Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
09-03-2018, 09:16 PM,
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
कम्मो का मूह खुला का खुला रह गया और आँखें फटी की फटी. बाबूजी ने जो कहा उसका मतलब साफ था कि उन्हे रमेश के बारे में पता था. पर कैसे...... ???? कम्मो का दिमाग़ घूम गया और सोचने समझने की शक्ति जैसे ख़तम सी हो गई. बाबूजी उसके सब रिक्षन्स को नोटीस कर रहे थे.

''तुझे क्या लगा कि मैं तेरे बारे में खबर नही रखता हूँ......मुझे तब से शक हुआ जब से तूने राजू से सब करवाया. राजू मेरा बेटा है और मुझसे कोई बात नही छुपा सकता. बाकी सब भी नही. जब उसने बताया तभी मैं समझ गया था कि तुझे लौडे की आदत पड़ रही है. इसी लिए कई कई बार मौका होने पर भी मैने तुझे तृप्त नही किया. मुझे तेरे पति से पता चला कि रमेश की शादी में तूने बहुत मज़ाक मस्ती की. फिर उसने ये भी बताया कि रमेश बहुत शरीफ लड़का है और उसे अगर मैं कोई नौकरी दिलवा दूं तो उसके बाप पे एहसान हो जाएगा. और बात चीत से पता चला कि वो तुम लोगों के घर अक्सर आता है. उसी को मिलने आज दोपहर को मैं उसके घर गया था और उसकी कद काठी देखते ही समझ गया कि वो तेरे घर क्या करने जाता है. मैने ही उसे कहा कि अगले हफ्ते से वो हमारे यहाँ काम पे आ जाए और अगर चाहे तो अपनी लुगाई के साथ कुच्छ दिन ससुराल घूम आए. एक बार नौकरी पे लग गया तो उसको ससुराल जाने की भी फ़ुर्सत नही मिलेगी.......तो मेरी चोदु कुतिया.....ये जो तेरी जवानी का भोग उसने आज रात को लगाना था ....वो अब मैं लगाउंगा............समझी....'' और ये कहते हुए एक हैरान परेशान कम्मो को बाजुओं से पकड़ के उन्होने अपनी तरफ खींच लिया और उसकी पीठ पे अपने हाथ चलाने लगे.

कम्मो के कानो को यकीन नही हो रहा था. बाबूजी ने कितनी आसानी से उससे सब बातें निकलवा ली और उसके बिना बताए हुए भी सब कुच्छ समझ लिया. उसकी आँखों में आँसू आ गए. जैसे ही बाबूजी ने उसे बाहों में लिया वो उनके कंधे पे सिर रख के सूबक पड़ी. उसके मन से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया था. अब वो आज़ाद थी. बाबूजी उसकी पीठ पे हाथ सहला रहे थे तो एक हल्की हल्की आग बदन में लग रही थी. बाबूजी की गर्दन पे दोनो हाथ डाल के वो उनसे लिपट गई और अपने मोटे मम्मे उनकी छाती में चुभो दिए. बाबूजी ने उसके सिर पे प्यार से हाथ फेरा और उसके चेहरे को उपर की तरफ किया. फिर बाबूजी ने उसे एक बहुत ही प्यारा सा चुंबन दिया. 2 - 3 मिनिट तक दोनो पति पत्नी की तरह एक दूसरे के चुंबन में खोए रहे. फिर बाबूजी ने उसे पिछे हटाया और आगे बात कही.

''देख कम्मो तूने सब सच कहा तो मैं अब बहुत खुश हूँ...पर अभी हमारी एक समस्या है और वो है सरला..... सरला मुझपे डोरे डालती है पर सम्धन होने की वजह से अभी तक मैने कुच्छ नही किया है. जैसे तू भूखी है उससे कहीं ज़ियादा वो भूखी है. उसकी चूत शायद तेरे से कहीं जीयादा तरसी हुई है.....तू समझ रही है ना....आख़िर एक विधवा को अगर इतने समय तक अपनी बेटी के ससुराल में बँधे बँधे रहना पड़े तो उसका क्या हाल होगा.'' बाबूजी ने कहा.

''हां बाबूजी आप सही कह रहे हो.....मुझे कई बार लगता है कि वो तो इस घर के सभी मर्दों को अपने में लेना चाहती हैं...पर शायद रिश्ते की वजह से कुच्छ नही कर पाती.....'' कम्मो की आँखों में एक चमक थी.

''तो मेरी छिनाल बन्नो अब मेरी बात ध्यान से सुन. अभी सब जा रहे हैं......तू भी पिछे पिछे चली जाना. पर घर का दरवाज़ा खुला छोड़ना...... मुझे लगता है कि वो आज इस मौका का फ़ायदा उठाने की कोशिश करेगी. घर में कोई नही होगा तो शायद मुझपे डोरे डालेगी. पिच्छली बार उसने ऐसा करने की कोशिश की थी तो घर पे बहुओं के चलते बात रुक गई थी. पर अगर आज उसने कुच्छ किया तो मैं भी पिछे नही रहूँगा. तू यहीं दरवाज़े के नज़दीक बाहर छुप जाना. अगर उसकी और मेरी कोई बात आगे बढ़ी तो मैं उसे ड्रॉयिंग रूम में ले आउन्गा और तब तू ऐसे आना जैसे तू कुच्छ भूल गई. बस उसी समय मैं तुझे भी किसी बहाने से हमारे साथ शामिल कर लूँगा. फिर तो हमे आज़ादी मिल जाएगी सब करने की....'' कहते हुए बाबूजी ने कम्मो की कछि में हाथ डाल दिया.

''ओओओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह बाबूजी आप कितने समझदार हो........मुझे तो आप की बात सुन के ही बेसब्री हो रही है.....आप जैसा बोलो मैं वैसे करती हूँ ...और फिर आपको दो चूतो का रस मिलेगा और मुझे भी एक नई चूत मिलेगी.....हाअए वैसे भी कितने दिन हो गए........म्‍म्म्मममम बाबूजी....अभी कर दो ना.....'' कम्मो उनकी बाहों में कसमसा रही थी.

''नही अभी तू जा सबके जाने का समय हो गया है.'' बाबूजी ने ये कहते हुए उसे बाहर भेज दिया.

10 - मिनट में ही सब बहुएँ और बच्चे रेडी हो गए और राजू और संजय सबको 2 कार्स में बिठा के ले गए. सुजीत उनको रेस्टोरेंट पे ही मिलने वाला था. उनके जाते ही कम्मो झट से बाबूजी के पास आई और पहली बार बिना पुच्छे ज़बरदस्ती उनके लंड के चुप्पे लिए और फिर घर से बाहर चली गई. दरअसल उसने ये इसलिए किया था कि बाबूजी का खड़ा लंड देख के सरला पागल हो जाए. पर उसे क्या पता था कि इस सब की ज़रूरत नही थी.
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09-03-2018, 09:16 PM,
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कम्मो के कमरे से जाते ही बाबूजी ने सरला को एसएमएस किया की वो अपनी सेक्सी ड्रेस में ड्रॉयिंग रूम में आके बैठ जाए और कोई पेपर वागरह पड़ने का नाटक करे. चूँकि सरला को पूरी बातें नही पता थी तो वो एक नए रोमांच को महसूस कर रही थी. उसे बस एक बात का यकीन था कि बाबूजी का शानदार लोड्‍ा और उनका तेज़ दिमाग़ आज कोई करामात दिखाने वाले हैं. ये सब सोच के ही उसकी चूत पिघली हुई थी. और 2 - 3 मिनट में सरला मादक अंदाज़ से चलते हुए एक सेक्सी सी नीली साड़ी और बॅकलेस ब्लाउस में ड्रॉयिंग रूम में आ गई.



कुच्छ ही देर में बाबूजी भी एक बढ़िया सी शॉर्ट्स और टी शर्ट पहने बाहर आ गए. बाबूजी जैसे ही रूम में एंटर हुए उनकी आँखें सरला को देख के फटी की फटी रह गई. सरला इतनी खूबसूरत और सेक्सी लग रही थी कि पुछो नही. उपर से उसने बढ़िया सा मेकप किया हुआ था. बाबूजी का लंड शॉर्ट्स में हिचकोले लेने लगा. सरला ने हाइ हील्स के सॅंडल्ज़ भी पहने हुए थे. इससे पहले कि वो कुच्छ कहते सरला उनके रिक्षन को देख के मुस्कुरा पड़ी और खिलखिला के हंस दी. बाबूजी ने चोर निगाह से दरवाज़े की तरफ देखा तो कम्मो भी वहाँ खड़े खड़े अपने मूह पे हाथ रखे हुए थी. वो भी सरला को देख के एग्ज़ाइटेड हुई पड़ी थी. कम्मो का सिर्फ़ चेहरा नज़र आ रहा था. 

बाबूजी ने फटाफट से अपना दिमाग़ चलाया और आगे की भूमिका बाँधी. इससे पहले की सरला कुच्छ कहती उन्हे सब बातों को संभालना था. उन्हे उमीद नही थी कि कम्मो इतनी उतावली होके पहले ही आके खड़ी हो जाएगी.

''अर्रे वाह सम्धन जी आप तो बड़ा सज धज के तैयार बैठी हैं.....कहीं बाहर जाने का इरादा है क्या.........बच्चे तो चले गए...पर आपने कहा नही कि आप भी बाहर जाना चाहती हैं......नही तो मैं राजू को कह देता.....'' ये कहते हुए बाबूजी दूसरे सोफे पे आके बैठ गए और उन्होने सरला को आँख मारी. सरला उनकी पूरी बात समझ नही पाई पर उसे लगा की शायद बाबूजी उसके साथ बातों का खेल खेलना चाहते हैं....

''अर्रे नही समधी जी....वो तो मैं बस ऐसे ही तैयार हो गई......मैने बाहर नही जाना ........मुझे लगा कि क्यों ना आपकी वीरान ज़िंदगी में कुच्छ उजाला किया जाए....हे हे हे......आख़िर कार आप भी तो ........'' कहते हुए सरला रुक गई. अचानक से इस तरीके का खेल खेलने में उसे मज़ा आ रहा था.

''अच्छा सम्धन जी...आपको कैसे पता कि मेरी ज़िंदगी वीरान है और उसको उजाले की ज़रूरत है......भरा पूरा परिवार है....सब लोग हैं ...समाज में दोस्त यार सभी तो हैं......तो फिर आपको क्यों लगा ऐसा...???'' बाबूजी ने थोड़ी उँची आवाज़ में कहा जैसे कि वो कम्मो को सुना रहे हों. उनकी उँची आवाज़ से सरला समझ गई कि दाल में कुच्छ काला है. पर उसको तो गेम खेलना था.

''अरे समधी जी परिवार से ज़िंदगी में खुशी आती है पर बेडरूम में उजाला नही.....बिस्तर का उजाला तो एक पत्नी ही दे सकती है या फिर एक....प्रेमिका....समझ रहे है ना आप.......'' सरला ने भी थोड़े उँचे स्वर में जवाब दिया.

''ह्म्म्म्म ........तो फिर ये बताने का कष्ट कीजिए कि आप हमारे लिए ऐसे उजाला क्यों कर रही हैं.......??'' बाबूजी ने जानभूज के अंजान बनते हुए कहा..

''समधी जी आप या तो अनाड़ी हैं या बहुत चालाक..........'' सरला सीट से उठ के खड़ी हो गई और उनकी तरफ बढ़ गई.

''ना तो मैं अनाड़ी हूँ और ना ही चालाक.....मैं सॉफ बात करने में विश्वास रखता हूँ.......इतना तो समझ आ गया कि आप मेरे लिए तैयार हुई हैं....पर समधी सम्धन के रिश्ते के बीच पत्नी या प्रेमिका वाली बात तो जमती नही........'' बाबूजी ने सॉफ सॉफ कहा.

''तो फिर भूल जाइए कि मैं आपकी सम्धन हूँ......'' सरला ने एक मादक सा पोज़ बनाया. कम्मो को बाबूजी की बात का यकीन हो गया कि सरला वाकई में एक भूखी छिनाल है जो की बस मौके की तलाश में थी. अब उसको यकीन हो गया कि बाबूजी का लोड्‍ा जल्दी ही सरला और उसकी चूत को बारी बारी तृप्त करेगा. सरला की मादक अधेड़ उमर की जवानी को देख के कम्मो के मूह में पानी आ गया. सरला की चूत का स्वाद कैसा होगा ये सोच के ही उसकी जीभ लपलपाने लगी.

''पर आप ने ये तो बताया नही कि आपको क्यूँ लगा कि मेरी ज़िंदगी वीरान है.....क्या पता शायद मेरी भी कोई प्रेमिका हो....??'' बाबूजी ने मुस्कुराते हुए ज़ोर देके बात कही..

''अच्छा पूरा दिन तो घर में पड़े रहते हो.....तो कोई प्रेमिका कैसे होगी...??'' सरला ने भी अपना दाँव फेंका.

''इतनी समझदार हैं आप और उपर से इतना कुच्छ देखती भी हैं....फिर भी आज तक नही समझ पाई........घर में रहते हुए भी कई जुगाड़ किए जा सकते हैं....'' बाबूजी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया. उनका जवाब सुन के कम्मो का दिल धक्क से रह गया. बाबूजी तो उसकी पोल खोलने वाले थे.

''हां समझती हूँ.....सब समझती हूँ....पर जिसकी बात तुम कर रहे हो मेरे समधी जी.....वो तुम्हे रोज नही मिलती.......बहुत कम मिलती है....सो अब ज़्यादा नाटक ना करो और आज हमारे बीच के रिश्ते को भूल के यहीं इसी जगह मेरा भोग लगा लो.....फिर आगे पिछे तुम्हे दूसरी वाली भी दिलवा दूँगी....'' सरला समझने की कोशिश कर रही थी कि बाबूजी का गेम क्या है. ये सब कहते हुए वो ठीक उनकी बगल में आके बैठ गई और उनके चेहरे पे एक उंगली चलाने लगी.
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09-03-2018, 09:16 PM,
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बाबूजी ने भी पिछे झुक के बैठते हुए अपना लास्ट पैंतरा चला.

''जिसकी भी बात तुम कर रही हो मेरी सम्धन जी....उसको तुम सोच भी नही सकती.....और रही बात तुम्हारी मदद की तो उसकी तो ज़रूरत ही नही पड़ेगी कभी......पर तुम्हारा भोग तो मैं लगा सकता हूँ.....आज अभी यहीं.........जब तुम ही बिच्छने को तैयार हो तो मैं क्यों पिछे हटु......पर एक बात है कि अगर आज मैने भोग लगा दिया तो ये कोई पक्का नही कि आगे कब होगा...'' बाबूजी ने भी सरला के गालों को सहलाते हुए जवाब दिया.

''आज भी होगा और आयेज भी.....आज अगर तुमने कर दिया तो ऐसे पागल हो जाओगे जैसे की कोई कुत्ता कुत्ति की सूंघ लेके हो जाता है......हमेशा मौका ढुंढोगे मुझे पकड़ने का.....ये बात मेरी तरफ से पक्की है...'' सरला ने उनकी जुड़ी हुई उंगली को मूह में दबोच के उसपे जीभ चालनी शुरू कर दी.

''अच्छा अगर ऐसी बात है तो फिर तुम्हे उसकी मदद की ज़रूरत पड़ेगी जो मेरे बिस्तर को रोशन करती है......अगर वो मान गई तो एक साथ तुम दोनो को बिस्तर पे रोशनी करने का मौका आए दिन मिलता रहेगा.......'' बाबूजी उंगली चुस्वाते हुए बोले.

''अच्छा अब वो छिनाल कम्मो मेरी मदद करेगी तुम्हारा लोड्‍ा लेने के लए......उस साली की क्या औकात है.......कल की छोकरी है वो और मैं हूँ पड़ी लिखी खेली खिलाई चूत......मेरे सामने उसकी क्या बिसात....'' सरला अचानक से उत्तेजित हो गई और गुस्से में बोली.

''छिनाल तो वो है और तुम भी हो .......पर एक बात समझ लो कि मेरे बिस्तर मे रोज़ आने के लए तुम्हे उसे पटाना ही पड़ेगा. हर दोपहर को जब बहुएँ सोती है तो बस वही एक है जो घर में जागती है.......और वही है जो मौका देख के मेरे नीचे आती है......अब अगर तुम्हे नीचे आना है तो पहले उसकी चूत को पटाओ......फिर उसकी चूत भी बंद रहेगी और उसके होंठ भी और तुम अपनी मर्ज़ी से कुत्ति बन के इस कुत्ते को रोज लेना.....समझी मेरी बुध्हु सम्धन...'' बाबूजी ने नज़दीक जाके प्यार से पुच्कार्ते हुए सरला की नंगी पीठ पे चुंबन लेते हुए कहा.

''ऊऊऊहह.....उम्म्म्ममम......राजपाल.......उम्म्म्ममम क्या जादू है तुम में.....छोड़ो उस छिनाल को...अभी जो छिनाल तुम्हारे सामने है उसको देखो मेरे बलमा........ऊओह हान्ं...उउम्म्म्म....उउंम्म स्ल्लुउर्र्रप्प...उउंम...पुच...पुच...उउम्म्म्म...स्ल्लुउर्रप्प्प......'' पीठ पे चुंबन पाते ही सरला पागल होने लगी. तैयार होते हुए ही उसकी चूत गिलगिला गई थी और अब तो कमाल ही हो गया. उसने अपना मूह मोड़ के बाबूजी को किस करना शुरू कर दिया. थूक से भरे हुए होंठों से लिपस्टिक बाबूजी के होठों पे लग गई. कम्मो का ये सब देख के बुरा हाल हो रहा था. सरला की बातो से उसके बदन में आग लग गई थी. सरला उसे गालियाँ दे रही थी तो गुस्सा आ रहा था पर अब उसके इस मादक अंदाज़ को देख के कम्मो की चूत में चीटियाँ रेंग रही थी. उसने तुरंत अपनी कछि उतार दी और घाघरे को उठा के चूत में उंगली डालने लगी.

उधर बाबूजी का लंड शॉर्ट्स में से बाहर आ चुका था और सरला की मुट्ठी में था. सरला की साड़ी उपर से उतर चुकी थी और ब्लाउस भी खुला पड़ा था. उपर से अब वो पूरी नंगी थी और बाबूजी उसके चूचे चूसने में व्यस्त थे.बाबूजी की जीभ के नीचे वो बुरी तरह से कराह रही थी. उसकी मोनिंग बढ़ती जा रही थी. जब भी बाबूजी उसका निपल काटते तो सरला की गान्ड कसमसाने लगती और मुट्ठी टाइट हो जाती. बाबूजी ने अपनी पूरी एक्सपर्टीस दिखाते हुए उसके मम्मे दबाना और चूसना चालू रखा. फिर एक झटके में उन्होने अपना सिर पिछे किया और नशीली आँखों से सरला को देखा. सरला ने भी नशीली आँखों से उनको देखा और दोनो एक साथ झटके से एक दूसरे पे टूट पड़े. बाबूजी और सरला एक दूसरे के गाल, कान होंठ, माथा और चेहरे के बाकी हिस्से और गर्दन को बेतहाशा चूमने लगे. उनका वहशिपन देख के कम्मो दंग रह गई और उत्तेजना में खड़े खड़े ही झाड़ गई. अपनी चीखो को दबाने के लए उसने मूह में हाथ रख लिया और ज़ोर से अपने को ही काट खाया.

अब बाबूजी और सरला का वहशिपन अगली सीमा पे पहुँच गया और अपने सामने खड़ा करके एक के बाद एक बाबूजी ने सरला के बाकी कपड़े उतार दिए. बाबूजी के सामने पूरी नंगी खड़ी सरला ने बस हाइ हील्स के सॅंडल पहने हुए थे. जैसे ही वो नंगी हुई उसने एक बार अपने बालों में हाथ फेरा और फिर बाबूजी को बालों से पकड़ के खड़ा कर दिया. आनन फानन में बाबूजी भी नंगे हो गए और दोनो खड़े खड़े एक दूसरे को सहलाने और चूसने लगे. हाइ हील्स में सरला का कद बाबूजी के बराबर हो गया था और दोनो एक दूसरे की गान्ड मसलते हुए रस्पान कर रहे थे. दोनो के मूह से लार टपक रही थी. फिर बाबूजी ने उसके निपल पाकर के खींच दिए और सरला दर्द से करहा उठी. मादरचोद की गाली उसके मूह से अपने आप ही निकल आई और बाबूजी ने उसके बदले में उसको घुमा के खड़े खड़े ही उसकी गान्ड पे 3 - 4 थप्पड़ धर दिए. सरला इससे पहले कि और कुच्छ कहती बाबूजी ने उसे वही कार्पेट पे कुतिया बना दिया और खुद उसकी चूत के नीचे सिर लगा दिया. सरला समझा गई कि पहले उसकी चूत का रस बाबूजी के मूह में जाएगा और उसने भी गान्ड घुमाते हुए चूत की फांके दोनो हाथों से खोली और धम्म से बाबूजी के मूह पे बैठ गई.

बाबूजी की लप्लपाति जीभ सरला की चूत के फांकों पे फिर रही थी. चिकनी चूत में से मस्त खुश्बू आ रही थी. बाबूजी उसकी चूत की फांकों पे लंबे लंबे स्ट्रोक्स लगा रहे थे. बीच बीच में उसके चुम्मे भी ले रहे थे. सरला हल्के हल्के गान्ड घुमा रही थी. इसी बीच वो अपने चूतर पकड़ के फांके खोल देती और गान्ड की दरार में उंगली चला रही थी. उसकी गान्ड में भी खुजली मची हुई थी. इसलिए छेद में थूक से भरी उंगली भी कर रही थी. बाबूजी का लंड उसकी आँखों के सामने था पर उसको मूह में लेने का मन नही था. वो बाबूजी को थोड़ा तरसाना चाहती थी.



उधर सरला की आहें सुन के कम्मो का हाल बुरा हो गया था. सोफे की वजह से वो ज़मीन पे होती हुई चीज़ें तो देख नही पा रही थी. पर सरला का सिर और उसके उरोजे बीच बीच में दिख रहे थे. बाबूजी की कोई आवाज़ नही आ रही थी इसलिए उसे पता था कि सरला उनके मूह पे चढ़ि हुई है.

''चूऊऊऊसस्स्सस्स हराअमिीईई ऊऊऊऊऊऊमाआआ............''' सरला का एक मिनी ऑर्गॅज़म हुआ और उसका सिर ज़ोर ज़ोर से हिलने लगा. अब कम्मो की चूत ने आग बरस दी और उसने वहीं दरवाज़े के पास खड़े खड़े अपने कपड़े उतारे और दौड़ते हुए कमरे में नंगी दाखिल हुई. उसकी पैरों में बँधी पाजेब और चूड़ियों की खनक से बाबूजी को उसके आने का पता चल गया. उनका ध्यान सरला की चूत से बहते हुए रस से हट गया और दिमाग़ में एक ही बात आई कि कम्मो ने सब गड़बड़ कर दी. {आर उन्हे क्या पता था कि आगे क्या होने वाला है.

कम्मो ने जैसे ही दौड़ना शुरू किया और उसकी आवाज़ सरला के कानो में पड़ी उसने अपनी मस्ती और नशे से भारी आँखें खोल दी और दरवाज़े की तरफ देखा. गठे हुए बदन की कम्मो के मोटे मोटे झूलते हुए चूचे देख के सरला को राखी की याद आ गई और माल का किस्सा याद आ गया. उसने झट से अपनी बाहें खोल दी जैसे कि कोई लवर अपने पार्ट्नर को बुलाता है. कम्मो के चेहरे पे खुशी आ गई और वो दौड़ते हुए सरला की बाहों में आ गई. उसके ऐसा करने से सरला का बॅलेन्स बिगड़ गया और दोनो एक दूसरे के बदन को बाहों में पकड़े हुए कार्पेट पे गिर गए. सरला कम्मो के नीचे थी और दोनो के चूचे आपस में घिस रहे थे और गर्मी का आदान प्रदान कर रहे थे. कम्मो पे भी वही वहशी पन सवार था जो कि बाबूजी और सरला पे थोड़ी देर पहले था और उसने भी तबड तोड़ सरला को चूमना शुरू कर दिया.

सरला उसके इस हमले से जितनी सर्प्राइज़्ड हुई उससे कहीं ज़्यादा वो गरम हो गई. कुच्छ सेकेंड के लिए उसने अपनी बहन खोल दी और बाजू सिर के पिछे लगा दी. कम्मो को ज़ुबान और होठों को उसने अपना पूरा बदन समर्पित कर दिया. कम्मो उसकी नंगी बॉडी को देख के किसी जवान लड़के की तरह पागल हो गई और उसके चेहरे, गर्दन, कान, आर्म्पाइट्स, मम्मो, नाभि, पेट, चूत, थाइस और पैरों की उंगलिओ तक उसको चूमती चाट्ती रही. उधर इतना सब कुच्छ अचानक हो जाने से बाबूजी सोफे का सहारा लिए बैठे हुए खुले मूह से सब कुच्छ होता हुआ देख रहे थे. सरला की मोनिंग ने ज़बरदस्त रूप ले लिया था. सिसकारियाँ और गालियाँ दोनो एक साथ उसके मूह से निकाल रही थी. कम्मो भी चुंबनो के बीच बीच में गालियाँ दे रही थी.

''ऊऊहह हराम की जनि कहाँ थी इतने दिन तू....खा जा मुझे कुत्ति.....तेरी मस्त चूची का दाना डाल मेरी भोस में ...उउम्म्म्मम रगड़ उसको मेरी चूत के दाने पे......ऊओ माआ.......साअली हरामज़ादी काट मत....बहेन की लौडि उपर आ ...तेरे होंठ चूसने दे.....तेरा ये गाँव की छोरी सा चोदु बदन मुझे बाहों में लेने दे........उउउम्म्म्म कम्मूऊ....मेरी छिनाल बन ...और मुझे तेरी रांड़ बना....उउम्म्म्ममममम....तेरी चूत से चूत मिलाने दे........'' सरला अब तड़प रही थी.

''हां बीबी जी आज से तू मेरी रांड़ और मैं तेरी.....उउफफफफ्फ़ बीबीजी तेरी उमर को देख के सोचा भी नही था कि इतनी बढ़िया चूत होगी तेरी....इसे तो मैं रोज़ खाउन्गि.....उउम्म्म्मम कुत्ति की चूत है ...कितना रस छोड़ती है.....हाअए.....पच..पुच...पुच...उउम्म्म्मम.....स्लूउर्र्ररप्प्प....उूउउफफफ्फ़...इसको चाट के तो मेरे जोबन में भी आग लग गई...........उउउम्म्म्ममम....ले मेरे होंठ चूस मेरी हरामी मालकिन......और देख ले तेरे यार का लोड्‍ा कैसे हम दोनो को देख के टाइट हो रखा है....इसका भी कुच्छ कर दे...मेरी चूत में लगवा दे.....उउम्म्म्म मेरी प्यारी रंडी सहेली....दिलवा दे प्लीज़.........तेरी चूत को भिगो भिगो के पीउंगी......'' कम्मो चूत रस से भीगे होंठ लेके वापिस सरला के उपर आ गई और उसको चुंबन देने के लिए अपना मूह खोल दिया.
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09-03-2018, 09:16 PM,
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सरला ने उसके सिर को पकड़ के कस के अपने और उसके होंठ मिला दिए और दोनो फ्रैंच किस करने लगी. हल्क हल्के दोनो एक दूसरे के होंठों को काट रही थी. दोनो के कड़क निपल एक दूसरे की छाती में धँस रहे थे और चूत से चूत के उपर के हिस्से का मिलन हुआ पड़ा था. जहाँ सरला की चूत बिल्कुल चिकनी थी वहीं उसके उपर पड़ी हल्की झान्टो से भरी कम्मो की चूत बहुत हसीन लग रही थी. किस करते करते सरला इतनी गरम हो गई कि उसने पलटी मारी और कम्मो को कार्पेट पे लिटा दिया. फिर उसने भी वही किया जो कम्मो ने उसके साथ किया था. कम्मो के निपल चूस्ते हुए उसके बाकी बदन से खेलते हुए उसने कम्मो की चूत में उंगलियाँ डाली और निकाल के चूसने लगी. कम्मो का चूतरस भी बहुत स्वादिष्ट था और फिर से एक बार सरला उसके उपर लेट के उसको चुंबन देने लगी. कम्मो ने अपनी मजबूत बाहों में उसे कस के पकड़ लिया और उसके होठों को ज़बरदस्त तरीके से काटने लगी.

''उम्म्म्ममम साली होंठ खा जाएगी तो तेरी चूत को क्या मिलेगा.........उउफफफ्फ़ चूचे मत मरोड़ ऐसे हरम्जादि.....उउउइंाआआ..............तेरी मोटी उंगलियाँ चूत मे इतनी भली लगती हैं.......'' सरला उसके उपर पड़े पड़े कसमसा रही थी.

बाबूजी का हाल बुरा हुआ पड़ा था. 5 मिनट में ही इतना कुच्छ हो गया. कहाँ उन्हे लगा कि कम्मो की एंट्री से सब गड़बड़ हो जाएगी पर यहाँ तो सब उल्टा ही चल रहा था. दोनो रंडिया कैसे एक दूसरे से भिड़ी पड़ी थी जैसे कि कोई बरसों के बाद अपने यार से मिलता है. उनकी बहती हुई चूतो में बारी बारी लंड डालने को उनका मन व्याकुल हुआ पड़ा था पर वो दोनो तो एक दूसरे को छोड़ने का नाम ही नही ले रही थी.

बाबूजी सोफे से पीठ लगाए दोनो को देख रहे थे. उनका लंड लगातार तने रहने से दुखने लगता. इतने मे सरला कम्मो के उपर हो गई ओर उसे चूमने चाटने लगी. दोनो रंडियों की तरह एक दूसरे की जीभ चाटने में मगन थी.

बाबूजी ने आगे बाद के दोनोकी चूत में अपनी जुड़ी हुई उंगलियाँ डालनी शुरू कर दी. पहले तो दोनो ने कुच्छ नही कहा. पर कुच्छ देर बाद सरला ने बाबूजी का हाथ झटक दिया.

''साअले बेहेन्चोद....हट...आज ये माल मेरा है....क्यों कम्मो मेरे होते हुए आज तुझे इसके लौडे की ज़रूरत है क्या ??? बोल रांड़.....मेरी चूत ....मेरे चूचे और मेरी गान्ड के होते हुए क्या तुझे इसके लौडे की ज़रूरत है ?? बोल मेरी कामुक रंडी...आज बस तू और मैं. इसको लोड्‍ा हिलाने दे.....साला हरामी हमेशा चूत गान्ड के छेद देखता फिरता है..आज मूठ मार भोसड़ी के......उम्म्म्मम...कम्मो तेरी ज़ुबान कितनी नमकीन है री....उफ़फ्फ़ तेरे चूचे भी....उम्म्म्मसलुर्र्रप्प्प्प.......'' सरला बुरी तरीके से कम्मो के चूचे मसल रही थी औरुस्की जीभ चाट रही. फिर उसके चूचे चूस्ते हुए वो उसकी चूत में उंगली करने लगी.

''ऊऊऊहह.......सरलाजी......आज तो बस चूत चूत खेलूँगी....आज लौडे की क्या ज़रूरत ....माफकरना बाबूजी पर आज आपको मेरी चूत नही मिलेगी. आज सिर्फ़ सरला जी और मैं और हमारी रस भरी चूते.......उउम्म्म्ममम.......बहेन की लौडि बहुत बढ़िया चूस्ति है तू......ऊऊऊओ आअरर्ग्घह माफ़ करना सरला जी..आपकी जीभ और उंगलिओ ने जादू कर दिया है इसलिए मूह से गालियाँ भी निकल गई.......उम्म्म्म.....उफफफफफफांणन्न्...चूस ले मुझे...येस्स्स्स्स.....ऊऊऊहह...'' कम्मो अब तेज तेज हाँफने लगी थी. उसके चूचे और बदन एग्ज़ाइट्मेंट से काँप रहे थे.

''हाआँ मेरी कुत्ति ये मेरी उमर का एक्सपीरियेन्स है मेरी जान....आज तेरी ऐसी हालत करूँगी की तू रोज मेरे से मज़े करेगी. इसको भूल जाएगी....क्यों मेरे ठर्कि समधी....2 - 2 रॅंडियो के होते हुए भी तुझे लंड हाथ से हिलना पड़ रहा है...कैसा लग रहा है.....अब देख मैं इस छिनाल की कैसे चूत चाट्ती हूँ और कैसे इससे चूतचुस्वाति हूँ....है ना मेरी रानी मेरी चूत चुसेगी ना....और गाली दे दे मुझे .....कोई फरक नही पड़ता........तेरे मूह से गाली सुन के मेरी चूत और लिसलिसि गई है. चल अब इसे चूसने को रेडी हो जा.....आजा.......69 करेंगे''सरला अब कुत्ति बन गई और गान्ड हिला हिला के कम्मो को अपने नीचे लेटने का इशारा करने लगी.

कम्मो ने आगे बाद के पहले तो सरला के चूचे नीचे से पकड़े और उन्हे मसल्ने लगी.

''मादरचोद...इस उमर में भी तेरे थन कितने मस्त हैं....कितने नरम और भरे भरे....पहले नंगी देख लेती तो अब तक तो इनको एक साइज़ बड़ा कर देती दबा दबा के. उम्म्म्मम गांदभी मस्त है तेरी......साली...एक बात बोलूं......तेरी गान्ड चाटने का मान कर रहा है.....उम्म्म्मम.......थोड़ा चाट लूँ ??'' कम्मो सरला के भूरे छेदो मे उंगली करने की कोशिश कर रही थी.

''हां कर ना ....बहेन की लौडि...देर ना कर ...जीभ लगा हराम जादि....उफफफफ्फ़....येस्स्स्स....ऐसी हिकर....ऊऊहहमाआअ.....थोड़ा जीभ अच्छे से डाल जान.......उम्म्म्मम....''सरला की गान्ड थिरक रही थी. कम्मो की जीभ का जादू उसकी गान्ड के छेद पे चल रहा था.

गान्ड चटवाते हुए सरलाने जान भूज के बाबूजी की जाँघ पे हाथ फेरना शुरू कर दिया. अब तक बाबू जी मारने में व्यस्त हो चुके थे. उन्हे यकीन हो गया था कि ये दोनो औरतें लौडे को आराम नही देगी और उन्हे आज कई साल बाद अपने हाथों से गुज़ारा पडेगा. इस समय उन्हे अपनी बहुओं की बहुत याद आ रही थी. उनकी आँखों के सामने दोनो मस्ती में एक दूसरे की चूत चाटने को रेडी हो गई थी. नीचे कम्मो लेटी हुई थी और उपर सरला कुत्ति बनी पड़ी थी. बाबूजी लंड हिलाते हुए अपनी किस्मेत को कोस रहे थे. किस घड़ी में ये प्लान बनाया. बहुओं के आने तक उन्हे चूत से वंचित रहना पड़ेगा. सामने खाना पड़ा हुआ था, भूख भी लगी हुई थी पर खाना खाने को नही मिल रहा था.......ऐसी सी सिचुयेशन बाबूजी के साथ पहली बार हुई थी.

''आअररर्रघह बीबीजी अच्छे से कुरेद के चाटो मुझे.........हां बीबीजी कई दिन हो गए चूत चटवाए....बाबूजी तो इसको बस लौडे के लिए इस्तेमाल करते हैं....तुम इसकी जीभ से पूजा कर दो......हाआआए........तुम्हारी चूत तो बहुत पानी वाली है बीबीजी......उम्म्म्मम...स्लुउउर्र्रप...मज़ा आ गया........'' कम्मो मस्ती में थी. उसे दीन दुनिया का कोई होश नही था.

बाबूजी ने दोनो को मस्ती लेते हुए देखा आज पहली बार सेक्स के मामले में हू अपने को इतना आशाए फील कर रहे थे. आज उन्हे एहसास हो रहा था कि अगर औरत अपने रांड़पन पे उतर आए तो क्या क्या कर सकती है. मूठ मारने की कोशिश अभी भी जारी थी पर चूत का सच को चूत ही दे सकती है. गीली लिसलिसाती चूत जब गरम लौडे को अपनी आगोश में लेती है तो वो फीलिंग वो मज़ा कुच्छ और ही होता है. बाबूजी ने हिम्मत करते हुए अपनी जुड़ी हुई उंगलियाँ कम्मो की चूत की तरफ बढ़ाई. कम्मो की वो चूत जिसपे कल तक उनके लौडे का हक था आई हुई चूत सरला की जीभ के हमलो से पनियाई पड़ी थी. नदी के धारे की तरह बहती हुई चूत की महक बार बार सरला को पागल कर रही थी. चूत से मूह सटाये वो कभी जीभ से उसे कुरेद देती कभी चूस लेती तो कभी चाटने लगती. सरला की हालत एक पागल कुत्ते के जैसी थी जिसको कि बहुत दिन बाद बोटी मिली हो. ऐसे में बाबूजी की उंगलियाँ उसकी ज़ुबान से टकराई तो वो खुंदक में आ गई और उसने उन्हे ज़ोर से काट खाया.

बाबूजी दर्द के मारे तिलमिला उठे और गुस्से में आ गए. उनके मूह से सरला के लिए मा बहेन की गालियाँ निकल आई. पर सरला और कम्मो पे इस सब का कोई असर नही हुआ और दोनो चूत चूसने में मगन रही. बाबूजी खुंदक में उठे और वहाँ से अपने कमरे की ओर चल दिए. 4 - 5 कदम ही चले थे कि पिछे से सरला की आवाज़ आई.

''अबे भडवे कहाँ चल दिया.....क्या हुआ चूत चूत का खेल पसंद नही आया क्या...?? अबे देख के जा कि एक औरत दूसरी औरत को कितना मज़ा दे सकती है. साले हरामी चूत नही मिली तो छोटे बच्चे की तरह रोता क्यों है.....आजा इधर आके खड़ा हो जा....चूत चाटते हुए फ़ुर्सत मिली तो तेरी लुल्ली को भी सहला दूँगी...इधर आ और यहाँ हमें देख के मूठ मार ले.....चूत तो आज तेरे नसीब में है नही.....देख के गुज़ारा कर......अगर मुझे तरस आया तो तेरी लुल्ली चूस दूँगी....आजा आजा मेरे चूतिए समधी........चल आ इधर...'' सरला तेज़ी से कम्मो की चूत में उंगली के घस्से मारते हुए बोली. उसकी आवाज़ में कदकपन के साथ तीखापन भी था. उसको बाबूजी की बेइज़्ज़ती करने में मज़ा आ रहा था.
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09-03-2018, 09:16 PM,
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
बाबूजी उसकी बातों से जितना अंदर से तिलमिला रहे थे वही दोनो रॅंडियो की हरकतें देख के उनके लौडे में खून उबल रहा था. उनसे रहा नही गया और एक बार फिर उनके कदम वापिस हो लिए. सरला के झुके हुए सिर के सामने खड़े खड़े उन्होने लंड के टोपे को मसला और ज़ोर से दबाया. सरला ने सिर उपर करके उनकी तरफ देखा और ज़ोर से हँसी.

''चल रे चूतिये मूठ मार और दिखा तेरे लौडे में कितना ज़ोर है......तेरे मूठ की धार मेरी गान्ड तक पहुँची तो इनाम में तुझे दूसरे राउंड में कम्मो की चूत दूँगी. देखती हूँ तेरे मूठ की धार कम्मो मेरे चूतड़ो से चाट पाती है कि नही. चल बहेन के लौडे मूठ मारनी शुरू कर.'' सरला ने एक बार फिर से अपनी तीखी ज़ुबान का प्रदर्शन किया और झुक के मूह कम्मो की चूत से सटा दिया.

''बाबूजीइइईईईईईईईई.........खबरदार.....आपको कसम है मेरी......और मेरी चूत की ......खबरदार जो आपने लंड को हिलाने की कोशिश की........मेरे होते हुए अगर ऐसा हुआ तो लानत है मेरी जवानी पे और आपकी बहू होने पे.......मा तुम कितनी भी बड़ी छिनाल हो जाओ पर मेरे बाबूजी से चूत का सुख कभी नही छीन सकती.......तुम नही दोगि या ये कुतिया नही देगी तो क्या मेरे बाबूजी बिना चूत के रहेंगे.......तुम्हारी जैसी हज़ारों चूते मिल जाएँगी इन्हे.......पर इनके सरीखा लोड्‍ा किसी किसी को मिलता है........बाबूजी आप चिंता ना करो मैं आ गई.....''सखी की तीखी चीख और आवाज़ ने तीनो के होश उड़ा दिए. कम्मो का मूह जो कि सरला की चूत से जुड़ा हुआ था अब खुला का खुला रह गया. उसके मूह होंठ और गले में सरला का इतना रस गया था पर फिर भी उसका गला सूख गया. सरला सिर उठाए फटी आँखों से सखी को साड़ी उतारते हुए और अपनी तरफ बढ़ते हुए देख रही थी. बाबूजी का हाथ अपने लौडे पे जम गया था और उनका भी मूह खुला पड़ा था.

कम्मो की फटी हुई आँखों के सामने सखी अपनी साड़ी उतारते हुए उनके नज़दीक पहुँच चुकी थी. उसने अपना ब्लाउस खोलने की कोशिश की और जब हुक नही खुले तो उसने ज़ोर लगा के हुक तोड़ दिए. फ्रंट ओपनिंग ब्रा का हुक भी खींच के तोड़ दिया और उसी हालत में उसने अपना पेटिकोट उतार फेंका. ऐसा लग रहा था जैसे कि कोई भूखी शेरनी अपने शिकार पे टूटने वाली है. पैंटी तो उसने पहनी ही नही थी और खुले हुए ब्लाउस और ब्रा के साथ वो तेज़ी से बाबूजी के नज़दीक पहुँची और उनके गले में बाहें डाल के उन्हे चूमने लगी. बाबूजी जो अब तक हैरान थे उन्होने खुशी से उसको चूमते हुए अपनी बाहों में उठा लिया और ससुर बहू खड़े खड़े एक दूसरे से लिपट गए. जैसे ही सखी की चूचियाँ बाबूजी की छाती से रगड़ी उसके निपल्स में तनाव आ गया और उसने अपनी एक टाँग बाबूजी की कमर की तरफ उठा दी. बाबूजी इशारा समझ गए और उसकी दोनो टाँगों को पकड़ के खड़े खड़े उन्होने गोद में उठा लिया. बाबूजी की गोद में चढ़ते ही सखी ने अपनी चूत को अड्जस्ट किया और सट से उनके लौडे पे बैठ गई और अपनी दोनो टांगे उनकी कमर के पिछे टाइट कर दी. 5 सेकेंड में ही नंगी बहू खड़े खड़े अपने ससुर के लौडे पे चढ़ के चुदने को तैयार हो गई. दोनो के ताबड तोड़ चुम्मों के बीच सखी ने गान्ड हिला के उछल्ना शुरू किया तो बाबूजी के मजबूत हाथों ने उसके चूतड़ो को थाम लिया.

''ओओओओओओओह्ह्ह्ह्ह्ह मेरी प्यारी बहू........उम्म्म्म तू कहाँ थी.....तेरी कितनी कमी महसूस हो रही थी..........ऊऊहह हाआँ तेरी छिनाल मा कुच्छ भी कर ले पर तू मेरी लाडली है मेरा ख़याल रखने के लिए........उउम्म्म्म....पुच पुच पुच पुच......उउम्म्म्मम....'' बाबूजी उसे बेतहाशा चूमे जा रहे थे और सखी भी पागल हुई पड़ी थी.

'' बाबूजी आप चिंता ना करो ......सिर्फ़ सखी ही नही हम भी हैं आपके लिए....और अभी इस छिनाल आंटी जी को बताते हैं की चूत चूत और लंड चूत के खेल में क्या फरक है. भैया आप सब बच्चों को सुला के आओ तब तक हम इन दोनो को देख लें. '' राखी ने राजू को अंबोधित करते हुए कहा और अपने कपड़े उतारने लगी. उसको देखते हुए मिन्नी ने भी नंगी होना शुरू कर दिया. उधर बाबूजी के लंड पे कूदती सखी की आहें उसकी मा के कानो में गूंजने लगी. सरला उसको देख के वापिस कम्मो की चूत चूसने में लग गई. पर कम्मो को तो ये चुद्दक्कर परिवार का रूप देख के जैसे साँप ही सूंघ गया था. उसके हाथ पावं, जीभ वागरह सब चलने बंद हो गए थे. वो कभी सखी को देखने की कोशिश कर रही थी तो कभी मिन्नी और राखी को नंगी होते हुए देख रही थी. राखी पहले नंगी हुई और उसने अपने मम्मो को ज़ोर ज़ोर से सहलाया और उपर करके बारी बारी अपने निपल चूसे. उसके बाद वो धाम्म से कम्मो के मूह पे बैठ गई और अपनी चूत उसके मूह पे रगड़ने लगी. कुच्छ ही देर में उसकी 3 उंगलियाँ सरला की चूत में अंदर बाहर होने लगी. इतने में मिन्नी ने कम्मो की टाँगों के बीच अपनी जगह बनाई और उसकी चूत से अपनी चूत को सटा दिया. दोनो की टांगे सिसर्स की तरह थी और चूतो के होंठ आपस में रगड़ने लगे. तब आगे बढ़ के मिन्नी ने सरला के बालों को पकड़ा और झटके से उसके होंठ दोनो चूतो के मिलन द्वार पे लगा दिए.

बच्चों को सुलाने के बाद जब तीनो भाई कमरे में पहुँचे तो नज़ारा देखते ही बनता था. सोफा पे बाबूजी सखी की टाँगों के बीच घुसे हुए उसके माममे दबोच के घस्से पे घस्सा मारे जा रहे थे. सखी का सिर इधर से उधर घूम रहा था और उसके मूह से बाबूजी के लिए प्यार भरी ऊओह आह और सिसकारियाँ निकल रही थी. सखी की टांगे जिस तरीके से खुली हुई थी उस तरीके से बाबूजी का लंड उसकी चूत से अंदर बाहर होता हुआ सॉफ दिख रहा था. अचानक से संजय को अपनी बीवी को अपने मूह बोले बाप से चुद्ते हुए देखते हुए इतनी थरक चढ़ि कि उससे रहा नही गया और वहीं खड़े खड़े उसने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए. कुच्छ ही सेकेंड में वो नंगा हो गया और अपना 11 इंच का लोड्‍ा लिए सोफा की तरफ बढ़ गया. सखी ने उसे आते हुए देखा तो बाबूजी का हाथ जिसमे जुड़ी हुई उंगलियाँ थी उसे पकड़ के अपने मूह की तरफ खींचा और जुड़ी हुई उंगली को चूसने लगी. जब तक संजय अपने विशाल लंड को मसल्ते हुए अपनी बीवी के नज़दीक पहुँचा तब तक सखी ने बाबूजी की उंगलिओ को अच्छे से थूक से गीला कर दिया था. 
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09-03-2018, 09:17 PM,
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''बाबूजी ये उंगलियाँ मेरे दूसरे छेद में डालो......प्लीज़....आज थोड़ी देर के लिए तीनो छेद भरवाने का मन कर रहा है........उम्म्म्मम...'' सखी ने सेक्सी चेहरा बनाते हुए बाबूजी को कुच्छ पल के लए रोका और कहा.

''जैसा तू कहे मेरी बहूरानी.......तेरे लिए जल्दी ही नए लोड़ों का इंतज़ाम करवाउंगा. फिर तेरे तीनो छेद नए नए लंड से भरवा दूँगा. तूने तो सिर्फ़ एक माँगा था मैं तुझे कई लाके दूँगा....तब तक मेरी जुड़ी हुई उंगलिओ से अपनी गान्ड खुल्वाति रह.....आआआअहह कितनी नरम है .....'' बाबूजी ने सखी की गान्ड में अपनी गीली जुड़ी हुई उंगलियाँ धीरे धीरे घुसेड दी. जब तक वो ये कर रहे थे तब तक संजय अपनी बीवी के मूह में अपना सूपड़ा ठूंस चुका था और बगल में कार्पेट का नज़ारा देखने में मगन था.

अभी भी कपड़े पहने हुए राजू और सुजीत कार्पेट का नज़ारा देखने में मगन थे. राखी बहुत बुरी तरीके से सरला की चूत में उंगली पेल रही थी और अपनी गान्ड मटका के कम्मो से अपनी चूत चटवा रही थी. उधर कम्मो और मिन्नी की चूत के मिलन द्वार पर सरला वहशियों की तरह अपनी जीभ चला रही थी. अपनी चूत में राखी की उंगलिओ का घर्षण और मूह के सामने चूत रस से महकती हुई 2 - 2 चूतो का स्वाद सरला के लिए बहुत ज़ियादा साबित हो रहा था. कम्मो की हालत भी कुच्छ कम नही थी. उसकी चूत से इतना कामरस पहली बार निकला था. उसकी सिसकिओं की आवाज़ें राखी की चूत में गूँज रही थी. कम्मो के चूतर रह रह के उपर को उठ रहे थे. सरला की जीभ का स्पर्श उसे जब भी मिलता तो उसे लगता कि वो छोड़ने वाली है. फिर अचानक से उसकी चूत सूनी पड़ जाती थी. जब सरला मिन्नी की चूत चाटने लगती तो कम्मो की चूत कुच्छ शांत होने लगती. ऐसा लग रहा था जैसे कि कितना टाइम बीत गया ये सब करते हुए. पर असल में सब कुच्छ 15 मिनट के भीतर भीतर हो गया था.

''भाभी आप और राखी चुदास आंटी के साथ चूत चूत खेलो तब तक हम दोनो कम्मो को लंड चूत खिलवा लेते हैं. वैसे भी इसकी चूत मारने का बहुत मन था इतने दिन से. अब जब आज ये रांड़ खुद ही नंगी हुई पड़ी है तो मौका देख के इसको अपने लौडे पे कूदवा लूँ थोड़ा.....मिन्नी अपनी चूत इसके मूह से हटाओ और इसे हमारे हवाले कर दो.....'' संजय ने पहले मिन्नी और फिर राखी को संबोधित करते हुए कहा.

''ले जाओ देवेर्जी मैने कब रोका है....इसकी चूत को अपने 9 इंच मूसल के मज़े दो और अच्छे से चोदो. और हां थोड़ा मौका मेरे मा जी को भी दे देना...वैसे भी बहुत दिन बाद इन्हे कम्मो का काम रस मिलेगा. चलो आंटी अब मैं और राखी मिल के आपकी चूत चूत की काम वासना को शांत करते हैं.'' मिन्नी नीचे से उठते हुए बोली.

''राखी उंगली मत निकालना बेटा ....मैं बस . वाली हूँ.....जाने से पहले थोड़ा चूत रस पीला दे री कम्मो......उउउम्म्म्मम पुच पुच....स्लुउउर्र्रप्प्प्प......'' सरला अपने मूह से मिन्नी की चूत के हटते ही कम्मो की चूत पे टूट पड़ी.

''पी लो सब में साब......पता नही ये चोदु भैया लोग कहाँ से आ गए...आज तो आपके साथ चूत . खेलने का ही मन था......आआअररर्ग्घह.....उम्म्म्म और राखी दीदी की चूत से जो मज़ा मिला है वो भी जन्न्नत से कॅम नही था.....ऊऊहह अब मेरी निगोडी चूत को लौडे खाने ............'' कम्मो नीचे से सिसकते हुए बोली.

'' बाबूजी ......आप भी जाओ......और इन्हे भी लेके जाओ ...मुझे थोड़ी देर के लिए छोड़ दो ...आज इस छिनाल कम्मो को एक साथ 4 लंड दे दो.......उउंम्म मेरा मन नही है आपका लोड्‍ा बाहर करवाने का पर आज इस छिनाल को सबक सिखाना ज़रूरी है..... भाभी आप दोनो मेरी चुदास मम्मी को यहाँ सोफा पे ले आओ और कम्मो को हमारे घर के भेडियोन के लिए छोड़ दो....साले सब नोचेंगे इसे आज तो पता चलेगा कुत्ति को.'' सखी अचानक से हुकुम चलाने के मूड में आ गई. उसकी बातें सुनते ही कम्मो की तो जान ही निकल गई. एक साथ 4 मर्द उसका भोग करेंगे सोच के उसके जिस्म में जैसे खून ही नही रहा.

'' नही छ्होटी दीदी ऐसा नही करो....मुझे घर जाना है...घर पे सब बच्चे अकेले हैं...उन्हे कौन देखेगा...आज जाने दो...फिर कभी कर लूँगी सबके साथ...'' कम्मो अब खड़ी हो चुकी थी और पूरी तरह से घबराई हुई थी. सरला की चूत में उंगलियाँ फँसाए हुए राखी उसे सोफा पे ले गई थी और नंगी सरला अपनी नंगी बेटी के बगल में लेटी हुई टांगे खोल के चूत में उंगली करवा रही थी. मिन्नी जो कि अभी भी कम्मो के नज़दीक खड़ी थी उसने आगे बढ़ के कम्मो के दोनो निपल कटोच दिए.

''चुप कर हराम की जनि....चुप चाप मेरे बाबूजी का और बाकी मर्दों के लोड़ों को शांत कर और घर चली जाना....अगर नही तो एक काम कर..मुन्नी को फोन लगा और बोल कि तेरे बच्चों को घर ले जाए... कहना कि आंटी की तबीयत ठीक नही है और तुझे आज उनकी देखभाल के लिए यहीं रुकना है...वैसे भी तू यही करना चाहती थी ना....हे हे हे...हे...'' मिन्नी ने दोनो मोटे मोटे मम्मो को अपनी हथेलिओं में भींच लिया और फिर बारी बारी से दोनो निपल भी चूस लिए.

'' मत कर बेचारिके साथ ऐसे....उसका क्या कसूर है जो 4 लोड्‍े दोगि उसे.....मैने ही उसकी चूत पे हाथ फेरा था पहले.....छोड़ दो उउउन्न्नज्ग्घ बेच्छाआअरर्रीि को...उूउउऊहह रखिईीईईई.........दाना मत छेड़ ऐसे.....'' सरला ने कम्मो की साइड लेते हुए कहा और मज़े लेते हुए सिसकियाँ भरते हुए आँखें बंद कर ली.

''मा तुम बीच में मत पाडो नही तो इन चारों को तुमपे छोड़ दूँगी. तुम बस भाभी से चूत . और मिन्नी भाभी की चूत चॅटो तब तक मैं इस रंडी का इंतज़ाम करके आती हूँ.'' सखी अपनी जगह से खड़ी हो गई. थोड़ा मुस्कुराते हुए वो कम्मो के पास पहुँची. उसके नज़दीक पहुँच के उसने कम्मो के मम्मे पकड़े और बारी बारी उन्हे चूस लिया. कम्मो एक बार फिर से उत्तेजित होने लगी. उसने सखी के सिर के पिछे हाथ रख दिया और उसकी चुसाइ का मज़ा लेने लगी. 

''कम्मो तेरे चूचे तो बहुत बड़े हैं. कितने मज़ेदार हैं...शायद तभी मम्मी को तेरे से प्यार करने का इतना मन कर रहा था. और तेरी चूत भी काफ़ी प्यारी है. इसमे मेरे जेठ का लोड्‍ा जाएगा तो अच्छा लगेगा. बता पहले किसका लेगी. सुजीत भैया ने अभी तक तेरी चूत नही भोगी है तो पहले उन्हे दे दे. फिर इनको देना. बाबूजी आज आप कम्मो की गान्ड का उधघाटन करो. '' ये सब कहते हुए एक बार फिर से सखी ने अपने दाँत हल्के से कम्मो के चूचों में दबा दिए.

''उफ़फ्फ़ छोटी दीदी क्या चूस्ति हो आप.......उम्म्म....मुझे मज़ा आ गया. हां मेरे को सबके लौडे दिलवा दो. आज रात यहीं रंडी खेल खेलने दो. पर पहले मुन्नी को फोन करवा दो. मेरे बच्चे अकेले हैं.'' कम्मो ने कराहते हुए कहा.
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09-03-2018, 09:17 PM,
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कम्मो की चूत से जितना रस बह रहा था उस हिसाब से मोटे से मोटा लंड भी बहुत आसानी से अंदर चला जाता. पर सुजीत का 9 इंच का मोटा हथियार आज इतना फूला हुआ था कि 4 इंच अंदर घुसते ही कम्मो की चीखें निकलनी शुरू हो गई. दर्द के एहसास के बावजूद वो इतनी उत्तेजित थी कि उसने अपने चूतरो का ज़ोर लगाते हुए नीचे बैठना जारी रखा. उसके चेहरे के भाव सॉफ बता रहे थे कि उसे कितना दर्द हो रहा है. और शायद इसी वजह से सखी को उसपे तरस आ गया और उसने कम्मो के झूलते हुए मम्मो को पकड़ के सुजीत के मूह से लगा दिया. कुच्छ देर के लिए कम्मो के शरीर से जैसे जान ही निकल गई. फिर धीरे धीरे सुजीत की जीभ से उसके निपल्स में जान आनी शुरू हुई और बदन में खून ने उबाल लेना शुरू किया. देखते ही देखते निपल्स की गर्मी एक बार फिर चूत को गरम करने लगी. कम्मो का रोम रोम काँप रहा था. सुजीत के मोटे लौडे से जो सच उसे मिल रहा था हू किसी जन्नत से कम नही था. इतने में बाबूजी ने अपना 7 इंची उसके होठों पे फेराया. कम्मो का मूह लार से भर गया और उसने बाबूजी के लौडे पे थूका. फिर एक हाथ से अपना राइट मम्मा दबा के सुजीत के मूह में ठूँसा और दूसरे हाथ से बाबूजी का हस्त मैथुन करने लगी.

उसके बगल में आधी झुकी हुई खड़ी सखी अपने पति संजय का लंड चूस रही थी और पिछे से उसके जेठ राजू ने उसकी चूत में आधा लंड पेला हुआ था. सखी की चोटी पकड़ के राजू धीरे धीरे उसकी चूत में धक्के लगा रहा था. आधी खुली आँखों से सखी को एक साथ अपने पति और जेठ से मज़े लेते हुए देखते हुए कम्मो एक दम उत्तेजित हो गई. उसने सुजीत के लंड पे चूत घुमानी शुरू कर दी और साथ ही साथ बाबूजी के लंड के गीले गीले और गहरे गहरे चुम्मे लेने शुरू कर दिए. उसकी इस हरकत से बाबूजी का बदन काँपने लगा और उन्हे लगा कि हू जल्दी ही झर जाएँगे. बाबूजी ने कम्मो के चूतड़ो पे ज़ोर ज़ोर से 3 – 4 थप्पड़ रसीद दिए और अपना लोड्‍ा उसके मूह से निकाल के उसके गालों पे मारा.

‘’मुझे पता होता कि तू इतनी बड़ी छिनाल है और ऐसा लोड्‍ा चूस्ति है तो कभी का अपने बेटों के लंड तुझे दिलवा देता. सखी ये हरामज़ादी तुझे देख के पागल हो रही है. एक काम कर ज़रा थोड़ी देर के लिए अपनी चूत इसके मूह पे लगा दे….. मेरी प्यारी बहू……आज मैं इसकी गान्ड की सील खोलूँगा. क्यों री रंडी डाल दूं लोड्‍ा तेरी गान्ड में …..?? या फिर संजय का 11 इंच लेना है वहाँ ….??’’ बाबूजी ने कम्मो के मूह से अपना मूह लड़ाया और उसके होंठ चूस्ते हुए पुछा.

‘’उउम्म्म्मम……..ईइसस्स्शह……..उूुऊउगगघह बाबूजी अब जब रंडी बनना ही है तो पहले तुम्हारी बनती हूँ फिर भैया जी की. वैसे भी तुम्हारा तो भैया जी के मुक़ाबले लुल्ली है. पहले लुल्ली से छेद खुलवा लेती हूँ फिर लंड भी ले लूँगी. वैसे जो लंड चूत में है हू भी शानदार है. सच कहूँ बाबूजी इतने खूबसूरत लौडे एक खानदान में हों तो घर के बाहर चुदने की ज़रूरत नही. अब मैं समझ रही हूँ कि सब दिदिआ और आंटी इतने दिन से इतनी खुश कैसे रह रही थी. हायईए…….मेरा तो मन करता है बाबूजी कि कल से सारा दिन इस घर में नंगी घूमती रहूं और कभी किसी लौडे से तो कभी किसी चूत से खेलती रहूं…….उउम्म्म्मम बाबूजी अब तो गान्ड पेट हुक भी लग लिया….अब तो भोग लो इसे……2 – 2 लंड से चुदने की तम्मन्ना किसी किसी औरत की पूरी होती है……आज तो मैं धन्य हो जाउन्गि……….आरर्रघह धीरे धीरे बाबूजी अभी तो कुँवारी हूँ गान्ड से…………उउम्म्म्म…..ऊओह….ऊऊऊओमाा……घुस्स गयाआ……….ऊऊहह ……..भैया जी थोड़ा अपनी तरफ खींच लो मुझे….बाबूजी को पिछे से धक्का लगाने दो………..’’ कम्मो अब पूरी तरह से भर चुकी थी. बाबूजी का लोड्‍ा करीब करीब पूरा गान्ड में दाखिल हो चुका था. दोनो छेदो में इतना गीला पन था कि दोनो लंड कुच्छ कुच्छ फिसल रहे थे. पर अपने मॅन की मुराद पूरी करके कम्मो को आज जैसे सब कुच्छ मिल गया. इतनी सारी नंगी छूटेन और लंड एक साथ उसके नसीब में होंगे उसने कभी सोचा भी नही था. उसकी बरसों की प्यास जैसे एक ही बार में भुज रही थी. पर उसे क्या पता था कि ये तो सिर्फ़ शुरुआत थी……

‘’2 – 2 लंड क्यों तुझे तो आज एक साथ 4 – 4 मिलेंगे. अपने हाथ खोल और बाकी दोनो के पकड़ ले. सखी बहू आजा बेटा इसके खुले मूह में थोड़ा अपना कामरस भर दे ताकि तेरा पति और जेठ बाद में इसके होंठों से उसे पी के अपनी प्यास भुजा लें….तब तक कम्मो इनके लंड हिला देगी….’’ बाबूजी ने अपनी रफ़्तार बढ़ाते हुए कहा.

‘’छोटी दीदी पहले मुन्नी को फोन लगा दो….घर से बच्चों को ले जाएगी………आआ ..एयेए…एयेए…उम्म्म्म भैया जी आज तो मज़ा दे दिया आपके लंड ने……उउम्म्म्म……अर्रे दीदी आप ही बात कर लो मैं कहाँ से करूँगी……..उउंम…..हाआँ मुन्नी …मैं बोल रही हूँ…….सुन एक काम कार……..ऊहह…..तू ना घर जाके बच्चों को ले आ ….रात तेरे पास ही रुकेंगे……..ऊओह भैया जी………..उउंम…..अररी आज आंटी की तबीयत ठीक नही है तो मुझे उनको देखना है….हां हां हराम की जनि…….चुस्वा रही हूँ मम्मे भैया जी से……….तूने भी चुस्वाए थे….साअली मौका मिला है तो छोड़ूँगी नही……..सेवा करूँगी तो मेवा भी लूँगी नाअ……………चल कल बताती हूँ………. अभी तो केला खाने दे…..उउउर्र्घह …जल नही तुझे भी दिलवाउंगी…..क्यों भैया जी मुन्नी के छेद में दोगे ना केला……हां कह रहे हैं…….कहते हैं तेरे सब छेद भरेंगे………तू कल आएगी तो सब ………ऊहह….हां……उफफफ्फ़ काटो नही भैया जी…तुम्हारे ही हैं……’’ कम्मो ने कुच्छ जान भूज के कुच्छ मस्ती में मुन्नी को चिड़ाया और हल्के हल्के चूत उठाने लगी. बाबूजी का लंड उसके छेद में इतना बढ़िया से सेट हुआ था कि वो अब कभी भी झर सकती थी. फोन बंद करके उसने भूखी शेरनी की तरह राजू और संजय के लौडे पकड़ लिए और गान्ड मतकाते हुए नीचे के छेदो में दोनो लंड घीस्वाने लगी.

सखी उसके और सुजीत के बीच में जगह बनाते हुए सुजीत की छाती पे गान्ड टिका के लेट गई और चूत की फांके खोल दी. कम्मो ने दोनो हाथों में पकड़े लोड़ों का सहारा लेते हुए अपना मूह आगे झुकाया और सखी की चूत से मूह लगा दिया. कम्मो की जीभ और होंठ जैसे जैसे अपना काम करते रहे वैसे वैसे बाबूजी अपनी रफ़्तार बढ़ाने लगे. बाबूजी के धक्के अब तेज़ी के साथ लंबे लंबे होते जा रहे थे. उनका इस खेल में टिक पाना मुश्किल लाग्ग रहा था. उधर नीचे सुजीत भी चरम सच की तरफ बढ़ना चाहता था. कम्मो की चूत घर की बाकी औरतों से थोड़ी जीयादा टाइट थी. उसको चूत में रस बरसाने का मन कर रहा था. 

बाबूजी की हुंकार से सब लोग एक दम रुक से गए. किसी को भी उमीद नही थी कि बाबूजी इतनी जल्दी और ऐसे झरेंगे. उनकी आवाज़ पूरे कमरे में गूँज गई. कम्मो का नाम लेते हुए उन्होने ज़ोर का एक झटका लगाया और कम्मो की गान्ड पकड़ ली. उनके हाथों से कम्मो की गान्ड पे उनकी एक एक उंगली छाप गई. रखी और मिन्नी जो की एक साथ सरला की चूत में जीभ डालने के लिए लड़ाई कर रही थी एक दम से रुक गई. सखी ने आगे बाद के राजू और संजय की जांघें पकड़ ली. कम्मो का मूह सखी की चूत से सटा रह गया. और फाटती हुई आँखों से सुजीत बाबूजी के लंड के झटके कम्मो की गान्ड में महसूस करने लगा.

1 2 3 4 5 ओउउर्र्र्ररर 6 और फिर कुच्छ सेकेंड बाद 7थ........बाबूजी का लंड लावा उगल रहा था, उन्हे ऐसे ऑर्गॅज़म बार बार नही होते थे, ये सब सिर्फ़ स्पेशल अकॅस्षन्स पे होता था. कम्मो की गान्ड का उधघाटन आज एक स्पेशल अकॅशन बन गया था. इतनी पिचकारियाँ और वो भी हर पिचकारी में बच्चा पैदा करने की ताक़त रखने वाला वीर्य...... काश ये मेरी चूत में उगलता तो मैं एक बार फिर से मा बंन जाती...........सोचते हुए सखी की चूत की फुवारें कम्मो के मूह में फूट पड़े.
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09-03-2018, 09:17 PM,
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
दोस्तो आगे की कहानी मुन्नी की जवानी

मैं हू मुन्नी 
........ जी हां इस घर की दूसरी नौकरानी और अब से इस कहानी की सूत्रधार..... शायद कुच्छ अजीब सा लग रहा होगा आपको.......पर शायद ये मेरे नसीब का खेल है.......या शायद ये इसलिए हुआ क्योंकि मैं हूँ तो ग़रीब और नौकरानी पर शायद बीए की 1स्ट एअर तक की की गई पढ़ाई मुझे यहाँ लिखने के काबिल बना पाई है. खैर अब मैं मुद्दे पे आती हूँ.

मुझे आज भी वो दिन याद है जब मैं कम्मो के बच्चों को अपने घर लेके गई थी. कम्मो की बातों से सॉफ था कि वो मस्त चुदाई के खेल मे मगन थी. उसकी बातों कोसुन्‍न के मेरा तन बदन जल उठा था. आख़िर 33 साल की उमर मे मैं सिर्फ़ हफ्ते 10 दिन मे 1 बार चुदति थी. चूत की खलिश क्या होती है ये मेरे से बेटर कौन जान सकता था और मेरी कमीनी सहेली ने उस आग को बढ़ावा देने मे कोई कसर नही छोड़ी थी. उसकी कामुक दर्द भरी सिसकारियो से सॉफ पता चल गया था कि राजू भैया ने उस रात जमकर उसका भोग लगाने का प्लान बनाया था. मैने भी मन मे सोच लिया था कि सनडे होने के बावजूद मैं बाबूजी के घर काम के बहाने से जाउन्गि और राजू भैया को कैसे ना कैसे अपने उपर चढ़ाउंगी. ऐसे मे अगर बाबूजी भी मिल गए तो सोने पे सुहागा हो जाएगा. खैर वो रात तो जैसे ख़तम होने का नाम ही नही ले रही थी और चूत में रेंगती हुई चीटियो की वजह से मैं सुबह 4 बजे तक सो नही पाई. 

नींद खुली तो देखा 9 बज गए थे. पति अपना, बच्चों का और कम्मो के बच्चों का नाश्ता बना के उन्हे खिला रहा था. मैने आव ना देखा ताव और जल्दी जल्दी नहा के थोड़ा सा बन सवर के बाबूजी के घर को चलने लगी. पति ने पुछा तो कहा कि आंटी की तबीयत ठीक नही थी सो रात कम्मो वहाँ रुकी थी और अब वो घर जाएगी और मैं रात वहाँ रुकूंगी. 10.30 बजे जब मैने घंटी बजाई तो बड़ी भाभी ने दरवाजा खोला. मुझे अच्छे से याद है कि वो उस समय भी नींद मे थी. भाभी दरवाज़ा खोल के वापिस अपने रूम मे चली गई. मैं किचन मे गई तो खाने पीने का समान बिखरा पड़ा था. किचन समेट रही थी और दिमाग़ चल रहा था. पूरे घर में कहीं से कोई आवाज़ नही आ रही थी. दिमाग़ मे ज़बारर्दस्त उथल पुथल थी पर कहीं से भी कोई आइडिया दिमाग़ मे नही आ रहा था. किचन का काम ख़तम करके 12 बजे निकली तो देखा संजय भैया फ्रिड्ज से पानी निकाल के पी रहे हैं. पानी पी के वो भी अपने कमरे मे चले गए. मैने ड्रॉयिंग रूम और बाकी जगह सॉफ सफाई की. किसी के भी बेडरूम मे जाना संभव नही था. कम्मो का भी कहीं नामो निशान नही था. सब करके किचन मे सुस्ताने के लिए बैठी और ना जाने कब आँख लग गई.

राखी भाभी ने झखझोर के मुझे उठाया तो देखा कि मैं ज़मीन पे पसरी हुई थी और दोपहर के 2 बज रहे थे. भाभी के कहने पे फटाफट मैने खाना बनाना शुरू किया. 4 बजे सबने खाना खाया और फिर से सोने चले गए. मैं हैरान थी कि ऐसा क्या हुआ था जो सब इतनी खुमारी मे लग रहे थे. मुझसे रहा नही गया और मैने कम्मो को फोन किया. उसके बेटे ने बताया कि कम्मो दोपहर 1 बजे घर आई थी और तब से सो रही थी. एक बार को मन मे ख़याल आया कि आंटी की तबीयत वाकई मे खराब थी क्योंकि उनको खाना भी उसके कमरे मे ही दिया था. खैर मैं इंतेज़ार करने लगी. 6 बजे बाबूजी किचन मे आए तो मैं चाइ बना रही थी. कुच्छ बोले नही. पीछे पिछे 3नो भाभियाँ भी आ गई. मिन्नी भाभी ने चाइ ली और पुछा कि मैं गई क्यो नही. मैने जवाब दिया कि कम्मो ने बताया था कि आंटी की तबीयत ठीक नही सो इस वजह से रात रुकने का बोल के आई हूँ. भाभी कुच्छ नही बोली और बाबूजी को चाइ देने चल दी. फिर उनके बीच कुच्छ बात हुई और दोनो हंस दिए.

कहते हैं औरत अपनी पहली चुदाई कभी नही भूलती. पर मैं शायद अलग थी. बाबूजी का लंड मेरे जीवन का दूसरा था और उसे मैं नही भूली थी. और उस शाम भी वही सरीखा लंड मेरे नसीब मे फिर से आया. बाबूजी के कमरे से चाइ का कप लेने गई तो उन्होने मुझे बाहों मे भर लिया. जिस औरत की चुदास बढ़ जाती है उसे नंगी होने मे देर नही लगती. शाम के ढलते सूरज के साथ मेरे कपड़े भी उतर गए. बाबूजी की उंगलिओ का जादू चूत पे था और उनका मूह मेरे निपल पे. बेड का सहारा लिए हुए मैं उनके लंड को अपनी मुट्ठी मे समेटने की कोशिश कर रही थी कि इतने मे दरवाज़ा खुला और राजू भैया मदरजात नंगे कमरे मे दाखिल हुए और मेरे मूह से रास्पान करने लगे. फटी हुई आँखें, गरम चूत और कड़क चून्चो के साथ उनके मूह में सिसकारियाँ भरते हुए मैने उनका 10 इंच भी पकड़ लिया. बाबूजी अब तक बिस्तर के किनारे पे लेट चुके थे और मैं बेसब्री से उनके टोपे पर चूत रस फैला रही थी. उनके लंड पे बैठते हुए राजू भैया का लंड मेरे मूह मे समाने लगा. भैया का एक हाथ मेरे उरोजो पे था और दूसरा मेरे सिर के पिछे. नीचे से बाबूजी के हल्के झटके मेरी चूत को पनिया पनिया के आने वाली चुदाई के लिए तैयार कर रहे थे. मेरा दिमाग़ सुन्न पड़ गया था.ये कैसे हो गया कि बाप बेटा दोनो एक साथ मेरे पे चढ़ गए. पर आश्चर्य की सीमाएँ बहुत लंबी होती हैं.

लंड पेगून गून की आवाज़ें करते हुए और फूली हुई चूत मे लंड पिलवाते हुए किसी ने मेरी छाती को मसलना शुरू किया. फिर अचानक से मेरी पीठ पे नरम नरम पर बहुत ही गरम एहसास होने लगा. वही एहसास जो कम्मो की चुचियों से हुआ था. पर जो हाथ थे वो बहुत नरम थे. कम्मो के हाथों जैसे कठोर नही थे.

''बाबूजी ठीक से चाटो नाआआ..........गान्ड हिलाने के चक्कर मे जीभ हिलना क्यों छोड़ देते हो........उउउहह माआ............भाभी तुम क्यो वहाँ खड़ी हो.... आओ आज तुम्हे नया दूध पिल्वाति हूँ......देखो इसे ये कितनी पतली है ....साअली की एक एक हड्डी दिखती है ...पर चूचे देखो ....पूरे तुम्हारे साइज़ के हैं................हााआअँ....बाबूजी सही जगह पकड़ी है.....थोड़ा और कर दो मैं झर जाउन्गि......भाभी जल्दी आओ..........इसके चुचे चूसो देखो कितने टाइट हैं इसके निपल........उईईईइमाआआ.........'' ये आवाज़ तो सखी भाभी की थी और ये क्या.....राखी भाभी अपने बड़े बड़े मम्मे झुलाती हुई राजू भैया के पिछे खड़े होके उनकी गोतियाँ क्यों सहला रही हैं....

मेरे दिमाग़ की नसे फटने वाली थी. ये सब मेरे साथ या हो रहा था....कोई सपना जैसा था....सखी भाभी बाबूजी से चूत चटवा रही थी. राखी भाभी राजू भैया से जीभ लड़ा रही थी. मेरी चूत मे बाबूजी थे और मूह मे राजू भैया....उफ़फ्फ़ क्या ये पूरा खानदान एक साथ चुदाई करता है......?? अगर हां तो बाकी सब कहाँ थे. दिमाग़ सुन्न था और चूत गीली. ठसा ठस्स गान्ड अपने आप लंड पे थिरक रही थी. रह रह के एक नई उमंग और चुदास सिर से पाँव तक दौड़ रही थी. सखी भाभी के नरम चूचों का एहसास रह रह के असलियत की याद दिला रहे थे. और उसपे गजब तो तब हुआ जब संजय भैया आंटी को गोद मे उठाए कमरे मे लेके आए. आंटी आधी नंगी थी. उपर सिर्फ़ ब्रा थी और उसमे से भी एक चूचा बाहर छल्का हुआ था. संजय भैया भी मदरजात नंगे थे. आंटी को बेड पे लिटाया और राजू भैया को थोड़ा साइड मे करके उन्होने अपना लंड मेरे मूह मे पेला.

''बाबूजी आपका कितनी देर मे होगा..?? आप जल्दी कर लो फिर मुझे मुन्नी की चूत मे लंड पेलना है...सासू मा तो सिर्फ़ चुसाइ लायक रह गई हैं. कहती हैं रात को मिन्नी भाभी और राखी भाभी ने इनके दाने को इतना चाटा और चूसा है कि अब 3 दिन तक सूजा रहेगा और दर्द करेगा. अर्रे वाह बाबूजी....आपकी चाय्स तो वाकई में मान गए....कम्मो का दाना भी बड़ा था और इसका भी.....इसको आगे से चोदने मे मज़ा आएगा.......अर्ररे भाभी आंटी को छोड़ो ज़रा मेरी गोटिओं को गीला कर दो ..... देख मुन्नी कैसे राखी भाभी मेरा ख़याल रखती है...आगेसे तू भी मेरी गोटिओं को ऐसे ही चूसना.'' संजय भैया मेरे मुँह मे धक्कम पेल कर रहे थे और रह रह के मेरी, सखी और राखी भाभी की चूचिओ को अपने बड़े हाथों से तौल रहे थे.

''सुनो जी......आआर्र्घघ मैं बाबूजी पे झरने वाली हूँ....ज़रा सहारा दे दो बहुत ज़बरदस्त काम होने वाला है मेरा........उउउहह मम्मी......हाआंन्‍णणन्....उूुुुउऊहह ऊऊओ माआअ.....बाबूजीइइईईई...दनाआआ....नही ......संजय मैं गई जान............ऊऊऊऊऊओ.......'''''' भाभी ससुर के मूह पे झर रही थी. रखी भाभी संजय भैया के लंड के पिच्छले हिस्से पे जीभ चला रही थी और मैं बाबूजी के अगले धक्के का इंतेज़ार कर रही थी. 5 सेकेंड मे इंतेज़ार ख़तम हुआ और बाबूजी ने मुझे घोड़ी बना दिया. बेड पे मेरे सामने आंटी के मम्मे थे. राखी भाभी उन्हे निचोड़ रही थी. आंटी सिसकियाँ ले रही थी. बगलमे उनकी बेटी स्खलित होके टांगे खोले लेटी हुई गहरी गहरी साँसे ले रही थी. मेरा बदन भी अकड़ने को तैयार था कि अचानक मेरे अंदर बाबूजी का बीज निकलने लगा. गरम गरम लावे के जैसे बाबूजी मेरी गान्ड को पकड़ के हल्के हल्के झटके मार रहे थे.

''अर्रे आप लोग मेरे बगैर ही शुरू हो गए. घर की बड़ी बहू का किसी को भी लिहाज नही है. बाबूजी अभी लंड ना निकालना. वहीं रहने देना ...मैं निकालूंगी अपने होठों से.....ऊहूऊऊ ये कपड़े भी मैने ऐसे ही पहेन लिए. पता होता कि मुन्नी ने बाबूजी के बिस्तर पे बिछना है आज तो दरवाज़ा भी बिना कपड़ो के ही खोलती.......सुजीत भैयाअ....ऊऊ सुजीत भैया......जल्दी आओ........मैं घोड़ी बॅन रही हूँ.....जब तक मैं बाबूजी का चूस लेती हूँ आप अपना खड़ा कर लो.......बाबूजी आपको पता है भैया ने कम्मो की चूत मार के कल से ही अपना लंड नही धोया है. कह रहे थे कि किसी एक भाभी को इसका स्वाद चखवाना है फिर धोउंगा.....'' स्लूऊर्रप स्लूऊर्रप की आवाज़ केसाथ भाभी बाबूजी के टटटे चाट रही थी और फिर प्लॉप की आवाज़ के साथ बाबूजी का मुरझाया लंड जैसे ही मेरी चूत से बाहर निकला कि भाभी ने उसे मूह मे भर लिया. 

''आ गया भाभी....ये लो मेरा लंड भी तैयार है और मैं भी. जल्दी कुत्ति बनो तो मैं डालूं...भाभी इसके बगल में बनना कुत्ति. संजय आराम से बजाना इसकी मुझे भी करना है बाद मे....'' सुजीत भैया मेरे चूतड़ निचोड़ रहे थे और मेरी करीब करीब तैयार चूत संजय भैया का विशाल लंड अंदर ले रही थी.
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09-03-2018, 09:17 PM,
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
मैं मुन्नी एक बार फिर हाजिर हूँ. 

उस रात की तो जैसे सुबह ही नही होनी चाहिए थी. मुझे ऐसा लगा जैसे मैं कोई लंड लिए लिए स्वर्ग की सैर पे निकल चुकी हूँ. कब कैसे कितनी बार मेरी भूखी चूत ने केले खाए कुच्छ गिनती ही नही रही. एक निकलता था तो दूसरा घुसता था. मूह पे कितनी बार चूत रस गिरा याद नही. एक बार तो सखी भाभी मेरे मूह पे बैठ के फुहारे छोड़ रही थी तो सुजीत भैया ने उनकी चूत के होठों पे अपना कामरस छोड़ दिया. राजू भैया मेरी चूत की धुनाई कर रहे थे. मैं इतनी उत्तेजित थी कि सुजीत भैया का रस और सखी भाभी का रस दोनो को एक साथ चाटने लगी. वो शायद मेरे लए एक ऐसा अनुभव बन गया जो मेरे आज तक काम आ रहा है. अब मैं कोई मौका नही छोड़ती.......लंड रस और चूत रस के मिश्रण को चखने का. 

आज की हालत ये है कि मैं और कम्मो घर मे दिन भर ओछे ओछे कपड़ो मे काम करती हैं. सुबह की शुरुआत बाबूजी के लंड की चुसाइ से होती है. धोती पहने हुए वो अपने सोफे पे टांगे फैलाए रोज़ मेरा और कम्मो का इंतेज़ार करते हैं. चाइ की चुसकीओं और न्यूसपेपर पढ़ते हुए मैं या कम्मो या कभी कभी दोनो उनके लंड और गोटिओं को थूक से नहला देती हैं. उसके बाद सबके बेडरूम्स मे जाके चाइ देते हुए किसी ना किसी चूत से कामरस का मिश्रण चखने को मिल ही जाता है. अक्सर राजू भैया का मिश्रण सखी भाभी मे मिलता है. संजय भीया को आजकल अपनी सास से फ़ुर्सत नही है. बड़ी भाभी संजय भैया के साथ सोई मिलती हैं और राखी भाभी का बेडरूम आजकल बाबूजी के यहाँ शिफ्ट हो गया है.

बीच बीच मे कोई दिन ऐसा भी मिलता है जब सब अपनी अपनी बिवीओ के साथ होते हैं और आंटी इनमे से किसी एक जोड़े के साथ. बाबूजी शायद सभी जगह चक्कर मार के अपने रूम मे सोने चले जाते हैं. वीकेंड पे ना मैं और ना ही कम्मो अपने घर जा पाती हैं. घर पर दोनो ने कह रखा है कि बच्चो के नामकरण की तैयारी है सो सनडे को भी उसी मे बिज़ी हैं. वैसे हमारे दोनो के पति इस से खुश हैं. आजकल हमने उनके लंड माँगने बंद जो कर दिए हैं. बाबूजी जब भी पैसे देते रहते हैं तो कहते हैं कि पतिओं से दूर रहना. साले चूतिये कहीं से बीमारी ले आएँगे और तुम्हारी चूतो मे फैला देंगे. फिर वो मेरे घर मे आ जाएगी. हां पर कम्मो को रमेश का लंड लेने की इजाज़त मिली हुई है. पता नही क्यों.

खैर मुझे इन सब चीज़ों से कोई मतलब नही. मेरी चूत की धुनाई अच्छी चल रही है. सबके लोड्‍े मजबूत हैं और लंबे और बड़े भी. बाबूजी का है तो छोटा पर उनका अंदाज़ अपने आप मे ही अलग है. अब मैने एक साथ 3 लंड लेने की कला भी सीख ली है. पहले मैं बहुत एग्ज़ाइट हो जाया करती थी. पर अब थोड़ा कंट्रोल आ गया है. कम्मो अभी भी नही सीख पाई. जब उसकी गान्ड और चूत मे लंड एक साथ दाखिल होते हैं तो वो मचल जाती है और मूह मे पड़े केले को चूसना ही भूल जाती है. एक बार तो बाबूजी ने बेचैन होके अपने लंड से उसके गालों पे थप्पड़ ही जड़ दिए थे. पर उसका भी एक अलग ही मज़ा था. पिच्छले 6 हफ़्तो मे मैं इतना चुदि हूँ की लगता है तृप्ति हो गई... और मन नही है, पर फिर जब कोई लहराता हुए लंड आँखों के सामने आता है तो ना जाने कौन सी खुमारी आ जाती है और मूह अपने आप खुल जाता है और जीभ लपलपाने लगती है.

लंड चूत मे लेने का मन ना भी हो तो भी टांगे ऐसी चौड़ी हो जाती है कि मानो आजतक इनके बीच कुच्छ गया ही ना हो. रांड़ शब्द का मतलब अब समझ मे आया है....हमेशा टांगे खोल के लंड महाराज का स्वागत करने वाली......मैं भी यही बन गई हूँ. यहाँ एक बात कहना बड़ा ज़रूरी है. मेरे पति का 6 इंच है इसलिए कभी मुझे ये नही लगा कि उससे बड़े की ज़रूरत महसूस होगी. और सच कहूँ जब तक वो हफ्ते मे 2 - 3 बार करता था तब तक महसूस भी नही हुआ कि कहीं और मूह मारा जाए. पर अब जब इस घर के मर्दों का स्वाद लिया है उसका स्वाद मूह को लगता ही नही. एक से एक सरीखे लंड हैं इन सब के. बाबूजी का सुपाडा टमाटर की तरह गोल है और नसे फूली रहती हैं. बड़े भैया का 10 इंच है और एक दम सीधा. उनके टोपे से लेके गोटिओं तक एक जैसी मोटाई है और गोरा होने की वजह से नीली नसे दिखती हैं. सुजीत भैया 9 इंच के मालिक हैं पर उपर से पतला शुरू होता है और गोलिओं तक जाते जाते मेरी कलाई जितना हो जाता है. एक बार मैने उनसे ही मज़ाक मे इंची टेप से गोटिओं के पास उनके लंड की नपाई की तो हैरान रह गई. पूरी गोलाई 7इंच की निकली... करीब करीब 3 इंच चौड़ा.

संजय भैया का भी अपने आप मे मस्त है. उनके लंड की लंबाई सबसे बड़ी है. 11 इंच. थोड़ा सा टेढ़ा रहता है हमेशा. नंगे होते हैं और जब मूसल सख़्त होता है तो टेढ़ा होके निच्चे को झूलता है. उनका टोपा थोड़ा मोटा है और फिर नीचे की तरफ लंड की मोटाई कम होती चली जाती है. पर उनकी गोटिओं का साइज़ भयंकर है. सबसे जीयादा कामरस भी वोई निकालते हैं. आंटी के मूह मे जब भी छोड़ते है तो आंटी को करीब 1 मिनिट लगता है सब गटाकने मे और अच्छे से चाटने मे.

अब जब लोडो का इतना बखान कर रही हूँ तो चूतो का भी बता ही दूँ. आंटी की चूत है तो ढीली पर चूत रस अभी भी अच्छे से छोड़ती हैं. 2 बच्चों को पैदा करके और उपर से 45+ की उमर. पर फिर भी अपने बन ठन के रखती हैं. आंटी को आजकल एक नया शौक चढ़ा है. वो चूत और गान्ड पे अलग अलग चीज़ों के फ्लेवर लगा के चटवाती हैं. संजय भैया ने ख़ास तौर पे उनके लिए रंग बिरंगी और अच्छी महक वाली लिपस्टिक्स लाके दी हैं. चूत के होठों को रंग के या गान्ड के छेद के आस पास लगा के वो ठुमक ठुमक के नहा के निकलती है और सीधे मेरी या कम्मो या बाबूजी की शामत आती है. आम तौर पे हम तीनो मे से किसी को लिपस्टिक का स्वाद चखना पड़ता है. पर मैं हमेशा शिकायत करती हूँ. ''आंटी सुबह की चाइ के साथ जो संजय भैया का सूखा रस आपकी चूत से मिलता उसकी महक के सामने ये कुच्छ भी नही है'' और वो मुझे चिडाने के लिए जानभूज के मुझसे ही चूत चुसवाती हैं.

मिन्नी भाभी आजकल पतली होने के मूड मे हैं. रोज सुबह सब भाइयो के जाने के बाद एक टाइट कछि और ब्रा मे वो योगा करती हैं. कछि के बीच मे कट रखा हुआ है जहाँ से चूत की फांके बाहर निकली रहती हैं. कहती हैं बच्चे के बाद से फांके ज़ियादा बाहर निकल आई हैं और टाइट कछि मे दर्द होता है. फिर रात को चुदने मे मज़ा नही आता. उनकी चूत पे आजकल उन्होने बालों के बीच डिज़ाइन भी बनवाया है. झांतो की कटिंग करके एक दिल बनवा रखा है. कहती हैं चुदना है तो दिल से चुदो. उनकी चूत अब हल्की ब्राउन हो चली है और साथ ही थाइस के बीच का हिस्सा भी. शायद उमर का असर है.
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09-03-2018, 09:17 PM,
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
रखी भाभी मस्त रहती हैं. उन्होने अपने बदन के लिए कुच्छ ख़ास नही किया. बस मम्मो को हमेशा ब्रा मे रखती हैं. कहती हैं अभी नही संभाले तो झूल जाएँगे. आजकल सेक्स के समय भी ब्रा पहेन के करती हैं. बस चूचे बाहर निकाले चुस्वाए और फिर अंदर कर लिए. पर बाबूजी के साथ पूरी नंगी होके करती हैं. उनसे अपनी घुंडीयाँ भी खूब मस्वाति हैं. जब कभी सुजीत भैया ऑब्जेक्षन करते हैं तो कहती हैं कि जिस ससुर से शादी से पहले ही चुस्वा लिए उसे नंगी होके ही करवाउंगी. मिन्नी भाभी की तरह उनकी चूत के होंठ भी फूल गए हैं पर अभी भी काफ़ी गोरे से लगते हैं.

सखी भाभी का बदन अब भर गया है. चूचे भी थोड़े बड़े हो गए हैं. उन्हे फॅशन का पूरा ग्यान है. दिन मे 2 या 3 बार कपड़े बदल लेती हैं. हेर स्टाइल बदल लेती हैं. मुझे सबसे ज़ियादा मज़ा तब आता है जब सुजीत भैया के उपर वो उच्छलती हैं. भैया का लंड जिसका की बखान मैं पहले कर चुकी हूँ वो जब जड़ तक उनकी चूत को फैलाता है तो मैं तो हमेशा हैरान हो जाती हूँ. सखी भाभी की चूत रस की महक भी बहुत अलग है और स्वाद भी. उनकी चूत चाटना मतलब अपनी चूत को लंड के लिए तैयार करना. मेरी कछि इतनी बुरी तरीके से भीगति थी कि अब तो उनकी चूत को मूह मारने से पहले मैं कछि उतार देती हूँ. उनकी चूत काली है पर अंदर से एक दम पिंक. और उनके धारे 1 फुट तक फुवारे की तरह निकलते हैं. जैसे की मूत रही हों. कम्मो और मैं कई बार मूत जैसा चूत रस अपने मम्मो पे लिया है.

कम्मो मे भी फरक आ गया है. अब वो पहले से अधिक आक्टिव हो गई है. उसपे भी 24 घंटे चुदास छाई रहती है. दिन मे उसका लंच तो आंटी जी की चूत है. नाम के लिए खाना खाती हैं दोनो. उनको मौका मिले तो 3 समय के दूसरे का चूत रस ही पीती रहे. लंड लेने मे उसको मज़ा आता है पर अगर कोई चूत मूह पे हो तो जैसे सोने पे सुहागा हो जाता है. इस मामले मे भी बाबूजी ही लकी हैं. जब बाबूजी कम्मो की लेते हैं तो बस वही लेते हैं. कोई दूसरा लंड डाले तो डाले पर उनके और कम्मो के बीच दूसरी चूत तब आएगी जब वो पर्मिशन देंगे. 3नो बहुएँ और आंटी इस बात पे अक्सर उन्हे छेड़ देती हैं. 

खैर अब बहुत हुआ लंड बखान और चूत कथा. 3 दिन मे बच्चो का नामकरण है. बाबूजी ने एक रिज़ॉर्ट मे बुकिंग करवाई है. ये वही रिज़ॉर्ट है जहाँ सब गए हुए थे और पिछे से बाबूजी ने मेरी, कम्मो और हमारी सहेली शारदा का भोग किया था. कल बड़ी भाभी को कहते हुए सुना कि बाबूजी आपको हमारी शर्तें याद हैं. बाबूजी ने भी उनकी चुम्मि लेते हुए कहा था कि काम हो जाएगा. अब मेरी तो हिम्मत नही है कि मैं किसी से पुच्छू तो अब सिर्फ़ इंतेज़ार ही करना होगा.

तो जैसे मैं कर रही हूँ ...आप भी कीजिए.......

''मुन्नी ओ मुन्नी....कहाँ रह गई ये.....अर्रे इधर आओ....मेरी सिल्क वाली धोती कहाँ रखी है....और उसका कुर्ता....?'' बाबूजी की उँची आवाज़ सुन के मैं झट से राखी भाभी को छोड़ के उनके कमरे की तरफ भागी. पीछे से भाभी बोली जल्दी आना मेरा काम बाकी है. जल्दी जल्दी मे मैने ब्रा भी नही पहनी थी. निपल अभी भी खड़े थे और उनपे राखी भाभी की चूत रस का गीलापन अभी भी बना हुआ था. दरअसल पिच्छले 4 दिन से भाभी रोज़ मेरे लंबे नोकिले निपल्स को चूस के खड़ा करती हैं और फिर निपल्स से अपनी चूत के दाने को रगडवा के झर जाती हैं. फिर यही प्रोसेस वो मेरे साथ रिवर्स करती हैं. कहती हैं प्रॅक्टीस करनी है. पता नही क्या माजरा है. एक दो बार उन्होने संजय भैया को बुलवा के शामिल किया. उनका लंड मेरी चूत मे डलवाया और फिर नज़दीक जगह बना के निपल से मेरे चूत के दाने को छेड़ती थी. भैया को कहती थी कि देवेर्जी सिर्फ़ गांद गोल घूमना....सतसट धक्के नही लगाने. खैर मुझे क्या. एक नया सेक्स का खेल था और मैं पूरा मज़ा ले रही थी.

''अर्रे मुन्नी मेरा सिल्क वाला कुर्ता और धोती कहाँ हैं ? कब से ढूँढ रहा हूँ.'' बाबूजी थोड़ा झल्लाए हुए थे. मेरी नंगी चूचिओ पे ध्यान ही नही दिया. मैने चुप से उनकी आल्मिराह के उपर वाले शेल्फ से पॅकेट निकाल के दिया. पॅकेट खोल को चेक किया और फिर उनके चेहरे पे चमक आ गई. '' अर्रे वाह ....शुक्र है मिल गई....पता है ये मेरे दोस्त ने मुझे गिफ्ट दी थी. उसकी पहली सॅलरी से खरीदी हुई. बहुत जिगरी है मेरा. आ रहा है फंक्षन मे वो और उसकी बीवी. उसको दिखाउन्गा कि इतने साल बाद भी संभाल के रखी है....'' बाबूजी किसी छोटे बच्चे की तरह उतावले हो गए. फिर मेरी तरफ देखा. तब उन्होने मेरी चूचिओ पे नज़र डाली. मैं खड़ी खड़ी उनके बच्चे जैसे बिहेवियर को देख के मुस्कुरा रही थी.

''क्यो मुस्कुरा रही है ऐसे ? और ये तेरी चूची पे गीला गीला क्या है ? किससे चुस्वा के आई है....?'' बाबूजी ने पॅकेट साइड मे रखा और बेड पे बैठ गए और मुझे गोद मे ले लिया. बैठते के साथ ही मुझे सलवार के उपर से गान्ड पे सुरसूराहट महसूस हुई. बाबूजी का लंड रगड़ ख़ाता हुआ खड़ा हो रहा. मैं मुस्कुरा दी और फिर मैने थोड़ा साइड होके अपने को अड्जस्ट किया. उनकी गर्दन के करीब एक चुम्मि ली. इतने मे वो सलवार का नाडा खोल के अपनी जुड़ी हुई उंगलिओ से मेरी चूत की लकीर को सहलाने लगे.

''आपको बच्चे की तरह उतावला देख के मुस्कुराइ........45 साल का बच्चा.....जैसे खिलोना मिल गया हो......और ये किसी से चुस्वाई नही है.....ये थूक नही है....ये राखी भाभी का चूत रस है...आजकल रोज मेरी घुंडीओ से अपना दाना रगड़वाती हैं....आप भी ना बाबूजी......कितने मज़े आ रहे थे...इतनी सी बात के लिए मुझे बच्चों जैसे बुला लिया.......उउंम्म...उउउइंाआ...'' बच्चों वाली बात सुन के उन्होने ज़ोर से जुड़ी हुई उंगलियाँ मेरे दाने पे रगड़ दी. एक दम से मैं छूटने के कगार पे आ गई. पर वो समझ गए और झट से प्रेशर कम कर दिया. पर मैं क्या करती मैने भी चूत आगे उठा दी ताकि उंगली से कॉंटॅक्ट बना रहे. अब मेरी तड़प देख के हँसने की बारी उनकी थी.

''इस बच्चे को भूख लगी है....इसे दूध पिलाओ ताकि इसकी भूख ख़तम हो....'' बस उनकी बात को पूरा होने से पहले ही मैने अपना लेफ्ट मम्मा उनके मूह मे ठुस दिया. करीब 30 सेकेंड तो उन्होने चूसा फिर मेरे निपल को काटने लगे. मेरी सिसकारियाँ निकल गई. ''चूसो बेटा........काटो नही....दूध तो चूसने से निकलेगा.....आआआहह....''मेरे चूतड़ उच्छल उच्छल के उनकी उंगली से चूत को झड़ाना चाहते थे. पर वो फुल तड़पाने के मूड मे थे. 2 सेकेंड को छेड़ते और फिर हटा देते. फिर छेड़ते और फिर हटा देते.

''अर्रे समधी जी आप यहाँ इस छिनाल को चूसने मे मगन हैं. उधर हलवाई का फोन आया है. उसके आदमी मिठाई लेके कभी भी आने वाले होंगे....जल्दी से तैयार हो जाइए.....पता नही क्या भूत है आपकी धोती मे जब देखो उच्छलता रहता है.....और तू निगोडी यहाँ से चल और कपड़े पहेन....बाज़ार जाना है.......उफ़फफूऊओ अब उसे छोड़ोगे ....और मुझे मत पकडो ..मैं अभी तैयार हुई हूँ...अभी कोई मूड नही है .....चल मुन्नी...साली ....सब की सब एक जैसी चुदास हैं....कल फंक्षन है और किसी को कोई ख़याल नही है तैयारी का.....सारा काम मेरे सिर डाल दिया है......'' सरला आंटी हमारे सिर पे खड़ी होके चिल्ला रही थी. मेरा निपल अभी भी बाबूजी के मूह मे था पर उनका हाथ अब सरला आंटी की गान्ड की चिकोटी ले रहा था. निपल चूस्ते चूस्ते वो फिर बच्चे की तरह मुस्कुरा रहे थे. 
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