसकी सोच को हिला दिया था.

“मान ली तुम्हारी बात लेकिन अगर मेरी मा की फ़ितरत ऐसी थी तो उसने फिर किसी & मर्द से यारी क्यू नही गाँठि या फिर किसी और के पैसे क्यू नही हड़पे?”,रंभा उसकी आँखो मे बेबाकी से देख रही थी.देवेन को वाहा ज़रा भी झूठ नज़र नही आ रहा था मगर..

“तुम्हे पता नही होगा और फिर तुम भी तो अपने ससुर के साथ..-“,रंभा चौंक पड़ी..यानी क्लेवर्त मे उस रात उसने उसे विजयंत मेहरा की बाहो मे देख लिया था.

“मैं 1 बहुत मतलबी लड़की हू जो अपनी खुशी के लिए किसी भी हद्द तक गिर सकती है मगर मेरी मा 1 देवी थी.आपने शुरू मे उसे बिल्कुल सही समझा था..आप चाहे तो मुझे मार दीजिए लेकिन मेरा यकीन मानिए..उस औरत को पूरी ज़िंदगी मे कोई खुशी नही मिली और मुझे मलाल है इस बात का कि आज जब मैं जोकि बहुत बुरी हू..जोकि अपने ससुर के साथ सो चुकी है..इस काबिल हू कि जो चाहू वो मेरे पास आ जाए..तो वो औरत ज़िंदा नही है कि मैं उसे चंद खुशिया दे सकु.”,रंभा की निगाहो की ईमानदारी पे उसे अब शक़ नही था लेकिन फिर भी 1 सवाल तो था..

“..तो आख़िर सच क्या है & दयाल आख़िर गया कहा?”

“हुआ क्या था जिसने आपकी ज़िंदगी तबाह कर दी?”

“बताता हू.”

“दयाल छ्होटे-मोटे ग़लत काम करता था,ये मुझे पता था लेकिन वो इतने संगीन जुरमो से वास्ता रखता होगा ये मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नही था.जब मैने उसे अपनी पैसो की मुश्किल की बारे मे बताया तो उसने मुझे 1 काम बताया.काम बहुत आसान था,बस मुझे 1 सील बंद पॅकेट लेके गोपालपुर से कोलकाता जाना था & उसके बताए पते पे दे देना था.इस काम के लिए मुझे वो .25,000 दे रहा था.मैने उस से पुछा की आख़िर ऐसा क्या है उस पॅकेट मे जो वो मुझे उसे बस 1 जगह से दूसरी जगह ले जाने के इतने पैसे दे रहा है तो उसने कहा कि उसमे कीमती पत्थर हैं जोकि मुझे कोलकाता मे 1 ज़ोहरी के यहा पहुचाने हैं & इसीलिए मुझे इतने पैसे मिल रहे हैं.”,वो उठा & कमरे के बाहर गया & जब लौटा तो उसके हाथ मे पानी की 1 बॉटल थी.

“मैने वो पॅकेट कोलकाता पहुचाया & मुझे पैसे मिल गये.मैं बड़ा खुश हुआ.ये दूसरी बात थी की गोपालपुर से कोलकाता तक रैल्गाड़ी मे डर के मारे मेरी हालत खराब रही,आख़िर सवाल जवाहरतो का था.”,उसने पानी के घूँट भरे & फिर 1 पल को सोच बॉटल रंभा की ओर बढ़ाई तो उसने हां मे सर हिलाया.वो अपनी कुर्सी से उठा & बाए हाथ से उसकी ठुड्डी पकड़ उसे पानी पिलाया.

“इसके बाद मैं खुद दयाल से आगे भी ऐसे काम मुझे देने को कहने लगा.पहले तो उसने मना किया लेकिन मेरे इसरार पे उसने फिर से मुझे कोलकाता ले जाने को 1 पॅकेट दिया.इस बार भी मुझे उतने ही पैसे दिए गये.मैने उस से पुछा की आख़िर कौन है वो जो उसे ये पत्थर देता है लेकिन वो बात टाल गया.मैने सुमित्रा को भी सब बताया था.उसने मुझे उस काम को करने से मना किया लेकिन मुझे पैसो का लालच तो था ही.”,उसने थोड़ा पानी & पिया,”..जैल जाने के बाद मुझे एहसास हुआ कि दोनो नाटक कर रहे थे.

“दयाल के बारे मे जो मर्ज़ी कहो लेकिन मेरी मा के बारे मे नही.”

“2 बार पॅकेट ले जाने के बाद मेरा हौसला भी बढ़ गया था & मैं तीसरी बार भी पॅकेट ले जाने को तैय्यार हो गया मगर इस बार सब गड़बड़ हो गया.ट्रेन मे मैने गौर किया कि 1 शख्स मुझपे नज़र रखे हुए है.मैं डर गया कि कही वो मेरे पॅकेट के जवाहरतो को लूटने के चक्कर मे ना हो.उसे चकमा देने के लिए मैं हॉवरह के बजाय सेअलदाह स्टेशन पे उतर गया और वाहा से 1 टॅक्सी कर दयाल के दिए पते पे जाने लगा.रास्ते मे मैने देखा कि 1 कार मेरा पीछा कर रही है.मैने टॅक्सी आधे रास्ते मे छ्चोड़ी & फिर 1 फेरी पकड़ के कुच्छ दूर गया & वाहा से फिर टॅक्सी ली लेकिन हर जगह मुझे लगा कि मुझपे नज़र रखी जा रही है.पहले मैने सोचा कि मेरी घबराहट की वजह से मुझे वहाँ हो रहा है लेकिन उस पते पे पहुँच पॅकेट थमाते ही मुझे पता चल गया कि मुझे जो लगा था सही था.वो शख्स चोर नही बल्कि पोलीस का आदमी था & उसने स्मगल किए हुए सोने के बिस्किट्स के साथ पकड़ा था.”

“..जैसे ही मुझे पकड़ा गया मैं बौखला गया & वाहा से भागने की कोशिश करने लगा.उस पोलिसेवाले ने,जो मेरा ट्रेन मे पीछा कर रहा था,मुझे पकड़ लिया तो मैने उसे मारा और भागा लेकिन वो मेरे पीछे आया & मुझपे वार किया & उसकी अंगूठी मेरे गाल पे बुरी तरह से रगडी और ये निशान पड़ गया.मैने भी वही पड़ा 1 भारी गुल्दान उसके सर पे दे मारा.मेरी फूटी किस्मत की उसका सर फॅट गया &और २४ घंटे अस्पताल मे रहने के बाद वो मार गया

“तो इसमे मेरी मा का क्या दोष है?”

“उसी ने मेरा नाम पोलीस को बताया था और इनाम की रकम ली थी.पॅकेट के बारे मे बस दयाल,वो और मैं जानते थे तो मुझे धोखा देने वाले भी वही दोनो थे ना.जब मैने पोलीस को दोनो से कॉंटॅक्ट करने को कहा तो दोनो मे से किसी ने भी मुझे जानने से इनकार कर दिया.अब बताओ आख़िर क्या वजह थी दोनो के ऐसा करने की?”

“ये भी तो हो सकता है कि मेरी मा तक तुम्हारी बात कभी पहुँची ही ना हो & फिर तुम्हारी बातो से तो यही लगता है की ये दयाल बहुत शातिर था & अपनी साज़िश को च्छुपाने केलिए इसने या तो मा से झूठ बोला होगा या फिर उस तक बात पहुचने ही नही दी होगी.”,अब देवेन सोच मे पड़ गया..जैल मे उसने 1 हवलदार को पैसे खिलाके सुमित्रा तक अपना संदेश पहुचने को कहा था.उसने अपने साथी क़ैदी से क़र्ज़ ले उसे पैसे दिए थे & उसी हवलदार ने उसे बताया था कि सुमित्रा ने उसे पकड़वाने का इनाम लिया है और इनाम लेने वो जिस शख्स के साथ आई थी उसका हुलिया दयाल जैसा ही था.मगर रंभा की बातो ने उसे दूसरे पहलू पे भी सोचने को मजबूर कर दिया था.

“मैं फिर कहती हू कि तुम्हे ग़लतफहमी हुई है.मुझे मारने से तुम्हे शांति मिलती है तो मार दो लेकिन ये सच नही बदलेगा कि मेरी मा का तुम्हारी बर्बादी से कोई लेना-देना नही.”,2 घंटे पहले उसका इरादा पक्का था कि वो इस लड़की को मार के अपना बदला पूरा करेगा लेकिन अब उसका विस्वास डिग गया था.

“तो क्या दयाल & तुम्हारी मा साथ नही थे?”

“नही!..& कौन है ये दयाल आख़िर?..मैने तो उसे कभी नही देखा!”

“ये है दयाल.”,उसने जेब से 1 तस्वीर निकाल उसे दिखाई,”..ये सुमित्रा,मेरी गोद मे ये तुम & ये है दयाल.”,1 गोरा-चिटा शख्स था जो शक्ल से तो भला दिखता था लेकिन उसकी आँखो मे 1 अजीब सी चमक थी जिसे तस्वीर मे भी देख रंभा थोड़ी असहज हो गयी.

“मैने इस आदमी को कभी नही देखा ना ही मा ने कभी इसका कोई ज़िक्र किया.”,अब देवेन को कोई शक़ नही था कि रंभा को सच मे कुच्छ नही मालूम था और शायद सुमित्रा भी निर्दोष थी.वो निढाल हो कुर्सी पे बैठ गया.रंभा को अचानक वो बहुत बूढ़ा लगा.कुच्छ पल बाद वो उठा और उसके बंधन खोल दिए.रंभा अपनी कलाईयो को सहलाती कुर्सी से उठी & उसके सामने खड़ी हो गयी.

“देखिए,मैं आपको नही जानती लेकिन आप मेरी मा को चाहते थे,उसे अपनाना चाहते थे,ये बात मेरे लिए बहुत मायने रखती है.मैं जानती हू,मेरी मा के साथ-2 इस दयाल की भी तलाश होगी आपको ..-“

“-..हां,लेकिन वो तो ऐसे गायब हो गया है जैसे गधे के सर से सींग!”

“उस सींग को ढूँढने मे मैं भी आपकी मदद करूँगी.मेरी मा का नाम बदनाम करने वाले को मैं छ्चोड़ूँगी नही.”,वो हैरत से रंभा को देखने लगा.

“मुझे माफ़ कर सकोगी..मैं अपने इन्तेक़ाम की हवस मे अँधा हो गया था..बुरा मत मानना लेकिन पिच्छले कयि बरसो से मैं सुमित्रा को दोषी मानता आ रहा हू & अभी भी अपनी सोच बदलने मे मुझे परेशानी हो रही है..मेरा दिल तुम्हारी बातो पे यकीन कर रहा है लेकिन दिमाग़ बार-2 मुझे सवाल करने पे मजबूर कर रहा है!”

“ये उलझन सिर्फ़ दयाल के मिलने से ही दूर हो सकती है.आप यकीन कीजिए अब से मैं भी आपके साथ हू.”

“शुक्रिया,चलो तुम्हे तुम्हारे घर तक छ्चोड़ आऊँ.”

“हूँ.”

“ये घर आपका है?”,रंभा कार मे बैठी & एंजिन स्टार्ट किया तो वो हंस दिया & बस इनकार मे सर हिलाया.

“आप जैल से निकला गोपालपुर क्यू नही आए?”

“क्यूकी वाहा से निकलते ही जैल का मेरा 1 साथी मुझे तमिल नाडु ले गया.मैने वाहा हर तरह का काम किया.मुझे इन्तेक़ाम तो लेना था लेकिन अब मैं दोबारा जैल भी नही जाना चाहता था,मेरे उसी साथी ने मुझे पहले पैसे जमा करने की सलाह दी & फिर इन्तेक़ाम लेने की.कुच्छ किस्मत ने भी मेरा साथ नही दिया.मैने वाहा जाने की कोशिश की थी लेकिन हर बार कुच्छ ना कुच्छ अड़ंगा लग जाता था.जब कामयाब हुआ तो पता चला कि सुमित्रा अब इस दुनिया मे है नही & दयाल गायब है.”

“आप अभी भी तमिल नाडु मे ही हैं?..वाहा काम क्या करते हैं आप?”

“नही.अब तो मैं गोआ मे रहता हू & वही बिज़्नेस है मेरा.”

“अब आप क्या करेंगे?”,रंभा का बुंगला नज़दीक आ रहा था & देवेन ने उसे कार रोकने का इशारा किया.

“अभी तो गोआ जाऊँगा..रंभा..मुझे तुम्हे कुच्छ बताना है.”

“क्या?”,देवेन ने उसे कंधार फॉल्स पे देखी सारी बात बता दी.

“वो हरपाल होगा. ”

“पता नही.मुझे उसकी शक्ल नही दिखी थी & दिखती भी तो मैं उसे पहचानता तो हू नही.”

“&सोनिया..वो लड़की मेरे ससुर के साथ आई थी..आपको पक्का यकीन है?”

“बिल्कुल.मैने दोनो को होटेल वाय्लेट से 1 साथ कार मे निकलते देखा था & झरने तक उनका पीछा किया था.”

“अच्छा.”,रंभा सोच मे पड़ गयी.कुच्छ गड़बड़ लग रही थी लेकिन क्या ये वो समझ नही पा रही थी.परेशानी ये थी कि ये बात वो पोलीस को भी नही बता सकती थी क्यूकी ऐसा करने से देवेन बिना बात के इस चक्कर मे फँस जाता.

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क्रमशः.......
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