Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
09-03-2018, 09:13 PM,
#91
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
मिन्नी भी सोफा के बॅकरेस्ट पे साइड पकड़ के झूम झूम के अपनी चूत बहा रही थी. कभी एक हाथ से अपने को सपोर्ट करती तो कभी दूसरे से. कभी अपनी चूत में उंगलियाँ डालती और कभी अपने मम्मे नोच लेती. सबसे कम मज़ा नीचे बैठी राखी को आया क्योंकि वो अपनी गीली चूत को सिर्फ़ अपनी उंगलिओ से ही शांत कर पाई थी.

इस घमासान के बाद जगह जगह वीर्य और चूतरस टपकती चूते और लंड बिखरे पड़े थे और लंबी गहरी साँसों के साथ एक दूसरे के जिस्मों को टटोल रहे थे. अपने बदन पे 4 अलग अलग हाथों का स्पर्श अलग जहॉं पे महसूस करते हुए सरला कब सो गई उसे पता ही नही चला.

चुदाई के कुच्छ देर बाद सरला, राजू और सुजीत बाथरूम में घुस गए और नहाने लगे. सरला को बीच में रखते हुए राजू और सुजीत ने उसके बदन की अच्छे से रगड़ के धुलाई की. सरला भी बॉडी तो बॉडी बाथ से मस्त हुई पड़ी थी और उसके लोड़ों पे अच्छे से अपना पेट, गांद, चूत, जांघें और चूचे रगड़ रही थी. उसको यकीन नही हो रहा था कि इतने मज़े से उसने अपने नीचे के दोनो छेद भरवाए थे. कुच्छ महीनो पहले जब सुजीत ने उसकी गांद की दीवारें खोली थी तो वो बहुत ताड़पी थी. पर अब जैसे चूत वैसी गांद बन के रह गई थी. बस उसमे से रस नही टपकता था. इतने में उन्हे बाबूजी के करहाने की आवाज़ सुनाई पड़ी और 3नो मुस्कुराते हुए अपना नहाना फिनिश करके बाहर आ गए.

बाबूजी का लंड मिन्नी और राखी के मूह में बार बार घुस रहा था. वो कार्पेट पे लेटे हुए थे और दोनो कुत्ति बनी उनके लंड की सेवा कर रही थी. फॉर ए चेंज सखी अपने पति के साथ थी और उसका लंड चाट रही थी. बाबूजी तो पूरे तने हुए थे पर संजय का लंड अभी भी आधे रास्ते में था. अपने अगाल बगल में खड़े सुजीत और राजू के लोड़ों को मसल्ते हुए सरला ने दोनो को सिर उठा के किस किया और उनसे अपने मम्मे चुस्वाए और फिर उनको राखी और मिन्नी की फूली हुई चूतो की तरफ धक्का दे दिया. इस बार भी फॉर ए चेंज राजू ने मिन्नी की चूत पकड़ी और सुजीत ने राखी की और धीरे धीरे अपने लंड उनकी चूतो में घुसा दिए.

उधर सरला इठलाती हुई अपने सगे दामाद के पास पहुँची और सखी के बगल में खड़ी होके अपने दामाद की आँखों में झाँका. संजय की आँखों में वासना का समुंदर लहरें मार रहा था. उसको देखते हुए संजय ने सखी का सिर पकड़ा और अपना आधा खड़ा लंड उसके मूह में पेल दिया. सखी की नाक उसकी झांतों वाले हिस्से पे रगड़ खाने लगी.

''आआओ ना मम्मी वेट क्यों कर रही हो.....आओ और सखी को सिख़ाओ कि एक मर्द का लोडा कैसे चूस्ते हैं......इसे शादी के इतने सालों में हम सबने तो बहुत कुच्छ सिखा दिया. अब आपकी बारी है........अपनी मा से सीखेगी तो शायद और अच्छा करेगी....'' संजय अपनी निपल पे हाथ फेरते हुए बोला.

" हां हां बेटा तुम्हारा तो यही सपना है ना कि मा बेटी एक साथ तेरा लंड चूसे......साले हरामी की औलाद.....तू है तो मेरा दामाद पर तेरे जैसा चोदु इंसान मैने आज तक नही देखा. और फिर घोड़े जैसा लोडा......उम्म्म्म ....इसको देख के तो वैसे भी मेरी चूत फड़फदा जाती है. सो तुझे तो मना भी नही कर सकती भद्वे......चल रे अब बेटी और मा की एक साथ लेने की तैयारी करले. '' कहते हुए सरला ने खड़े खड़े ही आगे झुक के अपने दोनो हाथ सोफा के बॅकरेस्ट पे रखे और संजय के सिर के उपर हवा में अपना सिर कर दिया.

संजय सोफा के किनारे पे गांद टिकाए और टांगे खोले पसरा हुआ था. सखी उसकी टाँगों के बीच में बैठी थी और उसके लंड का सेवन कर रही थी. सरला दोनो टांगे चौड़ी किए हुए सखी के सिर के उपर हवा में चूत लहराए और दोनो हाथ संजय के कंधों के पिछे सोफा पे टिकाए खड़ी थी. संजय ने आगे बढ़ के उसके झूलते हुए चूचे मूह में भरने चाहे तो सरला ने बालों से पकड़ के उसे वापिस खींच लिया. फिर उसका चेहरा चिन से पकड़ के दबाया तो संजय का मूह खुल गया और सरला ने निशाना बनाते हुए करीब 1 फुट उपर से उसके मूह में थूक की लार डालनी शुरू की. पहली बार तो लार ठीक से नही गई पर दूसरी बार में ठीक संजय के मूह में जाके गिरी. सखी को ये देख के बहुत ही सेक्सी फील हुआ और साथ ही थोरी जलन भी हुई. शाम से उसकी चूत अभी तक खाली रही थी. उधर मिन्नी और राखी दोनो कार्पेट पे मस्ती से अपने अपने पति से चुद रही थी और साथ ही साथ बाबूजी का लोडा चूस रही थी.

'' मा तुम थोड़ी देर के लिए मुझे संजय के साथ छोड़ दो. बाद में दोनो एक साथ संजय को मज़ा दे देंगे. मेरी चूत बहुत बिदक रही है......उफ़फ्फ़...मुझे लंड लेना है इसमे...आप हटो और मुझे अपनी हवस मिटाने दो.'' कहते हुए सखी ने संजय का पूरा खड़ा लोडा मूह से निकाल दिया और टेडी होके सरकते हुए संजय के उपर आ गई. सखी की पीठ संजय के सीने पे थी और चूत लंड के टोपे पे. सरला तो अपनी जगह से नही हटी पर सखी ने अपनी चूत को सेट किया और धीरे धीरे लंड पे उतरने लगी. कुच्छ ही पल में लंड 8 - 9 इंच अंदर घुस गया और गहरी साँस लेते हुए सखी रुक गई.

''कोई बात नही तू खाज मिटवा ले .....पर मुझे जाने को क्यों कहती है...इस कुत्ते के मज़े तो लेने दे अपनी मा को...माना कि तेरा ख़सम है पर इसके जैसा चोदु तुझे मिला तो मेरी वजह से ही है. लो दामाद जी जब तक नीचे से उचक उचक के बेटी की चुदाई करते हो तब तक साथ साथ मा के मम्मे ही चूस लो.......उम्म्म्ममम मदर्चोद अभी भी बच्चे के जैसे निपल चूस्ते हो तुम.....तुमसे निपल चुस्वाते हुए लगता ही नही है कि किसी जवान लौंदे से चुस्वा रही हूँ....हान्न्न्न बेटाअ ऐसे ही.....उउम्म्म्म कर दो अपनी सासू मा के दूध खाली .....उउम्म्म्ममम और तू क्यों रुकी पड़ी है....तू भी पिई ले.....बचपन में अकेले पीती थी आज पति के साथ मिलके पी ले......उउम्म्म्मममम....एसस्स.........मज़ाअ आ गया दोनो एक साथ चुस्वा के...........'' सरला आधी झुकी झुकी मस्ती में गांद घुमाए जा रही थी. करीब 2 मिनट तक खूब सिसकियाँ मारते हुए उसने अपने मम्मे सखी और संजय से बारी बारी चुस्वाए. सखी की चूत में संजय का लंड अच्छे से सॅट्ट सत्त करके चल रहा था और सखी अपनी मा के चूचे चूस्ते हुए एक बार हल्के से झाड़ भी चुकी थी.
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09-03-2018, 09:14 PM,
#92
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
''अर्रे समधन जी.....इतना रांड़पन भी ठीक नही है....मेरे बच्चों को इतना भी मत बिगाड़ो कि कल को मेरे लंड को लेने के देने पड़ जाए.........साली तुम तो कुत्ति हो घर बाहर कहीं भी चुद्वाति फ़िरोगी पर सखी की चूत में तो कुच्छ शराफ़त रहने दो. आज तक मैने इसे बडो नाज़ों से चोदा है पर अब लगता है कि मेरी चुदाइ काफ़ी नही रहेगी इसके लिए. प्लीज़ सरला जी इसे घर की रंडी रहने दो बाहर की मत बनाओ....'' बाबूजी अपना लोडा चुस्वाते हुए सरला की अठखेलिओ को देखते हुए बोले.

''हां हां मैं ही हूँ कुत्ति ...तुम तो शहद के धुले हो...साले बेहेन्चोद तुम हो, समधन चोद तुम हो, बहू चोद तुम हो और यार दोस्तों की तो छोड़ो घर की नौकरानियो को भी नही छोड़ते...और मुझे कहते हो कि मैं रांड़ हूँ. मुझसे बड़े जिगलो तो तुम हो.....उम्म्म्ममम हां संजय बेटा ऐसे ही छेद में उंगली करो...मज़ा आ रहा है...सखी तू अपने इस चोदु ससुर की बातों में ना आना...ये सिर्फ़ तुझे अपनी घरेलू छिनाल बना के रखना चाहता है. बेटी ज़िंदगी लंड लेने और चूत देने का नाम है....तू बस टाइम टू टाइम नए एक्सपेरिमेंट करती रहना .....भाँति भाँति के लंड खाने से ही मज़ा आता है......उम्म्म्मम संजय आराम से बेटा .....काटो नही ...माँस का निपल है बेटे प्लास्टिक का नही...... हां आराम से थोड़ा उंगली भी अंदर बाहर करो........एसस्स्सस्स......ऐसी........उम्म्म्ममममम मुझे रेडी कर दो झरने के लए.....पर झाड़वाना नही बेटा ....मुझे तेरे इस हराम्खोर बाबूजी के मूह में झरना है.'' सरला की गांद हल्के हल्के वाइब्रट कर रही थी. उसकी आवाज़ से उसके बदन की कंपन और गर्मी का एहसास हो रहा था. संजय के सिर को हाथों में दबोचे उसके मूह में अपनी चूचिओ को थेल रही थी..

''हां हां आ जाओ जल्दी से....तुम्हारे चूतरस को तो मैं कई सालों से दीवाना हूँ सरला.....जल्दी आओ तो तुम्हे गाढ़ी सफेद क्रीम एक बार फिर खाने को मिलेगी.....उफ्फ राखी बेटा थोड़ा टटटे भी चूस दे....उउम्म्म्मम मिन्नी लंड के टोपे को छोड़ थोड़ा साइड से चाट इससे नही तो झर जाउन्गा.....'' बाबूजी सिसकियाँ लेते हुए बोले.

''क्या बाबूजी आज सारी क्रीम चुदास आंटी के लिए रखी है....मेरी चुदास जीभ के लिए भी रखो ना इसे....म्‍म्म्ममम स्लूउर्र्ररप्प्प्प....मुझे तो सूपड़ा ही चाहिए .......राखी तुम टट्टों पे लगी रहो अच्छे से .....बाबूजी के टटटे ऐसे गरम रखना कि कम से कम 6 - 7 पिचकारी दें मुझे...फिर तुझे भी पिलाउन्गि.....उउम्म्म्मम पुच्छ पुच्छ ...उउफ़फ्फ़ बाबूजी आपका सूपड़ा नज़दीक से कितना प्यारा लगता है....ऊऊहह हां राजू अच्छे से घस्ससा दो....मज़ा आ गया इतने दिन बाद तुमसे चुदने का.......हमारी दामाद चोद आंटी ने अच्छा सिखा दिया तुम्हे 2 बार में ही......राखी तुझे सुजीत का लोडा कैसा लगा.....बता ना..........उउम्म्म्मम.......'' मिन्नी बाबूजी के लंड का सूपड़ा मूह में भरे भरे बीच बीच में अपनी बात कहती रही. उसकी गांद आज बहुत मस्त लग रही थी. कुतिया बन के अपने पति से चुदे हुए काफ़ी टाइम हो चला था. मम्मे बाबूजी की थाइस पे रगड़ खा खा के लाल हो रहे थे. बीच बीच में राजू और सुजीत दोनो हाथ बड़ा के उनको दबा लेते. यही हाल राखी के मम्मो का भी था.

''उम्म्म्ममम स्ल्लुउर्र्रप्प्प्प...स्लूऊर्रप्प्प्प्प्प....पुच पुकच......भाभी अभी कुच्छ ना पुछो...बस चुद लेने दो. साली रांड़ ने सुजीत को एक्सपर्ट बना दिया है. काफ़ी गहराई तक लंड पेल रहा है. थॅंक यू आंटी......बाबूजी के टटटे फूलने लगे हैं भाभी ...थोड़ा और चॅटा तो जल्दी काम रस निकल जाएगा....तुम टोपे को नही छोड़ना....मूह में दबा लो...एक भी बूँद वेस्ट ना हो.......उउम्म्म्मम मेरे बाबूजी ...मेरे थर्कि बाबूजी......आप रोज सुबह एक बार मुझे टटटे मूह में भर दिया करो सुबह सुबह. कल से ही चालू हो जाना. आपके टटटे मूह में लेने के बाद ही ब्रश किया करूँगी. उम्म्म्मम मेरे अच्छे बाबूजी........स्लूउर्र्रप्प्प्प...स्लूऊर्रप्प्प्प्प......उउंम्म भाभी रेडी रहना अब कभी भी.....पुच्छ पुच्छ पुच्छ पुकच उउंम्म स्लूउर्र्रप्प्प्प....स्लूऊर्रप्प्प.....'' कहते हुए राखी ने बाबूजी के टट्टों पे किस्स की बौछार कर दी.

बाबूजी का लंड और भी अकड़ने लगा और मिन्नी ने सूपड़ा मूह में रख के उसकी आँख को जीभ से कुरेदना शुरू कर दिया. बाबूजी के शरीर में आती हुई अकड़न को देख के सरला की मुनिया भी रेडी हो चली. उसने संजय की उंगली बाहर की और दौड़ के बाबूजी के मूह पे बैठ गई. बाबूजी का ध्यान कुच्छ पल के लिए हटा पर फिर सरला की चुदी चुदाई महकती हुई चूत ने बरबस उनकी जीभ को बाहर निकालने पे मजबूर कर दिया. 5 सेकेंड में ही बाबूजी का लोडा लावा उगलने लगा और उनकी लपलपाति हुई जीभ पे सरला की चूत की बारिश हो गई. सरला ऊऊवन्न्‍ननणणनह आआन्न्न्नह की आवाज़ें करती हुई झरने लगी. उसकी इन्नर थाइस बाबूजी के सिर को हिलने नही दे रही थी.
क्रमशः...............................
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09-03-2018, 09:14 PM,
#93
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--30


गतान्क से आगे..............


बाबूजी के लंड की पिचकारीओं से मिन्नी भाव विभोर हो गई और सारा माल मूह में भरती चली गई. माल काफ़ी था और मूह से बाहर निकलने वाला था कि राखी थोड़ी सी टेडी हुई और अपने मूह को टट्टों के ठीक नीचे ले गई. मिन्नी के मूह की साइड से निकली वीर्य की धारें बाबूजी के टट्टों से फिसलती हुई सीधा राखी के होठों पे पड़ी. फटाफट लपलपा के राखी अपने होठों को जीभ से सॉफ करती रही. बाबूजी के वीर्य का स्वाद हमेशा ही उसको मज़ा देता था. इतने में मिन्नी ने बाबूजी का लोडा छोड़ दिया और राखी के होठों से अपने होंठ मिला दिए. अब दोनो जेठानी देवरानी एक दूसरे से लिपट गई और साइड से एक दूसरे को दबोच के एक एक मम्मो आपस में रगड़ते हुए गहरी गहरी किस्सस करने लगी. बाबूजी का वीर्य दोनो के मूह में भरा हुआ था. धीरे धीरे उसे गटाकने में दोनो को मज़ा आ रहा था और साथ ही साथ दोनो की जीभें भी आपस में भिड़ रही थी. इतने में सरला भी आगे को हुई और उनसे चूमा चॅटी करने लगी.

सखी जो की अबतक काफ़ी चुद चुकी थी और 2 बार स्खलित हो चुकी थी अचानक से कुच्छ सोच के संजय से अलग हो गई. संजय जो कि ऑलमोस्ट छूटने के लए रेडी था हैरान रह गया. तभी सखी ने उसका लंड पकड़ा और उसे उठाया और उसे लेके बाकी के ग्रूप के नज़दीक आ गई. फिर वो भी कुत्ति बनी और संजय के लंड के टोपे को मरोड़ते हुए उसे मुठियाते हुए सभी औरतों के मूह की तरफ कर दिया. अब चारों औरतें कुत्ति बनी हुई थी और संजय का लंड उनके आपस में जुड़े हुए गालों के बीच लहरा रहा था. संजय समझ गया कि सखी उसके वीर्य का स्वाद एक टाइम पे सबको चखवाना चाहती है. उसने आव ना देखा ताव और ज़ोर से लंड मुठियाना शुरू किया. 4रों औरतें रॅंडियो की तरह एक दूसरे से जीभ मिलाए हुए मूह खोले उसके वीर्य का इंतजार कर रही थी कि अचानक से सुजीत भी राखी की चूत छोड़ के दूसरी तरफ से आके खड़ा हो गया.

''एसस्स भैया एक साथ छोड़ना......सालिओ के मूह भर दो.....नहला दो...कुत्तिओ को....उउउम्म्म्म भैया रेअदययययी ??? मैं बस 2 - 3 बार में आया.........आप मेरी रांड़ सास और अपनी बहू के मूह पे छोड़ो मैं अपनी चुदास भभिओ को पिलाता हूँ........ एससस्स........ये लो राखी भाभी......मिन्नी भाभी....अपने देवेर का स्वाद लो.......उउररगज्गघह पिच्छ पिचह पिच पिचह पिचह प्सीहह...........उउउम्म्म्मम पिओछ्ह्ह्ह'' करहाते हुए एक के बाद एक 7 पिचकारियाँ संजय ने राखी और मिन्नी के मूह पे मार दी. दोनो के चेहरे वीर्य से सन्न गए और जगह जगह से वीर्य के धारे टपकने लगे. दोनो जैसे कई दिनो की भूखी एक दूसरे को किस करने लगी और एक दूसरे का चेहरा चाटने लगी. इतने में सखी ने राखी के गाल चाटने शुरू कर दिए और सरला ने दोनो से अपनी जीभ भिड़ा दी. सुजीत 4रों का रांड़पन देख के एक दम उत्तेजित हो गया और उसने भी सरला मूह खुलवा के उसमे पिच पिच करते हुए 4 - 5 पिचकारियाँ मार दी. सरला का मूह भरते ही ब्बाकी 3नो औरतें उसपे एक साथ टूट पड़ी. पहले बाबूजी और अब संजय और सुजीत के वीर्य मिश्रण से सबके चेहरे भरे हुए थे. पर सबसे कम सखी को मिला था और राजू से ये सहन नही हुआ. वो एक झटके में मिन्नी की चूत से बाहर हुआ और लगभग दौड़ते हुए उसने संजय को धक्का मारा और साइड किया. राजू अपने लंड को कस के सुपादे के नीचे से भींचे हुए था और उसने खट्ट से लंड का सूपड़ा सखी के मूह में घुसेड़ा और हाथ लंड से हटा लिया.

राजू का झरना इस आधे घंटे की चुदाई का सबसे बढ़िया द्रिश्य था. संजय ने सखी के दोनो गालों पे हाथ रखा हुआ था. सरला, मिन्नी और राखी एक दूसरे के मूह को चाट रही थी और राजू के वीर्य का इंतेज़ार कर रही थी. तभी सरला ने सखी के होठों की किनारी पे जीभ चलानी शुरू कर दी. राखी ने एक हाथ बढ़ा के अपने जेठ के टटटे थाम लिए और उन्हे हल्का हल्का मसाज करने लगी और राजू कमर पे हाथ रखे हुए सिर उपर उठाए ज़ोर ज़ोर से हाथी की तरह चिंघार्ते हुए सखी के मूह में झरने लगा. उसका लंड बहुत भयंकर रूप से झटके खा रहा था और उपर से सखी की जीभ उसके लंड के टोपे के निच्चे हिस्से पे रगड़ रही थी. 3 - 4 पिचकारियो के बाद अचानक से राजू को उन्मान्द का ऐसा झटका लगा कि लंड छितक के बाहर निकल आया और 2 - 3 पिचछकारियाँ सखी के मूह और संजय की थाइस पे गिरी.

बाकी 3नो औरतें ये देख के ऐसे टूटी जैसे कि भूखी शेरनिया हों. मिन्नी ने एक हाथ से सखी का मूह पकड़ लिया और उसको खोलते हुए राजू का वीर्य शेर करने लगी. राखी ने मूह टेडा करके राजू का लंड मूह में भर लिया और ज़ोर ज़ोर से उपर नीचे करने लगी. करीब 7 इंच मूह में भर लेने के बाद उसने एक बार फिर से राजू के टटटे सहलाए और आख़िरी पिचकारी अपने गले के नीचे उतरवा दी. राजू ने उसका सिर और भी दबा दिया जिससे की राखी के नथुने फूल गए और साँस अटक गई. उसके गाल भी फूल गए और राजू ने कस्स कस्स के उसके मूह में 4 - 5 घस्से मारे और लार टपकाता लंड बाहर कर लिया. राखी को खाँसी का एक दौर आ गया और उसकी लार बाबूजी के लंड और टट्टों पे गिरने लगी. सरला जो कि संजय की थाइस पे गिरा राजू का वीर्य चाट रही थी वो अब बाबूजी के लंड पे जुट गई और राखी की लार को चाटने लगी.

सखी और मिन्नी का चुंबन ख़तम होने का नाम ही नही ले रहा था और दोनो बाकी सबको धक्का मार के एक दूसरे से चिपक के कार्पेट पे लेट गई. बगल में घुटनो के बल बैठा हुआ संजय उनकी चूमा चाती को देखता रहा और सुजीत और राजू अपने अपने लंड थामे कार्पेट पे हाँफने लगे. बाबूजी का लंड सरला की जीभ से एक बार फिर खड़ा होने लगा पर उनके शरीर में जैसे जान नही थी. सरला की भीगी हुई चूत अभी भी उनके होठों से चिपकी हुई थी. और इस प्रकार बाबूजी की फॅमिली का चुदाई का एक और अध्याय ख़तम हुआ.

अब आगे देखते हैं कि इतनी चूते और इतने लंड आगे क्या क्या गुल खिलाते हैं.

मंडे की सुबह की शुरुआत धीमी थी. सभी सुस्ती में उठे. रात को एक एक राउंड और हुआ था. उसमे सभी औरतें एक के बाद एक सभी मर्दों की गोद में बैठ के चुद्ति रही. म्यूज़िकल चेर की तरह एक के बाद एक नए लंड को नई चूत मिलती. सभी बहुत अच्छे से चुदे और चोदा और मज़े लेके एक दूसरे को दिखा दिखा के गंदी गंदी बातें बोलते हुए झड़े. सरला के चुदाई में शामिल होने से एक बात तो पक्की हो गई थी. अब सबकी ज़ुबान पे हल्की हल्की गालियाँ आनी शुरू हो गई थी. कहाँ पहले सिर्फ़ रंडी चूत, लंड, चूचे, चोदो, फाड़ डालो, पेलो जैसे शब्दों का इस्तेमाल होता था. वहीं अब गालियाँ बहेन चोद, बहेन की लोदी, मदर्चोद, सास चोद, ससुर चोद, छिनाल, कुत्ति, भद्वे जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल होने लगा था. बीच बीच में अब थोड़ा सा प्यार के साथ साथ चुतडो पे थप्पड़ बजाने का भी रिवाज सा बनता जा रहा था. बाबूजी के चूतड़ो को छोड़ के ऑलमोस्ट सभी ने एक दूसरे के चूतड़ो पे थप्पड़ लगा दिए थे.
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09-03-2018, 09:14 PM,
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RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
सुबह जब बाबूजी उठे तो फ्रेश होने के बाद सबसे पहले वो राखी के कमरे में घुसे. राखी आधी नींद में बच्चे को दूध पीला रही थी. बाबूजी ने उसे प्यार से पुचकारा और अपनी धोती को साइड करके अपने टटटे उसके मूह को ऑफर किए. आधी नींद का खुमार तुरंत ही ख़तम हो गया और करीब 2 मिनट तक राखी ने बाबूजी के टटटे चाते. उसके इस आक्षन से बाबूजी का लंड तंन गया पर बच्चे की वजह से वो राखी का चुम्मा लेके बाहर आ गए. बाहर कॉरिडर में उन्हे सरला दिखी जो कि उनको देख के मंद मंद मुस्कुरा दी. बाबूजी ने उसे वही पकड़ लिया और दीवार से लगा के उसके मूह में जीभ डाल दी. थोड़ा सा कसमसाते हुए छ्छूटने का नाटक करते हुए सरला बाबूजी के मूह से मूह मिलाए उनके लंड को सहलाने लगी. तभी अपने कमरे से सखी नाइट गाउन में बाहर निकली. सुबहा की चाइ बनाने की ज़िम्मेवारी उसकी थी.

अपनी मा और ससुर को एक साथ चुंबन में देख के वो थोड़ी मचल उठी और नज़दीक जाके उसने दोनो के साथ अपनी जीभ भिड़ा दी. बाबूजी को ये एहसास नया लग रहा था कि मा बेटी दोनो एक साथ एक दूसरे को और उनको चूम रही हैं. कुच्छ देर बाद सखी अलग हुई और बाबूजी और सरला को गुड मॉर्निंग कहा. तब सरला ने उसे डांटा और कहा कि ससुर के पैर छु के आशीर्वाद लिया करो सुबह सुबह. जैसे ही सखी पैर छुए के उठने वाली थी कि उसकी नज़र सरला की मुट्ठी में भिंचे हुए बाबूजी के लंड पे पड़ी. उसने थोड़ा उपर देखा तो उसकी मा अपने मम्मे चुस्वाते हुए बाबूजी की जीभ को देख रही थी कि किस तरह वो उसके निपल्स को चाट रही है. तभी मा बेटी की नज़रे मिली और आँखों आँखों में इशारा हो गया. सखी ने झुकी अवस्था में ही बाबूजी का लोडा मूह में भर लिया. उसने अभी 15 - 20 चुस्से ही मारे थे कि अचानक सरला के झरने की सिसकियाँ उसे सुनाई दी. बाबूजी की जुड़ी हुई उंगली ने अपना कमाल दिखा दिया था. सरला के झरते ही बाबूजी ने अपना ध्यान सखी की तरफ किया और उसके सामने खड़े होके अपने लंड के घस्से उसके मूह में मारने शुरू कर दिए.

सरला आधी मदहोशी में अपनी बेटी का मुख चोदन होते हुए देख रही थी और बाबूजी के थूक से सने निपल्स को खींच रही थी. अचानक से बेल की आवाज़ आई तो बाबूजी चौंक गए. उन्होने एक झटके में लार से सना लंड सखी के मूह से बाहर निकाल लिया. सखी इससे पहले कि कुच्छ कहती बाबूजी धोती में लंड डाले अपने कमरे में चले गए. दरअसल उनको छ्छूटने में थोड़ा टाइम था और उनको पता था कि बेल कम्मो और मुन्नी के आने का संकेत है. वो जल्दबाज़ी में अपना वीर्य स्खलित नही करना चाहते थे. उनके कमरे में जाते ही सरला भी वापिस अपने कमरे में चली गई. अब एग्ज़ाइटेड हालत में सखी ने ही घर का दरवाज़ा खोला.

''छ्होटी दीदी आज तुम....वैसे तो बड़ी भाभी खोलती हैं.......'' कम्मो ने सखी को देख के कहा.

''हां कम्मो कल रात अच्छे से नींद नही आई सो जल्दी उठ गई....'' सखी के तने हुए निपल बैठने का नाम नही ले रहे थे और वो उनको च्छूपाते हुए मूड गई और किचन की तरफ बढ़ चली.

'' हे हे हे हे ....देख ना कम्मो .....लगता है भैया जी ने कल रात दीदी को सोने नही दिया तभी चूचियाँ इतनी तनी हुई हैं....हाए मैं मर जाउ....इसकी तो चूतरस की महक अभी तक आ रही है.....मेरे तो नाक में ही घुस गई.......मूह में पानी आ गया मेरी जान......'' मुन्नी हल्के से कम्मो के कान में फुसफुसा के बोली.

''चल हॅट हराम की जनि...तुझे तो बस दिन रात लंड चूत के ही सपने आते हैं ...अपने को देख 35 की होने चली है पर अभी भी जवान लौंडिया की तरह लंड चाहिए तुझे....अर्रे भैया जी ने कुच्छ नही किया होगा तब भी इसकी जवानी ऐसी है कि जलवे तो दिखाएगी ही.....और फिर तुझे क्या पता कि ये हाल इसके बच्चे ने ना किया हो.....मेरे बच्चे जब भी दूध पीते थे तो मेरे तो निपल आनंद में खड़े हो जाते थे. शायद इसके साथ भी वही होता हो.....'' कम्मो थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए मुन्नी को बोली. दरअसल इतने सालों से काम करते हुए उसे घर के सदस्यों से इतना लगाव हो गया था कि वो उनके खिलाफ कुच्छ नही सुन पाती थी. फिर चाहे वो उसकी करीबी दोस्त मुन्नी ही क्यों ना हो.

''अर्रे मेरी जान चूचे बच्चे को दूध पिलाने से खड़े हो सकते हैं पर बुर की इतनी तेज गंध तो कोई लॉडा ही पैदा कर सकता है. हो ना हो भैया जी ने सुबह सुबह ली होगी इसकी.'' मुन्नी ने सूट के उपर अपनी चुन्नी को बाँधा और सोफा सीट्स और बाकी सब चीज़ें सेट करने में लग गई. मुन्नी की बात में दम था पर कम्मो भी सोफा कवर्स सेट करने में बिज़ी थी. मुन्नी की बात को अनसुना करके वो बीती रात के बारे में सोचने लगी. रात रमेश शादी के बाद से पहली बार उसके करीब आया था. घर में कम्मो का पति मौजूद था पर रमेश ने उसके चूचे अच्छे से मसले थे. उसकी नई नवेली दुल्हन शादी के 2 महीने में ही पेट से हो गई थी. अब कम्मो और रमेश के लिए अगले 10 - 12 महीनो तक रति क्रिया करने का पूरा पूरा मौका बन गया था. कम्मो से सीख लेने के बाद रमेश को चूत्खोरि की इतनी आदत पड़ गई थी कि वो अपनी बीवी को दिन में 3 - 4 बार चोद के ही दम लेता था. बिना सेफ्टी के बस उसकी बजाता और नतीजा ये हुआ कि 2 महीने में ही उसकी बीवी के गर्भ ठहेर गया. पर उसे इसकी परवाह नही थी आज बीवी के बदले चाची तैयार बैठी थी.

घर के पिछे मूतने जाते हुए कम्मो ने आँगन में बैठे रमेश को इशारा कर दिया था. कम्मो के पति से बातों बातों में मूतने की बात करके रमेश भी पिच्छवारे चला गया था. जब वहाँ पहुँचा तो चूत के साथ साथ मम्मे भी बाहर खुले में मिले. उफ़फ्फ़ जालिम ने क्या मसला था उनको. उसका अधीर लंड तो चूत में घुसने ही वाला था कि बगल के घर से एक औरत बाहर निकल आई. शायद उसे भी मूतना था. उसको देखते ही कम्मो तो झारीओं में छिप गई थी और रमेश अपना लंड हिलाए मूतने लगा. ये बात पक्की थी कि रमेश ने उस औरत को भी अच्छे से लंड प्रदर्शन किया था.

खैर रात में उंगली से चूतरस निकाल के कम्मो को तो तस्सली हो गई थी और अब शाम के इंतेज़ार में रह रह के उसकी मुनिया पनिया रही थी. इसी सब में उसने गौर ही नही किया कि सोफा पे 3 अलग अलग जगह पे गीलापन छाया हुआ था. तीनो जगह पे उसके हाथ अच्छे से चले पर उसे तो बस रमेश के लंड से निकलती हुई वीर्य की धार नज़र आ रही थी. उधर किचन में अब सखी नॉर्मल हुई पड़ी थी और गुनगुनाते हुए चाइ बना रही थी. सबके लिए चाइ बना के उसने मुन्नी को आवाज़ दी और उसे चाइ टेबल पे लगाने को कहा. फिर वो बारी बारी सबको जगाने चली गई.

कुच्छ ही देर में सभी बारी बारी डाइनिंग रूम में आ गए. बाबूजी चाइ पीते हुए अख़बार पढ़ने लगे. करीब 15 मीं में चाइ पी के तीनो भाई तैयार होने चले गए. बाबूजी ने अपनी धोती नही बदली थी और उसकी धोती पे थूक के निशान लगे हुए थे. पर जिस तरीके से वो बैठे थे उससे कुच्छ नज़र नही आ रहा था. सरला भी डाइनिंग टेबल पे बैठी राखी से बातें कर रही थी और उसका बच्चा उसके आँचल के नीचे उसका दूध पी रहा था. कम्मो अक्सर ऐसे द्रिश्य देखती थी. पर उसे कभी भी अजीब नही लगा. आज घर की कोई भी बहू बाबूजी के सामने बिना आँचल के बच्चे को दूध नही पिलाती थी. और उनके घर का माहौल ऐसा प्यार भरा था कि ये सब बातें अजीब नही लगती थी.

बाबूजी चाइ की चुसकीओं के बीच सभी औरतों की बातें सुन रहे थे. मुन्नी कपड़े धोने में व्यस्त थी. सखी अपने बच्चे को दूध पिलाने अपने रूम में चली गई थी. राखी और कम्मो किचन में ब्रेकफास्ट की तैयारी में जुटी हुई थी. सरला चाइ पी के तैयार होने अपने रूम में चली गई थी और मिन्नी कभी किचन तो कभी मुन्नी के पास तो कभी राजू के कपड़े निकालने में व्यस्त थी. बाबूजी को किचन से राखी और कम्मो की बातें सुनाई दे रही थी.

''क्या री कम्मो आज तेरा ध्यान किधर है....काम में मन नही है क्या....?? देख ये प्याज कैसे काटा है. अरी ओमलेट में कभी लंबा प्याज डालता है क्या......??'' राखी उसको डाँट रही थी.

''अर्रे भाभी सॉरी ग़लती हो गई लाओ दो मैं दूसरा प्याज काट देती हूँ.....??'' कम्मो ने जवाब दिया और दूसरा प्याज काटने लगी. पर उसकी आवाज़ में कोई ग़लती का एहसास या डाँट का डर नही था. उसकी आवाज़ में खुशी की खनक थी.

''क्या बात है री...मैं डाँट रही हूँ और तू मुस्कुरा रही है....क्या बात है कल रात ख़सम के साथ अच्छी गुज़री क्या.....?'' राखी थोड़ी बुद्धू थी पर उसका स्वाभाव खुले दिल का था. इसलिए कभी कभी बिना सोचे समझे वो सॉफ मंन से ऐसे मज़ाक नौकरों के साथ भी कर लेती थी.

''अर्रे भाभी मेरी किस्मत आप जैसी कहाँ.....आपको तो भैया जी जैसे अच्छे मर्द मिले हैं.....मेरा तो नसीब ही खोटा है. मुझे आप जैसी रात गुजारने को कहाँ मिलती है....जब से इनका आक्सिडेंट हुआ है तब से बस मुश्किल से ही कुच्छ होता है .....और वो भी कई कई दिन में एक आध बार. एक हफ़्ता हो गया भाभी.........च्छुआ तक नही इन्होने.........'' अब कम्मो ने जान भूज के आक्टिंग की और उदास हो गई.

''अच्छा मेरी बन्नो तो फिर ये तेरी गर्दन पे प्यार की निशानी किसने छोड़ दी.........और वो भी एक नही 2 - 2 ??? कौन है जो तुझे मज़े दे रहा है......??'' राखी ने ये कहते हुए उसकी गर्दन की साइड पे हाथ फेरा. दरअसल रात में जब रमेश ने उसको दबोचा था तो खड़े खड़े उसका घाघरा उठा के चूत में उंगली की थी. उस समय उसने कम्मो की गर्दन पे गहरे चुंबन लिए थे और निशान उसी की वजह से बन गए थे. अब रात को कम्मो अपना काम करके सो गई और सुबह बच्चों को रवाना किया और पति को चाइ नाश्ता पकरा के काम पे आ गई. उसे तो अंदेशा भी नही था कि उसकी गर्दन पे ऐसे निशान बने हुए हैं. और काम पे आते हुए उसकी चुन्नी उसकी गर्दन और कंधों को धक्के हुए थी सो मुन्नी को भी पता नही चला. मुन्नी को इतना आइडिया था कि वो घर में किसी को बुला के लंड चूत खेलती है पर कौन है ये नही पता था.
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09-03-2018, 09:14 PM,
#95
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
अब जब राखी ने उसकी ये चोरी पकड़ ली तो कम्मो बहुत बुरी तरह से सकपका गई. और उसके हाथ से चाकू गिर गया. काँपते हाथों से उसने चाकू उठाया और सिर झुकाए फिर से प्याज काटने लगी.

''आररी क्या हुआ घबराती क्यों है....तू तो घर की है...बता नाअ...''राखी ने उसको छेड़ते हुए बात पुछि.

''अर्रे नही भाभी ऐसा कुच्छ नही है.....ये तो शायद ख़टमल ने काटा होगा रात में.......'' अनायास ही उसका हाथ गर्दन पे घूम गया और उसने निशान के आसपास खुजली की.

''हां री सच कह रही है तू....आजकल ख़टमल काफ़ी हो गए हैं....मेरे बिस्तर में भी एक है....बड़ा सा जो कि रोज मेरी टाँगों के बीच ऐसे ही मुझे काट लेता है......समझ रही है ना......... और उसी ख़टमल से कटवाने में मुझे भी मज़ा आता है.....तो अब जल्दी जल्दी बता की तेरा ख़टमल कौन है और उसका नाम क्या है.....?? नही तो बाबूजी को कह के तुझे नौकरी से निकलवा दूँगी.....'' राखी ने जान भूझ के उसे धमकी दी.

''नही भाभी ऐसा नही करना....मैं मर जाउन्गि.....इसी घर से तो मेरा घर चलता है....भूखों मर जाएँगे.....प्लीज़ मुझसे ये सब ना पुछो.........मैं नही बता पाउन्गि...'' कम्मो एक दम रुआंसी हो गई और उसकी आँखों से मोटे मोटे आँसू बह गए.

''अरी तू रोती क्यों है...मैने तो नाटक किया था....मैं भला ऐसा कैसे कर सकती हूँ........तेरा घर खराब हो गया तो पाप तो मुझे ही लगेगा ना....ना ना कम्मो ऐसे रोते नही........'' राखी उसका रोना देख के हैरान रह गई और अनायास ही उसका चेहरा उपर कर के उसके आँसू पोंच्छने लगी.

''उउउन्न्नज्गर्र्ह उउन्नग्गर्ह......क्या हो रहा है यहाँ....क्या हुआ ये कम्मो रो क्यों रही है.....??'' बाबूजी ने गला सॉफ करते हुए किचन के दरवाजे पे खड़े खड़े पुछा. कम्मो उनको देखते ही झट से मूड गई और किचन का नल चला के अपना मूह धोने लगी.

''अर्रे बाबूजी मैने इसे प्याज को लेके डाँट दिया था तो ये दूसरा प्याज काट रही थी....प्याज तेज़ था तो इसके आँसू निकल आए...सो मैने पोंच्छ दिए....'' राखी ने बात को संभाला.

''अच्छा ठीक है........बहू थोड़ा सा सरसों का तेल गरम कर के मेरे कमरे में भिजवा दो....मालिश करनी है.....'' बाबूजी ने कहा और अपने कमरे में चले गए. बाबूजी के दिमाग़ में कम्मो और राखी की बातें चल रही थी. उन्हे यकीन था कि कम्मो का किसी के साथ चोदम चुदाई का प्रोग्राम चल रहा है. उसकी पहली चुदाई में जब बाबूजी ने अपना वीर्य उसकी माँग में छोड़ा था तो कम्मो ने उनसे वादा किया था कि वो चूत सिर्फ़ और सिर्फ़ उनको देगी या उनकी पर्मिशन से किसी दूसरे को. अब कम्मो को वो वादा याद दिलाने का समय आ गया था.
क्रमशः...............
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09-03-2018, 09:15 PM,
#96
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--31


गतान्क से आगे..............



बाबूजी हफ्ते - 10 दिन में एक बार मालिश किया करते थे. अक्सर कम्मो उनकी पीठ की मालिश करती थी क्योंकि ये काम वो बहुओं से नही करवाते थे. पीठ की मालिश कर के वो चली जाती थी. आज अलग तरीके की मालिश का दिन आ गया था. कम्मो को चोदे हुए बाबूजी को करीब महीना हो चला था. उस दिन घर पे कोई नही था और मुन्नी भी दोपहर को गई थी. बाबूजी और कम्मो ने जम के चोदन किया था. पर आज बाबूजी को एहसास हुआ कि उनका महीने - 20 दिन में चुदाई करना काफ़ी नही है.

बाबूजी टाय्लेट सीट पे बैठे कुच्छ सोच रहे थे कि दरवाजे पे दस्तक हुई. अंदर से ही उन्होने अंदर आने का आदेश दिया और फिर फ्रेश होके कच्छा पहेन के बाहर निकले. उनको पता था कि अब 20 - 25 मिनट तक उनके कमरे में कोई नही आएगा. कम्मो की घबराहट अभी पूरी तरह से गई नही थी. गरम तेल की का बर्तन ज़मीन पे रख के उसने चटाई बिच्छा दी. बाबूजी बिना कुच्छ बोले चटाई पे पेट के बल लेट गए और कम्मो ने उनकी मालिश शुरू कर दी. दोनो के बीच ये रूल था कि घर के सदस्यों के होते उनके बीच सेक्स नही होगा...पर आज बाबूजी ये रूल तोड़ने वाले थे.

''हाआँ अच्छे से कर .....ह्म कमर पे भी करना .......हान्णन्न्......बढ़िया.....बहुत अच्छे ...आज तू पहले से अच्छे से कर रही है.'' बाबूजी कम्मो को रिलॅक्स करवाना चाहते थे. कम्मो उनकी बात से खुश हो गई और अच्छे से उनकी मालिश करने लगी. राखी से बात करके डर के मारे चूत का गीलापन जो ख़तम हुआ था वो अब फिर वापिस आने लगा था. बाबूजी की नंगी पीठ पे हाथ फेरते हुए कम्मो को गर्मी चढ़ने लगी थी. उसने एक गहरे कट की चोली बिना ब्रा के और घाघरा पहना हुआ था. आज उसने कछि भी अपने हाथ की सिली हुई पहनी थी जो की मर्द के कछे जैसी थी. उसकी चुन्नी जल्दी जल्दी में किचन में रह गई थी.

बाबूजी कुच्छ देर आराम से पीठ और टाँगों की मालिश करवाते रहे. कम्मो साइड पे बैठी बैठी उनको मालिश कर रही थी. बाबूजी नॉर्मली उससे पीठ की मालिश करवा के उसे भेज देते थे और बाकी की मालिश खुद करते थे. पर आज उन्होने थोड़ा चेंज किया. पीठ की मालिश करवाने के बाद उन्होने पोज़िशन चेंज कर ली. अब वो पीठ के बल लेटे हुए थे और कम्मो ये देख के चौंक गई.

''मालिक आज क्या आगे की भी मालिश करनी है ?'' कम्मो ने थोडा मुस्कुराते हुए पुछा.

''हां कम्मो आज मेरे हाथ में दर्द है सो आगे की मालिश भी तुम्ही करो.'' बाबूजी दरअसल उसको भड़काना चाहते थे. उसकी चूत पनियाने से उनका आगे का प्लान सफल होने वाला था.

कम्मो ने उनकी छाती पे तेल गिरा के मालिश शुरू की. धीरे धीरे बाबूजी की छाती के सारे बाल तेल से सन के चिपक गए और उनके निपल खड़े हो गए. कम्मो अक्सर उनके खड़े निपल उंगलिओ के बीच दबाती थी. पर ये सब चुदाई के दौरान ही होता था. पर आज बाबूजी सब कुच्छ अलग कर रहे थे तो फिर ये क्यों नही. ये सोच के उसने हल्के हल्के अपनी हथेलिओं को निपल्स पे चलाना शुरू किया और बाबूजी के चेहरे को देखा. बाबूजी आँखें बंद किए रिलॅक्स थे. फिर कुच्छ सेकेंड बाद कम्मो ने तेल में उंगलियाँ डुबोई और उनके खड़े निपल्स की मालिश करने लगी. बाबूजी के चेहरे पे स्माइल आ गई और फिर उन्होने अपने होंठ हल्के से खोल दिए. कम्मो समझ गई की अब कोई दिक्कत नही है और उसने अब अपने सेक्सी अंदाज़ में उनकी निपल्स को मरोड़ना शुरू कर दिया. बाबूजी ने पहले तो कुच्छ नही किया फिर अपना राइट हॅंड बढ़ा के कम्मो की मांसल जांघों को घाघरे के नीचे मसल्ने लगे.

अब कम्मो की चूत पनियाने लगी. लूज कछि में से चूत की महक कमरे में फैलने लगी. बाबूजी उसे सता रहे थे और उसकी गांद की दरार से दूर उसकी जाँघ सहला रहे थे. कम्मो को लगा कि बात और आगे बढ़ानी परेगी तभी कुच्छ होगा. उसने थोड़ा तेल और लिया और बाबूजी की नाभि और पेट के हिस्से पे लगाना शुरू कर दिया. वो धीरे धीरे बाबूजी के कछे के एलास्टिक की तरफ बढ़ने लगी. ऐसा करने से उसके चूतर थोड़े हवा में हो रहे थे. इतने में बाबूजी ने उसकी गांद की दरार में एक बार अपनी जुड़ी हुई उंगली फेर दी. कम्मो के बदन में बीजी दौड़ गई. सूखे पत्ते की तरह वो कांम्प उठी और हल्की सी सिसकारी निकल गई. उसके हाथ बाबूजी के कछे के एलास्टिक के पास रुक गए.

''कम्मो कच्छा खोल दे ......और मालिश कर....''बाबूजी ने उसे आदेश दिया.

बाबूजी की बात सुनते ही कम्मो की तो जैसे बाच्चें खुल गई और उसने मादक अंदाज़ में बाबूजी का कच्छा धीरे धीरे उतार दिया. बाबूजी अब अपने 7 इंच का मूसल लए पूरे नंगे लेटे हुए थे. कम्मो की आँखों में लोडा देखते ही वहशिपन उतर आया और वो एक हाथ से लंड को पकड़ के और दूसरे से अपनी चूत को दबाए हुए कुतिया पोज़ में आ गई. रात से पहले ही उसकी चूत लोडा खा लेगी ऐसा उसने सोचा भी नही था. पर बाबूजी के दिमाग़ में कुच्छ और ही था.

''देख रही है क्या हाल हुआ पड़ा है इसका......1 महीना हो गया तुझे इसे च्छुए हुए...पूजे हुए......कितनी शरम की बात है ...कि इतना बढ़िया हथियार सिर्फ़ मेरे हाथ में रहता है....इसको तो किसी और जगह पे रहना चाहिए.'' बाबूजी ने उसको उकसाते हुए कहा.

''मालिक मैं तो आपकी हूँ...जब आप कहोगे ये हथियार से मुझे चीर देना......हाए दैया....आज कितना सुर्ख लाल लग रहा है....मेरे तो मूह में पानी आ गया.........उउम्म्म्मम मालिक मुझे थोड़ा सा चूसने दो इसे.......आपसे बिनति करती हूँ.......ऊऊऊररररह मालिक ऐसे ना करो........मैं छूट जाउन्गि......'' कम्मो उनके लंड से अपने गरम गाल लगाए हुए लंड के टोपे को कभी गालों पे तो कभी गर्दन पे और कभी माथे और आँखों पे रगड़ रही थी. बाबूजी की जुड़ी हुई उंगलियाँ उसकी लूज कछि की साइड से उसकी चूत की दरार को कुरेद रही थी. बाबूजी को एहसास हुआ कि कम्मो पूरी तरह झरने को तैयार है. पर उसको अभी झारवाना नही है.

''कम्मो डाल इसे मूह में.......चूस ले.......आज इसकी भी मालिश कर दे अपने थूक से......उउम्म्म्म.......हंंणणन्.....'' बाबूजी ने कहा और दूसरे हाथ से उसका सिर लंड की तरफ दबाया.

कम्मो ने बिना देर किए लंड को मूह में भर लिया. चूस्ते हुए उसने थूक निकाल निकाल के सब गीला कर दिया. जब वो अपने काम में बिज़ी थी तो बाबूजी ने जान भूज के अपनी उंगली चूत से निकाल ली और उसकी पीठ को मसल्ने लगे. फिर उन्होने उसके पेट को मसला और हाथ बढ़ा के चोली के उपर से उसके निपल्स को रगड़ने लगे. दूसरे हाथ से वो अभी भी उसका सिर दबाए जा रहे थे. धीरे धीरे कम्मो पूरा 7 इंच मूह में ले रही थी और दूसरे हाथ से चूत उपर से खुजा रही थी. बाबूजी ने देखा कि कम्मो अपने आप को झारवाना चाहती है सो उन्होने उसका हाथ पकड़ के अपने मूह में डाल लिया और उसकी उंगलिओ को चूमने और चाटने लगे.
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09-03-2018, 09:15 PM,
#97
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
कम्मो अब लंड को मूह में रखे करहाने लगी. उसकी चूत करीब करीब छूटने को रेडी थी पर बाबूजी जो भी कर रहे थे या करवा रहे थे वो उसके लिए मना भी नही कर सकती थी.

''ओह कम्मो मज़ा आ रहा है.....थोड़ी देर और कर.......उउंम्म आज तुझे मक्खन खिलाउँगा......काफ़ी दिन हो गए ......उउम्म्म्म.....काश ऐसे ही रोज तुझे मक्खन खिला पाता.........हान्न्न....एससस्स.....करती रह....बढ़िया.....'' बाबूजी ने नेक्स्ट चाल चली.

''हां मालिक मुझे मक्खन खिलाओ....रोज खिलाओ......ऐसे नही ....खिलाओ भी और मुझे माखन से स्नान भी कर्वाओ......कितने दिन हो गए मैने ठीक से माँग भी नही भरी......'' लंड के चूपों के बीच कम्मो बोली.

''काश के मैं रोज तुझे बिना किसी की शरम और लिहाज के अपना मजबूत लोडा दे पाता......ऊओह........ऐसा लोडा तो तुझे कभी कभी नसीब होता है...काश के ऐसा लंड तुझे रोज नसीब हो जाए......'' बाबूजी अब कम्मो को भड़काने की पूरी कोशिश कर रहे थे.

''हां बाबू......दिलवा दो ना अपना रोज.....मैं तो मरी जाती हूँ इसके लिए.....वैसे भी जब से माँग भरी है किसी और को देखा भी नही...... अब तो पति भी माँगता रहता है ...कभी कभी उसे भी मना कर देती हूँ.......हाए जालिम क्या लंड है आपका .....पुच्छ पुकच्छ..पुच्छ मुझे रोज चाहिए...हमेशा....कभी मूह में तो कभी गांद में...कभी चूत में तो कभी मम्मो की दरार में.....उउम्म्म्म....बाबूजी कुच्छ तरकीब करो ना कि रोज मेरी निगोडी चूत को कुकछ मिल जाए.....'' कम्मो अब पूरी तरह से उत्तेजित थी और बाबूजी के जाल में फँसती चली जा रही थी.

''झूठ मत बोल.....कम्मो.....तू कितनी चुदास है मुझे पता है.......मेरे से तो महीने में कभी एक आध बार मज़े लेती है....तेरी जैसी जवानी बिना लंड के थोड़े रहेगी.....पति तेरा निकम्मा है ....ये तो मैं अच्छे से जानता हूँ. पर तू बिना लंड के रहे ये पासिबल नही है.........चल बता किसका लेती है इस निगोडी चूत में.....'' बाबूजी ने नया पैंतरा चला.

''किसी का नही लेती मेरे राजा.....सिर्फ़ तुम्हारा.....और किसी का भाता ही नही मुझे.....आप जब से मिले हो तब से सबको भूल गई हूँ.....कसम से.....मेरी मुनिया को कुच्छ कर दो बाबूजी...मुझे चढ़ने दो.......इस्पे.....'' बाबूजी से मिन्नत करते हुए कम्मो उनके लंड को मुठिया रही थी.

''हां चढ़ वाउन्गा तुझे पर अभी नही...अभी तू मेरी उंगली ले......'' कहते हुए बाबूजी ने जुड़ी हुई उंगलियाँ चूत में घुसेड दी. जान भूज के उन्होने प्रेशर के साथ पूरी उंगलियाँ डाली और कम्मो कसमसा उठी और उसका असर उसके लंड चूपने पे हुआ. हल्के दर्द की वजह से उसने मूह में भरे लंड को हल्के से काट खाया.

''ऑश ये क्या कर रही है छिनाल.......काट लेगी तो आगे से क्या खाएगी और तेरी इस निगोडी चूत में क्या घुसेगा....साअली आराम से कर......'' बाबूजी ने जान भूज के दर्द का नाटक किया.

'' ओओह्ह मालिक माफ़ कर दो.......दर्द हुआ क्या...ग़लती से हो गया...मेरे प्यारे राजा को मैं कैसे काट सकती हूँ..ये तो मेरी जान है...मेरा है......ऊओ बाबूजी कुच्छ जतन करो...किसी तरह से भी मुझे ये रोज दो.......अब सहा नही जाता....आपसे कैसे रहा जाता है मेरे बगैर.......कैसे सब्र करते हो.....?? ऊओ बाबा........मज़ा आ गया ...आपकी उंगलियाँ भी कुच्छ कम नही....ऊओउइमाआ.......थोरी देर और करोगे तो आपकी उंगलिओ को नहला दूँगी.........म्‍म्म्ममम...स्लूउर्र्ररर्प...स्ल्लुउर्र्ररप्प्प्प......उफफफ्फ़....'' कम्मो की हालत बहुत नाज़ुक थी और वो ऑलमोस्ट रेडी थी. अब बाबूजी को अपना लास्ट वार करना था. बाबूजी ने जान भूज के अपने बदन को तोड़ा सा उठाया और दीवार पे लगी घड़ी की और देखा. 11 बज रहे थे. उन्होने जान भूज के कुच्छ सेकेंड के लिए अपना ये पोज़ बनाए रखा और कम्मो मूह में लंड का टोपा लाइ उनको थोडा मूड के देखने लगी. बाबूजी की उंगलियाँ उसकी चूत में धँसी हुई रुक गई थी.

''ओह्ह्ह्ह नू....ये क्या हुआ....मुझे तो 11 बजे किसी से मिलने जाना था और 11 तो यहीं बज गए......'' कहते हुए बाबूजी थोड़ा गुस्से का नाटक करने लगे. इसी वजह से उनका लोडा थोड़ा मुरझा गया और कम्मो को महसूस हो गया कि अब आगे कुच्छ नही होगा. इससे पहले कि वो कुच्छ कहती या करती, बाबूजी झट से उठ गए और बिना कुच्छ बोले ही बाथरूम में घुस गए. कम्मो डर के मारे कुच्छ बोल भी नही पाई और अपने मूह में बाबूजी के लंड का स्वाद और नाक में उनकी भीनी भीनी खुश्बू लिए कमरे को सॉफ करके बाहर चली गई. उसे बहुत गुस्सा आ रहा था. कितने दिन के बाद कितना हसीन मौका बना था और बुड्ढे ने सब काम खराब कर दिया. पर साथ ही साथ वो डर भी रही थी कि कहीं उसकी वजह से बाबूजी की मीटिंग खराब हुई तो बहुत भारी पड़ेगा. उसकी पिघली हुई चूत अब पत्थर जैसे हो गई और सारी की सारी नमी जैसे हवा में उड़ गई. चुप चाप वो किचन में काम करने लगी.

कुच्छ समय बाद बाबूजी घर से चले गए. दोपहर को सब औरतों ने खाना खाया और सुस्ताने चली गई. कम्मो भी अपने घर जाने को तैयार हो रही थी. उसने बच्चों को खाना खिलाना था. जैसे ही वो घर से बाहर आई तो सामने से बाबूजी आ रहे थे. उनके चेहरे को देखते ही वो समझ गई कि जो भी काम था वो पूरा हो गया. बाबूजी काफ़ी रिलॅक्स्ड मूड में थे.

''कम्मो मैं नहाने जा रहा हूँ....15 मिनट में मुझे चाइ नाश्ता दे देना....'' बाबूजी ने घर के बाहर जूते उतारते हुए उसे कहा.

''जी मालिक....मालिक मैं थोड़ी देर घर हो आउ...बच्चे आ गए होंगे उन्हे खाना दे के आ जाउन्गि....'' कम्मो ने बाबूजी से पर्मिशन माँगी.

''हां ठीक है ...पर जल्दी आ जाना ...पेट में चूहे कूद रहे हैं....'' बाबूजी कहते हुए अपने कमरे की तरफ चले गए.

बाबूजी नहाते हुए अपने प्लान के बारे में सोचते रहे. उन्होने सोचा था कि कम्मो के मूह से कुच्छ ऐसा निकलवा लेंगे कि वो गैर मर्दों से अपने संबंधों के बारे में बता दे. पर उसने ऐसा नही किया. अब बाबूजी को अपनी सोच बदल के कुच्छ और करना था.

नहा के बाबूजी ने धोती पहनी और बाहर आ गए. करीब 5 मिनट बाद घर का मैन गेट खुला और कम्मो किचन में आ गई.

कम्मो ने बाबूजी को कमरे में चाइ नाश्ता दिया और वापिस किचन में चली गई. उसका मन बहुत ही उखड़ा हुआ था. रमेश अचानक से अपनी बीवी के साथ उसके मैके चला गया था और पता नही कितने दिन के बाद वापिस आना था. कम्मो की थर्कि चूत जो सुबह से पानी छोड़ रही थी ये खबर सुन के एक दम ठंडी पड़ गई थी. उपर से सुबह बाबूजी ने भी उसे गरम करके छोड़ दिया था. किचन में बेमंन से काम करते हुए वो सोचने लगी कि किसी तरह से बाबूजी का लंड से चुद ले तो आज का काम तो बन जाएगा. यही सोचते हुए वो बाबूजी के कमरे के नज़दीक पहुँची और दरवाज़ा नॉक करने ही लगी थी कि अचानक से उसे बाबूजी की आवाज़ सुनाई दी. बाबूजी शायद किसी से फोन पे बात कर रहे थे.
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09-03-2018, 09:15 PM,
#98
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
''अर्रे हां यार......आजकल काम ठीक चल रहा है. बच्चों ने बढ़िया से संभाल रखा है सब......और तू सुना ........ - दूसरी तरफ से कुच्छ बात कही जा रही थी)

अच्छा तो मतलब तू भी मेरी तरह से अब रिटाइर हो गया है....हे हे हे ....यार एक बात है कि सिर्फ़ 46 साल की उमर में रिटाइर हो जाना कोई अच्छी बात नही है....साला बड़ा अजीब सा लगता है.....

तू ठीक कह रहा है.... वाकई में ऐश के दिन तो अब शुरू हुए हैं......पर तेरा हिसाब ठीक है......भाभी के साथ मस्ती करता है घूमता है और ........हे हे ...समझ गया ना....

मैं ...मैं क्या यार घर में 3 - 3 बहुएँ हैं....एक समधन है ..नौकर चाकर हैं....पोते पोतियाँ हैं .....बस दिन भर उन के काम और मदद और थोड़ा बहुत बाहर घूम लेता हूँ.......3नो बेटे शाम को हिसाब किताब कर लेते हैं.....

अर्रे नही यार शादी और इस उमर में .......नही भाई मुझे लाइफ कॉंप्लिकेट नही करनी है........समझा कर भाई..........

देख सिर्फ़ उस चीज़ के लए शादी करूँ तो उसकी ज़रूरत नही है........हे हे हे ...वो तो वैसे भी मिल जाती है........हां आजकल थोड़ी दिक्कत सी हुई पड़ी है...... आजकल थोड़ी प्राइवसी कम है..........पर कोशिश कर रहा हूँ....... समझा कर यार......

अर्रे भाई पुछ मत मस्त माल है .....और फिर घर की मुर्गी है.....कभी भी कर सकता हूँ.... इनफॅक्ट आज ही कुच्छ किया भी.........पर यार तू तो जानता है कि घर में रहते हुए थोड़ा रिस्क होता है........

(इतने में बाबूजी की नज़र दरवाज़े की तरफ पड़ी और उनको किसी की परच्छाई नज़र आई.....बाबूजी जिस तरह बैठे थे उसी तरह से थोड़े से खुले दरवाज़े से उन्हे देख पाना नामुमकिन था.........उन्होने नीचे झुकते हुए अपना गाल कार्पेट पे लगाया तो 2 नंगे पैर और पिंड्लीया (कॅव्स) उन्हे नज़र आए.............बाबूजी समझ गए कि ये कम्मो ही है जो की घाघरा चोली पहने हुए है.........)

आररीए यार क्या बताऊ........अच्छा बच्चू मेरी बातें सुन के लंड हिला रहा है....साअले तू नही सुधरेगा....खैर बात ये है कि जिसकी बात मैं कर रहा हूँ उसको तो मेरा मीठा पानी बहुत पसंद है......और मुझे भी उसकी बजाने में बहुत मज़ा आता है....साली खुल के मस्त होके लेती है.......पर परेशानी है एक और घर कि मुर्गी की.........

अरी नही नही ...बहुओं की चिंता नही है ...वो तो सब मुझे बात मानती हैं और अगर मैने कह दिया कि मुझे डिस्टर्ब ना करो तो कोई नही आता.........पर जो दूसरी है उसपे कोई कंट्रोल नही है..........अबे समझा कर रिश्ता ऐसा है ना.....अबे समधन है मेरी.........उसको कैसे कंट्रोल करूँ...बराबर का रिश्ता जो है.......

अच्छा .....चल आइडिया तो बढ़िया है....मैं कुच्छ सोचता हूँ........और तू कब आएगा कितने साल हो गए तुझे मिले हुए........भाभी को भी ले आना .........यार वाकई में मुझे तेरे से जलन होती है........एक बेटी की शादी करके तू तो गृहस्ती से निपट गया और अब मज़े ले रहा है....काश मैं भी कुच्छ ऐसा कर पाता...........

चल ठीक है.....अब टच में रहना और भाभी को नमस्ते कह देना.....और सुन अगर आने का प्रोग्राम बनाना है तो करीब 3 हफ्ते बाद का रखना ....बच्चों के नामकरण हैं.....मैं इन्विटेशन भेज दूँगा.............

हां हां चल नाअ...साले तू हरामी था ...है और रहेगा........दिमाग़ तो लंड के टोपे में है तेरे.....साले चल अब मुझे भी कुच्छ करना है......समझा कर याआर.....साले इतनी बाते की हैं तो गर्मी तो आएगी ना.....अब ज़रा हाथ की एक्सर्साइज़ ही कर लूँ........हे हे..........ओके बाइ आंड टेक केर....'' कह के बाबूजी ने फोन रख दिया. कुच्छ सेकेंड के लिए वो मंद मंद मुस्कुराते रहे और अपने लंड को दबाते रहे. फिर अचानक उन्हे ध्यान आया कि कम्मो तो बाहर ही खड़ी थी. और उन्होने कुच्छ बाते जो अपने दोस्त से की थी वो जान भूज के कम्मो को सुनाने के लिए की थी.
क्रमशः...........................................
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09-03-2018, 09:15 PM,
#99
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
बाबूजी को पता था कि कम्मो थोड़ी देर में दरवाज़ा नॉक करेगी. पर वो उसे अभी और तड़पाना चाहते थे. सुबह कैसे कैसे प्लान सोच रहे थे वो और यहाँ सब कुच्छ अपने आप ही सेट होता दिखाई दे रहा था. थोड़ा और सोचने की ज़रूरत थी और बाबूजी उठ के टाय्लेट में चले गए जिससे कि कम्मो उनको डिस्टर्ब ना कर सके.
बाबूजी मस्ती में टाय्लेट में बैठे हुए प्लान बनाते रहे. उन्हे यकीन था कि कम्मो ने उनकी काफ़ी बातें सुनी हैं. अब उसके बदन में आग लग रही होगी. इसका फ़ायदा उठाना ज़रूरी था. उन्होने राजू को एसएमएस किया कि वो और संजय सब बहुओं और बच्चों को 5 बजे लेने आए और करीब 8 बजे तक सबके साथ वापिस लौटे. शाम के करीब 4 बज गए थे. उन्होने फिर सरला को एसएमएस किया कि वो बहुओं से कहे कि आज शाम 3नो कपल और बच्चे बाहर खाना खाने जा रहे हैं. 5 बजे राजू और संजय आएँगे और उनको लेके जाएँगे. लास्ट में उन्होने लिखा कि एक बहू का इन्तेजाम हो गया समझो. उधर कम्मो बाबूजी की बातें सुन के खुश थी. उसकी टाँगो के बीच की आग फिर से भड़क गई थी. उसे लग रहा था कि बाबूजी ने अपने दोस्त से उसी की बात की थी. पर आज एक बात क्लियर हो गई कि सरला की वजह से उसकी और बाबूजी की रंग रलिओ में दिक्कत आ रही थी. अब उसका दिमाग़ उस ओर चलने लगा कि कैसे इस बात का इलाज किया जाए. कुच्छ सोचने के बाद उसने सोचा कि बाबूजी से इस बारे में डाइरेक्ट बात कर लेनी चाहिए.

उधर सरला उठने ही वाली थी कि बाबूजी का एसएमएस मिला. पढ़ते हुए उसे एक अजीब सी एग्ज़ाइट्मेंट मन में होने लगी. बाबूजी का दिमाग़ क्या सोच रहा है ये तो क्लियर नही था. पर कुच्छ तो बात थी. खैर अब आगे का सोच के उसको मज़ा आ रहा था. वो तैयार हुई और सभी बहुओं को जगा के उन्हे रेडी होने को कहा. फिर वो किचन में चली गई तो देखा कि कम्मो वहाँ चाइ बना रही थी. साथ ही साथ वो खाने की तैयारी भी कर रही थी. सरला ने उसे रोक दिया और कहा कि खाना सिर्फ़ 2 लोगों का बनाना है आज बाकी लोग बाहर जा रहे हैं खाना खाने. ये सुन के कम्मो खुश हो गई. पर उसे थोड़ी चिंता हुई कि वो अब बाबूजी से बात कैसे करेगी. तभी उसको याद आया कि बाबूजी के कमरे में झूठे बर्तन पड़े थे. उनको उठाने के बहाने वो बाबूजी के कमरे में चली गई.

बाबूजी कमरे में बेड पे बैठे टीवी देख रहे थे. कम्मो ने टेबल से सब बर्तन समेटे और सफाई की. फिर वो बाबूजी की तरफ मूडी और उनसे कहने लगी.

''बाबूजी आप से एक बात कहनी है.....बुरा तो नही मानेंगे....'' कम्मो ने थोडा हिचकिचाते हुए कहा.

''हां बोलो कम्मो क्या कहना है ?'' बाबूजी की आँखें टीवी पे थी.

''जी वो ना एक बात है ...आप ध्यान से गौर कीजिएगा .....मैं ना आपके बिना नही रह सकती.....सच कह रही हूँ आपके मूसल के बगैर मेरा गुज़ारा नही है.....आप कुच्छ भी कर के मुझे रोज़ चोद दिया करो......और कुच्छ नही तो मेरी मुनिया सहला दिया करो अपनी जुड़ी हुई उंगली से.....बाबूजी आज सुबह से भड़की हुई हूँ...शांति नही मिल रही.....प्लीज़ बाबूजी अभी कुच्छ कर दीजिए ना....'' कम्मो गांद मटका मटका के तरसी हुई आँखों से बाबूजी की धोती की तरफ देख रही थी.

'' कम्मो तू अभी यहाँ से जा और 10 मिनट बाद मेरे लिए चाइ लेके आना...तब बात करूँगा'' बाबूजी ने उसकी आँखों में झाँकते हुए उसे आदेश दिया. कम्मो उनके चेहरे के हाव भाव समझ नही पाई. पर बिना कुच्छ बोले वो चली गई.
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09-03-2018, 09:16 PM,
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
उसके जाते ही बाबूजी ने एक एसएमएस सरला को भेजा कि बच्चों को भेज के वो अपने कमरे में रेडी होने चली जाए. कोई सेक्सी सी ड्रेस पहेन के वो बाबूजी का अपने कमरे में वेट करे. उधर जब तक कम्मो किचन में वापिस पहुँची तब तक सभी बहुएँ चाइ पी के अपने अपने कमरे में जाने लगी थी. सरला वहीं बैठी फोन पे कुच्छ कर रही थी. दरअसल सरला ने एक सेक्सी एसएमएस टाइप करके बाबूजी को भेजा था. ''समधी के मूह को मिला समधन का चूचा तो लंड बिगड़ गया....अया... समधन की गीली चूत में घुसते ही साले का दम निकल गया .....हा हा हा''. कुच्छ ही देर में बाबूजी का जवाब आया. '' समधन की चूत का कचूमर बना तो चूचे चिल्ला पड़े .....हाए जालिम नीचे की ले ना ......हमें क्यों भींच दिया.....????''

कम्मो इन सब से बेख़बर सोच में थी कि बाबूजी से वो क्या कहेगी या वो उनसे क्या कहेंगे. बाबूजी के चेहरे के हाव भाव तो वो समझ नही पाई थी पर उसको डर लग रहा था कि कहीं वो कुच्छ ज़ियादा तो नही कह गई. खैर अब जब ओखली में सिर दे ही दिया है तो मूसलों से क्या डरना और वैसे भी वो तो ये सब मूसल के चक्कर में ही कर रही थी ना.....ये सब सोच के एक बार फिर उसकी कछि गीली हो गई. चुप चाप से बाबूजी के लिए चाइ लेके वो उनके कमरे में दाखिल हुई. बाबूजी ने उसे देखा तो फोन को साइड में रख दिया. बाबूजी का कम्मो, मुन्नी और शारदा की चुदाई का किस्सा सबको पता था. पर कम्मो को नही पता था कि बाकी सब जानते हैं कि वो कब कब बाबूजी के लौडे से धन्य हुई. काँपते हाथों से उसने चाइ बाबूजी को पकड़ाई तो बाबूजी ने थोड़ा सा सरकते हुए उसे बेड पे अपने नज़दीक बैठने का इशारा किया. कम्मो एक बार के लिए हिचकी पर फिर उसे याद आया कि इस बेड की शोभा तो उसके नंगे बदन ने कई बार बढ़ाई है....ये सोच के वो थोड़ा सा मुस्कुराइ और फिर बैठ गई. उसकी चुचियों में अब एक गर्मी का एहसास था और निपल खड़े हो चुके थे. बिना ब्रा के चुन्नी से एक चूचा तो ढका हुआ था पर दूसरे का निपल मानो चोली को फाड़ के बाहर निकलने को उतावला हो रहा था.

बाबूजी ने चाइ की एक चुस्की ली और फिर बड़े प्यार से उसकी वोही चूची को मसला. कम्मो की आँखें बंद हो गई और उसका हाथ उनके हाथ के उपर आ गया. बाबूजी ने अपने हाथ को वहीं रोके रखा और उसको देखते रहे. कम्मो के चेहरे की मादकता का एक अलग ही नशा था. बाबूजी की आँखों में वो नशा उतरा तो असर सीधे लंड पे हुआ जो कि धोती में से बाहर आने को बेताब हो गया. बाबूजी ने कम्मो के हाथ के नीचे से अपना हाथ निकाला और फिर उसका हाथ पकड़ के अपने लौडे पे रखवा दिया. बाबूजी के मजबूत लंड ने कम्मो की हथेली में जगह बनाई तो कम्मो का मूह खुल गया. बिना कुच्छ कहे वो नीचे झुकी और लंड का टोपा धोती में से निकाल के अपने मूह में साटक गई. बाबूजी ने उसके कुछ सेकेंड तक जीभ से टोपे को रगड़ने दिया और फिर उसका चेहरा उपर को किया. लंड का टोपा अभी भी मूह में था और कम्मो की आँखों में एक फरियाद थी.....''मुझे चूसने डूऊऊ....... मर जॉंग्जाइयैयीयी नही तो......''. पर बाबूजी तो कुच्छ और ही सोच रहे थे. उन्होने कम्मो का चेहरा उपर किया और कम्मो उन्हे रोक नही पाई. उसकी आँखों से आँसू बहने को तैयार थे. बाबूजी को उसकी ठरक का पूरा अंदाज़ा हो गया.

''सिर्फ़ एक बार पुछुन्गा.....सच बता देगी तो तेरी प्यास का इंतज़ाम कर दूँगा.....हमेशा के लए.........पर अगर एक बार के लिए भी लगा कि झूठ कह रही है तो इस बिस्तर पे तुझे फिर कभी जगह नही मिलेगी.......'' बाबूजी के स्वर में कुच्छ कठोरता थी.

''जी सच कहूँगी....इसके लए सब कुच्छ सच कहूँगी.....मुझे ये बिस्तर नही छोड़ना.....सब कुच्छ छूट जाए पर ये नही छोड़ सकती....'' कम्मो बाबूजी के लंड को भींचे हुए थी और उनको जवाब देते हुए लंड को हल्के हल्के दबा रही थी. 

''जब से तूने मेरा लिया है तब से मेरे अलावा और कितने लिए हैं....??'' बाबूजी ने पुछा. उनकी चाइ की चुस्कियाँ बंद थी और कप साइड टेबल पे रख दिया था.

''आआपको छु रही हूँ और वो भी आपकी उस चीज़ को जिसको मैने अपनी माँग भरने का हक दिया......आपके बाद 2 का लिया......'' कह के कम्मो की नज़रें झुक गई.

''किसका और कब कब ???'' बाबूजी की आवाज़ में कोई गुस्सा या गम या खुशी नही थी.

''एक बार बड़े भैया जी का.....मुन्नी के साथ और काफ़ी बार इनके दोस्त के बेटे रमेश का........ उसका तो आज भी लेना था पर वो निगोडा अपने ससुराल चला गया.'' लंड को पकड़े हुए हाथ काँप रहा था. होंठ सूख गए थे और मूह से आवाज़ बहुत हल्के निकल रही थी.

''वो निगोडा मेरे कहने पे ही अपने ससुराल गया है.........'' बाबूजी ने सॉफ शब्दों में कहा.
क्रमशः................................
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