Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:18 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
आख़िरकार उसने अपनी आखें खोलकर देखा कि वो इस समय कहाँ और किन लोगों के बीच, किन हालातों में है…

जैसे ही उसने अपनी आँखें खोली, तीन शख्स उसके बिस्तर के पास खड़े दिखाई दिए, वो अपनी पूर्व-बात स्थिति समझ कर फिर से चीखने वाली थी कि उनमें से एक शख्स (मे) ने उसका मुँह बंद कर दिया और उसे समझाने लगा.

देखो ! डरो नही, हम वो नही हैं जो तुम्हारे साथ रेप कर रहे थे, हम तुम्हें बचाकर यहाँ लाए हैं. अब तुम्हें घबराने की ज़रूरत नही है.

व.व.वू.. फिर से लेजाएँगे मुझे, रोते हुए बोली वो..

मे - नही अब वो तुम्हें नही ले जा सकते, वो सब मर चुके हैं..

वो - क्या..? कैसे..? वो तो बड़े ख़तरनाक लोग थे..! उन्हें किसने मारा..?

मे - हमने उन चारों को मार दिया है, और तुम्हें वहाँ से ले आए हैं, अब तुम्हें कोई हानि नही पहुँचाएगा.

वो - लेकिन आप लोग कॉन हैं..?

मे - हमें तुम अपना दोस्त ही समझो, और सारी बात बताओ कि क्या हुआ था तुम्हारे साथ..!

उसने उठने की कोशिश की लेकिन शरीर के दर्द ने उसे उठाने नही दिया, तो मैने उसे सहारा देकर बिठाया और उसकी पीठ के पीछे तकिये का सहारा लगा कर बेड से टेक लगा कर बिठा दिया.

उसने अपने शरीर पर नज़र डाली, जो जगह-2 से नोच-खरोंच से भरा हुआ था, जहाँ अब मलम लगी हुई थी.

अपनी आँखों में पानी लाकर उस युवती ने बोलना शुरू किया- 

मेरा नाम नीरा है, अपने माँ-बापू के साथ गाँव में रहती हूँ. 

गाँव शहर से ज़्यादा दूर होने के कारण पढ़ लिख भी नही पाते हैं बच्चे, सो में भी नही पढ़ पाई, बस 5वी तक की शिक्षा ही ले पाई.

मेरा एक छोटा भाई भी था, मे अपने गाँव की सबसे सुंदर लड़की थी. 

ये लोग जंगलों में रहकर वहाँ से लकड़ी और जंगली जानवरों को मार कर उनका व्यापार करते हैं, कभी-2 घूम फिर कर हमारे गाँव भी आ जाते थे.

हमारे घर वाले, जब ये लोग आते थे तो अपने-2 बच्चों को छिपा देते थे जिससे इन लोगों की नज़र ना पड़े और ये कुछ नुकसान ना पहुँचा सकें.

कल ये लोग आकस्मात हमारे गाँव में आ गये, इससे पहले कि मे और मेरा भाई कहीं छिप्ते, इन्होने हमें देख लिया और पकड़ लिया. 

हम दोनो को ज़बरदस्ती जंगल की ओर ले जाने लगे जब मेरे माँ-बापू ने हमें छुड़ाने की कोशिश की तो उन लोगों ने उन दोनो को गोली मार दी, और फिर मेरे भाई को भी मार दिया, और मुझे उठा ले गये..

इतना कहते-2 वो फुट-2 कर रोने लगी.

मे - देखो नीरा ! तुम रोओ नही, हमें पता है तुम एक बहादुर लड़की हो. वैसे तुम्हारी उम्र क्या है अभी.

वो- 19 साल…!

मे- तुम्हें उनके दूसरे साथियों का पता है कि वो कहाँ रहते हैं..?

वो- ऐसे लोगों का कोई एक ठिकाना तो होता नही है बाबूजी, यहाँ तो जंगल का समंदर सा फैला हुआ है, कही भी आते- जाते हैं ये लोग.

मे - वैसे तुमने ज़्यादा से ज़्यादा कितने लोगों को देखा है ऐसे..!

वो - कभी-2 तो ये 20-25 तक भी आते थे.

मे - अब तुम कहाँ जाना चाहोगी..? आगे क्या करना है..? 

वो - अब मेरा कॉन बचा है जिसके पास जाउन्गी, वैसे भी ये मेरी जिंदगी तो अब नरक बन चुकी है, जीने में रखा ही क्या है ? अब तो मेरे मर जाने में ही भलाई है.

मैने उसे समझाते हुए कहा - देखो नीरा ! मरने से आज तक किसी का भला नही हुआ है, भगवान ने ये जीवन दिया है जीने के लिए, इसे ऐसे ही ख़तम नही करना चाहिए. 

तुम एक बहादुर लड़की हो, हम चाहते हैं, कि तुम इस जीवन का मुक़ाबला पूरी बहादुरी से लड़ते हुए करो.

वो सुबक्ते हुए बोली - अब मे अकेली क्या मुक़ाबला करूँगी जिंदगी का ? कहाँ जाउन्गि..? मेरे पास बचा ही क्या है जीने के लिए..?

मे - क्या तुम ये नही चाहोगी कि तुम्हारी तरह कोई और नीरा अनाथ ना हो..?

वो - मेरे चाहने ना चाहने से क्या होता है बाबू साब..!

मे - अगर होता हो तो….! देखो ! अगर तुम चाहो तो बहुत कुछ हो सकता है, हम तुम्हें इस काबिल बनाएँगे कि तुम जमाने की मुश्किलों का सामना डटकर कर सको. 

और अपने परिवार की मौत का बदला भी ले सको, ताकि फिर कोई मज़लूम इस तरह से असहाय और बेबस ना हो.

वो – लेकिन ये होगा कैसे..? 

मे - वो सब तुम हम पर छोड़ दो, तुम बस ये बताओ, कि तुम इनके खिलाफ लड़ना चाहती हो या नही, इसमें हम तुम्हारा पूरा साथ देंगे. 

वैसे भी तो तुम मरना ही चाहती हो, अगर वो मौत किसी के काम आ सके, किसी का भला करते हुए आए तो जीवन सफल हो जाता है, है ना !

वो - हमम्म… ! ठीक है, आज से आप लोग जैसा कहेंगे मे वैसा ही करूँगी…, वैसे भी ये जिंदगी तो आप ही की लौटाई हुई है.

मे - शाबास ! ये हुई ना कुछ बात…! 

फिर मैने उसे उसकी सारी दबाईयाँ देते हुए समझाया - लो ये सब तुम्हारी दबाइयाँ हैं, इनको समय से खाना है, और ये ट्यूब अपने ज़ख़्मों पर लगाना है दिन में दो बार, उस जगह पर भी. समझ गयी.

मेरी बात का मतलब समझते हुए, थोड़ा शरमाते हुए उसने सर हिलाकर हामी भरी..!

मैने आगे कहा - घर में खाने पीने की सभी चीज़ मौजूद हैं, तो खुद पकाना और समय से खाना, हम लोग कुछ दिनो के लिए बाहर जा रहे हैं तब तक तुम अच्छी तरह से अपनी देखभाल करना, 

जब हम लोग लौट के आयें तो हमें हमारी शेरनी पूरी तरह स्वस्थ मिलनी चाहिए..! ठीक है..!

और हां ! बिना काम के ज़्यादा देर घर से बाहर मत जाना, किसी से मेल-जोल बनाने की भी ज़रूरत नही है, और ना ही फालतू इधर-उधर जाना है, समझ गयी.

उसने मुस्करा कर हामी भरी, अब उसके चेहरे पर कुछ ध्रड निश्चय के भाव नज़र आरहे थे…

फिर हम तीनों दोस्त उसे अकेला छोड़कर बाहर निकल गये..!
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12-19-2018, 02:18 AM,
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हम नीरा को वहाँ छोड़ कर और उसका सारा कुछ रहने खाने का उसके लिए 4-6 जोड़ी कपड़ों का भी इंतज़ाम करके हम तीनों अपने-2 घरों को निकल लिए.

ओवर नाइट की जर्नी करके मे कोई सुबह के 4 बजे अपने घर पहुँचा…

काफ़ी देर के बाद तो साले बंगले पर तैनात संतरी ने मेन गाते खोला….

अब इसमें बेचारे संतरी की भी क्या ग़लती थी… रात भर की ड्यूटी के बाद, ये समय ऐसा होता ही है, कि झपकी लग ही जाती है, और वो भी ऐसी लगती है, कि कान पर नगाड़े बजते रहें आदमी की नीद नही खुलती…

खैर वो अलसाया हुआ आया, मेरी गाड़ी में झाँक कर चेक किया और फिर सल्यूट देकर गेट खोलते हुए बोला…

सॉरी सर, तोड़ा आँख लग गयी, प्लीज़ आप मेडम को मत बोलना, वरना मेरी क्लास ले लेंगी…

मैने कहा – कोई बात नही मे समझ सकता हूँ, इस समय की नीद कैसी होती है, वो भी रात भर जागने के बाद…

खैर एक किला फ़तह कर लिया था, लेकिन असली अभी वाकी था, तो बंगले के पोर्च में गाड़ी खड़ी करने के बाद मे गाड़ी से नीचे आया और डोर बेल बजाई.. 

एक बार, दो बार… लगातार 10 मिनट बेल बजाने के बाद तब कहीं जाकर अंदर से एसीपी साहिबा की अलसाई हुई आवाज़ सुनाई दी… कॉन है…?

मैने आवाज़ बदल कर कहा – में साब दूधवाला…

ट्रिशा स्लीपर चटकाते हुए बड़बड़ाती हुई गेट की तरफ बढ़ी… दूधवाला..? आज क्या हुआ जो इतने सबेरे – सबेरे दूध लेकर आ गया… लगता है, रात को भांग ज़्यादा चढ़ा ली इसने, जो समय का पता ही नही चला…

आती हूँ रामू.. ये कहती हुई वो डोर तक आई, और जैसे ही गेट खोला …. 

सामने मुझे खड़ा देख कर उसकी सारी नींद की खुमारी भाग खड़ी हुई..

मेरे सीने पर घूँसे बरसाते हुए बोली – आप बहुत सताते हो मुझे… सीधे – 2 बोल नही सकते थे…, इतना कहकर मेरे सीने से लिपट गयी…

आप इतने सुबह-2 कैसे आए, फिर पोर्च में गाड़ी पर नज़र पड़ते ही बोली – हे भगवान, सारी रात ड्राइविंग करके आए हो…

मैने चुटकी लेते हुए कहा – नही तो ! तुम्हें पता नही ये गाड़ी हवा में उड़ भी सकती है… अब चलो अंदर या यहीं से धक्के देकर भगाने का इरादा है…

वो – ओह सॉरी ! और मेरी कमर में बाहें लपेट कर हम अंदर आ गये..

मैने कहा – गेट खोलने में इतना समय क्यों लगा तुम्हें, तुम तो सुबह जल्दी उठने की आदि हो…

वो बोली – अरे कल गाँधीनगर जाना पड़ा, आते आते रात का 1 बज गया.. 2 बजे जाकर सोना हुआ इसलिए…

मे – ओह ! सॉरी डार्लिंग, मैने तुम्हें डिस्टर्ब कर दिया…

वो – ओह ! जानू इसमें सॉरी की क्या बात है, इट्स ओके, आज मुझे कहीं नही जाना, आज बस अपने साजन की बाहों में ही सारा दिन गुज़ारना है…

फिर ट्रिशा ने हम दोनो के लिए चाय बनाई, और फिर फ्रेश होकर हम एक दूसरे की बाहों में लिपटे पलंग पर लेट कर बातें करते रहे…

ना जाने कब हमें नींद ने आ दबोचा… मेरी नींद 12 बजे जाकर खुली…

तबतक उसने नहा धोकर नाश्ते का इंतेज़ां करा लिया, मैड आकर सारा काम निपटा कर जा चुकी थी…

मैने उठकर सीधा नाश्ते पर धाबा बोल दिया… और एक बार फिर हम अपने बेडरूम में आ गये…

बेडरूम में आते ही ट्रिशा मेरे बदन से लिपट गयी… मैने उसके होठों को चूमकर पुछा – क्या बात है मेरी जान बड़ी उतावली हो रही हो…

वो मेरी बालों से भरी छाती को अपनी हथेली से सहलाते हुए – मुझे अब एक नन्हा अरुण चाहिए जिसके साथ में खेल सकूँ…

आप तो इतने-2 दिनों के लिए चले जाते हो, मुझे भी तो कोई चाहिए अपने साथ जो अपना हो…

बात उसकी जायज़ थी, सो मैने उसके अनारों को सहलाते हुए पुछा – ये समय सही है..?

वो मेरे लंड को सहलाते हुए बोली – एकदम परफेक्ट, कल ही पीरियड बंद हुए हैं..

इतना सुनते ही, मैने उसके गाउन की डोरी खींच दी, और उसे अपनी गोद में उठाकर बेड की तरफ ले जाते हुए बोला – नेकी और पुछ-पुछ, हम अभी एक बेबी का इंतज़ाम करे देते हैं अपनी बेगम साहिबा के लिए…
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12-19-2018, 02:18 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
ट्रिशा को बेड पर लिटाकर मैने अपने सारे कपड़े निकाल दिए और बेड पर छलान्ग लगा दी…

ट्रिशा अभी भी वाइट कलर की ब्रा और पेंटी में थी, मैने उसे अपने उपर लेलिया…

वैसे भी शुरू से ही उसे मेरी सवारी करने में ज़्यादा मज़ा आता था, ट्रिशा के एक्सप्रेशन बता रहे थे, कि वो सेक्स के लिए कितनी उतावली हो रही थी…

इधर मे भी तो कई महीनों से रुका पड़ा था…

मैने उसे खुली छूट दे दी, जो उसके जी में आए वैसे करे…

तो कुछ देर तक वो अपनी मुनिया को पेंटी के उपर से ही मेरे लंड पर रगड़ती रही, 

मैने पीछे हाथ ले जाकर उसकी ब्रा को खोल दिया, और उसके कसे हुए अनारों को अपनी मुट्ठी में कसकर मसल दिया…

आअहह………ससिईईईईईईईईईईईई….जानुउऊउउ….और ज़ॉर्सीईए…मसालूओ…इन्हीन्णन्न्..बहुत तंग करते हैं… आपकी याद में…

उसने झुक कर मेरे होठों को चूसना शुरू कर दिया… मैं उसकी पेंटी में हाथ डालकर उसके मस्त कसे हुए नितंबों को मसल्ने लगा…

ट्रिशा की पेंटी अब गीली होने लगी थी, सो उसने उसे निकाल फेंका, और अपनी कसी हुई मुनिया के होठों को फैलाकर मेरे लंड पर बैठती चली गयी…

ट्रिशा ने अपने होठों को कसकर बंद कर लिया, वो मीठे-2 दर्द को पीते हुए धीरे-2 करके मेरे पूरे साडे 8 इंच के सोट को निगल गयी…

कुछ देर वो उसे अपनी बच्चे दानी के मुँह तक फील करके बैठी रही, फिर मैने उसके कुल्हों पर थपकी दी, तो मानो वो नींद से जागी हो, 

और मुस्करा कर अपनी कमर को जुम्बिश देते हुए बोली – आअहह… जानू, बहुत बड़ा है आपका, मेरे अंदर तक पहुँच रहा है…

सस्सिईईई….. मेरे बलम मुझे जल्दी से माँ बना दो…और सिसकते हुए वो अपनी गान्ड को उपर नीचे करने लगी…

मेरा लंड उसकी चूत में एकदम फूल चुका था, जो ट्रिशा की कसी हुई मुनिया को जबदस्ती चौड़ा किए हुए था…

मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी, अब मेरे लंड का काम ट्रिशा के हल्के-फुल्के धक्कों से चलने वाला नही था, 

सो उसकी कमर में अपने हाथों का सहारा देकर नीचे लिया, और उसकी टाँगों को पेट से सटा कर जबरदस्त धक्कों से उसकी चुदाई करने लगा…

ट्रिशा जल्दी ही पानी छोड़ गयी, लेकिन मेरा अभी आधा सफ़र ही तय हुआ था…

कुछ देर उसे मेरे धक्कों से परेशानी हुई, लेकिन जल्दी ही वो फिर से लय में आ गई…

और अंत में मैने एक हेलिकॉप्टर शॉट लगाकर अपनी पिचकारी उसकी बच्चेदानी में छोड़ दी, जिसकी गर्मी पाकर वो फिर से एक बार भल्भलाकर झड़ने लगी…

कितनी ही देर तक में उसके अंदर फाइरिंग करता रहा फिर उसके बगल में आकर उसे सीधे करवट लिटा दिया…

एक घंटे तक वो यौंही पड़ी रही, थकान से चूर… 

कुछ देर बाद फ्रेश होकर एक बार फिर एक दूसरे में खो गये…!

शाम ढले तक हम दोनो ही अपने मनमाने ढंग से अपनी प्यास बुझाते रहे, ट्रिशा इस खेल में जल्दी पस्त हो जाती थी…

दिन ढले हम फ्रेश होकर बाहर हॉल में आ गये, वो किचेन में चाय बनाने चली गयी, मैने टीवी ऑन कर लिया…

हम दोनो अभी टीवी देखते हुए चाय की चुस्कियाँ ले ही रहे थे, कि तभी डोर बेल बजने लगी..

ट्रिशा ने उठकर गेट खोला, और जैसे ही उसकी नज़र आनेवाले पर पड़ी… तुउुउउ………चीखते हुए वो उसके गले से लिपट गयी….

सामने दरवाजे पर निशा अपने पति के साथ खड़ी थी, राहुल उसका पति, जो ऋषभ के साथ ही जॉब करता था, और उसी ने ये रिश्ता करवाया था…

राहुल एक मध्यम कद काठी का व्यक्ति था, चाल ढाल से ही थोड़ा दब्बु किस्म का लगता था…

ट्रिशा दोनो को लेकर अंदर आई, राहुल के साथ मे पहली बार मिल रहा था, उसने हाथ जोड़कर मुझसे नमस्ते किया, जबाब मे मैने उसे अपने गले से लगा लिया…

निशा मुझसे लिपटने के लिए लपकी, लेकिन मैने इशारे से उसे रोक दिया…

एक दूसरे के हाल चाल जाने, फिर उन दोनों को एक अलग कमरे में पहुँचा कर ट्रिश मेरे पास आकर बैठ गयी…

मैने ट्रिशा को ऐसे ही बोल दिया – मुझे लगता है, राहुल कुछ दब्बु टाइप का लड़का है… निशा इसे अपनी उंगलियों पर नचाती होगी..

वो मेरी तरफ गौर से देखते हुए बोली – आपको कैसे लगा कि वो उसे नचाती होगी…

मे – बस उसकी बॉडी लॅंग्वेज से लगा मुझे, विश्वास ना हो तो निशा को पुच्छ के देख लेना… वैसे तुम किस तरह की पोलीस ऑफीसर हो, आदमी को देख कर उसका नेचर नही जान सकती..

ट्रिशा – सच कहूँ तो मुझे भी ऐसा लगा, लेकिन मैने इस बात पर ज़्यादा विचार नही किया…

अभी हम ये सब बातें कर ही रहे थे, कि वो दोनो चेंज करके हॉल में आ गये, 

मे राहुल से उसके काम धंधे के बारे में पुच्छने लगा, उधर वो दोनो बहनें आपस में बातें करती रही,

रात का खाना हमने बाहर किसी अच्छे से होटेल में खाया….!

उस रात हम दोनो पति पत्नी, एक राउंड गरमा गरम चुदाई करके एक दूसरे की बाहों में लिपटे पड़े थे, 

अभी कोई 12 बजे का वक़्त हुआ होगा, कि हमारे रूम के गेट पर हल्की सी दस्तक हुई…

हम दोनो की नज़रें आपस में टकराई, फिर मैने अपना अंडरवेर पहना, और गाउन डालकर उसकी डोरी बाँधते हुए डोर की तरफ बढ़ गया…

ट्रिशा ने अपने नंगे बदन पर बेडशीट डाल ली…

मैने जैसे ही अपने बेडरूम का गेट खोला… सामने का नज़ारा देख कर हम दोनो का ही मुँह भाड़ सा खुला रहा गया…!

निशा इस समय एक बहुत ही झीना सा शॉर्ट गाउन डाले हुए दरवाजे पर खड़ी थी, जिसमे से उसके बदन की छटा साफ-साफ दिखाई दे रही थी, 

उसके दशहरी आम, उनके सिरे पर लगे किस्मिष के दाने जैसे उसके निपल, एक दम साफ दृष्टिगोचर हो रहे थे, 

नीचे वो एक बहुत सेक्सी सी लिंगरी पहने हुए थी,
सामने निशा को इस रूप में देखकर ट्रिशा भी बेडशीट को अपने उपर खींचते हुए बैठने पर मजबूर हो गयी…!

निशा के इस जान मारु रूप को देख कर मेरे लंड ने एक जबरदस्त ठोकर अंडरवेर के अंदर मारी…!

निशा मेरी आँखों में झाँकते हुए मंद-मंद मुस्करा रही थी…

मेरे सीने पर एक हाथ रख कर उसने मुझे अंदर को धकेला और दूसरा हाथ पीछे ले जाकर रूम का गेट भेड़ दिया…

ट्रिशा से रहा नही गया, और थोड़ा नागवारी भरे लहजे में उसने निशा को लताड़ते हुए कहा – 

ये क्या हिमाकत है निशा, तू इस तरह से हमारे कमरे में चली आई, बड़ी बेहन और जीजू का कोई शर्म लिहाज नही है तुझे…

और अगर तेरे पति को पता चला तो वो क्या सोचेगा… थोड़ा सा तो परदा रख.

ट्रिशा की बात का उसके उपर जैसे कोई असर ही नही हुआ… और वो मुझे अपनी बाहों में लपेटे, लगभग घसीटते हुए पलंग तक ले आई…

फिर अपने घुटनों पर बेड के उपर बैठती हुई बोली – ओह कम ऑन दिद… मानती हूँ, आप जीजू की पूरी घरवाली हो, तो आपको पूरा हक़ है उनके साथ कैसे भी रहने का…

लेकिन साली भी तो आधी घरवाली होती है, तो थोड़ा सा हक़ तो मेरा भी बनता है ना…

और रही बात राहुल को पता लगने की, तो उसे तो मैने दूध के साथ इतना बड़ा डोज दे दिया है, कि अब वो सुबह 8 बजे से पहले उठने वाला नही है…!
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12-19-2018, 02:19 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
दोनो बहनों के बीच के वार्तालाप में मैं केवल एक तमाशबीन की तरह ही था, कि तभी ट्रिशा बोली – 

आप इसे कुछ कहते क्यों नही हो, इतना बेशर्म होना अच्छी बात नही है..

मैने कहा – भाई ये तुम दोनो बहनों के बीच की बात है, मे कॉन होता हूँ बीच में बोलने वाला, 

और वैसे भी… तुम एक बार उसको ये मौका दे ही चुकी हो तो अब वो क्यों शरमाने लगी…!

इतने में निशा ने मेरा हाथ पकड़ कर बेड पर खींच लिया, और लपक कर मेरी गोद में आ बैठी,

अंडरवेर में फुदकते मेरे लंड को जब नंगी गान्ड की गर्मी लगी तो वो और ज़्यादा कड़ा हो गया…

मैने पारदर्शी गाउन से चमकते निशा के आमों को अपनी मुट्ठी में कस लिया…, 

वो मेरे होठों को चूसने में लगी हुई थी…

ट्रिशा बगल में बैठी किसी उल्लू की तरह आँखें झपका कर हम दोनो की रासलीला को देख रही थी, कि तभी मैने उसे भी अपने पास खींच लिया…

निशा ने मौका लगते ही अपना एक मात्र गाउन भी निकाल दिया, और मेरे अंडरवेर को उतारने के लिए मुझे बेड पर धक्का दे दिया…

अब ट्रिशा भी सारी झिझक छोड़कर खेल में शामिल हो गयी…

निशा अपनी मदमस्त गान्ड लेकर मेरी जाँघो पर बैठकर हिचकोले खाने लगी, मेरा लॉडा आगे की तरफ फन निकाले उसकी गीली चूत के होठों के बीच फँस कर उसके कामरस से तर हो रहा था…

मैने ट्रिश को कहा – डार्लिंग, मेरे पप्पू को सुरंग का रास्ता तो दिखाओ…

उसने मुस्कराते हुए, मेरे लंड को अपने हाथ में लिया, और उसका सुपाडा, निशा की चूत के छेद पर टिका दिया…

निशा ने जैसे ही अपनी कमर को मूव्मेंट दिया, सरसराता हुआ वो उसकी रस से लबालब चूत में सरक गया…

आआअहह………जिजुउुउ….सस्सिईईई…..क्या मस्त लंड है आपका… हाईए…माआ…मज़ा आ गायाअ…….

कुछ देर वो मेरे उपर कूद-कूद कर लंड को लेती रही, फिर मैने उसे नीचे पलटा दिया, और उसकी टाँगों को चौड़ा करके सुपर फास्ट ट्रेन की तरह धक्के लगाने लगा…

निशा मस्ती में बड़बड़ाते हुए नीचे से अपनी कमर उचका-2 कर ज़्यादा से ज़्यादा मेरे लंड को अंदर लेने की कोशिश कर रही थी…

हाईए…जिजुउू..चोदो मुझे और ज़ोर्से… फाड़ दो मेरी चूत मेरे राजाजी…
मुझे अपने बच्चे की माँ बना दो…..

अंत में मैने उसकी बच्चेदानी को अपने वीर्य रस से भरकर उसे अपने सीने से चिपका लिया… वो मेरे सीने से लगकर सुबकने लगी…

लंड अंदर डाले हुए ही, मैने उसे अपनी गोद में लेकर उसकी पीठ सहलाते हुए कहा –

क्या हुआ निशा… ? रो क्यों रही हो… मैने कुछ ज़्यादा ज़ोर्से कर दिया क्या..?

निशा ने मेरे गले को चूमते हुए कहा – मेरी इच्छा थी कि मे आपके बच्चे की माँ बनूँ, सच कहूँ तो मे इसलिए ही यहाँ आई हूँ..

आज आपने मेरी ये इक्षा पूरी करके मुझे बिन मोल खरीद लिया जीजू… मेरे प्यारे जीजू…आइ लव यू…

उसकी ये बात सुनकर हम दोनो ही शॉक्ड रह गये… फिर ट्रिशा ने उसकी गान्ड पर थप्पड़ जड़ते हुए कहा…

ये तू कैसे कह सकती है, कि आज तू माँ बन ही जाएगी..?

निशा मादक सिसकी भरते हुए बोली – ओह्ह्ह…दीदी, देखो, अभी भी जीजू की पिचकारी सीधी मेरी बच्चेदानी में जा रही हैं.. थोड़ी बहुत कसर रह गयी होगी, तो अब पूरी हो जाएगी..

इतना कह कर वो और ज़ोर्से मेरे बदन से चिपक गयी….!

कुछ देर बाद हम फिर से थ्रीसम करने में लग गये, इस बार मैने अपना आधा-आधा माल दोनो की चुतो को पिलाया…

इस तरह से हमारी रासलीला, सुबह तक बदस्तूर जारी रही…

चार दिन रहकर निशा खुशी-खुशी अपने पति के साथ वापस पूना लौट गयी…..!

8-10 दिन और ट्रिशा के साथ फुल मस्ती में निकले, क्योंकि शादी को काफ़ी समय हो चुका था, तो अब घर में और मेंबर भी तो आने चाहिए, ऐसी हम दोनो की ही अब इच्छा थी.

इस बार ये ट्रिशा को भी लग रहा था कि इस बार प्रेग्नेन्सी के पूरे-2 चान्स हैं. 

11वे दिन मे फिर अपने फील्ड वर्क को निकल पड़ा. विक्रम और रणवीर को फोन किया तो वो अगले दिन निकलने वाले थे.

देर रात में बस्तर पहुँच गया. घर में घुसते ही सब कुछ बदला-2 सा लगा, हर चीज़ अपनी जगह पर व्यवस्थित दिखी, 

सॉफ सफाई, किचेन का सामान एक दम फिट फट, अब लग रहा था कि ये भी घर है, यहाँ भी लोग रहते हैं.

नीरा अपने अच्छे से कपड़ों में बड़ी प्यारी सी लग रही थी, जब मे उसकी ओर देख रहा था तो वो मुझे देख कर मंद-2 मुस्करा रही थी. 

मैने उसे घूम फिर कर देखा वो वाकई में सुंदर थी, साँवले रंग की गाँव की अल्हड़ कली जो उन शैतानों ने बेरहमी से मसल कर उसे फूल बना डाला था.

लेकिन अब वो कुछ सम्भल गयी थी और अच्छे व्यवस्थित कपड़ों में वो फिर से चहकने लगी थी. 

कमसिन जवानी का यही तो कसूर होता है, जब भी मौका मिले वो उभर कर सामने आ ही जाती है, और हवस के अंधे कामी कीड़े उसका रस निचोड़ने से बाज़ नही आते.

जब मे उसे काफ़ी देर तक देखता रहा, तो वो शर्मा गयी और नज़रें नीची करके बोली- ऐसे क्या देख रहे हैं बाबूजी.

मे- देख रहा हूँ, ये हमारी वही डरी सहमी सी नीरा है या कोई और आ गई है घर में.

वो- आपकी वही नीरा है बाबूजी, कैसी लग रही हूँ इन नये कपड़ों में..?

मे - बहुत प्यारी..! एक दम चंचल हिरनी जैसी., बस हमेशा ऐसे ही चहकति रहना.

खैर , अच्छा ये बताओ कि अब तुम्हारी तबीयत कैसी है..?

वो - अब में बिल्कुल ठीक हूँ, सारे जख्म ठीक हो गये हैं, बस कभी-2 पेडू में दर्द की लहर सी उठती है.

मे - कोई बात नही मे तुम्हारे लिए और दवा ले आउन्गा वो भी चला जाएगा. वैसे और कोई परेशानी तो नही है..?

वो - नही और कोई परेशानी नही है, वो दर्द भी कभी-2 होता है.

मे - अब तुम ध्यान से सुनो ! अब तुम्हें अच्छा-2 खाना ख़ाके अपनी शक्ति बढ़ानी है, कल सुबह से ही तुम्हें कसरत शुरू करवानी है, 

उसके लिए आज ही मे तुम्हारे लिए कुछ कपड़े ले आउन्गा, तुम्हें अपना माप तो पता होगा ?

वो- कैसा माप..? कैसे कपड़े ? ये कपड़े हैं तो मेरे पास.

मे - छोड़ो, मेरे साथ चलना, वहीं माप करके कपड़े ले लेंगे. ये कुछ अलग तरह के कपड़े होते हैं जो कशरत करने के लिए ही होते हैं.

शाम को उसे बाज़ार ले जाकर अच्छी सी दुकान से उसके लिए दो लेडी स्पोर्ट सूट खरीदे, डॉक्टर से कन्सल्ट करके दवा ली और कुछ घर की ज़रूरत का समान लेकर घर लौट आए.

घर आ कर मैने नीरा को उसके कपों का पॅकेट दे कर कहा, जाओ ये पहन कर आओ, मुझे देखना है तुम्हारी फिटिंग, 

फिर उसको ब्रा-पेंटी वाला पॅकेट देकर कहा- इन कपड़ों को पहले पहनना है और इनके उपर ये सूट.

वो दूसरे कमरे में चली गयी और मे दूसरे काम में लग गया, कुछ देर बाद जब उसके आने की आहट सुनाई, मे उसकी तरफ पलटा, और उसको देखता ही रह गया.

टाइट टू पीस स्पोर्ट सूट में वो ग़ज़ब लग रही थी, वैसे भी उसका बदन गाँव की मेहनत कस जिंदगी में एक दम कसा हुआ ही था, लेकिन इस फिटिंग सूट में तो उसके शरीर का हर कटाव साफ दिख रहा था.
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12-19-2018, 02:19 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
32 के उसके कसे हुए सुडौल बूब, जिनका चौड़े गले के उपर में से क्लीवेज दिख रहा था, एकदम पतली कमर 20-22 की, 30 के कूल्हे, जो एक दम टाइट कसे हुए, थोड़ी सी पीछे को गोलाई लिए.

मेरे मुँह से अनायास ही निकल पड़ा, ग़ज़ब ! नीरा तुम तो बहुत सुंदर लग रही हो इन कपड़ों में.

वो - सच बाबूजी..! 

मे - हां ! मैने उसका हाथ पकड़ के ड्रेसिंग टेबल के सामने ला कर खड़ा कर दिया. वो आदमकद शीशे में अपना ही अक्श देख कर शरमा गयी, और नज़ारें झुका के खड़ी हो गयी.

अपने आप को देखो नीरा इसमें, तुम्हें खुद अपनी सुंदरता दिखाई देगी. किसी और से पुच्छने की ज़रूरत ही नही है.

वो - मुझे शर्म आरहि है बाबूजी.

मे - अपने से क्या शरमाना पगली.. और उसकी थोड़ी को उंगली के सहारे से उपर किया, देख और जी भरके जी अपनी जिंदगी ये सोचके कि तुम किसी से कम नही हो. 

आज के बाद मुझे वो गाँव की डरी सहमी सी नीरा नही दिखनी चाहिए इस घर में. 

अब एक नये रूप में आना है तुम्हें वो नीरा बन कर जो इस भेड़ियों से भरे समाज में एक शेरनी की तरह निकले.

मेरी बातों को वो टक-टॅकी लगा कर सुनती रही, मे उसका आत्म विश्वास बढ़ाना चाहता था, जिससे वो भविष्य में किसी की मोहताज़ बन कर ना रहे.

ना चाहते हुए भी वो मेरी चौड़ी छाती में समा गयी और सूबकते हुए बोली- सभी आप जैसे क्यों नही होते बाबूजी ? 

मैने उसके सर पर हाथ फेरा और उसको चुप करा कर कहा- सब तेरे जैसे भी तो नही हैं..? कितनी मासूम, भोली, किसी परी जैसी. 

अब चल खाना तैयार करते हैं, भूख लगी है.

फिर वो कपड़े चेंज करने चली गयी, और उसके बाद खाने के इंतेज़ाम में लग गयी, तब तक में कुछ नये एलेक्ट्रॉनिक आइटम्स जैसे माइक्रो कॅमरा, माइक्रो-फोन लाया था उन्हें लॅपटॉप से कनेक्ट करके कॅलिब्रेट करने लगा.

जब खाना तैयार हो गया तो हम दोनो ने खाना खाया और थोड़ा बहुत बाहर टहलने निकल गये, और फिर आकर सो गये.

सुबह मैने नीरा को 4: 30 बजे ही जगा दिया, आज से उसको योगा-प्राणायाम, फिर और एक्सर्साइज़ सिखानी थी.

जब तक वो अपने नित्य कामों से फारिग हुई तब तक मैने ध्यान मुद्रा लगाई और फिर 5 बजे से 7 बजे तक हम दोनो ने मिलकर खूब पसीना बहाया. 

वो थक कर चूर हो गयी, आधे घंटे बाद जब उसको एक बड़ा ग्लास जूस पिलाया तो उसमें फिर से जान आ गई और घर के काम निपटाने चली गयी.

दिन में पार्ट्नर भी आ गये, और वो भी नीरा का काया कल्प देख कर हैरान रह गये. इसी दिनचर्या में 1 महीना बीत गया, 

अब नीरा वो नीरा नही रही थी, जिसे कोई भी भेड़ बकरी की तरह हाथ पकड़े और जहाँ चाहे ले जाए.

आज की नीरा वो नीरा बन चुकी थी, जो हम जैसे ट्रेंड कमॅंडोस से भी दो-दो हाथ करने से नही हिचकिचाती थी. 

साथ ही साथ हमने उसको बात-चीत करने का ढंग और रहन-सहन का तरीक़ा भी सिखा दिया था, 

अब कोई उसको गाँव की अनपढ़ गँवार लड़की नही कह सकता था.

हमें लगने लगा था कि अब हमारे मिसन का असली मोहरा अब तैयार हो चुका है, और अब उसे चलाने का समय आ गया है.

इसी बीच एक दिन ट्रिशा का फोन आया, उसने बताया कि वो माँ बनने वाली है, साथ ही निशा ने भी खुशख़बरी उसे बता दी थी.

एक साथ दोनो बहनों के माँ बनने की खबर सुनकर मेरी खुशी का तो जैसे ठिकाना ही नही था,

बस्तर सिटी का नामी गिरामी होटेल जिसका डाइनिंग हॉल इस समय नीली-पीली रंग बिरंगी मद्धिम रोशनी में नहाया हुआ था.

कस्टमर अपनी अपनी टेबल पर बैठे या तो लज़ीज़ खाने का मज़ा ले रहे थे, या अपने खाने के आने का इंतजार कर रहे थे, 

ऑर्केस्ट्रा की मद्धिम लेकिन मधुर धुन हॉल के कोने-2 से उठ रही थी.

तभी, वहाँ रोकी , राकेश खांडेकर अपने 5-6 दोस्तों के साथ प्रेवेश करता है, वो सब शराब के नशे में धुत्त इधर-उधर को हिलते डुलते हुए दिखाई दे रहे थे, मतलब नशा उन पर पूरी तरह हावी था.

रोकी का बाप शहर का एक मशहूर लीडर जो कि एक पॉल्टिकल पार्टी का नेता था नाम था प्रताप खांडेकर, 

उसकी पार्टी देश में कभी सत्ता में तो नही आई थी लेकिन मौजूदा कोलिशन सरकार में भागेदारी अवश्य थी, कुछ राज्यों में भी उनकी सरकार थी.

रॉकी और उसके दोस्तों ने पूरे डाइनिंग हॉल में हंगामा मचा रखा था, जिसकी वजह से वहाँ मौजूद लोगों को असुविधा होने लगी.

होटेल मॅनेजर की इतनी हिम्मत नही थी कि वो उनको रोक सके. 

आख़िर में जब पानी सर गुजरने लगा, तो एक टेबल के इर्द-गिर्द बैठे तीन व्यक्तियों में से एक उठा और उन लफंगों को समझाने लगा.

वो शराब और ताक़त के नशे में चूर कहाँ समझने वाले थे, उल्टा उस आदमी के साथ ही हाथापाई करने लगे, 

जब उसके साथियों ने देखा कि वो लोग उसके साथ कुछ ग़लत ना करदें तो वो दोनो भी उठ कर आ गये और उनमें से एक ने एक गुंडे के कान के नीचे बजा दिया.

अब तो मामला ज़्यादा तूल पकड़ने वाला ही था कि होटेल का मॅनेजर वहाँ आ गया और उन तीनो से माफी माँगते हुए मिन्नतें करने लगा, कि आप लोग समझदार हो इनके मुँह मत लगो और यहाँ चले जाओ जिससे मामला शांत हो जाए, वरना 
मेरे होटेल का माहौल खराब होगा, हो सकता है कुछ टूट-फुट भी हो जाए.

वो तीनों वहाँ से निकलने लगे, अभी वो डाइनिंग हॉल के मेन गेट से निकल कर सामने बने पोर्च तक ही पहुँचे थे कि उन नशेडियों में से एक ने उन तीनो में से एक का पीछे से कॉलर पकड़ लिया, 

उस बंदे ने उसका हाथ पकड़के ज़ोर दबाया तो उसका कॉलर छूट गया, उस बंदे ने पीछे मूड के उस नशेड़ी को एक ज़ोर का धक्का दिया जिससे वो धडाम से पीछे को गिर गया.

देखते-2 वहाँ घमासान छिड़ गया, उन तीन बन्दो ने 10 मिनट तक उन गुण्डों की जम के धुलाई की अब वो सभी अर्ध बेहोसी की हालत में ज़मीन पड़े-2 कराह रहे थे.

रोकी हक्का वाक्का खड़ा उन्हें देख रहा था, उसकी टाँगें काँप रही थी, ठीक से खड़ा भी नही हुआ जा रहा था उससे.

फिर भी उसने अपने डर को काबू में करके किसी तरह वो उनसे भिड़ा रहा, लेकिन जल्दी ही पस्त हो गया, उन बन्दो में से एक ने उसको फाइनल एक घूँसा उसकी कनपटी पर मारा, प्रहार इतना पवरफुल था कि रोकी के फारिस्ते कून्च कर गये.

लाख कोशिशों के बाद भी वो अपनी टाँगों पर खड़ा नही रह पाया और वो भी गिरने ही वाला था कि दो हाथों ने उसे थाम लिया.

रोकी ने अपनी बंद होती आँखों से उस थामने वाले की ओर देखा और बस अपने घर का पता ही बोल पाया और उसकी बाहों में बेहोश हो गया.

उसका बेहोस शरीर एक लड़की की बाहों में झूल गया, जिसे उसने किसी तरह से एक रिक्शे में डाला और उसके बताए पते की ओर ले चली.

ये एक हवेली नुमा बहुत ही बड़ा सा मकान था जो शहर के सबसे रहिषी इलाक़े में था. उसने रिक्शे वाले को उस हवेली नुमा मकान के सामने रोकने को कहा, और खुद बाहर आकर दरबान से गेट खोलने को कहा.

दरवान ने रोकी को पहचान कर गेट खोला और उस रिक्शे वाले की मदद से उसे अंदर तक ले गयी.

एक बड़े से हॉल में एक अधेड़ महिला जो ना ज़्यादा सुंदर थी, तो बदसूरत भी नही कह सकते, थोड़ी भारी शरीर की हल्का साँवली रंगत की एक बड़े से सोफे पर बैठ कर टीवी देख रही थी.
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12-19-2018, 02:20 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
रात के 10 बजे अपने घर में एक अजनबी लड़की को अपने बेटे के बेजान से शरीर को सहारा दिए लाते देख कर वो चोंक गयी और सोफे से उठकर फ़ौरन उनके पास पहुँची.

महिला - क्या हुआ मेरे बेटे को, किसने की इसकी ये हालत, रोकी के पापा ! जल्दी यहाँ आओ, देखो तो इसको क्या हुआ..?

रॉकी का बाप प्रताप खांडेकर भी एक रूम से बाहर आया और वो भी अपने नालयक बेटे को देखकर हड़बड़ाया, लेकिन अपने गुस्से को काबू में रख कर अपने भावनाओ को कंट्रोल में रख कर पहले उसने नौकरों को बोल कर अपने बेटे को उसके बेडरूम तक भिजवाया, और फिर उस लड़की को बैठने का इशारा करके खुद भी बैठ गया.

प्रताप - ये कैसे ? कहाँ और किसने किया..?

लड़की - जी मुझे ज़यादा तो नही पता कि होटेल के अंदर क्या हुआ ? लेकिन बाहर जो मैने देखा वो कुछ इस तरह से था और उसने सारी घटना प्रताप के सामने बयान कर दी.

प्रताप - मे जानता हूँ की मेरा बेटा ग़लत लोगों की संगत में बिगड़ गया है, फिर भी हम तुम्हारे शुक्रगुज़ार हैं बेटी जो तुम उस नालयक को यहाँ तक सहारा देकर लाई हो.

लड़की - इसमें शुक्रिया कहने की आवश्यकता नही है सर, ये तो मैने अपना फ़र्ज़ समझा कि इस हालत में इनको इनके घर पहुँचाना चाहिए सो ले आई.

प्रताप - ये तुमने हमारे उपर अहसान किया है, खैर अपने बारे में कुछ बताओ, क्या नाम है ? माता-पिता क्या करते है..?

लड़की - जी ! मेरा नाम नीरा है, माँ-बाप नही है मेरे, मे अकेली ही हूँ इस दुनिया में.

प्रताप - ओह ! दुख हुआ जान कर ! वैसे क्या काम करती हो..?

नीरा - जी ! ज़्यादा कुछ नही, बस ऐसे ही इधर-उधर घरों में काम करके अपना गुज़ारा कर लेती हूँ.

अभी वो बात कर ही रहे थे कि तब तक रॉकी की माँ राम दुलारी देवी भी रॉकी को उसके कमरे तक छुड़वा कर आ गयी.

प्रताप - रोकी की माँ, देखो ये बच्ची कितनी अच्छी है, बिना जान पहचान के रॉकी को इस हालत में घर तक छोड़ने आई है.

रोकी की माँ - सही कह रहे हो ! आज के जमाने में कॉन किसके काम आता है, फिर जब उसे वो बातें पता चली जो उसने प्रताप को बताई थी तो उसने उससे पुछा-

हमारे घर काम करना चाहोगी बेटी. हम तुम्हारी सारी ज़रूरतों का ख्याल रखेंगे, तुम्हें भी इधर-उधर भटकना नही पड़ेगा, और हमें भी तुम्हारे जैसी अच्छी नेक काम करने वाली मिल जाएगी.

नीरा कुछ देर चुप रही, फिर कुछ देर बाद बोली - ठीक है माजी अगर आप कहती हैं तो में आपके यहाँ काम करने को तैयार हूँ.

रोकी की माँ - ठीक है तो फिर कल से काम पर आ जाना, फिर कुछ सोच कर बोली - अभी कहाँ जाओगी..? 

ऐसा करो यहीं रुक जाओ, सुबह जाकर अपना समान ले आना क्यों ठीक है ना जी.

प्रताप - हां सही कह रही हो, बेचारी अकेली लड़की इतनी रात गये कहाँ जाएगी, यहीं नौकरों के कमरों में से एक बता दो सो जाएगी, कुछ कपड़े वग़ैरह दे दो सोने के लिए इसे.

नीरा - नही मालिक मे चली जाउन्गि कोई डर वाली बात नही है, सुबह जल्दी ही आ जाउन्गि.

प्रताप - जैसी तुम्हारी मर्ज़ी…! और इतना कह कर वो अपने कमरे में चले गये और नीरा अपने घर लौट आई..
नीरा के घर लौटते ही मैने उसे पुछा - कुछ बात बनी नीरा..? उसके घर में घुसने का रास्ता मिला कि नही.

नीरा - आप कोई योजना बनाओ और वो फैल हो जाए..? ऐसा कभी हो सकता है भला.

मे - तो मतलब तुम्हें वहाँ काम मिल गया…!

नीरा - अरे वो तो मुझे अभी भी नही आने दे रहे थे, कहने लगे ! रात बहुत हो गयी है, कहाँ जाओगी, सुबह जाकर अपना समान ले आना. 

जैसे-तैसे बहाना करके आई हूँ.

मे - गुड ! अब तुम अपना समान पॅक कर लो, और ये चीज़ें संभाल कर रखना, फिर उसे एक-एक चीज़ को समझाते हुए मैने कहा. 

ये देखो ये ट्रांसमीटर है इसको ऐसे दवा के किसी सतह पर छोड़ दोगि तो ये उसी चिपक जाएगा, ऐसे ! 

इसको तुम प्रताप के टेलिफोन के नीचे चिपका देना, ध्यान रहे उस फोन पर जिस पर उस के ज़्यादातर पर्सनल फोन आते हों.

और ये है एक मिनी कॅमरा इसको ऐसी जगह छिपा के रखना जहाँ वो बाहर के लोगों से मिलता हो. 

ध्यान रहे, ये काम करते हुए तुम्हें कोई देख ना ले, वरना तुम मुशिबत में पड़ सकती हो.

हां एक और बात ! उसके हरामी लौन्डे से दूर ही रहना.. कहीं तुम्हारे साथ कुछ ग़लत ना कर्दे… समझ गयी.

उसने हां में गर्दन हिला कर हामी भर दी, और फिर रुक कर बोली- वो आपने अभी रॉकी से दूर रहने को क्यों कहा..? एक घर में रह कर उसका काम भी तो करना पड़ सकता है.

मे - उसका कोई काम ना करने के लिए नही बोल रहा हूँ, वो रहीस बाप की बिगड़ी औलाद है, तुम्हारी जैसी सुंदर लड़कियाँ उसकी कमज़ोरी हैं.

वो - बाबूजी ! तो क्या मे इतनी सुंदर हूँ कि किसी की कमज़ोरी बन जाउ..? 

मे – नीरा ! पहले तो ये बाबूजी कहना बंद करो ! 

वो – तो क्या कहके बुलाऊ आपको..? 

मे – नाम ले सकती हो, भैया कह सकती हो..!

वो – आपका नाम तो नही लेना चाहूँगी मे, भैया जी कैसा रहेगा,,?

मे – जो तुम्हें ठीक लगे, और रही बात तुम्हारी सुंदरता की तो उस दिन तुम्हे शीशे के सामने खड़ा करके क्या दिखाया था मैने ? 

वो - तो अभी तक आपकी कमज़ोरी क्यों नही बन पाई मे..? कह कर वो शरमा गयी और अपनी नज़रें नीची करके अपने निचले होठ को काटने लगी.

मैने उसका मतलब समझते हुए कहा - हर आदमी का अलग-2 स्वाभाव होता है, मेरी नज़र में किसी की मजबूरी का फ़ायदा उठाना ग़लत है, गुनाह है, जिसे में कतई पसंद नही करता.

वो - और कोई सामने से आपको पसंद करती हो तो..? नज़रें झुकाए हुए ही कहा उसने, 

मे उसकी बात सुनकर उसकी ओर देखता ही रह गया, और उसके शब्दों का मतलब समझने की कोशिश करते हुए बोला.
फिर भी मे उसकी इक्षा के बिना छुना भी पाप समझता हूँ.

वो- और अगर कोई अपनी इक्षा से ही आपके पास आना चाहे तो..?

मे - तुम कहना क्या चाहती हो नीरा..? 

वो - देखिए भैया जी ! आप मुझे ग़लत मत समझना पर जबसे उन ज़ालिमों ने मेरे साथ वो ग़लत काम किया था, उसके बाद से मेरे शरीर के जख्म तो भर गये, 

लेकिन अब मेरे इस कम्बख़्त शरीर में कुछ ऐसी हलचल होने लगती है कि मे…., कहते-2 वो रुक गयी, और अपने होठ काटने लगी…!

मे – तुम्हारी परेशानी समझ सकता हूँ मे नीरा ! लेकिन मे इसमें तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ..?

वो – इस जालिम समाज से मुझे घृणा सी हो गयी है, हर इंसान में भेड़िए का रूप नज़र आता है मुझे, इसलिए मे किसी और के साथ संबंध बनाना नही चाहती… इसलिए मेरा मन आपकी ओर झुकने लगा है.

मे - नीरा ! तुम एक बहुत अच्छी लड़की हो, लेकिन मे एक शादी-सुदा हूँ.. तो मे कैसे तुम्हारी ये इक्षा पूरी कर सकता हूँ ? और वैसे भी घर में और दो मर्द भी तो हैं… 

वो - मैने आपसे शादी करने के लिए तो नही कहा..? बस एक विश्वास के नाते आपसे गुज़ारिश की है..!

और रही बात उन दोनो की, तो उनके लिए कभी ऐसे विचार मेरे मन में आए ही नही. 
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12-19-2018, 02:20 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मेरे मन में जो था, वो मैने आपको बोल दिया, मानना ना मानना आपके हाथ में है…

मे उसकी बात सुन कर सोच में पड़ गया, वो जो कह रही थी वो व्यवहारिक बातें थी, जो हमने कभी सोची ही नही. 

अब जब तक कोई योग्य साथी इसको मिल नही जाता, इसके शरीर की ज़रूरतों का पूरा होना भी ज़रूरी है. 

कहीं ऐसा ना हो कि अपने शरीर की इक्षाओं के बशिभूत इसके कदम बहक जाएँ और हम अपने मिसन में ही फैल हो जायें. 

एक निर्णय करके मे उसके करीब आया और उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर उसकी कजरारी आँखों में झाँकते हुए कहा - मे तुम्हारे विश्वास को टूटने नही दूँगा नीरा, ये कह कर मैने उसके माथे को चूम लिया.

उसने अपने दोनो बाजू मेरे इर्द-गिर्द लपेट दिए और मेरे चौड़े सीने में समा गयी.

मे भी उसकी पीठ पर हाथ फिराने लगा, जब मेरे हाथ उसके नितंबों पर कसे तो उसने अपना कसाव और बढ़ा दिया मानो वो मुझमें समा जाना चाहती हो.

उसके शरीर का स्पर्श पाकर मेरा हेर भी अंगड़ाई लेने लगा और उसकी नाभि के उपर ठोकर मारने लगा. 

जब नीरा को इसका आभास हुआ तो वो सिसक पड़ी और बोली- भैया जी ! मेरा शरीर जल रहा है, भगवान के लिए इसकी आग भुझा दो ना..!

मैने उसके कंधे पकड़ कर अलग किया और उसके होठों को चूमते हुए कहा – एक शर्त पर..!

वो - इसके बाद मुझे आपकी हर शर्त मंजूर होगी..!

मे - मुझे कोई लड़का तुम्हारे योग्य मिल गया तो तुम्हें उसके साथ शादी करनी पड़ेगी… बोलो मंजूर है.

वो - मुझे आप पर पूरा विश्वास है, आप मेरा भला ही चाहेंगे, मुझे आपकी ये शर्त मंजूर है.

विक्रम और रणवीर दूसरे कमरे में सो रहे थे, मे नीरा को लेकर उसके कमरे में आ गया और उसको अपनी गोद में लेकर बैठ गया. 

वो किसी छोटी बच्ची की तरह मेरी गोद में बैठी थी.

नीरा इस समय चोली घाघरा में थी, उसकी चुनरी उतार कर पलंग पर एक तरफ फेंक दी, और उसके 32” की गोल-गोल चुचियों को सहलाने लगा.

मेरा लंड उसकी कसी हुई गान्ड में ठोकर लगा रहा था, नीरा की आँखें बंद को चुकी थी और वो मेरे गाल से अपना गाल रगड़ रही थी.

आज उसका सांवला रूप मुझे अत्यंत ही कामुक लग रहा था, पिछले कुछ महीनो से हमारे साथ रहकर उसका रूप निखर गया था.

कसरत करने से उसके शरीर के अंगों में एक परफेक्ट कटाव बन गये थे, जहाँ भी हाथ लगाओ बस वहीं से मादकता छलक्ने लगती थी.

मेरे हाथ उसके शरीर का नाप निकाल रहे थे और नीरा उसके सुखद अहसास में खो चुकी थी.

अब मैने उसकी चोली खोल कर एक ओर फेंक दी, बिना ब्रा के उसके गोल-2 सुडौल बूब, एक दम इलाहाबादी अमरूद जैसे लग रहे थे, 


मैने उन्हें सहला कर नीरा को अपने सामने खड़ा किया और फिर उसका घाघरा भी खींच दिया.

अपना कुर्ता और शॉर्ट निकाल कर में सिर्फ़ अंडरवेर मे आ गया. 

नीरा भी अब मात्र पेंटी में ही थी. पलंग पर बैठ कर मैने उसे अपनी गोद में अपनी तरफ मुँह करके बिठा लिया और उसके होठों को चूसने लगा. 

वो भी मेरा भरपूर सहयोग दे रही थी, होंठ चूस्ते हुए, मे उसकी कठोर लेकिन मक्खन जैसी मुलायम चुचियों को मसलता जा रहा था.

उत्तेजना में वो मेरे लंड पर अपनी कमर हिला-हिला कर चूत को रगड़ने लगी. 

उसकी पेंटी चूत रस से गीली हो चुकी थी, जो अब मेरे अंडरवेर को भी गीला करने लगी.

मैने उसके होंठों को छोड़ कर उसकी चुचियों को चूसने लगा और एक हाथ से मसलता भी जा रहा था, मटर के दाने के बराबर के उसके निपल कड़क होकर कंचे जैसे हो गये, जिनको अपने दाँतों में लेकर हल्के से काट लिया.

आआईयईई…. बाबू…काटो..नहिी… आअहह… चूसो…और जॉरीए सीईए..

उसकी कमर को साइड में पकड़ कर मैने उसे उपर को उठाया और उसके पेट को चाटने लगा, 

फिर उसकी नाभि में अपनी जीभ डालकर जैसे ही घुमाई… वो पीछे को बेंड होती चली गयी और मेरे हाथों की पकड़ में झूल गयी…

नाभि के चारों तरह जीभ की छुअन से उसका बदन थर थराने लगा… और वो मेरे हाथों की गिरफ़्त में किसी नागिन की तरह लहराने लगी…

फिर मैने उसको नीचे उतार दिया और अपना अंडरवेर निकाल कर अलग किया, 

अपने सख़्त कड़क लंड जो अब एक स्टील रोड की तरह एक दम सीधा खड़ा था, मसल्ते हुए मैने उसके मुँह के सामने लहरा दिया.

उसने मेरे चेहरे की तरफ सवालिया नज़रों से देखा…

इसको अपने मुँह में लेकर चूस नीरा, जब तू इसे प्यार देगी, तो ये भी तेरी मुनिया की अच्छे से सेवा करेगा ना… !

वो आश्चर्यचकित होकेर बोली – क्या इसको मुँह में भी लिया जाता है..?

मैने जब हां में अपना सर हिलाया, तो वो अपने पंजों पर बैठ गयी और मेरे हथियार को हाथ में लेकर सहलाने लगी, 

उसकी स्किन को आगे-पीछे करके सुपाडे को खोल कर अजीब सी नज़रों से देखने लगी. 
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12-19-2018, 02:20 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
लाल-लाल सेब जैसा चमकदार सुपाडा जब उसने अपनी जीभ की नोक से छुआ, तो मेरी आँखें बंद हो गयी और ना चाहते हुए मेरे मुँह से एक आआहह… निकल गयी, 

आअहह…. नीरा… मेरी जाअंन्न…. चुसले ईसीए.. और फिर मैने उसके सर को 
पकड़ कर अपने लंड पर दबा दिया, वो सरसराता हुआ, उसके गले में जाकर फँस गया.

उसके मुँह से गूऊन…गूऊन की आवाज़ें आने लगी, जब उसकी आँखें उबलने लगी, तो मैने उसके सर को छोड़ दिया.

वो खों-खों करके खांसने लगी और मेरी ओर देख कर नाराज़गी वाले भाव से बोली- ऐसा क्यों किया आपने..? मेरी तो दम ही निकल गयी होती.

मे - सॉरी बेबी..! ग़लती हो गयी, अब आराम से चूसो इसे .. शाबास..!

फिर वो उसे आधा अपने मुँह में लेकर चूसने लगी. 

मेरे हिलते हुए टट्टों को उसने अपने एक हाथ से सहलाया, तो मेरी उत्तेजना और ज़्यादा बढ़ने लगी…

अब मुझे लगने लगा कि अब और कंट्रोल नही हो पाएगा मुझसे, तो फिर से उसके मुँह को दबा दिया अपने लंड पर और उसके मुँह में ही अपनी पिचकारी छोड़ दी. 

उसने इससे पहले कभी वीर्य का स्वाद नही लिया था, सो वो उसे बाहर निकालने लगी, तो मैने उसका मुँह दबा कर कहा- पी जा नीरा रानी इसे, टॉनिक है तेरे लिए.

अब मैने उसे पलंग पर लिटा दिया और उसकी कच्छि भी उतार कर एक ओर फेंक दी. 

छोटे-2 बालों से भरी उसकी साँवली चूत देख कर मेरा हाल ही में झडा लंड फिर से अंगड़ाई लेने लगा.

मैने अपनी एक उंगली को मुँह में डाल कर उसको थूक से गीला किया और उसकी रस बहाती चूत में डाल दी…

वो ससिईईईई….कारीई…भरने लगी.. !

उसकी टाँगों को चौड़ा करके मे उसकी चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा, उसकी चूत रस का नमकीन सा स्वाद मुझे अच्छा लगा. 

अब में उसकी चूत को जीभ की नोक से कुरेदने लगा और एक उंगली उसके छेद में डालकर अंदर बाहर करता रहा.

वो इस दोहरे हमले को ज़्यादा देर झेल ना सकी, और जैसे ही मेरी उंगली ने उसके जी पॉइंट को मसला, वो अपनी कमर को हवा में लहराते हुए झड़ने लगी.

हम दोनो फिर से एक दूसरे के होंठ चूसने लगे, और अपनी जीभ एक दूसरे से भिड़ा दी, उसकी चूत के रस का स्वाद और मेरे लंड के रस का स्वाद लार के माध्यम से एक दूसरे के मुँह में घुलने लगा.

उसको भी इस खेल में मज़ा आने लगा था…हम दोनो के शरीर कामोत्तेजना से दहकने लगे थे…

फिर मैने अपने से अलग करके, उसे पलग पर लिटा दिया और उसकी गान्ड के नीचे एक तकिया रख कर उसे उँचा किया, 

फिर अपना लंड उसकी चूत जो अब बिल्कुल स्वस्थ हो चुकी थी और लंड लेने के लिए तड़प रही थी, उसके छेद पर रखा और एक करारा सा झटका अपनी कमर को दिया…

आधे से ज़्यादा लंड उसकी चूत में सरक गया…

उसके मुँह से एक जोरदार कराह निकल पड़ी…

आआहह….. धीरे…बबुऊुज्जिि.. दर्द होता है… हआइई…माआ..

अब मैने साथ साथ उसकी चुचियों को भी मसला, और एक और धक्का लगा दिया, पूरा लंड उसकी चूत में समा गया…!
दर्द और उत्तेजना में उसकी आँखें बंद हो गयी.., ट्रीटमेंट से उसकी चूत एकदम फिर से कोरी जैसी हो गयी थी, जिससे मेरा लंड उसमें एकदम कस सा गया था…

मैने धीरे-2 लंड को अंदर – बाहर करना शुरू कर दिया, कुछ देर में ही उसकी कमर झोटे देने लगी और वो मेरे धक्कों का साथ अपनी कमर उचका-2 कर देने लगी.

ससिईइ…आआअहह…और जॉरीए…सी…भैईयजीीीइ….उफ़फ्फ़…बहुत..अच्छाअ..लग.. रहाआ.. हाईईइ…हाहह… उऊहह…

मेरे धक्कों की स्पीड तेज..और..तेज.. होती जा रही थी… इस बीच वो एक बार झड चुकी थी, लेकिन मुझे अभी समय लगाना था.

फिर मैने उसको उठा के घुटनों के बल निहुरा दिया, अब वो मोरनी की तरह मेरी ओर गान्ड करके निहुर गयी..

मैने अपने हाथ पर थूक लेके अपने लंड को चुपडा, और उसकी गीली चूत पर रख कर पीछे से उसके छेद में डाल दिया.

आअहह….ससुउुउउ…हहिईीईई…. जॉरीए सी नहिी…

लेकिन अब मेरे उपर उसकी आहों का कोई असर नही होने वाला था, अपनी उत्तेजना में अपना लंड उसकी चूत में पेलता ही गया और जड़ तक डाल कर धक्के मारने लगा.

ढप्प-धप्प, फूच-फूच का मधुर संगीत कमरे में गूँज रहा था, उसको भी फिर से मज़ा आने लगा था सो वो भी अपनी कमर हिला-हिला कर अपनी चूत को मेरे लंड पर पटकने लगी.
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12-19-2018, 02:21 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मेरे धक्कों की रफ़्तार इतनी तेज और तीव्र हो गयी, कि नीरा जैसी कम उमरा और सख़्त जान लड़की भी हाए-हाए करने लगी, उसका शरीर इतनी तेज़ी से हिल रहा था कि उसको भान ही नही हो रहा था कि वो कब आगे को गयी और कब पीछे को आई.

20-25 मिनट की धुनाई के बाद मे भरभरा कर उसकी चूत में झड गया, और उसकी पीठ पर लड़ कर लेट गया, 

मेरे वीर्य की गर्मी पाकर उसकी झड़ी हुई मुनिया फिर एक बार पानी छोड़ने पर मजबूर हो गयी…, 

वो बहुत देर तक अपना सर हवा में उठा कर झड़ती रही.

जब उससे मेरा भार सहना मुश्किल हो गया तो वो भी बिस्तर पर पेट के बल पसर गयी. 

कुछ देर ऐसे पड़े रहने के बाद में उसके साइड में पलट गया, वो ऐसे ही पड़ी रही और मे उसकी पीठ पर हाथ रखकर लेट गया.

तूफान गुजर गया था, और उसके बाद की पूर्ण शांति व्याप्त हो गयी थी.

सुबह जब आँख खुली तो हम एक दूसरे की बाहों में थे.

वो अभी तक सो रही थी, सोती हुई बड़ी मासूम सी परी सी मुझे लगी, जिसे देख कर मेरे अंदर से उसके लिए प्रेम उमड़ पड़ा और मैने उसके होठों को चूम लिया.

चुंबन के अहसास से उसकी नींद टूट गयी, और मेरे गले से लिपट कर सूबकने लगी.

मे - क्या हुआ नीरा, रो क्यों रही हो, कुछ ग़लत हो गया क्या हमसे.

वो - नही भैया जी खुशी में मैं अपने आपको रोक नही पाई और रुलाई फुट पड़ी. 

कल रात मैने जाना कि सच्चा सुख क्या होता है. आप सच में अपने साथी का बहुत ख्याल करते हो.

अब मे आपसे कभी कुछ नही माँगूंगी, अगर आप अपनी इच्छा से मुझे ये सुख फिर से देंगे तो मे समझूंगी कि आप मेरी इक्षाओं का ध्यान रखते हैं.

मैने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा - अरे ये क्या बात हुई..? जब तेरा मन करे आ जाना मेरे पास, हिच-किचाना नही.

इतना सुन कर वो खुश हो गयी, और मेरे गाल पर किस कर लिया.

फिर हम दोनो उठ गये और नित्य करम में जुट गये. 

फ्रेश होकर उसने किचन संभाला, और हमारे लिए नाश्ता तैयार करने लगी…

हम तीनों को चाय नाश्ता करवा कर और खुद करके नीरा अपने मिसन की पर जाने के लिए तैयार हो गयी…

मैने उसके माथे को चूमकर उसका हौसला अफजाई किया, और कहा – तू फिकर मत करना, जब भी तुझे कुछ लगे कि कोई प्राब्लम हो सकती है, बस एक मिस्कल्ल कर देना…

वैसे हम तेरे आस-पास ही रहेंगे… उसने अपनी चमकती आँखों से हामी भरी और चल दी प्रताप के घर की ओर…

उसकी आँखों की चमक देखकर में पूर्ण अस्वस्त हो गया था, कि हमारा ये मिसन भी जल्दी ही पूरा होगा…… !
प्रताप खांडेकर के घर में और भी कई नौकर, नौकरानिया थीं. 

लेकिन नीरा के द्वारा निस्वार्थ भाव से की गयी रॉकी की मदद की वजह से उनकी पत्नी राम दुलारी देवी ने उसको अपनी खास नौकरानी बना लिया.

नीरा अपनी बगल में एक पोटली दबाए जैसे ही उनके घर पहुँची, राम दुलारी लपक कर उसके पास आई और बड़े अप्नत्व के साथ बोली- आ गयी बेटी..!

नीरा – जी ! आपने इतने अधिकार से बोला था तो मुझे तो आना ही था.

रोकी की माँ - अच्छा किया, अब आज से तुम मेरी और रॉकी के पापा की खास सेवा में ही रहना, ठीक है, वाकी के कामों के लिए दूसरे नौकर हैं.

नीरा- जी ! मालकिन जैसी आपकी आग्या.

रोकी की माँ - अब तुम जाओ और एक नौकरानी को बुला कर कहा, इसको अपने बगल वाले कमरे में पहुँचा दो, अपना समान उसमें रख लेना, आज से वहीं रहना.

नीरा उस नौकरानी के साथ उसके पीछे-2 चल दी.

रॉकी का नशा 10 बजे जाके ठंडा हुआ, जब उसकी आँख खुली तो उसे अपने पूरे बदन में दर्द की एक लहर सी उठी, और उसके मुँह से कराह निकल गयी.

जैसे-तैसे वो अपने पलंग पर से उठ कर बैठ गया, उसका सर दर्द से फटा जा रहा था. अपने सर को हाथों में थाम कर बैठ गया. 

जब उसको रात हुई घटना याद आई तो उसके दिमाग़ में पूरी रील घाम गयी.

याद करके उसके शरीर में उत्तेजना और लाचारी के मिले-जुले भाव पैदा होने लगे जिसके कारण उसके सर में और तेज दर्द होने लगा और ना चाहते हुए उसके मुँह से एक चीख उबल पड़ी…माआ…!

उसकी ये चीख हॉल में बैठी उसकी माँ और नीरा को भी सुनाई दी, और वो दोनो उसके कमरे की ओर लपकी.

दरवाजे में घुसते ही उसकी माँ बोली- क्या हुआ बेटा..?

रॉकी - मेरे सर में बहुत तेज दर्द हो रहा है, ऐसा लग रहा है कि ये फटेगा क्या.

रोकी की माँ - नीरा से बेटी जा जाके बॉम तो ले आ.

नीरा दौड़ी-2 नीचे गयी और 5 मिनट बाद बॉम के साथ एक ग्लास नीबू पानी का ले आई.

नीरा - लीजिए पहले रॉकी बाबू ये नीबू पानी पी लीजिए फिर बॉम लगा देती हूँ आपके.

वो पहले उसे देखता रहा, फिर उसके हाथ से नीबू पानी का ग्लास लेकर एक ही साँस में खाली कर दिया.

पानी पीते ही उसे कुछ राहत महसूस हुई, तो उसने अपनी माँ से नीरा के बारे में पुछा, 

जब उसने बताया कि कैसे वो उसे अर्ध बेहोसी की हालत में घर लेके आई तो उसकी नेक नीयती को देख कर हमने इसे काम पर रख लिया है.

नीरा उसके सर पर बॉम से मालिश कर रही थी, नीबू पानी का असर और बॉम की मालिश से उसका दर्द गायब हो गया.

रॉकी - थॅंक्स नीरा ! तुम्हारे हाथों में तो जादू है, मेरा दर्द गायब हो गया.

नीरा - बाबूजी ! ये नीबू पानी का जादू है, अक्सर रात को शराब ज़्यादा पीने से सर पर चढ़ जाती है, तो इसको पीने से अच्छा होता है. 

वैसे आप इतनी बुरी चीज़ को पीते ही क्यों हैं..?

उसके इस तरह से पुछने से रॉकी खामोश रह गया, और उसकी माँ नीरा को प्रशन्शा भरी नज़रों से देखते हुए बोली - बेटा ये बच्ची ठीक ही कह रही है, क्यों तू ऐसी वैसी हरकतें करता रहता है.

पता है तेरी इन आदतों की वजह से तेरे पापा कितने दुखी होते हैं..? छोड़ क्यों नही देता ये सब..?

रॉकी - वो..वो.. माँ… मे कोशिश करूँगा..!

नीरा थोड़ी देर उसके सर की मालिश करती रही और फिर चली गयी. 

रॉकी अब नीरा के बारे में सोच रहा था, क्यों इस लड़की ने उसकी मदद की और अभी जो उसने उसकी सेवा की ये सब बातें सोचते-2 उसके मन में नीरा के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर सा बनने लगा.

फिर वो अपने विचारों को झटक कर उठा और फ्रेश होने चला गया….!
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12-19-2018, 02:21 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
सुंदर चौधरी, रायगढ़ शहर का जाना माना नाम बहुत सारे सामाजिक संस्थाओं का संचालक, ट्राइबल एरिया में लोग उसे अपना मशिहा मानते हैं. कितने ही मंदिर, मस्जिद और चर्च इसके दान से चलते हैं.

42 वर्षीय मध्यम लेकिन मजबूत कद काठी का चौधरी शहर की जानी मानी हस्तियों में शुमार किया जाता है, जिसके बड़े-2 राजनीतिक- गैर राजनीतिक, ओद्योगिक घरानों से घनिष्ठता है.

दुनिया की नज़रों में चौधरी एक प्रॉपर्टी डीलर है, एक कन्स्ट्रक्षन कंपनी का मालिक है. शहर की ज़्यादातर अच्छी-2 बिल्डिंग उसी की कंपनी ने खड़ी की हैं.

शाम कोई 8 बजे सुंदर चौधरी अपनी एक कन्स्ट्रक्षन साइट जो शहर के बाहरी इलाक़े में चल रही थी, अपनी एक शानदार कार से लौट रहा था, 

साइट से अभी उसकी कार एक फरलॉंग ही पहुँची होगी की रास्ते के दोनो तरफ खड़ी झाड़ियों से गोलियों की बाद ने उसकी गाड़ी को रुकने पर मजबूर कर दिया.

एक गोली विंड्स्क्रीन को तोड़ती हुई उसके ड्राइवर के दाएँ कंधे को चीरती हुई निकल गयी. जिसकी वजह से गाड़ी झाड़ियों में घुसती चली गयी और रोकते-2 भी एक पेड़ जा टकराई. 

टक्कर तो ज़्यादा घातक नही थी, लेकिन घायल ड्राइवर अपनी चेतना खो चुका था.

चौधरी के हाथ पाँव फूल गये, अभी वो कुछ सोचने समझने की स्थिति में आता कि दो नकाब पोश उसके दोनो साइड के दरवाजे पर खड़े थे.

उन्होने उसको बाहर आने का इशारा किया, मरता क्या ना करता, उसे बाहर आना ही पड़ा.

अभी उसने अपने बाएँ तरफ का गेट खोल कर अपना पैर बाहर निकाला ही था कि एक जिस्म हवा में तैरता हुआ आया और दूसरी तरफ खड़े नकाब पोश की पीठ पर उसके दोनो पैरों की जबरदस्त ठोकर पड़ी.

वो नकाब पोश पहले धडाम से गाड़ी से टकराया और फिर पीछे को उलट गया, उसकी गन उसके हाथ से छिटक गयी.

अभी वो चौधरी के साइड वाला नकाब पोश कुछ स्थिति को समझ पाता कि वो शख्स फिर से उच्छल कर उठा और कार की छत पर हाथ टिका कर दोनो पैरों की किक उस दूसरे नकाब पोश के कंधे पर पड़ी.

किक बहुत ज़ोर से लगी, परिणाम स्वरूप वो नकाब पोश भी धूल चाट रहा था, लेकिन उसने अपनी गन नही च्छुटने दी.

वो नकाब पोश उठकर खड़ा हुआ, और अपनी गन उसने कार की ओर घमाई ही थी कि उस शख्स ने उसकी गन वाली कलाई थाम ली और उसे उपर की ओर कर दिया, तभी एक धमाका हुआ और गोली हवा में जाके बेकार हो गयी.

ये दोनो एक दूसरे से गुत्थम गुत्था थे, कि तभी दूसरा नकाब पोश भी उधर आ गया, और उसने उस शख्स को पीछे से पकड़ लिया.

तभी चौधरी हिम्मत करके बाहर आया और उसने पास पड़ी एक मोटी सी लकड़ी को पीछे से उस नकाब पोश के सर पर दे मारी जो उस शख्स को पीछे से पकड़े हुए था.

वो नकाब पोश अपना सर थाम कर बैठता चला गया, लेकिन तब तक उस गन वाले नकाब पोश को छूटने का मौका मिल गया और उसने उस शख्स पर फाइयर कर दिया.

हड़बड़ी में चलाई गयी गोली उसके कंधे को रगड़ती हुई निकल गयी.

दर्द से कराहते हुए वो शख्स अपने कंधे को थाम कर लड़खड़ा गया और ज़मीन पर बैठ गया, फिर चौधरी उस नकाब पोश की ओर लपका लेकिन वो झाड़ियों की ओर भाग लिया. 

मौका पाकर वो दोनो नकाब पोश वहाँ से भाग खड़े हुए. 

चौधरी ने उस शख्स को अपनी गाड़ी की पिच्छली सीट पर बिठाया, और अपने बेहोश ड्राइवर को साइड वाली सीट पर डालकर खुद गाड़ी ड्राइव करके शहर की ओर दौड़ा दी.

सुंदर चौधरी गाड़ी को आँधी-तूफान की तरह भगाता हुआ एक बड़े से प्राइवेट हॉस्पिटल में दाखिल होता है, 

उसकी गाड़ी देखते ही वहाँ उसको स्पेशल अटेन्षन मिलनी शुरू हो जाती है, 
उसके ड्राइवर और उस शख्स को आनन फानन में भरती करके विशेष सुविधाओं के तहत ट्रीटमेंट शुरू हो जाता है.

वो शख्स तो ज़्यादा सीरीयस नही था, तो उसको स्पेशल वॉर्ड में ले जाकर कुछ पेन किल्लर देकर उसकी ड्रेसिंग कर दी जाती है, लेकिन उसके ड्राइवर को आइसीयू में भरती कर दिया जाता है.

जब उस शक्श की ड्रेसिंग और ज़रूरी इल्लाज़ हो जाता है तो वो चौधरी से जाने की इज़ाज़त लेता है..

शख्स - अच्छा सर अब में चलता हूँ, आपका बहुत-2 शुक्रिया जो आपने मेरा इस बेहतरीन हॉस्पिटल में इलाज़ कराया.

चौधरी- अरे भाई शुक्रिया तो हमें तुम्हारा करना चाहिए, जो एन मौके पर आकर तुमने हमारी जान बचाई..!

सख्स - सर ! वो तो मैने इंशानियत के नाते किया था, जब आपको मुशिबत में पाया तो जो मुझे उचित लगा वो मैने किया.

चौधरी - नही ! ये साधारण बात नही है भाई, आज के जमाने में कॉन किसी के लिए अपनी जान जोखिम में डालता है, 

तुमने किसी फरिस्ते की तरह आकर हमारी मदद की.

वैसे अपना परिचय तो दो… कॉन हो? क्या नाम है ? क्या करते हो..?

सख्स – मेरा नाम सज्जाक है सर, पास के ही गाँव में रहता हूँ, बेरोज़गार हूँ, ऐसे ही कभी किसी की ड्राइविंग वग़ैरह कर लेता हूँ, 

आजकल कोई काम नही है, तो ऐसे ही किसी काम की तलाश में भटक रहा था कि आपके साथ वो घटना होते दिखी.

चौधरी - तो समझो आज से तुम्हारी तलाश ख़तम हुई, आज से तुम मेरे पर्सनल ड्राइवर हो, 

अच्छी पगार दूँगा, रहना, खाना, कपड़े सब का इंतेज़ाम हमारी ओर से रहेगा. बोलो करोगे मेरे लिए काम..?

सज्जाक - मुझे तो सर काम चाहिए, आपके यहाँ भी कर लूँगा.

चौधरी - तो फिर ठीक है, जल्दी से ठीक होकर मेरे ऑफीस आ जाना, ये कहकर उसने अपना विज़िटिंग कार्ड उसे पकड़ा दिया और अपने घर की ओर चला गया.

सुंदर चौधरी सज्जाक को अपना ड्राइवर रखकर संतुष्ट था, अब उसको जैसा दिलेर आदमी चाहिए था वो मिल गया था, जो वक़्त आने पर उसकी हिफ़ाज़त भी कर सकता था और साए की तरह उसके साथ रहने वाला था.

वैसे तो वो भी कोई सॉफ सुथरा आदमी नही था और आउट ऑफ बिज़्नेस बॉक्स और ना जाने किन-किन लोगों के साथ कैसे-2 धंधे करता था, तो जाहिर सी बात है आदमी भी वैसे ही रखे होंगे.

उस घटना के ठीक चार दिन बाद सुंदर चौधरी अपनी गाड़ी में बैठ कर शहर से बाहर कहीं जा रहा था. 

सज्जाक उसकी गाड़ी को चला रहा था और वो अपने फोन पर किसी से बात कर रहा था, चूँकि वो ड्राइवर नया था, सो बीच-2 में वो उसको दिशा निर्देश भी देता जा रहा था.

शहर से कोई 25-30 किमी निकल कर, अब उसकी कार रोड से उतार कर घने जंगलों के बीच बने एक कच्चे पथरीले रास्ते पर दौड़ने लगी, 

कोई 1 किमी अंदर जाकर घने पेड़ों के बीच बने एक फार्म हाउस के सामने खड़ी हो जाती है.

9-10 फीट उँची चारदीवारी से घिरे उस फार्म हाउस के गेट पर एक चौकीदार खड़ा हुआ था, उसने गेट खोला और गाड़ी अंदर चली गयी.

गेट से करीब 100-150 मीटर और अंदर जा कर एक अच्छी ख़ासी बिल्डिंग थी, जो सामने से किसी बंगले जैसी दिखती थी.

उस बंगले के गेट पर जैसे ही गाड़ी खड़ी हुई, एक और दरबान जैसा आदमी दौड़ कर कार की ओर आया, उसने लपक कर कार का गेट खोला और अदब से सर झुका कर खड़ा हो गया. 

चौधरी गाड़ी से उतार कर अंदर चला गया, उस दरबान ने ड्राइवर को इशारा किया और गाड़ी बंगले के साइड में बने पार्किंग की ओर चली गयी.

यहाँ 3-4 गाड़ियाँ पहले से खड़ी हुई थी, इसका मतलब यहाँ और भी लोग थे. 

सज्जाक ने गाड़ी खड़ी की और बाहर आकर बंगले का निरीक्षण करने लगा.
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