non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:07 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
मंत्री दिवाकर चौधरी से इजाज़त लेकर हरीश राणे नाम का वो डिटेक्टिव वहाॅ से चला गया। उसके जाने के बाद कुछ देर तक ड्राइंगरूम में सन्नाटा छाया रहा। सबके चेहरों पर सोचो के भाव गर्दिश करते नज़र आ रहे थे।

"ये काम तो बहुत अच्छा हुआ चौधरी साहब।" सहसा पहली बार इस बीच अशोक मेहरा ने अपना मुख खोलते हुए कहा___"मगर आपने तो उस ठाकुर से भी इसके लिए मदद करने की बात की थी तो फिर उसका क्या? मेरा मतलब है कि क्या सचमुच इस मामले में वो हमारी मदद करेगा अथवा उसका वो मदद के लिए हाॅमी भरना महज उस वक्त की बस एक औपचारिकता थी?"

"बेशक, उसकी औपचारिकाता भी समझ सकते हो।" मंत्री ने कहा___"क्योंकि हमें भी ऐसा लगता है कि वो इस मामले में कुछ खास हमारी मदद नहीं कर सकता। उसकी खुद की थानेदारनी बेटी उसके खिलाफ़ है। बेटी के खिलाफ़ होने की जो वजह उसने हमें बताई थी उस वजह में कोई खास बात नहीं थी। क्योंकि महज इतनी सी बात पर कि उसके और उसकी पत्नी को बेटी का पुलिस की नौकरी करना पसंद नहीं था और वो इस बारे में बेटी से बोलते भी थे तो ऐसा नहीं हो सकता कि बेटी इतनी सी बात पर वो अपने पैरेंट्स के खिलाफ़ हो जाए। खिलाफ़ होने के पीछे ज़रूर कोई ऐसी ठोस वजह होगी जिसके बारे में ठाकुर ने हमें बताना शायद ज़रूरी नहीं समझा या फिर ऐसा हो सकता है कि वो उस वजह को हमसे बताना ही न चाहता रहा हो।"

"बात तो आपकी एकदम सही है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने सोचने वाले भाव से कहा___"किन्तु सोचने वाली बात तो है ही कि ऐसी क्या वजह हो सकती है जिसके तहत उसकी खुद की बेटी उसके खिलाफ़ हो गई है?"

"हमें लगता है कि ठाकुर खुद भी दूध का धुला हुआ नहीं है।" चौधरी ने कहा___"उसने अपने भतीजे और छोटे भाई की बीवी के संबंध में जो कुछ भी हमें बताया था संभव है कि उसकी उस बात में कोई सच्चाई हो ही न। कहने का मतलब ये कि जिन आरोपों के तहत उसने अपने छोटे भाई की बीवी और उसके बच्चों को हर चीज़ से बेदखल किया था वो सभी आरोप महज उसी की चाल का एक हिस्सा रहे हों। हम ऐसा उसकी बेटी के खिलाफ़ हो जाने की बात के आधार पर कह रहे हैं। ये तो एक यथार्थ सच्चाई है कि झूॅठ या बुराई एक न एक दिन अपना चेहरा सबको दिखा ही देती है। इस लिए अगर ठाकुर ने वो आरोप किसी साजिश के तहत झूॅठ की बुनियाद पर लगाए रहे होंगे तो संभव है कि उसकी वो सच्चाई किसी तरह सामने आ गई हो और उसकी बेटी को भी पता चल गई हो। इतना तो वो भी समझ सकती है कि बुरा करने वाला कभी पलट कर अपने हक़ के लिए इस तरह लड़ाई नहीं किया करता। अगर विराज की माॅ का चरित्र सचमुच में गिरा हुआ रहा होगा तो ये बात कहीं न कहीं से विराज को भी पता चलती और वो उस सूरत में शर्म से पानी पानी होता तथा साथ ही फिर वो कभी पलट कर गाॅव में किसी को अपनी शक्ल न दिखाता। मगर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया उल्टा इसके विपरीत वो ठाकुर से अपने हक़ के लिए तथा अपने साथ हुए अन्याय के लिए लड़ाई कर रहा है। इस बात से कहीं न कहीं सोचने वाली बात हो ही जाती है कि कहीं ठाकुर ने वो सब आरोप झूठ मूॅठ में ही तो नहीं लगाए थे विराज की माॅ पर? वरना वो इस तरह सीना तान कर तथा इतनी दिलेरी से उससे जंग क्यों करता? यही बात ठाकुर की बेटी भी सोची होगी और फिर उसने सच्चाई का पता भी लगाया होगा। संभव है कि उसे वास्तविक सच्चाई का पता चल गया हो, उस सूरत में वो अपने माॅ बाप के खिलाफ़ हो गई। हलाॅकि सोचने वाली बात तो ये भी है कि अगर माॅ बाप बुरे हैं तो संतान इतनी पाक़ साफ कैसे हो गई कि वो अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ हो जाए?"

"आपकी बातों में यकीनन वजन है।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"मगर ऐसा होता है चौधरी साहब कि कीचड़ में ही कमल खिलते हैं। कहने का मतलब ये कि भले ही ठाकुर और ठाकुर की बीवी बुरे चरित्र वाले रहे हों किन्तु ज़रूरी नहीं कि उसके सभी बच्चे भी उनकी तरह ही बुरे निकलें। हर इंसान की सोच व स्वभाव अलग होता है। अतः संभव है कि ठाकुर की बेटी अच्छी सोच व अच्छे नेचर की लड़की हो और वो अन्याय का साथ देने की सोच न रखती हो।"

"बिलकुल।" चौधरी ने कहा___"अगर तुम्हारी बातों को मान कर चलें तो ये सवाल भी पैदा हो जाता है कि अगर ठाकुर की बेटी अपने पैरेंट्स के रूप में अन्याय के खिलाफ़ हो गई है तो ये भी ज़ाहिर सी बात है कि फिर उसने न्याय और सच्चाई का साथ देने का भी सोचा हो।"

"यकीनन ऐसा हो सकता है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा कह उठा___"न्याय और सच्चाई का साथ देने का मतलब है कि वो विराज का साथ दे रही होगी। उसे सच्चाई का पता चल गया होगा कि विराज और उसकी माॅ पर उसके बाप द्वारा लगाए गए वो सभी आरोप फर्ज़ी थे इस लिए उसे विराज और उसकी माॅ से सहानुभूति हुई होगी और उसने विराज का हक़ दिलाने के लिए उसका साथ देने लगी होगी।"

"अगर सच्चाई यही है।" अवधेश ने कहा___"तो इसका मतलब ये हुआ कि हमारा दुश्मन विराज ही नहीं बल्कि ठाकुर की बेटी भी हुई। इससे एक बात और भी समझ में आती है जो कि अपनी जगह सटीक ही बैठती है।"

"कौन सी बात??" चौधरी के माॅथे पर शिकन उभर आई।
"यही कि।" अवधेश ने कहा___"विधी रेप केस के समय रितू ने ही विराज को मुम्बई से यहाॅ बुलाया होगा।"
"ये तुम क्या कह रहे हो अवधेश?" चौधरी के साथ साथ बाॅकी सबकी भी ऑखें फैली।

"हाॅ चौधरी साहब।" अवधेश ने कहा___"रितू का नाम आने से कुछ बातें मुझे समझ आ रही हैं। जैसा कि ठाकुर की बेटी अपने पैरेंट्स के खिलाफ है तो यकीनन वो विराज का ही साथ दे रही होगी। इस मामले में बहुत गहरी बात भी छुपी है चौधरी साहब जिसकी हमने कल्पना भी नहीं कर सकते थे।"

"ये तुम क्या ऊल जलूल बकने लगे अवधेश?" चौधरी ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"साफ साफ बोलो कि क्या कहना चाहते हो तुम?"
"इन सारी बातों का केन्द्र बिंदू।" अवधेश ने कहा___"विधी का रेप केस ही है। हम सब यही समझ रहे थे कि उस रेप केस पर पुलिस का कोई हाथ नहीं है और ये सच भी था। मगर गौर कीजिए रितू के ही थाना क्षेत्र में विधी गंभीर हालत में पाई गई थी। रितू क्योंकि थानेदारनी थी इस लिए उसे जब गंभीर हालत में पड़ी किसी लड़की की सूचना मिली होगी तो वो फौरन वहाॅ पहुॅची होगी। गंभीर हालत में पड़ी उस लड़की को सर्वप्रथम उसने किसी हास्पिटल में भर्ती कराया होगा। लड़की के होश में आने पर उसने उससे रेप के बारे में सब कुछ पूछा होगा। रितू ने लड़की के घर वालों को भी बुलाया होगा जैसा कि आम तौर होता है। विधी के माॅ बाप आए होंगे और अपनी बेटी की उस हालत को देख कर वो यकीनन दुखी भी हुए होंगे। यहाॅ पर पुलिस केस करने की भी बात आई होगी। किन्तु जब विधी ने बताया होगा कि उसके साथ रेप करने वाले लड़के कौन थे तो विधी के माॅ बाप के हाथ पाॅव फूल गए होंगे और उन्होंने केस करने से मना कर दिया होगा। इधर रितू ने अपने आला अफरान को भी विधी रेप केस के बारे में बताया होगा। बात कमिश्नर तक पहुॅची होगी और कमिश्नर ने भी रितू को यही कहा होगा कि मामले को किसी तरह दबा दो। ख़ैर, रितू को विधी के द्वारा ही तहकीक़ात में पता चला होगा कि विधी असल में उसके भाई विराज से प्रेम भी करती थी। ये जान कर निश्चय ही रितू ने विराज से संबंध स्थापित कर उसे सब बताया होगा और यहाॅ बुलाया होगा। विराज यहाॅ आया और उसने अपनी प्रेमिका की वो हालत देखी तो उसे सहन नहीं हुआ। उसने अपनी मासूक़ा का बदला लेने के लिए ऐलान किया होगा। इसमे उसका साथ देने के लिए रितू भी सहमत हुई होगी। उसके बाद क्या हुआ आप सबको पता ही है।"

"तुम्हारे कहने का मतलब है कि ठाकुर की थानेदारनी बेटी के द्वारा ही विराज यहाॅ आया और फिर उसने बदला लेने के रूप में ये सब किया?" चौधरी ने कहा___"और इतना ही नहीं वो खुद अपने भाई का साथ भी दे रही है?"

"मैं यही कहना चाहता हूॅ चौधरी साहब।" अवधेश ने पुरज़ोर लहजे में कहा___"और मुझे तो ये भी लगता है कि ये सारा बखेड़ा ही उस थानेदारनी के द्वारा हुआ है।"
"पता नहीं तुम क्या फालतू की बकवास किए जा रहे हो अवधेश।" चौधरी ने खीझते हुए कहा___"तुम अपनी कोई बात पर कामय ही नहीं हो। पहले कह रहे थे कि विराज ने ये सब किया है और अब कह रहे हो कि ठाकुर की उस बेटी ने किया है। आख़िर तुम्हारे दिमाग़ में ये बेसिर पैर की बातें कहाॅ से आती हैं?"
"ये मामला ही ऐसा था चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"कि हम में से कोई भी इसके बारे में ठीक से समझ नहीं पाया था। मगर जैसे जैसे हालात सामने आए उस हिसाब से संभावनाओं की बातें की हमने। ख़ैर, मैं ऐसा इस लिए कह रहा हूॅ कि इसके पीछे भी एक वजह है। जैसे कि जिस समय विधी के रेप का मामला सामने आया उस समय तो विराज यहाॅ था ही नहीं बल्कि रितू ही थी। जिसने पुलिस के रूप में ही सही मगर विधी के केस को हाॅथ में लिया था। ये अलग बात है कि हमारे दबदबे और पुलिस कमिश्नर के मना कर देने पर उसने कोई केस फाइल नहीं किया था। मगर जब उसे पता लगा कि विधी वो लड़की है जो खुद उसके ही चचेरे भाई से प्रेम करती थी तो उसके प्रति रितू की हमदर्दी या सहानुभूति यकीनन अलग ही तरह की हो गई होगी। उसके मन में ये तो आया ही होगा कि विधी के साथ हुए इस कुकर्म पर इंसाफ हो यानी रेप करने वाले लड़कों को कानूनन शख्त से शख्त सज़ा मिले। मगर मामला क्योंकि आपसे ताल्लुक रखता था अतः उस केस पर कानूनी तौर पर कोई ऐक्शन वो चाहते हुए भी न ले पाई थी। इस लिए संभव है कि उसने हमारे बच्चों को सज़ा देने के लिए कानून को अपने हाॅथ में ले लिया हो। जिसके तहत सबसे पहले वो हमारे बच्चों के बारे में अपने मुखबिरों से पता लगवाया होगा और जब उसे पता चल गया होगा कि रेप करने वाले हमारे बच्चे हमारे फार्महाउस पर हैं तो वो उन्हें पकड़ने के लिए वहाॅ जा धमकी होगी। वहाॅ पर उसने हमारे बच्चों को जबरन ग़ैर कानूनी तरीके से गिरफ्तार किया होगा तथा फार्महाउस की तलाशी भी ली होगी। जहाॅ से उसे हमारे खिलाफ़ वो सारे वीडियोज मिले। इसके बाद वो हमारे बच्चों को लेकर ऐसी जगह गई जहाॅ पर कोई भी जा ही नहीं सकता था।"
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11-24-2019, 01:07 PM,
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"अगर तुम्हारी बातों को सच मानें तो।" चौधरी का दिमाग़ साॅय साॅय करने लगा था, बोला___"फिर वो वीडियोज और वो फोन भी उसी ने किया था हमें। मगर उसकी आवाज़ से ऐसा तो लगता ही नहीं था कि वो किसी लड़की की आवाज़ है बल्कि वो आवाज़ किसी भरभूर मर्द की ही लगती थी।"

"आज के समय में किसी किसी मोबाइल फोन पर ऐसे ऑप्शन भी होते हैं चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"जिसमें एक ब्यक्ति किसी की भी आवाज़ बदल कर बात कर सकता है। संभव है कि उसने ऐसे ही किसी फोन से मर्दाना आवाज़ में आपसे बात की थी। ऐसा इस लिए ताकि आप यही समझें कि सामने वाला कोई मेल पर्शन ही है ना कि फीमेल। इससे होगा ये कि आप इस बारे में सोच ही न सकेंगे कि कोई लड़की ऐसा कर सकती है। आप अपना हर क़दम ये सोचते हुए ही उठाएॅगे कि आपका दुश्मन कोई मेल पर्शन है।"

दिवाकर चौधरी तुरंत कुछ बोल न सका। उसे कहीं न कहीं अवधेश की बातों में सच्चाई की बू आ रही थी। कदाचित यही वजह थी कि वह सोचने पर मजबूर हो गया था।

"उस दिन जब आपने उससे फोन पर ये कहा कि आप ये जान चुके हैं कि वो कौन है।" उधर अवधेश मानो फुल फार्म में कहे जा रहा था___"तो वो चौंक पड़ी होगी। उसे लगा होगा कि आपका सोचना भी अपनी जगह सही है। आख़िर ऐसा करने की वजह विधी के बाप के पास ही तो हो सकती थी। ख़ैर जब उसने जाना कि आप उसको विधी का बाप समझ रहे हैं तो उसे ये भी लगा होगा कि अब विधी के पैरेंट्स को आपसे खतरा हो गया है। इस लिए इससे पहले कि आप विधी के पैरेंट्स तक पहुॅच पाते उससे पहले ही उसने बुद्धिमानी का परिचय देते हुए विधी के पैरेंट्स को आपसे सुरक्षित कर दिया। वरना सोचने वाली बात है कि इससे पहले तो उसे विधी के पैरेंट्स को सुरक्षा प्रदान करने का ख़याल तक न आया था और अगर उस दिन आप वैसा उसे न कहते तो आगे भी ये ख़याल उसके मन में आने वाला नहीं था। कहने का मतलब ये कि आपने खुद ही उसे बता दिया और फिर उसने बड़ी खूबसूरती से आपकी चतुराई को बेवकूफी में बदल दिया।"

"यकीनन तुम्हारी बातों में वजन है अवधेश।" चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"जितने कम समय में उसने ये सब किया था उसे विराज तो हर्गिज़ भी नहीं कर पाता। क्योंकि मामला प्रेम का था। वो विधी के साथ हुए उस हादसे के सदमें में ही रह जाता और फिर अगर किसी के समझाने बुझाने पर वो सदमे से बाहर आता भी तो ये सब करने में उसे कुछ तो समय लगता ही।"

"जी बिलकुल।" अवधेश ने कहा___"यही सारी बातें हैं जिसकी वजह से मुझे ऐसा लग रहा है कि ये सब ठाकुर की बेटी का ही किया धरा हो सकता है। दूसरी बात विराज जब यहाॅ आया तो उसे विधी के साथ हुए उस सदमें से भी रितू ने ही निकाला होगा और फिर उसने उसे बताया होगा उसकी प्रेमिका के साथ जिन लोगों ने ये सब किया है उन लोगों को उसने अपने कब्जे में लिया हुआ है। बस उसके बाद आप खुद सोच लीजिए कि विराज ने क्या किया होगा अथवा ये सब करना उसके लिए कितना आसान हो गया होगा।"

"अगर ठाकुर की उस थानेदारनी बेटी ने ये सब विधी के लिए हमदर्दी के चलते तथा कानून को अपने हाॅथ में लेकर किया है।" चौधरी ने सोचते हुए कहा___"तो ये भी हो सकता है कि उसने इस सबके बारे में अपने पुलिस विभाग के किसी आला अफसर को भी नहीं बताया होगा।"

"ज़ाहिर सी बात है।" अवधेश ने कहा___"अगर वो बताती तो उसे ये सब करने का कोई भी उसका आला अफसर इजाज़त न देता और अगर उसके इस कृत्य की जानकारी किसी आला अफसर को होती तो ज़रूर वो उसके खिलाफ़ कानून को अपने हाॅथ में लेने के लिए ऐक्शन लेता।"

"यहाॅ पर मैं भी अपनी बात रखना चाहता हूॅ।" सहसा अशोक मेहरा ने कहा___"और वो ये कि ऐसा भी तो हो सकता है कि रितू के इस कृत्य के बारे में उसके किसी आला अधिकारी को सब कुछ पता ही हो और वो उसकी सहमति में ही ये सब कर रही हो।"

"ये तुम कैसी बेवकूफी की बातें कर रहे हो अशोक?" चौधरी की ऑखें फैलीं___"ये बात तुम भी अच्छी तरह जानते हो कि यहाॅ के पुलिस महकमें के किसी भी आला ऑफिसर की ऐसी ज़ुर्रत नहीं हो सकती कि वो हमारे खिलाफ़ ऐसा कोई क़दम उठाने के लिए अपने किसी जूनियर शिपाही को कह सके। उन्हें भी पता है कि ऐसा करने का अंजाम कितना भयंकर हो सकता है उनके लिए।"

"भयंकर अंजाम तो तब होगा न चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"जब आपको सबूत के साथ ये नज़र आए कि पुलिस ने ऐसा कुछ किया है। जब आपको कुछ ऐसा नज़र ही नहीं आएगा तो आप भला क्या कर लेंगे उनका? ख़ैर ये बात तो पुलिस के आला अफसरान को पता ही है कि वो आपके खिलाफ़ ज़ाहिर रूप से कोई ठोस कार्यवाही नहीं कर सकते हैं, इस लिए संभव है कि उन लोगों ने ये सब गुप्त रूप से शुरू किया हो ताकि हमें उनकी किसी कार्यवाही का भान तक न हो सके। वरना आप खुद सोचिए चौधरी साहब कि पुलिस की एक मामूली सी इंस्पेक्टरनी में इतना साहस और जज़्बा कैसे हो जाएगा कि वो आपके खिलाफ़ खुद कोई ऐक्शन ले सके? ये तो उसे भी पता होगा न कि पोल खुल जाने पर आप उसका क्या हस्र कर सकते हैं? इस लिए ये स्पष्ट हैं चौधरी साहब कि बग़ैर किसी आला ऑफीसर की सह के वो थानेदारनी ऐसा करने का सोच भी नहीं सकती है।"

"तुम्हारी बात भी सही है।" चौधरी के दिमाग़ की बत्तियाॅ जैसे एकाएक ही रौशन हो उठी थीं, बोला___"दूसरी बात ये कि सारा प्रदेश और पुलिस महकमा इस बात को जानता है कि हम जनता के साथ कितना बड़ा अत्याचार करते हैं। यही नहीं बल्कि ऐसा वो हर काम भी करते हैं जिसे ग़ैर कानूनी क़रार दिया जाता है। पुलिस महकमा इसके लिए हमारे खिलाफ़ कोई कार्यवाही इस लिए नहीं कर पाता क्योंकि एक तो उसके पास हमारे खिलाफ़ कोई सबूत नहीं होता दूसरे हमारा दबदबा और पहुॅच के असर से भी वो ख़ामोश रह जाते हैं।"

"निःसंदेह।" अवधेश कह उठा___"आपकी बात बिलकुल सच है चौधरी साहब। इस लिए अब पुलिस प्रशासन के पास यही एक चारा है कि वो गुप्त रूप से हमारे खिलाफ़ किसी कार्यवाही को अंजाम दें।"

"इसका मतलब ये हुआ।" अशोक ने कहा___"कि रितू और विराज के साथ साथ अब हमें पुलिस का भी ख़तरा है। इन दोनो भाई बहन से तो हम निपट भी लेंगे मगर पुलिस प्रशासन से कैसे निपटेंगे? मामला अगर केन्द्र तक गया होगा तो हमारे लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी चौधरी साहब।"

"नहीं अशोक।" चौधरी ने ठोस लहजे में कहा___"ये मामला इतना भी संगीन नहीं है कि इसकी गूॅज केन्द्र तक पहुॅच जाए। तुम कुछ ज्यादा ही ऊपर की सोच रहे हो।"
"फिर भी चौधरी साहब।" सहसा इस बीच अवधेश बोल पड़ा___"हमें इस बारें में भी सोचना तो चाहिए ही। क्या पता हमारा कोई ऐसा दुश्मन हो जिसने इसके लिए केन्द्र सरकार के काॅन खड़े कर दिये हों।"

"अगर ऐसा होता भी।" चौधरी ने कहा___"तो केन्द्र सरकार अपनी तरफ से हमारे खिलाफ़ जाॅच पड़ताल के लिए किसी सीबीआई जैसे लोगों को नियुक्त करती। वो यहाॅ आते और हमसे पूॅछताछ करते। मगर ऐसा तो कहीं दूर दूर तक समझ में ही नहीं आ रहा कि ऐसा कुछ है। ज़ाहिर है कि ये मामला यहीं तक सीमित है। अतः हम यहाॅ के पुलिस महकमें के आला ऑफिसर्स की क्लास अब ज़रूर लेंगे।"

"वैसे डिटेक्टिव के रूप में हमने हरीश राणे को इस मामले में लगा तो दिया ही है।" अवधेश ने कहा___"सारी सच्चाई का पता अब वही लगाएगा। देखते हैं वो इस सबकी क्या रिपोर्ट देता है हमें?"

अवधेश की बात पर चौधरी सिर्फ सिर हिलाकर रह गया। कुछ देर ऐसी ही कुछ और बातें हुईं उसके बाद सब अपने अपने काम के सिलसिले में वहाॅ से निकल लिए।
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11-24-2019, 01:07 PM,
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उधर हवेली में।
सबने एक साथ ही बैठ कर ब्रेकफास्ट किया था। उसके बाद प्रतिमा के पिता जगमोहन सिंह सबसे विदा लेकर हवेली से निकल लिए थे। उनको गुनगुन तक छोंड़ने के लिए खुद अजय सिंह अपनी कार से गया था। प्रतिमा को अपने पिता के चले जाने से काफी दुख हुआ था। वर्षों बाद उसे अपने पिता इस रूप में मिले थे। उसका दिल कर रहा था कि वो भी अपने पिता के साथ ही चली जाए। जगमोहन सिंह ने चलने के लिए कहा भी था मगर ज़रूरी कामों का हवाला देकर अजय सिंह ने यही कहा कि हम सब फिर कभी ज़रूर आएॅगे। अजय सिंह जानता था कि हालात अभी ऐसे नहीं हैं कि उसके बीवी बच्चे कहीं आ जा सकें।

इस वक्त ड्राइंग रूम में प्रतिमा और शिवा ही थे। जो आमने सामने सोफों पर बैठे हुए थे। प्रतिमा जहाॅ अपने पिता के बारे में सोच सोच कर दुखी हो रही थी वहीं शिवा नीलम व सोनम के बारे में सोच सोच कर ख़याली पुलाव बना रहा था। उसके चेहरे पर गर्दिश कर रहे भावों में प्रतिपल बदलाव आता नज़र रहा था। सोनम उसे पहली नज़र में ही बेहद पसंद आ गई थी और उसने इस बात का ज़िक्र अपनी माॅ प्रतिमा से भी किया था। उसने प्रतिमा से कहा था कि उसे सोनम बहुत अच्छी लगती है। काश उससे उसकी शादी हो जाए। मगर प्रतिमा ने इस बात के लिए शिवा को शख्ती से समझा दिया था कि ऐसा कभी नहीं हो सकता। वो उसकी बड़ी बहन है और बहन से भाई की शादी कभी नहीं हो सकती है। प्रतिमा की ये बात सुन कर शिवा का दिल बुरी तरह से टूट गया था।

गाॅव की हर लड़की या औरत को सिर्फ भोगने की चीज़ समझने वाला शिवा आजकल सोनम के प्यार में देवदास सा नज़र आने लगा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि ये अचानक उसे क्या हो गया है? सोनम के प्रति उसके दिल में मीठा मीठा सा दर्द क्यों होने लगा है? हर लड़की की भाॅति वो उसे भी हाॅसिल करके भोगने की बात क्यों नहीं सोच रहा? पिछली सारी रात वो इन्हीं सब बातों की वजह से सो नहीं पाया था। उसे सोनम से खुल कर बात करने में अब झिझक होने लगी थी। हलाॅकि वो उसकी मौसी की लड़की थी और उसकी बड़ी बहन लगती थी। मगर पहली नज़र में उसे देखने के बाद ही उसके प्रति उसकी सोच और उसके अंदर का हाल बड़ा अजीब सा गया था। ब्रेकफास्ट करते वक्त भी वह सबकी नज़रें बचा कर सोनम को चोरी से देख ही लेता था। यद्दपि सोनम उससे खुल कर बातें कर रही थी, किन्तु एक भाई बहन के रिश्ते से। सोनम की बातों का वो हाॅ या नहीं में थोड़ा बहुत जवाब दे देता था। उसके इस बिहैवियर से अजय सिंह भी अंदर ही अंदर चौंक पड़ा था। अनुभवी अजय सिंह को समझते देर न लगी कि उसका अय्याश बेटा सोनम के हुश्नो शबाब को देख कर चारो खाने चित्त हो चुका है। हलाॅकि सोनम और नीलम को देख कर उसका खुद का हाल भी शिवा से जुदा न था मगर उसके अंदर उनके प्रति प्रेमी वाला प्यार का अंकुर न फूटा था।

नाना और अजय सिंह के जाने के कुछ देर बाद ही नीलम व सोनम ऊपर अपने कमरे में चली गई थी। जबकि प्रतिमा व शिवा ड्राइंगरूम में ही बैठे रहे थे। इस ड्राइंग रूम में छाई गहन ख़ामोशी से सहसा प्रतिमा की तंद्रा टूटी। उसने अपने बेटे शिवा की तरफ देखा तो उसे गहन सोचों में गुम हुआ पाया। ये देख कर वह हौले से चौंकी।

"कहाॅ गुम है मेरा बेटा?" फिर प्रतिमा ने ज़रा खुद को सम्हालते हुए कहा___"क्या अभी तक भूत नहीं उतरा?"
"अ..आपने कुछ कहा क्या?" शिवा ने सहसा चौंकते हुए कहा।
"हाॅ पूछ रही हूॅ कि क्या अभी भी भूत नहीं उतरा है दिलो दिमाग़ से?" प्रतिमा कहने के साथ ही मुस्कुराई थी।

"भ..भूत???" शिवा चकरा सा गया___"कौन सा भूत माॅम?"
"प्यार वाला भूत।" प्रतिमा ने कहा___"बेटा ये प्यार वाला भूत बहुत ही खतरनाॅक होता है। जिसके सिर चढ़ता है न फिर कभी उतरता ही नहीं है।"

"ये आप क्या कह रही हैं माॅम?" शिवा ने झेंपते हुए कहा।
"हाय रे।" प्रतिमा मुस्कुराई___"देखो तो कैसे शरमा रहा है आज मेरा बेटा। बेटा ये इश्क़ न बहुत बुरी बला है। ये इश्क़ कम्बख्त उसी से होता है जो हमें कभी नसीब ही नहीं हो सकता।"

"ये तो ग़लत बात है माॅम।" शिवा ने कहा___"आपने भी तो डैड से इश्क़ ही किया था और फिर वो आपको नसीब भी तो हो गए।"
"हाॅ मगर तेरे डैड और मैं आपस में भाई बहन तो नहीं थे न।" प्रतिमा ने कहा___"उन रिश्तों में अगर इश्क़ हो तो कुछ भी करके हम एक हो सकते हैं मगर इस रिश्ते में ऐसा नहीं होता। क्योंकि इस रिश्ते वाले इश्क़ को ये समाज ये दुनियाॅ कभी स्वीकार नहीं करती बल्कि इन रिश्तों के बीच हो गए इश्क़ को पाप का नाम देती है ये दुनिया। इससे परिवार की मान मर्यादा और इज्ज़त का हनन हो जाता है।"

"मैं ये सब समझता हूॅ माॅम।" शिवा ने कहा___"मुझे पता है कि भाई बहन के बीच ये रिश्ता ग़लत है। मगर ये उनके लिए ग़लत होता है न माॅम जो पाक़ साफ होते हैं। हम तो ऐसे हैं जो इन्हीं रिश्तों को भोगने की खूबसूरत इच्छा रखते ही नहीं हैं बल्कि भोगते भी हैं।"

"हाॅ लेकिन ये बात देश समाज को पता तो नहीं है न।" प्रतिमा ने कहा___"ये सब तो घर के अंदर होता है और बिना किसी की जानकारी के होता है। इस लिए जब तक इन रिश्तों के बीच की सच्चाई दुनिया से छुपी है तब तक हम भी पाक़ साफ ही हैं बेटा।"

"कुछ भी कहिये माॅम।" शिवा ने जैसे दृढ़ता से कहा___"मैं सोनम को हद से ज्यादा पसंद करने लगा हूॅ। मेरे दिल में उसके प्रति प्रेम का अंकुर फूट चुका है। कल सारी रात मैं इस बारे में सोचता रहा और फिर इस नतीजे पर पहुॅचा हूॅ कि मैं अगर किसी लड़की से शादी करूॅगा तो वो सोनम से ही करूॅगा। हाॅ माॅम, पता नहीं क्यों पर मुझे अब ऐसा लगने लगा है कि अगर सोनम मेरी जाने हयात न बनी तो मैं एक भी पल जी न सकूॅगा।"

प्रतिमा अपने बेटे की इस बात से आश्चर्यचकित रह गई। अभी तक तो उसे यही लग रहा था कि शिवा ये सब उससे सोनम को भोगने के उद्देश्य से ही कह रहा था मगर इस वक्त उसके चेहरे के भाव चीख चीख कर उसे बता रहे थे कि वो सोनम के लिए कितना सीरियस हो चुका है। प्रतिमा का दिलो दिमाग़ सुन्न सा पड़ गया। उसे समझ न आया कि इस विषम परिस्थिति में वो अपने बेटे को आख़िर कैसे समझाए? वो समझ सकती थी कि प्यार मोहब्बत कैसी चीज़ होती है और फिर इंसान की क्या हालत हो जाती है।

"देखो बेटा।" फिर प्रतिमा ने बहुत ही सीरियस भाव से किन्तु समझाते हुए कहा___"ये सब ठीक नहीं है। सोनम के प्रति ऐसी फीलिंग्स रखना अच्छी बात नहीं है। हो सकता है कि तुम्हारा सोनम के प्रति ये सिर्फ एक आकर्षण हो, जिसे तुम प्यार समझ रहे हो। ख़ैर, मैं ये कह रही हूॅ कि ये अभी पहली स्टेज है। अभी तुम इस सबके लिए खुद को समझा भी सकते हो और खुद को इसके प्रभाव से बचा भी सकते हो। इस लिए बेहतर होगा कि तुम इस पर विचार करके अमल करो। दूसरी बात, सोनम तुम्हारी बड़ी बहन है। उसके मन में तुम्हारे प्रति ऐसा कुछ भी नहीं होगा मुझे अच्छी तरह पता है। किन्तु अगर उसे पता चल गया कि तुम उसके बारे में ऐसा सोचते हो तो वो तुम्हारे दिल का हाल नहीं समझेगी बल्कि तुम्हें ग़लत नेचर का मानते हुए तुमसे नफ़रत करने लगेगी।"

"ऐसा नहीं होगा माॅम।" शिवा की आवाज़ सहसा भर्रा सी गई, बोला___"मैं उसे खुद समझाऊॅगा कि मैं उससे कितना प्यार करने लगा हूॅ। उसे बताऊॅगा कि मेरे दिल में उसके लिए सिर्फ और सिर्फ प्यार है और हाॅ ये भी कहूॅगा माॅम कि अगर उसे लगता है कि मेरे प्यार में कोई खोट या गंदगी है तो उसे मुझे ठुकरा देने का और मुझसे नफ़रत करने का पूरा हक़ है। मैं सारी ज़िंदगी उसके खूबसूरत चेहरे को अपनी ऑखों में बसा कर तथा उसकी यादों के सहारे जी लूॅगा। उसके अलावा मेरी ज़िंदगी में दूसरी कोई लड़की कभी नहीं आएगी।"

प्रतिमा को ज़बरदस्त झटका लगा। ऐसा लगा जैसे सारा आसमान एकाएक ही भरभरा कर उसके सिर पर गिर पड़ा हो। उसे अपने काॅनों पर यकीन नहीं हो रहा था कि उसने शिवा के मुख से जो सुना वो सच है या ग़लत। कितनी ही देर तक वो किंकर्तब्यविमूढ़ सी स्थिति में बैठी उसे अपलक देखती रही।

"मैं जानता हूॅ माॅम कि आपको आज मेरी इन सब बातों पर बेहद आश्चर्य हो रहा होगा।" शिवा गंभीरता से कह रहा था___"बात भी सच है। किसी कौए से ये उम्मीद नहीं की जा सकती कि वो कोयल की तरह मीठा भी बोल सकता है। मगर सुना है कि जहाॅ किसी चीज़ की उम्मीद नहीं होती वहीं पर एक नया चमत्कार हुआ करता है। कदाचित मेरे साथ भी ऐसा ही हो गया है। कल सारी रात सोचता रहा मैं कि मैं क्यों सोनम की तरफ इस हद तक अट्रैक्ट होता जा रहा हूॅ? मेरे दिल में क्यों उसके लिए प्यार जाग रहा है? सवाल तो मुझे नहीं मिला मगर इतना एहसास ज़रूर हुआ कि सोनम के बिना मेरी ज़िंदगी का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। आज आपकी बातों ने मुझे अंदर से हिला तो दिया है माॅम मगर मेरे दृढ़ निश्चय में और भी ज्यादा इज़ाफा भी हो गया है।"

प्रतिमा को झटके पर झटके लग रहे थे। उसका दिलो दिमाग़ जाम सा हो चुका था। सुना तो था उसने भी कि प्रेम का रोग जब लगता है तो पत्थर से पत्थर दिल इंसान को भी पिघला देता है और उसका असर ये होता है कि इश्क़ के नशे में डूबा हुआ इंसान फिर बहुत ही खूबसूरत ख़यालों का बन जाता है। उसके मुख से कड़वी बातें नहीं निकला करती। इश्क़ हो जाने के बाद इंसान की सोच और उसके ख़यालात बदल जाते हैं। वो अपने प्रियतम की ही खुशियों के बारें में सोचता रहता है। हर पल यही सोचता है कि कभी ऐसा कोई पल न आने पाए जिसके तहत उसके प्रियतम को ज़रा सी भी तक़लीफ हो जाए। किसी के खूबसूरत चेहरे को अपनी पलकों तले बसा कर तथा उसकी याद के सहारेसारी ऊम्र काट लेने वाले डायलाॅग आज शिवा के मुख से खारिज़ हो रहे थे। जिसने किसी से इश्क़ किया होगा उसे ये बात ज़रूर समझ में आई होगी कि शिवा के ये डायलाॅग किस हद तक सच थे।

अभी प्रतिमा शिवा की इन सब बातों से बुत बनी बैठी ही थी कि सहसा तभी ड्राइंगरूम में नीलम व सोनम एक साथ आकर खड़ी हो गईं। प्रतिमा की नज़र जैसे ही उन दोनो पर पड़ी तो उसने जल्दी से अपने चेहरे के भावों को छुपा लिया और फिर एकाएक ही उसकी नज़र शिवा पर पड़ी तो मन ही मन चौंक पड़ी। शिवा की नज़र सोनम पर स्थिर थी। एकाएक ही उसकी ऑखों में सोनम के प्रति बेपनाह मोहब्बत का सागर भीषण हिलोरें लेता हुआ नज़र आया उसे। कहते हैं कि ऑखें सब कुछ बयां कर देती हैं। प्रतिमा को शिवा की ऑखों ने बता दिया कि वो सोनम के प्रति अपने वजूद के हर ज़र्रे पर सिर्फ और सिर्फ मोहब्बत छलकाए बैठी हैं।

"माॅम मैं और सोनम दीदी।" उधर ड्राइंगरूम में आते ही नीलम ने खुशी वाले लहजे में कहा___"घूमने जा रहे हैं। दीदी कह रही हैं कि उन्हें हमारा ये गाॅव देखना है औ हमारे खेत भी देखना है।"

"ओह चल ठीक है।" प्रतिमा ने सहसा नीलम की तरह ध्यान से देखते हुए कहा___"पर तुम दोनो अकेले कैसे जाओगी?"
"इनके साथ मैं चला जाता हूॅ माॅम।" शिवा भला ये सुनहरा अवसर अपने हाॅथ से कैसे जाने देता, अतः तपाक से बोल पड़ा था____"मैं इन्हें बहुत अच्छे से अपना ये गाॅव और अपने सारे खेत दिखा दूॅगा।"
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11-24-2019, 01:07 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"कोई ज़रूरत नहीं तुझे हमारे साथ जाने की।" नीलम ने सहसा तुनक मिजाज़ी से कहा___"हम दोनो खुद ही देख लेंगे। क्यों दीदी?"
"बात तो तेरी सही है।" सोनम ने कहा___"लेकिन शिवा को भी साथ ले लेंगे तो कोई दिक्कत थोड़ी न है। आख़िर भाई है वो हमारा। हमारे साथ रहेगा तो हमें भी कंफर्टेबल फील होगा। है न मौसी?"

"बिलकुल ठीक कहा तुमने बेटा।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"लेकिन अगर ये जाएगा तो नीलम और ये दोनो आपस में झगड़ा ही करेंगे। इस लिए एक काम करो बाहर खड़े हमारे सुरक्षा करने वाले आदमियों में से एक दो को साथ ले जाओ। वो क्या है न ज़माना बहुत ख़राब है। कोई ऊॅच नीच हो गई तो समस्या हो जाएगी। इस लिए तुम दोनो के साथ में दो सुरक्षा करने वाले आदमी रहेंगे तो मैं भी बेफिक्र रहूॅगी।"

"हाॅ ये ठीक रहेगा माॅम।" नीलम ने शिवा को चिढ़ाने के लिए अपनी जीभ दिखाते हुए कहा___"इस लंगूर से तो वो ही अच्छे रहेंगे। हमें भी लगेगा कि उनके रहते हम पर कोई ऑच नहीं आएगी। इसके रहते तो कोई भी हमें छेंड़ सकता है और ये बेचारा मार के डर से कुछ बोल भी नहीं पाएगा।"

"ओये क्यों मेरे भाई को ऐसा बोल रही है तू?" सोनम ने ऑखें दिखाते हुए कहा___"अच्छा भला स्मार्ट तो है हमारा भाई। तेरी ऑखें ख़राब हैं जो तुझे वो लंगूर नज़र आता है।"

"आपने सही कहा दीदी।" शिवा ने आवेश में सोनम को दीदी कह तो दिया मगर अगले ही पल उसकी आवाज़ काॅप गई। मन ही मन उसे अपनी बेबसी पर बेहद क्रोध आया मगर फिर खुद को सम्हाल कर बोला___"जो खुद ही बंदरिया जैसी हों उन्हें सामने वाला लंगूर ही दिखेगा न।"

"ओये तमीज़ से बात कर समझा।" नीलम ने घुड़की सी दी उसे___"भूल मत कि मुझसे छोटा है तू और फिर अगर मैने तुझे लंगूर कह भी दिया तो क्या हो गया? मैने तो तुझे प्यार से लंगूर कहा है।"

"वाह दीदी वाह।" शिवा कह उठा___"प्यार से कहने के लिए लंगूर शब्द ही मिला था आपको? देख लीजिए माॅम, मैं छोटा हूॅ तो सब मुझसे अपने बड़े होने का रौब झाड़ते हैं।"

शिवा ने इतनी मासूमियत से ये कहा था कि सोनम के होठों पर मुस्कान उभर आई। वो तुरंत ही शिवा के बगल पर जाकर बैठी और फिर उसे अपने साइड से छुपका कर बोली____"जाने दे न भाई। ये छिपकली तो है ही दिमाग़ से पैदल लेकिन मैने तो तुझे ऐसा वैसा कुछ नहीं कहा न? मुझे पता है तू हमारा सबसे स्वीटेस्ट भाई है। चल अब नाराज़गी छोंड़ और मुस्कुरा कर दिखा। उसके बाद हमें घूमने भी जाना है।"

सोनम की बातों का असर पलक झपकते ही शिवा पर न हो ऐसा तो अब हो ही नहीं सकता था। वैसे भी अब तो अगर वो उसे ज़हर खाने को भी बोलती तो वो खुशी से खा लेता। ख़ैर सोनम के कहने पर उसके इस तरह उसे छुपका लेने पर शिवा का चेहरा ताज़े खिले गुलाब की मानिंद खिल उठा था। इस वक्त वो इतना खुश हो गया था कि अब अगर उसे मौत भी आ जाती तो वो उसके लिए भगवान से शिकवा न करता।

उधर प्रतिमा चुप बैठी इन तीनो की बातें सुन रही थी और नीलम व सोनम दोनो के ही चेहरों को बड़े ध्यान से देखे जा रही थी। जैसे समझना चाहती हो कि दोनो के मन में घूमने जाने के सिवा कुछ और तो नहीं है। शिवा को वो इन दोनो के साथ जान बूझ कर नहीं भेज रही थी। क्योंकि उसे पता था कि शिवा इस वक्त सोनम के प्यार में पागल है। सोनम ने अगर उसे किसी बात के लिए कहीं भेज दिया तो वो बिना कुछ सोचे समझे चला जाएगा और ये दोनो उसके चले जाने पर कुछ भी करने के लिए आज़ाद हो जाएॅगी। प्रतिमा इस बात के लिए मना भी नहीं कर सकती थी कि वो दोनो घूमने न जाएॅ। इसी लिए शिवा की जगह वो उन्हें सुरक्षा गार्ड्स को साथ में जाने का कह रही थी।

"तो कब जाना है तुम दोनो को?" फिर प्रतिमा ने पूछा।
"कब जाना है क्या मतलब है माॅम?" नीलम ने कहा___"हम दोनो तो तैयार होकर आ ही गए हैं और जा ही रहे थे।"
"चलो ठीक है।" प्रतिमा ने कहने के साथ ही शिवा की तरफ देखा___"बेटा जाओ तुम गेस्ट हाउस से दो आदमियों को बोल दो। वो इन दोनो के साथ चले जाएॅगे।"

प्रतिमा के मन में अचानक ही गेस्ट हाउस में ठहरे उन आदमियों का ख़याल आया था। जिन्हें अजय सिंह के बिजनेस संबंधी दोस्त मदद के लिए भेज गए थे। नीलम व सोनम के साथ उनमे से ही किन्हीं दो आदमियों को भेजना उचित लगा था उसे। वो हर तरह से इन दोनो की सुरक्षा कर सकते थे। उसे अपने आदमियों की काबीलियत पर अब कोई भरोसा नहीं रह गया था। ख़ैर प्रतिमा के कहने पर शिवा सोफे से उठा और बाहर की तरफ चला गया।

"तो तुम दोनो कैसे जाओगी यहाॅ से?" प्रतिमा ने शिवा के जाते ही पूछा___"मेरा मतलब है कि घूमने के लिए किसी कार या जीप से जाओगी या ऐसे ही पैदल जाना है?"
"इतना ज्यादा पैदल कौन चल पाएगा माॅम?" नीलम ने कहा___"पहले सारा गाॅव घूमना फिर खेतों की तरफ जाना। नहीं माॅम, इतना ज्यादा पैदल चलना मेरे बस का तो हर्गिज़ भी नहीं है।"

"हाॅ मुझे पता था यही कहोगी तुम।" प्रतिमा ने मन ही मन खुश होते हुए कहा___"ख़ैर, बाहर जीप खड़ी है। उसमे ही बैठ कर चले जाना और हाॅ उन आदमियों के साथ ही रहना।"
"ओके माॅम।" नीलम ने कहा___"वैसे आज लंच में क्या बनेगा? वो क्या है न मुझे आज आपके हाॅथ का बना बैगन का हलवा खाना है।"

"क..क्या कहा????" सोनम उसकी बात सुन कर बुरी तरह चौंकी थी। जबकि प्रतिमा कहने के साथ ही इधर उधर देखने लगी थी।
"भागो दीदी भागो।" नीलम सोनम का हाॅथ पकड़ कर खींचते हुए बोली___"वरना माॅम मेरे साथ साथ आपकी भी पिटाई करने लगेंगी डंडे से।"

सोनम को कुछ भी समझ में न आया कि ये अचानक हुआ है क्या है? बैगन का हलवा और फिर नीलम का ये कहना कि भागो वरना माॅम डंडे से पिटाई करने लगेंगी। सोनम को कुछ समझ न आया। ये अलग बात है कि नीलम के खींचने पर वह सोफे से उठ कर बाहर की तरफ ही लड़खड़ाते हुए भाग ली थी। जबकि इधर प्रतिमा उन दोनो के जाते ही मुस्कुरा कर रह गई थी।

नीलम व सोनम जैसे ही बाहर आईं तो देखा कि शिवा के साथ दो हट्टे कट्टे आदमी जीप के पास ही खड़े थे। शिवा उन्हें कुछ बता रहा था। ये देख कर नीलम व सोनम उस तरफ बढ़ चलीं। जीप के पास पहुॅचते ही वो दोनो शिवा के पास ही खड़ी हो गईं।

"दीदी ये दोनो आप लोगों के साथ जाएॅगे।" शिवा ने नीलम की तरफ देखते हुए कहा___"बाॅकी माॅम ने तो आपको सब कुछ समझा ही दिया होगा।"
"हाॅ समझा दिया है।" नीलम ने कहा___"और हाॅ इनको बोल दे कि हमारा हर कहना भी मानेंगे।"

"अरे दीदी ये सब कहने की ज़रूरत नहीं है।" शिवा ने कहा___"ये दोनो बहुत अच्छे और समझदार ब्यक्ति हैं। आपको पता नहीं है ये दोनो ही तगड़े फाइटर हैं। इनके रहते आप दोनो को कोई छू भी नहीं सकता।"
"ओह आई सी।" नीलम ने कहा___"फिर तो अच्छी बात है। चलिये दीदी जीप में बैठते हैं।"

थोड़ी ही देर में नीलम व सोनम जीप में बैठ गईं। एक आदमी जीप की ड्राइविंग शीट पर बैठ गया जबकि दूसरा उसके बगल में। जीप की पिछली शीट पर नीलम व सोनम बैठ गई थी। जीप जैसे ही चलने लगी तो शिवा ने सोनम की तरफ प्यार भरी नज़रों से देखते हुए बस इतना ही कहा घूम फिर कर जल्दी आइयेगा। उसकी इस बात पर नीलम व सोनम दोनो ही मुस्कुरा उठीं। किन्तु इस बार उनकी इस मुस्कान में ऐसा भेद छिपा था जिसे शिवा जैसा कूढ़मगज लड़का किसी भी तरह से नहीं समझ सकता था।
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11-24-2019, 01:08 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर मुम्बई में।
सबके आ जाने से पूरे बॅगले में एक अलग ही रौनक तथा चहल पहल सी हो गई थी। किन्तु खिले खिले चेहरों पर भी एक उदासी थी जो इस बात का सबूत थी कि विराज के यहाॅ न होने से सब कितने उदास थे। सबको पता था कि विराज किस काम के लिए इस बार गाॅव गया हुआ था। सबके साथ तो गौरी घुली मिली रहती किन्तु अकेले में अपने बेटे के लिए बहुत दुखी हो जाती थी। उसे इस बात की तक़लीफ भी थी कि विराज जब से गया था तब से एक दिन भी फोन नहीं लगाया था और ना ही जगदीश ओबराय की वजह से उसने अपने बेटे को फोन लगाया था।

जगदीश ओबराय ने गौरी से कहा था कि वो फोन करके विराज को कमज़ोर न बनाए। माॅ बेटे के बीच का रिश्ता भावनाओं के बहुत ही नाज़ुक बंधन से जुड़ा होता है जिससे दोनो ही ऐसे हालातों में कमज़ोर पड़ जाते हैं। किन्तु जगदीश ओबराय ने ये भी कहा था वो ईश्वर से अपने बेटे की सलामती की दुवा करे। ये उसकी जंग है उसे स्वतंत्रता पूर्वक इस जंग को इसके अंजाम तक पहुॅचाने दो। सब अपनी अपनी जगह विराज के लिए चिंतित थे तथा परेशान थे मगर सबके दिलों में उसके लिए प्यार था। सबके होठों पर उसकी सलामती के लिए दुवाएॅ थी।

गौरी, करुणा तथा पवन की माॅ। पवन की माॅ का नाम रुक्मणी था। ये तीनो ही आपस में खूब सारी बातें करती रहती थी। किन्तु अकेले में तीनों ही विराज के लिए चिंतित हो जाती थी। एक दूसरे को अपनी चिंता व परेशानी नहीं दिखाती थी। क्योंकि कोई नहीं चाहता था कि सबके बीच एक तनाव या दुख भरा माहौल क्रियेट हो जाए। जगदीश ओबराय व अभय सिंह खुद भी अपनी जगह विराज के लिए चिंतित थे मगर सबको तसल्ली देते रहते थे और यही कहते कि सच्चाई की हमेशा विजय होती है। इस लिए इसके लिए इतना चिंतित व परेशान न हों कोई।

पवन को जगदीश ओबराय ने अपनी कंपनी में ही एक अच्छी पोस्ट पर काम में लगा दिया था। अतः पवन अब ज्यादातर कंपनी में ही रहता था। किन्तु हर वक्त उसका मन अपने दोस्त के लिए अशान्त रहता था। उसे विराज से शिकायत भी थी कि वो उसे यहाॅ सुरक्षित छोंड़ कर खुद मौत के मुह में चला गया था।

पवन की बहन आशा ज्यादातर निधी के साथ ही रहती थी। निधी सुबह स्कूल जाती और फिर शाम को वापस आ जाती थी। हर समय अपनी शरारतों से सबको परेशान करने वाली ये गुड़िया अचानक से इस तरह ख़ामोश हो गई थी जैसे ये शदियों से ऐसी ही रही थी। उसकी इस ख़ामोशी को सब यही समझते कि वो अपने प्यारे से बड़े भइया के लिए सबकी तरह ही दुखी है। कोई ये नहीं जानता था कि उसने अपनी छोटी सी इस ऊम्र अपने ही भइया से प्रेम का कितना बड़ा रोग लगा लिया था। जिसके चलते उसका हर समय शरारतें करना जाने कहाॅ गुम होकर रह गया था।

आशा को पता था कि निधी शुरू से ही ऐसी नहीं थी। शुरू शुरू में उसकी इस ख़ामोशी को वो खुद भी यही समझती थी कि वो सबकी तरह विराज के लिए दुखी है। इस लिए अब वो शरारतें नहीं करती है। मगर जल्द ही उसे इस कारण के अलावा भी दूसरा कारण समझ में आ गया था। दरअसल निधी भी अब अपने भाई की तरह डायरी लिखने लगी थी। जिसमें वो अपने और अपने प्रियतम भाई के बीच जन्में इस प्रेम के हर पहलुओं के बारें में लिखती थी। अपने दिल के जज़्बातों को वो डायरी के कागज़ों पर लिखती थी। उसे पता था कि डायरी में उसके द्वारा लिखा गया हर लफ़्फ किसी डायनामाइट से कम नहीं है। कहने का मतलब ये कि अगर किसी को ये पता चल जाए कि सबके दिलों में राज करने वाली उनकी ये नटखट गुड़िया अपने ही सगे भाई से प्रेम करती है तो यकीनन इस बात से डायनामाइट की तरह विस्फोट हो जाना था।
डायरी में अपने दिल का हाल बयां करने के बाद निधी उस डायरी को अपने कमरे में ही रखी आलमारी के अंदर वाले लाॅकर में रख कर लाॅक लगा देती थी। मगर एक दिन कदाचित उसका भेद खुल जाना था इस लिए उससे ग़लती हो गई। दरअसल पिछले दिन सुहब सुबह की ही बात है। आशा चाय लेकर निधी के कमरे में पहुॅच गई। उसने देखा कि बेड पर चित्त अवस्था में लेटी निधी के सीने पर एक मोटी सी डायरी थी जिसे वो दोनो हाॅथों से पकड़े सोई हुई थी। आशा जो कि निधी के साथ ही रहती थी। पिछली रात उसे आधी रात के क़रीब शूशू लगी तो उसकी नींद खुल गई। उसने देखा कि रात के उस वक्त टेबल लैम्प जला कर निधी कुछ लिख रही थी। उस वक्त उसने सोचा था कि वो अपनी पढ़ाई ही कर रही है। बाथरूम से आने के बाद उसने कहा भी था उससे कि अब उसे सो जाना चाहिए।

आशा ने प्लेट सहित चाय के कप को बेड के पास ही दीवार से सटे एक छोटे से टेबल पर रखा और फिर वो निधी के पास गई। उसकी नज़र डायरी पर पड़ी। आशा ने ग्रेजुएशन तो नहीं किया था किन्तु दस बारह तक पढ़ी लिखी थी वो। हल्दीपुर गाॅव में बारवीं तक स्कूल था। आगे काॅलेज की पढ़ाई पढ़ने के लिए चिमनी जाना पड़ता था, जो कि पास के ही गाॅव में था। ख़ैर, डायरी देख कर उसे ये तो समझ आ गया कि ऐसी डायरी निधी की पढ़ाई में तो उपयोग होती नहीं होगी तो फिर ऐसा क्या है इसमें जिसे वो सोते समय भी लिए हुए है।

आशा ने बहुत ही आहिस्ता से निधी के हाॅथों से उस डायरी को निकाला और फिर बेड से दो कदम पीछे हट कर उसने डायरी को खोला। डायरी के शुरू के काफी पेज अलग अलग चीज़ों से भरे थे। जैसे कि हर देश के कोड्स वगैरा। अपने देश भारत के अलग अलग राज्यों के मानचित्र। उसके बाद मुख्य पेज शुरू होते थे।

मुख्य पेज पर ही मोटे मोटे अच्छरों में आशा को लिखा नज़र आया____"जियें तो जियें कैसे....बिन आपके??" इस टाइटल के नीचे ही एक मध्यम साइज़ के दो दिल बने हुए थे, जो कि साथ में ही मिले हुए थे। जिसमे एक तरफ वाले में राज और दूसरे वाले में निधी लिखा था। उसके नीचे मोटे अच्छरों में ही लिखा था____"MY LOVE"
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11-24-2019, 01:08 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
आशा को ये सब देख कर ज़बरदस्त झटका लगा। इतना कुछ देख कर कोई भी समझ सकता था कि माज़रा क्या है? आशा ये जान कर हैरान रह गई कि निधी अपने ही बड़े भाई से प्यार करती है। आशा ने झटके से बेड पर सो रही निधी के चेहरे की तरफ देखा। निधी के चेहरे पर इस वक्त सारे संसार की मासूमियत विद्यमान थी। उस चेहरे को देख कर उसे यकीन ही नहीं हुआ कि ये ऐसा कर सकती है। मगर उसके ही द्वारा लिखा गया ये हर लफ्ज़ क्या झूॅठा हो सकता था?

आशा के पूरे जिस्म में एक अजीब सी झुरझुरी तेज़ रफ्तार से दौड़ गई। अंदर ही अंदर जैसे एकाएक ही कोई तेज़ जज़्बातों का भयंकर तूफान उठा जिसने उसके समूचे अस्तित्व को हिला कर रख दिया। उसी जज़्बातों के तूफान का असर था कि उसकी ऑखों में एकाएक ही ऑसू भर आए थे। फिर जैसे उसने खुद के जज़्बातों को सम्हाला और डायरी के उस पेज को पलटा। दूसरे पेज पर कोई ग़ज़ल लिखी हुई थी जिसे आशा ने पढ़ना शुरू किया।

अजब हाल है दिल का बताना भी नहीं मुमकिन।
लब ख़ामोश हैं ऑखों से जताना भी नहीं मुमकिन।।

सबके सामने मुस्कुराने का हुनर भी सीख लेंगे,
मगर तन्हाई में वो हुनर आजमाना भी नहीं मुमकिन।।

तौबा तो की है हमने के तुमसे रूबरू न होंगे मगर,
एक पल फाॅसलों में रह पाना भी नहीं मुमकिन।।

बहुत दिल को समझाया मगर ये एहसास हुआ,
किसी तरह दिल को बहलाना भी नहीं मुमकिन।।

ज़हर दे दो हमको और ये किस्सा तमाम कर दो,
यूॅ तड़प तड़प कर जी पाना भी नहीं मुमकिन।।

माफ़ करना के हमने बेरुख़ी अख़्तियार कर ली,
क्या करें के कोई और बहाना भी नहीं मुमकिन।।

पूरी ग़ज़ल पढ़ने के बाद आशा का दिलो दिमाग़ सुन्न सा पड़ता चला गया। अभी वो ये सब सोच ही रही थी कि सहसा वो बुरी तरह चौंकी। बेड पर पड़ी निधी के जिस्म में हलचल सी हुई प्रतीत हुई उसे। ये देख कर आशा ने जल्दी से डायरी को आगे बढ़ कर निधी के बगल से ही ऐसी पोजीशन में रख दिया कि अगर निधी की नज़र उस पर पड़े भी तो उसे यही लगे कि वो डायरी उसके हाॅथों से सोते वक्त ही छूट कर एक तरफ गिर गई थी। डायरी रखने के बाद आशा जल्दी से टेबल पर से चाय का कब प्लेट सहित उठाया और फिर अपने चेहरे पर खुशी तथा प्यार के भाव लाते हुए निधी के चेहरे के क़रीब झुकते हुए कहा____"गुड मार्निंग गुड़िया। चलो चलो सुबह हो गई है। देखो तो गरमा गरम चाय तुम्हारे पेट में जाने के लिए कैसे उतावली हो रही है।"

आशा के इस प्रकार कहने पर निधी ने कुछ ही पलों में अपनी ऑखें खोल दी और फिर आशा की तरफ देख कर वो बस ज़रा सा ही मुस्कुराई। आशा के हाॅथ में चाय का कप देख कर वो बेड से उठी और बेड की पिछली पुश्त की तरफ खिसक कर उसने अपनी पीठ उस पर टिकाई और फिर उसने आशा के हाथ से चाय का कप ले लिया। जबकि चाय का कप पकड़ाते ही आशा सीधी खड़ी हो गई। वो देखना चाहती थी कि निधी की नज़र जब अपनी डायरी पर पड़ेगी तो उसका कैसा रिएक्शन होता है?

आशा को इसके लिए ज्यादा देर तक इन्तज़ार नहीं करना पड़ा। निधी ने कप से चाय का पहला ही शिप लिया था कि उसकी नज़र बाएॅ साइड उल्टी पड़ी अपनी डायरी पर पड़ी और फिर उसके चेहरे पर एकदम से डर और घबराहट के मिले जुले भाव उभर आए। उसके पीछे खिसकने से डायरी उलट कर थोड़ी और दूर हो गई थी तथा उलट सी गई थी। निधी ने फौरन ही अपना एक हाॅथ बढ़ा कर डायरी को अपने कब्जे में ले लिया और वहीं अपने हिप्स के पास ही लगभग छुपा सा लिया उसे। उसकी इस नादानी पूर्ण हरकत से आशा के होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई। उसके मन में पहले तो आया कि वह उससे उस डायरी तथा डायरी में लिखे मजमून के संबंध में कोई बात करे मगर उसने ये सोच कर अपने मन से इस ख़याल को झटक दिया कि उसके पूछने पर कहीं निधी बुरी तरह डर न जाए।

"अच्छा मैं जा रही हूॅ गुड़िया।" फिर आशा ने सामान्य भाव से कहा___"पवन को भी उठा दूॅ। उसे भी ड्यूटी जाना होगा न और हाॅ तू भी जल्दी से फ्रेश होकर नीचे आ जाना। ब्रेकफास्ट रेडी होने ही वाला है।"
"ठीक है दीदी।" निधी ने भी खुद को सामान्य दर्शाते हुए कहा___"आप जाइये मैं आती हूॅ थोड़ी देर में।"

निधी की बात सुन कर आशा कमरे से बाहर चली गई। जबकि उसके जाने के बाद निधी एकाएक ही गहन विचारों में कहीं खो सी गई। अभी वो विचारों में खोई ही थी कि तभी उसका मोबाइल फोन बज उठा। उसने सिरहाने पर ही एक तरफ रखे मोबाइल को उठाया और स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे अनजान नंबर को देखा। उसके चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे। उसे समझ न आया कि उसके मोबाइल पर ये अनजान नंबर से आने वाली काल किसकी हो सकती है?

"हैलो।" फिर जाने क्या सोच कर उसने काल रिसीव किया और उसे कानों से लगाते ही कहा था।
"हैलो गुड़िया।" उधर से रितू की जानी पहचानी आवाज़ सुन कर निधी बुरी तरह चौंक पड़ी थी। उसे आशा, रुक्मणी, पवन और करुणा आदि के द्वारा पता चल गया था कि रितू विराज का पूरी तरह से साथ दे रही है। रितू के इस तरह अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ हो जाने से हर कोई हैरान था। मगर सब ये भी जानते थे कि रितू एक अच्छी लड़की है। वो ग़लत का साथ कभी नहीं दे सकती। उसके माॅ बाप ने अब तक उससे सच छुपाया हुआ था इसी लिए उसका बर्ताव इन लोगों के प्रति ऐसा था।

"गुड़िया तू सुन रही है न?" निधी के चुप रह जाने पर उधर से रितू की पुनः आवाज़ उभरी___"देख, तुझे पूरा हक़ है मुझसे नाराज़ होने का और तुझे नाराज़ होना भी चाहिए। मैं चाहती हूॅ कि तेरा जो मन करे तू मुझे वो सज़ा दे मेरी गुड़िया। तेरी हर सज़ा मैं हॅसते हॅसते कुबूल कर लूॅगी। बस एक बार अपने मुख से मुझे दीदी कह दे। कसम से उसके बाद अगर मुझे मौत भी आ जाएगी तो उसका मुझे कोई दुख नहीं होगा।"

"न..नहींऽऽऽ।" रितू की बातों से निधी की ऑखों से पलक झपकते ही ऑसू बह चले, बुरी तरह तड़प कर बोली___"ये आप कैसी बातें कर रही हैं दीदी? मुझे आपसे कोई शिकायत कोई नाराज़गी नहीं है। मुझे पता है कि इस सबमें आपका कभी कोई दोष था ही नहीं। इस लिए प्लीज आप ये सब मत कहिए। मुझे तो बहुत खुशी हो रही है कि मेरी सबसे अच्छी वाली दीदी ने मुझे फोन किया।"

"हाॅ पर मुझे खुशी नहीं हुई।" उधर से रितू ने अजीब भाव से कहा___"और वो इस लिए कि मेरी सबसे प्यारी गुड़िया ने अपनी इस गंदी दीदी को कोई सज़ा नहीं सुनाई।"
"प्लीज दीदी।" निधी ने आहत भाव से कहा___"ऐसा मत कहिए न खुद को और अगर आपने दुबारा फिर से अपने लिए ऐसा कहा तो मैं आपसे बात नहीं करूॅगी, हाॅ नहीं तो।"

इस बार निधी के ऐसा कहने पर उधर से रितू की रुलाई फूट गई। यही यो सुनना चाहती थी वो निधी के मुख से। निधी के मुख से उसका ये तकिया कलाम कितना मीठा लगता था इसका एहसास वहीं कर सकती थी। मोबाइल पर रितू के सिसकने की आवाज़ सुन कर निधी भी दुखी हो गई। वह फोन पर ही रितू को अपने तरीके से मनाने लगी कि वो न रोएॅ। आख़िर कुछ देर बाद सब ठीक हो ही गया।

"और बताइये दीदी।" फिर निधी ने सामान्य भाव से कहा___"आज आपको मेरी याद कैसे आ गई?"
"तेरी याद तो रोज़ ही आती है गुड़िया।" उधर से रितू ने सहसा गंभीरता से कहा___"किन्तु अपराध बोझ के चलते तुझसे बात करने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी।"

"आप फिर से ऐसी बातें करने लगीं।" निधी ने कहा___"इन बातों को अब जाने दीजिए न दीदी। ख़ैर ये बताइये कि कैसी हैं आप?"
"मैं तो अच्छी ही हूॅ गुड़िया।" रितू ने कहा___"पर मेरा दिल करता है कि तुझे कितना जल्दी अपनी ऑखों के सामने देखूॅ और तुझसे ढेर सारी अच्छी अच्छी बातें करूॅ भी और तुझसे सीखूॅ भी।"

"मेरा भी ऐसा ही दिल करता है दीदी।" निधी ने कहा___"मगर शायद अभी ये मुमकिन नहीं है।"
"हाॅ ये तो है गुड़िया।" रितू ने कहा___"अच्छा एक बात पूछूॅ तुझसे?"
"हाॅ जी दीदी।" निधी के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे___"पूॅछिए न।"

"क्या राज ने तुझे कुछ कहा है?" उधर से रितू ने कहा___"या फिर किसी बात पर उसने तुझे डाॅटा है। तू मुझसे बता गुड़िया मैं यहाॅ इसके काॅन खींचूॅगी। इसकी हिम्मत कैसी हुई मेरी गुड़िया को कुछ कहने की।"
"नहीं नहीं दीदी।" निधी बुरी तरह हड़बड़ा गई थी, बोली___"ऐसा कुछ भी नहीं है। मुझे किसी ने कुछ नहीं कहा। आपको ऐसा क्यों लगा दीदी?"

"राज बता रहा था।" रितू ने निधी की धड़कनों को बढ़ाते हुए कहा___"कि तू कुछ समय से उससे बात ही नहीं कर रही है और ना ही तू उसके सामने आती है। उसका कहना है कि उसने तो ऐसा तुझे कुछ भी नहीं कहा जिससे तू उससे बात ही करना बंद कर दे। मुझे पता है कि वो तुझे अपनी जान से भी ज्यादा चाहता है। अगर तुझे ज़रा सी भी किसी चीज़ से तक़लीफ हो जाए तो उसकी जैसे जान पर बन आती है। फिर क्या बात है गुड़िया, आख़िर ऐसी कौन सी बात हो गई है जिससे तू उससे बात नहीं करती है। यहाॅ तक कि उसके सामने भी नहीं आना चाहती?"
निधी को समझ न आया कि वो रितू को इसका क्या जवाब दे? सच्चाई वो बता नहीं सकती थी और झूॅठ तो ऐसा होता है जो ज्यादा दिनों तक छुपा नहीं रह सकता था। हलाॅकि उसे ये उम्मीद नहीं थी कि विराज ये सब समझता न होगा। उसे तो ये भी उम्मीद नहीं थी कि वो ये बात सीधे तौर पर रितू दीदी से बोल देगा।

"क्या हुआ गुड़िया?" निधी को ख़ामोश जान कर उधर से रितू ने फिर कहा___"तू चुप क्यों हो गई? बता न क्या बात हो गई है ऐसी?"
"ऐसी कोई बात नहीं है दीदी।" निधी अब बोले भी तो क्या___"मैं तो बस ऐसे ही नाराज़ हूॅ उनसे। आप तो जानती ही हैं कि मैं कैसी हूॅ।"

"एक बात हमेशा याद रखना गुड़िया।" उधर से रितू ने कहा___"तू हम सबकी जान है, खास कर राज की। तुझे नहीं पता कि तेरे बात न करने से वो यहाॅ कितना दुखी रहता है। मुझे तो पता ही न चलता अगर मैं कल रात उसके कमरे में अचानक पहुॅच न गई होती तो। मेरे पूछने पर ही उसने ये सब बताया। ख़ैर, एक बात और कहना चाहती हूॅ गुड़िया और वो ये कि मैने तो अपने माॅ बाप और भाई से हर रिश्ता तोड़ लिया है। क्योंकि वो सब बुरे ही नहीं बल्कि पापी लोग हैं। इस दुनिया में अब अगर मेरा कोई सच्चा भाई है तो वो है राज। मुझे पता है कि हमारा भाई राज कोहिनूर हीरा है। उसके दिल में सबके लिए बेपनाह प्यार और सम्मान है। इस लिए ये हम सबका भी फर्ज़ बनता है कि हम उसे वैसा ही प्यार व सम्मान दें।"

"मुझे पता है दीदी।" निधी ने कहा___"और यकीन मानिए कि उनके लिए मेरे दिल में बेपनाह प्यार व सम्मान है और ये मरते दम तक कम न होगा बल्कि बढ़ता ही जाएगा।"

"मुझे तुमसे यही उम्मीद है गुड़िया।" रितू ने निधी की बातों को सामान्य ही समझते हुए कहा___"और देखना जिस दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा न उस दिन से हम सब एक साथ ही रहेंगे और हम सभी बहनें अपने भाई को जी भर के प्यार करेंगे।"

"जी बिलकुल दीदी।" निधी के होठों पर सहसा फीकी सी मुस्कान उभर आई___"अच्छा दीदी अब हम बाद में बात करेंगे। वो क्या है न कि मुझे बाथरूम जाना है। फिर स्कूल भी जाना है।"
"ओह हाॅ।" रितू ने कहा___"चल ठीक है गुड़िया। अच्छे से पढ़ाई करना और हाॅ अपना ख़याल भी रखना।"

इसके साथ ही फोन काल कट गई। निधी ने गहरी साॅस ली और फिर कुछ देर तक इन सारी बातों के बारे में सोचती रही। फिर वो उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गई।
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11-24-2019, 01:11 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
इधर मैं नीलम को मैसेज के द्वारा सब कुछ समझाने के बाद विधी के मम्मी पापा या यूॅ कहूॅ कि अपने सास ससुर से मिला। ये पहला अवसर था जब मैं उनके पास हर काम से फारिग़ होकर मिला था। मैने इसके पहले उनसे न मिल पाने के लिए माफ़ी भी माॅगी। ये अलग बात है कि उन दोनो ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और ढेर सारा प्यार और दुवाएॅ दी। मुझे अपने सीने से जाने कितनी ही देर तक लगाए रहे थे वो। मैं समझ सकता था कि वो इस वक्त भावनाओं के भॅवर में गोते लगा रहे होंगे। नैना बुआ ने मेरे बारे में सब कुछ उन्हें बता दिया था। सब कुछ जान कर उन्हें दुख भी हुआ और खुशी भी हुई।

काफी देर तक मैं उनके पास ही बैठा रहा उसके बाद मैं उनसे इजाज़त लेकर हरिया काका के पास आ गया। हरिया काका से मैने मंत्री के पिल्लों का हालचाल लिया और उन्हें ये कहा कि मंत्री की बेटी को गंदे तरीके से टार्चर न करें। उन्हें ये भी कहा कि वो उन लड़कों के साथ भी वो सब न करें जो इसके पहले वो कर रहे थे। मैने ऐसा इस लिए कहा कि अब उन लड़कों के साथ ही उनकी बहन भी थी। उसका इस सबमें कोई कुसूर तो था नहीं इस लिए उसके सामने उन लड़कों के साथ वो सब करना उचित नहीं था।

मेरी बातें हरिया काका को समझ में आ गई थी। मंत्री की बेटी रचना पहले की अपेक्षा अब बिलकुल चुप ही रहती थी। अपने भाई के साथ साथ तथा भाई के तीनों दोस्तों की तरफ उसका देखने का भी मन नहीं करता था। ज़ाहिर है कि उसकी ऑखों के सामने हरिया काका ने उसके भाई के साथ वो सब किया था जिसके चलते उसे अपने आप में जिल्लत महसूस हुई थी और वो सब उसके भाई की करतूतों की वजह हे ही हुआ था।

सुबह का नास्ता हम सबने एक साथ ही किया और फिर मैं और आदित्य घर से बाहर की तरफ चल दिये। अभी दो क़दम ही हम दोनो आगे बढ़े थे कि पीछे से रितू दीदी की आवाज़ आई। उनकी आवाज़ से हम दोनो ही ठिठक गए। थोड़ी देर में रितू दीदी हमारे पास आ गईं। इस वक्त वो कत्थई कलर के जीन्स और उसी से मैच करते टाप में थी। टाप के ऊपर लेदर की छोटी सी जाॅकेट डाला हुआ था उन्होंने। ऑखों में सन ग्लासेज था। मैं उन्हें इस लुक में देखता ही रह गया। मेरे इस तरह देखने पर उन्होंने मुस्कुरा कर मेरे दाहिने गाल पर हल्की सी चपत लगाई और फिर हमारे साथ ही बाहर की तरफ चलने लगीं।

"एक बात तुम दोनो ही कान खोल कर सुन लो।" बाहर आते ही रितू दीदी ने हिटलरी अंदाज़ में हम दोनो की तरफ एक एक नज़र देखते हुए कहा___"मुझसे बग़ैर पूॅछे अथवा मेरी जानकारी के बिना तुम दोनो कोई भी काम नहीं करोगे। हम हर काम एक साथ ही करेंगे। कुछ समझ में आया तुम दोनो को? या फिर मैं दूसरे तरीके से समझाऊॅ?"

"दूसरे तरीके से कैसे दीदी?" मैने मुस्कुराते हुए शरारत से पूछा था।
"मेरे पास दूसरा एक ही तरीका है माई डियर ब्रदर।" रितू ने लेदर की जाॅकेट के एक छोर को पकड़ कर हल्का सा एक तरफ किया तो जींस के पैन्ट में खोंसा हुआ उनका सर्विस रिवाल्वर नज़र आ गया हमें। जबकि उसे दिखाते ही उन्होंने कहा____"जब काम बातों से न बने तो फौरन इस रिवाल्वर की नाल सामने वाले की खोपड़ी में लगा कर सारा काम उसे समझा देना चाहिए। दैट्स आल। आई होप कि तुम दोनो अब अच्छी तरह समझ गए होगे।"

"चलिए आपने इतना कान्फिडेंस के साथ कहा है तो समझ ही लेते हैं।" मैने पुनः शरारत से कहा___"वरना हम दोनो तो ऐसे कूढ़मगज इंसान हैं जो किसी भी तरह से नहीं समझ पाते। क्यों आदी??"

"तू मुझे ज़रूर मरवाएगा अब।" आदित्य दूर हटते हुए बोल पड़ा था।
"क्या यार।" मैने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"सारे इमेज का बेड़ा गर्क़ कर दिया तुमने। मेरा दोस्त होकर डर गया? हद है यार, तुम्हें तो मेरी तरह थर थर काॅपने लग जाना चाहिए था।"

"बहुत हो गया।" रितू दीदी ने ऑखें दिखाईं___"अब बोल राज क्या प्लान बनाया है तूने नीलम व सोनम को सुरक्षित यहाॅ लाने का?"
"भाई कार कहाॅ गई?" मैने दीदी के सवाल के जवाब में आदित्य की तरफ देखते हुए कहा___"तुम तो कह रहे थे कि सुबह जब हम यहाॅ से चलेंगे तो कार हमारे दरवाजे पर खड़ी मिलेगी। जबकि यहाॅ तो कार कहीं दिख ही नहीं रही। भाई इतना खूबसूरत मज़ाक मत किया करो न, वरना तुम नहीं जानते मुझे दिल का दौरा सा पड़ने लगता है।"

"अबे मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूॅ यार।" आदित्य ने अपना हाॅथ नचाते हुए कहा___"वो क्या है कि अभी कुछ ही देर पहले शेखर के मौसा जी आए थे। उन्होंने जब घर के बाहर कार खड़ी देखी तो पूछने लगे कि ये कहाॅ से आई? उनके पूछने पर मैने बताया कि हमने खरीदा है इसे। बस फिर क्या था, बोले चला कर बताएॅगे कि उन्हें कार कैसी लगी।"

"ओह तो इसका मतलब।" मैने कहा___"मौसा जी लेके गए हैं। मगर अभी तक आए क्यों नहीं वो?"
"आ जाएॅगे यार।" आदित्य ने कहा___"अभी थोड़ी देर पहले ही तो वो गए हैं जब मैं अंदर तुम्हें बताने गया था।"

"ओये तूने मुझे बताया क्यों नहीं कि तूने कोई कार खरीदी है?" सहसा रितू दीदी शिकायती लहजे में बोल पड़ीं___"और मैं अभी क्या बोल रही थी कि तुम दोनो बिना मुझसे पूछे कोई काम नहीं करोगे फिर क्यों किया?"

"ये बात तो आपने अभी कही है न दीदी।" मैने उन्हें मनाने वाले लहजे से कहा___"जबकि कार लेने की बात तो हमने चार दिन पहले आपस में की थी। बट प्राॅमिस दीदी, इसके बाद का हर काम आपसे पूछ कर ही करेंगे।"

"चल कोई बात नहीं।" रितू दीदी ने कहा___"लो कार भी आ गई। क्या बात है राज, कार तो बहुत अच्छी ली है तूने।"
"इतनी भी अच्छी नहीं है दीदी।" मैने कहा___"सेकण्ड हैण्ड है। ज़रूरत थी इस लिए थोड़ा ज्यादा पैसे देकर लेना पड़ा। नई कार लेने का अभी कोई मतलब नहीं है।"

अभी हम बात ही कर रहे थे कि शेखर के मौसा जी ने हमारे पास ही कार को रोंका और फिर ड्राइविंग डोर खोल कर बाहर आए।

"यार आदित्य कार तो अच्छी है ये।" केशव जी ने कहा___"कितने में पड़ी ये?"
"ज्यादा नहीं मौसा जी।" आदित्य ने कहा___"दो लाख अस्सी हज़ार। हलाॅकि गरज़ हमारी थी वरना अस्सी हज़ार का चूना नहीं लगता हमें।"

"फिर भी यार।" केशव जी ने कहा___"घाटा इतने में भी नहीं है। ख़ैर, छोंड़ो मैं भी किसी ज़रूरी काम से इधर से गुज़र रहा था। इस लिए अब मैं चलता हूॅ।"
"जी ठीक है मौसा जी।" हम सबने अदब से हाॅथ जोड़ लिए थे।

मौसा जी के जाने के बाद हम तीनो ही उस कार में जाकर बैठ गए। मैने ड्राइविंग शीट सम्हाली। मेरे बगल से रितू दीदी बैठ गई जबकि आदित्य पिछली शीट पर बैठ गया। सबके बैठ जाने के बाद मैने कार को स्टार्ट कर आगे बढ़ा दिया।

"तो क्या प्लान बनाया है तूने?" रास्ते में रितू दीदी ने फिर मुझसे पूछा___"हम उन दोनो को वहाॅ से कैसे यहाॅ लाएॅगे? प्रकाश नाम का मेरा एक आदमी हवेली में ही सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता है। उसी के द्वारा मुझे पता चला था कि जिस दिन तुम्हारे वो नकली सीबीआई वाले डैड को ले कर गए थे उसी दिन हवेली पर डैड के कुछ बिजनेस संबंधी दोस्त भी आए थे। उन सबके साथ काफी सारे ऐसे आदमी थे जो दिखने में फाइटर लगते थे। प्रकाश ने बताया कि उनमे से एक का नाम पाटिल था जो माॅम से कह रहा था कि ठाकुर साहब आएॅ तो बता दीजिएगा कि हमारे ये सभी आदमी आज से उनके ही आदेशों का पालन करेंगे।"

"हाॅ इस बात का ज़िक्र नीलम ने भी मुझसे किया था कल।" मैने दीदी की तरफ एक नज़र डालने के बाद कहा___"उसने बताया था कि गेस्ट रूम में कुछ ऐसे लोग ठहरे हुए हैं जो दिखने में काफी हट्टे कट्टे लगते हैं।"

"मतलब साफ है कि हवेली जाकर वहाॅ से उन दोनो को लाना असंभव काम है।" रितू दीदी ने कहा___"वैसे भी उन सभी आदमियों के रहते हवेली जाने का मतलब है कि मौत के मुह में जाना। सीबीआई वाले हादसे के बाद तो वैसे भी डैड का गुस्सा तुम पर या यूॅ कहो कि हम पर अपने चरम पर होगा। अतः उन्होंने सिक्योरिटी का भी तगड़ा प्रबंध कर लिया होगा। ऐसे में हम हवेली नहीं जा सकते और अगर जाने का सोचें भी तो हमें रात के समय में ही जाना चाहिए क्योंकि रात के अॅधेरे में खतरा कम ही रहता है।"

"हमें हवेली जाने की ज़रूरत ही नहीं है दीदी।" मैने दीदी से कहा___"नीलम और सोनम दीदी खुद ही हवेली से बाहर आएॅगी।"
"ऐसा कैसे संभव हो सकता है?" रितू दीदी के चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे थे, बोली___"मौजूदा हालात में माॅम या डैड उन दोनो को बाहर आने ही नहीं देंगे। क्योंकि अगर उन्होंने ये जान लिया होगा कि नीलम भी सच्चाई जान गई है तो वो भी मेरी तरह उनके खिलाफ हो जाएगी और हवेली से बाहर जाने की कोशिश करेगी। ये सोच कर माॅम या डैड उन दोनो को किसी भी वजह से हवेली के बाहर नहीं जाने देंगे।"
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11-24-2019, 01:11 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"और अगर मैं ये कहूॅ।" मैने दीदी के ऊपर जैसे धमाका सा किया___"कि इस सबके बावजूद नीलम और सोनम दीदी हवेली से बाहर आएॅगी तो?"
"ये तो फिर चमत्कार ही होगा।" रितू दीदी ने चकित भाव से कहा___"जिस चमत्कार की मौजूदा हालात में ज़रा भी उम्मीद नहीं है।"

"जहाॅ उम्मीद नहीं होती असल में वहीं पर उम्मीद की संभावना होती है दीदी।" मैने दार्शनिकों वाले अंदाज़ से कहा____"खैर, ये चमत्कार तो होने ही वाला है। मैने नीलम को हवेली से बाहर निकलने का शानदार तरीका समझाया दिया था।"

"त तरीका???" रितू दीदी बुरी तरह चौंक पड़ी____"कैसा तरीका?"
"दरअसल मैने सोनम दीदी के बारे में सोच कर ही प्लान बनाया है दीदी।" मैने कहा____"ये तो मुझे भी पता है कि सोनम दीदी पहली बार ही यहाॅ आई हैं। इस लिए ये तो एक स्वाभाविक बात होती है कि जो इंसान पहली बार कहीं जाता है तो वो उस जगह के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने या देख लेने की ख्वाहिश रखता है। मैने भी इसी सोच के तहत प्लान बनाया। दूसरी महत्वपूर्ण बात नीलम ने ये भी बताया कि आज आपके नाना जी जा रहे हैं तथा उन्हें गुनगुन तक छोंड़ने के लिए खुद बड़े पापा कार से जाने वाले हैं। मैने इन सब बातों को भी अपने प्लान के लिए सोचा था। कहने का मतलब ये कि जब बड़े पापा नाना जी को लेकर गुनगुन जा चुके होंगे तब नीलम व सोनम दीदी तैयार होकर तथा अपने मिनी बैग में अपनी सबसे ज्यादा ज़रूरी चीज़ ही लेकर बड़ी माॅ के पास आएॅगी। बड़ी माॅ से नीलम ये कहेगी कि सोनम दीदी हमारा गाॅव तथा हमारे खेत देखना चाहती हैं, इस लिए हम दोनो जा रहे हैं। नीलम के मुख से सोनम सहित जाने की बात सुन कर यकीनन बड़ी माॅ के मन में ये बात आएगी कि कहीं ये लोग यहाॅ से भागने का तो नहीं सोच रही हैं। किन्तु वो इसके लिए उन्हें मना भी नहीं कर पाएॅगी। क्योंकि बात तो सिर्फ गाॅव तथा खेत देखने की होगी। इसके लिए मना करने की उनके पास कोई ठोस वजह नहीं होगी। इस लिए वो उन दोनो को जाने से रोंक न सकेंगी, मगर हाॅ ऐसा प्रबंध ज़रूर कर सकती हैं कि वो हवेली से भागने वाले अपने काम में सफल न हो सकें। इसके लिए संभव है कि वो उन दोनो के साथ एक दो उन दो आदमियों को भेजेंगी जो फाइटर जैसे दिखते हैं। उनके साथ अपने आदमियों को ये सोच कर नहीं भेजेंगी कि उन्हें अपने आदमियों पर अब भरोसा हीं नहीं होगा। बात भी सही है, भला उनके आदमियों ने भरोसा करने लायक अब तक कोई काम ही क्या किया है? ख़ैर, इस सारे मामले के लिए मैने नीलम को भली भाॅति समझाया हुआ है कि वो तथा सोनम दीदी एक पल के लिए भी अपने चेहरों पर ऐसे भाव न लाएॅगी जिससे बड़ी माॅ को उन पर शक हो जाए। क्योंकि फिर उस सूरत में उनका वहाॅ से निकलना मुश्किल हो जाना है। यानी आप ये भी कह सकती हैं कि वो दोनो वहाॅ से अपने सफलता पूर्वक किये गए अभिनय के द्वारा ही निकल पाएॅगी। अब सवाल ये था कि गाॅव या खेत घूमने पैदल या जीप से जाएॅगी तो इसमें ज्यादा कोई समस्या नहीं थी। क्योंकि मुख्य काम ये है कि उन दोनो का हवेली से बाहर आकर गाॅव की सीमाओं की तरफ बढ़ना था। हवेली के बाहर या यूॅ कहें कि गाॅव की सीमा में ही किसी खास जगह पर हम उन्हें घेर लेंगे। दैट्स आल।"

"उन दोनों को हवेली से बाहर निकालने का तरीका तो बहुत ही अच्छा सोचा है तुमने।" रितू दीदी ने कहा___"मगर उन आदमियों के रहते उन दोनो को अपने पास सुरक्षित लाना इतना आसान काम नहीं है। दूसरी बात ये भी है कि संभव है कि यही बात मेरी माॅम के मन में भी आई हो। यानी कि उन्होने ये अंदाज़ा लगा लिया हो कि नीलम ने तुम्हें मैसेज भेज दिया होगा कि उसे सच्चाई पता चल गई है अतः अब वो तुमसे मिलना चाहती है। उस सूरत में तुम सोचोगे कि अगर नीलम का राज़ बड़ी माॅ के सामने फाश हो गया तो वो यकीनन बड़े पापा से बताएॅगी और फिर बहुत मुमकिन है कि नीलम व सोनम दोनो ही भयानक खतरे में पड़ जाएॅ। ऐसे हाल में तुम्हारी सबसे पहली प्राथमिकता यही होगी कि तुम उन दोनो को हवेली से सुरक्षित बाहर निकलना चाहोगे। आज जब नीलम ने उनसे ये कहा होगा कि सोनम दीदी ये गाॅव तथा हमारे खेत देखना चाहती हैं और वो उन्हें लेकर जा रही है तो यकीनन उनके मन में सबसे पहले यही बात आई होगी कि कहीं ऐसा तो नहीं ये दोनो यहाॅ से बहाना बना कर निकल जाना चाहती हों। किन्तु उनके मन में ये भी होगा कि ऐसे हालात में वो क्या करेंगी इसका अंदाज़ा भी तुम लगा लोगे। अतः वो कुछ ऐसा इंतजाम करेंगी जो तुम्हारी सोच से परे हो अथवा जिसके बारे में तुम सोच ही न सको। यानी कि संभव है कि उन्होंने तुम्हारे अंदाज़े को ध्यान में रखते हुए अपने दो आदमियों को उन दोनो के साथ भेज तो दिया ही हो साथ ही उनके जाने के बाद उन्होंने कुछ आदमी और भी उनके पीछे ये सोच कर लगा दिये हों कि अगर उनकी शंका सच हुई तो बैकअप के लिए कुछ आदमी एक्स्ट्रा रहेंगे। ताकि अगर ऐसी सिचुएशन बन जाए कि तुम उनके पहले वाले आदमियों का तिया पाॅचा करने में कामयाब हो जाओ तो पीछे से आ रहे उनके दूसरे आदमी तुम्हें तुम्हारे इरादों में कामयाब न होने दें।"

"मैं रितू की इन बातों से पूरी तरह सहमत हूॅ राज।" सहसा आदित्य पीछे से बोल पड़ा था____"यकीनन ऐसा हो सकता है। रितू की माॅम के दिमाग़ के बारे में जैसा तुमने बताया था उस हिसाब से मुझे भी लगता है कि वो ऐसा कुछ अंदाज़ा लगा कर सकती हैं। अतः हमें भी उनके अनुसार ही सोच कर क़दम बढ़ाना होगा। वरना हम पर तो जो मुसीबत आएगी वो तो आएगी ही किन्तु इस सबके लिए नीलम व सोनम का कितना बुरा हाल हो सकता है इसका हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते।"

"तुम्हें क्या लगता है आदी?" मैने कहा___"कि ये सब बातें मेरे दिमाग़ में नहीं आई होंगी? बेशक आई हैं मेरे यार। मुझे भी इस बात का ख़याल है कि हर बार एक ही दाॅव अथवा तरीका कारगर सिद्ध नहीं हो सकता। इससे सामने वाला हमारी सोच का दायरा ताड़ लेता है। हलाॅकि मेरा उसूल ही यही है कि मैं सामने वाले को वही सोचने पर मजबूर कर देता हूॅ जो मैं चाहता हूॅ। मैं चाहता हूॅ कि सामने वाला ये सोच बैठे या ये समझ जाए कि मेरे पास बस एक ही तरह का दाॅव है। क्योंकि जब ऐसा होगा तो सामने वाला फिर उसी के हिसाब से अपनी चालें चलता है। जबकि मैं उसकी उस चाल के बाद अपना दूसरा पैंतरा शुरू करूॅगा। ऐसा पैंतरा जिसके बारे में वो सोच भी न सकेगा।"

"इसका मतलब।" रितू दीदी ने कहा___"तुमने इस बारे में पहले से ही कुछ सोचा हुआ है या फिर ये कहूॅ कि ऐसा कुछ इंतजाम कर रखा है तुमने।"
"बिलकुल सही कहा दीदी आपने।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"आख़िर मुझे भी तो इस बात का ख़याल रखना ही पड़ेगा न कि उस तरफ शातिर दिमाग़ वाली मेरी बड़ी माॅ भी मौजूद हैं। बात अगर सिर्फ बड़े पापा की होती तो इतना घुमा फिरा कर काम करने की ज़रूरत ही न पड़ती। किन्तु बड़ी माॅ तो फिर बड़ी माॅ हैं न। ख़ैर, मैं ये कह रहा हूॅ कि जिस तरह बैकअप के लिए बड़ी माॅ ने दिमाग़ लगाया हो सकता है उसी तरह मैने भी बैकअप का इंतजाम किया हुआ है। और वैसे भी जंग में बैकअप का होना तो निहायत ही ज़रूरी होता है। जिस योद्धा के पास बैकअप नहीं होता वो जंग के शुरू होते ही मात खा जाता है।"

"वो सब तो ठीक है।" आदित्य रितू दीदी से पहले ही पूछ बैठा____"लेकिन तुमने बैकअप का आख़िर इंतजाम क्या किया है?"
"क्या यार आदी।" मैने पलट कर एक नज़र उसे देखने के बाद कहा____"तुम न ज़रा भी दिमाग़ नहीं लगाते हो।"

"ज्यादा बनो मत।" आदित्य ने तीखे भाव से कहा___"साफ साफ बताओ कि क्या तीर मारा है तुमने?"
"लगता है शेखर के मौसा को भूल गए हो तुम।" मैने पुनः पलट कर आदित्य को देख कर कहा___"कल देखा नहीं था क्या तुमने कि कैसे वो फार्महाउस पर अपने लट्ठधारी आदमियों को लेकर हम लोगों को लेने आए थे? बाद में उन्होंने कहा भी था कि अगर किसी बात की ज़रूरत पड़े तो तुरंत उन्हें याद करें हम। बस फिर क्या था समझदार आदमी को ऐसे मददगार आदमी का सहारा लेने में ज़रा भी देर नहीं करना चाहिए। कहने का मतलब ये कि मैने उन्हें सारी सिचुएशन के बारे में समझा दिया था और ये कहा था कि बैकअप के रूप में वो हमारे पीछे ही रहें। वो मैदान में तभी आएॅ जब उन्हें यकीन हो जाए कि हमारा पलड़ा अब डगमगाने लगा है और हम हारने वाले हैं। तब उन्हें अचानक ही मैदान में एन्ट्री मारनी है। बस उसके बाद तो फिर हम सब कुछ सम्हाल ही लेंगे।"

"ओह अब समझ आया।" आदित्य ने सहसा गहरी साॅस लेकर कहा___"इसी लिए वो उस वक्त बोल रहे थे कि वो किसी ज़रूरी काम से यहाॅ से गुज़र रहे थे।"
"अब समझे तो क्या समझे डियर?" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"बात तो तब थी जब तुम इसके पहले ही समझ जाते।"

"हाॅ हाॅ ठीक है न।" आदित्य ने खिसियाते हुए कहा___"पर मुझे ये बात समझ नहीं आई कि अगर यही बात थी तो उस वक्त उन्होंने हम में से किसी को बताया क्यों नहीं कि वो किस ज़रूरी काम से गुज़र रहे थे?"

"लो कर लो बात।" मैने हॅसते हुए कहा___"उन्हें भला बताने की ज़रूरत ही क्या थी? मुझे तो सब पता ही था क्योंकि मैने ही उनसे बात की थी। उन्होंने तुमसे या दीदी से इस लिए नहीं बताया कि उन्होंने सोचा होगा कि मैने आप दोनो को बता दिया होगा। दूसरी बात आप में से कोई उनसे पूछा भी तो नहीं कि वो किस ज़रूरी काम के लिए वहाॅ से गुज़र रहे थे?"

"हाॅ ये तो सही कहा तुमने।" सहसा दीदी ने मेरी तरफ प्रसंसा भरी नज़रों से देखते हुए कहा___"हमने तो उनसे पूछा ही नहीं था। लेकिन सवाल तो है ही कि वो किस ज़रूरी काम से गुज़र रहे थे?"

"ओफ्फो दीदी।" मैने कहा___"आपसे ऐसे सवाल की उम्मीद नहीं थी मुझे। बड़ी सीधी सी बात है वो अपने आदमियों को इकट्ठा करने के लिए जा रहे थे।"
"ओह आई सी।" रितू दीदी ने कहा___"चल ये तो बहुत अच्छा किया तुमने जो खुद के लिए भी बैकअप इंतजाम कर लिया है। वरना मैं तो सोच रही थी कि कहीं हम फॅस ही न जाएॅ किसी जाल में।"

"ऐसे कैसे फॅस जाएॅगे दीदी?" मैने कहा___"और फिर रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। ये तो कुछ भी नहीं है, आने वाले समय में इससे कई गुना ज्यादा खतरा भी होगा जिसका हमें सामना करना पड़ेगा।"

"हाॅ ये तो है।" दीदी ने कहा____"ख़ैर अभी तो सबसे ज़रूरी यही है कि किसी तरह नीलम व सोनम सुरक्षित हमें हाॅसिल हो जाएॅ। उसके बाद की इतनी चिंता नहीं है क्योंकि तब इस बात का भय नहीं रहेगा कि हमारा कोई अपना उनके चंगुल में है।"

मैं रितू दीदी की इस बात पर बस मुस्कुरा कर रह गया। ऐसे ही बातें करते हुए हम बढ़े चले जा रहे थे हल्दीपुर की तरफ। हम तीनों ही पूरी तरह सतर्क थे। हम इस बात को भी बखूबी समझते थे कि खतरा सिर्फ अजय सिंह की तरफ बस का ही नहीं था बल्कि मंत्री दिवाकर चौधरी की तरफ से भी था। दूसरी बात अब हम पहचाने जा चुके थे दोनो तरफ इस लिए ख़तरा और भी बढ़ गया था हमारे लिए। मगर सच्चाई की राह पर चलने के लिए हम अपने अपने हौंसलों को आसमां की बुलंदियों में परवाज़ करवा रहे थे। आने वाला समय बताएगा कि इस खेल में किसकी जीत मिलती है और किसे हार का कड़वा स्वाद चखना होगा??
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Reply
11-24-2019, 01:12 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
♡ एक नया संसार ♡
अपडेट........《 56 》

अब तक,,,,,,,,

"हाॅ ये तो सही कहा तुमने।" सहसा दीदी ने मेरी तरफ प्रसंसा भरी नज़रों से देखते हुए कहा___"हमने तो उनसे पूछा ही नहीं था। लेकिन सवाल तो है ही कि वो किस ज़रूरी काम से गुज़र रहे थे?"

"ओफ्फो दीदी।" मैने कहा___"आपसे ऐसे सवाल की उम्मीद नहीं थी मुझे। बड़ी सीधी सी बात है वो अपने आदमियों को इकट्ठा करने के लिए जा रहे थे।"

"ओह आई सी।" रितू दीदी ने कहा___"चल ये तो बहुत अच्छा किया तुमने जो खुद के लिए भी बैकअप का इंतजाम कर लिया है। वरना मैं तो सोच रही थी कि कहीं हम फॅस ही न जाएॅ किसी जाल में।"

"ऐसे कैसे फॅस जाएॅगे दीदी?" मैने कहा___"और फिर रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। ये तो कुछ भी नहीं है, आने वाले समय में इससे कई गुना ज्यादा ख़तरा भी होगा जिसका हमें सामना करना पड़ेगा।"

"हाॅ ये तो है।" दीदी ने कहा____"ख़ैर अभी तो सबसे ज़रूरी यही है कि किसी तरह नीलम व सोनम सुरक्षित हमें हाॅसिल हो जाएॅ। उसके बाद की इतनी चिंता नहीं है क्योंकि तब इस बात का भय नहीं रहेगा कि हमारा कोई अपना उनके चंगुल में है।"

मैं रितू दीदी की इस बात पर बस मुस्कुरा कर रह गया। ऐसे ही बातें करते हुए हम बढ़े चले जा रहे थे माधोपुर की तरफ। हम तीनों ही पूरी तरह सतर्क थे। हम इस बात को भी बखूबी समझते थे कि ख़तरा सिर्फ अजय सिंह की तरफ बस का ही नहीं था बल्कि मंत्री दिवाकर चौधरी की तरफ से भी था। दूसरी बात अब हम पहचाने जा चुके थे दोनो तरफ इस लिए ख़तरा और भी बढ़ गया था हमारे लिए। मगर सच्चाई की राह पर चलने के लिए हम अपने अपने हौंसलों को आसमां की बुलंदियों में परवाज़ करवा रहे थे। आने वाला समय बताएगा कि इस खेल में किसको जीत मिलती है और किसे हार का कड़वा स्वाद चखना होगा??
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,

नीलम व सोनम के जाने के बाद शिवा वापस पलटा और हवेली के अंदर की तरफ बढ़ चला। उसके होठों पर बड़ी ही दिलकस मुस्कान थी। ज़ाहिर था कि उसकी ये मुस्कान सोनम की वजह से थी। जिसके बारे में वो जाने क्या क्या सोचने लगा था। ख़ैर सोनम के बारे में सोचते हुए ही वह चलते हुए अंदर ड्राइंग रूम में पहुॅचा।

उधर ड्राइंग रूम में प्रतिमा अभी भी बैठी हुई थी। उसके चेहरे पर सोचों के भाव गर्दिश कर रहे थे। शिवा के अंदर आते ही वह सोचो से बाहर आई और उसने शिवा को मुस्कुराते हुए देखा तो सहसा वह चौंकी। फिर अगले ही पल सामान्य भी हो गई, कदाचित उसे शिवा की मुस्कान का राज़ पता चल गया था।

"क्या बात है बेटा।" फिर उसने बेटे की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा___"लगता है मन में बहुत ही मीठी मीठी गुदगुदी हो रही है, है ना?"
"ग..गुदगुदी???" प्रतिमा की इस बात से शिवा एकदम से चकरा सा गया___"कैसी गुदगुदी माॅम?"

"वैसी ही बेटा।" प्रतिमा ने कहा___"जैसी तब हुआ करती है जब किसी से नया नया इश्क़ होता है। तुम्हारे होठों पर थिरक रही ये मुस्कान इस बात का सबूत दे रही है कि तुम सोनम के बारे में सोच सोच अंदर ही अंदर बेहद रोमांच सा महसूस कर रहे हो।"

"हाॅ माॅम।" शिवा की मुस्कान गहरी हो गई___"ये तो आपने बिलकुल सही कहा। मैं सचमुच सोनम के बारे में ही सोच सोच कर आनंद महसूस कर रहा हूॅ। उफ्फ माॅम मैं बता नहीं सकता कि मैं सोनम के बारे में सोच सोच कर कितना खुश हो रहा हूॅ। क्या ऐसा नहीं हो सकता माॅम कि मेरे इस दिल का ये हाल मेरे बिना बताए सोनम समझ जाए और फिर वो मेरे इस दिल की चाहत को कुबूल कर ले?"

"तुम दीवाने से होते जा रहे हो बेटे।" प्रतिमा एकाएक ही गंभीर हो गई, बोली___"जो कि बिलकुल भी ठीक नहीं है। तुम खुद ये बात अच्छी तरह जानते हो कि जो तुम चाहते हो वो इस जन्म में तो हर्गिज़ भी नहीं हो सकता। फिर इस तरह बेकार की बातें करने का तथा ऐसा सोचने का क्या मतलब है बेटा? अभी भी वक्त है तुम अपने अंदर के इस एहसास को जितना जल्दी हो सके निकाल दो। वरना देख लेना इस सबके लिए बाद में तुम बहुत दुखी होगे।"

"जिन्हें इश्क़ हो जाता है न माॅम।" शिवा ने अजीब भाव से कहा___"फिर उन्हें कोई समझा नहीं सकता और ना ही इश्क़ में पागल हो चुका ब्यक्ति किसी की बातों को समझना चाहता है। उसे तो बस हर घड़ी हर पल अपने प्यार की आरज़ू रहती है। ऐसा नहीं है माॅम कि इसमें दिमाग़ काम नहीं करता है बल्कि वो तो वैसे ही काम करता रहता है जैसे आम इंसानों का करता है मगर दिल के जज़्बातों की जब ऑधी चलती है न तो उस दिमाग़ का सारा दिमाग़ उसके ही पिछवाड़े में घुस जाता है।"

प्रतिमा के चेहरे पर एक बार पुनः हैरत के भाव उभर आए। उसे इस वक्त लग ही नहीं रहा था कि ये वही शिवा है जो इसके पहले हर लड़की या औरत को सिर्फ और सिर्फ हवश की नज़र से देखता था। बल्कि इस वक्त तो वह दुनिया का सबसे शरीफ व संस्कारी दिखाई दे रहा था।

"कहते हैं कि दुनियाॅ में कुछ भी असंभव नहीं है।" उधर शिवा कह रहा था___"अगर किसी चीज़ को पाने की शिद्दत से चाहत करो तो वो यकीनन हाॅसिल हो जाती है। आप जिस चीज़ को असंभव कह रही हैं वो चीज़ भी संभव हो सकती है माॅम, अगर आप चाहो तो।"

"क्...क्या मतलब???" प्रतिमा के माथे पर सलवटें उभरीं।
"मतलब साफ है माॅम।" शिवा ने कहा___"अगर आप और डैड चाहें तो सोनम मेरी जाने हयात ज़रूर बन सकती है और मैं उसे पा कर खुश हो सकता हूॅ।"

"तुम पागल हो गए हो बेटा।" प्रतिमा के चेहरे पर गहन बेचैनी के भाव उभरे, बोली___"सब कुछ जानते व समझते हुए भी तुम बेमतलब की बातें किये जा रहे हो। तुम इस बात को समझ ही नहीं रहे कि ये कितना ग़लत है और कितना मुश्किल है। सोनम तुम्हारी बड़ी बहन है। वो तुम्हें अपना छोटा भाई ही मानती है। उसे नहीं पता है कि उसका छोटा भाई उसके प्रति कैसी सोच रखता है और क्या चाहता है?"

"आप सोनम के माॅम डैड से बात कीजिए माॅम।" शिवा ने कहा___"मैं सोनम को मना लूॅगा और अगर वो नहीं मानेगी तो उससे कहूॅगा कि वो मुझे अपने प्यार की भीख दे दे। मैं उसे बताऊॅगा कि मैं उसके बिना अब नहीं रह सकता। दूसरी बात जब उसके माॅम डैड इस रिश्ते के लिए मान जाएॅगे तो फिर उसे भी भला क्या परेशानी होगी?"

"हे भगवान।" प्रतिमा ने जैसे अपना माथा पकड़ लिया, फिर बोली___"कैसे समझाऊॅ इस लड़के को? तुमने ये सोच भी कैसे लिया कि सोनम के माॅ बाप इस रिश्ते के लिए मान जाएॅगे? बल्कि सच्चाई तो ये है कि वो ये सब पता चलते ही तुम्हारे साथ साथ हम सब पर भी लानत भेजेंगे और फिर कभी हमारी शक्ल तक देखना न चाहेंगे।"

प्रतिमा की इस बात पर शिवा मन मसोस कर रह गया। एकाएक ही उसके चेहरे पर ऐसे भाव आए जैसे उसे इन सब बातों से बेहद तक़लीफ हुई हो। जबकि उसके चेहरे पर उभर आए इन भावों को बड़े ध्यान से देखते हुए तथा समझाते हुए प्रतिमा ने नम्र भाव से कहा____"देख बेटा इसमें इतना दुखी होने की ज़रूरत नहीं है। मैं अच्छी तरह तेरे अंदर का हाल समझ सकती हूॅ। मुझे इस बात का एहसास है कि सोनम के प्रति तू किस हद तक गंभीर हो चुका है। मगर बेटा सब कुछ वैसा ही नहीं हो जाया करता जैसा हम चाह लिया करते हैं। यथार्थ सच्चाई नाम की भी कोई चीज़ होती है जिसका हमें बेबस होकर ही सही मगर सामना करना पड़ता है और उसे मानना भी पड़ता है। ये तो तू भी अच्छी तरह जानता है कि सोनम तेरी बड़ी मौसी की लड़की है और रिश्ते में वो तेरी बड़ी बहन लगती है। सोनम की माॅ मेरी सगी बहन है इस हिसाब से ये रिश्ता सगा ही हो जाता है। अतः सगे रिश्ते के बीच तुम्हारी और सोनम की शादी हर्गिज़ भी नहीं हो सकती। अगर ऐसा होता कि सोनम की माॅ मेरी सगी बहन न होकर दूर के किसी रिश्ते से बहन लगती तो ऐसा हो भी सकता था। इस लिए तुम्हें इन सब बातों को सोच समझ कर अपने आपको समझाना होगा। मुझे पता है कि अभी ये सब तेरे लिए बहुत मुश्किल होगा मगर ये करना ही होगा बेटा। वरना अभी जिस बात से तुम्हें इतनी तक़लीफ हो रही है उसी बात से आगे चल कर और भी ज्यादा तक़लीफ होगी। दुनियाॅ में एक से बढ़ कर एक खूबसूरत लड़कियाॅ हैं, तू जिस लड़की से कहेगा हम उस लड़की से तेरी शादी करेंगे। मगर प्लीज सोनम का ख़याल अपने दिलो दिमाग़ से निकाल दे। इसी में सबकी भलाई है।"

"ठीक है माॅम।" शिवा ने गहरी साॅस ली और फिर एकाएक ही उसके चेहरे पर दृढ़ता के भाव आए, बोला____"अगर ऐसी बात है तो ठीक है। अब मैं कभी आपसे नहीं कहूॅगा कि आप सोनम से मेरी शादी करवा दीजिए। ख़ैर एक बात कहूॅ माॅम, पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि जैसे ईश्वर ने मुझे मेरे पापों की सज़ा देना शुरू कर दिया है। हाॅ माॅम, ये सज़ा ही तो है कि मुझे एक ऐसी लड़की से बेपनाह मोहब्बत हो गई जो मेरी बहन लगती है और जो मुझे नसीब ही नहीं हो सकती कभी। वरना ईश्वर अगर चाहता तो मुझे दूसरी किसी ऐसी लड़की से प्यार करवाता जो मुझे सहजता से मिल जाती। मगर नहीं उसे तो मेरे पापों की सज़ा देना था न मुझे। इस लिए ऐसा कर दिया उसने। कोई दूसरा इन सब बातों को समझे या न समझे माॅम मगर मैं अच्छी तरह समझ गया हूॅ और अगर अपने दिल की सच्चाई बयां करूॅ तो वो ये है कि मुझे ईश्वर के इस फैंसले पर कोई शिकायत नहीं है। अगर ये सब करके वो मुझे मेरे पापों की सज़ा ही देना चाहता है तो ठीक है माॅम मुझे स्वीकार है ये। हर ब्यक्ति को अपने कर्मों का फल मिलता है, फिर चाहे उसके अच्छे कर्मों का हो या बुरे कर्मों का। कितनी अजीब बात है न माॅम कि कुछ लोग सारी ज़िंदगी पाप करते हैं मगर उनको उनके पाप कर्म की सज़ा अंत में मिलती है मगर मुझे तो अभी से मिलना शुरू हो गई।"

शिवा की बातें सुन कर प्रतिमा हैरत से ऑखें फाड़े देखती रह गई उसे। उससे कुछ कहते तो न बन पड़ा था किन्तु ये समझने में उसे ज़रा भी देरी न हुई कि उसके बेटे का मानसिक संतुलन आज इस हद तक बिगड़ गया है अथवा उसकी सोच इस हद तक बदल गई है कि वो इस सबको अपने पाप कर्मों की सज़ा समझने लगा है। कहते हैं कि किसी ब्यक्ति को आप सारी ज़िदगी अच्छी चीज़ों का बोध कराते रहो मगर उसे अगर नहीं समझना होता है तो वो सारी ज़िंदगी नहीं समझता मगर वक्त और हालात के पास ऐसी खूबियाॅ होती हैं जिनके आधार पर वह पलक झपकते ही इंसान को आईना दिखा कर सब कुछ समझा देता है और मज़े की बात ये कि इंसान को समझ में भी आ जाता है। यही हाल शिवा का था। उसे सब कुछ समझ आ चुका था, मगर कहते हैं न कि "का बरसा जब कृषि सुखाने"। बस वही दसा थी उसकी।

"ख़ैर छोंड़िये इन सब बातों को माॅम।" उधर शिवा ने जैसे प्रतिमा को होशो हवाश में लाते हुए कहा___"अब से मैं कभी आपसे ऐसी बातें नहीं करूॅगा। आप ये सब डैड से भी मत बताना। वरना उन्हें लगेगा कि मैं भरपूर जवां मर्द होते हुए भी इस सबके चलते बेहद कमज़ोर हो गया हूॅ। वो इस बात को नहीं समझेंगे कि इस सबसे तो मैं और भी मजबूत हो गया हूॅ। मोहब्बत की चोंट को जो इंसान सह जाए उससे मजबूत इंसान भला दूसरा कौन हो सकता है?"

प्रतिमा को समझ न आया कि वह अपने बेटे की इन सब बातों का क्या जवाब दे। किन्तु उसकी बातें उसे आश्चर्यचकित ज़रूर किये हुए थीं। काफी देर तक वह गंभीर मुद्रा में ठगी सी बैठी रही। होश तब आया जब एकाएक ही ड्राइंग रूम में एक तरफ टेबल पर रखे लैण्ड लाइन फोन की घंटी घनघना उठी थी।

"हैलो।" शिवा अपनी जगह से उठ कर तथा फोन के रिसीवर को कान से लगाते ही कहा।
"ओह शिव बेटा।" उधर से अजय सिंह की जानी पहचानी सी आवाज़ उभरी____"मैंने तुम्हारे नाना जी को ट्रेन में बैठा दिया है और अब मैं यहीं से फैक्ट्री के लिए निकल रहा हूॅ। अतः अब शाम को ही आऊॅगा।"

"ठीक है डैड।" शिवा ने सामान्य भाव से कहा।
"ज़रा अपनी माॅम से बात करवाओ।" उधर से अजय सिंह ने कहा।
"एक मिनट डैड।" शिवा ने कहने के साथ ही पलट कर प्रतिमा की तरफ देखा और उसे बताया कि डैड उससे बात करना चाहते हैं।

"हाॅ बोलो अजय।" प्रतिमा ने शिवा से रिसीवर लेकर उसे अपने बाएं कान से लगाते हुए कहा___"क्या बता है? पापा को ट्रेन में सकुशल बैठा दिया है न तुमने?"
"हाॅ उन्हें ट्रेन में बैठा कर अभी अभी स्टेशन से बाहर आया हूॅ।" उधर से अजय सिंह ने कहा____"और अब मैं यहीं से फैक्ट्री जा रहा हूॅ। काफी दिन से नहीं गया हूॅ तो वहाॅ जाना भी ज़रूरी है। बाॅकी सब ठीक है न?"

"हाॅ बाॅकी सब तो ठीक ही है।" प्रतिमा ने कहा___"नीलम, सोनम को अपना ये गाॅव तथा अपने खेत दिखाने ले गई है। सोनम ने उससे कहा होगा कि उसे ये गाॅव और उसके खेत देखना है। अतः नीलम के साथ गई है वो।"

"ये क्या कह रही हो तुम?" उधर से अजय सिंह ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा___"उन दोनो को तुमने जाने कैसे दिया प्रतिमा? क्या तुम्हें पता नहीं है कि वो वहाॅ से भागने के उद्देश्य से भी ये कहा होगा कि उन्हे गाॅव तथा खेत देखना है? उफ्फ प्रतिमा तुमने ये क्या बेवकूफी की?"

"फिक्र मत करो अजय।" प्रतिमा ने कहा___"उन दोनो के साथ मैने दो ऐसे आदमियों को भी भेजा है जिन आदमियों को तुम्हारे दोस्त तुम्हारी मदद के लिए यहाॅ भेज कर गए थे। उन आदमियों के रहते वो कहीं भी नहीं जा सकती।"

"अरे वो आदमी साले क्या कर लेंगे?" उधर से अजय सिंह ने खीझते हुए कहा___"तुम्हें तो पता है कि उस साले विराज ने एक साथ हमारे उतने सारे आदमियों का काम तमाम कर दिया था तो फिर ये क्या कर लेंगे उसका? ओफ्फो प्रतिमा तुम्हें उन दोनों को जाने ही नहीं देना चाहिए था। मुझे तुमसे ऐसी बेवकूफी की उम्मीद हर्गिज़ भी नहीं थी।"


"तुम बेवजह ही इतना परेशान हो रहे हो डियर।" प्रतिमा ने कहा___"मुझे भी पता है कि हालात कैसे हैं और इन हालातों में क्या हो सकता है? मैं उन दोनो को गाॅव तथा खेत देखने जाने से भला कैसे रोंक सकती थी? इसी लिए मैंने उनके साथ उन दो आदमियों को भेजा है। बात इतनी सी ही बस नहीं है बल्कि दूर का सोचते हुए मैने उनके जाने के बाद उनके पीछे लगे रहने के लिए और भी आदमियों को एक टीम बना कर भेजा है। ऐसा इस लिए कि अगर वो दोनो सचमुच यहाॅ से भागने का ही ये गाॅव तथा खेत देखने का बहाना बनाया होगा तो वो किसी भी तरह से भागने में कामयाब न हो सकेंगी। दिखावे के लिए तथा सिचुएशन को सामान्य दिखाने के लिए मैने उन दोनो के साथ सिर्फ दो ही आदमी उनकी सुरक्षा के तहत भेजे किन्तु उनकी जानकारी के बिना कुछ और आदमियों की टीम को ये सोच कर उनके पीछे भेजा कि अगर ये उनका यहाॅ से भागने का ही प्लान था तो ये भी ज़ाहिर है कि ये प्लान उन्होंने खुद नहीं बनाया होगा बल्कि यहाॅ से इस तरह निकलने का प्लान विराज ने ही उन्हें बताया होगा और कहा होगा कि वो दोनो हवेली से बाहर निकल कर किसी ऐसे स्थान पर पहुॅचेंगी जहाॅ से उन दोनो को वो बड़ी आसानी से किन्तु बड़ी सावधानी से हमारे उन दोनो आदमियों के साथ रहने के बावजूद अपने साथ ले जा सकें। विराज की इसी चाल को मद्दे नज़र रखते हुए मैने उन दोनो के पीछे कुछ और आदमियों को एक मजबूत टीम बना कर भेजा है तथा साथ ही ये भी उन्हें कह दिया है कि अगर सचमुच वहाॅ ऐसा कुछ होता दिखे तो वो बेझिझक दूसरी पार्टी यानी विराज व रितू पर गोलियाॅ चला सकते हैं। किन्तु इतना ज़रूर ध्यान देंगे कि उनकी गोलियों से उन दोनो में से किसी की भी मौत न हो जाए। बल्कि उन्हें इस स्थित में लाना है कि वो कुछ करने के लायक न रह जाएॅ। उसके बाद वो उन्हें पकड़ कर हमारे फार्महाउस पर ले आएॅगे।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" उधर अजय सिंह ने मानो राहत की साॅस ली थी, बोला___"मगर मुझे इस सबसे भी संतुष्टि नहीं हो रही प्रतिमा। पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगता है कि हमारे इतने आदमियों के रहते हुए भी वो कमीना उन दोनो को अपने साथ ले जाने में कामयाब हो जाएगा।"

"ऐसा तुम इस लिए कह रहे हो डियर।" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"क्योंकि तुमने अभी तक इस मामले में कोई सफलता हाॅसिल नहीं की है। हर बार तुमने अपने आदमियों की वजह से नाकामी का स्वाद चखा है। इस लिए तुम्हें इस सबके बावजूद विश्वास या संतुष्टि नहीं हो रही कि हमारे आदमी विराज के मंसूबों को नाकाम कर पाएॅगे।"

"ये तो सच कहा तुमने प्रतिमा।" अजय सिंह बोला___"पर क्या करूॅ यार हालात हर दिन पहले से कहीं ज्यादा गंभीर व बदतर होते जा रहे हैं। मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता हूॅ कि एक और नाकामी की मुहर मेरे माथे की शोभा बढ़ाने लगे। इस लिए मैं खुद ही आ रहा हूॅ वहाॅ। फैक्ट्री जाना इतना भी ज़रूरी नहीं है। मैं आ रहा हूॅ डियर। इस बार मैं उस हरामज़ादे को कामयाब नहीं होने दूॅगा।"

"ठीक है माई डियर।" प्रतिमा ने कहा___"तुम्हें जैसा अच्छा लगे करो। वैसे कब तक पहुॅच जाओगे यहाॅ?"
"जितना जल्दी पहुॅच सकूॅ।" अजय सिंह ने कहा___"ख़ैर चलो रखता हूॅ फोन।"

इसके साथ ही काल कट हो गई। अजय सिंह से बात करने के बाद प्रतिमा पलट कर वापस सोफे की तरफ आई और बैठ गई। चेहरे पर अनायास ही गंभीरता छा गई थी उसके। फिर उसने शिवा की तरफ देखते हुए कहा___"बेटा सविता से कहो कि अच्छी सी चाय बना कर लाए मेरे लिए।"
"ओके माॅम।" शिवा ने कहा और सोफे से उठ कर अंदर की तरफ चला गया।
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Reply
11-24-2019, 01:13 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर मुम्बई में।
ब्रेक फास्ट करने के लिए सब एक साथ ही बैठे हुए थे। जिनमें जगदीश ओबराय, अभय सिंह, पवन, दिव्या, आशा तथा निधी बैठे हुए थे। गौरी, रुक्मिणी तथा करुणा सबके लिए नास्ता परोस रही थीं। ब्रेकफास्ट करते हुए सबके बीच थोड़ी बहुत बातचीत भी हो रही थी। किन्तु इस बीच आशा की निगाहें थोड़े थोड़े समय के अंतराल से निधी पर पड़ ही जाती थी।

निधी जो कि अब ज्यादातर ख़ामोश ही रहती थी। वो किसी से भी खुद से कोई बात नहीं करती थी। हलाॅकि सब यही चाहते थे कि वो सबसे बातें करे तथा अपनी शरारत भरी बातों से माहौल को सामान्य बनाए रखे मगर ऐसा हो नहीं रहा था। सबने उससे पूछा भी था कि वो अचानक इस तरह चुप चुप तथा गुमसुम सी क्यों रहने लगी है मगर उसने बस यही कहा था कि वो बस अपने भइया के चले जाने से ऐसी हो गई है। उसकी बातों को सब यही समझ रहे थे विराज जिस काम से गया है वो यकीनन बहुत ख़तरे वाला है जिसके बारे में सोच कर निधी इस तरह चुप हो गई है। आख़िर ये बात तो सब जानते ही थे कि निधी विराज की जान है तथा निधी भी अपने भाई पर जान छिड़कती है। मगर असलियत से आशा के अलावा हर कोई अंजान था।

चुपचाप नास्ता कर रही निधी की नज़र सहसा सामने ही कुर्सी पर बैठी तथा नास्ता कर रही आशा पर पड़ी तो वो ये देख कर एकाएक ही सकपका गई कि आशा उसे ही एकटक देखे जा रही है। उसके ज़हन में पलक झपकते ही सुबह का डायरी वाला सीन याद आ गया। उसके दिमाग़ ने काम किया और उसे ये सोचने पर मजबूर किया कि आशा दीदी उसे इस तरह एकटक क्यों देखे जा रही हैं। उनकी ऑखों में कुछ ऐसा था जिसने निधी को अंदर तक हिला सा दिया था और फिर एकाएक ही जैसे उसके दिमाग़ की बत्ती रौशन हुई। उसके मन में ख़याल उभरा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आशा दीदी ने उसके सोते समय डायरी को हाॅथ ही नहीं लगाया हो बल्कि उसे पढ़ भी लिया हो। इस ख़याल के आते ही निधी की हालत पल भर में ख़राब हो गई। मन के अंदर बैठा चोर इतना घबरा गया कि फिर उसमें नज़र उठा कर दुबारा आशा की तरफ देखने की हिम्मत न हुई।

निधी ने नोटिस किया कि जिस अंदाज़ से आशा उसे देख रही थी उससे तो यही लगता है कि उसने डायरी में लिखी बातें पढ़ ली हैं और जान गई है कि उसमें लिखे गए हर लफ्ज़ का मतलब क्या है? निधी की हालत ऐसी हो गई कि अब उससे वहाॅ पर बैठे न रहा गया। उसने जो खाना था खा लिया और फिर वह एक झटके से उठी और ऊपर अपने कमरे की तरफ तेज़ तेज़ क़दम बढ़ाते हुए चली गई। कमरे में जाकर उसने स्कूल की यूनीफार्म पहनी तथा अपना स्कूली बैग उठाया और फिर फौरन ही कमरे से बाहर आ गई।

उसे इतना जल्दी बाहर आते देख हर कोई चौंका मगर चूॅकि उसके स्कूल जाने का समय होने ही वाला था अतः इस पर ज्यादा किसी ने ग़ौर न किया। उसने दूर से ही हाॅथ हिला कर सबको बाय किया और बॅगले से बाहर की तरफ बढ़ गई। बाहर आते ही उसने एक ऐसे आदमी को आवाज़ दी जो हर दिन कार से उसे स्कूल छोंड़ने और स्कूल से लाने का काम करता था। ख़ैर, कुछ ही देर में निधी कार में बैठ कर स्कूल की तरफ रवाना हो गई। किन्तु अब उसका मन बेहद अशान्त हो चुका था। उसे ये डर सताने लगा था कि अगर सचमुच आशा ने उसकी डायरी पढ़ ली होगी तो उसे यकीनन पता चल गया होगा कि वो अपने ही सगे भाई से प्यार करती है और आज कल उसी के ग़म में गुमसुम रहने लगी है।

निधी को प्रतिपल ये सब बातें और भी ज्यादा चिंतित व परेशान किये जा रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे? कैसे अब वो अपनी आशा दीदी के सामने जाएगी तथा उन्हें अपना चेहरा दिखाएगी? अगर आशा ने उससे इस बारे में कुछ पूछा तो वो क्या जवाब देगी? उसे पहली बार एहसास हुआ कि डायरी लिख कर उसने कितनी बड़ी ग़लती की है। वरना किसी को इस बात का पता ही न चलता कि उसके दिल में क्या है। मगर अब क्या हो सकता था? तीर तो कमान से निकल चुका था। अतः अब तो बस इंतज़ार ही किया जा सकता था इस सबके परिणाम का। निधी के मन ही मन ये निर्णय लिया कि अब वो आशा दीदी के सामने नहीं जाएगी और ना ही उनसे कोई बात करेगी। मगर उसे खुद लगा कि ऐसा संभव नहीं हो सकता। उसे उनका सामना तो करना ही पड़ेगा क्योंकि वो ज्यादातर उसके पास ही रहती हैं तथा रात में उसके ही कमरे में उसके साथ एक ही बेड पर सोती भी हैं।

ये मामला ही ऐसा था कि इसने निधी की हालत को इस तरह कर दिया था जैसे अब उसके अंदर प्राण ही न बचे हों। वह एकदम से जैसे ज़िदा लाश में तब्दील हो गई हो। उसके मन में ये भी ख़याल उभरा कि अगर आशा दीदी ने वो सब किसी से बता दिया तो क्या होगा? उसकी माॅ गौरी तो उसे जीते जी जान से मार देगी। कोई उसके अंदर की भावनाओं को नहीं समझेगा बल्कि सब उसे ग़लत ही समझेंगे। अगर ये भी कहें तो ग़लत न होगा कि उसने ये सब अपनी नई नई जवानी को बर्दाश्त न कर पाने की गरज़ से अपने ही भाई को फॅसाने का सोच कर किया होगा। इस ख़याल के आते ही निधी को आत्मग्लानि के चलते बेहद दुख हुआ। उसकी झील सी नीली ऑखों से पलक झपकते ही ऑसूॅ छलक कर गिर पड़े। किन्तु उसने जल्दी से उन्हें ये सोच कर पोंछ भी लिया कि कहीं ड्राइवर उसे बैकमिरर के माध्यम से ऑसू बहाते देख न ले।

सारे रास्ते इन सब बातों को सोचते हुए निधी को पता ही नहीं चला कि वो कब स्कूल पहुॅच गई? होश तब आया जब ड्राइवर ने उससे कहा कि उसका स्कूल आ गया है। ड्राइवर पचास की उमर का ब्यक्ति था। उसका ये रोज़ का ही काम था। उसे निधी से काफी लगाव भी हो गया था। उसे वो अपनी बेटी की तरह मानता था। पिछले कुछ समय से वो खुद भी देख रहा था कि निधी एकाएक ही गुमसुम सी हो गई है। उसने भी कई बार इस बारे में उससे पूछा था मगर निधी ने उससे भी यही कहा था कि वो अपने भइया के लिए दुखी रहती है। भला वो किसी से अपने गुमसुम रहने की वजह कैसे बता सकती थी?

कार से उतर कर निधी बहुत ही बोझिल मन से अपने स्कूल के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ती चली गई। स्कूल में उसकी अच्छी अच्छी कई सहेलियाॅ बन गई थी। वो सब भी निधी की इस ख़ामोशी से परेशान व चिंतित थी। मगर वो कर भी क्या सकती थी?

इधर निधी के जाने के थोड़ी देर बाद ही आशा निधी के कमरे में पहुॅची। कमरे को उसने अंदर से कुंडी लगा कर बंद किया और फिर पलट कर निधी की डायरी की तलाश करने लगी। मगर बहुत ढूॅढ़ने पर भी उसे निधी की वो डायरी कहीं न मिली। उसने हर जगह बड़ी बारीकी से चेक किया मगर डायरी तो जैसे गधे के सिर का सींग हो गई थी। सहसा आशा को ख़याल आया कि निधी अपनी डायरी को ऐसी वैसी जगह नहीं रख सकती जिससे वो किसी के हाॅथ लग जाए। ज़ाहिर सी बात है कि ऐसी डायरी वो किसी के हाॅथ लगने भी कैसे दे सकती थी जिसे किसी के द्वारा पढ़ लिए जाने के बाद उस पर क़यामत टूट पड़ती। मतलब साफ है कि उसने उस डायरी को ऐसी जगह छुपा कर रखा होगा जहाॅ से मिलना किसी दीगर ब्यक्ति के लिए लगभग असंभव ही हो।

इस ख़याल के तहत आशा ने सोचा कि ऐसी जगह तो इस कमरे में कदाचित आलमारी और आलमारी के अंदर वाला लाॅकर ही हो सकता है जहाॅ पर निधी ने अपनी डायरी छुपाई हो सकती है। अतः आशा ने आगे बढ़ कर आलमारी खोला और आलमारी के अंदर मौजूद लाॅकर को चेक किया तो उसे लाॅक पाया। अंदर के उस लाॅकर की चाभी को उसने ढूॅढ़ना शुरू कर किया मगर चाभी कहीं नहीं मिली उसे। आलमारी में रखी एक एक चीज़ तथा एक एक कपड़े को उलट पलट कर देखा उसने मगर चाभी कहीं न मिली। थक हार कर फिर उसने हर चीज़ को उसी तरह जमा कर रखना शुरू किया जैसे वो पहले रखी हुई थीं उसके बाद वह बेड पर आकर धम्म से बैठ गई और गहरी गहरी साॅसें लेने लगी।

काफी देर तक बेड पर बैठी वो चाभी के बारे में सोचती रही फिर उसे लगा कि संभव है कि लाॅकर की चाभी निधी अपने पास ही रखती हो। यानी इस वक्त वो चाभी उसके पास उसके स्कूली बैग में ही होगी। बात भी सच थी आख़िर वो चाभी अपने पास ही तो रखेगी वरना ऐसे में तो कोई भी उसकी चाभी ढूॅढ़ कर लाॅकर खोल सकता था तथा उसकी डायरी निकाल सकता था और फिर उसे पढ़ भी सकता था। आशा को ये बात सौ परसेन्ट जॅची।

आशा की ऑखों के सामने सुबह ब्रेकफास्ट करते वक्त का सीन फ्लैश करने लगा। जब वो बार बार निधी की तरफ देख रही थी और फिर निधी ने भी उसको अपनी तरफ एकटक देखते हुए देखा था। उस वक्त उसकी हालत बहुत ही दयनीय सी हो गई थी। आशा को समझते देर न लगी कि निधी को उसके इस तरह देखने से ये समझ में आ गया होगा कि उसने सुबह उसकी डायरी को शायद पढ़ लिया होगा और उसका राज़ जान चुकी होगी। ये सोच ही उसकी हालत ख़राब हो गई थी। आशा जानती थी कि प्यार करना कोई जुर्म नहीं है, किन्तु यही प्यार अगर बहन अपने ही भाई से कर बैठे तो यकीनन ये अनुचित तथा ग़लत हो जाता है। कदाचित यही वजह थी कि निधी की वैसी हालत हो गई थी। उसे डर सताने लगा था कि आशा दीदी उसके बारे में क्या क्या सोचेंगी और अगर ये बात किसी को बता दिया तो इसका क्या अंजाम हो सकता है।

आशा को ये भी एहसास था कि विराज है ही ऐसा कि उससे कोई भी लड़की प्यार कर बैठेगी। फिर चाहे वो बाहरी लड़की हो या फिर खुद उसकी ही बहन। वो खुद भी तो विराज को शुरू से ही अपना सब कुछ मानती आ रही थी। उसे खुद नहीं पता था कि वो कब विराज को अपना दिल दे बैठी थी और फिर जब उसे एहसास हुआ कि वो विराज को बेपनाह प्यार करने लगी है तो एकाएक ही हॅसती खेलती आशा का समूचा अस्तित्व ही बदल गया था। आज जिस ख़ामोशी को निधी ने अख़्तियार कर लिया था उसी ख़ामोशी को एक दिन उसने भी तो ऐसे ही अख़्तियार कर लिया था। अपने प्रेम को उसने विराज के सामने कभी उजागर नहीं किया क्योंकि उसे पता था कि विराज उसे अपनी बहन ही मानता है। दूसरी बात अगर वो उससे अपने प्रेम का इज़हार करती भी तो बहुत हद तक संभव था कि विराज उसे ग़लत समझ बैठता या उसके इस प्रेम को ये कह कर ठुकरा देता वो ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं? दूसरी बात, एक तो उमर में वो विराज से बड़ी थी दूसरे आर्थिक तंगी के चलते उसकी शादी भी नहीं हो रही थी। इस सबसे विराज को ही नहीं बल्कि सबको भी यही लगता कि आशा से अपनी जवानी की गर्मी बर्दास्त नहीं हुई इस लिए उसने विराज के साथ संबंध बनाने के लिए प्यार का नाटक शुरू कर दिया है। तीसरी महत्वपूर्ण बात वो भले ही चुलबुल व नटखट स्वभाव की थी किन्तु सिर्फ अपने भाइयों के लिए बाॅकी बाहरी लोगों के सामने उसने कभी अपना सिर तक न उठाया था। लोक लाज तथा घर की मान मर्यादा का ख़याल ही था जिसने उसके लब हमेशा के लिए सिल दिये थे।

जब उसे डायरी के द्वारा ये पता चला कि निधी अपने ही भाई से प्यार करती है तो सहसा उसे झटका सा लगा था और उसके दिल में भावनाओं और जज़्बातों का ये सोच कर भयंकर तूफान उठा था कि जिस विराज को वो अपना सब कुछ मानती आ रही है उस पर तो उसका कोई हक़ ही नहीं है। बल्कि सबसे पहला हक़ तो उसकी खुद की बहन का ही हो गया है। उसने भी सोच लिया कि चलो यही सही। प्यार मोहब्बत तो कम्बख़्त नाम ही उस बला का है जो सिर्फ दर्द देना जानती है इश्क़ करने वालों को। उसे निधी पर बेहद तरस भी आया कि इस मासूम ने उस शख्स से दिल का रोग लगा लिया जो इसका हो ही नहीं सकता। ये समाज ये दुनिया कभी भाई बहन के इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगी। दुनियाॅ की छोंड़ो खुद उसके ही माॅ बाप या संबंधी इसके खिलाफ हो जाएॅगे। कहने का मतलब ये कि मोहब्बत ने एक और शिकार फाॅस लिया बेइंतहां दर्द और तक़लीफ देने के लिए।

आशा जानना चाहती थी कि निधी को अपने ही भाई से इस हद तक प्यार कैसे हो गया है? आख़िर ऐसे क्या हालात बन गए थे जिसके तहत निधी ने ये रोग लगा लिया था? दूसरी बात क्या ये बात विराज को भी पता है कि उसकी लाडली बहन उससे इस हद तक प्यार करती है? उसे पता था कि डायरी एक ऐसी चीज़ होती है जिसमें हर इंसान अपने अंदर की हर सच्चाई को पूर्णरूप से सच ही लिखता है। अतः संभव है कि निधी ने भी उस डायरी में वो सब लिखा हो जिसके तहत उसे पता चलता कि किन हालातों में ऐसा हुआ था? हलाॅकि उसे ये भी पता था कि किसी भी इंसान की पर्शनल डायरी उसकी इजाज़त के बिना पढ़ना निहायत ही ग़लत होता है मगर फिर भी वो पढ़ना चाहती थी।

आशा सोच रही थी कि ब्रेकफास्ट करते वक्त निधी की जो हालत हुई थी उससे कहीं वो कुछ उल्टा सीधा करने का न सोच बैठे। ये मामला ही ऐसा है कि वो इस सबसे बहुत डर जाएगी और किसी के पता चल जाने के डर से वो कुछ उल्टा सीधा करने का सोच बैठे। बेड पर बैठी आशा को एकाएक ही हालात की गंभीरता का एहसास हुआ। उसका दिल बुरी तरह धड़कने लगा। उसे निधी की चिंता सताने लगी। उसने फौरन ही निधी से बात करने का सोचा। किन्तु उसके पास खुद का कोई मोबाइल नहीं था।

आशा अतिसीघ्र बेड से नीचे उतरी और भागते हुए कमरे से बाहर आई और फिर नीचे की तरफ दौड़ पड़ी। थोड़ी ही देर में वो गौरी आदि लोगों के पास पहुॅच गई। उसने खुद के चेहरे पर उभर आए घबराहट के भावों को जल्दी से छुपाया और लगभग सामान्य लहजे में ही गौरी से मोबाइल फोन माॅगा। किन्तु गौरी ने बताया कि मोबाइल तो उसके पास है ही नहीं, उसे तो मोबाइल चलाना ही नहीं आता। दूसरी बात ये कि उसे मोबाइल की कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी। गौरी की ये बात सुनकर आशा बुरी तरह परेशान हो गई। लाख कोशिशों के बावजूद उसके चेहरे पर से परेशानी के वो भाव न मिट सके जो उसके चेहरे पर ढेर सारे पसीने में भींगे दिखने लगे थे। जिसका नतीजा ये हुआ कि गौरी पूछ ही बैठी उससे कि क्या बात है वो इतना परेशान क्यों हो गई है। गौरी की बात का उसने आनन फानन में ही जवाब दिया। तभी वहाॅ पर करुणा भी आ गई। गौरी ने कुछ सोचते हुए करुणा से कहा कि वो अपना मोबाइल फोन आशा को दे दे।

करुणा ने अपना मोबाइल फोन आशा को ये पूछते हुए दे दिया कि क्या बात है तुम इतना परेशान क्यों नज़र आ रही हो। कुछ बात है क्या? आशा ने कहा नहीं चाची ऐसी कोई बात नहीं है वो क्या है कि उसे गुड़िया को फोन करना है तथा उससे पूछना है कि आज वो इतना जल्दी स्कूल क्यों चली गई थी? आपने देखा नहीं था क्या उसने ठीक से नास्ता भी नहीं किया है आज? आशा की इन बातों से गौरी, करुणा तथा रुक्मिणी सहज हो गईं। उन्हें भी बात सही लगी। क्योंकि उन्होंने भी देखा था कि निधी ने बस थोड़ा बहुत ही खाया था और फिर स्कूल चली गई थी। ख़ैर आशा का निधी के लिए इस तरह चिंता करना उन सबको बहुत अच्छा लगा।

करुणा से मोबाइल लेकर आशा फौरन ही वापस कमरे में आई और उसने फिर से दरवाजा उसी तरह अंदर से कुंडी लगा कर बंद कर दिया। उसके बाद वो बेड पर आ कर बैठ गई। फिर जाने उसे क्या सूझा कि वह बेड से उठी और कमरे से ही अटैच बाथरूम की तरफ बढ़ गई। बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद कर उसने मोबाइल पर निधी का नंबर निकाला और फिर उसे काल लगा कर मोबाइल अपने कान से लगा लिया। इस वक्त उसके चेहरे पर गहन चिंता व परेशानी स्पष्ट रूप से उभर आई थी। रिंग की आवाज़ जाती सुनाई दी उसे और इसके साथ ही उसकी धड़कनें भी बढ़ गईं। मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना भी करने लगी कि सब कुछ ठीक ही हो।

"ह..हैलो।" तभी उधर से निधी का लगभग घबराया हुआ सा स्वर उभरा___"च..चाची वो मैं.....।"
"गुड़िया।" निधी की बात को काटते हुए आशा ने फौरन ही कहा___"मैं तेरी आशा दीदी बोल रही हूॅ और हाॅ फोन मत काटना तुझे राज की क़सम है।"

"द..दीदी आप??" उधर से निधी का बुरी तरह उछला हुआ किन्तु घबराया हुआ स्वर फूटा था।
"गुड़िया।" आशा ने असहज भाव से किन्तु समझाते हुए कहा___"देख तू कोई भी उल्टा सीधा करने का ख़याल अपने मन में मत लाना। अगर तू ये सोच कर डर गई है कि मुझे डायरी के माध्यम से तेरा राज़ पता चल गया है और मैं उसकी वजह से तुझे कुछ कहूॅगी या फिर वो सब किसी से कह दूॅगी तो तू उस सबकी वजह से डर मत और ना ही उससे घबरा कर कुछ ग़लत क़दम उठाने का सोचना। मैं तुझे उसके लिए कुछ नहीं कहूॅगी गुड़िया और ना ही किसी को बताऊॅगी। मुझे पता है कि ये प्यार व्यार ऐसे ही होता है जो रिश्ते नाते नहीं देखता। अतः तू इस सबके लिए बिलकुल भी मत घबराना और ना ही फालतू का टेंशन लेना। तू सुन रही है न गुड़िया???"

"हम्म।" उधर से निधी का बहुत ही धीमा स्वर उभरा।
"मुझे इस बात के लिए माफ़ कर दे गुड़िया।" आशा ने सहसा दुखी भाव से कहा___"कि मैने तेरी डायरी को छुआ और उसे खोल कर पढ़ा भी। किन्तु ये सब मैने जान बूझ कर नहीं किया था। बल्कि वो सब अंजाने में हो गया था। दरअसल जब मैं तेरे पास सुबह तेरे लिए चाय लेकर आई तो देखा कि तू उस डायरी को अपने दोनो हाॅथों से पकड़े सो रही थी। मुझे लगा ऐसी डायरी तेरी पढ़ाई में तो उपयोग होती नहीं होगी तो फिर ये कैसी डायरी है तथा क्या है इसमें जिसे इस तरह लिये तू सो रही है? बस यही जानने के लिए मैने उस डायरी को तेरे हाॅथों से लेकर उसे खोला। किन्तु मुझे उसमें वो सब पढ़ने को मिल गया। लेकिन गुड़िया मैने और कुछ नहीं पढ़ा उसमें। शुरू का ही पेज पढ़ा था और वो ग़ज़ल पढ़ी थी जिसमें तूने लिखा था___"बताना भी नहीं मुमकिन, हाॅ ऐसे ही कुछ लिखा था उसमे।"

"क..क्या आप सचमुच इस सबके लिए मुझसे नाराज़ या गुस्सा नहीं हैं दीदी?" उधर से निधी का अभी भी धीमा ही स्वर उभरा था।
"हाॅ गुड़िया।" आशा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"मैं तुझसे बिलकुल भी नाराज़ नहीं हूॅ। भला मैं तुझसे नाराज़ हो भी कैसे सकती हूॅ पागल? किन्तु हाॅ इस बात से दुखी ज़रूर हूॅ कि सबको अपनी शरारतों से परेशान करने वाली मेरी ये लाडली बहन ने एकाएक ही खुद को उदासी की चादर में ढाॅफ लिया है।"

"वक्त और हालात हमेशा एक जैसे तो नहीं हो सकते न दीदी।" उधर से निधी ने अजीब भाव से कहा___"इंसान के जीवन में कभी खुशी तो कभी ग़म वाला समय तो आता जाता ही रहता है। मेरे पास इसके पहले वैसे ही वक्त और हालात थे जबकि मैं खुश रहा करती थी और शरारतें करने के सिवा कुछ नहीं आता था मुझे। मगर अब हालात बदल गए हैं। ईश्वर को मेरा खुश रहना और मेरा वो शरारतें करना शायद अच्छा नहीं लगा तभी तो उसने मुझे दिल का रोगी बना दिया। एक ऐसे इंसान के लिए उसने मेरे दिल में प्रेम का बीज बो दिया जो इंसान मेरा हो ही नहीं सकता। ख़ैर जाने दीजिए दीदी, मैने बहुत हद तक खुद को समझा लिया है। हलाॅकि ये मुश्किल तो था मगर कोई बात नहीं। इतना तो अब सहना ही पड़ेगा न मुझे। मैने भी सोचा कि ऐसे इंसान को पाने की ज़िद भी क्या करना जो मुझे मिल ही न सके और जिसकी वजह से सब कुछ नेस्तनाबूत भी हो जाए।"

निधी की इन बातों ने आशा को जैसे एकदम से ख़ामोश सा कर दिया। उसे समझ न आया कि वो उसकी बातों का क्या जवाब दे? किन्तु इतना एहसास ज़रूर हो गया उसे कि जिस लड़की को सब लोग बच्ची समझते हैं तथा जिसके बारे में ये सोचते हैं कि उसे दुनियादारी की अभी कोई समझ नहीं है वो लड़की दरअसल अब बहुत बड़ी हो गई है। कदाचित इतनी बड़ी कि अपनी इस छोटी सी ऊम्र में भी वो बड़े बड़े बुजुर्गों तथा बड़े बड़े ज्ञानियों को नसीहतें दे सकती है। क्या प्रेम ऐसा भी होता है जो अचानक ही इंसान को इतना बड़ा और इतना बड़ा ज्ञानी बना देता है जिसके चलते वो यथार्थ और ज्ञान की बातें करने लगे?
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