Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:01 PM,
#61
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
एरपोर्ट पे फ्लाइट लंड होते ही, एक बंदा बड़े आराम से किसी से मोबाइल पे बात करते हुए लगेज बेल्ट के पास पहुँचा और अपने बॅग का वेट करने लगा, अभी भी किसी से फोन पे बात कर रहा था और बेसबर था अपने बॅग के लिए.. कुछ देर में जैसे ही उसका बॅग आते दिखा, उसने जल्दी से उसे उठाया और एग्ज़िट की तरफ बढ़ गया



"ह्म्‍म्म, कहाँ हो तुम.." बंदे ने अपने बॅग को अड्जस्ट करके कहा और फिर अपनी नज़रें इधर उधर घुमाने लगा



"नही दिख रही यार, " कहके बंदे ने फिर अपने आस पास देखा लेकिन वो जिसे ढूँढ रहा था उसे कहीं नहीं मिला वो इंसान



"एक्सक्यूस मी... आर यू लुकिंग फॉर मी.." यह सुन बंदे ने अपना फोन बंद किया और अपने चेहरे पे मुस्कान लाके, धीरे से पीछे मुड़ा और सामने खड़े शक्स को देख उसके चेहरे की मुस्कान बढ़ती चली गयी..



"आइ मस्ट से यूआर लुकिंग हॉट हाँ, बट व्हाई दिस नर्ड चीक लुक.."







सामने खड़ी लड़की लग ही ऐसी रही थी, किसी स्कूल की सेक्सी टीचर के जैसा लुक, डेनिम ब्राउन ब्लेज़र, टाइट वाइट कलर की शर्ट के उपर का बटन ओपन जिससे उसका चुचे भरे भरे बाहर दिख रहे थे, और चेहरे पे एक कातिलाना लुक



"लीव ऑल दिस... चलो गाड़ी में बैठो, " कहके उस बंदी ने गाड़ी स्टार्ट की और दोनो अपनी मंज़िल की ओर निकल गये

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

"वैसे टेल मी, आपने पापा से क्या कहा यहाँ आने के लिए" शीना ने अपने ध्यान आगे रखते हुए ही रिकी से सवाल पूछा



"ज्योति, दट ईज़ ऑल ओके.. आइ मीन तुम्हारा प्रॉजेक्ट ईज़ नेसेसरी, बट प्लीज़ इसको पोस्टपोन करो ना हो सके तो,आइ एम शुवर तुम्हारे कॉलेज से एक्सटेन्षन मिल जाएगा" रिकी और ज्योति दोनो इस वक़्त अमर के सामने खड़े हुए थे, अमर को यह सब बातों में पड़ना पसंद नहीं था, लेकिन ज्योति को ले जाने की ज़िम्मेदारी उसी ने रिकी को दी थी, इसलिए अब उसे इस बात का समाधान निकालना था, वहीं बैठे बैठे वो उन दोनो को सुन रहा था



"भैया, नहीं हो सकता.. लेकिन फिर भी गिम्मी आ सेकेंड..." कहके ज्योति ने अपने मोबाइल से कॉल किए और कुछ बातें की जिसका नतीजा कुछ नहीं निकला



"सॉरी भैया, बट नही अलाउ करेंगे.." ज्योति ने सॅड सा फेस बना के कहा



"कोई बात नहीं रिकी, फिर कभी चले जाना, इसमे क्या बड़ी बात है" अमर की यह बात सुन रिकी ने अपना पत्ता फेंका जिसने ज्योति के अरमानो पे फिर पानी या सूनामी जो भी हो, सब फेर दिया



"ठीक है पापा, आइ वाज़ लीस्ट इंट्रेस्टेड इन आ वाकेशन.. लेकिन बलि हॅज़ सम ऑफ दा वर्ल्ड'स बेस्ट रिज़ॉर्ट्स, आइलॅंड पे बने होते हुए यह रिज़ॉर्ट्स दुनिया की बेस्ट कारीगरी के मिसाल हैं... जिस दिन हम वहाँ जा रहे थे, मैने वहाँ के कुछ लोगों के साथ अपायंट्मेंट्स फिक्स किए हैं, टू हाइयर दोज़ आर्किटेक्ट्स फॉर और रिज़ॉर्ट.. अब भले ही ज्योति ना आए, लेकिन मुझे अपनी ज़बान की कीमत रखनी है, और इसलिए मैं वहाँ जाकर रहूँगा.." रिकी ने बड़े ही धीरे लेकिन बहुत ही मुकम्मल इरादा दिखाते हुए अपनी बात कही.. इससे पहले अमर कुछ बोलता, रिकी ने फिर कहा



"आइ होप दिस ईज़ ओके पापा, आपने ही सिखाया है ना हमे, कि इंसान को अपनी ज़बान की वॅल्यू खुद रखनी ही चाहिए नहीं तो बाहरी लोग इसी बात का मज़ाक बना देंगे और हमारी कही हुई हर बात को मज़ाक समझा जाएगा" रिकी ने अमर की आँखों में देखते हुए कहा.. रिकी की यह बात अमर के भेजे में किसी गोली जैसे उतरी, बिना कुछ आगे की बात सुने अमर ने कहा



"बिल्कुल सही कह रहे हो, मुझे गर्व है कि तुम्हे मेरी दी हुई हर बात का ज्ञान अब तक याद है... यू कॅरी ऑन बेटे, वो रिज़ॉर्ट तुम्हारा सपना है तो उसके लिए जो चाहिए वो करो, मैं नहीं रोकुंगा.. और हां एक बात, पहले मैने तुम्हे कहा था के तुम बॅंक से लोन लोगे, लेकिन तुम्हारी मेहनत और लगन देख के मैं इसमे फाइनान्स लगाउन्गा, लोन की ज़रूरत नहीं है.." अमर ने अपनी कुर्सी से खड़े होते हुए कहा



"लेकिन पापा..." रिकी ने बीच में टोका ही था के अमर फिर बोल पड़ा



"बस रिकी, मेरा आखरी फ़ैसला है... तुम तैयारी करो, और साथ घुमके भी आओ... तुम्हारी वजह से ज्योति यह अकेला जा रहा है, इसके साथ शीना को ही भेज देता ताकि दोनो काम निपटा देते..." अमर ने ज्योति की तरफ देख कर उसे हिदायत देते हुए कहा



"सॉरी ताऊ जी, आगे से ध्यान रखूँगी" ज्योति ने अपनी नज़रें नीची करते हुए कहा



"बेहतर है, सब बाद में, पहले टाइम मॅनेज्मेंट सीखो तुम.." अमर ने जैसे ज्योति के मूह पे शब्दों से तमाचा मारा और बिना कुछ कहे वहाँ से निकल गया.. उमेर की आखरी लाइन सुन ज्योति के दिल पे जैसे किसी ने खंजर से वार कर दिया.. वहीं खड़ी रहके ज्योति अभी भी नज़रें झुकाए हुई थी और शायद वो रोना चाहती थी लेकिन बिना कुछ कहे वहाँ से निकल गयी..



"हाहहाहा, बिच... उसे क्या लगा, वो अपना दिमाग़ लगाएगी और हमारी ट्रिप कॅन्सल करेगी..." शीना ने रिकी को देख के कहा और फिर मस्ती में गाड़ी चलाने लगी..



"शीना, एक बात पूछूँ.." रिकी ने थोड़ा सीरीयस होते हुए कहा



"हां जी, पूछिए ना..आप को मना करूँगी क्या.." शीना ने सेम उत्साह में जवाब दिया



"शीना, मुझे एक बात भी नहीं दिख रही उससे नफ़रत करने की, मेरे लिए तुम दोनो ईक्वल हो.. आइ मीन वी हॅव सेम रीलेशन, तो तुम उससे नफ़रत क्यूँ कर रही हो, वो भी अचानक, आइ मीन कुछ दिन पहले तक वी वर बेस्ट ऑफ बडीस, लेकिन अब सब अलग क्यूँ हो रहे हैं..' रिकी ने शीना की तरफ देखते हुए ही कहा और अपने ग्लासस भी निकाल दिए



"आइ डॉन'ट हेट हर.. लेकिन जब वो यहाँ रुकी थी, उसका मेन रीज़न वाज़ हर स्टडीस, बट वो छोड़ के वो सब कुछ कर रही है जो उसे नहीं करना चाहिए, हम पे जासूसी, और आप जानते हो जब हम गोल्फ कोर्स चले थे, उस दिन मेरे कमरे की तलाशी ले रही थी.. अब मैं इसे क्या समझू..." शीना ने गाड़ी की स्पीड कम करके कहा और रिकी की तरफ देखती हुई बोली



"आंड एक्सक्यूस मी.. हम दोनो आपके लिए ईक्वल हैं.." शीना ने सवालिया नज़रों से रिकी की तरफ देखते हुए कहा



"हां, आंड मैं ऐसा क्यूँ कह रहा हूँ वो मैं तुमको इतमीनान से कहूँगा, ऑन दा राइट टाइम.." रिकी ने फिर अपने ग्लासस पहने और सामने की तरफ देखने लगा... बलि एरपोर्ट से लेके उनके रिज़ॉर्ट तक का सफ़र काफ़ी सुहाना था, क्यूँ कि बलि एक आइलॅंड है, इसलिए मौसम मिक्स्ड था, जहाँ तेज़ हवा चल रही थी, वहीं कड़ी धूप और ह्यूमिडिटी भी थी.. पूरा रास्ता एक लॅंडस्केप जैसा था , रोड के इर्द गिर्द लंबे लंबे हरे पेड़ थे और दरिया किनारा , ऐसे मौसम में काफ़ी रोमॅंटिक मूड बन जाता है इंसान का, फिर भला रिकी कैसे पीछे रहता, वो धीरे से शीना के चेहरे को देख के गुनगुनाने लगा



"यूही तुम मुझसे बात करती हो.... या कोई प्यार का इरादा है.." रिकी शीना को देख मुस्कुराया,



"अदायें दिल की जानता ही नहीं.... मेरा हमदम भी कितना सादा हाईईइ" जवाब में शीना भी मुस्कुराइ और रिकी को देखती हुई उसकी लाइन कंप्लीट की



"अच्छा, टेल मी, जब हम गोल्फ कोर्स चल रहे थे, तभी वो तुम्हारे कमरे की तलाशी ले रही थी, जहाँ तक मुझे याद है, उस दिन हम साथ में नीचे ही थे काफ़ी टाइम से, देन हाउ डिड यू नो के वो तुम्हारे रूम को चेक कर रही है.. आंड क्या चेक करना चाहती थी वो.." रिकी को जैसे अचानक शीना की आखरी कही हुई बात याद आई और हल्की सी हैरानी से शीना को देखने लगा



"हाहाहा, अभी क्लिक हुआ, इस बात का जवाब भी मैं इतमीनान से दूँगी, ऑन दा राइट टाइम बेबी.." शीना ने अपने दाँत रिकी को दिखाए और आगे बढ़ते चले गये... रिकी फिर उस दिन पे चला गया जब उसकी बात ज्योति और अमर के साथ हुई थी, जब अमर ने ज्योति को मॅनेज्मेंट की बात कही थी... ज्योति वहीं खड़ी खड़ी अपनी नज़रें ज़मीन पे गढ़ाए हुए थी, शायद वो रोना चाहती थी, लेकिन रिकी के सामने वो कमज़ोर नहीं दिखना चाहती थी, इसलिए वो वहाँ से बिना रिकी को देखे अपने कमरे की ओर चली गयी.. रिकी को इस बात की काफ़ी ठेस लगी, शीना और ज्योति उसके लिए वाकई में सेम हैं, उसने कभी नहीं सोचा था कि एक तरफ जब वो शीना के करीब जाएगा, दूसरी तरफ वो ज्योति से इतना दूर होगा.. जब उसे एहसास हुआ कि ज्योति शायद रो रही होगी, रिकी धीरे धीरे उसके कमरे की तरफ बढ़ने लगा...



"ज्योति, प्लीज़ ओपन दा डोर.." रिकी ने दरवाज़े पे नॉक करते हुए कहा



"इट्स ओपन भैया, प्लीज़ आ जाओ.." ज्योति ने जवाब तो दिया, लेकिन रिकी उसकी आवाज़ से समझ गया कि वो रो रही थी.. रिकी अंदर गया तो देखा ज्योति बेड के कोने पे बैठी थी और रिकी को दिखाने के लिए मॅगज़ीन पढ़ रही थी



"आइए भैया, " ज्योति ने एक नज़र मॅगज़ीन से उठा के रिकी को देखा और फिर अपनी आँखें मॅगज़ीन में छुपा दी



"ह्म्‍म्म, नाइस, लेटेस्ट आउटलुक हाँ.." रिकी ने बेड पे बैठते हुए कहा



"यस, बहुत इंट्रेस्टिंग है.." ज्योति ने बिना देखे रिकी को जवाब दिया



"अब इंट्रेस्टिंग तो होगी ही, उल्टा करके जो पढ़ रही हो तुम.." रिकी ने अपना हाथ मॅगज़ीन पे रखा और उसके हाथ से एक ही झटके में मॅगज़ीन छीन ली..



"ह्म, सो व्हाट ईज़ इट... क्या मैं इतना बुरा हो गया हूँ कि अब अपनी प्रॉब्लम्स भी नहीं बताओगी मुझे..." रिकी ने ज्योति की आँखों में देख के कहा, रिकी की यह बात सुन ज्योति से कंट्रोल नहीं हुआ और वो उससे लिपट के रोने लगी.. ज्योति को ऐसा देख रिकी काफ़ी परेशान हुआ, वो बस उसके बालों को सहला रहा था और उसे चुप करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन ज्योति बस रोए जा रही थी,



"क्या हुआ डियर... बस करो, " रिकी ने फिर इतना ही कहा और ज्योति के चेहरे को अपने हाथों में थाम के उसकी आँखों में देखने लगा, रोना तो कम हुआ लेकिन अभी भी ज्योति सूबक रही थी..



"अच्छा यह लो, पानी पियो और प्लीज़ चुप हो जाओ, अगर नहीं चुप हुई तो मैं समझूंगा के आइ मीन नतिंग टू यू.." रिकी ने पानी की बॉटल देके कहा, ज्योति भी अब धीरे धीरे खामोश हुई और पानी पीने लगी



"ह्म्‍म्म, अब बताओ.. क्या हुआ.. पापा की डाँट की वजह से बुरा नहीं लगा, यह आइ नो.. इसके अलावा क्या हर्ट कर रहा है तुम्हे.." रिकी ने ज्योति का हाथ थाम के कहा



"कुछ नहीं भैया, बस ऐसे ही.. घर की याद आ गयी, दोस्तों की याद आ गयी" ज्योति ने अपनी आँखें नीचे करके कहा



"यह भी तो घर है, और रही बात दोस्तों की, तो कल जाओगी ना कॉलेज प्रॉजेक्ट सब्मिट करने, तो मिल लेना सब से.." रिकी ने बस इतना ही कहा के ज्योति का डोर फिर नॉक हुआ



"ज्योति, क्या मैं अंदर आउ.." स्नेहा ने बाहर से आवाज़ दी



"हां भाभी आइए ना" ज्योति ने रिकी को देख के कहा, जैसे पूछ रही हो कि यह क्यूँ आई



"उः ज्योति एक मिनिट.." स्नेहा ने अंदर आते हुए कहा, लेकिन रिकी को देख खामोश हो गयी



"ओह सॉरी, नहीं जानती थी तुम भी इधर हो रिकी, कोई नहीं, मैं फिर आ जाउन्गी.." कहके स्नेहा पलटी ही कि उसे रिकी ने रोक दिया



"नहीं भाभी, आप बात कीजिए, मैं बाद में कर लूँगा बात.. बाइ.." रिकी ने ज्योति को देख के कहा और उसके कमरे से निकल गया



"हेलो... कहाँ खो गये, मेरे साथ रहके भी आपका दिमाग़ इधर उधर भाग रहा है क्या मिस्टर राइचंद.." शीना ने गाड़ी रोक के रिकी के आगे चुटकी बजाते हुए कहा



"अरे, नतिंग , बस ऐसे ही... तुमने गाड़ी क्यूँ रोकी.. चलो" कहके रिकी अपना मोबाइल चेक करने लगा



"व्हाट... आप ने ड्रग्स ली है, आर यू ऑन डोप.." शीना ने अपने हाथों से रिकी के कंधों को हिलाते हुए पूछा



"हम पहुँच चुके हैं, मिस्टर राइचंद, अपनी आँखों को तकलीफ़ दीजिए, आगे देखिए, आपका रिज़ॉर्ट आपके सामने है" शीना ने इशारा करके दिखाया



"ओह, यस ओके... चलो.." रिकी ने अपने दिमाग़ को काबू में रख के कहा और दोनो गाड़ी से निकल के रिज़ॉर्ट की तरफ बढ़ने लगे... एंट्रेन्स करते ही रिकी की आँखें जैसे बाहर आने को हो गयी, इससे खूबसूरत रिज़ॉर्ट उसने आज तक नहीं देखा था..







"वॉवववववव..... दिस इस दा मोस्ट ब्यूटिफुल थिंग ऑन अर्थ आइ हॅव सीन टिल डेट शीना.." रिकी ने ग्लासस निकाल के कहा और रिज़ॉर्ट को देखने लगा



"ना ना, दुनिया में इससे ज़्यादा खूबसूरत चीज़े भी हैं.. यू नो आज की तारीख में कोई भी गधा पैसे कमाना जानता है, लेकिन सिर्फ़ एक चतुर इंसान ही जानता है, पैसे को कब, कहाँ और कैसे खर्च करना है.. आंड गेस व्हाट, यूआर विद दा वाइज़ेस्ट वुमन इन दिस रीगार्ड्स.." शीना ने रिकी को आँख मारते हुए कहा



"हाहः, आइ नो.. बट दिस ईज़.. प्राइसलेस मॅन.. कितनी खूबसूरती, कितना सुकून है... " रिकी ने आगे बढ़ते हुए कहा



"अभी तो आप देखते जाओ, आइए चलते हैं रूम्स में.." शीना ने रिसेप्षन से अपना आक्सेस कार्ड लिया और दोनो उसके रूम की तरफ बढ़ गये



"हे वेट, आपको भूख नहीं लगी.."



"हां बट पहले रूम्स में सेट्ल हो जाते हैं, फिर चलते हैं खाने.." रिकी ने घड़ी देखते हुए कहा



"नहीं, अभी जाना है, जहाँ हम जाएँगे, वो जगह एक्सक्लूसिव लोगों के लिए है.. ओपन्स फॉर 2 अवर्स ओन्ली, अभी चलो, मैने बुकिंग कर रखी है.." शीना ने रिकी का हाथ पकड़ा और उसे लंच के लिए ले गयी.. रेस्टोरेंट में जाके रिकी ने देखा तो भीड़ काफ़ी कम थी, शायद यह मंत ऐसा ही रहता है..



"इसमे ख़ास और एक्सक्लूसिव क्या है, " रिकी ने नज़रें घुमा के शीना से पूछा



"रूको तो.." शीना ने उससे कहा और वहाँ के मॅनेजर से कुछ कहा फिर दोनो उसको पीछे निकल गये.. कुछ देर चलने पर उन्हे एक दरवाज़ा दिखा



"दिस वे मॅम.. सिर.." मॅनेजर ने दोनो से कहा और दरवाज़ा खोल दिया..



"युवर लाउंज ईज़ रेडी ऐज यू वांटेड इट मॅम... हॅव आ वंडरफुल लंच.. " कहके मॅनेजर निकल गया, लेकिन शीना अभी भी रिकी के चेहरे को देख रही थी, जो सामने का नज़ारा देख एक दम चौंक गया था.. सामने एक छोटे से प्राइवेट पूल के पास, काफ़ी उँची हाइट पे जहाँ से समंदर का नज़ारा देखा जा सकता था, उसके कॉर्नर में शीना ने एक सेट अप जिसको प्राइवेट हट कहते हैं वहाँ , वो बुक करवाया था.. रिकी को विश्वास नहीं हो रहा था कि इससे बढ़िया जगह कोई और भी हो सकती है भला



"अब लंच नहीं करना तो वापस चलें.." शीना ने रिकी के हाथ को थाम के कहा जिससे रिकी होश में आया और बस मुस्कुरा के दोनो लंच करने गये



"मैं कह रही हूँ ज्योति, कब तक आख़िर शीना के हाथों ऐसे मात खाती रहोगी, मेरा साथ दो, काम थोड़ा मुश्किल है लेकिन तुम ऐसे अकेली बिल्कुल नहीं रहोगी, और ना ही ऐसे रोना पड़ेगा." स्नेहा ज्योति के कमरे में बैठी उसके साथ बातें कर रही थी.. स्नेहा ने जो काम के लिए सोचा शीना को इस्तेमाल करेगी अभी उसके लिए वो ज्योति को उकसा रही थी, लेकिन ज्योति बस सुन रही थी, और कुछ रिएक्ट नहीं कर रही थी.. स्नेहा ने फिर कुछ कहना चाहा लेकिन इससे पहले उसका फोन बज उठा



"हेलो." स्नेहा ने रूम के बाहर आके कहा



"टाइम वेस्ट कर रही हो स्नेहा, ज्योति को मनाने का कोई फ़ायदा नहीं है, वो नहीं मानेगी.. " सामने से किसी ने उसे कहा और साथ ही सिगरेट के धुएँ का छल्ला बना के हवा में उड़ाया



स्नेहा यह सुन के सोच ही रही थी कुछ, कि फिर उस आवाज़ ने उसे होश में लाया



"ज़्यादा सोचने की नो नीड लेडी, तुम्हे काम पे रखा है तो तुमसे ज़्यादा दिमाग़ और चालाकी चाहिए, रूम के बाहर आके बात करोगी तो ज्योति कुछ भी सोच सकती है, बेहतर है अंदर जाओ, उसे ज़्यादा फोर्स नही करो, अगर नहीं मानती है तो भी ठीक है, मुझे पसंद है ज्योति.." एक मुस्कान के साथ उस शक्स ने फिर स्नेहा से कहा



"पसंद है मतलब.." स्नेहा बस इतना ही कह पाई



"पसंद है मतलब पसंद है, दिल में ख़याल आ रहा है कि राइचंद'स को बर्बाद करके ज्योति को अपने पास ही रख लूँ, उस बेचारी का इसमे कोई दोष नहीं है.. वो तो बेचारी राजवीर की असली बेटी भी नहीं है.." यह बात सुन स्नेहा को एक झटका फिर लगा.



"लेकिन तुम्हे कैसे पता कि वो.." स्नेहा ने फिर इतना ही कहा के उस शक्स ने फिर उसे टोक दिया



"मैने कहा ना, तुम जैसी औरत के साथ मुझे यह करना ही पड़ेगा.. अब जो कहा है वो करो, ज्योति को इससे बाहर रखो, या इन्वॉल्व करो.. फाइनल प्लान में क्योति को कुछ नहीं होना चाहिए.." कहके उस शक़्स ने फोन कट कर दिया



स्नेहा बाहर खड़ी खड़ी कुछ सोच रही थी कि तभी ज्योति बाहर आ गयी



"भाभी.. किसका फोन था, आप बाहर क्यूँ आ गयी..." ज्योति की इस आवाज़ से स्नेहा डर गयी , लेकिन फिर भी उसने काबू रखा खुद पे और अपने माथे का पसीना पोछने लगी



"कुछ नहीं ज्योति.. मैं कह रही थी कि.." स्नेहा ने इतना ही कहा के ज्योति ने उसे रोक दिया



"ठीक है भाभी, मैं आप के साथ हूँ.. मुझे क्या करना है आप बताइए, मैं रिकी को पाने के लिए कुछ भी कर सकती हूँ" ज्योति ने स्नेहा से दो कदम आगे बढ़ के कहा.. इसकी बात सुन स्नेहा कुछ रिएक्ट करती, कि तभी उसके मोबाइल पे एसएमएस आ गया



"हाहहः, तुम बहुत जल्दी कर देती हो.. इसके बिना हमारा काम रुकता ही नहीं, वो चतुर स्नेहा कहाँ गायब हो रही है, दिमाग़ की धार को तेज़ करो अब.. ऐसे नहीं चलेगा, और अब इसने हां बोल दिया है तो इसका ख़याल भी तुम्हे रखना है, समझ गयी ना तुम
Reply
07-03-2019, 04:01 PM,
#62
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"शीना, इतना अच्छा लंच, इतना अच्छा रिज़ॉर्ट.. इन सब में तुम्हारा दिमाग़ बहुत चलता है..." रिकी ने हँस के शीना से आगे बढ़ते हुए कहा, खाना ख़ाके दोनो अपने रूम्स की ओर बढ़ने लगे... दोनो के कमरे पास में ही थे, कमरे नहीं, लग्षुरी विला कह सकते हैं... विला के अंदर जाते ही एक बड़ा सा लिविंग रूम जिसमे एक बेड रखा हुआ था और हर चीज़ जिसकी ज़रूरत हो सकती है, उसको लगा के एक छोटी बाल्कनी जहाँ से प्राइवेट पूल देखा जा सकता था, उस कमरे से निकल के फिर एक बेडरूम और बेडरूम के पास एक बड़ा प्राइवेट पूल जहाँ सोफा रखे हुए थे.. रिकी को सर्प्राइज़ तब मिला जब वो अपने रूम के पूल के पास गया, रिकी और शीना के विलास के बीच कोई बाउंड्री नहीं थी, पीछे के रास्ते से दोनो एक दूसरे के कमरे में ईज़िली आ जा सकते थे..











"यह ऐसा ही बना हुआ है कि तुमने इसमे भी कोई प्लॅनिंग की है.." रिकी ने अपने पूल साइड से शीना को कहा जो अपने पूल साइड पे खड़ी नज़ारे का मज़ा ले रही थी



"आपको क्या लगता है.." शीना ने ज़ोर से हँस के जवाब दिया और अपनी आँखें गोल गोल घुमाने लगी



"मुझे लगता है तुम्हारी प्लॅनिंग ही होगी.." रिकी ने जवाब दिया और आगे बढ़ के शीना के पूल साइड पे आने लगा



"तो वोही सही, अब आप यह जान गये हो तो क्या कर सकती हूँ" शीना भी अपने कदम रिकी की तरफ बढ़ाने लगी



"कुछ नहीं, इतना अच्छा कर चुकी हो, उससे ज़्यादा क्या करोगी.." रिकी और शीना दोनो आमने सामने खड़े थे अभी..



"इससे ज़्यादा तो करने के लिए काफ़ी प्लॅनिंग की है मैने.." शीना ने अपने दोनो हाथ आगे बढ़ाए और रिकी की कमर में डाल के उसके सीने से लिपट गयी और उसे महसूस करने लगी, यह पहला मौका था जब शीना और रिकी अकेले थे और उनपे नज़र रखने वाला कोई नहीं था, धीरे धीरे रिकी ने भी अपने हाथ शीना के पीठ पे ले जाके उसे अपनी बाहों में कस लिया, शीना अभी भी अपना चेहरा रिकी के सीने से लगाए हुई थी और उसकी छुअन को महसूस करके गद गद हो रही थी.. रिकी की उंगलियाँ उसकी नेक से लेके उसकी पीठ से होते हुए जैसे एक सीधी लकीर खींच रही थी और जस्ट शीना की गान्ड के थोड़ा उपर पहुँचते ही वो वापस हाथ उपर ले जाता... धीरे धीरे कर रिकी ने यह काम जारी रखते हुए दूसरा हाथ थोड़ा सा कमर के नीचे ले गया और हल्का सा जांघों के उपर वाले भाग के पास जाके रख के उसे सहलाने लगा... शीना धीरे धीरे होश गँवा रही थी, शीना के चुचे रिकी की छाती से टकराए हुए थे, इतनी देर से महसूस करते करते रिकी के लंड में अकड़न होने लगी थी, इससे पहले जब ऐसा हुआ था तब रिकी ने उस पल को आधे में काट दिया था, लेकिन आज यहाँ अकेलेपन में, इन्हे रोकने वाला कोई नहीं था, और ना ही खुद रुकना चाहते थे यह दोनो... शीना ने जैसे ही महसूस किया के रिकी का एक हाथ तो उसकी पीठ को सहला रहा है, लेकिन दूसरा हाथ कुछ नही कर रहा , उसने हल्के से अपनी टाँग उठाई जिससे रिकी के हाथ में शीना की चिकनी जांघें महसूस हुई जो स्कर्ट छोटी होने की वजह से एक दम नंगी थी, शीना की नंगी टाँगों को अपने हाथ में महसूस करके रिकी ने धीरे धीरे शीना की नेक को किस करना स्टार्ट किया और शीना अपनी टाँगें उपर नीचे करने लगी जिससे कभी उसकी जाँघ का आगे का हिस्सा तो कभी पीछे का हिस्सा उसके हथेली में आता, शीना आपा खोने लगी थी और
सेम हाल रिकी का भी था, रिकी ने शीना की टाँगों को सहलाना बंद करके अपना हाथ पीछे ले जाके शीना के गान्ड पे रखता है और उसे मसल्ने लगता है, यह महसूस कर शीना की चूत भी गीली होने लगती है, अब तक जो शीना यह सब के मज़े ले रही थी, उसने भी अपने हाथ को शुरू किया और रिकी की छाती को सहलाने लगी और दूसरे हाथ को उसकी जीन्स में बने तंबू के पास ले जाती और उसे हल्का सा छू के फिर वापस छाती पे रख देती... जब रिकी से रहा नहीं गया, उसने भी शीना की गान्ड पे एक हाथ रख के दूसरा हाथ शीना के चुचों पे ले आया और दोनो को मसल्ने लगा, इस बार काफ़ी ज़ोरों से... शीना ने अपने हाथ जैसे ही उपर किए, रिकी समझ गया और झट से शीना की जॅकेट को उतार फेंका और उसकी आँखों में देखते देखते ही उसकी शर्ट के बटन खोलने लगा, 2-3-4-5... जैसे ही सब बटन खुले, शीना ने बिना देरी किए शर्ट उतार फेंकी और दोनो एक दूसरे की आँखों में देखते देखते स्मूच करने लगे











शीना और रिकी की ज़िंदगी का सबसे पॅशनेट किस, सबसे पहला किस... दोनो में से किसी ने नहीं सोचा था, कि अपनी ज़िंदगी का पहला किस उन दोनो के बीच ही होगा, दोनो बहुत गरम हो चुके थे , किस करते करते रिकी शीना की ब्रा को उतारता फिर उसके नंगे चुचे को दबाता और शीना फिर उस स्ट्रॅप को उपर करती जिससे रिकी फिर उसे नीचे करके उसके चुचे को दबाता, शीना को इस खेल में मज़ा आने लगा था, क्यूँ कि जैसे जैसे शीना स्ट्रॅप उपर करती वैसे वैसे रिकी और गरम होके उसके चुचों का ज़्यादा ज़ोर से मसलता... स्मूच करते करते दोनो एक एक कदम साइड में चलने लगे जिससे दोनो पूल के पास पहुँचे, और जैसे ही शीना ने एक और कदम उठाया, दोनो पूल में जा गिरे,


लेकिन दोनो में से स्मूच किसी ने नहीं तोड़ा, पानी में अंदर जाके शीना तो उपर आ गयी, लेकिन रिकी नीचे ही रह गया, अपनी आँखें खोल जब उसने आस पास रिकी को नहीं देखा तो फिर वो नीचे जाने लगी, लेकिन उसी वक़्त उसकी आँखें फिर मस्ती में बंद होने लगी और अपनी पीठ को पूल वॉल पे टिका के मज़े लेने लगी.. नीचे से रिकी उसकी नाभि पे अपनी ज़बान फेर रहा था, उसका एक हाथ शीना के चुचों पे था और एक हाथ शीना की स्कर्ट के अंदर से उसकी चूत को पैंटी के उपर से ही सहला रहा था.. जब शीना को लगा वो झड़ने वाली है, उसने तुरंत रिकी का हाथ अपने चुचों से हटाया और उसको उपर खींच लिया... उपर आके रिकी ने बस अपनी आँखें शीना को दिखाई जिससे वो समझ गयी कि वो क्या पूछ रहा था



"आइ वाज़ ऑन दा वर्ज ऑफ कमिंग.." शीना ने रिकी को देख के कहा.. लेकिन यह सुन जब रिकी ने कुछ नहीं कहा, शीना फिर बोली



"आइ वान्ट टू कम वित यू......" शीना ने फिर एक लंबे पॉज़ के बाद कहा... "ऑन दा बेड"



रिकी समझ गया कि शीना क्या कह रही थी, पूल में ही दोनो ने एक दूसरे को हग किया



"आइ लव यू आ लॉट... प्लीज़ डॉन'ट लीव मी.. एवर..." शीना ने रिकी को अपनी बाहों में कस लिया और उसके बालों में हाथ घुमाने लगी



"लव यू टू स्वीटहार्ट..." रिकी ने जवाब दिया और दोनो भाई बहेन एक दूसरे के गले लगे रहे काफ़ी देर तक...



"अब कुछ और भी है प्लान करने के लिए कि नहीं, यूही खड़े रहके पूल में कुछ करने जैसा नहीं लग रहा मुझे.." रिकी ने आँख मारते हुए कहा



"चलो, गेट ड्रेस्ड... ऊप्स.... आइ मीन गेट अनड्रेस्ड, बीच पे चलते हैं, थोड़ा वॉटर स्पोर्ट्स पे भी हाथ आज़माते हैं" कहके शीना बाहर निकली और पीछे पीछे रिकी भी अपने कमरे में जाने लगा..

उधर..............................,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

"भाभी, थॅंक्स फॉर दा सपोर्ट... " ज्योति ने स्नेहा से कहा और अपने लिए सिगरेट जलाने लगी



"अरे, रहने दे, क्यूँ स्मोक कर रही है, अभी से स्मोकिंग नहीं करना, या कम कर.. दिन में एक कर, या दो दिन में एक कर, इस प्लान में तेरा मेन रोल तो एंड में है, लेकिन तब तक दिमाग़ ठंडा रख, आइस कूल.. तेरे साथ मुझे भी थोड़ा दिमाग़ चलाना है अब, " स्नेहा ने ज्योति के हाथ से सिगरेट छीन के कहा और उसके हाथ में बर्बन का एक पेग पकड़ाते हुए कहा.. लॅंड्स एंड के बार में बैठे दोनो एक दूसरे से बातें कर रहे थे, स्नेहा ने जब ज्योति को इस प्लान में आगे ले जाने का सोचा, तब उसने तय कर लिया कि उसके साथ रहके उसे ठंडा तो करना ही है, लेकिन साथ साथ यह भी देखना पड़ेगा कि उसे कोई नुकसान ना हो, क्यूँ कि बॉस का दिल आ गया था उसपे... घर पे रहके दोनो कोई बात नहीं कर पाते इसलिए दोनो यहाँ आ गये



"थॅंक्स भाभी, नाइस टेस्ट.." ज्योति ने जाम को होंठों से लगाते हुए कहा



"विक्रम'स फ़ेवरेट.." स्नेहा ने भी अपने जाम को अपने होंठों से लगाते हुए कहा



"वैसे भाभी, डॉन'ट माइंड मे आस्किंग, भैया की मौत का आपको कोई दुख नहीं है.. आइ मीन ऐसा लग रहा है मुझे"



"तुम जानती हो ज्योति, ज़रूरी नहीं हम जो चीज़ अब्ज़र्व करें वो बयान करें.. कभी कभी चुप रहने में ही भलाई है, कभी कभी ऑब्ज़र्वेशन्स को अपने तक ही रखो, और उसे किसी बड़ी चीज़ के लिए यूज़ करो.. शीना ने इसी बात का फ़ायदा उठाते हुए यह सब किया तुम्हारे साथ, अगर तुम ज़रा तेज़ रहती तो रिज़ॉर्ट प्रॉजेक्ट में तुम जाती वो नहीं, वो रिकी को प्रपोज़ कर चुकी है, उसकी हिम्मत कैसे हुई बताने की, क्यूँ कि तुमने उसके सामने अपने सब पत्ते खोल दिए.. अगर तुम खामोश रहती और अपनी नज़रों का इस्तेमाल सही वक़्त पे लाती तो शायद यहाँ तुम ना होती, और रिकी के साथ बलि में मज़े तुम ले रही होती...शीना नहीं.." कहके स्नेहा ने अपना जाम ख़तम किया और दूसरा ऑर्डर दे दिया



"लेकिन भाभी, शीना तो ऑस्ट्रेलिया.." ज्योति ने इतना ही कहा कि स्नेहा ने उसे टोक दिया



"हाहाहाहा, तुम इतनी बेवकूफ़ दिखती नहीं हो ज्योति, तुम्हे यह लग रहा है, कि शीना ऑस्ट्रेलिया गयी है..." कहके स्नेहा ने उसे अपना मोबाइल दिखाया जिसमे उनके ट्रॅवेल एजेंट का कन्फर्मेशन था कि शीना इंडोनेषिया ही गयी है... ज्योति को कुछ समझ आता इससे पहले फिर स्नेहा बोली



"तुम पागल हो, तुमने अपना प्रोग्राम कॅन्सल किया यह सोच के शीना वहाँ अकेली रहेगी और उतने दिन तुम यहाँ रिकी के साथ रहोगी, लेकिन शीना और रिकी तुमसे एक कदम आगे निकले, अब पापा को दिखाने के लिए वहाँ से कोई भी आर्किटेक्ट हाइयर कर लेगा, पापा भी खुश, और दोनो भाई बहेन भी... तुम यहाँ दारू पीके मातम मनाओ अपने अरमानो का.. वन मोर लार्ज प्लीज़." स्नेहा ने धीरे से बारटेंडर से कहा और ज्योति सोच में पड़ गयी



"कोई फ़ायदा नहीं, अब नहीं सोचो कुछ भी, अब जो हो गया सो हो गया," एक लंबी रुकावट के बाद स्नेहा फिर ज्योति से बोली "तुम्हे रिज़ॉर्ट का प्रॉजेक्ट चाहिए ?" स्नेहा सवालिया नज़रों के साथ ज्योति को घूर्ने लगी



"ऑफ कोर्स.." ज्योति ने सिर्फ़ इतना ही कहा और स्नेहा को देखने लगी, जैसे पूछ रही हो पर कैसे



स्नेहा ने कुछ नहीं कहा, बस अपने क्लच में हाथ डाल के फोन निकाला और ज्योति की आँखों में देखते देखते नंबर डाइयल किया



"हेलो..." स्नेहा ने बस इतना ही कहा कि सामने से आवाज़ आई



"बहुत बड़ा वादा कर रही हो स्नेहा, ज्योति डार्लिंग को यह सही में दिलवाना, इतना आसान नहीं है..."



"जानती हूँ तुम सब जान जाते हो, पता लगा के रहूंगी कैसे, बट अब वादा कर दिया है तो इतना तो मानोगे मेरी बात प्लीज़.." स्नेहा ने कहा , लेकिन सामने से थोड़ी देर खामोशी रही, तब फिर स्नेहा ने कहा



"अब हां भी बोल दो, मेरे सामने ही बैठी है, क्या नये पार्ट्नर को इतना भी नहीं दिलवा सकते.." स्नेहा ने हँस के कहा और स्पीकर ऑन कर के ज्योति के पास ले गयी फोन, तब फिर सामने से जवाब आया



"ठीक है, एनितिंग फॉर ज्योति डार्लिंग.." कहके फोन कट हो गया, आखरी लाइन सुन के जहाँ स्नेहा खुश हो गयी कि उसकी ज़बान ज्योति के आगे रखी गयी, वहीं ज्योति टेन्षन में आ गयी, ज्योति डार्लिंग ?



उधर बलि में, रिकी तैयार होके.. आइ मीन, बीच वेअर पहेन के शीना के कमरे में पहुँचा , लेकिन मैं रूम में किसी को ना पाकर इधर उधर देखने लगा और उसे आवाज़ देने लगा लेकिन शीना कहीं नहीं थी.. रिकी बेडरूम की ओर जा ही रहा था के साइड टेबल पे रखे नोट पे उसकी नज़र गयी.. "प्राइवेट बीच" लिखा था उसमे... नोट रख के रिकी रिज़ॉर्ट के प्राइवेट बीच की तरफ चला गया... बीच पे पहुँच के गरम रेत और ठंडी हवा का कॉंबिनेशन उसे पागल कर रहा था, कपड़े उतार के वो बस बॉक्सर्स में आ गया और शीना को ढूँढने लगा.. कुछ कदम आगे बढ़ा ही था रिकी के सामने से शीना उसे आती हुई दिखी...







शीना को देख के रिकी के चेहरे से तो कुछ भी नहीं कह सकते थे, लेकिन उसके बॉक्सर्स में उसके लंड ने गवाही दे दी कि उसे अंदर से कैसा लग रहा था यह नज़ारा..





शीना धीरे धीरे चल के रिकी के पास आ गयी और उसके आकड़े हुए लंड को देख के उसके चेहरे पे एक शैतानी मुस्कान आ गयी



"ऐसे क्या देख रहे हो... और यह क्या है.." शीना ने रिकी के पास आके उसके कान में कहा और अपना हाथ उसके खड़े हुए लंड पे रख दिया, जिसके जवाब में रिकी ने शीना को अपने पास खींचा और उसे बाहों में लेके उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए..



"लोग देखेंगे तो.." शीना ने किस तोड़ के कहा



"कोई नहीं है इधर.. आज वॉटर स्पोर्ट्स भी बंद है, फिर भी मैं लोगों को देखने नही आया हूँ ना.." रिकी ने अपनी एक आँख बंद कर के कहा



"तो फिर " शीना ने बस इतना ही कहा और इस बार उसने अपने हाथ पीछे ले जाके रिकी के होंठों को करीब लाई और दोनो फिर से स्मूच में डूब गये.. करीब 2 घंटे तक दोनो बीच पे रहे, और एक दूसरे का हाथ पकड़ के बस रेत पे नन्गे पावं चलते रहते, फिर कभी शीना को रिकी गोद में उठा लेता जिसके जवाब में शीना अपना चेहरा रिकी के सीने में छुपा देती.. अगर यह कम लगता तो दोनो किसी पेड़ के नीचे लेट जाते और फिर से स्मूच करने लगते....



"चलिए, चलते हैं.." शीना इस वक़्त एक पेड़ के नीचे रिकी की बाहों में लेटी हुई थी



"क्यूँ, अभी तो सिर्फ़ शाम के 6 ही बजे हैं..थोड़ी देर रुकते हैं.." कहके रिकी ने शीना को कस के अपनी बाहों में भरा और उसके माथे को चूमा और शीना भी बिना कुछ कहे वहीं लेटी रही.. कुछ देर बाद रिकी ने उससे कहा



"शीना, मैं कुछ बताना चाहता हूँ तुम्हे, रेदर कन्फेस करना चाहता हूँ.. पता नहीं तुम्हे सुनके शायद अच्छा ना लगे, या तुम चीटेड फील करो.. लेकिन मेरे लिए यह बात कहना बहुत ज़रूरी है, अगर आज नहीं कहूँगा तो कभी नहीं कह पाउन्गा..."



रिकी की यह बात सुन शीना उसकी बाहों से उठी और उसके सामने बैठ गयी और आँखें बड़ी कर दी, जैसे बोलने के लिए इजाज़त दे रही हो
Reply
07-03-2019, 04:01 PM,
#63
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"अपना हाथ आगे बढ़ाओ," कहके स्नेहा ने अपने क्लच से एक डाइमंड सटडेड ब्रेस्लेट निकाला और उसकी कलाई में बाँधने लगी



"नहीं भाभी, यह नहीं चाहिए मुझे, दिस ईज़.." ज्योति ने इतना ही कहा कि स्नेहा ने उसे खामोश रहने को कहा



"लुक्स गुड ऑन यू, मेरी तरफ से गिफ्ट समझ लो यार, जिस दोस्त को में अपनी ननद में ढूँढ रही थी वो तो कभी मिली ही नहीं, अब आइ होप तुम मेरी दोस्त रहोगी.." स्नेहा ने ज्योति से कहा



"भाभी, एमोशनल मत हो...हमे सिर्फ़ एक दूसरे की ज़रूरत है, जैसे आप शीना को इस्तेमाल करना चाहती थी, वैसे ही मुझसे सेम उम्मीद कर रही हैं, आंड उसके बदले मेरी मदद कर रहे हो आप... इसमे दोस्ती मुझे कहीं नहीं दिख रही.." ज्योति ने अपनी बात ऐसी टोन में कही कि ना ही स्नेहा को बुरा लगा और ना ही ज्योति रूड लगी, यह उसका तरीका था जो उसे शीना से अलग करता था.. जो दिमाग़ शायद शीना की वजह से ब्लॉक हो गया था, अब उसका ध्यान स्नेहा रखेगी



"ठीक कह रही हो ज्योति, पर इन सब के अंत में...तुम हमारे साथ ही रहोगी, इसलिए दोस्त बनना ज़रूरी है..." स्नेहा ने फिर हंस के कहा



"मतलब, भाभी मैं कुछ समझी नहीं... कुछ छुपा रहे हो क्या आप मुझ से.." ज्योति ने सीरीयस होके एक नज़र स्नेहा को देखा



"नहीं, मुझे जो सब पता है मैने तुम्हे बताया, यह सब क्यूँ हो रहा है, मैं वो नहीं जानती, बस अपने पैसे से मतलब रखती हूँ, हर महीने 20 लाख आ जाते हैं मेरे पास, उपर से इतने बड़े घर में रहो तो वो सब ठाट अलग, ऐसी डील कौन मना करेगा.." स्नेहा ने अपने लिए एक पेग और ऑर्डर करते हुए कहा



"यू आर ए बिच भाभी..."



"आइ नो.... बट इट'स ऑल अबाउट मनी स्वीटहार्ट.. अट लीस्ट फॉर मी इट ईज़..." स्नेहा ने ज्योति से आँख मार के कहा और दोनो फिर दारू पीने में लग गये.. कुछ देर में जब दोनो घर की तरफ निकले, तब रास्ते में ज्योति स्नेहा के बारे में ही सोचती रही और आख़िर कौन है जो राइचंद'स को तकलीफ़ देना चाहता है, फिलहाल ज्योति और स्नेहा यही जानते थे कि राइचंद'स को तकलीफ़ देनी है, लेकिन यह नहीं जानते थे, कि इससे आगे भी कुछ होगा और वो शायद बहुत खराब होगा...



"अगर भाभी या उनका बॉस , वो जो कोई भी हो , अगर वो मुझे रिज़ॉर्ट वाला प्रॉजेक्ट दिला सकते हैं तभी मैं मानूँगी कि इनमे दम है , और अगर इनमे दम है तो फिर इनके साथ होने का नुकसान नहीं है , मेरे फ़ायदे के लिए कभी भी काम आ सकते हैं.. आंड वैसे भी स्नेहा भाभी का बॉस तो मुझे डार्लिंग बोल रहा है अभी से , उसको फसाना कोई बड़ा काम नहीं होगा , और राइचंद'स को तकलीफ़ देना , ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा , मॅग्ज़िमम कोई मरेगा , जैसे विकी भैया मरे आक्सिडेंट में , तो उसकी तकलीफ़ भी कम हो गयी ना , वैसे ही शायद कुछ और एक दो लोग मरे , उससे ज़्यादा क्या होगा , मारना ही है तो शीना को मारना , मुझे बहुत खुशी होगी इस बात से... " ज्योति अंदर ही अंदर खुद से बातें कर रही थी..



"चलो घर आ गये.." स्नेहा की आवाज़ से ज्योति का ध्यान टूटा



"ह्म्‍म्म, चलिए भाभी, फिर बात करते हैं.." कहके ज्योति कमरे में जा रही थी कि तभी स्नेहा की आवाज़ से रुक गयी



"ज्योति, वैसे जब तक रिकी आए, तुम मज़े किसी और से भी ले सकती हो.." स्नेहा ने पार्किंग के आगे आते हुए कहा



"मतलब.." ज्योति ने अंजान बनते हुए कहा



"मतलब यह मेरी छम्मक छल्लो, इतने बीच वेअर लिए हैं तो कहाँ पहनोगी.." स्नेहा ने ज्योति के सामने आके कहा, ज्योति इसका जवाब नहीं दे पाई



"एक काम करो, पापा के साथ गोआ जाओ.. अपने पापा के साथ, बीचस वहाँ भी हैं, आंड.... हॅव फन स्वीटी.." स्नेहा ने ज्योति के कान में कहा और वहाँ से निकल गयी ज्योति को अकेला छोड़ के.. स्नेहा की बात पे ज्योति ने ध्यान दिया तो उसकी बात सही भी थी, लेकिन आख़िर स्नेहा को इतना कुछ पता कैसे है,



"खैर छोड़ो, मुझे क्या, आज पापा को पटाती हूँ.." ज्योति ने खुद से कहा और अपने रूम में चली गयी



"बोलिए भी... अब कितना सोचने का..." शीना ने रिकी से कहा जो उसके सामने बैठा हुआ था लेकिन उसे नहीं देख रहा था



"शीना... सामने देखो, क्या दिख रहा है.." रिकी ने अपनी नज़रें सामने रखते हुए ही कहा.. रिकी के कहने पे शीना ने अपनी नज़रें सामने की ओर देखने लगी....



"सामने तो समंदर, उसका ब्लू पानी, थोड़ी दूरी पे कुछ बोट्स , उपर आसमान जो नीला है और कुछ देर में डार्क होने वाला है, उसके अलावा हम दो.." शीना ने कुछ देर सामने देख के रिकी को हँस के जवाब दिया



"जानती हो शीना, समंदर की लहरें और समंदर के किनारे का क्या रिश्ता है..." रिकी ने जब अपनी नज़रें वहाँ से हटा के शीना की तरफ की तो शीना को उसकी आँखों में एक गंभीरता दिखी जिसे देख शीना समझ गयी रिकी कुछ सीरीयस बोलने वाला है...



"आप बताइए.." शीना ने बस इतना ही कहा और गंभीर होते हुए रिकी की आँखों में देखने लगी



"कुदरत ने समंदर की लहरों को और किनारे को एक दूसरे के लिए ही बनाया है, जहाँ समंदर की लहरें होती हैं वहीं किनारा भी होता है.. लेकिन अफ़सोस , दोनो कभी मिल नहीं पाते... जैसे जैसे लहरें किनारे तक पहुँचती हैं, बीच में पत्थर आते हैं और समंदर की लहरों को तोड़ देते हैं, जिससे इनका मिलन अधूरा रह जाता है, ज़िंदगी भर लहरें इसी कोशिश में रहती हैं के वो किनारे से हमेशा के लिए मिल जाए और ज़िंदगी भर किनारे भी इसी इंतेज़ार में रहते हैं के कब उनका मिलन होगा... लेकिन किस्मत देखो, ऐसा कभी नहीं होता.." रिकी ने एक बार फिर अपनी नज़रें सामने की तरफ कर के कहा और शीना के जवाब का इंतेज़ार करने लगा



"आप जानते हो, यह जानने के बावजूद भी कि इनका मिलन इनकी किस्मत में नहीं लिखा है, लेकिन फिर भी लहरें कभी अपनी कोशिश नहीं छोड़ती, वो हर वक़्त बस उस किस्मत को बदलने की फिराक में रहती है, के भले ही एक पल के लिए, लेकिन वो किनारे से मिलती है और फिर दूर हो जाती है.. वो इसी में खुश भी है, मैं समझ रही हूँ आप क्या कहना चाहते हो, मैं जानती हूँ कि हमारा रिश्ता पता नहीं कैसा होगा, मैं नहीं जानती कि हमारा रिश्ता कितने वक़्त का होगा, लेकिन मैं बस यह चाहती हूँ कि हम जब भी साथ हो, जितनी देर भी साथ रहें, बस एक दूसरे के लिए ही रहें.. मैं नहीं कह रही कि आप मुझे भगा के ले चलो और मुझ से शादी करके अपनी बीवी बना लो, क्यूँ कि ज़रूरी नहीं हर रिश्ते को नाम दिया जाए, कुछ रिश्तों की खूबसूरती बिना नाम के ही दिखती है.. आप मेरी लाइफ में पहले लड़के हो, और मैं यह भी नहीं कह रही के हमारा प्यार दुनिया का सबसे पवित्र होगा या ऐसा कुछ..मैं आज की प्रॅक्टिकल लड़की हूँ, आइ नो हाउ रिलेशन्षिप वर्क्स, मैं नहीं चाहती कि हमारा पहला सेक्स हो उसे हम सुहाग रात कहें.. मैं बस यह चाहती हूँ कि आप जब भी मेरे साथ हो, मेंटली आंड फिज़िकली बस मेरे लिए ही रहें, और किसी के लिए नहीं.. मैं जब भी मुसीबत में रहूं तो यह एक्सपेक्ट करती हूँ के आप मुझे उसमे से निकालें, अगर कभी आप परेशान होगे तो मैं चाहती हूँ कि आप के लिए सबसे आगे मेरा कंधा हो.. दिस ईज़ आ सिंपल रिलेशन्षिप.. मैं इसे नाम देके कॉंप्लिकेट नहीं करना चाहती.." शीना ने यह सब एक साँस में बोलके अपनी नज़रें रिकी से हटा के फिर समंदर को देखने लगी.... कुछ देर तक दोनो खामोश रहे, आवाज़ थी तो सिर्फ़ समंदर की लहरों की और आसमान में उड़ रहे कुछ पन्छियो की.. दोनो के दिल में कुछ था जो अब तक शांत नहीं हुआ था पर दोनो के दिल के कोने में एक
सुकून था, रिकी खुश था के शीना ने उसकी बात को समझा और समझदारी से जवाब दिया, वहीं शीना भी खुश थी के रिकी इतना कनसिडरेट है, वो सब सोच रहा है, हर एक छोटी चीज़ जो रिलेशन्षिप में मायने रखती है, शीना ने काफ़ी ऐसे ब्लॉग्स और फॉरम्स पढ़े थे जिनमे राजशर्मास्टॉरीज फोरम सबसे अच्छा था जहाँ ऐसे रिश्तों को काफ़ी अनरियलिस्टिकली डिस्क्राइब किया जाता था लेकिन शीना ने अपने दिल की बात कही जिसे रिकी समझ भी गया.. यह एक नि-स्वार्थ रिश्ते की शुरुआत थी



"और अभी बताओ, क्यूँ कहा मैं और ज्योति ईक्वल हैं.." शीना ने खामोशी तोड़ते हुए समंदर की तरफ देखते हुए ही पूछा



"बस यही बात थी, मैं अब तक खुद से लड़ रहा था कि बिना नाम के रिश्ते को तुम कबूल भी करोगी के नहीं, लेकिन अब तुम्हारी बात सुन के मुझे कुछ सवालों के जवाब मिल गये हैं.." रिकी ने शीना का हाथ थाम के कहा



"कुछ सवाल, बस ? मुझे लगा सब क्लियर हो गया होगा... आपका दिल बहुत भाग रहा है हाँ.." शीना ने रिकी के सीने पे अपना सर रख के कहा



"अब मेरा कहाँ है यह.." रिकी ने बस इतना ही कहा और शीना के सर को चूम लिया



"अब चलें, यहाँ अंधेरा हो रहा है..." शीना ने जवाब में रिकी का हाथ चूमकर पूछा
Reply
07-03-2019, 04:02 PM,
#64
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"चलो, पर यह भी तो बताओ, वो वोडेफोन वाले फरन्ड से बात हुई, कोई डीटेल मिली तुम्हे उस कॉल की जिसकी बात कर रही थी " रिकी ने शीना को देख के पूछा



"हां देखा, बुत वो कॉल इनकमिंग थी, आउटगोयिंग नहीं, तो कुछ नहीं मिला.. और आउटगोयिंग में भी मुझे कोई भी नंबर कामन नहीं लगा, सब नंबर्स जाने पहचाने थे, लाइक हमारे घर के, या उसके भाई के.. इसके अलावा कोई नहीं.." शीना ने एक अजीब सा चेहरा बना के जवाब दिया जैसे मानो उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है..



"ह्म्म्म, आइ अंडरस्टॅंड, घर चल के कुछ करते हैं इसका..."



"नहीं, घर चल के सबसे पहले रिज़ॉर्ट का काम देखेंगे, यह केस तो वो इनस्पेक्टर देख रहा है ना, जब सही टाइम आएगा तब उसे बता देंगे, और रही बात विक्रम भाई की, तो सब कह रहे हैं लाइक कमिशनर अंकल और बाकी सब, कि दिस ईज़ आक्सिडेंट, उनकी बात सुन के ईवन आइ आम नोट स्योर अब कि उस दिन भाभी ने विक्रम भैया के लिए ही बात की थी के नहीं, बट सेकेंड थॉट यह भी आता है कि अगर ऐसा नहीं होता तो उस दिन जब मैने भाभी से कहा कि मैं जानती हूँ विक्रम भैया के बारे में तो वो डर गयी थी, मतलब कुछ तो है भाभी से लेना देना इस बात का" रिकी बड़े ध्यान से शीना की यह बात सुन रहा था



"ठीक है चलो, घर जाके देखेंगे अब, मैं ज़्यादा नहीं सोचना चाहती, ऐसा टाइम आपके साथ जाने कब मिलेगा दोबारा.." शीना ने फिर रिकी का हाथ थामा और दोनो रिज़ॉर्ट की तरफ निकल गये


......................,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इधर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
"पापा.. मे आइ कम इन.." ज्योति ने राजवीर का दरवाज़ा नॉक करके पूछा



"यस बेटा, आ जाओ, " राजवीर अंदर कुछ पेपर्स देख रहा था और उसमे से आँख निकाले बिना ही जवाब दे दिया



"उह पापा, " ज्योति ने राजवीर के सामने खड़े होके कहा



"यस बेटा.. टेल मी.." कहके जैसे ही राजवीर ने उसे सामने देखा उसका मूह खुला का खुला रह गया, सामने उसकी बेटी ऐसे खड़ी थी जैसे कोई मॉडेल आडिशन देने आई हो, रेड लो कट लूस टॉप और नीचे डेनिम शॉर्ट्स... ज्योति का बदन ऐसे देख राजवीर पागल हो गया, उसे फिर उस दिन के शॉपिंग के नज़ारे दिखने लगे, उसका चिकना सपाट पेट, गहरी नाभि सब उसकी आँखों के आगे था.. ज्योति ने यह देखा तो वो खुश हुई अंदर ही अंदर, कि बस अब बाकी गोआ का कदम है, फिर उसको मज़े मिलेंगे












"पापा, आर यू फाइन ?" ज्योति ने उसके करीब आके कहा



"उः, यस , बताओ बताओ.. उः ह्म हुहह" राजवीर ने अपना गला सॉफ करते हुए कहा



"पापा, कल हम राजस्थान चल रहे हैं ना..." ज्योति ने खड़े खड़े ही राजवीर से कहा, क्यूँ कि वो जानती थी कि इस पोज़िशन में राजवीर नीचे से उसके लूस टॉप से उसके चुचे देख सकता है



"हा..हॅन,, हान्न्न चल रहे हैं ना, उधर दो दिन रुकेंगे भी.." राजवीर ने फिर अपनी नज़रें हटाई वहाँ से और खड़ा हो गया ज्योति के सामने



"ओके, तो पापा मैं क्या सोच रही हूँ, कि प्रॉजेक्ट तो मेरा रेडी है ही.. तो बस सुबह को पहुँच के सब्मिट कर दूँगी और फिर आप शाम तक अपना काम निपटा देना जो भी ज़रूरी हो, वहाँ रुकने के बदले क्या हम लोग गोआ चलें प्लीज़..." ज्योति ने मुस्कान के साथ राजवीर से कहा, लेकिन राजवीर कुछ जवाब देता उससे पहले ज्योति ने अपना अगला कदम उठाया और आगे बढ़ के राजवीर से चिपक के खड़ी हो गयी, उसका हाथ पकड़ लिया और अपनी चूत को उसके लंड से चिपका दिया, ज्योति ने महसूस कर लिया कि उसे देख उसके बाप को मज़ा आ रहा है, और ज़्यादा ज़ोर देने के लिए ज्योति ने फिर अपना बदन चिपका लिया उससे और अपने हाथ उसकी कमर के पीछे डाल दिए



"चलिए ना, मेरे प्यारे पापा प्लीज़...प्लीज़..." ऐसा कह कह के ज्योति अपनी हाथ राजवीर के पीठ पे भी घूमने लगी, राजवीर पागल होता जा रहा था



"ओके ओके.. बेटी ओके, टिकेट्स कर दो," कहके राजवीर ने उसके हाथ कमर से हटाए और आगे ला दिए



"थॅंक यू थॅंक यू पापा.." कहके ज्योति ने राजवीर के गालों पे बच्चों जैसे चूमा और वहाँ से जाने लगी, जाने के लिए ज्योति जैसे ही मूडी, वो जानती थी कि राजवीर की आँखें उसका पीछा करेगी, इसके लिए अपनी गान्ड को ज़्यादा ही ठुमका के चल रही थी और धीरे धीरे बढ़ रही थी, दरवाज़े के पास पहुँचते ही उसने मज़ा करने का सोचा, वो अचानक ही थोड़ा सा मूडी, अपनी गान्ड थोड़ी ज़्यादा बह्ऱ निकाली और हँस के राजवीर से कहा



"गुड नाइट पापा"












ज्योति के ऐसा करने से राजवीर समझ गया कि ज्योति ने देख लिया उसकी गान्ड देखते हुए, इसलिए वो कुछ नहीं बोला और बस स्माइल कर के वापस अपने काम में लग गया..



उधर इनस्पेक्टर निखिल अमर के फार्म हाउस में पहुँच चुका था अपनी टीम के साथ, वहाँ के दो तीन स्टाफ के लोगों को यह कहा गया था कि यह अमर के दोस्त के बेटे हैं और उसके दोस्त, उनका अच्छे से ख़याल रखा जाए... फार्म हाउस देखने के बहाने निखिल ने सेक्यूरिटी गार्ड से हर कमरे के लॉक की चाबी माँगी



"अरे साब, यह सब रूम का दरवाज़ा एक ही चाबी से खुलेगा, सब की चाबी एक ही है. यह लीजिए.." गार्ड ने निखिल को एक चाबी देते हुए कहा



"सब की एक चाबी, क्यूँ... आइ मीन..." निखिल ने बस इतना ही कहा के गार्ड फिर बोल पड़ा



"सर, पता नहीं हम को, पर विक्रम साब जब भी आते हैं तो हमेशा यही कहते हैं कि अच्छा है एक चाबी है, नहीं तो इतनी संभालेगा कौन.."



"ह्म्‍म्म, विक्रम साब कब आते हैं यहाँ.." निखिल ने सेक्यूरिटी गार्ड से पूछा क्यूँ कि सेक्यूरिटी गार्ड को पता नहीं था कि विक्रम की मौत हुई है



"उनको तो काफ़ी टाइम हो गया सर, पिछली बार जब आए थे, तब दो दिन रुके थे, एक रात तो खूब मस्ती की दोस्तों के साथ, दूसरे दिन दोस्त चले गये और खुद रात को निकले" सेक्यूरिटी गार्ड आगे चलते हुए बोलने लगा



"मतलब, विकी दूसरे दिन यहाँ से निकला था, और अगर इसने देखा है तो ठीक ही होगा, तो फिर उसकी मौत यहाँ नहीं हुई है, लेकिन फिर भी मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कि शायद उसकी मौत का राज़ यहीं से जुड़ा है" निखिल ने खुद से कहा और कुछ सोचता हुआ आगे बढ़ने लगा



"अच्छा यह बताओ, तुम यहाँ अकेले रहते हो, आइ मीन तुम दो तीन लोग, डर वर्र नहीं लगता" निखिल ने फिर सेक्यूरिटी गार्ड के चेहरे की तरफ देखा



"नहीं सिर, डर कैसा, लाइट जलता रहता है, और हर तीन घंटे में पोलीस पट्रोलिंग होता है, हां पीछे जंगल है वहाँ से कभी जानवरों की आवाज़ आती है, लेकिन उनसे कैसा डर साब, कॅबिन के बाहर ठंडियों में एक मशाल जला लेते हैं, जानवर उससे डरते हैं इसलिए.. यह लीजिए आप का कमरा आ गया.." सेक्यूरिटी गार्ड ने एक कमरा खोल के कहा



"अरे, विकी से बात हुई मेरी आज, उसने कहा जिस रूम में वो रुकता है वहाँ रुकना चाहता हूँ मैं, तो."



"यही कमरा है सर, विकी साब के दोस्त जब आते हैं हम से यही कहते हैं, इसलिए आपके कहने से पहले यहाँ आ गये..लीजिए चाबी, कुछ चाहिए तो हमे फोन कर दें, हम तीनो लोग बाहर ही रहते हैं" कहके सेक्यूरिटी गार्ड वहाँ से निकला और निखिल भी उस कमरे में घुस गया








इंडोनेषिया... मुंबई और लोनावाला.... इन तीनो से काफ़ी दूर दो जगहों पर कुछ क्रिया हो रही थी.. धार्मिक क्रिया... एक जगह स्मशाण में एक लाश को जलाया जा रहा था और एक जगह चर्च में दूसरी लाश को दफ़नाया जा रहा था....



"ह्म्‍म्म्म.... चलो यह तो निपट लिए, अब थोड़ा आराम किया जाए.." किसी ने खुद से कहा और सिगरेट के धुएँ छोड़ने लगा.
Reply
07-03-2019, 04:02 PM,
#65
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
सुबह करीब 6 बजे, रिकी अपने कमरे की खिड़की के पास जा खड़ा हुआ और हल्का सा परदा हटा के कुदरत के नज़ारे को देखने लगा... उसकी आँखों के सामने सबसे खूबसूरत नज़ारा अगर कभी आया था तो वो यह था, नीले समुंदर का पानी जो काफ़ी शांत था, उगता हुआ सूरज बादलों के बीच से निकल रहा था, पक्षी अपने घर से निकल के जैसे अपने काम की तरफ भाग रहे थे, उनके चहेकने की आवाज़ रिकी के कानो में किसी संगीत की तरह पड़ रही थी.. रिकी ने अपनी नंगी छाती को टवल से ढका और सिगरेट का पॅकेट उठा के समंदर की तरफ जाने का सोचा.. जैसे ही वो दरवाज़े की तरफ जाने के लिए पलटा, सामने बेड पे उसे शीना सोती हुई दिखी, नींद में उसके बालों की एक लट उसकी आँखों पे आ गयी थी, सूरज की किर्णो की वजह से उसके काले बाल सुनहेरे दिख रहे थे, उसका मासूम चेहरा चमकने लगा था, नींद में भी उसके चेहरे से मुस्कान गायब नहीं हुई थी.. इतनी मासूमियत थी शीना के चेहरे पे के रिकी फिर पिछली रात की यादों में डूबने लगा.. रिकी धीरे से आगे बढ़ा और उसकी आँखों पे गिरती हुई लट को उसने धीरे से दूर किया और शीना के चेहरे को निहारने लगा.. रिकी ने धीरे से अपने होंठ उसके चेहरे के नज़दीक लाए और फिर उसके चेहरे को देखने लगा.. देखते देखते हल्का सा मुस्कुरा दिया और अपने होंठ उसके गालों से दूर करके उसकी आँखों के पास ले गया और हल्के से उसे चूम दिया... जैसे ही रिकी ने शीना को चूमा, शीना के चेहरे पे मुस्कान बढ़ गयी और धीरे से उसने अपनी आँखें खोली और रिकी का चेहरा अपने सामने पाया



"सुबह सुबह सबसे पहले आपको देखा, मानो खुदा से अब कुछ और माँगने के लिए बचा ही नहीं है मेरे पास..." शीना ने अपनी मीठी आवाज़ में कहा जिसका जवाब रिकी ने सिर्फ़ मुस्कुरा के दिया



"आइ लव यू आ लॉट रिकी..." शीना ने फिर धीमी सी आवाज़ में रिकी के कानो के पास आके कहा और रिकी के गालों पे चूम दिया.. यह पहली बार था जब शीना ने ज़िंदगी में रिकी को उसके नाम से पुकारा था



"जाय्न मी आउटसाइड.." रिकी ने घुटनो पे बैठते हुए ही शीना से कहा



"विल डू दट इन सम टाइम.. टू लेज़ी नाउ.." शीना ने एक अंगड़ाई लेके कहा, जिसके जवाब में फिर रिकी ने उसे चूमा और बाहर जाने के लिए निकल गया



बाहर आते ही रिकी समंदर के पास बने रेक्लीनेर चेर पे जा बैठा और अपनी आँखें समंदर की तरफ लगा दी.. समंदर में अब कुछ हरकत चालू हो गयी थी, लहरें धीरे धीरे कर उछलने लगी थी और तेज़ होने लगी थी, नीले पानी को देख कोई बता नहीं सकता था के यह नीला रंग आसमान का है या पानी ही नीला है.. एक तक अपनी आँखें समादर पे लगाए रिकी कुछ गहरी सोच में डूबा हुआ था..रिकी ऐसी हालत में था कि कोई भी उसके पास आके खड़ा हो जाता तो भी वो उसे महसूस नहीं कर पता, बॉक्सर्स में लंबा लेटे लेटे आँखों पे स्पोर्ट ग्लासस पहेन के रिकी बस वहाँ की हवा को अपने बदन पे महसूस कर रहा था.. उसे ऐसी सोचे सोचे कितनी देर हुई शायद इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता था कि इतनी तेज़ हवा में भी उसके माथे पे पसीना आने लगा था, चेहरे पे शिकन पड़ने लगी थी.. शायद उसका सब्र टूट ही रहा था कि तभी उसका ध्यान पास पड़े फोन पे गया जो शायद काफ़ी देर से बज रहा था...



"ह्म्‍म्म..." रिकी ने फोन उठा के बस इतना ही कहा और पास रखे ग्लास के उठा के उसे गोल गोल घुमाता शीशे में से पीछे देखने लगा..



"यस डॅड आइ नो.. यहाँ आर्किटेक्ट्स से मुलाक़ात है मेरी आज, घर आके बस अभी रिज़ॉर्ट के काम पे ही लगना है... हां जी और भैया के काम को भी संभालना है, यस आइ रिमेंबर..." रिकी ने ग्लास नीचे करके कहा



"शीना सो रही है डॅड.." रिकी ने इतना ही कहा कि पीछे से आके शीना ने उसके नेक पे प्यार से चूम लिया



"यस डॅड, बलि, इंडिया से 2.30 घंटे आगे है, यहाँ 9 बजे हैं, तो आपके वहाँ 6.30 ही है.. बट आप इतना सुबह सुबह जल्दी कैसे.." रिकी ने पीछे से शीना के हाथों को पकड़ा और गोल घूमके उसे अपने पास लाया और गोद में बिठा लिया



"ओके डॅड.. सी या.." कहके रिकी ने फोन कट किया और शीना को मज़बूती से अपनी बाहों में थाम लिया



"सुबह सुबह डॅड से झूठ, अच्छी बात नहीं है.." शीना ने आराम से रिकी की बाहों में टेका लिया और आँखें बंद करके रिकी के बदन को अपने बदन के साथ महसूस करने लगी



"अगर सच कहूँगा तो शायद हम ज़िंदा भी ना बचें, " रिकी ने अपने होंठ शीना की पीठ पे रखे और अपनी गरम गरम साँसें शीना की पीठ पे छोड़ने लगा जिसकी वजह से शीना कसमसा रही थी और बस "उम्म्म्मम....सीईईई" करती रह गयी...



"सुबह सुबह ही मूड बन गया है क्या.." शीना ने बड़ी मुश्किल से अपनी ज़बान से कहा, उसकी आँखें अभी भी बंद थी लेकिन हल्के हल्के वो अपने चूतड़ रिकी के लंड पे रगड़ रही थी, महसूस कर रही थी रिकी के लंड के उभार को...



"यह तो बस रात का ही नशा है.. जो अब तक नहीं उतरा.." रिकी ने भी अपनी गरम साँसों के साथ कहा और अपने होंठ धीरे धीरे शीना की पीठ पे फेरने लगा



"यह देखिए कितनी मिट्टी लग गयी है..." शीना ने रिकी से पिछली शाम कहा जब दोनो अपने रिज़ॉर्ट से निकले और सेर करते करते एक लोकल बीच पे पहुँचे, जहाँ कुछ लोग बीच वॉलीबॉल में लगे हुए थे.. इजाज़त लेके रिकी और शीना अलग अलग टीम्स में बँट गये और सब लोग फिर वॉलीबॉल खेलने लगे.. जैसे जैसे वक़्त बीता वैसे वैसे बदन पे पसीना और मिट्टी बढ़ने लगी. कुछ देर में ग़मे ख़तम करके सब लोग ग्रूप बना के फिर अपने अपने काम में लग गये, कोई बियर पीने गया तो कोई वहीं ग्रूप बना के समंदर के नज़ारे का मज़ा लेने लगा.. रिकी और शीना ने सब से अलविदा कहा और अपने रिज़ॉर्ट की तरफ बढ़ गये



"अरे कोई बात नहीं, रिज़ॉर्ट चल के शवर ले लेना, वैसे भी इतनी धूप में स्किन टन हो जाएगी, कोल्ड शवर विल हेल्प.." कहके रिकी और शीना पैदल ही रिज़ॉर्ट जाने लगे...



रिज़ॉर्ट पहुँच के दोनो रिकी के कमरे में पहुँचे और दोनो ने मिट्टी से सने कपड़े उतार फेंके, जहाँ रिकी अब बस एक वेस्ट और अंडरवेर में था, वहीं शीना भी अपनी पैंटी और उपर एक स्लिप जैसे पारदर्शी कपड़े में थी जो काफ़ी लूस था उपर से... दोनो ने जब एक दूसरे को ऐसे रूप में देखा तो धीरे धीरे कर एक दूसरे के पास आए और अपने बदन से बदन चिपका लिए



"आइ थॉट यहाँ तुम्हारा अपना कमरा भी है" रिकी ने शीना को अपने बदन में घेर के कहा



"वॉट'स दा प्राब्लम, पेमेंट मैने किया है, कहीं भी रहूं.. कहीं भी ना रहूं, मेरी मर्ज़ी.." शीना ने धीरे से खुद को रिकी से अलग किया और गान्ड मतकाती हुई बाथरूम में चली गयी, वो जानती थी कि रिकी ज़रूर पीछे ही आ रहा होगा इसलिए उसने अपनी गान्ड की थिरकन को थोड़ा बढ़ा दिया... बाथरूम पहुँच के शीना ने झट से शवर ऑन कर दिया और रिकी की तरफ पीठ कर के ठंडे पानी को अपने बदन पे महसूस करने लगी.. जैसे जैसे पानी की बूँदें शीना के चिकने बदन पे पड़ती, वैसे वैसे रिकी के लंड में जान आती जाती, रिकी को तड़पाने के लिए शीना ने पीछे हाथ ले जाके धीरे से एक बाजू से अपनी पैंटी को साइड किया और अपनी नंगी गान्ड के दर्शन रिकी को करवाने लगी.. थोड़ी सी मदहोशी बढ़ी और पैंटी की दूसरी साइड भी नीचे हुई... शीना धीरे धीरे अपने हाथों से अपने चुतड़ों के उपर के हिस्से को सहलाने लगी और धीरे धीरे मसल्ने लगी...



"आआहहह....उम्म्म्ममम" शीना ने ज़ोर से सिसकी ली जिसे रिकी सुन सके और रिकी ने सुना भी... शीना अब तक जो पीठ करके खड़ी थी, वो धीरे धीरे पलटी और रिकी से सामना करके नहाने लगी... एक नज़र रिकी को देखा और आँखें बंद कर पानी की बूँदों का मज़ा लेने लगी... आगे से उसकी पैंटी थोड़ी नीची थी जिससे उसकी चूत की हल्की सी लकीर देखी जा सकती थी, आग में घी डालने के लिए शीना ने धीरे से अपने टॉप को नीचे से पकड़ा और उसे उपर उठा के अपने चुचों को हल्के हल्के से भिड़ा के मसल्ने लगी












यह नज़ारा देख रिकी का लंड अब उसके काबू में नहीं था, हल्के हल्के वो आगे बढ़ा और शीना के साथ पानी के नीचे खड़ा हो गया.. रिकी का आभास पाते ही शीना ने भी आँखें खोली और उसके गले लग के नहाने लगी... धीरे धीरे रिकी ने अपना हाथ नीचे सरकया और शीना की चूत की लकीर को अपने अंगूठे के नाख़ून से रगड़ने लगा



"आओओुउम्म्म्मम..य्अहह" शीना मदहोशी में बस इतना ही कह पाई, के उसने अपने चेहरे को उपर उठाया और रिकी की आँखों से आँखें मिला के उसे देखने लगी.. पानी की गिरती बूँदें दोनो के बदन की आग को ठंडा करने के बदले, उनमे एक अलग ही उर्जा पैदा कर रही थी, अचानक रिकी ने शीना को अपने करीब ला दिया और उसके होंठों से अपने होंठ जोड़ दिए









दोनो का यह दूसरा स्मूच, एक दूसरे के साथ और ज़िंदगी का भी... लेकिन आग पहले जितनी ही थी, पॅशन कम नहीं हुआ था.. जीभ से जीभ मिला के दोनो एक दूसरे के जिस्म में डूबे हुए थे, शीना ने एक हाथ नीचे ले जाके रिकी के लंड पे रखा और उसे पकड़ने लगी...



"नतिंग'स गॉना चेंज माइ लव फॉर यू.." रिकी की फोन की रिंग से दोनो को होश आया तो देखा बीच पे अब हल्की हल्की भीढ़ बढ़ने लगी थी



"व्हाट दा फक.." शीना ने रिकी के उपर से खड़े होते हुए कहा और पास में पड़े दूसरे चेर पे जाके बैठ गयी.. रिकी ने फोन कट किया और शीना की आँखों में देखने लगा



"शवर सीन.." जिसे सुन शीना ने बस अपनी आँखें झुका ली और फिर एक पल में अपनी नज़रें समंदर के तरफ घुमा दी.. इससे पहले रिकी कुछ और बोलता के तभी फिर उसका फोन बजने लगा



"उठा लो, कोई मर जाएगा अगर फोन नहीं उठाओगे तो.." शीना ने गुस्से में कहा और रिज़ॉर्ट के शॅक के पास नाश्ता लेने चली गयी



"जब एक बार फोन कट किया तो समझ जाना चाहिए के मैं कहीं बिज़ी हूँ ज्योति" रिकी ने फोन आन्सर करके कहा



"सॉरी भैया, बाइ.." कहके ज्योति फोन रख ही रही थी कि रिकी फिर बोला



"दट'स ओके.. अब बोलो, क्या हुआ, व्हाट'स अर्जेंट" रिकी ने शीना की तरफ देख के कहा जो अभी भी शॅक पे कुछ खाने के लिए ले रही थी



"जस्ट कॉल्ड यू, ऐसे ही बात करनी थी.. " ज्योति ने सहमी हुई आवाज़ में कहा जिससे रिकी को रीयलाइज़ हुआ कि ज्योति को बुरा लगा है



"सॉरी यार, एनीवेस, युवर प्रॉजेक्ट सब्मिटेड.. कब जाओगी सब्मिट करने" रिकी ने चेर से उठ के कहा जिससे उसकी दूरी शीना से और बढ़ गयी



"बस अभी पहुँची हूँ यूनिवर्सिटी.. कुछ देर में फरन्डस से मिलके निकल जाउन्गी.." ज्योति ने हँस के कहा



"ग्रेट.. हे, कुछ बुक्स टेक्स्ट करता हूँ तुमको, गेट मे दोज़ प्लीज़ फ्रॉम युवर यूनिवर्सिटी ओर एनी बुक्स स्टोर ओके..."



"येस, टेक्स्ट मी दा डीटेल्स..." ज्योति ने जवाब में कहा और दोनो कुछ दूसरी बातें करने लगे



"हेलो, फोन के साथ ही घूम लो बलि.. मैं तो यहाँ आवें ही आई हूँ ना" शीना ने चेर के पास आके चिल्ला के कहा, शीना की यह आवाज़ इतनी ज़ोर से थी कि फोन से ज्योति को भी सुनाई दी, उसे स्नेहा ने तो बताया था कि शीना वहीं है, लेकिन उसकी आवाज़ सुन के यकीन हो गया कि स्नेहा ग़लत नहीं थी



"हे, वास्न'त दट शीना'स वाय्स.." ज्योति ने तपाक से कहा



"अरे नही नही, देअर आर मेनी इंडियन्स हियर... एनीवेस, स्पीक टू यू लेटर, आर्किटेक्ट से मिलने के लिए लेट हो रहा हूँ.. बाय" कहके रिकी ने फोन कट किया और शीना के पास बढ़ने लगा



"तुम पकड़ी गयी हो.. या यूँ कहें, कि हम पकड़े गये हैं" रिकी ने चेर पे बैठ के शीना से कहा और बियर की बॉटल उठा ली जो शीना अपने साथ लाई थी



"मतलब, अब मैने क्या किया" शीना उसके पास बैठी और अपने लिए सिगरेट जला ली



"ज्योति का फोन था.. आंड बिफोर यू रिक्ट, उसने मुझे जस्ट ऐसे ही हाल चाल पूछने के लिए फोन किया था, आपकी कही हुई आखरी लाइन उसके कानो में पहुँची है और उसे पता चल गया है वो आवाज़ तुम्हारी ही है.." रिकी ने बियर की बॉटल अपने होंठों पे लगाते हुए कहा



"डू आइ केर, आंड एनीवेस, उसका फोन उठाया ही क्यूँ आपने..." शीना ने जैसे धमकी दी रिकी को, रिकी ने जिसका कोई जवाब नहीं दिया



"तो हेल विद हर, अगर उसका फोन उठाया भी आपने तो समझ लेना क्या कर सकती हूँ मैं.." शीना ने इस बार पूरे गुस्से में रिकी से कहा और चेर पे लेट के अपनी बियर पीने लगी..



"भारतीय नारी धमकी देके वहाँ से निकल जाती है, और आदमी पीछे उसे मानने जाता है... कम ऑन, आइ आम वेटिंग" रिकी ने मज़ाक में हँसते हुए शीना से कहा



"आम इन नो मूड फॉर ऑल दिस शिट... आंड अभी उसका कोई कॉल नहीं आन्सर होगा मीन्स नहीं होगा... चियर्स.." शीना ने एक दम शांत लहाज़ में रिकी से कहा और दोनो खामोशी से बियर पीने लगे..






यूनिवर्सिटी में खड़े खड़े ज्योति अपने दोस्तों से बातें कर रही थी और काफ़ी खुश थी.. जितनी देर वो वहीं खड़ी रही वो एक अलग माहॉल, एक अलग मूड में थी, यह असली ज्योति थी जो अब मुंबई आके कहीं खो गयी थी, या यूँ कहा जाए कि मुंबई आके अपनी मर्ज़ी से बदल चुकी थी... दोस्तों से मस्ती, कॅंटीन में नाश्ता, फिर सीढ़ियों पे बैठ के मज़ाक करना, ज्योति को सब कुछ याद आने लगा... अभी कुछ दिन ही हुए थे उसे मुंबई गये लेकिन वो जैसे सालों से यहाँ से दूर थी, उसे ऐसा महसूस होने लगा..



"अरे तेरा फोन बजा रे, चेक कर.." ज्योति की एक फरन्ड ने कहा जब वो कहीं सोच में डूबी हुई थी.. अपने ख़यालों से बाहर आते ही फिर वो खुशी खुशी अपने दोस्तों से बातें करने लगी, और मोबाइल बाहर निकाल के देखा तो रिकी का एसएमएस था.. रिकी का नाम देखते ही फिर मुंबई के वातावरण में चली गयी जहाँ वो इतनी खुश नहीं थी लेकिन अब वो पीछे हट नहीं सकती थी, वहाँ रुकना उसकी ही मर्ज़ी थी.. खैर, जब उसने एसएमएस देखा तो रिकी ने उसे बुक्स के नाम दिए थे जो उसे चाहिए थी... एसएमएस देख के ज्योति थोड़ी हैरान हुई, स्मस में 10-15 बुक्स के नाम थे, लेकिन उसकी परेशानी 10-15 बुक्स नहीं थी, कुछ और ही था.. कुछ देर स्मस देखती रही और कुछ सोचती रही, लेकिन फिर राजवीर का कॉल आ गया उसे



"ओह.. यस डॅड, आम ऑन मी वे.. हां हां... अभी 5 घंटे हैं डॅड, बस आ रही हूँ.." ज्योति ने अपनी घड़ी में टाइम देखते हुए कहा



"जल्दी आओ बेटा, नहीं तो फिर गोआ वाली फ्लाइट मिस हो जाएगी.. हां बबी" राजवीर ने फोन रखते हुए कहा



गोआ का नाम सुन एक पल के लिए ज्योति जैसे सन्न पड़ गयी, वो सब बीती बातें सोचने लगी.. कैसे वो मुंबई रुकी, कैसे राइचंद'स में ऐसे माहॉल में जाके धँस सी गयी, कैसे उसे पता चला कि वो राजवीर की बेटी है ही नहीं.. वो शीना और रिकी के बीच पनपता प्यार, उनसे उसकी जलन, शीना से उसकी जलन, उसकी नफ़रत.. स्नेहा की चाल में उसका शामिल होना और अभी गोआ जाके अपने बाप से एक ग़लत रिश्ते का आगाज़ करना..



"व्हाट हॅपंड स्वीटहार्ट...कहाँ खो गयी.." शीना की एक फरन्ड ने उसके कंधे को हिला के कहा जिससे ज्योति होश में आई



"यार सुन एक बात बता प्लीज़.." ज्योति ने उसे कंधे से पकड़ा और दोनो थोड़ी दूर जा पहुँची..



"टेल मी, तू अगर कुछ ऐसा काम करने जा रही है जो थोड़ा सा ग़लत है, लेकिन क्यूँ कि पहले तू निश्चय कर चुकी है करना ही है.. तो क्या तू उसे करेगी फाइनली.." ज्योति ने दबी सी आवाज़ में पूछा



"देख यार.. तू परेशान लग रही है इसलिए बात की गहराई नहीं पूछूंगी, लेकिन हां यह ज़रूर कहूँगी के दिल को खुश करने के लिए मैं वो काम नहीं करूँगी, क्यूँ कि दिल कह रहा है वो ग़लत है.. लेकिन साथ साथ दिमाग़ ने एक निश्चय कर लिया है तो उसका भी कुछ करना पड़ेगा, इसलिए मैं वो काम ज़रूर करूँगी और फिर आगे जाके दिल को मानना पड़ेगा कि जो हुआ वो ग़लत नहीं था..यह मेरा मानना है, आंड मैं तुझे भी सेम अड्वाइज़ दूँगी, अगर नहीं बोलूँगी तो फिर आगे जाके शायद कोई पछतावा हो कि क्यूँ नहीं किया, इसलिए मैं ग़लत या सही सोचे बिना वो करूँगी.. वैसे भी लाइफ ईज़ फक्किंग शॉर्ट यार, साला कल मर मरा गये तो फिर कोई अधूरी ख्वाहिश नहीं रहनी चाहिए ज़िंदगी में.." उसकी फरन्ड ने बड़े ही कॅष्यूयली कहा.. ज्योति ने उसके शब्दों को समझा और वहाँ से उठ के जाने लगी



"अबे, हेलो.. की होया.." उसकी फरन्ड ने उसका पीछे जाके कहा



"कुछ नही डार्लिंग... गोयिंग गोआ.. सियाऊ..." ज्योति उछलती उछलती अपनी गाड़ी की तरफ जाने लगी
Reply
07-03-2019, 04:02 PM,
#66
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
राइचंद'स के लोनवाला वाले फार्म हाउस में सुबह सुबह उनका सेक्यूरिटी गार्ड पूरे घर का राउंड ज़रूर मारता.. निखिल को यहाँ आए दो दिन हुए थे लेकिन उसको इन्वेस्टिगेशन में अब तक कुछ नहीं मिला था, इसलिए जब भी वो अपने कमरे से बाहर निकलता अपने कुछ साथियों के साथ तब सेक्यूरिटी गार्ड से कुछ बातें कर लेता... आज तीसरी सुबह थी, पिछली रात जब निखिल ने कमिशनर को फोन करके सब बताया तब कमिशनर ने उससे कहा



"मैं जानता हूँ निखिल, उस फार्म हाउस में ऐसा कुछ नहीं है जो अमर कह रहा है, मेरा दोस्त है तभी मैने तुम्हे वहाँ भेजा था, मैं जानता था वक़्त ज़ाया होने वाला है, खैर एक काम करो, तुम आज की रात रुक जाओ उधर, लेकिन अपनी टीम को भेज दो उनके रिपोर्टिंग स्टेशन्स में... तुम चाहो तो 2 दिन की छुट्टी ले सकते हो.." कमिशनर ने सामने फोन पे कहा



कमिशनर के कहने पे निखिल ने अपनी टीम को रवाना किया और खुद वहीं रात गुज़ारने रुक गया.. उसकी टीम के जाने के बाद निखिल एक बार फिर विक्रम के कमरे में गया , मतलब जिस कमरे में विक्रम ने आखरी बार दोस्तों के साथ शराब पी थी... रात के करीब 11 बज रहे थे, निखिल अपने कुछ कपड़े बॅग में डाल के सुबह लौटने की तैयारी में लगा हुआ था कि अचानक उसकी नज़र खिड़की पे पड़ी जहाँ से उसे लगा किसी का साया उसने देखा है.. जब आगे बढ़ के देखा तो कुछ नहीं था, खिड़की बंद ही थी... निखिल को लगा शायद उसका वेहम होगा इसलिए वो फिर अपना काम करने के लिए पलटा ही कि उसके पीछे से फिर एक साया गुज़रा, निखिल को यह महसूस होते ही दिल में एक अजीब सा डर लगने लगा.. उसने अपने पॉकेट से रेवोल्वेर निकाली और धीरे धीरे कर उस खिड़की के पास बढ़ने लगा..खिड़की के पास जाके, कुछ सोचा और धीरे धीरे खिड़की खोल दी, खिड़की खुलते ही एक ठंडी हवा का झोंका उसके शरीर पे महसूस हुआ, कुछ देर बाद जब उसे कुछ अजीब ना लगा, थोड़ा आगे बढ़ के उसने अपने चेहरे को बाहर की तरफ किया, सामने घुप
अंधेरा छाया हुआ था, आँखों से मीलों दूर उसे कुछ रोशनी दिख रही थी, शायद हाइवे से थी..नीचे घना जंगल, वैसे तो वो भाग भी राइचंद के हिस्से में आता था, लेकिन किसी ने उसकी सफाई नहीं करवाई और ना ही कभी लोकल मुनिसीपलटी ने उसपे ध्यान दिया...



"कौन है.... चुप चाप मेरे सामने आओ नहीं तो.." निखिल ने एक साइड अपना चेहरा रख के कहा



"बाहर आओ.. नहीं तो.." यह कहके जैसे ही निखिल ने अपना चेहरा दूसरी तरह घुमाया, उसके चेहरे पे एक ज़ोरदार मुक्का पड़ा, और वो भी साधारण हाथ का नहीं, किसी ने उसे तेज़ धार वाले नकाल्स पहेन के मारा था, इसलिए मुक्का पड़ते ही जैसे निखिल के चेहरे का रंग फीका पड़ गया, दिमाग़ सुन हो गया.. जब तक उसे होश था तब तक वो सामने खड़े चेहरे को देखता रहा, पर नकाल्स का असर था कि उसे सब धुँधला धुँधला दिखाई दे रहा था, जैसे जैसे सामने खड़ा शक्स उसके पास आ रहा था, वैसे वैसे निखिल का सर चकराते चकराते वो बेहोशी की आड़ में चला गया...



अगली सुबह जब सेक्यूरिटी गार्ड पूरे फार्म हाउस के राउंड पे निकला तब सब कुछ नॉर्मल था, खामोशी छाई हुई थी चारो तरफ, वो अपने डंडे को घुमा घुमा के टेहल रहा था, हर रूम चेक करके उसने आश्वासन किया कि सब लॉक्ड हैं और आख़िर में वो विक्रम के रूम के पास पहुँचा... रूम को खुला देख समझ गया कि शायद निखिल यहीं सोया था रात को, इसलिए वो रूम के अंदर गया निखिल से बक्शीश लेने के चक्कर में.. जब रूम में उसे निखिल कहीं नहीं दिखा तब उसे लगा शायद बाथरूम में हो, इसलिए उसने सोचा कि निखिल को डिस्टर्ब नहीं करता, और आगे खिड़की के पास पहुँचा जो अब भी खुली थी..



"उम्म्म... सुबह सुबह का ठंडा हवा.. अहहहहा.." सेक्यूरिटी गार्ड ने खुद से कहा और एक अंगड़ाई लेते हुए चारो तरफ देखने लगा, लेकिन जैसे ही उसकी नज़र नीचे पड़ी उसका मूह खुला का खुला रह गया, जैसे एक पल के लिए उसका दिल ही रुक गया था, काटो तो खून ना निकले...



"खून्न्न.... खून......" चिल्लाता हुआ वो कमरे के बाहर निकला और अपनी कॅबिन की तरफ भागा...






"ह्म्म्म.... तुमने सबसे पहले क्या देखा.." कमिशनर ने सेक्यूरिटी गार्ड से पूछा और उसके साथ अमर भी था



"साब सबसे पहले मैं अपने मॉर्निंग राउंड पे निकला था, रोज़ की तरह रूम्स चेक किए और सब को लॉक देख आगे बढ़ा, जिस कमरे में विकी बाबा रुकते थे, उसी कमरे में यह साब भी रुके हुए थे, इसलिए उनका दरवाज़ा खुला पाकर मैं अंदर गया, जब अंदर रूम में नहीं दिखे तब मैने सोचा शायद बाथरूम में हो.. इसलिए खिड़की बंद करने आगे बढ़ा कि मेरी नज़र नीचे पड़ी, नीचे इन साब का शरीर पड़ा था झाड़ियों के बीच... मैने तुरंत मालिक को फोन किया, और उसके बाद से मैं यहीं खड़ा हूँ.." सेक्यूरिटी गार्ड ने कमिशनर से हाथ जोड़ते हुए कहा



"लेकिन तुमने साब से कहा कि उसका खून हुआ है, तुम यह कैसे कह सकते थे उस वक़्त, कि वो खून है.. उनके शरीर पे कोई घाव तो नहीं है"



"साब, यह साब तीन दिन से यहाँ थे, मैने कभी उन्हे शराब पीते नहीं देखा, इसलिए ऐसा नहीं हो सकता कि वो लड़खड़ा कर उधर गिरे हो, कल रात तकरीबन 11 बजे तक साहब नीचे ही थे और अपने दोस्तों के साथ बातें कर रहे थे, मैने सब को देखा, कोई भी दारू के नशे में नहीं था.. इसलिए अगर वो वहाँ नीचे थे तो किसी ने उन्हे वहीं फेंका होगा.." सेक्यूरिटी गार्ड ने फिर रोने जैसी आवाज़ में जवाब दिया



"ठीक है.. तुम जाओ.." कमिशनर ने सेक्यूरिटी गार्ड से कहा और अमर के साथ बाहर की तरफ चल पड़ा, कुछ पोलीस वाले और फोरेन्सिक वाले वहाँ घूम रहे थे और साथ ही कुछ कुत्ते भी थे



"शरीर पे कोई भी घाव नहीं है, लेकिन फिर कैसे कोई मर सकता है" अमर ने अपने मन में उठ रहे सवाल को कमिशनर के सामने रखा



"कोई बड़ी बात नहीं है अमर... इनिशियल रिपोर्ट्स की माने तो सब से पहले किसी ने निखिल के चेहरे पे एक ज़ोरदार मुक्का मारा है, उसकी आँखों के नीचे कुछ निशान हैं, जो फोरेन्सिक वालों के हिसाब से नकाल्स के होते हैं.. उसके बाद खूनी ने बहुत सावधानी बरती है, कोई गोली, पिस्टल या हथियार नहीं.. उसके हाथ ही उसके हथियार थे, नकाल्स को अपने हाथ में पहन के निखिल की छाती पे, उसके लेफ्ट साइड में जहाँ दिल होता है, उस साइड में कई बार मुक्के मारे गये हैं, वो सेम निशान जो उसकी आँखों के नीचे थे वोही उसकी छाती पे भी पाए गये हैं.. वार कई बार हुआ है, इसलिए शायद निखिल के दिल की धड़कन ही रुक गयी.. देखो, मुझे यह नोट भी वहाँ से मिला है, इसमे तुम्हारे लिए अच्छी खबर नहीं है" कमिशनर ने एक पर्चा उसे पकड़ाते हुए कहा



"इस बेचारे की कोई ग़लती नहीं थी, इसलिए इसे मैने आसान मौत दी है.. इसे मार के खिड़की से नीचे फेंका भी नहीं है क्यूँ कि इसके सर को चोट लग सकती थी.. राइचंद'स ही मेरे शिकार हैं.. यह फार्महाउस नहीं बिकना चाहिए" उस नोट में यह शब्द लिखे थे जिन्हे पढ़ के अमर के चेहरे पे पसीना सा आ गया



"अमर, कोई दुश्मनी निकाल रहा है अपनी.. विक्रम की मौत के लिए मैने अपना एक होनहार अफ़सर खोया है.. बेहतर होगा कि मैं विकी की फाइल बंद कर दूं, अब तक हमें उसकी मौत में कुछ ठोस नहीं मिला, हां निखिल सही था कि विक्रम की मौत का कुछ हिस्सा इस फार्महाउस से जुड़ा है, लेकिन अगर मैं वो पता करने यहाँ अपने अफ़सर भेजता रहूँगा तो मेरे सब ऑफिसर्स का शायद यही हाल हो, और चालाकी भी देखो, जिस दिन निखिल अकेला था उसी दिन उसपे यह हमला हुआ, जब उसकी टीम साथ थी तब कुछ नहीं था ऐसा, मेरी निखिल से रोज़ बात होती थी.. इसलिए मुझे लगता है अगर यहाँ कुछ है तो शायद तुम्हे ही पता लगाना पड़ेगा.." कमिशनर ने एक साँस में सब बोल दिया और अमर के जवाब का इंतेज़ार करने लगा..



"ठीक है, जैसा तुम ठीक समझो.. इस फार्महाउस की मनहूसियत जाने कब ख़तम होगी.." अमर ने कमिशनर से कहा



"ठीक है अमर, मैं कुछ पेपर्स भेजूँगा, उनपे साइन कर देना, हम यह केस फॉर्मली क्लोज़ कर देंगे, फिर तुम अपना फार्महाउस भी बेच पाओगे"



"नहीं, मैं किसी की जान की जवाबदारी नहीं ले सकता पर इसे बेच के अब मैं किसी की जान का नुकसान नहीं करूँगा.." अमर ने एक नज़र फार्महाउस पे डाली और वहाँ से रवाना हो गया






उधर बलि में रिकी कुछ आर्किटेक्ट्स से मिलने गया था, अब जब अमर को यह कहा है तो उसे वो करना ही था, पहले उसने सोचा के किसी भी लोकल आर्किटेक्ट को मिलेगा लेकिन फिर कुछ ख़याल दिमाग़ में आया और बेस्ट ऑफ दा टीम ढूँढने इंडोनेषिया की राजधानी जकार्ता के लिए निकला.. बलि में पीछे शीना अकेली अपने रिज़ॉर्ट में आराम कर रही थी, अपने रूम में जब उसे ख़ालीपन लगने लगा, तो वो रिकी के रूम में गयी, बेडरूम में जाके उस बिस्तर पे गयी जिसे उसने पहली बार अपने भाई के साथ गरम किया था... शीना और रिकी की ज़िंदगी का पहला सेक्स, इन दोनो के साथ फिज़िकल जो भी हुआ सब पहली बार था और एक दूसरे के साथ ही था.. बार बार यही बात शीना के ज़हेन में आती और उसके खून में एक रोमांच की ल़हेर दौड़ जाती.. वो जाके उस बिस्तर पे पीठ के बल लेट गयी और अपनी आँखें उपर की ओर करके उस शाम को याद करने लगी...



"उम्म्म.....आइ लव यू रिकी.... आ लॉट....आहहमम्म्म" शीना ने रिकी को शवर के नीचे गले लगते हुए कहा और रिकी की गरम साँसों को अपने बदन पे महसूस करने लगी, ठंडे पानी के साथ अपने आशिक़ की गरम साँसें, शीना जैसे सब कुछ भुला चुकी थी, उसकी ज़िंदगी के वो पल ही थे उसके लिए अब सब कुछ... रिकी अपने दोनो हाथ पीछे ले गया , एक हाथ से उसने शीना के उस पारदर्शी कपड़े को निकाला जो उसके चुचों को ढके हुए था और एक हाथ से उसकी पैंटी को नीचे उतारने लगा... थोड़ी सी अपनी टाँगें खोल दी शीना ने जिससे उसकी पैंटी सरक्ति हुई नीचे आई और उसके शरीर से अलग हुई...शीना के नंगे चुतड़ों पे रिकी के हाथ पड़ते ही शीना के शरीर में जैसे 440 वॉल्ट का
झटका लगा और वो रिकी की बाहों में धँसने सी लगी, उसके शरीर में जैसे जान ही नहीं थी, आज शीना ने खुद को रिकी के पास समर्पित कर दिया था... कुछ देर शीना यूही खड़ी रही और अपने चुतड़ों पे रिकी के हाथों का मज़ा लेने लगी...शीना ने अभी भी अपना चेहरा रिकी की छाती में छुपाया हुआ था, लेकिन हाथों को धीरे धीरे काम पे लगाया और नीचे ले जाके रिकी के इन्नर को निकालने लगी... रिकी ने जब यह देखा तो उसने शीना के चेहरे को अपने हाथ में लेके उसके होंठों को चूसने लगा और एक हाथ आगे ले आके अपने नखुनो से शीना की चूत को कुरेदने लगा, उधर शीना ने भी रिकी के अंडरवेर को उसके शरीर से अलग किया और धीरे धीरे उसके लंड को सहला रही थी, कभी उसके टट्टों को दबोचती तो कभी उसके लंड के टोपे पे अपने नाख़ून से सहलाती.. दर्द और मज़े का यह अनुभव रिकी के लिए पहली बार था



"उम्म्म्माहहहाहा उइम्म्म्मम..... अहहः शीनाअ आअहह..." रिकी ने बस इतना ही कहा और मज़े से उसका चेहरा खुद ब खुद उपर उठ गया जैसे बस उसे यही चाहिए था



"रिकी... आइ वॉंट टू मेक दिस आस डर्टी, आस किकी आस पासिबल...." शीना रिकी के लंड को हाथ से छोड़ते हुए कहा और साथ ही उसके हाथ भी अपने शरीर से हटा के अपने हाथों में थाम लिए



"आइ वॉंट टू मेक दिस आस स्पेशल आस पासिबल फॉर यू शीना.." रिकी ने वासना भरी टोन में कहा और फिर अपने होंठ उसके होंठों से जोड़ दिए... दोनो चूमते चूमते बाथरूम के बाहर आए और उसी पूलसाइड पे चले गये जहाँ उन्होने यह काम अधूरा छोड़ा था... पूलसाइड पे आते ही शीना ने रिकी को रेक्लीनेर चेअर पे धक्का देके सुला दिया और खुद उसकी छाती के उपर बैठ के उसे बेतहाशा चूमने लगी...



"उम्म्म्म... अहहाहा उम्म्म रिक्कययययहहहा... लव यू आ लॉट बेबी अहहहाहा उम्म्म्म.... यॅ अहहहः सक मी हार्ड उफ़फ्फ़ अहहहहा..." शीना पूरे जोश में रिकी को चूमे जा रही थी और रिकी ईक्वल पॅशन से उसका साथ दे रहा था.... शीना जब थकि, तब अपने होंठों को अलग कर के थोड़ा नीचे झुकी और उसकी आँखों के सामने रिकी का तना हुआ लंड था... आने वाले पल को महसूस करते ही रिकी के शरीर में एक सिरहन से दौड़ गयी और मज़े में आके उसने अपनी आँखें बंद कर के कुर्सी पे टेका लगा लिया... शीना ने अपनी जीभ निकाली और हल्के से अपनी जीभ की टिप सिर्फ़ रिकी के टोपे पे रखी



"आआहहहसिईईईईई..." रिकी ने शीना की जीभ को महसूस करके सिसकारी ली और उसके हाथ खुद बा खुद नीचे गये और शीना के चेहरे को पकड़ने लगे, मानो कह रहा था ऐसे ही करती रहो.... शीना ने जब रिकी को देखा तो वो समझ गयी कि रिकी एक आनंद के सागर में डूबा हुआ था, इसलिए उसने उसे बिना तडपाए अपनी जीभ का प्रहार उसके लंड के टोपे पे चालू रखा और रिकी के लंड पे मीठे वार करती रही, आनंद की शीत ल़हेर में रिकी को कुछ सूझ नहीं रहा था, वो बस हवा में अपनी गान्ड उठाता और फिर उसे नीचे रख देता, रिकी को यूँ तड़प्ता देख शीना को मज़ा आ रहा था



"रिकी.. मुझे देखो, तभी मैं आगे बढ़ूंगी.." कहके फिर शीना ने अपनी जीभ की टिप रिकी के टोपे पे घुमा के छोड़ दी जैसे कोई शेर को मास का टुकड़ा उसकी नाक के पास लाके फिर दूर कर देता था.. जब रिकी से यह बर्दाश्त नहीं हुआ, तब उसने अपनी आँखें खोली और अपनी नज़रें थोड़ी नीचे की तो शीना उसे ही घूर रही थी...



"इफ़ यू वॉंट टू मेक इट स्पेशल, वी बोथ विल नोट क्लोज़ अवर आइज़...." शीना ने एक हल्की सी वासना भरी मुस्कान लाके रिकी की आँखों में देख के कहा और धीरे धीरे कर उसके लंड को मुट्ठी में लेने लगी... दोनो हाथों से रिकी के लंड को पकड़ के शीना ने धीरे धीरे अपना मूह खोला और उसके लंड को अपने मूह के अंदर लेने लगी... यह करते वक़्त दोनो भाई बहेन एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे, दोनो की आँखों में कोई शरम, कोई भाव नहीं थे... वासना ही थी जो उनकी आँखों में तैर रही थी... धीरे धीरे कर शीना ने रिकी के लंड को अपनी हलक में उतारा और फिर हल्के हल्के से उसे अंदर बाहर करने लगी पर अपनी आँखें रिकी की आँखों में ही डाल के रखी थी.. शीना चाहती थी कि वो आज जो भी करे, दोनो एक दूसरे की आँखों में देख के ही करे और रिकी भी शायद ऐसा ही कुछ चाहता था.. देखते देखते शीना ने अपनी गति तेज़ कर दी और रिकी के लंड को पूरा बाहर निकालती और फिर पूरा अंदर निगल जाती लेकिन आँखें अभी भी वहीं थी जहाँ होनी चाहिए थी
Reply
07-03-2019, 04:03 PM,
#67
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
जैसे जैसे वक़्त गुज़रता, रिकी के सब्र का बाँध टूटता जाता, लेकिन बहुत मुश्किल से कंट्रोल कर रहा था... "आइ वॉंट टू कम विद यू ऑन बेड...." शीना की यह लाइन उसके ज़हेन में थी इसलिए वो झड़ना नहीं चाहता था पर जैसे जैसे शीना की जीभ काम करती जाती, वैसे वैसे उसके लावा फूटने के करीब पहुँचता... आख़िर कर जब रिकी से रहा नहीं गया वो तुरंत खड़ा हुआ और शीना के चेहरे को कस का पकड़ा और उसे जन्गलियो की तरह चूमने लगा... चूमते चूमते शीना ने अपनी दोनो टाँगों को रिकी की पीठ पे लपेट दिया और चूमते रहे... यूही चूमते चूमते रिकी शीना को कमरे में लाया और पहले सोफे पे लाके उसे पटक दिया, शीना जानती थी कि रिकी क्या करना चाहता है, इसलिए जैसे ही रिकी उसकी टाँगों के बीच पहुँचा, शीना ने अपनी टाँगों को फैलाया और अपनी गुलाबी चूत के होंठों का दर्शन रिकी को करवाया.. शीना की गुलाबी चूत देख के रिकी ने ज़्यादा कुछ सोचे बिना अपनी जीभ उसके उपर रख दी और धीरे धीरे कर उसकी क्लिट को चाटने लगा, क्यूँ कि वो जनता था क्लिट पे हमला शीना सह नही पाएगी और हुआ भी वैसा



"अहहाहा उईइ....ओह्ह्ह्ह नूऊओ नोट देअर अहहहाहा आऊहह." शीना रिकी के जीभ के हमले से उछल पड़ी, लेकिन रिकी ने अपना काम जारी रखा और शीना के हाथों को मज़बूती से पकड़ लिया








"नो रिकी अहहाहा उफ़फ्फ़.फ..... आइ म कमिंग अहहाहा ओह्ह्ह नूऊऊ बेबी अहहाहा येस्स्स्स... फास्टर्र्र्र्ररर फास्टर्र्र्र्ररर उईईइ अहहहहाहम्‍म्म्मम" शीना चिल्लाने लगी और छटपटाने लगी लेकिन रिकी ने अपना काम जारी रखा और अब उसकी जीभ शीना की चूत की गहराइयों तक पहुँच चुकी थी




"स्लूर्रप्प्प्प अहहहहाअ.... ओमम्म अहहाहा स्लूर्प्प आआहहहहहह.. शीना अहहहा उम्म्म यू आर टू टेस्टियी अहहहः स्लूरप्रप्प्प अहहहहः.." रिकी ने चूत चाट चाट के शीना की चूत को लाल कर दिया था लेकिन वो रुका नहीं...



"भाई यस अहाहहा आम कमिंग अहाहहा उफ़फ्फ़ अहहाहा यस फास्टरर अहहहहा.." शीना ने चिल्ला के कहा और रिकी के चेहरे को पकड़ के अपनी चूत में दबाना ही चाह रही थी कि रिकी ने उसकी चूत को छोड़ दिया.. शीना झल्लाने लगी, लेकिन फिर रिकी को देख के खामोश ही रही..



"आइ वॉंट टू टीज़ यू मोर... आज की हर चीज़ याद रहनी चाहिए तुम्हे.." रिकी ने आगे झुक के फिर शीना के होंठों को चूम लिया और उसका एक हाथ पकड़ के उसकी चूत के उपर रखवा दिया.. रिकी ने आँख से कुछ कहा और शीना ने थोड़ा सा अपनी चूत के होंठों को खोल दिया, जैसे ही उसकी चूत के होंठ कुछ खुले, रिकी ने अपने लंड के टोपे को शीना की क्लिट पे रखा और उसे हल्के हल्के रगड़ने लगा.....







"अहहहहाहा एस रिक्कक्कीईईईययययी अहहहहाअ..... उम्म्म्मम दिस अहहहहहा ईज़ अहाहा उफफफफफफ्फ़ ब्लिष्स्सस्स अहहहाहा यॅ कीप डूयिंग इट" शीना ने अपनी चूत के होंठों को खोल के ही रखा और रिकी के लंड के मज़े लेने लगी











जैसे जैसे रिकी अपना लंड उसकी क्लिट के उपर घुमाता, उतनी ही धीरे धीरे शीना की आँखें मस्ती में बंद हो रही थी...



"शीना.. ओपन युवर आइज़ बेबी... ऑर एल्स.." रिकी ने बस इतना ही कहा कि शीना ने आँखें खोली और आनंद में मुस्कुराने लगी....



"फक यू.... आइ कॅंट टॉलरेट इट अनीमोर.." कहके शीना उठी और रिकी के होंठों पे टूट पड़ी....



"उम्म्म अहहा रिकी.... फक मी प्लीज़.... अहहहहा उम्म्म्मम..." शीना ने चूमते चूमते रिकी से कहा



"आर यू रेडी.." रिकी ने अपने होंठ अलग किए और शीना की आँखों में देखते हुए पूछा



"आइ डॉन'ट नो, बट आइ कॅन'ट गेट बॅक फ्रॉम हियर... " शीना ने बस इतना ही कहा और फिर उस सोफे पे लेट गयी... सोफे पे लेट के शीना ने आँखों से ही रिकी को न्योता दिया



"आइ वॉंट टू टीज़ यू अगेन.." रिकी ने धीरे से कहा और अपने लंड के टोपे को शीना की चूत पे हल्के हल्के रगड़ने लगा, शीना की खुशी का आनंद नहीं था, वो बस रिकी को देख के मुस्कुराए जा रही थी और उसकी आँखों से आँखें मिला के उस वक़्त को जी रही थी...












शीना ने एक बार आनंद में अपनी आँखें बंद की और रिकी ने धीरे धीरे कर अपने लंड को उसकी चूत की गहराइयों में उतारा और दोनो वासना की उस हवा में बहने लगे जहाँ से यह अब कभी पीछे लौट नहीं सकते थे या लौटना चाहते ही नहीं थे....



"बहुत टीज़ करते हो आप.." शीना ने खुद को रिकी की बाहों में धकेलते हुए कहा जब उनकी चुदाई का तूफान थम चुका था



"आइ टोल्ड यू, आइ वॉंट टू मेक इट स्पेशल.... फर्स्ट टाइम की हर चीज़ याद रहनी चाहिए.." रिकी ने शीना को अपनी बाहों में कस के थामा और फिर उसकी आँखों को चूम के कहा



"वैसे तुम वर्जिन ही हो ना... आइ मीन .." रिकी ने अपनी आवाज़ में एक मस्ती लाते हुए कहा



"हां आइ नो, मैं वर्जिन ही थी अब तक, आंड ज़रूरी नहीं ब्लड निकले पहली बार में.. हमारी ऐसी काफ़ी सारी आक्टिविटीस रहती है जिसकी वजह से कभी कभी आक्सीडेंतली ही.." शीना ने बस इतना ही कहा कि रिकी ने उसके होंठों पे अपनी उंगली रख दी



"जानता हूँ बाबा, मज़ाक कर रहा था.."



"बट आज एक बात पता लग गयी मुझे" रिकी ने शीना के होंठों को हल्के से अपने होंठों से छू के कहा जिसके जवाब में शीना ने बस आँखें ही दिखाई



"वो यह.. कि हम दोनो ने पॉर्न बहुत देखा था आज तक..." रिकी ने हल्का सा मुस्कुरा के कहा और शीना ने फिर अपने चेहरे को उसकी बाहों के आलिंघन में छुपा लिया



"आज से मैं आपको रिकी ही कहूँगी..." शीना ने अपना फ़ैसला सुनाया जिसके जवाब में रिकी ने कुछ नहीं कहा







"लुक इंटो माइ आइज़, यू विल सी...व्हाट यू मीन टू मी" अपनी फोन की इस रिंगटोन से शीना उस शाम के ख़यालों से बाहर निकली , जब पास पड़े फोन को देखा तो उसके चेहरे पे हल्की मुस्कान आ गयी....



"हाई रिकी... उह हा.. वाज़ थिंकिंग ऑफ यू ओन्ली.... एनीवेस, होप आप को आर्किटेक्ट मिला है.... ओह वाउ ग्रेट, तो.. ओके ओके.. आके बताओ, जल्दी आ जाओ..." कहके शीना ने फोन कट किया और तैयार होने लगी बाहर जाने के लिए





इधर ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

गोआ में ताज विवांता, बीच के किनारे पे बना हुआ एक बहुत ही खूबसूरत होटेल है.. अगर दो रूठे हुए प्रेमी भी यहाँ आते तो उनके दिल फिर मिल जाए वहाँ की खूबसूरती देख, आज तो यहाँ फिर भी एक लड़की अपने बाप के साथ आई थी एक नये रिश्ते की तलाश में.. या एक नये रिश्ते की ज़िद्द में.. मैं बार बार ज्योति की हर चीज़ को ज़िद्द का नाम इसलिए दे रहा हूँ क्यूँ कि वो जो भी कर रही है या कर रही थी या करने वाली है, वो सब उसके लिए कोई मायने नहीं रखता था... पता नहीं क्यूँ खुद के अहम को हवा दे रही थी इन सब हरकतों से...



"पापा.. चलें, वॉटर स्पोर्ट्स पे.." ज्योति ने बाथरूम से बाहर आके कहा जहाँ राजवीर सोफे पे बैठे बीते टीवी देख रहा था.. ज्योति की आवाज़ सुन राजवीर ने जैसे ही टीवी से आँखें बाहर निकाली, उसकी ज़बान जैसे ज़मीन पे गिर पड़ी, आँखें बाहर आ गयी ऐसा नज़ारा देख के...
Reply
07-03-2019, 04:03 PM,
#68
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
राजवीर और ज्योति राजस्थान से गोआ के लिए निकल गये, क्यूँ कि वो लोग पब्लिक प्लेस पे थे इसलिए ज्योति ने प्रॉपर ड्रेसिंग ही की थी जैसे हमेशा करती थी.. नॉर्मल लूस टॉप और नीचे कार्गो पॅंट... शारीरिक तोर से तो दोनो एक साथ थे, लेकिन मानसिक तोर से दोनो एक दूसरे से काफ़ी दूर थे.. दोनो खामोश थे, जैसे एक दूसरे को पहचानते ही ना हो... ज्योति अपने ख़यालों में थी, सोच रही थी कि क्या करे क्या नहीं, या जो उसने सोचा है वो कैसे करेगी.. अगर राजवीर नहीं माना तो, या अगर उसे बुरा लग गया तो कहीं उसे घर के बाहर ना निकाल दे, आख़िर है तो वो अनाथ ही... लेकिन अगर मान गया तो फिर ज़िंदगी जैसे बस मज़े से कटेगी.. लेकिन फिर अगले ही पल ख़याल आया कि अभी भी ज़िंदगी में मज़े तो हैं ही, फिर यह सब क्यूँ कर रही हूँ मैं.. ज्योति जब भी राजवीर के साथ होने वाले रिश्ते के बारे में सोचती तो शुरू चाहे जहाँ से करे, लेकिन ख़तम इसी सवाल पे होती... आख़िर वो कर क्यूँ रही है ऐसा.. वहीं राजवीर को अंदाज़ा आ गया था कि ज्योति क्या कर रही है, पिछले कुछ दिनो के बर्ताव से राजवीर ने भाँप लिया था के था कि जिस दिशा में ज्योति जा रही है वो ग़लत है.. मुझे ज्योति को रोकना होगा, मैं ऐसा हरगिज़ नहीं कर सकता, आख़िर बेटी है वो मेरी, सही ग़लत परखना उसे मुझे ही सीखाना होगा..अगर मैं ही उसे ग़लत दिशा की ओर ले जाउन्गा तो फिर कहीं ज़िंदगी में रास्ता भटक ना जाए... लेकिन बार बार सुहसनी की वो एक लाइन उसके दिमाग़ में गूंजने लगी... "मज़े ले लो, आख़िर कौनसा अपना खून है तुम्हारा"... "मज़े ले लो...." "मज़े ले लो...." "मज़े ले लो...".......



"नहीं नहीं......" राजवीर ने खुद से चिल्ला के कहा जिससे उसके पास वाले उसकी तरफ ही देखने लगे...



"पापा, व्हाट हॅपंड..." ज्योति ने राजवीर का कंधा पकड़ के कहा जिससे राजवीर होश में आया तो देखा के वो अभी भी बोरडिंग अनाउन्स्मेंट का वेट कर रहे हैं...



"नहीं.. नतिंग, बस कुछ पुराने ख़याल...." राजवीर ने नज़रें फेर के कहा



"पुराने ख़याल इतने डरावने हैं क्या जो पसीना छूट गया है आपका..." ज्योति ने रुमाल देते हुए कहा, राजवीर ने कुछ नहीं कहा और रुमाल से पसीना पोछने लगा... कुछ देर में बोरडिंग अनाउन्स्मेंट हुआ और दोनो फ्लाइट में जाने लगे... करीब 5 घंटे के लंबे सफ़र के बाद जब दोनो अपने होटेल पहुँचे तब राजवीर को एक झटका और लगा



"क्या बोल रही हैं आप, देखिए हम ने दो रूम्स बुक किए थे..' राजवीर ने ताज विवांता की रिसेप्षनिस्ट पे हल्का सा चिल्ला के कहा



"आइ आम सॉरी सर, देखिए आप लोगों के नाम से एक ही सूयीट बुक्ड है..." रिसेप्षनिस्ट ने फिर उसे कहा



"सूयीट... एक्सक्यूस मे, हम ने दो रूम्स किए थे... हाउ कॅन यू बुक वन सूयीट फॉर अस.." ज्योति ने आक्टिंग करते हुए कहा, बुकिंग उसने ही की थी और वो जानती थी उसे अपने प्लान को कामयाब करवाना है तो सब से पहले राजवीर के साथ ही रहना पड़ेगा, इससे बेहतर मौका नहीं हो सकता था वो..



"आम एक्सट्रीम्ली सॉरी मॅम, आप की बुकिंग्स के बाद भी हम ने कन्फर्मेशन मेसेज भेजे थे, आपने रिप्लाइ भी किए हैं.." रिसेप्षनिस्ट अब थक चुकी थी



"देखिए, मेल्स कितने आते हैं अब सब को डीटेल में पढ़ने नही बैठ सकते ना,... नेवर्दलेस, आप बुकिंग कॅन्सल कीजिए सूयीट की और हमे दो एग्ज़िक्युटिव रूम्स दे दीजिए.." ज्योति ने बात को निपटाने का सोचा



"सॉरी मॅम.. ऑल दा रूम्स आर बुक्ड, ऑल वी हॅव नाउ ईज़ डिफरेंट स्यूयीट्स... इफ़ यू वॉंट आइ कॅन शिफ्ट यू देअर.."



"प्लीज़ कॅन्सल दा बुकिंग, हम यहाँ नहीं रह रहे." ज्योति ने जवाब में कहा और आगे बढ़ने लगी इस उम्मीद में कि राजवीर रोकेगा... हुआ भी वैसे ही



"रुकिये.. अब हम कहाँ जाएँगे, और ताज के स्टॅंडर्ड से नीचे नहीं रहता मैं, यू नो माइ स्टेटस ओके... एनीवेस, आप हमे रूम दिखायें..." राजवीर ने पहले ज्योति से और फिर रिसेप्षनिस्ट से कहा



"हियर'स युवर की सर... ही विल टेक यू टू युवर रूम..." रिसेप्षनिस्ट ने बेल बॉय को इशारा करते हुए कहा और जैसे ही तीनो वहाँ से बढ़ने लगे ही थे कि रिसेप्षनिस्ट की आवाज़ से फिर रुक गये



"हॅव आ प्लेज़ेंट स्टे अट विवांता मिस्टर आंड मिसेज़ राइचंद...." "मिस्टर आंड मिसेज़ राइचंद..." जैसे ही यह राजवीर के कान में पड़ा वो तुरंत पलटा और रिसेप्षनिस्ट को कहा



"यू बेटर नो युवर गेस्ट्स.. आइ आम हर फादर ऑलराइट...." राजवीर पहले ही गुस्से में था कि अब इस वाक्य ने फिर उसके गुस्से की आग को हवा दे दी. ज्योति खामोशी से आगे बढ़ती रही राजवीर के साथ लेकिन अंदर से वो काफ़ी खुश थी कि पहला कदम वैसा ही हुआ जैसे उसने सोचा था... तीनो कुछ ही वक़्त में अपने सूयीट में पहुँचे, एंटर होते ही राजवीर की आँखों में चमक सी आ गयी... सूयीट की एंट्री में ही बड़ा सा हॉल जिसमे तीन अलग अलग प्रकार के सोफा, चेर्स और कालीन बिछे रखे थे, सामने एक बड़ा सा बेडरूम और एक किंग साइज़ बेड, जिसपे कम से कम 4 लोग आराम से सो सकते.. बेडरूम की बाल्कनी से पीछे के बीच का नज़ारा था और बाल्कनी में ही एक छोटा प्राइवेट पूल बना हुआ था... बेडरूम का बाथरूम अलग, पर मैं बाथरूम उतना ही बड़ा जितना बड़ा उनका बेडरूम था, बाथटब जक्यूज़ी की सुविधा के साथ... राजवीर ने जैसे ही सब चेक किया उसको गर्व हुआ कि चलो कुछ दिन यहाँ के भी लग्षुरी में रहेंगे, कहाँ वो एग्ज़िक्युटिव रूम लेने का सोच रहा था..



"ओके पापा. तो आप बेड पे सो जाना और मैं इधर हॉल में ही.. वैसे भी लेट नाइट टीवी देखूँगी तो जल्दी नींद आ जाएगी.." ज्योति और राजवीर दोनो आमने सामने पड़े सोफा पे बैठ गये



"वो सब बाद में.. पहले खाना खा लेते हैं, फिर आगे प्लान क्या है बताओ..." राजवीर ने इंटरकम उठाते हुए कहा और दोनो के लिए खाने का ऑर्डर दे दिया



"पापा, अभी शाम के 5 ही हुए हैं.. तो मेरे हिसाब से पहले वॉटर स्पोर्ट्स कर लेते हैं, फिर बीच पे घूमने चलेंगे.." ज्योति ने एक पल भी गवारा करने का नहीं सोचा



"ठीक है... जब तक खाना आता है तब तक फ्रेश होते हैं.." राजवीर ने कहा और दोनो फ्रेश होने चले गये... राजवीर जल्दी से फ्रेश हो गया पर ज्योति अब तक नहीं आई थी और तभी उनका खाना भी आ गया...



"ज्योति, जल्दी करो, कितनी देर..." राजवीर चिल्लाया और टीवी देखने लगा...




"पापा.. चलें, वॉटर स्पोर्ट्स पे.." ज्योति ने बाथरूम से बाहर आके कहा...ज्योति की आवाज़ सुन राजवीर ने जैसे ही टीवी से आँखें बाहर निकली, उसकी ज़बान जैसे ज़मीन पे गिर पड़ी, आँखें बाहर आ गयी ऐसा नज़ारा देख के. उसके सामने ज्योति येल्लो कलर की टू पीस बिकिनी पहने हुई थी, उसके बाल हल्के गीले थे, बदन पर पानी की बूँदें अभी भी थी, शायद ज्योति ने खुद को जान बुझ के अच्छे से पोछा नहीं था, ज्योति के मखमली बदन से पानी की बूँदें टाप टॅप करके नीचे गिर रही थी, राजवीर ने जब उसके चेहरे को देखा तो पानी की बूँदें उसके बालों से गिर के धीरे धीरे उसके चेहरे से होते हुए सीधा उसके चुचों की गलियों में जा रही थी जिससे उसके चुचे और चमकने लगते.. धीरे धीरे कर ज्योति आगे आई जैसे रॅंप वॉक कर रही हो.... राजवीर की नज़र उसके चुचे से हटके धीरे धीरे नीचे आने लगी, उसका सुडोल पेट, गहरी नाभि देख के राजवीर जैसे मरने ही वाला था कि थोड़ी नज़र नीचे गयी और ज्योति की चूत दिखी... फिलहाल तो वो चूत धकि हुई थी, लेकिन राजवीर इमॅजिन करने लगा कि वो भी खुली होती तो शायद उसे अभी ही हार्ट अटॅक आ जाता



"चलें पापा..." ज्योति ने हल्का सा झुक के कहा , राजवीर पे जैसे कहर टूट पड़ा... उसकी बिकिनी पहले ही उसके चुचों को कुछ कम ढके हुई थी कि अभी यूँ अचानक झुकने से राजवीर के ठीक सामने उसके चुचे बाहर को गिरने लगे...



"हहह..हन्न.. हां चलो, पर यह.. यीहह पहेन के चलॉगी..." राजवीर ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और हकलाते हुए कहा



"जी नहीं, इसके उपर का सूट है मेरे पास, यह मैने स्पेशली वॉटर स्पोर्ट्स के लिए खरीदा है..." ज्योति ने दो कदम पीछे लिए और राजवीर के सामने गोल घुमके अंग प्रदर्शन करने लगी, ज्योति के पलटने से राजवीर की नज़र सीधा उसके चुतड़ों पे गयी, उसकी बिकिनी की पेंटी उसके चुतड़ों की लकीर को ढके हुई थी, बाकी सब दिख रहा था... राजवीर तो जैसे बस खो ही गया इतने खूबसूरत चुतड़ों को देख के



"कैसा है पापा.." ज्योति ने कहा जिससे राजवीर होश में आया और बस हां कहके खाने पे लग गया.. ज्योति को यकीन था के राजवीर को फसाना इतना आसान नहीं होगा इसलिए वो हर एक कदम फूँक फूँक के रख रही थी.. ज्योति वहीं उसके सामने बैठ गयी बिकिनी में और खाना खाने लगी... ज्योति धीरे धीरे खा रही थी जान बुझ के, वो जानती थी कि अभी बीच पे कोई स्पोर्ट्स नहीं होगा इसलिए वक़्त की परवाह नहीं थी, वो चाहती थी कि जितनी देर वो लोग यहाँ इस कमरे में रहें उतना वक़्त बस उसे अंग प्रदर्शन ही करना पड़ेगा, वो बिल्कुल भी ढील नहीं देना चाहती थी राजवीर को.. इसलिए तो ज्योति एक एक नीवाला ऐसे खाती जैसे स्लो मोशन चल रहा था, राजवीर कभी खाना ख़ाता तो कभी अपनी नज़रें उँची करके उसके चुचों को देखता...



"मैं तो बहुत थक गयी थी सफ़र से पापा..." ज्योति ने आलस भरी आवाज़ में कहा और हाथ उपर करके एक अंगड़ाई ली जिससे उसके चुचे तन गये, यह देख राजवीर की सिट्टी गुल हो गयी... उसने जल्दी से अपनी नज़रें नीची की और जल्दी जल्दी खाना ख़तम कर दिया...
Reply
07-03-2019, 04:03 PM,
#69
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"चलें... नहीं तो देर ना हो.." राजवीर ने बाथरूम जाते हुए कहा



"ऐसे कैसे, आप यह कपड़े पहनिए, बीच पे कोई जीन्स पहनता है क्या.." ज्योति ने राजवीर को एक स्पोर्ट वेस्ट और टाइट बॉक्सर देते हुए कहा... काफ़ी ना नुकुर करके ज्योति ने उससे अपनी बात मनवाई, कपड़े चेंज करके जैसे ही राजवीर बाहर आया, ज्योति की नज़र सबसे पहले राजवीर के लंड की तरफ गयी , बाहर से ही ज्योति को अंदाज़ा आ गया कि राजवीर का लंड तना हुआ था, और टाइट बॉक्सर की वजह से वो कुछ ज़्यादा ही कसा हुआ लग रहा था.. तब तक ज्योति ने भी अपने उपर एक स्विम सूट पहेन लिया और हाथ में हाथ डाल के राजवीर के साथ बीच की तरफ चल दी... विवांता से थोड़ी ही दूरी के वॉक पर ज्योति राजवीर को कांडॉलिम बीच ले गयी.. क्यूँ कि ज्योति पहले यहाँ आ चुकी थी इसलिए जानती थी के कौन्से बीच पे कम भीड़ रहती है.. कांडॉलिम बीच पे लोग काफ़ी कम आते थे, जितने भी आते उनमे सबसे ज़्यादा फॉरिनर्स रहते इसलिए ज्योति ने वो बीच चुना..



"यहाँ तो कुछ नहीं है.. स्पोर्ट्स कहाँ है.." राजवीर ने बीच के आस पास नज़र फिराते हुए कहा



"हां पापा, अभी बंद हो गया होगा, कोई बात नहीं हम सुबह को कर लेंगे, अभी तो यहाँ टहलते हैं आइए ना.." कहके ज्योति ने फिर राजवीर की बाहों में अपना हाथ डाला और वॉक करने लगे... अपनी बेटी के साथ वॉक करना कुछ अलग नहीं था, लेकिन वोही बेटी जो पिछले कुछ दिनो से अपने बाप के आगे अंग प्रदर्शन करने में लगी हुई है, वोही बेटी बार बार जान बुझ के राजवीर को उकसा रही है, वोही बेटी अब कुछ सीमायें पार कर रही है.. यह सोच के राजवीर थोड़ा अनकंफर्टबल फील करने लगा, लेकिन चलते चलते जैसे राजवीर बीच पे नज़र घुमाता, वैसे वैसे उसकी नज़र फिरंगियों पे पड़ती जो बिंदास होके घूम रहे थे, बिकिनी में घूम रही गोरियाँ उसके खड़े लंड पे और ज़्यादा वार कर रही थी..



"क्या हुआ पापा.. इतने खामोश क्यूँ हो" ज्योति ने जैसे राजवीर की चोरी पकड़ते हुए कहा



"कुछ नहीं बेटी, बस अब तेरी पढ़ाई ख़तम हो तो शादी करवा दूं तेरी, कब तक अपने पापा के साथ घूमेगी तू भी.." राजवीर ने खुद को संभाला और नॉर्मल टोन में आगे देख के जवाब दिया..



"शादी में तो बहुत टाइम है पापा, उससे पहले लाइफ तो एंजाय कर लूँ.. पता नहीं ससुराल में जाके ऐसा वक़्त फिर मिले भी कि नहीं.." ज्योति ने चलते चलते अपना सर राजवीर के कंधे पे रखा



"बस... अब और नहीं चलूँगा मैं... मैं एक काम करता हूँ, मैं वहाँ सामने बैठता हूँ, तुम्हे जो करना है करो...ओके.." कहके राजवीर उससे अलग होके सामने पड़ी चेर पे जा बैठा..करीब 20 फुट की दूरी होगी उन दोनो में, राजवीर के बैठने पे ज्योति उसकी आँखों में घूरते घूरते एक हाथ सूट के ज़िपर पे ले गयी और धीरे धीरे से उसे अपने शरीर से अलग करने लगी.. जब उसका ज़िपर उसके शरीर से अलग हुआ राजवीर पे मानो जैसे आसमान टूट पड़ा हो.. सामने ज्योति को खड़ा देख वो खुद को संभाल नहीं पा रहा था.. उसका लंड अब खुद को बाहर निकलने के लिए तरस रहा था.. स्लो मोशन में ज्योति ने दोनो हाथ हल्के से उपर किए और अपने बाल सँवारते सँवारते राजवीर को ही देखती रही और उसे एक कातिलाना स्माइल दी




ज्योति पलट के धीरे धीरे समंदर के पास गयी और पानी के साथ खेलते खेलते स्विम्मिंग करने लगी... राजवीर अब भी उसे ही देख रहा था के तभी उसका फोन बजा..



"सही जगह पे ग़लत इंसान के साथ आया हूँ, अब क्या करूँ मैं.." राजवीर ने फोन उठाते ही सुहसनी से कहा



"ग़लत इंसान क्यूँ.." सुहसनी ने हन्स के जवाब दिया



"अरे भाभी, यहाँ आप होती तो मज़ा ही अलग था, कसम से कह रहा हूँ.. रात को समंदर के किनारे यहाँ की रेत पे आपके बदन की गर्मी में जो मज़ा आता वो कैसे मिलेगा अब.." राजवीर ने अपने खड़े लंड पे हाथ फेरते हुए कहा लेकिन उसकी आँखें अभी भी ज्योति पे थी जो स्विम्मिंग में लगी हुई थी



"तुम्हारी बेटी का जिस्म भी गरम ही है राजवीर... हाथ सेक लो, जानती हूँ कि तुम सही ग़लत सोचोगे, लेकिन लंड और चूत का जब मिलन होता है तब कोई रिश्ता नहीं टिकता, तब तो बस अपनी अपनी प्यास भुजाना ही महत्व का काम होता है..." सुहसनी ने कहा



"और हां, वो तो फिर भी तेरी गोद ली हुई बेटी है, जब तूने मुझे पहली बार बिस्तर पे सुलाया था तब कहाँ थी यह सोच.. मैं तो तेरी सग़ी भाभी हूँ.. खून का रिश्ता ना तेरा मुझसे है ना ही ज्योति से.. फिर कैसी हिचकिचाहट... देख, कहीं बाहर वाले से मूह लग गयी तो फिर तुझे इतना पॅक माल कहीं से नहीं मिलेगा... फिर ढूँढते रहना अपने लिए सील पॅक माल.." सुहसनी ने हँसते हुए कहा



"सील पॅक तो शीना भी है ना भाभी, उसके बारे में क्या कहोगी" राजवीर के लंड ने अंदर तूफान मचा रखा था और वो उसे हाथ फिरकर ठंडा करने की कोशिश कर रहा था



"कौन जाने... शीना और रिकी साथ ही गये हैं, अब जब प्यार करते हैं तो यह तो होना ही था, अब जब साथ गये हैं इतना दूर, तो क्या चुदवायेगी नहीं.. शीना तो तेरे हाथ से गयी, अब भी बोलती हूँ, ज्योति को मसल डाल अपने नीचे.. वो भी खुश, तू भी खुश" सुहसनी ने फिर ऐसे जवाब दिया जैसे वो कोई बाज़ारू औरत हो और राजवीर उसका ग्राहक



"दोनो साथ कैसे.... " राजवीर ने इतना ही कहा के अगले पल वो फिर बोल उठा



"ओह हां, जान गया, तुमने ट्रॅवेल एजेंट से पता किया होगा, उस दिन जब कमरे में दोनो एक दूसरे को चूमने जा रहे थे, तब से तुमने उनका पीछा किया होगा, "



"नहीं नहीं, पीछा नहीं किया, वो तो कल बिल सेटल्मेंट के लिए आया था, अमर नहीं थे तो मुझे पता चला... अमर होते तो ज़्यादा कुरेदते इस मामले को" सुहसनी ने फिर जवाब दिया और खामोश रही.. राजवीर भी कुछ कहने जा रहा था तभी ज्योति आती दिखाई दी उसे, फोन कट करके अपने खड़े लंड को छुपाने की ना काम कोशिश करने लगा





इधर...........................
अमर जब लोनवाला से वापस घर आया तब काफ़ी परेशान था, सुहसनी ने कई बार पूछा लेकिन अमर ने उसे कुछ नहीं बताया... अमर गार्डेन में बैठा ही था कि उसकी नज़र गाड़ी से उतरते रिकी और शीना पे पड़ी..



"अरे बेटा, आ गये , इतनी जल्दी और साथ में कैसे" अमर ने दोनो को बैठने का इशारा करते हुए कहा



"मैं तो 2 दिन के लिए ही गयी थी पापा, " शीना ने यह कहा कि रिकी फिर बोल पड़ा



"हां पापा, तभी मैने शीना को फोन किया कि एक दिन और रुक जाए, फिर ऑस्ट्रेलिया से जकार्ता और जकार्ता से हम साथ आएँगे.. शीना मान गयी और हम आ गये"



"ओके बेटा, हाउ वाज़ युवर ट्रिप, आंड आर्किटेक्ट्स से मिले, एनी प्रोग्रेस देअर्.." अमर ने रिकी और शीना दोनो से पूछा



"हां पापा.. बस कुछ दिन में उनकी टीम यहाँ आएगी और हम लोग काम स्टार्ट करेंगे.." रिकी ने पूरे विश्वास से जवाब दिया और अमर को देखने लगा, लेकिन अमर उसको ना देख के कहीं और ही डूबा हुआ था, परेशानी उसके चेहरे से सॉफ झलक रही थी जिसे शीना ने भी देख लिया



"पापा, एवेरितिंग ऑलराइट..." शीना ने अमर से पूछा और एक नज़र रिकी को देखा



"बेटी, वो फार्महाउस में.." अमर ने उन्हें सारी बातें बता दी



"ओह माइ गॉड.. अब क्या होगा पापा..." शीना ने परेशानी से कहा, वो निखिल को स्नेहा के बारे में बताना चाहती थी लेकिन निखिल की मौत का सुन के उसके उपर जैसे किसी ने इतना बड़ा हमला कर दिया था जो वो उम्मीद भी नहीं कर सकती थी.. उपर से अमर की वो नोट वाली बात उसे और तकलीफ़ दे रही थी



"पता नहीं बेटी, फार्महाउस तो नहीं बेचना अब मुझे, पर मैं यह सोच सोच के परेशान हो रहा हूँ कि आख़िर कौन कर रहा है यह सब.. " अमर ने शीना को देखा और रिकी को... दोनो की हालत सेम थी इस वक़्त.. कुछ देर की खामोशी के बाद शीना वहाँ से उठी और थोड़ी दूरी पे जाके अपने फोन से किसी को फोन मिलाया



"दा नंबर यू आर कॉलिंग ईज़ आउट ऑफ सर्विस.." यह सुन के शीना के पेर के नीचे से ज़मीन खिसकने लगी..



"ओह माइ गॉड.... ईज़ ही फाइन...." शीना ने अपने माथे से पसीना पोछते हुए खुद से कहा
Reply
07-03-2019, 04:03 PM,
#70
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
गोआ से लौटने के बाद ज्योति और राजवीर की आँखें ही नहीं मिल पा रही थी.. जब जब दोनो साथ में बैठते तो एक बहुत ही अजीब किस्म की शांति से रहते, ना कोई बात ना कुछ.. राजवीर के साइड से यह मुनासिफ था, लेकिन ज्योति की तरफ से ऐसा कुछ नहीं था क्यूँ कि वो जब भी राजवीर को देखती तो बस उसे मुस्कान दे देती और उसे रिझाने की कोशिश करती, जब उसके पास बैठती तो सब के सामने उसे अपने हाथ से नाश्ता खिलाती और हँस खेल के बातें करती.. राजवीर समझ नहीं पा रहा था कि वो आख़िर इन सब से कैसे डील करे, सब के सामने तो वो ज्योति का साथ देता लेकिन अकेले में कभी नहीं.. जब जब ज्योति उसके कमरे के पास जाती तो राजवीर उसे अंदर नहीं आने देता और बाहर से ही कुछ कह के टाल देता.. ज्योति समझती थी कि ऐसा क्यूँ है इसलिए वो नाराज़ नही होती..



"स्वीटहार्ट.. इतनी परेशन क्यूँ हो.." रिकी ने शीना से पूछा जब दोनो घर के गार्डन में बैठे बातें कर रहे थे



"नोथ्न... यू से, कल से चाचू के साथ जाओगे विकी भाई के काम को देखने.. और रिज़ॉर्ट का काम कब स्टार्ट करना है.. आइ मीन आर्किटेक्ट्स की टीम कब आएगी" शीना परेशानी छुपाने की कोशिश कर रही थी रिकी के सामने



"हां कल से चाचू के साथ जाना है, आज तक समझ नहीं आया विकी भाई क्या करते थे.. कहने के लिए कन्स्ट्रक्षन कंपनी है , मॅन्यूफॅक्चरिंग यूनिट है लेकिन आज तक मैने उन्हे कभी बिज़ी नहीं देखा.. आइ मीन जब जब मैं यहाँ आया हूँ तब तब वो मुझे घर पे ही मिले हैं, कभी बिज़ी नहीं.... वेरी स्ट्रेंज, बट कल पता चल जाएगा क्या करते थे..देखें अब.." कहके रिकी शीना को ही घूर्ने लगा, जो उस वक़्त थी तो रिकी के साथ लेकिन उसका दिमाग़ वहाँ नहीं था..



"क्या हुआ.. बताओ भी अब, ऐसे छुपाने कब से लगी तुम मुझसे बातें.." रिकी ने थोड़ा ज़ोर देते हुए कहा



"कुछ नहीं, बस कल के बारे में सोच रही थी.. आप चले जाओगे फिर बिज़ी रहोगे, जब तक आर्किटेक्ट की टीम नहीं आती, तब तक तो हम एक दूसरे को कम टाइम दे पाएँगे.. यही सोच सोच के थोड़ा सा अच्छा नहीं लग रहा" शीना ने मासूमियत से जवाब दिया



"झूठी... नहीं बताओ, आंड नतिंग लाइक दट.. आराम से मिलेंगे हम, डॉन'ट वरी... आंड स्वीटहार्ट, इट्स नोट अबाउट हाउ मच टाइम वी स्पेंड... क्वालिटी मॅटर्स, भले ही हम सिर्फ़ साथ 2 मिनिट गुज़ारें, लेकिन वो 2 मिनिट ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत 2 मिनिट होने चाहिए..." रिकी ने शीना को कहा, लेकिन शीना अब भी ठीक नहीं लग रही थी, रिकी बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया, वो जानता था अगर शीना नहीं बताना चाहती तो नहीं ही बताएगी.. शीना की नज़रों से जब रिकी दूर चला गया तब शीना ने फोन उठाया और फिर कॉल किया, लेकिन नतीजा कुछ नया नहीं था.. पिछले 2 दिनो में शीना ने 200 बार इस नंबर पे फोन किया था लेकिन कोई काम का नहीं



"कहाँ यार, कहा था मैने पहले ही इनस्पेक्टर को इन्वॉल्व कर देते हैं...अब तो वो भी मर गया है पर..." शीना ने खुद से कहा और फोन टेबल पे पटक के अपना सर पकड़ के बैठ गयी..


.....................
"हे, अंदर आ जाउ.." रिकी ने ज्योति के खुले हुए दरवाज़े को नॉक करके पूछा



"अरे, प्लीज़ आइए ना भैया.. हाउ आर यू, हाउ वाज़ युवर ट्रिप.." ज्योति ने रिकी के हाथों को अपने हाथ में लिया और उसे बेड पे बैठा दिया



"अमेज़िंग...यू से, गोआ वाज़ गुड..." रिकी ने धीरे धीरे कर ज्योति के हाथों से अपने हाथ छुड़ा के पूछा



"लव्ली, नेक्स्ट टाइम वी ऑल विल गो टुगेदर.." ज्योति ने खुशी से उछल के कहा



"अरे, मैने कुछ बुक्स कही थी, वो लाई हो कि नहीं.."



"यस, यहीं पे रखी है..." कहके ज्योति ने साइड टेबल के नीचे वेल छोटे से कपबोर्ड को खोला और उसमे से सब बुक्स निकाल दी



"वूहहू.." रिकी ने खुशी से कहा और एक एक बुक को देखने लगा.. ज्योति खामोशी से रिकी के रियेक्शन को, उसके हाव भाव को देख रही थी, ज्योति रिकी को ध्यान से देखने लगी, उसके हाव भाव से लेके उसके शरीर को, उसके चेहरे से लेके उसके बर्ताव को.... जैसे ही ज्योति की नज़र उसके हाथों पे पड़ी, उसकी आँखें बड़ी हो गयी.. जैसे ही वो उससे कुछ कहती , उसे स्नेहा की बात याद आ गयी



"कभी कभी चुप रहने में ही भलाई है, कभी कभी ऑब्ज़र्वेशन्स को अपने तक ही रखो, और उसे किसी बड़ी चीज़ के लिए यूज़ करो.." जैसे ही ज्योति के दिमाग़ में यह बात आई, उसने अपने दिमाग़ को शांत किया और रिकी के साथ बातें करने लगी



"वैसे भैया.. टेल मी , आप तो प्रॉजेक्ट मॅनेज्मेंट में मेजर कर रहे हो.. आंड ऐज फार अस आइ आम अवेर तो किंग'स में माइनर सब्जेक्ट होता ही नहीं है राइट.. तो फिर यह एकनॉमिक्स की बुक्स क्यूँ.." ज्योति ने अपने मन का सवाल आख़िर रिकी के सामने रख ही दिया



"अरे सॉरी, आइ फर्गॉट टू इनफॉर्म यू...मेरा मेजर चेंज कर लिया था मैने, आंड कब का किया है वो, हाउ आर यू नोट अवेर... प्रॉजेक्ट मॅनेज्मेंट में आइ डिड नोट फाइंड एनितिंग इंट्रेस्टिंग, सो आइ चेंज्ड टू फाइनान्स.. अब तुझे पता है फाइनान्स आंड एकनॉमिक्स गो हॅंड इन हॅंड.. सो.. आंड यह बुक्स यहाँ की यूनिवर्सिटी में अवेलबल ही नहीं थी, सो आइ थॉट तू ला सके तो.." कहके रिकी ने फिर बुक्स अपने हाथ में ली और वहाँ से चला गया



"ह्म्‍म्म... इंट्रेस्टिंग.. कब मेजर चेंज किया, कब नहीं...उम्म्म्म, ज्योति जी.." ज्योति ने खुद से कहा और कुछ सोच के अपनी तब पे कुछ सर्च करने लगी



,,,,,,,,,,,,,,,,

"ओके रिकी.... ऑल सेट फॉर आ रोल चेंज.." राजवीर ने रिकी को देख के कहा, सब लोग ब्रेकफास्ट टेबल पे बैठे थे... शीना अभी भी कहीं गुम्सुम थी लेकिन छुपाने की कोशिश करने में व्यस्त थी और दिखावे की हँसी हँस रही थी.. उसे छोड़ बाकी सब लोग खुश थे टेबल पे, काफ़ी टाइम बाद स्नेहा के चेहरे पे हँसी लौट आई थी, शायद ज्योति की वजह से उसे नयी उर्जा मिली थी, और काफ़ी टाइम से शीना भी खामोश थी.. इसलिए उसे कोई दिक्कत नहीं थी..



"यस अंकल, और कुछ दिन में रिज़ॉर्ट का प्रॉजेक्ट भी स्टार्ट होगा... रेडी फॉर मल्टिपल रोल्स आइ मस्ट से..." रिकी ने हँस के जवाब दिया और एक नज़र शीना की तरफ देखा तो वो फिर से किसी सोच में डूबी हुई थी.. कुछ देर में राजवीर और रिकी एक साथ घर से निकल गये.... और घर के बाकी सब लोग अपने अपने कामो में लग गये, शीना अभी भी टेबल पे अकेले बैठे कुछ सोच रही थी.. इतनी निराश हो चुकी थी वो कि अब फोन को देख ही नहीं रही थी, शायद उसके कानो में हिम्मत नहीं थी फिर से सेम चीज़ सुनने की.. शीना को ऐसे देख स्नेहा और ज्योति दोनो बहुत खुश हुई...



"चाचू, भैया की ऑफीस तो बीकेसी के पास है ना, फिर आप इधर क्यूँ ले रहे हैं.." रिकी ने राजवीर को देखा जो आगे देख बस गाड़ी चलाने में व्यस्त था...



"आज सब पता चल जाएगा तुझे.. बस एक ध्यान रखना. जहाँ चल रहे हो, जिन लोगों से मिलोगे, वहाँ जज़्बातों पे काबू रखना ओके.. कोई भी सवाल हो, वो बाद में मुझ से पूछना, बस सब को अब्ज़र्व करना, ज़्यादा बात फिलहाल नहीं करना.. विक्रम इसी बात के चलते काफ़ी कामयाब था, कुछ ना कहके भी वो अपनी बात कह देता था.. तुम विक्रम नहीं बन पाओगे और वो मैं चाहता भी नहीं.. लेकिन धीरे धीरे कर जब तुम पुराने हो जाओगे इस काम में, तब तुम जो चाहे कर सकते हो.. पर फिलहाल के लिए आइ आम युवर फ्रेंड आंड फिलॉसफर..." राजवीर ने गाड़ी चलाना जारी रखा और कुछ देर में दोनो एक अंडर कंट्रक्षन बिल्डिंग के पास पहुँचे, बिल्डिंग देख रिकी को अजीब लगा, कि पहले दिन उसे यहाँ क्यूँ लाया गया जब ऑफीस है तो..यह सोच के रिकी कुछ कहना चाहता था लेकिन राजवीर की कही हुई बात याद आ गयी और खामोशी से उसके पीछे चलता रहा.. स्टेर्स
चढ़ते चढ़ते दोनो 15थ फ्लोर पे पहुँचे, लिफ्ट नहीं थी तो पैदल के अलावा कोई ऑप्षन नहीं था दोनो के पास...15थ फ्लोर पे दो फ्लॅट्स आमने सामने बन रहे थे, जिस फ्लॅट में राजवीर गया उस फ्लॅट का एरिया काफ़ी बड़ा था, मानो कोई आलीशान अपार्टमेंट बनने वाला था वहाँ.. मैं हॉल से लेके कम से कम 5 रूम्स थे दूसरे.. रिकी और राजवीर दोनो चलते चलते आखरी कमरे में घुस्से जहाँ पहले से ही कुछ 10 जैसे दूसरे आदमी बैठे थे.. राजवीर के आते ही सब लोग अपनी अपनी कुर्सियों से खड़े हुए और एक एक कर उससे गले मिलने लगे, राजवीर भी उनसे ऐसे मिला जैसे बरसों बाद दूसरे दोस्तों से मिला हो.. राजवीर से मिल के सब ने नज़र रिकी पे डाली , सब जानते थे कि अब उन्हे इसके साथ ही काम करना है और यह अमर का दूसरा बेटा है.. रिकी सब को देख थोड़ा सहम सा गया था, सब लोग अलग अलग किस्म के कपड़े पहने थे, इन सब में रिकी ही बस फॉर्मल कपड़ों में था, जिसकी वजह से उसे अलग अलग लुक्स मिल रहे थे...



"लिस्ट तैयार है, आप देख लीजिए.." एक बंदे ने काम की बात पे आते कहा और राजवीर के हाथ में तीन काग़ज़ थमा दिए.. राजवीर के साथ रिकी उसके पास बैठ गया और कभी काग़ज़ को देखता तो कभी वहाँ बैठे लोगों को...



"तो अभी आशस, फिर इंडिया न्यूज़ेलॅंड जा रही है और फिर ऑस्ट्रेलिया आफ्रिका जाएगी.." राजवीर ने काग़ज़ पलट के कहा



"अशेस में तो काफ़ी नुकसान हुआ है, विकी भाई की खबर सुन के काफ़ी सौदे तो हम ले ही नहीं पाए ना.. और जितने सौदे गये उसमे भी काफ़ी उल्टे पड़ गये, विकी भाई के बाद कोई टिप देने वाला था ही नहीं.." उसी बंदे ने जवाब दिया पर इस बार थोड़ी उँची आवाज़ में



"इससे पहले जब जब फ़ायदा हुआ है तब तो किसी के सामने आवाज़ उँची नहीं की, खून को ठंडा कर.." राजवीर ने काग़ज़ से आँख निकाले बिना उसे जवाब दिया, राजवीर की आवाज़ में एक अलग ही कर्कश पन था, इतना रूखा, इतना भारी... यह सब सुन रिकी सोचने लगा क्या बात कर रहे हैं, अशेस के बारे में वो जानता था कि क्रिकेट है, लेकिन क्रिकेट का इन सब से क्या लेना देना.. लेकिन फिलहाल उसने अपने दिमाग़ को बंद रखा और कान खुले रखे



"रिकी... अब से तुम इन सब के साथ काम करोगे.. जैसा कि मैने पहले कहा कि शुरू में मैं तुम्हारे साथ रहूँगा, जब तक तुम सब सीख नहीं जाते.." राजवीर ने अपनी आँखें काग़ज़ से बाहर निकाली और रिकी की आँखों में देखने लगा जिसमे कई सारे सवाल थे... राजवीर अच्छे से जानता था के रिकी क्या सोच रहा है और क्या पूछना चाहता है, लेकिन राजवीर सब के सामने उसे जवाब नहीं देना चाहता था..



"समझता हूँ बच्चे, तुम बाहर जाओ और गाड़ी में मेरा इंतेज़ार करो...मैं 10 मिनट में आता हूँ.." राजवीर ने धीरे से रिकी से कहा जिसे कोई सुन ना सका.. बिना सवाल किया रिकी वहाँ से चला गया.. रिकी के जाते ही राजवीर और विक्रम के नेटवर्क के सब लोग आपस में बातें करने लगे कि रिकी को कैसे सीखाना है सब और सब की भूमिका क्या रहेगी



"ठीक है, अगर यह विकी भाई की जगह आएँगे तो हमें क्या दिक्कत हो सकती है..वैसे भी फॅमिली बिज़्नेस तो इनका ही है ना.." एक आदमी ने कहा और उसकी बात सुन के सब हँसने लगे और सहमति जताने लगे, राजवीर खामोश बस उस काग़ज़ को ही देख रहा था



"बारिश में गोरे यहाँ आ रहे हैं.. खाली हाथ नहीं जाने चाहिए" राजवीर ने फिर सामने बैठे लोगों से कहा



"वीर साब, अगर गोरे ले जाएँगे तो बीसीसीआइ नाराज़ हो जाएगा, आप जानते हैं हर भारत की जीत पे उन्हे पैसा मिलता है हम से, ताकि आगे वो हमें इन्फ़ॉर्मेशन देते रहें, अगर गोरे ले जाएँगे तो फिर उन्हे पैसा कहाँ से मिलेगा.. और सुना है राइट्स 50 करोड़ में बिके हैं, यहाँ उन्हे पहले ही नुकसान है, उपर से हम गोरों को जितवाते हैं तो हमें कुछ नहीं मिलेगा, मौजूदा फॉर्म पे गोरे मज़बूत हैं.. उनका भाव इंटरनॅशनल मार्केट में कम खुलने वाला है, इसलिए जो भाव यहाँ खुलेंगे वो भी उनके पक्ष में ही खुलेंगे, इस हाल में अगर गोरे ले जाएँगे तो.." दूसरे आदमी ने कहा के राजवीर ने उसे फिर टोक दिया



"मैं यहाँ बीसीसीई को खुश करने नहीं बैठा, उन्हे पैसे मिल जाएँगे... रही बात इंटरनॅशनल मार्केट की तो वो मैं देख लूँगा कि वहाँ पे भी इंडिया ही फेवोवरिट रहे.. गोरे यहाँ आए उससे पहले लंका गोरों के वहाँ जाएगी.. गोरों को बोलो वो सीरीज़ हार जाए, जैसे ही गोरे वो सीरीस हारेंगे, उनका भाव खुद ब खुद नीचे आ जाएगा.. गोरों को पैसा पहुँचाओ, लेकिन बहुत कम.. जैसे ही गोरों का भाव नीचे आता है, मैं बीसीसीआइ से कह के यह खबर फैला दूँगा कि घरेलू मैदानो पे टूटी हुई पिचस बनेंगी.. जैसे ही यह खबर इंटरनॅशनल मार्केट में जाएगी, वहाँ इंडिया खुद ब खुद फेव बनेगी.. इंडिया फेव है बोल के सबको इंग्लेंड खिला दो.. हमारा काम हो जाएगा.. सीरीज़ मार्जिन बाद में बताता हूँ..." राजवीर ने सब से कहा और उसकी बात पे सब ने सहमति जताई..



उधर रिकी गाड़ी में बैठा राजवीर का वेट कर रहा था, पर बार बार उसके मन में शीना का ख़याल आ रहा था, उसने तुरंत अपने फोन से शीना को एसएमएस किया



"आइ नो यूआर हाइडिंग सम्तिंग, वॉटेवर इट ईज़, डॉन'ट टेल मी, बट डॉन'ट रिमेन सो स्ट्रेस्ड... प्लीज़.."



"एवेरितिंग ईज़ फाइन... सी आइ आम स्माइलिंग " शीना ने तुरंत जवाब दिया.. इससे पहले रिकी कुछ टाइप करता उसे राजवीर आता हुआ दिखा, इसलिए उसने फोन अंदर रख दिया..

राजवीर जैसे ही गाड़ी में बैठा, रिकी से बिना कुछ कहे बस गाड़ी स्टार्ट की और फिर आगे बढ़ने लगा.. राजवीर की एनर्जी आज देखते ही बन रही थी, 15 फ्लोर्स उतरना और चढ़ना कोई आम बात नहीं है, लेकिन राजवीर का जोश रिकी को हैरान कर रहा था, लेकिन इससे ज़्यादा उसे जो चीज़ हैरान कर रही थी वो थी उपर की बातें.. क्रिकेट से क्या लेना देना भैया का या चाचू का, जब तक बात कुछ खोपड़ी में घुसती तब तक गाड़ी फिर एक बिल्डिंग के नीचे खड़ी थी.. रिकी जैसे ही अपने ख़यालों से निकला उसने नज़रें उपर की तो वो लोग अभी होटेल रॅडिसन ब्लू के बाहर खड़े थे.. राजवीर ने गाड़ी वलेट को दी और तेज़ी से लिफ्ट की तरफ बढ़ रहा था, रिकी के लिए मुश्किल हो रहा था राजवीर से कदम मिलाना, आज राजवीर के सामने रिकी की उमर ज़्यादा लग रही थी..



"अब तुम जिसे देखोगे, उसे देख के हैरान नहीं होना.. रूल्स वही सेम हैं जो कुछ देर पहले कहे थे.." राजवीर ने इतना कहा और अपनी आँखों पे ब्लॅक ग्लासस पहेन लिए



"अंदर आ जाओ भाई, तुम कब से दरवाज़ा नॉक करने लगे." राजवीर को जवाब मिला जब दोनो लिफ्ट से निकल के होटेल के 10थ फ्लोर के रूम नंबर 1010 के सामने नॉक करने लगे



अंदर से आवाज़ आते ही राजवीर और रिकी दोनो धीरे से अंदर गये... रूम में रोशनी ना के बराबर थी, और वहाँ पड़ी कुर्सियों पे दो लोग बैठे हुए थे... जब दोनो को रिकी ने देखा तो वो अपने दिमाग़ पे ज़ोर देने लगा, के शायद उसने इन दोनो को कहीं देखा है... कहीं मीडीया में, या किसी पेपर में...



रिकी को यूँ सोचते देख उनमे से एक ने कहा



"हमें अमर ने बताया था, कि उसका छोटा बेटा बहुत सोचता है.. लेकिन अभी तो काम शुरू हुआ ही नहीं है और अभी से सोचने लगे... वेलकम टू ग्लॅमरस वर्ल्ड ऑफ क्रिकेट रिकी.." उस बंदे ने हाथ आगे बढ़ाया



"मिस्टर रेडी... ऑनरबल चेर्मन फॉर बोर्ड ऑफ क्रिकेट कंट्रोल इन इंडिया..." रिकी को नाम याद आया और हैरानी से हाथ आगे बढ़ाया.. शायद अब उसे आइडिया आ गया था कि विकी और राजवीर क्या करते हैं..
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,487,686 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 542,916 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,226,472 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 927,602 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,646,248 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,074,053 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,939,860 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,020,216 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,018,250 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 283,624 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 3 Guest(s)