Chodan Kahani इंतकाम की आग
09-02-2018, 12:07 PM,
#11
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
राज के हाथ अब डॉली की मोटी गान्ड पे था जिसे उन्होने हाथ से थोड़ा सा उपेर उठा रखा था ताकि लंड पूरा अंदर तक घुस सके. वो उसके दोनो निपल्स पे अब भी लगा हुआ था और बारी बारी दोनो चूस रहा था.

डॉली की दोनो टाँगें हवा में थी जिन्हें वो चाहकर भी नीचे नही कर पा रहे थी क्यूंकी जैसे ही घुटने नीचे को मोडती तो जांघों की नसे अकड़ने लगती जिससे बचने के लिए उसे टांगे फिर हवा में सीधी करनी पड़ती.

कमरे में बेड की आवाज़ ज़ोर ज़ोर से गूँज रही थी.डॉली की गान्ड पे राज के अंडे हर झटके के साथ आकर टकरा रहे थे. दोनो के जिस्म आपस में टकराने से ठप ठप की आवाज़ उठ रही थी.

राज के धक्को में अब तेज़ी आ गयी थी. आच्चनक एक ज़ोर का धक्का डॉली के चूत पे पड़ा, लंड अंदर तक पूरा घुसता चला गया और उसकी चूत में कुछ गरम पानी सा भरने लगा. उसे एहसास हुआ के राज झाड़ चुका हैं. मज़ा तो उसे क्या आता बल्कि वो तो शुक्र मना रही थी कि काम ख़तम हो गया.

राज अब उसके उपेर गिर गया था. लंड अब भी चूत में था, हाथ अब भी डॉली के गान्ड पे था और मुँह में एक निपल लिए धीरे धीरे चूस रहा था. डॉली ने एक लंबी साँस छोड़ी और गुस्से से राज को परे धकेल दिया. राज तब अपनी तंद्रा से जगा और उससे माफी माँग ने लगा.

वो बोला की सौरी जान मुझे आज क्या हुआ मुझे ही पता नही चल रहा था. प्लीज़ बुरा मत मान ना. डॉली कुछ नही बोली और चुप चाप पड़ी रही. राज को भी लगा अब इससे बात करना ठीक नही है कल सुबह देख लेंगे और वो भी चुप चाप पड़ा रहा कब उसे नींद आ गयी पता ही नही चला.

लेकिन उसके बगल मे पड़ी डॉली सूबक रही थी… वो सोच रही थी ना जाने आज राज को क्या हुआ था… इस चुदाई से वो भी थक चुकी थी इसलिए उसे भी कब नींद आ गयी पता ही नही चला.

उधर राज की काम क्रीड़ा चल रही थी लेकिन इधर एक शख्स बहुत डिस्टर्ब लग रहा था. नाम अशोक, ऊम्र 32 के आस पास, स्टाइलिस्ट,, अपने बेडरूम मे सोया था. वह रह रह कर बेचैनी से अपनी करवट बदल रहा था. इससे ऐसा लग रहा था की आज उसका दिमाग़ कुछ जगह पर नही था. क्यूँ ना हो जिसके दो दोस्तो का कत्ल इतने बेरेहमी किया गया हो. उसे डर क्यों ना हो और नींद भी क्यूँ आएगी.

थोड़ी देर करवट बदल कर सोने की कोशिश करने के बाद भी उसे नींद नही आ रही थी यह देख कर वह बेड से उठ कर बाहर आ गया, इधर उधर एक नज़र दौड़ाई और फिर से बेड पर जाकर बैठ गया.

उसने बेड के बगल मे रखा एक मॅगज़ीन उठाया और उसे खोल कर पढ़ते हुए फिर से बेड पर लेट गया. वह उसे मॅगज़ीन के पन्ने, जिस पर लड़कियों की नग्न तस्वीरे छपी थी, पलट ने लगा.

सेक्स ईज़ दा बेस्ट वे टू डाइवर्ट युवर माइंड…..

उसने सोचा. आच्चनक दूसरे कमरे से ‘धप्प’ ऐसा कुछ आवाज़ उसे सुनाई दिया. वह चौंक कर उठ बैठा, मॅगज़ीन बगल मे रख दिया और वैसे ही डरे सहमे हाल मे वह बेड से नीचे उतर गया.

यह कैसी आवाज़ थी…

पहले तो कभी नही आई थी ऐसी आवाज़…

लेकिन आवाज़ आने के बाद में इतना क्यों चौंक गया…

या हो सकता है आज अपनी मन की स्थिति पहले से ही अच्छी ना होने से ऐसा हुआ होगा….

धीरे धीरे इधर उधर देखते हुए वह बेडरूम के दरवाजे के पास गया. दरवाजे की कुण्डी खोली और धीरे से थोड़ा सा दरवाजा खोल कर अंदर झाँक कर देखा.

सारे घर मे ढूँढ ने के बाद अशोक ने हॉल मे प्रवेश किया. हॉल मे घना अंधेरा था. हॉल मे लाइट जला कर उसने डरते हुए ही चारो तरफ एक नज़र दौड़ाई….

लेकिन कुछ भी तो नही…

सब कुछ वहीं का वही रखा हुआ था…

उसने फिर से लाइट बंद किया और किचन की तरफ निकल पड़ा.

किचन मे भी अंधेरा था. वहाँ का लाइट जला कर उसने चारो तरफ एक नज़र दौड़ाई. अब उसका डर काफ़ी कम हो चुका था….

कहीं कुछ तो नही…

इतना डर ने कुछ ज़रूरत नही थी…

वह पलट ने के लिए मुड़ने ही वाला था कि किचन मे सिंक मे रखी किसी चीज़ ने उसका ध्यान आकर्षित किया. उसकी आँखें आस्चर्य और डर की वजह से बड़ी हुई थी. एक पल मे इतनी ठंड मे भी उसे पसीना आया था. हाथ पैर कांप ने लगे थे. उसके सामने सिंक मे खून से सना एक माँस का टुकड़ा रखा हुआ था.

क्रमशः…………………..
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09-02-2018, 12:07 PM,
#12
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--7

गतान्क से आगे………………………

एक पल का भी समय ना गँवाते हुए वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ, क्या किया जाय उसे कुछ सूझ नही रहा था. गड़बड़ाये और घबराए हुए हाल मे वह सीधा बेडरूम मे भाग गया और उसने अंदर से कुण्डी बंद कर ली थी.

इंस्पेक्टर राज बॅडमिंटन खेल रहा था. रोजमर्रा के तनाव से मुक्ति के लिए यह एक अच्छा उपाय उसने ढूँढा था. इतने मे अचानक राज का मोबाइल बजा. राज ने डिसप्ले देखा, लेकिन फोन नंबर पहचान का नही लग रहा था. उसने एक बटन दबाकर फोन अटेंड किया, “एस…”

“इंस्पेक्टर धरम हियर….” उधर से आवाज़ आया.

“हाँ बोलो धरम….” राज दूसरे सर्विस की तैय्यारि करते हुए बोला.

“मेरे जानकारी के हिसाब से आप हाल ही मे चल रहे सीरियल किल्लर केस के इंचार्ज हो…. बराबर…?” उधर से धरम ने पूछा….

“जी हाँ…” राज ने सीरियल किल्लर का ज़िकरा होते ही अगला गेम खेलने का विचार त्याग दिया और वह आगे क्या बोलता है यह ध्यान से सुन ने लगा.

“अगर आपको कोई ऐतराज ना हो… मतलब अगर आज आप फ्री हो तो…. क्या आप इधर मेरे पोलीस स्टेशन मे आ सकते हो…? मेरे पास इस केस के बारे मे कुछ महत्वपूर्ण जानकारी है… शायद आपके काम आएगी…”

“ठीक है… कोई बात नही…” राज ने कहा.

राज ने धरम से फोन पर मिलने का वक्त वाईगेरह सब तय किया.

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पोलीस स्टेशन मे इंस्पेक्टर राज इंस्पेक्टर धरम के सामने बैठा हुआ था. इंस्पेक्टर धरम इस पोलीस स्टेशन का इंचार्ज था. इंस्पेक्टर धरम का फोन आने के पासचात बॅडमिंटन का अगला गेम खेलने की राज की इच्छा ही ख़तम हो चुकी थी. अपना सामान इकठ्ठा कर वह ताबड़तोड़ तैय्यारि कर अपने पोलीस स्टेशन मे जाने के बजाय इधर निकल आया था.

उनका ‘हाई हेलो’ – सब फरमॅलिटीस होने के बाद अब इंस्पेक्टर धरम के पास उसके केस के बारे मे क्या जानकारी है यह सुन ने के लिए वह उसके सामने बैठ गया. इंस्पेक्टर धरम ने सब जानकारी बताने के लिए पहले एक बड़ा पोज़ लिया. इंस्पेक्टर राज भले ही अपने चेहरे पर नही आने दे रहा था फिर भी सब जानकारी सुन ने के लिए वह बेताब हो चुका था और उसकी उत्सुकता भी सातवे आसमान पर पहुच चुकी थी.

इंस्पेक्टर धरम जानकारी देने लगा –

“कुछ दिन पहले मेरे पास एक केस आया था…..

… एक सुंदर शांत टाउन… टाउन मे हरी भरी घास और हारे भरे पेड चारों तरफ फैले हुए थे और उस हरियाली मे रात मे तारे जैसे आकाश मे समूह – समूह से चमकते है वैसे छोटे छोटे समूह मे इधर उधर फैले हुए थे. उसी हरियाली मे गाँव के बीचो बीच एक पुरानी कॉलेज की बिल्डिंग थी.

कॉलेज के गलियारे मे स्टूडेंट्स की भीड़ जमी हुई थी. शायद ब्रेक टाइम होगा. कुछ स्टूडेंट्स समूह मे गप्पे मार रहे थे तो कुछ इधर उधर घूम रहे थे. शरद लग भग 21-22 साल का, स्मार्ट हॅंडसम कॉलेज का स्टूडेंट और उसका दोस्त सुधीर दोनो साथ साथ बाकी स्टूडेंट्स के भीड़ से रास्ता निकलते हुए चल रहे थे.

“सुधीर चलो शमशेर के क्लास मे जाकर बैठते है… बहुत दिन हुए है हमने उसका क्लास अटेंड नही किया है…” शरद ने कहा.

“किस के …? शमशेर के क्लास मे..? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना…?” सुधीर ने आस्चर्य से पूछा.

“अरे नही… मतलब अब तक वह जमा हुआ है या छोड़ कर गया यह देख कर आते है…” शरद ने कहा.

दोनो एक दूसरे को ताली देते हुए, शायद पहले का कोई किस्सा याद कर ज़ोर से हंस ने लगे.

चलते हुए अचानक शरद ने सुधीर को अपनी कोहनी मारते हुए बगल से जा रहे एक लड़के की तरफ उसका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया. सुधीर प्रश्नर्थक मुद्रा मे शरद की तरफ देखा.

शरद धीमे आवाज़ मे उसके कान के पास बड़बड़ाया, “यही वह लड़का… जो आज कल अपने हॉस्टिल मे चोरियाँ कर रहा है…”

तब तक वह लड़का उनको क्रॉस होकर आगे निकल गया था. सुधीर ने पीछे मुड़कर देखा. हॉस्टिल मे सुधीर की भी कुछ चीज़े भी गायब हो चुकी थी.

“तुम्हे कैसे पता…” सुधीर ने पूछा.

“उसके तरफ देख तो ज़रा… कैसा कैसा कसे हुए चोरों की ख़ानदान से लगता है साला…” शरद ने कहा.

“अरे सिर्फ़ लगने से क्या होगा… हमे कुछ सबूत भी तो चाहिए…” सुधीर ने कहा.

“मुझे संतोष भी कह रहा था… देर रात तक वह भूतों की तरह हॉस्टिल मे सिर्फ़ घूमता रहता है…”

“अच्छा ऐसी बात है… तो फिर चल… साले को सीधा करते है…”

“ऐसा सीधा करेंगे कि साला ज़िंदगी भर याद रखेगा…”

“सिर्फ़ याद ही नही… साले को बर्बाद भी करेंगे…”
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09-02-2018, 12:08 PM,
#13
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
फिर से दोनो ने कुछ फ़ैसला किए जैसे एक दूसरे की ज़ोर से ताली बजाई और फिर से ज़ोर से हंस ने लगे.

रात को हॉस्टिल के गलियारे मे घना अंधेरा था, गलियारे के लाइट्स या तो किसी ने चोरी किए होंगे या लड़को ने तोड़ दिए होंगे. एक काला साया धीरे धीरे उस गलियारे मे चल रहा था, और वहाँ से थोड़ी ही दूरी पर शरद, सुधीर और उसके दो दोस्त संतोष और एक साथी एक खंबे के पीछे छुप कर बैठे थे. उन्होने पक्का फ़ैसला किया था कि आज किसी भी हाल मे इस चोर को पकड़ कर हॉस्टिल की लगभग रोज होने वाली चोरियाँ रोकनी है. काफ़ी समय से वे वहाँ छिप कर चोर की राह देख रहे थे. आख़िर वह साया उन्हे दिखते ही उनके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गयी.

चलो इतने देर से रुके.... आख़िर मेहनत रंग लाई...

खुशी के मारे उनमे खुसुर फुसुर होने लगी.

"आए चुप रहो... यही अच्छा मौका है... साले को रंगे हाथ पकड़ने का" शरद ने सबको चुप रहने की हिदायत दी.

वे वहाँ से छिपते हुए सामने जाकर एक दूसरे खंबे के पीछे छुप गये.

उन्होने चोर को पकड़ ने की पूरी प्लॅनिंग और तैय्यारि कर रखी थी. चारों ने आपस मे काम बाँट लिया था. उन चारों मे एक लड़का अपने कंधे पर एक काला ब्लंकेट संभाल रहा था.

"देखो.... वह रुक गया.... साले की रपट ही करेंगे..."शरद धीरे से बोला.

वह साया गलियारे मे चलते हुए एक रूम के सामने रुक गया.

"अरे ये किस की रूम है वह...?" संतोष ने पूछा.

"अंकिता की...." सुधीर ने धीमे स्वर मे जवाब दिया.

वह काला साया अंकिता के दरवाजे के सामने रुका और अंकिता के दरवाजे के की होल मे अपने पास की चाबी डालकर घूमने लगा.

"देखो उसके पास चाबी भी है..." शरद फुसफुसाया.

"मास्टर के होगी..." सुधीर ने कहा.

"या ड्यूप्लिकेट बनाकर ली होगी साले ने..." संतोष ने कहा.

"अब तो वह बिल्कुल मुकर नही पाएगा... हम उसे अब राइड हॅंड पकड़ सकते है..." शरद ने कहा.

शरद और सुधीर ने पीछे मुड़कर उनके दो साथियों को इशारा किया.

"चलो... यह एकदम सही वक्त है..." सुधीर ने कहा.

वह साया अब ताला खोलने की कोशिश करने लगा.

सब लोगों ने एकदम उस काले साए पर हल्ला बोल दिया. सुधीर ने उस साए के शरीर पर उसके दोस्त के कंधे पर जो था वह ब्लंकेट लपेट दिया और शरद ने उस साए को ब्लंकेट के साथ कस कर पकड़ लिया.

"पहले साले को मारो..." संतोष चिल्लाया.

सब लोग मिल कर अब उस चोर की धुलाई करने लगे.

"कैसा हाथ आया रे साले..." सुधीर ने कहा.

"आए साले... दिखा अब कहाँ छुपा कर रखा है तूने हॉस्टिल का सारा चोरी किया हुआ माल..." संतोष ने कहा.

ब्लंकेट के अंदर से 'आह उउउः' ऐसा दबा हुआ स्वर आने लगा.

अचानक सामने का दरवाजा खुला और अंकिता गड़बड़ाई हुई दरवाजे से बाहर आगयि. शायद उसे उसके रूम के सामने चल रहे धाँधली की आहट हुई होगी. कमरे मे जल रही लाइट की रोशनी अब उस ब्लंकेट मे लिपटे चोर के शरीर पर पड़ गयी.

"क्या चल रहा है यहाँ..." अंकिता घबराए हुए हाल मे हिम्मत बटोरती हुई बोली.

"हमने चोर को पकड़ा है..." सुधीर ने कहा.

"ये तुम्हारा कमरा ड्यूप्लिकेट चाबी से खोल रहा था..." शरद ने कहा.

उस चोर को ब्लंकेट के साथ पकड़े हुए हाल मे शरद को उस चोर के शरीर पर कुछ अजीब सा लगा. धाँधली मे उसने क्या है यह टटोलने के लिए ब्लंकेट के अंदर से अपने हाथ डाले. शरद ने हाथ अंदर डालने से उसकी उस साए पर की पकड़ ढीली हो गयी और वह साया ब्लंकेट से बाहर आगेया.
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09-02-2018, 12:11 PM,
#14
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
"ओह माइ गॉड मीनू!" अंकिता चिल्लाई...

मीनू उनके ही क्लास की एक सुंदर स्टूडेंट थी. वह ब्लंकेट से बाहर आई और अभी भी असमंजस के स्थिति मे शरद उसके दोनो उरोज अपने हाथ मे कस कर पकड़ा हुआ था. उसने खुद को छुड़ा लिया और एक ज़ोर का तमाचा शरद के कान के नीचे जड़ दिया.

शरद को क्या बोले कुछ समझ मे नही रहा था वह बोला, "आइ आम सौरी... आइ आम रियली सौरी..."

"वी आर सौरी..." सुधीर ने भी कहा.

"लेकिन इतने रात गये तुम यहाँ क्या कर रही हो...?" अंकिता मीनू के पास जाते हुए बोली.

"ईडियट... आइ वाज़ ट्राइयिंग टू सर्प्राइज़ यू... तुम्हे जन्मदिन की शुब्कामनाए देने आई थी में.." मीनू उसपर चिढ़ते हुए बोली.

"ओह्ह्ह.... थॅंक यू... आइ मीन सौररी.... आइ मीन आर यू ओके...?" अंकिता को क्या बोले कुछ समझ नही आ रहा था.

अंकिता मीनू को रूम मे ले गयी और शरद फिर से माफी माँगने के लिए रूम मे जाने लगा तो दरवाजा उसके मुँह पर धडाम से बंद हो गया.

क्लास चल रहा था. क्लास मे शरद और सुधीर पास-पास बैठे थे. शरद का ख़याल बिल्कुल क्लास मे नही था. वह बैचेन लग रहा था और अस्वस्थता से क्लास ख़त्म होने की राह देख रहा था उसने एकबार पूरे क्लास पर अपनी नज़र घुमाई, ख़ासकर मीनू की तरफ देखा. लेकिन उसका कहाँ उसकी तरफ ध्यान था? वह तो अपनी नोट्स लेने मे व्यस्त थी. कल रात का वाक़या याद कर शरद को फिर से अपराधी जैसा लगने लगा.

उस बेचारी को क्या लगा होगा....?

इतने सारे लोगों के सामने और अंकिता के सामने मैने...

नही मेने ऐसा नही करना चाहिए था....

लेकिन जो भी हुआ वह ग़लती से हुआ....

मुझे क्या मालूम था कि वह चोर ना होकर मीनू थी...

नही मुझे उसकी माफी माँगनी चाहिए....

लेकिन कल तो मेने उसकी माफी माँगने का प्रयास किया था....

तो उसने धडाम से गुस्से से दरवाज़ा बंद किया था....

नही मुझे वह जब तक माफ़ नही करती तब तक माफी माँगते ही रहना चाहिए...

उसके दिमाग़ मे विचारों का तूफान उमड़ पड़ा था. इतने मे पीरियड बेल बजी. शायद ब्रेक हो गया था.

चलो यह अच्छा मौका है...

उससे माफी माँगने का....

वह उठकर उसके पास जाने ही वाला था इतने मे वह लड़कियों की भीड़ मे कहीं गुम हो गयी थी.

ब्रेक की वजह से कॉलेज के गलियारे मे स्टूडेंट्स की भीड़ जमा हो गयी थी. छोटे छोटे समूह बनाकर गप्पे मारते हुए स्टूडेंट्स सब तरफ फैल गये थे, और उस भीड़ से रास्ता निकालते हुए शरद और सुधीर उस भीड़ मे मीनू को ढूँढ रहे थे.

कहाँ गयी...?

अभी तो लड़कियों की भीड़ मे क्लास से बाहर जाते हुए दिखी थी..

वे दोनो इधर उधर देखते हुए उसे ढूँढ ने की कोशिश करने लगे. आख़िर एक जगह कोने मे उन्हे अपने दोस्तों के साथ बाते करती हुई मीनू दिख गयी.

"चलो मेरे साथ..." शरद ने अपने दोस्तो से कहा.

"हम किस लिए... हम यहीं रुकते है... तुम ही जाओ..." सुधीर ने कहा.

"अबे... साथ तो चलो..." शरद उनको लगभग पकड़कर मीनू के पास ले गया.

जब शरद और सुधीर उसके पास गये तब उसका ख़याल इन लोगों की तरफ नही था. वह अपनी गप्पे मारने मे मशगूल थी. मीनू ने गप्पे मारते हुए एक नज़र उनपर डाली और उनकी तरफ ध्यान ना देते हुए अपनी बातों मे ही व्यस्त रही. शरद ने उसके और पास जाकर उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने का प्रयास किया. लेकिन बार बार वह उनकी तरफ ध्यान ना देते हुए उन्हे टालने का प्रयास कर रही थी. उधर उनसे काफ़ी दूर संतोष गलियारे से जा रहा था वह शरद की तरफ देख कर मुस्कुराया और उसने अपना अंगूठा दिखा कर उसे बेस्ट ऑफ लक विश किया.

"मीनू.... आइ म सौरी..." शरद को इतने लड़को लड़कियों की भीड़ मे शर्म भी आ रही थी. फिर भी धाँढस बाँधते हुए उसने कहा.

मीनू ने एक कॅषुयल नज़र उसपर डाली.

शरद की गड़बड़ी हुई दशा देख कर उसके दोस्तों ने अब सिचुयेशन अपने हाथ मे ली.

"आक्च्युयली हम एक चोर को पकड़ ने की कोशिश कर रहे थे..." सुधीर ने कहा.

"हाँ ना... वह रोज हॉस्टिल मे चोरी कर रहा था..." संतोष उनके करीब आता हुआ बोला.

शरद अब अपनी गड़बड़ी भरी दशा से काफ़ी उभर गया था. उसने फिर से हिम्मत कर अपनी रात जारी रखी, "मीनू... आइ एम सौरी... आइ रियली डिड्न'ट मीन इट... में तो उस चोर को पकड़ने की..."

शरद हाथों के अलग अलग इशारों से अपने भाव व्यक्त करने की कोशिश कर रहा था. वह क्या बोल रहा था और क्या इशारे कर रहा था उसका उसको ही समझ नही आ रहा था. आख़िर वह एक हाव-भाव के पोज़िशन मे रुका. जब वह रुका तब उसके ख़याल मे आया कि, भले ही स्पर्श ना कर रहे हो, लेकिन उसके दोनो हाथ फिर से मीनू के ऊरोजो के आसपास थे. वह मीनू के भी ख़याल मे आया. उसने झट से अपने हाथ पीछे खींच लिए. उसने गुस्से से भरा एक कटाक्ष उसके उपर डाला और फिर से एक ज़ोर का थप्पड़ उसके गालपर जड़ करचिढ़कर बोली, "बदतमीज़...."

इसके पहले कि शरद फिर से संभाल कर कुछ बोले वह गुस्से से पैर पटकती हुई वहाँ से चली गयी थी. जब वह होश मे आया वह दूर जा चुकी थी और शरद अपना गाल सहलाते हुए वहाँ खड़ा था.

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क्रमशः…………………..
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09-02-2018, 12:11 PM,
#15
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--8

गतान्क से आगे………………………

शाम का समय था. अपनी शॉपिंग से लदी हुई बॅग संभालती हुई मीनू फुटपाथ से जा रही थी. वैसे अब खरीदने को कुछ ख़ास नही बच्चा था. सिर्फ़ एक-दो चीज़े खरीदने की बची थी.

वह चीज़े खरीद ली के फिर घर ही वापस जाना है...

वह बची हुई एक-दो चीज़े लेकर जब वापस जाने के लिए निकली तब लगभग अंधेरा होने को आया था और रास्ते पर भी बहुत कम लोग बचे थे. चलते चलते मीनू के अचानक ख़याल मे आया कि बहुत देर से कोई उसका पीछा कर रहा है. उसकी पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत नही बन रही थी. वह वैसे ही चलती रही फिर भी उसका पीछा जारी है इसका उसे एहसास हुआ. अब वह घबरा गयी. पीछे मुड़कर ना देखते हुए वह वैसे ही ज़ोर से आगे चलने लगी.

इतने मे उसे पीछे से आवाज़ आई, "मीनू..."

वह एक पल रुकी और फिर चलने लगी.

पीछे से फिर से आवाज़ आया, "मीनू..."

आवाज़ के लहजेसे नही लग रहा था कि पीछा करने वाले का कोई ग़लत इरादा हो. मीनू नेचलते चलते ही पीछे मुड़कर देखा. पीछे शरद को देखते ही वह रुक गयी. उसके चेहरे पर परेशानी के भाव दिखने लगे.

यह इधर भी....

अब तो सर पटाकने की नौबत आई है...

वह एक बड़ा फूलों का गुलदस्ता लेकर उसके पास आ रहा था. वह देख कर तो उसे एक क्षण लगा भी कि सचमुच अपना सर पटक ले. वह शरद उसके नज़दीक आने तक रुक गयी.

"क्यों तुम मेरा लगातार पीछा कर रहे हो...?" मीनू नाराज़गी जताते हुए गुस्से से बोली.

"मुझ पर एक एहसान कर दो और भगवान के लिए मेरा पीछा करना छोड़ दो..." वह गुस्से से हाथ जोड़ते हुए, उसका पीछा छुड़ा लेने के अविर्भाव मे बोली.

गुस्से से वह पलट गयी और फिर से आगे पैर पटकती हुई चलने लगी. शरद भी बीच मे थोड़ा फासला रखते हुए उसके पीछे पीछे चलने लगा.

शरद फिर से पीछा कर रहा है यह पता चलते ही वह गुस्से से रुक गयी.

शरद ने अपनी हिम्मत बटोर कर वह फूलों का गुलदस्ता उसके सामने पकड़ा और कहा, "आइ एम सौरी...."

मीनू गुस्से से तिलमिलाई. उसे क्या बोले कुछ सूझ नही रहा था. शरद को भी आगे क्या बोले कुछ समझ नही आ रहा था.

"आइ स्वेर, आइ मीन इट.." वह अपने गलेको हाथ लगाकर बोला.

मीनू गुस्से मे तो थी ही, उसने झट से अपने चेहरे पर आ रही बालों की लतें एक तरफ हटाई. शरद को लगा कि वह फिर से जोरदार तमच्चा अपने गालपर जड़ने वाली है. डर के मारे अपनी आँखें बंद कर उसने झट से अपना चेहरा पीछे हटाया.

उसके भी यह ख़याल मे आया और वह अपनी हँसी रोक नही सकी. उसका वह डरा हुआ सहमा हुआ बच्चों के जैसा मासूम चेहरा देख कर वह खिल खिलाकर हंस पड़ी. उसका गुस्सा कब का रफ्फु चक्कर हो गया था. शरद ने आँखें खोल कर देखा. तब तक वह फिर से रास्ते पर आगे चल पड़ी थी. थोड़ी देर चलने के बाद एक मोड़ पर मुड़ने से पहले मीनू रुक गयी, उसने पीछे मुड़कर शरद की तरफ देखा. एक नटखट मुस्कुराहट से उसका चेहरा खिल गया था.

घद्बडाये हुए हाल मे, सम्भ्रह्म मे खड़ा शरद भी उसकी तरफ देख कर मंद मंद मुस्कुराया. वह फिर से आगे चलते हुए उस मोड़ पर मुड़कर उसके नज़रों से ओझल हो गयी. भले ही वह उसके नज़रों से ओझल हुई थी, फिर भी शरद खड़ा होकर उधर मन्त्रमुग्ध होकर देख रहा था. उसे रह रहकर उसकी वह नटखट मुस्कुराहट याद आ रही थी.

वह सचमुच मुस्कुरई थी या मुझे वैसा आभास हुआ...

नही नही आभास कैसे होगा....

यह सच है कि वह मुस्कुराइ थी...

वह मुस्कुराइ इसका मतलब उसने मुझे माफ़ किया ऐसा समझना चाहिए क्या..?

हाँ वैसा समझ ने मे कोई दिक्कत नही...

लेकिन उसका वह मुस्कुराना कोई मामूली मुस्कुराना नही था....

उसके उस मुस्कुराहट मे और भी कुछ ग़ूढ अर्थ छिपा हुआ था...

क्या था वह अर्थ...?

शरद वह अर्थ समझ ने की कोशिश करने लगा और जैसे जैसे वह अर्थ उसके समझ मे आ रहा था उसके भी चेहरे पर वही, वैसी ही मुस्कुराहट फैलने लगी.

धीरे धीरे शरद और मीनू एक दूसरे के नज़दीक खींचते चले गये. उनके दिल मे कब प्रेम का बीज पनपना शुरू हो गया उन्हे पता ही नही चला. झगड़े से भी प्रेम की भावना पनप सकती है यह वे खुद अनुभव कर रहे थे. कॉलेज मे कोई पीरियड खाली होने पर वे मिलते. कॉलेज ख़त्म होनेपर मिलते. लाइब्ररी मे पढ़ाई के बहाने से मिलते थे. मिलने का एक भी मौका वे छोड़ना नही चाहते थे. लेकिन सब छिप छिपकर चल रहा था. उन्होने उनका प्रेम अभी तक किसी के ख़याल मे आने नही दिया था. लेकिन जो किसी के ख़याल मे नही आए उसे प्रेम कैसे कहे...? या फिर एक वक्त ऐसा आता है की प्रेमी इतने बिंदास हो जाते है कि उनका प्रेम किसी के ख़याल मे आएगा या किसी को पता चलेगा इस बात की फिक्र करना वे छोड़ देते है. लोगों को अपना प्रेम पता चले ऐसी भावना भी शायद उनके मन मे आती हो.

काफ़ी रात हो चुकी थी. अपनी बेटी अभी तक कैसे घर वापस नही आई यह चिंता मीनू के पिता को खाए जा रही थी. वे बैचेन होकर हॉल मे चहलकदमी कर रहे थे. वैसे उन्होने मीनू को पूरी छूट दे रखी थी. लेकिन ऐसी गैर ज़िम्मेदाराना वह कभी नही लगी थी. कभी देर होती तो वह घर फोन कर बताती थी. लेकिन आज उसने फोन करने की भी जहमत नही उठाई थी. इतने साल का उसके पिता का अनुभव कह रहा था कि मामला कुछ गंभीर है...

मीनू किसी ग़लत संगत मे तो नही फँस गयी...?

या फिर ड्रग्स वैगेरह की लत तो नही लगी उसे...?

अलग अलग प्रकार के अलग अलग विचार उनके दिमाग़ मे घूम रहे थे. इतने मे उन्हे बाहर कोई आहट हुई.
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09-02-2018, 12:11 PM,
#16
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
एक बाइक आकर घर के कॉंपाउंड के गेट के सामने रुकी. बाइक के पीछे की सीट से मीनू उतर गयी. उसने सामने बैठे शरद के गाल का चुंबन लिया और वह गेट की तरफ निकल दी.

घर के अंदरसे, खिड़की से मीनू के पिता वह सब नज़ारा देख रहे थे. उनके चेहरे से ऐसा लग रहा था कि वे गुस्से से आगबबूला हो रहे थे. अपनी बेटी का कोई बॉय फ्रेंड है यह उनको गुस्सा आने का कारण नही था. कारण कुछ अलग ही था.

हॉल मे सोफेपर मीनू के पिता बैठे हुए थे और उनके सामने गर्दन झुका कर मीनू खड़ी थी.

"इस लड़की के अलावा तुम्हे दूसरा कोई नही मिला क्या...?" उनका गुस्से से भरा गंभीर स्वर गूंजा.

मीनू के मुँह से शब्द नही निकल पा रहा था. वह अपने पिता से बात करने के लिए हिम्मत जुटाने का प्रयास कर रही थी. उतने मे मीनू का भाई अंकित, उम्र लगभग तीस के आस पास, गंभीर व्यक्ति, हमेशा किसी सोच मे खोया हुआ, ढीला ढालसा रहन सहन, घर मे से वहाँ आ गया. वह मीनू के बगल मे जाकर खड़ा हो गया. मीनू के गर्दन अभी भी झुकी हुई थी. उसका भाई बगल मे आकर खड़ा होने से उसमे थोड़ा धाँढस बँध गया. वह गर्दन नीचे ही रख कर अपनी हिम्मत जुटाकर एक एक शब्द तोल्मोल कर बोली, "वह एक अच्छा लड़का है... आप उसे एक बार मिल तो लो..."

"चुप बैठो... मूर्ख... मुझे उससे मिलने की बिल्कुल इच्छा नही... अगर तुम्हे इस घर मे रहना है तो तुम मुझे दुबारा उसके साथ दिखनी नही चाहिए... समझी..." उसके पिता ने अपना अंतिम फ़ैसला सुना दिया.

मीनू के आँखों मे आँसू आगये और वहाँ से अपने छिपते हुए वह घर के अंदर दौड़ पड़ी. अंकित सहानुभूति से उसे अंदर जाते हुए देखता रहा.

घर मे किसी की भी पिताजी से बहस करने की हिम्मत नही थी.

अंकित हिम्मत जुटाकर उसके पिताजी से बोला, "पॅपा.... आपको ऐसा नही लगता कि आप थोड़े ज़्यादा ही कठोर हो रहे हो... आपने कम से कम मीनू क्या बोलना चाहती है यह सुनना चाहिए... और एक बार वक्त निकाल कर उस लड़के से मिलने मे क्या हर्ज़ है..?"

"में उसका बाप हूँ... उसका भला बुरा मेरे सिवा और कौन जान सकता है...? और तुम्हारी नसीहत तुम्हारे पास ही रखो... मुझे उसके तुम्हारे जैसे हुए हाल देखने की बिल्कुल इच्छा नही है... तुमने भी एक दूसरी कास्ट वाली लड़की से शादी की थी.. आख़िर क्या हुआ...? तुम्हारी सब प्रॉपर्टी हड़प कर उसने तुम्हे भगवान भरोसे छोड़ दिया..." उसके पिताजी तेज़ी से कदम बढ़ाते हुए गुस्से से कमरे से बाहर जाने लगे.

"पॅपा आदमी का स्वाभाव आदमी-आदमी मे फ़र्क लाता है... ना कि उसका रंग, या उसकी कास्ट..." अंकित उसके पिताजी को बाहर जाते हुए उनकी पीठ की तरफ देख कर बोला.

उसके पिताजी जाते जाते अचानक दरवाजे मे रुक गये और उधर ही मुँह रखते हुए कठोर लहजे मे बोले, "और तुम्हे उसकी पैरवी करने की बिल्कुल ज़रूरत नही... और ना ही उसे सपोर्ट करने की..."

अंकित कुछ बोले इसके पहले ही उसके पिताजी वहाँ से जा चुके थे.

इधर मीनू के घर के बाहर अंधेरे मे खिड़की के पास छिप कर एक काला साया अंदर चल रहा यह सारा नज़ारा देख और सुन रहा था.

क्लास मे एक लेडी टीचर पढ़ा रही थी. क्लास मे कॉलेज के छात्र ध्यान देकर उन्हे सुन रहे थे. उन्ही छात्रों मे शरद और मीनू बैठे हुए थे.

"सो दा मौरल ऑफ दा स्टौरी ईज़... कुछ भी फ़ैसला ना लेते हुए बिचमे ही लटकने से अच्छा है कुछ तो एक फ़ैसला लेना..." टीचर ने अबतक पढ़ाए पाठ का निष्कर्ष संक्षेप मे बताया.

मीनू ने छुप कर एक कटाक्ष शरद की तरफ डाला. दोनो की आँखें मिल गयी. दोनो भी एक दूसरे की तरफ देख मुस्कुराए. मीनू ने एक नोटबुक का पन्ना शरद को दिखाया. उस नोटबुक के पन्ने पर बड़े अक्षरों मे लिखा था 'लाइब्ररी'. शरद ने हाँ मे अपना सर हिलाया. उतने मे पीरियड बेल बजी. पहले टीचर और बाद मे छात्र धीरे धीरे क्लास से बाहर जाने लगे.

शरद हमेशा की तरह जब लाइब्ररी मे गया तब ब्रेक टाइम होने से वहाँ कोई भी छात्र नही थे. उसने मीनू को ढूँढने के लिए इधर उधर नज़र दौड़ाई. मीनू एक कोने मे बैठकर किताब पढ़ रही थी. या कम से कम वैसा दिखावा करने की चेष्टा कर रही थी. मीनू ने आहट होतेही किताब से सर उपर उठाकर उधर देखा.

दोनो की नज़रे मिलते ही वह वहाँ से उठ कर किताबों के रॅक के पीछे जाने लगी. शरद भी उसके पीछे पीछे जाने लगा. एक दूसरे से कुछ भी ना बोलते हुए या कुछ भी इशारा ना करते हुए सबकुछ हो रहा था. उनका यह शायद रोज का दिन क्रम होगा. मीनू कुछ ना बोलते हुए भले ही रॅक के पीछे जा रही थी लेकिन उसके दिमाग़ मे विचारों का तूफान उमड़ पड़ा था.

जो भी हो आज कुछ तो आखरी फ़ैसला लेना ही है...

ऐसे कितने दिन तक ना इधर ना उधर इस हाल मे रहेंगे...

टीचर ने जो पढ़ाए पाठ का संक्षेप मे निष्कर्ष बताया था... वही सही था...

हमे कुछ तो ठोस निर्णय लेना ही होगा...

आर या पार....

बस अब बहुत हो गया...

उसके पीछे पीछे शरद रॅक के पीछे कुछ ना बोलते हुए जा रहा था. लेकिन उसके दिमाग़ मे भी विचारों का सैलाब उमड़ पड़ा था.

हमेशा मीनू पीरियड होने के बाद लाइब्ररी मे मिलने के लिए इशारा करती थी…

लेकिन आज उसने पीरियड शुरू थी तब ही इशारा किया…

उसके घर मे कुछ अघटित तो नही घटा…

उसके चेहरे से वह किसी दुविधामे लग रही थी…

अपने घर के दबाव मे आकर वह मुझे छोड़ तो नही देगी…

अलग अलग प्रकार के विचार उसके दिमाग़ मे घूम रहे थे.

क्रमशः…………………..
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09-02-2018, 12:11 PM,
#17
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--9

गतान्क से आगे………………………

रॅक के पीछे कोने मे किसी के नज़र मे नही आए ऐसी जगह पर मीनू पहुँच गयी और पीछे से दीवार को अपना एक पैर लगा कर वह शरद की राह देखने लगी.

शरद उसके पास जाकर पहुँचा और उसके चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश करते हुए उसके सामने खड़ा हो गया.

“तो फिर तय हुआ… आज रात 11 बजे तैय्यार रहो…” मीनू ने कहा.

चलो मतलब अब भी मीनू अपने घर के लोगों के दबाव मे नही आई थी.

शरद को सुकून सा महसूस हुआ.

लेकिन उसने सुझाया हुआ यह दूसरा रास्ता कहाँ तक सही है…?

यह एकदम चरम भूमि का तो नही हो रही है…?

“मीनू तुम्हे नही लगता कि हम ज़रा जल्दी ही कर रहे है.. हम कुछ दिन रुकेंगे… और देखते है कुछ बदलता है क्या…” शरद ने कहा.

“शरद चीज़े अपने आप नही बदलती… हमे उन्हे बदलना पड़ता है…” मीनू ने दृढ़ता से कहा.

उनकी बहुत देर तक चर्चा चलती रही. शरद को अभी भी उसकी भूमिका सही नही लग रही थी. लेकिन एक तरह से उसका सही भी था. कभी कभी ताबड़तोड़ निर्णय लेना ही अच्छा होता है.. शरद सोच रहा था.

लेकिन इस फ़ैसले के लिए में अब भी पूरी तरह से तैय्यार नही हूँ…

मुझे मेरे घर के लोगों के बारे मे भी सोचना चाहिए…

लेकिन नही हम कितने दिन तक इस तरह बीच मे लटके रहेंगे…

हमे कुछ तो ठोस कदम उठाना ज़रूरी है…

शरद अपना एक फ़ैसले पर पहूचकर दृढ़ता से उसपर कायम रहने का प्रयास कर रहा था.

उधर रॅक के पीछे उन दोनो की चर्चा चल रही थी और इधर दो रॅक छोड़ कर एक साया उन दोनो की सब बातें सुन रह था.

शरद के दिमाग़ मे विचारों की कशमश चल रही थी. अब वह जो फ़ैसला लेनेवाला था उसकी वजह से होनेवाले सब परिणामों के बारे मे वह सोच रहा था. मीनू के साथ लाइब्ररी मे किए चर्चा से दो-तीन टेट एकदम सॉफ हो गयी थी -

एक तो मीनू भले ही उपर से ना लगे लेकिन अंदर से वह बहुत गंभीर और ज़बान की पक्की है....

वह किसी भी हाल मे मुझे नही छोड़ेगी....

या फिर वैसा सोचेगी भी नही....

लेकिन अब उसे अपने आपका ही भरोसा नही लग रहा था...

में भी उसकी तरह अंदर से गंभीर और पक्का हूँ क्या...?

बुरे वक्त मे मेरा उसके प्रति प्रेम वैसा ही कायम रहेगा क्या...?

या बुरे वक्त मे वह बदल सकता है...?

वह अब खुद को ही आजमा रहा था. वक्त ही वैसा आया था की उसे खुद का ही विश्वास नही लग रहा था.

परंतु नही...

मुझे ऐसा ढीला ढाला रहकर नही चलेगा...

मुझे भी कुछ ठोस फ़ैसला लेना होगा...

और एक बार निर्णय लिया तो फिर बाद मे उसके कुछ भी परिणाम हो, मुझे उसपर कायम रहना होगा...

शरद ने आख़िर मन ही मन एक ठोस फ़ैसला लिया...

अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर वह उसे जिसकी ज़रूरत पड़ेगी वह सारी चीज़ें अपने बॅग मे भरने लगा...

सब कुछ ठीक तो होगा ना...?

मुझे मेरे घरवालों को सब बताना चाहिए क्या...?

सोचते सोचते उसने अपनी सारी चीज़ें बॅग मे भर दी...
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09-02-2018, 12:11 PM,
#18
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
कपड़े वाईगेरह बदल कर उसने कुछ बचा नही इसकी तसल्ली की. आख़िरी बची हुई एक चीज़ डालकर उसने बॅग की चैन लगाई. चैन का एक बस हिक्फ ऐसा आवाज़ हुआ. उसने वह बॅग उठाकर सामने टेबल पर रख दिया और टेबल के सामने रखे कुरसीपर थोड़ा सुसताने के लिए बैठ गया. वह एक-दो पल ही बैठा होगा कि इतने मे उसका मोबाइल विब्रेट हो गया. उसने जेब से मोबाइल निकाल कर उसका डिसप्ले देख. डिसप्ले पर उसे 'मीनू' ऐसे डिजिटल शब्द दिखाई दिए. वह तुरंत कुर्सी से उठ खड़ा हुआ. मोबाइल बंद किया, बॅग उठाई और धिरेसे कमरे से बाहर निकल गया.

इधर उधर देखते हुए सावधानी से शरद मुख्य दरवाजे से बाहर आ गया और उसने दरवाजा बाहर से खींचकर बंद कर लिया. फिर जॉगिंग किए जैसे वह कंधे पर बॅग लेकर कॉंपाउंड के गेट के पास गया. बाहर रास्ते पर उसे एक टॅक्सी रुकी हुई दिखाई दी. कॉंपाउंड के गेट से बाहर निकल कर उसने गेट भी खींचकर बंद कर लिया. टॅक्सी के पास पहुँचते ही उसे टॅक्सी मे पिछली सीट पर बैठकर उसकी राह देख रही मीनू दिखाई दी. दोनो की नज़रे मिली. दोनो एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुराए. झट से जाकर वह बॅग के साथ मीनू के बगल मे टॅक्सी मे घुस गया. टॅक्सी के दरवाजे की ज़्यादा आवाज़ ना हो इसका ख़याल रखते हुए उसने सावधानी से दरवाजा धीरे से खींच लिया. दोनो एक दूसरे की बाहों मे घुस गये. उनके चेहरे पर एक विजय हास्य फैल गया था.

अब उनकी टॅक्सी घर से बहुत दूर तेज़ी दौड़ रही थी. वे दोनो तेज़ी से दौड़ती टॅक्सी के खिड़की से आ रहे तेज हवा के झोंके का आनंद ले रहे थे. लेकिन उन्हे क्या पता था कि एक काला साया पीछे एक दूसरी टॅक्सी मे बैठकर उनका पीछा कर रहा था...

... इंस्पेक्टर धरम हक़ीक़त बयान करते हुए रुक गया. इंस्पेक्टर राज ने वह क्यों रुका यह जान ने के लिए उसके तरफ देखा. इंस्पेक्टर धरम ने सामने रखा ग्लास उतार कर पानी का एक घूँट लिया. तब तक ऑफीस बॉय चाइ पानी लाया था. इंस्पेक्टर धरम ने वह उसके सामने बैठे इंस्पेक्टर राज और उसके साथ आए पवन को परोसने के लिए ऑफीस बॉय को इशारा किया.

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ऑफीस बॉय चाइ पानी लेकर आने से धरम जो हक़ीक़त बता रहा था उसमे व्यवधान पड़ गया. राज को और उसके साथी पवन को आगे की कहानी सुन ने की बड़ी उत्सुकता हो रही थी. सब लोगों का चाइ पानी होने के बाद इंस्पेक्टर धरम फिर से आगे की कहानी बता ने लगा....

.... शरद की और मीनू की टॅक्सी रेलवे स्टेशन पर पहुँच गयी. दोनो टॅक्सी से उतर गये. टॅक्सी वाले का किराया चुका कर वे अपना सामान लेकर टिकेट की खिड़की के पास चले गये. कहाँ जाना है यह उन्होने अब तक तय नही किया था. बस यहाँ से निकल जाना है इतना ही उन्होने तय किया था. एक ट्रेन प्लॅटफार्म पर खड़ी ही थी. शरद ने जल्दी से उसी ट्रेन का टिकेट निकाला.

प्लॅटफार्म पर वे अपना टिकेट लेकर अपना रेलवे डिब्बा ढूँढने लगे. डिब्बा ढूँढने के लिए उन्हे ज़्यादा मशक्कत नही करनी पड़ी. मुख्य दरवाजे से उनका डिब्बा नज़दीक ही था. ट्रेन निकल ने का समय हो गया था इसलिए वे तुरंत डब्बे मे चढ़ गये. डिब्बे मे चढ़ने के बाद उन्होने अपनी सीट्स ढूँढ ली. अपने सीट के पास आपना सारा सामान रख दिया. उतने मे गाड़ी हिलने लगी. गाड़ी निकलने का वक्त हो चुका था. जैसे ही गाड़ी निकलने लगी वैसे मीनू शरद को लेकर डिब्बे के दरवाजे के पास गयी. उसे वहाँ से जाने से पहले अपने शहर को एक बार जी भर के देख लेना था...

ट्रेन मे मीनू और शरद एक दम पास पास बैठे थे. उन्हे दोनो को एक दूसरे का सहारा चाहिए था. आख़िर उन्होने जो फ़ैसला किया था उसके बाद उन्हे बस एक दूसरे का ही तो सहारा था. अपने घर से सारे रिश्ते, सारे बंधन तोड़कर वे बहुत दूर जा रहे थे. मीनू ने आपना सर शरद के कंधे पर रख दिया.

"फिर.... अब कैसा लग रहा है..." शरद ने माहौल थोड़ा हल्का करने के उद्देश्य से पूछा.

"ग्रेट..." मीनू भी झूठ मूठ हंसते हुए बोली.

शरद समझ सकता था कि भले ही वह उपर से दिखा रही हो लेकिन घर छोड़ने का दुख उसको होना लाजमी था. उसे साहारा देने के उद्देश्य से उसने उसे कस कर पकड़ लिया...

"तुम्हे कुछ याद आ रहा है...?" शरद ने उसे और भी कस कर पकड़ते हुए पूछा.

मीनू ने प्रश्नर्थक मुद्रा मे उसकी तरफ देखा.

"नही मतलब कोई घटना कोई प्रसंग... जब मैने तुम्हे ऐसे ही कस कर पकड़ा था.."

"में कैसे भूल सकती हूँ उस घटना को..."मीनू उसने जब ब्लंकेट से लपेट कर उसे कस कर पकड़ा था वह प्रसंग याद कर बोली.

"और तुम भी..."मीनू उसके गाल पर हाथ मलते हुए उसे मारे हुए थप्पड़ की याद देते हुए बोली.

दोनो खिलखिला कर हंस पड़े.

जब दोनो का हँसना थम गया मीनू इतराते हुए उसे बोली, "आइ लव यू..."

"आइ लव यू टू..." उसने उसे और नज़दीक खींचते हुए कहा.

दोनो भी कस कर एक दूसरे के आलिंगन मे बँध हो गये.

मीनू ने ट्रेन की खिड़की से झाँक कर देखा. बाहर सब अंधेरा छाया हुआ था. शरद ने मीनू की तरफ देखा.

"तुम्हे पता है... तुम्हे माफी माँगते वक्त वह फूलों का गुलदस्ता मैं क्यों लाया था...?" शरद फिर से उसे वह माफी माँग ने का प्रसंग याद दिलाते हुए बोला. वह प्रसंग वह कैसे भूल सकता था...? उसी पल मे तो प्रेम के बीज बोए गये थे.

"जाहिर है माफी ज़्यादा एफेक्टिव होना चाहिए इसलिए..." मीनू ने कहा...

"नही... अगर में सच कहूँ तो तुम्हे विश्वास नही होगा..." शरद ने कहा.

"फिर ... क्यों लाया था...?"

"मेरे हाथ फिर से कोई अजीब इशारे कर गड़बड़ ना कर दे इसलिए... नही तो फिर से शायद और एक थप्पड़ मिला होता..." शरद ने कहा.

मीनू और शरद फिर से खिल खिलाकर हंस पड़े.

धीरे धीरे उनकी हँसी थम गयी. फिर थोड़ी देर सब सन्नाटा छाया रहा. सिर्फ़ रेलवे का आवाज़ आता रहा. उस सन्नाटे मे ना जाने क्यूँ मीनू को लगा कि कोई इस ट्रेन मे बैठकर अपना पीछा तो नही कर रहा है...

नही...कैसे मुमकिन है...

हम भाग जानेवाले है यह सिर्फ़ शरद और उसके सिवा और किसी को भी तो पता नही था...
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09-02-2018, 12:12 PM,
#19
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
रेलवे प्लॅटफार्म पर जैसे लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा था. भीड़ मे लोग अपना अपना सामान लेकर बड़ी मुश्किल से रास्ता निकालते हुए वहाँ से जा रहे थे. शायद अभी अभी कोई ट्रेन आई हो. वही प्लॅटफार्म पर एक कोने मे चंदन, सुनील, अशोक और सिकंदर पत्ते खेल रहे थे. उन चारों मे शिकेन्दर, उसके हावभाव से और उसका जो तीनो पर एक प्रभाव दिख रहा था उससे, उनका लीडर लग रहा था. शिकेन्दर लगभग 25 के आस पास, कसे हुए और मजबूत शरीर का मालिक, एक लंबा चौड़ा युवक था.

"देखो अपनी गाड़ी आने मे अभी बहुत वक्त है.. कम से कम और तीन गेम हो सकते है..." शिकेन्दर ने पत्ते बाँट ते हुए कहा.

"सुनील तुम इस काग़ज़ पर पायंट्स लिखो..." अशोक ने एक हाथ से पत्ते पकड़ते हुए और दूसरे हाथ से जेब से एक काग़ज़ का टुकड़ा निकाल कर सुनील के हाथ मे देते हुए कहा.

"और, लालटेन ज़्यादा हुशियारी नही चलेगी' सुनील ने चंदन को ताकीद दी. वे चंदन को उसके चश्मे की वजह से लालटेन ही कहते थे. शिकेन्दर का ध्यान पत्ते खेलते वक्त यूँ ही प्लॅटफार्म पर उमड़ पड़ी भीड़ की तरफ गया.

भीड़ मे मीनू और शरद एक दूसरे का हाथ पकड़ कर किसी परदेसी अजनबी की तरह चल रहे थे.

उसने मीनू की तरफ सिर्फ़ देखा और खुले मुँह देखता ही रह गया.

"बाप, क्या माल है..." उसके खुले मुँह से अनायास ही निकल गया. सुनील, चंदन और अशोक भी अपना गेम छोड़ कर उधर देखने लगे. उनका भी देखते हुए खुला मुँह बंद होने को तैय्यार नही था.

"कबूतरी कबूतर के साथ भाग आई है शायद..." शिकेन्दर के अनुभवी नज़र ने भाँप लिया.

'उस कबूतर के बजाय मुझे उसके साथ रहना चाहिए था..." सुनील ने कहा.

शिकेन्दर ने सबके पास से पत्ते छीन कर लेते हुए कहा, 'देखो, अब यह गेम बंद कर दो... हम अब एक दूसरा ही गेम खेलते है..."

सबके चेहरे खुशी से दमक ने लगे. वे शिकेन्दर के बोलने का छिपा अर्थ जानते थे. वैसे वे वह गेम कोई पहली बार नही खेल रहे थे. सब उत्साह से भरे एक दम उठकर खड़े हो गये...

"अरे, देखो ज़रा ख़याल रहे.... साले कहीं घुस जाएँगे तो बाद मे मिलेंगे नही..." अशोक ने उठते हुए कहा.

फिर वे उनके ख़याल मे ना आए इतना फासला रखते हुए उनके पीछे पीछे जाने लगे.

"आए...लालटेन तुम ज़रा आगे जाओ... साले पहले ही तुझे चश्मे से ज़रा कम ही दिखता है..." शिकेन्दर ने चंदन को आगे धकेलते हुए कहा. चंदन मीनू और शरद के ख़याल मे नही आए ऐसा सामने दौड़ते हुए गया.

दिन भर इधर उधर घूमने मे वक्त कैसा निकल गया यह शरद और मीनू को पता ही नही चला. कुछ देर बाद शाम भी हो गयी. शरद और मीनू एक दूसरे का हाथ पकड़ कर मस्त मज़े मे फुतपाथ पर चल रहे थे. सामने एक जगह रास्ते पर हार्ट शेप के हिड्रोज़ से भरे लाल गुब्बारे बेचनेवाला फेरीवाला उन्हे दिखाई दिया. वे उसके पास गये. शरद ने गुब्बारों का एक बड़ा सा दस्ता खरीद कर मीनू को दिया. पकड़ ने के लिए जो धागा था उसके हिसाब से वह दस्ता बड़ा होने से धागा टूट गया और वह दस्ता उड़कर आकाश की ओर निकल पड़ा. शरद ने दौड़कर जाकर, उँची उँची छलांगे लगाकर उसे पकड़ने का प्रयास किया लेकिन वह धागा उसके हाथ नही आया. वे लाल गुब्बारे मानो एकदुसरे को धक्के देते हुए उपर आकाश मे जा रहे थे. शरद की उस धागे को पकड़ ने की जी तोड़ कोशिश देख कर मीनू खिल खिलाकर हंस रही थी.

और उनके काफ़ी पीछे शिकेन्दर, अशोक, चंदन और सुनील किसी के ख़याल मे नही आए इसका ध्यान रखते हुए उनका पीछा कर रहे थे.

मीनू और शरद एक जगह आइस्क्रीम खाने के लिए रुक गये. उन्होने एक कों लिया और उसमे ही दोनो खाने लगे. आइस्क्रीम खाते वक्त मीनू का ध्यान शरद के चेहरे की तरफ गया और वह खिलखिलाकर हंस पड़ी.

"क्या हुआ...?" शरद ने पूछा.

"आईने मे देखो.." मीनू वही पास एक गाड़ी को लगे आईने की तरफ इशारा कर बोली.

शरद ने आईने मे देखा तो उसके नाक के सिरे को आइस्क्रीम लगा था. अपना वह हुलिया देख कर उसे भी हँसी आ रही थी. उसने वह पोंछ लिया और एक प्रेम भरी नज़र से मीनू की तरफ देखा.

"सचमुच अपनी रूचि कितनी मिलती जुलती है..." मीनू ने कहा.

"फिर... वह तो रहने वाली है... क्यों कि... वी आर दा पर्फेक्ट मॅच..." शरद गर्व से बोल रहा था.

आइस्क्रीम खाते हुए अचानक मीनू का ख़याल दूर खड़े शिकेन्दर की तरफ गया. शिकेन्दर ने झट से अपनी नज़र फेर ली. मीनू को उसकी नज़र अजीब लगी थी और उसकी गतिविधियाँ भी..

"शरद मुझे लगता है अब हमे यहाँ से निकलना चाहिए..."मीनू ने कहा और वह वहाँ से निकल पड़ी. शरद उलझन मे सहमा सा उसके पीछे पीछे जाने लगा...

वहाँ से आगे काफ़ी समय तक चलने के बाद वे एक कपड़े के दुकान मे घुस गये. अब काफ़ी रात हो चुकी थी. मीनू को शक था कि कहीं वह पहले दिखा हुआ लड़का उनका पीछा तो नही कर रहा है. इसलिए उसने दुकान मे जाने के बाद वहाँ से एक सन्करि दरार से बाहर झाँक कर देखा. बाहर शिकेन्दर उसके और दो साथी के साथ चर्चा करते हुए इधर उधर देख रहा था. शरद उन लोगों को दिख सके ऐसे जगह पर खड़ा था.

"शरद पीछे मुड़कर मत देखो.. मुझे लगता है वह लड़के अपना पीछा कर रहे है..." मीनू दबे स्वर मे बोली...

"कौन..? किधर..?" शरद ने गड़बड़ाते हुए पूछा...

"चलो जल्दी यहाँ से हम निकल जाते है... वे हम तक पहुँचने नही चाहिए..." मीनू ने उसे वहाँ से बाहर निकाला.

वे दोनो लंबे लंबे कदम डालते हुए फुतपाथ पर चल रहे थे लोगों की भीड़ से रास्ता निकालते हुए वहाँ से जाने लगे.

अपना पीछा हो रहा है इसका अब पूरा यकीन मीनू और शरद को हो चुका था. वे दोनो भी घबराए और सहमे हुए थे. यह शहर उनके लिए नया था. वे उन चोरों से बचने के लिए जिधर रास्ता मिलता उधर जा रहे थे. चलते चलते वे एक ऐसे सुनसान जगह पर आए कि जहाँ लोग लगभग नही के बराबर थे. वैसे रात भी काफ़ी हो चुकी थी. यह भी एक वहाँ लोग ना होने की वजह हो सकती थी. उसने पीछे मुड़कर देखा. शिकेन्दर और उसके दोस्त अभी भी उनका पीछा कर रहे थे. मीनू का दिल धड़कने लगा. शरद को भी कुछ सूझ नही रहा था. अब क्या किया जाय, दोनो भी इस सहमे हुए थे. वे तेज़ी से चल रहे थे और उनसे जितना दूर जा सकते है उतनी कोशिश कर रहे थे. आगे रास्ते पर तो और भी घना अंधेरा था. वे दोनो और उनके पीछे उनका पीछा कर रहे वे चार लड़के इनके अलावा उनको वहाँ और कोई भी नही दिख रहा था.

"लगता है उनके ख़याल मे आया है कि हम उनका पीछा कर रहे है..." चंदन अपने साथियों से बोला.

"आने दो.. वह तो कभी ना कभी उनके ख़याल मे आने ही वाला था..." शिकेन्दर ने बेफिक्र अंदाज़ मे कहा.

"वे बहुत डरे हुए भी लग रहे है..." सुनील ने कहा.

"डरना तो चाहिए... अब डर के वजह से ही अपना काम होनेवाला है.. कभी कभी डर ही आदमी को कमजोर बना देता है..." अशोक ने कहा.

शरद ने पीछे मुड़कर देखा तो वे चारों तेज़ी से उनकी तरफ आ रहे थे.

"मीनू.. चलो दौड़ो..." शरद उसका हाथ पकड़ते हुए बोला.

एक दूसरे का हाथ पकड़ कर वे अब ज़ोर से दौड़ने लगे.

"हमे पोलीस मे जाना चाहिए क्या...?" मीनू ने दौड़ते हुए पूछा.

"अब यहाँ कहाँ है पोलीस.... और अगर हम ढूंढकर गये भी.. तो वे भी हमे ही ढूँढ रहे होंगे... अब तक तुम्हारे घरवालों ने पोलीस मे रिपोर्ट दर्ज की होगी..." शरद दौड़ते हुए किसी तरह बोल पा रहा था.

क्रमशः……………………
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09-02-2018, 12:12 PM,
#20
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--10

गतान्क से आगे………………………

दौड़ते हुए वे घने अंधेरे मे डूबे हुए एक सन्करि गली मे घुस गये. शिकेन्दर और उसके दोस्त भी उनके पीछे ही थे. वे जब गली मे घुसने ही वाले थे कि उतने मे एक बड़ा सा ट्रक रास्ते से उनके और उस गली के बीच मे से गुजर गया. वे ट्रक पास होने तक रुक गये और जब ट्रक पास हो चुका तब उनको उस गली मे कोई नही दिख रहा था. वे गली मे घुस गये. गली के दूसरे सिरे तक तेज़ी से दौड़ गये. वहाँ रुक कर उन्होने आजूबाजू देखा. लेकिन उन्हे शरद और मीनू कही नही देखाई दे रहे थे.

शिकेन्दर और उसके दोस्त इधर उधर देखते हुए एक चोराहे पर खड़े हो गये. उन्हे मीनू और शरद कहीं भी नही दिखाई दे रहे थे.

"हम सब लोग चारो तरफ फैलकर उन्हे ढूँढते है.. वे हमारे हाथ से छूटने नही चाहिए..." शिकेन्दर ने कहा.

चार लोग चार दिशा मे, चार रास्ते से जाकर फैल गये और उन्हे ढूँढ ने लगे.

मीनू और शरद रास्ते के किनारे पड़े एक ड्रेनेज पाइप मे छिप गये थे. शायद ड्रेनेज पाइप्स नये डालने के लिए या बदल ने के लिए वहाँ लाकर डाले होंगे. इतने मे अचानक उन्हे उनकी तरफ दौड़ते हुए आ रहे किसी के पैरों की आहट हो गयी. वे अब वहाँ से हिल भी नही सकते थे. वे अगर इस हाल मे उन्हे मिले तो उनके पास करने के लिए कुछ नही बचा था. उन्होने बिल्ली के जैसे अपनी आँखें मूंद कर अपने आपको जितना हो सकता है उतना सिमटने की कोशिस की. इसके अलावा वे कर भी क्या सकते थे...?

अब उनके ख़याल मे आया कि वह दौड़कर आनेवाला, उन्ही चारों मे से एक, अब उनके पाइप के पास पहुँच गया है.. वह नज़दीक आते ही शरद और मीनू एकदम शांत लगभग साँसे रोक कर कुछ भी हरकत ना करते हुए वैसे ही छिपे रहे. वह अब पाइप के एकदम पास आकर पहुँचा था.

वह उन चारों मे से ही एक चंदन था. उसने आजूबाजू देखा.

"साले कहाँ गायब हो गये...?" वह चिढ़कर अपने आप से ही बड़बड़ाया.

उतने मे चंदन का पाइप की तरफ ख़याल गया.

ज़रूर साले इस पाइप मे छिपे होंगे...

उसने अनुमान लगाया. वह पाइप के और करीब गया. वह अब झुक कर पाइप मे देखने ही वाला था. इतने मे....

"चंदन... ज़रा इधर तो आओ... जल्दी..." उधर से शिकेन्दर ने उसे आवाज़ दिया.

चंदन पाइप मे झुक कर देखते देखते रुक गया, उसने आवाज़ आई उस दिशा मे देखा और मुड़कर दौड़ते हुए उसे दिशा मे चला गया.

जानेवाले पेरो की आवाज़ आते ही मीनू और शरद ने सुकून की सांस ली.

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