Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 03:50 PM,
#31
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
क्लब से लौट के ज्योति अपने कमरे के लिए निकल गयी, शराब का हल्का सा नशा उसपे चढ़ा हुआ था इसलिए जब वो चल रही थी ज़रा सा लड़खड़ा भी रही थी, उसे देख के कोई भी कह सकता था कि उसने पी हुई है, और उसने इतनी ज़्यादा पी ली थी कि वो काफ़ी मुश्किलों से संभाल पा रही थी.. लेकिन धीरे धीरे कर वो आगे बढ़ रही थी और साथ ही साथ अपने कदमों को संभालने की कोशिश कर रही थी.. जैसे ही ज्योति कमरे के पास पहुँची, उसने जल्दी से कमरे का दरवाज़ा खोला और सामने का नज़ारा देखके उसके होश उड़ गये... उसके मूह से एक हल्की से चीख निकली, लेकिन वो चीख इतनी ज़ोर की थी कि सामने वाले को भी सुनाई दी... सामने राजवीर अपने मोबाइल में कुछ देख रहा था और अपना गधे समान लंड हिलाए जा रहा था....













राजवीर इतना खोया हुआ था कि उसे बिल्कुल होश नहीं था कब ज्योति ने दरवाज़ा खोला और वो अंदर आई, लेकिन जैसे ही ज्योति चीखी, राजवीर का ध्यान टूटा और उसने पीछे मूड के देखा.. ज्योति को देख राजवीर ने सबसे पहले अपना मोबाइल छुपा लिया और फिर पास में पड़े तकिये से अपने लंड को ढकने लगा...





"ओह माइ गॉड..आइ एम सॉरी, आइ थॉट... मुझे लगा यह मेरा कमरा है..." ज्योति ने अपनी आँखें दूसरी साइड घुमा के कहा और जल्दी से कमरे के बाहर निकल गयी और जाते जाते दरवाज़ा भी बंद कर दिया.. ज्योति ने खुद को संभाला और जल्दी से आगे बढ़ के अपने पास वाले कमरे में पहुँच गयी और कमरा बंद कर लिया.. अपने कमरे में घुसते ही ज्योति फिर अभी हुए हादसे के बारे में सोचने लगी...





"माइ गॉड.... डॅड क्या सोचेंगे, शिट यार,.... ईडियट मी.... व्हाट दा फक...." ज्योति ने खुद से कहा और कमरे में इधर उधर घूम के अपनी हरकत पे शर्मिंदा होने लगी..






"शिट... व्हाट हॅव आइ डन यार, हाउ विल आइ फेस हिम नाउ...." ज्योति ने फिर एक बार खुद से कहा और अपने बेड पे लेट गयी....






"नो यार, यह मैने क्या कर दिया...मैने डॅड को अपना लंड हिलाते हुए.... ओह्ह्ह्ह नो शिट यार..... यह मैं क्या कह रही हूँ.." ज्योति बेड पे लेटे लेटे फिर बौखलाने लगी...






जैसे ही ज्योति ने यह कहा, उसका ध्यान फिर राजवीर के लंड की साइज़ पे गया और उसका ध्यान इस्पे भी गया के राजवीर मोबाइल में कुछ देख रहा था...






"डॅड देख क्या रहे थे मोबाइल पे आख़िर...इतना बड़ा भी कभी किसी का होता है क्या..." ज्योति ने फिर इस बार खुद से कहा और इस बार राजवीर के लंड की तस्वीर ज्योति की आँखों के सामने आ गयी...





"कितना बड़ा था, ऐसा लग रहा था के कोई लोहे का पाइप हिल रहा है जैसे, उसकी नसें एक दम सॉफ दिख रही थी, और कितना चमकदार भी था...." ज्योति राजवीर के लंड की
तस्वीर बना के उसका ज़िक्र खुद से करने लगी






"इतना बड़ा कैसे आख़िर, डॅड ने कोई सर्जरी या ऐसी कोई ट्रीटमेंट तो नहीं करवाई...और मोम तो है नहीं, फिर इतना बड़ा करवाया क्यूँ है... नही नही, ऐसा कुछ नहीं है, शायद मेरी आँखों की कोई ग़लती होगी...." ज्योति ने फिर खुद से कहा और फिर आँखें बंद करके लेटी रही बिस्तर पे.. जैसे ही ज्योति ने आँखें बंद की, उसे फिर वोही दृश्य दिखाई दिया जिसमे राजवीर अपने लंड को हिलाए जा रहा था और मोबाइल में कुछ देख भी रहा था












जितना ज्योति राजवीर के लंड के बारे में सोचती, वो बार बार उसकी साइज़ का ज़िक्र ज़रूर करती खुद से.. ऐसा नहीं है कि उसे इन चीज़ों में ज्ञान नहीं था, उसने ज़रूर कोई लंड नहीं लिया था अपना अंदर, लेकिन पॉर्न देख के और दूसरी बातों सेउसे आइडिया आ गया था कि इतना बड़ा सिर्फ़ कॅमरा वर्क या कुछ आर्टिफिशियल तरीकों से होता है.. इसलिए वो बार बार खुद को कन्विन्स कर रही थी के नॅचुरली इतना बड़ा नहीं हो सकता






"उफफफफ्फ़... मैं बार बार वोही क्यूँ सोच रही हूँ.." कहके ज्योति उठी और सीधा जाके शवर में घुस गयी.... करीब 15 मिनट तक ज्योति शवर के नीचे रही लेकिन उसके दिमाग़ से फिर भी राजवीर के लंड का ख़याल नहीं गया... बाहर आके बिना कुछ पहने ज्योति बेड पे लेट गयी और सोने की कोशिश करने लगी... करवटें बदल बदल के थक गयी लेकिन उसके दिमाग़ से राजिवर के लंड का ख़याल नहीं गया, एसी चल रहा था फिर भी उसे गर्मी हो रही थी.. उसे लगा शायद सिगरेट से उसका ध्यान बटे, झट से अपनी क्लच निकाली और उसमे से एक सिगरेट लेके जला के उसके कश लेने लगी... जैसे जैसे सिगरेट के कश उसके अंदर जाते, वैसे वैसे उसका शरीर ढीला पड़ता और दिमाग़ ठंडा होता रहा..





"उम्म्म्म अहहह.. दिस ईज़ बेटर आह." कहके ज्योति फिर लेट गयी और दूसरी सिगरेट लेके सुलघा दी... सिगरेट ने उसके शरीर की गर्मी को थोड़ा ठंडा तो किया लेकिन उसका दिमाग़ अभी भी राजवीर के लंड पे ही था..






"आख़िर डॅड किसको देख के अपने लंड को हिला रहे थे..."ज्योति को यकीन नहीं हो रहा था कि वो अपने बाप के लिए ऐसे शब्द बोल रही है लेकिन अब क्यूँ की उसके दिमाग़ में तूफान थम चुका था, इसलिए वो रिलॅक्स्ड फील कर रही थी, लेकिन रह रह के उसके ज़हन में बार बार राजवीर के लंड की तस्वीर आ जाती... जैसे जैसे वक़्त बीत रहा था वैसे वैसे राजवीर के लंड ने ज्योति के दिमाग़ को घेर लिया था, ज्योति की चूत में भी अब चीटियाँ रेंगने लगी थी और जैसे ही ज्योति ने नीचे हाथ लगा के देखा उसकी चूत बिल्कुल गीली हो चुकी थी.. ऐसा पहली बार हुआ था ज्योति के साथ, के बिना हाथ लगाए ज्योति की चूत गीली हो चुकी थी... गीली चूत पे जैसे ही ज्योति ने उंगली घुमाई




"आहःस्स्सिईईईईई" उसकी सिसकारी निकल गयी...
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07-03-2019, 03:50 PM,
#32
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा

धीरे धीरे जब ज्योति अपनी चूत को सहलाने लगी, वो बार बार चूत के दाने के पास आती और उसे हल्के से सहला के फिर अपनी हथेली को पूरी चूत पे रगड़ती... अब आलम यह था के जैसे जैसे ज्योति अपनी चूत को रगड़ती और मसल्ति, उसकी आँखें धीरे धीरे बंद होने लगी और राजवीर के लंड के बारे में सोचने लगी..





"उम्म्म्म अहहाहा.... कितना बड़ा था आहहहहाः उफ़फ्फ़...." राजवीर के लंड के बारे में सोच के अब उसे कोई ग़लत फीलिंग नहीं आ रही थी, उल्टा वो अब उसके बारे में सोच के अपनी चूत को मसल्ने में लगी हुई थी.. जैसे जैसे दारू का नशा नसों में घुसा और निकोटिन का सुरूर दिमाग़ में छाने लगा, वैसे वैसे ज्योति का दिमाग़ हल्का होता जाता और चूत और पनियाने लगती.. धीरे धीरे रगड़ने से शुरू ज्योति अब अपने बाप के लंड के बारे में सोच के हस्त मैथुन में लग गयी थी















"अहहहः डॅड अहहहहा... उफफफ्फ़ उम्म्म्मममम सच आ नाइस कॉक अहहहा...... ओह यस अहहहहहहाआ........ ओह्ह्ह्ह डॅड अहहहहा फक मी यस अहहहहहा, उम्म्म्ममम आइ म कमिंग डॅड अहहहाहा कम वित मी आहाहहाहा यआःाहहाः..." ज्योति अपनी चूत रगड़ती हुई बोली और कुछ सेकेंड्स में झड़ने लगी... जैसे जैसे उसकी चूत शांत हुई वैसे वैसे उसका दिमाग़ फिर काम करने लगा और अभी जो किया वो सोच के फिर उसे गिल्ट की फीलिंग आने लगी... सोने की कोशिश करते करते उसकी नींद तो हराम हो चुकी थी, लेकिन अब भी वो यही सोच रही थी कि मोबाइल में डॅड आख़िर देख क्या रहे थे... यह पता करने वो अपने बेड से उठी और नाइट सूट पहेन के धीरे से अपने कमरे से निकली और राजवीर के कमरे में घुसने का सोचने लगी





उधर शीना अपने कमरे में पहुँच के रिकी के बारे में सोचने लगी... शीना काफ़ी खुश थी के रिकी ने उसके मन की बात पढ़ ली, वो दोनो अकेले में टाइम स्पेंड करना चाहते थे और रिकी ने यह बात उसकी कैसे समझ ली.. यह सोच सोच के शीना काफ़ी खुश हुई और जल्दी से कपड़े बदल के अपने बिस्तर पे लेट गयी और सोचने लगी कि वो कहाँ जाएगी रिकी के साथ अकेले और कैसे वक़्त बिताएगी, क्या क्या करेगी , क्या कपड़े पहनेगी, सब कुछ जो एक प्रेमिका अपने प्रेमी के साथ कहीं जाने पे सोचती है





"हिल स्टेशन... ना, अभी होके आए और भैया वैसे भी ठंडी वाली जगह पे इतने साल रहे हैं... गोआ.... ना, टू क्राउडेड, उम्म्म्म केरला... ना, टू पीस्फुल... आइ मीन हम बुड्ढे थोड़ी हैं जो वहाँ जायें.... अगर नॅशनल नहीं, तो इंटरनॅशनल सोच सकते हैं... बलि, मारिटियस... नोप.... उम्म्म, बहामास... यस, वो सही रहेगा, बहामास जाएँगे, एग्ज़ोटिक लोकेशन, और ज़्यादा भीड़ भी नहीं आंड ऑल अमेरिकन क्राउड, वेरी लेस इंडियन्स... यस, दिस ईज़ फाइन..." शीना ने खुद से कहा और इंटरनेट पे सर्च करने लगी के कौन्से महीने में बहामास सबसे ज़्यादा खूबसूरत और हॅपनिंग रहता है.. कुछ देर सर्च कर के फिर उसने अपने मोबाइल को साइड में फेंक दिया





"फक.... ज्योति को क्या बोलेंगे, डॅड को तो मना भी लेंगे, बट इस ज्योति का क्या करूँगी.. भाभी भी ना, आख़िर उन्होने ज्योति को कहा ही क्यूँ यहाँ रुकने को..." शीना ने फिर खुद से कहा और सोचने लगी कि अब क्या किया जाए... इधर उधर चक्कर काटने लगी और फिर तभी बोली





"जिसने यह प्राब्लम खड़ी की है, अब उसी से इसका सल्यूशन पूछूंगी...." कहके शीना अपने कमरे से निकली और स्नेहा के कमरे की तरफ बढ़ने लगी.. स्नेहा के कमरे के बाहर जाके शीना ने स्नेहा को कॉल लगाया ताकि पता चल सके स्नेहा जाग रही है या नहीं... कुछ देर जब स्नेहा ने शीना का फोन नहीं उठाया तो शीना मूड के वापस जाने लगी, लेकिन तभी पीछे से स्नेहा ने दरवाज़ा खोला






"शीना, आ जाओ अंदर जल्दी..." स्नेहा ने एक दम धीरे कहा, शीना ने जैसे ही स्नेहा की आवाज़ सुनी, वो वापस कमरे के अंदर चली गयी...





"भाभी, फोन क्यूँ नहीं उठा रही थी, मैं वापस जा रही थी.." शीना ने स्नेहा के बेड पे आराम से लेट के कहा





"अरे मैं जानती थी तुम बाहर हो, इसलिए कॉल नहीं रिसीव किया, अब बताओ, इतनी रात को भाभी की याद कैसे आई....."






उधर ज्योति अपने कमरे से निकल के हल्के हल्के कदमों से राजवीर के कमरे के पास पहुँची और गहरी साँसें लेने लगी... कुछ देर बाद जब उसने हिम्मत जुटा के दरवाज़े के नॉब पे हाथ रख कर उसे खोलने की कोशिश की, दरवाज़ा मक्खन के जैसे खुल गया.. मतलब राजवीर ने ज्योति के जाने के बाद दरवाज़ा तक नहीं बंद किया था... अंदर जाके ज्योति ने देखा तो सब लाइट्स बंद थी और काफ़ी अंधेरा भी था क्यूँ कि खिड़की भी बंद थी जिससे बाहर की भी रोशनी नहीं थी कमरे में.. ज्योति दबे पावं राजवीर के बेड के पास बढ़ने लगी और जल्द ही बेड के किनारे खड़ी थी... उसने अपना मोबाइल निकाला और उसकी टॉर्च ऑन करके राजवीर का मोबाइल ढूँढने लगी.. जैसे ही उसे मोबाइल दिखा उसने तुरंत उसे अपने हाथ में लिया और दबे पावं वापस पीछे मूड के कमरे के बाहर निकल गयी... कमरे के बाहर आके उसने एक राहत की साँस ली..






"थॅंक गॉड... फेवववव.." ज्योति ने खुद से कहा और जल्दी अपने कमरे में चली आई... अपने कमरे में आते ही ज्योति ने राजवीर का मोबाइल निकाला और उसे अनलॉक किया, पासवर्ड प्रोटेक्टेड नहीं था इसलिए स्क्रीन जल्दी अनलॉक हो गयी... सब फोल्डर्स या कॉंटेंट चेक करना सही नहीं था, इसलिए ज्योति ने लास्ट ओपंड अप्स के टॅब को निकाला.. सिर्फ़ एक ही अप ओपन थी, वो भी गॅलरी वाली.. ज्योति ने जैसे ही गॅलरी पे क्लिक किया,. उसकी आँखों के सामने इमेज ओपन हुई... इमेज देख के ज्योति को पहले तो यकीन नहीं हुआ, काफ़ी हैरान थी, लेकिन कुछ ही देर में उसकी हैरानी एक मुस्कान में बदल गयी






"ह्म्म्म्म ... अब तो कुछ करना ही पड़ेगा ...." ज्योति ने खुद से कहा

"सॉरी शीना, यह बात तो मेरे ध्यान में ही नहीं रही, अब क्या करें.. " स्नेहा ने शीना से कहा जब दोनो उसके कमरे में बैठे थे
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07-03-2019, 03:50 PM,
#33
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"ध्यान रखना चाहिए ना भाभी, एक साइड तो आप कह रहे थे आप मेरी मदद करेंगे रिकी भाई के करीब जाने में, और अब खुद ने ही एक रास्ते का पत्थर ला दिया, और ज्योति बहुत चालाक है, अब सडन्ली उसे मना करेंगे तो उसे और शक हो जाएगा और यहाँ से बिल्कुल नहीं जाएगी.." शीना ने परेशानी में स्नेहा से कहा.. शीना इसलिए इतनी ज़्यादा परेशान थी क्यूँ कि वो रिकी के साथ अकेले वक़्त गुज़ारने के लिए कुछ भी कर सकती थी और अभी तो रिकी ने खुद उसे कहा था इसलिए वो यह मौका हाथ से बिल्कुल नहीं जाने देना चाहती थी.. शीना को यूँ परेशान देख स्नेहा समझ गयी के फिलहाल जो उसने सोचा हुआ था वो मुमकिन नहीं है... लेकिन उसने फिर भी एक चान्स लिया, अगर निशाना लगा तो ओके और अगर नहीं लगा तो क्या नुकसान है, शीना वैसे भी कहीं नहीं जानेवाली उसके अलावा..




"शीना, वैसे एक रास्ता है.. आइएम नोट श्योर तुम्हे सही लगेगा बट फिलहाल सिर्फ़ मुझे यही एक रास्ता दिख रहा है...." स्नेहा शीना के पास बैठ गयी और उसके बालों से खेलने लगी.. बालों से खेलते खेलते स्नेहा शीना की पीठ पे हाथ घुमाने लगी..





"उम्म्म भाभी, छोड़ो ना.. बताइए क्या रास्ता है.." कहके शीना ने स्नेहा का हाथ हटाने की कोशिश की लेकिन स्नेहा मानी ही नहीं...





"बताती हूँ ननद जी, थोड़ा सब्र तो करो....बहुत खलबली मच रही है क्या रिकी के नाम से यहाँ..." कहके स्नेहा ने शीना की चूत पे उसकी नाइट पॅंट के उपर से ही हाथ रखा, लेकिन जैसे ही शीना ने हाथ हटाने की कोशिश की





"उह ओह... तो मेरी ननद रानी की चूत अंदर से नंगी है हाँ.... " स्नेहा ने इस बार शीना की चूत के होंठों को अपने हाथों में पकड़ के कहा




"छोड़िए ना भाभी, क्यूँ ऐसा कर रही हो आप.." शीना ने स्नेहा से यह कहा तो ज़रूर लेकिन उसने हाथ नहीं हटाया स्नेहा का, क्यूँ कि वो जानती थी स्नेहा मानेगी नहीं और वैसे भी शीना को यह अच्छा लग रहा था.. शीना, बाइसेक्षुयल होती जा रही थी और अपनी भाभी के साथ लेज़्बीयन का रिश्ता, उसने कभी नहीं सोचा था लेकिन अभी वो स्नेहा के साथ इतनी आगे निकल आई थी के यह सब सोचना उसके दिमाग़ से बाहर हो गया था.. शीना का दिमाग़ नहीं था ऐसी बात नहीं है, शीना नॉर्मल लड़की से थोड़ी ज़्यादा शार्प थी लेकिन रिकी के मामले में अक्सर उसका दिमाग़ काम करना बंद कर देता.. रिकी के मामले में वो बस दिल से सोचती जिसका फ़ायदा स्नेहा अच्छी तरह उठा रही थी...





"अरे ज़रा देखने तो दो..क्या यह यही चूत है जो भाई के लिए उसका नाम सुनते ही गीली होने लगती है.." स्नेहा ने शीना की चूत को नाइट पॅंट के उपर से ही मसल के कहा, जिसके जवाब में सिर्फ़ शीना ने सिसकी भरी.. "आहहाहा उम्म्म्ममम..."





"क्या यह वही निपल्स हैं जो रिकी का नाम सुन के ही कड़क हो जाते हैं.." कहके स्नेहा ने शीना के निपल्स को अपने हाथ की चुटकी में भर लिया और उसे हल्के मरोड़ लिया





"उईईई अहहाहाः भाभियाऐईयईई..." शीना दर्द और मज़े से फिर चिल्ला उठी





"क्या यह वोही..." स्नेहा ने बस इतना ही कहा कि शीना ने उसके होंठों को अपने होंठों से लगा लिया और उसे पागलों की तरह चूमने लगी... शीना इतनी जंगली बन चुकी थी के वो बस रुकना ही नहीं चाहती थी... जोश में आके उसने स्नेहा को धक्का दिया और खुद उसके उपर बैठ कर उसे बेतहाशा चूमने लगी..












"अहहहहाआ हां भाभी, यह वोही होंठ है आहाहाहा उम्म्म्म उम्म्म अहहहाआ.. जो भाई के होंठों को उफफफ्फ़ आहहहहाहाआ... चूमना चाहते हैं उम्म्म्म अहहहाहा.." शीना चूमने के साथ साथ बोलने लगी और एक एक करके अपने कपड़े उतार दिए और साथ ही स्नेहा को भी पूरा नंगा कर दिया.....







"उम्म्म अहहहहस शीना आहहाहा यस बेबी अहहहहओमम्म्ममम.. लव मी अहहाहा एस्स आहहहहा....उम्म्म्ममम.." स्नेहा ने भी नीचे से ज़ोर लगाया और शीना के होंठों को दबाने और काटने लगी... चूमते चूमते स्नेहा ने अपना हाथ पीछे ले जाके शीना के बालों को इतना ज़ोर से खींचा के दर्द के मारे शीना ने अपना पूरा वज़न पीछे शिफ्ट कर लिया और स्नेहा की नज़रों के सामने शीना के दो उभरे हुए चुचे थे जिन्हे तेज़ी से स्नेहा ने लपक लिया और निपल्स की चुस्कियाँ लेने लगी





"उम्म्म्म अहाहा स्लूर्रप्प्प्प्प अहहहहा......अहहहहहा शीएनााहहह" स्नेहा मज़े के साथ शीना के एक चुचे को चूसने लगी और दूसरे के निपल को फिर चुटकी में लेके मरोड़ने लगी.....




"अहहहा भाभी यस अहहहाहाहः उम्म्म्मम यॅ अहहहहाहा हाहहाहा....उम्म्म्म " शीना ने अपने हाथ नीचे ले जाके स्नेहा के चुचों पे रखे और उन्हे मसल्ने लगी...





स्नेहा ने जब देखा कि शीना अब नही रुकेगी, वो झट से नीचे से खिसक गयी और शीना के पीछे आ गयी.. पीछे से आके उसने शीना के चुचों को मसला और धीरे धीरे कर उसकी चूत रगड़ने लगी, दोहरे हमले से शीना कमज़ोर पड़ने लगी और पिल्लो के सहारे हाथ रख दिए और मज़े लेने लगी














"अहहहहा भाभी यस अहहहः फक मी ना अहहहहहाआ.....यस सहहहूंम्म्मममम" शीना मज़े लेती हुई कराहने लगी और अपनी चूत को आगे पीछे करने लगी जिससे स्नेहा समझ गयी कि अब वो और सहन नही कर पाएगी, इसलिए उसने अपना अंगूठा और दूसरी उंगली शीना की चूत के अंदर डाली दी और उसे उंगलियों के सहारे चोदने लगी... शीना की चूत से ऐसे पानी निकला जैसे की लावा टपक रहा हो, इतनी गरम स्नेहा को खुद यकीन नहीं हो रहा था, आग में घी डालने का सोच के उसने फिर कहा






"कैसा लग रहा है शीना अहहा बताओ ज़रा भाभी को अपनी उम्म्म्म..."







"येआः भाभी अहहहहा.. कीप फक्किंग मी अहहहहा ज़ोर से करो अहहहहा यस आहहहा... फक माइ क्लिट उफफफ्फ़ अहहहहाआ.." शीना के अंदर मानो एक गरम लहर चल रही थी






"उम्म अहहा ननद जी... यह मेरी उंगली नहीं अहहहहाअ तेरे भाई का लंड हैया अहहहहह कैसा है बता ना अहहहः.."






जैसे ही स्नेहा ने यह कहा, शीना से कंट्रोल नहीं हुआ और वो अपना आपा खोने लगी... अपनी टाँगें चौड़ी करके और झड़ने लगी, जो स्नेहा ने भी अपनी उंगलियों पे महसूस किया लेकिन वो फिर भी नहीं रुकी.. शीना झड़ती रही और स्नेहा अपनी उंगलियाँ भी चलाती रही, शीना टाँगों में कमज़ोरी महसूस करके बिस्तर पे गिर गयी.. शीना हाँफने लगी और हर एक साँस के साथ उसके चुचे उपर नीचे होते देख स्नेहा से रहा नहीं गया और वो फिर शीना के उपर चढ़ गयी और अपनी चूत उसकी चूत पे रख के उसे रगड़ने लगी





भाभी ननद की गरम गरम चूतें जैसे ही आपस में मिली दोनो की सिसकारियाँ निकल गयी.. शीना की चूत पे अपनी चूत रखते ही स्नेहा झाड़ गयी और निढाल होके उसके उपर से गिर गयी.. दोनो की साँसें काफ़ी तेज़ चल रही थी, दोनो के बदन काफ़ी गरम हो रखे थे इसलिए अगले 10 मिनिट तक कोई कुछ नहीं बोल पा रहा था.. मौका पाते ही स्नेहा ने फिर शीना के बालों से उसको पकड़ा और अपने होंठ उसके होंठों से मिला दिए...






"उम्म्म, लव यू माइ डॉल..." कहके स्नेहा ने फिर उसके चुचों को मसला और बेड से खड़ी होके अपने कपड़े पहनने लगी...






"भाभी यह सब तो ठीक है, पर आपने बताया नहीं रास्ता क्या है ज्योति को यहाँ से निकालने का.. अपने फ़ायदे के लिए मेरी बात तो भूल ही जाते हो आप.." शीना ने भी अपने कपड़े उठाए और पहनने लगी..






"अरे ऐसा कभी होसकता है क्या, अच्छा सुनो... ज्योति को रास्ते से हटाने का बेस्ट तरीका यह है कि उसे सब बता दो अपनी फीलिंग्स के बारे में और हो सके तो उसे फिज़िकली इन्वॉल्व करो रिकी के साथ, एक बार वो अगर हो जाए तो तुम उसे ब्लॅकमेल कर सकती हो यहाँ से वापस जाने के लिए.. और वो चली गयी फिर तो रिकी तुम्हारा ही है, उसका पूरा वक़्त तुम्हारा..." स्नेहा ने अपने क्लॉज़ेट से सिगरेट का बॉक्स निकाला और अपने लिए सुलघा दी... स्नेहा की बात सुन शीना को जैसे काटो तो खून ना निकले ऐसी हालत हुई थी, उसे यकीन नहीं हो रहा तह कि स्नेहा उसे क्या करने को कह रही है.. शीना को यूँ देख उसने फिर कहा





"शीना तुम बात को समझो, मैं जो कह रही हूँ तुम्हारे लिए ही कह रही हूँ.." स्नेहा ने फिर सिगरेट का काश लेते हुए कहा







"शट अप भाभी... मैने कभी आपसे यह उम्मीद नहीं की थी, मुझे लगा आप सही में मेरी मदद करोगे, यह सोच के कि आप हमेशा अकेले फील करते हैं मैने अपनी भाभी समझ कर आपसे दोस्ती की.. और आप यह.. मैने कभी यह एक्सपेक्ट नहीं किया था आपसे भाभी.." कहके शीना जैसे ही मूड के जाने लगी फिर स्नेहा ने कहा







"तुम एमोशनल हो रही हो शीना, महाबालेश्वर में रिकी रिज़ॉर्ट बनाने का सोच रहा है, अगर ज्योति यहाँ रही तो सोच लो के शायद वो भी उसके साथ उस काम में इन्वॉल्व हो जाए, और अगर ऐसा हुआ तो फिर तुम भूल जाना रिकी को.. रिकी चाहे ज्योति के पास जाए या ना जाए, लेकिन वो तुम्हारे करीब नहीं आएगा... मैं सब कुछ सोच के ही बोल रही हूँ तुमको..."





स्नेहा को कुछ जवाब दिए बिना शीना वापस अपने कमरे में निकल गयी और जाके बेड पे बैठ के सब कुछ जो स्नेहा ने कहा उसके बारे में सोचने लगी... सोचते सोचते उसे कब नींद आ गयी उसे ध्यान ही नहीं रहा... सुबह जब शीना उठ के फ्रेश होके नीचे गयी तो नीचे सब नाश्ता कर रहे थे, रात की बात की वजह से शीना का मूड पहले ही खराब था उपर से जब उसने ज्योति को देखा तो उसके दिमाग़ में फिर वोही बात आई के ज्योति अब वहीं रहने का सोच रही है तो उसका मूड और उखड़ गया..






"अरे शीना बेटी, आओ, क्या हुआ, मूड क्यूँ खराब है हमारी रानी का.." अमर ने शीना को अपने पास बिठाते हुए कहा






"कुछ नही डॅड, बस ज्योति और चाचू चले जाएँगे, यह सोच के.." शीना ने बस इतना ही कहा के फिर अमर ने कहा





"अरे किसने कहा ज्योति जा रही है.. तुम्हारे लिए एक खुश खबरी है, ज्योति अब यहीं रहेगी हम सब के साथ.. और दूसरी बात, रिकी जिस प्रॉजेक्ट पे काम कर रहा है उसमे भी वो उसको आस्स्सिट करेगी.. मतलब अब कम से कम ज्योति एक साल तो यहाँ रहेगी ही... है ना खुशी की बात.."
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07-03-2019, 03:54 PM,
#34
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
अमर की बात सुन के जैसे शीना के अरमानो पे ट्सुनामी सा आ गया था, वो यह तो जानती थी के ज्योति यहाँ रहने का सोच रही है, लेकिन रिकी के प्रॉजेक्ट की बात.. यह उसे पिछली रात ही स्नेहा ने कही थी, और सुबह ऐसी न्यूज़... शीना ने जैसे ही स्नेहा को देखा, स्नेहा ने उसे एक हरामी कातिल मुस्कान दी और वहाँ से निकल गयी और शीना को मेसेज किया






"मेरी बात मानती तो ऐसा नहीं होता, अब भुग्तो बस... "






जैसे ही स्नेहा ने उसे यह मेसेज किया, उसके पास एक कॉल आया...




"ह्म्म , बोलो." स्नेहा ने कॉल रिसीव करके कहा





"क्या, विक्रम तुम्हारे पास है..." स्नेहा ने फिर जवाब दिया, और जैसे ही स्नेहा ने यह कहा, पीछे से एक और आवाज़ से स्नेहा चौंक गयी





"आख़िर आप क्या कर रहे हो यह सब.."

नाश्ते की टेबल पे बैठे बैठे राजवीर और ज्योति एक दूसरे से आँख नहीं मिला पा रहे थे, बीती रात जो वाक़या हुआ उसमे ग़लती चाहे किसी की भी ना हो, लेकिन बाप बेटी के बीच ऐसी घटना होना कोई आम बात नहीं है.. इसलिए तो ज्योति काफ़ी देर तक बस खामोश रहती और जब कुछ कहना होता तो बस ह्म्म्म बोलके चुप हो जाती और फिर अपनी आँखें नीची रखती... उधर राजवीर का भी यही हाल था, ज्योति को नज़र अंदाज़ करने के लिए वो अमर की छोटी सी छोटी बात को भी लंबा तूल दे देता और ज्योति को छोड़ बाकी लोगों से चर्चा में पड़ जाता ताकि किसी को ऐसा ना लगे के इसके बर्ताव में कोई बदलाव है...




"भाईसाब, मैं सोच रहा हूँ कि मैं भी यहीं रुक जाउ.. अकेले वहाँ इतनी बड़ी हवेली में मन नहीं लगेगा,वैसे भी हम दो लोग ही हैं उधर, लेकिन अगर ज्योति भी यहाँ रहेगी तो फिर मुझे अकेले में अच्छा नहीं लगेगा, इतनी बड़ी कोठी मुझे काटने को आएगी.. और आप लोग वैसे भी वहाँ नहीं आने वाले मैं जानता हूँ.." राजवीर ने शिकायत अंदाज़ में अमर से यह बात कही



"मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ राजवीर, जब यहाँ हमारी इतनी प्रॉपर्टी है तो फिर तुम लोग वहाँ रहते ही क्यूँ हो... यह घर क्या किसी हवेली से कम है, तुम्हारे लिए और ज्योति के लिए यहाँ सब फेसिलिटीस मोजूद हैं, और रही बात जगह की, तो 10 कमरे हैं , जो अच्छा लगे तुम बाप बेटी ले लो, 6 कमरे वैसे भी खाली हैं.. और बाकी वहाँ जो काम काज है वो सिमटा लो, और यहीं शिफ्ट हो जाओ...बल्कि मैं तो कह रहा हूँ तुम अभी अपने भरोसे मंद आदमी को कॉल करो और उसे बता दो यह खबर, ताकि हम दोनो वहाँ जाकर जल्द से जल्द तुम्हारा काम काज वहाँ जाके निपटा सकें और हमेशा के लिए यहीं रहें साथ साथ..क्यूँ ज्योति, ठीक कह रहा हूँ ना मैं.." अमर ने पास बैठी ज्योति से कहा जो अब तक बीती रात के बारे में सोच सोच के कहीं खो सी गयी थी, लेकिन अमर की आवाज़ यूँ अचानक सुन के वो होश में आई और बोली




"हां... जीए ज्जीई जीए ताऊ जी... ठीक कह रहे हैं आप.." ज्योति ने हकलाके जवाब दिया और फिर अपनी आँखें नीची कर ली




"ठीक है भाईसब...जैसा आप कहें, मैं अभी जाके मेरे मॅनेजर को कॉल कर देता हूँ.." कहके राजवीर वहाँ से निकल गया और कुछ देर में अमर भी अपना नाश्ता ख़तम करके अपने मीटिंग रूम में गया और जाके अपने बुक्कीस को फोन करने लगा... उधर रिकी अपने कमरे में गुम्सुम सा बैठा हुआ था , उसे जब पता चला कि ज्योति उसके साथ महाबालेश्वर वाले प्रॉजेक्ट में काम करेगी तो उसे अच्छा नहीं लगा.. उसने सोच रखा था कि पहले वो शीना के साथ अकेले कहीं घूमने जाएगा फिर आके महाबालेश्वर का प्रॉजेक्ट स्टार्ट करेगा और उसमे भी शीना को इन्वॉल्व करेगा, लेकिन अब वो ऐसा नहीं कर सकता था.. यह सोच सोच के वो उदास हो रहा था.. धीरे धीरे रिकी महाबालेश्वर वाला किस्सा भूलने लगा था, कुछ देर मे उसने अपना मूड ठीक किया और अपनी पढ़ाई के बारे में सोचने लगा.. कुछ देर पढ़ाई करके फिर अपने लॅपटॉप पे बैठा और ग्रॅफिक्स की मदद से अपने रिज़ॉर्ट का लेआउट बनाने लगा...





उधर अपने मॅनेजर से बात करके राजवीर गार्डेन में जाके बैठा और फिर बीती रात के बारे में सोचने लगा.. पिछली रात जब ज्योति नाम की युवती जो हाइ प्रोफाइल कॉल गर्ल थी, उसके जाने के बाद फिर राजवीर अपने कमरे में आया और वापस उसी के बारे में सोचने लगा.. वो बार बार यही सोच रहा था कि आख़िर अपनी बेटी के चेहरे की तस्वीर आते ही वो क्यूँ झाड़ गया... क्या वो अपनी बेटी के प्रति सेक्षुयली अट्रॅक्ट हो रहा था.... " नहीं नहीं, यह मैं क्या सोच रहा हूँ.." राजवीर ने खुद से कहा और ध्यान भंग करने के लिए अपने लिए शराब का पेग बनाया और धीरे धीरे से मज़े लेके पीने लगा.. चूत या दारू, राजवीर के मज़े लेने का तरीका अलग था, वो अपना वक़्त लेता ताकि उसे ज़्यादा से ज़्यादा मज़ा मिल सके.. इसलिए तो एक पेग भी वो कम से कम 20-25 मिनट तक चलता.. एक के बाद एक जब राजवीर ने तीन पेग चढ़ा लिए, शराब का सुरूर हल्के से उसके दिमाग़ पे चढ़ने लगा.. जैसे एक और पेग अंदर गया, राजवीर का दिमाग़ अब उसके काबू में नहीं था, वक़्त देखा तो काफ़ी बीत चुका था, वो यह भूल ही गया था कि ज्योति घर पे नहीं है.. उसके हिसाब से सब सो गये थे इसलिए उसने रिलॅक्स होने का सोचा और एक एक कर अपने कपड़े निकाल दिए और सोफा पे आराम से पेर खोलके बैठा और फिर एक और पेग बनाया... जैसे जैसे दारू अंदर जाती उसका लंड खड़ा होता जाता, अब आलम यह था कि दारू तो पूरी कर दी उसने, लेकिन इस लंड का क्या करे जो बस खड़ा हो गया था, इसलिए उसने धीरे से अपने लंड को मुट्ठी में भरा और हल्के हल्के से हिलाने लगा.. जैसे जैसे वो लंड हिलाता, धीरे धीरे कर उसकी आँखें बंद होती और वो फिर ज्योति, अपनी बेटी के ख़यालों में खो जाता... लेकिन अगले ही पल उसने फिर अपनी आँखें खोली और सोचने लगा बार बार उसके साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है.. उसने फिर अपने लिए एक और दारू का पेग बनाया पर फिर भी कुछ देर तक यूँ बैठे बैठे उसका लंड और कड़क हो गया इसलिए अब उससे रहा नहीं गया.. उसने अपना मोबाइल उठाया और एक सेकेंड में अपनी मन पसंद फोटो निकाल के उसे देख कर अपना लंड हिलाने लगा... जैसे जैसे वो फोटो ज़ूम करता वैसे वैसे उसके लंड में उभार आता और वो ज़्यादा कड़क होता जाता.. राजवीर चरण सीमा के पास पहुँच चुका था, अब उसके लंड की नसें सॉफ दिख रही थी, जैसे जैसे उसकी गति बढ़ती उसकी आँखें मस्ती में बंद होती जाती, लेकिन अचानक पीछे से जैसे ही ज्योति की आवाज़ आई, राजवीर ने मूड के देखा और तभी उसके लंड ने अपना पानी छोड़ दिया... एक के बाद एक इतनी लंबी पिचकारियाँ छोड़ी राजवीर के लंड ने कि वो देख ज्योति हैरान तो हो ही गयी पर साथ साथ राजवीर भी कुछ नहीं कर पाया और वो बस लंड हल्के होने का मज़ा लेने लगा.. ज्योति वहाँ से निकल कर अपने कमरे की तरफ गयी और राजवीर भी नशे में होने के कारण कुछ नहीं बोल पाया, जैसे उसे हल्का महसूस हुआ उसने सब बतियां भुजा दी और जाके बेड पे सो गया, इतने सुरूर में वो भूल ही गया था कि उसने कपड़े भी नहीं पहने... सुबह जब उठा तो उसने अपनी हालत देखी और बीती रात की घटनाए उसके दिमाग़ में दौड़ने लगी.. जब उसे याद आया कि बीती रात क्या हुआ था, उसे बहुत शरम आने लगी के ज्योति उसके सामने आई फिर भी उसने अपनी बेशर्मी नहीं छोड़ी...बार बार राजवीर के दिमाग़ में यह ख़याल आता कि अब वो कैसे सामना करेगा अपनी बेटी का, मोबाइल देखा तो वहीं अपनी जगह पे पड़ा था.. उसने झट से फोन उठाया और कुछ देर चेक किया फिर उसे लगा कि चलो ज्योति ने ऐसा कुछ चेक करने की कोशिश नहीं की, नहीं तो उसकी चोरी पकड़ी जाती.. काफ़ी देर तक अपने कमरे से जब बाहर नहीं निकला राजवीर, तब उसे अमर बुलाने आया और मजबूरी में उसे सब के साथ नाश्ता करने जाना पड़ा...
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07-03-2019, 03:55 PM,
#35
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
उधर स्नेहा जब किचन में किसी से बात कर रही थी, तो शीना भी कुछ देर बाद उसके पीछे चली गयी उससे बात करने के लिए..




"विक्रम तुम्हारे पास है.." स्नेहा ने जैसे ही यह कहा, पीछे से शीना ने उससे कहा




"आख़िर आप करना क्या चाहते हो.."





शीना की आवाज़ सुन, स्नेहा ने ठंडे दिमाग़ से काम लिया और डरने के बदले उसने फिर फोन पे कहा





"अब तुम लोग दोस्त हो तो विक्रम तुम्हारे पास ही होगा ना, मैं बीवी हूँ आख़िर..."




"हां सब हक तुम लोगों के होते हैं.. एनीवे, अब मैं जा रही हूँ.. जब विक्रम फ्री हो तब मुझसे बात करवाना.." कहके स्नेहा ने फोन कट किया और पीछे मूड के शॉक होने का नाटक किया




"अरे शीना...डरा दिया तुमने तो अचानक आके.... कहो क्या हुआ"





"भाभी, रिकी भाई के प्रॉजेक्ट वाला आइडिया आपने दिया होगा ना पापा को, कि ज्योति उसमे एड हो.." शीना ने झल्ला के कहा





"मैने ऐसा कोई आइडिया नहीं दिया, ज्योति आख़िर एक स्मार्ट लड़की है, उसने देखा होगा कि अची ऑपर्चुनिटी है उसके फ्यूचर के लिए, आख़िर पढ़ाई भी दोनो की सेम है, और इससे अच्छा मौका उसे कहाँ मिलेगा.. वो अकेली होती तो शायद कहीं जॉब करती , बिज़्नेस तो वो जाय्न नहीं कर सकती.. इसलिए उसने यह सब सोचा होगा और दिमाग़ चलाया होगा अपना.. इसमे मेरा क्या फॉल्ट.." स्नेहा ने फिर एक कातिल मुस्कान के साथ कहा... स्नेहा की मुस्कान सब बोल रही थी उसके लिए





"झूठ मत बोलिए भाभी, आइ नेवेर एक्सपेक्टेड दिस फ्रॉम यू.. अगर आपको लगता है कि ज्योति स्मार्ट है तो मैं भी उसे यहाँ से निकालूंगी फिर आप खुद देख लेना कौन ज़्यादा स्मार्ट है..." कहके शीना वहाँ से निकल रही थी फिर स्नेहा पीछे से बोली





"गुस्सा, आदमी के दिमाग़ में दीमक जैसा होता है.. जैसे जैसे गुस्सा बढ़ता है, वैसे वैसे दिमाग़ को नष्ट करने लगता है..मैने तुमसे पहले ही कहा था जो करना था, तुम मानी नहीं, अब भुग्तो... पर हां, जो भी तुम सोच रही हो, वैसा कुछ नहीं होगा... अगर तुम मेरे साथ ही रहो तो हम मिलके कुछ सोच सकते हैं, लेकिन अकेले में तुम कुछ नहीं कर पओगि शीना.. तुम्हे मेरी ज़रूरत तो पड़ेगी ही, अब तुम्हे सोचना है कि मेरा साथ देके ज्योति को यहाँ से निकालने का सोचोगी या अकेले रहके नाकाम कोशिशें करती रहोगी... चाय्स इस युवर्ज़ स्वीट हार्ट..." कहके स्नेहा वहाँ से निकल गयी और शीना वहीं खड़े खड़े कुछ सोचने लगी.. वैसे स्नेहा ने जो भी कहा था सही कहा था, शीना अकेले नहीं सोच पाएगी इस बारे में.. वो यह तो जानती थी कि ज्योति उससे ज़्यादा चालाक है लेकिन अब वो यह भी जान गयी थी कि अगर वो अकेली कुछ सोचेगी तो स्नेहा का साथ ज्योति को ही मिलेगा... पर फिलहाल उसे सबसे ज़्यादा जो चीज़ परेशान कर रही थी वो यह थी कि आख़िर स्नेहा के दिमाग़ में है क्या.. शीना भले ही ज्योति जितनी चालाक ना हो, लेकिन फिर एक बात का ध्यान रखा जाए के वो नॉर्मल लड़की से ज़्यादा चालाक थी.. शीना और ज्योति में फरक सिर्फ़ नहले और दहले जितना था... उसने अपने दिमाग़ पे थोड़ा ज़ोर डाला के उससे कुछ रास्ता मिले, तभी उसे उसका जवाब निकालने का ज़रिया मिल गया... और वहाँ से निकल के सीधा रिकी के पास चली गयी... रिकी अपने कमरे में बैठा लॅपटॉप पे कुछ काम कर रहा था के शीना उसके पास आके बैठ गयी...




"तुम कब आई, मेरा ध्यान ही नहीं गया, " रिकी ने अपने लॅपटॉप से ध्यान हटाया तो पाया के शीना उसके पास बैठी थी...





"दरवाज़ा खुला था भाई , इसलिए आ गयी... वैसे आइ मस्ट से कि लेआउट ईज़ वेरी गुड... कौनसी थीम पे बनाने का सोच रहे हैं आप..." शीना बिल्कुल रोमॅन्स के मूड में नहीं थी, उसका दिमाग़ धीरे धीरे ही सही लेकिन काम पे लग चुका था..





"थीम नहीं सोची, वैसे अब मैं ज़्यादा सोचना नहीं चाहता, पापा ने बताया ज्योति भी इस प्रॉजेक्ट में काम करेगी, लेट हर ऑल्सो थिंक.. मैं भी देखूं क्या सोचती है वो.." रिकी ने मायूस मन के साथ कहा... बिना कुछ पूछे शीना को इस बात का जवाब मिल गया के रिकी भी खुश नहीं है यूँ ज्योति के जाय्न करने से...




"ठीक है भाई, चलिए मैं निकलती हूँ, नीड टू गो सम्वेर.. आके मिलती हूँ आपसे , बाइ..." कहके शीना जल्दी वहाँ से निकली और अपने रूम में जाके रेडी होके अपने कुछ फरन्डस से मिलने का प्लान बनाया और अपनी गाड़ी में निकल गयी... शीना को यूँ निकलते देख रिकी को भी बड़ा झटका लगा, ना तो शीना ने उससे बात की, ना ही कुछ, रिकी यह सोचने लगा के पिछले कुछ दिनो से जो हो रहा है शायड उस बात का बुरा ना लगा हो शीना को.. लेकिन फिर कुछ सोच के रिकी ने अपना ध्यान वापस अपने लॅपटॉप में लगाया..





सुबह से शाम और शाम से रात हो चुकी थी, रिकी जब अपना काम निपटा के बाहर निकला तो देखा के शीना अब तक नहीं लौटी और ना ही वो रिकी के कॉल्स या मेसेज का आन्सर दे रही थी.. सुहासनी से पूछने पर भी उसे कोई जवाब नहीं मिला, पूरे दिन का थका हुआ रिकी खाने बैठा और सब के साथ बातें करने लग गया... ज्योति वाली न्यूज़ तो उसे कब का मिल चुकी थी इसलिए वो ज्योति से थोड़ी ज़्यादा बातें कर रहा था, ताकि अमर को ऐसा ना लगे के रिकी इस फ़ैसले से खुश नहीं है...




"सो, कब स्टार्ट करना है प्रॉजेक्ट का काम.." ज्योति ने रिकी से पूछा जब दोनो खाना ख़तम करके बाहर गार्डेन में वॉक कर रहे थे..





"डोंट नो, फिलहाल तो मैं सिर्फ़ लेआउट बना रहा हूँ, लेकिन हन मेरा लास्ट सेम है विच विल गेट ओवर इन 3 मंत्स, तो आइ थिंक उसके तुरंत बाद काम शुरू कर देंगे.. इसलिए मैने लेआउट बनाना स्टार्ट किया है, विक्रम भैया के आते ही ज़मीन भी देख आउन्गा, तब तक तुम चाहो तो कोई थीम सोच सकती हो, जिसपे बेस्ड हम यह रिज़ॉर्ट बना सकें. ताकि इट शुड लुक यूनीक, बेटर दॅन दा रेस्ट"





"हां, डोंट वरी, अभी बहुत टाइम है, मेरे लिए 1 महीना काफ़ी है यह सोचने के लिए..." ज्योति ने हँस के जवाब दिया





"ओवर कॉन्फिडेन्स हाँ.." रिकी ने अपनी आँखें रोल करके कहा




"नही यार, बुत प्रॉजेक्ट मॅनेज्मेंट ईज़ नोट अन इश्यू इसलिए कैसे स्टार्ट करेंगे ईज़ नोट आ मॅटर.. रही थीम की बात तो कुछ चीज़ें ही स्टडी करनी पड़ेगी जिसमे मॅक्समॅम मुझे 15 दिन लगेंगे, बाकी 15 दिन उस थीम को तुम्हारे लेआउट के हिसाब से सेट करने में.. दट'स इट.." ज्योति ने रिकी से कहा और दोनो फिर वॉक करते करते बातें करने लगे
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07-03-2019, 03:55 PM,
#36
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
उधर राजवीर अपने कमरे में बैठा बैठा फिर शराब पी रहा था और कुछ सोच रहा था कि तभी उसके दरवाज़े पे नॉक हुआ.. उसने अपना घूँट ख़तम किया और जाके दरवाज़ा खोला...





"आए हाए, अब यूँ आओगी तो हम मर ही जाएँगे ना..." राजवीर ने दरवाज़ा खोलके साइड में होके कहा





"यूँ नहीं तो कैसे आउ अपने आशिक़ से मिलने, वो भी इतनी रात गये.."





"क्या लोगि.. टी, कॉफी या मी.." कहके राजवीर ने दरवाज़ा बंद किया और सोफे पे बैठे इंसान को अपनी बाहों में भर लिया





"इतनी रात गये कौन चाइ कॉफी पीता है... दारू पिलाओ मुझे तो, आज की रात तो बहेकना ही है मुझे.."





"तुम भी कमाल करती हो, बहेक जाओगी तो मेरे प्यार का मज़ा कैसे लोगि मेरी जान.." राजवीर बार पे जाके फिर दो ग्लास दारू बना लाया





"वैसे एक बात कहूँ, कल रात तुम्हारी फोटो देखते देखते जो मेरा लंड तडपा था, आज उसकी सारी कसर निकाल दूँगा मेरी भाभी जान.." कहके राजवीर ने दारू का एक ग्लास सामने बैठी सुहासनी देवी को पकड़ाया.. राजवीर के सामने सुहसनी कुछ इस प्रकार बैठी हुई थी जिसे देख राजवीर के लंड ने अंदर से हुंकारना शुरू कर दिया











"उम्म्म्म, तुम तो हल्के हो गये.. मेरे अंदर जो इतनी आग है, उसे कौन भुजाएगा हाँ..." कहके सुहसनी ने राजवीर के हाथ से ग्लास लिया और दारू पीने लगी..





"इसी के लिए ही अब मैं यहीं रहने वाला हूँ, अब बस यहाँ रहके तुम्हारी और तुम्हारे जिस्म की सेवा करना चाहता हूँ.. ताकि कहीं बाहर मूह मारना ना चालू कर दो तुम इस आग में"





"राज्वाडी हूँ, यूँ ही किसी को मूह नहीं लगाती मैं , समझे... चलो अब सब से पहले मेरी इस मुनिया को खुश करो जो तुमसे चुदने के लिए बेकरार हुई जा रही है." कहके सुहसनी ने ग्लास ख़तम किया और सोफे पे लेट गयी.. राजवीर ने भी वक़्त की नज़ाकत को समझा और जल्दी से सुहसनी के कपड़े उतारने में जुट गया.. सुहसनी का नंगा शरीर देख आज भी राजवीर गरम हो जाता , उसकी चूत पे एक दम हल्के हल्के बाल आज भी किसी के लंड की हालत खराब कर सकते थे... राजवीर ने धीरे धीरे सुहसनी की चूत पे अपने हाथ रखे और उन्हे धीरे धीरे रगड़ने लगा....











जब राजवीर को लगा अब सुहसनी गरम होने लगी है, और जैसे ही सुहसनी को मज़ा आने लगा, ठीक उसी वक़्त राजवीर का दरवाज़ा नॉक हुआ..





"पापा, कॅन आइ कम इन प्लीज़..." ज्योति की आवाज़ सुन के सुहसनी और राजवीर दोनो के पसीने छूटने लगे..
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07-03-2019, 03:55 PM,
#37
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
जैसे ही सुहसनी और राजवीर ने ज्योति की आवाज़ सुनी, दोनो की हालत खराब हो गयी.. कहाँ तो राजवीर सुहसनी की चूत मसल रहा था, अब ज्योति के आने से उसका लोहे सा मज़बूत

लंड मुरझा गया था , सुहसनी ने जल्दी से अपने कपड़े लिए और बाथरूम में जाके छुप गयी.. राजवीर ने भी जल्दी से अपना हुलिया ठीक किया और दरवाज़ा खोलने बढ़ गया




"हां बेटी, बोलो.." राजवीर ने दरवाज़ा खोल के कहा, लेकिन ज्योति को अंदर आने के लिए जगह नहीं दी




"सॉरी पापा, पर मैं अंदर आउ इफ़ यू डोंट माइंड."




"अरे हां, सॉरी, आओ आओ..." कहके राजवीर ने ज्योति के अंदर आने के लिए जगह बनाई. राजवीर ने भी पीछे से दरवाज़ा बंद किया और अंदर जाने लगा... अंदर आके दोनो बाप

बेटी सोफा पे बैठ गये.. राजवीर ज्योति की तरफ देख रहा था कि अचानक ज्योति क्या बोलने आई है, और ज्योति राजवीर से आँख नहीं मिला पा रही थी इसलिए इधर उधर, कभी

नीचे देखती.. ज्योति को यूँ देख राजवीर को कुछ समझ नहीं आ रहा था, एक तो पहले से ही राजवीर डरा हुआ था, उपर से अब ज्योति का ऐसा रियेक्शन उसे और डरा रहा था...




"हां ज्योति, कहो...क्या बात है, इतनी टेन्षन में क्यूँ लग रही हो.." राजवीर ने अपने आप को नॉर्मल करते हुए कहा, लेकिन अंदर ही अंदर उसका दिल ऐसा धड़क रहा था जैसे कि

फुल स्पीड पे कहीं ड्रिल मशीन चल रही हो




"उः पापा, रात के लिए सॉरी... मुझे ऐसे आप के कमरे में नहीं आना चाहिए था.." ज्योति ने फाइनली राजवीर से आँखें मिलाकर कहा




ज्योति की बात सुनके पहले तो राजवीर को समझ नहीं आया के वो क्या जवाब दे, लेकिन फिर उसने खुद को संभाला, और ज्योतिसे कहा




"कोई बात नहीं बेटा, थ्ट्स ओके...मुझे भी संभालना चाहिए, ध्यान रखना चाहिए कि रूम में लॉक भी है.." राजवीर को समझ नहीं आया के वो और क्या कहे.. इसलिए फिर दोनो

को बीचे एक लंबी खामोशी छाई रही.. सुहसनी यह सब बाथरूम से देख रही थी और सुन रही थी, लेकिन वो समझ नहीं पा रही थी के ज्योति क्या कह रही है आख़िर.. ज्योति

वहाँ से उठ तो नहीं रही थी, और ना ही राजवीर उसे जाने को कह सकता था,



"बेटा, 1 मिनट हाँ... वॉशरूम से होके आया मैं.." कहके राजवीर वहाँ से उठा और वॉशरूम की तरफ गया.. वॉशरूम जाते ही, सुहसनी ने सबसे पहले उससे पूछा




"यह ज्योति किस बारे में बात कर रही है.." सुहानी ने फुसफुसा कर कहा




"अरे चुप रहो, इसके जाते ही सब बताता हूँ..." राजवीर ने उसे जवाब दिया




बाहर सोफे पे बैठी ज्योति इधर उधर रूम में देख रही थी के तभी उसकी नज़र सोफे के नीचे एक चमकीली चीज़ पे पड़ी.. वो नीचे झुकी और थोड़ा हाथ लंबा किया तो उसके

हाथ में एक अंगूठी आई.. अंगूठी उठा के उसने देखा तो उसपे 'एसए' लेटर बने हुए थे.... उसे समझते ज़्यादा देर ना लगी के वो अंगूठी किसकी हो सकती है, आख़िर उसने

मोबाइल में देख लिया था कि उसका बाप सुहसनी की फोटो देख मूठ मार रहा था.. एसए का मतलब सुहसनी और अमर ही हो सकता है, और ऐसी सेम अंगूठी उसने उमेर के पास भी

देखी थी.... ज्योति समझ गयी या तो सुहसनी यहाँ से होके गयी है, या तो वो यहीं पर है... जैसे ही उसे लगा राजवीर आ रहा है वापस अपनी जगह पे, ज्योति ने अंगूठी

छुपाई और फिर सीधी होकर बैठ गयी..




"हां बेटी, और बताओ, क्या चल रहा है.. स्टडीस का क्या हाल, क्या सोचा है तुमने.." राजवीर ने अपनी जगह पे बैठ के कहा



"सब ठीक है पापा, मुझे खुशी है कि आप भी यहीं रहेंगे अब हमेशा के लिए.. मैं अकेली नहीं रहूंगी" ज्योति ने ऐसे जवाब दिया जैसे वो आज यह बात ख़तम ही नहीं

करना चाहती थी



"हां बेटी, अब भाई साब ने इतनी ज़िद्द की तो मैं उन्हे मना ना कर पाया.." राजवीर का यह जवाब सुनते ही ज्योति अंदर ही अंदर हँसने लगी, मानो खुद से कह रही हो जानती हूँ

पापा क्यूँ रुके हो, ताऊ जी तो आपको हर बार कहते हैं लेकिन इस बार आपके रुकने की वजह मैं जानती हूँ...



"क्या हुआ, किस सोच में पड़ गयी.." राजवीर ने फिर ज्योति से कहा, जिसे सुन ज्योति अपने ख़यालों से बाहर आई



"कुछ नहीं पापा, प्लीज़ डोंट माइंड, क्या मैं आपका बाथरूम उसे कर सकती हूँ.." ज्योति चेक कर रही थी कि राजवीर का जवाब क्या होगा..



"हां बेटा शुवर, ठीक पीछे ही है.." राजवीर ने उसे इशारा करके कहा... राजवीर का जवाब सुनके ज्योति समझ गयी कि सुहसनी इधर से होके गयी है पर अब वो यहाँ नहीं है

वरना उसका बाप इतना कॉन्फिडेंट नहीं होता...



"ओके पापा, एनीवेस चलिए अब मैं जा रही हूँ अपने कमरे में ही.. सॉरी इतनी रात को आपको डिस्टर्ब किया.. गुड नाइट.."



"गुड नाइट बेटा, स्लीप वेल.." राजवीर ने भी उसे आराम से जवाब दिया



"उः पापा, एक बात कहनी थी आप से...एक आख़िरी बात.." ज्योति ने जाते जाते फिर रुक कर कहा.. राजवीर कुछ कहता इससे पहले फिर ज्योति बोल पड़ी



"पापा, शायद यह रिंग ताई जी की है... आपके सोफे के नीचे पड़ी थी.." ज्योति ने राजवीर को रिंग देते हुए कहा.. ज्योति के हाथ में रिंग देख राजवीर फिर पसीना पसीना होने

लगा, उसे समझ नहीं आ रहा था.. टेन्षन में आके उसने ज्योति के हाथ से रिंग तो ली, लेकिन उसकी नज़रें सीधा बाथरूम की तरफ गयी , जिसका पीछा ज्योति ने किया और वो

समझ गयी के सुहसनी अभी भी वहीं है.. ज्योति के हाथ से यह मौका चला गया सुहसनी और राजवीर को पकड़ने का..



"क्या हुआ पापा, बाथरूम की ओर क्यूँ देख रहे हैं..लीजिए अब, मैं जा रही हूँ अपने कमरे में.." कहके ज्योति ने राजवीर को सफाई देने का मौका भी नहीं दिया और रिंग उसके हाथ

में पकड़ के वहाँ से अपने कमरे में निकल गयी...शायद राजवीर को तो ऐसा ही लगा



ज्योति के जाते ही, सुहसनी बाथरूम के बाहर आई और आते ही कुछ कहने वाली थी कि राजवीर के हाथ में अपनी रिंग देख के वो बोली



"यह तुम्हारे पास कैसे आई, कल ही अमर ने गिफ्ट दी है, मैं तो सोच रही थी कहीं खो गयी.." सुहसनी ने राजवीर के हाथ से रिंग लेके कहा



"अगर संभाली नहीं जाती तो पहनती क्यूँ हो, " राजवीर ने झल्ला के सुहसनी से कहा, ऐसा रियेक्शन देख सुहसनी भी एक वक़्त के लिए अचंभित रह गयी



"इसमे गुस्सा करने वाली क्या बात है, कोई बड़ी बात नहीं है यह.. कल ही मिली है मुझे, उंगली में फिट नहीं आ रही है, इसलिए हर बार गिर जाती है जब भी हाथ झटकती हूँ तो.."



"यह अंगूठी ज्योति को मिली है. उसने मुझे दी, समझी तुम..." राजवीर के ऐसे चिल्लाने से सुहसनी काफ़ी डर गयी, लेकिन फिर ज्योति का नाम सुन के ही वो एक शॉक में चली गयी,

काफ़ी देर तक दोनो खामोश रहे और बस एक दूसरे को घूरते रहे... ध्यान उनका तब टूटा, जब राजवीर के दरवाज़े के खुलने की आवाज़ आई और जब उनकी नज़र वहाँ पड़ी तब ज्योति

उनके सामने ही खड़ी थी...



"ह्म्म्मह, अब कौन बताएगा मुझे सब बात.. वो भी सच सच.." ज्योति ने अंदर आते हुए कहा और उनके सामने वाली टेबल पे बैठ गयी






उधर मुंबई से दूर, पुणे हाइवे पे एक लॅंड क्रूज़र फुल स्पीड में कहीं जा रही थी, कि तभी कार ब्लास्ट हो गयी और उसके अंदर के सब लोग ऑन दा स्पॉट मर गये... सुबह

राइचंदस में बहुत खुशनुमा वातावरण था, उमेर और सुहसनी गार्डेन में रोज़ की तरह चाइ पी रहे थे और कुछ ही देर में ज्योति और राजवीर ने भी उन्हे जाय्न कर लिया...

चारो खुशी खुशी बातें कर रहे थे कि तभी रिकी और शीना ने भी उन्हे जाय्न किया




"कल कहाँ थी शीना, पूरा दिन कहीं दिखी ही नहीं..." अमर ने शीना को पेपर्स देते हुए कहा



"कल फरन्डस के साथ थी डॅड, बट यह पेपर्स कैसे.." शीना एक एक कर उन्हे चेक करने लगी



"अरे यह हमारे फार्महाउस के हैं, वो प्रॉपर्टी तुम्हारे नाम से है..इसका सौदा हो गया है, इसलिए इन पेपर्स पे साइन कर दो ताकि हम जल्द ही ओनरशिप ट्रान्स्फर कर दें
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07-03-2019, 03:55 PM,
#38
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
अमर की बात सुन राजवीर को झटका सा लगा, क्यूँ कि पिछले दिन ही अमर ने उसे कहा था कि प्रॉपर्टी बेचनी नहीं चाहिए, और आज यह खुद ही अपना फार्महाउस बेच रहा है..

राजवीर ने सोचा कि उमेर को यह बात पूछी जाए, लेकिन अगले ही पल उसने सोचा शायद यह टाइम ठीक नहीं है.. इसलिए उसने रहने दिया और अपनी चाइ पीने लगा... शीना ने बिना

कुछ कहे या पूछे पेपर्स पे साइन कर लिया..




"ओके पापा, अब मेरे पास आपके लिए एक सर्प्राइज़ है, सिर्फ़ आपके लिए ही नहीं, इन फॅक्ट यहाँ बैठे सभी के लिए.." शीना के चेहरे पे एक अलग ही रोशनी, एक अलग ही चमक थी

जब उसने यह बात सब से कही... शीना कुछ कहने ही जा रही थी कि उसकी नज़र सामने से आती स्नेहा पर भी गयी.. "ओह हो, भाभी आइए आइए, आइ टू ऑलमोस्ट फर्गॉट यू.." जल्दी

आइए , मैं अभी सब को एक खुश खबरी सुनाने जा रही थी, थॅंक यू फॉर कमिंग हियर.." शीना काफ़ी ज़्यादा एग्ज़ाइटेड थी



"हां शीना अब बोल दो, अब सब यहाँ हैं.. बताओ क्या सर्प्राइज़ है हम सब के लिए" अमर ने जैसे ही यह शीना से कहा के फिर उन सब को कोई टोकता हुआ बोला



"एक्सक्यूस मी सर... इनस्पेक्टर आप से मिलने आए हैं.." उनके वॉचमन ने अमर से कहा.. इनस्पेक्टर का नाम सुन के वहाँ बैठे लोग सब चिंता में आ गये, सब के चेहरे फीके पड़

गये, वो लोग तुरंत वहाँ से उठे और अमर के पीछे सब लोग लिविंग रूम में पहुँच गये जहाँ इनस्पेक्टर उन सब का इंतेज़ार कर रहा था



"हां इनस्पेक्टर साब कहिए, मैं अमर राइचंद.." अमर ने इनस्पेक्टर से हाथ मिला के कहा



"सर, मेरा नाम निखिल.. सीनियर इनस्पेक्टर पुणे"



"निखिल साब, बताइए, आज राइचंद'स में कैसे आना हुआ.." अमर ने अपने शांत अंदाज़ में ही बात करना जारी रखा



"सर, वो, एक कार है , ब्लॅक लॅंड क्रूज़र एमएच-02-4444.. क्या आप जानते हैं किसके नाम से है" निखिल ने अपनी टोपी उतार के कहा



"हां, यह तो भैया की गाड़ी है...उनकी सब गाड़ियों का नंबर 4444 ही है..है ना पापा" शीना ने अमर की तरफ देखते हुए कहा



"हां इनस्पेक्टर, यह मेरे बेटे की गाड़ी का नंबर ही है..क्या हुआ.." अब वहाँ मौजूद सब लोगों की धड़कने बढ़ने लगी थी और साथ साथ अमर के चेहरे पे भी तनाव की

लकीरें देखी जा सकती थी



"सर, कल रात पुणे हाइवे पे इस कार का ब्लास्ट हो गया है, और उसमे एक ही आदमी बैठा था, ही ईज़ डेड ओन दा स्पॉट..."




निखिल की यह बात सुनते ही जैसे सब के सब लोग वहीं खड़े खड़े जैसे मौत के पास पहुँच गये हो, स्नेहा खड़े खड़े बेहोश हो गयी और ज्योति और शीना सुहसनी को

संभालने में लग गयी...

राइचंद'स में मातम का माहॉल छा गया था, निखिल जैसे ही विक्रम की गाड़ी ब्लास्ट होने की न्यूज़ लाया उसे सुन स्नेहा और सुहसनी दोनो बेहोश हो गयी थी.. रिकी और अमर किसी

तरह दिल मज़बूत कर बैठे थे. जैसे ही स्नेहा और सुहसनी को होश आता है, वो लोग फिर फुट फुट के रोने लगते हैं... स्नेहा, विधवा बन चुकी थी.... किसी तरह ज्योति और

शीना सुहसनी और स्नेहा को अंदर ले गयी और पीछे इनस्पेक्टर के साथ अमर , रिकी और राजवीर थे...




"इनस्पेक्टर , ऐसा भी तो हो सकता है के विक्रम की गाड़ी चोरी हुई हो या कोई और चला रहा हो..." राजवीर ने अपने होश संभालते हुए कहा




"जी आप सही कह रहे हैं, इसलिए आप में से किन्ही दो लोगों को हमारे साथ चलना होगा लाश की शिनाख्त करने, अगर आप लोग लाश को पहचान लेंगे तो हम यह केस आगे

बढ़ाएँगे.." निखिल ने जवाब में कहा




"मैं नहीं देख पाउन्गा, राजवीर और रिकी.. तुम दोनो होके आओ, मुझसे नहीं देखा जाएगा यह सब..." अमर ने भारी मन के साथ कहा.. अमर का दिल बहुत था कि वो एक बार , एक

आख़िरी बार विक्रम को देख ले, लेकिन उसने हमेशा विक्रम को हँसते हुए देखा था, आज अचानक ऐसी खबर.. विक्रम की लाश वो नहीं देख पाएगा, उसे डर था के शायद कहीं वो

उसे देख के टूट ना जाए, लेकिन परिवार के लिए उनकी भलाई के लिए अमर की हिम्मत ज़रूरी थी...




"इनस्पेक्टर, आप के साथ रिकी आ रहा है.. मैं यहीं भाई साब के पास हूँ..." कहके राजवीर और अमर दोनो अंदर चले गये जहाँ स्नेहा और सुहसनी बैठी बैठी रो रहे थे और

ज्योति और शीना उनका होसला अफज़ाई कर रही थी..




रिकी बिना कुछ कहे इनस्पेक्टर के साथ मुर्दा घर की तरफ जाने लगा, जहाँ घर के सभी लोग दुख में डूबे हुए थे, रिकी के भाव निखिल को अचंभित कर रहे थे...

इनस्पेक्टर से रहा नहीं गया इसलिए उसने रिकी से पूछ लिया




"आइ आम सॉरी, बट अगर विक्रम आपके भाई थे, तो आप को देख के लग नहीं रहा कि आपको उनकी मौत का ज़्यादा दुख हुआ है.." इनस्पेक्टर ने गाड़ी आगे बढ़ाते हुए कहा




"दुख... हुहम , इनस्पेक्टर अगर दुख दिखाना आसान बात होती तो आज दुनिया का सबसे ज़्यादा दुखी आदमी एक पोलीस वाला होता, लेकिन जैसे आप लोग अपने चेहरे पे कोई भाव लाए बिना

काम करते हैं, वैसे ही मुझे भी करना पड़ेगा.. अगर मैं दुखी रहूँगा तो फिर मेरे घरवालों को कौन संभालेगा.. विक्रम भैया मेरे दोस्त जैसे बन चुके थे, उनकी मौत का

सबसे ज़्यादा दुख मुझे है.. लेकिन मेरी किस्मत देखो इनस्पेक्टर,मैं दुखी नहीं हो सकता और तुमने मुझे इसमे दोषी भी ठहरा लिया..." रिकी ने नम आँखों के साथ कहा...

रिकी का जवाब सुनके इनस्पेक्टर कुछ नहीं बोल पाया और बस गाड़ी चलाता रहा... जब तक यह लोग मुर्दा घर पहुँचते रिकी फ्लश बॅक में जाने लगा.. रिकी सोच रहा था के

आख़िरी बार उसने विक्रम को तब देखा था जब उसने विक्रम को महाबालेश्वर वाली खबर सुनाई थी.. शायद उसी के मामले में यह सब हुआ है..... रिकी अब दोहरी मुसीबत में फस

चुका था, एक तो यह कि उसने विक्रम को इस बात के बारे में बताया और यह खबर मिली, अब अगर वो किसी और से कहता है तो उसके साथ भी सेम बात हो सकती है..




"चलिए सर, अंदर आइए...और हां, अपने दिल को मज़बूत कर लीजिए, शायद आप लाश पहली बार देख रहें हो.." कहके निखिल अपनी जीप से उतरा और उसके पीछे पीछे रिकी

चलता रहा.. रिकी जैसे जैसे आगे बढ़ रहा था, उसके दिल की धड़कने उतनी ही धीमी होती जा रही थी, कुछ आगे चल के रिकी वहीं रुक गया और अपने दिल को मज़बूत करने

लगा..लेकिन उसकी कोशिश नाकाम रही, जो दिल अभी धीमे धीमे धड़क रहा था, उसके हर बढ़ते कदम के साथ अब उसके दिल की धड़कने उतनी ही तेज़ी से चल रही थी.. रिकी और

निखिल एक कमरे में पहुँचे जहाँ काफ़ी सारे स्टोरेजस थे, निखिल बिना किसी भाव के आगे बढ़ा और एक स्टोरेज ओपन किया और रिकी को आगे आने को कहा.. रिकी वहीं खड़ा

रहा, शायद वो तैयार नहीं था या शायद डर लग रहा था.. यह देख निखिल ने अपनी जेब से एक गम निकाला और उसे चबाते हुए कहा
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07-03-2019, 03:55 PM,
#39
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"डरो नही सर, मैने अपनी लाइफ में ऐसा केस नहीं देखा है.. गाड़ी ब्लास्ट हो चुकी है बुरी तरह से, स्क्रॅप आपके घर पहुँच जाएगा, लेकिन ड्राइवर को इतनी ज़्यादा चोट नहीं

लगी है, आइ मीन चेहरा इतना नहीं जला, आप उन्हे देख के डरेंगे नहीं... और प्लीज़ थोड़ा जल्दी कीजिए, आप के जवाब के बाद हमे रिपोर्ट देनी है और फिर केस की तहकीकात

करनी है..." निखिल ने अपनी घड़ी देख कर कहा.. निखिल की बात सुन रिकी अब धीरे धीरे बढ़ने लगा और जैसे ही स्टोरेज के पास पहुँचा, विक्रम की शकल उसके सामने थी,

कुछ देर तक उसे यूही देखते रहने के बाद रिकी की आँखें नम होने लगी




"हम इन्हे घर कब ले जा पाएँगे इनस्पेक्टर.." रिकी ने बड़ी रुआंसी से आवाज़ में कहा




"आप चिंता ना करें, हम मुर्दा घर की वॅन में यह बॉडी आपके घर भिजवा देंगे... कुछ फ़ॉर्मल्टीज पूरी करनी है, आप मेरे साथ आइए.." निखिल ने रिकी से कहा और दोनो

फ़ॉर्मल्टीज पूरी करने चले गये... जैसे ही फ़ॉर्मल्टीज पूरी हुई, रिकी भी मुर्दा घर की वॅन में बैठा और विक्रम की डेड बॉडी को देखता रहा. पूरे रास्ते रिकी खुद को कोस्ता

रहा कि उसने विक्रम को क्यूँ महाबालेश्वर वाली बात बताई, ना ही वो विक्रम को बताता और ना ही विक्रम उस दिन घर से जाता और ना ही आज उसके परिवार को यह दिन देखना

पड़ता.. पूरे रास्ते रिकी की आँखें नम थी और वो बस खुद को कोस्ता रहता, धीरे धीरे उसकी आँखें छलक पड़ी और वो रोने लगा... विक्रम की ज़िंदगी के आखरी दीनो में

ही दोनो भाई दोस्त बने थे, रिकी अपनी किस्मत को भी रो रहा था, कि मुश्किल से उसने एक दोस्त ऐसा बनाया जिसपे वो कभी भी भरोसा कर सकता था लेकिन वो भी अब उसके पास

नहीं था.. जैसे जैसे वॅन घर के पास पहुँच रही थी, वैसे वैसे रिकी कोशिश करने लगा के वो शांत रहे नहीं तो घर वालों को संभालना मुश्किल हो जाता.. घर से

कुछ दूरी पर ही रिकी ने अपना चेहरा ठीक किया और घर का इंतेज़ार करने लगा.. घर के बाहर सब मेंबर्ज़ खड़े थे इस आस में कि रिकी आएगा और उन्हे कहेगा के वो डेड

बॉडी विक्रम भैया की नहीं है.. लेकिन जैसे ही सब की नज़रें मुर्दा घर की वन पे पड़ी, सब के दिल बैठने लगे.. सुहसनी और स्नेहा फिर अपने पैरों को कमज़ोर महसूस करने

लगी, लेकिन शीना और ज्योति ने उन्हे संभाले हुए था.. वॅन रुकते ही जल्दी से दो करम्चारि पीछे भागे और दरवाज़ा खोलके स्ट्रेचर को बाहर निकाला.. डेड बॉडी की शकल

देख के स्नेहा से रहा नहीं गया और ज़मीन पे बैठ के सूबक सूबक के रोने लगी.. स्नेहा को बिल्कुल होश नहीं था, अपनी चूड़िया तोड़ने लगी, अपनी माँग का सिंदूर अपने हाथ से

मिटाने लगी , अपनी छाती पीट पीट के रोने लगी... स्नेहा को ऐसे देख सभी घबरा गये और उसे और सुहसनी को संभालने में लग गये... राइचंद'स का एक वारिस इस दुनिया में

नहीं रहा अब..




विक्रम की मौत की खबर सुनते ही राइचंद'स के परिवार और दोस्तों को काफ़ी झटका लगा.. शहर के बड़े से बड़ा आदमी उनके घर पे था, कमिशनर से लेके मेयर तक, मंत्री

से लेके संतरी तक.. सब अमर और उसके परिवार को हौसला देने आए थे.. स्नेहा ज़िंदा लाश जैसी लगने लगी थी, किसी से बात नही ना ही कुछ बोलना, बस गुम्सुम एक कोने में

बैठी थी और उसके साथ शीना भी थी.. सुबह से लेके शाम तक घर पे शुभ चिंतको का ताँता लगा रहा, विक्रम ने जिन दोस्तों के साथ कुछ दिन पहले दारू पी थी, वो लोग

भी आए थे, लेकिन उन्होने अमर या रिकी से कुछ नहीं कहा क्यूँ कि सवाल उनपे आता, वो भी जानते थे कि उस रात के बाद जब दूसरी सुबह वो उठे तो विक्रम वहाँ से गायब

था. अगर वो लोग उस का ज़िक्र यहाँ करते तो शक सबसे पहले उनपे आता , इसलिए उन्होने खामोश रहने में ही अपनी भलाई समझी.. दिन ढलते ढलते लोगों की भीड़ कम होने

लगी और पंडित जी के हिसाब से अगली सुबह लाश का क्रिया करम करना था.. मेहमानो के रहते जैसे तैसे घरवालों ने खुद को रोके हुए था, लें उनके जाते ही एक बार फिर

आँसुओं की नदी छलकने लगी रचंद'स में.. स्नेहा और सुहसनी के साथ साथ अब शीना भी अपना आपा खोने लगी थी.. इस स्थिति में भी ज्योति मज़बूत बनी हुई थी और सब को

बाँधे हुए थी, भावुक वो थी लेकिन उससे ज़्यादा प्रॅक्टिकल लड़की थी.. उसे विक्रम के जाने का दुख था लेकिन उसने कभी विक्रम के साथ इतना वक़्त नहीं बिताया था, तो वो इतनी

दुखी नहीं थी कि वो वहाँ बैठ के आँसू बहाए, लेकिन उसके विपरीत उसने सोचा के सब का हौसला बढ़ाया जाए इसलिए वो अपने मन को काबू में रखे हुई थी.. पूरी रात कोई

सोया नहीं, बस राइचंद परिवार पूरा वहीं बैठा था, सब के चेहरे पे अलग ही खामोशी थी... वहाँ बैठे हर आदमी को झटका सा लगा हुआ था , किसी को अभी भी विश्वास नहीं

हो रहा था, के विक्रम उनके बीच नहीं है.. राइचंद'स की ज़िंदगी की सबसे लंबी रात यही थी.. जैसे तैसे रात गुज़री, वैसे वैसे सुबह से फिर लोगों का आना जारी हुआ,

विक्रमम को जलाने के लिए ले जाना था आज... जैसे ही विक्रम की लाश को चार कंधो ने उठाया, स्नेहा में फिर से पागलपन आ गया और वो फिर से लाश को पकड़ के रोने लगी और

सब को रोकने लगी.. लेकिन जैसे तैसे शीना और ज्योति ने उसे पकड़ा और उसे अपने कमरे में ले गये.. अमर और राजवीर की आँखें काफ़ी नम थी, राजवीर हमेशा से विक्रम में

खुद को देखता था, उसका चहेता था और हो भी क्यूँ नहीं, आख़िर हर साल में कम से कम 6 महीने वो साथ रहते, जब भी विक्रम को बेट्टिंग के मामले में राजस्थान जाना पड़े

वो राजवीर के वहीं रुकता था.... स्मशाण घर पहुँच के सब विधि शुरू हुई और अमर के साथ राजवीर और रिकी ने भी विक्रम की लाश को जलाया.. इस वक़्त राजवीर और रिकी को

देख अमर को लगा कि वो अकेला नहीं हुआ और उसके दिल में फिर एक उम्मीद की ल़हेर दौड़ने लगी.. चाहे कोई कितना करीबी क्यूँ ना हो, लेकिन जब वो गुज़र जाता है तो आज कल लोग

यह सोच के अपनी ज़िंदगी नहीं रोकते, बल्कि आगे बढ़ने का सोचते हैं क्यूँ कि वो जानते हैं जो हुआ सो हुआ, अब उसे पकड़ के आगे की ज़िंदगी खराब करने में कोई मतलब

नहीं है.. स्मशान से घर जाते वक़्त अमर ने दिल में काफ़ी चीज़ें सोच ली जिससे उसके दिल को एक अलग मज़बूती मिलने लगी..




राइचंद'स में अब एक हफ़्ता ही हुआ था कि सुबह को फिर से पोलीस वॅन और एक लंबी गाड़ी आगे रुकी.. कमिशनर के साथ निखिल भी लॉन की तरफ बढ़ा जहाँ अमर अकेला बैठे

बैठे कुछ सोच रहा था... निखिल को आते देख वो बोला




"आइए इनस्पेक्टर साब, इस बार क्या मनहूस खबर लाए हैं.."




अमर का यह वाक्य सुन निखिल ने कुछ नहीं कहा और उसने बस एक नज़र पास खड़े कमिशनर को देखा, कमिशनर ने उसे चुप रहने का इशारा किया और खुद बोलने लगा




"देखो अमर, मैं अभी जो कहने जा रहा हूँ या जो भी पूछूँगा वो एक दोस्त के नाते होगा ना के कमिशनर के नाते.. उम्मीद है तुम समझ रहे हो.." कमिशनर अमर की पास

वाली कुर्सी पे बैठ गया.. कमिशनर को देख शीना भी बाहर आई और उनके पास बैठ गयी..
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07-03-2019, 03:56 PM,
#40
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"बेटी, प्लीज़ चाइ लगा दो हमारे लिए फिर इतमीनान से हमारी बातें सुनो.." कमिशनर नहीं चाहता थे कि शीना उनकी बातें सुने.. शीना के जाते ही कमिशनर ने फिर

रुख़ अमर की तरफ किया और पूछने लगा




"अमर, आखरी बार विक्रम से तुम्हारी बात कब हुई थी.."




"उसकी मौत के एक या दो दिन पहले, वो अबू धाबी गया था काम से. उसने वहिंसे मुझे कॉल किया था.." अमर ने शांति से जवाब दिया




"अमर, तुम्हे जान के हैरानी होगी, विक्रम कभी अबू धाबी गया ही नहीं, बल्कि उसके मोबाइल की डीटेल्स हम ने निकाली है.. वो 3 महीने से महाराष्ट्रा के बाहर नहीं गया, जिस

दिन की बात तुम कर रहे हो, उस दिन मोबाइल कंपनी के हिसाब से वो पुणे लोनवला हाइवे के पास ही था, लाइक कभी पुणे तो कभी लोनवला और कभी वहाँ का हाइवे... और एक

बात मेरी ध्यान से सुनो.. तुम्हारा कोई फार्महाउस है लोनवाला के पास.." कमिशनर ने जिस उम्मीद से पूछा, वैसे ही उसे जवाब मिला




"हां है, पर विक्रम मुझसे झूठ क्यूँ कहेगा, तुमसे कोई गड़बड़ हो रही है माथुर, फिर से चेक कर्वाओ, इतने टाइम में मुझसे विक्रम ने कभी झूठ नहीं कहा और अब क्यूँ

बोलेगा.. और फार्महाउस में क्या है, वहाँ की बात कैसे आई अचानक" अमर को विश्वास नहीं हो रहा था कि विक्रम ने उसे झूठ कहा था अबू धाबी के बारे में




"अमर, यह रहे रेकॉर्ड्स, तुम खुद देख लो और विक्रम अपने मरने से कुछ दो या तीन दिन पहले वहाँ अपने दोस्तों के साथ पार्टी कर रहा था, लेकिन फिर अचानक वहाँ से भी गायब

हो गया था.. हमे जब पता चला कि विक्रम लोनवला वाले हाइवे पे था, तब वहाँ पूछताछ करने पे शायद तुम्हारे फार्महाउस का सेक्यूरिटी गार्ड मिला और उसने ही बताया के

विक्रम सब कुछ दिन पहले यहाँ आए थे... हमने उसके दोस्तों से जब पूछा उस रात के बारे में तो सब ने एक ही बात कही के रात को दारू पीने के बाद सब लोग नशे के कारण

सो गये थे और जब सुबह उठे तो विक्रम वहाँ नहीं था.." कमिशनर ने फिर कहा




"लेकिन तुम कैसे यकीन मानते हो उनका, हो सकता है कि उन्होने कुछ किया हो विक्रम को.." अमर मानने को तैयार ही नहीं था के विक्रम झूठ बोल चुका था उसको




"नहीं, सब से पहले हम ने सब के बयान अलग अलग वक़्त पे लिए हैं और किसी की अफीशियल टेस्टिमोनी नहीं हुई है.. इससे यह मान लो के किसी को पता नहीं था उनसे बयान लिया

जाएगा, अगर किसी से बयान लेते हैं तो उसको पहले इनफॉर्म करना पड़ता है जिससे उसे कुछ वक़्त मिलता है अपना जवाब तैयार करने के लिए, लेकिन मैं सब से पर्सनली मिला हूँ

और सब का जवाब सेम है.. आज सब का लिए डिटेक्टर टेस्ट भी होगा.. मैं श्योर हूँ कि उसमे भी कुछ गड़बड़ नहीं मिलेगी हमें.." कमिशनर ने जैसे ही यह बात कही उसके

सामने शीना चाइ लेके आई..




"बेटी, सम कुकीस प्लीज़..." कमिशनर ने फिर उसे वहाँ से भेज दिया




"माथुर, जो तुम करो मैं तुम्हारा साथ दूँगा, वैसे भी वो फार्महाउस बिक चुका है" अमर ने अपना सर पीछे ले जाके कहा जैसे वो अब थक चुका हो




"अमर, तुम वो प्रॉपर्टी नहीं बेच सकते, मैं आज उसे सील कर रहा हूँ, आंड यह हमारे हिसाब से एक मर्डर है ना कि कोई आक्सिडेंट.. इसलिए तुम यहाँ साइन कर दो ताकि मैं

अपनी कार्यवाही आगे बढ़ा सकूँ. और हां, यह इनस्पेक्टर निखिल है इस केस की छान बीन यही करेगा.. तुम प्लीज़ इसके साथ कोवापरेट करना, और यकीन मानो, ही ईज़ दा

बेस्ट.." कमिशनर ने कहा और चाइ पीकर वहाँ से निकल गया




उधर स्नेहा अपने कमरे में बैठी थी और मन ही मन में दुख महसूस कर रही थी.. तभी उसके मोबाइल पे कॉल आया




"हेलो.." स्नेहा सूबक सूबक के बोल रही थी




"हाहहहहाहहहहा हीईीई... डार्लिंग, अब चलो आक्टिंग बंद भी करो... बोलो कब मिलना है.." सामने से किसी मर्द ने ज़ोर की हँसी के साथ कहा




"उफ़फ्फ़, तुम हो, कौन्से नंबर से करते हो.. मुझे लगा शायद किसी रिलेटिव का कॉल होगा, कुछ दिन रूको, फिर आती हूँ तेरे पास मेरी जान.." स्नेहा ने भी हंस के जवाब दिया
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