Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
09-03-2018, 08:54 PM,
#1
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खानदानी चुदाई का सिलसिला--1

कहानी के मे कॅरेक्टर्स से आपका इंट्रोडक्षन:

बाबूजी - नाम राजपाल उमर 45 साल, हाइट 5 फ्ट 9 इंच, रंग गेहुआ, पतली मूछ रखते हैं और पैदाइश से उनके राइट हॅंड की फोरफिंगर और मिड्ल फिंगर जुड़ी हुई हैं. इसका इस कहानी में बड़ा योगदान है.

राजकुमार उर्फ राजू - घर का सबसे बड़ा लड़का, उमर 32 साल, हाइट 6 फ्ट 2 इंच, रंग गोरा. इनकी ख़ासियत ..बाद में बताएँगे.

मीना उर्फ मिन्नी - घर की सबसे बड़ी बहू और राजू की वाइफ, उमर 31 साल, रंग गोरा, हाइट 5 फ्ट 6 इंच. ये एक ग़रीब घर की पैदाइश हैं. बड़े परिवार की सबसे बड़ी लड़की. इनके घर में कोई भी सागा भाई बहेन नही था. इनके पिता ने 2 शादियाँ की. पहली से मिन्नी हुई और 2 साल की उमर में मा का देहांत हो गया. उसके बाद पिता ने दूसरी शादी की और उनसे 2 लड़के और 1 लड़की हुई. वो सब एक गाओं में रहते हैं.

सुजीत - घर का मझला बेटा, उमर 30 साल, रंग काला, हाइट 5 फ्ट 8 इंच. इनकी ख़ासियत है इनका हासमुख स्वाभाव और वो भी अपने को लेके. सबके बीच अपना ही मज़ाक बना लेते हैं.

राखी - सुजीत की वाइफ. उमर 28 साल, रंग गोरा, हाइट 5 फ्ट 9 इंच, इनकी ख़ासियत कि यह घर के हर सदस्य से प्यार करती हैं .. और उनका हर तरह से ख़याल रखती हैं..हन पर घर के काम में कुच्छ कमज़ोर हैं.

संजय - घर का सबसे छ्होटा बेटा, उमर 29 साल, रंग गेहुआ, हाइट 5 फ्ट 11 इंच, पढ़ाई में अव्वल, काम में तेज़, दिमाग़ से तेज़. चुप रहना पसंद है इन्हे ज़ियादातर, पर जब बोलते हैं तो बाकी लोग सुनते हैं. इनकी एक और ख़ासियत है और वो है मस्ती में आके इनका जंगलीपन. अगर कभी ये दारू पी के टन हो जाएँ तो जैसे की बाकी लोग लूड़क जाते हैं ये उसका उल्टा करते हैं. ये और भी आक्टिव हो जाते हैं. ये ख़ासियत इनके बहुत काम की है..!!

सखी - घर की सबसे छ्होटी बहू और संजय की वाइफ, उमर 23 साल, रंग सांवला, हाइट 5 फ्ट 1 इंच, सबसे चुलबुली, और सबसे घुल मिल के रहने वाली. इनकी ख़ासियत है इनकी फॅशन सेन्स. किसी भी ड्रेस में ये अच्छी दिखती हैं. दूसरे इनकी ख़ासियत है इनके खूबसूरत बाल. इनके बाल इनकी कमर से भी नीचे तक लहराते हैं और ये उनका बहुत ख़याल भी रखती हैं.

ये सब सदस्य एक ही घर में एक छ्होटे से शहेर में रहते हैं. जैसा की छ्होटे शहरों में होता है गली मोहल्ले के लोग इन्हे अच्छे से जानते हैं और आपसा की खुशिओ और गम में शामिल होते हैं. पर छ्होटे शहरों की एक ख़ासियत और भी है और वो है बंद कमरों के पिछे होने वाली कहानिया. जो चीज़ें बड़े शहरों में खुले आम बिना पर्दों के होती हैं वोही चीज़े छोटे शहरों में पर्दों के पिछे होती है. अगर पड़ोसी को पता चल जाए तो बात कहाँ की कहाँ पहुँच सकती है. पर इस घर का हिसाब थोड़ा अलग है.... ये घर शहेर में होते हुए भी थोड़ा अलग है. क्योंकि इस घर के चारों तरफ एक बड़ा आँगन है. और हो भी क्यों ना हो आफ्टर ऑल बाबूजी शहर के पुराने रईसों में से एक हैं. पूरा घर और आँगन मिला के 4 एकर के करीब जगह है. चारों तरफ 8 फ्ट की दीवार और बीचों बीच 6 बेडरूम का मकान. घर की एंट्री के बाद एक बहुत बड़ा ड्रॉयिंग रूम है. उससे लगता हुआ एक बड़ा सा डाइनिंग एरिया और उसके साथ किचन. इसके अलावा घर के दूसरे हिस्से में सबके कमरे हैं जिनको एक कामन कॉरिडर जोड़ता है.

सबसे पहले बाबूजी का कमरा है और उनके ठीक सामने राजू का. उनके साथ संजय का और सामने सुजीत का. उनके बाद 2 गेस्ट रूम हैं. हर कमरे के साथ एक अटॅच्ड बाथरूम है. इस प्रकार 3 - 3 कमरो के 2 सेट कॉरिडर के दोनो तरफ हैं. हर सेट के कमरो में आपस में भी एक एक डोर है जिससे की एक रूम से दूसरे रूम में जा सके.

घर की छत पे एक 2 रूम का सेट है जिसमे नौकरों के रहने का प्रबंध है. इस घर में आज से पहले हमेशा नौकर रहा है, पर जब से दीनू काका का देहांत हुआ तब से कोई भी अच्छा नौकर नही मिल पाया. आजकल ये परिवार घर में बिना नौकर के गुज़ारा कर रहा है. बस एक नौकरानी है कमला जो कि सुबह से लेके शाम तक घर के काम काज में मदद करवा देती है और चली जाती है.

''अर्रे बड़ी बहू इधर तो आना... क्या कर रही है..अगर खाली है तो आजा ज़रा '' बाबूजी ने ड्रवोयिंग रूम के सोफे पे लेटे लेटे आवाज़ दी.

''जी बाबूजी अभी आई....हंजी लीजिए आ गई..बताइए क्या काम है..'' मिन्नी ने कमरे में दाखिल होते हुए कहा. क्रीम कलर की सारी का पल्लू अपनी कमर में दबाए वो बाबूजी के सामने सोफे पे बैठ गई.

''क्या कर रही थी बहू ?? देख ना तेरा सीरियल आने वाला है..चल दोनो मिल के बैठ के देखते हैं..क्या कुछ काम कर रही थी क्या..???'' बाबूजी ने पुछा.

'' जी नही बस काम ख़तम कर के अपने कमरे में सुसताने जा रही थी. आज कल इस सीरियल में मन नही लगता. जब से उस हेरोयिन का पति मरा है तब से ये बेचारी सफेद साड़ी में घूम रही है..मुझे तो इस्पे तरस आता है और इसके पुराने बाय्फ्रेंड पे भी जो आज तक इसके आगे पिछे घूम रहा है. देखिए ना बाबूजी ये समाज की कैसी परेशानी है कि 2 प्यार करने वाले आपस में मिल भी नही सकते. तो क्या हुआ कि वो एक विधवा है ...तो क्या उसे प्यार का हक नही है....क्या उसके सीने में और उसके बदन में मेरी जैसी आग नही लगती होगी...?????'' मिन्नी ने थोड़ा उदास और थोड़ा गुस्से में कहा.
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09-03-2018, 08:54 PM,
#2
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
'' अररी बहू तू क्यों गुस्सा होती है ये तो बस एक नाटक है...कोई हक़ीकत थोड़े ही है, और फिर तुझे क्या तेरे पास तो राजू है ना..या फिर बात कुछ और है..बता...मुझे अगर वो आजकल तेरा ख़याल नही रखता तो 2 चाँते दूँगा उसे..'' बाबूजी ने गुस्सा दिखाया.

'' बाबूजी आप गुस्सा ना करो और ना ही उन्हे चाँटा मारना पर सच तो ये है कि वो आजकल मेरी भूख नही मिटाते. मैं प्यासी रह जाती हूँ और वो अपने मज़े लेके सो जाते हैं. पता नही कभी कभी तो मुझे लगता है कि इनका कोई और लेफ्डा चल रहा है '' मिन्नी उदास हो गई.

'' अच्छा तो तूने पिच्छली बार मुझे क्यों नही बताया...कब से चल रहा है..3 दिन पहले ही तो हम साथ थे तब तो तूने कुच्छ नही कहा...''

'' अर्रे नही बाबूजी ये परसों से हो रहा है. परसों रात मैने इनका कितना ख़याल रखा मन लगा के इनको कितना चूसा और कितने मज़े से इनकी गोटिओं को सहलाया पर ये कुच्छ करने के मूड में भी नही आए.......और जब मैं इनके मूह पे चढ़ि तो इन्होने बड़े अनमने ढंग से मेरी मुनिया में अपनी जीभ दी. मुझे तो समझ नही आई.....सच कहती हूँ बाबूजी अगर ये आपके साथ करती तो उस रात कम से कम मेरा 4 बार काम होता. और इनको देखो बस एक बार किया और सो गए. और तो और तब से अब तक दिन में एक बार भी नही किया इन्होने मेरे साथ''' और ये कह के मिन्नी सूबकने लगी.

''' अर्रे अर्रे तू रोती क्यों है मेरे होते हुए.....मैं उसे सबक सिखाउन्गा आज रात. आज तुम रात को राजू को लेके मेरे कमरे में आना...मुझे पता है कि तेरा ख़याल कैसे रखना है..आख़िर तू घर की सबसे बड़ी है और मेरी प्यारी बहू है....चल अब चुप हो जा और देख तेरे पास आते ही मेरा क्या हाल हुआ है...देख मेरी धोती में तंबू बन गया. चल आजा मेरी प्यारी बहू आजा अपने ससुर जी का ख़याल कर और अपनी मुनिया लगा इस तंबू पे....ऐसे रोते नही है...आजा मैं तेरे होठों पे हँसी ला दूं...और देख मुझे पता है कि तुझे कैसे हसाना है..देख मैने धोती भी खोल दी.....अब तो लगा दे अपने होंठ इस बेचारे पे...''' बाबूजी ने अपनी धोती को खोलते हुए मिन्नी के चूचे सहलाए..

''' हॅयाययी बाबूजी कभी कभी तो मन करता है कि आप ही को अपना मर्द बना लूँ..आप कितने अच्छे से समझते हो मुझे.. सच में अगर ये और ऐसे चले तो मैं आपके कमरे में शिफ्ट हो जाउन्गि...कम से मेरा नंगा बदन देख के आप तो 2 - 3 बार करोगे मुझे...ना कि इनके जैसे जो एक बार भी नही कर रहे आजकल...अर्रे ये क्या बाबूजी ...आपका सूपड़ा तो लाल हुआ पड़ा है और ये खरोंच कैसी है नीचे के हिस्से में....हाइईइ दैया ये तो आपके टट्टों पे भी खरोंच है...ये सब क्या हो गया.....''' मिन्नी ने अपने ससुर जी का लोडा सहलाते हुए कहा. उसकी नज़र उनके लंड पे टिकी हुई थी और वो देखे जा रही थी और सहलाए जा रही थी.


'''उउंम्म बहू तू इसकी चिंता ना कर ...बस चल अब अपने होठों की मुस्कान इस्पे चिपका दे...देख कैसे तरस रहा है ...तुझे याद है ना कि 4 दिन हो गए तुझे इसे चूसे हुए.. 3 दिन पहले भी सिर्फ़ इसे अपने भोस्डे में लिया था...उस दिन तेरे मूह में दर्द था और तूने मना कर दिया था.....अब आज तो दर्द नही है ना...तो चल मेरी रानी आजा इस प्यार से अपने होठों से पूचकार दे.....'' बाबूजी अब सोफे के सामने खड़े खड़े अपने मोटा लंड मिन्नी के चेहरे के सामने लहरा रहे थे.

''' हां बाबूजी मुझे सब याद है....और मैं तो उस दिन भी चूसना चाहती थी ,, पर क्या करती...मजबूर थी...पर आज तो ज़रूर चूस लूँगी और आज आप देखना थूक भी कितना निकलेगा..आख़िर कार मैं भी तो चुदासी हूँ 2 दिन से..आइए ना बाबूजी आगे बढ़ के मुझे मुख चोदन कीजिए...और ये क्या आपने धोती नही उतारी अभी तक ....जबकि आपको पता है मुझे आपकी नंगी गांद से खेलना बहुत प्संद है लोडा मूह में रख के....ऊऊऊहह बाबूजीइीइ..आऊूओ नाआ...उम्म्म्ममम....स्लूउर्र्
र्र्प...स्लूउर्र्र्र्र्ररुउउप्प्प...उउउम्म्म्ममममम..उउउम्म्म्मम यएएसस्स्सस्स....ऊओह...ऊऊऊ बाबूजी मेरी मुनियाआअ......आअहह ये तो पनियाअ गैइइ....बाबूजी आपका सख़्त मूसल देख के........चलिए नाअ अब आपके कमरे में चलते है....उउउम्म्म्मसल्ल्लूउर्र्र्र्रर्प...स्लर्र्र्र्रृूपप.....वहाँ पूरे नंगे होके करेंगे.....येस्स्स येस्स्स्स बाबूजी ऐसे ही मेरी निप्प्प्ले खींचूऊओ....उउउम्म्म्म''''' मिन्नी आने वाले संभोग की खुशी में मस्त होते हुए बोली...


दोनो उठ कर राजपाल के कमरे में चले गए. राजपाल की धोती तो खुल चुकी थी सो चलते हुए उसने अपना कुर्ता भी उतार दिया और पूरा नंगा हो गया. कमरे में पहुँच के उसने अपना कुर्ता धोती अलमारी में टंगा. इतने में मिन्नी अपनी साड़ी उतार चुकी थी और अपना पेटिकोट खोल रही थी. नडा शायद ज़ियादा टाइट था इसलिए उसे दिक्कत हो रही थी. बाबूजी ने आगे बढ़ के उसका नाडा खोलने में मदद की. पेटिकोट उतरा तो नीचे वो नंगी थी.

'' क्या बात है बहू आजकल तू पॅंटी नही पहनती. या फिर आज ही नही पहनी. लगता है तुझे पता था कि आज तुझे मेरे पास होना है. '' बाबूजी मुस्कुराते हुए बोले. दोनो अभी खड़े थे और बाबूजी का लंड मिन्नी की चूत के सामने हिचकोले खा रहा था. मिन्नी थोडा सा मूडी और अपनी पीठ बाबूजी की तरफ की ताकि वो उसके ब्लाउस की ज़िप खोल सकें. बाबूजी ने ब्लाउस की ज़िप के साथ साथ ब्रा के हुक भी खोल दिए और बाजू उपर करते हुए मिन्नी ने दोनो को एक साथ उतार दिया.

''बाबूजी ऐसा कुच्छ नही सोचा था मैने पर हां 2 दिन में जब कुच्छ नही हुआ तो आज किचन में खड़े खड़े मैं अपनी मुनिया सहला रही थी तब से पॅंटी उतारी. बाबूजी आज आपका काफ़ी सख़्त हुआ पड़ा है ..पर ये खरोंच और लाली क्यों आई ये तो बताइए. मुझे आपकी चिंता रहती है. अब आप धीरे धीरे बुड्ढे हो रहे हैं सो मुझे आपका और ख्याल रखना है. '' मिन्नी अपने दोनो हथेलिओं में राजपाल का लंड और टट्टों को सहलाते हुए बोली.

'' अर्रे बेटी तू कितनी अच्छी है. दरअसल कल रात संजय और सखी अपने कमरे में लगे हुए थे. सखी की आदत है उसपे चढ़ने की सो वो उपर चढ़ के घुरसवारी कर रही थी. मुझे उसके कमरे से राज शर्मा की कहानियो वाला नॉवेल लेने जाना पड़ा. तो जब मैं ले रहा था तो सखी ने मुझे वहीं रोक लिया और लोडा चुसवाने की गुज़ारिश करने लगी. अब देख वो घर की सबसे छ्होटी और लाडली बहू है सो मैं मना नही कर पाया. उसने जोश जोश में लंड तो चूसा पर उसका मूह तेरे मूह से छ्होटा है ना...इसलिए सुपाडे पे दाँत लग गए. उस टाइम जब मैं दर्द में कराहा तो मेरे हाथ उसके सिर को पकड़े थे और उसने मेरे लंड को अड्जस्ट करने के चक्कर में अपने नाख़ून मेरे टट्टों पे लगा दिए. पर ठीक है, उसने बाद में मेरे टटटे भी चूसे और थूक लगा के खून रोक दिया था और मैने भी क्रीम लगा ली थी बाद में. '' बाबूजी अपने लंड पे अपने बहू के नरम हाथों को महसूस करते हुए उसकी गांद से खेल रहे थे.

'' बाबूजी मैने देखा आजकल आप सखी को लेके ज़ियादा पस्सेसिव हैं. माना कि वो नया माल है पर मैं और राखी भी अभी इतने पुरानी नही हुई कि आप हम दोनो को भूल जाओ. आपको खुश करने में जितना मज़ा हमें आता है उतना मज़ा सखी नही लेती. वो आपकी रेस्पेक्ट करती है इसलिए आपको अपनी चूत देती है पर हम दोनो तो आपको प्यार से देती हैं. '' मिन्नी ने ससुर से शिकायत की और उनके लंड को कस के भींचा.

'' आआआर्र्घ्ह बहू तेरा प्यार तो तेरी हरकतों से ही झलकता है. और मैं भी तुम्हे और राखी को अपनी बहू क़म बीवी ज़ियादा मानता हूँ. पर वो घर में नई है और उमर भी छ्होटी है. उसे थोड़ा नर्मी से सब सिखाना है. चुलबुली है सो कभी कभी मेरा मन भी बहक जाता है. पर अभी उसके बदन मे तुम्हारी जैसी बात नही आई है. तुम और राखी तो खूबसूरत फूल हो इस घर की बगिया के वो तो अभी कच्ची कली है. उसे तो अभी बहुत कुच्छ सीखना है. बाबूजी अब दोनो हाथों से मिन्नी के निपल रगड़ रहे थे.
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09-03-2018, 08:54 PM,
#3
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
'' हाए बाबूजी आपकी उंगलिओ में तो जादू है. देखिए ना इधर आपने निपल कटोचे और इधर मेरी मुनिया पगला गई है. कैसे भिगो रही है मेरी चूत के होठों को..देखिए नाअ..ऊऊहह माआ ..हां बाबूजी जब आप ये अपनी जुड़ी हुई उंगलिओ से चूत को खरोन्च्ते हो तो बड़ा आनंद मिलता है....उउउहह माआअ..... बाबूजी चूसीए ना मेरे सख़्त निपल्स को..'' मिन्नी आनंद से सिसकियाँ लेते हुए बोली.

बाबूजी ने उसे प्यार से बिस्तर पे लिटा दिया और उसकी लेफ्ट साइड में लेट के अपनी राइट हॅंड की जुड़ी उंगलिओ को उसकी चूत में घिसने लगे. उसका लेफ्ट उरोज उन्होने अपने मूह में भर लिया. निपल को लेके खींच खींच के चूसने लगे. मिन्नी ने अपने दोनो हाथ सिर के पिछे कर लिए और आराम से लेट गई. उसको अपने ससुर से चुचियाँ चुसवाने में बहुत आनंद आता था. शादी के 2 महीने बाद से ही वो रोज़ उनसे निपल चुस्वाति थी. राजू उसकी चूत मारता और ससुर अपना सूपड़ा उससे चुस्वाते. उन दिनो वो भी सखी जैसी थी और ज़ियादा अच्छे से लंड नही चूस पाती थी. ढंग से लंड चूसना उसने सुजीत से सीखा था. सुजीत उन दीनो कुँवारा था पर उसका राखी से अफेर जोरों पे था. दोनो शादी से पहले खूब 69 किया करते थे. उसको खुश करने के लए राखी अपने घर में केले चूस चूस के प्रॅक्टीस करती थी. और वही चीज़ें सुजीत घर आके अपनी भाभी को सीखाता था.
क्रमशः..............................
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09-03-2018, 08:55 PM,
#4
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--2

गतान्क से आगे..............
बाबूजी ने अपनी उंगलियाँ अब मिन्नी की चूत में रख के अंगूठे से उसकी बुर के दाने का घर्षण शुरू कर दिया था. अंगूठे के दबाव में दाना काफ़ी सख़्त हो गया था. मिन्नी की बुर का दाना काफ़ी मोटा था. राजू और संजय दोनो को उसकी चूत चूसने में बहुत आनंद आता था. वो दोनो बारी बारी से शुरू के दिनो में छुट्टी वाले दिन उसकी चूत चूस्टे रहते थे. मिन्नी सनडे और मंडे को कोई काम नही करती थी. सॅटर्डे रात से उसकी जो चुदाई शुरू होती थी कि पुछो नही. तीनो लड़के और ससुर एक के बाद एक उसको चोद्ते और उससे खेलते. मंडे दोपहर के बाद वो थोड़ा काम करने लायक होती थी.

जब राखी घर में आई तो कुच्छ दिन उसके साथ भी यही हुआ, पर फिर धीरे धीरे सबके रुटीन सेट हो गए. हरिया काका को पहले बिल्कुल चान्स नही मिलता था. पर राखी के आने के बाद उनको भी मौका मिलने लगा. 65 वर्ष की आयु तक भी वो काफ़ी गातीले मर्द थे. लंड मीडियम साइज़ का था पर चुदाई में निपुण थे. उन्होने दोनो बहुओं को अच्छा खाने के साथ साथ मस्त चुदाई की कुच्छ बातें भी सिखाई. उनकी वजह से ही मिन्नी और राखी के संबंध भी बने. किचन में राखी के सामने जब वो मिन्नी की लेते तो राखी साड़ी उठा के अपनी चूत सहलाती . ऐसे ही एक दिन उन्होने मिन्नी से उसकी चूत चटवा दी. वो दिन था और आज दिन तब से दोनो बहुएँ आपस में मज़ा लेने का कोई भी मौका नही छोड़ती. अकेले हों या सबके बीच दिन में एक दूसरे की चूत चाते बगैर उनको नींद नही आती. ज़रूरी नही है कि वो दोनो झड़े पर चुसाइ करना और करवाना अब एक आदत बन गई है.

ये सोचते हुए और ससुर जी के प्यार करने के तरीके से मिन्नी को मज़ा और मस्ती आने लगी थी. उसकी आँखें बंद थी पर तभी उसकी बगल में ससुर जी ने अपनी जीभ से चाता और उसके शरीर में झुरजुरी दौड़ गई. उसे अपनी बगले चटवाने में भी बहुत मज़ा आता था. 2 - 3 बार तो उसने अपनी बगल में लंड भी लिए थे. बाबूजी के ऐसा करते ही उसकी चिहुनक निकल गई. बाबूजी ने मुस्कुराते हुए उसकी आधी खुली नशीली आँखों में झाँका और उसका प्यारा सा चुंबन लिया. अपनी जीभ पे बाबूजी की जीभ का स्प्रश अच्छा लग रहा था. होंठ खोलते हुए मिन्नी ने पूरी जीभ अंदर ले ली और दोनो की जीभें आपस में कुश्ती करने लगी. बाबूजी सर्व गुण संपन्न चोदु थे. औरत को कब किस चीज़ की ज़रूरत है अच्छे से भाँप लेते थे. किस करते करते उन्होने बहू को अपने उपर ले लिया. लंड ने चूत पे दस्तक दी और चूत ने द्वार खोल दिए. लंड महाराज धीरे धीरे गीली चूत के पटल खोलते हुए अंदर घुस गए.

'' बबुउुउुज्ज्जििीइ... उउउंम्म...ऊओह..उउंम्म...'' मिन्नी नीचे से अपनी बुर में घुसे लंड से चीत्कार उठी.

'' बाबूजी सच आपके लंड की सवारी में ही जन्नत है..हाऐईइ ..मज़ा आ गया.. उफ़फ्फ़ बाबूजी आप नही होते तो मेरी मुनिया का क्या होता..पता नही. ये 7 इंच का सख़्त मूसल मेरे लिए दिया गया भगवान का वरदान है.. जैसे कि भगवान ने मेरी मुनिया बनाते हुए कह दिया कि जा बेटी तेरे ससुर इसका भोग करेंगे...ऊओ बाबूजी..आपकी गोतियाँ कितनी सख़्त हुई पड़ी है..क्या इन्हे भी अंदर दोगे...''' मिन्नी हल्के हल्के चूतर उठा के लंड पे पेलते हुए बाबूजी के टट्टों से खेल रही थी.

'' अरी बहू तेरे लिए ही बना है ये..और तेरी मुनिया इसके लए..तू चिंता ना कर मरते दम तक ये तेरी प्यासी बुर को अपना चिपचिपा पानी पिलाएगा. चल आजा अब अपनी ये मोटी मोटी चुचियो को चुस्वा ले अपने ससुर से. मेरे होंठ भी प्यासे हैं. आजा अब दूध पीला दे मुझे.'' अपनी गांद उठा के बाबूजी ने 3 - 4 धक्के लगाए और गांद को गोल गोल घुमाया.

मिन्नी आगे को झुकी और राजपाल के सिर को पिछे से पकड़ लिया. झुक के अपने निपल उसके मूह में दिए. ''' आआआर्र्र्घ्ह्ह आज आप मेरे ससुर कम मेरे बेटे ज़ियादा हो..अपनी मा का दूध पिओ बेटे..ऊओ..हां चूस ले मदर्चोद..इन्हे चूस ले..और अपनी मा की चूत भी चोद ले जी भर के...उउउम्म्म्माआआआ...मैं तो जल्दी ही झाड़ जाउन्गि...फिर तू क्या करेगा..ऊओह हाआन्न्न..हान्णन्न्...बाबूजी..
.मैं झाड़ जाउ आपकी रोड पे...गीला कर दूँ क्या इसे ???? बोलो बाबूजी या मेरी मुनिया का रस पियोगे ...??''' मिन्नी पूरी मस्ती में बोली.

2 दिन की चुदास मिन्नी सिर्फ़ 5 मिनट में ही झरने को तैयार थी. बाबूजी के दिमाग़ में कुच्छ सूझ नही रहा था. कल रात की सखी की लंड चुसाइ के बाद उन्हे भी थोड़ा दर्द था. मिन्नी का तो काम होने वाला था तो क्यों ना मैं अब लंड को थोड़ा आराम दे दूं. सॅटर्डे है तो घर में सब एक साथ होंगे और सॅटर्डे नाइट भी मनाई जाएगी. ये सब सोचते हुए बाबूजी ने मिन्नी की चूचियो पे अपने होठों का प्रेशर बड़ा दिया और नीचे से गांद उठा उठा के उसकी चूत को रौंदने लगे. मिन्नी की बुर का दाना आगे झुके होने की वजह से बाबूजी के लंड के उपर पेट के हिस्से से रगर खा रहा था. मिन्नी इसे सहन नही कर पाई और बहुत ज़ोर के झटके लेते हुए झरने लगी. उसने अपना बदन सीधा कर लिया और हाथ अपने बालों को पिछे से सहलाने लगे. चूत के दाने वाला हिस्सा बाबूजी के पेट पे रगड़ती रही और झरती रही. बाबूजी उसके मम्मे नोचते रहे. झटके लेते हुए उसका बदन बहुत खूबसूरत और मादक दिख रहा था. एक बार तो बाबूजी ने सोचा कि क्यों ना चुदाई पूरी कर ली जाए. पर फिर सोचा कि रात के लए बचा के रखता हूँ वो ज़ियादा अच्छा रहेगा.

1 मिनट अपनी चूत से पिचकारियाँ छोड़ने के बाद मिन्नी निढाल होके बाबूजी की छाती पे गिर गई. बाबूजी ने उसे कस के बाँध लिया और हल्के हल्के चुबन लेते रहे. उसकी पीठ और गांद पे हाथ फेरते रहे. लंड अभी भी पूरा फूला हुआ चूत में था. ऐसे करीब 2 मिनट तक दोनो लेटे रहे. अब बाबूजी का लंड मुरझाने लगा था. शायद वो भी सुस्ती के मूड में थे. उन्होने मिन्नी को अपने से अलग किया और दोनो ससुर और बहू एक दूसरे से चिपक के सो गए. करीब एक घंटे के बाद सखी ने दरवाजे पे दस्तक दी और अंदर आई. बाबूजी का मुरझाया हुआ लंड अभी भी चिपचिपा सा था. सखी ने आगे बढ़ के एक चुम्मा लिया और सूपदे के छेद पे अपनी जीभ चलाई. उसके ऐसा करने से बाबूजी की नींद टूट गई और सखी के बालों को पकड़ के उसे अपनी तरफ खींचा. दोनो ने एक गहरा चुंबन किया और सखी ने अपनी मीडियम साइज़ की सख़्त चूचिओ को थोड़ा अपने ससुर के सीने पे रगड़ा.

'' बाबूजी , भाभी चलिए अब उठिए .शाम होने वाली है और रात की पार्टी की तैयारी भी करनी है. चलिए ना बाबूजी आज की रात तो काफ़ी लंबी रहेगी..जल्दी उठिए तैयार हो जाइए, भाभी राखी भाभी आपका किचन में इंतेज़ार कर रही हैं.'' सखी ने प्यार से भाभी के चूतर सहलाते हुए उसे उठाया. आँखें मलते हुए मिन्नी उठी और अपने कपड़े लेके बाबूजी के बाथरूम में चली गई. बाबूजी वहीं लेटे लेटे अपने लंड से खेलते हुए कुच्छ सोच रहे थे. तभी सखी ने उनको टाँग पे चिकोटी काटी.

'' बाबूजी कहाँ खो गए आप..क्या सोच रहे हैं.. और आप ये अपने पप्पू से खेलना बंद कीजिए ना..नही तो मेरी पप्पी को कुच्छ हो जाएगा और फिर मैं आप पे चढ़ जाउन्गि..'' सखी ने अपनी साड़ी के उपर से अपनी चूत को सहलाते हुए कहा.

''कुच्छ नही बेटा . मैं सोच रहा था कि आज तुझे इस घर में आए हुए 3 महीने हो गए. आज तुझे भी इस घर की हिस्टरी का पता चलना चाहिए. अब तू सब समझ पाएगी. आज रात को मैं तुम लोगों को अपने परिवार की पुरानी हिस्टरी के बारे में कुच्छ बताउन्गा.'' ये कहते हुए बाबूजी उठे और अपना कुर्ता पहेन लिया. सखी ने उनके चेहरे के भाव देखे और समझ लिया कि अभी बाबूजी सीरीयस मूड में हैं. वो कमरे से बाहर चली गई. मिन्नी भी तैयार होके बिना कुच्छ कहे जल्दी जल्दी कमरे से बाहर चली गई. बाबूजी अपने अतीत की याद में खोए हुए खिड़की से बाहर देख रहे थे.

शाम को सब लोग ड्रवोयिंग रूम में इकट्ठे हुए. बाबूजी अपने सोफा पे आधे बैठे हुए थे. सुजीत और संजय बिज़्नेस की डिस्कशन में बिज़ी थे. राजू और सखी न्यूसपेपर पढ़ रहे थे. रखी और मिन्नी किचन समेट के आके बैठ गई. कुच्छ देर सब आराम से यूँ ही बैठे रहे. टीवी चल रहा था. बाबूजी के सिवाए किसी का ध्यान टीवी पे नही था. शाम के 7.30 हुए थे.
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09-03-2018, 08:55 PM,
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RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
'' सुजीत क्या कर रहा है ? मेरे लिए एक विस्की तो बना ज़रा. और बाकी सब से भी पुच्छ ले कि क्या लेंगे ?'' बाबूजी ने सुजीत को कहा.

सुजीत ने बाबूजी का ड्रिंक बनाया और बाकी सब से भी पुछा. उसने सबके मुताबिक ड्रिंक्स सर्व कर दी. मर्दों ने विस्की और बियर ली और औरतों ने जूस के साथ वोद्का. सॅटर्डे ईव्निंग्स का यही हिसाब था. सभी लोग शाम को ड्रिंक्स लेते थे. ड्रिंक्स सर्व हो रही थी तो मिन्नी और सखी किचन से स्नॅक्स लेने चली गई.

'' भाभी आज बाबूजी कुच्छ कहानी सुनाने वाले हैं. अपने घर की हिस्टरी. आप को अपने घर की हिस्टरी तो पता होगी ना ? मुझे कह रहे थे कि अब तुम्हारे को बताने का टाइम आ गया है. पता नही क्या ख़ास बात है ??!!'' सखी ने स्नॅक्स लगाते हुए कहा.

'' मुझे भी कुच्छ बातें पता हैं पर शायद पूरी नही. बाबूजी से कभी हमने नही पुछा पर मुझे लगता है कि उन्होने कुच्छ बातें नही बताई हमें. क्या वजह है ये तो पता नही, शायद आज कुच्छ नया सुनने को मिले.'' मिन्नी ने जवाब दिया.

स्नॅक्स सर्व हो गए. ड्रिंक्स की चुस्कियाँ लेते हुए बाबूजी चुप थे. टीवी बंद कर दिया था. सब लोग बीच बीच में उनको देख रहे थे. इतना सीरीयस बाबूजी को कभी किसी ने नही देखा था. बाबूजी ने खामोशी को तोड़ते हुए अपने गले को सॉफ किया. सबको उनके सोफा के नज़दीक आके बैठने को कहा. तीनो मर्द एक सोफा पे बैठ गए. मिनी और राखी कार्पेट पे बैठी थी और सखी ने नज़दीक का सोफा ले लिया.

'' आआज मैं तुम लोगों को अपने परिवार की कुच्छ ऐसी बातें बताने जा रहा हूँ जो आजतक तुमको नही कही. इसलिए ध्यान से सुनना और समझना. इन बातों का तुम लोगों की पुरानी, आज की और आने वाली ज़िंदगी से बहुत बड़ा रिश्ता है. '' बाबूजी बोले.

सब एक तक उनकी ओर देखे जा रहे थे. बाबूजी ने आगे बताना शुरू किया.

'' बात मेरे दादाजी यानी तुम्हारे परदादा (ग्रेट ग्रॅंडफादर) के ज़माने की है. हमारे दादा काफ़ी अमीर लोगों में से थे. दादी भी एक अच्छे खानदान की थी. दादाजी के 2 भाई थे जिनकी शादी नही हुई थी. दादाजी की शादी को करीब 6 साल हो चुके थे पर घर में कोई औलाद नही थी. काफ़ी कोशिशों और पूजा पाठ के बाद मेरे पिताजी का जनम हुआ. उनके जनम की खुशी में एक बड़ा भोज रखा गया. ग़रीबों को दान दिया गया. भोज ख़तम होने के बाद एक साधु वहाँ पहुँचे. दादी थकान के मारे घर में जा चुकी थी और दादाजी कुच्छ हिसाब देख रहे थे. साधु के आने की खबर किसी ने उनको नही दी. साधु ने एक नौकर को दादाजी को बुलाने को कहा. पर उस नौकर ने ज़ियादा ध्यान नही दिया. इस पर साधु बिगड़ गये. उन्हे काफ़ी क्रोध आ गया. गुस्से में वो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगे. उनकी बात सुन के दादाजी बाहर आए और उन्हे समझाने की कोशिश की. पर उस समय तक साधु ने अपने कमंडल में से जल निकाल लिया था और दादाजी को श्राप देने लगे.''

'' जा आज मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तेरे घर में आज के बाद 3 पीढ़ी तक किसी भी पुरुष को अपनी औलाद का सुख प्राप्त नही होगा. ये इस साधु का श्राप है तुझे''

ये सुनते ही दादाजी साधु के पैरों में गिर गए और उनसे माफी माँगने लगे. उन्होने साधु को बहुत समझाया कि उनकी कोई ग़लती नही है. अगर उन्हे पता होता कि वो घर पे आए हैं तो खुद उनकी सेवा करते. काफ़ी माफी माँगने पे साधु का मन पसीज गया. उन्होने कहा कि श्राप तो वापिस नही हो सकता पर एक उपाय बता दूँगा. साधु ने बताया कि दादाजी का वंश तो चलेगा पर कोई भी पुरुष अपनी पत्नी से औलाद पैदा नही कर पाएगा. ये बात दादजी को पूरी तरह समझ नही आई पर इससे पहले वो कुच्छ कहते साधु वहाँ से चले गए.

कुच्छ समय बाद दादाजी के दोनो छ्होटे भाईओ की शादी हुई पर उनको भी काफ़ी समय तक कोई औलाद नही हुई. इधर मेरे पिताजी भी घर में अकेले थे. दादी को कोई दूसरी औलाद नही हो रही थी. तब एक दिन दादाजी को साधु की कही बातें याद आई और वो उसका मतलब समझ गए. उन्होने घर के सभी मर्दों और औरतों की बैठक बुलाई और साधु के श्राप और उसके उपाए के बारे में बताया. दादाजी के हिसाब से साधु के उपाए में कोई भी मर्द अपनी पत्नी से संतान सुख नही प्राप्त कर सकता परंतु घर की दूसरी इस्त्री से संतान सुख अवश्य मिल सकता है.

बस तब से हमारे खानदान में भाईओं का अपनी अपनी बीवी को बदलने का रिवाज बन गया. दादाजी और उनके भाईओं की कुल मिलाके 4 औलादे हुई पर मेरे पिताजी को छोड़ के बाकी सब अलग अलग भाईओं / बहुओं के संभोग से हुई. मेरे पिताजी की शादी के बाद उनके 2 भाईओं की शादी हुई पर एक का जल्दी निधन हो गया. अब मेरे पिताजी और उनके 2 भाईओं को घर की 3 औरतों को सुख देना था. उन 3 भाइयो से हम 4 भाई और एक बहेन हुई. बहेन सबसे बड़ी थी तुम्हारी कंचन बुआ.

हम 4 भाईओं में से मैं सबसे छ्होटा था. मेरी उमर उस समय 10 साल की थी जब बड़े भैया की शादी हुई. मैं उन दिनो शहर में पढ़ाई कर रहा था. दीदी की तब शादी हो चुकी थी. घर में बड़े भैया, भाभी, मझले दोनो भाई और हमारे 2 चाचा / चाची (उनमे से कौन किसके पिता थे पता नही) रहते थे. जब भाभी को 2 साल तक कोई बच्चा नही हुआ तो बड़े भैया ने दोनो चाचा से निवेदन किया कि वो अपनी बहू को बच्चे का सुख दें. पर साथ ही साथ दोनो छ्होटे भाई भी कोशिश करते रहे. फिर सबसे पहले राजू का जनम हुआ. तब मझले भैया की भी शादी हो गई. मेरी उमर उन दिनो 13 साल की थी उसके और 2 साल के बाद मझली भाभी से सुजीत का जनम हुआ. तब मैं 15 साल का हो चुका था. मैं भी कुच्छ समय के लिए गाँव चला गया. तब मुझे पहली बार अपनी दोनो भाभियो के साथ सोने का मौका मिला. उसके बाद संजय का जनम हुआ. अब तुम तीनो को ये तो पता है कि मैं तुम्हारा पिता नही हूँ पर शायद मैं संजय का पिता हो सकता हूँ और शायद नही भी. तुम तीनो के असली पिता कौन हैं ये किसी को भी नही पता.

उसका मेन कारण है कि जब बड़ी भाभी को सबसे पहले चाचा लोगों के साथ सोना था तब से बड़े भैया ने ये रीत बनाई कि एक रात में वो किसी एक के साथ नही सोएंगी. कम से कम 2 मर्द एक साथ होंगे. इसकी वजह थी कि खानदान में कभी किसी को ये ना पता चले कि होने वला बच्चा हम लोगों का भाई है या हमारी औलाद. इसलिए हमेशा किसी ना किसी चाचा के साथ कोई ना कोई भाई ज़रूर होता था. कभी कभी तो 3 लोग एक साथ होते थे.
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09-03-2018, 08:55 PM,
#6
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
अब इश्स हिसाब से तुम मेरे भाई भी हो सकते हो और मेरे भतीजे भी. चूँकि मेरी खुद की शादी कभी नही हुई इसलिए मैं सिर्फ़ संजय का पिता हो सकता हूँ.

बाबूजी के मूह से ये सब सुनके सब स्तब्ध रह गए. सबके चेहरे के रंग उड़ चुके थे. 3 भाईओं के ये तो पता था कि बाबूजी उनके पिता नही हैं चाचा हैं पर जैसा कि उनके घर का नियम बनाया गया था कि हर किसी को बाबूजी कहा जाता था. ये वजह उन्हे आज समझ आई.

'' मेरे बच्चों ये बहुओं के साथ सोने का रिवाज और भाईओंका आपस में एक दूसरे की बिवीओ को बाँटना हमारे खानदान में 3 पीडी से चला आ रहा है. तुम लोग अब आख़िरी पीडी हो जिस पे ये श्राप है उसके बाद सब नॉर्मल हो जाएगा. मैने सोच रखा था कि जब तक तुम तीनो की शादी नही हो जाती तब तक ये बात तुम लोगों से छुपा के रखूँगा. मेरे मन में बस एक ही चीज़ थी कि तुम लोग आपस में एक साथ रहो और मिलजुल के चलो. ये बात अब मैं गर्व से कह सकता हूँ कि हम सब एक बड़ा अच्छा परिवार हैं. और मुझे उमीद है कि आगे भी ऐसे ही रहेंगे.''
क्रमशः..............................
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09-03-2018, 08:55 PM,
#7
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--3

गतान्क से आगे..............
ये कह के बाबूजी चुप हो गए और सबको देखने लगे. सबके चेहरों पे हैरानी के भाव थे. संजय और राजू चुप चाप से अपने रूम में चले गए. मिन्नी और राखी किचन की तरफ बढ़ चली. सखी और सुजीत कमरे में बैठे गहरी सोच में डूबे हुए थे.

करीब एक घंटे तक घर में शांति छाई रही. कोई कुच्छ खास बात करने के मूड में नही था. पर सखी को ये सब हजम नही हो रहा था सो उससे रुका नही गया. उसने सबको एक के बाद एक ड्रॉयिंग रूम में वापिस बुला लिया. तब तक बाबूजी अपना दूसरा पेग ले रहे थे. जब सब एक साथ बैठ गए तो सखी ने सबको संबोधित किया.

'' मैं आज आप लोगों से कुच्छ कहना चाहती हूँ. आज जो बात बाबूजी ने बताई है ये सब सुन के मैं बहुत खुश हूँ कि मैं इस परिवार में आई. ये सच्चाई जान लेने के बाद मुझे अपने परिवार पे गर्व महसूस हो रहा है क्योंकि यही एक ऐसा परिवार है जिसमे रिश्ते आपस में इतने मिले जुले हैं कि प्यार के अलावा किसी चीज़ की गुंजाइश नही. मुझे बाबूजी को थॅंक्स कहना है कि उन्होने मुझे अपने इस परिवार के काबिल समझा जहाँ के 3नो पुत्र इतने अच्छे हैं. मुझे अपने दोनो बड़े भैया और पति को देख के अच्छा महसूस होता है कि उनकी परवरिश एक संयुक्त परिवार में इतनी अच्छी हुई है कि आज के ज़माने में भी वो एक साथ एक छत के नीचे इतने प्यार से रहते हैं. और आने वाले समय में मैं यही चाहूँगी कि मेरी कोख से जन्मी हुई संतान चाहे किसी की भी हो पर उसे ये भरपूरा परिवार मिलेगा और उसे कभी प्यार से वंचित नही रहना परेगा....थॅंक यू बाबूजी'' और ये कहते कहते उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे.

मिन्नी ने तुरंत ही उसे अपने गले से लगा लिया और अपनी साड़ी से उसका चेहरा पोंच्छने लगी. बाबूजी का भी गला रुंध गया और वो चुप चाप अपने ग्लास की तरफ देखने लगे. उनकी आँखों में भी नमी थी. उसकी वजह थी कि उनको ये आत्म्गलानि हो रही थी उन्होने 3नो बहुओं को ये राज शादी से पहले नही बताया कि उनके अपने पति उन्हे मा नही बना सकते पर इस बात में उनका स्वार्थ था क्योंकि उन्हे पता था कि अगर ये बात उनके सम्धिओ को पता चल जाती तो उनके 3नो लड़कों की शादी नही हो पाती. इस एहसास ने उनकी आँखों से आँसू छलका दिए.

'' मैं तुम 3नो बहुओं से कुच्छ कहना चाहता हूँ. मैं तुम लोगों से माफी माँगना चाहता हूँ कि मैने तुम लोगों और तुम्हारे परिवार वालों से ये बात च्छुप्पई नही तो मेरे किसी बच्चे की शादी नही हो पाती. और हमारा वंश आगे नही बढ़ता. मुझे तुम 3नो माफ़ कर देना. मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई.. '' कह के बाबूजी की आँखों से अश्रुधारा बह चली.

राखी जो कि बाबूजी को बहुत मान और प्यार देती थी उससे रहा नही गया और वो भी फूट पड़ी और रोते रोते बाबूजी के पास चली गई. उसने बाबूजी के गले में अपनी बाहें डाल दी और उनसे लिपट गई. करीब 15 सेकेंड तक ससुर बहू ऐसे ही रोते रहे. बाकी सब उन्हे देख रहे थे. कमरे में सभी आँखें नम थी. तभी राखी ने बाबूजी से अलग होते हुए उनकी तोड़ी को पकड़ा और उनके चेहरे को उपर उठाया.

'' बाबूजी आपने चाहे जो भी किया पर आप जैसा ससुर मुझे नही मिल सकता था. आपने आज तक कभी हमें महसूस नही होने दिया कि हम लोग अपने ससुराल में हैं. हमेशा यहाँ से अपने मैके जाते हुए मुझे दुख होता था और वापिस आने पे खुशी. ये मेरा ससुराल नही मेरा मायका है और आप मेरे प्रिय हो. आप ने कोई ग़लत काम नही किया और आप निश्चिंत रहिए कि कभी हम आपको इन बातों का दोष देंगे. आप की आत्मा पवित्र थी तभी आज आपने ये बात हमे बताई नही तो आप चाहते तो ये राज आपके साथ ही ख़तम हो जाता. और मैं ये अपने लिए नही ये हम 3नो की तरफ से कह रही हूँ. जितना मैं मिन्नी भाभी को जानती हूँ उस हिसाब से वो मेरी बात से ज़रूर सहमत होंगी. क्यों मिन्नी भाभी मैने सही कहा ना.... सखी ने तो अपनी बात कह ही दी है. आप बिल्कुल चिंता ना करें हम 3नो बहुएँ आपके खानदान को आगे बढ़ाएँगी और सभी बच्चे इस परिवार में बराबर का प्यार पाएँगे.'' ये कहते कहते राखी ने बाबूजी के आँसू पोंच्छ दिए और उन्हे अपनी छाती से लगा लिया.

बाबूजी अब थोड़ा संभाल चुके थे और उनका चेहरा अपनी मनझली बहू की चुचियो से सटा हुआ था. राखी उनकी गर्दन के पीछे के बालों को सहला रही थी. बाबूजी की नॉर्मल साँसे उसके सीने में हलचल पैदा कर रही थी. उसके उरोज कसमसाने लगे थे. उसे एहसास हुआ कि इस बात को यहीं ख़तम करने का सबसे अच्छा तरीका है क सब लोग सॅटर्डे नाइट पार्टी के मूड में आ जाएँ. आज तक तो पहल बाबूजी या बड़े भैया किया करते थे पर आज उसके पास सुनेहरी मौका था आज की शाम की शुरुआत करने का. ये सोचते सोचते उसकी चूचियाँ सख़्त हो गई और साँसे तेज. बाबूजी को उसकी हालत का अंदाज़ा हो रहा था और उनकी साँसे गरम होने लगी थी. राखी ने मौका ना गँवाते हुए बाबूजी को कस के अपनी चूचियो की दरार की तरफ धकेल दिया. बाबूजी की नाक में उसके बदन की खुश्बू भर गई. वो उसकी चूचिओ की दरार में गहरी साँसे लेके उसकी खुश्बू का मज़ा लूटने लगे.
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09-03-2018, 08:55 PM,
#8
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
राखी ने आव देखा ना ताव और बाबूजी को पिछे किया और उन्हे थोड़ा पीठ के बल सोफे पे लिटा दिया और खुद सोफा की साइड में बैठ गई. उसने तुरंत ही आनन फानन में बाबूजी की धोती खोल दी और उनका आधा खड़ा लंड अपने मूह में भर लिया. उसे किसी का भी लंड अपने मूह में कड़ा करने में मज़ा आता था. उसे इस बात पे नाज़ था कि वो घर में सबसे अच्छा लंड चूस्ति है और सब मर्दों को एक के बाद एक सॅटिस्फाइ कर सकती है. आफ्टर ऑल केले पे की गई प्रॅक्टीस ने उसकी लंड चूसने की कला और स्टॅमिना दोनो को अच्छे से निखार दिया था.

बाबूजी बड़े प्यार से उसका सिर सहला रहे थे और फिर धीरे धीरे उसके बाल खोल दिए. राखी के बाल उसके कंधों से थोड़ा नीचे तक आते थे, उसके खुले बालों और मूह में भरे लंड को देख के 3नो भाईओं और ससुर को उर्मिला मातोंडकर की याद आती थी. बाबूजी भी अब मस्ती में आ चुके थे और वो हल्के हल्के आमिर ख़ान और उर्मिला की मूवी ''रंगीला'' का गाना गाने लगे.

'' क्या करें क्या ना करें ये कैसी मुश्किल हाए कोई तो बता दे इसका हल ओ मेरे भाई....आआअरर्ग्घह ऊऊऊहह मेरे भाआऐईई...ययययईए ईईए ईईईईई मेरे भ्ााऐययइ...''' ये गाना अक्सर राखी की चुदाई के समय उपयोग होता था चाहे वो किसी के भी साथ हो. ये सुनके सब हंस पड़े और कमरे में एक बार फिर से मस्ती की ल़हेर दौड़ पड़ी. बाबूजी के लंड की सेवा होते देख सखी से रहा नही गया और उसने हल्के हल्के मादक मुद्राओं से अपनी साड़ी और पेटिकोट खोल दिया. ब्लाउस, ब्रा और पॅंटी में वो राजू के पास पहुँच गई और उससे अपने ब्लाउस के हुक खुलवाने लगी. इतने में सुजीत और संजय ने मिन्नी को दबोच लिया और उसके कपड़े उतारने लगे. मिन्नी तो दिन में झाड़ चुकी थी पर पिच्छले 2 - 3 दिन की चुदास ने उसे फिर से लंड के लिए उतावला बना दिया. बस फिर क्या था एक दम कमरे में सेक्स का वातावरण बन गया.

इस समय सभी को एक दम से मस्ती आ गई थी और बच्चों की तरह सब खिलोनों की तरफ झपट पड़े. अब तक सखी पूरी नंगी होके राजू के लंड पे चढ़ के सोफे पे उसकी चुदाई शुरू कर चुकी थी. राजू आधा लेटा हुआ था. नीचे कार्पेट पे मिन्नी संजय के लंड का चूपा भर रही थी और कुतिया बनी सुजीत का लंड चूत में पिलवा रही थी. बाबूजी ने राखी को नंगी करके अपनी गोद में बिठा लिया था. उसकी पीठ बाबूजी की छाती पे थी और उनका काला नाग उसकी चूत में आधा घुसा हुआ आराम कर रहा था. आधी मूडी अवस्था में वो बाबूजी की जीभ से लड़ाई कर रही थी और बाबूजी उसके मोटे मोटे स्तन मसल्ते जा रहे थे. घर में स्तनो के मामले में अच्छी वेराइटी थी. राखी के मम्मे सबसे बड़े और नरम थे. उसके निपल भी बड़े बड़े थे. खड़े होने पे तकरीबन 1/2'' लंबे हो जाते थे. गोरे गोरे मम्मो पे उसके काले काले दाने बहुत सुंदर दिखते थे. कुल मिला के राखी 40 सी की ब्रा पहनती थी तो अब उसके साइज़ और शेप का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. और अभी वोही मोटे मोटे गोरे माममे उसके ससुर के हाथों की शोभा बढ़ा रहे थे.

दूसरी ओर मिन्नी के मम्मे मीडियम साइज़ के थे पर नरम थे. उसके मम्मो में अभी भी कसाव था. जब वो नंगी होके छाती बाहर निकाल के कुतिया बन के या खड़े खड़े पिछे से चुदती थी तो उसके मम्मे साइड तो साइड हिलते थे पर राखी की तरफ ज़ियादा उपर नीचे नही होते थे. उसके निपल लाइट ब्राउन कलर के थे, पर उसके निपल्स के आस पास का घेरा बहुत बड़ा था. ऐसा लगता था कि जैसे किसी ने उसके मम्मो के बेचों बीच एक छ्होटी कटोरी रख के चारों तरफ एक गोला बना दिया हो और उसमे हल्का भूरा रंग भर दिया हो. और ठीक उनके बीच दो निपल सज़ा दिए हों. इसी वजह से वो कभी भी बाहर हल्के कलर्स के ब्लाउस पहेन के नही जाती थी. ब्रा की अड्जस्टमेंट कभी इधर उधर हो जाए तो उसके निपल के आस पास का भूरा पोर्षन हल्के ब्लाउस में से छल्कने लगता था. उसको वैसे तो 36सी की ब्रा आती थी पर वो जान बूझ के 36ब की ब्रा ख़रीदती थी ताकि उसकी चूचिओ की गहराई अच्छे से उभर के आए.

तीसरी ओर थी सखी घर की सबसे छ्होटी और कद काठी में भी छ्होटी. उसकी चूचियाँ 34ब की थी. साँवली होने के कारण उसके निपल्स का कलर इतना पता नही चलता था पर उसके निपल एक दम पैने थे. सबसे सख़्त मम्मो की मालकिन जब नंगी होती तो दो पेयर शेप के माममे किसी भी लंड पे गजब ढा सकते थे. उसके मम्मो की ख़ासियत थी उनका स्वाद. पता नही उसके बदन में ऐसा क्या था कि जो एक बार चूस ले वो उनका स्वाद कभी नही भूलता था और इस समय वही हाल राजू का भी था. दोनो छ्होटे छ्होटे मम्मो को पकड़े हुए उसने सखी को अपने मूह की तरफ खींच रखा था और वो छिनाल उसके लंड पे कूदियाँ मार रही थी.

सुजीत का लंड मिन्नी की चूत के रस से सारॉबार हो चुका था. चुदास मिन्नी एक बार झाड़ चुकी थी पर उसकी चुदाई और लंड चूसने की गति बरकरार थी. उसे हर हाल में एक साथ अपने मूह और चूत मे पिचकारियाँ चाहिए थी. वीर्य का शौक उसे राखी से लगा था जो कि कोई भी मौका नही छोड़ती थी उसे वीर्य पिलाने का. कभी कभी तो राखी उसे आधी नींद से उठा के अपने मूह में भरा वीर्य लेके पहुँच जाती थी और उसका चुंबन लेते हुए उसे अपनी ज़ुबान से वीर्य पिलाती थी. दोनो कई बार ऐसा करके गरम होके एक साथ बिस्तर में रंग रलियाँ मनाती थी. जब मिन्नी की चूत में पिचकारियाँ छूटती तो वो भी अपनी मूत से भरी चूत लेके राखी के मूह पे जड़ देती और उसे खूब मस्ती में अपनी चूत और घर के किसी मर्द के मुत्त का मिश्रण पिलाती.

दोनो ने धीरे धीरे सखी को भी प्रॅक्टीस देनी शुरू कर दी थी पर वो अभी नई थी और उसे वक़्त लगना था. सखी की एक बात बहुत अच्छी थी और वो थी उसकी जिग्यासा. कभी भी कोई नया सेक्स का तरीका करना हो तो उसका हाथ पहले खड़ा होता था. जब बाबूजी ने उसकी शादी के 1 महीने बाद उसे राजू और सुजीत के साथ एक साथ सोने को कहा तो उसने एक बार भी मना नही किया और बड़े सहज रूप से उनके साथ सो गई. उस रात उन दोनो की पहली रात थी उसके साथ और 2 दिन तक उसकी चूत की सूजन नही गई थी.
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09-03-2018, 08:56 PM,
#9
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
आज वही सखी अपने जेठ के लंड पे सबके सामने कूदालिया मार रही थी. उसके लंबे घने बाल उसके और राजू के शरीर पे बिखरे हुए थे. बार बार वो बालों को पिछे करती और आख़िर में उसने बाल बाँध लए. अब उसने अपनी छाती को राजू के मूह पे रगड़ना शुरू कर दिया था और बड़बड़ा रही थी. '' ओओओह्ह्ह बड़े भैया क्या मज़ा दे रहा है आपका लोडा मुझे..उम्म्म्म भैया कस के चोदियेगा..क्या पता आज से 9 महीने बाद मैं आपके बच्चे को जनम दूं. अंदर बच्चेदानी तक ठोकर मारो अपने 10 इंची लंड की. ऊओह भैया आप मिन्नी भाभी को छोड़ दो और मुझे अपनी बीवी बना लो..आपका लंड खा खा के मैं निहाल हो गई..सारी ज़िंदगी ऐसे ही बना के रखो मुझे..आपनी प्यारी राअंदड़ड़...ऊऊओह बाबूजी..आपकी छ्होटी बहू को देखो कैसे मस्ती में है....मेरे प्यारे ससुर जी आओ मेरी प्यास भुजा दो अपना वीर्यापात मेरे मूह में करो.'' सखी सिसकियाँ ले रही थी और अपनी छ्होटी सी गांद गोल गोल घुमा रही थी.

राखी जो कि बाबूजी के नीचे लेटी हुई थी और उनके धक्के सहेन कर रही थी उसने बाबूजी को कस के पकड़ लिया. '' बाबूजी आप कहीं नही जाओगे..उस्च्छिनाल की बात मत सुनना.. आज आप सिर्फ़ मेरे हो और मेरे मोटे मम्मो का रस पान करो. आज मैं आपका मूत अपनी बच्चे दानी में लूँगी और इन तीनो भाईओं को एक चाचा दूँगी आने वाले 9 महीनो में. ओओओह्ह्ह्ह बाबूजी कस के चोदो मुझे और कस के..बहुत आनंद मिल रहहैई आपके लंड से...ऊऊओमम्माआआ आआहाआंन्न बाआबूजी...चूओदूओ अपनी बहू कूओ बाबूजी....ऊओह एससस्स मैं झाड़ जाउन्गा आपके लंड पे बाबूजी...जल्दी जल्दी पेलो मेरी भटकती आत्मा सी चूत को और इसे तृप्त कर दो...उउउम्म्म्म....हहाआंणन्न् मम्मे छ्ोसूऊओ...उउउम्म्म्मममम...हाआं
न्न ..हान्ंणणन् हाआंन्‍णणन् ऊओह बबुउजिइीइ मैं तो झरीई बाबूजी.....ऊओह हाआंन्‍णणन् आपका बीज भी महसूस हो रहा हाईईइ...ऊओमम्म्माआ ऊऊहह एसस्स्सस्स...बब्ब्ब्बबुउउुजिइइईईईईईईई........'''' सिसकियाँ और खुशी से पागल होते हुए राखी और बाबूजी झाड़ते चले गए..बाबूजी का लंड राखी की चूत में बुरी तरीके से अठखेलियाँ ले रहा था. उनके लंड में एक नया जोश सॉफ झलक रहा था. राखी की आधे उठे हुए चूतरो के नीचे उन्होने अपने हाथ रख दिए और अपने राइट हाथ की जुड़ी हुई उंगली उसकी गांद में घुसा दी. इससे रखी का झरना और बढ़ गया और उसने अपने उरोज उपर की तरफ कर दिए और बाबूजी को अपनी छातियो के बीच भींच लिया. दोनो के शरीर आपस में चिपके पड़े थे ऐसे जैसे की हवा भी बीच से ना गुज़र सके.

सुजीत अपनी बीवी की इस ज़बरदस्त खूबसूरत चुदाई को देखते हुए बहुत उत्तेजित हो गया और उसने मिन्नी की चूत की सिकाई की स्पीड बढ़ा दी. मिनी को अपने एक्सपीरियेन्स से पता था कि अब जल्दी ही सुजीत उसकी चूत में वीर्य छोड़ेगा और उसने अपनी गदराई गांद को आगे पिछे करना शुरू कर दिया. सुजीत का भैंसे जैसा काला मोटा लंड उसकी चूत में फ़च्छर फ़च्छर करके आगे पिछे होने लगा. सुजीत की झाँटें पूरी गीली थी उसकी चूत के जूस से. काला लंड गोरी चूत में अंदर बाहर होते हुए किसी फॉरिन ब्लू मूवी की याद दिला रहा था. सुजीत अब छूटने की कगार पे था और उसने मिन्नी के मोटे चूतर पकड़ के बेरेहमी से धक्के लगाने शुरू कर दिए. उसके धक्के जितनी ज़ोर से लगते उतनी ही ज़ोर से मिन्नी का मूह संजय के लंड पे चलता. संजय का लंड सबसे पतला पर सबसे लंबा था. पूरे 11 इंच का. उसके लंड का सूपड़ा ही तकरीबन 3 इंच लंबा था. मिन्नी 6 - 7 इंच से ज़ियादा नही ले पाती थी पर उसके मूह से इतना थूक बहा था कि संजय के लंड, झाँटें और टटटे सब भरे हुए थे. संजय ने लंड के निचले हिस्से को जो कि मिन्नी के मूह की पहुँच से दूर था उसे पकड़ रखा था और लंड को मसल रहा था. उसके लंड की लंबाई और उसकी गरम जवानी के चलते उसका मूत बहुत दूर तक गिरता था. एक बार हँसी हँसी में सखी ने बेड के एक किनारे पे लेट के उसे दूसरे किनारे पे खड़े खड़े पिचकारी छोड़ने को कहा था. उस दिन उसकी पहली दो पिचकारियाँ सखी के बदन पे गिरी थी जो कि तकरीबन 4 फ्ट दूर थी.
संजय ने अब अपनी बड़ी भाभी का मूह अपने लंड पे से हिलने नही दिया और ज़ोर ज़ोर से अपन लंड मुठियाने लगा. उसे अपनी पिचकारी सीधे अपनी भाभी के गले के नीचे उतारनी थी. ''''ऊऊऊओह भाभिईिइ ये लूऊओ मेरी पिचकारीइ...ऊऊऊऊऊ एसस्स..........ऊओह..भाबभहिईईपीई जाऊओ मेरा प्यारा सा अमृत और फिर इसे राखी भाभी को भी चखाना और अगर उसके बाद भी बचे तो सखी के मूह में डाल देना.....आआररर्र्रघह ऊऊऊरर्रघह ऊऊओह उउउम्म्म्मम ईसस्स्सस्स....ऊओह'' और संजय एक के बाद एक कई पिचकारियाँ मिन्नी के मूह में छोड़ता चला गया. मिन्नी पूरे जोश में उसके वीर्य को गटकती चली गई पर वीर्य इतना था कि उसके बस की बात रही नही थी. उसका ये हाल देख के राखी बाबूजी से अलग हुई और जल्दी से संजय के पास आ गई. मिन्नी के मूह से उसने संजय का लंड निकाल दिया और उसे चूसने लगी. उसका चूसना और वीर्य का गटाकना एक साथ चल रहा था. संजय ने चूतर उठा के 2 - 3 वीर्य की धाराएँ उसके मूह में बहा दी और फिर शांत हो के लेट गया. पर राखी से रहा नही गया और उसने मिन्नी के साथ फ्रेंच किस्सिंग करना शुरू कर दिया. दोनो के मूह संजय के वीर्य से सने हुए थे और दोनो गोरी गोरी मोटे मोटे मम्मो की मालकिन कुतिया पोज़ीशन में एक दूसरे से जीभ लड़ाते हुए बहुत मादक लग रही थी. उनकी ये हालत देख के राजू और सुजीत से रुका नही गया और दोनो एक साथ सखी और मिन्नी की चूत में झरने लगे.
क्रमशः..............................
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09-03-2018, 08:56 PM,
#10
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--4

गतान्क से आगे..............
उनका झरना शुरू होते ही सखी और मिन्नी की चूतो ने भी पानी छोड़ना शुरू कर दिया. कमरे में एक साथ 4 लोगों की आआअहह ऊऊऊऊहह की आवाज़ें गूंजने लगी. करीब 15 सेकेंड तक लंड चूतो को भिगोते रहे और चूते लंड को निचोड़ती रही. उसके बाद सब शांत हो गया और सब अपनी अपनी जगह पे अपने अपने पार्ट्नर के पास लूड़क गए.


करीब 10 मिनट सुस्ता लेने के बाद बाबूजी ने राजू और संजय में से किसी एक को राखी को चोदने को और अपना पानी उसकी चूत में ही छोड़ने को कहा. अब तक सभी बहुएँ कॉंट्रॅसेप्टिव पिल्स पे चल रही थी. आज से वो सब बंद कर दिया गया. अब सब बहुओं का बारी बारी से प्रेगञेन्ट होने का टाइम आ चुका था. बाबूजी ने खानदान की रीत के हिसाब से अपने वीर्य के साथ साथ पति को छोड़ बाकी मर्दों से बहुओं को चुदवाना था.

पर उस समय किसी का भी लंड खड़े होने की स्तिथि में नही था. इसलिए मौके को देखते हुए सखी ने कोई सेक्सी बात छेड़ने की सोची. ''बाबूजी एक बात बताइए कि जब आपको घर के इस राज़ का पता था तो आपने हम तीनो बहुओं को कैसे चुना ? क्या आपको यकीन था कि हम इस घर में खुश रह पाएँगी और इस घर के इस रिवाज़ को समझ पाएँगी ? आप बताइए कि आपने हमारे को अपने बेटों के लिए क्यों चुना ?'' सखी चहकते हुए बोली.

बाबूजी के चेहरे पे एक मुस्कान आ गई और उन्होने एक नई कहानी शुरू कर दी. राखी, मिन्नी, सुजीत और संजय कार्पेट पे लेटे हुए उनकी तरफ देखने लगे. पसीने से भीगे हुए बदन, औरतों के खुले बाल, गीली चूते, चमकते हुए लंड सब बाबूजी की कहानी का इंतेज़ार कर रहे थे. सखी अभी भी राजू के 10 इंच के लंड को चूत से सटाये बैठी थी. उसने भी अपने बाल खोल दिए थे और अपनी चूचिओ को ढक लिया था.

'' बेटी ये बात तब की है जब राजू 26 साल का हुआ. बिज़्नेस में ये सेट हो चुका था और मैने सोचा कि अब इसकी शादी हो जानी चाहिए. पर इसका ससुराल कैसा हो लड़की कैसी हो उसका परिवार कैसा हो ये सब बहुत ख़याल रखने वाली बातें थी. क्योंकि अगर घर की पहली बहू का चुनाव ग़लत हो जाता तो इस घर का श्राप सीधा हो जाता और आगे सबको दिक्कत हो जाती. एक दिन मैं काम के सिलसिले में बाहर गाँव गया था. एक दोस्त और उसकी बीवी मेरे साथ थे. मेरे दोस्त की वाइफ काफ़ी सुंदर थी पर मेरा मन कभी खराब नही था.

उस दिन काम के बाद हम लोग वापिस आने लगे तब मिन्नी के गाँव के पास गाड़ी खराब हो गई. जैसा कि तुम जानते हो इसका गाँव यहाँ से सिर्फ़ 40 किमी पे है. हम लोग वहाँ से शहर नही आ सकते थे. तब मैने एक दोस्त को फोन किया और उनसे पुछा कि जिस जगह हम थे वहाँ उनका कोई जानकार या रिश्तेदार था जिसके यहाँ हम रात गुज़ार सकते थे. मिन्नी के पिताजी ने कभी उनसे क़र्ज़ लिया था और मेरे दोस्त ने उनके घर जाने के लिए कहा. मैं मेरा दोस्त और उसकी बीवी मिन्नी के घर पहुँचे. वहाँ पता चला कि इसके पिताजी और 2 घंटे तक आएँगे. उस समय मिन्नी और इसकी सौतेली मा घर पे अकेले थे. इसकी मा ने हमें चाइ नाश्ता दिया और घर के बाहर आँगन में बैठने का इंतज़ाम किया. इसके घर की हालत उन दिनो अच्छी नही थी क्योंकि इसके पिताजी की सेहत अच्छी नही थी और उपर से क़र्ज़ का बोझ भी था.

मिन्नी उस समय अपनी सौतेली मा का हाथ बटा रही थी. देखने में तब ये उतनी सुंदर नही थी पर इसके हाव भाव में कुच्छ था जो मेरे मन को भा गया. एक सिंपल सलवार सूट में जिस तरीके से चल रही थी और काम कर रही थी मुझे इसमे अपनी बहू का रूप दिखने लगा. मुझे ना जाने क्यों लगा कि ये मेरे घर की बहू बनने के योग्य है. उस रात इसके पिताजी घर नही आ पाए. जिस काम के लिए वो गए थे वो काम पूरा नही हो पाया. इसकी मा ने हमारे लए खाना बनाया और मिन्नी ने हमें खाना परोसा. बाद में इन्होने हम लोगों के सोने का इंतज़ाम वहीं आँगन में कर दिया. इनके घर के आस पास आँगन की दीवार है. मैं मेरा दोस्त और उसकी बीवी वहीं 3 चारपाई पे सोने लगे. उन दोनो की चारपाई आपस मे सटी हुई थी और मेरी उनसे करीब 5 फुट की दूरी पे थी. जैसा कि तुम लोग जानते हो कि मुझे रात में नींद लेट आती है.

करीब रात के 1 बजे तक मैं अपना मूह दूसरी तरफ कर के लेटा रहा. मेरे मंन में मिन्नी को लेके विचार चल रहे थे. राजू के स्वाभाव का मुझे पता था और मुझे यकीन था कि वो इस शादी के लिए कभी ना नही कहेगा. पर मेरे मंन में सबसे बड़ा सवाल ये थे कि क्या मिन्नी कभी भी अपने देवरो से चुदवा पाएगी ? अगर वो मेरे साथ संभोग ना भी करे तो चलेगा पर देवरों से ही उसे संतान सुख मिलेगा तो क्या वो इसके लिए कभी तैयार होगी ? ऐसे ही विचार मुझे परेशान कर रहे थे.

पर जल्दी ही इसका जवाब भी मुझे मिल गया. मेरे दोस्त को शायद गाँव की खुली और शांत जगह में कुच्छ ज़ियादा ही थरक छड़ी हुई थी. वो खुले आसमान के नीचे मेरी पीठ पिछे अपनी बीवी की चूचियाँ मसल रहा था. उसकी बीवी जो एक कड़क माल थी इतनी गरम हो चुकी थी कि उसे मेरी भी परवाह नही थी. उसने अपनी साड़ी का ब्लाउस खोल दिया था और ब्रा को उपर खींच लिया था. मेरा दोस्त उसके मोटे चून्चो से खेल रहा था और वो हल्की सिसकारियाँ ले रही थी. मिन्नी और उसकी मा बेख़बर घर के अंदर सोए हुए थे. कुच्छ देर बाद जब मेरे दोस्त की बीवी की सिसकारियाँ बढ़ गई तो मेरा ध्यान मिन्नी के ख़यालों से हट के उनकी तरफ चला गया. चारपाईं के बीच के डंडे की वजह से मेरे दोस्त से ठीक से मज़े नही लिए जा रहे थे और एक चारपाई पे दो लोग एक साथ सोते तो शायद वो टूट जाती.
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