Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:36 PM,
#31
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--31

गतान्क से आगे.

उसके नखुनो की चुभन से आहत हो उसने उसके हसीन चेहरे पे हाथ फिराते हुए उसके मुँह मे अपनी ज़ुबान घुसा दी जिसे रंभा ने शिद्दत से चूसा.विजयंत ने कुच्छ देर बाद होंठ अलग किए & वैसे ही लंड उसकी चूत पे घुमाया तो रंभा ने आह भरी.विजयंत के हाथ उसकी चूचियो से लगे तो रंभा ने कंधे दीवार से लगा सीना & आगे कर दिया.विजयंत ने उन्हे दबाया & फिर सीधा खड़ा हो गया.ससुर के जिस्म के नशे मे चूर रंभा दीवार से हटी & उसे बाहो मे भर चूम लिया & फिर उसके होंठो को छ्चोड़ नीचे उसके सीने पे आ गयी & धीरे-2 काटने लगी.

विजयंत ने आँखे बंद कर सर पीछे फेंका & आह भरी & फिर तुरंत रीता को गर्दन घुमा के देखा.बिस्तर उन दोनो से काफ़ी दूर था & शायद यही वजह थी कि वो बीवी की मौजूदगी मे बहू का लुत्फ़ उठाने मे कामयाब हो रहा था.रंभा उसके निपल्स को दांतो से छेड़ने के बाद धीमे-2 काटते हुए नीचे आई & उसकी बालो से ढँकी नाभि मे जीभ फिराई.उस वक़्त विजयंत ने बड़ी मुश्किल से अपने लंड को पिचकारी छ्चोड़ने से रोका.

रंभा नीचे आई & अपने गालो पे उसके प्रेकुं से गीले तगड़े लंड को रगड़ा & फिर अपने मुँह मे भर लिया.विजयंत आँखे बंद कर दीवार पे बाया हाथ टीका के आगे झुकता हुआ खड़ा हो गया & डाए हाथ से रंभा की चिकनी पीठ सहलाने लगा.रंभा की ज़ुबान उसके लंड को पागल किए जा रही थी.काफ़ी देर तक वो लंड & उसके नीचे लटक रहे आंडो को जिनपे से विजयंत ने बाल साफ कर रखे थे,चाटती रही & फिर जब उसने मुँह हटा के हाथ उपर ले जा उसकी छाती के बालो मे फिराए तो विजयंत ने उन्हे पकड़ उसे उपर उठाया & बाहो मे भर चूम लिया.

दीवार से सटी उसकी गर्दन को थामे रंभा ने उसके मुँह को अपनी चूचियो से चिपका लिया तो विजयंत नीचे झुका & उसकी जाँघो को हाथो मे थामते हुए लंड को उसकी चूत मे धकेला.

"आईई..!",रंभा के चेहरे पे दर्द की लकीरें खींची लेकिन वो ससुर से बिल्कुल चिपक गयी.उसके घुटनो के पास से उसकी जाँघो को थाम उसे गोद मे उठा विजयंत उसकी चुदाई करने लगा.रंभा को अब कुच्छ होश नही था.ससुर का तगड़ा लंड उसे वही बेजोड़ जिस्मानी मज़ा दे रहा था जिसकी उसे हमेशा ख्वाहिश रहती थी.विजयंत ने दाया हाथ जाँघ से हटाया & उसकी गंद की बाई फाँक को दबोच लिया & उच्छल-2 के उसे चोदने लगा.रंभा ऐसे कभी नही चुदी थी.उसने शादी के पहले ही जिस्मानी रिश्ते कायम किए थे 1 मर्द के साथ.उसके बाद और मर्द आए,1 साथ 2 मर्दो से भी चुदी लेकिन इस तरह से 1 ही मर्द के साथ उसकी सोती बीवी की मौजूदगी मे उसकी गोद मे खड़े होके चुदाई करना!..इसने तो उसे रोमांच से भर दिया था.

विजयंत का दिल उसके सीने की लुभावनी गोलाईयो को चूमने का हुआ & वॉसर नीचे झुकने लगा लेकिन रंभा को थामे रहने के लिए उसे आगे की ओर झुकना पड़ा.रंभा पीछे झुक गयी थी & विजयंत उसकी चूचियाँ चूस्ते हुए,उसे थामे चोद रहा था.विजयंत को कोई तकलीफ़ होती नही दिख रही थी.रंभा तो उसकी मर्दानगी की मुरीद हो गयी!समीर की गुमशुदगी मे उसका हाथ हो या ना हो लेकिन वो जिस्मो के खेल का कमाल का खिलाड़ी था!

उसे उसी तरह झूलते हुए उसने तब तक चोदा जब तक उसकी चूत ने उसके लंड को जाकड़,सिकुड़ते-फैलते हुए उसके झड़ने का एलन ना कर दिया.विजयंत उसे गोद मे उठाए घुमा & अपने बिस्तर के पास चला गया.विजयंत ने जिस्मो का खेल ना जाने कितनी औरतों के साथ,कितने तरीके से खेला था लेकिन इस तरह से बीवी की मौजूदगी मे किसी और को-वो भी अपनी बहू को चोदना,उसके लिए भी बिल्कुल अनूठा तजुर्बा था!

"उधर कहा जा रहे हैं,डॅडी?",रंभा ससुर से चिपटि उसके गले बाहे कसे,उसके बाए कान मे फुसफुसाई.विजयंत ने कुच्छ जवाब नही दिया & पलंग के उस तरफ आ गया जिधर रीता सो रही थी.रीता करवट पे थी & उसकी नंगी पीठ उनकी तरफ थी.विजयंत ने वही पलंग के बगल मे फर्श पे बिछे गाळीचे पे अपनी बहू को बिना उसकी चूत से लंड निकाले लिटाया & घुटनो पे बैठ उसकी कमर को थाम उसकी गंद को गाळीचे से उठा धक्के लगाने लगा.रंभा कालीन के धागो को नोचती सर दाए-बाए झटकते हुए मस्ती मे झूमने लगी.उसकी निगाह जब उपर पलंग पे सो रही अपनी सास पे पड़ती तो वो & रोमांच से भर उठती.

विजयंत उसके पेट को दबाते हुए & उसकी चूचियो को मसल्ते तब तक उसे चोद्ता रहा जब तक उसने कमर उचकानी नही शुरू कर दी.रंभा ने पीछे सर के उपर गाळीचे पे हाथ टीका के ज़ोरोसे कमर उचकानी शुरू कर दी थी & उसका चेहरा मस्ती की शिद्दत से बिल्कुल सख़्त सा दिख रहा था.विजयंत ने फ़ौरन टाँगे फैलाते हुए उसकी चूत को नीचे गाळीचे पे दबाया & हाथ आगे गाळीचे पे टिका उसके उपर झुक के धक्के लगाने लगा.रंभा की चूत ने फिर से उसके लंड पे अपनी जानी-पहचानी हरकत शुरू कर दी थी.विजयंत उसके उपर लेट गया तो रंभा ने अपनी टाँगे उसकी जाँघो के पिच्छले हिस्सो पे फँसा दी.

विजयंत ज़ोरदार धक्के लगा रहा था & रंभा की कोख पे चोट पे चोट किए जा रहा था.रंभा के लिए अब आहें रोकना नामुमकिन था.जिस्म मे ऐसा मज़ा पैदा हो & उसका इज़हार ना कर पाए,अब हर रोज़ तो ये करना उसके लिए मुश्किल था.विजयंत ने फ़ौरन बिस्तर के किनारे से 1 कुशन खींचा & उसके मुँह पे रख दिया.दोनो अभी भी बीच-2 मे रीता को देख रहे थे जोकि सो रही थी.

रंभा ने कुशन को मुँह पे दबा लिया & आहो का शोर उसमे दफ़्न करने लगी.विजयंत उसके उपर लेट गया था & उसका बालो भरा सीना उसकी चूचियो को पीस रहा था.कुच्छ धक्को के बाद जब उसने महसूस किया कि अब रंभा बहुत शिद्दत के साथ कमर हिला रही है & आहें कुशन के बाब्जूद बाहर आ सकती हैं तो उसने कुच्छ तेज़ धक्के & लगाए & उसकी चूत की कसक को शांत किया.रंभा झड़ी & कुशन मुँह से हटा के फेंका & उचकते हुए अपने ससुर की गर्दन पकड़ के उसके दाए कंधे मे मुँह घुसा के अपना दाँत गढ़ा दिए.विजयंत को उसकी इस हरकत से दर्द हुआ पर साथ ही मज़ा भी आया & उसने उसकी चूत मे अपना रस छ्चोड़ दिया.दोनो 1 दूसरे से लिपटे साथ झाड़ते रहे.

कुच्छ देर बाद जब तूफान पूरी तरह से थम गया तो विजयंत ने अपनी बहू को गोद मे उठाया & उसके कमरे मे ले गया & उसके बिस्तर पे बाहो मे भरके तब तक लेटा रहा,जब तक की वो नींद के आगोश मे नही चली गयी.

विजयंत मेहरा ने रंभा के साथ समीर की तलाश शुरू कर दी थी.डेवाले मे 1 रात बिता दोनो अगली सुबह पंचमहल पहुँचे.जब तक रंभा ने अपना समान पॅक किया विजयंत ने समीर के दफ़तर का जायज़ा लिया.मीडीया वालो के लिए इस खबर मे अब वो मज़ा नही रहा था क्यूकी पहले दिन से लेके अभी तक मे कुच्छ मसालेदार नही घटा था लेकिन फिर भी आख़िर बात इतने बड़े आदमी के बेटे के लापता होने की थी.वो रंभा या विजयंत से बात करने की फिराक़ मे लगे ही रहते थे.

रंभा ने अपना समान पॅक किया & अपनी कार मे डलवाया & सीधा होटेल वाय्लेट पहुँची.विजयंत अपनी प्राडो मे पहले से ही उसका इंतेज़ार कर रहा था.रंभा उसकी कार मे बैठी & दोनो निकल पड़े.

पोलीस अपना काम मुस्तैदी से कर रही थी.1 हाइ-प्रोफाइल केस मे कुच्छ गड़बड़ी ना हो जाए इसलिए वो पूरी सावधानी बरत रहे थे.विजयंत ने 1 बार भी पंचमहल पोलीस महकमे पे अपने रसुख का इस्तेमाल कर कोई दबाव नही डाला था.उसकी पहुँच कितनी उपर तक थी ये सभी जानते थे & इस बात को जताने की उसे कोई ज़रूरत नही थी.उसने पंचमहल के पोलीस कमिशनर से बस 1 बार मुलाकात की थी.उपर से राज्य का होम मिनिस्टर,सीएम यहा तक की सेंट्रल गवर्नमेंट के मंत्रियो,जिनमे से किसी से विजयंत ने 1 बार भी इस सिलिसिले मे बात नही की थी,खुद ही पोलीस से लगभग हर रोज़ केस के बारे मे पुच्छ रहे थे.

विजयंत बेटे के लिए कोई शोर नही मचा रहा था इसका मतलब ये नही था कि वो कुच्छ सोच नही रहा था.उसने इरादा पक्का कर लिया था कि अगर उसके बेटे को कोई तकलीफ़ पहुँचा रहा है तो वो उसे अपने हाथो से सज़ा देगा.

रंभा ने कार चलाते अपने ससुर को देखा.उसने आसमानी रंग की चेक की कमीज़ & काली जीन्स पहनी थी & इस वक़्त अपनी उम्र से बहुत ही ज़्यादा कम दिख रहा था.रंभा ने सफेद शर्ट & गहरी नीली जीन्स पहनी थी & उसके जिस्म के सारे कटाव बड़े क़ातिलाना अंदाज़ मे उभर रहे थे.रंभा ने अपने काले चश्मे के पार अपने ससुर को देखा & दाए हाथ को उसकी दाढ़ी पे फिराया & मुस्कुराइ.विजयंत मुस्कुराया & उसका हाथ चूम लिया.वो जानबूझ के रंभा को अपने साथ इस सफ़र पे लाया था ताकि वो हर पल उसपे नज़र रख सके.2 रातो की ज़बरदस्त चुदाई का मतलब ये नही था कि उसकी बहू उसके शक़ के दायरे से बाहर चली गयी थी.

कार पंचमहल से 50किमी की दूरी पे बने पहले मेहरा फार्म के गेट मे दाखिल हुई.विजयंत ने अपने आने की खबर नही दी थी & वाहा का स्टाफ उसे देख चौंक गया & वाहा अफ़रा-तफ़री मच गयी.विजयंत रंभा के साथ मॅनेजर के कॅबिन मे बैठ गया,"सर,समीर सर के बारे मे सुन हम सब भी बहुत परेशान हैं."

"जी,मिस्टर.नाथ.आप बुरा ना माने तो मैं ज़रा पिच्छले 6 महीने के अकाउंट्स & रेकॉर्ड्स देखना चाहूँगा."

"ज़रूर सर.आप यहा मेरी चेर पे बैठिए,कंप्यूटर ऑपरेट करने मे आसानी होगी.",

"ठीक है लेकिन मैं हार्ड कॉपीस भी देखना चाहूँगा.",विजयंत उसकी कुर्सी पे आके बैठ गया & कंप्यूटर खुलने पे फाइल्स देखने लगा.

"ओके,सर.मैं अभी सारी फाइल्स मँगवाता हू.",मॅनेजर कॅबिन से बाहर गया तो उसके पीछे रंभा भी बाहर आ गयी.उसे देखने से ऐसा लग रहा था कि वो ऊब रही है लेकिन हक़ीक़त ये थी कि वो मॅनेजर & बाकी स्टाफ की 1-1 हरकत देख रही थी.

विजयंत का मानना था कि समीर की गुमशुदगी मे अगर ब्रिज कोठारी का हाथ नही था तो हो सकता है अग्री बिज़्नेस की किसी गड़बड़ी का पता चलना समीर की गुमशुदगी का सबब बना हो.वो किसी भी सिरे को बिना जाँचे छ्चोड़ना नही चाहता था.2 घंटे तक सर खपाने के बावजूद उसे वाहा के काम-काज कोई ऐसी गड़बड़ी नज़र नही आई.

रंभा फार्म घूम वाहा के लोगो से बातचीत के दौरान ये पता लगती रही की वाहा के पुराने मॅनेजर को हटाने की वजह क्या थी लेकिन उसे भी कोई ऐसी बात नही पता चली जिस से की किसी पे कोई शक़ जाता.दोनो ने दोपहर का खाना फार्म के मॅनेजर के साथ ही खाया & उसके बाद वाहा की कॉटेज मे आराम करने चले गये.कॉटेज मे 3 कमरे थे & मॅनेजर ने 2 कमरे सॉफ करवा दिए.उस बेचारे को क्या पता था कि उसने दूसरा कमरा बेकार मे ही ठीक करवाया था!

"यहा तो कुच्छ ऐसा पता नही चला.",ससुर के पहलू मे उसके सीने पे सर रखे रंभा ने उसकी शर्ट के उपर के खुले बटन के अंदर हाथ घुसा के उसके सीने को सहलाया.

"हूँ..अकाउंट्स सब ठीक थे.उस मॅनेजर को समीर ने क्यू हटाया था?",वो रंभा के बालो से खेल रहा था.

"वो चाहता था कि उसका तबादला क्लेवर्त कर दिया जाए.वो वही का रहने वाला था..",रंभा उसके सीने पे दोनो हाथ जमा के उनपे ठुड्डी टीका के ससुर को देखने लगी,"..लेकिन वाहा का फार्म हमारे बाकी फार्म्स से अलग हैं."

"हाँ,वाहा हम ठंडी जगहो मे होने वाली सब्ज़ियाँ & फल & फूल उगते हैं.क्लेवर्त 1 हिल स्टेशन है & वाहा बहुत से बोरडिंग स्चोल्स भी हैं..",विजयंत दाए हाथ कि 1 उंगली से उसका बाया गाल सहला रहा था,"..वही हमारी लगभग 90% पैदावार खप जाती है.उस आदमी को तजुर्बा होगा नही इसीलिए समीर ने उसे वाहा भेजा नही होगा."

"वो यहा के काम मे कोताही बरतने लगा था & समीर की चेतावनियो के बावजूद सुधर नही रहा था इसीलिए समीर ने उसे निकाल दिया.यहा के लोगो की बातो से भी ऐसा नही लगता कि उन्हे समीर का फ़ैसला ग़लत लगा हो.मगर क्या इतनी सी बात के लिए वो समीर को नुकसान पहुँचा सकता है?"

"मैं उपरवाले से मनाता तो हू कि ऐसा नही हुआ हो लेकिन..",वो उठ बैठा,"..सच्चाई ये है रंभा,की लोगो को इस से भी मुख्तसर बातो पे अपनी जान गॅवानी पड़ी है.",रंभा के चेहरे का रंग उड़ गया.दिल के किसी कोने मे 1 डर था की समीर शायद अब इस दुनिया मे हो ही ना लेकिन इस तरह से अपने ससुर के मुँह से इस बात को सुनने का असर ही दूसरा था.समीर से उसे प्यार नही था लेकिन वो उस से नफ़रत भी नही करती थी.वो ससुर की चहेती भी बन गयी थी लेकिन वो जानती थी की मेहरा खानदान मे उसकी इज़्ज़त & पुछ तभी होगी जब समीर ज़िंदा रहेगा.नही तो,उसकी सास & ननद के दबाव मे विजयंत जैसे मज़बूत आदमी को भी उसे पैसे देके घर से अलग करना पड़ सकता था & ये उसे मंज़ूर नही था.उसने तय कर लिया था कि चाहे जो भी हो,अब मेहरा खानदान को उसे भी अपना हिस्सा मानना पड़ेगा & उसे भी वही इज़्ज़त देनी पड़ेगी लेकिन समीर के बिना ये मुमकिन होना मुश्किल ही था.

"चलो,चलें.",विजयंत जूते पहन रहा था.रंभा उठी & शीशे मे देख अपने कपड़े ठीक करने लगी.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:36 PM,
#32
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--32

गतान्क से आगे.

"आपने मॅनेजर नाथ से ये क्यू कहा कि हम वापस पंचमहल जा रहे हैं?",विजयंत कार को आवंतिपुर की तरफ भगा रहा था.

"इसलिए ताकि वो आगे के फार्म्स को हमारे आने की खबर ना दे.",रंभा उसके दिमाग़ से प्रभावित हुए बिना नही रह सकी.उसने अपनी सीट बेल्ट खोली & उसके कंधे पे सर रख के सामने रास्ते को देखने लगी.विजयंत ने भी फार्म पे और लोगो से पिच्छले मॅनेजर के निकाले जाने की वजह पुछि थी & उन्होने भी वही कहा था जो रंभा ने कहा था.अब उसे महसूस होने लगा था कि शायद रंभा पे उसका शक़ ग़लत है लेकिन वो शायद अभी भी उसके दिमाग़ मे था & इसका यही मतलब था कि रंभा शक़ के दायरे से बाहर नही निकली थी.

शाम के 5 बज रहे थे & कार तेज़ी से आवंतिपुर की ओर बढ़ रही थी.विजयंत ने बाई बाँह उठाके रंभा को उसके घेरे मे लिया तो रंभा उसके & करीब आ गयी & उसके सीने पे हाथ फ़िराने लगी.दोनो खामोशी मे 1 दूसरे के जिस्मो के मस्ताने एहसास का लुत्फ़ उठाते हुए रास्ता तय कर रहे थे इस बात से अंजान कि 1 कार लगातार उनका पीछा कर रही थी जिसे चलाने वाले के गाल पे 1 निशान था.

उस शख्स ने पिच्छले 2 दिनो मे विजयंत मेहरा & उसके कारोबार & परिवार के बारे मे इंटरनेट से काफ़ी जानकारी जुटाई थी.पंचमहल पहुँचने से पहले उसने सोचा भी नही था कि उसे विजयंत की ज़िंदगी के बारे मे भी जानना पड़ेगा मगर किस्मत ने उसे ऐसा करने पे मजबूर कर दिया था.उसे तो बस रंभा से मतलब था लेकिन समीर की गुमशुदगी ने सब गड़बड़ कर दिया था.

जब विजयंत रंभा के साथ पहले फार्म पे गया तो वो फिर से झल्ला उठा था.फार्म मे घुसने का रास्ता उसे नही सूझा था & उसे फार्म के बाहर के छ्होटे से बाज़ार मे तेज़ मिर्च वाले समोसे & बहुत ज़्यादा मीठी चाइ पी के वक़्त काटना पड़ा.उसने जैसे ही फ़ैसला किया कि अब उसे किसी तरह फार्म मे घुसना ही है,तभी उसे विजयंत की प्राडो बाहर आते दिखी.

इस वक़्त वो शख्स पंचमहल & आवंतिपुर के रास्ते मे पड़ने वाले दूसरे मेहरा फार्म के पास के 1 कस्बे की 1 सराई मे रुका था.उसे ये तो समझ आ गया था कि विजयंत बेटे को ढ़ूनडने निकला है & उसी सिलसिले मे फार्म्स के चक्कर लगा रहा है.उसकी समझ मे ये नही आ रहा था कि वो रंभा को हर जगह अपने साथ लेके क्यू घूम रहा था..कम्बख़्त वो 1 पल को भी अकेली नही रह पा रही थी..उसने सिगरेट वही कमरे के फर्श पे बुझाई & अपनी मच्छरदानी उठाके बिस्तर पे चला गया.रात को विजयंत फार्म छ्चोड़ने वाला नही,इतना उसे यकीन था.उसने चादर पूरे सर तक ओढ़ ली & सोने लगा,आख़िर कल सुबह बहुत सवेरे उठ उसे फिर से रंभा का पीछा करना था.

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रंभा फार्महाउस की कॉटेज मे ससुर के कमरे मे उसके बिस्तर पे 1 नीली डेनिम की मिनी स्कर्ट & स्लेटी रंग का ऑफ-शोल्डर टॉप पहने बैठी थी.पलंग के हेडबोर्ड से टेक लगाके कमर से नीचे के हिस्से को दाई तरफ मोड़ वो किसी मॅगज़ीन के पन्ने पलट रही थी कि विजयंत उसके बगल मे आ बैठा.दोनो रात का खाना खा चुके थे & उसके पहले इस फार्म के भी सारे अकाउंट्स चेक कर चुके थे.यहा भी उन्हे कोई सुराग नही मिला था.

रंभा ने मॅगज़ीन किनारे की & गर्दन बाई तरफ घुमाई & ससुर के लबो से लब सटा दिए.दोनो हौले-2 1 दूसरे को चूमने लगे.विजयंत ने उसके टॉप मे से नुमाया दाए कंधे पे हाथ रखा तो वो खुद ही उसकी ओर घूमी & अपनी ज़ुबान उसके मुँह मे घुसा दी.विजयंत उसकी ज़ुबान चूसने लगा & बया हाथ नीचे उसकी स्कर्ट पे रख दिया & दाए को उसकी गर्दन के नीचे से होते उसके दाए कंधे पे रख दिया & वाहा सहलाते हुए उसकी ज़ुबान की हर्कतो से मस्त होता रहा.

विजयंत का जोश बढ़ा तो वो थोड़ा आगे हुआ & रंभा फिर पहले जैसे ही हेअडबोर्ड से आड़ के बैठ गयी.विजयंत का हाथ उसकी स्कर्ट के नीचे जाँघ के खुले हिस्से पे बहुत हल्के-2 घूम रहा था.रंभा को उसके हाथ की ये हरकत बहुत मस्त कर रही थी.विजयंत उसकी जाँघ को मसल नही रहा था बल्कि बहुत हल्के से सहला रहा था.

अब विजयंत की ज़ुबान रंभा के मुँह मे घूम रही थी & उसका लंड उसकी ट्रॅक पॅंट मे बिल्कुल तन गया था.विजयंत उसे चूमते हुए ही थोड़ा उठा & उसके कंधे पकड़ उसे नीचे करने लगा तो उसका इशारा समझ रंभा खुद ही बिस्तर पे लेट गयी.उसके कमर का नीचे का हिस्सा अभी भी दाई तरफ मुड़ा हुआ था & उसके हाथ ससुर के चेहरे को थामे थे.विजयंत घुटनो पे हो आगे झुका तो उसका लंड बहू की गंद से टकराया.

"यहा भी कोई सुराग हाथ नही लगा ना?",रंभा ने पुछा तो वो उसे उसकी गंद पे दबाते हुए और झुका & रंभा के चेहरे को पकड़ अपने सीने को उसकी छातियो पे दबाते हुए बड़ी शिद्दत से उसे चूमने लगा.लंड के एहसास ने रंभा की चूत को भी कुलबुला दिया.वो भी नाख़ून से ससुर की दाढ़ी खरोंछती मस्ती मे खोने लगी.काफ़ी देर तक दोनो ऐसे ही चूमते रहे.विजयंत को अपने सीने मे रंभा के चुभते निपल्स अब जैसे उसके होंठो को बुलावा देते महसूस हो रहे थे.

"नही लेकिन 1 आदमी मुझे कुच्छ अजीब लगा.",उसने उसके टॉप को उपर किया & उसकी आँखो के सामने ट्रॅन्स्परेंट स्ट्रॅप्स वाली काली ब्रा मे क़ैद मस्ती मे पल-पल फूलते उसके सीने के बेकल उभार चमक उठे.उसने ब्रा के उपर से ही 2 हल्की किस्सस दोनो चूचियो पे ठोनकी तो रंभा ने मस्ती मे आँखे बंद की & मुस्कुराते हुए ससुर के बालो मे उंगलिया फिराने लगी.विजयंत ने अपने घुटनो से उसकी टाँगो को सीधा कर दिया था & अब उसके उपर लेटा हुआ था.

"उउम्म्म्म..कौन?",विजयंत उसके सीने की वादी मे अपनी गर्म साँसे छ्चोड़ रहा था & रंभा के जिस्म की आग उनकी तपिश से & बढ़ रही थी.वो अब अपनी भारी जंघे आपस मे रगड़ अपनी चूत की बेसब्री जताने लगी थी.विजयंत ने उसके टॉप को फिर नीचे किया & उसके कंधो को चूमने लगा.पतले-2 ट्रॅन्स्परेंट बार स्ट्रॅप्स को उसने दांतो से उठा के कंधो के किनारे पे किया & फिर कंधो पे अपनी जीभ फिराने लगा.रंभा ने जोश मे उसके बॉल खींचे & नीचे से अपनी कमर बहुत धीरे से उचका उसके लंड को मानो जल्दी उसमे समाने का न्योता दिया.

"नाम नही पता उसका लेकिन वो सारे स्टाफ के साथ खड़ा था & थोड़ा घबराया लगा मुझे.",विजयंत की ज़ुबान उसकी गर्दन पे आई तो रंभा ने सर बिस्तर के किनारे से नीचे कर दिया ताकि वो आसानी से उसकी गोरी गर्दन चूम सके.विजयंत उसके दोनो कंधो & गर्दन के साथ-2 उसकी ठुड्डी को भी चूम रहा था & जब मस्ती मे बहाल हो रंभा ने उसके दोनो कान पकड़ उसके चेहरे को अपने गले से उठाया तभी उसने अपने लब उसके जिस्म से हटाए.

"उफफफफफफ्फ़..हालत खराब कर देते हैं आप तो!",रंभा ने प्यार से उसे झिड़का,"..तो उस से कुच्छ पुछा नही आपने?",उसकी आँखो मे अब ससुर के जिस्म के नशे के लाल डोरे दिख रहे थे.

"अभी नही.कल सवेरे उस से अकेले मे पुछुन्गा.",रंभा ने स्टाफ के उस आदमी का नाम जानने की कोई खास कोशिश नही की थी & ना ही उसकी बात से उसकी मस्ती कम हुई थी.विजयंत का शक़ बहू पे और कम हो रहा था मगर अभी भी उसका दिल उसे समीर की गुमशुदगी के मामले मे पूरी तरह से बेकसूर नही मान रहा था.

उसने उसके टॉप को उपर खिचा तो रंभा ने अपने हाथ सर के पीछे कर दिए & अगले ही पल टॉप उसके जिस्म से जुदा हो फर्श पे गिरा हुआ था.विजयंत उठा था तो रंभा ने फिर से दोनो जंघे आपस मे भींच ली थी & दोनो घुटने दाई तरफ मोड़ लिए थे.उसके हाथ ससुर की टी-शर्ट मे घुस गये थे & उसके गथिले जिस्म पे बड़ी हसरत से फिर रहे थे.1 बार फिर विजयंत उसके रसीले होंठो का रस पी रहा था.कुच्छ देर तक रंभा उसकी पीठ & उसके सीने पे अपने नाख़ून फिराती रही & फिर उसने ससुर की शर्ट निकाल दी.

"आहह..!",विजयंत झुका & अपना बाया हाथ रंभा की दाई टांग से होते उसकी जाँघ & फिर उसकी कमर के बगल से होते हुए उसके सीने के बगल मे उसकी ब्रा तक फिराया & फिर वही पे थाम लिया.रंभा ने भी टाँगे सीधी कर ली & फिर से ससुर के सर को थाम लिया & उसकी किस का जवाब देने लगी.विजयंत उसके उपर झुका उसे चूम रहा था & उसका बाया हाथ बहू की पीठ के नीचे घुस रहा था.हाथ नीचे पहुँच ब्रा के हुक्स को ढूंड रहा था.इस सब के दौरान किस जारी थी.हुक्स मिलते ही उन्हे खोल दिया गया & ब्रा को विजयंत ने उसके दाए बाज़ू से निकाला & फिर सीने को नंगा करते हुए उसके बाए कंधे पे अटका दिया & फिर चूमते हुए दोनो हाथो से रंभा के हसीन चेहरे को थाम लिया.

"उउन्न्ह.....हुउऊउन्न्ह..!",रंभा अब बहुत मस्त हो चुकी थी & उसकी पॅंटी उसके रस से भीगने लगी थी.विजयंत ने ब्रा को उसके बाए बाज़ू से निकाला & उसके सर के पीछे फर्श पे गिरा दिया तो रंभा ने अपना दाया हाथ उसकी पीठ पे रख दिया & बाए को अपने सर के बगल मे बिस्तर पे.विजयंत उसकी गर्दन पे बाई तरफ चूम रहा था.

"समझ मे नही आता..",उसने ससुर के बाल पकड़ के उसके सर को कंधे से उठाया & अपनी बाई चूची पे रखा,"..उउन्न्ह..समीर ऐसे कहा गायब हो गया & अभी तक कोई सुराग भी नही मिल रहा है....आन्न्न्नह..!",विजयंत के होंठ अब उसकी दाई चूची पे थे & उसे पूरा का पूरा मुँह मे भरने की कोशिश कर रहे थे.अचानक की गयी इस हरकत से रंभा की चूत की कसक चरम पे पहुँच गयी & उसने बेचैनी मे सर उपर उठाया & उसका जिस्म झटके खाने लगा.विजयंत अभी भी उसकी चूची को मुँह मे भरने की कोशिश मे जुटा था & वो झाडे जा रही थी.

रंभा के दाए हाथ के नाख़ून विजयंत के बाए कंधे मे धँस गये थे.वो कांप रही थी & विजयंत उसकी चूचियों को चूसे जा रहा था.रंभा का सर वापस बिस्तर के किनारे पे आ गया था & वो आहें भर रही थी.विजयंत ने बाए घुटने को उसकी टांगो के बीच घुसा उन्हे फैलाया & फिर आगे झुकते हुए रंभा के होंठ चूमे.थोड़ी देर बाद वो उठा तो उसके लबो से लब चिपकाए रंभा भी उचकी & अपने हाथ नीचे ले जाके उसकी ट्रॅक पॅंट को सरकाने लगी.

"फ़िक्र मत करो.मैं उसका पता लगा के ही दम लूँगा.",विजयंत ने उसी वक़्त कमर नीचे करते हुए लंड को रंभा की चूत पे दबा दिया.रंभा के हाथ ढीले हो दोनो जिस्मो के बीच फँस गये & उसने सर पीछे झटका.विजयंत झुका & उसकी गोरी गर्दन को चूमने लगा & फिर उसके होठ दोबारा नीचे हो उसकी प्रेमिका की चूचियों से चिपक गये.उसके हाथ रंभा की स्कर्ट के हुक्स खोल रहे थे & अगले ही पल रंभा को स्कर्ट & पॅंटी 1 साथ उसकी मखमली टाँगो से फिसलती उसके जिस्म से अलग होती महसूस हुई.रंभा अब ससुर के बिस्तर मे बिल्कुल नंगी हो चुकी थी.

"ऊहह....आन्न्‍न्णनह..!",विजयंत ने दोनो टाँगे उसकी टाँगो के बीच घुसा अपने घुटनो से उन्हे और फैला दिया & फिर आगे झुका तो रंभा ने खुद उचक के उसके होंठो का अपने होंठो से इसटेक्बल किया.विजयंत ने अपने बदन को थोड़ा सा टेढ़ा किया & बाए हाथ को नीचे कर उसकी चूत के लाल दाने पे गोल-2 उंगली घुमाने लगा.रंभा जोश से काँपने लगी & अपनी ज़ुबान मस्ती मे विजयंत की ज़ुबान से लड़ाने लगी.

"ऊन्नह..!",विजतन घुटनो पे बैठ उसके सीने पे झुक के उसकी चूचियों पे अपना मुँह चलाने लगा.उसकी उंगली ने दाने को रग़ाद-2 के रंभा को मस्ती मे दूसरी बार झड़ने पे मजबूर किया & अभी वो संभली भी नही थी कि उंगली को उसकी कसी चूत मे घुसा अंदर कुच्छ टटोलने लगा.

"आननह..हुन्न्ह..!",रंभा कमर उचका रही थी & वो अब उसके गोल पेट को चूम रहा था.उसकी उंगली अभी भी अंदर कुच्छ टटोल रही थी & रंभा को समझ मे नही आ रहा था कि वो कर क्या रहा है.

"आननह..!",तभी जैसे उसके बदन & ज़हन मे 1 धमाका सा हुआ.उसकी चूत के अंदर की दीवार पे विजयंत की उंगली ने वो जगह ढूंड निकाली थी जो शायद किसी औरत के जिस्म की सबसे नाज़ुक जगह होती है,जिसे जानकार जी-स्पॉट कहते हैं.जिस्म मे जैसे मस्ती सैलाब बन के उमड़ पड़ी थी.इतनी मस्ती कि वो उसे से नही पा रही थी.ये झड़ना था या फिर उस से भी कुच्छ और ज़्यादा.बेसब्री इतनी ज़्यादा थी कि उसने ससुर का हाथ पकड़ अपनी चूत से झटके से अलग किया & अपनी कमर उचकाने लगी.वो अपनी ही दुनिया मे खो गयी थी जहा वो चारो तरफ रंगीन बादलो से भरे आसमान मे उड़ रही थी.खुशी इतनी ज़्यादा थी कि उसका दिल उसे बर्दाश्त नही कर पाया था & वो सुबकने लगी थी.

जब थोड़ी देर बाद वो सायंत हुई & आँखे हल्के से खोली तो बगल मे उसे उसके बॉल सँवारता विजयंत अढ़लेटा नज़र आया.उसके दिल मे उसे उस जन्नत का नज़ारा दिखाने वाले शख्स के लिए बहुत प्यार उमड़ पड़ा & उसने उसके गले मे बाहें डाल बड़ी शिद्दत से चूमा & फिर बिस्तर पे लिटा दिया.वो अब अपने ससुर को अपने प्यार से सराबोर कर देना चाहती थी.

उसने उसे लिटा दिया & उसके सीने पे अपनी चूचियाँ दबाती उसे चूमने लगी.उसके बाद नीचे आई & उसके बालो भरे सीने पे हल्के-2 चूमने लगी.विजयंत उसके जिस्म को धीरे-2 सहला रहा था.रंभा के होंठो की मस्तानी हरकतें उसके जोश को बढ़ा रही थी.रंभा घने बालो के बीचो-बीच चूमती हुई नीचे उसकी नाभि तक आई & वाहा अपनी जीभ फिराई.

"ओह्ह्ह्ह..!",विजयंत ने जोश मे आह भरी.रंभा ने उसकी नाभि के नीचे बहुत धीमे-2 काटना शुरू कर दिया.विजयंत तो जोश से पागल हो उठा.रंभा ने काटते हुए ही उसकी पॅंट नीचे सर्काई & फिर उसकी टाँगो के बीच बैठ पॅंट को निकाल दिया.विजयंत के सफेद अंडरवेर मे उसका लंड बिल्कुल तना दिख रहा था.

रंभा ने अपने बॉल झटके & उन्हे दाए कंधे के उपर से आगे लाई & उनके सिरो को अपने ससुर के सीने पे फिराया.विजयंत तो मस्ती मे बहाल हो गया.बाल सीने से उसके पेट से होते हुए उसके अंडरवेर पे आए तो अपने नाज़ुक अंगो पे बालो के एहसास से वो तड़प उठा.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:36 PM,
#33
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--33

गतान्क से आगे.

रंभा उसे देख मुस्कुराइ & अपने बाए हाथ से उसके लंड को अंडरवेर के उपर से ही दबाने लगी.जब उसने विजयंत के आंडो को ज़ोर से दबाया तो उसने कमर उचका के,आँखे बंद कर ज़ोर से आह भरी.रंभा झुकी & अंडरवेर के उपर से ही आंडो को दबाते हुए लंड को काटने लगी.विजयंत का तो हाल बुरा हो गया,उसे लगा की अब वो झाड़ ही जाएगा.

रंभा मुस्कुराइ & सर उसकी गोद से उठा अंडरवेर को निकाल दिया & फिर बालो के सिरो को उसके लंड & आंडो पे फिराया.विजयंत इस बार सूपदे की कोमल त्वचा पे बालो के एहसास से और शिद्दत से तडपा.रंभा झुकी & बाए हाथ की हथेलियो को आंडो पे जमाते हुए उसने लंड के निचले हिस्से पे उंगलियालपेटी & उसके मत्थे को मुँह मे भर लिया.विजयंत तो अब मस्ती मे मदहोश हो गया.रंभा का कोमल मुँह उसके सूपदे से प्रेकुं को चाते जा रहा था.

उसने अपनी सारी इच्छा-शक्ति का ज़ोर लगाके खुद को झड़ने से रोका.रंभा उसके लंड पे मुँह चला रही थी & वो उसके चेहरे पे हाथ.कुच्छ देर बाद रंभा ने लंड को मुँह से निकाला,उसकी चूत मे फिर से कसक उठ रही थी.वो उठी & अपने घुटने ससुर की कमर के दोनो ओर जमाते हुए अपनी चूत को लंड पे झुका दिया.

"ऊहह..!",लंड उसकी चूत मे समाने लगा.उसने 2 इंच लंड बाहर ही रहने दिया & फिर उसपे उच्छलने लगी.अपने ससुर की जाँघो को थामे उसकी नज़रो से नज़रे मिलाती वो उस से चुद रही थी.विजयंत ने उसकी कमर थाम लंड को जड तक घुसाना चाहा तो उसने उसे रोक दिया.

"पूरा लंड तो अंदर जाने दो!",उसने उसकी कमर के मांसल बंगलो को मसला.

"उन्ह..हुंग..बिल्कुल नही..आपका बहुत बड़ा है..ऊव्ववव!",वो उसके सीने पे हाथ जमा आगे झुकी तो विजयंत ने उचक के उसकी बाई चूची मुँह मे भर निपल पे काट लिया.रंभा फ़ौरन पीछे हो गयी & थोड़ा पीछे झुकते हुए जाँघो पे हाथ रख & कभी उन्हे सहलाते हुए कमर हिलाके ससुर से चुदवाने लगी.

"अच्छा भाई ठीक है..तो कम से कम अपनी चूचिया तो पिला दो हमे!",उसने उसकी गंद की फांको को दबोचा.

"उउन्न्ं..ना!आप काटते हैं उन्हे.",विजयंत बिस्तर से उठने लगा तो रंभा ने फ़ौरन बाया घुटना बिस्तर से उठा उसे ससुर के सीने पे रख दिया & उठने से रोक दिया.विजयंत उसकी इस अदा पे मुस्कुरा के उसके पाँव को पकड़ उसकी उंगलकिया चूसने लगा.रंभा ने अपने बालो मे बड़े मादक अंदाज़ मे उंगलिया फिराते हुए आँखे बंद कर आह भरी & अपनी चूचियाँ आगे करते हुए जिस्म को कमान की तरह मोड़ा.उसका जिस्म विजयंत की इस हरकत से मस्ती की कगार पे पहुँच गया था & वो झाड़ गयी थी.

अधखुली आँखो से रंभा ने देखा कि विजयंत फिर उठने वाला है तो उसने फ़ौरन उसके सीने पे रखी टांगको दाई तरफ घुमाया & फिर उसके लंड पे ही बैठे हुए बदन को दाए तरफ घुमाने लगी.ऐसा करने से विजयंत के लंड पे उसकी चूत गोलाई मे घूमी & वो मस्ती मे कराहा.रंभा ने पूरा जिस्म घुमा पीठ विजयंत की ओर कर दी & आगे झुक उसकी मज़बूत टाँगो को पकड़ फिर से कमर हिलाने लगी.विजयंत लेटे-2 ही अपने गर्म हाथ उसकी पीठ से लेके गंद तक फिराने लगा.रंभा अब बहुत मस्त हो गयी थी & बस लंड पे कूदे जा रही थी.

जिस्म की गर्मी जब बहुत बढ़ गयी तो उसका दिल महबूब के होंठो की हसरत करने लगा & वो पीछे होने लगी.उसने अपने तलवे बिस्तर पे जमाए & हाथ पीछे झुक बिस्तर पे & अपनी कमर बहुत तेज़ी से हिलाने लगी.इतना शक्तिशाली मर्द उसके पैर चूमने के बाद उसके नीचे उसके मुताबिक चुदाई कर रहा था,इस ख़याल ने उसकी खुमारी & बढ़ा दी थी & वो अब बस झड़ने ही वाली थी.

"आननह..!",विजयंत ने उसकी गंद की दरार मे उंगली फिराई तो वो & ना सह सकी & चिहुनक के आगे होते हुए झाड़ गयी.विजयंत फ़ौरन उठ बैठा & पीछे से ही उसकी मोटी,कसी चूचियो को दबोचा & फिर बाई बाँह को उसकी कमर मे लपेटे दाई तरफ करवट लेते हुए रंभा को पहले बिस्तर पे करवट से लिटाया & फिर और घूमते हुए उसे पेट के बल लिटाया & फिर उसके उपर सवार हो गया.

बहू की मादक अदाओं ने उसे बहुत मस्त कर दिया था.उसने अपने दोनो घुटने जोकि रंभा की फैली टाँगो के बीच बिस्तर पे टीके थे,को बाहर कर उन्ही से धकेल के उसकी टाँगो को आपस मे बिल्कुल सटा दिया & फिर 1 ज़ोर का धक्का दिया.

"हाईईईईई....माआंन्‍नननणणन्..!",रंभा ने सर उपर झटका.उसकी कसी चूत अब और कस गयी थी & ससुर का लंबा,मोटा,तगड़ा लंड अब चूत की दीवारो को बहुत बुरी तरह रगड़ रहा था.लंड उसकी गंद की मोटी फांको के बावजूद जड तक समा गया था & अगले धक्के पे उसने रंभा की कोख पे चोट की.कमरा क्या पूरी कॉटेज रंभा की मस्त आहो से भर गयी.विजयंत उसके उपर झुका उसकी चूचियों मसलता ज़ोरदार चुदाई कर रहा था.रंभा ने 1 बहुत ज़ोर की आह भारी & फिर झाड़ गयी.

विजयंत ने उसकी टाँगे वापस फैलाई & उनके बीच आ गया & उसकी गंद दबाते हुए चोदने लगा.कुच्छ देर बाद रंभा भी कमर हिला-2 के उसका जवाब देने लगी.विजयंत घुटनो पे बैठ गया & थोड़ा उपर हुआ तो रंभा भी अपने घुटनो & हाथो पे हो गयी & खुद ही कमर आगे-पीछे कर उस से चुदवाने लगी.विजयंत ने उसकी कमर थाम ज़ोरदार धक्के लगाने शुरू कर दिए.रंभा सर झटकते आहे भरे जा रही थी.उसके हाथ बिस्तर की चादर को भिंचे हुए थे.

1 साया कॉटेज की ओर बढ़ रहा था.वो कॉटेज की खिड़की तक आ के ठिठक गया था.वो कुच्छ सोच रहा था.उसने अपनी कलाई पे बँधी घड़ी देखी,11 बज रहे थे.1 घंटे से थोड़ा उपर हो गया था विजयंत को कॉटेज के अंदर गये लेकिन वो जगा था शायद क्यूकी उसके कमरे की बत्ती जाली दिख रही लेकिन क्या इस वक़्त..

"आआहह..!",रंभा चीखी & बिस्तर पे निढाल हो गयी.वो कोख पे अपने ससुर के लंड की & चोटें बर्दाश्त नही कर पाई थी & झाड़ गयी थी & इस बार उसकी चूत की उसी मस्तानी हरकत ने विजयंत के लंड को भी दबोच के झड़ने पे मजबूर कर दिया था.विजयंत उसके उपर गिरा आहे भरता हुआ अपना गाढ़ा वीर्य छ्चोड़े चला जा रहा था जोकि सीधा रंभा की कोख मे जा रहा था.रंभा भी उसके साथ-2 मस्ती के आसमान मे उड़ी जा रही थी.

"ठक-2!",किसी ने दरवाज़ा खाटख़टाया & दोनो चौंक गये & 1 दूसरे को देखने लगे.विजयंत ने लंड बहू की चूत से खींचा & उसे उसके कमरे मे जाने का इशारा किया.रंभा ने उसकी बात मानी & विजयंत कपड़े पहन दरवाज़े की ओर चला गया.

"न-नमस्ते..सर..!",विजयंत मेहरा ने दरवाज़ा खोला तो सामने वही स्टाफ मेंबर खड़ा था जिसके बारे मे थोड़ी देर पहले उसने रंभा को बताया था.वो लगभग 30-35 बरस का आदमी था & घबराया हुआ लग रहा था.

"बोलो,क्या बात है?",विजयंत ने ट्रॅक पॅंट के उपर ड्रेसिंग-गाउन पहन लिया था & उसकी जेबो मे हाथ डाले खड़ा था.उसकी रोबिली आवाज़ ने सामने खड़े शख्स को & घबरा दिया.

"ज-जी..",वो इधर-उधर देख रहा था.

"अंदर आओ.",विजयंत की आवाज़ के रोब से बँधा वो अंदर आ गया,"बैठो.",घबराया सा वो आदमी कॉटेज के ड्रॉयिंग रूम के सोफे के कोने पे बैठ गया,"ये लो.",विजयंत ने पानी का ग्लास उसे दिया तो वो गतगत पी गया,"अब बताओ क्या बात है.",विजयंत उसके सामने बैठ गया.

"स-सर..मेरा नाम मनोज है & मैं यही काम करता हू."

"हूँ.पोल्ट्री विंग तुम्ही देखते हो.मुझे पता है.",विजयंत ने उसपे शुबहे होने पे उसके बारे मे मॅनेजर से पुच्छ लिया था.उसने तो सोचा था कि अगली सुबह वो उसे तलब करेगा लेकिन यहा तो वो खुद ही उसके पास पहुँच गया था.

"सर,समीर सर गायब हुए तो मुझे लगा ये बात आपको बता देनी चाहिए ल-लेकिन मुझे पता नही था कि ऐसा होगा न-नही तो पहले ही सब बता देता."

"आख़िर बात क्या है बताओ तो!",विजयंत अब झल्ला गया था,"..& घबराओ मत तुम्हे कुच्छ नही होगा."

"सर,समीर सर ने कुच्छ दिनो पहले पंचमहल मे सभी स्टाफ मेंबर्ज़ के लिए 1 पार्टी दी थी..नमस्ते,मेडम!..",रंभा भी वाहा आ गयी थी.विजयंत ने उसकी ओर देखा तो उसने सर हिलाके पार्टी होने की बात मानी,"..वाहा फार्म नो.1 का पुराना मॅनेजर हरपाल सिंग भी आया था.वो समीर सर से बार-2 अपना तबादला क्लेवर्त करने को बोल रहा था लेकिन वो मान नही रहे थे क्यूकी उसे वैसे फार्म का तजुर्बा नही था.."

"..पार्टी मे शराब भी थी & हरपाल ने कुच्छ ज़्यादा ही पी ली थी.मैं भी उसी के साथ बैठा था.दरअसल मुझे उसके साथ ही लौटना था.वो नशे मे धुत था & मुझे उसकी कार ड्राइव करनी पड़ी.उस रात मुझे उसके ही फार्म पे रुकना था.रास्ते भर वो यही बोलता रहा कि वो समीर सर को मज़ा चखा देगा.वो उसे उसके परिवार के साथ नही रहने दे रहा तो वो भी उसे उसके परिवार से अलग कर के दम लेगा.."

"..उस वक़्त तो मैने सोचा की वो नशे मे बक रहा है लेकिन समीर सर गायब हुए तो मेरा माथा ठनका & मैने हरपाल को फोन किया लेकिन उसका फोन नही मिला,मैने उसके घर पे फोन किया & उसके घरवालो ने कहा कि वो नौकरी ढूँदने के चक्कर मे बॅंगलुर गया हुआ है तो मैने उनसे उसका मोबाइल नंबर माँगा लेकिन उस नंबर पे भी मैं उस से बात नही कर पाया."

"तुमने ये बातें पोलीस को क्यू नही बताई?"

"सर..वो..",उसने माथे से पसीना पोंच्छा,"..सर..हरपाल की बहन हिना आवंतिपुर मे रहती है &..और.."

"तुम दोनो 1 दूसरे को चाहते हो?",रंभा ने बात पूरी की,"..& तुम्हे लगा कि होने वाले साले को यू फाँसना ठीक नही."

"मेडम..वो..मुझे अभी तक ऐसा लग रहा था कि हरपाल बेकसूर है लेकिन मैने हिना से आज ही बात की & उसने भी अपने भाई से उस रोज़ से बात नही की जिस रोज़ समीर सर पंचमहल से निकले थे.सर,मैं सच कहता हू मेरा & कोई इरादा नही था..मैं तो बस हिना के चलते..-",विजयंत ने हाथ उठाके उसे आगे बोलने से रोक दिया.

"तुम ये बात अब किसी को नही बताओगे,पोलीस को भी नही.मैं नही चाहता कि हरपाल होशियार हो जाए & तुम्हे घबराने की कोई ज़रूरत नही है.तुम अपनी प्रेमिका से भी पहले जैसे ही मिलते रहो,बाते करते रहो लेकिन अगर हरपाल का कोई भी सुराग मिले,तो फ़ौरन हमे बताओगे..",विजयंत ने 1 काग़ज़ पे उसे 1 नंबर लिख के दिया,"..ये हमारा फोन नंबर है जिसपे तुम हमे कॉंटॅक्ट कर सकते हो.अब हमे हरपाल का क्लेवर्त के घर का पता,उसकी बेहन का पता & उसके बारे मे जो भी जानते हो सब बताओ."

30 मिनिट बाद विजयंत & रंभा फिर से 1 दूसरे की बाहो मे समाए थे,"उउम्म्म्म..अब आगे क्या करना है?..आहह..!",कंबल के नीचे विजयंत उसकी गंद को मसलते हुए उसकी गर्दन चूम रहा था.

"अब हम कल सवेरे आवंतिपुर जाएँगे & तुम हिना से मिल के ये पता लगाने की कोशिश करोगी की उसके भाई ने इधर उस से कोई कॉंटॅक्ट किया है या नही,उसके बाद देखेंगे क्या करना है.",विजयंत ने उसकी चूचियो को चूसा तो रंभा ने मस्ती मे आँखे बंद कर ली & ससुर के बाल पकड़ उसके सर को सीने पे & दबा दिया.अब उसे भी ये लग रहा था कि समीर की गुमशुदगी मे उसके बाप का हाथ नही है लेकिन ये भी तो हो सकता था कि उसने 1 बहुत बड़ा जाल बुना हो लेकिन फिर वो उसे साथ लिए क्यू घूम रहा था & जैसे उसके दिमाग़ मे बिजली सी कौंधी..विजयंत उसपे शक़ कर रहा है!

"आननह..!",उसने उसकी चूत मे उंगली घुसा दी थी.रंभा अब सब समझ गयी थी..कैसी अजीब बात थी वो विजयंत पे शक़ कर रही थी & वो उसपे!..वो मुस्कुराइ & थोड़ा उचक के उसकी चूचियाँ चूस्ते विजयंत के सर को चूम लिया & मस्ती मे खो गयी.

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बलबीर मोहन ब्रिज कोठारी के रोज़मर्रा की ज़िंदगी के बारे मे लगभग सब कुच्छ जान गया था मसलन वो कितने बजे दफ़्तर जाता था,उसके मोबाइल का प्राइवेट नंबर क्या था,वग़ैरह-2 लेकिन अभी तक उसे समीर की गुमशुदगी से जोड़ने वाला कोई सिरा नही नज़र आया था.उसे ये भी पता चल गया था कि वो औरतो का शौकीन था & अपनी बीवी सोनिया से लगभग रोज़ ही बेवफ़ाई करता था लेकिन अभी तक उसे उसकी महबूबाओ मे से भी कोई शक़ करने लायक नही दिखी थी.

अभी भी वो 1 रेस्टोरेंट की टेबल पे बैठा ब्रिज को अपने बॅंकर के साथ रात का खाना खाते देख रहा था.बलबीर को अभी तक लगा नही था कि ब्रिज का इस घटना के पीछे कोई हाथ हो सकता है लेकिन उसे पूरी तसल्ली तो करनी ही थी.उसने अपना खाना ख़त्म किया & फिर वेटर 1 सुफ्ले ले आया.उसने उसका 1 नीवाला लिया..बहुत मज़ेदार था.वो दिल ही दिल मे मुस्कुराया..इस खाने का भी बिल विजयंत की फीस मे जुड़ने वाला था..जासूसी मे जितनी भी मुश्किलें हो उसमे कुच्छ फ़ायदे तो थे ही!

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:36 PM,
#34
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--34

गतान्क से आगे.

"सर,आपने प्रॉजेक्ट 23 मे 2 फ्लोर्स & बढ़ने के ऑर्डर्स दिए हैं.."

"हां.",प्रणव ने अपने लॅपटॉप को बंद किया & सामने खड़े शख्स को देखा.

"लेकिन सर,उस से तो प्रॉजेक्ट की कीमत बढ़ जाएगी & हमने तो पर्मिशन भी नही ली थी उन मंज़िलो की."

"मिस्टर.शर्मा,आप अपना काम मुस्तैदी से करते हैं,इस बात की कद्र करता हू लेकिन प्लीज़ मेरे फ़ैसलो को लेके ज़्यादा चिंतित ना हों.अर्ज़ी डाल दी गयी है & मैं कल खुद ही कन्सर्न्ड अफ़सर से मिलके उसे अप्रूव करवा दूँगा.वाहा काम रुकना नही चाहिए.प्रॉजेक्ट अपनी पुरानी डेडलाइन से पहले पूरा होना चाहिए."

"वो ठीक है सर,लेकिन ऐसे फ़ैसले तो केवल विजयंत सर ले सकते हैं."

"मिस्टर.शर्मा,अभी बॉस मैं हू & सारे फ़ैसले मैं ही लूँगा एम आइ क्लियर?",उसकी आवज़ तेज़ हो गयी थी.

"यस,सर."

"तो आप जा सकते हैं.",शर्मा गया तो प्रणव मुस्कुराया.ट्रस्ट ग्रूप उसके इशारो पे चल रहा था..कितनी ताक़त थी उसके पास..इस सब का मालिक वो था फिलहाल..फिलहाल..ससुर के आने पे उसे ये कुर्सी छ्चोड़नी पड़ेगी & उसका दिल अब ऐसा करने को तैय्यार नही था.वो कुर्सी से उठा & कुच्छ सोचने लगा.उसका दिमाग़ अब इस कुर्सी पे बरकरार रहने की तरकीब सोच रहा था.

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"तुमलोग कोई काम ढंग से नही कर सकते?..ये फ्लवर आरंगेमेंट कहा था मैने..!..वो पीले फूलो का क्या हुआ..",सोनिया अपने स्टाफ को डाँट रही थी,"..चलो जाओ,सब ठीक करो.",वो 1 कुर्सी पे बैठ गयी.उसे पता था कि उसने अभी कुच्छ ज़्यादा ही डांटा था सबको मगर वो क्या करती वो बहुत चिड़चिड़ी हो गयी थी इधर.कारण वही था,विजयंत से दूरी.

हर रोज़ ब्रिज उसके लिए वक़्त ज़रूर निकालता & हर रात की चुदाई तो पक्की थी ही,उपर से दौलत की कोई कमी थी नही,अपना बिज़्नेस भी उसके मन बहलाने के लिए काफ़ी था लेकिन विजयंत के साथ से मिलने वाला सुख नदारद था अभी.उसने अपना चेहरा हाथो मे च्छूपा लिया..ओह विजयंत कब आओगे वापस तुम!

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सोनम ने महसूस किया था कि प्रणव जैसा दिखता था वैसा सीधा या भला था नही.वो ये सोच रही थी कि कही समीर को गायब करवाने मे उसी का हाथ तो नही था.समीर के गायब होने से हर चीज़ की वारिस अकेली शिप्रा ही बचती थी & उसका पति होने के नाते ये सब प्रणव का ही हो जाता.उसने सोचा कि 1 बार विजयंत को बस इस बात का आभास करा दे लेकिन बात विजयंत के दामाद की थी जिसपे वो इतना भरोसा करता था.बिना सबूत के उंगली उठाने पे उसका निकाला जाना तय था & फिर ब्रिज भी उसे नही पुछ्ता.

नही..वो प्रणव पे निगाह रखेगी & जैसे ही काम की बात पता चली उस से अपना फ़ायदा ज़रूर निकालेगी.

क्लेवर्त के बुंगले के अपने कमरे मे रंभा ने बिस्तर से उतर के खड़ी होके अंगड़ाई ली.उसने 1 पूरे बाजुओ की सफेद टी-शर्ट & कसे,गुलाबी शॉर्ट्स पहने थे जो की बस उसकी गंद को ढके हुए थे.हाथ हवा मे उठे होने की वजह से उसकी शर्ट उपर उठ गयी & उसकी कमर का कुच्छ हिस्सा नुमाया हो गया.

"हुन्न..!",वो चौंक पड़ी.किसी ने उसकी नुमाया कमर को थम उसे पीछे से गर्दन पे चूम लिया.उसने गर्दन घुमाई तो देखा विजयंत मेहरा उस से चिपका खड़ा था.उसने उसे बड़ी ठंडी निगाहो से देखा & उस से अलग हो वापस बिस्तर पे चली गयी.वो उसकी ओर पीठ किए बाई करवट पे लेटी हुई थी.सॉफ ज़ाहिर था की वो अपने ससुर से खफा थी.

विजयंत मुस्कुराया & अपने साथ लाई शिशियो को वही बिस्तर पे रखा & उसके पीछे बैठ उसकी दाई टांग पे हाथ फिराने लगा.रंभा ने टांग खींच उसे ऐसा करने से रोक दिया.विजयंत ने मुस्कुराते हुए 1 शीशी खोली & उसमे से थोड़ा खुश्बुदार तेल हाथ मे धार उसे अपनी बहू की टांग पे मल दिया.रंभा खामोश रही & बस मुँह बिस्तर मे च्छूपाते हुए पेट के बल लेट गयी.

विजयंत सख़्त हाथो से उसकी टाँगो के पिच्छले हिस्से पे तेल की मालिश करने लगा.पिच्छले 2 दिनो से वो दिन भर कार मे बैठी रहती थी & रातें फार्म्स के कॉटेजस पे गुज़री थी.अभी जब विजयंत ने मालिश शुरू की तो उसे एहसास हुआ की उसकी टाँगे कितनी थॅकी हुई थी.विजयंत के मज़बूत हाथ उसके पाँवो से लेके घुटनो के पिच्छले हिस्से तक चल रहे थे.उसे बहुत अच्छा लग रहा था मगर वो वैसे ही चुप मुँह च्छुपाए पड़ी थी.

विजयंत ने उसकी बाई टांग को पकड़ उसे हवा मे उठाया & फिर उसके पाँव को दबाते हुए उसकी उंगलियो के बीच अपने हाथ की उंगलिया घुसा तेल मलने लगा.

"आहह..!",जब उसने उसके पंजो की उंगलियो को 1-1 कर खींचा तो रंभा के मुँह से सुकून भरी आह निकल ही गयी.विजयंत ने उसकी घुटने से उठी टांग को वैसे ही थामे हुए मालिश की & फिर दाई टांग को उठा लिया.वाहा भी उसने वही हरकत दोहराई.रंभा ने महसूस किया कि ना केवल उसकी थकान मिट रही थी बल्कि उसकी मस्ती भी धीमे-2 बढ़ रही थी.

विजयंत ने उसकी टाँगे वापस बिस्तर पे रखी & अब घुटनो से उपर उसकी शॉर्ट्स तक उसकी मांसल जाँघो के पिच्छले हिस्सो पे अपने हाथ चलाने लगा.रंभा की चूत मे कसक उठी.उसके ससुर के हाथ उसके जिस्म को मदहोश कर रहे थे.उसने अपने हाथ अपने सीने के नीचे दबाए हुए थे.उसकी मस्ती की गवाही देते हाथो ने बिस्तर की चादर को भींच लिया था.विजयंत कुच्छ देर तक उसकी कोमल जाँघो पे हाथ फिराता रहा.

"उउन्न्ह..!",रंभा ने बिस्तर से सर उठा के आँखे बंद किए 1 मस्त आ भारी.उसके ससुर के हाथ उसकी शर्ट मे घुस उसकी कमर की मांसल बगलो को मसल रहे थे.विजयंत हाथ ऐसे दबाते हुए उपर से नीचे ला रहा था मानो उसकी मांसपेशियो की थकान को उसके जिस्म से निचोड़ देना चाहता हो.रंभा की चूत गीली होने लगी थी.

विजयंत के हाथ उसकी बगलो पे फिरते हुए सीधे उसके जिस्म के नीचे उसके पेट पे पहुँच गये.रंभा चिहुनकि & उसने महसूस किया की उसका ससुर उसकी शॉर्ट्स के बटन को खोल रहा है.शॉर्ट्स ढीली करने के बाद विजयंत के मज़बूत हाथ वापस पीछे आए & वेयैस्टबंड मे फँस उसकी शॉर्ट्स को नीचे सरकाने लगे.

अगले पल रंभा अपने ससुर के सामने अपनी नंगी गंद किए लेटी थी.विजयंत की आँखे बहू की कसी गंद देख चमक उठी.उसने फिर से उसके घुटनो के उपर से जाँघो के पिच्छले हिस्सो पे हाथ चलाना शुरू किया & इस बार हाथो को गंद की फांको से होता हुआ सीधा उसकी कमर तक ले आया.रंभा अब बहुत हल्की-2 आहें भर रही थी.विजयंत ने 4-5 बार हाथ वैसे ही चलाए & उसके बाद उन्हे रंभा की मोटी गंद से चिपका दिया.हाथ दोनो फांको पे गोलाई मे घूमते हुए वाहा के माँस को गूँध रहा थे.पहले हाथो का बनाया दायरा बड़ा था लेकिन पल-2 वो दायरा छ्होटा होता जो रहा था.जब दायरा बिल्कुल छ्होटा हो गया तो विजयंत ने दोनो फांको के माँस को दोनो हाथ मे भींच के उपर खींचा.

"ऊव्ववव..!",रंभा के चेहरे पे मस्ती भरी शिकन आई & वो सर उठा के चिहुनकि.ससुर की इस हरकत ने चूत की कसक को कुच्छ ज़्यादा बढ़ा दिया था.उसने सर वापस बिस्तर मे धँसाया & विजयंत के हाथो का लुत्फ़ उठाने लगी.विजयंत ने देखा की बहू अब गर्दन को बहुत धीरे-2 उपर उठाके वापस बिस्तर पे दबा रही है.उसकी बेचैनी देख वो मुस्कराया & इस बार हाथो को गंद से फिसलते हुए उसकी कमर से पीठ तक ऐसे ले गया की रंभा की शर्ट उसकी गर्दन तक उठ गयी.

अब उसकी पीठ के पार सफेद ब्रा दिख रहा था जिसके उपर से ही हाथ चलाते हुए वो रंभा की मालिश कर रहा था.उसने अपने दोनो घुटने रंभा की कमर की दोनो ओर जमाए & उसकी गंद पे बैठ गया.

"उउन्न्ह....!",उसका दिल अज़ीज़ विजयंत का तगड़ा लंड जैसे ही उसकी गंद पे दबा रंभा ने फिर से सर उठाके अपनी खुशी & बेचैनी का इज़हार किया.विजयंत उसकी गंद पे लंड दबाए बैठा उसकी पीठ पे बहुत सख़्त हाथो से मालिश कर रहा था.उसके हाथ पहले रंभा के जिस्म की बगलो पे नीचे से उपर जाते & फिर उपर आके वो उसकी रीढ़ के दोनो तरफ हाथ उपर से चलते हुए नीचे उसकी गंद तक लाता.हाथ वापस उपर जाते & फिर उसकी बगलो पे फिसलते हुए वापस नीचे आते.

ससुर के हाथो की मस्ताना हरकते & उसके लंड का नशीला एहसास रंभा को झाड़वाने के लिए काफ़ी था.वो अपनी गंद पे बैठे ससुर को उसकी हर्कतो से झूलते हुए,बिस्तर मे मुँह च्छुपाए सुबक्ते हुए झाड़ गयी.विजयंत मुस्कुराते हुए उसकी गंद से उठा & बिस्तर के 1 किनारे आ गया & फिर रंभा के उपरी बाज़ू पकड़ उसका मुँह अपनी ओर कर लिया.अब रंभा पेट के बल बिस्तर के किनारे पे मुँह टिकाए लेटी हुई थी.

विजयंत वही अपने पंजो पे बैठ गया & रंभा की बाई बाँह को अपने दाए कंधे पे रखा & फिर हाथो मे तेल लेके उस बाँह की मालिश करने लगा.रंभा अधखुली आँखो से उसे देख रही थी.उसकी निगाहो मे विजयंत को अब नाराज़गी की जगह केवल मस्ती दिखाई दे रही थी.वो अपने हाथो मे उसकी कलाई जाकड़ गोल-2 घूमाते हुए उसकी कोहनी तक जाता & वाहा से फिर उसके कंधे था.जब बाई बाँह की मालिश हो गयी तो उसने यही हरकत दाई बाँह के साथ दोहराई.अपने दोनो कंधो पे टिकी रंभा की बाँहो से उसने उसके ब्रा स्ट्रॅप्स को सरकाया & फिर खड़ा होने लगा तो रंभा ने उसका कुर्ता पकड़ उसे रोक लिया.

विजयंत फिर बैठ गया तो रंभा ने उसके कुर्ते को पकड़ उसे उपर खींचा & उसका इशारा समझ विजयंत ने कुर्ता निकाल दिया.रंभा ने वैसे ही लेटे हुए ससुर के सीने के बालो मे अपने हाथ फिराए & फिर उसकी गर्दन मे बाँहे डाल उसकी दाढ़ी पे अपने मुलायम गाल रगडे.विजयंत के होंठो को अपने लबो की गिरफ़्त मे ले उसके मुँह मे अपनी जीभ चलाके उसने अपनी नाराज़गी ख़त्म होने का एलान कर दिया.कुच्छ देर तक दोनो प्रेमी वैसे ही 1 दूसरे को चूमते रहे & फिर विजयंत खड़ा हो गया.

विजयंत ने खड़े होके हाथो मे थोडा सा तेल लिया & आगे झुक के रंभा की नंगी पीठ से लेके कमर तक अपने हाथ फिराने लगा.रंभा के चेहरे के सामने ही उसके ससुर के पाजामे मे क़ैद तना लंड पाजामे पे प्रेकुं का धब्बा छ्चोड़ता दिख रहा था.उसने फ़ौरन पाजामा ढीला किया & ससुर की बालो भरी जाँघो पे नीचे से उपर तक हाथ फिराने लगी & अपना मुँह आगे कर उसके लंड से उपर के बालो मे घुसा दिया.

विजयंत ने मज़े मे आँखे बंद की लेकिन बहू की मालिश वैसे ही जारी रखी.रंभा ने ससुर की मज़बूत,पुष्ट गंद को उंगलियो के नखुनो से खरोंचते हुए मसला & लंड के सूपदे को मुँह मे भर लिया.

"आहह..!",आह भर विजयंत आगे झुका & इस बार उसके हाथ रंभा की गंद तक पहुँच गये & उसकी फांको को फैलाने लगे.रंभा ने ससुर की गंद थाम लंड चूसना शुरू किया तो विजयंत ने बहू की गंद फैला पीछे से उसकी चूत मे उंगली कर दी.रंभा कमर उचकाते हुए ससुर का लंड चूस रही थी.विजयंत उसकी ज़ुबान की हर्कतो का लुत्फ़ उठाता हुआ उसकी चूत मे उंगली तेज़ी से अंदर-बाहर कर रहा था.

रंभा ने लंड मुँह से निकाला & उसपे अपनी नाक & गालो से रगड़ने लगी.वो अब पूरी तरह से मदहोश थी.विजयंत की उंगली उसे मस्ती की कगार पे ले गयी थी & अब वो अपनी ही दुनिया मे खो गयी थी.उसने अभी भी विजयंत की गंद थामी हुई थी लेकिन अब लंड चूस नही रही थी बल्कि अपना मुँह विजयंत की गोद मे धंसाए बस झाडे जा रही थी.विजयंत की उंगली उसकी चूत रगडे जा रही थी & वो उस कगार से गिर मस्ती के सागर मे गोते लगा रही थी.

वो शख्स अपने गाल के निशान को सहलाता बंगल के अहाते मे दाखिल हो गया था.ये बुंगला विजयंत का नही था बल्कि उसके किसी दोस्त का था.गेट के बाहर बैठा दरबान पास के बुंगले के चौकीदार के साथ बीड़ी पीता गप्पे हांक रहा था & उसकी नज़र बचा के वो पिच्छली दीवार के साथ कार लगाके उसपे चढ़ अंदर कूद गया था.फार्म्स विजयंत का इलाक़ा था & वाहा उसके मुसीबत मे फँसने के आसार बहुत थे लेकिन यहा ऐसी कोई बात नही थी बस रंभा उसे अकेली मिल जाए & उसका काम हो गया समझो.

बुंगले के बाहर भी 1 सीढ़ी थी जो उपरी मंज़िल को जा रही थी लेकिन सीढ़ी के अंत मे बना दरवाज़ा बंद था.वो सीढ़ी के उपर पहुँचा & देखा बाई तरफ बनी बाल्कनी तक वो पहुँच सकता था.सीधी के बगल की रैलिंग & उस बाल्कनी के बीच बस 4 फ्ट का फासला था,बस उसे सावधानी से कूदना था.उसने थोड़ी देर पहले इसी बाल्कनी पे विजयंत को खड़े देखा था.बाल्कनी का दरवाज़ा बंद था & कमरे मे अंधेरा था.उसने दरवाज़े को खिचा मगर वो मज़बूती से बंद था.वो अपने निशान को खुजाते आगे जाने का रास्ता सोचने लगा.

विजयंत ने रंभा को पलटा & उसकी छातियो को मसलने लगा.तेल लगी हथेलियो को वो उसकी छातियो पे जमा के उन्हे गोल-2 घुमा रहा था & रंभा मस्ती मे कराहे जा रही थी.उसने अपने हाथ पीच्चे ले जाके ससुर की गंद को फिर से थाम लिया था & नीचे से जीभ निकाल उसके आंडो को छेड़ रही थी.विजयंत थोडा झुका & रंभा ने उसके बाए अंडे को मुँह मे भर लिया.

विजयंत उसके निपल्स को उंगलियो मे पकड़ उपर खींचता & रंभा दर्द & मस्ती के अनूठे मिले-जुले भाव से आहत हो कराह उठती.विजयंत ने उसकी दोनो चूचियो को बाहर से पकड़ आपस मे दबा रहा था.रंभा भी आहे भरती हुई सर बिस्तर के किनारे से नीचे लटका उसके आंडो को चूस रही थी.विजयंत उसकी ज़ुबान से काफ़ी जोश मे आ चुका था.वो आगे झुका & बहू की जंघे फैला उसकी रस बहाती चूत से मुँह चिपका दिया.

रंभा मस्ती मे जंघे आपस मे भींचने-खोलने लगी & कमर उचकाने ल्गी.उसने विजयंत की कमर को जाकड़ लिया & आंडो को पागलो की तरह चूसने लगी.विजयंत ने उसकी नाज़ुक चूत पे बहुत जल्द दोबारा हमला कर दिया था & इस बार उसे झड़ने मे कोई वक़्त नही लगा.उसके झाड़ते ही विजयंत बिस्तर पे उसके पीछे आ गया & उसे बाई करवट पे कर उसकी दाई जाँघ को हवा मे उठा दिया.अपनी बाई कोहनी पे उचकी रंभा दाए हाथ से अपनी चूचिया मसला रही थी.

"ऊव्ववव....हाईईईईई..!",उसने बाया हाथ सीने से हटा पीछे ले जा ससुर के सर को थाम लिया जिसका लंड उसकी चूत मे उतर चुका था.विजयंत अपनी बाई कोहनी पे उचका दाए हाथ से उसके पेट को सहलाते हुए उसकी चूचियो को गिरफ़्त मे ले चुका था & पीछे सर घुमा के उसे चूमती रंभा की किस का भरपूर मज़ा ले रहा था.

उसका लंड चूत को बुरी तरह रगड़ रहा था.रंभा ने ससुर के बाल को पकड़ के खिचा & अपनी कोहनी सीधी करती बिस्तर पे निढाल हो गयी.उसकी आँखे बंद थी & उसके चेहरे पे केवल मस्ती दिख रही थी.विजयंत ने उसकी दाई जाँघ को उपर किया & बिना लंड निकाले सीधा हो गया & उसकी दाई जाँघ को अपने बाए कंधे पे टिका दिया.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:36 PM,
#35
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--35

गतान्क से आगे.

रंभा की गंद बिस्तर से उठ गयी & विजयंत का लंड उसकी चूत को पार कर उसकी कोख को चूमने लगा.कमरा रंभा की मस्त चीखो से गुलज़ार हो गया.विजयंत उसकी उठी जाँघ को सहलाते हुए तंग चूमते धक्के लगाए जा रहा था & उसे खबर नही थी कि कमरे के दरवाज़े के बाहर पर्दे की ओट से देखता वो शख्स हक्का-बक्का खड़ा था.

विजयंत के कमरे की बाल्कनी के बंद दरवाज़े के उपरी फ्रेम मे शीशे लगे थे.उस शख्स ने रुमाल को अपने हाथ पे बाँधा & फिर कोट उतार उसकी बाँह को अपनी दाई बाँह पे इस तरह चढ़ाया कि उसकी मुट्ठी उस से ढँकी रहे & फिर 1 शीशे पे मुक्का मारा.2-3 मुक्को मे शीशा टूट गया.वो कुछ देर सांस रोके खड़ा रहा मगर शायद काँच टूटने की आवाज़ किसी ने सुनी नही थी.उसने उस सुराख से हाथ अंदर डाल के कुण्डी खोली & कमरे मे दाखिल हुआ.

दबे पाँव वो उस कमरे से बाहर निकल बुंगले का मुआयना करने लगा & रंभा की आहो को सुन उस केमर की ओर आ गया.....ये तो ससुर है उसका & उसी से चुद रही है ये!..उसने अपनी आँखे मल दोबारा देखा..कैसी लड़की है ये?..पति गायब है & ये ससुर के साथ मज़े ले-2 के चुदाई कर रही है!..& वो कैसा बाप है जो अपने बेटे की बीवी की चूत मे लंड घुसाए जम के धक्के लगा रहा है..!

उसका दिमाग़ घूम गया था..साली!..जैसी माँ वैसी बेटी!..अब उसे कुच्छ बुरा नही लग रहा था..औलाद को मा-बाप का क़र्ज़ उतारना ही पड़ता है,आज ये भी अपनी माँ का क़र्ज़ उतारेगी..वो दरवाज़े से हट दूसरी तरफ के कमरे मे चला गया.अब उसे इंतेज़ार करना था कि कब वो अकेली मिलती है & उसका इंटेक़ाम पूरा होता है.

"ओईईईईईई.....हाईईईईईईईईईईईईईईईई......उउन्न्ञनह......हाआआआआअन्न्‍नननणणन्..!",विजयंत के गहर्रे धक्को के कमाल से कमर उचकती अपने सर के नीचे के बिस्तर की चादर को बेचैनी से नोचती रंभा झाड़ रही थी & उसकी दाई टांग को उठाए उस से होंठ चिपकाए विजयंत भी झाडे जा रहा था.लंड थोड़ा सिकुदा तो विजयंत ने उसे बाहर खींचा.लंड खींचते ही उसका गाढ़ा वीर्य रंभा की चूत से टपक उसकी गंद के छेद तक गिरने लगा.

विजयंत ने फ़ौरन अपने साथ लाई 1 डिबिया को खोला & उसमे से 1 क्रीम अपनी उंगली पे लगाई & फिर अपने वीर्य & उस क्रीम को रंभा की गंद के छेद मे भरने लगा.झड़ने से मदहोश रंभा कमर उचकते हुए फिर से बेचैन होने लगी.उसका ससुर उसकी गंद मे उंगली कर रहा था & उसे अजीब सा मज़ा आ रहा था.

"ना...मत करिए,डॅड..आननह..!",रंभा ने बाए हाथ से उसकी कलाई थाम उसे रोकने की नाकाम कोशिश की.विजयंत उसके दाई तरफ हो गया & उसके तरफ अपनी गंद कर उसकी जाँघो को फैला उपर से उसकी चूत चाटता उसकी गंद मे उंगली करने लगा.रंभा ने मदहोशी मे सर इधर-उधर घुमाया & पूरा जिस्म घुमा पेट के बल हो गयी.उसने बाई तरफ सर घुमाया तो उसे विजयंत का सिकुदा लंड लटका दिखा जिस से अभी भी वीर्य की कुच्छ बूंदे टपक रही थी.

रंभा ने हाथ बढ़ा के लंड को पकड़ा & थोड़ा उचक के सिकुदे लंड को चूसने लगी.विजयंत अब उसकी गंद की दरार मे जीभ फिराता उसकी गंद की छेद मे क्रीम भरते हुए उंगली किए जा रहा था.वो रंभा की गंद के कसे छेद को थोडा ढीला कर देना चाहता था ताकि उसके मोटे लंड को घुसने मे आसानी हो.जब रंभा बेचैन हो कमर हिलाने लगी & उसकी ज़ुबान ने उसके सिकुदे लंड को फिर से खड़ा कर दिया तो उसने रंभा की गंद से उंगली निकाली & उसकी कमर थाम गंद को हवा मे उठा उसके पीछे आ गया.

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"हेलो.",बलबीर ने देखा कि बॅंकर से बातचीत के बीच ब्रिज कोठारी ने अपने मोबाइल पे 1 कॉल ली & उसके चेहरे का रंग थोड़ा बदल गया.

"एक्सक्यूस मी.",वो अपनी मेज़ से उठा & अंदर बाथरूम की ओर जाने लगा.बलबीर भी उसके पीछे हो लिया.ब्रिज टाय्लेट मे घुसा & 1 क्यूबिकल मे घुसा दरवाज़ा बंद किया.बलबीर उसके साथ वाले क्यूबिकल मे दबे पाँव घुसा.

"तुम पिच्छले 6-7 दिनो से मुझे फोन कर के परेशान रहे हो.आख़िर चाहते क्या हो तुम?",ये शख्स रोज़ ब्रिज को फोन करता था हर बार नंबर बदल के & हर बार 1 ही बात कि क्या उसे अपने दुश्मन को मज़ा चखाना है.

"ब्रिज बाबू,आप क्लेवर्त के पास जो धारदार झरने हैं वाहा पहुँचो & मेरा यकीन मानो की आपको आपकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा तोहफा मिलेगा वाहा.कल सवेरे 4 बजे तक किसी भी हालत मे वाहा पहुँच जाओ मगर बिल्कुल अकेले अगर कोई भी साथ आया तो मुझे पता चल जाएगा & तुम्हारा तोहफा तुम्हे नही मिलेगा."

"मगर..",फोन काट गया था.

बलबीर ने उधर वाले अंजान शख्स की बात तो नही सुनी मगर ये समझ गया कि ब्रिज परेशान है.ब्रिज का दिमाग़ बड़ी तेज़ी से चल रहा था & अपना खाना ख़त्म होने तक उसने फ़ैसला कर लिया था कि वो धारदार फॉल्स ज़रूर जाएगा.खाना ख़त्म होते ही वो अपने दफ़्तर गया & वही से अपनी कार मे अकेला क्लेवर्त के लिए निकल पड़ा.बलबीर उसके पीछे ही था.

"हेलो,सोनिया.मैं क्लेवर्त जा रहा हू किसी काम से लेकिन तुम किसी को ये बात मत बताना मेरे ऑफीस वालो को भी नही.सब ठीक रहा तो कल लौट आऊंगा."

"लेकिन डार्लिंग..-"

"आज कुच्छ मत पुछो जान.कल सब बताउन्गा.बाइ!",ब्रिज ने फोन रखा & कार ड्राइव करने लगा.उधर घर मे अकेली बैठी सोनिया का दिल ना जाने क्यू बहुत ज़ोर से धड़कने लगा,उसे लगा की कुच्छ बुरा होने वाला है.

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"आईईईईईईईययययययययययईईईई...प्लीज़ मत डालिए..बहुत बड़ा है आपका लंड....हाआआआआईयईईईईईईईईईईईई..!",विजयंत के मोटे सूपदे ने रंभा की गंद के छ्होटे से सुराख को बहुत बुरी तरह फैला दिया था & वो चीख रही थी.

"बस हो गया मेरी रानी!....ये लो...चला गया......आहह..!",विजयंत ने सूपदे के पीछे क्रीम & वीर्य से चिकनी गंद मे आधा लंड घुसा दिया.वो जानता था की इसके आगे घुसाना उसकी प्यारी बहू के लिए बहुत तकलीफ़देह हो सकता है.रंभा की गंद ने तो उसके लंड को बिल्कुल जाकड़ लिया था & हर धक्के पे मज़े की वजह से उसकी आह निकल जाती थी.वो उसकी फांको को मसल्ते हुए उसकी गंद मार रहा था & रंभा अब दर्द से कम & जोश से ज़्यादा चीख रही थी.

"उउम्म्म्मममम.....!",वो अपने हाथ को अपने मुँह मे घुसा अपनी ही उंगलिया मस्ती मे चूसे जा रही थी.विजयंत ने दाया हाथ उसकी कमर से आगे उसकी चूत पे सरकया & उसके दाने को छेड़ने लगा & बाए को आगे बढ़ा उसकी भारी-भरकम लेकिन कसी चूचियो को मसल दिया.

"आन्न्‍न्णनह..बहुत ज़ालिम हैं आप डॅड!..ऊऊव्ववववववव..!",विजयंत ने उसके निपल पे चिकोटी काट ली,"..अपनी बहू को कितना दर्द पहुँचा रहे हैं.....आन्न्न्नह......हाआंन्‍नणणनह..!",विजयंत आगे झुका & उसकी पीठ से अपनी छाती सताते हुए उसके बाए कान को काट लिया.

"कहो तो निकाल लू लंड बाहर.",उसकी उंगली दाने पे तेज़ी से गोल-2 घूम रही थी.

"उउन्न्ञन्..नही.....उसने बाई तफा मुँह घुमा के बाए हाथ से उनके बाल पकड़ के खींच के उन्हे बड़ी शिद्दत से चूमा,"..बस तड़पाना है मुझे..है ना?....हाईईईईईईई..!",विजयंत ने धक्के लगते हुए उसे पूरी तरह से बिस्तर पे लिटा दिया था & अब उसके ुआप्र लेट के हल्के-2 आधे लंड के धक्के लगा रहा था.

"हााआअन्न्‍नननणणन्..मारिए......& मारिए अपनी बहू की गंद..आप ही की है ये डॅड......हाआअन्न्‍नननननणणन्......!",रंभा उसके नीचे दबी च्चटपटाने लगी थी & उसकी गंद ने विजयंत के लंड को और कस लिया था.

"आहह.......रंभा..!",विजयंत ने चीख मारी & बहू के झाड़ते ही उसकी गंद मे अपना गाढ़ा वीर्य छ्चोड़ दिया.

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"विजयंत डार्लिंग?"

"सोनिया?",विजयंत अभी भी रंभा के उपर लेटा था & उसका लंड उसकी गंद मे सिकुड रहा था.

"विजयंत,कुछ बताना है तुम्हे."

"हां-2.बोलो."

"अभी-2 ब्रिज क्लेवर्त गया है अकेला."

"तो?"

"विजयंत..",सोनिया रो रही थी.

"रो मत सोनिया..घबराओ मत..मैं तुम्हे कुच्छ नही होने दूँगा.",रंभा गौर से ससुर की बात सुन रही थी,"..ब्रिज क्लेवर्त गया है..किसलिए गया है?",..उसका ससुर ब्रिज कोठारी की बीवी को जानता था..रंभा हैरान हो गयी..,"..सोनिया..जान..प्लीज़ चुप हो जाओ..& सारी बात बताओ."..हैं!..जान..बाप रे!..ये तो बड़ा पहुँचा खिलाड़ी है..दुश्मन की बीवी को फँसा रखा हैयस इसने!

"विजयंत..विजयंत..मुझे लगता है कि..",सोनिया रोने लगी,"..मुझे लगता है की समीर की गुमशुदगी मे ब्रिज का हाथ है.",उसकी रुलाई & तेज़ हो गयी.

"क्या?!"

"हां..बस यही बताना था.बाइ!",उसने फोन काट दिया,"..आइ'म सॉरी,ब्रिज!",साइड-टेबल पे रखी पति की तस्वीर को देख उसकी रुलाई & तेज़ हो गयी.

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विजयंत उसकी गंद से लंड खींच अब हेअडबोर्ड से टेक लगाके पैरा फैलाक़े बैठा हुआ कुच्छ सोच रहा था.रंभा ने अभी उस से कुच्छ पुच्छना ठीक नही समझा.वो उसके दाई तरफ लेट गयी & दाई बाँह उसके जिस्म पे डाल दी & आज दिन के बारे मे सोचने लगी.ससुर के साथ इस मस्ताने रिश्ते की शुरुआत के बाद आज पहली बार दोनो मे थोड़ी कहा-सुनी हुई थी & विजयंत ने उसे डाँट दिया था.

रंभा का मानना था कि हरपाल की बेहन हिना से मिल के कुच्छ हासिल नही होना था उल्टे वो सावधान हो जाता & शायद समीर को कुच्छ नुकसान पहुँचा देता.इसी बात पे बहस हुई & विजयंत ने उसे डाँट दिया.उसका मानना था कि हरपाल जैसे लोग चूहे होते हैं & उन्हे पता चलने मे कोई हर्ज़ नही कि अब उन्हे मारने के लिए लोग मुस्तैद हो चुके हैं & जहा तक समीर का सवाल हो,अगर उसकी किस्मत खराब हुई तो हो सकता है अभी उन्हे उसकी लाश भी ना मिले.

रंभा को समीर से कोई गहरी मोहब्बत नही थी लेकिन समीर तो उस से मोहब्बत करता था.उसके लिए उसने अपनी दौलत,अपना खानदान ठुकरा दिया था & उसके इस जज़्बे की वो कद्र करती थी.उसे अपने ससुर की बात बहुत बुरी लगी थी.वो उसके कहने पे आवंतिपुर मे हिना से मिल आई.हिना ने भी पिच्छले & दिनो से भाई से बात नही की थी & उसने रंभा के सामने उसे फोन लगाया लेकिन फोन नही मिला.हिना उसे निर्दोष लगी थी & उसने उसे भाई की कोई भी खबर मिलने पे उसे बताने को कहा था.

क्लेवर्त तक के सारे रास्ते उसने विजयंत से कोई बात नही की थी & अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर दी थी लेकिन उसका ससुर भी कमाल का मर्द था!रूठी महबूबा को बिना 1 भी लफ्ज़ बोले ना केवल उसने मना लिया था बल्कि उसकी गंद भी मार ली थी!इतना वो समझ रही थी कि समीर के बारे मे कोई सुराग मिला है & शायद सारे मामले के तार ब्रिज से जुड़े हैं.

तभी विजयंत का मोबाइल दोबारा बजा.उसने नंबर देखा & चौंक गया,"समीर!",उसने रंभा की ओर देख के कहा तो वो भी उठ बैठी,"हेलो,समीर?"

"मेहरा,तुम्हारे लिए 1 तोहफा है.बस अभी 4 बजे तक धारदार फॉल्स पे पहुँचो.बिल्कुल अकेले आना वरना तोहफा नुकसान मे पड़ सकता है."

"हेलो..!..हेलो..!",फोन कट गया था.

"क्या हुआ?",रंभा ने ससुर के चेहरे पे हाथ फिराया.

"कोई समीर के मोबाइल से फोन करके मुझे धारदार फॉल्स बुला रहा है सवेरे 4 बजे."

"तो चलिए & पोलीस को भी खबर कर देते हैं."

"नही.मुझे अकेले बुलाया है नही तो समीर को नुकसान पहुँचा सकते हैं वो."

"मगर आप अकेले भी तो ख़तरे मे पड़ सकते हैं,डॅड..प्लीज़ मुझे ले चलिए."

"नही,तुम्हे ख़तरे मे नही डाल सकता & ना ही समीर को.",विजयंत बिस्तर से उठ गया,"..मैं अकेला जाउन्गा & उसे ले आऊंगा.",ससुर की भारी आवाज़ के वजन के आगे रंभा को कुच्छ और बोलने की हिम्मत नही हुई.

विजयंत मेहरा अपने कमरे मे जाके धारदार फॉल्स जाने की तैय्यारि करने लगा.रंभा अपने कमरे मे ही थी & वो शख्स तीसरे कमरे मे छिपा विजयंत के जाने का इंतेज़ार कर रहा था.वो शख्स जिस कमरे मे था उसमे घुप अंधेरा था & इतनी देर हो जाने के बाद भी उसकी आँखे अंधेरे की आदि नही हो पाई थी.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:37 PM,
#36
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--36

गतान्क से आगे.

"मैं जा रहा हू,तुम अंदर से दरवाज़ा बंद रखना.बाहर गार्ड को भी बोल जाउन्गा की मुस्तैद रहे."

"ठीक है.वैसे क्या हमे पोलीस को नही बता देना चाहिए?",रंभा ससुर के कोट के कॉलर पे उंगली फिरा रही थी.

"हां,मैं वाहा पहुँच के इन्वेस्टिगेटिंग ऑफीसर को खबर दूँगा..-"

"तन्णन्न्..!",विजयंत & रंभा निचली मंज़िल पे बने हाल से बाहर जाने वाले मैं दरवाज़े पे खड़े बातें कर रहे थे कि उपर कुच्छ गिरने की आवाज़ आई.

"कौन है?!",विजयंत चीखा,"..रंभा,सारी बत्तियाँ जलाओ!",वो सीढ़ियाँ फलंगता उपर भागा.

"धात तेरे की!",खामोशी हो जाने की वजह से वो शख्स कमरे से बाहर निकल के वाहा का जायज़ा लेने की सोच ही रहा था की कमरे के बाहर रखे पीतल के बड़े से सजावटी वेस से वो टकरा गया & वो ज़ोर की आवाज़ करता गिरा.रंभा ने बत्तियाँ जलानी शुरू की & वो शख्स उधर ही भागा जिधर से आया था.

"आए!रुक!",विजयंत ने उस शख्स को अपने कमरे मे घुसते हुए,उसकी पीछे से बस 1 झलक देखी.वो शख्स दौड़ता हुआ बाल्कनी मे पहुँचा & जिस दरवाज़े का शीशा तोड़ अंदर घुसा था उसी से बाहर निकला & उसे बाहर से बंद कर भागा.

"साले..!रुक..!",विजयंत ने कंधे से धक्के मार दरवाज़े को खोलना चाहा & 2-3 धक्को मे वो कामयाब हो गया.इधर रंभा ने बाहर भाग के दरबान को आगाह किया तो उसने दिमाग़ लगाते हुए बुंगले के पीछे की ओर दौड़ लगाई.जब तक विजयंत बाल्कनी मे आया & दरबान पीछे पहुँचा,वो शख्स दूसरी तरफ से घूम बंगल के मेन गेट तक पहुँच गया था.

"हेयययी..!",रंभा चीखी,वो अभी तक बंगल के सामने की तरफ ही थी.वो शख्स घुमा & रंभा ने उसके चेहरे पे वही निशान देखा & देखी उसकी नफ़रत से भरी आँखे.वो शख्स घुमा & फुर्ती से गेट पे चढ़ उसे फाँद गया.बगल के बंगल का चौकीदार शोरॉगुल सुन बाहर आ ही रहा था कि उस शख्स ने उसे करारा घूँसा उसके जबड़े पे जमाया & बंगल के पिच्छली तरफ भागा & वही से अपनी कार मे सवार हो निकल भागा.

"@#!$%^&*&..साला..!",वो गालिया बकता गाड़ी को वाहा से भगाए जा रहा था.वो मंज़िल के इतने करीब पहुँच नाकाम होके लौट रहा था.

"ये आदमी अंदर घुसा कैसे?",विजयंत की रोबदार आवाज़ ने दरबान का खून जमा दिया.

"प-पता नही साहब..म-मैं तो जगा था & यहा से तो कोई नही घुसा."

"ये ठीक कह रहा है.जब मैं इसे बुलाने निकली तो ये हंगामा सुन इधर ही आ रहा था.",रंभा को उस बेचारे पे तरस आ गया.वो समझ रही थी कि वो सच कह रहा है.

"आप पोलीस को खबर कर दीजिए प्लीज़."

"हूँ.",विजयंत ने जेब से मोबाइल निकाला & पहले समीर का केस देख रहे अफ़सर की नींद खराब की & फिर क्लेवर्त की पोलीस की,"..अब मैं जा रहा हू.कही देर ना हो जाए."

-------------------------------------------------------------------------------

ब्रिज कोठारी कोई कच्चा खिलाड़ी तो था नही & बलबीर मोहन की लाख होशियारी के बावजूद उसने भाँप लिया कि वो उसका पीछा कर रहा है.आज उसने सोच ही लिया था कि इस फोन की गुत्थी सुलझा के ही रहेगा.वो रात भर गाड़ी चलाके अब आवंतिपुर से आगे आ गया था & अब मौका था उसका पीछा कर रहे शख्स को चकमा देने का.

उसने कार की रफ़्तार बिना कम किए अचानक उसे बाई तरफ 1 कच्चे रास्ते पे उतार दिया.बलबीर चौंक गया & वो उस रास्ते से आगे बढ़ गया.उसने फ़ौरंम ब्रेक लगाया & वापस आया.उस कच्चे रास्ते पे उतर वो आयेज बढ़ा लेकिन उसे ब्रिज की कार नज़र नही आ रही थी.ब्रिज इस इलाक़े से अच्छी तरह से वाकिफ़ था & उसने फ़ौरन कार को आगे ले जाके वापस मेन रोड की तरफ घुमाया & फिर मैं रोड पार कर दूसरी तरफ के कच्चे रास्ते पे उतार दिया.उस रास्ते से होके वो फिर से थोडा आगे मेन रोड पे आया & फिर कार तेज़ी से क्लेवर्त की ओर भगा दी.जब तक बलबीर मोहन ने उसकी तरकीब समझी तब तक वो बहुत आगे निकल चुका था.

अब बलबीर मोहन को ये तो पता था नही कि ब्रिज जा कहा रहा है.वो आगे बढ़ने लगा लेकिन उसने सोचा की अब विजयंत को इस बारे मे बता देना चाहिए.विजयंत वक़्त से पहले ही झरने पे पहुच जाना चाहता था & वो अपनी कार टेढ़े-मेधे पहाड़ी रास्ते पे चला रहा था जब बलबीर का फोन आया.

"वो क्लेवर्त आ रहा है,बलबीर."

"आपको कैसे पता,मिस्टर.मेहरा?",विजयंत ने उसे फोन & घर मे घुसे आदमी वाली बातें बता दी.

"मिस्टर.मेहरा,आप प्लीज़ अकेले मत जाइए.पोलीस का या मेरे आने का इंतेज़ार कीजिए."

"मेरे बेटे का सवाल है,बलबीर!..मैं कोई ख़तरा नही ले सकता.",उसने फोन काट दिया.

-------------------------------------------------------------------------------

धारदार फॉल्स सैलानियो के बीच बहुत मशहूर था & वाहा तक पहुँचने के लिए 1 पक्का पैदल रास्ता था.नीचे कार पार्किंग मे गाड़ी लगा लोग उपर जाते थे & झरने के नीचे नहाने या फीओर आस-पास के खूबसूरत नज़ारे का लुत्फ़ उठाते थे.विजयंत वही खड़ा फोन करने वाले का इंतेज़ार कर रहा था कि तभी उसे दूर से कोई आता दिखा.

अभी उजाला होना शुरू नही हुआ था & उस अंधेरे मे उसे उस आदमी की शक्ल नही दिखी.हां,उसने ये ज़रौर भाँप लिया कि कद-काठी उसी के जैसी थी.उसकी चाल उसे जानी-पहचानी लगी.शायद अस आदमी ने भी उसे देख लिया & ठिठक गया.

ब्रिज ने दूर खड़े आदमी को पहचानना चाहा मगर उसे भी कुच्छ सॉफ नही दिखा.वो आगे बढ़ा की तभी उसके पैरो से कोई चीज़ आ टकराई.ऐसा लगता था जैसे किसी ने कुच्छ फेंका था उसके पैरो पे.उसने उसे उठाया तो वो कोई पॅकेट था.उसके हाथ मे कुच्छ गीला महसूस हुआ तो उसने पॅकेट को चेहरे के पास किया & फिर ऐसे दूर फेका जैसे वो कोई बड़ी ख़तरनाक चीज़ है.

ब्रिज ने सामने खड़े इंसान को देखा & सब समझ गया.ये किसी की साज़िश थी उसे फँसाने की & वो भी बेवकूफो की तरह इस जाल मे फँसता चला आया था.वो सामने खड़ा इंसान मेहरा था & उस पॅकेट मे कोई कपड़ा था जिसपे खून लगा था.ब्रिज उल्टे पाँव भागा.

विजयंत ने दूर खड़े इंसान को वो कपड़ा फेंकते देख सोचा की वो वो पॅकेट उसकी ओर फेंका रहा है.वो आगे बढ़ा & उस पॅकेट को उठाया & उसे खोल के देखा.अंदर खून के धब्बो वाली 1 कमीज़ थी.

1 पल को ब्रिज ने सोचा कि मेहरा को सब बता दे लेकिन उसे पता था कि मेहरा उसपे कभी यकीन नही करेगा & फिर ये भी तो हो सकता था की ये मेहरा की ही कोई चाल हो उसे फँसाने की.ब्रिज अपनी कार तक पहुँचा & उसे स्टार्ट कर वाहा से निकल गया.चाहे कुच्छ भी हो उसे आवंतिपुर पहुँचना था अपने होटेल & फिर वाहा से वापस डेवाले.

"कामीने..!",विजयंत बुदबुडाया.उसे समझ आ गया था की उस शख्स की कद-कती,चल-ढाल उसे क्यू जाने-पहचाने लगे थे.वो & कोई नही उसका दुश्मन कोठारी था.उसने पॅकेट को टटोला तो अंदर 1 छ्होटे से प्लास्टिक पॅकेट मे कंप्यूटर पे टाइप किया 1 खत था.

"मेहरा

ये खून तुम्हारे बेटे का है मगर घबराओ मत उसकी जान ख़तरे मे नही है.थोड़ी खरॉच आई थी उसे तो सोचा कि उस खरॉच को & कुरेद कर उसी के खून को सबूत के तौर पे तुम्हे भेजा जाए.ये कमीज़ भी उसी की है ताकि तुम्हे पक्का यकीन हो जाए की ये खत सच्चा है.

मेहरा,तुम कुच्छ दिन कोई नया काम ना करो तो तुम्हारा बेटा सही-सलामत तुम्हारे पास पहुँच जाएगा.ये बात लिख के दे दो की तुम अगले 6 महीनो तक कोई नया टेंडर लेने की कोशिश नही करोगे तो समीर तुम्हे लौटा दिया जाएगा वरना ये हो सकता है कि अगली बार खून के साथ-2 तुम्हारे प्यारे बेटे के जिस्म का कोई टुकड़ा भी तुम्हे भेजना पड़े."

खत पढ़ते ही विजयंत गुस्से से भर उठा.कुच्छ आवाज़ें सुनी तो उसने देखा की पोलिसेवाले वाहा आ रहे हैं.उसने पॅकेट थामा & उनकी ओर बढ़ गया.

-------------------------------------------------------------------------------

रंभा ने चाइ बनाई & 1 प्याला ले हॉल मे बैठ गयी.उस शख्स की शक्ल उसकी आँखो के सामने से हट नही रही थी & उनकी आँखो मे वो नफ़रत!..था कौन वो & इतनी नफ़रत से क्यू देखा था उसने उसको?..वो समझ नही पा रही थी की आख़िर समीर किस मुसीबत मे & क्यू फँस गया था?

वो शख्स घर मे किस इरादे से घुसा था?..उसने बंगल मे घूम रहे पोलिसेवालो को देखा.उसने उनके लिए भी चाइ बनाके हॉल के डाइनिंग टेबल पे रख दी थी & वो सब अपने-2 प्याले उठा रहे थे.

"मेडम..",थानेदार उसके पास आके बैठ गया,"..आपके ससुर के कमरे के बाल्कनी के दरवाज़े का काँच टूटा हुआ है.वो आदमी वही से घुसा था लेकिन सवाल ये है की उस वक़्त आपके ससुर कहा थे?",रंभा का दिल धड़क उठा..यानी की वो तब घुसा था जब वो विजयंत से चुद रही थी..कही उसने उन दोनो की चुदाई तो नही देख ली थी!

"मेडम..आपने जवाब नही दिया."

"हूँ..हां....देखिए,रात को 10 बजे के करीब हम दोनो अपने-2 कमरो मे सोने चले गये,उसके बाद मेरे ससुर ने मुझे 1 बजे जगाया & उस फोन का बारे मे बताया..",अभी तक थानेदार को पंचमहल पोलीस से समीर के केस के बारे मे भी जानकारी मिल गयी थी,"..हम दोनो मेरे कमरे मे ही बैठ के उस सिलसिले मे बातें करने लगे."

"आपलोगो ने कोई आवाज़ नही सुनी?"

"नही..",सुनते भी कैसे दोनो को फ़ुर्सत कहा थी 1 दूसरे के जिस्मो से खेलने से,"..हम उस फोन के बारे मे सुनके बहुत चिंतित हो गये थे."

"हूँ.",थानेदार उसे देखते हुए चाइ पीता रहा.

जब रात वियजयंत मेहरा & रंभा क्लेवर्त के बुंगले मे 1 दूसरे की बाहो मे समाए थे & ब्रिज कोठारी तेज़ी से धारदार फॉल्स जा रहा था,उस वक़्त रीता अपने कमरे मे अपने बिस्तर पे लेटी हल्के सरदर्द से परेशान अपना माथा सहला रही थी.समीर की गुमशुदगी का राज़ उसे भी समझ नही आ रहा था.पहले तो उसने सोचा था कि वो किसी हादसे का शिकार हो गया लेकिन अब उसे भी लग रहा था कि वो किसी साज़िश का शिकार हुआ है.वो इन्ही ख़यालो मे खोई थी की दरवाज़े पे दस्तक हुई.

"कौन है?"

"मैं,प्रणव."

"आ जाओ,बेटा.",वो उठ के बैठ गयी.

"क्या हुआ,मोम..तबीयत ठीक नही क्या?"

"नही,ठीक है.हल्का सरदर्द है."

"लाइए मैं दबा दू.",प्रणव उसके बाई तरफ बैठ गया & उसका सर दबाने लगा.

"अरे नही बेटा..ठीक है..तुम मत परेशान हो!",उसने उसका हाथ पकड़ हटाने की कोशिश की.

"क्यू?मैं नही दबा सकता क्या?..चलिए दबाने दीजिए.",प्रणव ने उसका हाथ हटाया & उसकी निगाह 1 पल को रीता के पतले स्ट्रॅप्स वाले नाइट्गाउन के गले पे चली गयी.रीता का दूधिया क्लीवेज हाथ उठाने-गिरने से छल्छला रहा था.उसने तुरंत नज़रे फेर ली लेकिन रीता ने उसे देख लिया था.

उसे थोड़ी शर्म आई & उसके गाल लाल हो गये लेकिन साथ ही उसे थोडा अच्छा भी लगा.प्रणव चुप-चाप उसका सर दबा रहा था & रीता भी नही समझ पा रही थी कि क्या बोले.

"शिप्रा कहा है?",उसने सवाल कर वो असहज चुप्पी तोड़ी.

"उसकी किसी सहेली की हें पार्टी थी.मैने उसे वही भेजा है.वो तो जाना नही चाह रही थी.मैने इसरार किया की जाएगी तो दिल बहलेगा."

"अच्छा किया.उसे भी परेशानी से राहत तो मिलनी ही चाहिए."

"& आपको?",प्रणव बिस्तर पे थोड़ा उपर हो गया था & उसका सर दबा रहा था.

"मैं तो ठीक हू."

"प्लीज़ मोम,झूठ मत बोलिए.आप आजकल अकेली बैठी रहती हैं & ना जाने क्या-2 सोचती रहती हैं.",रीता ने फीकी हँसी हँसी & प्रणव के हाथ हटा दिए & बिस्तर से उतरने लगी.उसका गाउन बिस्तर & उसके जिस्म के बीच फँस उसके घुटनो से उपर हो गया & प्रणव ने सास की गोरी टाँगे देखी.उसे पहली बार ये एहसास हुआ कि उसकी सास उम्र से कम दिखती थी & उसका जिस्म अभी बहुत ढीला नही पड़ा था.रीता ने जल्दी से गाउन ठीक किया & जाके कमरे की खिड़की पे खड़ी हो गयी.

"प्लीज़ मोम.संभालिए खुद को.",प्रणव उसके पीछे गया & उसके कंधो पे हाथ रख दिए.उसने ऐसा करने का सोचा नही था पर उसका दिल रीता के रेशमी जिस्म को छुना चाह रहा था.उसके हाथो के एहसास से रीता के जिस्म मे सनसनी दौड़ गयी लेकिन प्रणव का साथ उसे भला लग रहा था.प्रणव उसके कंधो को हल्के-2 दबाने लगा था.रीता ने आँखे बंद कर ली & उस छुअन के एहसास मे खोने लगी.

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क्रमशः.......
Reply
12-19-2017, 10:37 PM,
#37
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--36

गतान्क से आगे.

"मैं जा रहा हू,तुम अंदर से दरवाज़ा बंद रखना.बाहर गार्ड को भी बोल जाउन्गा की मुस्तैद रहे."

"ठीक है.वैसे क्या हमे पोलीस को नही बता देना चाहिए?",रंभा ससुर के कोट के कॉलर पे उंगली फिरा रही थी.

"हां,मैं वाहा पहुँच के इन्वेस्टिगेटिंग ऑफीसर को खबर दूँगा..-"

"तन्णन्न्..!",विजयंत & रंभा निचली मंज़िल पे बने हाल से बाहर जाने वाले मैं दरवाज़े पे खड़े बातें कर रहे थे कि उपर कुच्छ गिरने की आवाज़ आई.

"कौन है?!",विजयंत चीखा,"..रंभा,सारी बत्तियाँ जलाओ!",वो सीढ़ियाँ फलंगता उपर भागा.

"धात तेरे की!",खामोशी हो जाने की वजह से वो शख्स कमरे से बाहर निकल के वाहा का जायज़ा लेने की सोच ही रहा था की कमरे के बाहर रखे पीतल के बड़े से सजावटी वेस से वो टकरा गया & वो ज़ोर की आवाज़ करता गिरा.रंभा ने बत्तियाँ जलानी शुरू की & वो शख्स उधर ही भागा जिधर से आया था.

"आए!रुक!",विजयंत ने उस शख्स को अपने कमरे मे घुसते हुए,उसकी पीछे से बस 1 झलक देखी.वो शख्स दौड़ता हुआ बाल्कनी मे पहुँचा & जिस दरवाज़े का शीशा तोड़ अंदर घुसा था उसी से बाहर निकला & उसे बाहर से बंद कर भागा.

"साले..!रुक..!",विजयंत ने कंधे से धक्के मार दरवाज़े को खोलना चाहा & 2-3 धक्को मे वो कामयाब हो गया.इधर रंभा ने बाहर भाग के दरबान को आगाह किया तो उसने दिमाग़ लगाते हुए बुंगले के पीछे की ओर दौड़ लगाई.जब तक विजयंत बाल्कनी मे आया & दरबान पीछे पहुँचा,वो शख्स दूसरी तरफ से घूम बंगल के मेन गेट तक पहुँच गया था.

"हेयययी..!",रंभा चीखी,वो अभी तक बंगल के सामने की तरफ ही थी.वो शख्स घुमा & रंभा ने उसके चेहरे पे वही निशान देखा & देखी उसकी नफ़रत से भरी आँखे.वो शख्स घुमा & फुर्ती से गेट पे चढ़ उसे फाँद गया.बगल के बंगल का चौकीदार शोरॉगुल सुन बाहर आ ही रहा था कि उस शख्स ने उसे करारा घूँसा उसके जबड़े पे जमाया & बंगल के पिच्छली तरफ भागा & वही से अपनी कार मे सवार हो निकल भागा.

"@#!$%^&*&..साला..!",वो गालिया बकता गाड़ी को वाहा से भगाए जा रहा था.वो मंज़िल के इतने करीब पहुँच नाकाम होके लौट रहा था.

"ये आदमी अंदर घुसा कैसे?",विजयंत की रोबदार आवाज़ ने दरबान का खून जमा दिया.

"प-पता नही साहब..म-मैं तो जगा था & यहा से तो कोई नही घुसा."

"ये ठीक कह रहा है.जब मैं इसे बुलाने निकली तो ये हंगामा सुन इधर ही आ रहा था.",रंभा को उस बेचारे पे तरस आ गया.वो समझ रही थी कि वो सच कह रहा है.

"आप पोलीस को खबर कर दीजिए प्लीज़."

"हूँ.",विजयंत ने जेब से मोबाइल निकाला & पहले समीर का केस देख रहे अफ़सर की नींद खराब की & फिर क्लेवर्त की पोलीस की,"..अब मैं जा रहा हू.कही देर ना हो जाए."

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ब्रिज कोठारी कोई कच्चा खिलाड़ी तो था नही & बलबीर मोहन की लाख होशियारी के बावजूद उसने भाँप लिया कि वो उसका पीछा कर रहा है.आज उसने सोच ही लिया था कि इस फोन की गुत्थी सुलझा के ही रहेगा.वो रात भर गाड़ी चलाके अब आवंतिपुर से आगे आ गया था & अब मौका था उसका पीछा कर रहे शख्स को चकमा देने का.

उसने कार की रफ़्तार बिना कम किए अचानक उसे बाई तरफ 1 कच्चे रास्ते पे उतार दिया.बलबीर चौंक गया & वो उस रास्ते से आगे बढ़ गया.उसने फ़ौरंम ब्रेक लगाया & वापस आया.उस कच्चे रास्ते पे उतर वो आयेज बढ़ा लेकिन उसे ब्रिज की कार नज़र नही आ रही थी.ब्रिज इस इलाक़े से अच्छी तरह से वाकिफ़ था & उसने फ़ौरन कार को आगे ले जाके वापस मेन रोड की तरफ घुमाया & फिर मैं रोड पार कर दूसरी तरफ के कच्चे रास्ते पे उतार दिया.उस रास्ते से होके वो फिर से थोडा आगे मेन रोड पे आया & फिर कार तेज़ी से क्लेवर्त की ओर भगा दी.जब तक बलबीर मोहन ने उसकी तरकीब समझी तब तक वो बहुत आगे निकल चुका था.

अब बलबीर मोहन को ये तो पता था नही कि ब्रिज जा कहा रहा है.वो आगे बढ़ने लगा लेकिन उसने सोचा की अब विजयंत को इस बारे मे बता देना चाहिए.विजयंत वक़्त से पहले ही झरने पे पहुच जाना चाहता था & वो अपनी कार टेढ़े-मेधे पहाड़ी रास्ते पे चला रहा था जब बलबीर का फोन आया.

"वो क्लेवर्त आ रहा है,बलबीर."

"आपको कैसे पता,मिस्टर.मेहरा?",विजयंत ने उसे फोन & घर मे घुसे आदमी वाली बातें बता दी.

"मिस्टर.मेहरा,आप प्लीज़ अकेले मत जाइए.पोलीस का या मेरे आने का इंतेज़ार कीजिए."

"मेरे बेटे का सवाल है,बलबीर!..मैं कोई ख़तरा नही ले सकता.",उसने फोन काट दिया.

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धारदार फॉल्स सैलानियो के बीच बहुत मशहूर था & वाहा तक पहुँचने के लिए 1 पक्का पैदल रास्ता था.नीचे कार पार्किंग मे गाड़ी लगा लोग उपर जाते थे & झरने के नीचे नहाने या फीओर आस-पास के खूबसूरत नज़ारे का लुत्फ़ उठाते थे.विजयंत वही खड़ा फोन करने वाले का इंतेज़ार कर रहा था कि तभी उसे दूर से कोई आता दिखा.

अभी उजाला होना शुरू नही हुआ था & उस अंधेरे मे उसे उस आदमी की शक्ल नही दिखी.हां,उसने ये ज़रौर भाँप लिया कि कद-काठी उसी के जैसी थी.उसकी चाल उसे जानी-पहचानी लगी.शायद अस आदमी ने भी उसे देख लिया & ठिठक गया.

ब्रिज ने दूर खड़े आदमी को पहचानना चाहा मगर उसे भी कुच्छ सॉफ नही दिखा.वो आगे बढ़ा की तभी उसके पैरो से कोई चीज़ आ टकराई.ऐसा लगता था जैसे किसी ने कुच्छ फेंका था उसके पैरो पे.उसने उसे उठाया तो वो कोई पॅकेट था.उसके हाथ मे कुच्छ गीला महसूस हुआ तो उसने पॅकेट को चेहरे के पास किया & फिर ऐसे दूर फेका जैसे वो कोई बड़ी ख़तरनाक चीज़ है.

ब्रिज ने सामने खड़े इंसान को देखा & सब समझ गया.ये किसी की साज़िश थी उसे फँसाने की & वो भी बेवकूफो की तरह इस जाल मे फँसता चला आया था.वो सामने खड़ा इंसान मेहरा था & उस पॅकेट मे कोई कपड़ा था जिसपे खून लगा था.ब्रिज उल्टे पाँव भागा.

विजयंत ने दूर खड़े इंसान को वो कपड़ा फेंकते देख सोचा की वो वो पॅकेट उसकी ओर फेंका रहा है.वो आगे बढ़ा & उस पॅकेट को उठाया & उसे खोल के देखा.अंदर खून के धब्बो वाली 1 कमीज़ थी.

1 पल को ब्रिज ने सोचा कि मेहरा को सब बता दे लेकिन उसे पता था कि मेहरा उसपे कभी यकीन नही करेगा & फिर ये भी तो हो सकता था की ये मेहरा की ही कोई चाल हो उसे फँसाने की.ब्रिज अपनी कार तक पहुँचा & उसे स्टार्ट कर वाहा से निकल गया.चाहे कुच्छ भी हो उसे आवंतिपुर पहुँचना था अपने होटेल & फिर वाहा से वापस डेवाले.

"कामीने..!",विजयंत बुदबुडाया.उसे समझ आ गया था की उस शख्स की कद-कती,चल-ढाल उसे क्यू जाने-पहचाने लगे थे.वो & कोई नही उसका दुश्मन कोठारी था.उसने पॅकेट को टटोला तो अंदर 1 छ्होटे से प्लास्टिक पॅकेट मे कंप्यूटर पे टाइप किया 1 खत था.

"मेहरा

ये खून तुम्हारे बेटे का है मगर घबराओ मत उसकी जान ख़तरे मे नही है.थोड़ी खरॉच आई थी उसे तो सोचा कि उस खरॉच को & कुरेद कर उसी के खून को सबूत के तौर पे तुम्हे भेजा जाए.ये कमीज़ भी उसी की है ताकि तुम्हे पक्का यकीन हो जाए की ये खत सच्चा है.

मेहरा,तुम कुच्छ दिन कोई नया काम ना करो तो तुम्हारा बेटा सही-सलामत तुम्हारे पास पहुँच जाएगा.ये बात लिख के दे दो की तुम अगले 6 महीनो तक कोई नया टेंडर लेने की कोशिश नही करोगे तो समीर तुम्हे लौटा दिया जाएगा वरना ये हो सकता है कि अगली बार खून के साथ-2 तुम्हारे प्यारे बेटे के जिस्म का कोई टुकड़ा भी तुम्हे भेजना पड़े."

खत पढ़ते ही विजयंत गुस्से से भर उठा.कुच्छ आवाज़ें सुनी तो उसने देखा की पोलिसेवाले वाहा आ रहे हैं.उसने पॅकेट थामा & उनकी ओर बढ़ गया.

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रंभा ने चाइ बनाई & 1 प्याला ले हॉल मे बैठ गयी.उस शख्स की शक्ल उसकी आँखो के सामने से हट नही रही थी & उनकी आँखो मे वो नफ़रत!..था कौन वो & इतनी नफ़रत से क्यू देखा था उसने उसको?..वो समझ नही पा रही थी की आख़िर समीर किस मुसीबत मे & क्यू फँस गया था?

वो शख्स घर मे किस इरादे से घुसा था?..उसने बंगल मे घूम रहे पोलिसेवालो को देखा.उसने उनके लिए भी चाइ बनाके हॉल के डाइनिंग टेबल पे रख दी थी & वो सब अपने-2 प्याले उठा रहे थे.

"मेडम..",थानेदार उसके पास आके बैठ गया,"..आपके ससुर के कमरे के बाल्कनी के दरवाज़े का काँच टूटा हुआ है.वो आदमी वही से घुसा था लेकिन सवाल ये है की उस वक़्त आपके ससुर कहा थे?",रंभा का दिल धड़क उठा..यानी की वो तब घुसा था जब वो विजयंत से चुद रही थी..कही उसने उन दोनो की चुदाई तो नही देख ली थी!

"मेडम..आपने जवाब नही दिया."

"हूँ..हां....देखिए,रात को 10 बजे के करीब हम दोनो अपने-2 कमरो मे सोने चले गये,उसके बाद मेरे ससुर ने मुझे 1 बजे जगाया & उस फोन का बारे मे बताया..",अभी तक थानेदार को पंचमहल पोलीस से समीर के केस के बारे मे भी जानकारी मिल गयी थी,"..हम दोनो मेरे कमरे मे ही बैठ के उस सिलसिले मे बातें करने लगे."

"आपलोगो ने कोई आवाज़ नही सुनी?"

"नही..",सुनते भी कैसे दोनो को फ़ुर्सत कहा थी 1 दूसरे के जिस्मो से खेलने से,"..हम उस फोन के बारे मे सुनके बहुत चिंतित हो गये थे."

"हूँ.",थानेदार उसे देखते हुए चाइ पीता रहा.

जब रात वियजयंत मेहरा & रंभा क्लेवर्त के बुंगले मे 1 दूसरे की बाहो मे समाए थे & ब्रिज कोठारी तेज़ी से धारदार फॉल्स जा रहा था,उस वक़्त रीता अपने कमरे मे अपने बिस्तर पे लेटी हल्के सरदर्द से परेशान अपना माथा सहला रही थी.समीर की गुमशुदगी का राज़ उसे भी समझ नही आ रहा था.पहले तो उसने सोचा था कि वो किसी हादसे का शिकार हो गया लेकिन अब उसे भी लग रहा था कि वो किसी साज़िश का शिकार हुआ है.वो इन्ही ख़यालो मे खोई थी की दरवाज़े पे दस्तक हुई.

"कौन है?"

"मैं,प्रणव."

"आ जाओ,बेटा.",वो उठ के बैठ गयी.

"क्या हुआ,मोम..तबीयत ठीक नही क्या?"

"नही,ठीक है.हल्का सरदर्द है."

"लाइए मैं दबा दू.",प्रणव उसके बाई तरफ बैठ गया & उसका सर दबाने लगा.

"अरे नही बेटा..ठीक है..तुम मत परेशान हो!",उसने उसका हाथ पकड़ हटाने की कोशिश की.

"क्यू?मैं नही दबा सकता क्या?..चलिए दबाने दीजिए.",प्रणव ने उसका हाथ हटाया & उसकी निगाह 1 पल को रीता के पतले स्ट्रॅप्स वाले नाइट्गाउन के गले पे चली गयी.रीता का दूधिया क्लीवेज हाथ उठाने-गिरने से छल्छला रहा था.उसने तुरंत नज़रे फेर ली लेकिन रीता ने उसे देख लिया था.

उसे थोड़ी शर्म आई & उसके गाल लाल हो गये लेकिन साथ ही उसे थोडा अच्छा भी लगा.प्रणव चुप-चाप उसका सर दबा रहा था & रीता भी नही समझ पा रही थी कि क्या बोले.

"शिप्रा कहा है?",उसने सवाल कर वो असहज चुप्पी तोड़ी.

"उसकी किसी सहेली की हें पार्टी थी.मैने उसे वही भेजा है.वो तो जाना नही चाह रही थी.मैने इसरार किया की जाएगी तो दिल बहलेगा."

"अच्छा किया.उसे भी परेशानी से राहत तो मिलनी ही चाहिए."

"& आपको?",प्रणव बिस्तर पे थोड़ा उपर हो गया था & उसका सर दबा रहा था.

"मैं तो ठीक हू."

"प्लीज़ मोम,झूठ मत बोलिए.आप आजकल अकेली बैठी रहती हैं & ना जाने क्या-2 सोचती रहती हैं.",रीता ने फीकी हँसी हँसी & प्रणव के हाथ हटा दिए & बिस्तर से उतरने लगी.उसका गाउन बिस्तर & उसके जिस्म के बीच फँस उसके घुटनो से उपर हो गया & प्रणव ने सास की गोरी टाँगे देखी.उसे पहली बार ये एहसास हुआ कि उसकी सास उम्र से कम दिखती थी & उसका जिस्म अभी बहुत ढीला नही पड़ा था.रीता ने जल्दी से गाउन ठीक किया & जाके कमरे की खिड़की पे खड़ी हो गयी.

"प्लीज़ मोम.संभालिए खुद को.",प्रणव उसके पीछे गया & उसके कंधो पे हाथ रख दिए.उसने ऐसा करने का सोचा नही था पर उसका दिल रीता के रेशमी जिस्म को छुना चाह रहा था.उसके हाथो के एहसास से रीता के जिस्म मे सनसनी दौड़ गयी लेकिन प्रणव का साथ उसे भला लग रहा था.प्रणव उसके कंधो को हल्के-2 दबाने लगा था.रीता ने आँखे बंद कर ली & उस छुअन के एहसास मे खोने लगी.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:37 PM,
#38
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--37

गतान्क से आगे.

पता नही कितनी देर दोनो वैसे ही खड़े रहे & प्रणव उसके कंधो को सहलाता रहा.अब दोनो दिल ही दिल मे ये समझ गये थे कि दोनो के दिलो मे क्या चल रहा था.रीता ने आँखे खोली & जैसे नींद से जागी.उसने उसका हाथो को हटाया & वाहा से जाने लगी तो प्रणव ने कंधो पे हाथ वापस जमा दिए & उसे अपनी ओर घुमाया.

"प्रणव..",वो आगे झुका & रीता के गुलाबी होंठ चूम लिए.रीता की भी आँखे बंद हो गयी & उसके होंठ अपनेआप प्रणव के लबो को चूमने की इजाज़त देते हुए खुल गये.प्रणव ने उसके होंठो पे ज़ुबान फिराके उसे अंदर घुसाया & जैसे ही रीता क़ी ज़ुबान से सताया उसे जैसे करेंट लगा & आँखे खोल उसे परे धकेला लेकिन प्रणव ने उसे खुद से अलग नही होने दिया.

ये क्या कर रहे हो,प्रणव?..ये ठीक नही..प्लीज़..!",प्रणव उसे बाँहो मे भर पागलो की तरह चूम रहा था,"..नही..प्रणव..!"

"तड़क्ककक..!",कमरे मे चाँते की आवाज़ गूँजी,"निकलो यहा से!",रीता चीखी.

"नही!..नही जाउन्गा..पहले ये कहिए कि आपको मेरा छुना अच्छा नही लगा.आपके लब मेरे लबो को अपनी लज़्ज़त नही चखने देना चाहते थे..आपका जिस्म मेरे जिस्म के साथ मिलना नही चाहता..!"

"हां.नही अच्छा लगा मुझे & मैं नही चाहती ये करना!",रीता अपने सीने पे बाहे बाँध तेज़ी से साँसे लेते हुए घूम गयी & प्रणव की ओर पीठ कर ली.

"यही बातें मेरी आँखो मे आँखे डाल के कहिए.",उसने रीता की बाई बाँह पकड़ उसे घुमाया & बाए हाथ से उसका चेहरा पकड़ उसे अपनी आँखो मे देखने को मजबूर किया.

"प्लीज़..प्रणव..प्लीज़.",रीता की आँखे छल्छला आई.

"क्यू रोक रही हैं खुद को?..",उसने रीता को फिर से बाहो मे भर लिया.रीता की आँखो से आँसू बह रहे थे,"..कबूल कर लीजिए मुझे!"

"मगर ये ठीक नही..शिप्रा..-",प्रणव ने बाए हाथ की 1 उंगली उसके लबो पे रख उसे खामोश कर दिया.उसकी उंगली की च्छुअन ने रीता को मदहोश कर दिया & उसने आँखे बंद कर ली.चेहरे पे आँसुओ की चिलमन के पीछे उलझन के साथ-2 अब मदहोशी भी दिख रही थी.

"आप मुझे चाहती हैं & मैं आपको..बस..शिप्रा को ये राज़ ना जानने की ज़रूरत है ना हमे उसे बताने की.",उंगली हटा के वो झुका & इस बार जब उसने अपनी सास को चूमा तो उसने भी पुरज़ोर तरीके से उसकी किस का जवाब दिया.प्रणव की बाहें रीता की 32 इंच की कमर पे कस गयी & उसने उसके जिस्म को अपनी बाहो मे बिल्कुल भींच लिया.

कहते हैं कि औरत की मस्ती मर्द की मस्ती से कही ज़्यादा होती है & शायदा इसीलिए उपरवाले ने उसे शर्म नाम के गहने से नवाज़ा है ताकि वो अपनी मर्यादा ना भूले & इंसान उलझानो से बचा रहे लेकिन उसी खुदा ने मर्द को इसरार कर अपनी बात मनवाने का हौसला भी दे दिया है.और मर्द भी तब तक दम नही लेता जब तक उसकी चहेती उसकी बाहो मे ना झूल जाए.यहा भी कुच्छ ऐसा ही हुआ लगता था.

रीता को भी दामाद के जिस्म का एहसास बड़ा नशीला लग रहा था.इस उम्र मे भी 1 जवान मर्द उसकी चाहत अपने दिल मे रखता था,इस ख़याल ने ना केवल उसके दिल मे खुशी की लहर दौड़ा दी थी बल्कि उसकी मस्ती की आग को भी भड़का दिया था.

प्रणव उसे बाहो मे कसे हुए बिस्तर तक ले गया & उसे लिटा उसके उपर सवार हो उसे चूमता रहा.कयि पलो बाद दोनो ने सांस लेने के लिए अपने होंठो को जुदा किया तो प्रणव ने रीता के चेहरे से अपने होंठो से आँसुओ के निशान सॉफ कर दिए.रीता ने उसके बाल पकड़ उसके चेहरे पे किस्सस की झड़ी लगा दी.

प्रणव का बया हाथ नीचे आ रीता के दाए घुटने को उठा रहा था.उसका लंड रीता की चूत के उपर दबा हुआ था & अब उसे दामाद के अंग से निकलती गर्मी पागल कर रही थी.प्रणव ने उसकी बाई जाँघ पे से गाउन सरका उसे नंगा किया तो रीता को शर्म आ गयी & उसने हाथ बढ़ा गाउन को नीचे करने की कोशिश की लेकिन प्रणव ने उसके हाथ को पकड़ उसके सर के पीछे बिस्तर पे रख दिया & उसके लब चूमने लगा.

रीता उसकी ज़ुबान से अपनी ज़ुबान लड़ाती मस्ती मे खो रही थी.प्रणव ने उसके दोनो हाथो को अपनी गिरफ़्त मे ले उसके सर के उपर बिस्तर से लगाए पकड़ा हुआ था & उसकी गर्दन चूम रहा था.उसके जिस्म के नीचे दबी रीता को अपनी बेबसी से बहुत मज़ा आ रहा था.

"ऊहह..प्रणव..नही..!",प्रणव उसके क्लीवेज को चूम रहा था & चूचियाँ नंगी होने के ख़याल से रीता शर्मा गयी थी.प्रणव ने अपनी जीभ उसके सीने की 36सी साइज़ की गोलैयो पे फिराई जोकि जोश मे और बड़ी हो गयी दिख रही थी.रीता अब मस्ती मे अपना सर इधर-उधर झटक रही थी.प्रणव अपनी कमर हिला उसकी गाउन से धकि चूत पे अपने लंड के धक्के लगा रहा था.रीता को अंदाज़ा हो अगया था कि उसके दामाद का लंड अच्छे आकर का है & उसकी चूत भी अब पानी छ्चोड़ रही थी.

"आननह..!",प्रणव ने अपनी नाक से उसके गाउन को थोड़ा नीचे कर उसके दाए निपल को नुमाया किया & जैसे ही उसपे अपनी जीभ फिराई,रीता झाड़ गयी & बिस्तर पे उचकने लगी.प्रणव ने उसके हाथ छ्चोड़े & उसकी नंगी छाती को चूसने लगा तो रीता ने उसका सर पकड़ के अपने सीने से उठाया & उसे चूमने लगी.थोड़ी देर बाद प्रणव ने किस तोड़ी & उसके जिस्म से उठ गया & अपनी शर्ट निकाल दी.

दामाद को नंगा होते देख रीता ने शर्म से आँखे बंद कर ली.जब अपनी जाँघो पे उसने प्रणव के हाथ महसूस किए तो उसने आँखे खोली,"..नही परणाव..आन्न्‍नणणनह..!",प्रणव उसके गाउन को कमर तक उठाके उसकी जाँघो पे चूमे चला जा रहा था.उसने उसकी मोटी जाँघ पे हल्के से काटा तो वो उसे मना करना भूल अपने बालो से बेचैनी से खेलने लगी.

उसकी गुलाबी पॅंटी मे छिपि चूत गीली हो रही थी & प्रणव का लंड भी उसकी पॅंट मे प्रेकुं बहा रहा था.उसने घड़ी की ओर देखा,शिप्रा कभी भी आ सकती थी.उसके पहले ही उसे अपनी सास के साथ शुरू किए इस नये रिश्ते की नीव उसकी चुदाई कर पुख़्ता का देनी थी.

"ऊहह..प्रणव..आहह...आनन्नह..उउन्न्नह..!",उसने रीता की चूत पे पॅंटी के उपर से जी अपना मुँह चिपका दिया था & वो बिस्तर से उठाके उक्से सर के बाल खींचती आहें भर रही थी.प्रणव ने उसकी पॅंटी को उतारा नही बस उसे बाए हाथ से 1 तरफ खींच उसकी चिकनी चूत को अपनी निगाहो के सामने किया.इस उम्र मे भी रीता की चूत ढीली नही हुई थी.उसने जल्दी-2 उसकी चूत से बह रहे रस को चाटना शुरू कर दिया.

रीता वापस बिस्तर पे लेट गयी & अपना जिस्म कमान की मोड़ने लगी.उसके जिस्म मे मस्ती बिजली बन के दौड़ रही थी.वक़्त के साथ-2 विजयंत अपने उपर काबू रखना सीख गया था.रीता को चोद्ते हुए वो उसे मस्ती से भर देता था लेकिन खुद जोश की वजह से आपे से बाहर जाता नही दिखता था.मगर प्रणव अभी जवान था & उसकी हर्कतो का बेसबरापन & कुच्छ हद्द तक का जंगली पन रीता को अपनी जवानी की याद दिलाने लगा.

"ऊन्नह..प्रणव....!",रीता कमर उचकाते झड़ी तो प्रणव ने उसकी पॅंटी खींच दी.रीता अधखुली आँखो से अपने दामाद को खुद को नंगा करते देख रही थी.उसके हाथ अभी भी उसे रोकने की कोशिश कर रहे थे मगर ये साफ ज़ाहिर था कि उसके हाथ केवल रोकने की रस्म निभा भर रहे थे.

प्रणव ने अपनी पॅंट उतारी & उसका 8.5 इंच लंबा लंड तना उसकी सास की आँखो के सामने आ आगाया.रीता के दिल मे खुशी की 1 लहर उठी.प्रणव ने उसकी मोटी जाँघो को फैलाया & उसकी चूत के दाने पे अंगूठे से रगड़ते हुए उसके पेट को दबाया & अपना लंड अंदर घुसा दिया.

"उउन्न्ह....!",रीता ने जिस्म मोडते हुए सर पीछे ले जाके दर्द & मज़े से आँखे बंद कर ली.लंड विजयंत के लंड से बड़ा नही था मगर इतना छ्होटा भी नही था कि उसे मज़ा ना आए.प्रणव ने धक्के लगाके सास की चुदाई शुरू कर दी.रीता से दामाद की वासना से भरी निगाहें बर्दाश्त नही हुई & उसने अपनी आँखे बंद कर ली & अपना चेहरा घुमा लिया.

प्रणव ने उसके गाउन को उसके सर से निकाला & अब उसकी सास पूरी नंगी उसके नीचे उस से चुद रही थी.रीता ने आँखे और ज़ोर से मिंच ली.

"मॉम,आप कितनी हसीन हैं..",जवान मर्द के मुँह से तारीफ सुन के रीता का दिल बल्लियो उच्छलने लगा,"..आपकी चूचिया अभी भी कितनी कसी हुई है..किसी जवान लड़की से ज़्यादा खूबसूरत हैं ये गोलाइयाँ..!",उसने दोनो छातियो को आपस मे मिलके दबाते हुए बाए निपल को इतनी ज़ोर से चूसा की आहत हो रीता ने उसके सर को अपने हाथो मे कस लिया,"..आहह..आपकी चूत तो बहुत कसी है,मोम..बहुत मज़ा आ रहा है मुझे!"

प्रणव की गुस्ताख बातों & उस से भी कही ज़्यादा गुस्ताख हरकतो ने रीता को मुस्कुराते हुए आँखे खोलने पे मजबूर कर ही दिया.दामाद का लंड उसे भी जन्नत की सैर करा रहा था.

"शर्म नही आती अपनी सास से ऐसी बातें करते हुए..आननह..!",प्रणव ने 1 ज़ोर का धक्का लगाया & रीता ने दामाद की पीठ मे अपने नाख़ून गढ़ा दिए.उसकी टाँगे खुद बा खुद उसकी कमर पे कस गयी.

"तारीफ करने मे शर्म कैसी,मों!मैं बेवकूफ़ था जो इतने दिनो आपके हुस्न को देखा नही मगर आज से अपनी ग़लती सुधारना शुरू कर दिया है मैने.",उसने अपना मुँह उसकी मोटी चूचियो मे छुपा लिया.सच कहा था उसने.रीता को अपने पाले मे करना बहुत ज़रूरी था & आज के बाद तो वो उसी की तरफ रहने वाली थी.सास की गोरी चूचियो को भींचते हुए प्रणव ने महसूस किया कि ट्रस्ट ग्रूप पे भी उसकी पकड़ मज़बूत हो रही है.

इस ख़याल ने उसके जोश मे इज़ाफ़ा किया & उसके धक्के और तेज़ हो गये.रीता दामाद की ज़ोरदार चुदाई से मस्ती मे पागल हो गयी थी & उसकी गंद दबोच कमर उचका उसके हर धक्के का जवाब दे रही थी....अब जो भी हो,वो अपनी कुर्सी छ्चोड़ेगा नही!

"आन्न्‍नननणणनह..!",रीता ने ज़ोर से आह भारी & प्रणव के सर को अपने सीने पे बिल्कुल भींच दिया & पागलो की तरह कमर उचकाने लगी.वो अपने दामाद के लंड के धक्को से झाड़ गयी थी.उसने चूत मे कुच्छ गर्म & गीला महसूस किया & उसके होंठो पे सुकून भरी मुस्कान फैल गयी.उसकी चूत मे पहली बार उसके प्यारे दामाद मे अपना गाढ़ा वीर्य छ्चोड़ा था.

"हूँ..इस खत के हिसाब से तो आपका कोई दुश्मन मिस्टर.समीर मेहरा की गुमशुदगी का ज़िम्मेदार है,मिस्टर.विजयंत मेहरा?",केस की छान-बीन कर रहे इन्वेस्टिगेटिंग ऑफीसर अकरम रज़ा ने खून के धब्बो वाले खत को बड़ी हिफ़ाज़त से 1 प्लास्टिक बॅग मे डाल अपने साथ आए 1 सब-इनस्पेक्टर को थमाया,"..इसे फोरेन्सिक लॅब भेजो & पक्का करो कि ये समीर के ही खून के निशान हैं."

"तो मिस्टर.मेहरा..",वो वापस विजयंत से मुखातिब हुआ.उसके साथ बैठी रंभा गहरी सोच मे डूबी थी,"..आपको अभी भी किसी पे शक़ नही?"

"नही ऑफीसर,मुझे अभी भी किसी पे शक़ नही है.",विजयंत ने ना जाने क्यू ब्रिज कोठारी के धारदार फॉल्स पे मौजूद होने वाली बात च्छूपा ली थी.

"हूँ.."रज़ा गौर से ससुर & बहू को देख रहा था,"मिस्टर.मेहरा,क्या मैं आप दोनो के यहा आने की वजह जान सकता हू?"

"हम समीर की तलाश करते यहा पहुँचे हैं,ऑफीसर.मैने सोचा कि क्यू ना मैं उसी रास्ते से उन जगहो पे जाके खुद थोड़ी पुच्छ-ताछ करू,जिनपे समीर ने आख़िरी बार सफ़र किया था.आप तो जानते ही हैं कि पिच्छले 1 महीने से समीर हमसे अलग रह रहा था.मैने अपनी बहू को इसलिए साथ रखा ताकि कोई ऐसी बात जोकि इस दौरान हुई हो जिसके बारे मे मुझे जानकारी ना हो & इन्हे पता हो तो ये मुझे बता दें."

"रंभा जी,आपने मुझसे कही कुच्छ च्छुपाया तो नही है?",रज़ा अब रंभा से मुखातिब था.

"जी नही लेकिन इस सवाल की वजह जान सकती हू?"

"देखिए,मिस्टर.मेहरा को 1 फोन आता है & उन्हे 4 बजे धारदार झरने पे बुलाया जाता है.उसी वक़्त घर मे कोई शख्स घुस के बैठा है..क्या है उसकी यहा आने की वजह?..चोरी या कुच्छ और?..मुझे ये लगता है कि किसी का इरादा विजयंत साहब को घर से बाहर कर आपको अकेला करने का था?"

"क्या?!",विजयंत & रंभा 1 साथ चौंके,"..लेकिन किसलिए?.ऐसा क्यू चाहेगा कोई?",रज़ा दोनो को गहरी निगाहो से देख रहा था.दोनो सच मे चौंकते दिख रहे थे मगर उसे पक्का यकीन तो था नही.

"हो सकता है कोई रंभा जी को नुकसान पहुँचना चाहता हो."

"मुझे?..लेकिन क्यू?"

"अब यही तो पता लगाना है,मेडम!या तो मुजरिम हाथ आ जाए या उसका मक़सद पता चल जाए..केस सुलझ जाएगा..वैसे 1 बात और पुच्छनी है मुझे.मिस्टर.मेहरा,आपके कमरे के दरवाज़े का काँच तोड़ वो शख्स अंदर घुसा था लेकिन आपको काँच टूटने की आवाज़ नही सुनाई दी?"

"नही."

"हूँ..ऐसा कैसे हो सकता है?"

"देखिए.मुझे फोन आया तो मैने फ़ौरन रंभा के कमरे मे जाके उसे जगाया & सारी बात बताई जिसे सुन ये घबरा गयी.धारदार जाने मे काफ़ी वक़्त था & मैने इसे सोने को कहा लेकिन ये अकेली डर रही थी तो मैने इसे सोने को कहा & खुद इसके कमरे की आराम कुर्सी पे बैठ गया & ना जाने कब मेरी आँख लग गयी.ख़ैरियत थी कि मैने अपने मोबाइल पे 2.30 बजे का अलार्म लगा रखा था & उसके बजने से ही मेरी नींद टूटी जिसके बाद मैने कपड़े बदले & यहा से जाने लगा & फिर सारी घटना घटी."

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क्रमशः.......
Reply
12-19-2017, 10:37 PM,
#39
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--38

गतान्क से आगे.

"हूँ..जब आप कपड़े बदलने गये तो भी आपकी निगाह फर्श पे पड़े शीशे के टुकड़ो पे नही गयी?"

"जी,नही.आपने देखा होगा कि कमरे का कपबोर्ड उस टूटे काँच वाले दरवाज़े से बिल्कुल उल्टी दिशा मे है.मैं बेटे के बारे मे सोचता तैय्यार हुआ & वाहा से निकल गया."

"यानी की जब आप रंभा जी के कमरे की आरामकूर्सी पे सो रहे थे उसी दौरान वो अंदर घुसा होगा..खैर!",वो खड़ा हो गया,"..मैं चलता हू.आप अभी भी यही,इसी बंगल मे रहेंगे?"

"नही,मैं तो अभी अपने होटेल शिफ्ट हो रहा हू & रंभा को मैं कल ही डेवाले भेज रहा हू.मैं नही चाहता की ये ज़रा भी ख़तरे मे पड़े.वैसे ऑफीसर मैं चाहता हू कि आप मीडीया से ये बोल दें की मैं भी वापस पंचमहल जा रहा हू."

"ठीक है..",रज़ा हंसा.सवेरे की घटनाओ की कुच्छ भनक तो मीडीया को लग ही गयी थी & वो खबर सूंघते बस उस बुंगले तक पहुँचने ही वाले थे,"..बढ़िया सोचा है आपने.वैसे कुच्छ भी ध्यान आए तो मुझे ज़रूर बताएँ.ओके!",उसने हाथ मिलाया & निकल गया.

"आपने ये क्यू कहा कि मैं डेवाले जा रही हू?",विजयंत बाहर अपनी प्राडो मे बैठ गया था जिसमे बंगल का डरबन उनका समान चढ़ा रहा था.

"क्यूकी तुम जा रही हो.",रंभा ने बैठ के कार का दरवाज़ा बंद किया तो विजयंत ने डरबन को कुच्छ बखशीश दी & कार वाहा से निकली.

"आप ऐसे मेरा फ़ैसला नही ले सकते.मैं नही जा रही!",गुस्से से रंभा का चेहरा लाल हो रहा था.विजयंत उसे क्या डरपोक समझ रहा था!..वो घबराई ज़रूर थी लेकिन अब तैय्यार भी थी.आगे वो शख्स उसके करीब आके देखे,वो उसका मुँह नोच लेगी!

"बहस मत करो!",विजयंत ने उसे डांटा,"..तुम्हारी समझ मे कुच्छ नही आ रहा.बहुत ख़तरा है यहाँ!"

"मुझे डर नही लगता किसी भी बात से."

"बस!",विजयंत की भारी आवाज़ तेज़ हो गयी & उसने बाया हाथ उठाके बहू को चुप रहने का इशारा किया,"..तुम कल जा रही हो.इस बात का फ़ैसला हो चुका है.",रंभा की आँखो मे पानी आ गया.उसे आजतक ऐसे किसी ने नही डांटा था.वो खामोश हो गयी & खिड़की से बाहर देखने लगी.विजयंत को भी महसूस हुआ कि उसने बहू से कुच्छ ज़्यादा ही सख्ती से बात की है & उसने बाया हाथ बढ़ा के स्लीव्ले ब्लाउस से बाहर झाँक रही उसकी नर्म,गोरी दाई बाँह को च्छुआ तो रंभा ने उसे झटक दिया.विजयंत ने हाथ पीछे खींचा & खामोशी से कार चलाने लगा.

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पंचमहल के अपने होटेल मे ब्रिज कोठारी आराम कर रहा था.सवेरे धारदार झरनो पे विजयंत को देख वो बहुत घबरा गया था लेकिन जब उसकी घबराहट कम हुई तो उसने डेवाले वापस लौटने का ख़याल दिमाग़ से निकाल दिया.उस से अंजाने मे 1 अच्छा काम हुआ था.वो अपने ऑफीस की 1 कार उठाके क्लेवर्त तक चला आया था जोकि उसके नाम पे रिजिस्टर नही थी.उस कार को उसने आवंतिपुर के अपने दफ़्तर की पार्किंग मे लगाया & ऐसा करते उसे किसी ने नही देखा.

उसके बाद 1 प्राइवेट टॅक्सी बुक की & पंचमहल पहुँचा & वाहा से सीधा अपने होटेल.अपने आदमियो से उसने यही कहा की वो होटेल की सर्प्राइज़ चेकिंग पे आया है.वाहा से उसने आवंतिपुर के दफ़्तर फोन कर कहा कि डेवाले ऑफीस की 1 कार वाहा पार्क है जिसे वापस भिजवा दिया जाए.

ब्रिज ने सोच लिया था कि वो इस मामले को सुलझा के ही मानेगा & जो भी उसे ऐसे फँसाने की कोशिश कर रहा था उसे वो मज़ा ज़रूर चखायगा.वो बिस्तर पे लेटा था की उसका मोबाइल बजा,"हेलो."

"हाई,जानेमन!कहा रहते हो आजकल?पिक्चर साइन करवा के तो भूल ही गये मुझे.",कामया की खनकती आवाज़ सुनते ही ब्रिज के होंठो पे मुस्कान फैल गयी.

"मेरी जान!हम तो तुम्हारे दिल मे ही रहते हैं,तुम्ही उसे टटोल के देखती नही कभी."

"उफफफ्फ़!..",कामया बिस्तर मे नंगी लेटी थी.उसने अपनी चूत पे हाथ फिराया जिस से कबीर का वीर्य बह रहा था.बस अभी ही उनकी चुदाई ख़त्म हुई थी & कबीर बाथरूम मे नहा रहा था,"..तुमने तो लाजवाब कर दिया,जान!वैसे कहा हो अभी?"

"जहा इस वक़्त होना चाहिए.",ब्रिज ने जान बुझ के बात घुमा दी,"..& तुम?"

"मैं तो आवंतिपुर मे हू,यार.शूटिंग के लिए आई हूँ."

"अच्छा.कब आई..ई मीन कब गयी वाहा?"

"बस सवेरे की फ्लाइट से पहुँची थी.धारदार पे गाना शूट होना था लेकिन पता नही आज वाहा कुच्छ गड़बड़ थी तो पूरा इलाक़ा सील था.अब देखें कल क्या होता है.आज का पूरा दिन तो खाली बैठे बोर होंगी.",कामया ने कितनी सफाई से झूठ बोल दिया था.शूटिंग कॅन्सल होने की खबर सुन कबीर खुशी से उच्छल पड़ा था & उसे अपने कमरे मे ले आया था & अगली सुबह तक कामया वही रहने वाली थी.

"अच्छा.वैसे क्या गड़बड़ हुई है वहाँ?"

"पता नही.कह रहे हैं कि कोई गुंडा दिखा था वाहा तो पहले पूरे इलाक़े को छान के सेफ डिक्लेर करेंगे फिर पब्लिक को जाने देंगे वाहा."

"ओह.",ब्रिज समझ गया की पोलीस असल बात च्छूपा रही है.सही भी था,आख़िर समीर की जान का सवाल था लेकिन फिर उसे क्यू बुलाया था वाहा उस कॉलर ने?..हो ना हो ये विजयंत की ही घिनोनी साजिश है..कमीना!बेटे को मोहरा बना मुझे फाँसना चाहता है,अपने बिज़्नेस के लिए!

"क्या हुआ,ब्रिज डार्लिंग चुप क्यू हो गये?..कही किसी दिलरुबा के साथ तो मसरूफ़ नही हो?",कामया ने उसे छेड़ा.

"दिलरुबा तो इस वक़्त आवंतिपुर मे बैठी है यहा तो बस नीरस फाइल्स & उबाउ काम है.",ब्रिज ने नाटकिया आह भरी तो कामया हंस पड़ी.

"तो यहा आ जाओ ना!अभी तो शूटिंग चलेगी कुच्छ दिन यहा & फिर यहा का मौसम कितना सुहाना है.ऐसे आलम मे तुम्हारी मज़बूत बाजुओ मे पिस्ने का जी कर रहा है,डार्लिंग!"

"थोड़ा सब्र करो,मेरी जान.हो सकता है बहुत जल्द ही तुम्हारी तमन्ना पूरी हो जाए."

"सच?",कामया ने बहुत खुश होने का नाटक किया.कबीर अपने बॉल पोन्छ्ता बाथरूम से बाहर आ गया था.उसका लंड झड़ने के बाद सिकुड़ने के बावजूद अच्छा-खास लंबा था.कामया ने उसे देख होंठो पे जीभ फिराई & अपनी टाँगे फैला अपनी चूत पे 1 उंगली फिराई.

"सच."

"तो जल्दी आना.ओके,बाइ!",कामया ने फोन किनारे फेंका & अपनी फैली टाँगो के बीच उसकी चूत से अपना वीर्य अपनी ज़ुबान से साफ करते कबीर के बालो को सहलाने लगी.

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"मिस्टर.मेहरा,वो बहुत चालाक आदमी है & उसने भाँप लिया था कि मैं उसका पीछा कर रहा हू & क्या चकमा दिया उसने मुझे.उसी कारण मुझे आने मे देर हो गयी वरना उसे रंगे हाथो पकड़ लेता.",बलबीर मोहन होटेल क्लेवर्त वाय्लेट के बार मे विजयंत के साथ बैठा था & दोनो बियर पी रहे थे.बार अभी खुला नही था & इसीलिए दोनो आराम से बाते कर रहे थे.

"बलबीर,उसे कभी भी कम नही आँकना.बहुत शातिर है वो.",विजयंत ने बियर का 1 घूँट भरा,"..वैसे 1 बात समझ नही आई मुझे?"

"क्या?"

"अगर वो समीर की गुमशुदगी के पीछे है तो वो पीछे ही रहना पसंद करेगा बल्कि ऐसा जाल बुनेगा कि कोई ये समझ ही नये पाए की उस जाल के सिरे उस तक जाते हैं.इस तरह से खुद झरने पे आना कुच्छ समझ नही आया."

"हूँ..झरने पे आपके पीछे-2 पोलीस ने भी पहुँचने मे ज़रा देर कर दी नही तो उसका खेल उसी वक़्त ख़त्म हो जाता."

"अभी तक फिर कोई फोन नही आया बलबीर.मुझे समीर की फ़िक्र हो रही है."

"आप घबराईए मत,मेहरा साहब.समीर की कीमत बहुत ऊँची लगाई है उसे अगवा करने वाले ने.बिना आपका जवाब सुने वो उसे हाथ नही लगाएँगे."

"उसके खून से रंगी कमीज़ भेजी है उन्होने बलबीर!",एंहरा की आँखो मे गुस्सा & डर दोनो थे.

"मेहरा साहब,वो आपको डराना चाहते हैं ताकि आप फ़ौरन उनकी बात मान लें.समीर उनके लिए सोने के अंडे देने वाली मुर्गी है,उसे मारने की बेवकूफी वो नही कर सकते.उन्होने सरिंज से उसकी बाँह से खून निकाल के उस कमीज़ पे गिरा दिया होगा.किसी भी वालिद के लिए औलाद के खून को देखना कितना खौफनाक तजुर्बा हो सकता है,उसी बात पे खेल रहे हैं वो."

"तो क्या करू मैं?",विजयंत पहली बार इतना बेबस महसूस कर रहा था.

"आप उनकी बात मान लीजिए."

"क्या?!"

"हां,आपको अगला फोन जल्द आएगा & वो आपको फिर से समीर को नुकसान पहुचाने की बात कहेंगे.आप घबरा के उनकी बात मान लीजिए फिर देखिए वो क्या बोलते हैं.किसी भी तरह हमे समीर को अपने पास लाना है.आपको बस बात मानने की बात कहनी है सच मे माननी थोड़े ही है.",बलबीर की बात से विजयंत के होंठो पे मुस्कान आ गयी.

"मैं समझ गया तुम्हारी बात,बलबीर."

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"तुम कहा हो,ब्रिज?",ब्रिज कामया से बात कर तैय्यार हुआ ही था की सोनिया का फोन आ गया.

"मैं पंचमहल मे हू,डार्लिंग."

"तुम तो क्लेवर्त गये थे ना?"

"हां,वाहा का काम निपटा के यहा आ गया."

"इतनी जल्दी?"

"हां,काम जल्दी हो गया."

"ओह.वैसे क्या काम था,जान?",सोनिया की आँखे रात भर रोने से ला हो चुकी थी.अगर ब्रिज देख सकता तो देखता कि उसकी बीवी की आवज़ से बिल्कुल उल्टे भाव उसकी सूरत पे थे.

"अरे,मेरी रानी..अपने लोगो को बीच-2 मे चौंकाने से वो मुस्तैद रहते हैं.बस ऐसे ही चेकिंग कर रहा हू."

"हूँ..तो लोटोगे कब?"

"क्यू?याद आ रही है मेरी?",ब्रिज मुस्कुराया.

"ऐसे अचानक चले जाओगे तो चिंता तो होगी ना."

"ओह,डार्लिंग आइ लव यू!मैं जल्दी ही आ जाऊँगा.ओके?"

"ओके,डार्लिंग.आइ लव यू.बाइ!",सोनिया ने फोन कटा & फिर दूसरा नंबर डाइयल किया.

"हाई सोनिया.",विजयंत ने बलबीर को भी अपने होटेल के मॅनेजर से कहके 1 कमरा दिलवा दिया था.बियर पीने के बाद बलबीर आराम करने चला गया था जबकि विजयंत वही बैठा दूसरी बियर पी रहा था.

"विजयंत,मुझे सब कुच्छ बताओ."

"किस बारे मे,सोनिया?"

"समीर के बारे मे जो भी पता चला है तुम्हे.",विजयंत खामोश हो गया.

"क्या हुआ,विजयंत?"

"छ्चोड़ो ना,सोनिया.क्या करोगी जान के?",विजयंत ने जान बुझ के नाटक किया था.कल रात को सोनिया से हुई बात से उसे इतना तो समझ आ गया था कि वो ब्रिज को इस सब के पीछे का दिमाग़ समझ रही थी & इस बात से पति से दुखी भी थी.यही तो उसे चाहिए था.ब्रिज की बर्बादी तो उसका बहुत पुराना सपना था.

"प्लीज़,विजयंत.तुम्हे मेरी कसम.मुझे सब बताओ."

"ओके.",विजयंत ने 1 लंबी सांस ले उसे सारी बात शुरू से बताना चालू किया,"..लेकिन मैं यकीन से नही कह सकता कि वो ब्रिज ही था.अंधेरा था उस वक़्त."

"मैं तुमसे मिलना चाहती हू,विजयंत."

"प्लीज़,सोनिया यहा मत आओ.ख़तरा है यहा!"

"विजयंत,मैं तुमसे मिलने आ रही हू.",सोनिया ने फोन काट दिया.इतने दिनो से दोनो मर्दो के बीच झूलते हुए उसे कभी-2 बहुत ग्लानि होती थी.उसे लगता था कि वो पति से बेवफ़ाई कर रही है & प्रेमी से खेल रही है मगर अब उसकी उलझन सुलझती दिख रही थी.उसे समझ आ गया था कि उसका पति ग़लत था & प्रेमी सही.अब उसे किसी बात की परवाह भी नही थी.वो जानती थी कि विजयंत उस से कभी शादी नही करेगा लेकिन अब उसे उसकी रखैल बनके रहना भी मंज़ूर था.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:37 PM,
#40
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--39

गतान्क से आगे.

"ओह..प्रणव..ये ठीक नही है..",रीता अपने बिस्तर पे बैठी थी & उसके सामने घुटनो पे बैठा प्रणव उसके ब्लाउस खोल उसके ब्रा को उपर कर उसकी चूचियाँ चूस रहा था,"..छ्चोड़ो ना!..कही शिप्रा ना आ जाए!"

"उसे अभी थोडा वक़्त लगेगा.अभी तो नहाने गयी है.",प्रणव ने अपनी सास को पीछे धकेला & उसके घुटने उपर मोड़ते हुए उसके पाँव बिस्तर पे रखे.ऐसा करने से रीता की सारी अपनेआप उसकी चीनी जाँघो से फिसल उसकी कमर पे हो गयी.प्रणव ने जल्दी से उसकी पॅंटी खींची तो रीता की टाँगे खुद ब खुद थोड़ी फैल गयी.उसे अपने जिस्म की इस हरकत पे शर्म आई & उसने आँखे बंद कर मुँह बाई तरफ फेरा & टाँगे बंद कर ली.

"खोलिए ना,मोम!",प्रणव ने अपनी पॅंट नीचे सर्कायि & अपना तना लंड थामे सास की टाँगे फैलाने लगा.

"प्लीज़,प्रणव.मत करो.",रीता की ज़ुबान इनकार रही थी जबकि उसका जिस्म चीख रहा था प्रणव के लंड को अपने अंदर लेने के लिए.प्रणव ने ज़बरदस्ती उसकी टाँगे फैलाई & झुकते हुए अपनी सास मे सामने लगा.

"आहह..!",रीता कराही & अपने दामाद को अपने बाजुओ मे जाकड़ लिया & चूमने लगी,"..पागल कर दिया है तुमने मुझे..",प्रणव बहुत तेज़ धक्के लगा रहा था & रीता भी उसकी कमर पे टाँगे कसे कमर उचका रही थी.दोनो ही जानते थे कि शिप्रा के आने से पहले अपने जलते जिस्मो को सकून पहुचाने के लिए वक़्त बहुत कम है,"..कल रात जो हुआ ठीक नही हुआ...हाईईईई..शिप्रा के साथ नाइंसाफी है ये..उउन्न्ञणनह..हान्णन्न्....चूसो उन्हे...आन्न्‍न्णनह.....ऐसे धीरे नही....हाँ ज़ोर से......ऊव्ववववववव..!",1 तरफ बेटी के साथ बेईमानी करने से उसका ज़मीर उसे कचोट रहा था तो दूसरी तरफ दामाद की बेसब्र जवानी उसके जिस्म को मज़े मे डूबा रही थी.

"फिर वही बात!मैं आपको प्यार करता हू & आप भी मुझे चाहती हैं & हम दोनो को 1 साथ खुश रहने का हक़ है..& मैं शिप्रा को छ्चोड़ नही रहा.उसे भी खुश रख रहा हू तो नाइंसाफी कैसी?..ये सब छ्चोड़िए मोम.मैं आपके साथ हर पल को भरपूर जीना चाहता हू.आप भी ऐसा ही चाहती हैं,आपका रोम-2 यही बात कह रहा है लेकिन आप इसे मान नही रही..आहह..!",रीता झाड़ गयी थी & उसने अपने नाख़ून प्रणव के कंधो पे गढ़ा दिए थे.उसने धक्को की रफ़्तार बढ़ा दी.

"ओह..प्रणव..आइ लव यू..आइ लव यू......अब मैं भी जियूंगी हर पल तुम्हारे साथ..तुमने मुझे फिर से जवान कर दिया है..आननह..!",प्रणव ने सास की चूचियाँ मसली & उसे चूम लिया.

"आप तो हमेशा से ही जवान थी बस भूल गयी थी इस बात को..आपका दिल भी जवान है & जिस्म भी..ये हुस्न तो किसी कमसिन लड़की को रश्क़ का एहसास करा दे!",रीता ने दामाद के मुँह से तारीफ सुन शर्म & खुशी से आँखे बंद कर उसे अपनी बाहो मे & कस लिया & उचक के उसके दाए कान मे जीभ फिराने लगी.दोनो 1 दूसरे की बाहो मे गुत्थमगुत्था बहुत जल्द ही अपनी मंज़िल तक फुँछ गये.रीता प्रणव की पीठ को नोचती कांप रही थी & प्रणव का लंड उसकी चूत मे अपना वीर्य गिरा रहा था.

"पर 1 सवाल है मोम.",सास के सुकून & खुमारी से भरे चेहरे पे से बाल हटा के उसने उसका माथा चूमा.

"क्या?",रीता ने उचक के दामाद के लबो पे 1 किस जड़ी.

"जब डॅड लौटेंगे तब हम कैसे मिलेंगे?",रीता के चेहरे पे 1 परच्छाई सी आई & उसने प्रणव के चेहरे को अपनी चूचियो पे दबा दिया.

"हम मिलेंगे,प्रणव.ज़रूर मिलेंगे.",रीता के चेहरे पे जो भाव था वो समझ नही आ रहा था पर हाँ,इतना ज़रूर था कि उसी पल उसने कोई बहुत अहम फ़ैसला अपने दिल मे ही ले लिया था.

"नाराज़ हो?",रंभा होटेल सूयीट के अपने कमरे के बेड पे बैठी थी जब विजयंत मेहरा उसके बाई तरफ आ बैठा.रंभा ने कोई जवाब नही दिया & दूसरी तरफ घूम गयी.विजयंत ने अपने होटेल मॅनेजर को बोल के ये सूयीट अपने लिए ठीक करवाया था जिसमे 2 बेडरूम & 1 छ्होटा सा लाउंज था.मॅनेजर को उसने सख़्त ताकीद की थी कि किसी को भी ये ना बताया जाए कि वो यहा है क्यूकी कल रात के बाद वो अपनी बहू को किसी और ख़तरे मे नही डाल सकता.

"आइ'एम सॉरी!",विजयंत उठ के उसके दाई तरफ बैठा & इस बार जब वो फिर से मुँह फेरने लगी तो उसने उसकी बाई बाँह को थाम उसे रोक दिया,"..रंभा,मेरी बात को समझो.यहा ख़तरा है & मैं तुम्हे मुसीबत मे नही डाल सकता."

"ख़तरा आपके लिए भी तो है!",रंभा की आँखो से शोले बरस रहे थे मगर साथ ही कुच्छ शबनम की बूंदे भी चमक रही थी.

"रज़ा की बात गौर से नही सुनी तुमने..",विजयंत का हाथ उसकी गुदाज़ बाँह पे उपर चढ़ता उसके बाए कंधे पे आ गया था,"..कोई मुझे घर से बाहर भेजना चाहता था ताकि तुम अकेली पड़ जाओ.हो सकता है केवल मुझे डराने के लिए किया हो उसने ऐसा लेकिन उस सूरत मे भी ख़तरे मे तो तुम ही रहती ना!",रंभा ने आँखे बंद कर अपना चेहरा बाई ओर घुमाया तो विजयंत का हाथ उसके कंधे से उठ उसके बाए गाल पे आ गया.

"मैं आपको छ्चोड़ के नही जाना चाहती.",शबनम की बूँदो ने उसकी पॅल्को के नीचे से उसके गालो को चूमने का रास्ता ढूंड ही लिया.विजयंत के दिल मे कुछ भर आया.ऐसा पहले कभी महसूस नही किया था उसने.रंभा के लिए भी ये एहसास नया था.ये प्यार तो नही था ये दोनो जानते थे क्यूकी दोनो ही जितना प्यार अपनेआप से करते थे उतना शायद कभी किसी & इंसान से नही कर सकते थे-1 दूसरे से भी नही लेकिन ये जो भी था उस खूबसूरत एहसास के बहुत करीब था.

"मैं भी तुमसे दूर नही रहना चाहता..",विजयंत की आवाज़ & भारी लगी तो रंभा ने आँखे खोली,"..मगर हालात की यही माँग है.",शबनम उसके बहू के गाल पे रखे हाथ पे ढालाक आई थी.

"ठीक है.आप कहते हैं तो मैं डेवाले चली जाती हू मगर मुझे पल-2 की खबर चाहिए.",रंभा ने अपना बाया हाथ ससुर के अपने गाल पे रखे हाथ के उपर रख दिया.

"थॅंक्स,रंभा.",विजयंत आगे झुका & उसके दाए गाल से चिपकी शबनम की बूंदे चखने लगा.

"एनितिंग फॉर यू,डॅड.",रंभा ने होंठो को ज़रा सा दाई तरफ घुमाया & विजयंत के लबो से लगा दिया.दोनो 1 दूसरे की ज़ुबानो से खेलने लगे.शाम ढाल रही थी & दोनो के दिलो ने सोच लिया था कि रंभा की रवानगी से पहले-2 जितना हो सके 1 दूसरे की बाहो मे वक़्त गुज़ारेंगे ताकि जुदाई के पॅलो को इन रंगीन यादो के सहारे काट सकें.

दोनो 1 दूसरे के चेहरे को थामे बड़ी शिद्दत से चूम रहे थे.रंभा ने अपनी जीभ विजयंत के मुँह मे घुसा रखी थी & विजयंत भी उसे चूस रहा था.उसके हाथ बहू के चेहरे से नीचे उसकी पीठ पे आए & उसने उसे अपने सीने से लगा लिया.रंभा की भारी छातियो विजयंत के चौड़े सीने से टकराई तो उसका जिस्म खुशी से भर उठा & उसकी चूत लंड की हसरत से कसकने लगी.

"तुमसे 1 बात पुच्छू,बुरा मत मानना.",दोनो ने हाफ्ते हुए किस तोड़ी.विजयंत बहू के चेहरे को थामे था & रंभा भी उसकी दाढ़ी सहला रही थी.

"पुच्हिए,डॅड.",उसने उसकी कंज़ी के 3 बटन्स खोले & नीचे झुक सीने के घने बालो मे नाक घुसा के रगड़ा.

"मुझे तुम्हारी ज़िंदगी के बारे मे जानना है,सबकुच्छ.",रंभा ने सीने से मुँह उठाया & सवालिया नज़रो से ससुर को देखा.

"देखो,रंभा.मैं ये पक्का करना चाहता हू कि कही कोई तुमसे तो बदला नही लेना चाहता."

"मुझसे?",रंभा के हाथ विजयंत की जाँघो पे थे.विजयंत ने उसे अपने & करीब खींचा तो उसकी बैंगनी सारी का पल्लू गिर गया & मॅचिंग स्लीव्ले ब्लाउस के गले मे से उसका गोरा क्लीवेज झलकने लगा.

"देखो,रंभा.जब समीर गायब हुआ था & मैं पंचमहल आया तो मुझे तुमपे ही शक़ था..-"

"-..मुझे पता है.",रंभा के होंठो पे 1 उदास सी मुस्कान तेर गयी.विजयंत ने उसे आगोश मे भींचा & उसके चेहरे को हाथो मे थाम उसकी आँखो मे झाँका.

"इतने दीनो मे मुझे एहसास हो गया है कि मैं ग़लत था.मेरे सवाल का मक़सद सिर्फ़ अपने परिवार को मुसीबत से निकालना है,रंभा!",विजयंत की आँखो मे सच्चाई झलक रही थी.रंभा ने अपनी बाहे उसकी पीठ पे कस दी & उसे चूम लिया.

"मुझे नही पता की मेरे पिता कौन हैं..",उसने अपनी ज़िंदगी की दास्तान सुनानी शुरू कर दी.विजयंत ने उसे बाहो मे कसे हुए बिस्तर पे लिटा दिया.वो उसके चेहरे & गले को चूम रहा था.रंभा भी उसके बालो मे उंगलिया फिराती उसके चेहरे पे बीच-2 मे चूम रही थी.

विजयंत का दाया हाथ उसके चिकने पेट पे घूम रहा था & उसकी गहरी नाभि को कुरेद रहा था.रंभा ने उस से कुच्छ भी नही च्छुपाया,अपने प्रेमियो की बात भी नही.उसने उसे रवि,विनोद & परेश,तीनो के बारे मे बताया.विजयंत का हाथ उसकी कमर मे अटकी सारी के अंदर घुसना चाह रहा था.

"उन तीनो मे से कोई तो नही हो सकता इस सब के पीछे?",वो बहू के चेहरे के उपर झुका हुआ था & वो उसकी कमीज़ उतार रही थी.विजयंत का हाथ अभी उसकी सारी मे घुसा उसकी पॅंटी के ठीक उपर के पेट के हिस्से को सहला रहा था.

"मैं डेवाले पहुँच के परेश & विनोद के बारे मे तो पता लगा लूँगी लेकिन रवि के बारे मे मैं कुच्छ नही कर सकती..उउम्म्म्म..!",वो उचकी & विजयंत को नीचे गिराया & फिर उसे बाहो मे भर उल्टा कर दिया & उसके उपर चढ़ उसके सीने को चूमने लगी,"..वैसे मुझे लगता नही कि वो गधा इतना बड़ा काम कर सकता है.वो तो वही अपने बाप की दुकान संभाल रहा होगा.",उसने विजयंत के निपल को वैसे ही चूसा जैसे वो उसके निपल्स को चूस्ता था.

"आहह..उसके बारे मे तो पता लगवा लूँगा..!",विजयंत ने उसके बालो मे हाथ घुसा दिए.रंभा उसके सीने को चूमती नीचे उसके पेट पे हाथ फिरा रही थी.कुच्छ देर बाद वो उठी तो झुके होने की वजह से उसके ब्लाउस मे से उसकी छलकने & छलकती दिखने लगी.विजयंत उसे बाहो मे भरता उठ बैठा & दोनो प्रेमी 1 बार फिर बड़ी शिद्दत से 1 दूसरे को चूमने लगे.

"लेकिन वो शख्स था कौन जो आज सवेरे बंगल मे घुसा था?",विजयंत बिस्तर से टाँगे लटकाए बैठा था & रंभा उसकी गोद मे थी.विजयंत उसकी सारी खोल रहा था & रंभा उसके बालो को पकड़ उसकी दाढ़ी पे अपने गाल रगड़ रही थी.विजयंत ने कमर मे अटकी सारी को खींचा तो रंभा फर्श पे खड़ी हो गयी & फिर विजयंत ने खड़े होके सारी को उसके बदन से जुदा कर दिया.

"यही तो समझ नही आ रहा..",दोनो खड़े हो फिर से 1 दूसरे की बाहो मे समा गये.विजयंत ब्लाउस के उपर से ही उसकी चूचियाँ मसल रहा था,"..झरने पे जो भी था अगर समीर उसके क़ब्ज़े मे है तो उसकी माँग तो ये है की मैं अपना बिज़्नेस आगे ना बढ़ाऊं लेकिन फिर मेरे घर मे घुस मेरी बहू को क्यू नुकसान पहुचाना चाहता है वो ये समझ मे नही आ रहा मेरी..नुकसान पहुचाना है तो वो डेवाले क्यू नही जाता मेरे बाकी परिवार के पीछे?"

"उउन्न्ह..डेवाले मे घर पे,दफ़्तर मे कड़ी सेक्यूरिटी है.कोई भी ऐसे घुस नही सकता.यहा तो हम आसान निशाना थे....ऊहह..!",विजयंत के हाथ उसकी गंद को मसलते हुए उसके पेटिकोट के हुक्स को खोल रहे थे & उसकी ज़ुबान रंभा के क्लीवेज पे घूम रही थी.

"ये भी सही बात है लेकिन फिर भी उस शख्स का मक़सद क्या था आख़िर?",उस सवाल से जूझते विजयंत ने रंभा को बाहो मे भर लिया & उसकी मांसल कमर को हाथो से दबाते हुए उसके होंठ चूमने लगा.रंभा भी उसके मज़बूत जिस्म को अपने हाथो मे हसरत से भरती उसकी किस का पूरी गर्मजोशी से जवाब देने लगी.पेट पे दबा ससुर का तगड़ा लंड उसके बदन की आग को & भड़का रहा था.वो बेचैनी से कमर हिलाने लगी क्यूकी उसकी चूत की कसक बहुत बढ़ गयी थी.विजयंत ने उसकी गंद को हाथो मे दबोच उसके जिस्म को अपने जिस्म के साथ दबके पीस दिया तो वो उसके लाबो से जुड़े लाबो से आहें भरती काँपते हुए झाड़ गयी & खुद को उसकी मज़बूत बाहों के सहारे छ्चोड़ दिया.विजयंत उसे थामे,उसके बालो को चूमता तब तक खड़ा रहा जब तक की वो खुमारी से बाहर नही आ गयी.

"उसे छ्चोड़िए..",उसने ससुर के होंठो पे बाए हाथ की 1 उंगली फिराई,"..सवेरे झरने पे जो भी आया था उसे आप नही पहचान पाए थे?",विजयंत ने रंभा की आँखो मे झाँका.उसके हाथ रंभा की पीठ पे ब्लाउस के हुक्स को खोल रहे थे.

"नही,पहचान लिया था.",उसने हुक्स खोल रंभा को अपने आगोश से आज़ाद किया & ब्लाउस को आगे खींचा.रंभा ने भी बाहें फैलाक़े ससुर की ब्लाउस उतरने मे मदद की.

"वो ब्रिज कोठारी था.",विजयंत ने दाई बाँह उसकी कमर मे डाली & बाई को उसके सीने के उभारो को दबाते हुए पीछे ले गया & अगले ही पल रंभा की चूचियाँ काले ब्रा की क़ैद से आज़ाद थी.

"क्या?!",विजयंत दाए हाथ से उसकी कमर थाम झुका & उसकी चूचियाँ चूमने & चूसने लगा.उसका बाया हाथ बहू के मुलायम पेट & उसकी कमर के दाई तरफ घूम रहा था,"..आपने ये बात पोलीस को क्यू नही बताई?..& फिर कुच्छ कर क्यू नही रहे?..ऊन्नह..!",ससुर की ज़ुबान उसे मस्त कर रही थी.विजयंत झुक के उसकी बाई चूची चूस रहा था.रंभा ने दाए हाथ मे दाई चूची को थामा & विजयंत के बाल पकड़ उसका सर उठाके उसके मुँह को दाई चूची से लगा दिया.

"कुच्छ बातें है जो मुझे परेशान कर रही हैं.",विजयंत ने जम के उसकी चूचियो को चूसा & जब अपना सर उठाया तो वाहा पहले से ही बने उसके होंठो के निशानो मे इज़ाफ़ा हो गया था & निपल्स बिल्कुल कड़े हो गये थे,"..पहली तो ये की कोठारी इतना बेवकूफ़ नही की ऐसा काम करे & अपना चेहरा भी दिखा दे.वो तो ऐसा जाल बुनने वाला मकड़ा है की किसी को पता भी नही चले कि ये उसकी कारस्तानी है.",रंभा ने उसकी पॅंट खोल दी थी & अंडरवेर के उपर से ही उसके लंड को दबा रही थी.

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क्रमशः.......
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