Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
06-21-2018, 12:14 PM,
#21
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
दोस्तो पार्ट 13 को आप कितना पसंद करेंगे ये तो मैं नही जानता लकिन मैं ये ही कहूँगा जब तक आप सारी कहानी नही पढ़ेंगे तब तक कहानी का पूरा आनंद नही उठा पाएँगे .आपका दोस्त राज शर्मा

पिछले भाग मैं आपने पढ़ा था रूपाली पायल को लेका बेसमेंट की सफाई के लिए जाती है रूपाली पायल की कमीज़ उतरवा देती है ओर फिर उसे सफाई के लिए कहती है अब आगे........

पायल ने कपड़ा लेकर समान पर धीरे धीरे मारते हुए धूल हटानी शुरू की. बरसो की चढ़ि हुई धूल फ़ौरन हवा में उड़ने लगी और पायल ख़ासने लगी.

"इधर आ" रूपाली ने उसे अपने पास बुलाया

पायल उसके सामने आकर खड़ी हो गयी. रूपाली ने अपने गले से दुपट्टा हटाया और उसके मुँह पर इस तरह बाँध दिया की उसकी नाक और मुँह ढक गये. दुपट्टा बाँधते हुए वो रूपाली के ठीक सामने खड़ी थी और रूपाली चाहकर भी अपनी नज़रें उसकी चूचियों से नही हटा पर रही थी.

पायल ने दोबारा सफाई करनी शुरू की. रूपाली दो कदम पिछे हटकर खड़ी उसे देख रही थी. पहले तो पायल एक हाथ से सफाई कर रही थी और दूसरा हाथ अपनी चूचियों पर रखा हुआ था पर जब रूपाली ने टोका तो उसने दूसरा हाथ भी हटा लिया और चूचियाँ खुली छ्चोड़ दी.

रूपाली उसके पिछे खड़ी उसे देख रही थी. पायल पसीने में पूरी तरह भीग चुकी थी और उसकी सलवार भी उसके जिस्म से चिपक गयी थी. रूपाली उसे तकरीबन नंगी हालत में देखते हुए उसका जिस्म उसकी माँ बिंदिया से मिलने लगी. पायल भी अपनी माँ बिंदिया की तरह अच्छी कद काठी में ढली हुई थी. उसमें देखने लायक बात ये थी के वो भी अपनी माँ की तरह एकदम ढली हुई थी. दोनो का बदन एकदम गठा हुआ था और कहीं भी हल्के से भी मोटापे का निशान नही था. पायल अपनी माँ से भी दुबली पतली थी पर जिस चीज़ में वो अपनी माँ और खुद रूपाली को भी हरा देती थी वो थी उसकी चूचियाँ जो उसकी उमर के हिसाब से कहीं ज़्यादा बड़ी हो गयी थी. रूपाली ने उसकी चूचियो को घूरकर देखा और अंदाज़ा लगाया के पायल की चूचियाँ उससे भी ज़्यादा बड़ी थी. बिंदिया पायल से थोड़ी लंबी थी और दिन रात चुदने के कारण उसकी गान्ड थोड़ी बाहर निकल गयी थी.

काफ़ी देर तक रूपाली इस सोच में डूबी रही और पायल धूल झाड़ने में. अचानक रूपाली की नज़र कमरे में रखे एक बॉक्स पर पड़ी. बॉक्स पर कोई ताला नही था. उसने पायल को रुकने को कहा और बॉक्स के पास पहुँची और उसे खोला.

बॉक्स में कुच्छ कपड़े रखे हुए थे. देखने से लग रहा था के काफ़ी अरसे से यहीं पड़े हैं. खुद उसे पता नही था के किसके हैं पर एकदम ठीक हालत में थे. उसने कुच्छ सोचा और पायल की तरफ मूडी.

"क्या लगता है? तुझे ये कपड़े आ जाएँगे?" उसने पायल से पुचछा

"पता नही" पायल ने कंधे उचका दिए. उसने अपना एक हाथ फिर अपनी चूचियों पर रख लिया था. जिस्म पसीने से भीगा होने की वजह से धूल उसके जिस्म से चिपक गयी थी.

"पहेनके देख" उसने सबसे उपेर रखी एक चोली उठाकर पायल की तरफ बधाई. पायल ने हाथ बढाकर चोली ली और देखने लगी के कहाँ से पहने. अचानक रूपाली ने उसे रोक लिया

"तेरे पूरे जिस्म पर धूल लगी हुई है. ऐसे मत पहेन" उसने पायल से कहा तो पायल रुक कर अपने आपको देखने लगी.

रूपाली ने बॉक्स में से एक कपड़ा निकाला जो देखने में एक पुराने दुपट्टे जैसा लगता था.

"इधर आ" उसने पायल को इशारा किया

पायल ने अपनी चूचियों को हाथ से ढक रखा था. रूपाली ने उसका हाथ झटक कर एक तरफ कर दिया और उसके मुँह से अपना दुपट्टा खोलकर एक तरफ रख दिया

"हाथ उपेर कर" उसने पायल के हाथ पकड़कर उसके सर के उपेर कर दिया. पायल के दोनो चूचियों उपेर को खींच गयी और वो हाथ उपेर किए अजीब नज़रों से रूपाली को देखने लगी.

रूपाली ने हाथ में पकड़े कपड़े से उसके बदन पर लगी धूल सॉफ करनी शुरू कर दी. पहले पायल का चेहरा, फिर उसकी गर्दन, फिर हाथ और फिर वो धीरे से कपड़ा पायल की चूचियों पर फेरने लगी.

"मालकिन मैं कर लूँगी" कहते हुए पायल ने अपने हाथ नीचे किए

"खड़ी रह चुप छाप" पायल ने गुस्से से कहा तो उस बेचारी ने फिर अपने हाथ उपेर कर लिए

रूपाली ने फिर उसकी चूचियों पर कपड़ा फेरना शुरू कर दिया. उसने महसूस किया के पायल की चूचियों बहुत मुलायम थी जबकि उसकी अपनी इतनी ज़्यादा नही थी. उसने एक एक करके दोनो चूचियों पर कपड़ा फेरा तो धूल हट गयी पर रूपाली नही हटी. उसे पायल की चूचियों पर कपड़ा फेरने में बहुत मज़ा आ रहा था. धीरे से उसने अपने दूसरे हाथ को भी छाति पर लगाया. एक हाथ से उसने चुचि पकड़ी और दूसरे हाथ से सॉफ करने लगी. पायल की चूचियाँ बहुत बड़ी होने की वजह से अपने ही वज़न से नीचे को ढालकी हुई थी. रूपाली ने अपने हाथ से दोनो चूचियों को बारी बारी उठाया और उनके नीचे कपड़ा फेरने लगी.

सॉफ करना तो बस अब एक बहाना रह गया था. रूपाली सफाई के बहाने पायल की दोनो चूचियों को लगभग रगड़ रही थी. कपड़े से कम अपने हाथ से ज़्यादा. उसने महसूस किया के पायल की चूचियाँ तो काफ़ी बड़ी थी पर निपल्स नाम भर के लिए ही थे बस. वो उसके निपल्स को अपनी उंगलियों के बीचे में पकड़ कर धीरे धीरे घुमाने लगी. पायल के मुँह से एक आह निकली तो रूपाली ने उसके चेहरे की तरफ देखा. पायल हाथ उपेर किए चुप चाप खड़ी थी और उसने अपनी आँखें बंद कर रखी थी. रूपाली को समझ नही आया के पायल को मज़ा आ रहा था या उसने शरम से आँखें बंद कर ली थी. खुद उसकी हालत तो ये थी के चूत गीली होनी शुरू हो गयी थी. रूपाली को खुद अपने उपेर हैरत हो रही थी के वो एक लड़की के जिस्म को ऐसे सहला रही थी जैसे खुद कोई मर्द हो. उसे पायल का नंगा जिस्म देखने में मज़ा आ रहा था जबकि खुद उसके पास भी वही था जो पायल के पास.

पायल की चूचियों से थोड़ी देर खेलने के बाद उसने नज़र नीचे की और धीरे से उसके पेट पर हाथ फेरा. पायल अब उसे कुच्छ नही कह रही थी. बस आँखें बंद किए चुप चाप खड़ी थी पर हां उसकी साँस थोड़ी तेज़ हो गयी थी. रूपाली ने हल्का सा पिछे होकर उसकी टाँगो के बीच नज़र डाली. पसीने से भीगी होने की वजह से पायल की सलवार उसकी चूत के उपेर चिपक गयी थी. रूपाली ने देखा के उसने अंदर पॅंटी भी नही पहनी हुई थी और चूत के बाल सलवार के उपेर से नज़र आ रहे थे. रूपाली के दिल में अचानक पायल को पूरी तरह नंगी देखने के चाह उठी.

इसमें कुच्छ ल़हेंगे और सलवार भी हैं. तू वो भी पहन के देख सकती है के तुझे आएँगे या नही" रूपाली ने कहा और पायल की तरफ देखा. पायल कुच्छ ना बोली और ना ही उसने अपनी आँखें खोली.

रूपाली आगे बढ़ी और उसने पायल की सलवार का नाडा खोल दिया

"मालकिन" इस बार पायल पर फ़ौरन असर हुआ. उसने अपने हाथ जल्दी से नीचे किया और घुटनो तक सरक चुकी सलवार को उपेर कमर तक खींचा

"क्या हुआ? ये सलवार क्या इसके उपेर ही पहेनके देखेगी?" रूपाली ने कहा

"मैं बाद में देख लूँगी मालकिन. आप मुझे दे दीजिए" पायल ने जल्दी से कहा

"मेरे सामने ही देख. सारे के सारे तुझे थोड़े दे दूँगी. मुफ़्त का माल है क्या. दो तीन पहनके देख ले और जो सही आते हैं वो रख लेना. कुच्छ अपनी माँ के लिए भी निकाल लेना" रूपाली ने कहा

"मैं बाद में देख लूँगी" पायल अपनी सलवार छ्चोड़ने को तैय्यार नही थी. उसने खुली हुई सलवार को ऐसे पकड़ रखा था जैसे रूपाली उसके साथ बलात्कार करने वाली हो. रूपाली को गुस्सा आने लगा.

वो आगे बढ़ी, पायल को कंधे से पकड़ा और उसे लगभग धक्का देते हुए दीवार के साथ लगाके खड़ा कर दिया. पायल की कमर पिछे दीवार के साथ जा लगी.

"छ्चोड़ इसे" उसने पायल के हाथ पकड़कर फिर ज़बरदस्ती उसके सर के उपेर कर दिए. सलवार सरक कर पायल के पैरों में जा गिरी. वो हाथ उपेर किए रूपाली के सामने मादरजात नंगी खड़ी थी.

रूपाली ने बॉक्स में से एक सलवार निकाली और उसे पायल की कमर से लगाकर देखने लगी

"ये ठीक लग रही है" कहते हुए उसने सलवार एक तरफ रखी और ऐसे ही दो तीन कपड़े निकालकर पायल की जिस्म पर लगा लगाकर देखने लगी. पायल ने फिर आँखें बंद कर ली थी.

"अरे आँखें खोल ना" उसने पायल से कहा तो पायल ने इनकार में सर हिला दिया

"हे भगवान" रूपाली ने थोडा सा गुस्से में कहा और पायल के करीब आई "मुझसे क्या शर्मा रही है. मैं एक औरत हूँ मर्द नही. मेरे पास भी वही है जो तेरे पास है"

पायल ने फिर भी आँख नही खोली.

"वैसे एक बात कहूँ पायल" रूपाली इस बार थोड़े नरम लहज़े में बोली "शुक्र माना के मैं औरत हूँ. तू नंगी इतनी सुंदर लगती है ना के मैं अगर मर्द होती तो तेरे साथ यहीं सुहग्रात मना लेती"

कहकर रूपाली हसी तो इस बार उसने देखा के पायल पहली बार मुस्कुराइ

"अब तो आँखें खोल दे" रूपाली ने कहा तो पायल ने धीरे से अपनी आँखें खोली. रूपाली उसके ठीक सामने खड़ी थी. दोनो की नज़रें एक दूसरे से मिली. ना रूपाली कुच्छ बोली और ना ही पायल. बस दोनो एक दूसरे कुच्छ पल के लिए देखती रही. फिर ना जाने रूपाली के दिल में क्या आई के वो दो कदम पिछे हटी और सामने खड़ी पायल को सर से पैर तक नंगी देखने लगी. जैसे किसी खरीदी हुई चीज़ को अच्छी तरह से देख रही हो. इस बार पायल भी कुच्छ नही बोली और ना ही उसने अपनी आँखें बंद की. हाथ तक नीचे नही किए. वैसे ही हाथ उपेर किए नंगी खड़ी रही. रूपाली फिर थोड़ा आगे आई और धीरे से एक हाथ पायल की चूत पर रखा. पायल सिहर उठी पर बोली कुच्छ नही. ना ही रूपाली का हाथ अपनी चूत से हटाया.

"ये बाल क्यूँ नही हटा ती यहाँ से?"रूपाली ने पायल से पुचछा तो पायल उसकी तरफ चुप चाप देखने लगी. उसकी आँखें चढ़ गयी थी जिससे रूपाली को अंदाज़ा हो गया के उसे मज़ा आ रहा है. रूपाली ने धीरे धीरे अपना हाथ चूत पर उपेर नीचे फेरना शुरू किया. उसे यकीन नही हो रहा था के उसके अंदर का एक हिस्सा ऐसा भी है जो एक औरत के साथ भी जिस्म का मज़ा ले सकता है. वो चुपचाप पायल की चूत रगड़ती रही और दूसरा हाथ उसकी छातियों पर फेरना शुरू कर दिया. अब पायल की आँखें बंद होने लगी थी और उसने ज़ोर ज़ोर से साँस लेनी शुरू कर दी थी. रूपाली ने उसके चेहरे से नज़र हटाकर उसकी छाती पर डाली और पायल के छ्होटे छोटे निपल्स को देखा. फिर अगले ही पल उसने दो काम किए. पहला तो ये के नीचे को झुक कर पायल का एक निपल अपने मुँह में ले लिया और दूसरा नीचे से अपनी एक अंगुली पायल की चूत के अंदर घुसा दी.

"मालकिन" चूत में अंगुली घुसते ही पायल इतनी ज़ोर से हिली के रूपाली भी लड़खड़ाके गिरते गिरते बची. वो पायल से थोड़ी दूर होके संभली और खुद को गिरने से रोका.

"दर्द होता है मालकिन" पायल ने रूपाली से कहा पर रूपाली अब उसकी तरफ नही देख रही थी. उसकी नज़र कमरे में एक कोने में रखे एक दूसरे बॉक्स पर थी.

वो बॉक्स बाकी सब समान के बिल्कुल पिछे एक कोने में रखा हुआ था. देखकर ही लगता था के उसे च्छुपाने की कोशिश की गयी है. बॉक्स रखकर उसके सामने बाकी सब फर्निचर और दूसरा समान खींचा गया है. पर जिस वजह से रूपाली का ध्यान उस बॉक्स की तरफ गया था वो उस बॉक्स पर लगा ताला था. कमरे में और किसी बॉक्स पर ताला नही था. पुराने बेकार पड़े समान पर ताला लगाकर कोई करता भी क्या पर ना जाने क्यूँ उस बॉक्स पर ताला था. और उसे देखके पता चलता था के वो बाकी के बॉक्सस के मुक़ाबले नया था.

"मालकिन" पायल फिर बोली तो रूपाली ने उसकी तरफ देखा. पायल अब भी वैसे ही नंगी खड़ी थी. उसने कपड़े पहेन्ने की कोई कोशिश नही की थी.

"तू एक काम कर. इसमें से कुच्छ कपड़े उठा ले और कपड़े पहेनकर उपेर जा. मैं आती हूँ" रूपाली ने कहा

"पर बाकी का काम?" पायल ने कमरे पर निगाह घूमाते हुए कहा

"दिन ढलना शुरू हो गया है. पिताजी भी आते होंगे. बाकी कल देखते हैं. तू चल. मैं आती हूँ थोड़ी देर बाद" रूपाली ने पायल को जाने का इशारा किया.

पायल ने बॉक्स से कुच्छ कपड़े उठाए, अपने कपड़े पहने और सीढ़ियाँ चढ़ती बस्मेंट से निकल गयी.

पायल के जाने के बाद रूपाली ने अपने कपड़े ठीक किए और बाकी रखे समान के बीच से होती बॉक्स तक पहुँची.

वो बॉक्स एक कपड़े रखने का पुराने ज़माने के संदूक जैसा बड़ा सा लड़की का बना हुआ था.काफ़ी वक़्त से रखा होने की वजह से उसपर भी धूल चढ़ गयी थी. उसपर पीतल का कुण्डा और चारो तरफ पीतल की ही बाउंड्री सी हो रखी थी. उस पीतल को देखकर ही मालूम पड़ता था के ये संदूक बाकी सारे बॉक्सस के मुक़ाबले यहाँ कम वक़्त से है. पर जिस बात से रूपाली की नज़र उसपर थी वो ये थी के इस पर ताला क्यूँ था.अगर इसमें भी बाकी के बॉक्सस की तरह पुरानी चीज़ें थी तो ताला लगाने की क्या ज़रूरत थी. घर में अब सिर्फ़ एक तरह से 2 ही लोग थे. वो और ठाकुर. उसका वो बॉक्स था नही और ठाकुर साहब के चीज़ें यहाँ ताले में क्यूँ पड़ी होंगी. एक पल के लिए उसके दिल में ठाकुर से पुच्छने का ख्याल आया पर अगले ही पल उसने वो ख्याल खुद दिल से निकाल दिया. वो पहले खुद उस बॉक्स को खोलकर देखना चाहती थी.

रूपाली ने आस पास नज़र दौड़ाई ताकि कुच्छ ऐसी चीज़ मिल जाए जिससे वो ताला तोड़ सके. वो अभी ढूँढ ही रही थी के पायल फिर सीढ़ियाँ उतारकर नीचे आई.

"ठाकुर साहब आ गये हैं. आपको याद कर रहे हैं" उसने रूपाली से कहा

रूपाली बॉक्स को बाद में खोलने का इरादा बनके उसके साथ हवेली के अंदर आई. खुद वो भी पूरी धूल में सनी हुई थी. उसे देखकर ठाकुर हस्ने लगे.

"ये क्या हाल बना रखा है?"

"सफाई करने की कोशिश कर रही थी" रूपाली ने उन्हें देखते ही चेहरे पर घूँघट डाल लिया क्यूंकी पायल साथ थी.

"अरे तो ये काम खुद करने की क्या ज़रूरत थी. कल तक रुक जाती. हम नौकर बुलवा देते" ठाकुर ने कहा

"रुक ही गयी हूँ. अब तो कल ही होगा. कोशिश थी के मैं और पायल मिलकर कर लें पर बहुत मुश्किल है" रूपाली ने जवाब दिया

"ह्म्‍म्म्म " ठाकुर ने जवाब दिया

"हाँ ज़रा कपड़े बदलके आते हैं" रूपाली ने कहा और अपने कमरे की और चली. पायल भी उसके साथ थी.

"मेरे साथ आ ज़रा" रूपाल ने पायल को कहा तो वो उसके साथ अंदर आ गयी

अंदर आकर रूपाली ने कमरा बंद किया और पायल के सामने ही कपड़े उतारने लगी. सलवार और कमीज़ उतारके वो सिर्फ़ एक ब्रा और पॅंटी में रह गयी.

"ये कपड़े ले जाके धुलने के लिए डाल दे" उसने अपने कमीज़ और सलवार पायल की तरफ बढ़ाए

पायल आँखें खोले उसकी तरफ देख रही थी जैसे यकीन ना हो रहा हो के रूपाली उसके सामने आधी नंगी खड़ी है. रूपाली की पॅंटी सामने से बस उसकी चूत को हल्का सा ढक रही थी. उसने गौर किया के पायल की नज़र उसकी टाँगो के बीच थी.

"ऐसे क्या देख रही है" उसने पायल से पुचछा "वही सब है जो तेरे पास है. कुच्छ नया नही है"

पायल उसकी बात सुनकर थोड़ा झेंप गयी पर अगले ही पल हल्की सी आवाज़ में बोली

"तो आप मुझे नीचे क्यूँ देख रही थी?"

उसने कहा तो रूपाली हास पड़ी पर कुच्छ जवाब ना दिया. पायल अब भी टेडी नज़रों से उसकी पॅंटी की तरफ देख रही थी

"इतने गौर से क्या देख रही है?" रूपाली ने पुचछा

"वो मालकिन आपके .... "पायल ने बात अधूरी छ्चोड़ दी

"क्या?" रूपाली ने उसकी नज़र का पिच्छा करते हुए अपनी चूत की तरफ देखा

"आपके बाल नही है यहाँ पर." पायल ने ऐसे कहा जैसे कोई बहुत राज़ की बात बताई हो

"हां पता है मुझे. साफ करती हूँ. तू भी किया कर" रूपाली ने कहा और पलटकर अपना टॉवेल उठाया

"किससे?" पायल ने पुचछा

"बताऊंगी बाद में. अभी तू जा. मुझे नाहकार नीचे जाना है. पिताजी से कुच्छ बात करनी है" रूपाली ने कहा तो पायल गर्दन हिलाती चली गयी.

नाहकार रूपाली नीचे पहुँची. ठाकुर बड़े कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे.

"कैसा रहा सब?" रूपाली ने पुचछा

"जी?" ठाकुर उसकी बात नही समझे

"केस की पहली डेट थी ना" रूपाली ने कहा

"ओह" ठाकुर उसकी बात समझते हुए बोले "कुच्छ ख़ास नही हुआ. आज पहला दिन था तो बस दोनो तरफ से अपनी दलील पेश की गयी. सुनवाई अभी शुरू नही हुई. एक हफ्ते बाद की तारीख मिली है."

"तो इतना वक़्त कहाँ लग गया ?" रूपाली ने दोबारा पुचछा
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06-21-2018, 12:14 PM,
#22
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
"आप ही की तरह हम भी ये कोशिश कर रहे हैं के हवेली को फिर पहले की तरह बसा सकें. कुच्छ लोगों से बात करी है. कल से हमारी ज़मीन पर फिर से काम शुरू हो जाएगा. वहाँ फिर से खेती होगी. और हमने फ़ैसला किया है के खेती के सिवा हम और भी दूसरा कारोबार शुरू करेंगे."

"दूसरा कारोबार?" रूपाली ने उनके सामने बैठते हुए पुचछा

"हां सोचा है के एक कपड़े की फॅक्टरी लगाएँ. काफ़ी दिन से सोच रहे थे. आज उस सिलसिले में पहला कदम भी उठाया है. वकील और फॅक्टरी लगाने के लिए एक इंजिनियर से भी मिलके आए हैं" ठाकुर ने जवाब दिया

"ह्म .... "रूपाली मुस्कुराते हुए बोली.उसने अपना घूँघट हटा लिया था क्यूंकी पायल आस पास नही थी "आपको बदलते हुए देखके अच्छा लग रहा है"

"ये आपकी वजह से है" ठाकुर ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया "और एक और चीज़ करके आए हैं हम आज. वो हमने आपके लिए किया है"

"क्या" रूपाली ने फ़ौरन पुचछा

"वो हम आपको कल बताएँगे. और ज़िद मत करिएगा. हमारे सर्प्राइज़ को सर्प्राइज़ रहने दीजिए. कल सुबह आपको पता चल जाएगा"

ठाकुर ने पहले ही ज़िद करने के लिए मना कर दिया था इसलिए रूपाली ने फिर सवाल नही किया. अचानक उसके दिमाग़ में कुच्छ आया और वो ठाकुर की तरफ देखती हुई बोली

"उस लाश के बारे में कुच्छ पता चला?"

लाश की बात सुनकर ठाकुर की थोड़ा संगीन हुए

"नही. हम इनस्पेक्टर ख़ान से भी मिले थे. वो कहता है के सही अंदाज़ा तो नही पर काफ़ी पहले दफ़नाया गया था उसे वहाँ." ठाकुर ने कहा

"आपको कौन लगता है?" रूपाली ने पुचछा

"पता नही" ठाकुर ने लंबी साँस छ्चोड़ते हुए बोले " हमारे घर से ना तो आज तक कोई लापता हुआ और ना ही ऐसी मौत किसी को आई तो यही लगता है के घर में काम करने वाले किसी नौकर का काम है."

"आपका कोई दूर का रिश्तेदार भी तो हो सकता है" रूपाली ने शंका जताई

"हमारे परदादा ने ये हवेली बनवाई थी. उनकी सिर्फ़ एक औलाद थी, हमारे दादा जी और हमारे दादा की भी एक ही औलाद थी,हमारे पिताजी.तो एक तरह से हमारा पूरा खानदान इसी हवेली में रहा है. इस हवेली से बाहर हमारे कोई परिवार नही रहा." ठाकुर ने जवाब दिया तो पायल को थोड़ी राहत सी महसूस हुई

"हवेली के आस पास बाउंड्री वॉल के अंदर ही इतनी जगह है के ये मुमकिन है के हादसा हुआ और किसी को कानो कान खबर लगी. किसी ने लाश को कोने में ले जाके दफ़ना दिया और वहाँ जबसे हवेली बनी है तबसे हमेशा कुच्छ ना कुच्छ उगाया गया है. पहले एक आम का छ्होटा सा बाग हुआ करता था और फिर फूलों का एक बगीचा. इसलिए कभी किसी के सामने ये हक़ीक़त खुली नही." ठाकुर ने कहते हुए टीवी बंद कर दिया और संगीन आवाज़ में रूपाली से बात करने लगे

"ऐसा भी तो हो सकता है के ये काम किसी बाहर के आदमी का हो जिससे हमारा कोई लेना देना नही" रूपाली बोली

"मतलब?" ठाकुर ने आगे को झुकते हुए कहा

"इस हवेली में पिच्छले 10 साल से सिर्फ़ मैं और आप हैं और एक भूषण काका. यहाँ कोई आता जाता नही बल्कि लोग तो हवेली के नाम से भी ख़ौफ्फ खाते हैं. तो ये भी तो हो सकता है के इसी दौरान कोई रात को हवेली में चुपचाप आया और लाश यहाँ दफ़नाके चला गया. ये सोचकर के क्यूंकी हवेली में कोई आता नही तो लाश का पता किसी को नही चलेगा." रूपाली ने कहा

"हो तो सकता है" ठाकुर ने जवाब दिया "पर उस हालत में हवेली के अंदर लाश क्यूँ? इस काम के लिए तो लाश को कहीं जंगल में भी दफ़ना सकता था"

"हां पर उस हालत में लाश मिलने पर ढूँढा जाता के किसकी लाश है. पर हवेली में लाश मिलने पर सारी कहानी हवेली के आस पास ही घूमके रह जाती जैसा की अब हो रहा है" रूपाली ने कहा तो ठाकुर ने हां में सर हिलाया

कह तो आप सही रही हैं. जो भी है, हम तो ये जानते हैं के हमारी हवेली में कोई बेचारी जान कब्से दफ़न थी. उसके घरवाले पर ना जाने क्या बीती होगी" ठाकुर सोफे पर आराम से बैठते हुए बोले

"बेचारी?" रूपाली ने फ़ौरन पुचछा

"हां हमने आपको बताया नही?" ठाकुर ने कहा "वो ख़ान कहता है के वो लाश किसी औरत की थी."

सारी शाम रूपाली के दिमाग़ में यही बात चलती रही के हवेली में मिली लाश किसी औरत की थी. वो यही सोचती रही के लाश किसकी हो सकती है. जब कुच्छ समझ ना आया तो उसने फ़ैसला किया के भूषण और बिंदिया से इस बारे में बात करेगी के गाओं से पिच्छले कुच्छ सालों में कोई औरत गायब हुई है क्या? पर फिर उसे खुद ही अपना ये सवाल बेफ़िज़ूल लगा. जाने वो लाश कब्से दफ़न है. किसको याद है के गाओं में कौन है और कौन नही.

आख़िर में उसने इस बात को अपने दिमाग़ से निकाला तो बेसमेंट में रखे बॉक्स की बात उसके दिमाग़ में अटक गयी. सोच सोचकर रूपाली को लगने लगा के उसका सर दर्द से फॅट जाएगा.

शाम का खाना खाकर वो अपने कमरे की तरफ बढ़ी. ठाकुर अपने कमरे में पहले ही जा चुके थे. पायल और भूषण किचन की सफाई में लगे हुए थे. रूपाली सीढ़ियाँ चढ़ ही रही थी के बाहर एक गाड़ी के रुकने की आवाज़ सुनकर उसके कदम थम गये. थोड़ी ही देर बाद तेज हवेली में दाखिल हुआ.

वो नशे में धुत था. कदम ज़मीन पर पड़ ही नही रहे थे. उसकी हालत देखकर रूपाली को हैरानी हुई के वो कार चलाकर घर तक वापिस कैसे आ गया. वो चलता हुआ चीज़ों से टकरा रहा था. ज़ाहिर था के उसे सामने की चीज़ भी सॉफ दिखाई नही दे रही थी.

सीढ़ियाँ चढ़कर तेज रूपाली की तरफ आया. उसका कमरे भी रूपाली के कमरे की तरह पहले फ्लोर पर था. रूपाली उसे देखकर ही समझ गयी के वो सीढ़ियाँ चढ़ने लायक हालत में नही है. अगर कोशिश की तो नीचे जा गिरेगा. वो सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आई और तेज को सहारा दिया.

उसने एक हाथ से तेज की कमर को पकड़ा और उसे खड़े होने में मदद की. तेज उसपर झूल सा गया जिस वजह से खुद रूपाली भी गिरते गिरते बची.उसने अपने कदम संभाले और तेज को सहारा देकर सीढ़ियाँ चढ़नी शुरू की. तेज ने उसके कंधे पर हाथ रखा हुआ था. रूपाली जानती थी के उसे इतना भी होश नही के इस वक़्त वो उसे सहारा दे रही है और मुमकिन है के वो सुबह तक सब भूल जाएगा.

मुश्किल से सीढ़ियाँ चढ़ कर दोनो उपेर पहुँचे. रूपाली तेज को लिए उसके कमरे तक पहुँची और दरवाज़ा खोलने की कोशिश की. पर दरवाज़ा लॉक्ड था.

"तेज चाबी कहाँ है?"उसने पुचछा पर वो जवाब देने की हालत में नही था.

रूपाली ने तेज को दीवार के सहारे खड़ा किया और उसकी जेबों की तलाशी लेने लगी. तेज उसके सामने खड़ा था और उसका जिस्म सामने खड़ी रूपाली पर झूल सा रहा था. अचानक तेज ने अपने हाथ उठाए और सीधा रूपाली की गान्ड पर रख दिए.

रूपाली उच्छल पड़ी और तभी उसे तेज की जेब में रखी चाभी मिल गयी. उसने कमरे का दरवाज़ा खोला और सहारा देकर तेज को अंदर लाई.

बिस्तर पर लिटाकर रूपाली तेज के जूते उतारने लगी.उसने उस वक़्त एक नाइटी पहेन रखी और नीचे ना तो ब्रा था ना पॅंटी. तेज के सामने झुकी होने के कारण उसकी नाइटी का गला सामने की और झूल रहा था और उसकी दोनो छातियाँ झूलती हुई दिख रही थी.

नशे में धुत तेज ने गर्दन उठाकर जूते उतारती रूपाली की तरफ देखा. रूपाली ने भी नज़र उठाकर उसकी और देखा तो पाया तो तेज की नज़र कहीं और है. तभी उसे अपनी झूलती हुई छातियों का एहसास हुआ और वो समझ गयी के तेज क्या देखा रहा. उसने अपनी नाइटी का गला पकड़कर फ़ौरन उपेर किया पर तब्भी तेज ने ऐसी हरकत की जिसके लिए वो बिल्कुल तैय्यार नही थी.

उसने रूपाली के दोनो हाथ पकड़े और उसे अपने साथ बिस्तर पर खींच लिया. इससे पहले के रूपाली कुच्छ समझ पाती या कुच्छ कर पाती वो उसके उपेर चढ़ गया और हाथों से पकड़कर उसकी नाइटी उपेर खींचने लगा

"तेज क्या कर रहे हो?" रूपाली फ़ौरन गुस्से में बोली पर तेज कहाँ सुन रहा था. वो तो बस उसकी नाइटी उपेर खींचने में लगा हुआ.

"खोल ना साली" तेज नशे में बड़बड़ाया

उसकी बात सुनकर रूपाली समझ गयी के वो उसे उन्हीं रंडियों में से एक समझ रहा था जिन्हें वो हर रात चोदा करता था. हर रात वो उसे सहारा देती थी और वो उन्हें चोद्ता था पर फ़र्क़ सिर्फ़ ये था के आज रात वो घर पे था और सहारा रूपाली दे रही थी.

रूपाली ने पूरी ताक़त से तेज को ज़ोर से धकेल दिया और वो बिस्तर से नीचे जा गिरा. रूपाली बिस्तर से उठकर उसकी तरफ गुस्से से मूडी ताकि उसे सुना सके पर तेज ने एक बार "ह्म्‍म्म्म" किया और नीचे ज़मीन पर ही करवट लेकर मूड सा गया. रूपाली जानती थी के वो नशे की वजह से नींद के आगोश में जा चुका था. उसने बिस्तर से चादर उठाई और तेज के उपेर डाल दी.

अपने कमरे में जाकर रूपाली बिस्तर पर लुढ़क गयी. बिस्तर पर लेटकर वो अभी जो हुआ था उस बारे में सोचने लगी. उसे 2 बातों की खुशी थी. एक तो ये के आज रात तेज घर लौट आया था. और दूसरा उसकी हरकत से ये बात सही साबित हो गयी थी के उसके लिए अगर यहीं घर में ही चूत का इंतज़ाम हो जाए तो शायद वो अपना ज़्यादा वक़्त घर पे ही गुज़ारने लगे.

हल्की आहट से रूपाली की आँख खुली. उसने कमरे के दरवाज़े की तरफ नज़र की तो देखा के ठाकुर अंदर आ रहे थे. रूपाली ने फ़ौरन नज़र अपने बिस्तर के पास नीचे ज़मीन पर डाली. पायल वहाँ नही थी. आज रात वो अपने कमरे में ही सो गयी थी. रूपाली ने राहत की साँस ली और ठाकुर की तरफ देखकर मुस्कुराइ.

"पता नही कब आँख लग गयी" कहते हुए उसने घड़ी की तरफ नज़र डाली. रात के 11 बज रहे थे.

"आप आई नही तो हमें लगा के पायल आज भी आपके कमरे में ही सो रही है इसलिए हम ही चले आए" ठाकुर ने उसके करीब आते हुए कहा

"पायल का नाम बड़ा ध्यान है आपको" रूपाली ने मुस्कुराते हुए कहा तो जवाब में ठाकुर भी मुस्कुरा दिए.

रूपाली बिस्तर पर अपनी टांगे नीचे लटकाए बैठी थी. ठाकुर उसके सामने आकर खड़े हुए और झुक कर उसके होंठों को चूमा.

"हमें तो सिर्फ़ आपका नाम ध्यान है" ठाकुर ने कहा और हाथ रूपाली की छाती पर रखकर दबाने लगे. रूपाली ने ठाकुर के होंठ से होंठ मिलाए रखे और नीचे उनका पाजामा खोलने लगी. नाडा खुलते ही पाजामा सरक कर नीचे जा गिरा और लंड उसके हाथों में आ गया.

फिर कमरे में वासना का वो तूफान उठा जो दोनो से संभाला नही गया. कुच्छ ही देर बाद रूपाली ठाकुर के उपेर बैठी उनके लंड पर उपेर नीचे कूद रही थी. उसकी चूचियाँ उसके जिस्म के साथ साथ उपेर नीचे उच्छल रही थी जिन्हें ठाकुर लगातार ऐसे दबा रहे थे जैसे आटा गूँध रहे हों.

"क्या बाआआआत है आजज्ज मेरी ककककचातियों से हाआआआथ हट नही रहे आआआपके?" रूपाली ने महसूस किया था के आज ठाकुर का ध्यान उसकी चूचियों पर कुच्छ ज़्यादा ही था

"कहीं कल रात की देखी पायल की तो याद नही आ रही?" वो लंड पर उपेर नीचे होना बंद करती हुई बोली और मुस्कुराइ

जवाब में ठाकुर ने उसे फ़ौरन नीचे गिराया और फिर चुदाई में लग गये. कमरे में फिर वो खेल शुरू हो गया जिसमें आख़िर में दोनो ही खिलाड़ी जीत जाते हैं और दोनो ही हार जाते हैं.

एक घंटे की चुदाई के बाद ठाकुर और रूपाली बिस्तर पर नंगे पड़े हुए ज़ोर ज़ोर से साँस ले रहे थे.

"हे भगवान" रूपाली अपनी चूचियों पर बने ठाकुर के दांतो के निशान देखते हुए बोली "आज इनपर इतनी मेहरबानी कैसे?"

"ऐसे ही" ठाकुर ने हस्ते हुए कहा

"ऐसे ही या कोई और वजह? कहीं किसी और का जिस्म तो ध्यान नही आ रहा था? जो कल तो यहाँ था पर आज आपको वो दीदार नही हुआ?" रूपाली ने उठकर बैठते हुए कहा

तभी घड़ी में 12 बजे

ठाकुर उठे और उठकर रूपाली के होंठ चूमे

"क्या हुआ?" रूपाली अचानक दिखाए गये इस प्यार पर हैरान होती बोली

"जनमदिन मुबारक हो" ठाकुर ने कहा

रूपाली फ़ौरन दोबारा घड़ी की तरफ देखा और डेट याद करने की कोशिश की. आज यक़ीनन उसका जनमदिन था और वो भूल चुकी थी. एक दिन था जब वो बेसब्री से अपने जमदीन का इंतेज़ार करती थी और पिच्छले कुच्छ सालों से तो उसे याद तक नही रहता था के कब ये दिन आया और चला गया. उसके पिच्छले जनमदिन पर भी उसे तब याद आया जब उसके माँ बाप और भाई ने फोन करके उसे बधाई दी थी

"मुझे तो पता भी नही था के आपको मालूम है मेरा जनमदिन" रूपाली ने कहा

"मालूम तो हमेशा था" ठाकुर ने जवाब दिया "माफी चाहते हैं के आज से पहले कभी हमने आपको ना कोई तोहफा दिया और ना ही इस दिन को कोई एहमियत"

तोहफा सुनते ही रूपाली फ़ौरन बोली

"तो इस बार भी कहाँ दिया अब तक?"

"देंगे. ज़रूर देंगे. बस कल सुबह तक का इंतेज़ार कर लीजिए" ठाकुर ने मुस्कुराते हुए कहा

थोड़ी देर बाद वो उठकर अपने कमरे में चले गये और रूपाली नींद के आगोश में

अगले दिन सुबह रूपाली उठकर नीचे आई ही थी के उसके भाई का फोन आ गया

"जनमदिन मुबारक हो दीदी" वो दूसरी तरफ फोन से लगभग चिल्लाते हुए बोला "बताओ आपको क्या तोहफा चाहिए?"

"मुझे कुच्छ नही चाहिए" रूपाली ने भी हासकर जवाब दिया "मम्मी पापा कहाँ हैं?"

उसे थोड़ी देर अपने माँ बाप से बात की. वो लोग खुश थे के रूपाली इस साल अपने जनमदिन पर खुश लग रही थी. वरना पहले तो वो बस हां ना करके फोन रख देती थी. उसके बाद रूपाली ने कुच्छ देर और अपने भाई इंदर से बात की जिसने उसे बताया के वो उससे कुच्छ वक़्त के बाद मिलने आएगा.

फोन रूपाली ने रखा ही था के उसके पिछे से तेज की आवाज़ आई
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06-21-2018, 12:14 PM,
#23
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
"जनमदिन मुबारक हो भाभी"

वो पलटी तो तेज खड़ा मुस्कुरा रहा था. ज़ाहिर था के उसे अपनी कल रात की हरकत बिल्कुल याद नही थी

"शुक्रिया" रूपाली ने भी उस बात को भूलकर हस्ते हुए जवाब दिया

"तो क्या प्लान है आज का?" तेज वहीं बैठते हुए बोला

"मैं कोई स्कूल जाती बच्ची नही जो अपने जनमदिन पर कोई प्लान बनाऊँगी. कोई प्लान नही है." रूपाली उसके सामने बैठते हुए बोली "वैसे आप क्या कर रहे हैं आज?"

"वो जो आपने मुझे कल करने को कहा था" तेज ने जवाब दिया "माफ़ कीजिएगा कल कहीं काम से चला गया था. पर वाडा करता हूँ के आज से हवेली की सफाई का काम शुरू हो जाएगा"

रूपाली तेज की बात सुनकर दिल ही दिल में बहुत खुश हुई. कोई भी वजह हो पर वो उसकी बात सुनता ज़रूर था.

"चाय लोगे?" रूपाली ने तेज से पुचछा. उसने हां में सर हिला दिया

थोड़ी ही देर बाद ठाकुर भी सोकर जाग गये. बाहर आकर उन्होने रूपाली को फिर से जनमदिन की बधाई दी. क्यूंकी घर में तेज और पायल भी थे इसलिए रूपाली ने अब अपना घूँघट निकाल लिया था

"आइए आपको आपका तोहफा दिखाते हैं" ठाकुर ने जवाब दिया

वो उसे बाहर लेकर उस जगह पर पहुँचे जहाँ उनकी गाड़ी खड़ी रहती थी.

कवर में ढाकी हुई अपनी कार की तरफ इशारा करते हुए वो बोले

"आपका तोहफा बेटी"

रूपाली को कुच्छ समझ नही आया. ठाकुर उसे अपनी 11 साल पुरानी गाड़ी तोहफे में दे रहे हैं. वो हैरानी से ठाकुर की तरफ देखने लगी

"आपकी कार?"

"नही" ठाकुर कार की तरफ बढ़े और कवर खींच कर उतार दिया "आपकी कार"

रूपाली की आँखें खुली रह गयी. कवर के नीचे ठाकुर की पुरानी कार नही बल्कि चमकती हुई एक नयी बीएमडब्ल्यू खड़ी थी

"ये कब लाए आप?" वो कार के पास आते हुए बोली

"कल शाम जब आप नीचे बेसमेंट में थी" ठाकुर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया

"और आपकी कार?"रूपाली ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई

"वो बेच दी. हमने सोचा के आप ये गाड़ी चलाएंगी तो हम आपकी गाड़ी ले लेंगे" ठाकुर ने अपनी जेब से चाबियाँ निकालते हुए कहा "टेस्ट राइड हो जाए?"

रूपाली ने जल्दी से चाभी ठाकुर से ली और एक छ्होटे बच्चे की तरह खुश होती कार का दरवाज़ा खोला. उसकी खुशी में ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनकर तेज भी बाहर आ गया था और खड़ा हुआ उन्हें देख रहा था.

रूपाली उसे देखकर बोली

"तेज देखो हमारी नयी कार " वो अब सच में किसी स्कूल जाती बच्ची की तरह खुशी से उच्छल रही थी. उसे ये भी ध्यान नही था के उसका घूँघट हट गया है और वो ठाकुर के सामने बिना पर्दे के थी जो तेज देख रहा था.

तेज ने रूपाली की बात पर सिर्फ़ अपनी गर्दन हिलाई और पलटकर फिर हवेली में चला गया. उसका यूँ चले जाना रूपाली को थोड़ा अजीब सा लगा. जाने क्यूँ उसे लग रहा था के तेज को ठाकुर को यूँ कार लाकर रूपाली को देना पसंद नही आया.

अगले एक घंटे तक रूपाली कार लिए यहाँ से वहाँ अकेले ही भटकती रही. उसने ठाकुर को भी आपे साथ नही आने दिया था. अकेले ही कार लेकर निकल गयी थी.

तकरीबन एक घंटे बाद वो हवेली वापिस आई और ठाकुर के बुलाने पर उनके कमरे में आई.

"ये रहा आपका दूसरा तोहफा" ठाकुर ने एक एन्वेलप उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा

"ये क्या है?" रूपाली ने एन्वेलप की तरफ देखा

"हमारी वसीयत जो हमने बदल दी है. इसमें लिखा है के अगर हमें कुच्छ हो जाए तो हमारा सब कुच्छ आपको मिलेगा." ठाकुर ने कहा

"पिताजी" रूपाली वहीं कुर्सी पर बैठ गयी. उसे यकीन सा नही हो रहा था

"क्या हुआ" ठाकुर ने पुचछा "ग़लत किया हमने कुच्छ?"

"हां" रूपाली ने जवाब दिया. "आपको ऐसा नही करना चाहिए था"

"पर क्यूँ?" ठाकुर उसके करीब आते हुए बोले

"क्यूंकी आपकी 3 औलाद और हैं. दोनो बेटे तेज और कुलदीप और आपकी एकलौती बेटी कामिनी. उनका हक़ इस जायदाद पर हमसे ज़्यादा है."

वो हम नही जानते" ठाकुर बोले "हमने अपना सब कुच्छ आपके नाम कर दिया है. अगर आप उन्हें कुच्छ देना चाहती हैं तो वो आपकी मर्ज़ी है. हम समझते हैं के ये फ़ैसला आपसे बेहतर कोई नही कर सकता"

"नही पिताजी. आपको ये वसीयत बदलनी होगी" रूपाली ने कहा तो ठाकुर इनकार में गर्दन हिलाने लगे

"ये अब नही बदलेगी हमारा जो कुच्छ है वो अब आपका है. अगर आप बाँटना चाहती हैं तो कर दें. और वैसे भी ....." ठाकुर ने अपनी बात पूरी नही की थी के रूपाली ने हाथ के इशारे से उन्हें चुप करा दिया.

ठाकुर ने हैरानी से उसकी तरफ देखा. रूपाली ने इशारा किया के दरवाज़े के पास खड़ा कोई उनकी बात सुन रहा है. रूपाली चुप चाप उतार दरवाज़े तक आई और हल्का सा बंद दरवाज़ा पूरा खोल दिया. बाहर कोई नही था.

"वहाँ हुआ होगा आपको" ठाकुर ने कहा पर रूपाली को पूरा यकीन था के उसने आवाज़ सुनी है.

"शायद" रूपाली ने कहा और फिर ठाकुर की तरफ पलटी

"आपको हमारे लिए ये वसीयत बदलनी होगी. या फिर अगर आप चाहते हैं के हम जायदाद आगे बराबर बाँट दे तो वकील को बुलवा लीजिए" रूपाली ने कहा

"ठीक है. हम उसे फोन करके बुलवा लेंगे. अब खुश?" ठाकुर ने हाथ जोड़ते हुए कहा

रूपाली धीरे से मुस्कुराइ और हाथ में एन्वेलप लिए कमरे से निकल गयी.
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06-21-2018, 12:14 PM,
#24
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
बाकी का दिन हवेली की सफाई में ही गुज़र गया. तेज गाओं से कुच्छ आदमी लेकर आ गया और वो सारा दिन हवेली के आस पास उगे हुए जंगल को काटकर सॉफ करने में लगे रहे. पूरा दिन काम चलने के बाद भी हवेली के कॉंपाउंड का सिर्फ़ एक हिस्सा ही सॉफ हो सका. वजह थी के गाओं से सिर्फ़ 3 आदमी ही हवेली में आकर काम करने को राज़ी हुए थे. बाकियों ने तो हवेली में काम करने के नाम से ही इनकार कर दिया था.

तेज के कहने पर खुद पायल भी उन आदमियों के साथ मिलकरकाम करने लगी. दिन ढलने पर वो आदमी काम अगले दिन जारी रखने की बात कहके अपने अपने घर चले गये.

रात को खाने की टेबल पर ठाकुर और रूपाली अकेले ही थे. तेज किसी काम का बहाना करके घर से निकला था और अब तक लौटा नही था और रूपाली ये बात जानती थी के वो रात भर अब घर नही आने वाला था. वो खुद सारा दिन बिंदिया की राह देखती रही थी पर बिंदिया नही आई थी. रूपाली ने दिल में फ़ैसला किया के कल और बिंदिया का इंतेज़ार करेगी और अगर वो नही आई तो उससे एक आखरी बार बात करके किसी और औरत को घर में काम के बहाने रख लेगी जो तेज को बिस्तर पर खुश रखने के बहाने घर पर रोक सके. पर उसके सामने मुसीबत दो थी. एक तो ये के किसी ऐसी खूबसूरत औरत को ढूँढना जिसपर तेज खुद ऐसे ही नज़र डाले जैसे उसने बिंदिया पर डाली थी और दूसरी मुसीबत थी के अगर कोई ऐसी औरत मिल भी जाए तो उसे तेज का बिस्तर गरम करने के लिए राज़ी कैसे करे.

रूपाली अपनी ही सोच में खाना ख़तम करके उठ ही रही थी के पायल अंदर आई.

"हो गया मालकिन" उसने रूपाली से कहा

हवेली में सारा दिन कॅटाइ और सफाई होने के कारण हवेली के बिल्कुल सामने कॉंपाउंड में काफ़ी सूखे पत्ते जमा हो गये थे. हवा तेज़ थी इसलिए रूपाली को डर था के वो उड़कर हवेली के अंदर ना आ जाएँ इसलिए उसने पायल को कहा था के अंधेरा होने से पहले हवेली के दरवाज़े के ठीक सामने से पत्ते हटा दे. उसने सोचा था के काम जल्दी हो जाएगा पर बेचारी पायल को काम ख़तम करते करते अंधेरा हो गया था. वो काफ़ी थॅकी हुई भी लग रही थी. पायल को उसपर तरस आ गया.

"भूख लगी होगी तुझे. जा पहले हाथ धोकर खाना खा ले. नहा बाद में लेना. सारे दिन से कुच्छ नही खाया तूने." उसने पायल से कहा

पायल हां में सर हिलाती किचन में दाखिल हो गयी. वो वहीं बैठकर खाना खा लेती थी.

खाना ख़तम करके ठाकुर उठकर अपने कमरे में चले गये. जाने से पहले उन्होने एक आखरी नज़र रूपाली पर डाली और उस नज़र में सॉफ ये इशारा था के वो रात को रूपाली के कमरे में आ जाएँगे.

रूपाली किचन में दाखिल हुई तो सामने नीचे बैठी पायल खाना खा रही थी. उसने सलवार कमीज़ पहेन रखा था. वो नीचे झुकी हुई ज़मीन पर बैठी खाना खा रही थी. पायल उसके करीब जाकर खड़ी हुई तो उपेर से पायल का क्लीवेज सॉफ नज़र आया. देखते ही पायल के दिमाग़ में ख्याल आया के जब तक बिंदिया या कोई दूसरी औरत आती है, तब तक क्यूँ ना पायल कोई ही तैय्यार किया जाए. एक कच्ची कली चोदने को मिले तो तेज भला बाहर कही मुँह मारने को क्यूँ जाएगा. मॅन में ख्याल आते ही वो मुस्कुराइ. पायल को तैय्यार करना कोई मुश्किल काम नही था. जिस तरह से पायल बेसमेंट में उसके सामने नंगी होकर उसकी बाहों में आ गई थी उससे सॉफ ज़ाहिर था के जो आग माँ के जिस्म में है वही बेटी कोई भी तोहफे में मिली है. अगर पायल एक औरत के साथ अपना जिस्म मिला सकती है तो मर्द के साथ तो और भी ज़्यादा आसानी होगी. बस एक काम जो करना था वो था उसे तैय्यार करना जो रूपाली ने फ़ौरन सोच लिया के उसे कैसे करना है. वो आगे बढ़ी और किचन में कुच्छ ढूँढने लगी. उसे एक चीज़ की ज़रूरत थी जो उसके काम में मददगार साबित हो सकती थी और जल्दी ही वो चीज़ उसे मिल भी गयी.

"खाना ख़तम करके मेरे कमरे में आ जाना." उसने पायल से कहा और किचन से बाहर निकली.

भूषण भी काम ख़तम करके कॉंपाउंड में बने अपने छ्होटे से कमरे की तरफ जा रहा था. रूपाली उसे देखकर मुस्कुराइ और अपने कमरे में चली गयी.

थोड़ी ही देर बाद पायल भी रूपाली के पिछे पिछे उसके कमरे में आ गयी.

"जी मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा

"कितनी गंदी हो रखी है तू. ऐसे मत आ. जा पहले नाहके आ" रूपाली ने उसे कहा.

पायल पलटकर जाने लगी तो रूपाली ने उसे रोक लिया

"एक काम कर. यहीं मेरे बाथरूम में नहा ले."

"आपके बाथरूम में?" रूपाली ने पुचछा

"हां मेरे बाथरूम में ही नहा ले. और एक बात बता. तू साडी नही पेहेन्ति?"

पायल ने इनकार में सर हिलाया

"मेरे पास है ही नही"

"रुक ज़रा" कहती हुई रुआली अपनी अलमारी की तरफ बढ़ी और अपनी एक पुरानी साडी निकाली. साडी पुरानी ज़रूर थी पर देखने में बहुत सुंदर थी.

"ये तू रख ले" रूपाली ने कहा तो पायल खुशी से उच्छल पड़ी

"सच मालकिन?" पायल झट से साडी पकड़ते हुए बोली

"हां. आज से तेरी हुई" रूपाली ने सारी के साथ का ब्लाउस और पेटीकोट भी पायल को देखते हुए कहा "अब जाके नहा ले. फिर तेरे से एक ज़रूरी बात करनी है"

पायल हां में सर हिलाती हुई बाथरूम की तरफ बढ़ी. रूपाली भी उसके पिछे पिछे बाथरूम में आ गयी और वहाँ रखी हुई चीज़ें दिखाने लगी

"ये शॅमपू है और ये कंडीशनर. और ये बॉडी लोशन है" उसने पायल से कहा

"ये सब क्या है मालकिन? साबुन कहाँ है?" पायल ने बाथरूम में चारों और देखते हुए पुचछा

रूपाली हल्के से मुस्कुरा दी.

"तूने ये सब कभी इस्तेमाल नही किया ना? चल मैं बताती हूँ" उसने कहाँ तो पायल उसे देखने लगी. जैसे रूपाली के बात आगे कहने का इनेज़ार कर रही हो

"ऐसे क्या देख रही है?" रूपाली ने कहा "नहाना शुरू कर. मैं बताती रहूंगी के क्या कैसे लगाना है. पहली बार मैं बता दूँगी बाद में तू खुद ही कर लेना."

पायल एकटूक उसे देखने लगी

"आपके सामने?" उसने रूपाली से पुचछा

"हां तो क्या हुआ?" रूपाली ने जवाब दिया "तेरे पास ऐसा क्या है जो मैने नही देखा?"

"शरम आती है मालकिन" पायल ने सर झुकाते हुए बोला

"अरे मेरी शर्मीली बन्नो अब टाइम खराब मत कर. चल कपड़े उतार जल्दी से" रूपाली ने थोड़ा आगे बढ़ते हुए कहा

"दरवाज़ा?" पायल ने बाथरूम के खुले हुए दरवाज़े की तरफ इशारा करते हुए कहा

"कमरे के अंदर का दरवाज़ा बंद है. कोई नही आएगा. चल जल्दी कर. सारी रात यहाँ खड़े खड़े गुज़ारनी है क्या?"

रूपाली ने कहा तो पायल ने धीरे से अपनी कमीज़ उतारनी शुरू की.

कुच्छ ही देर बाद पायल बाथरूम में मादरजात नंगी खड़ी थी. रूपाली ने उसे सर से पावं तक एक बार देखा

"तू उमर से भले बच्ची हो पर तेरा जिस्म तो पूरी भरी हुई औरत को भी मात दे जाए" रूपाली ने कहा तो पायल शर्माके नीचे देखने लगी

"चल शवर के नीचे खड़ी हो जा" रूपाली ने कहा तो पायल शोवेर के नीचे खड़ी हो गयी और अपने जिस्म को पानी से भिगोने लगी.

बाथरूम में एक तरफ खड़ी रूपाली उसके हसीन जिस्म को देख रही थी. थोड़ी ही देर में पायल सर से लेकर पावं तक पूरी भीग गयी.

"हाथ आगे कर" रूपाली ने कहा तो पायल ने अपना हाथ आगे कर दिया. रूपाली ने उसके हाथ में शॅमपू डाल दिया

"अब इससे अपने बाल धो ताकि वो बाल लगें.तेरे सर पे उगी हुई झाड़ियाँ नही" उसने पायल से कहा

पायल अपने हाथ उठाकर अपने सर में शॅमपू लगाने लगी. हाथ उपेर होने से उसकी दोनो छातियों भी उपेर को हो गयी थी और हाथ की हरकत के साथ हिल रही थी. पायल की नज़र भी उसकी छातियों के साथ ही उपेर नीचे हो रही थी.

जब शॅमपू पूरे बालों पर लग गया तो रूपाली ने उसे धोने को कहा और फिर कंडीशनर लगाने को कहा. वो भी लगकर धुल गया.

"अब ये ले" रूपाली ने बॉडी वॉश की बॉटल आगे करते हुए कहा "इसे भी शॅमपू की तरह अपने हाथ पर निकाल और फिर साबुन की तरह अपने बदन पर लगा"

पायल ने बॉटल हाथ में ली और ढक्कन खोलकर जैसे ही बॉटल को दबाया तो बहुत सारा बॉडी वॉश उसके हाथ पर आ गिरा

"ओफहो बेवकूफ़" रूपाली ने आगे बढ़कर उसके हाथ से बॉटल ले ली "एक साथ इतना सारा नही. थोड़ा थोड़ा लेते हैं. अब जो हाथ में है उसे अपने बदन पर लगा"

रूपाली के कहने पर पायल ने सारा बॉडी वॉश अपने चेहरे पर लगा लिया और अगले ही पल सिसक पड़ी

"मालकिन आँख जल रही है"

"तो तुझे किसने कहा था के सारा मुँह पे रगड़ ले. धो इसे अब और यहाँ आके बैठ" रूपाली ने आगे बढ़कर नाल चालू किया

चेहरे से बॉडी वॉश धोकर पायल ने रूपाली की तरफ देखा

"अब यहाँ आके बैठ. मैं ही लगा देती हूँ" रूपाली ने कहा तो पायल झिझकति हुई वहीं बाथ टब के किनारे पर बैठ गयी. रूपाली आकर उसके पिछे खड़ी हुई और अपने हाथ में बॉडी वॉश लिया.

रूपाली ने सबसे पहले बॉडी वॉश पायल की छातियों पर ही लगाया और हाथों से उसकी छातियाँ मसल्ने लगी. पायल की दोनो चूचियाँ उसके हाथ के दबाव से हल्के हल्के दब रही थी. फिर इसी तरह से उसने पायल के पेट पर बॉडी वॉश लगाया और फिर उसकी टाँगो पर. इस सारे काम में रूपाली पायल को नहला कम रही थी उसके जिस्म को सहला ज़्यादा रही थी. उसकी टाँगो के बीच नमी आनी शुरू हो रही थी. सामने बैठी एक नंगी लड़की को देखकर उसके जिस्म में फिर वासना का तूफान ज़ोर मार रहा था. रूपाली के हाथ फिर पायल की चूचियों पर पहुँच गये और वो उसके सामने घुटनो पर बैठ गयी और दोनो हाथों से उसकी छातियाँ दबाने लगी.

"हो गया मालकिन" पायल ने धीमी आवाज़ में कहा पर रूपाली ने जैसे सुना ही नही. वो उसी तरह उसकी चूचियो पर हाथ फेरती रही. अचानक उसने पायल का एक निपल अपने उंगलियों में पकड़ा और धीरे से दबाया.

"आआहह "पायल ने सिसकारी भरी "दर्द होता है मालकिन. अब बस करिए. हो गया. मैं धो लेती हूँ"

रूपाली ने उसकी तरफ देखा और उठ खड़ी हुई. उसने पायल का हाथ पकड़कर उसे खड़ा किया और शवर के नीचे ले जाकर शवर ऑन कर दिया. पर इस बार पायल के साथ वो खुद भी पानी में भीग रही थी. वो शवर के नीचे से हटी नही. पायल दीवार की तरफ मुँह किए खड़ी थी और रूपाली उसके पिछे खड़ी उसकी कमर से बॉडी वॉश धो रही थी. वो खुद भी पानी में पूरी तरह भीग चुकी थी और कपड़े बदन से चिपक गये थे. उसके हाथ पायल की कमर से सरकते हुए उसकी गान्ड तक आए और रूपाली ने अपने दोनो हाथों से उसकी गान्ड को पकड़कर दबाया. दबाने से पायल भी ज़रा आगे को हुई और बिकुल दीवार के साथ जा लगी. रूपाली ने थोड़ा सा आगे होकर उसकी गर्दन को चूम लिया. उसे यकीन नही हो रहा था के वो खुद एक औरत होकर एक नंगी लड़की के जिस्म को चूम रही है पर उसके जिस्म मेी उठती लहरें उस इस बात का सबूत दे रही थी के उसे मज़ा आ रहा था. गले पर चूमती ही पायल सिहर उठी

"क्या कर रही हैं मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा

"ऐसे ही खड़ी रह" कहकर रूपाली थोड़ा पिछे हटी और अपनी सलवार और कमीज़ उतारकर एक तरफ फेंक दी. अगले ही पल उसकी ब्रा और पॅंटी भी उसके बाकी कपड़ो के साथ पड़े थे और रूपाली पूरी तरह नंगी होकर एक बार फिर पिछे से पायल के साथ चिपक गयी.

अपने नंगे जिस्म पर रूपाली का नंगा जिस्म महसूस हुआ तो पायल सिहर उठी

"मालकिन" उसके मुँह से निकला पर वो अपनी जगह से हिली

"घबरा मत" रूपाली अपना मुँह उसके कान के पास ले जाकर धीरे से बोली "अब तेरी तरह मैं भी बिल्कुल नंगी हूँ"

कहकर रूपाली ने एक बार फिर पायल को गर्दन पर चूमा.पायल चुप चाप दीवार से लगी खड़ी थी और पायल ने उसे पिछे से गर्दन और कमर की उपरी हिस्से पर चूमना शुरू कर दिया. उसके हाथ पायल के पुर जिस्म पर घूम रहे थे, सहला रहे थे. रूपाली खुद वासना के कारण पागल हुई जा रही थी. बिल्कुल किसी मर्द की तरह वो पायल से बिल्कुल चिपक कर खड़ी हो गयी और उसका नंगा जिस्म महसूस करने लगी. पायल रूपाली से कद में थोड़ी छ्होटी थी. रूपाली ने अपने घुटने थोड़े मोड और अपनी चूत पायल की गान्ड पर दबाई जैसे उसके सामने एक लंड लगा हो जिसे वो पायल की गान्ड में घुसा रही हो. इस हरकत ने उसके जिस्म पर ऐसा असर किया के उसे अपने घुटने कमज़ोर होते महसूस होने लगे और वो पायल को ज़ोर से पकड़कर उससे चिपक गयी और अपनी चूत को पायल की गान्ड पर रगड़ने लगी.

"ओह पायल" रूपाली हल्के से पायल के कान में बोली. उसके हाथ पायल की कमर से हटकर आगे आए और पायल की चूचियों को पकड़ लिया. चूचियाँ हाथ में आई ही थी के रूपाली ने उन्होने पूरी ताक़त से दबा दिया और अपनी चूचियाँ पायल की कमर पे रगड़ने लगी. चूचियाँ इतनी ज़ोर से दबी तो पायल फिर सिहर उठी

"मालकिन" वो भी बिल्कुल पायल के अंदाज़ में धीरे से बोली "क्या कर रही हैं आप?"

"मज़ा आ रहा है?" रूपाली ने उसी तरह उसकी चूचियाँ दबाते हुए पुचछा. नीचे से उसकी कमर ऐसे हिल रही थी जैसे पायल की गान्ड मार रही हो

पायल ने जवाब नही दिया

"बोल ना" रूपाली ने उसकी चूचियों पर थोड़ा दबाव और बढ़ाया पर पायल फिर भी नही बोली

रूपाली ने अपना एक हाथ उसकी छाती से हटाया और उसके पेट पर से होते हुए नीचे ले जाने लगी. हाथ जैसे ही टाँगो के बीच पहुँचा तो पायल ने अपनी टांगे कसकर बंद कर ली. रूपाली ने अपना हाथ उसकी चूत के उपेर की तरफ रखा और ज़ोर से रगड़ा.
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06-21-2018, 12:15 PM,
#25
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
"मज़ा आ रहा है?" उसने अपना सवाल दोहराया और हाथ ज़बरदस्ती पायल की टाँगो में घुसकर उसकी चूत की मुट्ठी में पकड़ लिया. इस बार पायल से भी बर्दाश्त नही हुआ.

"आआआआआआअहह मालकिन. बहुत अच्छा लग रहा है. क्या कर रही हैं आप?" वो हल्के से चिल्लाई

"तुझे जवान कर रही हूँ" रूपाली ने जवाब दिया और पायल को अपनी तरफ घुमाया "तुझे जवानी के मज़े लेना सीखा रही हूँ"

अब पायल और रूपाली एक दूसरे की तरफ चेहरा किए खड़ी थी. पायल की कमर दीवार से लगी हुई थी. दोनो की आँखें मिली और एक पल के लिए एक दूसरे को देखती रही. रूपाली ने पायल के चेहरे को गौर से देखा. उसकी आँखों में वासना के डोरे सारे नज़र आ रहे थे. रूपाली आगे बढ़ी और अपने होंठ पायल के होंठों पर रख दिया. उसका एक हाथ पायल की चूचियों पर और दूसरा सरक कर उसकी चूत पर पहुँच गया.

रूपाली ने पायल के होंठ क्या चूमे के पायल उसकी बाहों में आ गिरी. उसने अपनी दोनो बाहें रूपाली के गले में डाली और उससे लिपट गयी. रूपाली समझ गयी के उसका काम बन चुका है. वो पायल के पूरे चेहरे को चूमने लगी और चूमते हुए गले पर और फिर पायल की चूचियों पर आ गयी. एक हाथ अब भी पायल की चूत रगड़ रहा था. पाया की दोनो टाँगें काँप रही थी और उसकी आँखें बंद थी. दोनो हाथों से उसने अब भी रूपाली को पकड़ा हुआ था. रूपाली ने उसका एक निपल अपने मुँह में लिया और चूसने लगी और थोड़ी देर बाद यही दूसरे निपल के साथ किया.

"बहुत मज़ा आ रहा है?" उसने फिर पायल से पुचछा

पायल ने सिर्फ़ हां में सर हिलाया.

रूपाली पायल से अलग हुई, उसका हाथ पकड़ा और उसे बाथरूम से लेके बेडरूम में आ गयी.

बेडरूम में लाकर रूपाली ने पायल को धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया. पायल कमर के बल बिस्तर पर जा गिरी और सामने खड़ी नंगी रूपाली को देखने लगी. सर से पावं तक.

"क्या देख रही है?" रूपाली ने अपना एक हाथ अपनी चूचियों पर और दूसरा अपनी चूत पर फिराया "तेरे जैसा ही है. ये दो बड़ी बड़ी चूचियाँ तेरे पास हैं और मेरे पास भी हैं. जो तेरी टाँगो के बीच है वही मेरी टाँगो के बीच में भी है बस तुझपर से ये बाल हटाने है. फिर तेरी जवानी खुलकर सामने आ जाएगी" रूपाली ने पायल के चूत पर उगे हुए बाल की तरफ इशारा किया. शर्मा कर पायल ने अपने एक हाथ से अपनी चूत को छुपा लिया.

रूपाली मुस्कुरा कर बिस्तर पर चढ़ि और पायल के नज़दीक आई. पायल का हाथ उसकी चूत से हटाकर उसने फिर अपना हाथ रख दिया और चूत सहलाने लगी.

"टांगे खोल. पूरी फेला दे" उसने पायल से कहा और इस बार बिल्कुल उल्टा हुआ. रूपाली को उम्मीद थी के पायल मना कर देगी पर पायल ने फ़ौरन अपनी टांगे खोल दी. उसकी चूत खुलकर रूपाली के सामने आ गयी.

रूपाली उठकर पायल की टाँगो के बीच आ गयी और उसकी चूत देखने लगी. ज़िंदगी में पहली बार वो अपने सिवा किसी और औरत की चूत देख रही थी.

"कोई आया है आज तक तेरी टाँगो के बीच में?" उसने पायल की चूत सहलाते हुए कहा. पायल ने आँखें बंद किए हुए इनकार में सर हिलाया

"कोई बात नही. मैं सीखा दूँगी" रूपाली ने कहा और पायल की चूत को ज़ोर ज़ोर से रगड़ने लगी. पायल जोश में अपना सर इधर उधर करने लगी. रूपाली थोड़ा आगे को झुकी और किसी मर्द की तरह पायल पर पूरी तरह छा गयी. वो पायल के उपेर लेट गयी और उसके होंठ फिर से चूमने लगी. इस बार पायल ने भी जवाब दिया और उसने अपने उपेर लेटी रूपाली को कस्के पकड़ लिया. दोनो एक दूसरे के होंठ चूमने लगी.

"काफ़ी जल्दी सीख रही है" रूपाली ने कहा और नीचे होकर पायल की चूचियाँ चूमने लगी. उसने अपने हाथ से पायल का एक हाथ पकड़ा और लाकर अपनी छाती पर रख दिया

"दबा इसे. जैसे मैं तेरे दबा रही हूँ वैसे ही तू मेरे दबा" उसने पायल से कहा और पायल ने भी फ़ौरन उसकी चूचिया दबाने लगी

"किस्में ज़्यादा मज़ा आ रहा है? अपने चुसवाने में या मेरे दबाने में?" उसने पायल की चूचियाँ चूस्ते हुए कहा

"आआआआहह मालकिन. दोनो में" इस बार पायल ने फ़ौरन जवाब दिया

रूपाली थोड़ी देर तक पायल की दोनो चूचियों को एक एक करके चूस्ति रही और नीचे से अपनी चूत पायल की चूत पर रगड़ने की कोशिश करती रही. थोड़ी देर बाद वो उठकर पायल के उपेर बैठ गयी. टांगे पायल की कमर के दोनो तरफ थी जैसे कोई मर्द किसी औरत को बैठकर चोद रहा हो. वो आगे को झुकी और अपनी छातियाँ पायल के मुँह से लगा दी

"चूस इन्हें" उसने पायल से कहा. पायल ने भी उसकी छातियाँ ऐसे चूसनी शुरू कर दी जैसे काब्से इसी का इंतेज़ार कर रही हो

"तुझे पता है जब मर्द किसी औरत के साथ सोता है तो क्या करता है?" उसने पायल से पुचछा

पायल ने उसकी चूचियाँ चूस्ते हुए हां में सर हिलाया

"क्या करता है?" रूपाली ने अपने दोनो हाथों से पायल का सर पकड़ रखा था और उसे अपनी चूचियों पर दबा रही थी

"यही जो आप कर रही हैं मेरे साथ." पायल ने रूपाली का निपल अपने मुँह से निकालकर कहा और दोबारा अपने मुँह में लेकर चूसने लगी

"आआआहह "रूपाली के मुँह से निकला. उसने अपना एक हाथ पायल की चूत पर रखा "अरे पगली मैं पुच्छ रही हूँ के यहाँ क्या करता है"

"पता है मुझे" पायल ने कहा "माँ ने बताया था एक बार"

"किसी मर्द ने किया है कभी तेरे साथ ऐसा" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने इनकार में सर हिला दिया

"तेरा दिल नही किया कभी करवाने का?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने फिर इनकार में सर हिलाया

"अब तक तो नही किया था कभी"

"अब कर रहा है?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा तो पायल ने भी शर्माकर मुस्कुराते हुए हां में सर हिला दिया

"तो चल आज मैं ही तेरे लिए मर्द बन जाती हूँ" कहते हुए रूपाली पायल के उपेर से हटी.

रूपाली पायल के उपेर से हटी और फिर उसकी टाँगो के बीच में आकर उसकी चूत सहलाने लगी

"यहाँ पर मर्द अपना लंड घुसाता है" उसने पायल से कहा "लंड जानती है किसी कहते हैं?"

पायल ने हां में सर हिलाया तो रूपाली मुस्कुराने लगी

"जानती सब है तू" कहते हुए रूपाली ने अपनी एक अंगुली धीरे से पायल की चूत में घुसा दी

"आआअहह मालकिन." पायल फ़ौरन बिस्तर पर उच्छली. कमर पिछे को खींचकर उसने रूपाली की अंगुली चूत में से निकल दी

"दर्द होता है" पायल बोली

"पहले थोडा सा होगा पर फिर नही. अब सीधी लेटी रह. हिलना मत वरना मुझसे बुरा कोई नही होगा" रूपाली ने पायल को हल्के से डांटा और फिर उसकी दोनो टांगे खोल ली.

थोड़ी देर चूत पर हाथ रॅगॅड्कर उसने अपनी बीच की अंगुली पायल की चूत में धीरे धीरे घुसा दी. अपने दूसरे हाथ से वो अपनी चूत रगड़ रही थी

"दर्द होता है मालकिन" पायल फिर बोली

"बस थोड़ी देर. फिर नही होगा" कहते हुए रूपाली ने अपनी अंगुली आगे पिछे करनी शुरू कर दी. नतीजा थोड़ी ही देर में सामने आ गया. जो पायल पहले दर्द से उच्छल रही थी अब वो ही आअहह आअहह करने लगी.

"मैने कहा था ना के मज़ा आएगा" रूपाली ने कहा "और करूँ या निकल लूँ?"

"और करिए" पायल ने आहह भरते हुए कहा

रूपाली ने तेज़ी से उसकी चूत में अंगुली अंदर बाहर करनी शुरू कर दी और अपना दूसरा हाथ अपनी चूत पर तेज़ी से रगड़ने लगी. अचानक उसकी नज़र सामने घड़ी पर पड़ी और उसने अपनी अंगुली पायल की चूत से निकाल ली. पायल ने अपनी आँखें खोलकर उसकी तरफ देखा

"क्या हुआ मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा

"अरे पागल एक मर्द का लंड मेरी अंगुली जितना थोड़े ही होता है. असली मज़ा लेना है तो या तो लंड से ले या लंड जैसी किसी चीज़ से ले" रूपाली बिस्तर से उठते हुए बोली

"मतलब?" पायल ने पुचछा. उसने उठने की कोई कोशिश नही की थी. बिस्तर पर वैसे ही टांगे हिलाए पड़ी थी

"मतलब ये" रूपाली ने टेबल पर रखे हुआ एक खीरा उठाया. यही वो चीज़ थी जो वो थोड़ी देर पहले किचन में ढूँढ रही थी.

"आप ये डालेंगी? ये तो बहुत मोटा है" पायल ने आँखें फेलाते हुए कहा. उसकी टांगे भी डर से अपने आप बंद हो गयी

"कोई कोई लंड इससे भी मोटा होता है. वो कैसे लेगी?" कहते हुए रूपाली ने पास रखे हेर आयिल की बॉटल उठाई और पूरे खीरे पर आयिल लगा दिया. वो फिर बिस्तर पर चढ़कर पायल के नज़दीक आई और उसकी टाँगें खोलने की कोशिश की

"नही मालकिन" पायल ने कहा "बहुत दर्द होगा"

"अरे हर औरत को होता है. मुझे भी हुआ था पहली बार पर फिर मज़ा आता है. चल अब टांगे खोल" कहते हुए रूपाली ने ज़बरदस्ती पायल की टांगे खोल दी

वो फिर पायल की टाँगो के बीच आ बैठी और खीरा उसकी चूत पर रगड़ने लगी. पायल ने फिर अपनी आँखें बंद कर ली थी. थोड़ा देर ऐसे ही रगड़ने के बाद रूपाली ने थोड़ा सा खीरा पायल की चूत में डालने की कोशिश की. पायल फ़ौरन पिछे को हो गयी

"आह" पायल करही "दर्द होता है"

"चुप कर और टांगे खोल और हिलना मत" रूपाली ने उससे कहा और दोबारा खीरा डालने की कोशिश की. थोड़ी देर ऐसे ही कोशिश करने के बाद जब पायल ने खीरा चूत में डालने नही दिया तो रूपाली बिस्तर से उठकर अपनी अलमार तक गयी और अपने 3 स्कार्फ उठा लाई.

"तू ऐसे नही मानेगी" कहते हुए वो फिर पायल के करीब आई और उसे बिस्तर से बाँधने लगी.


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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06-21-2018, 12:15 PM,
#26
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
हेलो दोस्तो कैसे हैं आप उम्मीद करता हूँ आपको पार्ट 14 पसंद आया होगा आपने देखा था रूपाली ने किस तरह से पायल को बिस्तर से बाँध दिया था ओर उसे कली से फूल बनने की राह पर ले चली है अब आगे की कहानी ----

कुच्छ ही देर बाद पायल के हाथ बिस्तर से ऐसे बँधे हुए थे के वो अपना उपरी हिस्सा हिला भी नही सकती थी.

"नही मालकिन" उसने फिर रूपाली से कहा पर रूपाली ने उसकी एक नही सुनी. वो पायल के सर के पास आई और एक स्कार्फ उसकी आँखों पर इस तरह बाँध दिया के पायल को कुच्छ दिखाई ना दे.

"ये क्यूँ मालकिन?" अंधी हो चुकी पायल ने पुचछा

"ताकि तू खीरा देखके इधर उधर उच्छले नही" रूपाली बोली और फिर पायल की टाँगो के पास आके बैठ गयी.

इस बार उसने पायल की टांगे पूरी नही फेलाइ. चूत खोलने के लिए जितनी ज़रूरी थी बस उठी ही खोली और उसकी टाँगो पर आकर बैठ गयी. रूपाली की गान्ड पायल के घुटनो पर थी. अब पायल चाहे जितनी कोशिश कर ले पर वो हिल नही सकती थी.

रूपाली पायल की तरफ देखकर मुस्कुराइ और खीरा पायल की चूत पर रख दिया. पायल का जिस्म एक बार फिर सिहर उठा. रूपाली ने खीरे का दबाव चूत पर डाला तो वो हल्का सा अंदर घुस गया. पायल के मुँह से अफ निकल गयी पर रूपाली इस बार उसकी सुनने के मूड में नही थी. उसने अपना एक हाथ आगे बढ़कर पायल के मुँह पर रखा ताकि वो कोई आवाज़ ना कर सके और धीरे धीरे खीरा चूत में घुसाने लगी. पायल की आँखें फेल्ती चली गयी. उसकी आँखें देखकर ही अंदाज़ा होता था के वो कितनी तकलीफ़ में थी. आँखों से पानी बह निकला. वो सर इधर उधर झटकने लगी पर रूपाली के हाथ की वजह से उसके मुँह से निकली चीख घुटकर रह गयी. आँखों ही आँखों में वो रूपाली से रहम की भीख माँग रही थी पर रूपाली मुस्कुराती रही और तभी रुकी जब खीरा पूरा चूत के अंदर घुस गया.

थोड़ी देर ऐसे ही रुकने के बाद रूपाली पायल से बोली

"हाथ हटा रही हूँ. शोर मत मचाना. मचाया तो मुझसे बुरा कोई ना होगा"

पायल ने हां में सर हिलाया तो रूपाली ने अपना हाथ उसके मुँह से हटा लिया

"बाहर निकालो मालकिन" पायल फ़ौरन बोली "मेरी दर्द से जान निकल रही है"

"बस ज़रा सी देर. और मुँह बंद रख अपना" रूपाली ने डाँटते हुए पायल से कहा तो पायल दर्द का घूंठ पीकर चुप हो गयी. रूपाली ने खीरे की तरफ देखा जो 80% चूत के अंदर था. हल्का सा खून देख कर वो समझ गयी के आज उसने पायल की चूत खोल दी.

उसने झुक कर पायल के होंठ चूमे और उसकी छातियाँ चूसने लगी. कुच्छ देर बाद पायल का कराहना बंद हुआ तो उसने पुचछा

"अब ठीक है?"

"दर्द अब भी है पर कम है" पायल ने जवाब दिया

"अब तू लड़की से औरत बन गयी. आज खीरा कल लंड" रूपाली ने हस्ते हुए कहा और चूत में घुसा हुआ खीरा पकड़कर बाहर को खींचा. थोडा सा खीरा अंदर छ्चोड़कर उसने फिर से पूरा अंदर घुसा दिया और धीरे धीरे खीरे से पायल को चोदने लगी.

"मत करो मालकिन" पायल फिर से कराही "ऐसे दर्द होता है"

"बस थोड़ी देर और" रूपाली ने कहा और ज़ोर से खीरा अंदर बाहर करने लगी. कुच्छ ही पल बाद पायल का कराहना बंद हुआ और वो आह आह करने लगी

"मज़ा आ रहा है?" रूपाली ने फिर पुचछा तो पायल ने हां में सर हिला दिया. उसकी आँखो पर अब भी स्कार्फ बँधा हुआ था और उसे कुच्छ नज़र नही आ रहा था.

अचानक रूपाली एक आहट से चौंक पड़ी और दरवाज़े की तरफ देखा

"रुक ज़रा" उसने पायल से कहा और खीरा उसकी चूत में ही छ्चोड़कर दबे पावं दरवाज़े तक पहुँची. उसने दरवाज़ा इतने धीरे से खोला के ज़रा भी आवाज़ नही हुई. दरवाज़े के बाहर शौर्या सिंग खड़े थे.

दरवाज़ा खुलते ही ठाकुर सामने नंगी खड़ी रूपाली को हैरत से देखने लगे. उन्होने कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के रूपाली ने एक अंगुली अपने होंठो पर रखकर उन्हें चुप रहने का इशारा किया. ठाकुर चुप हो गये और रूपाली के इशारे पर धीरे से कमरे में आए.

कमरे का नज़ारा देखकर वो और भी चौंक पड़े. बिस्तर पर पायल नंगी बँधी हुई थी और उसकी आँखो पर भी पट्टी थी. उन्होने पलटकर रूपाली की तरफ देखा और जो अभी भी उन्हें चुप रहने का इशारा कर रही थी. इशारा में उन्होने पुचछा के ये क्या हो रहा है तो पायल ने मुस्कुरकर उनका हाथ पकड़ा और बिस्तर के करीब ले आई.

"क्या हुआ मालकिन?" पायल ने पुचछा. उसे ज़रा भी अंदाज़ा नही था के इस वक़्त कमरे में उन दोनो के अलावा एक तीसरा आदमी भी मौजूद था.

"कुच्छ नही" रूपाली ने कहा और फिर बिस्तर पर आकर पायल की छातियों पर हाथ फेरने लगी. दूसरे हाथ से उसने फिर खीरा अंदर बाहर करना शुरू कर दिया

"मज़ा आ रहा है ना पायल?" उसने ठाकुर की तरफ देखते हुए पायल से पुचछा. ठाकुर की अब भी कुच्छ समझ नही आ रहा था. वो हैरत से अपने सामने बिस्तर पर पड़ी दोनो नंगी औरतों को देख रहे थे.

"हां मालकिन" पायल ने कहा. अब चूत में अंदर बाहर हो रहे खीरे के साथ उसकी कमर भी उपेर नीचे हो रही थी.

रूपाली ने झुक कर पायल का एक निपल अपने मुँह में लिया और ठाकुर को इशारे से बिस्तर पर नंगे होकर धीरे से आने को कहा.

ठाकुर ने चुप चाप अपने सारे कपड़े उतारे और नंगे होकर बिस्तर पर आ गये.

पायल लेटी हुई थी, रूपाली उसके पास बैठी उसकी चूत में खीरा घुमा रही थी और ठाकुर वहीं रूपाली के पास आकर बैठ गये. रूपाली ने धीरे से उन्हें अपने पास किया और उनका लंड मुँह में लेके चूसने लगी. दूसरे हाथ से खीरा अब भी पायल की चूत में अंदर बाहर हो रहा था. पायल के मुँह से अब ज़ोर ज़ोर से आह आह निकलनी शुरू हो चुकी थी जिससे सॉफ पता चलता था के उसे कितना मज़ा आ रहा है. उसकी साँस भी अब भारी हो चली थी.

ठाकुर ने लंड चूस्ति रूपाली की तरफ देखा और अपना एक हाथ पायल की छाती पर रखने की कोशिश की. रूपाली ने फ़ौरन उनका हाथ खींच लिया और इशारे से कहा के मर्द का हाथ लगने से पायल को पता चल जाएगा के उसकी छाती रूपाली नही कोई और दबा रहा है.

थोड़ी देर यही खेल चलता रहा. पायल अब पूरे जोश में आ चुकी थी. रूपाली ने ठाकुर का लंड मुँह से निकाला और उन्हें पायल की टाँगो के बीच आने का इशारा किया. ठाकुर चुप चाप पायल की टाँगो के बीच आ गये.

"अब मैं तेरी चूत में कुच्छ और घुसाऊंगी" रूपाली ने पायल से कहा

"अब क्या मालकिन?" पायल ने अपनी भारी हो रही साँस के बीच पुछा

"तू बस मज़े ले" रूपाली ने कहा और खीरा चूत से बाहर निकल लिया. उसने पायल की दोनो टांगे मॉड्कर उसकी छातियों से लगा दी ताकि उसकी चूत बिल्कुल उपेर हो जाए और उसकी टांगे ठाकुर के शरीर से ना लगें.

"अपनी टांगे ऐसी ही रखना" उसने पायल से कहा. पायन ने हां में सर हिलाया और अपनी टांगे और उपेर को मोड़ ली. उसके घुटने उसकी चूचियों से आ लगे.

ठाकुर पायल की चूत के बिल्कुल सामने आ गये. रूपाली ने एक हाथ से ठाकुर का लंड पकड़ा और पायल की चूत पर रखकर उन्हें अंदर घुसने का इशारा किया. ठाकुर ने थोडा अंदर दबाया और लंड अंदर घुसने लगा. चूत पहले से ही खुली हुई थी और खीरे पर लगे आयिल की वजह से चिकनी हो रखी थी. लंड फ़ौरन आधे से ज़्यादा अंदर घुसता चला गया. ठाकुर ने मज़े से अपनी आँखें बंद की और बिना कोई आवाज़ के मुँह खोलकर आह कहने का इशारा सा किया. रूपाली समझ गयी के नयी कुँवारी चूत का मज़ा ठाकुर के चेहरे पर झलक रहा है. वो मुस्कुराइ. उसने ठाकुर का लंड अब भी पकड़ रखा था. ठाकुर ने लंड और घुसाने की कोशिश की तो रूपाली ने हाथ से रोक लिया ताकि ठाकुर के अंडे या और कोई जिस्म का हिस्सा पायल को ना छु जाए. ताकि उसे बस ये लगे के कोई लंबी सी चीज़ उसकी चूत में घुसी हुई है.

"ये क्या है मालकिन" पायल ने पुचछा

"है कुच्छ" रूपाली ने जवाब दिया. "मज़ा आ रहा है?"

"हां" पायल ने कहा और आगे बात जोड़ी "खीरे से भी ज़्यादा"

"तो बस मज़े ले" रूपाली ने कहा और ठाकुर को चोदने का इशारा किया.

ठाकुर ने लंड आगे पिछे करना शुरू कर दिया. उनका लंड काफ़ी लंबा था इसलिए रूपाली का हाथ उनके और पायल की चूत के बीच होने के बावजूद काफ़ी लंड चूत के अंदर था. वो धीरे धीरे अपना लंड अंदर बाहर करने लगे. अगर तेज़ी से चोद्ते तो शायद पायल को शक हो जाता.

थोड़ी देर चुदाई के बाद अचानक पायल का जिसम अकड़ने लगा. उसकी साँस तेज़ी से चलने लगी और फिर अगले ही पल वो ज़ोर से कराही, जिस्म ज़ोर से हिला और टांगे हवा में सीधी उठ गयी

"मालकिन" वो ज़ोर से बोली. पायल समझ गयी के उसका पानी निकल गया पर उसने ठाकुर को चुदाई जारी रखने का इशारा किया

"ये तेरा पानी निकला है. जब औरत पूरा मज़ा लेने लगती है तो ऐसा होता है. फिकर मत कर. अभी ऐसा ही फिर होगा" उसने पायल से कहा पर पायल तो लगता है जैसे अपनी ही दुनिया में थी. उसे कोई होश नही था. बस ज़ोर ज़ोर से साँस ले रही थी. रूपाली ने उसकी टांगे अब भी हवा में पकड़ रखी थी ताकि वो ठाकुर को ना छु जाए.

थोड़ी देर बाद रूपाली ने ठाकुर को देखा जो पायल आँखें बंद किए पायल को चोदने में लगे हुए थे. उसने ठाकुर को हाथ से हिलाया और अपना हाथ अपनी चूत पर फेरा. ठाकुर समझ गये के वो क्या चाहती है. उन्होने हां में सर हिलाया और पायल की चूत से लंड निकाल लिया.
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06-21-2018, 12:15 PM,
#27
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
"आआह " पायल कराही "निकाल क्यूँ लिया मालकिन?"

"अब फिर से यही ले" रूपाली ने खीरा फिर से उसकी चूत में घुसा दिया

"नही खीरा नही. वो जो पहले था वही" पायल वासना में पागल हो रही थी

"वो अब मेरी चूत में है" रूपाली ने कहा और खीरा पायल की चूत में अंदर बाहर करने लगी. उसने पायल के टांगे छोड़ दी थी और कुतिया की तरह पायल की साइड में झुकी हुई थी. ठाकुर उसके पिछे पहुँचे और उसकी गान्ड थामकर अपना लंड रूपाली के चूत में अंदर तक उतार दिया. रूपाली ने एक आह भारी और झुक कर पायल के निपल्स चूसने लगी. पीछे से उसकी चूत में ठाकुर का लंड अंदर बाहर होने लगा.

कमरे में फिर जो तूफान आया वो तब ही रुका जब तीनो थक कर निढाल हो गये. रूपाली का इशारा पाकर ठाकुर जिस तरह चुप चाप कमरे में आए थे वैसे ही निकल गये. रूपाली ने आकर पायल की आँखों पर से पट्टी हटाई और उसके हाथ खोले. पायल को अंदाज़ा भी नही था के वो अभी अभी एक मर्द से चुदी थी. बस बिस्तर पर आँखें बंद किए पड़ी रही. रूपाली ने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और नंगी ही आकर पायल के पास लेट गयी.

सुबह नाश्ते की टेबल पर तीनो मिले. पायल बहुत खुश लग रही थी. ठाकुर और रूपाली उसे देखकर आपस में मुस्कुराए.

ठाकुर ने अपनी कपड़े की फॅक्टरी के सिलसिले में किसी से मिलने जाना था इसलिए वो तैय्यार होकर घर से निकलने लगे. जाते जाते उन्होने रूपाली को अपने कमरे में बुलाया.

"वो कल रात क्या था?" उन्होने रूपाली से पुछा

"कुच्छ नही. बस आपने एक कुँवारी कली को फूल बना दिया" रूपाली ने हस्ते हुए कहा

"पर कैसे?" ठाकुर ने भी हस्ते हुए रूपाली से पुचछा

"आपने हमें हमारे जनमदिन पर कार लाकर दी. बस यूँ समझिए के ये हमारी तरफ से बिर्थडे पार्टी थी आपके लिए. कब कैसे मत पुच्हिए अब" रूपाली ने कहा. उसे खुद पर हैरत हो रही थी. वो दिल ही दिल में ठाकुर को अपने ससुर नही बल्कि अपने प्रेमी की तरह चाहती थी. और उसे इस बात कोई कोई अफ़सोस नही था के उसने खुद अपने प्रेमी को एक पराई औरत के साथ सुलाया था.

ठाकुर के जाने के बाद उसकी समझ ना आया के वो क्या करे. तेज कल रात का गया लौटा नही था इसलिए सफाई के लिए अब तक कोई नही आया था. रूपाली अगले एक घंटे तक उनका इंतेज़ार करती रही पर जब कोई नही आया तो उसने नीचे बेसमेंट में रखे बॉक्स की तलाशी लेने की सोची.

वो उठकर बेसमेंट की और चली ही थी के फोन बज उठा. रूपाली ने फोन उठाया. दूसरी तरफ से एक अजनबी आवाज़ आई.

"मेडम मैं डॉक्टर कुलकर्णी बोल रहा हूँ. ठाकुर साहब का आक्सिडेंट हो गया है. काफ़ी चोट आई हैं. सीरीयस हालत में हैं. आप फ़ौरन हॉस्पिटल आ जाइए."

दोस्तो अब मैं आपसे एक सवाल कर रहा हूँ आप उसका जबाब ज़रूर दे

.एक लड़की बस स्टाप पर खड़ी होकर एक लड़के को इशारे कर के उसे अपना चूची दिखा रही थी ,तो उधर से बस स्टाप के पार से एक लड़का इशारे से उसे अपना लंड दिखा रहा था | तो बताइए लड़की ने लड़के से इशारे में क्या बाते बताई ?
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06-21-2018, 12:15 PM,
#28
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
दोस्तों मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा पार्ट -१६ लेकर आपके लिए हाजिर हूँ

दोस्तो जिन दोस्तो ने इस कहानी के इस पार्ट को पहली बार पढ़ा है उनकी समझ मैं ये कहानी नही आएगी इसलिए आप इस कहानी को पहले पार्ट से पढ़े

तब आप इस कहानी का पूरा मज़ा उठा पाएँगे आप पूरी कहानी मेरे ब्लॉग -कामुक-कहानियाँब्लॉगस्पॉटडॉटकॉ

म पर पढ़ सकते है अगर आपको लिंक मिलने मैं कोई समस्या हो तो आप बेहिचक मुझे मेल कर सकते हैं अब आप कहानी पढ़ें

रूपाली कार लेकर हॉस्पिटल पहुँची. साथ में भूषण भी आया था. पायल को उसने वहीं हवेली में छ्चोड़ दिया था. हवेली से हॉस्पिटल तक तकरीबन एक घंटे की दूरी थी. जब रूपाली हॉस्पिटल पहुँची तो इनस्पेक्टर ख़ान वहाँ पहले से ही मौजूद था.

रूपाली ने उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे फिर किसी बात का इंतेज़ार कर रही हो. ख़ान जैसे पोलिसेवाले मौके हाथ से नही जाने देते इस बात को वो अच्छे से जानती थी. पर उसकी उम्मीद से बिल्कुल उल्टा हुआ. ख़ान ने कुच्छ नही कहा. बस इशारे से उस कमरे की तरफ सर हिलाया जहाँ पर ठाकुर अड्मिट थे.

रूपाली कमरे में पहुँची तो उसका रोना छूट पड़ा. पट्टियों में लिपटे ठाकुर बेहोश पड़े थे. उसने डॉक्टर की तरफ देखा.

"सर में चोट आई है" डॉक्टर ने रूपाली का इशारा समझते हुए कहा "बेहोश हैं. कह नही सकता के कब तक होश आएगा."

"कोई ख़तरे की बात तो नही है ना?" रूपाली ने उम्मीद भरी आवाज़ में पुचछा

"सिर्फ़ एक" डॉक्टर बेड के करीब आता हुआ बोला "जब तक इन्हें होश नही आ जाता तब तक इनके कोमा में जाने का ख़तरा है"

"इसलिए पिताजी को हमने शहेर भेजने का इंतज़ाम करवा दिया है" तेज की आवाज़ पिच्चे से आई तो सब दरवाज़े की तरफ पलते. दरवाज़े पर तेज खड़ा था.

"कल सुबह ही इन्हें शहेर ट्रान्स्फर कर दिया जाएगा" तेज ने कहा और आकर ठाकुर के बिस्तर के पास आकर खड़ा हो गया. उसने दो पल ठाकुर की तरफ देखा और कमरे से निकल गया.

रूपाली सारा दिन हॉस्पिटल में ही रुकी रही. शाम ढालने लगी तो उसने भूषण को हॉस्पिटल में ही रुकने को कहा और खुद हवेली वापिस जाने के लिए निकली. हॉस्पिटल से बाहर निकालकर वो अपनी कार की तरफ बढ़ी ही थी के सामने से ख़ान की गाड़ी आकर रुकी.

"मुझे लगा ही था के आप यहीं मिलेंगी" पास आता ख़ान बोला

"कहिए" रूपाली ने कहा

"ठाकुर साहब आज आपकी गाड़ी में निकले थे ना?" ख़ान बोला

"जी हां" रूपाली ने कहा

"मतलब के उनकी जगह गाड़ी में आप होती तो हॉस्पिटल में बिस्तर पर भी आप ही होती" ख़ान मुस्कुराते हुए बोला "समझ नही आता के इसे आपकी खुश किस्मती कहीं या ठाकुर साहब की बदनसीबी"

"आप मुझे ये बताने के लिए यहाँ आए थे?" रूपाली हल्के गुस्से से बोली

"जी नही" ख़ान ने कहा "पुचछा तो कुच्छ और था आपसे पर इस वक़्त मुनासिब नही है शायद. क्या आप कल पोलीस स्टेशन आ सकती हैं?

"ठाकूरो के घर की औरतें पोलीस स्टेशन में कदम नही रखा करती. हमारी शान के खिलाफ है ये. पता होना चाहिए आपको" रूपाली को अब ख़ान से चिड सी होने लगी थी इसलिए ताना मारते हुए बोली

"चलिए कोई बात नही" ख़ान भी उसी अंदाज़ में बोला "हम आपकी शान में गुस्ताख़ी नही करेंगे. कल हम ही हवेली हाज़िर हो जाएँगे."

इससे पहले के रूपाली कुच्छ कहती ख़ान पलटकर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया. जाते जाते वो फिर रूपाली की तरफ देखकर बोला

"मैने तो ये भी सुना था के ठाकूरो के घर की औरतें परदा करती हैं. आप तो बेझिझक बिना परदा किए ठाकुर साहब के कमरे में चली आई थी. आपकी कैसे पता के ठाकुर साहब बेहोश थे. होश में भी तो हो सकते थे" ख़ान ने कहा और रूपाली को हैरान छ्चोड़कर अपनी गाड़ी में बैठकर निकल गया

हवेली पहुँचते हल्का अंधेरा होने लगा था. रूपाली तेज़ी से कार चलती हवेली पहुन्नची. उसे लग रहा था के पायल हवेली में अकेली होगी पर वहाँ उसका बिल्कुल उल्टा था. हवेली में पायल के साथ बिंदिया और चंदर भी थे. बिंदिया को देखते ही रूपाली समझ गयी के उसने बात मान ली है और वो तेज के साथ सोने को तैय्यार है. पर तेज आज रात भी हवेली में नही था.

"नमस्ते मालकिन" बिंदिया ने हाथ जोड़ते हुए कहा "अब कैसे हैं ठाकुर साहब?"

"अभी भी सीरीयस हैं" रूपाली ने जवाब दिया "तू कब आई?"

"बस अभी थोड़ी देर पहले" बिंदिया ने कहा और वहीं नीचे बैठ गयी

रूपाली ने पायल को पानी लेने को कहा. वो उठकर गयी तो चंदर भी उसके पिछे पिछे किचन की तरफ चल पड़ा.

"मुझे आपकी बात मंज़ूर हैं मालकिन" अकेले होते ही बिंदिया बोली

"अभी नही" रूपाली ने आँखें बंद करते हुए कहा "बाद में बात करते हैं"

उस रात रूपाली ने अकेले ही खाना खाया. बिंदिया और चंदर को उसने हवेली के कॉंपाउंड में नौकरों के लिए बने कमरो में से 2 कमरे दे दिए. खाने के बाद वो चाय के कप लिए बड़े कमरे में बैठी थी. तभी बिंदिया सामने आकर बैठ गयी.

"आक्सिडेंट कैसे हुआ मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा

"पता नही" रूपाली ने जवाब दिया "ये तो कल ही पता चलेगा"

दोनो थोड़ी देर खामोश बैठी रही

"तो तुझे मेरी बात से कोई ऐतराज़ नही?" थोड़ी देर बाद रूपाली ने पुचछा. बिंदिया ने इनकार में सर हिला दिया

"तो फिर जितनी जल्दी हो सके तो शुरू हो जा. अब चूँकि ठाकुर साहब बीमार हैं तो मुझे घर के काम काज देखने के लिए तेज का सहारा लेना होगा जिसके लिए ज़रूरी है के वो घर पर ही रुके"

बिंदिया ने बात समझते हुए हाँ में सर हिलाया

"पर एक बात समझ नही आई. तू एक तो तरफ तो तेज को संभालेगी और दूसरी तरफ चंदर?" रूपाली ने चाय का कप बिंदिया को थमाते हुए पुचछा

"उसकी आप चिंता ना करें" बिंदिया ने मुस्कुराते हुए कहा

रात को सब अपने अपने कमरे में चले गये. रूपाली अपने कमरे में लेटी सोने की कोशिश कर रही थी. नींद उसकी आँखों से जैसे कोसो दूर थी. तभी बीच का दरवाज़ा खुला और पायल रूपाली के कमरे में दाखिल हुई. हल्की रोशनी में रूपाली देख सकती थी के वो अपने कमरे से ही पूरी तरह नंगी होकर आई थी.

"माँ की तरह बेटी भी उतनी ही गरम है. जिस्म की गर्मी संभाल नही रही" रूपाली ने दिल में सोचा

"आज नही पायल" उसने एक नज़र पायल की तरफ देखते हुए कहा

उसकी बात सुनकर पायल फिर दोबारा अपने कमरे की तरफ लौट गयी.

सुबह रूपाली उठी तो उसका पूरा जिस्म दुख रहा था. हर रात बिस्तर पर रगडे जाने के जैसे उसे आदत पड़ गयी थी. बिना चुदाई के नींद बड़ी मुश्किल से आई. उसने घड़ी की तरफ नज़र डाली तो सुबह के 6 बज रहे थे. वो बिस्तर से उठी. पायल के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था. उसने कमरे में नज़र डाली तो देखा के पायल बिस्तर पर पूरी तरह से नंगी पड़ी सो रही थी. शायद कल रात रूपाली के मना कर देने की वजह से ऐसे ही जाकर सो गयी थी.

वो उठकर नीचे आई. भूषण ठाकुर के पास हॉस्पिटल में ही था इसलिए उसने बिंदिया को नाश्ता बनाने के लिए कहने की सोची. वो हवेली से बाहर आकर बिंदिया के कमरे की तरफ चली. दरवाज़े पर पहुँचकर बिंदिया को आवाज़ देने की सोची तो कमरे में से बिंदिया के करहने की आवाज़ आई. गौर से सुना तो रूपाली समझ गयी के कमरे के अंदर बिंदिया और चंदर का खेल जारी था.

"सुबह सुबह 6 बजे" सोचकर रूपाली मुस्कुराइ और वापिस हवेली में आकर खुद किचन में चली गयी.

उसने सुबह सवेरे ही हॉस्पिटल जाने की सोची. पूरी रात ठाकुर के बारे में सोचकर वो अपने आप को कोस्ती रही के क्यूँ उसने अपनी गाड़ी ठाकुर को दे दी थी. आख़िर प्यार करती थी वो ठाकुर से. अंदर ही अंदर उसका दिल चाह रहा था था के जो ठाकुर के साथ हुआ काश वो उसके साथ हो जाता.

सुबह के 10 बजे तक रूपाली तेज के आने का इंतेज़ार करती रही. उसने कहा था के वो ठाकुर को शहेर के हॉस्पिटल में शिफ्ट करने का इंतज़ाम कर रहा है इसलिए रूपाली ने उसके साथ ही हॉस्पिटल जाने की सोची. पर 10 बजे तक तेज नही आया बल्कि अपने कहे के मुताबिक इनस्पेक्टर ख़ान आ गया.

"सलाम अर्ज़ करता हूँ ठकुराइन जी" ख़ान ने अपनी उसी पोलीस वाले अंदाज़ में कहा. रूपाली ने सिर्फ़ हाँ में सर हिलाते हुए उसे बैठने का इशारा किया. ख़ान की कही कल रात की बात उसे अब भी याद थी के वो बिना परदा किए हॉस्पिटल में ठाकुर के कमरे में आ पहुँची थी.

"कहिए" उसने ख़ान के बैठते ही पुचछा

"एक ग्लास पानी मिल सकता है?" ख़ान ने कमरे में नज़र दौड़ते हुए कहा. रूपाली ने पायल को आवाज़ दी और एक ग्लास पानी लाने को कहा.

"इस इलाक़े में मैं जबसे आया हूँ तबसे इस हवेली में मुझे सबसे ज़्यादा इंटेरेस्ट रहा है" ख़ान ने कहा. तभी पायल पानी ले आई. ख़ान ने पानी का ग्लास लिया और एक भरपूर नज़र से पायल को देखा. जैसे आँखों ही आँखों में उसका X-रे कर रहा हो. रूपाली ने पायल को जाने का इशारा किया

"जान सकती हूँ क्यूँ?" रूपाली ने कहा तो ख़ान चौंका

"क्यूँ क्या?" उसने पुचछा

"हवेली में इतना इंटेरेस्ट क्यूँ?"रूपाली ने पुचछा

"ओह्ह्ह्ह" ख़ान को जैसे अपनी ही कही बात याद आई "आपकी पति की वजह से"

"मतलब?"

"मतलब ये मॅ'म के आपके पति इस इलाक़े के एक प्रभाव शालि आदमी थी और आपके ससुर उसने भी ज़्यादा. इस गाओं के कई घरों में आपके खानदान की वजह से चूल्हा जलता था तो ऐसे कैसे हो गया के आपके पति को मार दिया गया?" ख़ान ने आगे को झुकते हुए कहा

"ये बात आपको पता लगानी चाहिए. पोलिसेवाले आप हैं. मैं नही" रूपाली ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया

"वही तो पता लगाने की कोशिश कर रहा हूँ. काफ़ी सोचा है मैने इस बारे में पर कोई हल नही निकल रहा. वो क्या है के आपके पति की हत्या की वजह है ही नही कोई सिवाय एक के" ख़ान ने कहा

"कहते रहिए" रूपाली ने जवाब दिया

"अब देखिए. आपके खानदान का कारोबार सब ज़मीन से लगा हुआ है. जो कुच्छ है सब इस इलाक़े में जो ज़मीन है उससे जुड़ा हुआ है. और दूसरे आपकी पति एक बहुत सीधे आदमी थे ऐसा हर कोई कहता है. कभी किसी से उनकी अनबन नही रही. तो किसी के पास भी उन्हें मारने की कोई वजह नही थी क्यूंकी ज़मीन तो सारी ठाकुर खानदान की है. झगड़ा उनका किसी से था नही" ख़ान बोलता रहा

"आप कहना क्या चाह रहे है हैं?" रूपाली को ख़ान की बात समझ नही आ रही थी

"आपको क्या लगता है ये पूरी जायदाद किसकी है?" ख़ान ने हवेली में फिर नज़र दौड़ाई

"हमारी" रूपाली ने उलझन भारी आवाज़ में कहा "मेरा मतलब ठाकुर साहब की"

"ग़लत" ख़ान ने मुस्कुराते हुए कहा "ये सब आपका है मॅ'म. इस पूरी जायदाद की मालकिन आप हैं"

"आप होश में है?" रूपाली ने थोड़ा गुस्से में कहा "सुबह सुबह पीकर आए हैं क्या?"

"मैं मुस्लिम हूँ मॅ'म और हमारे यहाँ शराब हराम है. पूरे होश में हूँ मैं" ख़ान सोफे पर बैठते हुए बोला

"ये सब मेरा? आपका दिमाग़ ठीक है?" रूपाली ने उसी गुस्से से भरे अंदाज़ में पुचछा

"वो क्या है के हुआ यूँ के ये जायदाद ठाकुर शौर्या सिंग की कभी हुई ही नही" ख़ान ने अपनी बात जारी रखी "उनके बाप ने अपनी ये जायदाद पहले अपने दूसरे बेटे के नाम की थी. क्यूँ ये कोई नही जानता पर जब उनका दूसरा बेटा गुज़र गया तो उन्हें नयी वसीयत बनाई और जायदाद अपनी बहू यानी आपकी सास सरिता देवी के नाम कर दी. सरिता देवी ने जब देखा के आपके पति पुरुषोत्तम सब काम संभाल रहे हैं और एक भले आदमी हैं तो उन्हें सब कुच्छ आपके पति के नाम कर दिया"

रूपाली आँखें खोल ख़ान को ऐसे देख रही थी जैसे वो कोई अजूबा हो

"अब आपके पति की सबसे करीबी रिश्तेदार हुई आप तो उनके मरने से सब कुच्छ आपका हो गया" ख़ान ने फिर आगे को झुकते हुए कहा

"ज़रूरी तो नही" रूपाली को समझ नही आ रहा था के वो क्या कहे

"हां ज़रूरी तो नही है पर क्या है के आपके पति के मरने से एक हफ्ते पहले उन्होने एक वसीयत बनाई थी के अगर उन्हें कुच्छ हो जाए तो सब कुच्छ आपको मिले. तो इस हिसाब से आप हुई इस पूरी जायदाद की मालकिन" ख़ान ये बात कहकर चुप हो गया

कमरे में काफ़ी देर तक खामोशी रही. ख़ान रूपाली को देखता रहा और रूपाली उसे. उसकी समझ नही आ रहा था के ख़ान क्या कह रहा है और वो उसके बदले में क्या कहे

"आपको ये सब कैसे पता?" आख़िर रूपाली ने ही बात शुरू की

"पोलिसेवला हूँ मैं ठकुराइन जी" ख़ान फिर मुस्कुराया "सरकार इसी बात के पैसे देती है मुझे"

"ऐसा नही हो सकता" रूपाली अब भी बात मानने को तैय्यार नही थी

"अब सरिता देवी नही रही, आपके पति की हत्या हो चुकी है, एक देवर आपका अय्याश है जिसे दुनिया से कोई मतलब नही और दूसरा विदेश में पढ़ रहा है और अभी खुद बच्चा है" ख़ान ने रूपाली की बात नज़र अंदाज़ करते हुए कहा

"तो?" रूपाली के सबर का बाँध अब टूट रहा था

"अच्छा एक बात बताइए" ख़ान ने फिर उसका सवाल नज़र अंदाज़ कर दिया "आपकी ननद कामिनी कहाँ है?

"विदेश" रूपाली ने जवाब दिया

"मैने पता लगाया है. उसके पासपोर्ट रेकॉर्ड के हिसाब से तो वो कभी हिन्दुस्तान के बाहर गयी ही नही" ख़ान ने जैसे एक और बॉम्ब फोड़ा

रूपाली को अब कुच्छ अब समझ नही आ रहा था. वो बस एकटूक ख़ान को देखे जा रही थी

"कब मिली थी आप आखरी बार उससे?" ख़ान ने पुचछा

"मेरे पति के मरने के बाद. कोई 10 साल पहले" रूपाली ने धीरे से कहा

"मैने लॅब से आई रिपोर्ट देखी है. जो लाश आपकी हवेली से मिली है वो किसी औरत की है और उसे कोई 10 साल पहले वहाँ दफ़नाया गया था" बोलकर ख़ान चुप हो गया

रूपाली की कुच्छ कुच्छ समझ आ रहा था के ख़ान क्या कहना चाह रहा है. हवेली में मिली लाश? कामिनी? नही, ऐसा नही हो सकता, उसने दिल ही दिल में सोचा.

"बकवास कर रहे हैं आप" रूपाली की अब भी समझ नही आ रहा था के क्या कहे

"बकवास नही सच कह रहा हूँ. और अब जबकि ठाकुर भी लगभग मरने वाली हालत में आ चुके हैं तो बस आपके 2 देवर ही रह गये और फिर हवेली आपकी" ख़ान बोला

रूपाली का दिल किया के उसे उठकर थप्पड़ लगा दे.

"कहना क्या चाहते हैं आप?" उसकी आँखें गुस्से से लाल हो उठी

"यही के ठाकुर आपकी ही गाड़ी में मरते मरते बचे हैं. आपके पति की हत्या ये जायदाद आपके नाम हो जाने के ठीक एक हफ्ते बाद हो गयी. आपकी ननद का कहीं कुच्छ आता पता नही. आपका देवर सालों से हिन्दुस्तान नही आया. इतनी बड़ी जायदाद बहुत कुच्छ करवा सकती है" ख़ान ने ऐसे कहा जैसे रूपाली को खून के इल्ज़ाम में सज़ा सुना रहा हो

"अभी इसी वक़्त हवेली से बाहर निकल जाइए" रूपाली चिल्ला उठी.

"मैं तो चला जाऊँगा मॅ'म" ख़ान ने उठने की कोई कोशिश नही की "पर सच तो आख़िर सच ही है ना"

"तो सच पता करने की कोशिश कीजिए" रूपाली उठ खड़ी हुई "और अब दफ़ा हो जाइए यहाँ से"

ख़ान ने जब देखा के अब उसे जाना ही पड़ेगा तो वो भी उठ गया और रूपाली की तरफ एक आखरी नज़र डालकर हवेली से निकल गया.

ख़ान चला तो गया पर अपने पिछे कई सवाल छ्चोड़ गया था. रूपाली के सामने इस वक़्त 2 सबसे बड़े सवाल थे के जायदाद के बारे में जो ख़ान ने बताया था वो आख़िर कभी ठाकुर ने क्यूँ नही कहा? और दूसरा सवाल था कामिनी के बारे में पर इस वक़्त उसने इस बारे में सोचने से बेहतर हॉस्पिटल में कॉल करना समझा क्यूंकी तेज अभी तक नही आया था.

उसने आगे बढ़कर फोन उठाया ही था के सामने से तेज आता हुआ दिखाई दिया

"कहाँ थे अब तक?" रूपाली ने थोड़ा गुस्से में पुचछा

"हॉस्पिटल" तेज सोफे पर आकर बैठ गया "रात भर वहीं था"

रूपाली को तेज की बात पर काफ़ी हैरत हुई

"रात भर?" उसने तेज से पुचछा

"हाँ" तेज ने आँखें बंद कर ली

"मुझे बता तो देते" रूपाली ने उसके पास बैठते हुए कहा

"सोचा आपको बताऊं फिर सोचा के सुबह घर तो जाऊँगा ही इसलिए आकर ही बता दूँगा" तेज वैसे ही आँखें बंद किए बोला

"शहेर कब शिफ्ट करना है?" रूपाली ने पुचछा

"ज़रूरत नही होगी. डॉक्टर का कहना है के अब हालत स्टेबल है. वो अभी भी बेहोश हैं, बात नही कर सकते पर ख़तरे से बाहर हैं" तेज ने कहा तो रूपाली को लगा के उसके सीने से एक बोझ हट गया. वो भी वहीं सोफे पर बैठ गयी.

"मैं शाम को देख आओंगी. अभी तुम जाकर आराम कर लो" उसने तेज से कहा तो वो उठकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया

तेज के साथ साथ ही रूपाली भी उठकर अपने कमरे की तरफ जाने लगी. तभी उसे सामने हवेली के कॉंपाउंड में चंदर खड़ा हुआ दिखाई दिया. वो बाहर चंदर की तरफ आई

"क्या कर रहे हो?" उसने पुचछा तो चंदर फ़ौरन उसकी तरफ पलटा

"जी कुच्छ नही" उसने सर झुकाते हुए कहा "ऐसे ही खड़ा था"

"एक काम करो" रूपाली ने चंदर से कहा "तुम हवेली की सफाई क्यूँ शुरू नही कर देते. काफ़ी दिन से गाओं से आदमी बुलाकर करवाने की कोशिश कर रही हूँ पर काम कुच्छ हो नही पा रहा है. तुम अब यहाँ हो तो तुम ही करो"

चंदर ने हां में सर हिला दिया

"जो भी समान तुम्हें चाहिए वो सामने स्टोर रूम में है." रूपाली ने सामने स्टोर रूम की तरफ इशारा किया और वापिस हवेली में आ गयी.

कमरे में आने से पहले उसने बिंदिया को उपेर आने का इशारा कर दिया था. उसके पिछे पिछे बिंदिया भी उसके कमरे में आ गयी

"तुझे जिस काम के लिए यहाँ बुलाया है तू आज से ही शुरू कर दे. तेज को इशारा कर दे के तू भी उसे बिस्तर पर चाहती है" उसने बिंदिया से कहा

"जी ठीक है" बिंदिया ने हाँ में सर हिला दिया

"और ज़रा चंदर से चुदवाना कम कर. तेज ने देख लिए तो ठीक नही रहेगा" रूपाली ने कहा

बिंदिया के जाने के बाद रूपाली वहीं बिस्तर पर बैठ गयी. उसे कामिनी वाली बात परेशान किए जा रही थी. दिल ही दिल में उसने फ़ैसला किया के वो कामिनी से बात करेगी और फोन उठाया.

उसने अपनी डाइयरी से कामिनी का नंबर लिया और डाइयल किया. दूसरी तरफ से आवाज़ आई के ये नंबर अब सर्विस में नही है. कामिनी का दिल बैठने लगा. क्या ख़ान की बात सच थी? तभी उसे नीचे बेसमेंट में रखा वो बॉक्स ध्यान आया. जो बात उसके दिमाग़ में आई उससे उसका डर और बढ़ गया. वो उठकर बेसमेंट की और चल दी.

बेसमेंट में पहुँचकर रूपाली सीधे बॉक्स के पास आई.
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06-21-2018, 12:16 PM,
#29
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
दोस्तों मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा पार्ट -१7 लेकर आपके लिए हाजिर हूँ
दोस्तो जिन दोस्तो ने इस कहानी के इस पार्ट को पहली बार पढ़ा है उनकी समझ मैं ये कहानी नही आएगी इसलिए आप इस कहानी को पहले पार्ट से पढ़े
तब आप इस कहानी का पूरा मज़ा उठा पाएँगे आप पूरी कहानी मेरे ब्लॉग -कामुक-कहानियाँब्लॉगस्पॉटडॉटकॉ

म पर पढ़ सकते है अगर आपको लिंक मिलने मैं कोई समस्या हो तो आप बेहिचक मुझे मेल कर सकते हैं अब आप कहानी पढ़ें

बेसमेंट में खड़ी रूपाली एकटूक सामने रखे बॉक्स को देखने लगी. उसकी समझ नही आ रहा था के बॉक्स में किस चीज़ के होने की उम्मीद करे. वो अभी अपनी सोच में ही थी के उसे सीढ़ियों से किसी के उतरने की आवाज़ सुनाई दी. पलटकर देखा तो वो पायल थी.

"क्या हुआ?" उसने पायल से पुचछा

"छ्होटे मलिक आपको ढूँढ रहे हैं" पायल ने तेज की और इशारा करते हुए कहा

रूपाली ने बॉक्स बाद में खोलने का इरादा किया और वापिस हवेली में आई. तेज उपेर अपने कमरे में ही था.

"क्या हुआ तेज?" वो तेज के कमरे में दाखिल होती हुई बोली

"वो हमें कुच्छ काम से बाहर जाना था पर हमारी गाड़ी स्टार्ट नही हो रही. तो हम सोच रहे थे के क्या हम आपकी कार ले जा सकते हैं? घंटे भर में ही वापिस आ जाएँगे" तेज ने पहली बार रूपाली से कुच्छ माँगा था

रूपाली जानती थी के वो फिर कहीं शराब पीने या किसी रंडी के पास ही जाएगा पर फिर भी उसने पुचछा

"कहाँ जाना है? पूरी रात के जागे हुए हो तुम. आराम कर लो"

"आकर सो जाऊँगा" तेज ने कहा "कुच्छ ज़रूरी काम है"

रूपाली ने उससे ज़्यादा सवाल जवाब करना मुनासिब ना समझा. वो नही चाहती थी के तेज उससे चिडने लगे

"मैं कार की चाभी लाती हूँ" कहते हुए वो अपने कमरे की और बढ़ गयी.

अपने कमरे में आकर रूपाली ने चाभी ढूंढी और वापिस तेज के कमरे की और जाने ही लगी थी के उसे ख़ान की कही बात याद आई के ये सारी जायदाद अब उसकी है. उसने दिल ही दिल में कुच्छ फ़ैसला किया और वापिस तेज के कमरे में आई.

तेज तैय्यार खड़ा था. रूपाली ने उसे एक नज़र देखा तो दिल ही दिल में तेज के रंग रूप की तारीफ किए बिना ना रह सकी. उसका नाम उसकी पर्सनॅलिटी के हिसाब से ही था. उसके चेहरे पर हमेशा एक तेज रहता था और वो भी अपने बाप की तरह ही बहुत खूबसूरत था. वो तीनो भाई ही शकल सूरत से बहुत अच्छे थे. बस यही एक फरक था ठाकुर शौर्या सिंग की औलाद में. जहाँ उनके तीनो लड़के शकल से ही ठाकुर लगते थे वहीं उनकी बेटी कामिनी एक मामूली शकल सूरत की लड़की थी. उसे देखकर कोई कह नही सकता था के वो चारों भाई बहेन थे.

रूपाली ने चाभी तेज को दी और बोली

"अब पिताजी हॉस्पिटल में है तो मैं सोच रही थी के तुम कारोबार क्यूँ नही संभाल लेते?"

तेज हस्ता हुए उसकी तरफ पलटा

"कौन सा कारोबार भाभी? हमारी बंजर पड़ी ज़मीन? और कौन सी हमारी फॅक्ट्री हैं?"

"ज़मीन इसलिए बंजर है क्यूंकी उसकी देखभाल नही की गयी. तुम्हारे भैया होते तो क्या ऐसा होने देते?" रूपाली पूरी कोशिश कर रही थी के तेज को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास हो.

भाई का ज़िक्र आते ही तेज फ़ौरन खामोश हो गया और फिर ठहरी हुई आवाज़ में बोला

"भाय्या हैं नही इसी बात का तो अफ़सोस है भाभी और उससे ज़्यादा अफ़सोस इस बात का है के जिसने उनकी जान ली वो शायद आज भी कहीं ज़िंदा घूम रहा है. और आप तो जानती ही हैं के मुझसे ये सब नही होगा. आप विदेश से कुलदीप कोई क्यूँ नही बुलवा लेती? और कितनी पढ़ाई करेगा वो?"

कहते हुए तेज कमरे के दरवाज़े की तरफ बढ़ा और इससे पहले के रूपाली कुच्छ कहती वो कमरे के बाहर निकल गया. जाते जाते वो कह गया के एक घंटे के अंदर अंदर वापिस आ जाएगा.

रूपाली खामोशी से तेज के कमरे में खड़ी रह गयी. उसकी कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या करे. दिमाग़ में लाखों सवाल एक साथ चल रहे थे. ख़ान की कही बात अब भी दिमाग़ में चल रही थी. वो तेज से बात करके ये भी जानना चाहती थी के क्या उसे इस बात का शक है के ये पूरी जायदाद रूपाली के नाम है पर ऐसा कोई मौका तेज ने उसे नही दिया.

उसने दिल ही दिल में ठाकुर के वकील से बात करने की कोशिश की. उसे जाने क्यूँ यकीन था के ख़ान सच बोल रहा था पर फिर भी उसने अपनी तसल्ली के लिए वकील से बात करने की सोची.

उसने तेज के कमरे पर नज़र डाली. वो तेज के कमरे की तलाशी भी लेना चाहती थी. भूषण की कही बात के उसके पति की मौत का राज़ हवेली में ही कहीं है उसे याद थी. एक पल के लिए उसने सोचा के कमरे की तलाशी ले पर फिर उसने अपना दिमाग़ बदल दिया. तेज हवेली में ही था और उसे शक हो सकता था के उसके कमरे की चीज़ें यहाँ वहाँ की गयी हैं. रूपाली चुप चाप कमरे से बाहर निकल आई.

नीचे पहुँचकर वो बड़े कमरे में सोफे पर बैठ गयी. तभी बिंदिया आई.

"छ्होटे मलिक कहीं गये हैं?" उसने रूपाली से पुचछा

"हाँ कहीं काम से गये हैं. क्यूँ?" रूपाली ने आँखें बंद किए सवाल पुचछा

"नही वो आपने कहा था ना के मैं उनके करीब जाने की कोशिश शुरू कर दूँ. तो मैने सोचा के जाकर उनसे बात करूँ" बिंदिया थोडा शरमाते हुए बोली

"दिन में नही.दिन में किसी को भी शक हो सकता है. तुझे मेहनत नही करनी पड़ेगी. रात को किसी बहाने से तेज के कमरे में चली जाना." रूपाली ने खुद ही बिंदिया को रास्ता दिखा दिया

बिंदिया ने हां में सर हिला दिया

रूपाली की समझ में नही आ रहा था के अब क्या करे. दिमाग़ में चल रही बातें उसे पागल कर रही थी. समझ नही आ रहा था के पहले वकील को फोन करे, या तेज के कमरे की तलाशी ले, या हॉस्पिटल जाकर ठाकुर साहब को देख आए या नीचे रखे बॉक्स की तलाशी ले.

एक पल के लिए उसने फिर बसेमेंट में जाने की सोची पर फिर ख्याल दिमाग़ से निकाल दिया. वो बॉक्स की तलाशी आराम से अकेले में लेना चाहती थी और इस वक़्त ये मुमकिन नही था. और तेज कभी कभी भी वापिस आ सकता था. उसने फ़ैसला किया के वो ये काम रात को करेगी.उसने सामने रखा फोन उठाया और ठाकुर साहब के वकील का नंबर मिलाया. दूसरी तरफ से ठाकुर साहब के वकील देवधर की आवाज़ आई.

"कहिए रूपाली जी" उसने रूपाली की आवाज़ पहचानते हुए कहा

"जी मैं आपसे मिलना चाहती थी. कुच्छ ज़रूरी बात करनी थी" रूपाली ने कहा

"जी ज़रूर" देवधर बोला "मुझे लग ही रहा था के आप फोन करेंगी"

देवधर की कही इस बात ने अपने आप में ये साबित कर दिया के जो कुच्छ ख़ान ने कहा था वो सच था

"मैं कल ही हाज़िर हो जाऊँगा" देवधर आयेज बोला

"नही आप नही" रूपाली ने फ़ौरन मना किया "मैं खुद आपसे मिलने आऊँगी"

वो जानती थी के गाओं से शहेर तक जाने में उसे कम से कम 3 घंटे लगेंगे पर जाने क्यूँ वो देवधर से बाहर अकेले में मिलना चाहती थी.

"जैसा आप बेहतर समझें" देवधर ने भी हां कह दिया

"अभी कह नही सकती के किस दिन आऊँगी पर आने से एक दिन पहले मैं आपको फोन कर दूँगी" रूपाली ने कहा

देवधर ने फिर हां कह दी तो उसने फोन नीचे रख दिया.
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06-21-2018, 12:16 PM,
#30
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
दोस्तो आपका दोस्त राज शर्मा हाजिर है पार्ट 18 के साथ

तेज के लौट आने पर रूपाली उसके साथ हॉस्पिटल पहुँची. डॉक्टर के हिसाब से ठाकुर की हालत में सुधार पर उसे ऐसा कुच्छ ना लगा. ठाकुर अब भी पूरी तरह बेहोश थे. रूपाली ने थोड़ा वक़्त वहीं हॉस्पिटल में गुज़ारा और लौट आई. भूषण अब भी वहीं हॉस्पिटल में ही था.

चंदर ने हवेली के कॉंपौंत में काफ़ी हद तक सफाई कर दी थी. कुच्छ दिन से चल रहे काम का नतीजा ये था के पहले जंगल की तरह उग चुकी झाड़ियाँ अब वहाँ नही थी. अब हवेली का लंबा चौड़ा कॉंपाउंड एक बड़े मैदान की तरह लग रहा था जिसे रूपाली पहले की तरह हरा भरा देखना चाहती थी.

हमेशा की तरह ही तेज फिर शाम को गायब हो गया. वो रूपाली की गाड़ी लेकर गया था. उसने जाने से पहले ये कहा तो था के वो रात को लौट आएगा पर रूपाली को भरोसा नही था के वो आएगा.

खाने के बाद रूपाली अपने कमरे में बैठी हुई कामिनी की वो डाइयरी देख रही थी जिसमें उसने काफ़ी शेरो शायरी लिखी हुई थी. साथ ही उसने काग़ज़ का वो टुकड़ा रखा हुआ था जो उसे कामिनी की डाइयरी के अंदर से मिला था और जिसकी हॅंड राइटिंग कामिनी की हॅंडराइटिंग से मॅच नही करती थी. रूपाली दिल ही दिल में इस बात पर यकीन कर चुकी थी की इस सारी उलझन की एक ही कड़ी है और वो है कामिनी. कामिनी की पूरी डाइयरी में शायरी थी जिसमें से ज़्यादातर शायरी दिल टूट जाने पर थी. डाइयरी की आख़िरी एंट्री पुरुषोत्तम के मरने से एक हफ्ते की थी जो कुच्छ इस तरह थी जिसपर रूपाली का सबसे ज़्यादा ध्यान गया

तू भी किसी का प्यार ना पाए खुदा करे

तुझको तेरा नसीब रुलाए खुदा करे

रातों में तुझको नींद ना आए खुदा करे

तू दर बदर की ठोकरें खाए खुदा करे

आए बाहर तेरे गुलिस्ताँ में बार बार

तुझपर कभी निखार ना आए खुदा करे

मेरी तरह तुझे भी जवानी में घाम मिले

तेरा ना कोई साथ निभाए खुदा करे

मंज़िल कभी भी प्यार की तुझको ना मिल सके

तू भी दुआ में हाथ उठाए खुदा करे

तुझपर शब-ए-विसल की रातें हराम हो

शमा जला जलके बुझाए खुदा करे

हो जाए हर दुआ मेरी मेरे यार ग़लत

बस तुझपर कभी आँच ना आए खुदा करे

दिल ही दिल में रूपाली शायरी की तारीफ किए बिना ना रह सकी. लिखे गये शब्द इस बात की तरफ सॉफ इशारा करते थे के कामिनी का दिल टूटा या किसी वजह से. उसके प्रेमी ने या तो हवेली के डर से उसका साथ निभाने से इनकार कर दिया था या कोई और वजह थी पर जो भी थी, वो आदमी ही इस पहेली की दूसरी कड़ी था. और शायद वही था जो रात को चोरी से हवेली में आने की हिम्मत करता था. पर डाइयरी में कहीं भी इस बात की तरफ कोई इशारा नही था के वो आदमी आख़िर था तो कौन था. परेशान होकर रूपाली ने डाइयरी बंद करके वापिस अपनी अलमारी में रख दी.

वो बिस्तर पर आकर बैठी ही थी के कमरे के दरवाज़ा पर बाहर से नॉक किया गया. रूपाली ने दरवाज़ा खोला तो सामने बिंदिया खड़ी थी.

"क्या हुआ?" उसने बिंदिया से पुचछा

"ये आज आया था" कहते हुए बिंदिया ने उसकी तरफ एक एन्वेलप बढ़ा दिया "आप जब हॉस्पिटल गयी थी तब. मैं पहले देना भूल गयी थी"

रूपाली ने हाथ में एन्वेलप लिए. वो एक ग्रीटिंग कार्ड था उसके जनमदिन पर ना पहुँचकर देर से आए थे.

रूपाली ने ग्रीटिंग कार्ड लेकर दरवाज़ा बंद कर दिया और अपने बिस्तर पर बैठकर एन्वेलप खोला. कार्ड उसके छ्होटे भाई इंदर ने भेजा था. ये वो हर साल करता था. हर साल एक ग्रीटिंग कार्ड रूपाली को पहुँच जाता था. चाहे कोई और उसे जनमदिन की बधाई भेजे ने भेजे पर इंदर ने हर साल उसे एक कार्ड ज़रूर भेजा था.

रूपाली ने ग्रीटिंग खोलकर देखा. ग्रीटिंग पर फूल बने हुए थे जिसके बीच इंदर और रूपाली के माँ बाप ने बिर्थडे मेसेज लिखा हुआ था. रूपाली बड़ी देर तक कार्ड को देखती रही. इस बात के एहसास से उसकी आँखों में आँसू आ गये के उसके माँ बाप को आज भी उसका उतना ही ख्याल है जितना पहले था. उसने सोचा के अपने घर फोन करके बता दे के उसे कार्ड मिल गया है और अपने माँ बाप से थोड़ी देर बात करके दिल हल्का कर ले. ये सोचकर उसके कार्ड सामने टेबल पर रखा और कमरे से बाहर जाने लगी.

दरवाज़े की तरफ बढ़ते रूपाली के कदम अचानक वहीं के वहीं रुक गये. उसके दिल की धड़कन अचानक तेज होती चली गयी और दिमाग़ सन्न रह गया. उसे समझ नही आया के क्या करे और एक पल के लिए वहीं की वहीं खड़ी रह गयी. दूसरे ही पल वो जल्दी से मूडी और अपनी अलमारी तक जाकर कामिनी की डाइयरी फिर से निकाली. कामिनी की डाइयरी से उसने वो पेज निकाला जिसपर कामिनी के साइवा किसी और की लिखी शायरी थी. उसने जल्दी से वो पेज खोला और टेबल पर जाकर ग्रीटिंग कार्ड के साथ में रखा. उसने एक नज़र काग़ज़ पर डाली और दूसरी ग्रीटिंग कार्ड पर. काग़ज़ पर लिखी शायरी और ग्रीटिंग कार्ड के एन्वेलप पर लिखा अड्रेस एक ही आदमी का लिखा हुआ था. दोनो हंदवरटिंग्स आपस में पूरी तरह मॅच करती थी. इस बात में कोई शक नही था के कामिनी की डाइयरी में पेपर उसे मिला था, उसपर शायरी किसी और ने नही बल्कि उसके अपने छ्होटे भाई इंदर ने लिखी थी.

रूपाली का खड़े खड़े दिमाग़ घूमने लगा और वहीं सामने रखी चेर पर बैठ गयी. जिस आदमी को वो आज तक अपने पति का हत्यारा समझ रही थी वो कोई और नही उसका अपना छ्होटा भाई था. पर सवाल ये था के कैसे? इंदर हवेली में बहुत ही कम आता जाता था और कामिनी से तो उसने कभी शायद बात ही नही की थी? तो कामिनी और उसके बीच में कुच्छ कैसे हो सकता था? और दूसरा सवाल था के अगर कामिनी का प्रेमी ही उससे रात को मिलने आता था तो उसका भाई वो आदमी कैसे हो सकता है? रूपाली का घर एक दूसरे गाओं में था जो ठाकुर के गाओं से कई घंटो की दूरी पर था? तो उसका भाई रातों रात ये सफ़र कैसे कर सकता है? कैसे ये बात सबकी और सबसे ज़्यादा रूपाली की नज़र से बच गयी के उसके अपने भाई और ननद के बीच कुच्छ चल रहा है और क्यूँ इंदर ने ये बात उसे नही बताई?

और सबसे ज़रूरी सवाल जो रूपाली के दिमाग़ में उठा वो ये था के क्या उसके भाई ने ही डर से पुरुषोत्तम का खून किया था?

काफ़ी देर तक रूपाली उस काग़ज़ के टुकड़े और सामने रखे ग्रीटिंग कार्ड को देखती रही. जब कुच्छ समझ ना आया के क्या करे तो वो उठकर अपने कमरे से बाहर निकली और नीचे बेसमेंट की और बढ़ गयी. बेसमेंट पहुँचकर उसने वहीं कोने में रखा एक भारी सा सरिया उठाया और उस बॉक्स के पास पहुँची जो वो काफ़ी दिन से खोलने की कोशिश में थी. बॉक्स पर लॉक लगा हुआ था जिसपर रूपाली ने सरिया से 2 3 बार वार किया. लॉक तो ना टूट सका पर बॉक्स की कुण्डी उखड़ गयी और लॉक के साथ नीचे की और लटक गयी. रूपाली ने बॉक्स खोला और उसे सामने वही दिखा जिसकी वो उम्मीद कर रही थी.

बॉक्स में किसी लड़की के इस्तेमाल की चीज़ें थी. कुच्छ कपड़े, परफ्यूम्स, जूते और मेक अप का समान. एक नज़र डालते ही रूपाली समझ गयी के ये सारा समान कामिनी का था क्यूंकी जिस दिन कामिनी हवेली से गयी थी उस दिन रूपाली . उसे ये सारा समान पॅक करते देखा था. रूपाली ने बॉक्स से चीज़ें बाहर निकालनी शुरू की और हर वो चीज़ जो कामिनी के साथ होनी चाहिए थी वो इस बॉक्स में थी. रूपाली एक एक करके सारी चीज़ें निकालती चली गयी और कुच्छ ही देर मे उसे बॉक्स में रखा कामिनी का पासपोर्ट और वीसा भी मिल गया. रूपाली की दिमाग़ में फ़ौरन ये सवाल उठा के अगर ये सारी चीज़ें यहाँ हैं तो रूपाली विदेश में कैसे हो सकती है और अगर वो विदेश में नही है तो कहाँ है? क्या वो उसके भाई के साथ भाग गयी थी और अब उसके भाई के साथ ही रह रही है?

रूपाली समान निकाल ही रही थी के अचानक उसे फिर हैरानी हुई. कामिनी के समान के ठीक नीचे कुच्छ और भी कपड़े थे पर उनको देखकर सॉफ अंदाज़ा हो जाता था के वो कामिनी के नही हैं. कुच्छ सलवार कमीज़ और सारी थी जो रूपाली के लिए बिल्कुल अंजान थी. वो कपड़े ऐसे थे जैसे के उसने अपने घर के नौकरों के पहने देखा और इसी से उसे पता चला के ये कपड़े कामिनी के नही हो सकते क्यूंकी कामिनी के सारे कपड़े काफ़ी महेंगे थे.अंदर से कुच्छ ब्रा निकली जिन्हें देखकर अंदाज़ा हो जाता था के ये कामिनी के नही हैं क्यूंकी कामिनी की छातियो का साइज़ ब्रा के साइज़ से बड़ा था.

रूपाली ने सारा समान बॉक्स से निकालकर ज़मीन पर फैला दिया और वहीं बैठकर समान को देखने लगी. जो 2 सवाल उसे परेशान कर रहे थे वो ये थे के कामिनी कहाँ है और बॉक्स के अंदर रखे बाकी के कपड़े किसके हैं? हवेली में सिर्फ़ 3 औरतें हुआ करती थी. वो खुद, उसकी सास और कामिनी और तीनो में से ये कपड़े किसी के नही हो सकते और ख़ास बात ये थी के इन कपड़ों को कामिनी के कपड़ों के साथ ऐसे च्छुपाकर ताले में क्यूँ रखा गया था? कामिनी अभी अपनी सोच में ही थी के बाहर से कार की आवाज़ आई. तेज वापिस आ चुका था. उसने समान वहीं बिखरा छ्चोड़ा और बेसमेंट में ताला लगाकर बड़े कमरे में पहुँची.
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