RE: Hindi Kamuk Kahani बरसन लगी बदरिया
बत्ती तो उन्होने बंद करने नहीं दी थी। अबकी दर्द मुझे पहले दोनों बार से कम हुआ और मजा भी खूब आ रहा था। मेरा तो कई बार हुआ पर वो बहुत देर बाद… आखिर वो झड़े… लेकिन अबके उनके झड़ते ही मैंने धीरे से उनके लंड को बाहर निकाल लिया और अपनी जाँघो के बीच में दबा लिया। थोड़ी देर में वह फिर सो गये थे।
मैंने बाहर देखा तो सुबह हो रही थी। इसलिए मैंने फिर फ्रोक पहनी और किचन में आ गयी…”
“वाह, बन्नो, तुमने तो पहली ही बार में हैट्रिक कर ली । बट लेट मी टेल यू वन थिग, जैसे कान छेदते हैं ना, तो उसमें रिंग पहनना ज़रूरी होता है कि फिर से छेद बंद न हो जाये, उसी तरह से यही हालत चूत की है…” कहते हुए मैंने हाथ उसकी फ्रोक में डालकर उसकी अभी-अभी चुदी कमसिन चूत पकड़कर भींच दी - “इट ओन्ली मीन्स दैट मुझे तुम्हारे लिए कोई रेगुलर इंतज़ाम करना पड़ेगा, जिससे मेरी बन्नो की चूत अब रोज-रोज चारा खाये…”
“पर भाभी, संजय तो… आज रात में चला जायेगा…”
“आइ नो…” उसकी चूत में उंगली डालकर उसकी लेबिया फैलाते हुए मैंने चिढ़ाया- “चलो मेरे भैया न सही , मेरे सैयाँ ही सही , आज उन्हीं के साथ तुम्हारा…”
“पर भाभी, आपका उपवास हो जायेगा…” मेरी बात बीच में काटकर आँख. मटकाकर खिलखिलाती हुई वह बोली ।
एक रात में छोरी कितनी बदल गयी थी।
“कोई बात नहीं, ननद भाभी मिल बाँट कर खाएँगे …” मैं हँसकर बोली ।
चाय का पानी अब उबल रहा था। मैंने चाय उड़ेलकर दो ट्रे बनायीं। एक मैंने मीता को देते हुए कहा- “हे, जरा यह मेरे भाई को दे के आओ। रात भर में तुमने उसकी सारी मलाई निकाल ली , अब थोड़ा रीप्लेनिश भी करो।
और हाँ, बेड-टी देने के पहले उसके हथियार को गुड मॉर्निंग का एक गरम-गरम किस दे के उठाना…”
“हाँ… मैं कह दूँगी कि यह किस मेरी भाभी की ओर से है…” अपने जवान नितंबों को हिलाते हुए वह बोली और जाने लगी।
“अच्छा चारा खाकर चिड़िया बहुत बोलने लगी है, आज मैंने अपने सैयाँ से तुम्हारी ये कोरी -कोरी गान्ड न मरवायी तो कहना…”
“ठीक है भाभी, आपके भैया को देख लिया, अब आपके सैयाँ को भी देख लूंगी…” किसी खिलती छिनार जैसे अपने चूतड़ मटकाकर वह बोली और चली गयी।
मैं भी अपने पति के लिए बेड-टी लेकर ऊपर आयी। उन्हें जल्दी जाना था इसलिए वे तैयार हो रहे थे। जब वे बाहर आये तो आंगन में फिर सावन भादों की झड़ी लग गयी थी। उन्हें छेड़ती हुई मैं बोली –
“तेरी दो टकिया की नौकरी, मेरा लाखों का सावन जाये।
हाय हाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी…”
उसने मुझे बाहों में भींचकर कहा कि जानती हो, इस मौसम में मेरा बस एक ही मन करता है कि तुम्हें खींच के बारिश में ले जाऊँ , और वहां हम लोग खूब जमकर भीगें और वही तुम्हें मैं रस ले-लेके चोदू उसके होंठ मेरे होंठों के अमृत का पान कर रहे थे और उसके हाथ मेरे बालों में चल रहे थे।
“तो फिर देर क्या है? मैं भी हूँ और बारिश भी है…” आँख. मटकाकर मैंने उन्हें चेलेंज किया और फिर मेरा मतलब साफ करने के लिए उनकी पैंट में फिर से सरसराते हुए उनके लंड को पकड़ लिया।
“यू नो, आज मैं चार बजे तक जल्दी घर आने की सोच रहा था, उसके बाद… लेकिन यू नो, इट विल नाट बी पासिबल…” वे बोले।
“डालिग. , मैं जानती हूँ कि तमु किस प्राबलम की बात कर रहे हो पर अगर मैं वह प्राबलम साल्व कर दूं तो बस मेरी एक छोटी सी शर्त है, तुम्हें एक काम करना होगा…” अब तक मैंने उनका जिप खोल लिया था और ब्रीफ़ के
ऊपर से उसका करीब-करीब पूरा तन्नाया लंड सहला रही थी।
“बोलो ना क्या शर्त है तुम्हारी , यू नो, मैं वैसे ही जोरू का गुलाम हूँ, जो कहोगी वह करूँगा …” मुझे भूखे की तरह आलिगन में लेकर मेरा पल्लू उठाकर मेरे स्तन जोर से मसलते हुए उन्होने कहा।
“ओके, तो जिसके साथ, जैसे, जो भी कहूंगी… करना पड़ेगा, कोई भी नखरा नहीं चलेगा…” मेरा हाथ अब उसके ब्रीफ़ में घुसकर उसके सुपाड़े की चमड़ी नीचे कर रहा था।
“हाँ, हाँ, जिसके साथ, जैसे भी, जो भी कहोगी करूँगा, करूँगा, करूँगा, लेकिन आज शाम को…”
“ओके, हो जायेगा, डार्लिंग, तुम्हारे लिए कुछ भी … पर अपना प्रामिस याद रखना…” अपना हाथ निकालते हुए मैंने कहा- “पर अभी तो नास्ते पर चलो, मीता और संजय इंतेजार कर रहे होंगे…”
नास्ते की टेबल पर मीता और संजय साथ-साथ बैठे थे। संजय का हाथ मीता के कंधे पर था। मेरे ढले पल्लू को देखकर मीता ने मजाक किया- “भाभी, मैं तो सोच रही थी कि आप भैया को कमरे में ही नाश्ता करा रही हैं…”
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