Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 01:32 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
माँ कपड़ों को खंगालने के लिए उठ खड़ी हुई उसने अपनी नाइटी को नीचे घुटनो तक लपेट लिया इससे अगर थोड़ा सा भी कोई आदमी झुकके देखे तो उसके झान्टेदार चूत आराम से उसे दिख जाए....लेकिन उस वक़्त मैं धीरे धीरे पानी में उतरने लगा था....जब घुटनो तक पानी आया तो ऐसा लगा जैसे एक एक कदम और आगे रखना कितना मुस्किल हो रहा था? मुझे डर हो गया तो मैं ठहर गया...वहीं पानी में आहिस्ते आहिस्ते डुबकी लगाने लगा...मैने सिर्फ़ कच्च्छा पहना था जो कि पानी में डूबते ही गीला हो गया जब बाहर निकला तो माँ को इस बार अपनी तरफ झुका हुआ पाया उफ्फ वो पानी में आधी दूर तक उतर चुकी थी इसलिए जब वो कपड़े को झाड़ते हुए बाहर टब में रखने को सीडिया उठी तो उसकी पीछे से चूतड़ की शेप गीले कपड़े में दिखने लगी उसकी नाइटी चुतड़ों के बीच धँस गयी थी उसने अंदर कुछ पहना भी नाही था इसलिए उसकी गोल गदराई गान्ड मुझे आराम से नाइटी के बाहर से भी दिख रही थी उसे इस बात का ख्याल नही था....ये देख देखके मैं एग्ज़ाइटेड हो रहा था कि उसने और सोने पे सुहागा किया...

और मेरे सामने झुक गयी शायद टब में कपड़े रखने के चक्कर में उसके ऐसा करने से उसकी नाइटी का कपड़ा जो घुटनो तक था वो उसके नितंबो के उपर तक आ गया और उसकी गोल गोल गदराई साँवली गान्ड मेरे सामने उभरके प्रस्तुत हो गयी..अफ उसके नितंबो के बीच का छेद जिसमें कल मैने अपना लॉडा ठुसा था..उफ्फ वो भी कितना खुला खुला सा लग रहा था उसकी गान्ड के आस पास हल्के रोयेदार बाल थे जो कि नीचे झान्टो में तब्दील होते हुए चूत के हिस्सो को नाकाम छुपा रहे थे...मेरी ये दृश्य देखके हालत बुरी हो गयी...

और मेरा लंड मेरे कच्छे में ही अकड़ कर एकदम सख़्त खड़ा हो गया....माँ जब पीछे मूड के अपने बेटे को देखती है तो वो भी बड़ी बड़ी निगाहो से बेटे की टाँगों के बीच उसके गीले कच्छे मे लंड को अकड़ा और खड़ा पाती है..जो कि ऐसा लग रहा था जैसे अभी कच्छे को फाड़ कर निकलके उसे सलामी देगा..माँ एकदम से खिलखिलाके हंस पड़ी...तो मुझे उसका कारण समझ आया....मैने अपने कच्छे में अपने लौडे को खड़ा और एकदम दिखता पाया तो माँ को देखते ही अपनी टाँगों के बीच हाथ रख लिया...माँ ने टब एक साइड रख दिया और मेरे करीब पानी में उतरी...

उसने पाओ आगे रखा ही था कि वो फिसलते फिसलते बची मैने उसे कस कर थाम लिया तो उसने मेरे कंधे और कमर पे अपने हाथ को मज़बूती से रखा..."उफ्फ तेरा सहारा ना मिलता तो अभी पानी में डूब जाती"......

."और तू इस घाट पर रोज आना चाह रही थी अभी कुछ हो जाता तो".......

"तूने लालच दिया नहाने का तो मैं भी आ गयी"......

"तूने अंदर कुछ पहना नही उपर से तेरी नाइटी गीली हुई तो नाइटी एकदम झिल्लिदार ट्रॅन्स्परेंट हो जाएगी और अंदर का सारा दृश्य हर कोई देख लेगा...माँ एकदम से शरमाई उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ उसने ज़ुबान पे दाँत रखके हल्का सा काटा...

मैं और माँ दोनो घाट के पानी में घुटनो तक उतरे हुए थे...इतने में माँ और मुझे कड़कती बिजलियो का शोर सुनाई दिया..हमने आसमान की तरफ देखा जिसमें काले बादल सिमटते हुए चारो तरफ के वातावरण को अंधकार में तब्दील कर रहे थे....मैं और माँ फ़ौरन हड़बड़ाते हुए पानी से किसी तरह से बाहर आए...सीडिया चढ़े माँ ने टब उठाया तो उसे मैने एक हाथ में कर लिया और एक हाथ में माँ का हाथ पकड़ लिया....माँ ने मुझे जल्दी जल्दी घर पहुचने की इच्छा जताई....और हम दोनो धीरे धीरे सीडिया चढ़ते हुए उपर आए...तब तक बारिश एकदम टॅप टॅप करते हुए होने लगी....

अंजुम : उफ्फ बेटा ये अचानक से तूफान भरी बारिश कैसे स्टार्ट हो गयी?

आदम : कोई बात नही माँ हम जल्दी घर पहुच जाएँगे इस्सह काश बाइक ले आता अब तो पैदल चलते गये तो पूरे कपड़े गीले हो जाएँगे

अंजुम : हां रे ग़लती की उफ्फ संभाल के ये धुंल इतनी उड़ रही है कि अँधा कर देगी

मैने माँ का हाथ कस कर पकड़ा हुआ था...सच में मौसम का मिज़ाज़ एकदम से बिगड़ गया था इतनी तेज़ मुसलाधार बारिश शुरू हो गयी कि मालूम ही नही चला..माँ की पूरी नाइटी गीली होने लगी...मैं और माँ हाथ थामे एकदुसरे का जल्दी जल्दी सड़को पे लगभग भीगते भागते घर की तरफ बढ़ रहे थे.....घर पहुचते पहुचते हम पूरे भीग चुके थे....गनीमत थी कि बरसात की वजह से कोई बाहर मौजूद नही था वरना माँ की नाइटी जो एकदम गीली होके ट्रॅन्स्परेंट सी बन चुकी थी उन्हें उभार के साथ माँ की चुचियाँ और पीछे के नितंब भी आराम से दिख जाते...नाइटी एकदम गीली होके माँ के बदन से चिपकी हुई थी...जो कपड़े धोने लेके गये थे वो भी गीली हो चुकी थी..

घर के सामने वाला रास्ता एकदम कीचड़ से सारॉबार था....मैने अपने जैसे तैसे पहने प्यज़ामे को घुटनो तक मोड़ा और माँ का हाथ पकड़े आहिस्ते आहिस्ते किचॅड भरे रास्ते मे चलने लगा....लेकिन माँ का बॅलेन्स बिगड़ते जा रहा था वो मुझे कस कर पकड़े हुई थी....मैने ना आँव देखा ना तांव सीधे उसे अपनी बाहों में उठा लिया...ऐसा करने से माँ एकदम से हड़बड़ा गयी...थोड़ा सा झुका और माँ ने पास रखा टब उठा लिया...अब मैं माँ को अपने गोदी में लिए पूरी ताक़त भरता हुआ घर के द्वार तक पहुचा...उसे अपनी गोद से उतारा फिर जल्दी जल्दी ताला खोला...हम अंदर आए और झट से दरवाजा लगाए...माँ तुरंत टब लिए गुसलखाने की तरफ दौड़ पड़ी तो मैने वहीं दरवाजे के पास ही अपने सारे गीले कपड़े उतार दिए...

आदम : माँ माँ तू अंदर है क्या?

अंजुम : बेटा लाइट चली गयी है तू झट से मोमबत्ती रसोईघर से जला के ले आना

आदम : ठीक है माँ

मैं जब रसोईघर से मोमबत्ती गुसलखाने के पास लाया तो माँ ने पर्दे के बाहर हाथ लाते हुए उस मोमबत्ती को पकड़े अंदर किया....मैने अपने गीले कपड़े भी गुसलखाने के अंदर एक ओर फ़ैक् दिए...जिसे माँ ने समेटते हुए टब में रख दिया..जब मोमबत्ती की रोशनी अंदर से बाहर की ओर आई...तो पाया कि पर्दे में माँ की परछाई दिख रही थी उसके सख़्त निपल्स और उसकी छातियो का उभार दिख रहा था वो अंदर नंगी खड़ी हुई थी....मैने जब थोड़ा झुकके झाँका तो पाया गीली नाइटी को वो कबका उतार चुकी थी जो उसकी टाँगों में फसि हुई थी जिसे उसने एक एक पाँव से निकालते हुए टब में डाल दिया...फिर उन कपड़ों को धोने लगी
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12-09-2019, 01:32 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
जब अंजुम को अहसास हुआ कि उन कपड़ों में बेटे का कच्छा भी है तो वो शरमाई उसे लगा बेटे ने अपने सारे कपड़े उतारके उसे दे दिए थे लेकिन वो ये ना जान पाई...कि बाहर उसका बेटा भी एकदम नंगा खड़ा अपने मोटे लंबे लंड को हाथो में लिए पर्दे के अंदर झाँकता हुआ अपनी माँ के यौवन को घूर्र रहा है..

जब तक अंजुम को कुछ अहसास होता तब तक उसे अपनी नाभि के नीचे बेटे के हाथ की सरसराहट हुई..उसने देखा उसके बेटे ने कस कर उसके पेट पे अपने हाथ लपेट लिए थे और एक हाथ उसकी दाई छाती पे रख चुका था....उसने अपने कपड़े वैसे ही रख दिए...बेटे ने उसे अपनी तरफ मोड़ा....उसने उसकी आँखो में वासना देखी..प्यार भी वासना उसने हाथ नीचे ले जाते हुए मोमबत्ती की रोशनी में अपने बेटे के उत्तेजित लंड को एकदम सख़्त पाया उसे अपने हाथो में लिया और उसे मुट्ठी में कस कर आगे पीछे उसकी चॅम्डी को करने लगी...

बेटे ने उसके बदन से खेलना शुरू कर दिया और उसकी दोनो छातियो को दबाने लगा...साथ में उसके सख़्त निपल्स को भी उंगलियो से सहला रहा था.....माँ सुध बुध खोके एकदम बेटे के बाज़ू में टूट गयी...बेटे ने उसकी नंगी पीठ पे हाथ लपेटते हुए अपनी उंगलिया कस ली फिर उसकी गर्दन और गाल को चूमते हुए उसके सर को उपर उठाया...उसने उसकी ठुड्डी को चूमा फिर उसके दोनो गाल पे हाथ रखके उसके चेहरे को अपने तरफ किया माँ और बेटे दोनो एकदुसरे के होंठो से होंठ मिलाए चुंबन प्रक्रिया करने लगे...

एकदुसरे को पागलो की तरह किस करते हुए एकदुसरे में जैसे समाने लगे...एकदुसरे के बदन को सहलाते हुए उत्तेजित करने लगे...आदम ने माँ के लबों पे चूमते हुए उसके निचले उपरी होंठ को चूसा फिर मुँह में ज़ुबान दी फिर उसकी पीठ को अपनी तरफ मोड़ ते हुए झुकाया....माँ ने दीवार पे अपने हाथो का सहारा किया...वो घोड़ी की मुद्रा में झुक गयी...

बेटे ने उसके नितंबो को हाथो से भरपूर मसल्ते हुए उसके छेद में अंगूठा घुसा दिया...अंगूठा अंदर बाहर करने से ही माँ उत्तेजित होने लगी...आदम ने अपने सख़्त खड़े लंड को माँ के नितंबो के बीच घिसते हुए उसकी चूत की गहराई तक डाला...जो धीरे धीरे माँ की गीली चूत होने से अंदर प्रवेश होने लगा....माँ ने कस कर बेटे के हाथो पे अपनी हाथ कस लिए...

और आदम ठीक उसी मुद्रा में माँ को पीछे से चोदने लगा...माँ एकदम तबीयत से चुद रही थी...उसकी छातियो के ज़्यादा आपस में टकराते हुए हिलने से आदम ने उसे अपने दोनो हाथो की गिरफ़्त में लिया और उसे बड़े ही प्यार से मसलना शुरू किया...माँ अपनी ज़ूलफें हटाते हुए बेटे को देखें जा रही थी...बेटा वासना पुर्न निगाहो से माँ की चुदाई करता उसे निहार रहा था...

आदम : उफ्फ माँ मैं गया माँ मैं गया आहह उम्म आहह

अंजुम : उफ़फ्फ़ आहह उहम्म आहह हां ऐसी ही वाहह आहह आहह आईससे हिी आहिस्त्ते आहिस्स्ते ससस्स तेरा लंड मेरी चूत के भीतर घिस रहा है...उफ्फ बहुत मोटा है तेरा बहुत लंबा है तेरा आहहामम्म

माँ चीखते हुए साँस भरते हुए बेटे की चुदाई का आनंद ले रही थी.....कुछ देर घोड़ी मुद्रा की चुदाई के बाद आदम ने अपना लंड उसकी चूत की गहराईयो से बाहर खींचा और फिर उसे अपनी तरफ झुकाते हुए नल के पानी से अपने लंड को धोया और उसके मुँह में डाल दिया....माँ बेटे के लंड को मुँह में भरे बड़ी बड़ी निगाहो से उसे देख रही थी

उसने बड़ी ही मुस्किल से बेटे का लंड मुँह में भर लिया था उसे प्यार से अपने मुँह के भीतर अंदर बाहर करते हुए चूस रही थी....बेटा माँ को चुस्वाते हुए चरम सुख का आनंद प्राप्त कर रहा था...उम्म्म उम्म्म एम्म स्लूर्रप्प एम्म.....माँ बड़े ही चाव से बेटे के मोटे लंड को चुसते हुए उसे अपने हाथो से भी हिला रही थी...कुछ ही देर में जब उसे बेटे के स्खलन होने का अहसास हुआ तो उसने अपने मुँह से बेटे के लंड को बाहर किया और उसे कस कर मुत्ठियाने लगी...जब बेटे को माँ के मूठ मारने का दर्द बर्दाश्त नही हुआ तो वो लगभग अकड़ता हुआ माँ के चेहरे पे झड़ने लगा...

आदम : ऑश मामा आहह उहह उफ़फ्फ़ आहह

माँ के होंठो पे चेहरे पे हर तरफ बेटे के गरम गरम वीर्य की धार छूटती चली गयी....जब उसे अहसास हुआ कि आखरी पिचकारी भी निकल गयी तो उसने लंड को कस कर मुट्ठी में लेके निचोड़ा और उस पर अपनी ज़ीब लगाई जिससे आदम काँप उठा....

उसने बेटे को हांपता हुआ पाया..उसे अपनी ज़ीब पे बेटे के वीर्य के नमकीन स्वाद का अहसास हुआ उसने कभी मर्द का दूध चखा नही था आज उसका टेस्ट उसे लाज़मी तौर पे हुआ..वो मुस्कुराइ और फिर झुके झुके ही नल खोल कर उसके पानी से अपने चेहरे को धोने लगी...

अंजुम : बेटा ज़रा साबुन तो देना

आदम : हां माँ ये लो

अंजुम ने साबुन लेते हुए घुटनो के बल बैठे अपने चेहरे पे साबुन लगाया और नल के पास चेहरा लाके उसे धोने लगी.....उसने फिर बेटे के गीले लंड को भी पानी से गीला करते हुए उस पर साबुन मला....दोनो एक साथ एकदुसरे के साथ नहाने लगे...माँ ने आज खुद आदम को साबुन लगाके नहलाया...दोनो एक ही तौलिया से पोंछते हुए बाहर आए...फिर आदम ने पास पड़ी लूँगी पहन ली और बिस्तर पे ढेर हो गया....माँ ने अपने कपड़े अलमारी से निकाले उसे पहना और रसोईघर चली गयी कुछ ही देर में उसके हाथ में दो गरम चाइ की प्याली थी...

दोनो बैठके चाइ की चुस्किया लेते हुए बातें करने लगे...शाम रात में तब्दील हो चुकी थी...."अच्छा बेटा उस दिन तूने वैद्या का क्या कहा था? कौन सा वैद्या से तूने क्या लिया था?".........

आदम शरमा गया उसने चाई ख़तम करते हुए माँ की तरफ मुस्कुराया

आदम : बस माँ ऐसे ही

अंजुम : क्या ऐसे ही बताना आज तो बता सकता है?

आदम ने कुछ सोच विचार किया...जानता था माँ को कहीं मालूम ना पड़ जाए उसके पास्ट के बारे में..फिर उसने काफ़ी सच का झूंट कहते हुए अपने पुराने संबंधो को छुपाते हुए कुछ इस तरह ब्यान किया कि उसे धात निकलने लगा था और वो काफ़ी कमज़ोरी महसूस करता था उसे गॅस भी बनती थी जो कि उसके पिछले सप्प्लिमेंट्स यूज़ करने से हुई थी उसने बॉडी बिल्डिंग करना छोड़ दिया था...इसलिए ताहिरा मौसी के ज़रिए उसे सुधिया काकी मिली और फिर उसे वैद्या के बारे में बताया....वो वहाँ गया और उसी से ही आदम ने ऐसी दवा माँगी...माँ ये सब बड़े गौर से सुनते हुए आख़िर में मुस्कुराइ....

आदम ने कहा कि तू फिकर ना कर तेरी छातियो के लिए भी मैं दवा लाउन्गा ताकि उनके साइज़ भी बढ़ जाए

अंजुम : छी तौबा मुझे ऐसी कोई दवाई नही चाहिए जैसे मैं हूँ खुश हूँ

आदम : पर फिर भी माँ?

अंजुम : कहा ना यह सब रहने दे तू भी ना...यहाँ आके तू पूरा खराब हो गया मुझे तो पहले से पता था

आदम : हा हा हा

आदम ने माँ के पास बैठते हुए उसके कंधे पे हाथ रख दिया...दोनो कुछ देर प्यार भरी बातें करने लगे...उसके बाद माँ किचन में खाना बनाने चली गयी तो आदम लाइट के आ जाने के बाद पीसी पे व्यस्त हो गया....जब माँ खाना से फारिग होके अंदर लौटी तो पाया बेटे ने एक सेक्सी सी फिल्म पीसी पे लगाई हुई थी
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12-09-2019, 01:33 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
माँ और मेरी ज़िंदगी काफ़ी हँसी खुशी कट रही थी....ना उसकी ज़िंदगी में कोई दुख था ना दर्द अब वो जैसे कष्टमुक्त थी...अभी उसे प्यार करने वाला उसका बेटा हरदम उसके साथ था उसके पास था...उसने कभी ख्वाबो में भी ये ना सोचा होगा कि बेटा कुछ इस तरह उसका यूँ दीवाना हो जाएगा...उसकी चाहत का जुनून सारी हदों को पार कर देगा और सारे रिश्तो की सीमा लाँघ देगा...

मैने माँ को हर मुमकिन वो खुशिया दी थी कि जिससे उसकी झोली भर जाए...जो ज़िंदगी उसने सुहागन होने के बाद बाद भी ना जी थी...उन ख्वाहिशो को मैने एक ही झटके में उसके कदमो पे लाके दिया था...उसे हर सुख प्राप्त था...कोई कमी बाकी नही थी उसके बेटे के प्यार में....वो भी अपने बेटे को तंन मन से अपना सबकुछ मान चुकी थी....जिसे उसने नौ महीने तक कोख में रखा था आज वोई बेटा उसकी ज़िंदगी भर का साथ देने के लिए उसका हाथ थामें था....ये अटूट रिश्ता ये प्यार किसी के समझने की बात नही थी..



माँ मेरी बीवी थी और बीवी पे उसके मर्द का पूरा हक़ होता है कि चाहे वो जैसे भी उसे रखे....माँ को मैने हर सुख के साथ रखा हुआ था....अब वो सुहागनो की तरह तय्यार रहती थी महेंगी से महेंगी साड़ी,साज शृंगार का सामान सबकुछ था उसके पास....हर दिन नये नये रंगो की कलाईयों में चूड़ियाँ डाले रखती थी तो बेटे के दफ़्तर से पहले ही तय्यार होके अच्छे कपड़ों में उसका इंतजार करती थी.....जब मुझे माँ का सुख मिलना प्राप्त हुआ और उसके जिस्म के भोग लेने का आनंद भी तो धीरे धीरे मेरे अंदर भी बदलाव आने लगा और मैं अब काफ़ी सेहतमंद एकदम तंदुरुस हो गया...

माँ मुझे अच्छी खुराक देती थी...मैं माँ के हाथो से ही खाना ख़ाता था...और रात को ऑफीस से आने के बाद उसे अपने हाथो से डिन्नर करवाता था....सनडे को हम किसी मिया बीवी की तरह एक साथ निकालने जाते थे.....मैं माँ को घर में काफ़ी तय्यार रखता था...रंग बिरंगी हाथो में चूड़ियाँ साड़ी पहनाने की आदत डलवा दी थी की अक्सर वो घर में बहुत ही खुले गले तो कभी बाज़ू कट ब्लाउस वाली के साथ मॅचिंग या ट्रॅन्स्परेंट एकदम सेक्सी सी साड़ी पहना करती थी....अब तो उसका बदन एकदम निखर गया था...बाल एकदम घूंघुराले जो थे उसे बार बार ब्यूटी पार्लर जाके माँ ने सीधा करवा लिया था....बाकी टाँगों के और हाथो के बालो की वॅक्स वो घर में कर लिया करती थी ये उसके बेटे का उसे ऑर्डर था

बाकी कांख के बाल को मैने कैची से एक रात चुदाई से पहले छांट के एकदम छोटे छोटे कर दिए थे अब उनके उगने से पहले मैं अक्सर ऐसा ही कर दिया करता था...बाकी उसकी झान्टेदार चूत को सॉफ मैं खुद करता था....मैने बॉडी शेविंग ब्लेड सॅंपल से मंगवा ली थी मैं खुद माँ की टांगे चौड़ी किए उसकी बालों से भरी चूत को खुद सॉफ करता था...क्यूंकी अक्सर चुदाई के वक़्त वो मुझे बड़े चुभते थे....अब माँ की गुलाबी चूत एकदम सॉफ और चिकनी नज़र आया करती थी....कभी कभी जब मैं नोटीस कर लेता था कि चूत में फिर हल्के हल्के रोयेदार बाल उग रहे है तो तुरंत उन्हे झान्ट बनने से पहले ही सॉफ कर दिया करता था....एकबार एजेंट ने बताया कि बांग्लादेश से कुछ फॉरिन प्रॉडक्ट्स आए है उनमे से एक ब्रेस्ट मसाज क्रीम भी आई है...मैने उसका एक सॅंपल टेस्ट करने के लिए अपने पास रख लिया था...

और लगभग 10-15 दिन माँ की मालिश करते वक़्त मैं उसकी नंगी छातियो पे वो क्रीम लगाके माँ की चुचियो को भरपूर उनसे मालिश करता था...करीब कुछ एक महीने में ही माँ को फरक पड़ गया...और उसकी चुचियाँ करीब 37 इंच तक की हो गयी उफ्फ अब माँ एकदम भर जवानी औरत लगती थी साड़ी में तो मैं खुद पे काबू नही कर पता था इसलिए अक्सर उसे दिन के वक़्त सूट ही पहने रहने को कहता था....माँ भी मेरी हां में हां मिलाए रहती थी...हमारे यहाँ से नानी होके गयी मामा मामी भी होके गये थे वो बेहद खुश थे की हम माँ-बेटे कितनी खुशी से एक दूसरे के साथ वक़्त बिता रहे थे...सच पूछो तो उन्हें अपनी अंजुम के बारे में कुछ मालूम ही नही था और ना ही अपने नाती के बारे में

उनकी वजह से कुछ दिन तन्हाई में गुज़ारने पड़ते और उनके जाने के बाद हम दोनो के बीच फिर वोई चुदाई का खेल शुरू हो जाता...हम एकदुसरे के बगैर रह नही पाते थे..हमे किसी चीज़ की ज़रूरत नही थी..धीरे धीरे मैने टाउन में ही एक फ्लोर खरीदने का सोचा और माँ को ये खुशख़बरी सुनाई वो तो पहले से ही काफ़ी खुश थी हमेशा मेरे लिए खुदा से दुआ मांगती थी...मैने बताया कुछ दिन यहाँ आराम से रह ले फिर उसके बाद वहाँ प्युरे तस्सली के साथ खरीदके हम माँ-बेटे वहाँ शिफ्ट हो जाएँगे....माँ ने हामी भरी.....लेकिन मेरे दिल में एक और बात घूम सी रही थी...और वो बात थी माँ से शादी की इच्छा प्रकट करना..लेकिन क्या माँ तय्यार नही होगी? क्यूँ नही होगी? अब हमारे बीच फ़ासले और रह कितने गये? पिताजी को छोड़े माँ को करीब 1 साल होने को है...अब तो पिता जी का इतने सालो के बीच एक कॉल भी ढंग से नही आया....अब उन्हें क्या परवाह? भला वो हमारी ज़िंदगी में झाँकने क्यूँ आएँगे? लेकिन जो भी रहे माँ को पहले रज़ामंद करना होगा फिर उसके बाद ही मैं अपनी इच्छा जाहिर कर सकता हूँ ताकि माँ की मंज़ूरी मिल जाए...मैं बेहद खुश था नये नये सपने सॅंजो रहा था.....

आदम और अंजुम की ज़िंदगी का ये वो मोड़ था कि जहाँ खुशियो ने उनकी ज़िंदगियो पे दस्तक दी थी इस तरह उनकी दास्तान में ऐसा पड़ाव आया कि वो सारे रिश्ते नाते लाज़ शरम पाप पुन्य की बात सबकुछ भूलके सिर्फ़ एकदुसरे के हो गये....आस पड़ोस की औरतें छोटी सोच वालियाँ थी इसलिए उन्हें बेटे का हर दम माँ के पीछे पीछे रहना अज़ीब लगता था हैरत होती थी पर कोई उनपे उंगली नही उठा सकता था....बस मन में यही विचार आता..."इस्सह कैसा ये रिश्ता है? माँ के पीछे ऐसे घूम रहा है जैसे उसका ख़सम हो".......और ये सच भी था क्यूंकी दोनो अगर कहीं जाते भी थे तो इकट्ठे किसी कपल की तरह.....इसी बीच आदम ने काफ़ी सेक्सी सेक्सी ड्रेसस समीर के एक बार बताए ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट से माँ के लिए खरीद ली....उफ्फ उन कपड़ों में माँ कितनी हॉट लग रही थी....

आदम ने माँ की हर पोज़ में एक एक तस्वीर निकाली थी....और उन्हें बड़े संभालके अपने पास रखा था....वो जब भी ऑफीस भी जाता तो उन तस्वीरो को अपने स्मार्ट्फोन पे देखके आहें भरता था जिसमें माँ छोटी लाल मिनी स्कर्ट पहनी घुटनो तक...तो कही फिते वाली टॉप नीली रंग की...तो कही उसने बॅकलेस पूरी पीठ खुली एक सेक्सी सी ड्रेस पहनी पॉज़ दी हुई थी...38 साल की उमर हो चुकी थी लेकिन अदायें एकदम कातिल एकदम 22 साल की लड़की की तरह उनका फिगर था...बस अगर कोई पेट पे गौर करे तो स्ट्रेच मार्क्स को देखने से ही उसे एक बच्चेदार शादी शुदा औरत आराम से समझ जाए....गले में उमर होने से हल्की सी झुरिया दिखती थी वरना उनकी उमर में धोका खा जाए ....आदम को अपने से बड़ी उमर की औरतें जिन्हें अँग्रेज़ी में मिलफ कहाँ जाता है काफ़ी पसंद थी...क्यूंकी उसने नोटीस किया कि उसके आस पास की रहने वाली औरतें जो साड़ी में टहलते हुए आया जाया करती थी रोड से उन लोगो के ज़्यादातर बाल खुले ही रहते थे वो लोग कोई आँचल नही करती थी...उनके ब्लाउस से ही उनकी छातियो का उभरापन सॉफ दिखता था....आदम उन्हें हरपल घूर्रता रहता था...और फिर घर आके अपनी पर्सनल मिलफ को एकबार निहारता था कोई भी ऐसी रात नही थी कि जब दोनो अकेले हो और एकदुसरे से तन्हा रह जाए....हर सुबह गंदी चादर उनके प्रेम प्रसंग का सबूत देता था ....
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12-09-2019, 01:33 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
बारिश तेज़ हो रही थी....और सिगरेट सुलगाए वो शक्स चाइ के ठेले के पास खड़ा छप्पाड़ी के नीचे आसमान की तरफ देखता किसी गहरी सोच में डूबा सा था....बार बार जब वो होंठो के बीच से अपना धुआ छोड़ता...तो धुआ ही धुआ पास टँगे बल्ब की रोशनी में फैलते हुए दिख जाता...उसने अपनी मूछो पे हल्की सी उंगली फेरते हुए गंभीर सोच में जैसे करवट मूडी...अभी वो ऐसे चुपचाप तेहरा कशमकश की गहराइयो में उलझा सिगरेट का कश ले ही रहा था कि इतने में एक लौंडा 23-24 साल का टपोरी सा उसके पास आया...उसका हुलिया ही उसकी औकवाड़ को दर्शा रहा था....उसके बाल बिखरे हुए थे और गले में रुमाल बाँध रखी थी उसने कोट पॅंट पहने उस आदमी के कंधे पे जैसे ही हाथ रखा...उसी पल नज़रों में परिवर्तन लाता हुआ सोच को तोड़े वो पीछे मूड कर उस टपोरी लौन्डे को देखते हुए माथे पे शिकन लिए देखने लगा

टपोरी लौंडा एक खबरी था जो कोई और नही उस टोपी और कोट पॅंट पहने शक्स उसी टीटीई राज़ौल का हाइयर किया खबरी था जिसे तलाश थी अंजुम की....लेकिन उस दिन के बाद जब वो काफ़ी डीटेल्स रेलवे एंक्वाइरी से निकाला तो उसने पाया कि अंजुम और उसका बेटा दिल्ली में रहते थे...वो झट से दिल्ली पहुचा वहाँ उसके छोड़े किराए के घर में पहुचा वहाँ मकान मालिक से पूछताछ की तो उसके बाद उसे मालूम चला कि बेटा माँ को लेके वापिस होमटाउन चला गया और उसका पति नोएडा शिफ्ट हो चुका था दोनो के बीच बनती नही थी मिया बीवी में अक्सर झगड़े होते थे बेटा होमटाउन में नौकरी करता था इतना कुछ उसे मालूम चला वो जैसे तड़प उठा अंजुम से मिलने के लिए और जब वो उन दोनो के उतरे उस शहर पहुचा उसके होमटाउन में...

तो यहाँ उन्हें रेत में से सुई ढूँढने के बराबर उसका मक़सद हो गया उन्हें ढूँढना...हालाँकि राज़ौल ने सिर्फ़ महेज़ खुद को एक रिश्तेदार बताया और काफ़ी रिक्वेस्ट की थी मकान मालिक से जिस बाबत आदम के मकान मालिक ने उसे ये सारी इन्फो दे दी थी उसके परिवार के बारे में....जिस बिनाह पे वो उसके होमटाउन आ पहुचा..उसने खबरी को वो तस्वीर दिखाई..जिसे मकान मलिक के बेटे ने आदम की तस्वीर संभाले रखी थी..खबरी ने आज मुआयना करके बताना शुरू किया

खबरी : उसे मैं टाउन में देखा हूँ डिपार्ट्मेनल स्टोर का पर्चेस ऑफीसर है एक आध बार बात भी करी तो बस इतना पता लगा कि माँ के साथ रहता है ये नही बताया कि कहाँ? अपुन ने आदमियो से टाउन का जायेज़ा करवाया पर मिला नही वो छोकरा अपुन को कहीं अब इससे ज़्यादा क्या इन्फो डून साहब

राज़ौल : ह्म इसका मतलब कि वो टाउन से बाहर रहता है?

खबरी : हो सकता है


उम्मीद ना मिल पाने के बाद राज़ौल ने उसे पैसे दिए और जाने को कहा....उसका काम ख़तम था....अब राज़ौल खुद ही ठान लेता है कि वो आदम का पीछा करेगा? लेकिन इस टीटी राज़ौल का अंजुम से क्या नाता था? जो वो इन माँ-बेटों के पीछे दिल्ली से लेके होमटाउन तक उनके आ गया?....जिस बात से अभी तक दोनो माँ-बेटे बेख़बर थे ....और सबसे बड़ी बात कि राज़ौल को आदम और अंजुम से क्या चाहिए था? क्या रिश्ता था उसका? और किस मक़सद से वो दोनो के ज़िंदगियो में दस्तक देना चाह रहा था....

आदम : माँ जल्दी नाश्ता दो यार उफ्फ आज लेट हो गया? (आदम अपने पाओ में मोज़ा पहनते हुए कहता है)

अंजुम : अर्रे बेटा ठहर जा ज़रा (माँ रसोईघर में अपने बेटे के लिए नाश्ता बनाते हुए उसे आवाज़ देती है)

आदम : सॉरी माँ आज काम की वजह से थोड़ा टाउन से बाहर जाना पड़ रहा है अगर सही टाइम पे नही गया तो माल मिस हो जाएगा एजेंट भी गाड़ी लिए मेन रोड पे इंतजार कर रहा होगा उफ़फ्फ़

अंजुम गरमा गरमा पूडीयाँ थाली में लाते हुए साथ में आलू की सब्ज़ी बेटे के आगे रखते हुए मुस्कुराती है...."अर्रे आराम आराम से जाना और तू आजकल बहुत आलसी हो गया सुबह जल्दी उठना चाहिए ना".........तो आदम मुस्कुराया

आदम : माँ तू तो जानती है हम रात को देरी से सोते है और तू मुझे सोने ही कब देती है

आदम के आँख मारते ही माँ सकपकाते हुए उसे झूठे गुस्से भरे भाव से देखते हुए फिर हंस पड़ी..."अच्छा जी हमारी वजह से और आप जो अपनी मोम को हर वक़्त तंग करते रहते है कि चलो ना माँ छोड़ो ना काम चलो ना फिल्म देखते है चलो ना थोड़े देर आराम करते है और पटा सटा के बिस्तर पे लेटा देता है मुझे .....

..आदम मन ही मन शरमाता हुआ माँ का हाथ पकड़ लेता है

आदम : अच्छा मेरी माँ बस बस

अंजुम : अब चल जल्दी नाश्ता कर तुझे देरी हो जाएगी (अंजुम भी मुस्कुराइ)

आदम नाश्ता करने लगा...वो माँ की बनाए पूडियों की तारीफ़ करने लगा और उसे बड़े चाव से खाने लगा...उसने माँ को बताया कि जब वो अकेला रहता था तो इस तरह से कभी नाश्ता नही कर पाता था क्यूंकी उसे देने वाली कोई औरत जो नही थी...माँ उसे प्यार भरी निगाहो से उसे खाते हुए देख रही थी....अचानक अंजुम बेटे के लिए जूता सॉफ करने का ब्रश ढूँढने लगी...जब उसकी नज़र कोने पे पड़ी तो वहाँ दिल्ली से लाए उसके पुराने सामानो के बॉक्स थे..उसने सोचा पहले जल्दी से बेटे को फारिग करू फिर देखूँगी...उसने ब्रश लाते हुए जूते सॉफ करने शुरू किए तो आदम ने उसके हाथ से ब्रश छीना

आदम : अर्रे माँ क्या करती है तू? छी ये सब काम मेरे सामने मत किया कर

अंजुम : अर्रे क्या तेरे स्कूल के दिनो में मैं तेरे जूते सॉफ नही करती थी?

आदम : अर्रे बाबा उन दिनो मैं छोटा था पर अब नही दीजिए अर्रे दीजिए ना लाओ

आदम ने अंजुम के हाथ से ब्रश लिया और खुद सॉफ करते हुए बात करने लगा "ह्म्म्म्म ये सब चीज़ें बड़ों से नही कराया जाता...और तुझे ये सब करते हुए देख मुझे अच्छा नही लगता सेवा मुझे करनी चाहिए तेरी ना कि तुझे वो दिन अब गये".......अंजुम मुस्कुराते हुए बेटे की तरफ एकटक देखने लगी....उसे नाज़ था कि आदम जैसा उसे बेटा मिला जो उसका कितना ख्याल रखता है? और एक उसका पति था जो रात गये भी उसे बाहर सामान खरीदने को भेज देता था...ना कभी उसके लिए परवाह करता था और ना ही कब उस पर ध्यान देता था इन्ही वजहों से अंजुम खुद को जैसे अकेला महसूस करती थी...

अंजुम की जब सोच टूटी तो आदम को एक बार गुसलखाने जाता पाया...अंजुम उसके जुते पलंग के ही पास रखके उस बक्से को खोलने लगती है...जब उसे खोलती है तो उसपर से मिट्टी हटाते हुए अंदर के सामानो का जायेज़ा लेती है..सबकुछ वैसे ही रखा था जैसा पॅकिंग के वक़्त था शायद आदम इस बॉक्स को खुलना भूल गया था....इतने में अंजुम के हाथ में एक ईद कार्ड आया ये उसके दूसवी कक्षा का पहचान कार्ड था उसमें अंजुम की एक ब्लॅक आंड वाइट फोटो थी....उस तस्वीर में अंजुम कमसिन कच्ची कली सी लग रही थी..उसके बालों में दो चोटियाँ थी और जैसा 90'स के दशक में घुंघराले बालो जैसा बीच का कट होता है ठीक वैसा स्टाइल उसके बालों का था....उसका चेहरा निहायत खूबसूरत था और बड़ी बड़ी आँखे थी...ये तस्वीर शादी से पहले की थी उसके बाद उसे याद आया कि 10थ पास करने के बाद ही जब उसका दाखिला 11थ में हुआ तो उसे किन परिस्थितियों से गुज़रते हुए पिता की मौत के बाद बेसहारा और ग़रीबी और लाचारी का सामना करना पड़ा था उसकी पढ़ाई पूरी भी नही हो सकी और उसकी माँ ने बढ़ती लाचारी और ग़रीबी से तंग आके उसकी शादी आदम के पिता से करवाई थी...उसके कुछ 3-4 साल बाद बड़ी ही मुस्किल से आदम उसे पेट ठहरा था....एक तो उसे शादी से ऐतराज़ था और उपर से उसके पति की ही हठधर्मी में उसे गर्भ ठहरा था....आज भी वो उन वाक़यो को कोस्ती थी जब उसकी ज़िंदगी एक नामर्द बुज़दिल कमीने इंसान के हाथो में दे दी गयी थी...

अभी कशमकश का घेरे से अंजुम निकली ही थी...की पीछे से बेटे ने उसके कंधे पे हाथ रखा और वो झुकके माँ के साथ माँ की तस्वीर को देखते हुए मुस्कुराया...वाक़ई उसने इससे पहले ये तस्वीर एक ही बार माँ के दिखाए में देखी थी...वाक़ई क्या कमसिन कच्ची उमर और मासूम खूबसूरत सी उसकी माँ लग रही थी....काश उस वक़्त आदम उसके ज़िंदगी में आता..पर ये मुमकिन तो नही क्यूंकी उसे अंजुम से ही तो इस दुनिया में आना था

आदम : अर्रे माँ तू कितनी खूबसूरत लग रही है?

अंजुम : ह्म इस वक़्त मैं 10थ में थी उसके बाद अनिश्चिंत काल पड़ गया था फिर तेरे होमटाउन आ गयी यानी यहाँ जहाँ तेरे नाना जी रहा करते थे उसके बाद कुछ 1 साल में ही उनकी मौत और फिर मेरा वापिस बिहार जाना नही हुआ...ये बिहार बोर्ड के स्कूल का है

आदम : ह्म जो भी हो माँ जिन परिस्थितिओ से तू गुज़री है उसे अब भूल जा अब तुझे गीला शिकवा करने का कोई ज़रूरत नही..जो बीत गया सो बीत गया

अंजुम : तू नही जानता तेरे पिता ने शादी से पहले मुझे रिझाने के लिए बड़े से बड़े वादे किए थे...और जब शादी कर लिया तो ज़बरदस्ती करने लगे हमे मुझे क्या पता था कि उनकी नज़र मेरी दौलत पे थी जो मेरे झूठी शान चाचा ने दिखाई जिसने मुझे पाला था तेरे नाना तो शुरू से ही ग़रीब ही रहे बस बच्चे पैदा किए और मारके सबको बेसहारा छोड़ दिया

आदम : जाने दो माँ लेकिन वो सब छोड़ो ये तस्वीर मुझे बड़ी अच्छी लगी इसे बाहर ही रखो ना

अंजुम : अच्छा ठीक है ये ले....अर्रे तू अभीतक गया नही जा जल्दी चल जल्दी कर देरी हो जाएगी तुझे
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12-09-2019, 01:33 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
आदम : हाहाहा बस आपके ये हाथ में देखा तो मैं भी बातों में लग गया चलो चलता हूँ शायद रात को देरी से आउ घर आने से पहले मिस कॉल दे दूँगा ठीक है

अंजुम : अच्छा बेटा चल जा

आदम : हा हा हा हा

आदम हंसता हुआ माँ से गले मिलते हुए अपना बॅग उठाए जल्दी जल्दी घर से रवाना होता है...वाक़ई कितना ख्याल रखता था वो अपनी माँ का?.....अंजुम फिरसे उस तस्वीर को देखने लगी और उसे दराज़ में रखते हुए काम में जुट गयी....दोपहरी उसे ख्याल आया कि फ्रिड्ज में सब्ज़िया काफ़ी कम पड़ी थी...उफ्फ अगर सब्ज़ी खरीदी नही गयी तो रात को बेटे को क्या खाने में दूँगी? और उसने कहा भी था कि बैगन का भरता खाना है......माँ बुदबुदाते हुए उठ खड़ी हुई....

उसने दोपहर को खाना खाया फिर बालों में तेल लगाने और कंघी करने के बाद वो तय्यार होके शाम को सब्ज़ी मंडी के लिए निकल गयी....अकेले निकलने में उसे संकोच नही होता था....सब्ज़ी मंडी टाउन में थी वहाँ मेन रोड से भीढ़ बहुत थी उसे रोड क्रॉस करने में काफ़ी दिक्कत हुई भी....क्यूंकी बड़े बड़े ट्रक लगभग उससे एक हाथ दूर ही गुज़र रहे थे फिर वो सब्ज़ी मंडी में घुसी....सब्ज़िया खरीदने में मलिन झोला में भरते हुए अंजुम अपने ही गफलत में थी....वो सब्ज़ी वाले को पैसे देते हुए आगे बढ़ रही थी....
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राज़ौल को इस शहर में अभी चौदहवाँ दिन ही हुआ था अभीतक कोई सुराग उसके हाथ नही लगा था उन माँ-बेटे का...सोच की गहराइयो में आस पास की औरतो को ताड़ते हुए वो लस्सी पी रहा था...अचानक उसने देखा कि ठीक रोड के उस पार सब्ज़ी मॅंडी में खड़ी अंजुम सूट शलवार पहने सब्ज़ियो का मोल भाव कर रही थी....उसकी आँखे अंजुम को देखके जैसे एकदम बड़ी बड़ी हो गयी वो अपनी होंठो पे ज़ुबान फेरता हुआ जल्दबाज़ी में ही लस्सी वाले को पैसा दिए ग्लास वैसे ही अधूरा छोड़ उसकी तरफ आने लगा....

इधर अंजुम आलू लेते हुए बैगन की तरफ गौर से देखने लगी एक बैगन कुछ 8 इंच के लगभग मोटा और लंबे से गठन का उसे लगा....वो दिल ही दिल में बेटे के लंड को उससे तस्सवर करने लगी....अचानक जब उसे होश आया तो वो मुँह पे हाथ रखके शरमाने लगी बेटे का भी तो उस बैगन जैसा ही तो दिखता था..."ये कैसे दिए भैया बैगन".....

."40 रुपी किलो"....."
ये भी दे दो".....झोले में सब्ज़िया भरते हुए जब उसे वो भारी लगने लगी तो उसने झोला रखके सब्ज़ी वाले को पैसे दिए और वहाँ से चल पड़ी..

राज़ौल फुर्ती से रोड क्रॉस किसी तरह किए लोगो को ठेलता हुआ आगे बढ़ रहा था...हर कोई उसे अचंभित नज़रों से देख रहा था...कुछ लोग उसके धकेले जाने से उसे गाली दे रहे थे...वो इतनी भीढ़ भाड़ को धकेलते हुए बस बेसवरी से अंजुम के पास पहुचने की नाकाम कोशिशें कर रहा था...जब तक वो ठेले के पास पहुचा तो अंजुम फिर भीड़ में आगे बढ़ गयी...."अंजुमम अंजुमम".......राज़ौल ने ज़ोर से चिल्लाया

लेकिन इतनी भीड़ थी कि अंजुम को सुनाई नही दिया बस उसे अहसास सा हुआ तो उसने पीछे मूड कर देखा फिर मुस्कुराते हुए अपना वेहेम मानी भला कोई उसका नाम यहाँ क्यूँ पुकारेगा ? अंजुम तेज़ कदमो से आगे बढ़ रही थी क्यूंकी भीढ़ बहुत ज़्यादा थी और पीछे राज़ौल उसके बेहद करीब लोगो को ठेलते हुए पहुच चुका था....उसने एक बार फिर आवाज़ दी तो अंजुम ने पीछे मूड के देखा तो पाया कि वोई आदमी उसके पीछे तेज़ी से आ रहा था जिसे उसने ट्रेन में देखा था

"अर्रे ये तो वोई टीटी है? वोई आदमी ये यहाँ?".....अंजुम को ये देख हैरत हुई तो वो कुछ समझ ना सकी राज़ौल उसे रुकने का इशारा कर रहा था....लेकिन अंजुम को डर सा लगा वो उसे जानती थी और ना जाने क्यूँ उसका पीछा करते हुए वो यहाँ तक आया था? वो कुछ समझ नही पा रही थी वो रुकी नही बल्कि दुगने कदमो से तेज़ भागने सी लगी

"अर्रे रूको अंजुमम अंजुम वेट".........राज़ौल चीखते हुए उसके पीछे भागा

दोनो मेन रोड पे थे गाड़िया एकदम तेज़ी से दोनो को क्रॉस कर रही थी....लेकिन गनीमत थी कि अंजुम रोड क्रॉस कर चुकी थी एक तो उसके हाथ में भारी झोला था....वो उसे जैसे तैसे थामें हुई थी इतने में उसकी साँस भारी होने लगी तो हान्फ्ते हुए मेन रोड के बीच के फाटक को पकड़े वहीं ठहर गयी....वो जैसे ही आगे बढ़ी तो इतने में उसे महसूस हुआ कि उल्टे साइड से एक ट्रक उसकी तरफ आ रहा है....एक तो भारी सब्ज़ियो का झोला उपर से ट्रक के हॉर्न की आवाज़ को सुन एकदम से अंजुम हिल पड़ी वो बड़ी बड़ी आँखो से लगभग मैन रोड पे ही खड़ी होकर ट्रक को घूर्र रही थी...जो उसकी तरफ बढ़ रहा था....अभी ट्रक उसके और करीब आ ही पाता कि उस हाथ ने उसे एकदम से पकड़ते हुए झट से मेन रोड से सीधा किनारे पे लाते हुए खींच लिया "काकी बेचो (काकी बचिए)"...ये आवाज़ एक लड़की की थी...अंजुम को ख्याल आया कि उस लड़की ने ही उसे मेन रोड के बीच ट्रक के सामने से खींच लिया था वरना ट्रक तो उसके उपर चढ़ ही जाता...आज एक बहुत बड़ा हादसा होने से बच गया था....

अंजुम ने गौर किया उसने साड़ी पहन रखी थी और माथे पे सिंदूर था...उसे जानने में देर नही लगी कि वो एक शादी शुदा थी....उसने हान्फ्ते हुए अंजुम को थोड़ा सा ज़ोर से कहा "क्या काकी आप तो अभी ट्रक के नीचे आ जाती? ऐसे कोई रोड क्रॉस करता है वो तो मेरी नज़र पड़ गयी आप पर"........

.अंजुम ने उसका शुक्रियादा किया...बातों में अंजुम को खुशी हुई कि ये कोई और नही उसकी जानने वाली थी उसकी ख़ास में से....उसकी बहन की बहू यानी आदम की रूपाली भाभी

उधर अंजुम को किसी औरत के साथ देख राज़ौल वहीं ठिठक गया...उसने पाया कि अंजुम पीछे पलटके उसकी तरफ देख रही थी....साथ में रूपाली भी थी तो वो गाड़ी की आड़ में हो गया...उसने पाया कि दोनो एकदुसरे के साथ थ्री वीलर में बैठी और वहाँ से चली गयी.....राज़ौल के हाथ आते आते अंजुम रह गयी उफ्फ काश वो उसका पीछा कर पाता पर बीच में ही ये आफ़त उसे अपने किस्मत पे खुन्नस सी हुई ...


रात 9:30 बज चुके थे....बाइक खड़ी किए आदम झट से जैसे ही घर के द्वार पे आया तो पाया कि ताला लगा हुआ था...उसने ताले को टटोला "अर्रे माँ कहाँ गयी वो भी इतने रात गये? इस वक़्त तो वो घर पे होती थी ......आदम को बहुत धक्का सा लगा..भला इतनी रात गये माँ गयी किधर? उसने पास की राशन की दुकान मे जाके देखा और वहाँ पूछा तो दुकानदार ने कहा कि माँ तो उसकी यहाँ सुबह से नही आई...आदम को थोड़ी फिकर होने लगी....माँ यहाँ तो किसी को जानती तक नही वो है कहाँ? कही मार्केट में तो नही चली गयी..अर्रे यार कम से कम बताके तो जाती....बेटे को माँ की फिकर होने लगी उसका दिल धक धक करने लगा

उसने माँ को फोन लगाया....माँ ने फोन तुरंत उठाया

माँ : हेलो हां बेटा?

आदम : अर्रे माँ कहाँ हो तुम? मैं अभी पहुचा तो पाया दरवाजे पे ताला लगा है?

माँ : ओह हो बेटा मुझे मांफ कर दे मैने सोचा तुझे मेरी फिकर ना हो जाए तू प्लीज़ जल्दी से ताहिरा के यहाँ पहुच

आदम : ताहिरा मौसी के यहाँ? (आदम को लगा शायद माँ ताहिरा मौसी के यहाँ मिलने गयी होगी)

माँ : हां तू यहाँ जल्दी पहुच फिर सबकुछ बताउन्गी

आदम : ठीक है माँ मैं अभी वहीं पहुचता हूँ

आदम वापिस बाइक पे बैठा और उसे रोड की तरफ मोड़ते हुए स्टार्ट किया..वो फुरती से टाउन की तरफ रवाना हो जाता है....उसके मन में ख्याल आता है कि अचानक से माँ ताहिरा मौसी के यहाँ क्या करने गयी? फिर उसे अहसास हुआ कि ताहिरा मौसी के घर में और लोग भी तो मज़ूद होंगे जो उसके बेहद करीब है

जब ताहिरा मौसी के यहाँ पहुचा तो पाया कि घर में कोई तब्दीलियत नही हुई थी सबकुछ जैसे छोड़के गया था वैसे के वैसा ही लगा वही घर वही गली वही माहौल...
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12-09-2019, 01:33 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
मैं उसी पतली गली से होता हुआ बरामदे में आया तो ऐसा लगा जैसे वापिस मैने बीते कल में कदम रखा हो....सामने ही वो गुसलखाना था जहाँ पर मैने ताहिरा मौसी को ना जाने कितनी बार चोदा था...उफ्फ उसके बाद रूपाली भाभी ने हमे रंगे हाथो पकड़ा उसके बाद उसके दिल पे क्या गुज़री थी? एक तो उसकी निगाहों में मेरे लिए जो गुस्सा था...जब उसने मुझसे नफ़रत भरे अंदाज़ में मुँह मोड़ लिया और मैं भी उसे उस अधूरे रास्ते पे छोड़के वापिस शहर आ गया था...वाक़ई आज एक साल बाद भी जैसे वो सब एकदम ताज़ी ताज़ी सी घटना लग रही थी मुझे...

अंदर चहेल पहेल थी गनीमत थी कि मुझे मौसा और रूपाली के पति कहीं नही दिखे समझ आया कि घर में महेज़ औरतें ही थी...जैसे ही दो कदम आगे ही बढ़ा तो बगल वाले कमरे में मुझे माँ दिखी साथ में ताहिरा मौसी भी बैठी हुई थी...जैसे ही मैं अंदर आया तो पाया उनके हाथ में रूपाली का बेटा था जिसे माँ खिला रही थी...वो उसकी गोद में किल्कारियाँ ले रहा था...

मुझे ताहिरा मौसी देखके बहुत खुश हुई और बैठने को कही तो मैं उसके बगल में बैठ गया माँ मुझे बेहद खुश नज़र आई वो तो जैसे रूपाली के बेटे को लेके ही व्यस्त थी उसे कभी पूचकार रही थी तो कभी गोद में लिए टहला रही थी....उसे क्या मालूम जो बच्चा उसकी गोद में है वो किसी और का नही बल्कि मेरा खुद का है ताहिरा मौसी मेरे कंधे पे हाथ फेरते हुए मुझसे पूछी और मैं कैसा हूँ? मैने भी जवाब दिया कि मैं ठीक हूँ मैं उनका हाल चाल पूछने लगा....ताहिरा मौसी काफ़ी कमज़ोर दिख रही थी आँखो के नीचे काले घेरे पड़ चुके थे ना कोई साज़ था ना सिंगार ऐसा लग रहा था जैसे कितनी बीमार सी हो गयी हो...फिर माँ ने मेरी गोद में राहिल को दिया उसे एक बार गोद में लेके मैने बड़े गौर से देखा सच में भाभी का बेटा तो पूरा मुझपे गया था

वो मेरी गोद में आते ही शांत हो गया मैं उसे लेके खड़ा होके टहलने लगा....माँ प्यार से मुझे राहिल को खिलाते देख खुश हो रही थी...."देख री ताहिरा एक टाइम था बच्चे को पसंद भी नही करता था? और आज कैसे अपने ही भतीजे को खिला रहा है
......."हां अंजुम दी वैसे एक बात बोलू राहिल को अब देखो और अपने आदम को देखो चेहरा एकदम एक जैसा है".........

माँ हंस पड़ी उसने भी शरारत भरे अंदाज़ में कहा चलो अच्छा हुआ अपने गोरे हॅंडसम चाचा पे गया है....मैं उन दोनो की बातों से शर्मा सा गया...उस वक़्त मैं जैसे अपनी आप बीती में चला गया था...

इतने में रूपाली भाभी अंदर आई उसे देखते ही जैसे मेरी साँसें रुक गयी जैसे उसे देखते ही मैं खुद को मुजरिम सा महसूस करने लगा उसके हाथ में चाइ का ट्रे था सच में रूपाली भाभी निखर गयी थी....कितना सुडोल बदन हो गया था उनका साड़ी के पल्लू के बीच से उसकी गोल गहरी नाभि दिख रही थी राहिल के जनम के बाद जैसे बदन और भी रूपाली भाभी का निखर गया था..पेट भी थोड़ा निकल गया था...वो भी एक टक मुझे घूर्र रही थी उसने पाया कि उसका बेटा राहिल मेरे हाथो में था..हम जैसे एकदुसरे के निगाहो में मुजरिम से थे मौसी और माँ दोनो जैसे हमे देखके मुस्कुरा रहे थे उन्हें ये नही मालूम था हमारे संबंधो के बारे में उन्हें ये नाही मालूम था कि जिस बच्चे को मैने गोद में लिया था वो रूपाली के पति का नही बल्कि मेरा और रूपाली भाभी का था...

इतने में मुझे अहसास हुआ कि राहिल ने मेरी गोद में सूसू कर दिया..तो माँ ने हड़बड़ाते हुए चाई की प्याली रख ली...."अर्रे ओह हो रूपाली ज़रा इसे थामना तो उफ्फ बेटा तेरा तो पूरा शर्ट खराब हो गया"........

"ओह काकी आइ आम सॉरी मेरी वजह से"......रूपाली ने आगे आके मुझे राहिल को लिया तो एक नज़र हमारी एकदुसरे की ओर हुई...

."कोई बात नही माँ कोई बात नही बच्चा है क्या फरक पड़ता है"........मैं अपने शर्ट के बटन्स को खोलता हुआ बोला

ताहिरा : हां वोई तो बच्चे तो पाक होते है अर्रे रूपाली तुम जाओ और आदम को उसके बड़े भाई का कोई एक शर्ट निकाल के दे दो

रूपाली : जी काकी (रूपाली ने कुछ नही कहा वो बस जैसे आगे आगे चली गयी बिना मुझे कुछ कहे जैसे नाराज़गी अब भी थी उसे मुझसे)

मैं पीछे ताहिरा मौसी और माँ को गफलत में छोड़ बाहर आया...हम दूसरे वाले कमरे में आए...रूपाली मुझे देखते हुए नज़रें चुराने लगी और मुझे एक शर्ट अपने पति यानी मेरे भाई का निकालते हुए मुझे देते हुए जाने लगी....मैने उसे रोका

आदम : रूपाली प्लीज़ रुक जाओ

वो ठहर गयी पर कोई जवाब नही दिया...जैसे नाराज़गी को वो ज़ाहिर कर रही थी अपनी खामोशी में (उसकी गोद में मेरा बेटा राहिल था)

आदम : मैं मानता हूँ जो मुझसे हुआ लेकिन प्लीज़ ऐसे कब तक नाराज़गी रखोगी जवाब दो

रूपाली : कब तक आदम कब तक नाराज़गी रखूँगी? (उसने पलटते हुए जैसे मेरे शब्दो को दोहराया उसकी आँखो में गुस्सा और आँसू दोनो उमड़े हुए थे)

रूपाली : भला मैं क्यूँ नाराज़ रहूंगी तुमसे क्यूँ कोसुन्गि तुम्हें कोसुन्गि तो अपनी किस्मत को जो मुझे ऐसी ज़िंदगी मिली देखो आदम मैं बदल चुकी हूँ अब मैं खुश हूँ मेरे पास राहिल है और परिवार वाले इस बात से बेहद खुश है और मैं भी

आदम : क्या ताहिरा मौसी अब भी तुमसे नाराज़ है? जो कुछ हुआ था? जवाब दो

रूपाली ने कोई जवाब नही दिया मैने उसे अपनी तरफ पलटा तो वो थोड़ी घबराई नज़रें इधर उधर फैरने लगी...उसने राहिल को बिस्तर पे रखते हुए उसके गीले पॅंट को उतार उसे डाइपर ढूँढते हुए पहनाना शुरू किया

आदम : मेरी बातों को इग्नोर करके तुम ये मत समझो कि मैं तुम्हारी हालत को नही जानता मैं जानता हूँ कि सबने तुम्हें मान लिया है ताहिरा मौसी को अभीतक कुछ मालूम नही और मुझे खुशी है और ना मैं चाहता हूँ कि सिर्फ़ मौसी बल्कि मेरी माँ को भी कुछ मालूम ना चले पर तुम्हारे चेहरे का दुख ये मुझे अच्छा नही लग रहा

रूपाली : तुम्हें क्या अच्छा नही लग रहा और क्या नही ? मुझे फरक नही पड़ता प्लीज़ अब इस टॉपिक को और मत छेड़ो मैं नही चाहती की किसी को कुछ भी मालूम चल जाए

आदम : मेरे अच्छा लगने से क्या होता है? मैं तो बस यही चाहता हूँ कि तुम जहाँ भी रहो खुश रहो लेकिन तुम्हारे चेहरे पे सिमटा ये दुख मुझे भा नही रहा अगर तुम बदल ही चुकी हो तो क्यूँ तुम खुश नही?

आदम जानता था रूपाली ने उसे क्यूँ जवाब नही दिया? क्यूंकी रूपाली खुद को भी शर्मिंदा महसूस कर रही थी...उसे जैसे दर्द हुआ था आदम की बेवफ़ाई से...उसे दुख हुआ कि उसके पेट में उसके पति का नही आदम का गर्भ ठहरा था...लेकिन ताहिरा मौसी की बेज़्ज़ती और उनसे अपने सच के ना खुलने का ही डर उसे खा रहा था...आदम ने उसे अपनी तरफ किया और उसे तफ़सील से समझाने लगा जो हुआ सो हुआ अब वो ये गिले शिकवे दूर करे वो आज यहाँ अपने मर्ज़ी से नही आया बल्कि माँ की वजह से आया वरना जिस दिन रूपाली ने उसे कहा था उस दिन से ही उसने कसम खा ली थी कि वो और रूपाली की ज़िंदगी में दखल नही देगा...पर आज राहिल को देख जैसे उसके दिल में फिर से प्यार उमड़ सा गया था...वो न ही चाहता था कि रूपाली भाभी के साथ वो दुबारा कोई संबंध बनाए ना ही वो उसके ग्रहस्थी को उजाड़ना चाह रहा था वो बस यही चाहता था कि रूपाली उसे मांफ कर दे क्यूंकी अब हालत दोनो के काबू में थे....किसी को कुछ मालूम नही था....उसने ये भी जानना चाहा कि रूपाली के दिल में क्या है? क्या वो अब भी आदम के लिए अपने दिल में फीलिंग्स रखी हुई है...रूपाली ने बस अपने आँसू पोंछते हुए आदम की ओर रोई सी निगाहो को देखा...और मुस्कुरा कर बस इतना कहा
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12-09-2019, 01:33 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
रूपाली : जो भी हुआ शायद उसमें शायद तुम्हारा भी नही मेरा ही कसूर था या शायद किस्मत अगर मैं बच्चा जनम ना देती तो सास तानो पे ताना देती या अगर तुमने मुझे उस वक़्त सहारा ना दिया होता तो शायद मैं आज इस काबिल ना हो पाती कि खुद पे डिपेंड हूँ ना कि अपने पति पे उस नामर्द का क्या तुम्हारे भाई का क्या? वो तो बस पड़ा रहता है मेरे ससुराल में तो कभी यहाँ उसे तो मैं सुधार नही सकी पर अपनी ज़िंदगी मैं ज़रूर सुधार सकती हूँ तुम्हारे जाने के बाद मैने काफ़ी सोचा मुझे तुमसे अब भी नफ़रत है कि तुम तो मेरा साथ तो दोगे नही फिर क्या दुख करना? बस तुमने एक उपकार किया कि मुझे राहिल दिया (हम दोनो की नज़र उसकी उंगली उठते ही बिस्तर पे सोए राहिल की ओर हुई)

आदम : सच में रूपाली तुम्हारा हक़ है कि तुमने मुझसे नफ़रत की नाराज़गी की पर सच में मैं भी अब पहले जैसा नही हूँ और ना ही कहूँगा कि कोई है ज़िंदगी में जिसका शायद तुम्हें अहसास लगे पर ऐसा नही है मैं अकेला आज भी हूँ कल भी था (माँ के व्यभाचार रिश्तो को सोचते हुए आदम ने रूपाली से झूठ कहा लेकिन सच्चाई तो ठीक वैसी ही थी वो अकेला था बिना किसी औरत के )

रूपाली : तो अब यही रहोगे?

आदम : ह्म और ये मेरी तरफ से (आदम ने कुछ पैसे दिए रूपाली उसे लेने से इनकार करने लगी क्यूंकी वो राहिल के लिए आदम ने रिवाज़ के तौर पे दिए थे)

रूपाली : नही इसकी कोई ज़रूरत नही प्ल्स

आदम : प्ल्स मुझे कहने दो इसके पिता का हक़ ना सही पर एक चाचा होने के हक़ से तो दे सकता हूँ ना

रूपाली के मुँह से एक बोल ना फूटा और वो मुस्कुरा दी सच में उसके पास इस हालात के आगे कोई जवाब नही थे क्यूंकी यक़ीनन आदम का अगर उसके पिता का रिश्ता राहिल से ना होता तो चाचा का तो होता ही आदम ने प्यार से राहिल को चूमा और फिर अपनी शर्ट को उतारने लगा....रूपाली ने नज़रें फेर ली आदम मुस्कुराया...इतने में माँ की आहट से दोनो ठिठक गये

अंजुम : उफ्फ हो अभी तक तूने चेंज नही किया क्यूँ रूपाली ये तुम्हे तंग तो नही कर रहा ना बहुत बातुनी है यह लड़का?

रूपाली : नही नही काकी माँ आदम तो हमारे यहाँ बहुत पहले से आ रहा है अच्छा हुआ आज आप आई मेरे साथ

आदम ने शर्ट तब तक पहन ली थी...अंजुम ने आदम की तरफ मुस्कुराया "वाक़ई तुम्हारा बेटा राहिल सच में देखना बड़ा होके ज़रूर कुछ बनेगा तुम अपने पति की टेन्षन ना लो देख ना ये कामयाब ज़रूर होगा"...........रूपाली को जैसे अंजुम आशीर्वाद दे रही थी रूपाली शरमा रही थी और मैं मुस्कुरा रहा था

रूपाली : थॅंक यू काकी मुझे पूरा यकीन है खून तो आप लोगो पे ही गया है ये ज़रूर आप लोगो पे ही जाएगा (रूपाली ने माँ को देखते हुए फिर मेरी तरफ देखके मुस्कुराया मैं उसके इशारे को भाँपते हुए खुश हुआ चलो रूपाली ने ये तो कहीं ना कहीं जताते हुए कहा कि राहिल मेरी औलाद तो है )

रूपाली भाभी मुझे और माँ को बोलते हुए बाहर चली गयी टाय्लेट करने....मैं माँ के पास आया अब तक मैं रूपाली के ज़ज़्बातो में उलझा था अब मैं वापिस अपने होशो हवास में लौट आया था रूपाली के जाते ही मैं माँ के पास आया

आदम : माँ क्या बात थी जो तूने मुझे फोन पे नही बताई? (अंजुम फिर से सवाली निगाहो से मुझे घुरि फिर उसे राज़ौल का ध्यान आया)

माँ थोड़ी परेशान लगी फिर उसने कहा कि आज मार्केट में कोई उसका पीछा कर रहा था....उसने ज़्यादा कुछ नही कहा कि वो कौन था? माँ ने जैसे मुझसे वो बात छुपा ली थी पर उसके कुछ देर पहले के चेहरे पे अब मुझे जैसे गंभीरता के भाव बार बार दिख रहे थे वो उन्हें छुपाने की कोशिश कर रही थी ना जाने क्यूँ वो मुझे नही बताना चाह रही थी?

ताहिरा : अर्रे तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो? राहिल को सोने दो

आदम : हां हां सोने ही दे रहे है आपसे भी मुझे बहुत गुफ्तगू करनी है चलिए

माँ ने भी अपनी गंभीरता भरी सोच को तोड़ा और फिर नॉर्मल होते हुए हँसी मज़ाक करने लगी अपनी बहन से "हां रे ताहिरा तेरे घर में बहुत खूबसूरत बेटा आया है मुझे ये तू दे दे मैं इसको अपने आदम के साथ रखूँगी"....

ताहिरा मौसी मुँह पे हाथ रखके हँसने लगी रूपाली भी पास खड़ी मुस्कुराते हुए शरमा रही थी उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो कितनी अंजान हो और अंजान तो थी जो अपने पोते की ही तारीफ किए जा रही थी मैं जानता था इसलिए चुपचाप था...

कुछ देर बाद खाना बनाने रूपाली चली गयी हमे रोक लिया पर मौसा और भाई दोनो नही आए थे कारण मौसा शहर से बाहर गये हुए थे और भाई कहीं नशे में धुत्त देर रात को ही आता...सच में रूपाली ने कैसे उसे झेल रखा था

ताहिरा मौसी को अकेला पाके मैं उसके पास आया माँ उस वक़्त रूपाली का हाथ बटाने में चली गयी....ऐसा लग रहा था जैसे दोनो सग़ी बहनें हो एकदम यंग उपर से दोनो ही जवान बस एक कम उमर की और दूसरी थोड़ी बड़ी मैं दोनो को ताड़ते हुए मौसी के कंधे पे हाथ रखके उसकी पीठ सहलाने लगा मौसी मेरे इतने सालो बाद के हाथो के स्पर्श से मुस्कुराइ मुझे देखी फिर उसने मेरे हाथ को हटा दिया

ताहिरा : क्या करूँ बेटा? बीमारी ने मुझे तोड़ दिया है अब तो तेरे मौसा के साथ भी सोती नही हूँ उन्हें भी बीमारी है ना इसलिए उन्हें ज़्यादा ऐतराज़ नही होता

आदम : ओह हो तो फिर क्या तुम्हारी अब सेक्स की इच्छा मर गयी है

ताहिरा : हां बहुत हद तक अब मन नही करता और अगर एक बार चुदाई करने लगी भी तो शरीर बहुत थक जाता है...फिर कोई भी काम करा भी नही जाता शरीर काँप उठता है

आदम : ओह्ह ये तो बहुत भयानक बीमारी है इलाज क्यूँ नही कराती

ताहिरा : करती हूँ डॉक्टर ने तो बस सेक्स करने से परहेज लिख दी है और अब मन भी नही मानता क्या अब तो पोता भी हो गया?

सच में ताहिरा मौसी की हालत काफ़ी खराब थी और उपर से छोटे टाउन की सोच रखने वाली हो गयी थी क्यूंकी उसकी सेक्स करने की फ्रीक्वेन्सी कम हो चुकी थी....वो अगर चुदती भी तो हाँफ जाती अब उसमें कोई आकर्षण वाली बात ही नही रही थी...इसलिए अब मेरा भी दिल उनसे जैसे हट गया था हमारा रिश्ता बरक़रार था मौसी भानजे के प्रेम का मैने उसे समझाया फिर मुलाक़ात करने का वादा किया
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12-09-2019, 01:34 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
इधर हम चारो ने बैठके रात का डिन्नर किया फिर मुझे भी खुशी हुई कि मेरे और इस घर के बीच खासकरके रूपाली भाभी के बीच कोई गीले शिकवे या बैर या नाराज़गी नही रहे थे...मैने राहिल को खूब प्यार किया उसके बाद रूपाली भाभी उसे मेरे ही सामने आँचल किए दूध पिलाने लगी तो शायद माँ के प्रेज़ेन्स में वो एक गैर मर्द के आगे ऐसा दिखाना नही चाह रही थी इसलिए अंदर चली गयी हम घर की ओर रवाना हुए उसने विदा लेते हुए रुखसत हुए वहाँ से...

पूरे रास्ते माँ से जब पूछा तो उन्होने बस कहा कि उनका किसी आदमी ने अकेला देखके पीछा किया मैने माँ को खूब डांटा की अगर कोई हादसा हो जाता तो अब उसे घर में ही रहने की मैने सख़्त हिदायत दी और अगर कोई चीज़ की ज़रूरत भी रहती तो मुझे ही कहेगी....माँ ने हामी भर दी

हम घर आए...माँ जैसे नॉर्मल होने की कोशिश कर रही थी मेरा आज फिर मूड बन रहा था...हम कुछ देर रूपाली भाभी के घर की ही बात कर रहे थे उसके बाद राहिल की उसके बाद ताहिरा मौसी की बुरी तबीयत की माँ थोड़ी परेशान सी हुई उनकी चिंता लगी उन्हें....रूपाली के पति पे उन्हें सख़्त गुस्सा भी आया पर मैं खुश था कि वो राहिल के राज़ से वाक़िफ़ नही थी...

माँ ने अपने मूड को ठीक करने के लिए मुझसे कहा कि मैं और सब्ज़ी मंडी वाली बात की चर्चा ना करू वो मेरे गले लग गयी मैने उसकी ज़ुल्फो में उंगलिया फिराते हुए उसे अपने सीने से लगा लिया...आज रात को नींद नही आ रही थी...जब बाहर आया तो देखा कि चाँद एकदम रोशन था बस हल्के बादलो से गुज़रता हुआ उन्हें छाँटते हुए अपनी रोशनी चारो ओर फैला रहा था....मैने पाया कि माँ की आँखे खुली हुई थी उसने मुझे प्यार से देखा तो मैने खिड़की का दरवाजा लगाते हुए बंद किया...

मैने जब खिड़की की कुण्डी लगाई और पीछे मूड कर देखा तो माँ को जगा हुआ देख हैरान हुआ रात करीब डेढ़ बज चुके थे और माँ की आँखो में इस वक़्त नींद नही उन्होने मेरी तरफ देखके मुस्कुराया मैं उनके पास आया फिर बिस्तर पे चढ़ते हुए करीब उनके बगल में लेट गया....

आदम : क्या हुआ तुझे अभीतक नींद नही आई?

अंजुम : नही रे बस कभी कभार जल्दी नींद नही आती तू अभीतक सोया नही कल ऑफीस!

आदम : अफ ऑफीस ऑफीस अर्रे मेरी जान ऑफीस ही तो सुबह उठके जाना होता है और है ही क्या लाइफ में बस काम काम ! (माँ ने मेरे चेहरे पे हाथ फेरते हुए मुझे नज़ाकत से देखा)

अंजुम : कितना बड़ा हो गया है तू? और कितना ज़िम्मेदार हम आज एक होके भी चाह कर भी एकदुसरे के साथ सारा वक़्त नही बिता पाते

आदम : तू कहे तो नौकरी से इस्तीफ़ा देके घर बैठ जाउ

अंजुम : नही नही पागल है हर मर्द कमाता है और तेरी तो अभी शादी भी नही हुई तो फिर तुझपे कैसा प्रेशर है अपने पेट के लिए तो इंसान को कामना ही पड़ता है

आदम : हाहाहा क्या करे माँ? आज हम इतने पास है एकदुसरे के कोई रोक टोक करने वाला नही कोई कबाब में हड्डी नही जो हमारे संबंधो में रुकावट पैदा करे बस यही शाम से रात का वक़्त ही तो मिलता है गुज़ारने को फिर वोई व्यस्तता भरा दिन

अंजुम : अच्छा छोड़ वो सब ये बता कि आजक दिन कैसा गुज़रा?

आदम को लगा था कि माँ शायद आज परेशानी की वजह से सोई नही थी क्या मालूम अब अकेले में वो बता दे कि क्या वजह थी? जब माँ के बर्ताव में बदलाव सा देखा तो अहसास सा लगा कि वो शायद कुछ भूलने की कोशिश कर रही हो या शायद आज जो उसके साथ घटा वो वाकियात पर सच पूछो तो उन्ही की बदौलत रूपाली भाभी से फिरसे मेरे रिश्ते जुड़े जो कल्तक टूटे हुए थे उफ्फ इस दिन का मुझे बेसवरी से इन्तिजार था...

अभीतक मेरी चुप्पी देख माँ ने मेरे सीने पे हाथ फेरा....और प्यार से मेरे गले और गाल को चूमा अंजुम भी आज हुए हादसे को भूल जाना चाहती थी इसलिए वो पुरज़ोर कोशिश कर रही थी कि वो खुद आज संबंध बनाने में पहेल कर ले ताकि बेटा भी खुश हो जाए और वो उस बात को भुला सके जो रह रहके उसके दिल में उमड़ रहा था....

आदम ने पास ही रखा फोन उठाया और उसमें एक सेक्सी सी क्लिप लगा दी दोनो माँ-बेटा उस क्लिप को देखने लगे...."अर्रे इसमें तो वोई सीन चल रहा है ना जो मुझे उस दिन हेमा ने दिखाया था".......माँ ने मेरी तरफ घुरते हुए कहा

"ह्म वोई सीन है कुंशोट फेशियल "........मैने वीडियो देखते हुए कहा

माँ उसे बड़े गौर से देखने लगी ऑडियो वॉल्यूम थोड़ा तेज़ कर दिया तो सेक्सी सेक्सी आवाज़ पूरे कमरे में लड़की की गुंज़्ने लगी जो एकदम नंगी बैठी हुई थी और कुल 3 मर्द अपने विशाल बेलन जैसे साइज़ के लौन्डो को उसके चेहरे पे रगड़ रहे थे माँ बेहद गौर से उस सीन को देख रही थी....वो लोग दहाड़ रहे थे और कुछ ही पल में लड़की चीख उठी क्यूंकी उसके चेहरे पर जैसे वीर्य की बौछार पिचकारियो के रूप में लगने लगी...वो आँखे मुन्दे अपने बहते गिरते वीर्य भरे चेहरे के अहसास से रोमांचित थी और वो तीनो अपने मूसल जैसे लंड को आगे पीछे हिलाते हुए हाँफ रहे थे उनकी साँसें तेज़ चलने की आवाज़ आ रही थी...

जब तक उन्होने अपने वीर्य से लड़की को पूरा तरबतर नहला नही दिया वो लोग उसके उपर से अपने लौन्डे नही हटाए...जब वो उसके उपर से हटे तो लड़की के पूरे चेहरे और मुँह पर वीर्य की बूँदें बह रही थी उसके पूरे नंगे जिस्म पे वीर्य ही वीर्य उन तीनो मर्दो के लंड से निकला बह रहा था उसके बदन पे....वो हंसते हुए मज़ाक कर रही थी कुछ वीर्य उसकी ज़ुबान पे भी लग गया था..जब क्लिप बंद हुई तो मैने माँ की तरफ देखा उसकी साँसें एकदम तेज़ चल रही थी....मैने माँ की तरफ देखा और उसके कंधे पे हाथ रखा...
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12-09-2019, 01:34 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
उसे महसूस हुआ कि बेटा उसके कंधे पे लगी नाइटी के फितो को खोल रहा है...जल्द ही नाइटी की दोनो डोरिया के खुलते ही उसने अपना हाथ नीचे माँ की चिकनी जांघों पे फेरते हुए टाँगों तक की नाइटी को एक झटके में उपर ले जाते हुए माँ के बदन से खीचके उतार दिया....माँ ने अपनी दोनो बगलो को उठा लिया था जिससे बाज़ू से होते हुए उसकी झिल्लिदार नाइटी एक ही झटके में बेटे ने उतार दी....नाइटी के उतरने के बाद आदम की निगाह माँ की नंगी चुचियो से टकराई उन्हें हाथो में लेके आदम ने मसला..

तो माँ ने उसकी टाँगों के बीच पाजामे में बड़ा सा तंबू बना देखा...उसने पाजामे को खीचके उतारा तो ज्यो ही उतारने से आदम का लंड एकदम सख़्त लोहे जैसा खड़ा उसके सामने प्रस्तुत हो गया...उसने उसे हाथ में लेके भीचा और फिर उसे आगे पीछे मुत्ठियो में सहलाया...इधर बेटे ने माँ की ज़ुल्फो को समेत ते हुए माँ के खुले बालों को पीछे की तरफ समैट दिया....उसने माँ के दोनो चेहरे को अपने हाथो में लिया और उसकी ठुड्डी और नाक और गाल को चूमते हुए उसके होंठो पे एक ज़बरदस्त किस दी..

माँ इससे हड़बड़ा उठी और उसने बेटे के कंधे पे हाथ लपेटते हुए उसे अपनी तरफ झुकाया दोनो एकदुसरे को पागलो की तरह किस करने लगे...इसी बीच अंजुम ने बेटे के लंड को हाथो में लेके दो-तीन बार दबाया....वो किसी फुन्कार्ते हुए अजगर जैसा हो गया था...उसके इर्द गिर्द नसे फैली हुई थी...आदम ने उसे रोका और वैसे ही नंगा खड़ा होके पलंग को उठाए अंदर से कुछ निकालने लगा माँ नंगी हाँफती हुई बैठी चुपचाप आदम की हरकत को देख रही थी....जब आदम ने पलंग के उपर अपना सर उठाया....तो उसके चेहरे पे वोई मास्क था जो उस दिन उसने पार्टी में पहना था....अंजुम हंस पड़ी उसे वो दिन याद आया कि इसी मुखौटे को पहने आदम के चेहरे को वो पहचान नही पाई थी...उसने मुँह पे रखके हाथ खिलखिलाए हँसी

अंजुम : अब ये क्या हरकत है बेटा?

आदम : हाहाहा हरकत नही है माँ बस सोचा आज रोमॅन्स थोड़ा अलग ढंग से करे

अंजुम : ऐसा लगता है तेरा बच्पना गया नही
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12-09-2019, 01:34 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
आदम : इंसान का बच्पना जाता कब है? बस वो उमर के साथ साथ और भी बढ़ते जाता है कुछ अलग हटके हो जाता है सोचो कि ये मैं नही कोई और है

अंजुम : भला मैं तेरे बजाय किसी और के साथ संबंध बनाउन्गी ये तू सोचता है ?

आदम : हाहाहा मैं जानता हूँ माँ कि तू ऐसा कभी कर ही नही सकती पर ये तो महेज़ एक फॅंटेसी है सोच कि मैं वोई नक़ाबपोश हूँ जिसने तुझे बचाया और पार्टी से अपने घर ले आया....

अंजुम : ह्म तो फिर आप मुझे मेरे घर छोड़ने की बजाय यहाँ क्यूँ लाए? (माँ फिर हंस पड़ी कहते हुए)

मैने वो जोकर का नक़ाब ऐसा पहना हुआ था कि उसके गोल्डन रंग के सिवाय उसमें तीन छेद थे जिससे सिर्फ़ मेरे होंठ ही दिख रहे थे और उपर के दोनो छेदों से सिर्फ़ मेरी आँखे....मैं बिस्तर पे एक एक हाथ रखते हुए उसके पास आया....माँ ने नज़ाकत से अपना एक पाँव मेरे सीने पे रखा और मेरे सीने के बालों को सहलाते हुए मेरे कंधे पे अपना पाँव रखा....मैने उनका पाँव पकड़ा और नक़ाब को अड्जस्ट करते हुए उसमें से अपनी जीब निकालते हुए पाँव को चाटने लगा....फिर पाँव को हाथो में लेते हुए होंठ बाहर किए उन्हें चूम लिया..माँ कसमसा रही थी...

अंजुम एकदम खामोश सी थी...मैने उसकी जांघों पे हाथ फेरते हुए उसकी तरफ देखा....मेरे हाथ उसकी टाँगों के बीच के चूत के कटाव पे आए..उसे सहलाया और चूत को मुट्ठी में कस्स लिया...दो तीन बार ही दबाने से माँ की चूत एकदम गीली तरबतर हो गयी..."उईईइ उफ़फ्फ़ फुम्म्म"......माँ सिसकते हुए आँखे मुन्दे बिस्तर पे लेट गयी....

मैने उसकी टाँगों को फैला दिया और अपने होंठो को चूत की फांको के पास लाया और उस पर अपना मुँह लगाया..

अंजुम : उम्म्म उफ़फ्फ़ इस्शह सस्सस्स (माँ तड़प रही थी और मैं उसे मुख मैथुन दे रहा था)

आदम : स्लूर्रप्प्प एम्म्म वाहह (मैने चूत के होंठो को चुसते हुए चूत पे मुँह रखके दबाया और फिर उसे जीब से चाटते हुए उसका स्वाद चखा)

माँ इस बीच जैसे पूरी होशो हवास खोए सेक्स का आनंद ले रही थी...इस बीच मैं उठा और अपने मोटे लंड को माँ के चेहरे के करीब लाया इस बीच उसने मेरी मास्क की तरफ बड़े गौर से देखा फिर मेरे लंड को मुँह में लिए ही वैसे चूसने लगी...."म्म्म्मम उम्म्म्म"....माँ सिर्फ़ मोनिंग की आवाज़ निकाल रही थी...जैसी किसी लॉलिपोप की तरह उसे चूस रही हो और मुझे देख रही हो..

मैं उसके बालों पे हाथ फेरते हुए उसके सर को सहला रहा था जैसे मुझे मज़ा मिल रहा हो और मैं उसे और चूसने के लिए उकसा रहा हूँ....माँ लंड को मुँह में किसी प्रोफेशनली तरीके से चुस्स रही थी और उसे मुँह से तब तक नही निकाला जब तक मैने नही कहा....मेरे कहने पे ही उसने लंड को अपने मुँह से बाहर निकाला फिर मेरे अंडकोष के नीचे अपना मुँह लगाया और दोनो टट्टो पे ज़ीब चलाई...फिर लंड को मुठियाते हुए मुझे लेटा दिया....उसने अपने होंठो पे लगे थूक को पोछा...

फिर धीरे धीरे लंड को अपनी गीली चूत में अड्जस्ट करते हुए मुझे सीधा लेट जाने को माँ ने कहा....मैं वैसे ही सीधे लेट गया तो माँ मेरी टाँगों के बीच मेरी तरफ होके धीरे धीरे मेरे लंड को अपनी चूत में सरकाते हुए बैठने लगी...उनकी चूत के गीलेपन से ही मेरा लंड फकच से अंदर जाने लगा....उसे अपनी चूत के भीतर जब लंड गढ़ता महसूस हुआ तो जैसे कोई खुन्टा जब माँस में धँस जाता है ठीक उस पल जैसे दर्द से भाव चेहरे पे आते है ठीक उसी पल माँ के चेहरे पे भी दर्द सिमट सा गया...मैने उनके नितंबो को सहलाते हुए उन्हें हल्का होने कहा तो जैसे वो अपने गुदा क्षेत्र को ढीला छोड़ने लगी इससे उनकी चूत में मेरा लंड और अंदर जाता मुझे महसूस हुआ

"उफफफफ्फ़".....माँ ने काँपते हुए आहिस्ते स्वर में आवाज़ निकाली....मैने उसके कंधो से उसे जकड़ा और नीचे से धड़ा धड़ धक्के पेलने लगा...इससे माँ का पूरा शरीर उछल उछल के बाउन्स हो रहा था उनकी चुचियाँ भी आपस में टकरा रही थी उछलने से...मैने उनकी हिलती छातियो के निपल्स को दबोचा और उन्हें खूब मसला...माँ आहें भरते हुए अब खुद ही मेरे सीने पे हाथ रख कर मेरे लंड पे कूद रही थी...फिर अपनी नितंबो को मेरे अंडकोष पे घिसते हुए और ज़ोर ज़ोर से कूदने लगी...जैसे चुदाई का उसे चरम सुख प्राप्त हो रहा था...
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