Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
09-03-2018, 09:02 PM,
#41
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--14

गतान्क से आगे..............

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी का चौदहवाँ पार्ट लेकर हाजिर हूँ
टाय्लेट से बाहर आते ही उसने देखा कि तीनो भाई आपस में बाते कर रहे हैं और पेग ले रहे हैं. किरण राजू के पिछे गई और उसकी पीठ से अपने चूचे रगड़ने लगी और उसका लंड सहलाने लगी.

''मुझे भी पेग पिलाओ ..क्या बातें हो रही है...क्या मेरे बारे में हो रही हैं..?'' किरण ने राजू के ग्लास से एक बड़ा घूँट पिया.

राजू ने उसे आगे की तरफ खींच लिया. अब वो तीनो के बीच में थी और राजू के लंड से उसकी गांद सटी हुई थी. संजय और सुजीत ने भी उसे अपने ग्लासस से पेग पिलाए और तीनो भाई उसके जिस्म से खेलने लगे. संजय उसकी चूत सहला रहा था और सुजीत उसके मम्मे हल्के हल्के दबा रहा था.. राजू उसकी गांद पे अपना लंड सहला रहा था और उसके मोटे चूतर को एक हाथ से पकड़े हुए था.

''हम ये सोच रहे थे कि जिसकी वजह से तुम हमें मिली हो उसका धन्यवाद कैसे किया जाए...??'' राजू बोला.

''ह्म्‍म्म्म...उम्म्म्म अच्छा लग रहा है...संजय थोड़े अंदर उंगली डाल मेरे बच्चे...सुजीत मेरा चूचा चूस दे प्लीज़.....धन्यवाद किसका करना है...इस लंडूरे का..??'' किरण ने संजय का लंड सहलाते हुए और मदमस्त तरीके से मुस्कुराते हुए पुछा.

''हां इस लंडूरे का.....'' सुजीत मम्मे चूस्ते हुए बोला.

''तो फिर तुम क्यों करोगे ..मैं करूँगी ना अपने इस दामाद को खुश आख़िर इसने मेरी चूत तृप्त कराई तुम जैसों से...हाए...क्या हसीन लोडा है तेरा सुजीत...और क्या अंडे हैं...उउम्म्म्म...इसको तो मूह में लूँगी...इसका धन्यवाद मेरी गांद देगी...आज अपनी कुँवारी गांद इस लंड से पिलवाउंगी...दामाद जीि ऊओह लोगे ना मेरी गांद....'' किरण अब फुल मस्ती में आ चुकी थी.

''ओह्ह्ह्ह सासू मा...क्या कह दिया ...देखो मेरा लंड और फूल गया है...तुम जैसी सास हर किसी को मिले....उफफफ्फ़ हां लूँगा तेरी गांद मेरी सासस्स्सुउउ........'' संजय एग्ज़ाइटेड हो गया था.

तीनो भाईओं ने फटाफट बिस्तर सेट किया और संजय बिस्तर पे लेट गया. सुजीत अपने कमरे से चार्मिस क्रीम ले आया और खूब सारी क्रीम किरण की गांद में लगा दी. उसने अपनी उंगलियाँ अच्छे से भिगो के गांद में पूरी अंदर तक ठूँसि. किरण बेड का किनारा पकड़े गांद उचका के क्रीम लगवा रही थी. उधर संजय ने भी अपने लंड को क्रीम से तरबतर कर दिया. लंड के सुपादे पे उसने अच्छे से क्रीम पोत दी. किरण क्रीम लगवा लेने के बाद पीठ के बल उसके सीने पे लेट गई. संजय ने उसके चुम्मे लेते हुए अपने लंड को उसकी गांद के छेद पे सेट किया. सूपड़ा इतना चिकना था कि एक दो बार तो फिसल गया.

किरण ने उसका लंड पकड़ के अपने को थोड़ा रिलॅक्स किया और फिर धीरे धीरे लंड पे अपनी गांद बिठाने लगी. गांद में चिकनाई बहुत थी और किरण को पहले 5 इंच में कोई दर्द नही हुआ. उसके बाद उसको दर्द महसूस होने लगा. एक बार फिर से क्रीम लेके उसने टोपा गीला किया और फिर से लंड अंदर घुस्वाया. हल्के हल्के झटके देते हुए वो करीब 8 - 9 इंच लंड गांद में ले गई और फिर पीठ के बल संजय के सीने पे लेट गई. राजू ने दोनो की टाँगो के बीच जगह बनाई और हल्के हल्के अपना लंड चूत में दबाने लगा. किरण की चूत अब तक काफ़ी खुल चुकी थी और उसे थोड़ा दर्द हुआ. उसके दर्द को कम करने के लए सुजीत ने उसके निपल चूसने शुरू कर दिए और संजय उसके मूह को मोड़ के उसे किस करने लगा. 2 मीं में दोनो लंड उसकी चूत और गांद में सेट हो गए थे. नज़ारा देखते ही बनता था. 2 कद्दावर जवान आदमी उसको पेलने के लिए उत्सुक थे. किरण गांद में पहली बार चुद रही थी पर एग्ज़ाइट्मेंट इतनी ज़ियादा थी कि दर्द का एहसास ख़तम हो चुका था. सुजीत ने उसके सिर के नीचे हाथ रखते हुए उसे प्यार से अपना लंड चाटने का इशारा किया. सुजीत का लंड मूह में भरते ही किरण ने अपनी चूत को थपथपाया और राजू को इशारा किया कि वो चुदाई का कार्यक्रम शुरू करे.

हल्के धक्कों के साथ राजू ने उसको चोद्ना शुरू किया. संजय नीचे पड़ा पड़ा उसकी कमर सहला रहा था. राजू के लंड को वो गांद में पड़े अपने लंड पे महसूस कर रहा था. देखते ही देखते राजू के धक्के तेज़ और लंबे होने लगे. सुजीत के हाथ अब उसकी चूचियो को मसल्ने लगे. गुपप गुपप्प की आवाज़ों के साथ किरण उसका मोटा लंड चूसने लगी. कभी उसके लंड पे थूकती तो कभी उसकी गोटिओं को मूह में भरती. सुजीत अपना लंड साथ साथ मुठिया रहा था. तीनो भाइयो ने एक रिदम के साथ किरण के सभी छेदों को चोद्ना शुरू कर दिया. किरण अब मूह से सिसकियाँ गालियाँ और चूपे लेने की आवाज़े निकाल रही थी. ले लो मेरी....चूदू...फुक्ककक मी...हाऐईयईई.....ऐसे पहले क्यों नही करवाया मैने...इतना सुख ...हरामिी...ऊओ माआ....मदर्चोद.....ऊहह एस्स....मूह भर मेरा....एसस्स...इन्हे भी चाट हरामी...ऊओ एसस्स...गांद ले ली....ऐसे ऐसे बोलते हुए किरण राजू के लंड पे 2 बार झड़ी.
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09-03-2018, 09:02 PM,
#42
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
''ऊओह एससस्स....एस्स.....एसस्स....'' कहते हुए संजय ने उसकी गांद में वीर्य उदेलना शुरू कर दिया.

'''ये ले छिनाल तीसरे भाई का वीर्य भी अपनी बच्चे दानी में.....उूउउरर्ग्घह...एस्स.....ऊओह गावववद्ड़.......''' कहते हुए राजू उसकी चूत में झरने लगा.

''मूह खोल कुत्ति और पी जा....सब ....एसस्स...'' सुजीत ने अपनी गोटिओं का रस उसके मूह में भरना शुरू कर दिया.

1 मीं बाद वीर्य से लत पथ हाँफती हुई किरण तीनो भाइयों को बारी बारी किस दे रही थी. 15 - 20 मीं सुसताने के बाद किरण बाथरूम में गई और फ्रेश हुई और एक क्विक शवर लेके बाहर निकली. तीनो भाई बिस्तर पे पड़े सुस्ता रहे थे. कमरे में सेक्स की भीनी भीनी खुश्बू थी और बेड पे जगह जगह वीर्य और आस के निशान. रात के 2 बज गए थे.

''अगर धन्यवाद देने का सोचना है तो फिर सरला के बारे में सोचो...उसी की वजह से तुम तीनो कमीनो को मेरी चूत मिली है...और देखो जब धन्यवाद दो तो अच्छे से देना ..क्योंकि वो भी मेरी तरह ही चुदास है..'' कहते हुए तीनो को बारी बारी किस देते हुए किरण कमरे से बाहर चली गई.

तीनो भाई आधे खड़े लंड और खुले मूह से उसे जाते हुए देखते रहे.


किरण ने दरवाज़ा खोला और बाहर को निकल गई. उसको जाते हुए 8 आँखें और 3 खुले हुए मूह देख रहे थे. गांद में थोड़े दर्द होने की वजह से किरण की चाल बदल गई थी. पर दिल में और चूत में बहुत सुकून था.

तीनो भाई उसको जाते हुए देखते रहे और कमरे में एक खामोशी थी. जैसे साँप सूंघ गया हो उनको. दारू और चुदाई का नशा इतना स्ट्रॉंग था कि किसी की हिम्मत नही हुई दरवाज़ा बंद करने की और देखते ही देखते सब नंगी अवस्था में सो गए. खुले दरवाज़े से 2 आँखें उन्हे देखती रही. सिकुड़ी हुई हालत में भी लंड काफ़ी बड़े थे. 2 हाथ अचानक टाँगों के बीच में चले गए और एक दबी हुई सी अया सरला के मूह से निकल गई. 2 घंटे से कमरे मे हुआ नंगा नाच देख के वो 3 बार झड़ी थी पर अभी भी चूत की खुजली जाने का नाम नही ले रही थी.

''साली रांड़ एक को भी नही छोड़ा..सबका निगल गई...कुत्ति मैने तो सिर्फ़ दामाद जी के लिए कहा था ये तो बाकिओं को भी ले गई ...पर क्या करती बेचारी...हरामी तो मेरा ही दामाद निकला जो भाईओं को भी बुला लिया....सही मदर्चोद है..जैसा इसका चाचा वैसा ही भतीजा ... कुत्तों का खानदान लगता है..कुत्ते जिनके उपर गधे के लंड लगा दिए हैं...हाए सरला...इनके लेके तो तू भी धन्य हो जाएगी...पर कैसे..मिलेंगे ये सब एक साथ...क्या करूँ...कुछ सोच छिनाल...सबके लंड कैसे लेगी एक साथ...'' सरला दरवाज़े पे खड़ी खड़ी सब सोच रही थी.

उसका प्लान सक्सेस्फुल हो गया था. बार में जाके उसने किरण को भड़काया था कि उसकी वजह से सखी की तबीयत खराब हो गई. उसको और संजय को मादक रूप में डॅन्स करते देख और संजय का 11 इंच का लंड पॅंट में खड़ा होते देख सखी को बहुत बुरा लगा था. किरण को इस बात के लए सखी से माफी माँगनी चाहिए. 11 बजे रात को आने को कह के सरला ने अपने दामाद के कमरे का पता दे दिया था. कुच्छ तो उसकी सोच का कमाल था और कुच्छ हालात अपने आप ऐसे बन गए कि ना चाहहते हुए भी तीनो भाईओं ने किरण को पेल दिया. सखी के मूह से दामाद के 11 इंच के बारे में तो सुना था पर बाकी दोनो का भी इतना बड़ा होगा उसे अंदाज़ा नही थी . सुजीत के मोटे लंड ने तो उसपे जादू कर दिया था.

परेशान चूत को लिए हुए सरला ने एक आख़िरी नज़र तीनो भाईओं पे डाली और अपने कमरे की तरफ चली गई.

सुबह के 11 बजे तक सब तैयार हो के पिक्निक से वापिस जाने की तैयारी कर रहे थे. सरला का मूड बहुत ऑफ था. हालाँकि पिक्निक आते हुए ऐसा कुच्छ होगा उसने सोचा नही था पर जो देखा उससे उसकी भूख बहुत भाड़क चुकी थी. सब समान ले के रिसेप्षन पे पहुँचे तो वहाँ किरण मौजूद नही थी. तीनो भाइयों को बहुत मायूसी हुई. पर खैर अपनी अपनी पत्निओ से मज़ाक करते हुए उन्होने न रिसेप्षन पे बिल सेट्ल किया और गाड़ी की तरफ चल दिए. रिसेप्षन पे बैठे आदमी ने संजय को आवाज़ दे के रोका और उसे बिल्स और एक और लिफ़ाफ़ा हाथ में थमा दिया. संजय के पुच्छने पे उसने कहा की दूसरा लिफ़ाफ़ा किरण मेडम ने दिया था. उनको सुबह ही शहेर में जाना पड़ा इसलिए जाते जाते ये दे के गई थी.

संजय ने अलग जाके लिफ़ाफ़ा खोला और थोड़ा चौंक गया. लिफाफे के अंदर किरण की 2 तस्वीरें थी. एक उसकी जवानी की अपने शादी के जोड़े में. दूसरी में कोई 20 - 21 साल की खूबसूरत लड़की के साथ वो पोज़ बना के खड़ी थी, जिसमे कि उसने एक चुस्त चूरिदार सूट पहना हुआ था. फोटोस के साथ एक छ्होटा सा नोट था. ''धन्यवाद ..आप लोगों का साथ पाके एक बार फिर ये जोड़ा पहनने का मन कर रहा है...कोई खानदानी बंदा नज़र में आए तो बताईएएगा.''
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09-03-2018, 09:02 PM,
#43
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
संजय दोनो फोटोस को निहारता रहा और फिर अपनी किस्मत पे खुश हुआ. तभी उसकी नज़र सरला पे पड़ी जो कि होटेल के नौकर को बुरी तरीके से झाड़ रही थी. बाकी सब लोग गाड़ी में बैठ चुके थे. पीछे समान रखते हुए उस आदमी से सूटकेस का हॅंडल टूट गया था. संजय जो कि 20 - 25 कदम पे था जल्दी जल्दी वहाँ पहुँचा. वो आदमी सकपकाया हुआ सॉरी सॉरी कह रहा था. सरला ने भी फोटो की तरह एक चुस्त चुरिदार सूट पहना हुआ था. संजय उसको कुच्छ सेकेंड देखता रहा जैसे कि किरण ही सामने खड़ी हो. पर फिर अचानक उसकी नज़र सरला के मम्मो के उभार पे पड़ी जो कि चिल्लाने की वजह से बहुत उपर नीचे हो रहे थे. सूट की गहराई की वजह से करीब 1 इंच की दरार सामने थी. गेहुएँ रंग के मम्मो का साइज़ किरण से बड़ा था. ये देख के संजय का लंड हुलचल करने लगा. पर तभी उसे रीयलाइज़ हुआ कि ये उसकी सास है..ना कि किरण. संजय ने फटाफट सरला को समझा भुजा के गाड़ी में बैठाया पर सरला के एक सेंटेन्स ने उसे हिला दिया. गुस्से में गाड़ी का दरवाज़ा खोलते हुए सरला बुदबुदाई ''साली छिनाल लगता है कि नौकरों से भी यारी लगाई हुई है ..तभी इतने निकम्मे हैं''.

पिच्छली सीट पे बैठी हुई सरला गुस्से में बुदबुड़ाए जा रही थी. संजय ड्राइव कर रहा था और सखी बगल में बैठी थी. दूसरी गाड़ी में राजू, सुजीत, मिन्नी और राखी थे. संजय ने सोचते हुए रियर व्यू मिरर को अड्जस्ट किया और ड्राइविंग शुरू की. उसके दिमाग़ में सरला का कहा हुआ एक एक शब्द गूँज रहा था. च्चिनाल तो किरण के लिए इस्तेमाल हुआ था क्योंकि नौकर उसके ही थे. पर गौर करने वाली बात ''से भी '' शब्दों का उपयोग था.

क्या सासू मा को रात के किस्से का पता है ? क्या वो उसी वजह से ये बात कह रही थी ? क्या किरण ने उन्हे ये बात बताई ? क्या हुआ है कुच्छ समझ नही आ रहा. संजय इन्ही ख़यालों में घूम कल शाम से हुई घटनाओ के बारे में सोचने लगा. रास्ता 2 घंटे का था और अभी उन्हे 30 मीं हो चुके थे. सखी बगल की सीट में सो गई थी. सासू मा का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ था. संजय के दिमाग़ में अब भी हलचल थी. अचानक उसकी गाड़ी के आगे से एक जानवर गुज़रा और संजय ने तेज़ ब्रेक लगाई. उसकी वजह से सखी आगे को झूल गई और उसकी नींद खुल गई. सरला भी अगली सीट से टकराते टकराते बची. संजय ने सॉरी सॉरी बोलते हुए सखी को चेक किया. नींद टूटने के सिवाए उसको गर्दन में हल्का झटका आया था. सरला अब फिर गुस्सा हो गई और संजय को सुनाने लगी. संजय ने गाड़ी को साइड में कर के सखी को पानी पिलाया और प्यार से उसका माथा चूमा. ये देख के सरला का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ.

सखी की गर्दन में दर्द हो रहा था सो वो पिछे की सीट पे सोने चली गई और सरला अगली सीट पे आ गई. करीब 15 मीं तक संजय बार बार शीशे में सखी को देखता रहा. उसे अब नींद आ चुकी थी. संजय के चेहरे के तनाव को सरला अच्छे से समझ रही थी. उसको अंदर ही अंदर खुशी हो रही थी कि संजय कितना चाहता है सखी को. दूसरी तरफ उसे ये भी लग रहा था कि कितनी आसानी से संजय ने किरण को बिस्तर में ले लिया और फिर अकेले और बाद में भाईओं के साथ चोदा. किरण और संजय का कार्यक्रम उसे इतना अजीब नही लगा जितना कि राजू और सुजीत का वहाँ पहुँचना. बाहर खड़े खड़े उसे सब सुनाई नही दे रहा था पर जो दिख रहा था उससे एक बात क्लियर थी कि राजू और सुजीत का आना कोई इत्तेफ़ाक़ नही था.

''कैसा प्यारा हरामी दामाद मिला है मुझे..एक तरफ तो बीवी से इतना प्यार करता है और दूसरी तरफ भाईओं को साथ ले के एक ही लड़की पेलता है...हाइईइ क्या लंड है कमीने का...और तो और वो बाकी दोनो भी गधे हैं गढ़हे...उफ़फ्फ़ सरला...तेरी चूत तो फॅट जाएगी जानेमन ..इतने बड़े और मोटे लंड एक साथ कैसे खाएगी.....साली कमीनी अपने ही दामाद के बारे में सोच रही है...शांत हो जा..शांत हो जेया.....'' सरला मन ही मन सोच रही थी. उसकी चूत की कुलबुलाहट उसकी साँसों को तेज कर रही थी. सिर को सीट के हेडरेस्ट पे लगाए वो अपने को शांत करने के लिए गहरी साँसे लेने लगी. संजय अब भी सखी की चिंता में लगा हुआ था. आँखों की कॅंकहियो से उपर नीचे होते हुए मादक उरोजो ने बरबस उसका ध्यान खींच लिया. थोड़े सा मुड़ते हुए उसने सरला को देखा तो सरला आँखें मून्दे हुए हल्के हल्के मादक अंदाज़ में मुस्कुरा रही थी.

उसकी मुस्कुराहट का राज छुपा था उसकी जांघों के उपर रखे हुए बड़े पर्स में जिसके नीचे उसका एक हाथ अपनी टाँगों के बीच च्छुप्पा हुआ था.संजय की तरफ वाला हाथ पर्स को पकड़े हुए था और डोर वाली साइड वाला हाथ पर्स के नीचे चूत को सहला रहा था. सरला मस्ती में थी पर सोने का नाटक कर रही थी. उसकी ये हालत देख के संजय का ध्यान वापिस उसकी ओर हो गया.

संजय की ललचाई नज़रे अब अपनी सास का चेहरा और उसके ज़ोर ज़ोर से उपर नीचे हुए उरोजो पे थी. सरला अपनी मस्ती में चूर थी. उसका हाथ उसके भग्नाशे को छेड़ रहा था. उसको उम्मीद थी कि संजय का ध्यान ड्राइविंग और सखी की तरफ ही होगा. उसके दिमाग़ में रात की तस्वीरें घूम रही थी और ख़ास तौर से किरण के मूह में झरता हुआ सुजीत का लंड. सुजीत के ख़याल से सरला बेकाबू हो रही थी. भज्नाशे पे उंगली का दबाब बढ़ता जा रहा था और उसके उरोजो की घुंडीयाँ अब कड़क हो चुकी थी. रह रह के संजय का ध्यान उसकी ओर जा रहा था. सरला झरने के बेहद करीब थी. अपनी उस अवस्था में उसने एक बार हल्की सी आँख खोल के देखा तो बाइ चान्स संजय ड्राइवर साइड के रियर व्यू मिरर में पिछे से आती गाड़ी को देख रहा था. सरला को यकीन हो गया क़ि संजय उसकी ओर नही देख रहा और उसने अपना दबाव एक बार और बढ़ाया. इसके साथ ही वो हल्का सा सरक के अपनी विंडो की तरफ मूड गई. उसके कसे हुए सूट में उसका लेफ्ट जाँघ का पिच्छला हिस्सा, थोड़ा सा चूतर और पॅंटी सफेद सलवार में से दिखने लगी. कॉटन पॅंटी हल्के गुलाबी रंग की थी और उसपे नीले रंग के फूल बने हुए थे.

सरला ने अपनी उंगलिओ को अब उपर नीचे रगरना शुरू कर दिया और मूह को शीशे के करीब कर दिया. संजय का ध्यान अब उसके चूतर और शीशे में दिखती हल्की परछाई की तरफ था. उसके चेहरे के एक्सप्रेशन पल पल बदल रहे थे. संजय को उम्मीद थी कि किसी भी पल वो झाड़ सकती है. आँखें मूंदी होने के कारण उसकी हवस का अंदाज़ा नही लग पा रहा था पर उसका चेहरा और बहुत सी बातें बयान कर रहा था. संजय की नज़र रह रह के उसके गदराए हुए चूतर पे पड़ रही थी और उसका लंड पॅंट से बाहर निकलने को उतावला हो रहा था.
क्रमशः...........................................
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09-03-2018, 09:02 PM,
#44
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खानदानी चुदाई का सिलसिला--15

गतान्क से आगे..............

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी का पंद्रहवाँ पार्ट लेकर हाजिर हूँ
सरला के दिमाग़ में सिर्फ़ सुजीत का काला लंड घूम रहा था. 9 इंच का सॉलिड काला मोटा मूसल और उसमे से निकलती वीर्य की पिचकारियाँ जो कि सरला के मूह में उतर रही थी...और सरला की जीभ उसके टोपे को चाट रही थी...उसके टोपे की आँख से लटकी हुई आख़िरी बूँदें उसकी जीभ कुरेद कुरेद के अपने होंठो पे ला रही थी....उउउफफफफ्फ़...सुउउ...ज्ज्जीईत्त्त......दद्द....द्डूऊ काअले....लनन्ड्ड....का रस्स...अनायास ही सरला के मूह से झरते हुए निकल गया......आवाज़ बहुत दबी हुई थी पर इतनी भी नही कि संजय को सुनाई ना दे. गाड़ी के एसी के हल्के शोर में सुजीत का नाम और काले शब्द को संजय ने भली भाँति समझ लिया और उसका ध्यान सरला के काँपते हुए चूतर पे चला गया. कंपन ज़बरदस्त था पर सरला उसे बहुत कंट्रोल करने की कोशिश कर रही थी. एक आख़िरी दबाव में चूत की पिचकारी ही छ्छूट गई और सरला एक लास्ट बार हल्के से कराह के सुस्त पड़ गई. करीब 10 मीं तक वो वैसे ही सुस्त पड़ी रही और फिर उसे थोड़ा होश आया. घर अब 10 - 15 मीं की दूरी पे था. उसे अपने आप को संभालना था. हल्के हल्के अंगड़ाई लेते हुए उसने नींद से जागने का नाटक किया. निपल अब भी कुच्छ कुच्छ कड़े थे और अंगड़ाई लेते हुए उसने बाजुओं को सिर के पिछे खींचा तो उनका उभार अच्छे से नज़र आने लगा.

3 - 4 मिनिट की नींद की खुमारी के बाद उसने संजय की तरफ गौर से देखा. किसी हाव भाव से संजय ने यह नही शो होने दिया कि उसको आज अपनी सास की चुदास का पता चल गया. अगर सरला ध्यान से देखती तो उसे संजय की गोद में पड़ा हॅंड टवल और उसके नीचे का उभार नज़र आता. पर शायद वो अपने को संभालने में जीयादा व्यस्त थी. संजय का दिमाग़ अब शांत हो चुका था. सुजीत का नाम और उसके काले लंड का जिकर ... उसपे याद आई बातें ..किरण का उसके दरवाज़े पे खड़े होके सरला का नाम पुकारना ..ये सब संजय को याद आ गया था. उसकी चुदास सास ने रात को अच्छा खेल रचाया था और फिर उस खेल को जम के देखा भी था.. अब इसकी चुदास निकालने के लिए संजय के मन में एक खेल की रचना शुरू हो गई थी.

घर आ चुका था और बाबूजी और कम्मो ने बहुत गरम जोशी के साथ सबका स्वागत किया. कम्मो काफ़ी खुश थी और उसके बदन पे एक कीमती सूट किसी से भी च्छूपा नही. बाबूजी की मूँछ आज कुच्छ ज़ियादा कड़क लग रही थी ..जैसे कि उसपे उन्होने कोई हेर फिक्सर लगाया हो......घर में कुच्छ अलग था पर क्या ये नही पता था....

बच्चे चले गए और उसके बाद बाबूजी अचानक से अकेलापन महसूस करने लगे. कम्मो ने रमेश की शादी के लिए छुट्टी ली थी. बाबूजी का मन नही लग रहा था. सोचा किसी से मिल आए पर फिर सोचा कि घर बैठे कुच्छ बिज़्नेस का काम देख लें. काम करते करते दोपहर से कब शाम हुई पता ही नही चला. वहीं सोफा पे बैठे बैठे सो गए. अचानक से दरवाज़े पे किसी ने दस्तक दी. आधी नींद में बाबूजी ने दरवाज़ा खोला तो देखा की कम्मो 2 औरतों के साथ वहाँ खड़ी है. दिखने में दोनो उसके जैसी नीचे घर की थी. कम्मो ने आज बाबूजी का दिया सूट पहना हुआ था. उन दोनो के कपड़े कम्मो के सामने फीके लग रहे थे.

''अररी कम्मो तू तो शादी पे थी ना...यहाँ कैसे फिर ...और ये दोनो कौन हैं...'' बाबूजी थोड़े अचंभित थे. उन्होने अपनी धोती को ठीक से अड्जस्ट नही किया था और बनियान भी पेट के आस पास इकट्ठी हुई पड़ी थी. बाबूजी वापिस मूड गए और धोती को अड्जस्ट करते हुए अपने बिज़्नेस के काग़ज़ इकट्ठे करने लगे.

''बाबूजी ये दोनो मेरी सहेलियाँ हैं...जिनके यहाँ शादी है उनकी रिश्तेदार पर एक तरह से मेरी मूह बोली बहने हैं...इसका नाम शारदा है और ये है मुन्नी. शादी में हम लोग बातें कर रहे थे तो मुझे ध्यान आया कि कल सब आ जाएँगे और मैने खाने की कोई तैयारी नही की है. शादी में रात देर होगी सो मैं सुबह भी लेट आउन्गि. इसलिए अभी चली आई और ये दोनो भी ...कहती हैं देखे कि कौन घर में काम करती हूँ मैं जहाँ से मुझे इतना बढ़िया सूट मिला है....जलती हैं मुझसे दोनो .....'' कम्मो ने बाबूजी के नज़दीक खड़े खड़े इठलाते हुए कहा. उसके चेहरे पे एक कुटिल सी मुस्कान थी जो उसकी सहेलिया तो देख रही थी पर बाबूजी ने गौर नही किया.

''अच्छा ठीक है जा जाके काम कर दे और मेरे लिए चाइ बना दे... मैं नहाने जा रहा हूँ...चाइ कमरे में दे देना....15 मीं में ...और हां चाइ में चीनी मत डालना.....'' अचानक कम्मो को वहाँ देख के बाबूजी का मूड सेक्सी हो गया. कम्मो पे सूट बहुत खिल रहा था और उसकी चूचियो की दरार और उसके चूतर बहुत अच्छे से उभर के आ रहे थे. वैसे दिखने में शारदा और मुन्नी भी बुरी नही थी. दोनो ने सूट ही पहने थे पर सस्ते और भरकीले..दोनो ही माँग में सिंदूर लगाए हुए थी ... शारदा कद में छ्होटी थी और गॅट्ली...उसके मम्मे काफ़ी बड़े थे. उसके हाथ और बाजुओं को देख के लगता था कि जैसे बहुत मेहनत वाले काम करती है. मुन्नी कद में ठीक थी और पतली भी .....दिखने में साँवली थी पर नैन नक्श अच्छे तीखे थे... उसका शरीर दुबला था और चूचियाँ भी छ्होटी थी...

बाबूजी ने अपने काग़ज़ समेटे और नहाने चले गए. कमरे के दरवाज़े की कुण्डी नही लगी थी. नहाने के बाद बाबूजी ने अपना गमछा अपने शरीर पे बाँधा और कमरे में आ गए. अचानक उन्हे कुच्छ याद आया और वो फिर से बिज़्नेस के काग़ज़ लेके खिड़की के पास खड़े होके देखने लगे. इतने में दरवाज़े पे नॉक हुई. बाबूजी को याद आया कि चाइ मँगवाई थी ...सो उन्होने अंदर आने का आदेश दिया और फिर से पेपर देखने लगे. चाइ का कप प्लेट साइड टेबल पे रखने की आवाज़ हुई.

''अररी चाइ में शक्कर डालने से मना किया था ....डाली तो नही ना...चल अब एक काम कर ...अपने होंठो से एक घूँट ले ले ..अपने आप मीठी हो जाएगी... '' बाबूजी ने कम्मो को आदेश दिया. दिमाग़ 2 तरफ चल रहा था..काग़ज़ सामने था और कम्मो के मादक बदन और रूप की पिक्चर...
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09-03-2018, 09:02 PM,
#45
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
कुच्छ सेकेंड तक सब शांत रहा. कोई हरकत नही हुई. 2 आँखें बाबूजी के आधे नंगे बदन को घूर रही थी. ढलते हुए सूरज की रोशनी खिड़की से अंदर उनके बदन पे थी और उनका कसा हुआ बदन गम्छे में बहुत सेक्सी लग रहा था. उनकी टाइट गांद की शेप को वो दोनो आँखें गौर से घूर रही थी.

''अररी कम्मो पिला दे जल्दी से अपने रस से भरी चाइ ...सुबह से अकेला हूँ ....आजा तेरे होंठो से पी लूँ ....रात का गुज़ारा हो जाएगा....'' बाबूजी अब भी काग़ज़ को देखते हुए बोले. अचानक से उन्हे चाइ की चुस्की लेने की आवाज़ सुनाई पड़ी और वो खिल उठे. मंद मंद मुस्कुराते हुए पिछे मुड़े तो मुस्कान की जगह मूह खुला का खुला रह गया. सामने मुन्नी खड़ी थी..........उसकी नज़रें उनके चेहरे पे थी और हाथों में कप जिसे वो साइड टेबल पे रखने जा रही थी. मुन्नी का चेहरा भी एक दम से बदल गया. पहले अश्चर्य और फिर डर के भाव उसके चेहरे पे आ गए. कम्मो ने उसे कमरे में भेज के ग़लती कर दी थी. उसपे बड़ी ग़लती ये हुई कि कमरे में घुसते हुए उसने कुच्छ कहा नही....बाबूजी का आधा नंगा बदन देख के वो शर्मा गई थी ...उसपे बाबूजी ने जो आदेश उसे दे दिया उसको पूरा करना एक और बड़ी ग़लती हुई......पर वो भी क्या करती ...पहली ग़लती की वजह से उसने बाबूजी की बात मान के चुप चाप कमरे से जाना ठीक समझा.

उसे उम्मीद नही थी कि बाबूजी कम्मो से इस तरीके की बातें भी करते होंगे...और उपर से जो उन्होने बाद में कहा...रात वाली बात....हाइईइ दैयाआ.....क्या ये बाबू ...और कम्मो....हाीइ राअंम्म.... इसी पेशोपश में वो कप रख रही थी कि बाबूजी मूड गए.

''तू...यहाँ...कम्मो कहाँ है.....तू क्या कर रही है.....?'' बाबूजी अचानक से सकपका गए और गुस्से में थे. उनका गुस्सा देख के मुन्नी और भी डर गई...और सिर झुका के कमरे से बाहर जाने लगी....

''रुक्क वहीं.....तू यहाँ क्या करने आई थी....?? कम्मो क्यों नही आई ...??'' बाबूजी गुस्से में थे..

''जी वो ..जी ...जी कम्मो आटा गूँथ रही थी सो उसने मुझे कहा.....जी मैं..जी ग़लती हो गई ...मांफ कर दीजिए....'' मुन्नी रोने की कगार पे थी. उसका चेहरा ज़मीन की तरफ था..जिस तरीके से वो खड़ी थी उससे सॉफ पता चल रहा था कि वो बहुत डरी हुई है. उसका चेहरा बाबूजी की नज़र से दूर था और उसका बदन का साइड उनकी तरफ. हाथ और होंठ दोनो काँप रहे थे.

''तूने जो सुना ...वो इस कमरे से बाहर नही जाना चाहिए...समझ गई...'' बाबूजी उसकी तरफ बढ़ते हुए बोले. ''और हां अगर ये बात बाहर गई तो ख़याल रखना की मैं बहुत कुच्छ कर सकता हूँ...''

''जी...आपने क्या कहा मैने कभी सुना ही नही...आपने मुझसे कुच्छ नही कहा...और मैने कुच्छ नही सुना....आप गुस्सा मत हूओ..ऊवंन्न..ऊंन...'' कहते हुए मुन्नी हिचकियाँ लेते हुए रोने लगी. बाबूजी उससे 2 फीट की दूरी पे थे. उसका रोना देख के उनका गुस्सा कम हो गया और उनका मन पसीज गया. बाबूजी को अब मुन्नी के रूप में एक साधारण पर आकर्षक अबला नज़र आ रही थी. कम्मो की ग़लती की सज़ा उसको देना उन्हे ठीक नही लगा. पर अपनी इज़्ज़त का भी सवाल था.

''रोना बंद कर ...और ये ले ...तेरे लिए...अगर चुप रहेगी तो और मिलेगा ..पर अगर बोली तो...खैर नही...'' बाबूजी ने अलमारी में से एक बढ़िया सूट निकाल के उसे दिया. ये वही सूट था जो उन्होने कम्मो के लिए बचा के रखा था. बाबूजी ने सूट वाला हाथ आगे बढ़ाया तो मुन्नी ने सिर को तोड़ा उपर किया. उसकी नज़रे बाबूजी के चेहरे पे गई. बाबूजी अब थोड़े मुस्कुरा रहे थे. उन्हे मुस्कुराता देख मुन्नी की साँसे थोड़ी संभली और उसका सूबकना बंद हुआ. अपने राइट हॅंड से उसने अपने आँसू पोन्छे और फिर दोनो हाथों से थोडा सिर झुका के सूट लिया. अब वो बाबूजी को फेस कर रही थी. सूट को पकड़ते ही वो समझ गई कि वो कितना कीमती था. अचानक उसके मन में क्या सूझा कि वो सूट को पकड़े हुए बाबूजी के पैरों में गिर गई.

''बाबूजी ..आप गुस्सा मत होना...हमसे ग़लती हो गई...आप निसचिंत रहिए हम आपकी इज़्ज़त पे आँच नही आने देंगे...हम कसम खाते है आपके पैर च्छू के कि ये बात हमारे साथ हमारी चिता तक जाएगी. आप बस हम पर कोई गुस्सा ना कीजिएगा नही तो हमारी ज़िंदगी नरक बन जाएगी....बाबूजी...'' मुन्नी उनके पावं में गिरी हुई गिड़गिदा रही थी. उसका सिर बाबूजी के गम्छे में छुपे उनके हथियार से मात्र 6 इंच की दूरी पे था. उसके मन में सिर्फ़ डर था और उसको ये एहसास भी नही था कि उसकी स्तिथि क्या है..पर बाबूजी को अब तक अपने पे पूरा कंट्रोल आ चुका था.
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09-03-2018, 09:03 PM,
#46
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
उनके सामने जो गांद थी वो गथीली नही थी पर उसकी शेप बहुत अच्छी थी. पतली सी कमर और फिर उपर की तरफ पीठ का कुच्छ नंगा हिस्सा. उसके उपर लहराती हुई एक लंबी चोटी. चोटी इतनी लंबी थी क़ी गांद की दरार में घुसी जा रही थी. बाबूजी ने अपना सिर थोड़ा पिछे किया और नीचे देखा तो उनका लंड अब हरकत में आ चुका था. घम्छे में अब एक छ्होटा सा तंबू बन चुका था. पैरों पे काँपते हुए हाथ उनके शरीर में गर्मी पैदा कर रहे थे. सिर को पिछे करने से झुकी हुई मुन्नी के मम्मो की दरार दिखने लगी थी. साँवले से मम्मे सखी की याद दिला रहे थे....मेरी प्यारी बहू सखी...कितने दिन हो गए....हाऐ...सोचते हुए लंड की अंगड़ाई बढ़ने लगी. बाबूजी को कुच्छ सूझा.

''ह्म्‍म्म इधेर उपर देख...मेरी तरफ....जा तुझे मांफ किया....पर जो तूने वादा किया है उसे भूलना नही...और मैं वादा तोड़ने वालों को नही भूलता...'' बाबूजी ने एक उंगली दिखाते हुए आख़िरी बार मुन्नी को चेताया. मुन्नी उनके पैरों को पकड़े हुए उनके चेहरे को देख रही थी. मूह उपर करने से उसकी पतली गर्दन खिंच गई थी और मम्मे थोड़े और क्लियर नज़र आने लगे थे. छाती बाहर को खिंची हुई थी और उसपे उसके आँसुओं की ताज़ा बूँदें गिरी हुई थी.

''बाबूजी कसम खाई है..तोड़ेंगे नही...जान ले लेना चाहे..इससे बाद के और क्या कहें...बाकी जो माँगो दे देंगे...बस कोई गुस्सा ना करना...हमारी ज़िंदगी आपके हाथों में है....''मुन्नी फिर से थोड़ी घबराई और उसके आँसू टपकने लगे.

''चल पगली मैं इतना भी बुरा नही हूँ...फिलहाल तो तू बस एक काम कर ...ये जो चाइ तूने मीठी की है...इसे अपने हाथों से मुझे पिला दे....'' बाबूजी ने उसके कंधे पकड़ के उसे धीरे धीरे उपर उठाया और एक हाथ कंधे पे रखते हुए दूसरे हाथ से उसके आँसू पोन्छे. अब उनके चेहरे पे मुस्कुराहट थी. मुस्कुराहट जीत की...मुस्कुराहट इस एहसास की कि एक और नई कम्मो का जनम हुआ...मुस्कुराहट ये सोच के ...मुन्नी के बदन से आती हुई खुश्बू जो कि जल्दी ही उनके बदन में समा जाने वाली थी...बाबूजी की मुस्कुराहट और उनके आदेश का मुन्नी पे ज़बरदस्त प्रभाव पड़ा. वो शर्मा गई और सिर झुका के कसमसा उठी. बाबूजी ने मौका देख के उसके कंधे पकड़ के उसे धीरे धीरे अपनी ओर खींच लिया.

''पीला दे ना चाइ....वोई तो पिलाने आई थी...देखूं तेरे होंठो की लगी हुई चाइ तेरे हाथों से कितनी मीठी लगती है....'' बाबूजी ने तकरीबन उसे अपने से चिपका लिया था और उसकी ठोडी को पकड़ के उसके मूह को उपर कर दिया था. शरम के मारे मुन्नी की आँखें आधी बंद थी और चेहरे पे मुस्कान. उसका तीखा नैन नक्श बाबूजी को लुभा रहे थे. बाबूजी और उसके बदन की दूरी सिर्फ़ उसके हाथों में पकड़े हुए सूट की वजह से थी ...वो हाथ जो बाबूजी के लंड के बेहद नज़दीक थे. हाथो का पिच्छला हिस्सा गम्छे को छ्छू रहा था.

''धाातत्ट ..बाबूजी ...आप कैसी बात करते हैं...आप हमारी झूठी चाई पिएँगे...नही नही....ऐसा नही हो सकता ...हम दूसरी लाते है....'' मुन्नी की नज़र और सिर फिर से झुक गए थे. उसने बाबूजी से अलग होते हुए बाहर जाने की कोशिश की ...उसके अलग होते ही सूट पे लगे हुए शीशे में बाबूजी के गम्छे की किनारी अटक गई ...और मुन्नी के हाथ से सूट छितक गया. सूट के वज़न से बाबूजी का गमछा खुल गया और उनका आधा खड़ा हथियार नग्न हो गया. बाबूजी को उसकी चिंता नही थी...सब कुच्छ इतना अचानक और स्पीड से हो रहा था...उन्होने हाथ बढ़ा के मुन्नी की कलाई पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींचा...मुन्नी के कदम दरवाज़े की ओर बढ़ रहे थे और वो लड़खड़ा गई. बाबूजी का दूसरा हाथ उसकी बगल में पहुँचा और उससे सपोर्ट दी. हाथ के दबाव से मम्मे भी नही बचे....नंगे बाबूजी के बदन से अब मुन्नी का सूट रगड़ खा रहा था और उसकी आँखों में थोरे अश्चर्य और थोड़ी मस्ती के भाव थे.

बाबूजी ने आँखें पढ़ ली ...लोहा गरम था...बस चोट करनी बाकी थी...

''क्यों री...अभी तो इन्ही होंठो से चुस्की लेके तू चाइ यहाँ छोड़ के जा रही थी...अब पिलाने में दिक्कत है....पिला दे ना...क्यों तडपा रही है...वैसे भी तेरे हाथ खाली अच्छे नही लग रहे ...'' बाबूजी ने कसमसाती हुई मादक मुन्नी का हाथ अपने लंड पे रगड़ दिया. हथेली में गरम लंड का एहसास पाते ही मुन्नी पिघल गई...होंठ काँप उठे और गला सूख गया. हाथ को झटकने की कोशिश की पर बाबूजी की पकड़ मज़बूत थी. हथेली लगतार लंड को रगड़ रही थी. मुन्नी ने एक बार हाथ हटाते हुए मुट्ठी भिचने की कोशिश की पर हाथ तो हटा नही ...उसकी जगह भींची हुई मुट्ठी में लंड ज़रूर आ गया...

''हाऐी दैयाअ.....बाबूजी....जाने दो नाअ.....क्या कर रहे हो......मत करो बाबूजी......ग़लत हो जाएगा.....जाने दो ..कम्मो और शारदा क्या सोचेंगी....?? बाबूजी मिन्नत करते हैं...जाअनए....??'' मुन्नी हटने की कोशिश में अपने हाथ को कभी खोल रही थी तो कभी बंद कर रही थी. लंड फूँकार मार रहा था. रोड की तपिश उसके बदन को झुलसा रही थी. होंठ और भी काँपने लगे थे. नंगे बदन रगड़ खाने से सूट में धकि चूचियाँ सख़्त हो गई थी और दूसरे हाथ का दबाव अब दबाव नही रहा था. मम्मो को साइड से नोचा जा रहा था.

''उम्म अच्छा चल चाइ नही पिलाएगी तो ना सह ...कम से कम इन होंठो की मिठास तो चखवा दे....'' बाबूजी ने कलाई को झटका दिया और लंड छुड़ाते हुए बाजू को मुन्नी की पीठ की तरफ मोड दिया. दूसरा हाथ अब मम्मे को छोड़ गर्दन के पिछे चला गया था और सिर को अपनी तरफ खींच लिया. बाबूजी ने अपनी मूच्छों से सजे होंठ मुन्नी के काँपते हुए होंठो पे रख दिए और चूसने लगे. बाबूजी का एक्सपीरियेन्स ज़बरदस्त था और मुन्नी के होंठ उस एक्षपेरेंसे को महसूस कर रहे थे. 5 सेकेंड में ही उसके होंठो पे थूक की लार लगी हुई थी और उसकी सस्ती सी लिपस्टिक बाबूजी के होंठो के आस पास फैली हुई थी. होंठ बंद नही रह पाए और कसमासाते हुए अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश में उसका मूह खुलता चला गया. जीभ से जीभ की बात शुरू हो गई. चूचियाँ अब खुले आम बाबूजी की छाती में धँस रही थी..7 इंच का मूसल चूत के मुहाने पे दस्तक दे रहा था.

''ब्बाआब्ब्ब्बुऊुज्जिि.........उउंम्म.......माअत्त्त्त्त्त कार्रूऊ....उउम्म्म्मह...उम्म्म्ममह......करूऊओ.......मेरे बाबूजी.......और कर .उउउम्म्म्मममह उउम्म्म्मह.....स्लुउउररुउउप्प्प....उउम्म्म्ममह.....ऊहह....'' बाबूजी के हाथ से अपनी कलाई छ्छूटते ही मुन्नी अब उनकी गर्दन पे अपनी बाजुओं का हार डाले उनका पूरा साथ दे रही थी. बाबूजी के दोनो हाथ अब उसके चूचों को पकड़े हुए थे....उसकी चूत का उभार रह रह के उनसे रगड़ खा रहा था...थूक की लार दोनो के होंठो से बह रही थी....

'''ऊऊऊऊओह बबुऊुजिइीइ.....उउम्म्म्म...उम्म्म्ममह...उम्म्म्मम.....चूवस लो मेरे को.......उउम्म्म्ममम......चाइ पिलो.....मेरे होंठो से ....और तरो ताज़ा....हो जाओ.....फिर तगड़े तरीके से .......उउउम्म्म्मह मेरी....उउउम्म्मह ऊओह हाआंन्‍णणन्....'' बाबूजी के होंठो को चूस्ते हुए मम्मे दब्वाते हुए अब मुन्नी पूरी पागल हो गई थी. उसके बदन का कोई भी हिस्सा अब बिना रगडे नही रहा था. बाबूजी ने सूट के उपर से उसकी गांद दबोची हुई थी और उसे अपने लंड की तरफ दबाए हुए थे.

''क्या मेरी मुन्नी क्या कर दूओ....तेरी क्या...तरो ताज़ा होके ...क्या करूँ तेरा....'मूह से बोल ....सुना मुझे....क्या ....'' बाबूजी उसकी गर्दन और कानो को बेतहाशा चूमे जा रहे थे.

''बबुउउउ.....ऊऊहह ये दे दे......दे दे ....चाइ हो चुकी...अब रुक्क मत......दे ना इसससे......यहीं ...अभी के अभी.......डाालल्ल्ल्ल्ल्ल....मरी जा र्है हूओन........ऊओह...उउउम्म्मह ...उउउर्र्घह....यहाँ दे ईसीए...''' मुन्नी ने लंड पकड़ के 4 - 5 बार उसे निचोड़ा....लंड का सूपड़ा और भी फूल गया....और फूले हुए सुपादे को चूत पे घिस दिया.
क्रमशः................................
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09-03-2018, 09:03 PM,
#47
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--16

गतान्क से आगे..............

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी का सोलहवां पार्ट लेकर हाजिर हूँ
बाबूजी को आख़िरी सिग्नल मिल गया था. उनमे एक नया जोश आ चुका था. एक ज़बरदस्त झटके से उन्होने मुन्नी को मोड दिया और उसके सूट के नीचे हाथ डाल के उसकी सलवार का नाडा खोल दिया. सलवार ढीली होते ही हाथ कछि के एलास्टिक में गया और 2 सेकेंड में कछि और सलवार पैरों में थे. मुन्नी के हाथ से लंड छूट ही नही रहा था. बाबूजी ने उसके पैरों से सलवार निकलवा दी और उसके सिर को बेड की तरफ धकेला. टांगे सीधी किए मुन्नी का चेहरा नरम गद्दे से सॅट गया. बाबूजी ने सूट को पिछे से उठाते हुए एक बार नंगी गांद और चूत का जायज़ा लिया और बिना देर किए सॅट से लंड चूत के मुख्य द्वार पे भिड़ा दिया.

''यहीं चाहिए था ना....'' बाबूजी ने चूतरो को दोनो तरफ से पकड़ते हुए झटका लिया. सूपड़ा अंदर घुसा. चूत चहेक उठी.

''उूुउउम्म्म्ममममम....हां ...पूराअ दो.....जड़ तक....यहाँ तक्क.....इन्हे भी मेरे शरीर से चिपकने दो...उउउइईई......हाआअन्न्‍नणणन्.......दूऊव.......'' मुन्नी ने गद्दे में सिर को सपोर्ट देते हुए पिछे मूड के देखा और हाथ बढ़ा के टट्टों को सहलाते हुए कहा.

लंड ने कसमसाई हुई गीली चूत को खोलना शुरू किया..देखते ही देखते चूत लोडा निगल गई....निगोडी चूत....काली....जिसमे रोज़ कोई घुसता था...उस चूत का मालिक ...पर आज एक नया किरायेदार आ गया......जो किराए के तौर पे नए सूट देता है.....ऊओह.....किराए में बहुत सारा वीर्य भी देता है........उउम्म्म्म...

बाबूजी ने रफ़्तार पकड़नी शुरू की ..पर कुच्छ कमी थी. सूट प्राब्लम कर रहा था...लंड को जड़ तक बिठाते हुए बाबूजी आगे झुके और सूट को उतारना शुरू कर दिया..बाजुएँ उपर को उठी और फिर देखते ही देखते सूट बाजुओं से फिसलने लगा. इसी बीच ब्रा का हुक भी 2 अंजान मर्दाने हाथों ने खोल दिया था और अब 2 नंगे बदन एक दूसरे को धक्के देने में लगे हुए थे.

सत्त सॅट्ट की आवाज़ फ्हिछ फ़ीच्छ में बदलते देर नही लगी. शुरुआत की दबी हुई आहें अब एक लगतार निकलती हुई सिसकी बन गई थी....वो सिसकी जो कि चूत से जनम लेके गले तक पहुँची थी. मम्मे मसले जा रहे थे..निपल रह रह के खींच रहे थे...गांद बार बार पिछे को लंड पे ठोकर मार रही थी....पसीना बहने लगा था और दो बदनो की खुश्बू अब मिलने लगी थी.....समय सिर्फ़ 5 मिनिट...

''ऊओह...उउंाआआ............ऊओह बाआबबू....चुद गई रे..............ऊओह हाआंन्‍ननणणन्....झारवाआअ दे ....जल्दी.......सब्र नही होता.........जल्दी कर दे....हान्ंननणणन्......निचोड़ मेरे संतरे.....ऊओह....माआ.......ऊओहिईउउुउउंमाआ...........हाआंन्न..हान्णन्न्.....इष्ह.....''
एक नई चूत की फ़ुआर कैसी लगती है बाबूजी को इसका एहसास एक बार फिर से हुआ...

हर औरत अपने तरीके से झरती है और मुन्नी का स्वरूप भी अलग ही था. सिर दोनो तरफ हिल रहा था और गांद रह रह के थपकी दे रही थी. झरते हुए कंपन पूरे शरीर को थिरका रही थी. सूखी पत्ती जैसे पेड़ की शाख पे तेज़ हवा में लहराती है...और उसी तेज़ हवा में एक दम से अलग हो के हवा में लहरा जाती है.....फ्ह्ह्ह्ह्हुउउछ्ह्ह्ह की आवाज़ के साथ शाख से पत्ती अलग हो गई. मुन्नी बिस्तर पे पीठ के बल लूड़क गई और दोनो हाथ अपनी मुनिया पे रख के ज़ोर ज़ोर से हिलने लगी....उसकी सिसकियाँ अब एक लंबी आआआआआहह में तब्दील हो गई थी. पूरा बदन बिस्तर पे पड़े पड़े दोनो साइड में झूल रहा था. दोनो हाथ इतने ज़ोर से चूत के उपर के हिस्से को दबाए हुए थे कि हाथों की नसें भी उभर आई थी.

'' बाबूजी अब संतरे खाना छोड़िए और आम के बाग़ीचे की सैर कीजिए.....दो आमों से सजे पेड़ आपका इंतेज़ार कर रहे हैं...'' नंगी कम्मो...इठलाती हुई ..नंगी शारदा का हाथ पकड़ के कमरे में दाखिल हुई.......................

बाबूजी के हथियार ने एक और झटका लिया और फिर उनकी बंदूक नए माल की तरफ मूड गई.

बाबूजी की आँखों की हवस और चमक दोनो नंगी औरतों को देख के बढ़ गई. कम्मो जितना इठला रही थी वही शारदा उतना ही शर्मा रही थी. कम्मो के थोड़े पिछे खड़े उसने अपने हाथों से अपनी चूत धकि हुई थी. गदराया हुआ गथीला बदन देख के बाबूजी समझ गए कि ये चुदाइ में मस्त चुदेगि. दोनो मम्मे बड़े बड़े आमों के आकार के थे और उनके काली काली लंबी निपल झूल रही थी. दोनो निपल एक दम कड़े थे. उनपे हल्की चमक थी ..शायद कम्मो ने चूसे थे. बाबूजी के लंड ने एक झटका लिया और फिर उन्होने खड़े खड़े अपनी बाहें खोल दी.
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09-03-2018, 09:03 PM,
#48
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
''आओ मेरी रानिओ आ जाओ मेरी बाहों में..अपने जिस्म को मेरे जिस्म से छूने दो. '' ये एक आदेश था और उसका पालन करने में कम्मो को देर ना लगी. झट से बाबूजी की बाहों में आते हुए उसने उन्हे कस के भींचा और फिर बाबूजी के होंठो से अपने रसीले होंठ लगा के लंबा सा चुंबन लिया. कम्मो के जाने पहचाने मम्मो के घर्षण से बाबूजी थर्का गए और उन्होने कम्मो की चूत में अपनी जुड़ी हुई उंगली डाली. कम्मो ने कसमसा के अपनी गांद हिलाई और फिर उंगली बाहर निकाल के चूस ली. 3 कदम की दूरी पे खड़ी शारदा के उरोज उपर नीचे होने लगे. बिस्तर पे अब शांत पड़ी मुन्नी अपनी मुनिया को हल्के हल्के दबाने लगी.

''आओ शारदा यहाँ आओ..मैं तुम्हे महसूस करना चाहता हूँ. यहाँ आओ और मुझे अपना आम रस चखने दो...'' बाबूजी ने कम्मो को अपने बगल में खड़ा करते हुए कहा. कम्मो के हाथ उनके रस से भीगे लंड को पूचकार कर सहला रहे थे और साथ ही वो अपने मम्मे पे पड़ा बाबूजी का हाथ दबा रही थी. शरमाती हुई लाजाति हुई शारदा बाबूजी के नज़दीक 1 फीट की दूरी पे खड़ी हो गई. शारदा की हाइट और बॉडी कम्मो से मिलती जुलती थी. सिर्फ़ 2 फरक थे. एक उसके चुतडो का उभार जो कि कम्मो से ज़ियादा था और दूसरे उसकी चूत पे घनी काली झाटें. बाबूजी ने उसके उसके चेहरे पे अपनी जुड़ी हुई उंगली को माथे से लेकर गालों पे फेरा. पराए पुरुष का टच पाते ही शारदा काँप उठी. उसके बदन में झुरजुरी दौड़ गई और घुटने जैसे कमज़ोर हो गए. होंठ लरजते हुए खुल गए और बाबूजी ने उनका निमंत्रण स्वीकार करते हुए अपने होंठ उनसे मिला दिए.

शारदा अब पिघल गई. उसके हाथ बरबस बाबूजी के चेहरे पे चले गए और फिर उसकी बाहें उनकी गर्दन के आसपास. बाबूजी और उसकी हाइट में काफ़ी फरक था और जितना वो झुके हुए थे उसके हिसाब से शारदा को उन्हे चूमने के लिए अपने पंजे पे खड़ा होना पड़ा. अपनी बाजुओं का हार कसते हुए जैसे ही वो पंजो पे हुई तो उसका बॅलेन्स बिगड़ गया. बाबूजी ने उसकी कमर को पकड़ते हुए उसे सहारा दिया और झट से उसे उपर उठा लिया. जैसा कि नेचर करवाती है शारदा एक बच्चे की तरह उनसे झूल गई और लटक गई. उसके मोटे मम्मे सॅट्ट से बाबूजी की छाती में धँस गए और बाबूजी उसके वजन को समहालने के लए उसके चुतडो पे हाथ रखते हुए उसे उठाने की कोशिश कर रहे थे.

शारदा ने बाबूजी की गर्दन का सपोर्ट लेते हुए अपनी टांगे खोली और उनकी कमर के इर्द गिर्द अपनी जांघे लपेट के उन्हे बेतहाशा चूमने लगी. साँसों की रफ़्तार बढ़ती जा रही थी और बाबूजी के लंड की ठोकर उसकी चूत के मुहाने पे थी. शब्द निकलने बंद हो गए थे और सिर्फ़ होंठो के चूसे जाने की आवाज़ें आ रही थी. कम्मो समझ गई कि उसकी बारी बाद में आएगी...बाबूजी को नया माल चखना है. बिना कुच्छ बोले कम्मो ज़मीन पे घुटनो के बल बैठी. उसके चेहरे के सामने शारदा की गांद झूल रही थी. बाबूजी के बड़े बड़े हाथ उसको मसल रहे थे. बाबूजी का लंड चूत के द्वार पे घर्षण कर रहा था जैसे कि शारदा ने अपनी चूत उसपे चादर की तरह बिच्छा दी हो. कम्मो ने आगे बढ़ के बाबूजी के सुपादे पे थूका और हथेली से उसे मला और फिर दूसरे हाथ से शारदा की फांके खोलते हुए लंड को अड्जस्ट किया. लंड का सूपड़ा सॅट्ट से चूत में दाखिल हुआ और शारदा बाबूजी के मूह में चिहुनकि.

बाबूजी ने गांद हिलाई और अपने हाथों से शारदा की गांद मसल्ते हुए उसे अपना डंडा पूरी तरीके से अंदर घुसेड दिया. पराए मर्द से चुद्ने की अभिलाषा रखने वाली शारदा की मनोकामना पूरी हो गई. बाबूजी के 7 इंच ने उसे निहाल कर दिया और वो चुंबन छोड़ के उनसे पूरी तरह लिपट गई. बाबूजी के कान और गर्दन को चूमते हुए उसने आहें भरनी शुरू की और बाबूजी के लंड पे 2 - 3 बार उच्छली. लंड अब पूरी तरह सेट हो चुका था. झांतों के बीच से चूत की फांके नज़र आ रही थी. झाँते भी चूत रस से भीग रही थी. कम्मो की नज़र अब शारदा के चॉकलॅटी गांद के छेद पे थी. बाबूजी अब उसे गांद से पकड़ के अपने लंड की सवारी करवा रहे थे. गांद का छेद बार बार खुल रहा था. कम्मो ने निशाना लगाया और उसपे 2 बार थूका. फिर कम्मो ने वो किया जो वो हरिया काका के साथ करती थी. अपनी 2 उंगलिओ को चाट के उसने थूक से सने छेद को टटोलना शुरू कर दिया. देखते ही देखते करीब 1 इंच दोनो उंगलियाँ गांद में घुसा दी. कम्मो उंगलियाँ फँसाए हुए ही खड़ी हो गई और शारदा की पीठ से चिपक गई. नज़ारा देखते ही बनता था. कम्मो और बाबूजी के बीच में फाँसी शारदा अब सिर को छत की तरफ किए बड़बड़ाए जा रही थी.
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09-03-2018, 09:03 PM,
#49
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
''ऊऊओह मदर्चोद.....क्या कर रही है रंडी...मेरी गांद में उंगली मत डाल ...बाबू के लंड का मज़ा लेने दे...साली छिनाल तेरा बाबू तो मस्त घोड़ा है री..तेरे जीजाजी से कहीं बड़ा है इसका...मज़ा आ गया री...थॅंक यू..ऊओ बाबू.....मेरे चूचे कस के चूस दे....ख़ाआ जा ना मुझे...आज रात यहीं शादी मनाते है और तू मेरा नया दूल्हा.....जम के चोदिओ मेरी फुददी...अहाआ....मज़ा गया री...क्या लोडा है...गरम सरीखा....बाबू मेरी बच्चे दानी में अभी भी जान है और बच्चे जनने की ...मा बना दे मुझे एक बार फिर से .......ऊओह ...'''

''देखा री छिनाल जब शादी में कह रही थी कि चल मेरे साथ तो मना कर रही थी..देखा ना मेरी बात मान के कितना सुख मिला तुझे और ये मुन्नी साली इसकी तो लॉटरी लग गई...बाबूजी ये अब इसी शहर में आ गई है और इसे नौकरी चाहिए....मैने इससे कहा था कि दिलवा दूँगी ...और देखो मैने इसे आपका मूसल ही दिलवा दिया...अब आप इसको नौकरी भी दे देना....सेवा में कोई कमी नही रखेगी..जितनी दुबली पतली है उतनी ही बड़ी चुदास है ये...'' कम्मो तेज़ी से शारदा की गांद में उंगली करते हुए बोली. दूसरे हाथ से वो उसके चूतर को सपोर्ट दे रही थी.

बाबूजी खड़े खड़े थोड़े थक रहे थे सो पिछे खिसकते हुए वो अपनी ईज़ी चेर पे बैठ गए. गांद को ईज़ी चेर के किनारे पे अड्जस्ट करते हुए उन्होने पोज़िशन ली और शारदा ने पैर ज़मीन पे टिकाते हुए उनके लंड पे कूदना शुरू किया. कम्मो ने गांद से उंगली निकाली और उसपे थूका और फिर एक साइड में आधी झुकी अवस्था में खड़े खड़े गंद को चोद्ने लगी. कम्मो के मोटे मम्मे शारदा के मूह के पास झूल रहे थे और शारदा ने रंडीपना दिखाते हुए उन्हे चूसना शुरू कर दिया. बाबूजी को ये देख के मिन्नी और राखी की याद आ गई. वो दोनो भी अपने बड़े बड़े मम्मे एक दूसरे से ऐसी ही चुस्वाति थी.

मुन्नी अब बिस्तर पे रुक नही पा रही थी और अपना दुबला पतला शरीर लिए बाबूजी के बगल में जाके खड़ी हो गई. बाबूजी ने सिर घुमाया और उसकी चूत चाटना शुरू किया. मुन्नी ने अपनी एक टाँग कुर्सी की बाजू पे रख दी और चूत के पटल खोल दिए. बाबूजी की निपुण जीभ अब उसकी खुली चूत में नाचने लगी. अपना हाथ बढ़ा के उन्होने अपनी जुड़ी हुई उंगली को शारदा से चुस्वाया और उसपे थूक लगवाया और फिर हाथ घुमाते हुए मुन्नी की गांद में घुसेड दी. गांद का छेद सूखा था सो कम्मो ने एक बार फिर से वही किया जो उसने शारदा के साथ किया था. 2 बार थूक के गांद गीली की और बाबूजी ने चूत में मूह लगाए लगाए कम्मो को धन्यवाद दिया.

सीन देखते ही बनता था. 4 नंगे बदन चुदाई के समारोह में खुल के हिस्सा ले रहे थे. छेद भरे हुए थे और मूह से सिसकारियाँ और थूक की लारे निकल रही थी. बाबूजी का कड़क हथियार अब किसी भी समय फूट सकता था. कम्मो की उंगली और बाबूजी के लंड का घर्षण शारदा को पूरी तरह से तैयार कर चुके थे. 2 मीं की और कुदम कुदाइ के बाद शारदा से रहा नही गया और वो ज़ोर से चीखते हुए झरने लगी. उसने बाबूजी के लंड पे कूदना बंद कर दिया और अपने दोनो मम्मे पकड़ के एक पोज़िशन में बैठ गई. उसकी गांद में चलती हुई उंगलिओ की हरकत बंद नही हुई और कम्मो ने उसके मम्मे बुरी तरह से दबाने शुरू कर दिए. शारदा की कंपन भी ज़बरदस्त थी. उसकी आँखें फटी की फटी रह गई थी. सपने में भी उसने नही सोचा था कि उसको कभी ऐसे लंड का सुख मिलेगा. 10 साल की शादी शुदा ज़िंदगी में ये उसका पहल इतना ज़बरदस्त ऑर्गॅज़म था. पूरे 2 मीं तक वो झरती रही. झाँटे पूरी भीग गई. कम्मो ने उसकी गांद से उंगली निकाली और उसके पिछे खड़े होके उसे अपनी बाहों का सहारा दिया. बाबूजी का लंड अभी भी झाड़ा नही था और 2 औरतें संतुष्ट हो चुकी थी. पर कम्मो के दिमाग़ में कुच्छ और ही चल रहा था.

उसने शारदा को बाबूजी से अलग किया और शारदा वही कार्पेट पे लूड़क गई. अब बारी कम्मो की थी. बाबूजी की तरफ पीठ करते हुए वो बड़े स्टाइल से उनके लंड पे बैठी और धीरे धीरे चूत में खिसका लिया. बाबूजी का लोडा एक बार फिर अपनी जानी पहचानी जगह पे था. शारदा कार्पेट पे लेटे हुए हाँफ रही थी. बाबूजी के टट्टों में होती हुई उथल पुथल देख रही थी. कम्मो की चूत टट्टों तक सेट हुई पड़ी थी. कम्मो ने बाबूजी पे लेटते हुए उनको पिछे मूड के किस करना शुरू कर दिया. बाबूजी के मूह से मुन्नी का रस चाटना उसे अच्छा लगा. मुन्नी की बुर भी ज़ियादा दूर नही थी सो उसने मुन्नी की बुर को अड्जस्ट करते हुए चाटना शुरू किया. बाबूजी ने अब अपना ध्यान मुन्नी से हटा के कम्मो को चूत पे किया और अपनी गांद को नीचे से हिलाते हुए उसकी चुदाई शुरू की.
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09-03-2018, 09:03 PM,
#50
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
मुन्नी की चूत एक बार फिर झरने को तैयार थी. कम्मो की जीभ के साथ उसकी गांद में बाबूजी की उंगली अभी भी धँसी हुई थी. उसके संतरे उसके हाथों में सजे हुए थे. अचानक से मुन्नी ने दोनो हाथों से कम्मो का सिर दबोच लिया और अपनी चूत को उसकी नाक और होंठो पे घिसने लगी. 8 - 10 घस्सो में ही उसकी चूत ने फिर से फुहार छोड़ी और कम्मो का मूह भर गया. काँपते हुए मुन्नी एक बार फिर से कार्पेट पे लेट गई. उससे 2 फिट की दूरी पे पड़ी शारदा ने उसके संतरे अपने मूह में भर लए और निचोड़ निचोड़ के चूसने लगी. मुन्नी का ऑर्गॅज़म पहले जैसे ही हुआ और जब तक वो शांत हुई तब तक बाबूजी और कम्मो तैयार हो चुके थे.

'' बाबूजी जल्दी छोड़ो चूत में अपना रस ...मैं भी बस तैयार हूँ ..दोनो साथ में आएँगे...ऊओ बाबूजी ..हाआँ बस ऐसे ही ...हां ऐसे ही बस - 5 ठोकर और मारो बाबूजी...एस्स...1 2 3 4 5 ...ऊओ मा..........हान्ंणणन्....बाबूजीइीइ.............'' कम्मो अपने चूचे दबाते हुए झरने लगी. बाबूजी ने भी झटके मारते हुए अपना वीर्य पात करना शुरू कर दिया. अब तक शांत हो चुकी मुन्नी और शारदा नीचे पड़े पड़े उनका साथ साथ झरना देखते रहे. बाबूजी जिस प्यार से कम्मो को चूम रहे थे ऐसा लग रहा था कि दोनो का जनम जनम का चुदाई का रिश्ता हो.

दोनो का झरना ख़तम होते ही बाबूजी ने अपने लंड को हल्के झटके देते हुए बाहर निकाला. लंड अब करीब 5 इंच का हो चुका था और चूतरस और वीर्य मिश्रण से सना हुआ था. शारदा से रुका नही गया और उसने आगे बढ़ के पीठ के बल लेटते हुए निच्चे से लंड को मूह में भर लिया. उसको देखते हुए मुन्नी भी उसके उपर लेट के बाबूजी के लंड के आस पास के हिस्से को चाटने लगी. इतने में कम्मो की चूत से रस बाहर आने लगा और मुन्नी ने बिना किसी झिझक के उसे चाटना शुरू किया. बाबूजी का लंड और टटटे अच्छे से सॉफ कर लेने के बाद शारदा खड़ी हुई और मुन्नी को अपने साथ लेके बाबूजी के साइड में खड़ी हो गई. कम्मो का चहरा मोड़ते हुए शारदा ने अपनी जीभ बाहर निकाली और बाबूजी की बाहर निकली हुई जीभ से मिला दी. दूसरी तरफ से मुन्नी की जीभ और मूडी हुई कम्मो की जीभ भी उनसे जा मिली. इस तरीके से बाबूजी को पहली बार अपनी बहुओं के सिवाए एक साथ 3 औरतों की जीभ चाटने का सुखद एहसास हुआ.

हफ्ते भर के बिज़ी शेड्यूल के बाद शनिवार की शाम आई. पूरे हफ्ते काम काम और सिर्फ़ काम ही चलता रहा. 3नो भाई बिज़्नेस में विलीन थे और बाबूजी भी उनके साथ लगे रहे. घर पे 3नो बहुएँ अपनी सेहत का ध्यान रखते हुए जितना भी कर सकती थी कर लेती थी. सरला ने घर की बागडोर पूरी तरह ले ली थी. कम्मो के कहने पे मुन्नी को भी काम मिल गया. बाबूजी ने दोनो को सख़्त हिदायत दी कि किसी भी तरीके की छेड़ छाड़ उन्हे नही करनी है. जो भी होगा बाबूजी मौका देख के खुद ही करेंगे. बीच में घर पे कंचन बुआ और फूफा जी भी आए. सबको फूफा जी और सखी की मा सरला के संबंधों और बाबूजी के साथ हुए कांड का पता था पर किसी ने भी उसे दर्शाया नही. फूफा जी की नज़र रह रह के सरला के मस्त चुतडो और कम्मो की गदराई जवानी को निहारती रही. सरला उनकी नज़रों से उत्तेजित हो रही थी पर कुच्छ हो नही सकता था.

खैर शनिवार की शाम को बाबूजी अपना ड्रिंक लेके बैठ गए. 3नो भाई और बहुएँ भी वहीं अपने ड्रिंक्स लेके बैठे. सरला को सिर दर्द था सो वो जल्दी खाना और दवाई खा के अपने कमरे में सोने चली गई. कम्मो और मुन्नी को अब से सनडे को भी आना था. बाबूजी के मन में कुच्छ प्लान चल रहे थे. पर अभी तक उन्होने किसी से कोई बात नही की थी. कुच्छ देर के बाद खाने का समय हुआ तो बाबूजी ने 3नो बहुओं को खाना खा के सोने जाने के लए कहा. उन्होने 3नो भाईओं से बिज़्नेस के बारे में कुच्छ बातें करनी थी. 3नो बहुओं को थोड़ा अजीब लगा क्योंकि ज़ियादातर शनिवार और इतवार को बिज़्नेस की बातें नही होती थी और अगर होती भी थी तो उन लोगों के सामने. पर आज कुच्छ अलग था और उनमे से किसी की हिम्मत नही हुई की बाबूजी से कुच्छ पुच्छें. वैसे भी 3नो काफ़ी थॅकी हुई थी सो खाना खा के अपने अपने कमरे में सोने चली गई.

ड्रिंक्स के दौर चलते रहे और फिर करीब रात के 11 बजे सब खाना खाने बैठे. खाने के बाद बाबूजी ने एक ड्रिंक और बनाया और सबको पास बुला लिया. 3नो भाई ध्यान से उनकी ओर देखने लगे.

''मेरे बच्चों आज मुझे तुम लोगोंको अपना एक फ़ैसला सुनाना है. अगर तुम लोगों को लगे कि फ़ैसला ग़लत है तो बता देना. अब जब तुम लोग पेरेंट्स बनने वाले हो और इस घर का श्राप भी ख़तम होने वाला है तो मैने एक फ़ैसला लिया है. अगले 3 साल में बहुओं की 1 और प्रेग्नेन्सी के बाद तुम 3नो अलग अलग रहना शुरू कर दोगे. हमारा घर काफ़ी बड़ा है पर इतने बच्चों के साथ एक साथ रहना मुश्किल होगा. सो मैने सोचा है कि अपने घर की ज़मीन पे तुम लोगों के लिए 2 घर और बनवाउन्गा. मैं राजू और उसका परिवार इसी घर में रहेंगे. तुम दोनो के लिए इसी कॉंपाउंड में 2 घर बनेंगे. जब तक कि तुम्हारे बच्चे बड़े नही हो जाते तब तक सिर्फ़ एक किचन से ही खाना होगा. बाकी कामो के लए घर अलग रहेंगे. इसी तरह से बिज़्नेस में भी अब मैं 3नो को अलग अलग लाइन्स दूँगा. और ये सब तैयारी नेक्स्ट वीक से शुरू हो जाएगी. 3 साल के बाद मैं सब कामो से रिटाइयर्मेंट लेके आराम की ज़िंदगी जीऊँगा.'' बाबूजी ने ड्रिंक की चुस्कियाँ लेते हुए कहा.
क्रमशः.............................................
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