RE: Hindi Kamuk Kahani बरसन लगी बदरिया
वहां से मेरी कामना की घाटी तक पहुँचने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई। अपने होंठों से मेरी स्वादिष्ट रसीली चूत को खोलते हुए उसकी जीभ मेरी चूत में घुसकर उसे चाटने लगी। मैं असहनीय सुख से अधमरी सी हो गयी थी।
बाल्कनी के खुले दरवाजे को देखकर उसे एक बात सूझी। मुझे खींचकर वह बाहर ले गया। मैं कहती ही रह गयी कि अरे ये क्या करते हो, मैं कुछ पहन तो लूं, पर वह एक न माना। रात की मखमली काली चादर ने हमें ओढ़ा रखा था। हम दोनों उस बरसते अमृत में भीगते हुए उस स्वर्गसुख का आनंद लेने लेगे।
“आओ आज तुम्हें सावन की फुहार का पूरा मजा देता हूँ…”
उसकी इस बात से मैं कहाँ पीछे हटने वाली थी। उससे चिपटते हुए मैने कहा- “मजा तो मैं दूँगी चलो उधर सावन बरसे इधर तुम बरसो…” और यह कहते हुए मैंने अपनी अंदर और बाहर से पूरी गीली चूत उसके लंड पर रगड़ना शुरू कर दिया। अंधेरा ज़रूर था पर बादल छँट रहे थे और बीच-बीच में चांद बादलों के पीछे से ऐसे निकल आता जैसे कोई दुल्हन साजन की एक झलकी के लिए घूंघट उठाकर देख रही हो। चंद्रमा का बढ़ता घटता प्रकाश हमारे शरीर पर रंगोली सी बना रहा था। मैं उसका लंड पकड़े थी और वह मेरी चूत से खेल रहा था। हम
दोनों वर्षा में भीगते हुए फिर तप उठे थे।
बाल्कनी की मुंडेर देखकर मेरे पति ने मुझे चारों खाने नीचे हो जाने को कहा। मैं तुरंत कोहनियों और घुटनों पर जम गयी।
वर्षा की बूंदे अब मेरी पीठ पर पड़कर मेरे नितंबों की चीर में से जलधारा बनाते हुए बह रही थीं। तेज फुहार मेरे उरोजो पर चुभ रही थीं। जल्दी ही मेरे पति ने मेरे पीछे से एक हाथ से मेरी चूची पकड़ी और अपना लंड मेरी चूत में एक बार में आधे से ज़्यादा गाड़ दिया- “मेरी बहुत दिन से इक्षा थी कि सावन में भीगते हुए खूब जमकर चुदाई करूँ.…” वह सिसक कर बोला।
“हाँ, और मेरी भी…” कहते हुए मैंने चूत से उसके लंड को जकड़ लिया और उसके अगले प्रहार की प्रतीक्षा करने लगी। पर हमारे भाग्य में यह नहीं था। बिजली लौट आयी और उजाला हो गया। हमने जल्दी में बाल्कनी का लाइट आन रहने दिया था। हम शायद फिर भी जुटे रहते पर पास के फ्लेट से आवाज आने से हमारी हिम्मत नहीं हुई। हम भागकर अंदर आये और दरवाजा लगा लिया। अंदर हमें रोकने वाला कोई नहीं था। मैं अपने साजन के गोद में बैठ गयी और उसका लंड अपनी चूत में ले लिया।
वह बोला- “चलो आज तुम्हें सावन के झूले का मजा दूं.…” और मेरी पतली कमरिया दोनों हाथों में पकड़कर वह मुझे झुलाने के अंदाज में चोदने लगा। हम लोगों ने खूब आसन बदल-बदल कर चुदाई की। बाहर पानी तेज हो गया था और उसके साथ हमारी चुदाई की रफ़्तार भी। आखिर राजीव ने मुझे पलंग पर पटका, झुक कर मेरी टांग. उठाकर अपने कंध1 पर रखीं और फिर हचक-हचक कर मुझे चोदने लगा। मेरी चूची की खूब जमकर रगड़ाई हो रही थी और चूत की जमकर चुदाई।
करीब करीब आधे घंटे की घमासान रति के बाद हम झड़े। दोनों थक कर चूर हो गये थे। मैं उसके पीछे उससे चिपट कर लेटी थी और मेरी चूची उसकी पीठ पर रगड़ते हुए उसके कान हौले-हौले काट रही थी। हम इसी तरह स्पून आसन में बहुत देर पड़े रहे। अब चांद निकल आया था और कमरे में शुभ्र चांदनी फैल गयी थी। मैंने फिर उसके लंड को मुट्ठी में लेकर सहलाना शुरू कर दिया पर दो बार की भरपूर चुदाई के बाद अब वह लस्त होकर मुरझाया पड़ा था। मैंने फिर से हल्की फुल्की बातचीत चालू कर दी ।
“मीता तुम्हारी सगी बहन तो नहीं है ना?”
“ना, तुम जानती हो मेरी …”
उसकी बात काट कर उसके फिर से जागते हुए लंड को पकड़कर मैं बोली - “अरे यार, आजकल तो लोग सगी को नहीं छोड़ते और फिर वह तो तुम्हारी … जानते हो कई मज हबों में तो ऐसे रिश्तों में बाकायदा शादी भी होती है…
फिर? अच्छा ये बताओ, तुम्हें वह कैसी लगती है?”
“अच्छी लगती है…”
“अच्छा और आज उसकी चुचियों को देखकर तुम्हारा लंड खड़ा हो गया था ना?” कहते हुए मैंने उसके सुपाड़े पर से चमड़ी नीचे कर दी । अब वह फिर करीब करीब पूरा खड़ा हो गया था।
“वो…वो…वो मैंने बोला तो था तुम्हें… अब देखकर तो हो जायेगा…”
“अच्छा तुम्हें उसकी चूची के अलावा क्या मस्त लगता है? उसके चूतड़ कैसे लगते हैं? अगर उसकी गान्ड मारने को मिले? सोचो मस्त-मस्त भारी गान्ड लेकिन एकदम कसा-कसा छेद, कैसे फँस-फँसकर तुम्हारा ये मूसल जायेगा…”
अब मेरी बात का जवाब उसके लंड ने उचक कर दिया। सिर्फ़ मेरी वर्णन से ही वह फिर ट न्ना गया था और मेरी मुट्ठी के बाहर आ गया था।
“देखो मेरी ननद के चूतड़ और उसकी गान्ड के बारे में सोच करके ही कितने कस के खड़ा हो गया। इसका मतलब है कि तुम्हारा उसकी लेने का कितना मन करता है…” अब मैं उसके लंड को कसकर मुठिया रही थी-
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