Chodan Kahani छोटी सी भूल
11-13-2018, 12:45 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
“साली मुझे मारेगी, मैं आज तुम दौनो की यही कबर खोद दूँगा” ---- विवेक चील्ला कर बोला.

ये कह कर उसने पिस्टल मेरी कनपटी पर रख दी और बोला, “अब मैं तुम्हे बताता हूँ कि गोली कैसे चलाई जाती है”

मैने भगवान को याद किया और मन ही मन में प्रेयर की, “हे भगवान अगर अब मुझे मेरे पापो की सज़ा मिल चुकी हो तो मुझे माफ़ कर दो, मेरे चिंटू का ख्याल रखना”

पर अगले ही पल मैने महसूस किया की मेरी कनपटी पर पिस्टल नही है.

मैने देखा कि बिल्लू विवेक के उपर है और पिस्टल मुझ से थोड़ी दूर ज़मीन पर पड़ी है. शायद बिल्लू ने विवेक पर पीछे से हमला किया था, और उसके हाथ से पिस्टल दूर जा गिरी थी.

मैं ज़मीन पर रेंगते हुवे पिस्टल के पास पहुँच गयी.

मैने पिस्टल उठाई ही थी कि विवेक किसी तरह से वाहा से भाग खड़ा हुवा. मैने तुरंत उसकी ओर फाइयर किया और वो गिर गया. इस बार गोली उसकी पीठ पर लगी थी.

बिल्लू ज़मीन पर पड़ा था, वो अपनी राइट लेग को पकड़ कर दर्द से कराह रहा था.

मैं हिम्मत करके खड़ी हुई और उसकी तरफ पिस्टल तान दी.

“ऐसे नही ऋतु, ऐसे मत मारो मुझे, रूको मैं थोड़ा करीब आ जाता हूँ, तब आराम से निशाना लगा कर मारना, मैं तुम्हारे कदमो में मरना चाहता हूँ” ---- वो दर्द से कराहते हुवे बोला.

“बंद करो ये बकवास बिल्लू, मेरे करीब मत आना, मुझे अब तुम्हारे बारे में सब कुछ पता है, बड़ी चालाकी से बर्बाद किया है तुमने मुझे, आज मैं तुम्हे जींदा नही छ्चोड़ूँगी” ----- मैने चील्ला कर कहा.

“बिल्कुल ऋतु, मैं भी यही चाहता हूँ कि अगर मेरी मौत हो तो तुम्हारे हाथो से हो, मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ” --- वो मेरी तरफ रेंगते हुवे बोला.

“रुक जाओ बिल्लू वरना मैं गोली चला दूँगी” ---- मैने फिर से उसे चील्ला कर कहा.

पर वो नही रुका और ज़मीन पर रेंगते हुवे मेरी तरफ बढ़ने लगा. मैने उसके उपर फाइयर किया पर गोली ना जाने कहा लगी, क्योंकि वो रुका नही और मेरे कदमो के बिल्कुल पास आ कर लेट गया.

“कहा था ना ऐसे मत मारो, मरने वाले की आखरी खावहिश का ध्यान रखा जाता है, लो अब मारो मुझे, गोली सीधी सर में मारो, मैं तुम्हारे कदमो में ही मरना चाहता हूँ” ---- बिल्लू ने मेरे कदमो पर हाथ रख कर कहा.

मैने कहा, “बंद करो ये नाटक बिल्लू, कुछ भी हो जाए, आज मैं तुम्हारी बातो के जाल में नही फसूंगी”

बिल्लू ने मेरे पाँव पर सर रख दिया और बोला, “नाटक नही है ये, मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ, मैं मानता हूँ. मुंबई मैं बस तुम्हारे लिए ही आया हूँ. पीछले हफ्ते से रोज छुप छुप कर तुम्हे देख रहा हूँ. तुम्हारा सामना करने की हिम्मत नही हो रही थी मेरी. पर आज मैने जब तुम्हे विवेक की गाड़ी में बैठते देखा तो मैने तुम्हारा पीछा किया. मुझे डर था कि विवेक ज़रूर कोई ना कोई घिनोनी हरकत करेगा. पर रास्ते में मेरा एक छोटा सा आक्सिडेंट हो गया, जिसके कारण यहा पहुँचने में देर हो गयी. विवेक की गाड़ी मुझ से काफ़ी आगे निकल कर आँख से ओझल हो चुकी थी. मैं हर तरफ तुम्हे ढूंड रहा था. जब इस जंगल की तरफ आया तो देखा कि बाहर सड़क पर विवेक की गाड़ी खड़ी थी, उसी से मुझे लगा कि वो तुम्हे ज़रूर यहा लाया है”

“इस सब से तुम क्या साबित करना चाहते हो बिल्लू, कुछ भी करलो पर मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करूँगी, तुमने मेरे साथ बहुत गंदा खेल खेला है” ---- मैने भावुक हो कर कहा.
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11-13-2018, 12:45 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
“जानता हूँ ऋतु, और मैं भी खुद को शायद कभी माफ़ ना करूँ. अपनी भूल का अहसाश मुझे तब हुवा जब मुझे उस दिन गोली लगने के बाद होश आया. मुझे यकीन नही था कि मैं बचूँगा. पर वीना आंटी ने मुझे बचा लिया. मैं बदले की आग में अपने होश खो बैठा था ऋतु, मुझे माफ़ कर दो” --- बिल्लू गिड़गिदाते हुवे बोला.

“मैं क्या तुम्हे माफ़ करूँगी बिल्लू, मैं तो खुद को ही माफ़ नही कर पा रही हूँ, तुम्हारी तो बात ही दूर है” --- ये कहते हुवे मेरी आँखो में आन्षू उतर आए.

मैने पिस्टल बिल्लू के सर पर रखने की बजाए अपनी कनपटी पर लगा दी, और कहा, “मुझे नही पता कि तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया और ना मुझे अब कुछ जान-ना है, मैं इतना ज़रूर जानती हूँ कि जितनी ग़लती तुम्हारी थी, उतनी ही मेरी थी, इश्लीए मैं तुम्हे मारने की बजाए अब खुद ही मर रही हूँ”

“नही ऋतु, मारना है तो मुझे मारो, तुम्हारी कोई ग़लती नही है, तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुवा वो मेरे कारण हुवा है, मुझे गोली मारो ऋतु…. प्लीज़” ---- बिल्लू मेरे पाँव पकड़ कर बोला.

मैने फाइयर कर दिया. और वक्त जैसे थम गया.

पर किशमत को मेरी मौत मंज़ूर नही थी. बंदूक की गोलिया ख़तम हो चुकी थी.

मैं वाहा से हट गयी और लड़खड़ाते हुवे वाहा से चल पड़ी. अंधेरा घिर आया था और जंगल में तरह तरह की भयानक आवाज़े गूँज रही थी.

मुझे कुछ नही पता था कि सड़क किस तरफ है, मैं बस बिना सोचे समझे चल पड़ी.

हर इंशान की जींदगी में एक ऐसा पल आता है, जब वो अपने अंदर झाँक कर देखता है कि वो वाकाई में क्या है. मैं उस वक्त इशी अवस्था में थी. पर मुझे उस वक्त अपने अंदर जंगल से भी भयानक अंधेरा नज़र आ रहा था.

जो कुछ विवेक ने मेरे साथ किया था वो मेरी बची कूची आत्मा को मार गया था. बाकी सब कुछ तो बिल्लू पहले ही ख़तम कर चुका था.

“ऋतु रूको ये जंगल बहुत बड़ा है, कहा जा रही हो, तुम भटक जाओगी. मैं भी आ रहा हूँ” ----- बिल्लू ने मेरे पीछे से चील्ला कर कहा.

मैने पीछे मूड कर देखा, वो लड़खदाता हुवा मेरे पीछे आ रहा था. मैने एक पठार उठाया और उसकी और फेंक कर मारा. मुझे यकीन नही हुवा, वो सीधा उसके सर पर जाकर लगा और वो गिर गया.

जब मुझे होश आया था तो मैने देखा था कि विवेक मुझे किस रास्ते से लाया था. उसी रास्ते पर मैं आगे बढ़ रही थी, बिना किसी डर के, बिना किसी ख़ौफ़ के.डरता वो है जिसके पास खोने को कुछ बचा हो. मेरे पास खोने को कुछ नही था.

चलते चलते मुझे दूर से सड़क दिखाई दी.

मैने सड़क पर विवेक की कार खड़ी देखी. कार से थोड़ी दूर एक बाइक खड़ी थी. शायद वो बिल्लू की थी. विवेक की कार में मेरा पर्स था और मोबाइल था. मैने एक बड़ा सा पथर उठाया और ज़ोर से कार की खिड़की में मारा. खिड़की का शीसा थोड़ा चटक गया. मैने एक और पथर मारा और वो इतना टूट गया कि मैं अंदर हाथ डाल कर अपना पर्स निकाल सकूँ.

मैने पर्स निकाला और शुनशान सड़क पर चल पड़ी. दूर दूर तक कोई नही था. मेरे सर पर खून लगा था, चेहरे पर मिट्टी थी और सारे कपड़े धूल से भरे थे. कुछ नही पता था कि किस तरफ जाउ, मैं बस चले जा रही थी.

कोई 5 मिनूट बाद मुझे एक कार आती दीखाई दी. मैने सोचा कोई टॅक्सी होगी तो ही हाथ दूँगी.

पर वो टॅक्सी नही थी, इश्लीए मैने हाथ नही दिया. और वो कार आगे बढ़ गयी.
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11-13-2018, 12:46 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
मुझ से थोड़ा आगे जा कर कार अचानक रुक गयी और पीछे की तरफ मेरी और आने लगी.

“अरे आप इस शुनशान सड़क पर अकेली क्या कर रही है, ओह्ह आपके सर पर तो खून लगा है, सब ठीक तो है” ------- कार में बैठी लेडी ने पूछा.

वो लेडी अकेली थी और खुद ही कार ड्राइव कर रही थी.

मैने कहा, “आप प्लीज़ मुझे ऐसी जगह छ्चोड़ दीजिए जहाँ से मैं टॅक्सी ले कर कोलाबा जा सकूँ”

“अरे हां हां आओ बैठो, ये सब क्या हुवा है आपके साथ” ? ------ उस लेडी ने पूछा.

“कुछ नही… जींदगी ने एक भद्दा मज़ाक किया है, आप प्लीज़ मुझे जल्दी कही छ्चोड़ दो” ---- मैने रोते हुवे कहा.

“पोलीस को फोन करूँ क्या” ? --- उस लेडी ने पूछा.

“अब पोलीस आकर क्या करेगी जो होना था सो हो गया” ----- मैने उस लेडी से कहा.

“क्या तुम्हारे साथ रेप हुवा है” ? अगर ऐसा है तो हमें तुरंत पोलीस स्टेशन चलना चाहिए” ---- उस लेडी ने कहा.

“नही रेप से भी ज़्यादा भयानक. आप मुझ से कुछ मत पूछो, मैं कुछ भी कहने की हालत में नही हूँ” ---- मैने उस लेडी को कहा.

“ठीक है….ठीक है, आप आराम से बैठो मैं अभी आपको किसी टॅक्सी तक पहुँचा देती हूँ” ------ वो लेडी बोली.

उसने मुझे एक टॅक्सी वाले के पास उतार दिया. टॅक्सी वाला भी मुझे ऐसी हालत में देख कर हैरानी में बोला, “मेडम ये क्या हुवा है, आपके सर पर तो खून लगा है”

मैने कहा, “कुछ नही मैं गिर गयी थी, मुझे जल्दी कोलाबा ले चलो”

“कोलाबा में कहा जाना है मेडम” ---- उसने पूछा.

मैने कहा, “होटेल ताज के पास”

जैसे ही मैं अपने फ्लॅट के बाहर पहुँची वाहा सिधार्थ खड़ा था.

वो मुझे देख कर बोला, “अरे ये क्या हुवा है तुम्हे ऋतु, ये चेहरे पर मिट्टी और ये सर पर खून, कैसे हुवा ये सब, मैं कब से फोन लगा रहा हूँ, फोन भी नही उठाया तुमने”

मैं इतनी भावुक हो उठी कि सिधार्थ के गले लग कर फूट फूट कर रोने लगी

“अरे क्या हुवा ऋतु, बताओ तो सही” ---- सिधार्थ ने मेरे सर पर हाथ रख कर पूछा

पर मैं कुछ भी बताने की हालत में नही थी

अछा चलो पहले तुम्हारे फ्लॅट में चलते है, आराम से बैठ कर बात करेंगे” ---- सिधार्थ ने मेरे सर पर हाथ फिराते हुवे कहा.

सिधार्थ मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मेरे फ्लॅट पर ले आया.

“मैं कब से तुम्हारा फोन ट्राइ कर रहा हूँ, आज तुम्हे कुछ सर्प्राइज़ देना था, लेकिन खुद तुम्हे ऐसी हालत में देख कर सर्प्राइज़ हो गया, बताओ ये सब कैसे हुवा”

“सिधार्थ मैं तुम्हे कुछ नही बता सकती, ये एक लंबी कहानी है” ---- मैने कहा

“ठीक है ऋतु तुम चिंता मत करो बाद में आराम से बात करेंगे. पर तुम्हारे सर पर चोट लगी है, मैं किसी डॉक्टर को ले कर आता हूँ” ---- सिधार्थ ने कहा.

“नही सिधार्थ में खुद पट्टी बाँध लूँगी, डॉक्टर की बीवी रह कर बहुत कुछ सीखा है, मेरे पास सब समान है, तुम अभी जाओ मैं अभी अकेली रहना चाहती हूँ” ---- मैने सिधार्थ की ओर देख कर कहा

“ऋतु क्या मेरा तुम पर इतना भी हक नही है कि मैं सुख दुख में तुम्हारे साथ रह सकूँ. देख रहा हूँ कि जब से मिली हो, मुझ से दूर दूर रहने की कोशिश करती हो. क्या तुम वही ऋतु हो जो कभी मुझ से शादी करने को तैयार थी” ---- सिधार्थ ने पूछा

“नही सिधार्थ में वो ऋतु नही हूँ, वो ऋतु मर चुकी है, तुम प्लीज़ अभी जाओ, बाद में बात करेंगे” ---- मैने नज़रे झुका कर कहा. ऐसे कड़वे बोल मैं उसकी और देख कर नही बोल सकती थी.

“ठीक है मैं जा रहा हूँ, पर याद रखना मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ” ------- वो जाते हुवे बोला.

मैने उशके जाने के बाद दरवाजा बंद कर लिया और दरवाजे पर खड़े खड़े ही आंशु बहाने लगी.
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11-13-2018, 12:46 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
सिधार्थ मुझे प्यार दे रहा था, और मैं उसे खुद से दूर धकैल रही थी. दर-असल मैं नही चाहती थी कि मेरे जैसी लड़की उसकी जींदगी में आए. वो बहुत अछा है, पर मैं क्या हूँ मई आछे से जानती हूँ. मैं अपनी बाकी की जींदगी का सफ़र अकेले बिताना चाहती हूँ…………. बिल्कुल अकेले.

सिधार्थ के जाने के बाद मैने अपनी मरहम पट्टी की और गरम पानी से नहा कर सो गयी. बहुत देर तक नींद नही आई पर जब आई तो सुबह 11 बजे आँख खुली. मैने उठते ही ऑफीस फोन किया कि मैं आज नही आउन्गि.

…………………………..

डेट 01-02-09

आज सनडे है और मैं घर पर हूँ. शाम का वक्त है और 6 बजने वाले है. पर एक अजीब समश्या आन खड़ी हुई है.

अभी अभी थोड़ी देर पहले डोर बेल बजी थी. मैने दरवाजे पर आकर देखा तो पाया कि किसी ने दरवाजे के नीचे से एक काग़ज़ का टुकड़ा सरका रखा था.

मैने काग़ज़ उठा कर देखा तो उस पर लीखा था

“ऋतु मैं तुम्हे सब कुछ बताना चाहता हूँ, गेट वे ऑफ इंडिया के सामने आ जाओ मैं तुम्हारा इंतेज़ार कर रहा हूँ. प्लीज़ एक बार मेरी बात सुन लो फिर कभी मुझ से बात मत करना. मैं तुम्हारे लिए ही मुंबई आया हूँ. मैं तुम्हारा इंतेज़ार कर रहा हूँ. बस एक बार मिल लो, प्लीज़”………..बिल्लू

मैने काग़ज़ फाड़ कर फेंक दिया है. बिल्लू की कोई भी बात सुन-ने का मेरा कोई इरादा नही है. वैसे भी मनीष सचाई के काफ़ी करीब है.

कल मैने दीप्ति को फोन किया था, उसने मुझे कहा था, “ऋतु, हो सकता है कि बिल्लू जींदा हो क्योंकि उसकी लाश नही मिली है. मनीष के अनुशार अशोक के साथ जो मारे गये है उनमे से एक राजू है और एक अशोक का लड़का दिनेश है”

मैने कहा, “बिल्लू यहा मुंबई में है दीप्ति”

“क्क़..क्या तुम्हे कैसे पता” --- दीप्ति ने हैरानी में पूछा.

मैने दीप्ति को 21 जन्वरी की पूरी घटना सुना दी.

“अरे तुमने तो कमाल कर दिया….. पर ये बात तुम मुझे आज बता रही हो, तुम्हे पता है ना मनीष इसी काम पर लगा है” ---- दीप्ति ने कहा.

“दीप्ति अब मेरा कुछ जान-ने का मन नही है, सॉफ लग रहा है कि बिल्लू की संजय और विवेक से कोई दुश्मनी है और संजय से बदला लेने के लिए उसने मुझे बर्बाद किया है. याद है ना वो खून से लीखी लाइन “डॉक्टर की तो यही सज़ा है पर वकील को हर हाल में मरना होगा” ---- मैने कहा

“वो तो मैं भी समझ रही हूँ, पर क्या तुम नही जान-ना चाहोगी कि बिल्लू क्यो संजय और विवेक के पीछे पड़ा है” ---- दीप्ति ने पूछा

“संजय से मेरा डाइवोर्स हो चुका है दीप्ति और विवेक से मेरा कोई लेना देना नही है. बाकी संजय खुद सब कुछ संभाल लेंगे, बिल्लू उनके पीछे पड़ा है तो पड़ा रहने दो. मैं इस चक्कर में नही पड़ना चाहती” ---- मैने कहा.

“वो तो ठीक है ऋतु, पर मनीष कह रहा था कि बहुत जल्द सचाई हमारे सामने होगी” ---- दीप्ति ने कहा.

इश्लीए मेरा बिल्लू से मिलने का कोई इरादा नही है. सचाई वैसे भी जल्दी ही सामने आ जाएगी.

……………………..

डेट : 2-02-09

आज सुबह की शुरूवात बहुत बुरी तरह हुई. सुबह कोई 8 बजे मैने अपनी खिड़की से बाहर झाँक कर देखा तो पाया कि मेरे फ्लॅट के बिल्कुल सामने सड़क पर बिल्लू खड़ा था.

मुझे खिड़की में देखते ही वो हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया, जैसे की कह रहा हो कि प्लीज़ मुझ से मिल लो.

मैने झट से खिड़की बंद कर दी और ऑफीस के लिए तैयार होने लगी.

शाम को जब घर आई तो फिर से मुझे अपने घर के अंदर दरवाजे के पास एक काग़ज़ मिला

उस पर लिखा था

“मैं बहुत देर तक कल तुम्हारा इंतेज़ार करता रहा, तुम्हे सब कुछ बता कर वापस देल्ही जाना चाहता हूँ, मेरे पास यहा ज़्यादा वक्त नही है. जैसे तैसे यहा किसी फ्रेंड के पास रह रहा हूँ. वो भी अब परेशान होने लगा है. मेरी फाइनान्षियल पोज़िशन ऐसी नही है कि इस सहर में ज़्यादा दिन ठहर पाउ. तुम्हे सब कुछ बता देता तो दिल को तस्सल्ली मिलती. तुम्हे बताए बिना मर गया तो मेरी आत्मा भटकती रहेगी. मेरी जींदगी का कोई भरोसा नही है. किसी भी वक्त मैं मर सकता हूँ, मेरी जान को हर वक्त ख़तरा है. प्लीज़ एक बार मिल लो. मैं तुमसे और कुछ नही चाहता”……………….बिल्लू

पता नही क्यों, एक मन हो रहा है कि एक बार उसकी बात सुन लूँ, पर फिर उसकी पिछली हरकते याद आती है. क्या पता ये उसकी कोई चाल हो, उस पर विश्वास

करना मुश्किल है.
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11-13-2018, 12:46 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
गतांक से आगे ...................

डेट 7-02-09

पीछले 5 दीनो से देख रही हूँ, बिल्लू रोज सुबह मुझे ऑफीस जाते वक्त मेरे फ्लॅट के बाहर मिल जाता है, और जब मैं वापस आती हूँ तो भी मुझे वही मिलता है. उसके चेहरे पर ऐसे भाव रहते है, जैसे की वो बहुत इनोसेंट हो, लगता ही नही है कि उसी ने मुझे बर्बाद किया है. बिल्लू का ये दूसरा ही रूप देख रही हूँ. पता नही क्या राज है. मैं अब दीप्ति के फोन का इंतेज़ार कर रही हूँ. कल उसने बताया था कि बस एक दौ दिन की बात है सचाई सामने आ जाएगी. रोज मुझे ऑफीस से आते ही घर के अंदर दरवाजे के नीचे बिल्लू की लीखी चिट मिलती है. रोज यही लीखा होता है कि “आज फिर मैं गेट वे ऑफ इंडिया पर तुम्हारा इंतेज़ार करूँगा, हो सके तो आ जाओ”

पर मैं उस से मिलने कैसे चली जाउ, जो उसने मेरे साथ किया है उसे मैं कभी नही भुला सकती. और क्या पता वो मुझे कौन सी कहानी शुनाएगा. बातें बनाने में तो वो एक्सपर्ट है ही. क्या पता कोई नयी चाल चल रहा हो.

इश्लीए मैं बिल्लू को इग्नोर करके अपने काम पर ध्यान दे रही हूँ.

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रात के 10 बज रहे है. अभी थोड़ी देर पहले पापा से फोन पर लंबी बात की.

“बेटे सिधार्थ का फोन आया था, तुमने बताया नही कि वो वही मुंबई में है, बहुत अछा लड़का है” ---- पापा ने कहा

“जी पापा मुझे ध्यान ही नही रहा, सिधार्थ हमारी कंपनी का सीए है, अक्सर ऑफीस में उस से मुलाकात हो जाती है, पर उसने आपको क्यो फोन किया” ----- मैने हैरानी में पूछा.

“बेटा, वो तुमसे शादी करना चाहता है, मुझ से कह रहा था कि आप मान जाओ तो ऋतु भी मान जाएगी. मैं तो पहले भी तुम लोगो के साथ ही था, बस उसके पापा की इज़ाज़त के बिना कुछ नही होने देना चाहता था. अछा लड़का है, उसके साथ तुम जींदगी की नयी शुरूवात कर सकती हो, बाकी सब कुछ तुम्हारे उपर है, मैं तुम्हे कुछ नही कहूँगा, जैसा तुम्हे अछा लगे करो, मैं तुम्हारे साथ हूँ.” ---- पापा ने कहा

आज तक मैने पापा की बात नही टाली है, इश्लीए मैने उन्हे कुछ नही कहा कि मैं क्या चाहती हूँ. मैं सोच रही हूँ कि अब सिधार्थ से ही बात करूँगी.

डेट : 8-02-09

आज मन बहुत उदास है चिंटू का बिर्थडे है और मैं उसके पास नही हूँ, पर क्या करूँ उस से मिलने भी नही जा सकती. नयी नयी नौकरी जाय्न की है, और फिर अभी काम भी ज़्यादा है. सुबह का वक्त है सोच रही हूँ कि मंदिर चली जाउ. शायद मन को कुछ सकुन मिले. वैसे भी आज सनडे है और मेरे पास काफ़ी वक्त है

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11:30 एम (8-02-09)

मंदिर में घुसते ही मुझे एक अनोखा सा सकुन मिला. मंदिर में बहुत प्यारा भजन चल रहा था.

♫♪♫….. हरे कृष्णा… हरे कृषणे…..कृष्णा कृष्णा….हरे.. हरे.. हरे रामा…हरे रामा… रामा रामा.. हरे…हरे....♫♪♫

किसी ने सच ही कहा है कि जब आप भगवान के पास हाथ जोड़ कर जाते है तो भगवान आपको गले लगा लेते है. कुछ ऐसा ही अहसाश मुझे हो रहा था.

ये भजन मेरी अन्तेर आत्मा में उतरता चला गया. बहुत दीनो बाद मन को कुछ शांति मिली. पर ये शांति ज़्यादा देर नही रह पाई.

मैं भगवान के आगे आँखे बंद करके खड़ी थी और मन ही मन चिंटू के लिए लंबी उमर की कामना कर रही थी. अपने लिए मैं क्या मांगती बस यही दुवा कर रही थी कि हे भगवान मुझे हमेशा आछे रास्ते पर रखना. मुझे इतनी शक्ति देना कि जब भी मेरे सामने दौ रास्ते आयें तो मैं सही रास्ते का चुनाव कर सकूँ.

सभी कुछ अछा चल रहा था आँखे बंद करके में अंदर ही अंदर खो गयी थी और हरे कृष्णा हरे रामा भजन मेरे कानो में गूँज रहा था.

अचानक मुझे एक आवाज़ शुनाई दी

“भगवान मुझे आपसे कुछ नही चाहिए, वैसे भी जो था वो तो आपने पहले ही छीन लिया है, अगर मुझे कुछ देने को बचा हो तो वो इस देवी को दे दो. मैं ज़्यादा दिन नही जीना चाहता, मेरी उमर आप इस देवी को लगा दो. और ये देवी आपसे जो भी मांगती है दे दो भगवान मैं इस देवी को बहुत प्यार करता हूँ…”

मैने हैरानी में आँखे खोल कर देखा और चोंक गयी..

बिल्लू मेरे पास आँखे बंद करके भगवान के आगे हाथ जोड़े खड़ा था. मैने मन ही मन में सोचा कि इसकी हिम्मत कैसे हो गयी यहा आने की और ऐसे मेरे साथ खड़े होने की.

मैने पुजारी से परसाद लिया और झट से मंदिर से बाहर आ गयी.

“ऋतु रुक जाओ, प्लीज़…. एक बार मेरी बात तो सुन लो, मैं बस तुम्हे कुछ बताना चाहता हूँ, और तो कुछ नही चाहता, प्लीज़….” ---- बिल्लू ने मेरे पीछे आते हुवे कहा.

मैं रुक गयी और पीछे मूड कर उसे कहा, “बिल्लू अगर तुम में ज़रा सी भी शरम बाकी है तो यहा से चले जाओ. और मुझे तुमसे कुछ नही सुन-ना. वैसे भी मुझे काफ़ी कुछ पता चल गया है. मेरा पीछा छ्चोड़ दो और यहा से दफ़ा हो जाओ.”

मंदिर मेरे फ्लॅट के नज़दीक ही था, इश्लीए तेज़ी से चल कर मैं अपने घर आ गयी. मुझे बहुत बुरा लग रहा था कि वो मेरे पीछे मंदिर तक आ गया. पता नही बिल्लू ऐसा क्यो कर रहा है ?

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रात के 11 बजने को है और मन बहुत बेचन हो रहा है. ये बेचानी सिधार्थ के कारण है. समझ नही आता की उसे कैसे सम्झाउ.

जैसे ही मैं मंदिर से आई थी सिधार्थ घर आ गया था.

“ऋतु मैं बिना बताए आ गया, तुम बुरा तो नही मानोगी” ---- सिधार्थ ने हंसते हुवे पूछा.

“नही कोई बात नही, बैठो मैं कॉफी बनाती हूँ” --- मैने कहा.

मैं खुद उस से मिलना चाहती थी. अब जब उसने पापा से बात कर ली थी तो उसे सब कुछ बताना ज़रूरी हो गया था.

“ऋतु, मैने कल तुम्हारे पापा से बात की थी, शायद उन्होने तुम्हे बताया होगा. वो तो तैयार है, अब बस तुम्हारे हाँ कहने की देर है, जो सपना हम पहले पूरा नही कर पाए थे वो अब कर सकते है. तुम बताओ, क्या मुझ से शादी करोगी” ? --- सिधार्थ ने कॉफी पीते हुवे पूछा.

“ह्म्म…. सिधार्थ आइ रेस्पेक्ट यू ए लॉट. यू आर रियल जेन्तल्मेन. एनी वोमेन वुड लव टू मॅरी यू. बट..” ---- मैने कहा

“बट क्या, वो वोमेन तुम क्यो नही हो सकती ? आख़िर तुम क्यो मुझ से शादी नही करना चाहती ? बहाना बना रही हो है ना, तुम्हे शायद अब मैं अछा नही लगता” ? --- सिधार्थ ने एमोशनल टोन में कहा.

“ऐसी बात नही है सिधार्थ, मेरी जींदगी उलझी हुई है, मैं तुम्हे कैसे सम्झाउ” ---- मैने कहा.

“मुझे मोका तो दो मैं तुम्हारी हर उलझन दूर कर दूँगा, पर ऐसे बहाना मत बनाओ. मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ और तुम मुझे सता रही हो” ---- सिधार्थ ने कहा.

“मैं तुम्हे सता नही रही हूँ सिधार्थ, मैं तुम्हे कैसे बताउ, अछा रूको मैं तुम्हे कुछ देती हूँ” --- मैने सिधार्थ से कहा.
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11-13-2018, 12:46 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
“क्या ऋतु” ? ---- सिधार्थ ने पूछा.

मैं अपने बेडरूम में गयी और अपनी डाइयरी ले आई. मैं सिधार्थ को अपने मूह से सब कुछ नही बता सकती थी. इश्लीए सिधार्थ को अपनी डाइयरी देने का फ़ैसला किया.

“ये लो सिधार्थ तुम इसे पढ़ लो, तुम खुद समझ जाओगे कि आज मैं किस हालात में हूँ” ---- मैने सिधार्थ को अपनी डाइयरी देते हुवे कहा.

“क्या है इस डाइयरी में ऋतु, तुम खुद क्यो नही बता देती” ? ---- सिधार्थ ने पूछा.

“तुम खुद पढ़ लो सिधार्थ, तब तक मैं लंच बनाती हूँ” ----- मैने कहा

“वाउ…. क्या तुम मुझे अपने हाथ का खाना खिलाओगी, आज तो मज़ा आ जाएगा, बहुत दीनो से मैने घर का खाना नही खाया, तुम्हे तो पता ही है, मैं भी तुम्हारी तरह यहा मुंबई में अकेला रह रहा हूँ, अक्सर बाहर ही खाना पड़ता है” ----- सिधार्थ ने मुश्कूराते हुवे कहा.

“हाँ सिधार्थ हम दोनो साथ लंच करेंगे. और हाँ इस डाइयरी में लीखी कहानी हो सकता है तुम्हे भद्दी लगे. दर-असल मैने कुछ नही छुपाया. जो कुछ भी मेरे साथ पीछले दीनो हुवा है सब कुछ सच सच लीख दिया है ” --- मैने कहा.

“ठीक है मैं पढ़ता हूँ तुम जल्दी से लंच बनाओ मैं खाना खाने के लिए मरा जा रहा हूँ” सिधार्थ ने कहा.

मैं किचन में खाना बनाने लगी और सिधार्थ मेरी डाइयरी पढ़ने में बिज़ी हो गया.

जैसे ही मैं लंच बना कर किचन से बाहर आई तो मैने देखा कि वो डाइयरी को एक तरफ रख कर चुपचाप बैठा है.

मैने पूछा “लंच तैयार है सिधार्थ क्या लंच करें”

“ऋतु ये सब कैसे हो गया, मुझे बिल्कुल विश्वास नही हो रहा. मैं समझ नही पा रहा हूँ कि कैसे रिक्ट करूँ” ---- सिधार्थ ने मेरी ओर देख कर कहा.

“लंच करते है सिधार्थ, मैं इस बारे में कोई बात नही कर पाउन्गि. हां इतना ज़रूर कहूँगी कि इस डाइयरी की एक एक बात सच है. सच के अलावा मैने इस में कुछ नही लीखा.” --- मैने कहा.

“ऋतु अछा किया तुमने मुझे ये डाइयरी दे दी. मेरे दिल में तुम्हारे लिए सम्मान और बढ़ गया है. मुझे अछा लगा कि तुमने संजय को सब कुछ सच सच बता दिया था. ” ---- सिधार्थ ने कहा.

“पर सच बताने में मैने देर कर दी थी सिधार्थ. ” ---- मैने सिधार्थ से कहा.

“ऋतु, अगर तुम सोचती हो कि इस डाइयरी में लीखी बाते हमारी शादी में रुकावट है तो तुम ग़लत हो. हां मुझे बुरा लगा, बल्कि बहुत बुरा लगा, पर जैसे जैसे मैं पढ़ता गया मुझे ये भी लगा कि तुम एक अछी इंशान हो जिसमे कि आछे बुरे की समझ बाकी है. तुम्हे अपनी ग़लती का अहसाश है, और क्या चाहिए. मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूँ. मुझे इस डाइयरी से कोई मतलब नही है. तुम इसमें आग लगा दो और सब कुछ भूल कर मेरी जींदगी में आ जाओ. हम दौनो नयी शुरूवात करते है” सिधार्थ ने कहा.

ऐसा लग रहा था जैसे की सिधार्थ मेरे प्यार में अँधा हो गया है

“ओह नो सिधार्थ ये डाइयरी तुम्हे देने का ये मतलब नही था. तुम समझते क्यो नही हो. मैं अभी बहुत उलझन में हूँ” ----- मैने कहा.

“ऋतु मैं तुम्हे अभी शादी करने को नही कह रहा हूँ. अब जब मैने ये डाइयरी पढ़ ली है तो मैं समझ सकता हूँ. तुम आराम से अपने काम पर ध्यान दा. और रही उस बिल्लू की बात मुझे दिखाओ कि वो कौन है, उसकी अकल मैं ठीकाने लगाता हूँ” ------ सिधार्थ ने कहा.

मैने अपने फ्लॅट की सड़क की तरफ वाली खिड़की से बाहर झाँक कर देखा. पर बिल्लू वाहा नही दीखा.

“अभी वो यहा नही है. पर जब भी मैं सुबह ऑफीस जाती हूँ और जब शाम को वापस आती हूँ तो वो आजकल मेरे फ्लॅट के सामने सड़क पर मिलता है” ---- मैने कहा

“तुम चिंता मत करो मैं कल सुबह 9 बजे आ जाउन्गा. तुम कंपनी की कार में मत जाना, हम साथ चलेंगे, ठीक है. मैं देखना चाहता हूँ कि ये बिल्लू आख़िर क्या बला है” --- सिधार्थ ने कहा.

फिर हम दोनो ने लंच किया.

लंच करने के बाद सिधार्थ ने कहा, “तुम सोच लो ऋतु, तुम्हारे पास बहुत वक्त है, पर मैं शादी तुम से ही करूँगा, आइ लव यू फ्रॉम दा बॉटम ऑफ माइ हार्ट. बड़े से बड़ा तूफान भी मेरे प्यार को नही हिला सकता. ये तुम्हारी डाइयरी भी नही. आइ विल वेट फॉर यू. अब मैं चलता हूँ, किसी क्लाइंट के पास जाना है. कल सुबह मिलते है ठीक है”
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11-13-2018, 12:46 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
उसकी बात सुन कर मेरी आँखो में आंशू आने को हो गये. पर मैने खुद को थाम लिया. पता नही सिधार्थ मुझे इतना प्यार क्यो करता है. मुझे यकीन नही था कि वो ये डाइयरी पढ़ कर भी ऐसी बात कहेगा. यही कारण है कि मैं बेचन हूँ. अब सिधार्थ को मैं कैसे मना करूँगी, समझ नही पा रही हूँ.

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डेट : 9-02-09 11:30 पीयेम

आज बहुत बड़े राज से परदा खुल गया

आज सुबह सुबह अलार्म की बजाए मुझे दीप्ति के फोन ने उठाया.

सुबह 7 बजे मेरा फोन बज उठा.

“दीप्ति …., क्या बात है, इतनी सुबह क्यो फोन किया” ---- मैने हैरानी में पूछा

“ऋतु बहुत बड़ी बात पता चली है, अभी अभी मनीष का फोन आया था. सारी गुथि सुलझती नज़र आ रही है” ---- दीप्ति ने कहा.

मैं झट से अपने बेड पर बैठ गयी और कहा, “अछा, जल्दी बताओ क्या पता चला है”

“ये सारी कहानी एक ही नाम पर जा कर रुक गयी है, वो है कविता” ---- दीप्ति ने कहा

“ कविता … कौन कविता, अब ये कविता कहा से आ गयी” --- मैने पूछा

“संजय के क्लिनिक में नर्स थी वो, तुम तो उसे जानती होगी” ---- दीप्ति ने पूछा

“ओह हां…. याद आया… तुम उस कविता की बात कर रही हो. बहुत अछी और सारीफ़ लड़की थी. एक बार चिंटू के बर्तडे पर घर भी आई थी. मेरी उस से अछी बोल चाल थी. पर वो तो कोई 2 साल पहले क्लिनिक छ्चोड़ कर चली गयी थी”

“शी ईज़ मिस्सिंग ऋतु, 2 साल से वो गायब है, उसके साथ क्या हुवा, वो अब कहा है, जींदा है भी या नही …किसी को नही पता” ??? ---- दीप्ति ने कहा.

“ओह्ह मुझे इस बारे में नही पता था, एक बार जब में क्लिनिक गयी थी तो संजय से पूछा था कि कविता कहा है, उन्होने तो यही कहा था कि वो वाहा से काम छ्चोड़ कर चली गयी” --- मैने कहा

“संजय तो यही कहेगा, क्योंकि हो सकता है कि कविता के गायब होने में उसका हाथ हो, मनीष को इस बारे में शक है. हां पर विवेक का इसमें पक्का हाथ है” ---- दीप्ति ने कहा

“पर मेरे साथ जो कुछ हुवा, उस से कविता का क्या लेना देना दीप्ति” --- मैने हैरानी में पूछा.

“बिल्लू कविता का छोटा भाई है ऋतु. और ये पता चला है कि वो 2 साल से अपनी सिस्टर को ढूंड रहा है. बहुत प्यार करता है वो कविता को. उशके मा बाप के मरने के बाद कविता ने ही उसे पाला है. पोलीस कुछ नही कर रही. या फिर ये समझ लो कि किसी के दबाव के कारण पोलीस कुछ करना नही चाहती. मनीष बिल्लू के देल्ही वाले घर गया था. वाहा पता चला है कि बिल्लू तो बहुत सरीफ़ और नेक लड़का है”

“बस-बस मुझे पता है वो कितना नेक है, हां पर कविता के लिए मुझे दुख है, बहुत मेहनती थी वो. मैं जब भी क्लिनिक जाती थी उसे काम करते हुवे ही पाती थी. संजय भी उसकी काफ़ी तारीफ़ करते थे, कहते थे कि कविता ने अकेले ही काफ़ी काम संभाल रखा है” ---- मैने दीप्ति से कहा.

“कविता के ही कारण मनीष पर उस दिन जान लेवा हमला हुवा था. मुझे यकीन है कि संजय और विवेक नही चाहते कि किसी को पता चले कि कविता के गायब होने में उनका हाथ है. वो हमला उन दौनो ने ही करवाया होगा” ----- दीप्ति ने कहा

“संजय ऐसा नही करेंगे, हां विवेक कुछ भी कर सकता है. पर वो तो मर गया होगा. मैने खुद उसे गोली मारी थी.” ---- मैने कहा.

“इस बारे में मुझे नही पता. पर इतना ज़रूर सॉफ हो गया है कि बिल्लू कविता के कारण ही तुम्हारे पीछे पड़ा था. शायद उसे शक होगा कि कविता के गायब होने में संजय का हाथ है” ---- दीप्ति ने कहा.

“इस से उसका गुनाह कम नही हो जाता” --- मैने कहा.

“वो तो ठीक है ऋतु, मैं तो बस बिल्लू का मोटिव बता रही थी. पर यार मनीष अब कविता के केस पर लग गया है. हे ईज़ टेकिंग इट पर्सनली नाउ, वो समझ ही नही रहा है कि इस में उसकी जान को ख़तरा है, मुझे डर लग रहा है” ----- दीप्ति ने कहा

“दीप्ति लगता है वो ज़िद्दी है. तुम बस उसे ये समझाओ कि अपना ख्याल रखे. मुझे नही लगता कि उसे समझाने का कोई फाय्दा होगा. और तुम डरो मत अब तो वो बिल्कुल ठीक है, है ना”

“कहा ठीक है, लड़खड़ा कर चलता है अभी भी, पर चलो, अब मैं चलती हूँ, मुझे ऑफीस के लिए भी तैयार होना है” ---- दीप्ति ने कहा

“ओह्ह… मैं भी लेट हो रही हूँ, बाइ फिर फ़ुर्सत में बात करेंगे” --- मैने कहा

मैने जल्दी से फ्रेश हो कर ब्रेकफास्ट किया और ऑफीस के लिए तैयार हो गयी. पर हर पल मेरे मन में दीप्ति की कही बातें घूम रही थी.

मैने खिड़की से बाहर झाँक कर देखा, वाहा कोई नही था. मैने सोचा कि शायद बिल्लू थोड़ी देर में आने वाला होगा.

ठीक 9 बजे सिधार्थ ने डोर बेल बजाई.

जैसे ही मैने दरवाजा खोला उसने पूछा, “ बाहर सड़क पर तो कोई नही है, ये डाइयरी तुम्हारी कोई फिक्षन स्टोरी तो नही है”

नही सिधार्थ बिल्लू रोज सुबह सड़क पर खड़ा मिलता है. आज शायद वो नही आया. फिर मैने सिधार्थ को सुबह वाली बात बता दी. मैने उसे वो सब कुछ बता दिया जो कि दीप्ति ने मुझे बताया था.

“ह्म्म…..वेरी सॅड… बट स्टिल, बिल्लू ईज़ ए क्रिमिनल” ---- सिधार्थ ने कहा.

“हां में भी यही सोचती हूँ” ---- मैने कहा

जैसे ही मैं अपने घर से सिधार्थ के साथ निकली मेरी आँखे चारो तरफ बिल्लू को ही ढूंड रही थी. मैं उस से मिलना तो नही चाहती थी, हां पर ये ज़रूर सोच रही थी कि आख़िर वो आज यहा क्यों नही आया.

“बिल्लू को ही ढूंड रही हो, है ना” ? ---- सिधार्थ ने एमोशनल टोन में पूछा

मैने उसकी और देखा और बोली, “मैं हैरान हूँ कि आज वो क्यो नही आया”

“अछा ही तो है, उस से अब तुम्हे क्या मतलब, भाड़ में जाए वो” ---- सिधार्थ ने थोड़ा गुस्से में कहा

में समझ गयी कि सिधार्थ को हर्ट हुवा है. मैं चुपचाप उसकी कार में बैठ गयी और यहा वाहा देखना बंद कर दिया.

कितनी अजीब बात है, कयि बार हम ऐसी हरकते कर जाते है क़ि हमें भी नही पता चलता कि हम क्यो कर रहे है. दर-असल सुबह दीप्ति से बात करने के बाद मैं बिल्लू से एक बार मिलना चाहती थी. यही कारण था कि मैं सुबह उसे सड़क पर ना पा कर हैरान हो रही थी. सिधार्थ को ये बात बुरी लगनी ही थी. वो मुझे प्यार जो करता है.
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11-13-2018, 12:46 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
सारा दिन ऑफीस में बड़ा ही मुश्किल बीता. मन कर रहा था कि अभी घर चली जाउ, बिल्लू ज़रूर मेरे फ्लॅट के आस पास ही होगा. एक एक पल मेरा बड़ी मुश्किल से बीत रहा था. कविता का चेहरा भी बार बार मेरे मन में घूम रहा था. मैं ये भी सोच रही थी कि अगर बिल्लू इतना नेक है तो मेरे साथ इतनी घिनोनी हरकत क्यो की उसने. जो भी हो, मैं एक बार बिल्लू से मिलना चाहती थी.

मैने लंच टाइम में अपने ऑफीस के बाहर भी देखा, पर वो वाहा भी नज़र नही आया. मैने सोचा कि हो सकता है वो देल्ही चला गया हो. फिर ख्याल आया कि शाम को घर जाते वक्त वो ज़रूर सड़क पर मिल जाएगा.

इसी उधेड़बुन में मेरा हर पल बीत रहा था.

5:30 बजे में झट से सभी काम निपटा कर घर के लिए निकल पड़ी. बहुत बेचन थी मैं घर पहुँचने के लिए.

मेरा घर आ गया पर बिल्लू कही नज़र नही आ रहा था. मैने कार से उतर कर चारो और नज़र दौड़ाई पर दूर दूर तक मुझे बिल्लू की परछाई तक नही दीखी. मैने मन ही मन सोचा कहा चला गया आज वो ?

ड्राइवर ने पूछा, “मेडम किशी को ढूंड रहे हो क्या:”

“नही तुम जाओ और कल टाइम पर आ जाना” ---- मैने ड्राइवर से कहा.

मैं तेज़ी से अपने फ्लॅट की तरफ चल पड़ी. चलते चलते सोच रही थी कि ज़रूर बिल्लू ने आज भी कोई चिट छ्चोड़ी होगी

पर आज कोई चिट नही थी

“बिल्लू कहा गया, क्या वो वापस देल्ही चला गया, वैसे वो कह तो रहा था कि मेरी फाइनान्षियल पोज़िशन ठीक नही है, मैं यहा ज़्यादा देर नही ठहर सकता” ------- यही सब मेरे दीमाग में घूम रहा था.

फिर मुझे ख्याल आया कि गेट वे ऑफ इंडिया पर जाकर देखती हूँ, वो ज़रूर वही होगा.

सिधार्थ ने मुझे बताया था कि गेट वे ऑफ इंडिया तुम्हारे घर से वॉकिंग डिस्टेन्स पर है

मैने झट से घर को लॉक किया और पैदल ही लोगो से पूछते पूछते गेट वे ऑफ इंडिया की तरफ चल पड़ी.

और जैसा क़ि मुझे लग रहा था, बिल्लू मुझे वही मिला. वो गेट वे ऑफ इंडिया के पास जो समुंदर के चारो और दीवार बनी है उस से सॅट कर खड़ा था.

उसका चेहरा समुंदर की ओर था और ऐसा लग रहा था जैसे कि वो गहरे विचारो में खोया है.

मैं उशके करीब आ गयी. पर वो जैसे एक मूर्ति की तरह खड़ा था और एक तक समुंदर को देखे जा रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे की उसे होश ही नही है कि उसके आस पास क्या हो रहा है.

मैं बिल्कुल उशके पीछे खड़ी थी. समझ नही पा रही थी कि उसे कैसे बुलाउ.

“बिल्लू, कविता के बारें में सुन कर दुख हुवा” ---- मैने धीरे से कहा.

पर बिल्लू के शरीर में कोई हरकत नही हुई. वो वैसे ही मूर्ति की तरह वाहा खड़ा रहा

मैने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, “बिल्लू मुझे कविता के लिए दुख है”

वो धीरे से मेरी और घुमा और मैने उसकी आँखो में आंशू देखे. यकीन ही नही हो रहा था कि बिल्लू रो भी सकता है. उसकी आँखो में आंशु देख कर मेरी आँखे भी नम हो गयी.

वो मेरे गले लग गया और फूट फूट कर रोने लगा और बोला, “ पता नही कहा गायब कर दिया मेरी दीदी को कमिनो ने ऋतु”

मैं भी भावुक हो गयी. मैने उसे रोकने की कोशिस नही की. बिल्लू आज एक बच्चा लग रहा था. मैं सोच भी नही सकती थी कि वो इस तरह रो सकता है.

मैं उसे चाह कर भी अपने सीने से नही हटा पाई. चारो और लोग हमें ही देख रहे थे. तभी मैने दूर से सिधार्थ को आते देखा. मैं सिधार्थ को देख कर हड़बड़ा गयी. सोच रही थी कि पता नही वो क्या सोचेगा मुझे बिल्लू के साथ ऐसी हालत में देख कर.

मैने बिल्लू से कहा, बिल्लू बस हट जाओ, लोग हमें ही देख रहे है

मैने उसके कंधो को पकड़ा और उसे दूर हटाने की कोशिस की पर तभी वो मेरे हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर गया.

“बिल्लू उठो….. क्या हो गया तुम्हे” ---- मैने बिल्लू को हिलाते हुवे कहा

तभी सिधार्थ भी वाहा आ गया.

“क्या हुवा इसे ऋतु” ---- सिधार्थ ने पूछा

पता नही सिधार्थ अभी मेरे गले लग कर बहुत रो रहा था, अचानक नीचे गिर गया

“ओह्ह ये बेहोश हो गया है. इसे हॉस्पिटल ले चलते है, हटो मैं इसे उठाता हूँ” ---- सिधार्थ ने मुझे बिल्लू के उपर से हटाते हुवे कहा.

सिधार्थ ने बिल्लू को अपने दौनो हाथो में उठा लिया और उठा कर अपनी कार की तरफ चल दिया और बोला, “जल्दी चलो ऋतु सोचने का वक्त नही है, पता नही इसे क्या हुवा है”

मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या हो रहा है. पर ये सच था कि मैं बिल्लू के लिए बहुत परेशान थी. ऐसा क्यों था. इसका मेरे पास कोई जवाब नही है.

सिधार्थ ने बिल्लू को कार की पिछली शीट पर लेटा दिया और हम दौनो आगे बैठ गये.

“क्या कह रहा था बिल्लू” --- सिधार्थ ने पूछा

“कुछ नही उसने बस एक ही बात कही कि ‘पता नही कहा गायब कर दिया मेरी दीदी को कमिनो ने ऋतु’ और फिर फूट फूट कर रोने लगा” --- मैने सिधार्थ से कहा

“ह्म्म…… लगता है किसी गहरे शॉक में है वो” --- सिधार्थ ने कहा

“हां होगा ही सिधार्थ, उसकी दीदी गायब है 2 साल से” ---- मैने कहा

जल्दी ही सिधार्थ ने कार एक क्लिनिक के बाहर रोक दी.

सिधार्थ ने झट से बिल्लू को कार से बाहर निकाला और उसे उठा कर सीधा क्लिनिक में घुस्स गया.

पता नही सिधार्थ ये सब क्यो कर रहा था. पर इतना ज़रूर था कि इस से ये बात साबित हो रही थी कि सिधार्थ बहुत अछा इंशान है. क्योंकि वो उस लड़के की मदद कर रहा था जिसके कारण वो सुबह हर्ट हुवा था.

डॉक्टर ने बिल्लू को ग्लूकोस चढ़ाया और चेक करने के बाद कहा.

“लगता है कोई बहुत गहरा मेंटल शॉक लगा है इसे. पर इसे खाना तो ठीक से खिलाया करो आप लोग. लगता है 2-3 दिन से इसने कुछ नही खाया है” ---- डॉक्टर ने कहा

मैने मन ही मन में सोचा “ओह्ह गॉड क्या बिल्लू की फाइनान्षियल पोज़िशन इतनी खराब थी कि उसके पास खाने तक को पैसे नही थे”. और मेरी आँखो में आंशु भर आए. कैसी अजीब बात हो रही थी. मैं उस बिल्लू के लिए आंशु बहा रही थी जिसने मुझे बर्बाद किया था. जींदगी भी अजीब खेल खेलती है.

क्रमशः........................
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11-13-2018, 12:47 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
गतांक से आगे ...................

ऐसा नही था कि बिल्लू से मेरी नाराज़गी दूर हो गयी थी, और ना ही ऐसा था कि मैने उसे माफ़ कर दिया था, पर फिर भी एक इंशान होने के नाते मैं बिल्लू के लिए परेशान थी.चाहे उसने मुझे बर्बाद किया हो पर फिर भी उसका मुझ से कोई ना कोई संबंध तो था ही.

बिल्लू को थोड़ी ही देर में होश आ गया. वो हड़बड़ा कर एक दम से उठ गया और बोला, “मैं कहा हूँ”

मैं वही उसके करीब ही थी, सिधार्थ भी मेरे साथ ही खड़ा था.

मैने कहा, “बिल्लू तुम बेहोश हो गये थे, अभी तुम क्लिनिक में हो, चिंता मत करो सब ठीक है”

“कुछ ठीक नही है ऋतु, मुझे तुमसे अकेले में बात करनी है” ------- बिल्लू ने मेरी ओर देख कर कहा.

सिधार्थ ने मेरी और देखा और मैने उसे आँखो ही आँखो में वाहा से बाहर जाने की रिक्वेस्ट की.

सिधार्थ मेरा इशारा समझ गया, और बाहर चला गया. बहुत ही अजीब पल था वो मेरे लिए. सोच रही थी कि कही सिधार्थ को बुरा ना फील हो की मैं बिल्लू से बात क्यो करना चाहती हूँ. पर पता नही क्यो मैं बिल्लू की बात सुन-ना चाहती थी

सिधार्थ के जाने के बाद बिल्लू बोला, “

बैठ जाओ ऋतु”

पहले तुम कुछ खा लो बिल्लू डॉक्टर कह रहा था कि तुमने 2-3 दिन से कुछ नही खाया, क्या तुम्हारी फाइनान्षियल पोज़िशन इतनी खराब है

मेरी बात सुन कर वो थोड़ी देर तक मेरी और देखता रहा, जैसे की मेरे चेहरे पर कुछ पढ़ रहा हो.

मैने उशे ध्यान से देखा तो पाया कि उसकी आँखे नम थी. वो नम आँखे लिए मुझे देखे जा रहा था.

वो बोला, “क्या तुम्हे मेरी चिंता हो रही है ऋतु, ऐसा मत करो मैं इस लायक नही हूँ”

“नही ऐसी बात नही है, डॉक्टर कह रहा था कि तुमने कुछ दीनो से कुछ नही खाया इश्लीए कह रही थी” ---- मैने कहा

“फाइनान्षियल पोज़िशन इतनी भी खराब नही है. कल जब तुमने मंदिर के बाहर मुझे यहा से दफ़ा हो जाने को कहा तो मेरी उमीद टूट गयी. लग रहा था कि तुमसे मिले बिना ही यहा से जाना पड़ेगा. इश्लीए कल मेरा कुछ खाने का मन नही हुवा. और आज इश्लीए नही खा पाया क्योंकि आज मेरी दीदी कविता का बिर्थडे है और मुझे कुछ नही पता कि वो कहा है, किस हाल में है, इस दुनिया में है भी या नही. ऐसी हालत में कोई कैसे खाना खाएगा ऋतु. मैं एक भाई का फ़र्ज़ नीभाने में नाकाम रहा हूँ.” ---- बिल्लू ने एमोटिनल हो कर कहा.

“बिल्लू मैं समझ रही हूँ, पहले तुम खाना खा लो फिर बात करेंगे, मैं तुम्हारी बात सुन-ने के लिए तैयार हूँ” ----- मैने कहा

“नही ऋतु तुम्हे सब कुछ बताए बिना एक नीवाला भी मेरे मूह से नही उतरेगा, पहले मेरी बात सुन लो, खाना पीना तो होता रहेगा” ------ बिल्लू मेरी और देख कर बोला

“चलो ठीक है, शुनाओ मैं शुन रही हूँ” --- मैने कहा

“पहले ये बताओ कैसी हो तुम” ------- बिल्लू ने मेरी ओर देख कर पूछा

“कैसी लग रही हूँ बिल्लू………….. बस जी रही हूँ, वरना तो अब बचा ही क्या है” ---- मैने भावुक हो कर कहा.

“समझ सकता हूँ, पीछले 2 साल से मेरी भी यही हालत है” ------- बिल्लू ने कहा

“इश्लीए तुमने मेरी भी यही हालत कर दी”

? ----- मैने पूछा

“हालात ही कुछ ऐसे थे ऋतु, वरना आज तक मैने किसी को नुकसान नही पहुँचाया, सुनो मैं तुम्हे पूरी बात डीटेल में बताता हूँ.” ----- बिल्लू ने कहा

मैने कहा, “हां सुनाओ मैं जान-ना चाहती हूँ कि मेरी बर्बादी का क्या कारण है”

बिल्लू के शब्दो में :-----

ऋतु, मेरी दीदी कविता मेरे लिए सब कुछ थी. मेरे पेरेंट्स कोई 10 साल पहले एक आक्सिडेंट में मारे गये थे. उसके बाद मेरी दीदी कविता ने ही मुझे पाल पोश कर इतना बड़ा किया है. वो कोई तुमसे 3 साल बड़ी होंगी.

दीदी ने जब 2005 में फरीदाबाद में संजय के क्लिनिक में जाय्न किया था तो वो काफ़ी खुस थी. पर में उनके साथ फरीदाबाद नही आ सकता था. तब मैं बी.कॉम सेकेंड एअर में था. इश्लीए देल्ही में ही रहता था. पर कभी कभी दीदी से मिलने आ जाता था.

सब कुछ अछा चल रहा था. मैं दीदी के लिए कोई लड़का ढूंड रहा था. वैसे वो हमेशा कहती थी कि तुम चिंता मत करो अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, मैं खुद सब कुछ संभाल लूँगी. पर मैं ये आछे से जानता था कि उन्हे मेरे कारण अपनी शादी की चिंता नही है.

खैर मैने दीदी के लिए एक लड़का ढूंड ही लिया. लड़का सारीफ़ था और उसके घर वालो की कोई डिमॅंड भी नही थी. हमारी हालत वैसे भी ऐसी नही थी कि ज़्यादा दहेज दे सकें. लड़का सेट्ल था, और बॅंक में पी.ओ था.

मैने 2-02-2007 की सुबह को दीदी को फोन करके बताया कि आप छुट्टी ले कर देल्ही आ जाओ, मैने एक लड़का पसंद किया है, लड़के वाले आपको देखना चाहते है.

पहले तो उन्होने मुझे डांटा की अपनी पढ़ाई छ्चोड़ कर बेकार के काम में क्यों लगे हो, पर फिर वो देल्ही आने के लिए मान गयी और मुझे कहा, “ लगता है, अब तुम बड़े हो गये हो”

ये बोल मुझे अभी तक याद है क्योंकि उसके बाद आज तक मैं दीदी की आवाज़ के लिए तरस रहा हूँ. हर पल लगता है कि अभी फोन बजेगा, अभी कोई आहट होगी और दीदी मुझे कहेगी, “बिल्लू तुम पढ़ाई क्यों नही कर रहे”

3-2-07…को मैं सारा दिन बेचैन रहा. सुबह से दोपहर हुई और दोपहर से शाम, लड़के वाले बहुत देर तक बैठ कर चले गये. जाते जाते कह गये, “कोई बात नही बेटा, हम फिर कभी आ जाएँगे”

मैं दीदी का मोबाइल नंबर. ट्राइ कर-कर के थक गया. हर बार उनका मोबाइल स्विच्ड ऑफ आ रहा था.मुझे लग रहा था कि कुछ ना कुछ गड़बड़ है, वरना दीदी कभी अपना मोबाइल ऑफ नही रखती है.

शाम के कोई 6 बजे मैने फरीदाबाद जाने का फ़ैसला किया. एक घंटा तो देल्ही के आइएसबीटी पहुँचने में ही लग गया. मैं कोई 9 बजे फरीदाबाद पहुँच गया और सीधा वाहा पहुँच गया जहा दीदी पेयिंग गेस्ट थी. पर वाहा मुझे लॉक मिला. मैने आस पास के लोगो से पूछा तो उन्होने बताया कि उन्होने कल से कविता को नही देखा. एक लेडी ने ये भी बताया कि कल से वो वाहा आई ही नही थी.

फिर मैने दीदी के क्लिनिक मतलब कि संजय के क्लिनिक जाने का फ़ैसला किया.
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11-13-2018, 12:47 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
फिर मैने दीदी के क्लिनिक मतलब कि संजय के क्लिनिक जाने का फ़ैसला किया.

क्लिनिक पहुँच कर मैने संजय से पूछा, “डॉक्टर मेरी सिस्टर कविता कहा है” ?

उसने मुझे घूर कर देखा और बोला, “वो तो यहा से काम छ्चोड़ कर चली गयी, मुझे नही पता वो कहा है”

ये सुन कर मैं हैरान रह गया. मैं सोच रहा था कि, दीदी ने तो ऐसा कुछ नही बताया, अभी कल ही तो उनसे मेरी बात हुई थी.

मैं मायूसी भरा चेहरा लेकर क्लिनिक से बाहर आ गया.

तभी मुझे याद आया कि दीदी अक्सर किसी वीना जोसेफ के बारे में बात करती थी. वीना जोसेफ ने दीदी को नर्सिंग फील्ड में काफ़ी प्रॅक्टिकल टिप्स दी थी.

मैं फिर से क्लिनिक में घुस्स गया और एक नर्स से पूछा “क्या आप वीना जोसेफ को जानती है” ?

उसने मुझे हाथ से इशारा किया कि वो सामने वीना जोसेफ ही खड़ी है.

मैं वीना जोसेफ के पास गया और उनसे पूछा कि मेरी दीदी कविता कहा है.

उन्होने मुझे धीरे से कहा कि क्लिनिक के बाहर वेट करो में बाहर आती हूँ.

मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो ऐसा क्यो कह रही है

मैं क्लिनिक के बाहर आ गया और थोड़ी देर में वीना जोसेफ भी आ गयी. रह रह कर मुझे दीदी की चिंता हो रही थी. यही सोच रहा था कि आख़िर वो कहा है.

वीना जोसेफ ने मुझे बताया, “बेटा कल कविता शाम को संजय के कॅबिन में गयी थी. कह रही थी कि एक दिन की छुट्टी माँगने जा रही हूँ. पर जब वो बाहर निकली तो उसकी आँखो में आंशु थे. वो बिना किसी से कुछ कहे क्लिनिक से निकल गयी. उशके पीछे पीछे मैने संजय के दोस्त विवेक को जाते देखा. बस इतना ही मुझे पता है. आज वो क्लिनिक नही आई. मैने डॉक्टर से पूछा तो उन्होने मुझे यही बताया कि वो काम छ्चोड़ कर चली गयी. वैसे कविता यहा कुछ दीनो से परेशान थी. ये विवेक अक्सर उसके साथ छेड़-छाड़ करता था. कयि बार मैने खुद अपनी आँखो से उसे कविता को छेड़ते देखा है. पर कल ज़रूर कुछ ज़्यादा हुवा होगा, इश्लीए उसकी आँखो में आन्शु थे.

ये सुन कर मेरा दिल बैठ गया, मैं सोच भी नही सकता था कि दीदी के साथ ऐसा होगा

मैने पूछा, “क्या जब कविता बाहर आई थी, तब डॉक्टर संजय भी अंदर थे”

वीना जोसेफ ने बताया, “ हां . संजय अंदर ही थे”

ये सुनते ही मेरी रागो में खून दौड़ गया. मैं भाग कर संजय के कॅबिन में घुस्स गया और उसे इतना मारा कि उसके मूह से खून निकलने लगा. पर तभी ना जाने कहा से विवेक भी वाहा आ गया और दौनो ने मुझे काबू कर लिया. मैं फिर भी उन्हे संभाल लेता पर विवेक के पास पिस्टल थी.

“कौन है ये संजय” --- विवेक ने पूछा.

“ये कविता का भाई है विवेक, तू इस पर निशाना लगा कर रख मैं इसे बताता हूँ कि कैसे किसी को मारा जाता है” ------- संजय ने विवेक से कहा

संजय ने मेरे पेट में, मूह पर… हर तरफ घूससों की बोछर कर दी

मैं गिर गया, क्या करता वैसे भी विवेक ने मेरे उपर बंदूक तान रखी थी

“ओह्ह हां याद आया मेरा मोबाइल कहा है, इसे ऐसी मौत दूँगा कि तड़प तड़प कर मरेगा साला हरामी, मुझ पर हाथ उठाएगा” ---- संजय ने कहा

संजय ने मेरी आँखो के आगे अपना मोबाइल किया. उसमे एक मूवी क्लिप चल रही थी.

पता है ऋतु उस क्लिप में क्या था.

बिल्लू थोड़ी देर चुप हो गया और मैने देखा कि वो रो रहा है.

मैने पूछा “क्या था बिल्लू बताओ मैं सुन रही हूँ”

मेरी दीदी रो रही थी और रोते-रोते ज़ोर ज़ोर से चील्ला रही थी और विवेक उसके साथ रेप कर रहा था. मुझ से देखा नही गया मैने अपनी आँखे बंद कर ली. पर तभी मेरे सर पर संजय ने कुर्सी दे मारी और मैं ज़मीन पर गिर गया.

तब संजय ने मेरे सर के बॉल पकड़ कर खींचे और अपने मोबाइल को मेरी आँखो के सामने ले आया और बोला, “देख साले क्या हॉट माल है तेरी बहन, क्या मज़े से चील्ला चील्ला कर दे रही है”

मेरी दीदी रो रही थी, और विवेक उसके साथ…..

“बस बिल्लू….. बस करो, मैं और नही सुन पाउन्गि” ---- मैने अपने कानो पर हाथ रख कर कहा.

ऋतु मेरी दीदी के साथ कोई 4 लोग रेप कर रहे थे और मुझे ज़बरदस्ती सब कुछ देखाया गया. संजय और विवेक को तो मैं जानता हूँ, बाकी के 2 लोगो का मुझे नही पता कि वो कौन थे. और पता है जगह कौन सी थी.

“कौन सी बिल्लू” ----- मैने पूछा.

“तुम्हारा बेडरूम ऋतु, वही बेडरूम जहा उस दिन में तुम्हे अपनी बाहों में उठा कर ले गया था. तुम्हारा बेडरूम देखते ही मैं पहचान गया था कि ये वही मोबाइल क्लिप वाली जगह है” --- बिल्लू ने कहा

मैने कहा “ओह याद आया उन दीनो मैं शायद अपने मायके में थी, मतलब कि देल्ही में थी, पर क्या संजय ने भी…”

“कह तो रहा हूँ, वाहा 4 लोग थे संजय उनमे से एक था” ------- बिल्लू ने मेरी ओर देख कर कहा.

“ओह गॉड….. मुझे विश्वास नही होता” ---- मैने कहा

“यही वो वजह थी जिसके कारण मैने उस दिन संजय को वाहा खिड़की पर बुलाया और अपने पीछे अशोक और राजू को खड़ा कर लिया. अशोक और राजू तुम्हारे लिए वाहा नही थे ऋतु, वो संजय को दीखाने के लिए थे. मैं उसे दीखाना चाहता था कि देखो कैसा लगता है किसी अपने को ऐसी हालत में देख कर” ---- बिल्लू ने कहा

“पर क्या तुम्हे मेरी कोई चिंता नही थी, तुमने एक पल को भी नही सोचा कि मेरा क्या होगा” --- मैने बिल्लू की ओर देख कर पूछा
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