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RE: non veg kahani एक नया संसार
अस्त ब्यस्त हालत में मैं कुछ देर वहीं पर बैठा अपने साथ घटी पिछली सभी बातों के बारे में सोचता रहा। उसके बाद मैं किसी तरह उठा और कुछ दूरी पर नज़र आ रही सड़क की तरफ चल दिया। मैं ये समझ चुका था कि उन लोगों ने मुझे आज़ाद कर दिया था। मुझे बेहोश इस लिए किया गया था ताकि मैं उस जगह के बारे में कतई न जान सकूॅ कि उन लोगों ने मुझे कहाॅ पर रखा था। मैं ये भी समझ चुका था कि मैं चाह कर भी अब उन लोगों तक नहीं पहुॅच सकता जो लोग नकली सीबीआई के ऑफिसर बन कर हवेली से मुझे गिरफ्तार करके ले गए थे।
सड़क पर आकर मैं किनारे पर ही खड़ा हो गया और सड़क के दोनो तरफ देखने लगा। मुझा अपने मोबाइल का ख़याल आया तो अनायास ही मेरे दोनो हाथ मेरी पैंट के दोनो पाॅकेट पर रेंग गए। मैं ये जान कर चौंका तथा हैरान हुआ कि मोबाइल मेरी बाई पाॅकेट में मौजूद है। मैने जल्दी से उसे निकाला और स्विच ऑन किया। मगर मैं ये देख कर भौचक्का रह गया कि मोबाईल में मौजूद दोनो सिम कार्ड गायब थे। उसमे नेटवर्क होने का सवाल ही नहीं था। मैने फोन में काॅटैक्ट लिस्ट देखा तो मेरे होश उड़ गए। क्योंकि उसमे से सारे नंबर टिलीट कर दिये गए थे। कहने का मतलब ये कि मैं मौजूदा हालत में किसी को ना तो फोन कर सकता था और ना ही मेरे मोबाइल फोन पर किसी का फोन आ सकता था। ये देख कर मेरा खून खौल गया। उन लोगों पर मुझे भयानक गुस्सा आ गया। ऊपर से साले ऐसी जगह मुझे फेंक दिया था जहाॅ से किसी वाहन का आना जाना भी लगभग न के बराबर था।
सड़क पर मैं घंटों खड़ा रहा किसी वाहन के इन्तज़ार में मगर कोई भी वाहन आता जाता नज़र न आया। प्रतिपल उस हालत में मेरे अंदर गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। आख़िर डेढ़ घंटे इन्तज़ार करने के बाद एक टैक्सी आती हुई नज़र आई। उसे देख कर मुझे थोड़ी राहत तो हुई मगर अगले ही पल ये सोच कर मैं मायूस हो गया कि इस वक्त किसी वाहन में जाने के लिए मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। इसके बावजूद मैने अपनी सभी पाॅकेट पर हाॅथ फेरा और अगले ही पल मैं चौंका। पैन्ट की पिछली जेब में मुझे कुछ महसूस हुआ। मैने फौरन ही उस चीज़ को निकाला तो मुझे एक पाॅच सौ का नोट नज़र आया।
पाॅच सौ का नोट उस वक्त मैं इस तरह देख रहा था जैसे मैने कभी उसे देखा ही न हो और सोचने लखा था कि इस प्रकार का ये काग़ज आख़िर है क्या चीज़? ख़ैर, वो टैक्सी जब मेरे क़रीब पहुॅचने को हुई तो मैने उसे रुकने के लिए हाॅथ से इशारा किया। मेरे इशारे पर वो टैक्सी मेरे पास पहुॅच कर रुक गई। मैने देखा कि उसमें जो ड्राइवर था वो कोई पैंतीस के आस पास का काला सा आदमी था। टैक्सी को रुकते ही उसने विंडो से अपना सिर बाहर की तरफ निकाल कर मुझसे पूछा कहाॅ जाना है? मैने उसे पता बताया तो उसने अंदर बैठने का इशारा किया। लेकिन उससे पहले ये बताना न भूला था कि भाड़ा पाॅच सौ रुपये लगेगा। मैं उसके भाड़े का सुन कर मन ही मन चौंका। मगर बोला यही कि ठीक है भाई ले लेना मगर मुझे बताए गए पते पर पहुॅचा दो। बस ये कहानी थी।"
"बड़ी हैरत व बड़ी अजीब कहानी है।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा___"इसका मतलब उन लोगों ने तुमें ऐसी जगह छोंड़ा था जहाॅ से अगर कोई वाहन मिलता भी तो वो तुमसे भाड़े के रूप पाॅच सौ रुपये ही माॅगता और इसी लिए उन लोगों ने तुम्हारी जेब में पाॅच सौ रुपये डाल दिये थे ताकि तुम आराम से यहाॅ तक पहुॅच सको। ये तो कमाल ही हो गया अजय।"
"कमाल तो हो ही गया।" अजय सिंह ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा___"मगर मुझे ऐसा लगता है जैसे वो टैक्सी वाला भी साला उन्हीं का आदमी था। क्योंकि जिस रास्ते पर वो मिला था उस रास्ते पर डेढ़ घंटे इन्तज़ार करने के बाद ही उस टैक्सी के रूप में वाहन मिला था। टैक्सी पर कोई दूसरी सवारी नहीं थी
बल्कि ड्राइवर के अलावा सारी टैक्सी खाली ही थी।"
"बिलकुल ऐसा हो सकता है अजय।" प्रतिमा के मस्तिष्क में जैसे झनाका सा हुआ था, बोली___"यकीनन वो टैक्सी और वो टैक्सी ड्राइवर उन लोगों का ही आदमी था। अगर ऐसा है तो इसका मतलब ये भी हुआ कि पाॅच सौ रुपया जहाॅ से आया था तुम्हारे पास वो वापस वहीं लौट भी गया। क्या कमाल का गेम खेला है उन लोगों ने।"
"उन लोगों ने नहीं प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि उस हरामज़ादे विराज ने। मुझे तो अब तक यकीन नहीं हो रहा कि वो सब विराज के आदमी हैं और विराज के ही हुकुम पर उन लोगों ने ये संगीन कारनामा अंजाम दिया था। तुम ही बताओ प्रतिमा क्या तुम सोच सकती हो कि कल का छोकरा कहीं पर बैठे बैठे ऐसा कोई कारनामा कर सकता है?"
"बेशक नहीं सोच सकती अजय।" प्रतिमा ने गंभीरता से कहा___"मगर शुरू से लेकर अब तक की उसकी सारी गतिविधियाॅ ऐसी रही हैं कि अब अगर वो कुछ भी अविश्वसनीय करे तो सोचा जा सकता है। इससे एक बात ये भी साबित होती है कि वो कोई मामूली चीज़ नहीं रह गया है। या तो उसे किसी पहुॅचे हुए ब्यक्ति का आशीर्वाद प्राप्त है या फिर सच में वो इतना क़ाबिल हो गया है कि वो आज के समय में हर चीज़ अफोर्ड कर सकता है।"
"यही तो हजम नहीं हो रहा प्रतिमा।" अजय ने झुंझलाहट के मारे कहा___"इतने कम समय में आख़िर उसने ऐसा क्या पा लिया है जिसके बलबूते पर वो कुछ भी कर सकने की क्षमता रखता है? आज के समय में सच्चाई और नेकी कक राह पर चलते हुए इतनी बड़ी चीज़ अथवा कामयाबी नहीं पाई जा सकती। ज़रूर वो कोई ग़लत काम कर रहा है। हाॅ प्रतिमा, ग़लत कामों के द्वारा ही कम समय में बड़ी बड़ी चीज़ें हाॅसिल होती हैं, फिर भले ही चाहे उन बड़ी बड़ी चीज़ों की ऊम्र छोटी ही क्यों न हो।"
"यकीनन अजय।" प्रतिमा ने कहा___"ऐसा ही लगता है। मगर सबसे बड़े सवाल का जवाब तो अभी तक नहीं मिला न।"
"कौन सा सवाल?" अजय सिंह चौंका।
"यही कि उसने तुम्हारे साथ।" प्रतिमा ने कहा___"मेरा मतलब है कि उसने तुम्हें नकली सीबीआई वालों के द्वारा गिरफ्तार करवा के दो दिन तक किसी गुप्त कैद में रखा तो इसमें उसका क्या मकसद छिपा था? आख़िर उसने तुम्हें कैद करवा के अपना कौन सा उल्लू सीधा किया हो सकता है? हमारे लिए ये जानना बेहद ज़रूरी है अजय। आख़िर पता तो चलना ही चाहिए इस सबका।"
"पता चलना तो चाहिए।" अजय सिंह ने कहा___"मगर कैसे पता चलेगा? हमारे पास ऐसा कोई छोटा से भी छोटा सबूत या क्लू नहीं है जिसके आधार पर हम कुछ जान सकें।"
"एक सवाल और भी है अजय।" प्रतिमा ने कुछ सोचते हुए कहा___"जो कि कुछ दिनों से मेरे दिमाग़ में चुभ सा रहा है।"
"ऐसा कौन सा सवाल है भला?" अजय सिंह के माथे पर शिकन उभरी।
"यही कि हमारी बेटी रितू।" प्रतिमा ने कहा___"जब से हमसे खिलाफ़ हुई है तब से वो घर वापस नहीं आई। तो सवाल ये है कि वो रहती कहाॅ है? मुझे लगता है कोई ऐसी जगह ज़रूर है जहाॅ पर वो नैना और विराज के साथ रह रही है। ऐसी कौन सी जगह हो सकती है?"
प्रतिमा की इस बात से अजय सिंह उसे इस तरह देखता रह गया था मानो प्रतिमा के सिर पर अचानक ही दिल्ली का लाल किला आकर खड़ा हो गया हो। फिर जैसा उसे होश आया।
"सवाल तो यकीनन वजनदार है।" फिर अजय सिंह ने कहा___"मगर संभव है कि वो यहीं कहीं आस पास ही किसी के घर में कमरा किराये पर लिया हो और हमारे पास रह कर ही वो हमारी हर गतिविधी पर बारीकी से नज़र रख रही हो।"
"हो सकता है।" प्रतिमा ने कहा___"मगर हमारे इतने क़रीब रहने की बेवकूफी वो हर्गिज़ भी नहीं कर सकती जबकि उसे बखूबी अंदाज़ा हो कि पकड़े जाने पर उसके साथ साथ नैना और विराज का क्या हस्र हो सकता है। इस लिए इस गाॅव में वो किसी के घर में पनाह नहीं ले सकती।"
"इस गाॅव में न सही।" अजय सिंह बोला___"किसी ऐसे गाॅव में तो पनाह ले ही सकती है जो हमारे इस हल्दीपुर गाॅव के करीब भी हो और वो बड़ी आसानी से हमारी हर मूवमेन्ट को कवरप कर सके।"
"हाॅ ये हो सकता है।" प्रतिमा ने कहा___"किसी दूसरे गाॅव में वो यकीनन रह रही है और हम पर बारीकी से नज़र रखे हुए है। ख़ैर छोंड़ो ये सब बातें, मैं ये कह रही हूॅ कि आज तुम्हारे ससुर जी आ रहे हैं।"
"क क्या???" अजय सिंह उरी तरह चौंका___"स ससुर जी? मतलब कि तुम्हारे पिता जगमोहन सिंह जी??"
"हाॅ डियर।" प्रतिमा ने सहसा खुश होते हुए कहा___"आज वर्षों बाद मैं अपने पिता जी से मिलूॅगी। मगर अजय मुझे अंदर से ऐसा लग रहा है जैसे मैं उनके सामने जा ही नहीं पाऊॅगी। तुम तो जानते हो कि मैने तुमसे शादी उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ जाकर तथा उनसे हर रिश्ता तोड़ कर की थी। इतने वर्षों के बीच कभी भी मैने उनसे न मिलने की कोशिश की और ना ही कभी उनसे फोन पर बात करने की। ये एक अपराध बोझ है अजय जिसके चलते मुझमें हिम्मत नहीं है कि मैं अपने पिता का सामना कर सकूॅ।"
"पर मैं इस बात से हैरान हूॅ।" अजय सिंह ने चकित भाव से कहा___"कि इतने वर्षों बाद उन्हें अपनी बेटी की याद कैसे आई और यहाॅ आने का विचार कैसे आया उनके मन में?"
"ये सब मेरी वजह से ही हुआ है अजय।" प्रतिमा ने कहा___"दरअसल जब तुम्हें सीबीआई के वो लोग गिरफ्तार करके ले गए थे तब मैं बहुत परेशान व घबरा गई थी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे मैं तुम्हें सीबीआई की कैद से आज़ाद कराऊॅ? तब पहली बार मुझे अपने पिता का ख़याल आया। हाॅ अजय, तुम तो जातने हो कि मेरे पिता जी बहुत बड़े वकील हैं। कैसा भी केस हो उनके अंडर में आने के बाद उनका मुवक्किल बाइज्ज़त बरी ही होता है। इस लिए मैने सोचा कि तुम्हें कानून की उस गिरफ्त से छुड़ाने के लिए मुझे अपने पिता से ही मदद लेनी चाहिए। मगर चूॅकि मैने उनसे अपने हारे संबंध वर्षों पहले ही तोड़ लिये इस लिए हिम्मत नहीं हो रही थी उनसे बात करने की।"
"ओह।" अजय सिंह हैरत से बोला___"फिर क्या हुआ?"
अजय सिंह के पूछने पर प्रतिमा ने सारा किस्सा बता दिया उसे। ये भी कि कैसे उसके चक्कर खा कर गिरने पर शिवा ने रिऐक्ट किया जिसके तहत उसके पिता जी भी घबरा गए और फिर उन्होंने तुरंत यहाॅ आने के लिए कहा। उनके पूछने पर ही शिवा ने उन्हें यहाॅ का पता भी बताया था। सारी बातें सुन कर अजय सिंह अजीब सी हालत में सोफे पर बैठा रह गया।
"ये तुमने अच्छा नहीं किया प्रतिमा।" फिर अजय सिंह मानो गंभीरता की प्रतिमूर्ति बना बोला___"मैं इस बात से दुखी नहीं हुआ हूॅ कि मेरे सुसर और तुम्हारे यहाॅ आ रहे हैं बल्कि दुखी इस बात पर हुआ हूॅ कि ऐसे हालात में उनका आगमन हो रहा है। तुमें तो सब पता ही है डियर हमारे हालातों के बारे में। तुम्हारे पिता एक तेज़ तर्रार व क़ाबिल वकील हैं तथा उनका दिमाग़ तेज़ गति से काम करता है। इस लिए अगर इस हालातों के संबंध में कोई एक बात शुरू हुई तो समझ लो कि फिर उस बात से और भी बहुत सी बातें शुरू हो जाएॅगी। उस सूरत में हमारी हालत और भी ख़राब हो सकती है। हम भला ये कैसे चाह सकते हैं कि हमारी असलियत उनके सामने फ़ाश हो जाए?"
"तुम सच कह रहे हो अजय।" प्रतिमा को भी जैसे वस्तु- स्थिति का एहसास हुआ___"इस बारे में तो मैने सोचा ही नहीं था। सोचने का ख़याल ही नहीं आया अजय। हालात ही ऐसे थे कि मुझे मजबूर हो कर अपने पिता डी से बात करनी पड़ी और उन्होंने यहाॅ आने का भी कह दिया। दूसरी बात मुझे तो ये ख्वाब में भी उम्मीद नहीं थी कि तुम आज वापस इस तरह आ जाओगे। वरना मैं अपने पिता को फोन ही नहीं करती।"
"इसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है डियर।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"तुमने जो कुछ भी किया उसमें सिर्फ तुमहारी अपने पति के प्रति चिंता व फिक्र थी। ख़ैर अब जो हो गया सो हो गया मगर अब हमें बड़ी ही होशियारी और सतर्कता से काम लेना होगा। तुम उन्हें ये नहीं बताओगी कि कल तुमने उन्हें किस वजह हे फोन किया था बल्कि यही कहोगी कि तुम्हें उनकी बहुत याद आ रही थी। दूसरी बात शिवा को भी समझा दो कि वो उनके सामने ऐसी कोई भी बात न करे जिससे किसी भी तरह की बात खुलने का चाॅस बन जाए।"
"हमारी दूसरी बेटी नीलम भी तो आज आ गई है मुम्बई से।" प्रतिमा ने कहा___"इतना ही नहीं उसके साथ में मेरी बहन की बेटी सोनम भी है।"
"क्या????" अजय सिंह चौंका।
"हाॅ अजय।" प्रतिमा ने बेचैनी से कहा___"वो दोनो ऊपर कमरे में इस वक्त सो रही हैं।"
"अरे तो तुम उनके पास जाओ।" अजय सिंह एकदम से फिक्रमंद हो उठा था, बोला___"और उन दोनो को अच्छी तरह समझा दो कि वो दोनो अपने नाना जी के सामने हालातों के संबंध में किसी भी तरह की कोई बात नहीं करेंगी।"
"ठीक है।" प्रतिमा ने सोफे से उठते हुए कहा___"मैं अभी जाती हूॅ उनके पास और सब कुछ समझाती हूॅ उन्हें।"
ये कह कर प्रतिमा तेज़ तेज़ क़दमों के साथ ऊपर के कमरे में जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई। जबकि उसके जाने के बाद अजय सिंह एक बाथ पुनः असहाय सा सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर पसर गया था। चेहरे पर चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करते हुए नज़र आ रहे थे।
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RE: non veg kahani एक नया संसार
♡ एक नया संसार ♡
अपडेट........《 53 》
अब तक,,,,,,,,
"इसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है डियर।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"तुमने जो कुछ भी किया उसमें सिर्फ तुमहारी अपने पति के प्रति चिंता व फिक्र थी। ख़ैर अब जो हो गया सो हो गया मगर अब हमें बड़ी ही होशियारी और सतर्कता से काम लेना होगा। तुम उन्हें ये नहीं बताओगी कि कल तुमने उन्हें किस वजह हे फोन किया था बल्कि यही कहोगी कि तुम्हें उनकी बहुत याद आ रही थी। दूसरी बात शिवा को भी समझा दो कि वो उनके सामने ऐसी कोई भी बात न करे जिससे किसी भी तरह की बात खुलने का चाॅस बन जाए।"
"हमारी दूसरी बेटी नीलम भी तो आज आ गई है मुम्बई से।" प्रतिमा ने कहा___"इतना ही नहीं उसके साथ में मेरी बहन की बेटी सोनम भी है।"
"क्या????" अजय सिंह चौंका।
"हाॅ अजय।" प्रतिमा ने बेचैनी से कहा___"वो दोनो ऊपर कमरे में इस वक्त सो रही हैं।"
"अरे तो तुम उनके पास जाओ।" अजय सिंह एकदम से फिक्रमंद हो उठा था, बोला___"और उन दोनो को अच्छी तरह समझा दो कि वो दोनो अपने नाना जी के सामने हालातों के संबंध में किसी भी तरह की कोई बात नहीं करेंगी।"
"ठीक है।" प्रतिमा ने सोफे से उठते हुए कहा___"मैं अभी जाती हूॅ उनके पास और सब कुछ समझाती हूॅ उन्हें।"
ये कह कर प्रतिमा तेज़ तेज़ क़दमों के साथ ऊपर के कमरे में जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई। जबकि उसके जाने के बाद अजय सिंह एक बाथ पुनः असहाय सा सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर पसर गया था। चेहरे पर चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करते हुए नज़र आ रहे थे।
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अब आगे,,,,,,,,
उधर पुलिस वालों की कार से मैं और आदित्य भी सुरक्षित रितू दीदी के पास फार्महाउस पर पहुॅच गए थे। सारे रास्ते मैं सारी बातों और सारे हालातों के बारे में बारीकी से मनन करता आया था। इस जंग में मुझे दो ताकतों से भिड़ना था। एक तो अपने ताऊ अजय सिंह से और दूसरा मंत्री से। रितू दीदी ने मुझे मंत्री के संबंध में सारी बातें बता दी थी। मैं जान कर खुश था कि रितू दीदी के पास मंत्री के खिलाफ़ ऐसे सबूत हैं कि वो जब चाहे उस मंत्री और उसके साथियों को बीच चौराहे पर नंगा दौड़ने पर बिवश कर दें। इधर वही हाल मेरा भी था। मेरे पास भी अजय सिंह के खिलाफ़ ऐसे सबूत थे कि उन सबूतों के आधार पर अजय सिंह पलक झपकते ही कानून की ऐसी गिरफ्त में पहुॅच जाएगा जहाॅ से बच कर निकलना उसी तरह नामुमकिन था जैसे किसी नदी के दो किनारोउअं आपस मिलना नामुमकिन ही नहीं असंभव होता है।
मेरे मन में कभी कभी ये ख़याल भी आता था कि इस खेल को एक पल में खत्म कर दूॅ। यानी ग़ैर कानूनी धंधा करने और अवैध गैर कानूनी ऐसा पदार्थ रखने के जुर्म में अजय सिंह ऊम्र भर का लिए जेल की सलाखों के पीछे चला जाए जो पदार्थ किसी भी इंसान की ज़िंदगी खत्म करने के लिए काफी थे। मगर मैं ऐसा करना नहीं चाहता था बल्कि मैं तो अजय सिंह को खुद अपने हाथों से ऐसी सज़ा देना चाहता था कि वो मौत के लिए गिड़गिड़ाए मगर मौत उसे नसीब न हो सके।
मुझे इस बात का भी एहसास था कि आज भले ही मंत्री सच्चाई को पूरी तरह न जानता हो मगर देर सवेर उसे सब कुछ पता चल ही जाएगा। वो चुप नहीं बैठेगा बल्कि कुछ तो ऐसा करेगा ही कि उसके गले में फॅसी हुई हड्डी निकल सके और उसके बच्चे सही सलामत उसे वापस मिल सकें। मुझे एहसास था कि ये दोनो ही ताकतें बहुत ही खतरनाक साबित हो सकती है हमारे लिए। हम अभी तक इसी लिए सेफ रह सके थे क्योंकि हमने खुल कर तथा सामने आकर कोई काम नहीं किया था। बल्कि हर काम दोनो ताकतों की ग़ैर जानकारी में एवं छुप कर किया था। मगर हालात ज्यादा दिन तक ऐसे ही नहीं बने रह सकते थे। इस लिए इन सब बातों पर विचार करके मुझे सबसे पहले अपनी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करना था।
फार्महाउस पर हमें छोंड़ कर वो पुलिस के आदमी वापस चले गए थे। रितू दीदी मुझे वापस आया देख कर बेहद खुश हो गई थी। आदित्य तो सीधा कमरे की तरफ चला गया था जबकि मैं और कुछ देर वहीं ड्राइंगरूम में बैठा सबसे बातें करता रहा। नैना बुआ ने मुझसे मुम्बई में सबका हाल चाल पूछा। उसके बाद मैं भी उठ कर कमरे की तरफ बढ़ गया।
कमरे के अटैच बाथरूम में मैं मस्त ठंडे पानी से नहाया तो तबीयत हरी हो गई। नहा कर मैं टावेल लपेटे ही बाथरूम से कमरे में आ गया। जैसे ही मैं कमरे में आया तो बेड पर आराम से बैठी रितू दीदी पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं चौंका। दरअसल मैं इस वक्त सिर्फ एक टावेल में ही था। बाॅकी ऊपर का समूचा जिस्म नंगा ही था मेरा। रितू दीदी के सामने इस तरह आ जाने से मुझे शर्म सी महसूस हुई।
"ओहो क्या बात है राज।" सहसा रितू दीदी की चहकती हुई आवाज़ मेरे कानों से टकराई___"क्या बाॅडी शाॅडी बना रखी है तुमने। ओहो सिक्स पैक भी है। पक्का जिम करते होगे तुम, है न?"
"हाॅ थोड़ा बहुत करता हूॅ दीदी।" मैने शर्माते हुए कहा।
"अरे तुम शर्मा क्यों रहे हो राज?" रितू दीदी का चौंका हुआ स्वर___"भला मुझसे किस बात की शरम भाई? मैं तो तेरी बहन हूॅ कोई ग़ैर लड़की नहीं जिससे तू शरमाए।"
"पर दीदी।" मैने असहज भाव से कहा___"मैं कभी आपके सामने इस हालत में नहीं आया न। इस लिए मुझे थोड़ी शरम आ रही है।"
मेरी ये बात सुन कर रितू दीदी बेड से उतर कर मेरे क़रीब आ गई और फिर मेरे चेहरे को अपनी हॅथेलियों के बीच लेते हुए कहा___"ओए ये क्या बात हुई भला? तू मेरा सबसे अच्छा और सबसे हैण्डसम भाई है। तुझे मुझसे किसी भी तरह से शरमाने की या झिझकने की ज़रूरत नहीं है। तुझे पता है राज, अब तक मैं ऐसे रिश्तों के बीच थी जो कहने को तो मेरे अपने थे मगर उन सभी के अंदर पाप और गंदगी भरी हुई थी। ऐसे लोगों से मेरा कोई संबंध नहीं है अब। दुनियाॅ में मेरा अगर कोई अपना है तो वो है तू। मेरी ज़िंदगी का अब एक ही मकसद है भाई और वो है तेरे साथ ग़लत करने वालों सर्वनाश करना और तुझे संसार की हर खुशी देना। मेरा दिल करता है कि मैं तुझ पर कुर्बान हो जाऊॅ मेरे भाई, फना हो जाऊॅ तुझ पर।"
"मुझे पता है दीदी।" मैने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"कि आप मुझसे बहुत प्यार करती हैं। इसका सबसे बड़ा सबूत यही है कि आज आप अपने ही माता पिता के खिलाफ़ हो गई हैं और अपने माता पिता के सबसे बड़े दुश्मन का साथ दे रही हैं। मुझे इस बात की खुशी नहीं है कि आपने मेरे लिए अपने माता पिता से बगावत की है बल्कि इस बात की खुशी है कि मैं जिस रितू दीदी से बात करने के लिए अब तक तरस रहा था वो आज मेरे पास हैं।"
"काश ये सब मैं पहले ही सोच लेती राज।" रितू दीदी एकदम से दुखी होकर मुझसे लिपट गईं। फिर भारी स्वर में बोलीं___"तो इतने सालों तक मैं अपने भाई से दूर न रहती और ना ही ऐसे हालात पैदा होते।"
"हालात तो तब भी ऐसे ही पैदा होते दीदी।" मैने कहा___"क्योंकि इंसानों की फितरत कभी नहीं बदलती। वो अपनी फितरत से मजबूर होकर पहले भी वही करता जो आज कर रहा है।"
"माना कि मेरे पिता अपनी फितरत के चलते वही सब करते जो आज कर रहे हैं।" रितू दीदी ने कहा___"मगर मैं तेरी बात कर रही हूॅ राज। तू मुझे पहले ही तो मिल जाता न? मेरी वजह से तेरे दिल को इतनी तक़लीफ तो न होती जितनी अब तक हुई थी।"
"कोई बात नहीं दीदी।" मैने प्यार से कहा___"जो गुज़र गया उसे भूल जाइये और आज की बात करिये तथा आज के माहौल में खुश रहिए।"
"तू साथ है तो अब मैं खुश ही रहूॅगी राज।" रितू दीदी ने मेरी ऑखों में देखते हुए कहा___"तुझे पता है राज, इसके पहले मैं कभी किसी लड़के के क़रीब नहीं गई। पता नहीं क्यों पर मुझे हर लड़के से एक नफ़रत सी थी। आज के समय में हर लड़का लड़की एक दूसरे के जाने कितने क़रीब आ जाते हैं मगर मुझे इन सब बातों से बेहद चिढ़ थी। मगर विधी से मिलने के बाद और उसकी प्रेम कहानी सुनने के बाद मुझे एहसास हुआ कि आज भी ऐसे लोग हैं जो पाक़ मोहब्बत करते हैं और एक मिसाल बन जाते हैं। मैं बहुत खुश थी मेरे भाई कि ऐसा इंसान मेरा अपना भाई ही है और फिर मुझे एहसास हुआ कि कितनी ग़लत थी मैं जो तुझे बचपन से ही ग़लत समझती आ रही थी। बस उसके बाद जब सबकुछ पता चला तो तेरे लिए मेरे हृदय में और भी जगह हो गई भाई। मेरी अंतर्आत्मा से बस एक ही आवाज़ आती है और वो ये कि अब तुझसे ही मेरी हर खुशी है और दुख भी।"
"जो होता है सब अच्छे के लिए ही होता है दीदी।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"आज मेरी सबसे अच्छी दीदी मेरे पास है और मुझे इतना प्यार करती है। मैं बता नहीं सकता कि इस बात से मैं कितना खुश हूॅ दीदी। मेरा तो मुम्बई जाने का बिलकुल भी मन नहीं था। मगर सबको लेकर जाना भी ज़रूरी था। लेकिन वहाॅ से वापस आपके पास आ जाने के लिए मैं उतावला हो रहा था। मुझे लग रहा था कि मैं पलक झपकते ही आपके पास पहुॅच जाऊॅ।"
"ऐसी बातें मत कर राज।" रितू दीदी की आवाज़ काॅप सी गई। वो मुझसे कस के लिपट गईं और फिर बोली___"तुझे नहीं पता कि तेरी ऐसी बातों से मैं कितनी कमज़ोर हो सकती हूॅ। कहीं ऐसा न हो जाए कि मैं तेरे बिना एक पल भी रह न पाऊॅ।"
"तो क्या हुआ दीदी?" मैंने कहा___"सब कुछ ठीक होने के बाद हम सब एक साथ ही तो रहेंगे। फिर आप ऐसा क्यों कह रही हैं?"
"तू नहीं समझेगा राज।" रितू दीदी ने सहसा बेचैनी से पहलू बदला___"ख़ैर छोंड़ ये सब। मैं ये कह रही हूॅ कि विधी के माता पिता भी यहाॅ आ गए हैं। उनसे भी मिल लेना तुम।"
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RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर गुनगुन में अपने आवास पर मंत्री दिवाकर चौधरी अपने दो दोस्तों और एक रखैल दोस्त यानी सुनीता के साथ ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठा था। इस वक्त ड्राइंग रूम में इन चारों के अलावा और कोई नहीं था। मंत्री के सुरक्षा गार्ड सब बाहर ही तैनात थे।
"वैसे आपको क्या लगता है चौधरी साहब।" सहसा अशोक मेहरा कह उठा___"वो ठाकुर हमारी इस मामले में क्या सहायता कर सकता है? जबकि उसकी खुद की बेटी ही उसके खिलाफ़ है।"
"इन्हीं सब चीज़ों के बारे में तो जानना है अशोक।" मंत्री ने सोचते हुए कहा___"मुझे लगता है कि इस मामले से जुड़ी हर चीज़ ठाकुर को क्राॅस करती है। हमने ये तो समझ लिया कि हमारे मामले जो हो रहा है वो कौन और क्यों कर रहा है मगर हम ये भी जानना चाहते हैं कि जो हमारा दुश्मन है उसने या उसकी माॅ बहन ने ऐसा क्या किया था जिसकी वजह से ठाकुर ने उन तीनों को हवेली से ही नहीं बल्कि सारी ज़मीन जायदाद से भी बेदखल कर दिया है? सबसे महत्वपूर्ण बात हमें ये भी जानना है कि ऐसा क्या हुआ है जिसके तहत ठाकुर की अपनी बेटी खुद अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ हो गई है?"
"बात तो आपकी एकदम सही है चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"किन्तु इससे निष्कर्श क्या निकलेगा? मेरा मतलब है कि इससे हमारा फायदा क्या होगा?"
"नफ़ा नुकसान तो अपनी जगह है ही अशोक।" चौधरी ने कहा___"किन्तु इस मामले में कुछ बातें ऐसी हैं जिनके बारे में पक्के तौर पर जानना बहुत ज़रूरी है। तुमने कहा था कि ठाकुर की बेटी जो थानेदारनी है और अपने पैरेन्ट्स के खिलाफ़ है वो हमारे दुश्मन और ठाकुर के भतीजे की मदद इस लिए नहीं कर सकती क्योंकि वो भी उससे अपने माॅ बाप की तरह नफ़रत करती है। ये बातें एक दूसरे से मैच नहीं खा रही हैं अथवा ये भी कह सकते हैं कि जॅच नहीं रही हैं।"
"जी मैं कुछ समझा नहीं चौधरी साहब।" अशोक मेहरा के माॅथे पर उलझनपूर्ण भाव आए___"कौन सी बातें नहीं जॅच रही आपको?"
"यही कि एक तरफ तो तुम ये भी कह रहे हो कि ठाकुर की थानेदारनी बेटी उस विराज नाम के अपने भाई से नफ़रत करती है।" मंत्री ने कहा___"इस लिए वो उसकी मदद नहीं कर सकती। जबकि दूसरी तरफ तुम ये भी कह रहे हो कि ठाकुर की वही थानेदारनी बेटी खुद अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ है। सोचने वाली बात हैं अशोक कि ऐसा कैसे हो सकता है? आम तौर पर बच्चे वही करते हैं जो उनके माॅ बाप उन्हें सीख देते हैं अथवा करने को कहते हैं। यहाॅ सोचने वाली बात ये है कि अगर वो थानेदारनी अपने माॅ बाप की सीख अथवा कहे के अनुसार अपने चचेरे भाई से नफ़रत करती है तो फिर अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ वो किस वजह से हो गई है?"
"आपकी इन सब बातों में ज़बरदस्त प्वाइंट है चौधरी साहब।" सहसा अवधेश श्रीवास्तव कह उठा___"सचमुच ये सोचने वाली बात है कि आख़िर ऐसा क्या हुआ है जिसके चलते ठाकुर की बेटी उसके खिलाफ़ है? संभव है कि उसे कोई ऐसी बात अपने माॅ या पिता की पता चल गई हो जिसके चलते उसने अपने माॅ बाप से किनारा कर लिया हो। या फिर ऐसा हो सकता है कि सोच या विचारों के चलते थानेदारनी अपने पैरेन्टस् से दूर हो।"
"ये सब तो महज संभावनाएॅ हैं अवधेश।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"जो सही भी और ग़लत भी हो सकती हैं मगर हमें वो बात पता करना है जो सिर्फ और सिर्फ सच हो। ख़ैर फिक्र की कोई बात नहीं है, हमने ठाकुर को बुलाया है। वो आता ही होगा हमारे पास। उसी से पूछेंगे कि सच्चाई क्या है?"
"लेकिन चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने एक बार पुनः हस्ताक्षेप किया___"सवाल तो एक बार फिर खड़ा हो जाता है कि इस सबसे हमारा फायदा क्या होगा? हम ये तो जानते ही हैं कि हमारा दुश्मन ठाकुर का वो भतीजा है जिसका नाम विराज है और वो मुम्बई में रहता है। फिर अचानक आप ठाकुर और उसकी बेटी को बीच में कैसे ले आए? इस मामले में ये कहाॅ से आ गए? ठाकुर की बेटी अपने माॅ बाप के खिलाफ़ है ये उनका आपसी मैटर है। इस लिए हमें इससे क्या लेना देना भला? हमें तो अपने टार्गेट पर फोकस रखना है ना?"
"तुम बात को या तो अनसुना कर गए हो अशोक या फिर बात को समझने की कोशिश ही नहीं कर रहे हो।" मंत्री ने स्पष्ट भाव से कहा___"जबकि तुम्हें सबसे पहले ये सोचना चाहिए कि हम बेवजह फालतू की बकवास करने का शौक नहीं रखते हैं। ख़ैर, बात दरअसल ये कि अगर ठाकुर की बेटी सचमुच में अपने पैरेंट्स के खिलाफ़ है तो वो अपने उस भाई की मदद क्यों नहीं कर सकती जो अपने माॅ बाप की तरह ही उस लड़के से नफ़रत करती थी? संभव है कि उसे उस वजह का पता चल गया हो जिस वजह के चलते उसके बाप ने विराज और विराज की माॅ बहन को हर चीज़ से बेदखल किया था। उसे पता चल गया हो कि जिस वजह से विराज को बेदखल किया था उसके बाप ने वो वजह वास्तव में बेवजह ही थी। यानी विराज व विराज की माॅ बहन अपनी जगह सही रहे हों।
उस सूरत में संभव है कि रितू ने उस संबंध में अपने पैरेंट्स से बात की हो और उनसे कहा हो कि विराज और उसकी माॅ बहन को बेदखल करके उसने अच्छा नहीं किया। वो अगर बेक़सूर हैं तो उन्हें उनका हक़ मिलना ही चाहिए। इस संबंध में अपनी बेटी की ये बात शायद ठाकुर को पसंद न आई हो और उसने विराज का हक़ देने से साफ इंकार कर दिया हो। इस वजह से थानेदारनी अपने माॅ बाप से अलग हो गई और संभव है कि इसी के चलते वो अपने उस चचेरे भाई के प्रति अपनी नफ़रत को मिटा कर उसकी मदद भी करने लगी हो। हलाॅकि ये सब भी महज संभावनाएॅ ही हैं किन्तु हो सकता है कि यही सच हो।"
अशोक मेहरा ही नहीं बल्कि वहाॅ बैठे अवधेश व सुनीता भी चौधरी की इन संभावना भरी बातें सुन कर चकित रह गए थे। एक बेटी का अपने पैरेंट्स के खिलाफ़ होने की क्या खूब वजह सोच कर बयान किया था उसने।
"अगर आपकी संभावनाएॅ सच हैं।" फिर अवधेश ने कहा___"तो यकीनन वो थानेदारनी विराज की मदद कर सकती है। मैं सब समझ गया चौधरी साहब, आपने यही सब सोच कर ठाकुर को यहाॅ बुलाया है।"
"बिलकुल।" चौधरी मुस्कुराया___"किन्तु इस वजह के अलावा भी एक महत्वपूर्ण वजह है।"
"वो क्या चौधरी साहब?" तीनो एक बार फिर चौंके।
"अगर ठाकुर ने सचमुच ही विराज और उसकी माॅ बहन को बेवजह ही हर चीज़ से बेदखल किया है।" चौधरी ने कहा___"तो ये भी सच ही होगा कि विराज अपने ताऊ को दुश्मन समझता होगा और ये भी चाहता होगा कि उसका हक़ किसी भी सूरत में उसे मिले। ठाकुर ने अगर धन दौलत अथवा सारी प्रापर्टी को हथियाने की गरज से उसे बेदखल किया होगा तो फिर ये पक्की बात है कि ठाकुर किसी भी कीमत में वो प्रापर्टी अथवा उस प्रापर्टी में से विराज का हक़ नहीं देगा। कहने का मतलब ये कि विराज को अपना हक़ आसानी से नहीं मिलने वाला। इस लिए वो ऐसा कुछ ज़रूर करेगा जिसके तहत उसे अपने ताऊ से अपना हक़ वापस मिल सके।"
तीनो मुह फाड़े देखते रह गए चौधरी को। किसी के मुख से कोई बोल न फूट सका था। जबकि चौधरी उन सबके चेहरों पर मॅडराते भावों को देखते हुए पुनः कहना शुरू किया____"हलाॅकि ये भी महज संभावनाएॅ ही हैं दोस्तो जो ग़लत भी हो सकती हैं। मगर हमें कहीं न कहीं ऐसा आभास भी हो रहा है कि हमारी इन संभावनाओं पर कुछ न कुछ तो सच्चाई ज़रूर है। हमने ठाकुर, ठाकुर की बेटी, तथा विराज, इन तीनों पर ग़ौर किया है और इनके बीच पैदा हुए हालातों पर भी ग़ौर किया है। इसके बाद ही हमारे दिमाग़ में इन संभावनाओं का आगमन हुआ है।"
"मुझे तो ऐसा लगता है चौधरी साहब।" सहसा अवधेश कह उठा___"कि आपने उन तीनों का ऑपरेशन कर दिया है। आपकी संभावनाओं में कहीं पर भी ऐसा नहीं लग रहा है कि उनमें कहीं कोई लोचा है।"
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11-24-2019, 01:05 PM,
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RE: non veg kahani एक नया संसार
"ठाकुर की बेटी का अपने माॅ बाप से भले ही चाहे जो पंगा हो अवधेश।" चौधरी ने गहरी साॅस ली___"जिसके तहत वो अपने माॅ बाप के खिलाफ़ है। मगर ये बात तो सच ही समझो कि ठाकुर और विराज का छत्तीस का ऑकड़ा है। ज़र ज़ोरू ज़मीन ये कभी किसी की नहीं हुई। इसने जाने जाने कितने पाक़ रिश्तों को नेस्तनाबूत किया होगा अब तक इसका हममें से कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता। विराज व ठाकुर के बीच हक़ की लड़ाई है ये पक्की बात है और जब तक इस लड़ाई का अंत नहीं होगा दोनो में से कोई भी चैन से नहीं बैठेगा। ख़ैर, तुमने सुना होगा कि हमने फोन पर ठाकुर को दोस्त कहा था। वो इसी लिए कहा था कि मौजूदा हालात में हम दोनो का एक ही टार्गेट है-----विराज। इस लिए हमने उसे दोस्त कहा। हम उससे विराज के संबंध में सारी जानकारी हासिल करेंगे और फिर उस हिसाब से आगे की रणनीति बनाएॅगे।"
अभी चौधरी ने ये कहा ही था कि सहसा तभी ड्राइंग रूम में एक आदमी दाखिल हुआ। उसने बड़े अदब से चौधरी को बताया कि बाहर कोई आदमी आपसे मिलने आया है। वो आदमी अपना नाम ठाकुर अजय सिंह बता रहा है। उस आदमी की बात सुन कर चौधरी मुस्कुराया और अपने उस आदमी से कहा कि उसे इज्ज़त से अंदर ले आओ। चौधरी की बात सुन कर वो आदमी पहले अदब से सिर झुकाया फिर वापस बाहर की तरफ चला गया।
कुछ ही देर में उसी आदमी के साथ अजय सिंह ड्राइंग रूम में दाखिल हुआ। उसे देखते ही चौधरी अपने सोफे से उठा हलाॅकि वो प्रदेश का मंत्री था और अजय सिंह के लिए उठना उसकी शान के खिलाफ़ था किन्तु फिर भी वो उठा ही। उसकी देखा देखी बाॅकी सब भी उठ गए।
"मोस्ट वेलकम ठाकुर।" चौधरी ने गर्मजोशी से तथा मुस्कुराते हुए अजय सिंह से हाॅथ मिलाया और फिर एक अन्य खाली सोफे की तरफ बैठने का इशारा किया और खुद भी अपनी जगह पर आ कर बैठ गया।
"बहुत बहुत शुक्रिया चौधरी साहब।" अजय सिंह ने अपने अंदर ही हड़बड़ाहट पर काबू पाते हुए किन्तु बड़ी शालीनता से कहा___"आज तो मेरे भाग्य ही खुल गए है जो आपके दर्शन हो गए।"
"ऐसा कुछ भी नहीं है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"इस वक्त हम किसी मंत्री की हैसियत से नहीं बल्कि एक आम इंसान तथा एक दोस्त की हैसियत से तुमसे मिल रहे हैं। और वैसे भी ये तो हमें भी पता चला है कि हमसे पहले जो मंत्री थे उनसे तुम्हारे बहुत गहरे ताल्लुकात थे। सारा पुलिस महकमा ही तुम्हारी मुट्ठी में होता था। किन्तु हमने सुना कि रात भर में सारा कुछ बदल गया था। इस सबका बड़ा हो हल्ला भी हुआ था। मगर किसी की समझ में न आया कि ऐसा क्यों हुआ था। आज भी ये रहस्य ही बना हुआ है।"
दिवाकर चौधरी की इस बात से अजय सिंह तो चौंका ही मगर उसके साथ साथ अशोक, अवधेश व सुनीता आदि भी चौंके थे। किन्तु उन लोगों ने बीच में कहा कुछ नहीं।
"हाॅ ये तो आपने सच कहा चौधरी साहब।" अजय सिंह ने सहसा गहरी साॅस ली___"एक वक्त था जब हर चीज़ मेरे लिए आसान थी मगर एक ऑधी आई और सब कुछ उड़ा कर ले गई। अब उन जगहों पर गहन ख़ामोशी के सिवा कुछ भी शेष नहीं रहा।"
"इसका मतलब तो ये हुआ कि वो सारा कुछ तुम्हारी वजह से बदल गया था?" इस बार चौंकने की बारी मानो चौधरी की थी। हैरत से बोला___"मगर आख़िर ऐसा हुआ क्या था ठाकुर? यकीनन कोई बड़ी वजह थी क्योंकि इतना बड़ा सिस्टम यहाॅ तक कि प्रदेश के मंत्री का तबादला हो जाना कोई मामूली बात नहीं है। उस सबसे तो हर कोई हैरान रह गया था। आज जबकि तुम्हारे मुख से ही पता चला कि वो सब तुम्हारी वजह से हुआ था तो इस सबको जानने की उत्सुकता और भी बढ़ गई है।"
अजय सिंह समझ सकता था कि उसे मंत्री को इस सबके बारे में बताना ही पड़ेगा। वो भी चाहता था कि किसी वजह से ही सही मगर उसे मंत्री का साथ मिल जाए। अतः उसने संक्षेप में अपनी फैक्ट्री में लगी आग वाले केस के संबंध में बता दिया। ये भी कि बाद में उसे ये पता चल ही गया कि फैक्ट्री में लगी आग के पीछे उसके अपने ही भतीजे विराज का हाॅथ था। मंत्री ये जान कर हैरान रह गया कि विराज ने इतना बड़ा काण्ड किया हुआ है अपने ताऊ के साथ। अजय सिंह ने मंत्री को ये भी बताया कि मंत्री का तबादला और सारे पुलिस महकमे को बदल देने में भी विराज का ही हाॅथ था। ये बात सुन कर तो चौधरी की गाॅड में कीड़े ही कुलबुलाने लगे। वो सोचने पर मजबूर हो गया कि विराज आख़िर चीज़ क्या है जो मंत्री और सारे पुलिस डिपार्टमेन्ट तक को इधर से उधर कर देने की क्षमता रखता है? चौधरी जैसा ही हाल वहाॅ बैठे बाॅकी सबका भी था।
"तुम्हारी कहानी तो वाकई में हैरतअंगेज है यार।" चौधरी ने चकित भाव से कहा___"मगर ये समझ नहीं आया कि तुम्हारे भतीजे विराज ने ऐसा किया क्यों?"
मंत्री ने जानबूझ कर ये सवाल किया था। उसे पता तो था किन्तु वो अजय सिंह के मुख से सच्चाई सुनना चाहता था।
"बड़ी लम्बी कहानी है चौधरी साहब।" अजय सिंह ने गहरी साॅस छोंड़ते हुए कहा___"कभी कभी हमारे साथ वो सब भी हो जाता है जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की होती है। दरअसल बात ये थी मैने अपने मॅझले भाई की बीवी और उसके दोनो बच्चों को घर और ज़मीन जायदाद से बेदखल कर दिया था। इसकी वजह ये थी कि मेरे भाई की बीवी गौरी एक चरित्रहीन औरत थी। जवानी में ही उसके पति की मौत हो गई थी जिसकी वजह से उससे अपने अंदर की गर्मी बर्दास्त नहीं हुई। शुरू शुरू में तो सब ठीक था मगर फिर उसके चाल चलन दिखने शुरू हुए। मैं जो कि उसका जेठ लगता था और गाॅवों में रिवाज है कि छोटे भाई की बीवी अपने जेठ के सामने सिर खुला नहीं रखती और ना ही उसे छूती है। मगर गौरी अपनी वासना और हवश की वजह से मुझ पर ही डोरे डालने लगी। मैं उसकी उस हरकत से हैरान था। हमारे खानदान कभी ऐसा नहीं हुआ था। हर कोई छोटे बड़े की मान मर्यादा का ख़याल रखता था। उधर दिनप्रति गौरी की हरकतों से मेरा दिमाग़ खराब होने लगा। मैने उसकी हरकतों के बारे में सबसे पहले अपनी पत्नी को बताया और उससे कहा भी कि वो गौरी को समझाए बुझाए कि ये सब कितना ग़तना ग़लत और पाप कर रही है। मेरी पत्नी ने गौरी को बहुत समझाया। मगर गौरी तो जैसे वासना और हवश में अंधी हो चुकी थी। जिसका नतीजा ये निकला कि एक दिन वो मुझे मेरे कमरे में अकेला देख कर आ धमकी और ज़बरदस्ती मुझसे सेक्स संबंध बनाने को कहने लगी। मैं उसकी उस हरकत और बातों से बहुत गुस्सा हुआ। जबकि वो मुझसे लपटी पड़ी थी। तभी इस बीच मेरी पत्नी आ गई। उसने गौरी को मुझसे छुड़ाया और उसे घसीटते हुए कमरे से बाहर ले गई। मेरी पत्नी ने उस सबके कैमरे द्वारा फोटोग्राफ्स भी निकाले थे। ऐसा इस लिए क्योंकि अगर हम गौरी की इन हरकतों के बारे में घर में किसी से बताते तो कोई भी हमारी बात पर यकीन ही न करता। क्योंकि सब गौरी को बहुत ही ज्यादा संस्कारी और आदर्श औरत मानते थे। ख़ैर उस दिन हमारे पास सबूत भी था इस लिए सबको मानना ही पड़ा और फिर सबकी सहमति से ही मैने उसे और उसीए बच्चों को हवेली से बाहर निकाल दिया। हवेली से बाहर मैने उसे खेतों पर बने मकान में रहने की रियायत ज़रूर दे दी थी। ऐसा इस लिए क्योंकि वो आख़िर थी तो हमारे खानदान की बहू ही। हमने सोचा था कि हवेली से दूर खुतों पर बने मकान में रहेगी तो सब कुछ ठीक ही रहेगा। मगर हमारा ऐसा सोचना भी ग़लत हो गया। क्योंकि वो खेतों पर काम कर रहे मजदूरों पर ही वासना और हवस के चलते डोरे डालने लगी थी। एक दिन हमारे एक मजदूर ने इस बारे में मुझसे डरते हुए बताया। उसकी बात सुनकर मुझे गौरी पर हद से ज्यादा गुस्सा आया। उसके बाद मैने फैसला कर लिया कि अब उसे और उसके बच्चों को मैं उस गाॅव में नहीं रहने दूॅगा। क्योंकि इससे हमारी और हमारे खानदान की बहुत बदनामी होती। अतः मैने उसे हर चीज़ से बेदखल कर दिया। गौरी का लड़का थोड़ा बहुत समझदार था मगर वो भी अपनी माॅ की बातों को ही सच मानता था। उसे लगता था कि हमने उसकी माॅ को बेवजह ही हवेली से निकाला था। वो अपना और अपनी माॅ बहन का घर खर्चा चलाने के लिए मुम्बई में कहीं नौकरी करने चला गया था। जबकि उसके पीछे यहाॅ उसकी माॅ ये सब गुल खिला रही थी। ख़ैर, एक दिन बाद पता चला कि विराज अपनी माॅ व बहन को अपने साथ मुम्बई ले गया। उसके बाद अभी कुछ समय पहले से ही ये सब शुरू हुआ। यानी विराज ये सोच कर मुझसे बदला ले रहा है कि मैने उसके और उसके परिवार के साथ ग़लत किया है।"
"ओह तो ये हैं सारी बातें।" सब कुछ सुनने के बाद चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"लेकिन इतना कुछ हुआ और तुमको अंदाज़ा भी न हुआ कि ये सब तुम्हारे भतीजे ने ही किया है?"
"अंदाज़ा तो तब होता चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा___"जब मुझे उससे इस सबकी उम्मीद होती। मैं तो यही समझता था कि वो लड़का निहायत ही सीधा सादा और भोला है। भला मुझे क्या पता था कि वो किसी डायनामाइट से कम नहीं है।"
"ख़ैर।" चौधरी ने पहलू बदला___"हमने सुना है कि तुम्हारी अपनी बेटी जो कि पुलिस इंस्पेक्टर है वो आजकल तुम्हारे खिलाफ़ हो चुकी है। ये क्या चक्कर है?"
"चक्कर वक्कर कुछ नहीं है चौधरी साहब।" अजय सिंह मन ही मन बुरी तरह चौंका था किन्तु चेहरे पर चौंकने के भावों को आने न दिया था, बोला___"दरअसल बात ये है कि हमें उसका पुलिस की नौकरी करना ज़रा भी पसंद नहीं था। जबकि पुलिस की नौकरी करना उसका शौक था बचपन से ही। मैने और मेरी पत्नी प्रतिमा ने उससे कहा कि ये पुलिस की नौकरी छोंड़ दो, भला उसे नौकरी करने ज़रूरत ही क्या है? उसे जिस चीज़ की भी ज़रूरत होती है हम उसके बोलने से पहले ही वो चीज़ लाकर उसके क़दमों में डाल देते हैं। मगर वो हमारी बात सुनती ही नहीं। बचपन से ही ज़िद्दी थी वो। एक दिन उसकी माॅ ने कदाचित कुछ ज्यादा ही कड़े शब्दों में कह दिया था। जिसकी वजह से वो गुस्सा हो गई और कहने लगी कि उसे हमारी किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है। वो अपनी ज़रूरतें खुद पूरी कर लेगी। बस उस दिन के बाद से वो ना तो मुझसे बोलती है और ना ही अपनी माॅ से। यहाॅ तक कि घर भी नहीं आती।"
"बड़ी अजीब बात है।" दिवाकर चौधरी ने कहा__"भला तुम लोगों को उसका नौकरी करने से एतराज़ क्यों है? आज की जनरेशन ज़रा एडवाॅस टेक्नालाॅजी में सम्मिलित है। वो खुद पर और अपने टैलेन्ट के बल पर ही जीवन जीना चाहते हैं। अतः तुम दोनो का उसका नौकरी करने से ऐतराज़ करना सरासर ग़लत था। ख़ैर, जैसा कि तुमने बताया कि उस दिन से वो घर भी नहीं आती है तो सवाल ये है कि वो रहती कहाॅ है फिर? क्या तुमने पता करने की कोशिश नहीं की कि तुम्हारी लड़की रहती कहाॅ है? दिन का तो चलो ठीक है कि वो पुलिस में अपनी ड्यूटी के चलते कहीं न कहीं ब्यस्त ही रहती होगी मगर रात को? रात को कहाॅ रहती होगी वो?"
"पुलिस वाली है चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा__"खुद कमाती है। इस लिए कहीं न कहीं अपने रहने के लिए कोई किराये से कमरा ले लिया होगा।"
"ये तो तुम संभावना ब्यक्त कर रहे हो ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"जबकि तुम्हें खुद पता लगाना चाहिए था कि अगर वो लौटकर हवेली नहीं आती है तो रहती कहाॅ है? कैसे बाप हो तुम ठाकुर?"
अजय सिंह कुछ बोल न सका। उसे एहसास था कि चौधरी सच कह रहा था कि उसे खुद अपनी बेटी के बारे में पता करना चाहिए था। भले ही वो पुलिस वाली थी मगर ये भी सच था कि वो एक लड़की भी थी। वो भले ही अपनी सुरक्षा बखूबी कर ले मगर वो तो उसका बाप था न? उसे तो अपनी बेटी की चिन्ता होनी चाहिए थी। अजय सिंह सोचो में गुम तो था मगर उसके ज़हन में ये भी था कि रितू के साथ उसकी छोटी बहन नैना भी है। शायद यही वजह थी कि उसने अब तक पता करने की कोशिश नहीं की थी कि वो दोनों कहाॅ रहती हैं? अकेले रितू बस होती तो उसे चिंता यकीनन होती मगर उसके साथ में नैना जैसी पढ़ी लिखी व समझदार उसकी बहन भी थी। इस लिए वो बेफिक्र था अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए।
"क्या सोचने लगे ठाकुर?" उसे सोचों में गुम देख कर चौधरी ने कहा__"ख़ैर छोंड़ो यार, ये तुम्हारे घर की बात है तुम्हें जो उचित लगे वो करो। अच्छा एक बात बताओ।"
"ज जी????" अजय सिंह चौंका___"प..पूछिए।"
"क्या ऐसा हो सकता है।" चौधरी ने बड़े ग़ौर से अजय सिंह को देखते हुए कहा___"तुम्हारी बेटी और तुम्हारा भतीजा विराज एक हो गए हों? क्या ऐसा हो सकता है कि विराज ने तुम्हारी बेटी को अपने साथ मिला लिया हो??"
"प..प.पता नहीं।" अजय सिंह के ऊपर जैसे एकाएक सारा आसमान भरभरा कर गिर पड़ा था। बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हालते हुए कहा उसने___"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं चौधरी साहब? जबकि ऐसा हर्गिज़ नहीं हो सकता। इसकी वजह ये है कि मेरे तीनो ही बच्चे उसकी माॅ की हरकतों की वजह से उससे और उसकी माॅ बहन से कभी कोई बात करने की तो बात दूर बल्कि उन्हें देखना तक पसंद नहीं करते।"
"ऐसा तुम सोचते हो ठाकुर।" दिवाकर चौधरी ने दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा___"जबकि अक्सर ऐसा हो जाया करता है जिसकी हमें पूरी उम्मीद होती है कि ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता।"
"क्या मतलब???" अजय सिंह चकरा सा गया।
"मतलब साफ है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"तुम ये सोच कर ये नहीं मान रहे हो कि तुम्हारी बेटी विराज को देखना तक पसंद नहीं करती इस लिए वो उससे मिल नहीं सकती जबकि ऐसा हो भी सकता है कि वो उससे मिल ही गई हो। विराज की कारगुजारियों से इतना तो पता चल ही गया है कि वो कितना शातिर दिमाग़ रखता है और कितनी ऊॅची पहुॅच भी रखता है। अतः अगर वो अपने शातिर दिमाग़ के चलते तुम्हारी बेटी को अपनी तरफ कर भी ले तो हैरत की बात नहीं होगी। संभव है कि उसने रितू को ऐसा कोई पाठ पढ़ा दिया हो जिसके चलते तुम्हारी बेटी का ब्रेन वाश हो गया हो और अब वो उसे सही मान रही हो और तुम्हें यानी कि अपने बाप को ग़लत।"
अजय सिंह मंत्री की सूझ बूझ तथा उसकी दूरदर्शिता की मन ही मन दाद दिये बिना न रह सका। सच्चाई भले ही कुछ और थी मगर जितना उसने उहे बताया था उस हिसाब से कड़ियों को जोड़ कर सच्चाई के रूप में अपनी संभावनाएॅ इस तरह बयां करना आसान बात न थी। सहसा उसे ख़याल आया कि जबसे वो यहाॅ आया है तब से मंत्री सिर्फ उसी के संबंध में बातें पूछ रहा है जबकि उसे अब तक यही समझ में नहीं आया था कि मंत्री ने आख़िर उसे बुलाया किस लिए था??
"भगवान जाने चौधरी साहब।" फिर उसने पहलू बदलने की गरज से कहा___"कि सच्चाई है इस संबंध में। ख़ैर छोंड़िये ये सब और ये बताइये कि इस नाचीज़ को किस लिए बुलाया था आपने?"
अजय सिंह द्वारा अचानक ही इस तरह पहलू बदल लेना चौधरी को मन ही मन चौंकाया मगर उसने उसे ज़ाहिर न किया। बल्कि उसके पूछने पर वह मुस्कुराया और सेन्टर टेबल पर सजे फल फूल व मॅहगी शराब की तरफ इशारा किया।
"ये तो कमाल हो गया ठाकुर।" फिर चौधरी ने मुस्कुराते हुए ही कहा___"तुम आज यहाॅ पहली बार आए और हमने बातों के चक्कर में ये भी ख़याल नहीं रखा कि घर आए मेहमान का आतिथ्य भी किया जाता है।"
"मैं कोई मेहमान नहीं हूॅ चौधरी साहब।" अजय सिंह ने भी मुस्कुराते हुए कहा___"आपने मुझे दोस्त कह कर मेरा मान बढ़ा दिया है यही बहुत है मेरे लिए। इस नाते अब तो ये भी अपना ही घर हुआ और अपने ही घर में भला कोई मेहमान कैसा हो सकता है?"
"हाॅ तो सही कहा तुमने।" चौधरी हॅसा और फिर बगल से ही बैठे अशोक, अवधेश व सुनीता की तरफ इशारा करते हुए कहा___"इनसे मिलो ठाकुर, ये सब भी हमारे गहरे दोस्त हैं। बल्कि यूॅ समझो कि ये तीनो हमारे दोस्तों की लिस्ट में सबसे ऊपर हैं और आज से तुम भी शामिल हो गए हो।"
"ये तो मेरा सौभाग्य है चौधरी साहब।" अजय सिंह ने खुश होते हुए कहा___"जो आपने मुझे अपने दोस्त का दर्ज़ा दिया है। मैं पूरी कोशिश करूॅगा कि इस दोस्ती पर खरा उतर सकूॅ।"
"चलो फिर इसी बात पर एक एक जाम हो जाए।" चौधरी ने मुस्कुराते हुए कहा___"और हमारी दोस्ती को सेलीब्रेट किया जाए।"
"जी बिलकुल।" अजय सिंह हॅसा और उन तीनों की तरफ देख कर उन तीनो से हैलो किया तथा हाॅथ भी मिलाया। चौधरी के कहने पर सुनीता ने सबके लिए जाम बनाया और साक़ी बन कर सबको पिलाया भी। इस बीच चौधरी ने अजय सिंह को बताया कि सुनीता उसके साथ साथ बाॅकी उन दोनो को भी हर तरह से खुश रखती है। अजय सिंह ये जान कर हैरान भी हुआ था। मगर फिर ये सोच कर मुस्कुराया भी कि चौधरी भी उसी की तरह ही औरतबाज है।
लगभग आधा घंटे से ऊपर तक जामों का दौर चलता रहा। सब के सब हल्के नशे के सुरूर में आ चुके थे। उसके बाद बातों का सिलसिला फिर से शुरू हुआ। अजय सिंह सबसे काफी खुल चुका था। बाॅकी सब भी अजय सिंह से खुल चुके थे। सुनीता को अजय सिंह की पर्शनाल्टी पहली नज़र में ही भा गई थी और वो उसके नीचे लेटने के लिए बेक़रार हो उठी थी। मगर अभी उसको भी पता था कि उसकी ये बेक़रारी शान्त नहीं होने वाली है। यानी कुछ समय तक इन्तज़ार करना पड़ेगा उसे।
"मज़ा आ गया चौधरी साहब।अजय सिंह ने नशे के हल्के सुरूर में मुस्कुराते हुए कहा___"आप सच में बहुत अच्छे हैं। एक पल के लिए भी मुझे ऐसा नहीं लगा जैसे इसके पहले आप मेरे लिए ग़ैर थे। सच कहता हूॅ आपसे मिल कर और आपका दोस्त बन कर बहुत अच्छा लग रहा है। बहुत दिनों बाद ऐसे खुश होने का मौका मिला है मुझे।"
"अभी तो इससे भी ज्यादा मज़ा आएगा ठाकुर।" चौधरी ने भी नशे के हल्के सुरूर में कहा___"हमारी दोस्ती में और हमारे साथ में ऐसा ही होता है। हमें वही इंसान अच्छा लगता है जो हमसे वफ़ा करे। वफ़ादार ब्यक्ति के लिए हम कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।"
"मैं ज़रूर आपका वफ़ादार रहूॅगा चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा___"आप जब भी मुझे याद करेंगे मैं आपके सामने हर काम छोंड़ कर हाज़िर हो जाऊॅगा। मुझे भी वफ़ादार इंसान ही अच्छे लगते हैं जो दोस्त के लिए कुछ भी कर जाए मगर...।"
"मगर क्या ठाकुर।" चौधरी ने सिर उठा कर अजय सिंह की तरफ देखा___"तुम्हारे स्वागत में हमसे कोई कमी हो गई है क्या? अगर ऐसा है तो बेझिझक बोल दो यार। जो बोलोगे वो मिलेगा तुम्हें। ये दिवाकर चौधरी का वचन है।"
"न नहीं नहीं चौधरी साहब।" अजय सिंह ने हड़बड़ाते हुए कहा___"आपने किसी बात की कमी नहीं की है। मेरे कहने का मतलब ये था कि आपने मुझे बताया नहीं कि आपने मुझे किस वजह से यहाॅ बुलाया था? देखिए अब तो हम दोनो दोस्त बन गए हैं न। इस लिए अगर कोई बात है आपके मन में तो बेझिझक कहिए। मैं वादा करता हूॅ कि अगर मेरे लिए आपका कोई आदेश है तो मैं जान देकर भी उसे पूरा करूॅगा।"
अजय सिंह की बात इस पर चौधरी ने उसे बड़े ध्यान से देखा जैसे जाॅच रहा हो कि उसकी बात पर कितना दम है। फिर अपने हाॅथ में लिए शराब के प्याले को मुह से लगा कर शराब का हल्का सा घूॅट लिया उसके बाद अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा___"आदेश तो कुछ भी नहीं है ठाकुर। बस ये समझो कि आज के समय में जो तुम्हारा दुश्मन है वही हमारा भी दुश्मन है।"
"ये आप क्या कह रहे हैं चौधरी साहब?" अजय सिंह ने ऑखें फैलाते हुए कहा____"मेरा दुश्मन तो मेरा वो हरामज़ादा भतीजा बना हुआ है किन्तु वो आपका दुश्मन कैसे बन गया? बात कुछ समझ में नहीं आई चौधरी साहब।"
"तुमने कुछ समय पहले किसी लड़की के सामूहिक रेप के बारे में तो सुना ही होगा न?" चौधरी ने कहा।
"र रेप के बारे में???" अजय सिंह के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे। फिर सहसा जैसे उसे याद आया___"ओह हाॅ हाॅ सुना था। आप उसी रेप स्कैण्डल की बात कर रहे हैं न जिस पर कुछ समय पहले काफी हो हल्ला हुआ था? मगर फिर सब कुछ शान्त हो गया था। उसके बाद कुछ पता ही नहीं चला कि क्या हुआ? मगर आपका उस रेप केस से क्या संबंध?"
"दरअसल वो रेप हमारे बच्चों की करतूत का नतीजा था ठाकुर।" चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"तुम्हारे गाॅव के ही पास की एक विधी नाम की लड़की थी जिसके साथ हमारे बच्चों ने मिल कर रेप किया था। वो लड़की हमारे बच्चों के ही काॅलेज में पढ़ती थी। उस रेप केस पर हो हल्ला तो ज़रूर हुआ था किन्तु उस पर कोई शख्त ऐक्शन इस लिए नहीं लिया गया था क्योंकि मामला हमारे बच्चों का था। यहाॅ का पुलिस कानून हमारे खिलाफ कोई क़दम उठा ही नहीं सकता था। ये बात उस लड़की के घरवालों को भी समझ आ गई थी। इसी लिए लड़की के घरवालों ने भी कोई केस नहीं किया था और इसी वजह से मामला शान्त पड़ गया था। मगर....।"
"मगर????" अजय सिंह के चेहरे पर हैरत के भाव थे।
"मगर रेप के तीसरे दिन हमारे बच्चे हमारे ही फार्महाउस से गायब हो गए।" चौधरी कह रहा था___"और अब तक उनका कहीं कुछ पता नहीं चल सका है। उन बच्चों में एक हमारा बेटा है और तीन लड़कों में से एक अशोक का है दूसरा अवधेश का और तीसरा सुनीता का। हमने सब कुछ करके देख लिया मगर आज तक कहीं भी बच्चों का पता नहीं चला। सबसे गज़ब तो तब हो गया जब हमारी बेटी भी गायब हो गई।"
"ये आप क्या कह रहे हैं चौधरी साहब??" अजय सिंह हक्का बक्का नज़र आने लगा था, बोला___"मगर आपके बच्चों को गायब किसने किया हो सकता है? और अगर बच्चे अगर रेप के बाद से ही गायब हैं तो ज़ाहिर सी बात है कि उन्हें उसी ने गायब किया होगा जिसके साथ उन बच्चों ने अहित किया है। लेकिन गायब करने वाले का आपके पास कोई फोन या किसी तरह की सूचना तो आनी ही चाहिए थी। सीधी सी बात है कि अगर ये सब उसने बदला लेने के उद्देष्य से किया है तो वो देर सवेर ये ज़रूर सूचित करता कि आपके बच्चे उसके कब्जे में हैं।"
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