Aunty ki Chudai आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
02-07-2019, 01:13 PM,
#41
RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
प्रिया की हालत देख कर ऐसा लगने लगा था कि अब वो अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच चुकी है और अब झड़ कर निढाल हो जाएगी। मैंने भी अब अपना पानी छोड़ने का मन बनाया और उसकी चूचियों को छोड़ कर उसकी कमर को फिर से पकड़ कर भयंकर तेज़ी के साथ धक्के लगाने लगा। मेरी स्पीड किसी मशीन से कम नहीं थी।

“आआ…अया… आया…सोनू… मेरे सोनू… आज तुमने मुझे सच में जन्नत में पहुँचा दिया…आईई… और चोदो …तेज़…तेज़… तेज्ज़… और तेज़ चोदो… फाड़ डालो इस चूत को… चीथड़े कर दो इस कमीनी के… हाँ…ऐसे ही …और चोदो…मेरे चोदु सनम…चोदो…” प्रिया निरंतर अपने मुँह से सेक्सी सेक्सी देसी भाषा में बक बक करते हुए चुदाई का मज़े ले रही थी और अपनी गांड को जितना हो सके पीछे धकेल रही थी।

“हाँ मेरी जान… ये ले… और चुदा …और चुदा… फ़ड़वा ले अपनी नाज़ुक बूर को…ओह्ह्ह…और ले… और ले… तू जितना कहेगी उससे भी ज्यादा मिलेगा…ले चुदा…!” मैंने भी उसी स्पीड से चोदते हुए उसकी गांड पर अपने जांघों से थपकियाँ देते हुए चूत का नस नस ढीला कर दिया।
“हाँ आआ अन्न… मैं गई जान…मेरे चूत से कुछ निकल रहा है…हाँ…और तेज़ी से मारो…और पेलो… और पेलो… तेज़… तेज़…तेज़… चोदो… चोदो… और चोदो… आऐईईई… ओह्ह्ह्हह्ह.. माँ…मर गई…सोनूऊऊउ !” प्रिया बड़ी तेज़ी से अपनी गांड हिलती हुई झड़ गई और अपने हाथों को सीधा कर के बिस्तर पे पसर सी गई।

मैं अब भी उसे पेले जा रहा था… मैंने उसकी कमर को अपनी तरफ खींच कर ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगाये और मस्ती में मेरे मुँह से भी अनेकों अजीब अजीब आवाजें निकलने लगीं। मैं भी अपनी फ़ाइनल दौर में था।

“ओह्ह्ह्ह… मेरी जान… और चुदा लो… और चुदा लो… तेरी चूत का दीवाना हूँ मैं… मेरा लंड अब कभी तुम्हारी चूत को नहीं छोड़ेगा… हाँ… और लो …और लो… मैं भी आ रहा हूँ… हम्म्म्म… ओह मेरी रानी… चुद ही गई तुम्हारी चूत…और लो…” मैं प्रिया को पूरी तरह अपने कब्जे में लेकर अपना लंड उसकी चूत में पेलता रहा और बड़बड़ाता रहा।

प्रिया लम्बी लम्बी साँसें लेकर मेरा साथ दे रही थी और अपनी गांड को धकेल कर मेरे लण्ड से चिपका दिया।

“ऊहह्ह्ह्ह… ह्म्म्म… ये लो मेरी जान…” मैं जोर से बकने लगा। मुझे यह ख्याल था कि मुझे अपना माल अन्दर नहीं गिराना है वरना मुश्किल हो जाएगी।

मैंने झट से अपना लंड बाहर निकला और अपने हाथों से तेज़ी से हिलाने लगा। प्रिया के चूत से जैसे ही लंड बाहर आया वो घूम गई और मुझे अपना लंड हिलाते हुए देख कर मेरे करीब आ गई और मेरा हाथ हटा कर उसने मेरे लंड को थाम लिया और एक चुदक्कड़ खिलाड़ी की तरह मेरे लंड की मुठ मारने लगी.. साथ ही साथ एक हाथ से मेरे अण्डों को भी दबाने लगी।

मेरा रुकना अब नामुमकिन था। प्रिया ने अपनी मुट्ठी को और भी मजबूती से जकड़ लिया और लंड को स्ट्रोक पे स्ट्रोक देने लगी।
“आआअह्ह… आअह्ह्ह…आअह्ह्ह… प्रिया मेरी जान… ह्म्म्म…आअह्ह्ह्ह !” एक तेज़ आवाज़ के साथ मैंने अपने लंड से एक तेज़ धार निकली और मेरे लंड का गाढ़ा गाढ़ा सा माल प्रिया की चूचियों पर छलक गया। न जाने कितनी पिचकारियाँ मारी होंगी मैंने…मज़े में मेरी आँखें ही बंद हो गई थीं…

प्रिया अब भी लंड को हिला हिलाकर उसका एक एक बूँद निकाल रही थी और उसे अपने बदन पे फैला रही थी।

जब लंड से एक एक बूँद पानी बाहर आ गया तो मैं बिल्कुल कटे हुए पेड़ की तरह बिस्तर पे गिर पड़ा और लम्बी लम्बी साँसें लेने लगा। प्रिया भी मेरे ऊपर ही अपनी पीठ के बल लेट गई और आहें भरने लगी।

हम काफी देर तक वैसे ही पड़े रहे, फिर प्रिया धीरे से उठ कर बाथरूम में चली गई। मैं अब भी वैसे ही लेटा हुआ था।

जब प्रिया बाहर आई तो बिल्कुल नंगी थी और शायद उसने अपनी चूत को पानी से साफ़ कर लिया था। लेकिन वो मेरे पास आकर थोड़ी बेचैन सी दिखी तो मैं झट से उठ कर उसके पास गया और उसकी बेचैनी का कारण पूछने लगा।

तभी प्रिया ने शरमाते हुए बताया कि उसकी चूत पर पानी लगते ही बहुत ज़ोरों से लहर उठ रही है। उसकी चूत के अन्दर तक तेज़ लहर हो रही थी। मैंने उसका हाथ पकड़ कर ऊपर वाले बेड पे बिठा दिया और उसकी पीठ सहलाने लगा।

अचानक से प्रिया की नज़र नीचे चादर पे गई जहाँ ढेर सारा खून गिरा पड़ा था। उसने चौंक कर मेरी तरफ देखा और अपना मुँह ऐसे बना लिया जैसे पता नहीं क्या हो गया हो।

मैं उसकी हालत समझ गया और उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसकी आँखों में आँखें डाल कर उसे समझाने लगा- जान, डरो मत, यह तो हमारे प्रेम की निशानी है… ये तुम्हारे कलि से फूल और आज से मेरी बीवी बनने का सबूत है।” मैंने उसे बड़े प्यार से कहा।

प्रिया ने मेरी बातें सुनकर अपना सार मेरे कंधे पे रख दिया और उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े।

“इतना प्यार करते हो मुझसे…” प्रिया ने बस इतना ही पूछा…लेकिन मैंने जवाब में बस उसके होठों को चूम लिया।

फिर मैंने अपने आलमारी से बोरोलीन की ट्यूब निकल कर उसे दी और कहा कि अपनी चूत में लगा लो, आराम आ जायेगा।

उसने मेरी तरफ देखा और अचानक से मेरे कान पकड़ कर बोला, “अच्छा जी, चूत तुम्हारी है और तुम्हारे ही लंड ने फाड़ी है…तो ये काम भी आप को ही करना होगा ना?”

मैं हंस पड़ा और बोला- हाँ जी, चूत तो मेरी ही है लेकिन उसे फाड़ा तो आपके लंड ने है…ता अपने लंड को कहो कि तुम्हारी चूत में घुस कर दवा लगा दे !”

“ना बाबा ना…अगर इसे कहा तो ये फिर से शुरू हो जाएगा।” यह कहकर प्रिया ने लंड को अपने हाथों से पकड़ कर मरोड़ दिया।

इतनी देर के बाद लंड अब ढीला पड़ चुका था लेकिन जैसे ही प्रिया ने उसे छुआ कमबख्त ने अपना सर उठाना चालू कर दिया। प्रिया यह देख कर हंसने लगी और मैं भी मुस्कुराने लगा। मैंने प्रिया को वहीं बिस्तर पर लिटा दिया और फिर अपनी उँगलियों पे बोरोलीन लेकर अच्छी तरह से उसकी चूत में लगा दिया और फिर आखिर में उसकी चूत को चूम लिया।

“हम्म्म्म…उफ्फ्फ सोनू ऐसा मत करो… वरना फिर से…” इतना कह कर प्रिया ने अपनी नजर नीचे कर ली और मुस्कुराने लगी।

मैं जल्दी जल्दी बिस्तर से नीचे उतरा और अपनी निक्कर और टी-शर्ट पहन ली और प्रिया के कपड़े उसे देते हुए कहा, “जान, जल्दी से कपड़े पहन लो काफी देर हो चुकी है। तुम्हारी मॉम तुम्हें ढूंढते हुए कहीं यहाँ आ जाये।”

मेरी बात सुनकर प्रिया हंसने लगी और अपने कपड़े मेरे हाथों से लेकर पहन लिया। फिर मैंने जल्दी से नीचे पड़ा चादर उठाया और उसे बाथरूम में रख दिया। प्रिया अपनी किताबें समेट रही थी। किताबें लेकर प्रिया दरवाज़े की तरफ बढ़ी लेकिन उसकी चाल में लड़खड़ाहट साफ़ दिख रही थी। हो भी क्यूँ ना…आखिर उसकी सील टूटी थी। मैं पीछे से यह देख कर मुस्कुराने लगा और मुझे दोपहर की रिंकी वाली बात याद आ गई।

सच पूछो तो मुझे अपने आप पर थोड़ा गर्व हो रहा था। एक ही दिन में दो दो चूतों की सील तोड़ी थी मैंने…

प्रिया ने पलट कर मुझे एक स्माइल दी और मेरी तरफ चुम्मी का इशारा करके दरवाज़े से बाहर निकल गई और सीढ़ियाँ चढ़ कर अपने घर में प्रवेश कर गई।

मैं दरवाज़े पे खड़ा उसे तब तक देखता रहा जब तक उसने अपन दरवाज़ा बंद नहीं कर लिया और मेरी नज़रों से ओझल न हो गई। पता नहीं क्यूँ लेकिन दो दो कसी कुंवारी चूतों की सील तोड़ने के बाद भी मुझे सिर्फ और सिर्फ प्रिया का ही ख्याल आ रहा था।

शायद मुझे सच में प्रिया अच्छी लगने लगी थी। मैं इसी ख्याल से खुश होकर अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करके लाइट बंद किये बिना ही बिस्तर पे गिर कर आँखें बंद करके अभी अभी बीते पलों को याद करते करते सो गया।
अपने जीवन का अब तक का सबसे अच्छा वक़्त बिताकर मैं फूला नहीं समां रहा था। प्रिया के जाने के बाद मैंने भी अपने बिस्तर को थाम लिया और थक कर चूर होने की वजह से लेटते ही नींद कि आगोश में समां गया। आँखे बंद होते ही मेरे जेहन में वो कामुक सिसकारियाँ गूंजने लगीं जो रिंकी और प्रिया के मुँह से निकले थे। मेरे होंठों पे बरबस एक मुस्कान सी आ गई और मैं मुस्कुराता हुआ सो गया।

सुबह दरवाजे पे दस्तक हुई और पता नहीं क्यूँ मैं एक बार में ही सिर्फ उस खटखटाहट से ही जाग गया। वैसे मैं सोने के मामले में बिल्कुल कुम्भकर्ण का सगा हूँ। सुबह देर तक सोना मेरी आदत है और जबतक मुझे झकझोर कर न उठाओ तब तक मैं उठता ही नहीं. हा हा हा हा …

आँखें खुल चुकी थीं और सीधे दीवार पे लटकी घड़ी पे गई, देखा तो सुबह के 5 बज रहे थे…मैं थोड़ा अचंभित सा हो गया, ‘इतनी जल्दी…कौन हो सकता है??’ मैंने खुद से फुसफुसाकर पूछा और धीरे से आवाज लगाई…

“कौन…?? कौन है ?”

“मैं हूँ बुद्धू….कभी तो जल्दी उठ जाया करो !!” एक धीमी सी खनकती हुई आवाज़ ने मेरे कानों में रस सा घोल दिया। लेकिन साथ ही साथ एक सवाल भी उठा मन में…नींद से अलसाये होने के कारण मैं उस आवाज़ को ठीक से पहचान नहीं पाया।

“रिंकी… या फिर प्रिया… कौन हो सकती है??” मन में उठे सवालों से उलझते हुए मैं बिस्तर से उठा और लड़खड़ाते क़दमों से दरवाज़े तक पहुँचा।

दरवाज़ा खोला तो देखा कि मेरे सपनों की रानी, मेरी हसीन परी प्रिया खड़ी थी। सफ़ेद शलवार-कुरते और सफ़ेद चुन्नी में… भीगे हुए बाल… होंठों पे एक सुकून भरी मुस्कान… आँखों में एक प्यार भरा समर्पण…!

एक पल को तो ऐसा लगा जैसे अब भी नींद में हूँ और कोई सपना देख रहा हूँ। मैं बिना कुछ बोले बस उसके चेहरे को देख रहा था और कहीं खो सा गया था। आज से पहले मैंने प्रिया को कभी भी ऐसे कपड़ों में नहीं देखा था। वो हमेशा मॉडर्न कपड़े ही पहना करती थी। आज तो जैसे चाँद उतर आया था ज़मीन पर…और वो भी सुबह सुबह !!

“आउच….” मेरे मुँह से अचानक निकल पड़ा, उँगलियों पे जलन सी महसूस हुई, देखा तो पाया कि मैडम जी ने अपने हाथों में पड़े चाय की गरमागरम कप मेरे उँगलियों से सटा दी थी और मज़े से मुस्कुरा रही थीं..

“जागो मेरे पति परमेश्वर…सुबह हो गई है और आपकी प्यारी सी बीवी आपके लिए गरमागरम चाय लेकर आई है !” प्रिया ने अपने नाज़ुक होंठों से इस अंदाज़ में कहा कि मैं तो मंत्रमुग्ध सा बस उसे फिर से उसी तरह देखने लगा।

“अरे अब अन्दर भी चलोगे या यहीं मुझे घूरते रहोगे..??” प्रिया की खनकती हुई आवाज़ ने मेरा ध्यान तोड़ा और मैंने उसके हाथों से चाय का कप अपने हाथों में लेकर उसका एक हाथ पकड़ा और अन्दर ले आया।

मैंने चाय का प्याला मेज़ पर रख दिया और प्रिया को अपनी बाहों में भर लिया। प्रिया भी जैसे इसी पल का इंतज़ार कर रही थी… उसने भी मुझे जकड़ सा लिया और मेरे सीने में अपना सर रखकर जोर जोर से साँसें लेने लगी। हम दोनों दुनिया से बेखबर होकर एक दूसरे को जकड़े खड़े थे..

थोड़ी देर के बाद प्रिया ने खुद को मुझसे अलग किया और मेरी आँखों में देखने लगी। उसकी वो आँखें आज भी याद हैं मुझे… इतना प्यार और इतना सुकून भरा था उन आँखों में कि मैं बस डूब सा गया था !

“चलिए जनाब अब जल्दी से फ्रेश हो जाइये और यह चाय पीकर बताइए कि कैसी बनी है…?? प्रिया ने मुझे बाथरूम की तरफ धकेलते हुए कहा।

मैंने प्रिय को फिर से अपनी बाहों में भरने की कोशिश की तो उसने मुझे रोक दिया..

“ओहो, बाबा…पहले आप जल्दी से फ्रेश हो लो…फिर मैं तो आपकी ही हूँ, जितना चाहे प्यार कर लेना। वैसे अगर आप जल्दी से हमारी बात मानोगे तो आपको एक अच्छी खबर मिलेगी !” प्रिया ने प्यार से मुझे पीछे से धक्का देते हुए कहा।

प्रिया के गोल गोल उभारों का स्पर्श मुझे उत्तेजित सा कर रहा था… लेकिन साथ ही उसकी बातों से मेरा कौतूहल बढ़ता जा रहा था… मैं सोचने पर विवश हो गया कि आखिर ऐसी क्या खबर होगी…

“इससे अच्छी क्या खबर हो सकती थी कि जिसके सपने देख कर मैं सोया था वो खुद ही सुबह सुबह मेरी आँखों के सामने है।” यह सोचकर मैं मुस्कुरा कर फ्रेश होने के लिए बाथरूम में घुस गया।

बाहर आया तो देखा कि प्रिया रानी मेरे कमरे को साफ़-सुथरा करने में व्यस्त थीं। देख कर मन प्रसन्न हो गया, बिल्कुल एक बीवी की तरह वो अपना धर्म निभा रही थी। शायद ये उन हसीन पलों में से एक था जिसकी कल्पना हम सभी कभी न कभी करते ही हैं।
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02-07-2019, 01:13 PM,
#42
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बाहर आकर मैंने उसे पीछे से पाकर कर अपनी गोद में उठा लिया और अपने कमरे में ही चक्कर लगाकर घूमने सा लगा।

“अरे …क्या कर रहे हो ? छोड़ो भी… देखो कमरे का क्या हाल कर रखा है, इसे ठीक तो कर लेने दो।” उसने मुझसे छूटने की कोशिश करते हुए मुस्कुराते हुए आग्रह किया।

“कमरा तो बाद में भी ठीक हो जायेगा जानू, लेकिन अगर यह पल एक बार बीत गया तो वापस नहीं मिलने वाला !” मैंने उसके गर्दन पे पीछे से चूमते हुए कहा और उसे लेकर सीधा बिस्तर पे लेट गया। प्रिया ने हालाँकि कुछ विरोध तो दिखाया लेकिन यह विरोध प्यार वाला था।

हम दोनों करवट लेकर लेट गए जिसमे प्रिया की पीठ मेरी तरफ थी और मैं पीछे से बिल्कुल चिपक कर उसकी गर्दन और कन्धों पर अपने होंठों से धीरे धीरे चूमने लगा। थोड़ी न नुकुर के बाद प्रिया ने भी लम्बी लम्बी साँसें लेनी शुरू कर दी और चिपके हुए ही पलट कर सीधी हो गई। अब मैं उसके माथे पे एक प्यार भरा चुम्बन देकर उसकी आँखों में देखने लगा।

मेरे हाथ सहसा ही उसकी गोल कठोर चूचियों पे चले गए और मैंने उसकी एक चूची को अपने हथेली में भर लिया…

“उफ्फ्… ऐसा मत करो… प्लीज, कल रात भर में तुमने इन्हें इतना बेहाल कर दिया है कि हल्का सा स्पर्श भी बहुत दर्द दे रहा है… छोड़ो न !!” प्रिया ने अपने चेहरे का भाव बदलते हुए दर्द भरी सिसकारी ली और मेरे हाथों पे अपना हाथ रख दिया।

प्रिया की जगह कोई और होती तो मैं शायद बिना कुछ सुने उन मखमली चूचियों को मसल देता… लेकिन पता नहीं क्यूँ उसके चेहरे पे दर्द की लकीरें देखकर मैंने अपना हाथ हटा लिया और उसके गालों पर एक चुम्मी लेकर उसे फिर से बाहों में भर लिया। उसने भी मेरे होंठों पे अपने होंठों से एक चुम्बन दिया और उठ कर बैठ गई।

“इतने प्यार से तुम्हारे लिए चाय बनाई है, पीकर तो देखो !” प्रिया ने मेरा ध्यान चाय की तरफ खींचा।

मैंने भी हाथ बढ़ाकर चाय की प्याली उठा ली और एक घूंट पीकर उसकी तरफ ऐसे देखा मानो चाय बहुत ही बुरी बनी हो… वास्तव में बहुत अच्छी चाय थी। प्रिय ने मेरा चेहरा देखकर महसूस किया कि शायद चाय ठीक नहीं है…

“क्या हुआ, अच्छी नहीं है?” प्रिया ने अजीब सी शकल बनाकर पूछा..

मैं हंस पड़ा और उसके गालों पे एक पप्पी लेकर कहा, “इतनी अच्छी चाय कभी पी नहीं न, इसलिए।”

“बदमाश….हर वक़्त डराते ही रहते हो।” प्रिया ने जोर से मेरे कंधे पे चिकोटी काट ली।

“वैसे आप कुछ अच्छी खबर देने वाली थीं..?” मैंने प्रिया को याद दिलाया तो प्रिया की आँखों में एक चमक सी आ गई।

“ह्म्म्म… अच्छी खबर यह है कि हम सब 15 दिनों के लिए मेरे नानी के घर जा रहे हैं… छोटी मौसी की शादी है।” प्रिया ने एक सांस में बहुत ख़ुशी के साथ कहा।

खबर सुनकर मैं थोड़ा चौंका और सोचने लगा कि इसमें अच्छा क्या है… बल्कि अब तो वो मुझसे 15 दिनों के लिए जुदा हो जाएगी… मैं ये सोच कर परेशान हो गया।

मेरे चेहरे की परेशानी देखकर प्रिया ने शैतानो वाली मुस्कान के साथ मेरे चेहरे को अपने हाथों में लेकर कहा, “अरे बाबा, परेशां मत हो… हम सब मतलब आप और नेहा दीदी भी हमारे साथ आ रहे हो !”

“क्या… यह कब हुआ…प्लान बन गया और मुझे खबर भी नहीं हुई?” मैंने चौंक कर प्रिया से पूछा।

“यह तब हुआ जब आप घोड़े बेच कर सो रहे थे… दरअसल मामा जी आये हैं अभी एक घंटा पहले और सभी लोग ऊपर ही बैठे हैं… नेहा दीदी भी ऊपर ही हैं और काफी देर से हम सब मिलकर प्लान ही बना रहे हैं..” प्रिया ने सब कुछ समझाते हुए कहा।

मैं अब तक भौंचक्का होकर उसकी बातें सुन रहा था.. ‘जाना कब है और शादी कब है ?” मैंने धीरे से पूछा।

“आज शाम की ट्रेन है जनाब, दरअसल मॉम यह सारी प्लानिंग कई दिनों से कर रही थीं और उन्होंने हम सबके लिए टिकट पहले से ही बुक करवा ली थीं। तो अब जल्दी से अपने सारे काम निपटा लीजिये और चलने की तैयारी कीजिये… वैसे आपको यह जानकर ख़ुशी होगी कि हमारे मामा जी के बहुत सारे खेत खलिहान हैं और वहाँ कोई आता जाता नहीं है।” प्रिया ने एक मादक और शरारत भरे अंदाज़ में कहा और धीरे से मेरे नवाब को पकड़ कर दबा दिया।

मैं यह सुनकर बहुत ही खुश हो गया और न जाने क्या क्या सपने देखने लगा… मेरी आँखों के सामने खुले खेत और बाग़ बगीचे के बीच प्रेम क्रीडा के दृश्य घूमने लगे।

“अभी से खो गए, एक बार वहाँ पहुँच तो जाइये जनाब, फिर सपने नहीं हकीकत में कर लेना सब कुछ।” प्रिय ने मेरे लंड को जोर से दबा कर मेरा ध्यान तोड़ा।

मैं अपने हाथ से चाय का प्याला रख कर प्रिया को जोर से पकड़ कर उसके ऊपर लेट सा गया और जिस लंड को प्रिया ने दबा कर जगा दिया था उसे कपड़ों के ऊपर से उसकी चूत पे रगड़ने लगा।

“ओह सोनू…देखो ऐसा मत करो… एक तो तुमने मेरी मुनिया की हालत बिगाड़ दी है और अगर अभी यह जाग गई तो बर्दाश्त करना मुश्किल हो जायेगा.. और अभी यह संभव नहीं है कि हम कुछ कर सकें… तो प्लीज मुझे जाने दो और तुम भी जल्दी से तैयार होकर ऊपर आ जाओ, सब तुमसे मिलना चाह रहे हैं।” इतना कहकर प्रिया ने मुझे ज़बरदस्ती अपने ऊपर से उठा दिया और मेरे लंड को एक बार फिर से सहलाकर जाने लगी।

प्रिया के जाते जाते मैंने बढ़कर उसकी एक चूची को जोर से मसल दिया… यह मेरी उत्तेजना के कारण हुआ था।

“उफ़…ज़ालिम कहीं के.. !” प्रिया ने अपने उभार को सहलाते हुए मुझे मीठी गाली दी और मुस्कुराकर वापस चली गई।

मैं मस्त होकर अपने बाकी के कामों में लग गया और जाने की तैयारी करने लगा।
"प्लीज मुझे जाने दो और तुम भी जल्दी से तैयार होकर ऊपर आ जाओ, सब तुमसे मिलना चाह रहे हैं।” इतना कहकर प्रिया ने मुझे ज़बरदस्ती अपने ऊपर से उठा दिया और मेरे लंड को एक बार फिर से सहलाकर जाने लगी।

प्रिया के जाते जाते मैंने बढ़कर उसकी एक चूची को जोर से मसल दिया… यह मेरी उत्तेजना के कारण हुआ था।

“उफ़…ज़ालिम कहीं के.. !” प्रिया ने अपने उभार को सहलाते हुए मुझे मीठी गाली दी और मुस्कुराकर वापस चली गई।

मैं मस्त होकर अपने बाकी के कामों में लग गया और जाने की तैयारी करने लगा।

करीब 8 बजे मैं तैयार होकर ऊपर नाश्ते के लिए चला गया। पहुँचा तो देखा कि सब लोग पहले से ही खाने की मेज़ पर बैठे थे। मैंने प्रिया के मामा जी को देखा और हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्ते की। उन्होंने भी प्रत्युत्तर में मुझे हंस कर आशीर्वाद दिया और फिर हम सब नाश्ता करने लगे।

हम सब बातों में खोये थे कि तभी मैंने रिंकी की तरफ देखा, उसने मुझे देखकर एक मुस्कान दी और फिर अपनी आँखें झुका लीं। मेरे दिमाग में उसके साथ बीते हुए कल के दोपहर की हर एक बात घूमने लगी और मैं मुस्कुरा उठा। रिंकी भी कुछ ज्यादा ही खुश लग रही थी। शायद वो भी उसी ख्याल में थी कि मामा के यहाँ जाकर वो भी दिल खोलकर मुझसे प्रेम क्रीड़ा का आनन्द लेगी…

एक बार के लिए मैं यह सोच कर हंस पड़ा कि दोनों बहनों की सोच कितनी मिलती है !!

खैर… हम सबने अपनी अपनी तैयारी कर ली थी और सारे सामान बैग में भर कर स्टेशन जाने के लिए तैयार हो गए। नेहा दीदी ने बताया कि सिन्हा आंटी ने मम्मी-पापा से बात कर ली है और उनसे इज़ाज़त भी ले ली है। मेरे मम्मी पापा हमारी गैर मौजूदगी में घर वापस आ रहे थे और इसलिए हमें घर की कोई चिंता करने की जरुरत नहीं थी।

हम सब स्टेशन पहुँच गए और ट्रेन का इंतज़ार करने लगे। प्रिया के मामा बिहार के दरभंगा जिले में रहते थे यानि कि प्रिया का ननिहाल दरभंगा में था। जमशेदपुर से हम सबको टाटा-पटना साउथ बिहार एक्सप्रेस से जाना था। हम सब बेसब्री से ट्रेन का इंतज़ार करने लगे और थोड़ी ही देर में ट्रेन यार्ड से निकल कर प्लेटफार्म पर आ गई। नवम्बर का महीना था और मौसम ठंडा हो चुका था, शायद इसीलिए स्लीपर की ही बुकिंग करवाई थी। हम कुल 6 लोग थे। स्लीपर के डब्बे में हमारी सारी सीटें एक ही कम्पार्टमेंट में थी यानि कि दोनों तरफ के 3-3 सीट हमारी थीं। मुझे हमेशा से ट्रेन की साइड विंडो वाली सीट पसंद आती है, इसलिए मैं थोड़ा सा उदास हो गया। लेकिन फिर मन मार कर सबके साथ बैठ गया।

ट्रेन चल पड़ी और तीनों लड़कियाँ लग गईं अपने असली काम में… वही लड़कियों वाली गॉसिप और हाहा-हीही में… मैंने अपना आईपॉड निकाला और आँखें बंद करके गाने सुनने लगा।

काफी देर के बाद सिन्हा आंटी ने मुझे धीरे से हिलाकर उठाया और खाने के लिए कहा। मेरा मन नहीं था तो मैंने मना कर दिया लेकिन आंटी नहीं मानीं और उन्होंने अपने हाथों से मुझे खिलाना शुरू कर दिया।

“अरे आंटी रहने दीजिये, मैं खुद ही खा लेता हूँ !” मैं थोड़ा असहज होकर बोल उठा..

“खा लीजिये जनाब, हमारी मम्मी सबको इतना प्यार नहीं देतीं… आप नसीब वाले हैं।” प्रिया ने शरारत भरे लहजे में कहा और हम सब उसकी बात पर खिलखिला कर हंस पड़े।

मेरी नज़र बगल वाली साइड की सीट पर गई जो अब भी खाली पड़ी थी… मैं उसे खली देख कर खुश हो गया, हल्की हल्की ठंड लग रही थी और मन कर रहा था कि प्रिया को अपनी बाहों में भर कर ट्रेन की सीट पर लेट जाऊँ.. लेकिन यह संभव नहीं था, मैंने भी कोई रिस्क लेना उचित नहीं समझा। हम खा चुके थे और सोने की तैयारी कर रहे थे कि तभी टीटी आया और हमारे टिकट चेक करने लगा। मैंने धीरे से टीटी से साइड वाली सीट के बारे में पूछा तो उसने बताया कि वो खाली ही है और अब उस पर कोई नहीं आने वाला। यह सुनकर मैं खुश हो गया। रिंकी और नेहा दीदी सबसे ऊपर वाले बर्थ पर चढ़ गईं, रिंकी दाईं ओर और नेहा दीदी बाईं ओर, बीच वाले बर्थ पे दाईं ओर प्रिया ने अपना डेरा डाल लिया और बाईं ओर सिन्हा आंटी को दे दिया गया।

लेकिन सिन्हा आंटी ने यह कहकर मना कर दिया कि उन्हें नीचे वाली सीट ही ठीक लगती है। इस बात पर मामा जी बीच वाली बर्थ पे चले गए। अब बचे मैं और आंटी, तो मैंने आंटी से कहा- आप नीचे वाली बर्थ पर दाईं ओर सो जाओ मैं अभी थोड़ी देर साइड वाली सीट पर बैठूँगा फिर जब नींद आएगी तब दूसरी सीट पर सो जाऊँगा।

प्रिया ने अपने कम्बल से झांक कर मुझे देख कर आँख मारी और अपने होंठों को गोल करके मेरी ओर चुम्बन उछाल दिया… और धीरे से गुड नाईट बोलकर सो गई…

मैंने मुस्कुरा कर उसके चुम्बन का जवाब दिया और फिर कम्बल लेकर साइड वाली सीट पर बैठ गया और पहले की तरह गाने सुनने लगा।
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02-07-2019, 01:13 PM,
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RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
कम्पार्टमेंट के सारे लोग लगभग सो चुके थे और पूरे डब्बे में अँधेरा हो चुका था। मैं मजे से गाने सुनता हुआ खिड़की से आती ठण्ड का मज़ा ले रहा था। तभी मेरे ठीक सामने आकर कोई बैठ गया। मैंने ध्यान से देखा तो पाया कि सिन्हा आंटी अपने बर्थ से उठकर मेरे पास आ गई हैं और खिड़की से बाहर देख रही हैं।

मैंने बैठे हुए ही अपनी टाँगे सामने की तरफ फ़ैला रखी थीं। इस हालत में सिन्हा आंटी भी मेरी ही तरह बैठ गईं और अपने पैरों को मेरी तरफ कर दिया था। बाहर से आती हल्की हल्की रोशनी में हमारी आँखें मिलीं और हम एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा दिए।

“मुझे तो ट्रेन में नींद ही नहीं आती… कितनी भी कोशिश कर लूँ पर कोई फायदा नहीं !” आंटी ने धीरे से कहा और फिर बाहर की तरफ देखना शुरू किया।

“कोई बात नहीं आंटी, मुझे भी नींद नहीं आ रही है…इसीलिए गाने सुन रहा हूँ।” मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया।

आंटी ने अपना कम्बल बर्थ पर ही छोड़ दिया था तो मैंने अपने कम्बल को फैला कर उन्हें अन्दर आने को कहा। आंटी ने कम्बल के अन्दर अपने पैर डाल लिए और अपनी आँखें बंद करके ठंड का मज़ा लेने लगीं। उनके पैर मेरी जांघों तक पहुँच रहे थे और बार बार मेरी जांघों से टकरा रहे थे। ठंड की वजह से उनके पैर बहुत ठन्डे हो चुके थे और मेरी जांघों से टकरा कर सिहरन पैदा कर रहे थे। मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वापस अपने काम में लग गया। गाने सुनते सुनते काफी देर हो चली थी।

मैंने बाथरूम जाने की सोची और अपने बर्थ से उठा। बाथरूम जाकर मैं वापस अपने सीट पे लौटा तो पाया कि आंटी लम्बी होकर लेट गईं हैं और बिल्कुल सिकुड़ कर कम्बल डाल लिया है मानो मेरे लिए जगह छोड़ रखी हो। उनका सर उलटी ओर था और पैर उस तरफ जिधर मैं बैठा हुआ था। मैं थोड़ी देर उधेड़बुन में रहा और फिर वैसे ही जाकर बैठ गया जैसे पहले बैठा था। आंटी को मेरे आने का एहसास हुआ तो वो उठने लगीं।

“कोई बात नहीं आंटी, आप लेटी रहिये… मैं बैठ जाऊँगा आराम से !” इतना बोलकर मैं उनके पैरों के बगल में बैठ गया और कम्बल से ढक लिया। अब मेरे पैर सीधे होकर आंटी की पीठ से टकरा रहे थे और उनके पैर मेरे कूल्हों से। हम ऐसे ही रहे और सफ़र का मज़ा लेते रहे।

थोड़ी देर के बाद आंटी ने करवट ली और सीधी हो गईं। अब जगह की थोड़ी सी किल्लत हो गई, मैंने एक तरकीब निकाली और अपने पैरों को मोड़कर पालथी मार ली और धीरे से आंटी के पैरों को उठा कर अपनी दोनों जांघों के बीच में रख लिया। यानि अब आंटी का पैर सीधा मेरे लंड के ऊपर था और वो निश्चिन्त होकर सीधी लेटी हुईं थीं। आंटी ने कहा था कि उन्हें ट्रेन में नींद नहीं आती, लेकिन अभी जो मैं देख रहा था वो बिल्कुल अलग था। आंटी नींद में सो रही थीं। शायद थक चुकी थीं इस लिए सो गईं…

ट्रेन के हल्के झटकों की वजह से उनका पैर मेरे लंड को धीरे धीरे सहला रहा था और मैं चोदू इस ख्याल से ही गरम हो गया, मेरे लंड ने सलामी देनी शुरू कर दी। मैं कोशिश कर रहा था कि अपने लंड को काबू में कर सकूँ लेकिन लंड है कि मानता नहीं… नारी का स्पर्श मर्द को नियंत्रणहीन कर ही देता है…

मैं असहज हो गया था, इस बात को सोच कर कि कल ही मैंने उनकी दोनों राजकुमारियों का सील भंग किया था और आज मेरा लंड उनके लिए खड़ा हो गया था। कहीं न कहीं मुझे आत्मग्लानि हो रही थी… लेकिन आप सब समझ सकते हो कि इस स्थिति में कहाँ कुछ समझ आता है। मेरे हाथ सहसा ही आंटी की टांगों पे चले गए और न चाहते हुए भी मैंने उनके पैरों को सहलाना शुरू कर दिया। आंटी कि साड़ी इतना उठ चुकी थीं कि मेरे हाथ उनकी सुडौल पिंडलियों पर घूम रहे थे।

वो नर्म और चिकना एहसास मेरी तृष्णा को और भी भड़का रहा था, मैंने थोड़ा आगे खिसक कर अपने हाथों को आगे बढ़ाया। मैं अपने होश में नहीं रह गया था और बस वासना से वशीभूत होकर उनके घुटनों तक पहुँच गया। घुटनों के थोड़ा ऊपर मेरी उँगलियों ने उनकी जांघों का पहला स्पर्श किया और मेरे मुँह से एक हल्की सी सिसकारी निकल पड़ी। आगे खिसकने की वजह से आंटी के पैरों का दबाव मेरे लंड पे कुछ ज्यादा ही हो गया था और मेरे अकड़े हुए लंड ने उनके पैरों से जद्दोजहद शुरू कर दी थी। मन कर रहा था कि अपने हाथ बढ़ा कर उनकी उस जगह को छू लूँ जहाँ से निकली उनकी बेटियों का रसपान किया था मैंने।

मैंने डरते डरते हाथ आगे बढ़ाये… गला सूख रहा था और नज़रें चारों तरफ देख रही थीं कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा…

उँगलियाँ थोड़ा आगे खिसकीं और उनकी जांघों के ऊपरी हिस्से तक पहुँचने ही वाली थीं कि अचानक से ट्रेन रुक गई… कोई स्टेशन आया था शायद.. मैंने झट से अपने हाथ बाहर खींच लिया और सामान्य होकर बैठ गया। आंटी भी हिलने लगीं और उठ कर बैठने लगीं। मैं डरकर सोने का नाटक करने लगा। आंटी ने अपने पैर मेरे जांघों के बीच से निकला और बर्थ से उठ कर बाथरूम की तरफ बढ़ गईं। मैं अब भी वैसे ही बैठा था। मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूँ… मन में सवाल आ रहे थे कि क्या आंटी सब जान रही थीं… क्या वो जानबूझ कर ऐसे पड़ी थीं…??

खैर जो भी हो..ट्रेन चल पड़ी और दो मिनट के बाद आंटी वापस आ गईं। वापस आकर आंटी ने मुझे हिलाया, जगाया, “कितनी देर बैठा रहेगा, थोड़ा सा लेट जा वरना तबियत ख़राब हो जाएगी। चल तू अपना सर मेरी गोद में रख कर लेट जा.. और हाँ अपना ये गानों का डब्बा मुझे दे दे…मैं भी थोड़े गाने सुन लूं !” आंटी ने बड़े ही प्यार से मेरे हाथ पे सर फेरते हुए मुझे सीधा लेटने को कहा और खुद अपने पैरों को मोड़कर पालथी मर ली.

“नहीं आंटी, आप रहने दो मुझे गोद में सर रख कर नींद नहीं आएगी। मैं अपना सर इस तरफ़ कर लेता हूँ, आप बैठ जाओ।” मैंने बहाना बना कर मना कर दिया। हालाँकि मन तो मेरा भी कर रहा था कि मैं उनकी गोद में सर रख कर सो जाऊँ और उनकी चूत पर अपना सर रगड़ दूँ। लेकिन इस बात का भी डर था कि कहीं मेरा उतावलापन सब गड़बड़ न कर दे… अगर आंटी ने कोई बखेरा खड़ा कर दिया तो फिर इज्ज़त तो जाएगी ही साथ ही साथ प्रिया से दूर हो जाऊंगा…

इस ख्याल से मैंने यही उचित समझा कि उन्हें दूसरी तरफ बिठा कर खुद एक तरफ होकर सो जाऊँ। और मैंने ऐसा ही किया, आंटी को बैठने दिया और फिर अपनी टांगों को उनकी तरफ करके लेट गया। आंटी ने पालथी मर रखी थी इसलिए मेरे पैर उनकी जांघों के नीचे दब गए थे। मुझे थोड़ी सी परेशानी होने लगी… अगर मेरे मन में प्रिया का ख्याल न होता तो शायद मैं जानबूझकर अपने पैरों को उनकी जांघों के नीचे दबा देता और उनकी नर्म मुलायम जांघों का मज़ा लेता… लेकिन मैं उस वक़्त हर तरह से खुद को उन भावनाओं से दूर रखने की कोशिश में लगा था।

मैंने अपने पैरों को थोड़ा सा हिलाकर ठीक करने की कोशिश की और इस कोशिश में आंटी को थोड़ा झटका लगा। आंटी ने अपने हाथों में पड़ा आईपॉड नीचे रखा और कम्बल को हटा कर मेरे पैरों को जबरदस्ती अपनी गोद में रख लिया। मैं भी बिना किसी बहस के अपने पैरों को वहीं रखकर लेटा रहा। आंटी ने फिर से कम्बल से खुद को और मेरे पैरों को अच्छे से ढक लिया और वापस से गानों की दुनिया में खो गई…

थोड़ी देर के बाद मुझे ऐसा एहसास हुआ जैसे आंटी अपनी कमर को हिला रही हैं जिससे मेरे पंजे उनके पेड़ू (योनि के ऊपर का हिस्सा) को दबा रहा है। मैं थोड़ी देर रुक कर यह जानने की कोशिश करने लगा कि यह जानबूझ कर किया जा रहा है या ट्रेन के चलने की वजह से ऐसा हो रहा है। मुझे कुछ भी समझ नहीं आया और मैं फिर से अपने आँखें बंद करके लेटा रहा और ट्रेन के हिचकोले खाने लगा।

मेरे पंजे अब भी उस नर्म और गुन्दाज़ जगह का लुत्फ़ उठा रहे थे। लाख कोशिश के बावजूद मैं फिर से गरम होने लगा और मेरे ‘नवाब’ ने अपना सर उठाना शुरू किया। लंड में तनाव आते ही मेरे पंजे अपने आप उस जगह को खोदने से लगे। मुझे एहसास हुआ कि आंटी की साड़ी उस जगह से अलग है जहाँ मेरे पंजे लगे थे और इसी कारण उनके मखमली चमड़े का सीधा सा स्पर्श मैं अपने तलवों पर महसूस कर रहा था।

थोड़ी देर में ऐसा लगा मानो आंटी उठने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन उनकी कोशिश इतनी शांत और स्थिर थी जैसे वो मुझे नींद से जगाना नहीं चाहती हों। उन्हें क्या पता था कि मैं तो जग ही रहा हूँ…
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02-07-2019, 01:13 PM,
#44
RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
आंटी पूरी तरह नहीं उठीं, उन्होंने धीरे से मेरे पैरों को उठाकर आहिस्ते से बगल में रख दिया और फिर ऐसा लगा जैसे वो अपने हाथों से अपने पैरों को नीचे से ऊपर की तरफ खुजा रही हों…काफी देर से पैरों को मोड़कर बैठने की वजह से शायद पैरों में झनझनाहट आ गई होगी। मैंने अपना ध्यान हटा लिया और आँखें बंद करके प्रिया की यादों में खो गया। तभी आंटी ने अपने पैर वापस से मोड़ लिए और पहले की तरह मेरे पैरों को उठा कर अपनी गोद में रख लिया।

‘हे प्रभु….; आंटी की गोद में जैसे ही मेरे पैर पहुँचे, मेरे मुँह से सहसा ही निकल पड़ा।

आंटी ने अपनी साड़ी को अपने पैरों से ऊपर कर लिया था और अपनी जांघों को नंगा करके मेरे पंजे वहां रख दिए थे। एक सुखदायी गर्माहट और कोमलता ने मुझे सिहरा दिया और मेरा बदन काँप सा गया… इस कंपकपी में मेरे पैरों की उंगलियाँ हरकत कर गईं और मेरे अंगूठे ने उस स्वर्गद्वार को छू लिया था जिसके बारे में मैं बस सिर्फ कल्पना ही करता था वो भी डरते डरते…

उन्होंने अन्दर कुछ भी नहीं पहना था और उनकी चूत बिल्कुल रोम विहीन थी.. साथ ही साथ मेरे अंगूठे को लसलसेपन और चिकने का एहसास हुआ…

“हम्म्म्म…..!!” यह एक सिसकारी थी जो कि आंटी के मुँह से निकली थी। चलती ट्रेन के शोर में भी मैंने यह कसक भरी आवाज़ सुन ली…

मेरे अंगूठे ने उनके उस हिस्से को छू लिया था जिसके छूने पर बड़े से बड़ी पतिव्रताएं भी अपना संयम खो बैठती हैं और अपनी चूत में लंड डलवा लेती हैं… उनके दाने को मेरे अंगूठे ने रगड़ सा दिया था।

मैं हक्का बक्का बस अगले पल का इंतज़ार कर रहा था… मुझमें इतनी हिम्मत नहीं आ रही थी कि मैं कुछ कर पाता। मन में चल रहे अंतर्द्वंद्व ने मुझे मूर्तिवत कर दिया था। मैंने सब कुछ भगवन के ऊपर छोड़ दिया और जो भी हो रहा था उसे होने दिया।

थोड़ी देर के लिए ख़ामोशी थी… पर तभी आंटी का एक पैर उसी अवस्था में खुलने सा लगा और पूरी तरह खुलकर मेरे कूल्हों तक पहुँच गया। अब तक मेरे दोनों पैर उनकी गोद में थे लेकिन आंटी ने अपने एक पैर फ़ैलाने के साथ साथ मेरा भी एक पैर अपनी दोनों जांघों के बीच में कर दिया था और एक पाँव को सीट की ओर रख दिया था। कुल मिलाकर यह स्थिति थी कि आंटी नंगी जांघों के बीच उनकी मखमली चूत पे मेरे दाहिने पैर का पंजा था और आंटी का दाहिना पैर मेरे कूल्हों को छू रहा था। कूल्हों से नीचे मेरे लंड ने उनके घुटनों को अपने होने का एहसास करवाया और आंटी के घुटनों ने भी उन्हें हल्का सा दबाकर उन्हें सलाम किया।

भाई साहब, मैं तो अब प्यास से मारा जा रहा था… मेरे गले का बुरा हाल था सूख कर। अभी कल ही मैंने उनकी दोनों बेटियों को जम कर चोदा था और अपने लंड का गुलाम बनाया था, और आज उनकी माँ अपनी चूत में मेरा लंड लेने के लिए खेल खेल रही थी… एक पल को तो मुझे कुछ शक सा हुआ कि कहीं ये पूरा परिवार ही ऐसे तो नहीं… लेकिन कल ही मैंने रिंकी और प्रिया दोनों की सील तोड़ी थी तो यह तो पक्का था कि ऐसा नहीं हो सकता। सिन्हा आंटी को मैंने हमेशा अकेला ही देखा था। मेरा मतलब है कि सिन्हा अंकल न के बराबर आते थे घर पे। आंटी के साथ तो उन्हें कभी देखा ही नहीं।

शायद आंटी की तड़प की वजह ये दूरियाँ ही थीं… बहरहाल आंटी अपनी कमर को थोड़ा हिला कर मेरे अंगूठे से रगड़ रहीं थीं अपनी चूत को और अपने घुटने से मेरे लंड को दबाये जा रही थीं.. मेरा बुरा हाल था, आंटी के इतना सब करने के बाद भी मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कुछ करने की। मैं बस उनकी चूत को अपने पैरों से सहला कर और अपने लंड को उनके घुटने पर रगड़ कर मज़े ले रहा था। ट्रेन अपनी पूरी स्पीड से दौड़ रही थी और गाड़ी के हिचकोले हम दोनों को अपने अपने काम में मदद कर रहे थे।

थोड़ी देर में ही मुझे अपने अंगूठे पे ढेर सारा गर्म पानी का एहसास हुआ…

“उम्म… हम्म्म्म…” फिर से वही मादक सिसकारी लेकिन इस बार सुकून भरी.. आंटी के ये शब्द मुझे और भी उत्तेजित कर गए और मेरे लंड ने अकड़ना शुरू किया… लेकिन तभी आंटी ने हरकत करी और अपने पैरों को मेरे पैरों से आजाद करके उठने लगीं। मेरा लंड अचानक से उनके घुटनों से जुदा होकर बेचैन हो गया। आंटी ने जल्दी से उठ कर कम्बल मेरे ऊपर डाल दिया और अपनी सीट पर जाकर लेट गईं। मैं एकदम से चौंक कर देखने लगा लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। आंटी ने अपने आपको पूरी तरह से ढक लिया और नींद के आगोश में समां गईं…

“धत तेरे की… के.एल.पी.डी !! मैं तड़पता हुआ अपने लंड को अपने हाथों से सहलाने लगा और उसे सांत्वना देने लगा। बस आज रात की ही तो बात थी, फिर तो कल गावं पहुँच कर अपनी प्रिया रानी की चूत के दर्शन तो होने ही थे। मैंने अपने लंड को यही समझाकर सो गया।
“उम्म… हम्म्म्म…” फिर से वही मादक सिसकारी लेकिन इस बार सुकून भरी.. आंटी के ये शब्द मुझे और भी उत्तेजित कर गए और मेरे लंड ने अकड़ना शुरू किया… लेकिन तभी आंटी ने हरकत करी और अपने पैरों को मेरे पैरों से आजाद करके उठने लगीं। मेरा लंड अचानक से उनके घुटनों से जुदा होकर बेचैन हो गया। आंटी ने जल्दी से उठ कर कम्बल मेरे ऊपर डाल दिया और अपनी सीट पर जाकर लेट गईं। मैं एकदम से चौंक कर देखने लगा लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। आंटी ने अपने आपको पूरी तरह से ढक लिया और नींद के आगोश में समां गईं…

“धत तेरे की… के.एल.पी.डी !! मैं तड़पता हुआ अपने लंड को अपने हाथों से सहलाने लगा और उसे सांत्वना देने लगा। बस आज रात की ही तो बात थी, फिर तो कल गावं पहुँच कर अपनी प्रिया रानी की चूत के दर्शन तो होने ही थे। मैंने अपने लंड को यही समझाकर सो गया।

एक जोर के झटके ने मेरी नींद खोल दी। आँखें खोलीं तो देखा कि आसनसोल स्टेशन आ गया था और घड़ी में करीब डेढ़ बज रहे थे। पूरा डब्बा नींद की बाँहों में था और एक भी आवाज़ नहीं हो रही थी। स्टेशन पर कोई भी हमारे डब्बे में नहीं चढ़ा। ट्रेन थोड़ी देर रुक कर फिर से चलने लगी, मैं अपने बर्थ से उठ कर खड़ा हो गया और अपने सामने सोये हुए घर के सभी लोगों का मुआयना करने लगा, सामान भी चेक किया। सब कुछ ठीक पाकर मैंने अपने ऊपर एक हल्की सी शॉल डाल ली जो कि मैंने अपना तकिया बना रखा था और बाथरूम की तरफ चल पड़ा।

आंटी की वजह से मेरा लंड बेचारा अब भी तड़प रहा था। मैंने सोचा कि टॉयलेट में मूत्रविसर्जन करके उसे थोड़ा आराम दे दूँ। मैं बाथरूम में घुस कर अपना लोअर नीचे किया और अपने लंड को अपने हाथों में लेकर पुचकारने लगा।

ये क्या, यह तो पुचकारने मात्र से ही फिर से खड़ा हो गया… अब तो मुझे लगा कि मुठ मारे बिना कोई उपाय नहीं है आज। यही सोचकर मैंने अपने लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया और धीरे धीरे से मुठ मारने लगा।

“ठक-ठक ! ठक-ठक…! ठक-ठक-ठक…!” अचानक से किसी ने दरवाज़े को लगातार ठोकना शुरू किया…

मैंने झट से अपने लंड को अपने लोअर में डाल लिया और दरवाज़ा खोलने लगा.. सच बताऊँ तो मैं वासना की आग में इतना वशीभूत था कि मेरे दिमाग में सहसा ही यह ख्याल आ गया कि यह आंटी होंगी… और यही सोच कर मैंने दरवाज़ा जल्दी से खोल दिया…

लेकिन दरवाज़े पे जिसे पाया उसे देख कर थोड़ा चौंक गया।

सामने रिंकी खड़ी थी और वो बिना कोई मौका दिए मुझे अन्दर ठेल कर बाथरूम में घुस गई और दरवाज़ा अन्दर से बंद कर दिया। दरवाज़ा बंद करते ही पलट कर मेरे सीने से लिपट गई।

अचानक से हुए इस हमले से मैं थोड़ा हड़बड़ा गया और उसे अलग कर दिया…

“तुम कब जागी…और तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहाँ हूँ…कोई जग तो नहीं रहा?” एक के साथ एक मैंने कई सवाल पूछ डाले रिंकी से…

“हे भगवन, तुम तो लड़कियों की तरह डर रहे हो और सवाल किये जा रहे हो… ये लाइन्स लड़कियों की हैं..” इतना कहकर वो हंसने लगी।

मुझे सच में एहसास हुआ कि वो सही कह रही है… मैं सच में डरा हुआ था… लेकिन मुझे डर यह था कि सिन्हा आंटी अभी थोड़ी देर पहले तक मेरे साथ जग रही थीं, कहीं वो इधर आ गईं तो सब गड़बड़ हो जाएगी… रिंकी या प्रिया… इन दोनों को चोद कर तो मैंने पहले ही अपने लंड का स्वाद चखा दिया था और उनकी कुंवारी चूतों का रस पी लिया था और उन्हें जब चाहता, तब चोद सकता था… लेकिन अगर आंटी ने हमें देख लिया तो मेरे हाथों से तीन तीन चूत दूर हो जातीं… हाँ दोस्तों, मुझे यकीन हो चला था कि मुझे रिंकी और प्रिया के साथ उनकी माँ की चूत भी मिलने वाली है.. मैं कोई गड़बड़ नहीं चाहता था इसलिए अपनी तरफ से कोई पहल नहीं कर रहा था रिंकी की तरफ।

रिंकी एक बार फिर से मुझसे लिपट गई और मेरे खड़े लंड के ऊपर अपनी चूत को दबाने लगी। मैंने भी उसे अपनी ओर खींच कर दबा दिया और अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ने लगा। मेरा लंड तो पहले से ही तड़प रहा था किसी चूत के पास जाने के लिए, फिर चाहे वो माँ की हो या फिर बेटी की…

रिंकी ने झट से अपना हाथ नीचे ले जाकर मेरे लंड को थाम लिया और उसे मसलने लगी… एक ही चुदाई में बहुत खुल गई थी वो। मैंने भी अपना हाथ उसकी चूचियों पर रख कर दबाया…

“आह्ह…” उसने भी ठीक वैसी ही आह भरी जैसी मेरी प्रिया रानी ने सुबह भरी थी… यानि कि उसकी चूचियों को भी शायद मैंने ज्यादा ही मसल दिया था और वो अब भी दुःख रही थीं।

क्या करूँ, मैं चूचियों का दीवाना था… था नहीं, आज भी हूँ !!

खैर, अब मेरे दिमाग में सीधा यह सवाल आया कि कहीं प्रिया रानी की तरह रिंकी ने भी अपनी चूत पर हाथ नहीं रखने दिया तो मेरा लंड फिर से प्यासा रह जायेगा। इसी लिए मैंने जांचने के लिए अपना एक हाथ बढ़ाकर उसकी चूत को उसके स्कर्ट के ऊपर से सहलाया तो उसने झट से मेरा हाथ पकड़ लिया और रोक दिया… उसने अपनी आँखों में एक अजीब सी विनती भरी नज़र दी जैसे कह रही हो कि तकलीफ है… मैं समझ तो गया था लेकिन फिर भी उसे इशारे से पूछने लगा कि क्या हुआ है..

रिंकी ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी स्कर्ट के नीचे से ले जाकर अपनी चूत पे रख दिया… यहाँ भी वही बात थी, यानि अन्दर कोई वस्त्र नहीं था, चूत बिल्कुल नंगी थी। लेकिन मेरे हाथों को कुछ और ही महसूस हुआ…मेरी हथेली में उसकी चूत बिल्कुल भर सी गई, मानो फूल कर कुप्पा हो गई हो। चूत उतनी ही ज्यादा गर्म थी…

“देख लो क्या हाल किया है तुमने… बेचारी सूज कर लाल हो गई है और गरम हो गई है… भांप निकल रही है।” रिंकी ने मेरे हाथ को अपनी चूत पे दबाते हुए कहा।

मैं तुरंत ही उसकी बात का जवाब दिए बिना नीचे बैठ गया और उसकी स्कर्ट को सीधा उठा दिया। बाथरूम की दुधिया रोशनी में उसकी सूजी हुई चूत को देखता ही रह गया… सच में उसकी चूत का बुरा हाल था। दोनों होंठ और दाना बिल्कुल लाल हो गया था। एक बार को मुझे भी बुरा लगने लगा.. लेकिन फिर अपने लंड पे नाज़ करते हुए मैं मुस्कुरा पड़ा और आगे बढ़ कर उसकी चूत पे अपने होंठों से एक हल्की सी पप्पी ले ली।

“उह्ह्हह… ऐसे मत करो ना.. मैं मर जाऊँगी… कल तक रुक जाओ, फिर मैं इसे वापस तुम्हारे लायक बना दूंगी… बस आज रुक जाओ !” रिंकी ने मुझसे गुहार लगते हुए कहा।

मैं उसके कहने से पहले ही यह फैसला कर चुका था कि आज इस चूत को परेशान नहीं करूँगा, अब तो ये मेरी ही है और आराम से इसका रस चखूँगा… लेकिन फिर भी मैंने अपने चेहरे पे एक दुखी सा भाव लाते हुए कहा, “उफ्फ्फ..। ये अदा ! जब प्यासा ही रखना था तो समुन्दर के दर्शन क्यूँ करवाए?”

मैंने उसके हाथों से अपने लंड को छुड़ाने का नाटक किया।

“ओहो…मेरे रजा जी… मैं तो बस आपके उनसे मिलने आई थी जिन्होंने मुझे जन्नत दिखाई थी।” रिंकी ने इतना कहते हुए मेरे लोअर में हाथ डाल दिया और मेरे लंड को एकदम से बाहर निकाल लिया।
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02-07-2019, 01:14 PM,
#45
RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
मेरा बांका छोरा तो पहले ही पूरी तरह से अकड़ा हुआ था और उसके हाथों में जाते ही ठनकना शुरू हो गया उसका। रिंकी ने एक बार मेरी तरफ प्यार से देखा और मेरे होंठों पे अपने होंठ रख दिए…

उसने इस बार एक मार्गदर्शक की तरह मेरे होंठों और फिर मेरी जीभ को रास्ता दिखाया और एक लम्बा प्रगाढ़ चुम्बन का आदान प्रदान हुआ हमारे बीच। मैं अपने आप में नहीं रह सका और खुद को रिंकी के हवाले कर दिया। रिंकी ने कुछ देर मेरे होंठों से खेलने के बाद धीरे से नीचे बैठने लगी और अपना मुँह सीधा मेरे लंड के पास ले गई। मैं बस चुपचाप खड़ा होकर मज़े ले रहा था।

थोड़ी देर पहले मैं डरा हुआ था और अब मैं यह चाहता था कि वो जल्दी से जल्दी अपने मुँह में मेरा लंड भर ले और इसकी सारी अकड़ निकाल दे…

रिंकी ने लंड को एक हाथ से थाम रखा था और दूसरे हाथ से मेरे अन्डकोषों से खेलने लगी। उसने धीरे से मेरे लंड का शीर्ष भाग चमड़े से बाहर निकाला और अपने होंठों को उस पर रख कर चूम लिया।

‘उम्म…’ मेरे मुँह से मज़े से भरी एक आह निकली और मैंने अपना लंड उसके होंठों पे दबा दिया।

रिंकी ने एक बार मेरी तरफ अपनी नज़रें उठाकर देखा और मुस्कुराते हुए अपने होंठों को पूरा खोलकर मेरे लंड के अग्र भाग को सरलता से अन्दर खींच लिया। थोड़ी देर उसी अवस्था में रखकर उसने अपने जीभ की नोक सुपारे के चारों ओर घुमाई और उसे पूरी तरह से गीला करके धीरे धीरे अन्दर तक ले लिया… इतना कि लंड की जड़ तक अब रिंकी के होंठ थे और ऐसा लग रहा था मानो मेरा नवाब कहीं खो गया हो…

मैं मज़े से बस उसके अगले कदम का इंतज़ार कर रहा था… जिस तरह धीरे-धीरे उसने मेरा लंड पूरा अन्दर तक लिया था ठीक वैसे ही धीरे-धीरे उसने उसने पूरे लंड को बाहर निकाला लेकिन सुपारे को अपने होंठों से आजाद नहीं किया और फिर से वैसे ही मस्त अंदाज़ में पूरे लंड को अन्दर कर लिया…

यह इतना आरामदायक और मजेदार था कि अगर हम ट्रेन में न होते तो शायद मैं रिंकी को घंटों वैसे ही खेलने देता मगर मुझे इस बात का एहसास था कि हम ज्यादा देर नहीं रह सकते और किसी के भी आ जाने का पूरा पूरा डर था। मैंने यह सोचकर ही रिंकी का सर अपने हाथों से पकड़ा और अपने लंड को एक झटके के साथ उसके मुँह में घुसेड़ कर जल्दी जल्दी आगे पीछे करने लगा…

“ग्गूऊऊउ… ऊउन्न… ग्गूऊउ…” रिंकी के मुँह से निकलते आवाज़ों को मैं सुन पा रहा था…मैंने कुछ ज्यादा ही तेज़ी से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे..

लंड उसके थूक से पूरा गीला हो गया था और चमक रहा था… कुछ थूक उसके होंठों से बहकर नीचे गिर रहा था। कुल मिलकर बड़ा मनमोहक दृश्य था… एक तो मैं पहले ही आंटी की चूत के स्पर्श के कारण जोश में था दूसरा रिंकी के मदमस्त होंठों और मुँह ने मेरे लंड को और भी उतावला कर दिया था। मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और धका-धक पेलने लगा। मेरी आँखें मज़े से बंद हो गईं और रिंकी की आवाजें बढ़ गईं…

कसम से अगर चलती ट्रेन नहीं होती तो आस पड़ोस के सरे लोग इकट्ठा हो जाते।

“उफ्फ्फ… हाँ मेरी जान, और चूसो… और तेज़… और तेज़… ह्म्म…” उत्तेजना में मैंने ये बोलते हुए बड़ी ही बेरहमी से रिंकी का मुख चोदन जारी रखा और जब मुझे ऐसा लगा कि अब मैं झड़ने वाला हूँ तो रिंकी का चेहरा थोड़ा सा उठा कर उसे इशारे से ये समझाया।

मेरा इशारा मिलते ही रिंकी की आँखों में एक चमक सी आ गई और उसने अपने एक हाथ से मेरे अण्डों को जोर से मसल दिया…

“आअह्ह्ह… ऊओह्ह्ह… रिंकी…” मैंने एक जोरदार आह के साथ उसका मुँह मजबूती से पकड़ कर अपना पूरा लंड ठूंस दिया और न जाने कितनी ही पिचकारियाँ उसके गले में उतार दी…

एक पल के लिए तो रिंकी की साँसें ही रुक सी गईं थीं, इसका एहसास तब हुआ जब रिंकी ने झटके से अपना मुँह हटा कर जोर-जोर से साँस लेना शुरू किया। मुझे थोड़ा बुरा लगा लेकिन लंड के झड़ने के वक़्त कहाँ ये ख्याल रहता है कि किसे क्या तकलीफ हो रही है.

खैर… मैं इतना सुस्त सा हो गया कि लंड के झड़ने के बाद मेरी टाँगें कांपने सी लगीं और मैं वहीं कमोड पे बैठ गया। मेरा लंड अब भी रिंकी के मुँह के रस से भीगा चमक रहा था और लंड का पानी बूंदों में टपक रहा था।

वहीं दूसरी तरफ रिंकी बिल्कुल बैठ गई थी और अपनी कातिल निगाहों से कभी मुझे तो कभी मेरे लंड को निहार रही थी। मैंने पहले ही अपने होशोहवास में नहीं था, तभी रिंकी ने आगे बढ़ कर मेरे लंड को फिर से अपने हाथों में लिया और एक बार फिर से उसे मुँह में लेकर जोर से चूस लिया..

मेरी तन्द्रा टूटी और मैंने प्यार से उसके गालों को सहला कर उसके मुँह से अपना लंड छुड़ाया और उसे अपने साथ खड़ा किया। मैंने अपना लोअर ऊपर कर लिया और रिंकी को अपनी बाहों में लेकर उसके पूरे मुँह पर प्यार से चुम्बनों की बारिश कर दी। रिंकी भी मुझसे लिपट कर असीम आनन्द की अनुभूति कर रही थी।

तभी मुझे ऐसा लगा जैसे कोई बाथरूम की तरफ आया हो…
मैंने जल्दी से रिंकी को खुद से अलग किया और फिर उसे बाथरूम के दरवाज़े के पीछे छिपा कर दरवाज़ा खोला…बाहर कोई नहीं था। मैंने रिंकी को जल्दी से जाने को कहा और खुद अन्दर ही रहा।

रिंकी ने जाते जाते भी शरारत नहीं छोड़ी और मेरे लंड को लोअर के ऊपर से पकड़ कर लिया- घबराओ मत बच्चू… तुम्हें तो मैं कल देख लूँगी !

इतना बोलकर उसने लंड को मसल दिया और जल्दी से बाहर निकल कर अपनी सीट पर चली गई।

मैंने राहत की सांस ली और थोड़ी देर के बाद मैं भी बाथरूम से निकल कर अपनी साइड वाली सीट पर जाकर सो गया। वहाँ कोई भी हलचल नहीं थी, यानि शायद किसी ने भी हमें कुछ करते हुए नहीं देखा था। मैं निश्चिन्त होकर सो गया और ट्रेन अपनी रफ़्तार से चलती रही…

सुबह चाय वाले के शोर ने मेरी नींद खोली और मैंने कम्बल हटा कर देखा तो सभी लोग लगभग जाग चुके थे। घड़ी में देखा तो सुबह के 6 बज रहे थे। आंटी, मामा जी, नेहा दीदी और मेरी प्राणप्रिया प्रिया रानी अपने अपने कम्बलों में घुस कर बैठे हुए थे और उन सबके हाथों में चाय का प्याला था। बस रिंकी अब भी सो रही थी। मैं रात की बात याद करके मुस्कुरा उठा, सोचा शायद कल के मुखचोदन से इतनी तृप्ति मिली है उसे कि समय का ख्याल ही नहीं रहा होगा।

“चाय पियोगे बेटा…?” आंटी की खनकती आवाज़ ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा।

मैं एक पल के लिए उनकी आँखों में देखने लगा और सोचने लगा कि क्या यह वही औरत है जिसने कल रात मुझसे अपनी चूत को मसलवाया था… उन्हें देख कर कहीं से भी यह नहीं लग रहा था कि उन्हें कल रात वाली बात से कोई मलाल हो।

मैं थोड़ा हैरान था, लेकिन गौर से उनकी आँखों में देखने से पता चला कि उन्हें भी इस बात का एहसास है कि मैं क्या समझने की कोशिश कि कर रहा हूँ।

“अरे किस ख्यालों में खो गया…अभी तो मंजिल थोड़ी दूर है…!” आंटी ने बड़े ही अजीब तरीके से कहा, मानो वो कहना कुछ और चाह रही हों और कह कुछ और रहीं हों।

उनकी दो-अर्थी बात सुनकर मैं थोड़ा घबरा गया… मेरा घबराना लाज़मी था यारों… क्यूंकि मैं अब भी असमंजस में था कि मुझे आंटी की तरफ हाथ आगे बढ़ाना चाहिए या नहीं… वैसे आंटी तो मेरे मन में तब से बसीं थीं जब मेरा ध्यान रिंकी और प्रिया पर भी नहीं गया था। उनकी मदमस्त कर देने वाली हर एक अदा का मैं दीवाना था… लेकिन अब बात थोड़ी अलग थी, अब मैं एक तो प्रिया से प्यार करने लगा था और रिंकी को भी चोद रहा था… एक आंटी के लिए मैं कुछ भी खोना नहीं चाहता था। लेकिन शायद भगवन को कुछ और ही मंजूर था।

“हाँ आंटी, मंजिल तो दूर ही है लेकिन हम पहुँचेगे जरूर !” पता नहीं मेरे मुँह से यह कैसे निकल गया। मेरे हिसाब से तो यह बात आंटी की उस बात का जवाब था जो उन्होंने शायद किसी औरे मतलब से कहा था लेकिन उन्होंने मेरी बात को अपने तरीके से ही समझा और अपने होंठों को अपने दांतों से काट कर मेरी तरफ देखा और एकदम से अपना चेहरा घुमा लिया और चाय का प्याला भरने लगीं।

मैंने भी अपना ध्यान उनकी तरफ से हटा कर दूसरी तरफ किया और उनके हाथों से चाय का प्याला ले लिया।

थोड़ी देर में हम सब फ्रेश हो गए और पटना स्टेशन के आने तक एक दूसरे से बातें करते हुए अपने अपने सामान को ठीक कर लिया। हमें पटना उतर कर वहाँ से बस लेनी थी।

ट्रेन अपने सही टाइम से पटना स्टेशन पहुँच गई। हम सब उतर गए और स्टेशन से बाहर आ गए। सामने ही एक भव्य और मशहूर मंदिर है, मैं पटना पहली बार आया था लेकिन इस मंदिर के बारे में सुना बहुत था। महावीर स्थान को देखते ही मैंने प्रणाम किया और बजरंगबली से अपने और अपने पूरे परिवार कि सुख और शांति कि कामना की। साथ ही मैंने उन्हें प्रिया को मेरी ज़िन्दगी में भेजने के लिए धन्यवाद भी किया।

उस वक़्त मुझे सच में इस बात का एहसास हुआ कि मैं प्रिया से कितना प्यार करने लगा था… यूँ तो मैंने रिंकी को भी अपनी बाहों में भरा था और कहीं न कहीं आंटी के लिए भी मेरे मन में वासना के भाव थे लेकिन भगवान के सामने सर झुकाते ही मुझे सिर्फ और सिर्फ प्रिया का ही ख्याल आया।

खैर, हम सब वहाँ से हार्डिंग पार्क पहुँचे जो पटना का मुख्य बस अड्डा था खचाखच भीड़ से भरा हुआ…

मामा जी ने जल्दी से एक बढ़िया से बस की तरफ हम सबका ध्यान आकर्षित किया और हमें उसमें चढ़ जाने के लिए कहा। शायद हमारी सीट पहले से ही बुक थी। हम सब बस में चढ़ गए और मामा जी के कहे अनुसार अपनी अपनी सीट पर बैठ गए। बस 2/2 सीट की थी तो नेहा दीदी और रिंकी एक साथ बैठ गईं। प्रिया अपने मामा जी की बड़ी लाडली थी सो वो उनके साथ बैठ गई…

वैसे मैं चाहता था कि प्रिया मेरे साथ बैठे लेकिन मामा जी के साथ साथ होने पर प्रिया के चेहरे पर जो ख़ुशी और मुस्कराहट दिखाई दे रही थी मैं उस ख़ुशी के बीच में नहीं आना चाहता था। अब मैं और आंटी ही बचे थे तो हम फिर से एक बार साथ साथ बैठ गए।

मेरा दिल धड़कने लगा और मेरी आँखों में बस कल रात का दृश्य घूमने लगा… सच बताऊँ तो मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरा पैर अब भी आंटी की साड़ी के अन्दर से उनकी चूत को मसल रहा है और उनका घुटना मेरे लंड को। मैं थोड़ा सा असहज होकर उनके साथ बैठ गया।

सुबह का वक़्त था और थोड़ी-थोड़ी ठंड थी, मैं बैठा भी था खिड़की की तरफ। मैंने अपने हाथ मलने शुरू किये तो आंटी ने बैग से एक शॉल निकाली और दोनों के ऊपर डाल ली। मेरी नींद पूरी नहीं हुई थी इसलिए मैं बस के चलते ही ऊँघने सा लगा। पटना से दरभंगा की दूरी 4 से 5 घंटे की थी। मैं खुश था कि अपनी आधी नींद मैं पूरी कर लूँगा। वैसे भी प्रिया तो मेरे साथ थी नहीं कि मैं जगता… लेकिन एक कौतूहल तो अब भी था मन में.. सिन्हा आंटी थीं मेरे साथ, और जो कुछ कल रात हुआ था वो काफी था मेरी नींद उड़ाने के लिए। मैं अपने आपको रोकना चाहता था इसलिए सो जान ही बेहतर समझा और अपना सर सीट पे टिका कर सोने की कोशिश करने लगा। सिन्हा आंटी के साथ किसी भी अनहोनी से बचने का यह सबसे अच्छा तरीका नज़र आया मुझे।
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02-07-2019, 01:14 PM,
#46
RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
15 से 20 मिनट के अन्दर ही मैं गहरी नींद में सो गया। बस की खिड़की से आती हुई ठंडी ठंडी हवा मुझे और भी सुकून दे रही थी।

“चलो अब उठ भी जाओ… सोनू… ओ सोनू… उठा जाओ, हम पहुँच गए हैं..” सिन्हा आंटी ने धीरे धीरे मेरे कन्धों को हिलाकर मुझे उठाया तो मैंने अपनी आँखें खोलीं।

दिन पूरी तरह चढ़ आया था और सूरज की रोशनी में मेरी आँखें चुन्धियाँ सी गईं। करीब 12 बज चुके थे.. पता ही नहीं चला… मैं पूरे रास्ते सोता रहा !!

मैं खुश हुआ कि हम आखिरकार पहुँच ही गए… लेकिन मैं थोड़ा हैरान भी था, यह सोच कर कि पूरे रास्ते आंटी ने कुछ भी नहीं किया… या शायद कुछ किया हो और मैं नींद में समझ नहीं पाया… क्या आंटी ने कल रात जैसी उत्तेजना दिखाई थी, वैसी उत्तेजना उन्होंने बस में भी महसूस नहीं करी… या फिर वो जानबूझ कर शांत रहीं…?

मन में हजारों सवाल लिए मैं बस से नीचे उतरा। उतर कर देखा तो प्रिया के छोटे वाले मामा अपनी बेटी के साथ हमें लेने बस अड्डे आये हुए थे। प्रिया भाग कर अपने छोटे मामा की बेटी यानी अपनी ममेरी बहन के गले लग गई और वो दोनों उछल उछल कर एक दूसरे से मिलने लगे… मुझे उन्हें देख कर हंसी आ गई… बिल्कुल बच्चों की तरह मिल रही थीं दोनों।

हम सबने एक दूसरे को राम सलाम किया और उनके जीप में बैठ कर लगभग आधे घंटे के अन्दर प्रिया के नाना जी के घर पहुँच गए। मैंने चैन की सांस ली।

सिन्हा आंटी का मायका मेरी सोच से काफी बड़ा था। जब हम वहां पहुँचे तो ढेर सारे लोग एक बड़े से गेट के बाहर खड़े हमारा इंतज़ार कर रहे थे। हमारे पहुँचते ही सबने आगे बढ़ कर हमारा भव्य तरीके से स्वागत किया और हम इतने सारे लोगों के बीच मानो खो ही गए। घर के अन्दर दाखिल हुए तो लगा घर नहीं, कोई पुराने ज़माने की हवेली हो। बड़ा सा आँगन और तीन मालों में ढेर सारे कमरे। खैर हम सबको अपना अपना कमरा दिखा दिया गया। मुझे सबसे ऊपरी माले पर बिल्कुल कोने में एक कमरा मिला था। मैं वैसे ही सफ़र की थकान से परेशान था और ऊपर से इतनी सीढियाँ चढ़ कर कमरे में पहुँचते ही वहाँ बिछे बड़े से पलंग पे धड़ाम से गिर पड़ा।

घर में इतने लोग थे लेकिन फिर भी एक अजीब सी शांति थी, शहरों वाला शोरगुल बिल्कुल भी नहीं था। इस शांति ने मेरी पलकों को और भी बोझिल कर दिया और मैं लगभग सो ही गया।

“ये ले… जनाब सो रहे हैं और हम कब से उनकी राह देख रहे हैं !” एक मधुर आवाज़ ने मुझे नींद से जगा दिया और जब आँखें खुलीं तो मेरे सामने मेरे सपनों की मल्लिका प्रिया अपने कमर पर हाथ रख कर खड़ी मिली।

“अजी राह तो हम कब से आपकी देख रहे हैं… इतना थक गया हूँ कि उठा भी नहीं जा रहा है, सोचा कि आप आएँगी और मुझे उठा कर अपने हाथों से नहलायेंगी !” मैंने शरारत भरी नज़रों से उसकी तरफ देखते हुए कहा।

“ओहो…कुछ ज्यादा ही सपने देखने लगे हैं जनाब… उठिए और जल्दी से फ्रेश हो जाइये। नीचे सब खाने के लिए आपका इंतज़ार कर रहे हैं… फिर आपको बागों की सैर भी तो करनी है।” प्रिया ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उठाने की कोशिश की और खींचने लगी।

मैंने अचानक से उसे पकड़ कर अपनी बाँहों में दबा लिया और उसके गर्दन पे अपने होंठ फिराने लगा। उसके बालों से अच्छी सी खुशबू आ रही थी। मैंने अपने हाथ पीछे से उसके नितम्बों पे ले जा कर उसके उभरे हुए नर्म कूल्हों को दबाना शुरू किया और अपने लंड की तरफ दबाना शुरू किया। प्रिया ने एक जोर की सांस ली और अपना एक हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को पकड़ लिया और उसे जोर से मरोड़ दिया।

“उफ्फ्फ….लगता है न बाबा..” मैंने उसे अलग करते हुए उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।

वो जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी और मेरे होंठों पे एक पप्पी देते हुए कहने लगी, “बस इतना ही दम है आपके शेर में… लगता है आज बाग़ की सैर का प्रोग्राम कैंसल कर देना चाहिए !”

उसकी बातों ने मेरे अन्दर के मर्द को एकदम से जगा दिया और मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर जोर से मसल दिया…

“आउच… बदमाश कहीं के… इतनी जोर से कोई मसलता है क्या। अभी भी इनका दर्द ठीक नहीं हुआ है। अगर ऐसे करोगे तो फिर इन्हें छूने भी नहीं दूंगी… ज़ालिम !” प्रिया की यह शिकायत बिल्कुल वैसी थी जैसी एक बीवी अपने पति से करती है बिल्कुल अधिकारपूर्ण… उसकी इन्ही अदाओं का तो दीवाना था मैं !

मैंने नीचे झुक कर उसकी चूचियों को चूम लिया और अपने कान पकड़ कर सॉरी बोला और प्रिया से माफ़ी मांगने लगा।

मेरी भोली सी सूरत देखकर प्रिया को हंसी आ गई और उसने बढ़कर मुझे चूम लिया। प्रिया ने मुझे धक्का देकर बाथरूम में भेज दिया और नीचे चली गई।

बाथरूम में ठंडे पानी से नहाकर मेरी सारी थकान दूर हो गई। मेरे नवाब साहब भी नहाकर बिल्कुल चमक से रहे थे लेकिन एक अजीब सी बात मैंने नोटिस की थी और वो यह कि मेरा लंड कल रात में रिंकी के मुख चोदन के बाद भी अर्ध जागृत अवस्था में ही था… न तो पूरी तरह सोया था न ही पूरी तरह जगा हुआ था। अब यह रिंकी की वजह से था, प्रिया की वजह से या फिर आंटी के कारनामों की वजह से… यह कहना मुश्किल था।

खैर, मैं नीचे पहुँचा तो वहाँ एक हॉल में ढेर सारे लोग बैठ कर खाना खा रहे थे। मैं इधर उधर देखने लगा और प्रिया को ढूँढने लगा ताकि बैठ सकूँ और खाना खा सकूँ। भूख ज़ोरों की लगी थी।

“इधर आ जाओ… हम कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। चलो जल्दी से खा लो।” सिन्हा आंटी की आवाज़ मेरे कानों में गई और मैं उन्हें ढूँढने लगा।

सामने बिल्कुल कोने में सिन्हा आंटी थालियों के साथ बैठी थीं और अपने पास की खाली जगह की तरफ इशारा करते हुए मुझे बुला रही थीं। कमाल की लग रही थीं, लाल साड़ी और वो भी गाँव के स्टाइल में सर पे घूंघट किये हुए… सच कहूँ तो आंटी को पहली बार घूंघट में देखकर एक बार मन किया कि उन्हें बस देखता ही रहूँ.. बड़ी बड़ी आँखें, गाल प्राकृतिक रूप से लाल, हाथों में ढेर साड़ी लाल चूड़ियाँ… दुल्हन से कम नहीं लग रही थीं वो।

उन्हें घूरता हुआ मैं उनकी तरफ बढ़ा और उनके पास जाकर बैठ गया। उनके बदन से आ रही खुशबू ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया और मैं उन्हें फिर से घूरने लगा। आंटी ने मेरी निगाहों को अपने चेहरे पे महसूस किया और कनखियों से मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगीं। उनकी आँखों में मैं साफ साफ देख सकता था… एक चमक, एक शरारत, एक प्यास…

आने वाला वक़्त पता नहीं क्या दिखाने वाला था लेकिन अब तो मेरे दिल ने भी समर्पण करने का मन बना लिया था… मैंने सबकुछ ऊपर वाले के ऊपर छोड़ा और अपने घुटने से उनकी जांघों को सहलाते हुए खाना खाने लगा।

खाना खाकर हम सब उठे और बाहर आँगन में चारपाइयों पर बैठ गए। थोड़ी ही देर में प्रिया लड़कियों के एक झुण्ड के साथ आँगन में आई और मेरी चारपाई के पास आकर उन सबसे मेरा परिचय करवाने लगी.. करीब 7-8 लड़कियाँ.. सब लगभग प्रिया की उम्र की या उससे थोड़ी छोटी रही होंगी। कसम से यार, सब एक से बढ़ कर एक थीं। अगर प्रिया सामने नहीं होती तो शायद मैं जी भरकर उनके गोल गोल टमाटरों को देख लेता और उन सबके साइज़ का अनुमान लगा लेता… लेकिन मेरी जानम सामने खड़ी थीं और मैं उन्हें नाराज़ नहीं करना चाहता था। इसलिए एक शरीफ बच्चे की तरह उनसे मिला और फिर सबके साथ हंसी ठिठोली होने लगी।

“क्यूँ बेचारे को परेशान कर रहे हो तुम लोग… इसे थोड़ा आराम कर लेने दो फिर उसे मामा जी के साथ बाज़ार जाना है।” सिन्हा आंटी अपने हाथों में एक प्लेट लेकर हमारी तरफ बढ़ रही थीं।

‘चल प्रिया, तू भी थक गई होगी न, थोड़ा सा आराम कर ले फिर शाम को जितना मर्ज़ी हंसी ठिठोली करते रहना !” आंटी ने प्रिया को डांटते हुए कहा और सब लड़कियाँ वहाँ से ही ही ही ही करती हुई घर के दूसरे माले पे चली गईं।

“ये लो सोनू बेटा, तुम्हारी मनपसंद गुलाब जामुन !” आंटी ने एक प्लेट में करीब 4-5 गुलाब जामुन मुझे दिए।

“अरे आंटी, अभी तो इतना सारा खाना खाया है… इतनी मिठाइयाँ नहीं खा सकूँगा।” मैं उनके हाथों से प्लेट ले ली और उनसे मिठाइयाँ कम करने के लिए कहने लगा।

आंटी ने मेरी एक न सुनी और मुझे आँखें बड़ी बड़ी करके लगभग धमका सा दिया और चुपचाप खाने का इशारा किया। गुलाबजामुन देखकर मुझे दो दिन पहले गुज़रे वो लम्हे याद आ गये जब प्रिया को…..

खैर मैं प्लेट लेकर उठा और सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा। मैंने सोचा कि अभी अपने कमरे में जाकर थोड़ा रुक कर खा लूँगा और फिर थोड़ा सो भी लूँगा क्यूंकि शाम को प्रिया ने बाग़ दिखाने का वादा किया था। बाग़ तो सिर्फ एक बहाना था, असल में हम एक बार फिर से एक दूसरे में समां जाना चाहते थे। और इस बात से मैं खुश था और उत्तेजित भी होता जा रहा था।

तभी मुझे याद आया कि अभी अभी आंटी ने कहा था कि मामा जी के साथ बाज़ार जाना है। जैसे ही मुझे ये याद आया मेरा मन उदास हो गया। प्रिया से मिलन की बेकरारी मैं अपने लंड पे महसूस कर सकता था जो कि अर्ध जागृत अवस्था में प्रिया की चूत को याद करते हुए अकड़ रहा था। मैं दुखी मन से सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा।

“ऊपर जाकर इन्हें यूँ ही रख मत देना। मैं आकर चेक करुँगी तुमने खाया है या नहीं !” आंटी की आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा और मैं उनकी तरफ देखने लगा।

आंटी मुस्कुराते हुए मुझे देख रही थीं और बाकी लोगों को भी मिठाइयाँ खिला रही थीं। मैंने एक बार उन्हें एक मुस्कान दी और सीढ़ियों से चढ़ कर ऊपर बढ़ गया।
तभी मुझे याद आया कि अभी अभी आंटी ने कहा था कि मामा जी के साथ बाज़ार जाना है। जैसे ही मुझे ये याद आया मेरा मन उदास हो गया। प्रिया से मिलन की बेकरारी मैं अपने लंड पे महसूस कर सकता था जो कि अर्ध जागृत अवस्था में प्रिया की चूत को याद करते हुए अकड़ रहा था। मैं दुखी मन से सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा।

“ऊपर जाकर इन्हें यूँ ही रख मत देना। मैं आकर चेक करुँगी तुमने खाया है या नहीं !” आंटी की आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा और मैं उनकी तरफ देखने लगा।

आंटी मुस्कुराते हुए मुझे देख रही थीं और बाकी लोगों को भी मिठाइयाँ खिला रही थीं। मैंने एक बार उन्हें एक मुस्कान दी और सीढ़ियों से चढ़ कर ऊपर बढ़ गया।

अभी आधी सीढ़ियाँ ही चढ़ा था कि प्रिया एकदम से मेरे सामने आ गई।

“लगता है जनाब का मूड ख़राब हो गया है… अब तो आपको बाग़ की जगह बाज़ार जाना पड़ेगा बच्चू ! अब ये बेचारे गुलाबजामुन अकेले ही खाना पड़ेंगे आपको !” प्रिया ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा।

“लगता है आपको बड़ी ख़ुशी हुई है इस बात से?” मैंने उसे ताना मारते हुए कहा।

“हाँ भाई यह तो सही कहा आपने ! दरअसल मैं खुद तुमसे यह कहने वाली थी कि आज हम बाग़ नहीं जा पाएँगे क्यूंकि आज शाम को घर पे सुनार और कपड़ों के व्यापारी आने वाले हैं और हम सबको उनसे ढेर सारी चीजें खरीदनी हैं। तो आप बाज़ार होकर आ जाओ और हम अपनी खरीदारी कर लेते हैं।”

बाप रे बाप… एक ही सांस में प्रिया ने सबकुछ बोल दिया और मुझे बोलने या कुछ पूछने का मौका भी नहीं दिया।

मैंने अपने हाथों की प्लेट नीचे सीढ़ियों पे रखी और बिना कुछ कहे प्रिया का हाथ एकदम से पकड़ा और अपने लंड पे रख कर कहा, “इसका क्या करूँ?”

प्रिया के हाथ रखते ही लंड एकदम से खड़ा हो गया जो कि उसकी हथेली में फिट बैठ गया। प्रिया ने इधर उधर देखा और झुक कर मेरे लंड पे एक पप्पी ले ली और फिर उसे सहलाते हुए मुझसे एकदम से चिपक गई।

“चिंता मत करो मेरे पतिदेव, आपसे ज्यादा आपकी ये बीवी तड़प रही है इसे अपने अन्दर लेने के लिए। मैं वादा करती हूँ कि रात को सबके सोने के बाद इसका सारा दर्द दूर कर दूँगी।” प्रिया ने मेरे कान में धीरे से कहा।

मैंने अपना एक हाथ उसके चूत पे कपड़ों के ऊपर से ही रख दिया और धीरे से सहलाने लगा। प्रिया ने अपने मुँह को मेरे मुँह से सटा कर अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और मेरी जीभ से खेलने लगी। मेरा एक हाथ उसकी टॉप के अन्दर चला गया और ब्रा के ऊपर से उसकी चूचियों को मसलने लगा।

बड़ा ही कामुक सा दृश्य था, उसके हाथों में मेरा लंड, उसकी चूत पे मेरा एक हाथ और अब उसकी एक चूची ब्रा से आजाद होकर मेरे हाथों में। अगर थोड़ी देर और ऐसे रहते तो शायद वहीं सीढ़ियों पे ही चुदाई शुरू हो जाती। लेकिन किसी के क़दमों की आहट ने हमें चौंका दिया और हम झट से अलग हो गए।

प्रिया जल्दी से मेरे गालों पे एक पप्पी लेकर अपने कमरे में भाग गई और मैंने इधर उधर देखकर अपने कदम तीसरे माले की ओर बढ़ा दिए।
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02-07-2019, 01:14 PM,
#47
RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
दोस्तों, एक बात तो आप सब भी मानेंगे कि जब हम छिप कर चुदाई का खेल खेलते हैं तो किसी कि द्वारा पकड़े जाने का डर चुदाई की भावना को और भी उत्तेजित बना देता है, है न !?!

मैं अपने खड़े लंड के साथ अपने कमरे में पहुँचा और मिठाई को पास की मेज़ पर रख कर लेट गया।

अभी 5 मिनट ही हुए थे कि मेरे दरवाज़े पर दस्तक सुनकर मेरा ध्यान दरवाज़े की तरफ चला गया। अलसाई आँखों से देखा तो पाया कि लाल साड़ी में सजी मेरी प्यारी आंटी अन्दर चली आ रही हैं। तो इसका मतलब यह कि अभी अभी सिन्हा आंटी की ही आहट ने मुझे और प्रिया को अलग होने पर मजबूर किया था।

“बच गया बेटा… वरना आज तो सारा भांडा ही फूट जाता !” मैंने मन ही मन खुद को कहा।

सच में अगर उन्होंने हमे देख लिया होता तो सब गड़बड़ हो जाता। भगवन जो करता है अच्छे के लिए ही करता है।

खैर, आंटी कमरे में झाँकने लगी और जब मुझे बिस्तर पे लेटा हुआ देखा तो अन्दर आकर बिस्तर की तरफ आ गईं। मैंने जानबूझ कर अपनी आँखें फिर से बंद कर लीं। बिस्तर के पास आकर वो थोड़ी देर खड़ी रहीं फिर अचानक से अपना एक हाथ मेरे सर पर रख कर सहलाने लगी जैसा कि वो हमेशा किया करती थीं। वैसे तो उनकी यह छुअन मुझे हमेशा से उत्तेजित किया करती हैलेकिन आज तो बात ही कुछ और थी। हाथ उन्होंने मेरे सर पर रखा था लेकिन असर सीधे मेरे लंड पे हो रहा था। मेरे नवाब साहब धीरे धीरे जागने से लगे थे। आधे तो वो कल रात से ही खड़े थे…

मेरे मन में कल रात की बात घूम गई और मैंने अपनी आँखें धीरे से खोल दी… कहीं न कहीं मुझे ऐसा लग रहा था कि शायद जो काम कल रात को अधूरा रह गया था वो अभी पूरा हो जायेगा।

यह लंड भी कितना कमीना होता है… लाख समझा लो लेकिन चूत की चाहत सब कुछ भुला देती है। मैंने अपने मन को बहुत समझाया था कि सिन्हा आंटी की तरफ कदम न बढ़ाये, लेकिन वो कहाँ मानने वाला था।

मेरी आँखें खुलते ही आंटी ने मुस्कुराते हुए बिना कुछ बोले अपनी कजरारी आँखों से मिठाई की तरफ इशारा किया और मुझसे न खाने की वजह पूछने लगी। उनकी आँखों की वो भाषा बिना किसी शब्द के सब कुछ समझा रही थीं। मैंने भी अपने होंठों को बंद ही रखा और आँखों से अपनी अनिच्छा जाहिर की।

आंटी ने थोड़ा सा गुस्से वाला चेहरा बनाया और मेरा एक हाथ पकड़ कर मुझे बिस्तर पे आधा उठा दिया। मैं भी एक रोबोट की तरह उनके इशारे पे उठ बैठा और उनकी तरफ ललचाई नज़रों से देखने लगा। आंटी ने मेरे जांघों के पास थोड़ी सी बची जगह पे अपने कूल्हे टिका दिए और बैठ गई। उनकी कमर मेरी जांघों को रगड़ कर मुझे एक सुखद एहसास दे रहे थे। आंटी ने बैठे बैठे ही प्लेट उठाई और उसमें से एक गुलाब जामुन अपनी उँगलियों में फंसाकर मेरे मुँह की तरफ बढ़ा दिया और बिल्कुल मेरे होंठों से सटा दिया।

अब तो मेरे पास कोई चारा नहीं था, मैंने अपने होंठों को थोड़ा सा खोला और मिठाई को काटने लगा, लेकिन यह क्या, आंटी ने तो शरारत से पूरे गुलाब जामुन को मेरे होंठों में ठूंस सा दिया।

इस शरारत का असर यह हुआ कि मिठाई तो मेरे मुँह में समां गया लेकिन उसका रस मेरे सीने पे गिर गया। आंटी ने ऐसी शक्ल बनाईं जैसे उन्होंने यह जानबूझकर नहीं किया.. बस हो गया। मैंने उनकी आँखों में ऐसे देखा जैसे मैं उन्हें डाँट रहा हूँ और उन्हें सजा देने की सोच रहा हूँ।

“जानबूझ कर नहीं किया बाबा…ऐसे क्यूँ देख रहे हो?” आंटी ने अपनी चुप्पी तोड़ी।

“हाँ हाँ, अब तो आप कहोगी ही कि गलती से हो गया… अब इसे साफ़ कौन करेगा?” मैंने भी बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा।

“ओहो, इतना परेशान क्यूँ होता है, अभी साफ़ कर देती हूँ।” इतना बोलकर आंटी ने अपनी उँगलियों से मेरे सीने पे गिरा हुआ रस उठा कर मेरी आँखों में देखा और फिर अपनी उँगलियों को मेरे होंठों पे लगा दिया।

कोमल उँगलियों का वो स्पर्श इतना विवश करने वाला था कि मैंने बिना कुछ कहे अपने होंठों को चाट लिया। आंटी ने फिर से बाकी के गिरे हुए रस को अपनी उंगलियों मे लपेटा और मेरे होंठों पे लगाने लगी।

मैंने अचानक से उनकी उंगली को अपने होंठों के बीच दबा लिया और चूसने लगा। एक तो वो मीठा रस, ऊपर से आंटी की वो उँगलियाँ… मानो गुलाब जामुन का रस और भी मीठा हो गया हो।

मैं एक बच्चे की तरह उनकी उंगली को चूस रहा था। चूसते चूसते मैंने आंटी की आँखों में देखा तो उन्होंने एक बार शरमा कर अपनी पलकें नीचे कर लीं।

मुझमे पता नहीं कहाँ से हिम्मत आ गई और मैंने अपना एक हाथ आगे बढ़ा कर उनके चेहरे को ऊपर उठाया। आंटी की आँखों में शर्म और हया साफ़ झलक रही थी। उनकी उंगली अब भी मेरे मुँह में ही थी जिसे मैं बड़े प्यार से चूस रहा था। मेरे हाथ अब आंटी के गालों को सहलाने लगे और आंटी के गाल लाल होने लगे।

बड़ा ही मनोरम दृश्य था, लाल साड़ी में लिपटी लाल लाल गालों से घिरा वो खूबसूरत सा चेहरा… जी कर रहा था आगे बढ़ कर पूरे चेहरे को चूम लूँ। आंटी की साँसें धीरे धीरे गर्म होने लगीं और तेज़ हो गईं। मैं समझ नहीं पा रहा था कि अब आगे क्या करना चाहिए।

उनकी जगह अगर उनकी बेटियाँ होतीं तो अब तक शायद मैं उन्हें नंगा करके अपना लंड ठूंस चुका होता। लेकिन यहाँ बात कुछ और थी, मैं संभल संभल कर कदम उठा रहा था।

मैंने आंटी की उंगली को अपने मुँह से बाहर निकाला और उनके हाथ को धीरे से अपनी ओर खींचने लगा जिसकी वजह से आंटी मेरे ऊपर झुक सी गईं। आंटी के झुकते ही उनके सर पर टिका पल्लू नीचे गिर गया और उनके कन्धों से सरक गया। मेरे नजदीक आते ही आंटी ने अपनी आँखों को एक बार फिर से बंद कर लिया। उनकी तेज़ साँसों ने मेरे चेहरे को उनकी गर्मी का एहसास करवाया और मेरी आँखें उनके सरके हुए पल्लू पे जा ठहरी जो कि उनके उन्नत और विशाल उभारों को आधा अनावृत कर चुकी थीं। लाल रंग के ब्लाउज में कसे हुए उनके 34 इन्च के उभारों ने मेरी साँसों को अनियंत्रित कर दिया और मेरी आँखें वहीं अटक गईं। उनके उभार तेज़ चल रही सांसों के साथ ऊपर नीचे होकर मुझे आमंत्रण दे रहे थे।

मैंने आंटी को थोड़ा सा और पास में खींचा और उन्हें अपने गले से लगा लिया। यह एहसास बिल्कुल अलग था। सच कहूँ तो जितना मज़ा प्रिया को अपनी बाहों में भर कर होता था बिल्कुल वैसा ही एहसास हो रहा था मुझे। आंटी का हाथ अब भी मेरे हाथों में ही था और वो मेरे सीने पे अपना सर रख कर तेज़ तेज़ आहें भर रही थीं। मैंने धीरे से उनके कानों तक अपने होंठ ले जा कर उनके कान को हल्के से चूमा और अपने मन में चल रहे अंतर्द्वंद को सुलझाने के लिए एक सवाल कर बैठा, “एक बात पूछूँ?”

“ह्म्म्म…” आंटी के मुँह से बस इतना ही निकल सका।

“कल रात को भी आपने जानबूझ कर किया था या गलती से हो गया था?” मैंने एक मादक और कामुक आवाज़ में उनसे पूछ लिया।

“इस्सस…” आंटी ने सवाल सुनते ही बिजली की फुर्ती के साथ अपना सर मेरे सीने से हटा लिया और एक पल के लिए मेरी आँखों में देख कर अपना चेहरा घुमा लिया।

उनके गाल तो क्या अब तो पूरा का पूरा चेहरा ही शर्म से सिन्दूरी हो गया था और उनके हाथ थरथराने लगे थे। मैंने उनकी मनोदशा भांप ली थी, मैंने आगे बढ़कर उनके चेहरे को एक बार फ़िर अपने हाथों में लेकर अपनी तरफ घुमाया और एकटक देखते हुए उनके जवाब का इंतज़ार करने लगा। उनका चेहरा अब भी उसी तरह लाल था और उनके होंठ थरथरा रहे थे। आँखें अब भी नीचे थीं और एक अजीब सा भाव था उनके चेहरे पर जैसे चोरी पकड़ी गई हो।

“बोलो न आंटी….क्या जानबूझ कर किया था या गलती से हो गया था….? अगर जानबूझकर लिया था तो अधूरा क्यूँ छोड़ दिया था और अगर गलती से हो गया था तो गलती की सजा भी मिलने चाहिए ना !!” मैंने उनके चेहरे से बिल्कुल सटकर कहा।

“वो…वो..बस…. मुझे नहीं पता।” आंटी ने अपनी आँखें नीचे करके ही अपने कांपते होंठों से कहा।

“तो फिर पता करो… मैं कल रात से परेशान हूँ…” मैंने उनके गालों पर एक चुम्बन देकर धीरे से उनके कानों में कहा।

“शायद गलती से ही हुआ होगा…” आंटी ने इस बार अपनी आँखें उठाकर मेरी आँखों में देखते हुए कहा।

“फिर तो गलती की सजा मिलनी चाहिए।” मैंने शरारत से भर कर उन्हें अपनी ओर खींच कर अपनी बाहों में भर लिया और उनकी चूचियों को अपने सीने से मसल दिया।

“आह…ये क्या कर रहा है ? मुझे जाने दे, ढेर सारा काम है घर में !” आंटी ने कसमसाते हुए मेरे बाहों से निकलने का प्रयास किया।

पर मैंने तो उन्हें कस कर जकड़ रखा था, मैंने सोच लिया था कि अब जो होगा देखा जायेगा लेकिन कल रात के अधूरे काम को अभी पूरा करके ही दम लूँगा।

इस कसमसाहट में उनकी चूचियाँ बार बार मेरे सीने से रगड़ कर मेरे अन्दर के शैतान को और भी भड़का रही थीं। हम दोनों एक दूसरे पर अपना जोर आजमा रहे थे। मैंने उन्हें और जोर से जकड़ा और उन्हें लेकर बगल में बिस्तर पे गिरा दिया।अब मैं आधा उनके ऊपर था, उनकी चूचियों को अपने सीने से दबाकर मैंने उनके चेहरे पे अपने होंठों को इधर उधर फिरा कर कई चुम्मियाँ दे दी।

“उफ्फ… सोनू, जाने दे मुझे… कोई ढूंढता हुआ आ जायेगा।” आंटी ने अपने चेहरे को मेरे होंठों से रगड़ते हुए कामुक सी आवाज़ में कहा।

“आ जाने दो… मैं नहीं डरता, लेकिन पहले कल रात से तड़पते हुए अपने ज़ज्बातों को थोड़ी सी शांति दे दूँ।” मैंने उन्हें चूमते हुए कहा।

“उफ… समझा कर न, पूरा घर मेहमानों से भरा पड़ा है। प्लीज मुझे जाने दे…फिर कभी…” आंटी ने अपनी अनियंत्रित साँसों को इकठ्ठा करके इतना कहा और अपने हाथों से मेरे चेहरे को पकड़ लिया और अपनी नशीली आँखों से मुझसे विनती करने लगी।

मैंने उनकी आँखों में आँखें डालीं और शरारत भरे अंदाज़ में बोला, “एक शर्त पर… पहले यह बताओ कि कल रात ऐसा क्यूँ किया आपने और मुझे बीच में ही क्यूँ छोड़ कर चली गईं?”

आंटी ने एक लम्बी सी सांस ली और मेरे गालों को सहला कर कहा, “एक औरत की प्यास को समझना इतना आसान नहीं है। ये क्यूँ हुआ और कैसे हुआ, मैं तुझे नहीं समझा सकती… शायद कई दिनों की तड़प ने मुझे विवश कर दिया था और मैं बहक गई।” आंटी की आवाज़ में अचानक से एक दर्द का एहसास हुआ मुझे और मैं समझ गया कि यह शायद सिन्हा अंकल से दूरियों की वजह से था।

“मैं सब समझता हूँ, आप मुझे नासमझ मत जानो… चिंता मत करो, मैं आपसे कुछ नहीं पूछूँगा।” मैंने उन्हें प्यार से देखते हुए कहा और अपने होंठों को उनके होंठों पे रख दिया।

उन्होंने भी मेरे इस प्रयास का स्वागत किया और अपने होंठ खोलकर मेरे होंठों को उनमे समां लिया। अब तो कुछ कहने को रह नहीं गया था। आंटी को अपनी बाँहों में जकड़ कर मैंने उनके होंठों को अपने होंठों से जकड़े हुए ही बिस्तर पे पलट गया। अब आंटी मेरे ऊपर आधी लेटी हुई थीं और उनकी चूचियाँ अब मेरे सीने पे ऊपर से अपना दबाव बना रही थीं। मैंने अपनी जीभ को उनके मुँह का रास्ता दिखाया और आंटी ने भी उसे अपने मुँह में भर कर अपनी जीभ से मिलन करवा दिया।

हम बड़े ही सुकून से एक दूसरे को चूमने का आनन्द ले रहे थे। मेरे हाथ अब आंटी की पीठ पर थे और साड़ी तथा ब्लाउज के बीच के खाली जगह को अपनी उँगलियों से गुदगुदा रहे थे। जैसे जैसे मेरी उँगलियाँ उनकी कमर पे घूमते, वैसे–वैसे उनका बदन थिरकने लगता।

धीरे धीरे मेरे हाथ साड़ी के ऊपर से ही उनके विशाल नितम्बों पे पहुँच गए और मैंने अपनी हथेलियों को उनके पिछवाड़े पर जमा दिया और हल्के हल्के सहलाने लगा। वो नर्म और गुन्दाज़ गोलाकार नितम्ब जिन्हें देख देख कर मैं अपने लंड को सहला दिया करता था, आज वो मेरे हाथों में थे। मैं अपनी किस्मत पे फूला नहीं समां रहा था।

मेरे हाथ उनके पिछवाड़े को सहलाते सहलाते नीचे की ओर बढ़ चले और उनकी साड़ी के छोर तक पहुँच गए। अब मेरे हाथ उनके नंगे पैरों पे घूम रहे थे जो कि अपनी चिकनाहट के कारण मेरी हथेलियों में गुदगुदी का एहसास करवा रहे थे। मैंने अपनी हथेलियों को साड़ी के अन्दर धीरे से डालकर उनकी साड़ी को पैरों से ऊपर करने लगा। उनकी पिंडलियों पर पहुँच कर मेरे हाथ रुक से गए। बड़ा ही मोहक एहसास हो रहा था, जी कर रहा था कि बस ऐसे ही सहलाता रहूँ।

इधर हमारे होंठ अभी भी कुश्ती लड़ रहे थे, ना तो उन्होंने मेरे होंठों को आज़ाद किया न ही मैंने। आंटी का एक हाथ मेरे सर के बालों को सहला रहता तो दूसरा हाथ मेरे सीने के बाल को छेड़ रहा था। हम दोनों को ही होश नहीं रह गया था। उनकी तड़प इस चुम्बन से ही प्रतीत हो रही थी। कल रात की घटना का घटित होना अब मेरे लिए कोई व्याकुलता वाली बात नहीं रह गई थी। वो सचमुच मजबूर हो गई होंगी…

ईश्वर ने चुदाई की तड़प हम मर्दों से कहीं ज्यादा औरतों में दी है लेकिन साथ ही साथ उन्हें शर्म और हया भी सौगात में दी है जिसकी वजह से अपने ज़ज्बातों को दबा देना औरतों के लिए आम बात हो जाती है। हम मर्द तो कभी भी शुरू हो जाते हैं अपना लंड अपने हाथों में लेकर और मुठ मार कर अपनी काम पिपासा शांत कर लेते हैं।
ईश्वर ने चुदाई की तड़प हम मर्दों से कहीं ज्यादा औरतों में दी है लेकिन साथ ही साथ उन्हें शर्म और हया भी सौगात में दी है जिसकी वजह से अपने ज़ज्बातों को दबा देना औरतों के लिए आम बात हो जाती है।

हम मर्द तो कभी भी शुरू हो जाते हैं अपना लंड अपने हाथों में लेकर और मुठ मार कर अपनी काम पिपासा शांत कर लेते हैं।

अब मेरे हाथ साड़ी के अन्दर घुटनों से ऊपर उनकी नर्म मुलायम जांघों तक पहुँच गए थे और जल्दी ही उनके विशाल मनमोहक नितम्बों तक पहुँचने वाले थे।

जैसे ही मैंने अपनी हथेली उनके नंगे नितम्बों के ऊपर रखा, उन्होंने मेरे होंठों को जोर से दांतों से पकड़ लिया और अपनी आँखें खोल लीं।

होंठों को जकड़ते ही मैंने भी अपनी आँखें खोलीं और उनकी आँखों में देखा। एक पल के लिए हम वैसे ही थम गए, बिल्कुल स्थिर।
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02-07-2019, 01:14 PM,
#48
RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
मैंने धीरे से अपने होंठ छुड़ाये और उनके देखते प्रश्नवाचक नज़रों से यह जानने की कोशिश करने लगा कि आखिर हुआ क्या।

“क्या हुआ…?” मैंने भर्राई आवाज़ में पूछा।

“यह सही नहीं है… मुझे जाने दे… बहुत देर हो चुकी है… सब ढूंढ रहे होंगे…” एक साथ आंटी ने इतनी सारी स्थितियों को सामने रख दिया कि मैं थोड़ी देर के लिए असमंजस में पड़ गया।

एक बात थी कि अब भी सिन्हा आंटी के हाथ मेरे बालों को सहला रहे थे और वो अब भी मेरी बाहों में जकड़ी थीं। अजीब सी स्थिति थी, मैं इस हालत में था कि बस उन्हें नंगा करके अपना लंड उनकी रसभरी चूत में डालना बाकी रह गया था। मैं क्या करूँ, यह समझ नहीं पा रहा था। मैं क्या चाहता था यह मुझे पता था लेकिन आंटी सच में क्या चाहती थी यह नहीं पता था। शायद ये वो आखिरी शब्द थे जो हर औरत पहली बार किसी पराये मर्द से चुदते वक़्त कहती है। चूत तो लंड के लिए टेसुए बहा रही होती है लेकिन फिर भी एक आखिरी बार अपनी शर्म, और हया को दर्शाने के लिए ऐसा बोलना हर स्त्री की आदत होती है।

मैं जानता था कि अगर मैंने थोड़ी सी जबरदस्ती की तो आंटी प्यार से मेरा लंड अपनी चूत में अन्दर तक घुसेड़ लेंगी… लेकिन मैंने तभी यह फैसला किया कि देखा जाए आखिर ये चाहती क्या हैं। यह सोच कर मैंने उन्हें अपने ऊपर से धीरे से उतार दिया और बिस्तर से उठ कर खड़ा हो गया। आंटी ने बिना कोई देरी किये बिस्तर से उठ कर अपनी साड़ी ठीक करी और मेरी तरफ बिना देखे ही कमरे से बाहर निकल गई।

मैं पलंग के बगल की खिड़की की तरफ मुड़ कर अपनी साँसों को समेटने लगा और अजीब से सवालों को अपने मन में लिए उनका जवाब ढूँढने लगा। मेरा मन कर रहा था कि मैं कमरे से बाहर निकल कर उन्हें अपने पास खींच लाऊँ और अपनी बाहों में भर लूँ लेकिन मुड़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

तभी तड़ाक से कमरे का दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई और मेरे मुड़ने से पहले ही कोई मेरे पीछे से आकर मुझसे लिपट गया।

“जो भी करना है जल्दी से कर ले… मुझसे भी रहा नहीं जा रहा।” यह आंटी ही थीं जो कि दरवाज़े से निकल कर शायद ये देखकर आई थीं कि कोई उन्हें ढूंढ तो नहीं रहा..

मैं एकदम से चहक उठा और घूम कर उन्हें अपनी बाहों में उठा लिया। मेरे चेहरे पर एक विजयी मुस्कान आ गई थी। मैं उन्हें उठा कर वैसे ही उसी जगह पे गोल गोल घुमने लगा।

“पागल… मैं तुझे कभी उदास नहीं देख सकती…” इतना कह कर उन्होंने झुक कर मेरे होंठों को चूम लिया।

मैं पागलों की तरह उन्हें नीचे उतार कर चूमने लगा, उन्होंने भी मुझे अपनी बाहों में भर कर चूमना शुरू किया।

“उम्म… ओह्ह.. जल्दी कर सोनू… इससे पहले कि कोई आ जाये मुझे कल रात की गलती की सजा दे दे !” आंटी मदहोशी में बोले जा रही थी और मेरे सीने पे अपने होंठों की छाप छोड़े जा रही थी।

मैंने उन्हें खुद से थोड़ा अलग किया और उनकी साड़ी का पल्लू नीचे सरका दिया। एक बार फिर मेरे सामने उनकी बड़ी बड़ी सुडौल चूचियाँ लाल ब्लाउज में ऊपर नीचे हो रही थीं। मैंने देर न करते हुए उन्हें थाम लिया और उन्हें जोर से दबा दिया।

“उह्ह… इतनी जोर से तो ना दबा… कहीं ब्लाउज फट गई तो लेने के देने पड़ जायेंगे !” उन्होंने मेरे हाथों पे अपने हाथ रख दिए और धीरे से दबाने का इशारा किया।

मैंने भी धीरे धीरे उनकी चूचियों को मसलना शुरू किया और आंटी अपनी आँखें बंद करके सिसकारियाँ भर रही थीं। समय की नजाकत को देखते हुए मैंने भी प्रोग्राम को लम्बा खींचना नहीं चाहा और सीधे उनके ब्लाउज के हुक खोलने लगा। पहला हुक खुलते ही आंटी ने अपनी आँखें खोली और मेरी तरफ मुस्कुराते हुए अपने ही हाथों से अपने ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए और अपने हाथ अपनी पीठ के पीछे ले जा कर ब्रा का हुक भी खोल दिया। लाल ब्लाउज के अन्दर काली ब्रा में कैद उनकी चूचियों ने जैसे एक छलांग लगाई हो और ब्रा को ऊपर की तरफ उछाल दिया।

उनकी भूरे रंग की घुन्डियों ने मुझे निमंत्रण दिया और मैंने झुक कर सीधे अपने होंठ लगा दिए।

“उम्म्…पी ले… जाने कब से तेरे मुँह में जाने को तड़प रहे हैं।” इतना बोलकर उन्होंने अपने एक हाथ से अपनी एक चूची को मेरे होंठों में डाल दिया।

ये सब इतनी जल्दी जल्दी हो रहा था कि कुछ सोचने और समझने का मौका ही नहीं मिल रहा था। पता नहीं यह उनकी बरसों की तड़प की वजह से था या समय कम होने की वजह से। पर जो भी था मैं पूरे जोश में भर कर उनकी चूचियों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा।

“उफफ्फ… सोनू, मेरे लाल… जल्दी जल्दी चूस ले… आराम से चूसने का वक़्त नहीं है तेरे पास !” आंटी ने एक बार फिर से एक कामुक सिसकारी भरते हुए मेरा ध्यान समय की तरफ खींचा।

अब मुझे भी समझ आ गया था कि जल्दी से कल रात की तड़प को शांत कर लिया जाए, फिर एक बार लंड चूत में जाने के बाद आराम से इस काम की देवी का रसपान करेंगे वो भी इत्मिनान से अपने घर जाकर जहाँ हमें किसी का कोई डर नहीं होगा।

ऐसा सोच कर मैंने उनकी एक चूची को चूस चूस कर दूसरी चूची को मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा। मैं अपना पूरा दमख़म लगा कर उनकी चूचियों को पी रहा था मानो बस कुछ पल में ही ही उन्हें खाली करना हो। आंटी हल्की-हल्की सिसकारियों के साथ मेरे सर को अपनी चूचियों पे दबा रही थी। तभी उन्होंने अपना एक हाथ नीचे ले जा कर मेरे लोअर के ऊपर से मेरा लंड पकड़ लिया। लंड को पकड़ते ही उन्होंने एकदम से छोड़ दिया और एक लम्बी सी आह भरी। उनकी इस हरकत ने मेरे ध्यान खींच लिया और मैंने उनकी चूची को मुँह से निकाल दिया और यह समझने की कोशिश करने लगा कि उन्होंने लंड पकड़ कर अचानक छोड़ क्यूँ दिया। उनकी आँखों में देखा तो एक अजीब सा आतंक देखा मानो उन्होंने लंड नहीं कोई बांस पकड़ लिया था।

“ये… नहीं नहीं… इतना मोटा… हाय राम…” टूटे फूटे शब्दों में सिन्हा आंटी ने लंड को छोड़ने का कारण समझाया।

मैं हंस पड़ा और उनका हाथ पकड़ कर अपने लोअर में डाल दिया। मेरे नंगे खड़े लंड पे हाथ पड़ते ही उन्होंने एक जोर की सांस ली और इस बार कास कर पकड़ लिया और बिल्कुल मरोड़ने लगी। उनकी आँखें मेरी आँखों में ही झांक रही थीं और एक अजीब सी चमक दिखला रही थीं मानो उन्हें कारू का खजाना मिल गया हो।

मैंने उनके होंठों को चूमा और उनी साड़ी का एक छोर पकड़कर खोलने लगा।

“नहीं… इसे मत खोल… देर हो जाएगी… हम्म्…” आंटी ने मुझे रोक दिया।

“फिर कैसे होगा?” मैंने भी एक अनजान अनाड़ी की तरह सवाल किया और उनकी तरफ देखने लगा।

आंटी मुस्कुराने लगी और मेरे लोअर के अन्दर से अपना हाथ निकल कर अपने दोनों हाथों से अपनी साड़ी धीरे धीरे ऊपर उठाने लगी और उठाकर बिल्कुल ऊपर करके पकड़ लिया। साड़ी इतनी ऊपर हो गई थी कि उनकी चूत नंगी हो चुकी थी लेकिन खड़े होने की वजह से ऊपर से दिखाई नहीं दे रही थी।

“ऐसे ही काम चला ले अभी…” आंटी ने थोड़ा शर्माते हुए अपनी आँखें झुका लीं और मुस्काने लगी।

मैं उनका इशारा समझ गया और झट से नीचे बैठ गया। खिड़की से आ रही रोशनी ने उनकी गद्देदार और हलके हलके झांटों से भरी चूत के दर्शन करवा दिए। वैसे तो मैं बिल्कुल रोम विहीन चूत का दीवाना हूँ लेकिन आंटी की छोटी छोटी झांटों के बीच फूली हुई चूत मुझे बड़ी ही मनमोहक लगी। मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और अपने होंठों को चूत पर रख दिया।

“उम्म… आह्ह… जल्दी कर न…” होंठ रखते ही उनकी चूत ने एक छोटी सी पिचकारी मारी और पहले से ही गीली चूत के होंठों को और भी गीला कर दिया।

क्या खुशबू थी उस रस भरी चूत से निकलते हुए रस में… रिंकी और प्रिया की चूत से भी मस्त कर देने वाली खुशबू आती थी लेकिन यह खुशबू एकदम अलग थी। शायद कुँवारी और शादीशुदा चूतों की खुशबू अलग अलग होती होगी, यह सोचकर मैंने अपने होंठों से चूत के हर हिस्से को चूमा और फिर अपनी जीभ निकल कर उनकी चूत को अपनी उंगलियों से फैला कर सीधा अंदर डाल दिया।

“उफ्फ… हाय मेरे लाल… ये क्या कर दिया तूने…” आंटी ने एक ज़ोरदार आह भरी और अपने हाथों से मेरा सर अपनी चूत पे दबा दिया मानो मुझे अंदर ही डाल लेंगी।

मैंने अपना सर थोड़ा सा ढीला किया और अपनी जीभ को चूत के ऊपर से नीचे तक चाटने लगा और बीच बीच में उनके दाने को अपने होंठों से दबा कर चूसने लगा। दानों को जैसे ही अपने होंठों में दबाता था तो आंटी अपने पैरों को फैलाकर चूत को रगड़ देती थी।
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02-07-2019, 01:15 PM,
#49
RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
करीब 5 मिनट ही हुए होंगे कि आंटी ने मेरा सर चूत से हटा दिया और मेरा कन्धा पकड़ कर मुझे उठा दिया और झट से नीचे बैठ गई। आंटी की तड़प देखते ही बनती थी। सच में जब औरत गरम हो जाती है तो उसे रोकना मुश्किल हो जाता है।

नीचे बैठते ही उन्होंने मेरा लोअर नीचे खींचा और मेरे लंड को आज़ाद करके अपने हाथों में भर कर ऊपर नीचे सब तरफ से देखने लगी मानो पहली बार देख रही हो। मुझे लगा कि वो अब मेरा लंड अपने नर्म होंठों के रास्ते अपने मुँह में भरेगी और मुझे लंड चुसाई का असीम सुख देगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मैंने अपना लंड उनके होंठों से लगाया तो उन्होंने मेरी तरफ देखकर ऐसा किया मानो पूछ रही हो कि क्या करूँ।

मैंने लंड को उनके होंठों पे रगड़ा तो उन्होंने लंड के चमड़े को खोलकर सुपारे पे एक चुम्मी दे दी और उठ गई। मैं उदास हो गया लेकिन फिर यह सोचा कि शायद उन्होंने कभी लंड चूसा नहीं होगा इसलिए ऐसा किया। कोई बात नहीं, मैं उन्हें भी उनकी बेटियों की तरह लंड कि दीवानी बना दूँगा। फिर तो वो 24 घंटे लंड अपने मुँह में ही रखेंगी।

आंटी उठ कर सीधे बिस्तर पर लेट गई। उनका आधा शरीर बिस्तर पर था और आधा बाहर। यानि उनकी कमर तक बिस्तर पर और कमर से नीचे पैर तक बिस्तर के नीचे। मैंने समय न गंवाते हुए उनकी साड़ी को पैरों से ऊपर उनकी कमर तक उठा दिया और एक बार फिर से झुक कर चूत को चूम लिया, फिर उनके पैरों को अपने कन्धों पर रख कर अपने लंड को सीधे उनकी हसीं चूत के मुँह पर रख दिया। लंड का सुपारा उनकी चूत के मुँह पर रगड़ कर मैंने सुपारे को बिल्कुल सही जगह फिट कर दिया अब बस धक्का मारने की देरी थी और मेरा लंड उनकी चूत को चीरता हुआ अन्दर चला जाता।

आंटी ने बिस्तर की चादर को अपनी मुट्ठी में भर लिया और अपनी चूत को उठाकर पेलने का इशारा किया। उनकी आँखें बंद थी और दांतों को कस लिया था मानो वो आने वाले तूफ़ान के लिए पूरी तरह से तैयार हों।

उनकी यह दशा देखकर मैंने उन्हें तड़पाना सही नहीँ समझा और अपने सुपारे को हल्का हल्का रगड़ते हुए धीरे धीरे अन्दर की तरफ ठेलना शुरू किया। हल्के से दबाव के साथ लंड का अगला हिस्सा उनकी चूत के अन्दर आधा जा चुका था। अब मैंने उनकी जांघों को अपने अपने हाथों से मजबूती से पकड़ा और एक जोर का झटका दिया और आधा लंड अन्दर घुस गया।

“ग्गुऊंन… इस्स स्स्स… धीरे…. ह्म्म्म…” आंटी ने अपने दांत पीसते हुए लंड का प्रहार झेला और धीरे से बोलीं।

मैंने बिना रुके एक और झटका मारा और जड़ तक पूरे लंड को उनकी चूत में ठोक दिया।

“आआअह्ह्ह्ह… ज़ालिम… धीरे कर ना… आज ही सारे कर्म कर देगा क्या?” आंटी ने एक लम्बी चीख के साथ प्यार से गालियाँ देते हुए कहा।

ज़ालिम तो मुझे मेरी प्रिया कहती है… उसकी माँ के मुँह से अपने लिए वही शब्द सुनकर मैं खुश हो गया और धीरे धीरे धक्के मारने लगा। हर धक्के के साथ आंटी सिसकारियाँ भरती जा रही थीं और उनकी चूत गीली होती जा रही थी।

“हाँ… बस ऐसे ही करता जा… बहुत तड़पी हूँ तेरे लिए…” आंटी ने प्यार से मेरी तरफ देखते हुए कहा।

“जितनी तड़प आपने कल रात से मेरे अन्दर भरी है उतनी तड़प तो मैंने आज तक महसूस नहीं की थी… अब तो बस आप देखती जाओ मैं क्या क्या करता हूँ।” मैंने अपने धक्कों का आवेग बढ़ाते हुए कहा।

“तो कर ले ना, रोका किसने है… लेकिन अभी तो जल्दी जल्दी कर ले… आह्ह्हह्ह… कोई आ न जाये… उफफ्फ… कर… और कर…” आंटी मुझे जोश भी दिला रही थीं और जल्दी भी करने को कह रही थीं ताकि कोई देख न ले और गड़बड़ न हो जाए।

एक बात थी कि उनके मुँह से कोई अभद्र शब्द नहीं निकल रहे थे… या तो वो बोलती नहीं थीं या फिर मेरे साथ पहली बार चुदाई करने की वजह से खुल नहीं पा रही थीं।

खैर मैंने अब अपनी स्पीड को और भी बढ़ा दिया और ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा। पलंग के पाए चरमराने लगे थे और लंड और चूत के मिलन की मधुर ध्वनि पूरे कमरे में गूंजने लगी थी। मैं अपने मस्त गति से उन्हें चोदे जा रहा था और अब आंटी ने भी अपनी कमर को ऊपर उठाकर लंड को पूरी तरह से निगलना शुरू कर दिया था।

घप्प्प… घप्प्प्प… घप्प्प… घप्प्प… बस यही आवाजें निकल रही थीं हमारे हिलने से….

करीब 10 मिनट तक ऐसे ही लंड पेलते पेलते मैंने उनकी टाँगे छोड़ दिन और हाथों को आगे बढाकर उनकी चूचियों को थाम लिया।चूचियाँ मसलकर चुदाई का मज़ा ही कुछ और है और औरतों को भी इसमें चुदाई का दुगना मज़ा आता है।

लंड और चूत दोनों हो कल रात से तड़प रहे थे इसलिए अब चरम पे पहुँचने का वक़्त हो चला था। लगभग 20 मिनट के बाद मैंने एक बार फिर से उनके टांगों को अपने कंधे पे रख कर ताबड़तोड़ धक्कम पेल शुरू कर दी और उनके चूत की नसों को ढीला कर दिया।

“हाँ… हाँ… ऐसे ही कर… और जल्दी… और जल्दी… कर मेरे सोनू… और तेज़… आऐईईई…” आंटी मस्त होकर सिसकारियाँ भरने लगीं और मुझे और तेज़ चुदाई के लिए उकसाने लगीं।

“उफफ्फ… मैं आई… मैं आईई… ओह्ह्ह… ओह्ह्हह… आआऐ ईईइ।” आंटी के पैर अकड़ गए और वो एकदम से ढीली पड़ गईं।

अचानक हुई तेज़ चुदाई से आंटी अपने चरम पे पहुँच गईं और अकड़ कर अपने चूत से कामरस की बरसात करने लगी जो सीधा मेरे लंड के सुपारे को भिगो रही थी। चूत के अन्दर लंड पे हो रही गरम गरम रस के बरसात ने मेरे सब्र का बाँध भी तोड़ दिया और मैंने भी एक जोर के झटके के साथ अपने लंड की पिचकारी उनके चूत के अन्दर छोड़ दी…

“अआह्ह… आह्ह्ह्ह… अआह्ह… उम्म्मम्म।” मेरे मुँह से बस ये तीन चार शब्द निकले और मैंने ढेर सारी पिचकारियों से उनकी चूत को सराबोर कर दिया।

हम दोनों पसीने से लथपथ हो चुके थे और एक दूसरे से चिपक कर लम्बी लम्बी साँसें ले रहे थे।

एक घमासान चुदाई के बाद हम शिथिल पड़ गए और करीब 10 मिनट तक ऐसे लेटे रहे। फिर आंटी ने मेरे सर पे हाथ फेरा और मेरे कानों में धीरे से कहा, “अब उठ भी जा….बहुत देर हो गई है।”

मुझे भी होश आया, मैं उनके ऊपर से उठा और अपने लंड को उनकी चूत से बाहर खींचा।

‘पक्क !’ की आवाज़ के साथ मेरा लंड उनकी चूत से बाहर आ गया और उनकी चूत से हम दोनों का मिश्रित रस टपक कर नीचे फर्श पर बिखर गया। आंटी ने अपने साड़ी के नीचे के साए से अपनी चूत को पौंछा और मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा दी।

आंटी ने जैसे ही अपनी चूत पोछ कर साफ़ की मैंने झुक कर एक पप्पी ले ली और उका हाथ पकड़ कर उठा दिया। आंटी उठ कर अपनी साड़ी और ब्लाउज ब्रा को ठीक करने लगी और सब ठीक करके मेरे सीने से लग कर मेरे चेहरे पे कई सारे चुम्बन दे कर मेरे लंड को अपने हाथों से पकड़ कर झुक कर उस पर एक चुम्बन ले लिया।

“आज से तुम मेरे हुए… मेरा शेर…” आंटी ने मेरे लंड को चूमते हुए कहा और फिर मुस्कुरा कर मुझे देखकर दरवाज़े की तरफ बढ़ गईं।

मैंने अपना लोअर ऊपर किया और उन्हें जाते हुए देखता रहा। उनके जाते ही मैं बाथरूम में गया उर अपने लंड को साफ़ कर लिया क्यूंकि प्रिया कभी भी आकर मेरे लंड को अपने हाथों में ले सकती थी और अगर लंड को इस हालत में देखती तो सवालों की झड़ी लग जाती और शायद मैं उसे कुछ भी समझा नहीं पाता।

कमरे में आकर बिस्तर पे गिर पड़ा और चुदाई की थकान की वजह से नींद के आगोश में समां गया।

शादी वाले घर से लौटने के बाद भी सिन्हा आंटी के साथ बड़े हसीं पल बिताने का मौका मिला था मुझे और मैं चाहता था कि आप सब को उसके बारे में बताऊँ।

सिन्हा आंटी के साथ साथ रिंकी और प्रिया के साथ भी यौवन के उस खेल का भरपूर आनन्द लिया मैंने और यह सिलसिला करीब तीन सालों तक चलता रहा।

पर फिर वही हुआ जो अक्सर होता आया है, सिन्हा जी का तबादला हो गया और हम बिछुड़ गए।

उन सब से बिछड़ने के इतने दिनों बाद मैंने देसीबीज़ पर यह कहानी लिखी और संयोगवश प्रिया ने इस कहानी को पढ़ा। यूँ तो वो कनाडा में है आजकल और उसने कहानी भी वहीं पढ़ी, लेकिन कहानी के जरिये सब कुछ जान कर वो बहुत दुःखी हुई।

ज़ाहिर है यारो… उसने मुझसे सच्ची मोहब्बत जो की थी…
प्यार तो मैंने भी सिर्फ और सिर्फ उसी से किया था लेकिन यह कमबख्त लण्ड नहीं माना और मैंने उसकी बहन और माँ के साथ भी चुदाई का खेल खेल लिया।

दोस्तो ये कहानी ख़तम फिर चलेंगे एक और नये सफ़र पर 

समाप्त 
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