Chodan Kahani छोटी सी भूल
11-13-2018, 12:43 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
वही बता रही हूँ, “वाहा भी वो नया नया ही लगा था. शॉप ओनर को उशके बारे में कुछ नही पता. ओनर ने बताया कि उन्होने न्यूसपेपर में एक एलेक्ट्रीशियन के लिए अड्वर्टाइज़्मेंट निकाली थी, बिल्लू सबसे पहले आ गया और उन्होने उशे रख लिया. उन्हे तो उशके घर तक का नही पता. ओनर ने भी यही बताया कि वो बहुत कम बोलता था और अक्सर चुपचाप रहता था. पर वो उशके काम से खुस नही थे, क्योंकि उनके अनुशार वो अक्सर शॉप से गायब रहता था.”

ये सब सुन कर मैं हैरान रह गयी. ये ज़रूर था कि इन बातो से किसी नतीज़े पर नही पहुँचा जा सकता था. हां पर ये बात ज़रूर अजीब लग रही थी कि वो नया नया ही फरीदाबाद में आया था. क्या वो देल्ही से ही था. क्या वो देल्ही से ही मुझे जानता था, ये कुछ ऐसे सवाल थे जो मुझे बार बार परेशान कर रहे थे.

मैं हैरान थी कि लोगो के अनुशार वो गुम शुम चुपचाप रहता था, पर मेरे साथ तो बहुत ही बे-हुदा बकवास करता था, आख़िर क्यो ? मेरे लिए बिल्लू एक रहश्य बनता जा रहा था.

मुझे अब बिल्लू कोई बहुत ही ख़तरनाक मुजरिम मालूम हो रहा था. मैने मन ही मन में सोचा की अछा हुवा कि वो मारा गया, ऐसे कामीनो की इस दुनिया में कोई जगह नही है.

दीप्ति ने कहा, “ऋतु, बस इतना ही पता चला है अभी तक. मनीष बहुत मेहनत कर रहा है, कह रहा था कि जल्दी ही वो इस राज की गहराई तक पहुँच जाएगा”

“अब तो मुझे भी लग रहा है कि अछा किया तुमने मनीष को ये काम दे कर. सच में अब तो सॉफ हो गया है कि दाल में कुछ काला ज़रूर है” --- मैने गंभीरता से कहा

“कुछ काला नही, मुझे तो पूरी दाल ही काली लग रही है. खैर तुम चिंता मत करो, मेरा जेम्ज़ बॉन्ड सब कुछ पता करके जल्दी ही बता देगा” --- दीप्ति ने कहा

मैने हंसते हुवे पूछा, “ मेरा मतलब, लगता है तुम्हे उस से प्यार हो गया है, है ना”

“ह्म्म… पता नही यार बट आइ लाइक हिम वेरी मच” --- डिप्टी सोचते हुवे बोली.

मैने कहा, “ ओके, अछा ये बताओ तुम्हे क्या लगता है कि क्या बात हो सकती है.”

“पहले तुम ये बताओ कि क्या वो विवेक वकील है” ? --- दीप्ति ने पूछा.

“ हां है तो सही, पर क्यो” ----- मैने हैरानी में पूछा.

अरे पागल याद कर वो खून में लीखी बात, “डॉक्टर की तो यही सज़ा है पर वकील को हर हाल में मरना होगा” ---- दीप्ति ज़ोर से बोली.

“ओह नो, क्या तुम भी वही सोच रही हो जो मैं सोच रही हूँ” --- मैने दीप्ति से पूछा.

“तुम्हारा तो पता नही पर मुझे लगता है कि डॉक्टर का मतलब है संजय और वकील का मतलब है विवेक. मुझे जल्द से जल्द ये बात मनीष को बतानी होगी कि विवेक, वकील है, उसका काम आसान हो जाएगा” --- दीप्ति ने कहा

“मैने कहा, हां में भी यही सोच रही हूँ पर यार तुम इतने यकीन से कैसे कह सकती हो कि उस लीख़ावट का मतलब संजय और विवेक से ही है” --- मैने दीप्ति से पूछा.

“पूरी डाइयरी में बस संजय और विवेक की ही डीटेल है और क्या चाहिए यकीन करने के लिए. अछा मैं फोन रखती हूँ, मनीष को ये बात बतानी ज़रूरी है कि विवेक वकील है, बाद में बात करेंगे” ---- दीप्ति ने बाइ करते हुवे कहा.

दीप्ति जाते जाते मुझे बहुत सारे सवाल दे गयी. मैं सारा दिन यही सब सोचती रही

16 अक्टोबर को दीप्ति का फोन आया

वो बोली, “ ऋतु, मनीष इस राज की गहराई तक पहुँचने वाला है. उसने मुझे कहा है कि कल तक सारी बात पता चल जाएगी. बस एक दिन की बात है और सचाई हमारे सामने होगी.

मैने कहा, “ ठीक है, मैं कल का बेशबरी से इंतेज़ार करूँगी, मैं बार बार सब कुछ सोच कर परेशान हो रही हूँ. जब तक मुझे पूरी बात पता नही चलती तब तक मुझे चैन नही आएगा.

दीप्ति बोली, “ठीक है फिर, कल का इंतेज़ार करो”

दीप्ति ने फोन रख दिया और मैं बे-सबरी से कल का इंतेज़ार करने लगी.

अगले दिन यानी 17 अक्टोबर 2008 को, शाम को दीप्ति का फोन आया

मैने झट से फोन उठा लिया.

“यार एक बहुत बुरी खबर है” --- दीप्ति मायूसी से बोली

मैने पूछा, “ क्या है बताओ तो सही”

“मनीष हॉस्पिटल में है, उस पर जानलेवा हमला हुवा है, बड़ी मुश्किल से जान बची है, मैं उस से मिलने फरीदाबाद जा रही हूँ, मुझे डर लग रहा है” ---

दीप्ति रोते हुवे बोली.

“क्या…. ये कैसे हो गया. किसने करवाया ये हमला. तुम चिंता मत करो में भी तुम्हारे साथ चलती हूँ” --- मैने दीप्ति से कहा.

“पता नही यार, अभी मनीष को होश नही आया है, उसके असिश्टेंट का फोन आया था कि वो हॉस्पिटल में है. मनीष ही होश में आकर बता सकता है कि ये किसका काम है.” – दीप्ति ने कहा

मैने कहा, “ह्म्म…. चलो तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा, ऐसा करो यही मेरे पास आ जाओ, यही से साथ साथ चलेंगे”

“ठीक है मैं अभी तुम्हारे घर आ जाती हूँ, वही से फरीदाबाद के लिए निकल लेंगे” ---- दीप्ति ने कहा

वो ऐसा पल था, जब मैं भी बहुत घबरा गयी थी. मैं सोच रही थी कि दीप्ति को कह दूं कि वो मनीष को बोल दे कि बंद करदे ये काम. मैं नही चाहती थी कि मनीष को कुछ हो. मुझे अब दीप्ति और मनीष की चिंता हो रही थी.

दीप्ति अपनी कार ले कर 8 बजे मेरे घर आ गयी.

मैने पूछा, क्या तुम्हे फरीदाबाद का रास्ता पता है, नही तो कोई प्राइवेट टॅक्सी कर लेते है.

दीप्ति ने कहा, “हां, हां पता है, मैं काई बार ऑफीस के काम से वाहा खुद ड्राइव करके जा चुकी हूँ, तुम्हे तो पता ही है, रास्ता लंबा नही है, कोई 2 घंटे में वाहा पहुँच जाएँगे”.

मैने कहा, “ठीक है चलो फिर”

पापा घर पर नही थे, मैने जाते जाते मॅमी को बता दिया कि मैं दीप्ति के साथ ज़रूरी काम से जा रही हूँ.

मन में फरीदाबाद जाते हुवे अपने घर की याद आ रही थी, सोच रही थी कि काश किसी तरह से संजय कहीं मिल जाए. पर ऐसा नही हुवा.
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11-13-2018, 12:43 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
हम कोई रात 10:30 पर फरीदाबाद पहुँच गये.

मनीष एक प्रिवेते हॉस्पिटल में था, जो की संजय के क्लिनिक से काफ़ी दूर था.

जैसे ही हम हॉस्पिटल पहुँचे, बाहर हमें मनीष का असिश्टेंट रहमान मिल गया.

दीप्ति ने रहमान से पूछा, “कैसा है मनीष अब”

वो बोला, अभी अभी होश आया है, राइट लेग में फ्रेक्चर आया है, रोड डालनी पड़ी है, डॉक्टर ने कहा है कि वो 2 या 3 महीने चल नही सकेंगे.

“ओह माइ गोद, इतना ज़्यादा सीरीयस हमला था क्या” --- दीप्ति ने रहमान से पूछा.

“हां मेडम, मैं भी उस वक्त उनके साथ ही था, हम आज सुबह प्रिंसटीन माल की ओर जा रहे थे. मैं फुटपॅत पर बैठे एक सिगरेट वाले से सिगरेट लेने लगा कि अचानक एक कार ने मनीष सर को टक्कर मार दी” --- रहमान ने कहा

“ पर तुम तो कह रहे थे कि हमला हुवा है, ये तो आक्सिडेंट लग रहा है” ---- दीप्ति ने रहमान से पूछा.

“एक टक्कर मारने के बाद वो कार फिर से, मूड कर मनीष सर की ओर आ रही थी, जैसे की एक और टक्कर मारनी हो, पर मैने जल्दी से मनीष सर को वाहा से हटा लिया” ---- रहमान ने कहा

“तुमने किसी का चेहरा देखा कि कौन था कार में” ---- डिप्टी ने पूछा

“ नही मेडम कार में ब्लॅक स्क्रीन लगी हुई थी, अंदर कौन था, कुछ नही दीख रहा था” ---- रहमान ने बताया.

“ह्म्म…. चलो ठीक है, हम मनीष के पास चलते है, कौन से कमरे में है वो” दीप्ति ने रहमान से पूछा.

“जी, रूम नंबर 7…… आप चलिए मैं ज़रा अपना फोन रीचार्ज कराने जा रहा हूँ” --- रहमान ने दीप्ति से कहा.

जैसे ही हम रूम नंबर 7 में घुस्से हमने देखा कि मनीष, किन्ही गहरे विचारो में खोया हुवा है, और बिस्तर पर पड़े हुवे रूम की छत को घूर रहा है.

हमें देखते ही वो उठने की कोशिस करने लगा, उशके चेहरे पर दर्द के भाव सॉफ दीख रहे थे.

“अरे लेट रहो उठो मत, देखो तुमसे मिलने कौन आया है” ----- दीप्ति ने मनीष से कहा.

मनीष ने मुझे एक नज़र उठा कर देखा और विश करके अपनी नज़रे झुका ली.

बहुत कम आदमी एक औरत को ऐसी रेस्पेक्ट दे पाते है. ज़्यादा तर लोग तो किसी भी लड़की को उपर से नीचे तक हवश भरी नज़रो से देखते है.

मुझे तब अहसास हुवा कि, रियली मनीष ईज़ ए नाइस मॅन

“सॉरी ऋतु जी आपका काम पूरा नही हो पाया पर मुझ पर भरोसा रखिए, मैं ठीक होते ही आपको पूरी सचाई बता दूँगा” --- मनीष सॉरी फील करते हुवे बोला.

“मुझे कोई जल्दी नही है, आप अपना ख्याल रखिए, मेरे साथ तो जो होना था, सो हो चुका” ----- मैने मनीष से कहा.

“पर क्या तुम्हे कुछ पता चला कि ये हमला किसने करवाया है” ---- दीप्ति ने मनीष से पूछा

“देखो अभी बहुत कुछ उलझा हुवा है, कुछ नही कह सकते कि कौन ऐसा करवा सकता है, हां इतना ज़रूर है कि कोई है जो नही चाहता की हम कुछ जान पायें” --- मनीष ने कहा.

“कौन हो सकता है वो” --- दीप्ति ने पूछा

“कोई भी हो सकता है, बिल्लू का कोई साथी हो सकता है, या फिर……” ---- मनीष ने कहा.

“या फिर मतलब” – दीप्ति ने मनीष से पूछा.

‘मतलब की कोई भी हो सकता है, अभी कुछ क्लियर नही है” ---- मनीष ने कहा.

मैं चुपचाप सब कुछ शुन रही थी.

“अछा तुम तो कह रहे थे कि कल तक सब कुछ पता चल जाएगा, क्या तुम इस राज के बहुत करीब पहुँच गये थे” ---- दीप्ति ने मनीष से पूछा

“मुझे परसो एक फोन आया था, किसी वीना जोसेफ का, उन्होने मुझे आज सुबह 10 बजे प्रिस्टिन माल के बाहर मिलने को कहा था, मैं रहमान के साथ वहीं जा रहा था कि ये सब हो गया.” --- मनीष ने दीप्ति की ओर देखते हुवे कहा.

“अब ये वीना जोसेफ कौन हैउसका इस सब से क्या लेना देना है” ---- दीप्ति ने मनीष से पूछा.

वीना का नाम सुन कर मैं चोंक गयी थी, उसे मैं जानती थी. वो संजय के क्लिनिक में नर्स थी. उसकी उमर कोई 40 या 42 साल की होगी.

“वही तो पता करने मैं जा रहा था, मुझे बिल्लू के घर के पास रहने वाले एक पदोषी ने बताया था कि एक-दौ बार उसने वीना जोसेफ को बिल्लू के घर आते जाते देखा था. मैं वीना जोसेफ के घर का पता लगा कर, उशके घर पहुँच गया , पर वो उस वक्त घर पर नही मिली. मैं एक चिट वीना जोसेफ के घर छ्चोड़ आया था कि जब वो फ्री हो तो मुझे फोन करें, मुझे बिल्लू के बारे में कुछ बात करनी है. मैने अपना फोन नंबर चिट पर लीख दिया था” --- मनीष ने कहा

“मैं कुछ कहूँ” ? मैने मनीष और दीप्ति को रोकते हुवे कहा

दीप्ति बोली, “हां हां कहो क्या बात है”

“एक वीना जोसेफ को मैं जानती हूँ, वो केरला से थी, उमर कोई 40 या 42 साल, और अभी एक साल पहले तक वो संजय के क्लिनिक में नर्स थी” ----- मैने उन दौनो से कहा

“अछा ये बात पहले क्यो नही बताई” ---- दीप्ति ने मुझ से पूछा.

“अरे भाई, मुझे क्या पता था कि उसका इस मामले से कोई लेना देना है” ---- मैने दीप्ति की और देखते हुवे कहा.

“आप ठीक कह रही है” ---- मनीष मेरी और देखते हुवे बोला.

“अछा अब क्या होगा” --- दीप्ति ने पूछा.
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11-13-2018, 12:43 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
“मुझे यकीन था कि वीना जोसेफ से मिल कर सारे राज खुल जाएँगे, पर…..” --- मनीष ने गहरी साँस ले कर कहा.

“पर क्या, उस से हम मिल लेते है या फिर रहमान मिल लेगा, इस में परेशानी वाली क्या बात है” --- दीप्ति ने मनीष से कहा.

मनीष ने अपनी जेब से एक काग़ज़ निकाला और दीप्ति को देते हुवे बोला, “अभी किसी ने, एक नर्स के हाथो, ये मेरे कमरे में भीज़वाया था, पढ़ो तुम खुद समझ जाओगी”

वो काग़ज़ पढ़ कर दीप्ति के चेहरे का रंग उड़ गया

मैने उशके हाथ से वो काग़ज़ ले कर पढ़ा, तो मेरे पैरो के नीचे से भी ज़मीन निकल गयी

उस में लीखा था

“ आबे डीटेक्टिव, बहुत होशियार समझता है क्या खुद को, चुपचाप ये बेकार की इनक़ुआरी बंद कर और यहा से रफ़ा दफ़ा हो जा. जीश से तुम आज मिलने जा रहे थे, वो वीना जोसेफ भी मारी जा चुकी है. तुम्हारी किशमत अछी है कि तुम आज बच गये, पर अगर यहा से नही गये तो अगली बार नही बचोगे”

मैने रोते हुवे कहा. “प्लीज़ बंद करो अब ये सब, इस सब से मिलने वाला भी क्या है”

“लगता है तुम ठीक कह रही हो ऋतु, मनीष इस काम को फॉरन बंद करो, और जल्दी यहा से चलो, यहा मुझे अब डर लग रहा है” दीप्ति ने कहा.

उशके कहने के अंदाज़ से सॉफ लग रहा था की वो काफ़ी डरी हुई है.

मनीष बोला, “मैने आज तक ऐसा केस नही देखा. आज तक किसी की हिम्मत नही हुई कि कोई मुझे यू हॉस्पिटल में पहुँचा दे. पर मैं अपना कोई काम अधूरा नही छ्चोड़ता. अब वैसे भी ये मेरा पर्सनल काम हो गया है. जिसने भी मेरे साथ ऐसा किया है, उशे मैं नही छ्चोड़ूँगा”

दीप्ति बोली, "अपनी हालत देखो मनीष, तुम अभी 2 या 3 महीने तक चल नही पाओगे, बाद में सोचेंगे की क्या करना है इस बारे में, फिलहाल यहा से निकलते है".

हम मनीष को कन्विन्स करके जैसे तैसे वाहा से देल्ही ले आए.

……….

अभी तक कहानी वही की वही लटकी हुई है. मनीष के घाव भर गये है पर वो अभी भी ठीक से चलने की हालत में नही नही.

ये सब बाते थी जिनके कारण मैने ये डाइयरी लीखने का फैंसला किया. संजय से डेवोर्स के बाद, फ्रस्ट्रेशन में मैने अपनी अब तक की कहानी लीख दी है. देखते है की आगे क्या होता है.

वैसे मैं अब सब कुछ भुला कर, नयी शुरूवात करना चाहती हूँ.

आज मैं सपनो के सहर मुंबई में हूँ, नयी शुरूवात करने की इस से अछी जगह और क्या हो सकती है.

………………………………

डेट : 8-01-09

आज मुझे ऑफीस में कोई ऐसा मिला जिश्कि कि मुझे बिल्कुल उम्मीद नही थी. सिधार्थ को वाहा देख कर मैं चोंक गयी थी

“अरे ऋतु, तुम यहा, कैसे” --- सिधार्थ ने पूछा

“मैं यहा असिश्टेंट मॅनेजर हूँ” --- मैने जवाब दिया.

“अछा फिर तो तुम मेरी क्लाइंट हुई” --- उसने हंसते हुवे कहा.

“वो कैसे सिधार्थ” --- मैने हैरानी में पूछा.

“वो ऐसे कि मैं तुम्हारी कंपनी का का हूँ, सारे फाइनान्षियल मॅटर्स मैं ही तो संभालता हूँ, ख़ासकर टॅक्स से रिलेटेड” --- सिधार्थ ने मुझे समझाते हुवे कहा.

मेरे लिए संजय से पहले सिधार्थ का ही रिस्ता आया था, मुझे वो बहुत पसंद आया था और मैने पापा को उशके लिए हां कह दी थी. सिधार्थ ने सभी के सामने कहा था कि “मुझे ऋतु बहुत पसंद है, मैं ऋतु को अपनी पत्नी बना कर खुद को ख़ुसनसीब समझूंगा”

हम ने नज़रो ही नज़रो में एक दूसरे के लिए बहुत सारे खवाब बुन लिए थे.

पर किशमत को ये रिस्ता मंज़ूर नही था.

सिधार्थ के पापा ने हम दोनो की कुंडली पर बवाल खड़ा कर दिया.

उन्हे किशी ज्योतिषी ने बता दिया था कि इस लड़की के आपके घर में आते ही, आप के घर में तबाही आ जाएगी.

इसीलिए रिस्ता बनते बनते बिगड़ गया.

उशके बाद सिधार्थ का काई बार घर पर फोन आया और वो बार बार मुझ से माफी माँगता रहा.

वो अपने पापा के कारण बहुत शर्मिंदा महसूष कर रहा था.

एक बार उसने मुझे फोन किया और बोला, ऋतु एक काम करते है”

मैने पूछा, “क्या”

“मैं तुम से अभी शादी करने को तैयार हूँ, भाड़ में जाए ये कुंडली का चक्कर. मुझे इन बातो पर बिल्कुल विश्वास नही है, चलो किसी मंदिर में जा कर शादी कर लेते है” ---- सिधार्थ ने बड़े प्यार से कहा

एक पल को मुझे भी लगा की मुझे उशके साथ चल देना चाहिए

पर मैं अपने पापा के खिलाफ नही जा सकती थी.

मैने पापा को बता दिया था कि सिधार्थ शादी करने के लिए तैयार है, हमें क्या करना चाहिए

पापा ने मुझे समझाया “तुम्हारे लिए हज़ार रिस्ते है बेटा, तुम उशे भूल जाओ, बात सिर्फ़ तुम्हारी और सिधार्थ की नही है, शादी में दौ परिवार एक दूसरे से जुड़ते है. इस तरह ज़बरदस्ती शादी करके कुछ हाँसिल नही होगा. सिधार्थ के पापा तुम्हे कभी स्वीकार नही करेंगे”

मैने सिधार्थ को बड़ी मुश्किल से मना किया था.

“सिधार्थ मेरे पापा नही मान रहे है और मैं उनकी मर्ज़ी के बिना कुछ नही कर सकती” ---- मैने मायूसी में सिधार्थ से कहा था
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11-13-2018, 12:44 PM,
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“ठीक है ऋतु, मैं तुम्हे मजबूर नही करूँगा, पर तुम हमेशा मेरे दिल के करीब रहोगी” ---- सिधार्थ ने एमोटिनल हो कर कहा था

मैने रोते हुवे फोन काट दिया. उष वक्त यही करना ठीक लग रहा था

एक दम से सिधार्थ को आज सामने देख कर मुझे समझ नही आया कि मैं कैसे रिक्ट करूँ, पर इतना ज़रूर हुवा कि उसकी यादे मेरी आँखो में घूम गयी.

मैने सिधार्थ से ज़्यादा बात नही की और चुपचाप अपने कॅबिन में आ गयी. मैं नही चाहती थी कि वो मुझ से मेरी जींदगी के बारे में कोई सवाल करे और मैं किसी उलझन में फँस जाउ.

पर थोड़ी देर बाद सिधार्थ मेरे कॅबिन में झाँक कर बोला, “मे आइ कम इन ऋतु मेडम”

मैं क्या करती, उसे अंदर आने को कहना ही पड़ा. वैसे भी वो हमारी कंपनी का का था इसलिए उस से मुझे मिलना जुलना तो था ही.

“हां तो और बताओ कैसी चल रही है तुम्हारी शादी शुदा जींदगी” --- सिधार्थ ने पूछा.

“मेरा डाइवोर्स हो गया है, सिधार्थ” ---- मैने नज़रे झुका कर कहा

“क्या, किस बेवकूफ़ ने तुम्हे डाइवोर्स दे दिया, तुमने दिया है या फिर तुम्हारे पति ने दिया है” ---- सिधार्थ ने पूछा.

“उस से क्या फरक पड़ता है, सिधार्थ, सचाई ये है की मेरा डाइवोर्स हो चुका है, बस” मैने सिधार्थ की और देखते हुवे कहा.

“श, सॉरी तो हियर दट” ---- सिधार्थ ने चेहरे पर सॉरी के भाव ला कर कहा.

मैं सिधार्थ के साथ उस वक्त अनकंफर्टबल महसूष कर रही थी, क्योंकि मुझे डर था की कही वो डाइवोर्स का कारण ना पूछ ले, क्योनि सच बोलना मेरे लिए मुश्किल था और झूठ मैं बोल नही पाउन्गि.

पर अचानक सिधार्थ का मोबाइल बज उठा और उसने मुझे कहा, “ओह मुझे जाना होगा, एक दूसरे क्लाइंट का फोन आ रहा है.

उसने जाते जाते कहा, “ऋतु मैं तुम्हे आज तक भुला नही पाया, पता नही तुम्हे आज मुझ से मिल कर कैसा लगा, पर मैं तो बहुत भावुक हो रहा हूँ”

मैने सिधार्थ की आँखो में देखा उनमें आज भी मेरे लिए वही प्यार नज़र आ रहा था.

मैने धीरे से पूछा, “तुम्हारी शादी कहा हुई है सिधार्थ”

“कहीं नही, मैने अब तक शादी नही की, कोई तुम्हारे जैसी मिली ही नही” --- सिधार्थ ने मेरी और देखते हुवे कहा

ये कह कर वो मूह फेर कर चला गया, शायद उसकी आँखो में आन्शु थे.

मुझे अब ये लग रहा है कि मैं कैसे रोज-रोज सिधार्थ का सामना कर पाउन्गि. कभी ना कभी तो वो मेरे डाइवोर्स के बारे में पूछेगा ही.

……………………..

डेट : 15-01-09

आज जब मैं ऑफीस में थी तो दीप्ति का फोन आया

उसने मुझे बताया कि मनीष कल अचानक फरीदाबाद चला गया.

मैने उस से पूछा, “तुमने उसे क्यो जाने दिया, अभी तो वो ठीक से चल भी नही पता”

वो बोली, “चलने तो वो लगा है, पर टाँगो में अभी भी काफ़ी वीकनेस है, वो बिना बताए वाहा चला गया है, वाहा पहुँच कर ही उसने फोन किया था. मुझे तो डर लग रहा है”

“ डर तो मुझे भी लग रहा है, मैं तो यही चाहती थी कि इस इन्वेस्टिगेशन को यही ख़तम किया जाए” ---- मैने दीप्ति से कहा

“चाहती तो मैं भी यही हूँ, पर मनीष अब इसे पर्सनली ले रहा है, वो इस केस को सॉल्व किए बिना नही मानेगा” --- दीप्ति ने कहा.

मैने उशे दिलासा दिया की हॉंसला रखो, सब कुछ ठीक होगा.

मुझे हिम्मत देने वाली लड़की आज खुद हिम्मत हारती नज़र आ रही थी. ये सब मनीष के कारण है. वो उसे बहुत प्यार करने लगी है.
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11-13-2018, 12:44 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
जैसे ही मैने दीप्ति से बात करके फोन रखा तो सिधार्थ मेरे कॅबिन में आ गया.

उसने पूछा, “आज शाम को क्या तुम फ्री हो”

मैने पूछा, “क्यो, क्या बात है”

“कुछ नही सोच रहा था आज तुम्हे मुंबई दर्शन करवा दूं, तुम पहली बार आई हो ना यहा” ---- सिधार्थ ने हंसते हुवे कहा.

मैने कहा, “आज मेरा घूमने का मन नही है सिधार्थ, फिर कभी देखेंगे”

“क्या तुम मेरे लिए इतना भी नही कर सकती, बस तुम्हारे मन की ही तो बात है, मुझे ख़ुसी होगी अगर तुम मेरे साथ चलो” ---- सिधार्थ ने कहा

मैने उसे बहुत समझाया पर वो नही माना और शाम को ऑफीस के बाद वो मुझे गेट वे ऑफ इंडिया ले गया.

वैसे गेट वे ऑफ इंडिया मेरे फ्लॅट के करीब ही था पर जब से में मुंबई आई थी तब से वाहा जाने का मोका ही नही लगा था.

सिधार्थ मेरे लिए आइस-क्रीम ले आया और हम होटेल ताज के सामने घूमते हुवे आइस-क्रीम खाने लगे. लग ही नही रहा था कि ताज होटेल पर कभी टेररिस्ट अटॅक हुवा था. सभी लोग वाहा शांति से घूम रहे थे.

वो आइस-क्रीम खाते खाते मुझे ही देखे जा रहा था.

अचानक उसने कुछ ऐसा पूछा की मैं आइस-क्रीम खाना भूल गयी.

“ऋतु, मुझ से शादी करोगी” ----- उसने मुझे रोक कर पूछा

मेरे हाथ से आइस-क्रीम छूट कर सड़क पर गिर गयी.

मैने उसकी और देखा, उसकी आँखे नम हो रही थी

“मैं तुम्हे आज भी उतना ही चाहता हूँ, मुझे नही पता कि तुम्हारे पति ने तुम्हे डाइवोर्स क्यो दिया और ना ही मैं जान-ना चाहता हूँ, मैं बस इतना जानता हूँ कि मैं तुम्हे प्यार करता हूँ, अगर तुम उस वक्त मान जाती तो तुम आज मेरी ही पत्नी होती” ----- सिधार्थ ने अपने रुमाल से मेरे होंटो पर से आइस-क्रीम पूछते हुवे कहा.

“सिधार्थ मैं ऐसा नही कर सकती, तुम्हे कैसे बताउ….” ---- मैने उशे समझाते हुवे कहा

“क्यों नही कर सकती ऋतु, तुम आज अकेली हो, मैं भी अकेला हूँ, मेरे पापा भी आज इस दुनिया में नही है, फिर क्या दिक्कत है. हमारे बीच अब कोई नही है. प्लीज़ कम इन माइ लाइफ” --- सिधार्थ ने भावुक हो कर कहा

“सिधार्थ मैं तुम्हे कैसे बताउ, आज मैं वो ऋतु नही हूँ, जिश ऋतु को तुम जानते थे, वो ऋतु कब की मर चुकी है” ---- मैने भावुक हो कर कहा.

ये कहते कहते मेरी आँखो में आंशु आ गये थे

“ऋतु ये क्या कह रही हो, प्लीज़ रोना बंद करो, क्या मैं जान सकता हूँ कि बात क्या है” --- सिधार्थ ने पूछा.

“मैने अपने पति को धोका दिया था, सिधार्थ, इसलिए उन्होने मुझे डाइवोर्स दे दिया है” --- मैने नज़रे झुका कर कहा.

“ये क्या कह रही हो ऋतु, मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नही है, तुम फिर से कोई बहाना बना रही हो है ना, पर तुम चाहे कुछ भी कहो, मैं तुमसे शांदी करने के लिए तैयार हूँ” ---- सिधार्थ ने हैरानी भरे शब्दो में कहा

मैने कहा, “चाहे तुम जो कहो पर सच यही है, सिधार्थ, चाहो तो तुम मेरे पति संजय से फोन करके पूछ सकते हो”

सिधार्थ ने कहा, “मुझे किसी से फोन करके नही पूछना समझी, आइ लव यू आंड माइ लव ईज़ बियॉंड एनितिंग”

मुझे बहुत रोना आ रहा था, मैं सिधार्थ को कुछ भी समझाने की हालत में नही थी. वो मेरी बात सुन-ने को तैयार भी नही था

मैने उसे कहा, “सिधार्थ मुझे घर जाना है, बाद में बात करेंगे ठीक है, मैं अभी बहुत परेशान हूँ”

मैं टॅक्सी ले कर घर आ गयी और जब से आई हूँ, तब से बार बार मुझे सिधार्थ का मॅरेज प्रपोज़ल याद आ रहा है.

एक शादी तो मैं ठीक से नीभा नही पाई फिर दूसरी शादी के बारे में कैसे सोच लूँ.

ऐसा लग रहा है कि वाकाई में मेरी कुंडली में कोई दोष है, तभी मैने संजय की जींदगी बर्बाद कर दी. अब मैं ऐसा सिधार्थ के साथ नही कर सकती. उशे किसी और से शादी कर लेनी चाहिए. इशी में उसकी भलाई है.

………………………….

डेट : 22-01-09

21 जन्वरी मेरी जींदगी में अब तक का सबसे भयानक दिन बन गया है. और सब से चोंकाने वाला दिन भी…कल जो मेरे साथ हुवा वो मैं सपने में भी नही सोच सकती थी...

कल की घटना को लीखते हुवे मेरे हाथ काँप रहे है.

कल शाम को कोई 6 बजे मैं ऑफीस से निकल रही थी कि अचानक मेरे सामने एक कार आकर रुकी.

“अरे ये तो विवेक है, ये यहा क्या कर रहा है” – मैने मन ही मन में सोचा.

उसने कार का दरवाजा खोला और बोला, “भाभी, आपसे संजय के बारे में कुछ बात करनी थी, क्या आप मेरे साथ चलेंगी, कही किसी रेस्टोरेंट में बैठ कर बात करते है”

मुझे उसका वाहा होना मन ही मन में खटक रहा था, पर ना जाने क्यो संजय का नाम सुन कर मैं उत्शुक हो गयी थी.

मैने पूछा, “क्या बात है, बताओ”

पहले आप बैठ तो जाओ भाभी, कहीं बैठ कर आराम से बात करेंगे.

मेरा मन पता नही क्यों बार बार मुझे कह रहा था कि कहीं ना कहीं कुछ गड़बड़ है, इशके साथ मत जाओ, ये यहा मुंबई में क्या कर रहा है, पर संजय के बारे में जान-ने के लिए मैं झेजकते हुवे उशके साथ बैठ गयी.

जैसे ही मैं अंदर बैठी वो कार तेज़ी से यहा वाहा से निकालते हुवे एक शुनशान सड़क पर ले आया.

मैने पूछा, कितने रेस्टोरेंट निकल गये विवेक तुम कहा जा रहे हो.

मैने उसकी और देखा तो उशके चेहरे पर बहुत ही भयानक हँसी थी.

क्रमशः .......................................
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11-13-2018, 12:44 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
गतांक से आगे .........................

विवेक को इस रूप में मैने कभी नही देखा था. मुझे बहुत डर लग रहा था उसे यू हंसते देख कर. वैसे मैं उसे इतना जानती भी कहा थी. जब से संजय से शादी हुई थी तब से मुश्किल से कोई 5 या 6 बार ही उस से मेरी मुलाकात हुई थी. मेरा स्वाभाव वैसे भी ज़्यादा लोगो से मिलने जुलने का नही है. इसलिए जब कभी विवेक संजय के साथ घर आता भी था तो मैं अक्सर अपने बेडरूम में ही रहती थी.

मैने विवेक से पूछा, “विवेक क्या मैं जान सकती हूँ कि हम कहा जा रहे है” ?

विवेक ने मेरी और देखा और बोला, “आप बताओ भाभी कि आपको कहा जाना है, वही चल पड़ेंगे, आप की बात हम कैसे टाल सकते है”

“क्या मतलब ? तुम तो कह रहे थे कि संजय के बारे में बात करनी है, रेस्टोरेंट चलते है, कौन से रेस्टोरेंट ले जा रहे हो तुम मुझे” --- मैने हैरानी भरे शब्दो में पूछा.

“रेस्टोरेंट भी चलेंगे भाभी आप चिंता मत करो, पहले आपसे ज़रूरी बात करनी है” ---- विवेक ने मेरी और देखते हुवे कहा.

ये कह कर विवेक ने कार सड़क के एक तरफ रोक ली. रास्ता शुनशान था, और दूर दूर तक कोई भी नही दीख रहा था.

“विवेक ये क्या कर रहे हो, यहा रुकने का क्या मतलब है, और साफ साफ कहो की बात क्या है, मेरे पास ज़्यादा वक्त नही है” ----- मैने विवेक से थोड़ा गुस्से में कहा

“भाभी मुझे आपसे एक शिकायत है, बुरा ना माने तो कहूँ” ----- विवेक ने कहा

“क्या शिकायत है, मैं कुछ समझी नही” --- मैने हैरानी में पूछा.

उसकी बाते मुझे बहुत अजीब लग रही थी, वो मुझे मजाकिया मूड से घूर रहा था. उशके चेहरे पर अभी भी अजीब सी हँसी थी.

“भाभी आपने मेरे साथ बहुत नाइंसाफी की है, आपको ऐसा नही करना चाहिए था” ---- वो मेरी तरफ देख कर बोला

“क्या मतलब विवेक, आख़िर तुम कहना क्या चाहते हो ? और संजय के बारे में तुम्हे जो बात करनी थी, वो बात करो मेरे पास फालतू वक्त नही है” ---- मैने उसकी और देख कर कहा

“फालतू वक्त मेरे पास भी नही है भाभी, पता है मैं फरीदाबाद से यहा स्पेशल आपके लिए ही आया हूँ, और आप है कि ऐसी बाते कर रही है” ---- विवेक ने कहा

अब मुझे डर लगने लगा था, उशके इरादे मुझे ठीक नही लग रहे थे. उसकी कार मैं बैठने से पहले जो मुझे अंदेशा हो रहा था वो सच होता नज़र आ रहा था.

“ये क्या घुमा फिरा कर बात कर रहे हो विवेक साफ साफ क्यो नही कहते कि बात क्या है, और यहा से चलो इस शुनशान सड़क पर रुकने का क्या मतलब है” ----- मैने ज़ोर से पूछा

“चलो अब साफ साफ बात करता हूँ भाभी, आप ये बताओ कि संजय में क्या कमी थी कि आपने उसे इतना बड़ा धोका दिया, आपको ऐसा नही करना चाहिए था” ---- वो गंभीर हो कर बोला.

“तुम्हारा इस सब से कोई लेना देना नही है विवेक, ये मेरे और संजय के बीच की बात है, तुम कौन होते हो मुझ से ये सब पूछने वाले, क्या संजय ने तुम्हे यहा भेजा है” --- मैने उससे गुस्से में कहा

“लेना देना क्यो नही है भाभी, मैं संजय का ख़ास दोस्त हूँ, उशके भले बुरे की मुझे चिंता रहती है. आप ये बताओ कि क्यों आपने संजय को धोका दिया, मुझ से उसकी हालत देखी नही जाती, पता है वो दिन रात परेशान रहता है, आजकल क्लिनिक भी ठीक से नही चला पा रहा.” ---- विवेक ने कहा

ये सुन कर मेरी आँखो में आंशु भर आए और मैने पूछा, “क्या संजय बहुत ज़्यादा परेशान है”

“परेशान क्यों नही होगा भाभी, उसने आपको तीन-तीन लोगो के साथ आयाशी करते हुवे अपनी आँखो से देखा था, आप से ऐसी उम्मीद नही थी. आप बताओ तो सही कि क्या कमी थी संजय में जो कि आप इस हद तक गिर गयी” ---- विवेक ने पूछा.

ऐसा लग रहा था कि वो ऐसी बाते करके मुझे ह्युमिलियेट कर रहा है, क्योंकि ऐसी बाते करते वक्त उशके चेहरे पर गंभीरता के बजाए एक घिनोनी सी मुश्कान थी.
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11-13-2018, 12:44 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
मैने कहा, “विवेक चलो यहा से, मुझे घर जाना है, मुझे किशी रेस्टोरेंट में नही जाना और ना ही तुम्हारे साथ कोई बात करनी है, यहा से जल्दी चलो”

“भाभी क्या ऐसा है कि आपका एक आदमी से मन नही भरता और आपको अपने चारो ओर भीड़ चाहिए, ताकि आप हवश का नंगा नाच खेल सकें” ---- वो अपने चेहरे पर वही बेकार सी हँसी ले कर बोला.

मैने अपने कानो पर हाथ रख लिए और ज़ोर से उशे कहा, “ विवेक बंद करो ये बकवास और चुप हो जाओ, तुम्हे शरम आनी चाहिए मुझ से ऐसी बाते करते हुवे”

वो मुश्कूराते हुवे बोला, “भाभी मैं तो संजय के लिए पूछ रहा था, जाकर उसे बताउन्गा की उसकी बर्बादी का कारण क्या है, आप डीटेल में बताओ ना कि कैसे आप उन लोगो के साथ गयी, कैसे उनके साथ सब कुछ किया, बताओ ना भाभी”

अब मुझे यकीन हो गया था कि वो जान बुझ कर ये बाते कर रहा था. बहुत कमीना नज़र आ रहा था उस वक्त वो

“देखो संजय से मेरा डाइवोर्स हो चुका है, इसलिए ना मैं अब उनकी पत्नी हूँ और ना तुम्हारी भाभी, मैं ये सोच कर तुम्हारे साथ आई थी कि तुम मुझे संजय के बारे में कुछ बताओगे. मैं बस जान-ना चाहती थी कि वो कैसे है. तुम बेकार की बाते कर रहे हो. मैं अब चलती हूँ” ----- मैने विवेक से कहा

“अरे नही रूको भाभी आप तो बुरा मान गयी मैं तो बस यू ही बात कर रहा था, वैसे आप को मेरी बात सुन-नि ही पड़ेगी, मैं यू ही फरीदाबाद से मुंबई नही आया हूँ” ---- वो गंभीर हो कर बोला.

“क्यो सुन-नि पड़ेगी विवेक, मेरी ऐसी कोई मजबूरी नही है समझे, और ये भाभी भाभी कहना बंद करो” ---- मैने गुस्से में कहा

तभी उसने ना जाने कहा से एक पिस्टल निकाल ली और पिस्टल को मेरी और करके बोला, “मेरा दीमाग खराब हो रखा है भाभी, आप या तो मेरी बात शुनोगी या फिर इस पिस्टल की सारी की सारी गोलिया आपके भेजे में डाल दूँगा, आप ही बताओ कि आपको क्या चाहिए”

“ये क्या पागलपन है विवेक इसे दूर हटाओ, मुझे डर लग रहा है” --- मैने विवेक से गुस्से में कहा

आज तक मैने पिस्टल को इतने नज़दीक से नही देखा था. वो पिस्टल को मेरी ओर करके मुश्कुरा रहा था.

“भाभी अगर आप चुपचाप कॉपरेट करेंगी तो मैं कुछ नही करूँगा, ये लीज़िए पिस्टल एक तरफ रख दी” --- विवेक पिस्टल को अपने पाँव के पास नीचे रखते हुवे बोला

मैने कहा “विवेक लगता है तुम अभी होश में नही हो, तुम अभी जाओ, बाद में आराम से बात करेंगे”

“भाभी बात तो आपको अभी करनी पड़ेगी, आप ये बताओ कि अगर संजय आपको सन्तुस्त नही कर पा रहा था तो हूमें बोल दिया होता हम आ जाते आपकी प्यास भुजाने” ---- वो बेशर्मी से बोला.

“ये क्या बकवास है विवेक तमीज़ से बात करो” --- मैने गुस्से में चील्ला कर कहा

“आप शायद भूल रही है कि, मेरे पास पिस्टल है, मैने वो एक तरफ रख दी है तो इश्का मतलब ये नही है कि आप मुझ से चील्ला कर बात करेंगी, मेरा दीमाग घूम गया ना तो अभी के अभी भेजा उड़ा दूँगा” ---- वो भयानक आवाज़ में बोला.

मेरी आँखो में आंशु आ गये, मैने विवेक से पूछा, “तुम ये सब क्यो कर रहे हो विवेक प्लीज़ मुझे जाने दो”

“जाने दूँगा, ज़रूर जाने दूँगा, पहले आप इस बात का जवाब दो कि मैं क्या मर गया था जो आप अजनबी लोगो के आगे अपना नाडा खोल कर झुक गयी, आपको पहले मुझे मोका देना चाहिए था, कसम से मैं आपकी सारी हवश मीटा देता” ---- वो मेरी और देखते हुवे बोला.

मैने अपनी गर्दन दूसरी तरफ घुमा ली, मेरी आँखो से लगातार आंशु बह रहे थे. उसकी बाते और ज़्यादा गंदी होती जा रही थी.

उस वक्त मैं यही सोच रही थी कि हे भगवान ये कौन से पापो की सज़ा मिल रही है मुझे की मुझे इतना कुछ सुन-ना पड़ रहा है. मैं तो मुंबई एक नयी शुरूवात करने आई थी पर फिर से मुझे मेरे पास्ट ने घेर लिया था.

“भाभी बोलिए ना आपने मुझे मोका क्यो नही दिया. संजय कह रहा था कि, आप किसी लड़के से अपने घर के पीछे की झाड़ियों में पता नही क्या क्या करवा रही थी. और तो और बाकी के कोई दौ लोग अपनी बारी का इंतेज़ार कर रहे थे, इतनी भूक थी सेक्स की तो मुझे बोल दिया होता मैं आपकी उन लोगो से ज़्यादा आछे से लेता पर आपने तो मुझे कोई मोका ही नही दिया. अब आप ही बताओ, है ना ये ग़लत बात. जो आपके अपने है वो प्यासे रहें और अजनबी लोग मज़ा करें ये कहा का इंसाफ़ है” ---- विवेक ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा.

“विवेक प्लीज़ चुप हो जाओ, मैं मार जाउन्गि, मैं खुद परेशान हूँ, मुझे और परेशान मत करो, मुझे मेरे किए की सज़ा मिल चुकी है, ये सब कहने की बजाए तुम मुझे गोली मार दो तो अछा है” --- मैने रोते हुवे कहा.
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11-13-2018, 12:44 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
“गोली कब मारनी है वो मैं डिसाइड करूँगा भाभी अभी आपको मेरे कुछ सवालो का जवाब देना है” --- वो हाथ में पिस्टल उठा कर बोला.

“मेरे पास तुम्हारे इन बे-हुदा सवालो का कोई जवाब नही है. मैं जा रही हूँ, गोली मारना चाहते हो तो मार दो, आइ आम रेडी टू डाइ” ----- मैने उसकी और देख कर गुस्से में कहा

ये कह कर मैं कार का दरवाजा खोलने की कोशिस करने लगी, पर वो नही खुला, शायद अंदर से लॉक था.

“भाभी कहा जा रही हो, मेरी मर्ज़ी के बीना आप कहीं नही जाएँगी, आज आप मेरी मेहमान है.बहुत मज़े ले लिए लोगो ने आपके साथ, आज मेरी बारी है. चलिए मैं आपको अपने होटेल ले चलता हूँ. आपकी हवश भी मिट जाएगी और मेरी सालो की तमन्ना भी पूरी हो जाएगी” ---- विवेक ने हंसते हुवे कहा

मेरे पर्स में मेरा मोबाइल था, मैं ये सोच रही थी कि चुपचाप किसी तरह पोलीस को 100 नो पर फोन कर देती हूँ, पर उसका पूरा ध्यान मेरे उपर ही था. उपर से उसने मेरी तरफ पिस्टल तान रखी थी.

अचानक मैने देखा की उसका ध्यान दूसरी तरफ है, मैने फॉरन मोबाइल निकाला और 100 नंबर पर डाइयल किया.

पर मैने अभी डाइयल किया ही था की उसने मोबाइल छीन कर काट दिया और बोला, “ग़लत बात… भाभी, आप मुझे भी धोका दे रही है, लगता है, धोका देने में एक्सपर्ट हो गयी है आप. संजय ने तो कुछ नही कहा आपको पर मैं आपको आज सज़ा दूँगा. ये सज़ा इस बात की होगी कि आपने मुझे इग्नोर करके दूसरे लोगो को अपनी जवानी के मज़े दिए और मैं यू ही आपको दूर से देख देख कर अपना डिक मसलता रहा. आज वक्त आ गया है कि आपके होल्स को मैं भी चेक कर लूँ, देखूं तो सही की कितने गहरे होल है आपके. वैसे मैं एक बात बता दूं कि मेरा डिक बड़ा है और आपके जैसी स्लट के लिए ही बना है.

मेरे सबर का बाँध टूट गया और मैने गुस्से में उशके गाल पर इतनी ज़ोर से चाँटा मारा कि उसका चेहरा लाल हो गया. उसके हाथ में जो पिस्टल थीउसकी भी मैने कोई परवाह नही की. ज़्यादा से ज़्यादा वो क्या करता, मुझे गोली ही मारता. ऐसी जींदगी से मुझे मौत ज़्यादा प्यारी नज़र आ रही थी

“यू बिच, तुम्हारी इतनी हिम्मत मैं प्यार से बात कर रहा था और तुमने चाँटा मार दिया, अब तुम नही बचोगी, बहुत हो गयी प्यार से बाते” --- वो गुस्से में झल्ला कर बोला.

ये कह कर उसने मेरी कनपटी पर पिस्टल रख दी और बोला, “बता देती है क्या आराम से या फिर तेरा रेप करूँ. आज मैं किशी भी हद तक जा सकता हूँ”

मैने पिस्टल पकड़ कर कहा मारो गोली विवेक, तुम वेट किश बात का कर रहे हो, भूल जाओ कि मैं तुम्हारे जैसे नीच के झाँसे में आउन्गि. कम ऑन डू इट” मैने चील्ला कर कहा

पता नही मुझे क्या हो गया था. मैं मौत के डर से आज़ाद हो गयी थी. किशी ने सच ही कहा है कि जब इंशान मौत के डर को भुला देता है तो कुछ भी कर सकता है. ऐसा ही कुछ मेरे साथ हो रहा था.

विवेक ने अचानक मेरे सर पर ज़ोर से वार किया और मैं चक्कर खा कर बेहोश हो गयी. बेहोश होते होते मैने अपने सर पर हाथ लगा कर देखा. मेरे सर से खून बह रहा था. अगले ही पल मैं गहरी नींद में सो गयी.

जब मेरी आँख खुली तो मैने खुद को विवेक के हाथो में झूलते हुवे पाया. वो मुझे दोनो हाथो में उठा कर चले जा रहा था. मैने चारो तरफ देखा तो मेरे रोंगटे खड़े हो गये. हर तरफ झाड़िया ही झाड़िया थी. वो मुझे किशी जंगल में ले आया था.

मैने चील्ला कर कहा, “छ्चोड़ो मुझे विवेक, ये कहा ले आए मुझे, जल्दी छ्चोड़ो वरना मुझ से बुरा कोई नही होगा”

“ये जंगल है भाभी, यहा चारो तरफ झाड़िया ही झाड़िया है, आपको तो झाड़ियों में मरवाने का बड़ा शॉंक है ना, अपने घर के पीछे झाड़ियों में ही तो करवा रही थी उस दिन आप उन लोगो से. इसलिए मैं आपको जंगल में ले आया. क्या पता आपका मन बन जाए. देख लीज़िए और अपनी मन पसंद झाड़िया चुन लीज़िए, वही जाकर आपकी चूत मारूँगा” ---- वो चलते-चलते हंसते हुवे बोला.

मैं उसकी बाहों में ज़ोर ज़ोर से छटपत्ता रही थी.पर उसकी भुजाओ में काफ़ी बल था. वो बड़ी मजबूती से मुझे थामे हुवे था.

उस वक्त मुझे बहुत डर लग रहा था. मेरे हाथ पाँव काँप रहे थे. ये सब इसलिए था क्योंकि मैं नही चाहती थी कि मेरे साथ रेप हो.

रेप किसी भी लड़की के लिए मौत से भी बड़ी सज़ा होती है. रेप के बाद औरत की डिग्निटी और उशके औरत होने का गर्व उसकी जींदगी से छीन जाता है.

मैने कभी सपने में भी नही सोचा था कि मेरे साथ रेप होगा, पर मैं उस वक्त ऐसे हालात में थी कि मेरा बचना नामुमकिन नज़र आ रहा था.

विवेक ने मुझे एक घनी झाड़ी के पीछे ले जा कर पटक दिया. मेरा मूह सीधा ज़मीन पर लगा. ज़मीन पर घास नही थी और चारो तरफ मिट्टी ही मिट्टी थी. जैसे ही मेरा मूह ज़मीन पर लगा मेरी आँखो में मिट्टी घुस्स गयी.
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11-13-2018, 12:44 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
शाम का वक्त था, अंधेरे की चादर चारो तरफ फैलने लगी थी. बस हल्की हल्की रोशनी बाकी थी. उपर से शुनशान जंगल की वो बड़ी बड़ी झाड़ियाँ. ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी हॉरर मूवी का डरावना सीन चल रहा हो. इतना भयानक सीन मैने जींदगी में नही देखा था.

पर मैने मन ही मन में हिम्मत ना हारने का फैंसला किया. मैं आखरी दम तक लड़ना चाहती थी. रेप मुझे किसी भी हालत में मंजूर नही था.

मैने उपर की और करवट ली तो देखा की विवेक अपनी पॅंट उतार रहा है.

जैसे ही उसने अपनी पॅंट उतार कर एक तरफ रखी मैने अपनी राइट लेग से ज़ोर से उशके टेस्टिकल पर परहार किया.

“ऊऊहह, साली कामिनी, कुतिया तेरी इतनी हिम्मत, आज तक किसी की मेरे साथ ऐसा करने की हिम्मत नही हुई” ---- वो दर्द से चील्लते हुवे बोला और मेरे बाल पकड़ लिए.

“विवेक जो तुम चाहते हो, वो मैं कभी नही होने दूँगी” ----- मैने ज़ोर से चील्ला कर कहा.

हां हां तुझे तो बस वो कमीना बिल्लू ही चाहिए. बिल्लू मर चुका है मेरी जान, आओ ना अब मैं तुम्हारी प्यास भुजाता हूँ. ख़ुसी से नही दोगि तो ज़बरदस्ती दोगि, देनी तो तुम्हे पड़ेगी ही, सोच लो कैसे देना चाहती हो.

मैने उसके मूह पर थूक दिया

और अगले ही पल उसने मेरे चेहरे पर थप्पड़ बर्शाने शुरू कर दिए.

वो बहुत देर तक मेरे गाल पर ठप्पड़ो की बोछार करता रहा.

उसने मुझे इतना मारा कि मैं चक्कर खा कर गिर गयी.

उसने मुझे घुमा कर अपने नीचे उल्टा कर दिया.

मैं पेट के बल मिट्टी पर पड़ी थी, और वो मेरे उपर खड़ा था.

उसने मेरी जीन्स के बटन खोल कर उसे नीचे सरका दिया और मेरे नितंबो पर ज़ोर से थप्पड़ मार कर बोला, “पहले तुम्हारी गांद ही मारता हूँ,……. आई मुझ पर थूकने वाली”

मेरा शरीर जवाब दे चुका था पर फिर भी मैने उठने की कोशिस की पर उसने मेरी पीठ पर एक लात मारी और मैं धदाम से ज़मीन पर वापस गिर गयी.

इस बार मेरा माथा सीधा धूल भरी ज़मीन से जा टकराया और मेरी आँखो में और ज़्यादा मिट्टी भर गयी.

ऐसा लग रहा था कि अब मेरा रेप हो कर रहेगा.

मैने मन ही मन में कहा, हे भगवान अगर ये मेरे पापो की सज़ा है तो सच कहती हूँ कि बहुत बड़ी सज़ा है, मुझे नही लगता कि किसी को भी ऐसी सज़ा मिलनी चाहिए.

विवेक मेरे उपर लेट गया और मेरे बालो को पकड़ कर खींचते हुवे बोला, लात मारती है मेरे लंड पर हूउ……, देख मैं तेरी गांद कैसे फाड़ता हूँ.

मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि अब क्या करूँ. मैं बस वाहा पड़े पड़े छटपटा रही थी.

मैने एक आखरी कोशिस की.

मैने उससे रोते हुवे अपील की, “विवेक प्लीज़ रुक जाओ, ऐसा मत करो, तुम तो ऐसे नही थे, तुम्हे आज क्या हो गया है, तुम मुझे गोली मार दो पर ये सब मत करो प्लीज़, मैं मानती हूँ मैने संजय को धोका दिया है, पर….”

उसके बाद कुछ ऐसा हुवा जिसकी मैने सपने में भी कल्पना नही की थी. मुझे वाहा किसी और की आवाज़ शुनाई दी

“ये ऐसा ही है ऋतु, तुम इस हरामी को नही जानती ये ऐसा ही है”

ये आवाज़ सुन कर मैं एक दम से चोंक गयी, क्योंकि वो मुझे जानी पहचानी सी लगी. मैं मन ही मन में सोच रही थी कि जिसकी ये आवाज़ है उसका वाहा होना नामुमकिन है.

“कौन हो तुम छ्चोड़ो मुझे वरना” --- ये विवेक की आवाज़ थी. वो गिड़गिदा रहा था.

अचानक मुझे महसूष हुवा कि विवेक मेरे उपर नही है. उसे मेरे उपर से खींच लिया गया था.

फिर मैने महसूष किया कि कोई मेरी जीन्स उपर चढ़ा रहा है.

मुझे बचाने वाहा जंगल में कौन आ गया, यही सवाल मेरे मन में घूम रहा था.

मैने गर्दन घुमा कर देखा. अभी तक पूरी तरह से अंधेरा नही हुवा था और रोशनी एक तरह से ठीक ठाक थी. पर मेरी आँखो में इतनी मिट्टी घुस्सी हुई थी कि, मई ठीक से देख ही नही पाई के वाहा विवेक के अलावा दूसरा कौन है

मुझे बस इतना ही दीखा कि कोई विवेक को बुरी तरह मार रहा है. विवेक मेरे पास ही पड़ा हुवा मार खा रहा था.

आअहह नो….विवेक की चीन्ख पूरे जंगल में गूँज रही थी.

“साले तेरी इतनी हिम्मत आज तुझे जींदा नही छ्चोड़ूँगा मैं” --- फिर से वही आवाज़ आई

मैं इतनी उत्शुक हो रही थी कि फॉरन हिम्मत करके वाहा से उठी और मैने अपनी आँखो पर से मिट्टी हटा कर देखने की कोशिश की.

जो मैने देखा उस पर विश्वास करना मुश्किल था.

मेरी आँखो के सामने बिल्लू, विवेक को बुरी तरह मार रहा था.

उसे वाहा देख कर मुझे अपनी आँखो पर विश्वास नही हो रहा था. मैं बस उसे एक टक देखे जा रही थी.

वो जींदा कैसे है ? वो वाहा कैसे आया ? मुंबई में वो क्या कर रहा है ?

ये कुछ ऐसे सवाल थे जो मेरे दिमाग़ में बिल्लू को वाहा देख कर एक दम से घूम गये

यही कल की सबसे चोंकाने वाली घटना थी।

क्रमशः........................
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11-13-2018, 12:45 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
गतांक से आगे ...................

बिल्लू को वाहा देख कर मैं गहरे शॉक में थी. यही सवाल मन में उठ रहा था कि आख़िर वो बच कैसे गया.

मैं सोच रही थी कि अगर वो जींदा है तो वो कौन थे जो नेहा के अनुशार अशोक के साथ मारे गये थे.

खैर वो मेरी आँखो के सामने था और विवेक को बुरी तरह मार रहा था.

कोई भी अगर ऐसे हालात में आपकी इज़्ज़त बचाएगा तो आप उसका अह्शान मानेंगे

पर आप क्या कहेंगे उस इंशान को जो पहले तो आपको बर्बाद करता है और फिर आपकी इज़्ज़त बचाने आ जाता है.

समझ नही आ रहा था कि बिल्लू को वाहा देख कर मैं कैसे रिक्ट करूँ. उशके कारण मेरा सब कुछ बर्बाद हो चुका था. और अब वो मेरे सामने मेरा रेप करने की कोशिस करने वाले विवेक को मार रहा था.

अगर विवेक मेरे शरीर का रेप करना चाहता था तो, बिल्लू उस से भी बढ़ कर मेरे चरित्र का रेप पहले ही कर चुका था.इश्लीए मैं बिल्लू को अपना रखवाला कैसे मान सकती थी.

आख़िर वही तो था वो, जिसने बड़ी चालाकी से मुझे पाप के दलदल में फँसाया था.

वाहा खड़े खड़े, मुझे याद आया कि कैसे उसने एक दिन अपने पाँव में चिकन का ब्लड लगा कर मुझे बड़ी चालाकी से मेरे घर के पीछे बुलाया था. कह रहा था पाँव में चोट लगी है, खून बह रहा है, कुछ करो ना. और फिर उशके बाद उसकी वो एमोशनल बातें.

खुद तो उसने मुझे जैसे तैसे फँसा कर मेरे साथ किया ही, फिर मुझे बड़ी चालाकी से अशोक के सामने भी परोश दिया. और फिर उस दिन, अशोक और राजू को भी साथ ले आया . क्या कुछ नही किया था उसने मेरे साथ. उसने जो मेरे साथ किया था वो मेरे शरीर का रेप ना सही पर मेरे कॅरक्टर का रेप ज़रूर था. अगर बिल्लू मेरी जींदगी में ना आता तो ना तो मुझे अशोक का शिकार होना पड़ता, ना उस साइकल वाले की भद्दी बाते सुन-नि पड़ती और ना ही विवेक की इतनी हिम्मत होती कि मुझ से इतनी बेहूदा बाते करे और मेरा रेप करने की कोशिश करे. इन सब बातो के कारण मुझे बिल्लू का वाहा होना कुदरत का एक घिनोना मज़ाक लग रहा था.

मैने देखा कि बिल्लू और विवेक में बहुत तगड़ी हाथा-पाई चल रही थी. कभी विवेक हावी होता दीखता था तो कभी बिल्लू. दौनो एक दूसरे से बुरी तरह उलझ रहे थे.

“साले तू बच गया हां, पर आज मेरे हाथो से नही बचेगा” ---- विवेक ने बिल्लू के पेट में लात मारते हुवे कहा.

अगले ही पल विवेक नीचे पड़ा था और बिल्लू फिर से उसकी धुनाई कर रहा था.

अचानक मेरी नज़र ज़मीन पर पड़ी पिस्टल पर गयी. वो विवेक की पॅंट के पास ही पड़ी थी.

मैं लड़खड़ाते हुवे पिस्टल के पास पहुँची और काँपते हाथो से पिस्टल उठा ली.

मैने पिस्टल को दोनो हाथो में पकड़ा और उन दौनो की तरफ तान दी. मैने किसी की और निशाना नही लगाया बस गोली चला दी…….. मैं सोच रही थी कि किसी को भी लग जाए, दौनो मेरे लिए एक समान है.

पर गोली किसी को नही लगी, पता नही कहा चली गयी.

हां इतना ज़रूर हुवा कि एक पल को दौनो रुक गये.

“भाभी रूको, गोली मत चलाओ,आइ अम सॉरी, मैं बहक गया था, आप सच कह रही थी, मैं आज होश में नही हूँ” ---- विवेक मेरी और गिड़गिदा कर बोला.

अगले ही पल बिल्लू ने उसके उपर लातो की बोछार कर दी और बोला, “साले तू कब होश में रहता है”

मैने एक और फाइयर किया और बिल्लू लड़खड़ा कर गिर गया.

“भाभी अछा किया, बहुत अछा किया, एक और गोली मारो इस साले को” ---- विवेक मेरी ओर गिड़गिदा कर बोला.

“शूट अप यू बस्टर्ड” ---- मैने चील्ला कर कहा और विवेक की तरफ पिस्टल कर के गोली चला दी.

“आहह…. नो… भाभी प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो मैं बहक गया था” ------ विवेक दर्द से चील्ला कर बोला.

गोली शायद विवेक के पेट में लगी थी. गोली लगते ही वो भी बिल्लू के पास गिर गया.

“ऋतु, बंदूक मुझे दो, मैं इसका खेल ख़तम करता हूँ” ---- बिल्लू मेरी और देख कर बोला.

बिल्लू अपनी टाँग पकड़े पड़ा था.

तब मैने सोचा, “अछा इसकी टाँग में गोली लगी है, इसके तो सर में गोली लगनी चाहिए थी.”

और मैने इस बार बिल्लू की ओर फाइयर किया

लेकिन ये निशाना मैं चूक गयी.

पर एक दम से विवेक ने फुर्ती से मेरी और बढ़ कर मेरे हाथ से पिस्टल छीन ली और मेरे मूह पर एक चाँटा मारा, जिसके कारण मैं लड़खड़ा कर गिर गयी.
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