non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:15 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अपडेट........《 58 》

अब तक,,,,,,,

हाॅस्पिटल के सामने कार के रुकते ही मैने जल्दी से गेट खोला और नीलम को सावधानी से निकाल कर अपनी गोंद में लिया और बिना किसी की तरफ देखे हाॅस्पिटल की तरफ लगभग दौड़ते हुए जाने लगा। मेरे पीछे ही बाॅकी सब भी आ रहे थे। कुछ ही देर में मैं नीलम को लिए हाॅस्पिटल के अंदर आ गया। वहाॅ का माहौल देख कर ऐसा लगा जैसे वहाॅ के डाक्टर तथा कर्मचारी हमारा ही इन्तज़ार कर रहे थे। जल्द ही दो आदमी स्ट्रेचर लिये मेरे पास आए। मैने आहिस्ता से नीलम को स्ट्रेचर पर लिटा दिया। मेरे लेटाते ही वो दोनो आदमी स्ट्रेचर को तेज़ी से ठेलते हुए ले जाने लगे। मैं, आदित्य, रितू दीदी व सोनम दीदी भी साथ ही साथ चलने लगे थे। थोड़ी ही देर में वो दोनो आदमी नीलम को स्ट्रेचर सहित ओटी में ले गए। डाक्टर ने हम सबको ओटी के बाहर ही रोंक दिया और खुद अंदर चला गया।

हम चारो वहीं पर खड़े रह गए थे। हम चारों के मन में बस एक ही बात थी कि नीलम को कुछ न हो। अभी हम सब वहाॅ पर खड़े ही थे कि तभी वहाॅ पर एसीपी रमाकान्त शुक्ला भी आ गया। उसने आते ही रितू दीदी से नीलम के बारे में पूछा तो दीदी ने बता दिया कि अभी अभी उसे ओटी में ले जाया गया है। एसीपी ने रितू दीदी से कहा कि उसने समूचे हास्पिटल में अंदर बाहर पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में तैनात कर दिये हैं। इस लिए अब किसी बात का ख़तरा नहीं है। एसीपी की बात सुन कर रितू दीदी ने उसे इसके लिए धन्यवाद किया। कुछ देर बाद एसीपी ये कह कर चला गया कि वो नीलम का हाल चाल लेने फिर आएगा।

एसीपी के जाने के कुछ देर बाद हम चारों वहीं गैलरी पर दीवार से सटी हुई रखी लम्बी चेयर्स पर बैठ गए। कुछ देर बाद मैं उठा और हाॅस्पिटल से बाहर पानी लाने के लिए चला गया। पानी लाकर मैने रितू दीदी व सोनम दीदी को दिया। उसके बाद उसी कुर्सी पर बैठ कर हम सब डाॅक्टर के बाहर आने का इन्तज़ार करने लगे। हम सबके लबों से बस एक ही दुवा निकल रही कि नीलम को कुछ न हो।
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अब आगे,,,,,,,,

उधर हवेली में।
ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठी प्रतिमा अपने मोबाइल से बार बार अपने पति अजय सिंह के मोबाइल पर फोन लगा रही थी किन्तु अजय सिंह का फोन बंद बता रहा था। अजय सिंह का फोन बंद बताने से प्रतिमा को किसी अनहोनी आशंका होने लगी थी। उसके चेहरे पर एकाएक ही गहन चिंता, परेशानी तथा बेचैनी के भाव उभर आए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अजय ने अपना फोन क्यों बंद कर रखा है? वो अजय सिंह से फोन पर बात करके ये जानना चाहती थी कि वो इस वक्त कहाॅ है तथा बाॅकियों के हालात कैसे हैं? मगर अजय सिंह का फोन बंद बताने से प्रतिमा को अब प्रतिपल बेचैनी सी होने लगी थी। उसके मन में तरह तरह के ख़यालों का आवागमन शुरू हो गया था।

उसके सामने ही दूसरे सोफे पर शिवा किसी और ही दुनियाॅ में खोया हुआ नज़र आ रहा था। उसे जैसे अपने माॅ बाप की कोई ख़बर ही नहीं थी। वो तो बस सोनम के ख़यालों में खोया हुआ था। नीलम व सोनम को अब तक तीन से चार घंटे हो गए थे। मगर वो दोनो अब तक वापस नहीं लौटी थी। किन्तु शिवा को जैसे समय का ख़याल ही नहीं था। वो तो बस अपनी ऑखों के सामने नज़र आ रहे सोनम के खूबसूरत चेहरे को ही अपलक देखे जा रहा था। हलाॅकि जब प्रतिमा ने उसे इस बात से अवगत कराया कि वो दोनो यहाॅ से भागने का सोच कर ही गई हो सकती हैं तो शिवा का दिल एकदम से बैठ सा गया था। बाद में प्रतिमा के ही निर्देश पर उसने कुछ नये आदमियों की मजबूत टीम बना कर उनके पीछे लगा दिया था।

"उफ्फ क्या करूॅ इस इंसान का।" सहसा तभी प्रतिमा की खीझी हुई इस आवाज़ से शिवा हकीक़त की दुनियाॅ में आया, जबकि प्रतिमा कह रही थी____"कभी कोई काम ठीक से नहीं कर सकते हैं। ये तो हद हो गई, इतना लापरवाह इंसान मैने आज तक नहीं देखा।"

"क्या हुआ माॅम?" शिवा ने प्रतिमा के एकाएक ही तमतमा गए चेहरे को देखते हुए कहा____"किस लापरवाह इंसान की बात कर रही हैं आप?"
"तुम्हारे बाप की।" प्रतिमा ने आवेश में कहा___"जो कि हद दर्ज़े का लापरवाह और बेवकूफ इंसान है।"

"अरे ये आप क्या कह रही हैं माॅम?" शिवा अपनी माॅ की बातों से बुरी तरह हैरान रह गया।
"सच ही तो कह रही हूॅ मैं।" प्रतिमा ने कहा___"वरना कौन ऐसा करता है कि इतनी ख़राब सिचुएशन में होकर अपना फोन ही बंद कर दे?"

"क्या मतलब???" शिवा जैसे चकरा सा गया।
"तुम्हारे बाप से फोन द्वारा पूछना चाहती थी कि वहाॅ के हालात कैसे हैं?" प्रतिमा ने कहा___"मगर महाशय का मोबाइल फोन ही ऑफ बता रहा है। अब तुम ही बताओ कि ऐसे हालात में कौन अपना फोन कर बंद करके रखता है?"

"बात तो आपने सही कही माॅम।" शिवा के चेहरे पर एकाएक सोचने वाले भाव उभरे____"ऐसे हालात में कोई भी अपना फोन ऑफ नहीं रख सकता। हाॅ अगर मोबाइल ही डिस्चार्ज़ हो गया हो तो अलग बात है। लेकिन माॅम मुझे यकीन है डैड अपना फोन ऑफ नहीं करेंगे ऐसे वक्त में। ज़रूर कोई बात हो गई होगी।"

"चुप कर तू।" प्रतिमा अंदर ही अंदर जाने क्यों बुरी तरह हिल गई, बोली___"जो मुह में आता है बिना सोचे समझे बोल देता है।"
"ऐसा नहीं है माॅम।" शिवा ने नर्म भाव से कहा___"लेकिन आप खुद सोचिए कि क्या डैड ऐसे वक्त में अपना फोन ऑफ कर सकते हैं, नहीं ना? उन्हें भी पता है कि हालात कितने गंभीर हैं। लेकिन ये भी सच है कि अगर डैड का फोन ऑफ बता रहा है तो ज़रूर कोई ऐसी बात होगी जिसके बारे में फिलहाल हमें कुछ भी पता नहीं है।"

शिवा की इस बात पर प्रतिमा तुरंत कुछ बोल न सकी। उसके चेहरे पर गहन सोचों के भाव ज़रूर उभर आए थे। जैसा सोच रही हो कि क्या सच में ऐसा कुछ हुआ होगा? उधर अपनी माॅम को सोचों में गुम देख कर शिवा पुनः कह उठा____"इस तरह बैठने से कुछ नहीं होगा माॅम। मुझे लगता है कि हमें डैड का पता करना चाहिए। जैसा कि आपने मुझे बताया था कि आज विराज रितू दीदी के साथ नीलम व सोनम को लेने आने वाला है शायद, इसी लिए आपने उनके पीछे अलग से एक मजबूत टीम बना कर मेरे द्वारा भेजवाया था। वहीं दूसरी तरफ से डैड भी अपने साथ कुछ आदमियों को लिए आ रहे हैं। इस बात से यही ज़ाहिर होता है कि अगर विराज सचमुच आ रहा है तो डैड तथा हमारे आदमियों के साथ उसकी भिड़ंत अनिवार्य है। इस भिड़ंत में यकीनन हमारी जीत होगी। यानी कि अंततः विराज रितू दीदी के साथ पकड़ा ही जाएगा। उसके बाद डैड उन सबको फार्महाउस ले जाएॅगे। फार्महाउस पहुॅचने के बाद ही वो हमें फोन करने वाले थे। किन्तु उनके फोन बंद बताने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमने जो उम्मीद की थी वो हुआ ही नहीं है।"

"नहीं नहीं।" प्रतिमा ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिलाया, बोली___"ऐसा नहीं हो सकता बेटा। इस बार मैने और तेरे डैड ने उस विराज की सोच से बहुत आगे बढ़ कर प्लान बनाया था। मुझे उसकी सोच का अब अंदाज़ा हो चुका था, इसी लिए तो डबल बैकअप रखा था हमने। एक हमारे आदमियों का दूसरा तेरे डैड के साथ आए आदमियों का। डबल बैकअप के बाद तो जीत हमारी ही होनी निश्चित थी बेटा।"

"काश! ऐसा ही हुआ हो माॅम।" शिवा ने कहा___"उन सबके साथ साथ नीलम व सोनम भी तो पकड़ ली गई होंगी। उफ्फ! कितना भरोसा था मुझे कि सोनम ये गाॅव तथा हमारे खेते घूम कर वापस यहीं आएगी। मगर कदाचित नीलम ने उसे भी सब कुछ बता दिया था तभी तो दोनो एक साथ चली गईं। मगर अब मैं अपने दिल का क्या करूॅ माॅम? ये तो उसी का होकर रह गया है।"

शिवा की इस बात का प्रतिमा अभी कुछ जवाब देने ही वाली थी सहसा तभी ड्राइंग रूम में बड़े वेग से एक आदमी दाखिल हुआ। उसके चेहरे से ही लग रहा था कि वो कहीं से मैराथन दौड़ लगा कर आया है। बुरी तरह हाॅफ रहा था वह। प्रतिमा व शिवा उसे देख कर बुरी तरह चौंक पड़े।

"क्या बात है हैदर?" शिवा ने उसकी तरफ हैरानी से देखते हुए कहा___"तुम इतना हाॅफ क्यों रहे हो? और...और तुम यहाॅ कैसे, तुम तो टीम के साथ ही गए थे न?"
"हाॅ छोटे ठाकुर।" हैदर नाम के उस आदमी ने हाॅ में सिर हिलाते हुए कहा___"गया तो मैं टीम के साथ ही था। मगर,

"मगर क्या???" शिवा उतावलेपन में पूछ बैठा।
"सब कुछ गड़बड़ हो गया छोटे ठाकुर।" हैदर ने दीनहीन दशा में बोला____"ठाकुर साहब ने तो सबको पकड़ ही लिया था और बाज़ी भी हमारे ही हाॅथ में थी। मगर ऐन वक्त पर वहाॅ पुलिस की पूरी फौज आ गई और फिर एसीपी के निर्देश पर सबको हिरासत में ले लिया गया। यहाॅ तक कि ठाकुर साहब को भी वो एसीपी गिरफ्तार करके ले गया है। मैं किसी तरह छुपता छुपाता वहाॅ से निकल कर ये सब बताने के लिए आपके पास आया हूॅ।"

हैदर की बात सुन कर शिवा तथा प्रतिमा दोनो को ही जैसे साॅप सूॅघ गया। दोनो के ही चेहरों की हालत ऐसे हो गई जैसे कपड़े से पानी निचोड़ लेने पर कपड़े की हो जाती है। प्रतिमा को तो ऐसा लगा जैसे दिल का दौरा पड़ जाएगा। उसकी ऑखों के सामने अॅधेरा सा छा गया। शिवा की नज़र जब प्रतिमा पर पड़ी तो वह अपने सोफे से उठ कर बड़ी तेज़ी से उसके पास आकर उसे सम्हाला। हालत तो उसकी भी ख़राब हो चुकी थी। किन्तु जवान खून था अभी इस लिए हैदर की इस डायनामाइट जैसी बात को हजम कर गया था।

"सब कुछ खत्म हो गया बेटा।" प्रतिमा अपने बेटे की बाहों में सिमटी एकदम से असहाय भाव से बोली___"अब कुछ भी शेष नहीं रहा। तेरी बहन रितू ने अपने महकमे का सहारा ले कर अपने बाप को एक और क्षति पहुॅचा दी। उसने अपने बाप के माथे पर एक और नाकामी की मुहर लगा दी। इस बात से ज़ाहिर होता है कि उसके दिल में अपने माॅ बाप के प्रति ज़रा सी भी जगह नहीं रह गई है।"

"मैं उस कुतिया को ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा माॅम।" शिवा के मुख से सहसा गुर्राहट निकली___"डैड को जेल भिजवा कर उसने ये अच्छा नहीं किया है। भला उसकी हमसे क्या दुश्मनी है माॅम, दुश्मनी तो विराज से है।"

"मैडम, ठाकुर साहब ने गुस्से में आकर अपनी छोटी बेटी नीलम को गोली भी मार दी है।" सहसा हैदर ने ये कह कर मानो धमाका सा किया____"नीलम की हालत बहुत ही गंभीर है। उसे वो लोग यकीनन हास्पिटल ले गए होंगे।"

"ये क्या कह रहे हो तुम??" प्रतिमा हैदर की ये बात सुन कर सकते में आ गई। चेहरा सफेद फक्क पड़ गया।
"हाॅ मैडम।" हैदर ने कहा___"गुस्से में पागल हुए ठाकुर साहब ने एसीपी का रिवील्वर निकाल कर नीलम पर फायर कर दिया था। गोली नीलम की पीठ पर लगी थी। जहाॅ से खूॅन बहे जा रहा था।"

"हे भगवान!।" प्रतिमा की ऑखें छलक पड़ीं___"ये कैसा दिन दिखा रहे हो हमे? एक बाप अपनी ही बेटियों के खून का प्यासा हो चुका है।"
"लेकिन हैदर।" प्रतिमा के रुदन पर ज़रा भी ध्यान दिये बग़ैर शिवा ने पूछा___"डैड ने नीलम पर गोली क्यों चलाई थी?"

हैदर ना शुरू से लेकर अंत तक की सारी राम कहानी संक्षेप में कह सुनाई। उसकी इस राम कहानी में वो सीन भी था जिसमें अजय सिंह ने अपनी ही बेटी नीलम से अश्लील बातें की थी। ये भी कि अंत में कैसे नीलम ने ठाकुर साहब को थप्पड़ मारा था जिसकी वजह से गुस्से में आकर अजय सिंह ने एसीपी का रिवाल्वर छीन कर नीलम पर गोली चलाई थी। सारी बातें सुनने के बाद शिवा तो बस हैरान ही था किन्तु प्रतिमा एकदम से मानो बुत बन गई थी। उसका चेहरा एकदम से तेज़हीन सा हो गया था।

"अब मेरे लिए क्या आदेश है छोटे ठाकर?" हैदर ने कहा।
"तुम जाओ हैदर।" शिवा ने गंभीरता से कहा___"गेस्ट हाउस में आराम करो। हम सोचते हैं कि अब इसके आगे हमें क्या करना है?"

शिवा के कहने पर हैदर वहाॅ से चला गया। उसके जाने के बाद ड्राइंगरूम में मरघट जैसा सन्नाटा छा गया। काफी देर तक माॅ बेटे के बीच यही आलम रहा। जैसे उनमें से किसी को कुछ सूझ ही न रहा हो कि अब क्या बात करें?

"आख़िर जिस चीज़ की नियति बन चुकी थी।" सहसा प्रतिमा ने कहीं खोये हुए से कहा___"उसका आग़ाज हो ही गया। इस लड़ाई में किसी न किसी को तो शहीद होना ही है। फिर चाहे वो नीलम ही क्यों न हो?"

"आपने बिलकुल सही कहा माॅम।" शिवा ने भी गंभीर भाव से कहा___"किसी न किसी के साथ तो ये होना ही है। मगर एक बात तो मैं भी कहूॅगा, और वो ये कि डैड ने नीलम पर गोली चला कर अच्छा नहीं किया। मैं जानता हूॅ कि आपको मेरी ये बात नागवार लग सकती है। मगर इसके बावजूद कहूॅगा मैं कि डैड को नीलम पर गोली नहीं चलाना चाहिए था। मैं मानता हूॅ कि मेरी दोनो बहनों ने हमसे बगावत करके ग़लत किया है। उन्हें सोचना चाहिए था कि माॅ बाप कैसे भी हों हैं तो अपने ही। वैसे ही डैड को भी सोचना चाहिए था माॅम। हम उन्हें उनके किये की सज़ा ज़रूर देते मगर इस तरह नहीं कि उनको जान से ही मार दें। ये सब उस विराज की वजह हे हुआ है, उसी ने मेरी दोनो बहनों को बहकाया है। उसी ने उन दोनो का ब्रेनवाश किया है, वरना उनके दिलो दिमाग़ में कम से कम ये सोच तो रहती ही कि माॅ बाप जैसे भी हों, वो अपने ही होते हैं।"

प्रतिमा शिवा की ये बातें सुन कर मन ही मन हैरान थी। शिवा का बदला हुआ ये रवैया उसे हजम नहीं हो रहा था। किन्तु उसे ये भी पता था कि शिवा अपने बाप की टूकाॅपी है। यानी सूरज कभी पश्चिम से उदय नहीं हो सकता।

"क्या बात है।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा___"आज अपनी बहनों से इतनी हमदर्दी? क्या ये सोनम से हुए इश्क़ का असर है बेटा? जिसने तेरी सोच को इस हद तक बदल दिया है?"
"मुझे खुद पता नहीं है माॅम।" शिवा ने नज़रें चुराते हुए कहा___"मैं सिर्फ इतना समझ रहा हूॅ कि डैड ने नीलम पर गोली चला कर अच्छा नहीं किया। अगर वही गोली वो विराज पर चला देते तो शायद मुझे उनसे कोई शिकायत न रहती।"

"ख़ैर छोंड़।" प्रतिमा ने इस मैटर को ज्यादा न बढ़ाने की गरज़ से कहा___"अब हमें ये सोचना है कि तेरे डैड को पुलिस से कैसे छुड़ाया जाए? उन पर नीलम को जान से मारने की कोशिश का भी केस लग सकता है, और संभव है कि उस एसीपी ने ये केस लगा भी दिया हो उन पर। अतः हमें अब किसी क़ाबिल वकील से मिलना पड़ेगा। ताकि वो उनको जेल से किसी तरह छुड़ा सके।"

"हाॅ ये सच कहा आपने।" शिवा ने कहा___"डैड को जेल से तो छुड़ाना ही पड़ेगा।"
"रुको मैं पता करती हूॅ।" प्रतिमा ने कहा___"मेरी जानकारी में एक क़ाबिल वकील है जो अजय को जेल से छुड़ा सकती है। मेरी एक काॅलेज फ्रैण्ड है। मैने और अनीता ब्यास ने एक साथ ही एलएलबी किया था। उसके बाद उसने वकालत को ही अपना पेशा बना लिया जबकि मैं अजय के साथ घर बसा कर सिर्फ एक हाउसवाइफ बन कर रह गई। हलाॅकि अजय ने मुझे इस बात के लिए कभी भी मना नहीं किया कि मैं वकालत न करूॅ। बल्कि हमने तो साथ में ही इसकी पढ़ाई की थी। अजय तो चाहते थे कि हम दोनो वकील बन जाएॅ। मगर मैने ही इंकार कर दिया था। किन्तु आज सोचती हूॅ कि काश मैं बन ही जाती तो आज अपने अजय को चुटकियों में जेल से छुड़ा लाती।"

"वकालत तो आप आज भी कर सकती हैं माॅम।" शिवा ने कहा___"आपके पास इस सबके राइट्स तो होंगे ही।"
"सब कुछ है बेटा।" प्रतिमा ने कहा___"मगर ये सब अब इतना आसान भी नहीं है। उसके लिए पहले इस सबकी बारीकियों को समझना पड़ता है। कई तरह के केसों का अध्ययन करना पड़ता है। मैं कभी कोर्ट के अंदर वकील का चोंगा पहन कर नहीं गई, इस लिए मुझे इसका तज़ुर्बा भी नहीं है। दूसरी बात अनुभव भी कोई चीज़ होती है। जो कि मुझे नहीं है। हर चीज़ का एक क्रम होता है। अगर आप समय के साथ ही साथ लाइन पर चल रहे हैं तब तो आप सीधी लाइन पर ही बिना किसी रुकावट के चलते रहेंगे पर अगर आपने लाइन को बहुत पहले ही छोंड़ दिया है तो फिर लम्बे समय बाद उसी लाइन पर चलना ज़रा मुश्किल सा हो जाता है। वो फिर तभी अपनी लय पर आएगा जब उसकी नियमित प्रैक्टिस हो। ख़ैर, छोंड़ इस बात को। मैं अनीता को फोन लगा कर उससे बात करती हूॅ। मेरे फ्रैण्ड सर्कल में एक वही है जो अब तक मेरे टच में में है। बाॅकियों का तो कहीं पता ही नहीं है।"

कहने के साथ ही प्रतिमा ने अपने मोबाइल को अनलाॅक करके उस पर अनीता ब्यास का नंबर ढूॅढ़ने लगी। जबकि शिवा ये कह कर सोफे से उठा कि वो कुछ देर में आता है अभी।
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केशव जी के जिस आदमी ने फोन पर उस जासूस के बारे में सूचित किया था उसका नाम निरंजन वर्मा था। रितू ने जब केशव जी से कहा कि वो अपने उस आदमी से कहे कि उसे पकड़ने की कोशिश करे और खुद भी वापस जाएॅ वहाॅ तो केशव ने वैसा ही किया था। उन्होंने निरंजन को फोन करके उससे पूछा था कि क्या वो अकेले उस जासूस को पकड़ सकता है तो निरंजन ने कहा कि वो इस बारे में कुछ कह नहीं सकता है। क्योंकि उसने सुना था कि कोई कोई जासूस लड़ने के मामले में भी काफी निपुण होते हैं। इस लिए बेहतर यही होगा कि वो उस पर सिर्फ नज़र रखे और फिर जब वो सब आ जाएॅगे तो उसे जल्द ही घेर लिया जाएगा। केशव जी को भी निरंजन की बात सही लगी। इस लिए वो फुल स्पीड में अपने आदमियों को लिए आ रहे थे।

इधर निरंजन बड़ी सफाई से हरीश राणे पर नज़र रखे हुए था। किन्तु उसे भी पता था कि ये जासूस यहाॅ पर ज्यादा देर तक रुकने वाला नहीं है। उसके पास काले रंग की एक पल्सर बाइक थी। इस वक्त वह बाइक के ही पास नीचे बैठा बाइक में कुछ कर रहा था। निरंजन को समझ नहीं आ रहा था कि वो बाइक के पास इस तरह बैठ कर क्या कर रहा है? निरंजन उससे बस कुछ ही दूरी पर एक पेड़ की ओट में छुप कर खड़ा था और उस पर नज़र रखे हुए था। उसके पास हथियार के रूप में कुछ भी नहीं था। जबकि उसे पूर्ण विश्वास था कि उस जासूस के पास रिवाल्वर ज़रूर होगा। यही वजह थी कि वो खुल कर उसके सामने नहीं जा रहा था।

निरंजन के चेहरे पर प्रतिपल बेचैनी बढ़ती जा रही थी। क्योंकि उसे पता था कि जासूस अगर यहाॅ से चला गया तो फिर उसे ढूॅढ़ पाना मुश्किल होगा। अतः वह बार बार देवी माॅ से प्रार्थना कर रहा था कि केशव जी सारे आदमियों को लेकर जल्दी आ जाएॅ। उसकी नज़र सामने ही थी। जहाॅ पल्सर बाइक के पास नीचे बैठा वो जासूस कुछ कर रहा था। जासूस का चेहरा उसके बगल से दिख रहा था। निरंजन के मन में कई बार ये ख़याल आया था कि वो चुपके से जाए और उस जासूस को दबोच ले मगर अगले ही पल वो उसके पास जाने का अपना ये ख़याल त्याग देता था। क्योंकि बार बार उसे उसके पास रिवाल्वर होने का बोध करा देता था। उसने आस पास देख भी लिया था। पास में कहीं भी उसे कोई डंडे जैसी वस्तु भी न नज़र आई थी जिसे लेकर वो उस जासूस के पास चला जाता।

अभी निरंजन उस जासूस को देख ही रहा था कि तभी वो जासूस उठ कर खड़ा हुआ और अपने दाहिने पैर को बाइक के आगे वाले पहिये पर रिम में रख कर उस पर ज़ोर से दबाव बनाया। ये देख कर निरंजन के मस्तिष्क में झनाका सा हुआ। एकाएक ही उसके दिमाग़ की बत्ती जल उठी। साला इतनी देर से वो समझ नहीं पा रहा था कि ये जासूस बाइक के पास बैठा कर क्या रहा था? अब उसे समझ आया था। दरअसल बाइक का अगला पहिया पंचर था अथवा उसमें हवा कम थी। पहिये पर निरंजन का ध्यान पहली बार गया था। उसने ग़ौर से देखा पहिये पर जहाॅ पर से हवा भरी जाती है वहाॅ पर कोई पतली सी तार या फिर यू कहें कि पतला सा पाइप लगा हुआ था। जिसका दूसरा सिरा इस वक्त उस जासूस के दाहिने हाॅथ में था।

निरंजन को समझ न आया कि अगर बाइक का अगला पहिया पंचर है या उसमे हवा कम है तो वो जासूस यहाॅ पर उसे ठीक कैसे कर लेगा और ये पतला सा पाइप क्यों लगा रखा है उसने पहिये की निब पर? तभी वो जासूस पुनः बैठ गया। इस बार निरंजन ने भी अपनी जगह बदली और फिर ध्यान से देखा उसने। पाइप का दूसरा सिरा उस जासूस ने अपने होठों पर दबाया और फिर निरंजन ने देखा कि जासूस के दोनो गाल फूल गए। ये देख कर निरंजन की हॅसी छूट ही गई होती अगर उसने जल्दी से अपने मुह को अपने हाथों से भींच न लिया होता तो। दरअसल वो जासूस पाइप लगा कर मुह से हवा भर रहा था पहिये पर। बस यही देख कर निरंजन को बड़ी ज़ोर की हॅसी आ गई थी। उसने सोचा कि इसे जासूस किसने बना दिया? भला मुह से भी कोई बाइक के पहिये पर हवा भरता है? ये तो दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य ही है।

निरंजन ने भी सोचा कि बेचारा यहाॅ पर बाइक में हवा भरवाए भी तो कैसे? किन्तु मुख से हवा तो भरने से रही। कहने का मतलब ये कि जासूस की इस क्रिया पर निरंजन उसे बेवकूफ ही समझ रहा था। मगर वो उस वक्त हैरान रह गया जब वो जासूस पुनः उठा और पहले की भाॅति अपना दाहिना पैर रिम में रख दबाव बनाया। उसके चेहरे से ज़ाहिर हुआ कि अब वो संतुष्ट है। उसने झुक कर तुरंत ही पाइप को पहिये के निब से निकाला। निरंजन ने देखा कि निब के पास लगे पाइप के उस छोर पर कोई चीज़ लगी हुई थी। ये देख कर निरंजन का दिमाग़ घूम गया। चकित होकर वह उस जासूस को देखे जा रहा था। अब उसे समझ आया कि वो जासूस यूॅ ही तो नहीं बन गया होगा। ज़रूर उसमें काबीलियत थी।

अभी निरंजन ये सब सोच ही रहा था कि तभी उसने देखा कि वो जासूस उस पाइप को लिए बाइक के बाएॅ साइड आया और फिर अपनी दाहिनी टाॅग उठा कर बाइक की सीट पर बैठ गया। ये देख कर निरंजन एकदम से हड़बड़ा गया। वो समझ गया कि अब ये जासूस यहाॅ से चला जाएगा। निरंजन को समझ न आया कि वो उसे कैसे यहाॅ से जाने से रोंके? वो खुद निहत्था था वरना वो कोई जोखिम उठाने का सोचता भी। उसे पूरा यकीन था कि उस जासूस के पास पिस्तौल होगी। यही वजह थी कि वो उसके पास खुल कर जा नहीं रहा था। किन्तु अब हालात बदल गए थे। क्योंकि निरंजन की ऑखों के सामने ही वो जासूस बाइक पर बैठ चुका था और अब ये भी तय था कि वो बाइक को स्टार्ट कर यहाॅ से चला ही जाएगा।

निरंजन ने देखा कि बाइक पर बैठा जासूस उस पतले से पाइप को गोल गोल छल्ली की शक्ल देकर समेट रहा था। उसकी पीठ निरंजन की तरफ ही थी। पाइप का दूसरा सिरा जासूस की दाहिनी जाॅघ से थोड़ा ही नीचे झूल रहा था और प्रतिपल ऊपर की तरफ उठता भी जा रहा था। ये देख कर निरंजन के दिमाग़ की बत्ती जली। उसके चेहरे पर एकाएक ही कुछ सोच कर चमक आ गई। वो फुर्ती से अपनी जगह से हिला और फिर बड़ी सावधानी व सतर्कता से लम्बे लम्बे क़दम बढ़ाते हुए जासूस के पीछे पहुॅच गया।

हरीश राणे को सहसा अपने पीछे किसी की मौजूदगी का एहसास हुआ। उसने इस एहसास के तहत ही जल्दी से पीछे मुड़ कर देखना चाहा मगर अगले ही पल जैसे बिजली सी कौंधी। निरंजन ने डर व भय की वजह से बड़ी ही फुर्ती का प्रदर्शन किया था। उसने जासूस के मुड़ने से पहले ही झुक कर जासूस के नीचे जाॅघ के पास झूलते उस पाइप को पकड़ा और फिर तेज़ी से खड़े होकर उसी छोर से दूसरा हाॅथ सरका कर उसने जासूस के सिर से अपनी एक कलाई घुमा कर बड़ी फुर्ती से उस पाइप को जासूस की गर्दन पर कस दिया।
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11-24-2019, 01:15 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
[size=large]हरीश राणे को ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि उसके साथ पलक झपकते ही ऐसा कुछ हो सकता है। वह एकदम से हकबका कर रह गया था। हलाॅकि उसने खुद को बड़ी तेज़ी से सम्हाला था मगर तब तक उसके गले में निरंजन ने उस पाइप को किसी फाॅसी के फंदे की तरह कस दिया था। निरंजन ये सोच कर जी जान लगाए हुए था कि अगर उसने ज़रा सी भी ढील दी तो ये जासूस उसे जान से मार देगा। निरंजन के दिमाग़ में बस एक यही बात थी, बाॅकी उसे किसी बात का कोई होश ही नहीं था। उसे इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं रह गया था कि उसके द्वारा इतनी ताकत से गले में पाइप को कसने से वो जासूस कुछ ही पलों में मर भी सकता है।

उधर राणे जल बिन मछली की तरह छटपटाए जा रहा था। वो अपने दोनो हाथों से अपने गले में फॅसे पाइप को पकड़ने की कोशिश कर रहा था मगर पाइप में निरंजन की पूरी ताकत लगी हुई थी। जिसकी वजह से राणे उसे हिला भी नहीं पा रहा था। देखते ही देखते राणे का बुरा हाल हो गया। उसका गोरा चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया। चेहरे पर पसीना और तड़प साफ पता चल रही थी। किसी किसी पल वह खाॅसने भी लगता था। उसकी ऑखों की पुतलियाॅ जैसे बाहर कूद पड़ने को आतुर हो उठी थीं।

राणे की हालत प्रतिपल बिगड़ती जा रही थी। बाइक पर बैठा वह बुरी तरह खुद को झटके भी दे रहा था मगर मजाल है कि निरंजन की पकड़ में ज़रा सा भी ढीलापन आया हो। कहते हैं कि मौत से बचने के लिए इंसान अंत तक हर तरह से प्रयास करता है फिर भले ही उसके प्रयास विफल ही होते रहें। निरंजन के सिर पर जुनून सवार था और वो किसी यमराज की तरह राणे के सिर पर आ खड़ा हुआ था। राणे को एहसास हो गया कि अब वो मरने ही वाला है। उसे अब साॅस लेना भी मुश्किल पड़ रहा था। बुरी तरह छटपटाते हुए राणे ने एकाएक अपने एक हाॅथ को गले में फॅसे पाइप से हटा कर उसी हाॅथ की कुहनी का वार बड़ी तेज़ी से पीछे निरंजन के पेट के हल्का ऊपरी भाग पर किया। उसके इस वार से निरंजन के हलक से पीड़ा भरी कराह निकल गई और उसकी पकड़ तथा उसकी ताकत कमज़ोर पड़ गई। हलाॅकि उसने जल्दी से उस दर्द को बर्दास्त करके पुनः पाइप को कसना चाहा मगर तक मानो देर हो गई। क्योंकि जैसे ही निरंजन ने पुनः ताकत लगाई वैसे ही राणे ने कुहनी का वार जल्दी जल्दी कई बार निरंजन के पेट में कर दिया था। नतीजा ये हुआ कि निरंजन की पकड़ काफी ज्यादा ढीली व कमज़ोर पड़ गई। वह बुरी तरह दर्द व पीड़ा से बिलबिला उठा था।

निरंजन के कमज़ोर पड़ते ही हरीश राणे ने बड़ी तेज़ी से अपने गले से उस पाइप को पकड़ कर खींचा और फिर उसे ऊपर करते हुए सिर से निकाल दिया। हालत तो उसकी अब भी बहुत ख़राब थी। बुरी तरह खाॅस रहा था तथा बुरी तरह गहरी गहरी साॅसें भी ले रहा था। गोरा चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया था। चेहरे पर ढेर सारा पसीना उभर आया था। गले से पाइप को निकालते ही वह बाइक से खुद को बाएॅ साइड गिरा लिया था तथा साथ ही कई पलटियाॅ भी खा लिया था। मगर तब तक उसकी पसली में निरंजन के बूट की ज़बरदस्त ठोकर लग चुकी थी। निरंजन जानता था कि अगर वह अब भी उसे सम्हलने का मौका दिया तो वो उसके लिए काल बन सकता है। अतः वह मौत के डर से उस पर वार पे वार किये जा रहा था।

हरीश राणे अभी अभी मौत से बच कर निकला था। इस लिए उसे खुद पर नियंत्रण पाने के लिए कुछ समय चाहिए था मगर निरंजन था कि उस पर प्रहार किये जा रहा था। अचानक ही निरंजन ने देखा कि जासूस ने अपने हाॅथ को पीछे ले जाकर रिवाल्वर निकाल रहा है। ये देख कर निरंजन के समूचे जिस्म में मौत की सिहरन दौड़ गई। जैसे ही राणे ने रिवाल्वर निकाल कर अपने हाॅथ को निरंजन की तरफ उठाना चाहा वैसे ही मौत के डर से निरंजन ने उसकी उस कलाई पर अपनी टाॅग चला दी। नतीजा ये हुआ कि राणे के हाॅथ से रिवाल्वर छूट कर दूर जा गिरा तथा कलाई पर तेज़ ठोकर लगने से वो दर्द से कराह उठा।

निरंजन ने देखा कि रिवाल्वर उसकी पहुॅच में ही है इस लिए वो जल्दी से रिवाल्वर की तरफ लपका मगर तभी वह मुह के बल ज़मीन पर गिरा। गिरते ही उसके मुख से चीख़ निकल गई। राणे ने पलट कर उसका पैर पकड़ कर खींच लिया था जिससे वो अनबैलेंस होकर मुह के बल गिरा था। रिवाल्वर उसकी पहुॅच से लगभग डेढ़ दो हाॅथ ही दूर था। इधर निरंजन का पैर पकड़ कर खींचते ही राणे उसके ऊपर एकदम से आने की कोशिश की तो निरंजन घबरा कर पलट गया। नतीजतन इस बार राणे मुह के बल गिरा। किन्तु उसके एक हाॅथ में निरंजन का पैर अभी भी था।

निरंजन ने अपने पैर को उससे छुड़ाने के लिए ज़ोर से झटका दिया मगर उसका पैर तो न छूटा किन्तु झटकने से उसका पैर राणे की छाती से टकराया। निरंजन आवेश और घबराहट में अपने पैर को झटका देता ही रहा, जिसका नतीजा ये हुए कि बार बार छाती पर उसका पैर ज़ोर से लगने से आख़िर राणे को उसका पैर छोंड़ना ही पड़ा। इधर निरंजन जो कि दोनो हाॅथ पीछे की तरफ ज़मीन पर टिका कर बैठ चुका था वो अपने पाॅव के आज़ाद होते ही तेज़ी से रिवाल्वर की तरफ पलट कर लगभग उस पर कूद सा गया। उसके हाॅथ में रिवाल्वर आ चुका था। अभी वह रिवाल्वर के साथ पलटा ही था कि तभी राणे उसके ऊपर जंप मार कर आ गया।

राणे ने तुरंत ही निरंजन के रिवाल्वर वाले हाॅथ को पकड़ने के लिए अपना एक हाॅथ बढ़या तो निरंजन ने अपने उस हाॅथ को ऊपर अपने सिर के पीछे साइड कर लिया। राणे जैसे ही उसे पकड़ने के लिए उस तरफ झुका वैसे ही निरंजन ने अपना दूसरा हाॅथ छुड़ा कर ज़ोर से एक मुक्का राणे की कनपटी में मारा जिससे राणे उसके ऊपर से दूसरी तरफ पसर गया। इधर राणे के गिरते ही निरंजन लेटे लेटे ही एक साथ तीन चार पलटियाॅ खाता चला गया। जब तक राणे उठ कर उसके पास पहुॅचता तब तक निरंजन उठ कर बैठ चुका था, साथ ही रिवाल्वर वाला हाॅथ भी ऊपर उठा कर उस पर तान चुका था।

"रुक जा मादरजाद।" निरंजन आवेश में जल्दी से चिल्लाया था___"वरना इस रिवाल्वर की सारी गोलियाॅ तेरे सीने में उतार दूॅगा और ये मैं यूॅ ही नहीं कह रहा हूॅ बल्कि सचमुच ऐसा कर भी दूॅगा। क्योंकि तुझे जान से मार देने पर भी मुझे कुछ नहीं वाला। बल्कि इनाम ही मिलेगा मुझे।"

हरीश राणे निरंजन का ये डायलाॅग तथा उसके खतरनाॅक लहजे को देख कर एकदम से अपनी जगह पर गया। उसके चेहरे पर पहली बार डर व भय के चिन्ह नज़र आए। किन्तु उसे ये समझ नहीं आया कि ये आदमी है कौन और उसके पीछे उसकी मौत बन कर कहाॅ से आ गया था? क्या ये विराज व रितू का आदमी है जो उसके पीछे ही लगा हुआ था?

"कौन हो तुम?" हरीश राणे ने सतर्क भाव से पूछा___"और इस तरह मुझ पर जानलेवा हमला करने का क्या मतलब है तुम्हारा?"
"जिस तरह तू मंत्री का कुत्ता बन कर हमारे बाॅस के अज़ीज़ लोगों के पीछे लगा हुआ था।" निरंजन ने लहजे को कठोर बनाते हुए कहा___"उसी तरह मैं भी तेरे पीछे लगा हुआ था। ख़ैर, अब तू पकड़ में आ ही चुका है तो ये भी समझ गया होगा कि अब तेरा क्या हस्र होने वाला है?"

"ओह तो तुम्हें ये ग़लतफहमी है।" हरीश राणे ने बड़े अजीब भाव से कहा____"कि तुमने मुझे पकड़ लिया है?"
"ज्यादा शेखी मत झाड़।" निरंजन उसकी बात पर गड़बड़ा सा गया, फिर बोला___"वरना बता ही चुका हूॅ कि तुझे जान से मार देने पर मुझे कुछ नहीं होगा बल्कि इनाम ही मिलेगा।"

"अच्छा।" हरीश राणे सहसा मुस्कुराया___"तो फिर देर किस बात की है प्यारे? तुम्हारे निशाने पर हूॅ, खत्म कर दो मुझे और जल्दी से अपना इनाम भी हाॅसिल कर लो।"
"लगता है।" निरंजन अंदर ही अंदर हैरान___"कि तुझे मरने की बहुत जल्दी है।"

"क्या करें दोस्त?" राणे ने कहा___"अब जब तुमने कह ही दिया है ऐसा तो फिर देर किस बात की करना? मुझे लगता है कि तुम्हें भी अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। अतः मेरी सलाह मानो और जल्दी से मुझे खत्म कर दो।"

निरंजन उसकी इस बात पर समझ न सका कि ये जासूस आख़िर है किस किस्म का ब्यक्ति? मौत सामने खड़ी है और ये ऐसी बातें कर रहा है। इसे ज़रा भी मौत का ख़ौफ नहीं है। जबकि निरंजन तो बस उसे डरा और धमका ही रहा था। ताकि वह कोई बेजा हरकत करने की कोशिश न करे। उसे पता था थोड़ी ही देर में उसके बाॅस यानी कि केशव शर्मा अपने आदमियों सहित यहाॅ पहुॅच ही जाएॅगे। अतः तब तक उसे इस जासूस को रोंके रखना था। मगर उसकी इन ऊल जुलूल बातों ने उसका सिर चकरा कर रख दिया था।

"क्या सोचने लगे प्यारे?" हरीश राणे उसे चुप देख कर कह उठा___"अरे भई चलाओ गोली मुझ पर और खत्म करो मुझे। तुम तो यार लगता है बस डींगे ही मारना जानते हो। जबकि मुझसे अब इन्तज़ार नहीं हो रहा।"
"ओये ज्यादा बकवास न कर समझा।" निरंजन ने उत्तेजित भाव से कहा___"वरना सच में तेरा राम नाम सत्य कर दूॅगा मैं।"

हरीश राणे कोई मामूली इंसान नहीं था। घुटा हुआ जासूस था, उसे समझते देर न लगी कि निरंजन उसे सिर्फ धमका रहा है। अगर उसे जान से मारना ही होता तो इतनी बातें न करता बल्कि कब का उसे यमलोक पहुॅचा दिया होता। अतः उसने पूरी सतर्कता से निरंजन की हर गतिविधी को नोट करते हुए बेख़ौफ निरंजन की तरफ बढ़ने लगा। ये देख कर निरंजन अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा गया। साथ ही उसके दिमाग़ ने काम करना भी बंद कर दिया। उसे समझ न आया कि ये साला अब उसकी तरफ क्यों बढ़ रहा है?

"ये...ये तू क्या कर रहा है मादरजाद?" बुरी तरह बौखलाते हुए निरंजन हकलाते हुए बोल उठा____"मैं कहता हूॅ रुक जा वरना सच में गोली मार दूॅगा तुझे।"
"मैं भी तो यही चाहता हूॅ प्यारे।" हरीश राणे ने मुस्कुराते हुए कहा___"मगर तुम हो कि मुझे जान से मारते ही नहीं। इस लिए अब मैं खुद ही तुमसे रिवाल्वर लेकर खुद को गोली मार लूॅगा। मुझे समझ आ गया है कि तुमसे रिवाल्वर चलाया नहीं जाएगा।"

"तू...तू पागल है क्या रे?" निरंजन हैरान परेशान सा बोल पड़ा___"देख मेरी तरफ मत आ। वरना अगर मेरा भेजा गरम हो गया न तो तू सच में मेरे हाॅथों मारा जाएगा।"
"नहीं प्यारे।" हरीश राणे बोला___"मुझे पता चल गया है कि अब तुम मुझे गोली नहीं मार सकते। क्योंकि तुम्हें मुझसे अचानक ही बेइंतहां मोहब्बत हो गई है। हाय, ये मोहब्बत भी न बहुत बुरी चीज़ होती है कम्बख़्त।"

"साले।" निरंजन उसकी बातों से बुरी तरह भन्ना गया, बोला___"तुझे एक बार में बात समझ में नहीं आती है क्या? अब अगर एक क़दम भी आगे बढ़ाया तूने तो देख लेना यहीं पर ढेर हुआ नज़र आएगा।"

"ऐसा ग़ज़ब मत करना प्यारे।" राणे चहका___"ऐसा लगता है कि तुम्हारी तरह मुझे भी तुमसे मोहब्बत हो रही है। ओह नहीं नहीं....मुझे किसी से भी मोहब्बत नहीं हो सकती। खास कर उससे तो हर्गिज़ भी नहीं जो खुद ही मेरी तरह औज़ार लिए फिरता हो।"

निरंजन बोला तो कुछ नहीं किन्तु उसे एहसास हुआ कि फालतू की बकवास करते हुए ये जासूस उसके काफी पास आ गया है। अभी निरंजन ये सोच ही रहा था कि अचानक ही मानो बिजली सी कौंधी। हरीश राणे ने हैरतअंगेज़ कारनामा किया था। पलक झपकते ही उसका जिस्म हवा में लहराया और इससे पहले की निरंजन कुछ समझ पाता राणे उसको लिए ज़मीन पर कई पलटियाॅ खाता चला गया। निरंजन के हाॅथ से रिवाल्वर जाने कब छूट गया था। अपने ऊपर हुए इस अप्रत्याशित हमले से निरंजन बुरी तरह बौखला गया था। जब तक उसे कुछ होश आया तब तक देर हो चुकी थी।

पलटियाॅ खाने के बाद राणे सबसे पहले उठा और फिर उसने निरंजन को कुछ भी करने का अवसर नहीं दिया। लात घूॅसों की बरसात सी कर दी उसने। निरंजन की चीख़ें फिज़ा में गूॅजती रही।

"हमने कहा था न प्यारे।" हरीश राणे निरंजन की छाती पर बैठा हुआ बोला___"कि तुमसे रिवाल्वर नहीं चलाया जाएगा। हमने तो ये भी कहा था कि हमें खत्म कर दो मगर नहीं तुम्हें तो हमसे मोहब्बत हो गई थी न। अब भुगतो मेरी जान। पीछे से वार करने वाला कायर बुज़दिल व हिंजड़ा होता है और ये सब बातें तुम में हैं, ये तुमने पहले ही साबित कर दिया था।"

अभी राणे ये सब निरंजन को बोल ही रहा था कि तभी वातावरण में वाहनों के आने का शोर गूॅजा। हरीश राणे ये महसूस करते ही बुरी तरह उछल पड़ा। उसने पलट कर देखा ही था कि निरंजन ने तेज़ी से एक मुक्का उसकी गर्दन के पास जड़ दिया। जिससे एक चीख़ के साथ राणे पलट कर नीचे गिर गया। उसके गिरते ही निरंजन उठा और सबसे पहले उसने राणे की पसली में बूट की ज़ोरदार ठोकर मारी। ठोकर लगते ही राणे दर्द से बिलबिला उठा।

इधर देखते ही देखते चारो तरफ से केशव जी ने तथा उनके आदमियों ने दोनो को घेर लिया। कुछ लोग दौड़ते हुए आए और हरीश राणे को पकड़ लिया। हरीश राणे समझ गया कि अब कुछ नहीं हो सकता। अतः उसने भी समझदारी का परिचय दिया और बिना कोई हील हुज्जत किये उनके द्वारा पकड़ कर ले जाने से चला गया। थोड़ी ही देर में वह केशव जी के आदमियों के बीच जीप में बैठा था। उसके दोनो हाॅथ पीछे की तरफ करके रस्सी से बाॅध दिये गए थे। उसका जो रिवाल्वर लड़ते वक्त निरंजन के हाॅथ से छूट कर गिर गया था उसे निरंजन ने फिर से उठा कर अपने पास रख लिया था। हरीश राणे को लिए वो काफिला वापस रेवती के लिए चल पड़ा था। केशव जी राणे को पकड़ कर बेहद खुश थे। उन्होंने निरंजन को इसके लिए शाबाशी दी तथा ये भी कहा कि उसने वास्तव में बहुत बड़ा काम किया है इस लिए उसे इसके लिए इनाम ज़रूर मिलेगा। निरंजन इनाम की बात से बेहद खुश हो गया था। इतना ही नहीं जासूस को पकड़वाने से उसका सिर गर्व से ऊॅचा हो गया था।
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उधर हास्पिटल में।
हम सब बुझे बुझे से बैठे थे। नीलम के लिए हर कोई चिंतित व परेशान था। हम में से किसी को भी ये उम्मीद नहीं थी कि अजय सिंह ऐसा कुछ कर सकता है। वरना ऐसा होता ही नहीं। ख़ैर, लम्बे इन्तज़ार के बाद आख़िर ओटी का दरवाजा खुला और डाॅक्टर बाहर आया। हम सब उसे देख कर एक साथ एक ही झटके से उस लम्बी चेयर से उठ कर खड़े हो गए थे। फिर लगभग एक साथ ही डाॅक्टर की तरफ लपके थे।

"डाॅक्टर साहब।" मैने उतावलेपन से किन्तु बेहद ही अधीर भाव से पूछा___"सब कुछ ठीक तो है न? नीलम ठीक तो है न?"
"डोन्ट वरी यंग मैन।" डाॅक्टर ने कहा___"वो अब ख़तरे से बाहर हैं। शुकर था कि बुलेट उनकी राइट साइड की पीठ पर थोड़ा निचले हिस्से पर लगी थी। अगर लेफ्ट साइड थोड़ा ऊपर लगती तो यकीनन वो गोली उनके दिल को भेद सकती थी। हमने बुलेट निकाल दिया है। अब वो ठीक हैं। थोड़ी देर बाद उन्हें दूसरे कमरे में शिफ्ट कर दिया जाएगा तो आप सब उनसे मिल सकेंगे।"

"ओह थैंक्यू डाॅक्टर।" आदित्य बोल पड़ा___"थैंक्यू सो मच। आपने बहुत बड़े संकट से बचा लिया।"
"थैक्यू तो आप लोगों का भी करना चाहिए।" डाॅक्टर ने कहा___"जो आप वक्त रहते उन्हें यहाॅ लाने में कामयाब हो गए। वरना सचमुच कुछ भी हो सकता था। मुझे फोन पर एसीपी साहब ने इस बारे में बता दिया था और कहा भी था कि जैसे ही आप लोग यहाॅ आए वैसे ही हम उनका तुरंत इलाज़ शुरू कर दें।"

थोड़ी देर डाॅक्टर से और बातचीत हुई उसके बाद वो चला गया। हम सब अब खुश थे कि नीलम अब ठीक है। थोड़ी ही देर में एक नर्स आई उसने बताया कि हम नीलम से मिल सकते हैं। अतः उसके कहने के साथ ही हम सब लगभग दौड़ते हुए नर्स के पीछे पीछे गए और उस कमरे में दाखिल हो गए जिसमें नीलम को शिफ्ट किया गया था।

कमरे में पहुॅचते ही हमने देखा कि हास्पिटल वाले बेड पर नीलम करवॅट के बल लेटी हुई थी। उसका चेहरा दरवाजे की तरफ ही था किन्तु ऑखें बंद थी। हम लोगों के आने की आहट पाते ही उसने अपनी ऑखें खोल दी। जैसे ही उसने हमे देखा उसके चेहरे पर एक साथ कई तरह के भाव आए और फिर सहसा उसके होठों पर फीकी सी मुस्कान फैल गई।

रितू दीदी व सोनम दीदी एक साथ ही उसकी तरफ बढ़ीं और उसके पास खड़ी हो गई। रितू दीदी ने नम ऑखों से उसके माथे से होते हुए सिर पर हाॅथ फेरा और फिर झुक कर उसके माॅथे को चूम लिया। उनके मुख से कोई लफ्ज़ नहीं निकला। कदाचित कुछ कहने की हिम्मत ही न हुई थी उनमें। किन्तु इस क्रिया से ही उन्होंने जता दिया कि उसके ठीक होने पर उन्हें कितनी खुशी हुई है। सोनम दीदी भी नम ऑखों से नीलम को देख रही थी।

"भगवान का लाख लाख शुकर है नील।" सोनम दीदी उसे प्यार से नील कहा करती हैं, बोलीं____"उसने तुझे कुछ नहीं होने दिया वरना जब तुझे गोली लगी थी न तो जैसे हम सबके जिस्मों से प्राण ही निकल गए थे।"

"ये ज़िंदगी उसी गंदे इंसान की दी हुई थी दीदी।" नीलम ने करुण भाव से कहा___"जिसे उसने गोली मार कर अपनी तरफ से अब खत्म कर दिया है। अब ये मेरा दूसरा जन्म है जिसमें अब उसका कोई हक़ नहीं है। बल्कि आप लोगों का है।" कहने के साथ ही नीलम ने रितू दीदी की तरफ देखा फिर बोली___"मुझे आप पर नाज़ है दीदी कि आपने राज का साथ दिया और सच्चाई का साथ दिया। आज आपकी ही वजह से हम सब उस शैतान से बच कर यहाॅ आ गए हैं।"

"साथ तो हमेशा उसी का देना चाहिए नीलम।" रितू दीदी ने कहा___"जिसका साथ देने से हमारे ज़मीर तथा हमारी आत्मा को तक़लीफ न हो बल्कि उन्हें तृप्ति का एहसास हो। माॅ बाप हमेशा वंदनीय होते हैं और वो मेरे लिए भी हमेशा रहेंगे किन्तु वो माॅ बाप जिनकी अच्छी छवि में मन में है ना कि वो जो अपनी ही बहू बेटियों के बारे में ग़लत सोचते हैं। थोड़ा बहुत जो सम्मान बाॅकी था उनके लिए वो आज की इन घटनाओं से पूरी तरह खत्म हो चुका है। अब इस दिल में उनके लिए सिर्फ और सिर्फ नफ़रत व घृणा है। आज अगर तुझे कुछ हो जाता न तो क़सम ऊपर वाले की मैं उस इंसान का वो हाल करती कि दुबारा इस धरती पर पैदा होने से इंकार कर देता।"

"जाने दीजिए दीदी।" नीलम ने कहने के साथ ही मेरी तरफ देखा, फिर मुस्कुरा कर बोली____"एक तरह से ये अच्छा ही हुआ। इसी बहाने सही मगर मुझे आज अपने इस भाई का अपने लिए इतना सारा प्यार व तड़प तो देखने को मिल गई। मैं महसूस कर रही थी उस वक्त जब मैं इसकी बाहों में असहाय सी पड़ी थी। मेरे कानों में इसकी हर बात सुनाई दे रही थी। मैं सोच रही थी कि एक मेरा वो भाई था जिसने कभी ये नहीं जताया कि वो अपनी बहनों से कितना प्यार करता है और एक ये भाई है जिसे हमने बचपन से जलील करके दुख दिया आज वो मुझे उस हालत में देख कर ऐसे तड़प रहा था जैसे गोली मुझे नहीं बल्कि इसको लगी थी। ये ख़याल बार बार मन में आता है कि इतना प्यार करने वाले भाई से हमने अब तक इतनी घृणा कैसे की थी?"

"ओये बंदरिया।" मैं एकदम से उसके पास आकर बोल पड़ा____"ये क्या बकवास किये जा रही है तू? तुझसे मैं कोई प्यार, व्यार नहीं करता समझी। उस वक्त तो मैं वो सब नाटक कर रहा था।"
"चल ठीक है भाई।" नीलम ने मुस्कुरा कर कहा___"मान लिया कि वो सब तेरा नाटक था मगर सच कहूॅ तो मुझे वो तेरा नाटक भी बहुत भाया राज। मैं चाहती हूॅ कि तू जीवन भर मेरे साथ ऐसा ही नाटक करता रहे।"

"अब तुम दोनो यहीं पर न शुरू हो जाना।" सहसा सोनम दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"जाओ जाकर पता करो डाॅक्टर से कि हम इसे यहाॅ से कब तक ले जा सकते हैं?"
"अरे इसकी क्या ज़रूरत है दीदी?" मैने मुस्कुरा कर कहा___"मैं तो कहता हूॅ कि इसे यहीं पर पड़ी रहने देना चाहिए और हम लोगों को अब घर चलना चाहिए।"

"तू न अब मुझसे पिटेगा सच में।" सोनम दीदी ने ऑखें दिखाते हुए कहा___"अब जा जल्दी यहाॅ से।"
"जो हुकुम आपका।" मैने अदब से सिर झुका कर कहा और फिर कमरे से बाहर चला आया। मेरे पीछे पीछे आदित्य भी मुस्कुराता हुआ चला आया।

"मेरे भाई को इस तरह भगा कर आपने अच्छा नहीं किया दीदी।" सहसा नीलम ने कहा___"जब वो मुझे इस तरह चिढ़ाता है तो मुझे भी बड़ा अच्छा लगता है। मैं भी उसके जैसा ही बर्ताव करने लगती हूॅ। मैं चाहती हूॅ कि जिन चीज़ों के लिए वो बचपन से तरसा था वो उन सभी चीज़ों को आज जी भर के जिए। हमारी वजह से अब तक जितना उसका दिल दुखा है अब वो हमारे साथ ऐसी ही नोंक झोंक करके अपने उस दिल को खुश रखे।"

"मुझे पता है नील।" सोनम दीदी ने कहा___"मुझे भी अच्छा लगता है जब वो तुझे इस तरह बंदरिया कह कर चिढ़ाने लगता है। किन्तु मैं उसे ये सब कह कर इस लिए रोंक देती हूॅ कि मुझे भी बड़े होने का इस तरह से फायदा उठाने में मज़ा आता है। मैं ये देख कर खुश हो जाती हूॅ कि कैसे वो अपने से बड़ों की बात सहजता से मान जाता है। अब रितू से ही पूछ ले, ये तो उसके साथ ही रहती है। संभव है कि ये भी मेरी तरह अपने बड़े होने का फायदा उठाती हो। क्यों रितू सच कहा न मैने?"

"सबकी सोच अलग अलग होती है सोनम।" रितू दीदी ने कहा___"तुम दोनो को ऐसा करके खुशी मिलती है जबकि मेरा कुछ और ही हिसाब है। तुम तो जानती ही हो कि मेरा स्वभाव कैसा है?"

"हाॅ जानती हूॅ।" सोनम दीदी ने कहा___"कि तेरा स्वभाव हिटलर वाला है। मगर कभी खुद को बदल कर भी देख। संभव है कि कुछ नया नज़र आये।"

सोनम दीदी की इस बात पर रितू दीदी मुस्कुराई और कुछ पल के लिए कहीं खो सी गईं फिर जैसे उन्होंने तुरंत ही खुद को सम्हाला और ये कह कर बाहर की तरफ चली गईं कि उसे कुछ ज़रूरी फोन काल करना है। रितू दीदी के जाने के बाद सोनम दीदी ने वापस नीलम की तरफ देखा।

"तो आपको भी राज के साथ ऐसा करने में मज़ा आता है?" नीलम ने मुस्कुराते हुए कहा।
"अरे नहीं रे।" सोनम दीदी ने अजीब भाव से कहा___"ऐसी कोई बात नहीं है। मैं तो ऐसे ही कह रही थी। ख़ैर छोंड़, अब तू ठीक है न? तुझे पीठ पर पेन तो नहीं हो रहा न अभी?"

"नहीं दीदी।" नीलम ने कहा___"अब अच्छा लग रहा है। बस सीधा लेटने में प्राब्लेम हो रही है।"
"वो तो होगी ही।" सोनम दीदी ने कहा__"अभी नया नया ज़ख्म है। इस लिए तुझे सीधा लेटने में कुछ दिन प्राब्लेम होगी। तुझे भी इस बात का ख़याल रखना होगा और हाॅ राज के साथ ज्यादा उछल कूद मत करने लगना। वरना तेरा ये ज़ख्म फिर से ताज़ा हो जाएगा।"

"ऐसा तो तभी संभव है दीदी।" नीलम ने मुस्कुराते हुए कहा___"जब वो मेरे सामने ही न आए। क्योंकि जैसे ही वो मेरे सामने आएगा। मैं फिर उसे छेंड़ूॅगी और फिर क्या होगा ये तो आप जानती ही हैं।"

"तू नहीं सुधरने वाली।" सोनम दीदी ने हैरानी से देखते हुए कहा___"अरे पागल कुछ दिन तो सबर कर ले।"
"हाय दीदी! कुछ दिन राज से झगड़ा किये बिना कैसे रह पाऊॅगी मैं?" नीलम ने आह सी भरते हुए कहा___"पता नहीं क्यों पर उससे झगड़ा करने का हर पल दिल करता है मेरा। मैं अकेले में सोचा करती हूॅ कि हर वक्त राज को छेंड़ना क्या अच्छी बात है? मगर ये सब सोचने के बावजूद ऐसा हो जाता है। आप ही बताइये मैं क्या करूॅ दीदी?"

सोनम दीदी नीलम की बात सुन कर बस मुस्कुरा कर रह गई। उसके चेहरे पर कई तरह के भाव आए और चले गए। जबकि उसकी मनोदशा से अंजान नीलम ने इस बार ज़रा गंभीरता से कहा___"एक बात कहूॅ दीदी??"

"हम्म कहो।" सोनम दीदी ने धीरे से कहा।
"काश! राज मेरा भाई न होता।" नीलम ने धड़कते हुए दिल के साथ कहा।
"ये...ये क्या कह रही हो तुम??" सोनम दीदी उसकी इस बात पर बुरी तरह चौंकी। ऑखों में हैरत के चिन्ह लिए वो बोलीं___"इसके पहले तो कह रही थी कि राज जैसा भाई पा कर तू बहुत खुश है। फिर अब ऐसा क्यों कह रही है?"

"हर लड़की सोचती है कि उसे ऐसा जीवन साथी मिले जो उससे बहुत ही ज्यादा प्यार करे।" नीलम ने कहीं खोये हुए से कहा___"उसकी केयर करे तथा उसे एक पल के लिए भी खुद से दूर न करे। उसे कभी किसी बात पर दुखी न होने दे। ये सारी खूबियाॅ राज में हैं दीदी। मुझे पता है कि वो अपनी बहनों पर अपनी जान छिड़कता है। मगर उसे देख कर ये ख़याल भी मन में आता है कि काश राज के जैसा ही हमें जीवन साथी मिले। मगर आज के समय में ये संभव नहीं है और अगर मान भी लें कि ऐसे इंसान इस दुनियाॅ में मिल भी सकते हैं तो क्या उनमें से कोई हमारा जीवन साथी बनेगा?"

"तो तू कहना क्या चाहती है?" सोनम दीदी के चेहरे पर सशंक भाव उभरे।
"आपको मेरी बातें यकीनन बुरी अथवा ग़लत लगेंगी दीदी।" नीलम ने उसी गंभीरता से कहा___"मगर ये सच है कि मेरे मन में कभी कभी ये ख़याल आता है कि काश राज मेरा भाई न होता तो मैं उसे ही अपना जीवन साथी बना लेती। राज को देखते ही उस पर निसार हो जाने का दिल करता है दीदी। उसे देख कर मैं भूल जाती हूॅ कि वो मेरा भाई है, और फिर जब ख़याल आता है कि वो मेरा भाई है तो जाने क्यों इस बात से दिल में दर्द होने लगता है? अंदर से एक टीस उभरती है और फिर समूचा जिस्म काॅप कर रह जाता है।"

"तू न कुछ भी बोलती रहती है।" सोनम दीदी ने बुरा सा मुह बनाया। ये अलग बात है कि नीलम की इन बातों से उसके अंदर एक अजीब से एहसास की झुरझरी सी दौड़ गई थी, बोली___"चल अब ज्यादा इस बारे में मत सोच। राज आता ही होगा अभी। तुझे यहाॅ से लेकर भी तो चलना है न।"

"आप मेरी बातों को नज़रअंदाज़ कर रही हैं न?" नीलम ने सोनम दीदी के चेहरे को ग़ौर से देखते हुए कहा___"ऐसा मत कीजिए न दीदी। एक आप ही हैं जिनसे मैं अपने दिल की हर बात कर सकती हूॅ। इस लिए मेरी बात सुन लीजिए और उस पर अपनी राय भी दीजिए कि मैं जो कुछ कह रही हूॅ वो सही है या ग़लत?"

"क्या राय दूॅ मैं?" सोनम दीदी ने नीलम की ऑखों में झाॅकते हुए कहा___"तूने तो सब कुछ कह कर ये ज़ाहिर कर ही दिया है कि तेरे मन में राज के प्रति अब क्या है? अब अगर मैं इस पर ये कहूॅ कि ये सब सोचना भी ग़लत है तो क्या फर्क़ पड़ता है उससे? इतना तो मैं समझ ही सकती हूॅ कि अगर राज के प्रति तेरे मन में ऐसे ख़याल आ चुके हैं तो इसका साफ मतलब है कि कहीं न कहीं तेरे दिल में राज के प्रति भाई वाली फीलिंग के अलावा भी एक अलग फीलिंग्स आ चुकी है। अतः ऐसी फीलिंग्स जब एक बार किसी के दिल में आ जाती हैं तो फिर उसकी सोच भी बदल जाती है। वो उसे ही सही मानता है फिर चाहे भले ही वो सबसे ज्यादा अनैतिक अथवा ग़लत हो।"

"मुझे पता है दीदी।" नीलम की ऑखें एकाएक ही सजल हो उठीं, बोली___"राज के प्रति ऐसी फीलिंग्स रखना ग़लत बात है। मगर ये भी सच है कि अब ये फीलिंग्स मेरे दिल से आसानी से जाएगी नहीं। इस लिए मैने अब एक फैंसला किया है।"

"फ..फैंसला???" सोनम दीदी चौंकी___"कैसा फैंसला?"
"यही कि मैं राज के क़रीब नहीं रहूॅगी।" नीलम ने दृढ़ता से कहा___"बल्कि उससे दूर चली जाऊॅगी। इस लड़ाई के बाद ये सच है कि मेरे माॅ बाप व भाई या तो ज़िन्दगी भर जेल की सलाखों के पीछे कैद हो कर रह जाएॅगे या फिर ऐसे भी हालात बन सकते हैं कि वो सब जान से मारे जाएॅ। तब तो हम दोनो बहनें अनाथ ही हो जाएॅगी। हलाॅकि इसके बाद भी मेरे अपनों में गौरी चाची, अभय चाचा और करुणा चाची आदि सब भी होंगे मगर इनके पास रहने से अक्सर मेरा सामना राज से होता ही रहेगा। उस सूरत में मेरे मन में ना चाहते हुए भी उसके प्रति आकर्शण बढ़ेगा जिसे शायद मैं रोंक भी नहीं पाऊॅगी। इस लिए बेहतर है कि इस सबके बाद मैं आपके साथ मुम्बई में मौसी के पास ही रहूॅ। राज से दूर रहने से कम से कम ये तो होगा कि धीरे धीरे मैं अपने दिल से उसे निकाल पाने में सफल हो सकती हूॅ।"

"इसका मतलब।" सोनम दीदी ने कहा___"ये सच है कि तू अपने ही भाई राज को अब एक प्रेमी की दृष्टि से देखने लगी है और उसके प्रति तेरे अंदर चाहत की भावना प्रतिपल बढ़ती ही जा रही है?"

"शायद यही सच है दीदी।" नीलम ने सहसा आहत भाव से कहा___"राज ने मेरी इज्ज़त की रक्षा जिस तरह से की थी उसके बाद से ही मुझे ये महसूस हुआ था कि राज के बारे में अब तक जो कुछ मैं अपने माॅम डैड के द्वारा पढ़ाए गए पाठ के तहत सोचती थी वो सब सिरे से ही ग़लत था। मेरे अंदर इस बात के एहसास होने के साथ ही राज के प्रति कोमल भावनाओं का उदय हुआ था। उसके बाद मुझे नहीं पता कि मैं उसके बारे में सोचते सोचते कब उसे चाहने लगी? जब उसने अचानक ही काॅलेज आना बंद कर दिया था तब मैं यही सोच कर रोती थी कि वो आज के समय में मुझसे कितनी नफ़रत करने लगा है कि अब उसने मेरी वजह से काॅलेज आना भी बंद कर दिया। ये सब सोच सोच कर मुझे अपने आप से घृणा होने लगी थी कि मैने अपने उस भाई का बचपन से दिल दुखाया जिसका कभी कोई दोष था ही नहीं। बल्कि उसके दिल में तो हम दोनों बहनों के लिए वैसा ही प्यार व सम्मान था जैसा उसके दिल में गुड़िया(निधी) के लिए है। उसके बाद जब वो दुबारा मेरी इज्ज़त की रक्षा करते हुए मुझे ट्रेन पर मिला तो एक बार फिर से मेरा अंतर्मन ये सोच कर ज़ार ज़ार रो पड़ा कि उसने एक बार फिर से मेरी इज्ज़त की रक्षा की। यानी उसके दिल में आज भी हम दोनो बहनों के लिए वही प्यार व सम्मान है और चाहता है कि हम दोनों को कभी कोई ऑच तक न आए। बस उसके बाद तो जैसे सब कुछ बदल गया दीदी। जब मैने ये महसूस किया कि वो मुझसे झगड़ा करते हुए फिर से अपने बचपन को जीना चाहता है तो मैंने भी उसकी चाहत में उसका पूरा साथ दिया। मुझे भी उसे खुश देखने में अच्छा लगने लगा। इन्हीं सब बातों के बीच ही शायद ऐसा हुआ है कि मेरे दिल में उसकी अच्छाई और खूबियों को देख कर ऐसी चाहत जागी है। आज जब उसने मुझे अपनी बाहों में समेटे तथा मुझे उस हालत में देख कर पागल हुआ जा रहा था तो मैं उस हालत में भी ये सोच रही थी कि ये इतना अच्छा कैसे हो सकता है? इससे कोई नफ़रत कैसे कर सकता है? बस उसके बाद मैंने पहली बार अपने दिल की आवाज़ को सुना और फिर उसकी हो गई। मुझे पता है कि ये ग़लत है। अगर राज को मेरे दिल की बात पता चल गई तो संभव है कि वो मुझे ग़लत समझ बैठे। वो सोचेगा कि जैसे माॅ बाप थे वैसी ही उसकी औलाद भी है। जो अपने ही सगे रिश्तों के प्रति ऐसी सोच रखती है।"

"अगर यही सब बात है।" सोनम दीदी ने कहा___"और अगर ये भी कि तुम उसकी हो गई हो तो फिर ये अचानक उससे दूर हो जाने का फैंसला क्यों किया तुमने? क्या सिर्फ इस लिए कि राज तुझे ग़लत समझेगा?"

"ये वजह तो है ही दीदी।" नीलम ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा___"किन्तु एक दूसरी महत्वपूर्ण वजह और भी है।"
"दूसरी ऐसी कौन सी वजह हो सकती है?" सोनम दीदी के चेहरे पर सोचों के भाव नुमायां हुए।

"आपने शायद ग़ौर नहीं किया दीदी।" नीलम ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"किन्तु मैने बहुत अच्छे से ग़ौर किया है।"
"क्या मतलब??" सोनम दीदी चकरा सी गईं।
"आप और मैं।" नीलम ने कहा___"जिस रितू दीदी को हिटलर समझते हैं, उन्हीं हिटलर दीदी की ऑखों में आज मुझे उस वक्त थोड़ी देर के लिए कुछ खास नज़र आया जब आपने उनसे कहा था कि____'कभी खुद को बदल कर भी देख। संभव है कि कुछ नया नज़र आये।' उस वक्त उनकी ऑखों में पल भर के लिए एक टीस सी नज़र आई थी फिर उन्होंने जल्दी ही खुद को सम्हाल लिया था। कहते हैं कि चोंट के दर्द का एहसास वही कर सकता है जिसे कभी वैसी ह चोंट लगी हो। उस वक्त उनकी ऑखों में जो भाव थे उन भावों ने मुझे बता दिया कि वो दरअसल क्या है?"

"ये तू क्या अनाप शनाप बके जा रही है नील?" सोनम दीदी ने हैरत से कहा___"कहीं तू ये तो नहीं कहना चाहती है कि रितू भी राज से प्यार करती है? ओह माई गाड, ऐसा कैसे हो सकता है? नहीं नहीं...रितू ऐसा नहीं कर सकती नील। वो एक सुलझी हुई तथा समझदार लड़की है। उसे पता है कि ऐसा सोचना भी पाप होता है।"

"प्यार तो हर मायने में पवित्र ही होता है दीदी।" नीलम ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"फिर चाहे वो किसी से भी हो गया हो। दूसरी बात, जब किसी को किसी से प्यार हो जाता है न तब सबसे पहले उस इंसान का विवेक शून्य हो जाता है। प्यार में पड़ा हुआ इंसान उसी को सही मानता है जिसे आम इंसान अनैतिक व पाप की संज्ञा देता है। मैने रितू दीदी की ऑखों में उस पवित्र प्यार को देखा है दीदी। मुझे नहीं पता कि ये सब कैसे संभव हो सकता है? मगर ऑखें कभी ग़लत नहीं होती हैं। ख़ैर मुझे इससे कोई प्राब्लेम नहीं है बल्कि मैं खुश हूॅ कि मेरी जो दीदी लड़कों की ज़ात से नफ़रत करती थी तथा प्यार व्यार को बकवास कहती थीं आज वो खुद राज की चाहत में गिरफ्तार हैं। यकीनन उनकी सोच बदल गई होगी और अब उनके सीने में एक ऐसा दिल धड़कता होगा जो बहुत ही नाज़ुक हो चुका होगा तथा जिसमें किसी के लिए बेपनाह प्यार का सागर हिलोरें लेता होगा। अब जबकि मुझे इस बात का एहसास हो ही चुका है तो क्यों मैं उनकी राह का रोड़ा बनूॅ दीदी? मेरी दीदी के दिल में जीवन में पहली बार किसी के लिए ऐसी भावनाओं का उदय हुआ है। म
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11-24-2019, 01:15 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"तू इतनी गहरी बातें कर सकती है यकीन नहीं होता नील।" सोनम दीदी की आवाज़ भर्रा गई___"तेरा इतना बड़ा दिल होगा मैने सोचा भी नहीं था। अपनी दीदी के लिए इतना बड़ा त्याग करना कोई मामूली बात नहीं है। इसके पहले मैं तेरी बातों से सचमुच तुझे ग़लत समझ बैठी थी किन्तु आख़िर की तेरी इस बात ने मुझे ये एहसास करा दिया कि ये प्यार भले ही अपने भाई से हो गया हो मगर इसमें कोई गंदगी तथा कोई पाप नहीं है।"

अभी सोनम दीदी ने ये कहा ही था कि तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई और फिर मैं आदित्य के साथ अंदर आ गया। आते ही मैने अपने अंदाज़ में सबसे पहले नीलम को छेंड़ा जिस पर वह बस मुस्कुरा कर रह गई। उसके बाद मैंने उसे कहा कि डाॅक्टर ने कहा है कि हम तुम्हें ले जा सकते हैं। अतः अब चलो यहाॅ से। ख़ैर थोड़ी ही देर में मैं नीलम को लिए हास्पिटल से बाहर आया और कार की पिछली सीट पर उसे वैसे ही लेकर बैठ गया जैसे आते समय लेकर बैठा था। सोनम दीदी भी मेरे दूसरी साइड बैठ गईं। आदित्य कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा ही था कि रितू दीदी भी आ गईं। रितू दीदी के बैठते ही आदित्य ने कार को आगे बढ़ा दिया।

लगभग पंद्रह मिनट में ही हम रेवती में शेखर के घर के सामने पहुॅच गए। हम सब कार से बाहर आये। नीलम ने कहा कि वो अब ठीक है और खुद अपने पैरों पर चल सकती है। अतः मैने उसे सहारा देकर कार से बाहर ले आया। उसके बाद हम सब घर के अंदर आ गए। अंदर ड्राइंगरूम में नैना बुआ तथा बिंदिया काकी थी। नैना बुआ ने जैसे ही हम सबको देखा वो भाग कर आईं और नीलम को अपने गले से लगाया ही था कि नीलम के मुख से कराह निकल गई। दरअसल नैना बुआ ने नीलम की पीठ के उस हिस्से पर अपनी बाॅह का कसाव कर दिया था गलती से, जहाॅ पर उसे गोली लगी थी।

नीलम की कराह सुन कर नैना बुआ जल्दी से नीलम से अलग हुईं और फिर उससे माफ़ी माॅगने लगीं। उनकी ऑखों में ढेर सारे ऑसू थे। कदाचित केशव जी यहाॅ आए थे और उन्होंने बुआ को सब कुछ बता दिया था। यही वजह थी कि नैना बुआ नीलम को देख कर भागते हुए आईं थी। ख़ैर, उसके बाद मैं सोनम के साथ नीलम को सहारा देते हुए उसे उसके रूम में ले आया और बेड पर करवॅट के बल आहिस्ता से लेटा दिया। मेरे पीछे पीछे ही बाॅकी सब आ गए थे। बिंदिया काकी की भी ऑखों में ऑसू थे। रितू दीदी थोड़ी पीछे खड़ी हुई थीं, उनकी ऑखें हल्का सुर्ख नज़र आ रही थीं। ऐसा लगता था जैसे वो रोई हों। मैं उन्हें देख कर चौंका और ऑखों के इशारे से ही पूछा कि क्या हुआ आपको? जवाब में उन्होंने सिर हिला कर बताया कि कुछ नहीं बस ऐसे ही।

इधर नैना बुआ नीलम के पास ही बेड पर बैठ गईं थी और उससे थोड़ी बहुत बातें कर रही थी। साथ ही अपने भाई को बुरा भला भी कहे जा रही थी। मैं कुछ देर तक रूम में रहा और फिर आदित्य के साथ ही बाहर आ गया।
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उधर मंत्री दिवाकर चौधरी के आवास पर।
अजय सिंह इस वक्त उसके पास ही सामने वाले सोफे पर बैठा था। अभी कुछ ही देर पहले चौधरी उसे अपने सोर्स से तथा अपने वकील को लेकर ज़मानत पर छुड़ा कर लाया था। गुनगुन में नया नया आया एसीपी उसे काफी शख्त मिजाज़ लगा था। किन्तु चौधरी का तो ये इलाका ही था अतः वो खुद भी किसी से डरने वाला नहीं था। कहने का मतलब ये कि बड़ी आसानी से वो अजय सिंह को छुड़ा लाया था। इस वक्त अजय सिंह अपना मुह लटकाए बैठा हुआ था। ड्राइंग रूम में इस वक्त वो दोनो ही थे।

"इतनी शातिर दिमाग़ वाली बीवी के रहते हुए भी तुम इतनी बुरी तरह से मात खा गए ठाकुर।" सहसा चौधरी ने अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा___"हैरत की बात है। अच्छा होता कि तुम हमें इस मामले में पहले से बताए होते तो हम इसमें ज़रूर तुम्हारी मदद करते। हमारे दखल पर यहाॅ की पुलिस में इतनी हिम्मत ही नहीं होती कि वहाॅ जा कर तुम सबको गिरफ्तार कर लेती। हम बड़ी आसानी से तुम्हारे उस भतीजे को और तुम्हारी दोनो बेटियों को पकड़ लेते। उसके बाद तो उनका खेल खत्म ही हो जाना था।"

"डबल बैकअप का प्लान भी अपनी जगह कमज़ोर नहीं था चौधरी साहब।" अजय सिंह ने गंभीरता से कहा___"हमने उन सबको लगभग पकड़ ही लिया था। मगर हमारी उम्मीद से परे वहाॅ भारी संख्या में पुलिस फोर्स आ गई और सबकुछ हमारे हाथ से निकल गया।"

"इसमें यकीनन तुम्हारी ग़लती है ठाकुर।" चौधरी ने पुरज़ोर लहजे में कहा___"तुम्हें और तुम्हारी पत्नी को इस बात पर भी ग़ौर करना चाहिए था कि तुम्हारी बेटी, तुम्हारी बेटी होने के साथ साथ एक पुलिस वाली भी है जो ऐसे हालात पर अपने डिपार्टमेंट से पुलिस फोर्स को भी बुलवा सकती है। उस सूरत में तुम्हें हमसे संपर्क करना चाहिए था। हम इस समस्या का तुरंत समाधान करते। हम मंत्रियों के पास ऐसे हालात में पुलिस फोर्स को मनचाही जगह पर ले जाने का बहुत आसान तरीका आता है। कहने का मतलब ये कि हम आनन फानन में किसी जगह का दौरा करते जहाॅ पर भारी मात्रा में हम पुलिस को अपने पास बुला लेते। पुलिस डिपार्टमेंट को इतना जल्दी इतनी पुलिस फोर्स वहाॅ पर भेजने के लिए सोचना पड़ जाता।"

"मैं मानता हूॅ चौधरी साहब।" अजय सिंह ने नज़रें चुराते हुए कहा___"कि मैने आपको इस बारे में न बता कर भारी ग़लती की है। वरना आज ऐसा नहीं होता। मगर इसमें भी मेरी आपके लिए एक पाक़ भावना ही थी। मैं चाहता था कि ये सब होने के बाद मैं आपके सामने आपके उन दुश्मनों को लाकर आपको सर्प्राइज दूॅगा और यही मेरी दोस्ती व वफ़ादारी का प्रमाण भी होता। मगर अफसोस ऐसा नहीं कर पाया मैं। इसके लिए आप मुझे माफ़ कर दीजिए मंत्री जी। आपने मुझे अपना समझ कर जेल से भी छुड़ा लिया। इसके लिए मैं जीवन भर आपका आभारी और ऋणी रहूॅगा।"

"कोई बात नहीं ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"जीवन में हार जीत का खेल तो चलता ही रहता है। इस लिए इसमें ज्यादा चिंता करने की कोई बात नहीं है। इस सबके बाद भी हम उन लोगों को बहुत जल्द पकड़ लेंगे। क्योंकि हमने इस सबके लिए एक जासूस को लगाया हुआ है। आज उसी ने बताया था कि माधोपुर में क्या हो रहा था? उस समय के हालात के अनुसार हमें लगा कि तुम यकीनन उनको पकड़ लोगे और फिर उन्हें हमारे सामने ले आओगे। इसी लिए हमने भी कोई ऐक्शन नहीं लिया। बाद में उस जासूस ने बताया कि वहाॅ पर भारी मात्रा में पुलिस फोर्स आई और तुम सबको पकड़ कर ले भी गई तो हमने सोचा चलो कोई बात नहीं तुम्हें तो हम जेल से छुड़ा ही लेंगे। किन्तु हमने जासूस को ये भी कहा कि ठाकुर की बेटी को गोली लगी है तो वो लोग उसका इलाज कराने हास्पिटल ज़रूर जाएॅगे। उसके बाद वो उस जगह जाएॅगे जहाॅ पर उन लोगों ने अपना ठिकाना बनाया हुआ है। बस उसके ठिकाने का पता चलते ही हम उसे उसके ही ठिकाने पर घेर लेंगे। हम चाहते तो उन लोगों को हास्पिटल में भी घेर सकते थे किन्तु हमने ऐसा नहीं किया। क्योंकि हमें सबसे पहले अपने बच्चों को तलाशना था और ये तभी हो सकता था जब वो लोग हास्पिटल के बाद अपने ठिकाने पर जाते। हमने उस जासूस को इसी का पता लगाने के लिए लगा रखा है। वो हमें बहुत जल्द सूचित करेगा कि उन लोगों का ठिकाना कहाॅ है। उसके बाद हम अपने आदमी लेकर जाएॅगे और उसके ठिकाने पर धावा बोल देंगे।"

"ये तो बहुत ही अच्छा किया है आपने।" अजय सिंह के चेहरे पर एकाएक ही रौनक आ गई___"इसका मतलब ये हुआ कि हम पूरी तरह से हारे नहीं हैं। बल्कि बाज़ी अभी भी हमारे हाॅथ में हैं।"

"बिलकुल।" चौधरी ने मुस्कुरा कर कहा___"बस जासूस के फोन आने की देर है। जैसे ही उसका फोन आया और उसने हमें बताया वैसे ही हम यहाॅ से चल पड़ेंगे।"
"वाह चौधरी साहब।" अजय सिंह के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई___"मानना पड़ेगा आपको। आपने भी ऐसा कारनामा कर रखा है जिसके बारे में वो लोग सोच भी नहीं सकते हैं।"

अजय सिंह की बात पर चौधरी बस मुस्कुरा कर रह गया। कुछ देर उन दोनो के बीच और भी कुछ बातें हुईं उसके बाद अजय सिंह चौधरी से इजाज़त लेकर उसके आवास से अपने गाॅव हल्दीपुर के लिए निकल लिया। चौधरी ने उसे जाने के लिए अपनी एक जीप दे दी थी।
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11-24-2019, 01:15 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अपडेट........《 59 》

अब तक,,,,,,,,
"ये तो बहुत ही अच्छा किया है आपने।" अजय सिंह के चेहरे पर एकाएक ही रौनक आ गई___"इसका मतलब ये हुआ कि हम पूरी तरह से हारे नहीं हैं। बल्कि बाज़ी अभी भी हमारे हाॅथ में हैं।"

"बिलकुल।" चौधरी ने मुस्कुरा कर कहा___"बस जासूस के फोन आने की देर है। जैसे ही उसका फोन आया और उसने हमें बताया वैसे ही हम यहाॅ से चल पड़ेंगे।"
"वाह चौधरी साहब।" अजय सिंह के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई___"मानना पड़ेगा आपको। आपने भी ऐसा कारनामा कर रखा है जिसके बारे में वो लोग सोच भी नहीं सकते हैं।"

अजय सिंह की बात पर चौधरी बस मुस्कुरा कर रह गया। कुछ देर उन दोनो के बीच और भी कुछ बातें हुईं उसके बाद अजय सिंह चौधरी से इजाज़त लेकर उसके आवास से अपने गाॅव हल्दीपुर के लिए निकल लिया। चौधरी ने उसे जाने के लिए अपनी एक जीप दे दी थी।
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अब आगे,,,,,,,

आदित्य के साथ जब मैं नीचे आया तो देखा ड्राइंग रूम में केशव जी बैठे थे। हम दोनो को देखते ही उनके होठों पर मुस्कान उभर आई। उसके बाद उन्होंने मुझसे नीलम के बारे में पूछा तथा ये भी कहा कि वो खुद उसे देखना चाहते हैं। अतः मैं उन्हें अपने साथ ऊपर नीलम के कमरे में ले गया। कमरे में पहुॅच कर उन्होंने सबके सामने ही नीलम को देखा और फिर बड़े प्यार से उससे उसकी तबीयत का पूछा। उनके पूछने पर नीलम ने भी बड़ी शालीनता से अपनी तबीयत के बारे में उन्हें बता दिया। उसके बाद वो कमरे से बाहर आ गए और मेरे साथ ही नीचे आ गए। नीचे आकर मैं आदित्य के साथ बैठा ही था कि रितू दीदी भी आ गईं।

"उस जासूस का क्या हुआ मौसा जी?" नीचे आते ही रितू दीदी ने केशव जी की तरफ देखते हुए भावहीन स्वर में पूछा___"क्या आप उसे पकड़ने में कामयाब हुए?"
"हमारी किस्मत बहुत अच्छी थी रितू बेटा।" केशव जी ने कहा___"जिसके तहत वो हमारे हाॅथ लग गया। मेरा वो आदमी जिसने हमें उसके बारे में फोन पर बताया था उसका नाम निरंजन वर्मा है। उसने बड़ी बहादुरी का काम किया है। उसने मुझे बताया कि अगर उस जासूस की बाइक के अगले पहिये की हवा न निकली होती तो वो हमारे हाथ न लगता।"

"ये आप क्या कह रहे हैं मौसा जी?" रितू दीदी के साथ साथ हम सब भी हैरान हो गए, फिर दीदी ने कहा___"उस जासूस की बाइक की वजह से वो हमारे हाॅथ लगा है?"

रितू की इस बात पर केशव जी ने निरंजन और उस जासूस की सारी राम कहानी बताई। सारी बात सुनने के बाद हम तीनों ही चकित रह गए थे। कुछ देर तक कोई कुछ न बोला।

"ये तो बड़े ही आश्चर्य की बात है मौसा जी।" मैने सोचने वाले भाव से कहा___"उस जासूस की बाइक के अगले पहिए में हवा नहीं थी इस लिए वो उतने समय तक वहाॅ रुका रहा। आपका वो आदमी भी वाकई में बड़ा काम का साबित हुआ। उसने उस जासूस को पकड़ने में अपनी जान तक दाॅव पर लगा दी। वरना अगर वो जासूस हाॅथ से निकल जाता तो यकीनन हमारे लिए बहुत बड़ा संकट हो सकता था।"

"बेशक।" केशव जी ने कहा___"अगर उसके बारे में हमें पता न चलता तो वो हमारा पीछा करता ही रहता और फिर जब उसे तुम लोगों के इस ठिकाने का पता चल जाता तो वह तुरंत ही मंत्री को सब कुछ बता देता। उसके बाद मंत्री क्या करता इसका तुम बखूबी अंदाज़ा लगा सकते हो।"

"अब इस मंत्री का खेल खत्म करना ही पड़ेगा।" सहसा रितू दीदी ने कठोर भाव से कहा___"मेरी चेतावनी के बावजूद इसने इतना बड़ा दुस्साहस किया और हमारे पीछे किसी जासूस को भी लगाया। अब तो इसका किस्सा खत्म करना ही पड़ेगा। बहुत हो गया अब।"

"मेरा भी यही ख़याल है दीदी।" मैने कहा___"कम से कम इससे इसकी तरफ से तो हम बेफिक्र हो जाएॅगे और फिर खुल कर तथा बेझिझक बड़े पापा से मुकाबला कर सकेंगे।"

"सही कहा तूने।" रितू दीदी ने कहा___"किन्तु उससे पहले हमें उस जासूस से मिलना भी होगा। उसे हम ऐसे ही नहीं छोंड़ सकते हैं। उसका भी कोई न कोई इंतजाम करना पड़ेगा हमें।"

"मेरे ख़याल से उसे हम तब तक अपने पास रखते हैं जब तक कि मंत्री का किस्सा खत्म नहीं हो जाता।" सहसा आदित्य कह उठा___"उसके बाद हम उसे छोंड़ सकते हैं। जब मंत्री ही नहीं रहेगा तो वो किसके लिए हमारे पीछे लग कर जासूसी करेगा?"

"आदी की बात एकदम करेक्ट है दीदी।" मैने कहा__"ऐसा ही करना चाहिए हमें।"
"आपका क्या कहना है मौसा जी?" रितू दीदी ने सहसा केशव की तरफ देखते हुए कहा___"ये तो सच है कि हम उस जासूस को मौजूदा हालात में छोंड़ नहीं सकते हैं और ना ही उसे जान से मारने का सोच सकते हैं। क्योंकि वो निर्दोष है। उसने वही किया है जो एक जासूस को करना चाहिए था। ये उसका पेशा ही है, अतः आप भी अपनी राय दीजिए कि क्या किया जाए?"

"देखो मैं तो एक ही बात जानता हूॅ बेटा।" केशव जी ने कहा___"कि ऐसे हर उस आदमी को खत्म कर दो जिससे हमें किसी प्रकार के ख़तरे का अंदेशा हो। किन्तु मामला चूॅकि एक जासूस का है इस लिए उसे खत्म करना ग़लत होगा। अतः मैं भी आदित्य की बात से सहमत हूॅ। यानी कि उसे तब तक यहाॅ कैद करके रखा जाय जब तक कि मंत्री का कल्याण नहीं हो जाता। मगर,

"मगर क्या मौसा जी?" रितू दीदी के माथे पर शिकन उभरी।
"मगर मुझे एक बात समझ नहीं आई।" केशव जी ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा___"और वो ये कि जब मंत्री के खिलाफ़ तुम्हारे पास ऐसा डायनामाइट जैसा सबूत है तो उसे अब तक छोंड़ क्यों रखा था तुमने? जबकि होना तो यही चाहिए था कि उसे तुरंत ही कानून की चपेट में ले लिया जाता।"

"आपका सोचना बिलकुल सही है मौसा जी।" रितू दीदी ने कहा___"किन्तु मंत्री को अब तक छोंड़े रखने के दो कारण थे। पहला ये कि उसे एहसास कराना था कि जब उसके खुद के बच्चों के साथ बहुत बुरा होता है तब कैसा महसूस होता है? दूसरा कारण ये कि उसके संबंध ऐसे ऐसे लोगों से हैं जिनकी पूर्ण जानकारी हमारे पास अभी भी नहीं है। ये तो लगभग सब जानते हैं कि वो कैसे कैसे ग़ैर कानूनी धंधा करता है किन्तु पुलिस के पास उसके खिलाफ़ ऐसे कोई सबूत नहीं हैं जिसकी वजह से उसे गिरफ्तार किया जा सके। मेरे पास भी उन वीडियोज के अलावा और कुछ नहीं है। मैं चाहती थी कि ये वाला मामला निपट जाने के बाद मंत्री के खिलाफ मौजूद उन सबूतों का पता करूॅगी। यही वजह थी कि मंत्री के मैटर को इतना लम्बा खींचना पड़ा। किन्तु अब ऐसा लगता है कि मंत्री को सबक सिखाना ही पड़ेगा। उसके सामने खुल कर जाना ही पड़ेगा और फिर उसकी ऑखों में ऑखें डाल कर उसे बताना पड़ेगा कि वो हमारा कुछ नहीं कर सकता है जबकि हम चाहें तो उसका कुछ भी कर सकते हैं।"

"ओह आई सी।" केशव जी ने कहा___"तो ये बात है। ठीक है फिर, जैसा तुम्हें बेहतर लगे वैसा करो। किन्तु हाॅ उससे पहले चलो उस जासूस से भी तो मिल लो तुम लोग। संभव है कि उससे भी कोई महत्वपूर्ण जानकारी मिल जाए।"

केशव जी की इस बात से हम सब सोफों से उठ कर खड़े हो गए और फिर केशव जी के साथ ही बाहर की तरफ चले गए। बाहर आकर हम सब केशव जी की कार में बैठ गए। आदित्य केशव जी के बगल में आगे की सीट पर बैठ गया था जबकि मैं और रितू दीदी पिछली सीट पर बैठ गए थे। हम सबके बैठते ही केशव जी ने कार को आगे बढ़ा दिया।

लगभग पाॅच मिनट बाद ही केशव जी ने कार को एक मकान के पास ले जाकर रोंका। कार के रुकते ही हम सब कार से बाहर आ गए। हम सबकी नज़र उस मकान पर पड़ी जिसके सामने के पोर्च पर एक लकड़ी का तखत रखा हुआ था और उसमे चार साॅवले रंग के आदमी बैठ कर ताश खेल रहे थे। कार की आवाज़ से ही उनका ध्यान हमारी तरफ गया था। जिससे उन चारों ने ताश खेलना बंद करके तखत से उतर गए थे।

हम तीनों केशव जी के पीछे पीछे मकान के पोर्च में आ गए। पोर्च में रुक कर केशव जी ने अपने एक आदमी से कहा सब ठीक है न? जवाब में आदमी ने बड़े अदब से हाॅ में सिर हिलाया। उस आदमी की हाॅ देख कर केशव जी मकान के अंदर की तरफ बढ़ चले। उनके साथ हम तीनों भी बढ़ चले थे।

ये मकान यूॅ तो पक्का ही था किन्तु इसकी हालत देख कर तथा केशव जी की छवि देख कर यही लगता था कि इस मकान पर केशव जी अपने आदमियों को रखते थे। या फिर उनके रहने की जगह ही यही थी। हलाॅकि सोचने वाली बात तो ये भी थी कि केशव जी का कैरेक्टर ऐसा क्यों था कि उनके अंडर में ऐसे ऐसे लोग थे और उनका हर कहा भी मानते थे? इस बारे में हम सबके दिमाग़ में सवाल तो उभरा था किन्तु केशव जी से इस बारे में पूछने का या तो समय ही नहीं मिला था हमें या फिर हम उनकी निजी ज़िंदगी में कोई हस्ताक्षेप ही नहीं करना चाहते थे। हमारे लिए यही बहुत था कि वो हमारी मदद कर रहे थे।

मकान के अंदर भी कुछ लोग नज़र आए हमें जो कि अलग अलग जगहों पर इस वक्त खड़े दिख रहे थे। बाहर से अंदर आते ही सबसे पहले एक छोटा सा हाल था उसके बाद दोनो तरफ तीन तीन कमरे बने हुए थे। सामने की तरफ ऊपर के फ्लोर में जाने के लिए चौड़ी सीढ़ी थी। उस सीढ़ी के अगल बगल भी एक एक कमरा था। केशव जी के साथ हम तीनो सीढ़ी के दाहिने साइड वाले कमरे की तरफ बढ़ गए।

केशव जी के कहने पर ही एक आदमी ने उस कमरे का ताला खोला और फिर उसके बाद दरवाजा भी खोला। ये देख कर हमें समझते देर न लगी कि केशव जी इस मामले में काफी होशियारी से काम ले रहे थे। ख़ैर कमरे के अंदर हम सब दाखिल हुए तो बाॅए साइड ही दीवार से सट कर खड़े उस जासूस पर हमारी नज़र पड़ी। उसके दोनो हाॅथ ऊपर की तरफ एक साथ मोटी रस्सी से बॅधे थे। इतना ही नहीं उसके मुख पर एक टेप भी चिपका हुआ था ताकि वह चीखे चिल्लाए न। उसके दोनो हाॅथ तो ऊपर की तरफ रस्सी से बॅधे हुए थे ही साथ ही उसके दोनो पैर भी अलग अलग दिशा में फैले हुए रस्सी से बॅधे थे।

ये कमरा अंदर से एकदम खाली था। जासूस की स्थित देख कर ये समझना ज़रा भी मुश्किल नहीं था कि केशव जी ने उसका तगड़ा इंतजाम किया था। उसे इस हालत में देख कर मैं केशव जी की समझदारी का कायल हो गया।

"आपने तो मेहमान का बहुत अच्छे तरीके से स्वागत कर रखा है मौसा जी।" मैंने जासूस की तरफ एक नज़र डालने के बाद केशव जी से कहा___"ख़ैर कोई बात नहीं। इनके मुह से ज़रा ये टेप तो हटाइए। इन महानुभाव की मनमोहक आवाज़ सुनने का बहुत दिल कर रहा है।"

मेरी बात पर केशव जी मुस्कुराए और फिर राणे के मुख से टेप निकाल दिया। टेप के हटते ही राणे गहरी गहरी साॅसें लेने लगा। यद्यपि टेप तो सिर्फ उसके मुख पर ही चिपकाया गया था, साॅस लेने के लिए उसकी नाॅक तो खुली ही थी।

"हाॅ तो मिस्टर डिटेक्टिव।" मैने उस जासूस के बिलकुल पास आते हुए कहा___"आप इज्ज़त से खुद ही सब कुछ बताएॅगे या फिर मुझे आपके मुख से कुछ भी उगलवाने के लिए कोई दूसरा हथकंडा इस्तेमाल करना पड़ेगा? हलाॅकि मुझे उम्मीद है कि आप खुद ही सब कुछ बता देंगे। क्योंकि आप जासूस हैं और आपको पता है कि ऐसी परिस्थितियों में क्या होता है? ख़ैर, मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूॅ कि जिस मंत्री के लिए आप जासूसी कर रहे थे वो इस प्रदेश का निहायत ही घटिया ब्यक्ति है। ऐसा कोई कुकर्म तथा ऐसा कोई जुर्म नहीं है जो वो करता न हो। यहाॅ तक कि दूसरों की बहू बेटियों के साथ ग़लत तो करता ही है साथ ही उनका सौदा भी करता है। मैं ये सब बातें आपसे इस लिए बता रहा हूॅ ताकि आपको भी पता होना चाहिए कि आप जिसके लिए हमारा बेड़ा गर्क करने चले हैं वो कैसा इंसान है? अपने ज़मीर को जगाइये जासूस महोदय। जीवन में रुपया पैसा कमाने के लिए और भी कई अच्छे रास्ते हैं। जासूस का मतलब ये नहीं होता कि आप किसी के लिए भी काम करना शुरू कर दें। बल्कि उस ब्यक्ति के लिए काम करें जिसे आप समझते हों कि ये अच्छा ब्यक्ति है तथा इसे किसी बुरे इंसान ने सताया है।"

मेरी ये बातें सुन कर वो जासूस कुछ न बोला। बस मेरी तरफ देखता रहा। उसके चेहरे पर ऐसे भाव उभर आए थे जैसे एकाएक ही वह किन्हीं विचारों के आधीन हो गया हो। मैं कुछ देर तक उसे देखता रहा।

"आपको पता है ये कौन हैं?" मैने रितू दीदी की तरफ इशारा करके उस जासूस से कहा___"ये मेरी बड़ी बहन हैं और पुलिस में इंस्पेक्टर हैं। इन्होंने जब ये जाना कि कानूनन ये मंत्री के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सकती हैं तो इन्होंने कानून को अपने हाॅथ में ले लिया।इन्होंने इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं की कि इसके लिए इन्हें कानून खुद कठोर सज़ा दे सकता है तथा अगर ये मंत्री जैसे राक्षस इंसान के पकड़ में आ गईं तो मंत्री इनका क्या हस्र कर सकता है। कहने का मतलब ये कि अपनी जान को जोखिम में डाल कर इन्होंने मंत्री के खिलाफ बिगुल बजाया हुआ है। सिर्फ इस लिए कि इस प्रदेश से मंत्री दिवाकर चौधरी जैसे लोगों की गंदगी दूर हो सके तथा ऐसे लोगों से मासूम व निर्दोष जनता को निजात मिल सके। रुपया पैसा सबकी ज़रूरत है जासूस महोदय किन्तु उससे बढ़ कर अपनी जान भी प्यारी होती है। हम सब सच्चाई की राह पर चलने वाले वो इंसान हैं जिनके सिर पर क़फन बॅधा हुआ है।"

"ये सब तुम क्या बातें सुना रहे हो दोस्त।" सहसा आदित्य ने कहा___"क्या तुम समझते हो कि तुम्हारी इन बातों से इस जासूस के विचार बदल जाएॅगे। नहीं भाई, इन्हें तो सिर्फ पैसों से मतलब हैं। इन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि प्रदेश में आम इंसानों के साथ क्या अत्याचार हो रहा है? मैं तो कहता हूॅ कि इससे कुछ पूछना ही बेकार है। हमारे पास जो भी सबूत मंत्री के खिलाफ है उसी के आधार पर हम उसे धर लेंगे।"

"आप लोग क्या जानना चाहते हैं मुझसे?" सहसा जासूस गंभीर भाव से बोल पड़ा___"पूछो, मैं सब कुछ बताने को तैयार हूॅ। मुझे भी इस बात का अंदेशा है कि मंत्री के खिलाफ़ खुद पुलिस विभाग गुप्त रूप से लगा हुआ है। मुझे पता है कि मंत्री तथा उसके साथी बहुत ही अपराधी किस्म के इंसान हैं। तुमने मुझे एहसास करा दिया है कि वाकई मैं ग़लत ब्यक्तियों का साथ दे रहा था। तुमने बिलकुल सही कहा भाई कि जीवन में पैसा ही सब कुछ नहीं होता है।"

"तो फिर बताइये।" मैने मन ही मन हैरान होते हुए कहा___"कि मंत्री ने आपको किस किस काम के लिए हमारे पीछे लगाया था?"
"आप लोगों ने मंत्री को तथा उसके साथियों को इस लायक छोंड़ा ही नहीं है कि वो खुद इस मामले में कोई ऐक्शन ले सके।" जासूस ने कहा___"इस लिए उसने इस काम के लिए मुझे हायर किया। एक और महत्वपूर्ण बात है जो कि तुम्हारे लिए जानना बेहद ज़रूरी है। वो बात ये है कि मंत्री आपके ताऊ अजय सिंह के साथ भी मिला हुआ है। मैं अजय सिंह के ही पीछे लगा था और उसी का पीछा करते हुए मैं आज उस जगह पहुॅचा था जहाॅ तुम्हारा और अजय सिंह का आमना सामना हो रहा था। मैने उस सबकी सूचना फोन द्वारा मंत्री को दी थी। मंत्री को मैने कहा भी था कि वो अगर चाहें तो इस मौके पर खुद भी आकर तुम लोगों के साथ कुछ भी कर सकते हैं। मगर मंत्री ने शायद ये सोच कर इसके लिए बाद में मना कर दिया कि संभव है कि उस सूरत में तुम्हारे द्वारा उसके बच्चों का कुछ अहित हो जाता। इस लिए उसने मुझसे बस यही कहा कि मैं तुम लोगों के पीछे लग कर तुम्हारे ठिकाने का पता करूॅ। जैसे ही मेरे द्वारा उसे तुम लोगों के ठिकाने का पता चल जाता वैसे ही वो अपने दलबल के साथ तुम लोगों के ठिकाने पर धावा बोल देता।"

हरीश राणे की बात सुन कर हम सब बुरी तरह हैरान रह गए थे। हम सब ये जान कर चौंके थे कि अजय सिंह मंत्री से मिला हुआ है। इस तरफ तो हमने सोचा ही नहीं था और यकीनन ये हमारी सबसे बड़ी ग़लती भी थी। ख़ैर अब तो जासूस द्वारा हमें इस बात का पता चल ही चुका था।

"एक और बात।" तभी राणे ने फिर कहा___"जब मैने मंत्री से फोन पर बात की थी तो ये सवाल भी उभरा था कि संभव है कि अजय सिंह उसे धोखा दे रहा हो। क्योंकि उसने मंत्री को बताए बिना ही तुम सबको पकड़ने के लिए वो सब किया था। जबकि मंत्री से हुई दोस्ती के अनुसार उसे उस सबके बारे में मंत्री से बताना चाहिए था। इस बात पर मंत्री ने कहा था कि अगर अजय सिंह सचमुच उसे धोखा दे रहा है तो वो उसे इसके लिए सज़ा ज़रूर देगा। किन्तु अगर उसने ये सब ये सोच कर किया है कि बाद में वो हमें अपने भतीजे को तथा अपनी बेटी को हमारे सामने ले आएगा और अपनी दोस्ती का प्रमाण देगा तो यकीनन हम उसे जेल से भी छुड़ाएॅगे। मंत्री की इस बात से तुम लोग समझ सकते हो कि अजय सिंह जेल से उसके द्वारा छूट भी सकता है। अगर ये कहूॅ तो भी ग़लत न होगा कि वो अब तक छूट ही गया होगा।"

"ऐसा कैसे कह सकते हो तुम?" केशव जी ने पूछा।
"सीधी सी बात है।" राणे ने कहा___"बात चाहे जो भी हो किन्तु मंत्री एक बार अजय सिंह से मिलना ज़रूर चाहेगा और मिल कर ये भी जानना चाहेगा कि उसने वो सब कारनामा उसको बिना बताए कैसे अंजाम दिया था? क्या इसके पीछे उसकी गद्दारी थी या फिर कुछ और? मंत्री की इस बात पर अजय सिंह ज़रूर यही कहेगा कि वो ये सब करके अपने भतीजे और अपनी बेटी को उसके सामने ले आकर उसे सरप्राइज के रूप में तोहफा देना चाहता था। किन्तु ऐसा हो न सका। अजय सिंह की ये बात सुन कर मंत्री को भी लगेगा कि अजय सिंह वास्तव में उसके लिए ये सब पाक़ भावना से करना चाहता था। अतः ये सोच कर मंत्री उसे जेल से ज़रूर छुड़ाएगा। जिस समय मैने उसे फोन पर अजय सिंह को पुलिस द्वारा ले जाने के बारे में बताया था। उस समय और अब के समय के बीच कई घंटों का फर्क़ हो चुका है। इस लिए ये संभव है कि अब तक मंत्री ने अजय सिंह को जेल से छुड़ा ही लिया होगा।"

"हम भी तो यही चाहते हैं जासूस महोदय।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"कि वो जेल से छूट कर फिर से बाहर आ जाए और इसी लिए रितू दीदी ने उसके छूट जाने का इंतजाम भी किया हुआ था।"

"क्या मतलब।" हरीश राणे बुरी तरह चौंका___"भला तुम लोग ऐसा क्यों चाहते हो? बात कुछ समझ में नहीं आई। ये सब क्या चक्कर है?"

"मंत्री को और अजय सिंह को अगर जेल में सड़ाना ही होता।" मैने कहा___"तो ये काम तो हम बहुत पहले ही कर चुके होते। मगर ऐसा किया नहीं क्योंकि इनके गुनाहों की सज़ा हम अपने तरीके से ही देना चाहते हैं। रितू दीदी ने पुलिस कमिश्नर से जब पुलिस प्रोटेक्शन की बात की तभी ये तय हो गया था कि अजय सिंह को सबके साथ पकड़ कर ले तो जाएॅगे मगर उस पर कोई केस नहीं बनाया जाएगा। केस न बनने से अजय सिंह का जेल से छूट जाना आसान ही हो जाना था। वरना आप खुद सोचिए जासूस महोदय कि उसने तो अपनी ही बेटी को जान से मारने की कोशिश की थी वो भी एसीपी के रिवाल्वर से। उस सूरत में तो वो लम्बे से नप सकता था। एसीपी रमाकान्त शुक्ला तो गुस्से में आकर अजय सिंह पर केस बनाने के लिए तैयार भी हो गया था किन्तु कमिश्नर साहब ने इसके लिए उसे मना कर दिया। वरना अगर केस बन जाता तो मंत्री इतनी सहजता से अजय सिंह को छुड़ा न पाता। उसकी पहुॅच का भी कोई असर न होता। क्योंकि एसीपी कोई मामूली ब्यक्ति नहीं था। उसे केन्द्र से भेजा गया है, इस लिए उसके काम में किसी की भी दखलअंदाज़ी नहीं चलती।"

"अगर ऐसी बात है।" राणे ने कहा___"तो फिर वो इस सबके लिए राज़ी कैसे हो गया? मेरे कहने का मतलब ये है कि जैसा कि तुमने कहा कि एसीपी को केन्द्र सरकार ने भेजा है तथा उसके काम में कोई हस्ताक्षेप भी नहीं कर सकता तो फिर ये कैसे हो गया कि उसने अजय सिंह पर कमिश्नर के मना कर देने पर केस ही नहीं बनाया? जबकि उसे तो इस मामले में शख्त से शख्त कार्यवाही ही करनी चाहिए थी।"

"वो यहाॅ शख्त कार्यवाही के लिए ही आया था।" रितू दीदी ने हस्ताक्षेप किया___"किन्तु कमिश्नर साहब ने उसे यहाॅ के सारे हालातों के बारे में बताया, ये भी कि कैसे मैं अपने ही माॅ बाप के खिलाफ हूॅ और कैसे मंत्री का काम तमाम करने के काम पर लगी हुई हूॅ? सारे हालातों पर ग़ौर करने के बाद वो इसके लिए तैयार हो ही गया। दूसरी बात ये भी थी कि उसे यहाॅ भेजा ही इस लिए गया है कि वो मंत्री जैसे लोगों की गंदगी को इस प्रदेश से मिटा सके और ये काम तो मैं कर ही रही हूॅ। उसे तो इस प्रदेश की गंदगी मिटाने से मतलब है फिर चाहे वो किसी भी तरीके से मिटाई जाए।"

"ओह तो ये बात है।" राणे को जैसे सब कुछ समझ आ गया था, फिर बोला___"किन्तु शुरू में मैने महसूस किया था कि मैने जब मंत्री और अजय सिंह के एक होने की बात बताई तो तुम सब उस बात से हैरान हो गए थे। इसका मतलब ये हुआ कि तुम लोगों को इस बात का अंदेशा तक नहीं था कि अजय सिंह और मंत्री आपस में मिले भी हो सकते हैं?"

"कमिश्नर साहब ने फोन पर मुझे ये ज़रूर बताया था।" रितू दीदी ने कहा___"कि मंत्री ने उन्हें फोन किया था तथा फोन पर वो ऐसे सवाल जवाब कर रहा था जैसे ये जानना चाहता हो कि पुलिस गुप्त रूप से कहीं उसके पीछे तो नहीं लगी हुई है। उसने बातों बातों में इस बात को भी पूछा था कि हल्दीपुर के ठाकुर अजय सिंह को पुलिस पकड़ कर ले गई है तो ये सब क्या चक्कर है? उसने कमिश्नर से घुमा फिरा कर ये भी कहा कि सुना है कि अजय सिंह की बेटी पुलिस में है और अपने बाप के खिलाफ भी है। मंत्री के पूछने पर कमिश्नर साहब ने यही कहा कि ये सब पारिवारिक मामला है अतः उन्हें इस बारे में ज्यादा पता नहीं है। कहने का मतलब ये कि ये तो समझ में आया कि मंत्री ने कमिश्नर से अजय सिंह का ज़िक्र किया मगर उसकी बातें ऐसी थी कि उससे इस बात का अंदेशा उस वक्त मुझे न हो पाया था कि वो अजय सिंह से वास्तव में मिला हुआ ही हो सकता है। दूसरी बात ये कि मेरे मुखबिरों ने भी ऐसी किसी बात का ज़िक्र नहीं किया। जबकि मैने तो दोनो के ही पीछे मुखबिर लगाए हुए थे।"

"कमाल की बात है।" राणे मुस्कराया___"कैसे मुखबिर थे जो ये भी न पता लगा सके कि अजय सिंह और मंत्री कब कहाॅ किससे मिलते हैं? जैसा कि तुमने बताया कि तुमने इन दोनो के पीछे मुखबिर लगाया हुआ था तो ये कैसे हो सकता है कि तुम्हारे मुखबिरों को इन दोनो की गतिविधियों का पता ही न चल सके? अजय सिंह के पीछे लगा हुआ मुखबिर बड़ी आसानी से पता लगा सकता था कि वह कब कहाॅ जाता है? यानी अगर वो मंत्री से मिलने उसके आवास पर जाता तो क्या ये सब उस मुखबिर ने अपनी ऑखों से नहीं देखा होता? इसका तो यही मतलब हुआ कि तुम्हारे मुखबिरों ने अपना काम इमानदारी से किया ही नहीं बल्कि तुम्हें धोखे में ही रखा।"

राणे की इस बात से रितू दीदी तुरंत कुछ बोल न सकीं थी। मैने भी हैरानी से उनकी तरफ देखा था। रितू दीदी के चेहरे पर कई तरह के भाव आए और चले भी गए। सहसा उनके चेहरे पर कठोर भाव उभर आए।

"यकीनन ऐसा ही है।" फिर उन्होंने गहरी साॅस लेकर कहा___"मेरे मुखबिरों ने अपना काम सही से नहीं किया। इसके लिए उन्हें कठोर दंड ज़रूर मिलेगा। दोनो तरफ की घटनाओं से इस बात की तरफ मेरा ध्यान भी नहीं गया। दूसरी बात मुझे अपने मुखबिरों से इस बात की उम्मीद भी नहीं थी कि वो कमीने ऐसी लापरवाही करेंगे।"

"चलो कोई बात नहीं रितू बेटा।" सहसा केशव जी ने कहा___"माना कि तुम्हारे मुखबिरों ने इस काम में थोड़ी नहीं बल्कि बहुत ही ज्यादा लापरवाही दिखाई किन्तु इससे हमें नुकसान तो नहीं हुआ न? अतः इस बात को छोंड़ो और अब ये सोचो की आगे क्या करना है?"

"मैं भी ये कहना चाहता हूॅ कि।" रितू दीदी के बोलने से पहले ही राणे बोल पड़ा____"अब आप लोगों को भी मुझे यहाॅ से जाने देना चाहिए। आप लोगों को मैने पूरी इमानदारी से सारी बातें सच सच बता दी हैं। अतः अब मुझे इस तरह यहाॅ कैद करके रखने का तो कोई मतलब नहीं बनता न।"

"ज्यादा होशियारी दिखाने की कोशिश मत करो जासूस महोदय।" मैने कहा___"माना कि आपने हमें सारी बातें सच सच बता दी हैं। मगर मौजूदा हालात में इसके बावजूद हम आपको यहाॅ से जाने नहीं दे सकते। क्योंकि इतना तो हम भी सोच सकते हैं कि आपने ये सब ये सोच कर बता दिया हमे कि सब कुछ सुनने के बाद हमें यही लगे कि अब आप हमारे ही हक़ में हैं और हमारा किसी भी तरह का नुकसान नहीं कर सकते हैं। इस लिए हम आपको छोंड़ देंगे। जबकि यहाॅ से छूटते ही आप पुनः अपना रंग बदल सकते हैं और हमारा काम तमाम करवा सकते हैं। इस लिए जासूस महोदय आपको छोंड़ देने का काम तो फिलहाल हम किसी भी सूरत में नहीं कर सकते। अतः आप अपने दिमाग़ से छूटने का ख़याल निकाल दें। किन्तु हाॅ हम ये वादा करते हैं कि यहाॅ आपको कोई तक़लीफ नहीं होने देंगे और जैसे ही मंत्री का काम तमाम हो जाएगा वैसे ही आपको भी यहाॅ से आज़ाद कर दिया जाएगा।"
Reply
11-24-2019, 01:16 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"सबसे पहली बात तो तुम मुझे जासूस महोदय कहना बंद करो।" राणे ने कहा___"मेरा नाम हरीश राणे है। अतः मुझे राणे कह कर संबोधित कर सकते हो। दूसरी बात तुम बेवजह ही ये शक कर रहे हो कि यहाॅ से चूटते ही मैं ऐसा वैसा कुछ कर दूॅगा। मेरा यकीन करो यंग मैन, मुझे रियलाइज हो चुका है कि मैं जो कुछ भी अब तक मंत्री के लिए कर रहा था वो उचित नहीं था। मुझे पता है कि मंत्री और उसके सभी साथी जुर्म व अपराध करने वाले महान पापी हैं। इस लिए अब मैं उनके लिए कोई काम नहीं करूॅगा। बल्कि यहाॅ से छूटने के बाद मैं वापस अपने शहर लौट जाऊॅगा।"

"हो सकता है कि आपकी बातें सच ही हों मिस्टर राणे।" मैने कहा___"मगर चूॅकि आप एक जासूस हैं अतः आप भी समझ सकते हैं कि मौजूदा हालात मैं हम आपको छोंड़ देने का जोखिम नहीं उठा सकते। इस लिए आप इसके लिए हमे माफ़ करें और यहीं रहें।"

मेरी बात सुन कर राणे बेबस भाव से मुझे देखता रह गया। फिर एकाएक ही उसके होठों पर मुस्कान उभर आई, बोला___"सही कहते हो भाई। मैं समझ सकता हूॅ कि ऐसे हालात में तुम मुझे यकीनन छोंड़ देने का जोखिम नहीं उठा सकते। ख़ैर कोई बात नहीं, जैसा तुम्हें अच्छा लगे करो। और हाॅ मेरी तरफ से बेस्ट ऑफ लक इसके लिए।"

राणे की ये बात सुन कर हम सब मुस्कुराए और फिर केशव जी के इशारे पर एक आदमी ने पुनः राणे के मुख में टेप चिपका दिया। उसके बाद सभी आदमियों को कुछ ज़रूरी हिदायतें दे कर हम सब वहाॅ से बाहर की तरफ चल पड़े।
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उधर अजय सिंह जब हवेली पहुॅचा तो शाम के चार बज चुके थे। अजय सिंह को प्रतिमा ड्राइंग रूम में ही बैठी मिली थी। उसके चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वो अपने पति के लिए कितनी चिंतित व परेशान थी। उसने अपनी वकील दोस्त अनीता ब्यास से फोन पर बात की थी। अनीता के पूछने पर उसने संक्षेप में कुछ बातें बताई थी उसे। उसकी उस दोस्त ने उसे आश्वस्त किया था कि वो चिंता न करे, वो उसके पति को छुड़ाने की पूरी कोशिश करेगी। उसने प्रतिमा से कहा था कि वो शाम को उससे मिलने भी आएगी।

इधर अजय सिंह जैसे ही ड्राइंग रूम में दाखिल हुआ तथा प्रतिमा के बगल वाले सोफे पर बैठा वैसे ही कहीं खोई हुई प्रतिमा का ध्यान अजय सिंह की तरफ गया। उसे पहले तो यकीन नहीं हुआ किन्तु फिर एकाएक ही उसके चेहरे पर पहले हैरानी के भाव उभरे उसके बाद तुरंत ही खुशी के भावों ने उसका मुरझाया हुआ चेहरा ताज़े खिले गुलाब की मानिन्द खिला दिया।

"ओह अजय तुम आ गए।" खुशी से फूली न समाती हुई प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा था किन्तु तुरंत ही उसके चेहरे पर हैरानी व उलझन के भाव भी उभर आए, बोली___"मगर तुम वहाॅ से आ कैसे गए अजय? तुम्हें तो पुलिस का वो एसीपी गिरफ्तार करके ले गया था न? फिर तुम पुलिस से छूट कर आ कैसे गए? क्या पुलिस ने तुम्हें यूॅ ही छोंड़ दिया या फिर तुमने कुछ ऐसा वैसा किया है?"

"मैने कुछ भी ऐसा वैसा नहीं किया है प्रतिमा।" अजय सिंह ने सपाट लहजे में कहा___"बल्कि मुझे मंत्री जी ने पुलिस से ज़मानत पर छुड़ाया है। मगर...।"
"मगर क्या अजय??" प्रतिमा के माॅथे पर बल पड़ा।

"यही कि मंत्री का तो नाम ही है कि उसने मुझे पुलिस से छुड़ाया है।" अजय सिंह ने सोचने वाले भाव से कहा___"सच तो ये कि पुलिस मुझे खुद ही छोंड़ देना चाहती थी।"

"ये..ये क्या कह रहे हो तुम?" प्रतिमा हैरान___"भला पुलिस तुम्हें क्यों छोंड़ना चाहेगी? और....और ऐसा भला तुम कैसे कह सकते हो?"
"बेवकूफी भरे सवाल मत करो प्रतिमा।" अजय सिंह ने नाराज़गी के साथ कहा___"साधारण मामला होता तो सोचा भी जा सकता था कि पुलिस ने मामूली बात पर पकड़ा और फिर छोंड़ भी दिया। किन्तु ये मामला साधारण नहीं था। मैने एसीपी का रिवाल्वर छीन कर उसके सामने ही नीलम को गोली मारी थी। इस लिए इस अपराध के लिए तो मुझे लम्बे से नप जाना चाहिए था। मुझ पर साफ साफ अटेम्प्ट टू मर्डर का केस लगता। तुम अच्छी तरह जानती हो कि इस केस के तहत मेरा कानून से छूटना उस सूरत में तो नामुमकिन ही था जबकि उस संगीन अपराध का चश्मदीद गवाह खुद एसीपी ही था। इतने बड़े अपराध के बावजूद वो मंत्री मुझे बड़ी आसानी से छुड़ा लाया। वो साला समझता होगा कि ये सब उसके रुतबे तथा दबदबे का कमाल है जबकि ऐसा है नहीं। बल्कि सच्चाई यही है कि पुलिस खुद चाहती थी कि मैं सहजता से छूट जाऊॅ। इसका मतलब ये भी हुआ कि उस संगीन अपराध के लिए एसीपी ने मुझ पर कोई केस ही नहीं बनाया है।"

"बात तो तुम्हारी यकीनन सौ पर्शेन्ट सही है।" प्रतिमा के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे___"किन्तु सवाल ये है कि पुलिस ऐसा क्यों चाहेगी कि तुम उसकी गिरफ्त से आसानी से छूट जाओ? दूसरी बात, अगर पुलिस को तुम्हें इस तरह सहजता से छोंड़ ही देना था तो उस वक्त उसने तुम्हें गिरफ्तार ही क्यों किया था?"

"कमाल है।" अजय सिंह ने हैरानी से प्रतिमा की तरफ देखा, फिर बोला___"ये सब तुम पूछ रही हो प्रतिमा? जबकि तुम तो छोटी सी छोटी बात को पकड़ कर उलझी हुई बातों को सुलझाने में माहिर हो।"

"हाॅ मगर।" प्रतिमा ने कहा___"तब जब मन में तुम्हारे प्रति ऐसी चिंता नहीं होती। हलाॅकि सोच तो मैं अभी भी सकती हूॅ। किन्तु तुम खुद ही बता दो तो क्या बुराई है?"

"ये तो साबित हो चुका है कि।" अजय सिंह ने कहा___"विराज मुझसे कानूनी रूप से कोई बदला नहीं लेना चाहता। क्योंकि अगर उसे इस तरीके से लेना ही होता तो वो ये काम पहले ही कर लेता। यानी कि मेरे खिलाफ उसके पास जो सामान है उसे वो पुलिस को सौंप देता और बता देता कि ये सब उसके ताऊ यानी कि मेरा है। बस खेल खत्म। किन्तु उसने ऐसा नहीं किया। मतलब साफ है कि वो जो कुछ भी करेगा अपने तरीके से तथा अपने बलबूते पर करेगा। नीलम व सोनम को यहाॅ से ले जाने वाला वाक्या जब सामने आया तो उसे बखूबी पता था कि हम उसके मंसूबों को नाकाम करने की जी तोड़ कोशिश करेंगे। ये सोच कर उसने भी अपने पक्ष को मजबूत किया। रितू ने उसे सुझाव दिया होगा कि अगर इसके बावजूद उसका पलड़ा कमज़ोर पड़ता है तो उस सूरत में वो पुलिस का सहारा लेगी। पुलिस फोर्स के आ जाने से सारा मामला ही उलट जाएगा और फिर वो बड़ी आसानी से नीलम व सोनम को अपने साथ ले जाएॅगे और कोई कुछ कर भी नहीं पाता। ऐसा हुआ भी। किन्तु उसे ये उम्मीद नहीं थी कि इस सबके बीच नीलम को मेरे द्वारा गोली भी मार दी जाएगी। उनका मकसद तो इतना ही था कि पुलिस के आने के आने के बाद जब मैं और मेरे आदमी कुछ नहीं कर पाएॅगे तो वो बड़े आराम से नीलम व सोनम को ले जाएॅगे और मेरे माॅथे पर एक और हार व नाकामी की मुहर लगा जाएॅगे। किन्तु नीलम को गोली लगने से मामला थोड़ा बिगड़ गया। उसे लगा कि सबके साथ मुझे गिरफ्तार तो होना ही था और फिर बाद मुझे छोंड़ ही दिया जाना था, किन्तु नीलम को गोली मार देने से केस बन जाने वाली बात हो गई थी। केस बन जाने की सूरत में मेरा पुलिस से छूटना मुश्किल हो जाता। जो कि विराज हर्गिज़ भी नहीं चाहता था। तब उसने रितू से कहा होगा कि वो कुछ ऐसा करे कि मुझ पर कोई केस ही न बने। उस सूरत में फिर जब कोई मुझे ज़मानत पर छुड़ाने आएगा तो मैं आसानी से छूट जाऊॅगा। विराज के इस सुझाव को या यूॅ कहो कि उसकी इस इच्छा को रितू ने तुरंत मान लिया होगा और फिर उसने ऐसा ही कोई इंतजाम कर दिया होगा। जिसका नतीजा ये निकला कि बाद में मंत्री मुझे बड़ी आसानी से छुड़ाने में कामयाब हो गया। दैट्स आल।"

"ओह तो ये बात है।" प्रतिमा ने कहा___"वैसे कमाल की बात है कि आज तुम्हारा दिमाग़ भी काफी शार्प साबित हुआ जो इतनी बारीकी से ये सब सोचा और इस सबका जूस निकाल कर भी रख दिया। मगर....।"

"अब क्या हुआ??" अजय सिंह बोल पड़ा।
"तुमने नीलम को जान से मारने की कोशिश क्यों की अजय?" प्रतिमा ने सहसा गंभीर होकर कहा___"उसने तो हमारे साथ ऐसा वैसा कुछ भी नहीं किया था। उस वक्त भी उसने तुमसे उस लहजे में सिर्फ इसी लिए बात की क्योंकि तुमने उससे बात ही ऐसे गंदे तरीके से की थी। तुम खुद सोचो अजय कि तुमने जीत के अहंकार तथा आवेश में आकर कितना ग़लत ब्यौहार किया था। सबके सामने तुम्हें अपनी ही बेटी से उस तरीके से बात नहीं करनी चाहिए थी। क्योंकि इसका असर हमारे ही आदमियों पर पड़ेगा। वो सोचेंगे कि जो इंसान सबके सामने अपनी ही बेटी के साथ ऐसी अश्लीलता और ऐसी कूरता कर सकता है वो वास्तव में कितना घटिया होगा। हाॅ अजय, इससे हमारी ही इमेज ख़राब होती है। कोई भी सभ्य लड़की ये बर्दाश्त नहीं कर पाएगी कि सबके सामने उसका ही बाप उससे ऐसी अश्लीलता से बात करके उसे जलील व शर्मसार करे।"

"यकीनन सच कह रही हो तुम।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेकर कहा___"बाद में मुझे भी एहसास हुआ कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। मगर उस वक्त हालात ही ऐसे बन गए थे कि मैं आपे से बाहर हो गया था। एक तो मैं उस हरामज़ादे की बातों से तथा उसे देख कर पागल हुआ जा रहा था जिसने अब तक मुझे शिकस्त ही दी थी। साला ऐसे ऐसे डाॅयलाग बोल रहा था कि मेरे अंदर उन डायलाग को सुनकर उन्हें सहने की शक्ति ही नहीं बची थी। मुझे लग रहा था कि उस हराम के पिल्ले को कैसे भी करके खत्म कर दूॅ और ऐसा होता भी अगर वहाॅ पुलिस फोर्स न आ गई होती तो। मैं अंदर ही अंदर एक और हार व नाकामी से पागल व ब्यथित हुआ जा रहा था ऊपर से मेरी दोनो बेटियों ने सामने आकर जो कुछ कहा उसने मेरे गुस्से को और भी बढ़ा दिया था। रही सही कसर नीलम ने सबके सामने मुझे थप्पड़ मार कर पूरी कर दी थी। बस उसके बाद मैंने अपना आपा खो दिया और वो सब कर बैठा। तुम खुद अंदाज़ा लगा सकती हो प्रतिमा कि उस वक्त मैं किस मानसिक हालत में रहा होऊॅगा?"

"चलो ये सुन कर अच्छा लगा कि तुम्हें नीलम को गोली मारने वाली बात पर अपनी ग़लती का एहसास हुआ।" प्रतिमा ने कहा___"किन्तु क्या तुम्हारे मन में ये विचार भी उठा है कि तुम्हें एक बार नीलम का हाल चाल जान लेना चाहिए? कुछ भी हो आख़िर वो है तो हमारी बेटी ही।"

"नहीं प्रतिमा।" अजय सिंह का चेहरा एकाएक कठोर हो गया, बोला___"मेरे लिए मेरी दोनो बेटियाॅ अब मर चुकी हैं। इस दुनियाॅ में अब तुम्हारे और हमारे बेटे के अलावा मेरा कोई नहीं है। एक बात और आज के बाद तुम मुझसे उन दोनो के बारे में कोई भी बात नहीं करोगी। ये मेरी पहली और आख़िरी वार्निंग है।"

"मर्द कभी नहीं समझ सकता एक औरत की पीड़ा को।" प्रतिमा ने सहसा भारी स्वर में कहा___"मगर मुझे तुमसे उम्मीद थी अजय कि तुम मेरी पीड़ा को समझोगे।"

"कहना क्या चाहती हो तुम?" अजय सिंह ने अजीब भाव से प्रतिमा की तरफ देखा।
"तुम जानते हो अजय कि मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करती हूॅ जितना पहले करती थी।" प्रतिमा ने कहा___"और मैं जाने कितनी बार तुम्हें अपने बेपनाह प्यार का सबूत भी दे चुकी हूॅ। तुम्हारे सिर्फ एक इशारे पर मैं पराए मर्द के नीचे खुशी खुशी लेट गई। कभी इसके लिए तुमसे शिकायत नहीं की और ना ही तुमसे नाराज़ हुई। तुम्हारी हर खुशी में मैने अपनी खुशी देखी। तुम्हारी तरह सबके लिए कठोर भी बन गई। मगर मैं एक औरत के साथ साथ एक माॅ भी हूॅ अजय। औलाद चाहे जैसी भी हो वो अपनी माॅ के लिए सबसे सुंदर व सबसे अनमोल होती है। मुझे अब तक इतनी ज्यादा तकलीफ़ नहीं हुई थी किन्तु इस हादसे से हुई है। मैं मानती हूॅ कि मेरी दोनो बेटियों ने हमारे खिलाफ जा कर ग़लत किया है मगर जब ये सोचती हूॅ कि उन दोनो ने ऐसा क्यों किया तब इस क्यों के जवाब को सोच कर ही दिल दहल जाता है। आख़िर अपने सामने तो इस सच्चाई को हमें भी मानना ही पड़ेगा न कि हमने अपनी ही बेटियों के साथ तथा बाॅकी सबके साथ ग़लत सोचा और ग़लत किया भी।"

"इन सब बातों को कहने का क्या मतलब है?" अजय सिंह ने कहा___"और....और आज अचानक ये बातें ही क्यों? नहीं प्रतिमा, अब इन सब बातों को सोचने का कोई मतलब नहीं है और सोचना भी नहीं। क्योंकि अब बात बहुत आगे निकल चुकी है। अब तो इसका फैसला दो पक्षों में से किसी एक पक्ष के खत्म हो जाने पर ही होगा। उसके पहले तो कुछ हो ही नहीं सकता। इसके पहले तो ये था कि मैंने ये सब अपने बीवी बच्चों के लिए किया किन्तु अब ये भी है कि जिन चीज़ों की ख्वाहिश थी उसे हर हाल में पूरा करना है। अगर मेरे द्वारा वो सब बरबाद हुए हैं तो उनके द्वारा मेरा भी तो बहुत कुछ नुकसान हुआ। इस लिए अब ऐसी बातें अपने ज़हन में मत लाओ। ख़ैर छोंड़ो, मुझे भी ज़रा फ्रेश होना है। एक बात और, चिंता की कोई बात नहीं है। विराज भले ही मुझे शिकस्त देकर चला गया है मगर बहुत जल्द उसका भी किस्सा खत्म होने वाला है। क्योंकि मंत्री ने उसके पीछे जासूस लगाया हुआ है। वो जासूस बहुत जल्द उसके ठिकाने का पता मंत्री जी को देगा उसके बाद मंत्री विराज के ठिकाने पर धावा बोल देगा। उस साले विराज के साथ साथ तुम्हारी दोनो बेटियों का भी खेल खत्म हो जाएगा।"

ये सब कहने के बाद अजय सिंह उठा और अंदर कमरे की तरफ बढ़ गया। जबकि उसकी बातें सुनने के बाद प्रतिमा पहले तो हैरान हुई फिर सामान्य हो कर बैठी रही। चेहरे पर कई तरह के भाव आते जाते रहे।
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11-24-2019, 01:16 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उस वक्त रात के दो बज रहे थे।
गुनगुन स्थित मंत्री दिवाकर चौधरी के बॅगले के पिछले भाग पर जहाॅ कि अशोक व देवदार जैसे पेड़ लगे हुए थे दो काले साए अॅधेरे में छिपे खड़े थे। दोनो के ही जिस्मों पर काला स्याह लबादा था। यहाॅ तक कि दोनो के चेहरे तथा हाॅथ तक काले कपड़ों से ढॅके हुए थे। चेहरे व सिर पर चढ़े काले मास्क से सिर्फ उनकी ऑखें ही झाॅक रही थी या फिर ये भी कि जब वो दोनो बात करने के लिए मुह खोलते तो उनके दाॅत चमक उठते थे। कहने का मतलब ये कि वो दोनो ही सिर से लेकर पाॅव तक काले किन्तु चुस्त दुरुस्त कपड़ों से ढॅके हुए थे।

बॅगले के चारो तरफ बाउण्ड्री वाल थी जिसमें थोड़ी थोड़ी दूरी पर रोशनी के लिए मध्यम साइज के एलईडी बल्ब लगे हुए थे। बाउण्ड्री वाल के अंदर तथा बाहर दोनो तरफ हाॅथों में गन लिए गार्ड्स भी खड़े नज़र आ रहे थे। रात के इतने समय भी वो सब मुस्तैदी से खड़े थे। उन सभी के जिस्मों पर भी काले ही कपड़े थे तथा सिर पर काली कैप थी।

बॅगले का मुख्य दरवाजा जो कि खालिश स्टील का ही था। उस दरवाजे के पास भी दोनो तरफ गनमैन तैनात थे। ख़ैर हम बात कर रहे थे उन दो रहस्यमय सायों की। ये दोनो ही साए क़रीब दस मिनट से उन पेड़ों के पास अॅधेरे में छिपे खड़े थे। बारह फीट ऊॅची बाउण्ड्री वाल को दोनो ने बड़ी ही दक्षता से लाॅघ लिया था। जिसके लिए उन्हें रस्सी की मदद लेनी पड़ी थी। उनकी चारो ऑखें बड़ी बारीकी से चारो तरफ का अध्ययन कर रही थीं। दोनो ने एक बात नोट की कि जितने भी गनमैन वहाॅ तैनात थे वो सब अपनी जगह पर ही कायम थे। यानी वो सब अपनी पोजीशन नहीं बदलते थे। सिर्फ दो ही ऐसे गनमैन थे जो हर पाॅच मिनट में इस तरफ आते थे और फिर इधर उधर सरसरी सी नज़र डाल कर वापस लौट जाते थे।

बाउण्ड्री वाल से बॅगले की इमारत की दूरी लगभग बीस फुट थी। नीचे ज़मीन पर चारो तरफ विदेशी घाॅस उगी हुई थी। बाउण्ड्री वाल की तरफ ही ये सारे पेड़ लगे हुए थे। हलाॅकि बीच बीच में ऐसे छोटे छोटे पौधे भी लगे हुए थे जो अक्सर बाग़ों की शोभा बढ़ाने के उपयोग में आते थे। किन्तु ये पौधे दो तरफ ही दिख रहे थे। सामने की तरफ विदेशी घाॅस तो थी ही साथ ही बीचो बीच सफेद मारबल लगा हुआ था जो कि मुख्य दरवाजे तक था।

इस बार जब वो दोनो गनमैन आकर वापस लौटे तो उन दोनो सायों की नज़रें आपस में मिलीं और फिर दोनो ही बारी बारी पेड़ के पास से निकल कर बड़ी तेज़ी से इमारत की दीवार की तरफ उस हिस्से की तरफ बढ़े जहाॅ पर लगभग पंद्रह फुट की ऊॅचाई पर एक शीशे की खिड़की थी तथा उस खिड़की के सामने ही छोटी सी बालकनी थी। खिड़की पर देखने से ऐसा प्रतीत होता था जैसे अंदर अॅधेरा हो। बालकनी में भी स्टील की रेलिंग लगी हुई थी। ये हिस्सा बॅगले के बाएॅ साइड था।

बालकनी के नीचे पहुॅचते ही एक साए ने तुरंत ही अपने हाॅथ में ली हुई रस्सी को एक हाॅथ से गोल गोल घुमाया और फिर तेज़ी से ऊपर की तरफ उछाल दिया। रस्सी बड़े वेग से लहराती हुई ऊपर की तरफ गई और रेलिंग के ऊपरी भाग से ऊपर उठ कर वापस नीचे की तरफ आने को हुई तो वो रेलिंग के दूसरे हिस्से से पर फॅस गई। हलाॅकि रस्सी के छोर पर लगे लोहे के मामूली से राॅड से आवाज़ हुई किन्तु वो आवाज़ बहुत धीमी हुई थी। क्योंकि वो राॅड स्टील में लगने के साथ ही नीचे से ऊपर की तरफ उठा तो वो बीच से निकल कर नीचे दीवार पर टकरा गया था।

"जल्दी करो।" दूसरे साए ने धीमी आवाज़ में उस पहले साए से कहा जिसने रस्सी को ऊपर बालकनी की तरफ उछाला था, बोला___"हमें पाॅच मिनट से पहले ऊपर पहुॅचना होगा। वरना वो दोनो गनमैन फिर से इधर आ जाएॅगे।"

"बस हो ही गया है।" पहले साए ने ऊपर देखते हुए अपने एक हाॅथ को हल्का सा झटका दिया। परिणामस्वरूप दीवार के पास ही झूल रहा वो मामूली सा राॅड तेज़ी से नीचे सरका और कुछ ही पलों में पहले वाले साए के हाॅथ में आ गया। राॅड के हाॅथ में आते ही उसने दूसरे साए की तरफ देख कर बोला___"गो।"

पहले साए की बात सुनते ही दूसरा साया तेज़ी से आगे बढ़ा और रस्सी के दोनो भागों को पकड़ कर पहले उसे हल्का सा अपनी तरफ खींचा। जैसे चेक कर रहा हो कि सब ठीक है कि नहीं। उसके बाद वो दोनों हाॅथों से रस्सी को थोड़ा और ऊपर से पकड़ा और फिर झूल गया। कुछ ही पलों में वो रस्सी में झूलता हुआ ऊपर बालकनी के पास पहुॅच गया। नीचे खड़ा पहला साया चारो तरफ देख रहा था। तभी ऊपर पहुॅच गए साये ने रस्सी को झटका दिया तो नीचे खड़े साए ने उसकी तरफ देखा। ऊपर पहुॅच चुके साए ने हाॅथ के इशारे से उसे ऊपर आने को कहा।

उसका इशारा मिलते ही पहला वाला साया भी रस्सी को पकड़ कर ऊपर झूलते हुए कुछ ही पलों में पहुॅच गया। उसके पहुॅचते ही दूसरे साए ने रस्सी को ऊपर खींच लिया। तभी पहले वाले साए ने नीचे देखा, वो दोनो गन मैन इसी तरफ आ रहे थे। ये देख कर दोनो साए वहीं बालकनी पर बैठ कर छिप गए। थोड़ी ही देर में उन्होंने देखा कि वो दोनो गन मैन वापस जा रहे हैं तो ये दोनो भी उठ गए।

"चलो अब काम पर लग जाओ।" दूसरे साए ने धीमी आवाज़ में कहा___"किन्तु सावधानी से।"
"जो हुकुम।" पहले साए ने अदब से सिर को हल्का सा खम करते हुए धीमी आवाज़ में कहा।

पहले वाले साए ने पलट कर खिड़की को देखा। उस खिड़की पर शीशा लगा हुआ था तथा दो पल्लों की खिड़की थी। पहले साए ने खिड़की में हाॅथ लगा कर उसे अंदर की तरफ हल्के से पुश किया तो कुछ न हुआ। मतलब साफ था खिड़की के दोनो पल्ले अंदर से बंद थे।

"ये अंदर से बंद है।" पहले वाले साए ने पलट कर दूसरे साए से कहा___"शुकर है कि हम काॅच काटने वाला हीरा लेकर आए थे, लाओ उसे।"
"ऐसे काम के लिए।" दूसरे साए ने धीरे से कहा___"ऐसी चीज़ की ज़रूरत तो पड़ती ही है।"

दूसरे साए ने कहा और अपने काले लबादे से हीरा निकाल कर पहले वाले साए के हाथ में दे दिया। हीरा लेकर पहला साया वापस मुड़ा और दाहिने पल्ले में एक हाॅथ जमा कर हीरे से पल्ले पर लगे शीशे को खास तरीके से काटना शुरू कर दिया। उसके दूसरे हाॅथ में एक अजीब सी चीज़ थी जो कि शीशे से ही चिपकी हुई थी। कुछ ही देर में शीशे का एक आयताकार टुकड़ा कट गया। पहले साए ने अपने दूसरे हाॅथ को अपनी तरफ बहुत ही सावधानी से खींचा। नतीजा ये हुआ कि वो कटा हुआ टुकड़ा उस अजीब सी चीज़ से चिपका हुआ अपनी जगह से बाहर आ गया।

अभी पहला साया उस टुकड़े को खींचा ही था कि दूसरे साए ने धीरे से कहा कि जल्दी से किन्तु सम्हल कर बैठ जाओ, क्योंकि नीचे वो दोनो गन मैन इस तरफ वापस आ गए हैं। अगर हम दोनो बालकनी में खड़े रहेंगे तो संभव है कि वो ऊपर देखें और फिर उनकी नज़र हम दोनो पर पड़ जाए। साये की बात सुन कर दोनो ही वहीं पर दुबक कर बैठ गए थे। ख़ैर कुछ ही देर बाद जब वो दोनो गन मैन वापस चले गए तो ये दोनो साए भी उठ कर खड़े हो गए।

पहले वाले साए ने काॅच का वो टुकड़ा बैठे समय ही बालकनी में एक तरफ रख दिया था। अतः अब उसने खिड़की के कटे हुए हिस्से में अपना दाहिना हाॅथ सावधानी से डाला और फिर अंदर से ही नीचे की तरफ लाकर उसने खिड़की की कुण्डी को तलाशा और उसे ऊपर उठा कर खोल दिया। उसके बाद उसने अंदर से ही दूसरे पल्ले की कुण्डी को भी खोल दिया। साये को अंदर की तरफ पर्दा लगा होने का भी पता चला। ख़ैर, अपना हाॅथ सावधानी से बाहर निकाल कर उसने खिड़की के दोनो पल्लों को अंदर की तरफ पुश किया तो हल्की सी आवाज़ हुई किन्तु दोनो ही पल्ले अंदर की तरफ खुले न। पहले साये को समझते देर न लगी कि पल्लों के अंदर की तरफ ऊपर भी कुण्डियाॅ हैं जो कि बंद हैं। अतः साए ने फिर से उसी कटे हुए भाग से अंदर हाथ डाला और फिर ऊपर हाॅथ करके ऊपर की कुण्डी को नीचे की तरफ हल्के से खिसका दिया। ऐसा ही उसने दूसरे पल्ले पर भी किया।

थोड़ी ही देर में खिड़की के दोनो पल्ले अंदर की तरफ पुश किये जाने से खुलते चले गए। ये देख कर दोनो सायों के होठों पर मुस्कान उभर आई। जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि खिड़की के अंदर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि अॅधेरा था। हलाॅकि खिड़की में अंदर की तरफ पर्दे लगे होने की वजह से भी अॅधेरे का आभास हो सकता था। अतः पहले साए ने पल्ले खोलने के बाद अॅधेरे में डूबे पड़े कमरे की तरफ अपने कान लगा दिया। कदाचित इस लिए कि वो अंदर की किसी भी चीज़ की आहट को सुन सकें। किन्तु अंदर से कोई भी बारीक से बारीक आवाज़ नहीं आ रही थी। मतलब साफ था कि कमरा पूरी तरह खाली था। उसमें किसी भी आदमी का कोई वजूद नहीं था।

पहले साए ने एक छोटी सी पेंसिल टार्च अपने लबादे से निकाली और कमरे के अंदर की तरफ एक हाॅथ से पर्दे को हटा कर उसे रौशन किया। पेंसिल टार्च के प्रकाश का हल्का सा फोकस कमरे के अंदर की हर चीज़ पर साए के द्वारा हाॅथ से घुमाने पर घूमने लगा। कमरे के बाएॅ तरफ ही एक आलीशान बेड नज़र आया। उसके कुछ ही फाॅसले पर दो सोफे रखे नज़र आए। खिड़की के नीचे लगभग तीन फुट की दूरी पर कमरे का फर्स था जिसमें बेहतरीन टाइल्स लगी हुई नज़र आई। सारी चीज़ों को देखने के बाद पहला साया आराम से पर्दा हटा कर खिड़की के रास्ते कमरे में आ गया। उसके बाद दूसरा साया भी आ गया।

कमरे में आते ही दूसरे साए ने खिड़की के दोनो पल्ले बंद किये और फिर सावधानी से पर्दा खींच दिया। उसके बाद पेंसिल टार्च की मदद से ही हर जगह को बारीकी से देखने लगे। दीवार पर लगी पेंटिंग्स से ही पता चला कि ये कमरा मंत्री के बेटे सूरज चौधरी का है। दीवार पर कई जगह उसकी खुद की भी फोटो लगी हुई थी साथ ही कई जगह ऐसी पेंटिंग्स भी लगी हुई थी जो कि लड़कियों व औरतों की नग्नता को उजागर कर रही थी।

"ज़रा चेक करो कि कमरे का दरवाजा अनलाॅक है या नहीं।" दूसरे साए ने धीरे से कहा___"और अगर अनलाॅक है तो तुम यहाॅ से उस कमरे में जाने की कोशिश करो जो कमरा खुद मंत्री का हो। वहाॅ जा कर बारीकी से हर चीज़ को देखो। इस वक्त मंत्री अपने इस आवास पर नहीं है। किसी ज़रूरी काम से बाहर गया हुआ है। फिर भी ज़रा सावधानी से काम लेना। अब जाओ।"

दूसरे साए की बात सुन कर पहला साया कमरे के दरवाजे की तरफ बढ़ा। दरवाजे के पास पहुॅच कर उसने दरवाजे के हैण्डल को पकड़ कर घुमाया मगर वह घूमा नहीं। इसका मतलब कमरा बाहर से लाॅक था। बात भी जायज़ थी, मंत्री का बेटा तो यहाॅ था नहीं इस लिए मंत्री ने या फिर उसके किसी कर्मचारी ने इस कमरे को बाहर से लाॅक कर दिया होगा। ख़ैर, दरवाजे को लाॅक जान कर वो साया पलट कर दूसरे साए के पास आया और उसे बताया कि दरवाजा बाहर से लाॅक है। उसकी बात सुन कर दूसरे साए ने अपने लबादे से निकाल उसके हाॅथ में कोई चीज़ दी।

पहले साए ने पेंसिल टार्च की रोशनी में उस चीज़ को देखा तो अनायास ही उसके होठों पर मुस्कान उभर आई। दरअसल वो चीज़ "मास्टर की" थी। फिर क्या था, मास्टर की लेकर पहला साया तुरंत दरवाजे के पास गया और दरवाजे पर लगे हैण्डिल के कीहोल में उस मास्टर की को डाला और विपरीत दिशा में घुमा दिया। नतीजा ये हुआ कि दरवाजा अनलाॅक हो गया। ये देख कर वो साया एक बार फिर मुस्कुराया और फिर दरवाजे को अपनी तरफ सावधानी से खींचा। दरवाज़े के बाहर गैलरी थी जो कि एलईडी ट्यूब लाइट तथा बल्बों के प्रकाश से रौशन थी।

बाहर बल्बों का प्रकाश देख कर साया अपनी जगह रुक गया। कदाचित वो सोचने लगा था कि रोशनी में वो आगे कैसे बढ़े? किन्तु शायद बढ़ना ज़रूरी था। अतः उसने दरवाजे से अपना सिर बाहर निकाल कर गैलरी के दोनों तरफ देखा। गैलरी पूरी तरह सुनसान पड़ी थी। हलाॅकि गैलरी बहुत लम्बी नहीं थी, बल्कि कुछ ही दूरी पर वो विपरीत दिशा में मुड़ गई थी। साये ने कुछ देर सोचने में लगाया और फिर बड़ी सावधानी से दरवाजे से बाहर गैलरी में आ गया। सनसान गैलरी पर सावधानी से चलते हुए वो मोड़ तक आ गया। मोड़ पर ठिठक कर उसने दूसरी तरफ की किसी भी आहट को सुनने के लिए दीवार के किनारे की तरफ अपना कान सटा दिया।

थोड़ी ही देर में वह अपनी जगह से हिला और गैलरी के मोड़ पर मुड़ गया। किन्तु थोड़ी ही दूर जाने के बाद उसे वापस लौटना पड़ा क्योंकि आगे गैलरी समाप्त थी। आगे कोई रास्ता नहीं था। साये को समझ आ गया कि वह दूसरी तरफ आ गया है। तभी तो उसे यहाॅ पर कहीं कोई दूसरे कमरे का दरवाजा नहीं दिखा था। ख़ैर, वापस उसी जगह आकर वह दूसरी साइड वाली गैलरी की तरफ बढ़ चला। आठ दस कदम चलने के बाद ही उसे अंदर की तरफ वाली बालकनी की रेलिंग नज़र आई। रेलिंग के पास पहुॅच कर उसने देखा कि बालकनी दोनो तरफ थी लगभग बीस कदम की दूरी पर उसे नीचे जाने के लिए सीढ़ियाॅ नज़र आई। रेलिंग के दूसरी तरफ नीचे काफी बड़ा ड्राइंगरूम नज़र आया। अपने स्थान पर खड़ा साया कुछ देर तक कुछ सोचता रहा फिर वह बाएॅ साइड की तरफ बढ़ चला। कुछ ही दूरी पर उसे एक और गैलरी नज़र आई। उसने गैलरी की तरफ देखा तो उसे एक कमरे का दरवाजा नज़र आया। दरवाज़ा देख कर वह तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा। थोड़ी ही देर में वो दरवाजे के पास पहुॅच गया। दरवाजे के हैण्डिल को पकड़ कर उसने उसे घुमाया तो पता चला कि वो लाॅक है। ये देख कर उसने फौरन ही अपने लबादे से वो मास्टर की निकाली और की होल में चाभी डाल कर घुमा दिया। दरवाजा हल्की सी आवाज़ के साथ खुल गया।

उसने बहुत ही आहिस्ता से दरवाजे को अंदर की तरफ पुश किया तो पता चला अंदर अॅधेरा है। साया कुछ देर तक किसी तरह की आवाज़ को सुनने की कोशिश करता रहा मगर कोई आवाज़ उसे अंदर की तरफ से सुनाई नहीं दी। ये महसूस कर उसने लबादे से पैंसिल टार्च निकाली और उसके प्रकाश को कमरे के अंदर की तरफ फोकस किया। फोकस जिस चीज़ पर पड़ा वो बेड था। किन्तु बेड पर कोई इंसान सोया हुआ नज़र न आया। साया बेख़ौफ अंदर दाखिल हो गया। कमरे के अंदर हर चीज़ को उसने पैंसिल टार्च की रोशनी में देखा। मगर उसे ऐसा कुछ नज़र न आया जिसे शायद उसे तलाश थी।

लगभग दस मिनट बाद वह कमरे से वापस बाहर आ गया। अभी वह दरवाजे से बाहर निकला ही था किसी से टकरा गया। किसी दूसरे ब्यक्ति के होने की आशंका से ही वह बुरी तरह हड़बड़ा गया। किन्तु जैसे ही टकराने वाले पर उसकी नज़र पड़ी तो सामान्य हो गया। टकराने वाला वो दूसरा साया था जो उसके साथ ही यहाॅ इस तरह आया था।

"क्या हुआ?" उस दूसरे साये ने धीमी आवाज़ से पूछा___"कुछ मिला क्या??"
"नहीं।" पहले वाले ने कहा___"अभी तो यही नहीं पता चल रहा कि मंत्री का निजी कमरा कौन सा है? वो यहाॅ ऊपर है या फिर नीचे है।"

"पता तो करना ही पड़ेगा।" दूसरे साए ने कहा___"मंत्री के परिवार में उसके दो बच्चे ही हैं। बीवी कुछ साल पहले ही ईश्वर को प्यारी हो चुकी है। ख़ैर, इस वक्त क्योंकि मंत्री अपने आवास पर नहीं है इस लिए ये बॅगला अंदर से खाली ही है। बाहर गनमैन तैनात हैं। हमें जल्द से जल्द मंत्री के कमरे को ढूॅढ़ना होगा।"

"ठीक है।" पहले वाले ने कहा___"मैं नीचे की तरफ चेक करता हूॅ।"
"ओके।" दूसरे वाले ने कहा___"अगर तुम्हें या मुझे मंत्री का कमरा मिलता है तो तुरंत फोन पर मिस काल देना है। फोन बाइब्रेशन पर है अतः बाइब्रेशन से ही पता चल जाएगा। अब जाओ तुम।"

दूसरे साए की बात सुन कर पहला साया सीढ़ियों की तरफ तेज़ी से बढ़ गया। आख़िर काफी मसक्कत के बाद मंत्री का कमरा मिल ही गया। मंत्री का कमरा नीचे ही था। पहले साये ने दूसरे साये को फोन पर मिस काल देकर सूचित कर दिया। थोड़ी ही देर में वो दोनो मंत्री के कमरे में थे।

मंत्री चूॅकि बॅगले में नहीं था इस लिए बॅगले के अंदर कोई था ही नहीं। बॅगले के बाहर गनमैन ज़रूर तैनात थे किन्तु उनमें से किसी को भी इस बात का अंदेशा नहीं था कि बॅगले के अंदर दो चोर बड़ी सफाई से उनकी ऑखों में धूल झोंक कर घुस चुके हैं। ख़ैर, दोनो सायों ने मंत्री के कमरे में जाकर सबसे पहले तो दरवाजे को अंदर से बंद किया उसके बाद जिस काम के लिए आए थे उस काम में लग गए। कमरे में पहले से ही नाइट बल्ब जल रहा था। किन्तु पहले वाले साए ने तेज़ रोशनी के लिए मेन बल्ब भी जला दिया। अब कमरे में तेज़ प्रकाश था तथा कमरे में रखी हर चीज़ स्पष्ट नज़र आने लगी थी।

दोनो ने बहुत ही बारीकी से हर चीज़ को देखना शुरू कर दिया। दोनो के हाव भाव से ऐसा लग रहा था जैसे वो इस काम में काफी माहिर हों। लगभग बीस मिनट की मेहनत के बाद वो दोनो ही इस तरह एक दूसरे के पास खड़े हो गए जैसे किसी चीज़ के न मिलने से बेहद चिंतित व परेशान हो गए हों।

"लगता है यहाॅ कुछ नहीं है।" पहले साए ने धीमी आवाज़ से कहा___"मंत्री ने उन चीज़ों को ज़रूर किसी ऐसी जगह छुपाया होगा जहाॅ पर वो चीज़ें किसी बाहरी आदमी को किसी सूरत में न मिल सकें।"

"वो चीज़ें ऐसी हैं भी नहीं जो इतनी आसानी से हमें मिल जाएॅगी।" दूसरे साये ने कहा___"ऐसी चीज़ों को तो हर इंसान सात तिज़ोरियों के अंदर ही छुपा कर रखता है। इस लिए हमें ऐसी ही किसी जगह को तलाश करना होगा जहाॅ पर हमारी नज़रें पड़ी तो हों किन्तु हमने उस जगह को अंजाने में नज़रअंदाज़ कर दिया हो।"

"हाॅ ये भी सही कहा।" पहले साए ने इधर उधर नज़रें घुमाते हुए कहा___"तो ठीक है एक बार फिर से हम हर जगह बारीकी से चेक करते हैं। संभव है कि इस बार हमारे हाॅथ कुछ लग ही जाए।"
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11-24-2019, 01:16 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
पहले साए की बात सुन कर दूसरे साए ने सहमति में सिर हिलाया और फिर से वो हर जगह का बारीकी से मुआयना करने में लग गया। कमरे में मौजूद हर चीज़ बेसकीमती थी। फिर चाहे वो मंत्री का बेड हो, सोफे हों, फर्श में बिछा कालीन हो या फिर दीवारों पर लगी पेंटिंग्स।

पहला साया बेड के दाहिने साइड की दीवार की तरफ देख रहा था। उस दीवार पर हर दीवार की तरह ऊॅचाई पर पेंटिंग्स लगी हुई थी किन्तु पेंटिंग्स के नीचे दीवार पर नीचे से लगभग छः फुट की ऊॅचाई पर ऐसे नक्काशी की गई थी जैसे किसी बड़े से आदम कद शीशे के फ्रेम पर खूबसूरत नक्काशी की हुई होती है। दरअसल दीवार पर वो एक फ्रेम जैसा ही कुछ बना हुआ था। किन्तु फ्रेम के अंदर का भाग खाली था। यानी कि उसमें कोई चित्र वगैरह नहीं बना हुआ था। बल्कि ऐसा लगता था जैसे कि किसी बड़ी सी चीज़ का सिर्फ फ्रेम बना दिया गया हो। पहला साया दीवार में बने उस खाली फ्रेम को बड़े ध्यान से देखने लगा। एकाएक ही उसकी ऑखें सिकुड़ीं। उसने तुरंत ही दीवार के इधर उधर किसी खास चीज़ की तलाश में अपनी नज़रें दौड़ाईं।

दीवार पर बने उस फ्रेम के बाईं तरफ एक मध्यम साइज़ की पेंटिंग लगी हुई थी। पहला साया जाने क्या सोच कर उस पेंटिंग की तरफ बढ़ा। पेंटिंग के पास पहुॅच कर उसने अपने एक हाॅथ से पेंटिंग के फ्रेम को पकड़ कर बाईं तरफ किया। पेंटिंग के निचले भाग के बाईं तरफ होते ही जो चीज़ नज़र आई उसे देख कर साये की ऑखें पहले तो हैरत से फटीं फिर एकाएक ही उनमें चमक आ गई। उसने तुरंत ही पलट कर दूसरे साये को धीमी आवाज़ देकर अपने पास बुलाया।

दूसरे साये के पास आते ही उसने उस साये को भी पेंटिंग के पीछे दीवार पर नज़र आ रही उस चीज़ को दिखाया। दरअसल वो चीज़ एक छोटे से कम्प्यूटर के माॅनीटर जैसी थी। ऊपरी तरफ दीवार से चिपकी हुई स्क्रीन और स्क्रीन के नीचे कीबोर्ड। स्क्रीन के ऊपरी भाग पर दो कलर की बत्तियाॅ थीं। जिनमें से एक हरी तथा दूसरी लाल कलर की थी। लाल कलर वाली बत्ती इस वक्त रौशन थी। स्क्रीन पर लिखा था "प्लीज इन्टर योर पासवर्ड"।

"मुझे लगता है कि।" पहले साए ने धीमे स्वर में कहा___"ये किसी ऐसी जगह के लिए है जहाॅ पर जाने के लिए इसमें सबसे पहले पासवर्ड डालना पड़ता है।"
"बिलकुल ठीक कहा तुमने।" दूसरे साये ने दीवार पर इधर उधर नज़र दौड़ाते हुए कहा____"किन्तु यहाॅ पर ऐसा तो कुछ नज़र नहीं आ रहा जिससे ऐसा प्रतीत होता हो कि यहाॅ से कहीं दूसरी जगह जाने का कोई रास्ता हो।"

"ज़रा इस चीज़ को देखिए।" पहले साए ने दाहिनी तरफ दीवार पर नज़र आ रहे उस खाली फ्रेम की तरफ इशारा करते हुए कहा___"इस दीवार पर ये छः फीट ऊॅचा तथा साड़े तीन फीट चौड़ा फ्रेम भला किस उद्देश्य से बनवाया गया होगा? अगर ये मान कर चलें कि ये दीवार पर महज शोभा बढ़ाने के लिए बनवाया गया है तो फिर इसी तरह के सेम फ्रेम दो तरफ की दीवारों पर भी बने होने चाहिए थे। एक तरफ तो कमरे का दरवाजा है। अतः उस तरफ ना भी बनवाया जाता तो कोई बात न थी। किन्तु ऐसा फ्रेमनुमा डिजाइन सिर्फ इसी एक तरफ की दीवार पर क्यों बनवाया गया हो सकता है?"

"यकीनन तुम्हारी बात में प्वाइंट है।" दूसरे साए ने दीवार पर बने उस फ्रेम की आकृति को गौर से देखते हुए कहा___"अगर इस स्क्रीन से ये पता चलता है कि ये किसी चीज़ के लिए पासवर्ड माॅग रहा है तो ये भी हो सकता है कि यहाॅ पर कोई ऐसी जगह हो सकती है जहाॅ जाने के लिए हमें इसमें पासवर्ड डालना होगा। इसका मतलब ये हुआ कि यहाॅ पर कहीं कोई दूसरी जगह भी है जहाॅ जाने का रास्ता बना होगा। जोकि फिलहाल हमें नज़र नहीं आ रहा। हलाॅकि ऐसा भी हो सकता है कि ये माॅनीटर सिस्टम किसी और ही चीज़ के लिए हो।"

"बिलकुल हो सकता है।" पहले साए ने कहा___"किन्तु इस कमरे में ऐसे खास सिस्टम का उपयोग भला किस चीज़ के लिए हो सकता है? मुझे लगता है कि ये इलेक्ट्रिक सिस्टम लगाया ही इस लिये गया है कि इसके माध्यम से ही हमें कहीं जाने का रास्ता नज़र आए। कहने का मतलब ये कि अगर हम इस स्क्रीन पर सही पासवर्ड डाल दें तो मुमकिन है कि किसी जगह जाने का रास्ता नज़र आ जाए या फिर रास्ता ही बन जाए। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि कुछ और ही हो जाए।"

"हाॅ ये सही कहा तुमने।" दूसरे साए ने कहने के साथ ही दीवार पर बने उसी फ्रेम की तरफ पुनः देखा___"कहीं ऐसा तो नहीं कि ये फ्रेम ही वो रास्ता हो। बेशक ऐसा ही हो सकता है क्योंकि ये फ्रेम नीचे फर्श से ऊपर की तरफ है। दूसरी बात इसका साइज बिलकुल वैसा ही है जैसे किसी दरवाजे का होता है। वरना सोचने वाली बात है कि अगर ऐसा कोई फ्रेम सिर्फ कमरे की शोभा बढ़ाने के लिए बनाया गया होता तो ये फर्श से लगा हुआ नहीं होता बल्कि फर्श से एक या दो फीट की ऊॅचाई से बना हुआ होता। तीसरी बात ये बनाया ही इस तरह गया है कि आम इंसान इसे देख कर यही समझेगा कि ये सिर्फ एक फ्रेम ही है जो कि कमरे की शोभा बढ़ाने के लिए एक तरफ की दीवार पर बनाया गया है।"

"इसका मतलब कि ये साबित होता हुआ नज़र आ रहा है कि ये फ्रेम कहीं जाने का दरवाजा ही है।" पहले साये ने कहा___"और ये तभी खुलेगा जब हम इस इलेक्ट्रिक सिस्टम में पासवर्ड डालेंगे?"

"करेक्ट।" दूसरे साये ने कहा____"अब सवाल ये है कि इसका पासवर्ड क्या होगा?"
"इसका कीबोर्ड बिलकुल वैसा ही है जैसे किसी कम्प्यूटर का होता है।" पहले साये ने उस स्क्रीन से लगे ही कीबोर्ड की तरफ देखते हुए कहा___"इसका पासवर्ड किसी के नाम से अथवा किन्हीं संख्याओं से भी हो सकता है।"

"बेशक हो सकता है।" दूसरे साए ने कहा___"और ये हमारे लिए काफी चिंता का विषय भी हो गया है। क्योंकि अगर हमें इसका सही पासवर्ड न मिला तो ये दरवाजा नहीं खुलेगा। मुझे पूरा यकीन है कि इस दरवाजे के पार ही ऐसी वो जगह है जहाॅ पर हमें वो चीज़ें मिल सकती हैं जिसके लिए हम यहाॅ आए हैं। हलाॅकि ये सिर्फ हमारा अंदेशा ही है कि यहाॅ पर कोई दरवाजा हो सकता है जहाॅ पर जाने के लिए ये इलेक्ट्रिक सिस्टम लगाया गया है। ऐसा भी हो सकता है कि इसका उपयोग इसके अलावा भी किसी और चीज़ के लिए हो। किन्तु एक बार चेक तो करना ही चाहिए हमें। संभव है कि वैसा ही हो जैसे का हमें अंदेशा है।"

"कुछ भी हो सकता है। मगर चेक तो यकीनन करना ही पड़ेगा। ख़ैर, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि इसका पासवर्ड यहीं कहीं मौजूद हो?" पहले साये ने कहा___"मेरे कहने का मतलब है कि इसका पासवर्ड मंत्री ने आलमारी में ही कहीं छुपा कर रखा हुआ हो। मैं ऐसा ये सोच कर कह रहा हूॅ कि जब ये सिस्टम लगवाया गया होगा तब इसका सबकुछ नया नया ही रहा होगा। शुरू शुरू में किसी भी चीज़ का पासवर्ड हमें इतना जल्दी याद नहीं होता और अगर याद हो भी गया तो उसके भूल जाने के चान्सेस ज्यादा रहते हैं। ऐसा हम सबके साथ होता है। इस लिए ऐसा मुमकिन है कि जैसे हम किसी चीज़ का पासवर्ड अलग से लिख कर उसे सम्हाल कर रख लेते हैं वैसे ही मंत्री ने भी किया हो।"

"सही कहा तुमने।" दूसरे साये ने कहा___"ऐसा हो सकता है। मंत्री ने इसका पासवर्ड यहीं कहीं छुपा कर रखा होगा। अतः हम कमरे में रखी इन आलमारियों की तलाशी लेते हैं।"

दूसरे साये की बात सुन कर पहले साये ने हाॅ में सिर हिलाया और फिर दोनो ही कमरे में रखी तीन तीन आलमारियों की तरफ बढ़े। उन तीन आलमारियों में एक अनलाॅक थी जबकि बाॅकी की दो आलमारियाॅ लाॅक थी। दोनो ने एक एक लाॅक आलमारी को सम्हाल लिया। मास्टर की से दोनो आलमारियों को अनलाॅक किया और फिर उसके अंदर तलाशी अभियान शुरू कर दिया।

दोनो ही आलमारियों में कई तरह के काग़जात भरे पड़े थे। जिन्हें उलट पलट कर वो दोनो ही साये बारीकी से देख रहे थे। किन्तु उन कागजातों में उन्हें उस सिस्टम का पासवर्ड जैसा कुछ न मिला। आलमारी के अंदर ही एक और लाॅकर था जोकि बंद था। उन दोनों ने उन लाॅकरों को भी मास्टर की से खोला। अंदर वाले लाॅकर्स में काफी सारी ज्वेलरी तथा बैंक की काॅपी पासबुक वगैरह थी तथा काफी सारे नोटों के बंडल भी थे।

तभी दूसरे साये को उस लाॅकर से कुछ मिला जिसे उसने लाॅकर से बाहर निकाला। वो एक डायरी थी। दूसरे साये ने उस डायरी को खोल कर उसके हर पेज को बारीकी से देखना शुरू कर दिया। उसमें काफी कुछ चीज़ें लिखी हुई थी। काफी सारे पेज़ देखने के बाद सहसा एक पेज पर साये की नज़र ठहर गई।

"मिल गया।" साये के मुख से ज़रा ऊॅची आवाज़ निकल गई। मारे खुशी के उसे होश ही नहीं रह गया था कि वो दोनो इस वक्त मंत्री के बॅगले में चोर की हैंसियत से आए हुए हैं। वो तो शुकर था कि बॅगले के अंदर कोई था नहीं वरना उसकी इस आवाज़ से ज़रूर किसी न किसी को पता चल जाता। ख़ैर उसकी आवाज़ से और तो किसी को पता न चला किन्तु पहला साया ज़रूर चौंक कर उसकी तरफ देखने लगा था। दूसरे साये को भी तुरंत ही ख़याल आ गया था कि खुशी के आवेश में उसके मुख से कुछ ज्यादा ही ऊॅची आवाज़ निकल गई थी। दोनो ही कुछ देर अपनी साॅसें रोंके खड़े रहे।

पहला साया दूसरे वाले के पास आया और फिर उसकी तरफ देख कर बोला___"बाहर जो गनमैन तैनात हैं उन्हें यहाॅ बुलाना है क्या?"
"साॅरी।" दूसरा साया बोला___"मारे खुशी के याद ही नहीं रह गया था कि हम यहाॅ चोर बन कर आए हुए हैं। ख़ैर, ये देखो। हमें जिसकी तलाश थी वो इस डायरी में है। तुम्हारा कहना बिलकुल सही था कि मंत्री ने उस सिस्टम का पासवर्ड अलग से कहीं लिख कर छुपाया हुआ होगा।"

"तो फिर देर किस बात की है?" पहले साये ने धीमें स्वर में मुस्कुराते हुए कहा___"हमें यहाॅ पर आए हुए काफी समय हो गया है। इस लिए अब हमें जल्दी जल्दी अपने काम को अंजाम देना होगा। ऐसा न हो कि मंत्री वापस लौट आए यहाॅ। साला दुर्भाग्य को कोई नहीं जानता कि कब किसके सिर पर आ धमके।"
"सही कहा तुमने।" दूसरे साये ने कहा___"आओ फिर शुरू करते हैं।"

कहने के साथ ही दूसरा साया उस सिस्टम की तरफ बढ़ चला, उसके पीछे पीछे ही पहला साया भी बढ़ चला था। सिस्टम के पास पहुॅच कर दूसरे साये ने डायरी पर लिखे पासवर्ड को सिस्टम पर बड़ी सावधानी से डाला और फिर इंटर का बटन दबा दिया। इन्टर का बटन दबाते ही स्क्रीन के ऊपर लगी हरी बत्ती जल उठी साथ ही स्क्रीन पर "वैलकम" लिखा नज़र आया। ये देख कर वो दोनो साये अभी मुस्कुराये ही थे कि तभी उनके दाहिनी तरफ हल्की सी आवाज़ हुई। दोनो ने पलट कर उस तरफ देखा।

दीवार में जिस जगह वो फ्रेम बना हुआ था उसी फ्रेम के बीचों बीच से एक दरवाजा खुलता हुआ अंदर की तरफ जाने लगा था। वो एक ही पल्ले का मोटा सा दरवाजा था। जो बंद होने पर बिलकुल दीवार की तरह ही नज़र आता था। कुछ ही पलों में वो दरवाजा पूरा खुल कर दाहिने साइड हो गया। दरवाजे के उस तरफ अॅधेरा था जो कि इस तरफ के उजाले से थोड़ा दूर हो गया था। दोनो ही साये दरवाजे के पास आकर खड़े हो गए। दरवाजे से आगे लगभग तीन फीट पर फर्श था उसके बाद नीचे जाने के लिए सीढ़ियाॅ नज़र आ रही थीं।

"कमाल है।" पहला साया बोल पड़ा___"ये तो बेसमेंट लगता है। कोई सोच भी नहीं सकता था कि यहाॅ पर ऐसा कुछ हो सकता है।"
"ऐसे लोग।" दूसरे साये ने कहा____"ऐसे कामों के लिए ऐसी ही जगहों का ज्यादातर चुनाव करते हैं और इससे सेफ्टी भी रहती है। वरना खुद सोचो कि कोई दूसरा यहाॅ तक कैसे पहुॅच जाएगा? ख़ैर छोंड़ो, आओ इसके अंदर चलते हैं।"

"मुझे लगता है कि।" पहले साये ने कहा___"हम में से किसी एक को ही अंदर जाना चाहिए जबकि किसी एक को यहीं पर रहना चाहिए। क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि बाहर तैनात गनमैनों में से कोई बॅगले के अंदर ये सोच कर आ जाए कि एक बार अंदर की तरफ का हाल चाल भी देख लिया जाए। अतः अगर ऐसी वैसी कोई बात होती है तो कम से कम हम में से कोई एक यहाॅ रह कर उसे सम्हालने की कोशिश तो करेगा।"

"ये भी सही कहा तुमने।" दूसरे साये ने कहा___"तो ठीक है तुम यहीं रहो। इसके अंदर जाने का काम अब मेरा है।"
"ओके बेस्ट ऑफ लक।" पहले साए ने कहने के साथ ही अपने दाहिने हाॅथ का अॅगूठा दिखाया उसे___"लेकिन हाॅ ज़रा सम्हाल कर।"

दूसरे साये ने हाॅ में सिर हिलाया और दरवाजे के उस पार बढ़ चला। उस पार के फर्श पर आकर वह ठिठका और दोनो तरफ देखा तो उसे बाईं तरफ दीवार पर एक स्विच नज़र आया। उसने उस स्विच को पहले ध्यान से देखा उसके बाद उसने हाॅथ बढ़ा कर स्विच का बटन दबा दिया। परिणामस्वरूप सीढ़ियों के ऊपर लगी एक ट्यूबलाइट रौशन हो गई। अब वहाॅ पर काफी प्रकाश था।

दूसरा साया सामने की तरफ मुड़ कर बड़ी सावधानी से सीढ़ियों पर उतरता चला गया। जबकि कमरे में दीवार के पास ही खड़ा पहला साया उसे जाते हुए देखता रहा। उसके दिल की धड़कनें अनायास ही बढ़ गईं थी। उधर कुछ ही पलों में दूसरा साया सीढ़ियाॅ उतर कर बेसमेंट में पहुॅच गया। नीचे की लास्ट सीढ़ी से थोंड़ी ही दूरी पर दाहिनी तरफ की दीवार में एक और स्विच नज़र आया। साये ने उस स्विच का बटन ऑन कर बेसमेंट की लाइट जला दी। लाइट के जलते ही बेसमेंट में तीब्र प्रकाश फैल गया।

तीब्र रौशनी में बेसमेंट की हर चीज़ स्पष्ट नज़र आने लगी थी। किन्तु जिस खास चीज़ पर साये की नज़र पड़ी उसे देख कर उसकी ऑखें फटी की फटी रह गईं। बेसमेंट काफी बड़ा था। ऐसा लगता था जैसे ये कोई लम्बा चौड़ा हाल हो। चारो तरफ की दीवारों पर अलग अलग चीज़ों का क्रमशः स्टाक था यहाॅ। किन्तु सबसे खास चीज़ ये थी कि हाल के सामने अंतिम छोर के फर्स पर ही एक बड़ी सी ट्राली थी जिसके ऊपर दो हज़ार के तथा पाॅच सौ के नोटों के बंडल नीचे से ऊपर की तरफ रखे हुए थे। ये सब न्यू करेन्सी थी। जोकि पाॅलिथिन में बंद थी। इतने सारे रुपये को देख कर किसी की भी ऑखें फटी की फटी रह जातीं। उस ट्राली के आगे दीवार से सटे स्टील के खाॅचे बने हुए थे जिनके दो खाॅचों में चमचमाते हुए गोल्ड के बिस्किट रखे हुए थे। बिस्किट के वो दोनो ही खाॅचे पारदर्शी शीशे से बंद थे। बाॅकी के खाॅचों में लकड़ी के बाक्स थे। फर्श पर भी काफी सारे बाॅक्स रखे हुए थे।

ये सारी चीज़ें देख कर साये की ऑखें फटी हुई थी। किन्तु जल्द ही उसने खुद को मानो सम्हाला और आगे की तरफ बढ़ चला। लकड़ी के एक बाक्स के पास पहुॅच कर उसने बाक्स के ऊपर लगे लकड़ी के ही ढक्कन रूपी पटरे को पकड़ कर अपनी तरफ खींच कर उसे निकाला। ढक्कन के हटते ही बाक्स में रखी हुई जो चीज़ नज़र आई उसे देख कर साये की ऑखें एक बार पुनः हैरत से फैलीं। बाक्स में एक जैसी कई सारी गन रखी हुई थी। मतलब साफ था कि यहाॅ पर जितने भी ऐसे बाक्स थे उन सब में तरह तरह की गन्स ही थीं।

साये ने चारो तरफ नज़र घुमा कर बारीकी से देखना शुरू कर दिया। दाएॅ तरफ एक केबिन जैसा बना हुआ था। साया उस तरफ बढ़ गया। केबिन में पहुॅच कर उसने देखा कि ये एक छोटा सा केबिन है जिसमें एक तरफ ऊॅची सी मेज थी तथा मेज के ऊपर एक कम्प्यूटर रखा हुआ था। मेज में कई सारे दराज थे। साये ने एक एक करके सभी दराज को खोल कर देखा। उन सब में कई तरह की रसीद व काग़जात थे तथा कई सारी फाइलें भी थीं। साये ने उन सभी फाइलों को बारीकी से देखना शुरू कर दिया।

फाइलों में से कुछ फाइलों को उसने अलग करके एक तरफ रखा। उसके बाद उसने एक नज़र कम्प्यूटर पर डाली। कुछ देर तक वह उसे देखते हुए सोचता रहा। फिर वह अलग की हुई फाइलों को लेकर केबिन से बाहर आ गया। जैसा कि बताया जा चुका है कि बेसमेंट काफी बड़ा था। साया हर जगह जा जा कर बारीकी से देखने लगा। तभी एक तरफ उसे एक बड़ा सा दरवाजा नज़र आया। ये दरवाजा ठीक वैसा ही था जैसा कि बेसमेंट में आने के लिए उस कमरे में था। इस दरवाजे के बाईं तरफ वैसा ही एक और सिस्टम लगा हुआ था। जिसमें पासवर्ड डालने के लिए स्क्रीन पर "प्लीज इन्टर योर पासवर्ड" लिखा हुआ था। साये ने कुछ सोचते हुए अपने लबादे से एक छोटा सा मोबाइल निकाला और उसमें से हरा बटन दबाया। हरा बटन दबाते ही उसमें डायल काल की लिस्ट में एक ही नंबर दिखा जिसे उसने पुनः हरा बटन दबा कर डायल कर दिया। डायल करते ही मोबाइल को कान से लगा लिया उसने, कुछ ही सेकण्ड में दूसरी तरफ से काल रिसीव किया गया।

"यहाॅ पर वैसा ही एक और दरवाजा है।" काल रिसीव किये जाने पर साये ने तुरंत बिना किसी भूमिका के धीमे स्वर में कहा___"अतः तुम उस डायरी में देखो कि क्या इसका भी पासवर्ड उसमें है या फिर इन दोनो दरवाजों का एक ही पासवर्ड है। जल्दी से देख कर मुझे बताओ।"

उधर यकीनन पहला वाला साया ही था। दूसरे साये को अपने कान में कुछ देर सुरसराहट की आवाज़ आती रही उसके बाद कुछ कहा गया। जिसके जवाब में साये ने कहा___"ओह एक मिनट।"

कहने के साथ ही ये साया दरवाजे के बाएॅ साइड दीवार पर लगे सिस्टम के पास तेज़ी से गया। सिस्टम के पास पहुॅचते ही बोला___"हाॅ अब बताओ।"

उधर से शायद पहला वाला साया इस साये को पासवर्ड बता रहा था जिसे ये वाला साया उसके बताने के साथ ही कीबोर्ड पर अपनी एक उॅगली से पंच करता जा रहा था। थोड़ी ही देर में साये के द्वारा "इन्टर" का बटन दबाए जाते ही सिस्टम पर लगी हरी बत्ती जल उठी। बत्ती के जलते ही वो दरवाजा हल्की आवाज़ के साथ इस तरफ ही खुलता चला गया। दूसरी तरफ अॅधेरा था जोकि इधर की रौशनी से हल्का सा दूर हो गया। हल्की रोशनी होते ही सामने सींढ़ियाॅ नज़र आईं जो कि ऊपर की तरफ जा रही थी। साया उन सीढ़ियों को देख कर पहले कुछ देर कुछ सोचा फिर आगे बढ़ कर उन सीढ़ियों पर चढ़ता चला गया। सीढ़ी के ऊपर आकर उसने देखा कि सामने एक और दरवाजा है किन्तु ये दरवाजा लोहे का था। दरवाजे के निचले भाग की दरार में हल्की रोशनी दिख रही थी। मतलब साफ था दरवाजे के दूसरी तरफ कुछ और भी था किन्तु क्या? इस सवाल का जवाब तो उस तरफ पहुॅच कर ही मिल सकता था।

साये ने देखा कि दरवाजा इस तरफ से ही बंद है। क्योंकि मोटा सा ताला कुण्डे पर झूल रहा था। ऐसा ताला साये ने पहली बार ही देखा था। कुण्डे के पास ही एक छिद्र था, वो छिद्र ऐसा था जैसे कीहोल हो। यानी कि ये दरवाजा दो तरह से लाॅक था। साये ने झुक कर कीहोल से अपनी एक ऑख सटा दी। दूसरी तरफ काफी उजाला था तथा उस उजाले में ही उसे ऐसा नज़र आया जैसे उस तरफ कोई फैक्ट्री हो। कुछ लोग भी उस तरफ नज़र आए। जिनमें कुछ आम आदमियों के साथ साथ हाॅथों में गन लिए कुछ गार्ड्स भी थे।

उस तरफ का नज़ारा देख कर साये ने कीहोल से अपनी ऑख हटा ली। उसके बाद वह एक पल के लिए वहाॅ नहीं रुका बल्कि पलट कर वापस चल दिया। बेसमेंट में आकर उसने दरवाजे को बड़ी सावधानी से बंद किया। दरवाजा जैसे ही पूरा बंद हुआ वैसे ही बगल से दीवार पर लगे उस सिस्टम के स्क्रीन पर "डोर हैज बीन क्लोज्ड" लिखा नज़र आया और साथ ही ऊपर लगी लाल बत्ती जल उठी। लाल बत्ती के जलते ही स्क्रीन पर फिर से "प्लीज इन्टर योर पासवर्ड" लिख गया।

कुछ ही देर में बेसमेंट से चलता हुआ वो साया सीढ़ियों के पास आया और फिर सीढ़ियाॅ चढ़ते हुए कमरे में पहले वाले साये के पास आ गया। दरवाजे को बंद करने के बाद उसने पहले गहरी गहरी साॅसें ली। उसके बाद उसने पहले साए की तरफ देखा तो हल्के से चौंका।

"ये क्या है?" दूसरे साये ने पहले साये के हाॅथ में बैग देख कर पूछा।
"इसमें मंत्री का लैपटाॅप है।" पहले साये ने कहा___"ये मुझे इस बेड के नीचे बने बाक्स में मिला है। मैने इसे अभी देखा नहीं है। हो सकता है कि इसमें भी पासवर्ड वाला चक्कर हो इस लिए इसे हम अपने साथ ही ले चलेंगे।"

"ये बहुत अच्छा हुआ।" दूसरे साए ने कहा___"मंत्री के लैपटाॅप में भी काफी कुछ मसाला मिल सकता है। ख़ैर, इन फाइलों को भी इस बैग में डाल लो। उसके बाद हमें तुरंत यहाॅ से निकलना है। अब यहाॅ पर ज्यादा देर रुकना ठीक नहीं है।"
"ठीक है।" पहले साए ने कहने के साथ ही बैग को बेड पर रखा और दूसरे साये से फाइलें लेकर बैग में डाल लिया।

उसके बाद ये दोनो ही शातिर चोर जिस तरह छुपते छुपाते हुए यहाॅ बड़ी होशियारी से आए थे वैसे ही यहाॅ से निकल भी गए। बालकनी से जब दोनो नीचे ज़मीन पर उतर आए तो बालकनी में इनकी वो रस्सी ही फॅस गई। वो तो शुकर था कि इस तरफ आने वाले वो दोनो गनमैन इस तरफ आए ही नहीं। वरना उन्हें बालकनी की रेलिंग से झूलती हुई ये रस्सी ज़रूर दिख जाती और ये दोनो भी। ख़ैर दोनो ने किसी तरह उस रस्सी को निकाल ही लिया और फिर उसी रस्सी के द्वारा बाउण्ड्री वाल के उस पार भी चले गए। थोड़ी ही देर में वो दोनो अॅधेरे का लाभ उठाते हुए कहीं गायब से हो गए।
Reply
11-24-2019, 01:16 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अपडेट........《 60 》

अब तक,,,,,,,

"ये क्या है?" दूसरे साये ने पहले साये के हाॅथ में बैग देख कर पूछा।
"इसमें मंत्री का लैपटाॅप है।" पहले साये ने कहा___"ये मुझे इस बेड के नीचे बने बाक्स में मिला है। मैने इसे अभी देखा नहीं है। हो सकता है कि इसमें भी पासवर्ड वाला चक्कर हो इस लिए इसे हम अपने साथ ही ले चलेंगे।"

"ये बहुत अच्छा हुआ।" दूसरे साए ने कहा___"मंत्री के लैपटाॅप में भी काफी कुछ मसाला मिल सकता है। ख़ैर, इन फाइलों को भी इस बैग में डाल लो। उसके बाद हमें तुरंत यहाॅ से निकलना है। अब यहाॅ पर ज्यादा देर रुकना ठीक नहीं है।"

"ठीक है।" पहले साए ने कहने के साथ ही बैग को बेड पर रखा और दूसरे साये से फाइलें लेकर बैग में डाल लिया।

उसके बाद ये दोनो ही शातिर चोर जिस तरह छुपते छुपाते हुए यहाॅ बड़ी होशियारी से आए थे वैसे ही यहाॅ से निकल भी गए। बालकनी से जब दोनो नीचे ज़मीन पर उतर आए तो बालकनी में इनकी वो रस्सी ही फॅस गई। वो तो शुकर था कि इस तरफ आने वाले वो दोनो गनमैन इस तरफ आए ही नहीं। वरना उन्हें बालकनी की रेलिंग से झूलती हुई ये रस्सी ज़रूर दिख जाती और ये दोनो भी। ख़ैर दोनो ने किसी तरह उस रस्सी को निकाल ही लिया और फिर उसी रस्सी के द्वारा बाउण्ड्री वाल के उस पार भी चले गए। थोड़ी ही देर में वो दोनो अॅधेरे का लाभ उठाते हुए कहीं गायब से हो गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,

सुबह हुई।

मंत्री दिवाकर चौधरी एक विशेष दौरे पर गया हुआ था। किन्तु दौरे पर भी उसका पूरा ध्यान अपने जासूस उस हरीश राणे के फोन पर ही था। उसे पता था कि राणे बहुत जल्द उसे विराज और रितू के ठिकाने का पता फोन पर बताएगा। पिछला सारा दिन और फिर लगभग सारी रात गुज़र गई थी मगर हरीश राणे का फोन अब तक न आया था उसके पास। उसने सोचा कि संभव है कि विराज और रितू अभी हास्पिटल में ही अपनी बहन नीलम का इलाज़ करवा रहे होंगे। जिसके चलते वो लोग अभी अपने ठिकाने पर वापस न गए होंगे। शायद यही वजह होगी कि राणे ने उसे अब तक कोई फोन न किया था। ख़ैर उम्मीद पर तो दुनियाॅ कायम है। यही हाल चौधरी का था। पिछली शाम को ही वह दौरे पर निकल गया था। उसका प्रोग्राम पहले से ही फिक्स था। अतः दौरे से लौटने में उसे दूसरा दिन शुरू हो जाना था।

सुबह मंत्री की ऑख उसके मोबाइल फोन के बजने से ही खुली थी। उसने उठ कर टाइम देखा तो सुबह के साढ़े पाॅच बज रहे थे। मोबाइल की स्क्रीन पर हरीश राणे का नाम देख कर उसके होठों पर मुस्कान उभर आई, साथ ही चेहरे पर चमक भी पैदा हो गई। उसने बेहद खुशी के साथ काल को रिसीव कर मोबाइल को कान से लगाया था और खुशी खुशी पूछा भी था कि 'बोलो राणे सुबह सुबह खुश ख़बरी सुनने के बहुत उतावले हो रहे हैं हम'। उसकी इस बात पर राणे ने उधर से खुशी वाले लहजे में ही कहा था कि चौधरी साहब आपका काम संपन्न हो गया है। इस लिए आप जल्दी से अपने आवास पर आ जाइये।

हरीश राणे की ये बात सुन कर चौधरी खुशी से फूला नहीं समाया था। वह फोन पर ही सारी बात जान लेना चाहता था मगर राणे ने कहा कि आमने सामने बात करने का मज़ा ही कुछ और होगा। इस लिए आप आइये और अपने सभी साथियों को भी बुला लीजिएगा। उसके बाद ही तसल्ली से सारी बात बताई जाएगी। राणे की इस बात से मंत्री ने हॅसते हुए कहा था कि ठीक है राणे हम जल्द से जल्द पहुॅच रहे हैं।

मंत्री जब अपने दलबल के साथ वापस लौट कर गुनगुन स्थित अपने आवास पर आया तो उस वक्त सुबह के सात बज गए थे। उसने अपने साथियों को राणे से बात करने के बाद ही फोन पर अपने आवास पर आ जाने को कह दिया था। शानदार बॅगले के अंदर पहुॅचते ही मंत्री दिवाकर चौधरी को ड्राइंगरूम में अपने सभी साथी सोफों पर बैठे मिल गए। किन्तु हरीश राणे उसे कहीं नज़र न आया। ये देख कर उसके चेहरे पर चौकने के भाव उभरे। बाॅकी उसके साथी लोग तो सामान्य ही बैठे हुए थे।

"अरे अवधेश।" मंत्री ने सोफे पर बैठने के बाद अवधेश की तरफ देखते हुए कहा___"राणे कहाॅ गया भई? उसने तो हमें सुबह फोन करके जल्द से जल्द यहाॅ आने को कहा था और अब वह खुद ही यहाॅ नहीं है। कमाल है भाई, इन जासूसों का भी कुछ समझ नहीं आता। कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं।"

"मैं तो यहीं हूॅ चौधरी साहब।" सहसा तभी हरीश राणे की चिर परिचित आवाज़ ड्राइंग रूम में गूॅजी___"और अपने साथ आपके लिए ऐसा तोहफा भी लेकर आया हूॅ कि आप उस तोहफ़े को देखेंगे तो यकीनन आप मुझ पर अपनी ये सारी दौलत लुटा देंगे।"

राणे की इस आवाज़ को सुन कर चौधरी ने पलट कर राणे की तरफ देखा। राणे के साथ साथ आ रहे जिन दो इंसानी चेहरों पर उसकी नज़र पड़ी उन्हें देख कर उसके चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे। यहाॅ पर एक अजीब बात ये भी हुई कि चौधरी के बाॅकी साथियों पर हरीश की इस बात का कोई भी प्रभाव न पड़ा था। वो तीनो ऐसे चुपचाप बैठे थे जैसे कि वो माटी के पुतले में तब्दील हो गए हों।

"ओह तो तुम यहीं हो।" राणे के साथ साथ उन दो चेहरों को भी देखते हुए चौधरी ने कहा___"हमें लगा कि हमें सीघ्र बुला कर तुम खुद ही गायब हो। ख़ैर, ये बताओ कि किस तोहफ़े की बात कर रहे थे तुम?"

"यही तो हैं।" राणे मुस्कुराते हुए अपने साथ आए उन दोनो की तरफ इशारा करते हुए कहा___"हाॅ चौधरी साहब, ये दोनो ही तो तोहफ़े हैं आपके लिए जिन्हें मैं अपने साथ लेकर आया हूॅ। क्या आपने इन दोनो को पहचाना नहीं?"

राणे की ये बात सुन कर चौधरी एकदम से चौंका। बड़े ग़ौर से उन दोनो को देखने लगा था वह। चौधरी जिन दो चेहरों को ग़ौर से देखे जा रहा था वो दोनो उसे इस संसार के सबसे खूबसूरत कपल नज़र आए। ऐसा लग रहा था जैसे वो दोनो सबसे अलग हों। इस वक्त वो दोनो चौधरी को देख कर मुस्कुरा रहे थे।

"ये दोनो खूबसूरत कपल कौन हैं भाई?" चौधरी के माॅथे पर उलझन के भाव आए थे___"और ये दोनो भला हमारे लिए तोहफे जैसे कैसे हो सकते हैं?"
"आप भी कमाल करते हैं चौधरी साहब।" हरीश राणे ने ठहाका लगा कर हॅसने के बाद कहा___"आप इन दोनो को नहीं पहचानते हैं? ये तो दुनियाॅ का सबसे बड़ा आश्चर्य है। अरे ये दोनो तो वही हैं चौधरी साहब जिन्होंने आपकी रातों की नींद हराम कर रखी थी। जी हाॅ, ये वही हैं जिन्होंने आपके बच्चों को अपने कब्जे में लिया हुआ था और उन वीडियोज के बल पर आपको भीगी बिल्ली बनाया हुआ था।"

"क्याऽऽऽ????" सोफे पर बैठा चौधरी राणे की इस बात को सुन कर इस तरह उछल पड़ा था जैसे अचानक ही उसके पिछवाड़े के निचले हिस्से की सोफे की पुश्त गर्म तवे में तब्दील हो गई हो। आश्चर्य से ऑखें फाड़े वह कुछ देर तक हकबकाया सा देखता रहा। फिर जैसे उसे होश आया तो अजीब भाव से बोला___"ये..ये दोनो वही हैं?? नहीं नहीं राणे....ये दोनो तो बहुत मासूम दिख रहे हैं, ये भला इतना बड़ा काण्ड कैसे कर सकते हैं?"

"लो भाई।" राणे फिर हॅसा और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा___"अब तुम ही बताओ इन्हें।"
राणे की बात सुन कर मैं मुस्कुराया और फिर मैं चौधरी के क़रीब आ गया। मेरे साथ ही रितू दीदी भी आ गई।

"तुझे मंत्री किसने बना दिया चौधरी?" मैने सहसा तीखे भाव से कहा___"तुझमें तो इतनी भी समझ नहीं है कि मौजूदा हालात में तुम्हारे लिए तोहफे के रूप में राणे किसे ला सकता है? अगर समझ होती तो फौरन ही समझ जाता कि हम दोनो कौन हैं?"

"ज़बान को लगाम दे लड़के।" बुरी तरह तिलमिलाया हुआ चौधरी सहसा गुर्रा उठा___"तुझे पता नहीं है कि तू इस वक्त कहाॅ खड़ा है? हमसे इस लहजे में बात करने वालों का बहुत ही भयावह अंजाम होता है।"

"अंजाम का डर उन्हें होता है चौधरी।" मैने कहा___"जिन के पिछवाड़े में दम नहीं होता। तुझे तो इतना भी एहसास नहीं हो रहा कि तेरे आवास में आकर मैं तेरे ही सामने तुझसे इस लहजे में बात कैसे कर सकता हूॅ?"

"जब किसी की मौत आती है तो वो ऐसे ही तेरे जैसे अनाप शनाप बकने लगता है।" चौधरी ने कहा।
"तुझे क्या लगता है?" रितू दीदी ने कहा___"हम लोग तेरे सामने राणे की वजह से आए हैं? नहीं चौधरी, ये सब तो हमारा ही खेल है। हमने ही राणे के द्वारा फोन करवा के तुझे यहाॅ बलवाया है। तेरे ये सभी साथी इतनी देर से पुतले की तरह क्यों बैठे हैं क्या तुझे कुछ समझ नहीं आया?"

रितू दीदी की बात सुन कर चौधरी के मस्तिष्क में मानो एकाएक ही विष्फोट सा हुआ। दिमाग़ की सारी बत्तियाॅ रौशन हो उठी। सारी बातें बड़ी तेज़ी से उसके मन में चलने लगी। उसने अजीब भाव से अपने साथियों की तरफ देखा और फिर राणे की तरफ।

"खेल खत्म हो चुका है चौधरी साहब।" राणे तुरंत बोल उठा___"मैं तो कल ही इनके आदमियों के द्वारा पकड़ लिया गया था। उसके बाद इन लोगों ने मुझसे सब कुछ पूछ लिया और मुझे बताना ही पड़ा। मुझे भी इस बात का अंदेशा था कि आपके पीछे गुप्त रूप से कार्यवाही की जा रही है। अतः मैने सोचा कि अगर मैने आपके लिए काम किया तो निश्चय ही मैं भी कानून की चपेट में आ जाऊॅगा इस लिए मैंने वही रास्ता चुना जो सच्चा था और मेरे लिए बेहतर भी था।"

"गद्दार।" चौधरी पूरे क्रोध में बोल पड़ा___"अपनी सलामती के लिए तूने हमें फॅसवा दिया। तुझे ज़िंदा नहीं छोंड़ेंगे हम। तुम सबको अब मौत ही मिलेगी। तुम लोग अब यहाॅ से ज़िंदा वापस नहीं जा सकते।"

"जिनके दम पर तू हमें मौत देने की बात कर रहा है न वो सब तो पुलिस की गिरफ्त में आ चुके हैं।" मैने सहसा झुक कर चौधरी की ऑखों में ऑखें डाल कर कहा___"और तेरे में इतना दम ही नहीं है कि तू मेरा बाल भी उखाड़ सके।"

मेरी इस बात से चौधरी को साॅप सा सूॅघ गया। अनुभवी आदमी था। उसे समझते देर न लगी कि जिस अंदाज़ से मैं उससे बात कर रहा था वो तभी संभव था जब वो कुछ भी कर पाने की पोजीशन में न हो। अभी मैं उसे देख ही रहा था कि सहसा तभी बाहर से ढेर सारे पुलिस के आदमी अंदर दाखिल हुए। उन सभी पुलिस वालों के बीच से ही एसीपी रमाकान्त शुक्ला चलता हुआ हमारे पास आया।

"वेल डन इंस्पेक्टर रितू।" फिर उसने दीदी की तरफ देख कर कहा___"यकीनन तुम दोनो ने बहुत ही बड़ा काम किया है।" कहने के साथ ही एसीपी चौधरी की तरफ पलटा___"दुनियाॅ की कोई भी ताकत अब तुम्हें कानून की सलाखों के पीछे से नहीं निकाल सकती। तुम्हारे खिलाफ़ हमें इतने सबूत मिल चुके हैं कि अब तुम किसी भी कीमत पर बच नहीं सकते।"

"किन सबूतों की बात कर रहे हो आफीसर?" चौधरी ने हैरानी से कहा___"और ये इतनी सारी पुलिस फोर्स यहाॅ किस लिए लेकर आए हो तुम?"
"देखते जाओ चौधरी।" एसीपी ने कहा___"कुछ ही देर में सब कुछ पता चल जाएगा तुम्हें।"

पुलिस वालों को कदाचित पहले ही समझा दिया गया था कि क्या करना है। अतः वो यहाॅ आते ही अपने काम पर लग गए थे। चौधरी ये सब देख कर एकाएक बुरी तरह बौखला गया। उसके चेहरे पर डर व घबराहट के भाव उभर आए। चिंता व परेशानी के चलते पूरा चेहरा पसीने पसीने हो गया उसका। उसके साथियों का भी वही हाल था।

कुछ ही देर में वहाॅ पर पुलिस महकमे के कुछ और आला अधिकारी आ गए। चौधरी को कुछ भी करने का मौका न मिला। वो तो यही नहीं समझ पा रहा था कि इतनी सारी पुलिस फोर्स इतनी जल्दी यहाॅ कैसे आ गई? अंदर की तरफ गए हुए पुलिस वाले थोड़ी ही देर में बाहर आए और उन्होंने जो कुछ बताया उसे सुन कर चौधरी के सिर पर सारा आसमान भरभरा कर गिर गया। उसका चेहरा एकदम से निस्तेज पड़ गया।

लगभग एक घंटे की कठोर कार्यवाही के बाद आला अधिकारियों के साथ मंत्री को गिरफ्तार कर बॅगले से बाहर ले जाया जाने लगा। बाहर आते ही चौधरी ने देखा कि बाहर भीड़ जमा है। उस भीड़ में प्रेस व मीडिया के लोग थे जो मंत्री व पुलिस के आला अधिकारियों से तरह तरह के सवाल पूछने लगे थे। प्रेस व मीडिया वालों को संक्षेप में उनके सवालों के कुछ जवाब देकर चौधरी को लेकर पुलिस वाले चले गए। मंत्री के आवास को सील कर पुलिस सिक्योरिटी लगा दी गई।

ये मामला ही ऐसा था कि पलक झपकते ही मंत्री की गिरफ्तारी की ख़बर प्रदेश में हर तरफ फैल गई। मंत्री के चाहने वाले तथा पार्टी के उसके सहयोगियों ने विरोध प्रदर्शन तो किया किन्तु उस सबको पुलिस वालों ने सम्हाल लिया। मैं और रितू दीदी मंत्री के इस किस्से को खत्म करके वापस लौट आए थे। हरीश राणे को खुशी खुशी हमने छोंड़ दिया था। वो खुद भी इस सबसे खुश था कि उसने अच्छाई का साथ दिया। राणे जाते जाते हम लोगों के कान्टैक्ट नंबर ले गया था।
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उधर मंत्री के पकड़े जाने की ये ख़बर हवेली में अजय सिंह को भी हो गई। इस ख़बर ने अजय सिंह की हालत को लकवा मारने जैसी बना दिया। कुछ समय के लिए तो उसे ऐसा लगा जैसे इस संसार में अब कुछ बचा ही नहीं है बल्कि सब कुछ शून्य में ही खो गया है। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा कुछ हो जाएगा। विराज और रितू ने उसके लिए जैसे हर तरफ से रास्ता ही बंद कर दिया था। कहाॅ वह मंत्री के फोन द्वारा ये पता चलने का इन्तज़ार कर रहा था कि उसका भतीजा और उसकी बेटी आदि सब पकड़ लिए गए हैं और कहाॅ अब इस ख़बर ने उसके मुकम्मल वजूद को ही हिला कर रख दिया था।

अजय सिंह मंत्री के पकड़े जाने से चिंतित व परेशान तो था ही साथ ही वह इस बात के लिए भी बेहद परेशान हो गया था कि उसके दोस्तों ने अपने जिन आदमियों को उसकी सहायता के लिए भेजा था वो सब पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए थे। सुबह से फोन पर फोन आ रहे थे उसे। ये सब फोन उसके उन दोस्तों के ही थे। जो कह रहे थे कि उन्हें अपने आदमियों के पकड़े जाने का इतना दुख नहीं है बल्कि चिंता इस बात की है कि उनके वो सब आदमी पुलिस के सामने अपना मुह न खोल दें जिसकी वजह से वो सब भी कानून की चपेट में आ जाएॅ। अतः इससे बचने के लिए वो सब अजय सिंह से कोई न कोई समाधान चाह रहे थे। मगर अजय सिंह कुछ कहने की हालत में ही नहीं था। वो तो खुद भी अब मंत्री की वजह से असहाय सा हो गया था। मंत्री का कानूनन इस तरह पकड़े जाना उसके लिए बहुत बड़ी क्षति थी। क्योंकि अब उसे मंत्री पर ही भरोसा था कि वो उसे इस सारे खेल में जीत दिलाएगा। मगर अब सब कुछ जैसे स्वाहा हो चुका था।

प्रतिमा और शिवा सुबह से उसके पास ही थे। इस वक्त दोपहर हो चुकी थी। अजय सिंह अकेला ही ड्राइंग रूम में गुमसुम सा बैठा था। प्रतिमा किसी काम से बाहर गई हुई थी। शिवा अपने कमरे में था। सोफे पर बैठा अजय सिंह शिगार पे शिकार फूके जा रहा था। सविता जो उसकी घरेलू नौकरानी थी उसने उसे अब तक जाने कितनी बार चाय बना कर पिलाया था। हालात की गंभीरता का उसे भी एहसास था। उसे इस हवेली का सब कुछ पता था किन्तु उसने कभी इस मामले में हवेली के किसी भी सदस्य से कोई बात नहीं की थी। उसे पता था कि इस बारे में बात करने का सबसे पहले तो उसका कोई हक़ ही नहीं है दूसरी बात उसकी बातों को कोई सुनना पसंद भी नहीं करता।

सारी बातों को सोचते सोचते अजय सिंह इतना परेशान हो चुका था कि उसका सिर दर्द करने लगा था। वह उठा और सविता को आवाज़ दे कर कहा कि वो उसके सिर की बढ़िया से मालिश कर दे। ये कह कर अजय सिंह अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। सविता चालीस के आस पास की साॅवली सी औरत थी। उसका पति उसे बरसों पहले छोंड़ कर चला गया था। सविता और उसका पति पहले खेतों पर ही काम करते थे। बाद में उसका पति जब वापस लौट कर न आया तो गजेन्द्र सिंह ने उसे हवेली के काम धाम पर लगा लिया। सविता को हवेली में रहते हुए लगभग दस साल हो गए थे। उसने इस हवेली के अंदर अब तक क्या क्या हुआ सब कुछ देखा सुना था। मगर उसने कभी इस बारे में कोई दखलअंदाज़ी न की थी। उसे ये भी पता था कि अजय सिंह का परिवार कैसा है तथा ये भी कि ये रिश्तों को नहीं मानते। उसने शिवा को अपनी ऑखों से अपनी ही माॅ को संभोग करते देखा था। उस दिन उसे लगा था कि कलियुग वाकई आ चुका है।

अजय सिंह ने सविता के साथ जाने कितनी बार संभोग किया था इसका उसे खुद पता नहीं था। कई बार वह पेट से भी हुई थी किन्तु अजय सिंह ने हर बार उसके पेट से अपना बीज गिरवा दिया था। सविता ने परिस्थितियों के साथ पहले ही समझौता कर लिया था। उसका अपना कोई नहीं था। रितू व नीलम को वो अपनी ही बेटी की तरह मानती थी और हमेशा दुवा किया करती थी कि वो दोनो खुश रहें। रितू व नीलम भी उसे बहुत इज्ज़त व सम्मान देती थीं। उन दोनो ने कभी उसे नौकरानी नहीं समझा था। बल्कि हमेशा उसे काकी ही कहती थी। हलाॅकि शिवा का ब्यौहार अपने बाप की तरह ही था। किन्तु सविता के साथ ज़बरदस्ती करने की हिम्मत उसमे कभी न हुई थी। सविता एक तंदुरुस्त तबीयत की औरत थी। मेहनत कर करके वह बेहद मजबूत हो गई थी। वह दिखती भी ऐसी थी कि शिवा जैसा छोकरा उससे ज़बरदस्ती करने की हिम्मत कर ही नहीं सकता था। पिछले कुछ सालों से अजय सिंह ने सविता को भोगना बंद कर दिया था। इस बात से सविता को राहत महसूस हुई थी। अजय सिंह के सविता के साथ संबंधों की जानकारी प्रतिमा को शुरू से ही थी। किन्तु उसे इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी।

थोड़ी ही देर में सविता अपने हाॅथ में एक कटोरी लिए अजय सिंह के कमरे में दाखिल हुई। कटोरी में शुद्ध सरसो का तेल था। कमरे में पहुॅचते ही सविता ने देखा कि अजय सिंह बेड पर लेटा हुआ है। आज काफी समय बाद अकेले कमरे में अजय सिंह के पास आते हुए सविता को थोड़ा असहज सा लगा। किन्तु उसे पता था कि मालिश तो उसे करनी ही पड़ेगी और अगर अजय सिंह ने उसके साथ संभोग करने की इच्छा ज़ाहिर की तो उसे उसकी वो इच्छा भी पूरी करनी पड़ेगी।

अजय सिंह की नज़र हाॅथ में कटोरी लिए आई सविता पर पड़ी तो उसने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। पहले की अपेक्षा सविता का जिस्म काफी आकर्षक सा हो गया था। हर अंग अपनी जगह सही से ढला हुआ था। ऊम्र का असर उसके सिर के बालों से दिख रहा था। बाॅकी उसका समूचा जिस्म कसा हुआ था। सीने के उभार प्रतिमा से कतई कम न थे। ब्लाऊज फाड़ कर बाहर आने को आतुर थे। अजय सिंह को ग़ौर से अपनी तरफ देखते देख सविता के संपूर्ण जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई।
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11-24-2019, 01:17 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"चलिए मालिक।" फिर उसने खुद को सामान्य बनाते हुए कहा___"आपके माॅथे पर मालिश कर देती हूॅ।"
"ओह हाॅ हाॅ।" अजय सिंह उसकी बात सुनते ही कुछ झेंप सा गया___"इस वक्त मालिश की वाकई बहुत ज़रूरत है सविता। प्रतिमा बाहर गई हुई है वरना तुम्हें तक़लीफ न देता। वो खुद भी बहुत अच्छी मालिश कर लेती है।"

"कोई बात नहीं मालिक।" सविता ने बेड के क़रीब आते हुए कहा___"मैं तो अक्सर मालकिन की मालिश करती ही रहती हूॅ। आज आपकी भी कर देती हूॅ। चलिए लेट जाइये अब।"
"इन कपड़ों को उतार दूॅ क्या?" अजय सिंह ने अपने बदन के ऊपर पहने कपड़ों की तरफ दःखते हुए कहा।

"मालिश तो माॅथे पर करनी है न मालिक।" सविता ने जल्दी से कहा___"कपड़े उतारने की क्या ज़रूरत है?"
"बात तो ठीक ही है तुम्हारी।" अजय सिंह कहने के साथ ही मुस्कुराया___"पर अगर पूरे बदन की मालिश कर दोगी तो क्या बुराई है? मुझे भी तो पता चले कि तुम अपनी मालकिन की किस तरह से मालिश किया करती हो?"

अजय सिंह की बात सुन कर सविता को साॅप सा सूॅघ गया। उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था। ऐसा नहीं था कि उसने अजय सिंह को बिना कपड़ों के देखा नहीं था बल्कि उसने तो इसके पहले न जाने कितनी बार खुद बिना कपड़ों के उसके साथ संभोग किया था किन्तु एक दो सालों से ये रिश्ता लगभग मिट सा गया था। इस लिए उसे इस बात का अंदेशा था कि कहीं आज फिर ऐसे हालात न बन जाएॅ कि उसे संभोग करना पढ़ जाए। दूसरी बात ये भी थी कि अब वो किसी सूरत में नहीं चाहती थी कि वो इस आदमी के साथ वो सब करे। उसने मन ही मन ईश्वर को याद किया कि उसे इस परिस्थिति से बचाए।

उसकी इस फरियाद को मानो ईश्वर ने सुन भी लिया, क्योंकि तभी कमरे में एक तरफ टेबल पर रखे लैण्डलाइन फोन की घंटी घनघना उठी थी। फोन के बजने से अजय सिंह के चेहरे पर अप्रिय भाव उभरे। फिर उसने बेड के किनारे पर खिसक कर फोन के रिसीवर को उठा कर कान से लगाते ही हैलो कहा।

".............।" उधर से जाने क्या कहा गया। किन्तु इतना ज़रूर हुआ कि उसके चेहरे पर बुरी तरह चौंकने के भाव उभरे और फिर सहसा उसने पलट कर सविता को कमरे से चले जाने को कहा। उसके इस तरह चले जाने का सुन कर पहले तो सविता चौंकी फिर जल्द ही वापस कमरे से बाहर की तरफ चल पड़ी।

कमरे से बाहर आते ही सविता ने राहत की साॅस ली और फिर किचेन की तरफ बढ़ गई। किचेन में उसने तेल की कटोरी को रखा और फिर किचेन से बाहर ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ गई। ड्राइंगरूम में आते ही उसकी नज़र मालकिन यानी की प्रतिमा पर पड़ी जो एक तरफ टेबल पर ही रखे फोन के रिसीवर को कान से लगाए खड़ी थी। उसका चेहरा दूसरी तरफ था। सविता अपनी मालकिन को देख कर वापस अंदर की तरफ चली गई।

उधर कमरे में अजय सिंह काफी देर तक किसी से बात करता रहा। उसके चेहरे पर कई तरह के भावों का आवागमन चालू था। ख़ैर कुछ देर बाद उसने अपने कान से हटा कर रिसीवर को वापस केड्रिल पर रख दिया। रिसीवर रखने के बाद उसने एक गहरी साॅस ली और फिर सहसा जाने क्या सोच कर मुस्कुरा उठा।

अभी अजय सिंह मुस्कुरा ही रहा था कि तभी कमरे में प्रतिमा दाखिल हुई। प्रतिमा को देख कर अजय सिंह की मुस्कान और गहरी हो गई। उसके होठों पर फैली इस मुस्कान को देख कर प्रतिमा के होठों पर भी मुस्कान फैल गई।

"क्या बात है जनाब।" फिर प्रतिमा ने उसके समीप आते हुए कहा___"बहुत मुस्कुरा रहे हो। कारून का कोई ख़जाना मिल गया है क्या?"
"ऐसा ही समझो डियर।" अजय सिंह कहने के साथ ही आलमारी की तरफ बढ़ा, फिर बोला___"बल्कि अगर ये कहूॅ तो ग़लत न होगा कि कारून का ख़जाना भी उसके सामने कुछ नहीं है।"

"ओह ऐसा क्या?" प्रतिमा की ऑखें फैली___"ज़रा मुझे भी तो बताओ कि ऐसा कौन सा ख़जाना मिल गया है जिसके सामने कारून के ख़जाने की कोई औकात ही नहीं है।"
"ज़रूर बताऊॅगा प्रतिमा।" आलमारी से कोट निकालने के बाद अजय सिंह ने कहा___"पहले ख़जाने को मेरे हाॅथ तो लगने दो।"

"क्या मतलब??" प्रतिमा के चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे___"क्या वो ख़जाना अभी तुम्हारे हाॅथ नहीं लगा है?"
"लग जाएगा माई डियर।" अजय सिंह ने कोट पहनते हुए कहा___"और इस ख़जाने को मेरे हाथ लगने से ब्रम्हा भी नहीं रोंक पाएॅगे।"

"बड़ी अजीब बातें कर रहे हो आज।" प्रतिमा ने सहसा तिरछी नज़रों से देखते हुए कहा___"कहीं तुम्हारे इस ख़जाने का संबंध रितू अथवा विराज से तो नहीं है?"
"ज्यादा दिमाग़ मत चलाओ प्रतिमा।" अजय सिंह ने सपाट लहजे में कहा___"बस समय का इन्तज़ार करो। ख़ैर, मैं ज़रूरी काम से बाहर जा रहा हूॅ शाम तक लौटूॅगा। शिवा से कहना वो कहीं बाहर न जाए बल्कि हवेली में ही रहे।"

प्रतिमा की प्रतिक्रिया सुने बिना ही अजय सिंह कमरे से बाहर निकल गया। उसके जाते ही प्रतिमा के चेहरे पर सहसा गहन पीड़ा के भाव उभरे और फिर एकाएक ही उसकी ऑखें छलक पड़ीं। आगे बढ़ कर वह बेड पर धम्म से बैठ गई। उसके मनो मस्तिष्क में ऑधियाॅ सी चलने लगी थी।
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उधर मंत्री दिवाकर चौधरी के अपने साथियों सहित पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए जाने की सूचना मैने मंत्री के बेटे सूरज चौधरी व उसके तीनो साथियों को भी दे दी। चारो इस ख़बर को सुन कर बिलकुल असहाय से हो गए। ऐसा लग रहा था जैसे उनके जिस्मों में जान ही न रह गई हो। चारो की हालत वैसे भी बहुत ही दयनीय हो चुकी थी। भरपेट खाना न मिलने की वजह से तथा शारीरिक व मानसिक यातनाओं के चलते वो चारो ही बेहद कमज़ोर लगने लगे थे। दूसरे कमरे में मंत्री की बेटी को भी रितू दीदी ने उसके बाप के संबंध में सूचित कर दिया था। रचना चौधरी इस ख़बर से बुत बन कर रह गई थी। किन्तु जब उसके मुख से लफ्ज़ निकले तो बड़े अजीब थे। उसका कहना था कि मेरे बाप भाई ने जितने पाप कर्म किये थे उसका अंजाम तो यही होना था न।

सूरज चौधरी व उसके तीनो दोस्त हर तरह से टूट चुके थे। मौत की भीख माॅग रहे थे चारो मगर मौत मिलना इतना आसान नहीं था। इस बीच मैने फैंसला किया कि इन सबको यहाॅ से आज़ाद कर दिया जाए। उन चारो की हालत देख कर मुझे इस बात का बोध हो चुका था कि वो पश्चाताप की आग में जल रहे हैं। बड़े से बड़े अपराध के लिए भी इंसान को क्षमा कर दिया जाता है और उसे सुधरने का एक मौका दिया जाता है। दूसरी बात, ये सब करके मुझे मेरी विधी तो मिलनी नहीं थी। उसके साथ हुए अत्याचार का मैने बदला ले लिया था इन लोगों से।

उन चारों को आज़ाद कर देने वाले मेरे फैंसले से थोड़ी न नुकुर के बाद आख़िर सब राज़ी हो गए थे। किन्तु सवाल ये था कि वो आज़ाद होने के बाद जाएॅगे कहाॅ? क्योंकि मंत्री का बॅगला तो पुलिस द्वारा सील कर दिया गया था। इस सवाल का जवाब रितू दीदी ने दिया, ये कह कर कि ये सब चिमनी में अपने पुश्तैनी घर जा सकते हैं। रितू दीदी की इस बात से समस्या का समाधान हो चुका था। अतः अब यही फैंसला हुआ कि इन सबको बेहोश करके चिमनी भेज दिया जाए।

मैने मौसा जी को फोन करके सारी बात बताई और उनसे आग्रह किया कि क्या वो इन चारो को चिमनी भेजने का काम करवा सकते हैं? मेरी इस बात पर वो हॅस कर बोले इसमें संकोच की क्या बात है बेटा? थोड़ी ही देर में केशव जी अपने कुछ आदमियों को लेकर हमारे पास आ गए। मैने और आदित्य ने चारो को बेहोश कर दिया और केशव की गाड़ी में उन सबको डलवा दिया। उनके साथ ही रचना को भी बेहोश करके डाल दिया था। ये सब होने के बाद केशव जी अपने आदमियों के साथ चिमनी गाॅव के लिए निकल गए।

उन सबको आज़ाद करने के बाद मन को थोड़ा शान्ति सी मिल गई थी। इस वक्त ड्राइंग रूम में मैं रितू दीदी तथा आदित्य बैठे हुए थे। नैना बुआ व सोनम दीदी नीलम के पास उसके कमरे में थीं।

"चलो मंत्री और उसके बच्चों से छुटकारा मिल गया आख़िर।" सहसा आदित्य ने कहा___"अब हम सारा फोकस तुम्हारे ताऊ पर लगा सकते हैं। वैसे मुझे तो लगता है कि अब हमें खुल कर हवेली में उसके सामने ही चले जाना चाहिए और फिर उन सबका भी काम तमाम कर देना चाहिए। अजय सिंह मौजूदा हालात में कुछ भी कर सकने की पोजीशन में नहीं है। उसकी आख़िरी उम्मीद निःसंदेह मंत्री ही था जोकि अब वो भी कानून की लम्बी चपेट में आ चुका है। दूसरी बात उसके जितने भी आदमी थे उन सबको भी पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है। कहने का मतलब ये कि इस वक्त अजय सिंह निहत्था व असहाय अवस्था में है। हम बड़ी आसानी से उसे लपेटे में ले सकते हैं और उसका हिसाब किताब कर सकते हैं।"

"इस बात का एहसास तो उसे भी हो ही गया होगा मेरे यार।" मैने कहा___"वो भी इस बात को समझता होगा कि मौजूदा हालात में हम उसके बारे में क्या सोच रहे होंगे? इस लिए वो पूरी कोशिश करेगा कि वो हमारी सोच को सही साबित न होने दे। यानी कि वो कुछ ऐसा ज़रूर करेगा जिससे हम उसके सामने इस तरह न जा सकें जिस तरह की तुम बात कर रहे हो।"
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11-24-2019, 01:17 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"राज बिलकुल सही कह रहा है आदित्य।" रितू दीदी ने गहरी साॅस लेकर कहा___"मैं अपने डैड को बहुत अच्छी तरह से जानती हूॅ। वो इस परिस्थिति में भी कोई ऐसा जुगाड़ कर ही लेंगे कि हम उनके पास इस तरह से उनका तिया पाॅचा करने न पहुॅच सकें।"

"तुम्हारे हिसाब से वो ऐसा क्या जुगाड़ कर सकता है अब?" आदित्य ने पूछा___"जबकि मौजूदा हालात साफ शब्दों में बता रहे हैं कि वो अब कुछ भी करने की पोजीशन में नहीं रह गया है।"

"इस बारे में मैं कुछ कह नहीं सकती।" रितू दीदी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा___"किन्तु उनके संबंध कई ऐसे लोगों से रहे हैं अथवा ये कहूॅ कि हैं जो ऊॅचे दर्ज़े के अपराधी हैं। अतः संभव है कि डैड अपने ऐसे ही किन्हीं अपराधी दोस्तों से मौजूदा हालात में मदद की गुहार लगाएॅ।"

"चलो ये मान लिया कि तुम्हारे डैड के ऐसे लोगों से संबंध हैं और वो उन लोगों से इस समय मदद माॅग सकते हैं।" आदित्य ने कहा___"किन्तु यहाॅ पर मैं एक सलाह देना चाहता हूॅ, और वो सलाह ये है कि तुम्हारे डैड को उस आधार पर भी तो बड़ी आसानी से भीगी बिल्ली बना कर अपने पास बुलाया जा सकता है जो आधार इस वक्त राज के पास मौजूद है, यानी कि अजय सिंह का ग़ैर कानूनी सामान। उस सामान के आधार पर अजय सिंह यकीनन भीगी बिल्ली बन कर हमारे पास खुद ही आ जाएगा।"

"ऐसा नहीं हो सकता आदी।" मैने कहा___"क्योंकि अब तक ये बात मेरे ताऊ को भी ताई के समझाने पर समझ आ ही गई होगी कि मैं उन्हें उनके ग़ैर कानूनी सामान के आधार पर कोई क्षति नहीं पहुॅचाना चाहता बल्कि अपने बलबूते पर ही अपने व अपने परिवार के साथ हुए हर अत्याचार का बदला लेना चाहता हूॅ। अगर मुझे उस सामान के आधार पर ही अपने ताऊ का क्रियाकर्म करना होता तो मैं ये काम बहुत पहले ही कर चुका होता। इस लिए इस बात पर सोचने का कोई मतलब ही नहीं है दोस्त।"

"मैं तुम्हारी बातों से पूर्णतया सहमत हूॅ।" आदित्य ने कहा___"किन्तु उन्हें ये भी तो पता होगा न कि अगर तुम अपने बलबूते पर अपने ताऊ का कोई भी बाल बाॅका न कर पाए तो फिर तुम्हारे पास अंतिम चारा वो ग़ैर कानूनी सामान ही तो होगा। यानी कि तुम उस सामान के आधार पर ही आख़िरी चारे के रूप में अपने ताऊ का काम तमाम करोगे। कहने का मतलब ये कि इस वक्त अगर तुम उसी ग़ैर कानूनी सामान की धमकी देकर अपने ताऊ को भीगी बिल्ली बना कर अपने पास आने पर मजबूर करोगे तो वो यही समझेंगे कि शायद तुम्हारे पास अब यही एक चारा रह गया था जिसके तहत तुमने अजय सिंह के उस ग़ैर कानूनी सामान का सहारा लिया है और उसे अपने पास इस तरह बुला रहे हो।"

"मनोविज्ञान की दृष्टि से तुम्हारा ये सोच कर कहना यकीनन सही है।" मैने कहा___"किन्तु मत भूलो कि उस तरफ बड़ी माॅ हैं जो खुद दिमाग़ के मामले में हम सबसे बीस ही हैं। कहने का मतलब ये कि सारे हालातों पर ग़ौर करने के बाद वो इसी नतीजे पर पहुॅचेंगी कि इतना कुछ होने के बाद तो हमारा पक्ष पहले से और भी ज्यादा मजबूत हो गया है, तो फिर अचानक ये गैर कानूनी सामान को आधार बना कर अजय सिंह को हम क्यों अपने पास बुला रहे हैं?"

"अरे तो उनके नतीजों से हमें क्या लेना देना भाई?" आदित्य ने कहा___"वो सारे हालातों पर ग़ौर करके क्या नतीजा निकालती हैं इससे हमें क्या फर्क़ पड़ता है? हमें तो अपने काम से मतलब है, फिर चाहे वो जैसे भी हो।"

"और मेरे सिद्धान्तों व उसूलों का क्या?" मैने आदित्य की तरफ अजीब भाव से देखते हुए कहा___"हम सच्चाई व धर्म की राह पर चल रहे हैं दोस्त। हम भले ही अब तक धोखे से या किसी चाल से यहाॅ तक पहुॅचे हैं किन्तु प्यार व जंग में ये जायज था। मगर यहाॅ पर एक नियम अथवा एक सिद्धान्त तो मैंने उन्हें जता ही दिया था कि मैं अजय सिंह के खिलाफ उसके ग़ैर कानूनी सामान के आधार पर कोई ऐक्शन नहीं लूॅगा, बल्कि सब कुछ अपने बलबूते पर ही करूॅगा। इस बात को मैं अब तक निभाता भी आया हूॅ और आगे भी इसे निभाना चाहता हूॅ। ये मेरे जिगर व मेरी मर्दानगी का सबूत भी होगा भाई कि मैने अपने बलबूते पर ही सब कुछ किया। इसके विपरीत अगर मैने जंग के आख़िर में ये क़दम उठाया तो फिर मेरी साख़ का क्या औचित्य रह जाएगा? मेरा ताऊ इस बात को भले ही न समझ पाए मगर मुझे यकीन है कि मेरी इस मनोभावना को बड़ी माॅ ज़रूर समझेंगी, और मैं चाहता भी हूॅ कि उनके मन में मेरे कैरेक्टर का ये मैसेज जाए। दूसरी बात, हमे ऐसा करने की ज़रूरत भी क्या है दोस्त? आप दोनो के रहते तो मैं सारी दुनिया को फतह कर सकता हूॅ।"

"एक सच्चा इंसान तथा एक सच्चा वीर ऐसा ही होना चाहिए।" सहसा रितू दीदी ने मेरी तरफ प्रसंसा भरी नज़रों देखते हुए कहा___"मुझे तुझ पर नाज़ है मेरे भाई। मेरा दिल करता है कि तेरे लिए अपनी अंतिम साॅस तक निसार कर दूॅ।"

"ऐसा मत कहिए दीदी।" मैने सहसा भावुकतावश उनकी तरफ देखते हुए कहा___"अभी तो हम सबको एक साथ बहुत सारी खुशियाॅ बाॅटनी हैं। इस सबके बाद हम एक नये संसार का शुभारम्भ करेंगे। उस नये संसार में बेपनाह प्यार और बेपनाह खुशियाॅ होंगी।"

"और मुझे अपनी उन खुशियों से किनारा कर दोगे क्या तुम लोग?" आदित्य मुस्कुराते हुए बोल पड़ा___"ऐसा सोचना भी मत राज। वरना देख लेना तुम्हारे घर के बाहर धरना देकर बैठ जाऊॅगा।"

"ऐसा मत करना दोस्त।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"गाॅव के लोग धरने के रूप में एक ही आदमी को बैठा देखेंगे तो उसे कुछ और ही समझ लेंगे।"
"ओ हैलो।" आदित्य ने ऑखें दिखाई___"क्या मतलब है तुम्हारा? क्या समझ लेंगे गाॅव के लोग___भिखारी?? चल कोई बात नहीं यार। तुम्हारे लिए ये भी बन जाऊॅगा।"

"तुम्हें बाहर धरने पर बैठने की ज़रूरत नहीं है आदित्य।" रितू दीदी ने कहा___"रक्षाबंधन आने वाला है। इतने वर्षों में पहली बार मैं राज को राखी बाधूॅगी। राज की तरह तुम भी मेरे भाई ही हो। मैं और भी बहुत खुश हो जाऊॅगी कि तुम्हारे जैसा एक नेक दिल इंसान मेरा भाई बन जाएगा।"

"कितनी सुंदर बात कही है तुमने।" आदित्य सहसा किसी गहरे ख़यालों में खोता नज़र आया___"तुम्हारे ही जैसी एक बहन थी मेरी___प्रतीक्षा। मेरी लाडली थी वो, हर साल रक्षाबंधन के दिन मेरी कलाई पर एक साथ ढेर सारी राखियाॅ बाॅध देती थी। फिर कहती कि सभी राखियों का वो अलग अलग पैसा लेगी मुझसे।" कहने के साथ ही आदित्य की ऑखों से ऑसू छलक पड़े, बोला___"मगर चार साल पहले अपने प्यार में धोखा खाने की वजह से उसने खुदखुशी की कोशिश की। दो मंजिला मकान की छत से कूद गई वो। हास्पिटल में इलाज चला मगर डाक्टर ने बताया कि वो कोमा में जा चुकी है। आज चार साल हो गए। आज भी वो लाश बनी पड़ी है। जिस लड़के ने उसे धोखा दिया था उसे ऐसी सज़ा दी थी मैने कि वो किसी भी लड़की से संबंध बनाने का सोच ही नहीं सकता अब।"

आदित्य की ये बातें सुन कर मैं और रितू दीदी भी सीरियस हो गए। रितू दीदी उठ कर आदित्य के पास गई और उसे अपने से छुपका लिया। मैं खुद भी आदित्य की दूसरी तरफ बैठ कर उसके कंधे को थपथपा रहा था।

"दुखी मत हो आदित्य।" रितू दीदी ने कहा___"प्रतीक्षा जल्द ही ठीक हो जाएगी। चलो अब शान्त हो जाओ। देखो ये ईश्वर का विधान ही तो था कि मैं तुम्हारी बहन के रूप में तुम्हें मिली और चार साल से सूनी पड़ी तुम्हारी कलाई में राखी भी बाधूॅगी।"

"भगवान का बहुत बहुत शुक्रिया।" आदित्य ने रितू दीदी से अलग होते हुए ऊपर की तरफ सिर करके कहा___"जो उसने मुझे बहन के रूप में मेरी प्रतीक्षा को मेरे पास भेज दिया। मैं तुमसे यही कहूॅगा रितू कि तुम भी प्रतीक्षा की तरह मेरी कलाई पर ढेर सारी राखियाॅ बाॅधना।"

"जैसी तुम्हारी इच्छा।" दीदी ने मुस्कुरा कर कहा___"तुम दोनो बैठो मैं ज़रा काकी(बिंदिया) को चाय बनाने के लिए कहने जा रही हूॅ।"
"ठीक है।" आदित्य ने कहा। उसके बाद रितू दीदी उठ कर अंदर की तरफ चली गईं। जबकि मैं और आदित्य वहीं बैठे रहे।
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उधर मुम्बई में।
जगदीश ओबराय बॅगले के बाहर लान में एक तरफ हरी हरी विदेशी घाॅस के बीचो बीच रखी कुर्सी पर बैठा शाम का अखबार पढ़ रहा था। इस वक्त वह यहाॅ पर अकेला ही था। उसके सामने की बाॅकी सभी कुर्सियाॅ खाली थी। तभी मेन गेट से अंदर आती हुई एक कार की आवाज़ से उसका ध्यान मेन गेट की तरफ गया।

मेन गेट से अंदर दाखिल हुई कार चलते हुए सीधा पोर्च में जाकर रुकी। कार के रुकते ही पैसेंजर सीट की तरफ का गेट खुला और अभय सिंह अपने पैर पोर्च के फर्श पर रखते हुए बाहर निकला। बाहर आते ही उसने लान में एक तरफ कुर्सी में बैठे जगदीश ओबराय की तरफ देखा। जगदीश ओबराय को देखते ही उसके होठों पर मुस्कान उभर आई और वह उस तरफ ही बढ़ता चला गया।

"कहो भाई क्या कहा डाक्टर ने?" अभय के कुर्सी पर बैठते ही जगदीश ओबराय ने मुस्कुराते हुए उससे पूछा___"वैसे तुम्हारे चेहरे की चमक देख कर ज़ाहिर हो रहा है कि रिपोर्ट पाॅजिटिव ही है।"

"बिलकुल सही कहा आपने भाई साहब।" अभय सिंह ने खुशी से कहा___"रिपोर्ट एकदम सही है। बस कुछ ही दिनों में सब कुछ सही हो जाएगा और ये सब आपकी वजह से ही संभव हो सका है। इसके लिए मैं आपका हमेशा आभारी रहूॅगा।"

"अरे इसमें मेरा आभारी रहने की क्या बात है भई?" जगदीश ओबराय ने कहा___"सब कुछ करने वाला तो ऊपरवाला है। हम तो बस माध्यम ही होते हैं।"
"ऊपरवाले को भी तो कुछ करने के लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता ही पड़ती है भाई साहब।" अभय सिंह ने कहा____"ये उसी का नतीजा है कि आप इस सबके लिए माध्यम बने और ये सब हुआ वरना अब तक जो कुछ भी हुआ है उसके बारे में तो हम में से कोई ख़्वाब में भी नहीं सोच सकता था।"

"पर इसमें भी सबसे बड़ा योगदान गौरी बहन का है अभय भाई।" जगदीश ओबराय ने कहा___"उसने करुणा बहन से कुरेद कुरेद कर तथा ज़बरदस्ती पूछा था और तब करुणा ने बताया कि तुममें समस्या क्या है? गौरी बहन ने वो बात बहाने से ही सही किन्तु मुझसे कही। मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि तुम में ये समस्या हो सकती है। तुम भी अपने बिना मतलब के स्वाभिमान व शर्म के चलते इस बारे में किसी से कहना नहीं चाहते थे। बेकार की सोच और बेकार के सिद्धान्त लिए बैठे थे। तुम्हें अपनी पत्नी की इच्छाओं का खुशियों का कोई ख़याल ही नहीं था। ख़ैर, जो भी हुआ अच्छा ही हुआ। अब खुशी की बात ये है कि तुम फिजिकली अब कुछ ही दिनों में पूरी तरह से ठीक हो जाओगे और तुम्हारे पति पत्नी के रिश्तों के बीच फिर से खुशियाॅ भी आ जाएॅगी।"

"सचमुच गौरी भाभी को सबका ख़याल रहता है।" अभय सिंह ने मुग्ध भाव से कहा___"वो यकीनन देवी हैं भाई साहब। कभी कभी सोचा करता हूॅ कि इतने अच्छे लोगों के साथ ईश्वर ऐसा अन्याय कैसे कर देता है? भला क्या बिगाड़ा था किसी का उन्होंने?"

"एक नये अध्याय को शुरू करने के लिए पुराने ख़राब हो चुके अध्याय को खत्म करना ही पड़ता है।" जगदीश ओबराय ने कहा___"हम आम इंसान ईश्वर के क्रिया कलाप को समझ नहीं पाते हैं जबकि सबसे ज्यादा उसे ही पता होता है कि हमारे लिए क्या अच्छा हो सकता है? ईश्वर ने मेरे साथ क्या कुछ नहीं कर दिया है। आज से पहले अरब पति होते हुए भी मैं इतनी बड़ी सल्तनत में अकेला था किन्तु आज मेरे पास गौरी जैसी बहन है और विराज व निधी जैसे मेरे बच्चे हैं। उनके साथ साथ तुम सब भी मिल गए। इन सभी रिश्तों में मुझे प्यार व सम्मान हद से ज्यादा मिल रहा है। अब इससे ज्यादा क्या चाहिए मुझे? इस दुनियाॅ में हम क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाएॅगे? सब कुछ यहीं रह जाएगा, असली दौलत व असली सुख तो इन्हीं में है। आज ईश्वर के इस न्याय से मैं बहुत खुश हूॅ।"

"सही कहा आपने भाई साहब।" अभय सिंह ने कहा___"काश हर इंसान आप जैसी सोच वाला हो जाए तो ये संसार कितना खूबसूरत हो जाए। एक मेरे बड़े भाई साहब हैं जिन्होंने अपने मतलब के लिए हर रिश्ते की बलि चढ़ा दी तथा अपनों के साथ इतना बड़ा अत्याचार कर डाला। क्या उन्हें ये बात नहीं पता होगी कि उन्होंने जिन चीज़ों के लिए ये सब किया वो चीज़ें मरने के बाद उनके साथ नहीं जाएॅगी। बल्कि उनके इस कर्म से उनके मरने के बाद भी लोग उन्हें बुरा भला ही कहेंगे।"

"इस संसार में हर तरह के इंसानों का होना ज़रूरी है अभय।" जगदीश ने कहा___"ईश्वर हर तरह के प्राणियों की रचना करता है, फिर उन्हीं के द्वारा खेल भी रचाता है और उस खेल का आनंद भी लेता है। उसने हम इंसानो के लिए नियम बनाए और उन नियमों पर चलने के लिए उसने समय समय पर हमें किसी न किसी माध्यम से रास्ता भी बताया। ख़ैर ये प्रसंग तो बहुत बड़ा है भई, इसे समझना और इस पर अमल करना बहुत कठिन है। तुम बताओ क्या कहा डाक्टर ने?"

"बाॅकी का तो आपको पता ही है।" अभय सिंह ने कहा___"उस दिन की रिपोर्ट के अनुसार इलाज शुरू हो चुका था। आज उसने टेस्ट लिया तो रिजल्ट बेहतर निकला। उसने बताया कि बहुत जल्द पहले जैसी बात हो जाएगी।"

"चलो ये तो अच्छी बात है।" जगदीश ओबराय ने कहा___"तुम भी ज़रा संजम और संयम का ख़याल रखना और दवा दारू समय समय पर करते रहना। ईश्वर ने चाहा तो बहुत जल्द सब कुछ ठीक हो जाएगा।"
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