Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
09-03-2018, 08:58 PM,
#21
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
कम्मो ने अपनी सलवार खोली और अपनी सॉफ चूत को लंड के सुपादे से भिड़ा दिया और धीरे धीरे उसपे बैठने लगी. कम्मो की चूत में इतना रस था कि लंड एक ही झटके में खिसकता हुआ उसकी बच्चेदानी तक चला गया. एक पल के लिए जैसे सब कुच्छ थम गया दोनो के लिए. कम्मो की आँखें बंद हो गई और उसका मुँह खुल गया. उसमे से एक हल्की सी सिसकी निकली और उसने अपने चेहरा छत की तरफ कर दिया. रमेश ने उसका चेहरा देखा और उसके मम्मे दबाने लगा. रमेश को अंदाज़ा नही था कि उसका लंड इतना सुख दे सकता है किसी औरत को. उसके टटटे कम्मो के रस से भीगे हुए थे. उसने अपने गांद मटकानी शुरू की तो जैसे कम्मो को होश आ गया.

कम्मो ने आगे झुक के रमेश के सिर के पिछे अपने दोनो हाथ रखे और उसे थोड़ा उठा के अपने चूचे चुसवाने लगी. साथ ही साथ उसने अपनी गांद को गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया. देखते ही देखते उसके मम्मो के लाल लाल निशान बनने लगे और उसके चूतड़ अपने आप उपर नीचे होने लगे. करीब आधा लंड उसकी चूत में होता तो वो खट्ट से नीचे बैठ जाती. आज उसे अपनी चूत की सिकाई करनी थी. मम्मो को चटवा के उसने रमेश को अलग किया और पिछे की तरफ होके वो रमेश के लंड पे कूदियाँ मारने लगी. बुरी तरह से पनियाई चूत और एक नौ सीखिया लोडा आख़िर ज़ियादा देर नही रुक पाए और दोनो 1 ही मिनट में झर गए. सिर्फ़ 5 - 10 मीं में ही चुदाई का पहला दौर ख़तम हो चुका था.

पर जैसे ही कम्मो को होश आया उसने झट से अपनी चूत लंड से हटाई और आगे बढ़ के रमेश के मुँह पे बैठ गई. उसे रमेश से एक बार और चुद्ने का मन था और उसे रमेश को दोबारा तैयार करना था. रमेश उसकी सॉफ चिकनी चूत में अपना वीर्य टपकता देख के थोड़ा झिझका पर कम्मो कहाँ रुकने वाली थी. उसने अपनी चूत रमेश की नाक और होठों पे रगरनी शुरू कर दी. कम्मो का रस और रमेश का वीर्य का मिश्रण रमेश की साँसों में समा गया. बरबस उसकी जीभ बाहर लपलापाई और कम्मो की चूत में घुस गई. 2 - 3 बार में ही रमेश को स्वाद ठहेर गया ओए उसने कम्मो की गांद को भींचते हुए अपने मुँह से चूत को सटा लिया. चाहे इंसान कितना भी भोला हो चूत की खुश्बू उसे सीखा ही देती है सब...आज पहली बार कम्मो अपनी वीर्य भरी चूत को किसी से चटवा रही थी. कम्मो की जांघें काँप रही थी, उसकी आँखों में वहशिपन था. उसने हाथ पिछे बढ़ा के रमेश के लंड को टटोला और मुठियाना शुरू किया. रमेश का लंड भी गजब हालत में था और सटाक से तन गया. अब कम्मो आराम से धक्के लगवा के चुदवाना चाहती थी.

कम्मो ने अपनी चूत रमेश के मुँह से हटाई तो रमेश चिहुनक उठा. जैसे के बच्चे के मुँह से दूध की बॉटल निकाल ली हो. कम्मो ने मुस्कुराते हुए अपनी पीठ के बल लेट के उसे अपनी तरफ खींचा. रमेश का लोडा कम्मो की जाँघ से रगड़ खा रहा था. उसका हाथ चूत के उपर के मांसल हिस्से को दबोचे हुए था. कम्मो ने उसका चेहरा पकड़ के उसको चूमा और जीभ से जीभ भिड़ाई. दोनो की जीभें अपने अपने मुँह से बाहर निकल के लपलपाने लगी. छाती से छाती मिली हुई थी. निपल कड़े हुए पड़े थे. गांदें गोल गोल घूम रही थी. बिस्तर पे जो चुदाई का आलम था वो देखे बनता था.

जैसे चूत चाटना रमेश ने अपने आप सीख लिया था वैसे ही उसने कम्मो की जांघों के बीच अपनी जगह बनाई और लोडा चूत की दरार पे टीकाया. कम्मो ने हाथ बढ़ाकर लोडा पकड़ा और उसे छेद पे लगा के खींचा. लंड आधा अंदर गया तो कम्मो ने हाथ खींच लिया और दोनो हाथों से रमेश की गांद भर ली. रमेश के दोनो हाथ उसकी पीठ पे लगे थे. रमेश की जीभ उसके मुँह को चाट रही थी.

'' क्यों रे अब समझा आया कि औरत को खुश कैसे करते हैं..'' कम्मो ने गांद अड्जस्ट करते हुए पुछा. लंड पूरा जड़ तक घुसा हुआ था.

'' हां चाची अब समझ आ गया कि भैया कितना बड़ा चूतिया है जो मुझे कुच्छ भी नही समझाया. आप ना होती तो मैं तो लुगाई को खुश नही कर पाता और पता नही वो कल को किसी और का डंडा अंदर ले लेती. आपका बहुत बहुत शुक्रिया चाची'' रमेश गांद मतकाते हुए बोला.

'' चाची के चोदु भतीजे ये जो तेरा लंड है इसने आज मेरी चूत की अच्छी बजाई है..तेरा धन्यवाद तो वहीं पूरा हो गया. अब तो मैं तुझे धन्यवाद दूँगी गांद उच्छाल के. देख इस बार तस्सल्ली से चोद और सीख और मेरे चेहरे को देखते रहना कि कब कब कैसे तेरे मूसल के धक्कों से मुझे आनंद मिलता है. ये सब तेरी लुगाई को भी मिलेगा. '' कम्मो मुस्कुरा रही थी और अपनी चूचिओ को रमेश की छाती से रगड़ रही थी.

'' ठीक है चाची जैसा तुम बोलो मैं तो धन्य हो गया.'' रमेश ने सटा सॅट लंड अंदर बाहर किया.
तो दोस्तो कैसा लगा ये पार्ट ज़रूर बताए आपका दोस्त राज शर्मा

क्रमशः,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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09-03-2018, 08:59 PM,
#22
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--8

गतान्क से आगे..............

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी आठवाँ पार्ट लेकर हाजिर हूँ
करीब 15 मिनट की जबरदस्त चुदाई के बाद कम्मो और रमेश एक दूसरे से चिपके हुए सो गए. कम्मो आधी रमेश पे लेटी थी. उसकी गरम चूचियाँ रमेश के सीने पे सपाट पड़ी थी. 15 मिनट में बेड की हालत किसी लड़ाई के मैदान से कम नही लग रही थी. उपर से धक्के लगाते हुए रमेश सब भूल गया कि उसे क्या क्या सीखना है. बस उसके अंदर के जानवर ने अपना काम करना शुरू कर दिया. कम्मो के मूह को चूमते हुए उसके चूचे मसल्ते हुए उसने जो धक्के लगाए कि पुछो मत. कम्मो की टांगे खुली की खुली रह गई. इतना तगड़ा मर्द उसे कई दिनो के बाद नसीब हुआ था. वो बस पागलों की तरह बड़बड़ाती रही...''' ऊओह चूओद्द...ऊऊहह माआअ चोद्द्दु कुट्टी...साअले हराअमी चूओद ...ऊओह मदर्चोद..चाची चोद...तेरे लंड को खा जाउन्गि आअज...उउउम्म्म्म...माआ...हाआअन्न्‍णणन् ऐसे ही हराआमि ...ऊओउूऊहह...उूउउफफफ्फ़.....'' ऐसी हालत में एक बार रमेश ने पलटी मारी और उसे अपने उपर ले लिया. पर तब भी लोडा चूत से बाहर नही आया. रमेश की बाहें उसकी पीठ के इर्द गिर्द थी पर नीचे से उसने खूब धक्के लगाए और लास्ट में फिर कम्मो को नीचे ले के उसकी चूत को दबा दबा के ठोका.

'' चल अब तू उठ और जा..तेरी मा राह देखती होगी..हाई राम क्या हाल बना दिया मेरे मम्मो का..हराअमी कोई ऐसे नोचता है क्या औरत को ?? ठर्कि कहीं का..अब तेरे चाचा के सामने कैसे नंगी होउंगी ?? देख कितनी जगह काट काट के लाल निशान बना दिए..'' कम्मो घुटनो के बल नंगी बैठी अपने मम्मे सहला सहला के देख रही थी.

'' सॉरी चाची पर मैं क्या करता..तुम्हारी उसमे अपना डाला तो फिर होश ही नही रहा...तुम्हारी वो इतनी अच्छी लगी मुझे कि रुकने का मन ही नही किया..'' रमेश एक दम से बिस्तर से उठ के बैठ गया था.

'' ये क्या तुम्हारी और मेरा लगा रखा है..भोले भतीजे मेरी वाली चूत कहलाती है. इसे मुनिया भी कहते हैं और तेरा डंडा लंड है..या लोडा समझा. चल अब जा और कल परसों में जब मौका मिलेगा तो दोबारा आना. थोड़ा और सिखाउंगी तुझे. शादी से पहले पूरा तैयार कर दूँगी. चल अब जा..और हां अपने लंड को अच्छे से सॉफ करके जइयो...नही तो मेरी चूत की खुश्बू तेरे लंड से तेरे चाचा की नाक में चली जाएगी. फिर तेरा दोबारा नंबर ना आने का..समझा..'' कम्मो ने बेड से उठते हुए उसे खड़ा किया और उसके मीठे मीठे चुंबन लिए. साथ ही साथ कम्मो ने रमेश के लंड की मालिश भी की.

'' चाची तुम बहुत अच्छी हो..दोबारा आउन्गा ज़रूर...तुम्हारी चूत में अपना लंड डालने और सीखने. और तुम चाचा की फिकर मत करो..मैं देख के आउन्गा की वो घर पे ना हों.'' रमेश ने कम्मो के मम्मो को मूह में भरा और अच्छे से चूपे (चुम्मे)लिए. साथ ही साथ उसकी चूत को सहलाया.

5 मिनट बाद वो अपने आप को सॉफ करके घर से चला गया. कम्मो ने भी अपने आप को सॉफ किया और बिस्तेर बना के लेट गई. बिस्तर पे लेटते ही उसे नींद आ गई.

उधर बाबूजी के घर का आलम कुच्छ अलग था. बाबूजी जितने शांत दिन भर रहे तो अचानक से ही उनको लगा कि ये ठीक नही है. करीब 7 बजे उन्होने अपना पेग बनाया और ड्रॉयिंग रूम में बैठ गए. बाकी सब भी अपने अपने काम करके वही आ गए और सबने ड्रिंक लेनी शुरू कर दी. सुबह जब कम्मो आई थी तो सब ड्रॉयिंग रूम में ही एक दूसरे से चिपके सोए पड़े थे. कम्मो की आवाज़ से सब उठे और अपने अपने कमरे में चले गए. तीनो बहुओं ने जल्दी जल्दी ड्रॉयिंग रूम सॉफ किया और करीब 15 मिनट बाद जब दरवाज़ा खला तो कम्मो जा चुकी थी. फिर वो एक घंटे बाद आई थी. बाबूजी के मन में इस बात की सोच थी कि ये हालत अगर किसी बाहर वाले को पता चल गए तो घर की बहुत बदनामी होगी.

इसी सोच में डूबे हुए उन्होने 2 फ़ैसले किए. पहला फ़ैसला उन्होने घर वालों को सुनाने का मन बनाया. अब जब सब इकट्ठे हो गए थे तो बाबूजी ने अपनी जगह लेते हुए सबको संबोधित किया.

'' अच्छा मेरे बच्चों अब मेरी बात ध्यान से सुनो. आज के बाद तुम सब दिन में चुदाई का कोई भी कार्यक्रम नही करोगे. अब से लेकर जब तक सब बहुएँ पेट से नही हो जाती तब तक कोई भी दिन में ओपन सेक्स नही करेगा. जो भी होगा शाम को 7 बजे के बाद. दूसरे कल से बिज़्नेस का टाइम सुबह 10 बजे का होगा. काम वाली को सुबह 9 बजे से बुलाना शुरू करो. शाम को 5 बजे तक काम ख़तम करके उसे जाने को कहो. 4 बजे तक बिज़्नेस का काम ख़तम करके घर आ जाना. 4 से 5 तक घर में चाइ नाश्ता और फ्रेश होना. उसके बाद मेरे साथ 1 घंटा बिज़्नेस की बातें और उसके बाद 7 बजे से पहले एक दौर चुदाई का होगा.

रात का खाना 8 बजे और फिर 9 बजे से 12 बजे तक कम से कम 2 दौर चुदाई के और होंगे. इसमे एक बात और है. तुम तीनो में से एक आदमी हमेशा 2 दिन के रेस्ट पे रहेगा. मतलब आज चुदाई की है तो कल और परसों नही करेगा. इससे तुम लोगों का वीर्य बनेगा और बहुओं को प्रेगञेन्ट होने में मदद मिलेगी. मैं चाहता हूँ कि अगले 3 महीनो में तीनो बहुओं के पेट में बच्चा हो. जो मर्द रेस्ट पे होगा वो चुदाई देख सकता है चूत चाट सकता है और दूसरों के लिए बहुओं को गरम कर सकता है पर खुद वीर्य नही निकालेगा. मैं तीनो बहुओं के साथ चुदाई नही करूँगा. सिर्फ़ उन्हे अपना वीर्य पिलाउन्गा. और एक बात ये जो हमारी नौकरानी है इसे किसी भी हालत में पता नही चलना चाहिए कि बहुओं के पेट में किसी और का बच्चा है. ये बहुत ज़ियादा नज़र रखती है. बाकी मैं उसपे कड़ी नज़र रखूँगा.''

ये सब बातें सुन के सबने बाबूजी की हां में हां मिला दी. ड्रिंक्स का दूसरा दौर शुरू हो चुका था. सखी को थोड़ी चढ़ रही थी. उसने बाबूजी की गोद में जाके बैठ के पीना शुरू कर दिया. आज उसने शॉर्ट स्कर्ट और एक स्लीवलेशस शर्ट पहनी हुई थी. शर्ट के उपर के 2 बटन खुले छोड़े हुए थे और शर्ट के नीचे वाले हिस्से में अपने मम्मो के ठीक बीच में गाँठ मारी हुई थी. उसकी नाभि और पेट सब नंगा था. बाबूजी ने आज सिर्फ़ धोती और बनियान पहनी हुई थी. राजू, सुजीत और संजय शॉर्ट्स और टी शर्ट में थे. मिन्नी ने नाइटी का टॉप पहना हुआ था. नाइटी लाल रंग की थी और नेट वाली थी. उसके नीचे वो नंगी थी. राखी सबसे बाद चढ़ के तैयार हुई थी. उसने एक सुंदर सी शिफ्फॉन की साड़ी अपने आस पास लपेटी थी और ना ब्लाउस ना ब्रा ना ही नीचे कुच्छ पहना था. बदन पे सिर्फ़ साड़ी लिपटी थी. उसने आज जबरदस्त मेकप भी किया था और होठों पे लाल लिपस्टिक लगाई थी.
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09-03-2018, 08:59 PM,
#23
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
सखी ने बाबूजी की गोद में बैठे बैठे उनकी जुड़ी हुई उंगलियाँ अपनी चूत में ले ली. बाबूजी ड्रिंक लेते हुए उससे हल्के हल्के बात कर रहे थे और उसकी मुनिया सहला रहे थे. राखी और मिन्नी एक साथ बैठी हुई एक दूसरे के चूचे सहला रही थी. राखी के बगल में संजय बैठा था और अपनी ज़िप खोल के अपने लंड को सहला रहा था. वो सखी को बाबूजी की गोद में अठखेलियाँ करते हुए देख रहा था. तभी उसे ध्यान आया कि बाबूजी ने सखी की कहानी अभी तक नही बताई. कैसे उन्होने सखी को उसके लिए पसंद किया. संजय ने बाबूजी को पुकारा और उनसे पुछा. उसकी बात पे सब ध्यान देने लगे. बाबूजी ने एक बार सखी की और देखा जो कि उनको गर्दन मोड के देख के मुस्कुरा रही थी. बाबूजी ने अपनी जीभ निकाल के उसके होठों पे फिराई और उसकी चूत में अपनी जुड़ी हुई उंगलियाँ अंदर तक पेल दी. सखी चिहुनक के उपर को उठी और उनके मूह से सॅट्ट से अपना मूह लगा दिया. दोनो 15 सेकेंड तक एक दूसरे को चूस्ते रहे और फिर अलग हुए. बाबूजी की उंगली अभी भी चूत में दबी पड़ी थी. इसी अवस्था में उन्होने सखी के चुनाव की कहानी शुरू की.

'' मेरे बच्चों सखी का चुनाव मेरे लिए कोई दिक्कत वाला काम नही था. इसको इस घर में लाने का फ़ैसला बहुत आसान था. पर एक ही दिक्कत थी कि इसके चुनाव से पहले मुझे एक इम्तहान से गुज़रना पड़ा. इम्तहान था तो छ्होटा पर मेरी उमर में थोड़ा कठिन था. फिर भी उससे गुज़रने में मुझे कोई आपत्ति नही हुई. क्योंकि उस कठिन इम्तहान में भी मेरे लिए मज़ा था.'' बाबूजी मुस्कुराते हुए बोले.

बाबूजी की बात सुनके सब थोड़े अचंभित थे. उनको ये एक पहेली लग रही थी. बाबूजी ने भी कुच्छ नही कहा और अपना ग्लास साइड में रख दिया. फिर उन्होने सखी की कमीज़ आगे से खोल दी और उसकी चूचिओ को मसल्ने लगे. उसे थोड़ा साइड में ले के उन्होने सखी की सख़्त घुंडीओ को चूसा और फिर अपनी ड्रिंक वापिस ली. सबकी ओर देखते हुए उन्होने फिर से अपनी कहानी शुरू की.

'' दरअसल ये रिश्ता तुम्हारी कंचन बुआ की तरफ से आया था. तुम्हारी बुआ सखी की मा की ख़ास सहेली है. तुम्हारी कंचन बुआ मेरे से 7 साल बड़ी है पर अब भी अपने आप को अच्छे से मेनटेन करके रखती है. उसको हमारे घर के राज़ का पता है. इसी वजह से जब राजू और सुजीत की शादी हो गई तो उसने मुझसे पुछा कि क्या बहुओं के साथ बाकी घर के मर्द भी चुदाई करते हैं. मैने उसे सब बात बताई. इस्पे उसने मुझे सखी के बारे में बताया. और कहा कि सखी हमारे घर की तीसरी बहू बनाने के लायक हो सकती है. पर कंचन को थोड़ा शक था. सो उसने मुझे एक टेस्ट करने को कहा. अब बहुओं के चुनाव को लेके तो असली टेस्ट मेरा होता रहा था सो मैने इसके लिए भी हामी भर दी.

कंचन ने मुझे बताया कि उसने सखी को बचपन से देखा है और उसकी नज़र में ये एक कामुक लड़की थी. इसका कंचन के घर पे आना जाना था और ये उसके घर छुट्टियो में भी रुकती थी. कंचन की बड़ी बेटी की शादी के बाद जब सखी करीब 21 साल की थी तो ये कंचन के घर पे रुकी हुई थी. शादी के बाद जब सब मेहमान चले गए तो कंचन की बेटी और उसका पति कुच्छ दिन रुकने के लिए आए. तब सखी छुप छुप के उनको चुदाई करते हुए अक्सर देखती थी. पर इसे नही पता था कि ये कंचन को पता था. इसकी चोरी कंचन ने बहुत पहले ही पकड़ ली थी जब ये कंचन और तुम्हारे फूफा को एक साथ देखती थी. कंचन ने मुझे एक रात घर पे बुलाया और तुम्हारे फूफा के सामने सारी प्लानिंग रखी. जैसा कि तुम्हे पता है कि तुम्हारे फूफा तो वैसे ही रंगीन किसम के इंसान हैं सो उन्होने प्लान के लिए हामी भर दी.

कुच्छ दिन बाद जब सखी का 22 वाँ जनमदिन आया तो कंचन इसको अपने घर ले गई और धूम धाम से इसका जनमदिन मनाया. इसकी मा भी इसके साथ आई थी और मैं भी वहीं था. वहाँ मैने इसकी मा से शादी को लेके कोई बात नही की. अब तुमको पता है कि इसके पिताजी को गुज़रे काफ़ी साल हो गए हैं और इसकी मा जो कि उमर में सिर्फ़ कुच्छ ही दिन मुझसे बड़ी हैं सेक्स से काफ़ी वंचित रहती हैं. उन्होने मेरे से तो कोई ऐसी वैसी बात नही कही पर अकेले में कंचन से ज़रूर पुछा मेरे बारे में. उन्हे लगा कि मैने शादी नही की है और मैं भी चूत से वंचित रहता होऊँगा. इस सबने हमारे प्लान को जल्दी आगे बढ़ाने में मदद की. जो काम हमने 3 दिन में करने का सोचा था वो काम उसी रात को हो गया.

उस रात पार्टी के बाद सखी अपने कमरे में चली गई. जैसा कि मुझे, कंचन और तुम्हारे फूफा को उम्मीद थी सखी की मा हमारे साथ बैठ के गप्पें मारने लगी. हम सब कंचन के कमरे में थे और हमें पता था कि सखी कहाँ से हमें देखेगी. तब तुम्हारे फूफा के इशारे पे मैं और कंचन किचन में चले गए. इधर तुम्हारे फूफा ने अपना रसिया रूप दिखाते हुए अपनी बातों से सखी की मा की बहुत गरम कर दिया. उन्होने सखी की मा को अपनी बातों में इतना रोमांचित कर दिया कि वो बाथरूम में घुस गई. शायद अपनी चूत की खुजली को शांत करने के लिए. उसके अंदर जाते ही फूफा ने मुझे और कंचन को बुला लिया और कंचन को अपने पास बिठा के उससे मज़े लेने लगे. मेरी सग़ी बहेन अपने पति के साथ मेरे सामने पहली बार सेक्स के मूड में आ गई. पर अभी सखी की मा को भी इस खेल में शामिल करना बाकी था. सो उसने थोड़ी उँची आवाज़ में तुम्हारे फूफा को मना किया सेक्स के लिए.

मेरे भाई के सामने तुम मेरे साथ ये सब मत करो..ऐसा उसने ऊँची आवाज़ में कहा.

तो क्या हुआ वो भी तो मर्द है ..और फिर तेरा छ्होटा भाई है..उससे क्या शरम..क्यों साले साहिब अपनी बहेन को अपने जीजा के साथ देखते हुए बुरा तो नही लग रहा..?? मैं तो कहता हूँ कंचन कि आज की रात तुम मेरे और राजपाल के साथ मज़े लो एक साथ.. तुम्हारे फूफा भी ऊँची आवाज़ में बोले. ये सब बाते यक़ीनन सखी की मा के कानो तक जा रही थी.

क्या बात करते हो जी..मेरे छ्होटे भाई से मेरा काम कारवाओगे...शरम करो..उसे क्या ऐसा समझा हुआ है..वो नही करेगा अगर मैं चाहूं भी तो..कोई भाई ऐसे ही अपनी बहेन के साथ थोड़े ही करेगा....शरम करो..ये कहते हुए कंचन तुम्हारे फूफा से अलग होके मेरे पास आ गई.
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09-03-2018, 08:59 PM,
#24
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
अब उस समय मैं कहाँ पिछे हटने वाला था और मैने भी कह दिया कि कंचन दीदी तुम भाई बहेन की बात मत करो अभी. सिर्फ़ मरद और औरत की बात करो. मैं भी मरद हूँ और काफ़ी दिन से बुर का भूखा हूँ. अगर तुम्हारी नही मिलेगी तो अपनी सहेली की ही दिलवा दो.

बस मेरा ये कहना था और कंचन ने ऊँचे स्वर में कहा ..जा जा बड़ा आया मरद का बच्चा... अर्रे मेरी सहेली को क्या समझा है तूने वो कोई ऐसी वैसी नही है. उसने अपने पति के बाद आज तक किसी मर्द को देखा नही है. खबरदार जो तूने उसकी और ऐसे देखा भी तो. अगर इतनी ही हवस है तो तू मेरे साथ कर ले ..मेरी सहेली भी है वो और मेरी मेहमान भी और मेहमान की इज़्ज़त पे आँच नही आने दूँगी...

बस मैने उसी समय कह दिया कि दीदी तुम अपनी सहेली की इज़्ज़त बचाओ और मैं तुम्हारी इज़्ज़त लूट लेता हू और कंचन को अपनी बाहों में ले लिया. 2 - 3 मिनिट में ही मैं और वो एक दम नंगे हो गए और तुम्हारे फूफा जी हमें देखते रहे. तब कंचन ने उन्हे भी अपने पास बुला लिया और मेरे लंड को चूत पे घिसते हुए उनका लंड चूसने लगी.

शायद ये सब आवाज़ें सखी की मा तक पहुँच गई थी और उससे बाथरूम में रुका नही गया. उसने बाथरूम का दरवाज़ा खोला तो बिस्तेर पे हो रहे कांड को देख के दंग रह गई. कंचन मेरे उपर मेरे लंड पे नंगी कूद रही थी और तुम्हारे फूफा जी का मोटा लंड उसके मूह में था. फूफा जी बिस्तर पे खड़े थे और उन्होने कपड़े भी पूरे उतारे नही थे. कंचन उनकी आधी नंगी गांद को पकड़े हुए उनका लंड अपने मूह में अंदर तक भर रही थी. कंचन की पीठ मेरी तरफ थी और मैं सखी की मा को देख रहा था. उसके दोनो हाथ अपने मूह पे थे और शरीर पे गाउन था. उसके नीचे शायद वो भी नंगी थी. बाल खुले हुए थे और कमर तक लटके हुए थे. कसम से बहुत सुंदर लग रही थी इसकी मा.

इससे पहले कि वो कुच्छ कहती मैं ही बोल पड़ा. दीदी देख आ गई तेरी सहेली तुझे अपने भाई और पति से चुदवाता देखने...इसी के लिए तूने अपनी इज़्ज़त मुझे दी ना आज पहली बार..देख साली कैसे तेरे पति के लंड को घूर रही है...कुतिया की लार टपक रही है..दीदी तू अपनी चूत तो सिकवा रही है इसकी चूत को भी धन्य करवा दे... मेरा नही तो जीजाजी का ही डलवा दे इसकी चूत में.

दीदी अब तक गर्म चुकी थी और बोली..अहाआअंन्न मेरी बला से जिसका मर्ज़ी ले ये...साली की लार तो टपकेगी ना एक बेहेन्चोद को देख के और उपर से ये मेरे हरामी पति का मोटा काला लोडा भी तो फुदक रहा है...क्योंजी लोगे इसकी ...डालोगे इसकी सिकुड़ी हुई चूत में अपना मूसल...बोल री मेरी बन्नो लेगी मेरे पति का अंदर.....उउउहह माआ....बोल नही तो मुझे ही लेना पड़ेगा इसे भी......

तब जैसे सखी की मा के अंदर की सोई हुई शेरनी जाग गई. वो एक दम से बोली..हाआँ छिनाल इसका भी लूँगी और तेरे इस बेहेन्चोद का भी...साली रंडी शाम से पुच्छ रही हूँ कि ये चोदु अकेले कैसे गुज़ारा करता है ...साला मुठिया मुठिया के थकता नही है क्या और तू हरमज़ाडी बता ही नही रही थी...अब समझ में आया कि अपनी चूत पिल्वाति है इससे और इसके लंड को सुख देती है...साली अब ना रहने की मैं पिछे और पहले तेरे सामने ही गपा गॅप तेरे पति को खाउन्गी और फिर तेरे भाई को.
क्रमशः....................................................
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09-03-2018, 08:59 PM,
#25
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--9

गतान्क से आगे..............

उसके बाद हम चारों के बीच जो घमासान चला वो याद रखने वाला था. सखी की मा ने मेरी और तुम्हारे फूफा की इज़्ज़त लूट ली उस रात..साली ने कम से कम भी 3 - 3 बार हमें चोदा. एक समय तो मैं और तुम्हारे फूफा दोनो इसकी मा की चूत और गांद में घुसे पड़े थे और तुम्हारी कंचन बुआ अपनी चूत सटाये हुए थी उसके मूह से. सच में बड़ा मुश्किल टेस्ट था हमारे लिए. पर बड़ा मज़ा भी आया. सुबह पूरे बेड पे जगह जगह वीर्य ही वीर्य था. इन दोनो रॅंडियो की चूते सूजी हुई थी और हमारे लंड छिले पड़े थे. पर जो इंपॉर्टेंट चीज़ थी वो था इस एग्ज़ॅम का रिज़ल्ट. जब हम लोग सुबह 6 बजे उठे और तैयार हुए तो उस समय सखी सोई पड़ी थी. हमारी चुदाई रात 3 बजे तक चली थी. सखी की मा को हमने रात में ही सखी के रिश्ते के लिए मना लिया था. उसे ये कहा कि अगर ये रिश्ता हो जाता है तो बिना झिझक के उसके और हम तीनो के सेक्स संबंध बने रह सकते हैं. इसी बात पे वो छिनाल खुशी खुशी तैयार भी हो गई. तब हमने उससे अगले ही दिन सगाई की तैयारी के लिए कहा और सुबह जल्दी उठा के घर जाने को कहा.

जान भूज के कंचन ने सखी के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया. जब वो नही उठी तो कंचन ने उसको उठाने के बहाने से खिड़की से जाके उसको आवाज़ लगाई. वहाँ से कमरे का नज़ारा देख के कंचन को आइडिया हो गया कि रात में खीरे से सखी ने अपनी प्यास भुज़ाई थी. नंगी हालत में ये खीरे को चूत के नज़दीक रख के सोई पड़ी थी. जब फाइनली ये कमरे से बाहर निकली तो 7 बज चुके थे और मैं, तुम्हारे फूफा और सखी की मा सगाई की तैयारी के लिए निकल गए थे. कंचन ने बाद में हमें बताया कि सखी की आँखें सुर्ख लाल थी जैसे वो रात को बहुत लेट सोई. इसने बहाना बनाया कि रात को ये लेट तक मूवी देख रही थी. तब कंचन ने इससे पुछा कि ऐसी कौन सी मूवी देखी जो खीरे की ज़रूरत पड़ी. तब ये झेंप गई. उस समय कंचन को यकीन हो गया कि इसने रात भर हमारी चुदाई देखी है. तब कंचन ने इससे बताया कि अब तेरे खीरे वाले दिन गए और असली डंडे की पिटाई के लिए तैयार हो जा.

उस शाम को इसकी और संजय की मँगनी हुई और फिर 4 महीने बाद शादी. मुझे तभी से पता था कि इससे हमारी योग्य बहू बनने में कोई वक़्त नही लगेगा और हुआ भी वैसा ही.''

ये कहते हुए बाबूजी ने अपनी कहानी ख़तम की और सखी को गोद से उठा के सामने खड़ा कर दिया. 2 मिनट में नंगी सखी उनके लंड के चुस्के ले रही थी और कमरे में एक तरफ कपड़ो का ढेर लगना शुरू हो गया.



बाबूजी के कहे अनुसार तीनो भाइयों ने मिल के तीनो औरतों को रेग्युलर्ली चोद्ना शुरू कर दिया. हर रोज़ शाम को बाबूजी की सूपरविषन में 2 भाई तीनो का चोदन करते. तीसरा भाई लंड हिलाता और औरतों की चूते चाट के या उनके मम्मे दबा के उन्हे तैयार रखता. बाबूजी अपना मूसल कभी किसी की गांद में देते तो कभी चुस्वा लेते. चूत से दूर रहते थे हमेशा. पर ये भी बड़ा कठिन समय था बाबूजी के लिए. उनके जैसा थर्कि चोदु आख़िर कितने दिन तक चूत से वंचित रहता. बाबूजी दिन में कम्मो पे कड़ी नज़र रखते थे. उन्होने कम्मो के हाव भाव पढ़ने शुरू कर दिए. कम्मो किस समय क्या करती है और क्या नही, कैसे मटकती है, घर के सदस्यों से कैसे बात करती है ये सब बाबूजी ने नोटीस करना शुरू कर दिया. ऐसे ही दिन हफ्तों और हफ्ते महीनो में बदल गए. बाबूजी समझ चुके थे कि कम्मो भी कामुक है और लंड की भूखी है.

उधर कम्मो को जब भी मौका मिलता वो रमेश को बुलवा लेती. रमेश भी धीरे धीरे माँझा खिलाड़ी बन रहा था. उसे कम्मो से अच्छी सीख मिल रही थी और फ्री की चूत को कौन मना करेगा. वो मौका ढूंढता रहता था कि कब कम्मो का पति बाहर जाए. मौके भी बढ़ रहे थे क्योंकि रमेश का बाप कम्मो के पति को शादी के कामों में उलझाए रखता था. दिक्कत बस बच्चों की थी. रमेश की चुदाई का असर कम्मो पे दिखने लगा था. अब वो खिली खिली रहती थी और बाबूजी के घर के सदस्यों से चुटकी करती रहती थी. कभी कभी वो बाबूजी को भी छेड़ देती थी. बाबूजी ने भी मन बनाना शुरू कर दिया कि वो कम्मो की चूत को अपने वीर्य से भाव विभोर ज़रूर करेंगे. पर ऐसा कब और कैसे करना है ये उन्होने डिसाइड नही किया था.

3 महीने के अंतराल में मिन्नी, राखी और सखी तीनो पेट से हो गई. घर में कोई बड़ी औरत नही थी सो इसलिए बाबूजी ने सखी की मा के लिए बुलावा भेजा कि कुच्छ महीनो के लिए वो उनके साथ आके रुक जाएँ. राखी और मिन्नी ने अपने अपने मैके जाने से मना कर दिया. बाबूजी ने डिसाइड किया कि 3नो बहुओं के बच्चे ससुराल में ही होंगे. सखी की मा के घर में आते ही माहौल एक बार फिर बदल गया. सखी की मा को घर के राज़ के बारे में कुच्छ नही पता था. सो इसलिए सबको अपनी अपनी पत्निओ के साथ सोना पड़ता था. सखी की मा ने सब मर्दों को निर्देश दिया कि पहले 3 महीने वो लोग अपनी बिवीओ के साथ कुच्छ ना करें. उसके हिसाब से पहले 3 महीने में किसी एग्ज़ाइट्मेंट की वजह से बच्चा गिरने का डर हो सकता था. साथ ही साथ सखी की मा ने अपने डोरे फिर से बाबूजी पे डालने शुरू कर दिए. सखी की शादी और अब तक वो बाबूजी से सिर्फ़ 3 बार और चुदी थी. पहली रात के बाद शादी से कुच्छ दिन पहले वो और बाबूजी उसके घर पे दिन में अकेले रहे थे. उसके बाद जब सखी को मिलने 2 दिन आके रुकी थी तो उसने बाबूजी का बिस्तर शाम की तरफ गरम किया था. इन दिनो में उसने कंचन के पति के साथ खूब मज़े लिए थे. कंचा का पति उसे रेग्युलर्ली अपने या उसके घर में पेलता था.

पर जब से वो सखी की ससुराल में आई थी तब से उसको कंचन के घर जाने का मौका नही मिला था. इधर 3नो लड़के भी अपनी अपनी बिवीओ की चूतो से वंचित थे. बस लंड चुस्वा के गुज़ारा कर रहे थे. घर के ये हालत देखते हुए बाबूजी ने एक प्लान बनाया और एक दिन उन्होने अनाउन्स किया की तीनो जोड़े एक सॅटर्डे को एक पिक्निक स्पॉट पे रात रुकने के लिए जाएँगे. इससे सभी लोगों का मनोरंजन हो जाएगा और हवा पानी बदल जाएगा. सखी की मा ने कहा कि वो भी साथ जाएगी. बाबूजी को इस बात की उम्मीद थी कि वो ऐसी बात कह सकती है. सो उन्होने सखी की मा को भी साथ जाने की अनुमति दे दी.
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09-03-2018, 08:59 PM,
#26
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
बाबूजी के प्लान के हिसाब से सॅटर्डे को 3नो जोड़े और सखी की मा एक साथ पिक्निक स्पॉट पे चले गए. शनिवार की दोपहर को जब कम्मो घर में काम ख़तम कर चुकी तो बाबूजी ने उसे अपने कमरे में बुलवाया.

'' बाबूजी आपने बुलाया. कोई काम था क्या..'' कम्मो ने अपने सूट की चुन्नि से हाथ पोन्छ्ते हुए पुछा.

'' हां मुझे तुझको कुच्छ देना है. दरअसल तुझे पता है कि बहुएँ पेट से हैं और तुझ पे आजकल सारा काम का बोझ आ गया है. मैं जानता हूँ कि तू कितनी मेहनती है. इसलिए मैं तुझे कुच्छ इनाम देना चाहता हूँ. '' ये कहते हुए बाबूजी ने आल्मिराह से 3 बढ़िया क्वालिटी के सूट निकाले. तीनो सूट काफ़ी मेह्न्गे थे और सिले सिलाए थे.

सूट देख के कम्मो की बान्छे खिल गई. उसे यकीन नही हो रहा था कि बाबूजी उसको इतने महनगे सूट दे सकते हैं. बाबूजी ने उसे कहा कि वो कोई 2 सूट ले ले. ये बात सुनते ही कम्मो थोरी कन्फ्यूज़ हो गई पर कुच्छ बोली नही. उसने एक गुलाबी और एक हरा सूट चूज़ किया. बाबूजी ने दोनो सूट खोल दिए और कम्मो से कहा कि वो उनको ट्राइ करे और दिखाए. ये बात सुनते ही कम्मो थोड़ा शर्मा गई और सकपका गई.

'' बाबूजी हम ये सूट कैसे ट्राइ करें आपके सामने. ये लगते तो हमारे साइज़ के हैं पर आपको कैसे दिखाएँ पहेन के. हम घर जाके पहेन लेंगे. अगर कुच्छ उन्च नीच होगी तो दर्ज़ी से ठीक करवा लेंगे.'' कम्मो शरम से नज़रे झुकाए बोली.

'' अररी पगली तू बिना झुझक के पहेन के दिखा मुझे और फिर मैं बताता हूँ कि मैने तुझे ट्राइ करने को क्यों कहा है. चल जा मेरे बाथरूम में जाके बदल ले और दिखा. अगर नही दिखाएगी तो इन्हे यहीं छोड़ दे. मैं किसी और को दे दूँगा. '' बाबूजी ने थोड़ी कड़क आवाज़ में कहा.

अब कम्मो उनका विरोध नही कर सकती थी. उसका मॅन ललचाया हुआ था. उसने गुलाबी सूट उठाया और बाथरूम में चली गई. सूट काफ़ी हेवी था और उसपे अच्छी कारी गरि हुई पड़ी थी. पर सूट का फ्रंट और बॅक दोनो काफ़ी लो थे. सूट पहेन के उसने अपने आप को आईने में देखा और थोड़ी घबरा गई. उसकी चूचियो की दरार का करीब 2 इंच का हिस्सा सॉफ दिख रहा था. सूट को अगर वो आगे से उपर करती तो पिछे से ब्रा का स्ट्रॅप दिखने लगता. जिसने भी सूट बनाया था बड़ी सोच से बनाया था कि हर हाल में मॅग्ज़िमम हिस्सा एक्सपोज़ होगा ही होगा. उसके मम्मे बिल्कुल सही तरीके से सूट में सटे हुए थे. कमर पे सूट चिपका हुआ था और उसके चूतरो पे आस पास पर्फेक्ट फॉल आ रही थी. उससे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसका नाप लेके सूट बनाया हो.

इसी पेशोपश में उसे बाबूजी की आवाज़ सुनाई दी. घबराते और शरमाते हुए बिना चुन्नी के वो बाथरूम से बाहर निकली. बाबूजी ड्रेसिंग टेबल में देख के अपनी मूच्छों को ताव दे रहे थे. उनकी पीठ कम्मो की तरफ थी. कम्मो की रिफ्लेक्षन ड्रेसिंग टेबल के शीशे में नज़र आ रही थी. कम्मो ने अपने दोनो हाथ अपने कंधों पे रखे हुए थे. वो अपने मम्मो की दरार को छुपा रही थी.

'' लीजिए बाबूजी देखिए..हमने सूट पहेन लिया.'' सहमी हुई आवाज़ में कम्मो बोली.



'' ये क्या कम्मो ऐसे कैसे पता चलेगा कि सूट तुझ पे अच्छा लगता है या नही.. हाथ तो नीचे कर..ह्म्‍म्म्मम घबरा नही सिर्फ़ यहीं से देखूँगा.'' बाबूजी अभी भी कम्मो को शीशे में ही देख रहे थे और मूच्छों पे ताव दे रहे थे.

कम्मो ने सिर झुकाते हुए अपने हाथ साइड में किए. बाबूजी की धोती में उनका लंड अब कड़ा होने लगा था. कच्छा तो उन्होने पहना ही नही था. बाबूजी पैनी नज़रों से कम्मो के एक एक अंग को घूर रहे थे. 2 बच्चों की मा लगती भी और नही भी. उसका झुका हुआ चेहरा एक मिड्ल एज औरत की मेचुरिटी बयान करता था. बदन का गातीलापन एक जवान औरत जैसा था पर बदन की बनावट एक भारी खेली खिलाई औरत की. कम्मो के जिस्म में एक्सट्रा माँस था पर सही जगहों पे. पर वो एक्सट्रा माँस एक तरीके से मसल्स के रूप में था. बाबूजी उसकी चूचिओ को देखने लगे. सूट में उसकी चूचियाँ अच्छी कसी हुई थी. करीब 15 सेकेंड तक बाबूजी उसे निहारते रहे. गुलाबी रंग उसके गेहुएँ रंग को सूट कर रहा था.

'' अच्छा ज़रा पिछे मूड के दिखा.'' बाबूजी ने हुकुम सुनाया.

शरमाते हुए कम्मो मूड गई और उसे अपनी तकरीबन 25% नंगी पीठ का एहसास हुआ. कम्मो के दिमाग़ में भी अब हलचल थी. वो हलचल अब उसकी चूत में उत्तेजना पैदा कर रही थी. चूचे भी कड़े हुए पड़े थे पर पूरे नही. कम्मो के निपल बहुत बड़े थे. उसे डर था की कहीं वो थरक गई तो निपल सॉफ सॉफ दिखने लगेंगे.
उसे अपनी पीठ पे बाबूजी की नज़रें गढ़ी हुई महसूस हो रही थी. बाबूजी उसकी पीठ, उसकी कमर और उसके चूतरो का ज़यज़ा ले रहे थे. फिर से करीब 15 सेकेंड तक उससे निहार लेने के बाद बाबूजी ने कम्मो को दूसरा सूट पहेन के आने को कहा.

कम्मो ने मूड के बेड से दूसरा हरा सूट उठाया. उसकी चूचियो की दरार जो करीब 2 इंच दिख रही थी झुकने से और भी दिखने लगी. सूट में कसाव था नही तो शायद उसके मम्मे उच्छल के बाहर आ जाते. एक बार फिर कम्मो बाथरूम में चली गई. जैसे ही उसने सूट को पहनने के लिए खोला तो वो हैरान रह गई. हरा सूट बहुत ही महनगा था. कम्मो के अंदाज़ से कम से कम 5000 का होगा. दूसरी बार वो तब चौंकी जब उसने उस सूट की बनावट देखी. कम्मो के पैर काँपने लगे और उसकी धधकने तेज़ हो गई. अपने आप को बाबूजी के सामने उस सूट में सोच के वो घबरा गई. पर तभी उसकी चूत ने जवाब दे दिया. उसकी चूत बुरी तरह पनिया गई. कम्मो का दिमाग़ ठीक से काम नही कर रहा था पर उसकी जवानी अंगड़ाई ले रही थी.
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09-03-2018, 08:59 PM,
#27
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
इतने में बाबूजी की कड़क आवाज़ बाहर से फिर सुनाई पड़ी. कम्मो ने आनन फानन में सूट पहेन लिया. बाबूजी की आवाज़ में कदकपन और एक जल्दी का भाव था. कम्मो इतना तो समझ गई थी कि जिस तरीके से सूट फिटिंग है वो ख़ास उसके बदन के लिए बनाए गए हैं पर कैसे ये उससे समझ नही आ रहा था. इससे पहेल कि बाबूजी की आवाज़ दोबारा सुनाई दे कम्मो ने दरवाजे की चितखनी खोली और बाहर निकल आई. अब की बार उसके दोनो हाथ उसके कंधों पे थे और वो उन्हे हटा नही पा रही थी. चूत की महक उसके बदन से खुश्बू बन के कमरे में फैलने लगी थी. चूचे एक दम कड़क थे और निपल्स की शेप पूरी तरीके से अब नज़र आ रही थी.

बाबूजी ने शीशे में देखते हुए एक बार फिर कम्मो को निहारा. इस बार उनकी उत्तेजना बढ़ गई. लंड पूरा खड़ा था पर कुर्ते की वजह से धोती में बना तंबू दिख नही रहा था. बाबूजी कम्मो की साधारण खूबसूरती से मन्त्र मुग्ध हो गए थे. सूट की पतली पतली डोरिओं के बगल में उसकी ब्रा के चौड़े स्ट्रॅप नज़र आ रहे थे. सूट ने उसके कंधों को पूरा उघाड़ के रखा था. दोनो तरफ से उसके मांसल कंधे दिख रहे थे. मम्मो की गहराई के ठीक बीच में एक दिल बना हुआ था जिसे वो च्छुपाने की कोशिश कर रही थी. सूट का टॉप एक कुरती की तरह था. सिर्फ़ कम्मो की जांघों तक. सूट कसा हुआ था और उसके चूतरो के आस पास चिपके हुआ था. जल्दी जल्दी में कम्मो ने जब सूट कहना तो बाल आधे खुल गए थे. कम्मो के बाल भी लंबे थे करीब उसकी कमर तक. उसका रिब्बन उसके कंधों के नीचे की तरफ आधे खुले बालों में झूल रहा था.

बाबूजी से रहा नही गया और वो मूड गए. कम्मो का चेहरा झुका हुआ था. एक पतली सी चूरिदार सलवार उसके बदन से चिपकी हुई थी. बाबूजी उसके करीब पहुँचे. उसके कंधों पे नज़र डाली. उसके आधे नंगे कंधे आधे हाथों से छुपे हुए. बाबूजी अब कम्मो के ठीक पिछे खड़े थे. अचानक कम्मो को अपनी कमर पे बाबूजी के हाथों का स्पर्श महसूस हुआ और अनायास ही उसके हाथ उनके हाथों के उपर चले गए. अब उसकी नंगी पीठ और कंधे उनके सामने थे. बाबूजी ने उसकी कमर को अपने हाथों से भींचा और धीरे धीरे अपने हाथों को खिसकाते हुए उसके पेट पे ले गए. कम्मो अब एक मोम की गुड़िया थी. उसको अपने उपर काबू नही था. उसके हाथ बाबूजी के हाथों से सटे हुए अपने ही पेट की तरफ चले गए. और फिर 2 सेकेंड वहाँ रुक के उसके दोनो हाथ अपनी चूत की तरफ बढ़ चले. अनायास ही उसके मूह से एक सिसकारी निकली और उसके हाथों ने चूत के उपर के हिस्से को जाकड़ लिया.

बाबूजी ने आगे झुक के उसके कंधे पे किस किया. कम्मो का रोम रोम कांम्प उठा. जैसे उसे 220वॉल्ट का झटका लगा हो. रोंगटें खड़े हो गए और चूत लिसलिसा गई. उसकी छाती ऑटोमॅटिकली बाहर निकल आई जैसे के कह रही हो कि आओ मुझे चूसो. बाबूजी ने भी देर नही की और अपने हाथों को पेट से बढ़ाते हुए कम्मो के मम्मो के ठीक नीच कर दिया. उसके बाद उनके हाथों ने कम्मो के मम्मो को नीचे की तरफ से दबाया और उसके निपल घोंठ दिए. कम्मो अब तरफारा रही थी. उसने अपनी चूत को छोड़ के बाबूजी हाथों पे अपने हाथ रखे और उन्हे ज़ोर से दबाया. उसके मम्मे भिन्च गए और वो सिहर गई.

''ऊऊऊऊऊहह बबुउउुजिइीइ...ये क्या कर दियाअ आअप्ने....मेरी मुनिया तो गीली हो गई....'''

'''ह्म्‍म्म्मममम तो गीएली मुनिया को क्यों तंग कर रही है...उसे भी सूख जाने दे ..अपनी मुनिया को कह कि उसका रस मेरे लंड पे निकाल दे और उसको भिगो के फ्री हो जाए....उउम्म्म्ममगदर जवानी है तेरी बन्नो..ज़रा नंगी हो जा..''

बाबूजी का ये कहना था कि उन्होने कम्मो के जवाब का इंतेज़ार नही किया. उन्होने सूट के पतले पतले स्ट्रॅप कम्मो के कंधों से उतार दिए और साथ ही उसके ब्रा के स्ट्रॅप भी. ब्रा के स्ट्रॅप कंधों से हटते ही कम्मो के मोटे मोटे मम्मे थोड़ा झूल गए.


''तुझे पता है कम्मो ये सूट तुझपे कितने अच्छे दिख रहे हैं..कातिल लग रही है तू इसमे. मुझे तो रिझा लिया है तूने. उफ़फ्फ़ सच बोलूं आज ये पहेन के पहली बार मुझे लगा कि तू मेरे इस बिस्तर की शोभा बढ़ा देगी...बोल आएगी मेरे बिस्तर पे ?? '' बाबूजी कम्मो की पीठ गर्दन और गालों को चूमते हुए पूच्छ रहे थे.

'' हान्न्न बाबूजी आउन्गि आपके बिस्तर पे...इतना गरम कर दूँगी इस बिस्तर को कि आप कभी इस्पे सो नही पाएँगे...आग लगा दूँगी आपके बिस्तर को अपनी जवानी से .. जैसे अभी आपने लगा दी है मुझमे...पर एक बात बताओ बाबूजी... और उस बात का सच जवाब देना तो अभी के अभी बिच्छ जाउन्गि यहाँ...ये सूट मेरे हिसाब के किसने बनाए और कैसे....उउम्म्म्म इनमे तो मेरी जवानी पूरी फिट हो गई..ऊओह ...उम्म्म्म क्या करते हो बाबूजीइइईईई....ऐसे ना मस्लो इनको ...मेरी प्यारी घुंडीयाँ हैं, मसल दोगे तो खाओगे क्या...?? '' कम्मो बाबूजी के हाथों में अपनी निपल्स दबवाते हुए कसमसा रही थी. उसका मन कर रहा था कि अपने बदन से सूट उतार दे और टांगे फैला के नंगी लेट जाए.

'' सच कहूँगा रानी तेरी इस भीगी हुई मुनिया की कसम..मैने ये सूट खुद बनवाए हैं ख़ास तेरे नाप के. और मुझे खुशी है कि मेरी तेज़ नज़रों ने तेरे जिस्म को सही से नापा...तुझे इतने दिन से घूरते हुए मुझे तेरी फिगर का पूरा अंदाज़ा हो गया था..तू 38सी की ब्रा पहनती है..तेरी कमर 32 की है और तेरी ये गदराई गांद पूरी 41 की.. है ना मेरी जान...उम्म्म्ममम और तेरी इस गांद में इस समय फँसा मेरा लंड कह रहा है कि तुझे घोड़ी बना लूँ और चढ़ जाउ...आज के लिए मैं बनूँ दूल्हा और तू बने मेरी घोड़ी....क्याअ बात है जान..बनेगी अपने बाबूजी की घोड़ी...?? '' बाबूजी की उंगलिओ की रफ़्तार अब तेज़ हो गई थी. निपल बार बार उंगलिओ में पकड़ के खींच रहे थे. बाबूजी के हिसाब से कम्मो अब तैयार थी. बस अब उन्हे एक और चीज़ देखनी थी.

'' उउउहह मेरे जालिम सैयाँ..बना ले अपनी घोड़ी मुझे और चढ़ जा....मैं तो धन्य हो गई तेरी नज़रों की ...क्या नज़रें है तेरी जो मेरी जवानी का रोम रोम नाप लिया...आजा मेरे रजाअ बना मुझे अपनी रांड़....ऊहह अब रुका नही जाता...कर दे नंगी मुझे और पेल...हाऐईयईई....उम्म्म्ममम...ऊहह बबुउुुुउउ.....आज से जब चाहे जहाँ चाहे बुला लेना ...सब करूँगी...तेरी छिनाल हुई मैं आज से...दे दे नाअ अब ..और मत तरसा....''' कम्मो ने अब अपने सूट को कमर तक खींच लिया था और साथ ही ब्रा को भी. उसके दोनो मम्मे अब बाबूजी के हाथ में थे. बाबूजी कभी नरम हाथों से और कभी दबा के उसके चूचे सहला और निचोड़ रहे थे. बाबूजी का चूत वंचित लोडा तैयार था पर अभी भी बाबूजी को संयम रखना था.

'' डालूँगा पेलुँगा तेरी पग्लाई हुई बुर को ठोकुंगा और चाटूंगा भी..पर पहले तू मुझे अपनी जवानी दिखा ..अपने आप खोल इस सूट को और साथ ही अपने राजा को भी नंगा कर...घोड़ी बनेगी तो सब मेहनत मैं ही करूँगा ना..तू तो बस मज़े लेगी..और अब इस बुढ़ापे में इतनी मेहनत से पहले कुछ आराम कर लूँ...चल आजा दिखा अपना जलवा ....'' बाबूजी ने कम्मो को अपनी तरफ मोड़ लिया. दोनो बिस्तर के किनारे पे एक दूसरे को देख रहे थे. बाबूजी के सामने कम्मो बहुत छ्होटी थी और उनको देखने के लिए उसने सिर उठाया और ऐसे में उसकी चूचियाँ और भी बाहर को निकल आई.
क्रमशः............................
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09-03-2018, 09:00 PM,
#28
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--10

गतान्क से आगे..............



दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी दसवाँ पार्ट लेकर हाजिर हूँ

बाबूजी ने थोड़े नीचे झुक के कम्मो के चेहरे को पकड़ा और उसके होंठो को हल्के से चूमा. कम्मो की आँखें मूंद गई, बाबूजी के होंठो का स्प्रश बहुत अच्छा था, उनकी मूच्छों से उसको हल्की सी गुदगुदी उठी. बाबूजी ने हाथ बढ़ा के उसका रिब्बन खोल दिया और उसके रेशमी बाल खुल के उसकी कमर तक लहरा गए. बाबूजी ने उसके बालों मे अपनी उंगली फेरी और माँग के दोनो तरफ उनको सेट किया. माँग में हल्का सिंदूर लगा हुआ था. बाबूजी ने आगे झुक के उसकी माँग को चूमा और फिर उससे थोड़े पिछे हट गए. पता नही शायद दोनो के दिल एक दूसरे की बात सुन रहे थे. कम्मो ने बिना कुच्छ बोले नीचे झुक के बाबूजी के चरण च्छुए और अपनी माँग में हाथ फेरा. जैसे ही वो उठी बाबूजी ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और भींच लिया. बाबूजी को कम्मो पे बहुत प्यार आ रहा था और साथ ही साथ उनकी वासना भी भड़की हुई थी.

कम्मो ने बाबूजी की छाती से लगते हुए उनके कुर्ते के नीचे हाथ लगाया और धोती की गाँठ को टटोला. धोती खुल के पैरों में गिर गई. उसके बाद कम्मो ने बाबूजी का कुर्ता उठना शुरू किया और उतार कर बिस्तर पे फेंक दिया. बाबूजी अब पूरे नंगे खड़े थे और उनका 7 इंच का लंड लोहे की तरह कड़क हुआ पड़ा सलामी दे रहा था. कम्मो ने थोड़े पिछे हट के उनके लंड को निहारा और फिर ज़मीन पे घुटनो के बल बैठ गई. हाइट की वजह से कम्मो का सिर बाबूजी के लंड से थोड़े नीचे था. उसने सिर उठा के पहले उनके सरीखे लंड को अच्छे से निहारा और फिर अपने छ्होटे छ्होटे हाथों से उसे पकड़ लिया. कम्मो के गरम हाथों का स्पर्श मिलते ही बाबूजी का बदन काँप उठा. उनके मूह से कम्मो के नाम की एक सिसकारी निकल गई.

कम्मो के चेहरे पे एक मुस्कान आई और उसने अपनी जीभ निकाल के उसकी नोक बाबूजी के लंड की आँख पे लगा दी. बाबूजी के लंड की आँख से प्री कम की बूंदे निकल रही थी. कम्मो ने लंड की आँख को जीभ की नोके से टटोला और प्री कम की एक लार उसके होंठो पे आ गई. कम्मो पिछे हुई तो प्री कम की तार जैसे उसके होंठो और बाबूजी के लंड को जोड़ रही थी. कम्मो ने अपना राइट हॅंड लंड के टोपे पे घुमाया और प्री कम से टोपे की मालिश की और फिर आगे बढ़ते हुए बड़े ही नर्म होंठो से टोपे को घिसने लगी. देखते ही देखते उसकी उत्तेजना बढ़ने लगी और अब उसके हाथ बाबूजी के टट्टों, गांद और जांघों पे फिरने लगे. कम्मो की जीभ लपलपा रही थी, उसके मूह में थूक भरा हुआ था, कभी वो लंड को चूस्ति तो कभी टट्टों को चूमती. उसने सपने में भी नही सोचा था कि घर के मालिक का लंड कभी उसको नसीब होगा. वो हमेशा इस लंड की गुलाम बन के रहना चाहती थी. उससे पता था कि इस लंड की गुलामी से उसकी चूत के भाग खुल जाएँगे और साथ ही उसके परिवार के भी. उसके परिवार का सुख उस लंड के ज़रिए हो के जाता था और कम्मो चाहती थी कि वो ऐसा कुच्छ करे पहली बार में कि बाबूजी मरते दम तक उसे ना छोड़ें.

कम्मो ने अपने हाथों से बाबूजी की गांद पकड़ ली और उनकी गांद के छेद से खेलने लगी. बाबूजी का लंड उसके हलक तक उतरा हुआ था और अब बाबूजी उसे चोदे जा रहे थे. मुख चोदन का इतना बढ़िया एहसास कम्मो को पहले नही मिला था. बाबूजी अपने लंड को उसके मूह और गले की गहराईयो में उतारते और उसका सिर पकड़ लेते. जब कम्मो की साँस घुटने लगती तो छोड़ देते और कम्मो अपना सिर पिछे करती तो ढेर सारा थूक बाहर निकल आता. उसका नया सूट थूक से गीला हो चुका था पर उसे परवाह नही थी क्योंकि उसे पता था कि उसे ऐसे कई सूट और मिलेंगे. थूक की लंबी लंबी लार उसके मम्मो को भी भिगो रही थी. बाबूजी अपनी स्पीड चेंज करते हुए उसके मूह को चोद्ते रहे और 3 - 4 मीं में वो छूटने को तैयार हो गए. कम्मो ने बाबूजी की गांद के छेद में एक उंगली फँसाई हुई थी और उसे एहसास हुआ कि उनकी गांद अब टाइट हो रही है. एन मौके पे कम्मो ने एक हाथ से बाबूजी का गीला लंड मुठियाना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ की उंगली उनकी गांद में 1 इंच तक घुसेड दी.

''' ऊऊहह कममू राणियीई ये ले अपने बाबूजी का वीर्यहह और पीईइ ज़ाआाआ......'' बाबूजी चिल्लाए और उनकी गांद ने पहला झटका खाया. 1 सेकेंड के लिए कम्मो ने उन्हे मुठियाना रोका और लंड को सही जगह पे अड्जस्ट किया. लंड की आँख से निकली वीर्य की पहली पिचकारी ठीक उसकी लाल सिंदूर सजी माँग के बीचों बीच पड़ी. वीर्य की सफेद धार से बाबूजी ने उसकी माँग सज़ा दी और अब कम्मो और बाबूजी का उमर भर का चुदाई का रिश्ता पक्का हो गया. बाबूजी के लंड के झटके जारी रहे और कम्मो लंड को मुठियाते हुए उसे अड्जस्ट करती रही. उसकी आँखें, गाल, होंठ, नाक सब जगह पे वीर्य की धाराएँ बहने लगी. बाबूजी 10 - 15 सेकेंड तक वीर्य पात करते रहे और फिर जैसे ही रुकने को हुए तो कम्मो ने लंड को मूह में भर लिया. लंड उसके हलक तक पहुँचा और बाबूजी ने पूरी ताक़त लगा के 2 - 3 पिचकारियाँ और छोड़ी.
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09-03-2018, 09:00 PM,
#29
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
बाबूजी का लंड मूह में रखते हुए और नमकीन वीर्य पीते पीते कम्मो ने अपने दूसरे हाथ से उसके वीर्य को चेहरे से सॉफ करना शुरू किया और उंगली से खिसका खिसका के सारा वीर्य अपने होंठो तक ले आई. मूह को और चौड़ा कर के लंड के उपर उसने वीर्य की धारें गिराना शुरू किया और फिर से उसे चूसने लगी. बाबूजी हैरान थे कि लंड चूसने की इतनी महारत कम्मो को कहाँ से मिली. खैर जो भी हो उनका काम आधा बन चुका था. कम्मो की माँग में वीर्य भरने का जो काम हुआ था उससे उन्हे एक अजीब सी तस्सली मिल रही थी. बाबूजी घुटनो के बल बैठी कम्मो को देखे जा रहे थे कि किस तरह से वो उनके लंड को पूज रही थी. देखते ही देखते कम्मो ने उनका सारा रस पी लिया. उनके लंड को जीभ से चाट चाट के अच्छे से सॉफ कर दिया. उनके टटटे भी अच्छे से चूस चूस के सॉफ हो चुके थे. बाबूजी ने झुक के कम्मो को उठाया और उसे प्यार से देखा. उसकी माँग में लगी वीर्य की धार पे उन्होने उंगली फेराई और जितना उसकी माँग में समा सकता था उतना छोड़ के बाकी उसके हठों पे लगा दी. कम्मो ने बहुत मादक अंदाज़ में उनकी उंगली को लेके चाट लिया.

अब बाबूजी की बारी थी. कम्मो को देखते हुए वो बिस्तर पे लेट गए. बाबूजी का लंड अभी भी आधा खड़ा था. कम्मो अब पूरी उत्तेजित थी. पर उसके मन में भी कुच्छ चल रहा था. उसने बाबूजी को थोड़ी तिर्छि नज़रों से देखा. बाबूजी की नज़र उसके उरोजो पे गढ़ी हुई थी. ऊरोजो पे वीर्य की कुच्छ बूँदें पड़ी हुई थी. कम्मो थोड़ी सी मूडी जिससे कि उसके मम्मे और खड़े निपल साइड से दिखने लगे और उसने वीर्य की बूँदों को एक एक करके अपनी उंगली पे समेटा और चाट लिया. बाबूजी का आधा झुका लंड उसकी ये मादक अदा देख के एक बार फिर तनने लगा. बाबूजी को उसी तरह से देखते और दिखाते हुए कम्मो ने अपने सूट का टॉप नीचे की तरफ उतार दिया. अब उसकी ब्रा की बारी थी. मम्मे तो खुले ही हुए थे. अपनी पीठ के पिछे हाथ बढ़ाते हुए कम्मो ने अपनी पैनी चूचिओ को पूरा बाहर को निकाला और खुले बालों को झटकते हुए ब्रा का हुक खोल दिया. उसी मादक अंदाज़ में उसने ब्रा को अपने मम्मो पे हल्के हल्के रगड़ा और बाबूजी के चेहरे की तरफ उच्छाल दिया.

बाबूजी ने ब्रा को सूँघा और उसका लेबल देखा. उनका अंदाज़ा बिल्कुल सही था. 38सी की ब्रा थी, दिखने में सिंपल कॉटन. बाबूजी के दिमाग़ में एक और ख़याल आ गया. उन्होने ब्रा को एक बार और सूँघा. उसमे से कम्मो के पसीने की खुश्बू आ रही थी. कम्मो का बदन एक मेहनतकश औरत का था और उसका पसीना भी उसी तरह का था. बाबूजी ने ब्रा को सरकाते हुए अपने लंड पे लपेट लिया और धीरे धीरे उसको सहलाने लगे. उनके लंड पे अभी भी थूक और वीर्य का चिपचिपापन था जो कि ब्रा से वो सॉफ करने लगे. उनको ये सब करते हुए देखते हुए कम्मो ने अपनी चूचिओ को दबोच लिया और अपनी जीभ निकाल के रंडी की तरह अपने होंठो पर फेर दी. अब उसके हाथ चूचिओ को छोड़ के अपने पेट और कमर पर रेंगते हुए पाजामे के नाडे की तरफ बढ़ चले. नाडा खोले हुए उसने अपनी पॅंटी में भी हाथ डाल दिया और चूरिदार पाजामी और पॅंटी एक साथ उतारना शुरू कर दिया.

बाबूजी की निगाह अब उसके धीरे धीरे नंगे होते हुए चुतडो पे जम गई. उसके चुतडो का उभार काफ़ी दिलकश था. मांसल चूतर गथे हुए जिनमे कुल्हों की मसल्स सॉफ दिख रही थी. धीरे धीरे कम्मो ने अपनी मांसल जांघें भी नंगी कर दी और पैरों में से चूरिदार पाजामी को निकालने के लिए झुकी. उसको ना जाने क्या सूझा और वो पूरी घूम गई और अपने मोटे चूतर बाबूजी को दिखाने लगी. चूरिदार पाजामी को पैरों से निकालने में जो वक़्त लग रहा था उसमे वो अपने चूतर घुमा घुमा के बाबूजी को रिझा रही थी. कम्मो अपनी चूत के बाल सिसर से ट्रिम करके रखती थी पर उसका हाथ चूत और गांद के बीच के हिस्से में ठीक से नही चलता था. वहाँ के कुच्छ बाल लंबे होते तो कुच्छ छ्होटे. वही बाल अब बाबूजी की नज़रों के सामने थे. कम्मो की चूत काली थी और उसकी फांके काफ़ी बाहर को निकली हुई थी. बाबूजी ने कई सालों बाद ऐसी फांकों के दर्शन किए थे. उनसे रहा नही गया और वो बेड के किनारे पे बैठ गए. बाबूजी ने कम्मो की गांद को दोनो साइड से पकड़ लिया. उसे वैसे ही झुके रहने का निर्देश देके वो उसकी चूत और गांद के छेद को निहारने लगे.

बाबूजी ने अपनी लाइफ में 10 - 11 औरतों को चोदा था. हर औरत की चूत का रूप रंग अलग और उसमे से निकलती हुई गंध भी अलग ये सब सोच के बाबूजी को हमेशा उत्तेजना होती थी. आज उनके सामने एक और नई चूत थी जिसकी दरार में उन्हे अपना नया स्वर्ग ढूँढना था. बाबूजी ने आगे बढ़े हुए कम्मो के चूतर बीच से फैला दिए और उसकी चूत में अपना नाक लगा दिया. नाक को उपर से नीचे रगर्ते हुए वो कम्मो की महक को अपनी साँसों में बसाने लगे. वो महक जो शायद उनके मरने तक उनके साथ रहने वाली थी. माँग में वीर्य भरवाने का काम जो कम्मो ने किया था उसका बाबूजी पे बहुत गहरा असर हुआ था. उन्हे कम्मो से मन ही मन प्यार सा होने लगा था. सामाजिक तौर पे वो उसे अपनी पत्नी का दर्जा नही दे सकते थे पर शारीरक और बिस्तर में शायद वो उसे पत्नी का दर्जा दे रहे थे.

यही सोचते हुए उन्होने कम्मो की चूत में अपनी जीभ को पहली बार घुसाया. कम्मो की टांगे कांम्प उठी. उसने अपने चूचे ज़ोर से पकड़ लिए और भींच दिए. बाबूजी के नाम की आह उसके मूह से निकली और उसकी गदराई हुई गांद उनके मूह की तरफ होने लगी. कम्मो को अपनी चूत चटवाने का शौक था. पिछले मालिक की विधवा बहेन, उसकी साली और हरिया काका के बाद से किसी ने उसकी चूत को अच्छे से नही चॅटा था. उसके पति का चोदु दोस्त चूत बजाने में विश्वास रखता था ना की चाटने में. रमेश अभी कच्चा खिलाड़ी था. उसे अभी चूत चटाई में निपुणता नही थी. पर बाबूजी की बात अलग थी. छुदम चुदाई में सर्व गुण संपन्न बाबूजी की जीभ के लपलपाने से कम्मो की चूत के बाँध खुल गए. रस के धारे बहने लगे और उनके साथ साथ बाबूजी की जीभ की रफ़्तार बढ़ने लगी. बड़ी बड़ी फांकों को पूरा मूह में दबोच के कभी वो चूस लेते तो कभी उनपे हल्के हल्के दाँत गढ़ा देते. जीभ रस के धारों को जांघों के अंदर वाले हिस्से से नीचे से समेटते हुए उपर चूत तक ले आती जहाँ नए धाराए पुराने निकले हुए रस से मिलती और फिर जीभ और मूह में समा जाती.
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09-03-2018, 09:00 PM,
#30
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
बाबूजी की जीभ अपना कमाल कर रही थी तो साथ ही उनके हाथ भी कमाल दिखा रहे थे. कमरे में जहाँ चूत की भीनी भीनी खुश्बू, कम्मो का रह रह के कराहना और बाबूजी के चूत चुंबन की आवाज़ें थी वहीं साथ ही साथ कम्मो की मस्त गांद पे पड़ते थप्पड़ों की आवाज़ें भी गूँज रही थी. बाबूजी हर 3 - 4 सेकेंड में उसकी गांद पे एक थप्पड़ जड़ देते. थप्पड़ की गर्मी से कम्मो की गांद लाल होने लगी थी. दोनो चुतडो में खून उतर आया था और गर्मी बेहद बढ़ गई थी. कम्मो अब इतनी बेतहाशा हो चुकी थी कि उसने बाबूजी को गालियाँ देना शुरू कर दिया और साथ ही अपनी गांद गोल गोल घुमाते हुए उन्हे पेलने के लिए उकसाना शुरू कर दिया.

'' ओह्ह्ह मेरे चोदुउ सैयाँ डाल दे नाआ....क्यों तड़पाता है हराअमी....तेरी रांड़ हूँ अब से..कभी फिर चाट लीजो मेरी बुर को ..अभी तो मूसल दे कुत्ते.....कब से कुत्ति बनी इंतेज़ार कर रही हून्न्न चचोद्द्द्द्दद्ड नाआ सैयाअंन्न...ऊओह...माआअ...कोई इसको बताओ कि चूत में लंड ही अच्छा लगता है...डाअल हराअमी मार जाउन्गी नही तो.....''' कम्मो अब झरने को तैयार थी.

''' ले साली रांड़ ..चल अब दिखाता हू तुझे अपने लंड का जौहर..इधर आ कुत्ति ..अब कुत्ति से घोड़ी बन और ले अपना सवार...चढ़वा मेरे लंड को अपने उपर और निकाल अपनी गर्मी इस्पे..साली छिनाल पता नही कब से लंड की भूखी है...'' बाबूजी ने कम्मो को बिस्तर पे धक्का दिया और उसके चुतडो पे थप्पड़ मारते हुए उसे घुटनो और हाथों पे कर दिया. बाबूजी ने अब अपने पैर बिस्तर पे जमाए और अपने दोनो हाथ कम्मो की पीठ के रख के दबाव डालते हुए अपने लंड को उसकी चूत के मुहाने पे लगाया.

घुटनो को मोडते हुए बाबूजी अब आधे खड़े हुए थे और लंड चूत के मुहाने पे सटा हुआ था. बाबूजी ने थोड़े आगे बढ़ते हुए लंड को सेट किया और स्टॅक से एक गहरा शॉट लगाया. कम्मो की लिसलिसाती चूत में बाबूजी का 7 इंच का लंड एक शॉट में अंदर हो गया और उनके टटटे ठीक उसकी चूत के उपरी हिस्से से जा टकराए. कम्मो के मूह से एक जंगली बिल्ली के जैसी आवाज़ निकल गई और उसने अपना मूह छत की तरफ को कर दिया. बाबूजी ने बिना रुके 3 - 4 लंबे लंबे शॉट और लगा दिए. बाबूजी का लोडा भी लावा उगलने को तैयार था. कम्मो की कामुकता ने उन्हे दीवाना बना दिया था. पर बाबूजी को कम्मो के मूह से कुच्छ निकलवाना था.

'' ले मेरी रानी...ले अपने यार का लोडा...कैसा लगा मेरी जान..लिया है कभी ऐसा लंड अपनी चूत में ?? मेरी जान तेरी चूत को देख के लगता है कि तू लंड खोर है और इस गुफा में कई और लोगों ने रात बिताई है...पर क्या मेरा लोडा तुझे निहाल करता है?? बता मुझे..साली हराम की जनि....???'' बाबूजी अब शॉट पे शॉट लगाए जा रहे थे. उनके कठोर जिस्म में एक एक मसल टाइट हुई पड़ी थी. पोज़िशन पूरी तरह ठीक थी कि वो लंड चूत में पेले हुए कम्मो की पीठ पे सवार थे. कम्मो को उनका लंड अपनी चूत की गहराईयो में घुसता प्रतीत हो रहा था. आज तक उसपे कोई इस तरह से सवार नही हुआ था.

'' ब्ब्ब्बाआबब्बुउुउुज्जििीइ ऊऊऊऊहह माआअ.....मररर जाउन्गी आपके लंड पीए हिी....ऊओह हाआँ ...लंडखोर चूत को आज सबसे बढ़िया लोडा मिल गया...ऊओ मैं तो धन्य हो गई..बाबुऊउ...कल शाम को ही खाया था रमेश का लंड पर वो तो सिर्फ़ एक लौंडा है...जो मज़ा आपके इस चोदु लंड में है वो उसके 10 इंच के मूसल में भी नहियिइ.........चूओदुउऊ लंड्ड्ड...मेरे माअलिक...तेरे लंड को धो धो के पीउंगी रोज़ बस ऐसे ही पेला कर मुझे....रमेश क्या, मेरा पति क्या, उसका दोस्त क्या और हरिया काका ..तुम तो सबके बाप हो जाआंन्‍नणणन्.......ऊओह माआआ मैं तो आऐईयइ रजाअ....ऊओह ऊऊहह हाआंन्‍नणणन् चूओद्द्दद्ड...उउम्म्म्मम्मूऊओ''' कम्मो ने अपनी सारी पोल खोलते हुए बाबूजी के लंड पे झरना शुरू कर दिया.

बाबूजी ने सब बातें सुनते हुए अपनी गांद को गोल गोल घुमाया और लंड को जड़ तक जाने दिया और फिर गांद को घुमाते रहे. कम्मो की चूत की गर्मी और उसका रस उनपे नशा कर गया और उन्होने लंड को चूत में झटकना शुरू कर दिया. बाबूजी को खुद पे यकीन नही हो रहा था कि 15 मिनिट में ही दूसरी बार उनके लंड ने इतनी ज़बरदस्त पिचकारियाँ छोड़ी थी. सटाक सटाक की आवाज़ों के साथ उन्होने 10 - 15 धक्के और मारे और कम्मो का एक और मिनी ऑर्गॅज़म करवा के वो उसपे निढाल हो गए. कम्मो उनका बोझ सहेन नही कर पाई और पेट के बल बिस्तर पे गिर गई. उसकी दोनो बाहें उसके सिर के उपर की तरफ सीधी फैली हुई थी. अपने लंड को चूत में रखते हुए बाबूजी उसपे उपर लेटे हुए थे और उन्होने अपनी बाहे बढ़ा के कम्मो की उंगलिओ में अपनी उंगलियाँ फँसा दी.

''आज से तू मेरी हुई कम्मो..इस बिस्तर की रानी बन गई है तू..अब से जब मैं चाहूं और जैसे चाहूं तुझे इस्तेमाल करूँगा और तुझे सब अपनी मर्ज़ी का कर्वाउन्गा. अपने घर के बाहर अब तू सिर्फ़ इसी घर में चुदेगि और कहीं नही. समझ गई मेरी जान और हां अगर कभी बाहर चुदेगि तो मेरे हुकुम से...तुझे अपने लंड की रानी बना दूँगा और तेरे घर को भी खुशिओ से भर दूँगा.'' बाबूजी कम्मो की पीठ, कंधों और गर्दन पे किस करते हुए बोले.

'' बाबूजी आज से आपकी ही हूँ और सच में आपकी ही रहूंगी. कहोगे तो अपने पति से भी नही कर्वाउन्गि..पर तुम मुझे कभी मत छोड़ना बाबूजी ...तुमने मेरी माँग भरी है..दूसरी बार सुहागन हुई हूँ और वो भी तुम्हारे पवित्र रस से...अब जैसा तुम चाहो वैसा ही होगा बस तुम मेरी कामवासना पूरी करते रहना..फिर जब चाहे जिससे चाहे बोलोगे वैसे मज़े लूँगी और दूँगी....और हां मुझे पता है कि अब मैं कभी घर परिवार से दुखी नही रहूंगी...तुम्हारा दिल बड़ा है बाबूजी ...मैं जानती हूँ कि अपनी रखैल के लिए भी इसमे बहुत जगह होगी......''' कम्मो ये कहते हुए थोड़ी रुआंसी हो गई.
क्रमशः............................................
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