Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 03:59 PM,
#51
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
जहाँ ज्योति इस बात से खुश थी कि उसको जो चाहिए उसकी तरफ बढ़ता उसका पहला कदम कामयाब रहा है, वहीं शीना और रिकी परेशान थे, शीना और रिकी एक दूसरे के साथ वक़्त बिताना चाहते थे, लेकिन वो हो नहीं पा रहा था, और अब शीना यह भी नहीं कह सकती थी के वो भी उन दोनो को जाय्न करे, क्यूँ कि ऐसे कहने से अमर को दिख जाता कि शीना जान बुझ के ज्योति के प्लान में टाँग अड़ा रही है.. इसलिए अब उन्हे कुछ और सोचना होगा.. लेकिन वो जानते थे इसका कोई रास्ता नहीं है शायद, इसलिए दोनो चुपचाप नाश्ता कर रहे थे और एक दूसरे को देख रहे थे

मानो कि दोनो के दिल में एक ही बात चल रही हो... धीरे धीरे सब लोग नाश्ता करके अपने अपने काम में लग गये, अमर और राजवीर फाइनली महाबालेश्वर के लिए निकल गये ज़मीन देखने..

स्नेहा अभी भी शॉक में थी, लेकिन उसने अपने एक्सप्रेशन्स पे कंट्रोल रखा हुआ था और चुप चाप अपने कमरे के लिए निकल गयी.. ज्योति भी थोड़ी देर में उठ गयी



"भैया, मैं तब तक वेन्यू देखती हूँ कि हम कहाँ जाएँगे.. आंड हे शीना, तुम भी चलो ना साथ, मज़ा आएगा.." ज्योति ने दोनो के पास खड़े रहके कहा



"अरे नो नो, थ्ट्स ओके, यू गाइस कॅरी ऑन.. आइ डोंट वॉंट टू बी आ पार्टी पूपर.. आंड भाई और मैं तो घूमते रहते हैं, तुम लोग जाओ, आइ विल स्टे बॅक आंड रिज़ॉर्ट के लिए कुछ कर लूँगी, आफ्टर ऑल दिस ईज़ माइ लाइफ टाइम ऑपर्चुनिटी.." शीना ने कुछ सोच के जवाब दिया, वो जानती थी कि भले ज्योति ने यह पूछा लेकिन वो भी नहीं चाहती थी कि शीना उन्हे जाय्न करे, अगर शीना उन्हे जाय्न करती तो ज्योति इतनी चालाक है के किसी तरह वो शीना से ही कुछ देर में ना बुलवा देती.. इसलिए शीना ने उसे ना करके अच्छा ही किया, और ज्योति को रिज़ॉर्ट वाली बात बोलके फिर उसने ज्योति को यह एहसास दिलाया कि उसने क्या खोया है... शीना का जवाब सुन ज्योति हल्के से मुस्कुराइ, और वहाँ से बिना कुछ बोले निकल गयी



"आप जानते हो, मैने सोचा था हम बहामास जाएँगे और मज़े करेंगे, पर यह देखो.. बीच में आई कूद के , आइ म जस्ट हेटिंग हर नाउ.." शीना ने रिकी से फुसफुसाके उसके कान में कहा



"ना ना, डोंट डू तट.., तुम अपनी नफ़रत या तो ख़तम कर दो या तो उसे बाहर नहीं निकलना... अगर बाहर निकलोगि तो उसमे भी तुम ही दोषी निकलोगी, आइ मीन तुमने देखा ना उसने अपनी बात कैसे मनवा ली पापा से, अब अगर वो ऐसा कर सकती है, तो सोचो तुम्हे ग़लत साबित करने में उसको कितना टाइम लगेगा..." रिकी ने शांति से शीना को कहा और उसे अपने हाथ से पानी पिलाने लगा..



"उम्म्म, क्या बात है, अपने हाथ से पिला रहे हो पानी..ज्योति की वजह से कुछ तो फ़ायदा हुआ मुझे.." शीना ने रिकी के हाथ को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन रिकी ने उससे हाथ छुड़वा के उसको इशारा किया जगह का और दोनो फिर नाश्ता करने लगे



"लेकिन भाई, अब क्या करें, उसको मना कैसे करोगे.." शीना ने फिर रिकी से कहा



"उम्म्म... सोचना पड़ेगा, बट आइ डोंट थिंक यह आसान होगा, मतलब मैं फिलहाल तो फ्री ही हूँ, तो ऐसा कोई बहाना नहीं कर सकता, और तुम जानती हो कि रिज़ॉर्ट में वो इन्वॉल्व्ड नहीं है जब कि पापा वोही चाहते थे, इसलिए उसे इस बात का दुख है, और अगर अब मैं मना करूँगा तो फिर उसे और बुरा लगेगा.." रिकी ने इतना ही कहा के फिर शीना बोल पड़ी



"आइ नो, इस बार राजवीर चाचू भी शायद हर्ट हो, आइ मीन उन्हे ऐसा एहसास होगा ना के वो हमारे बीच नहीं रहते इसलिए हम उनके साथ ऐसा बिहेव करते हैं.." शीना ने अपनी प्लेट खाली करके कहा



"एग्ज़ॅक्ट्ली, बट लेट मी थिंक सम्तिंग एल्स.. तुझे बताता हूँ कुछ देर में.."



"नहीं भाई, इट'स ओके... आप लोग जाओ, बट स्टे अवे फ्रॉम हर ओके.." शीना ने अपने हाथ में चाकू उठा के उसको दिखाते हुए कहा



"हहा, जेलस सिस... डॉन'ट वरी, शीना की जगह कोई नहीं ले पाएगा.... " कहते हुए रिकी ने उसके हाथ को हल्के से चूमा और दोनो हँस के वहाँ से बाहर निकल गये गार्डेन की तरफ



ज्योति कुछ देर अपने कमरे में ही थी, लेकिन जब उसने देखा कि कोई नहीं आ रहा, वो धीरे से शीना के कमरे की ओर बढ़ी.. उसके कमरे के पास जाके उसने दरवाज़े को हल्का धक्का लगाया

तो वो खुल गया.. ज्योति जल्दी से अंदर गयी और दरवाज़ा लॉक करके कमरे की दीवार के हर कोने को देखने लगी लेकिन उसे कॅमरा नहीं मिला, वॉर्डरोब के नीचे, उपर या कहीं और.. वो हर जगह देखने लगी लेकिन उसे कहीं नहीं मिला कॅमरा.. थक हार के वो बेड पे बैठी और अपनी नज़रें छत की तरफ की, जहाँ उसने देखा कि कुछ वाइर्स लटक रहे हैं, वो जल्दी से उठ खड़ी हुई

और एक लंबा स्टूल लेके चढ़ गयी, वाइर्स देख के वो समझ गयी कि कॅमरा पहले यहाँ था, अब नहीं है, इसका मतलब शीना ने ही निकाल फेंका है.. ज्योति नीचे उतरी और सब कुछ ठीक करने लगी, इतने में उसके मोबाइल पे एसएमएस आया



"तुम मेरे कमरे में हो, अपने कमरे का रास्ता भूल गयी हो या मेरे कमरे में कुछ चीज़ छुपी है जिसे इतनी देर से ढूँढ रही हो..." शीना ने ज्योति को भेजा



एसएमएस पढ़ के ज्योति की तो मानो हालत खराब हुई थी, उसका चेहरा पसीना पसीना हो चुका था, उसने अपनी नज़रें फिर एक बार चारो तरफ घुमाई, अगर शीना का यह एसएमएस है मतलब कॅमरा कहीं है, लेकिन कहाँ.. ज्योति ये सोचते सोचते फिर इधर उधर देख ही रही थी कि फिर एसएमएस आया



"कोई पॉइंट नहीं है, तुम्हे कॅमरा नहीं मिलेगा... बेहतर है तुम अपने कमरे में जाओ या बाहर गार्डेन में आओ, भाई और मैं गोल्फ कोर्स जा रहे हैं, तुम आ सकती हो हमारे साथ.. ब्लडी पार्टी पूपर.."



शीना का यह एसएमएस पढ़ ज्योति कुछ और किए बिना ही वहाँ से निकल गयी, लेकिन अपने कमरे में जाने के बदले वो सीधा शीना और रिकी के पास चली गयी.. अगर उसकी जगह स्नेहा होती तो वो शीना से आँख भी नहीं मिलाती, लेकिन ज्योति की बात अलग थी.. भले ही ग़लती उसकी क्यूँ ना हो, लेकिन जंग मतलब जंग, उसे पूरा करना ही पड़ता है... इसलिए ज्योति ने खुद को फ्रेश किया और कपड़े बदल के शीना और रिकी के पास चल दी...



"चलें भैया..." ज्योति ने गार्डेन में आते हुए कहा



ज्योति की आवाज़ सुन, रिकी चौंक उठा, लेकिन ताज्जुब उसे इस बात का था कि ज्योति कहाँ चलने की बात कर रही है...



"हमारे साथ चलेगी भाई, मैने ही इन्वाइट किया ज्योति को... घर पे अकेले बैठे बैठे इंसान का दिमाग़ कुछ ज़्यादा ही काम करता है जिससे प्रेशर बढ़ सकता है, बेहतर है हमारे साथ रहेगी

तो शांत रहेगी.." शीना ने अपना हाथ ज्योति के पास बढ़ाया और ज्योति ने भी उसका हाथ थाम लिया



"तुम और तुम्हारी बातें, रूको मैं गाड़ी निकलता हूँ..." कहके रिकी ड्राइवर के पास चला गया



"वैसे, मेरे कमरे में क्या ढूँढ रही थी ज्योति.." शीना ने बिना झिझक या गुस्से के ज्योती से सवाल किया और दोनो आगे देख रहे थे



"कुछ ख़ास नहीं, यू सी, तुम्हारे कमरे का इंटीरियर बहुत खूबसूरत है, इसलिए मैं देख रही थी कि इसे और खूबसूरत कैसे बनाया जाए" ज्योति और शीना दोनो एक दूसरे का हाथ पकड़ के धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे, दोनो के आँखों पे चढ़े एवियेटर ग्लासस, दोनो ने गोल्फ पॅंट्स पहने थे और पोलो टी-शर्ट.. दोनो इस वक़्त ऐसे बात कर रही थी जैसे मँझे हुए खिलाड़ी एक
दूसरे से करते हैं किसी बड़ी मॅच के पहले



"जानती हो ज्योति, जिस चीज़ की तारीफ़ करो, उसे बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, नहीं तो वो तारीफ़ के काबिल नहीं रहती. और रही बात मेरे कमरे की, तुम जो ढूँढ रही थी वो मेरे कमरे में कहीं नहीं मिलेगा.. और वैसे भी, कॅमरा से तुम्हारा क्या काम.. तुम यहाँ रहो, पढ़ो, मज़े करो, तुम यह सब क्यूँ कर रही हो, मुझे अब तक समझ नहीं आया कि इतनी दिलचस्पी क्यूँ दिखा रही हो तुम यह पता करने में कि इस घर में क्या चल रहा है... यह घर ना तुम्हारा कभी था, और ना ही इस घर की प्रॉब्लम्स या खुशियाँ तुम्हारी थी.. लेकिन अब तुम यहाँ रहने वाली हो तो जिस खुशी से हम ने तुम्हे आक्सेप्ट किया है, मुझे उम्मीद है के तुम हमे निराश नहीं करोगी और अपनी पढ़ाई में टॉप करोगी.." इस बार शीना ने ज्योति को एक नज़र देखा और अपने ग्लासस निकाल के फिर कहा



"भाई के साथ जहाँ जाना चाहती हो जाओ, लेकिन जो चीज़ तुम सुनना चाहती हो वो सुनो... मैं रिकी भाई से बहुत प्यार करती हूँ, और शायद यह प्यार भाई बहेन के प्यार से भी बढ़कर है.. मैं जानती हूँ तुम कितने दिनो से हमें अब्ज़र्व कर रही हो, लेकिन जैसे मैने कहा, तुम आराम से रहो, इस घर में क्या हो रहा है क्या नहीं... यह सब में दिलचस्पी नहीं लो, और हां.. अभी कुछ देर में रिकी भाई तुमसे पूछेंगे के कहाँ जाना चाहती हो.. तुम प्लीज़ गोआ का नाम मत लेना.. तुम्हे लग रहा होगा कि वहाँ बीचस पे अपनी बॉडी से भाई को सिड्यूस करके तुम उनके पास जाओगी, तो आइ आम सॉरी टू डिसपायंट यू, ऐसा कुछ नहीं होगा... यू बेटर थिंक सम्तिंग एल्स.." शीना ने जैसे ही यह बात कही, उन दोनो को रिकी की आवाज़ सुनाई दी
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07-03-2019, 03:59 PM,
#52
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"अरे, चलो भी.. कितनी देर करोगी तुम दोनो.."



"कमिंग भाई, अब चलो नहीं तो भाई समझ जाएँगे कि ई हॅव फक्ड यू लेफ्ट , राइट आंड सेंटर.." कहके शीना ने ज्योति का हाथ छोड़ा और दौड़ के रिकी की तरफ पहुँच गयी.. ज्योति भी जल्दी से वहाँ पहुँच गयी और तीनो गोल्फ कोर्स की तरफ चल दिए. पूरे रास्ते में ज्योति सोचती रही कि आख़िर शीना को यह सब पता कैसे चला, और उसने सोचा था कि उन दोनो के रिश्ते की बात से वो उन्हे ब्लॅकमेल करेगी, लेकिन उससे पहले शीना ने खुद क़ुबूल किया, जिसका मतलब शीना को बिल्कुल डर नहीं है इस बात से.. मैं उन्हे अब्ज़र्व कर रही हूँ यह बात शीना भी देख रही है, और फिर मैं रिकी के करीब जाना चाहती हूँ... आख़िर शीना का दिमाग़ इतनी तेज़ी से कैसे चलने लगा.. ज्योति यह सोच सोच के पागल हो रही थी और बस खिड़की के बाहर ही नज़रें जमा के बैठी थी



"तो ज्योति, लाइकिंग मुंबई... ? रिकी ने उसकी तरफ मिरर से देख के कहा



"लविंग इट भैया.." ज्योति का ध्यान टूटा और उसने रिकी को कहा



"सो कहाँ जाना है तुम्हे घूमने, बताओ कुछ सोचा या नहीं.."



"गोआ बोल रही थी भाई, बोलो, " शीना ने बीच में कूद के कहा



"गोआ.. ना इट्स टू क्राउडेड, आइ डोंट लाइक दट प्लेस"



"कुछ और सोचती हूँ फिर भैया..." ज्योति ने सिर्फ़ इतना ही कहा और फिर खिड़की के बाहर देखने लगी



उधर स्नेहा जल्दी अपने कमरे से निकली और सुहसनी से छुपते छुपाते बाहर निकल गयी.. बाहर जाके टॅक्सी पकड़ी और रास्ते से प्रेम को फोन करके उसे मिलने के लिए बुलाया.. स्नेहा ने अपना मोबाइल बंद रखा था क्यूँ कि वो नहीं चाहती थी के शीना का कोई कॉल आए.. प्रेम और वो दोनो कोलाबा के एक कॉफी शॉप में मिले



"क्या हुआ दीदी, इतना अर्जेंट में बुला लिया" प्रेम ने स्नेहा के पास बैठ के कहा



स्नेहा ने उसे सब बातें बता दी, स्नेहा की बात सुन प्रेम भी थोड़ी देर के लिए चौंक गया, लेकिन अगर वो भी स्नेहा जैसे हैरान होता तो बात बिगड़ सकती थी, इस स्थिति में ज़रूरी था कि कोई एक अपना दिमाग़ शांत रखे और यह काम प्रेम ने चुना.. स्नेहा की बातें सुन कुछ देर दोनो खामोश रहे..



"उः, टू एस्परेससॉस प्लीज़.. नो क्रीम.." प्रेम ने वेटर को ऑर्डर दिया



"दीदी, वैसे आप का मोबाइल मिलेगा.. मैं कुछ देखना चाहता हूँ इसमे.." प्रेम ने स्नेहा की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा



"हां देख, बट फिर ऑन करेगा तू इसे और शीना का फ़ोन आया तो फिर मुझे मेंटली टॉर्चर करेगी यार.." स्नेहा अभी भी पसीना पसीना हो रही थी..



"रूको तो यार", कहके प्रेम ने मोबाइल ऑन किया और सब से पहले उसे फ्लाइट मोड पे डाल दिया ताकि किसी का कॉल ना आए.. फिर उसने मोबाइल में सब कुछ चेक किया कि शायद कोई ऐसा अप हो जिससे शीना को यह सब पता चल रहा हो.. लेकिन जब उसे ऐसा कुछ नहीं दिखा, उसने बिना स्नेहा को बोले मोबाइल को फ्लाइट मोड से हटाया और वेट करने लगा शीना के कॉल का.. वो देखना चाहता था कि शीना क्या कहेगी कॉल करके, उसने मोबाइल अपने पास रखा और स्नेहा की चिंता कम करने की कोशिश करने लगे.. इतने में कॉफी आ गयी और दोनो धीरे धीरे कुछ सोचते सोचते कॉफी का
आनंद लेने लगे... करीब एक घंटा होने आया था दोनो को, और 45 मिनिट हुए थे प्रेम को मोबाइल ऑन करके , लेकिन शीना की कॉल अब तक नहीं आई थी



"दीदी एक बात बताओ, आज की हमारी इस मुलाक़ात में और उस दिन जब शीना ने आपको परेशान किया था.. क्या डिफरेन्स है दोनो मुलाक़ातों में" प्रेम के दिमाग़ ने काम करना शुरू किया



"प्रेम मैं कुछ भी नहीं सोच सकती...तुम पहेलियाँ भुजाना बंद करो..." स्नेहा ने कॉफी ख़तम करके कहा



"दीदी, मैं आपके घर चलता हूँ, मुझे कुछ काम है, आपकी सास को कोई दिक्कत तो नहीं होगी.." प्रेम ने स्नेहा से फिर हँस के कहा



"नहीं, चलो, पर क्या काम है.." स्नेहा ने फिर परेशानी में कहा और प्रेम के चेहरे पे एक विजयी मुस्कान थी



दोनो ने जल्दी से बिल भरा, और टॅक्सी पकड़ के राइचंद'स की ओर चल दिए, जहाँ पूरे रास्ते में स्नेहा बार बार परेशानी के पसीने से भीग रही थी, वहीं प्रेम बार बार स्नेहा के मोबाइल को देखता , लेकिन शीना का कॉल अब तक नहीं आया था.. वो जान चुका था कि ऐसा क्यूँ.." करीन 20 मिनट में दोनो घर पहुँचे और प्रेम सुहसनी देवी से मिला.. फीके मन से ही सुहसनी ने उससे बात की और फिर वहाँ से चली गयी.. तब तक प्रेम के कहने पे स्नेहा ने ड्राइवर से गाड़ी की चाबी मँगवाई और प्रेम को दे दी.. प्रेम ने बिना वक़्त गँवाए गाड़ी अनलॉक की और बोनेट खोल के वीरिंग्स चेक करने लगा



"मेकॅनिकल इंजिनियरिंग पढ़ी है इसका मतलब यह नहीं कि तू मेरे ससुराल में आके गाड़ी बनाएगा, पहल से ही इनके नाटक कम हैं जो अब यह कर रहा है तू.." स्नेहा ने आस पास नज़रें फेर के कहा



"रूको यार.." कहके प्रेम ने फिर इग्निशन मारा और कुछ चेक करके बोनेट बंद किया...



"ह्म्म्मल, चलो अब मुझे छोड़ दो कहीं पे, और यह लो अपना मोबाइल..." प्रेम ने अपने हाथ सॉफ करके कहा



स्नेहा ने बिना मोबाइल को देखे अपने क्लच में डाल दिया और प्रेम को छोड़ने के लिए गाड़ी में निकल गयी.. दोनो भाई बहेन गाड़ी में सी लिंक क्रॉस करने लगे तभी प्रेम ने उसका क्लच खोला और उसमे से मोबाइल निकाला



"दीदी, करीब 2 घंटे हुए हैं आपके मोबाइल को ऑन किए हुए.. लेकिन अब तक शीना का फोन नहीं आया, और अब आएगा भी नहीं..." प्रेम की यह बात सुन स्नेहा ने अचानक गाड़ी साइड में रोकी और उसे गौर से देखने लगी.. स्नेहा ने अपने दिमाग़ पे ज़ोर लगाया और उसने देखा प्रेम सही कह रहा है.. जब सवालिया नज़रों से उसने प्रेम की ओर देखा, प्रेम के चेहरे पे फिर एक ऐसी मुस्कान टायर गयी जिसे देख स्नेहा को कुछ कुछ समझ आने लगा.
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07-03-2019, 03:59 PM,
#53
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
उधर गोल्फ खेलते खेलते शीना बार बार अपने मोबाइल में देख रही थी कि उसे कुछ मिल जाए, या ऐसा लग रहा था कि किसी का कॉल या मेसेज आने वाला है.. लेकिन बार बार मोबाइल की स्क्रीन पे देख के उसे निराशा होती, गेम ख़तम करके जब तीनो भाई बहेन रेफ्रेशमेंट्स के लिए बैठे बातें कर रहे थे, तभी शीना को मेसेज आया



"मिस्सिंग माइ ट्रॅक स्वीटहार्ट.." यह एसएमएस स्नेहा ने उसे भेजा था



एसएमएस पढ़ के शीना के दिमाग़ में दो बातें आई, एक तो यह के सामने से स्नेहा ने उसे एसएमएस किया है मतलब वो जान गयी थी कि शीना उसकी खबर कैसे रख रही है, और दूसरी के अब वो कुछ नहीं कर पाएगी स्नेहा का... काफ़ी कुछ सोच रही थी लेकिन दिमाग़ में कुछ ना आने से उसने स्नेहा के एसएमएस का रिप्लाइ नहीं दिया और रिकी से बातें करने लग गयी... रिकी और शीना बातों में उलझे हुए थे वहीं ज्योति अपनी दुनिया में कहीं खोई हुई थी..



"ह्म्म्मन, ज्योति.. तुम्हारा ड्रिंक गरम ना हो जाए.." रिकी ने ग्लास देते हुए कहा और फिर शीना के साथ बातों में उलझ गया..



"भैया, इफ़ इट ईज़ आन इंटरनॅशनल डेस्टिनेशन, तो कोई प्राब्लम तो नहीं है ना आपको.." ज्योति ने फाइनली अपने दिमाग़ को अपने काबू में किया और रिकी से ग्लास लेते हुए कहा



ज्योति का सवाल सुन रिकी एक सेकेंड के लिए तो मानो स्टंप्ड ही हो गया था, कोई और होता तो शायद मना कर देता, लेकिन रिकी जानता था कि उसके पास मना करने का कोई कारण नहीं है... ना तो पैसा प्राब्लम है, ना ही वक़्त... तो मना करता भी तो कैसे..इसलिए अगले ही पल उसने जवाब दिया



"ऑफ कोर्स नोट यार, बट उससे पहले टेल मी, इंडिया छोटा पड़ गया है या तुमने पूरा घूम लिया है.."



"नहीं भैया, नतिंग लाइक दट, बट मुझे एग्ज़ोटिक लोकेशन पे जाना है. यू नो, जहाँ मस्त खूबसूरत बीचस हो, वॉटर स्पोर्ट्स हो.. ब्यूटिफुल सनसेट्स हो.. सम्तिंग लाइक दट, इसलिए , गोआ तो आपने मना किया, आंड उसके अलावा आइ डोंट सी एनी सच प्लेस हियर.. इसलिए इंटरनॅशनल, बट कोई प्राब्लम है तो टेल मी, कुछ और सोच लूँगी" ज्योति ने अपनी ड्रिंक में स्ट्रॉ घूमाते हुए कहा और फिर शीना को देखने लगी, जो आराम से रेक्लीनेर पे लेट के उनकी बातें सुन रही थी



"नोप, दट ईज़ ओके.... कोई जगह सोची है..." रिकी ने फिर पूछा



"थाइलॅंड या सिंगपुर सोचा था, बट रहने दिया.. आइ थिंक बलि विल बी नाइस, व्हाट से.." ज्योति ने अपना चश्मा उतारा और रिकी की आँखों में देख के पूछा



"आअहह, इंडोनेषिया, उम्म्म.. कूल, हियर ईज़ माइ कार्ड.. तुम बुकिंग स्टार्ट कर दो वहाँ की.. आंड मेक शुवर वॉटेवर वी डू, हैज टू बी दा बेस्ट ऑलराइट.." रिकी ने ज्योति को अपना कार्ड देते हुए कहा



"ओके, एक्सक्यूस मी फॉर आ मिनिट.." ज्योति ने कार्ड लिया और वहाँ से निकल गयी



"भाई, कुछ ज़्यादा ही होशयार बन रही है यह.. पहले आप के साथ अकेले में ट्रिप, फिर एग्ज़ोटिक लोकेशन्स... अब बस यह देखना रह गया है कि शॉपिंग लिस्ट में कितने स्विम सूट्स और बिकिनीस आती हैं..." शीना ने अपने ग्लासस उपर चढ़ा दिए और रिकी को देख के कहा



"सम्वन'स जेलस हाँ..." रिकी ने उसे आँख मारते हुए कहा



"नोट अट ऑल...पता नहीं क्यूँ, आइ स्मेल सम्तिंग फिशी हियर... देखो ना, सडन्ली इन लोगों का आना, फिर यहीं रहना, ज्योति का हमे यूँ क्लोस्ली अब्ज़र्व करना, फिर आपके साथ वाकेशन... आइ मीन, यह सब एक साथ, कुछ ज़्यादा ही स्ट्रेंज लग रहा है मुझे..." शीना ने अपनी बात इस तरह कही कि एक पल के लिए रिकी भी परेशान हो उठा और कुछ सोचने लगा, तब तक शीना ने भी अपने पॉकेट से सिगरेट निकाली और उसके कश लेने लगी







"तुम क्या कहना चाहती हो शीना.." रिकी ने भी उसकी सिगरेट ले ली और कश लेने लगा



"भाई, आप जाने के लिए मना कर दो.. सिंपल" बिना ज़्यादा बात को घुमाए शीना ने उसे जवाब दिया



"जाना तो मैं भी नहीं चाहता यार, बट यू नो ना, पापा के कहने पे जा रहा हूँ... उपर से अब मना करूँगा तो शी विल नोट फील गुड, आंड पापा की अलग सुननी पड़ेगी" रिकी की बात ग़लत नहीं थी, अमर किसी भी हालत में यह नहीं से सकता था.. अगर रिकी मना करता तो उसे खरी खोती तो सुननी ही पड़ती, लेकिन ज्योति के लिए उसके दिल में एक सहानुभूति जागती जिसका फ़ायदा उसे कैसे मिलता वो कोई सोच भी नहीं सकता था.. शीना ने इस बात को समझा इसलिए उसने ज़्यादा बहेस नहीं की और रिकी के साथ बैठ के सिगरेट के कश लेती रही... कुछ ही देर में ज्योति वहाँ आई और तीनो वापस घर की तरफ निकल पड़े... वापस जाते वक़्त गाड़ी में बिल्कुल खामोशी थी, रिकी सोच रहा था कि कैसे ज्योति के साथ वो यह ट्रिप इग्नोर कर सकेगा, शीना स्नेहा के बारे में सोच रही थी, और ज्योति क्या सोच रही थी वो खुद भी कन्फ्यूज़्ड थी उसमे.. कभी बलि ट्रिप के बारे में सोचती, तो कभी शीना की बातों के बारे में जो सुबह ही उसने कही थी... सोचते सोचते घर कब आया इन्हे पता ही नहीं चला, ड्राइवर को गाड़ी की चाबी देके जब तीनो अंदर जाने लगे, तब बीच में खड़ी स्नेहा को देख तीनो को बहुत अजीब लगा..



"यह ऐसे क्यूँ खड़ी है इधर.." शीना ने आगे बढ़ते हुए रिकी के कान में फुसफुसाया जिसका जवाब रिकी ने कुछ नहीं दिया और बस कंधे उपर कर दिए जिसका मतलब था कि मैं भी नहीं जानता..



"उः शीना , एक मिनट प्लीज़ रूको, मुझे कुछ काम था तुमसे.." स्नेहा ने शीना को अंदर जाने से रोका, शीना तो वहीं रुक गयी लेकिन ज्योति और रिकी बिना कुछ कहे वहाँ से आगे बढ़ के अपने अपने कमरे की ओर बढ़ने लगे...



"शीना, एक सेकेंड मेरे साथ आजा, मेरी गाड़ी में कुछ दिखाना चाहती हूँ तुझे..." कहके स्नेहा अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ने लगी और शीना सोचने लगी अचानक स्नेहा उसके साथ तू करके बात कर रही है... शीना शॉक हुई लेकिन उसने अपने आप को संभाला और स्नेहा की गाड़ी की तरफ चलने लगी..



तीन महीने पहले इंपोर्टेड ऑडी, विक्रम ने स्नेहा को उसके बर्तडे पे गिफ्ट की थी, यह मॉडेल अब तक इंडिया में नहीं आया था इसलिए स्नेहा को अपनी गाड़ी से बहुत प्यार था, शायद तभी उसकी गाड़ी घर की सभी गाड़ियों से अलग रखी जाती थी और उसकी चाबी भी स्नेहा अपने पास रखती क्यूँ कि वो नहीं चाहती थी कि उसे स्नेहा के अलावा भी कोई हाथ लगाए...



"शीना, जानती है इस गाड़ी की ख़ासियत क्या है..." स्नेहा ने गाड़ी को अनलॉक किया और ड्राइवर्स सीट पे जाके बैठ गयी, और साथ ही पास वाली सीट का दरवाज़ा भी खोल दिया जिससे शीना भी अंदर बैठ सके... शीना स्नेहा की बातों को सुनते सुनते उसके पास जाके बैठ गयी...
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07-03-2019, 03:59 PM,
#54
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"इस गाड़ी में काफ़ी छोटी छोटी चीज़े हैं जो इसे यूनीक बनाती हैं, लाइक अगर इस गाड़ी को प्री डिफाइंड उँचाई से फेंका जाए तो इसके सेफ्टी सेन्सर्स आक्टीवेट होते हैं और गाड़ी को पैराशूट में तब्दील कर देते हैं... दूसरा, इसका जीपीएस सिस्टम... इस गाड़ी में गूगल मॅप्स के अलावा किसी दूसरी कंपनी के मॅप्स भी हैं जो ड्राइवर को यह बताते हैं कि वो एग्ज़ॅक्ट किस लोकेशन पे हैं.. और जैसे जैसे वक़्त जाता है, हमें इसको नेट से कनेक्ट करके अपडेट करना पड़ता है, अगर हम ऐसे नहीं करते तो हमें ऑडी जर्मनी से कॉल आता है कि जल्द से इसको अपडेट कर दें, नहीं तो यह उनके सेफ्टी पॉइंट का एक ब्रीच माना जाता है.. ऐज ए कंपनी ऑडी यह नहीं चाहती कि उनकी गाड़ी में कोई भी आक्सिडेंट हो या अगर कोई कहीं मिस्प्लेस हो जाए या किडनॅप हो जाए या गाड़ी कहीं खो जाए तो उसे एक लॅप्स माना जाए... इसलिए तो जब गाड़ी बंद रहती है तब यह मॅप्स काम नहीं करते , लेकिन हां स्पेशल रिक्वेस्ट पे यूज़िंग दा एंजिन नंबर आंड जीपीएस सिस्टम नंबर गाड़ी के मॅप्स को ऑफलाइन भी आक्टीवेट किया जा सकता है..." स्नेहा शीना को ऐसी चीज़ें बता रही थी जिनका तर्क शीना को पल्ले नहीं पड़ रहा था, लेकिन शीना समझ चुकी थी कि स्नेहा इसके बाद क्या कहेगी इसलिए वो अब तक खामोश थी



"बट तू जानती है, कि इसका एक छोटा सा प्राब्लम है.. और प्रोबेल्म यह है कि यह सिस्टम जितना ही अपडेटेड होता रहता है, उतने ही बग्स इसमे क्रियेट होते हैं, जिससे यह वल्नरबल बनता जाता है.. वल्नरबल टू एनितिंग, जैसे वाइरस या यह ईज़िली हॅक भी हो जाता है.... मैने इसे लास्ट मंत ही अपडेट करवाया था वर्कशॉप से.." स्नेहा इतना कहके खामोश हो गयी और शीना की आँखों में देखने लगी किसी जवाब की उम्मीद में लेकिन शीना अब तक खामोश स्नेहा को ही देख रही थी



"हहाः,. इंट्रेस्टिंग.. शीना, तुझे क्या लगा, तू अगर इसे हॅक कर लेगी तो किसी को पता नहीं चलेगा... जब तूने यह सोचा कि एक मामूली सिस्टम को हॅक करके स्नेहा को दबाती फ़िरेगी तो वो तेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी बेवकूफी थी.. तूने सोचा मैं तो कहीं इस गाड़ी के बगैर आती जाती नहीं, इसलिए क्यूँ ना तू डाइरेक्ट इसके ज़रिए मेरी खबर रखे और मैं बस यह सोच सोच के पागल होती रहूंगी कि आख़िर तू यह सब कैसे कर रही है... खैर अच्छी कोशिश थी, मुझे यकीन है कि इतना सब सोच के तेरे घुटनों में दर्द चालू हो गया होगा.. है ना.." स्नेहा की आखरी लाइन सुन शीना का खून गरम होने लगा, उसका चेहरा लाल होते दिख रहा था जिसे स्नेहा काफ़ी अच्छे से एंजाय कर रही थी, लेकिन शीना खामोश रही



"और एक बात सुन ले, क्या कहा था तूने विक्रम वाली बात का.. जाके कह दे घरवालों से... मेरे सब कॉल रेकॉर्ड्स चेक करवा ले, लेकिन ग़लत निकलने पर तू ही अपने घरवालों की नज़र में गिरेगी.. और हां, अपने भाई, तेरे होने वाले यार की नज़रों में तो नहीं गिरेगी, इतना प्यार जो करता है तुझ से, बस पूरी ज़िंदगी उसी के सहारे निकाल देना, पर अफ़सोस वो भी शायद ना कर पाए.. उसके लिए तो तेरी दूसरी बहेन, तेरी सौतन बनने को तो तैयार ही है... है ना.." स्नेहा ने फिर शीना की आँखों में देखा और स्टाइल से अपनी आँखों को ग्लासस से कवर करके अपने लिए सिगरेट जलाई और धुआँ शीना के मूह पे छोड़ दिया







"अब और क्या सुनना चाहती है... गेट आउट................. प्लीज़...." स्नेहा ने एक बार फिर धुआँ शीना के मूह पे छोड़ा और शीना बिना कुछ कहे वहाँ से निकल गयी.. इस छोटी सी जीत से स्नेहा काफ़ी खुश हुई और अपनी सिगरेट ख़तम करके अपनी गाड़ी को लॉक किया और वहाँ से अपने कमरे की ओर निकल पड़ी...



इंग्लीश में एक कहावत है, गेटिंग आ टेस्ट ऑफ युवर ओन मेडिसिन.. मतलब दुश्मन आपको आपके अपनाए हुए तरीके से ही हरा देता है.. इधर स्नेहा ने भी ठीक वही किया जो शीना ने उसके साथ किया, ननद और भाभी, अब आप और तुम से तू पे आ चुकी थी, जहाँ शीना ने अपने दिमाग़ को इतना चलाया कि यह सब हाथ में किया था, वो सब एक ही पल में ज़मीन पा आ गया था, वहीं स्नेहा भी प्रेम की मदद से फिर नॉर्मल हुई और अब हर छोटी बात का ध्यान रखने लगी... इसी लिए उसने एक मोबाइल और नया सिम कार्ड ले लिया जिससे वो अपने काम के सभी कॉल्स आराम से कर सकती है.. यह नया कार्ड उसने शीना के नाम पे लिया था..शीना को अब तक यकीन नहीं हो रहा था कि स्नेहा ने उसकी इस चाल का तोड़ निकाल दिया था और अब वो फिर से उसके सामने अपनी गर्दन उँची कर के चलेगी.. यह चोट शीना के लिए बहुत बड़ी और गहरी थी, अपने कमरे में आते ही रूम के चक्कर काटने लगी, सिगरेट पे सिगरेट फूकने लगी लेकिन दिमाग़ बिल्कुल नहीं चल रहा था..



"हेलो, हां , एक प्राब्लम हो गयी है...." शीना ने किसी को फोन करके कहा और सब बता दिया जो आज हुआ



"उम्म्म, स्नेहा इतनी स्मार्ट नहीं हो सकती... खैर अब उसने कुछ पता लगाया है तो उसे इसका इनाम तो मिलना चाहिए ना... ठीक है, तुम चिंता नही करो, यह इनाम कब और कहाँ देना है, आइ विल इनफॉर्म यू.." सामने से शीना को जवाब मिला



"बट.." शीना ने इतना ही कहा के फिर उसे रोक दिया गया



"आइ टोल्ड यू टू रिलॅक्स डियर.. बाय.." कहके फोन तो कट हुआ, लेकिन शीना अब तक परेशान थी



स्नेहा राइचंद'स के पीछे पड़ी थी, लेकिन वो एक बादे की खिलाड़ी थी, जस्ट आ पॉन, चाल तो कोई और ही चल रहा था, इसमे उसके साथ था प्रेम.. प्रेम उसका भाई और उसका यार.. स्नेहा जितनी शातिर, प्रेम उतना ही ठंडा और चालाक.. स्नेहा की गाड़ी का सिस्टम हॅक है वो उसने एक मिनिट में पकड़ लिया, क्यूँ कि जब उसने स्नेहा की सब बातें सुनी और जब वो कॉफी शॉप में मिले, उन दोनो बातों में सिर्फ़ एक ही डिफरेन्स था.. स्नेहा की गाड़ी की मौजूदगी.. इसलिए उसने तुरंत इस बात को कॅच किया और अपना तीर छोड़ा जो ठीक निशाने पे जा बैठा.. शीना अपने भाई रिकी से प्यार में थी, उसे हासिल करने के लिए वो कुछ भी कर सकती थी, उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल के उसने यह बात स्नेहा को बता दी थी, शायद अब इसी भूल को ठीक करने के लिए वो किसी तीसरे की मदद ले रही थी, लेकिन आज की बात के बाद फिर उसके दिमाग़ में यह संदेह हुआ कि क्या यह तीसरा उसकी मदद कर पाएगा.. रिकी शीना की मौजूदगी को एंजाय करने लगा था, धीरे धीरे वो खुलने लगा था शीना के साथ...अब तक उसकी ज़िंदगी काफ़ी सीधी थी, शीना के साथ रहो और उसकी प्रॉब्लम्स को सॉल्व करो जिससे उनका रिश्ता और गहरा बने... अमर इन सब बातों से अंजान अब तक अपने बड़े बेटे विक्रम की मौत में डूबा हुआ था, इसलिए तो वो अकेले में रोने लगता और घरवालों को दिखाने के लिए फिर मज़बूत बन जाता... सुहसनी में एक नयी उर्जा पैदा हुई थी अपने यार और देवर राजवीर के आने से.. अमर से वो काफ़ी खुश थी और अमर भी उसको आज उतना ही प्यार करता जितना कि जवानी में, लेकिन खानदानी रईस शायद ऐयाशी जान बुझ के करते हैं, बिना किसी वजह..और इसे वो ग़लती ना कहके ज़िंदगी के मज़े लेना बोलते हैं.. राजिवर की बेटी ज्योति आज की तारीख में घर में सबसे ज़्यादा चोकन्नि नज़रों वाली थी, उसकी नज़रों से कुछ नहीं छुप सकता था, इसलिए तो आते ही उसने शीना और रिकी के बीच एक पनपते प्यार को देखा, लेकिन इधर वो अपनी राह से भटक गयी.. वो रुकी तो थी यहाँ पढ़ाई के लिए लेकिन पढ़ाई के अलावा वो यह सब बातों के बारे में सोचने लगी थी...



जैसे जैसे दिन ढलता वैसे वैसे सिगरेट के पॅकेट से सिगरेट ख़तम होने लगी, शीना शायद अपने फेफड़ों को एक ही दिन में जला देना चाहती थी.. इसलिए तो बार बार सोच रही थी कि स्नेहा का अब क्या किया जाए, और उपर से अब ज्योति की मुसीबत भी थी.. शीना अपने ख़यालों में बाल्कनी में खड़ी सिगरेट ही फूँक रही थी कि पीछे से एक हाथ उसके कंधों के तरफ आया और उसको महसूस करके शीना पसीना पसीना होने लगी और पीछे मूड के देखा



"फ़ेववव.व... डरा देते हो भाई..." शीना ने फिर अपनी नज़रें सामने की जहाँ समंदर की लहरें पत्थरों से टकराती



"मैने डराया या तुमने डराया है.." रिकी ने अपने हाथ में खाली सिगरेट का बॉक्स दिखाते हुए कहा जिसका जवाब शीना ने कुछ नही दिया



"एक ही दिन में पूरा बॉक्स, आर यू क्रेज़ी..." रिकी ने शीना के हाथ से सिगरेट छीन के फेंक दी



"ओके नाउ टेल मी, व्हाट्स दा प्राब्लम... शायद मैं कुछ मदद कर सकूँ.." रिकी ने जैसे ही यह बात शीना से कही, शीना पहले कुछ देर तो रिकी को घुरती रही, लेकिन फिर उसे सब बता दिया, हर बात , जहाँ से यह शुरू हुआ था और जहाँ पे आज यह बात पहुँच चुकी थी... उसकी बातें सुन रिकी भी कुछ देर खामोश रहा और फिर अपनी नज़रें सामने लगा दी जहाँ शीना देख रही थी.. समंदर की हवा काफ़ी तेज़ थी, आज लहरें भी कुछ ज़्यादा ही उँची थी, इसलिए जैसे जैसे वो पत्थरों से टकराती, वैसे वैसे रिकी और शीना के दिल छलानी होने लगते, शीना की बात सुन रिकी कुछ देर तो बस यूँ ही खड़ा रहा जैसे वो एक मूर्ति बन चुका हो, शीना की आँख में आँसू आने लगे थे



"आइआम सॉरी भाई, शायद मैने अपनी लाइफ की सबसे बड़ी ग़लती कर दी " शीना ने बड़ी रुआंदी सी आवाज़ में रिकी से यह कहा जो अभी भी एक मूरत के समान खड़ा था और समंदर के शोर को महसूस कर रहा था.. अपनी बात कहके शीना का रोना कुछ देर में बंद तो हो गया, लेकिन वो अभी भी सूबक रही थी...



"ह्म्म्मा, शीना.. आइ नेवेर थॉट कि मैं यह बात ऐसे कहूँगा, लेकिन अब जब सब पता चल गया है तो कहना ही पड़ेगा.." कहके रिकी ने शीना का हाथ अपने हाथों में लिया और उसे हल्के से चूम दिया, जिससे शीना की आँखों में एक चमक आ गयी



"चाहे कुछ भी हो, मेरी आखरी साँस तक मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ूँगा..मैं नहीं जानता यह सब सही है या ग़लत, यह जानते हुए भी कि इस रिश्ते के कोई मायने नहीं, यह जानते हुए भी के इस रिश्ते को समाज में, दुनिया में ग़लत माना जाएगा.. लेकिन मैं यह भी जानता हूँ के इस रिश्ते से हम खुश रहेंगे, हमारे दिल खुश रहेंगे, और उससे ज़्यादा मुझे ज़िंदगी में कुछ नहीं चाहिए... शीना राइचंद, क्या तुम अपनी पूरी ज़िंदगी मेरे साथ बिता पाओगी... मैं नहीं जानता कैसे, मैं नहीं जानता कि क्या कभी हम इस रिश्ते को कुछ नाम भी दे पाएँगे या नहीं... लेकिन मैं यह ज़रूर जानता हूँ कि भले मैं ज़िंदगी में अकेला रहूं, पर हमेशा तुम्हारे साथ तुम्हारा साया बनके चलूँगा... शीना राइचंद... आइ लव यू.." रिकी ने शीना की आँखों में देखते हुए कहा जिसे सुन शीना की दिल की धड़कने तेज़ी से बढ़ने लगी, आज उसे ऐसा लग रहा था कि उसे एक नयी ज़िंदगी मिली है...



"अगर मेरे साथ रहोगे, तो अकेले कैसे हुए डफर.." शीना ने हल्के से हंस के जवाब दिया और धीरे धीरे रिकी के पास आने लगी और अपने हाथ मज़बूती से रिकी के हाथों में थाम के उसे गले लगा लिया



"आइ लव यू टू..रिकी राइचंद..." शीना ने जैसे ही यह कहा, अब तक जो हवा तेज़ चल रही थी वो धीमी हुई , जो लहरें अब तक काफ़ी शोर मचा रही थी और पत्थरों से टकराके अपनी मौजूदगी का आभास करा रही थी, वो भी अब एक दूं शांत हो गयी... ऐसा लग रहा था मानो कुद्रट ने भी इनके रिश्ते की मज़ुरी दे दी थी.. रिकी का हाथ पकड़ के शीना वहीं खड़ी रही और अपना सर उसके कंधे पे रख दिया.. दोनो सामने देख रहे थे, कोई कुछ नहीं कह रहा था..



"लेकिन अब तक मेरी प्राब्लम का सल्यूशन नहीं दिया आपने.." शीना ने अपने सर को उँचा किया और रिकी को देख के कहा, शीना जो अब तक "आपने भाई" कहने की आदि थी, अब बातों से "भाई" शब्द को निकालने लगी थी



"ह्म्म्मब, अब भाभी की प्राब्लम का सल्यूशन तो इतना जल्दी नहीं मिलेगा, लेकिन रही बात मेरी और ज्योति की ट्रिप की.. मैं उसी का सल्यूशन लेके आया था तुम्हारे पास पर तुमने ही मुझे अपनी बात से डिसट्रॅक्ट कर दिया" रिकी ने आँख मार के कहा, जिससे शीना हल्के से शरमाई और अपनी नज़रें नीची कर ली...



"सल्यूशन मिल गया..." शीना ने तुरंत रिकी की बातों पे गोर किया और अपनी नज़रें उँची कर के रिकी से आँखें मिला दी, शीना की आँखों की गहराई में एक अलग किस्म की चमक थी जिसे सिर्फ़ रिकी ही देख सकता था उस वक़्त
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07-03-2019, 04:00 PM,
#55
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
महाबालेश्वर में अमर और राजवीर पहुँच के ज़मीन देखने लगे, यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि पहुँचने से पहले ही अमर ने अपने जान पहचान के सभी ब्रोकर्स और डीलर्स को काम पे लगाया था.. हर डीलर जानता था कि ज़मीन पसंद आ गयी तो अमर कभी भाव तोल नहीं करता.. हिल स्टेशन पे 40-50 एकर की ज़मीन मिलना कोई मामूली बात नहीं थी, इसलिए राजवीर के भी कॉंटॅक्ट्स काम में लग गये.. सुबह सवेरे की ठंडी हवा में अमर और राजवीर जैसे ही अपनी लंड क्रूज़र से उतरे, वहाँ के कुछ डीलर्स उसका इंतेज़ार करते हुए दिखे.. कुछ देर बाद अमर और राजवीर का डिस्कशन चालू हुआ और शाम होते होते ज़मीने देख के लौटने लगे..
.................................................................
राइचंद'स में अमर और राजवीर की ना मौजूदगी में कुछ ख़ास नहीं चल रहा था, ज्योति बाली ट्रिप के बारे में प्लॅनिंग कर रही थी और वहीं शीना और रिकी घर के ठीक सामने समंदर की लहरों के पास जाके बैठ गये.. वो जानते थे कि ज्योति उन्हे ऐसे देख सकती है, लेकिन शीना ने जब रिकी को सब बता दिया था तो रिकी और शीना का डर निकल चुका था.. वो लोग जानते थे कि अगर उनके बारे में ज्योति किसी को बता भी देगी तो कोई उसपे यकीन नहीं करेगा, इसलिए दोनो बेखौफ्फ हाथों में हाथ डाले समंदर की लहरों का मज़ा ले रहे थे...



"कितना सुकून है ना इधर, दोपहर के इस वक़्त में देखो तो कोई शोर शराबा नहीं...बस तुम, मैं और यह समंदर की लहरें...जी चाहता है कि यह वक़्त बस यूही थम जाए, पत्थरों से टकराती हुई लहरें रुक जाए, अगर किसी चीस की आवाज़ हो तो बस हमारी धड़कनो की.. और कोई नहीं.." रिकी ने शीना के हाथों को अपने होठों के पास लाकर कहा और उसे बड़ी नज़ाकत से चूम लिया




ऐसे माहॉल में किसी का भी दिल धड़कने लगे अगर शीना जैसी संगिनी उसके साथ हो तो, दोपहर की हल्की धूप में शीना का चेहरा काफ़ी खिला हुआ था, आज उसके चेहरे की चमक अलग ही थी, उसके बाल खुले हुए उसकी खूबसूरती बढ़ा रहे थे, उपर से रिकी के हाथ में उसके हाथ.. इसका रोमांच शीना के दिल में काफ़ी हलचल पैदा कर रहा था, शीना का दिल कभी तेज़ी से धड़कता तो कभी एक दम धीरे धीरे.. उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा क्यूँ हो रहा है, रिकी उसकी तारीफ़ पे तारीफ़ किए जा रहा था लेकिन वो बस रिकी के चेहरे को एक तक देखते देखते उसमे खो सी गयी थी, वो लफ़्ज़ों को नहीं सुन रही थी, बस देख रही थी तो रिकी के हिलते हुए होंठ.. वो शब्दों को नहीं समझ रही थी, बस देख रही थी तो रिकी की बड़ी भूरी आँखें जो हर लफ्ज़ के साथ बड़ी और छोटी होती रहती... शीना बस यह देख के मुस्कुराती रहती,

रिकी ने जब देखा कि शीना कहीं खोई हुई है, तो उसने बोलना बंद किया और शीना की आँखों के आगे एक चुटकी सी बजा दी जैसे की उसे अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाना चाहता हो



"मैं आपके साथ ही हूँ...आज मैं बस आप में ही खोना चाहती हूँ, आप जो भी कहोगे मैं उसे सुन नहीं पाउन्गी ना ही समझ पाउन्गी.. क्यूँ कि काफ़ी वक़्त बाद दिल को ऐसा सुकून मिला है, काफ़ी वक़्त बाद इस दिल को ऐसा लगा है जैसे कोई अपना बहुत करीब है...काफ़ी वक़्त बाद मेरे दिल ऐसे इंसान के लिए धड़क रहा है जो उसके सबसे ज़्यादा करीब है... काफ़ी वक़्त बाद आज महसूस हुआ है, के मेरा कोई अपना है और जिसके लिए मैं बहुत ख़ास हूँ...आज कहना चाहती हूँ इन हवाओं से, इन टकराती लहरों से, नीले गगन में उड़ते हुए इन पन्छियो से.. आज मैं अकेली नहीं हूँ, काफ़ी वक़्त बाद आज मेरा प्यार मेरे साथ आया है.... मेरे पास आया है..." शीना ने रिकी को देखते हुए कहा और उसे देखती ही रही... रिकी भी उसकी बात सुन हल्का सा शर्मा गया लेकिन दोनो ने अपनी आँखें नीची नहीं की, दोनो महसूस करने लगे उस माहॉल को, वहाँ की शांति को, वहाँ पसरे ऐसे सन्नाटे को जिसमे दिन के वक़्त भी कोई भी डर जाए, लेकिन यह दोनो ऐसे माहॉल में भी बस एक दूसरे में खोए हुए थे.... रिकी आगे कुछ कह पाता इससे पहले शीना ने अपनी बाहों में रिकी को समेटा और उसे गले लग गयी.. शीना ऐसे गले लगी जैसे रिकी शायद उससे आखरी बार गले लग रहा हो, या यह उसका डर था कि कहीं रिकी उससे दूर ना चला जाए.. दोनो ने एक दूसरे को तब तक अपनी बाहों में से अलग नहीं किया जब तक दोनो के दिल नहीं माने... जब दोनो के बदन अलग हुए, दिल फिर कह रहे थे कि आओ एक साथ फिर मिल जाते हैं, लेकिन दोनो ने अपने दिल पे काबू रखा और फिर हाथ पकड़ के सामने देखने लगे और लहरों में अपने पैर भिगोने लगे



"अच्छा शीना, एक बात पूछूँ.." रिकी ने अपने सर को थोड़ा उपर किया और उसके फोर्हेड पे किस करके फिर उसके कंधे पे अपना सर रख दिया



"पूछिए ना, " शीना ने बस इतना ही कहा और अभी भी उसकी नज़रें सामने पानी में पड़ रही सूरज किर्नो पे थी



"अगर मैं ना कहता तुम्हारे प्रपोज़ल को तो... तुम क्या करती..." रिकी ने यह सवाल इसलिए पूछा क्यूँ की वो जानना चाहता था कि शीना सही में मेच्यूर हुई है या यह बस अट्रॅक्षन है... रिकी को लगा शायद शीना गुस्से में रिएक्ट करेगी और फिर उसे उसको समझाना पड़ेगा.. कुछ देर तक शीना ने कोई जवाब नहीं दिया, फिर रिकी ने सेम सवाल दोहराया



"बताओ भी... अगर मैं ना कहता तो, " इस बार रिकी ने अपना सर उठाया और उसकी नज़रों का पीछा करते हुए देखा कि वो अभी भी समंदर को ही देख रही थी



"आप जानते हैं, यह लहरें रोज़ समंदर से यहाँ तक आती है और फिर पत्थरों से टकरा के मर जाती हैं..लेकिन इसकी वजह से वो यहाँ आना छोड़ नहीं देती, उन्हे कुदरत ने ऐसा ही बनाया है कि वो यहाँ आ सके और इन पत्थरों को चीर कर आगे बढ़ सके और किनारे से मिल सके... अगर आप ना कहते तो मैं आप से प्यार करना बंद नहीं करती, क्यूँ कि मुझे आपके पास आके एहसास हुआ है कि कुदरत ने शायद मुझे आपके लिए ही बनाया है.. अगर आप ना कहते मेरा प्यार बिल्कुल कम नहीं होता, बल्कि और ज़्यादा बढ़ जाता क्यूँ क़ि आपके मना करने पे मैं आप में कोई खामी ढूँढने के बदले अपने ही प्यार पे शक करती.. और आगे भी अगर कभी हम साथ ना रह सके तो भी आपको दोष देने के बदले मैं यह समझ लूँगी कि मेरे प्यार में ही कोई कमी रह गयी हो.." शीना ने एक साँस में ही जवाब दिया और रिकी के आँखों में देखने लगी... रिकी को शीना से ऐसे जवाब की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी, उसे लगने लगा कि शीना सही में उससे प्यार करती है.. लेकिन फिर भी रिकी ने उसे थोड़ा गुस्सा दिलाने के लिए फिर एक सवाल पूछा



"फिर भी शीना, अगर मैं लंडन से ही किसी लड़की के साथ आता तो..तुम्हारा प्यार अधूरा रह जाता ना, तुम मेरे प्यार को हासिल नहीं कर पाती.." रिकी ने जान बुझ के यह लाइन उसकी आँखों से अपनी नज़रें हटा के कहा ताकि शीना को लगे कि वो सीरीयस है...



"इश्क़ दे मेरी मित्रा पहचान की....मिट जावे जदो ज़िद अपनान दी.." शीना का यह जवाब सुन रिकी ने तुरंत अपनी नज़रें शीना से मिलाई , शीना ने भी हल्की सी मुस्कान देके रिकी के हाथों को अपने हाथ में थामा और दूसरा हाथ बढ़ा के रिकी की पलकों को अपने होंठों को एहसास दिलाया..



"सच्चे प्यार का मतलब उसे हासिल करना नहीं होता... अगर आप किसी से प्यार करते हो तो उसे हासिल करने के बदले उसे खुश देखने की ख्वाहिश रखो, अगर आपका प्यार आपसे दूर जाना चाहे तो उसे जाने दो.. जब वो लौट के आए तब ही वो आपका है, अगर नहीं आता तो कभी आपका था ही नहीं.." रिकी ने शीना की आँखों में देख के कहा, इस बार उसने शीना के चेहरे को थामा और धीरे धीरे अपने होंठ शीना के होंठों के पास ले जा रहा था.. शीना भी बिना किसी झिझक के अपने होंठ उसके होंठों के पास ले जा रही थी, पत्थरों से टकराती हुई लहरें अब शांत हो गयी, हल्की सी तेज़ी से बहती हवा अब और भी धीमी हो गयी थी... आकाश से पन्छियो के चहेकने की आवाज़ भी नहीं थी, जैसे जैसे दोनो के होंठ करीब आ रहे थे, वैसे वैसे दोनो के दिल की धड़कन की आवाज़ वहाँ मौजूद कोई भी सुन सकता था.. दोनो के चेहरे पे पसीना बढ़ने लगा था,

शीना और रिकी के होंठों में फासला अब ज़्यादा नहीं था , दोनो की साँसें तेज़ चल रही थी...रिकी ने अपना हाथ शीना की गर्दन के पीछे रखा था और अपनी उंगलियाँ हल्के हल्के घुमा रहा था, शीना के लिए भी अब रुकना मुमकिन नहीं था, वो तैयार थी अपनी ज़िंदगी की सबसे पहली किस के लिए.. अपनी ज़िंदगी के प्यार के साथ उसकी पहली किस, इससे अच्छे माहॉल में नहीं हो सकती थी, जहाँ कुदरत भी उनकी गवाह बन रही थी.. शीना और रिकी के लिए मानो सब कुछ थम गया था, कोई शोर नहीं, पानी स्थिर हो चुका था, हवा बिल्कुल नहीं थी.. रिकी ने धीरे से अपने होंठ आगे बढ़ाए और शीना के होंठों पे हल्के से रख दिए.. दोनो की आँखें बंद थी, जैसे ही शीना को अपने होंठों पे रिकी के होंठों का एहसास हुआ उसके दिल की धड़कन धीरे होने का नाम ही नहीं ले रही थी.. रिकी ने फिर अपने होंठों को शीना के होंठों से हल्का ब्रश किया और थोड़ा पीछे ले जाके अपने होंठों को, शीना के चेहरे को देखने लगा, शीना की आँखें बंद थी, और उसके चेहरे की चमक दुगनी हो गयी थी जिसे देख रिकी के चेहरे पे हल्की सी मुस्कान आ गयी और उसने शीना को गले लगा लिया...

जब शीना को एहसास हुआ कि रिकी ने स्मूच नहीं की बल्कि उसके होंठों को बस हल्का सा छुआ ही था, तो वो भी कुछ देर के लिए शरमा गयी और अपने चेहरे को रिकी की बाहों में छुपा लिया... शीना राइचंद, ज़िंदगी में पहली बार शरमाई थी, उसके चेहरे की लाली देखते ही बनती थी, रिकी को भी इस बात का एहसास हुआ और वो शीना के सर पे हाथ रख के उसके बालों से खेलने लगा



"वैसे मुझे पता नहीं था कि आपको पंजाबी आती है..." शीना ने अपना सर रिकी की बाहों से निकाल के उसकी आँखों में देखते हुए कहा



"ए वी साड्डा एक रंग है.." रिकी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, जिसके जवाब में शीना बस मुस्कुरा दी



"हाहाहा, नतिंग लाइक दट.. लंडन में मेरे अपार्टमेंट में मेरे दो और फरन्डस हैं, दोनो हार्डकोर पंजाबी हैं, तो थोड़ी थोड़ी उनसे सीखी है मैने..ज़्यादा नई आती.. लेकिन तुमने कहाँ सीखी, मुझे पता नहीं था तुम्हारे इस टॅलेंट के बारे में.." रिकी ने शीना को फिर अपनी बाहों में लेते हुए कहा



"नहीं नहीं, मुझे नहीं आती.. वो तो मैं बस आपको इंप्रेस करने के लिए बोल रही थी, कल रात मैने एक मूवी देखी जिसमे यह डायलॉग था, जब समझ नहीं आया तो फिर रीवाइंड रीवाइंड करके सुना, उसे लिखा और गूगल पे मतलब निकाला, और तब जाके आपको सुनाया.." शीना ने ऐसी मासूमियत से जवाब दिया कि रिकी के दिल को छू गयी शीना की यह बात



"लेकिन मैं तुम्हारे लिए ऐसा कुछ नहीं करूँगा, ना ही मैं अच्छा लिखता हूँ, और ना ही अच्छे से एक्सप्रेस कर सकता हूँ.." रिकी ने जैसे एक शिकायती टोन में कहा



"कोई बात नहीं, यही बात मुझे सबसे ज़्यादा पसंद है आपकी..यूआर नोट फेक..." शीना ने फिर रिकी की आँखों में देख के कहा



"चलो अब चलते हैं, काफ़ी देर हो गयी है, अगर ढूँढते हुए तुम्हारी भाभी यहाँ आ गयी तो फिर और मुश्किलें बढ़ा देगी" कहके रिकी ने शीना का हाथ थामा और शीना की मदद की पत्थर से उठने में



"या राइट, बट वैसे आपने सोचा जो बात मैने बताई.. एक तो मैने उसे सब बता दिया, और उपर से विक्रम भैया वाली बात..." शीना ने रिकी का सहारा लिया और दोनो आगे बढ़ने लगे



"हां सोचा है, ज़्यादा मुश्किल नहीं है.. तुम्हे वक़्त और दिन याद है ना जिस दिन उनकी किसी के साथ बात हुई थी विक्रम भाई को लेके" रिकी और शीना दोनो अपने ग्लासस पहनते हुए बातें कर रहे थे



"हां, अच्छे से याद है.. फिर क्या करें.."



"तो कोई बात नहीं है, भाभी का जो सर्विस प्रवाइडर है.." रिकी ने बस इतना ही कहा के शीना ने उसे टोक दिया



"हां वोडाफोन, और मैं वोडेफोन में कुछ लोगों को जानती हूँ, जानती हूँ ळीके फ्रेंड्स ऑफ फ्रेंड्स.." शीना ने रिकी को देखते हुए कहा



"कितने फ्रेंड्स है यार तुम्हारे, दे आर स्प्रेड एवेरिवेर.. एनीवेस, तो उनसे कहके डीटेल्ड बिल निकलवाओ , तारीख और वक़्त के हिसाब से नंबर निकालो और उस नंबर की डीटेल्स हासिल करो पर साथ ही साथ वो नंबर इनस्पेक्टर निखिल को भी दे देना, ताकि वो इस बात से अंजान ना रहे.." अपनी बात कहके रिकी ने एक हाथ आगे बढ़ाया जिसे शीना ने थाम लिया और हँसती हुई कहने लगी



"मानना पड़ेगा, चलिए अब चलते हैं.. अगर ढूँढते हुए आपकी बहें यहाँ आ गयी तो फिर और मुश्किलें बढ़ा देगी" शीना ने हास के रिकी का डायलॉग उसे ही सुनाया

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07-03-2019, 04:00 PM,
#56
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"ह्म्‍म्म, राजवीर क्या कहते हो.. इस ज़मीन के बारे में.." अमर और राजवीर अपने सामने पड़े एक चार्ट पेपर को देख रहे थे और साथ ही साथ अपना जाम पी रहे थे.. दोनो इस वक़्त अमर के उसी वीकेंड होम में थे जहाँ कुछ वक़्त पहले उनके बच्चे आए थे



"ज़मीन तो बढ़िया है भाई साब, शहर के बीचो बीच है तो हर जगह से डिस्टेन्स सेम ही रहेगा, फिर चाहे वो मार्केट हो, या साइट सीयिंग प्लेसस..." राजवीर ने भी अपने ग्लास उठाया और अमर की हां में हां मिला दी



"ठीक है चलो इसे फाइनल कर देते हैं, कल सुबह तक क्लोज़ कर देते हैं.."



"पर भाई साब, बिना किसी भाव तोल के, मतलब अगर यह ज़मीन सस्ते में मिलती है तो इसमे हर्ज़ ही क्या है.." राजवीर ने बिल्कुल सही बात कही थी अमर से.. जब डीलर ने उन्हे वो ज़मीन दिखाई तो अमर ने भाव पूछे बिना उसे कह दिया कि अगर पसंद आएगी तो जल्दी निपटा देंगे काग़ज़ात के काम को



"ठीक है राजवीर, भाव तोल करना मेरी फ़ितरत नहीं, चीज़ पसंद आ गयी तो उसे खरीद लो, अगर पैसे का बारे में सोचोगे तो शायद चीज़ नहीं मिल पाएगी तुम्हे"



"सही कह रहे हैं भाई साब, लेकिन आप खुद सोचिए, कि अगर हम इस ज़मीन का भाव तोल करेंगे तो सस्ते में मिलेगी और ऐसा कोई हमारा कॉंपिटिटर नहीं है यहाँ जो ज़मीन ले जाएगा छीन के.. आज डीलर से मेरी बात हुई तो यह ज़मीन 2000 के भाव से दे रहा है जिसका मतलब यह ज़मीन हमे करीब 28-30 करोड़ के बीच मिलेगी, लेकिन हम अगर उससे अगर 300 भी कम कर लेते हैं तो मेरा खर्चा 28-30 करोड़ के बदले सीधा 25 के नीचे आ जाएगा, मतलब 5 करोड़ की सीधी बचत" राजवीर ने अपनी कॅल्क्युलेशन दिखा के कहा



"मुझे नहीं देखना यह सब राजवीर, मेरे नेचर में भाव तोल करना नहीं है, और ना ही मैं वो करना चाहता हूँ.. आज इतने ब्रोकर्स और डीलर्स आए थे हमारे पास क्यूँ कि वो जानते हैं कि अमर कभी भी औरतों के साथ सब्ज़ी मंडी नहीं जाता.." अमर ने एक ठहाका लगाते हुए कहा और दोनो ग्लासस फिर भर दिए



अमर की यह बात राजवीर को बिल्कुल पसंद नहीं आई, लेकिन उसने खामोश रहना ठीक समझा.. चुप चाप दोनो अपने अपने ग्लास में से दारू पी रहे थे तभी अमर को उस डीलर का फोन आया



"हां जी , देशपांडे साब.. आप तो बड़े बिज़ी हो गये हैं.." अमर ने फोन उठा के कहा



"हां जी ज़मीन तो पसंद है हमें, बस अब आप सुबह आ जाइए, कागज़ी काम काज निपटाना चाहता हूँ कल ही.." अमर ने अपने ग्लास से एक और चुस्की लेते हुए कहा, और ठीक उसके सामने राजवीर उसकी बातें सुन रहा था और साथ ही उसकी डील करने के तरीके को अब्ज़र्व कर रहा था



"अच्छा, लेकिन अभी राजवीर ने तो 2000 बताया मुझे.." अमर ने राजवीर की ओर देखते हुए कहा जिससे राजवीर ने अपना ग्लास नीचे रखा और अमर के चेहरे के भाव पढ़ने लगा



"ना जी, कोई दिक्कत नही, 2500 में डन करेंगे...लेकिन हां इस बात का ध्यान रहे, मुझे इस ज़मीन पे कोई नाटक नहीं चाहिए खरीदने के बाद, क्लिर्नेस और पेपर सब ठीक होगा तब ही पूरा पैसा दूँगा, पेपर्स साइन होंगे, मैं चेक करवाउन्गा, सब ठीक निकला तो आपके पैसे आपके पास पहुँच जाएँगे..." अमर ने अपनी छाती चौड़ी करते हुए कहा



"ठीक है चलिए, " कहके अमर ने जैसे ही फोन रखा राजवीर ने बोलना शुरू किया



"भाई साब, दोपहर को मेरी बात 2000 में हुई, अभी 2500 कैसे.. कॉस्टिंग 25 % से बढ़ जाएगी , अब 28 के बदले हमें 35-40 करोड़ देने पड़ेंगे.." राजवीर बिना कुछ सुने अपनी बात कहने लगा



"अब बस भी करो राजवीर, हम ने फ़ैसला कर लिया तो कर लिया.. अब ज़्यादा किच किच नहीं चाहिए इस बात पे मुझे " अमर ने अपना ग्लास खाली किया और फिर उसे भरने लगा



"माफ़ कीजिएगा भाई साब, अगर मेरी कोई बात सुननी नहीं थी, तो फिर मुझे यहाँ लाए ही क्यूँ आप.. अकेले भी आ सकते थे, " राजवीर ने झल्ला के कहा



"अपनी टोन को काबू में रखो राजवीर, मुझ से ऐसे बात नहीं करो तुम" अमर ने कड़क आवाज़ में जैसे हिदायत देते हुए कहा जिसे सुन राजवीर कुछ देर के लिए खामोश हो गया



"आज हमारे पास जो भी है, सब ऐसे ही नहीं बना है, मेहनत के साथ साथ दिमाग़ भी लगाया है.." अमर ने फिर गुरूर दिखा के कहा



"जानता हूँ भाई साब, विक्रम ने आप से ज़्यादा मेहनत ही नहीं की , लेकिन आज अगर प्रॉपर्टी जितनी भी है, उसमे काफ़ी योगदान विक्रम का भी रहा है, और आज अगर वो आपकी जगह होता तो ऐसे डील नहीं करता वो... शेर हैं आप जंगल के, लेकिन यह भी मान लीजिए कि अब शेर बूढ़ा हो गया है... जब शेर बूढ़ा होता है तो उसकी ताक़त कम नहीं होती, पर उसकी चालाकी कम होती है, इसलिए वो कमज़ोरी का बहाना बनाता है और उसे जो मिलता है वो खाने लगता है.. आप ज़्यादा सोच नहीं सकते अब, इसलिए बस जो भी मिल रहा है, जैसा भी मिल रहा है वो ले रहे हैं..' राजवीर ने अपनी आँखें अमर की आँखों से मिलाते हुए कहा. अमर यह बात सुन अपने दाँत पीसने लगा और तैश में आके एक ही झटके में अपना जाम ख़तम कर दिया



"यह भी तुम्हारी वजह से है राजवीर, अगर तुम मुझे छोड़ के अकेले नहीं जाते तो आज हम भाई साथ रहते और मेरे बच्चे को इस बेट्टिंग के दलदल में नहीं आना पड़ता और शायद उसका भविश्य अलग होता.. लेकिन तुम्हारी वजह से मैं अकेला हुआ और मजबूरन विक्रम को मुझे इस काम में धकेलना पड़ा.."



"मैं भी आपकी ज़िद्द की वजह से ही गया था भशब, आपने ही मेरी ज़िंदगी बर्बाद की.. आपके रुतबे और शान शौकत की वजह से मुझे यहाँ से जाना पड़ा, अगर आज मैं अपनी ज़िंदगी अपनी मर्ज़ी से जी रहा होता तो शायद आज सुखी होता मैं, लेकिन.."



"लेकिन क्या राजवीर... आज किस चीज़ की कमी है, पैसा रुतबा एक सुशील लड़की, और क्या चाहिए तुम्हे... सुख के लिए इंसान को इन सबसे ज़्यादा और कुछ नहीं चाहिए राजवीर, वहम से निकलो" अमर ने राजवीर को टोकते हुए कहा



"यह सब आपको लगता है भाई साब.. आज मेरी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा कमी है प्यार की, जिसे शायद आप कभी समझ नहीं पाए...और रही बात मेरी लड़की की, तो वो भी मैं ज़िद्द करके अडॉप्ट करके लाया, अगर आपके कहने पे चलता तो शायद ज़िंदगी भर अकेला ही रहना पड़ता और घुट घुट के जीता"



"अपनी ज़बान पे काबू रखो राजवीर... अगर होश में नहीं हो तो दफ़ा हो जाओ यहाँ से और जा के सो जाओ,. लेकिन यह बात जो मुझे कही, अगर कभी भूल से ज्योति के आगे कही तो मैं भूल जाउन्गा के तुम मेरे भाई हो.." अमर ने चिल्ला के कहा



"भूल तो आप मुझे कब के गये हैं भाई साब, आज अगर मैं अकेला हूँ तो सब आपकी वजह से.. आपकी वजह से.... आप.... कीईईई.. व्जहह.." राजवीर होश खोने लगा शराब के नशे की वजह से और वहीं पड़े सोफे पे बेहोश सा हो गया



बेहोश होने से पहले आज राजवीर ने अपने दिल की काफ़ी भडास बाहर निकाली, ज्योति राजवीर की अपनी बेटी नहीं बल्कि उसकी गोद ली हुई बेटी थी... अमर ने जैसे ही यह बात सुनी, अमर के दिमाग़ में वक़्त के पन्ने पलटने लगे और काफ़ी पुरानी बातें याद आने लगी... जो राज़ अब तक अमर के सीने में दफ़्न थे, शायद अब वो धीरे धीरे कर बाहर निकलेंगे
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07-03-2019, 04:00 PM,
#57
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
सुबह राजवीर और अमर की नज़रें जब टकराई तो दोनो की आँखों में अलग भावनाएँ उमड़ आई.. अमर जहाँ अब तक क्रोध में डूबा हुआ था वहीं राजवीर की नज़रों में कम से कम माफी के भाव तो नहीं थे, राजवीर खुश था कि उसने अपने दिल की भडास अमर के आगे निकली... दोनो का ध्यान तब टूटा जब उनका नौकर देशपांडे को उनके सामने लाया



"आइए आइए देशपांडे जी..." अमर ने अपनी बाहें खोल के कहा जिससे दोनो लोग गले मिले , देशपांडे ने राजवीर से भी हाथ मिलाया और तीनो लोग बातें करने में लग गये



"तो चलते हैं, एक बार फिर ज़मीन देख लेते हैं और काग़ज़ात वहीं साइन कर लेंगे.." अमर ने कहा और तीनो लोग फिर उस ज़मीन की ओर निकल गये.. ज़मीन पे पहुँचते ही अमर ने अपनी नज़र दौड़ाई तो उसकी आँखें चमक उठी.. रिकी का सपना सच होने वाला था, अमर ने अपने दिल में सोचा



"ठीक है देशपांडे जी... काग़ज़ात पे साइन कर लेते हैं, उम्मीद है आप सब काग़ज़ लाए हैं अपने साथ..." अमर ने गाड़ी की तरफ बढ़ते हुए कहा



"बिल्कुल राइचंद जी, बस एक एनओसी पेंडिंग है मुनिसीपलटी से..जैसे ही वो आती है, काग़ज़ पूरे हो जाएँगे.." देशपांडे ने कहा



"कितना वक़्त लगेगा हाथ में एनओसी आने के लिए.."



"2 दिन.. उससे ज़्यादा नहीं, मेरी अभी वहाँ के ऑफीसर से बात हुई है" देशपांडे ने रुक के जवाब दिया



"ह्म्म्मक... तो एक काम करते हैं.. आप वो एनओसी लेके मुंबई आइए और साथ ही सब काग़ज़, लेकिन इस बार काग़ज़ रिकी राइचंद के नाम के बनाईएगा.." अमर की इस बात से राजवीर को झटका लग गया...लेकिन वो खामोश रहा



"ठीक है अमर जी.. जैसी आपकी मर्ज़ी, लेकिन..." देशपांडे ने इतना कहा कि अमर बोल पड़ा



"मैं जानता हूँ देशपांडे जी... 80-20 का रेशियो रहेगा, 80 % कॅश आपको मैं उसी दिन दे दूँगा, और 20% आपके बॅंक में ट्रान्स्फर कर दूँगा..."



"थॅंक यू अमर जी..." कहके तीनो वहाँ से चल दिए.. देशपांडे को ड्रॉप करके, अमर और राजवीर मुंबई की तरफ निकल गये.. रास्ते में राजवीर कुछ नहीं बोल रहा था, कल रात की बात तो ठीक है, लेकिन यह ज़मीन पूरी रिकी के नाम होगी, यह सुन के उसका सर चकराने लगा... कम से कम 40 करोड़ की ज़मीन.. और अगर अमर ऐसा कर सकता है तो रिज़ॉर्ट भी पूरा उसी के नाम होगा, रिज़ॉर्ट की लागत कम से कम 50-60 करोड़ पकड़ता तो भी उस प्रॉपर्टी की वॅल्यू 100 करोड़ हो जाएगी.. राजवीर बस इसी आँकड़े में घूम रहा था, लेकिन उसके भाव चेहरे पे नहीं आने दिए.. अमर राजवीर को देख देख के समझने की कोशिश कर रहा था पर वो समझ नहीं पा रहा था



"कुछ कहना चाहते हो राजवीर.." अमर ने सरलता से पूछा



"नहीं भाई साब, जिस काम का कोई फ़ायदा नहीं उस काम को करने में कोई मज़ा नहीं आता मुझे.." राजवीर ने उतने ही कठोर भाव से जवाब भी दिया जिसे देख अमर समझ गया के ज़रूर कोई बात है, लेकिन वो खामोश रहा और फिर कुछ नहीं कहा.. कुछ ही देर में दोनो मुंबई पहुँचे, और यह बात सब को बताई... शीना और रिकी के साथ सुहसनी भी काफ़ी खुश थी कि अमर ने अपने बच्चों को सोच के यह फ़ैसला किया, ज्योति भी खुशी दिखा रही थी लेकिन अंदर ही अंदर वो इस सुनहेरे मौके को हाथ से जाता हुआ देख काफ़ी दुखी थी... अगर अमर ने ज़मीन रिकी के नाम की है तो रिज़ॉर्ट बनने के बाद वोही प्रॉपर्टी भी शीना और रिकी के नाम करेगा, लेकिन अगर शीना की जगह मैं होती तो मुझे ही वो हिस्सा मिलता.. यह सोच सोच के ज्योति के घाव और हरे होते रहते.. यह सोच दोनो बाप बेटी के दिमाग़ में आई..



"कंग्रॅजुलेशन्स...." शीना ने रिकी के रूम में जाके एक बहुत ही मधुर आवाज़ में कहा



"सेम टू यू स्वीटहार्ट.." रिकी ने जवाब में शीना के नाज़ुक बदन को अपने आलिंगन में लिया और उसके माथे को चूम लिया



शीना और रिकी बातें ही कर रहे थे कि ज्योति भी वहाँ आके उनके साथ जुड़ गयी और उनके साथ बातें करने लगी...



"गुड भैया, अट लीस्ट अब आप फुल फोकस के साथ काम कर पाएँगे.." ज्योति ने रिकी के सामने बैठते हुए कहा



"हां यार, खाली बैठ बैठ के आइ गॉट बोर्ड यार, अब जल्द से जल्द काम शुरू करना है.." रिकी ने ज्योति से कहा और अगले ही पल उसने अपनी आँखें शीना की तरफ मोड़ के कहा



"तुम एक काम करो, तुम्हारी आर्किटेक्ट फ्रेंड है ना, उसी को बोलो हमारे साथ जुड़ जाए इस काम में.. वी नीड प्रोफेशनल्स राइट.. आंड उसने सब काम सब कॉन्सेप्ट देखे हुए हैं, तो उसे कुछ अलग एक्सप्लेन नहीं करना पड़ेगा..."



"मैने वो कबका कर दिया है, इन फॅक्ट वो जब चलने के लिए तैयार हुई मैने उसे उसी दिन कहा था, फीस की बात भी साथ में कर लेंगे.." शीना ने आराम से रिकी की आँखों में देख जवाब दिया



"अरे वाह, हर काम पहले ही कर दिया है... एनीवेस, ज्योति, हम कब जा रहे हैं...आइ मीन तुमने टिकेट्स और सब बुक कर दिया.." रिकी ने फिर अपनी आखें ज्योति की तरफ घुमा के कहा



"हां, टिकेट्स कर दिए हैं, हम 5 दिन के बाद जाएँगे, होटेल फिलहाल बुक नहीं किया है..वो भी जल्दी से कर दूँगी..आप फाइन हो आफ्टर 5 डेज़.." ज्योति ने फिर सवाल पूछा और एक नज़र शीना को देखने लगी



"हां, जल्दी जाएँगे तो ही जल्दी लौटेंगे ना.. और जल्दी रिज़ॉर्ट का काम भी शुरू हो जाएगा"



"भैया, तो फिर मैं कहती हूँ कि शॉपिंग एक साथ चलें, इसी बहाने मैं बोर भी नहीं होउंगी और कंपनी भी रहेगी.. और साथ में आप भी शॉपिंग कर लेना.." ज्योति ने इतना ही कहा कि उन्हे स्नेहा बुलाने आ गयी खाने के लिए..



"आइ डोंट थिंक पासिबल है ज्योति, मुझे कुछ और काम भी हैं, और मेरी शॉपिंग 20 मिनट में होगी तो मैं लास्ट मिनिट भी कर सकता हूँ, यू कॅरी ऑन.. शीना के साथ जाओ" रिकी ने ज्योति के साथ सीढ़ियाँ उतरते हुए कहा



"मैं भी मेरी फरन्ड के पास जा रही हूँ आज, और कल से कुछ दूसरा काम है यार.. वेरी सॉरी ज्योति..." शीना ने इतना कहा कि ज्योति अंदर से आग बाबूला होने लगी और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गयी दोनो से अलग होके



"चलो, मैं अपनी बात टेबल पे ही कहूँगी ओके.." शीना ने रिकी के कान में फुसफुसाया और रिकी ने हां में सर हिला दिया



सब खाना खाने बैठे बातें कर रहे थे, आज अमर काफ़ी खुश था के उसके बेटे के सपने की ओर पहला कदम बहुत कामयाब रहा..सुहसनी भी इस खबर से काफ़ी खुश थी और आज पहली बार उसकी खुशी फूले ना समा रही थी, ज़मीन की बात सुन स्नेहा शॉक थी कि आख़िर उसका क्या किया जाए, खैर वो उसके लिए मायने नहीं रखता था शायद इसलिए उसने इस बात को हवा कर दिया.. ना रिज़ॉर्ट के प्रॉजेक्ट में काम करने का हिस्सा, ना पैसों का हिस्सा और अब रिकी का शॉपिंग करने से भी इनकार... ज्योति के दिल को चोट पे चोट मिल रही थी, उसने काफ़ी कोशिश की कि टेबल पे उसके यह भाव ना आए लेकिन फिर भी अमर ने उसे ऐसे देख लिया



"क्या हुआ ज्योति बेटा, इतनी गुम्सुम क्यूँ हो.. कोई बात है तो बताओ बेटा मुझे.." अमर ने ज्योति को देखते हुए कहा... जैसे ही अमर ने इस बात को कहा, शीना को समझते देर ना लगी कि अगर ज्योति ने उसकी उदासी का कारण बताया तो फिर उसके किए कराए पे पानी फिर जाएगा, वो रिकी के साथ शॉपिंग करेगी यह पहले से ही तय था इसलिए दोनो ने उसे मना कर दिया था, अब अमर ने जब पूछा तब बिना वक़्त गवाए शीना बीच में बोल पड़ी



"पापा, ज्योति शॉपिंग पे जाना चाहती है, लेकिन उसने हम से पूछा, वक़्त नहीं होने के कारण हम ने उसे मना किया इसलिए हम से नाराज़ हो गयी है.. हम ने उसे काफ़ी मनाने की कोशिश की लेकिन देखिए ना अब तक नाराज़ है हमारी प्यारी बहन हम से.." शीना ने जान बुझ के ऐसी टोन में कहा जैसे उसे काफ़ी दुख हो इस बात का



"अरे बेटा, हर छोटी बात पे नाराज़गी.. क्या है यह, कोई नहीं, चलो मैं चलूँगा तुम्हारे साथ शॉपिंग में..हॅपी.." राजवीर ने अमर के बीच में जवाब दिया



"लो, और बोलो.. इसमे नाराज़गी वाली क्या बात है बेटा, पापा के साथ जाओ, क्या है ताऊ ज़रा बूढ़े हो गये हैं, नहीं तो वो भी आते तुम्हारी हेल्प करने में.." अमर ने ठहाका लगाते हुए कहा.. ज्योति कुछ कह पाती उससे पहले सब अपनी बात कह गये, वो राजवीर को मना नहीं कर सकती थी क्यूँ कि शायद उसे बुरा लग जाता, इसलिए वो खामोश रही और बस एक हल्की सी मुस्कुराहट दे दी..



"एनीवेस, पापा..और बाकी सब भी सुनिए, अगर यह दोनो घूमने जा रहे हैं , तो प्रॉजेक्ट पे तो मैं भी काम करूँगी ना, तो आपको ऐसा नहीं लगता कि मुझे भी घूम के आना चाहिए.." शीना ने अमर को देखा और फिर एक एक कर बैठे हुए सब को देखने लगी.. अमर कुछ कहता इससे पहले वो फिर बोल पड़ी



"डोंट वरी पापा, मैं इन दोनो के साथ नहीं जाउन्गी, और मैं इन दोनो से काफ़ी दूर भी जाउन्गी घूमने के लिए" शीना ने खुशी से अमर को कहा



"कोई बात नहीं बेटा, लेकिन जाओगे कब तुम लोग...यह तो बताओ, और कहाँ.." सुहसनी ने शीना से कहा



"माँ, यह दोनो बलि जाएँगे इंडोनेषिया.. 5 दिन बाद, और मैं गोल्ड कोस्ट ऑस्ट्रेलिया.. 3 दिन बाद निकलूंगी.. मेरे सब फरन्डस रेडी हैं, इसलिए तो मैं इसके साथ शॉपिंग पे नहीं जा रही, मेरी फरन्डस और मैने सब पहले ही कर लिया है.." शीना ने ज्योति को देखते हुए कहा



"वाह शीना, आज कल तू सब काम अड्वान्स में कर रही है...कोई बात नहीं, तीनो घूम आओ...रिकी, कार्ड्स और पैसे वगेरह" अमर ने इतना कहके रिकी को देखा



"सब है पापा, चिंता ना करें, टिकेट्स भी आ गये हैं.." रिकी ने अपना खाना ख़तम करते हुए कहा

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07-03-2019, 04:00 PM,
#58
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"ओके, चलो.. अब यह जवान पीढ़ी कहीं जा रही है तो हम ओल्ड ग्रूप भी कहीं चलें क्या.." अमर ने सुहसनी और राजवीर को देख के कहा और सब बैठे बैठे ठहाका मारके हँसने लगे, लेकिन ज्योति बस खामोश थी.. और उसके दिमाग़ ने एक और चीज़ अब्ज़र्व की जो शायद कोई और कभी ना कर पाता.. लेकिन उसने बिना कुछ सोचे अपना खाना ख़तम किया और शॉपिंग के बारे में सोचने लगी.. ज्योति और राजवीर ने वक़्त डिसाइड करके जाने का फ़ैसला किया और अपने अपने कमरे में रेडी होने के लिए गये.. जाते जाते ज्योति बार बार सोचती कि राजवीर के साथ उसे मज़ा आएगा कि नहीं, उसका मूड बिल्कुल भी नहीं था राजवीर के साथ शॉपिंग पे जाने का, पिछले कुछ दिनो से जैसे उसकी कोई भी बात ठीक से नहीं हो पा रही, यह सोच के बार बार उसका दिमाग़ गरम हो जाता.. इसलिए जैसे ही वो अपने रूम में पहुँची उसने कमरा लॉक किया और सिगरेट के कश लगाने लगी और सोचने लगी कि क्या किया जाए.. लेकिन उसके दिमाग़ में कुछ नहीं आया.. जैसे उसे लगा कि यह शॉपिंग बहुत बेकार होने वाली है, उसके आँखों के आगे कुछ कुछ झलकियाँ और कानो में कुछ आवाज़ें सुनाई देने लगी



"आहहाहा..कितने बड़े चुचे हैं मेरी बेटी के अहहा उफ़फ्फ़..." यह वोही लाइन थी जो उस रात राजवीर ने सुहसनी को चोदते हुए कही थी और ज्योति ने कॅमरा में देख लिया था.. बार बार यह आवाज़ उसके कान में गूँजती.. जैसे जैसे यह आवाज़ बढ़ती वैसे वैसे उसकी आँखों के आगे वो दृश्य आ जाता जहाँ उसका बाप सुहसनी की फोटो देखते हुए अपने लंड को हिला रहा था... राजवीर का मूसल अपनी आँखों के आगे आते ही ज्योति पैरों से कमज़ोर पड़ने लगी और बेड पे लेट के गहरी गहरी साँसें लेने लगी



"आहहहहा उफफफ्फ़....." ज्योति ने हल्की सिसकारी मारी और अपने बालों को पकड़ के खीचने लगी जैसे वो उस चीज़ के लिए तड़प रही थी और उसे अपने पास ना पाके तकलीफ़ में हो.. ज्योति ने अपनी चूत की आग पे कंट्रोल किया और खुद से कहने लगी



"अगर पापा मुझे बिस्तर पे ले जाना चाहते हैं तो मैं क्यूँ पीछे रहूं.. आख़िर मेरी चूत का ख़याल भी तो कोई रखेगा ना, जब एक बहेन अपने भाई से प्यार कर सकती है, और उससे आगे जाके चुदवाने वाली है तो फिर बाप बेटी क्यूँ नहीं... और जैसे ही यह ख़याल उसके दिल में आया, उसके कानो में फिर उस रात की एक बात गूंजने लगी




उस रात जब चुदाई करके दोनो देवर भाभी थक के पसर चुके थे, दोनो हान्फ्ते हुए बातें करने लगे, लेकिन कुछ वक़्त बाद सुहानी ने अपनी साँसें संभाली और अपने कपड़े पहनने लगी... तब राजवीर ने उसे कहा



"कहाँ जा रही है मेरी प्यारी भाभी, अभी एक घंटे में फिर तैयार हो जाएगा यहाँ.. उस वक़्त क्या करूँगा.." राजवीर ने अपने मुरझाए हुए लंड को हाथ में लेके कहा



"मैं क्या जानूँ, अब अमर उठ गया तो तुम नहीं जानते क्या होगा, इसलिए मैं तो जा रही हूँ,.. और तुम्हारे इस साँप की बात रही तो कहा ना उसे अपनी बेटी के बिल में घुसा दो, दोनो को अच्छा लगेगा" सुहसनी ने कपड़े पेहेन्ते हुए जवाब दिया



"ऐसा कैसे होगा भाभी, बाप और बेटी.. नहीं, ठीक नहीं लग रहा.." राजवीर ने होश में आकर कहा, चुदाई के वक़्त सब बातें चलती हैं, उस वक़्त जिस्म की गर्मी दिमाग़ को रोक देती है और आदमी कुछ भी बोल सकता है..



"क्यूँ नहीं, जब मेरा बेटा मेरी बेटी को प्यार कर सकता है तो आगे वो भी उसे चोदेगा ही.. जब देवर भी भाभी को चोद सकता है, तो फिर बाप क्यूँ नहीं बेटी को.. मैने कहा ना हम रईस लोग कुछ भी कर सकते हैं, ऐयाशी हमारे कतरे कतरे में है..." सुहसनी ने पूरे कपड़े पहेन लिए और राजवीर को देखते हुए कहा, कुछ कहने के लिए राजवीर ने मूह खोला ही था कि सुहसनी फिर बोल पड़ी



"और तुझे क्या फरक पड़ेगा, वैसे भी ज्योति कौनसा तेरा खून है.. है तो अनाथ ही, गोद ली हुई है वो.. तो मज़े ले उसके, वैसे भी एक अनाथ के हिसाब से उसकी ज़िंदगी काफ़ी सँवरी हुई है.. इतना पैसा, रुतबा , शानो शौकत.. यह सब हर किसी के नसीब में नहीं होता..." सुहसनी ने अपनी बात इतनी बेरूख़ी से कही कि राजवीर को समझ नहीं आया कि वो क्या रिएक्ट करे.. सुहसनी के जाते ही राजवीर भी कुछ सोचने लगा और फिर नींद के आगोश में चला गया.. यह बात जब ज्योति ने पहली बार सुनी तो उसको यकीन नहीं हुआ कि वो सही है, लेकिन फिर जब उसका ध्यान सुहसनी की उस बात पे गया कि ऐसी लाइफ कम लोगों को नसीब होती है, अनाथ होने के बावजूद राजवीर ने कभी उसे किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी... उस रात ज्योति ने भी फ़ैसला कर लिया कि वो कभी इस बात को ज़हेन में नहीं लाएगी और अपनी ज़िंदगी जैसे चल रही है वैसे ही चलने देगी...



"अब जब सब बातें खुल गयी हैं, तो फिर मैं क्यूँ ना ज़िंदगी के मज़े लूँ, घर पे सही तो घर पे ही, " ज्योति ने खुद से कहा और शॉपिंग के लिए तैयार हो गयी.. तैयार होते ही ज्योति ने एक नज़र खुद को देखा और उसके चेहरे पे हल्की मुस्कान तेर गयी .. वो जल्दी से अपने कमरे से निकली और राजवीर के कमरे की ओर बढ़ी,



"पापा.. आइ आम रेडी, चलें.." ज्योति ने दरवाज़ा नॉक करके बाहर से ही कहा



"यस बेटा, कमिंग.. " राजवीर ने अंदर से ही आवाज़ लगाई और जल्द ही बाहर बढ़ने लगा.. जैसे ही उसने कमरे का दरवाज़ा खोला, सामने खड़ी ज्योति को देख उसके होश ही उड़ गये.. राजवीर एक दम सकपका गया, ज्योति खड़ी ही ऐसे तरीके से और ऐसे कपड़ों में थी..





ज्योति को देख राजवीर की आँखें उसे उपर से लेके नीचे तक अच्छी तरह स्कॅन करने लगी.. उसके चुचों से लेके धीरे धीरे उसकी नाभि, उसकी चूत और फाइनली उसकी जांघों तक पहुँचा जो बहुत चमक रही थी, ऐसा लग रहा था अच्छे से आयिल लगा के आई हो ज्योति उसपर... ज्योति ने भी यह अब्ज़र्व किया और अंदर ही अंदर हँसने लगी, लेकिन उसने राजवीर की इस हरकत को रोका नहीं.. कुछ सेकेंड्स में जब राजवीर होश में आया



"ज्योति, यह क्या पहना है.." राजवीर ने अपनी आँखें बड़ी करके कहा



"क्या हुआ पापा... सही तो कॉंबिनेशन है, डार्क ब्राउन स्कर्ट आंड वाइट शर्ट.." ज्योति ने अपने दाँतों से उंगली निकाली और ग्लासस उतार के राजवीर की आँखों में देख के कहा



"वव.व.वववव.. वो तो त्त थ्ह्ह्ह ठीक है बेटी पर ऐसे कपड़े.." राजवीर ने उसके स्कर्ट की तरफ इशारा करके कहा जो उसकी नंगी और कातिल जांघों को एक्सपोज़ कर रही थी..



"पापा यह एन्वेलप स्कर्ट है, लेटेस्ट फॅशन... अब चलिए ना, कपड़े यहाँ डिसकस करेंगे क्या." ज्योति ने फिर अपने ग्लासस पहने और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी.. ज्योति थोड़ी आगे गयी और हल्के से अपनी गान्ड ठुमका के चलने लगी, उसकी गान्ड को ऐसे हिलते देख राजवीर भी पसीना पसीना होने लगा.. नीचे जाके ज्योति ने राहत की साँस ली कि अमर नहीं है नहीं तो वो ऐसे कपड़ों में उसे बाहर जाने ही नहीं देता.. ज्योति ने जल्दी घर के बाहर कदम रखा और ड्राइवर से चाबी लेके गाड़ी में जा बैठी.. राजवीर आते ही साइड में बैठ गया और ज्योति को ड्राइव करते देख उसने कुछ नहीं कहा.. पूरे रास्ते में राजवीर नज़रें चुरा चुरा के ज्योति की टाँगों को घूरता तो कभी उसके चुचों को जो शर्ट में इतने टाइट लग रहे थे कि ऐसा लग रहा था कि एक बटन खोलो तभी साँस ले पाएँगे.. उसके गोल गोल चुचे, नंगी टाँगें देख राजवीर के जीन्स में भी हलचल होने लगी और उसके उभार धीरे धीरे दिखने लगा... राजवीर इस बारे में कुछ नहीं कर सकता था, इसलिए सिग्नल पे जब गाड़ी रुकती तो वो बाहर देखता और ज्योति उसके जीन्स में उसके लंड को... कुछ देर में दोनो लोवर परेल फीनिक्स माल पहुँचे... राजवीर जब मुंबई आता तो अमर के साथ या सुहसनी के साथ टाइम बिताता और कुछ चीज़ें देख पाता, लेकिन ज्योति शीना के साथ इतनी शॉपिंग करती कि वो यहाँ के हर रास्ते हर माल को पहचान चुकी थी.. माल के अंदर घुसते ही राजवीर ने नज़र घुमाई तो उसे यकीन नहीं हो रहा था, अल्डो, बोब्बि ब्राउन, ब्रुक्स ब्रदर्स.. और हर ऐसी ब्रांड की दुकानें थी जो उसने कभी नहीं सुनी थी..


"चलें पापा... " ज्योति ने उसके पास आके कहा और दोनो एक एक कर हर दुकान में गये और ज्योति के लिए कपड़े देखने लगे.. ज्योति लेने तो वेस्टर्न कपड़े आई थी लेकिन राजवीर के ज़ोर देने पे उसने कुछ इंडियन ड्रेसस भी लिए.. हर एक कपड़े को ज्योति ट्राइ करके दिखाती राजवीर को.. वेस्टर्न कपड़े और उनकी फिटिंग ज्योति के बदन पे देख राजवीर तो हलक से सूखने लगा था... राजवीर जैसे किसी फॅशन शो में बैठा था और ज्योति किसी मॉडेल की तरह उसे अपने कपड़े दिखाती, उसकी फिटिंग दिखती, बदन के हर कोने से, हर आंगल से ज्योति राजवीर को अपने कपड़े दिखाती और साथ साथ अपने जिस्म की नुमाइश भी करती...



"हो गया... चलें.." ज्योति ने जैसे ही यह शब्द कहे, राजवीर की जान में जान आई और वो बाहर की तरफ जाने लगा..



"अरे पापा, कहाँ जा रहे हैं.." ज्योति ने आगे बढ़ते हुए कहा, उसकी यह बात सुन राजवीर ने आँखों से बाहर का इशारा किया



"अरे चलें मतलब आगे चलें, अभी तो बीच वेअर लेना बाकी है, बीच पे क्या यह कपड़े पहनुँगी" ज्योति ने इतना ही कहा कि राजवीर केदिमाग़ के अंदर जैसे किसी ने न्यूक्लियर बॉम्ब फोड़ दिया हो.. बिना कुछ कहे राजवीर आगे बढ़ा और ज्योति के पिछवाड़े पे आँखें सेकता उसके पीछे चलता रहा, ज्योति को यह एहसास था कि राजवीर ठीक उसके पीछे है, इसलिए वो अपनी गान्ड को कुछ ज़्यादा ही थिरकन से हिला के चल रही थी.. ज्योति एक डिज़ाइनर शॉप में घुसी और पीछे पीछे उसके बॅग्स लिए राजवीर भी अंदर घुस गया.. राजवीर को यह डर था कि कपड़ों की तरह कहीं यह सब भी ज्योति ट्राइ करके ना दिखाए... दोनो बाप बेटी अंदर गये और करीब एक घंटे बाद बाहर दो बॅग्स लेके और निकले.. गाड़ी में बैठ के ज्योति नॉर्माली अपनी गाड़ी ड्राइव कर रही थी, लेकिन गाड़ी की ठंडक भी राजवीर के पसीने को नहीं कम कर पा रही थी.... बार बार उसके सामने ज्योति की वो तस्वीरें आ जाती जब उसे वो बिकिनी दिखा रही थी ट्राइ कर कर के...





बिकिनीस में से उभरते ज्योति के चुचे, उसकी गान्ड राजवीर के लंड पे ऐसे वार कर रही थी जिसे राजवीर रोक नहीं पा रहा था, हर बिकिनी के साथ ज्योति सिर्फ़ इतना पूछती "पापा हाउ ईज़ दिस वन.." और राजवीर बस इतना ही कह पाता.." नाइस बेटा.." जहाँ ज्योति खूब समझ रही थी कि उसकी चाल कामयाब हो रही है, वहीं राजवीर काफ़ी मेहनत कर रहा था कि उसका उभरा हुआ लंड ज्योति ना देख पाए, लेकिन वो ना कामयाब रहा.. जैसे जैसे गाड़ी घर की ओर बढ़ती राजवीर के दिल को सुकून मिलता.. गाड़ी की ब्रेक लगते ही राजवीर ने बिना कुछ कहे बॅग्स उठाए और अंदर की ओर जाने लगा... यह देख ज्योति समझ गयी कि उसका काम मुश्किल नहीं है, "आख़िर हैं तो मर्द ही.. बाप हो या भाई, " ज्योति ने खुद से यह शब्द कहे और गाड़ी की चाबी सेक्यूरिटी गार्ड को देके अंदर बढ़ गयी..




अपने कमरे में जाके ज्योति ने देखा कि उसके बॅग्स वहीं पड़े हैं.. इसलिए वो समझ गयी कि राजवीर कहाँ होगा.. उसने जल्दी से अपने कमरे को लॉक किया और अपने मोबाइल में नेट कनेक्ट करके राजवीर के कमरे को देखने लगी... बड़े से कमरे में जब राजवीर नहीं दिखा तो वो मायूस हो गयी, लेकिन फिर उसकी नज़र बाथरूम के दरवाज़े पे गयी जहाँ राजवीर नंगा खड़ा अपने लंड को हिलाए जा रहा था.. उसके मोटे और लंबे लंड को देख ज्योति के मूह में पानी आने लगा, उसने भी जल्द से अपने कपड़े खोले और नंगी लेट के अपने बाप को लंड हिलाते देखने लगी.. जैसे जैसे वो अपने बाप के लंड के सुपाडे को आगे पीछे होता देखती वैसे वैसे उसकी चूत भी गीली होने लगती.. धीरे धीरे उसके हाथ उसकी चूत की तरफ गये और अपने बाप के लंड को देख वो भी अपनी चूत रगड़ने लगी... बाप बेटी एक
दूसरे के नाम से मुठियाने लगे, राजवीर ज्योति के बदन के बारे में सोच सोच के और ज्योति राजवीर के मूसल को देख देख के.. राइचंद'स में अब वो रिश्ता बनने जा रहा था जो किसी ने सोचा तक नहीं था उनके घर में से..



कुछ देर में जब राजवीर और ज्योति के बदन की गर्मी ठंडी पड़ी, तो दोनो नींद की आगोश में जाने लगे... राजवीर तो कुछ पल में सोफे पे लेट गया, लेकिन ज्योति को होश आते ही वो बाथरूम में जाके फ्रेश हुई और ढंग के कपड़े पहेन के फिर आज सुबह की बातों पे दिमाग़ लगाने लगी.. आख़िर ऐसा क्या अब्ज़र्व किया था ज्योति ने सुबह की बातों में...
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07-03-2019, 04:01 PM,
#59
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
आगे बढ़ें इससे पहले एक छोटा सा रीकॅप दे देता हूँ ताकि जो लोग फिलहाल कॉंप्लिकेटेड फील कर रहे हैं उन्हे थोड़ी क्लॅरिटी मिले. 1985 में हुए हादसे के बाद 31 दिसंबर 2013 को राइचंद'स की पार्टी में उनके बेटे के साथ एक बड़ा ही हसीन किस्सा हुआ, अब तक रिकी को पता नहीं चला कि उस रात उसको चूमने वाली कौन थी, लेकिन वक़्त के साथ यह बात उसके दिमाग़ से निकल गयी पर अब जब शीना का प्यार उसके सामने आया है तो वो सेफ्ली अस्यूम कर सकता है कि शायद उस रात शीना ही होगी.. लेकिन इसके अलावा उसकी घर वापसी कुछ ख़ास नहीं थी, महाबालेश्वर में हुआ एक अजीब हादसा जिसमे उसने पाया कि कोई है जो चाहता है वो लंडन ना जाए, लेकिन इससे ज़्यादा शीना के प्यार ने उसे हमेशा के लिए मुंबई में ही रोक दिया था.. महाबालेश्वर से आके रिकी विक्रम से उस हादसे के बारे में बात करता है और विक्रम उसकी तलाश में घर से निकल जाता है, लेकिन वापस आती है तो सिर्फ़ उसकी मौत की खबर.. राइचंद'स में अमर के छोटे भाई और उसकी बेटी राजवीर और ज्योति भी आके साथ रहने लगते हैं, ज्योति का मुख्य कारण मुंबई में रुकना तो पढ़ाई के लिए था, लेकिन वक़्त के साथ तब्दीलियाँ हुई और उसने अपनी पढ़ाई छोड़ बाकी सब बातों को ज़हन में उतारना शुरू किया, फिर चाहे वो स्नेहा और शीना का रिश्ता हो, शीना रिकी का रिश्ता हो या राजवीर और सुहसनी का रिश्ता हो.. इन सब के बीच उसे लगा रिकी के साथ प्रॉजेक्ट का हिस्सा बन सकती है, लेकिन वो भी उसको हासिल नहीं हुआ, तब से ज्योति एक घायल शेरनी जैसी बन गयी है, और उसपे जब अब उसे पता चल गया है कि वो राजवीर की गोद ली हुई बेटी है, तब से उसने बाप बेटी के बीच का लिहाज़ भूल के रिश्ते को नया नाम देने की सोची है, पर वो कैसा नाम देगी यह वो अब तक समझ नहीं पाई, फिलहाल तो बस अपने जिस्म की गर्मी दूर करने की फिराक में वो ऐसी ऐसी हरकतें कर रही है जो शायद ही कोई बेटी करती हो अपने बाप के साथ.. राजवीर के रुकने से खुद राजवीर को और सुहसनी दोनो को जैसे एक जड़ीबूटी मिल गयी है, मौका मिलते ही बस अपने जिस्मो की ख्वाहिश पूरी करने पे लग जाते हैं और इसमे जब सुहसनी ने अपनी और उसकी बेटियों का नाम बीच में लाया तो वो जैसे तड़के का काम कर गयी.. राइचंद'स में काफ़ी जगह सीसीटीवी लगे हुए हैं जो सुहसनी ने फिट करवाए हैं जिसे लगता है कि उसके अलावा इस घर में कोई नहीं जानता कॅमरास के बारे में लेकिन शीना सब जानती है.... सुहसनी रिकी और शीना के अलावा किसी पे नज़र नहीं रखना चाहती क्यूँ कि विक्रम है नहीं, स्नेहा में उसे को दिलचस्पी नहीं, ज्योति ने ऑलरेडी अपने रूम का कॅमरा बंद किया है और सुहसनी को यह पता है लेकिन वो इस्पे कुछ कर नहीं सकती.. ज्योति चाहती है शीना पे नज़र रखना लेकिन शीना ने उसके इस अरमान पे पानी फेर रखा है.. रिकी, अमर और स्नेहा केमरे के बारे में जानते हैं कि नहीं वो तो आगे पता चल जाएगा, लेकिन शीना सब कुछ जानती है, वो जानती है कि सुहसनी उसके कमरे पे नज़र रखती है, तो भी उसने इसके बारे में कुछ नहीं किया, क्यूँ ?????? इसका जवाब शायद आगे जल्द ही मिल जाए.....इसी बीच अमर ज़मीन की डील कर लेता है जिसपे रिकी महाबालेश्वर का सबसे बड़ा और आलीशान रिज़ॉर्ट बनाना चाहता है, देखें अब आगे क्या क्या होता है राइचंद'स में




कंटिन्यू.. करेंट अपडेट




शॉपिंग निपटा के जब ज्योति अपने कमरे में आराम कर रही थी, तब उसकी आँखें तो बंद थी लेकिन दिमाग़ था जो शांत होने का नाम नहीं ले रहा था.. रह रह के उसका दिमाग़ जैसे एक झटके से दूसरे झटके पे जा रहा था.. जब उसका दिमाग़ थका तो उसने अपनी आँखें खोली और सिगरेट लेके कश मारने लगी..



"आख़िर शीना ऑस्ट्रेलिया क्यूँ जा रही है.. वो भी हम से 3 दिन पहले..." ज्योति ने खुद से कहा और दिमाग़ पे ज़ोर देने लगी..लेकिन कुछ भी नहीं आया कि ऐसा क्यूँ, और वो भी अचानक ऑस्ट्रेलिया... ऐसी ट्रिप के बारे में सोच सोच के ज्योति परेशान होने लगी, ज्योति ऐसी राह पे खड़ी थी जहाँ उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, क्या नहीं और जो भी वो कर रही है वो क्यूँ कर रही है... उसकी लाइफ सिंपल होती अगर वो अपनी पढ़ाई पे ही ध्यान देती, लेकिन उसे छोड़ सब कुछ कर रही थी, अपने बाप को सिड्यूस करके उसके करीब जाना, अपने भाई पे डोरे डालना वो भी सिर्फ़ इसलिए क्यूँ कि उसकी सग़ी बहेन उसके करीब ना जाए, यह सब मकसद कभी नहीं था उसके यहाँ रुकने का.. एक के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी, सिगरेट पे सिगरेट जलती रही लेकिन उसका दिमाग़ था जो कुछ समझ ही नहीं पा रहा था, ज्योति के लिए यह चीज़ इतनी ज़रूरी हो गयी थी कि वो इन सब में भूल गयी थी के दो दिन में उसके प्रॉजेक्ट सबमिशन की डेट है..



"कहीं ऐसा तो नहीं कर रही शीना , कि यहाँ से ऑस्ट्रेलिया बोल के निकले लेकिन हमारे पीछे इंडोनेषिया ही आ जाए.. और वहाँ पे रिकी के साथ टाइम स्पेंड करे.." जब ज्योति ने छठी सिगरेट सुलगाई तब जाके दिमाग़ कुछ कुछ काम करने लगा



"ह्म्म्म्म , यह हो सकता है, कि यहाँ से वो बोलेगी ऑस्ट्रेलिया जा रही है, लेकिन हम से पहले बलि पहुँच जाए, अगर ऐसा करेगी तो फिर मेरा जाना कोई काम का नहीं होगा..." ज्योति ने खुद से कहा और सोचने लगी कि अब वो क्या करे....



"ठीक है शीना जी, मेरी प्यारी बहेन.. तुम जाओ बलि.. ऊप्स.... आइ मीन ऑस्ट्रेलिया..." ज्योति ने मुस्कान के साथ खुद से कहा , लेकिन फिर अगले ही पल उसने दूसरी बात पे ध्यान दिया, बात आज सुबह की जब टेबल पे सब लोग नाश्ता कर रहे थे, ज्योति ने यह अब्ज़र्व किया कि शीना ने जितनी भी बातें खुद के लिए या रिकी के लिए की, उसमे उसने भाई शब्द यूज़ नहीं किया... ह्म्म्म्म , अब यह तो सही है, जिस दिन से रिकी ने उसे प्रपोज़ किया और जब से शीना ने उसका प्रपोज़ल आक्सेप्ट किया, शीना ने उसे भाई कहना बंद कर दिया था.. रिकी को शीना सिर्फ़ आप कहके बुलाती, आज नाश्ते की टेबल पे भी शीना ने अमर से जो कुछ भी कहा उसमे भाई शब्द नहीं था.. फिर चाहे वो शॉपिंग वाली लाइन हो या अपनी ऑस्ट्रेलिया की बात.. इन दोनो वाकयो में शीना ने रिकी भाई बिल्कुल नहीं कहा था, यह दोनो या हम दोनो... सिर्फ़ यही शब्द इस्तेमाल हुए थे.. रह रह के ज्योति सोचती के भाई कहना कब से बंद किया.. एक मिनिट भी शीना अपने होंठों से भाई शब्द दूर नहीं करती थी, और आज अचानक ही उसने भाई कहना बंद कर दिया...



"कहीं ऐसा तो नहीं के इन दोनो ने एक दूसरे को प्रपोज़ कर दिया हो... अगर ऐसा होगा तो फिर यह दोनो नज़दीक हो जाएँगे, और फिर मुझे हार का सामना करना पड़ेगा.." शीना ने अपने पास रखे एक ब्लॅंक पेपर को नोचते हुए कहा



"मैं ऐसा बिल्कुल नहीं होने दूँगी..." ज्योति ने खुद से कहा और कमरे से बाहर निकल गयी.. ज्योति सही में क्या करना चाहती थी यह वो खुद नहीं समझ रही थी, जलन और ईर्ष्या की वजह से अब वो बस रिकी को हासिल करना चाहती थी, वो नहीं जानती थी कि जब से शीना ने प्यार का मतलब समझा है तब से उसकी आँखों में बस रिकी का चेहरा ही समाया है.. जहाँ ज्योति इस आग में जल रही थी, वहीं रिकी और ज्योति अपने प्यार की ठंडी हवा में सेर कर रहे थे.. शाम के 6 बजे जब सूरज ढल रहा हो और एक हल्की सी पवन चल रही हो तो फिर एक इंसान को क्या चाहिए, अपने महबूब के सामने बैठ के उसकी आँखों में खुद को देखते रहना.. शीना और रिकी ठीक वोही कर रहे थे.. ढलते हुए सूरज के सामने दोनो आमने सामने बैठे एक दूसरे को बस देखते ही जा रहे थे गार्डेन में.. उन्हे बिल्कुल होश नहीं था या कहें तो किसी के आने का या मौजूदगी का डर नहीं था..



"आपकी कॉफी ठंडी हो रही है....देखना बंद भी करो प्लीज़.." शीना ने हल्की आवाज़ में रिकी से कहा, शीना की ज़ूलफें खुली हुई, उसपे डूबते सूरज की लालिमा उसके चेहरे पे पड़ रही थी, इतना खूबसूरत नज़ारा देख रिकी मनमोहित से हो गया था, बिना ज्वाब दिया रिकी थोड़ा आगे की ओर झुका और शीना की आँखों के पास गिरती उसकी एक लट को थोड़ा पीछे किया जिससे वो उसकी आँखों को अच्छे से देख सके.. ऐसी हरकत से शीना पूरी लाल हो उठी, वहीं पे बैठे बैठे शीना बस एक तक अपनी नज़रें ज़मीन पे लगाए हुई थी और अपने दुपट्टे के एक कोने को अपने हाथ में लिए उसे गोल गोल घुमाने लगती..



"क्या मैं इतना खराब लग रहा हूँ जो मुझे ना देख नीचे ही देखे जा रही हो.." रिकी ने माहॉल को हल्का करने के लिए कहा जिससे शीना के चेहरे पे एक हल्की सी मुस्कान आई और फिर उसकी वोही लट उसकी आँखों के सामने आ गयी... शीना कुछ कहती उससे पहले रिकी ने उसका एक फोटो अपने मोबाइल में लिया



"फोटो क्यूँ.." शीना ने फाइनली अपनी नज़रें उँची कर रिकी को देख के कहा



"शीना राइचंद कभी नहीं शरमाती, इसलिए ऐसा नज़ारा कौन मिस करना चाहेगा, अब जब भी तुम्हे शरमाते हुए देखना होगा, तब इसे देख लूँगा" रिकी ने फोटो दिखाते हुए कहा



"बातें बहुत बनाने लगे हो" शीना ने बस इतना ही कहा और एक पल के लिए फिर उसके गालों पे डिंपल स्माइल आ गयी जिसे देख रिकी का दिल झूम उठा...



"सच ही कह रहा हूँ..." रिकी ने सिर्फ़ इतना ही कहा और फिर जब उसकी नज़र उपर बाल्कनी पे गयी तो एक पल के लिए हल्का सा झटका लग गया, लेकिन होशयारी से उसने अनदेखा किया और शीना से कहा



"शीना, डॉन'ट गेट शॉक्ड, नो इन्स्टेंट रिक्षन्स ओके.. उपर से ज्योति हमें ही देख रही है आंड आइ फील , वो काफ़ी टाइम से वहीं खड़ी है.."



रिकी की बात सुन शीना एक पल के लिए अपनी गर्दन उँची कर ही रही थी कि वो रुक गयी...



"ओह यार, मैं क्या करूँ इस लड़की का.. " कहके शीना ने अपनी कॉफी उठाई और जान बुझ के रिकी से ऐसे बात करने लगी जैसे सब नॉर्मल हो... कुछ ही सेकेंड्स में उसने अपनी नज़र उँची की तो ज्योति अब भी वहीं थी..



"हे ज्योति.. आओ ना नीचे, अकेली क्यूँ खड़ी हो.. कम कम..." शीना ने उसे देख के चिल्ला के कहा और दोनो फिर अपनी अपनी कॉफी पीने लगे



"नीचे क्यूँ बुलाया यार, वी कुड हॅव गॉन सम्वेर एल्स.." रिकी ने दबे हुए होंठों के साथ कहा



"चिल मारो ना आप... अगर कहीं बाहर जाते या कहीं और भी घर में, तो भी यह पीछा करती, जानते नहीं हो, जेम्ज़ बॉन्ड की सीरीस में इसे रोल मिलने वाला है इस बात के लिए.." शीना ने हल्के से हँस के कहा और रिकी भी अपनी हँसी नहीं रोक सका शीना की इस बात पे.. दोनो यूही हल्की हल्की बातें कर रहे थे कि ज्योति भी उनके पास आके बैठ गयी



"आओ ज्योति, हॅव सम कॉफी.." कहके रिकी ने उसके लिए भी एक कप बनाया और तीनो आराम से बैठ के शांत वातावरण को एंजाय करने लगे..



"वैसे ज्योति, हाउ वाज़ युवर शॉपिंग.. फीनिक्स गयी थी ? " शीना ने ज्योति को देख पूछा



"हां, फीनिक्स ही जाउन्गी ना यार तू नहीं आई तो.. इट वाज़ गुड.." ज्योति ने जवाब दिया



"कूल, वैसे कितनी बिकीनिस और स्विम सूट्स लिए.." शीना के इस सवाल से ज्योति की आँखें बड़ी हो गयी और वो उसे ही देखने लगी, और रिकी भी कॉफी पीते पीते खाँसने लगा, उसके मूह से कॉफी बाहर निकल गयी..



"भैया, पानी लीजिए.." ज्योति ने जल्दी से ग्लास उठा के दिया



"नो नो....आइ अम फाइन, एक्सक्यूस मी प्लीज़.." रिकी ने खाँसते हुए कहा और रिकी वहाँ से चला गया



"व्हाट दा फक ईज़ युवर प्राब्लम हाँ.." ज्योति ने रिकी के जाते ही गुस्से से शीना को देख के कहा



"अरे व्हाट'स युवर प्राब्लम, क्यूँ इतनी जासूसी कर रही है, कितनी देर से उपर बाल्कनी में खड़ी थी, यह तो रिकी के पहले मैने तुझे देख लिया लेकिन मैने फिर भी उन्हे कुछ नहीं कहा, हद है, मतलब एक तो चोरी उपर से सीना ज़ोरी.." शीना ने भी सेम टोन में जवाब दिया



शीना का ज्वाब सुन ज्योति का दिमाग़ फिर उसी बात पे अटक गया, शीना ने रिकी भाई नहीं, सिर्फ़ रिकी कहा.. आख़िर यह चक्कर क्या है, कहीं जो मैं सोच रही हूँ वोही तो नहीं.. ज्योति खामोश होके यही सोच रही थी तभी शीना बोली



"अरे सुन, कहीं खो मत जाना.. जानती हूँ तू क्या सोच रही है.." शीना की यह बात सुन ज्योति जैसे फिर सोचने लगी, आज कल यह दिमाग़ भी पढ़ लेती है



"हम एक दूसरे को प्रपोज़ कर चुके हैं.." शीना ने फाइनली ज्योति के सर पे ऐसा बॉम्ब फोड़ा जिसका धमाका ज्योति का होश ही नहीं, बल्कि उसकी जान ले गया हो.. बैठे बैठे ज्योति जैसे ज़िंदा लाश हो गयी, जिस चीज़ को वो प्यार समझ रही थी, उसमे भी उसके हाथ हार लगी.. ज्योति इतनी कमज़ोर नहीं थी कि वो रो पड़ती, लेकिन उसकी आँखों में देख शीना समझ गयी कि यह बात उसे अच्छी नहीं लगी, इसलिए शीना खामोश रही ताकि ज्योति यह बात हजम कर सके.. दोनो के बीच करीब 10 मिनट तक की खामोशी छाई रही, शीना आराम से अपनी कॉफी की चुस्कियाँ ले रही थी, वहीं ज्योति भी रेक्लीनेर पे लेट के अपनी आँखें बंद किए हुए अपने दौड़ते दिमाग़ को काबू में करने की कोशिश कर रही थी... एक लंबी साँस छोड़ के ज्योति ने अपनी आँखें खोली



"सो व्हाट शुड आइ डू विद दिस शीना... मुझे कोई फरक नहीं पड़ता इन सब बातों से.." ज्योति चेहरे पे झूठी मुस्कान लाते हुई बोली



"अरे तो व्हाई चेसिंग अस यार, मैं भी तो यही कह रही हूँ, जब से आई है तब से बस जेम्ज़ बॉन्ड की बेटी की तरह हर जगह नज़र घुमा रही है... दिक्कत क्या है, पढ़ाई में ध्यान दे ना, मैं क्या करती हूँ, रिकी क्या करता है, भाभी क्या कर रही है.. व्हाट्स इट टू यू यार, चिल मार, एक काम कर, अभी आराम से बलि घूम आ, फिर ध्यान लगा के पढ़, और चिंता नहीं कर... तेरे लिए हम एक रिज़ॉर्ट नया खुलवा देंगे, एक्सक्लूसिव्ली फॉर यू बस... बट प्लीज़ डोंट क्राइ फाउल नाउ..." शीना इतनी उत्तेजित थी मानो यह सब कहने के लिए मौका ढूँढ रही हो और वो मौका उसे अब मिला.. ज्योति कुछ कह ही रही थी के फिर शीना ने टोक दिया



"सॉरी फॉर दट लेम जेम्ज़ बॉन्ड जोक... बट काम कर ना अपना यार, ऐसे नज़र रखेगी तो मैं और रिकी टाइम कैसे स्पेंड करेंगे, अभी भी आराम से बैठे थे, मेरी आँखों की तारीफ़ हो रही थी, कि सडन्ली तू आ गयी.. तुझे चाहिए कोई लड़का, नंबर दूं.. पटाएगी, बोल तू मैं वो करूँ, लेकिन प्लीज़ हम पे नज़र रखना बंद कर यार, " इतना कहके शीना ने एक लंबी साँस ली और अपनी कॉफी पीने लगी.. ज्योति को कुछ समझ नहीं आ रहा थे कि वो क्या सुन रही है, और वो भी कैसे... शीना ऐसे बात कर रही थी जैसे रिकी उसका भाई नही, बस एक कॅषुयल बाय्फ्रेंड हो..



"इतना नहीं सोच, कहीं दिमाग़ ना फट जाए.. हियर इट ईज़.. टेक आ ब्रेक, जा लोंग ड्राइव पे हो आ, मेरी पोर्स्चे में आज.. तू भी क्या याद रखेगी इस बहेन को" कहके शीना ने अपना हाथ आगे बढ़ाया लेकिन ज्योति बिना कुछ कहे वहाँ से निकल गयी...



"अजीब लड़की है, समझ नहीं आती इसकी प्राब्लम भी, अब लगता है इसका कुछ करना पड़ेगा.." शीना ने कॉफी पीते हुए खुद से कहा के तभी उसके कानो में किसी की आवाज़ पड़ी



"हेलो.."



शीना ने जैसे ही यह आवाज़ सुनी, उसे लगा किसी ने उसे सुन लिया हो, उसकी चोरी पकड़ी गयी हो.. नज़रें उठा के उसने साइड में देखा तो निखिल खड़ा था



"हेलो मॅम..." निखिल ने फिर कहा शीना को देख के



"हेलो इनस्पेक्टर..." शीना ने सहमी हुई आवाज़ में कहा



"उः मॅम, कॅन आइ प्लीज़ सी मिस्टर अमर राइचंद.."



"पापा.."



"जी ?" निखिल ने उसकी बात को ना समझ के पूछा



"पापा हैं वो मेरे.. अमर राइचंद नहीं." शीना ने फिर कड़क आवाज़ में कहा, वो डरी हुई थी कि निखिल ने कहीं उसकी बात सुन तो नहीं ली इसलिए वो जान बुझ के ऐसी बातें कर रही थी



"ओके मॅम, आपके पापा से मिल सकता हूँ प्लीज़.." निखिल ने ज़्यादा बहस करना ठीक नहीं समझा



"लीजिए मिल लीजिए इनस्पेक्टर.." इस आवाज़ से शीना और निखिल दोनो सहम गये और मूड के देखा तो अमर सामने से आ रहा था



"गुड ईव्निंग सर." निखिल ने बस इतना ही कहा और अमर वहाँ आके शीना के सामने बेत गया



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07-03-2019, 04:01 PM,
#60
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"इनस्पेक्टर, सुबह के बाद अब बस शाम भी खराब करो हमारी, बैठिए.. शीना बेटी.." अमर ने बस शीना से इतना ही कहा के शीना बोल पड़ी



"हां हां समझ गयी, चाइ भिजवा रही हूँ, और साथ में दानिश कुकीस भी, ताकि फिर मुझे अंदर बाहर ना करना पड़े.." शीना ने चिढ़ के कहा और वहाँ से उठ के चली गयी



"बैठिए इनस्पेक्टर, बताइए कैसे आना हुआ"



"सर, मैने आपसे कहा था कि एक या दो दिन मैं आपके फार्म हाउस पे बिताना चाहता हूँ, तो अगर आपको प्राब्लम नहीं हो तो मैं परसो से वहाँ जाना चाहता हूँ.. और मेरे साथ कुछ दूसरे लोग भी होंगे मेरी टीम के.." निखिल ने अमर से कहा



"ठीक है इनस्पेक्टर, कोई बात नहीं.. मैं कल ही सफाई करवा देता हूँ, और ध्यान रखूँगा कि किसी को पता ना चले कि तुम इनस्पेक्टर हो" अमर ने अपनी नज़रें फेरते हुए कहा कि कहीं कोई उनकी बात तो नहीं सुन रहा



"ठीक है सर, मैं चलता हूँ.." निखिल ने कहा और वहाँ से निकल गया.. जब शीना चाइ लेके आई तब निखिल को वहाँ ना पाके अमर के पास बैठ गयी



"चाइ वेस्ट , मेरी मेहनत वेस्ट" शीना ने उदास होके अमर को देख कहा



"वेस्ट क्यूँ, मुझे नही पिलाएगी चाइ.." अमर ने शीना के सर पे हाथ फेर के कहा और दोनो बाप बेटी आपस में बातें करने लगे



"पापा, वैसे यह इनस्पेक्टर जब भी आता है तब आप मुझे दूर भेज देते हो, ऐसा क्यूँ.." शीना ने मासूमियत से अपनी बात रखी



"ऐसे ही बेटे, तुम चिंता लेके क्या करोगी, तुम एंजाय करो.. बताओ क्या लाओगी ऑस्ट्रेलिया से मेरे लिए" अमर ने बात को टालना चाहा कि इतने में रिकी और ज्योति दोनो सामने से आते हुए दिखाई दिए



"पापा, यह देखिए अब.. एक और ड्रामा ज्योति का" रिकी ने गुस्से में ज्योति को देख के कहा जो उसके पास ही खड़ी थी



"क्या हुआ, गुस्सा नही करो, बताओ ज्योति.. क्या हुआ अब" अमर ने ज्योति को देख के कहा



"ताऊ जी, मुझे याद ही नहीं था कि मेरे प्रॉजेक्ट सबमिशन की डेट है, मुझे दो दिन बाद प्रॉजेक्ट सब्मिट करना है, मुझे भी अब तक याद नहीं था पर अभी मेरी फरन्ड से बात हुई डेट्स की, इसलिए मैने भैया से कहा कि हम नहीं जा पाएँगे बलि.." ज्योति ने कहा तो अमर से लेकिन देख वो शीना को रही थी.. ज्योति की बात सुन शीना का सबसे पहले रियेक्शन रिकी को देखना था, जैसे ही शीना ने यह किया ज्योति समझ गयी कि वो सही समझी थी, शीना ऑस्ट्रेलिया के बहाने इंडोनेषिया ही आने वाली थी और आके रिकी के साथ टाइम स्पेंड करेगी..



"ओह हो... लो बेटा, अब इसमे भला कोई क्या कर सकता है, रिकी का गुस्सा भी लाज़मी है वैसे , बट दिस ईज़ अनवाय्डबल, आइ कॅंट डू एनितिंग हियर..तुम लोग सॉर्ट आउट करो" कहके अमर वहाँ से चला गया और पीछे तीनो को छोड़ गया
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