SexBaba Kahani लाल हवेली
06-02-2020, 01:52 PM,
#41
RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
"तो सुन...तू लोखनवाला रोड वरली सी फेस पहुंच...होटल हिल टॉप...."

"बरोबर।"

"मैं उधर ही पहुंचता हूं।" राज ने सम्पर्क विच्छेद किया और फिर वह उल्टे पांव वापस लौट चला।

एक बार फिर उसकी एस्टीम सड़कों को रौंदती हुई तेजी से आगे बढ़ रही थी। चैम्बूर से वरली तक का लम्बा रास्ता पार करना था उसे। उसने किसी तरह जितनी जल्दी हो सकता था वो रास्ता तय किया और लोखनवाला रोड होटल हिल टॉप जा पहुंचा।

जय वहां पहले से मौजूद था।

राज को मेकअप में होने के बावजूद उसने उसे पहचान लिया। उसकी वजह ये थी कि वह राज के उस मेकअप से पूर्व परिचित था।

"इधर से आएला बाप...।" राज उसके पीछे-पीछे चल पड़ा।

होटल के तीसरे माले के एक कमरे में वह राज को लेकर पहुंचा।

कमरे के अंदर वो धूर्त चेहरे वाला व्यक्ति मौजूद था जिसकी आखें कंजी थीं और भौंहें लगभग ना के बराबर थीं। चालीस-ब्यालीस के पट में पहुंचे उस व्यक्ति के सिर पर बीच वाले भाग में एक भी बाल नहीं था, हां किनारे-किनारे बालों की थोड़ी सी खेती जरूर थी। उसने हल्के पीले रंग का कुर्ता-पायजामा पहना हुआ था और वह बड़ी तेजी से पान चबा रहा था।

"ये पाल है बाप...वहीच...काम का आदमी...अपुन का बिडूं।" जय उसका परिचय देता हुआ बोला।

परिचय के साथ ही पाल ने बटुए से एक पान और निकालकर मुंह में डाला और उंगलियां सिर के बालों से पोंछ लीं। उसका हर काम विशेष स्टाइल में हो रहा था।"

"मेरा एक बहुत जरूरी काम है...करोगे?" राज ने उसे सिगरेट ऑफर करते हुए सपाट स्वर में पूछा।

"करेगा...जय सेठ के वास्ते कुछ भी करेंगा...जान हाजिर है पाल की।" पाल सिगरेट पैके ट से निकालता हुआ व्यापारिक अंदाज में बोला।

"पुलिस के खबरी हो?"

पाल ने मुट्ठी बांधकर उंगलियों के बीच दबी सिगरेट का पुराने ढूंग से कश लगाते हुए अपलक दृष्टि से राज को घूरा। मानो उसे राज के उस सवाल पर सख्त एतराज था।

"जवाब दो!" इस बार राज का स्वर कठोर हो उठा।

"जय सेठ बोला होगा न।"

"मतलब अपने मुंह से नहीं बकोगे?"

"समझदार आदमी को आम खाने से मतलब होना चाहिए न।"

"यानी बताने में एतराज है?"

"अनगिनत सवाल ऐसे हो सकते हैं जिन पर मुझे एतराज हो सकता है। आप अपने काम की बात करो न। अगर मैं आपके काम के खिलाफ बात करूंगा तो आप बेशक मुझे सजा दे सकते हैं।"

"ठीक है...सुनो...काम पुलिस के खिलाफ है।"

"होने दो।"

"तुम पुलिस के खबरी हो...पुलिस के खिलाफ किस तरह याओगे?"

"जय सेठ के आगे पुलिस का कोई खेल नहीं।"

"बाप...।" जय राज के कान के पास आकर कदरन धीमे स्वर में बोला-"फिकर नेई...ये पाल अपुन का आदमी होएला है...सब फिट कर दगा...बिन्दास बोलने का। बिन्दास पूछने का। क्या!"

राज ने गौर से उसकी ओर ताका फिर पाल की ओर मुड़ गया।

पाल सहज भाव से पान चबाने का काम कर रहा था। उसकी निगाहें बराबर राज के चेहरे पर टिकी हुएई थीं।
"इंस्पेक्टर सतीश मेहरा से वाकिफ हो?" कुछ देर उसे निरंतर घूरते रहने के बाद राज ने उससे पूछा।

"हूं...इंस्पेक्टर मेहरा से क्या अक्खी मुम्बई की पुलिस से वाकिफ हूं।"

"तो फिर मुझे उस कांड के बारे में बताओ जो इंस्पेक्टर सतीश मेहरा के साथ घटित हुआ?"

पाल के चेहरे का रंग हल्का-सा फीका पड़ गया। वो नजर जो अभी तक निर्भीक भाव से तनी हुई थी, इस तरह नीचे झुक गई मानो उसे उसके किसी बहुत बड़े जुर्म के बारे में बता दिया गया हो।
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"पाल...।" थोड़ा वक्त गुजर जाने पर राज ने उसे टोकते हुए कहा-"मुझे तुम्हारी खामोशी नहीं तुम्हारा जवाब चाहिए।"

"इसके अलवा कोई भी सवाल पूछ लो...इस सवाल के लिए मुझे बख्श दो।"

"क्या उल्टा सीधा बोलेला है बिडूं...काम की बात नको बोलेगा का तो अपुन का इनसल्ट हो जाएगा।" जय पाल के सामने आता हुआ बोला।

"लेकिन जय सेठ...ये बड़े लफड़े वाला मामला है।"

"मंत्री धरम सावन्त का मामला है इसलिए मुंह खोलने से डर रहे हो...है न?" राज ने बीच में पड़े रहस्य के पर्दे को हटाते हुए कहा।
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06-02-2020, 01:52 PM,
#42
RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
नाम सुनते ही पाल झटके के साथ स्टेच्यू बना का बना रह गया। उसकी आखें आश्चर्य से फैली की फैली रह गई।
"आपको...आपको मालूम है...?" उसने विस्मित स्वर में राज से पूछा।

"हो...मालूम है।"

"तो फिर मुझसे किसलिए पूछ रहे थे?"

"मुझ सिर्फ आउट लाइन मालूम है जबकि मैं उस घटना का आखों देखा हाल सुनना चाहता हूं। एक-एक बात जानना चाहता हूं।"

"एक-एक बात तो मुझे भी नहीं मालूम।"

"जितना मालूम हो उतना बता दो।"

"बता दूं जय सेठ...।" पाल जय की ओर मुड़ता हुआ परेशानी भरे स्वर में बोला "लेकिन...मेरे लिए खतरा पैदा हो जाएगा। धरम सावन्त खुद और उसका भाई रंजीत सावन्त...दोनों कितने ज्यादा खतरनाक हैं। हकीकतन दोनों ही बिग गैंगस्टर हैं...इलैक्शन तो उन्होंने अपनी गुण्डा पावर से जीता था।"

"तेरे कू डरने का नेई...क्या। नेई डरने का!" जय ने उसे समझाते हुए कहा।

"क्यों?"

"अपुन बोला न...बस...इसी वास्ते।"

"फिर भी...मुझे डर लगता है।"

"किस वास्ते डरेला है तू...किस वास्ते?"

"अगर रंजीत सावन को ये मालूम हो गया कि मैंने उसकी कोई खबर बाहर की है तो वो फौरन अपना एक जल्लाद मेरे पीछे छोड़ देगा। उस जल्लाद के पास या तो लम्बा-सा छुरा होगा या चमकती हुई तलवार और या फिर नन्ही सी गन। उसके बाद वो तब ही रंजीत के पास वापस लौटेगा जब मेरा काम तमाम कर चुका होगा। मैं रंजीत सावन्त के काम करने के ढंग से वाकिफ हूं।"

"तू अपुन के काम करने के ढंग से वाकिफ नेई क्या?"

"हूं क्यों नहीं जय सेट...लोकिन जान तो सभी को प्यारी होती है न...अपनी उसी जान को बचाना चाहता हूं। कुछ दिन इस फानी दुनिया में और जिन्दा रहना चाहता हूं।"

____ "तेरी बात रंजीत सावन्त को बताने कौन जा रहा है...।"

"फिर भी डर तो लगता ही है।"

"डरने का नेई...अपुन का बाप को सामने रंजीत सावन्त कुछ नेई है...कुछ भी नेई।"

"मापा करना जय सेठ...अब तुम्हारा बाप लायन भी नहीं है जिसकी छत्र छाया में मैं सुरक्षित रह सकू।"

जय जोश में कुछ बोलना चाहता था लेकिन राज ने आंखें दिखाई तो वह एकदम से खामोश हो गया।

___"सुन पाल...।" कुछ पल रुककर उसने पाल से कहा-"तुझे यहां इस होटल में इसी वास्ते लाएला है ताकि कोई समझ नेई सके। जान न सके। अपुन का इस मीटिंग का खबर किसी को नेई होएंगी...कानो कान नेई होएंगी। भरोसा कर अपुन के ऊपर...ये बात इस कमरे का बाहर निकलेंगा नेई के तू इधर किसी को कुछ बताया।"

"पक्का वायदा...?" पाल ने कमजोर सी आवाज में पूछा।

"एकदम पक्का।" लोखण्ड माफिक...अब तू बोल..."

उसने शकित दृष्टि से जय की ओर देखा। फिर उसकी आखें राज की ओर घूम गईं। फिर मानो वह मन ही मन कोई फैसला करने लगा...कोई गणित लगाने लगा।

___ अंत में उसने समर्पण की मुद्रा में राज से कहा-"मै सब-कुछ बताने को तैयार हूं लेकिन मेरी बात कहीं लीक नहीं होनी चाहिए।"

"भरोसा रखो पाल...तुम्हारा नाम कहीं भी नहीं आएगा।" राज ने अपनत्व भरे अंदाज में उसका कंधा थपथपाकर कहा-"अगर तुम्हारा नाम आ जाए तो मुझे तुम्हारी हर सज़ा मंजूर होगी।"

"तो सुन...।"

"जग्गू जगलर सावन्त बन्धुओं का खास मोहरा है। कुछ दिन पहले जग्गू जगलर का एक आदमी बारह वर्ष की मासूम बच्ची के साथ बलात्कार करने के केस में पकड़ा गया। पकड़ने वाला इंस्पेक्टर सतीश मेहरा ही था।"

"फिर?"

"फिर सावन्त की खबर सतीश को मिली कि जग्गू के आदमी को छोड़ दिया जाए। सतीश ने उसकी बात सुनी अनसुनी कर दी। यहां से सतीश से टेंशन शुरू हो गई। दूसरे शब्दों में इस्पेक्टर सतीश मेहरा ने सावन्त बंधुओं से पंगा ले लिया।"

"फिर...।" राज ने जिज्ञासा भरी दृष्टि से उसकी ओर देखते हुए पूछा।

"फिर इंस्पेक्टर सतीश मेहरा की बहन को अगवा करने की कोशिश की गई। कोशिश नाकामयाब रही। उस कोशिश में खुद जग्गू जगलर सम्मिलित था मगर जग गू जगलर को भी सतीश ने हवालात की हवा खिला दी। सतीश ने हवालात में जग्गू जगलर को मारा पीटा भी...जबकि रंजीत ने सतीश को धमकी दी थी कि उसके आदमी को हाथ न लगाया जाए। जग्गु जनलर को रंजीत सावन्त पुलिस स्टेशन से छुड़ाकर ले गया। सतीश को पुलिस स्टेशन में ही मारा-पीटा।"
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06-02-2020, 01:58 PM,
#43
RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
"गलत बोल रहे हो।" पाल ने उसे अपलक निहारते हुए कहा-"तुम उसे जानते हो...अगर जानते न होते तो उसका नाम तुम्हारी जुबान पर इतनी फुर्ती से न आता।"

"ठीक है।"

"क्या ठीक है?"

"कबूल करता हूं कि मैं उसे जानता हूं।"

"गुरुनानी को?"

"हां...।"

"तो फिर ये भी जानते होगे कि वो चीज क्या

"जानता हूं।"

"तब तो तुम भी कोई पहुंची हुई हस्ती हो।" पाल ने उसे सिर से पांव तक निहारा।

"जगह का नाम?"

"लाल हवेली।"

"ये लाल हवेली है कहां।"

"बताया न कि लाल हवेली गुरुनानी का ठिकाना है। ऐसी जगह है जहां जाकर आदमी वापस नहीं लौट पाता।"

"सतीश को लाल हवेली ले जाया गया है?"

"शायद।"

"यानी कनफर्म नहीं हो?"

"खबरी लाल हूं। खबर इधर-उधर जहां कहीं से भी इकट्ठी करता हूं वो महज खबर ही होती है। उस खबर का कच्चा-पक्का होना वक्ती होता है। खबर पक्की भी हो सकती है...कच्ची भी।"

"लेकिन ये लाल हवेली है कहां?"

"मलाड क्रीक से दस किलोमीटर अन्दर समुद्र में।"

"समुद्र में...हवेली ?" राज ने हैरानगी से पाल को निहारा।

"हां...समुद्र में हवेली। मशहूर जगह है। ताज्जुब है...गुरुनानी से वाकिफ हो मगर लाल हवेली से वाकिफ नहीं हो।"

"जरूरी नहीं कि एक आदमी के पास हर सवाल का जवाब हो ही। सवाल ये उठता है कि लाल हवेली समुद्र में कैसे? आइलैंड पर हवेली किसने जाकर बना डाली?"

"कहने को वह हवेली है...हकीकतन अभेद किला है। मौत का किला...जहां से कोई भी बचकर वापस नहीं आता।"

"तुम लाल हवेली गए हो?"

"नहीं..सिर्फ सुना है।"

"किससे?"

"गुरुनानी के एक आदमी से।"

"तो ये पक्का है कि सतीश मेहरा लाल हवेली पार्सल किया जा चुका है?"

"खबरी लाल की खबर है। मैं पहले ही कह चुका हूं कि इधर-उधर से जो खबरें हासिल हो जाया करती हैं उन्हें कलैक्ट कर लेता हूं। उनके कच्चा पक्का होने की खातिर पीछे भागने में वक्त जाया नहीं किया करता। जिसे जरूरत होगी वो खुद ही उस खबर को कच्चा-पक्का करने के लिए तफ्तीश करवाएगा...मैं व्यर्थ की सिरदर्दी मोल क्यों लूं।"
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"ओ. के. पाल...मैं समझ गया तुम क्या कहना चाहते हो...अब आखिरी सवाल।"

"पूछो।"

"सतीश मेहरा जिन्दा तो है न?"

"इस बारे में रंजीत सावन्त क अलावा तुम्हें और कोई बता नहीं सकता।" ।

"कोई और जानकारी जो सतीश मेहरा के बारे में...तुम्हारी वाकफियत में हो?"

"नहीं...."

"भविष्य में हो तो...?"

"तो जय सेठ को खबर कर दूंगा।"

"जय...।" राज जय की ओर मुड़ता हुआ बोला-"मिस्टर पाल को इनाम देकर वापस भेज दो...।"

"जो हुकम बाप।"
जय पाल को साथ लेकर वहां से चल पड़ा।
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06-02-2020, 01:58 PM,
#44
RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
"मंत्री धरम सावन्त वहां आया था क्या...?"

"नहीं।"

"तो फिर कहन मेहत पर लगाया चार्ज गलत हुआ न...।"

___ "हां...गलत हुआ लेकिन यहां गवाही मैं नहीं दूंगा। मैं सिर्फ तुम्हें रिपोर्ट दे रहा हूं और रिपोर्ट के आगे कुछ भी नहीं करूगा...न अपने बयान की पुष्टि करूंगा न कुछ कहूंगा।"

"उसे छोड़ो...आगे बताओ।"

"आगे खबर ये है कि सतीश मेहरा को अस्पताल से जबरन रिलीव कराया गया। अस्पताल के बाहर रंजीत के आदमी लगे हुए थे। सतीश मेहरा को घेरकर खत्म कर देने का पूरा प्रोग्राम था...मगर सुना है, सतीश मेहरा सिर्फ घायल होकर रह गया।"

"इस घड़ी वह कहां है?"

"ध्यान में नहीं...।"

"जानकारी करने की कोशिश करो। पार्क मैं तुम्हें सतीश का पता बताने के लिए उसकी कीमत अदा कर सकता हूं।"

"जय सेठ के लिए कीमत अदा करने की कोई जरूरत नहीं है।"

"नहीं पाल...उसे तुम कीमत न समझकर अपना इनाम मान सकते हो। अगर तुम सतीश का पता बताने के लिए कोई इंशारा भी करोगे तो मुझे खुशी होगी...और ये भी याद रखना कि तुम्हारी इस बात को कहीं से भी लीक नहीं होने दूंगा।"

पाल गहरे सोच में डूब गया।

"किसी भी प्रकार की चिन्ता मत करो...तुम्हार अहित नहीं होने दूंगा।"

"बात को समझने की कोशिश करो।"

"बात को समझ रहा हूं। न समझने की कोई बात नहीं है।"

"तो फिर बेहिचक बता दो।"

"जगह का नाम गलत है। बड़े गैंगस्टर्स से जुड़ा हुआ है। ये भी मुमकिन है कि जिस जगह के मारे में मैं बताने जा रहा हूं उस जगह सतीश मेहरा मौजूद ही न हो।"

__ "तुम जगह का नाम बताओ...उसकी मौजूदगी या गैरमौजूदगी कोई मतलब नहीं रखती।"

"मेरा नाम नहीं आना चाहिए।"

"नहीं आएगा।"

"वो एक खतरनाक सिंडीकेट का बहुत बड़ा अडडा है और वहां तक आसानी से कोई पहुंच नहीं सकता।"

"उस सिंडीकेट के बॉस का नाम...?"

"गुरुनानी।"

"गुरुनानक!" राज चौंक पड़ा।

"जानते हो उसे?"

"न...नहीं।"
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06-02-2020, 01:58 PM,
#45
RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
रंजीत सावन्त का नम्बर मिलाने पर इस बार राज को रंजीत ही लाइन पर मिल गया।

"कौन है तु...?" दूसरी ओर से कठोर स्वर उभरा।

"रंजीत सावन्त से बात करनी है।" राज मजबूत स्वर में बोला।

"तो कर न।"

"यानी तू ही रंजीत है।"

"आने बाप की आवाज को पहचानता नहीं क्या?"

"सुन...सुन रहा है न...?"

"अब बोल भी चुक...शुक्र कर, ट लीफोन की लाइन पर है वरना एक ही वार में टेंटुआ दबा डालता।"

__ "रंजीत सावन्त...इंस्पेक्टर सतीश मेहरा के लिए मैंने तुझे फोन किया था। उसे कुछ होना नहीं चाहिए...आई बात समझ में?"

"ऐ...तू है कौन?"

"फिलहाल तो तू अपना बाप समझ। और सुन...एक बात तेरी खातिर में और ला देना चाहता हूं। वो ये कि तू सतीश को दुनिया के किसी भी छोर पर ले जाकर क्यों न छिपा देना...मैं उसे खोज निकालूंगा।"

"अपना नाम पता कुछ बोल...?" दूसरी ओर से बहुत संयम के साथ पूछा गया।

"घबरा मत...बहुत जल्दी तुझे मेरा नाम और पता सब कुछ मालूम हो जाएगा। मेरी धमकी कभी झूठी नहीं होती।"

"तो तुझे यकीन है कि तू सतीश मेहरा को छुड़ा ले जाएगा ?"

"अपने जेरेसाया तमाम स्टाफ को सावधान कर दे क्योंकि तेरे पास पछताने के लिए वक्त नहीं रह जाएगा। मेरी आदत में शुमार है...मैं दुश्मन को सावधान किए बिना उस पर बार नहीं करता। यहां मैंने बार नहीं करना दुश्मन के शिकंजे से अपने आदमी को निकालना है।"

"अपना कोई जिक्र करेगा तू?"

"करूंगी...थोड़ा सब्र कर।" कहने के साथ ही राज ने मोबाइल का बटन ऑफ कर दिया।

एस्टीम ड्राइव करते जय ने तिरछी दष्टि से राज की ओर देखा। वह कार को बहुत धीमी रफ्तार से ड्राइव कर रहा था।

"अब इसे उस तरफ साइड में ले ले।" राज ने उसे दो विशाल बिल्डिंग्स के बीच के खाली पैसेज में कार खड़ी करने का आदेश दिया।

उसने आदेश के अनुपालन में एस्टीम उसी पैसेज के बीच रोक दी।

राज दूरबीन से ब्रिज के उस पार ढलान पर बनी रंजीत सावन्त की कोठी की ओर देखने लगा जिसके विशाल फाटक उस घड़ी बंद थे। कोठी के सामने वाले भाग में चूंकि घने वृक्ष लगे हुए थे, इस वजह से अन्दर का दृश्य देख पाना मुमकिन नहीं हो पा रहा था। फिर भी राज इस कोशिश में लगा हुआ था कि किसी प्रकार अंदर देखा जा सके।

अचानक! कोठी का फाटक खुला और सफेद रंग की अर्मदा अपने चौड़े पहियों पर दौडती हुई बाहर । निकली। सड़क पर आते ही वह दायीं ओर को मुड़ गई। उसके अंदर कितने ही आदमी बैठे हुए थे और गनों की बैरलें भी चमकती दिखाई दे रही थी।

"पीछा कर।" राज ने अगला आदेश दिया।

जय ने तुरन्त एस्टीम आगे बढ़ा दी।

"वो सामने...सफेद अर्मदा...।"

"बरोबर।" कहते हुए जय ने एक्सीलेटर पैडल पर पांव का दबाव बढ़ा दिया। एस्टीम हवा से बातें करने लगी।

"बाप, अपुन का समझ में नेई आरेला है के तुम इधर क्या भकस करेला है।"

"उस कार में रंजीत सावन्त के आदमी मौजूद हैं और वे आदमी मेरे विचार से सीधे उस जगह जा रहे हैं जहां रंजीत सावन्त ने सतीश को छिपा रखा है।"

"ऐसा क्या?"

"बिल्कुल ऐसा ही।"

"तब तो अपुन का काम आसान हो जाएंगा...नेई?"

"एकदम आसान तो नहीं...लेकिन हां, थोड़ा आसान जरूर हो जाएगा।"

___ "पन बाप, तुमेरे कू कैसे मालूम कि ये लोग उधर र जाता जिधर सतीश को रखेला है...?"

राज मुस्कराया। बोला-"ये सब आयडिए का हिसाब है। मेरे आयडिए से उधर ही जाना चाहिए क्योंकि मैंने रंजीत सावन्त को बातों से इस कदर टाइट कर दिया है कि रंजीत सावन्त सतीश की सुरक्षा व्यवस्था में वृद्धि जरूर-जरूर करेगा।".

"इसका मतलब ये लोग वही व्यवस्था बनाने का वास्ते जाएला है?"

"हां।"

जय ने अतिरिक्त जोश के साथ पीछा आरंभ कर दिया। अर्मदा तेजी से दौड़ती रही। अन्त में सागर तट के क्षेत्र में बनी एक पुरानी बिल्डिंग के अंदर वह दाखिल हो गई। बिल्डिंग के बहुत पहले राज ने अपनी कार रुकवा दी।

___ कार रोकने के बाद जय ने सवालिया दृष्टि से उसकी ओर देखा।
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06-02-2020, 02:00 PM,
#46
RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
उस अवसर का लाभ उठाकर वह दूसरे दरवाजे की ओर निकल पड़ा। निकलते समय भी उसका माउजर आग उगलता जा रहा था। उसे ये समझते देर न लगी कि उस बिल्डिंग के अंदर उसकी मौत का सामान एकत्रित किया गया था। बाहर की ओर दौड़ लगाते हुए उसने बीच रास्ते अपना दूसरा माउजर भी निकाल लिया। गलियारे में मुड़ते ही वह सीधा हुआ और उसने पूरी मैगजीन एक ही बार में खाली कर डाली।

गलियारे के सिरे पर दो आदमी थे, दोनों उस तूफानी गोलीबारी के धारे में तिनके की तरह बह गए। अवसर मिलते ही राज ने बारी-बारी दोनों गनों की पुरानी मैगजीने निकालकर नई मैगजीनें लगा दीं। अगल ही पल दोनों गने लोड हो चुकी थीं। जब तक वह दरवाजे पर पहुंचा तब तक जय ऑटोगन समेत अंदर प्रवेश कर चुका था।

"बाहर चल जय...बाहर!" राज ने उसे रोकना चाहा लेकिन वह रुका नहीं।

उसकी गन का दहाना अपने सामने की ओर गोलियां बरसाता आगे बढ़ता जा रहा था। राज उसके पीछे लपका। उसने सोचा भी नहीं था कि जय उसके आदेश का उल्लंघन करेगा।

जय निरन्तर आग बढ़ता चला जा रहा था। उसकी शक्तिशाली गन का आतंक फैलता जा रहा था।
"रुक जा जय...रुक जा।" राज ने उसे रोकने की कोशिश की।

लेकिन! उत्तेजित जय जिसे कुछ और ही आदेश दिया गया था, उस घड़ी गोलियों के धमाकों से बेचैन होकर अपने आपको रोक न सका। वह अपने बाँस को बचाने की गरज से हथियार लेकर मैदान में उतर पड़ा। उसकी गन आग बरसा रही थी। गिनती के दो आदमी सामने आए, उसने एक को भी बख्शा नहीं। वह सब कुछ नेस्तनाबूद कर देने का तमन्नाई नजर आ रहा था।

राज मुश्किल से ही उसे हॉल की ओर जाने से रोक सका। जहां उसके द्वारा किए गए विस्फोट से आग के शोले हाहाकार मचाए थे।
"क्या कर रहा है...मैं तुझे बाहर रुकने को बोलकर आया था न?" राज ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा।

___ "पण बाप, अपुन से बर्दाश्त नेई हुआ। गोली चलने से दिल का अन्दर में धमाका होने लगा...अपुन कू घबराहट चालू हो गया बस...फिर नेई रुक सका।" जय भावुक होता हुआ बोला।

"क्या सोचा तूने...यहीं न कि गोली चली तो सीधी मुझे लगी...है न?"

"अबी दिल का अन्दर में घबराहट होएली है तो अपुन क्या करे...क्या करे अपुन।"

"तू किसी हित लम्बा फंसवा देगा। अब तुझे बाहर रुकने को बोला नहीं करूंगा।"

"सतीश मेहरा को तलाश करने का क्या?"

"लगता तो नहीं कि वो इधर होगा।"

"तलाश करने में क्या वांदा है?"

"कोई नहीं।"

"तो फिर चल न...इधर काय कू टेम खोटी करेला है बाप...।"

"चल।"

दोनों आगे-पीछे सावधानी के साथ चल पड़े।

बिल्डिंग के विभिन्न भागों में चार आदमी खून से लथपथ स्थिति में मिले। चारों या तो मर चुके थे या फिर मरने के करीब थे। सतीश मेहरा वहां कहीं भी नहीं था। अंत में राज ने एक अत्यंत घायल आदमी को किसी प्रकार मौत की नींद सोने से जगाया।

"सतीश मेहरा कहां है...बता सकते हो?" उसने उस आदमी को झिंझोड़कर पूछा।

___ "न...न...नहीं।" वह आदमी मुश्किल तमाम बोलकर खामोश हो गया। उसके नेत्र बंद हो गए।"

"अर्मदा में अभी तुम आए थे?"

"न...नहीं।"
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"फिर?"

"सावन्त बॉस ने दो आदमी भेजे थे, कहा था कि कोई उनके पीछे बिल्डिंग में आने वाला है। उसे अगर पकड़ा जा सके तो पकड़ लो वरना सूट कर दो।"

"आई सी...इसका मतलब उसे मालूम था कि ऐसा कुछ हो सकता है।"
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06-02-2020, 02:00 PM,
#47
RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
उस आदमी की आंखें एक बार फिर बंद हो गईं। राज ने उसे झिंझोड़कर जगाने का प्रयत्न किया लेकिन इस बार उसके ऊपर कोई असर नहीं हुआ। वह या तो मर चुका था या फिर गहरी बेहोशी में डूब चुका था।

तभी पुलिस सायरन उस क्षेत्र में गूंज उठा।

भाग जय...पुलिस!" कहता हुआ राज बाहर की ओर दौड़ पड़ा।

जय उसके पीछे था।
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दूसरे दिन राज अचम्भित रह गया।
कामरेड करीम भाई के अखबार में सतीश मेहरा कांड हैडलाइन में था और शब्दश: सच छपा था। उसने जुल्म की कहानी बयान करत हुए धरम सावन्त का नाम मोटे अक्षरों में छापा था। पुलिस प्रशासन की चाटुकारिता को भी बयान किया था। ये भी लिखा था कि करप्शन का दैत्य एक ईमानदार पुलिस इस्पेक्टर को निगल गया। उस समाचार को राज ने कई बार पढ़ा। उसे उम्मीद नहीं थी कि करीम भाई इतना हिम्मतवर रिपोर्टर होगा।

डॉली उसके साथ सटकर बैठी हुई कामरेड करीम की शाया रिपोर्ट को बड़े गौर से पढ़ रही थी। उस समय वह राज के साथ राज के चैम्बर वाले फ्लैट में थी। हालांकि जय दोनों को घाटकोपर ले जाना चाहता था लेकिन राज के सामने उसकी एक न चली।

___"ये करीम भाई तो काम का आदमी निकला...।" राज समाचार पत्र डॉली के सुपुर्द करता हुआ बोला-"बड़े जिगरे वाला है। जिस सच्चाई को छापने से बड़े-बड़े अखबार पीछे हट गए ...कामरेड के छोटे से अखबार ने वो दुस्साहस कर डाला। कमाल का आदमी था भई...मैं अभी उसे उसके काम के लिये शुक्रिया अदा करता हूं।"

उसने मोबाइल निकालकर कामरेड करीम के नम्बर मिलाए। दूसरी तरफ घंटी जाती रही लेकिन किसी ने फोन रिसीव नहीं किया।
"लगता है कामरेड अपने आफिस में है नहीं...।"

__"शायद...।" डॉली अखबार देखती हुई बोली।

राज ने रंजीत सावन्त का नम्बर मिलाया।

"कौन?" दूसरी तरफ से गुर्राहट भरा स्वर उभरा। उस स्वर को वह पहले भी सुन चुका था।

"रंजीत सावन्त को बुला फोन पर...।" उसने मुंह बिगाड़ते हुए कर्कश स्वर में जान-बूझकर इसलिए कहा ताकि दूसरी तरफ वाला उखड़ जाए। और वही हुआ भी।

"सावन्त साहब बोल ढोलकी के...सावन्त साहब...साले, तू एक बार मुझे मिल जा कहीं...सिर्फ एक बार फिर मैं तुझे तेरी बदतमीजी की सजा देता हूं। तेरी रूह कांप उठेगी...। यूं...थर- थर...।"

"मुझे उसकी आवाज सुनाई दे रही है।" राज हंसा।

"सारी हंसी आख में डाल दूगा...तू सिर्फ एक...सिर्फ एक बार मेरे सामने आ जा।"

"रंजीत को फोन पर बुला...जरूरी काम है

"अभी तू ठहर...फिर बताता हूं।"

उसके बाद सन्नाटा छा गया।

थोड़ी देर बाद रंजीत की आवाज उभरी "हैलो कौन है...?"

"वही...जिसकी वजह से रातों की नींद उड़ गई रंजीत सावन्त...जिसे मारने की तेरी कोशिश नाकामयाब रही और बदले में जिसने तेरे कई आदमी मौत के घाट उतार दिए।"

"तो तू है...।"

"बराबर पहचाना...आज का अखबार देख...?"

"तू किस अखबार की बात कर रहा है?"

"दैनिक प्रभात...।"

दूसरी ओर से रंजीत सावन्त का कहकहा उभरा।

"दैनिक प्रभात ने धरम सावन्त द्वारा सतीश मेहरा पर लगाए गए झूठे आरोप की पोल खोल दी है। तेर पापों का घड़ा भर चुका है। अब तो तू महज उसके फूटने का इंतजार कर।"

"दैनिक प्रभात की एक भी कापी बाजर से लाकर बता तो सही...।"

"क्या मतलब?"
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06-02-2020, 02:01 PM,
#48
RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
"अरे, गरीब प्रकाशक का गरीब अखबार है। पांच सौ प्रतियां भी मुश्किल से ही छाप पाता है।। उसकी सभी प्रतियां मेरे पास सुरक्षित मौजूद हैं...बेफिक्र रह। उस अखबार को जनता के बीच जाने का अवसर नहीं मिल सकेगा। दैनिक प्रभात की आवाज तो निकल ही नहीं सकेगी। रहा सवाल उस कामरेड करीम भाई का तो...अभी तू मुझसे वाकिफ नहीं है...जिसने मेरे खिलाफ झंडा ऊंचा किया है, उसके गले तक पहुंचने में मेरे आदमियों को देर नहीं लगती।"

राज एकाएक ही चौंक उठा।

उसने बीच में ही फोन बंद कर दिया और वह तेजी से बाहर की ओर लपका।

"कहां जा रहे हो...?" डॉली ने उत्तेजनापूर्ण स्वर में पूछा।

"जरूरी काम से जा रहा हूं...अभी आ जाऊंगा।" राज उस कमरे से निकलकर बैडरूम की ओर मुड़ता हुआ बोला।।

डॉली लगभग दौड़ती हुई उस कमरे में पहुंची।
राज फुर्ती के साथ तैयार हो रहा था।

बगली होलस्टर पहनकर पहले उसने होलस्टर में अपना पहला माउजर लोड करके फिट किया। दोनों पैरों में वह नीकेब चढ़ाए हुए था। दायीं ओर वाले नीकेब में उसने दूसरा माउजर फंसाया। लम्बे शिकारी चालू को बायीं और वाले नीकेब में फंसाने के बाद उसने कोट पहन लिया। उसके विशेष कोट की अंदरली जेबों में ढेर सास सामान पहले से ही सैट था।

डॉली की आखें भय से फैलती चली गई। "क्या हुआ...मुझे बताओ कहां जा रहे हो?" उसने घबराएं हुए स्वर में पूछा।"

"कामरेड करीम पर मुसीबत है...उसे फौरन मद की जरूरत है।"

"मैं साथ चलूं?"

"तुम क्या करोगी?"

"साथ चलना चाहती हूं।"

"ओ. के. चलो।"

राज उस घड़ी किसी बहस में पड़कर वक्त जाया करना नहीं चाहता था। डॉली उसके साथ चल पड़ी।

गहरे नीले रंग की एस्टीम तूफानी रफ्तार से निकल भागी। करीम भाई ने उसे जो कार्ड दिया था उसमें टेलीफोन नम्बर के अतिरिक्त ऐड्रेस भी दर्ज
था। ऐहेस को तरफ बढ़ती एस्टीम की रफ्तार निरंतर बढ़ती जा रही थी। अंत में...।

___एस्टीम एक घनी बस्ती की चौड़ी-सी गली में दाखिल हो गई। उस गली में दाखिल होने से पूर्व राज ने कार रोककर एक आदमी से उस ऐड्रेस के बारे में पूछ लिया था। ऐड्रेस के अनुसार उसने महज दो मोड़ और काटने थे, उसके बाद कामरेड करीम भाई का अफिस कम रेजीडेन्स आ जाना था। एस्टीम ने पहला मोड़ काटा। फिर वह दूसरे मोड़ की तरफ बढ़ ही रही थी चीख-पुकार का शोर उभरने लगा।

सड़क चौड़ी थी अलबत्ता उस घड़ी संकरी प्रतीत हो रही थी। क्योंकि इतने सारे आदमी थे और इतनी सारी तलवारें थीं। समूची सड़क भरी-भरी प्रतीत हो रही थी। सबसे आगे था खून में लथपथ दौड़ता हुआ-अपनी मौत से भागता हुआ करीम भाई। उसके सफेद कुर्ते-पायजामे पर खून का लाल रंग अलग से चमकता नजर आ रहा था। वह बेतहाशा भाग रहा था।

बदहवासी के आलम में उसे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। पीछे से किसी ने तलवार फेंककर मारी। तलवार पहले सड़क से टकराई फिर उछलकर उसकी टांगों से जा टकराई। नतीजतन वह दौड़ता हुआ लड़खड़ाया, उसने अपने संतुलन को बनाने की कोशिश की। लेकिन वह लड़खड़ाता चला गया। उसकी हालत उस पतग की तरह हो गई जो हवा में पूरी तरह तन जाने के बाद एक झटके के साथ धागे से टूटकर हवा में लहरा गई हो। लहराती हुई पतंग ने जमीन पर गिरना था और पीछे झपटते तलवारों के झुंड ने उसे काटकर टुकड़ों में विभक्त कर देना था।

लेकिन! ऐन वक्त पर राज किसी छलावे की तरह कार से प्रकट हुआ। उसने बाएं हाथ में घायल करीम भाई को संभाली और दाहिने हाथ से माउजर निकालकर जो गोलियां बरसाई तो दौड़ते कदमों को मानो अचानक ही ब्रेक लग गया। दो तलवार वाले जो सबसे आगे थे, उनमें से एक के सीने में गोली लगी दूसरे का भेजा हवा में बिखर गया। जैसे ही दो लाशें गिरी वैसे ही बाकी के आदमी निकल भागे।
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06-02-2020, 02:01 PM,
#49
RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
राज ने पहले उनके पीछे बढ़नः ।। चाहा लेकिन अगले ही पल उसे करीम भाई की हालत का ध्यान हो आया।

"करीम भाई...करीम भाई तुम ठीक तो हो न ?" उसने करीम को झिंझोड़ते हुए पूछा।
.
"हं...हा...म...मैं ठीक हूं...ठीक है।" कामरेड करीम कम्पित स्वर में बोला।

राज ने उसके शरीर से बहता खून देखा, उसके घाव देखे और फिर वह तेजी से उसे कार में डालकर वहां से ले चला।

करीब के नर्सिंग होम में कामरेड को पहुंचाने के बाद वह वहां डॉली को छोड़कर निकल जाना चाहता था लेकिन इसी बीच मरीज को देखने आए डाक्टर ने मरहम-पट्टी करने से इंकार कर दिया।
डॉली दौड़कर बाहर आयी।

"तपन...तपन...डाक्टर साहब कह रहे है ये ता पुलिस केस है-वो इलाज नहीं कर सकते।" उसने उत्तेजनापूर्ण स्वर में कहा।

राज तुरन्त उल्टे पांव वापस लौटा। डाक्टर अपने केबिन में था। वह तुरन्त केबिन में पहुंचा।
"सॉरी मिस्टर...दिस इज पुलिस केस, आई कान्ट ड इट।" उसे देखते ही डाक्टर बोला।"

"आपकी बात सही है...ये पुलिस केस...कुछ गुण्डों ने कामरेड को तलवारों से मार डालने की कोशिश की। वो तो मैं इन्हें यहां तक ले आया वरना तो इन्होंने घटनास्थल पर ही दम तोड़ देना था। पेशेंट आपके सामने है। मैं आपकी फीस भरने को तैयार हूं। आप पेशेंट का इलाज शुरू करने से पहले पुलिस को इंफार्म कर दें। पेशेंट ने जो भी बयान देना होगा दे देगा।"

___ डाक्टर ने घूरकर उसे देखा फिर क्रोधित भाव के साथ रिसीवर उठाकर पुलिस स्टेशन के नंम्बर डायल किए। फिर उसने राज से पूछा "पेशेंट का नाम पता...?"
"डेली न्यूज पेपर प्रभात के एडीट... र कामरेड करीम भाई...।"

"वो कामरेड भाई हैं?"

"जी हां डाक्टर साहब।"

इसी बीच दूसरी तरफ से सम्पर्क स्थापित हो गया और डाक्टर ने कामरेड करीम के घायल होने की सूचना पुलिस को दे दी। फिर वह वहां एक पल के लिए भी नहीं रुका। सीधा वहां पहुंचा जहां करीम को रखा गया था। आनन-फानन उसने करीम की महरम-पट्टी शुरू कर दी। कई जगह टांके भी लगाने पड़े। वह प्रत्येक घाव की लम्बाई-चौड़ाई को नापकर नोट करता जा रहा था। उसे मालूम था कि पुलिस को घावों की तफसील रिपोर्ट चाहिए होती थी। काम पूरा करने में उसे एक घंटा दस मिनट का समय लगा। इस बीच उसने कामरेड करीम को खून की बोतल लगा दी थी।

अंत में वह वापस अपने केबिन में लौटा। कॉरीडोर में मौजूद राज को उसने अंदर जाने का संकेत किया।

राज ने उसके केबिन में दाखिल होने से पूर्व डॉली को संकेत से आदेश दिया। नतीजतन डॉली फुर्ती से कामरेड करीम के कमरे की ओर बढ़ गई।

"पुलिस अभी तक यहां पहुंची नहीं है जबकि फोन रिसीव करने वाले ने कहा था कि पुलिस फौरन यहां पहुंच रही है।" अपनी कुर्सी पर फैलते हुए डाक्टर ने चिन्तित स्वर में कहा।

राज उसकी बात सुनकर गहरे सोच में डूब गया।
"पुलिस आयी क्यों नहीं अब तक?"

"आपने अपनी ड्यूटी पूरी कर दी न...आपका फर्ज पुलिस को इंफार्म करना था सो कर दिया, बात खत्म। पुलिस नहीं आती है तो न सही। जब भी पुलिस आकर पूछताछ करे तो कामरेड करीम भाई और दैनिक प्रभात तो आपको याद ही है न...फौरन पुलिस को बता देना कि घायल शख्स जो आपके ट्रीटमेंट का तलबगार था...दैनिक प्रभात का एडीटर था।"

"क्या मैं एक बार फिर फोन कर दूं...?"

'मुझे कोई एतराज नहीं। एनी वे डाक्टर...क्या मैं अपने पेशेंट को ले जा सकता हूं?"

"अभी नहीं..अभी तो उसे खून दिया जा रहा है। खून की बोतल खत्म होने से पहले तुम यू भी उसे ले जा नहीं सकते। दूसरे उसे थोड़ी देर यहां ठहरना होगा। अभी उसे एक बोतल और लगानी होगी...उसके जरिए ताकत के कुछेक इंजेक्शन भी दे दूंगा।"

__यानि अभी यहां थोड़ा वक्त और गुजारना होगा?"

"बिल्कुल।"

"अच्छा तो आप तब तक अपना बिल ही मुझे बनाकर दे दें तार्कि मैं उसका भुगतान कर दू?"

__ "ऐसी भी क्या जल्दी है...अभी ट्रीटमेंट पूरा तो हो जाने दो।" कहने के साथ ही डाक्टर ने रिसीवर उठा लिया और फिर वह नम्बर डायल करने में व्यस्त हो गया।

"पुलिस को फोन कर रहे है?"

"हां।"

"ठीक हैं...मैं बाहर हूं। आपको मेरी कोई भी जरूरत पड़े तो आप मुझे बुलवा लें।"

"ओ. के.।"

राज बाहर निकल आया।
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06-02-2020, 02:01 PM,
#50
RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
राज बाहर निकल आया।

उसने पहले नर्सिंग होम का अंदर से एक राउंड लगाया। उसके बाद वह ऊपरी माले की ओर बढ़ गया। नर्सिंग होम तीन माले की काफी बड़ी बिल्डिंग में बनाया गया था लेकिन उसमें मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं थी। दूसरा माला तकरीबन खाली था। दो ही पेशेंट थे दूसरे माले पर और तीसरे माले पर एक भी पेशेंट नहीं था। घूमने के बाद वह नीचे करीम के कमरे में पहुंचा। करीम अभी भी मूर्च्छित था। डॉली उसके पास ही बैठी थी।
"सब ठीक है न?" राज ने उससे पूछा।

"हां...ठीक है।" डॉली उसे -देखकर खड़ी होती हुई बोली।

"होश नहीं आया?"

"बीच में एक बार थोड़ा-थोड़ा आया था। फिर अपने आप ही आखें बंद होती चली गईं।"

"डॉली, तुम कामरेड के पास से हटना नहीं। मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है।"

"कैसी गड़बड़ ?"

"आखिर पुलिस अभी तक यहां आयी क्यों नहीं...।"

बड़बड़ता हुआ राज बाहर निकल आया। राज तीसरे माले को भी पार करके खुली छत पर जा पहुंचा। छत पर बड़ा-सा वाटर टैंक था। वाटर टैंक की साइड में छिपकर उसने दूरबीन आखों पर लगाई और आसपास के क्षेत्र का निरीक्षण करने लगा। नार्सिग होम के सामने सड़क थी, सड़क पर हल्का-फुल्का ट्रैफिक था। सड़क के उस पार चार इमारतें लाइन से बन रही थीं। उन चार में से सिर्फ किनारे वाली एक इमारत में काम चल रहा था। शेष तीन का काम बंद था। आगे ड्रेन का छोटा-सा पुल था। बायीं ओर सब्जीमण्डी थी। राज ने सिगरेट सुलगा ली।

वह नर्सिंग होम में आने-जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को गौर से देख रहा था। दो सिगरेटें फूंक चुकने क बाद तब उसने टैंक के साइड की छोटी-सी दीवार पर फैल जाने की कोशिश में अपनी टांगें फैलाई ही थीं कि अचानक नर्सिंग होम के फाटक पर काले शीशे वाली एक वैन रुकी।
एक आदमी फुर्ती से वैन के निकट पहुंचा। उसने ड्राइवर से कुछ कहा। फिर उस ओर संकेत किया जिधर करीम का कमरा था।

राज खामोशी से देखता रहा। उसने देखा वैन के निकट पहुंचने वाला आदमी तेजी से चलता हुआ करीम के कमरे की दीवार तक पहुंचा और उसने पीली दीवार पर लाल रंग की चाक से निशान लगा दिया। काली वैन धीमी गति से आगे बढ़ गई। राज उसकी प्रत्येक गतिविधि को नोट कर रहा था। काली वैन तीसरे नम्बर की निर्माणाधीन इमारत में दाखिल हो गई।

राज ने ऊपर नीचे होकर उसे देखने का भरसक प्रत्यन किया लेकिन वैन इमारत के पिछले भाग में पूरी तरह लुप्त हो चुकी थी। वह फ़ैसला नहीं कर पा रहा था, क्या करे...क्या न करे।
.
.
.अचानक ही उसे एक स्याहपोश नजर आया वह धीरे-धीरे सीढ़ियां चढ़ रहा था और उसके हाथ में मेंडोलिन केस था। राज उसे पूरी तरह देखे नहीं पा रहा था। सीढ़ियों के बीच में बल्लियां आ जातीं या फिर मोड़ आ जाने पर वह लुप्त हो जाता। स्याहपोश अभी-भी पूरी तरह नजर नहीं आ रहा था लेकिन उसे मेंडोलिन केस को राज ने खुलते देख लिया। केस के अंदर से टेलिस्कोपिक गन के पार्ट्स निकलने लगे। काले दस्ताने युक्त हाथ टेलिस्कोपिक गन के पाटर्स को जोडने का काम करने लगे।

अगले ही पल राज सारी कहानी समझ चुका था। वह फुर्ती से सीढ़ियां उतरकर नीचे । पहुचा। पहले उसने डॉली को सावधान कर देना चाहा किन्तु अगल ही पल वह आगे बढ़ चुका था। उसने सड़क पार की और वह दूसरे नम्बर की इमारत में दाखिल होकर अंदर ही अंदर दौड़ता हुआ तीसरे नम्बर की इमारत में दाखिल हो गया।

उक्त इमारत में दाखिल होते ही उसने बिल्ली जैसी चाल से चलना आरंभ कर दिया। एक-एक बार में दो-दो सीढियां पार करता हुआ वह आनन-फानन स्याहपोश के सिर पर आ पहुंचा। उस घड़ी स्याहपोश गन को कंधे से सटाए टेलिस्कोप से निशाना लगाने का प्रयास कर रहा था। राज को लगा कि कहीं वह ट्रेगर दबाने ही न जा रहा हो-इसलिए उसने फुर्ती से माउजर निकालकर उसकी खोपड़ी से सटा दी।

"खबरदार! कोई हरकत मत करना!" वह गुर्राकर बोला।

"पीछे हट...निशाना बहक जाएगा!" स्याहपोश ने निरन्तर निशाना लगाने का प्रयास करते हुए कहा।

"मैं भेजा उड़ा दूंगा।"
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