मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:18 PM,
#81
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
ससुरजी तुम्हारे भैया को देखकर बोले, "बलराम, तो तेरी माँ ने तेरे साले को पटा ही लिया! जाने कब से तरस रही थी उसका लन्ड अपनी बुर मे लेने के लिये."
"हाँ, पिताजी." मेरे वह बोले, "मै और अमोल खिड़की से मीना की सामुहिक चुदाई देख रहे थे. बेचारे को अपनी दीदी के कुकर्म देखकर इतनी चढ़ गयी कि वह पूरा नंगा हो गया और अपना लन्ड हिलाने लगा. तभी योजना के मुताबिक माँ वहाँ आ गयी. मैं तो वहाँ से भाग गया, और माँ ने जल्दी ही अमोल को पटा लिया."

"सुनो जी, फिर तो लगता है हमारी योजना सफ़ल हो गयी है." मैने खुश होकर कहा, और बोतल में मुंह लगाकर एक और घूंट शराब की पी. "आज रात गुलाबी अमोल के साथ नही सोयेगी. मैं अपने भाई के कमरे मे जाऊंगी और उससे चुदवाऊंगी."
"हाँ, मीना. ऐसा ही करो." मेरे वह बोले और मेरी नंगी चूची को पीछे से दबाने लगे. "तुम आज रात अपने भाई से चुदवा लो. कल उससे वीणा के बारे मे बात छेड़ना. मुझे लगता है वह वीणा से शादी करने तो तैयार हो जायेगा."
"ठीक है, जी." मैने कहा, "पर अभी तुम ज़रा मेरी चूत मार दो ना! मेरी अभी उतरी नही है. जल्दी से अपना लौड़ा मेरी भोसड़ी मे पेल दो."
"तुम्हारी चूत भोसड़ी कब से हो गयी?" तुम्हारे भैया ने पूछा.
"आज से." मैने हंसकर कहा, "बाबूजी और देवरजी ने तुम्हारी प्यारी पत्नी की चूत मे एक साथ अपने लन्ड घुसाये थे. ऐसा चलता रहा तो जल्दी ही मेरी चूत मे तुम अपना हाथ घुसा सकोगे."
"चिंता मत करो. सब ठीक हो जायेगा." तुम्हारे भैया बोले, "जवानी मे औरत की चूत बहुत लोचदार होती है."

तुम्हारे बलराम भैया ने जल्दी से अपने कपड़े उतार दिये और नंगे हो गये. उनका लन्ड बिल्कुल खड़ा था. अमोल से अपनी माँ की चुदाई देखकर वह पहले से ही बहुत गरम थे.

मै खिड़की के चौखट पर नंगी झुकी हुई थी. उन्होने ने मेरी कमर पकड़कर पीछे से मेरी चूत पर अपना लन्ड रखा और धक्का लगाकर अन्दर पेल दिया. फिर पीछे से मेरी चूचियों को मसलते हुए मुझे चोदने लगे.

बाहर नींबू के पेड़ के तले मेरा भाई अभी भी तुम्हारी मामीजी को चोदे जा रहा था. उन्हे देखते हुए हम पति-पत्नी चुदाई करने लगे.
रामु, किशन, और ससुरजी भी हमारे पास नंगे खड़े होकर अमोल और सासुमाँ को देख रहे थे.

"मीना, तुम्हारी चूत सच मे थोड़ी ढीली हो गयी है." मुझे पेलते हुए मेरे पति बोले, "अभी कुछ दिन अपने चूत को आराम दो. कोई मोटा लन्ड अन्दर मत लो."
"अभी कुछ दिन मैं अपने भाई के साथ ही सोऊंगी और उसी से चुदवाऊंगी." मैने जवाब दिया.

बाहर मेरा भाई अब बहुत जोर जोर से सासुमाँ को चोद रहा था. दोनो की मस्ती की आवाज़ हमे साफ़ सुनाई पड़ रही थी.

इधर अपने पति के धक्कों से मैं भी पूरे मस्ती मे आ चुकी थी. मैं भी जोर जोर से कराहने लगी.

मेरी आवाज़ सुनकर अमोल ने खिड़की की तरफ़ देखा तो हम दोनो की नज़रें मिल गयी. मेरी आंखें नशे मे मस्त और हवस से लाल थी. पति के जोरदार धक्कों से मेरी नंगी चूचियां उछल रही थी. मेरे दोनो तरफ़ ससुरजी, किशन और देवर नंगे खड़े थे और मेरी चूचियों को दबा रहे थे.

पर मैने अपनी नज़रें नही हटायी. एक तो मैं शराब के नशे मे थी. दूसरे मुझे अपने भाई के सामने चुदाकर बहुत कामुकता चढ़ गयी थी. अमोल की आखों मे आंखें डालकर मैं चुदवाती रही.

अमोल ने भी मेरी आंखों से आंखें नही हटायी. मुझे देखते हुए वह सासुमाँ को चोदता रहा. हम भाई-बहन एक दूसरे से नज़रें मिलाये हुए अपनी चुदाई मे लगे रहे. फिर मुझसे रहा नही गया और मैं मुस्कुरा दी. मुझे मुस्कुराते देखकर अमोल भी मुस्कुरा दिया और झेंपकर उसने अपनी नज़रें झुका ली.

उसके बाद वह सासुमाँ के होठों को पीते हुए उन्हे हुमच हुमचकर चोदने लगा.

कुछ देर की चुदाई के बाद सासुमाँ ने उसे जोर से जकड़ लिया और जोर जोर से कराहती हुई झड़ने लगी. अमोल भी और रुक नही सका. वह भी सासुमाँ की बुर मे अपना वीर्य गिराने लगा.

जब दोनो शांत हुए तो अमोल उठा और नीचे गिरे हुए अपने कपड़ों को पहनने लगा. उसका सर झुका हुआ था, पर बीच-बीच मे वह मेरी तरफ़ देख रहा था. मैं मुस्कुराकर उसे देखती हुई अपने पति से चुदवाये जा रही थी.

कपड़े पहनकर अमोल और सासुमाँ घर के अन्दर चले गये.

कुछ देर मे तुम्हारे भैया मुझे चोदते हुए झड़ गये और मैं भी खलास हो गयी.

जब हम सबकी हवस शांत हुई तो मैने कपड़े पहने और बाहर निकली.

अमोल का कहीं कुछ पता नही था. रसोई मे गयी तो सासुमाँ वहाँ बैठकर काम कर रही थी. उनके चेहरे पर बहुत तृप्ति थी, जैसे कोई मनचाही चीज़ उन्हे मिल गयी हो.

मुझे देखकर बोली, "बहु, तेरा भाई तो बहुत ही स्वादिष्ट माल है रे! तु भी जल्दी से उसे चखकर देख!"
"हाँ, माँ. आज रात ही चखती हूँ उसे!" बोलकर मैं काम मे लग गयी.

वीणा, उसके बाद भी बहुत कुछ हुआ, पर वह मैं अगले ख़त मे लिखूंगी. यह ख़त ऐसे ही बहुत बड़ा हो गया है!

तुम्हारी कलमुही भाभी

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10-08-2018, 01:18 PM,
#82
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मीना भाभी की चिट्ठी पढ़कर मुझे यह तो समझ मे आ गया कि उन लोगों ने मिलकर मेरे अमोल को कैसे भ्रष्ट किया था. पर मुझे बहुत उत्सुकता हो रही थी कि उन्होने आखिर अमोल को मुझसे शादी करने के लिये कैसे राज़ी किया.

इस बीच अमोल की भी एक प्यारी सी चिट्ठी आयी जिसे मैने कई बार पढ़ा और सम्भालकर रख दिया. फिर मैने उसे एक सुन्दर सा जवाब लिख भेजा.

भाभी की चिट्ठी अगले दिन आयी. मैं उसे अपने कमरे मे ले जाकर पढ़ने लगी.

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मेरी प्यारी वीणा,

आशा करती हूँ तुम्हे मेरा पिछला ख़त मिल गया है. पढ़कर तुम समझ गयी होगी कि हमे तुम्हारे लिये एक अच्छा वर ढूंढने के लिये कितने पापड़ बेलने पड़े! आज के ख़त मे मैं तुम्हे बताती हूँ मैने अपने भाई को तुमसे शादी करने के लिये कैसे राज़ी किया.

उस रात खाने की टेबल पर एक अजीब स्थिति थी. अमोल चुपचाप खाना खा रहा था और बीच-बीच मे मेरी तरफ़ देख रहा था. हमारी आंखें मिलने पर मैं मुस्कुरा देती थी और वह शरमा के अपनी आंखें नीची कर लेता था.

सब ने चुपचाप खाना खाया और अपने अपने कमरों मे चले गये. खाना खाते ही अमोल अपने कमरे मे चला गया और बत्ती बुझाकर सो गया.

रोज़ रात की तरह जब गुलाबी एक शराब की बोतल लेकर अमोल के कमरे मे जाने लगी तो मैने उसे रोक कर कहा, "गुलाबी, ला बोतल मुझे दे."
"काहे भाभी?"
"अरे दे ना!" मैने उसके हाथ से बोतल लेकर कहा, "आज अमोल के साथ मैं सो*ऊंगी."
"आप सोयेंगी? काहे? रोज तो अमोल भैया के साथ हमे सोते हैं." गुलाबी बोली.

"क्यों, अमोल तेरा मरद लगता है क्या?" मैने पूछा.
"पर ऊ तो आपके छोटे भाई हैं!"
"तो क्या हुआ? उसके पास लन्ड है. मेरे पास चूत है. आज उसका लन्ड मैं अपनी चूत मे लुंगी." मैने जवाब दिया.

"तो हमरा का होगा!" गुलाबी बोली, "हम तो सुबह से बइठे हैं अमोल भैया से चुदाने के लिये."
"आज रात किसी और से चुदवा ले." मैने कहा, "बाबूजी अकेले होंगे. आज उनके साथ सो जा."

"और हमरी सराब की बोतल?"
"वह मैं पी लुंगी." मैने कहा, "शराब पीकर अपने भाई से चुदवाऊंगी."
"पर भाभी, हमको भी तो पीनी है! हम अब रोज रात को सराब पीते हैं."
"और दिन मे भी पीती है. बेवड़ी कहीं की!" मैने कहा, "बाबूजी के कमरे मे एक बोतल होगी. तेरे बड़े भैया मेरे लिये लाये हैं. विलायती माल है. जा वही पी ले."

गुलाबी खुश होकर ससुरजी के कमरे में चली गयी तो मैने अमोल का कमरा धीरे से खोला और अन्दर गयी. मैने सिर्फ़ अपनी ब्लाउज़ और पेटीकोट पहनी हुई थी. आज साड़ी, ब्रा, या चड्डी नही पहनी थी.

कमरे मे अंधेरा था. मेरी आवाज़ सुनकर अमोल बोला, "गुलाबी, आ गयी तु? कब से लन्ड खड़ा करके इंतज़ार कर रहा हूँ!"

मैने कोई जवाब नही दिया और पलंग के पास रखे मेज़ पर शराब की बोतल रख दी.

"गुलाबी, बोतल इधर दे. थोड़ा गला तर कर लूं." अमोल बोला, "और बत्ती जला दे. ज़रा तेरी जवानी पर अपनी आंखें फेरूं."

मैने बत्ती नही जलायी. शराब की बोतल खोलकर चार-पांच घूंट पी गयी.

रामु न जाने अपनी बीवी को कौन सी शराब पिलाता है, पर पीकर मुझे लगा मेरे गले और सीने मे आग लग गयी है. खैर किसी तरह मेरा गले का जलना रुका तो मैं पलंग पर चढ़ गयी और अमोल के पास लेटकर उससे लिपट गयी.

मेरा भाई पूरा नंगा लेटा था. मैने उसके सीने पर हाथ फेरा फिर अपना हाथ नीचे ले जाकर उसके खड़े लन्ड को पकड़ लिया. साथ ही अपने होंठ उसके होठों पर रखकर उसके गहरे चुंबन लेने लगी. देसी शराब के नशे और चुदास मे मेरा जिस्म गोते लगाने लगा था. अपनी ही छोटे भाई के जवान, मर्दाने होठों को पीकर मेरी चूत से मस्ती का पानी चुने लगा.

"गुलाबी, तुझे आज हो क्या गया है? मैने कहा बोतल मुझे देना!" अमोल ने हैरान होकर पूछा. फिर मेरे होठों को थोड़ा पीकर बोला, "गुलाबी? तुम तो गुलाबी नही हो!"
"उंहूं!" मैने जवाब दिया.

अमोल ने मेरी चूचियों को हाथ से टटोला. फिर थोड़ा रुक कर बोला, "दीदी?"
"हूं!" मैने उसका लन्ड हिलाते हुए जवाब दिया.

अमोल झटके से मेरी बाहों से छुटकर लपका और पलंग से उतरकर उसने बत्ती जला दी.

मै एक ब्लाउज़ और पेटीकोट मे उसके बिस्तर पर लेटी मुस्कुरा रही थी. और वह ज़मीन पर पूरा नंगा खड़ा था. उसका मोटा लन्ड तनकर लहरा रहा था.

अमोल ने बिस्तर पर से चादर खींचकर अपने नंगेपन को ढकने की कोशिश की तो मैने उससे चादर छीन ली.

"भाई, ऐसा क्या मुझसे छुपा रहा है जो मैने देखा नही है?" मैने शरारत से पूछा "आज बगीचे मे सासुमाँ के ऊपर पूरा नंगा चढ़ा हुआ था, तब तो शरम नही आयी थी!"

"दीदी, तु मेरे कमरे मे क्या कर रही है?" उसने पूछा, "गुलाबी कहाँ है?"
"तेरी रखैल आज मेरे ससुरजी का बिस्तर गरम कर रही है." मैने कहा, "इसलिये मैने सोचा..आज तेरा बिस्तर मैं गरम किये देती हूँ."

"दीदी, क्या बक रही है तु?" अमोल ने कहा. उसका लन्ड अब भी फनफना रहा था. "तुने शराब पी रखी है?"
"हाँ, पी रखी है तो?" मैने मचलकर कहा, "रोज़ गुलाबी तेरे साथ शराब पीती है तब तो तु कुछ नही कहता!"
"वह घर की नौकरानी है. और तु घर की बहु. घर की बहुयें शराब नही पीती." अमोल ने कहा.
"भाई, घर की बहुयें अपने ससुर, देवर और नौकर के साथ नंगी होकर रंगरेलियां भी नही मनाती." मैने हंसकर कहा, "पर तेरी दीदी एक छटी हुई छिनाल है. सब कुछ करती है. तुने तो सब खिड़की से देखा है आज. फिर इतना हैरान क्यों हो रहा है?"

अमोल चुप रहा तो मैने पूछा, "क्यों भाई, मुझे मेरे यारों के साथ देखकर मज़ा नही आया?"
"मुझे तो देखकर अपनी आंखों पर विश्वास नही हो रहा था. दीदी, तु यह सब कैसे कर सकती है?" अमोल ने कहा.
"पर तुझे मज़ा तो बहुत आया होगा!" मैने कहा, "नही तो खुले बगीचे मे सासुमाँ की इतनी ठुकाई नही करता."

अमोल ने जवाब नही दिया तो मैने कहा, "अरे बता ना, भाई! तुझे अपनी दीदी की नंगी जवानी कैसी लगी?"

वह कुछ नही बोला तो मैने उठकर अपने ब्लाउज़ के हुक खोल दिये जिससे मेरी गोरी गोरी चूचियां छुटकर बाहर आ गई.
अपने नंगी चूचियों को अपने हाथों मे पकड़कर कहा, "यह देख. इन्ही मस्त चूचियों को मेरे ससुरजी पी रहे थे."

अमोल ने मेरी नंगी चूचियों को अच्छे से देखा. उसका लन्ड ठुमक रहा था.

वह बोला, "दीदी, यह कैसा घर है तेरा! मुझे तो कुछ समझ मे नही आ रहा है. तु अपने ससुर और देवर के साथ...और जीजाजी भी तेरे कुकर्मो को देखकर मज़ा लेते हैं! गुलाबी तो एक वेश्या से भी गिरी हुई है. और भी न जाने क्या क्या होता है तेरे घर मे!"
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10-08-2018, 01:18 PM,
#83
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैं अमोल के पास गयी और उसके हाथ को पकड़कर पलंग के पास ले आयी.

"अमोल, सब बातें खड़े-खड़े ही करेगा? आ जा बिस्तर पर लेटकर बातें करते हैं." मैने कहा.
"दीदी मेरे कपड़े दे." उसने कहा.
"अरे कपड़ों का क्या करेगा? रोज़ तो गुलाबी के साथ नंगा ही सोता है!" मैने कहा, "मै भी अपने कपड़े उतारकर ही सो*ऊंगी. तु एक काम कर. बत्ती बुझा दे और नाइट बल्ब जला दे."

अमोल ने बत्ती बुझा दी और नाइट बल्ब की हलकी नीली रोशनी कमरे मे छा गयी. फिर वह पलंग पर मेरे पास आकर बैठ गया.

"भाई, लेट जा इधर." मैने कहा तो अमोल मेरे बगल मे लेट गया और बोला, "पर दीदी, मुझे हाथ नही लगाना."
"क्यों रे? देख, मैं तो नंगा मर्द देखती हूँ तो खुद को रोक नही पाती हूँ. खासकर जब उसका ऐसा मोटा, मस्त लौड़ा हो." मैने कहा और उससे लिपट गयी. मेरी नंगी चूचियां उसके नंगे बदन से चिपक गयी.

अमोल ने कुछ नही कहा. बस गहरी सांसें लेने लगा. धुंधली रोशनी मे उसका लन्ड खड़ा होकर ठुमक रहा था.

मैने अमोल के नंगे सीने पर हाथ फेरते हुए कहा, "अमोल, अपनी दीदी को प्यार नही करेगा?"
"दीदी, मैं तेरा भाई हूँ!" अमोल ने कहा.
"तो क्या हुआ?" मैने पूछा और अपना हाथ नीचे ले जाकर उसके खड़े लन्ड को पकड़ लिया. मुझ पर शराब का अच्छा नशा चढ़ चुका था और मुझे अमोल के साथ खिलवाड़ करने मे बहुत मज़ा आ रहा था.

"भाई है तो क्या तु मर्द नही है? और मैं बहन हूँ तो क्या औरत नही हूँ?" मैने पूछा, "मैं तो भई बहुत गरम हो चुकी हूँ - और कहते हैं ना, गीली चूत का कोई इमान-धरम नही होता है. और तेरा औज़ार जैसे खड़ा है...उससे तो लग रहा है तेरा इमान-धरम भी डांवा-डोल हो रहा है! आजा, भाई. मौका भी है और घर के सबकी अनुमति भी है. जी भर के प्यार कर अपनी दीदी को! लूट अपनी दीदी की जवानी को!"

अमोल चुप रहा तो मैने उसके निप्पलों को मुंह मे लेकर चूसना शुरु किया. एक हाथ से उसके गरम लन्ड को हिलाना जारी रखा.

मैने उसके कान को जीभ से चाटकर कहा, "क्यों भाई, अपने लन्ड पर दीदी का कोमल हाथ कैसा लग रहा है?"

अमोल भारी आवाज़ मे बोला, "ओह, दीदी!"

अचानक वह मेरी तरफ़ मुड़ा और मुझे पीठ के बल लिटाकर मेरे ऊपर टूट पड़ा. अपने होंठ मेरे होठों पर रखकर मुझे आवेग मे चूमने लगा. उसके हाथ मेरी नंगी चूचियों को मसलने लगे. उसने अपना एक पाँव मेरी जांघ पर चढ़ा दिया और उसका खड़ा लन्ड मेरी जांघ पर रगड़ खाने लगा.

"बहुत जोश मे आ गया, अमोल?" मैने छेड़कर कहा.
"दीदी, तु एक रंडी है." उसने भारी चुंबनों के बीच कहा, "तेरे और गुलाबी जैसी लड़की मैने कभी नही देखी."
"और हमारे जैसा मज़ा भी कोई और औरत नही दे सकती." मैने कहा.

"गुलाबी को तो देख लिया." अमोल बोला, "अब तुझे चोदकर देखुंगा तु कितना मज़ा देती है."
"हाँ, भाई! चोद अपनी दीदी को!" मैने भी उसके लन्ड को पकड़कर हिलाते हुए कहा, "बहुत प्यासी है तेरी दीदी...चोद डाल उसे अपने लन्ड से! आह!! और दबा मेरी चूचियों को...मसल दे अपनी रंडी दीदी की चूचियों को! आह!! भाई, तु नही जानता तेरी दीदी की इन चूचियों को...कितने मर्दों मे पिया है और दबाया है! आह!! उम्म!! चूस मेरी चूचियों को!"

अमोल मेरी चूचियों को बेरहमी से दबाने और चूसने लगा. मैं अपने ही छोटे भाई के साथ संभोग मे डूबी, मस्ती के सातवें आसमान पर थी. उसके मोटे लन्ड को पकड़कर मैं हिलाने लगी और उसके बड़े बड़े गोटियों को उंगलियों से छेड़ने लगी. न जाने कितनी मलाई थी उसके गोटियों मे. मैं पहले से गर्भवती नही होती तो अमोल का वीर्य चूत मे लेकर ज़रूर गर्भवती हो जाती.

अमोल और मैं कुछ देर एक दूसरे के नंगे जिस्मों से खेलते रहे.

जब मुझसे और नही रहा गया मैने कहा, "भाई, अब चोद मुझे. मेरी चूत मे अपना लन्ड पेल दे!"

अमोल उठा और उसने मेरी कमर पर से पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया. फिर मेरी पेटीकोट को बलपूर्वक खींचकर मेरे पाँव से अलग कर दिया. अब मैं नीचे से नंगी हो गई. ऊपर मैने सिर्फ़ ब्लाउज़ पहन रखी थी जो सामने से खुली हुई थी.

अमोल बहुत जोश मे था. वह मेरे पैरों के बीच बैठ गया और उसने मेरे जांघों को चौड़ा कर दिया. फिर अपना खड़ा लन्ड मेरी फैली हुई चूत के बीच रखकर सुपाड़े को रगड़ने लगा.

वीणा, तब मैं सोचने लगी, यह मेरे सगे छोटे भाई का लन्ड है. अब तक जो हुआ सो हुआ. पर अब वह मेरी चूत मे अपना लन्ड पेलने वाला है. भाई बहन के बीच यह सब बहुत गलत है. ऐसा अनाचार करने पर हम दोनो को ही नरक मे जाना पड़ेगा! पर उस वक्त मुझे शराब का भी बहुत नशा चढ़ा हुआ था. और अमोल जैसे सुन्दर नौजवान के साथ चुम्मा-चाटी करके मैं बहुत चुदासी हो गयी थी. अपने ही भाई से चुदवाने की कल्पना करके मैं बहुत उत्तेजित भी हो रही थी.

जैसा कि हमेशा होता है, आखिर चुदास की ही जीत हुई. मैं अमोल से विनती करके बोली, "भाई, और मत सता अपने दीदी को! पेल दे मेरी चूत मे अपना लन्ड!"

अमोल भारी आवाज़ मे बोला, "दीदी!" और एक जोरदार धक्के से अपना लन्ड लगभग पूरा मेरी चूत मे पेल दिया.

वह मेरे ऊपर लेटकर मुझे चूमने लगा. मैं भी उसके नंगे बदन से लिपटकर उसे चूमने लगी. उसके पीठ पर और बालों मे अपने हाथ फेरने लगी.

मेरी चूत मे अपने ही भाई का लन्ड घुसा हुआ था. ऐसे कुकर्म की कल्पना मैने नही की थी. अपनी कमर उचका उचका कर मे उसका लन्ड अपने चूत के अन्दर बाहर करने लगी. अमोल भी कमर उठाकर मुझे चोदने लगा.

"कैसा लग रहा है अपनी दीदी को चोदकर, अमोल?" मैने पूछा.
"बहुत मज़ा आ रहा है, दीदी!" अमोल मुझे चूमकर बोला.
"मेरी चूत ज़्यादा मस्त है कि गुलाबी की?" मैने पूछा.
"सच कहूं?"
"हाँ. मैं बुरा नही मानुंगी."
"तेरी चूत गुलाबी से ढीली है. लगता है तु बहुत ज़्यादा चुदी हुई है."
"हाँ रे. तेरी दीदी बहुत चुदी हुई है." मैने उसका ठाप लेते हुए कहा, "एक तो तेरे जीजाजी बहुत चोदू हैं. ऊपर से तुने तो देखा, घर के सब मर्दों के लन्ड कितने मोटे है. सबके लन्ड ले लेकर मेरी यह हालत हुई है. गुलाबी तो अभी बच्ची है. ज़्यादा चुदी नही है."

अमोल सुनकर और उत्तेजित हो गया और जोर जोर से मुझे चोदने लगा.

कुछ देर चोदकर उसने पूछा, "दीदी, तु शादी के पहले से ही...चुदी हुई थी क्या?"
"नही रे, पर चुदवाने का बहुत मन करता था!" मैने कहा, "आनंद भैया के कमरे से...स्नेहा भाभी की मस्ती की आवाज़ें आती थी...तो मेरी चुदास से हालत खराब हो जाती थी...चूत मे उंगली कर कर के ठंडी होती थी."

अमोल चुप होकर कुछ देर मुझे चोदता रहा, तो मैने पूछा, "क्या रे अमोल, तु स्नेहा भाभी के बारे मे सोचने लगा क्या?"
"नहीं, दीदी." अमोल बोला और अपनी कमर हिलाता रहा.

"वैसे स्नेहा भाभी है बहुत सुन्दर. कैसी गदरायी हुई है. और कितनी सुन्दर, भरी भरी चूचियां है उसकी!" मैने उसे छेड़कर कहा, "आनन्द भैया को बहुत मज़ा देती होगी."
"दीदी, छोड़ यह सब." अमोल मुझे काटकर बोला, "तु घर के बाहर भी चुदवाई है क्या?"
"हाँ रे."
"बाहर किस किससे चुदवाती है तु?"
"अब नही चुदवाती...मौका नही मिलता." मैने अपनी कमर उचकाते हुए कहा, "पर सोनपुर मे चार-पांच लोगों से बहुत चुदवाई थी."
"क्या! चार पांच से?" अमोल चौंक कर बोला, "दीदी, तु तो बिलकुल ही गिरी हुई है!"

"अरे मेरा कसुर नही था." मैने सफ़ाई दी, "वीणा और मैं सोनपुर मे मेला देखने गये थे...मेले से चार बदमाशों ने हम दोनो को उठा लिया...और जंगल मे ले जाकर हमारा बलात्कार किया था."
"बलात्कार!"
"हाँ. पर हमें बहुत मज़ा आया था...जबरदस्ती की चुदाई मे." मैने कहा, "वहीं से यह सब शुरु हुआ."
"क्या सब?"
"यही...चुदाई की लत." मैने कहा. "अगले दिन उन बदमाशों ने घर पर आकर...हमारी फिर जम के चुदाई की...सासुमाँ भी उस रात चुदी थी. हमे इतना मज़ा आया कि अब बिना चुदवाये एक दिन भी नही रहा जाता."

अमोल कुछ देर मुझे चोदता रहा, फिर बोला, "दीदी, और किससे चुदाई है तु?"
"सोनपुर मे जिसके घर रुके थे...विश्वनाथजी...मै उनसे भी बहुत चुदवाती थी." मैने अमोल का ठाप लेते हुए कहा, "9-10 इंच का लौड़ा था उनका...उफ़्फ़! वीणा और मैं तो दिवाने थे उनके लन्ड के!"

"दीदी, यह वीणा कौन है?" अमोल ने पूछा.
"तु उसे नही जानता...रिश्ते मे मेरी ननद लगती है." मैने कहा, "तेरे जीजाजी की बुआ जो रतनपुर मे रहती है...उनकी बड़ी बेटी है."
"शादी-शुदा है?"
"नही, अभी शादी नही हुई है." मैने कहा, "क्यों, तुझे उससे शादी करनी है क्या?"
"नही तो." अमोल बोला, "मैने तो उसे देखा भी नही है."
"तुने वीणा को देखा होगा...मेरी शादी मे आयी थी." मैने अमोल का ठाप खाते हुए कहा, "लंबी, गोरी, दुबले बदन की लड़की है...बड़ी, बड़ी, काली आंखें हैं...उठी हुई कसी कसी चूचियां हैं...बहुत ही सुन्दर लड़की है...हर कोई मर्द नज़र भर भर के देखता है उसे."
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10-08-2018, 01:18 PM,
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RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
अमोल कुछ नही बोला. मेरे होठों को चूसते हुए मुझे पेलता रहा. उसके हाथ मेरी नंगी चूचियों को मसल रहे थे.

कुछ देर चुदवाकर मैने कहा, "पता नही तुझे वीणा पसंद आयेगी या नही...बहुत हंसमुख और मस्तानी है."
"इसमे क्या बुराई है?" अमोल ने पेलाई जारी रखते हुए कहा.
"कुछ नही...पर बहुत ही चुदक्कड़ लड़की है वीणा." मैने कहा, "सोनपुर मे मेरे साथ...वह भी बहुत चुदवाई थी...उन छह मर्दों से."
"छह? दीदी, तु तो बोली चार-पांच लोग थे?"
"मै ससुरजी को गिनना भुल गयी थी." मैने कहा, "वह भी अपनी भांजी...मतलब वीणा को...बहुत चोदते थे सोनपुर मे...तब तो वीणा नयी नयी चुदी थी...उसकी चूत एक दम कसी कसी रही होगी...सबको उसे चोदकर बहुत मज़ा आता था."

मुझे लगा अमोल की वासना थोड़ी और बढ़ गयी है.

"तु चोदेगा वीणा को?" मैने पूछा, "किसी से भी चुदवा लेती है वह...बिलकुल मेरी तरह है."
"क्यों नही? मिलेगी तो ज़रूर चोदुंगा." अमोल बोला, "मुझे चुदैल औरतें बहुत अच्छी लगती है...उनके नखरे कम होते हैं...उन्हे चोदने का सुख ज़्यादा होता है."

मुझे लगा हमारी बातचीत सही दिशा मे जा रही है. मैने कहा, "वीणा को भी खुले विचारों के चोदू मर्द पसंद है."
"खुले विचारों का मतलब?" अमोल ने मुझे पेलते हुए पूछा.
"मतलब...जो आदमी अपनी पत्नी को...अपने यारों के साथ मज़ा लेने से नही रोकता है...बल्कि अपनी पत्नी को...दूसरे मर्दों से चुदवाकर...मज़ा पाता है." मैने उसके जोरदार ठापों का आनंद लेते हुए कहा.
"हूं..." अमोल बोला और मुझे और जोर से चोदने लगा.

"क्यों भाई, तुझे ऐसी बीवी नही चाहिये क्या...जो तुझे शादी के बाद भी...जवानी का पूरा मज़ा लेने दे?" मैने पूछा.
"हाँ, दीदी. क्यों नही." अमोल बोला.
"तेरे जीजाजी को तो मैने पूरी छूट दे रखी है...वह गुलाबी को चोदते हैं...मै देखकर मज़ा लेती हूँ." मैने कहा, "उन्होने भी मुझे पूरी छूट दे रखी है..मै किसी से चुदवाती हूँ...तो वह देखकर मज़ा लेते हैं...मै तो अपनी शादी से बहुत खुश हूँ."
"पर दीदी, तेरे जैसी लड़की मिलती कहाँ है? सब तो जोगन और पुजारन होती हैं." अमोल हताश होकर बोला, "महीने मे एक बार चूत को सूंघने देगी. बाकी समय किसी और औरत पर नज़र डाली तो आंखें नोच लेगी. थू!"

उसकी बातें सुनकर मैं हंस दी. "भाई, ढूंढने से तो भगवान भी मिलता है...तु ऐसा क्यों नही करता...तु शहर मे जिन औरतों को चोदे फिरता है...उनमे से ही किसी से शादी कर ले!"

अमोल चुप रहा तो मैने कहा, "अमोल, तु इतना भोला तो नही है! जिस दक्षता से तु मुझे चोद रहा है उससे तो ज़ाहिर है तु बहुतों की चूत मार चुका है."
"मैं उनसे शादी नही कर सकता." अमोल बोला.
"क्यों?"
"एक मुसलमान लड़की है...जो अभी स्कूल मे पढ़ती है...दूसरी उसकी माँ है...तीसरी एक कामवाली है...बाकी सब शादी-शुदा भाभीयाँ हैं." अमोल ने खुलासा किया.
"ओहो! तो यह बात है!" मैने हंसकर कहा, "मेरा भाई तो बहुत ही...ऊंचे दर्जे का चोदू है....तेरे जीजाजी से कहती हूँ...तुझसे कुछ सीखे!"

अमोल ने कोई जवाब नही दिया. मेरे ऊपर से उठा और मेरे पैरों को पकड़कर मेरी चूत मे अपना लन्ड जोर जोर से पेलने लगा.

मेरी भी दशा बहुत अच्छी नही थी. मेरी सांसें उखड़ रही थी. शरीर पसीने से भीग चुका था. मज़े मे मैं तकिये पर अपने सर को पटकने लगी, बिस्तर के चादर को नोचने लगी.

"हाँ अमोल! और जोर से पेल मुझे! ऊंह!!" मैने कहा.
"ऊंघ!!" अमोल कराहा, "ले दीदी, मेरा लन्ड ले!"
"चोद मुझे, भाई! आह!! चोद अपनी दीदी को!"
"आह!! ऊंघ!! दीदी! मैं और रुक नही सकता! मेरा पानी...निकलने...वाला है!!"
"कोई बात नही, भाई! आह!! आह!! भर दे अपनी दीदी की चूत को अपने वीर्य से!"

"नही दीदी!" अमोल बोला.
"क्यो नही! ऊह!! भर दे मेरी चूत मे अपना पानी!"
"तेरा गर्भ ठहर जायेगा, दीदी!" अमोल मुझे जोर जोर से धक्के लगाता हुआ बोला.

मेरा पूरा शरीर उसके धक्कों से एक पुतले की तरह हिल रहा था.

"तु अपने गर्भ मे...अपने भाई का बच्चा...लेगी क्या!" अमोल ने कहा.
"हाँ...मै लेती, अमोल...तेरा बच्चा...अपने गर्भ मे...आह!! पर मेरा गर्भ...उम्म....पहले से ही...आह!! और पेल भाई! जोर जोर से पेल! मेरा गर्भ तो...पहले से ही....आह!! चुदवा-चुदवाकर....ठहर गया है....ओह!! उफ़्फ़!!" मैने उसके धक्कों के बीच मुश्किल से कहा.

"तु गर्भवती है?" अमोल बोला और उसकी आंखें और फड़क उठी.
"हाँ रे...पर बच्चे का बाप...कौन है....आह!! मुझे पता नही है रे! ऊह!! ऊंघ!"

अमोल मुझे पर टूट पड़ा और मुझे तबाड़-तोड़ चूमने लगा. अपनी कमर उचका उचका कर मुझे चोदता भी रहा. मैं भी उसे जकड़कर उसका साथ देने लगी और चूत मे उसके लन्ड के प्रहार का आनंद लेने लगी.

"दीदी...मुझे गर्भवती औरतों को...चोदने मे....बहुत मज़ा आता है...आह!! आह!! आह!!" अमोल मुझे ठोकते हुए बोला. "और तु तो मेरी बहन है....आह!! ! यह ले! यह ले! यह ले! आह!! आह!! आह!! आह!!"

अमोल मेरी चूत मे झड़ने लगा. उसका गाढ़ा वीर्य मेरी गहराईयों को भरने लगा. मेरे भाई का वीर्य! सोचकर ही मैं भी झड़ने लगी.

उसे कसकर पकड़कर मैं अपनी चूत उसके लन्ड पर दबाकर झड़ने लगी. मेरी चूत के स्नायु उसके मोटे लन्ड को कसकर जकड़ने लगे और पेलड़ उसकी मलाई निकालने लगे.

करीब दो मिनट तक मैं जोर जोर से कराहती, चिल्लाती, और झड़ती रही.

जब मैं शांत हुई तो देखा अमोल मेरे ऊपर पस्त होकर पड़ा है. मैने उसे जगया तो वह सरक कर नीचे उतर गया और मेरे बगल मे लेट गया.
अमोल और मैं कुछ देर धुंधली, नीली रोशनी मे लेटे रहे.

कुछ देर बाद अमोल ने पूछा, "दीदी, यह वीणा देखने मे कैसी है?"
"बहुत अच्छी है..."
"मेरा मतलब, तेरे पास उसकी कोई तस्वीर है?"
"मेरे कमरे मे होगी." मैने कहा, "ठहर, मैं लेकर आती हूँ."

बोलकर मैं नंगी ही बिस्तर से उतरी और बाहर जाने लगी. मेरे शरीर पर सिर्फ़ मेरी मुसड़ी हुई ब्लाउज़ थी को सामने से खुली थी.

मुझे जाते देखकर अमोल बोला, "अरे दीदी, तु नंगी कहाँ चल दी?"
"तो क्या हुआ?" मैने कहा, "सबको पता है मैं आज तुझसे चुदवा रही हूँ. और वह लोग भी तो अभी चुदाई मे लगे होंगे!"
"मतलब जीजाजी और गुलाबी?"
"गुलाबी तो मेरे ससुरजी से चुदवा रही है." मैने कहा.
"और जीजाजी? वह किसके साथ..." अमोल ने थोड़ा हैरान होकर पूछा.

मैने कहा, "भाई, तु खुद ही देख ले. तुझे समझाना मुश्किल होगा."

उत्सुक होकर अमोल पलंग से उतर आया. हम दोनो नंगे ही कमरे से निकले.
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10-08-2018, 01:18 PM,
#85
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मुझे शराब का काफ़ी नशा था और मैं डगमगा के चल रही थी. बाहर अंधेरा था, पर ससुरजी और मेरे कमरों से रोशनी आ रही थी.

पहले मैं अमोल को ससुरजी के कमरे मे ले गई. दरवाज़ा बंद तो था, पर उसके विभिन्न फांको से अन्दर देखा जा सकता था.

अन्दर गुलाबी ससुरजी और अपने पति रामु से चुदवा रही थी. जो विलायती शराब की बोतल मेरे पति ने मुझे सुबह दी थी, बेवड़ी ने पूरी खाली कर दी थी.

अमोल ने कुछ देर अन्दर देखा और कहा, "दीदी, तेरी सास नही दिख रही है..."
"दिखाती हूँ." मैने कहा, "पर देखकर हैरान मत होना. इस घर मे बहुत कुछ होता है. सब लोग खुले विचारों के हैं और हर तरह से चुदाई का मज़ा लेना पसंद करते हैं."

मै अमोल को अपने कमरे मे ले गयी. उसका दरवाज़ा भिड़ा हुआ था, पर बंद नही था. मैने एक नज़र अन्दर देखा और पाया कि तुम्हारी मामीजी अपने दोनो बेटों से चुदवा रही है.

अमोल ने अन्दर देखा तो चौंक कर बोला, "हे भगवान! जीजाजी और किशन अपनी ही माँ को चोद रहे हैं!"
"तुने भी तो अभी अभी अपनी सगी दीदी को चोदा है." मैने जवाब दिया. "तु रुक इधर, मैं अन्दर से वीणा की तस्वीर लेकर आती हूँ."

मैने ने दरवाज़ा खोला और नंगी ही अन्दर चली गयी.

मुझे देखकर मेरी सास मुस्कुराकर बोली, "क्या बहु, चुदवा ली अपने भाई से?"

मैने शरमाकर सर हिलाया और अपनी अलमारी मे तुम्हारी तवीर ढूंढने लगी.

तुम्हारे बलराम भैया अपनी माँ को पीछे से लेटकर चोद रहे थे. वह बोले, "मीना, तुम्हारा बहनचोद भाई किधर है?"
"बाहर खड़ा है." मैने अलमारी मे सामान हटाते हुए कहा.

"साले साहब, अन्दर आ जाओ!" तुम्हारे भैया पुकारे.
"मै नंगा हूँ, जीजाजी!" अमोल बोला.
"अरे हम सब यहाँ नंगे हैं." मेरे वह बोले, "अब तो तुम अपनी दीदी को चोदकर हमारे जैसे ही बन गये हो. तुम बहनचोद हो तो हम मादरचोद हैं. कोई फ़र्क नही है. आ जाओ अन्दर!"

अमोल थोड़ा लजाता हुआ अन्दर आया.

उसका लन्ड अन्दर का नज़ारा देखकर फिर से खड़ा हो गया था. ट्यूबलाईट की रोशनी मे उसका नौजवान, बलिष्ठ शरीर बहुत आकर्शक लग रहा था. वह खड़े होकर पलंग पर हो रही माँ और बेटों की घिनौनी चुदाई देखने लगा.

"अमोल बेटा, अच्छे से चोदे हो न अपनी दीदी को? बहुत गरम औरत है तुम्हारी दीदी. किसी से भी चुदवा लेती है." सासुमाँ बोली. वह किशन का लन्ड चूस रही थी.
"जी."
"आज रात उसके साथ ही सोओ. रात भर लूटो अपनी दीदी की जवानी को."
"जी."

मै अलमारी मे अपनी शादी के ऐलबम को ढूंढ रही थी. उसमे तुम्हारी तस्वीर थी, वीणा.

"साले साहब, कैसा लगा हमारा परिवार?" मेरे पति ने अपनी माँ के भरे भरे स्तनों को पीछे से मसलते हुए पूछा.
"बहुत अच्छा, जीजाजी." अमोल मुस्कुराकर बोला. वह अपना लन्ड पकड़कर सहला रहा था.
"चुदाई का भरपूर सुख है यहाँ, है ना?"
"जी, बहुत मज़ा है यहाँ."

"जब तुम्हारी शादी होगी, तो अपनी पत्नी को भी मज़ा लेना सिखा देना. फिर वह भी हम सबसे खुलकर चुदवायेगी." मेरे पति बोले.
"जी, जीजाजी. मैं भी यही चाहता हूँ."
"फिर देर किस बात की?" मेरे वह बोले. "लड़की तो तुम्हारे माँ-बाप ने पसंद कर ही ली है. जल्दी से उससे शादी कर लो और उसे हमारे हवाले कर दो. चोद चोदकर दो ही दिन मे हम उसे तुम्हारी दीदी की तरह रंडी बना देंगे!"

"मै उससे शादी नही कर रहा हूँ, जीजाजी." अमोल बोला, "वह तो ऐसी उबाऊ लड़की है कि मुझे भी अपनी चूत नही देगी."
"फिर किससे शादी करोगे?" सासुमाँ ने पूछा.
"अभी कुछ ठीक नही है...पर मेरे दिमाग मे है एक लड़की." अमोल बोला.

मुझे मेरी शादी की ऐलबम मिल गयी. मैने उसे उठाया और अमोल से कहा, "मिल गयी. चल अमोल, तेरे कमरे मे चलकर दिखाती हूँ."
"क्या मिल गयी, बहु?" सासुमाँ ने पूछा.
"वीणा की तस्वीर. कल सब बताऊंगी, माँ." मैने कहा और अमोल का हाथ पकड़कर बाहर ले आयी.

अमोल और मैं नंग-धड़ंग अपने कमरे मे चले आये.

मैने ऐलबम पलंग पर रखी और शराब की बोतल खोली. देसी दारु के चार-पांच घूंट बहुत मुश्किल से लिये और बोतल अमोल को दे दिया.

अमोल ने भी चार पांच घूंट पीये और बोतल लेकर पलंग पर चढ़ गया. मेरी शादी का ऐलबम खोलकर उसमे तसवीरें देखने लगा.

तीसरे ही पन्ने पर रुककर उसने मुझे एक फोटो दिखायी और पूछा, "दीदी, यही है क्या वीणा?"

मैने तस्वीर को देखा. वीणा, वाकई वह तुम्हारी ही तस्वीर थी.

मैने जवाब दिया, "हाँ, यही है वीणा. पर तु कैसे जानता है?"
"दीदी, मैं इसको कभी नही भूल सकता!" अमोल खुश होकर बोला, "मैने इसे बस एक बार तेरी शादी मे देखा था. तुने जब कहा कि वीणा लंबी, गोरी, बड़े बड़े नयनों वाली है - मैं समझ गया यह वीणा वही लड़की होगी."

मै हैरान होकर अपने भाई को देखने लगी.

"दीदी, उस दिन चमकीले लहंगे मे वह क्या क़यामत लग रही थी!" अमोल अपने खयालों मे खोया हुआ बोलने लगा, "और वह जो गाना हैं ना - ’आजा माहिया’ - उस पर सब लड़कियों के साथ नाची भी थी. सारे लड़के उसपर लट्टू हो रहे थे. और मुझे उसका नाम भी पता नही था. काश मुझे पता होता के वह तेरी ननद लगती है!"
"पता होता तो तु क्या करता?" मैने पूछा.
"उससे शादी कर लेता, दीदी!" अमोल बोला, "हाय, मैने ऐसी प्यारी लड़की ज़िंदगी मे नही देखी है!"

मेरी योजना को सफ़ल होते देखकर मुझे बहुत खुशी होने लगी!

मैने अमोल के खड़े लन्ड को पकड़ा और सहलाकर पूछा, "भाई, वीणा तुझे इतनी पसंद है?"
"बहुत, दीदी! बहुत पसंद है!" अमोल मेरी चूची को सहलाकर बोला.
"पर एक समस्या है..."
"क्या, दीदी? क्या वह किसी और से प्यार करती है?"
"नहीं, वह किसी से प्यार नही करती."
"फिर क्या समस्या है?"
"यही कि वीणा मेरी ही तरह एक छटी हुई चुदैल है." मैने जवाब दिया, "वह बहुत खेल खाई लड़की है, अमोल. बहुतों के लन्ड ले चुकी है. हर समय चूत मराये बिना उसे चैन नही पड़ता है. चुदास चढ़ती है तो उसे रिश्ते-नाते, दीन-धरम कुछ दिखाई नही देता है. किसी से भी, कहीं भी, वह चुदवा लेती है. और हाँ, वह शराब भी पीती है."

अमोल का लन्ड मेरी बात सुनकर मेरी मुट्ठी मे ठुमक उठा.

मेरी चूचियों को मसलते हुए अमोल बोला, "यह तो तु मुझे बता ही चुकी है. सोनपुर मे वह भी तेरे साथ बहुत चुदवाई थी."
"और तुझे कोई आपत्ती नही?"
"वीणा जैसी भी हो मुझे चाहिये, दीदी." अमोल ने हठ कर के कहा.

"एक और समस्या है..." उसे छेड़ने के लिये मैने रहस्यपूर्न ढंग कहा.
"क्या, दीदी?"
"वह अभी गर्भवती है."
"क्या!" अमोल चौंककर बोला.
"उसका गर्भ ठहर गया है." मैने कहा, "सोनपुर मे चुदवा-चुदवाकर मेरी तरह वह भी पेट से हो गयी है. और उसे नही पता बच्चे का बाप कौन है."

अमोल ने कुछ नही कहा, पर उसकी सांसें बहुत तेज चल रही थी. मेरी चूचियों को वह जोर जोर से मसल रहा था. मुझे लगा उसे बहुत ठरक चढ़ गयी है.

"क्यों, भाई. तु शादी करेगा ऐसी बदचलन, छिनाल, गर्भवती लड़की से?" मैने पूछा.
"दीदी, वीणा जैसी भी हो, मुझे चाहिये." अमोल बोला, "मुझे बीवी चाहिये जो बिलकुल तेरी तरह हो - बचलन, चुदक्कड़, रांड, वेश्या, कुलटा. मुझे पूरा यकीन है वीणा मुझे बहुत खुश रखेगी."
"पर तु क्या मेरी चुदक्कड़ ननद को खुश रख सकेगा?"
"हाँ दीदी. मैं भी उसे बहुत खुश रखूंगा." अमोल ने कहा, "मै उसे अपनी ज़िन्दगी जीने दूंगा. वह जिससे चुदवाना चाहे चुदवायेगी."

अमोल की बात सुनकर मैं इतनी खुश हुई कि मैने उसे गले से लगा लिया. उसको बिस्तर पर लिटाकर उसके नंगे बदन पर चढ़ गयी. अपनी नंगी चूत उसके खड़े लन्ड पर रगड़ने लगी और उसके गालों को चूमने लगी.

"अमोल, तुने अपनी दीदी को आज बहुत खुश कर दिया, भाई!" मैने कहा. "आजा, चोद अपनी दीदी को. अच्छे से चोद उसे! मैं कल ही पिताजी को ख़त लिख दूंगी. तु सब कुछ मुझ पर छोड़ दे. बस आज की रात अपनी दीदी को जी भर के चोद और उसकी प्यास बुझा दे!"

वीणा, उस रात हम भाई बहन बहुत देर तक चुदाई करते रहे. अमोल इतना खुश था कि सुबह उठकर उसने मुझे फिर चोदना शुरु कर दिया. जब गुलाबी चाय लेकर आयी तब भी वह मुझ पर चढ़कर मेरी चूत को मारे जा रहा था.

अगले दिन मैने तुम्हारे मामा और मामी को सब बातें खोलकर बताई. मैने तुम्हारी एक तस्वीर एक ख़त के साथ अपने पिताजी को भेजी. ससुरजी ने तुम्हारी एक तस्वीर और एक ख़त तुम्हारे पिताजी को भेजी. मेरे पिताजी ने तुरंत जवाब भेजा कि उन्हे तुम्हारी तस्वीर बहुत पसंद आयी है और वह तुम्हे देखना चाहते हैं. बाकी तो तुम सब जानती ही हो.

हाँ तो मेरी प्यारी ननद, यह थी मेरी कहानी. आशा करती हूँ तुम्हे पढ़कर मज़ा आया. अब मैं जाती हूँ तुम्हारे मामाजी से बात करने के लिये के किस तरह से तुम्हारी शादी मेरे भाई से जल्द से जल्द कराई जाये.

तुम्हारे जवाब का इंतज़ार रहेगा.

तुम्हारी मीना भाभी

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10-08-2018, 01:19 PM,
#86
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैं बहुत दिनो बाद घर से अकेली निकली थी. और वह लड़का देखने मे ठीक-ठाक था. उसे देखकर मेरा मन मचलने लगा. पर मैने बनावटी गुस्से से कहा "चुप करो! और हटो मेरे पास से!" 

वह हटा नही और उसका दुबला दोस्त मेरे दूसरी तरफ़ आकर बैठ गया. मैं उन दोनो के बीच फंस गयी.

मै चिल्ला सकती थी, पर मुझे एक रोमांच भी हो रहा था. घर से दूर अकेली, यहाँ मुझे कोई नही जानता था. मैं यहाँ कुछ ऐसा वैसा कर भी लूं तो किसी को क्या पता चलेगा? सोचकर मैं गुदगुदी से भर उठी.

"बोलो, छमिया. हमे अपना यार बनाओगी?" दुबला लड़का बोला.
"अपनी शकल देखी है आइने मे?" मैने जवाब दिया.
"गुरु, यह तो मेरी बेइज्जती कर रही है!" वह अपने दोस्त को बोला.
"चेले, तुझे तो तेरी भैंस भी अपना यार नही बनायेगी!" उसके दोस्त ने हंसकर कहा. फिर मेरे कमर मे हाथ डालकर बोला, "मै तो इतना बुरा नही हूँ देखने मे! मुझे अपना यार बना लो. बहुत मज़ा पाओगी."

"कौन सा मज़ा दोगे तुम?" मैने छिनाली करके पूछा. उसका हाथ अब मेरी बायें चूची को हलके से छू रहा था.
"जवानी का, मेरी जान. जवानी का मज़ा!" उसने खुश होकर कहा.
"तुम्हे कुछ आता भी है?" मैने छेड़कर पूछा, "शकल से तो भोंदू लगते हो."

"छमिया, गुरु अपने गाँव के हीरो हैं, हीरो! बहुत लड़कियों और भाभीयों को मज़ा दे चुके हैं." दुबला लड़का बोला, "गाँव के आधे बच्चों का बाप तो यही है."

सुनकर मैं हंस दी.

"गुरु" नाम का लड़का मेरी चूची तो थोड़ा सा दबाकर बोला, "तुम्हारी बातों से लगता है तुम काफ़ी खेल खायी हो. क्या कहती हो, थोड़ा मज़ा लोगी अभी?"
"अभी, यहाँ?" मैने पूछा.
"डिब्बे मे बहुत कम लोग हैं. कोई नही आयेगा यहाँ." गुरु बोला.
"देखो मुझे कोई जोखिम नही लेनी है." मैने कहा, "जो करना है ऊपर ऊपर से कर लो."

गुरु खुश हो गया और मेरी कमीज़ के ऊपर से मेरी दोनो चूचियों को दबाने लगा.

मै तो पहले से ही बहुत कामुक स्थिती मे थी. एक अनजान मर्द के सख्त हाथों से अपनी चूची दबवा कर मुझे बहुत सुख मिलने लगा. जल्दी ही मैं मस्ती की आवाज़ें निकालने लगी.

गुरु ने अपने होंठ मेरे होठों पर रखा तो मैं मज़े लेकर उसे चूमने लगी. उसके मुंह से बीड़ी की महक आ रही थी, पर उस वक्त मर्द का साथ पाने के लिये मैं पागल होने लगी थी.

गुरु ने थोड़ी हिम्मत करके मेरे कमीज़ के अन्दर हाथ डाल दी. मैने उसे मना नही किया. उसने मेरे ब्रा को खींचकर ऊपर उठाया और मेरे चूचियों को अपने हाथों से मसलने लगा. मेरा मज़ा दुगुना हो गया. मैं उससे चूची मिसवाते हुए उसके होंठ पीने लगी.

तभी मुझे लगा कोई मेरी सलवार के नाड़े को खींच रहा है. मुड़कर देखा तो पाया वह दुबला लड़का मेरी सलवार को उतारने की कोशिश कर रहा है.

"यह क्या कर रहे हो तुम!" मैने उसका हाथ हटाकर पूछा.
"छमिया, तुम्हारी चूत देखने की कोशिश कर रहा हूँ." वह बोला.
"हाथ मत लगाओ मुझे!" मैने उसे डांटकर कहा.

"अरे छोड़ो न उसे! बेचारे को भी थोड़ा मज़ा लेने दो ना!" गुरु बोला और मुझे फिर से चूमने लगा. उसने मुझे इतना कसकर पकड़ रखा था कि मैं हिल भी नही पा रही थी.

दुबले लड़के ने मेरी सलवार मेरे पाँव तक उतार दी और मेरी चड्डी भी मेरे घुटनों तक उतार दी. फिर मेरे जांघों को फैलाकर मेरी नंगी चूत को सहलाने लगा.

"गुरु! क्या मस्त चूत है छमिया की!" वह बोला, "एक भी बाल नही है. बिदेसी रंडी की तरह सफ़ा चट चूत है इसकी."
"क्यों लड़की, किसी से चुदवाने जा रही हो?" उसका दोस्त बोला, "चूत तो वही लड़कियाँ साफ़ रखती हैं जो बहुत चुदवाती हैं."

मैने जवाब नही दिया, पर अपना हाथ उसके पैंट पर रखकर उसके लन्ड को दबाने लगी.

उसने अपने पैंट की ज़िप खोली और अपना लन्ड बाहर निकाल लिया. मैने उसके लन्ड को पकड़ा और हिलाने लगी.

उसका लन्ड बहुत बड़ा नही था. शायद 6 इंच का रहा होगा. मोटाई ठीक-ठाक थी. पर उस वक्त मुझे बहुत ही चुदास चढ़ चुकी थी.

दुबला लड़का मेरी गीली चूत को सहलाये जा रहा था. अचानक उसने मेरा दूसरा हाथ पकड़ा और अपने लन्ड पर रखा. मैने मुड़कर देखा, तो हैरान रह गयी. देखने मे वह दुबला था पर उसका लन्ड 7-8 इंच का था और काफ़ी मोटा था.

"क्यों लड़की, मेरे दोस्त का लन्ड पसंद आया?" गुरु ने पूछा. उसका हाथ अब भी मेरी कमीज़ के अन्दर मेरी चूचियों को दबा रहा था. "देखने मे मेरा दोस्त बहुत सुन्दर नही है. पर गाँव की भाभीयाँ उसके लन्ड पर मरती है. गाँव के आधे बच्चो का बाप यह है, मैं नही."

मैं दोनो के गरम लन्डों को पकड़कर हिलाने लगी. मेरी मुट्ठी मे उनके लन्ड ताव खा रहे थे. जी कर रहा था बारी-बारी उनके लन्डो को चूसूं.

तभी दो गाँव के किसान हमारे कुपे के पास से गुज़रे.

हम तीनो को व्यभिचार मे लगे देखकर एक बोला, "क्या ज़माना आ गया है, यार! यह लड़के रंडियां लेकर ट्रेन मे चढ़ते हैं और यहीं मुंह काला करते हैं."
दूसरा किसान गुस्से से बोला, "हरामज़ादों! रंडीबाज़ी करने की और कोई जगह नही मिली? उतरो ट्रेन से वर्ना अभी पुलिस बुलाता हूँ!"

"काका, अभी चलती ट्रेन से कैसे उतरें?" दुबल लड़का बोला, "अगले स्टेशन पर उतर जायेंगे!"
"मै कहता हूँ अभी उठो यहाँ से!" वह किसान अपनी लाठी दिखाकर बोला, "अपनी गंदी रंडी को लेकर दरावाज़े के पास जाओ! और स्टेशन आते ही उतर जाओ!"

किसान के गुस्से को देखकर दोनो दोस्त चुप हो गये. उन्होने अपनी पैंटों के ज़िप लगा लिये और मैने भी अपनी सलवार उठाकर पहन ली. यह दोनो किसान मुझे एक वेश्या समझ रहे थे. सोचकर मुझे बहुत उत्तेजना होने लगी.

हम तीनो ट्रेन के सिरे पर टॉयलेट के पास चले गये और दरवाज़े के पास खड़े हो गये. वहाँ कोई नही था. दरवाज़ा खुला था और उससे तेज़ हवा आ रही थी.

गुरु फिर से मेरी कमीज़ के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाने लगा. मुझे अब उससे चुदवाने का बहुत मन कर रहा था, पर यहाँ तो चुदाई सम्भव नही था.

"अब क्या फ़ायदा!" मैने कहा, "अगले स्टेशन पर वह किसान आ जायेगा और हमे ट्रेन से उतार देगा!"
"कोई बात नही, लड़की." गुरु बोला, "हम तुझे किसी खेत मे ले जायेंगे और मज़ा देंगे."
"मै नही जा सकती." मैने कहा, "हाज़िपुर मे कोई मेरी प्रतीक्षा कर रहा है. जो करना है अभी कर लो."

तभी ट्रेन धीमी होकर रुक गयी.

दुबला लड़का बोला, "गुरु, वह किसान इधर आ रहा है. लगता है हमे उतरना ही पड़ेगा! चल दूसरे डिब्बे मे चलते हैं."
"यह तो कोई स्टेशन भी नही है." मैने कहा, "तुम लोग उतर जाओ. मैं यहाँ नही उतर सकती!"
"तुझे चोदे बिना हम नही उतर रहे हैं!" गुरु दृड़ता से बोला.

पीछे से उस किसान की आवाज़ आयी, "हराम के जनों! अभी तक नही उतरे ट्रेन से! ठहरो दिखता हूँ!"

मै डरकर एक टॉयलेट मे घुस गयी.

मै दरवाज़ा बंद कर ही रही थी कि दुबला लड़का भी टॉयलेट मे घुस आया. और उसके बाद उसका दोस्त भी अन्दर आ गया. उसने टॉयलेट का दरवाज़ा अन्दर से बंद कर दिया.

टॉयलेट के अन्दर जगह बहुत कम थी. हम तीनो एक दूसरे से चिपक कर सांस रोके खड़े रहे.

वह किसान टॉयलेट के पास आया और हमे न देखकर बड़बड़ाने लगा. ट्रेन फिर से चल पड़ी.

मुझे डर के साथ हंसी भी आ रही थी. मैं दोनो लड़कों के बीच पिचक कर खड़ी थी.

तभी पीछे से गुरु ने मेरी चूची को कमीज़ के ऊपर से मसलना शुरु कर दिया और अपना खड़ा लन्ड मेरी चूतड़ पर दबाना शुरु किया. दुबले लड़के ने मुझे पकड़कर मेरे होंठ पीने शुरु कर दिये. अब मैं भी आवेग मे उसको चूमने लगी.

"छमिया, बहुत मस्त होंठ है रे तेरे!" दुबला लड़का बोला.
"और क्या चूचियां हैं, भगवान कसम!" उसके दोस्त ने कहा.
"तो खोलकर देख लो!" मैने जवाब दिया. मुझे बहुत ही मस्ती चढ़ रही थी इन दो मर्दों के बीच फंसकर.

गुरु ने मेरी कमीज़ ऊपर उठायी और मेरे हाथों से अलग कर दी. फिर उसने मेरी छोटी शमीज उतारी. मैने अपने हाथ पीछे ले लिये और अपनी ब्रा भी उतार दी. अब मैं ऊपर से पूरी नंगी हो गयी.

अब गुरु मेरे कंधों और गले को चूमने लगा और पीछे से मेरी नंगी चूचियों को जोर जोर से मसलने लगा. मैं मस्ती मे सित्कारने लगी. दुबला लड़का मेरी कमर को पकड़कर मेरे होठों को पी रहा था.

"हाय राजा! और जोर से मसलो मेरी चूची को!" मैं सित्कार के बोली, "उफ़्फ़! क्या मस्ती चढ़ी है!"
"अभी तो तुझे हम दोनो चोदेंगे." गुरु बोला, "तब देखना कैसा मज़ा मिलता है."
"तो चोद डालो ना! देर क्यों कर रहे हो?" मैं बोली, "अब रहा नही जा रहा!"

दुबले लड़के ने मेरी सलवार खोल दी और मेरे पैरों से अलग कर दी. फिर मेरी चड्डी उतार दी जिससे मैं पूरी नंगी हो गयी.

मै अपने नंगे चूतड़ गुरु के पैंट पर रगड़ने लगी. "अरे, तुम अपना लौड़ा तो निकालो!" मैं बोली.

गुरु ने अपनी पैंट खोलकर लटका दी. उसने चड्डी नही पहनी थी. उसने मुझे सामने की तरफ़ अपने दोस्त के सहारे झुका दिया और अपना सुपाड़ा मेरी चूत पर रगड़ने लगा.

"उफ़्फ़! और सताओ मत! पेल दो अन्दर!" मैं अधीर होकर बोली.

उसने मेरी कमर पकड़कर मेरी चूत मे अपना लन्ड घुसा दिया. लन्ड बहुत लंबा या मोटा नही था, पर मुझे बहुत ही सुखद अनुभूति हो रही थी. वह मेरे पीठ को अपने सीने से लगाकर मुझे चोदने लगा.
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10-08-2018, 01:19 PM,
#87
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मुझे याद आया कि मेरी मामी भी इसी तरह ट्रेन के टॉयलेट मे विश्वनाथजी से चुदवाई थी. सोचकर मैं और भी रोमांच से भर उठी.

सामने से दुबला लड़का मुझे चुम रहा था और मेरी चूचियों को दबा रहा था. मेरे थोड़े से फूले हुए पेट पर हाथ लगाकर बोला, "छमिया, तु पेट से है क्या?"
"तुम्हे कैसे पता?" मैने पूछा.
"मैने बहुत सी भाभीयों का पेट बनाया है." वह कुटिल मुसकान के साथ बोला, "मैने देखकर ही समझ जाता हूँ."
"ठीक ही समझे हो." मैने जवाब दिया.
"किससे बनवाया है तुने अपना पेट?" उसने मेरे निप्पलों को चुटकी मे लेकर मींजकर पूछा.
"आह!! पता नही! तुम जैसा ही कोई होगा!" मैने सित्कार के जवाब दिया.
"बहुत बड़ी चुदैल लगती है तु!" बोलकर वह आवेग मे मेरे होठों को चूसने लगा.

ट्रेन पूरे रफ़्तार से चल रही थी और डोल रही थी. गुरु अपनी कमर हिला हिलाकर मुझे चोदे जा रहा था.

"हाय, मेरे राजा! और जोर से चोदो! आह!! क्या मज़ा आ रहा है!" मैं मस्ती मे बोलने लगी.
गुरु "ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ!" करके मुझे पीछे से ठोकता रहा.

बाहर से किसी ने टॉयलेट के दरवाज़े को खोलने की कोशिश की. दुबले लड़के ने आवाज़ दी, "खाली नही है!"
"तो जल्दी निकलो ना!" बाहर से एक आदमी की आवाज़ आयी.

मै मस्ती मे कराह रही थी, "उम्म! उफ़्फ़!! आह!! कितने दिनो बाद चूत को लन्ड मिली है! आह!!" पर पटरी पर ट्रेन की जोर की आवाज़ के कारण मेरी मस्ती की आवाज़ें दब जा रही थी.

तभी गुरु मुझे जोर जोर से पेलने लगा और आह!! आह!! करने लगा.

"तुम्हारा हो गया क्या?" मैने निराश होकर पूछा.
"तेरी चूत इतनी कसी है! मेरा तो पानी छूट रहा है!" वह बोला.
"मेरा अभी हुआ नही है!" मैने कहा.
"मेरा दोस्त है ना...आह!! आह!! आह!! आह!!" कहते हुए वह मेरी चूत मे झड़ने लगा.

झड़ने के बाद गुरु मेरी पीठ अपने सीने से लगाये, मेरी चूत मे लन्ड ठांसे कुछ देर खड़ा रहा.

फिर उसका दोस्त बोला, "गुरु, अब मुझे चोदने दो!" उसने अपनी पैंट उतारकर दरवाज़े पर लटका दी थी और उसका मोटा, लंबा लन्ड तनकर खड़ा था.

गुरु ने मेरी चूत से अपना लन्ड निकाल लिया तो उसका वीर्य मेरे जांघों पर बहने लगा.

मैने अपनी गांड दुबले लड़के की तरफ़ की और गुरु को पकड़कर झुक गयी. दुबले लड़के ने अपना लन्ड मेरी चूत पर दबाया और कुशलता पुर्वक पूरा अन्दर घुसा दिया. उसके मोटे लन्ड से मेरी चूत चौड़ी हो गयी. मैं जोर से आह!! कर उठी और बोली, "पेलो मुझे अच्छे से! मैं झड़ने वाली हूँ!"

दुबला लड़का मुझे जोर जोर से चोदने लगा. अपना लंबा लन्ड मेरी चूत मे अन्दर बाहर करने लगा. उसकी चुदाई मे और भी मज़ा था. मैं गुरु को पकड़कर मस्ती मे बड़बड़ाने लगी और झड़ने लगी.

बाहर से कोई दरवाज़े को खटखटाने लगा और बोला, "तुम्हारा हुआ कि नही?"
"अबे बोला ना खाली नही है!" दुबला लड़का चिल्ला के बोला.
"साले, इतनी देर से अन्दर रंडी चोद रहा है क्या?" वह आदमी बोला.
"तेरी बहन को चोद रहा हूँ. आ देख ले!" दुबले लड़के ने चिल्लाकर जवाब दिया.

सुनकर मैं खिलखिला कर हंस दी.

दुबला लड़का एक मन से मुझे चोद रहा था. बीच-बीच मे ट्रेन रुक रही थी. लोग चढ़ रहे थे और उतर रहे थे. कोई टॉयलेट को खोलने की कोशिश करता फिर निराश होकर चला जाता. दुबले लड़के की चुदाई से मैं एक और बार झड़ गयी थी और बहुत थक भी गयी थी. पर वह गहरी सांसें ले लेकर मुझे चोदे जा रहा था.

उसका दोस्त खिड़की से बाहर देखकर बोला, "10 मिनट मे हाज़िपुर आने वाला है."

मै घबरा कर बोली, "तुम्हारा हुआ कि नही? मुझे हाज़िपुर मे उतरना है!"
"ठहर ना!" दुबला लड़का बोला, "तुझे इत्मिनान से चोद तो लूं...तेरी जैसी सुन्दर लड़की मुझे फिर कभी चोदने को नही मिलेगी."
"भगवान के लिये जल्दी करो!" मैं गिड़गिड़ायी.

पर वह बिना जल्दी किये मेरी कमर पकड़कर मुझे पेलता रहा.

गुरु ने तरस खाकर मुझे मेरी ब्रा पहना दी. फिर मुझे मेरी शमीज और फिर मेरी कमीज़ पहना दी. फिर अपने दोस्त को बोला, "यार, बस कर. बेचारी परेशान हो रही है."

दुबला लड़का जोर जोर से मेरी चूत मे अपना लंबा, मोटा लन्ड पेलने लगा और कराहने लगा. मुझे अब इतना डर लग रहा था कि मुझे बिलकुल भी मज़ा नही आ रहा था.

ट्रेन की रफ़्तार धीमी होने लगी.

"बस भी करो!" मैं चिल्लायी, "हाज़िपुर स्टेशन बस आने ही वाला है!"
"हाँ साली, निकाल रहा हूँ!" दुबला लड़का बोला, "गाँव मे जब किसी भाभी को चोदता हूँ तो कोई बस करने को नही कहती. तु साली मज़ा खराब कर रही है."

मै घबराहट मे रोने लगी.

ट्रेन स्टेशन मे घुसने को थी तब वह लड़का मेरी चूत की गहराई मे अपना लन्ड घुसाकर अपना वीर्य गिराने लगा. करीब 20 सेकंड तक मेरे अन्दर झड़कर वह अलग हुआ पर मुझे लगा न जाने कितना समय लगा रहा है.

उसने लन्ड निकाला नही कि मैने जल्दी से अपनी चड्डी और सलवार पहन ली. उसका वीर्य मेरी चूत से निकलकर मेरी चड्डी को गीला करने लगा. पर मेरे पास यह सब देखने का समय नही था. ट्रेन हाज़िपुर स्टेशन पर रुक चुकी थी.

मैं जल्दी से टॉयलेट से निकली तो सामने एक आदमी को देखा. वह टॉयलेट मे घुसने लगा तो अन्दर से दुबले लड़के की आवाज़ आयी, "खाली नही है!"
वह आदमी हक्का बक्का होकर मुझे देखने लगा.

मै भागकर अपने कुपे मे गयी और ऊपर से अपना सूटकेस उतारकर डिब्बे से निकली. और स्टेशन पर उतरते ही भीड़ मे खो गयी.

स्टेशन के बाहर अमोल मेरा इंतज़ार कर रहा था. उसे देखते ही मैं भागकर उसे लिपट गयी.

"अमोल, तुम कब आये?" मैने पूछा.
"तुम्हारा ख़त मिलते ही मैं हाज़िपुर आ गया था." अमोल बोला.
"अच्छा किये. तुम नही जानते मैं तुमसे मिलने के लिये कितनी तरस रही थी." मैने कहा.

उसने मेरा सूटकेस उठा लिया और मेरे कमर मे हाथ डालकर चल पड़ा. आते जाते लोग हमारे इस प्यार को निन्दा की नज़रों से देख रहे थे. पर मुझे क्या गम! मुझे तो मेरा अमोल मिल गया था.

हम एक तांगे मे बैठकर घर की तरफ़ चल दिये.

तांगे मे बैठते ही अमोल ने मेरे होठों को हलके से चूमा और बोला, "वीणा, काफ़ी तंदुरुस्त लग रही हो?"
"तंदुरुस्त नही, गर्भवती लग रही हूँ." मैने कहा, "और कुछ दिनो मे मेरे गाँव मे ढिंडोरा पिट जाता कि मैने न जाने किससे मुंह काला करवा लिया है. अब जल्दी से मुझे अपने उस डाक्टर के पास ले चलो और मेरा गर्भ गिरा दो."
"ले चलूंगा, जान." अमोल बोला, "अब तुम यहाँ आ गयी हो. कुछ दिन मज़े करो. शादी से पहले ही तुम्हारा गर्भ गिरवा दूंगा."

मैं खुश होकर उससे लिपटकर तांगे मे बैठी रही.

तांगा जल्दी ही हाज़िपुर शहर छोड़कर गाँव की तरफ़ बढ़ने लगा. यहाँ चारो तरफ़ खेत ही खेत थे जिसमे फ़सल लहरा रहे थे.

"अमोल, तुम ने तो मेरे पीछे बहुत मज़ा लिया होगा?" मैने पूछा.
"हाँ, लिया तो है." अमोल बोला, "गुलाबी, दीदी, और दीदी की सास - सबके साथ कुछ दिनो से मज़े कर रहा हूँ. तुम्हे सुनकर बुरा तो नही लगा?"
"नही तो!" मैं बोली, "जवान आदमी हो. अभी औरतों का भोग नही करोगे तो कब करोगे?"
"कितनी समझदार हो तुम!" अमोल मुझे चूमकर बोला, "मेरे पीछे क्या तुम ने कोई बदमाशी की?"
"नही, अमोल. अपने गाँव मे तो बदनामी के डर से कुछ नही कर सकती," मैने कहा, "पर आज ट्रेन मे ज़रूर कुछ किया था."

अमोल उत्सुक होकर मुस्कुराया और बोला, "ट्रेन मे?"
"हाँ. आते समय दो लड़के मिले थे. एक गुरु और एक चेला." मैने कहा, "मुझे छेड़ने लगे तो मैने उन्हे खुली छूट दे दी."
"फिर?"
"मै उन्हे ट्रेन के टॉयलेट मे ले गयी. दोनो ने वहाँ मुझे नंगी करके बहुत चोदा."

"उफ़्फ़! कैसे कर ली तु यह सब?" अमोल उत्तेजित होकर बोला.

"मै बहुत चुदासी हो गयी थी, अमोल!" मैने कहा, "तुम्हे सुनकर बुरा तो नही लगा?"
"नही, मेरी जान!" अमोल मुझे चूमकर बोला, "यही तो उम्र है तुम्हारी अलग अलग मर्दों का भोग करने की. वैसे कौन सा इत्र लगाकर निकली हो?"
"क्यों?"
"तुम्हारे कपड़े महक रहे हैं." अमोल शरारत से बोला.
"बदमाश कहीं के! इतने भोले मत बनो!" मैने उसे कोहनी मारी और कहा, "मेरी चूत चू रही है - उन दोनो लड़कों के वीर्य से."

अमोल ठहाका लगाकर हंस दिया. पर उसकी आंखें उत्तेजना से लाल हो रही थी. उसकी होने वाली पत्नी ट्रेन मे दो अनजान लड़कों से चुदवाकर उनका वीर्य अपनी चूत मे भरकर आयी है, सोचकर उसका लन्ड पत्थर की तरह सख्त हो गया था.

जल्दी ही हम मामाजी के घर पहुंच गये.

मामाजी का घर गाँव से थोड़ा हटकर उनके खेतों के बीच है. मैं यहाँ बचपन से आती रही थी, पर मुझे आज लगा कि घर कितने एकांत मे बना था! अन्दर जिस तरह के कुकर्म होते थे गाँव वालों को खबर ही नही हो सकती थी.

तांगे की आवाज़ सुनकर मामाजी घर से बाहर निकले. मुझे देखकर बोले, "वीणा बिटिया! तु आ गयी!"

मैं तांगे से उतरी और भागकर उनसे लिपट गयी.

उन्होने मेरे गालों को चूमा और कहा, "आने मे कोई परेशानी तो नही हुई?"
"नही मामाजी. बहुत मज़े करती हुई आयी हूँ." मैने अमोल को आंख मारी और कहा.
"चल, अन्दर चल. सब इंतज़ार कर रहे हैं." मामाजी बोले, "तेरे लिये एक तोहफ़ा भी है."
"तोहफ़ा? क्या, मामाजी?" मैने उत्सुक होकर पूछा.
"अन्दर चलकर खुद ही देख ले!" मामाजी बोले, "अमोल, वीणा बिटिया की सूटकेस अपने कमरे मे रख दो."

मै मामाजी के बाहों मे लिपटकर घर मे दाखिल हुई.

बैठक मे सोफ़े पर एक लंबे-चौड़े, अधेड़ उम्र के श्रीमान बैठे हुए थे. सांवला रंग, सर पर कच्चे-पक्के बाल, नाक के तले घनी मूंछें. उन्हे देखते ही मैं चिल्ला पड़ी, "विश्वनाथजी! आप यहाँ?"

विश्वनाथजी हंसे और उठकर मेरे पास आये. मुझे अपने ताकतवर बाहों मे भरकर उन्होने मेरे होठों को चूमा और कहा, "सुना तेरी शादी होने वाली है. मैने सोचा इससे पहले कि तु परायी हो जाये तुझे आखरी बार के लिये चख लेता हूँ."
"विश्वनाथजी, आप मुझे शादी के बाद भी जी भर के चख सकते हैं!" मैने इठलाकर कहा, "कब आये आप?"
"बस अभी कुछ देर पहले पहुंचा हूँ." विश्वनाथजी बोले.

"बिटिया, मैने सोचा कि हम सब लोग एक जगह एकत्रित हो ही रहे हैं तो विश्वनाथ को भी बुला लेते हैं." मामाजी बोले, "बलराम को इससे मिलने की बहुत इच्छा थी. आखिर इस सबकी शुरुआत तो सोनपुर मे विश्वनाथ के घर से ही हुई थी."

सुनकर विश्वनाथजी जोर से हंस पड़े. "ठीक कहते हो गिरिधर! तुम्हारी भांजी, बहु और बीवी सोनपुर जाकर ही तो इतनी मस्तानी हुई हैं. याद है, तुम्हारे आने के पिछले दिन कैसी मस्त दावत हुई थी?"
"याद है, विश्वनाथ, याद है." मामाजी बोले, "आज शाम भी एक दावत करेंगे. हमारे होने वाले जमाई ने ऐसी दावत देखी नही है."
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10-08-2018, 01:19 PM,
#88
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
तभी एक सांवली सी लड़की ट्रे पर एक शराब की बोतल और दो गिलास लेकर आयी. उम्र कुछ 18-19 की लग रही थी. उसने घुटने तक घाघरा और चोली पहना हुआ था. हाथ मे कांच की चूड़ियाँ, पाँव मे चांदी की पायल, गले मे मंगलसूत्र, और माथे पर सिंदूर था. कद थोड़ा छोटा था और पेट थोड़ा फूला हुआ था, पर देखने मे काफ़ी आकर्शक लग रही थी.

उसने विश्वनाथजी के सामने गिलास रखी और उसमे शराब, सोडा, और बरफ़ मिलाई.

"लो विश्वनाथ, थोड़ा गला तर कर लो." मामाजी बोले, "तुम्हारे पसंद की विस्की है."

विश्वनाथजी उस लड़की को लंपट नज़रों से ऊपर से नीचे तक देखे जा रहे थे. वह एक घूंट लेकर बोले, "गिरिधर, विस्की तो बहुत अच्छी है, पर यह लड़की कौन है?"
"यार, यह मेरे घर की नौकरानी है - गुलाबी." मामाजी बोले, "यह भी तुम्हारे पसंद की ही है."

"मामाजी, तो यही है गुलाबी!" मैं बोल पड़ी, "भाभी के मुंह से बहुत तारीफ़ सुनी है इसकी."

गुलाबी शर्म से सर झुकाकर खड़ी रही.

मामाजी बोले, "गुलाबी, यह वीणा दीदी है. तेरी भाभी की ननद और मेरी भांजी. इससे शरमाने की ज़रूरत नही है. यह तेरे बारे मे सब कुछ जानती है."

गुलाबी ने मुझे नमस्ते किया.

मामाजी बोले, "विश्वनाथ, हाथ लगाकर देखो. लड़की बहुत खेल खायी है."

विश्वनाथजी ने गुलाबी का हाथ पकड़ा और कहा, "इधर आ लड़की. शादी-शुदा है तु?"
"जी, साहेब."
"तेरा मरद कहाँ है?"
"ऊ बाजार गये हैं." गुलाबी ने जवाब दिया.
"बहुत किस्मत वाला है तेरा मरद." विश्वनाथजी ने कहा और गुलाबी के भरे भरे नितंभों को दबाया. "हमे भी चखने देगी न यह सब?"
"साहेब, आपकी इच्छा हो तो ज़रूर देंगे." गुलाबी बोली. उसकी आंखें वासना से चमक रही थी.

विश्वनाथजी हंसे और उन्होने गुलाबी को अपनी गोद मे बिठा लिया. शायद उनका खूंटे जैसा लन्ड पजामे मे खड़ा हो गया था. गुलाबी बैठते ही "उई माँ!" करके उठ गयी.
"क्या हुआ, लड़की? डर गयी क्या?" विश्वनाथजी बोले, "अभी तो तुने देखा नही है. देखेगी तो क्या करेगी?" उन्होने गुलाबी को खींचकर फिर अपने गोद मे बिठा लिया.

गुलाबी उनके लन्ड पर अपने चूतड़ रगड़ने लगी. विश्वनाथजी ने अपना हाथ उसके घाघरे के नीचे डाला और उसकी चूत तक ले गये.

चूत को सहला कर बोले, "गिरिधर, यह तुम्हारे घर की रीत है क्या कि नौकरानियाँ चड्डी नही पहनती?"

मामाजी बोले, "यार, हमारे घर की औरतें कपड़े थोड़े कम ही पहनती हैं."

तभी मामीजी बैठक मे आयी और मुझे देखकर बोली, "वीणा, तु आ गयी बेटी! कितने दिनो बाद देख रही हूँ तुझे! कितनी सुन्दर हो गयी है तु!"

मै जाकर मामीजी से लिपट गयी.

"और मोटी भी हो गयी हूँ, मामी!" मैने कहा, "यह सब विश्वनाथजी और उनके दोस्तों की कृपा है."

"अरे हमने क्या किया, बेटी?" विश्वनाथजी ने पूछा.
"आपने और आपके उन बदमाश दोस्तों ने मेरा गर्भ बना दिया है." मैने कहा.

"विश्वनाथजी, आपने और आपके उन दोस्तों ने मुझे और मेरी बहु को भी गर्भवती कर दिया है." मामीजी ने भी शिकायत की.

"अरे विश्वनाथ, औरतें रंडी की तरह चुदवायेंगी तो गर्भ तो ठहरेगा ही! तुम इसकी चिंता मत करो." मामाजी बोले, "भाग्यवान, तुम भी मेरे दोस्त के साथ क्या दुखड़ा लेकर बैठ गयी! कुछ खाने को लाओ! और घर के बाकी सब कहाँ गये हैं?"
"बलराम और किशन तो खेत मे गये हैं." मामीजी बोली, "बहु रसोई मे है. अभी आ रही है."

तभी मीना भाभी एक प्लेट मे पकोड़े लेकर बैठक मे आयी. मामीजी ने उसके हाथ से प्लेट ले ली और चाय की छोटी मेज पर रख दी.

भाभी ने मुझे गले से लगा लिया. "वीणा! मैं कितनी खुश हूँ तुम आ गयी!" वह बोली.
"भाभी, मैं भी बहुत खुश हूँ आकर!" मैने कहा, "तुम भी मेरी तरह मोटी हो गयी हो!"
"मेरे कोख मे विश्वनाथजी का बच्चा जो पल रहा है!" वो हंसकर बोली.

मैने भाभी को ऊपर से नीचे देखा. उसने सिर्फ़ एक ब्लाउज़ और पेटीकोट पहन रखी थी. ब्लाउज़ के ऊपर के दो हुक खुले हुए थे जिससे उसकी गोरी गोरी चूचियां छलक के बाहर आ रही थी. उसने ब्रा नही पहनी थी और शायद चड्डी भी नही पहनी थी. बहुत ही कामुक लग रही थी भाभी. जाने कैसे घर की बहु इस तरह बेहया होकर सबके सामने चली आयी थी.

विश्वनाथजी भाभी की जवानी को आंखों से ही पीये जा रहे थे.

मैने कहा, "भाभी, आजकल तुम ऐसी ही रहती हो क्या?"
"क्या करुं, वीणा!" भाभी मजबूरी जताकर बोली, "एक तो इतनी गर्मी है. ऊपर से घर के मर्द लोग कपड़े पहने कब देते हैं? इनका बस चले तो हम औरतों को दिन भर नंगी ही रखें!"

विश्वनाथजी गुलाबी की चोली मे हाथ डालकर उसके चूची को दबा रहे थे और भाभी की अध-नंगी जवानी को देख रहे थे. गुलाबी मस्ती मे "आह!! ऊह!" कर रही थी.

मामीजी बोली, "विश्वनाथजी, मन करे तो गुलाबी को अपने कमरे मे ले जाईये और उसे इत्मिनान से लूटिये. लग रहा है वह आपके औज़ार पर फ़िदा हो गयी है."
"नही, भाभीजी." विश्वनाथजी बोले, "शाम को दावत है. इसे मैं तब ही चखूंगा."

"हाँ, कौशल्या." मामाजी बोले, "सब से कह दो कि अपनी उर्जा बचाकर रखे नही तो दावत मे मज़ा नही आयेगा."
"मामाजी, मैं तो सोची थी अमोल के साथ अभी एक बार..." मैं आपत्ती जतायी.
"अरे बेटी, अब तो तु अमोल के साथ रोज़ रात को सोयेगी." मामीजी बोली, "इतनी भी जल्दी क्या है उससे मिलन करने की? बहु, वीणा बिटिया को अमोल के कमरे मे ले जा. थोड़ा हाथ मुंह धोकर ताज़ी हो ले."

भाभी ने मुझे अमोल के कमरे मे धकेल दिया और बोली, "देखो वीणा, अभी अपने यार से चुदवा मत लेना. तुम्हारी चूत मारने के लिये घर पर सब लोग अधीर हो रहे हैं. थक जाओगी तो किसी को मज़ा नही दे पाओगी."

मैने दरवाज़ा बंद किया और अमोल से लिपट गयी. उसने तुरंत मुझे चूमना शुरु कर दिया और मेरे कपड़े उतारने लगा. उसने जल्दी से मेरी सलवार और कमीज़ उतार दी. मैं भी उसे कमरे मे अकेले पाकर मस्ती मे पागल होने लगी.

पर मुझे मामाजी की हिदायत याद आयी. उससे छुटकर बोली, "अमोल, अभी नही. शाम को दावत है, तब जितना चाहे मुझे लूट लेना."
"नही, मेरी जान!" अमोल बोला, "तब तो कोई मुझे तुम्हारे पास भी नही आने देगा! बस एक पानी चोदने दो अभी. मैं कबसे तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ."
"नही, अमोल. तुम्हे भी दावत मे सब औरतों को मज़ा देना है." मैने कहा, "अभी अपनी शक्ति गवांकर सबका मज़ा खराब मत करो."
"तो अभी मैं क्या करूं?" उसने निराश होकर पूछा.
"मै तुम्हारे लिये एक तोहफ़ा लायी हूँ." मैने शरारत से कहा, "अभी तुम उसका स्वाद लो."
"कैसा तोहफ़ा?"

मैने अपनी चड्डी उतारी. चड्डी उन दो गुरु-चेले के वीर्य से पूरी तरह चिपचिपा हो गयी थी और बहुत महक रही थी. अमोल के हाथ मे देकर बोली, "तुम इसे बैठकर सूंघो. मेरे दो यारों ने तुम्हारे लिये भेजी है."

अमोल ने गुस्से से मेरी चड्डी फेंक दी. मैं खिलखिला कर हंसती हुई बाथरूम मे घुस गयी.

मै नहाकर बाहर आयी, और अपने सूटकेस से अपनी साड़ी ब्लाउज़ निकालने लगी.

अमोल बोला, "वीणा, चड्डी, ब्रा, और साड़ी छोड़ो. दीदी तो बस ब्लाउज़ और पेटीकोट मे रहती है. तुम भी वैसी ही रहो. बहुत कामुक लगोगी. मैं चाहता हम तुम घर के मर्दों के सामने अध-नंगी घुमो."
"घर पर कोई आ गया तो?"
"कोई आयेगा तो कुछ लपेट लेना." अमोल बोला.

मैने उसके कहे अनुसर एक पेटीकोट पहनी और एक ब्रा पहन ली. मेरी चूचियां जो अब थोड़ी भारी होती जा रही थी ब्रा के ऊपर से बहुत आकर्शक लग रही थी.

"कैसी लग रही हूँ?" मैने पूछा.
"माल लग रही हो!" अमोल बोला और मुझे बाहों मे लेकर चूमने लगा, "अभी बाहर जाओगी तो लोग तुम्हारा बलात्कार न कर बैठें!"

हम दोनो कमरे से बाहर निकले. बैठक मे सब हंसी मज़ाक कर रहे थे. मुझे इस तरह अध-नंगे आते देखकर मामाजी और विश्वनाथजी कपड़ों के अन्दर अपना लन्ड सम्भालने लगे.

"बहुत सुन्दर लग रही हो, वीणा." विश्वनाथजी पजामे मे हाथ डालकर अपना लन्ड सहालते हुए बोले, "अबसे घर पर ऐसे ही रहा करो."

उनके लन्ड की तरफ़ देखकर मैं बोली, "और आप लोग क्या इतने सारे कपड़े पहने रहेंगे? हम औरतों को भी तो कुछ देखने का मन कर सकता है कि नही?"
"हाँ हाँ, क्यों नही? हम औरतों को भी मर्दों के जिस्म देखने का मन करता है." मामीजी बोली, "अबसे घर के मर्द केवल लुंगी पहनेंगे. कोई चड्डी नही पहनेगा!"

विश्वनाथजी खुश होकर बोले, "गिरिधर, लगता है मेरी यह यात्रा बहुत सुखद होने वाली है."

बलराम भैया और किशन शाम की तरफ़ खेत से लौटे. साथ मे रामु था.

मुझे देखते ही रामु बोला, "परनाम, दीदी!"
"कब आयी, दीदी?" किशन ने पूछा.
"अरे, वीणा रानी!" बलराम भैया ने कहा, "तु आ गयी? घर पर बुआ और फुफाजी ठीक हैं? और नीतु कैसी है?"

तीनो मेरा हाल-चाल पूछ रहे थे और मैं शर्म से लाल हो रही थी. तीनो मेरी ब्रा और पेटीकोट मे आधे ढके शरीर को खुली वासना की नज़रों से देख रहे थे.

"अरे हमरी बहनिया तो सरमा रही है!" बलराम भैया मुझे बाहों मे लेकर चिढ़ाकर बोले, "जैसे कोई अनचुदी कन्या हो."
"जाईये मैं आपसे बात नही करती!" मैं उनके बाहों मे मचलते हुए बोली, "अपनी बहन पर बुरी नज़र डालते आपको शरम नही आती?"
"तुम तो मेरी बुआ की बेटी हो. मेरा साला तो अपनी सगी दीदी के साथ संभोग करता है." बलराम भैया बोले.
"और आप जो अपनी माँ के साथ करते हैं?" मैने चिढ़ाकर कहा.
"तो तुम्हे मीना ने सब कुछ बता दिया है?" बलराम भैया बोले, "चलो तुम आ गयी हो, बहुत अच्छा हुआ. मैं, किशन, और रामु तुम्हारी जवानी को लूटने के लिये बेचैन हैं. अमोल, पिताजी और विश्वनाथजी तो तुम्हे भोग ही चुके हैं."

बलराम भैया के अश्लील बातों से मेरी शर्म जल्दी ही दूर हो गयी. उनकी भूखी नज़रें मेरे शरीर पर पड़ रही थी और मैं चुदास से सिहर रही थी. मैं सोचने लगी, हाय कब शुरु होगी दावत और मैं सब से चुदवा सकूंगी!

शाम को सात बजे दावत शुरु हुई. बैठक के कालीन पर एक बड़ा का गद्दा बिछाया गया था जिस पर सब लोग बैठ गये.

भाभी पेटीकोट और ब्लाउज़ मे थी. मामीजी ने भी एक पेटीकोट और ब्लाउज़ पहनी हुई थी. मैं पेटीकोट और ब्रा मे थी. मर्द लोग सब नंगे-बदन थे और सिर्फ़ लुंगी पहने हुए थे. सबका लौड़ा लुंगी मे खंबे की तरह खड़ा था.

गुलाबी ने चाय की मेज पर पकोड़े, गोश्त और चिकन सजाकर रख दिये और हमारे साथ बैठ गयी. रामु सबको गिलासों मे शराब परोस रहा था.

हम सब शराब के साथ पकोड़े खाने लगे और हंसी मज़ाक करने लगे.

गुलाबी विश्वनाथजी के बगल मे बैठी थी और मजे लेकर विलायती शराब पी रही ही. भाभी, जो अपने भाई के साथ बैठी थी, बोली, "गुलाबी, यह रामु की देसी दारु नही है. आराम से पी."

मै बलराम भैया की गोद मे उनसे सटकर बैठी थी और वह ब्रा के ऊपर से मेरी चूचियों को सहला रहे थे. मेरे पीठ पर उनका खड़ा लन्ड लग रहा था. मैं अपने गिलास से शराब की चुस्की ले रही थी. सोनेपुर से आने के बाद मैने शराब की एक बून्द भी नही पी थी. आज मुझे पीकर टल्ली होने का मन कर रहा था.

अमोल अपनी दीदी के साथ बैठा हुआ था और मुझे बलराम भैया के बाहों मे अठखेलियाँ करते देख रहा था. ईर्ष्या होने की बजाय उसकी आंखों मे एक विक्रित वासना थी.
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10-08-2018, 01:19 PM,
#89
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
थोड़ी देर मे हम सब को शराब का अच्छा नशा हो गया और हम बहुत ही भद्दे और अश्लील मज़ाक करने लगे.

मैने मामीजी से कहा, "मामी, किशन नही दिख रहा. मुझे तो उसका लन्ड भी लेना है!"
"अभी आ रहा है, बेटी." मामीजी बोलीं.

तभी किशन हाथ मे एक कैमेरा जैसी चीज़ लेकर बैठक मे आया.

"यह क्या है किशन?" मैने अचरज से पूछा.
"दीदी, यह एक वीडिओ कैमेरा है." किशन खुश होकर बोला, "भैया कल ही शहर से लाये हैं."
"इसमे हमारी वीडिओ बनेगी?" मैने उत्साहित होकर पूछा.
"हाँ." किशन बोला और कैमेरे को चालु करने लगा.

"हाय दईया!" गुलाबी चहक कर बोली, "किसन भैया, इससे का आप हमरी चुदाई फिलम बनायेंगे? जैसी उस दिन हमने टीवी पर देखी थी?" उसकी आवाज़ नशे मे लड़खड़ा रही थी.
"हाँ. बस देखती जा." किशन बोला.

उसने वीडिओ कैमेरा चालु किया और अमोल को पकड़ाकर बोला, "अमोल भैया, आपको तो वीडिओ कैमेरा चलानी आती होगी? आप ही फ़िल्म बनाइये."

अमोल ने खुशी खुशी कैमेरा ले लिया और सबकी वीडिओ बनाने लगा.

हम सबमे एक नया जोश भर गया क्योंकि हम आज जो करने वाले थे सब कैमेरे मे कैद होने वाला था.

सब ने अपनी शराब की गिलास खाली की और अपने अपने जोड़ीदार से चुम्मा-चाटी करने लगे. रामु ने फिर सब की गिलासें भर दी. उसका लन्ड भी लुंगी मे तनकर खड़ा था. उसकी भोली-भाली बीवी आज एक नये मर्द के बाहों मे रंगरेलियां मना रही थी.

गुलाबी ने विश्वनाथजी का लन्ड लुंगी के ऊपर से पकड़ रखा था और हिला रही थी. वह नशे मे हिचकी लेते हुए बोली, "अरे साला कोई चोदाई भी करेगा या सब चुम्मा-चाटी ही करते रहेंगे?"

शराब के नशे से मेरा सर घूम रहा था. मेरा पूरा शरीर गरम हो गया था और मेरी चूत गीली होकर चू रही थी. बलराम भैया ने मेरे ब्रा को ऊपर खींच दिया था और मेरी नंगी चूचियों को जोर से मसल रहे थे. साथ ही मेरे होठों को पी रहे थे.

वह बोले, "मै तो भई अब वीणा को चोदने वाला हूँ. मेरी बहन इतनी मस्त माल है और मैने आज तक इसकी जवानी का रस नही पिया है!"
"हाँ हाँ, चोद लीजिये अपनी बहन को और बहनचोद बन जाईये." भाभी अपने पति को छेड़कर बोली. भाभी की ब्लाउज़ सामने से खुली हुई थी और अमोल उसकी चूचियों को एक हाथ से दबा रहा था.
"कम से कम वीणा मेरी सगी बहन तो नही है." बलराम भैया बोले, "तुम तो अपने सगे भाई से चुदवाती हो."
"हाँ चुदवाऊंगी तो. आपको क्या?" भाभी नशे मे धुत्त आवाज़ मे बोली, "अपने बड़े भाई से भी चुदवाऊंगी. अपने बाप से भी चुदवाऊंगी. आप देखना और अपना लौड़ा हिलाना."

"अरे तुम लोग बातें बंद करो और कोई मुझे चोदो!" मैं खीजकर चिल्लायी. "कोई तो मेरी चूत मे एक लौड़ा डालो!"

"बलराम, बेचारी बहुत तड़प रही है. अब चोद दे उसे." मामीजी बोली, "अमोल, ज़रा वीणा को नंगी कर दे बेटा."
"हाँ हाँ, अमोल. आओ और अपनी मंगेतर को मेरे लिये तैयार करो." बलराम भैया बोले.

अमोल उठकर आया और मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोलकर मेरे पैरों से अलग करने लगा. मैने अपने पीठ के पीछे हाथ ले जाकर ब्रा की हुक खोल दी. जल्दी ही मैं पूरी नंगी हो गयी.

बलराम भैया ने मुझे गद्दे पर लिटा दिया और मैने अपनी नंगी चूत उनके सामने कर दी. वह उठे और अपनी लुंगी उतारकर पूरे नंगे हो गये. उनका शरीर कसा हुआ और तराशा हुआ था. पर उनका लन्ड मैं पहली बार देख रही थी. सांवले रंग का लन्ड करीब 8 इंच का था और काफ़ी मोटा था. इसी लन्ड से बलराम भैया भाभी को चोदकर मज़ा देते थे. इस लन्ड को अपनी चूत मे लेने की मेरी बहुत दिनो की चाहत थी.

भैया ने मेरे दोनो पैर अलग किये और बीच मे बैठ गये. अपना मोटा, लाल सुपाड़ा मेरी चिकनी चूत के फांक मे रखकर ऊपर-नीचे रगड़ने लगे. मेरा पेट गर्भ होने के कारण थोड़ा फुल गया था और मेरी बुर भी थोड़ी मोटी हो गयी थी. शायद मैं उस समय बहुत ही अश्लील लग रही थी.

मैने अमोल की तरफ़ देखा जो मेरी चूत पर अपने जीजाजी के लन्ड की रगड़ाई देख रहा था. उसके हाथ मे वीडिओ कैमेरा था जिससे वह मेरे नंगेपन की फ़िल्म लिये जा रहा था.

"हाय अमोल! तुम्हारी होने वाली पत्नी अपने भाई से चुदने वाली है!" मैने कहा, "तुम्हे देखकर मज़ा आ रहा है?"
"हाँ, वीणा. बहुत अच्छा लग रहा है." अमोल भारी आवाज़ मे बोला, "जीजाजी, घुसा दीजिये वीणा की चूत मे अपना लौड़ा. पेल दीजिये पेलड़ तक अपना लन्ड!"
"हाँ, भैया! आह!! और मत सताइये मुझे! आह!!" मैने कहा और अपनी कमर उचकाने लगी.

बलराम भैया ने अपना सुपाड़ा मेरी चूत की छेद पर रखा और कमर का धक्का लगाया. लन्ड मेरी चूत को चौड़ी करके अन्दर घुस गया. मैं अनचुदी तो थी नही, इसलिये मुझे कोई तकलीफ़ नही हुई. और एक मस्ती मेरे पूरे शरीर मे छा गयी. मैं जोर से "आह!!" कर उठी.

बलराम भैया मुझे धीरे धीरे चोदने लगे. मैं सबके सामने पैर फैलाये उनसे चुदवाने लगी. शराब का नशा और इतना मोटा मस्त लन्ड. मैं आनंद के सगर मे गोते लगाने लगी. हर धक्के के साथ आह! ओह!! उफ़्फ़!! कर रही थी.

मेरी नज़र वीडिओ कैमेरे की तरफ़ जाती तो मैं और भी कामुक हो उठती. मैने कभी अपनी चुदाई की फ़िल्म नही बनवायी थी.

अमोल एक मन से मेरी चुदाई की वीडिओ बना रहा था. मीना भाभी ने उसकी लुंगी उतार दी थी और उसके खड़े लन्ड को हाथ मे लेकर सहला रही थी. वह खुद घुटनों के बल थी और उसकी पेटीकोट कमर के ऊपर चढ़ी हुई थी. उसके चूतड़ों के पीछे मामाजी थे और उसे कुतिया बनाकर उसको धीरे धीरे चोद रहे थे.

मैने बगल मे नज़र डाली तो देखा विश्वनाथजी पूरे नंगे होकर लेटे थे. उनका 10 इंच का मूसल तनकर खड़ा था और गुलाबी उसे मुंह मे लेकर चूस रही थी. लन्ड इतना मोटा और बड़ा था कि बेचारी के छोटे से मुंह मे पूरा जा भी नही रहा था. पर वह पूरे जोश और हवस के साथ विश्वनाथजी के लन्ड को चूसे जा रही थी.

उसके बगल मे मामीजी अपने पैरों को फैलाये गद्दे पर पड़ी थीं. उनकी पेटीकोट उनके कमर तक चड़ी हुई थी और किशन उनके पैरों के बीच बैठा उनकी मोटी बुर को चाट रहा था. किशन खुद पूरा नंगा हो गया था और उसका लन्ड तनकर खड़ा था.

रामु ने अपनी लुंगी उतार दी थी और पूरा नंगा हो गया था. एक हाथ से वह अपना काला लन्ड हिला रहा था और दूसरे हाथ मे एक गिलास पकड़े, विलायती शराब की चुसकी लेते हुए बाकी सबकी चुदायी देख रहा था.

यह सब देखकर मैं मस्ती की चरम सीमा को पार कर गयी. जोर जोर से चिल्लाते हुए मैं झड़ने लगी.

"ओह! पेलो और जोर से भैया! अपनी बहन को और पेलो! आह!! उम्म!" मैने चिल्लाने लगी, "अमोल! देखो...तुम्हारी वीणा कैसे चुदवा रही है! आह!! आह!! मैं झड़ रही हूँ! आह!! और पेलो! और जोर से पेलो मुझे!! आह!! आह!! आह!!"

मै झड़ रही थी और अमोल मेरी वीडिओ लिये जा रहा था.
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10-08-2018, 01:19 PM,
#90
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
बलराम भैया भी मुझे पेलते पेलते झड़ने लगे. जोर जोर से मेरी चूत मारते हुए बोले, "साली की क्या कसी चूत है! आह!! मुझसे रोका नही जा रहा है! आह!!"
"सोनपुर के बाद ज़्यादा चुदी नही है ना." मामीजी बोली, "इसकी चूत फिर से कस गयी है."
"जीजाजी, भर दीजिये वीणा की चूत अपने वीर्य से!" अमोल उत्तेजित होकर बोला.

"आह! आह!! आह!! आह!!" करते हुए बलराम भैया मेरी चूत मे झड़ गये और मेरे ऊपर ढह गये. उनका लन्ड मेरी चूत मे ही फंसा रहा.

अमोल अब अपनी दीदी की चुदाई की वीडिओ बनाने लगा. मामाजी भाभी को अब भी कुतिया बनाकर चोदे जा रहे थे. वह अपने भाई के लन्ड को मुंह मे लेकर चूसने लगी और अपने ससुर से चुदवाने लगी.

"अमोल बेटा...अपनी दीदी की अच्छी सी वीडिओ बनाओ." मामाजी भाभी को पेलते हुए बोले, "फिर अपने माँ-बाप को भेजो...वह भी तो देखें...उनकी बेटी अपने ससुर...की कितनी सेवा करती है!"

अमोल अपनी दीदी को अपना लन्ड चुसाते हुए उसकी चुदाई की वीडिओ लेने लगा.

अपने दीदी की इतनी अश्लील हालत देखकर वह जोश मे आ गया और भाभी के मुंह को चोदते हुए झड़ने लगा.

उसके पेलड़ का गाढा, सफ़ेद वीर्य उसकी दीदी के मुंह मे गिरने लगा. भाभी पीछे से अपने ससुर के धक्के ले रही थी, इसलिये अमोल का वीर्य उसके मुंह से छलक का गद्दे पर गिरने लगा. अपने भाई का बाकी वीर्य भाभी गटक गयी.

तभी गुलाबी बोली, "अरे कोई हमरी भी तो फिलम बनाओ!" वह अब भी विश्वनाथजी का बांस जैसा लन्ड चुसे जा रही थी.

अमोल ने कैमेरा उसकी तरफ़ किया तो वह उठी और कैमेरा मे सामने बहुत ही कामुक अंदाज़ से अपने चोली खोलने लगी. चोली खोलते ही उसके सुन्दर गदरायी चूचियां नंगी होकर बाहर आ गयी. उसका मंगलसूत्र उसके नंगी चूचियों के बीच लटक रहा था. एक हाथ से अपने एक चूचियों को वह मलने लगी. दूसरे हाथ से उसने अपना घाघरा उठाया और अपनी नंगी चूत को सहलाने लगी.

"अमोल भैया, हमरे जोबन की फिलम अच्छी आ रही है?" वह बोली. वह बहुत ही नशे मे लग रही थी.
"हाँ, गुलाबी. बहुत अच्छी आ रही है." अमोल बोला.
"और हमरी चूत की?" गुलाबी अमोल को अपना घाघरा उठाकर अपनी चूत दिखा के बोली, "हमरी चूत की भी फिलम बनाइये!"
"तु घाघरा उतार, तब अच्छी आयेगी." अमोल बोला.

अब गुलाबी ने अपना घाघरा उतार फेंका और पूरी नंगी हो गयी. वह बहुत नशे मे थी और हद से ज़्यादा चुदासी हो गयी थी. एक रंडी की तरह कैमेरे को दिखा दिखाकर अपने चूत मे उंगली घुसाने लगी.

"अमोल भैया! अब हमरी चुदाई की फिलम बनाइये!" गुलाबी हिचकी लेकर बोली, "साहेब! अब हमरी चूत अपने खूंटे से मारकर फाड़ दीजिये!"

विश्वनाथजी ने गुलाबी को खींचकर अपने बाहों मे ले लिया और उसके नरम होठों को पीने लगे.

फिर उसे गद्दे पर लिटाकर उस पर चढ़ गये. उन्होने अपना विशालकाय लन्ड उसकी छोटी सी बुर पर रखकर जोर का धक्का मारा तो गुलाबी दर्द से चिल्ला उठी. "हाय, मर गयी! मेरी चूत फट जायेगी!"
"विश्वनाथ, ज़रा आराम से." मामाजी भाभी को पेलते हुए बोले, "इसने इतना बड़ा हबशी लन्ड कभी लिया नही है."

विश्वनाथजी ने थोड़ा रुक कर एक और धक्का मारा. गुलाबी की आंखें बड़ी बड़ी हो गयी. अगर वह इतने नशे मे न होती तो शायद डर जाती. उसके पैरों को पकड़कर विश्वनाथजी धीरे धीरे धक्का मारते रहे. आखिर उनका पूरा लन्ड गुलाबी की चूत मे घुस गया.

वह खुद भी नशे मे थे. इसलिये ज़्यादा सब्र नही कर सके. गुलाबी की कसी चूत को अपने विकराल लन्ड से जोर जोर से चोदने लगे.

गुलाबी की आंखें ऐसी हो गयी जैसे वह सांस नही ले पा रही हो. उसकी संकरी चूत विश्वनाथजी के लन्ड के धक्कों से बहुत चौड़ी हो जा रही थी. हर धक्के के साथ लग रहा था बेचारी का दम ही निकल जायेगा!

पर जल्दी ही उसे मज़ा आने लगा. और इतना मज़ा आने लगा कि वह अपने काबू के बाहर हो गयी. चूत के नाज़ुक तंत्रिकाओं पर मोटे लन्ड की रगड़ से उसे इतना सुख मिल रहा था कि वह बर्दाश्त नही कर पा रही थी.

आनप-शनाप बकते हुए गुलाबी जोर से झड़ने लगी. "हाय, फाड़ दो हमरी चूत को! आह!! ओह!! चुद गये हम दईया रे!! अपने मरद के सामने चुद गये!! आह!! उफ़्फ़!! क्या लौड़ा है रे राम! फाड़ दी हमरी चूत को! आह!! आह!! ओह!!"

गुलाबी झड़कर पूरी तरह पस्त हो गयी. लग रहा था चरम आनंद से वह बेहोश हो गयी थी.

विश्वनाथजी ने गुलाबी की चूत से अपने लन्ड को निकाला और कहा, "यह बेचारी तो गयी. अब कौन चुदेगी मुझसे?"
"विश्वनाथजी, मै!" भाभी मस्ती मे बोली, "मुझे चुदना है आपसे!"

मामाजी ने अपना लन्ड भाभी की चूत से निकाला और अलग हो गये.

भाभी अपनी चूत खोलकर लेट गयी. विश्वनाथजी आकर भाभी के पैरों के बीच बैठे और अपना लन्ड उसकी चूत पर रखकर धक्का देने लगे. एक एक धक्के मे लन्ड दो दो इंच अन्दर जा रहा था.

बलराम भैया मेरे ऊपर से उठकर बैठ गये थे. रामु ने उनकी गिलास भर दी थी और वह शराब पी रहे थे और विश्वनाथजी के लन्ड से अपनी प्यारी पत्नी की बर्बादी देख रहे थे.

भाभी अपने पति को देखकर बोली, "देखिये जी...इसी आदमी ने...आपकी मीना को एक रंडी बनाया है! आह!! मिलना चाहते थे ना आप...विश्वनाथजी से? मिल लीजिये! आह!! क्या मोटा लन्ड है! ओह!! लगता है मेरी चूत को...उम्म!! फाड़ ही देगा! और इतना लंबा है...के घुसता है तो लगता है...खतम ही नही होगा! आह!! इसी लौड़े से...आपकी बीवी सोनपुर मे रोज़ चुदती थी! इसी लौड़े ने...आपकी भोली भाली पत्नी को...चुदाई की लत लगायी है!"

बलराम भैया का लन्ड अपनी पत्नी की दशा देखकर फिर खड़ा हो गया था. उनकी माँ उनका लन्ड पकड़कर हिलाने लगी.

विश्वनाथजी भाभी को जोर जोर से चोदने लगे. भाभी का पेट भी मेरी तरह थोड़ा फुल गया था. विश्वनाथजी का मोटा लन्ड जब उसकी चूत मे घुसता तो पेलड़ उसकी गांड पर जाकर लगता. वह मस्ती मे हाथ पाँव मार रही थी.

इधर मैं फिर चुदाई के लिये तैयार हो गयी थी. मैने चिल्लाकर पूछा, "अब कौन चोदेगा मुझे?"

"दीदी, अब मेरी बारी है!" किशन ने कहा और जल्दी से आकर मेरे पैरों के बीच बैठ गया.
"किशन तु इतना बड़ा हो गया कि चूत मार सके?" मैने मज़ाक मे कहा.
"हाँ, दीदी!" किशन मेरी चूत पर अपना लन्ड सेट करता हुआ बोला, "मै तो गुलाबी, भाभी, और माँ को रोज़ ही चोदता हूँ."
"तो मुझे भी चोदकर दिखा तुझे क्या आता है." मैने कहा और अपनी कमर उचकायी.

किशन ने पूरी दक्षता से मेरी चूत मे अपना लन्ड घुसा दिया. उसका लन्ड अपने भैया से एक इंच छोटा था, पर काफ़ी सुन्दर था. मेरे ऊपर लेटकर वह मुझे चोदने लगा.

अमोल विश्वनाथजी के द्वारा अपनी दीदी की जबरदस्त चुदाई का वीडिओ बना रहा था. वह अब मेरी वीडिओ बनाने लगा. उसके सामने उसके मंगेतर को दूसरा आदमी चोद रहा था. उत्तेजना मे उसकी हालत खराब हो रही थी. मैं उसे दिखा दिखाकर किशन से चुदवाने लगी.

मैने पहले कभी किशन से चुदाया नही था. पर लग रहा था भाभी ने अपने देवर को अच्छी शिक्षा दी है. उसके ठापों से मैं जल्दी ही झड़ने के करीब आ गयी.

उधर भाभी विश्वनाथजी को पकड़कर झड़ रही थी. विश्वनाथजी के लन्ड के धक्कों से उसका शरीर बुरी तरह हिल रहा था. अपने पति को दिखा दिखा के कह रही थी, "विश्वनाथजी, चोद डालिये मुझे! आह!! देखिये जी, इसे कहते हैं चुदाई!! आह!! कुछ सीखिये विश्वनाथजी से!! ओह!! देखिये...आपकी बीवी कैसे चुद रही है!! हाय, क्या लौड़ा है! औरत को पागल का देता है!! आह!! आह!! ऊह!!"

विश्वनाथजी भी बहुत हो जोरों से भाभी को पेल रहे थे. वह अपना लन्ड भाभी की चूत से सुपाड़े तक बाहर ले आते और फिर एक जोरदार धक्के से पेलड़ तक पेल देते. उनका पेलड़ भी बहुत बड़ा था और भाभी की गांड मे जा जाकर लग रहा था. अचानक वह जोर से कराहे और भाभी को बेरहमी से पेलते हुए उसकी चूत मे झड़ने लगे.

"हाय, भर दो मेरी चूत को!! विश्वनाथजी, मेरे गर्भ मे आपका ही बच्चा है! हाय, मैं गयी!! मैं गयी!! आह!!" भाभी बड़बड़ाते हुए झड़ गयी.

विश्वनाथजी और भाभी नंगे होकर एक दूसरे से लिपटकर पड़े रहे.

उनकी चुदाई देखकर किशन बहुत ज़्यादा गरम हो गया. मुझे ठोकते हुए वह मेरी चूत मे झड़ने लगा. मेरी चूत पहले ही बलराम भैया के वीर्य से भरी हुई थी. उसमे वह अपना वीर्य मिलाने लगा.

झड़कर किशन मुझसे अलग हो गया. मैं तब मस्ती के शिखर पर थी. खीजकर चिल्लायी, "अबे साला कोई और लन्ड डालो मेरी चूत मे!"

रामु जो मेरी चुदाई देख रहा था और अपना लन्ड हिला रहा था बोला, "मालकिन, हम चोदे अब वीणा दीदी को?"
"हाँ हाँ चोद ले." मामीजी बोली, "छिनाल की चूत है. कोई भी मार ले."

यह सुनते ही रामु जल्दी से आकर मेरे ऊपर चढ़ गया.

मै पहली बार किसी नौकर से चुदवा रही थी. रामु थोड़े कम कद का, काले रंग का हट्टा-कट्टा आदमी था. उसका लन्ड बिलकुल काला था. लंबई किशन जैसी ही थी, करीब 7 इंच की, पर मोटाई बहुत ज़्यादा थी.

जैसे ही उसने मेरी चूत मे अपना मोटा सुपाड़ा घुसया, किशन का खूब सारा वीर्य पचाक! से मेरी चूत से निकल आया. मेरी चूत चौड़ी हो गयी पर वीर्य से मेरी चूत इतनी चिकनी हो चुकी थी कि उसका मोटा लन्ड आराम से अन्दर चला गया. वह मुझे पकड़कर जोरदार धक्कों से चोदने लगा. मुझे उससे चुदवाने मे बहुत मज़ा आने लगा.

"अमोल, तुम्हारे घर मे कोई जवान नौकर है?" मैने चूत मे लन्ड लेते हुए पूछा.
"नही, वीणा. क्यों?" अमोल ने पूछा. वह अब मेरी और रामु की चुदाई की फ़िल्म बना रहा था.
"अरे तुम काम पर जाओगे...तो तुम्हारे पीछे तुम्हारी बीवी किससे चुदवायेगी?" मैने पूछा, "मेरे लिये एक मोटे लन्ड वाला...जवान नौकर रख देना...जो तुम्हारी वीणा को चोदकर शांत रख सके...नही तो एक दिन...घर आकर देखोगे...तुम्हारी बीवी अपनी चूत की गर्मी मिटाने के लिये...किसी रंडीखाने मे चली गयी है!"

सुनकर सब हंसने लगे.
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