मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:14 PM,
#61
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
सब लोग दावत के लिये बहुत उत्तेजित हो रहे थे. ससुरजी बैठक-खाने के सोफ़े पर बैठ गये और सासुमाँ को पुकारे, "अरे कौशल्या! तुम लोगों का काम हुआ कि नही? दावत कब शुरु करोगी?"
"बस हो ही गया है." सासुमाँ ने रसोई से जवाब दिया, "गुलाबी को भेज रही हूँ. तुम लोग शुरु करो."
"पहले दारु भेजो और कुछ चिकन के पकोड़े भेजो!" ससुरजी बोले.

सासुमाँ ने मुझे पकोड़ों की प्लेट पकड़ायी. गुलाबी ने दारु की बोतल खोलकर तीन गिलासों मे डाली और उसमे फ़्रिज से कोकाकोला निकालकर मिलाया. फिर प्लेट मे रखकर मेरे साथ बैठक मे आयी.

"आओ गुलाबी, आओ!" ससुरजी बोले, "क्या लायी हो हमारे लिये?"
"सराब है, मालिक." गुलाबी ने कहा और प्लेट सोफ़े के सामने छोटी चाय की मेज पर रख दी. मैने दो तरह के पकोड़ों की प्लेट भी मेज पर रख दी.

मेरे पतिदेव और देवरजी अपने बाप के आगे खड़े थे. उन्हे देखकर ससुरजी बोले, "अरे तुम दोनो क्यों खड़े हो? बैठो और अपनी गिलास उठाओ!"

दोनो एक दूसरे को देखने लगे.

मेरे वह बोले, "पिताजी, आपके सामने..."
"अरे मेरे सामने तुम अपनी माँ की चूत मार सकते हो तो शराब क्यों नही पी सकते?" ससुरजी बोले, "चलो बैठो और आज के शाम का मज़ा लो. पियोगे नही तो पूरा मज़ा नही मिलेगा."

दोनो बेटों ने एक एक गिलास उठा लिया और सोफ़े पर बैठकर शराब पीने लगे और पकोड़े खाने लगे.

ससुरजी ने गुलाबी को कहा, "गुलाबी, बार-बार गिलास मे दारु भरकर लाने की ज़रूरत नही है. दो बोतलें उठा ला और इधर रख."

गुलाबी और मैं रसोई मे जाने लगे तो ससुरजी बोले, "अरे बहु, तु कहाँ जा रही है. तु भी बैठ ना इधर और पी हमारे साथ."
"बाबूजी आपके सामने?" मैने कहा.
"सोनपुर मे तो मेरे सामने शराबियों की तरह पी रही थी. आज क्या हुआ?" ससुरजी ने कहा और मेरा हाथ पकड़कर मुझे अपने बगल मे सोफ़े पर बिठा लिया.

"हाय मालिक, भाभी भी सराब पियेगी?" गुलाबी ने हैरान होकर पूछा.
"हम सब पीयेंगे." ससुरजी बोले, "तु भी पियेगी."
"नही मालिक! हम सराब वराब नही पीते!" गुलाबी ने कहा.
"कुछ दिन पहले तो तु मर्द की मलाई भी नही पीती थी." ससुरजी बोले, "एक बार शराब पीना सीख जायेगी तो पीये बिना रह नही पायेगी. जा, रसोई से दो बोतलें, और तीन गिलास ले आ."

गुलाबी रसोई मे चली गयी तो ससुरजी ने अपने एक हाथ से मेरे कमर को घेर लिया और दूसरे हाथ से वह शराब पीने लगे. मेरे सामने तुम्हारे भैया और किशन भी पी रहे थे और पकोड़े खा रहे थे.

गुलाबी रसोई से शराब की दो बोतलें लेकर आयी और मेज पर रख दी. फिर मेरे लिये गिलास मे डालकर मुझे दी. मैं भी मज़े लेकर शराब पीने लगी. सोनपुर के बाद आज पहली बार मैं शराब पी रही थी.

ससुरजी ने सासुमाँ को आवाज़ लगाई, "अरी भाग्यवान! तुम भी आ जाओ ना, यार! सभी मिल बैठेंगे तो ना पीने का मज़ा आयेगा!"
"मै पीकर क्या करूंगी, वह भी अपने बच्चों के सामने!" सासुमाँ ने कहा.
"कौशल्या, अब नखरा छोड़ो भी! जब सारे पाप का लिये हैं तब दारु पीने मे क्या बुराई है?" ससुरजी बोले, "गुलाबी और रामु, तुम लोग रसोई सम्भालो और मालकिन को यहाँ भेज दो."

सासुमाँ साड़ी का आंचल कमर मे बांधे बैठक मे आयी और किशन के पास सोफ़े पर बैठ गयी. गुलाबी ने उन्हे भी एक गिलास बना कर दिया. सासुमाँ भी हमारे साथ शराब पीने लगी और पकोड़े खाने लगी.

"बहु ने पकोड़े बहुत अच्छे बनाये हैं." सासुमाँ एक चिकन का पकोड़ा खाते हुए बोली, "क्यों जी?"
"हमारी बहु सब काम बहुत अच्छे से करती है. वह तो करोड़ों मे एक है!" ससुरजी ने मेरी एक चूची को दबाकर कहा.

मै अपनी तारीफ़ सुनकर थोड़ा झेंप गयी. वैसे शराब का नशा मुझ पर चढ़ने लगा था. किशन ने शायद पहले कभी शराब नही पी थी. लग रहा था उसे बहुत जल्दी चढ़ गयी है.

"किशन, धीरे धीरे पी, नही तो तुझे बहुत ज़्यादा चढ़ जायेगी." सासुमाँ बोली, "टल्ली हो गया तो आज का मज़ा नही ले पायेगा."
"ठी-ठीक है म-माँ." किशन ने कहा. उसकी आवाज़ लड़खड़ाने लगी थी.

इस तरह बातें करते हुए हमने अपनी गिलासें खाली कर दी.

रामु ने फिर हमारी गिलासें भर दी. हम सब को काफ़ी नशा हो गया था. गुलाबी और रामु खाने का सामान लाते जा रहे थे और हम सब शराब के साथ साथ खाना-पीना कर रहे थे. हंसी मज़ाक चल रहा था. तुम्हारे मामा, मामी, और मैं सोनपुर मे अपनी चुदाई के कारनामे सब को सुना रहे थे. कमरे मे पूरा मस्ती का माहौल हो गया था.

मेरा और सासुमाँ का आंचल ढलकर नीचे गिर गया था. ससुरजी अब खुलकर मेरी चूचियों को मसल रहे थे और मैं लुंगी के ऊपर से उनके लन्ड को दबा रही थी. उन्होने चड्डी नही पहनी थी और उनका लौड़ा लुंगी मे तंबू बनाकर खड़ा था. सासुमाँ किशन के लौड़े को उसके पजामे मे से दबा रही थी और वह अपनी माँ की चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से दबा रहा था.

"बलराम, तुझे मज़ा आ रहा है कि नही?" सासुमाँ ने शराब की एक बड़ी घूंट ली और पूछा.
"नही, माँ." मेरे वह बोले, "आप सब लोग मज़े ले रहो हो पर मैं तो यहाँ अकेला बैठा हूँ."
"तो गुलाबी को बुला देते हैं!" ससुरजी बोले, "गुलाबी! इधर आकर बड़े भैया के साथ बैठ!"

गुलाबी ने आज ने एक सुन्दर घाघरा चोली पहनी थी. उसके पाँव मे मेरी पायल थी और हाथों मे कांच चूड़ियाँ. आंखों मे उसने काजल भी लगाया था. चूचियां तो उसकी उठी उठी थी ही, बदन भी गदराया हुआ था. सांवली होने के बावजूद वह बहुत सुन्दर लग रही थी.

ससुरजी ने बुलाया तो वह बैठक मे आयी और सकुचाते हुए मेरे उनके पास बैठ गयी. उन्होने तुरंत गुलाबी को खींचकर खुद से चिपका लिया और उसके होठों को चूमने लगे.

"हाय बड़े भैया!" गुलाबी शरमा के बोली, "सबके सामने ई सब मत कीजिये! हम रात को आपके पास आ जायेंगे."
"गुलाबी, आज जो कुछ होगा सबके सामने होगा." मेरे वह बोले, "देखे नही रही मीना कैसे पिताजी से अपनी चूची मिसवा रही है? और माँ किशन से अपनी चूची मलवा रही है?"

गुलाबी ने देखा मैं सचमुच शराब पी रही थी और मस्ती मे अपनी चूची दबवाये जा रही थी. सासुमाँ की भी यही हालत थी.

वह बोली, "हाय, मालकिन आप अपने बेटे से चूची दबवा रही हैं!"
"तो क्या हुआ? मेरा किशन एक मर्द नही है क्या?" सासुमाँ बोली और उन्होने किशन के होठों की एक गहरी चुंबन ली.

रामु हैरान होकर सासुमाँ की हरकत को देखने लगा. उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नही हो रहा था कि एक माँ अपने बेटे के होठों को एक प्रेमिका की तरह चुम रही थी.

गुलाबी ने कहा, "तो क्या आज सब लोग एक दूसरे के सामने मुंह काला करेंगे? माँ-बेटा भी? हमे तो बहुत सरम आयेगी."
"गुलाबी, थोड़ी पी ले, फिर तेरी शरम वरम सब चली जायेगी और तु रंडी की तरह चुदने को तैयार हो जायेगी." मैने कहा.
"नही भाभी, हम सराब नही पीते ना." गुलाबी ने कहा.

तुम्हारे भैया ने गुलाबी के लिये एक गिलास मे शराब डाली और उसमे कोकाकोला मिलाकर बोले, "साली, लगता है तु कोई काम जबरदस्ती के बिना नही सीखती. चल मुंह इधर कर और पी."
"नही बड़े भैया! हम नही पीयेंगे!" गुलाबी ने कहा और मुंह फेर लिया.

रामु जो खड़े-खड़े अपनी बीवी को देख रहा था बोला, "अरी लड़की, बड़े भैया कह रहे हैं तो पी ले ना! काहे नखरा करके सबका मजा खराब करती है? देख नही रही भाभी और मालकिन कितनी सराब पी रही हैं!"

तुम्हारे भैया ने जबरदस्ती गुलाबी के मुंह मे गिलास लगाया और उसे दो चार घूंट पिला दी.

"कैसा लगा, गुलाबी?" सासुमाँ ने पूछा.
"अच्छा है, मालकिन." गुलाबी ने कहा, "पर हमरा गला थोड़ा जल रहा है."
"पहली बार पी रही है ना, इसलिये. पूरी गिलास गटागट गले से उतार दे" सासुमाँ ने कहा.

गुलाबी ने पूरी गिलास खाली कर दी तो रामु ने फिर उसकी गिलास भर दी.

गुलाबी ने पूछा, "ई का चीज है, बड़े भैया?"
"इसको रम कहते हैं." मेरे वह बोले, "कैसा लग रहा है पीकर?"
"हमे तो चक्कर सा आ रहा है."
"तुने खाली पेट मे खूब सारी पी ली हैं ना इसलिये." सासुमाँ बोली, "थोड़े पकोड़े खा ले. अभी देखना, थोड़ी देर मे कैसी मस्ती चढ़ती है."

इधर ससुरजी ने मेरे उनको कहा, "बलराम, तुझे मैने कुछ हाज़िपुर बाज़ार से लाने को कहा था. तु लाया है क्या?"
"हाँ पिताजी, लाया हूँ." उन्होने कहा.
"देसी है कि विदेसी?"
"देसी है, पिताजी."
"तो लगा दे." ससुरजी ने कहा.

मैने उत्सुक होकर पूछा, "क्या है, ब-बाबूजी? ब-बताइये ना!"
ससुरजी मेरे होठों को चुम कर बोले, "बहु, अभी पता चल जायेगा. तुने कभी ऐसी चीज़ देखी नही होगी."
"क्या है, ब-बोलो ना!" सासुमाँ बोली. उन्हे भी काफ़ी चढ़ गयी थी.
"अरे रुको ना, कौशल्या." ससुरजी बोले, "बलराम को लगाने तो दो!"

मेरे पति हमारे कमरे से एक सीडी लेकर आये. ऊन्होने टीवी चलाया और सीडी प्लेयर मे वह सीडी लगा दी.

किशन उत्साहित होकर बोला, "मुझे प-पता है भाभी, यह क्या है! यह एक फ़िलम है! मैने अपने दोस्तों के साथ देखी है."

गुलाबी बोली, "भला ई कोई फ-फिलम-सिलम देखने का समय है? अभी तो हम लोग सब मुंह काला करने वाले हैं!"
उसे काफ़ी नशा हो गया था और उसकी आवाज़ लड़खड़ा रही थी. वह बहुत मस्त हो गयी थी और अपने ही हाथों से चोली के ऊपर से अपनी चूचियों को दबा रही थी.

"यह शाहरुख-काजोल की फ़िलम नही है रे, पगली." तुम्हारे भैया ने कहा, "ऐसी मस्त फ़िलम तुने कभी नही देखी होगी. रामु, कमरे ही बत्तियां बुझा दे!"
बोलकर वह गुलाबी के पास आकर बैठ गये.
Reply
10-08-2018, 01:14 PM,
#62
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
टीवी पर फ़िल्म शुरु हुई. रामु ने बत्तियां बुझा दी. पूरे कमरे मे टीवी की हलकी रोशनी फैल गयी. हम सब अपने अपने गिलास से शराब पीने लगे और टीवी देखने लगे.
फ़िल्म की शुरुआत मे एक छोटे से कमरे के अन्दर एक लड़का और एक लड़की एक मेज के दो तरफ़ कुर्सी पर बैठे हुए थे. दोनो काफ़ी कच्ची उमर के लग रहे थे. लड़की ने स्कूल की ड्रेस पहनी हुई थी जिसकी स्कर्ट उसके जांघों तक ही आ रही थी. लड़के ने भी स्कूल की ड्रेस पहनी हुई थी. दोनो पढ़ाई कर रहे थे और बीच-बीच मे हिंदी मे बातें कर रहे थे. लड़की लड़के को "भैया" कह रही थी.

"ई कैसी फिलम है?" गुलाबी हिचकी लेकर बोली, "हमे तो कुछ स-समझ ही नही आ रहा है!"
"चुप कर, छोकरी!" सासुमाँ ने उसे डांटकर कहा, "तुझे बहुत चढ़ गयी है. मुंह बंद कर के देख."

टीवी पर वह लड़का पढ़ाई करते हुए अपने पाँव से अपनी बहन के नंगे पाँव को सहलाने लगा. लड़की चुपचाप मज़े लेने लगी और पढ़ाई करती रही. कुछ देर बाद लड़के ने अपना पाँव लड़की के जांघों पर रखा और रगड़ने लगा. लड़की ने उसे मुस्कुराकर देखा और फिर अपने किताब मे खो गयी. अब लड़के ने अपना पाँव लड़की के स्कर्ट मे घुसा दिया. लड़की ने अपनी जांघें फैला दी तो लड़के ने अपना पाँव पूरा अन्दर घुसा दिया. लड़की सिहर उठी और उसने अपनी स्कर्ट अपने कमर तक उठा दी. उसने कोई चड्डी नही पहनी थी. उसकी बुर एक दम कच्ची लग रही थी. उस पर कोई बाल ही नही थे.

"हाय दईया!" गुलाबी चिहुक उठी, "ई लड़की तो नंगी है! ई कैसी फिलम है, बड़े भैया?"
"आगे आगे देख, क्या होता है!" मेरे वह गुलाबी को चूमकर बोले.

उधर लड़के ने अपनी निक्कर उतार दी. उसने भी कोई चड्डी नही पहनी थी. उसका लन्ड 5 इंच का रहा होगा और पतला सा था. उसके लन्ड के आस-पास भी कोई बाल नही था. फिर वह एक हाथ से अपना लन्ड हिलाने लगा और पाँव के अंगूठे को अपनी बहन के छोटी सी चूत पर रगड़ने लगा. लड़की मस्ती मे सित्कारने लगी.

कुछ देर बाद लड़की कुर्सी से उठी और उसने अपनी सफ़ेद कमीज़ उतार दी. उसने नीचे कुछ भी नही पहना था. उसके नींबू की तरह छोटी छोटी चूचियां बाहर आ गयी. लड़के ने भी अपनी कमीज़ उतार दी और पूरा नंगा हो गया. लड़की आकर अपने भाई के सामने बैठ गयी और उसके छोटे से लन्ड को मुंह मे लेकर चूसने लगी. लड़का आंख बंद करके उसके मुंह को चोदने लगा.

यह सब देखकर हम सब बहुत उत्तेजित हो गये. मैने ससुरजी के लुंगी मे हाथ डाल दिया और उनके लन्ड को पकड़कर हिलाने लगी. उन्होने मेरी ब्लाउज़ को सामने से खोल दिया और मेरी ब्रा के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाने लगे. कमरे मे रोशनी कम होने के कारण सब साफ़ दिखाई नही दे रहा था, पर सब लोग आपस मे चिपक कर मज़े ले रहे थे. सबको शराब और जवानी का नशा चढ़ चुका था.

"हाय, बहुत मस्त फ़िलम है यह तो!" सासुमाँ बोली, "कहाँ से लाया तु, बलराम?"
"एक दुकान है माँ, स्टेशन के पीछे."
"और भी लाना, बेटा!" सासुमाँ बोली, "बहुत मज़ेदार है."

टीवी पर उस लड़के ने अपनी बहन को पढ़ाई की मेज़ पर झुका दिया और उसके छोटे से स्कर्ट को कमर पर उठा दिया. लड़की के चूतड़ बहुत ही नर्म और नाज़ुक लग रहे थे. उसने फिर लड़की की चिकनी चूत पर अपना लन्ड रखा और एक धक्के मे अन्दर घुसा दिया. लड़की ने बस एक बार जोर से "आह!!" किया और मेज़ पर पड़ी रही. लड़का कमर चला चलाकर उसे चोदने लगा.

"इतनी छोटी लड़की, कैसे लन्ड ले ली अन्दर!" मैने हैरान होकर पूछा.
"अरे यह बहुत चुदी हुई है." ससुरजी ने कहा, "बस देखने मे छोटी लग रही है. कोई बच्ची नही है."

लड़का लड़की को कुछ देर चोदता रहा. तभी उनके कमरे का दरवाज़ा खुला और एक साड़ी पहनी औरत अन्दर आयी. वह बोली, "अरे बच्चों! तुम दोनो पढ़ाई छोड़कर चुदाई कर रहे हो!"
लड़का अपनी बहन को चोदता हुआ बोला, "हमने पढ़ाई कर ली है, मम्मी!"
"तो फिर आओ बिस्तर पर आकर आराम से चुदाई करो!" वह औरत बोली.

लड़के ने अपनी बहन की चूत से लन्ड निकाल लिया और दोनो नंगे ही अपनी माँ के साथ कमरे से निकल गये.

"बहुत मस्त फ़िलम है!" किशन बोला. टीवी की रोशनी मे मैने देखा उसने सासुमाँ की ब्लाउज़ पूरी उतार दी थी और उनकी नंगी चूचियों को मसल रहा था और चूस रहा था.

इधर मैने भी अपनी ब्रा उतार दी थी और ससुरजी से अपनी चूची चुसवा रही थी. ससुरजी ने अपनी लुंगी उतार दी थी. बीच-बीच मे मैं उनके लौड़े को मुंह मे लेकर चूस भी रही थी.

अगला सीन एक बेडरूम का था. एक आदमी पलंग पर बैठकर एक किताब पड़ रहा था. उसने कुर्ता पजामा पहना हुआ था. वह औरत दोनो बच्चों को लेकर कमरे मे दाखिल हुई. लड़का पूरा नंगा था और लड़की ने सिर्फ़ अपनी स्कूल की छोटी सी स्कर्ट पहनी हुई थी. लड़की की नंगी चूचियों को देखकर वह आदमी पजामे के अन्दर हाथ डालकर अपने लौड़े को हिलाने लगा.

वह औरत बोली, "बेटी, पापा के पास जाओ. वह तुम्हे प्यार करना चाहते हैं." लड़की पलंग पर उठी और उस आदमी के पास गयी. उसने अपने बाप के पजामे का नाड़ा खोल दिया और उसके खड़ा लौड़ा निकाल लिया. उसके लौड़े को देखकर हम सब हैरान हो गये.

"हाय, भाभी!" गुलाबी बोली, "कितना बड़ा और मोटा लन्ड है इस आदमी का!"
"9-10 इंच का तो होगा." मैने कहा.
"भला लौड़ा इतना बड़ा भी होता है? हम तो इतना बड़ा अपने चूत मे ले ही नही सकते." गुलाबी बोली.
"विश्वनाथजी का इतना ही बड़ा था." सासुमाँ ने टिप्पणी की, "अन्दर घुसाते थे तो चूत चौड़ी हो जाती थी."

उस लड़की ने अपने बाप के पजामे को पूरा उतार दिया और उसके मोटे, काले, विशालकाय लन्ड को अपनी मासूम से मुंह मे लेकर चूसने लगी. उसकी माँ ने जाकर अपने पति का कुर्ता और बनियान उतार दिया जिससे वह नंगा हो गया. दोनो पति-पत्नी चुम्मा-चाटी मे व्यस्त हो गये और वह लड़की लन्ड चूसती रही. कुछ देर बाद उसका भाई पलंग पर चढ़ा और अपनी बहन की गांड के पीछे घुटनों के बल बैठ गया. फिर उसने अपना लन्ड लड़की की चूत मे घुसाया और उसे कुतिया बना के चोदने लगा.

यह दृश्य देखकर और शराब पीकर मुझे तो बहुत गर्मी लगने लगी. मैने अपनी साड़ी उतार दी और ससुरजी से लिपटकर बैठ गयी. वह मेरी चूचियों को प्यार से मसले जा रहे थे. मेरी चूत बहुत ही गरम और गीली हो चुकी थी. कमरे मे अंधेरे के कारण साफ़ दिखाई ने दे रहा था कि बाकी लोग क्या कर रहे हैं, पर उनकी सित्कार और आहें ज़रूर सुनाई दे रही थी.

टीवी पर कुछ देर भाई-बहन की चुदाई चलती रही. उस औरत ने भी अपने सारे कपड़े खोल दिये थे और उसका पति उसके बड़े बड़े स्तनों को मसल रहा था. फिर वह आदमी पलंग पर लेट गया. लड़की की माँ ने लड़की को अपने बाप पर चढ़ने को कहा. लड़की अपने बाप पर लेट गयी और उसके लौड़े पर अपनी कमसिन सी चूत रख दी.

"हाय दईया!" गुलाबी बोल उठी, "ई लड़की का इतना बड़ा लौड़ा चूत मे लेगी?"
"बाबूजी, उसकी चूत फट नही जायेगी इतने मोटे लन्ड से?" मैने भी हैरान होकर पूछा.

लड़की के माँ ने अपने पति के लन्ड का फूला हुआ सुपाड़ा उसकी चूत पर सेट किया और लड़की के कमर को पकड़कर नीचे दबाया. उस आदमी का मोटा लौड़ा बेटी की छोटी सी चूत को चीरता हुए आधा अन्दर चला गया. लड़की की चूत बहुत चौड़ी हो गयी. गोरी सी चूत मे मोटा, काला लन्ड बहुत अश्लील लग रहा था. लड़की ने बस जोर से "आह!!" किया और अपने बाप के सीने पर लेटी रही.

"कैसे ले ली यह पूरा अन्दर?" रामु ने हैरान होकर कहा.

पर उस लड़की ने बिना किसी दर्द के अपने बाप का मूसल पेलड़ तक अपनी चूत मे ले लिया. फिर कमर उठा उठाकर लौड़े पर चुदने लगी. उसके बाप का काला लन्ड उसकी चूत के रस से चमक रहा था और पिस्टन की तरह अन्दर बाहर हो रहा था.

तुम्हारे मामाजी बहुत जोश मे आ गये थे. उन्होने मेरी पेटीकोट कमर तक उठा दी और मेरी चूत मे अपनी एक उंगली घुसाकर पेलने लगे.

उधर लड़की कुछ देर अपने बाप के लौड़े पर चुदती रही. फिर उसके माँ ने उसके भाई को कहा कि वह बहन की गांड मारे. लड़का अपनी बहन की गांड के पीछे घुटने के बल बैठ गया और उसने अपना छोटा, पतला लन्ड बहन की गांड के छेद पर रखा और धीरे से अन्दर घुसा दिया. अब बाप और बेटा मिलकर लड़की की चूत और गांड को मारने लगे. लड़की जोर जोर से "आह!! आह!!" करके दोहरी चुदाई का मज़ा लेने लगी. यह चुदाई लगभग 10 मिनट तक चलती रही. लड़का, लड़की, और उनका बाप पसीने से भीग गये थे और जोर जोर से मस्ती की आवाज़ें निकाल रहे थे. बच्चों की माँ बैठकर बच्चों की चुदाई देख रही थी और अपनी मोटी बुर मे एक प्लास्टिक का लौड़ा पेल रही थी.

जब तीनो झड़ने के करीब आ गये तो लड़का जोर जोर से अपनी बहन की गांड को ठोकने लगा. उसका बाप नीचे से कमर उचका उचका कर लड़की की संकरी चूत मे अपना लन्ड पेलने लगा. लड़की बोले जा रही थी, "हाय! और चोदो मुझे! आह!! और जोर से चोदो मुझे!! भैया, फाड़ दो मेरी गांड को!! आह!! पापा, फाड़ दो मेरी चूत को!!"

लड़के ने अपना 5 इंच का लन्ड अपनी बहन की गांड मे पेलड़ तक घुसा दिया और अपना पानी छोड़ने लगा. उसकी माँ उसके पीठ पर हाथ फेरने लगी. झड़कर उसने गांड से लन्ड निकाल लिया और अपने बाप के बगल मे लेट गया. अब उसका बाप बेटी की चूत मे लन्ड डाले हुए लुढ़क गया और लड़की के ऊपर आ गया. अपनी शक्तीशाली गांड को उठा उठाकर वह लड़की को बेरहमी से चोदने लगा. लड़की का दुबला सा बदन उस आदमी के ठापों से पूरा हिल जा रहा था. पर वह मज़े से "आह!! आह!!" कर रही थी.

बाप बेटी की यह चुदाई और 10 मिनट चली. लड़की इसमे दो बार झड़ भी गयी. आखिर वह आदमी भी झड़ने लगा. अपने लन्ड को लड़की की चूत मे पेलड़ तक घुसाकर वह अपना वीर्य गिराने लगा. पूरा झड़कर वह लड़की से अलग हो गया और उसके बगल मे लेट गया. लड़की अपनी चूत को खोले पड़ी रही. उसकी माँ आकर उसके पैरों के बीच लेटकर उसकी चूत से बहते वीर्य को चाटकर खाने लगी. उसके बाद फ़िल्म समाप्त हो गई.
फ़िल्म खतम होने पर ससुरजी ने रामु को कमरे की बत्तियां जलाने को कहा. बत्तियां जलते ही मैने देखा कि घर का नज़ारा ही बदला हुआ था.

मै खुद तो कमर के ऊपर नंगी हो ही गयी थी. मेरे पेटीकोट को ससुरजी ने मेरी कमर तक चढ़ा दिया था. ससुरजी खुद कमर के नीचे नंगे थे और उनका लौड़ा बिलकुल खड़ा था.

रामु ने अपनी पैंट उतार दी थी और अपना खड़ा लन्ड हाथ मे लेकर हिला रहा था. उसकी बीवी गुलाबी मेरे पति के गोद मे थी. उसकी चोली उतार दी गयी थी और उसका घाघरा कमर तक चढ़ा हुआ था. मेरे वह उसकी नंगी चूचियों को मसल रहे थे. मेरे पति कमर के नीचे नंगे थे. मैने ध्यान से देखा तो पाया कि उनका लौड़ा गुलाबी की चूत के अन्दर था. गुलाबी अपने कमर को धीरे धीरे हिलाकर चूत मे लन्ड का मज़ा ले रही थी. उसकी आंखें शराब के नशे मे लाल हो गयी थी.

सासुमाँ और किशन का भी कुछ ऐसा ही हाल था. ज़मीन पर कालीन बिछी हुई थी. दोनो कालीन के ऊपर एक दूसरे से लिपटे हुए थे और एक दूसरे के यौन-अंगों पर मुंह लगाये हुए थे. किशन कमर के नीचे नंगा था और सासुमाँ के ऊपर चढ़ा हुआ था. सासुमाँ की साड़ी कमर तक चढ़ी हुई थी. किशन अपने माँ की चूत चाट रहा था और उसकी माँ उसके लन्ड को चूस रही थी.

यह कामुक दृश्य देखकर मैं गनगना उठी. "हाय, बाबूजी! सब लोग कितने चुदासी हो गये हैं! सब ने तो चोदा-चोदी भी शुरु कर दी है!" मैने कहा.
"बहु, इसलिये तो मैने यह फ़िल्म दिखायी, ताकि सब एक दूसरे के सामने खुल जायें." ससुरजी बोले.

उन्होने मुझे अपनी गोद मे ऐसे बिठा लिया जिससे हम दोनो आमने-सामने हो गये.

फ़िल्म देखकर और अपने आस-पास सबको कामलीला मे डूबे देखकर मुझे बहुत हवस चढ़ गयी थी. मैने शराब भी बहुत पी ली थी.

मैने अपनी पेटीकोट को उतार फेंका और पूरी नंगी हो गयी. फिर ससुरजी के बनियान को उतारकर उन्हे भी पूरा नंगा कर दिया.

फिर अपनी नंगी चूचियों को पकड़कर ससुरजी के मुंह मे घुसाकर बोली, "बाबूजी, चूसिये मेरी चूचियों को! आह!! क्या मस्ती चढ़ गयी है मुझे! उम्म!!"
"मुझसे भी अब रहा नही जा रहा, बहु!" ससुरजी बोले, "ज़रा अपनी गांड उठा ताकि मैं अपना लन्ड तेरी चूत मे डाल सकूं."

मैने अपनी कमर उठायी तो ससुरजी ने अपने लन्ड को पकड़कर मेरी बहुत ही गरम चूत के छेद पर रखा. एक जोर की आह!! के साथ मैं लौड़े पर बैठ गयी और उसे अपनी चूत मे घुसा ली. फिर अपनी कमर उठा उठाकर ससुरजी के लन्ड पर चुदने लगी.

तुम्हारे बलराम भैया मेरे पीछे के सोफ़े पर बैठे गुलाबी की नंगी पीठ को चुम रहे थे, उसकी चूचियों को मसल रहे थे, और नीचे से उसकी चूत को चोद रहे थे.
वह बोले, "मीना, लगता है बहुत चुदासी हो गयी हो? पिताजी का लन्ड कितने मज़े से ले रही हो!"

मैने पीछे मुड़कर उन्हे देखा और अपनी चूत मे ससुरजी के लन्ड के दर्शन कराकर बोली, "कैसा लग रहा है अपनी बीवी को दूसरे मर्द के लौड़े पर चुदते देखकर?"
"बहुत मज़ा आ रहा है, मेरी जान!" वह बोले.
"फिर तो अच्छी बात है." मैने मुस्कुराकर कहा, "क्योंकि आज रात मैं आपके सामने रामु और किशन से भी चुदवाने वाली हूँ."
"चुदाओ, मीना, जिस जिससे चुदाना हो." वह बोले, "मैं तो गुलाबी की चूत मारकर ही खुश हूँ."

"क्यों गुलाबी, सबके सामने चूत मराने मे मज़ा आ रहा है?" मैने पूछा.
"हाँ भाभी, बहुत मज़ा आ रहा है! सराब पीकर हमको बहुत चुदास जो चढ़ गयी है!" गुलाबी नशे मे हिचकी लेकर बोली, "भाभी, अब हम रोज़ सराब पीयेंगे और सराब पीकर सबसे चुदवायेंगे!"
सासुमाँ बोली, "साली बेवड़ी! तु दिन भर शराब पीकर सबसे चुदवाती रहेगी तो घर का काम कौन करेगा?"

सुनकर हम सब हंसने लगे.

गुलाबी बोली, "बड़े भैया, हमको बहुत गर्मी लग रही है. हमको नंगी करके चोदो ना!"

मेरे उन्होने गुलाबी को उठाया और उसके घाघरे को खोलकर उसे नंगा कर दिया. फिर अपने कपड़े खोलकर पूरे नंगे हो गये और रामु को बोले, "रामु, चाय की मेज पर से दारु की बोतलें और प्लेटें हटा. तेरी जोरु को यहाँ लिटाकर चोदुंगा."

रामु ने जल्दी से मेज खाली कर दी.

तुम्हारे भैया ने फिर उसकी नंगी बीवी को मेज पर लिटा दिया और रामु से कहा, "रामु, अपनी जोरु की चूत को अच्छे से चाटकर चोदने लायक बना दे."
"जी, बड़े भैया." बोलकर रामु गुलाबी के पैरों के बीच बैठ गया और उसकी चूत को चाटने लगा.
गुलाबी "ओह!! आह!" करने लगी.

ससुरजी जो मुझे चोदते हुए मेरी चूचियों को पी रहे थे बोले, "बलराम, तु खड़े-खड़े क्या देख रहा है? गुलाबी के मुंह मे अपना लन्ड दे. बेचारी चूसना चाहती है."

सुनकर मेरे वह गुलाबी की मुंह के पास घुटने टेक कर बैठ गये और अपना खड़ा लन्ड गुलाबी के मुंह मे दिया. वह मज़े लेकर उनके लन्ड को चूसने लगी और अपने पति से चूत चटवाने का मज़ा लेने लगी.

किशन और सासुमाँ अभी भी एक दूसरे की चूत और लन्ड चुसाई मे लगे थे. देखकर ससुरजी बोले, "कौशल्या, बस तुम ही कपड़ों मे रह गयी हो. तुम भी सब उतारो और मैदान मे आ जाओ!"

सुनकर किशन अपनी माँ के ऊपर से उठ गया और अपना कुर्ता और बनियान उतारकर पूरा नंगा हो गया.
Reply
10-08-2018, 01:14 PM,
#63
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
सासुमाँ भी उठी और अपनी साड़ी ब्लाउज़, पेटीकोट वैगरह उतारकर पूरी नंगी हो गयी. फिर किशन से बोली, "चल किशन, अब चोद मुझे!"

सासुमाँ जमीन पर लेट गयी और किशन उन पर चढ़ गया. अपना लन्ड अपनी माँ की चूत मे घुसाकर उन्हे चोदने लगा. सासुमाँ ने अपने बेटे को बाहों मे भर लिया और उसके होठों को चूमने लगी और अपनी कमर उचका उचका कर चुदने लगी.

कुछ देर बाद वह बोली, "रामु, अपनी बीवी की चूत चाट चुका हो तो मेरे पास आ जा!"
मेरे वह बोले, "रामु, तेरी जोरु की चूत मेरे लौड़े के लिये तैयार हुई कि नही?"
"तैयार हो गयी, बड़े भैया!" रामु बोला, "अब आप गुलाबी को चोदिये."

गुलाबी मन लगाकर मेरे पति का लन्ड चूस रही थी. अपनी पत्नी की यह अश्लील हरकत देखकर रामु को बहुत उत्तेजना हो रही थी. वह उठकर सासुमाँ के पास चला गया.

सासुमाँ को किशन चोद रहा था. देखकर रामु बोला, "किसन भैया, आप तो अपनी माँ को चोद रहे हैं!"
"हाँ तो? तेरी बीवी भी तो मेरे भैया से चुद रही है." किशन बोला.
"ऊ अलग बात है. गुलाबी बड़े भैया की माँ थोड़े ही है." रामु बोला, "हम तब से यही सोच रहे हैं कि माँ-बेटा कैसे चुदाई कर सकते हैं."

"रामु, तु सोचना बंद कर और मेरे मुंह मे अपना लौड़ा दे." सासुमाँ ने डांटकर कहा, "अभी तो मैं बलराम से भी चुदवाऊंगी."

"राम-राम! कलयुग मे कैसे कैसे पाप होते हैं..." रामु बड़बड़ाने लगा तो गुलाबी चिल्लाकर बोली, "तुम का यहाँ सतनारायण कथा सुनने आये थे? चूत मिल रही है चुपचाप चोद लो. हम लोगन का मजा खराब मत करो!"

रामु चुप होकर सासुमाँ के सीने पर बैठ गया और उसने अपना काला, मोटा लन्ड सासुमाँ के मुंह मे दे दिया. सासुमाँ रामु के लन्ड को चूसने लगी और अपने बेटे के अपनी चूत मराने लगी.

इधर गुलाबी चाय की मेज पर अपनी चूत फैलाये पड़ी थी. मेरे पति गुलाबी के फ़ैले हुए जांघों के बीच घुटने के बल बैठ गये. अपने 8 इंच के मूसल को गुलाबी की चूत पर टिकाकर उन्होने एक धक्के मे पूरा अन्दर पेल दिया. गुलाबी मस्ती मे कराह उठी. फिर गुलाबी के टांगों को पकड़कर वह उसे चोदने लगे.

हम सातों नंगे जिस्म चुदाई मे मश्गुल हो गये थे. हम सब पर शराब और चुदास का नशा चढ़ा हुआ था. हम हर तरह की अश्लीलता कर रहे थे और उसका आनंद उठा रहे थे. सही-गलत, आचार-दुराचार, रिश्ते-नाते भुलकर हम एक दूसरे के नंगे शरीर से लिपटकर अपने जिस्म की घिनौनी भूख को मिटा रहे थे. चूतों मे लन्ड पेले जा रहे थे, चूचियां मसली जा रही थी, होंठ चूस जा रहे थे. सबके बदन पसीने-पसीने हो रहे थे. पूरे कमरे मे शराब और चूत की महक भर गयी थी. सबके मुंह से मस्ती की आवाज़ें आ रही थी. "ओह!! आह!! उफ़्फ़!!" की आवाज़ से पूरी बैठक गूंज रही थी.

मैं ससुरजी के कंधों को पकड़कर उनके लौड़े पर उछल रही थी. बीच-बीच मे अपने चारो तरफ़ देख भी रही थी.

मेरे पति चाय की मेज पर गुलाबी को लिटाकर चोदे जा रहे थे पर उनकी नज़र मेरी चूत मे अपने पिताजी के आते-जाते लन्ड पर थी. हमारी नज़रें मिली तो हम दोनो मुस्कुरा दिये. मेरी उत्तेजना उन्हे देखकर इतनी बढ़ गयी कि मैं ससुरजी ने नंगे जिस्म से लिपटकर झड़ने लग गयी. उनके लौड़े को पेलड़ तक अपने चूत मे घुसाकर मैं "ऊंह!! ऊंह!! ऊंह!! ऊंह!!" की आवाज़ निकालने लगी और अपने कमर को हिला हिलाकर झड़ने लगी.

"क्या हुआ बहु, तु झड़ गयी क्या?" ससुरजी बोले.
"हाँ, बाबूजी." मैं निढाल होकर उनके सीने पर लेटकर बोली. "आपके बेटे के सामने आपसे चुदवाकर मैं बहुत गरम हो गयी थी."
"चल कोई बात नही." ससुरजी बोले, "तु ज़रा नीचे उतर. मैं ज़रा गुलाबी को चखता हूँ."

मै ससुरजी के गोद से उतरकर सोफ़े पर लेट गयी और बाकी सबकी चुदाई देखने लगी.

ससुरजी उठे और उन्होने गुलाबी के गले के दोनो तरफ़ अपने पाँव रख दिये. फिर उन्होने उसके चूचियों पर बैठकर अपना लौड़ा उसके मुंह मे दे दिया. तुम्हारे भैया गुलाबी के पैरों को पकड़कर उसे जोर जोर से चोद रहे थे. गुलाबी ने मस्ती मे ससुरजी के लन्ड को मुंह मे ले लिया और चूसने लगी.

बेचारी वह भी झड़ने की सीमा तक पहुंच चुकी थी, पर वह न हिल पा रही थी न बोल पा रही थी. बस "ऊं!! ऊं!! ऊं!!" कर रही थी.

उसके मुंह को पेलते हुए ससुरजी झड़ने लगे. अपना मोटा लन्ड उसके गले तक घुसाकर वह अपना पानी गिराने लगे.

गुलाबी का मुंह वीर्य से भर गया और उसके मुंह के दोनो तरफ़ से बाहर बहने लगा. बेचारी की आंखें बड़ी बड़ी हो गयी. किसी तरह उसने ने ससुरजी का वीर्य हलक से उतारा. उसकी हालत देखकर मैं जोर से हंसने लगी.

"का हुआ भाभी?" रामु ने पूछा. वह अब भी सासुमाँ को अपना लन्ड पिलाये जा रहा था.
"देखो, तुम्हारी जोरु को बाबूजी अपनी मलाई पिलाकर मार ही न डालें!" मैने कहा.
"कुछ नही होगा, भाभी." रामु बोला, "ऊ छिनाल घोड़े की मलाई भी गटक जायेगी."

ससुरजी ने गुलाबी के मुंह से अपना लन्ड निकाला और वीर्य की रही सही बूंदें उसके सांवले चेहरे पर गिरा दी. फिर उठकर मेरे पास सोफ़े पर बैठ गये.

मेरे वह अब गुलाबी को बहुत बेरहमी से पेल रहे थे. लग रहा था अब वह अपना संयम नही रख पा रहे थे. गुलाबी का सारा शरीर उनके धक्कों से हिल रहा था. वह धक्कों के ताल पर "आह!! आह!! आह!!" कर रही थी.

गुलाबी चुदाई के आनंद को और बर्दाश्त न कर पायी और जोर से चिल्लाने लगी, "हाय, बड़े भैया! हम झड़ रहे हैं! आह!! हम....झड़....रहे....हैं!! आह!! आह!! आह!! आह!!"
"मै भी...झड़ने वाला हूँ...गुलाबी!" मेरे पति बोले, "बस....दो चार...मिनट और!"

पर वह दो मिनट भी नही टिक पाये. गुलाबी को लंबे लंबे ठाप लगाते हुए वह झड़ गये. उनके पेलड़ का रस गुलाबी की चूत की गहराई मे गिरने लगा. गुलाबी लेटे लेटे उसका आनंद उठाने लगी.

झड़कर मेरे वह सोफ़े पर बैठ गये. गुलाबी अपनी चूत फैलाये चाय की मेज पर पड़ी रही.

"तेरा हो गया, गुलाबी?" रामु ने पूछा.
"हाँ, हम तो पूरी तरह पस्त हो गये. बहुत बढ़ियां चोदे बड़े भैया." गुलाबी बोली, "तुम्हारा हुआ कि नही?"
"हम मालकिन की सेवा कर रहे हैं." रामु बोला, "तुझे काहे की जल्दी हो रही है?"

पर सासुमाँ की भी हालत बहुत खराब थी. किशन उन्हे काफ़ी देर से चोद रहा था. वह जोर जोर से कराह रही थी और चुदाई का मज़ा ले रही थी.

"माँ, अब मैं और नही रुक सकता!" किशन बोला. उसने बहुत मुश्किल से खुद को रोक रखा था.
"कोई बात नही. तु अपना लन्ड बाहर निकाल ले और रामु को चोदने दे." सासुमाँ बोली.

किशन ने अपना लन्ड अपनी माँ की चूत से निकाला और हिलाने लगा. रामु सासुमाँ के ऊपर से उठा और उनके जांघों के बीच बैठकर उनकी भोसड़ी को चोदने लगा.

"मेरे मुंह मे अपना लन्ड दे, बेटा." सासुमाँ किशन को बोली.

किशन ने ऐसा ही क्या. सासुमाँ उसका लन्ड चूसते हुए रामु से चुदवाने लगी.
"मेरा निकलने वाला है, माँ!" किशन गनगना कर बोला.
"मै भी यही चाहती हूँ, बेटा! आह!!" सासुमाँ बोली, "मुझे तेरी मलाई पीनी है. उम्म!! रामु! और जोर से चोद मुझे! मैं बस झड़ने वाली हूँ!!"

सासुमाँ किशन के पेलड़ को छेड़ रही थी और उसके लन्ड को जोरों से चूस रही थी.

किशन अपने लौड़े पर माँ के होठों की सुखद अनुभुति को और बर्दाश्त नही कर पाया और चिल्ला उठा, "हाय, माँ! मेरा निकल रहा है!! साली रंडी माँ! आह!! ले कुतिया, मेरा लन्ड का पानी ले, चुदैल! आह!! पी अपने बेटे का पानी, छिनाल! आह!! आह!! आह!!"

उसने अपना लन्ड अपनी माँ के मुंह से निकाल लिया और मुट्ठी मे लेकर जोर से हिलाने लगा. पिचकारी की तरह उसके लन्ड से वीर्य निकलकर सासुमाँ के चेहरे और बालों पर गिरने लगा.
"आह!! आह!! आह!!" करके उसने अपना सारा कामरस अपनी माँ के मुंह पर गिरा दिया.

बेटे की मलाई मुंह पर गिरना था कि सासुमाँ उत्तेजना मे झड़ने लगी.

"हाय, किशन! नहला दे अपनी रंडी माँ को अपने वीर्य मे!! आह!! गंदी कर दे मुझे!! आह!!" सासुमाँ बकने लगी, "रामु और जोर से चोद रे! हरामज़ादे, तेरी गांड मे दम नही है क्या? ओह!! इसलिये तेरी जोरु दुसरों से चुदाती रहती है!! आह!! आह!! उम्म!! आह!!"

रामु पूरी तकत लगाकर सासुमाँ को चोद रहा था. दोनो के पेट टकराते तो "ठाप! ठाप! ठाप! ठाप!" की जोर की आवाज़ हो रही थी. उसके जोरदार धक्कों के मज़े से सासुमाँ पूरी तरह झड़ गयी.

झड़कर सासुमाँ ने रामु को खुद से अलग कर दिया और किशन के नंगे जिस्म से लिपटकर लेट गयी.

ससुरजी बोले, "चलो, सबका एक दौर हो गया."
"मालिक, हमरा तो नही हुआ!" रामु उत्तेजना मे बोला.
"रामु, तुम ऐसा करो, मुठ मार लो." मैने चिढ़ाकर कहा, "अब जब तुम्हारी जोरु दूसरों से चुदवाने लग गयी है, तुम्हे रोज़ मुठ ही तो मारनी पड़ेगी."

रामु तैश मे आ गया. उसकी आंखे शराब और हवस से लाल थी. उसका मोटा काला लन्ड फनफना कर खड़ा था और सासुमाँ की चूत के रस से चमक रहा था. उस वक्त उसकी ऐसी हालत थी वह किसी का बलात्कार भी कर सकता था.

वह मुझे देखकर बोला, "साली बाज़ारु रंडी! मुझे चिढ़ाती है? मेरे लिये तेरी चूत तो है ना. मेरा जब मन करेगा मैं तुझे अपनी रखैल की तरह चोदुंगा!"

सुनकर ससुरजी और सासुमाँ हंसने लगे. किशन हैरान होकर रामु को देखने लगा और मेरे वह बोले, "रामु! ज़बान सम्भाल कर बात कर! मीना जैसी भी हो, घर की बहु है. तु उससे तमीज़ से बात करेगा!"

रामु सकपका गया तो मैने तुम्हारे भैया से कहा, "सुनिये जी, यह मेरे और रामु के बीच का एक मज़ाक है. आप बुरा मत मानिये. रामु मुझे गालियाँ देकर चोदता है तो मुझे बहुत उत्तेजना होती है."

"तुझे भी मज़ा आयेगा, बलराम, जब तेरी बीवी को कोई रंडी, छिनाल बोल के चोदेगा." सासुमाँ बोली, "रामु, तुझे बहु को रंडी, कुतिया, जो बोलने का मन है बोल और चोद ले साली को. अपनी हवस मिटा ले घर की बहु की इज़्ज़त लूटकर."

सासुमाँ की आज्ञा पाकर रामु बहुत खुश हो गया. अपना लौड़ा हाथ मे लेकर मेरे पास आया और बोला, "तुझे मैं कुतिया बनाके ही चोदुंगा! चल कुतिया बन और अपनी गांड इधर कर!"

घर के नौकर की हुकुम सुनकर मैं सोफ़े पर उकड़ू हो गयी और अपनी नंगी गांड उसके तरफ़ कर दी.

उसने मेरी कोमल, गोरे गोरे चूतड़ों पर दो चार जोर के चपत लगाये जिससे मेरे दोनो चूतड़ लाल हो गये.

"हाय, मार क्यों रहे हो? रामु मुझे दर्द हो रहा है!" मैने कहा.
"रंडी को लोग मार मारकर ही चोदते हैं!" रामु बोला, "जब मेरा लौड़ा तेरे गर्भ मे जाकर टकरायेगा ना, तब देखना कितना दर्द होता है!"
"बस और देर मत करो, मेरे राजा!" उसकी गालियों से उत्तेजित होकर मैने कहा, "अब चोद डालो अपनी रखैल को!"

रामु ने पीछे से मेरी चूत पर अपना लौड़ा रखा. चूत तो पहले से ही गीली और ढीली हुई पड़ी थी. एक जोरदार ठाप से उसका पूरा लन्ड मेरी चूत मे चला गया. मैं मज़े मे चिहुक उठी.

फिर रामु ने मेरी कमर को पकड़ा और मुझे एक कुतिये की तरह चोदने लगा. हर धक्के मे उसका लन्ड सुपाड़े तक बाहर आ जाता और फिर पेलड़ तक अन्दर चला जाता.

मुझे जल्दी ही फ़िर मस्ती चढ़ गयी और मैं चुदाई का पूरा आनंद उठाने लगी.

ससुरजी जो मेरे पास ही बैठे थे, मेरी लटकती चूचियों को दबा रहे थे, जिससे मेरा मज़ा दुगुना हो रहा था. ऊपर से मेरे पति घर के नौकर से मेरी चुदाई और बेइज़्ज़ती देख रहे थे. सोचकर ही मैं गनगना उठ रही थी.

घर के बाकी सब लोगों की नज़र भी मेरी चूत मे रामु के आते जाते लन्ड पर टिकी थी. मुझे लग रहा था जैसे सब नंगे होकर एक चुदाई फ़िल्म देख रहे हैं और मैं उस फ़िल्म की नायिका हूँ. सोचकर मैं मस्ती से भर उठी.

"हाय, सब लोग मुझे क्यों देखे जा रहे हो?" मैने रामु का ठाप खाते हुए पूछा.
"बहुत कामुक लग रही है तु, बहु, नौकर से चुदवाते हुए!" सासुमाँ ने कहा, "जैसे उस फ़िलम मे वह लड़की अपने बाप से चुदवा रही थी."

ससुरजी बोले, "कितना अच्छा हो अगर हम बहु और रामु की चुदाई की एक फ़िलम बनाये!"
"सच, पिताजी!" किशन उत्साहित होकर बोला, "बहुत मज़ा आयेगा भाभी की चुदाई को टीवी पर देखकर!"
"सिर्फ़ बहु की ही क्यों," सासुमाँ बोली, "गुलाबी भी बहुत सुन्दर है. एक फ़िलम बनानी चाहिये जिसमे दो मरद उसकी गांड और चूत को मार रहे हों!"

"हाय, मालकिन, हम कभी गांड नही मरवाये हैं!" गुलाबी बोली.
"वह कमी तो मैं आज पूरी कर दूंगा." ससुरजी बोले, "तेरी गांड को आज मैं चौड़ी कर दूंगा जिससे तुझे फिर गांड मरवाने मे दिक्कत ना हो."
"हाय, मालिक, हमको बहुत डर लग रहा है!" गुलाबी उत्तेजित होकर बोली.

"साली, 8 इंच का लौड़ा गांड मे घुसेगा तो डर तो लगेगा ही!" रामु अपनी बीवी को बोला. "बोल, मीना बाई, तेरी गांड मारुं आज?" रामु ने पूछा.
"मार लो जो मारना है, रामु!" मैने कहा, "बस मुझे जल्दी से एक बार झड़ा दो!"

रामु ने मेरी चूत से अपना लन्ड निकाला और फिर हाथ से पकड़कर मेरी गांड के छेद पर रखा. कमर के धक्के से पहले उसने सुपाड़े को अन्दर कर दिया, फिर पूरा लन्ड ही अन्दर कर दिया.

वीणा, गांड मराने का एक अलग मज़ा है और मैने यह मज़ा अपने पति के साथ बहुत लिया है. इसलिये रामु के लन्ड से मुझे कोई तकलीफ़ नही हुई.

"चुदैल, तु बहुत गांड मराती है क्या?" रामु ने पूछा, "हमरा लन्ड ऐसे ले ली जैसे गांड मे गधे का लन्ड लेने की आदत है?"
"तेरा लन्ड छोटा है, रामु. तभी." सासुमाँ उसे उत्तेजित करने के लिये बोली.
"अभी इस कुतिया की गांड फाड़ देंगे ना, तो समझेगी मेरा लन्ड छोटा है कि बड़ा!" रामु गुस्से से बोला.
"हाँ, रामु! फाड़ दो मेरी गांड को!" मैने उसे कहा, "तुम्हारा लन्ड बहुत मोटा है. मुझे बहुत पसंद है."

रामु ने मेरे चूतड़ों को पकड़ा और मेरी गांड मे अपना लन्ड पेलने लगा.
Reply
10-08-2018, 01:14 PM,
#64
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
गांड के अन्दर उसके मोटे लन्ड की रगड़ाई से मुझे इतना आनंद आने लगा कि मैं दो ही मिनट मे झड़ने लगी. रामु के लन्ड को मैं अपनी गांड के पेशियोन से दबोचने लगी जिससे रामु और खुद को रोक नही पाया. वह चिल्लाया, "साली, कैसी गांड मे लन्ड लेती है, रे! हम तो झड़ गये! आह!! आह!! आह!! आह!!" मेरे चूतड़ को ठोकते हुए वह मेरी गांड के भीतर अपना वीर्य छोड़ने लगा. मुझे गांड के अन्दर एक मज़ेदार गुदगुदी होने लगी.

झड़ने का बाद रामु कुछ देर मेरी गांड मे लन्ड डाले पड़ा रहा.

फिर वह मुझसे अलग हो गया. मेरी गांड से उसका वीर्य थोड़ा थोड़ा रिसने लगा.

"मीना, बहुत गज़ब का प्रदर्शन किया तुम ने!" मेरे वह तारीफ़ करके बोले. "पिताजी, हम एक वीडिओ कैमेरा खरीद लें क्या? बहुत मज़ा आयेगा जब मैं अपनी मीना के कुकर्म टीवी पर देखुंगा!"
"सिर्फ़ बहु की ही क्यों, हम सब अपनी चुदाई की फ़िलम बना सकेंगे!" सासुमाँ भी उत्साहित होकर बोली, "आज की हमारी सामुहिक चुदाई की फ़िलम बनाते तो कितना अच्छा होता! सुनो जी, मुझे एक भीडीओ कैमेरा ला दो!"

ससुरजी हंसे और बोले, "हाँ, बाबा! ला दूंगा. फिर तुम अपने कुकर्म की फ़िल्म बनाना और मन करे तो दुकान मे दे देना. फिर सारे हाज़िपुर के लोग तुम्हारी चुदाई का आनंद उठा सकेंगे."
"हाय, कितना मज़ा आयेगा अगर कोई वीडिओ के दुकान जाये और उसे वहाँ मेरी चुदाई की फ़िलम मिले!" मैने खुश होकर कहा.
"इससे तो अच्छा हो तुम कोठे पर बैठ जाओ और जो ग्राहक आये उससे चुदवा लो." मेरे वह मुझे चिढ़ाकर बोले.
"यह मत सोचो आपकी बीवी ऐसा नही कर सकती." मैने उन्हे ललकार कर कहा, "किसी दिन हाज़िपुर के रंडी बाज़ार मे जाकर देखोगे मैं किसी ग्राहक से चुद रही हूँ!"

"बलराम, तु मुझसे रुपये ले लेना. और जब शहर जाये तो वहाँ से एक वीडिओ कैमेरा ले आना." ससुरजी बोले.
"जी, पिताजी." तुम्हारे भैया जवाब दिया.

हम सबकी हवस कुछ देर के लिया शांत हो चुकी थी.

तुम्हारी मामीजी ने कहा, "रामु, सबके गिलासों मे दारु डाल. रसोई मे कुछ और पकोड़े तैयार कर रखे है. वह ले आ."
"कौशल्या, रात के दस बज चुके हैं." ससुरजी बोले, "अच्छा हो हम खाना खा लें तो."
"इतनी भी जल्दी क्या है, पिताजी?" मेरे वह बोले, "अभी तो चुदाई शुरु हुई है!"
"मालिक, हमको अभी और सराब पीनी है!" गुलाबी ज़िद करके बोली.
"अरे मैं शराब पीने से कब मना कर रहा हूँ?" ससुरजी बोले, "जिसको जितनी पीनी है, पी लो. फिर खा के एक राउंड और चुदाई करते हैं."

"तुम पर तो लगता है बुढ़ापा आ गया है!" सासुमाँ बोली, "अभी एक दौर और चुदाई की चलेगी, फिर खाना होगा."
"चलो, ठीक है." ससुरजी बोले, "रामु जा, बाकी की दो बोतलें भी ले आ."

रामु अपने शिथिल लन्ड को झुलाते हुए नंगा ही रसोई मे चला गया और दो बोतल रम, एक बोतल ठंडी कोकाकोला, और दो प्लेट गोश्त के ले आया. फिर उसने सबके गिलासों को भर दिया.

"रामु, यह चाय की मेज हटा दे." सासुमाँ ने कहा, "हम सब ज़मीन पर आराम से बैठते हैं."

रामु ने मेज हटा दी तो हम सब नीचे कालीन पर बैठ गये.

एक दूसरे के बगल मे नंगे होकर बैठकर हम शराब पीने लगे, पकोड़े खाने लगे, और बातें करने लगे. रामु भी एक गिलास लेकर हमारे साथ बैठ गया.

"भई, कुछ भी बोलो, आज चुदाई मे बहुत मज़ा आया!" मेरे वह बोले.
"मै कहती थी ना, मिलकर चुदाई मे एक अलग मज़ा है?" सासुमाँ बोली, "जितने ज़्यादा लोग हों, उतना ज़्यादा मज़ा आता है. सोनपुर मे हम नौ लोगों ने मिलकर सामुहिक चुदाई की थी."
"मालकिन, हम तो कहते हैं हम रोज ही मिलकर चुदाई करेंगे!" गुलाबी नशे मे बोली.
"पगली, रोज़ एक ही काम करेगी तो मज़ा थोड़े ही आयेगा!" ससुरजी बोले, "ऐसी चुदाई तो खास मौकों पर करनी चाहिये!"

शराब का दूसरा दौर चल रहा था. मुझे फिर मस्त नशा चढ़ने लगा. गुलाबी ऐसे दारु गटक रही थी जैसे शर्बत पी रही हो.

"अरे गुलाबी, तुझे पी के उलटी करनी है, क्या?" मैने पूछा.
"काहे, भाभी?" वह नशे मे चूर आवाज़ मे बोली, "सराब प-पीने से उलटी भी हो-होती है का?"
"तु जैसे गटक रही है ना, तुझे जरूर उलटी होगी." रामु बोला, "और नही भी हुई तो ऐसे टल्ली हो जायेगी कि कोई होस ही नही रहेगा. फिर तु चुदाई का मज़ा कैसे लेगी?"
"हमको लगता है हम टल्ली हो गये हैं जी!" गुलाबी बोली, "हमरा तो सर चकरा रहा है!"

ससुरजी ने, जो गुलाबी के पास बैठे थे, गुलाबी का गिलास ले लिया और उसके सर को अपनी नंगी जांघ पर रखकर उसे कालीन पर लिटा दिया.

गुलाबी के मुंह के पास ससुरजी का लन्ड था. चुदैल ने तुरंत उनके लन्ड को मुंह मे ले लिया और चूसने लगी! उसके मुंह पर ससुरजी का वीर्य पहले से ही लगा था. उसकी बुर से मेरे पति का वीर्य बह रहा था. यह देखकर सासुमाँ ने गुलाबी के पैरों को फैला दिये और उसकी चूत को चाटने लगी. नौकरानी की चूत से बहते अपने ही बेटे का वीर्य वह चाट चाटकर खाने लगी. गुलाबी बहुत नशे मे थी और जल्दी ही चुदासी हो गयी.

इधर रामु और किशन मेरे दोनो तरफ़ बैठे थे और मेरी नंगी चूचियों को दबा और चूस रहे थे. मैं उनके लन्डों को अपने एक एक हाथ मे पकड़कर हिला रही थी. उनके लन्ड भी खड़े होने लगे थे.

मेरे वह अपनी माँ और गुलाबी को देख रहे थे और अपना लौड़ा हिला रहे थे.

किशन मेरे पास से उठा और गुलाबी के पास जाकर अपनी माँ को बोला, "माँ, बहुत चाट ली तुम गुलाबी की चूत! अब मुझे उसे चोदने दो." वह भी काफ़ी नशे मे था.

सासुमाँ ने गुलाबी की चूत से मुंह हटाया और उठ गयी.

वह बोली, "अच्छा चोद ले उसे. घर की नौकरानी सबके चोदने के लिये ही होती है." वह उठकर मेरे पास आ बैठी.

किशन गुलाबी के पैरों के पास बैठ गया और अपना लन्ड पकड़कर उसकी चूत मे घुसाने की कोशिश करने लगा. पर उसका सुपाड़ा बार-बार गुलाबी की चूत से फिसल रहा था.

गुलाबी ने ससुरजी के लौड़े को मुंह से निकाला और बोली, "का हुआ, क-किसन भैया? बहुत पी लिये हो का...जो आपको हमरी च-चूत का छेद नही मिल रहा है?"

सुनकर हम सब हंस पड़े.

किशन गुस्से से बोला, "बेवड़ी, चुपचाप पिताजी का लौड़ा चूस और मुझे मेरा काम करने दे!"

थोड़ी मुश्किल के बाद किशन अपना लन्ड गुलाबी की चूत मे घुसाने मे सफ़ल हुआ और वह कमर उठा उठाकर उसे चोदने लगा.

सासुमाँ मेरे बगल मे लेट गयी और मेरे पति से बोली, "बलराम, ज़रा मेरी बुर चाट दे, बेटा!"

आज्ञाकारी पुत्र की तरह तुम्हारे भैया अपना लन्ड पकड़कर आये. अपनी माँ के जांघों के बीच बैठकर उनकी चुदी हुई चूत को चाटने लगे.

सासुमाँ के चेहरे पर अब भी किशन का सफ़ेद गाढ़ा वीर्य भरा हुआ था. मैने अपना मुंह उनके मुंह पर झुका दिया और उनके होठों को चूमने लगी. वह भी मेरे नरम होठों को पीने लगी.

मैने फिर उनके चेहरे पर लगे वीर्य को चाटकर खाना शुरु किया. एक तो शराब का नशा और उस पर इतनी चुदास. किशन के किशोर वीर्य को खाने मे मुझे बहुत स्वाद आ रहा था.

जब मैने पूरा वीर्य चाट लिया तो मैं सासुमाँ की चूचियों को चूसने लगी.

वह मस्ती मे बड़बड़ायी, "आह, बहु! कितना अच्छा चूची पीती है तु! आह!! और चूस मेरी चूचियों को!"

मैं झुककर सासुमाँ की चूची पी रही थी और मेरी गांड रामु की तरफ़ उठी हुई थी. वह मेरे चूतड़ों को चुमने लगा. मैं अपने चूतड़ उसके मुंह पर रगड़ने लगी. मेरी गांड से उसी का वीर्य थोड़ा थोड़ा चूकर गिर रहा था.

कुछ ही देर मे सासुमाँ को बहुत हवस चढ़ गयी और वह मेरे पति को बोली, "बलराम! बस बहुत हो गया, बेटा. अब मेरी चूत मे अपना लौड़ा डाल दे!"

तुम्हारे भैया ने अपना खड़ा लन्ड अपनी माँ की चूत पर रखा और एक ही धक्के मे पूरा अन्दर घुसा दिया. सासुमाँ ने मेरे सर को पकड़कर अपनी चूची पर दबा दिया और जोर से "आह!!" कर उठी.

मेरे वह अपनी माँ को धीरे धीरे चोदने लगे.

"देख, रामु!" सासुमाँ बोली, "मै अपने बलराम से भी चुद रही हूँ!"
"देख रहे हैं, मालकिन!" रामु बोला.
"देख और सीख कुछ!" वह बोली, "तेरा कोई बेटा हुआ तो गुलाबी को उससे ज़रूर चुदवाना!"
"मालकिन, गुलाबी ऐसी रंडी बन गयी है कि खुदे अपने बेटे से चुदवा लेगी." रामु हंसकर बोला, "हम तो एक बेटी चाहते हैं, ताकि हम उसे चोद सकें."

सुनकर ससुरजी हंसकर बोले, "बहुत दुर की सोच रहा है रे, रामु?"
"मालिक, हम अपनी बेटी को आप सब से भी चुदवायेंगे!" रामु ने कहा.
"पर पहले तेरी बेटी होने तो दे." मैने कहा.
"जैसे गुलाबी दिन रात सबसे चुदवा रही है, उसका पेट अब तक ठहर ही गया होगा." रामु ने कहा.
"पर तुझे कैसे पता बच्चा तेरा ही होगा?" मेरे वह अपनी माँ की चूत को मारते हुए बोले, "बच्चा तो हम मे से किसी का भी हो सकता है...मेरा...या किशन का...या पिताजी का...या तेरा."

गुलाबी ने ससुरजी का लन्ड अपने मुंह से निकाला और हिचकी लेकर कहा, "हमरे पेट मे तो हमको बड़े भैया का ही बच्चा चाहिये!"
"तु साली कोठे की वेस्या जैसे हो गयी है!" रामु बोला, "जो भी आता है तेरे गर्भ मे अपना पानी भर देता है. तुझे क्या पता तेरे पेट में किसका बच्चा होगा?"

"रामु, यह हाल तो घर के सब औरतों का है." ससुरजी बोले, "सोनपुर से आज तक जितने लोगों से कौशल्या और मीना बहु चुदवाई है, अब तक तो उनका दोनो का पेट ठहर गया होगा."

सासुमाँ अपने बेटे का ठाप खाती हुई बोली, "मेरे पेट मे तो मुझे बलराम या किशन का बच्चा चाहिये. मैने अपने बेटों के बच्चे की माँ बनना चाहती हूँ!"
"कौशल्या, तुम्हारे पेट मे हो न हो विश्वनाथ का ही बच्चा होगा." ससुरजी बोले, "अपने मैके जाते समय तुम ने जितनी रंगरेलियां उसके साथ मनायी थी..."

"और मेरे पेट मे, बाबूजी?" मैने इतराकर पूछा.
"बहु, तेरे पेट मे तो मैं अपना बच्चा जनना चाहुंगा." ससुराजी बोले, "पर तु अगर घर के नौकर के बच्चे की माँ भी बन जाये तो भी बुरा नही है."

रामु जोश मे आकर बोला, "ई मीना बाई तो हमरी रखैल है. इसका पेट तो हमये बनायेंगे."
"तो फिर मेरी चूत मे अपना लन्ड डाल दो, रामु!" मैने कहा, "मै बहुत चुदासी हो गयी हूँ!"

रामु ने मुझे सासुमाँ के बगल मे लिटाया और मुझ पर चढ़ गया. मेरी चूत मे अपना लन्ड डालकर वह ठाप लगाने लगा.

मेरे बगल मे सासुमाँ मेरे पति से चुदवाये जा रही थी. उधर किशन शराब मे टल्ली गुलाबी को चोद रहा था.

सबकी बातों को सुनकर मेरे अन्दर एक खलबली मच गयी.
Reply
10-08-2018, 01:15 PM,
#65
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
वीणा, सोनपुर मे जब रमेश और उसके दोस्तों ने हम दोनो का बलात्कार किया था, तब से अब तक, अलग अलग मर्दों से, अपने गर्भ मे मैने ना जाने कितना वीर्य भरवाया था. मुझे पता था कि चुदवाने से पेट ठहरने का खतरा रहता है. पर चुदाई के हवस मे मैं इस खतरे को नज़र अंदाज़ कर देती थी. बल्कि मुझे सोचकर ही बहुत चुदास चढ़ती थी कि जिस आदमी से मैं चुदवा रही हूँ उसके बच्चे की माँ भी बन सकती हूँ.

अब मैं रामु के नीचे लेटे सोच रही थी कि अगर सचमुच मेरा पेट ठहर गया है तो? किसका बच्चा होगा मेरे पेट मे? रमेश का? या उसके तीन दोस्तों मे से एक का? या फिर विश्वनाथजी का? या ससुरजी का. मैं तो उनसे रोज़ रात एक बीवी की तरह चुदवाती हूँ. या फिर किशन या रामु का?

बच्चा मेरे पति का नही होगा यह तो मुझे पूरा यकीन था. हाय, कैसी गिरी हुई छिनाल हूँ मै, मैने सोचा, और डरने की बजाय मैं एक विक्रित वासना से भर गयी. रामु को जोर से पकड़कर बोली, "रामु, जोर जोर से चोद मुझे! आह!! पेल दे अपना लौड़ा मेरे गर्भ तक!"

रामु मुझे दम लगाकर चोदने लगा.
उधर तुम्हारे मामाजी उठ गये थे और बोले, "किशन, तु गुलाबी के नीचे आ, और नीचे से उसकी चूत मे लन्ड दे."
"काहे, मालिक?" गुलाबी बोली, "हमको कितना मजा आ रहा था किसन भैया से चुदवाने मे और आपका लन्ड चूसने मे!"
"अब तेरी गांड खोलने का समय आ गया है, इसलिये." ससुरजी बोले.

शराब के नशे मे होने के कारण गुलाबी डरने के बजाय उत्साहित होने लगी.

किशन कालीन पर लेट गया तो गुलाबी भुखे जानवर की तरह उस पर टूट पड़ी. उसके होठों को पीते हुए उसने अपनी चूत किशन के लन्ड पर रखी, और फिर लन्ड को पकड़कर अपने चूत के मुंह पर सेट की. फिर एक कमर के धक्के से पूरा लन्ड अपनी चूत मे ले ली.

ससुरजी अपने कमरे से एक कोल्ड क्रीम की शीशि लेकर आये और गुलाबी की गांड के पीछे घुटने टेक कर बैठ गये.

पहले उन्होने उसके नरम, सुडौल चूतड़ो को सहलाया और पूछा, "गुलाबी, तुझे डर तो नही लग रहा है?"
"थोड़ा थोड़ा, मालिक." गुलाबी बोली, "पर हम गांड मरवायेंगे. भाभी हमरे मरद से कितने मजे से अपनी गांड मरवायी."

"मीना की गांड बहुत चुदी हुई है, गुलाबी." मेरे वह अपनी माँ को पेलते हुए बोले, "मैने मार मारकर चौड़ी कर दी है."
"बलराम, क्यों डरा रहा है बच्ची को?" सासुमाँ बोली, "तेरे पिताजी बहुत प्यार से अपना लन्ड डालेंगे उसकी गांड मे."

गुलाबी किशन का लन्ड अपनी चूत मे डाले उस पर पड़ी रही और ससुरजी के लन्ड का इंतज़ार करने लगी.

ससुरजी ने उसके चूतड़ों को अलग किया और उसकी गांड के छेद पर खूब सारी क्रीम मली. ठंडे क्रीम के छुअन से गुलाबी चिहुक उठी. फिर ससुरजी ने अपने खड़े लन्ड पर खूब सारा क्रीम लगाया. फिर अपने सुपाड़े को गुलाबी की गांड के छेद मे घुसाने की कोशिश की. पर पकोड़े जैसा मोटा सुपाड़ा बार-बार फिसल रहा था.

"अरी छोकरी!" ससुरजी बोले, "गांड को इतना कसकर रखेगी तो लन्ड अन्दर कैसे घुसेगा?"
"गुलाबी, अपनी गांड को ढीला छोड़ दे." मैने रामु का ठाप लेते हुए कहा, "जितना कसकर रखेगी उतनी तकलीफ़ होगी."
"हम ढीला छोड़ दिये हैं, मालिक!" गुलाबी ने कहा.

ससुरजी ने फिर कोशिश की और अब की बार जोर लगाकर अपना सुपाड़ा गुलाबी की गांड मे घुसाने मे सफ़ल हो गये.
पर गुलाबी जोर से चिल्ला उठी. "हाय, मालिक, बहुत लग रहा है. हमरी गांड तो फट रही है! बाहर निकालिये अपना लन्ड!"

रामु हंसकर बोला, "साली गांड मरायेगी तो फटेगा नही?"
"चुप कर, रामु!" सासुमाँ बोली, "गुलाबी, पहली बार गांड मराने से थोड़ा लगता है. पहली बार तु रामु से चुदी थी तो लगा था कि नही."
"बहुत लगा था, मालकिन!" गुलाबी बोली, "सुहागरात को ऊ हमरी चूत फाड़कर खून निकाल दिये थे!"

"मूरख, चूत फटने से खून नही निकलता है." रामु मुझे पेलते हुए बोला, "ऊ तो तेरे चूत की झिल्ली थी जो फट गयी थी."
"पर हमको दर्द तो बहुत हुआ था ना!" गुलाबी बोली, "ऊपर से तुम उस रात हमको चार-चार बार चोदे थे."
"पर गुलाबी, बाद मे तुझे मज़ा भी तो आया था ना?" मैने पूछा.
"हाँ, भाभी."
"और अब तु कितने आराम से मोटे से मोटा लन्ड चूत मे ले लेती है!" मैने कहा. "दो चार बार गांड मरा लेगी तो तेरी गांड खुल जायेगी. फिर तु मोटे से मोटे लन्ड गांड मे ले पायेगी."

मेरी बात सुनकर गुलाबी का ध्यान फिर अपनी गांड पर गया. वह फिर चिल्लाने लगी, "हाय, मालिक! निकाल दीजिये अपना लन्ड!" वह लन्ड को बाहर निकालने के लिये अपनी कमर को हिलाने लगी.

"कुछ नही होगा, पगली." ससुरजी बोले. उन्होने गुलाबी के कमर को जोर से पकड़ रखा था. "अब तु अपनी कमर मत हिला. मेरा लन्ड बाहर आ गया तो अब की बार पूरे 8 इंच एक साथ तेरी गांड मे पेल दूंगा. फिर तुझे समझ मे आयेगा गांड फटना किसे कहते हैं."
"नही, मालिक!" गुलाबी चिल्लायी, "हम दर्द से मर जायेंगे!"

सासुमाँ ने मेरे पति को खुद से अलग किया और कहा, "देखो जी, गुलाबी के साथ जबरदस्ती मत करो. बच्ची है अभी."
"अरे मैं कहाँ जबरदस्ती कर रहा हूँ?" ससुरजी बोले, "पर उसे गांड मराने का मज़ा लेना है तो कभी तो अन्दर लन्ड लेना पड़ेगा? और उसकी गांड मारने के लिये मैं उसके सुहगरात से इंतज़ार कर रहा हूँ!"

तुम्हारी मामी उठी और गुलाबी के पास गयी.

एक गिलास मे खूब सारी दारु डालकर गुलाबी को बोली, "मुंह खोल और गटक जा."

गुलाबी ने एक बड़ी घूंट ली और आंख-मुंह भिचका कर बोली, "हाय, मालकिन, हमरा तो गला जल रहा है!"
"इसमे कोकाकोला नही मिलाया है, इसलिये." सासुमाँ बोली, "बस किसी तरह पी जा. थोड़ी चढ़ जायेगी तो दर्द कम होगा."

उन्होने फिर ससुरजी को अपना लन्ड पेलने का इशारा किया.

गुलाबी ने अगली घूंट ली तो ससुरजी ने उसकी कमर पकड़कर एक धक्का लगाया. उनका लन्ड दो इंच गुलाबी की गांड मे चला गया.
गुलाबी चिहुक उठी तो सासुमाँ ने उसे और एक घूंट लेने को कहा. अगले घूंट मे लन्ड और दो इंच अन्दर चला गया.

ससुरजी का लन्ड अब पांच इंच गुलाबी की गांड मे घुस चुका था. वह गुलाबी की कमर पकड़कर खड़े रहे. नीट रम पेट मे जाने से गुलाबी को बहुत जल्दी ही बहुत चढ़ गयी. उसने अपनी गांड को भी ढीला छोड़ दिया. अब उसे दर्द कम हो रहा था.

"अब दर्द हो रहा है?" सासुमाँ ने पूछा.
"कम हो रहा है, म-मालकिन." गुलाबी ने लड़खड़ाती आवाज़ मे मुश्किल से जवाब दिया.

अब ससुरजी ने एक जोर का धक्का लगाया और अपना लन्ड पेलड़ तक गुलाबी की कसी गांड मे पेल दिया. फिर वह लन्ड को गांड मे डाले गुलाबी के पीठ पर लेट गये. बेचारा किशन गुलाबी और अपने पिताजी के नंगे बदन के नीचे दब गया.

ससुरजी कुछ देर गुलाबी के ऊपर लेटे रहे. गुलाबी शराब के नशे मे धुत्त हो चुकी थी. अपनी चूत मे किशन का लन्ड और गांड मे ससुरजी का लन्ड लिये वह पड़ी रही.

सासुमाँ बोली, "अब चोद लो लड़की की गांड जितनी चोदनी हो." और वह मेरे पास आकर लेट गयी.

मेरे पति जो अपनी प्यारी गुलाबी की गांड खुलाई देख रहे थे अपनी माँ पर टूट पड़े और जोर जोर से चोदने लगे.

ससुरजी अपने हाथों के सहारे उठे और उन्होने अपना लन्ड गुलाबी की गांड से सुपाड़े तक निकाला.
गुलाबी आंखें बंद किये बोली, "ऊं!!"

फिर उन्होने लन्ड को धीरे से पेलड़ तक घुसा दिया. फिर निकाला और फिर धीरे से घुसा दिया. ऐसा उन्होने 10-15 बार किया.

"दर्द हो रहा है, बेटी?" ससुरजी ने पूछा.
"पता नही, मालिक!" गुलाबी बोली.

"साली इतनी पी ली है कि उसे पता ही नही की उसकी गांड मारी जा रही है!" रामु हंसकर बोला.
अपनी बीवी की यह हालत देखकर वह काफ़ी उत्तेजित हो चुका था. उसकी चुदाई की रफ़्तार भी बढ़ गयी थी.

ससुरजी अब अपने घुटने के बल बैठ गये और गुलाबी के कमर को पकड़कर उसकी गांड मे अपना लन्ड पेलने लगे. हर एक ठाप के साथ वह मज़े मे आह भर रहे थे. और गुलाबी एक कपड़े के पुतले की तरह किशन के नंगे बदन पर पड़ी उनके धक्कों से हिल रही थी.

"क्यों जी, बहुत मज़ा आ रहा है?" सासुमाँ ने अपने बेटे का ठाप खाते हुए पूछा.
"हाँ, भाग्यवान!" ससुरजी बोले, "अनचुदी, कोरी गांड है. मारकर जन्नत का मज़ा आ रहा है! मुझे नही लगता मैं ज़्यादा देर चोद सकूंगा!"
"इससे पहले की उसका नशा उतर जाये, मार मारकर चौड़ी कर दो." सासुमाँ बोली, "जब मैने पहली बार गांड मरवाई थी, दो दिन तक मैं ठीक से चल भी नही पायी थी."
"नही तो!" ससुरजी अपनी कमर चलाते हुए बोले, "मैने पहली बार तुम्हारी गांड तब मारी थी जब बलराम तुम्हारे पेट मे था. अगले दिन तुम तो आराम से चल रही थी!"

"मेरे भोले सईयाँ, पहली बार अपनी गांड मैने तुमसे नही मरवाई थी." सासुमाँ शरारती हंसी के साथ बोली, "वह काम मैने शादी से पहले ही निपटा लिया था."
"तुम कभी बताई नही मुझे?" ससुरजी गुलाबी की गांड को धीरे धीरे पेलते हुए बोले, "कौन था वह हरामी?"
"वह किस्मत वाले मेरे मझले काका थे." सासुमाँ बोली.
"फिर उनसे चुदवा भी ली होती?"
"चुदवाकर क्या कुंवारेपन मे अपना पेट बना लेना था? तब मैं स्कूल मे पढ़ती थी और तुमसे शादी की बात चल रही थी." सासुमाँ ने कहा, "इसलिये मैं सिर्फ़ उनसे अपनी गांड मरवाया करती थी."

अपने माँ के कुकर्मो की गाथा सुनकर मेरे वह और जोर जोर से चोदने लगे. रामु भी अपनी बीवी को देख देखकर मुझे चोद रहा था.

"अच्छा होता तुम अपनी भांजी की चूत न मारकर उसकी गांड मारते." सासुमाँ अपने बेटे के धक्के लेते हुए बोली, "बेचारी की शादी भी नही हुई है. सोनपुर मे वह जितनी चुदी है, उसका भी गर्भ ठहर गया होगा."

"क्या फ़ायदा माँ?" मैने कहा, "रमेश और उसके दोस्तों ने विश्वनाथजी के साथ मिलकर वीणा को पहले ही चोद लिया था. पेट ठहरना होता तो तब ही ठहर जाता."

"तुम्हे क्या लगता है वीणा सुनने वाली थी?" तुम्हारे मामाजी बोले, "वैसी चुदक्कड़ लड़की मैने कम ही देखी है. वह ऐसे लौड़े ले रही थी उसे जैसे गर्भ ठहरने की परवाह ही नही थी."
"चुदास चढ़ने पर दिमाग थोड़े काम करता है! पर अब क्या होगा?" सासुमाँ ने पूछा "कुंवारी लड़की है. गर्भ ठहर गया होगा तो क्या करेगी बेचारी?"
"तब की तब देखेंगे. किसी से शादी करा देंगे." ससुरजी बोले, "बहु, तु वीणा बिटिया को चिट्ठी लिख और पूछ उसका पेट-वेट तो नही ठहर गया!"
"जी बाबूजी." मैने कहा, "पर हमारा क्या होगा?"
"तुम लोगों का क्या होना है?" ससुरजी बोले, "तीनो शादी-शुदा हो. बच्चा दे देना. कोई पूछने नही आयेगा बच्चे का बाप कौन है."

"अगली बार कंडोम लगाकर चुदवायेंगे." सासुमाँ बोली.
"नही माँ!" मैने कहा, "आपके बेटे पहले मुझे कंडोम लगाकर चोदते थे. उससे मुझे बिलकुल मज़ा नही आता है."
"अरे तुम लोग भी किस बखेड़े मे पड़ गये!" ससुरजी बोले, "जो होना था हो चुका है. अभी तो दिल खोलकर चूत मराओ."

हम सब चुप हो गये और अपनी चुदाई पर ध्यान देने लगे. अपने अपने मर्द को सीने से लगाकर सासुमाँ और मैं कमर उठा उठाकर चुदवाने लगे.

सब का जोश बहुत चढ़ गया था. हमारी गरम सांसें बहुत जोरों से चल रही थी. चूत मे लन्ड के गमन-आगमन से हम मस्ती के आसमान मे उड़ रहे थे. मेरे पति मुझे रामु से चुदते देखकर अपनी माँ को चोद रहे थे. मैं उनकी आंखों मे देखते हुए रामु से चुदवा रही थी.

जल्दी ही हम चारों झड़ने के करीब आ गये.

सासुमाँ बोली, "बेटा बलराम! उफ़्फ़!! अब और जोर से ठोक मुझे! मैं बस झड़ने ही वाली हूँ!"

मैने भी रामु को अपनी गती बढ़ाने को कहा. हम दोनो औरतों की जमकर चुदाई होने लगी.

बहुत मज़ा आ रहा था अपनी सास के बगल मे लेटकर चुदाने मे. हमारे नंगे शरीर आपस मे टकरा भी रहे थे. इस मज़े मे डूबे हुए मैं उस शाम तीसरी बार झड़ने लगी. रामु को जोर से पकड़कर मैं उसके लन्ड को अपनी चूत के स्नायु से जकड़ ली. इससे रामु भी खुद को रोक नही पाया और मेरी चूत मे अपना पानी छोड़ने लगा.

पास मे सासुमाँ भी झड़ गयी और मेरे पति ने भी अपनी माँ की चूत को अपने वीर्य से भर दिया.

जब हम लोगों की सांसें काबू मे आयी हम चारों उठे और गुलाबी के पास गये और उसकी चुदाई देखने लगे.

बेचारी गुलाबी शराब के नशे मे धुत्त हुई पड़ी थी. ससुरजी उसकी गांड को धीरे धीरे मार रहे थे. गांड अब काफ़ी ढीली हो चुकी थी जिससे उन्हे घुसाने और निकालने मे मुश्किल नही हो रही थी. किशन नीचे से गुलाबी की चूत को धीरे धीरे पेल रहा था. गुलाबी नंगी होकर दोनो मर्दों के बीच मे पड़ी थी और मस्ती मे बड़बड़ा रही थी.

"गांड खुल गयी है क्या?" सासुमाँ ने पूछा.
"हाँ, अब खुल गयी है." ससुरजी पेलते हुए बोले, "दो चार दिन और मरवायेगी तो बिलकुल खुल जायेगी."
"तो फिर थोड़ा जोर से बजाओ उसकी गांड को." सासुमाँ ने कहा.

ससुरजी ने अपनी पत्नी की बात मान ली और थोड़ी रफ़्तार से गुलाबी की गांड को मारने लगे.

गुलाबी आंखें बंद किये बड़बड़ाने लगी, "हाय, भाभी! आह!! कितना मजा आ रहा है! आह!! गांड मराने मे कितना मजा है!! आह!! ऊंह!! किसन भैया, मेरी चूत जोर से मारो!! आह!! मालिक, मेरी गांड और मारिये!! उम्म!! हाय, बहुत मजा आ रहा है!! उफ़्फ़!! दोनो मेरी गांड और चूत फाड़ दो!! आह!! ऊह!! ऊंह!!"

इतने मे किशन से और रहा नही गया. गुलाबी की गांड और चूत के बीच की दीवार के इस पार और उस पार बाप-बेटे के लन्ड चल रहे थे.
वह बोला, "पिताजी, आपका लन्ड मेरे लन्ड पर रगड़ रहा है!! आह!! मेरा पानी निकल जायेगा!! आह!!"
"मेरे लन्ड भी तेरे लन्ड पर घिस रहा है, किशन!" ससुरजी बोले, "बहुत मज़े का अहसास होता है यह. निकाल दे पानी अगर रोक नही सकता है तो."

किशन ने अपनी कमर उचकाकर अपना लन्ड गुलाबी की चूत मे पूरा पेल दिया और झड़ने लगा.

पुरा झड़कर वह गुलाबी के नीचे लेटा रहा. उसका लन्ड नरम नही हुआ था और चूत मे ही फंसा था. पर ससुरजी ने धक्कों से उसका लन्ड थोड़ा थोड़ा अन्दर बाहर हो रहा था. साथ ही उसका वीर्य गुलाबी की चूत से बाहर निकलने लगा. सफ़ेद वीर्य मे उसका पेलड़ नहा गया और कालीन गीली होने लगी.

"किसन भैया, हमरी चूत से का बह रहा है?" गुलाबी किशन के सीने पर लेटी हुई बोली, "आप झड़ गये का? हम भी झड़ने वाले है."
Reply
10-08-2018, 01:15 PM,
#66
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
ससुरजी अब अपने आपको और नही रोक पा रहे थे. उन्होने गुलाबी की गांड को जोर जोर से मारना शुरु कर दिया.

"अरे फाड़ोगे क्या लड़की की कच्ची गांड को?" सासुमाँ ने कहा.
"अब रहा नही जा रहा, कौशल्या!" ससुरजी बोले, "ऐसी कसी गांड मैने कभी नही मारी है. जी कर रहा है फाड़ ही दूं! आह!!"

लन्ड को पेलड़ तक निकाल निकालकर वह गुलाबी की गांड को बजाने लगे. उनके पेट और गुलाबी के चूतड़ों के टकराने से "ठाप! ठाप! ठाप! ठाप!" की आवाज़ हो रही थी.

गुलाबी अगर शराब के नशे मे धुत्त नही होती तो शायद उसे काफ़ी तकलीफ़ होती. पर वह नशे मे बड़बड़ाये जा रही थी, "हाय, कितना मजा आ रहा है! आह!! आह!! आह!! कितना मजा है! आह!! उम्म!! उम्म!! मारो हमरी गांड को और मारो!! आह!! आह!! आह!! हाय, हम झड़ रहे है!! हमरा पानी छूट रहा है!! आह!! आह!!"

गुलाबी अपने गांड के मांस पेशियों को कसने लगी जिससे ससुरजी खुद को और नही रोक पाये. उसकी गांड मे अपना लन्ड पेलड़ तक पेलकर वह अपना वीर्य गिराने लगे और जोर जोर से कराहने लगे. वह काफ़ी देर तक झड़ते रहे फिर गुलाबी के ऊपर थक कर लेट गये. उनका मोटा लन्ड गुलाबी की गांड मे ही फंसा रहा.

कुछ देर बाद ससुरजी गुलाबी के ऊपर से उतर गये और बगल मे लेट गये.

किशन ने भी गुलाबी को अपने ऊपर से उतार दिया और उठ गया. "बहुत ही मज़ा आया आज चुदाई मे!" वह बोला.

"सचमुच!" मेरे वह बोले, "सामुहिक चुदाई मे कितना मज़ा है. हमने यह सब पहले क्यों नही किया!"
"यह विश्वनाथजी और उनके दोस्तों का कमाल है जो सासुमाँ और मुझे चोद चोदकर उन्होने ऐसा छिनाल बना दिया." मैने कहा.
मेरे पति ने मुझे बाहों मे ले लिया और प्यार करके बोले, "तुम्हारे विश्वनाथजी को एक बार यहाँ बुलाना पड़ेगा. जिस आदमी ने मेरी प्यारी पत्नी को इतनी चुदक्कड़ बना दिया है उसे धन्यवाद तो कहना चाहिये!"

"बाबूजी, आप विश्वनाथजी को हाज़िपुर आने का निमंत्रण दीजिये ना!" मैने कहा, "उनका गधे जैसा लन्ड लेने का मुझे बहुत मन करता है!"
"हाँ बुला दूंगा, बहु." ससुरजी बोले, "पर आज की चुदाई यहीं समाप्त करते हैं. तु और गुलाबी रसोई मे जाकर खाने का इंतज़ाम कर. रात के बारह बज गये हैं."
"बहु, मैं चलती हूँ तेरे साथ." सासुमाँ बोली, "गुलाबी अब कल ही उठेगी जब उसका नशा उतरेगा."

गुलाबी कालीन के ऊपर गांड फैलाये नंगी नशे मे धुत्त पड़ी थी. उसकी गांड से ससुरजी का वीर्य रिस कर बह रहा था.

सासुमाँ और मैं नंगे ही रसोई मे गये और सबके लिये खाना लेकर बैठक मे आये.

हम सब नंगे होकर कालीन पर बैठकर ही खाये. शराब का नशा तो सबको पहले ही था. हमने बाकी बची हुई शराब भी पीकर खतम कर दी.

हाथ मुंह धोकर सब अपने अपने कमरों मे चले गये. मैं और मेरे पति एक दूसरे को पकड़कर, किसी तरह डगमगाते हुए अपने कमरे मे पहुंचे. दरवाज़ा खुला ही रह गया. हम नंगे ही एक दूसरे से लिपटकर सो गये.

गुलाबी रात भर कालीन पर नंगी पड़ी रही.


अगले दिन सुबह हम सब बहुत देर से उठे.

मै कमरे से नंगी ही निकली और बैठक मे गयी. गुलाबी अब भी कालीन पर नंग-धड़ंग पड़ी हुई थी.

बैठक मे शराब की खाली बोतलें, गिलासें, प्लेटें, और सबके कपड़े बिखरे हुए थे.

मैने अपनी साड़ी उठायी और अपने नंगे जिस्म पर लपेट ली. फिर गुलाबी को हिला हिलाकर जगाया.

काफ़ी हिलाने के बाद वह उठ बैठी. कुछ देर तक तो उसे समझ मे नही आया कि वह है कहाँ.

वह बोली, "भाभी, हमरे कपड़े कहाँ हैं? हम नंगे क्यों हैं?"
"चूतमरानी, तुने रात को कितनी शराब पी थी तुझे खबर है?" मैने उसके गालों को एक चपत लगाकर कहा.
"हाँ, हम बहुत सराब पीये थे." वह याद करके बोली, "मालकिन हमको बहुत पिलाई थी."
"और तु बहुत चुदवाई भी थी." मैने कहा, "अब उठ जा और जाकर नहा ले. तेरे पूरे शरीर से शराब और वीर्य की महक आ रही है."

गुलाबी ने उठने की कोशिश की और बोली, "भाभी, हमरा सर काहे फटा जा रहा है?"
"ज़्यादा पीने से होता है." मैने कहा और उसका हाथ पकड़कर उसे उठाया.

वह लड़खड़ा कर चलने लगी तो मैने पूछा, "तेरी गांड का क्या हाल है?"
गुलाबी ने अपनी गांड पर हाथ रखा और कहा, "चलने से बहुत दुख रहा है, भाभी!"
"दुखेगा नही? बाबूजी ने अपने मोटे मूसल से कल तेरी गांड खोली थी." मैने कहा, "पर कल तो तु बहुत मज़े ले रही थी. एक दो दिन मे दर्द ठीक हो जायेगा. मैं सेंक लगा दूंगी. फिर तु जितनी मर्ज़ी अपनी गांड मरवाना."

मैने गुलाबी को उसकी घाघरा चोली पकड़ा दी जिसे चूची पर दबाकर वह नंगी ही अपने कमरे मे चली गयी.

उस दिन किसी ने और चुदाई नही की. एक तो शराब का खुमार ही नही उतर रहा था. मेरा तो सर फटा जा रहा था. दूसरे हम सब बहुत थके हुए थे. बस खाना खाकर सब ने आराम किया.

वीणा, उम्मीद है तुम्हे हमारे अतिरेक अनाचार और व्यभिचार की यह कहानी पसंद आयी! अपना जवाब जल्दी देना.

और हाँ, मुझे बताना तुम्हे सुबह उलटी चक्कर वगैरह आते हैं या नही.

सदा प्रसन्न रहो!
तुम्हारी चुदक्कड़ भाभी

**********************************************************************


मैने भाभी की चिट्ठी पढ़कर समाप्त की ही थी कि मैने सीड़ियों से किसी को छत पर आते सुना. मैने झट से अपनी साड़ी मे से अपना हाथ निकाल लिया. मेरी उंगली मेरे चूत के रस से गीली हो चुकी थी. मैने अपनी उंगलियों को अपनी साड़ी पर पोछा और चिट्ठी को लिफ़ाफ़े मे छुपा दिया.

नीतु छत पर आयी और आते ही बोली, "अरे दीदी, तु यहाँ छुपी बैठी है! उधर माँ परेशान हो रही है तु कहाँ है."
"मै कहीं नही गयी हूँ." मैने खीजकर जवाब दिया, "किसी दिन किसी के साथ भाग जाऊंगी, तब सब लोग परेशान हो लेना!"
"दीदी, सोनपुर से आने के बाद तु बहुत चिड़चिड़ी हो गयी है."
"हाँ, हो गयी हूँ!" मैने जवाब दिया.

अब मैं उसे क्या बताती. किसी चुदक्कड़ लड़की को एक महीने से लन्ड न मिला हो तो वह चिड़चिड़ी न हो तो क्या हो.

अपने कमरे मे आकर मैने मीना भाभी की चिट्ठी का जवाब लिखा.


**********************************************************************

प्यारी मीना भाभी,

तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर मुझे सोनपुर के उस दावत की याद आ गयी जब मामाजी, विश्वनाथजी, रमेश और उसके तीन दोस्तों ने मिलकर मेरी, तुम्हारी, और मामीजी की सामुहिक चुदाई की थी. हाय क्या दिन थे वह भी!

सच कहूं भाभी, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर मैं ईर्ष्या से जल उठी! उफ़्फ़, कैसे कैसे मज़े तुम अपने घर पर ले रही हो. भगवान ऐसा घोर अन्याय कैसे कर सकता है! उधर तुम अपने ससुराल मे शराब पी रही हो और सबसे चुदवा रही हो. और मैं यहाँ अपनी चूत मे बैंगन पेल रही हूँ! भाभी, तुम जल्दी से मेरा कुछ इंतज़ाम करो!

तुम्हारी प्यासी वीणा

************************************
अगले दो-तीन दिन मैं भाभी की चिट्ठी की प्रतीक्षा करती रही, पर कोई चिट्ठी नही आयी. न जाने भाभी को क्या हुआ था! भाभी की चिट्ठियां मेरे मनोरंजन की एक मात्र साधन थी. उनके बिना मुझे पूरा दिन सूना-सूना लगता था.

डाकिया घर के सामने से गुज़रता और मुझे देखकर कहता, "अरे बिटिया, तेरी चिट्ठी होगी तो ज़रूर दे जाऊंगा!"

खैर, तीन-चार दिन बाद भाभी की चिट्ठी आयी. मैं खुश होकर उसे अपने कमरे मे ले गयी.

**********************************************************************
Reply
10-08-2018, 01:15 PM,
#67
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
प्रिय ननद वीणा,

तुम्हारा ख़त मिला. हमारे घर पर सब अच्छे से हैं. एक-दो दिन से मैने कोई ख़त नही भेजी है क्योंकि बताने को ज़्यादा कुछ नही है. मुझे याद है कि मुझे तुम्हारी चूत के लिये कुछ इंतज़ाम करना है. थोड़ा सब्र रखो, मेरी जान! मेरी योजना मे देर है, अंधेर नही है. तुम्हारे मामाजी भी तुम्हारे लिये सोच रहे हैं. हम जल्दी ही तुम्हे कोई अच्छी खबर देने की कोशिश करेंगे.

हमारी दावत और सामुहिक चुदाई के बाद मेरी उम्मीद थी कि अब हम खुलकर चोदा-चोदी कर सकेंगे. पर ऐसा नही हो सका. क्योंकि अगले ही दिन मेरे पिताजी का ख़त आया कि वह हाज़िपुर आ रहे हैं - माँ और मेरे छोटे भाई अमोल को लेकर.

अमोल को तुम ने मेरी शादी मे देखा होगा, पर तुम्हे शायद याद नही है. मुझसे एक ही साल का छोटा है - अब 22 का हो गया है. पढ़ाई-लिखाई खत्म करके अब मेरे पिताजी और मेरे आनंद भैया के साथ व्यापार चलाता है. मेरी माँ उसकी जल्दी शादी करके घर पर बहु लाना चाहती है. इसलिये तीनो हाज़िपुर आ रहे थे एक रिश्ता देखने के लिये.

मैं बहुत दिनो बाद अपने माँ, बाप, और छोटे भाई से मिल रही थी. मुझे बहुत खुशी हो रही थी.

तुम्हारे मामा और मामीजी अपने समधी और समधन से मिलकर बहुत खुश हुए और मेरी तारीफ़ों के पुल बांधने लगे. सुनकर मेरे माँ और पिताजी गर्व से फूले नही समा रहे थे. वीणा, अगर उन्हे पता होता कि मैं इतनी अच्छी बहु ससुरजी से चुदवा-चुदवा कर बनी हूँ तो वह न जाने क्या कर बैठते!

मेरी माँ कह रही थी मैं कितनी तंदुरुस्त और खुश लग रही हूँ ससुराल मे. और मैं सोच रही थी, जिस औरत को चार-चार लन्ड और उनकी मलाई पीनो को मिल रही हो वह तंदुरुस्त और खुश क्यों नही रहेगी!

खैर, दोपहर के खाने के बाद माँ, पिताजी, और अमोल रिश्ता देखने के लिये हाज़िपुर मे एक दूसरे गाँव के लिये रवाना हो गये.

वह लोग शाम को लौटे. माँ और पिताजी को लड़की बहुत पसंद आयी थी, और वह बात को आगे बढ़ाना चाहते थे.

पर आमोल आना-कानी कर रहा था. "दीदी, वो लड़की अभी 19 साल की है और पूजा-पाठ मे ऐसी डूबी रहती है जैसे कोई जोगन हो. और बस दसवीं तक पढ़ी है. माँ को पता नही ऐसा क्या पसंद आया उसमे! लड़की देखने मे ठीक-ठाक है, पर हमे घर के लिये बहु चाहिये कोई पुजारन नही! मुझे नही शादी करनी ऐसी लड़की से!"
"घर की बात छोड़." मैने कहा, "तुझे कैसी लड़की चाहिये, यह बता."

"पता नही, दीदी..." अमोल सोचकर बोला, "देखने मे अच्छी हो. पड़ी लिखी हो. खुले विचारों की हो - मतलब थोड़ी आधुनिक हो. यह लड़की तो एक दम गंवार लग रही थी."
"मतलब तुझे अपनी स्नेहा भाभी जैसी बीवी चाहिये." मैने मुस्कुराकर कहा. स्नेहा भाभी मेरे आनंद भैया की पत्नी है. वह पढ़ी-लिखी और बहुत हंसमुख औरत है, जो मेरी माँ को पसंद नही है.

"तेरे जैसी होने पर भी चलेगी!" अमोल हंसकर बोला.
"चुप, बदमाश!" मैने कहा, "मै पिताजी से बात करती हूँ. माँ को तो घर मे बहु नही नौकरानी चाहिये. इसलिये ऐसी गंवारन को पसंद कर रही है. पर तु तो पढ़ा-लिखा है और शहर मे रहता है. तु क्या करेगा ऐसी उबाऊ बीवी लेकर?"
"वही तो!" अमोल बोला, "पर दीदी, शहर की लड़कियाँ बहुत चालु होती है. इसलिये डर भी लगता है."
"मतलब तुझे एक गाँव की ही लड़की चाहिये, पर जो पढ़ी-लिखी हो और खुले विचारों की हो?" मैने पूछा.
"हाँ, दीदी." अमोल ने जवाब दिया.
"भाई, ऐसी लड़की तो कहीं मिलती नही है!" मैने मजबूरी जताकर कहा, "गाँव की लड़कियाँ अगर पढ़ी-लिखी हो भी, वह शहर की लड़कियों की तरह खुले विचारों की नही होतीं."

उधर बैठक मे तुम्हारे मामाजी कह रहे थे, "चलिये अच्छा है, भाईसाहब. छोटे बेटे की जल्दी से शादी करा दीजिये. फिर सुख चैन की ज़िन्दगी गुज़ारिये."
"हम भी यही उम्मीद कर रहे हैं, चौधरी जी." मेरे पिताजी बोले, "बड़े बेटे और मीना बिटिया की शादी तो अच्छे घरों मे हो गयी है. अब अमोल की शादी भी यहाँ हो जाये तो बहुत अच्छा हो. इनका परिवार बहुत अच्छा है."
"समधीजी, शुभ काम ठीक-ठाक ही निपट जायेगा." ससुरजी बोले, "अब आप लोग यहाँ आये हैं तो दो-चार दिन हमारे गाँव की ताज़ा हवा का मज़ा लीजिये. आपके शहर मे ऐसा वातावरण नही मिलता होगा!"

सासुमाँ ससुरजी को गुस्से से देखने लगी. मैं उनका मतलब समझ रही थी. अपने घरवालों के आने से मैं बहुत खुश तो थी, पर माँ-बाप के रहते अपनी जो चुदाई की लत थी उसे कैसे पूरी करती? और यहाँ ससुरजी उन्हे दो-चार दिन ठहरने को कह रहे थे!

मेरी माँ बोली, "नही भाईसाहब! हम तो कल सुबह ही निकल पड़ेंगे."
"क्यों समधन?" ससुरजी बोले, "आपके घर को सम्भालने के लिये आपकी बहु जो है." 
"स्नेहा किसी तरह सम्भाल तो लेगी घर को." मेरी माँ ऐसे बोली जैसे स्नेहा भाभी के कार्य-कुशलता पर उन्हे ज़रा भी भरोसा नही था, "पर यह आखिर बेटी का घर है. ज़्यादा दिन ठहरना हमे ठीक नही लगता."
"अरे आप ऐसा क्यों सोच रही हैं! आपकी बेटी तो हमारी भी बेटी है. इसे अपना ही घर समझीये." ससुरजी बोले.
"नही, भाईसाहब. आप कृपया ज़ोर मत दीजिये!" मेरी माँ बोली, "हमारी बेटी आपके घर की शोभा बनी रहे, हम इसी से खुश हैं."

"अच्छा तो फिर अमोल को यहाँ कुछ दिनो के लिये छोड़ जाईये." तुम्हारे मामाजी बोले, "क्यों अमोल बेटा? अब तो तुम्हारी शादी हाज़िपुर में ही होने वाली है. यहाँ कुछ दिन रहकर देखो यह कैसी जगह है."

सासुमाँ अपने पति को आंखों से इशारा किये जा रही थी और ससुरजी थे कि कुछ समझ ही नही रहे थे! मैं मुंह दबाकर हंस रही थी.

"क्यों अमोल, तु रहेगा यहाँ अपनी दीदी के पास कुछ दिन?" मेरे पिताजी ने पूछा.
"हाँ, पिताजी." अमोल खुश होकर बोला.

मैने अपना माथा पीट लिया.

खैर, रात को खाना पीना और गप-शप हुआ. फिर माँ, पिताजी और अमोल मेहमानों के कमरों मे सो गये.

पिछले रात की अतिरेक अनाचार और मद्यपान के बाद किसी मे चुदाई की इच्छा नही थी और सब अपने कमरों मे जाकर सो गये.

अगली सुबह मैं ससुरजी को चाय देने गयी तो देखी सासुमाँ उन्हे डांट रही है. "तुम तो जी अब सठियाने लगे हो. क्या ज़रूरत थी अमोल को कहने की, कि वह यहाँ कुछ दिन रहे?"
मुझे देखकर वह बोली, "बहु, तु बुरा मत मानना पर हमारे घर की जो हालत है उसमे तेरे भाई को कुछ पता लग गया तो कितना अनर्थ हो जायेगा!"

"कौशल्या, मैं समझ रहा हूँ तुम्हारी बात." ससुरजी बोले, "पर समधी होने के नाते मेरा भी कुछ फ़र्ज़ बनता है कि नही? और अमोल कुछ ही दिन रहकर चला जायेगा. इन कुछ दिनो मे हम दरवाज़े के पीछे चुदाई कर लेंगे तो क्या हो जायेगा? बस थोड़ी सावधानी बरतनी पड़ेगी."
"हम और तुम तो सावधानी बरत लेंगे." सासुमाँ बोली, "पर बच्चों का क्या करेंगे? कम उम्र मे ठरक बहुत ज़्यादा होती है. गुलाबी तो एक दम बेवकुफ़ ही है. जोश मे अमोल के सामने किसी से चुदवा ली तो देखना कैसा बखेड़ा खड़ा हो जायेगा!"
"तुम डरो मत, कौशल्या. कुछ नही होगा." ससुरजी बोले, "अरे बहु, तु चाय लेकर क्यों खड़ी है. बैठ इधर."
"नही, बाबूजी. मैं रसोई मे जाती हूँ नाश्ता बनाने के लिये." मैने कहा और ससुरजी को चाय देकर बाहर निकल आयी.

नाश्ते के बाद मेरे माँ और पिताजी वापस घर लौट गये और अमोल को मेरे पास छोड़ गये.

पूरे दिन अमोल मेरे पीछे पीछे घूमता रहा. बार-बार मिन्नत करता रहा कि मैं पिताजी से बात करूं और उस गंवार लड़की से उसे बचा लूं. मैने पिताजी से सुबह ही बात कर ली थी और वह मेरी माँ से घर जाकर बात करने वाले थे.

मेरी चूत मे खलबली तो पूरे दिन मची हुई थी, पर अपने भाई के होने के कारण मैने खुद पर काबू रखा. उस रात भी हम सब शरीफ़ों की तरह अपने अपने पतियों के साथ ही सोये.

तो ननद रानी, यह है हमारे घर की आज तक की खबर. जब तक अमोल यहाँ है, और कुछ होने वाला नही है. जब वह यहाँ से जायेगा मैं अपना अगला ख़त लिखूंगी.

बहुत सारा प्यार,
तुम्हारी मीना भाभी

एक बात और: तुम ने अपने ख़त मे बताया नही तुम्हे सुबह उलटीयां और चक्कर आते हैं या नही. यह गर्भ ठहरने के लक्षण है. अगर तुम्हे लगता है तुम्हारा गर्भ ठहर गया है तो मुझे बिना देर किये ख़त लिखना.

**********************************************************************


भाभी की चिट्ठी बहुत ही छोटी सी थी. पर उसे पढ़कर मैं चिंता मे पड़ गयी. कुछ देर सोचकर मैने उसे जवाब लिखा.

**********************************************************************

प्रिय मीना भाभी,

तुम्हे बिना लौड़ों के कितना कष्ट हो रहा है मैं समझ सकती हूँ! जब से मामाजी हाज़िपुर लौटे हैं मेरी चूत को एक भी लौड़ा नसीब नही हुआ है. तुम तो बलराम भाईया से चुदवा सकती हो, पर मेरे पास तो कोई चारा ही नही है! ऊपर से तुम्हारे घर के किस्से पढ़कर तो मेरी हालत बहुत ही खराब हो जाती है. हर समय सोचती हूँ काश मैं तुम्हारे पास आ जाती. या फिर सोनपुर चली जाती और रमेश और उसके दोस्तों की रखैल बनके रहती! मेरी जवानी मुझे बहुत सताती है, भाभी! जल्दी कुछ करो मेरे लिये!

तुम ने पूछा के मुझे चक्कर या उलटीयां आती है या नही. नही, ऐसा तो कुछ नही होता है. पर मेरा मासिक हफ़्ते भर पहले शुरु होना था, पर अब तक हुआ नही है. इस वजह से मैं काफ़ी चिंता मे पड़ गयी हूँ. मेरा गर्भ ठहर गया होगा तो मैं क्या करूंगी, भाभी? माँ और पिताजी कहीं मुंह दिखने लायक नही रहेंगे. मुझसे कोई शादी भी नही करेगा. चुदास के मारे मैने सोनपुर मे अपनी चूत जी भरके मरवाई थी. पर अब मैं क्या करुं, भाभी?

चिट्ठी का जवाब जल्दी देना.

तुम्हारी वीणा

**********************************************************************


मेरा मासिक रुकने की वजह से मैं सच मे बहुत डर गयी थी. चिंता से मुझे रात को नींद भी नही आती थी. क्या मैं सच मे गर्भवती हो गयी थी? कौन हो सकता है मेरे बच्चे का बाप? रमेश और उसके तीन बदमाश दोस्तों मे से ही कोई होगा. क्या मैं उनमे से किसी को मुझसे शादी करने को कह सकती हूँ? वह तो जैसे बदमाश हैं, उन्होने तो न जाने कितनी लड़कियों का बलात्कार करके उन्हे गर्भवती बनाया होगा!

और यह भी तो हो सकता है मेरा पेट मामाजी या विश्वनाथजी से चुदवा कर ठहर गया हो? क्या जवाब दूंगी कोई पूछेगा तो? मैं सारा दिन इसी उधेड़बुन मे रहती थी.

दो दिन बाद मीना भाभी का जवाब आया.

**********************************************************************

प्रिय वीणा,

तुम्हारा ख़त मिला. तुम्हारा मासिक नही हो रहा है यह बहुत चिंता की बात है. हो सकता है तुम्हारा गर्भ ठहर गया है. गुलाबी का भी मासिक रुक गया है और मुझे पूरा यकीन है वह गर्भवती हो गयी है. मेरे और सासुमाँ का भी मासिक नही हो रहा है. ऊपर से हम दोनो को ही कुछ दिनो से सुबह चक्कर आते हैं. यकीनन सासुमाँ और मेरा भी गर्भ ठहर गया है. मुश्किल यह है कि हम तीनो को कोई अंदाज़ा नही कि बच्चे का बाप कौन हो सकता है.

पर गुलाबी, सासुमाँ, और मेरे लिया यह बहुत चिंता की बात नही है क्योंकि हम तीनो शादी-शुदा हैं. मेरे पति तो उत्तेजित हो रहे हैं सोचकर की उनके पत्नी के गर्भ मे किसी पराये मर्द का बच्चा है. वह हर रात मुझे बहुत जोश मे चोदते हैं. रामु यह सोचकर खुश है कि शायद मैं उसके बच्चे की माँ बनूंगी. इसलिये वह गुलाबी को लेके परवाह नही कर रहा है.

पर वीणा, तुम तो कुंवारी हो. सोनपुर मे तुम रमेश और उसके दोस्तों से बहुत चुदी थी. बाद मे तुम विश्वनाथजी और अपने मामाजी से भी बहुत चुदवाई थी. तुम्हारे पेट मे इन मे से किसी का भी बच्चा हो सकता है. तुम्हारे मामाजी कह रहे थे तुम्हारी किसी से शादी करवाने का इंतज़ाम करना पड़ेगा. मुश्किल यह है कि इतनी जल्दी एक अच्छा लड़का कहाँ से मिलेगा!

और लड़का तुम्हे पसंद भी तो आना चाहिये. आखिर तुम्हे उसके साथ पूरी ज़िन्दगी रहना है. और मुझे अच्छी तरह पता है तुम कितनी चुदक्कड़ हो. मैं चाहती थी तुम एक ऐसे लड़के से शादी करो जो खुले विचारों का हो - ताकि वह भी तुम्हारे साथ तुम्हारे व्यभिचारों मे शामिल हो. तभी तो तुम्हे जवानी का पूरा मज़ा मिलेगा. पर अब जल्दी मे ऐसा लड़का कहाँ से मिलेगा?

खैर, तुम घबराओ नही और जल्दबाज़ी मे कोई गलत कदम मत उठाओ. अपने माँ-पिताजी को कुछ मत बताओ. मैं और तुम्हारे मामाजी कुछ योजना बनाते हैं. तुम्हे जल्दी ही कुछ अच्छी खबर भेजुंगी. मुझ पर भरोसा रखो.

तुम्हारी मीना भाभी

**********************************************************************
Reply
10-08-2018, 01:15 PM,
#68
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
उसके बाद 4-5 दिन तक मीना भाभी की कोई चिट्ठी नही आयी. मैने एक चिट्ठी भेजी भी, पर उसका भी कोई जवाब नही आया.

मेरा मासिक भी शुरु नही हुआ और मुझे पूरा यकीन हो गया कि मेरा गर्भ ठहर गया है. मैं बहुत ही डर गयी.

कुंवारी उम्र मे हवस के बस मे होकर मैने अपना मुंह काला कर लिया था. अब मेरे पास दो ही रास्ते बचे थे. कुएं मे कूदकर जान दे दूं - पर मुझे मरने से बहुत डर लगता था. दूसरे घर से भाग जाऊं. पर मुझे पता था जो लड़कियाँ गर्भवती होकर घर से भाग जाती है उनको बस रंडीखाने मे ही जगह मिलती है. हालांकि मुझे यह सोचकर बहुत चुदास चढ़ती थी कि रंडीखाने मे मुझे दिन रात नये नये मर्दों से चुदवाने को मिलेगा, मुझे यह रास्ता भी ठीक नही लगता था. मैं अपने माँ-बाप को कोई चोट नही पहुंचाना चाहती थी.

मै बहुत ही उदास हो गयी और कभी कभी अकेले मे रोती थी. पर फिर सोचती थी न जाने मीना भाभी और मामाजी क्या योजना बना रहे हैं मेरे लिये.
एक दिन सुबह मेरे पिताजी मेरी माँ को बोले, "नीतु की माँ! सुनो एक अच्छी खबर है."
"क्या हुआ जी, क्यों चिल्ला रहे हो?" मेरी माँ आंचल मे हाथ पोछती हुई रसोई से निकली.
"गिरिधर की चिट्ठी आयी है." मेरे पिताजी बोले और जेब से एक चिट्ठी निकालने लगे.

मामाजी की चिट्ठी? सुनकर ही मेरे कान खड़े हो गये. मैं भागकर बैठक के दरवाज़े के पास गयी और पिताजी और माँ की बातें सुनने लगी.

"क्या लिखा है मेरे भाई ने?" माँ ने पूछा.
"तुम्हारा भाई लिखता है...प्रणाम जीजाजी....कुशल मंगल है....दीदी कैसी हैं...हाँ, यह सुनो," पिताजी चिट्ठी पढ़ने लगे, "वीणा बिटिया के लिये एक बहुत अच्छा रिश्ता मिला है. मेरे समधी का एक बहुत सुशील, सुन्दर बेटा है. पढ़ा-लिखा है. व्यापार मे पैसे भी अच्छे कमा लेता है. उम्र कुछ कम है - अभी 22 का हुआ है. मेरे यहाँ आकर कुछ दिन ठहरा हुआ था तो मुझे लगा अपनी वीणा बिटिया के साथ बहुत जंचेगा. आप और दीदी राज़ी हों तो अपने समधी-समधन को आपके यहाँ भेज दूं वीणा को देखने के लिये. वैसे मैने वीणा की तस्वीर अपने समधीजी को भेज दी है. लड़के ने तो वीणा की तस्वीर को बहुत पसंद भी की है. और क्यों न करे! अपनी वीणा बिटिया है भी तो बहुत ही सुन्दर....अमोल की एक तस्वीर भेज रहा हूँ....प्रणाम...वगैरह वगैरह."

"तो बोलो नीतु की माँ, क्या खयाल है तुम्हारा?" पिताजी ने पूछा.
"दिखाओ तो लड़का कैसा है देखने मे." मेरी माँ ने कहा.

पिताजी ने उन्हे तस्वीर दिखाई तो वह बोली, "लड़का देखने मे तो बहुत सुन्दर है. मेरे भाई ने रिश्ता पसंद किया है तो देख समझकर ही किया होगा. पर हमारी वीणा भी तो 22 की है. वर-वधु एक उम्र के हो मुझे ठीक नही लगता."
"यह बात तो है, पर गिरिधर के समधी बहुत पैसे वाले हैं. बहुत बड़ा करोबार है उनका. शहर मे रहते हैं. अपनी वीणा बहुत ऐश से रह सकेगी." पिताजी बोले.
"तुम जो ठीक समझो करो." माँ बोली, "मेरे भाई को लिख दो कि तस्वीर तो अच्छी है पर लड़के को भी यहाँ भेज दे. हम भी देखें लड़का हमारी बिटिया के लायक है या नही. वीणा अपने रूप का बहुत घमंड करती है. आज तक तो उसे कोई लड़का पसंद आया नही है."

माँ-पिताजी की बातें सुनकर मैं खुशी से उछल पड़ी. तो मीना भाभी ने मेरे लिये यह योजना बनाई है! अपने ही छोटे भाई से मेरी शादी करवाना चाहती है!

मेरे दिल से एक बोझ हलका हो गया. अगर अमोल से मेरी शादी हो गयी तो मुझे मेरे पेट मे पल रहे नाजायज़ बच्चे का एक बाप मिल जायेगा.

पर मैं यह भी सोचने लगी कि मीना भाभी जान बुझकर अपने भाई के साथ यह धोखा क्यों कर रही है? एक बदचलन, गर्भवती लड़की से उसका रिश्ता क्यों बांध रही है? मुझे कुछ मे समझ नही आया.

मै खड़ी खड़ी यह सब सोच रही थी कि पीछे से मेरी छोटी बहन नीतु आ गयी और अचानक जोर से बोली, "दीदी! तु छुप छुपके क्या सुन रही है रे!" और उसने मुझे धक्का देकर बैठक मे धकेल दिया.

मुझे देखकर मेरी माँ बोली, "अरे वीणा, तु यहीं है? देख तो यह तस्वीर तुझे पसंद है कि नही?"

मैने अमोल की तस्वीर देखी. वह एक बहुत ही सुन्दर नौजवान लग रहा था. सुंदर शरारती आंखें थी. चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ नही था. उसने एक रंगीन कमीज पहन रखी थी जिसके ऊपर का बटन खुला हुआ था. गले मे सोने की चेन और उसके बलिष्ठ छाती की झलक मिल रही थी. मुझे याद आया कि मैने शायद उसे बलराम भैया की शादी मे देखा था. उसके बाद मैं उससे कभी मिली नही थी. उसे भी मेरी सूरत याद नही होगी.

"अच्छी है." मैने कहा.
"चल तुझे कोई अच्छा तो लगा!" मेरी माँ बोली, "तुझे यह लड़का और उसका परिवार देखने आने वाले हैं. देख तु और नखरा मत करना. अच्छे अच्छे रिश्ते हाथ से चले गये हैं तेरे नखरों के चलते. तेरे मामाजी को लड़का और उनका परिवार बहुत पसंद है. तु इन लोगों को पसंद आ जाये तो तेरी शादी यहीं कर देंगे."
"ठीक है, माँ." मैने चुपचाप कहा.

मेरे पिताजी मुझे संदेह की नज़रों से देखने लगे. वह बोले, "वीणा, सब ठीक तो है ना? तु तो शादी के लिये कभी राज़ी ही नही होती!"

मैं झेंपकर वहाँ से भाग गयी. क्या कहती? कि मेरे पेट मे न जाने किसका बच्चा है और इस वक्त मुझे किसी लंगड़े-बहरे से भी शादी करना मंज़ूर है?


अगले दिन शाम को अमोल और उसके माँ-बाप हमारे घर आये.

मै एक सुन्दर लहंगे मे सज-धजकर अपने कमरे मे बैठी थी. नीतु नीचे से खबर लायी कि अमोल अपनी तस्वीर से भी ज़्यादा सुन्दर है. "एक दम आमिर खान लगता है, दीदी! ऊंचा कद, गोरा गोरा चेहरा, गठा हुआ शरीर! तु तो उसके सामने बिलकुल फीकी लगेगी."
"चुप कर, मुंहफट!" मैने कहा.
"तो खुद ही देख ले जाकर. माँ ने तुझे नीचे बुलाया है." नीतु बोली.

सुनकर मेरा दिल धड़क उठा.

नीतु का हाथ पकड़कर मैं सीड़ियों से नीचे उतरी और बैठक मे गयी. वहाँ से मेरी माँ मेरा हाथ पकड़कर अन्दर ले गयी.

मैने सोफ़े पर बैठे अमोल के माँ और पिताजी के चरण छुये. फिर मैं उनके सामने एक सोफ़े पर बैठ गयी.

अमोल सोफ़े के एक कोने मे बैठा हुआ था. देखने मे सचमुच बहुत सुन्दर था, पर उम्र कम होने का कारण मासूम सा लग रहा था.

अमोल की माँ ने मेरा सबसे परिचय करवाया, "बेटी, यह मेरा बेटा अमोल है. इसकी फोटो तो तुम देख ही चुकी हो."

अमोल ने मुझे नमस्ते किया. वह तो आंखे भर भर के मुझे देखे जा रहा था. मैने शरमा के अपनी आंखें झुका ली.

"...यह मेरा बड़ा बेटा आनंद है...." अमोल की माँ ने उसके पास बैठे एक बहुत सुन्दर आदमी की तरफ़ इशारा किया. देखने मे वह अमोल से बहुत अलग दिखता था. कद अमोल से थोड़ा ऊंचा और शरीर थोड़ा भारी. रंग भी सांवला था. चेहरे पर उसकी सुन्दर मूंछें थी. उसकी उम्र अमोल से काफ़ी ज़्यादा लग रही थी. न जाने क्यों मुझे लगा मैं उससे पहले कहीं मिल चुकी हूं.

"...और यह मेरी बहु स्नेहा है, आनंद की पत्नी." अमोल की माँ ने कहा.
स्नेहा एक सुन्दर हंसमुख औरत थी. थोड़ी गदरा गयी थी, पर शायद उसकी उम्र ज़्यादा नही थी. मुझे देखकर वह मुसकुराई तो उसका चेहरा खिल उठा.

उन लोगों ने मुझसे से कुछ बातचीत की फिर मैं अपने कमरे मे चली आयी.


रात को खाने की मेज पर पिताजी ने पूछा, "तो बता वीणा, कैसा लगा तुझे अमोल?"
"आप लोगों को कैसा लगा?" मैने कहा.
"मुझे तो लड़का बहुत पसंद आया." मेरी माँ ने कहा.
"मुझे भी जीजाजी बहुत पसंद आये!" नीतु ने चहक के कहा.
"माँ तुम इसे कुछ कहती क्यों नही!" मैने ने गुस्से से बोला, "कुछ भी बोलती रहती है."

"भई मुझे तो अमोल बहुत पसंद आया है. और उन्हे भी वीणा बहुत पसंद आयी है." मेरे पिताजी खाना खाते हुए बोले, "कह रहे थे गिरिधर ने वीणा की जितनी तारीफ़ की थी कम थी. दहेज की उन्हे कोई लालच नही है. अब अगर वीणा को आपत्ती न हो तो मैं बात आगे बढ़ाऊं?"
"देखो जी, मुझे तो लड़का पसंद है. वीणा को आपत्ती हो तो हो. पढ़ लिखकर खुद को शहर की मेम समझने लगी है." मेरी माँ ने कहा, "अब लड़की के लिये वर क्या उससे पूछ पूछकर पसंद करेंगे?"
"अरी भाग्यवान, उसकी ज़िन्दगी का सवाल है. उससे पूछ तो लेते हैं!" पिताजी बोले.

"मुझे लड़का पसंद है." मैने कहा, "आप लोग मुझे लेकर झगड़ा मत कीजिये."
"फिर ठीक है, भई." पिताजी बोले, "कल मैं उनको हमारा फ़ैसला बता देता हूँ. वह लोग रतनपुर मे एक होटल मे रुके हैं. सुबह ही किसी के हाथों खबर भिजवाता हूँ."


अगले दिन शाम की तरफ़ अमोल और उसके पिताजी हमारे घर आये. उनका बहुत स्वागत सत्कार किया गया. मैं अपने कमरे मे थी जब नीतु मुझे बुलाने आयी.

अमोल के पिताजी चाय पी रहे थे. मुझे देखते ही बोले, "आओ बेटी, आओ! भई तुम लोग नयी पीढ़ी के पढ़े-लिखे नौजवान हो. मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूँ तुम्हे अमोल पसंद है कि नही."
"जी, पसंद हैं." मैने सर झुकाकर जवाब दिया.
"बहुत अच्छे! बहुत अच्छे! अमोल को भी तुम बहुत पसंद आयी हो." वह बोले, "बेटी, अमोल को बहुत मन है तुम लोगों का गाँव देखने का. अगर तुम्हारे माँ और पिताजी को आपत्ति न हो तो तुम अमोल को ज़रा अपना गाँव दिखा लाओ."
"नही भाईसाहब, हमे क्या आपत्ती होगी!" मेरी माँ झट से बोली, "अब हमारा ज़माना थोड़े ही रहा है!"

वैसे तो मेरी माँ मुझे गाँव के किसी लड़के की तरफ़ देखने भी नही देती थी, पर यहाँ शहर का मालदार मुर्गा फंसा था. उनकी बात तो माननी ही थी!

"और फिर अब वीणा की शादी शहर मे होने वाली है..." मेरे पिताजी बोले, "...उसे अब शहर के कायदे सीखने चाहिये."
"हाँ हाँ, क्यों नही!" मेरी माँ बनावटी उदारता दिखाकर बोली, "भाईसाहब, वीणा अमोल को गाँव दिखा लायेगी. जा बेटी, पर जल्दी आ जाना."

मै और अमोल घर के बाहर निकल आये और कुछ देर सड़क पर चलते रहे. आते जाते लोग अर्थ भरी नज़रों से हमे देख रहे थे जिससे मुझे बहुत झेंप हो रही थी. यह मेहसाना गाँव था. यहाँ लड़कियाँ किसी पराये आदमी के साथ बाहर नही निकलती थी.

अमोल ने मुझे पूछा, "वीणा जी, आपके गाँव मे देखने लायक क्या है?"
"ज़्यादा कुछ तो नही है." मैने कहा, "पर उस तरफ़ हमारी खेती है."
"तो फिर आप लोगों के खेत ही देखते हैं." अमोल ने कहा. शायद वह भी लोगों की नज़रों से दूर हटना चाहता था.

हम लोग हमारे खेतों के पास पहुंचे तो अमोल फ़सलों को देखकर बहुत खुश हुआ. यहाँ एक दम सुनसान था. यहाँ हमे देखकर गाँव भर मे टिप्पणी करने वाला भी कोई नही था.

अमोल कुछ देर हवा मे लहराती फ़सलों को देखता रहा, फिर मुझे बोला, "वीणा जी, मीना दीदी ने आपके लिये मेरे हाथों एक ख़त भेजा है. मैं कल आपको दे नही सका."

मैने हैरान होकर उससे चिट्ठी ली और पढ़ने लगी.

**********************************************************************
Reply
10-08-2018, 01:15 PM,
#69
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मेरी सबसे प्यारी ननद,

अब तक तो तुम समझ ही गयी होगी मैने तुम्हारे लिया क्या योजना बनाई है! आशा करती हूँ तुम्हे मेरा भाई पसंद आया है. वह तो तुम्हारी फोटो देखकर ही दिवाना हो गया था और अब वह तुम्ही से शादी करना चाहता है. अब तुम बस हाँ कर दो तो हम जल्द से जल्द तुम्हारी शादी अमोल से करवा दें. देर करना बिलकुल उचित नही होगा क्योंकि जल्दी ही तुम्हारा पेट फूलने लगेगा.

तुम शायद यह सोच रही हो कि मैं जान-बूझकर अपनी भाई की शादी ऐसी लड़की से क्यों करवा रही हूँ जो पहले से ही कई मर्दों से चुदवाकर गर्भवती हो गयी है. तुम निश्चिंत रहो - अमोल अनजाने मे कोई कदम नही उठा रहा है. वह सब कुछ जान समझकर ही कर रहा है.

अब बाकी यह तय करना बचा है कि शादी के बाद मैं तुम्हे ननद कहूंगी या फिर तुम मुझे ननद कहोगी!

अभी ज़्यादा कुछ लिखने का समय नही है. यह ख़त अमोल के हाथों भिजवा रही हूँ. बाकी सब बाद मे विस्तार से लिखूंगी.

तुम्हारी भाभी

**********************************************************************

चिट्ठी पढ़कर मैं शरम से लाल हो गयी. मैं सोचने लगी, यह आदमी जानता है कि मैं पहले से गर्भवती हूँ. और एक बदचलन लड़की ही कुंवारेपन मे गर्भवती हो जाती है. फिर भी यह मुझसे शादी क्यों करना चाहता है? मैने सोचकर परेशान हो गयी.

"आपको अचानक क्या हुआ, वीणा जी? ख़त मे क्या लिखा है दीदी ने?" अमोल ने पूछा.
"जी कुछ खास नही..." मैने कहा. मैं उससे नज़रें ही नही मिला पा रही थी.
"आप मुझसे कुछ छुपा रही हैं." उसने कहा.
"जी, नही तो!" मैने कहा. पर मेरा सर झुका ही रहा.

अमोल ने मेरी ठोड़ी पर उंगली रखी और मेरे सर को उठाकर बोला, "आप जो बात छुपा रही हैं, वह मुझे पता है."
"क-क्या मतलब है आपका?" मैने घबराकर पूछा.
"यही कि आपका गर्भ ठहरा हुआ है." अमोल ने कहा, "मुझे दीदी ने पहले ही बता दिया है."

मेरा चेहरा लाल होकर तपने लगा. मैं शर्म से पानी-पानी होने लगी. मेरा दिल बहुत जोर से धड़कने लगा.

मैने कहा, "फिर...फिर आप मेरे जैसी बदचलन लड़की से शादी क्यों करना चाहते हैं?"

"पहला कारण यह है, वीणा जी, कि जवानी मे गलती सबसे हो जाती है." अमोल ने कहा, "मुझसे भी हुई है. इसलिये मुझे आप पर उंगली उठाने का कोई हक नही है."
"आपसे भी गलती हुई है?" मैने पूछा और मन मे सोचा, और जो भी हो, मेरी तरह छह लोगों चुदवाकर पेट बनाने जैसी गलती तो नही हुई होगी.
"बेशक हुई है." अमोल ने जवाब दिया.

"दूसरा कारण यह है कि..." अमोल ने कहा, "गर्भ ठहरने का भी इलाज होता है."
"इलाज! कैसा इलाज?" मैने पूछा.
"हाज़िपुर बाज़ार मे मैं एक डाक्टर को जानता हूँ जो अवैध गर्भपात करवाता है. मैं आपको उसके पास ले जाऊंगा और आपका गर्भपात करवा दूंगा." अमोल बोला.

"आप कैसे जानते हैं उस डाक्टर को?" मैने उत्सुक होकर पूछा.
"मैने कहा ना, मुझसे भी गलतियां हुई हैं?" अमोल मुस्कुराकर बोला, "पिछले साल जब घर के सब लोग किसी की शादी मे गये हुए थे, जवानी के जोश मे मैं घर की नौकरानी का बलात्कार कर बैठा था. बेचारी बच्ची ही थी. उसने जाकर अपनी माँ को सब बता दिया. अगले दिन उसकी माँ मेरे पास आयी. बहुत बखेड़ा की और मुझसे पैसे मांगने लगी..."
"हाय राम!" मैने कहा.
"बोली, मैने पैसे नही दिये तो वह मेरे घर पर सब को बता देगी. मजबूरी मे मैं व्यापार के खाते से निकालकर हर महीने उसे कुछ रुपये देने लगा." अमोल बोला.

"और वह नौकरानी?" मैने पूछा, "उसका आप क्या किये?"
"रुपये मिलने पर उसकी माँ ने उसे पूरी छूट दे दी. इसलिये वह रोज़ मुझसे खुशी खुशी करवाने लगी."

"फिर क्या हुआ?" अमोल की बातों से मेरी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी.
"वही जो आपके साथ हुआ है." अमोल हंसकर बोला, "वासना के अंधे खेल मे लड़की का गर्भ ठहर गया. दो-तीन महीने मे जब लड़की का पेट फुल उठा तो लड़की की माँ बोलने लगी कि मैने उसकी बेटी को बर्बाद कर दिया है. मुझे उससे शादी करनी पड़ेगी. परेशान होकर मैने अपने एक ऐयाश दोस्त की मदद मांगी. उसने मुझे हाज़िपुर के इस डाक्टर के बारे मे बताया."
"फिर?" मैने पूछा.
"फिर क्या था. लड़की को किसी बहाने हाज़िपुर ले गया. डाक्टर ने उसका गर्भपात कर दिया. और इस तरह मेरी जान छूटी."

"मैं तो आपको बहुत मासूम समझी थी!" मैने मुस्कुराकर कहा, "आप तो बहुत पहुंचे हुए हैं!"
"वीणा जी, सूरत से तो आप भी कुछ कम मासूम नही लगती हैं." अमोल हंसकर बोला.

"मै फिर भी नही समझी कि आप मेरे जैसी एक बदचलन लड़की से शादी क्यों करना चाहते हैं." मैने कहा.

अमोल हंसा और मेरे कमर मे हाथ डालकर उसने मुझे अपने बलिष्ठ सीने से चिपका लिया.

"तीसरा कारण यह है वीणा जी..." उसने मेरे चेहरे के पास अपना चेहरा लाकर कहा, "मैं आपको अपनी दीदी की शादी मे देखकर पहले ही दिल दे बैठा था. मुझे तब यह नही पता था कि आप मेरी दीदी की ननद लगती हैं, नही तो मैं आपको आपके घर से कब का उठा के ले जाता! जब मीना दीदी ने मुझे आपकी फोटो दिखाई तब मुझे पता चला की आप कौन हैं."
"सच?" मैने उसकी आंखों मे देखकर पूछा.
"हुं." अमोल ने कहा. और उसने अचानक मेरे होठों को चुम लिये.

इतने दिनो बाद एक मर्द के होठों के छुअन से मेरा पूरा शरीर सिहर उठा. उसके बाहों के घेरे मे सिमटी मैं हलके से कांपने लगी.

अमोल बोला, "अपनी दीदी के मुंह से आपकी तारीफ़ सुन सुनकर मैं पागल सा हो गया था. कल आपको देखकर मुझे लगा, मेरी दीदी ने आपकी तारीफ़ मे बहुत कमी कर दी है. वीणा जी, मैं आपसे बहुत प्यार करने लगा हूँ."

सुनकर मैं मन ही मन बहुत खुश हुई, पर बोली, "अमोल, तुम भूल रहे हो कि मैं एक बदचलन, छिनाल लड़की हूँ."

"मुझे पता है, वीणा." अमोल ने कहा और फिर मेरे होठों का उसने गहरा चुंबन लिया, "तुम कैसी भी हो, मैं तुम्हारे बिना नही जी सकता."
"हाय अमोल, यह तुम क्या कह रहे हो!" मैने अपने शरीर को उसके बाहों मे पूरी तरह समर्पण कर दिया था. मैने उसके कंधे पर अपना सर रखा और कहा, "मै भी तुम्हे बहुत पसंद करती हूँ. पर मैं नही चाहती मुझसे शादी कर के कल तुम्हे कोई पछतावा हो."
"नही होगा, मेरी जान!" अमोल ने कहा और मेरे होठों को आवेग मे पीने लगा. "बस तुम शादी के बाद बदल नही जाना."

मै अमोल के कहने का मतलब नही समझी. पर उस वक्त मेरा पूरा शरीर सनसना रहा था और मैं प्यार और वासना के लहरों मे गोते लगा रही थी. अमोल को अपनी बाहों मे पकड़कर मैं उसके मर्दाने होठों को चूमने लगी. उसके हाथ भी मेरी पीठ पर चल रहे थे और मेरी उत्तेजना को बढ़ा रहे थे.

मै और खुद को सम्भाल नही सकी और नीचे घाँस पर बैठ गयी. हमारे चारो तरफ़ ऊंचे ऊंचे मकई के पौधे थे. ऊपर खुला आसमान था. शाम ढल रही थी और इस वक्त खेत की तरफ़ कोई आता भी नही था.

अमोल ने मुझे घाँस पर लिटा दिया और मेरे पास लेट गया.
मैने खुद ही अमोल को अपनी ओर खींचा और फिर उसके होठों को पीने लगी. इतने दिन उपवासी रहने के बाद एक मर्द का प्यार पाकर मैं पागल सी हो गयी थी. मेरी चुदास सर पर चढ़ चुकी थी.

मैने अमोल का हाथ लेकर अपने चूचियों पर रख दिया. अमोल मेरे होठों को पीते हुए ब्लाउज़ और आंचल के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाने लगा. हम दोनो चुप थे पर हमारी सांसे तेजी से चल रही थी.

"वीणा, मैं तुम्हे पाना चाहता हूँ. अभी और यहीं!" अमोल ने भारी आवाज़ मे कहा.
"अमोल, मैं तुम्हारी हूँ." मैने उसे चूमते हुए जवाब दिया. "मुझे जैसे चाहो भोग करो!" उस वक्त मैं इतनी गरम हो चुकी थी कि किसी से भी चुदवा सकती थी. और अमोल पर तो मुझे बहुत प्यार आ रहा था.

अमोल ने मेरे सीने पर से मेरा आंचल हटा दिया और मेरी ब्लाउज़ के हुक खोलने लगा. जैसे ही मेरे ब्लाउज़ के हुक खुले, मैने अपनी ब्रा खींचकर ऊपर कर दी और अपनी गोरी गोरी चूचियों को उसके सामने नंगी कर दी.

"हे भगवान!" अमोल मेरी चूचियों को देखकर बोला, "तुम्हारी चूचियां कितनी सुन्दर है, वीणा!"
बोलकर वह मेरी चूचियों को जोश के साथ पीने और दबाने लगा. मेरे निप्पलों को चूसने और धीरे से काटने लगा.

चूचियों पर मर्द के होंठ पाकर मैं मस्ती मे "आह!! ऊह!! उम्म!!" करने लगी. 

उधर अमोल मेरी चूचियों को प्यार कर रहा था और इधर मैने अपना हाथ उसके पैंट के ऊपर से उसके लन्ड पर रखा. उसका लन्ड पत्थर की तरह सख्त हो गया था और पैंट को फाड़कर बाहर आना चाहता था.

मैने उसके पैंट के हुक और ज़िप को खोल दिये. मेरी इच्छा देखकर अमोल उठा खड़ा हुआ और उसने पहले अपनी पैंट और फिर अपनी चड्डी उतार दी.

अमोल का गोरा गोरा लन्ड कुछ 7 इंच का था और काफ़ी मोटा था. नीचे मस्त सा पेलड़ लटक रहा था. हालांकि मैने अब तक इससे बड़े लन्डों से ही चुदवाया था, मुझे अमोल का लन्ड बहुत पसंद आया. क्यों न हो, जिससे प्यार होता है उसके लन्ड का आकर नही देखा जाता है.

अमोल मेरे सामने खड़ा था और उसका लन्ड उत्तेजना मे उछल रहा था. मैने प्यार से उसके के लन्ड को पकड़कर हिलाया. उफ़्फ़! कितना गरम था उसका लन्ड! और कैसे मेरे हाथों मे ताव खा रहा था! 

मैं खुद को रोक नही सकी और मैने उसके लन्ड को अपने मुंह मे ले लिया. मर्द के लौड़े की मतवाली महक मेरे सर पर चढ़ गयी. क्या स्वाद था उसके लन्ड मे! कितने दिनो बाद मेरे जीभ को लन्ड का स्वाद मिल रहा था! मैं पगालों की तरह उसके लन्ड को चूसने लगी.

"हाय वीणा, क्या हो गया है तुम्हे?" अमोल मुझे रोक कर बोला, "लग रहा है बहुत दिनो से नही चुदवाई हो."
"हाँ अमोल, बहुत दिन हो गये हैं!" मैने कहा और उसको खींचकर अपने पास बिठा लिया.

फिर उसे घाँस पर लिटाकर मैं उस पर चढ़ गयी और उसके मुंह मे अपनी नंगी चूचियों को ठूंस दी. वह मेरी चूचियों को पकड़कर चूसने लगा और मैं जोर जोर से कराहने लगी.

कुछ देर बाद अमोल ने मुझे नीचे लिटा दिया और उठकर मेरे पैरों के बीच बैठ गया. मैने अपने घुटने मोड़ लिये और अपनी साड़ी और पेटीकोट को अपनी कमर तक चढ़ा ली. मैने लाल रंग की छोटी सी चड्डी पहन रखी थी. मेरी चूत इतनी गरम हो चुकी थी कि मेरी चड्डी भीग गयी थी. 

अमोल ने अपना लन्ड मेरी चड्डी के ऊपर से मेरी चूत पर रखा और सुपाड़े को ऊपर-नीचे करके रगड़ने लगा.

उस वक्त मैं लन्ड लेने के लिये मरी जा रही थी. चिल्लाकर बोली, "हाय अमोल! मुझे और मत तड़पाओ, मेरे जान! चोद डालो अपनी वीणा को!"

अमोल ने तरस खाकर मेरी चड्डी को मेरे टांगों से अलग कर दिया. अब मेरी चूत उसके सामने खुली हुई थी.

सोनपुर से आने के बाद मैने अपनी चूत के बालों को साफ़ नही किया था. बाल थोड़े थोड़े बढ़ गये थे. मुझे बहुत शरम आने लगी. अगर मुझे पता होता आज खेत मे मेरी चुदाई होगी तो मैं अपनी चूत ज़रूर साफ़ रखती!

पर अमोल ने कुछ नही कहा. मेरे जांघों को पूरा फैलाकर वह मेरे चूत पर झुक गया और मेरी चूत को चूमने लगा. फिर जीभ निकालकर मेरी चूत के होठों को और उनके बीच चाटने लगा.

दो ही मिनट मे मैं उसके बालों को कसकर पकड़कर जोर जोर से "ऊंह!! ऊंह!! ऊंह!!" करती हुए झड़ गयी. मेरा शरीर पसीने-पसीने हो गया.

अमोल फिर भी दक्षता के साथ मेरी चूत चाटता रहा और जल्दी ही मैं फिर से पूरी गरम हो गयी.

"हाय अमोल, क्यों सता रहे हो मुझे बेचारी को!" मैने उसके बालों को मुट्ठी मे पकड़कर अपनी ओर खींचा और कहा, "जानते हो कितने दिन हुए हैं मुझे अपनी चूत मे लन्ड लिये हुए?"
"जानता हूँ, मेरी जान!" अमोल मुस्कुराकर बोला, "बस अब और देर नही करुंगा."

अमोल ने अपना लन्ड पकड़कर मेरी चूत के छेद पर रखा और कमर के एक धक्के से लन्ड को पेलड़ तक अन्दर पेल दिया. मेरी चूत शायद उसे बहुत कसी हुई लगी क्योंकि वह जोर से "आह!!" कर उठा.

उसका लन्ड मेरी चूत मे घुसना था कि मैं उसे जकड़कर फिर से झड़ गयी. इतने दिनो बाद अपने चूत मे एक मोटे लन्ड को पाकर मैं खुद के काबू के बाहर हो गयी थी. कामुक उत्तेजना मे मेरी ऐसी हालत हो गयी थी कि अमोल की पीठ मे अपनी उंगलियां गाड़कर मैं जोर जोर से कराहने लगी और झड़ने लगी. अभी तक उसने एक भी ठाप नही लगाया था!

जब मैं शांत हुई अमोल मेरे ऊपर झुक गया और मेरी चूचियों को पीते पीते मुझे चोदने लगा.

मैं जल्दी ही फिर गरम हो गयी और मानो जन्नत की सैर करने लगी. मैने सोनपुर मे चुदाया तो बहुत था पर जिस आदमी से मैं प्यार कर बैठी थी उससे चुदाने मे मुझे एक अलग ही आनंद आ रहा था.
Reply
10-08-2018, 01:16 PM,
#70
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
अमोल और मैं एक दूसरे से लिपटे हुए घाँस पर लेटे चुदाई कर रहे थे. शाम पूरी ढल चुकी थी और सांझ हो गयी थी. चारो तरफ़ अंधेरा छाने लगा था. पेड़ों पर कौवे काँव-काँव कर रहे थे. ठंडी ठंडी हवा चल रही थी जिससे मकई के पौधे लहरा रहे थे और मेरे नंगे शरीर पर रोंगटें खड़ी कर रहे थे. चारों ओर से आती सोंधी मिट्टी की खुशबू मुझे मस्त बना रही थी. 

मकई के पौधों के बीच मे मैं कमर उठा उठाकर अमोल से चुदवा रही थी और बीच-बीच मे झड़ रही थी. और अमोल भी एक निपुण चोदू की तह मुझे चोदे जा रहा था.

मै समझ गयी अमोल ने अपनी नौकरानी के अलवा भी बहुत औरतों को चोदा होगा. पर मुझे क्या ग़म? जब अमोल मेरे गुनाहों को माफ़ करने को तैयार था, मैं भी परवाह नही करती वह और किस किस को चोद रहा है.

करीब 20 मिनट तक मुझे पेलने के बाद अमोल बोला, "तुम्हारी प्यास बुझी कि नही, वीणा?"
"हाँ अमोल!" मैने ठाप लेते हुए कहा, "मै तो चार-पांच बार झड़ भी चुकी हूँ."
"बहुत दिनो की प्यास है न तुम्हारी, इसलिये सोचा तुम्हे अच्छे से चोद दूं." अमोल बोला, "फिर न जाने कब मौका मिले तुम्हे चुदवाने का."
"मुझसे जल्दी शादी कर लो, अमोल!" मैने कहा, "फिर दिन रात मैं तुमसे चुदवा सकूंगी!"

"वीणा, शादी की तैयारी मे बहुत समय लगता है." अमोल मुझे पेलते हुए बोला, "तब तक तुम्हे चोदे बिना मैं कैसे जीऊंगा?
"अपनी दीदी से कहो कि मुझे हाज़िपुर बुला ले." मैने सुझाव दिया, "फिर तुम जब जी करे हाज़िपुर आ जाना और मुझे चोद लेना. तुम्हारी दीदी हमारी चुदाई का सारा इंतज़ाम कर देगी."
"यह ठीक रहेगा." अमोल बोला, "शादी से पहले मेरा यहाँ बार-बार आना ठीक नही लगेगा."

अमोल फिर मुझे चोदने मे जुट गया. लग रहा था अब वह झड़ने के बहुत करीब आ गया है. मेरी प्यास तो बुझ गयी थी और मैं बहुत थक भी गयी थी. पर मैं उसके मज़े के लिये उसका साथ दे रही थी.

"अमोल, मेरा गर्भ गिराने कब ले जाओगे?" मैने पूछा.
"ले जाऊंगा, डार्लिंग...इतनी जल्दी क्या है?" उसके मेरी ठुकाई करते हुआ कहा.
"हाय, जल्दी नही होगी?" मैने जवाब दिया, "शादी से पहले मेरा पेट फूल गया तो मैं घरवालों को क्या जवाब दूंगी?"
"कह देना तुम खेत मे मुझसे चुदवाई थी."
"मेरे पिताजी तुमसे मेरी शादी तो करवा देंगे, पर फिर कभी हम दोनो को अपने घर मे घुसने नही देंगे!"

"मै तो चाहता हूँ...तुम कुछ दिन अपने कोख मे...यह नाजायज़ बच्चा रखो." अमोल मुझे चोदता हुआ बोला, "गर्भवती औरत को चोदने मे...बहुत मज़ा आता है."
"अमोल, मज़ाक छोड़ो!" मैने कहा.
"मै मज़ाक नही कर रहा हूँ, वीणा!" अमोल ने कहा और मुझे जोर जोर से चोदने लगा, "मै तो यह सोचकर...बहुत उत्तेजित हो रहा हूँ...के मेरी होने वाली पत्नी के गर्भ मे...किसी अनजान आदमी का बच्चा है!"

जिस जोश के साथ वह मुझे पेलने लगा मैं समझ गयी वह मज़ाक नही कर रहा था. पर मैं उसके वश मे थी. मेरा गर्भपात वही करा सकता था. मेरे पास उसके शर्त पर चलने के अलावा अब कोई चारा नही था.

मेरे होठों को चूमते हुए अमोल लंबे लंबे ठाप लगाने लगा.

अचानक उसका शरीर अकड़ गया. उसने मेरे नरम होठों को अपने मुंह मे ले लिये और मेरी चूत की गहराई मे अपना लन्ड घुसाकर अपना वीर्य छोड़ने लगा.
"आह!! आह!! आह!! आह!!" करके कराहते हुए वह कुछ देर तक झड़ता रहा. फिर मेरे ऊपर थक कर लेट गया.

चारों तरफ़ अंधेरा हो चुका था. अमोल उठा और चांद की धुंधली रोशनी मे उसने अपने कपड़े पहने. मैने अपनी ब्रा नीचे की और ब्लाउज़ के हुक लगा ली. अंधेरे मे मुझे अपनी चड्डी नही मिली. मैने अपनी साड़ी और पेटीकोट नीचे की और अपने बालों को ठीक किया.

मै अमोल को लेकर खेत से घर पहुंची. आंगन के बल्ब की रोशनी मे मुझे दिखाई दिया कि हमारे कपड़ों की क्या हालत है!

मेरी साड़ी बुरी तरह मुसड़ गयी थी. उस पर जगह जगह घाँस के तिनके लगे थे. ऊपर से मेरी चूत से अमोल का वीर्य बह रहा था. मैं तो शर्म से पानी-पानी हो गयी कि घर मे कैसे घुसूंगी!

पर अमोल मुझे जबरदस्ती अन्दर ले गया.

हमे देखते ही मेरी माँ चिल्ला पड़ी, "वीणा! कहाँ थी इतनी देर तक? मैने कहा था ना जल्दी आ जाना?"

नीतु मेरे कपड़ों को देखकर बोल उठी, "दीदी, तेरे कपड़ों का यह क्या हाल हुआ है? इतनी घाँस मिट्टी कैसे लग गयी?"

मै तो शरम से मिट्टी मे गड़ी जा रही थी पर अमोल जोर से कराह कर बोला, "और पूछ मत, नीतु! तेरे गाँव के गाय लोग इतने कमीने हैं मुझे बताया तो होता?"

"क्या हुआ, बेटा?" मेरी माँ ने चिंतित होकर पूछा.
"वीणा और मैं शिव मन्दिर के पास से आ रहे थे तो रास्ते से कुछ गाय घर को लौट रहे थे." अमोल ने कहा, "शायद मैं उन्हे पसंद नही आया. अचानक मेरे पीछे दौड़ने लगे और सींग मारने लगे! वीणा मुझे बचाने आयी तो वह उसके भी पीछे पड़ गये. दोनो किसी तरह गिरते-पड़ते बचकर आये हैं."
"हाय राम!" मेरी माँ बोली, "वीणा, किसके गऊ थे तुने देखा? मैं अभी जाकर शिकायत करती हूँ!"
"नही, इससे क्या फ़ायदा होगा!" अमोल और कराहकर बोला, "आपके गाँव के गाय मुझे पसंद ही नही करते. पिताजी, मैं इस गाँव मे शादी नही करुंगा!"

अमोल के पिताजी जोर से हंस पड़े और बोले, "तेरी शादी इसी गाँव मे होगी. तुने ही ज़िद की थी कि शादी करेगा तो सिर्फ़ वीणा से, नही तो शादी ही नही करेगा. अब तु नही मानेगा तो तेरे कान पकड़कर वीणा बिटिया से तेरी शादी कराउंगा!"

मै शरमाकर अपने कमरे मे भाग आयी और बाथरूम मे गुस गयी.

मेरी चूत से मेरे होने वाले पति का पहला वीर्य बह रहा था. अच्छा होता मैं उसी वीर्य से गर्भवती हो जाती. पर अफ़सोस, मैं पहले ही दूसरे मर्दों से चुदवाकर पेट बना चुकी थी!

अपनी चूत को अच्छे से धोकर मैं बाहर निकली और नये कपड़े पहन ली.

बाद मे नीतु मुझे बोली, "दीदी, थोड़ी अजीब बात नही हो गयी?"
"क्या?"
"गाँव के गऊ लोग जो जीजाजी के पीछे पड़ गये थे..."
"क्यों नही पड़ सकते है क्या?" मैने बात को टालने के लिये कहा.
"पड़ तो सकते हैं..." नीतु बोली, "पर शिव मन्दिर के पास एक ही खटाल है और दोपहर से उनके सारे गऊ खटाल के अन्दर ही हैं."
"तेरा कहने का क्या मतलब है?" मैने आंखें दिखाकर कहा.
"कुछ नही!" नीतु कमरे से निकलते हुए बोली, "पर सोचने वाली बात यह है...के जीजाजी झूठ क्यों बोल रहे थे!" बोलकर वह तुरंत नीचे भाग गयी.

अमोल और उसके पिताजी के जाने का बाद मैने तुरंत मीना भाभी को चिट्ठी लिखी.

**********************************************************************

मेरी प्यारी मीना भाभी,

मै नही जानती मैं किन शब्दो से तुम्हे धन्यवाद कहूं! तुम ने मेरी जान और मेरे घर की इज़्ज़त बचा दी है. मुझे अमोल बहुत पसंद आया है और मैने उससे शादी के लिये हाँ कर दी है. सच कहूं तो मुझे उसे देखकर ही प्यार हो गया है.

मुझे नही पता तुम ने उसे मेरे सोनपुर के कारनामों के बारे मे क्या क्या बताया है. पर उसे पता था मैं गर्भवती हूँ. फिर भी वह मुझे इतना प्यार करता है कि मुझसे शादी करने को तैयार है. मेरी इतनी अच्छी किस्मत होगी मैने कल्पना भी नही की थी.

भाभी, तुम मुझसे कुछ छुपाती नही हो, इसलिये मैं भी यह बात तुमसे छुपाना नही चाहती. तुम्हारी तरह साहित्य रचना मुझे नही आता है - इसलिये संक्षेप मे लिख रही हूँ. आज मैं अमोल को लेकर हमारी खेती दिखाने ले गयी थी. उधर अमोल मुझे बहुत प्यार करने लगा. तुम तो जानती हो मैं पिछले महीने भर से चुदवाई नही हूँ. अमोल के प्यार मे मैं बह गयी और हम दोनो ने खेत मे ही चुदाई कर ली. मुझे अमोल से चुदवाकर बहुत मज़ा आया. तुम ने ठीक ही कहा था. खुले वातावरण मे चुदवाने का एक अलग ही मज़ा है!

और भाभी, तुम्हारा भाई बहुत बड़ा खिलाड़ी है! उसने मुझे बताया कि उसने तुम्हारे मैके की एक नौकरानी का बलात्कार किया था और उसे गर्भवती बना दिया था. अगर तुम्हे पता हो तो मुझे बताना वह और किन किन औरतों की चूत मारे फिरता है. वैसे मुझे कोई आपत्ती नही है अगर वह शादी के बाद भी दूसरी औरतों को चोदता फिरे. एक तो मैं खुद कुछ कम खेल खाई नही हूँ. दूसरे, सच कहूं तो मैं अमोल से जितना भी प्यार करुं, मेरे मन से दूसरे मर्दों को भोगने की लालसा हमेशा रहेगी. मैं अमोल को कोई धोखा नही देना चाहती. अगर उसे आपत्ती न हो तो मैं दूसरे मर्दों से चुदवाते रहना पसंद करूंगी. पता नही मैं अमोल को यह कैसे समझा पाऊंगी.

खैर यह सब बाद की बात है. अभी तो मुझे बस शादी का इंतज़ार है ताकि मैं अपने अमोल से दिन-रात चुदवा सकूं. न जाने अमोल से मेरी शादी कब होगी! भाभी मुझे बताओ, तब तक मैं बिना लन्ड के कैसे जीऊं!

तुम्हारी अपनी,
वीणा

*******************************************
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,485,403 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 542,678 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,225,596 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 926,927 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,645,036 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,073,069 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,938,153 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,014,535 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,015,968 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 283,355 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 2 Guest(s)