09-03-2018, 08:58 PM,
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RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
कम्मो ने अपनी सलवार खोली और अपनी सॉफ चूत को लंड के सुपादे से भिड़ा दिया और धीरे धीरे उसपे बैठने लगी. कम्मो की चूत में इतना रस था कि लंड एक ही झटके में खिसकता हुआ उसकी बच्चेदानी तक चला गया. एक पल के लिए जैसे सब कुच्छ थम गया दोनो के लिए. कम्मो की आँखें बंद हो गई और उसका मुँह खुल गया. उसमे से एक हल्की सी सिसकी निकली और उसने अपने चेहरा छत की तरफ कर दिया. रमेश ने उसका चेहरा देखा और उसके मम्मे दबाने लगा. रमेश को अंदाज़ा नही था कि उसका लंड इतना सुख दे सकता है किसी औरत को. उसके टटटे कम्मो के रस से भीगे हुए थे. उसने अपने गांद मटकानी शुरू की तो जैसे कम्मो को होश आ गया.
कम्मो ने आगे झुक के रमेश के सिर के पिछे अपने दोनो हाथ रखे और उसे थोड़ा उठा के अपने चूचे चुसवाने लगी. साथ ही साथ उसने अपनी गांद को गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया. देखते ही देखते उसके मम्मो के लाल लाल निशान बनने लगे और उसके चूतड़ अपने आप उपर नीचे होने लगे. करीब आधा लंड उसकी चूत में होता तो वो खट्ट से नीचे बैठ जाती. आज उसे अपनी चूत की सिकाई करनी थी. मम्मो को चटवा के उसने रमेश को अलग किया और पिछे की तरफ होके वो रमेश के लंड पे कूदियाँ मारने लगी. बुरी तरह से पनियाई चूत और एक नौ सीखिया लोडा आख़िर ज़ियादा देर नही रुक पाए और दोनो 1 ही मिनट में झर गए. सिर्फ़ 5 - 10 मीं में ही चुदाई का पहला दौर ख़तम हो चुका था.
पर जैसे ही कम्मो को होश आया उसने झट से अपनी चूत लंड से हटाई और आगे बढ़ के रमेश के मुँह पे बैठ गई. उसे रमेश से एक बार और चुद्ने का मन था और उसे रमेश को दोबारा तैयार करना था. रमेश उसकी सॉफ चिकनी चूत में अपना वीर्य टपकता देख के थोड़ा झिझका पर कम्मो कहाँ रुकने वाली थी. उसने अपनी चूत रमेश की नाक और होठों पे रगरनी शुरू कर दी. कम्मो का रस और रमेश का वीर्य का मिश्रण रमेश की साँसों में समा गया. बरबस उसकी जीभ बाहर लपलापाई और कम्मो की चूत में घुस गई. 2 - 3 बार में ही रमेश को स्वाद ठहेर गया ओए उसने कम्मो की गांद को भींचते हुए अपने मुँह से चूत को सटा लिया. चाहे इंसान कितना भी भोला हो चूत की खुश्बू उसे सीखा ही देती है सब...आज पहली बार कम्मो अपनी वीर्य भरी चूत को किसी से चटवा रही थी. कम्मो की जांघें काँप रही थी, उसकी आँखों में वहशिपन था. उसने हाथ पिछे बढ़ा के रमेश के लंड को टटोला और मुठियाना शुरू किया. रमेश का लंड भी गजब हालत में था और सटाक से तन गया. अब कम्मो आराम से धक्के लगवा के चुदवाना चाहती थी.
कम्मो ने अपनी चूत रमेश के मुँह से हटाई तो रमेश चिहुनक उठा. जैसे के बच्चे के मुँह से दूध की बॉटल निकाल ली हो. कम्मो ने मुस्कुराते हुए अपनी पीठ के बल लेट के उसे अपनी तरफ खींचा. रमेश का लोडा कम्मो की जाँघ से रगड़ खा रहा था. उसका हाथ चूत के उपर के मांसल हिस्से को दबोचे हुए था. कम्मो ने उसका चेहरा पकड़ के उसको चूमा और जीभ से जीभ भिड़ाई. दोनो की जीभें अपने अपने मुँह से बाहर निकल के लपलपाने लगी. छाती से छाती मिली हुई थी. निपल कड़े हुए पड़े थे. गांदें गोल गोल घूम रही थी. बिस्तर पे जो चुदाई का आलम था वो देखे बनता था.
जैसे चूत चाटना रमेश ने अपने आप सीख लिया था वैसे ही उसने कम्मो की जांघों के बीच अपनी जगह बनाई और लोडा चूत की दरार पे टीकाया. कम्मो ने हाथ बढ़ाकर लोडा पकड़ा और उसे छेद पे लगा के खींचा. लंड आधा अंदर गया तो कम्मो ने हाथ खींच लिया और दोनो हाथों से रमेश की गांद भर ली. रमेश के दोनो हाथ उसकी पीठ पे लगे थे. रमेश की जीभ उसके मुँह को चाट रही थी.
'' क्यों रे अब समझा आया कि औरत को खुश कैसे करते हैं..'' कम्मो ने गांद अड्जस्ट करते हुए पुछा. लंड पूरा जड़ तक घुसा हुआ था.
'' हां चाची अब समझ आ गया कि भैया कितना बड़ा चूतिया है जो मुझे कुच्छ भी नही समझाया. आप ना होती तो मैं तो लुगाई को खुश नही कर पाता और पता नही वो कल को किसी और का डंडा अंदर ले लेती. आपका बहुत बहुत शुक्रिया चाची'' रमेश गांद मतकाते हुए बोला.
'' चाची के चोदु भतीजे ये जो तेरा लंड है इसने आज मेरी चूत की अच्छी बजाई है..तेरा धन्यवाद तो वहीं पूरा हो गया. अब तो मैं तुझे धन्यवाद दूँगी गांद उच्छाल के. देख इस बार तस्सल्ली से चोद और सीख और मेरे चेहरे को देखते रहना कि कब कब कैसे तेरे मूसल के धक्कों से मुझे आनंद मिलता है. ये सब तेरी लुगाई को भी मिलेगा. '' कम्मो मुस्कुरा रही थी और अपनी चूचिओ को रमेश की छाती से रगड़ रही थी.
'' ठीक है चाची जैसा तुम बोलो मैं तो धन्य हो गया.'' रमेश ने सटा सॅट लंड अंदर बाहर किया.
तो दोस्तो कैसा लगा ये पार्ट ज़रूर बताए आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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09-03-2018, 09:00 PM,
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RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--10
गतान्क से आगे..............
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी दसवाँ पार्ट लेकर हाजिर हूँ
बाबूजी ने थोड़े नीचे झुक के कम्मो के चेहरे को पकड़ा और उसके होंठो को हल्के से चूमा. कम्मो की आँखें मूंद गई, बाबूजी के होंठो का स्प्रश बहुत अच्छा था, उनकी मूच्छों से उसको हल्की सी गुदगुदी उठी. बाबूजी ने हाथ बढ़ा के उसका रिब्बन खोल दिया और उसके रेशमी बाल खुल के उसकी कमर तक लहरा गए. बाबूजी ने उसके बालों मे अपनी उंगली फेरी और माँग के दोनो तरफ उनको सेट किया. माँग में हल्का सिंदूर लगा हुआ था. बाबूजी ने आगे झुक के उसकी माँग को चूमा और फिर उससे थोड़े पिछे हट गए. पता नही शायद दोनो के दिल एक दूसरे की बात सुन रहे थे. कम्मो ने बिना कुच्छ बोले नीचे झुक के बाबूजी के चरण च्छुए और अपनी माँग में हाथ फेरा. जैसे ही वो उठी बाबूजी ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और भींच लिया. बाबूजी को कम्मो पे बहुत प्यार आ रहा था और साथ ही साथ उनकी वासना भी भड़की हुई थी.
कम्मो ने बाबूजी की छाती से लगते हुए उनके कुर्ते के नीचे हाथ लगाया और धोती की गाँठ को टटोला. धोती खुल के पैरों में गिर गई. उसके बाद कम्मो ने बाबूजी का कुर्ता उठना शुरू किया और उतार कर बिस्तर पे फेंक दिया. बाबूजी अब पूरे नंगे खड़े थे और उनका 7 इंच का लंड लोहे की तरह कड़क हुआ पड़ा सलामी दे रहा था. कम्मो ने थोड़े पिछे हट के उनके लंड को निहारा और फिर ज़मीन पे घुटनो के बल बैठ गई. हाइट की वजह से कम्मो का सिर बाबूजी के लंड से थोड़े नीचे था. उसने सिर उठा के पहले उनके सरीखे लंड को अच्छे से निहारा और फिर अपने छ्होटे छ्होटे हाथों से उसे पकड़ लिया. कम्मो के गरम हाथों का स्पर्श मिलते ही बाबूजी का बदन काँप उठा. उनके मूह से कम्मो के नाम की एक सिसकारी निकल गई.
कम्मो के चेहरे पे एक मुस्कान आई और उसने अपनी जीभ निकाल के उसकी नोक बाबूजी के लंड की आँख पे लगा दी. बाबूजी के लंड की आँख से प्री कम की बूंदे निकल रही थी. कम्मो ने लंड की आँख को जीभ की नोके से टटोला और प्री कम की एक लार उसके होंठो पे आ गई. कम्मो पिछे हुई तो प्री कम की तार जैसे उसके होंठो और बाबूजी के लंड को जोड़ रही थी. कम्मो ने अपना राइट हॅंड लंड के टोपे पे घुमाया और प्री कम से टोपे की मालिश की और फिर आगे बढ़ते हुए बड़े ही नर्म होंठो से टोपे को घिसने लगी. देखते ही देखते उसकी उत्तेजना बढ़ने लगी और अब उसके हाथ बाबूजी के टट्टों, गांद और जांघों पे फिरने लगे. कम्मो की जीभ लपलपा रही थी, उसके मूह में थूक भरा हुआ था, कभी वो लंड को चूस्ति तो कभी टट्टों को चूमती. उसने सपने में भी नही सोचा था कि घर के मालिक का लंड कभी उसको नसीब होगा. वो हमेशा इस लंड की गुलाम बन के रहना चाहती थी. उससे पता था कि इस लंड की गुलामी से उसकी चूत के भाग खुल जाएँगे और साथ ही उसके परिवार के भी. उसके परिवार का सुख उस लंड के ज़रिए हो के जाता था और कम्मो चाहती थी कि वो ऐसा कुच्छ करे पहली बार में कि बाबूजी मरते दम तक उसे ना छोड़ें.
कम्मो ने अपने हाथों से बाबूजी की गांद पकड़ ली और उनकी गांद के छेद से खेलने लगी. बाबूजी का लंड उसके हलक तक उतरा हुआ था और अब बाबूजी उसे चोदे जा रहे थे. मुख चोदन का इतना बढ़िया एहसास कम्मो को पहले नही मिला था. बाबूजी अपने लंड को उसके मूह और गले की गहराईयो में उतारते और उसका सिर पकड़ लेते. जब कम्मो की साँस घुटने लगती तो छोड़ देते और कम्मो अपना सिर पिछे करती तो ढेर सारा थूक बाहर निकल आता. उसका नया सूट थूक से गीला हो चुका था पर उसे परवाह नही थी क्योंकि उसे पता था कि उसे ऐसे कई सूट और मिलेंगे. थूक की लंबी लंबी लार उसके मम्मो को भी भिगो रही थी. बाबूजी अपनी स्पीड चेंज करते हुए उसके मूह को चोद्ते रहे और 3 - 4 मीं में वो छूटने को तैयार हो गए. कम्मो ने बाबूजी की गांद के छेद में एक उंगली फँसाई हुई थी और उसे एहसास हुआ कि उनकी गांद अब टाइट हो रही है. एन मौके पे कम्मो ने एक हाथ से बाबूजी का गीला लंड मुठियाना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ की उंगली उनकी गांद में 1 इंच तक घुसेड दी.
''' ऊऊहह कममू राणियीई ये ले अपने बाबूजी का वीर्यहह और पीईइ ज़ाआाआ......'' बाबूजी चिल्लाए और उनकी गांद ने पहला झटका खाया. 1 सेकेंड के लिए कम्मो ने उन्हे मुठियाना रोका और लंड को सही जगह पे अड्जस्ट किया. लंड की आँख से निकली वीर्य की पहली पिचकारी ठीक उसकी लाल सिंदूर सजी माँग के बीचों बीच पड़ी. वीर्य की सफेद धार से बाबूजी ने उसकी माँग सज़ा दी और अब कम्मो और बाबूजी का उमर भर का चुदाई का रिश्ता पक्का हो गया. बाबूजी के लंड के झटके जारी रहे और कम्मो लंड को मुठियाते हुए उसे अड्जस्ट करती रही. उसकी आँखें, गाल, होंठ, नाक सब जगह पे वीर्य की धाराएँ बहने लगी. बाबूजी 10 - 15 सेकेंड तक वीर्य पात करते रहे और फिर जैसे ही रुकने को हुए तो कम्मो ने लंड को मूह में भर लिया. लंड उसके हलक तक पहुँचा और बाबूजी ने पूरी ताक़त लगा के 2 - 3 पिचकारियाँ और छोड़ी.
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