Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 01:29 PM,
#81
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
अंजुम को खुश देख आदम को अच्छा लगा वरना कल परसो से उसने सिर्फ़ उसे दुखी पाया था....उसने उठके माँ की तरफ देखा...माँ उसकी तरफ देखते हुए मुस्कुराइ...माँ ने उसकी गर्दन पे दोनो हाथ रखे और उसे प्यार से देखा तो आदम ने उसके होंठो पे होंठ रखके एक ज़ोर का चुम्मा ले लिया..अंजुम उसकी इस हरकत पे हंस पड़ी...दोनो फिर एकदुसरे से अटखेलिया करने लगे...जैसे दोनो के बीच कितना प्यार हो

अगले दिन आदम ने हेमा की छोटी बेटी उमा को कॉल लगाया उसे कल रात से हेमा आंटी की फिकर थी एक उमा ही थी जो उससे काफ़ी फ्रॅंक थी आदम को लगता था कि दिल ही दिल में उमा उसे अलग निगाहो से देखती हो क्यूंकी आदम के साथ उसकी हर पिक एडिटिंग की हुई होती थी चाहे वो रक्षा बंधन की खीची हुई फोटो हो या फिर ऐसी ..."हां उमा हेलो?"......"ह..हाँ भैया"........उमा ने आवाज़ पहचानते हुए एकदम से कॉल उठा लिया था

आदम : अभी कैसी है तू? रैना कैसी है?

उमा : सब ठीक है यहाँ कल दिन से रैना दी और माँ ने कुछ खाया नही था लेकिन बहेन ने माँ से माँफी माँगी अभी सब ठीक है...दोनो माँ-बेटी बात करने लगी है

आदम : उफ्फ चलो शूकर है आइ आम सॉरी उमा कल मेरी वजह से तुम लोगो को इतना गहरा ठेस पहुचा मैं कैसे माँफी मांगू मैं तो तुम दोनो से नज़रें भी ना मिला सकता

उमा : भैया मैं समझती हूँ मैं जानती थी कि माँ के नाजायेज़ संबंध है पर भैया आप भी उनके साथ कैसे? खैर हम कर भी क्या सकते है हालत के आगे मज़बूर तो हम भी है

आदम : सरदार जी आए उनको कुछ मालूम तो नही चला ना?

उमा : नही भैया वो क्यूँ आते? वो तो मर रहे होंगे अपनी बीवी को लेके उन्हें हमारे घर से क्या? कल कोई और कलेश नही हुआ था माँ से दीदी का वो थोड़ी गुस्सा ज़रूर थी पर अब उसने मुझे कहा कि उसे बेहद बुरा लगा वो आपसे माँफी भी माँगना चाहती थी

आदम : हालत के आगे वो भी क्या कर सकती है उमा खैर जाने दो जो हो गया सो गया बस मैं ये चाहता हूँ कि तू तो कम से कम मांफ कर दे मुझे

उमा : मैने आपको कब बुरा भला कहाँ था भैया? मैं तो आपको अपने भाई से भी बढ़ के मानती हूँ

आदम : खैर मैं अब जा रहा हूँ ना अगले महीने इसलिए सोचा कि मन खट्टा करके ऐसे तुम लोगो से विदा ना लूँ

उमा : क्यूँ कहाँ जा रहे हो आप?

आदम : माँ के साथ शहर छोड़ रहा हूँ...कल ऐसे मोमेंट पे हम मिले कि कोई बात ही नही हो सकी

आदम उमा को सबकुछ ब्यान कर देता है...उमा को बताता है कि वो हेमा आंटी का राज़दार था..वो उमा से मिलने की ज़िद्द करता है..पर उमा बहन के डर से उससे मिलना नही चाह रही थी...पर वो ये बात अपनी माँ को बताती है कि भाई मिलना चाहता है...तो हेमा कोई आपत्ति नही जताती...उमा आदम को बस स्टॉप पे मिलने का कहते हुए फोन काट देती है...वक़्त के अनुसार आदम वहाँ शाम 5 बजे पहुचता है...

जब वो वहाँ जाता है तो साथ में रैना को भी खड़ा पाता है...रैना की मज़ूद्गी पाके वो शर्मिंदगी महसूस करने लगता है....रैना उससे कल जो हुआ उसके लिए माँफी मांगती है....आदम कहता है कि क्या वो अब भी उससे गुस्सा है? बस वो नही चाहता कि वो ऐसे रिश्तो को ऐसे हालात में छोड़के विदा ले..उमा पूछती है कि आख़िर क्या बात हो गयी जो वो अंजुम आंटी को लिए शहर छोड़ रहा है...आदम कहता है कि ये जगह बात करने के लिए ठीक नही....वो उन्हें अपने साथ एक रेस्टोरेंट ले आता है...पहले रैना ना नुकुर कर रही होती है कुछ ना ऑर्डर देने के लिए वो उदास होती है तो आदम ही तीन कॉफी का ऑर्डर देके बाद में बाकी ऑर्डर देगा बोलके वेटर को भगा देता है

फिर दोनो को तफ़सील से समझाने लगता है...."देखो रैना और उमा हेमा आंटी के सामने तुम्हें मैं इतना कुछ कह तो नही सकता था...पर तुमने हमे जिस हालत में देखा उसके बाद यक़ीनन किसी भी बेटी का अपने भाई या माँ से विश्वास उठना तय है...पर यही सच्चाई है कि मैं आंटी से पहली बार मिला हूँ"......इतना सुनते ही रैना और उमा दोनो जैसे लजा जाती है आदम हिचकिचाते हुए उनके हालत को समझे चुप हो जाता है

फिर वो उन्हें कहता है कि जो कुछ भी हुआ वो किस्मत का फेर है...समीर अब उनके घर नही आएगा...वो पार्टी वाली बात दोनो के आगे रखता है फिर दोनो को समझाता है कि उसकी माँ ये सब मजबूरी में कर रही है आज से नही करीब 7 सालो से पर वो हर किसी से संबंध नही बनाती थी लोग ही उसकी आबरू के दुश्मन बने फिर रहे थे उसने ये लाइन इसलिए चुना कि उसे अपना घर चलाना था तुम दोनो को पालना था वो ईमानदारी से कामवाली की भी नौकरी के बाद फॅक्टरी में लगी लेकिन वहाँ भी ग़रीबी और लोगो की हवस ने उसे एक बार फिर मज़बूर कर दिया कि वो संबंध बनाए...उनकी बातों का बुरा ना माने...उन्हें उल्टे समझने की कोशिश करे....उनके ही बदौलत आज सरदार उसकी बेटियों को देख रहा था....रैना दिल ही दिल में सरदार से नफ़रत करती थी उसने सॉफ कहा कि हम जानते है लेकिन हम चुपचाप थे हमे बस ये लगा कि हमारी माँ कितनी गंदी औरत है?

आदम : बस इसलिए तुम लोग उसे बुरा कह रहे हो हालत को समझो अगर उसने सरदार से झूठी शादी का ढोंग जो खुद सरदार ने किया सिर्फ़ इस संबंध को और तुम्हारे आगे इस रिश्ते को जायेज़ करार देने के लिए तो सिर्फ़ तुम्हारे लिए वरना उसे हेमा आंटी से कोई प्यार नही....देखा कल रिपोर्ट्स मे कैसे उसने हेमा आंटी को दर्द दिया

उमा : हम जानते है भैया पर अब हम क्या करें? हमे लगा कि आप भी उन आदमियों जैसे है जो हमारी माँ के पेशे का फ़ायदा उठा रहा है

आदम : ऐसा बिल्कुल नही सबकुछ रज़ामंदी से हुआ था...लेकिन वो मेरी पहली और आखरी भूल थी अब मैं वहाँ कभी नही आउन्गा

रैना : भैया ऐसा ना कहे हमे अपनी ग़लती का अहसास है हम मिसअंडरस्टेंडिंग में आ गये थे

आदम समझता था दोनो को झटका लगा था अपनी माँ की चुदाई देखते हुए....रैना ने ये तक बात रख दिया कि वो नही चाहती कि उसकी माँ ये पेशा और अपनाए उसने आदम को कहा कि अगर मज़बूरी ज़्यादा है तो वो भी ये पेशा जाय्न कर लेगी चाहे जो कुछ उसकी माँ ने पैसो की मज़बूरी में किया वो भी कर सकती है...उमा ने भी साथ में हामी भरी..तो आदम ने उन्हें डांटा

आदम : भूल से भी ये बात ना कहना बहन मानता हूँ तुम्हें मानता हूँ ठरक और हवस की हसरतों ने मेरे ईमान को डगमगा दिया जो मैं आंटी के साथ ये कर बैठा पर प्ल्स तुम लोग इस लाइन को नही चुनना तुम पढ़ी लिखी हो उमा बी.कॉम कर चुकी है सी.ए के अंडर काम करती है क्या मैं नही चाहता कि तुम दोनो किसी लायक बनो अपने घर पे लगे उस दाग को मिटाओ जिन लोगो ने लांक्षन लगाए है उनके चेहरो पे कालिख पोतो और उन्हें दिखलाओ कि तुम भी कुछ हो तुम किसी रंडी की बेटी नही एक ईमान घर की लड़किया हो तुम दोनो कुँवारी हो कल को शादी होगी क्या मैं नही चाहता कि तुम्हारी गृहस्थी खुशियो से भारी हो कोई चीज़ की कमी नही हो तुम्हे ये पेशा जो तुम्हारी माँ ने इकतियार किया क्या है इसमें? सिर्फ़ मज़बूरी और दर्द हम में से कुछ ही मर्द हों जो औरतो की मज़बूरी और खासकरके ऐसे औरतो के दिल को समझ पाए पर मैने समझा है कि तुम्हारी माँ ने कितना दुखा झेला कितने दर्द से तुम लोगो की परवरिश की...सिर्फ़ अपना जिस्म बेचके क्या हसरत पूरी कर लोगे तुम जिंदगी की हसरत कभी मिटती नही ये और भी ज़्यादा सुलगती है

आदम की बातों से दोनो चुपचाप सी हो गयी.....उन्हें जैसे अहसास हुआ अपनी माँ और खुद के हालातों का....क्या कोई कह सकता था? कि वो यह वो इंसान बोल रहा है वो इंसान जिसकी निगाहो में रत्ती भर के लिए अपनी बहन के प्रति कोई बुरे ख्याल नही थे हालाँकि वो उसकी सग़ी बहनें नही थी...क्या कोई कह सकता है जो कल तक आयाशी करता फिरता था वो आज एकदम से इतना बदल गया था

आदम के हौसला देने से दोनो काफ़ी चुपचाप हुए जैसे उसकी बातों को मान रही थी....आदम के समझाने के बाद दोनो उसके गले लग्के रोने लगी...आदम ने दोनो को समझाया कि वो भले ही उनका गैर ही सही पर जब बहन माना है तो वो उनपे ऐसी गंदी नज़र नही रख सकता ना ही उन्हें किसी भी गंदे हालातों में देख सकता है...आदम ने उनसे कहा कि घर जाए माँ को मनाए समझाए और खुशी मन से रहे...उमा और रैना को नाज़ हुआ कि वो जैसा आदम को समझ रही थी वो वैसा था नही शायद जो कुछ उस दिन उन लोगो ने देखा वो सिर्फ़ हेमा और आदम के बीच एकदुसरे की हवस थी

आदम के मनाने के बाद वेटर को दोनो ने ऑर्डर्स दिए फिर खुशी मन से दोनो बहनें आदम से गले मिलके चली गयी.....उन्होने चाहा कि अंजुम हेमा से मिल ले....पर आदम ने बताया कि शायद ही वो माने....आदम को खुशी हुई कि उसका टूटते रिश्ते की डोर उसने वक़्त रहते संभाल ली वरना ज़िंदगी भर ये अफ़सोस रह जाता और दोनो उसे हीनभावना और घृणा भरी नज़रो से ही देखती....घर आके उसने माँ को काफ़ी समझाया था.....काफ़ी समझाने के बाद माँ और आदम दोनो हेमा आंटी के घर गये उनसे मिले.....दोनो सहेलियो ने आपस के गीले शिकवे दूर किए तो आदम भी अपनी बहनों से मिलके उनके साथ हँसी खुशी पल बिताने लगा

वो जैसे आखरी मुलाक़ात थी...उनसे विदा लेने के बाद सच में दोनो का मन भर आया था....समीर को फोन करके आदम ने जब सबकुछ बताया तो वाक़ई वो आदम से काफ़ी इंप्रेस हुआ कि किस तरह उसने उसने रिश्तो को टूटने और बिखरने से बचा लिया था...और उससे भी बढ़के वो चाहता तो अपनी बातों से उमा और रैना अपनी मुँह बोली बहनों को राज़ी करके उनके साथ कुछ भी कर लेता...पर समीर मुस्कुराया वो जानता था आदम का दिल सॉफ है वो रिश्तो की अहमियत को समझता था...हालाँकि समीर को ये नही मालूम था कि आदम अपनी माँ को सिर्फ़ माँ नही एक अलग नज़रिए से देखता है उससे अटूट प्यार करता है...क्यूंकी उसका प्यार सच्चा था और कही हद तक उसी के प्यार ने आदम को हवस भरी हसरतों से निकाल एक सच्चा प्रेमी बना दिया था

आगे ये कहानी क्या मोड़ लेने वाली थी इसका अंदाज़ा किसी को नही था
Reply
12-09-2019, 01:29 PM,
#82
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
सुबह 9 बज चुके थे...और पति के जाने के बाद अंजुम रसोईघर में आके बर्तनो को मान्झ्ने लगी थी...मान्झ्ते वक़्त वो एक बार पीछे मूड के थोड़ा सा झाँकके बेटे के रूम को देख रही थी...उसने पाया बेटा अब तक घोड़े बेचके सो रहा था...अफ ये लड़का कितना आलसी हो गया? फिर माँ के दिल में आया बेचारे के पास है ही क्या? ना सर छुपाने के लिए अपना छत ना ही कोई संपत्ति ना ही कोई आशा ना ही कोई लाइफस्टाइल...उसका रावय्या हमेशा से अंजुम के लिए चिंता जनक ही रहता था कितना गुस्सैल था वो? और आज कैसे बड़ी बड़ी बातें करता है?...कितना बड़ा हो गया है ऐसे ख्याल रखता है उसका कि जैसे उसकी घरवाली हो

और एक उसका पति है जिसे अपने बीवी बच्चे से अलग होने का कोई दुख नही....अंजुम अपने पति को कोसते हुए काम कर रही थी....आज वो पति के ऑफीस के जाने के बाद सोई नही उसने अपनी नमाज़ पूरी की और फिर घर के काम काजो में लग गयी...जब वो फिरसे बेटे के रूम में आई तो उसने पाया कि बेटा आधी नगन अवस्था में सो रहा था....एक तो वो गर्मी ज़्यादा लगने की वजह से उपरी बदन पे कोई कपड़ा नही पहनता था और आज उसका पाजामा उसके पिछवाड़े से नीचे तक उतर गया था....नींद में इतना था कि उसे ख्याल नही.....आज पहली बार माँ की नज़र अपने बेटे की नंगी गान्ड पे गयी..जो कि बालों से भरी थी...अंजुम बार बार देख रही थी बीच बीच में लजाते हुए अपनी नज़रें फेर देती..लेकिन बार बार उसकी निगाह बेटे की नंगी पीठ से होते हुए उसकी गान्ड पे आ जाती..वो आगे बढ़ी उसने अपने दाँत पीसते हुए बेहद शर्मो हया में अपने बेटे के प्यज़ामे को ठीक करते हुए उसे उपर किया..जिससे बेटा एकदम से हरकत में आ गया और उसने लगभग माँ की कलाई पे हाथ रखा.....वो अधखुली आँखो से माँ की तरफ देखने लगा

माँ एकदम से उसकी पीठ पे चपत लगाते हुए उसे नज़ाकत से देखने लगी..

आदम : क्या माँ उफ्फ? तुमने जगा दिया

अंजुम : अर्रे ओ आदम कम से कम सोते वक़्त ठीक से कपड़े तो पहना कर तेरा पाजामा उतरके तेरी टाँगों के बीच में आ गया था...छी तेरा पाछा (आस) देख लिया मैने (माँ इतना कहते हुए शरमाते हुए हँसने लगी)

आदम : हाहाहा क्या माँ? तुम भी अफ (आदम ने अपने पाजामे को ठीक किया और उठ बैठा उसे अहसास हुआ कि वो सपना नही हक़ीक़त में माँ उसके बदन पे हाथ रखी थी लगभग पाजामा उपर खिसकाने के वक़्त उनका नरम हाथ बेटे की गान्ड पर से होता हुआ पीठ तक टच हुआ था)

अंजुम : अब चल ज़्यादा देर मत कर दोपहर सर पे है अब जल्दी उठ नाश्ता कर और थोड़ा फ्रेश हो जा और अपने कपड़े दे धोने है

आदम : तुम भी माँ इतनी सुबह सुबह सब करने लगती हो

अंजुम : अच्छा जी देर से सोयु देर से जागू पता है तुझे है मेरी कमर दर्द कितना बढ़ जाता है...उपर से अब तू ज़िम्मेदार हो गया है कल नौकरी करेगा ऐसे सोए पड़े रहेगा क्या?

आदम : अच्छा मेरी अंजुम मैं उठता हूँ

अंजुम : हावव माँ का नाम लेता है

आदम : क्यूँ मैं तेरा नाम नही ले सकता?

अंजुम : चल पगले उठ अर्रे हाथ छोड़ ना (आदम ने शरारत से माँ की कलाई पकड़ी...माँ अपने कलाईयों को छुड़ाने के लिए मरोडने लगी)

आदम : माँ आज तूने मेरी पसंद की चूड़ियाँ पहनी है

अंजुम को समझ आया कि बेटे ने उसकी कलाई क्यूँ पकड़ी? ...... बेटा की दिलाई हुई उसने चाँदनी चॉक से खरीदी वो लाल रंग की चूड़ियाँ पहनी हुई थी...माँ शर्मा गयी....बेटे ने उस पर हल्का सा चुंबन ले लिया

अंजुम : बस बस बहुत हुआ अब चलो उठो मुझे भूक लगी है बाबू (माँ ने बेटे के बालों पे हाथ रखके उसे झाड़ा)

आदम : अच्छा माँ उठ रहा हूँ चल

बेटा माँ के हाथो का सहारे लिए उठ बैठा और उसके कंधे पे अपना हाथ रखा....माँ ने कोई आपत्ति नही जताई...वो रसोईघर वापिस से चली गयी तो आदम बाथरूम....कुछ ही मिनट में ब्रश करके मुँह हाथ धोके आदम ने अपने गंदे कपड़े उतारके उसे टब पे रखा....वो रसोईघर में तौलिया लपेटे आया...उसने माँ की तरफ देखा जो उपर हाथ ले जाके सौंफ का डिब्बा उतार रही थी....वो एडियों को उच्काये हुए हाथ उपर ले जाने का प्रयत्न कर रही थी...

आदम : माँ वो उम्म नीला हाफ पॅंट कहाँ है?

अंजुम : अफ आल्मिरा में होगा देख ले ना?

आदम : अर्रे माँ पूरा अलमारी छान लिया कही नही मिली?

अंजुम : देख बेटा मैं अभी इस डब्बे को उठाने में लगी हूँ तू देख लेना

आदम : ठीक है माँ

आदम अभी दो कदम पीछे मुड़ा ही था कि इतने में वो वापिस मुड़ा....क्यूंकी डिब्बा जो काफ़ी उचाई पे था वो माँ को पाना संभव नही था हालाँकि उनके हाथ काफ़ी उचाई तक पहुचे थे पर उतने नही....उनकी उंगलिया कगार तक को छू रही थी....आदम माँ के पास आया करीब 1 उंगली के फ़ासले पीठ माँ की उसकी तरफ थी माँ पसीने पसीने हो रही थी...क्यूंकी रसोईघर में वो बहुत देर से काम कर रही थी..."बेटा तू मदद कर ना"...माँ ने आख़िर कह दिया....इसमें आदम को एक शरारत सूझी...और उसने बिना माँ को आभास कराए उसके नितंबो के नीचे से पेट तक अपने हाथो को लपेट लिया...इस हरकत से माँ बौखलाई...

"अर्रे अर्रे क्या कर रहा है उईइ माँ गिर जाउन्गीइ या अल्लहह आहह"....माँ चीख पड़ी बेटे ने उसे अपने बल से झुकाते हुए उसके नितंबो से लेके पेट पे हाथ रखके कस कर उपर उठा लिया..माँ उसके सहारे से उठने से काफ़ी उपर तक आ गयी...उसने फट से सौंफ की डिब्बी उठाई और काँपते हाथो से उसे लगभग नीचे गिरा डाला...."बाप रे बेटा मुझे उतार ना बहुत डर लग रहा है"........आदम हँसने लगा माँ को भयभीत देख...पर उसे अपनी माँ का गुदास नितंबो के बीच सर रखने में कोई हीचिकिचाहट नही हुई..बल्कि माँ के जंपर और पाजामा दोनो पसीने से भीगे थे

आदम : अर्रे माँ और कुछ है तो उठा के नीचे रख दे मैं तुझे आराम से पकड़ा हुआ हूँ
!
Reply
12-09-2019, 01:29 PM,
#83
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
अंजुम : बेटा तू मुझे नीचे उतार ना बस बस हो गया प्लज़्ज़्ज़

आदम : तेरे जैसी नाज़ुक औरत को मैं ज़िंदगी भर तक ऐसे अपनी गोद में उठाए थामे रह सकता हूँ

अंजुम सहमी बेटे के अपने पेट को लपेटे हाथो पे हाथ रखके कस कर पकड़ी हुई थी....बेटे ने जिस भाती उसे नितंबो से उठाया था फिर उसे वापिस नीचे उतारने लगा...इस बीच उसका तौलिया खुला और वो एकदम नंगा माँ को गोद में उठाए ठहर गया

अंजुम : क्या हुआ अब उतार भी?

बेटा झुक गया वो कैसे माँ को कहता कि नीचे उसका 8 इंच का लॉडा उसे उसकी माँ को गोद में उठाने से खड़ा है....उसके नितंबो को बीच बेटे का सर था इसलिए उसने धीरे धीरे माँ को उतारना शुरू किया जब माँ ने किचन सेल्फ़ पे हाथ रखा तो उसके जान में जान आई..वो पूरी तरीके से बेटे की गोद से उतर चुकी ज़मीन पे पाँव रख चुकी थी..उसकी जान में जान आई बेटा इस बीच पीछे होके तौलिया उठाने लगा

तो माँ जैसे पलटी तो वो सहन उठी बेटा पूरा नंगा उसके सामने झुका हुआ था और उसके टाँगों के बीच उसका लंड झूल रहा था वो उत्तेजित हालत में अंजुम को लगा....उसने फट से नज़रें फेर ली

अंजुम : उफ्फ इस लड़के का क्या करूँ? पहन जल्दी अपना तौलिया क्या करता है तू? ढंग से तौलिया बाँध नही सकता इतना बड़ा हो गया पर अकल रत्तिभर की नही तुझमें

आदम : हाहाहा सॉरी माँ वो बस ध्यान से हट गया मुझे लगा कि सौफ़ की डिब्बी उठाने में तुझे कही चोट ना लग जाए

अंजुम मन ही मन शर्मा रही थी उसकी निगाहो में बेटे का लंड घूम रहा था वो इस बात से परेशान हो गयी कि उस दिन के बाद फिर उसके ज़ज़्बात उमड़ रहे थे उसने अपने उत्तेजित होते दिल को संभाला और चुप सी हो गयी...आदम तौलिया लपेटे माँ को पीछे से अपने बाहों में भर लेता है...माँ उसके इस हरकत से आँखे बड़ी किए हड़बड़ा जाती है..."उफ्फ क्या कर रहा है छोड़ ना".....

"अर्रे माँ बस ऐसे ही तुझपे प्यार आ गया"...

."अच्छा नाश्ता तो बनाने दे फिर जी भरके प्यार कर लेना और अभी तूने कपड़े भी नही पहने तू जा"......

"अच्छा जाता हूँ".....आदम तौलिया ठीक किए वापिस रूम में चला गया

इस बीच अंजुम को अहसास हुआ कि बेटे के टाँगों के बीच जो लंड उसने फुरती से अपनी तौलिया लपेटके छुपा लिया था वोई उत्तेजित लंड उसे अपने नितंबो के बीच कपड़े के उपर से ही चुभता महसूस हुआ...वो जानती थी बेटा उत्तेजित हो जाता है इसलिए वो खुद पे संयम नही पा पाता और अंजुम के साथ ऐसी हरकत कर बैठता है...लेकिन आज अंजुम को बेटे के उत्तेजित लंड और उसके स्पर्श से ही उत्तेजना अपने तन बदन में महसूस हो रही थी..."उफ्फ ये मैं क्या सोचने लगी छी नही मैं आदम को समझाउंगी मैं उसकी माँ हूँ माना मैने उससे वादा किया था उस दिन पर नही अगर मैं उसे कुछ कहूँगी नही तो खामोखाः फिर उदास हो जाएगा या अल्लाह किस दुविधा में फस गयी हूँ मैं"........अपने आप को कोसते हुए अंजुम थोड़ी परेशान सी हुई

जब वो बेटे के साथ नाश्ता कर रही थी...तो उसने पाया बेटा उससे नॉर्मली बात चीत कर रहा था...अंजुम भी एक पल को सब भूल गयी और वो भी नॉर्मल उससे बातें करने लगी...दोनो हेमा और उसकी दोनो बेटियो की बात कर रहे थे..उसका दिल उस दिन के बाद खुद को कोस रहा था कि शायद हेमा का उसने ज़्यादा दिल दुखा दिया...पर आदम ने उसे गिल्ट करने से मना किया उसने समझाया कि ग़लती उसकी भी थी..खैर वो सब बातें अब तू भूल जा और अब आगे की सोच...अंजुम भी भूल गयी थी कि उसे अपने बेटे के साथ दिल्ली छोड़ना था...आदम ने नाश्ता ख़तम किया माँ को टिकेट्स दिखाई...माँ उससे उसके काम काज और घर जो उसके काका ने मूहाय्या कराया था दोनो के लिए उस विषय पे चर्चा करने लगी...

आदम : तू फिकर मत कर माँ बस एक बार हम बाबा को छोड़ दें और एक साथ रहने लगे फिर देखना पिताजी खुद पे खुद तेरे पाँव पे गिरके आएगा

अंजुम : बेटा इतने सालो से साथ थे हम मुझे भी तेरे पिता से ना जाने क्यूँ इतनी नफ़रत सी होने लगी है....कभी समझे नही हम लोगो को

आदम : तू फिर दुखी होने लगी क्या फायेदा? उस आदमी का सोचके जिसे हमारी रत्तिभर परवाह नही मानता हूँ उससे मैं पैदा हुआ पर क्या सुख मिला तुझे? तू ही बता एक बार भी उसने हमारे लिए कुछ सोचा क्या कर रखा है उसने?

अंजुम : ठीक है बेटा तू नाराज़ मत हो गुस्सा थूक दे मैं भी देखती हूँ उस आदमी को कितने दिन अकेले खाता पीता है आज जो यहाँ का मुँह देख रहा है मेरी वजह से वरना किसी जुआरी और कर्ज़ख़ोर से कम नही था वो इंसान (अंजुम ने जैसे घृणा भरी नज़रों से कहा)

आदम ने अंजुम के चेहरे को सहलाया...और दोनो एकदुसरे के गले लग गये...आदम ने अंजुम की पीठ को सहलाया और उसके लगभग पीठ पे चूम लिया.....अंजुम से अलग होते ही आदम बाहर चला गया....अंजुम ने उसे प्यार से देखा जैसे उसे कितना प्यार उस पर आ रहा हो..अगर आज वो सहारा ना बनता तो पति कबका उसको घर से निकाल देता...उसे खुशी थी उसके पति का घमंड गुरूर आदम ने एक ही बार में सब चकनाचूर कर दिया था...

दिन कटने लगे.....शिफ्टिंग वालो को उनके पिता ने बुलाके जितने सामान थे सब सामान ट्रक्स में लोडेड करवाना शुरू किया...कुछ सामान उन्होने बेच दिया और कुछ को उनके नोएडा वाले किराए के कमरे में भेज दिया....आदम ने भी अपने सामान को बाँधना शुरू किया और उसे एक जगह रख दिया....माँ चुपचाप समान को जाते देख रही थी उसे बेहद बुरा लग रहा था...आदम जो टेप लगा रहा था वो सामान में टेप लगाते हुए माँ को ज़ज़्बाती होता देख उनके पास आया और उसने माँ के दोनो कंधो को पकड़ा और मुस्कुराया...जैसे वो माँ को हौसला दे रहा था....माँ भी मुस्कुराइ अब उसे पीछे मूड के देखने की कोई ज़रूरत नही था....

बस अब कुछ दिन ही रह गये थे....पिता ने उससे सवाल किया कि वो कब जा रहा है? तो आदम ने उसे टिकेट्स दिखाए पिता ने उसे ले जाते अपने सामान को देखा खर्चे के बारे पूछा नही जानते थे ना बेटा उस पर उन्हें हाथ रखने देता ना ही उन्हें बेचने..क्यूंकी वो सामान सब उसकी ज़रूरत के थे और वो उन्हें अपने साथ होमटाउन ले जा रहा था....

समीर की मदद से आदम ने अपने सामान को होमटाउन भिजवाने के लिए ट्रांसपोर्ट वालो को दे दिया...जो सामान लेके होमटाउन के लिए निकल चुके थे....समीर ने उसे बताया कि जब वो वहाँ पहुचेगा उसके ठीक दूसरे दिन ही वो सामान सारे बताए पते के अनुसार उसके घर के पास ट्रक के साथ आ जाएगा....आदम ने समीर की मदद का काफ़ी शुक्रियादा किया..पर समीर ने उसके पीठ पे थापि मारते हुए कहा भला वो उसके काम नही आएगा तो कौन आएगा?....

समीर : खैर तो आंटी और आदम तुमको मेरे घर आना पड़ेगा...इतने दिनो बाद आप लोगो से मुलाक़ात हुई और इस तरह अचानक यूँ आप लोग घर छोड़के जा रहे हो मुझे बुरा लग रहा है

अंजुम : कोई बात नही बेटा तुम भी आना और तुम सोफीया के साथ ही आओगे पर मुझे आदम ने बताया कि तुम जा रहे हो

समीर : हां आंटी बस अगले साल ही तो मैं चला जाउन्गा अब वैसे भी यहान रहके क्या दोस्त भी नही यहाँ रहेगा और माँ भी कह रही है कि उन्हें यहाँ अच्छा नही लग रहा कोई है नही ना अपना उनकी सहेलिया भी उधर ही मुंबई में है और हम तो वहीं के थे सो

अंजुम : आइ आम सॉरी बेटा कि हमारी वजह से तुम

समीर : नही नही आंटी मैं तो आदम का कॉलेज से ज़रूर दोस्त बना पर सच में ऐसा लगता है जैसे एक ही कश्ती के दो सवार हों
!
Reply
12-09-2019, 01:29 PM,
#84
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
आदम जानता था समीर ने ऐसा क्यूँ कहा? अपनी माँ की तरफ आकर्षित होने की वजह से उसने ऐसा कहा था लेकिन उसकी बातों में ही वो जता रहा था कि शायद वो ग़लत था आदम बहुत पाक दिल का है..कि उसने अपने खुशी भरी ज़िंदगी को छोड़के वापिस दिल्ली आने का फ़ैसला किया....और सबसे बढ़ कर अपनी माँ को संभाला

अंजुम भी समीर के सामने बेटे की तारीफ करने लगी...आदम शरमा रहा था...समीर ने उसे आँख मांर दी....कुछ देर बातचीत के बाद समीर ने आदम और अंजुम दोनो को अपने घर दावत में इन्वाइट किया कहा फिर मौका मिले ना मिले....आदम उसके गले लगा समीर थोड़ा भावुक हो गया

आदम : अर्रे भाई मैं तो हूँ ना हर्वक़्त कॉल करूँगा और वीडियो चॅट भी

समीर : बिल्कुल करना होगा साले पहले तो फोन करता था तो उठाता नही था (समीर ने आँख मांर दी आदम समझ गया कि उसने ऐसा क्यूँ कहा उसे याद आया कि जिस दिन उसका कॉल आया था वो चंपा के साथ था समीर तो सबकुछ जानता था उसने मुस्कुरा दिया आदम को भाँपते हुए देखकर)

आदम : अब गॅरेंटी देता हूँ तेरे उठाने से पहले मैं फोन रिसीव करूँगा और इतना तुझे परेशान कर दूँगा फोन कर करके कि पगला जाएगा तू

समीर आदम और अंजुम हँसने लगे...समीर ने फिर अंजुम को सलाम किया जाने से पहले...आदम उसे गेट तक छोड़ने गया..फिर समीर आदम के घर से चला गया....माँ उसके उपर आते ही उसके कंधे पे हाथ रखके उसे अंदर ले आई....शाम तक पिता नोएडा में सामान शिफ्ट करके आ चुके थे...वो आदम और माँ के निकलने के 20 तारीख के बाद घर खाली करके जाने वाले थे...

नानी के घर जाने से पहले हम समीर और उसकी माँ से एक आखरी मुलाक़ात कर लेना चाहते थे...इसलिए हम दोनो माँ-बेटे समीर की दी दावत पे दोपहर 12 बजे निकले...चूँकि समीर अपनी माँ के साथ अकेला ही रहता था इसलिए हमे उसके किसी भी और सदस्य के ना होने से टेन्षन ना थी...माँ थोड़ा खुले गले वाला सूट पहनी थी जो काफ़ी उनपे सेक्सी लग रहा था...मैं वोई फॉर्मल शर्ट और जीन्स में तय्यार था जल्दी जल्दी तय्यार होके समीर के यहाँ पहुचे

समीर जैसे हमारे ही स्वागत में पलके बिछाए बैठा था....झट से दरवाजा खोल उसने मेरा और माँ का बड़ी इज़्ज़त से स्वागत किया....मैं समीर के गले लगा और हम भाई अंदर आए....माँ के वेलकम के लिए सोफीया आंटी पास ही खड़ी थी उन्होने ट्रॅन्स्परेंट सी ब्लॅक साड़ी पहनी हुई थी और मॅचिंग फिते वाला ब्लाउस देखके लग ही नही रहा था...कि वो सोफीया आंटी थी....समीर ने मुझे पीछे से हल्का सा धक्का दिया मैं जब उसकी तरफ मुड़ा तो उसने इशारे से कहा देख मस्त लग रही है ना?....मैने भी इशारे से एक आँख मारते हुए अंगूठा दिखाया

सोफीया आंटी माँ के गले मिली...दोनो को आपस में घुलते मिलते देख ऐसा लग रहा था जैसे कितने सालो की सहेलियाँ हो .....इतने में समीर ने मेरी माँ ने जो सूट पहना उसकी तारीफ कर डाली....अंजुम जैसे झेंप गयी वो शरमाई नज़रों से मुझे देखने लगी और सोफीया आंटी को...सोफीया आंटी भी हंस पड़ी

समीर : सच में आंटी आज आप बड़ी ब्यूटिफुल लग रही हो लगता है आदम ने आते ही आपको बिल्कुल बदल दिया

सोफीया : हां हां क्यूँ नही भला बेटे के सुख से बढ़ के हम माँ को कहाँ से खुशी मिल सकती है भला?

आदम : अर्रे आंटी खाली मेरी माँ की तारीफ होगी और आप तो लग ही नही रही कि आप सोफीया आंटी हो जिसे मैं कॉलेज टाइम से देखता हुआ आया हूँ

समीर और सोफीया भी शरमाते हुए हंस पड़े इस बार अंजुम भी मेरी तारीफ सुनके हंस पड़ी...."हां सच में सोफीया जी आप तो बहुत ही खूबसूरत लग रही है चेहरे पे कितना निखार आ गया आपके"........अंजुम की बात सुन समीर की माँ का चेहरा लाल हो गया...समीर बस शरमाता हुआ माँ की तारीफ सुन रहा था और सोफीया आंटी उसे चोर निगाहो से शरमाये देख मुस्कुरा रही थी....दोनो का नैन मटक्का देख मैने समीर को हल्की सी चूटी काटी तो समीर हंस पड़ा

मैं उसे ऐसा जता रहा था कि कम से कम मेरी माँ का तो लिहाज कर ......लेकिन उसे क्या पता? कि अंजुम को कल रात ही मैने इन माँ-बेटो की शादी तय होने की बात बता दी थी इसलिए माँ उन्हें देख देखके मुस्कुरा रही थी...

सोफीया : अच्छा भाई सारी बात यही हॉल रूम में करेंगे क्या चलो आदम बेटा उम्म्म अंजुम जी मैं खाना लगाती हूँ

समीर : हां आज मेरी माँ ने गरमा गरम आप लोगो के लिए चिकन बिरयानी बनाई है

अंजुम : अर्रे वाह सोफीया जी तब तो आज आपके हाथो का ज़ाएका मिलेगा खाने को

सोफीया : ज़रूर ज़रूर चलिए आओ तुम लोग भी (सोफीया अंजुम को कह कर किचन में चली गयी अंजुम मदद करने गयी तो समीर ने उन्हे मना कर दिया)

हम दोनो माँ-बेटे डाइनिंग टेबल के पास लगी कुर्सियो पे बैठ गये....माँ पानी पीने लगी...माँ दोनो माँ-बेटों को किचन में इकहट्टे काम करते देख काफ़ी खुश हुई उसे लग ही नही रहा था कि ये कोई प्रेमी जोड़ा हो सकता है कैसे इन्होने खूनी रिश्तो के अंदर ही अपने एक नये संबंध को जनम दिया था...माँ ने मेरे बाज़ू पे कोहनी मारी तो मैं उनकी तरफ पलटा

आदम : क्या हुआ माँ?

अंजुम : वाक़ई देख किस्मत हो तो ऐसी तेरा दोस्त समीर अपनी माँ का कितना ख्याल रखता है? और इतने आलीशान फ्लॅट में रहता है वाक़ई देख कैसे अपनी माँ का हाथ बटा रहा है (माँ ने मुझे माँ-बेटों की तरफ इशारा करते हुए कहा)

आदम : अर्रे माँ क्या मैं तेरा घर के कामो में हाथ नही बटाता

अंजुम : उफ्फ पगले मैं कह रही हूँ दोनो को देख मैं तो सिर्फ़ सुनती थी पर सच में तेरा दोस्त तो अपनी माँ का पूरा दीवाना है.....ऐसे उसके साथ व्यवहार कर रहा है जैसे मिया बीवी हो

आदम : तो क्या हर्ज़ है? मैं क्या कहता नही था? कि ऐसे रिश्तो में प्यार भरपूर होता है

अंजुम : हां सच कहा तूने शुरू शुरू में अज़ीब सा महसूस होता है पर माँ-बेटों के रिश्तो में जो प्यार घुला हुआ होता है वो तो हर संबंधो से बढ़ के है

आदम : ह्म अच्छा वो लोग आ रहे है ज़्यादा डिस्कशन मत करना मैं समीर को अपने और तेरे बारे में कुछ नही बताता

अंजुम : मतलब क्या नही बताता?

आदम : कि हमारे बीच भी एक और रिश्ता जुड़ सा गया है (इस बीच आदम ने टेबल पे रखे माँ के हाथो पे हाथ रख दिया और उसे हल्का सा सहलाया दोनो एकदुसरे को प्यार भरी निगाहो से देखने लगे)

समीर के आने की आहट को सुन दोनो ने झट से अपने हाथ अलग किए...समीर मुस्कुराए अपनी माँ के साथ थाली परोसने लगा...माँ भी पतीले से गरमा गरम चिकन बिर्यानी प्लेट्स में डालने लगी

आदम : अर्रे आंटी बस बस

सोफीया : ह्म यहाँ ना नुकुर नही चलेगा समीर के बाद तुमपे भी मेरा हक़ बनता है क्यूँ अंजुम?

अंजुम : हां हां ये भी आपका ही तो बेटा है

सोफीया : जवान लड़के हो और इतना कम खाओगे

समीर : हां मम्मी देख ना कैसे पतला दुबला हो गया चल चुपचाप खा आंटी आप भी लीजिए

आदम : अच्छा बाबा बस बस

हम चारो हंसते हुए बात करने लगे थे....साथ में लंच का भी आनंद ले रहे थे....समीर की मोम फिर समीर के पिता के बारे में बताने लगी....समीर थोड़ा उस वक़्त भावुक होके चुप सा हो गया....जैसे उसे अच्छा नही लग रहा हो....सोफीया आंटी ने बताया कि पिता के गुज़रने के बाद उसने एक मर्द की तरह माँ को सहारा दिया है कोई कमी नही होने दी...अंजुम भी सहमति में मुस्कुरा रही थी....समीर शरमा रहा था....फिर बातों बातों में हमारे होमटाउन की बात निकल गयी....गपशप होते होते 3:30 बज गया...झूठे खाली प्लेट्स को सोफीया आंटी ले जाने लगी तो माँ भी उनकी हेल्प करने चली गयी..
Reply
12-09-2019, 01:30 PM,
#85
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
समीर और मैं भी उठके हाथ मुँह धोने गये....फिर हाथ मुँह पोछ कर बात करने लगे...."आ ना मेरे और सोफीया के बेडरूम में चल आंटी को भी माँ के साथ अकेला छोड़ ना"............

"अच्छा चल ठीक है"......समीर और मैं उसके बेडरूम में जाने लगे.....तो समीर की माँ को जब उसने बेडरूम जाने की बात कही तो ना जाने क्यूँ उसकी माँ शर्मा गयी? मैं समझा नही क्यूंकी समीर के घर मैं पहली बार आया था उसका घर भी देख रहा था जो काफ़ी आलीशान और चका चौंध लग रहा था...

बेडरूम में प्रवेश करते ही पाया कि किंगसाइज़ की डबल बेड थी और कमरे में हर चीज़ काफ़ी सजाया हुआ था....बिस्तर पे हार्ट शेप में तकिये कयि रंग के मज़ूद थे...और एक स्टाइलिश सोफा ठीक बिस्तर के सामने था...दीवार पे एलसीडी टीवी लगी हुई थी और नीचे होम थियेटर फिट था....बेड के ठीक बगल में एक बड़ा सा अलमारी था....समीर ने आदम को बैठने को बोलते हुए अलमारी के पास गया और उसने वॉर्डरोब्स खोलने शुरू किए मेरी आँखे फॅट गयी

समीर : ये देख यहाँ माँ की अंडरगार्मेंट्स ही लटकी हुई होती है....तो इस दराज़ में माँ के कपड़े जैसे साड़ी सूट हिजाब...ये देख खोल इस दराज़ को

इतना कहते हुए समीर मुझे ही खोलने को बोलके बैठ गया...मैने जैसे ही नीचे का दराज़ खोला तो वॉर्डरोब्स में मेह्न्गे मेह्न्गे चूड़िया,ज़ेवर मेक अप कीट्स कॉसमेटिक का अनगिनत समान जैसे लिपस्टिक्स मज़ूद था...सारा वॉर्डरोब्स खुला था....हर एक चीज़ काफ़ी कॉस्ट्ली लग रहा था....समीर जैसे माँ को बीवी की तरह रखता था....उसे कोई चीज़ की कमी नही थी

अलमारी के ठीक बगल में साज़ सिंगार करने के लिए एक आएना लगा हुआ था जिसके सामने एक स्टूल थी.....समीर ने दूसरा दराज़ खोला तो उसमें सोफीया आंटी के अनगिनत के सेक्सी सेक्सी नाइटी मज़ूद थे....अफ उसने अंदर हाथ डालके डिल्डोस दिखाते हुए मुझे चिड़ाया मैं चुपचाप उसका शकल ही देख रहा था....

आदम : अबे साले तू इतना खुल्लम खुल्ला वातावरण रखता है घर में कोई आदमी या रिश्तेदार ऐसे तेरे घर को चेक करेगा तो और वैसे भी तुम दोनो माँ-बेटे के अलावा यहाँ रहता ही कौन है? उन्हें अज़ीब सा शक़ नही लगेगा

समीर : इस घर में माँ को लाते वक़्त उन्होने मुझसे कसम ली थी कि वो यहाँ किसी को भी आने ना देगी ना गैर को ना किसी और को...हालाँकि तू तो मेरा ख़ास है और जैसा मैने कहा हमारे ख्यालात कुछ सेम सेम है हालाँकि तूने वो आइडिया दिल्ली आने के बाद ड्रॉप कर दिया लेकिन मैं कायम हूँ

आदम : ह्म सो तो है (आदम चुपचाप शरमाया सा समीर को देखने लगा)

आदम ने उन डिल्डोस को उठाया जिनकी लंबाई करीब 9इंच तक तो होगी...उसकी मोटाई भी काफ़ी ज़्यादा थी प्लास्टिक और लचीले थे इसलिए आदम उसे हर तरह से मोडके देख रहा था...क्या ये पूरा का पूरा समीर अपनी माँ की चूत में डालता होगा

समीर : हाहाहा तभी देखा तूने माँ क्यूँ शरमा रही थी एक चीज़ और दिखाऊ?

आदम के सामने ही समीर ने दो-तीन पर्दे एकदम से हटाए दीवार से जो उसे लगा शायद खिड़किया हो पर वहाँ खिड़किया नही बल्कि बड़ी बड़ी पोस्टर जैसी तस्वीरे लगी हुई थी...हर एक तस्वीर में उसकी माँ का खूबसूरत अदाओ से भरा चेहरा और बदन दोनो दिख रहा था हालाँकि वो तस्वीरे किसी प्लेबाय मॅगज़ीन की तस्वीरो जैसी थी...मेरी आँख फॅट गयी क्यूंकी तस्वीर में सोफीया आंटी किसी में लाइनाये में थी...तो किसी में उसने चुन्नी कर रखी थी पर ऐसा लग रहा था जैसे अंदर उसने कोई कपड़े नही पहने जैसे ब्रा या पैंटी तस्वीर बड़ी सी थी इसलिए उनके निपल्स सॉफ चुन्नी में उभरे दिख रहे थे...मेरा गला सुख गया...समीर ने तीसरी वाली तस्वीर पे हाथ रखा उसका हाथ माँ के पेट पे था...क्यूंकी उसमें आंटी ने हाफ टॉप पहन रखी थी और नीचे जीन्स...ऐसा लग रहा था कि समीर माँ का कितना दीवाना था मेरी आँखे उन हर तस्वीरो को दीवार पे लटकी देख फटी सी रह गयी थी....समीर मुस्कुराया

आदम : माइ गॉड समीर ये सब क्या है यार? उस दिन ऑफीस में मुझे तेरे दिखाए पिक्स पे यकीन तो हो गया था पर ये सब क्या है? बेडरूम में आंटी की इतनी बोल्ड तस्वीरे (मैं एक एक तस्वीर को देख रहा था)

समीर : ये वाली 2015 की है ये 2016 की पिक है हां ये हाफ टॉप और जीन्स वाला लेटेस्ट है....माँ को हर चीज़ ऑनलाइन ही ऑर्डर कर देने को बोलता हूँ ये सब ड्रेसस और कपड़े मेरी पसंद के होते है

आदम : यार तूने तो माँ को काफ़ी सुख देके रखा है

समीर : साले माँ के सुख से बड़ा कुछ और हो सकता है

आदम : अब तो मुझे पक्का यकीन है कि सोफीया आंटी शादी के बाद तेरे से खुश रहेंगी
Reply
12-09-2019, 01:30 PM,
#86
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
समीर झेंप सा गया वो अपने होंठो पे ज़ुबान फिराने लगा....उसने सारे दराज़ो को बंद किया और मुझे बाथरूम दिखाने लगा...बाथरूम भी कमरे से कोई कम नही था एक तो इतना बड़ा उपर से अटॅच इंग्लीश टाय्लेट के साथ... एक जगह जहाँ गुलाब की पंखुड़िया बिखरी हुई थी...ऐसा लग रहा था जैसे उसमें माँ और बेटे दोनो हमारे आने से पहले नहाए होंगे एक साथ...समीर मुस्कुराने लगा...मैं शरमा गया समीर ने नल पे टॅंगी माँ की पैंटी और ब्रा मुझे दिखाई

वो उसे पागलो की तरह सूंघने लगा..."क्या कर रहा है पागल? आंटी देख लेंगी तो क्या सोचेंगी?"........समीर मुस्कुरा के मेरे हाथ में अपनी माँ की पैंटी देता है जिसपे कुछ धब्बा सा लगा था...

समीर : ये गंध ये महेक मेरे लिए गुलाब की खुश्बू सी है जिसमें एक बार नाक देने के बाद मैं स्वर्ग में पहुच जाता हूँ अफ क्या खुश्बू है इसकी इसमें माँ की भीनी भीनी पसीने की महेक के साथ साथ उन्हें उत्तेजित करने के बाद उनकी चूत से निकला चिपचिपापन है तुझे आहेसस नही हो रहा

मैं ताहिरा मौसी को चोद रखा था चंपा को चोद रखा था तबस्सुम दी और आकांक्षा के साथ रूपाली भाभी को चोद रखा था इसलिए मुझे पैंटी की वो महेक सूंघने में कोई घिन नही लगी मैं औरत की महेक पहचानता था...मैं भी पैंटी हाथो में लिए उसे सूँघा मुझे थोड़ा अज़ीब लगा क्यूंकी मैं सोफीया आंटी की काफ़ी इज़्ज़त करता था समीर जैसे इस दृश्य को देख मज़े ले रहा था...

आदम : अच्छा भाई छोड़ ये सब और ये बता कि शादी से अब आगे का क्या प्लान है?

समीर : क्या बताऊ यार? नियती का खेल है सब माँ ने मुझे बतया नही था कि कॉपर टी उन्होने लगवा रखी थी अपने गुप्तांगो के भीतर...तभी मैं सोचु माँ को चुदाई के वक़्त दर्द क्यूँ इतना बर्दाश्त करना पड़ता था मैने पिछले ही महीने माँ को राज़ी करके कॉपर टी निकलवा ली उमर ही क्या हुई है 35-36 बरस अब तो मैं भी चाहता हूँ कि माँ पेट से हो जाए अब हम अपने बीच कोई और दूरिया नही रखना चाहते

समीर की बात सुनके मुझे थोड़ा शॉक ज़रूर लगा कि वो पहले से ही माँ का दीवाना है माँ के साथ ग्रहस्थी तो वो बसा चुका लेकिन निक़ाह के बाद वो बाप बनना चाहता था वो भी अपनी सग़ी माँ से बच्चा लेना चाहता था...ये सब सुनके मैं हैरत में पड़ गया उसने बताया कि इतने कोशिशो के बाद उसे लगा शायद माँ को गर्भ ठहर जाए पर माँ को कोई फरक नही पड़ रहा था...फिर लेडी डॉक्टर से मिलने की जब बात कही तो उन्होने खुद ही बताया कि वो समीर के पैदा होने के बाद कोई और उसके पिता से औलाद नही चाहती थी इसलिए उन्होने कॉपर टी का सहारा लिया

समीर वही नल पे उन ब्रा पैंटी को रखके मेरे साथ बाहर आया...उसने बताया कि इससे पहले सोफीया पे हक़ सिर्फ़ उसके पिता का था...अब उसका है..और हर पिता के बाद औरत का ख्याल उसके बेटे को रखना होता है उसके बेटे का उस पर पूरा हक़ हो जाता है....समीर व्यभिचारी बेटा बन चुका था..कितने रिश्ते उसके आने लगे थे तो उसने रिश्ते बुलाने वाले अपने एक दोस्त को थप्पड़ जड़ दिया था सिर्फ़ इस बात से कि उसने उसके लिए घर पे उसके गैर हाज़िरी में रिश्ते लाने शुरू कर दिए...बस लड़का अमीर था इसलिए लड़कियो ने उसे पसंद किया एक अकेले घर का राजा था वो सिर्फ़ माँ थी जो कोई नही जनता था कि दोनो माँ-बेटे नही एकदुसरे के पति पत्नी जैसे थे....भला समीर पराई औरत को देखे.....समीर फिर भावुक हो गया उसने बताया कि वो ये आलीशान बांग्ला बेच बाचके माँ को लेके वापिस मुंबई शिफ्ट हो जाएगा उसके लिए ये कोई बड़ी बात तो नही थी...

उधर अंजुम सोफीया की बातों को नोटीस कर रही थी कि वो कितना झिझक रही है...उसे डर लग रहा था कि कही आदम की माँ उसके और उसके बेटे के रिश्ते को समझ तो नही गयी.....लेकिन उसे क्या पता? कि अंजुम तो उनसे भी एक कदम आगे थी....भले ही वो इन व्यबचार रिश्तो को समझने की कोशिश कर रही थी...दोनो औरतें अपने दिल को जैसे हल्का करते हुए एकदुसरे के ग्रहस्थी को लेके चर्चा कर रही थी...

अंजुम : वाक़ई सोफीया जी जितना आराम समीर ने आपको दिया वो कोई घरवाला भी नही दे सकता

सोफीया : सच कहा आपने समीर की बात ही जुदा है उसने जो आराम मुझे दिया है वो लाखो बेटों में से कोई ही दे पाते है वरना आजकल ज़रा सा उमर क्या होती है? बस लड़कियो को सेलेक्ट करते है शादी करते है फिर तो जानती हो हम माँ का किरदार अपने ही घर में कितना पराया सा होके रह जाता है...

अंजुम : लेकिन आपको कैसी फिकर आदम ने बताया मुझे वो आपका काफ़ी ख्याल रखता है आपकी हर छोटी मोटी ज़रूरतो को पूरा भी करता है

सोफीया झिझक रही थी उसे डर लग रहा था कि कही उसके बेटे समीर ने आदम को सबकुछ बता तो नही दिया था....अंजुम सिर्फ़ मुस्कुरा रही थी उसके सहमते दिल को समझ उसने सोफीया के कंधे पे हाथ रखा

अंजुम : मैं भी एक जवान बेटे की माँ हूँ आप ही की तरह मेरा भी इकलौता है

सोफीया : सच में अंजुम जी आपका बेटा भी हीरा है जो अपनी इच्छाओ को त्याग के वापिस आपके पास आ गया मुझे समीर बताता था उसका बर्ताव शुरू शुरू में बहुत ग़लत था पर अब देखिए कैसे वो समझदार हो गया उस वक़्त नादान था वो

अंजुम शरमाई...उसने सहमति से सर हां में हिलाया...."लेकिन ये बात तो तय है कि जब तक हमारे बेटे हमारे साथ है हमे किसी भी चीज़ की कोई ज़रूरत नही"..........

."सही कहा आपने अंजुम जी अब हम भी अगले साल शिफ्ट हो रहे है वापिस मुंबई आप लोगो को बड़ा मिस करेंगे".....

."हाहाहा हम भी बहुत करेंगे एक लगाव सा जुड़ गया है आप लोगो से ऐसा लगता है जैसे आयने में खुद के ही रिश्तो को देख रहे है"...........

"ह्म एनीवे आज आप रात का डिन्नर करके ही जाइएगा आप लोग भी ना इतने दिनो बाद ऐसे मोमेंट पे आए कि अब 20 तारीख को निकल जाएँगे".......

."अर्रे नही नही ऐसी कोई बात नही हम जहाँ पे घर लिए है वहाँ पे आप भी आईएगा".....

."ज़रुरर् ज़रूर क्यूँ नही? वैसे एक बात कहूँ?"......

.अंजुम चुपचाप सी हो गयी

सोफीया : मुझे ऐसा क्यूँ लगता है जैसे आप सबकुछ जानती है

अंजुम जैसे मुस्कुराइ दोनो औरतें एकदुसरे के हाथो में हाथ रखके सिर्फ़ शरमाई....

"सही कहा एक औरत ही तो एक औरत के दिल को समझ सकती है दरअसल मैं काफ़ी खुश हूँ कि समीर आपके साथ निक़ाह करने वाला है".........

सोफीया ये सुनके चौंक उठी पहले तो काफ़ी झिझकी फिर उसकी शरम थोड़ी थोड़ी कम हुई

सोफीया : अब आप जब जान ही गयी है तो फिर छुपाना कैसे ? बस सोसाइटी से डर लगता है कि ये रिश्ता जो हमने जोड़ा है उसे लोग गुनाह ही कहेंगे

अंजुम : बाहरवालो को कहने कौन जा रहा है? पहले मैं भी ऐसा ही समझती थी लेकिन अपने बेटे के अंदर बदलाव देख मुझे भी ऐसा लगा

सोफीया : ये आदम पूरा छुपा रुस्तम है सेम मेरा समीर जैसा

अंजुम : हाहाहा और नही तो क्या? लेकिन आप बताईएगा नही समीर को कि मैं ये बात जानती हूँ

सोफीया : नही नही ये हमारे बीच ही रहेगी मैं चाहती हूँ कि हमारे निक़ाह में जब आए तब समीर को सर्प्राइज़ दे आदम के साथ मिलके

अंजुम : बिल्कुल बिल्कुल

सोफीया : वैसे आपका भी कुछ आदम के प्रति देखिए अब आप भी कुछ ना छुपाइएगा

अंजुम : सच कहूँ तो सोफीया जी मैं उसे बेटे की नज़र से कभी अलग देखी ही नही थी...लेकिन उस दिन (अंजुम ने धीरे धीरे सोफीया को उस दिन अपने और बेटे के बीच प्यार का इज़हार वाली बात बताई जिसमें आदम स्यूयिसाइड करने जा रहा था सोफीया मुँह पे हाथ रखके चुपचाप गौर से सुन रही थी अंजुम के चुप होते ही)

सोफीया : नही वो दबाव नही था उसके प्यार का जुनून था सच्चा प्यार है उसे आपसे और एक तरह से अच्छा ही तो है कि आदम आपसे कभी दूर नही होगा वरना आजकल लड़कियों को ज़रा सा भी वक़्त नही लगता लड़को को घरवालो से दूर करने में

अंजुम : लेकिन फिर भी मैं बूढ़ी हो रही हूँ वो कमसिन जवान लड़का भला मैं उसकी ज़िंदगी क्यूँ खराब करूँ?

सोफीया : ये बात मैं भी कुछ साल पहले सोचती थी पर मुहब्बत उमर रिश्ते और वक़्त नही देखती और वैसे भी आप तो मुझसे यंग है खुद को देखिए ऐसा लगता है जैसे आप अपने शौहर से मिलती भी नही होंगी
Reply
12-09-2019, 01:30 PM,
#87
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
अंजुम शरमा गयी जैसे सोफीया ने उसकी चोरी पकड़ ली हो...उसने फिर अपने पति की हरकतों के बारे में बताना शुरू किया एक पल को उसका चेहरा फिर उदास सा हो गया..सोफीया समझाती रही कि अब टेन्षन ना ले बेटा आ गया है अब उसके सिवाह किसी पे भी ध्यान देने की ज़रूरत नही सब ठीक हो जाएगा खुदा पे भरोसा रखो और ये ना सोचो कि ये गुनाह है पाप है...कुछ देर तक दोनो ऐसे ही वार्तालाप करती रही...बीच में बेटों ने आके दोनो का ध्यान तोड़ा....

रात का डिन्नर ख़तम होने के बाद समीर जैसे आदम से गले लग्के भावुक हो गया इधर अंजुम भी आँसू पोंछ रही थी...सोफीया आंटी भी आदम और अंजुम के गले मिली..

."वाक़ई ऐसा लग रहा है जैसे रिश्ता जुड़ सा गया है आप लोगो को सच में हम दोनो बहुत मिस करेंगे"........आदम भी अपने आँसू पोंछने लगा

आदम : कोई बात नही आंटी हम तो कॉंटॅक्ट में रहेंगे ही साथ ही साथ रोज़ आपसे बात करेंगे

अंजुम : और हां समीर बेटा माँ का पूरा ख्याल रखना

समीर : जी आंटी तू भी सुन ले आदम आराम से रहना कोई कमी ना पड़े....माँ का खूब ख्याल रखना आंटी अब तेरी ज़िम्मेदारी है

अंजुम और आदम दोनो शरमा गये...सोफीया भी मुस्कुरा पड़ी...

."हाहाहा तू भी ध्यान रखना".....इतना कहते हुए दोनो दोस्त फिर एकदुसरे के गले मिले..समीर उन्हें सी ऑफ की बात कहने लगा तो आदम ने बताया गाड़ी सुबह 4 की है तो इसलिए खामोखाः वो इतना दूर जाएगा वो लोग चले जाएँगे फिकर ना करे..आख़िर में दोनो माँ-बेटे वहाँ से रुखसत हुए...समीर की आँखो में आँसू उमड़ पड़े...अपने दोस्त के बिछड़ने से....माँ ने उसके कंधे पे हाथ रखा तो समीर भावुक होके उसके सीने से लग गया...सोफीया उसे चुप कराने लगी उसके बालों पे हाथ फेरते हुए दोनो अंदर चले आए
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
20 तारीख की सुबह 4 बजे आदम अपने पिता से विदाई लेता है....जो चुपचाप सिर्फ़ इतना बोले कि अपना ख्याल रखे कोई प्राब्लम हो रास्ते में तो कॉल करे...आदम ने कॅट्सी निभाने के लिए सिर्फ़ हां में सर हिलाया....माँ ने भी ज़्यादा पति से कोई बात नही की....पिता उन्हें जाते हुए देख रहा था....

गनीमत थी कि सुबह खाली रास्ते की वजह से दोनो आधे घंटे पहले रेलवे स्टेशन पहुच गये....वहाँ से कुली किए अपना सामान प्लॅटफॉर्म में खड़ी रेल गाड़ी में ले आए...जल्दी अपना कोच ढूँढा और अपनी सीट के नीचे समान को अड्जस्ट किया....दोनो कुछ देर तक काम काज में फसे थे....माँ ने कहा कि अब बाहर ना जाए ट्रेन चलने वाली है...आदम बस मुस्कुराया वो खिड़की से बाहर झाँक रहा था...कुछ ही देर में ट्रेन में दो मिया बीवी जो बिहारी थे वो सामने आके कोच अपना दाखिल हुए बैठ गये....वो दोनो बिना माँ-बेटे की परवाह किए सामान रखने के बाद एकदुसरे के साथ छेड़ छाड़ और गंदे गंदे मज़ाक कर रहे थे....आदम को उनसे मतलब तो नही था पर माँ उन्हें देखके मुस्कुरा रही थी आदम को कोहनी मार कर उन दोनो को देखने का इशारा कर रही थी...आदम भी मन ही मन हंस पड़ा...

ट्रेन छूट पड़ी....अपनी सीट ठीक किए माँ का बिस्तर लगाए आदम उपर की सीट पे आके बैठ गया हालाँकि उसे नींद तो नही आती थी ट्रेन में इसलिए सामान को बार बार चेक कर रहा था नीचे झाँक कर....दोनो बिहारी मिया बीवी सो गये थे...आदम भी उबासी लेता हुआ माँ की तरफ देखता है जो थकि होने से सो गयी थी...आदम भी चुपचाप सो जाता था...रैल्गाड़ी काफ़ी रफ़्तार से चल पड़ी थी...सुबह 4 बजे उठने की वजह से उसे बड़ी नींद लग रही थी इसलिए वो नींद की आगोश में कुछ ही देर में आ गया

कुछ घंटो बाद जब अंजुम की नींद खुली तो उसने पाया कि गाड़ी तेज़ रफ़्तार में चल रही थी क्यूंकी पूरी बौगी काँप रही थी...स्पीड शायद रात को ज़्यादा बढ़ा दी थी ट्रेन ड्राइवर ने...वैसे भी 24 घंटे का रास्ता था..वो उठके एक बार खड़ी होके आदम की बर्थ में झाँकति है तो पाती है कि बेटा गहरी नींद में सो रहा है....उसे अच्छा ही लगा कि बेटा इतना थक हारके सामान लिए अपनी नींद खराब किए माँ के साथ रैल्गाड़ी में चढ़ा था....उसे सोने देना ही माँ ने बेहतर समझा....और फिर वो लेट गयी

उसे अहसास हुआ कि उसे जोरो की पेशाब लग रही है..अंजुम ने अपने चप्पल पहने और दुपट्टा ठीक करते हुए टाय्लेट के पास आई...इस वक़्त वहाँ कोई नही मज़ूद था...वो टाय्लेट में घुस गयी....वही बैठके पिट के पास अपनी चूत से ज़ोर की पेशाब की धार छोड़ी प्सस्ससस्स......उसे इतनी ज़ोर की पेशाब लगी कि करीब 10 मिनट तक उसकी चूत की पानी की मोटी धार छोड़ती रही मूतने के बाद फारिग होके उसने अपने गुप्तांगों पे नल से पानी हाथो में लिए उसे हाथो से ही धोया फिर जंपर को मुँह से दबाए पाजामा ठीक किए उसे पहनते हुए प्यज़ामे की डोरी को बाँधने लगी..उसे जल्दी जल्दी वापिस जाने का मन कर रहा था क्यूंकी अकेले आई थी बेटा बौगी में अकेला सो रहा था...वो जैसे बाहर आई एकदम से घबरा गयी क्यूंकी एक 42 वर्ष उमर का शॅक्स काली टोपी और काले कोट और सफेद शर्ट और पॅंट पहना उसके सामने खड़ा हुआ था..जानने में आया कि ये टीटी है

अंजुम उसे चौंकते हुए देखने लगी...उसने मुस्कुरा कर माँफी माँगी..अचानक उसके माथे पे शिकन की लहर दौड़ पड़ी..अंजुम उसे खुद को घूर्रते देख अज़ीब निगाहो से देखते हुए वापिस अपनी बौगी की तरफ बढ़ गयी....वो उसे जाते हुए देख रहा था.....जब वो बौगी में आई तब तक ट्रेन कोई नये स्टेशन पे आके रुकने को हुई थी...आदम को जागते देख माँ ने उसकी चादर को ठीक करके उसे उधाने लगी....आदम ने आँखे खोली

आदम : मों कहाँ थी तुम? मैं अभी उठा था तो तुम थी नही मुझे लगा टाय्लेट गयी हो

अंजुम : हां रात से नही किया था...उपर से गॅस बन रहा है ना यहाँ तो फारिग भी नही हो सकते

आदम : हां कोई बात नही

अंजुम : अच्छा तू सो जा ना

आदम : ह्म अब नींद खुल गयी है बाद में आराम कर लेंगे (आदम वैसे ही लेटे रहा माँ अपने बर्थ पे आके लेट गयी)

कोच की लाइट्स ऑफ थी इसलिए अंजुम की नज़र आने जाने वाले को नोटीस कर रही थी....कुछ पॅसेंजर्स थे तो कुछ करम्चारि...आस पास के लोग सभी सो रहे थे...इतने में अंजुम ने नोटीस किया कि वो टीटी बर्थो में झाँकता हुआ सबको सोया देख आगे बढ़ गया....अंजुम को थोड़ा अज़ीब लगा उसे ऐसा लगा जैसे इस टीटी को उसने पहले कभी देखा है....चेहरा रौबदार था मुच्छे थी भरा पूरा बदन था...उमर भी 40 से कही ज़्यादा उपर लग रही थी....अंजुम ने भी सोचा शायद उसका वेहेम हो लेकिन टीटी उसे ऐसे घूर्र रहा था उसे थोड़ा अज़ीब लगा...लेकिन उसने इस बात को ज़्यादा महत्व नही दिया
!
Reply
12-09-2019, 01:30 PM,
#88
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
अगले दिन सुबह सुबह 10 बजे तक दोनो नाश्ता ख़तम किए टिफिन से निकाल कर चाइ खरीद के पीते है...आदम ब्रश करने चला जाता है क्यूंकी ट्रेन में तो सिर्फ़ हाथ मुँह धो सकता है...जब आदम गया तो उसके बाद अंजुम ने नोटीस किया कि कल रात वाला वोई टीटी सबकी टिकेट्स वेरिफाइ कर रहा है...अंजुम ने फ़ौरन बेटे के पास रखा अपना पर्स उठाया उसमें से अपने आधार कार्ड के साथ टिकेट्स भी निकाल लिए....जैसे ही वो उसके बौगी में आया तो अंजुम के सामने वाले पॅसेंजर की टिकेट्स देखने लगा वो रिजिस्टर में कुछ मार्क भी कर रहा था...लगभग वो अंजुम की बर्त पे बैठ गया बगल में टिकेट को रजिस्टर में एंक्वाइरी करने के लिए...अंजुम ने कोई आपत्ति नही जताई वो चुपचाप उसे देख रही थी...

जैसे ही वो टिकेट के लिए अंजुम के पास हाथ बढ़ाता है उसे पहचानते देख मुस्कुराता है..."जी आप अकेले?"......

"जी नही बेटा भी है मेरा ये दो टिकेट्स".......

"ह्म ठीक है".....एक पल को टीटी अंजुम के पूरा नाम पे गौर करता है फिर उसे एक बार देखता है

अंजुम : क्या हुआ कोई प्राब्लम ?

टते : जी बिल्कुल नही हाहाहा ये लीजिए आपके टिकेट्स? (इतने में आदम को देख टीटी उठ खड़ा होता है और उसे गौर से देखता है)

आदम उसे घुरते देख माँ के बर्त वली सीट पे बैठ जाता है.....टीटी के दूसरे बौगी में जाते ही आदम मुस्कुरा के माँ को देखता है..."क्या हुआ माँ?"..........आदम के सवालात पे माँ उससे बात करने लगती है

अंजुम : पता नही कल रात को भी टाय्लेट के पास खड़ा मुझे घूर्र रहा था

आदम : क्या? इसकी इतनी हिम्मत साले की माँ की

अंजुम : अर्रे पागल घूर्र रहा था मतलब ऐसे देख रहा था जैसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो

आदम : हाहाहा पहचानने की भला आपका कौन जानने वाला निकल आया अब?

अंजुम : बस मुझे ऐसा लगा

आदम : आप भी उसे पहचानी

अंजुम : देखा देखा तो लग नही रहा क्यूंकी उमर दराज़ आदमी है होगा मेरी तरह कोई दिखने वाली जिसे पहले उसने देखा हो

आदम : ह्म हो सकता है

आदम और अंजुम टीटी की बात को भूल फिरसे एक दूसरे में जैसे उलझ गये...दोनो एक पल को उसकी बात भूल ही गये....आदम टाय्लेट करने जब जा रहा था तो उसने शाम को पाया कि वो टीटी किसी पॅसेंजर के टिकेट को लेके उसे झगड़ रहा था वो काफ़ी एजुकेटेड लगा क्यूंकी इंग्लीश में बहसा बहसी हो रही थी इतनें आइन आदम ने उसे गौर से देखा तो पाया उसने हल्के शीशे रंग का ब्राउन रंग का चश्मा पहना हुआ था...काफ़ी रौबदार चेहरा था उसके नेमप्लेट पे थोड़ा पास आने से उसने सॉफ देखा कि उसका नाम राज़ौल शैख़ था..आदम ने उसे कुछ नही कहा वो टाय्लेट की तरफ बढ़ गया

करीब 24 घंटे के उस रास्ते में फिर कुछ अंजुम और आदम के साथ कुछ नही घटा...लेकिन बार बार आदम को ना जाने ऐसा क्यूँ लग रहा था जैसे वो कोई जानने वाला हो...इसी कशमकश में आदम का होमटाउन आ गया अगले दिन के सुबह 6 बज चुके थे....आदम और माँ दोनो ने गाड़ी के थमते ही जल्दी जल्दी सामान को लादा और उसे लेके बाहर जाने लगे...क्यूंकी ट्रेन सिर्फ़ 10 मिनट के लिए ही रुकने वाली थी....टीटी राज़ौल फिरसे एक बार चक्कर लगाने बौगी मे आया तो उसने पाया कि बर्त पूरा खाली था वो माँ-बेटे वहाँ मज़ूद नही थे...अचानक उसे ना जाने क्या याद आया वो फ़ौरन फुरती से बाहर की ओर भागा..ट्रेन के दरवाजे तक आने पे उसने पाया कि दूर सीडियो पे आदम अपनी माँ को लिए कुली को सामान तमाए चढ़ रहा था..

वो उतरने को हुआ तो उसे दूसरे टीटी ने लगभग पकड़ा "पागल है क्या? ये क्या कर रहा है? तेरी ड्यूटी मालदा तक की थोड़ी ना है जो उतर रहा है सीनियर टीटी होके क्या बेवकूफी कर रहा है तू".....दूसरे सीनियर टीटी के रोकने से राज़ौल उसे आँख फाडे देखने लगा जैसे वो होश में नही था

राज़ौल : नही नही दरअसल वो पॅसेंजर्स वो औरत उसे मैं !(कहते कहते राज़ौल रुक गया वो अपने सीनियर की मज़ूद्गी का अहसास उसे होता है)

सीनियर टीटी ने कोई जवाब नही दिया उसकी बेवकूफी पे बस नाराज़ होता हुआ ना में सर हिलाए आगे बढ़ गया बौगी में....ट्रेन छूट पड़ी...उसकी बदक़िस्मती कि वो उतर ना सका..और उसके मन में जो आया था वो ट्रेन की पूरी रफ़्तार के साथ छूटता चला गया वो ट्रेन के दरवाजे पे ही खड़ा रह गया और उसकी ट्रेन मालदा स्टेशन को छोड़ते हुए दूर चली गयी...इधर बेटे और माँ एकदुसरे में मगन स्टेशन से बाहर आए सूरज निकलने लगा था...

स्टेशन से बाहर निकलते ही मैने थ्री वीलर रिक्क्षा ले लिया था...पूरे रास्ते माँ टाउन को देख रही थी..जैसे सबकुछ कितना बदल गया हो..वो मुस्कुरा भी रही थी साथ में मेरी तरफ देखते हुए मुझे बता रही थी कि जब वो यहाँ रहती थी तो यहाँ आती थी तो वहाँ आया करती थी....मैं चौक पे भीड़ थोड़ी कम थी इसलिए हमारा रिक्क्षा रोड क्रॉस करता हुआ सीधा मूड गया अब हम ब्रिड्ज पे थे...
Reply
12-09-2019, 01:30 PM,
#89
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
माँ मुझे बता रही थी कि यह जगह कितनी बदल चुकी है? आखरी बार वो 1993 में यहाँ से गयी थी..और आज इतने सालो बाद फिर अपने ससुराल आना उन्हें अच्छा तो नही लग रहा था लेकिन बेटे के दिल ने उनके दिल को भी पिघला दिया था...उनके अंदर अब इस जगह के लिए नफ़रत और गुस्सा नही बल्कि आज जैसे वो अलग ही अंजुम थी...जल्द ही हम मोरतुज़ा काका के घर पहुचे....समान लेते हुए माँ ने बताया कि यही मोरतुज़ा काका का घर है मैं इससे पहले आया नही था मैं तो बस इस शहर में आते ही अपना कदम रखते हुए यही सोच में था कि जिन लोगो के साथ मेरे संबंध थे कहीं उन्हें मालूम ना चल जाए? मैं अपने ही सोच में डूबा सा था

जब मोरतुज़ा काका ने दरवाजा खोला तो हमे देखके सर्प्राइज़ हुए...मुझे गले लगे और हमे अंदर आने को कहा....बुआ भी हमे देखके खुश थी काफ़ी उमर ढल चुकी थी उनकी...घर अच्छा ख़ासा था मोरतुज़ा काका के कारोबार से ही मैं अनुमान लगा सकता था कि वो कितने अमीर हो गये है? एक बेटी थी जो कोलकाता ब्याह दी गयी और आज दो जुड़वा बच्चों की माँ है तबस्सुम दी के बारे में सोचते ही बदन जैसे सिहर उठा....सच में उनकी चुदाई करने में मेरा पसीना निकल गया था उफ्फ तरबूज़ जैसी उनकी चुचियाँ...इतने में ध्यान टूटा

तो बुआ पानी दे रही थी...मैं खुद पे काबू करता हुआ पानी पीने लगा....मोरतुज़ा काका से फिर बातचीत का दौर शुरू हुआ घर बार की बात हुई फिर काम काज की...मैं ध्यान से उनकी बातें सुनने लगा उन्होने कहा आज यही ठहर जाओ किराए के घर में कल शिफ्ट हो जाना...पर माँ बोली नही नही खामोखा पर बुआ भी ज़िद्द करने लगी...लेकिन सामान बहुत सारा लाए थे इसलिए घर भी देखना था और शिफ्ट भी होना था....माँ और मैं सामान लिए मोरतुज़ा काका के साथ नये किराए के घर की ओर निकल गये....जहाँ मोरतुज़ा काका ने मुझे घर दिलवाया था वो टाउन से बाई ओर यानी उल्टा साइड पड़ता था इसलिए वो जगह मेरे जानने वालों के घरो से काफ़ी दूर था...और अगर कभी बारिश होती थी तो बीच का जो ब्रिड्ज था जो टाउन और हमारे एरिया को जोड़ता था वो नदी के पानी से भर जाता था

हालाँकि माँ को आपत्ति हुई पर मैने कहा कि क्या फरक पड़ता है? हमे प्राइवसी ही तो चाहिए मैने माँ के कान में फुसफुसते हुए कहा तो माँ मुस्कुराइ उन्हें भी किसी रिश्तेदार या किसी भी जानने वाले लोगो से मतलब नही रखना था...हालाँकि ताहिरा मौसी से मिलने की इच्छा जाहिर की पर वो उनके घर नही जाना चाहती थी ताहिरा मौसी और उनके घर का ज़िक्र सुन कर ही मैं फिरसे उन्ही पॅलो में चला गया जो दर्द और वाक़या जिन्हें समेत कर मैने इस एरिया को अलविदा कहा था

ब्रिड्ज क्रॉस करते ही बड़ा सा कब्रिस्तान शुरू हो गया और उसके बाद हरियाली छाने लगी ठीक उसके बाद कुछ घर शुरू हुए..थ्री वीलर एकदम सामने एक घर के आगे रुका....तो मोरतुज़ा काका मेरा बॅग उठाने लगे मैने मना किया....माँ हमारे पीछे थी....जैसे ही हम दरवाजे के पास आए...मोरतुज़ा काका ने चाबी से दरवाजा खोला

घर काफ़ी बड़ा था सारी सुविधाए थी....लिविंग रूम में बड़ी सी खिड़की थी वो एक सेपरेट फ्लोर था हमारा लेकिन नीचे का घर था..उपर तीन मंज़िला इमारत थी...जिसमें मकान मालिक को अब तक कोई किरायेदार नही मिला था...इसलिए हम बहुत खुश थे ओर वैसे भी इस एक पूरे ग्राउंड फ्लोर में हम माँ-बेटे को ही तो सिर्फ़ रहना था...माँ को घर बहुत पसंद आया क्यूंकी चारो तरफ चिड़ियो की आवाज़ और काफ़ी शांति थी पैड पौधे थे सुना था कि अभी लोग यहाँ धीरे धीरे बसने शुरू हुए है....

मोरतुज़ा काका फिर मुझे बोले कि थोड़ा रेस्ट कर लो अगले दिन फिर चलना पर मैने कहा शाम को ही आपके उस आदमी से मिल लून जो दिल्ली का माल यहाँ भिजवाएगा ताकि अपनी नौकरी मैं जल्दी संभालू...मेरा हौसला देखके मोरतुज़ा काका को अच्छा लगा माँ ने उन्हें कसम दी कि किसी को भी ससुराल के लोगो में ना बताए कि हम यहाँ है मोरतुज़ा काका ने निश्चिंत होने को माँ को कहा...मैं देख रहा था मोरतुज़ा काका माँ को बड़े गौर से देख रहे थे वो फिर माँ से मज़ाक सा करने लगे...लेकिन मेरी वहाँ मज़ूद्गी का अहसास उनको था शायद इसलिए वो बहुत जल्दी वहाँ से चले गये....शाम को मैं उनके साथ उनके आदमी से मिलने गया जिसने मुझे मामलो के बारे में जानकारी दी...फिर मैं डिस्ट्रिब्यूशन के साथ साथ जो माल लेना होता है उसके सॅंपल्स लेने का तरीका कौन सा माल लेना ठीक है? और उन्हें कौन कौन सी जगह में प्रवाइड करना है किसकी प्राइसस कितनी है उसमें कितना टॅक्स लगता है? बहुत सारा कारोबार को संभालने के लिए मैने रात दिन एक किए उन्हें मोरतुज़ा काका से जाना और संभालना शुरू किया

धीरे धीरे मैं मोरतुज़ा काका का काम संभालने लगा...और जैसे पहले करता था ठीक उससे दुगनी मेहनत करने लगा....मुनाफ़ा ज़्यादा कमाने लगा...हमारा घर जमने लगा..और इसके साथ ही माँ भी मेरे साथ हसी खुशी रहने लगी थी अब उसे कोई भी चीज़ की कोई तक़लीफ़ ना थी....हालाँकि प्राइवसी के चक्कर में और मोरतुज़ा काका के दिलाए किराए का घर जहाँ लिया था वो जगह थोड़ा सुनसान थी...इसलिए काम पे रहने के बाद मुझे हमेशा माँ की फिकर रहती थी....माँ ने पास की पड़ोसी औरतो से जो उमर में काफ़ी उम्रदराज थी उनसे दोस्ती कर ली इसलिए पूरे घर का काम निपटा देने के बाद वो उन लोगो से ही बैठके आँगन में बात करती रहती थी....मैने उन्हें सख़्त हिदायत दी थी कि अंधेरा होते ही घर से ना निकले मोबाइल चार्ज में रखे पहले पास की खिड़की जो लॉन में खुलती थी उससे झांन्कके देख ले कि कौन दरवाजे पे खड़ा है उसके बाद ही दरवाजा खोले रात को मैं घर जाने से पहले एक बार मिस कॉल मार देता था इसलिए माँ दरवाजा खोल देती थी

हालाँकि कभी कभी काम से लेट होने पे देर रात हो जाती तो मुझे रिक्क्षा भी बड़ी मुस्किल से मिलता था घर जाने के लिए...इसलिए मैने 2 महीने बाद ही इंस्टल्लमेंट पे बाइक खरीद ली थी इससे मुझे आसानी होने लगी और मेरा वक़्त बचने लगा...घर में शिफ्ट होने के तीसरे दिन ही ट्रक में लादा हुआ हमारा दिल्ली का सामान आ गया खटाखट करम्चरियो को पैसे दिए और जो पीसी और कुछ एक आध समान था उसे हमने रखना शुरू किया...मोरतुज़ा काका ने हमारे शिफ्ट होने के बाद ही हमे एक सेकेंड हॅंड बेड दिला दिया था....बाद में कहा कि पैसा हो जाए तो खरीद लेना माँ को भी इससे आपत्ति नही हुई....हम उसमें शीतलपाटी (एक तरह की बिंगाली चटाई जिसे बिस्तर के नीचे रखा जाता है) रज़ाई के उपर बिछाए उस पर चादर फैलाक़े सोते थे....रात को कुत्ते बड़े एकदुसरे से लड़ाई करते थे एकदम चुप्पी भरा सन्नाटा छा जाता था..

माँ को शुरू शुरू में नींद नही आती थी लेकिन धीरे धीरे उन्हें आदत पड़ने लगी पर जब भी मूतने की इच्छा होती थी तो मुझे जगाके साथ ले जाती थी हालाँकि हमारा घर चारों तरफ से बंद था....लेकिन उन्हे डर लगता था..मैं कभी कभी नींद में ज़्यादा होता पर माँ के मूतने की बात सुन मेरे अंदर की कामवासना जैसे जाग उठती थी मैं उनके साथ गुसलखाने के पास बने खाली जगह पे खड़ा रह जाता...वो अंदर टाय्लेट में घुस कर मूतने लग जाती...तो उनकी पेशाब की मोटी धार जब चूत से निकलती तो मेरे कानो में उसकी सिटी जैसी आवाज़ आती....लंड पाजामा में ही अकड़ जाता

मैं पहले की तरह खुले बदन और पाजामे के अंदर कुछ ना पहने माँ के साथ चिपक के सोता था...घर का माहौल मेरा बहुत ही रंगीन किसम का था...साला मकान मालिक भी बहुत महीनो महीनो बाद इकहट्टे पैसे लेने आता था कोलकाता से मोरतुज़ा काका का दिलाया घर अच्छा ही था...इससे पहले मैं जिस घर में था उससे भी ये घर शानदार था...मुझे चंपा की याद आई और बाकियो की भी
Reply
12-09-2019, 01:30 PM,
#90
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
ताहिरा मौसी को नानी ने बता दिया था कि मैं वापिस होमटाउन में इस बार माँ के साथ शिफ्ट हो गया हूँ तो वो खुश हुई लेकिन उन्हें जगह का मालूमात नही था...नंबर मैने यहाँ से जाने का बाद सिम चेंज कर दिया था इसलिए वो नंबर जो ताहिरा मौसी के पास था वो अब बंद हो चुका था...इसलिए वो मुझे कॉंटॅक्ट नही कर पा रही थी...नानी की ही बदौलत ताहिरा मौसी मेरे घर तक पहुचि मुझसे जिस दिन मिली थी उस दिन वो मुझसे लिपटके रोने ही लगी इतने दिनो बाद जो मुझे वापिस देख रही थी...उन्होने मेरे होंठो और गालो को चूमा पर माँ की मज़ूद्गी के अहसास से उसने अपने आँसू पोंछे और माँ से भी गले मिली

फिर वोई पुराना घरों जैसा माहौल दोनो बहने बात करने लगी फिर ताहिरा मौसी ने बताया कि सुधिया काकी बूढ़ी हो चुकी है और वो लगभग डिस्ट्रिक्ट में रहती है बेटे ने उनके शादी कर ली और बहू के साथ उनकी बनती नही इसलिए अक्सर गाओं में ही पड़ी रहती है...मैने कहा कि मेरी कोई चर्चा अब किसी से ना करे...रूपाली भाभी का तो ताहिरा मौसी ने ज़िक्र ही नाही किया मेरे सामने थोड़ा बहुत माँ के ही सामने की फिर उसकी शिकायत करने लगी कि ऐसा करती है वैसा करती है उनका घर बार आज भी कलेश में ही चल रहा था....रूपाली का हज़्बेंड यानी मेरा भाई एक आध बार आया था मिलने पर ना उसे अपनी औलाद में कोई इंटेरेस्ट था ना रूपाली में सुना था जब ठरक चढ़ती है तो तब बीवी को अकेला पाके उस पर टूट पड़ता है ये सब सुनके ही मुझे बेहद बुरा भी लगा और अच्छा भी ना लगा सुनके

मैने ताहिरा मौसी को अपने और माँ के संबंधो की कोई चर्चा नही बताई थी....उनके जाने के बाद उन्होने भी आना कम कर दिया....हालाँकि मौसा ने माँ को देखने की इच्छा जाहिर की थी..पर माँ उनसे मिलने के लिए कोई ख़ास मन ना बनाई हुई थी ऐसे ही तो मेरी मर्ज़ी पे मज़बूरी ही कह लो होमटाउन यानी अपने ससुराल आई थी...अपने ससुराल भी नही गयी थी किसी को कुछ खबर नही था....पिताजी भी कम कॉल किया करते थे

धीरे धीरे मेरे पैसो में बढ़ोतरी होने लगी और मैं अच्छी आमदनी कारोबार से कमाने लगा...मैं एक पर्चेस ऑफीसर की भमिका निभा रहा था....अब मेरी जान पहचान मार्केट में बहुत बढ़ चुकी थी....रिश्तेदार लोगो से भी मुलाक़ात की थी..पर ना तो रूपाली से मिला था ना ही चंपा से कभी भेट की थी....हालाँकि चंपा की बड़ी याद सताती थी उसके साथ मेरा रिश्ता गहरा सा था...लेकिन मैं तौबा कर चुका था की माँ के बाद अब किसी और औरत को टच तक नही करूँगा...

माँ भी धीरे धीरे सब्ज़ी लाने टाउन जाने लगी कहने लगी कि इतनी औरते रात रात गये अकेली लड़कियाँ तक टाउन से यहाँ आती है क्या हर्ज़ है? मैने कोई आपत्ति नही जताई...मैं तो अपनी ज़िंदगी में खुश था...सब्ज़िया राशन खरीदके वो घर लाती और हम माँ-बेटे एकदम इतमीनान से ज़िंदगी गुज़ारते

धीरे धीरे टीवी भी खरीद लिया और साथ में एक होम थियेटर सेट भी...कभी कभी गंदी गंदी फ़िल्मो वाली सीडी भी बेझीजक ले आता तो माँ टोकती...पर मैं कहता साथ देखेंगे तो वो शरमा जाती..जब घर पहुचता तो माँ खुले बाल को कंघी करते हुए टीवी पे लाउड वॉल्यूम में गाना सुन रही मुझे मिलती...आजकल माँ मेरे साथ ज़्यादा से ज़्यादा घुलने लगी थी...

एक दिन टीवी पे मस्त फिल्म आ रही थी....जो कि बी-ग्रेड मूवी थी उसमें पति को शराब पिलाके उसके दोस्त उसे बेहोश कर देते है उसके बाद उसी कमरे में मौज़ूद बीवी के साथ ज़बरदस्ती करने लग जाते है...वो विरोध करती है तो उसे उसके पति के नशे में धुत्त दोस्त धमकाने लगते है कि वो उसे चोदेन्गे भी साथ में उसका वीडियो भी बनाएँगे...ये सुन औरत डर जाती है वो दुल्हनो के जैसी लाल साड़ी वाले कपड़ों में होती है मैं वॉल्यूम थोड़ा कम किया इस बीच देखा कि माँ फिल्म मे ऐसे सीन्स को लेके कोई आपत्ति नही कर रही जब मैने टोका तो उसने फटाक से कहा तुझे बुरा लग रहा है ये सब देखके तो बंद कर दे मैने कहा नही नही...मैने उसके कंधे पे हाथ रखा...हम फिल्म देखने लगे..लड़की की चीखें पूरे कमरे में गूँज़ रही थी उसकी साड़ी और ब्लाउस फाड़ दी जाती है उस पर पाँचो के पाँच टूट पड़ते है

उसकी ज़बरन चुदाई शुरू हो जाती है...हर एक गुंडा उस पर चढ़ता है उसकी पेटिकोट के नाडे को जो कि नाभि के उपर हाथ डालता गुंडा खोल देता है उसके बाद सीन में बस उसकी पैंटी के उपर हाथ दिखाए जाते है उसके बाद सीन गुन्डो पे फिल्माया जाता है फिर उनके हाथो में उसके नीले रंग की पैंटी होती है जिसे सूंघते हुए वो लोग ठहाका लगाए उसे बेबस देखने लगते है....औरत रो रही है अब उसे गले और बगलो से ऐसा दिखाया जा रहा है कि वो नंगी उसका पूरा बदन पसीना पसीना हो रहा है साथ में उस पर चढ़ा उससे लिपटा गुंडा भी पसीने पसीने और गुलाबी आँखो में दिखाया जाता है बस सीन में उसके आगे पीछे होने के सीन होते है उसके हाथो की चूड़िया टूटते और उसके कलाईयों को मरोदते दिखाया जाता है...लड़की बेदर्दी से चीख रही है उसके माथे के सिंदूर और बिंदी को पोंछ दिया गया है...उसके बाल बिस्तर पे बिखरे हुए है बस उसकी छातियो और गले पे हाथ फिरता और उसकी नाभि को दबोचते गुंडे लोगो को दिखाया जाता है

उसके बाद उसका हिलना डुलना रुक जाता है...वो बस सिसक रही होती है...सूबक रही होती है पाँचो गुंडे अपने अपने कपड़े पहनते हुए हान्फते हान्फ्ते दिख रहे होते है फिर वो कमरे से निकल जाते है तो सोफे पे उसके नशे में चूर गहरी नींद में सो रहे हज़्बेंड को देखके हंसते ठहाका लगाते चले जाते है....

"उफ्फ कैसे कैसे सीन्स बना लेते है ये लोग इन औरतो को शरम नही आती".....माँ की आँखो को जब देखा तो वो गुलाबी हो चुकी थी....मैने टीवी ऑफ किया और माँ के एकदम करीब सॅट गया...."अर्रे माँ छोड़ ना ये तो नौटंकी है आक्टिंग के लिए इस फील्ड में लड़किया कोई भी हद तक जा सकती है"..........

"ह्म तू सही कहता है ऐसा लगता है जैसे रंडियो को ही कास्ट करते है यह लोग"......

"और नही तो क्या तू फिगर देख कितना बेढंगा है इसके पिछवाड़े को देख इसकी छातियो को देख"......मेरे ऐसा कहने से माँ शर्मा गयी...

"तू भी ना बहुत अकेलेपन का फ़ायदा उठाने लगा है"..........

"अर्रे माँ मैं तो बस मज़ाक कर रहा हूँ देखा तूने समीर और आंटी को कैसे एकदुसरे के साथ प्रेमी जोड़ा की तरह रहते है".......

."ह्म ये तो है".......फिर माँ मेरे साथ लेटते हुए मुझे सोफीया आंटी के साथ जो वार्तालाप किया वो बताने लगी मैं सुनके हैरान चलो ये तो अच्छा ही हुआ कि माँ ने हमारे रिश्तो के बीच के इस फ़ासले को ख़तम ही कर दिया था अब समीर और सोफीया आंटी की शादी में माँ को भी ले जा सकता था

अगले दिन समीर का कॉल आया था मैने उससे खूब बात की उसे मेरी फिकर लगी हुई थी....उससे बात चीत ख़तम करने के बाद मैं घर लौटा तो पाया आज मैं जल्दी घर आ गया था माँ खाना बना रही थी...मैं माँ को नोटीस कर रहा था उसके बदन को निहार रहा था आजकल वो नाइटी पहनने लगी थी आज उसने हरी रंग की मेरी दिलाई हुई नाइटी पहनी थी....उसके चूतड़ काफ़ी उभरे हुए लग रहे थे...चलो अच्छा है माँ को यहाँ आके खाना पीना लगने लगा था...

मैने पीछे से माँ को फिर पकड़ा इस बार उनके पेट पे अपने हाथ फँसाए और उसे हल्का सा दबाया तो मेरे चिपकने से हंस पड़ी..."चल आज तुझे मार्केट घुमा लाता हूँ कैसी फीका फीका चेहरा लिए रहती है"......

."हां अब तू मुझे सोफीया की तरह तय्यार करना चाहता है"......

."क्यूँ कौन बेटा अपनी माँ को तय्यार नही देखना चाहता चल तो सही सारा दिन चूल्हा रसोईघर में खड़ी रहती है अब बस भी कर तेरे दिन आ गये अब ये बाबूजी का दिन नही कि 24 घंटे उनकी सेवा में लगी रहे".......

"अच्छा ठीक है पहले तू छोड़ तो"........

"नही मैं नही छोड़ूँगा"....

"प्ल्ज़्ज़ ना"......माँ ने नज़ाकत से कहा

तो मैने मुस्कुरा कर अपने होंठ आगे बढ़ाए तो माँ ने मेरे होंठ पे होंठ रखके एक हल्का चुंबन दिया...हम दोनो एकदुसरे से अलग हुए फिर मैं बिस्तर पे जाके लेट गया...फिर माँ तय्यार हुई और हम बाहर गये
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,551,105 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 550,015 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,253,685 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 947,986 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,683,015 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,105,167 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,992,830 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,193,448 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,082,751 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 289,747 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 16 Guest(s)