Chodan Kahani इंतकाम की आग
09-02-2018, 12:15 PM,
#31
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
पोलीस की गाड़ी ट्रॅफिक मे रास्ता निकालते हुए साइरन बजाते हुए तेज़ी से दौड़ रही थी और उस गाड़ी के पीछे और चार पाँच गाड़ियों का झुंड जा रहा था. साइरन के आवाज़ की वजह से ट्रॅफिक अपने आप हटकर उन गाड़ियों को रास्ता दे रही थी. उस आवाज़ के वजह से और इतना बड़ा पोलीस की गाड़ियों का झुंड देख कर आसपास के वातावरण मे एक अलग ही उत्सुकता और डर फैल गया था. ट्रॅफिक से रास्ता निकालते हुए और रास्ते से तेडे मेडे मोड़ लेते हुए आख़िर वो गाड़ियाँ अंकित के घर के आस पास आकर रुक गयी. गाड़ियों से पोलीस की एक बड़ी टीम तेज़ी से लेकिन एक अनुशाशन के साथ बाहर निकल गयी.

"चलो जल्दी... पूरे एरिया को घेर लो...क्विक... क़ातिल किसी भी हाल मे अपने हाथ से निकलना नही चाहिए..." राज ने अपने टीम को आदेश दिया.

पोलीस का वह समूह एक एक करते हुए बराबर अनुशाशन मे पूरी एरिया मे फैल गया और उन्होने पूरे एरिया को चारो तरफ से घेर लिया. इतने बड़े पोलीस के समुहके जूतों की आवाज़ से पूरे एरिया मे वातावरण तनाव पूर्ण हुआ था. अडोस पड़ोस के लोग कोई खिड़की से तो कोई पर्दे के पीछे से झाँककर बाहर क्या चल रहा है यह डर से देख रहे थे.

दो तीन पोलीस वालो को लेकर राज एक घर के पास गया. जिस आदमीने पहले अंकित की कहानी बयान की थी वह सकते की स्थिति मे वहीं खड़ा था.

"ज़रा बताइए तो कौन कौन से घर से अंकित के घर की सारी हरकते दिखती है और सुनाई देती है..." राज ने उस आदमीसे पूछा.

उस आदमीने राज को दो-तीन मकान की तरफ उंगली से इशारा करते हुए कहा,

"वे दो... और मेरा एक तीसरा..."

"हमे यह एरिया पूरी तरह से सील करना पड़ेगा..." राज अपने टीम को उन मकान की तरफ ले जाते हुए बोला.

राज ने उन तीन घरों के आलवा और दो-चार मकान अपने कार्यक्षेत्र मे लिए. एक के बाद एक ऐसे वह हर घर की तरफ अपने दो-तीन लागों को ले जाता और घर अगर बंद हो तो उसे नॉक करता था. कुछ लोग जब दरवाज़ा खोलकर बाहर आते थे तो उनके चेहरे पर आस्चर्य और डर के भाव दिखाई देते थे. बीच - बीच मे राज अपने साथियो को वाइयरलेस पर दक्ष रहने के लिए कहता था. ऐसे एक एक घर की तलाशी लेते हुए वे आख़िर एक मकान के पास पहुँच गये. दरवाज़ा नॉक किया. काफ़ी देर तक रुकने के बाद अंदर से कोई प्रतिक्रिया दिख नही रही थी. राज के साथ मे जो थे वे सब लोग अलर्ट हो गये. अपनी अपनी गन लेकर तैय्यार हो गये. फिर से उसने दरवाज़ा नॉक किया, इसबार ज़रा ज़ोर से.. फिर भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही आई...

लेकिन अब राज का सब्र जवाब दे गया,

"दरवाज़ा तोडो..." उसने आदेश दिया.

पवन जो ऐसे कारनामों मे तरबेज़ था, हमेश दरवाज़ा तोड़ने मे आगे रहता था, उसने और और दो चार लोगों ने मिलकर धक्के दे-देकर दरवाज़ा तोड़ दिया. दरवाज़ा टूटने के बाद खबरदारी के तौर पर पहले सब लोग पीछे हट गये अब फिर धीरे धीरे सतर्कता के साथ अंदर जाने लगे.

लगभग सारा घर ढूँढ लिया. लेकिन घर मे कोई होने के कोई आसार नही दिख रहे थे. किचन, हॉल खाली पड़े थे. आख़िर उन्होने बेडरूम की तरह उनका रुख़ किया. बेडरूम का दरवाज़ा पूरी तरह खुला पड़ा था. उन्होने अंदर झाँककर देखा. अंदर कोई नही था, सिर्फ़ एक टेबल एक कोने मे पड़ा हुआ था.

जैसे ही राज और उसके साथ एक दो पोलीस बेडरूम मे गये वे आश्चर्य के साथ आँखें फाड़ कर देखते ही रह गये. उनका मुँह खुला का खुला ही रह गया. बेडरूम मे एक कोने मे रखे उस टेबल पर माँस के टुकड़े और खून फैला हुआ था. सब लोग एक दूसरे की तरफ आश्चर्य और डर से देखने लगे. सब के दिमाग़ मे एक साथ ना जाने कितने सवाल उमड़ पड़े थे. लेकिन किसी की एकदुसरे को भी पूछने की हिम्मत नही बन पा रही थी. राज ने बेडरूम की खिड़की की तरफ देखा. खिड़की पूरी तरह खुली थी..

"यहाँ कौन रहता है...? मालूम करो..."राज ने आदेश दिया.

उनमे से एक पोलीस बाहर गया और थोड़ी देर बाद जानकारी इकट्ठा कर वापस आ गया.

"सर मैने इस मकान मालिक से अभी अभी संपर्क किया था.. वह थोड़ी ही देर मे यहाँ पहुचेगा.. लेकिन लोगों की जानकारी के हिसाब से यहा कोई रमेश नाम का आदमी किराए से रहता है..."वह पोलीस बोला.

"वह आए बराबर उसे पहले मुझ से मिलने के लिए कह दो... फ़ौरेंसिक लोगों को बुलाओ.. और इस अपार्टमेंट मे जब तक सारे सबूत इकट्ठा किए नही जाते तब तक और कोई भी ना आ पाए इसका ख़याल रखो..." राज ने निर्देश दिए..

थोड़ी देर मे बाहर जमा हुई लोगों की भीड़ मे मकान मालिक आगया और मकान मालिक आया... मकान मालिक आया ऐसी खुसुर फुसुर शुरू हो गयी.

"कौन है मकान मालिक...?" राज ने उस भीड़की तरफ जाते हुए पूछा.

एक अधेड़ उम्र आदमी सामने आकर डरते हुए दबे हुए स्वर मे बोला, "में हूँ..."

"तो आपके पास इस आपके किरायेदार का अतापता वाईगेरह सारी जानकारी होगी ही...?" राज ने उससे पूछा...

"हाँ है..." मकान मालिक एक कागज का टुकड़ा राज को थमाते हुए बोला.

राज ने वह काग़ज़ का टुकड़ा लिया. उसपर राजेश का अड्रेस, फोन जैसी सारी जानकारी मकान मालिक ने लिख कर दी थी.

"लेकिन यह सब देखते हुए यह जानकारी जाली और झुटि होगी ऐसा लगता है..." मकान मालिक डरते हुए बोला...

"मतलब...? आपने उसकी सारी जानकारी जाँच कर नही देखी थी...?" राज ने पूछा.

"नही... मतलब.. वह में करने ही वाला था..." मकान मालिक फिर से डरते हुए बोला...

इंस्पेक्टर राज ने अपने बज रहे मोबाइल का डिसप्ले देखा. फोन उसके ही पार्ट्नर का था. एक बटन दबाकर उसने वह अटेंड किया,

"यस..."

"सर हमे मीनू का दोस्त शरद का पता चल चुका है..." उधर से उसके पार्ट्नर का आवाज़ आई.

"गुड वेरी गुड..." राज खुशी होकर बोला.

राज के पार्ट्नर ने उसे एक अड्रेस दिया और तुरंत उधर आने के लिए कहा.

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.... शरद बेड पर पड़ा हुआ था और ज़ोर ज़ोर से खांस रहा था. उसकी दाढ़ी बढ़ चुकी थी और सर के बढ़े हुए बाल भी बिखरे हुए दिख रहे थे. ना जाने कितने दिनो से वह बेड पर इसी हाल मे पड़ा हुआ था. उसका घर से बाहर आना जाना भी बंद हो चुका था.

जब उसकी प्रिय मीनू का बलात्कार और कत्ल हो गया था तब वह इतना निराश और हटबल हो चुका था कि उसे आगे क्या करे कुछ सूझ नही रहा था. उन गुनहगारों को सज़ा हो ऐसा उसे तहे दिल से लग रहा था. लेकिन कैसे वह कुछ समझ नही पा रहा था. ऐसे मायूस और हटबल अवस्था मे वह शहर मे रात के अंधेरे मे पागलों की तरफ सिर्फ़ घूमता रहता तो कभी शाम को बीच पर जाकर डूबते सूरज को लगातार निहारती रहता. शायद उसे अपनी खुद की जिंदगी भी कुछ उस डूबते सूरज की तरह लगती हो. दिन रात पागलों की तरह इधर उधर भटकना और फिर थकने के बाद बार मे जाकर मदिरा मे डूब जाना. ऐसे उसकी दिनचर्या रहती थी. लेकिन ऐसा कितने दिन तक चलनेवाला था. आगे आगे तो उसका घूमना फिरना भी कम होकर पीना बढ़ गया. इतना बढ़ गया कि अब उसकी तबीयत खराब होकर वह ना जाने कितने दिन से बेड पर पड़ा हुआ था. बिस्तर पर पड़ी अवस्था मे भी उसका पीना जारी था. थोड़ी भी नशा उतर जाता तो उसे वह भयानक बलात्कार और कत्ल का द्रिश्य याद आता था और वह फिर से पीने लगता था.

अचानक उसे फिर से खाँसी का दौर पड़ गया. वह उठने का प्रयास करने लगा. लेकिन वह इतना क्षीण और कमजोर हो गया था कि वह उठ भी नही पा रहा था. कैसे तो दीवार का सहारा लेकर वह बेड से उठ खड़ा हुआ. लेकिन अपना संतुलन खोकर नीचे ज़मीन पर गिर गया. उसका खांस ना लगातार शुरू था. खाँसते खाँसते उसे एक बड़ा दौरा पड़ गया और उसके मुँह से खून आने लगा. उसने मुँह को हाथ लगाकर देखा. खून दिखते ही वह घबरा गया.

उठकर डॉक्टर के पास जाना चाहिए....

लेकिन वह उठ भी नही पा रहा था....

चिल्लाकर लोगों को जमा करना चाहिए...

लेकिन उसमे उतनी चिल्लाने की भी शक्ति बाकी नही थी...

क्या किया शरद...?

आख़िर उसने एक निर्णय मन ही मन पक्का किया और वह उसके हाथ मे लगे खून से फर्शपर कुछ लिखने लगा...

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क्रमशः……………………
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09-02-2018, 12:15 PM,
#32
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--14

गतान्क से आगे………………………

एक आदमी फोन पर बोल रहा था, "हेलो पोलीस स्टेशन...?"

उधर से जवाब आने के लिए वह बीच मे रुक गया.

"साहब... हमारे पड़ोस मे कोई एक आदमी रहता है... मतलब रहता था.. उसे हमने लगभग 7-8 दिन से देखा नही... उसका दरवाज़ा भी अंदर से बंद है.. हमने उसका दरवाज़ा नॉक करके भी देखा... लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही है... उसके घर से लगातार किसी चीज़ के सड़ने की दुर्गंध आ रही है.. मुझे लगता है आप लोगों मे से कोई यहाँ आकर देखे तो अच्छा होगा..."

फिर से वह उधर के जवाब के लिए रुका और "थॅंक यू... " कहकर उसने फोन नीचे रख दिया.

पोलीस की एक टीम इंस्पेक्टर निंस के नेत्रुत्व मे उस आदमी ने फोनेपर दिए पते पर बहुत जल्दी पहुँच गये. वह आदमी उनकी राह ही देख रहा था. वे वहाँ पहुँचते ही वह आदमी उनको एक फ्लॅट के बंद दरवाजे के सामने ले गया. वहाँ पहुँचते ही एक किसी सड़ी हुए चीज़ की दुर्गंध उनके नाक मे घुस गयी. उन्होने तुरंत रुमाल निकालकर अपनी अपनी नाक को ढँक लिया. उन्होने उस दुर्गंध के स्रोत को प्कड़ने की कोशिश की तो वह दुर्गंध उस घर से ही आ रही थी. उन्होने दरवाज़ा धकेल कर देखा. दरवाज़ा शायद अंदर से बंद था. उन्होने दरवाज़े को नॉक कर देखा. अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही थी. जिस आदमी ने फोन पर पोलीस को इत्तला किया था वह बार बार वही हक़ीकत उन्हे सुना रहा था. आख़िर पोलीस ने दरवाज़ा तोड़ दिया. दरवाज़ा तोड़ने के बाद तो वह सड़ी हुई दुर्गंध और ही तीव्रता से आने लगी. मुँह पर और नाक पर कस कर रुमाल लगाकर वे धीरे धीरे अंदर जाने लगे.

पोलीस की टीम जब बेडरूम मे पहुँच गयी तब उन्हे सड़ने की प्रक्रिया शुरू हुए शरद का मृत शरीर ज़मीन पर पड़ा हुआ मिला. नाक को रुमाल से कसकर ढँकते हुए वे उस डेड बॉडी के पास गये. वहाँ ज़मीन पर मरने के पहले उसके खून से कुछ लिखा हुआ दिखाई दे रहा था. उनमे से एक पोलीस ने वह नज़दीक जाकर पढ़ा,

"मीनू... मुझे माफ़ कर देना.. में तुम्हे बचा नही पाया... लेकिन चिंता मत करो... उन बदमाशों का... एक एक करके बदला लिए बिना मुझे शांति नही मिलेगी.."

राज और उसका पार्ट्नर जिस पोलीस अधिकारी ने शरद की मौत का केस हॅंडल किया था उस अधिकारी, इंस्पेक्टर निंस के सामने बैठे थे.

इंस्पेक्टर निंस शरद के बारे मे जानकारी देने लगा, "मदिरा के ज़्यादा सेवन की वजह से उसे ब्रोकईटिज़ होकर वह मर गया..."

"लेकिन आपको उसकी पहचान कैसे मिली...?" राज ने पूछा.

"जिस कमरे मे उसका मृत शरीर मिला उस कमरे कुछ उसके कागजात भी मिले... उससे हमे उसकी पहचान हो गयी... और उसका एक फोटो इंस्पेक्टर धरम ने जैसे सारे पोलीस थानोपर भेजा था वैसा हमारे पास भी भेजा था..."

निंस ने अपने ड्रॉयर से शरद का फोटो निकाल कर राज के सामने रखा.

"इस फोटो की वजह से और इंस्पेक्टर धरम ने भेजी जानकारी के वजह से हमे उसका अड्रेस और घर वाईगेरह मिलने मे मदद हो गयी..." निंस ने कहा.

"आपने उसके घर के लोगो से संपर्क किया था क्या...?" राज ने पूछा...

"हाँ... उनके घर के लोगो को भी यहाँ बुलाया था... उन्होने भी बॉडी अपने कब्ज़े मे लेने से पहले शरद की पहचान कर ली थी और पोस्टमोर्टिम मे भी उसकी पहचान शरद ऐसी ही तय की गयी है..." निंस ने कहा.

"वह कब मरा होगा... मतलब शव मिलने से कितने दिन पहले..." राज ने पूछा.

"पोस्टमोर्टिम के अनुसार मार्च महीने के शुरुआत के दो तीन दिन मे उसकी मौत हुई होगी..." वह अधिकारी बोला...

"अर्ली...मार्च... मतलब पहला खून होने के बहुत पहले..." राज ने सोचकर कहा.

"इसका मतलब हम जैसे समझ रहे थे वैसे वह क़ातिल नही है..."राज ने आगे कहा.

"हाँ वैसा लग तो रहा है..." निंस ने कहा.

काफ़ी समय शांति से गुजर गया.

मतलब मुझे जो शक था वह सच होने जा रहा है...

राज को मीनू का दोस्त शरद का अता पता मिलने की खबर उसके पार्ट्नर से फोनेपर मिलते ही वह बहुत खुश हो गया था...

उसे लगा था चलो एक बार की बला तो टली... जो केस सॉल्व हो गया... और क़ातिल थोड़ी ही देर मे उनके कब्ज़े मे आनेवाला है...

लेकिन यहाँ आकर देखता हूँ तो केस ने और एक अलग ही मोड़ लिया था...

शरद के मरने का समय देखा जाय तो उसका इन खुनो से संभंध होने की कोई गुंजाइश नही थी...

"शरद अगर क़ातिल नही है.. तो फिर क़ातिल कौन होगा...?"राज ने जैसे ही खुद से ही सवाल किया.

कमरे की तीनो लोग सिर्फ़ एक दूसरे की तरफ देखने लगे.... क्योंकि उस सवाल का जवाब उन तीनो के पास नही था.

इतने मे निंस ने उसके ड्रॉयर से और एक तस्वीर निकाल कर राज के सामने रख दी.

राज ने वह तस्वीर उठाई और वह उस तस्वीर की तरफ एकटक देखने लगा. उस तस्वीर मे शरद ज़मीन पर पड़ा हुआ दिख रहा था और उसके सामने फर्शपर खून से बड़े अक्षरों मे लिखा हुआ था,

"मीनू मुझे माफ़ करना... में तुम्हे बचा नही सका... लेकिन चिंता मत करो में एक एक को चुनकर मारकर बदला लूँगा..."

राज को एक अंदाज़ा हो गया था कि यह तस्वीर दिखा कर निंस उसे क्या कहना चाहता है...

"में सुन सुनकर थक गया हूँ कि इस क़त्ल मे किसी आदमी का हाथ ना होकर किसी रूहानी ताक़त का हाथ हो सकता है.. यह तस्वीर दिखा कर कहीं तुम्हे भी तो यही कहना नही है...?" राज ने निंस को पूछा.

निंस ने राज और उसके पार्ट्नर के चेहरे की तरफ देखा.

"नही मुझे ऐसा कुछ कहना नही है... सिर्फ़ घट रही घटनाए और शरद का फर्शपर लिखा हुआ मेसेज दोनो कैसे एकदम मिलते जुलते है... इसी ओर मुझे तुम्हारा ध्यान खींचना है..."निंस ने शब्दो को तोल्मोल्कर इस्तेमाल करते हुए कहा.

जैल मे चारो और अंधेरा फैला हुआ था. अंकित एक कोठरी मे गुम्सुम सा किसी सोच मे डूबा हुआ एक कोने मे बैठा हुआ था. अचानक वह उठ खड़ा हुआ और अपने पहने हुए कपड़े पागलों की तरह फाड़ने लगा. कपड़े फाड़ने के बाद उसने कोठरी मे इधर उधर पड़े फटे कपड़ेके टुकड़े जमा किए. उस टुकड़ोंका वह फिर से एक गुड्डा बनाने लगा. गुड्डा तैय्यार होने के बाद उसके चेहरे पर एक रहस्य भरी, डरावनी हँसी फैल गयी.

“मिस्टर. शिकेन्दर… अब तुम्हारी बारी है… समझे..” वह पागलो की तरह उस गुड्डे से बोलने लगा.

वहाँ ड्यूटी पर तैनात पोलीस वाला काफ़ी समय से अंकित की हर्कतो पर बराबर नज़र रखे हुए था. जैसे ही उसने अंकित की बातचीत सुनी वह तेज़ी से उठकर फोन के पास गया – अपने वरिष्ट अधिकारी को इत्तला करने के लिए..

शिकेन्दर अपने घर मे, हॉल मे पीते हुए बैठा था. साथ ही वह चेहरे पर काफ़ी सारी चिंताए लेकर एक के बाद एक लगातार सिगरेट पिए जा रहा था. थोड़ी देर से वह उठ खड़ा हुआ और सोचते हुए कमरे मे धीरे धीरे चहल कदमी करने लगा. उसकी चाल से वह काफ़ी थका हुआ मालूम पड़ रहा था, या फिर मदिरा के चढ़े हुए नशे से वह वैसा लग रहा होगा. थोड़ी देर चहलकदमी करने के बाद वह फिर से कुरसीपर बैठ गया और अपनीही सोच मे डूब गया. अचानक उसे घर मे किसी की उपस्थितिका एहसास हुआ. कोई किचन मे बर्तनोसे छेड़खानी कर रहा हो ऐसा लग रहा था.

किचन मे इस वक्त कौन होगा…?

सब दरवाज़े खिड़कियाँ तो बंद है…

क्या यह भी कोई आभास है…?
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09-02-2018, 12:15 PM,
#33
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
अचानक एक बड़ा बर्तन फर्शपर गिरने की आवाज़ आई. शिकेन्दर एकदम उठकर खड़ा हो गया.

क्या हुआ होगा…?

उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.

में फालतू ही घबरा रहा हूँ… कोई बिल्ली वाईगेरह होगी…

उसने खुद को समझाने की खोषिश की और धीरे धीरे चलते हुए, कोई आहट आती है क्या यह सुनते हुए, वह किचन मे जाने लगा.

किचन से अब आवाज़े आना बंद हुआ था. कुछ आहट भी नही थी. वह किचन के दरवाजे के पास गया और धीरे से किचन का दरवाज़ा तिरछा करते हुए उसने अंदर झाँककर देखा.

किचन मे तो कोई नही दिख रहा है.

वह किचन मे घुस गया. अंदर जाने के बाद उसने इधर उधर नज़र दौड़ा कर देखा, पूरे किचन का एक राउंड लगाया..

कहीं…? कुछ तो नही…

या मुझे सिर्फ़ आभास हो रहे है…

लेकिन ज़मीन पर एक खाली बर्तन पड़ा हुआ था.

वह भ्रम की स्थिति मे किचन से वापस जाने के लिए मुडाही था कि उसे अब हॉल से कुछ टूटने की आवाज़ आ गयी. शिकेन्दर चौंक गया और दौड़ते हुए हॉल मे चला गया.

हॉल मे उसे उसका व्हिस्की का ग्लास नीचे ज़मीन पर गिरकर टूटा हुआ मिला. व्हिस्की नीचे गिर कर इधर उधर फैली हुई थी. उसने आसपास नज़र दौड़ाई. कोई नही था.

शिकेन्दर का नशा पूरी तरह उतर चुका था.

साला कोई तो नही…

यह क्या हो रहा है मुझे…?

ग्लास नीचे कैसे गिर गया…

वह सोचते हुए फिर से कुरसीपर बैठ गया… अब उसने पूरी की पूरी बॉटल ही मुँह को लगाई थी.

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राज सुबह सुबह हॉल मे बैठकर चाय पीते हुए टीवी देख रहा था. एक एक घूँट धीरे धीरे पीते हुए मानो वह चाय का आनंद ले रहा हो. देखने के लिए तो वह टीवी की तरफ देख रहा था लेकिन उसके दिमाग़ मे कुछ अलग ही विचारों का तूफान मचा हुआ था. शायद वह उस क़ातिल के केस के बारे मे ही सोच रहा होगा. जैसे जैसे उसके विचार दौड़ रहे थे वैसे वैसे वह रिमोट के बटन बदल कर तेज़ी से चॅनेल्स बदल रहा था. आख़िर वह कार्टून चॅनेल पर आकर रुका. थोड़ी देर कार्टून चॅनेल देखकर शायद उसने खुदको लगर टेन्षन्स, चिंता इससे हटाकर फिर से ताज़ा किया हो. फिर से उसने चॅनेल बदला और अब वह डिस्कवरी चॅनेल देखने लगा. शायद डिस्कवरी पर चल रहे प्रोग्राम मे उसे इंटेरेस्ट आने लगा था. उसने रिमोट अपने हाथ से बगल मे रख दिया और वह प्रोग्राम बड़े ध्यान देकर देखने लगा.

डिस्कवरी चॅनेल पर चल रहे प्रोग्राम मे एक चूहा दिखाया जाने लगा. उस चूहे के गले मे एक छोटा पत्ता दिख रहा था. और सिर पर एकदम छोटे छोटे वाइर्स लगाए दिख रहे थे. फिर टीवी आंकर बोलने लगा –

“जब कोई जीवजंतु कोई क्रिया करता है उसे वह क्रिया करनेके लिए उसके दिमाग़ को एक सिग्नल जाता है. अगर हम एकदम वैसाही सिग्नल उसके दिमाग़ को बाहर से देने मे कामयाब हो गये तो हम उस जीवजंतु को अपने कब्ज़े मे कर सकते है और उसे बाहर से सब सिग्नल्स देकर उससे हमे जो चाहिए वह क्रिया करवा के ले सकते है..”

फिर टीवी पर एक कंप्यूटर दिखने लगा, कंप्यूटर के सामने एक साइंटिस्ट बैठा हुआ था.

राज टीवी पर चल रहा प्रोग्राम एकदम ध्यान लगाकर देखने लगा.

वह कंप्यूटर के सामने बैठा साइंटिस्ट बोलने लगा –

“इस कंप्यूटर के द्वारा हम अलग अलग सिग्नल्स इस चिपपर, जो कि इस चूहे के गले मे लगे पट्टे मे बँधी हुई है, उसपर ट्रॅनस्मिट कर सकते है, इस चिप के द्वारा यह सिंगल चूहे के दिमाग़ तक पहुचेंगे, और फिर जो जो सिग्नल्स हम उसे इस कंप्यूटर के द्वारा देंगे उसके हिसाब से वह चूहा अलग अलग कार्य करने लगेगा…”

फिर टीवी पर वह चूहा एकदम नज़दीक से दिखाया गया. एक छोटी से चिप उसके गले मे पट्टा बाँध कर उसमे लगाई गयी थी.

राज टीवी पर चल रहा प्रोग्राम देख रहा था. उसके चेहरे पर आस्चर्य के भाव दिख रहे थे.

टीवी पर वह साइंटिस्ट आगे बोलने लगा –

“इस प्रकार हम अलग अलग तरह के आदेश इस सिग्नल ट्रॅन्समिशन के द्वारा उस चूहे को दे सकते है. अब फिलहाल हम कुछ दो चार आदेश ही उसे देने मे कामयाब हुए है…”

फिर कंप्यूटर के मॉनीटौर पर चल रहे सॉफ्टवेर मे उस साइंटिस्ट ने माउस की सहायता से ‘राइट’ बटन दबाया और क्या आस्चर्य वह चूहा राइट की तरफ मुड़कर दौड़ने लगा.

कंप्यूटर पर उस साइंटिस्ट ने ‘स्टॉप’ यह बटन दबाया और वह चूहा एकदम दौड़ते हुए रुक गया.

फिर उसने ‘लेफ्ट’ बटन दबाया और वह चूहा बाई तरफ मुड़कर दौड़ने लगा.

आगे उसने ‘जंप’ यह बटन दबाया और उस चूहे ने दौड़ते हुए छलाँग लगाई.

फिर से ‘स्टॉप’ बटन दबाया और वह चूहा एक खाने के जिंनस के सामने पहुँच गया था वही रुक गया.

साइंटिस्ट ने ‘ईट’ बटन दबाया और वह चूहा उसके सामने रखा हुआ खाने का जिंनस खाने लगा.

फिर से उसने ‘स्टॉप’ बटन दबाया और उस चूहेने खाना बंद किया.

अब साइंटिस्ट ने ‘अटॅक’ बटन दबाया और वह चूहा उसके सामने रखे हुए खाने के जिंनस ना खाते हुए उसके तोड़ तोड़कर टुकड़े करने लगा.

यह सब देखते हुए अचानक राज के दिमाग़ मे एक विचार कौंध गया.

उसे एक एक घटना याद आने लगी…

… दो पोलीस मेंबर की टीम अशोक के घर की सर्क्यूट टीवी पर जब निगरानी कर रहे थे तब एक बिल्ली ने सर्क्यूट ट्रॅनस्मिट यूनिट पर छलाँग लगाई थी और उसकी वजह से अशोक के बेडरूम की सब हरकते टीवी पर दिखना बंद हुआ था. और जब तक वो दोनो बेडरूम मे पहुँचते नही तब तक क़त्ल हो चुक्का था.

राज अपनी सोच मे डूबा हुआ टीवी के सामने से उठ गया. उसे अगला प्रसंग याद आने लगा….

… जब राज और उसकी टीम इन्वेस्टिगेशन के लिए अशोक के बेडरूम मे गये थे और इन्वेस्टिगेशन करते वक्त सामने बेड के नीचे झुक कर देखा था. तब उसे बेड के नीचे दो चमकती हुई आँखें दिखाई दी थी.

जब वह आँखो ने धीरे धीरे उसकी तरफ आकर अचानक हमला किया जैसे उसपर झपट पड़ी थी, उसने झट से वहाँ से हटकर अपना बचाव किया था और बाद मे देखा तो गले मे काला पट्टा पहनी हुई काली बिल्ली बेड के नीचे से बाहर आकर दरवाजे से बेडरूम के बाहर दौड़कर जाते हुए दिखाई दी थी.

अब राज के दिमाग़ मे एक एक गुत्थी एकदम सॉफ सुलझ रही थी.

अब मुझे समय गँवाना नही चाहिए…

मुझे जो कुछ भी करना है जल्दी करना चाहिए…

सोचते हुए राज अगली कार्यवाही के लिए तेज़ी से घर के बाहर निकल पड़ा.

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क्रमशः……………………
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09-02-2018, 12:15 PM,
#34
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--15

गतान्क से आगे………………………

राज कान्फरेन्स रूम मे पोडियम पर डेस्क के पीछे खड़ा था, उसके सामने शिकेन्दर, दूसरे पोलीस अधिकारी और उसका पार्ट्नर बैठा हुआ था.

“अब मुझे पता चल चुक्का है कि क़ातिल सारे क़त्ल कैसे करता होगा…” राज ने एक पोज़ लिया और चारो तरफ अपनी नज़र दौड़ाते हुए वह बोलने लगा –

“इसलिए मैने एक प्लान बनाया है.. जिससे हमे क़ातिल को तो पकड़ना है ही साथ ही हमे क़ातिल का अगला शिकार शिकेन्दर का रक्षण करना है.. अब इस प्लान से मुझे नही लगता है कि इस बार भी क़ातिल अपने शिकंजे से बच पाएगा..” राज आत्मविश्वास के साथ बोल रहा था.

“पिछले बार भी आपने ऐसा ही कहा था और फिर भी क़ातिल अशोक का क़त्ल करने मे कामयाब हुआ…” सिकेन्दर ने कटुता से कहा.

“मिस्टर. शिकेन्दर मुझे लगता है आपने पहले मेरा प्लान सुनना चाहिए और बाद मे उसपर टिप्पणी करनी चाहिए…” राज भी उसे वैसाही जवाब देते हुए बोला.

राज ने प्रोजेक्टर ऑन किया, सामने स्क्रीनपर एक आकृति दिखने लगी.

“अब तक जो भी क़त्ल हुए है उसमे क़ातिल एक बिल्ली का इस्तेमाल कर रहा होगा ऐसा लग रहा है… मतलब मुझे वैसा यकीन है…” राज ने कहा.

राज ने फिर से अपने हाथ मे पकड़े रिमोट का एक बटन दबाया. स्क्रीन पर एक बिल्ली की तस्वीर और एक आदमी कंप्यूटर पर काम कर रहा है ऐसी तस्वीर दिखने लगी.

“इसके पहले हुए क़त्ल के इन्वेस्टिगेशन मे मिले कुछ तथ्योंसे में इस नतीजेपर पहुँचा हूँ कि क़त्ल करने का सिर्फ़ यही एक तरीका हो सकता है… जिसके अनुसार क़ातिल यहाँ कंप्यूटर पर बैठकर बिल्ली को सारे आदेश देता है… और वे सब आदेश वाइयरलेस टेक्नालजी के तहत यहाँ इस बिल्ली तक भेजे जाते है.. यह जो बेल्ट बिल्ली के गर्दन मे दिख रहा है… उसमे एक चिप है, जिसमे रिसीवर फिट किया हुआ है.. वे सारे सिग्नल्स इस रिसीवर के द्वारा रिसीव किए जाते है… बाद मे वे सिग्नल्स बिल्ली के गले मे पहने पट्टे से बिल्ली के दिमाग़ तक पहुँचाए जाते है… और उन सब सिग्नल्स के द्वारा मिले आदेशो को अमल मे लाकर वह बिल्ली अपने शिकार पर हमला करती है.. और अबतक हुए सारे क़त्ल इसी तरीके का इस्तेमाल कर के हुए होंगे यह में दावे के साथ कह सकता हूँ…”

राज ने फिर से अपने हाथ मे रखे रिमोट का बटन दबाया.

सामने रखा स्क्रीन ब्लॅंक हो गया.

“यह हो गया क़त्ल करने का तरीका और अब अपने प्लान के बारे मे …” राज एक सांस लेकर थोड़ी देर रुक गया, उसने अपने हाथ से रिमोट बाजू रख दिया.

“अपना प्लान मैने दो हिस्सो मे विभागित किया है…” सामने बैठ लोगो की प्रतिक्रिया देखते हुए राज आगे बोलने लगा,” अपने प्लान का पहला हिस्सा है उस बिल्ली को डिटेक्ट कर उसे सिग्नल्स कहाँ से आ रहे है है यह ट्रेस करना… इस प्रकार हम खूनी का अतापता ढूँढ पाएँगे…” राज फिर से एक क्षण रुक कर आगे बोला, “ और दूसरा प्लान का दूसरा हिस्सा यह है कि बिल्ली को मिलनेवाले सारे सिग्नल्स रोकना ताकि हम शिकेन्दर का रक्षण कर सके…”
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09-02-2018, 12:15 PM,
#35
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
राज ने फिर से अपने बगल मे रखा रिमोट उठाकर उसका एक बटन दबाया. सामने स्क्रीन पर एक मकान का नक्शा दिखने लगा.

“यह शिकेन्दर के घर का नक्शा… इसे भी हमे दो हिस्सो मे बाँटना है…” राज ने नक्शे मे दो एक छोटा और दूसरा बड़ा ऐसी दो संकेंडरी सर्कल्स निकाले हुए थे वह लेस्सर बीम से निर्देशित किए.

“जिस तरह से इस आकृति मे बताया गया है.. यह जो पहला बाहर का बड़ा सर्कल है वह पहला हिस्सा और यह जो अंदर का छोटा सर्कल है वह दूसरा हिस्सा…” राज ने दोनो सर्कल पर एक के बाद एक लेस्सर बीम डालते हुए कहा.

“ जब वह बिल्ली बाहर के हिस्से मे पहुचेगी, हमे वह बिल्ली घर मे आने का संकेत मिलेगा क्योंकि वहाँ हमने सिग्नल ट्रॅकर्स और सिग्नल रिसीवर डिटेक्टर्स लगाए हुए है…” राज अपने हाथ मे रखे रिमोट का लेस्सर बीम बंद करते हुए कहा.

“सिग्नल ट्रॅकर्स से हमे उन आनेवाले सिग्नल्स का स्रोत मिलेगा… और एकबार हमे उन सिग्नल्स का स्रोत मिलने के बाद उस क़ातिल को लोकेट कर हम राइड हॅंडेड पकड़ सकते है…” राज ने लेस्सर बीम शुरू कर बाहर के सर्कल की तरफ निर्देश करते हुए कहा.

“जब वह बिल्ली दूसरे अंदर के छोटे सर्कल मे पहुचेगी, वहाँ रखे हुए सिग्नल ब्लॉकर्स उसे क़ातिल की तरफ से मिलने वाले सारे सिग्नल्स और आदेश ब्लॉक करेंगे.. मतलब बाद मे उसका उस बिल्ली पर कोई नियंत्रण नही होगा…” राज लेस्सर बीम अंदर के सर्कल की तरफ निर्देशित करते हुए बोला.

राज ने अपने पूरा प्लान सब को समझाया और बोर्डरूम मे बैठे सब लोगों पर अपनी नज़र घुमाई… सामने बैठे हुए सारे ऑफर्स और पोलीस स्टाफ राज के इस प्लान के बारे मे संतुष्ट लग रहे थे.

“ किसी को कोई शंका…?” राज ने सामने बैठे हुए लोगों को, ख़ासकर सिकेन्दर की तरफ देखते हुए कहा.

“देखते है..” सिकेन्दर ने कंधे उचका कर कहा, वह इस प्लान के बारे मे उतना संतुष्ट नही लग रहा था.

सच कहो तो वह अंदर से इतना टूट चुका था कि वह कोई भी प्लान समझकर लेने के मन्स्थिति मे नही था और वह लाजमी भी था क्योंकि उसे क़ातिल के लिस्ट मे अपना अगला नंबर स्पष्ट रूप से दिख रहा था.

“तो चलो अब इस प्लान के हिसाब से अपने अपने काम पर लग जाओ… मैने पवन के पास किसे क्या क्या करना है इसकी लिस्ट दी हुई है.. इसे कोई शंका हो तो मुझे पूछिएगा…”

राज अपने टीम की तरफ देखते हुए बोला.

-------------------------------

शिकेन्दर के मकान के बगल मे एक गेस्ट रूम था. उस रूम मे दो पोलीस ऑफिसर्स टीवी पर सिकेन्दर के बेडरूम की निगरानी कर रहे थे.

अचानक कंट्रोल बोर्ड पर ‘बीप’ बजी.

“आए देखो तो… कुछ हो रहा है…” एक ऑफीसर ने का.

एक मॉनीटौर पर कुछ हरकत दिखाई दी. एक काली बिल्ली चलते हुए दिखाई देने लगी.

“देखो फिर से बिल्ली…” दूसरे ऑफीसर ने कहा.

“देखो उसके गले मे पट्टा भी बँधा हुआ है…” पहले ऑफीसर ने कहा.

“मतलब… जैसे हमारे साहब कहते है वैसे उस पट्टे मे रिसीवर है शायद…” दूसरे ऑफीसर ने कहा.

“और वह रिसीवर डिटेक्ट हुआ है शायद… उसकी ही तो बीप बजी है…” पहले ऑफीसर ने कहा.

उनमे से एक ने वाइयरलेस उठाया और वह वाइयरलेस पर बोलने लगा.

“सर… गले मे पट्टा पहने हुई बिल्ली घर मे आई है…” उस ऑफीसर ने उसके बॉस को जानकारी दी.

“गुड… अब वह सिग्नल्स कहाँ से आ रहे है यह ट्रेस करने की कोशिश करो…” राज ने उधर से उन्हे निर्देश दिया.

उतने मे उन्होने घर मे सिग्नल्स ट्रेस की जो यंत्रणा बिठाई थी उसने भी कंप्यूटर पर सिग्नल ट्रेस होने का संकेत दर्शाया.

“सर सिंगल का स्रोत भी मिल चुका है…” एक ऑफीसर ने कंप्यूटर की तरफ देखते हुए तुरंत राज को जानकारी दी.

“ग्रेट जॉब.. मैं निकला ही हूँ… लगभग 5 मिनिट मे पहुँच जाउन्गा…” राज ने कहा और उधर से फोन कट होगया.

दो ऑफीसर और राज सामने रखे सर्क्यूट टीवी की तरफ देख रहे थे. उस टीवी पर बिल्ली की सारी हरकते दिख रही थी.

कंप्यूटर के मॉनिटर पर अब शहर का नक्शा दिखने लगा. उस नक्शे मे एक जगह एक लाल स्पॉट लगातार चमक रहा था.
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09-02-2018, 12:15 PM,
#36
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
एक ऑफीसर स्पॉट की तरफ निर्देश करते हुए बोला, “ उस बिल्ली को सब सिग्नल्स और निर्देश ये यहाँ से आ रहे है…”

“जहाँ से सिग्नल आ रहे है वह जगह यहाँ से कितनी दूर होगी…” राज ने पूछा.

दूसरे ऑफीसर ने कहा, “सर, वह जगह अपने यहाँ से पूरब की तरफ लगभग 5 किमी होगी…”

“हाँ.. हो सकता है एक मीटर इधर या एक मीटर उधर…” दूसरा ऑफीसर बीच मे ही बोल पड़ा.

राज शिकेन्दर के मकान के सामने खड़ा होकर वाइयरलेस पर अपनी पूरी टीम को आदेश और निर्देश दे रहा था,

“मुझे लगता है सब को अपनी अपनी पोज़िशन अच्छी तरह समझ मे आई है.. अपने पास अब सिर्फ़ यही एक मौका है. अब किसी भी हाल मे क़ातिल अपने शिकंजे से बचकर निकलना नही चाहिए… तो जिस जिसको जिस जिस जगह पर तैनात किया गया है वे अपनी जगह मत छोड़िए और बिना वजह अंदर बाहर करने की भी ज़रूरत नही है.. इसलिए ही मैने अंदर की और बाहर की ज़िम्मेवारी अलग अलग सौंप दी है… और बाकी बचे हुए तुरंत यहाँ मकान के सामने जीप के पास इकट्ठा हो जाओ…”

लगभग 15-20 टीम मेंबर्ज़ जीप के पास जमा हो गये. वहाँ से निकल ने से पहले राज ने उनको संक्षेप मे ब्रेफ किया.

“जहाँ से क़ातिल ऑपरेट कर रहा है वह जगह हमे मिल चुकी है.. इलसीए मैने अपनी टीम को दो हिस्सो मे बाँट दिया है… 7 लोग पहले ही यहाँ शिकेन्दर का रक्षण करने के लिए तैनात किए गये है.. और बाकी बचे 18 मतलब आप और मे… हमे ऑपरेशन का दूसरा हिस्सा यानी कि क़ातिल को पकड़ ने का काम करना है..”

राज अब जल्दी जल्दी आपनी गाड़ी की तरफ जाने लगा. गाड़ी की तरफ जाते जाते उसने सबको आदेश दिया, “ अब जल्द से जल्द अपनी अपनी गाड़ी मे बैठो… हमारे पहुँचने वह क़ातिल वहाँ से खिसकना नही चाहिए…”

सब लोग जल्दी जल्दी अपने अपने गाड़ी मे बैठ गये और सब गाडिया धुँआ उड़ाती हुई वहाँ से तेज़ी से निकल पड़ी – खूनी जहाँ से ऑपरेट कर रहा था वहाँ. सब गाड़ियाँ जब वहाँ से चली गयी तब वहाँ उड़ी हुई धूल का बादल धीरे धीरे नीचे आने लगा था.

शिकेन्दर के मकान के बगल मे एक कॅबिन था और उस कॅबिन मे दो कॉन्स्टेबल्स कंप्यूटर के सामने बैठे हुए थे. उनमे से एक कंप्यूटर के की बोर्ड की बटन्स दबाकर कुछ कर रहा था.

अचानक कंट्रोल बोर्ड पर फिर से ‘बीप’ ‘बीप’ ऐसी आवाज़ आने लगी. दोनो ने भी पहले कंट्रोल बोर्ड की तरफ और फिर टीवी स्क्रीन पर देखा, बिल्ली बेडरूम के पास पहुँची हुई टीवी स्क्रीन पर दिख रही थी.

“मुझे लगता है बिल्ली सिग्नल ब्लॉकिंग एरिया मे आ गयी है…” एक कॉन्स्टेबल मानो खुद से ही बोला.

अब ‘बीप’ ‘बीप’ आवाज़ और ज़ोर से आने लगी.

“देख… देख… बिल्ली सिंगल ब्लॉककिन एरिया मे पहुँच गयी है…” एक कॉन्स्टेबल ने झट से वाइयरलेस उठाया और कंट्रोल पॅनल पर एक ब्लिंक हो रहे लाइट की तरफ इशारा करते हुए कहा.

“सर… बिल्ली अब सिग्नल ब्लॉकिंग के एरिया मे पहुँच गयी है…” एक ने राज को इन्फ़ौरम किया.

“अच्छा… अब उसपर अच्छी तरह से नज़र रखो…” उधर से राज का मेसेज आया.

“यस सर…” कॉन्स्टेबल ने कहा.

“में इधर क़ातिल के पीछे लगा हूँ और ध्यान रहे कि उधर की पूरी ज़िम्मेदारी तुम्हारी है…” राज ने उसे ताक़ीद दी.

“यस सर…” कॉन्स्टेबल ने कहा.

और उधर से राज ने फोन कट कर दिया.

“सिग्नल ब्लॉकर ने सब सिग्नल ब्लॉक किए है और अब उस क़ातिल का एक भी आदेश उस बिल्ली तक पहुचेगा नही” एक कॉन्स्टेबल मॉनिटर और टीवी की तरफ देखते हुए फिर से उत्तेजित होकर बोला.

टीवी मॉनिटर पर अब वह बिल्ली भ्रमित हुई दिख रही थी. वह कभी आगे जा रही थी तो कभी पीछे.. शायद उसे कहाँ जाना है कुछ समझ मे नही आ रहा हो.

अचानक उनके सामने रखे सर्क्यूट टीवी पर दिखाई दिया कि उस बिल्ली का किसी बॉम्ब की तरह एक बड़ा विस्फोट होकर बड़ा धमाका हुआ है.. इतना बड़ा कि उनकी कॅबिन भी काफ़ी दूर होते हुए भी थर्रा उठी…

कॅबिन मे रखा हुआ कंप्यूटर और सर्क्यूट टीवी बंद हो गया.

दोनो पुलिस वालो को भी यह अप्रत्याशित आघात था…. उनको यह कैसे हुआ कुछ समझ नही आ रहा था… वे गड़बड़ा कर इधर उधर दौड़ने लगे…

“यह अचानक क्या हुआ…?” एक कॉन्स्टेबल घबराकर बोला.

वह इतना घबराया हुआ था कि उसकी सांस फूल गयी थी.

“टेररिस्ट अटॅक तो नही…?” उस कॉन्स्टेबल ने अपनी सांसोपर नियंत्रण करने की कोशिश करते हुए बोला.

“बेवकूफ़ की तरह कुछ भी बको मत… देखा नही… उस बिल्ली का विस्फोट हो गया है..” दूसरे कॉन्स्टेबल ने कहा.

“चल जल्दी… उधर क्या हुआ है यह हमे देखना पड़ेगा…” दौड़ते हुए कॉन्स्टेबल ने कहा.

क्रमशः……………
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09-02-2018, 12:16 PM,
#37
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--16

गतान्क से आगे………………………

वे दोनो जब सिकेन्दर के बेडरूम मे पहुँच गये. उन्होने देखा कि विस्फोट की वजह से बेडरूम बेडरूम नही रहा था. वहाँ सिर्फ़ इंट.. पत्थर, सेमेंट का ढेर बना हुआ था और टूटा हुआ समान इधर उधर फैला हुआ था. उस ढेर मे उन्हे सिकेण्दर के शरीर का कुछ हिस्सा दिखाई दिया. दोनो कॉन्स्टेबल तुरंत वहाँ पहुच गये. उन्होने सिकेण्दर की बॉडी से समान हटाकर उसे ढेर से बाहर निकाला. एक ने उसकी नब्ज़ टटोली. लेकिन नब्ज़ बंद थी. उसकी जान शायद जब विस्फोट हुआ तब ही गयी होगी.

अब वो दोनो बेडरूम के घर के बाकी हिस्सों की तरफ रवाना हो गये. जहाँ जहाँ उनके साथी तैनात थे, उनको वे ढूँढ ने लगे. कुछ लोग जख्म से कराह रहे थे, वहाँ वे उनके मदद के लिए दौड़ पड़े.

इतनी गड़बड़ मे एक ने अपने जेब से मोबाइल निकाला और एक नंबर डाइयल किया.

-----------------------------------------------------------------------------------------------

इंस्पेक्टर राज और उसकी टीम की गाड़ियाँ तेज़ी से रास्ते पर दौड़ रही थी… क़ातिल का ठिकाना तो उन्हे पता चल चुका था लेकिन अब जल्द से जल्द वहाँ जाकर वह रफ्फु चक्कर होने से पहले उसे पकड़ना ज़रूरी था. गाड़ियों की गति के साथ राज का दिमाग़ भी दौड़ रहा था. वह मन ही मन सारी संभावनाए टटोलकर देख रहा था और हर स्थिति मे अपनी क्या स्ट्रॅटजी रहेगी यह तय कर रहा था. उतने मे उसके मोबाइल की बेल बजी. उसके विचारों की शृंखला टूट गयी.

उसने मोबाइल के डिसप्ले की तरफ देखा और झट से फोन अटेंड किया, “हाँ बोलो…”

“सर यहाँ एक सीरीयस प्राब्लम हो गया है…” उधर से उस कॉन्स्टेबल की आवाज़ आई.

‘सीरीयस प्राब्लम हो गया’ यह सुना और राज निराश होने लगा… उसके दिमाग़ मे तरह तरह के विचार आने लगे.

“क्या..?... क्या हुआ…?” राज ने उत्तेजित होकर पूछा.

वह अपनी निराशा को अपने उपर हावी होने देना नही चाहता था.

“सर उस बिल्ली का यहाँ किसी बॉम्ब की तरह विस्फोट हुआ है…” कॉन्स्टेबल ने जानकारी दी…

“क्या…? विस्फोट हुआ…?” राज के मुँह से आस्चर्य से निकला..

उसपर एक एक आघात हो रहे थे.

“लेकिन कैसे…?” राज ने आगे पूछा.

“सर उस बिल्ली के गले मे पहने पट्टे मे प्लास्टिक एक्सप्लोसिव लगाया होगा… मुझे लगता है कि सिग्नल ब्लॉक होते ही उसका विस्फोट हो जाय इस तरह उसे प्रोग्राम किया होगा, ताकि क़ातिल का शिकार किसी भी हाल मे उसके शिकंजे से ना छूटे…” कॉन्स्टेबल ने अपनी राय बयान की…

“शिकेन्दर कैसा है…? उसे कुछ हुआ तो नही…?” आख़िर इतना करने के बाद भी हम उसे बचा सके या नही यह जान ने की जल्दी राज को हुई थी.

“नही सर वह उस विस्फोट मे ही मर गया…” उधर से कॉन्स्टेबल ने कहा.

“शिट…?” राज के मुँह से गुस्से से निकल गया, “और अपने लोग…? वे कैसे है..?” राज ने आगे पूछा…

“दो लोग ज़ख्मी हो गये है.,. हम लोग उन्हे हॉस्पिटल मे ले जा रहे है…” कॉन्स्टेबल ने जानकारी दी.

“कोई सीरीयस तौर पर ज़ख्मी तो नही …” राज फिर से तसल्ली करने के लिए पूछा.

“नही सर… जख्म वैसे मामूली ही है…” उधर से आवाज़ आई.

“सुनो, उधर की पूरी ज़िम्मेदारी में तुम्हारे उपर सौंपता हूँ… हम लोग इधर जहाँ से सिग्नल आ रहे थे उसके आस पास ही है.. थोड़ी ही देर मे हम वहाँ पहुँच जाएँगे… उधर का तुम दोनो मिलकर अच्छी तरह से संभाल लो…”

“यस सर…”

“अपने लोगो का ख़याल रखना…” राज ने कहा और उसने फोन काट दिया…

“चलो जल्दी… हमे जल्दी करनी चाहिए… उधर सिकेन्दर को तो हम बचा नही पाए… कम से कम इधर इस क़ातिल को पकड़ने मे कामयाब होना चाहिए…” राज ने ड्राइवर को तेज़ी से चलने का इशारा करते हुए कहा.
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09-02-2018, 12:16 PM,
#38
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
जहाँ से सिग्नल आ रहे थे उस जगह के आस पास राज और उसकी टीम आकर पहुँच गयी. वह एक वेरहाउस था और वेरहाउस के सामने और आस पास काफ़ी खुला मैदान था.

“कंप्यूटर पर तो यही जगह दिखाई दे रही थी… मतलब यही वेरहाउस मे ही क़ातिल छुपा हुआ होना चाहिए…” राज अपने पास के नक्शे पर और वेर हाउस के आस पास का इलाक़ा देख कर बोला.

ड्राइवर ने राज की तरफ उसके अगले आदेश के इंतेज़ार मे देखा.

“गाड़ी वेर हाउस के कॉंपाउंड मे लो…” राज ने ड्राइवर को आदेश दिया.

“यस सर…” ड्राइवर ने कहा और उसने गाड़ी वेर हाउस के खाली मैदान मे घुसा..

उनके पीछे आनेवाली गाड़ियाँ भी उनके पीछे पीछे उस खाली मैदान मे घुस गयी.

राज की गाड़ी के पीछे सब गाड़ियाँ वेरहाउस के सामने रुक गयी. गाड़ी रोकने के बाद राज ने अपने वाइयरलेस पर कब्जा किया.

“ग्रूप 2, ग्रूप 3 तुरंत वेरहाउस को चारो तरफ से घेर लो…” गाड़ी से उतर ते वक्त राज वाइयरलेस पर आदेश देने लगा.

उसके साथी भी जल्दी जल्दी गाड़ी से उतरने लगे.

“ग्रूप 2 वेरहाउस के दाई तरफ और ग्रूप 3 बाई तरफ से वेरहाउस को घेर लो…” उनकी गड़बड़ी ना हो इसलिए राज ने अपने आदेश का खुलासा किया.

गाड़ी से उतर ने के बाद ग्रूप 2 ने वेरहाउस के दाई तरफ से तो ग्रूप 3 ने बाई तरफ से वेरहाउस को पूरी तरह घेर लिया…. क़ातिल अगर वेरहाउस मे छुपा होगा और उसे भाग कर जाना हो तो उसे इनकी बनाई यह दीवार भेदकर जाना पड़ेगा.. और वह लगभग नामुमकिन था.

अपने दोनो ग्रूप के अच्छी और पूरी तरह से वेरहाउस को घेरने की तसल्ली होने के बाद राज अपने साथ वाले ग्रूप के साथ, वेरहाउस के दरवाज़े के पास लगभग दौड़ते हुए ही गया.

“ग्रूप 1 अब वेरहाउस मे घुसनेवाला है… सबलॉग तैय्यार रहो… अंदर कितने लोग होंगे इसका अभी तक कोई अनुमान नही लगाया जा सकता है…” राज ने फिर से एकबार सब को सतर्क रहने की ताक़ीद दी.

वेरहाउस मे एक जगह कंप्यूटर का मॉनिटर चमक रहा था वह जगह छोड़कर बाकी सब तरफ अंधेरा था. उस कंप्यूटर के सामने एक उधर मुँह किए एक साया खड़ा था और उसकी अपना सामान बॅग मे भरने की गड़बड़ चल रही थी…. सब कत्ल तो हो चुके थे. अब उसकी भाग जाने की तैय्यारि दिख रही थी. अचानक सामान भरते हुए वह रुक गया. उसे वेरहाउस के बाहर या अंदर कोई हरकत महसूस हुई होगी. वह वैसे ही उधर मुँह कर खड़ा होकर गौर से सुनने की कोशिश करने लगा.

सब काम तो अब ठीक ढंग से हो चुके है… और अब मुझे क्यों अलग अलग भ्रम हो रहे है…

अब तक कोई मुझे पकड़ नही पाया जो अब पकड़ पाएगा…

वैसे मेरी प्लॅनिंग कोई कम फुल प्रूफ नही थी…

उसने अपने दिमाग़ मे चल रहे विचारों की कशमकश झटक कर दूर की और फिर से अपने काम मे व्यस्त हो गया
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09-02-2018, 12:16 PM,
#39
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
अचानक उसे पीछे से आवाज़ आई, “हॅंड्ज़ अप.. यू आर अंडर अरेस्ट..”

उसने चतुरता से अपने बॅग से कुछ, शायद कोई हथियार निकाल ने की कोशिश की.

लेकिन उससे ज़्यादा चतुराई से और तेज़ी से इंस्पेक्टर राज ने उसके आस पास बंदूक की गोलियों की बरसात कर मानो एक लक्ष्मण रेखा बनाई.

“ज़्यादा होशियारी करने का प्रयास मत करो…” राज ने उसे ताक़ीद दी.

उसके हाथ से वह जो भर रह था वह बॅग नीचे गिर गया और उसने अपने दोनो हाथ उपर किए. धीरे धीरे वह राज की तरफ मुड़ने लगा.

वह जैसे ही मुड़ने लगा. राज मन ही मन अनुमान लगाने लगा.

वह कौन होगा…?

और यह सारे कत्ल उसने क्यों किए होंगे…?

जैसे ही वह पूरी तरह राज की तरफ मुड़ा, वहाँ मॉनिटर की रोशनी मे उसका चेहरा दिखने लगा.

उसे देख कर इंस्पेक्टर राज के चेहरे पर आस्चर्य के भाव दिखने लगे.

वह दूसरा तीसरा कोई ना होकर सुधीर था, शरद और मीनू का दोस्त, क्लासमेट…!

राज को याद आया कि उसने मीनू और शरद के क्लास के ग्रूप फोटो मे इसे देखा था..

इंस्पेक्टर राज को एक सवाल का जवाब मिल गया था, लेकिन उसका दूसरा सवाल ‘यह सारे खून उसने क्यों किए होंगे…?’ का जवाब अब भी बाकी था.

इंस्पेक्टर राज और उसके साथी धीरे धीरे आगे खिसकने लगे. राज ने वाइयरलेस पर क़ातिल को पकड़ने की खबर सारे टीम को दी.. उन्होने सुधीर को चारो तरफ से घेर लिया.

राज और पवन अब भी सुधीर को घेर कर खड़े थे. सुधीर का प्रतिरोध अब पूरी तरह ख़त्म हो चुका था. राज के दो साथियो ने उसे हथकड़ियाँ लगाकर अपने कब्ज़े मे लिया था. राज उसे वहाँ सवाल पर सवाल पूछे जा रहा था… आख़िर एक सवाल अब तक सब को परेशान कर रहा था. राज को भी लग रहा था कि बाद की तहक़ीक़त जब होगी तब होगी. कम से कम सब को परेशान कर रहे सवाल का जवाब यहीं मिलना चाहिए… कि क्यों…? क्यों सुधीर ने उन चार लोगो का कत्ल किया..?

सुधीर के भी अब पूरी तरह ख़याल मे आया था कि उस के पास अब सब कुछ बताने के आलवा कुछ चारा नही था. वह सबकुछ किसी तोते की तरह बताने लगा….

..........................................

… में मीनू से प्यार करने लगा था… क्लास मे प्रोफ़ेसर पढ़ा रहे थे और विधयर्थीयों मे शरद, मीनू और सुधीर क्लास मे अलग अलग जगह पर बैठे हुए थे. सुधीर ने सामने देखते हुए, प्रोफ़ेसर का ख़याल अपनी तरफ नही है इसकी तसल्ली कर चुप के से एक कटाक्ष मीनू की तरफ डाला. लेकिन यह क्या…? वह उसकी तरफ ना देखते हुए छुपकर शरद की तरफ देख रही थी. वह आग बाबूला होने लगा था.

में इस क्लास का एक होनहार विध्यार्थि…

एक से एक लड़कियाँ मुझपर मरने के लिए तैयार…

लेकिन जिसपर अपना दिल आया वह मेरी तरफ देखने के लिए भी तैयार नही है…?

उसके अहम को ठेस पहुच रही थी..

नही यह होना मुमकिन नही …

शायद उस का अपना दिल उसपर आया है यह पता नही होगा…

उसे यह जताना और बताना ज़रूरी है…

क्रमशः……………
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09-02-2018, 12:16 PM,
#40
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--17

गतान्क से आगे………………………

एकदिन दोपहर के वक्त मैने कॉलेज छूटने पर मीनू को अपने प्यार के बारे मे बताया और उससे शादी करने की इच्छा जताई…

लेकिन मीनू ने उसका प्रपोज़ल ठुकरा दिया… मुझे इसकी उम्मीद नही थी… इतनी सहजतासे वह मुझे कैसे ठुकरा सकती है…? उसके अहंकार ठेस पहुच रही थी…

लेकिन क्यों वो मेरे से शादी नही कर सकती मैने उसको पूछा भी तो उसने बताया कि मैं किसी और से प्यार करती हूँ…

फिर बाद मे मैने यह दूसरा लड़का कौन है जिसके लिए मेरा प्यार ठुकरा दिया इसकी खोज मे जुट गया था लेकिन ये पता करने के लिए मुझे ज़्यादा टाइम भी नही लगा… एक पार्क मे शरद और मीनू बैठ कर प्यार भरी बातें कर रहे थे… और में उसी पेड के पीछे छुप कर उनकी बातें सुन रहा और मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था.

“मैने उसपर बहुत… मतलब अपनी जान से ज़्यादा प्रेम किया…” सुधीर ने आह भरते हुए कहा.

“लेकिन मुझे जब पता चला कि वह मुझे नही बल्कि शरद को चाहती है… तब में बहुत निराश, हताश हुआ, मुझे उसका गुस्सा भी आया… लेकिन धीरे धीरे मैने अपने आपको समझाया कि में उसे चाहता हूँ इसका मतलब यह ज़रूरी नही कि वह भी मुझे चाहे.. वह किसी को भी चाहने के लिए आज़ाद होनी चाहिए…” सुधीर ने कहा.

“लेकिन तुमने उन चार लोगो को क्यों मारा…?” राज ने असली बात पर आते हुए पूछा.

“क्योंकि दूसरा कोई भी नही कर सकता इतना प्यार मैने जितना किया था…” सुधीर ने अभिमान के साथ कहा.

“शरद ने भी उससे प्यार किया था…” राज ने उसे और छेड़ने की कोशिश करते हुए कहा.

“वह कायर था… मीनू उससे प्यार करे ऐसी उसकी हैसियत नही थी…” सुधीर ने नफ़रत के साथ कहा, “तुम्हे पता है…? जब उसका बलात्कार होकर क़त्ल हुआ था तब शरद ने मुझे एक खत लिखा था…” सुधीर ने आगे कहा…

“क्या लिखा था उसने…?” राज ने पूछा.

… “लिखा था कि उसे मीनू के बलात्कार और क़त्ल का बदला लेना है… और उसने उन चार गुनहगारों को ढूँढा है… लेकिन उसकी बदला लेने की हिम्मत नही बन पा रही है.. वाईगेरह… वाईगेरह… ऐसा उनसे काफ़ी कुछ लिखा था… मैं एक दोस्त के तौर पर उसे अच्छी तरह जानता था.. लेकिन वह इतना डरपोक होगा ऐसा मैने कभी नही सोचा था… फिर ऐसी स्थिति मे आप ही बताइए मैं क्या करता… अगर वह बदला नही ले सकता तो उन चार हैवानो से बदला लेने की ज़िम्मेदारी मेरी बनती थी… क्योंकि भले ही वह मुझे नही चाहती थी लेकिन मेरा तो उसपर सच्चा प्रेम था…” इतना कह कर उसे अपने हाथ पैर कमजोर हुए ऐसा महसूस होने लगा. वह एकदम से नीचे बैठ गया. उसने अपना चेहरा अपने घुटनो मे छुपा लिया और फुट फुट कर रोने लगा. इतनी देर से रोकने का प्रयास करने के बावजूद वह अपने आपको रोक नही पाया था.

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