Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
06-21-2018, 12:16 PM,
#31
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
"तूने चंदर से कह दिया था ना के तू रात में हवेली में ही सोया करेगी?" रूपाली ने ड्रॉयिंग रूम में ही बैठी टीवी देख रही बिंदिया से पुचछा

"हां मैने उसे कह दिया था के मैं आपके कमरे में सोया करूँगी क्यूंकी आपको रात को डर सा लगता है" बिंदिया ने टीवी बंद करते हुए कहा

"ठीक है. तेज आ गया है. मैं अपने कमरे में जा रही हूँ. आयेज का काम तेरा है" कहते हुए रूपाली अपने कमरे की और बढ़ गयी.

अपने कमरे में आकर रूपाली बिस्तर पर निढाल गिर पड़ी. उसकी कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या सोचे और क्या करे. सोचते सोचते उसे 2 घंटे से ज़्यादा गुज़र गये.पिच्छले कुच्छ दीनो में उसकी पूरी ज़िंदगी बदल चुकी थी. एक सीधी सादी घरेलू औरत से वो कुच्छ और ही बन चुकी थी. भगवान का नाम सुबह शाम जपने वाली औरत का अपने ही ससुर से नाजायज़ संबंध बन गया था और वो अपने ससुर से प्यार भी करने लगी थी. उसका वो ससुर जिसकी असलियत खुद उसके लिए सवाल बनकर खड़ी हो गयी थी. एक तरफ उसके पति की मौत का सवाल था और दूसरी तरफ वो इनस्पेक्टर जो उसपर ही शक कर रहा था. कहाँ वो कल तक ठाकुर खानदान की बहू थी और कहाँ वो आज पूरी जायदाद की मालकिन हो गयी थी. कहाँ उसने पिच्छले 10 साल से अपनी ज़िंदगी से समझौता कर रखा था और कहाँ अब वो खुद ही जाने कितने सवालों के जवाब ढूँढने निकल पड़ी थी. हद तो ये थी के कहाँ वो कल तक एक शर्मीली सी औरत थी और कहाँ अब वो मर्द तो मर्द औरतों के साथ भी बिस्तर पर जाने को तैय्यार थी.

ये ख्याल आते ही उसका ध्यान पायल की तरफ गया जो आज उसके कमरे में नही आई थी. बल्कि आज तो पूरा दिन पायल उसे नज़र नही आई थी. रूपाली ने उठकर बीच का दरवाज़ा खोला और पायल के कमरे में आई. पायल अपने उसी बेख़बर अंदाज़ में सोई पड़ी थी. ना खुद का होश और ना अपने कपड़ो का. रूपाली उसे देखकर मुस्कुराइ और वापिस अपने कमरे में आ गयी.

खिड़की पर खड़े खड़े उसकी नज़र सामने कॉंपाउंड में बिंदिया और चंदर के कमरो की तरफ गयी. दोनो के कमरो की लाइट्स ऑफ थी यानी के आज रात काम नही चल रहा था. तभी रूपाली को ध्यान आया के उसने आज रात बिंदिया को तेज को इशारा कर देने को कहा था. ये ख्याल आते ही वो फ़ौरन अपने कमरे से निकली और तेज के कमरे की तरफ आई. कमरे अंदर से बंद था. रूपाली ने दरवाज़े पर कान लगाकर ध्यान से सुनने की कोशिश की. गहरी रात थी और हर तरफ सन्नाटा था इसलिए उसे कमरे के अंदर से आती बिंदिया की आवाज़ सुनने में कोई परेशानी नही हुई. आवाज़ सुनकर ही उसने अंदाज़ा लगा लिया के अंदर बिंदिया चुद रही है. रूपाली फिर मुस्कुरा उठी. उसने तो सिर्फ़ बिंदिया को इशारा करने को कहा था पर वो तो पहली ही रात तेज के बिस्तर में पहुँच गयी थी. रूपाली को लगा जैसे उसने कोई बहुत बड़ी जीत हासिल कर ली हो. उसे यकीन था के अगर हर रात बिंदिया तेज का बिस्तर गरम करे तो यूँ रातों को तेज का हवेली से बाहर रहना कम हो जाएगा.

वो फिर वापिस अपने कमरे में पहुँची. आधी रात होने को आई थी और नींद उसकी आँखों से कोसो दूर थी. ये बात उसे खाए जा रही थी के उसके अपने भाई का चक्कर कामिनी के साथ था और उसे इस बात का कोई अंदाज़ा नही था. या फिर चक्कर था ही नही. ये भी तो हो सकता है के उन दोनो को शायरी का शौक रहा हो और इंदर ने बस यूँ ही शायरी लिख कर कामिनी को दी हो. रूपाली ने अपनी अलमारी खोलकर फिर से कामिनी की डाइयरी निकली. डाइयरी उसने कपड़ो के बीच च्छुपाकर रखी थी इसलिए. डाइयरी निकालते ही कुच्छ कपड़े अलमारी से निकलकर बाहर गिर पड़े. रूपाली कपड़े उठाकर वापिस अलमारी में रखने लगी. उन्ही कपड़ो में एक वो ब्रा भी था जो उसे अपने सबसे छ्होटे देवर कुलदीप के कमरे से मिला था. जो ना तो उसका था, ना कामिनी का और ना ही उसकी सास सरिता देवी का. रूपाली ने एक नज़र ब्रा पर डाली और अलमारी में रखने ही लगी थी के अचानक उसे कुच्छ ध्यान आया. उसने जल्दी से डाइयरी अलमारी में वापिस रखी, अलमारी बंद करी और ब्रा हाथ में लिए हुए अपने कमरे से बाहर आई.

सीढ़ियाँ उतरती वो सीधा बेसमेंट में पहुँची. वो अपने साथ कमरे से टॉर्च उठा लाई थी इसलिए लाइट्स ऑन करने के बाजार टॉर्च ऑन कर ली. वो नही चाहती थी के अगर तेज या कोई और बाहर आए तो इस वक़्त उसे बेसमेंट में पाए और सबसे ज़्यादा वो अभी किसी से बॉक्स के बारे बात नही करना चाहती थी. टॉर्च की रोशनी उसने नीचे ज़मीन पर डाली. कपड़े अभी भी ज़मीन पर यूँ ही पड़े थे जैसे वो शाम को छ्चोड़कर गयी थी. रूपाली ने नीचे बैठकर कपड़े इधर उधर करने शुरू किए. कामिनी के साथ जिस दूसरी औरत के कपड़े बॉक्स में थे उसने उन कपड़ो में से उस औरत का ब्रा निकाला और टॉर्च की रोशनी में उस ब्रा से मिलाया जो उसे कुलदीप के कमरे से मिला था. एक नज़र डालते ही वो सॉफ समझ गयी के दोनो ब्रा एक ही औरत के थे. रंग के सिवा दोनो ब्रा बिल्कुल एक जैसे थे. साइज़ के साथ साथ ब्रा का पॅटर्न भी बिल्कुल एक जैसा था. सॉफ ज़ाहिर था के या तो ये दोनो किसी एक ही औरत के हैं या दो ऐसी औरतों के हैं जिनका कपड़े का अंदाज़ बिल्कुल एक दूसरे की तरह था.

रूपाली अभी अपनी ही सोच में थी के उसे एक हल्की सी आहट आई. कोई बस्मेंट का दरवाज़ा खोल रहा था. उसने फ़ौरन अपनी टॉर्च ऑफ की और हाथ में वो सरिया उठा लिया जिससे उसने बॉक्स का ताला तोड़ा था.
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06-21-2018, 12:16 PM,
#32
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
रूपाली साँस रोके चुप खड़ी हो गयी. बेसमेंट में घुप अंधेरा हो गया था. हल्की सी रोशनी बेसमेंट के दरवाज़े से आ रही थी. उसी रोशनी में एक परच्छाई धीरे धीरे सीढ़ियाँ उतरने लगी. रूपाली की कुच्छ समझ नही आ रहा था के ये कौन हो सकता था. उसने पहले भी एक बार किसी को हवेली के कॉंपाउंड में देखा था रात को पर तब उसे लगा था के ये उसका भ्रम है. क्या ये वही शक्श है? उसकी समझ नही आ रहा था के चुप रहे या शोर मचाए?

वो परच्छाई धीरे धीरे बड़ी होती चली गयी और एक साया सीढ़ियाँ उतारकर बेसमेंट के अंदर आ गया. हल्की सी रोशनी में रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के वो आदमी बेसमेंट में चारो तरफ देख रहा है. फिर उस शक्श ने धीरे से एक आवाज़ की

"आएययी"

और रूपाली समझ गयी के वो चंदर था. गूंगे की आवाज़ में साफ ये सवाल था के जैसे वो किसी से पुच्छ रहा हो के " हो क्या?"

रूपाली हैरत में पड़ गयी. वो इतनी रात को यहाँ क्या कर रहा था और उसे कैसे पता के रूपाली यहाँ है. रूपाली ने धीरे से सरिया नीचे गिरा दिया और कोने से निकलकर आगे को बढ़ी.

सरिया गिरने की आवाज़ से चंदर ने भी उस तरफ देखा जहाँ रूपाली खड़ी थी. उस कोने में बिल्कुल अंधेरा पर रूपाली का साया फिर भी नज़र आ रहा था. रूपाली आगे बढ़ी ही थी के चंदर भी फ़ौरन उसकी तरफ बढ़ा और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती उसने रूपाली को दोनो बाहों से पकड़ लिया. गिरफ़्त बहुत सख़्त थी. रूपाली कुच्छ कहना चाहती ही थी के चंदर ने उसे पलटके घुमा दिया और सामने रखी एक पुरानी टेबल पर ज़बरदस्ती झुका दिया.

टेबल पर कुच्छ रखा हुआ जो आंधरे में ना रूपाली को नज़र आया और ना ही चंदर को. जैसे ही रूपाली झुकी वो चीज़ सीधे उसके माथे पर लगी और उसकी आँखों के आगे तारे नाच गये. उसे लगा जैसे उसकी सर में बॉम्ब फॅट रहे हो और उसकी हाथ पावं ढीले पड़ गये. वो टेबल पर गिर सी पड़ी. वो अब भी होश में थी पर लग रहा था जैसे जिस्म से जान निकल चुकी हो. रूपाली ने आधी बेहोशी में उठकर सीधी खड़ी होने की कोशिश की पर चंदर का हाथ उसकी कमर पर था. उसे कोई अंदाज़ा नही था के इस छ्होटे से लड़के में इतनी ताक़त है. उसने दूसरे हाथ से रूपाली की नाइटी उपेर करनी शुरू कर दी और तब रूपाली को समझ आया के वो क्या करने जा रहा था. उसने फिर उठने को कोशिश की पर चंदर ने उसे काफ़ी ज़ोर से पकड़ रखा था. एक ही पल में रूपाली की नाइटी उठकर उसकी कमर तक आ गयी और कमर के नीचे वो बिल्कुल नंगी हो गयी. नाइटी के नीचे उसने पॅंटी नही पहेन रखी थी इसलिए चंदर का हाथ सीधा उसकी नंगी गान्ड पर पड़ा.

रूपाली की आँखें भारी हो रही थी. सर पर लगी चोट की वजह से उसका सर घूमता हुआ महसूस हो रहा था और वो चाहकर भी इतनी हिम्मत नही जोड़ पा रही थी के उठकर खड़ी हो जाए ये कुच्छ बोले. उसे चंदर का हाथ अपनी चूत पर महसूस हुआ और फिर कोई चीज़ उसकी चूत में घुसने लगी. रूपाली जानती थी के ये चंदर का लंड है और वो उसे चोदने की कोशिश कर रहा है पर वो टेबल पर वैसे ही पड़ी रही. आँखें और भी भारी हो रही थी.

"चंदर" रूपाली के मुँह से बस इतना ही निकला और पिछे से चंदर के धक्के शुरू हो गये. वो रूपाली की गान्ड पकड़े धक्के मारे जा रहा था और रूपाली आधी बेहोशी में चुप चाप चुदवा रही थी. पर इस हालत में भी उसे अपने जिस्म में फिर से वही वासना महसूस होने लगी जो वो पिच्छले कुच्छ दिन से महसूस कर रही थी. चंदर किसी जंगली जानवर की तरह धक्के मार रहा था. उसके हाथ रूपाली की गान्ड सहला रहे थे और उसके मुँह से आ आ की आवाज़ निकल रही थी.

धीरे धीरे सर पर लगी अचानक चोट का असर कम हुआ और रूपाली को अपने जिस्म में फिर से ताक़त आती महसूस हुई. उसका दिमाग़ कह रहा था के उठकर चंदर को रोके और एक थप्पड़ उसके मुँह पर लगा दे पर दिल कुच्छ और ही कह रहा था. वो पिच्छली रातों में चुदी नही थी और उसका जिस्म टूट रहा था. पिच्चे से चूत पर पड़ते चंदर के धक्के जैसे उसके जिस्म में लहरें उठा रहे थे और रूपाली ना चाहते हुए भी वैसे ही झुकी रही. उसकी दोनो छातिया नीचे टेबल पर रगड़ रही थी और उसके जिस्म में वासना पूरे ज़ोर पर पहुँच चुकी थी. वो यूँ ही झुकी रही और चंदर उसे पिछे से चोद्ता रहा.

थोड़ी देर बाद चंदर के धक्के एक्दुम तेज़ हो गये और रूपाली समझ गयी के वो झड़ने वाला है. वो अब तक खुद भी 2 बार झाड़ चुकी और तीसरी बार झड़ने को तैय्यार थी. चंदर ने किसी पागल सांड़ की तरह धक्के मारने शुरू कर दिए. उसका पूरा लंड रूपाली की चूत से निकलता और फिर पूरा अंदर समा जाता. बेसमेंट में ठप ठप की आवाज़ें गूँज रही थी.

"आआआहह " की आवाज़ के साथ चंदर ने एक ज़ोर से धक्का मारा और रूपाली की चूत से तीसरी बार पानी बह निकला. ठीक उसी पल चंदर ने अपना लंड बाहर निकाला और झुकी हुई रूपाली की गान्ड पर अपना पानी गिरने लगा. रूपाली की आँखें बंद हो चली थी. उसे सिर्फ़ नीचे अपनी चूत से बहता पानी और उपेर गान्ड पर गिर रहा चंदर का पानी महसूस हो रहा था. उसे लगा जैसे कई दिन के बीमार को दवाई मिल गयी हो. उसका पूरा जिस्म ढीला पड़ चुका था.

जब वासना का ज़ोर थमा और रूपाली का जिस्म शांत पड़ा तो वो टेबल से उठकर सीधी हुई और अपनी नाइटी को ठीक किया. बेसमेंट में नज़र घुमाई तो वहाँ कोई नही था. तभी उसे सीढ़ियाँ चढ़ता चंदर नज़र आया. वो उसे छोड़कर उसी खामोशी से चला गया जैसे आया था

रूपाली वापिस अपने कमरे में पहुँची. सर पर लगी चोट के कारण अब भी उसके सर में दर्द हो रहा था. अभी अभी बस्मेंट में जो हुआ था उसके बारे में कुच्छ सोचने की हिम्मत उसमें नही थी. कमरे में पहुँचकर वो सीधा बिस्तर पर गिरी और धीरे धीरे नींद के आगोश में चली गयी.

सुबह आँख खुली तो सर अब भी भारी था. उसने उठकर शीशे में अपने आपको देखा तो सर पर जहाँ चोट लगी थी वहाँ एक नीला निशान पड़ गया था. अच्छी बात ये थी के निशान उसके माथे पर उपर की और पड़ा था. अगर रूपाली अपने बाल हल्के से आगे को कर लेती तो किसी को वो निशान नज़र ना आता. रूपाली ने ऐसा ही किया. बाल हल्के से आगे किए और अपने कमरे से उतरकर नीचे आई.

बिंदिया उसे बड़े कमरे में ही मिली.

"कैसा रहा?" उसने बिंदिया से पुचछा

"मुश्किल नही था. हल्का सा इशारा किया मैने और वही हुआ जो आपने चाहा था" बिंदिया मुस्कुराते हुए बोली

"बाद में बताना मुझे" रूपाली ने कहा "एक चाय लाकर दे और तेज कहाँ है?"

"वो तो सुबह सुबह ही कहीं निकल गये" बिंदिया ने कहा और किचन की तरफ चाय लेने निकल पड़ी.

रूपाली अभी सोच ही रही थी के क्या करे के तभी फोन की घंटी बजी. उसने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से ख़ान की आवाज़ आई.

"आपको पोलीस स्टेशन आना होगा मॅ'म" ख़ान कह रहा था "मैं जानता हूँ के आपके घर की औरतें पोलीस स्टेशन्स में नही जाया करती पर और कोई चारा नही है मेरे पास. कुच्छ ज़रूरी काम है"

"ठीक है" रूपाली उससे बहेस करने के मूड में बिल्कुल नही थी. उसने ख़ान से कहा के वो अभी पोलीस स्टेशन आ रही है और फोन रख दिया. वैसे भी उसके पास करने को कुच्छ ख़ास नही था.

तकरीबन 2 घंटे बाद रूपाली पोलीस स्टेशन में दाखिल हुई.

"कहिए" उसने ख़ान के सामने रखी हुई चेर पर बैठते हुए पुचछा

ख़ान उसे देखकर अपने उसे पोलिसेया अंदाज़ में मुस्कुराया

"कैसी हैं आप?" उसने ऐसे पुचछा जैसे रूपाली पर बहुत बड़ा एहसान कर रहा हो

"ज़िंदा हू" रूपाली ने लंबी साँस लेते हुए कहा "काम क्या है ये कहिए"

"वो क्या है मॅ'म के आपकी हवेली से अगर कुच्छ मिले तो उसकी ज़िम्मेदारी भी तो आपकी ही हुई ना इसलिए याद किया था मैने" ख़ान ने कहा

"मतलब? ज़िम्मेदारी?" रूपाली को उसकी बात समझ नही आई

"आपकी हवेली से मिली लाश के बारे में बात कर रहा हूँ. लावारिस पड़ी है बाहर आंब्युलेन्स में. कोई नही है जलाने या दफ़नाने वाला तो मैने सोचा के लावारिस समझके आग देने से पहले मैं आपसे पुच्छ लूँ" ख़ान ने सामने रखे पेपरवेट को घूमते हुए कहा

"मुझसे पुच्छना क्यूँ ज़रूरी समझा?" रूपाली को गुस्सा आ रहा था के इस बात पर ख़ान ने उसे इतनी दूर बुलाया है

"अब आपकी हवेली से मिली है तो ये भी तो हो सकता है के आपके किसी रिश्तेदार की हो इसलिए" ख़ान ने कहा

रूपाली गुस्से में उठ खड़ी हुई

"आपको लाश के साथ जो करना है करिए और आइन्दा ऐसी फ़िज़ूल बात के लिए हमें तकलीफ़ ना दीजिएगा"

"लाश कहाँ बची मॅ'म. कुच्छ हड्डियाँ हैं बस" रूपाली जाने के लिए मूडी ही थी के ख़ान फिर बोला "मुझे जो करना है वो तो मैं कर ही लूँगा पर उसके लिए इस पेपर पर आपके साइन चाहिए क्यूंकी लाश आपकी प्रॉपर्टी से बरामद हुई है"

ख़ान ने एक पेपर रूपाली की और सरकाया. रूपाली ने पेन उठाकर ख़ान की बताई हुई जगह पर साइन कर दिए

"बैठिए" ख़ान ने उसे फिर बैठने को कहा "आपने कुच्छ पुच्छना भी है"

"क्या पुच्छना है?"रूपाली ने खड़े खड़े ही पुचछा

"बैठ तो जाइए" ख़ान ने ज़ोर देकर कहा तो रूपाली बैठ गयी

"कुच्छ रिपोर्ट्स वगेरह कराई थी मैने. डीयेने वगेरह मॅच कराया. आपको जानकार खुशी होगी के लाश कामिनी की नही है" ख़ान ने कहा

रूपाली को दिल ही दिल में एक आराम सा मिला. उसे ये डर अंदर अंदर ही खा रहा था के कहीं हवेली में मिली लाश कामिनी की तो नही.

"दो बातें" उसने ख़ान से कहा "पहली तो ये के मुझे पता है के वो कामिनी की नही है. और दूसरी ये के आपको ये क्यूँ लगा के वो लाश कामिनी की हो सकती है?

"अब कोई लापता हो जाए तो सारे पहलू सोचने पड़ते हैं ना" ख़ान भी अब काफ़ी सीरीयस अंदाज़ में बोल रहा था

"मेरी ननद लापता नही है" रूपाली ने बड़े आराम से कहा

"अच्छा तो कहाँ है वो?" ख़ान ने कहा "विदेश नही गयी ये मैं जानता हूँ"

रूपाली ने कोई जवाब नही दिया. कुच्छ देर तक ना वो बोली और ना ख़ान

"अच्छा खेर ये बात छ्चोड़िए. जब आपके पति का खून हुआ था उस वक़्त आप कहाँ थी?" ख़ान ने थोड़ी देर बाद दूसरा सवाल किया

"क्या मतलब?" रूपाली ने हैरत से पुचछा "हवेली में और कहाँ"

"इस बात का कोई गवाह है आपके पास?" ख़ान ने फिर पुचछा

"ठाकुर साहब" रूपाली ने कहना शुरू ही किया था के ख़ान बीच में बोल पड़ा

"जो की ज़िंदा हैं या मर गये समझ नही आता. जबसे आक्सिडेंट हुआ है वो तो होश में ही नही आए" ख़ान ने ताना सा मारते हुए पुचछा

"मेरी सास" रूपाली ने अपनी सास का नाम लिया

"जो मर चुकी हैं" ख़ान ने फिर ताना सा मारा

"मेरी ननद" रूपाली ने तीसरा नाम लिया

"कामिनी जो कहाँ है ना आपको पता ना मुझे" ख़ान ने ये बात भी काट दी

"घर के नौकर" रूपाली के पास ये आखरी नाम था

"बात कर ली मैने उनसे भी. उनमें से किसी ने भी आपकी उस वक़्त हवेली में नही देखा था" ख़ान के पास जैसे इस बात का भी जवाब था

"क्यूंकी उस वक़्त मैं अपने कमरे में थी. मैं उन दीनो ज़्यादा वक़्त अपने कमरे के पूजा घर में ही बिताया करती थी" रूपाली जैसे लगभग चीख पड़ी

उसकी ये बात सुनकर ख़ान हस्ने लगा. जैसे रूपाली ने कोई जोक सुनाया हो

तभी पोलीस स्टेशन का दरवाज़ा ज़ोर से खुला और थाने में बैठे 3 कॉन्स्टेबल्स और एक हवलदार उठकर खड़े हो गये, जैसे किसी बहुत बड़े आदमी के आने पर नौकर उसकी इज़्ज़त में उठ खड़े होते हैं. रूपाली ने पलटकर देखा. दरवाज़े पर तेज खड़ा था. उसका चेहरा गुस्से में लाल हो रहा था.

"आप बाहर जाइए भाभी" उसने रूपाली से कहा

"एक मिनिट" रूपाली जाने ही लगी थी के ख़ान बोल पड़ा "मुझे इनसे कुच्छ और सवाल पुच्छने हैं"

उसकी ये बात सुनकर तेज उसकी तरफ ऐसे बढ़ा जैसे शेर अपने शिकार पर लपकता है. ख़ान भी उसकी इस अचानक हरकत से एक कदम पिछे को हो गया

"तुझे जो बात करनी है मुझसे कर" तेज उसके बिल्कुल सामने आ खड़ा हुआ "साले 2 कौड़ी के पोलिसेवाले, तेरी हिम्मत कैसी हुई हमारे घर की औरत को पोलीस स्टेशन बुलाने की"

"यहाँ किससे क्या पूछना है और किसे बुलाना है ये फ़ैसला मैं करूँगा" ख़ान भी अब संभाल चुका था और उसकी आवाज़ भी ऊँची हो गयी थी "ये मेरा इलाक़ा है"

"अपने चारों तरफ देख ख़ान" तेज ने खड़े हुए कॉन्स्टेबल्स की तरफ इशारा किया "मेरे कदम रखते ही ये सारे उठ खड़े हुए. ये रुतबा है हमारा. और जब तक मैं ना कह दूँ ये बैठेंगे नही. अब सोच के इलाक़ा किसका है"

रूपाली ने तेज को बहुत दिन बाद इस रूप में देखा था. आज उसे 10 साल पुराना वो तेज नज़र आ रहा था जिसके सामने बोलने की हिम्मत खुद उसने पिता ठाकुर शौर्या सिंग भी नही करते थे

"बैठ जाओ" ख़ान खड़े हुए कॉन्स्टेबल्स और हवलदार पर चिल्लाया पर कोई नही बैठा. उसने दूसरी बार और फिर तीसरी बार हुकुम दिया पर सब ऐसे ही खड़े रहे.

तेज हस पड़ा

"चलिए भाभी जी" उसने रूपाली से कहा

रूपाली दरवाज़े से बाहर निकली. तेज उसके पिछे ही था.

"मैं जानता हूँ" पीछे खड़ा ख़ान फिर गुस्से में बोला "ये पोलिसेवाले जिन्हें तुमने हवेली का कुत्ता बना रखा था इनके दम पर ही तुमने अपने भाई के खून को ढका है ना? मैं जानता हूँ सालों के ये काम तुम्हारा ही है और तुम्हारी गर्दन दबाके रहूँगा मैं"

तब तक रूपाली और तेज पोलीस स्टेशन से बाहर आ चुके थे. ख़ान की ये बात सुन तेज एक बार फिर अंदर जाने को मुड़ा. वो जानती थी के इस बार वो अंदर गया तो ख़ान पर हाथ उठाएगा इसलिए उसने फ़ौरन तेज का हाथ पकड़कर रोका और उसे गर्दन हिलाकर मना किया. उसके मना करने पर तेज भी रुक गया और दोनो सामने खड़ी रूपाली की कार की तरफ बढ़े.

"आप आगे चलिए" रूपाली के कार में बैठने पर तेज ने कहा "मैं अपनी कार में पिछे आ रहा हूँ"
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06-21-2018, 12:16 PM,
#33
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
सेक्सी हवेली का सच --20

हेलो दोस्तो अब आयेज की कहानी आपके लिए .......

रूपाली और तेज दोनो ही हवेली पहुँचे.

"आपको क्या ज़रूरत थी यूँ पोलीस स्टेशन जाने की?" तेज ने रूपाली से हवेली में घुसते ही पुचछा

रूपाली ने कोई जवाब नही दिया

"वो पोलीस वाला अपने आपको बहुत बड़ा शेर समझता है" तेज अब भी गुस्से में जल रहा था "1 दिन में हेकड़ी निकाल दूँगा. आज तक किसी की हिम्मत नही हुई के इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी करे"

बोलकर तेज अपने कमरे की और बढ़ा ही था के रूपाली की आवाज़ सुनकर रुक गया

"कौन सी शान की बात कर रहे हो ठाकुर तएजवीर सिंग"

तेज रूपाली की तरफ पलटा

"इस हवेली में अब उल्लू भी नही बोलते. लोग इस तरफ आने से भी कतराते हैं. वो तो फिर गैर हैं छ्चोड़ो, यहाँ तो अपने भी हवेली में कदम नही रखते. किस शान की बात कर रहे हैं आप?" रूपाली ने पुचछा तो इस बार तेज के पास कोई जवाब नही था.

"ज़रा बाहर निकालकर नज़र डालिए तएजवीर जी. इस हवेली पर अब मनहूसियत बरसती है. बाहर से देखने से ऐसा लगता है जैसे यहाँ बरसो से कोई नही रहा. इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी तो गुज़रते वक़्त ने कर दी है वो पोलीस वाला क्या करेगा." रूपाली बोलती रही और तेज चुप खड़ा उसकी तरफ देखता रहा

"हमारी ज़मीन हमारा ही अपना कोई हमारी नज़र के सामने से चुरा ले गया. जो रह गयी वो बंजर पड़ी हैं. बची हुई जो दौलत है वो ख़तम हो रही है. इस हवेली के मलिक हॉस्पिटल में पड़े हैं. आपके भाई को बीच सड़क किसी ने गोली मार दी थी. आपने नाम पर लोग हस्ते हैं. और आप हवेली की शान की बात कर रहे हैं?" रूपाली ने जैसे अपने दिल में जमा सारा ज़हेर तेज पर उगल दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली.

"और हां" जाते जाते वो फिर पलटी "जब घर के आदमियों का कहीं आता पता ना हो तो घर की औरतों को ही पोलीस स्टेशन जाना पड़ता है"

रूपाली ने एक आखरी ताना सा मारा और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. अपने पिछे उसे तेज गुस्से में पेर पटकता हुआ हवेली के बाहर जाता हुआ दिखाई दिया.

कमरे में पहुँच कर रूपाली के आँसू निकल पड़े. उसने जो कुच्छ तेज से कहा था वो गुस्से में था पर इन बातों ने उसके खुद के ज़ख़्म हरे कर दिए थे. कुच्छ देर तक यूँ ही आँसू बहाने के बाद उसने सामने रखा फोन उठाया और देवधर का नंबर मिलाया

"हां रूपाली जी कहिए" दूसरी तरफ से देवधर की आवाज़ आई

रूपाली को वो ज़माना याद आ गया जब देवधर जैसे उसे छ्होटी ठकुराइन के नाम से बुलाते थे. आज उसकी इतनी औकात हो गयी थी के उसे नाम से बुला रहा था. वो एक ठंडी आह भरकर रह गयी. दिल में जानती थी के ये ग़लती देवधर की नही बल्कि ठाकुर खानदान की ही है. जब अपने ही सिक्के खोटे हों तो कोई क्या करे.

"मैने आपसे कहा था ने के आने से एक दिन पहले फोन करूँगी." रूपाली ने जवाब दिया

"तो आप कल आ रही हैं?" देवधर उसकी बात का मतलब समझ गया

"हां" रूपाली ने जवाब दिया "कल सुबह यहाँ से निकलेंगे तो दोपहर तक आपके पास पहुँच जाएँगे."

"जैसा आप ठीक समझें" देवधर ने कहा "वैसे आप एक बार बता देती के किस बारे में बात करी है तो मैं पेपर्स वगेरह तैय्यार रखता"

"ये आकर ही बताती हूँ" कहकर रूपाली ने फोन काट दिया. अपनी हालत ठीक की और फिर नीचे आई.

पायल बड़े कमरे में बैठी टीवी देख रही थी.

"तेरी माँ कहाँ है?" रूपाली ने पुचछा

"जी वो नहाने गयी हैं" पायल ने टीवी की आवाज़ धीरे करते हुए कहा

"और चंदर?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने कंधे हिला दिए

"पता नही"

रूपाली हवेली से निकलकर बिंदिया के कमरे की तरफ बढ़ी. वो कमरे की नज़दीक पहुँची ही थी के बिंदिया के कमरे का दरवाजा खुला और वो माथे से पसीना साफ करती हुई बाहर निकली. पीछे चंदर था. रूपाली फ़ौरन समझ गयी के वो क्या करके आ रहे हैं पर कुच्छ नही बोली.

"अगर तू नहा ली हो तो मेरे कमरे में आ. कुच्छ बात करनी है" रूपाली ने कहा तो बिंदिया ने हां में सर हिला दिया.

रूपाली चंदर की तरफ मूडी

"और तुझे मैने कहा था सफाई के लिए. उस तरफ देख" रूपाली ने हवेली के कॉंपाउंड में उस तरफ इशारा किया जहाँ अब भी कुच्छ झाड़ियाँ थी. उसके चेहरे पर अब भी हल्के गुस्से के भाव थे. चंदर ने फ़ौरन इशारे से कहा के वो अभी सफाई शुरू कर देगा.

रूपाली अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. कल रात के बाद उसने अब पहली बार चंदर को देखा था. जिस अंदाज़ से चंदर ने उसकी तरफ देखा था उससे रूपाली सोचने पर मजबूर हो गयी थी. उसमें ऐसा कोई अंदाज़ नही था जैसा की उसे चोदने के बाद होना चाहिए था. चंदर ने अब भी उसे उसी इज़्ज़त से देखा था जैसे पहले देखा था और अब भी वैसे ही उसका हुकुम माना था जैसे पहले मानता था.

थोड़ी देर बाद बिंदिया और रूपाली दोनो रूपाली के कमरे में बैठे थे और रूपाली गुस्से से बिंदिया को घूर रही थी.

"अपनी रंग रलियान ज़रा कम कर. दिन में इस वक़्त? वो भी तब जब तेरी बेटी यहीं बैठी थी? अगर तेज देख लेते तो काट देते तुझे और उस चंदर को भी"

माफ़ कर दीजिए मालकिन" बिंदिया ने सर झुकाए कहा "अब नही होगा"

रूपाली वहीं उसके सामने बिस्तर पर बैठ गयी

"कल रात का बता. क्या लगता है तुझे? खुश था चंदर तेरे साथ बिस्तर पर?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा तो वो मुस्कुरा उठी

"खुश? मालकिन कल पूरी रात सोने नही दिया मुझे" बिंदिया बोली

"तूने मनाया कैसे तेज को?" रूपाली ने पुचछा

"ज़रूरत ही कहाँ पड़ी मनाने की. वो तो पहले ही तैय्यार बैठे थे" बिंदिया ने जब देखा के रूपाली का गुस्सा थोड़ा कम हो रहा है तो वो भी खुलकर बात करने लगी

"मतलब?" रूपाली ने पुचछा

"मतलब ये के रात अपने कमरे में जाने से पहले उन्होने मुझसे कहा के एक कप चाय उनके कमरे में ले आओं. मैं उसी वक़्त इस समझ गयी की मुझे कुच्छ करने की ज़रूरत नही और मुझे कमरे में चाय के बहाने क्यूँ बुलाया जा रहा है. मैने चाय बनाई और लेकर उनके पास जाने से पहले पायल के कमरे में पहुँची. वहाँ जाकर में अपनी चोली उतारी और पायल की पहेन ली"

"पायल की चोली? वो क्यूँ?" रूपाली ने हैरत से पुचछा

"क्यूंकी पायल की छातिया मुझसे काफ़ी बड़ी हैं. कभी कभी तो मुझे खुद को हैरानी होती है. ज़रा सी उमर में ही उसकी छातिया मुझसे दुगुनी हो गयी हैं" बिंदिया ने कहा

"तू अपनी ही बेटी की छातिया क्यूँ देखती है?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा

"माँ हून मालकिन" बिंदिया ने कहा "जवान बेटी घर में हो तो सब देखना पड़ता है. और वैसे भी उस ज़रा सी बच्ची के जिस्म पर सबसे पहले उसकी बड़ी बड़ी छातिया ही दिखाई देती हैं"

रूपाली का दिल किया के उसको बताए के जिसे वो ज़रा सी बच्ची कह रही है उसके जिस्म में माँ से भी ज़्यादा आग है और एक लंड ले भी चुकी है.

"अच्छा वो छ्चोड़" रूपाली बोली "तूने पायल की चोली क्यूँ पहनी?"

"मालकिन उसकी चोली मुझे ढीली आती है क्यूंकी मेरी छातिया इतनी नही" बिंदिया ने अपनी चुचियों की तरफ देखते हुए कहा. रूपाली ने भी अपनी नज़र उधर ही डाली

"उसकी छातिया बड़ी होने की वजह से अगर मैं उसकी चोली पहेन लूँ तो सामने से इतनी ढीली हो जाती है के हल्का सा झुकते ही सारा नज़ारा सामने आ जाता है" बिंदिया ने समझाते हुए कहा

"ओह अब समझी. फिर?"

"फिर मैं चाय लेकर उनके कमरे में पहुँची और कप बिल्कुल उनके सामने रखा. कप रखते हुए मैं झुकी और बस. मेरी चूचियाँ आपके देवर के सामने थी" बिंदिया बोली

"तेज ने देखी?" रूपाली अब बेझिझक सवाल पुच्छ रही थी.

"देखी? हाथ बढ़ाकर सीधा एक चूची पकड़ ली." बिंदिया हस्ते हुए बोली

रूपाली दिल ही दिल में तेज की हिम्मत की दाद दिए बिना ना रह सकी

"पकड़ ली? तूने क्या कहा?" उसने बिंदिया से पुचछा

"मैं क्या कहती. मैं तो पहली ही तैय्यार थी. चूची पकड़कर छ्होटे ठाकुर ने हल्का सा दबाव डाला और कहा के मेरी चूचियाँ काफ़ी सख़्त हैं. इस उम्र में ज़रा भी ढीली नही हैं. अब बारी थी मेरी तरफ से इशारे की."

रूपाली चुप चाप बैठी सुन रही थी

"मैं मुस्कुराइ और कहा के छ्होटे ठाकुर चोली के उपेर से हाथ लगाके कहाँ पता चलता है के चूचियाँ सख़्त हैं या उमर के साथ ढीली पड़ गयी हैं" बिंदिया ने बात जारी रखी "इतना इशारा काफ़ी था. वो उठे और चोली मेरे जिस्म से ऐसे अलग की जैसे फाड़ रहे हों. जब मैं उपेर से नंगी हो गयी तो उन्होने मेरी चूचियों पर हाथ फेरा और कहा के मैं सही था. तुम्हारी चूचियाँ सही में काफ़ी सख़्त हैं और हाथ से दबाने लगा. तब तक मैं खुद भी गरम हो चुकी थी. मैं उनके बाल सहलाने लगी. वो कभी मेरी चूचियो को दबाते तो कभी मेरे निपल्स को सहलाते. थोड़ी देर तक यही खेल चलता रहा. जब मुझसे और बर्दाश्त ना हुआ तो मैने उनका सर आगे को खींचा और उनका मुँह अपनी छाती पर दबा दिया. मेरा एक निपल सीधा उनके मुँह में गया और वो ऐसे चूसने लगे जैसे आज के बाद कोई औरत नंगी देखने को नही मिलेगी."

"तुझे मज़ा आया?"रूपाली ने पुचछा

"मेरे निपल्स मेरे शरीर का सबसे कमज़ोर हिस्सा हैं मालकिन. मुझे सबसे ज़्यादा मज़ा निपल्स चुसवाने में आता है " बिंदिया ने फिर एक बार अपनी चूचियों पर नज़र डाली "पर मेरी किस्मत के ना तो मेरा मर्द ये बात समझ सका और ना ही चंदर. दोनो ही मेरी चूचियों पर कुच्छ ख़ास ध्यान नही देते थे इसलिए जब छ्होटे ठाकुर ने तसल्ली के साथ मेरे निपल्स को रगड़ा तो मैं वही पिघल गयी. मैने खुद अपना ल़हेंगा खोलकर नीचे गिरा दिया और उनके सामने नंगी हो गयी. उनके हाथ मेरे पुर जिस्म पर फिरने लगे और जाकर मेरी गांद पर रुक गये. उन्होने मेरी आँखों में देखते हुए निपल मुँह से निकाला और बोले के उन्हें सबसे ज़्यादा मेरी गांद पसंद है और ये कहते हुए गांद को हल्के से दबा दिया."

"फिर?"रूपाली इतना ही कह सकी

"मैं समझ गयी के आज मेरी चूत के साथ साथ गांद का भी नंबर लगेगा. मैं मुस्कुराइ और बोली के ठाकुर साहब मैं तो पूरी आपकी हूँ पर पहले आपको तैय्यार तो कर दूँ. ये कहते हुए मैं उनके सामने बैठ गयी और उनका पाजामा नीचे सरका कर उनका लंड बाहर निकाला" बिंदिया ने कहा

कैसा था, ये बात रूपाली के मुँह से निकलते निकलते रह गयी. उसे फ़ौरन ये एहसास हुआ के वो अपने देवर के बारे में बात कर रही है और बिंदिया से इस तरह का कोई सवाल ग़लत साबित हो सकता है. दूसरा उसे खुद ये हैरत हुई के वो तेज के लंड के बारे में जानना चाहती है. उसने बात फ़ौरन अपने दिमाग़ से झटकी.

"थोड़ी ही देर बाद मैं नंगी उनके सामने बैठी थी और लंड मेरे मुँह में था" बिंदया ने कहा तो रूपाली मन मसोस कर रह गयी. वो उम्मीद कर रही थी के बिंदिया खुद ये कहेगी के उसे तेज का लंड कैसा लगा

"मेरा इरादा तो ये था के बिस्तर पर मैं जो जानती हूँ वो करूँ ताकि छ्होटे ठाकुर को खुश कर सकूँ पर ऐसा हो ना सका. थोड़ी देर बाद उन्होने लंड मेरे मुँह से निकाला और मुझे बिस्तर पर आने को कहा. मैं मुस्कुराते हुए बिस्तर पर आई और उनके सामने लेटकर अपनी टांगे फेला दी. पर उनका इरादा कुच्छ और ही था. उन्होने मेरी टांगे फिर बंद की और मुझे घूमकर उल्टा कर दिया" बिंदिया ने कहा

"मतलब तेरी......" रूपाली ने बात अधूरी छ्चोड़ दी

"हां" बिंदिया समझ गयी के वो क्या कहना चाह रही थी "मैं समझ गयी के पहला नंबर मेरी गांद का लगने वाला है और ऐसा ही हुआ. तेज ने अपने पुर लंड पर तेल लगा लिया और थोड़ा मेरी गांद पर. उनकी इस हरकत से मैं समझ गयी के वो पहले ही किसी औरत की गांद मार चुके हैं"

"फिर?" खुद रूपाली भी अब गरम हो रही थी

"फिर वो आकर मेरे उपेर आकर बैठ गये और दोनो हाथों से मेरी गांद को फेला दिया. और फिर लंड मेरी गांद पर दबाया और बिना रुके धीरे धीरे पूरा लंड अंदर घुसा दिया. मैं दर्द से कराह उठी" बिंदिया ने कहा

"दर्द? पर तू तो पहले भी ये कर चुकी है" रूपाली ने हैरान होते पुचछा

"तो क्या हुआ मालकिन" बिंदिया ने भी उसी अंदाज़ में पुचछा "कोई चूत थोड़े ही है के पहली बार में ही दर्द हो. गांद में लंड घुसेगा तो दर्द तो होगा ही. चाहे पहली बार हो या बार बार."

"अच्छा फिर ?" रूपाली ने उसे आयेज बताने को कहा

"छ्होटे ठाकुर भी बिस्तर पर खिलाड़ी थे. गांद में लंड जाते ही समझ गये की मैं आगे से क्या पिछे से भी कुँवारी नही हूँ. धीरे से मेरे कान में बोले के अच्छा तो यहाँ भी कोई हमसे पहले आके जा चुका है. मैं कहा के ठाकुर साहब ये कोई सड़क नही है जहाँ से लोग आए जाएँ तो सड़क खराब हो जाए. यहाँ तो कितने भी आकर चले जाएँ कोई फरक नही पड़ता. जगह वैसे की वैसी ही रहती है, थोड़ी देर बाद वो मेरे उपेर लेते थे और लंड मेरे अंदर बाहर हो रहा था. मुझे भी मज़ा आ रहा था इसलिए मैं भी पूरा साथ दे रही थी पर उल्टी लेटी होने की वजह से मैं ज़्यादा कुच्छ कर नही पा रही थी और ये बात ठाकुर भी समझ गये. थोड़ी देर ऐसे ही गांद मारने के बाद उन्होने मुझे उपेर आकर लंड गांद में लेने को कहा. फिर वो सीधा लेट गये और मैं उनके उपेर बैठ गयी. लंड एक बार फिर गांद में घुस गया. फिर मैं कभी आराम से हिलती तो कभी तेज़ी से उपेर नीचे होती. कभी अपनी चूचियाँ खुद दबाती तो कभी उनके मुँह में घुसा देती. बस ये मानिए के मैने तब तक हार नही मानी जब तक के मैं खुद भी झाड़ गयी और ठाकुर का पानी अपनी गांद में ना निकाल लिया. उपेर बैठकर सब मुझे करना था इसलिए मैं ख्याल रखा के कोई कमी नई रहने दूं और ठाकुर को खुश कर दूं" बिंदिया मुस्कुराते हुए ऐसे बोली जैसे कोई जुंग जीत कर आई हो

"शाबाश" रूपाली ने कहा "मतलब पूरी रात चूत और गांद ली गयी तेरी?"

"कहाँ मालकिन" बिंदिया ने कहा "ठाकुर ने चूत की तरफ तो ध्यान ही नही दिया. पूरी रात बस मेरी गांद में ही मारते रहे. कभी लिटाके मारी, तो कभी उपेर बैठके. कभी खड़ी करके मारी तो कभी झुकाके."

"पूरी रात?" रूपाली ने फिर हैरानी से कहा. "तूने कहा नही आगे से करने को?"

"मैं तो बस चूत में लंड लेने का सोचती ही रही पर कहा नही क्यूंकी मैं ठाकुर को जो वो चाहें बस वो करने देना चाहती थी." बिंदिया बोली

"फिर?" रूपाली ने पुचछा

"चंदर भी रात की ज़िद कर रहा था और मेरा भी चूत में लंड लेने का दिल हो रहा था इसलिए मैं उसे आने से पहले इशारा कर आई थी के रात को हवेली के पिछे जो तहखाना है वहाँ आ जाए" बिंदिया ने कहा तो रूपाली चौंक पड़ी

"क्या? बेसमेंट में? क्यूँ?"

"मालकिन अब ठाकुर के पास से उठकर अपने कमरे की तरफ जाती तो उन्हें शक हो सकता था क्यूंकी उनके कमरे की खिड़की से मेरा कमरा सॉफ नज़र आता है. ये मैने पहले ही देख लिया था इसलिए मैने चंदर को कह दिया था के अब से हर रात मुझे वहीं मिला करे क्यूंकी मैं रात को पायल के कमरे में सोया करूँगी और बाहर नही आ सकूँगी"
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06-21-2018, 12:17 PM,
#34
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
बिंदिया की ये बात सुनकर रूपाली को कल रात की कहानी समझ आ गयी और ये भी समझ आ गया के चंदर के बर्ताव में कोई बदलाव क्यूँ नही था. उसे तो पता भी नही था के बेसमेंट के अंधेरे में उसने बिंदिया की नही रूपाली की चूत मारी थी.

"तो फिर तू गयी?" रूपाली पक्का करना चाहती थी के बिंदिया ने वहाँ आकर उसे चूड़ते हुए देखा तो नही

"कहाँ मालकिन" बिंदिया हस्ते हुए बोली "गांद में से लंड निकलता तो जाती ना"

"और चंदर?" रूपाली ने कहा

"सुबह इशारा कर रहा था के रात को बेसमेंट में मज़ा नही आया. अब वहाँ नही करेंगे. पता नही क्या कह रहा था. मैं तो वहाँ गयी ही नही तो मज़ा कैसा. पक्का कोई सपना देखा होगा और बेवकूफ़ उसे ही सच समझ बैठा" बिंदिया ने कहा तो रूपाली की जान में जान आ गयी.

वो रात गुज़ारनी रूपाली के लिए जैसे मौत हो गयी. उसके जिस्म में आग लगी हुई थी. बिंदिया के साथ की गरम बातों ने उसकी गर्मी को और बढ़ा दिया था. बिस्तर पर पड़े पड़े वो काफ़ी देर तक करवट बदलती रही और जब सुकून नही मिला तो उसने अपनी नाइटी को उपेर खींचा और चूत की आग को अपनी उंगलियों से ठंडी करने की बेकार कोशिश करने लगी.

तेज शाम ढले घर वापिस आ गया था और बिंदिया आज रात भी उसके कमरे में थी. रूपाली उस दिन हॉस्पिटल नही जा पाई थी पर फोन पर भूषण से बात हुई थी. ठाकुर की हालत अब भी वैसी ही थी. बिस्तर पर पड़े पड़े ठाकुर के दिमाग़ में सिर्फ़ ठाकुर का लंड घूम रहा था. जब उंगलियों से बात नही बनी तो वो परेशान होकर उठी और तेज के कमरे के सामने पहुँची. कान लगाकर सुना तो अंदर से बिंदिया के आ ऊ की आवज़ें आ रही थी. रूपाली थोड़ी देर तक वहीं खड़ी सुनती रही. अंदर से कभी बिंदिया के "धीरे ठाकुर साहब" तो कभी "आराम से करिए ना" की आवाज़ें आ रही थी. उसकी आवाज़ सुनकर रूपाली मुस्कुरा उठी. लगता है तेज उसके लिए बिस्तर पर काफ़ी भारी पड़ रहा था.

सुबह उठी तो रूपाली का पूरा जिस्म फिर से दुख रहा था. गयी पूरी रात वो बिस्तर पर परेशान करवट बदलती रही और ढंग से सो नही पाई. दिमाग़ में कयि बार उठकर पायल के पास जाने का ख्याल आया पर फिर उसने अपना इरादा बदल दिया और पायल को सुकून से सोने दिया.

उसने आज देवधर से मिलने जाना था. गाओं से शहेर तक जाने में उसे कम से कम 4 घंटे लगने वाले थे तो वो सुबह सवेरे ही उठकर निकल गयी. दोपहर के तकरीबन 11 बजे वो देवधर के ऑफीस में बैठी थी.

देवधर पटेल कोई 45 साल का एक मोटा आदमी थी. सर से आधे बॉल उड़ चुके थे. उसका पूरा खानदान वकील ही था और शुरू से वो ही ठाकुर का खानदानी वकील था. उससे पहले उसका बाप ये काम संभाला करता था और वकील बनने के बाद देवधर ने अपने बाप की जगह ले ली.

उसने रूपाली को फ़ौरन बैठाया और अपनी सेक्रेटरी को किसी को अंदर ना आने देने को कहकर रूपाली के सामने आ बैठा.

"कहिए छ्होटी ठकुराइन" उसने रूपाली से कहा

रूपाली उम्मीद कर रही थी के वो उसे नाम से बुलाएगा पर देवधर ने ऐसा नही किया.

"सीधे मतलब की बात पे आती हूँ" रूपाली ने कहा "मैं ठाकुर साहब की वसीयत के बारे में जानना चाहती हूँ"

"मुझे लगा ही था के आप इस बारे में ही बात करेंगी."देवधर मुस्कुराते हुए बोला "असल में वसीयत ठाकुर साहब की नही आपके पति की है, ठाकुर पुरुषोत्तम सिंग की"

रूपाली ये बात ख़ान के मुँह से पहले ही सुन चुकी थी

"मैं जानता हूँ के आप ये बात पहले से जानती हैं इसलिए इसमें आपके लिए हैरानी की कोई बात नही"

"आपको कैसे पता?" रूपाली ने पुचछा

"वो ख़ान पहले मेरे पास आया था. ज़ोर ज़बरदस्ती करके सब उगलवा गया. मैं जानता था के वो आपसे इस बारे में बात करेगा" देवधर ने चोर नज़र से रूपाली की और देखते हुए कहा

"आप एक खानदानी वकील हैं. और आपको पैसे हमारे घर के राज़ पोलीस को बताने के नही मिलते. और अगर आप कहें के एक पोलीस वाला आपसे ज़बरदस्ती सब उगलवा गया तो ये बात कुच्छ हजम नही होती देवधर जी" रूपाली ज़रा गुस्से में बोली

"मैं एक वकील हूँ छ्होटी ठकुराइन. मेरे भी हाथ कई जगह फसे रहते हैं जहाँ हमें पोलीस की मदद लेनी पड़ती है. ऐसी ही कई बातों में मुझे उलझाके सब मालूम कर गया वो कमीना पर मैं माफी चाहता हूँ" देवधर ने नज़र नीची करते हुए कहा

"खैर" रूपाली भी जानती थी के अब इस बात पर बहेस करने से कोई फ़ायदा नही "मतलब की बात पर आते हैं. ये सारी जायदाद मेरी कैसे है?"

"देखिए बात सॉफ है" देवधर कुच्छ काग़ज़ खोलते हुए बोला. एक काग़ज़ का उसने रूपाली की तरफ सरकाया "ये आपके ससुर ठाकुर शौर्या सिंग के पिता की वसीयत है जिसमें उन्होने अपना सब कुच्छ आपके पति के नाम कर दिया था. तब ही जब पुरुषोत्तम सिंग छ्होटे थे."

"पर ख़ान ने तो कुच्छ और ही कहा" रूपाली थोड़ी हैरान हुई "वो तो कह रहा था वसीयत सरिता देवी की थी"

"यहाँ आकर बात थोड़ी टेढ़ी हो जाती है" देवधर ने दूसरा काग़ज़ आगे सरकाया "ये पहली वसीयत है जिसमें सब कुच्छ ठाकुर शौर्या सिंग के भाई ठाकुर गौरव सिंग के नाम किया गया था.

फिर देवधर ने एक दोसरा काग़ज़ आगे सरकाया

"जब ठाकुर गौरव सिंग और उनकी पत्नी की कार आक्सिडेंट में मौत हो गयी और पिछे उनका एकलौता बेटा जय ही रह गया तो ये दूसरी वसीयत बनाई गयी जिसमें सब कुच्छ आपकी सास सरिता देवी के नाम किया गया था."

फिर एक चौथा काग़ज़ आगे किया

"और ये आपके पति की वसीयत है जो उन्होने मरने से कुच्छ दिन पहले बनाई थी. इसमें सब कुच्छ आपके नाम किया गया है."

रूपाली परेशान सी अपने सामने रखे पेपर्स को देखने लगी

"तो अब देखा जाए तो पहले ये जायदाद ठाकुर शौर्या सिंग के भाई के पास गयी, फिर उनकी पत्नी के पास, फिर उनके बड़े बेटे के पास और अब उनकी बहू के पास. उनके पास तो कभी आई ही नही."

रूपाली थोड़ी देर खामोश रही

"ये मुझे तब क्यूँ ना बताया गया जब मेरे पति की मौत हुई थी?" उसने देवधर से पुचछा

"आप शायद अपने ससुर को नही जानती. इस इलाक़े में राज था उनका जो कुच्छ हद तक अब भी है. इस इलाक़े के नेता और मिनिस्टर्स भी उनके आगे मुँह नही खोलते और आपके देवर तेज के तो नाम से लोगों की हवा निकल जाती थी. अपनी जान मुझे भी प्यारी थी. मेरी क्या मज़ाल जो मैं उनके हुकुम खिलाफ जाता" देवधर रूपाली की आँखों में देखते हुए बोला

"आपको ठाकुर साहब ने मना किया था?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर ने हां में सर हिला दिया

"इस वसीयत के बारे में किस किसको पता है?" रूपाली ने काग़ज़ उठाते हुए कहा

"अब तो सबको पता है पर आपके पति के मरने के बाद सिर्फ़ ठाकुर साहब को पता था. आपके पति की मौत के बाद जब मैं आपसे मिलने हवेली पहुँचा तो मुझे आपसे मिलने नही दिया गया. आपके पति के मरने के बाद ही इस वसीयत का पता ठाकुर साहब को चला था. उससे पहले सिर्फ़ मैं जानता था के जायदाद आपके नाम हो चुकी है" देवधर ने जवाब दिया.

"एक बात समझ नही आई" रूपाली ने देवधर की और देखते हुए कहा "ठाकुर गौरव सिंग के नाम से जायदाद मेरी सास के नाम पर इसलिए गयी क्यूंकी वो मारे गये. पर मेरी सास के नाम से जायदाद हटाकर मेरी पति के नाम क्यूँ की गयी जो की उस वक़्त सिर्फ़ मुश्किल से 10 साल के थे? और दूसरी बात ये के क्यूँ कभी जायदाद ठाकुर के नाम नही हुई जो की अपने पिता की बड़े बेटे थे?"

देवधर की पास इन सवालों का कोई जवाब नही था

"ये बात तो शायद सिर्फ़ ठाकुर शौर्या सिंग के पिता भी बता सकते थे" देवधर बोला "ठाकुर के नाम जायदाद ना करने की वजह शायद उनका गुस्सा हो सकता था जो हमेशा से ही बड़ा तेज़ था. सिर्फ़ 15 साल की उमर में उन्होने घर के नौकर को गोली मार दी थी जबकि उनके पिता इसके बिल्कुल उल्टा थे. वो एक शांत आदमी थे जो हर किसी से प्यार से बात करते थे. शायद उन्हें ठाकुर शौर्या सिंग के गुस्से का डर था इसलिए उनके नाम कुच्छ नही किया. पर आपकी सास के नाम से जायदाद हटाने की वजह मैं खुद भी नही जानता."

"वसीयत आपने ही बदली थी?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर हस्ने लगा

"मैं तो उस कॉलेज में ही था शायद. वसीयत मेरे पिताजी ने बदली थी"

"और वो कहाँ हैं?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर ने अपनी एक अंगुली आसमान की तरफ उठा दी. रूपाली समझ गयी के देवधर का बाप मार चुका था.

"और फिर मेरे नाम? वो वसीयत तो आपने बदली होगी?" रूपाली के इस सवाल पर देवधर ने हां में सर हिलाया

"मरने से कुच्छ दिन पहले ठाकुर पुरुषोत्तम मेरे पास आए थे. काफ़ी परेशान लग रहे थे. मैने वसीयत बदलने की वजह पुछि तो हॅस्कर कहने लगे के भाई आदमी का सब कुच्छ उसकी बीवी का ही तो होता है"

"तो अगर मैं कोर्ट में पहुँच जाऊं के ये सब मेरा है और बेचना शुरू कर दूँ तो मुझे कोई नही रोक सकता?" रूपाली ने पुचछा

"इतना आसान नही है" देवधर ने कहा "एक ये बात के वसीयत बार बार बदली गयी आपके खिलाफ जा सकती है. कोई भी आपके पति की वसीयत को कोर्ट में चॅलेंज कर सकता है और जब तक कोर्ट का फ़ैसला ना हो जाए, तब तक कुच्छ भी किसी को नही मिलेगा"

"कौन चॅलेंज कर सकता है?" रूपाली बोली

"कोई भी" देवधर ने हाथ फेलाते हुए जवाब दिया "ठाकुर साहब, आपके देवर ठाकुर तएजवीर, सबसे छ्होटे देवर कुलदीप, आपकी ननद कामिनी और सबसे बड़ी परेशानी खड़ी करेगा ठाकुर साहब का भतीजा जय"

"जय?" रूपाली फिर से हैरान हुई

"देखिए जय ने ठाकुर साहब की जायदाद आधी अपने नाम इस लिए कर ली क्यूंकी ठाकुर साहब के नाम पर कभी कुच्छ नही था. सब कुच्छ आपके पति के नाम पर था और ठाकुर साहब ने मुझे आपके पति की वसीयत का ज़िक्र करने से मना किया था. मैने नयी वसीयत के बारे में मुँह नही खोला और इस हिसाब से सब कुच्छ मौत के बाद भी आपके पति के नाम पर था. अब आपके पति को अपने कज़िन जय पर इतना भरोसा था के उन्होने उसे पोवेर ऑफ अटर्नी दे रखी थी जिसका फ़ायदा जय ने उनके मरने के बाद उठाया और धीरे धीरे प्रॉपर्टीस अपने नाम पर करता रहा. पेपर्स में उसने ये लिख दिया के असल मलिक अब ज़िंदा नही है और बिज़्नेस के भले के लिए ये फ़ैसला लिया जाना ज़रूरी है. अब अगर आप कोर्ट पहुँच जाती हैं ये कहते हुए के सब कुच्छ आपका है तो जो कुच्छ जाई ने अपने नाम पर किया था वो सब भी चॅलेंज हो जाएगा. क्यूंकी फिर ये बात उठ जाएगी के पति के मरते ही सब कुच्छ आपका हो गया था तो आपके पति की दी हुई पवर ऑफ अटर्नी भी बेकार हो जाती है. और उसका फ़ायदा उठाकर आपके पति के मरने के बाद उसने जो भी नये पेपर्स बनाए थे वो सब भी बेकार हो जाएँगे. इस हिसाब से सब कुच्छ फिर आपकी झोली में आ गिरेगा और जय सड़क पर आ जाएगा"

देवधर से थोड़ी देर और बात करके रूपाली वापिस हवेली की और चल पड़ी. ख़ान ने जो कुच्छ कहा था उस बात पर देवधर ने सच्चाई की मोहर लगा दी थी. रूपाली की आँखो के आगे दुनिया जैसे घूम रही थी. उसे समझ नही आ रहा था के किस्पर भरोसा करे और किस्पर नही. हर कोई उसे एक अजनबी लग रहा था. पिच्छले सवालों के जवाब मिले नही थे के नये कुच्छ और उठ खड़े हुए.

क्यूँ ठाकुर ने उस तक देवधर को पहुँचने नही दिया. क्यूँ उससे ये बात च्छुपाई गयी? शायद पहले ना बताने की वजह उसका चुप चुप रहना था पर एक बार जब वो ठाकुर के साथ सो चुकी थी तो तब ठाकुर ने उसको कुच्छ क्यूँ नही कहा? दूसरा उसे सब कुच्छ अपनी सास के नाम से हटाकर उसके पति के नाम पर कर देने की बात बहुत अजीब लगी? और पुरुषोत्तम मरने से पहले इतने परेशान क्यूँ थे? क्या उन्हें एहसास हो गया था के उन्हें नुकसान पहुँचाया जा सकता है और अगर हां तो उन्होने रूपाली से इस बात का ज़िक्र क्यूँ नही किया?

अब तक ये बात रूपाली के सामने सॉफ हो चुकी थी की उसकी पति की मौत की वजह ये सारी जायदाद ही थी. पर सवाल ये था के मौत का ज़िम्मेदार कौन था? उसके सामने सबके चेहरे घूमने लगे और उसे हर कोई एक हत्यारा नज़र आने लगा.

"जय ऐसा कर सकता था. सबसे ज़्यादा वजह उसी के पास थी क्यूंकी वो ठाकुर के खानदान से चिढ़ता था. पर तेज भी तो हो सकता है. अपनी अययाशी के लिए उसे पैसा चाहिए जो बहुत जल्दी मिलना बंद हो जाता क्यूंकी सारी जायदाद पुरुषोत्तम के पास थी. और सबसे छ्होटा भाई कुलदीप. वो भी तो उसके पति की मौत के वक़्त यहीं था. चुप चुप रहता है पर है बहुत तेज़ और इस बात का सबूत थी उसके कमरे से मिली वो ब्रा. क्या ठाकुर साहब खुद? हां क्यूँ नही. ये जायदाद बड़ा होने के नाते उन्हें मिलनी चाहिए थी पर मिली नही. कभी नही मिली. यहाँ से वहाँ होती रही पर उनके नाम नही हुई. और फिर देवधर को भी तो उन्होने मुँह खोलने से मना किया था. बिल्कुल कर सकते हैं वो ऐसा. सरिता देवी? ये सारी जायदाद अचानक ही उनके नाम से हटा दी गयी थी.हाथ आई इतनी सारी दौलत निकल जाए तो क्या बेटा और कहाँ का बेटा. हो सकता है उन्होने किया हो और पुरुषोत्तम मरने से पहले उन्हें ही तो छ्चोड़ने मंदिर गये थे. कामिनी? लड़की थी पर ऐसा करने की हिम्मत बिल्कुल थी उसमें. उसका किसी से प्यार था और ये बात ठाकुर बर्दाश्त ना करते. पर अगर सारी दौलत उसकी हो जाती तो कोई क्या कर सकता था"

कामिनी के प्रेमी के बारे में सोचते ही रूपाली को ध्यान आया के वो अब जानती है के उसका प्रेमी कौन था. उसका अपना छ्होटा भाई इंदर जिसने उससे हमेशा ये राज़ च्छुपाकर रखा. पर क्यूँ? उसको भला क्या ऐतराज़ होता अगर इंदर कामिनी से शादी करना चाहता. रूपाली अपने ख्यालों में इतना खोई हुई थी के कई बार आक्सिडेंट होते होते बचा. शाम के करीब 4 बजे वो हवेली वापिस पहुँची और हवेली में कदम रखते ही चौंक पड़ी. बड़े कमरे में खड़ा था उसका छ्होटा भाई इंदर. ठाकुर ईन्द्रसेन राणा.

"वो आए हैं महफ़िल में चाँदनी लेकर, के रोशनी में नहाने की रात आई है" रूपाली को आता देख इंदर खड़ा हुआ

"कब आया इंदर?" एक पल के लिए अपने भाई को देखकर रूपाली जैसे सब कुच्छ भूल गयी

"मैं तो सुबह ही आ गया था दीदी" इंदर बहेन के गले लग गया "पता चला के आप सुबह से कहीं गयी हुई हैं"

"हां कुच्छ काम था" रूपाली भाई के सर पर हाथ फेरते हुए बोली "आ बैठ ना"

"ठाकुर साहब के बारे में पता चला" तेज ने कहा "बहुत अफ़सोस हुआ. मैं आते हुए हॉस्पिटल होता हुआ आया था. अभी भी बेहोश हैं"

"हां जानती हूँ" रूपाली साँस छ्चोड़ते हुए बोली

इंद्रासेन राणा करीब 30 साल का एक बहुत खूबसूरत आदमी था. उसको भगवान ने ऐसा बनाया था के लड़कियाँ देखकर दिल थाम लें और लड़के जल जाए. लंबा चौड़ा कद, गोरा रंग, टन्द्रुस्त शरीर और जब बोलता था तो लगता था के जैसे फूल झाड़ रहे हों. रूपाली काफ़ी देर तक इंदर के साथ वहीं बैठी बात करती रही और पता ही नही चला के कब रात के 9 बज गये. वक़्त का एहसास तब हुआ जब तेज हवेली में दाखिल हुआ. इंदर को सामने बैठा देख वो एक पल के लिए रुका और फिर हाथ आगे करता इनडर की तरफ बढ़ा.

"कैसे हैं ठाकुर इंद्रासेन?" वो हमेशा इंदर को उसके पूरे नाम से ही बुलाता था

"मैं ठीक हूँ बड़े भाय्या" इंदर ने भी आगे बढ़कर हाथ आगे मिलाया

"आज इस तरफ कैसे आना हुआ?" तेज ने पुचछा तो इंदर ने मुस्कुरा के कंधे झटकाए

"ऐसे ही आप लोगों की याद आई तो मिलने चला आया"

खाने की टेबल पर तीनो साथ थे. रूपाली ने ध्यान दिया के पायल की नज़र तेज पर कुच्छ ज़्यादा ही थी. वो उसका ख़ास तौर पर ध्यान रख रही थी. बार बार आकर उससे पुछ्ति के कुच्छ चाहिए तो नही. इंदर को देख कर मुस्कुराती. रूपाली भी दिल ही दिल में उसकी हरकत देख कर मुस्कुरा उठी. ये पहली बार नही था के उसने अपने भाई के आस पास लड़कियों की पागल होते हुए देखा था. उसके भाई के पिछे पागल होने वाली एक तो उसकी अपनी ननद ही थी.

इंदर को उसने ग्राउंड फ्लोर पर ही कमरे दे दिया. जब वो और तेज अपने कमरे में चले गये तो वो बिंदिया और पायल को किचन सॉफ करने का कहकर अपने कमरे में पहुँची. वो तेज से कामिनी के बारे में और आज हुई देवधर से मुलाक़ात के बारे में बात करना चाह रही थी इसलिए एक नाइटी पहेनकर तेज के कमरे में पहुँची.

तेज के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था. वो अंदर दाखिल हुई. एक नज़र केमर में दौड़ाई तो तेज कहीं नज़र नही आया. रूपाली ने उसे बुलाने के लिए आवाज़ देनी चाही ही थी के अचानक उसके पेर हवा में उठ गये. एक हाथ पिछे से उसकी कमर पर होता हुआ सीधा नाइटी के उपेर से उसकी चूत पर आया और दूसरा उसकी एक छाती पर और उसे हवा में थोडा सा उपेर उठा दिया गया. अपनी कमर पर उसे किसी की छाती महसूस हुई और नीचे से एक लंड उसकी गांद पर आ दबा.

"आज इतनी देर कहाँ लगा दी थी?" पीछे से तेज की आवाज़ आई

ये सब एक पल में हुआ. रूपाली को कुच्छ कहने या करने का मौका ही नही मिला. और उसके अगले ही पल तेज को एहसास हुआ के उसने बिंदिया को नही बल्कि रूपाली को पकड़ रखा है. उसके हाथ रूपाली के जिस्म से फ़ौरन हट गये जैसे रूपाली में अचानक से करेंट दौड़ गया हो. वो जल्दी से 2 कदम पिछे को हुआ और परेशान नज़र से रूपाली को देखने लगा.

"माफ़ कीजिएगा भाभी" उसे समझ नही आ रहा था के क्या कहे "वो मुझे लगा के..... के....."

उसे समझ नही आया के कैसे रूपाली से कहे के वो घर की नौकरानी को चोद रहा था.

दोनो के लिए वो सिचुयेशन इतनी अजीब हो गयी के रूपाली चाह कर भी कुच्छ कह ना सकी. वो तेज से कुच्छ बात करने आई थी पर उस वक़्त उसने कुच्छ ना कहना बेहतर समझा और चुपचाप कमरे से निकल गयी.

फिर मिलेंगे अगले पार्ट मैं तब तक के लिए विदा
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06-21-2018, 12:17 PM,
#35
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
अपने कमरे में पहुँच कर वो बिस्तर पर गिर पड़ी. ये दूसरी बार था के तेज ने उसे इस तरह से पकड़ा था. एक बार नशे में और दूसरी बार अंजाने में. उस्नी रूपाली की छाती को पकड़कर इतनी ज़ोर से दबाया था के रूपाली को अब तक दर्द हो रहा था. उसने अपनी छाती को सहलाया और तभी उसे तेज का वो चेहरा याद आया जब वो उसे खड़ा देख रहा था. और फिर जिस तरह से वो ये नही कह पाया था के उसने बिंदिया का सोचकर रूपाली को पकड़ा था वो सोचकर रूपाली की हल्की सी हसी छूट पड़ी. उसे क्या पता था के बिंदिया उससे चुदवा सिर्फ़ इसलिए रही है क्यूंकी रूपाली ने ऐसा कहा था.

आज की रात भी कोई अलग रात ना थी. आज की रात भी रूपाली बिस्तर पर पड़ी अपने जिस्म की आग में जल रही थी. उसे समझ नही आ रहा था के क्या करे. उसका जिस्म वासना से तप रहा था जैसे बुखार हो गया हो. थोड़ी देर के लिए उसने अपने हाथ का सहारा लेना चाहा पर बात बनी नही. उसका गला सूखने लगा था. उसने उठकर अपने कमरे में रखे जग की तरफ देखा पर उसमें पानी नही था. बिस्तर से उठकर उसने अपने कपड़े ठीक किए और नीचे उतरकर किचन की तरफ बढ़ी.

किचन में खड़ी वो पानी पी ही रही थी के उसे किसी के कदमो की आवाज़ सुनाई दी. रात का सन्नाटा हर तरफ फेल चुका था और उस खामोशी में किसी के चलने की आवाज़ सॉफ सुनाई दे रही थी. कोई सीढ़ियाँ चढ़ रहा था. रूपाली को हैरत हुई के इस वक़्त कौन हो सकता है. उसने किचन से बाहर निकालकर देखा तो इंदर सीढ़ियाँ चढ़कर कामिनी के कमरे की तरफ जा रहा था. उसके चलने का अंदाज़ ही चोरों जैसा था जैस वो घर में चुपके से चोरी करने के लिए घुसा हो. कामिनी के कमरे तक पहुँचकर उसने इधर उधर देखा और फिर धीरे से दरवाज़ा खोलने की कोशिश की. दरवाज़ा लॉक्ड था. रूपाली को सबसे ज़्यादा हैरत उस वक़्त हुई जब इंदर ने अपनी जेब से एक चाभी निकाली और कामिनी के कमरे का दरवाज़ा खोलकर अंदर दाखिल हो गया.

रूपाली एक पल के लिए वही खड़ी रही. वो इंदर से अभी कामिनी के बारे में बात नही करना चाहती थी. उसका ख्याल था के सही वक़्त देखकर इंदर के सामने ये बात उठाएगी पर इंदर को कामिनी के कमरे में यूँ घुसता देख रूपाली से रहा नही गया.

वो हल्के कदमों से सीढ़ियाँ चढ़कर पहले अपने कमरे में पहुँची. उसने अलमारी से कामिनी की डाइयरी निकाली और फिर कामिनी के कमरे के सामने आई इंदर ने अपने पीछे कामिनी का कमरा बंद अंदर से कर लिया था पर रूपाली के पास हवेली के हर कमरे की चाबी थी. उसने अपनी चाबी से रूम का लॉक खोला, हॅंडल घुमाया और एक झटके में पूरा दरवाज़ा खोल दिया.

सामने इनडर कामिनी की अलमारी के सामने खड़ा उसके कपड़ो में कुच्छ ढूँढ रहा था. दरवाज़ा यूँ खोल दिए जाने से वो पलटा और सामने रूपाली को देखकर उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी. चेहरा यूँ सफेद हो गया जैसे काटो तो खून नही. हाथ में पकड़े कामिनी के कुच्छ कपड़े उसके हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर पड़े.

"क्या ढूँढ रहे हो इंदर?" कामिनी ने पुचछा

इंदर से जवाब देते ना बना

"क्या ढूँढ रहे थे?" रूपाली ने अपने पिछे दरवाज़ा बंद कर लिया और थोड़ी ऊँची आवाज़ में पुचछा

"जी दीदी ... वो .... मैं..... "इंदर की ज़ुबान लड़खड़ा गयी

रूपाली ने अपने हाथ में पकड़ी कामिनी की डाइयरी आगे की

"ये तो नही ढूँढ रहे थे?"

रूपाली के हाथ में डाइयरी देखकर इंदर समझ गया के उसका राज़ खुल चुका है. वो नज़रें नीची करके ज़मीन की और देखने लगा

"काब्से चल रहा था ये सब?" रूपाली ने वहीं खड़े खड़े पुचछा

जब इंदर ने जवाब ना दिया तो उसने अपना सवाल फिर दोहराया.

"जी आपकी शादी होने से तकरीबन एक साल पहले से....." इंदर को इस बार जवाब देना पड़ा.

इस बार हैरान होने की बारी रूपाली की थी

"तुम मेरी शादी होने से पहले से कामिनी को जानते थे?"

थोड़ी देर बाद वो दोनो रूपाली के कमरे में बैठे थे. रूपाली को लगा के यूँ कामिनी के कमरे में खड़े होकर बात करना ठीक नही होगा. कोई भी जाग सकता है. वो इंदर को अपने आठ अपने कमरे में ले आई.

"मुझे सब कुच्छ मालूम करना है, सब कुच्छ " रूपाली ने पहले कामिनी की डाइयरी बिस्तर पर इंदर के सामने फेंकी और फिर वो काग़ज़ जिसपर इंदर ने एक शेर लिखा था "और तुम शायरी काब्से करने लगे? और वो भी इतनी अच्छी उर्दू में?"

"मेरी नही हैं" इंदर सर झुकाए बोला " कामिनी को शायरी बहुत पसंद थी इसलिए मैं कहीं से पढ़कर उसे ये सब भेजता था. आप जानती हैं शायरी करना मेरे बस की बात नही"

"कैसे शुरू हुआ ये सब?" रूपाली अपने भाई के सामने बैठते हुए बोली

"मेरे एक दोस्त की शादी में मिली थी मुझे कामिनी. वो लड़की वालों की तरफ से आई थी. वहाँ हमारी जान पहचान हो गयी. घर आकर हम अक्सर फोन पर बात किया करते थे और ये कब ये दोस्ती प्यार में बदली मुझे पता ही नही चला" इनडर किसी तोते की तरह कहानी सुना रहा था.

"इरादा क्या था?" रूपाली का गुस्सा अब थोड़ा ठंडा हो चला था

"शादी करना चाहता था मैं उससे." रूपाली को इंदर की ये बात सुनकर बड़ा अजीब लगा. इंदर शकल सूरत से ऐसा था के वो जिस लड़की की तरफ देख लेता वो लड़की उसे अपनी खुश नसीबी समझती जबकि कामिनी एक बेहद मामूली सी शकल सूरत वाली लड़की थी.

"फिर इसे किस्मत कहिए या कुच्छ और के आपकी शादी भी कामिनी के घर में ही हुई. उस वक़्त हम लोग बहुत खुश थे. कामिनी खुद बहुत खुश थी. मैने कई बार चाहा के वो आपसे बात करे और हमारे बारे में बताए पर वो हमेशा आपके सामने इस बारे में बात करने से शरमाती थी. कहती थी के भाभी पता नही क्या सोचेंगी." इंदर ने आगे कहा

उसकी ये बात सुनकर रूपाली को जैसे अपने एक सवाल का जवाब मिल गया. तो ये वजह थी के कामिनी उसके सामने आने से कतरा जाती थी. उस वक़्त रूपाली बहुत ज़्यादा पूजा पाठ में रहा करती थी तो कामिनी का ये सोचना के कहीं वो उसके और अपने भाई के रिश्ते के खिलाफ ना हो जाए जायज़ था. उसकी जगह कोई भी लड़की होती तो डरती. ख़ास तौर से जब बाप और भाई ठाकुर शौर्या सिंग और तेज जैसे हों.

"हम लोग शहेर में ही मिला करते थे. वो अपने ड्राइवर और बॉडीगार्ड को हवेली में ही छ्चोड़कर मुझसे मिलने शहेर आ जाया करती थी." इंदर अब बिना पुच्छे ही सब बता रहा था

उसकी इस बात ने रूपाली के दूसरे सवाल का जवाब दे दिया.तो वो इंदर ही था जिससे मिलने कामिनी जाया करती थी, अकेले. तभी उसे बिंदिया की कही वो बात याद आई जब उसके मर्द ने खेतों में बने ट्यूबिवेल वेल कमरे में कामिनी को चुड़वाते हुए देखा था.

"जब शहेर में मिलते थे तो यहाँ खेतों में मिलने की क्या ज़रूरत थी? डर नही लगा तुम दोनो को?" रूपाली ने पुचछा

"खेतों में?" इंदर ने हैरानी से पुचछा "आप मज़ाक कर रही हैं? यहाँ मिलना तो खुद मौत को दावत देने जैसा था"

"क्या?" रूपाली कुच्छ ऐसे बोली के उसकी हैरानी उसकी आवाज़ में छलक उठी "तुम उसे ट्यूबिवेल वाले कमरे में नही मिलते थे?"

"ट्यूबिवेल?" इंदर ने पुचछा "कौन सा ट्यूबिवेल?"

रूपाली समझ गयी के उसे इस बारे में कुच्छ पता नही था और वो उसकी आँखें देखकर बता सकती थी के वो सच बोल रहा है

"नही कुच्छ नही" रूपाली बात टालने के अंदाज़ में बोली "वो उसकी डाइयरी पढ़कर मुझे लगा के तुम लोग यहीं खेतों में मिला करते थे"

"नही यहाँ कहीं आस पास तो वो खुद ही नही मिलना चाहती थी. मैने उसे कई बार कहा के हम घर पर बात कर लेते हैं पर वो जाने क्यूँ हर बार मना कर देती थी. और फिर वो धीरे धीरे बदलने लगी. मुझसे उसकी बात भी काफ़ी कम हो गयी. मैने कई बार उससे पुच्छने की कोशिश की पर उसने हर बार टाल दिया. और फिर एक दिन उसका फोन आया के वो मुझसे शादी नही करना चाहती क्यूंकी वो मेरे लायक नही है. ये कहकर उसने फोन रख दिया"

"कबकि बात है ये?" रूपाली ने पुचछा

"ठीक उसी दिन जब जीजाजी का खून हुआ था. उसका फोन रखने के थोड़ी देर बाद ही हमें हवेली के नौकर का फोन आया था और उसने मुझे बताया के बड़े भाई साहब का खून हो गया था." इंदर ने कहा

रूपाली की धड़कन तेज़ होने लगी पर उसने अपने चेहरे पर कुच्छ ज़ाहिर ना होने दिया

"फिर कभी बात नही हुई?" उसने इंदर से पुचछा

"मैने कई बार उसे फोन करने की कोशिश की पर वो हर बार मेरी आवाज़ सुनकर फोन काट देती थी. और फिर एक दिन मुझे पता चला के वो विदेश चली गयी और बस हमारी कहानी ख़तम हो गयी" इंदर सर झुकाए बोला

कमरे में थोड़ी देर खामोशी रही

"तो तुम अब उसके कमरे में क्या ढूँढ रहे थे?" रूपाली ने खड़े होते हुए पुचछा

"ये" इंदर ने उस काग़ज़ की तरफ इशारा किया जो रूपाली को कामिनी की डाइयरी से मिला था "और ऐसे कई और पेपर्स. मुझे डर था के अगर ये आप के हाथ कभी लग गया तो आप मेरी हॅंडराइटिंग पहचान जाएँगी.

अगले दिन सुबह रूपाली रूपाली इंदर के साथ हॉस्पिटल पहुँची. डॉक्टर ने बताया के ठाकुर की हालत में अब भी कोई सुधार नही आया था. भूषण अब भी ठाकुर के साथ हॉस्पिटल में ही था.थोड़ी देर वहीं रुक कर रूपाली हवेली वापिस आ गयी. सुबह के 10 बस चुके थे. तेज रूपाली को बड़े कमरे में बैठा मिला.

"तेज हमें आपसे कुच्छ बात करनी है. आप हमारे कमरे में आ जाइए" रूपाली ने तेज से कहा और उसके जवाब का इंतेज़ार किए बिना ही अपने कमरे में चली आई

थोड़ी देर बाद ही तेज रूपाली के कमरे में दाखिल हुआ

"दरवाज़ा बंद कर दीजिए" रूपाली ने तेज से कहा

दरवाज़ा बंद कर देते ही तेज ने अपने दोनो हाथ जोड़ दिए

"हमें माफ़ कर दीजिए भाभी. बहुत बड़ा पाप हो गया हमसे कल रात. पर वो सब अंजाने में हुआ"

रूपाली ने इशारे से तेज को बैठने को कहा.

"कोई बात नही. हमने उस बारे में बात करने के लिए नही बुलाया है आपको. हमें कुच्छ और ज़रूरी बात करनी है" कहते हुए रूपाली अपनी टेबल तक गयी और ड्रॉयर से पुरुषोत्तम सिंग की वसीयत निकाली

तेज हैरानी से उसकी और देख रहा था. उसे उम्मीद थी के रूपाली उससे कल रात के बारे में सवाल जवाब करेगी पर वो तो उस बारे में कोई बात ही नही करना चाह रही थी. जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो

"आपने कामिनी से आखरी बार बात कब की थी?" रूपाली तेज की और देखते हुए बोली

"उसके विदेश जाने से पहले" तेज ने सोचते हुए कहा

रूपाली समझ गयी के तेज को कामिनी के बारे में कोई जानकारी नही है

"और कुलदीप से?" रूपाली ने पुचछा तो तेज सोच में पड़ गया

"शायद जब वो आखरी बार हवेली आया था तब."

"फोन पर बात नही हुई आपकी कभी?" रूपाली ने पुचछा तो तेज ने इनकार में सर हिला दिया. रूपाली को इसी जवाब की उम्मीद थी. तेज को अययाशी से टाइम मिलता तो अपने भाई और बहेन के बारे में सोचता

"ये कामिनी का पासपोर्ट है" रूपाली ने अपने हाथ में पकड़ा पासपोर्ट तेज को थमा दिया "अगर ये यहाँ है तो कामिनी विदेश में कैसी हो सकती है?"

तेज हैरानी से पासपोर्ट की तरफ देखने लगा

"मतलब? तो कहाँ है कामिनी?" उसने रूपाली से पुचछा

"हमें लगा के आपको पता होगा" रूपाली ने जवाब दिया

"ये कहाँ मिला आपको?" तेज ने फिर सवाल किया

"वो ज़रूरी नही है" रूपाली ने उसे बेसमेंट में रखे बॉक्स के बारे में बताना ज़रूरी नही समझा "ज़रूरी ये है के ये यहाँ हवेली में मिला, जबकि हिन्दुस्तान में ही नही मिलना चाहिए था"

तेज खामोशी से बैठा अपनी सोच में खोया हुआ था

"एक बात और है" रूपाली ने कहा और पुरुषोत्तम की वसीयत तेज के हाथ में थमा दी और चुप रही. तेज खुद ही वसीयत खोलकर पढ़ने लगा.जैसे जैसे वो पेजस पलट रहा था, वैसे वैसे उसके चेहरे के भाव भी बदल रहे थे. जब वो पूरी वसीयत पढ़ चुका तो वो थोड़ी देर तक ज़मीन की तरफ देखता रहा और फिर नज़र उठाकर रूपाली की तरफ देखा

"कुच्छ ग़लत मत सोचना तेज" इससे पहले के वो कुच्छ कहता रूपाल खुद बोल उठी "मैं ऐसा कुच्छ नही चाहती. मैं ये वसीयत खुद बदलने वाली हूँ"

तेज अब भी खामोशी से उसे देखता रहा

"मुझे ये दौलत नही चाहिए तेज. मैं सिर्फ़ अपने घर को, इस हवेली को एक घर की तरह देखना चाहती हूँ. तुम चाहो तो मैं अभी फोन करके वकील को बुला लेती हूँ. ये दौलत सारी मुझे मिल जाए, मैं नही चाहती के ऐसा हो"

"ऐसा मैं होने भी नही दूँगा" तेज ने कहा और इससे पहले के रूपाली कुच्छ कह पाती वो उठकर कमरे से बाहर चला गया

रूपाली जो करना चाहती थी वो हो गया. उसे देखना था के क्या तेज को दौलत को भूख है और वो उसने देख लिया था. अगर तेज खामोशी से बैठा रहता तो इस बात का सवाल ही नही होता था के इस दौलत के लिए उसने अपने भाई को मारा हो पर यहाँ तो उल्टा ही हुआ. रूपाली ने उसे अभी बताया था के उसकी बहेन 10 साल से गायब है और उसकी फिकर करने के बजाय वो हाथ से निकलती दौलत के पिछे चिल्लाता हुआ कमरे से चला गया था. जिसको अपनी बहेन की कोई फिकर नही, वो दौलत के लिए अपने भाई का खून क्यूँ नही कर सकता. बिल्कुल कर सकता है.

थोड़ी देर बाद रूपाली भी नीचे बड़े कमरे में आई. तेज का कहीं आता पता नही था. रूपाली ने खिड़की से बाहर देखा तो उसकी कार भी बाहर नही थी.

सामने रखे फोन को उठाकर रूपाली देवधर का नंबर मिलाने लगी.

"कहिए रूपाली जी" दूसरी तरफ से देवधर की आवाज़ आई

"मैं चाहती हूँ के कल आप हवेली आएँ" रूपाली ने देवधर से कहा. देवधर ने हां कर दी तो उसने फोन रख दिया और इंदर के कमरे में आई

इंदर अपने कमरे में नही था. रूपाली किचन में पहुँची तो वहाँ बिंदिया दोपहर का खाना बनाने में लगी हुई थी. चंदर उसके साथ खड़ा उसकी मदद कर रहा था

"इंदर को देखा कहीं?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा

"अभी थोड़ी देर पहले तो बड़े कमरे में ही थे" बिंदिया ने कहा

रूपाली ने हवेली के बाहर कॉंपाउंड में आकर देखा तो इंदर की कार वहीं खड़ी हुई थी. वो कॉंपाउंड में इधर उधर देखने लगी पर इंदर नज़र नही आया. उसे ढूँढती हुई वो हवेली के पीछे की तरफ आई तो देखा के बेसमेंट का दरवाज़ा खुला हुआ था

"ये किसने खुला छ्चोड़ दिया?" सोचते हुए रूपाली दरवाज़े के पास पहुँची. उसने दरवाज़ा बंद करने की सोची ही थी के बेसमेंट के अंदर से एक आवाज़ सुनाई दी. गौर से सुना तो वो आवाज़ पायल की थी.

"ये यहाँ क्या कर रही है?" सोचते हुए रूपाली ने पहली सीधी पर कदम रखा ही था के उसके कदम फिर से रुक गये

"आआअहह क्यार कर रहे हैं आप" ये आवाज़ पायल की थी
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06-21-2018, 12:17 PM,
#36
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
रूपाली ने अपने कदम धीरे धीरे सीढ़ियों पर रखे और किसी चोर की तरह उतरती हुई नीचे पहुचि. सीढ़ियों पर खड़े खड़े ही उसने धीरे से गर्दन घूमकर बेसमेंट में झाँका तो उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी.

पायल एक टेबल पर बैठी हुई थी. ये वही टेबल थी जिसपर झुका कर चंदर ने उसे चोदा था. वो टेबल के किनारे पर बैठी हुई थी और हाथों के सहारे से पिछे को झुकी हुई थी. उसकी सलवार उतरी हुई एक तरफ पड़ी थी और दोनो टांगे सामने नीचे ज़मीन पर बैठे इंदर के कंधो पर थी. इंदर ने उसकी दोनो टाँगो को पूरी तरह फेला रखा था और बीच में बैठा पायल की चूत चाट रहा था.

"आआआह्ह्ह्ह्ह मालिक" पायल कराह रही थी.

रूपाली फ़ौरन फिर से दीवार की ओट में हो गयी. उसे यकीन नही हो रहा था. वो हमेशा अपने भाई को बहुत सीधा सा समझती थी और यही वजह थी के कामिनी के साथ उसके रिश्ते के बारे में सुनकर वो चौंक पड़ी थी. और यहाँ उसका भाई घर की नौकरानी की चूत चाट रहा था, वो भी उस नौकरानी की जिससे वो कल ही मिला था.

एक पल के लिए रूपाली ने सोचा के वहाँ से चली जाए पर फिर जाने क्या सोचकर वो फिर दीवार की आड़ में खड़ी इंदर और पायल को देखने लगी.

इंदर अब उठ खड़ा हुआ था और पायल की होंठ चूम रहा था. वो पायल की टाँगो के बीच खड़ा था और पायल ने अपनी टांगे उसकी कमर के दोनो तरफ लपेट रखी थी और हाथों से वो इंदर के सर को सहला रही थी. इंदर ने थोड़ी देर उसके होंठ चूमने के बाद उसकी चूचियों को कमीज़ के उपेर से ही चूमना शुरू कर दिया और उसकी नंगी जाँघो पर हाथ फेरने लगा. पायल वासना से अपने सर को ज़ोर ज़ोर से इधर उधर झटक रही थी.

"जल्दी कीजिए मालिक. कोई आ जाएगा" पायल ने आँखें बंद किए हुए ही कहा

उसकी बात सुनकर इंदर ने दोबारा उसके होंठ चूमने शुरू कर दिए और अपनी पेंट की ज़िप खोलने लगा. थोड़ी ही देर में उसकी पेंट सरक कर नीचे जा पड़ी और रूपाली फ़ौरन फिर से दीवार के पिछे हो गयी. वो अपनी ही छ्होटे भाई को नंगा नही देखना चाहती थी. एक पल के लिए उसने कदम उठाए के बेसमेंट से बाहर चली जाए पर तब तक खुद उसके जिस्म में आग लग चुकी थी. उसका एक हाथ कब उसकी चूत पर पहुँच गया था उसे पता भी नही चला था. उसने एक पल के लिए सोचा और फिर से इंदर और पायल को देखने लगी.

इंदर अपना कार्य करम शुरू कर चुका था. उसका लंड पायल की चूत में अंदर बाहर हो रहा था. अब पायल टेबल पर सीधी लेट गयी थी. उसकी गांद टेबल के बिल्कुल कोने पर थी और टांगे इंदर के कंधो पर जो उसकी टाँगो के बीचे खड़ा अपना लंड अंदर बाहर कर रहा था. पायल की कमीज़ उसने खींच कर उपेर कर दी थी और दोनो चूचियों को ऐसा मसल रहा था जैसे आता गूँध रहा हो.

"पहले भी करवा चुकी हो क्या?" उसने पायल से पुचछा

"नही" पायल ने सर हिलाते हुए जवाब दिया

"फिर तुम्हें ..... "इंदर ने कुच्छ कहना चाहा और फिर बात अधूरी छ्चोड़कर पायल की चूत पर धक्के मारने लगा

सीढ़ियों पर खड़ी रूपाली का हाथ उसकी चूत के साथ जुंग लड़ रहा था. उसे यकीन नही हो रहा था के वो च्छुपकर अपने भाई को किसी लड़की को चोद्ते हुए देख रही है और बजे वहाँ से जाने के खुद भी गरम हो रही थी.

इंदर के धक्के अब काफ़ी तेज़ हो चुके थे.

"और ज़ोर से मलिक" पायल अपनी आह आह के बीच बोल रही थी.

रूपाली को हैरत हुई के कहाँ तक कल की सीधी सी शर्मीली और कहाँ आज खुद ज़ोर से ज़ोर से का नारा लगा रही थी. उसकी खुद की हालत अब तक खराब हो चुकी थी और वो जानती थी के फिलहाल उसके पास चूत की आग भुझाने का कोई तरीका नही था. और जिस तरह से इंदर धक्के मार रहा था, रूपाली समझ गयी के अब काम ख़तम होने वाला है. उसने अपना हाथ चूत से हटाया, अपने कपड़े ठीक किए और धीरे से सीढ़ियाँ चढ़ती बेसमेंट से बाहर निकल गयी.

थोड़ी देर बाद इंदर और रूपाली दोनो बड़े कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे. जबसे इंदर बेसमेंट में पायल को चोद्कर आया था तबसे उसके और रूपाली के बीच कोई बात नही हुई थी. रूपाली बैठी टीवी देख रही थी और इंदर उसके पास ही आके खामोशी से बैठ गया था.

रूपाली को समझ नही आ रहा था के अपने भाई के बारे में क्या सोचे. वो भाई जिसे वो दुनिया का सबसे सीधा इंसान समझती रही. जिसके सिर्फ़ 2 शौक हुआ करते थे, शिकार करना और अपना बिज़्नेस संभालना. पिच्छले कुच्छ वक़्त में वो कितना बदल गया था. उसके शौक में कब शायरी और लड़कियाँ जुड़ गयी रूपाली को पता ही ना चला. पर पता चल भी कैसे सकता था. इंदर से पिच्छले 10 साल में मुश्किल से उसने 10 बार बात की होगी और अब पता नही कितने वक़्त के बाद मिली है.

"कामिनी के साथ तेरा रिश्ता कहाँ तक पहुँचा था?" आख़िर में उसने खामोशी तोड़ी और इंदर से पुचछा

"मतलब?" इंदर ने उसकी तरफ नज़र घुमाई

तभी पायल के ग्लास में पानी लेकर कमरे में आई तो रूपाली खामोश हो गयी. रूपाली को पानी थमाते हुए पायल ने एक नज़र इंदर को देखा और मुस्कुरा कर वापिस चली गयी.

"मतलब के तुम लोग कितने करीब थे" रूपाली ने पानी पीते हुए कहा "मेरा मतलब ....."

वो थोड़ी अटकी और फिर अपनी बात कह ही दी

"मेरा मतलब जिस्मानी तौर पर"

इंदर इस बात के लिए तैय्यार नही था. वो चौंक पड़ा

"ये कैसा सवाल है?"

"सवाल जैसा भी है" रूपाली ने सीधा उसकी आँखों में देखते हुए कहा "जवाब क्या है?"

"मैं जवाब देना ज़रूरी नही समझता" इंदर ने गुस्से में कहा और उठकर कमरे से बाहर जाने लगा

"मालकिन" बिंदिया की आवाज़ पर रूपाली ने उसकी तरफ़ नज़र उठाकर देखा

"बाहर पोलीस आई है. वही खाड़ुस इनस्पेक्टर जो हमेशा आता है"

बिंदिया ने कहा तो इंदर के कदम भी रुक गये. उसने पलटकर रूपाली की तरफ देखा

"अंदर ले आओ" रूपाली ने बिंदिया से कहा

थोड़ी देर बाद कमरे में इनस्पेक्टर ख़ान दाखिल हुआ

"सलाम अर्ज़ करता हूँ" वो अपने उसी अंदाज़ में बोला

"तुम अपने कमरे में जाओ" रूपाली ने इंदर को इशारा किया

"अरे नही रुकिये ठाकुर साहब" ख़ान ने फ़ौरन इंदर को रोका "मुझे आपसे भी कुच्छ बात करनी है"

"मुझसे?" इंदर ने हैरानी से पुचछा

"जी आपसे. आइए बैठिए ना. अपना ही घर है" ख़ान ने उसे सामने रखी कुर्सी की तरफ इशारा करके बैठने को कहा

"आप जानते हैं ये कौन है?" रूपाली हैरत में पड़ गयी थी के इंदर से ख़ान क्या बात करना चाहता था

"आपके छ्होटे भाई हैं"ख़ान खुद भी एक चेर पर बैठता हुआ बोला "ठाकुर इंद्रासेन राणा"

"आप कैसे जानते हैं मुझे?" इंदर बैठते हुए बोला

"अजी आप एक ठाकुर हैं. सूर्यवंशी हैं. आपको ना पहचान सकूँ इतनी बड़ा भी बेवकूफ़ नही हूँ मैं" ख़ान ने कहा

ना रूपाली की समझ आया के ख़ान इंदर की तारीफ कर रहा था या मज़ाक उड़ा रहा था और ना खुद इंदर की

"आपके घर फोन किया था मैने तो पता चला के आप बढ़ी बहेन से मिलने गये हुए हैं. अब पोलीस स्टेशन आना तो आप ठाकुरों की शान के खिलाफ है तो मैने सोचा के मैने के मैं ही जाके मिल आऊँ" ख़ान ऐसे कह रहा था जैसे हवेली आकर उसने ठाकुर खानदान पर बहुत बड़ा एहसान किया हो

"कौन है ये आदमी?" इंदर चिड सा गया "और ये क्या बकवास कर रहा है"

"मतलब की बात पर आइए" रूपाली ने इंदर के सवाल का जवाब ना देते हुए ख़ान की तरफ पलटकर कहा

"चलिए मतलब की बात ही करता हूँ" ख़ान बोला और फिर इंदर की तरफ पलटा "वैसे आपको बता दूं के मुझे इनस्पेक्टर मुनव्वर ख़ान कहते हैं, वैसे मेरे चाहने वाले तो मुझे मुन्ना कहते हैं पर मुनव्वर ख़ान मेरा पूरा नाम है और इस इलाक़े में नया आया हूँ. आप चाहें तो आप भी मुझे मुन्ना कहते सकते हैं. अब तो हमारी जान पहचान हो ही गयी है"

"जैसा की आप जानती हैं के आपके पति के खून में मुझे कुच्छ ज़्यादा ही इंटेरेस्ट है" ख़ान रूपाली से बोला "और यकीन मानिए जबसे मैं यहाँ आया हूँ सुबह से शाम तक इसी बारे में सोचता रहता हूँ"

"पर क्यूँ?" रूपाली ने ख़ान की बात बीच में काट दी "मैं जानती हूँ के ये आपका काम है पर हमारे देश के पोलिसेवाले अपना काम काब्से करने लगे?"

रूपाली की बात सुनकर ख़ान हसणे लगा

"फिलहाल के लिए इतना जान लीजिए के मैं ये इसलिए नही कर रहा क्यूंकी ये मेरा काम है. और भी बहुत केस पड़े हैं जिनपर मैं अपना दिमाग़ खपा सकता हूँ. यूँ समझ लीजिए के आपके पति का एक एहसान था मुझपर जो मैं अब उतारने की कोशिश कर रहा हूँ"

"मेरे पति को मरे हुए 10 साल हो चुके हैं" रूपाली ने ख़ान को ताना मारा "अब याद आया है आपको एहसान का बदला चुकाना?"

"वो एक अलग कहानी है" ख़ान ने रूपाली की बात का जवाब नही दिया "फिर कभी फ़ुर्सत में बताऊँगा. फिलहाल मैं जिसलिए आया था वो बात करता हूँ. क्या है के जब आपके पति की मौत हुई थी उस वक़्त उनका पोस्टमॉर्टम नही हुआ था. पोस्टमॉर्टम के लिए बॉडी गयी ज़रूर थी पर बीच में आपके ससुर और आपका सबसे छ्होटा देवर बीच में आ गये थे. वहाँ उन्होने डॉक्टर्स के साथ मार पीट की और बॉडी उठा लाए. अब क्यूंकी वो यहाँ के ठाकुर थे और पोलिसेवाले उनकी जेब में थे इसलिए किसी ने मुँह नही खोला."

"तो?" इस बार रूपाली की जगह इंदर बोला

"तो ये ठाकुर साहब के पोस्टमॉर्टम तो पूरा नही हुआ पर रिपोर्ट्स में इतना ज़रूर लिखा हुआ था के ठाकुर पुरुषोत्तम की मौत कैसे हुई थी"

"गोली लगने से. ये तो हम सब जानते हैं" रूपाली ने कहा

"जी हां आप सब जानते हैं पर अब मैं कुच्छ ऐसा आपको बताता हूँ जो आप नही जानती" ख़ान ले बोलने का अंदाज़ अब कासी सीरीयस हो चुका था "रिपोर्ट्स के हिसाब से ठाकुर पुरुषोत्तम सिंग को एक रेवोल्वर से गोली मारी गयी थी और वो रेवोल्वेर ना तो इंडिया में बनती है और ना ही बिकती है."

रूपाली और इंदर चुप बैठे थे

"ठाकुर साहब को एक कोल्ट अनकॉंडा 6" बॅरल से गोली मारी गयी थी. इस तरह की रिवॉलवर्स अब इंडिया में मिलती हैं या नही ये तो मैं नही जानता पर आज से 10 साल पहले तो बिल्कुल नही मिलती थी. हां ऑर्डर करके मँगवाया ज़रूर जा सकती थी पर उसमें काफ़ी परेशानी होती थी क्यूंकी आप एक हथ्यार खरीद कर दूसरे देश से मग़वा रहे हैं. ये काम सिर्फ़ किसी ऐसी आदमी के बस में था जिसकी अच्छी पहुँच हो और खर्च करने के लिए पैसा बेशुमार हो.जैसे के कोई खानदानी ठाकुर"

"क्या मतलब है आपका" ईन्देर ने गुस्से में पुचछा

"बताता हूँ. सबर रखिए " ख़ान ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया "तो मैने सोचा के ठाकुर साहब के खानदान से ही शुरू करूँ. अब ठाकुर शौर्या सिंग के खानदान में हथ्यार तो बहुत थे, गन्स भी थी, पर ज़्यादातर दोनाली राइफल्स और जो रिवॉलवर्स या पिस्टल थी वो यहीं इंडिया से खरीदी गयी थी. किसी के भी नाम पर किसी विदेशी बंदूक का रिजिस्ट्रेशन नही था. तो मैने सोचा के क्यूँ ना ठाकुर साहब के रिश्तेदारों में तलाश किया जाए. जब पता लगाया तो मालूम चला के ठाकुर इंद्रासेन राणा ने आज से 11 साल पहले एक कोल्ट अनकॉंडा 6" बॅरल मँगवाई थी."

कमरे में सन्नाटा छा गया. रूपाली और ख़ान दोनो ही इंदर की तरफ देख रहे थे.

"वो इसलिए क्यूंकी मुझे शिकार करने और हथ्यारो का शौक था" इंदर ने अपनी सफाई में कहा

"अब आपकी रिवॉलव कहाँ है ठाकुर?" ख़ान ने सवाल किया

"वो रिवॉलव 10 साल पहले खो गयी थी. मैं शिकार पर गया था और वहीं जंगल में कहीं गिर गयी थी" इंदर ने जवाब दिया

"आपने पोलीस में रिपोर्ट कराई?" ख़ान ने पुचछा

"हम ठाकुर हैं इनस्पेक्टर" इंदर गुस्से में बोलता हुआ खड़ा हुआ "हम अपने मामलो में पोलीस को इन्वॉल्व नही करते"

ये कहकर इंदर गुस्से में पेर पटकता हुआ कमरे से निकल गया

उसके जाने के बाद रूपाली और ख़ान दोनो खामोशी से बैठे रहे. कुच्छ देर बाद रूपाली ने बोलने के लिए मुँह खोला ही था के ख़ान ने उसकी बात बीच में काट दी

"आप ग़लत सोच रही हैं. मैं ये नही कहता के आपके पति को आपके भाई ने मारा है पर ये बहुत मुमकिन है के इन्ही के रेवोल्वेर से आपके पति को गोली मारी गयी."

रूपाली ने सहमति में सर हिलाया और कमरे में फिर खामोशी छा गयी. थोड़ी देर बाद ख़ान उठा

"मुझे यही पता करना था के वो रेवोल्वेर अब ठाकुर इंद्रासेन के पास है के नही. अगर होती तो मैं चेकिंग के लिए माँगता पर ये तो कह रहे हैं के गन ही खो गयी थी. मैं चलता हूँ"

ख़ान जाने लगा तो रूपाली ने उसे रोका

"आप कल सुबह हवेली आ सकते हैं? कुच्छ काम है मुझे"

ख़ान ने हां में सर हिलाया और कमरे से बाहर निकल गया

ओके दोस्तो फिर मिलेंगे अगले पार्ट के साथ
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06-21-2018, 12:17 PM,
#37
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
सेक्सी हवेली का सच --22

थोड़ी देर बाद रूपाली दरवाज़ा खोलकर इंदर के कमरे में दाखिल हुई. इंदर बिस्तर पर सर पकड़े ऐसे बैठा था जैसे लुट गया हो.

"सच क्या है इंदर? मैं जानती हूँ तू कुच्छ च्छूपा रहा है मुझसे" वो इंदर के करीब जाते हुए बोली

इंदर ने कोई जवाब नही दिया. बस सर पकड़े बैठा रहा.

"तुझे बताया नही मैने पर अब सोचती हूँ के बता ही दूँ." रूपाली इंदर के ठीक सामने जा खड़ी हुई "कामिनी का पासपोर्ट मुझे यहीं हवेली में मिला. हर वो चीज़ जो वो जाने से पहले पॅक करके ले गयी थी वो यहीं हवेली में बंद एक कमरे में मिली. वो विदेश कभी गयी ही नही इंदर और कोई नही जानता के पिच्छले 10 साल से कहाँ है"

रूपाली की बात सुनकर इंदर ने उसकी तरफ नज़र उठाई. वो आँखें फेलाए रूपाली की तरफ देख रहा था. आँखों में एक खामोश सवाल था जैसे के वो रूपाली से पुच्छ रहा हो के क्या वो सच बोल रही है. रूपाली ने भी उसी खामोशी से हां में सर हिलाया

"मुझे खुद अभी 3-4 दिन पहले ही पता चला" रूपाली ने कहा

"और किसी ने उसके बारे में पता करने की कोशिश नही की?" इंदर को जैसे अब भी यकीन नही हो रहा था

"पता नही. जिससे पूछती हूँ वो यही कहता है के कामिनी विदेश में है. ठाकुर साहब हॉस्पिटल में हैं और उनके आक्सिडेंट होने से पहले मुझे ये बात पता नही थी इसलिए उनसे बात करना अभी बाकी है" रूपाली ने कहा

"मैं जानता था के कुच्छ गड़बड़ हुई है वरना ऐसा हो ही नही सकता था के वो एक बार भी मुझे फोन ना करे. आपने पोलीस में बताया?" इंदर की आवाज़ से सॉफ पता चल रहा था के उसे अब भी इस बात पर यकीन नही हो रहा था

"ख़ान ये बात पहले से ही जानता है. असल में उसने ही मुझसे ये बात सबसे पहले बताई थी" रूपाली ने कहा

"आपने कुलदीप को फोन नही किया? उसके पास ही तो गयी थी कामिनी" इंदर सोचता हुआ बोला

"उसके जितने नंबर मुझे मिल सके मैने सब ट्राइ किए. एक भी काम नही कर रहा" रूपाली ने कहा तो इंदर फिर अपना सर पकड़ कर बैठ गया

"मुझे लगता है के अब वक़्त आ गया है के तुम मुझे सब सच बताओ. शुरू से आख़िर तक." रूपाली ने पुचछा तो इंदर इनकार में सर हिलाने लगा

रूपाली ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और उपेर उठाकर इंदर की आँखों में देखा

"एक वक़्त था जब तेरी हर बात मुझे पता होती थी इंदर. मैं तेरी बहेन से ज़्यादा तेरी दोस्त थी. हर छ्होटी बड़ी शरारत तू मुझे बताया करता था और मैं तुझे बचाया करती थी. अब क्या हुआ मेरे भाई? कब इतना बदल गया तू के अपनी बहेन से बातें च्छुपाने लगा?"

रूपाली की बात सुनकर इंदर की आँखों से पानी बहने लगा

"कल रात जब मैं कामिनी के कमरे में कुच्छ तलाश कर रह था और आप आ गयी थी तब मैने आपको कहा था के मैं वो पेपर्स ढूँढ रहा था जिसपर मैने शायरी लिखी हुई थी. ये बात कुच्छ अजीब नही लगी आपको? आख़िर कुच्छ काग़ज़ ही तो थे. ऐसी कोई बड़ी मुसीबत तो नही थी के मैं आधी रात को कामिनी के कमरे में जाता" इंदर ने कहा

"आजीब तो लगी थी पर तेरी हर बात पर यकीन करने की आदत सी पड़ गयी है मुझे इसलिए कुच्छ नही बोली" रूपाली ने इंदर का चेहरा छ्चोड़कर उसके साथ बिस्तर पर जा बैठी

"मैं वो रेवोल्वेर ढूँढ रहा था दीदी. मेरी रेवोल्वेर जंगल में नही खोई थी. वो मैने कामिनी को दी थी. आख़िरी कुच्छ दीनो में वो बहुत परेशान सी रहती थी. कहती थी के उसे हवेली में डर लगता है. अपने ही घरवाले उसे अजनबी लगते हैं क्यूंकी हर किसी ने अपने चेहरे पर एक नकली चेहरा लगा रखा था. एक दिन वो मुझसे मिलने आई तो रो रही थी. मैने पुचछा तो कुच्छ बोली नही बस मुझसे मेरी गन माँगी. मुझे अजीब लगा. मैं रेवोल्वेर उसे देना नही चाहता था पर उसके आँसू देख भी नही सकता था. दिल के हाथों मजबूर होकर मैने वो रेवोल्वेर कामिनी को दे दी."

उसने वापिस नही दी?" रूपाली हैरान सी इंदर को देख रही थी

"नौबत ही नही आई" इंदर ने सर झटकते हुए कहा "उसके 2 दिन बाद ही जीजाजी का खून हो गया और फिर मैं कामिनी से मिल नही सका. पिच्छले 10 साल से सोचता रहा के आकर उसका कमरा देखूं के शायद वो रेवोल्वेर यहीं कहीं रखा छ्चोड़ गयी हो पर हिम्मत नही पड़ी. एक दो बार आपसे मिलने के बहाने आया भी तो कामिनी के कमरे में जाने का मौका नही मिला"

"तेरे पास कामिनी के कमरे की चाभी कहाँ से आई?" रूपाली को अचानक याद आया के इंदर बड़ी आसानी से कमरा खोलकर अंदर चला गया था

"वो जब आखरी बार मिलने आई तो बहुर घबराई हुई थी. उसी घबराहट में चाभी मेरी गाड़ी में छ्चोड़ गयी थी" इंदर ने जवाब दिया

"शुरू से बता इंदर. सब कुच्छ" रूपाली ने कहा

"मैने कामिनी को अपने एक दोस्त की शादी में देखा था" इंदर ने बताना शुरू किया

पार्टी पूरे जोश पर थी. इंदर शराब नही पीता था पर आज उसके एक बहुत करीबी दोस्त की शादी थी इसलिए दोस्तों के कहने पर मजबूरन पीनी पड़ी. थोड़ी ही देर बाद उसे एहसास हो गया के नशा अब उसके सर पर चढ़ने लगा है. वो हमेशा से अपनी ज़ुबान पर काबू रखने वाला आदमी था. सिर्फ़ उतना ही बोलता था जितना ज़रूरी हो. कभी भी कहीं पर उसकी ज़ुबान से ऐसी बात नही निकलती थी जो वो ना कहना चाहता हो. पर इंसान नशे में हो तो ना खुद पर काबू रहता है और ना अपनी ज़ुबान पर और ये बात इंदर अच्छी तरह जानता था. पार्टी में मौजूद हर लड़की बस जैसे उसी की तरफ देख रही थी और उससे बात करने या उसके करीब आने की कोशिश कर रही थी. नशे की हालत में कहीं वो किसी के साथ कोई बदतमीज़ी ना कर दे ये सोचकर इंदर ने सबसे अलग कहीं अकेले जाकर बैठने का फ़ैसला किया. अभी वो नशे में था पर नशा इतना नही था के वो होश खो दे पर अगर दोस्तों के बीच रहता तो वो उसे और पीला देते और फिर बात काबू से बाहर हो जाती.

अकेला इंदर अपने दोस्त की ससुराल के घर की सीढ़ियाँ चढ़ता छत की और चला. छत पर पहुँचते ही ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे पर लगा और उसे कुच्छ रहट सी महसूस हुई. नीचे सिगेरेत्टे के धुएँ में उसका दम सा घुटने लगा था.

छ्हत पर कोई नही था. इंदर ने कोने में रखी एक चेर देखी और जाकर उसपर बैठ गया.

"हे भगवान " उसने ज़ोर से कहा "इंसान शराब क्यूँ पीता है"

तभी उसे छत के कोने पर कुच्छ आहट महसूस हुई. नज़र घूमकर देखा तो वहाँ एक लड़की खड़ी थी जो उसके ज़ोर से बोलने पर मुड़कर उसकी तरफ देख रही थी.

"माफ़ कीजिएगा" इंदर फ़ौरन चेर से उठ खड़ा हुआ "मैने आपको देखा नही. शायद ये चेर आप लाई हैं उपेर. आपकी है"

उस लड़की ने एक नज़र इंदर पर डाली और फिर आसमान की तरफ देखने लगी. इंदर को ये थोड़ा अजीब लगा. नीचे खड़ी हर लड़की बस उसी की तरफ देखे जा रही थी और इस लड़की ने उसपर एक नज़र डाली थी. आख़िर आसमान में ऐसा क्या है जिसके लिए उसे भी नज़र अंदाज़ कर दिया गया. ये सोचते हुए इंदर ने आसमान की तरफ नज़र उठाई.

"शिकन लिए मुस्कुराते लबों पे,बात आती है कभी कभी,

क़ुरबतों में पली वो ज़िंदगी, साथ आती है कभी कभी

आसमान से चाँद चुराकर कहीं ले जा तू आज सितम्गर,

जी लेने दे अंधेरे को, के अमावस की रात आती है कभी कभी"

आसमान की तरफ देखते हुए उस लड़की ने कहा

"जी?" इंदर ने उसकी तरफ देखा "अपने मुझसे कुच्छ कहा?"

वो लड़की फिर से इंदर की तरफ देखने लगी

"आप यहाँ उपेर अकेले में क्या कर रहे हैं? आइए नीचे चलें" लड़की ने कहा तो इस बार इंदर को और ज़्यादा हैरानी हुई. कहाँ तो हर लड़की अकेले में उससे बात करना चाह रही थी और कहाँ ये लड़की उसे वापिस नीचे जाने को कह रही थी.

इंदर ने एक नज़र उसपर डाली. वो एक मामूली सूरत की आम सी दिखने वाली लड़की थी. हल्का सावला रंग, गोल चेहरा, काली आँखें और काले बॉल.

"मैं अगर नीचे गया तो मुसीबत आ जाएगी. मेरे दोस्त फिर से मेरे हाथ में शराब थमा देंगे" उसने मुस्कुराते हुए उस लड़की से कहा

"तो क्या हुआ? यहाँ तो हर कोई पी रहा है" उस लड़की ने कहा

"जी हां पर अगर मैं पी लूँ तो मैं पागल हो जाता हूँ. अपने होश में नही रहता. अगर एक बार मुझे नशा चढ़ जाए तो मैं बीच बाज़ार में नाचना शुरू कर दूं" इंदर ने हल्का शरमाते हुए जवाब दिया

उसकी बात सुनकर वो लड़की हस पड़ी. उसके हासणे की आवाज़ ऐसी थी के इंदर बस उसे देखता रह गया. लड़की ने हाथ के इशारे से उसे फिर नीचे चलने को कहा तो इंदर ने फ़ौरन इनकार में सर हिला दिया

"जी बिल्कुल नही. ना तो मेरा आज पागल होने का इरादा है और ना कहीं नशे में नाचने का, ना बाज़ार में और ना ही यहाँ पार्टी में"

उसकी बात सुनकर वो लड़की उसके थोडा करीब आई और हल्की सी आवाज़ में ऐसे बोली जैसे कोई राज़ की बात बता रही हो

"आज बाज़ार में पबाजोला चलो

दस्त अफ्शान चलो,मस्त-ओ-रकसान चलो

खाक बरसर चलो,खून बदमा चलो

राह तकता है सब,शहेर-ए-जाना चलो

हाकिम-ए-शहेर भी, मजमा-ए-आम भी

तीर-ए-इल्ज़ाम भी, संग-ए-दुश्नाम भी

सुबह-ए-नाशाद भी, रोज़-ए-नाकाम भी

इनका दम्साज अपने सिवा कौन है

शहेर-ए-जाना में अब बसिफ़ा कौन है

दस्त-ए-क़ातिल के शायन रहा कौन है

रखत-ए-दिल बाँध लो, दिलफ़िगारो चलो

फिर हम ही क़त्ल हो आएँ यारो चलो"

"जी?" एक शब्द भी इंदर के पल्ले नही पड़ा "ये कौन सी भाषा थी"

उसकी बात सुनकर वो लड़की फिर खिलखिलाकर हस्ने लगी और सीढ़ियाँ उतरकर नीचे चली गयी.

नीचे आकर इंदर ने पता किया तो लड़की का नाम कामिनी था और वो ठाकुर शौर्या सिंग की बेटी थी. कामिनी में ऐसा कुच्छ भी नही था जिसपर आकर किसी की नज़र थम जाए पर जाने क्यूँ इंदर की नज़र बार बार उसी पर आकर रुकती. जिस तरह से वो उपेर खड़ी आसमान को देख रही थी, जिस तरह से उसने हाथ से इशारा करके इंदर को नीचे चलने को कहा था, और जिस तरह से वो कुच्छ धीरे से कहती थी जो इंदर को समझ नही आया था, इन सब बातों में इंदर उलझ कर रह गया थे. पूरी रात पार्टी में वो बस कामिनी को ही देखता रहा और उसने महसूस किया के वो भी पलटकर उसी की तरफ देख रही थी. कई बार दोनो की नज़र आपस में टकराती और दोनो ने मुस्कुरा कर नज़र फेर लेते.

सुबह के 4 बाज रहे थे. इंदर लड़केवालों की तरफ से बारात के साथ आया था जबकि कामिनी लड़की वालो की तरफ से थी. विदाई की वक़्त हो गया था और हर कोई दूल्हा और दुल्हन के आस पास भटक रहा था. इंदर जानता था के थोड़ी देर बाद उसको जाना होगा पर वो कामिनी से एक बार बात करना चाहता था. जाने क्या था के उसकी नज़र पागलों की तरह भीड़ में कामिनी को तलाश रही थी पर वो कहीं नज़र नही आई. अचानक इंदर को छत का ख्याल आया और वो भागता हुआ फिर छत पर पहुँचा. जैसा की उसने सोचा था, कामिनी वहीं खड़ी फिर से आसमान की तरफ देख रही थी. इंदर भागता हुआ छत पर आया था इसलिए उसकी साँस फूल रही थी. उसके हाफने की आवाज़ सुनकर कामिनी उसकी तरफ पलटी और खामोशी से उसे देखने लगी. कुच्छ देर तक इंदर भी कुच्छ नही बोला और छत की दीवार का सहारा लेकर खड़ा हो गया.

"शुक्रिया" थोड़ी देर बाद कामिनी बोली

इंदर ने सवालिया नज़र से उसकी तरफ देखा

"किस बात के लिए?" उसने कामिनी से पुचछा

"आज रात के लिए. आज रात आप हमारे साथ रहे उसके लिए" कामिनी ने एक नज़र इंदर की तरफ देखा और फिर आसमान की तरफ देखने लगी

"मैं आपके साथ कहाँ था. आपको तो अपनी दोस्तों से वक़्त ही नही मिला" इंदर ने कामिनी की तरफ देखा. वो अब भी उपेर ही देख रही थी

"क्या देख रही हैं आप? क्या है आसमान में" आख़िर इंदर ने पुच्छ ही लिया

उसकी बात सुनकर कामिनी ने उसकी तरफ देखा और उसके सवाल को नज़र अंदाज़ कर दिया

"भले आप खुद हमारे साथ नही थे पर आपकी नज़र ने हमें एक पल के लिए भी अकेला कहाँ होने दिया. पूरी रात आपकी नज़र हमारे साथ रही" कामिनी ने कहा तो इंदर ने मुस्कुराते हुए नज़र नीची कर ली

"तो आप जानती थी?" उसने कामिनी से पुचछा

जवाब में कामिनी कुच्छ नही बोली. बस खामोशी से उसके करीब आई और फिर उसी हल्की सी आवाज़ में बोली, जैसे कोई बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो

"कुच्छ इस अदा से आप यूँ पहलू-नसहीन रहे

जब तक हमारे पास रहे, हम नहीं रहे

या रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की खैर हो

दस्त-ए-जुनून रहे ना रहे आस्तीन रहे"

इंदर को एक बार फिर पूरी तरह से कामिनी की बात समझ नही आई पर वो किस मोहब्बत के राज़ की बात कर रही थी ये वो अच्छी तरह समझ गया था. उसने कामिनी की तरफ देखा.

"दुआ करती हूँ के मैने जो अभी कहा है, इसके बाद की लाइन्स कहने की नौबत कभी ना आए" कामिनी ने धीरे से पिछे होते हुए कहा

"जी?" इंदर ने कामिनी की और देखते हुए पुचछा

कामिनी फिर से हस्ने लगी और इंदर फिर उसको एकटूक देखने लगा

"कभी इस जी के सिवा कुच्छ और भी कहिए ठाकुर इंद्रासेन राणा" कामिनी ने कहा और सीढ़ियाँ उतरकर नीचे चली गयी

इंदर समझ गया था के जिस तरह वो अपने दोस्तों से कामिनी के बारे में मालूम करने की कोशिश कर रहा था वैसे ही कामिनी ने भी उसका नाम कहीं से मालूम किया था. थोड़ी ही देर बाद बारात विदा हो गयी. जाते हुए इंदर को कामिनी कहीं नज़र नही आई पर वो जानता था के वो उसे फिर ज़रूर मिलेगा.

शादी के 2 दिन बाद इंदर अपने कमरे में सोया हुआ था. सुबह के 9 बाज रहे थे पर उसे देर से सोने और देर तक सोते रहने की आदत थी. उसके पास रखा फोन बजने लगा तो चिड़कर इंदर ने तकिया अपने मुँह पर रख लिया. फोन लगातार बजता रहा तो उसने गुस्से में फोन उठाया.

"हेलो" आधी नींद में इंदर बोला.

दूसरी तरफ से वही ठहरी हुई धीमी आवाज़ आई जिसने 2 दिन पहले इंदर को पागल सा कर दिया था.

लज़्ज़त-ए-घाम बढ़ा दीजिए,

आप यूँ मुस्कुरा दीजिए,

क़यामत-ए-दिल बता दीजिए,

खाक लेकर उड़ा दीजिए,

मेरा दामन बहुत साफ है

कोई इल्ज़ाम लगा दीजिए

"कामिनी" इंदर बिस्तर पर फ़ौरन उठ बैठा.

"हमें तो लगा के आप हमें भूल गये" दूसरी तरफ से कामिनी की आवाज़ आई

"कैसे भूल सकता हूँ पर आप अपने नंबर देकर ही नही गयीं" इंदर अपनी सफाई में बोला

"नंबर तो आपने भी नही दिया पर हमें तो मिल गया" कामिनी ने कहा तो इंदर के पास अब कोई जवाब नही था.

कुच्छ देर तक वो इधर उधर की बातें करते रहे. कामिनी ने उसे अपने बारे में बताया और इंदर ने कामिनी को अपने बारे में. खबर ही नही हुई के दोनो को बात करते करते कब 2 घंटे से ज़्यादा वक़्त हो गया. आख़िर में इंदर ने फिर से मिलने की बात की तो कामिनी खामोश हो गयी.

"क्या हुआ?" इंदर ने पुचछा "आप मिलना नही चाहती?"

"अगर इंसान के चाहने से सब कुच्छ हो जाया करता तो फिर दुनिया में इतनी मुसीबत ना हुआ करती" दूसरी तरफ से कामिनी की आवाज़ आई "हम फिर फोन करेंगे"

कहकर कामिनी ने फोन रख दिया. इंदर परेशान सा फोन की तरफ देखने लगा. इस बार भी कामिनी ने उसे अपना फोन नंबर नही दिया था.

"फिर क्या हुआ?" रूपाली खामोशी से बैठी इंदर की बात सुन रही थी

"उसने उस दिन फोन ऐसे ही रख दिया पर मैं समझ चुका था के वो भी मुझे चाहती है. मैने अपने उस दोस्त को फोन किया जिसकी शादी में मुझे कामिनी मिली थी और उसकी बीवी के ज़रिए मैने कामिनी का फोन नंबर निकाल लिया. यानी यहाँ हवेली का नंबर" इंदर ने कहा

":ह्म्‍म्म्मम "रूपाली ने हामी भारी

"पर मुसीबत ये थी के अगर मैं फोन करूँ तो पता नही कामिनी उठती या कोई और. फिर भी मैने कोशिश की. 3 दिन तक मैं लगातार कोशिश करता रहा पर हर बार कोई और ही फोन उठता और मुझे फोन काटना पड़ता. इस बीच कामिनी ने भी मुझे फोन नही किया. 3 दिन बाद एक दिन मैने फोन किया तो फोन कामिनी ने उठाया. पहले तो वो मेरे फोन करने पर ज़रा परेशान हुई के मुझे यूँ फोन नही करना चाहिए था और अगर घर में किसी को पता चला तो मुसीबत आ जाएगी. पर फिर खुद ही हस्कर कहने लगी के वो देखना चाहती थी के मैं फोन करूँगा या नही इसलिए खुद भी मुझे 3 दिन से फोन नही कर रही थी. ये थी मेरी और उसकी पहली मुलाक़ात. इसके बाद हम दोनो के बीच फोन शुरू हो गये और हम घंटो एक दूसरे से बातें करते रहते. मुझे खबर ही नही हुई के मैं कब कामिनी को इतना चाहने लगा था पर वो थी के मुझसे मिलने को तैय्यार ही नही होती थी. फिर तकरीबन 6 महीने बाद वो मुझसे मिलने को तैय्यार हुई." इंदर अब बिना रुके अपनी पूरी कहानी बता रहा था

"शहेर में मिलते थे तुम दोनो?" रूपाली ने पुचछा

"हां" इंदर ने हां में सर हिलाया "कामिनी गाड़ी अकेली ही लाती थी. ना ड्राइवर ना बॉडीगार्ड. उन दीनो वो काफ़ी खुश रहती थी. हम साथ रहते, बातें करते और कुच्छ वक़्त साथ गुज़रने के बाद वो वापिस चली आती. उन दीनो में ऐसा कुच्छ नही हुआ जो कुच्छ अजीब हो. बस एक लड़का लड़की मिलते और एक दूसरे का हाथ थामे घंटो बातें करते रहते. कुच्छ दिन बाद जाने कैसे पर आपकी शादी कामिनी के घर ही पक्की हो गयी. हम दोनो इस बात को लेकर बहुत खुश थे और इसे अपनी खुशमति मान रहे थे. मैं इसलिए खुश था के मैं आपकी शादी के बाद बिना किसी परेशानी के हवेली में आ जा सकता था और वो इसलिए खुश थी के उसे मेरे साथ शादी की बात चलाने का एक बहाना मिल गया था, यानी के आप. पर वो चाहकर भी कभी आपसे बात नही कर सकी और ना ही मैं और इसकी वजेह थी के आप मंदिर से कभी बाहर ही नही निकलती थी. हम दोनो ये सोचकर चुप रह जाते के जाने आप कैसे रिक्ट करेंगी. इसी उलझन में कब वक़्त गुज़रता चला गया हमें पता ही नही चला. कभी कभी मैं आपसे मिलने के बहाने हवेली आ जाया करता था पर अब भी हम ज़्यादातर बाहर ही मिला करते थे"

"कामिनी में बदलाव कब देखा तुमने" रूपाली ने पुचछा

"आखरी कुच्छ दीनो में. जीजाजी के मरने से कोई 2 महीने पहले से. एक दिन वो मुझसे मिलने शहेर आई" इंदर ने बताना शुरू किया
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06-21-2018, 12:18 PM,
#38
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
इंदर अपनी गाड़ी रोके कोई एक घंटे से कामिनी का इंतेज़ार कर रहा था. कभी ऐसा नही होता था के कामिनी देर से पहुँचे, बल्कि वो इंदर से पहले ही पहुँच जाती थी पर आज इंदर को इंतेज़ार करना पड़ रहा था. वो शहेर के बाहर एक सुनसान इलाक़े में गाड़ी रोके खड़ा था. कामिनी और वो अक्सर यहीं मिला करते थे.

थोड़ी देर बाद उसे कामिनी की गाड़ी आती हुई नज़र आई. वो अपनी कार से बाहर निकला. कामिनी ने उसकी कार के पिछे लाकर अपनी कार रोकी और उसकी तरफ चलती हुई आई.

"सॉरी" कामिनी ने करीब आते हुए कहा "आज देर हो गयी"

"कोई बात नही" इंदर ने मुस्कुराते हुए कहा "इतने वक़्त से तुम मेरा इंतेज़ार करती थी. आज मैने कर लिया तो कौन सी बड़ी बात है"

इंदर ने अपनी कार का दरवाज़ा खोला और वो दोनो उसकी कार की बॅक्सीट पर बैठ गये. दोपहर का वक़्त था और गर्मी सर चढ़कर बोल रही थी. इंदर ने कार का एसी ऑन कर दिया

कामिनी आज इंदर से पूरे 2 महीने बाद मिल रही थी. वो 2 महीने से कोशिश कर रहा था पर कामिनी मना कर देती थी. उसने हवेली जाने की सोची पर वहाँ वो अकेले में वक़्त नही बिता पाते थे.

"क्या हुआ?" इंदर ने रूपाली के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा "परेशान सी लग रही हो"

"कुच्छ नही" कामिनी ने ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा "तक गयी हूँ"

"इंदर कार की बॅक्सीट पर एक कोने में हो गया और कामिनी को इशारा किया के वो लेट जाए. कामिनी ने पहले तो मना किया पर इंदर के ज़ोर डालने पर वो लेट गयी और अपना सर इंदर की जाँघ पर रख लिया

"क्या हुआ आज हमेशा की तरह कोई शायरी नही?" इंदर ने पुचछा

"जब ज़िंदगी खुद अपनी शायरी सुनाना शुरू कर दे तो इंसान कहाँ शायरी कर पता है" कामिनी ने उदास सी आवाज़ में जवाब दिया

"क्या हुआ?" इंदर ने दोबारा पुचछा

"कुच्छ नही. बस इंसान का चेहरा देखकर कभी कभी समझ नही आता के असली कौन सा है और नकली कौन सा" कामिनी ने कहा और अपनी आँखें बंद कर ली

इंदर ने उसके उदास चेहरे की तरफ देखा और आगे कुच्छ ना पुछा. वो प्यार से कामिनी के सर पर हाथ फेरता रहा

कामिनी ने सलवार कमीज़ पहेन रखी थी. इंदर की गोद में लेटे होने की वजह से उसका दुपट्टा सरक कर कार में नीचे गिर पड़ा था. वो इस तरीके से लेटी हुई थी के दोनो टांगे भी उपेर सीट पर थी और उसका पूरा जिस्म मुड़ा हुआ था जिसकी वजह से नीचे दे दबाव पड़ने के कारण उसकी चूचियाँ कमीज़ के उपेर से बाहर को निकल रही थी.

इंदर की नज़र कामिनी की चूचियों पर पड़ी तो पहले तो उसने नज़र फेर ली पर फिर दोबारा उसी तरफ देखने लगा. कामिनी और उसके बीच अब तक कोई जिस्मानी रिश्ता नही बना था. कभी कभी वो दोनो एक दूसरे को चूम लेते थे और बस. ना तो कभी इससे आगे बात गयी और ना ही इंदर ने कोशिश की के इससे आगे कुच्छ और करे. पर आज कामिनी को यूँ इस हालत में देखकर उसके दिल की धड़कन तेज़ होने लगी.

उसका हाथ कामिनी के सर पर रुक गया था. कुच्छ देर तक आँखें बंद रखने के बाद कामिनी ने आँखें खोली और इंदर की तरफ देखा. इंदर की नज़र अब भी उसकी चूचियों पर थी. कामिनी ने शर्मा कर अपने दोनो हाथ अपने सीने पर रख लिए.

उसकी इस हरकत से इंदर ने उसकी आँखों में देखा. वो धीरे से नीचे झुका और अपने होंठ कामिनी के होंठ पर रख दिए. कामिनी के मुँह से आह निकल गयी और उसका हाथ इंदर का सर सहलाने लगा. दोनो के होंठ आपस में एक दूसरे से चिपक गये और ज़ुबान एक दूसरे की ज़ुबान से टकराने लगी. अपने होंठ कामिनी के होंठों से चिपकाए हुए ही इंदर ने अपने एक हाथ से कामिनी के हाथों को उसके सीने से हटाया. कामिनी ने इनकार करना चाहा पर इंदर की ज़िद के आगे हार मानकर अपने हाथ हटा दिए. इंदर का हाथ उसके गले से होते हुआ उसके सीने पर आया और कमीज़ के उपेर से ही कामिनी की चूचियाँ दबाने लगा. अब तक कामिनी की साँसें भी भारी हो चली थी. ये पहली बार था के वो और इंदर इतने करीब आए थे और इंदर ने उसके जिस्म को च्छुआ था. उसने भी पलटकर पूरे ज़ोर से इंदर को चूमना शुरू कर दिया.

थोड़ी देर कमीज़ के उपेर से ही चूचिया सहलाने के बाद इंदर का हाथ फिर कामिनी के गले पर आया और इस बार उसके कमीज़ के गले से होते हुए अंदर गया और फिर ब्रा के अंदर घुसता हुआ सीधा कामिनी की नंगी चूची पर आ गया. कामिनी का पूरा जिस्म ऐसा हिला जैसे उसे कोई ज़बरदस्त झटका लगा हो. उसने अपने होंठ इंदर के होंठ से हटाया, उसका हाथ पकड़कर बाहर खींचा और उठकर बैठ गयी. बैठकर वो ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगी और अपने बाल ठीक करने लगी. नीचे पड़ा दुपट्टा उठाकर उसने अपने गले में डाल लिया

"क्या हुआ?" इनडर ने पुचछा.

कामिनी ने जवाब नही दिया तो उसने अपना हाथ उसके हाथ पर रखा

"क्या हुआ कामिनी? बुरा लगा क्या?" इंदर ने उसके करीब होने की कोशिश की पर कामिनी दूर होती हुई कार का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गयी

"ओक आइ आम सॉरी" इंदर भी अपनी तरफ का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला "तुम जानती हो मैं तुमसे प्यार करना चाहता हूँ और शादी करना चाहता हूँ इसलिए शायद थोड़ा आगे बढ़ गया. कुच्छ ग़लत किया मैने?"

"नही. कुच्छ ग़लत नही किया"कामिनी पलटकर चिल्लाई "ये तो हमारे रिश्ते के लिए बहुत ज़रूरी था ना"

"कामिनी !!!!! " इंदर ने पहली बार कामिनी को यूँ चिल्लाते देखा था इसलिए हैरानी से उसकी तरफ देखने लगा

"इस जिस्म में ऐसा क्या है इंदर जो हर कोई पागल हुआ रहता है इसके पिछे. के अपनी आग लोगों से संभाली नही जाती" कामिनी अब भी गुस्से में थी

"क्या मतलब?" इंदर को समझ नही आ रहा था के कामिनी यूँ ओवर रिक्ट क्यूँ कर रही थी

"हर किसी को यही चाहिए, है ना? हर किसी को बस इसी एक चीज़ की ख्वाहिश लगी रहती है. फिर ना तो रिश्ते मतलब रखते हैं और ना कोई और चीज़. फिर चाहे जितना गिरना पड़े पर जिस्म की आग बुझनी चाहिए, चाहे किसी के साथ भी हो. फिर ये नज़र नही आता के कौन अपने घर का है और कौन ........." कामिनी ने बात अधूरी छ्चोड़ दी. इंदर अब भी उसको चुप खड़ा देख रहा था

"बस यही एक चीज़ चाहिए सबको" कामिनी ने दोनो हाथ हवा में फेलते हुए फिर अपनी बात दोहराई

"सबको मतलब" इंदर बस इतना ही कह सका. कामिनी उसकी बात का जवाब दिए बिना अपनी कार में बैठी और वहाँ से निकल गयी.

"उसके बाद?" रूपाली इंदर से पुचछा

"वो आखरी बार था जब कामिनी मेरे इतने करीब आई थी. उसके बाद अगले 2 महीने तक मैं फोन ट्राइ करता रहा पर उससे बात नही हो पाई. मैं कई बार हवेली आपसे मिलने आया पर वो मुझे देखकर अपने कमरे में चली जाती थी और तब तक बाहर नही आती थी जब तक के मैं वापिस ना चला जाऊं" इंदर बोला

"उसने कुच्छ नही बताया के वो किस बात को लेकर इतना परेशान थी?" रूपाली को समझ नही आ रहा था के क्या सोचे

"इस बात का मौका ही नही मिला दीदी के मैं उससे आराम से बैठकर बात कर पाता या कुच्छ पुच्छ पाता. उस दिन जब वो मिली तो मुझसे लड़कर चली गयी थी. पता नही किसका गुस्सा उसने मुझपर निकाला था और उसके बाद कभी हमें मौका ही नही मिला के आराम से बैठकर बात कर पाते" इंदर ने कहा

"तो अपनी रेवोल्वेर कब दी तुमने उसको?" रूपाली ने पुचछा

"जीजाजी के खून से 3 दिन पहले उसका मेरे पास फोन आया" इंदर ने आगे बताना शुरू किया

इंदर अपने कमरे में बैठा एक किताब पढ़ रहा था. फोन की घंटी बजी तो उसने आगे बढ़कर फोन उठाया. फोन के दूसरी तरफ से कामिनी के रोने की आवाज़ आई.

"कामिनी" इंदर जैसे चिल्ला उठा "ओह थॅंक गॉड कामिनी. मुझे तो लगा था के तुम मुझसे अब कभी बात ही नही करोगी. मेरी ग़लती की इतनी बड़ी सज़ा दे रही थी मुझे?"

दूसरी तरफ से कामिनी ने कुच्छ नही कहा. बस रोती रही. उसके रोने की आवाज़ ऐसी थी जैसे वो बहुत तकलीफ़ में हो. इंदर से बर्दाश्त नही हुआ. उसकी अपनी आँखो में पानी आ गया

"मुझे माफ़ कर दो कामिनी. मैं मानता हूँ के ग़लती मेरी है. मुझे शादी से पहले ऐसी हरकत नही करनी चाहिए थी. पर तुम जानती हो मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ. मैं आज ही तुमसे शादी करने को तैय्यार हूँ अगर तुम कहो तो. हम अपने घर में बात कर लेंगे. नही माने तो कोर्ट मॅरेज कर लेंगे. मेरा यकीन करो कामिनी" इंदर पागलों की तरह कहता जा रहा था.

कुच्छ देर दोनो खामोश रहे. थोड़ी देर बाद रूपाली ने रोते रोते कहा

"मुझे नही पता के अब मैं किसका यकीन करूँ और किसका नही इंदर. अब तो हर कोई अजनबी सा लगने लगा है. हर किसी की शकल देखकर ऐसा लगता है जैसे उसने अपनी शकल पर एक परदा सा डाल रखा हो. अंदर से कुच्छ और और बाहर से कुच्छ और. किस्मत का खेल तो देखो इंदर के जो अपने थे वो पराए हो गये और जो पराया था वो अपना गया."

"मैं कभी पराया नही था कामिनी. मैं तो हमेशा से तुम्हारा अपना था. तुम ऐसी बातें क्यूँ कर रही हो?" इंदर तदपकर बोला

फोन पर फिर थोड़ी देर तक खामोशी बनी रही

"मेरी जान को ख़तरा है इंदर" रूपाली ने रोना बंद करते हुए कहा

इंदर को ऐसा लगा जैसे उसको 1000 वॉट का झटका लगा हो

"किससे?" उसने पुचछा

"ये सब बातें बाद में. मैं अभी ज़्यादा देर बात नही कर सकती. तुम मेरी बात सुनो. तुम मुझे कोई हथ्यार दे सकते हो? हिफ़ाज़त के लिए? तुम्हारी कोई पिस्टल या रेवोल्वेर?" कामिनी अब बहुत धीरे धीरे बोल रही थी

"पिस्टल? ऱेवोल्वेर? तुम क्या कह रही हो मेरी कुच्छ समझ नही आ रहा" ईन्देर के सचमुच कुच्छ भी पल्ले नही पड़ रहा था

"अभी समझने का वक़्त नही है. तुम एक काम करो. कल दोपहर 2 बजे उसी जगह पर मेरा इंतेज़ार करना जहाँ हम आखरी बार मिले थे. और अपनी रेवोल्वेर लेकर आना" कामिनी ने कहा

"कामिनी मेरी बात सुनो" इंदर बोला "कल 2 बजे तो मैं आ जाऊँगा पर ......."

वो अभी कह ही रहा था के पिछे से सरिता देवी की आवाज़ आई"

"कामिनी बेटा"

और कामिनी ने फोन काट दिया.
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06-21-2018, 12:18 PM,
#39
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
अगले दिन इंदर कामिनी की बताई हुई जगह पर खड़ा इंतेज़ार कर रहा था. कामिनी ने 2 बजे आने को कहा था पर 3 दिन बज चुके थे और वो अब तक नही आई थी. कल रात से इंदर का सोच सोचकर दिमाग़ फटा जा रहा था. जान को ख़तरा? अपने अजनबी हो गये? कामिनी की कही कोई बात उसे समझ नही आ रही थी.

जब घड़ी में 3 बज गये तो वो समझ गया के कामिनी नही आएगी. उसने वापिस जाने का फ़ैसला किया और कार स्टार्ट ही की थी के रिव्यू कार में उसे कामिनी की गाड़ी आती हुई दिखाई दी. उसकी जान में जान आई. कामिनी ने उसकी कार के पिछे अपनी कार लाकर रोकी. इंदर अपनी गाड़ी से निकालने ही वाला था के कामिनी खुद अपनी कार से निकलकर जल्दी जल्दी इंदर की गाड़ी की तरफ आई और दरवाज़ा खोलकर अंदर आ गयी.

"गन लाए?" कामिनी ने गाड़ी में बैठते ही पुचछा

"हां लाया हूँ पर मेरी बात सुनो कामिनी" इंदर ने कुच्छ कहना चाहा ही था के कामिनी ने सामने रखी रेवोल्वेर देखी और जल्दी से उठा ली

"अभी कुच्छ कहने या सुनने का वक़्त नही है इंदर. मैं ये गन कुच्छ दिन बाद तुम्हें लौटा दूँगी और तब सब कुच्छ समझा दूँगी" कहकर कामिनी ने अपनी तरफ का दरवाज़ा खोला और इससे पहले के इंदर कुच्छ कह पता या कर पाता वो कार से बाहर निकल गयी. इंदर भी जल्दी से अपनी तरफ का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला. कामिनी तेज़ कदमों से चलती अपनी कार की तरफ जा रही थी और जब तक के इंदर उस तक पहुँचता, वो कार स्टार्ट कर चुकी थी.

"रूको कामिनी" इंदर भागता हुआ कामिनी की तरफ आया और कार की विंडो पर हाथ रखकर झुका "तुम मेरे साथ ऐसा नही कर सकती. तुम्हें बताना होगा के आख़िर हो क्या रहा है"

कामिनी उसकी तरफ देखकर मुस्कुराइ और इंदर के चेहरे पर प्यार से हाथ फेरा.

"इंदर" उसने मुस्कुराते हुआ कहा "मेरा इंदर"

"मैं हमेशा तुम्हारा हूँ कामिनी पर .... "इंदर ने कुच्छ कहना चाहा ही था के कामिनी ने उसके होंठ पर अपनी अंगुली रख कर उसे चुप करा दिया

"तुम्हें याद है इंदर जब हम पहली बार मिले थे तब मैने तुम्हें एक शेर सुनाया था और मैने कहा था के खुदा ना करे मुझे कभी इसकी आखरी लाइन्स भी तुम्हें कहनी पड़ें?" कामिनी ने पुचछा तो इंदर ने हां में सर हिला दिया

कामिनी खिड़की के थोडा नज़दीक आई और इंदर के गले में हाथ डालकर उसे थोड़ा नज़दीक किया. अगले ही पल दोनो के होंठ मिल गये. कामिनी उसे धीरे धीरे प्यार से चूमने लगी और फिर अपने होंठ इंदर के होंठ से हटाकर उसके कान के पास लाई. अपनी उसी अंदाज़ में फिर वो ऐसे बोली जैसे कोई बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो.

"कुच्छ इस अदा से आप यूँ पहलू-नॅशिन रहे

जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे

ये दिन भी देखना फाज़ था तेरी आश्की में,

रोने की हसरत है मगर आँसू नहीं रहे,

जा और कोई सुकून की दुनिया तलाश कर,

मेरे महबूब हम तो तेरे क़ाबिल नहीं रहे"

और इससे पहले के इंदर कुच्छ समझ पाता, कामिनी के कार उसकी आँखो से तेज़ी के साथ दूर होती जा रही थी.

"बस" इंदर ने एक लंबी साँस ली "इतनी ही थी हमारी कहानी. आप पुच्छ रही थी ना के हम कितना करीब आए थे? इतना करीब आए थे हम दीदी"

और इंदर अपना सर अपने हाथों में पकड़कर रोने लगा

"तुमने ये बात किसी से कही क्यूँ नही?" रूपाली ने पुचछा

"मैं क्या कहता? इंदर बोला "जीजाजी का खून होने के बाद अगर मैं किसी से ये कहता के मैने गन कामिनी को दी थी तो सब लोग क्या समझते? और अगर ये कहता के मेरे से गुम हुई है तो सब मेरे बारे में क्या सोचते? बिल्कुल वही सोचते जो इस वक़्त वो इनस्पेक्टर सोच रहा है"

रूपाली थोड़ी देर तक इंदर के सामने चुप बैठी रही. उसे समझ नही आ रहा थे के क्या कहे और इंदर को कैसे संभाले. माहौल को हल्का करने के लिए उसने बात बदलने की सोची

"एक लड़की के इश्क़ में यूँ रो रहे हो और हरकतें कुच्छ और कर रहे हो?" उसने इंदर के सर पर हल्के से थप्पड़ मारा

"क्या मतलब" इंदर ने अपना सर उपेर उठाया

"मैने देखा था बेसमेंट में. तुम्हें और वो कल की छ्छोकरी पायल को

इंदर का मुँह हैरानी से खुला रह गया. वो रूपाली के मुस्कुराते चेहरे को थोड़ी देर तक देखता रहा और फिर खुद शरमाता हुआ हस पड़ा

"आप वहाँ कब आई?"

"जिस तरह से वो पायल टेबल पर लेटी शोर मचा रही थी उससे तो मुझे हैरानी है के पूरा गाओं क्यूँ नही आ गया" रूपाली ने जवाब दिया तो दोनो भाई बहेन हस पड़े

"मैं क्या करता दीदी" इंदर ने कहा "कामिनी जिस तरह से गयी उससे मैं बोखला उठा था. सोचा मैं क्यूँ एक लड़की के इश्क़ में मारा जा रहा हूँ. उसके बाद जो सामने आई मैं नही रुका. पता नही क्या साबित करना चाह रहा था या पता नही दिल ही दिल में शायद कामिनी को दिखाना चाह रहा था के मैं उसके बिना जी सकता हूँ. कमी नही है मेरे पास"

उसके बाद रूपाली और थोड़ी देर इंदर के कमरे में बैठी रही. उसके बाद वो उठकर अपने कमरे में आ गयी. अचानक उसे कामिनी के कमरे में मिली सिगेरेत्टेस की बात याद आई. उसने सोचा के इंदर से पुच्छे के क्या वो कामिनी को सिगेरेत्टेस लाकर देता था? ये सोचकर वो वापिस इंदर के कमरे पर पहुँची तो कमरा अंदर से बंद था. रूपाली ने खोलने की कोशिश की तो कमरे को अंदर से लॉक पाया. वो इंदर का नाम पुकारने ही वाली थी के अंदर से आती पायल की आवाज़ सुनकर उसका हाथ रुक गया. आवाज़ से सॉफ पता चल रहा था के अंदर पायल और इंदर क्या कर रहे हैं.

रूपाली का मुँह हैरत से खुला रह गया. उसे अभी इंदर के कमरे से गये मुश्किल से 15 मिनट ही हुए थे. जो लड़का अभी थोड़ी देर पहले बैठा कामिनी के इश्क़ में आँसू बहा रहा था वो 15 मिनट में ही पायल पर चढ़ा हुआ था. वो भी भरे दिन में. तब जबकि उसकी अपनी बड़ी बहेन और पायल की माँ उसी हवेली में मौजूद थी.

रूपाली वापिस अपने कमरे की और चल पड़ी. इंदर की हरकत से उसे शक़ होने लगा था के जो इंदर ने कामिनी के और अपने बारे में कहानी रूपाली को सुनाई थी, क्या वो सच थी. और अगर सच थी तो कितनी सच थी.

रात ढाल चुकी थी. पिच्छली कुच्छ रातों की तरह ये रात भी अलग नही थी. रूपाली अपने बिस्तर पर पड़ी थी. पूरी तरह नंगी. टांगे फेली हुई, एक हाथ उसकी छाती पर और दूसरा टाँगो के बीच उसकी चूत पर. उसे अपने उपेर हैरत थी के कहाँ कल की एक सीधी सादी घरेलू औरत और कहाँ एक ये औरत जिससे अपने जिस्म की गर्मी एक रात भी नही संभाली जाती थी. उसने अपनी 3 अंगुलिया अपनी चूत में घुसा रखी थी पर जिस्म था के खामोश होने का नाम ही नही ले रहा था. चिढ़कर रूपाली ने अपना हाथ टाँगो के बीच से हटाया और गुस्से में बिस्तर पर ज़ोर से मारा.

रात के तकरीबन 9 बजे तेज वापिस आ गया था. उसने रूपाली या किसी और से कोई बात नही की थी. चुप चाप बस अपने कमरे में चला गया था. काम ख़तम करके बिंदिया को भी रूपाली ने उसके ही कमरे में जाते देखा था. आज की रात रूपाली ऐसा भी नही कर सकती थी के पायल के साथ ही अपने जिस्म की आग भुझाने की कोशिश करे क्यूंकी पायल भी अपने कमरे में नही थी और रूपाली अच्छी तरह जानती थी के इस वक़्त वो इंदर के कमरे में चुद रही होगी.

इस ख्याल से उसका जिस्म और भड़कने लगा. परेशान होकर वो बिस्तर से उठी और नीचे बड़े कमरे में जाकर टीवी देखने का फ़ैसला किया क्यूंकी नींद आँखो से बहुत दूर थी.

सीढ़ियाँ उतरती रूपाली के कदम अचानक से रुक गये. बड़े कमरे में टीवी ऑन था. इस वक़्त कौन देख रहा हो सकता है? टीवी आखरी बार वो खुद ही देख रही थी और उसको अच्छी तरह से याद था के वो टीवी बंद करके गयी थी. सोचती हुई वो सीढ़ियाँ उतरी और जैसे ही बड़े कमरे में आई उसकी आँखें खुली रह गयी.

कमरे में टीवी ऑन था और उसपर कोई गाना चल रहा था. सामने चंदर बैठा हुआ था. गाने में हेरोयिन भीगी हुई सारी में हीरो को रिझाने की कोशिश कर रही थी जो उसके करीब नही आ रहा था. चंदर सामने ज़मीन पर टांगे मोड बैठा था. उसका पाजामा नीचे था और कुर्ता उसने उपेर करके अपने गले में फसाया हुआ था.आँखें टीवी पर गाड़ी हुई और उसका हाथ लंड को पकड़े उपेर नीचे हो रहा था.

रूपाली उसे एक पल वहीं खड़ी देखती रही. चंदर टीवी में इतना खोया हुआ था के उसे रूपाली के आने का आभास ही नही हुआ. रूपाली कभी टीवी की तरफ देखती तो कभी चंदर के हाथ जो उपेर नीचे हो रहा था. रूपाली की आँखों के आगे फिर वो नज़ारा आ गया जब चंदर ने उसको बस्मेंट में बिंदिया समझकर अंधेरे में चोद दिया था. रूपाली की पहले से गीली चूत से जैसे नदी सी बहने लगी. उसका दिल किया के आयेज बढ़कर चंदर का लंड पकड़ ले पर फिर वो खुद ही रुक गयी और उसका दिल खुद से ही सवाल जवाब करने लगा

सवाल : "एक नौकर के साथ?"

जवाब : तो क्या हुआ. भूषण भी तो नौकर ही था. पायल के साथ भी रूपाली सोई थी और पायल भी तो नौकरानी थी.

सवाल : पर वो एक ठकुराइन है

जवाब : तो क्या हुआ. जब उसका भाई घर की नौकरानी को चोद सकता है तो वो क्यूँ नही. और आज से पहले कौन सा उसने इस बारे में सोचा था.

सवाल : और ठाकुर साहब? उनसे तो वो प्यार करती थी.

जवाब : तो क्या हुआ? उस रात रूपाली के कहने पर जब ठाकुर ने पायल को चोदा था तब उन्होने तो ऐसा कुच्छ नही सोचा

सवाल : किसी को पता लगा तो

जवाब : चंदर उससे डरता है. उसकी मज़ाल नही के किसी से कुच्छ कहे. और फिर वो तो गूंगा है. चाहे भी तो कुच्छ कह नही सकता

रूपाली अपने सवाल जवाब में ही उलझी हुई थी के टीवी पर गाना ख़तम हो गया. चंदर का ध्यान टीवी से हटा तो उसको एहसास हो गया के पिछे कोई खड़ा है. पलटा तो रूपाली को देखकर वो डर से काँप उठा. फ़ौरन खड़ा हो गया. उसको इतना भी होश नही रहा के उसका पाजामा नीचे था. बस उसने जल्दी से अपने दोनो हाथ जोड़ दिए.

रूपाली के दिल ने जैसे फ़ैसला कर लिया. वो आगे बढ़ी. उसे करीब आता देख चंदर और भी डर से काँपने लगा. आँखो से आँसू तक गिर पड़े.

रूपाली चुपचाप उसके करीब आई और कुच्छ भी नही कहा. एक पल चंदे की आँखो में देखा और हाथ से उसका लंड पकड़ लिया.

रूपाली का हाथ लंड पर पड़ते ही चंदर उच्छल पड़ा और 2 कदम पिछे को हो गया. रूपाली भी उसके साथ साथी ही आगे को बढ़ी और फिर से चंदर का लंड पकड़ लिया. डर के मारे चंदर का लंड बिल्कुल बैठा हुआ था. रूपाली ने थोड़ी देर पाजामे के उपेर से लंड को सहलाया और फिर धीरे से हाथ चंदर के कुर्ते के अंदर डाल कर उसका लंड पकड़ लिया.

चंदर ने इस बार फिर से पिछे होने की कोशिश की पर रूपाली ने उसका लंड अपनी मुट्ठी में पकड़ रखा था इसलिए पिछे हो नही पाया. वो परेशान नज़र से रूपाली की तरफ देखने लगा. रूपाली ने एक बार उसकी तरफ देखा और फिर अपने दोनो तरफ नज़र घुमाई. उसने चंदर का लंड छ्चोड़ा और उसे अपना पाजामा उपेर करने को कहा. चंदर ने जल्दी से अपना पाजामा उपेर करके बाँध लिया और फिर से अपने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया.

रूपाली ने उसका एक हाथ पकड़ा और उसे लगभग खींचते हुए अपने कमरे में लाई. दरवाज़ा बंद करने के बाद रूपाली चंदर की तरफ बढ़ी ही थी के रुक कर मुस्कुराइ. उसे बिंदिया के कही वो बात याद आ गयी जब उसने ये बताया था के चंदर कह रहा था रात बेसमेंट में मज़ा नही आया. रूपाली चंदर की तरफ बढ़ी और उसको धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया.

चंदर बिस्तर पर गिरते ही दोबारा उठने लगा पर रूपाली ने उसको लेट रहने का इशारा किया. चंदर फिर बिस्तर पर लेट गया.

रूपाली अपनी अलमारी की तरफ बढ़ी और उसमें से अपने चार दुपट्टे निकाल लाई. चंदर अब भी उसको हैरान नज़र से देख रहा था. रूपाली उसके करीब आई और बिस्तर पर चढ़कर उसका कुर्ता उतारने लगी.चंदर ने मना करना चाहा तो उसने उसको घूरके देखा और चंदर ने अपने हाथ उपेर उठा दिया.

कुर्ता उतेर जाने के बाद रूपाली ने इशारे से चंदर को अपने दोनो हाथ उपेर करने को कहा जो उसने कर दिए. रूपाली ने मुस्कुराते हुए उसका एक हाथ पकड़ा और अपने दुपट्टे से उसका हाथ बिस्तर के कोने पर बाँध दिया. यही हाल उसने उसके दूसरे हाथ और फिर उसकी टाँगो का भी किया. अब चंदर बिस्तर पर पूरी तरह से बँधा हुआ पड़ा था.

जब रूपाली को यकीन हो गया के चंदर चाहकर भी नही हिल सकता तो वो उठकर सीधी खड़ी हुई. उसने महसूस किया के चंदर कमरे में नज़र घूमकर कुच्छ ढूँदने की कोशिश कर रहा है. जब रूपाली ने उसकी तरफ देखा तो चंदर ने अपने होंठ हिलाए. आवाज़ तो नही आई पर होंठ पढ़कर रूपाली समझ गयी के वो पुच्छ रहा है के बिंदिया कहाँ है. उसे याद आया के बिंदिया ने चंदर को ये कह रखा है के वो रात को रूपाली के साथ सोती है. रूपाली ने अपने कमरे के बीच के दरवाज़े की तरफ इशारा किया और कहा के बिंदिया उस तरफ दूसरे कमरे में है.

इशारा करके वो उठ खड़ी हुई. बिस्तर पर खड़े खड़े ही उसने अपनी नाइटी उपेर खींची और उतारकर फेंक दी. चंदर उसके नंगे जिस्म को घूरता ही रह गया. बड़ी बड़ी छातिया, भरा हुआ जिस्म, सॉफ की हुई चूत, चंदर की नज़र जैसे रूपाली के जिस्म का एक्स्रे कर रही थी. रूपाली एक पल के लिए यूँ ही बिस्तर पर खड़ी रही और चंदर को अपनी तरफ घूर्ने दिया.

थोड़ी देर बाद वो झुकी और अपनी दोनो चूचियाँ लाकर चंदर के मुँह पर दबा दी. चंदर का पूरा चेहरा उसकी चूचियों के बीच जैसे खो सा गया. रूपाली को इस सब में एक अजीब सा मज़ा आ रहा था. आज से पहले वो जितनी बार भी चुदी थी, वो चुद रही होती थी पर आज ऐसा लगा रहा था जैसे के वो खुद चुड़वा रही है. वो कंट्रोल में है. बिस्तर पर कोई और उसके जिस्म से नही खेल रहा बल्कि वो खुद एक मर्दाना जिस्म से खेल रही है.

चूचियो को थोड़ी देर चंदर के चेहरे पर रगड़ने के बाद वो थोड़ा सा उपेर हुई और अपने निपल्स उसके होंठों पर लगाने लगी. चंदर ने निपल अपने मुँह में लेने के लिए जैसे ही मुँह खोला रूपाली ने अपनी चूची पिछे कर ली. फिर वो बार बार ऐसा ही करती. चूची चंदर के मुँह के करीब लाती और जैसे ही वो निपल मुँह में लेने लगता वो पिछे को हो जाती. चंदर जैसे बोखला सा रहा था. वो चाहकर भी कुच्छ नही कर पा रहा था. उसके दोनो हाथ मज़बूती से बँधे हुए थे.

रूपाली थोडा नीचे खिसकी और अपनी चूचियाँ चंदर के सीने पर रगड़ने लगी. एक हाथ से उसने चंदर के पाजामे को खोलना शुरू किया और खींचकर नीचे कर दिया. चंदर का लंड फिर से खड़ा हो चुका था जिसे रूपाली अपने हाथ में पकड़कर उपेर नीचे करने लगी. रूपाली के हाथ के साथ साथ चंदर की कमर भी उपेर नीचे हो रही थी. रूपाली का दूसरा हाथ खुद उसकी चूत पर था.

जब उससे और बर्दाश्त नही हुआ तो वो उठ खड़ी हुई और चंदर के उपेर आ गयी. एक पल के लिए उसने नीचे होकर लंड चूत में लेने की सोची पर फिर इरादा बदलकर आगे को हुई और ठीक चंदर के चेहरे पर आकर खड़ी हो गयी. चंदर के चेहरा ठीक उसकी टाँगो के बीच था और नज़र रूपाली की चूत पर. रूपाली नीचे हुई और अपनी चूत लाकर चंदर के होंठो पर रख दी.

वो फ़ौरन पहचान गयी के चंदर ने आजसे पहले चूत पर मुँह नही लगाया था और शायद उसको पसंद भी नही था क्यूंकी वो अपना चेहरा इधर उधर करने की कोशिश कर रहा था पर रूपाली की भरी हुई गांद में जैसे उसका पूरा चेहरा दफ़न हो गया था. रूपाली को इसमें एक अलग ही मज़ा सा आ रहा था. उसे महसूस हो रहा था के वो आज जो चाहे कर सकती है, जैसे चाहे अपने जिस्म को ठंडा कर सकती है. उसने अपनी गांद आगे पिछे करनी शुरू की और चूत चंदर के मुँह पर रगड़ने लगी. उसकी साँस भारी हो चली थी और मुँह से आहह आहह की आवाज़ आनी शुरू हो गयी थी.

कुच्छ देर यही खेल खेलने के बाद वो फिर से खड़ी हुई और पिछे होकर फिर से नीचे बैठी पर इस बार उसकी चूत चंदर के मुँह के बजाय उसके लंड पर आई जो बहुत आसानी के साथ अंदर घुसता चला गया. लंड के अंदर जाते ही रूपाली के मुँह से एक लंबी आह निकल गयी. उसे लगा जैसे किसी प्यासे को पानी मिल गया हो. वो कुच्छ देर तक यूँ ही बैठी रही, लंड को चूत में महसूस करती रही, और फिर उपेर नीचे हिलना शुरू कर दिया. चंदर का लंड ठाकुर के लंड के मुक़ाबले कुच्छ भी नही था और रूपाली को इस बात की कमी खल रही थी पर इस वक़्त उसका वो हाल था के जो मिले वो अच्छा. वो किसी पागल की तरह चंदर के उपेर कूदने लगी. वो आगे को झुकती, अपने निपल्स चंदर के मुँह पर रगड़ती तो कभी उसकी चूची पर. लंड का चूत में अंदर बाहर होना बराबर जारी रहा.

थोड़ी देर बाद रूपाली के दिमाग़ में एक ख्याल आया. उसके पति और खुद ठाकुर ने कई बार उसकी गांद मारने की कोशिश की थी पर रूपाली ने करने नही दिया था. चंदर का लंड दोनो के मुक़ाबले छ्होटा था क्यूंकी वो खुद अभी बच्चा था. रूपाली ने कोशिश करने की सोची. वो थोड़ा सा उपेर हुई और लंड चूत से निकालकर हाथ में पकड़ लिया.
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06-21-2018, 12:18 PM,
#40
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
चंदर ने उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे पुच्छ रहा हो के हो गया क्या? रूपाली मुस्कुराइ, उसके लंड को अपनी गांद पर रखा और धीरे धीरे नीचे होने की कोशिश करने लगी.

वो नीचे को होती और लंड जैसे ही गांद में जाता उसके जिस्म में दर्द होना शुरू हो जाता और वो फिर उपेर हो जाती. कई जब कई बार कोशिश करने पर भी वो लंड ले नही सकी तो उसने गुस्से में एक लंबी साँस खींची, अपनी आँखें बंद की, लंड गांद पर रखा और नीचे बैठती चली गयी.

दर्द की एक ल़हेर उसके जिस्म में उपेर से नीचे तक दौड़ गयी पर वो रुकी नही. अगले ही पल उसकी गांद नीचे चंदर की जाँघ से मिल गयी और लंड पूरी तरह गांद में समा गया. रूपाली से दर्द बर्दाश्त नही हो रहा था और आँखो से आँसू बह रहे थे. वो अभी रुक कर साँस ही ले रही थी के नीचे से चंदर ने नीचे से कमर झटक कर गांद पर एक धक्का मारा. रूपाली की चीख निकल गयी.

अगले दिन रूपाली की आँख जल्दी खुल गयी. वो अब भी बिस्तर पर नंगी पड़ी थी और गांद में अब तक दर्द हो रहा था. कल रात उसने उस वक़्त तो गांद मारा ली थी क्यूंकी थोड़ी देर बाद मज़ा आने लगा था पर चंदर के जाने के बाद उसका सोना मुश्किल हो गया था. इतना दर्द तो उसे तब भी नही हुआ था जब वो शादी के बाद पहली बार चुदी थी.

वो बिस्तर से उठके नीचे आई और सबसे पहले देवधर को फोन करने की सोची जिसे उसने आज घर आने को कहा.

"मैं बस अभी निकल ही रहा था" देवधर ने कहा

"आप हवेली ना आएँ" रूपाली ने कहा

"जी?" देवधर की समझ ना आया

"आप सीधे जय के घर पहुँचे. मैं दोपहर 12 बजे आपसे वहीं मिलूंगी" रूपाली ने कहा और फोन रख दिया

तेज सुबह सुबह ही कहीं गायब हो गया था और इंदर अब तक सो रहा था. पायल और बिंदिया रूपाली को किचन में मिले.

बिंदया अब भी अपने पुराने कपड़े में ही खड़ी थी जबकि पायल ने रूपाली की दिए हुए कपड़े पहेन रखे थे.

बिंदिया को देखकर रूपाली के दिल में ख्याल आया के उसे भी कुच्छ कपड़े दे दे पर सवाल था के किसके. सोचा तो उसके दिमाग़ में अपनी सास का नाम आया. सरिता देवी के मरने के बाद से उनके कपड़े सब यूँ ही रखे थे.

रूपाली उस कमरे में पहुँची जिस में सरिता देवी ने अपने आखरी कुच्छ दिन गुज़ारे थे. बीमार होने के बाद उन्हें इस कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था और उनका सारा समान भी यहीं था. रूपाली कमरे में आई और कपड़े उठा उठाकर देखने लगी

कुच्छ कपड़े पसंद करने के बाद वो कमरे से निकल ही रही थी के उसे वो डिब्बा नज़र आया जिसमें सरिता देवी अपनी दवाई रखा करती थी. कुच्छ गोलियाँ डिब्बे में अब भी थी. अब उनका कुच्छ काम नही था ये सोचकर रूपाली ने डिब्बा उठाया और खोला.

उसमें नीचे एक पेपर मॉड्कर रखा हुआ था और उसपर कुच्छ गोलियाँ रखी हुई थी. रूपाली ने डिब्बा उलटकर दवाइयाँ बिस्तर पर गिराई. गोलियों के साथ ही अंदर रखा वो काग़ज़ भी निकालकर बिस्तर पर गिर पड़ा और तब रूपाली का ध्यान पड़ा के वो असल में एक काग़ज़ नही बल्कि एक तस्वीर थी.

तस्वीर ब्लॅक आंड वाइट थी. उसमें कामिनी एक लड़के के साथ खड़ी हुई थी. लड़का कौन था ये रूपाली पहचान नही सकी पर सबसे ज़्यादा हैरत उसे कामिनी के कपड़ो पर हुई. कामिनी कभी इस तरह के कपड़े नही पेहेन्ति थी और तब रूपाली ने ध्यान से देखा तो उसको एहसास हुआ को वो लड़की कामिनी नही बल्कि खुद सरिता देवी थी. ये उनकी जवानी के दीनो की तस्वीर थी. कामिनी शकल सूरत से बिल्कुल अपनी माँ पर गयी थी इसलिए कोई भी इस तस्वीर को देखकर ये धोखा खा सकता था के तस्वीर में कामिनी खड़ी है.

रूपाली का ध्यान सरिता देवी के साथ खड़े लड़के पर गया. जहाँ तक उसको पता था सरिता देवी का कोई भाई नही था और फोटो में खड़ा लड़का ठाकुर साहब तो बिल्कुल नही थे. लड़का शकल सूरत से खूबसूरत था पर सरिता देवी से हाइट में छ्होटा था. रूपाली ने तस्वीर उठाकर अपने पास रख ली और कमरे से बाहर निकल आई.

बाहर आकर उसने इनस्पेक्टर ख़ान को फोन किया और उसको भी हवेली आने के बजाय जय के घर पर मिलने की हिदायत दी.

इंदर अब तक सो रहा था. रूपाली ने उसे जगाना चाहा पर फिर अपनी सोच बदलकर तैय्यार हुई और खुद ही अकेली कार लेकर निकल पड़ी.

थोड़ी देर बाद वो हॉस्पिटल पहुँची.

ठाकुर अब भी बेहोश थे. भूषण वहीं बेड के पास बैठा हुआ था. रूपाली को देखकर वो खड़ा हुआ.

रूपाली वो तस्वीर अपने साथ लाई थी जो उसे सरिता देवी के कमरे में मिली थी. वो जानती थी के अगर कोई उसको तस्वीर में खड़े लड़के के बारे में बता सकता था तो वो एक भूषण ही था.

रूपाली ने तस्वीर निकालकर भूषण को दिखाई.

"कौन है ये आदमी काका?" उसने भूषण से पुचछा

तस्वीर देखते ही भूषण की आँखें फेल गयी.

"आपको ये कहाँ मिली?" भूषण ने पुचछा

"माँ के कमरे से" रूपाली अपनी सास को माँ कहकर ही बुलाती थी "कौन है ये?"

"था एक बदनसीब" भूषण ने कहा "जिसकी मौत इस हवेली में लिखी थी और उसको यहाँ खींच लाई थी"

"मतलब?" रूपाली ने पुचछा

"ये ठकुराइन के बचपन का दोस्त था. ये लोग साथ में पले बढ़े थे. सरिता देवी इसको अपने भाई की तरह मनती थी पर इसके दिल में शायद कुच्छ और ही था. जब उनकी शादी ठाकुर साहब के साथ हुई तो इसने बड़ा बवाल किया था सुना है पर शादी रोक नही पाया क्यूंकी सरिता देवी खुद ऐसा नही चाहती थी."

"फिर?" रूपाली ने पुचछा

"फिर शादी हो गयी और सब इस बात को भूल गये. ठाकुर साहब को तो इस बात की खबर भी उस दिन लगी जब ये हवेली में आ पहुँचा"

"हवेली?"रूपाली बोली

"हां" भूषण ने कहा "शादी के कोई 1 महीने बाद की बात है. एक दिन ये हवेली के दरवाज़े पर आ खड़ा हुआ और इसकी बदक़िस्मती के सबसे पहले ठाकुर साहब से ही टकरा गया. उनसे गुहार करने लगा के वो ठकुराइन से प्यार करता है और उनके बिना जी नही सकता. और जैसे इसके दिल की मुराद पूरी हो गयी"

रूपाली खामोश खड़ी सुन रही थी

"ठाकुर साहब ने इसे इतना मारा के इसने वहीं दम तोड़ दिया. लोग प्यार में जान देते हैं मैने सुना था पर उस दिन देखा पहली बार था" भूषण ने कहा

रूपाली को अपने कानो पर यकीन नही हो रहा था. उसे समझ नही आ रहा था के क्या कहे और क्या सोचे. उसने अपनी घड़ी पर नज़र डाली. दोपहर होने को थी. उसने फ़ैसला किया के तस्वीर के बारे में बाद में सोचेगी और वहाँ से निकालकर जय के घर की तरफ बढ़ी.

12 बजने में थोड़ी ही देर थी जब रूपाली ने जय के घर के बाहर कार रोकी. देवधर और इनस्पेक्टर ख़ान बाहर ही खड़े उसका इंतेज़ार कर रहे थे.

"यहाँ क्यूँ बुलाया?" ख़ान ने रूपाली को देखते हुए पुचछा

"सोचा के जो मेरा है वो वापिस ले लिया जाए" रूपाली ने कहा तो देवधर और ख़ान दोनो उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे

"आप ही ने कहा था ना के मेरे पति की मौत होते ही सब मेरे नाम हो गया था.पवर ऑफ अटर्नी बेकार थी तो मतलब के जय ने जिस हक से ये घर खरीदा वो भी ख़तम था. तो मतलब के ये घर मेरा हुआ?" रूपाली ने कहा तो ख़ान और देवधर दोनो मुस्कुरा दिए और उसके साथ जय के घर के गेट की तरफ बढ़े.

वॉचमन ने बताया के जय घर पर ही था और अंदर जाकर जय को उनके आने की खबर करके आया. कुच्छ देर बाद वो तीनो जय के सामने बैठे थे.

जाई तकरीबन पुरुषोत्तम की ही उमर का था. शकल पर वही ठाकुरों वाली अकड़. बैठा भी ऐसे जैसे कोई राजा अपने महेल में बैठा हो.

रूपाली को हैरत थी के वो कभी जाई से मिली नही थी. वो उसकी शादी से पहले ही अलग घर बनाकर रहने लगा था पर कभी किसी ने उसका ज़िक्र रूपाली के सामने नही किया था और ना ही रूपाली ने उसको अपनी शादी में देखा था जबकि वो उसके पति का सबसे करीबी था. पर इसका दोष उसने खुद को ही दिया. उन दीनो तो उसे अपनी पति तक की खबर नई होती थी, जाई की क्या होती.

"कहिए" उसने रूपाली को देखते हुए पुचछा

"गेट आउट" रूपाली ने उसे देखते हुए कहा

"क्या?" जाई ने ऐसे पुचछा जैसे अँग्रेज़ी समझ ही ना आती हो

"मेरे घर से अभी इसी वक़्त बाहर निकल जाओ" रूपाली ने कहा

"आपके घर से?" जाई ने हस्ते हुए पुचछा

रूपाली ने देवधर की तरफ देखा. देवधर आगे बढ़ा और वो सारी बातें जाई को बताने लगा जो उसने पहले रूपाली को बताया था. धीरे धीरे जाई की समझ आया के रूपाली किस हक से उसके घर को अपना कह रही थी और वो परेशान अपने सामने रखे पेपर्स को देखने लगा.

"और अगर मैं जाने से इनकार कर दूँ तो?" जाई ने पेपर्स एक तरफ करते हुए पुचछा

रूपाली ने खामोशी से इनस्पेक्टर ख़ान की तरफ देखा. वो जानती थी के जाई ऐसा बोल सकता है इसलिए ख़ान को साथ लाई थी

"मैं ये मामला अदालत में ले जाऊँगा. ऐसे कैसे घर आपका हो गया? मैं अपने वकील को बुलाता हूँ" जाई ने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया

"बाहर एक एसटीडी बूथ है. वहाँ से करना. फिलहाल घर से बाहर निकल" ख़ान बीचे में बोल पड़ा

"तमीज़ से बात करो" जाई ख़ान पर चिल्लाते हुए बोला

"ये देखा है?" ख़ान ने अपना हाथ आगे किए "एक कान के नीचे पड़ा ना तो तमीज़ और कमीज़ में फरक समझ नही आएगा तुझे. चल निकल"

जाई चुप हो गया. वो उठकर घर के अंदर की तरफ जाने लगा.

"वहाँ कहाँ जा रहा है?" ख़ान फिर बोला "दरवाज़ा उस तरफ है"

"अपना कुच्छ समान लेने जा रहा हूँ" जाई रुकते हुए बोला

"वो समान भी मेरे पैसो से आया था तो वो भी मेरा हुआ. अब इससे पहले के मैं ये कपड़े जो तुमने पहेन रखे हैं ये भी उतरवा लूँ, निकल जाओ" रूपाली खड़ी होते हुए बोली

"फिलहाल तो जा रहा हूँ पर इतना आसान नही होगा आपके लिए मुझे हराना" जाई ने कहा तो रूपाली मुस्कुराने लगी

"आपको क्या लगता है के ये सब उस नीच ठाकुर का है जो अपने ही भाई को दौलत के लिए मार डाले? जो साले अपने घर की नौकरानी को भी नही छ्चोड़ते?" जाई ने रूपाली के करीब आते हुए कहा.

उसकी इस हरकत पर ख़ान उसकी तरफ बढ़ा पर रूपाली ने उसको हाथ के इशारे से रोक दिया

"क्या मतलब?" उसने जाई से पुचछा "क्या बकवास कर रहे हो?"

"सच कह रहा हूँ" जाई ने कहा "आपको शायद नही पता पर मैने देखा है. वो भूषण की बीवी, उसे ठाकुर के खानदान ने अपनी रखैल बना रखा था. ज़बरदस्ती सुबह शाम रगड़ते थे उसे. ठाकुर, तेज, कुलदीप और खुद आपके पति पुरुषोत्तम सिंग जी"

"भूषण की बीवी?" रूपाली हैरान हुई

"जी हां" तेज बोला "जब उस बेचारी ने जाकर सब कुच्छ भूषण या आपकी सास को बता देने की धमकी दी तो गायब हो गयी और बात ये फेला दी गयी के अपने किसी आशिक़ के साथ भाग गयी"

रूपाली के दिमाग़ की बत्तियाँ जैसे एक एक करके जलने लगी. हवेली में मिली लाश जो कामिनी की नही थी, कुलदीप के कमरे में मिला वो ब्रा. खुद ख़ान भी चुप खड़ा सुन रहा था.

"तुम्हें ये कैसे पता?" रूपाली ने पुचछा

"हवेली में बचपन गुज़ारा है मैने. देखा है सब अपनी आँखो से. जैसे ही वो हवेली में काम करने आई तो सबसे पहले ठाकुर की नज़र उस पर पड़ी तो पहले उन्होने काम किया. फिर उनकी देखा देखी उनके सबसे बड़े बेटे पुरुषोत्तम सिंग जिन्हें दुनिया भगवान राम का अवतार समझती थी उन्होने अपना सिक्का चला दिया बेचारी पर. जब बड़े भाई ने मुँह मार लिया तो बाकी के दोनो कहाँ पिछे रहने वाले थे. मौका मिलते ही तेज और कुलदीप ने फ़ायदा उठा लिया"

रूपाली की आँखों के आगे अंधेरा सा च्चाने लगा.

"बकवास कर रहे हो तुम" उसने जाई से कहा

"सच बोल रहा हूँ मैं. अपनी हवस संभाली नही जाती इन लोगों से, फिर चाहे वो औरत की हो या दौलत की और इसी के चलते पुरुषोत्तम भी मरा. आपसी लड़ाई थी वो इन लोगों की दौलत के पिछे. एक भाई ने दूसरे को मारा है" जाई ने कहा

पर रूपाली का दिमाग़ उस वक़्त दूसरी ही तरफ चल रहा था. उसे इंदर की कही बातें याद आ रही थी जो कामिनी ने उसको कही थी.

"बस जिस्म की आग बुझनी चाहिए. फिर नज़र नही आता के कौन अपने घर का है और कौन ........."

उसे अपने पति का वो रूप याद आया जो वो रोज़ रात को बिस्तर पर देखा करती थी. किस तरह से वो उसको नंगी करते ही इंसान से कुच्छ और ही बन जाता था. उसे याद आया के किस आसानी से बिंदिया तेज के बिस्तर पर पहुँच गयी थी और तेज ने मौका मिलते ही उसको चोद लिया था. उसको याद आया के किस आसानी से उस रात ठाकुर ने उसके सामने ही पायल को चोद लिया था. ज़रा भी नही सोचा था दोनो ने के वो एक मामूली नौकरानी है और वो वहाँ के ठाकुर. पर क्या कोई इतना गिर सकता था के अपनी ही बहेन के साथ? सोचकर रूपाली का दिमाग़ फटने लगा. तो ये वजह थी पायल के गायब होने की. अपने भाई को गोली मारकर छुपति फिर रही थी.

दोस्तो कैसा लगा ये पार्ट अपनी राय देना मत भूलना वैसे भी ये कहानी अब अपने अंत के पास आ चुकी है

दोस्तो दिमाग़ पर ज़ोर दीजिए ओर बताइए पुरूसोत्तम का कातिल कौन है
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