06-02-2020, 02:23 PM,
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hotaks
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RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
उस्मान बिल्लोच अपने बाकी तीन साथियों को आर. डी. एक्स. का भण्डार दिखाने के लिए सीढियों से उस अण्डरग्राउंड भाग में उतर गया।
उसके उतरते ही राज ने जय को वहीं पोजीशन लेने को कहा और स्वयं बिना आहट किए फुर्ती से बाकी की आधी सीढ़ियां उतरकर हॉल के अंदर दाखिल हो गया।
हाल उस वक्त खाली था। उसने अंडरग्राउण्ड भाग में झांका। नीचे बहुत बड़ा हाल था और उसमें बारूद ही बारूद थी। विनाश ही विनाश। उस्मान बिल्लोच अपने साथियों को अंदरले भाग में ले गया था। इसलिए वे उसे नजर नहीं आ रहे थे।
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वहां उसने अतिरिक्त फुर्ती दिखाई। वह नीचे उतरा और अन्दर डायनामाइट के पीछे दो बम लगाकर बाहर निकल आया।
दो बमों के अलावा उसने और अधिक बम लगाने की जरूरत नहीं समझी। क्योंकि वह जानता था कि बारूद को महज एक चिंगारी की जरूरत थी । फिर वहां तो दो-दो बम लगे थे।
वह जल्दी से बाहर निकला। उसे पूरी संतुष्टि हो चुकी थी। बाहर निकलने के लिए उसने इमारत के पिछले भाग में लगे पाइप की ही मदद ली। बाहर आने के बाद उन दोनों ने उस दिशा में बढ़ना शुरू कर दिया जिस दिशा में गार्ड ने जेल के बारे में बताया था। बीच-बीच में खासी रोशनी थी। उन्हें रोशनी से बच-बचकर चलना पड़ रहा था। अंत में उन्हें जेल तक सकुशल पहुंच जाने में कामयाबी हासिल हो ही गई।
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चार बैरकों को ऊंची-ऊंची बैरीकेटिंग की बा उंड्री से घेरकर एक अस्थाई किस्म की जेल बनाई गई थी। जेल के मुख्य द्वार पर चार गार्ड मौजूद थे।
दो गार्ड अन्दर भी पहरे पर चक्कर लगा रहे थे। राज ने जय को आसपास के क्षेत्र में बम लगाने का आदेश देने के बाद एक अंधेरे कोने में पोजीशन संभाल लेने को कहा था।
उसकी तैयारी जेल क कोने के समीप पहुंचकर पूरी हुई।
वह कोहनियों के बल रेंगता हुआ जेल के पिछले भाग की बैरीकेटिंग के समीप जा पहुंचा। उसने बैरीकेटिंग का निचला तार काटने के लिए किट के अंदर से कैची निकाली।
सर्वत्र सन्नाटा था।
कैंची को तार पर जमाते समय तो कोई-आहट न हुई, किन्तु जब दांत पर दांत जमाकर उसने तार काटा तो तेज खटाक् की ध्वनि उभरी। उस ध्यनि ने अंदर पहरा देते दोनों गनर्स को चौंका दिया। वे तुरन्त बैरीकेटिंग की और बढ़े।
राज फुर्ती से कोहनियों के बल घिसटता हुआ बैक हो गया। उस घड़ी उसका दिल धाड़-धाड़कर पसलियों से टकरा रहा था। ओट में पहुंचकर उसने राहत कोई सांस ली।
गार्डों की दूर से उभरती आवाजें सुनाई पड़ी उसे फिर वे दोनों वापस लौट गए।
दस मिनट की प्रतीक्षा के उपरांत वह एक बार फिर बैरीकेटिंग की ओर बढ़ा। निचला तार जिस स्थान पर उसने काटा था वहीं से उसने जेल के कैम्पस में प्रवेश किया।
कोहनियों के बल ही आगे बढ़ता हुआ वह पिछली दीवार के समीप पहुंचा। दीवार खासी ऊची थी। उस पर चढ़ने का कोई साधन नहीं था। पेशाब की वहां फैली दुर्गन्ध बता रही थी कि दीवार के दूसरी तरफ जेल का यूरीनल था।
उसने किट के अंदर से प्लास्टिक की डोरी व एनकर निकाला। एन्कर को डोरी से बांधकर उसने उसे दीवार की दूसरी ओर उछाल दिया। पहले ही प्रयास में उसे सफलता मिल गई। एंकर कहीं किसी जगह अटक गया था।
राज रस्सी के सहारे दीवार पर जा चढ़ा और रस्सी को ऊपर ही एक कील में बांधकर सावधानी के साथ फिसलकर दूसरी तरफ उतर गया। वास्तव में वह यूरीनल वाला भाग ही था। उस समय वहां कोई भी नहीं था। वह आगे बढ़ने के बारे में सोच ही रहा था कि भारी बूटों की खट्-खट् ने उसे चौंका दिया। एक गार्ड उसी ओर चला आ रहा था।
वह तुरन्त हिप पॉकेट पर झूलते चाकू को उसके खोल से खींचकर पूरी तरह सावधान हो गया। आपरेशन पर चलने से पहले उसने व्हिस्की के दो लार्ज पैग ले लिए थे। अब उसे प्रतीत हो रहा था कि उसका सुरूर धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। उसने जल्दी से चांदी वाल क्वार्टर निकालकर चार-पांच बूंट भर लिए। भारी जूतों की आहटें निकट आती जा रही फिर सीटी की धुन भी सुनाई देने लगी।
फिर जैसे ही उसने अंदर कदम रखा। राज ने अचानक विचार बदलते हुए चाकू के स्थान पर गन के बट का प्रहार उसकी खोपड़ी पर किया। अगले ही पल वह कटे वृक्ष की भांति गिरा। राज ने तेजी से उसके कपड़े बदलने शुरू कर दिए। वह कपड़े बदलने के साथ-साथ बाहर झांकने का काम भी करता जा रहा था।
शीघ्र ही वह गार्ड की यूनिफार्म पहन चुका था। उसने मूर्छित गार्ड के हाथ-पांव बांधकर उसे बाथरूम में बंद कर दिया। इतनी रात गए नहाने के लिए कोई पागल ही आ सकता था, अन्य कोई नहीं।
हाल फिलहाल कोई जान नहीं सकता था कि गार्ड के साथ क्या हुआ। उस गार्ड की वर्दी और गन आदि के अतिरिक्त राज ने उसके पास से बरामद चाबियो का गुच्छा भी ले लिया था। तैयार होकर उसने गार्ड वाली कैप अपने चेहरे पर झुकाकर लगायी। फिर वह जूतों की खट-खट की चिन्ता किए बिना बैरकों की ओर चल पड़ा।
पहली बैरक में चार कैदी थे।
उसने गौर से चारों का निरीक्षण किया और आगे बढ़ गया। उनमें कोई भी सतीश मेहरा नहीं था। दूसरी बैरक में भीड़ कुछ ज्यादा थी। वहां उसे रुकना पड़ा। सतीश मेहरा की हल्की झलक उसे मिली थी। वह पिछले भाग में दीवार से टिका आंखेंबंद किए बैठा-बैठा सो रहा था। कुछ कैदी इधर-उधर टहल रहे थे, इस वजह से वह सतीश को सीधा देख नहीं पा रहा था। उसने सतीश को गौर से देखने की गरज से दरवाजे के एकदम करीब से अंदर झांका। इस बार वह सतीश को पहचान गया। ।
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