non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:03 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार

"ओह बड़ी अजीब बात है ये तो।" चौधरी ने सोचने वाले भाव से कहा___"फिर तो वो लड़का दर दर का भिखारी ही है। ऐसी हालत में वो ये सब हमारे साथ कैसे रहा पा रहा है? ये तो हैरत की बात है।"

"हैरत वैरत की कोई बात नहीं है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"ताऊ के द्वारा हवेली से बेदखल होने के बाद वो लड़का आजकल मुम्बई में रहता है अपनी विधवा माॅ और बहन के साथ।"
"अच्छा।" चौधरी ने कहा___"तो क्या वो मुम्बई में रहते हुए ये सब कर रहा है?"

"इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता मगर।" अशोक मेहरा ने कहा___"मगर संभव है कि उसे अपनी प्रेमिका के साथ हुए काण्ड का पता चला हो और वो मुम्बई से यहाॅ आया हो। उसके बाद उसने ये सब शुरू किया हो।"

"ओह।" चौधरी को जैसे बात समझ आ गई___"संभव है ऐसा ही हो। ख़ैर उस लड़के के परिवार में और कौन कौन लोग हैं?"
"लड़के का बाप तीन भाई थे।" अशोक ने कहा___"सबसे बड़ा अजय सिंह, फिर लड़के का बाप विजय सिंह और उसके बाद अभय सिंह। अजय सिंह के दो बेटियाॅ और एक लड़का है। उसकी बड़ी बेटी हल्दीपुर थाने में थानेदार है।"

"क क्या????" चौधरी ही नहीं बल्कि सभी बुरी तरह चौंके थे, फिर चौधरी ने ही कहा___"उस ठाकुर की बेटी थानेदार है। मतलब की पुलिस वाली है वो?"
"हाॅ मगर आप ये हर्गिज़ भी न सोचें कि।" अशोक मेहरा ने कहा____"कि उसका इस मामले में कोई हाथ है।"

"अरे, क्यों नहीं हो सकता ऐसा?" चौधरी से पहले अवधेश बोल पड़ा था___"वो अपने चचेरे भाई की मदद तो यकीनन कर सकती है भाई।"
"ऐसा नहीं है अवधेश भाई।" अशोक ने कहा___"क्योंकि अजय सिंह ही नहीं बल्कि उसकी औलादें भी उस लड़के और उसकी माॅ बहन से नफ़रत करती हैं।"

"एक मिनट अशोक भाई।" सहसा अवधेश श्रीवास्तव ने कुछ सोचते हुए कहा___"एक मिनट। हमारे बच्चों ने उस लड़की के साथ रेप सीन को अंजाम दिया उसके बाद वो चिमनी में बने अपने फार्महाउस पर चले गए। जहाॅ से उन्हें किडनैप कर लिया गया। चिमनी हल्दीपुर के बाद ही पड़ता है। ख़ैर रेप की वारदात हल्दीपुर के आस पास के ही क्षेत्र में हुई या फिर ऐसा होगा कि हमारे बच्चों ने अपने फार्महाउस पर ही उस लड़की से सामूहिक रेप किया और उसके बाद उसे हल्दीपुर की सीमा के अंदर ले जा कर छोंड़ आए होंगे। ये सब मैं इस लिए कह रहा हूॅ कि वो रेप सीन उस समय काफी फैल गया था उस क्षेत्र में। ख़ैर अब सोचने वाली बात ये है कि अगर रेप पीड़िता लड़की हल्दीपुर की सीमा में पाई गई तो क्या हल्दीपुर के थाने में मौजूद वो थानेदारनी चुप बैठी रही होगी? उसने शुरुआती ऐक्शन तो लिया ही होगा।"

"तुम आख़िर कहना क्या चाहते हो?" अशोक मेहरा ने पूछा___"इस मामले में अचानक तुम इस एंगिल से क्यों सोचने लगे?"
"दरअसल मैं भी तुम्हारी तरह संभावनाएॅ ही ब्यक्त कर रहा हूॅ भाई।" अवधेश ने कहा___"मामला काफी पेचीदा है। मगर मैं इधर उधर की कड़ियाॅ समेटने की कोशिश कर रहा हूॅ।"

"साफ साफ बोलो क्या कहना चाहते हो तुम?" सहसा चौधरी कर उठा___"यूॅ बातों को घुमाने का क्या मतलब है?"
"जैसा कि अशोक भाई ने कहा।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"कि थानेदारनी अपने भाई की मदद नहीं कर सकती क्योंकि वो भी अपने माॅ बाप की तरह ही उससे नफ़रत करती है। मगर सवाल ये है कि थानेदारनी के क्षेत्र में रिप पीड़िता पाई गई तो क्या थानेदारनी ने इस पर कोई ऐक्शन नहीं लिया होगा?"

"अगर उसने कोई ऐक्शन लिया होता तो उसका पता हमें ज़रूर चलता।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"ये तो सच है कि वो रेप स्कैण्डल एक पुलिस केस ही था मगर उस स्कैण्डल का कोई पुलिस केस नहीं बना। इस बात खुलासा कमिश्नर खुद कर चुका है।"

"या फिर ऐसा हुआ होगा कि उस थानेदारनी ने केस बनाने की कोशिश की होगी।" अशोक ने कहा___"मगर कमिश्नर ने उसे केस बनाने या उस वारदात पर कोई ऐक्शन लेने से मना कर दिया होगा। थानेदारनी भला अपने आला अफसर के खिलाफ़ कैसे कोई क़दम उठाती? "

"हाॅ ऐसा भी हो सकता है।" चौधरी ने कहा___"और आम जनता ने इस पर हो हल्ला इस लिए नहीं किया क्योंकि उसे भी पता है कि मामला सीधा मंत्री के बेटे और उसके बेटे के दोस्तों का था। यानी कि हमारे डर की वजह से जनता ख़ामोश रह गई।"

"तो इन बातों का निष्कर्स ये निकला।" सहसा सुनीता ने गहरी साॅस लेने के बाद कहा___"कि वो लड़का जिसे कि उसके ताऊ ने उसकी माॅ बहन के साथ घर से दर बदर किया वही इस सबके पीछे है। यानी वो अपनी प्रेमिका के साथ हुए उस रेप का बदला ले रहा है।"

"बिलकुल।" अशोक ने पुरज़ोर लहजे में कहा__"विधी के माॅ बाप के अलावा वही एक ऐसा है जो ये सब कर सकता है। यानी ये सब करने की वजह उसके पास भी है।"
"अगर ये वाकई सच है।" अवधेश ने कहा___"तो अब हमें उस लड़के का पता लगाना होगा। मगर इस बार पहले जैसी ग़लती हर्गिज़ भी नहीं होनी चाहिए। वरना इस बार इसका खामियाजा हमें भारी कीमत पर चुकाना पड़ सकता है।"

"बड़ी हैरत की बात है।" दिवाकर चौधरी के लहजे में कठोरता थी, बोला___"एक पिद्दी से इंसान ने हमें इस तरह अपने शिकंजे में कसा हुआ है कि हम आज़ाद होते हुए भी आज़ाद व बेफिक्र नहीं हैं। वो जब चाहे हम सबको बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा सकता है और हम कुछ कर नहीं सकते। सारे प्रदेश में हमारी एकछत्र हुकूमत है। हमारी इजाज़त के बिना इस प्रदेश में कहीं का कोई पत्ता भी नहीं हिल सकता। मगर कमाल देखो कि हम सब जो खुद को सबसे बड़ा सूरमा समझ रहे हैं आज उस हरामज़ादे की मुट्ठी में कैद हो कर रह गए हैं। लानत है हम पर और हमारे सूरमा होने पर।"

"आप चिंता मत कीजिए चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"बकरे की अम्मा कब तक ख़ैर मनाएगी? आज भले ही उस कमीने का पलड़ा हम पर भारी है मगर किसी दिन तो उससे भी कोई चूक होगी जिसके तहत वो हमारे हत्थे चढ़ेगा। उसके बाद हम बताएॅगे कि हमारे साथ इतना बड़ा दुस्साहस करने का कितना खूबसूरत अंजाम होता है।"

"बकवास मत करो अशोक।" चौधरी ने बिफरे हुए से लहजे में लगभग चीखते हुए कहा___"तुम्हारा ये डायलाग हम इसके पहले भी जाने कितनी बार सुन चुके हैं मगर अब तक ऐसा कोई पल नहीं आया जिससे हमें लगे कि हाॅ अब हालात हमारे हक़ में हैं। मादरचोद ने अपाहिज बना के रख दिया है हमे। किसी से ठीक से मिल नहीं सकते। किसी समारोह में नहीं जा सकते। साला हर पल डर लगा रहता है कि ऐसी किसी जगह पर वो हरामज़ादा कोई ऐसी वैसी हरकत न कर दे कि सबके सामने हमारी इज्ज़त का कचरा हो जाए।"

"बुरा मत मानिएगा चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"मगर हमें इतना बेबस बना देने में सबसे बड़ा हाॅथ आपके बेटे सूरज का है।"
"क्या मतलब है तुम्हारा?" चौधरी एक झटके से अशोक की तरफ घूमते हुए कहा था।

"आप खुद सोचिए।" अशोक ने कहा___"हमारे सभी बच्चों का लीडर कौन है___आपका बेटा ही न?"
"हाॅ तो।" चौधरी चकराया।
"आप ये बताइये कि फार्महाउस पर हमारे ऐसे संबंधों की वीडियो क्लिप बनाने की क्या ज़रूरत थी उसे?" अशोक ने कहा___"क्या उसे इतना भी एहसास नहीं था कि ऐसे वीडियो किसी डायनामाइट से कम नहीं होते। हम जैसे लोगों के हज़ारो प्रतिद्वंदी होते हैं जिन्हें हमारी ऐसी ही किसी कमज़ोरी की तलाश रहती है। आज उन्हीं वीडियोज की वजह से हम इतना बेबस व लाचार बने बैठे हैं। अगर वो वीडियोज बने ही न होते तो आज किसी की हिम्मत ही न होती हमें इतना मजबूर करने की।"

"हाॅ हम जानते हैं कि हमारे बेटे ने ऐसे वीडियोज बना कर बहुत बड़ी ग़लती की है।" चौधरी ने खेद भरे भाव से कहा___"मगर अब जो हो गया उसका कोई कर भी क्या सकता है? हमें तो सारे बच्चों की फिक्र है। जाने उनके साथ कैसा सुलूक कर रहा होगा वो हरामज़ादा?"

"हम खुद तो कुछ कर नहीं सकते हैं।" अवधेश ने कहा___"मगर किसी और को इस काम में ज़रूर लगा सकते हैं।"
"क्या मतलब??" अशोक के माथे पर शिकन उभरी।

"मुझे लगता है कि हमें इस काम के लिए किसी क़ाबिल व बहादुर डिटेक्टिव को हायर करना चाहिए।" अवधेश ने कहा___"जासूस लोग गुप्त तरीके से काम करने में काफी माहिर होते हैं। वो अपने और अपनी गतिविधियों के बारे में किसी को तब तक पता नहीं चलने देते जब तक कि वो खुद न चाहें। अगर यही काम हम अपने आदमियों से कराएॅगे तो हमारी किसी गतिविधी का उस लड़के को पता चलने में देर नहीं लगेगी। अब तक के उसके क्रिया कलाप से ये ज़ाहिर हो चुका है कि वो अपने हर काम में बेहद होशियारी और सतर्कता रखता है और हमारी पल पल की ख़बर रखता है। इस लिए हमें किसी डिटेक्टिव को हायर करना चाहिए।"

"आइडिया बुरा नहीं है।" अशोक ने कहा___"मैं तुम्हारी इस सलाह से सहमत हूॅ। यकीनन इस काम में एक डिटेक्टिव ही कुछ कर सकता है। वो उस लड़के की सारी जन्मकुण्डली भी निकाल लेगा और हमारे बच्चों का पता भी लगा लेगा।"

"तो फिर देर किस बात की है?" चौधरी ने कहा___"अगर तुम दोनों को लगता है कि कोई डिटेक्टिव इस काम को बखूबी सफलतापूर्वक कर सकता है तो फिर ऐसे किसी डिटेक्टिव को फौरन हायर करो।"

"मेरी जानकारी में ऐसा एक डिटेक्टिव है।" अवधेश ने कहा___"मैं आज ही उससे फोन पर बात करता हूॅ और उसे जल्द से जल्द यहाॅ बुलाता हूॅ।"
"अच्छी बात है।" चौधरी ने कहा___"उसे बोलो फौरन हमारे सामने हाज़िर हो जाए। उसको उसके काम की मुहमाॅगी फीस के रूप में रकम मिलेगी।"

अवधेश ने चौधरी की बात सुनकर अपने कोट की पाॅकेट से मोबाइल निकाला और उसमें से किसी को फोन लगाया। थोड़ी देर बात करने के बाद उसने मोबाइल वापस अपनी पाॅकेट में डाल लिया।

"चौधरी साहब।" फिर उसने मंत्री की तरफ देखते हुए कहा___"मैने डिटेक्टिव से बात कर ली है। वो कल तक हमारे पास पहुॅच जाएगा। अब आप किसी बात की फिक्र मत करें। बहुत जल्द हमारा दुश्मन हमारे कब्जे में होगा और हमारे बच्चे हमारे पास होंगे।"

"अच्छी बात है अवधेश।" चौधरी ने कहा___"अब तो हमें तुम्हारे उस डिटेक्टिव पर ही भरोसा करना है। इसके सिवा दूसरा कोई चारा भी नहीं है।"
"आप निश्चिंत हो जाइये चौधरी साहब।" अवधेश ने कहा___"डिटेक्टिव बहुत ही क़ाबिल ब्यक्ति है। मुझे यकीन है कि बिना कोई नुकसान हुए हमारा हर काम हो जाएगा।"

"इससे ज्यादा हमें और चाहिए भी क्या?" चौधरी ने कहने के साथ ही सहसा सुनीता की तरफ देखा___"इतने दिनों में आज पहली बार एक नई उम्मीद पैदा हुई है। इस लिए हम चाहते हैं कि आज तबीयत खुश कर दो तुम।"
"हाय।" सुनीता ने दाॅतों तले अपने होंठ दबा कर आह सी भरते हुए कहा___"कितनी सुंदर बात कही है मेरे बलम ने। मैं तो कब से इसके लिए तड़प रही हूॅ। अब जब मूड बन ही गया है तो चलिए कमरे में और तबीयत हरी कर लीजिए।"

सुनीता की इस बात से चौधरी तो मुस्कुराया ही उसके साथ अशोक व अवधेश भी मुस्कुरा पड़े। इसके बाद चारो ही सोफों से उठ कर कमरे की तरफ बढ़ गए।
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11-24-2019, 01:03 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
सुबह हुई और एक नये जीवन के नये सफ़ की शुरुआत हुई। ट्रेन की शीट पर सोते हुए मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे ऊपर कोई झुका हुआ है। मुजे मेरे चेहरे पर गरम गरम हवा लगती हुई प्रतीत हो रही थी साथ ही किसी औरत के बदन पर लगे परफ्यूम की खुशबू भीमेरे नथुनों में समा रही थी। मेरी नींद टूटने की यही वजह थी। मैने पट से अपनी ऑखें खोल दी और अगले ही पल मैं ये देख कर बुरी तरह चौंका कि नीलम मेरे चेहरे के पास झुकी हुई थी।

उधर यही हाल नीलम का भी हुआ था। उसे कदाचित उम्मीद नहीं थी कि मैं इस तरह झटके से ऑखें खोल दूॅगा और फिर जैसे ही मैने पट से अपनी ऑखें खोली तो वो एकदम से हड़बड़ा गई थी। मगर हैरत की बात ये हुई कि उसने पलक झपकते ही खुद को सम्हाल भी लिया था।

"गुड माॅर्निंग राज।" फिर उसने मुस्कुराते हुए बड़ी नज़ाक़त से कहा___"सोते हुए कितने मासूम लगते हो तुम। मैं काफी देर से यही देख रही थी कि मेरा भाई सोते वक्त किसी छोटे से बच्चे की तरह मासम व क्यूट सा दिखता है। पहले मैने सोचा कि तुम्हें जगाऊॅ मगर फिर जब मैने देखा कि तुम गहरी नीद में हो और एकदम से मासूम दिख रहे हो तो मैने तुम्हें जगाना उचित नहीं समझा। बल्कि एकटक तुम्हें देखने लगी थी।"

"अच्छा तो मैं तुम्हें।" मैने उठते हुए किन्तु शरारत से कहा___"छोटा सा बच्चा नज़र आ रहा था सोते वक्त?"
"हाॅ बिलकुल।" नीलम ने मुस्कुराई___"तभी तो उस छोटे से बच्चे की मासूमियत को एकटक निहारे जा रही थी मैं।"
"पर मैने जब तुम्हें देखा रात में।" मैने पुनः शरारत से ही कहा___"तो तुम सोते वक्त ऐसी दिख रही थी जैसे कोई अस्सी साल की बुढ़िया सो रही हो। मैं तो टोटली कन्फ्यूज हो गया था उस वक्त।"

"क्या कहा???" नीलम एकदम से राशन पानी लेकर चढ़ दौड़ी___"मैं तुम्हें बुढ़िया नज़र आ रही थी। रुको अभी बताती हूॅ तुम्हें?"
"अरे नहीं यार।" मैंने एकदम से हड़बड़ाते हुए कहा__"मैं तो मज़ाक कर रहा था। तुम बुढ़िया तो किसी एंगिल से नहीं लगती हो मगर...।"

"मगर क्या???" नीलम ने ऑखें दिखाई।
"मगर दादी माॅ ज़रूर लगती हो।" मैने हॅसते हुए कह दिया।
"क्या बोला???" नीलम एकदम से मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे पेट पर बैठ गई, और फिर मेरे सीने में मुक्के मारते हुए बोली___"मैं दादी माॅ लगती हूॅ। रुक बेटा बताती हूॅ अब तुझे मैं।"

नीलम मेरे सीने में मुक्के मारे जा रही थी। मैं भी उससे बचने का कोई खास प्रयास नहीं कर रहा था। मैने तो उसे छेंड़ा ही इस लिए था कि वो ये सब करे। दरअसल इन्हीं सब चीज़ों के लिए तो मैं तरसा था। अब तक तो रितू और नीलम ने कभी मुझे अपना भाई समझा ही नहीं था। भाई बहन के बीच कैसी कैसी शरारतें होती हैं उस सबका मैने कभी स्वाद ही नहीं चखा था। मगर आज और इस वक्त वही सब मेरे और नीलम के बीच हो रहा था। सच कहूॅ तो मुझे इस सबसे बेहद खुशी हो रही थी। दिल में भड़कते हुए जज़्बात जाने क्यों मुझे रुलाने पर उतारू हो रहे थे। मेरा दिल कर रहा था कि इस वक्त भावनाओं में बहते हुए मैं नीलम से लिपट कर खूब रोऊॅ मगर मैं ऐसा नहीं करना चाहता था। क्योंकि उससे माहौल दुखी सा हो जाता जबकि मैं इस पल को जी भर के जीना चाहता था।

उधर हम दोनो बहन भाई की इस धमा चौकड़ी से आस पास बैठे ट्रेन के सब लोग आश्चर्य से ऑख व मुह फाड़े एकटक देखे जा रहे थे। हम दोनो को भी जैसे उन सबसे कोई मतलब नहीं था और ना ही कोई परवाह थी। नीलम ज़ोर ज़ोर से जाने क्या क्या बोले जा रही थी और मेरे ऊपर चढ़ी हुई मुझ पर मुक्कों की बरसात किये जा रही थी। उसकी इस आवाज़ और मेरे तेज़ हॅसी को सुन कर पीछे साइड ऊपर नीचे बर्थ पर सो रहे सोनम और आदित्य को भी जगा दिया। वो दोनो फौरन ही भाग कर हमारे पास आ गए और इधर का नज़ारा देख कर हैरान रह गए।

"ये तुम दोनो क्या ऊधम मचा रखे हो?" सहसा सोनम ने लगभग ऊॅची आवाज़ में कहा___"तुम दोनो को कुछ होश भी है कि इस वक्त कहाॅ हो तुम दोनो और तुम दोनो की इस हरकत से आस पास वाले कितना डिस्टर्ब हो रहे हैं।"

"दीदी इसने मुझे दादी माॅ बोला।" नीलम ने मुक्के मारना बंद करके शिकायत भरे लहजे मे कहा___"पहले कह रहा था कि मैं बुढ़िया लगती हूॅ फिर बात बदल कर बोला कि मैं दादी माॅ लगती हूॅ।"
"हाॅ तो क्या हो गया?" सोनम दीदी ने हाॅथ नचाते हुए कहा___"उसके ऐसा कहने से क्या तुम सच में दादी माॅ लगने लगी? देखो तो अभी उसके ऊपर बैठी हुई है बेशरम। चल उतर राज के ऊपर से वरना दो चार लगाऊॅगी अभी।"


"नहीं उतरूॅगी।" नीलम ने दो टूक भाव से कहा___"इसने मुझे दादी माॅ क्यों कहा? इससे पहले बोलिए कि ये मुझे बोले कि मैं हूर की परी लगती हूॅ। वरना आप भी देखिये कि कैसे मैं इसे मार मार के इसका भुर्ता बनाती हूॅ?"

"हूर की परी और तू???" मैंने सहसा नीलम की खिल्ली उड़ाने वाले अंदाज़ से कहा___"कभी आईने में अपनी शक्ल देखी है तूने? दादी माॅ तो मैने ऐसे ही कह दिया था तुझे, वरना तो तू बिलकुल बंदरिया लगती है। यकीन न हो तो पूछ ले सोनम दीदी से।"

मेरी इस बात से जहाॅ सोनम दीदी ने अपना सिर पीट लिया वहीं नीलम की त्यौरियाॅ चढ़ गईं। वह एकदम से तमतमाए हुए बोली___"क्या कहा बंदरिया लगती हूॅ? रुक अब तो तुझे सच में नहीं छोंड़ूॅगी। दीदी आप हमारे बीच में मत पड़ना। इसे तो मैं आज छोंडूॅगी नहीं।"

सोनम दीदी चिल्लाती रह गईं जबकि नीलम ने फिर से मुझ पर मुक्कों की बरसात कर दी। मैं महसूस कर रहा था कि वो मुझे मार ज़रूर रही थी मगर बस हल्के हल्के। कदाचित उसे भी इस सबमें मज़ा आ रहा था। किन्तु वो यही ज़ाहिर कर रही थी कि वो मेरी बातों से बेहद गुस्सा हो गई है।

"सोनम दीदी इससे कहिए कि ज्यादा झाॅसी की रानी न बने।" मैने हॅसते हुए कहा___"वरना अगर मैं महाराणा प्रताप बन गया तो फिर ये रोने के सिवा कुछ न कर पाएगी, बंदरिया कहीं की।"
"ओये तू महाराणा प्रताप बन के तो दिखा।" नीलम ने ऑखें निकाली___"मैं भी झाॅसी की रानी से माॅ दुर्गा न बन जाऊॅ तो कहना। बड़ा आया महाराणा प्रताप बनने, बंदर कहीं का।"

"ओये बंदर कौन??" मैने सहसा उसके दोनो हाॅथ पकड़ते हुए कहा___"ठीक से देख आई एम विराज दि ग्रेट।"
"विराज दि ग्रेट माई फुट।" नीलम ने मेरे हाॅथ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा___"छोंड़ मेरे हाथ वरना नीलम परी को गुस्सा आ जाएगा और फिर विराज दि ग्रेट को मुर्गा बना देगी समझा?"

"मैं क्यों तेरे हाथ छोंड़ूॅ??" मैने कहा___"तू खुद ही छुड़ा ले न। मैं भी तो देखूॅ कि इस बंदरिया में कितना दम है।"
"ओये तू न दम की बात न कर।" नीलम ने कहा___"मैं चाहूॅ तो दो पल में अपने हाथ छुड़ा लूॅ समझा।"
"अच्छा छुड़ा के तो दिखा।" मैने ताव दिया उसे।

"रहने दे रहने दे।" नीलम ने कहा___"वरना बाद में सब तुझ पर ही हॅसेंगे कि खुद को महाराणा प्रताप कहने वाला एक मासूम सी लड़की से हार गया।"
"कोई बात नहीं।" मैने कहा___"तुझसे हारना मंजूर है। आख़िर तू मेरी प्यारी सी बहन है न।"

"अब ये मस्का क्यों लगा रहा है?" नीलम ने चौंकते हुए कहा___"क्या नीलम परी से डर गया है?"
"डरता तो मैं उस परवर दिगार से भी नहीं।" मैने नीलम का हाथ छोंड़ कर अपने हाथ की उॅगली को ऊपर की तरफ करते हुए कहा___"मगर मुझे लगता है कि अब बाॅकी सबको बक्श देना चाहिए जो बेचारे हमारी वजह से शायद डिस्टर्ब हो रहे हैं। दूसरी बात सोनम दीदी ने डंडा उठा लिया तो फिर हम दोनो की ख़ैर नहीं रहेगी। कुछ समझ में आया नीलम परी जी?"

"अगर ऐसी बात है।" नीलम ने इस तरह कहा जैसे अहसान कर रही हो___"तो चल बक्श ही देती हूॅ तुझे भी और बाॅकी सबको भी। मगर आइंदा नीलम परी से टकराने की सोचना भी मत वरना खांमाखां बेइज्जती हो जाएगी तेरी।"

"ओये अब ज्यादा उड़ मत समझी।" मैने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपने ऊपर से उठाते हुए कहा___"चल अब उतर नीचे।"

मेरे ऐसा कहने पर नीलम मुस्कुराते हुए मेरे ऊपर से उतर गई मगर अंदाज़ ऐसा था उसका जैसे अभी भी जता रही हो कि आइंदा याद रखना। मुझे उसके इस अंदाज़ पर बड़ी ज़ोर की हॅसी आई मगर मैने खुद को रोंक लिया। उधर सोनम दीदी और आदित्य भी ये सब देख कर मुस्कुरा रहे थे। ख़ैर कुछ ही पलों में मैं और नीलम शीट पर आराम से बैठ गए। आदित्य और सोनम भी हमारी ही शीट पर बैठ गए। आस पास बैठे सब लोग अभी भी हमें हैरानी से देख रहे थे। मैने देखा कि नीलम का चेहरा अब एकदम से खिला खिला लग रहा था। उसके होठों पर बहुत ही हल्की सी मुस्कान थी। वो बार बार मेरी तरफ देखने लगती थी। पता नहीं क्या चल रहा था उसके मन में?

"चलो सुबह तो हो गई है।" सोनम दीदी ने मानो बातों का सिलसिला शुरू किया___"इस वक्त अगर गरमा गरम चाय या काॅफी मिल जाती तो कितना अच्छा होता।"
"हाॅ दीदी।" नीलम ने कहा___"मगर यहाॅ पर अभी ये सब कैसे मिल सकता है भला?"

"चिंता मत करो।" मैने कहा___"अगले स्टाप पर जब ट्रेन रुकेगी तो चाय या काॅफी का बंदोबस्त करने की कोशिश करूॅगा मैं।"
"विराज भाई।" सहसा आदित्य ने कहा___"मैं ज़रा फ्रेश होकर आता हूॅ।"

"ओके भाई तुम जाओ।" मैने कहा___"उसके बाद मुजे भी फ्रेश होना है।"
"और हम भी तो फ्रेश होंगे।" नीलम बोल पड़ी___"इस लिए इनके बाद सबसे पहले मैं जाऊॅगी।"
"हर्गिज़ नहीं।" मैने कहा___"आदि के बाद मैं ही जाऊॅगा।"

"तू जा के दिखाना भला।"नीलम ने मानो धमकी सी दी मुझे।
"ऐ अब तुम दोनो फिर से न शुरू हो जाओ।" सोनम दीदी ने कहा था।
"पर दीदी सेकण्ड नंबर पर मैं ही जाऊॅगी।" नीलम ने बुरा सा मुह बनाया___"इसे कह दीजिए कि ये मेरे बाद चला जाएगा।"

आदित्य हम दोनो की इस बात से मुस्कुराता हुआ उठ कर फ्रेश होने चला गया। जबकि मैने सोनम दीदी के कुछ बोलने से पहले ही कहा___"हाॅ ठीक है तुम ही चली जाना। वैसे भी मुझे इतनी जल्दी नहीं है तेरे जैसे। पहले बता देती तो आदित्य को रोंक देता।"

"ओये अब तू बकवास न कर समझे।" नीलम ने ऑखे दिखाते हुए कहा___"मुझे भी इतनी जल्दी नहीं है।"
"उफ्फ।" सोनम दीदी कह उठी___"तुम दोनो फिर से शुरू हो गए। ओके फाइन अगर तुम दोनो को इतनी जल्दी नहीं है तो मैं चली जाऊॅगी एण्ड दिस इज क्लियर।"

"ये सही कहा दीदी आपने।" मैने हॅसते हुए कहा___"अब आप ही जाना फ्रेश होने। सबसे लास्ट में यही जाएगी।"
"नहींऽऽ।" नीलम एकदम से हड़बड़ा गई___"आदि भैया के बाद मैं ही जाऊॅगी।"
"क्यों अब क्या हुआ तुझे?" सोनम दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"अभी तो कह रही थी न कि तुझे कोई जल्दी नहीं है तो अब क्या हुआ?"

"मैं कुछ नहीं जानती।" नीलम ने मानो फैंसला सुना दिया___"आदि भैया के बाद मैं ही जाऊॅगी और अगर आपने दोनो ने मुझे नहीं जाने दिया तो मैं यहीं पर हड़ताल कर दूॅगी।"
"उसे हड़ताल नहीं।" मैने हॅसते हुए कहा___"पोट्टी कर देना कहते हैं पगली।"

"ओये चुप कर तू।" नीलम पहले तो सकपकाई फिर घुड़की सी दी मुझे___"ज्यादा चपड़ चपड़ मत कर वरना ट्रेन के नीचे फेंक दूॅगी तुझे।"
" वैसे बात तो राज ने सही कही है।" सोनम दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"उसे हड़ताल करना थोड़ी न कहते हैं।"

सोनम दीदी की इस बात से मेरी हॅसी छूट गई और मेरे साथ ही साथ सोनम दीदी भी हॅसने लगी थी। हम दोनो के हॅसने से नीलम का चेहरा देखने लायक हो गया। ऐसा लगा जैसे वो अभी रो देगी। सामने की शीट पर बैठे लोग भी मुस्कुरा उठे थे। मैने जब देखा कि नीलम कहीं सच में ही न रो दे तो मैने अपनी हॅसी रोंक कर झट से उसे खींच कर खुद से छुपका लिया।

"तुम दोनो बहुत गंदे हो।" नीलम मुझसे अलग होने की कोशिश करते हुए किन्तु रूठे हुए भाव से बोली___"जाओ मुझे तुम दोनो से अब कोई बात नहीं करनी।"
"अरे ऐसा मत करना तू।" मैने उसे मजबूती से छुपकाए हुए कहा___"हड़ताल भले ही यहीं पर कर देना।"
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11-24-2019, 01:03 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
मेरी इस बात से इस बार सोनम दीदी की भी ज़ोरदार हॅसी छूट गई। जबकि मैं नहीं हॅसा क्योंकि मुझे पता था कि मेरे इस बार हॅसने से नीलम की हालत ख़राब हो जाएगी। मैं नहीं चाहता था कि उसका दिल दुख जाए। मुद्दतों बाद तो वो मुझे ऐसे मिली थी। नीलम ने थोड़ी देर मुझसे नाराज़गीवश अलग होने की कोशिश की फिर वो खुद ही मुझसे छुपक कर मुझे कस के पकड़ लिया। वो कुछ बोल नहीं रही थी बल्कि उसने अपनी ऑखें बंद कर ली थी।

ऐसे ही हॅसी मज़ाक करते हुए हम चारो ही बारी बारी से फ्रेश हो गए। अगले स्टाप पर ट्रेन रुकी तो मैं और आदित्य ट्रेन से उतर कर उन दोनो के लिए चाय ले आए। हम चारों ने चाय पी और फिर से बातों में मशगूल हो गए। ट्रेन अपनी गति से चलती रही। बातों बातों में समय का पता ही नहीं चला और सुबह से दोपहर होने को आ गई।

हम गुनगुन स्टेशन के पास पहुॅचने वाले थे। इस बीच नीलम फिर से गंभीर हो गई थी। मैने उसे समझा दिया कि वो सोनम दीदी को लेकर आराम से गाॅव जाए। मैने उसे खासकर ये कहा कि सारी बातों पता वो खुद ही लगाए तो बेहतर होगा। नीलम और सोनम दीदी ने मुझे अपना अपना मोबाइल नंबर दिया और मुझसे भी लिया।

गुनगुन स्टेशन पहुॅच कर ट्रेन रुकी तो हम सब ट्रेन से नीचे उतरने के लिए गेट की तरफ आए। मैने आस पास का मुआयना किया और आदित्य के साथ नीचे उतर आया। हम दोनो के उतरने के बाद नीलम भी सोनम दीदी के साथ उतर आई। मैने नीलम को बता दिया था कि यहाॅ से अब हम साथ नहीं रह सकते क्योंकि यहाॅ से मेरे लिए ख़तरा शुरू था। ख़ैर, उसके बाद मैं और आदित्य बड़ी सावधानी व सतर्कता से स्टेशन से बाहर की तरफ बढ़ चले। जबकि नीलम व सोनम दीदी हमारे काफी पीछे पीछे आ रही थी।

बाहर आकर मैने आस पास का मुआयना किया तो मुझे एक आदमी हमारी तरफ ही आता दिखा। उसकी निगाह हमारी तरफ ही थी। मैं उसे अपनी तरफ आते देख पहले तो हड़बड़ा सा गया, किन्तु जैसे ही वो कुछ पास आया तो मैं उसे पहचान गया। वो रितू दीदी के पुलिस डिपार्टमेन्ट का आदमी था। पास आते ही उसने मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया। मैं और आदित्य उसके पीछे चल दिये। मैं आस पास भी नज़रें घुमा रहा था कि कहीं कोई ऐसा आदमी तो यहाॅ मौजूद नहीं है जो अजय सिंह से संबंध रखता हो। मगर मुझे ऐसा कोई नज़र न आया।

उस पुलिस वाले के पीछे चलते हुए हम एक टीयटा कार के पास पहुॅचे। उस आदमी ने हमें कार की पिछली शीट पर बैठने का इशारा किया। उसके इशारे पर हम दोनो कार का पिछला दरवाजा खोल कर अंदर बैठ गए। इस बीच वो पुलिस वाला भी ड्राइविंग शीट पर बैठ चुका था। कुछ ही पल में कार मंज़िल की तरफ बढ़ चली। कार के अंदर बैठ कर मैने एक बार पीछे मुड़ कर देखा मगर नीलम व सोनम दीदी कहीं नज़र न आईं मुझे। मैं उन दोनों के लिए चिंतित भी था कि वो गाॅव तक कैसे जाएॅगी? हलाॅकि मुझे पता था कि उन्हें लेने कोई न कोई बड़े पापा का आदमी आया ही होगा। मगर मैं एक बार पता कर लेना चाहता था। इस लिए मैने मोबाइल निकाल कर नीलम को फोन लगाया। दूसरी रिंग पर ही नीलम ने फोन उठा लिया। मैने उससे पूछा कि वो कहाॅ है अभी तो उसने बताया कि उसके डैड का एक आदमी जीप लेकर आया है और अब वो उसमें बैठ कर गाॅव जाने वाली है। नीलम की ये बात सुन कर मैं बेफिक्र हो गया और फिर काल कट कर दी।

टोयटा कार तेज़ रफ्तार से मंज़िल की तरफ दौड़ी जा रही थी। मैने रितू दीदी को फोन करके बताया कि मैं उनके द्वारा भेजे गए आदमी के साथ आ रहा हूॅ। रितू दीदी मेरी ये बात सुन कर खुश हो गईं और कहने लगी कि मैं जल्दी आ जाऊॅ। मैने उन्हें नीलम व सोनम दीदी के बारे में भी बताया और ट्रेन में हुई सारी बातों के बारे में भी बताया। सारी बातें सुन कर वो पहले तो ख़ामोश रहीं फिर बोली चलो जो हुआ अच्छा ही हुआ। रितू दीदी से बात करने के बाद मैने जगदीश अंकल से थोड़ी देर बात की। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपना वो काम कर दिया है जिसके लिए मैने उन्हें कहा था। जगदीश अंकल से बात करने के बाद मैं आराम से शीट की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर तथा ऑखें बंद कर लगभग लेट सा गया। मेरे दिमाग़ में आने वाले समय की कई सारी बातें चल रही थीं।
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11-24-2019, 01:04 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उस वक्त दोपहर के एक या डेढ़ बज रहे थे जब अजय सिंह टैक्सी के द्वारा अपनी हवेली पहुॅचा था। उसका दिलो दिमाग़ बुरी तरह भन्नाया हुआ था। उसके अंदर इतना ज्यादा गुस्सा भरा हुआ था कि अगर उसका बस चले तो सारी दुनियाॅ को आग लगा दे मगर अफसोस वह ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता था। कुछ करे तो तब जब उसे पता हो कि करना किसके साथ है? और जिसके साथ करना भी है तो वो है कहाॅ???

नीलम और सोनम तो बारह बजे ही हवेली पहुॅच गई थीं। प्रतिमा अपनी बड़ी बहन की बेटी को आज पहली बार ऑखों के सामने देख कर बेहद खुश भी हुई थी और थोड़ा दुखी भी। सोनम अपनी मौसी से इस तरह मिली थी जैसे वह उससे पहली बार नहीं बल्कि पहले भी मिल चुकी हो। शिवा तो अपनी मौसी की बेटी सोनम की खूबसूरती और उसके साॅचे में ढले जिस्म को देख कर आहें भरने लगा था। उसे अपनी मौसी की लड़की पहली नज़र में ही भा गई थी। उसका मन कर रहा था कि जाए और उसे अपनी बाहों में उठा कर सीधी बेड पर पटक कर उसके ऊपर चढ़ बैठे मगर ऐसा संभव नहीं था। प्रतिमा अपने बेटे की मनोदशा को तुरंत ही ताड़ गई थी, इस लिए उसे अकेले में ले जाकर समझाया था कि वो ऐसी कोई भी हरकत न करे जिससे उसके साथ साथ हम सबको बाद में पछताना पड़े। प्रतिमा के समझाने पर शिवा समझ तो गया था मगर ये तो वही जानता था कि बहुत देर तक वो प्रतिमा के समझाने पर रह नहीं पाएगा।

सफ़र की थकान के कारण नीलम व सोनम ने नहा धो कर थोड़ा बहुत खाना खाया और नीलम के कमरे में दोनों एक ही बेड पर सो गईं थी। उधर अजय सिंह टैक्सी से उतर कर टैक्सी वाले को उसका भाड़ा किराया दिया। यद्दपि उसके पास पैसे के नाम पर चवन्नी भी नहीं थी मगर जहाॅ से उसे छोंड़ा गया था वहाॅ से उसे इतना तो रुपया दे ही दिया गया था कि वो आराम से अपने घर पहुॅच जाए। उसका मोबाइल फोन भी उसे वापस लौटा दिया गया था। ये अलग बात थी कि उसके फोन से सिम कार्ड निकाल लिया गया था और फोन के कैन्टैक्ट लिस्ट से सारे फोन नंबर्स डिलीट कर दिये गए थे। कहने का मतलब ये कि उसका मोबाइल फोन फिलहाल महज एक डमी बन कर रह गया था। ना तो वो किसी को फोन कर सकता था और ना ही उसके पास किसी का फोन आ सकता था। यही वजह थी कि अजय सिंह का दिमाग़ बुरी तरह भन्नाया हुआ था।

टैक्सी से जब अजय सिंह उतरा तो हवेली में तैनात उसके आदमी हैरान रह गए। भाग कर उसके पास आए और हाल अहवाल पूछने लगे। मगर भन्नाए हुए अजय सिंह ने सबको डाॅट डपट कर अपने पास से भगा दिया और पैर पटकते हुए मुख्य दरवाजे के पहुॅचा। दरवाजे को ज़ोर से लात मारी उसने। दरवाजा कदाचित अंदर से बंद नहीं था इसी लिए लात का ज़ोरदार प्रहार पड़ते ही उसके दोनो पल्ले खुलते चले गए। दरवाजे के खुलते ही अजय सिंह ज़मीन को रौंदते हुए अंदर की तरफ बढ़ गया।

उधर ड्राइंगरूम में बैठी प्रतिमा बाहर ज़ोर की आवाज़ सुनकर चौंक पड़ी थी। अभी वह ये देखने के लिए सोफे से उठने ही वाली थी सहसा उसे ठिठक जाना पड़ा। सामने से आते अजय सिंह पर नज़र पड़ते ही वह हैरत से बुत सी बन गई। जबकि अजय सिंह आते ही सोफे पर धम्म से लगभग गिर सा पड़ा। धम्म की आवाज़ से ही प्रतिमा की तंद्रा टूटी और वह फिरकिनी की मानिंद अपनी एड़ियों पर घूमी। सोफे पर पसरे अपने पति को अस्त ब्यस्त हालत में देख कर एक बार वो पुनः हैरान हुई फिर जैसे उसने खुद को सम्हाला और एकदम से मानो बदहवाश सी होकर अजय सिंह की तरफ तेज़ी से बढ़ी।

"अ...अजय।" अजय सिंह के पास पहुॅचते ही वह लरजते हुए स्वर में बोल पड़ी___"तु..तुम अ आ गए???"
प्रतिमा के इस तरह पूछने पर अजय सिंह कुछ न बोला बल्कि अपनी ऑखें बंद किये सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिकाए अधलेटा सा पसरा रहा। उसके कुछ न बोलने पर प्रतिमा बुरी तरह घबरा गई। वो झट से अजय सिंह के बगल से बैठी और अजय सिंह के कंधे पर अपना एक हाॅथ रखते हुए बोली___"तुम कुछ बोलते क्यों नहीं अजय? तुम ठीक तो हो न? और...और इस तरह अचानक तुम वहाॅ से कैसे आ गए?"

प्रतिमा के दूबारा पूछने पर भी अजय सिंह कुछ न बोला। उसकी ये ख़ामोशी प्रतिमा की मानो जान लिए जा रही थी। उसका गला भर आया। आवाज़ भारी हो गई तथा ऑखों में ऑसू उमड़ आए।

"अजऽऽऽय।" फिर उसने रुॅधे हुए गले से किन्तु अजय सिंह को झकझोरते हुए लगभग चीख ही पड़ी___"क्या हो गया है तुम्हें? कुछ तो बोलो। तुम इस तरह यहाॅ कैसे आ गए? तुम तो सीबीआई की गिरफ्त में थे न फिर तुम यहाॅ कैसे? कहीं....कहीं तुम उनकी गिरफ्त से भाग कर तो नहीं आ गए हो? अगर ऐसा है तो ये तुमने ठीक नहीं किया अजय। कानून तुम्हें इसके लिए मुआफ़ नहीं करेगा। बल्कि इस तरह भाग कर आने से तुम्हें शख्त से शख्त सज़ा देगा।"

"मैं कहीं से भाग कर नहीं आया हूॅ प्रतिमा।" अजय सिंह ने सहसा खीझते हुए कहा___"बल्कि मुझे उन लोगों ने खुद ही छोंड़ दिया है।"
"क..क..क्या????" प्रतिमा बुरी तरह उछल पड़ी___"उन लोगों ने तुम्हें खद ही छोंड़ दिया? ऐसा कैसे हो सकता है? सीबीआई के वो लोग तुम्हें ऐसे कैसे छोंड़ सकते हैं? बात कुछ समझ में नहीं आई अजय। आख़िर ये क्या माज़रा है? क्या चक्कर है ये?"

"सच कहा प्रतिमा।" अजय सिंह अजीब भाव से कह उठा___"ये चक्कर ही तो है।"
"क्या मतलब??" प्रतिमा चौंकी।
"सच्चाई सुनोगी तो तुम्हारे पैरों तले से ये ज़मीन गायब हो जाएगी।" अजय सिंह ने कहा___"ये सीबीआई का जो मामला हुआ है न ये सब महज एक चाल थी मुझे किसी मकसद के तहत इस सबसे दूर करके कैद करने की।"

"ये क्या कह रहे तुम अजय?" प्रतिमा की के चेहरे पर आश्चर्य मानो ताण्डव करने लगा था___"ये सब एक चाल थी? पता नहीं क्या अनाप शनाप बोल रहे हो तुम।"
"मैं अनाप शनाप नहीं बोल रहा प्रतिमा।" अजय सिंह ने सहसा आवेश में आकर कहा___"यही सच है। जो सीबीआई वाले मुझे गिरफ्तार करने आए थे वो सब नकली थे। उनका सीबीआई से कोई ताल्लुक नहीं था। जबकि मैं और तुम सब यही समझे थे कि वो सब सीबीआई के ऑफिसर थे।"

"हे भगवान।" प्रतिमा ने मुख से बेशाख्ता निकल गया___"इतना बड़ा धोखा। अगर वो सीबीआई के लोग नहीं थे तो फिर कौन थे वो? और वो लोग तुम्हें यहाॅ से पकड़ कर क्यों ले गए थे और कहाॅ ले गए थे? आख़िर ये सब करने के पीछे उनका क्या मकसद था? कहीं ये सब हमारी बेटी रितू ने तो नहीं करवाया?"

"नहीं प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"ये काम रितू का नहीं है बल्कि ये सब उस हरामज़ादे विराज किया धरा था।"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" प्रतिमा बुरी तरह चौंकी थी, बोली___"भला वो ये सब कैसे कर सकता है?"
"क्यों नहीं कर सकता?" अजय सिंह उल्टा प्रतिमा पर ही हवाल लेकर चढ़ बैठा___"तुम्हीं तो कहा करती थी न कि इस सबके पीछे अगर कोई हो सकता है तो वो है विराज। वही है जो हमारा अहित करना चाहता है क्योंकि हमने उसके साथ अत्याचार किया है?"

"हाॅ मगर।" प्रतिमा गड़बड़ा सी गई___"ये सब भी कर सकता है वो ये तो नामुमकिन सी बात है अजय।"
"ये सब उसी ने करवाया है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"क्योंकि जिस जगह मुझे रखा गया था वो सब उसी का ज़िक्र कर रहे थे। मैं ये सोच सोच कर आश्चर्यचकित था कि उस नामुराद के ऐसे लोगों से संबंध कैसे हो सकते हैं। आख़िर वो कमीना इतने कम समय में ऐसा कौन सा सूरमा बन गया है जिसके इशारे पर उसका हर काम हो जाए?"

"तुम क्या कह रहे हो अजय मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।" प्रतिमा ने अपने बाल नोंच लेने वाले अंदाज़ से कहा था।
"कमाल की बात है।" अजय सिंह ने कहा___"अपने आपको दिमाग़ की जादूगरनी समझने वाली को आज मेरी ये बातें समझ में ही नहीं आ रहीं। ख़ैर, बात ये है ये जो कुछ भी हुआ है उसमें सिर्फ और सिर्फ उस गौरी के पिल्ले का ही हाॅथ है। मुझे ये नहीं समझ में आ रहा कि उस कमीने ने आख़िर किस मकसद के तहत मुझे दो दिन के लिए सीबीआई के नकली जाल में फॅसा कर कैद में रखा और फिर आज छोंड़ भी दिया।"

"ये तो सचमुच बड़े आश्चर्य की बात है अजय।" प्रतिमा ने चकित भाव से कहा___"सचमुच ये सोचने वाली बात है कि उसने किस वजह से ऐसा किया होगा? हलाॅकि वो चाहता तो बड़ी आसानी अपना बदला तुम्हारी जान लेकर ले सकता था और तुम यकीनन कुछ नहीं कर सकते थे। मगर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया बल्कि उल्टा तुम्हें बिना कोई नुकसान पहुॅचाए छोंड़ भी दिया। ये ऐसी बात है अजय जो आसानी से हजम नहीं हो सकती। हम जिस चीज़ को बेतुकी और ना क़ाबिले ग़ौर बात समझ रहे हैं उसमें कुछ तो पेंच ज़रूर है। बेवजह तो औसने ये सब नहीं किया होगा। ज़रूर ये सब करके उसने अपना कोई अहम कार्य सिद्ध किया होगा। कोई ऐसा कार्य जो फिलहाल हमारी सोच क्या कल्पना से भी कोसों दूर है।"

"यकीनन तुम्हारी बात में सच्चाई है।" अजय सिंह ने कहा___"इस सबसे एक बात ये भी ज़ाहिर होती है कि वो अब भी यहीं है और शायद इस वक्त रितू के साथ ही है।"
"अच्छा ये बताओ।" प्रतिमा ने पहलू बदला___"कि जो सीबीआई के लोग बन कर आए थे वो लोग तुम्हें लेकर कहाॅ गए थे?"

"इस बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता चल सका।" अजय सिंह ने हताश भाव से कहा था।
"क्या मतलब??" प्रतिमा पुनः बुरी तरह चौंकी थी।

"उन लोगों ने सब कुछ पहले से प्लान किया हुआ था प्रतिमा।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"जब वो लोग मुझे यहाॅ से अपनी कार में बैठा कर ले जा रहे थे तभी किसी ने पीछे से मुझे बेहोश कर दिया था और फिर जब मेरी ऑख खुली तो मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया कि मैं किस जगह आ गया हूॅ? वहाॅ जिस जगह पर मैं था वहाॅ एक कमरा था जो कि किसी फाइव स्टार होटल के कमरे से हर्गिज़ भी कम न था। कमरे में दूसरा कोई नहीं था। ऐसा नहीं था कि मैं वहाॅ पर कहीं आ जा नहीं सकता था। बल्कि कहीं भी आ जा सकता था मगर उस जगह से बाहर की दुनियाॅ में जाने का जैसे कोई रास्ता ही नहीं था। कमरे से बाहर जहाॅ भी गया हर तरफ ब्लैक कलर की वर्दी में नकाबपोश अपने हाथों में गन लिए तैनात थे। वो किसी से कोई बात नहीं करते थे। जो सीबीआई के ऑफिसर बन कर आए थे उनका कहीं पता ही नहीं था। मैं उन गनधारी नकाबपोशों से चीख चीख कर पूछता रहा कि मुझे यहाॅ किस लिए लाया गया है मगर कोई कुछ बोलता ही नहीं था। उस दिन तो सारा दिन और रात मैं पागलों की तरह ही उन सबके सामने चीखता चिल्लाता रहा। फिर जब मुझे लगा कि यहाॅ पर मेरे चीखने चिल्लाने का कोई असर नहीं होने वाला तो मैं ख़ामोश हो गया। इतना तो मुझे भी पता था कि वजह कोई भी हो वो मेरे सामने ज़रूर आएगी। इस लिए ये सोच कर मैं वापस कमरे में चला गया और अपने वहाॅ होने की वजह जानने का इन्तज़ार करने लगा। वहाॅ पर जब भी मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत होती वो मुझे मिल जाती थी। मैं आज़ाद तो था मगर फिर भी कैद ही था वहाॅ। मेरा मोबाइल फोन मेरे पास से गायब था। अतः मैं किसी अपने से कोई काॅटैक्ट भी नहीं कर सकता था।"

"ओह तो फिर आज तुम्हें उन लोगों ने कैसे छोंड़ दिया?" प्रतिमा ने पूछा___"क्या तुम्हें पता चला कि उन लोगों ने तुम्हें क्यों पकड़ा था? और सबसे बड़ी बात ये कि तुम्हें ये कैसे पता चला कि वो सब विराज का किया धरा था?"

"आज ही पता चला।" अजय सिंह ने कहा___"मैं वहाॅ पर कमरे में रखे अलीशान बेड पर लेटा हुआ था कि तभी कमरे में दो गनधारी नकाबपोश आए और मैने पहली बार उनके मुख से उनकी आवाज़ सुनी। उनमें से एक ने कहा कि मैं बाहर आऊ। मुझसे मिलने उनके कुछ साहब लोग आए हैं। मैं उस गनधारी नकाबपोश की ये बात सुनकर जल्दी से बेड पर उठ बैठा। अड़तालीस घंटे में ये पहला अवसर था जब मुझे किसी से ये जानने का अवसर मिलने वाला था कि मुझे यहाॅ क्यों लाया गया है? अतः मैं उन दोनो गनधारियों के साथ कमरे से बाहर आ गया। बाहर लंबे चौड़े हाल के बीचो बीच एक मध्यम साइज़ की टेबल रखी थी तथा उसके चारो तरफ कुर्सियाॅ रखी हुई थी। मैने टेबल और कुर्सियाॅ उस हाल में पहली बार ही देखा था। टेबल के एक तरफ की चारों कुर्सियों पर एक एक कोटधारी आदमी बैठा था। मैं जब उनके पास पहुॅचा तो उनमें से एक ने मुझे अपने सामने बैठने का इशारा किया। ये वही लोग थे जो मुझे यहाॅ से सीबीआई ऑफिसर बन कर ले गए थे। सच कहूॅ तो उस वक्त उन चाओं को देख कर मुझे बेहद गुस्सा आया मगर मैंने फिर खुद पर बड़ी मुश्किल से काबू किया।

"कहो अजय सिंह।" उन चार में से एक ने बड़ी जानदार मुस्कान के साथ मुझसे कहा___"यहाॅ किसी प्रकार की कोई परेशानी तो नहीं हुई न तुम्हें?"
"मेरी परेशानी की अगर इतनी ही फिक्र होती तुम लोगों को।" मैने आवेशयुक्त भाव से कहा___"तो मुझे इस तरह धोखे से पकड़ कर नहीं लाते यहाॅ।"

"ओह आई सी।" उसने खेद प्रकट करते हुए कहा__"माफ़ करना अजय सिंह। हमें तुम्हारे साथ धोखे के रूप में वो वैसी ज्यादती करनी पड़ी। मगर इसमें भी हमारी कोई ग़लती नहीं थी डियर। दरअसल हमारे विराज सर का ही आदेश था हम तुम्हें इस प्रकार हवेली से गिरफ्तार करके यहाॅ ले आएॅ।"

"वि..विराज..सर???" मैं उसकी ये बात सुन कर एकदम से भौचक्का सा रह गया था।
"अरे तुम हमारे विराज सर को नहीं जानते क्या?" एक अन्य ने मुस्कुराते हुए कहा___"कमाल है अजय सिंह। तुम अपने भतीजे को ही नहीं जातने। ये तो बड़ी हैरत की बात है। जबकि हमारे विराज सर तुमसे इतना स्नेह व लगाव रखते हैं कि वो तुम्हें यहाॅ पर किसी भी तरह की तक़लीफ़ नहीं देना चाहते थे। उनका शख्त आदेश था कि तुम्हें यहाॅ पर किसी भी तरह की कोई परेशानी न होने पाए। तभी तो हमने उनके कहने पर तुम्हारे लिए यहाॅ फाइव स्टार होटल से भी बेहतर सुविधाएॅ मुहैया कराई थी।"

"तो तुम्हारा मतलब है कि ये सब तुमने विराज के आदेश पर किया है?" मैं मन ही मन हैरान था, किन्तु प्रत्यक्ष में कठोर भाव से पूछ रहा था___"मगर क्यों?"
"तुम्हारे इस क्यों का जवाब तो हमारे पास है ही नहीं अजय सिंह।" उस आदमी ने कहा___"हमने तो बस उतना ही किया है जितना कि विराज सर ने हमें करने के लिए कहा था। इसके पीछे उनकी क्या मंशा थी ये तो वहीं बेहतर तरीके से बता सकते हैं तुम्हें।"

"अच्छा।" मैने कहा___"तो फिर बुलाओ उसे। मैं उससे पूछना चाहता हूॅ कि उसने क्या सोच कर ये सब किया है?"
"उन्हें यहाॅ बुलाने की हिम्मत तो हममें नहीं है।" एक अन्य ने कहा___"हाॅ मगर एक आदेश और आया है उनका हमारे लिए। वो ये कि तुम्हें बाइज्ज़त यहाॅ से आज़ाद कर दिया जाए। इस लिए अब हम वही करने वाले हैं। यानी कि अब तुम्हें आज़ाद कर दिया जाएगा। मगर क्योंकि हम अपना हर काम सीक्रेट तरीके से करते हैं इस लिए तुम्हें पुनः बेहोश करना पड़ेगा हमें।"

मैं उसकी ये बात सुनकर बुरी तरह हैरान रह गया। तभी किसी ने पीछे से मेरी नाॅक में कुछ लगा दिया। जैसे ही मैने नाॅक से साॅस ली उसके कुछ ही पलों बाद मैं बेहोशी के समंदर में डूबता चला गया। जब मेरी ऑख खुली तो मैं अब किसी दूसरी जगह पर खुद को मौजूद पाया। मेरे आस पास बड़े बड़े पेड़ पौधे लगे हुए थे। मैं ये देख कर पहले तो चौंका फिर उठ कर आस पास का जायजा लेने लगा। मैं ये देख कर उछल पड़ा कि मैं किसी जंगल के हिस्से पर पड़ा था। बाएॅ तरफ लगभग पचास या साठ गज की दूरी पर ही एक सड़क नज़र आ रही थी।
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11-24-2019, 01:04 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अस्त ब्यस्त हालत में मैं कुछ देर वहीं पर बैठा अपने साथ घटी पिछली सभी बातों के बारे में सोचता रहा। उसके बाद मैं किसी तरह उठा और कुछ दूरी पर नज़र आ रही सड़क की तरफ चल दिया। मैं ये समझ चुका था कि उन लोगों ने मुझे आज़ाद कर दिया था। मुझे बेहोश इस लिए किया गया था ताकि मैं उस जगह के बारे में कतई न जान सकूॅ कि उन लोगों ने मुझे कहाॅ पर रखा था। मैं ये भी समझ चुका था कि मैं चाह कर भी अब उन लोगों तक नहीं पहुॅच सकता जो लोग नकली सीबीआई के ऑफिसर बन कर हवेली से मुझे गिरफ्तार करके ले गए थे।

सड़क पर आकर मैं किनारे पर ही खड़ा हो गया और सड़क के दोनो तरफ देखने लगा। मुझा अपने मोबाइल का ख़याल आया तो अनायास ही मेरे दोनो हाथ मेरी पैंट के दोनो पाॅकेट पर रेंग गए। मैं ये जान कर चौंका तथा हैरान हुआ कि मोबाइल मेरी बाई पाॅकेट में मौजूद है। मैने जल्दी से उसे निकाला और स्विच ऑन किया। मगर मैं ये देख कर भौचक्का रह गया कि मोबाईल में मौजूद दोनो सिम कार्ड गायब थे। उसमे नेटवर्क होने का सवाल ही नहीं था। मैने फोन में काॅटैक्ट लिस्ट देखा तो मेरे होश उड़ गए। क्योंकि उसमे से सारे नंबर टिलीट कर दिये गए थे। कहने का मतलब ये कि मैं मौजूदा हालत में किसी को ना तो फोन कर सकता था और ना ही मेरे मोबाइल फोन पर किसी का फोन आ सकता था। ये देख कर मेरा खून खौल गया। उन लोगों पर मुझे भयानक गुस्सा आ गया। ऊपर से साले ऐसी जगह मुझे फेंक दिया था जहाॅ से किसी वाहन का आना जाना भी लगभग न के बराबर था।

सड़क पर मैं घंटों खड़ा रहा किसी वाहन के इन्तज़ार में मगर कोई भी वाहन आता जाता नज़र न आया। प्रतिपल उस हालत में मेरे अंदर गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। आख़िर डेढ़ घंटे इन्तज़ार करने के बाद एक टैक्सी आती हुई नज़र आई। उसे देख कर मुझे थोड़ी राहत तो हुई मगर अगले ही पल ये सोच कर मैं मायूस हो गया कि इस वक्त किसी वाहन में जाने के लिए मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। इसके बावजूद मैने अपनी सभी पाॅकेट पर हाॅथ फेरा और अगले ही पल मैं चौंका। पैन्ट की पिछली जेब में मुझे कुछ महसूस हुआ। मैने फौरन ही उस चीज़ को निकाला तो मुझे एक पाॅच सौ का नोट नज़र आया।

पाॅच सौ का नोट उस वक्त मैं इस तरह देख रहा था जैसे मैने कभी उसे देखा ही न हो और सोचने लखा था कि इस प्रकार का ये काग़ज आख़िर है क्या चीज़? ख़ैर, वो टैक्सी जब मेरे क़रीब पहुॅचने को हुई तो मैने उसे रुकने के लिए हाॅथ से इशारा किया। मेरे इशारे पर वो टैक्सी मेरे पास पहुॅच कर रुक गई। मैने देखा कि उसमें जो ड्राइवर था वो कोई पैंतीस के आस पास का काला सा आदमी था। टैक्सी को रुकते ही उसने विंडो से अपना सिर बाहर की तरफ निकाल कर मुझसे पूछा कहाॅ जाना है? मैने उसे पता बताया तो उसने अंदर बैठने का इशारा किया। लेकिन उससे पहले ये बताना न भूला था कि भाड़ा पाॅच सौ रुपये लगेगा। मैं उसके भाड़े का सुन कर मन ही मन चौंका। मगर बोला यही कि ठीक है भाई ले लेना मगर मुझे बताए गए पते पर पहुॅचा दो। बस ये कहानी थी।"

"बड़ी हैरत व बड़ी अजीब कहानी है।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा___"इसका मतलब उन लोगों ने तुमें ऐसी जगह छोंड़ा था जहाॅ से अगर कोई वाहन मिलता भी तो वो तुमसे भाड़े के रूप पाॅच सौ रुपये ही माॅगता और इसी लिए उन लोगों ने तुम्हारी जेब में पाॅच सौ रुपये डाल दिये थे ताकि तुम आराम से यहाॅ तक पहुॅच सको। ये तो कमाल ही हो गया अजय।"

"कमाल तो हो ही गया।" अजय सिंह ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा___"मगर मुझे ऐसा लगता है जैसे वो टैक्सी वाला भी साला उन्हीं का आदमी था। क्योंकि जिस रास्ते पर वो मिला था उस रास्ते पर डेढ़ घंटे इन्तज़ार करने के बाद ही उस टैक्सी के रूप में वाहन मिला था। टैक्सी पर कोई दूसरी सवारी नहीं थी
बल्कि ड्राइवर के अलावा सारी टैक्सी खाली ही थी।"

"बिलकुल ऐसा हो सकता है अजय।" प्रतिमा के मस्तिष्क में जैसे झनाका सा हुआ था, बोली___"यकीनन वो टैक्सी और वो टैक्सी ड्राइवर उन लोगों का ही आदमी था। अगर ऐसा है तो इसका मतलब ये भी हुआ कि पाॅच सौ रुपया जहाॅ से आया था तुम्हारे पास वो वापस वहीं लौट भी गया। क्या कमाल का गेम खेला है उन लोगों ने।"

"उन लोगों ने नहीं प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि उस हरामज़ादे विराज ने। मुझे तो अब तक यकीन नहीं हो रहा कि वो सब विराज के आदमी हैं और विराज के ही हुकुम पर उन लोगों ने ये संगीन कारनामा अंजाम दिया था। तुम ही बताओ प्रतिमा क्या तुम सोच सकती हो कि कल का छोकरा कहीं पर बैठे बैठे ऐसा कोई कारनामा कर सकता है?"

"बेशक नहीं सोच सकती अजय।" प्रतिमा ने गंभीरता से कहा___"मगर शुरू से लेकर अब तक की उसकी सारी गतिविधियाॅ ऐसी रही हैं कि अब अगर वो कुछ भी अविश्वसनीय करे तो सोचा जा सकता है। इससे एक बात ये भी साबित होती है कि वो कोई मामूली चीज़ नहीं रह गया है। या तो उसे किसी पहुॅचे हुए ब्यक्ति का आशीर्वाद प्राप्त है या फिर सच में वो इतना क़ाबिल हो गया है कि वो आज के समय में हर चीज़ अफोर्ड कर सकता है।"

"यही तो हजम नहीं हो रहा प्रतिमा।" अजय ने झुंझलाहट के मारे कहा___"इतने कम समय में आख़िर उसने ऐसा क्या पा लिया है जिसके बलबूते पर वो कुछ भी कर सकने की क्षमता रखता है? आज के समय में सच्चाई और नेकी कक राह पर चलते हुए इतनी बड़ी चीज़ अथवा कामयाबी नहीं पाई जा सकती। ज़रूर वो कोई ग़लत काम कर रहा है। हाॅ प्रतिमा, ग़लत कामों के द्वारा ही कम समय में बड़ी बड़ी चीज़ें हाॅसिल होती हैं, फिर भले ही चाहे उन बड़ी बड़ी चीज़ों की ऊम्र छोटी ही क्यों न हो।"

"यकीनन अजय।" प्रतिमा ने कहा___"ऐसा ही लगता है। मगर सबसे बड़े सवाल का जवाब तो अभी तक नहीं मिला न।"
"कौन सा सवाल?" अजय सिंह चौंका।
"यही कि उसने तुम्हारे साथ।" प्रतिमा ने कहा___"मेरा मतलब है कि उसने तुम्हें नकली सीबीआई वालों के द्वारा गिरफ्तार करवा के दो दिन तक किसी गुप्त कैद में रखा तो इसमें उसका क्या मकसद छिपा था? आख़िर उसने तुम्हें कैद करवा के अपना कौन सा उल्लू सीधा किया हो सकता है? हमारे लिए ये जानना बेहद ज़रूरी है अजय। आख़िर पता तो चलना ही चाहिए इस सबका।"

"पता चलना तो चाहिए।" अजय सिंह ने कहा___"मगर कैसे पता चलेगा? हमारे पास ऐसा कोई छोटा से भी छोटा सबूत या क्लू नहीं है जिसके आधार पर हम कुछ जान सकें।"
"एक सवाल और भी है अजय।" प्रतिमा ने कुछ सोचते हुए कहा___"जो कि कुछ दिनों से मेरे दिमाग़ में चुभ सा रहा है।"

"ऐसा कौन सा सवाल है भला?" अजय सिंह के माथे पर शिकन उभरी।
"यही कि हमारी बेटी रितू।" प्रतिमा ने कहा___"जब से हमसे खिलाफ़ हुई है तब से वो घर वापस नहीं आई। तो सवाल ये है कि वो रहती कहाॅ है? मुझे लगता है कोई ऐसी जगह ज़रूर है जहाॅ पर वो नैना और विराज के साथ रह रही है। ऐसी कौन सी जगह हो सकती है?"

प्रतिमा की इस बात से अजय सिंह उसे इस तरह देखता रह गया था मानो प्रतिमा के सिर पर अचानक ही दिल्ली का लाल किला आकर खड़ा हो गया हो। फिर जैसा उसे होश आया।

"सवाल तो यकीनन वजनदार है।" फिर अजय सिंह ने कहा___"मगर संभव है कि वो यहीं कहीं आस पास ही किसी के घर में कमरा किराये पर लिया हो और हमारे पास रह कर ही वो हमारी हर गतिविधी पर बारीकी से नज़र रख रही हो।"

"हो सकता है।" प्रतिमा ने कहा___"मगर हमारे इतने क़रीब रहने की बेवकूफी वो हर्गिज़ भी नहीं कर सकती जबकि उसे बखूबी अंदाज़ा हो कि पकड़े जाने पर उसके साथ साथ नैना और विराज का क्या हस्र हो सकता है। इस लिए इस गाॅव में वो किसी के घर में पनाह नहीं ले सकती।"

"इस गाॅव में न सही।" अजय सिंह बोला___"किसी ऐसे गाॅव में तो पनाह ले ही सकती है जो हमारे इस हल्दीपुर गाॅव के करीब भी हो और वो बड़ी आसानी से हमारी हर मूवमेन्ट को कवरप कर सके।"
"हाॅ ये हो सकता है।" प्रतिमा ने कहा___"किसी दूसरे गाॅव में वो यकीनन रह रही है और हम पर बारीकी से नज़र रखे हुए है। ख़ैर छोंड़ो ये सब बातें, मैं ये कह रही हूॅ कि आज तुम्हारे ससुर जी आ रहे हैं।"

"क क्या???" अजय सिंह उरी तरह चौंका___"स ससुर जी? मतलब कि तुम्हारे पिता जगमोहन सिंह जी??"
"हाॅ डियर।" प्रतिमा ने सहसा खुश होते हुए कहा___"आज वर्षों बाद मैं अपने पिता जी से मिलूॅगी। मगर अजय मुझे अंदर से ऐसा लग रहा है जैसे मैं उनके सामने जा ही नहीं पाऊॅगी। तुम तो जानते हो कि मैने तुमसे शादी उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ जाकर तथा उनसे हर रिश्ता तोड़ कर की थी। इतने वर्षों के बीच कभी भी मैने उनसे न मिलने की कोशिश की और ना ही कभी उनसे फोन पर बात करने की। ये एक अपराध बोझ है अजय जिसके चलते मुझमें हिम्मत नहीं है कि मैं अपने पिता का सामना कर सकूॅ।"

"पर मैं इस बात से हैरान हूॅ।" अजय सिंह ने चकित भाव से कहा___"कि इतने वर्षों बाद उन्हें अपनी बेटी की याद कैसे आई और यहाॅ आने का विचार कैसे आया उनके मन में?"
"ये सब मेरी वजह से ही हुआ है अजय।" प्रतिमा ने कहा___"दरअसल जब तुम्हें सीबीआई के वो लोग गिरफ्तार करके ले गए थे तब मैं बहुत परेशान व घबरा गई थी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे मैं तुम्हें सीबीआई की कैद से आज़ाद कराऊॅ? तब पहली बार मुझे अपने पिता का ख़याल आया। हाॅ अजय, तुम तो जातने हो कि मेरे पिता जी बहुत बड़े वकील हैं। कैसा भी केस हो उनके अंडर में आने के बाद उनका मुवक्किल बाइज्ज़त बरी ही होता है। इस लिए मैने सोचा कि तुम्हें कानून की उस गिरफ्त से छुड़ाने के लिए मुझे अपने पिता से ही मदद लेनी चाहिए। मगर चूॅकि मैने उनसे अपने हारे संबंध वर्षों पहले ही तोड़ लिये इस लिए हिम्मत नहीं हो रही थी उनसे बात करने की।"

"ओह।" अजय सिंह हैरत से बोला___"फिर क्या हुआ?"
अजय सिंह के पूछने पर प्रतिमा ने सारा किस्सा बता दिया उसे। ये भी कि कैसे उसके चक्कर खा कर गिरने पर शिवा ने रिऐक्ट किया जिसके तहत उसके पिता जी भी घबरा गए और फिर उन्होंने तुरंत यहाॅ आने के लिए कहा। उनके पूछने पर ही शिवा ने उन्हें यहाॅ का पता भी बताया था। सारी बातें सुन कर अजय सिंह अजीब सी हालत में सोफे पर बैठा रह गया।

"ये तुमने अच्छा नहीं किया प्रतिमा।" फिर अजय सिंह मानो गंभीरता की प्रतिमूर्ति बना बोला___"मैं इस बात से दुखी नहीं हुआ हूॅ कि मेरे सुसर और तुम्हारे यहाॅ आ रहे हैं बल्कि दुखी इस बात पर हुआ हूॅ कि ऐसे हालात में उनका आगमन हो रहा है। तुमें तो सब पता ही है डियर हमारे हालातों के बारे में। तुम्हारे पिता एक तेज़ तर्रार व क़ाबिल वकील हैं तथा उनका दिमाग़ तेज़ गति से काम करता है। इस लिए अगर इस हालातों के संबंध में कोई एक बात शुरू हुई तो समझ लो कि फिर उस बात से और भी बहुत सी बातें शुरू हो जाएॅगी। उस सूरत में हमारी हालत और भी ख़राब हो सकती है। हम भला ये कैसे चाह सकते हैं कि हमारी असलियत उनके सामने फ़ाश हो जाए?"

"तुम सच कह रहे हो अजय।" प्रतिमा को भी जैसे वस्तु- स्थिति का एहसास हुआ___"इस बारे में तो मैने सोचा ही नहीं था। सोचने का ख़याल ही नहीं आया अजय। हालात ही ऐसे थे कि मुझे मजबूर हो कर अपने पिता डी से बात करनी पड़ी और उन्होंने यहाॅ आने का भी कह दिया। दूसरी बात मुझे तो ये ख्वाब में भी उम्मीद नहीं थी कि तुम आज वापस इस तरह आ जाओगे। वरना मैं अपने पिता को फोन ही नहीं करती।"

"इसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है डियर।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"तुमने जो कुछ भी किया उसमें सिर्फ तुमहारी अपने पति के प्रति चिंता व फिक्र थी। ख़ैर अब जो हो गया सो हो गया मगर अब हमें बड़ी ही होशियारी और सतर्कता से काम लेना होगा। तुम उन्हें ये नहीं बताओगी कि कल तुमने उन्हें किस वजह हे फोन किया था बल्कि यही कहोगी कि तुम्हें उनकी बहुत याद आ रही थी। दूसरी बात शिवा को भी समझा दो कि वो उनके सामने ऐसी कोई भी बात न करे जिससे किसी भी तरह की बात खुलने का चाॅस बन जाए।"

"हमारी दूसरी बेटी नीलम भी तो आज आ गई है मुम्बई से।" प्रतिमा ने कहा___"इतना ही नहीं उसके साथ में मेरी बहन की बेटी सोनम भी है।"
"क्या????" अजय सिंह चौंका।
"हाॅ अजय।" प्रतिमा ने बेचैनी से कहा___"वो दोनो ऊपर कमरे में इस वक्त सो रही हैं।"

"अरे तो तुम उनके पास जाओ।" अजय सिंह एकदम से फिक्रमंद हो उठा था, बोला___"और उन दोनो को अच्छी तरह समझा दो कि वो दोनो अपने नाना जी के सामने हालातों के संबंध में किसी भी तरह की कोई बात नहीं करेंगी।"
"ठीक है।" प्रतिमा ने सोफे से उठते हुए कहा___"मैं अभी जाती हूॅ उनके पास और सब कुछ समझाती हूॅ उन्हें।"

ये कह कर प्रतिमा तेज़ तेज़ क़दमों के साथ ऊपर के कमरे में जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई। जबकि उसके जाने के बाद अजय सिंह एक बाथ पुनः असहाय सा सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर पसर गया था। चेहरे पर चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करते हुए नज़र आ रहे थे।
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11-24-2019, 01:04 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
♡ एक नया संसार ♡
अपडेट........《 53 》

अब तक,,,,,,,,

"इसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है डियर।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"तुमने जो कुछ भी किया उसमें सिर्फ तुमहारी अपने पति के प्रति चिंता व फिक्र थी। ख़ैर अब जो हो गया सो हो गया मगर अब हमें बड़ी ही होशियारी और सतर्कता से काम लेना होगा। तुम उन्हें ये नहीं बताओगी कि कल तुमने उन्हें किस वजह हे फोन किया था बल्कि यही कहोगी कि तुम्हें उनकी बहुत याद आ रही थी। दूसरी बात शिवा को भी समझा दो कि वो उनके सामने ऐसी कोई भी बात न करे जिससे किसी भी तरह की बात खुलने का चाॅस बन जाए।"

"हमारी दूसरी बेटी नीलम भी तो आज आ गई है मुम्बई से।" प्रतिमा ने कहा___"इतना ही नहीं उसके साथ में मेरी बहन की बेटी सोनम भी है।"
"क्या????" अजय सिंह चौंका।
"हाॅ अजय।" प्रतिमा ने बेचैनी से कहा___"वो दोनो ऊपर कमरे में इस वक्त सो रही हैं।"

"अरे तो तुम उनके पास जाओ।" अजय सिंह एकदम से फिक्रमंद हो उठा था, बोला___"और उन दोनो को अच्छी तरह समझा दो कि वो दोनो अपने नाना जी के सामने हालातों के संबंध में किसी भी तरह की कोई बात नहीं करेंगी।"
"ठीक है।" प्रतिमा ने सोफे से उठते हुए कहा___"मैं अभी जाती हूॅ उनके पास और सब कुछ समझाती हूॅ उन्हें।"

ये कह कर प्रतिमा तेज़ तेज़ क़दमों के साथ ऊपर के कमरे में जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई। जबकि उसके जाने के बाद अजय सिंह एक बाथ पुनः असहाय सा सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर पसर गया था। चेहरे पर चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करते हुए नज़र आ रहे थे।

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अब आगे,,,,,,,,

उधर पुलिस वालों की कार से मैं और आदित्य भी सुरक्षित रितू दीदी के पास फार्महाउस पर पहुॅच गए थे। सारे रास्ते मैं सारी बातों और सारे हालातों के बारे में बारीकी से मनन करता आया था। इस जंग में मुझे दो ताकतों से भिड़ना था। एक तो अपने ताऊ अजय सिंह से और दूसरा मंत्री से। रितू दीदी ने मुझे मंत्री के संबंध में सारी बातें बता दी थी। मैं जान कर खुश था कि रितू दीदी के पास मंत्री के खिलाफ़ ऐसे सबूत हैं कि वो जब चाहे उस मंत्री और उसके साथियों को बीच चौराहे पर नंगा दौड़ने पर बिवश कर दें। इधर वही हाल मेरा भी था। मेरे पास भी अजय सिंह के खिलाफ़ ऐसे सबूत थे कि उन सबूतों के आधार पर अजय सिंह पलक झपकते ही कानून की ऐसी गिरफ्त में पहुॅच जाएगा जहाॅ से बच कर निकलना उसी तरह नामुमकिन था जैसे किसी नदी के दो किनारोउअं आपस मिलना नामुमकिन ही नहीं असंभव होता है।

मेरे मन में कभी कभी ये ख़याल भी आता था कि इस खेल को एक पल में खत्म कर दूॅ। यानी ग़ैर कानूनी धंधा करने और अवैध गैर कानूनी ऐसा पदार्थ रखने के जुर्म में अजय सिंह ऊम्र भर का लिए जेल की सलाखों के पीछे चला जाए जो पदार्थ किसी भी इंसान की ज़िंदगी खत्म करने के लिए काफी थे। मगर मैं ऐसा करना नहीं चाहता था बल्कि मैं तो अजय सिंह को खुद अपने हाथों से ऐसी सज़ा देना चाहता था कि वो मौत के लिए गिड़गिड़ाए मगर मौत उसे नसीब न हो सके।

मुझे इस बात का भी एहसास था कि आज भले ही मंत्री सच्चाई को पूरी तरह न जानता हो मगर देर सवेर उसे सब कुछ पता चल ही जाएगा। वो चुप नहीं बैठेगा बल्कि कुछ तो ऐसा करेगा ही कि उसके गले में फॅसी हुई हड्डी निकल सके और उसके बच्चे सही सलामत उसे वापस मिल सकें। मुझे एहसास था कि ये दोनो ही ताकतें बहुत ही खतरनाक साबित हो सकती है हमारे लिए। हम अभी तक इसी लिए सेफ रह सके थे क्योंकि हमने खुल कर तथा सामने आकर कोई काम नहीं किया था। बल्कि हर काम दोनो ताकतों की ग़ैर जानकारी में एवं छुप कर किया था। मगर हालात ज्यादा दिन तक ऐसे ही नहीं बने रह सकते थे। इस लिए इन सब बातों पर विचार करके मुझे सबसे पहले अपनी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करना था।

फार्महाउस पर हमें छोंड़ कर वो पुलिस के आदमी वापस चले गए थे। रितू दीदी मुझे वापस आया देख कर बेहद खुश हो गई थी। आदित्य तो सीधा कमरे की तरफ चला गया था जबकि मैं और कुछ देर वहीं ड्राइंगरूम में बैठा सबसे बातें करता रहा। नैना बुआ ने मुझसे मुम्बई में सबका हाल चाल पूछा। उसके बाद मैं भी उठ कर कमरे की तरफ बढ़ गया।

कमरे के अटैच बाथरूम में मैं मस्त ठंडे पानी से नहाया तो तबीयत हरी हो गई। नहा कर मैं टावेल लपेटे ही बाथरूम से कमरे में आ गया। जैसे ही मैं कमरे में आया तो बेड पर आराम से बैठी रितू दीदी पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं चौंका। दरअसल मैं इस वक्त सिर्फ एक टावेल में ही था। बाॅकी ऊपर का समूचा जिस्म नंगा ही था मेरा। रितू दीदी के सामने इस तरह आ जाने से मुझे शर्म सी महसूस हुई।

"ओहो क्या बात है राज।" सहसा रितू दीदी की चहकती हुई आवाज़ मेरे कानों से टकराई___"क्या बाॅडी शाॅडी बना रखी है तुमने। ओहो सिक्स पैक भी है। पक्का जिम करते होगे तुम, है न?"

"हाॅ थोड़ा बहुत करता हूॅ दीदी।" मैने शर्माते हुए कहा।
"अरे तुम शर्मा क्यों रहे हो राज?" रितू दीदी का चौंका हुआ स्वर___"भला मुझसे किस बात की शरम भाई? मैं तो तेरी बहन हूॅ कोई ग़ैर लड़की नहीं जिससे तू शरमाए।"

"पर दीदी।" मैने असहज भाव से कहा___"मैं कभी आपके सामने इस हालत में नहीं आया न। इस लिए मुझे थोड़ी शरम आ रही है।"

मेरी ये बात सुन कर रितू दीदी बेड से उतर कर मेरे क़रीब आ गई और फिर मेरे चेहरे को अपनी हॅथेलियों के बीच लेते हुए कहा___"ओए ये क्या बात हुई भला? तू मेरा सबसे अच्छा और सबसे हैण्डसम भाई है। तुझे मुझसे किसी भी तरह से शरमाने की या झिझकने की ज़रूरत नहीं है। तुझे पता है राज, अब तक मैं ऐसे रिश्तों के बीच थी जो कहने को तो मेरे अपने थे मगर उन सभी के अंदर पाप और गंदगी भरी हुई थी। ऐसे लोगों से मेरा कोई संबंध नहीं है अब। दुनियाॅ में मेरा अगर कोई अपना है तो वो है तू। मेरी ज़िंदगी का अब एक ही मकसद है भाई और वो है तेरे साथ ग़लत करने वालों सर्वनाश करना और तुझे संसार की हर खुशी देना। मेरा दिल करता है कि मैं तुझ पर कुर्बान हो जाऊॅ मेरे भाई, फना हो जाऊॅ तुझ पर।"

"मुझे पता है दीदी।" मैने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"कि आप मुझसे बहुत प्यार करती हैं। इसका सबसे बड़ा सबूत यही है कि आज आप अपने ही माता पिता के खिलाफ़ हो गई हैं और अपने माता पिता के सबसे बड़े दुश्मन का साथ दे रही हैं। मुझे इस बात की खुशी नहीं है कि आपने मेरे लिए अपने माता पिता से बगावत की है बल्कि इस बात की खुशी है कि मैं जिस रितू दीदी से बात करने के लिए अब तक तरस रहा था वो आज मेरे पास हैं।"

"काश ये सब मैं पहले ही सोच लेती राज।" रितू दीदी एकदम से दुखी होकर मुझसे लिपट गईं। फिर भारी स्वर में बोलीं___"तो इतने सालों तक मैं अपने भाई से दूर न रहती और ना ही ऐसे हालात पैदा होते।"

"हालात तो तब भी ऐसे ही पैदा होते दीदी।" मैने कहा___"क्योंकि इंसानों की फितरत कभी नहीं बदलती। वो अपनी फितरत से मजबूर होकर पहले भी वही करता जो आज कर रहा है।"
"माना कि मेरे पिता अपनी फितरत के चलते वही सब करते जो आज कर रहे हैं।" रितू दीदी ने कहा___"मगर मैं तेरी बात कर रही हूॅ राज। तू मुझे पहले ही तो मिल जाता न? मेरी वजह से तेरे दिल को इतनी तक़लीफ तो न होती जितनी अब तक हुई थी।"

"कोई बात नहीं दीदी।" मैने प्यार से कहा___"जो गुज़र गया उसे भूल जाइये और आज की बात करिये तथा आज के माहौल में खुश रहिए।"
"तू साथ है तो अब मैं खुश ही रहूॅगी राज।" रितू दीदी ने मेरी ऑखों में देखते हुए कहा___"तुझे पता है राज, इसके पहले मैं कभी किसी लड़के के क़रीब नहीं गई। पता नहीं क्यों पर मुझे हर लड़के से एक नफ़रत सी थी। आज के समय में हर लड़का लड़की एक दूसरे के जाने कितने क़रीब आ जाते हैं मगर मुझे इन सब बातों से बेहद चिढ़ थी। मगर विधी से मिलने के बाद और उसकी प्रेम कहानी सुनने के बाद मुझे एहसास हुआ कि आज भी ऐसे लोग हैं जो पाक़ मोहब्बत करते हैं और एक मिसाल बन जाते हैं। मैं बहुत खुश थी मेरे भाई कि ऐसा इंसान मेरा अपना भाई ही है और फिर मुझे एहसास हुआ कि कितनी ग़लत थी मैं जो तुझे बचपन से ही ग़लत समझती आ रही थी। बस उसके बाद जब सबकुछ पता चला तो तेरे लिए मेरे हृदय में और भी जगह हो गई भाई। मेरी अंतर्आत्मा से बस एक ही आवाज़ आती है और वो ये कि अब तुझसे ही मेरी हर खुशी है और दुख भी।"

"जो होता है सब अच्छे के लिए ही होता है दीदी।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"आज मेरी सबसे अच्छी दीदी मेरे पास है और मुझे इतना प्यार करती है। मैं बता नहीं सकता कि इस बात से मैं कितना खुश हूॅ दीदी। मेरा तो मुम्बई जाने का बिलकुल भी मन नहीं था। मगर सबको लेकर जाना भी ज़रूरी था। लेकिन वहाॅ से वापस आपके पास आ जाने के लिए मैं उतावला हो रहा था। मुझे लग रहा था कि मैं पलक झपकते ही आपके पास पहुॅच जाऊॅ।"

"ऐसी बातें मत कर राज।" रितू दीदी की आवाज़ काॅप सी गई। वो मुझसे कस के लिपट गईं और फिर बोली___"तुझे नहीं पता कि तेरी ऐसी बातों से मैं कितनी कमज़ोर हो सकती हूॅ। कहीं ऐसा न हो जाए कि मैं तेरे बिना एक पल भी रह न पाऊॅ।"

"तो क्या हुआ दीदी?" मैंने कहा___"सब कुछ ठीक होने के बाद हम सब एक साथ ही तो रहेंगे। फिर आप ऐसा क्यों कह रही हैं?"
"तू नहीं समझेगा राज।" रितू दीदी ने सहसा बेचैनी से पहलू बदला___"ख़ैर छोंड़ ये सब। मैं ये कह रही हूॅ कि विधी के माता पिता भी यहाॅ आ गए हैं। उनसे भी मिल लेना तुम।"
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11-24-2019, 01:04 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"मैं आपसे एक ज़रूरी बात जानना चाहता हूॅ।" मैने दीदी से कहा___"और वो ये कि ये फार्महाउस आपके पास कैसे है?"
"ये फार्महाउस डैड ने मेरे नाम बहुत पहले ही कर दिया था।" रितू दीदी ने कहा___"ऐसे ही दो फार्महाउस और हैं। एक नीलम के लिए और दूसरा शिवा के लिए। पर तू ये क्यों पूछ रहा है राज?"

"इसका मतलब।" राज को झटका सा लगा था___"इस फार्महाउस के बारे में बड़े पापा जानते हैं। जाने भी क्यों न आख़िर दिया तो उन्होंने ही है आपको। इस लिए अब आप ये भी जान लीजिए कि यहाॅ पर रहना भी हमारे लिए खतरे से खाली नहीं है।"

"क्या????" रितू दीदी भी बुरी तरह हिल गईं, कदाचित उन्हें भी अब तक इस बात का एहसास नहीं था। किन्तु अब हो गया था___"ये तो यकीनन सच कहा तूने। ओह माई गाड मुझे इस बारे में पहले ही सोच लेना चाहिए था। सचमुच राज यहाॅ हममें से कोई भी सुरक्षित नहीं है। ये तो अच्छा हुआ कि अभी तक डैड का ध्यान फार्महाउस की तरफ नहीं गया है। मगर इसमें अब ज़रा भी शक नहीं कि बहुत जल्द उन्हें इस फार्महाउस का ख़याल आ सकता है। वो सोच सकते हैं कि मैं और तुम यहाॅ छुपे हो सकते हैं। अतः वो ज़रूर इसका पता लगाएॅगे। अब क्या होगा राज?"

"फिक्र मत कीजिए।" मैने कहा___"सारे रास्ते मैं यही सोच रहा था और फिर मैने इसका बंदोबस्त भी किया है।"
"बंदोबस्त??" रितू दीदी हैरान।

"हाॅ दीदी।" मैने कहा___"इसका तो मुझे भी अंदाज़ा था कि ये फार्महाउस आपके पास बड़े पापा की वजह से ही आया हो सकता है। इस लिए इसका ख़याल देर सवेर उन्हें आ ही जाएगा। अतः मैने फौरन ही अपने एक दोस्त को फोन किया। मेरा वो दोस्त आजकल इंदौर में है अपने माता पिता व भाई बहन के साथ। घर से और दौलत से भी सम्पन्न है वो। उसके पापा इन्कमटैक्स के बड़े ऑफिसर हैं तथा उसका बड़ा भाई पुलिस में एसीपी है। गुनगुन से क़रीब दस किलोमीटर पहले ही उसका गाॅव है रेवती। जहाॅ पर उसका बड़ा भारी पुश्तैनी घर है। किन्तु उस घर में कोई नहीं रहता है। घर की देख रेख के लिए एक दो केयरटेकर रखे हुए हैं उसके डैड ने। मैने अपने उसी दोस्त से बात की थी तथा उसको सारी बातें भी बताई और कहा कि कुछ समय के लिए मुझे उसके घर की ज़रूरत है रहने के लिए। मेरी सारी बातें सुनकर उसने अपनी माॅम से बात किया। उसकी माॅम मुझे अपने बेटे की तरह ही चाहती थी। शेखर ने जब अपनी माॅ से मेरी सारी कहानी बताई तो वो मेरे लिए चिंतित हो गईं और फौरन ही उन्होंने कह दिया कि मुझे आज ही उनके घर में शिफ्ट हो जाना चाहिए। उन्होंने घर के केयरटेकर को फोन करके मेरे बारे में बता दिया है। एक काम उन्होंने ये भी किया कि अपनी बहन को जो कि रेवती में ही रहती हैं भी सूचित कर दिया है। उनसे कहा कि वो अपने पति को किसी ऐसे वाहन के साथ मेरे पास भेज दें जिसमें हम सब और हमारा सामान आराम से आ सके।"

"ये तो बहुत ही अच्छी बात है राज।" रितू दीदी ने खुश होकर मेरे गाल पर चुम्बन जड़ दिया___"तूने सचमुच बहुत ही कमाल का और होशियारी का काम किया है। मगर एक समस्या भी है।"
"कैसी समस्या दीदी?" मैं चकराया।
"यही कि हम सब और हमारा सामान वगैरह तो यहाॅ से वहाॅ शिफ्ट हो जाएगा।" रितू दीदी ने कहा___"मगर हम तहखाने में मौजूद उस मंत्री के पिल्लों को कैसे ले जाएॅगे और वहाॅ उन्हें कैसे रखेंगे? यहाॅ तो तहखाना था जहाॅ पर मैने उन सबको कैद किया हुआ है जबकि वहाॅ पर ऐसा कोई तहखाना नहीं हो सकता।"

"कोई ज़रूरी तो नहीं कि उन सबको तहखाने में ही रखा जाए।" मैने कहा___"हम उन लोगों को किसी कमरे में भी वैसे ही बाध कर रख सकते हैं। बस इस बात का ख़याल रखना होगा कि वो चीख चिल्ला न सकें। वरना उनकी आवाज़ से बाहरी लोगों को पता भी लग सकता है।"

"हाॅ ये भी सही है।" रितू दीदी ने कहा___"और हाॅ हरिया काका और शंकर काका भी हमारे साथ ही जाएॅगे। वो बेचारे मुझे अपनी बेटी की तरह ही चाहते हैं। मेरे लिए वो कुछ भी कर सकते हैं। वो दोनो अच्छे इंसान है राज। यहाॅ पर उन्हें अकेले छोंड़ चले जाना कतई उचित नहीं है।"

"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"हम उन्हें भी साथ ले चलेंगे। मगर यहाॅ से चलने की फौरन तैयारी कीजिए। मेरे दोस्त शेखर का कभी भी फोन आ सकता है ये बताने के लिए कि उसके मौसा वाहन लेकर हमारे पास पहुॅचने ही वाले हैं।"

"क्या हमें आज ही यहाॅ से निकलना होगा?" रितू दीदी ने हैरानी से कहा था।
"बिलकुल दीदी।" मैने कहा___"हम एक पल की भी देरी नहीं कर सकते। बड़े पापा का कुछ पता नहीं कि उनके मन में किस पल इस फार्महाउस का ख़याल आ जाए और वो फौरन हम सबका पता लगाने के लिए यहाॅ आ धमकें। इस लिए बेहतर यही है कि उनके यहाॅ धमकने से पहले ही हम लोग यहाॅ से कूच कर जाएॅ।"

"सही कह रहा है तू।" रितू दीदी ने हालात की गंभीरता को समझते हुए कहा___"वक्त और हालात का कोई भरोसा नहीं किया जा सकता।"
"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"अब आप जाइये और सबको बता दीजिए। मैं भी कपड़े पहन कर आता हूॅ हाथ बटाने।"

"चल ठीक है।" दीदी ने कहा और फौरन ही कमरे से बाहर निकल गईं। उनके जाने के बाद मैने भी आनन फानन में कपड़े पहने।।तभी मेरा आई फोन बजा। (यहाॅ पर मैं आप सबको (खास कर नैना जी को) ये बता दूॅ कि आई फोन सिर्फ रितू दीदी के पास ही नहीं था बल्कि मेरे और गुड़िया (निधी) के पास भी है)

मैने मोबाइल उठाकर देखा तो शेखर का ही काल था। मैने तुरंत ही काल रिसीव कर मोबाइल को कान से लगा लिया। उधर से शेखर ने बताया कि उसके मौसा कुछ ऐसे आदमियों को भी साथ में लेकर आ रहे जो तुम सबकी सुरक्षा का भी ख़याल रखेंगे। मैं उसकी बात सुन कर मुस्कुराया और उसे इसके लिए धन्यवाद दिया। उसने बताया कि दस से बीस मिनट के बीच उसके मौसा मेरे पास पहुॅच जाएॅगे। उसके बाद काल कट हो गई।

मैं फौरन ही कमरे से निकल कर नीचे आया और सबके साथ सामान को इकट्ठा कर उसे पैक करवाने लगा। मैने आदित्य से कहा कि वो हरिया काका को भी इस बात का बता दे और उससे कहे कि वो तहखाने से उन चारों पिल्लों को तथा मंत्री की बेटी को बेहोश कर तहखाने से बाहर निकालने की तैयारी करें। मेरी बात सुनकर आदित्य फौरन ही हरिया काका के पास चला गया। इधर नैना बुआ तथा विधी के माता पिता भी सारे सामान को पैक करने में लगे हुए थे। रितू दीदी ने बताया कि पवन का सामान भी पैक रखा हुआ है जिसे साथ ही यहाॅ से ले चलना है।

लगभग बीस मिनट बाद ही दो इनोवा कार तथा उसके पीछे एक टैम्पो फार्महाउस में दाखिल हुए। मैं ये देख कर हैरान रह गया कि इतने सारे वाहन शेखर ने भेजवा दिये थे। कदाचित उसे अंदाज़ा था कि सबको लाने में इतने ही वाहनों की ज़रूरत पड़ सकती थी। टैम्पो में सारा सामान और दोनो कारों में हम सब लोग बैठ कर आराम से यहाॅ से जा सकता थे। ख़ैर सामान तो पैक हो ही चुका था। अतः मैं और आदित्य जल्दी जल्दी सारे सामान को टैम्पो में लोड करने लगे। इस काम में मौसा के साथ आए हुए चार पाॅच आदमी भी लग गए। कुछ ही देर में सारा सामान टैम्पो में लोड हो गया।

हरिया काका और शंकर काका ने उन चारों पिल्लों और उस पिल्ली को भी टैम्पो में ही ठूॅस दिया और खुद भी उसी टैम्पो में चढ़ गए। मौसा के तीन आदमी भी टैम्पो में चढ़ गए। टैम्पो का पिछला फटका लगा कर ऊपर से मोटी तिरपाल को ढॅक दिया गया। जिससे अंदर का कुछ भी देखा नहीं जा सकता था।

उसके बाद मैने विधी के माता पिता, नैना बुआ, तथा बिंदिया काकी को एक इनोवा में बैठा दिया। उस इनोवा में मौसा का एक आदमी भी आगे की शीट पर हाॅथ में बंदूख लिए बैठ गया। दूसरी इनोवा में मैं आदित्य और रितू दीदी बैठ गए। आगे की शीट पर आख़िरी बचा बंदूकधारी भी बैठ गया। उसके बाद सारा क़ाफिला चल दिया वहाॅ से। इसके पहले हमने अच्छी तरह से चेक कर लिया था कि हमारी कोई ऐसी चीज़ तो नहीं छूट गई जो ज़रूरी हो।

रितू दीदी ने रास्ते में किसी को फोन लगाया और उससे कहा कि उसके फार्महाउस से पुलिस जिप्सी अपने साथ ले जाकर थाने में खड़ा कर दें। फार्महाउस में एक और जीप थी जो कि अजय सिंह की ही थी उसे वहीं खड़े रहने दिया था। लगभग आधा घंटे बाद हम रेवती पहुॅच गए। इस बीच रास्ते में हमें इक्का दुक्का वाहन तो मिले मगर उनमें कोई मंत्री या अजय सिंह का आदमी नहीं था। रेवती में शेखर के मकान के सामने ही हमारा क़ाफिला रुका। घर के बाहर ही दो केयरटेकर खड़े दिखे। वाहनों के रुकते ही वो हमारे पास आ गए।

हम सब वाहनों से उतर कर बाहर आए तो वो दोनो केयर टेकर हमें घर के अंदर की तरफ ले गए। मैं और आदित्य बाहर ही थे। टैम्पो से पहले उन पाॅचों कैदियों को निकाल कर घर के अंदर एक ऐसे कमरे में ले आए जो सबसे अलग और आख़िर में था। उसके बाद हम सबने मिल कर टैम्पो से सारा सामान उतार कर अंदर ले गए। उन बंदूखधारियों हमारी बड़ी मदद की।

शेखर के मौसा, जिनका नाम केशव शर्मा था वो बड़े ही खुशदिल इंसान थे। मुझे उनका नेचर बड़ा पसंद आया था। वो अंत तक हमारे पास ही रहे और हमारी हर ब्यवस्था के बारे में देखते सुनते रहे तथा हमारी हर ज़रूरों की लिस्ट बनाते रहे। दरअसल यहाॅ रहता तो कोई था नहीं। दो केयरटेकर थे जो कि घर से अलग एक तरफ बने सर्वेन्ट क्वार्टर में रहते थे। वो सारा दिन सारे सामान को जमाने में और रखने में चला गया। इस बीच शेखर की माॅम सुगंधा ऑटी का फोन भी आया था। उन्होंने मुझसे बड़े प्यार से बात की और ये भी कहा कि मैं यहाॅ पर किसी भी चीज़ के लिए संकोच न करूॅ। ये घर अपना ही है और हर चीज़ का उपयोग बड़े शौक से कर सकते हैं हम। मैं सुगंधा ऑटी से बात करके मुतमईन हो गया था और खुश भी। उसके बाद मैं और आदित्य मौसा जी के साथ मार्केट चले गए। जहाॅ से हमें राशन पानी तथा और भी कई सारी चीज़ें लेनी थी। मौसा जी ने कहा कि गैस सिलेण्डर वो अपने यहाॅ से हमे दे देंगे।

सारी ब्यवस्था और सब कुछ सही करवाने के बाद मौसा जी ये कह कर अपने घर चले गए कि हमें जब भी किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो हम बेझिझक उनसे फोन बता सकते हैं। उन्होंने कहा कि वो बीच बीच में आते रहेंगे हाल चाल के लिए। मौसा जी का घर रेवती में ही था किन्तु मुख्य सड़क के पीछे था। पैदल चल कर जाने में लगभग दस मिनट से भी कम का समय लगता था।

शेखर का ये घर दो मंजिला था तथा काफी बड़ा था। आज के समय का बना ये घर वेल डेकोरेटेड था। अंदर से ऐसा लगता था जैसे कोई बॅगला हो। हलाॅकि मुम्बई वाले मेरे बॅगले के मुकाबले ये कुछ भी नहीं था। होता भी कैसे उस बॅगले की कीमत भी तो डेढ़ सौ करोड़ रुपये थी। ख़ैर रात हो चुकी थी इन सब कामों में। अतः बिंदिया काकी ने अपनी रसोई सम्हाल ली थी। उनकी मदद के लिए नैना बुआ भी साथ थी। विधी की माॅ भी खाना बनाने में मदद करना चाहती थी मगर नैना बुआ ने साफ कह दिया था कि वो बस आराम करें। उन्हें यहाॅ पर कोई काम करने की ज़रूरत नहीं है।

रात का डिनर करने के बाद हम सब अपने अपने कमरों में सोने के लिए चल दिये। विधी के माता पिता ग्राउण्ड फ्लोर पर ही बने कमरे को चुना था अतः वो उसी कमरे में चले गए। नीचे तीन कमरे और भी थे। जिनमे से एक पर हरिया काका व बिंदिया काकी तथा दूसरे पर शंकर काका सोने के लिए चले गए। जबकि ऊपर के कमरों में मैं आदित्य नैना बुआ व रितू दीदी चले गए।

इन सब कामों से हम सब काफी थक चुके थे अतः बेड पर लेटते ही नींद को आन् ही था। किन्तु मुझे नींद नहीं आ रही थी। मेरे मन में कई सारी बातें चल रही थी। फार्महाउस से यहाॅ शिफ्ट हो जाने से अब किसी का ख़तरा नहीं था। बल्कि अब तो खुल कर हम कोई काम कर सकते थे। मैं ये सब सोच ही रहा था कि सहसा मुझे ऐसा लगा जैसे दरवाजे पर बाहर से किसी ने दस्तक दी हो। मैं ये सोचते हुए बेड से उठ कर दरवाजे की तरफ चल दिया कि इस वक्त कौन हो सकता है?
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11-24-2019, 01:04 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर हवेली में प्रतिमा का बाप व अजय सिंह का ससुर जगमोहन सिंह उस वक्त हवेली पहुॅचा जब अजय सिंह फ्रेश होने के बाद खाना खाने के लिए डायनिंग टेबल के चारो तरफ लगी कुर्सियों में से मुख्य कुर्सी पर बैठा था। जगमोहन सिंह को हवेली के बाहर तैनात अजय सिंह का एक आदमी अंदर लेकर आया था।

अपने ससुर को आज वर्षों बाद देख कर अजय सिंह फौरन ही अपनी कुर्सी से उठ कर जगमोहन की तरफ बढ़ा और उसके पैर छू कर आशीर्वाद लिया। अभी अजय सिंह अपने ससुर के पाॅव छू कर खड़ा ही हुआ था कि तभी प्रतिमा भी किचेन से हाॅथ में थाली लिए आई। प्रतिमा की नज़र जब अपने पिता पर पड़ी तो वो एकदम से मानो बुत बन गई। काफी देर बाद उसकी तंद्रा तब टूटी जब अजय सिंह ने उससे कहा कि देखो प्रतिमा पापा जी आ गए।

हाॅथ में ली हुई थाली को प्रतिमा ने डायनिंग टेबल पर रखा और फिर भाग कर जगमोहन की तरफ बढ़ी और अपने पिता के गले से लग गई। भावनाओं और जज़्बातों ने मानो प्रबल रूप धारण कर लिया जिसके प्रभाव से उसकी ऑखों से ऑसू झर झर करके बहने लगे थे। प्रतिमा अपने पिता के सीने से छुपकी ज़ार ज़ार रोये जा रही थी। जगमोहन खुद भी बेहद ग़मगीन हो गया था और हो भी क्यों न आख़िर प्रतिमा उसकी लाडली बेटी जो थी। अपनी बेटी को अपने कलेजे से लगाए जगमोहन को आज असीम सुख शान्ति मिल रही थी। वर्षों से उसके अंदर दर्द से भरी हुई टीस कम हो गई थी।

कितनी ही देर तक प्रतिमा अपने पिता के गले लगी रही उसके बाद जब उसके अंदर का गुबार खत्म हुआ तो वो अपने पिता से अलग हुई और अपने पिता से उनका हाल चाल पूछने लगी। कुछ देर बाद अजय सिंह ने प्रतिमा और अपने ससुर से कहा कि वो फ्रेश हो लें ताकि हम साथ में बैठ कर ही खाना खाएॅ। अजय सिंह की बात पर जगमोहन सिंह बोले कि वो बेटी के घर का अन्न कैसे खा सकते हैं? इस पर अजय सिंह ने हॅसते हुए कहा कि पापा जी आप भी क्या बाबा आदम के रीति रिवाज लिए बैठे हैं। आज के समय के सबसे बड़े वकील होते हुए भी ऐसी बात करते हैं। आख़िर अपने दामाद और बेटी के बार बार कहने पर जगमोहन सिंह को अजय सिंह के साथ बैठ कर खाना ही पड़ा।

खाना खाने के बाद ससुर दामाद के बीच ढेर सारी बातें हुईं उसके बाद अजय सिंह प्रतिमा को बता कर अपनी फैक्ट्री के लिए निकल गया। काफी दिन से फैक्ट्री नहीं गया था वह। वैसे भी वो चाहता था कि वर्षों के बाद बाप बेटी मिले हैं तो वो फ्री होकर एक दूसरे से बातें करें। अजय सिंह प्रतिमा को किनारे पर बुला कर उससे एक बार पुनः ये कहा कि वो या कोई भी जगमोहन जी से हमारे हालातों के संबंध में कोई बात न करे। सब कुछ समझा बुझा कर अजय सिंह हवेली से बाहर आ गया।

बाहर आते ही उसे शिवा इस तरफ ही आता दिखाई दिया। अजय सिंह उसे देख कर ठिठक गया। अपनी ही धुन में मस्ती से आता हुआ शिवा अपने बाप को देख कर हैरान रह गया और फिर एकदम से झपट कर उसके गला लग गया।

"ओह डैड आप आ गए।" शिवा खुशी से झूमता हुआ बोला था।
"मैं तो आ ही गया बर्खुरदार।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा___"मगर तुम इस वक्त कहाॅ से इस तरह मस्ती में डूबे चले आ रहे थे?"
"वो मैं गेस्टहाउस की तरफ से आ रहा था डैड।" शिवा ने कहा___"दरअसल आपके बिजनेस संबंधी दोस्तों ने अपने आदमी हमारी मदद के लिए यहाॅ भेज गए थे। इस लिए मैं उन्हीं के पास बैठा हुआ था। माॅम ने कहा था कि उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो उन सबका ख़याल रखूॅ।"

"ओह आई सी।" अजय सिंह आदमियों का सुन कर सहसा चौंक पड़ा था फिर बोला___"चलो ये तो बहुत अच्छी बात है बेटे। मुझे खुशी हुई कि तुम अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगे हो। ख़ैर मैं ये कह रहा हूॅ कि आज तुम्हारे नाना जी आए हुए हैं इस लिए तुम या कोई भी उनके सामने हमारे हालातों के संबंध में कोई भी बात नहीं करोगे। और हाॅ, तुम भी ज़रा सम्हल कर उनसे बात करना। वो बहुत ही जहीन इंसान हैं। इंसान को पहचानने में उन्हें ज़रा भी वक्त नहीं लगेगा। अतः सोच समझ कर और होशियारी से उनके सामने जाना। ऐसा न हो कि तुम्हारे हाव भाव से उन्हें ऐसा प्रतीत हो जाए कि तुम किस टाइप के लड़के हो? तुम समझ रहे हो न कि मैं क्या कहना चाहता हूॅ?"

"डोन्ट वरी डैड।" शिवा ने कहा___"मेरी वजह से नाना जी को कुछ और सोचने का मौका ही नहीं मिलेगा और न ही उन्हें हमारे हालातों का कुछ पता चलेगा।"
"गुड ब्वाय।" अजय सिंह मुस्कुराया___"अब जाओ तुम। मैं भी ज़रा उन आदमियों से मिल लूॅ, उसके बाद मुझे थोड़ी देर के लिए फैक्ट्री भी जाना है।"
"ओके बाय डैड।" ये कह कर शिवा हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गया।

शिवा का जाने के बाद अजय सिंह भी गेस्ट हाउस की तरफ चल दिया। अभी वो कुछ क़दम ही चला था कि सहसा पीछे से उसे प्रतिमा की आवाज़ सुनाई दी। उसने पलट कर देखा तो प्रतिमा हवेली के मुख्य दरवाजे पर खड़ी थी। अजय सिंह के पलटते ही प्रतिमा ने उसे बताया कि लैण्डलाइन फोन पर किसी का काल आया हुआ है और वो उससे बात करना चाहता है। प्रतिमा की बात सुन कर अजय सिंह वापस हवेली के अंदर की तरफ चल दिया। उसे याद आया कि उसके मोबाइल पर तो सिम कार्ड है ही नहीं।

"हैलो।" अपने कमरे में रखे लैण्डलाइन फोन के रिसीवर को कान से लगाते ही अजय सिंह ने अपनी आवाज़ को प्रतभावशाली बनाते हुए कहा था।
"ठाकुर।" उधर से किसी की स्पष्ट आवाज़ उभरी__"हम इस प्रदेश के मंत्री दिवाकर चौधरी बोल रहे हैं।"

"म..मंत्री???" अजय सिंह उधर ईआ वाक्य सुन कर बुरी तरह चौंका था, फिर लरजते हुए स्वर में बोला____"क्या सच में आप मंत्री जी ही बोल रहे हैं?"
"हाॅ ठाकुर।" उधर से दिवाकर चौधरी ने खास अंदाज़ में कहा___"क्या तुम्हें हमारे मंत्री होने पर शक़ है?"

"न..न..नहीं नहीं मंत्री जी।" अजय सिंह बुरी तरह सकपकाया___"म मैं तो बस इस लिए ऐसा कह गया क्योंकि मुझे उम्मीद ही नहीं थी कि प्रदेश की इतनी बड़ी शख्सियत का फोन मेरे पास आ सकता है। मैं तो ये सोच सोच कर हैरान हूॅ कि भला मुझसे मंत्री जी का क्या काम हो सकता है जिसके तहत आपने मुझे फोन किया है।"

"कुछ तो खास वजह होगी ही ठाकुर।" उधर से दिवाकर चौधरी ने कहा___"वरना इस फानी दुनियाॅ में बेमतलब कोई भी किसी को याद नहीं करता।"
"हाॅ ये बात तो बिलकुल सच है मंत्री जी।" अजय सिंह के दिमाग़ के घोड़े बड़ी तेज़ी से ये पता लगाने के लिए दौड़ रहे थे कि मंत्री ने उसे किस वजह से फोन किया हो सकता है? किन्तु प्रत्यक्ष में बोला___"आज के समय में हर इंसान मतलबी बन चुका है। ख़ैर आप बताइये मेरे लिए क्या आदेश है आपका?"

"दोस्तों को आदेश नहीं देते ठाकुर।" उधर से चौधरी ने कहा___"बल्कि साफ शब्दों में कह दिया जाता है जो कहना होता है। ख़ैर हम ये कह रहे है कि हम तुमसे मिलना चाहते हैं। मिलने के बाद ही तसल्ली से हमारे बीच बात चीत होगी और ये भी कि वो खास वजह क्या है जिसके तहत हमने तुम्हें फोन किया है?"

"जैसा आप कहें मंत्री जी।" अजय सिंह मंत्री के मुख से दोस्तों शब्द सुन कर सोचने पर मजबूर हो गया था। हलाॅकि मंत्री का उसे फोन करना मौजूदा हालात के हिसाब से उसके लिए कहीं न कहीं राहत और खुशी की बात थी। उसे भी पता था कि मंत्री दिवाकर चौधरी क्या चीज़ है। फिर बोला___"बताइये मुझे कब और कहाॅ मिलने आना होगा आपसे?"

"वैसे समय तो अभी भी है ठाकुर।" उधर से मंत्री ने कहा___"क्योंकि अभी शाम भी नहीं हुई है। इस लिए चाहो तो अभी हमारे यहाॅ आ सकते हो। इस वक्त हम गुनगुन में ही अपने आवास पर मौजूद हैं। किन्तु अगर तुम्हारे पास इस वक्त टाइम नहीं है तो कोई बात नहीं कल सुबह आ जाना। हमें कोई परेशानी नहीं है।"

"ये कैसी बात कर रहे हैं मंत्री जी?" अजय सिंह ने चापलूसी वाले अंदाज़ से कहा___"आप मुझे अपना समझ कर इतनी इज्ज़त से बुलाएॅ और मैं तत्काल न आऊॅ ऐसा कैसे हो सकता है भला? मैं तो अपने सारे ज़रूरी काम छोंड़ कर आपके पास ही दौड़ा चला आऊॅगा चौधरी साहब। बस कुछ देर तक इंतज़ार कर लीजिए। मैं फौरन ही अपने गाॅव हल्दीपुर से गुनगुन में आपके आवास पर आने के लिए निकल रहा हूॅ।"

"ओके हम इन्तज़ार कर रहे हैं ठाकुर।" उधर से मंत्री ने कहा___"तुम हमारे दोस्त की तरह ही हो इस लिए अपने दोस्त का वैलकम भी हम शानदार तरीके से ही करेंगे।"
"ये तो मेरी खुशनसीबी है मंत्री जी।" अजय सिंह एकदम से खुश होते हुए बोला___"जो आप मुझे अपना दोस्त कह रहे हैं वरना मेरी आपके सामने भला क्या औकात?"

"ऐसी कोई बात नहीं है ठाकुर।" मंत्री ने कहा___"हर इंसान अपनी जगह पर औकात वाला ही होता है। तुम भी अपनी जगह किसी से कम नहीं हो। हमें सब पता है तुम्हारे बारे में। ख़ैर छोंड़ो ये सब। आओ फिर मिलकर ही बाॅकी बातें होंगी।"
"जी ठीक है चौधरी साहब।" अजय सिंह के ऐसा कहते ही उधर से काल कट गई।

रिसीवर को हाॅथ में पकड़े अजय सिंह किसी बुत की मानिंद खड़ रह गया था। उसकी ऑखें ऐसी चमकने लगी थी जैसे उसकी ऑखों के अंदर हज़ारों वाट के बल्ब एकाएक ही रौशन हो उठे थे। चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। कुछ देर तक अजय सिंह इसी तरह रिसीवर हाॅथ में खड़ा रहा फिर जैसे उसे होश आया। उसने मुस्कुरा कर रिसीवर को वापस केड्रिल पर रखा और फिर कमरे में ही एक तरफ रखी आलमारी की तरफ बढ़ चला।

आलमारी से उसने अपने सबसे अच्छे और सबसे कीमती कपड़े निकाले। अपने जिस्म पर पहले से ही पहने हुए कपड़ों को निकाला उसने और फिर उन कपड़ों को पहनना शुरू किया जिन्हें उसने आलमारी से निकाला था। उसके चेहरे पर इस वक्त एक अलग ही चमक दिख रही थी। ख़ैर कुछ ही देर में वह कपड़ों को पहन कर एक तरफ दीवार से सटे आदमकद आईने के सामने आया और उसमें खुद को देखने लगा। कीमती कोट पैन्ट में इस वक्त वो काफी जॅच रहा था और लग भी रहा था कि वो कोई बहुत बड़ा आदमी है। सब कुछ ठीक ठाक करने के बाद वो मुस्कुराते हुए ही कमरे से बाहर की तरफ चल दिया।

ड्राइंगरूम में बैठे जगमोहन सिंह, प्रतिमा व शिवा की नज़र जैसे ही अजय सिंह पर पड़ी तो जगमोहन सिंह को छोंड़ कर प्रतिमा व शिवा के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे। जबकि जगमोहन सिंह के चेहरे पर ये सोच कर खुशी के भाव उभरे कि उसका दामाद वाकई में एक शख्सियत वाला तथा प्रभावशाली ब्यक्तित्व रखने वाला इंसान है। उसे पहली बार लगा कि उसकी बेटी ने अपने पति के रूप में ग़लत चुनाव नहीं किया था। यहाॅ आने के बाद उसने इतनी बड़ी हवेली और अंदर बाहर इतने सारे नौकर चाकर देखे तो उसे समझ आ गया था कि उसका दामाद वास्तव में कोई ऐरा ग़ैरा नहीं था। बल्कि इस गाॅव का राजा था वो।

"प्रतिमा मैं ज़रा मंत्री जी के पास जा रहा हूॅ।" अजय सिंह ने ये बात कुछ इस अंदाज़ से कही थी कि सोफे पर बैठे जगमोहन सिंह पर अपना एक खास असर डाल सके और ऐसा हुआ भी। जबकि अजय सिंह बोला___"अभी उन्हीं का फोन आया हुआ था। उन्होने मुझे किसी ज़रूरी काम से याद किया है। अतः हो सकता है कि मुझे वापस आने में देर हो जाए तो तुम पापा जी का अच्छे से ख़याल रखना।"

"ठीक है आप जाइये।" प्रतिमा ने अपने पिता की मौजूदगी में अजय सिंह से आप कह कर बात की, बोली___"मैं पापा का बहुत अच्छे से ख़याल रखूॅगी।"
"इसमें ख़याल रखने की क्या बात है बेटा?" सहसा जगमोहन सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा___"ये तो मेरा भी अपना ही घर है। अगर किसी चीज़ की ज़रूरत हुई तो मैं खुद ही ले लूॅगा। क्यों बेटी?"

"जी आपने बिलकुल ठीक कहा पापा।" प्रतिमा ने खुशी से मुस्कुराते हुऐ कहा।
"फिर तो ठीक है पापा।" अजय सिंह भी मुस्कुराया__"मुझे आपकी ये बात बहुत अच्छी लगी। ख़ैर मैं जल्दी वापस आने की कोशिश करूॅगा और फिर आपसे ढेर सारी बातें होंगी। अच्छा अब चलता हूॅ।"

अजय सिंह के कहने पर जगमोहन सिंह ने हाॅ में सिर हिलाया जबकि अजय सिंह फौरन ही हवेली से बाहर की तरफ बढ़ चला। उसके मन में इस वक्त मंत्री से मिलने की बड़ी ब्याकुलता पैदा हो गई थी। उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि प्रदेश का मंत्री उसे दोस्त मान कर उससे मिलना चाहता है। मंत्री से संबंध होना उसके लिए कितना फायदेमंद हो सकता था इसका बखूबी अंदाज़ा था उसे। इसी लिए तो वो जल्द से जल्द मंत्री के पास पहुॅच जाना चाहता था।

बाहर एक तरफ खड़ी अपनी मर्सडीज कार के पास पहुॅच कर उसने कार का दरवाजा खोला और ड्राइंविंग शीट पर बैठ गया। कुछ ही पलों में उसकी कार गुनगुन के लिए रवाना हो गई थी।
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11-24-2019, 01:05 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर गुनगुन में अपने आवास पर मंत्री दिवाकर चौधरी अपने दो दोस्तों और एक रखैल दोस्त यानी सुनीता के साथ ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठा था। इस वक्त ड्राइंग रूम में इन चारों के अलावा और कोई नहीं था। मंत्री के सुरक्षा गार्ड सब बाहर ही तैनात थे।

"वैसे आपको क्या लगता है चौधरी साहब।" सहसा अशोक मेहरा कह उठा___"वो ठाकुर हमारी इस मामले में क्या सहायता कर सकता है? जबकि उसकी खुद की बेटी ही उसके खिलाफ़ है।"

"इन्हीं सब चीज़ों के बारे में तो जानना है अशोक।" मंत्री ने सोचते हुए कहा___"मुझे लगता है कि इस मामले से जुड़ी हर चीज़ ठाकुर को क्राॅस करती है। हमने ये तो समझ लिया कि हमारे मामले जो हो रहा है वो कौन और क्यों कर रहा है मगर हम ये भी जानना चाहते हैं कि जो हमारा दुश्मन है उसने या उसकी माॅ बहन ने ऐसा क्या किया था जिसकी वजह से ठाकुर ने उन तीनों को हवेली से ही नहीं बल्कि सारी ज़मीन जायदाद से भी बेदखल कर दिया है? सबसे महत्वपूर्ण बात हमें ये भी जानना है कि ऐसा क्या हुआ है जिसके तहत ठाकुर की अपनी बेटी खुद अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ हो गई है?"

"बात तो आपकी एकदम सही है चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"किन्तु इससे निष्कर्श क्या निकलेगा? मेरा मतलब है कि इससे हमारा फायदा क्या होगा?"

"नफ़ा नुकसान तो अपनी जगह है ही अशोक।" चौधरी ने कहा___"किन्तु इस मामले में कुछ बातें ऐसी हैं जिनके बारे में पक्के तौर पर जानना बहुत ज़रूरी है। तुमने कहा था कि ठाकुर की बेटी जो थानेदारनी है और अपने पैरेन्ट्स के खिलाफ़ है वो हमारे दुश्मन और ठाकुर के भतीजे की मदद इस लिए नहीं कर सकती क्योंकि वो भी उससे अपने माॅ बाप की तरह नफ़रत करती है। ये बातें एक दूसरे से मैच नहीं खा रही हैं अथवा ये भी कह सकते हैं कि जॅच नहीं रही हैं।"

"जी मैं कुछ समझा नहीं चौधरी साहब।" अशोक मेहरा के माॅथे पर उलझनपूर्ण भाव आए___"कौन सी बातें नहीं जॅच रही आपको?"

"यही कि एक तरफ तो तुम ये भी कह रहे हो कि ठाकुर की थानेदारनी बेटी उस विराज नाम के अपने भाई से नफ़रत करती है।" मंत्री ने कहा___"इस लिए वो उसकी मदद नहीं कर सकती। जबकि दूसरी तरफ तुम ये भी कह रहे हो कि ठाकुर की वही थानेदारनी बेटी खुद अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ है। सोचने वाली बात हैं अशोक कि ऐसा कैसे हो सकता है? आम तौर पर बच्चे वही करते हैं जो उनके माॅ बाप उन्हें सीख देते हैं अथवा करने को कहते हैं। यहाॅ सोचने वाली बात ये है कि अगर वो थानेदारनी अपने माॅ बाप की सीख अथवा कहे के अनुसार अपने चचेरे भाई से नफ़रत करती है तो फिर अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ वो किस वजह से हो गई है?"

"आपकी इन सब बातों में ज़बरदस्त प्वाइंट है चौधरी साहब।" सहसा अवधेश श्रीवास्तव कह उठा___"सचमुच ये सोचने वाली बात है कि आख़िर ऐसा क्या हुआ है जिसके चलते ठाकुर की बेटी उसके खिलाफ़ है? संभव है कि उसे कोई ऐसी बात अपने माॅ या पिता की पता चल गई हो जिसके चलते उसने अपने माॅ बाप से किनारा कर लिया हो। या फिर ऐसा हो सकता है कि सोच या विचारों के चलते थानेदारनी अपने पैरेन्टस् से दूर हो।"

"ये सब तो महज संभावनाएॅ हैं अवधेश।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"जो सही भी और ग़लत भी हो सकती हैं मगर हमें वो बात पता करना है जो सिर्फ और सिर्फ सच हो। ख़ैर फिक्र की कोई बात नहीं है, हमने ठाकुर को बुलाया है। वो आता ही होगा हमारे पास। उसी से पूछेंगे कि सच्चाई क्या है?"

"लेकिन चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने एक बार पुनः हस्ताक्षेप किया___"सवाल तो एक बार फिर खड़ा हो जाता है कि इस सबसे हमारा फायदा क्या होगा? हम ये तो जानते ही हैं कि हमारा दुश्मन ठाकुर का वो भतीजा है जिसका नाम विराज है और वो मुम्बई में रहता है। फिर अचानक आप ठाकुर और उसकी बेटी को बीच में कैसे ले आए? इस मामले में ये कहाॅ से आ गए? ठाकुर की बेटी अपने माॅ बाप के खिलाफ़ है ये उनका आपसी मैटर है। इस लिए हमें इससे क्या लेना देना भला? हमें तो अपने टार्गेट पर फोकस रखना है ना?"

"तुम बात को या तो अनसुना कर गए हो अशोक या फिर बात को समझने की कोशिश ही नहीं कर रहे हो।" मंत्री ने स्पष्ट भाव से कहा___"जबकि तुम्हें सबसे पहले ये सोचना चाहिए कि हम बेवजह फालतू की बकवास करने का शौक नहीं रखते हैं। ख़ैर, बात दरअसल ये कि अगर ठाकुर की बेटी सचमुच में अपने पैरेंट्स के खिलाफ़ है तो वो अपने उस भाई की मदद क्यों नहीं कर सकती जो अपने माॅ बाप की तरह ही उस लड़के से नफ़रत करती थी? संभव है कि उसे उस वजह का पता चल गया हो जिस वजह के चलते उसके बाप ने विराज और विराज की माॅ बहन को हर चीज़ से बेदखल किया था। उसे पता चल गया हो कि जिस वजह से विराज को बेदखल किया था उसके बाप ने वो वजह वास्तव में बेवजह ही थी। यानी विराज व विराज की माॅ बहन अपनी जगह सही रहे हों।
उस सूरत में संभव है कि रितू ने उस संबंध में अपने पैरेंट्स से बात की हो और उनसे कहा हो कि विराज और उसकी माॅ बहन को बेदखल करके उसने अच्छा नहीं किया। वो अगर बेक़सूर हैं तो उन्हें उनका हक़ मिलना ही चाहिए। इस संबंध में अपनी बेटी की ये बात शायद ठाकुर को पसंद न आई हो और उसने विराज का हक़ देने से साफ इंकार कर दिया हो। इस वजह से थानेदारनी अपने माॅ बाप से अलग हो गई और संभव है कि इसी के चलते वो अपने उस चचेरे भाई के प्रति अपनी नफ़रत को मिटा कर उसकी मदद भी करने लगी हो। हलाॅकि ये सब भी महज संभावनाएॅ ही हैं किन्तु हो सकता है कि यही सच हो।"

अशोक मेहरा ही नहीं बल्कि वहाॅ बैठे अवधेश व सुनीता भी चौधरी की इन संभावना भरी बातें सुन कर चकित रह गए थे। एक बेटी का अपने पैरेंट्स के खिलाफ़ होने की क्या खूब वजह सोच कर बयान किया था उसने।

"अगर आपकी संभावनाएॅ सच हैं।" फिर अवधेश ने कहा___"तो यकीनन वो थानेदारनी विराज की मदद कर सकती है। मैं सब समझ गया चौधरी साहब, आपने यही सब सोच कर ठाकुर को यहाॅ बुलाया है।"

"बिलकुल।" चौधरी मुस्कुराया___"किन्तु इस वजह के अलावा भी एक महत्वपूर्ण वजह है।"
"वो क्या चौधरी साहब?" तीनो एक बार फिर चौंके।
"अगर ठाकुर ने सचमुच ही विराज और उसकी माॅ बहन को बेवजह ही हर चीज़ से बेदखल किया है।" चौधरी ने कहा___"तो ये भी सच ही होगा कि विराज अपने ताऊ को दुश्मन समझता होगा और ये भी चाहता होगा कि उसका हक़ किसी भी सूरत में उसे मिले। ठाकुर ने अगर धन दौलत अथवा सारी प्रापर्टी को हथियाने की गरज से उसे बेदखल किया होगा तो फिर ये पक्की बात है कि ठाकुर किसी भी कीमत में वो प्रापर्टी अथवा उस प्रापर्टी में से विराज का हक़ नहीं देगा। कहने का मतलब ये कि विराज को अपना हक़ आसानी से नहीं मिलने वाला। इस लिए वो ऐसा कुछ ज़रूर करेगा जिसके तहत उसे अपने ताऊ से अपना हक़ वापस मिल सके।"

तीनो मुह फाड़े देखते रह गए चौधरी को। किसी के मुख से कोई बोल न फूट सका था। जबकि चौधरी उन सबके चेहरों पर मॅडराते भावों को देखते हुए पुनः कहना शुरू किया____"हलाॅकि ये भी महज संभावनाएॅ ही हैं दोस्तो जो ग़लत भी हो सकती हैं। मगर हमें कहीं न कहीं ऐसा आभास भी हो रहा है कि हमारी इन संभावनाओं पर कुछ न कुछ तो सच्चाई ज़रूर है। हमने ठाकुर, ठाकुर की बेटी, तथा विराज, इन तीनों पर ग़ौर किया है और इनके बीच पैदा हुए हालातों पर भी ग़ौर किया है। इसके बाद ही हमारे दिमाग़ में इन संभावनाओं का आगमन हुआ है।"

"मुझे तो ऐसा लगता है चौधरी साहब।" सहसा अवधेश कह उठा___"कि आपने उन तीनों का ऑपरेशन कर दिया है। आपकी संभावनाओं में कहीं पर भी ऐसा नहीं लग रहा है कि उनमें कहीं कोई लोचा है।"
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11-24-2019, 01:05 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"ठाकुर की बेटी का अपने माॅ बाप से भले ही चाहे जो पंगा हो अवधेश।" चौधरी ने गहरी साॅस ली___"जिसके तहत वो अपने माॅ बाप के खिलाफ़ है। मगर ये बात तो सच ही समझो कि ठाकुर और विराज का छत्तीस का ऑकड़ा है। ज़र ज़ोरू ज़मीन ये कभी किसी की नहीं हुई। इसने जाने जाने कितने पाक़ रिश्तों को नेस्तनाबूत किया होगा अब तक इसका हममें से कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता। विराज व ठाकुर के बीच हक़ की लड़ाई है ये पक्की बात है और जब तक इस लड़ाई का अंत नहीं होगा दोनो में से कोई भी चैन से नहीं बैठेगा। ख़ैर, तुमने सुना होगा कि हमने फोन पर ठाकुर को दोस्त कहा था। वो इसी लिए कहा था कि मौजूदा हालात में हम दोनो का एक ही टार्गेट है-----विराज। इस लिए हमने उसे दोस्त कहा। हम उससे विराज के संबंध में सारी जानकारी हासिल करेंगे और फिर उस हिसाब से आगे की रणनीति बनाएॅगे।"

अभी चौधरी ने ये कहा ही था कि सहसा तभी ड्राइंग रूम में एक आदमी दाखिल हुआ। उसने बड़े अदब से चौधरी को बताया कि बाहर कोई आदमी आपसे मिलने आया है। वो आदमी अपना नाम ठाकुर अजय सिंह बता रहा है। उस आदमी की बात सुन कर चौधरी मुस्कुराया और अपने उस आदमी से कहा कि उसे इज्ज़त से अंदर ले आओ। चौधरी की बात सुन कर वो आदमी पहले अदब से सिर झुकाया फिर वापस बाहर की तरफ चला गया।

कुछ ही देर में उसी आदमी के साथ अजय सिंह ड्राइंग रूम में दाखिल हुआ। उसे देखते ही चौधरी अपने सोफे से उठा हलाॅकि वो प्रदेश का मंत्री था और अजय सिंह के लिए उठना उसकी शान के खिलाफ़ था किन्तु फिर भी वो उठा ही। उसकी देखा देखी बाॅकी सब भी उठ गए।

"मोस्ट वेलकम ठाकुर।" चौधरी ने गर्मजोशी से तथा मुस्कुराते हुए अजय सिंह से हाॅथ मिलाया और फिर एक अन्य खाली सोफे की तरफ बैठने का इशारा किया और खुद भी अपनी जगह पर आ कर बैठ गया।

"बहुत बहुत शुक्रिया चौधरी साहब।" अजय सिंह ने अपने अंदर ही हड़बड़ाहट पर काबू पाते हुए किन्तु बड़ी शालीनता से कहा___"आज तो मेरे भाग्य ही खुल गए है जो आपके दर्शन हो गए।"

"ऐसा कुछ भी नहीं है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"इस वक्त हम किसी मंत्री की हैसियत से नहीं बल्कि एक आम इंसान तथा एक दोस्त की हैसियत से तुमसे मिल रहे हैं। और वैसे भी ये तो हमें भी पता चला है कि हमसे पहले जो मंत्री थे उनसे तुम्हारे बहुत गहरे ताल्लुकात थे। सारा पुलिस महकमा ही तुम्हारी मुट्ठी में होता था। किन्तु हमने सुना कि रात भर में सारा कुछ बदल गया था। इस सबका बड़ा हो हल्ला भी हुआ था। मगर किसी की समझ में न आया कि ऐसा क्यों हुआ था। आज भी ये रहस्य ही बना हुआ है।"

दिवाकर चौधरी की इस बात से अजय सिंह तो चौंका ही मगर उसके साथ साथ अशोक, अवधेश व सुनीता आदि भी चौंके थे। किन्तु उन लोगों ने बीच में कहा कुछ नहीं।

"हाॅ ये तो आपने सच कहा चौधरी साहब।" अजय सिंह ने सहसा गहरी साॅस ली___"एक वक्त था जब हर चीज़ मेरे लिए आसान थी मगर एक ऑधी आई और सब कुछ उड़ा कर ले गई। अब उन जगहों पर गहन ख़ामोशी के सिवा कुछ भी शेष नहीं रहा।"

"इसका मतलब तो ये हुआ कि वो सारा कुछ तुम्हारी वजह से बदल गया था?" इस बार चौंकने की बारी मानो चौधरी की थी। हैरत से बोला___"मगर आख़िर ऐसा हुआ क्या था ठाकुर? यकीनन कोई बड़ी वजह थी क्योंकि इतना बड़ा सिस्टम यहाॅ तक कि प्रदेश के मंत्री का तबादला हो जाना कोई मामूली बात नहीं है। उस सबसे तो हर कोई हैरान रह गया था। आज जबकि तुम्हारे मुख से ही पता चला कि वो सब तुम्हारी वजह से हुआ था तो इस सबको जानने की उत्सुकता और भी बढ़ गई है।"

अजय सिंह समझ सकता था कि उसे मंत्री को इस सबके बारे में बताना ही पड़ेगा। वो भी चाहता था कि किसी वजह से ही सही मगर उसे मंत्री का साथ मिल जाए। अतः उसने संक्षेप में अपनी फैक्ट्री में लगी आग वाले केस के संबंध में बता दिया। ये भी कि बाद में उसे ये पता चल ही गया कि फैक्ट्री में लगी आग के पीछे उसके अपने ही भतीजे विराज का हाॅथ था। मंत्री ये जान कर हैरान रह गया कि विराज ने इतना बड़ा काण्ड किया हुआ है अपने ताऊ के साथ। अजय सिंह ने मंत्री को ये भी बताया कि मंत्री का तबादला और सारे पुलिस महकमे को बदल देने में भी विराज का ही हाॅथ था। ये बात सुन कर तो चौधरी की गाॅड में कीड़े ही कुलबुलाने लगे। वो सोचने पर मजबूर हो गया कि विराज आख़िर चीज़ क्या है जो मंत्री और सारे पुलिस डिपार्टमेन्ट तक को इधर से उधर कर देने की क्षमता रखता है? चौधरी जैसा ही हाल वहाॅ बैठे बाॅकी सबका भी था।

"तुम्हारी कहानी तो वाकई में हैरतअंगेज है यार।" चौधरी ने चकित भाव से कहा___"मगर ये समझ नहीं आया कि तुम्हारे भतीजे विराज ने ऐसा किया क्यों?"

मंत्री ने जानबूझ कर ये सवाल किया था। उसे पता तो था किन्तु वो अजय सिंह के मुख से सच्चाई सुनना चाहता था।

"बड़ी लम्बी कहानी है चौधरी साहब।" अजय सिंह ने गहरी साॅस छोंड़ते हुए कहा___"कभी कभी हमारे साथ वो सब भी हो जाता है जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की होती है। दरअसल बात ये थी मैने अपने मॅझले भाई की बीवी और उसके दोनो बच्चों को घर और ज़मीन जायदाद से बेदखल कर दिया था। इसकी वजह ये थी कि मेरे भाई की बीवी गौरी एक चरित्रहीन औरत थी। जवानी में ही उसके पति की मौत हो गई थी जिसकी वजह से उससे अपने अंदर की गर्मी बर्दास्त नहीं हुई। शुरू शुरू में तो सब ठीक था मगर फिर उसके चाल चलन दिखने शुरू हुए। मैं जो कि उसका जेठ लगता था और गाॅवों में रिवाज है कि छोटे भाई की बीवी अपने जेठ के सामने सिर खुला नहीं रखती और ना ही उसे छूती है। मगर गौरी अपनी वासना और हवश की वजह से मुझ पर ही डोरे डालने लगी। मैं उसकी उस हरकत से हैरान था। हमारे खानदान कभी ऐसा नहीं हुआ था। हर कोई छोटे बड़े की मान मर्यादा का ख़याल रखता था। उधर दिनप्रति गौरी की हरकतों से मेरा दिमाग़ खराब होने लगा। मैने उसकी हरकतों के बारे में सबसे पहले अपनी पत्नी को बताया और उससे कहा भी कि वो गौरी को समझाए बुझाए कि ये सब कितना ग़तना ग़लत और पाप कर रही है। मेरी पत्नी ने गौरी को बहुत समझाया। मगर गौरी तो जैसे वासना और हवश में अंधी हो चुकी थी। जिसका नतीजा ये निकला कि एक दिन वो मुझे मेरे कमरे में अकेला देख कर आ धमकी और ज़बरदस्ती मुझसे सेक्स संबंध बनाने को कहने लगी। मैं उसकी उस हरकत और बातों से बहुत गुस्सा हुआ। जबकि वो मुझसे लपटी पड़ी थी। तभी इस बीच मेरी पत्नी आ गई। उसने गौरी को मुझसे छुड़ाया और उसे घसीटते हुए कमरे से बाहर ले गई। मेरी पत्नी ने उस सबके कैमरे द्वारा फोटोग्राफ्स भी निकाले थे। ऐसा इस लिए क्योंकि अगर हम गौरी की इन हरकतों के बारे में घर में किसी से बताते तो कोई भी हमारी बात पर यकीन ही न करता। क्योंकि सब गौरी को बहुत ही ज्यादा संस्कारी और आदर्श औरत मानते थे। ख़ैर उस दिन हमारे पास सबूत भी था इस लिए सबको मानना ही पड़ा और फिर सबकी सहमति से ही मैने उसे और उसीए बच्चों को हवेली से बाहर निकाल दिया। हवेली से बाहर मैने उसे खेतों पर बने मकान में रहने की रियायत ज़रूर दे दी थी। ऐसा इस लिए क्योंकि वो आख़िर थी तो हमारे खानदान की बहू ही। हमने सोचा था कि हवेली से दूर खुतों पर बने मकान में रहेगी तो सब कुछ ठीक ही रहेगा। मगर हमारा ऐसा सोचना भी ग़लत हो गया। क्योंकि वो खेतों पर काम कर रहे मजदूरों पर ही वासना और हवस के चलते डोरे डालने लगी थी। एक दिन हमारे एक मजदूर ने इस बारे में मुझसे डरते हुए बताया। उसकी बात सुनकर मुझे गौरी पर हद से ज्यादा गुस्सा आया। उसके बाद मैने फैसला कर लिया कि अब उसे और उसके बच्चों को मैं उस गाॅव में नहीं रहने दूॅगा। क्योंकि इससे हमारी और हमारे खानदान की बहुत बदनामी होती। अतः मैने उसे हर चीज़ से बेदखल कर दिया। गौरी का लड़का थोड़ा बहुत समझदार था मगर वो भी अपनी माॅ की बातों को ही सच मानता था। उसे लगता था कि हमने उसकी माॅ को बेवजह ही हवेली से निकाला था। वो अपना और अपनी माॅ बहन का घर खर्चा चलाने के लिए मुम्बई में कहीं नौकरी करने चला गया था। जबकि उसके पीछे यहाॅ उसकी माॅ ये सब गुल खिला रही थी। ख़ैर, एक दिन बाद पता चला कि विराज अपनी माॅ व बहन को अपने साथ मुम्बई ले गया। उसके बाद अभी कुछ समय पहले से ही ये सब शुरू हुआ। यानी विराज ये सोच कर मुझसे बदला ले रहा है कि मैने उसके और उसके परिवार के साथ ग़लत किया है।"

"ओह तो ये हैं सारी बातें।" सब कुछ सुनने के बाद चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"लेकिन इतना कुछ हुआ और तुमको अंदाज़ा भी न हुआ कि ये सब तुम्हारे भतीजे ने ही किया है?"

"अंदाज़ा तो तब होता चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा___"जब मुझे उससे इस सबकी उम्मीद होती। मैं तो यही समझता था कि वो लड़का निहायत ही सीधा सादा और भोला है। भला मुझे क्या पता था कि वो किसी डायनामाइट से कम नहीं है।"

"ख़ैर।" चौधरी ने पहलू बदला___"हमने सुना है कि तुम्हारी अपनी बेटी जो कि पुलिस इंस्पेक्टर है वो आजकल तुम्हारे खिलाफ़ हो चुकी है। ये क्या चक्कर है?"
"चक्कर वक्कर कुछ नहीं है चौधरी साहब।" अजय सिंह मन ही मन बुरी तरह चौंका था किन्तु चेहरे पर चौंकने के भावों को आने न दिया था, बोला___"दरअसल बात ये है कि हमें उसका पुलिस की नौकरी करना ज़रा भी पसंद नहीं था। जबकि पुलिस की नौकरी करना उसका शौक था बचपन से ही। मैने और मेरी पत्नी प्रतिमा ने उससे कहा कि ये पुलिस की नौकरी छोंड़ दो, भला उसे नौकरी करने ज़रूरत ही क्या है? उसे जिस चीज़ की भी ज़रूरत होती है हम उसके बोलने से पहले ही वो चीज़ लाकर उसके क़दमों में डाल देते हैं। मगर वो हमारी बात सुनती ही नहीं। बचपन से ही ज़िद्दी थी वो। एक दिन उसकी माॅ ने कदाचित कुछ ज्यादा ही कड़े शब्दों में कह दिया था। जिसकी वजह से वो गुस्सा हो गई और कहने लगी कि उसे हमारी किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है। वो अपनी ज़रूरतें खुद पूरी कर लेगी। बस उस दिन के बाद से वो ना तो मुझसे बोलती है और ना ही अपनी माॅ से। यहाॅ तक कि घर भी नहीं आती।"

"बड़ी अजीब बात है।" दिवाकर चौधरी ने कहा__"भला तुम लोगों को उसका नौकरी करने से एतराज़ क्यों है? आज की जनरेशन ज़रा एडवाॅस टेक्नालाॅजी में सम्मिलित है। वो खुद पर और अपने टैलेन्ट के बल पर ही जीवन जीना चाहते हैं। अतः तुम दोनो का उसका नौकरी करने से ऐतराज़ करना सरासर ग़लत था। ख़ैर, जैसा कि तुमने बताया कि उस दिन से वो घर भी नहीं आती है तो सवाल ये है कि वो रहती कहाॅ है फिर? क्या तुमने पता करने की कोशिश नहीं की कि तुम्हारी लड़की रहती कहाॅ है? दिन का तो चलो ठीक है कि वो पुलिस में अपनी ड्यूटी के चलते कहीं न कहीं ब्यस्त ही रहती होगी मगर रात को? रात को कहाॅ रहती होगी वो?"

"पुलिस वाली है चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा__"खुद कमाती है। इस लिए कहीं न कहीं अपने रहने के लिए कोई किराये से कमरा ले लिया होगा।"
"ये तो तुम संभावना ब्यक्त कर रहे हो ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"जबकि तुम्हें खुद पता लगाना चाहिए था कि अगर वो लौटकर हवेली नहीं आती है तो रहती कहाॅ है? कैसे बाप हो तुम ठाकुर?"

अजय सिंह कुछ बोल न सका। उसे एहसास था कि चौधरी सच कह रहा था कि उसे खुद अपनी बेटी के बारे में पता करना चाहिए था। भले ही वो पुलिस वाली थी मगर ये भी सच था कि वो एक लड़की भी थी। वो भले ही अपनी सुरक्षा बखूबी कर ले मगर वो तो उसका बाप था न? उसे तो अपनी बेटी की चिन्ता होनी चाहिए थी। अजय सिंह सोचो में गुम तो था मगर उसके ज़हन में ये भी था कि रितू के साथ उसकी छोटी बहन नैना भी है। शायद यही वजह थी कि उसने अब तक पता करने की कोशिश नहीं की थी कि वो दोनों कहाॅ रहती हैं? अकेले रितू बस होती तो उसे चिंता यकीनन होती मगर उसके साथ में नैना जैसी पढ़ी लिखी व समझदार उसकी बहन भी थी। इस लिए वो बेफिक्र था अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए।

"क्या सोचने लगे ठाकुर?" उसे सोचों में गुम देख कर चौधरी ने कहा__"ख़ैर छोंड़ो यार, ये तुम्हारे घर की बात है तुम्हें जो उचित लगे वो करो। अच्छा एक बात बताओ।"
"ज जी????" अजय सिंह चौंका___"प..पूछिए।"

"क्या ऐसा हो सकता है।" चौधरी ने बड़े ग़ौर से अजय सिंह को देखते हुए कहा___"तुम्हारी बेटी और तुम्हारा भतीजा विराज एक हो गए हों? क्या ऐसा हो सकता है कि विराज ने तुम्हारी बेटी को अपने साथ मिला लिया हो??"

"प..प.पता नहीं।" अजय सिंह के ऊपर जैसे एकाएक सारा आसमान भरभरा कर गिर पड़ा था। बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हालते हुए कहा उसने___"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं चौधरी साहब? जबकि ऐसा हर्गिज़ नहीं हो सकता। इसकी वजह ये है कि मेरे तीनो ही बच्चे उसकी माॅ की हरकतों की वजह से उससे और उसकी माॅ बहन से कभी कोई बात करने की तो बात दूर बल्कि उन्हें देखना तक पसंद नहीं करते।"

"ऐसा तुम सोचते हो ठाकुर।" दिवाकर चौधरी ने दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा___"जबकि अक्सर ऐसा हो जाया करता है जिसकी हमें पूरी उम्मीद होती है कि ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता।"

"क्या मतलब???" अजय सिंह चकरा सा गया।
"मतलब साफ है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"तुम ये सोच कर ये नहीं मान रहे हो कि तुम्हारी बेटी विराज को देखना तक पसंद नहीं करती इस लिए वो उससे मिल नहीं सकती जबकि ऐसा हो भी सकता है कि वो उससे मिल ही गई हो। विराज की कारगुजारियों से इतना तो पता चल ही गया है कि वो कितना शातिर दिमाग़ रखता है और कितनी ऊॅची पहुॅच भी रखता है। अतः अगर वो अपने शातिर दिमाग़ के चलते तुम्हारी बेटी को अपनी तरफ कर भी ले तो हैरत की बात नहीं होगी। संभव है कि उसने रितू को ऐसा कोई पाठ पढ़ा दिया हो जिसके चलते तुम्हारी बेटी का ब्रेन वाश हो गया हो और अब वो उसे सही मान रही हो और तुम्हें यानी कि अपने बाप को ग़लत।"

अजय सिंह मंत्री की सूझ बूझ तथा उसकी दूरदर्शिता की मन ही मन दाद दिये बिना न रह सका। सच्चाई भले ही कुछ और थी मगर जितना उसने उहे बताया था उस हिसाब से कड़ियों को जोड़ कर सच्चाई के रूप में अपनी संभावनाएॅ इस तरह बयां करना आसान बात न थी। सहसा उसे ख़याल आया कि जबसे वो यहाॅ आया है तब से मंत्री सिर्फ उसी के संबंध में बातें पूछ रहा है जबकि उसे अब तक यही समझ में नहीं आया था कि मंत्री ने आख़िर उसे बुलाया किस लिए था??

"भगवान जाने चौधरी साहब।" फिर उसने पहलू बदलने की गरज से कहा___"कि सच्चाई है इस संबंध में। ख़ैर छोंड़िये ये सब और ये बताइये कि इस नाचीज़ को किस लिए बुलाया था आपने?"

अजय सिंह द्वारा अचानक ही इस तरह पहलू बदल लेना चौधरी को मन ही मन चौंकाया मगर उसने उसे ज़ाहिर न किया। बल्कि उसके पूछने पर वह मुस्कुराया और सेन्टर टेबल पर सजे फल फूल व मॅहगी शराब की तरफ इशारा किया।

"ये तो कमाल हो गया ठाकुर।" फिर चौधरी ने मुस्कुराते हुए ही कहा___"तुम आज यहाॅ पहली बार आए और हमने बातों के चक्कर में ये भी ख़याल नहीं रखा कि घर आए मेहमान का आतिथ्य भी किया जाता है।"

"मैं कोई मेहमान नहीं हूॅ चौधरी साहब।" अजय सिंह ने भी मुस्कुराते हुए कहा___"आपने मुझे दोस्त कह कर मेरा मान बढ़ा दिया है यही बहुत है मेरे लिए। इस नाते अब तो ये भी अपना ही घर हुआ और अपने ही घर में भला कोई मेहमान कैसा हो सकता है?"

"हाॅ तो सही कहा तुमने।" चौधरी हॅसा और फिर बगल से ही बैठे अशोक, अवधेश व सुनीता की तरफ इशारा करते हुए कहा___"इनसे मिलो ठाकुर, ये सब भी हमारे गहरे दोस्त हैं। बल्कि यूॅ समझो कि ये तीनो हमारे दोस्तों की लिस्ट में सबसे ऊपर हैं और आज से तुम भी शामिल हो गए हो।"

"ये तो मेरा सौभाग्य है चौधरी साहब।" अजय सिंह ने खुश होते हुए कहा___"जो आपने मुझे अपने दोस्त का दर्ज़ा दिया है। मैं पूरी कोशिश करूॅगा कि इस दोस्ती पर खरा उतर सकूॅ।"
"चलो फिर इसी बात पर एक एक जाम हो जाए।" चौधरी ने मुस्कुराते हुए कहा___"और हमारी दोस्ती को सेलीब्रेट किया जाए।"

"जी बिलकुल।" अजय सिंह हॅसा और उन तीनों की तरफ देख कर उन तीनो से हैलो किया तथा हाॅथ भी मिलाया। चौधरी के कहने पर सुनीता ने सबके लिए जाम बनाया और साक़ी बन कर सबको पिलाया भी। इस बीच चौधरी ने अजय सिंह को बताया कि सुनीता उसके साथ साथ बाॅकी उन दोनो को भी हर तरह से खुश रखती है। अजय सिंह ये जान कर हैरान भी हुआ था। मगर फिर ये सोच कर मुस्कुराया भी कि चौधरी भी उसी की तरह ही औरतबाज है।

लगभग आधा घंटे से ऊपर तक जामों का दौर चलता रहा। सब के सब हल्के नशे के सुरूर में आ चुके थे। उसके बाद बातों का सिलसिला फिर से शुरू हुआ। अजय सिंह सबसे काफी खुल चुका था। बाॅकी सब भी अजय सिंह से खुल चुके थे। सुनीता को अजय सिंह की पर्शनाल्टी पहली नज़र में ही भा गई थी और वो उसके नीचे लेटने के लिए बेक़रार हो उठी थी। मगर अभी उसको भी पता था कि उसकी ये बेक़रारी शान्त नहीं होने वाली है। यानी कुछ समय तक इन्तज़ार करना पड़ेगा उसे।

"मज़ा आ गया चौधरी साहब।अजय सिंह ने नशे के हल्के सुरूर में मुस्कुराते हुए कहा___"आप सच में बहुत अच्छे हैं। एक पल के लिए भी मुझे ऐसा नहीं लगा जैसे इसके पहले आप मेरे लिए ग़ैर थे। सच कहता हूॅ आपसे मिल कर और आपका दोस्त बन कर बहुत अच्छा लग रहा है। बहुत दिनों बाद ऐसे खुश होने का मौका मिला है मुझे।"

"अभी तो इससे भी ज्यादा मज़ा आएगा ठाकुर।" चौधरी ने भी नशे के हल्के सुरूर में कहा___"हमारी दोस्ती में और हमारे साथ में ऐसा ही होता है। हमें वही इंसान अच्छा लगता है जो हमसे वफ़ा करे। वफ़ादार ब्यक्ति के लिए हम कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।"

"मैं ज़रूर आपका वफ़ादार रहूॅगा चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा___"आप जब भी मुझे याद करेंगे मैं आपके सामने हर काम छोंड़ कर हाज़िर हो जाऊॅगा। मुझे भी वफ़ादार इंसान ही अच्छे लगते हैं जो दोस्त के लिए कुछ भी कर जाए मगर...।"

"मगर क्या ठाकुर।" चौधरी ने सिर उठा कर अजय सिंह की तरफ देखा___"तुम्हारे स्वागत में हमसे कोई कमी हो गई है क्या? अगर ऐसा है तो बेझिझक बोल दो यार। जो बोलोगे वो मिलेगा तुम्हें। ये दिवाकर चौधरी का वचन है।"

"न नहीं नहीं चौधरी साहब।" अजय सिंह ने हड़बड़ाते हुए कहा___"आपने किसी बात की कमी नहीं की है। मेरे कहने का मतलब ये था कि आपने मुझे बताया नहीं कि आपने मुझे किस वजह से यहाॅ बुलाया था? देखिए अब तो हम दोनो दोस्त बन गए हैं न। इस लिए अगर कोई बात है आपके मन में तो बेझिझक कहिए। मैं वादा करता हूॅ कि अगर मेरे लिए आपका कोई आदेश है तो मैं जान देकर भी उसे पूरा करूॅगा।"

अजय सिंह की बात इस पर चौधरी ने उसे बड़े ध्यान से देखा जैसे जाॅच रहा हो कि उसकी बात पर कितना दम है। फिर अपने हाॅथ में लिए शराब के प्याले को मुह से लगा कर शराब का हल्का सा घूॅट लिया उसके बाद अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा___"आदेश तो कुछ भी नहीं है ठाकुर। बस ये समझो कि आज के समय में जो तुम्हारा दुश्मन है वही हमारा भी दुश्मन है।"

"ये आप क्या कह रहे हैं चौधरी साहब?" अजय सिंह ने ऑखें फैलाते हुए कहा____"मेरा दुश्मन तो मेरा वो हरामज़ादा भतीजा बना हुआ है किन्तु वो आपका दुश्मन कैसे बन गया? बात कुछ समझ में नहीं आई चौधरी साहब।"

"तुमने कुछ समय पहले किसी लड़की के सामूहिक रेप के बारे में तो सुना ही होगा न?" चौधरी ने कहा।
"र रेप के बारे में???" अजय सिंह के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे। फिर सहसा जैसे उसे याद आया___"ओह हाॅ हाॅ सुना था। आप उसी रेप स्कैण्डल की बात कर रहे हैं न जिस पर कुछ समय पहले काफी हो हल्ला हुआ था? मगर फिर सब कुछ शान्त हो गया था। उसके बाद कुछ पता ही नहीं चला कि क्या हुआ? मगर आपका उस रेप केस से क्या संबंध?"

"दरअसल वो रेप हमारे बच्चों की करतूत का नतीजा था ठाकुर।" चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"तुम्हारे गाॅव के ही पास की एक विधी नाम की लड़की थी जिसके साथ हमारे बच्चों ने मिल कर रेप किया था। वो लड़की हमारे बच्चों के ही काॅलेज में पढ़ती थी। उस रेप केस पर हो हल्ला तो ज़रूर हुआ था किन्तु उस पर कोई शख्त ऐक्शन इस लिए नहीं लिया गया था क्योंकि मामला हमारे बच्चों का था। यहाॅ का पुलिस कानून हमारे खिलाफ कोई क़दम उठा ही नहीं सकता था। ये बात उस लड़की के घरवालों को भी समझ आ गई थी। इसी लिए लड़की के घरवालों ने भी कोई केस नहीं किया था और इसी वजह से मामला शान्त पड़ गया था। मगर....।"

"मगर????" अजय सिंह के चेहरे पर हैरत के भाव थे।
"मगर रेप के तीसरे दिन हमारे बच्चे हमारे ही फार्महाउस से गायब हो गए।" चौधरी कह रहा था___"और अब तक उनका कहीं कुछ पता नहीं चल सका है। उन बच्चों में एक हमारा बेटा है और तीन लड़कों में से एक अशोक का है दूसरा अवधेश का और तीसरा सुनीता का। हमने सब कुछ करके देख लिया मगर आज तक कहीं भी बच्चों का पता नहीं चला। सबसे गज़ब तो तब हो गया जब हमारी बेटी भी गायब हो गई।"

"ये आप क्या कह रहे हैं चौधरी साहब??" अजय सिंह हक्का बक्का नज़र आने लगा था, बोला___"मगर आपके बच्चों को गायब किसने किया हो सकता है? और अगर बच्चे अगर रेप के बाद से ही गायब हैं तो ज़ाहिर सी बात है कि उन्हें उसी ने गायब किया होगा जिसके साथ उन बच्चों ने अहित किया है। लेकिन गायब करने वाले का आपके पास कोई फोन या किसी तरह की सूचना तो आनी ही चाहिए थी। सीधी सी बात है कि अगर ये सब उसने बदला लेने के उद्देष्य से किया है तो वो देर सवेर ये ज़रूर सूचित करता कि आपके बच्चे उसके कब्जे में हैं।"
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