Chodan Kahani इंतकाम की आग
09-02-2018, 12:12 PM,
#21
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
होटेल के एक कमरे मे मीनू और शरद बेड पर एकदुसरे के आमने सामने बैठे थे. शरद ने मीनू के चेहरे पर आती बालों की लाटो को एक तरफ हटाया.

"मुझे तो डर ही लगा था कि शायद हम उनके चुंगले मे ना फँस जाए..." मीनू ने कहा.

वह अभी भी उसे भयानक मन्स्थिति से बाहर नही निकल पाई थी..

"देखो... मेरे होते हुए तुम्हे चिंता करने की क्या ज़रूरत...? में तुम्हे कुछ भी नही होने दूँगा... आइ प्रॉमिस..." वह उसे सांत्वना देने की कोशिश करते हुए बोला.

उसने मंद मंद मुस्कुराते हुए उसके तरफ देखा.

सचमुच उसे उसके इस शब्दोसे कितना अच्छा लगा था...

धीरे से शरद उसके पास खिसक गया. मीनू ने उसकी आँखों मे देखा. शरद भी अब उसकी आँखों से अपनी नज़रे हटाने के लिए तैय्यार नही था. धीरे धीरे उनके सांसो की गति बढ़ने लगी. हल्के ही शरद ने उसे अपनी बाहों मे खींच लिया. उसे भी मानो उसकी सुरक्षित बाहों मे अच्छा लग रहा था.

शरद ने धीरे से उसे बेड पर लिटाकर उसका चेहरा अपनी हाथों मे लेकर वह उसकी तरफ एकटक देखने लगा. धीरे धीरे उसकी तरफ झुकता गया और उसके गर्म होंठ अब उसके तपते होंठोपर टिक गये. दोनो भी बेकाबू होकर एक दूसरे को आवेग मे चूमने लगे. इतने आवेग मे कि वे दोनो 'ढप्पक' से बेड के नीचे फर्शपर गिर गये. मीनू नीचे और उसके उपर शरद गिर गया. दर्द से कराहते हुए मीनू ने उसे दूर धकेला.

"मेरी क्या हड्डियाँ तोड़ोगे...?" वह कराहते हुए बोली.

शरद झट से उठ गया और उसे उपर उठाने का प्रयास करने लगा.

"आइ एम सौरी... आइ एम सो सॉरी..." वह बोला.

मीनू ने उसे एक थप्पड़ मारनेका अवीरभाव किया. उसने भी डर के मारे अपनी आँखें बंद कर अपना चेहरा दूसरी तरफ हटाया. मीनू मन ही मन मुस्कुराइ. किसी छोटे बच्चे की तरह मासूम भाव उसके चेहरे पर उभर आए थे. उसकी इसी मासूम आड़ा पर तो वह फिदा हुई थी. उसने उसका चेहरा अपने हाथों मे लिया और उसकी होंठो को वह कस कर चूमने लगी. वह भी उसी तड़प, उसी आवेग के साथ जवाब मे उसे चूमने लगा. अब तो उन्होने नीचे फर्शपर बिछे गाळीचे से उठकर उपर जाने के भी जहमत नही उठाई. असल मे वे एक क्षण भी गवाना नही चाहते थे. वे नीच गलिचे पर ही लेटकर एक दूसरे के उपर चुंबन की बरसात करने लगे. चूमने के साथ ही उनके हाथ एक दूसरे के कपड़े निकल ने मे व्यस्त थे. शरद अब उसके सारे कपड़े निकाल कर उसमे समा जाने को बेताब हुआ था. वह धीरे धीरे बड़ी बड़ी सांसो के साथ मीनू के उपर झुकने लगा. इतने मे.. इतने मे उनके कमरे के दरवाजे पर किसी ने नॉक किया. वे मानो जैसे थे वैसे बर्फ की तरह जम गये. गड़बड़कर वे एक दूसरे की तरफ देखने लगे.

हमे दरवाजा बजने का आभास तो नही हुआ...?

तब फिर से एकबार दरवाजे पर नॉक सुनाई दी... इसबार थोड़ी ज़ोर से..

सर्विस बॉय तो नही होगा...

"कौन है...?" शरद ने पूछा.

"पोलीस...." बाहर से आवाज़ आए.

दोनो गलिचे से उठकर कपड़े पहन ने लगे.

पोलीस यहाँ तक कैसे पहुँच गयी...?

शरद और मीनू सोचने लगे.

उन्होने अपने कपड़े पहन ने के बाद शरद सहमे हुए स्थिति मे दरवाजे तक गया. उसने फिर से एक बार मीनू की तरफ देखा. अब इस परिस्थिति का सामना कैसे किया जाए इसकी वे मन ही मन तैय्यार करने लगे थे. शरद की होल से बाहर झाँक कर देखने लगा. लेकिन बाहर अंधेरे के सिवा कुछ नज़र नही आ रहा था.

या उस की होल मे कुछ प्राब्लम होगा...

सावधानी से, धीरे से उसने दरवाज़ा खोला और दरवाज़ा थोड़ा तिरछा करते हुए बाहर झाँक ने का प्रयास कर रहा था और तभी .... शिकेन्दर, अशोक, सुनील और चंदन दरवाज़ा ज़ोर से धकेलते हुए कमरे मे घुस गये.

क्या हो रहा है यह समझने के पहले ही शिकेन्दर ने दरवाजे को अंदर से कुण्डी लगा ली थी. किसी चीते की फुर्ती से अशोक ने चाकू निकाल कर मीनू के गर्दन पर रख दिया और दूसरे हाथ से वह चिल्लाए नही इसलिए उसका मुँह दबाया.
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09-02-2018, 12:13 PM,
#22
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
शिकेन्दर ने भी मानो पूर्वनियोजन की तहत उसका चाकू निकाल कर शरद के गर्दन पर रखा और उसका मुँह दबाकर उसे दबोच लिया. मानो अब पूरी स्थिति उनके कब्ज़े मे आई हो इस तरह से वे एकदुसरे की तरफ देख कर अजीब तरह से मुस्कुराए.

"चंदन इसका मुँह बाँध..." शिकेन्दर ने चंदन को आदेश दिया.

जैसे ही मीनू ने चिल्लाने की कोशिश की अशोक ने उसका मुँह ज़ोर से दबाते हुए और मजबूती से उसे दबोच लिया.

"सुनील इसका भी बाँध.."

चंदन ने शरद के मुँह, हाथ और पैर टेप से बाँध दिया. सुनील ने मीनू के मुँह और हाथ बाँध दिए.

उन्होने जिस फुर्ती से यह सब हरकतें की उससे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे ऐसे कामो मे बड़े तरबेज़ हो.

अब शिकेन्दर के चेहरे पर एक वहशी मुस्कुराहट छुपाए नही छुप रही थी.

"आए... इसके आखोंपर कुछ बाँध रे... बेचारे से देखा नही जाएगा..." शिकेन्दर ने कहा.

चंदन ने उनके ही सामने से एक कपड़ा निकाल कर शरद की आँखों पर बाँध दिया. अब शरद को सिर्फ़ अंधेरे के सिवा कुछ दिखाई नही दे रहा था और सिर्फ़ सुनाई दे रहा था वह उन गिदडो की वहशी और राक्षशी हँसी और मीनू का दब-दबाया हुआ चीत्कार...

शरद को एकदम सबकुछ शांत और स्तब्ध होने का एहसास हुआ.

"आए उसके आखोंपर बँधा कपड़ा छोड़ रे...." शिकेन्दर चिढ़ा हुआ स्वर गूंजा.

शरद को उसके आखोंपर से कोई कपड़ा निकाल रहा है इसका एहसास हुआ. उसका आक्रोश आँसुओं के द्वारा बाहर निकलकर वह कपड़ा पूरी तरफ गीला हुआ था.

जैसे ही उन्होने उसके आँखों से वह कपड़ा निकाला, उसने सामने का द्रिश्य देखा. उसके जबड़े कसने लगे, आँखें अँगारे बरसाने लगी, सारा शरीर गुस्से से काँपने लगा था. वह खुद को छुड़ाने के लिए छटपटाने लगा. उसके सामने उसकी मीनू निर्वस्त्र पड़ी हुई थी. उसकी गर्दन एक तरफ लटक रही थी. उसकी आखें खुली थी और सफेद हो गयी थे. उसका शरीर निश्चल हो चुका था. उसके प्राण कब के जा चुके थे.

अचानक उसे एहसास हुआ कि उसके सरपार किसी भारी वास्तुका प्रहार हुआ और वह धीरे धीरे होश खोने लगा.

जब शरद होश मे आया, उसे एहसास हुआ कि अब वह बँधा हुआ नही था. उसके हाथ पैर बंधन से मुक्त थे. लेकिन जहाँ कुछ देर पहले मीनू की बॉडी पड़ी हुई थी वहाँ अब कुछ भी नही था. वह तुरंत उठकर खड़ा हो गया, उसने चारो और अपनी नज़र घुमाई.

वह मुझे गिरा हुआ कोई भयानक सपना तो नही था....

हे भगवान वह सपना ही हो...

वह मन ही मन प्रार्थना करने लगा....

लेकिन वह सपना कैसे होगा...

"मीनू..." उसने एक आवाज़ दिया.

उसे मालूम था कि उसे कोई प्रतिसाद आनेवाला नही है...

लेकिन एक झुटि आस....

उसके सर मे पीछे की तरफ से बहुत दर्द हो रहा था. इसलिए उसने सर को पीछे हाथ लगाकर देखा. उसका हाथ लाल लाल खून से सन गया.

उन लोगों ने प्रहार कर उसे बेसुद्ध किया था उसका वह जख्म और निशानी थी. अब उसे पक्का विश्वास हुआ था कि वह कोई सपना नही था.

वह तेजिसे रूम के बाहर दौड़ पड़ा. बाहर इधर उधर ढूँढते हुए वह गलियारे से दौड़ रहा था. वह लिफ्ट के पास गया और लिफ्ट का बटन दबाया. लिफ्ट मे घुसने से पहले फिर से उसने एक बार चारों तरफ अपनी ढूँढती नज़र दौड़ाई...

कहाँ गये वे लोग...?

और मीनू की बॉडी किधर है...?

कि उन्होने लगा दिया उसे ठिकाने...

वह होटेल के बाहर आकर अंधेरे मे पागलों की तरह इधर उधर दौड़ रहा था. सब तरफ अंधेरा था. आधी रात होकर गयी थी. रास्ते पर भी आने जानेवाले बहुत ही कम दिखाई दे रहे थे. एक कोने पर खड़ा एक टॅक्सिवाला उसे दिखाई दिया.

उसे शायद पता हो...
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09-02-2018, 12:13 PM,
#23
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
वह उसे टॅक्सी के पास गया, टॅक्सी वाले से पूछा. उसने दाई तरफ इशारा कर कुछ तो कहा. शरद टॅक्सी मे बैठ गया और उसने टॅक्सी वाले को टॅक्सी उधर लेने को कहा....

निराश, हताश हुआ शरद धीमे गति से चलता हुआ अपने रूम के पास वापस आ गया. रूम मे जाकर उसने अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया.

उसने बेड की तरफ देखा... बेड शीट पर झुर्रिया पड़ी हुई थी. वह बेड पर बैठ गया...

क्या किया जाय...?

पोलीस के पास जाऊ तो वे मुझे ही गिरफ्तार करेंगे...

और खून का इल्ज़ाम मुझ पर ही लगाएँगे...

और वैसे देखा जाए तो में ही तो हूँ उसके खून के लिए ज़िम्मेदार...

सिर्फ़ खून ही नही तो उसपर हुई बलात्कार के लिए भी...

उसने आपने पैर मॉड्कर घुटने पेट के पास लिए और घुटनो मे अपना मुँह छिपाया और वह फूटफूटकर रोने लगा.

रोते हुए उसका ध्यान वह कपाट के नीचे गिरे काग़ज़ के टुकड़े ने खींच लिया. वह खड़ा होगया अपने आँसू अपने आस्तीन से पोंछ लिए.

काग़ज़ का टुकड़ा...? यहाँ कैसे...?

उसने वह काग़ज़ का टुकड़ा उठाया...

काग़ज़पार चार अँग्रेज़ी अक्षर लिखे हुए थे - एसेच, ए, एस & सी और उन अक्षरों के सामने कुछ नंबर्स लिखे हुए थे. शायद वे कोई पत्तों के ग़मे के पायंट्स होंगे...

उसने वह काग़ज़ उलट पुलटकार देखा. काग़ज़ के पीछे एक नंबर था. शायद मोबाइल नंबर होगा.

वह दृढ़तापूर्वक खड़ा हो गया -

"अशोक.... में तुम्हे छोड़ूँगा नही..." वह गाराज़ उठा.

इंस्पेक्टर राज इंस्पेक्टर धरम के सामने बैठकर सब सुन रहा था. वह कब की कहानी पूरी कर चुका था. लेकिन वह दर्दभरी कहानी सुनकर कमरे मे सारे लोग इतने दर्द से अभिभूत हो गये थे कि बहुत देर तक कोई कुछ नही बोला. कमरे मे एक अनसर्गिक सन्नाटा छाया था.

एक प्रेम कहानी का ऐसा भयानक दर्दनाक अंत होगा...?

किसी ने नही सोचा था...

मीनू और शरद की प्रेम कहानी कॅबिन मे उपस्थित सभी लोगों के दिल को छू गयी थी.

थोड़ी देर बाद इंस्पेक्टर राज ने अपनी भावनाओं को काबू मे करते हुए पूछा,

"क्या शरद ने पोलीस स्टेशन मे रिपोर्ट दर्ज़ की थी...?"

"नही..."

"फिर... यह सब तुम्हे कैसे पता...?"

"क्योंकि मीनू का भाई... अंकित ने रिपोर्ट दर्ज़ की थी..."

"लेकिन उसने भी रिपोर्ट कैसे दर्ज़ की...? मेरा मतलब है उसे वह सबकुछ पता कैसे चला...? क्या शरद उसे मिला था...?" राज ने एक के बाद एक सवालों की छड़ी लगा दी.

"नही... शरद उसे उस घटना के बाद कभी नही मिला..." धरम ने कहा.

"फिर उसे खूनी कौन है यह कैसे पता चला...?" राज को अब उसे सता रहे सारे सवालों के जवाब मिलने की जल्दी हो रही थी..

"कुछ महीने पहले शरद ने मीनू के भाई को इस घटना के बारे मे खत लिख कर सब जानकारी लिखी थी... उसमे उसने उन चार लोगों के नाम पते भी लिखे थे.."

"फिर रिपोर्ट का नतीजा क्या निकला...?" राज ने अगला सवाल पूछा.

"... इस केस पर हमने ही तहक़ीक़ात की थी... लेकिन ना मीनू की डेड बॉडी मिली थी.. ना शरद मिला जो कि इस घटना का अकेला और बहुत अहम चश्मदीद गवाह था... इसलिए केस बिना कुछ नतीजे के वैसी ही लटका रहा... और अभी भी वैसे ही लटका पड़ा है..."

"अच्छा... शरद का कुछ अता पता ?" राज ने पूछा.

"उसके बारे मे किसी को भी कुछ पता नही चला... उस घटना के बाद वह कभी उसके अपने घर भी नही आया... वह जिंदा है या मरा... इसका भी कुछ पता नही चला... सिर्फ़ उसके अंकित को आए खत से ऐसा लगता है कि वह जिंदा होना चाहिए... लेकिन अगर वह जिंदा है तो छिप क्यो रहा है...? यही एक बात समझ मे नही आती..."

"उसका कारण सीधा है..." इतनी देर से ध्यान देकर सुन रहे पवन ने कहा.

"हाँ... उसका एक ही कारण हो सकता है कि... हाल ही मे जो दो कत्ल हुए उसमे शरद का ही हाथ हो सकता है.. और इसलिए ही मेने तुम्हे यहाँ बुलाकर यह सब जानकारी तुम्हे देना मुनासिब समझा..." धरम ने कहा.

"बराबर है तुम्हारा... इस खून मे शरद का हाथ हो सकता है ऐसा मान लेने की काफ़ी गुंजाइश है.. लेकिन मुझे एक बात समझ मे नही आती है कि.. जब वह कमरा या मकान अंदर से और सब तरफ से बंद होता है तब वह खूनी अंदर पहुचता कैसे है..? वह सारे कत्ल कैसे कर रहा है यह एक ना सुलझनेवाली पहेली बन चुकी है..."

"अच्छा अब मीनू के भाई को इस घटना के बारे मे पता चला तो उसकी प्रतिक्रिया क्या थी..? और अब केस के नतीजे मे देरी हो रही है इसके बारे मे उसकी प्रतिक्रिया कैसी है...?"

"वह आदमी पागलों जैसा हो चुका है... इस पोलीस स्टेशन मे उसका हमेशा चक्कर रहता है.. और केस का आगे क्या हुआ यह वह हमेश पूछता रहता है.. वह यह सब फोन करके भी पूछ सकता है.. लेकिन नही वह खुद यहाँ आकर पूछता है.. मुझे तो उसपर बहुत तरस आता है.. लेकिन अपने हाथ मे जितना है उतना ही हम कर सकते है..." धरम ने कहा.

"इसका मतलब हाल ही मे जो दो खून हुए उसका कातिल मीनू का भाई अंकिता भी हो सकता है..." राज ने कहा.

"आपने उसे देखना चाहिए... उसकी तरफ देख कर तो ऐसा नही लगता..." धरम ने कहा.

"लेकिन यह एक संभावना है जिसे हम झुटला नही सकते..." राज ने प्रतिवाद किया.

इंस्पेक्टर धरम ने थोड़ी देर सोचा और फिर हाँ मे अपना सर हिलाया...

क्रमशः……………………
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09-02-2018, 12:13 PM,
#24
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--11

गतान्क से आगे………………………

लगभग आधी रात को अशोक और शिकेन्दर हॉल मे विस्की पी रहे थे. एक के बाद एक उनके दो साथियों का कत्ल हुआ था. पहली बार जब चंदन का खून हुआ तभी उन्हे शक हुआ था कि हो ना हो यह मामला मीनू के खून से संबंधित है. लेकिन बाद मे सुनील कत्ल के बाद उनका शक यकीन मे बदल गया था कि यह मीनू के खून की वजह से ही हो रहा है.. कुछ भी हो जाय हम घबराएँगे नही ऐसा ठान लेने के बाद भी उनको रह रहकर अगला नंबर उन दोनो मे से ही किसी एक का स्पष्ट रूपसे दिख रहा था. इसलिए उनके चेहरे से चिंता और डर हटने के लिए तैय्यार नही था. वे विस्की के एक के बाद एक ना जाने कितने ग्लास खाली कर रहे थे और अपना डर मिटाने की कोशिश कर रहे थे.

"मेने नही कहा था तुम्हे...?" शिकेन्दर ने आवेश मे आकर कहा.

अशोक ने प्रश्नर्थक मुद्रा मे उसकी तरफ देखा.

"उस साले हरामी को जिंदा मत छोड़ कर के... उसको हमने तभी ठिकाने लगाना चाहिए था.. उस लड़की के साथ..." शिकेन्दर विस्की का कड़वा घूँट लेते हुए बूरासा मुँह बनाते हुए बोला.

उन्हे शक नही.. पक्का यकीन था कि शरद का ही इन दो वारदातों मे हाथ होगा..

"हमे लगा नही कि साला इतना डेंजरस निकलेगा..." अशोक ने कहा.

"इंतकाम... इंतकाम आदमी को डेंजरस बना देता है.." शिकेन्दर ने कहा.

"लेकिन एक बात मेरे ख़याल मे नही आ रही है कि वह सारे कत्ल कैसे कर रहा है.. पोलीस जब वहाँ पहुचती है तब घर अंदर से बंद किया हुआ रहता है और बॉडी अंदर पड़ी हुई... और यही नही तो सुनील के गलेका तोड़ा हुआ माँस का टुकड़ा मेरे किचन मे कैसे आया...? और खास बात तब मैने मेरा घर खिड़कियाँ, दरवाजे सब कुछ अच्छी तरह से बंद किया था..." अशोक आस्चर्य जताते हुए बोला...

अशोक कही शुन्य मे देख कर सोचते हुए बोला,

"यह सब देखते हुए एक बात मुमकिन लगती है.."

"कौन सी...?" शिकेन्दर ने विस्की का खाली हुआ ग्लास भरते हुए पूछा.

"तुम्हारा भूतों पर विश्वास है...?" अशोक ने बोले या ना बोले इस मन की द्विधा स्थिति मे पूछा. क्योंकि उसने तो वो नज़ारा खुद देखा था लेकिन कैसे ना कैसे करके अशोक बच निकला था..

"मूर्ख की तरह कुछ भी मत बको.. उसके पास कुछ तो ट्रिक है जिसको इस्तेमाल करके वह इस तरह से कत्ल कर रहा है..." शिकेन्दर ने कहा.

"मुझे भी वही लगता है... लेकिन कभी कभी अलग अलग तरह के शक मन मे आते है..." अशोक ने कहा.

"चिंता मत करो... वह हमारे तक पहुँचने के पहले ही हम उसके पास पहुँचते है और उसको ठिकाने लगाते है..." शिकेन्दर उसे सांत्वना देने के कोशिश करते हुए बोला...

"हमे पोलीस प्रोटेक्षन लेना चाहिए..." अशोक ने सोच कर कहा.

"पोलीस प्रोटेक्षन...? पागल हो गये हो क्या...? हम उन्हे क्या बोलने वाले है.. कि सरकार हमने उसे लड़की को मारा है.. हमारे से ग़लती हो गयी... सॉरी.. ऐसी ग़लती हमारे से फिर नही होगी.. कृपया हमारा रक्षण कीजिए...सरकार" शिकेन्दर दारू के नशे मे माफी माँगने के हावभाव करते हुए बोला.

"वह बाद की बात हो गयी... पहले अपना प्रोटेक्षन सबसे अहम है.. वह क्या है कि... सर सलामत तो पगड़ी पच्चास..." अशोक ने कहा.

"लेकिन पोलीस के पास जाकर उनसे प्रोटेक्षन माँगना.... कुछ..."

पोलीस प्रोटेक्षन का ख़याल आते ही अशोक अपने डर से काफ़ी उभर गया था.

"उसकी चिंता तुम मत करो.. वह सब मुझपर छोड़ दो..." अशोक ने उसका वाक्य बीच मे ही तोड़ते हुए बड़े आत्मविश्वास से कहा...

राज अपने कॅबिन मे सर नीचे झुकाकर सोच मे डूबा हुआ बैठा था. इतने मे, पवन उसका असिस्टेंट वहाँ आगया.

"सर... वह कातिल कत्ल की जगह कैसे पहुँचता होगा और फिर कैसे बाहर जाता होगा... इसके बारे मे मेरे दिमाग़ मे एक आइडिया आया है.." पवन ने उत्साह भरे स्वर मे कहा.
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09-02-2018, 12:14 PM,
#25
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
राज ने अपना सर उपर उठाया और पवन की तरफ देखा.

पवन दरवाजे के बाहर गया और उसने दरवाजा खींचकर बंद किया.

"सर देखिए अब..." वह बाहर से ज़ोर से चिल्लाया.

राज ने देखा की दरवाजे की अंदर की कुण्डी धीरे धीरे खिसक कर बंद हो गयी. राज भौचक्का देखता ही रह गया.

"सर आपने देखा क्या...?" उधर से पवन का आवाज़ आया.

फिर धीरे धीरे दरवाज़े की कुण्डी दूसरी तरफ खिसकने लगी और थोड़ी ही देर मे कुण्डी खुल गयी..

राज को बहुत आस्चर्य हो रहा था.

पवन दरवाज़ा खोलकर अंदर आया, उसके हाथ मे पीछे की और कुछ तो छिपाया हुआ था.

"तुमने यह कैसे किया...?" राज ने आसचार्ययुक्त उत्सुकतसे पूछा.

पवन ने एक बड़ा सा मॅगनेट अपने पीछे छुपाया था वह निकाल कर राज के सामने टेबल पर रख दिया.

"यह सब करामात इस चुंबक की है क्योंकि वह दरवाजे की कुण्डी लोहे की बनी हुई है..." पवन ने कहा.

"पवन फोर युवर काइंड इन्फ़ौरमेशन... घटनास्थलपर मिली सब दरवाज़े की कुण्डी अल्यूमिनियम की थी..." राज ने उसे बीच मे टोकते हुए कहा.

"ओह्ह... अल्यूमिनियम की थी..." फिर और कोई आइडिया दिमाग़ मे आए जैसे उसने कहा, "कोई बात नही.. उसका हल भी है मेरे पास..."

राज ने अविश्वास से उसकी तरफ देखा.

पवन ने अपने गले मे पहना एक स्टोन्स का नेकलेस निकालकर उसका धागा तोड़ दिया, सब स्टोन्स एक हाथ मे लेकर उसमे से पिरोया हुआ नाइलॉन का धागा दूसरे हाथ से खींच लिया. उसने हाथ मे जमा हुए सारे स्टोन्स जेब मे रख दिए. अब उसके दूसरे हाथ मे वह नाइलॉन का धागा था.

राज असमंजस की स्थिति मे उसकी तरफ वह क्या कर रहा है यह देखने लगा.

"अब देखिए यह दूसरा आइडिया... आप सिर्फ़ मेरे साथ कमरे के बाहर आईए..." पवन ने कहा.

राज उसके पीछे पीछे जाने लगा.

पवन दरवाज़े के पास गया. दरवाज़े के कुण्डी मे उसने वह नाइलॉन का धागा अटकाया. धागे के दोनो सिरे एक हाथ मे पकड़ कर उसने राज से कहा, "अब आप दरवाज़े से बाहर जाइए..."

राज दरवाज़े के बाहर गया. पवन भी अब धागे के दोनो सिरे एक हाथ मे पकड़ कर दरवाज़े से बाहर आगया और उसने दरवाज़ा खींच लिया.

दरवाज़ा बंद था लेकिन वह धागा जो पवन के हाथ मे था दरवाज़े के दरार से अब भी अंदर की कुण्डी को अटकाया हुआ था. पवन ने धीरे धीरे उसे धागे के दोनो सिरे खींच लिए और फिर धागे का एक सिरा हाथ से छोड़कर दूसरे सिरे के सहारे धागा खींच लिया. पूरा धागा अब पवन के हाथ मे था.

"अब दरवाज़ा खोलकर देखिए..." पवन ने राज से कहा.

राज ने दरवाज़ा धकेलकर देखा और आस्चर्य की बात दरवाज़ा अंदर से बंद था.

राज भौचक्का सा पवन की तरफ देखने लगा.

"अब मुझे पूरा विश्वास होने लगा है..." राज ने कहा.

"किस बात का...?" पवन ने पूछा.

"कि इस नौकरी के पहले तुम कौन से धन्दे करते होंगे..." राज ने मज़ाक मे कहा.

दोनो एक दूसरे की तरफ देख मुस्कुराए.

"लेकिन एक बता..." राज ने कहा.

पवन ने प्रश्नर्थक मुद्रा मे राज की तरफ देखा.

"कि अगर दरवाज़े को अंदर से अगर ताला लगा हो तो...?" राज ने पूछा.

"नही... उस हाल मे... फिर एक ही संभावना है..." पवन ने कहा.

"कौन सी...?"

"कि वह दरवाज़ा खोलने के लिए किसी अमानवी शक्ति का ही होना ज़रूरी है..." पवन ने कहा.

पोलीस स्टेशन के कान्फरेन्स रूम मे मीटिंग चल रही थी. सामने दीवार पर टाँगे हुए सफेद स्क्रीनपर प्रोजेक्टर से एक लेआउट डाइयग्रॅम प्रॉजेक्ट किया था. उस डाइयग्रॅम मे दो मकान के लेआउट एक के पास एक निकले हुए दिख रहे थे. लाल लेस्सर पायंटर का इस्तेमाल का इंस्पेक्टर राज सामने बैठे लोगों को अपने प्लान की जानकारी दे रहा था…

“मिस्टर. शिकेन्दर और मिस्टर. अशोक …” राज ने शुरुआत की सामने बाकी पोलीस के लोगों के साथ शिकेन्दर और अशोक बैठे हुए थे. वे लोग राज जो कुछ जानकारी दे रहा था वह ध्यान देकर सुन रहे थे.

“… आपके घर मे इस जगह हम कॅमरा बिठाने वाले है.. बेडरूम मे तीन और घर मे दूसरे जगह तीन ऐसे कुल मिलाकर 6 कॅमरा दोनो घर मे बिठाए जाएँगे… वह कॅमरा सर्किट टीवी से जोड़ दिए जाएँगे जहाँ हमारी टीम घर के सारी हरकतों पर लगातार नज़र रखी हुई होगी.

“आपको लगता है इससे कुछ होगा…?” शिकेन्दर अशोक के कान मे व्यंगतपूर्वक फुसफुसाया.

अशोक ने शिकेन्दर की तरफ देखा और कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त नही की और फिर राज से पूछा, “अगर खूनी कॅमरा से दूर रहा तो…?”

“जेंटल्मेन हम घर मे मूविंग कॅमरा लगाने वाले है.. जिसकी वजह से आपका पूरा घर हमारी टीम के निगरानी के नीचे रहनेवाला है… और हाँ… में आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यह सबसे कारगर और एफेक्टिव उपाय हम खूनी को पकड़ने के लिए इस्तेमाल कर रहे है.. क़ातिल ने अगर अंदर घुसने की कोशिश की तो वह किसी भी हालत मे हमसे बच नही पाएगा.. हमारे टेक्निकल टीम ने रात दिन काफ़ी मशक्कत कर यह ट्रॅप तैय्यार किया है…”
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09-02-2018, 12:14 PM,
#26
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
“अच्छा वह सब ठीक है.. और अगर इतना करने बाद अगर क़ातिल आपके हाथों मे आता है तो आप उसके साथ क्या करने वाले हो…?” शिकेन्दर ने पूछा.


“जाहिर है हम उसे कोर्ट के सामने पेश करेंगे… और क़ानून के हिसाब से जो भी सज़ा उसे ठीक लगे वह कोर्ट तय करेगा…” राज ने कहा.

“और गर वह छूट कर भाग गया तो…?” शिकेन्दर ने आगे पूछा.

“जैसे मीनू के क़ातिल उसका खून कर भाग गये वैसे…” पवन ने व्यंग्तापूर्वक कहा.

शिकेन्दर और अशोक ने उसकी तरफ गुस्से से देखा.

“तुम्हे क्या हम खूनी लगते है…” अशोक ने उसे गुस्से से प्रतिप्रश्न किया…

“याद रखो अबतक हमें कोर्ट गुनहगार साबित नही कर पाया है..” शिकेन्दर गुस्से से चिढ़कर बोला.

“मिस्टर. अशोक & मिस्टर. शिकेन्दर… ईज़ी…ईज़ी… मुझे लगता है हम असली मुद्दे से भटकते जा रहे है… फिलहाल असली मुद्दा है कि आप लोगों को प्रोटेक्षन कैसे दिया जाय… आप लोग मीनू के खून के लिए ज़िम्मेदार हो या नही यह बाद का मुद्दा हुआ..” राज ने उन्हे शांत करने के उद्देश्य से कहा.

“आप लोग भी पहले हमारे प्रोटेक्षन के बारे मे सोचो… बाकी बाते बाद मे देखी जाएगी…” शिकेन्दर अधिकार वाणी से खांस कर पवन के तरफ देख कर बोला, जिसने उसे छेड़ा था. पवन को इन दो लोगों के प्रोटेक्षन के लिए तैनात टीम मे शामिल किया था, यह बात कुछ खल नही रही थी. राज ने भी पवन को शांत रहने का इशारा किया. पवन गुस्से से उठकर वहाँ से चला गया. उसके जाने से मौहाल थोड़ा ठंडा हो गया और राज फिर से अपनी योजना के बारे मे सब लोगों को विस्तृत जानकारी देने लगा.

शिकेन्दर और अशोक पोलीस उनका प्रोटेक्षन कर पाएँगे कि नही इसके बारे मे अभी भी संजीदा थे. लेकिन उन्हे उनके प्रोटेक्षन की ज़िम्मेदारी उनपर सौपने के आलवा दूसरा कुछ चारा भी तो नही था.

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पोलीस स्टेशन मे राज के खाली कुर्सी के सामने एक आदमी बैठा हुआ था. राज जल्दी जल्दी वहाँ आकर अपनी कुरसीपर बैठ गया.

“हाँ… तो आपके पास इस केस के सन्दर्भ मे कुछ महत्वपूर्ण जानकारी है…?” राज ने पूछा.

“हाँ… साहब”

राज ने एकबार उस आदमी को उपर से नीचे तक देखा और फिर वह क्या बोलता है यह सुनने लगा.

“साहब हमारे पड़ोस मे वह लड़की मीनू, जिसका खून होगया ऐसा बोलते है, उसका भाई रहता है…” उस आदमी ने शुरुआत की और वह आगे पूरी कहानी कथन करने लगा….

…. एक चोल्ल मे एक घर था, उस घर को चारो तरफ काँच की खिड़कियाँ ही खिड़कियाँ थी. इतनी कि उस घर मे क्या चल रहा है वह पड़ोसी को भी पता चले. एक खिड़की से हॉल मे मीनू का भाई अंकित बैठा हुआ दिख रहा था. अब वह पहले से कुछ ज़्यादा अजीब और पागल जैसा लग रहा था. दाढ़ी बढ़ी हुई, बाल बिखरे हुए. मस्तक पर एक बड़ा सा किसी चीज़ का टीका लगा हुआ. वह फाइयर्प्लेस के सामने हाथ मे एक कपड़े का गुड्डा लेकर बैठा हुआ था. शायद वह गुड्डा उसने ही बनाया हुआ होगा. बगल मे रखे प्लेट्स से उसने हाथ से कुछ उठाया और वह कुछ तन्त्र-मन्त्र जैसे शब्द बड़बड़ाने लगा.

“एबेस ती बा रास केतिन स्तत…”

उसने प्लेट से जो उठाया था वह सामने फाइयर्प्लेस के आग मे फेंक दिया. आग भड़क उठी. फिर से वह वैसे ही कुछ विचित्र तन्त्र मन्त्र बोलने लगा.

“कातसी… नतंदी…वानशारपट…रेरवरत स्टता…”

फिर से उसने उस प्लेट से धान जैसा कुछ अपने हाथ मे उठाकर उस आग के स्वाधीन किया. इस बार आग और ज़ोर से भड़क उठी.

उसने अपने हाथ से वह गुड्डा वहीं बगल मे रख दिया, आगे के सामने झुक कर, फर्शपर अपना मस्तक घिसा.

एक आदमी पड़ोस से अंकित के घर मे क्या चल रहा है यह उत्सुकतावश देख रहा था.

मस्तक घिसने के बाद अंकित उठकर खड़ा हुआ और अजीब तरह से ज़ोर से चीखा. जो पड़ोस से झाँक कर देख रहा था वह भी एक पल के लिए डर से और सहम गया. अंकिता ने झुक कर बगल मे रखा हुआ वह गुड्डा उठाया और फिर से एक बार ज़ोर से अजीब तरह से चिल्लाया. सब तरफ एक अजीब, भयानक सन्नाटा छा गया.

“अब तू मरने के लिए तैय्यार हो जा चंदन…” अंकित ने उस गुड्डे से कहा.

“नही… नही… मुझे मरना नही है इतनी जल्दी.. अंकित में तुम्हारे पैर पड़ता हूँ… मुझे माफ़ कर दे… आइ एम सॉरी.. मेने जो किया वह ग़लत किया… मुझे अब उसका एहसास हो गया है.. में तुम्हारे लिए तुम जो कहोगे वह करूँगा… लेकिन मुझे माफ़ कर दो…” अंकित मानो वह गुड्डा बोल रहा है वैसे उस गुड्डे के संवाद बोल रहा था.

“तुम मेरे लिए कुछ भी कर सकते हो…? तुम मेरी बहन को वापस ला सकते हो..?” अंकित ने अब उसके खुद के संवाद बोले.

“नही… में वह कैसे कर सकता हूँ..? वह अगर मेरे हाथ मे होता तो में ज़रूर करता.. वह एक चीज़ छोड़कर कुछ भी माँगो… में तुम्हारे लिए करूँगा…” अंकित गुड्डे के संवाद बोलने लगा.

“अच्छा…. तो फिर अब मरने के लिए तैय्यार हो जाओ…”अंकित ने उस गुड्डे से कहा.

वह पड़ोस का आदमी अब भी अंकित के खिड़की से छुपकर अंदर झाँक रहा था.

क्रमशः……………………
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09-02-2018, 12:14 PM,
#27
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--12

गतान्क से आगे………………………

आधी रात होकर उपर काफ़ी समय गुजर चुक्का था. बाहर रास्ते पर कोई भी दिख नही रहा था. अंकित धीरे से अपने घर से बाहर आया, चारो और एक नज़र घुमाई. उसके हाथ मे एक थैल्ली थी जिसमे उसने वह गुड्डा ठूंस दिया और दरवाज़े को ताला लगा कर वह बाहर निकल गया. कॉंपाउंड के बाहर आते हुए उसने फिर से अपनी पैनी नज़र चारो और दौड़ाई. सामने रास्ते पर जिधर देखो उधर अंधेरा ही अंधेरा छाया हुआ दिख रहा था. अब रास्ते से वह तेज़ी से अपने कदम बढ़ाते हुए चलने लगा. उस पड़ोस के आदमी ने अपने खिड़की से छुपकर अंकित को बाहर जाते हुए देख लिया. जैसे ही अंकित रास्ते पर आगे चलने लगा वह आदमी अपने घर से बाहर आ गया वह आदमी उसे कुछ आहट ना हो या वह उसे दिखाई ना दे इसका ख़याल रख रहा था. अंकित तेज़ी से अपने कदम आगे बढ़ाते हुए चल रहा था. अंकित काफ़ी आगे निकल जाने के बाद वह आदमी उसके पीछा करते हुए उसके पीछे पीछे जाने लगा.

वह आदमी अंकित का पीछा करते हुए कब्रिस्तान तक पहुँच गया, कब्रिस्तान के आसपास घने पेड थे. शायद उसे पेड़ो मे छुपकर उल्लू मुर्दों की राह देखते होंगे.. काफ़ी दूर कुत्तों के रोने जैसे अजीब सी आवाज़े आ रही थी. उस आदमी को इस सारे माहौल मे डर लग रहा था. लेकिन उसे अंकित यहाँ किस लिए आया है यह जानना था. अंकित कब्रिस्तान मे घुस गया और वह आदमी बाहर ही कॉंपाउंड वॉल के पीछे छुपकर अंकित क्या कर रहा है यह देखने लगा. चाँद के रोशनी मे उस आदमी को अंकित का साया दिखा रहा था. अंकित ने एक जगह तय की और वह वहाँ खोदने लगा. एक गड्ढा खोदने के बाद उसने उसके थैल्ली से वह गुड्डा निकाला. उस गुड्डे को अंकित ने ऐसा दफ़न किया कि मानो वह गुड्डा ना होकर कोई शव हो. वह उपर से मट्टी डालने लगा और मट्टी डालते वक्त भी उसका कुछ मन्त्र तन्त्र जैसे बड़बड़ाना अब भी जारी था. उस गुड्डे के उपर मट्टी डालने के बाद जब वह गड्ढा मट्टी से भर गया तो अंकित उस मट्टी पर खड़ा होकर उसे अपने पैरों से दबाने लगा…

…. वह आदमी कथन कर रहा था और राज ध्यान देकर सुन रहा था, उस आदमी ने आगे कहा –

“दूसरे दिन जब मुझे पता चला कि चंदन का कत्ल हो चुका है तब मुझे विश्वास नही हुआ…”

काफ़ी देर तक कोई कुछ नही बोला. अब इन सारी बातों ने एक नया ही मोड़ लिया था.

राज सोच ने लगा.

“तुम्हे क्या लगता है अंकित खूनी होगा…?” राज ने अपने इनवेस्टिगेटर की भूमिका मे प्रवेश करते हुए पूछा.

“नही… मुझे लगता है कि वह उसका काला जादू इन सारे कत्ल करने के लिए इस्तेमाल करता होगा.. क्योंकि जिस दिन सुनील का कत्ल हुआ उसके पहले दिन रात को अंकित ने वैसा ही एक गुड्डा बनाकर उसे कब्रिस्तान मे दफ़न किया था…” उस आदमी ने कहा.

“तुम इन सारी चीज़ों मे विश्वास रखते हो..?” राज ने थोड़ा व्यंगात्मक ढंग से ही पूछा.

“नही.. में विश्वास नही रखता… लेकिन जो अपनी खुली आँखों से सामने दिख रहा हो उन चीज़ों पर विश्वास रखना ही पड़ता है…” उस आदमी ने कहा.

राज का पार्ट्नर जो इतनी देर से दूर से सब उनकी बातें सुन रहा था, चलते हुए उनके पास आकर बोला –

“मुझे पहले ही शक था कि क़ातिल कोई आदमी ना होकर कोई रूहानी ताक़त है…”

सारे कमरे मे एक सन्नाटा फैल गया.

“अब उसने और एक नया गुड्डा बनाया हुआ है…” उस आदमी ने कहा.

अंकित के मकान के खिड़की से अंदर का सबकुछ दिख रहा था. आज भी वह फाइयर्प्लेस के सामने बैठा हुआ था. उसने अपने हाथ से वह गुड्डा बगल मे ज़मीन पर रख दिया और झुककर आग के सामने फर्शपर अपना मस्तक रगड़ने लगा. यह सब करते हुए उसका कुछ बड़बड़ाना जारी ही था. थोड़ी देर से वह खड़ा हो गया और अजीब ढंग से ज़ोर से किसी पागल की तरह चीखा. इतना अचानक और ज़ोर से चीखा कि बाहर खिड़की से झाँक रहे राज , पवन और उनको साथ मे जो लेकर आया था वह आदमी, सब्लोग चौंक कर सहम से गये. उस चीख के बाद वातावरण मे एक अजीब भयानक सन्नाटा छा गया.

"मिस्टर. अशोक अब तुम्हारी बारी है..." अंकित वह नीचे रखा हुआ गुड्डा अपने हाथ मे लेते हुए बोला.

लेकिन इतने मे दरवाज़े के बेल बजी. अंकित ने पलटकर दरवाज़े की तरफ देखा. गुड्डो को फिर से नीचे ज़मीन पर रख दिया और उठकर दरवाज़ा खोलने के लिए सामने आ गया.

दरवाज़ा खोला, सामने राज और पवन था, वह तीसरा आदमी शायद वहाँ से पहले ही खिसक गया था.

"मिस्टर. अंकित हम आपको चंदन और सुनील के कत्ल के एक सस्पेक्ट के तौर पर गिरफ्तार करने आए है... आपको चुप रहने का पूरी तरह हक है.. और कुछ बोलने के पहले आप अपने वकील के साथ संपर्क कर सकते है.. और ख़याल रहे कि आप जो भी बोलेगे वह कोर्ट मे आपके खिलाफ इस्तेमाल किया जाएगा..." राज ने दरवाज़ा खोलते ही बराबर एलान कर दिया.

अंकित का चेहरा एकदम भावशून्य था, वह बड़े इम्तिनान के साथ उनके सामने आ गया.

उसे अरेस्ट करने के पहले राज ने कुछ सवाल पूछने की ठान ली.

"यहाँ आपके साथ कौन-कौन रहता है...?"राज ने पहला सवाल पूछा.

"में अकेला ही रहता हूँ..." उसने जवाब दिया.

"लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार आपके साथ आपके पिताजी भी रहते थे..."

"हाँ रहते थे... लेकिन... अब वे इस दुनिया मे नही रहे..."

"ओह्ह... सॉरी.. यह कब हुआ...? मतलब वे कब गुजर गये..?"

"मीनू की मौत की खबर सुनने के बाद कुछ दिन मे ही वे चल बसे..."

"अच्छा आप चंदन और सुनील को पहचानते थे क्या...?"

"हाँ उन हैवानो को में अच्छी तरह से पहचानता हूँ..."

चंदन और सुनील का नाम लेने के बाद राज ने एक बात गौर की कि उनके उपर का गुस्सा और द्वेष उसके चेहरे पर सॉफ झलक रहा था. या फिर उसने वह छिपाने की कोशिश भी नही की थी..

अब राज ने सीधे असली मुद्दे पर उससे बात करने की ठान ली...

"आपने चंदन और सुनील का खून किया क्या...?"

"हाँ..." उसने ठंडे स्वर मे कहा.
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09-02-2018, 12:14 PM,
#28
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
राज को लगा था कि वह आनाकानी करेगा... लेकिन उसने कुछ भी आनाकानी ना करते हुए सीधे बात कबुल कर ली...

"कैसे किया आपने उनका कत्ल...?" राज ने अगला सवाल पूछा.

"मेरे पास के काले जादू से मेने उन्हे मार दिया..." उसने कहा.

अंकित पागल की तरफ दिखता तो था ही लेकिन उसके इस जवाब से राज को विश्वास हो चला था.

"आपके इस काले जादू से आप किसी को भी मारकर बता सकते हो...?" राज ने व्यंगात्मक ढंग से पूछा.

"किसी को भी में क्यों मारूँगा...? जिसकी मुझ से दुश्मनी है उसको ही में मारूँगा..."

"अब आगे आप इस काले जादू से किस को मारने वाले हो...?"

"अब अशोक का नंबर है..."

"अब अभी इसी वक्त आप उसे मारकर बता सकते हो...?" राज ने उसका काला जादू और वह दोनो का भी झूठ साबित करने के उद्देश्य से पूछा.

"अब नही... उसका वक्त अब जब आएगा तब उसे ज़रूर मारूँगा.." उसने कहा.

उसका यह जवाब सुनकर राज को अब फिलहाल उसे और सवाल पूछने मे कोई दिलचस्पी नही रही थी. वे दोनो अंकित को हथकड़ी पहनाने के लिए सामने आ गये. इस बार भी उसने कोई प्रतिकार ना करते हुए पूरा सहयोग किया.

राज को लग रहा था कि या तो यह आदमी पागल होगा या अति चालाक...

लेकिन वह जो कहता है वह अगर सच हो तो...?

पल भर के लिए क्यों ना हो राज के दिमाग़ मे यह विचार कौंध गया...

नही.. ऐसे कैसे हो सकता है...?

राज ने अपने दिमाग़ मे आया विचार झटक दिया.

राज के पार्ट्नर पवन ने अंकित को जैल की एक कोठरी मे बंद किया और बाहर से ताला लगाया. राज बाहर ही खड़ा था. जैसे ही राज और उसका पार्ट्नर वहाँ से जाने के लिए मुड़े, अंकित आवेश मे आकर चिल्लाया -

"तुम लोग मूर्ख हो... भले ही तुमने मुझे जैल की इस कोठरी बंद किया फिर भी मेरा जादू यहाँ से भी काम करेगा..."

राज और पवन रुक गये और मुड़कर अंकित की तरफ देखने लगे.

राज को अंकित पर अब दया आ रही थी..

बेचारा...

बहन का इस तरह से अंत होने से इस तरह झुंझलाना जायज़ है...

राज सोचते हुए फिर से अपने साथी के साथ आगे चलने लगा. थोड़ी दूरी तय करने के बाद फिर से मुड़कर उसने अंकित की तरफ देखा. वह अब नीचे झुक कर फर्शपर माथा रगड़ रहा था और साथ मे कुछ मन्त्र बड़बड़ा रहा था.

"इसके उपर ध्यान रखो और इसे किसी भी विज़िटार को मिलने की अनुमति मत दो..." राज ने निर्देश दिया.

"यस सर..." राज का पार्ट्नर आग्याकारी ढंग से बोला.

अशोक का घर और आसपास का इलाक़ा पूरी तरह रात के अंधेरे मे डूब गया था. बाहर आसपास झींगुरा का कीरर्र.... ऐसी आवाज़ और दूर कहीं कुत्तों के रोने जैसे आवाज़ आ रही थी. अचानक घर के पास एक पेड पर आसरे के लिए बैठे पंछी डर के मारे फड़फड़ा कर उड़ने लगे.

दो पोलीस मेंबर्ज़ टीवी के सामने बैठकर अशोक के घर मे चल रही सारी हरकतों का निरीक्षण कर रहे थे. अशोक के घर के बगल मे ही एक गेस्ट रूम मे उन्हे जगह दी गयी थे. उन दो पोलीस मेंबर्ज़ के सामने टीवी पर बैचेनी से करवट बदल ता और सोने की कोशिश कर रहा अशोक दिख रहा था.

"इससे अच्छा किसी सेक्सी दंपति की टीवी पर निगरानी करना मैने कभी भी पसंद किया होगा..." उनमे से एक पोलीसवाले ने मज़ाक मे कहा.

और दूसरे पोलीस वाले को उसके मज़ाक मे बिल्कुल दिलचस्पी नही दिख रही थी.

तभी अचानक एक मॉनीटौर पर कुछ हरकत दिखाई दी. एक काली बिल्ली बेडरूम मे दौड़ते हुए इधर से उधर गयी थी.

"आए देख वहाँ अशोक के बेडरूम मे एक काली बिल्ली है..." एक ने कहा.

"यहाँ क्या हम कुत्ते बिल्लियों के हरकतों पर नज़र रखने के लिए बैठे है...? मेरे बाप को अगर पता होता कि एक दिन में ऐसे मॉनिटूर पर कुत्ते बिल्लियों की हरकतों पर नज़र रखे बैठनेवाला हूँ... तो वह मुझे कभी पोलीस मे नही जाने देता..." एक पोलीस ऑफीसर ने ताना मारते हुए कहा.

अचानक उस बिल्ली ने कोने मे रखे एक चोरस डिब्बेपार छलाँग लगाई... और इधर इन दोनो के सामने रखे हुए सारे मॉनीटौर्स ब्लॅंक हो गये.

"आए क्या हुआ...?" एक ऑफीसर कुर्सी से उठकर खड़ा होते हुए बोला.

उसका दूसरा साथी भी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया था.

दोनो का मज़ाक करना कब का ख़त्म हो चुका था. उनके चेहरे पर अब चिंता और हड़बड़ाहट दिख रही थी.

"चल जल्दी... क्या गड़बड़ी हुई यह देख के आते है..." दोनो जल्दी जल्दी कमरे से बाहर निकले...

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09-02-2018, 12:14 PM,
#29
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
एक बेडरूम, बेडरूम मे धुंधली रोशनी फैली हुई थी और बेड पर कोई साया सोया हुआ दिखाई दे रहा था. अचानक बेड के बगल मे रखा टेलिफोन लगातार बजने लगा. उस बेड पर सोए साए ने नींद मे ही अपना हाथ बढ़ाकर वह टेलिफोन उठाया.

"येस..." वह साया कोई और नही राज था.

उधर से उस पोलीस ऑफीसर की आवाज़ आई, "सर अशोक का भी उसी तरह से कत्ल हो चुका है..."

"क्या...?" राज एकदम से बेड से उठकर बैठ गया.

उसने बेड के बगल मे एक बटन दबाकर बेडरूम का बल्ब जलाया. उसकी नींद पूरी तरह से उड़ चुकी थी... लाइट जलते ही बगल मे लेती डॉली भी जाग गयी थी.... और राज क्या बोल रहा है सुन रही थी..

"क्या कहा...?" राज को वह जो सुन रहा था उसपर विश्वास नही हो रहा था.

"सर अशोक का भी कत्ल हो चुका है..."

"इतने कॅमरा लगाकर मॉनिटर पर लगाकर तुम लोग लगातार निगरानी कर रहे थे... तब भी...? तुम लोग वहाँ निगरानी कर रहे थे या झक मार रहे थे...?" राज ने चिढ़कर कहा.

"सर वह क्या हुआ... एक बिल्ली ने ट्रांस मीटर के उपर छलाँग लगाई और सारे मॉनीटौर एकदम से बंद हो गये... तो भी हम रिपेर करने के लिए वहाँ गये थे... और वहाँ जाकर देखा तो तब तक कत्ल हो चुका था..." ऑफीसर अपनी तरफ से सफाई देने का प्रयास कर रहा था.

जैसे ही ऑफीस का फोन आया, तैय्यार करके राज डॉली को एक किस करके तुरंत अशोक के घर की तरफ रवाना हुआ.

इतना फुल प्रूफ इतजाम होने के बाद भी अशोक का कत्ल होता है... इसका मतलब क्या...?

पहले ही पोलीस की इमेज लोगों मे काफ़ी खराब हो चुकी थी...

और इसबार पूरा विश्वास था कि क़ातिल अब इस कॅमरा के जाल से छूटना नामुमकिन है...

फिर कहाँ गड़बड़ हुई...?

गाड़ी स्पीड से चलते हुए राज के विचार भी तेज़ी से दौड़ रहे थे.

राज ने बेडरूम मे प्रवेश किया. बेडरूम मे अशोक की डेड बॉडी उसी हाल मे बेड पर पड़ी हुई थी. सब तरफ खून ही खून फैला हुआ दिख रहा था. राज ने बॉडी की प्राथमिक झांच की और फिर कमरे की झांच की. वो दोनो पोलीस ऑफीसर भी वहीं थे. पोलीस की इन्वेस्टिफेशन टीम जो वहाँ अभी अभी पहुँच गयी थी, अपने काम मे व्यस्त थी.

"मिल रहा है कुछ...?" राज ने उन्हे पूछा.

"नही सर... अब तक तो कुछ नही..." राज का एक पार्ट्नर उनकी तरफ से बोला.

राज ने बेडरूम मे आराम से चलते हुए और सबकुछ ध्यानपूर्वक निहाराते हुए एक चक्कर मारा. चक्कर मारने के बाद राज फिर से बेडके पास आकर खड़ा हो गया और उसने बेड के नीच झुक कर देखा.

बेड के नीचे से दो चमकती हुई आँखें उसकी तरफ घुरकर देख रही थी. एक पल के लिए क्यों ना हो राज डर कर थोड़ा पीछे हट गया. वे चमकती हुई आँखें फिर धीरे धीरे उसकी दिशा मे आने लगी और अचानक हमला किया जैसे उसपर झपट पड़ी. वह झट से वहाँ से हट गया. उसे एक गले मे पट्टा पहनी हुई काली बिल्ली बेड के नीचे से बाहर आकर दरवाज़े से बेडरूम के बाहर दौड़ कर जाते हुए दिखाई दी. दरवाज़े से बाहर जाते ही वह बिल्ली एकदम रुक गयी और उसने मुड़कर पीछे देखा. कमरे मे एक अजीब सा सन्नाटा छा गया था. उस बिल्ली ने एक दो पल राज की तरफ देखा और फिर से मुड़कर वह वहाँ से भाग गयी. दो तीन पल कुछ भी ना बोलते हुए गुजर गये.

"यही वह बिल्ली है... सर..." एक ऑफीसर ने कमरे मे सन्नाटे को भंग किया.

"ट्रॅन्समिशन बॉक्स किधर है....?" बिल्ली से राज को याद आ गया.

"सर यहाँ..." एक ऑफीसर ने एक जगह कोने मे इशारा करते हुए कहा.

क्रमशः……………………
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09-02-2018, 12:14 PM,
#30
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--13

गतान्क से आगे………………………

वह बॉक्स नीचे ज़मीन पर गिरा हुआ था. राज नज़दीक गया और उसने वह बॉक्स उठाया. वह टूटा हुआ था. राज ने वह बॉक्स उलट पुलट कर गौर से देखा और वापस जहाँ से उठाया था वहीं रख दिया. तभी बेडरूम के दरवाज़े की तरफ राज का यूँही ख़याल गया. हमेशा की तरह दरवाज़ा तोड़ा हुआ था. लेकिन इसबार अंदर के कुण्डी को चैन लगाकर ताला लगाया हुआ था.

"पवन... ज़रा इधर तो आओ..." राज ने पवन को बुलाया.

पवन जल्दी से राज के पास चला गया.

"यह इधर देखो.. और अब बोलो तुम्हारी थेऔरी क्या कहती है.. कत्ल करने के बाद दरवाज़ा बंद कर अंदर से चैन लगाकर ताला कैसे लगाया होगा...?" राज ने उस कुण्डी को लगाए चैन और ताले की ओर उसका ध्यान खींचते हुए कहा.

पवन ने उस चैन और ताला लगाए कुण्डी की तरफ ध्यान से देखते हुए कहा, "सर.. अब तो मुझे पक्का विश्वास होने लगा है..."

"किस बात का...?"

"कि क़ातिल कोई आदमी ना होकर कोई रूहानी ताक़त हो सकती है..." पवन पागलों की तरह कहीं शुन्य मे देखते हुए बोला.

सब लोग ग़ूढ भाव से एक दूसरे की तरफ देखने लगे.

राज पोलीस स्टेशन मे बैठकर एक एक बात के उपर गौर से सोच रहा था और अपने पार्ट्नर के साथ बीच बीच मे चर्चा कर रहा था.

"एक बात तुम्हारे ख़याल मे आ गई क्या...?" राज ने शुन्य मे देखते हुए अपने पार्ट्नर से पूछा.

"कौन सी ...?" उसके पार्ट्नर ने पूछा.

"अबतक तीन कत्ल हुए है.... बराबर...?"

"हाँ.... तो...?"

"तीनो कत्ल के पहले अंकित को यह अच्छी तरह से पता था कि अगला कत्ल किसका होनेवाला है..." राज ने कहा.

"हाँ बराबर..."

"और तीसरे कत्ल के वक्त तो अंकित कस्टडी मे बंद था..." राज ने कहा...

"हाँ बराबर है..." पार्ट्नर ने कहा...

"इसका मतलब क्या...?" राज ने मानो खुद से सवाल पूछा हो..

"इसका मतलब सॉफ है कि उसका काला जादू जैल के अंदर से भी काम कर रहा है..." पार्ट्नर मानो उसे एकदम सही जवाब मिला इस खुशी से बोला...

"बेवकूफ़ की तरह कुछ भी मत बको..." राज उसपर गुस्से से चिल्लाया.

"ऐसी बात बोलो कि वह किसी भी तर्कसंगत बुद्धि को हजम हो..."राज अपना गुस्सा काबू मे रखने की कोशिश करते हुए उससे आगे बोला...

बहरहाल राज के पार्ट्नर का खुशी से दमकता चेहरा मुरझा गया.

काफ़ी समय बिना कुछ बात किए शांति से बीत गया.

राज ने आगे कहा, "सुनो, जब हम अंकित के घर गये थे तब एक बात हमने बड़ी स्पष्ट से गौर की..."

"कौन सी...?"

"कि अंकित के मकान मे इतनी खिड़कियाँ थी कि उसके पड़ोस मे किसी को भी उसके घर मे क्या चल रहा है यह स्पष्ट रूप से दिख और सुनाई दे सकता है.."राज ने कहा..

"हाँ बराबर..." उसका पार्ट्नर कुछ ना समझते हुए बोला...

अचानक एक विचार राज के दिमाग़ मे कौंध गया. वह एकदम उठकर खड़ा हो गया. उसके चेहरे पर गुत्थी सुलझाने का आनंद झलक रहा था.

उसका पार्ट्नर भी कुछ ना समझते हुए उसके साथ खड़ा हो गया.

"चलो जल्दी..."राज जल्दी जल्दी दरवाज़े की तरफ जाते हुए बोला...

उसका पार्ट्नर कुछ ना समझते हुए सिर्फ़ उसके पीछे पीछे जाने लगा...

एक दम ब्रेक लगे जैसे राज दरवाज़े मे रुक गया.

"अच्छा तुम एक काम करो... अपने टीम को स्पेशल मिशन के लिए तैय्यार रहनेके लिए बोल दो..." राज ने अपने पार्ट्नर को आदेश दिया.

उसका पार्ट्नर पूरी तरह गड़बड़ा गया था. उसके बॉस को अचानक क्या हुआ यह उसके समझ के परे था....

स्पेशल मिशन...?

मतलब कहीं क़ातिल मिला तो नही...?

लेकिन उनकी जो अभी अभी चर्चा हुई थी उसका और क़ातिल मिलने का दूर दूर तक कोई वास्ता नही दिख रहा था...

फिर स्पेशल मिशन किस लिए..?

राज का पार्ट्नर सोचने लगा. वह राज को कुछ पूछने ही वाला था इतने मे राज दरवाज़े के बाहर जाते जाते फिर से रुक गया और पीछे मुड़कर बोला,

"चलो जल्दी करो..."

उसका पार्ट्नर तुरंत हरकत मे आगया.

जाने दो मुझे क्या करना है...?

स्पेशल मिशन तो स्पेशल मिशन...

राज के पार्ट्नर ने पहले टेबल से फोन उठाया और एक नंबर डाइयल करने लगा.

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